प्रेमिका बनी ब्लैकमेलर – भाग 1

3 मई, 2023 को रात के कोई साढ़े 9 बजे का वक्त रहा होगा. उसी दौरान पुलिस हैडक्र्वाटर से पुलिस को सूचना मिली कि मुलताई कस्बे के गांधी वार्ड के नागपुर चौक पर एक युवती की गला रेत कर हत्या कर दी गई है. युवती की लाश सडक़ पर पड़ी हुई है. मुलताई कस्बा मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के अंतर्गत आता है.

हत्या की सूचना मिलते ही मुलताई थाने की टीआई प्रज्ञा शर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गई. घटनास्थल पर पहुंचते ही टीआई प्रज्ञा शर्मा ने सब से पहले घटनास्थल का मुआयना किया. युवती की गला रेत कर बड़ी ही बेरहमी से हत्या की गई थी. घटनास्थल पर सडक़ के बीचोंबीच युवती का शव पेट के बल पड़ा हुआ था. उस के पास ही एक स्कूटी और उस का अन्य सामान भी बिखरा पड़ा था.

घटनास्थल का मुआयना करने के बाद प्रज्ञा शर्मा ने इस सब की जानकारी एसडीओपी नम्रता सोंधिया तथा बैतूल एसपी प्रतीक चौधरी को भी दे दी थी. सरेआम भीड़भाड़ वाले इलाके में बीच सडक़ पर युवती की हत्या कर दिए जाने का मामला बेहद ही गंभीर था. यही कारण था कि युवती की हत्या की सूचना पाते ही सारे पुलिस उच्चाधिकारी मौके पर पहुंच गए थे.

उस वक्त तक मार्केट की ज्यादातर दुकानें बंद हो चुकी थीं. बाकी दुकानदार पुलिस को देख कर अपने शटर गिरा कर चलते बने थे. पुलिस ने आसपास खुल रही दुकान वालों से उस युवती की हत्या के बाबत जानकारी लेनी चाही तो किसी ने अपना मुंह तक नहीं खोला, लेकिन उस की शिनाख्त जल्दी ही हो गई. युवती मुलताई के नेहरू नगर के इलाके में रहने वाली अफजल शेख की बेटी सिमरन शेख थी. जानकारी मिलते ही पुलिस ने उस की हत्या की जानकारी उस के घर वालों को देते हुए तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने को कहा.

कैमरे में रिकौर्ड नहीं हो पाई वारदात

युवती की हत्या किस ने और क्यों की? यह बात न तो उस के घर वालों को पता था और न ही पुलिस को पता लग पा रहा था. उस वक्त तक मार्केट पूरी तरह से बंद हो चुकी थी. तब पुलिस ने अपनी अपनी काररवाई पूरी कर उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

इस के बाद पुलिस इस केस की जांच में जुट गई. पुलिस ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरे चैक किए. लेकिन पुलिस को इस से भी कोई सफलता नहीं मिली, क्योंकि सीसीटीवी कैमरे के सामने एक बड़ी गाड़ी खड़ी थी. जिस के कारण वह वारदात कैमरे में रिकौर्ड नहीं हो पाई थी. उस के बाद पुलिस ने देखा कि घटनास्थल के ठीक सामने हनीफ मियां की अंडों की दुकान थी, जो हर रोज देर रात 10 बजे तक खुली रहती थी.

पुलिस को लगा कि घटना के वक्त हनीफ मियां की दुकान जरूर खुल रही होगी. शायद उन्हीं से इस मामले में कुछ जानकारी हासिल हो सके. यह सोचते ही पुलिस ने दुकान पर लिखे मोबाइल नंबर को डायल किया तो किसी ने फोन नहीं उठाया. पुलिस ने 1-2 बार नहीं कई बार उसी नंबर को रिडायल किया. लेकिन वह फोन नहीं उठा.

फोन न उठने के कारण पुलिस को उसी दुकानदार पर कुछ शक हुआ. पुलिस हनीफ मियां का पता पूछतेपूछते उस के घर पर पहुंच गई. वह घर पर ही मिल गए. पुलिस ने हनीफ मियां से उस घटना को ले कर जानकारी जुटानी चाही तो उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि उन की दुकान बहुत पहले ही बंद हो गई थी. उस के बाद वहां पर कब, क्या हुआ, उन्हें कोई जानकारी नहीं.

शक के घेरे में आया शनीफ

उसी पुलिस पूछताछ के दौरान पुलिस को गुप्तरूप से जानकारी मिली कि शाम के वक्त ज्यादातर उन का बेटा शनीफ दुकान पर बैठता था. पुलिस ने हनीफ मियां से शनीफ के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह दुकान से आने के बाद अकसर अपने दोस्तों के पास चला जाता है. हो सकता है कि वह अपने दोस्तों के पास ही होगा. पुलिस ने हनीफ मियां से उस का मोबाइल नंबर ले कर डायल किया तो वह बंद मिला.

शनीफ का मोबाइल बंद पा कर पुलिस को पूरा शक हो गया कि इस हत्या के बारे में उसे जरूर जानकारी रही होगी. तभी उस ने अपना मोबाइल बंद कर लिया है. उसी शक के आधार पर पुलिस उस की तलाश में जुट गई, लेकिन उस का कहीं भी पता नहीं चला. उस के बाद पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए मुखबिर लगा दिए. मुखबिर की सूचना पर शनीफ जल्दी ही पकड़ में आ गया. पुलिस पकड़ में आते ही वह बुरी तरह से घबरा गया था. पुलिस उसे गिरफ्तार कर थाने ले आई.

चूंकि शनीफ ने सरेआम घटना को अंजाम दिया था, जिस को वहां मौजूद काफी लोग देख रहे थे. वह जानता था कि पुलिस के आगे उस की एक नहीं चलने वाली. यही सोच कर उस ने जल्दी ही सब कुछ साफसाफ उगल दिया. शनीफ ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि सिमरन शेख उसे ब्लैकमेल कर उसे बरबाद करने पर तुली थी. जिस के कारण ही उसे यह कदम उठाना पड़ा.

हत्या का अपराध स्वीकारते ही पुलिस ने उस की निशानदेही से हत्या में प्रयुक्त मीट काटने वाला छुरा भी बरामद कर लिया. साथ ही उस के द्वारा घटना के वक्त पहने कपड़े भी पुलिस ने बरामद कर लिए.

कौन थी सिमरन शेख? और उस की जानपहचान शनीफ से कैसे हुई? जानने के लिए हमें इस दिलचस्प कहानी के अतीत में जाना होगा.

सोशल मीडिया की दीवानी हुई सिमरन शेख

मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में पड़ता है एक कस्बा मुलताई. सिमरन इसी कस्बे के नेहरू नगर में रहने वाले अफजल शेख की बेटी थी. सिमरन शेख बचपन से ही चंचल थी. उस के नैननक्श उस की सुंदरता का स्वयं ही बखान करते थे. यही कारण था कि वह अपनी सुंदरता और चंचलता के कारण सभी की चहेती बन गई थी.

अफजल शेख की एक बहन थी फातिमा. फातिमा के कोई बच्चा नहीं था. सिमरन से वह बहुत ही प्रभावित थी. जब से सिमरन ने जन्म लिया था, उस की निगाहें उसी पर गड़ी रहती थीं. एक दिन मौका मिलने पर उस ने अपने भाई अफजल से उस प्यारी सी गुडिय़ा को लेने की चाहत जाहिर की. अफजल अपनी बहन की इस मांग को मना नहीं कर सके और उन्होंने सिमरन को उस के हवाले कर दिया. सिमरन की बुआ उसे ले कर अपने घर चली आई और प्यार से उस का पालनपोषण करने लगी.

इश्क जान भी लेता है

प्यार में भटका पुजारी

दिल्ली के निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के नजदीक नांगली राजपुर स्थित यश गैस्टहाऊस में 27 अक्तूबर, 2015 को एक ऐसी घटना घटी कि गैस्टहाऊस के मैनेजर और कर्मचारी सिहर उठे. शाम के करीब 4 बजे गैस्टहाऊस के कमरा नंबर 24 से अचानक चीखने की आवाजें आने लगीं. चीखें सुन कर मैनेजर सुमित कटियार 2 कर्मचारियों के साथ उस कमरे की ओर भागे. वहां पहुंच कर उन्होंने देखा कि कमरे से धुआं भी निकल रहा है.

उस कमरे में सुबह ही एक आदमी अपनी पत्नी के साथ आया था. कमरे से चीखने की जो आवाज आ रही थी, वह उसी आदमी की थी. मैनेजर की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उस आदमी के साथ ऐसा क्या हो गया, जो वह इस तरह चीख रहा है. चीखों और धुआं निकलने से उस ने यही अंदाजा लगाया कि शायद वह आदमी जल रहा है. यह सोच कर सुमित कटियार घबरा गए.

कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उन्होंने दरवाजा थपथपाया, लेकिन वह नहीं खुला. वह परेशान हो उठे. जब उन्हें कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने अन्य कर्मचारियों के साथ मिल कर कमरे का दरवाजा तोड़ दिया. कमरे के अंदर का खौफनाक दृश्य देख कर सब की घिग्घी बंध गई. कमरे में पड़े बैड के नीचे एक आदमी आग में जलते हुए तड़प रहा था. उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था. बैड के पास खड़ी उस की पत्नी हैरत से उसे जलता देख रही थी. वह भी उसी हालत में थी.

सुमित कटियार ने तुरंत पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के इस घटना की सूचना दे दी. थोड़ी ही देर में पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी वहां पहुंच गई, जिस में 4 पुलिसकर्मी थे. यह क्षेत्र दक्षिणीपूर्वी दिल्ली के थाना सनलाइट कालोनी के अंतर्गत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से इस घटना की सूचना थाना सनलाइट कालोनी को भी दे दी गई थी.

खबर मिलते ही थानाप्रभारी ओमप्रकाश लेखवाल 2 हैडकांस्टेबलों को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. निरीक्षण में उन्हें कमरे में एक अधेड़ आदमी फर्श पर झुलसा पड़ा मिला. वह बेहोशी की हालत में लगभग 90 प्रतिशत जला था. उस के कपड़े बैड के पास रखी मेज पर रखे थे. मेज के नीचे एक कोल्डङ्क्षड्रक्स की 2 लीटर की खाली बोतल रखी थी, जिस में थोड़ा पैट्रोल था. थानाप्रभारी ने एक हैडकांस्टेबल के साथ उस जले हुए आदमी को इलाज के लिए अस्पताल भेज दिया.

जिस व्यक्ति के साथ यह घटना घटी थी, वह कौन था, कहां का रहने वाला था और यह घटना कैसे घटी थी, इस बारे में थानाप्रभारी ओमप्रकाश लेखवाल ने गैस्टहाऊस के मैनेजर सुमित कटियार से पूछा तो उन्होंने बताया कि जो आदमी आग से झुलसा है, उस का नाम गजानन है. वह सुबह साढ़े 10 बजे अपनी पत्नी सुनीता के साथ आया था. उस ने आईडी के रूप में अपने वोटर कार्ड की फोटोकौपी जमा कराई थी.

तब उसे कमरा नंबर 24 दे दिया गया था. इस के बाद अभी थोड़ी देर पहले कमरे से चीखने की आवाज सुनाई दी तो वह कुछ कर्मचारियों के साथ वहां पहुंचा. तब उस ने कमरे से धुआं निकलते देखा. उस ने दरवाजा खुलवाने की कोशिश की. जब दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दरवाजा तोड़ दिया.

इस के आगे मैनेजर ने बताया कि जब उस ने गजानन की पत्नी सुनीता से आग लगने के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि उस की शादी को 15 साल हो गए हैं, लेकिन अभी तक उन्हें संतान नहीं हुई. बड़ेबड़े डाक्टरों को दिखाया, तांत्रिकों के पास भी गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. संतान न होने की वजह से दोनों काफी परेशान थे. एक दिन पहले उस के पति ने उस से कहा कि कल उन्हें महाराष्ट्र के नागपुर शहर चलना है. वहां एक बहुत पहुंचे हुए फकीर हैं, जो दुआ पढ़ा हुआ पानी देते हैं. वह पानी पीने के बाद संतान सुख का लाभ मिलता है.

चूंकि जिस ट्रेन से उन्हें नागपुर जाना था, वह रात 9 बजे की थी. इतना टाइम वे सडक़ पर नहीं बिता सकते थे, इसलिए आराम करने के लिए इस गैस्टहाऊस में आ गए. शारीरिक संबंध बनाने के बाद पति पर न जाने क्या फितूर सवार हुआ कि उन्होंने साथ लाए कपड़े के बैग से 2 लीटर वाली प्लास्टिक की बोतल निकाली और उस में भरा पैट्रोल खुद पर उड़ेल लिया. वह कुछ समझ पाती पति ने माचिस की तीली जला कर खुद को आग लगा ली.

“कहां है गजानन की पत्नी सुनीता?” ओमप्रकाश लेखवाल ने पूछा तो मैनेजर इधरउधर देखने लगा. उस ने पूरा गैस्टहाऊस छान मारा, लेकिन सुनीता कहीं नहीं मिली.

“तुम्हारी लापरवाही की वजह से वह भाग गई,” ओमप्रकाश लेखवाल ने कहा, “तुम ने गजानन की उस पत्नी की कोई आईडी ली थी?”

“सर, पति की आईडी मिल गई तो मैं ने उस की आईडी लेना जरूरी नहीं समझा.” कह कर मैनेजर ने सिर झुका लिया.

“वह गजानन की पत्नी ही थी, मुझे नहीं लगता. वह मौजमस्ती के लिए उस के साथ यहां आई थी. मुझे पूरा यकीन है कि वह पैट्रोल गजानन नहीं वही लाई थी. अपना काम कर के वह रफूचक्कर हो गई. उस ने तुम्हें झूठी कहानी सुना कर विश्वास में ले लिया और कपड़े पहन कर चली गई. लापरवाही तुम लोग करते हो और भुगतना पुलिस को पड़ता है.” ओमप्रकाश लेखवाल ने नाराजगी प्रकट करते हुए कहा.

थानाप्रभारी ने गैस्टहाऊस का रजिस्टर चैक किया तो उस में गजानन का पता चांदनी चौक, पुरानी दिल्ली का लिखा था. जबकि उस ने अपने वोटर आईडी कार्ड की जो छायाप्रति जमा कराई थी, उस में उस का पता गांव कामनवास, सवाई माधोपुर, राजस्थान लिखा था.

पुलिस ने गैस्टहाऊस के मैनेजर को वादी बना कर भादंवि की धारा 307 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. गजानन का हाल जानने के लिए ओमप्रकाश लेखवाल अस्पताल पहुंचे तो उन्हें पता चला कि गजानन की मौत हो चुकी है. मरने से पहले उस ने डाक्टरों को बताया था कि उसे सुनीता उर्फ ङ्क्षरकू ने जलाया था.

गजानन की मौत की खबर उस के घर वालों को देना जरूरी था, इसलिए उस ने गैस्टहाऊस में दिल्ली का जो पता लिखाया था, पुलिस चांदनी चौक स्थित उस पते पर गौरीशंकर मंदिर पहुंची तो वहां से पता चला कि गजानन पहले इसी मंदिर में महंत था. लेकिन कुछ दिनों पहले उसे वहां से हटा दिया गया था. अब वह सवाई माधोपुर स्थित अपने गांव में रहता था. दिल्ली वह 10-15 दिनों में आताजाता रहता था.

इस के बाद दिल्ली पुलिस ने राजस्थान पुलिस को गजानन की हत्या की खबर भिजवा कर संबंधित थाने द्वारा उस के घर वालों को उस की हत्या की खबर भिजवा दी. खबर सुन कर गजानन के घर वाले थाना सनलाइट कालोनी पहुंच गए.

डीसीपी संजीव रंधावा ने सुनीता की तलाश के लिए पुलिस की एक टीम बनाई, जिस में एसआई ललित कुमार, हैडकांस्टेबल मान ङ्क्षसह, कांस्टेबल सूबे ङ्क्षसह, महिला कांस्टेबल संगीता ङ्क्षसह को शामिल किया गया. टीम का नेतृत्व ओमप्रकाश लेखवाल को सौंपा गया.

गजानन चांदनी चौक के जिस गौरीशंकर मंदिर में महंत था, पुलिस टीम ने वहीं से जांच शुरू की. वहां से पुलिस को कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं. पता चला कि गजानन 10 साल पहले दिल्ली आया था और गौरीशंकर मंदिर का महंत बन गया था. मंदिर में पूजापाठ कराने के साथसाथ वह ज्योतिषी एवं तंत्रमंत्र का भी काम करता था. उस के पास अपनी समस्याओं के समाधान के लिए पुरुषों के साथसाथ महिलाएं भी आती थीं.

इन में कुछ महिलाओं से उस की अच्छी जानपहचान हो गई थी. वह शराब भी पीने लगा था. इन में से कुछ महिलाओं से उस के अनैतिक संबंध भी बन गए थे. बाद में जब यह बात गौरीशंकर मंदिर की प्रबंधक कमेटी को पता चली तो कमेटी ने सन 2008 में गजानन को मंदिर से निकाल दिया था.

