दिल मांगे मोर

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 4

विस्तृत पूछताछ में नितिन की हत्या का ऐसा चौंकाने वाला सच सामने आया जिस ने पुलिस को भी सोचने पर मजबूर कर दिया.

दरअसल एक ही गांव के रहने वाले नितिन व सुनील में दोस्ताना संबंध थे. सुनील उम्र में नितिन से थोड़ा बड़ा था. दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. सुनील अलीगढ़ में रह कर बीफार्मा कर रहा था. नितिन भी बीफार्मा करना चाहता था. 2012 में जब उस ने इंटरमीडिएट कर लिया तो सुनील ने उस का एडमिशन अलीगढ़ के शिवदान कालेज में करा दिया. दोनों साथसाथ ही रहने भी लगे. सुनील के साथ वासिफ भी बीफार्मा कर रहा था. इसी नाते नितिन के साथ भी उस के दोस्ताना संबंध बन गए.

सुनील और वासिफ का बीफार्मा का अंतिम वर्ष था जबकि नितिन का पहला. तीनों का समय आराम से बीतने लगा. सुनील अपने ही गांव की लड़की पूजा से अकसर बातें किया करता था. नितिन यह तो जानता था कि वह किसी लड़की के संपर्क में है लेकिन वह कौन है इस बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी. सुनील पूजा को दिल से चाहता था. उस ने उस के साथ दुनिया बसाने का ख्वाब संजो कर साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं. लेकिन उसे यह मालूम नहीं था कि जिस पूजा को वह दिलोजान से चाहता है, वही पूजा नितिन की भी गर्लफ्रेंड है.

कुछ दिन बाद सुनील ने महसूस किया कि पूजा उस से बात करने में पहले की तरह दिलचस्पी नहीं लेती.

एक दिन नितिन कमरे में अकेला था. वह मोबाइल का स्पीकर औन कर के पूजा से बात कर रहा था. जब वह प्यार भरी बातों में मशगूल था, तभी सुनील चुपचाप उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया और दोनों की बातें सुन ने लगा. उन की बातें उस के दिमाग में धमाका सा कर गईं. क्योंकि उस ने पूजा की आवाज पहचान ली थी.

अचानक नितिन ने सुनील को देखा तो वह सकपका गया. उस ने यह कह कर फोन बंद कर दिया कि बाद में बात करेगा. फिर उस ने सुनील से कहा, ‘‘भैया आप अचानक?’’

‘‘अचानक कहां, मैं तो काफी देर से तुम्हारी बातें सुन रहा था.’’ उस ने हंस कर मजाकिया लहजे में कहा तो नितिन ने सफाई देनी चाही, लेकिन सुनील उसे बीच में ही टोकते हुए बोला, ‘‘रहने दे, छुपा रूस्तम निकला तू तो.’’

सुनील के कानों में रहरह कर फोन पर दूसरी ओर से आने वाली आवाज गूंज रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह लड़की पूजा होगी. वह अपने मन को समझा रहा था कि पूजा जैसी आवाज वाली कोई दूसरी लड़की रही होगी. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूछ लिया, ‘‘वह कौन लड़की थी जिस से बात कर रहे थे?’’

नितिन को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि पूजा के साथ सुनील का भी कोई चक्कर है. इसलिए उस ने बता दिया कि जिस से वह बात कर रहा था वह गांव की ही पूजा थी. सुन कर सुनील पर बिजली सी गिरी. वह समझ गया कि पूजा अचानक उस में दिलचस्पी क्यों नहीं ले रही है. उस के लिए यह बड़ा आघात था. उस ने नितिन को यह नहीं बताया कि पूजा के साथ उस का पहले से ही चक्कर चल रहा है.

बहरहाल, बात वहीं खत्म हो गई. लेकिन उस दिन के बाद नितिन के प्रति उस की सोच बदल गई. वह उसे अपना दुश्मन समझने लगा. पूजा के प्रति भी उस के दिल में गुस्सा था. उस ने पूजा से तो कुछ नहीं कहा लेकिन इस के बाद वह थोड़ा परेशान जरूर रहने लगा. दिन बीतते गए. एक दिन सुनील को परेशान देख कर नितिन ने पूछा, ‘‘क्या बात है भैया, आजकल परेशान से रहते हो?’’

‘‘मेरी परेशानी की वजह तुम हो.’’ सुनील ने गंभीर हो कर कहा तो नितिन को उस की बात पर यकीन नहीं हुआ. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्यों कह रहा है. सुनील कुछ देर खामोश रहा फिर उस ने नितिन को समझाया, ‘‘नितिन, तुम अपने घर के इकलौते बेटे हो. इसलिए अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. रही बात पूजा की तो उसे मैं देख लूंगा.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि पूजा को मैं तुम से पहले से जानता हूं. वह मेरी गर्लफ्रेंड है. उस से ज्यादा बात मत किया करो.’’ सुनील ने कहा तो नितिन बुरी तरह चौंका. उसे यह पता नहीं था कि सुनील जिस लड़की से बातें किया करता था वह पूजा ही थी. इस मुद्दे पर दोनों में बहस हो गई. सुनील ने उसी वक्त पूजा को फोन कर के उसे खरीखोटी सुनाई. साथ ही कहा भी कि वह नितिन पर ज्यादा ध्यान न दे.

इस से नितिन और सुनील के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए. इस के बाद सुनील जब तब नितिन को समझाने लगा कि वह पूजा के चक्कर में न पड़े. लेकिन उस के लिए परेशानी की बात यह थी कि अब पूजा ने उसे और भी ज्यादा नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था. पूजा के मुद्दे को ले कर नितिन और सुनील में जब तब कहासुनी हो जाती थी. इसी को ले कर एक दिन सुनील ने नितिन पर हाथ छोड़ दिया. उस वक्त वासिफ वहीं मौजूद था. उस ने जैसेतैसे दोनों के बीच समझौता करा दिया. फलस्वरूप बात आई गई हो गई.

सन 2013 में सुनील और वासिफ की पढ़ाई पूरी हुई, तो दोनों को हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी में नौकरी मिल गई. अकेला होने की वजह से नितिन ने भी अलीगढ़ का कोर्स बीच में छोड़ कर मेरठ में दाखिला ले लिया और परमजीत के साथ गंगापुरम में रहने लगा.

आधुनिकता की चकाचौंध कई बार इंसान पर ज्यादा ही हावी हो जाती है. शहरों में लड़केलड़कियों के बीच दोस्ताना रिश्ते कोई नई बात नहीं होती. गांव से निकल कर आए नितिन के लिए यह रोमांच की बात थी. पूजा के अलावा भी अन्य कई लड़कियों से उस की दोस्ती थी. उन से बात करने के लिए वह एक मोबाइल पर 3 सिम कार्ड इस्तेमाल किया करता था.

उधर सुनील नौकरी पर चला तो गया था, लेकिन उस के दिमाग में हर वक्त पूजा व नितिन ही घूमते रहते थे. हालांकि नितिन को वह कई बार समझाबुझा चुका था, लेकिन उस के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि नितिन की वजह से पूजा ने उस से दूरी बना ली है. बाद में जब पूजा ने उस से बात करनी लगभग बंद कर दी तो वह परेशान रहने लगा. ऐसे में नितिन उसे अपना सब से बड़ा दुश्मन नजर आता था.

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 3

पुलिस एक महीने तक इस मामले की जांचपड़ताल में उलझी रही. लेकन नतीजा शून्य ही रहा. नितिन ने अलीगढ़ से पढ़ाई की थी. हत्या वाली रात जो युवक उस के बेड के पास देखा गया था उस ने भी खुद को अलीगढ़ का ही रहने वाला बताया था. शायद अलीगढ़ से ही कोई क्लू मिल जाए यह सोच कर एसआई संजीव कुमार शर्मा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम अलीगढ़ भेजी गई.

पुलिस ने वहां पूछताछ भी की. लेकिन नितिन की किसी रंजिश के बारे में पता नहीं चल सका. कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस टीम वापस लौट आई. नितिन की हत्या पुलिस के लिए पहेली बन गई थी. हत्या का खुलासा नहीं हो सका तो नितिन के घर वालों ने डीआईजी के. सत्यनारायण से मुलाकात कर के हत्यारे को पकड़ने की मांग की. इस मामले को ले कर पुलिस की किरकिरी हो रही थी. पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे थे. डीआईजी के. सत्यनारायण और एसएसपी ओंकार सिंह इस मामले को ले कर काफी परेशान थे.