इस के बाद गजानन ने मंदिर के बाहर फूल एवं पूजा सामग्री बेचने की दुकान खोल ली. उस की यह दुकान बढिय़ा चलने लगी थी. उस ने दुकान पर काम करने के लिए 2 नौकर रख दिए और खुद राजस्थान स्थित अपने घर चला गया. यह 2-3 साल पहले की बात है. वह हफ्तादस दिन में दुकान पर आता और नौकरों से हिसाब कर के चला जाता था. यह जानकारी हासिल कर के पुलिस टीम थाने लौट आई.

उधर पोस्टमार्टम के बाद 20 अक्तूबर, 2015 को लाश गजानन के परिजनों को सौंप दी गई. घर वालों ने निगमबोध घाट पर ही उस की अंत्येष्टि कर दी. एसआई ललित कुमार ने घर वालों से पूछताछ की तो उन्होंने किसी पर शक नहीं जताया.

पुलिस ने गैस्टहाऊस में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी. फुटेज में सुनीता उर्फ ङ्क्षरकू का चेहरा तो नजर आ रहा था, लेकिन पुलिस के लिए मुश्किल यह थी कि इतनी बड़ी दिल्ली में उसे कहां ढूंढ़ा जाए. पुलिस के पास सुनीता का कोई मोबाइल नंबर भी नहीं था, जिस से उस के द्वारा उसे ढूंढने में आसानी हो. गैस्टहाऊस में गजानन के कपड़ों से एक मोबाइल फोन मिला था. घर वालों ने बताया था कि वह मोबाइल गजानन का ही है.

ललित कुमार ने सुनीता का फोन नंबर जानने के लिए गजानन के मोबाइल की काल लौग देखी तो एक नंबर पर उन की नजर टिक गई. क्योंकि वह नंबर ‘माई लव’ के नाम से सेव था. ललित कुमार जानना चाहते थे कि यह नंबर किस का है. उन्होंने अपने सैल फोन से वह नंबर मिलाया.

कुछ देर बाद एक महिला ने फोन रिसीव कर के ‘हैलो’ कहा तो ललित कुमार बोले, “कार में चलने का शौक है तो इस के लोन की किस्तें भी समय से जमा करा दिया करो. 3 महीने हो गए, आप ने अभी तक किश्तें नहीं जमा कीं.”

“अरे भाई, आप कौन बोल रहे हैं? मैं ने कार के लिए कब लोन लिया?” दूसरी ओर से महिला ने कर्कश स्वर में कहा.

“आप रुखसार बोल रही हैं न?” ललित कुमार ने पूछा.

“नहीं बाबा, मैं रुखसार नहीं, सुनीता हूं. रौंग नंबर.”

“सौरी मैडम, गलत नंबर लग गया.” ललित कुमार ने कहा. इस के बाद उन्होंने फोन काट दिया. इस बातचीत के बाद उन की आंखों में चमक आ गई. क्योंकि सुनीता के फोन नंबर की पुष्टि हो गई थी.

ललित कुमार ने सुनीता का फोन नंबर सॢवलांस पर लगवाया तो उस की लोकेशन लाल किला, रेलवे कालोनी की मिली. वह टीम के साथ रेलवे कालोनी पहुंचे तो वहां के लोगों से सुनीता के बारे में पूछने पर पता चला कि सुनीता का पति रेलवे में नौकरी करता है. वह पहले इसी कालोनी में पति के साथ रहती थी, पर 4 सालों से वह परिवार के साथ नोएडा में कहीं रहने चली गई है.

पता चला कि रेलवे कालोनी का वह क्वार्टर उस ने किसी को किराए पर दे रखा था. किराएदार से वह उस दिन मिलने आई थी. उस से मिल कर वह नोएडा चली गई थी. नोएडा में सुनीता कहां रह रही है, यह बात रेलवे कालोनी में रहने वाला कोई नहीं बता सका.

अलबत्ता सुनीता ने जिस परिवार को अपना क्वार्टर किराए पर दिया था, उस ने पुलिस को बताया कि उस का कुछ जरूरी सामान एक कमरे में रहता है, जिस की चाबी सुनीता के पास रहती है. आज जब वह मिलने आई थी तो वहां से कुछ सामान अपने बैग में भर कर ले गई थी.

इतनी जानकारी मिलने के बाद ललित कुमार ने सॢवलांस द्वारा सुनीता के फोन की लोकेशन पता की तो इस बार लोकेशन नोएडा सैक्टर-29 की निकली.

28 अक्तूबर, 2015 की सुबह ललित कुमार ने टीम में शामिल महिला कांस्टेबल के साथ नोएडा के सैक्टर- 29 स्थित एक मकान पर दबिश दी तो वहां सुनीता मिल गई. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, “मेरा गजानन से रिश्ता जरूर था, मगर मैं ने उन्हें जला कर नहीं मारा. उन्होंने खुद ही पैट्रोल डाल कर आग लगाई थी.”

“तो फिर तुम वहां से भागी क्यों?” थानाप्रभारी ओमप्रकाश लेखवाल ने पूछा.

“स…सर, मैं डर गई थी.” वह बोली.

“गजानन भला खुद को आग क्यों लगाएगा?” ओमप्रकाश लेखवाल ने पूछा.

“सर, बात यह है कि गजानन की पत्नी बीमार रहती है. जब मुझ से उन का रिश्ता बना तो वह मुझ पर शादी करने का दबाव बनाने लगे. मैं 2 बच्चों की मां हूं. बच्चों को छोड़ कर मैं ऐसा कैसे कर सकती थी?” कह कर सुनीता सिसकने लगी.

पलभर बाद वह हिचकियां लेते हुए बोली, “26 अक्तूबर की शाम गजानन ने फोन कर के कहा कि मुझ से मिलने की उस की काफी इच्छा है. अगले दिन उन्होंने सुबह 10 बजे मुझे हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के बाहर बुलाया. अगले दिन तयशुदा समय पर मैं स्टेशन के बाहर पहुंची तो उन्हें मैं ने इंतजार करते पाया. उन के कंधे पर कपड़े का एक बैग था.

“गजानन मुझे यश गैस्टहाऊस ले गए. उन्होंने वहां मुझे अपनी पत्नी बताया था. कमरे में जा कर हम ने शारीरिक संबंध बनाए. उस के बाद गजानन ने साथ लाए बैग से प्लास्टिक की 2 लीटर की बोतल निकाली और उस का ढक्कन खोला. उस में पैट्रोल भरा था.

“गजानन ने मुझ से कहा कि वह आखिरी बार पूछ रहा है कि मैं उस से शादी करूंगी या नहीं? मैं ने साफ इनकार कर दिया. तब उन्होंने कहा कि जब तुम नहीं मान रही तो मैं खुदकुशी कर लूंगा, लेकिन पुलिस यही समझेगी कि उसे तुम ने जलाया है. इस के बाद गजानन ने पूरा पैट्रोल अपने शरीर पर छिडक़ कर आग लगा ली.”

फिर सुनीता जोरजोर से रोते हुए बोली, “सर, मैं ने उन्हें नहीं मारा. मुझे फंसाने के लिए उन्होंने खुदकुशी की थी.”

ओमप्रकाश लेखवाल को लगा कि सुनीता की आंखों के आंसू घडिय़ाली हैं, यह जरूर कुछ छिपा रही है. उन्होंने महिला कांस्टेबलों को इशारा किया. महिला कांस्टेबल ने सुनीता को एक अलग कमरे में ले जा कर थोड़ी सख्ती की तो उस ने सहजता से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

सुनीता उर्फ ङ्क्षरकू मूलरूप से पटना, बिहार की रहने वाली थी. 13 साल पहले उस की शादी विजय कुमार के साथ हुई थी. विजय कुमार दिल्ली में रहता था और हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर बतौर टैक्नीशियन नौकरी करता था. वह पति के साथ खुश थी. वह 2 बच्चों की मां बनी. विजय कुमार को रेलवे की ओर से जामामस्जिद के पास बनी रेलवे कालोनी में क्वार्टर मिला था. उस में वह पत्नी सुनीता और बच्चों के साथ रहता था.

सुनीता आजादखयालों की थी, जबकि विजय कुमार पंरपरावादी. सुनीता को घूमने एवं सिनेमाहौल में फिल्में देखने का शौक था. अपने शौक पूरे करने के लिए वह पति से अनापशनाप खर्च लेती रहती थी. सुनीता अकसर गौरीशंकर मंदिर भी जाया करती थी. वहीं 8 साल पहले उस की मुलाकात मंदिर के महंत गजानन से हुई.