अस्पताल में हुई हत्या का यह केस पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. उन्होंने एसपी (सिटी) ओमप्रकाश, सीओ विकास त्रिपाठी और सर्विलांस टीम के साथ मीटिंग कर के जांच की समीक्षा की और पूरे मामले की नए सिरे से जांच के निर्देश दिए. इस बीच थाना मैडिकल प्रभारी का स्थानांतरण कर के बचन सिंह सिरोही को इंचार्ज बना दिया गया था.

नए सिरे से जांच की कड़ी में पुलिस ने नितिन के मोबाइल के इंटरनेशनल मोबाइल इक्विपमेंट आईडेंटिटी (आईएमइआई) नंबर के जरिए पता करने की कोशिश की कि क्या उस मोबाइल में और भी सिमकार्ड इस्तेमाल किए गए थे. इस से पुलिस को 2 और नंबर मिल गए. उन नंबरों का इस्तेमाल हत्या से पहले किया जाता रहा था. ये दोनों नंबर भी नितिन के ही नाम पर थे. उन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई गई. पता चला कि उन में से एक नंबर ऐसा था जिस पर अकसर बातचीत और एसएमएस होते थे.

पुलिस ने उस नंबर की जानकारी जुटाई तो वह नंबर नितिन के गांव की एक लड़की पूजा (परिवर्तित नाम) का निकला. इस तरह कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पुलिस पूजा तक पहुंच गई. पुलिस ने पूजा के बारे में सब से पहले नितिन के पिता से पूछताछ की. उन्होंने यह तो बताया कि पूजा उन्हीं के गांव की है पर उस के नितिन से कैसे रिश्ते थे, इस बारे में रामबीर कुछ नहीं जानते थे. पुलिस ने पूजा से पूछताछ की तो पता चला उस से नितिन के गहरे दोस्ताना संबंध थे. नितिन की हत्या किस ने की, इस बारे में वह कुछ नहीं जानती थी.

नितिन के 2 नंबरों की डिटेल्स में 2 और नंबर भी मिले थे. उन नंबरों  की भी जांच की गई. उन में एक नंबर जिला मुजफ्फरनगर के थाना चरथावल क्षेत्र के गांव कुलहेड़ी निवासी अध्यापक मखदूम अली के बेटे मोहम्मद वासिफ का था और दूसरा नितिन के ही गांव के महेंद्र सिंह के बेटे सुनील कुमार का. महेंद्र कुमार सेवानिवृत्त अध्यापक थे.

यह पता चलने पर पुलिस ने एक बार फिर नितिन के पिता से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सुनील नितिन का दोस्त था. उस ने अलीगढ़ से बीफार्मा किया था. उसी की मदद से अलीगढ़ में नितिन का दाखिला कराया गया था. दोनों अलीगढ़ में 1 साल साथसाथ रहे थे, बाद में सुनील की नौकरी हिमाचल प्रदेश में लग गई थी और नितिन पढ़ाई के लिए मेरठ चला गया था.

रामबीर चौहान को सुनील पर कोई शक नहीं था. वह उसे नितिन का अच्छा दोस्त बता रहे थे. फिर भी पुलिस को लग रहा था कि हत्या के तार सुनील से जुड़े हो सकते हैं. इस की वजह यह थी कि अस्पताल में देखे गए संदिग्ध युवक का हुलिया सुनील से मिलताजुलता था. लेकिन पुलिस बिना किसी पुख्ता सुबूत के सुनील पर हाथ नहीं डालना चाहती थी. वैसे भी वह हिमाचल में था.

सुबूतों के चक्कर में पुलिस ने उस के मोबाइल की घटना वाले दिन की लोकेशन पता लगाई, तो उस के फोन की लोकेशन हिमाचल की ही मिली. लेकिन इस में एक पेंच यह था कि उस के मोबाइल से 24 और 25 अक्तूबर को कोई फोन नहीं किया गया था. जबकि इन 2 तारीखों के आगेपीछे मोबाइल का इस्तेमाल हुआ था.

उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर चेक की गई, तो पुलिस चौंकी. क्योंकि सुनील भी अपने गांव की लड़की पूजा के लगातार संपर्क में रहा था. नितिन की तरह वह भी पूजा से बात करता था और उसे एसएमएस भेजा करता था. इस जानकारी ने पुलिस को सोचने पर मजबूर कर दिया.

नितिन के मोबाइल से वासिफ का जो दूसरा नंबर मिला था पुलिस ने उस की भी काल डिटेल्स और लोकेशन हिस्ट्री हासिल की. इस से पुलिस को एक महत्त्वपूर्ण तथ्य मिल गया. 24 व 25 अक्तूबर को उस के नंबर की लोकेशन कैंट रेलवे स्टेशन, जहां हादसा हुआ था और मैडिकल कालेज की पाई गई. यह बात भी साफ हो गई कि इस बीच वासिफ और सुनील की लगातार बातें होती रही थीं. इस की गवाही दोनों की काल डिटेल्स दे रही थीं. इन तथ्यों के मद्देनजर पुलिस को नितिन की हत्या की कहानी सुनील, वासिफ और पूजा के इर्दगिर्द घूमती नजर आने लगी.

मेरठ पुलिस ने मुजफ्फरनगर पुलिस की मदद से वासिफ के बारे में खुफिया जानकारी जुटाई तो पता चला कि उस ने भी अलीगढ़ से बीफार्मा किया था. इतना ही नहीं उस ने कुछ महीने हिमाचल प्रदेश में नौकरी भी की थी, लेकिन फिलहाल वह मेरठ में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. इस से पुलिस को शक हुआ कि नितिन की हत्या में दोनों का हाथ है. पुलिस ने दोनों के नंबर सर्विलांस पर लगा दिए.

इस बीच नितिन की हत्या हुए एक महीना बीत गया. बहरहाल, पुलिस की मेहनत रंग लाई. दिसंबर के पहले सप्ताह में सुनील और वासिफ के फोन की लोकेशन मेरठ में मिलने लगी. इस पर सीओ विकास त्रिपाठी ने उन की गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में थानाप्रभारी बचन सिंह सिरोही, एसआई संजीव कुमार शर्मा, श्रवण कुमार, कांस्टेबल नरेश कुमार, सौरभ कुमार, बंटी कुमार और तेजपाल सिंह को शामिल किया गया.

7 दिसंबर की दोपहर पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि दोनों वांछित शास्त्रीनगर इलाके में मौजूद हैं. इस सूचना के आधार पर पुलिस ने दोनों को एल ब्लाक तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद पुलिस दोनों को थाने ले आई. दोनों से पूछताछ की गई, तो उन्होंने नितिन की हत्या में अपना हाथ होने से इनकार कर दिया. लेकिन जब तथ्यों के आधार पर उन से सख्ती से पूछताछ की गई, तो दोनों ऐसे मास्टरमाइंड कातिल निकले जिन्होंने न सिर्फ पुलिस जांच को भटका दिया था बल्कि पूरे 1 महीना 12 दिन तक इस में सफल भी रहे थे.

प्रेम में दांव पर जिंदगी

15 साल की प्रिया लखनऊ के बंथरा कस्बे से कुछ दूर दरोगाखेड़ा के एक प्राइवेट स्कूल में 10वीं में पढ़ती थी. उस के पिता रमाशंकर गुप्ता की जुराबगंज में हार्डवेयर की दुकान थी. प्रिया के अलावा रमाशंकर गुप्ता के 2 और बच्चे थे, जो अलगअलग स्कूलों में पढ़ रहे थे.

प्रिया देखने में सुंदर और मासूम सी थी. घर में सब लोग उसे प्यार से मुन्नू कहते थे. घर के बच्चों में वह सब से बड़ी थी, इसलिए मातापिता उसे कुछ ज्यादा ही प्यार करते थे. घर वालों के इसी लाडप्यार में वह कुछ जिद्दी सी हो गई थी.