गजानन पुजारी होने के साथसाथ ज्योतिषी भी था. यही वजह थी कि उस के पास महिलाओं की भीड़ लगी रहती थी. सुनीता गजानन से मिली तो वह उस का दीवाना हो गया. इस के बाद दोनों के बीच संबंध बन गए. कुछ दिनों बाद गजानन और सुनीता के संबंधों की बात मंदिर की प्रबंधक कमेटी को पता चली तो उसे मंदिर से निकाल दिया गया. तब वह मंदिर के बाहर फूल व पूजा सामग्री बेचने लगा.

सुनीता और गजानन के संबंध पहले की ही तरह जारी रहे. गजानन ने चांदनी चौक में किराए का मकान ले रखा था. जब भी उस की इच्छा होती, वह सुनीता को अपने कमरे पर बुला लेता. वह सुनीता को शौक पूरे करने के लिए अच्छेखासे पैसे भी देता था.

सन 2014 के अगस्त महीने में गजानन ने सवाई माधोपुर में अपना एक प्लौट 25 लाख रुपए में बेचा तो सुनीता के मांगने पर उस ने उसे 10 लाख रुपए उधार दे दिए. सितंबर, 2015 के अंतिम दिनों में गजानन ने उस से अपने रुपए मांगे तो सुनीता बहाने बनाने लगी.

दरअसल, अब तक गजानन का मन सुनीता से भर चुका था. वह अपने 10 लाख रुपए ले कर उस से हमेशा के लिए पीछा छुड़ाना चाहता था. लेकिन सुनीता की नीयत में खोट आ गई थी. वह गजानन के 10 लाख रुपए किसी भी सूरत में लौटाना नहीं चाहती थी. वह टालमटोल करने लगी तो गजानन धमकी देने लगा कि उस ने उस के अंतरंग क्षणों की वीडियो बना रखी है. अगर उस ने उस के पैसे नहीं लौटाए तो वह वीडियो उस के पति को दिखा देगा.

सुनीता डर गई. उस ने गजानन की हत्या करने की योजना बना डाली. सुनीता ने 26 अक्तूबर, 2015 की रात गजानन को फोन किया. उस समय गजानन सवाई माधोपुर स्थित अपने घर में था. सुनीता ने कहा, “कल सुबह तुम हजरत निजामुददीन रेलवे स्टेशन के बाहर 11 बजे मिलना. मैं तुम्हारे 10 लाख रुपए लौटा दूंगी.”

पैसों के लालच में गजानन रात में ही ट्रेन द्वारा राजस्थान से चल पड़ा और 27 अक्तूबर की सुबह 9 बजे हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंच गया. वह स्टेशन के बाहर खड़ा हो कर सुनीता का इंतजार करने लगा.

10 बजे के करीब सुनीता वहां पहुंची. वह गजानन को नांगली राजपुर स्थित यश गैस्टहाऊस ले गई. वहां गजानन ने एक कमरा बुक कराया. जैसे ही वे दोनों कमरे में पहुंचे, तभी सुनीता ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. मौके का फायदा उठाने के लिए गजानन ने उसे आगोश में ले लिया.

इस के बाद दोनों ने कपड़े उतार कर शारीरिक संबंध बनाए. हसरतें पूरी करने के बाद दोनों बिस्तर पर निर्वस्त्र लेटे थे, तभी गजानन ने उस से अपने 10 लाख रुपए मांगे. तब सुनीता ने कहा, “पंडितजी, 8-10 सालों से मैं तुम्हारी सेवा करती आ रही हूं. अब तो आप उन पैसों को भूल जाइए.”

“नहीं सुनीता, घर वालों को इस की जानकारी हो गई है. वे सब मुझ से झगड़ा करते हैं. इसलिए मैं पैसे मांग रहा हूं.” गजानन ने कहा.

सुनीता उठी और साथ लाए बैग से पैट्रोल से भरी बोतल निकाल कर उस के ऊपर उड़ेल दी. इस से पहले कि गजानन कुछ समझ पाता, सुनीता ने उस पर आग लगा दी. जलता हुआ गजानन चीखने लगा. उस की चीख सुन कर गैस्टहाऊस का मैनेजर वहां आ पहुंचा. इस के बाद क्या हुआ, आप ऊपर पढ़ ही चुके हैं.

सुनीता से पूछताछ कर के पुलिस ने 29 अक्तूबर, 2015 को उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भारी पड़ी प्रेमी से शादी करने की जिद – भाग 3

पति के साथ घरगृहस्थी चलने के उस ने मन में जो सपने संजोए थे, वह पारिवारिक तनाव की वजह से धूमिल होते दिख रहे थे. पति उस पर हाथ भी उठाने लगा था. निर्मला की बहन नन्हीं देवी का आरोप है कि मेहरूलाल निर्मला को दहेज के लिए प्रताडि़त करता था. 24 अगस्त, 2002 को भी इस ने निर्मला को इतनी बेरहमी से पीटा था कि उसे दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में भरती होना पड़ा था.

उस वक्त निर्मला गर्भवती थी. इस के बावजूद भी पिटाई करते समय पति का दिल नहीं पसीजा था. उस की हालत को देखते हुए डाक्टर ने उसे गर्भ गिराने और डेढ़ महीना पूरी तरह आराम करने की सलाह दी थी. अस्पताल में इलाज कराने के बाद निर्मला मायके चली गई. बाद में अपनी ड्यूटी पर जाने लगी.

ठीक होने के बाद निर्मला पति के साथ नहीं रहना चाहती थी लेकिन घरगृहस्थी न बिगड़े यही सोच कर घरवालों ने निर्मला को समझाबुझा कर पति के साथ भेज दिया लेकिन मेहरूलाल के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया.  नन्ही के अनुसार निर्मला के ससुराल वाले पैसों के लिए उसे फिर तंग करने लगे. 5 दिसंबर, 2003 को मेहरूलाल ने निर्मला को 2 लाख रुपए के लिए फिर पीटा. मजबूरी में उसे पति को 2 लाख रुपए देने पड़े थे.

मेहरूलाल जानता ही था कि निर्मला मोटी तनख्वाह पाती है. उस के मन में लालच भरा था. उस ने 50 हजार रुपए के लिए उस की 23 मार्च, 2004 को फिर पिटाई की. निर्मला को लगा कि पति सुधरने वाला नहीं है इसलिए इस के बाद उस ने पति से दूरी बना ली. वह फिर ससुराल नहीं गई. बेटे को उस ने अपने साथ लाने की कोशिश की लेकिन पति ने बेटा उसे नहीं दिया. हालांकि इस बात को ले कर गांव में कई बार पंचायतें भी हुईं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

निर्मला ने सन 2005 में पति और अन्य ससुरालजनों के खिलाफ दिल्ली के नरेला थाने में भादंवि की धारा 406, 498ए के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस केस में मेहरूरलाल सहित 3 लोगों को जेल जाना पड़ा था. लेकिन एक महीने बाद ही वे जमानत पर बाहर आ गए.

अपना केस लड़ने के लिए निर्मला को एक वकील की जरूरत महसूस हुई तो एक जानकार ने सोनीपत के ही रहने वाले एडवोकेट विश्वबंधु से उस की मुलाकात कराई. विश्वबंधु सोनीपत और दिल्ली की तीसहजारी कोर्ट में प्रैक्टिस करता था. विश्वबंधु के मार्फत ही निर्मला ने दिल्ली के रोहिणी कोर्ट में  पति से तलाक लेने और बेटे को पति से उस की कस्टडी में दिलाने की एक अरजी दी.

केस न्यायालय में चलता रहा. कोर्ट ने और्डर दिया कि मेहरूलाल हर महीने के दूसरे इतवार को बेटे को उस की मां निर्मला से मिलवाएगा. कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए मेहरूलाल बेटे को निर्मला से मिलवाता रहा. जब भी तारीख पड़ती निर्मला वकील विश्वबंधु के साथ कोर्ट जाती थी.

पति से दूर रह कर निर्मला एकाकी जीवन बिता रही थी. कोर्ट में तारीख पर आतेजाते उस का झुकाव वकील विश्वबंधु की तरफ हो गया. फिर उन की आपस में दोस्ती हो गई. वह निर्मला के कमरे पर भी आने लगा. दोनों साथसाथ घूमतेफिरते थे. इसी बीच दोनों एकदूसरे के इतने नजदीक पहुंच गए कि उन के बीच अवैध संबंध कायम हो गए.

विश्वबंधु से हुई नजदीकी से निर्मला को एक सहारा मिल गया था. वह अपनी बाकी जिंदगी उसी के साथ गुजारने के सपने देखने लगी. वकील साहब का भी जब मन होता उस के कमरे पर मिलने के लिए पहुंच जाते थे. पिछले 7 सालों से उन के बीच इसी तरह के संबंध चलते रहे. बताया जाता है कि विश्वबंधु ने उस के साथ शादी करने का आश्वासन दिया था. निर्मला इसी भरोसे पर उसे अपना सब कुछ सौंपती रही.

विश्वबंधु के साथ शादी करने के हसीन सपने निर्मला ने अपने मन में सजा रखे थे. लेकिन पिछले साल नवंबर में निर्मला को जब पता लगा कि विश्वबंधु ने किसी और लड़की से शादी कर ली है, तो उसे बहुत बुरा लगा. उस ने विश्वबंधु से अपनी नाराजगी जाहिर की तब उस ने निर्मला को किसी तरह समझाबुझा दिया था.

निर्मला उस से शादी करने की जिद पर अड़ी थी, पर विश्वबंधु शादीशुदा था इसलिए वह उस से शादी नहीं करना चाहता था. उन दोनों के बीच इसी बात को ले कर तनाव बढ़ गया.

विश्वबंधु के सामने एक ही रास्ता था कि वह निर्मला से दूरी बना ले. यही सोच कर उस ने उस के पास आनाजाना भी कम कर दिया. तब निर्मला ने उसे धमकी दी थी कि यदि वह पहले की तरह ही उस के पास नहीं आएगा और शादी नहीं करेगा तो वह उस के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करा देगी. विश्वबंधु मुकदमेबाजी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता था इसलिए मजबूरी में उस के पास आनेजाने लगा.

जब भी वह उस के पास आता निर्मला शादी का दबाव बनाती. इस तनाव से विश्वबंधु बहुत परेशान हो गया. समस्या से निजात पाने के लिए उस ने एक खौफनाक योजना बना ली. योजना के अनुसार उस ने 17 सितंबर, 2014 को निर्मला को फोन किया कि वह रात को उस के कमरे पर आएगा.

निर्धारित समय पर विश्वबंधु लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल परिसर में स्थित निर्मला के फ्लैट नंबर 108 पर पहुंच गया. वे कई दिनों बाद मिले थे इसलिए उन्होंने पहले मौजमस्ती की. इस के बाद निर्मला कुरती और पेंटी पहने ही नहाने के लिए बाथरूम में गई. विश्वबंधु को मौके का इंतजार था. निर्मला के बाथरूम में घुसते ही उस ने उस का सिर दीवार पर दे मारा.

प्रेमी की इस हरकत पर निर्मला भी चौंक गई लेकिन वह उस समय अपना बचाव भी नहीं कर सकी. दीवार में सिर लगते ही उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया, वह नीचे गिर गई. तभी विश्वबंधु ने उस का सिर पानी से भरी बाल्टी में डुबो दिया. उस ने सिर को तब तक दबाए रखा, जब तक उस की मौत न हो गई. इस के बाद उस ने पानी से भरी टब उस के सिर पर रख दी और कमरे का सामान इधरउधर बिखेर दिया ताकि मामला लूट का लगे.

निर्मला को ठिकाने लगाने के बाद विश्वजीत ने राहत की सांस ली. कमरे की लाइट और कूलर चालू हालत में छोड़ कर वह जालीदार और लोहे के दरवाजों की कुंडी लगा कर अपने घर चला गया.

एडवोकेट विश्वबंधु से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे निर्मला देवी (45) की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर तीस हजारी कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी डा. जगमिंदर के समक्ष पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया. कथा लिखने तक विश्वबंधु की जमानत नहीं हो सकी थी. मामले की विवेचना इंसपेक्टर अशोक कुमार कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. पात्र का नाटकीय रूपांतरण किया गया है.

भारी पड़ी प्रेमी से शादी करने की जिद – भाग 2

निर्मला की लाश पर कुरती के अलावा केवल पैंटी थी. ऐसी हालात में महिला पति या प्रेमी के साथ ही रह सकती है. हो सकता है, दोनों में किसी बात को ले कर तकरार हुई हो. बाद में वह बाथरूम में नहाने गई होगी तभी उस के साथी ने उस की हत्या कर दी. पुलिस प्रेम प्रसंग और प्रापर्टी हड़पने के मामले को ध्यान में रखते हुए भी जांच कर रही थी.

निर्मला ने कुछ पैसे इकट्ठे कर के बाहरी दिल्ली के नरेला क्षेत्र में एक आवासीय प्लाट खरीदा था, जिस की कीमत अब काफी बढ़ चुकी है. इसलिए यह भी अनुमान लगाया जा रहा था कि किसी ने प्रापर्टी हड़पने के लिए उसे मार दिया हो. निर्मला का पति मेहरूलाल सोनीपत के गन्नौर थाने के अंतर्गत पुगथला गांव में रहता था. यह काम उस के पति ने तो नहीं कर दिया, यह जानने के लिए पुलिस ने मेहरूलाल को थाने बुला कर पूछताछ की.

मेहरूलाल ने पुलिस को बताया कि सन 2004 से उस का निर्मला से कोई वास्ता नहीं है. वह कहां रहती है, क्या करती है इस से उसे कोई मतलब नहीं. उस की हत्या के बारे में भी उसे कोई जानकारी नहीं है. निर्मला के पड़ोसियों से पुलिस ने पूछा. तो पता चला कि निर्मला के यहां एक आदमी आता था. वह आदमी कौन है यह तो पता नहीं लेकिन वह वकीलों की तरह काला कोट पहन कर आता था.

निर्मला अस्पताल में बने फ्लैट नंबर 108 में 7-8 महीने पहले ही आई थी. यहां आने से पहले वह अस्पताल के बराबर में मुस्कान हौस्टल में किराए पर रहती थी. हौस्टल में रहने वाले लोगों से बात की तो उन्होंने भी बताया कि निर्मला से मिलने एक वकील आता था. वह वकील कौन था, कहां रहता था, पुलिस को पता नहीं चला.  इस बारे में पुलिस ने एक बार फिर मृतका के भाई आनंद कुमार से बात की. बहन से मिलने कौन वकील जाता था इस की जानकारी आनंद कुमार को भी नहीं थी.

सघन तफ्तीश करते हुए 2 दिन बीत चुके थे, लेकिन पुलिस के हाथ ऐसा कोई क्लू नहीं मिल रहा था जिस से हत्यारे तक पहुंचा जा सके. पुलिस ने निर्मला के मोबाइल फोन की कालडिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स की जांच में पुलिस को एक फोन नंबर ऐसा मिला जिस पर निर्मला की काफीकाफी देर तक बातें होती थीं. जाहिर है वह शख्स निर्मला का कोई नजदीकी ही रहा होगा तभी तो वह उस से ज्यादा बातें करती थी. पुलिस ने उस फोन नंबर की छानबीन की तो पता चला कि वह हरियाणा के सोनीपत जिले के राठघना रोड निवासी विश्वबंधु का था.

पुलिस ने विश्वबंधु के बारे में गोपनीय रूप से जांच की तो पता चला कि वह एक वकील है जो हरियाणा की सोनीपत कोर्ट और दिल्ली की तीसहजारी कोर्ट में प्रैक्टिस करता है. यह जानकारी मिलते ही जांच टीम चौंक गई कि निर्मला से उस के फ्लैट पर मिलने के लिए एक वकील जाता था. कहीं वो वकील विश्वबंधु ही तो नहीं है.

चूंकि विश्वबंधु एक वकील था इसलिए पुलिस बिना कोई ठोस सुबूत के उसे गिरफ्तार करने से कतरा रही थी. पुलिस नहीं चाहती थी कि वकील के गिरफ्तार करने पर कोई हंगामा खड़ा हो.  विश्वबंधु के बारे में सोनीपत और दिल्ली में जानकारी हासिल करने के बाद पुलिस ने 25 सितंबर, 2014 को उसे हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से नर्स निर्मला देवी की हत्या की बाबत बात की तो उस ने बताया कि उस की हत्या से उस का कोई लेनादेना नहीं है.

थानाप्रभारी यशपाल सिंह ने उसे निर्मला के फोन की काल डिटेल्स दिखाते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारी निर्मला से वक्त बेवक्त क्या बातें होती थीं?’’

‘‘निर्मला मेरी क्लाइंट थी. उस ने अपने पति के खिलाफ कोर्ट में जो केस डाल रखे थे, उन्हें मैं ही देख रहा था. उन के केसों के बारे में ही उस से बातें होती थीं.’’ एडवोकेट विश्वबंधु ने कहा.