स्कूल में प्रिया की दोस्ती कुछ ऐसी लड़कियों से थी, जो खुद को ज्यादा मौडर्न समझने के चक्कर में प्यारमोहब्बत में पड़ गई थीं. उस की कई सहेलियों के बौयफ्रेंड थे, जिन से वे उस के सामने ही बातें करती थीं. प्रिया इन बातों से दूर रहती थी. वह अपना ज्यादा ध्यान पढ़ाई पर देती थी. लेकिन कहते हैं कि साथ रहने वाले पर थोड़ाबहुत संगत का असर पड़ ही जाता है.

सुप्रिया ने कहा, ‘‘प्रिया, तू हमारी बातें तो खूब सुनती है, कभी अपने बारे में नहीं बताती. तेरा कोई बौयफ्रेंड नहीं है क्या?’’

‘‘नहीं, मैं इन चक्करों में नहीं पड़ती.’’

‘‘अच्छा, और मोबाइल.’’ आरती ने चौंकते हुए सवाल किया.

‘‘नहीं, अभी तो मोबाइल भी नहीं है. मैं तो तुम लोगों से अपनी मां के मोबाइल से ही बातें करती हूं.’’

‘‘अरे, किस जमाने में जी रही है तू. यार, यहां लोगों के पास स्मार्टफोन हैं, जिस से वे फेसबुक और वाट्सअप का उपयोग कर रहे हैं और एक तू है कि तेरे पास मोबाइल भी नहीं है.’’ आरती ने उपेक्षा से कहा.

सहेली की बात प्रिया को भी चुभी. उसे लगा कि वह अपने स्कूल की सभी लड़कियों में सब से पीछे है. उस का न तो कोई बौयफ्रेंड है और न ही उस के पास कोई मोबाइल.

वह यह सब सोच ही रही थी कि उस की दूसरी सहेली बोली, ‘‘प्रिया यह बता कि कभी तूने खुद को आईने में गौर से देखा है? जानती है जितनी तू सुंदर और समझदार है, तुझे तमाम लड़के मिल जाएंगे. उन में जो सही लगे, उसे बौयफ्रैंड बना लेना. फिर देखना, मोबाइल वह खुद ही दिला देगा.’’

सहेलियों की बातों ने प्रिया पर असर डालना शुरू कर दिया. वैसे प्रिया महसूस करती थी कि जब वह स्कूल आतीजाती है तो कई लड़के उसे चाहत भरी नजरों से देखते हैं. लेकिन उस ने कभी उन की तरफ ध्यान नहीं दिया. अब उन मनचलों के चेहरे उस के दिमाग में घूमने लगे. वह यह सोचने लगी कि वह किस लड़के से दोस्ती करे.

प्रिया के स्कूल आनेजाने वाले रास्ते में एक लड़का हमेशा बनठन कर खड़ा रहता था. वह उम्र में उस से कुछ बड़ा था. प्रिया को और लड़कों के बजाए वह लड़का अच्छा लगा. अगले दिन प्रिया जब घर से स्कूल के लिए निकली तो रास्ते में उसे वही लड़का मिल गया. प्रिया उसे देख कर मुसकराई तो उस लड़के की जैसे बांछे खिल गईं. वह समझ गया कि लड़की की तरफ से उसे ग्रीन सिग्नल मिल गया है.

जल्दी ही वह लड़का स्कूल जाते समय मोटरसाइकिल से प्रिया के पीछेपीछे जाने लगा और उस से बातें करने का मौका तलाशने लगा. एक दिन मौका मिला तो उस ने प्रिया से बात की और उसे बताया कि उस का नाम रज्जनलाल है, वह हमीरपुर गांव का रहने वाला है. हमीरपुर बंथरा के पास ही था. इस के बाद दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई. कुछ दिनों बाद रज्जनलाल ने प्रिया के सामने प्यार का इजहार किया तो उस ने हंसी में जवाब दे कर सहमति जता दी. इस के बाद दोनों स्कूल आनेजाने के रास्ते में मिलनेजुलने लगे.

रज्जनलाल टैंपो चलाता था. प्रिया को जब उस के काम के बारे में पता चला तो उस ने रज्जनलाल को टैंपो चलाने के बजाए कोई दूसरा काम करने की सलाह दी. बात प्रेमिका की पसंदगी की थी, इसलिए उस ने अगले दिन से ही टैंपो चलाना बंद कर दिया और कोई दूसरा काम खोजने लगा. वह चूंकि ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, इसलिए काफी कोशिश के बाद भी उसे दूसरा काम नहीं मिला.

रज्जनलाल को पता था कि प्रिया के पिता रमाशंकर गुप्ता की हार्डवेयर की दुकान है. उन की दुकान पर उस का एक दोस्त काम करता था. उसी की मार्फत उसे जानकारी मिली कि रमाशंकर को अपनी दुकान के लिए एक और लड़के की जरूरत है. रज्जनलाल ने सोचा था कि अगर उन की दुकान पर उसे नौकरी मिल जाती है तो उसे प्रिया से मिलने में आसानी होगी. अपने उसी दोस्त की मार्फत रज्जनलाल ने रमाशंकर गुप्ता से नौकरी के बारे में बात की. फलस्वरूप उन के यहां उसे नौकरी मिल गई.

अगले कुछ दिनों में ही रज्जनलाल ने अपने कामकाज से रमाशंकर पर विश्वास जमा लिया. उन्हें यह पता नहीं था कि उस का उन की बेटी प्रिया के साथ कोई चक्कर चल रहा है. यही वजह थी कि कोई काम होने पर वह उसे अपने घर भी भेज देते थे. घर जाता तो वह प्रिया से भी मिल लेता था.

चूंकि घर पर वह प्रिया से ज्यादा बात नहीं कर पाता था, इसलिए उस ने एक चाइनीज फोन खरीद कर प्रिया को दे दिया. इस के बाद दोनों की रात में फोन पर लंबीलंबी बातें होने लगीं. दिन में वे एकदूसरे को एसएमएस भेज कर काम चलाते. बीतते वक्त के साथ उन के बीच प्यार गहराता जा रहा था. प्यार में फंस कर प्रिया को अपने कैरियर और मांबाप के प्यार की भी परवाह नहीं रह गई थी.

सब ठीक चल रहा था कि एक दिन प्रिया की मां सपना को पता चल गया कि प्रिया का दुकान पर काम करने वाले रज्जनलाल के साथ चक्कर चल रहा है. उन्होंने प्रिया से मोबाइल छीन लिया और पति को सारी बात बता कर रज्जनलाल की दुकान से छुट्टी करवा दी. इस के बाद दोनों का एकदूसरे से संपर्क नहीं हो सका. प्रिया रज्जनलाल को अपने दिल में बसा चुकी थी, इसलिए पाबंदी लगाने के बाद भी वह उसे भुला न सकी.

उधर रज्जनलाल गांव की प्रधान बिमला प्रसाद की कार चलाने लगा था. प्रिया और रज्जन एक बार फिर स्कूल आनेजाने के रास्ते में मिलने लगे. रज्जनलाल के प्यार में पड़ कर प्रिया ने न केवल अपने मातापिता का विश्वास खो दिया था, बल्कि वह अपनी पढ़ाई भी नहीं कर पा रही थी. स्कूल के टीचरों और छात्रों के बीच भी उस के और रज्जनलाल के संबंध के चरचे होने लगे थे.

बेटी की वजह से रमाशंकर की कस्बे में खासी बदनामी होने लगी तो उन्होंने प्रिया को डांटा और उस का स्कूल जाना बंद करा दिया. इस से रमाशंकर को लगा कि अब शायद प्रिया सुधर जाएगी और रज्जनलाल से दूरी बना लेगी. हालांकि वह चाहते थे कि प्रिया अपनी पढ़ाई पूरी कर ले. लेकिन उस के बदम बहक जाने की वजह से उन्हें यह कठोर फैसला लेना पड़ा था.

खुद के ऊपर पाबंदी लगाए जाने पर एक दिन प्रिया ने ज्यादा मात्रा में नींद की गोली खा कर जान देने की कोशिश की. यह बात रज्जनलाल को पता चली तो उसे इस बात का दुख हुआ. वह प्रिया से बात कर के उसे समझाना चाहता था. लेकिन उसे प्रिया से मिलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. ऐसे में उसे अपने उस दोस्त की याद आई, जो प्रिया के पिता की दुकान पर काम करता था.

उस ने एक मोबाइल और सिम कार्ड खरीद कर उस के हाथों प्रिया के पास भिजवा दिया. इस के बाद उन दोनों के बीच फिर से बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. इस के साथ ही रज्जनलाल प्रिया का दीदार करने की कोशिश में उस के घर के आसपास मंडराने लगा. रमाशंकर ने जब यह देखा तो उन्होंने इस की शिकायत उस के घर वालों से की. रज्जनलाल की शिकायतें सुनसुन कर उस के घर वाले परेशान हो चुके थे. उन्होंने सोचा कि अगर रज्जनलाल की शादी कर दी जाए तो वह प्रिया को भूल जाएगा.

कुछ दिनों बाद रज्जनलाल के लिए उन्नाव जिले के गांव मटियारी में रहने वाले प्रहलाद की बेटी अलका से शादी का प्रस्ताव आया. लड़की ठीकठाक थी, इसलिए घर वालों ने फटाफट उस की शादी अलका से तय कर दी. चूंकि घर वालों को शादी की जल्दी थी, इसलिए 21 फरवरी, 2014 को शादी का दिन मुकर्रर कर दिया गया. दोनों ही तरफ से शादी की तैयारियां होने लगीं.

उधर घर वालों के दबाव में रज्जनलाल शादी के लिए इनकार तो नहीं कर सका, लेकिन वह मन से इस शादी के लिए तैयार नहीं था. उस के दिल में तो प्रिया ही बसी थी. जैसेजैसे 21 फरवरी नजदीक आ रही थी, उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. इसी चिंता में 19-20 फरवरी की रात उसे नींद नहीं आ रही थी. करीब 12 बजे उस ने प्रिया के मोबाइल पर एसएमएस किया. जिस में लिखा था, ‘हम तेरे बिन अब जी नहीं सकते. हम न खुद किसी के होंगे और तुम को किसी और का होने देंगे.’ दूसरी तरफ से प्रिया ने भी उस का साथ निभाने के वादे के साथ एसएमएस किया.

प्रिया का एसएमएस पाने के बाद रज्जनलाल ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. जिस के बारे में उस ने प्रिया को भी बता दिया.  उस रात प्रिया अपनी मां के पास लेटी थी. बेटी को देख कर मां यह अंदाजा नहीं लगा पाई कि वह उन के विश्वास को तोड़ने की साजिश रच चुकी थी. देर रात जब घर के सब लोग सो गए तो करीब 1 बजे प्रिया छत के रास्ते से निकल कर घर से बाहर आ गई.

योजना के अनुसार रज्जनलाल अपनी मोटरसाइकिल ले कर उस के घर से कुछ दूर आ कर खड़ा हो गया. प्रिया उस के पास पहुंच गई. वहां से दोनों मोटरसाइकिल से लालाखेड़ा चले गए. बंथरा के पास स्थित लालाखेड़ा के टुडियाबाग स्थित प्राथमिक विद्यालय में एनएसएस का शिविर लगा था. इस शिविर में छात्र अपने टीचरों के साथ रुके हुए थे.

20 फरवरी, 2014 की सुबह 7 बजे के वक्त शिविर के कुछ छात्र खाना बनाने के लिए लकड़ी लेने गांव से कुछ दूर एक खेत के नजदीक पहुंचे तो वहां एक लड़की की लाश देख कर उन की चीख निकल गई. लाश औंधे मुंह पड़ी थी.  छात्रों ने यह बात अपने टीचरों को बताई तो उन्होंने इस की सूचना थाना बंथरा पुलिस को दी. थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर  पहुंच गए. तब तक वहां गांव के तमाम लोग एकत्र हो गए थे.

पुलिस ने जब लड़की की लाश सीधी की तो उसे देखते ही लोग चौंक गए. क्योंकि वह बंथरा के ही रहने वाले रमाशंकर गुप्ता की बेटी प्रिया थी. जिस जगह लाश पड़ी थी, वहीं पर एक मोटरसाइकिल खड़ी थी और एक तमंचा भी पड़ा हुआ था. पुलिस लाश का अभी मुआयना कर ही रही थी कि कुछ लोगों ने बताया कि पास के ही एक पेड़ पर एक युवक ने फांसी लगा ली है. उस की लाश महुआ के पेड़ में लटक रही है.

थानाप्रभारी तुरंत उस महुआ के पेड़ के पास पहुंचे. वह पेड़ वहां से लगभग 50 मीटर दूर था. उन्होंने देखा पेड़ में बंधी लाल रंग की चुन्नी से एक युवक की लाश लटक रही है. पुलिस ने जब लाश को नीचे उतरवाया तो लोगों ने उस की शिनाख्त रज्जनलाल के रूप में की. पुलिस को लोगों से यह भी पता चला कि प्रिया और रज्जन का प्रेम संबंध चल रहा था.

2-2 लाशें मिलने की खबर आसपास के गांव वालों को चली तो सैकड़ों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए. प्रिया और रज्जनलाल के घर वाले भी वहां पहुंच चुके थे. थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह यादव ने यह सूचना अपने अधिकारियों को दी तो लखनऊ के एसएसपी प्रवीण कुमार त्रिपाठी, एसपी (पूर्वी क्षेत्र) राजेश कुमार, एसपी (क्राइम) रविंद्र कुमार सिंह और सीओ (कृष्णानगर) हरेंद्र कुमार भी मौके पर  पहुंच गए.

सभी पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल और लाशों का मुआयना किया. प्रिया की कमर का घाव देख कर लग रहा था कि उस की हत्या वहां पड़े तमंचे से गोली मार कर की गई थी. अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि रज्जनलाल ने पहले प्रिया को गोली मारी होगी और बाद में उस ने खुद को फांसी लगाई होगी. प्रिया की लाश के पास जो मोटरसाइकिल बरामद हुई थी, पता चला कि वह रज्जनलाल की थी.

पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उधर रज्जनलाल के भाई राजकुमार ने आरोप लगाया कि उस के भाई और प्रिया एकदूसरे से प्यार करते थे, इसलिए प्रिया के पिता रमाशंकर ने कुछ लोगों के साथ मिल कर प्रिया और रज्जनलाल की हत्या की है. उस ने इसे औनर किलिंग का मामला बताते हुए आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने की मांग की.

रज्जनलाल बंथरा की ग्राम प्रधान विमला कुमार की गाड़ी चलाता था. विमला के पति रिटायर पुलिस आफिसर थे. वह भी थाना पुलिस के ऊपर दबाव डालने लगे तो पुलिस ने राजकुमार की तहरीर पर रमाशंकर और उन के नौकर राजू आदि के खिलाफ भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

दूसरी ओर प्रिया के पिता रमाशंकर का आरोप था कि रज्जनलाल उन की बेटी को बहलाफुसला कर भगा ले गया और उस की गोली मार कर हत्या कर दी. रमाशंकर गुप्ता ने इस संबंध में थानाप्रभारी को एक तहरीर भी दी. इस मामले की जांच थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह यादव खुद कर रहे थे.

20 फरवरी को जब दोनों लाशों का पोस्टमार्टम हुआ तो उस की पूरी वीडियोग्राफी कराई गई, जिस से काररवाई में पारदर्शिता बनी रहे और पुलिस के ऊपर अंगुली न उठे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रज्जनलाल के मरने की वजह फांसी के फंदे के कारण दम घुटना बताया गया. उस के शरीर पर किसी तरह की चोट का कोई निशान नहीं था. सारी हकीकत सामने आ सके इस के लिए एसएसपी प्रवीण कुमार ने एसपी रविंद्र कुमार सिंह को भी इस मामले की जांच में लगा दिया.

रज्जनलाल ने हताशा में यह कदम उठा तो लिया, लेकिन ऐसा करने से पहले उस ने यह नहीं सोचा कि जिस लड़की से अगले ही दिन उस की शादी होने वाली थी, उस पर और उस के घर वालों पर क्या गुजरेगी? अलका को जब पता चला कि उस के होने वाले पति रज्जनलाल ने खुदकुशी कर ली है तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस के यहां शादी की जो तैयारियां चल रही थीं, वह मातम में बदल गईं.

पिता प्रहलाद की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे में करें तो क्या करें, ऐसे में लोगों ने उन्हें सलाह दी कि जब शादी की सारी तैयारियां हो ही चुकी हैं तो क्यों न अलका की शादी रज्जनलाल के छोटे भाई राजकुमार से कर दी जाए. प्रहलाद ने जब यह प्रस्ताव राजकुमार के सामने रखा तो उस ने सहमति जता दी. इस पर 20 फरवरी, 2014 को जिस समय रज्जनलाल के अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, उसी समय राजकुमार 5 लोगों के साथ अलका से शादी रचाने चला गया.