‘‘जितनी देर तक तुम्हारी निर्मला से बातें होती थीं, मुझे नहीं लगता कि वह बातें केस के बारे में होती होंगी. मान भी लें कि तुम उस से केस के सिलसिले में बातें करते थे तो निर्मला के अलावा तुम्हारे और भी क्लाइंट हैं, क्या तुम उन से भी इतनी देर बातें करते हो?’’

‘‘यह जरूरी नहीं है कि सभी क्लाइंटों की समस्या एक जैसी हो. केस को ले कर निर्मला कभीकभी ज्यादा परेशान हो जाती थी तो वह मुझे फोन कर के अपनी परेशानी बता देती थी. इंसपेक्टर साहब इस से ज्यादा मुझे निर्मला से कोई मतलब नहीं था. आप मुझे इस मामले में बेजवह घसीट रहे हैं.’’ विश्वबंधु बोला.

‘‘वकील साहब, तुम भले ही झूठ बोलो लेकिन ऐसी कोई तो खास वजह है जिस से तुम निर्मला के घर आते थे, वहां रुकते थे.’’

‘‘ये आप क्या कह रहे हैं?’’

‘‘हमें तुम्हारे बारे में काफी जानकारी मिल चुकी है. इसलिए तुम हम से सच्चाई छिपाने की कोशिश मत करो. 17 सितंबर को तुम्हारी निर्मला से फोन पर आखिरी बार बात हुई थी. उस दिन के बाद  निर्मला की फोन पर किसी से बात नहीं हुई. अब बेहतर यही होगा कि वकील साहब तुम हकीकत खुद ही बता दो.’’

इतना सुनने के बाद विश्वबंधु खामोश हो गया. इंसपेक्टर यशपाल सिंह से इजाजत ले कर वह सिगरेट पीने लगा. कुछ ही देर में उस ने कई सिगरेट पी डालीं. उस समय वह काफी तनाव में दिख रहा था. थानाप्रभारी उस की बौडी लैंग्वेज देख कर सारा माजरा समझ रहे थे. उन्होंने भी उस से कुछ नहीं कहा. कुछ देर बाद विश्वबंधु को पुलिस के सामने मजबूरन स्वीकार करना पड़ा कि निर्मला देवी की हत्या उस ने ही की थी.

एडवोकेट विश्वबंधु से पूछताछ के बाद नर्स निर्मला देवी की हत्या की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार निकली….

निर्मला देवी हरियाणा के सोनीपत जिले के थाना खरखौदा के गांव बरौना के रहने वाले चंदर सिंह की बेटी थी. बताया जाता है कि अपनी 7 बहनों में वह मंझली थी. 7 बहनों के बीच एक ही भाई था आनंद कुमार.  चंदर सिंह एक संपन्न किसान थे. वह गांव में रहते जरूर थे लेकिन उन की सोच अन्य गांव वालों से अलग थी. उसी सोच की बदौलत उन्होंने अपने सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई.

निर्मला ने स्टाफ नर्स की पढ़ाई की. इस के बाद 1994 में दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में उस की नौकरी लग गई. बाद में उस के भाई आनंद कुमार की भी एक बैंक में अधिकारी के पद पर नौकरी लग गई.  लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में नौकरी लगने के बाद निर्मला अस्पताल के बराबर में ही स्थित मुस्कान हौस्टल में रहने लगी.

जैसेजैसे बच्चे सयाने होते गए, चंदर सिंह ने उन की शादी कर दी. 15 मार्च 1999 को उन्होंने निर्मला की शादी भी सोनीपत जिले के ही गन्नौर थाने के अंतर्गत स्थित गांव पुगथला के रहने वाले मेहरूलाल के साथ कर दी. शादी के कुछ दिनों बाद से ही निर्मला के पति से मतभेद शुरू हो गए. जिस की आंच उन के रिश्ते पर आनी शुरू हो गई. इस बीच निर्मला ने एक बेटे को जन्म दिया.

भारी पड़ी प्रेमी से शादी करने की जिद – भाग 1

निर्मला देवी दिल्ली में स्थित लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में नर्स थी. वह मूल रूप से हरियाणा के सोनीपत जिले के बरौना गांव की रहने वाली थी. पिता की मौत हो चुकी थी. घर पर मां और भाईबहन थे. उन से मिलने वह हर शनिवार दिल्ली से अपने गांव चली जाती थी. लेकिन 20 सितंबर, 2014 को वह गांव नहीं पहुंची तो छोटे भाई आनंद कुमार ने निर्मला को फोन किया. आनंद कुमार खरखौदा में स्थित एक बैंक में औफिसर हैं. आनंद कुमार ने उस का फोन नंबर मिलाया लेकिन घंटी बजने के बाद भी निर्मला ने फोन नहीं उठाया.

आनंद कुमार ने सोचा कि वह शायद किसी काम में व्यस्त होगी इसलिए उस ने थोड़ी देर बाद बहन को फिर फोन किया. इस बार भी निर्मला के फोन की घंटी बज रही थी लेकिन वह फोन नहीं उठा रही थी. आनंद कुमार ने ऐसा कई बार किया. कई बार फोन करने के बाद भी निर्मला ने फोन नहीं उठाया तो आनंद ने यह बात अपनी मां को बताई. बेटी फोन क्यों नहीं उठा रही, यह सोच कर मां भी परेशान हो उठीं. शाम तक निर्मला के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो घर के सभी लोग चिंतित हो गए.

निर्मला लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल परिसर में बने जिस फ्लैट में रहती थी, वह आनंद कुमार ने देखा ही था, इसलिए बहन को देखने के लिए वह अपने दूसरे बहनोई को ले कर रात साढ़े 9 बजे के करीब उस के फ्लैट नंबर 108 पर पहुंच गए. यह फ्लैट तीसरी मंजिल पर स्थित था. फ्लैट के बाहर जो लोहे का दरवाजा लगा हुआ था उस की कुंडी बाहर से बंद थी.

आनंद कुमार ने कुंडी खोली तो दूसरे जाली वाले दरवाजे की कुंडी भी बाहर से बंद मिली. इस तरह कुंडी लगा कर वह कहां चली गई वह बुदबुदाने लगे. जालीदार दरवाजे की कुंडी खोल कर वह फ्लैट में दाखिल हुए. कमरे का बल्ब जल रहा था और कूलर भी चल रहा था लेकिन वहां निर्मला दिखाई नहीं दी. उन्हें कमरे का सामान बिखरा हुआ जरूर दिखाई दिया. यह देख कर आनंद कुमार की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह कमरे के बाद बालकनी में पहुंचे.

निर्मला वहां भी नहीं दिखी तो किचिन में देखने के बाद वह आवाज लगाते हुए बाथरूम की तरफ बढ़े. बाथरूम में घुप्प अंधेरा था. उन्होंने अपने मोबाइल फोन की रोशनी बाथरूम में डाली तो उन की चीख निकल गई. निर्मला औंधे मुंह वहां पड़ी थी.

उस का सिर पानी से भरी बाल्टी में डूबा हुआ था. इस के अलावा उस के सिर पर पानी से भरी एक टब रखी हुई थी और वह अर्द्धनग्नावस्था में थी. आनंद कुमार ने बहन को कई आवाजें दीं और उस के शरीर को हिलायाडुलाया. जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह समझ गए कि किसी ने बहन की हत्या कर दी है. यह देख कर आनंद कुमार और उस के बहनोई सकते में आ गए कि निर्मला के साथ यह सब किस ने किया है?

आनंद ने सामने के फ्लैट नंबर 107 में रहने वाले पवन को आवाज दे कर बुलाया और घटना के बारे में बताया. इस के बाद उन्होंने दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम को खबर कर दी कि किसी ने उन की बहन को मार दिया है. घर पर मां भी निर्मला का इंतजार कर रही थीं. आनंद कुमार ने अपनी मां को भी फोन कर के बता दिया कि निर्मला को किसी ने मार दिया है. बेटी की हत्या की बात सुन कर मां भी दहाड़े मार कर रोने लगीं.

लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल मध्य जिला के आई.पी. एस्टेट थानाक्षेत्र में आता है. अस्पताल परिसर में एक पुलिस चौकी भी है. पुलिस कंट्रोल रूम से यह खबर अस्पताल की पुलिस चौकी और आईपी एस्टेट थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही चौकी इंचार्ज विवेक सिंह एएसआई तसबीर सिंह और हेड कांस्टेबल अजीत सिंह को ले कर फ्लैट नंबर 108 पहुंच गए. तब तक फ्लैटके बाहर आसपास के लोग भी इकट्ठे हो गए थे.