जांच के बाद पुलिस ने इस मामले को आनर किलिंग की घटना मानने से इनकार कर दिया. कुछ लोगों ने पुलिस की इस बात को झुठलाते हुए पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और कानपुर लखनऊ हाईवे पर जाम लगा दिया. जाम लगाने वालों की पुलिस ने वीडियोग्राफी कराई और बड़ी मुश्किल से समझाबुझा कर जाम खुलवाया. इस के बाद पुलिस ने हाइवे जाम करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

(प्रिया परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

साधु के वेश में 23 साल बाद मिला कातिल प्रेमी

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 2

राहुल के अनुसार उस युवक की उम्र 20-22 साल थी और वह आसमानी रंग की कमीज पहने हुए था. पुलिस ने डा. हर्षवर्धन से भी पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उस युवक को उन्होंने 3 बजे देखा था. उस वक्त वह बेहोश जरूर था लेकिन जीवित था. इस का मतलब उस युवक की हत्या 3 बजे के बाद की गई थी. पुलिस ने वार्ड में भरती मरीजों के अलावा  उन के तीमारदारों से भी पूछताछ की.

तीमारदार रविंद्र ने ही सब से पहले उस युवक की गरदन से खून बहते देखा था और उसी ने दूसरों को यह बात बताई थी. इसलिए वह इस मामले की महत्त्वपूर्ण कड़ी था. उस के मुताबिक युवक के बिलकुल बराबर वाले बेड नंबर-11 पर उस की मरीज बेबी सो रही थी. बेड नंबर-9 खाली था इसलिए वह उस पर जा कर लेट गया था. बीचबीच में वह देखभाल के लिए बेबी के बेड के पास चक्कर लगाने चला जाता था.

पुलिस के पूछने पर रविंद्र ने बताया कि बीती शाम उस ने एक युवक को वहां घूमते देखा था. वह युवक आधे मुंह पर चादर लपेटे हुए था. चूंकि ठंड पड़ रही थी इसलिए उस ने उस पर कोई शक नहीं किया था. रविंद्र के पूछने पर उस ने बताया था कि उस का नाम सचिन है और वह घायल की देखभाल के लिए उस के साथ है. वह खुद को अलीगढ़ का रहने वाला बता रहा था.

एंबुलेंस चालक ने संदिग्ध युवक का जो हुलिया बताया था वह रविंद्र द्वारा बताए गए हुलिए से मैच नहीं कर रहा था. इमरजेंसी में घूमने वाला वह अज्ञात युवक ही शक के दायरे में था क्योंकि घटना के बाद से वह लापता था. मैडिकल कालेज 149.48 एकड़ में फैला था. वहां 24 घंटे लोगों की आवाजाही रहती थी. परिसर में छात्रछात्राओं के छात्रावास तो थे ही साथ ही विभिन्न वार्डों में हर वक्त सैकड़ों मरीज और उन के तीमारदार भी मौजूद रहते थे. परिसर के अंदर ही मेडीकल पुलिस थाना भी था. ऐसे में कौन कब आया और कत्ल कर के कैसे चुपचाप निकल गया यह पता लगाना आसान नहीं था.

न तो मृतक की शिनाख्त हो पा रही थी और न ही पुलिस को हत्या की वजह पता चल पा रही थी. कातिल के शातिराना तरीके को ले कर पुलिस हैरत में थी. उसे लग रहा था कि हत्यारे ने पहले उस युवक को ट्रेन से गिरा कर मारने की कोशिश की होगी ताकि यह हादसा लगे. जब वह बच गया, तो कातिल उस का पीछा करता रहा और मौका मिलते ही उस ने हत्या को अंजाम दे दिया.

उस का मकसद हर हाल में उस की हत्या करना था. पुलिस ने मृतक के शव का पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और हत्या का केस दर्ज कर लिया. डीआईजी के. सत्यनारायण से ले कर एसएसपी ओंकार सिंह और सीओ विकास त्रिपाठी तक इस मामले को ले कर परेशान थे.

वारदात की गंभीरता को देखते हुए सीओ विकास त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया गया ताकि जल्दी से जल्दी इस केस की तह तक पहुंचा जा सके.

जांच आगे बढ़ाने के लिए मृतक की शिनाख्त जरूरी थी. इस के लिए जिले के अन्य थानों से पता किया गया, लेकिन कहीं से किसी युवक के लापता होने की सूचना नहीं मिली. इसलिए पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद युवक के शव को शवगृह में सुरक्षित रखवा दिया.

इत्तफाक से अगले दिन ही मृतक की शिनाख्त हो गई. एक व्यक्ति ने कुछ लोगों के साथ अस्पताल आ कर बताया कि संभवत: मृतक उस का बेटा था. डा. सुभाष सिंह ने उसे पोस्टमार्टम हाउस ले जा कर शव दिखाया, तो वह फूटफूट कर रोने लगा. मृतक की पहचान हो गई है, यह सूचना मिलते ही पुलिस अस्पताल आ गई. पता चला मृतक जिला अमरोहा की तहसील मंडी धनौरा क्षेत्र के ग्राम जटपुरा निवासी रामबीर चौहान का बेटा नितिन चौहान था.

एसएसपी ओंकार सिंह और सीओ विकास त्रिपाठी ने मृतक के पिता रामबीर को सांत्वना दे कर उस से पूछताछ की. पुलिस के पूछने पर रामबीर सिंह ने बताया कि नितिन अपने रूम पार्टनर परमजीत के साथ मेरठ में ही रहता था. 24 अक्तूबर को वह कालेज गया था. जब वह शाम को वापस नहीं लौटा तो परमजीत ने फोन कर के यह बात उन्हें बताई. उन्होंने नितिन के नंबर पर फोन लगाया तो वह लगातार स्विच्ड औफ जाता रहा.

वह परेशान हो गए और मेरठ आ कर दिन भर उस की तलाश की. लेकिन कोई पता नहीं चला. आज जब यह खबर अखबार में छपी तो वह अस्पताल आए. अस्पताल में पता चला कि नितिन अब इस दुनिया में नहीं है. रामबीर चौहान ने इस बात से इनकार किया कि उन की या नितिन की किसी से कोई रंजिश थी. मृतक की शिनाख्त तो हो गई लेकिन पुलिस को हत्यारे तक पहुंचने के लिए कोई सूत्र नहीं मिल रहा था. मामला काफी उलझा हुआ था.

नितिन के पिता गांव के सीधेसाधे किसान थे. उन के परिवार में पत्नी पुष्पा के अलावा 3 बच्चे थे. नितिन सब से बड़ा था, उस से छोटी 2 बेटियां थीं निशी और आशू. नितिन ने सन 2012 में गांव से इंटर करने के बाद अलीगढ़ जा कर शिवदान कालेज में बीफार्मा की पढ़ाई के लिए दाखिला ले लिया था. लेकिन अलीगढ़ में नितिन का पढ़ाई में मन नहीं लगा, तो इसी साल उस ने मेरठ के मवाना रोड स्थित ट्रांसलेम इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया था. रहने के लिए उस ने अपने एक सहपाठी परमजीत के साथ गंगापुरम कालोनी में किराए का एक कमरा ले लिया था.

नितिन की लगभग हर रोज अपने घर वालों से बात होती थी. 24 अक्तूबर को उस की कोई बातचीत नहीं हुई थी. इसी बीच सनसनीखेज ढंग से उस की हत्या हो गई थी. पुलिस ने नितिन के रूम पार्टनर परमजीत से पूछताछ की. उस ने बताया कि 24 तारीख को नितिन कालेज के लिए निकला तो था लेकिन अंदर न जा कर कालेज के गेट पर ही रुक गया था. जब वह क्लास में नहीं आया तो उस ने सोचा कि वह उसे बिना बताए कहीं घूमने चला गया होगा. जब वह शाम को कमरे पर नहीं लौटा तो उस ने फोन कर के यह बात उस के पिता को बता दी.

‘‘तुम ने उस का पता लगाने की कोशिश नहीं की?’’ विकास त्रिपाठी के पूछने पर उस ने बताया, ‘‘की थी. लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था.’’

पुलिस ने कालेज में भी पूछताछ की. परमजीत सच बोल रहा था. वह उस दिन क्लास में मौजूद था जबकि नितिन गैरहाजिर था. पुलिस ने अन्य छात्रछात्राओं से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में पता चला कि नितिन कालेज के गेट से ही एक युवक के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर चला गया था. मोटरसाइकिल वाला कौन था, इस बारे में किसी को पता नहीं था. अस्पताल में जिस युवक को नितिन के पास देखा गया था उस से भी मोटरसाइकिल वाले का हुलिया नहीं मिल रहा था जो नितिन को मोटरसाइकिल पर ले कर गया था.

इस से पुलिस को लगा कि नितिन की हत्या में एक नहीं 2 युवक शामिल रहे होंगे. हत्यारे तक पहुंचने के लिए पुलिस ने नितिन के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, लेकिन इस से भी कोई नतीजा नहीं निकला. इस से यह साफ हो गया कि हत्यारा जो भी था बेहद चालाक था. उस ने अपने पीछे कोई सुबूत नहीं छोड़ा था.

इश्क के दरिया में जुर्म की नाव

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 1

सुबह के 4 बजे थे. बाहर रात का अंधेरा अभी तक दामन फैलाए हुए था, लेकिन मेरठ के लाला लाजपतराय मैडिकल कालेज स्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल चिकित्सालय के इमरजेंसी वार्ड में जलती ट्यूब लाइटों की रोशनी फैली थी. हल्की रोशनी के बावजूद कई मरीज नींद में थे. तभी अचानक वहां अफरातफरी मच गई. दरअसल हुआ यह कि एक मरीज का तीमारदार रविंद्र  अपनी मरीज को देखने के लिए उठा तो उस ने बेड नंबर 12 के मरीज की गरदन से खून बहते देखा. वह तड़पते हुए हाथपैर पटक रहा था.

बीते दिन जब उस मरीज को लाया गया था तो वह बेहोश था. उसे काफी चोटें लगी थीं. बाद में पता चला कि उस के पैर में फै्रक्चर है. डाक्टरों ने उस की मरहमपट्टी कर के उस के पैर पर प्लास्टर चढ़ा दिया था. उस की गरदन से खून बहता देख रविंद्र चिल्लाया, ‘‘डाक्टर साहब… डाक्टर साहब…’’

‘‘क्या हुआ, क्यों चिल्ला रहे हो?’’ वहां से कुछ दूर बैठे वार्ड बौय दीपक ने चौंक कर पूछा, तो रविंद्र ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘जल्दी आइए, किसी ने इस की गरदन काट दी है.’’ यह सुन कर दीपक सन्न रह गया. उस ने यह बात ड्यूटी पर मौजूद स्टाफ को बताई. खबर मिलते ही डा. हर्षवर्धन व अन्य स्टाफ वहां आ गया. बेड पर खून से लथपथ पड़े उस युवक की हालत देख सभी सन्न रह गए. उस की गरदन को धारदार हथियार से रेता गया था. खून लगातार बह रहा था, बिस्तर खून से तरबतर हो चुका था. उस की हालत बहुत चिंताजनक थी.

डा. हर्षवर्धन ने उस की गरदन को देखने के बाद खून रोकने के लिए रुई रख कर पट्टी लपेट दी. उन्होंने कांपते हाथों से उसे कुछ इंजेक्शन भी दिए. निस्संदेह वह मौत के बेहद करीब था. उपचार के बावजूद उस ने कुछ ही देर में लंबीलंबी सांसें लेते हुए दम तोड़ दिया. तब तक वहां अन्य मरीजों के तीमारदार भी जमा हो गए थे. सभी सहमे हुए थे. जाहिर तौर पर यह हत्या का मामला था. इमरजेंसी वार्ड में एक मरीज की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी और किसी को पता तक नहीं चला था, यह हैरत की बात थी.

इमरजेंसी वार्ड में रात की ड्यूटी पर डा. हर्षवर्धन के अलावा स्टाफ नर्स महिमा सिंह और नर्सिंग छात्रा अंजलि सिंह सहित 8 लोगों का स्टाफ था. इन लोगों के अलावा वार्ड में दरजनों मरीज और उन के तीमारदार भी थे. वार्ड में एंट्री करते ही अल्युमिनियम के फ्रेम में जड़े शीशों वाला स्टाफ रूम था. जिस में आरपार दिखाई देता था. उस रूम से ही अटैच इमरजेंसी वार्ड था जिस में दोनों साइडों में 21 बेड लगे हुए थे.

यह चूंकि मेरठ का एकलौता बड़ा सरकारी अस्पताल था इसलिए वहां चौबीसों घंटे आनेजाने वालों का सिलसिला लगा रहता था. इस के अलावा स्टाफ भी ड्यूटी पर रहता था. बाहर से आने वाले सभी मरीजों को सब से पहले इमरजेंसी में ही लाया जाता था. तत्कालिक चिकित्सा के बाद में उन्हें अलगअलग वार्डों में शिफ्ट कर दिया जाता था.

जिस युवक का इमरजेंसी वार्ड में कत्ल किया गया था उसे पिछले दिन ही वहां भरती कराया गया था. हुआ यह था कि कैंट रेलवे स्टेशन के माल गोदाम के सामने लगभग साढ़े 11 बजे सफाईकर्मी रामफल व राजेंद्र ने उस युवक को 2 रेलवे ट्रैक के बीच बेहोश पड़े देखा था. उस वक्त वह बुरी तरह घायल था. कुछ ही देर पहले वहां से जालंधर एक्सप्रेस व एक अन्य टे्रन एकदूसरे को क्रौस करते हुए अलगअलग ट्रैक से गुजरी थीं.

राजेंद्र और रामफल ने घायल युवक को देखने के बाद इस की सूचना रेलवे पुलिस को दी. पुलिस ने उसे उठा कर प्यारे लाल शर्मा जिला चिकित्सालय में भरती करा दिया था. उस की हालत चूंकि गंभीर थी इसलिए प्राथमिक उपचार के बाद उसे सरकारी एंबुलेंस से मैडिकल कालेज स्थित अस्पताल में रेफर कर दिया गया था.  युवक के शरीर पर काफी चोटें थीं और उस का एक पैर रेल की चपेट में आ कर टूट चुका था. डाक्टरों का अनुमान था कि उस के साथ यह हादसा रेल से गिरने की वजह से हुआ होगा.

पुलिस ने भी उस युवक के रेल से गिरने की वजह जानने की कोशिश नहीं की थी क्योंकि प्रथम दृष्टया यह हादसा लग रहा था. इसीलिए पुलिस ने न तो इस बाबत कोई मामला दर्ज किया था और न यह जानने की कोशिश की थी कि हादसा कैसे हुआ? एक परेशानी यह भी थी कि घटना का प्रत्यक्षदर्शी कोई भी नहीं था. युवक चूंकि बेहोश था इसलिए यह भी पता नहीं लग सका था कि वह कौन है. पहचान के लिए पुलिस ने उस की तलाशी भी ली, लेकिन उस के पास कोई पहचान पत्र या मोबाइल नंबर वगैरह नहीं मिला था.

बहरहाल, डाक्टरों ने उस की मरहमपट्टी की और एक्सरे के बाद पैर पर प्लास्टर चढ़ा दिया. इस के बाद उसे इमरजेंसी वार्ड के बेड नंबर-12 पर शिफ्ट कर दिया गया. इस के बाद भी युवक की बेहोशी नहीं टूटी थी. डाक्टरों को उम्मीद थी कि उसे सुबह तक होश आ जाएगा. लेकिन वह होश में आ कर अपनी पहचान और हादसे के बारे में कुछ बता पाता इस से पहले ही अलसुबह उस की हत्या कर दी गई थी.