चौकी इंचार्ज विवेक सिंह ने देखा कि निर्मला देवी का सिर पानी से भरी बाल्टी में डूबा हुआ था. वह कुरती और पैंटी पहने हुए थी. उस की कुरती के साथ की सलवार बेड पर रखी हुई थी. घर में रखा सामान भी कमरे में इधरउधर पड़ा था. उन्होंने पूरे हालात से थानाप्रभारी यशपाल सिंह को अवगत करा दिया. तो वह लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. नर्स निर्मला की हत्या की सूचना उन्होंने एसीपी सुकांत बल्लभ और अतिरिक्त पुलिस आयुक्त आलोक कुमार को भी दे दी.

थोड़ी ही देर में थानाप्रभारी के अलावा जिले के अन्य पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया. टीम ने मौके से कई महत्त्वपूर्ण सुबूत इकट्ठे किए. मौके का मुआयना करने के बाद पुलिस अधिकारियों को इस बात का तो पक्का विश्वास हो गया कि हत्यारा मृतक का परिचित ही रहा होगा क्योंकि दरवाजे की जांच करने के बाद यही लगा कि हत्यारे की क्वार्टर में फें्रडली एंट्री हुई थी.

पुलिस यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही थी कि क्या दिल्ली में अकेले रहने के दौरान निर्मला का किसी के साथ प्यार का कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था? अगर ऐसा है तो क्या मर्डर में उसी प्रेमी का हाथ तो नहीं? क्योंकि बाथरूम में जिस तरह अर्द्धनग्नावस्था में उस की लाश मिली थी उस से यही संकेत मिल रहा था.

कमरे में जो सामान इधरउधर पड़ा हुआ था उस से साफ संकेत मिल रहे थे कि हत्या करने के बाद हत्यारे ने कोई चीज ढूंढ़ी हो. मृतका के भाई आनंद कुमार से पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ कर जानना चाहा कि उस की किसी से दुश्मनी वगैरह तो नहीं थी.

आनंद कुमार ने बताया कि निर्मला की वैसे तो किसी से दुश्मनी नहीं थी, मगर उस के पति से दहेज प्रताड़ना व प्रापर्टी हड़पने और तलाक का केस चल रहा था. वह यहां पर अकेली रहती थी. आनंद कुमार से प्रारंभिक पूछताछ करने के बाद पुलिस ने निर्मला देवी की लाश का पंचनामा तैयार कर के पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस घटना के बाद अन्य फ्लैट में रह रही नर्सों में भी भय व्याप्त हो गया.

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त आलोक कुमार ने हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी सुकांत बल्लभ के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी यशपाल सिंह, अतिरिक्त थानाप्रभारी अशोक कुमार, एसआई विवेक सिंह, एएसआई तसबीर सिंह, विजेंद्र, हेडकांस्टेबल अजीत सिंह, कांस्टेबल अमित कुमार, किरन पाल आदि को शामिल किया गया.

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त ने हौजकाजी के थानाप्रभारी जरनैल सिंह और मध्य जिला के स्पेशल स्टाफ की टीम को भी इस मामले की जांच में लगा दिया.  जांच शुरू करते ही पुलिस टीम ने सब से पहले निर्मला के मायके वालों से ही पूछताछ की तो पता चला कि वह सन 2004 से अपने पति मेहरूलाल से अलग रह रही थी. उन दोनों का 14 साल का बेटा था, जो पिता मेहरूलाल के साथ ही रहता था.

उन के बयानों से यह बात निकल कर आई कि निर्मला के जीवन में कुछ न कुछ उथलपुथल थी. 18 सितंबर को निर्मला ने अपनी छोटी बहन नन्हीं देवी को फोन कर के बताया था कि उस की तबीयत ठीक नहीं है. वह जी.बी. पंत अस्पताल में इलाज कराने जा रही है. जिस विभाग में निर्मला की ड्यूटी थी, वहां से पता चला कि वह 18 और 19 सितंबर को अपनी ड्यूटी पर भी नहीं आई थी.

निर्मला के साथ काम करने वाली अन्य नर्सों ने बताया कि निर्मला का व्यवहार सामान्य रहता था. पड़ोसियों ने बताया कि वह किसी से ज्यादा मतलब नहीं रखती थी और घर का दरवाजा भी अकसर बंद रखती थी.

प्यार का बदसूरत चेहरा

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई – भाग 3

पहले तो ओमवीर को विश्वास नहीं हुआ. उसे हसीन सपने दिखाने वाली पूजा किसी दूसरे से कैसे प्यार कर सकती है? लेकिन जब उसे पूजा के बदले व्यवहार की याद आई तो गुस्से में वह पागल हो उठा. क्योंकि उस ने दिमाग में बैठा लिया था कि पूजा उस की है और उसी की रहेगी. वह किसी दूसरे की कैसे हो सकती है. अपनी यह बात कहने के लिए वह पूजा से मिलने का मौका तलाशने लगा. पूजा उसे मिली तो उस ने उस का हाथ पकड़ कर चेतावनी वाले अंदाज में कहा, ‘‘पूजा, तुम ने मेरी मोहब्बत को ठुकरा कर अच्छा नहीं किया. एक बात याद रखना, मैं तुम्हें किसी दूसरे की कतई नहीं होने दूंगा.’’

पूजा ने झटके से हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘आज के बाद अगर तुम ने मेरा रास्ता रोका तो ठीक नहीं होगा. मैं आज ही तुम्हारी शिकायत घर में करूंगी.’’

पूजा ने कहा ही नहीं, आ कर पिता से ओमवीर की शिकायत कर भी दी. अनोखेलाल ने ओमवीर की शिकायत नेम सिंह से की तो उस ने कहा, ‘‘तुम निश्चिंत रहो, मैं उसे समझा दूंगा.’’

नेम सिंह ने बेटे को समझाया जरूर, लेकिन उस के मन में क्या है, यह वह भी नहीं जान सका. ओमवीर प्रेमिका की बेवफाई की आग में जल रहा था. इस आग को शांत करने के लिए उस ने तय कर लिया कि अब वह उसे उस की बेवफाई की सजा जरूर देगा. उस का प्यार पूरी तरह नफरत में बदल चुका था. जबकि पूजा इस सब से बेखबर थी.

ओमवीर मौके की तलाश में था. 17 अक्तूबर, 2013 को वह पूजा के स्कूल जाने वाले रास्ते पर हंसिया ले कर खड़ा हो गया. पूजा अब निश्चिंत थी कि उस ने ओमवीर की शिकायत अपने पिता से कर दी है, इसलिए वह उस के रास्ते में नहीं आएगा. अनोखेलाल भी निश्चिंत था कि उस ने नेम सिंह से शिकायत कर दी है, इसलिए उस ने ओमवीर को डांटफटकार दिया होगा. जबकि ओमवीर अपनी जिद पर अड़ा था. नगला टिकुरिया से नगला भुलरिया तक जाने का रास्ता सुनसान रहता था. पूजा अपनी 2 सहेलियों के स्कूल जा रही थी. बीच रास्ते में आमेवीर ने उसे रोक कर कहा, ‘‘पूजा, तुम मेरे साथ चलो.’’

‘‘यह क्या बदतमीजी है. मुझे स्कूल के लिए देर हो रही है.’’ पूजा ने गुस्से में कहा.

ओमवीर ने हंसिया लहराते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने मुझे रोकने की कोशिश की तो काट कर रख दूंगा.’’

हंसिया देख कर पूजा की सहेलियां बगल हो गईं. इस के बाद ओमवीर पूजा को खेत में खींच ले गया. दोनों लड़कियों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें? वे कुछ करने की सोच ही रही थीं कि उन्हे पूजा की चीख सुनाई दी. वे समझ गईं कि क्या हुआ है. दोनों कालेज की ओर भागीं.  कालेज पहुंच कर उन्होंने प्रिंसिपल को पूरी बात बताई. प्रिंसिपल ने तुरंत पुलिस को फोन किया.

दूसरी ओर आमेवीर ने पूजा पर हंसिए से वार किया तो वह जान की भीख मांगने लगी. लेकिन ओमवीर पर तो शैतान सवार था. उस ने पूजा की गर्दन पर लगातार कई वार किए. जब उसे लगा कि पूजा मर गई है तो वह भाग निकला.

थोड़ी ही देर में पूरे इलाके में खबर फैल गई कि एक लड़के ने किसी लड़की की हत्या कर दी है. लोग वहां पहुंचने लगे. सूचना पा कर थाना अमांपुर पुलिस भी आ गई. अनोखेलाल ने भी सुना कि किसी लड़की की हत्या कर दी गई है तो उत्सुकतावश वह भी वहां पहुंच गया. जब उस ने लाश देखी तो पता चला कि वह तो उस की बेटी पूजा है. वह सिर पीटपीट कर रोने लगा.