वार्ड में हत्या के मामले में स्टाफ के लोग फंस सकते थे इसलिए तुरंत अस्पताल अधीक्षक डा. सुभाष सिंह को इस मामले की जानकारी दी गई. खबर मिलते ही वह आ गए. जरूरी पूछताछ के बाद उन्होंने इस की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना पा कर थाना मैडिकल प्रभारी राकेश सिसौदिया घटनास्थल पर आ गए. दिन निकलते ही इस वारदात ने सनसनी फैला दी. चौंकाने वाली बात यह थी कि वारदात अस्पताल के अंदर हुई थी. अस्पताल में हत्या की खबर मिली तो डीआईजी के. सत्यनारायण, एसएसपी ओंकार सिंह, एसपी सिटी ओमप्रकाश सिंह और सीओ सिविल लाइंस विकास त्रिपाठी भी घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने इस मामले की हर नजरिए से जांचपड़ताल शुरू की. पूछताछ में पता चला कि वार्ड में मरीजों के नामपते की तो एंट्री होती थी, लेकिन उन से मिलने कौन आताजाता है इस का कोई ब्यौरा नहीं रखा जाता था. वार्ड में सीसीटीवी कैमरे भी नहीं लगे थे. पुलिस अधिकारी अस्पताल कर्मियों पर इसलिए नाराज थे क्योंकि हत्या जैसा गंभीर अपराध हो गया था और उन्हें पता तक नहीं चला था.

अधीक्षक डा. सुभाष सिंह ने मरीजों और उन्हें भरती कराने वालों की सूची पुलिस को उपलब्ध करा दी. सीओ विकास त्रिपाठी ने उस एंबुलेंस चालक राहुल से पूछताछ की जिस ने उस युवक को जिला अस्पताल ला कर भरती कराया था. उस से काम की एक बात यह पता चली कि जब उस युवक को अस्पताल लाया जा रहा था तो वहां एक युवक मौजूद था जो उसे अस्पताल ले जाने के लिए कोई प्राइवेट वाहन लाने की बात कर रहा था. लेकिन जब उस से प्राइवेट वाहन लाने की वजह पूछी गई तो वह टालमटोल करने लगा.

दिल मांगे मोर – भाग 3

इरफान की पत्नी को पता नहीं था कि पति के किसी दूसरी औरत से भी संबंध हैं. पत्नी के इसी विश्वास का इरफान फायदा उठा रहा था. यही नहीं, अब वह नूर फातिमा से निकाह करने की भी सोचने लगा था. उस ने इस बारे में उस से बात की तो वह भी तैयार हो गई. रही बात नबी मोहम्मद की तो उस ने भी सहमति जता दी.

इस के बाद इरफान ने नबी मोहम्मद की मौजूदगी में नूर फातिमा से निकाह कर लिया. यह एक साल पहले की बात है. नूर फातिमा ने इरफान से निकाह जरूर कर लिया था, लेकिन रहती वह नबी मोहम्मद के साथ ही थी. इरफान 1-2 दिन के अंतर पर फातिमा के पास आता रहता था. इस तरह इरफान की 2 नावों की सवारी चलती रही.

चूंकि इरफान का कपड़ों की सेल का काम अच्छा चल रहा था, इसलिए उस ने मारुति कार नबी मोहम्मद को दे दी और अपने लिए सेंट्रो कार खरीद ली. दोनों ही अलगअलग जगहों पर सेल लगाने लगे. कपड़ों की सेल से जो पैसे आते थे, नबी उन्हें इरफान को दे देता था. बदले में इरफान उसे उस की मजदूरी दे देता था.

धीरेधीरे नबी मोहम्मद का स्वभाव बदलने लगा. वह चिड़चिड़ा हो गया. इरफान उस के यहां आता तो वह शराब के नशे में उसे गालियां देता और मारपीट करने पर उतारू हो जाता. इस के अलावा वह इरफान से पैसे ऐंठता. इरफान उस के मुताबिक पैसे देने में आनाकानी करता तो वह उस की पत्नी शहनाज के सामने उस की पोल खोलने की धमकी देता. मजबूरी में इरफान को उस के द्वारा मांगे गए पैसे देने के लिए मजबूर होना पड़ता.

इरफान की इसी कमजोरी का नबी मोहम्मद फायदा उठा रहा था. आए दिन की इस ब्लैकमेलिंग से इरफान परेशान रहने लगा था. उस ने नबी को कई बार समझाया भी, लेकिन उस ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया. इरफान को डर लगा रहता था कि कहीं नबी मोहम्मद शहनाज को फातिमा के बारे में बता न दे.   यही वजह थी कि वह इस डर को हमेशा के लिए खत्म करना चाहता था.

इस के 2 ही रास्ते थे. पहला यह कि वह हमेशा के लिए फातिमा से संबंध खत्म कर ले और दूसरा यह कि नबी मोहम्मद का मुंह हमेशा के लिए बंद कर दे. नबी मोहम्मद को पैसे देने के बाद भी उसे इस बात का विश्वास नहीं था कि वह अपना मुंह बंद रखेगा. इस के लिए उस के दिमाग में एक ही आइडिया आया कि वह नबी मोहम्मद को ठिकाने लगा दे. ऐसा करने से उस की परेशानी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी.

नबी मोहम्मद को ठिकाने लगाने वाली बात उस ने नूर फातिमा को भी नहीं बताई. इस काम को वह अकेला अंजाम नहीं दे सकता था, इसलिए उस ने अपने साथ काम करने वाले राकेश और सूरज हाशमी से बात की. राकेश मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के नगला भवानी गांव का रहने वाला था और दिल्ली में कच्ची कालोनी, मदनपुर खादर में रहता था. जबकि सूरज हाशमी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के शुक्लागंज का रहने वाला था. वह भी दिल्ली में रह कर इरफान के साथ कपड़ों की सेल लगाता था.

इरफान ने दोनों साथियों के साथ नबी मोहम्मद को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. योजनानुसार इरफान ने 9 दिसंबर की शाम को नबी मोहम्मद को फोन कर के दिल्ली में जैतपुर के पुश्ते पर बुलाया. नबी मोहम्मद शराब के नशे में था. नबी मोहम्मद इस से पहले भी इरफान के बताए गए पते पर पहुंचता रहता था. इसलिए फोन आने पर 9 दिसंबर की रात करीब साढे़ 9 बजे मारुति कार नंबर डीएल 2सी आर 5093 से नोएडा से वह दिल्ली के लिए चल पड़ा.

उधर इरफान भी राकेश और सूरज हाशमी को अपनी सेंट्रो कार नंबर एचआर 26पी 6738 में बिठा कर जैतपुर पुश्ता की तरफ चल पड़ा. श्रीराम चौक से निकलने के बाद यमुना खादर में उन्होंने कार एक किनारे खड़ी कर दी और नबी मोहम्मद का इंतजार करने लगे. नबी मोहम्मद की गाड़ी दिखते ही इरफान ने उसे रुकवा लिया. फिर वे उसे यमुना खादर की तरफ ले गए. नबी मोहम्मद कुछ समझ पाता, तीनों ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी.

नबी मोहम्मद ने खुद को बचाने की बहुत कोशिश की, लेकिन 3 लोगों के बीच वह अकेला निहत्था क्या कर सकता था. तीनों उसे पीटते हुए झाडि़यों में ले गए. पिटतेपिटते नबी लगभग अधमरा हो गया तो उसे जमीन पर गिरा कर वहीं पड़ी ईंट से उस के सिर और चेहरे को कुचलने लगे. थोड़ी देर में नबी मोहम्मद की मौत हो गई. वह जिंदा न रह जाए, इस के लिए इरफान ने साथ लाए छुरे से उस का गला भी काट दिया.

इरफान ने नबी मोहम्मद का मोबाइल फोन निकाल लिया. काम हो जाने के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए. लाश खादर में पड़ी थी, इसलिए जंगली जानवरों ने उस की गरदन और चेहरे का मांस खा लिया. अगले दिन इरफान मारुति कार से कुलेसरा नूर फातिमा के पास गया और उस ने नबी मोहम्मद का मोबाइल फोन उसे देते हुए कहा कि वह किसी काम से 2-3 दिनों के लिए बाहर गया है. मारुति कार फातिमा के यहां खड़ी कर के वह दिल्ली वापस आ गया.

पुलिस ने 11 दिसंबर की रात को ही इरफान के साथियों राकेश और सूरज हाशमी को भी गिरफ्तार कर लिया. इन की निशानदेही पर पुलिस ने मारुति कार और सेंट्रो कार के अलावा मृतक और उन के मोबाइल फोन, छुरा आदि बरामद कर लिए. इस के बाद सभी को साकेत कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर कर रहे हैं.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

साधु के वेश में 23 साल बाद मिला कातिल प्रेमी – भाग 3

प्रेम प्रसंग बढ़ने लगा तो पदम अब शादी के लिए रुपए भी जोड़ने लगा था. वह रजनी को पत्नी बना कर अपने घर ओडिशा ले जाना चाहता था, लेकिन एक दिन उस का ख्वाब बिखर गया.उस ने रजनी को एक युवक के साथ हाथ में हाथ डाले शौपिंग माल में खरीदारी करते हुए देखा. पदम वहां अपने लिए शर्ट खरीदने के लिए गया था. वह रजनी को चोरीछिपे देखता रहा.

शाम को उस ने रजनी से उस युवक के बारे में पूछा तो उस ने बड़ी बेशरमी से कहा, “वह विजय साचीदार है. तुम से अच्छा कमाता है. मैं उस के साथ खुश रह सकती हूं.”

“लेकिन तुम ने मेरे साथ शादी करने का वादा किया है रजनी, मुझे तुम छोड़ कर किसी दूसरे से दिल नहीं लगा सकती.”

“दिल मेरा है पदम…” रजनी कंधे झटक कर बोली, “मैं इसे कहीं भी लगाऊं. फिर तुम्हारे पास है भी क्या? किराए का कमरा है, फुटपाथ पर भजिया तलते हो. मैं एक ठेली वाले से शादी कर के अपनी जगहंसाई नहीं करवाना चाहती. अब तुम अपना रास्ता बदल लो.”

“नहीं. मैं अपना रास्ता नहीं बदलूंगा. रास्ता तुम्हें बदलना होगा रजनी. तुम मेरी थी, मेरी ही रहोगी.”

“कोई जबरदस्ती है तुम्हारी.” रजनी गुस्से से चीखी, “मैं विजय से शादी करूंगी, समझे.”

“मैं उस हरामी विजय को काट डालूंगा.” पदम गुस्से से बोला, “देखता हूं तुम कैसे उस से शादी करती हो.”

पदम कहने के बाद गुस्से में भरा वहां से चला गया. वह रात उस ने अपने ठेले पर फुटपाथ पर बिताई. वह विजय साचीदार के विषय में सोच रहा था जो उस के प्यार की राह में कांटा बन गया था. वह कब सोया उसे पता नहीं चला

रजनी के प्रेमी विजय की मिली लाश

4 सितंबर, 2001 दिन मंगलवार को मयूर विहार सोसायटी के शांतिनगर थाने में रजनी ने विजय साचीदार के लापता हो जाने की रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए पुलिस के सामने बयान दिया कि विजय साचीदार को जान से मारने की धमकी पदम चरण ने दी थी. पदम चरण शांतिनगर सोसायटी में तीसरी मंजिल पर किराए पर रहता है और गांधी चौक पर भजिया की ठेली लगाता है. विजय साचीदार को लापता करने में पदम चरण का हाथ हो सकता है. उसे गिरफ्तार कर के पूछताछ की जाए.

रजनी द्वारा लिखित रिपोर्ट के आधार पर पुलिस शांतिनगर सोसायटी में पदम चरण के कमरे पर पहुंची. वहां ताला बंद था. पदम चरण की तलाश में उस की भजिया की ठेली (गांधी चौक) पर पुलिस पहुंची तो ठेली पर कोई नहीं था. पदम चरण दोनों जगह से लापता था. इस से उस पर शक गहरा गया कि उस ने विजय साचीदार का अपहरण किया है और कहीं दुबक गया है.

पुलिस पदम चरण का मूल पता लगाने का प्रयास कर ही रही थी कि उसे उधना क्षेत्र (खाड़ी) में विजय साचीदास की लाश मिलने की सूचना कंट्रोल रूम द्वारा दी गई. उधना क्षेत्र की पुलिस को खाड़ी में एक युवक की लाश पड़ी मिली थी. उस युवक की तलाशी में आधार कार्ड मिला, जिस में उस का नाम विजय साचीदार, उस का फोटो और एड्रेस था.

आधार कार्ड से पता चला कि विजय साचीदार शांतिनगर थाना क्षेत्र में रहता था, इसलिए कंट्रोल रूम द्वारा इस थाने को सूचित किया गया. शांतिनगर थाने ने उधना क्षेत्र थाने से यह लाश अपने अधिकार में ले कर जांच की. विजय को गला दबा कर मारा गया था. विजय का पोस्टमार्टम करवा कर लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. इस मामले को भादंवि की धारा 302 में दर्ज कर के पदम चरण की तलाश शुरू कर दी गई.

पदम चरण के बारे में रजनी से बहुत कुछ मालूम हो सकता था. पुलिस ने रजनी को थाने में बुला कर पूछताछ की तो रजनी ने बताया कि पदम का ओडिशा के गंजाम जिले में बरहमपुर इलाके में घर है. इस से अधिक वह कुछ नहीं जानती. रजनी ने पदम से प्रेम करने के दौरान जो फोटो खींचे थे, वे भी उस ने पुलिस को दे दिए.

शांतिनगर थाने की पुलिस पदम की तलाश में ओडिशा गई. वहां उस के मांबाप को श्रीराम नगर में ढूंढ निकाला गया. उन्होंने बताया पदम कई दिनों बाद घर आया था, लेकिन एक रात रुक कर वह चला गया. वह कहां गया, यह उन्हें नहीं मालूम. पुलिस ओडिशा से खाली हाथ वापस आ गई. इस के बाद पदम को सालों पुलिस यहांवहां ढूंढती रही, लेकिन वह कहां छिप गया, पुलिस को पता नहीं चला.

पदम के ऊपर घोषित हुआ ईनाम

पुलिस द्वारा उस के ऊपर 45 हजार का ईनाम भी घोषित कर दिया गया, लेकिन सब व्यर्थ. हताश हो कर विजय साचीदास हत्या केस की फाइल पुलिस को ठंडे बस्ते में डालनी पड़ी. जून 2023 को पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने सूरत शहर के भगोड़े व मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की लिस्ट तैयार करवाई तो उस में 23 सालों से फरार चल रहे पदम चरण उर्फ चरण पांडा का भी नाम था. उस पर 45 हजार का ईनाम भी घोषित था.

पदम को पकडऩे का जिम्मा अपराध शाखा के एएसआई सहदेव, एएसआई जनार्दन हरिचरण और हैडकांस्टेबल अशोक को सौंपा गया. इस टीम की पहली सफलता यह थी कि 23 साल से फोन बंद कर के बिल में छिपे पदम ने मोबाइल फोन से अपने परिजनों से संपर्क किया था.

ओडिशा के गंजाम जिले में श्रीराम नगर इलाके से गोपनीय जानकारी अपराध शाखा को मिली तो पदम के परिजनों से पदम का नया नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया गया. उस की लोकेशन ट्रेस की गई तो वह मथुरा के बरसाना की थी.

क्राइम ब्रांच को बनना पड़ा साधु

अपराध शाखा की टीम मथुरा के बरसाना पहुंची. वहां से टोह लेती हुई नंदगांव पहुंच गई. यहां की पुलिस चौकी के इंचार्ज सिंहराज की मदद से साधु वेश बना कर 8 दिन आश्रमों, मठों में पदम को तलाश करती रही. अपने असली नाम छिपा कर 100 से ज्यादा धार्मिक स्थलों में उसे खोजा गया, फिर कुंजकुटी आश्रम में तलाश करने पंहुचे तो उन्हें साधु वेश में रह रहे पदम चरण को पकडऩे में सफलता मिल गई.

पदम चरण को शांतिनगर थाना (सूरत) में ला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि विजय साचीदास उस के और रजनी के प्रेम में बाधा बन गया था. उसे समझाने पर भी वह नहीं माना तो उस का अपहरण कर के वह उद्यान खाड़ी क्षेत्र में ले गया और वहां गला दबा कर उस की हत्या करने के बाद वह ओडिशा भाग गया.

एक रात रुक कर वह मथुरा आया, यहां नंदगांव के कुंजकुटी में साधु वेश बना कर रहने लगा. उसे लगा कि विजय की हत्या हुए 23 साल गुजर गए हैं, पुलिस खामोश बैठ गई है तो उस ने मोबाइल खरीद कर परिजनों से बात की. इसी क्लू द्वारा पुलिस उस तक पहुंची और वह पकड़ा गया.

पुलिस ने पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा को सक्षम न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.