घटनास्थल पर आई पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि मृतका इसी की कोई है. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थाना अमांपुर के थानाप्रभारी ने जब अनोखेलाल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मृतका उस की बेटी पूजा है. जिस की हत्या गांव के ही ओमवीर ने की है. सूचना पा कर एसपी विनय कुमार यादव, एएसपी आर.एन. शर्मा और सीओ सरबजीत सिंह भी आ गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने गांव वालों से पूछताछ की तो लोगों ने बताया कि आरोपी ओमवीर के पिता नेम सिंह पर भी कत्ल का मुकदमा चल रहा है. इस समय वह जमानत पर छूट कर आया है. उस ने मृतका के दादा की हत्या की थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

अनोखेलाल की ओर से थाना अमांपुर पुलिस ने पूजा की हत्या का मुकदमा ओमवीर, उस के भाई मुकेश तथा पिता नेम सिंह के खिलाफ दर्ज कर लिया. पुलिस ने उसी दिन रात को ओमवीर को गिरफ्तार कर लिया, जबकि मुकेश और नेम सिंह फरार हो गए थे. पूछताछ में ओमवीर ने अपना अपराध स्वीकार कर के हत्या में प्रयुक्त हंसिया भी बरामद करा दिया था.

अगले दिन पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मुखबिरों की मदद से पुलिस ने 27 अक्तूबर, 2013 को लखीमपुर से मुकेश को भी गिरफ्तार कर लिया. उस से की गई पूछताछ के आधार नेम सिंह भी पकड़ा गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने इन दोनों को भी अदालत में पेश किया, जहां से इन्हें भी जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई – भाग 2

मामला इज्जत का था, इसलिए अनोखेलाल से रहा नहीं गया. न चाहते हुए भी उस ने पूजा से पूछ ही लिया, ‘‘तुम्हारा और ओमवीर का क्या चक्कर है?’’

एकाएक बाप के इस सवाल से पूजा घबरा गई. उस का कलेजा धड़कने लगा. कांपते स्वर में बोली, ‘‘मैं समझी नहीं पापा.’’

‘‘देखो बेटा, ओमवीर हमारे दुश्मन का बेटा है. उस के बाप ने हमारे ताऊ की हत्या की है. इसलिए तुम्हारा उस से दूर रहना ही ठीक रहेगा.’’

पिता की इन बातों से पूजा समझ गई कि आगे का रास्ता कांटों भरा है. पूजा ने कोई जवाब नहीं दिया, इसलिए अनोखेलाल को लगा कि बेटी उस के कहने का मतलब समझ गई है. वह निश्चिंत हो गया. लेकिन पूजा को अब परिवार से ज्यादा ओमवीर प्रिय लगने लगा था. ओमवीर मिला तो उस ने कहा, ‘‘ओमवीर अगर तुम अपनी मोहब्बत को पाना चाहते हो तो कोई कामधाम करो, जिस से वक्तजरूरत हम कहीं लुकछिप कर रह सकें. अगर इसी तरह घूमते रहे तो मुझे खो दोगे. और हां, पापा को कहीं से हमारे मिलनेजुलने का पता चल गया है. इसलिए अब बहुत संभल कर मिलना.’’

इस के बाद ओमवीर काम के लिए इधरउधर हाथपैर मारने लगा. क्योंकि अपने प्यार को पाने के लिए उस पर जुनून सवार था. आसपास उसे कोई काम नहीं मिला तो उस ने सूरत में रहने वाले अपने एक दोस्त को फोन किया. उस का वह दोस्त वहां किसी कपड़े की फैक्ट्री में नौकरी करता था. ओमवीर ने उस से कोई काम दिलाने को कहा तो उस ने उसे सूरत बुला लिया. ओमवीर जानता था कि गांव में रहते हुए वह पूजा को कभी नहीं पा सकेगा. क्योंकि पूजा के घर वालों से उस की ऐसी दुश्मनी थी कि कभी सुलह हो ही नहीं सकती थी. इसलिए पूजा को पाने के लिए उसे भगा कर ले जाना पड़ेगा.

यही वजह थी कि वह दोस्त के कहने पर सूरत चला गया. पूजा ने भी उसे विश्वास दिलाया था कि वह उस के लौटने का इंतजार करेगी. इसलिए ओमवीर निश्चिंत हो कर चला गया था.

दोस्त ने सूरत में ओमवीर को काम दिला दिया था. वह वहां आराम से नौकरी करने लगा था. दूसरेतीसरे दिन वह फोन से पूजा से बात कर लेता था. कुछ दिनों तक तो यह सिलसिला ठीकठाक चलता रहा, लेकिन धीरेधीरे पूजा की ओर से आने वाले फोन कम होने लगे. ओमवीर उसे फोन करता तो बातचीत से उसे लगता कि पूजा अब पहले की तरह उस से बात नहीं करती. उसे बात करने के बजाय फोन काटने में ज्यादा रुचि रहती है. कुछ दिनों बाद पूजा का फोन स्विच औफ बताने लगा.

ओमवीर परेशान हो उठा. पूजा का फोन बंद हो गया था. उस ने उसे अपना नया नंबर भी नहीं दिया था. उसे लगा, पूजा किसी परेशानी में पड़ गई है. अब उसे सूरत आने का पछतावा होने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्या हो गया कि पूजा उस से बात नहीं कर रही है. उसी बीच गांव गया एक लड़का सूरत आया तो ओमवीर ने उस से गांव का हालचाल पूछा. इस के बाद उस ने पूजा के बारे में पूछा तो उस लड़के ने कहा, ‘‘वह तो मजे में है. मस्ती में घूम रही है.’’

पूजा मजे में है, मस्ती में घूम रही है, यह बात ओमवीर के गले नहीं उतरी. उस के बिना पूजा मजे में कैसे रह सकती है? क्योंकि उस के सूरत आते समय पूजा कह रही थी कि वह उस से दूर रह कर जी नहीं पाएगी. तरहतरह की बातें सोच कर ओमवीर को लगा कि अब यहां उस का रहना ठीक नहीं है. अगर वह यहां रहा तो उस का प्यार उस का नहीं रहेगा.

यही सोच कर ओमवीर लगीलगाई नौकरी छोड़ कर गांव वापस आ गया. घर वालों से उस ने बताया कि वह छुट्टी ले कर आया है. जबकि वह नौकरी छोड़ कर आया था.

अगले ही दिन वह पूजा से मिलने के लिए स्कूल जाने वाले रास्ते पर खड़ा हो गया. पूजा उसे देख कर हैरान रह गई. वह सहेलियों के साथ थी, इसलिए ओमवीर ने उस से सिर्फ यही कहा था कि वह शाम को तालाब पर उस का इंतजार करेगा. अगर वह तालाब पर नहीं आएगी तो वह उस के घर पहुंच जाएगा.

पूजा बिना कुछ कहे चली गई. पूजा के इस व्यवहार से ओमवीर को गुस्सा तो बहुत आया था, लेकिन वह कुछ कह नहीं सका था. उसे अहसास हो गया कि दाल में कुछ काला जरूर है. अब उसे शाम का इंतजार था. उसे पता था कि पूजा उस के जुनूनी प्यार को बखूबी जानती है, इसलिए शाम को तालाब पर आएगी जरूर. किसी तरह दिन बिता कर शाम होते ही वह तालाब पर पहुंच गया. थोड़ी देर में पूजा आती दिखाई दी तो उस ने राहत की सांसें ली. आते ही पूजा ने पूछा, ‘‘बोलो, क्या बात है?’’

‘‘यह क्या, पहले तो तुम्हें यह पूछना चाहिए कि मैं वापस क्यों आ गया?’’

‘‘मैं ने नहीं पूछा तो चलो तुम खुद ही बता दो.’’ पूजा ने कहा.

‘‘तुम ने अपना पुराना नंबर बंद कर दिया और नया नंबर नहीं दिया तो मजबूर हो कर मुझे वापस आना पड़ा.’’ कह कर ओमवीर ने पूजा का हाथ पकड़ना चाहा तो उस ने अपना हाथ पीछे खींच लिया.

‘‘बस, इतनी सी बात के लिए तुम अपनी लगीलगाई नौकरी छोड़ कर चले आए. तुम तो जानते ही हो कि इस साल मेरी बोर्ड की परीक्षा है. मैं पढ़ाई में लगी हूं. फिलहाल फालतू की बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है.’’

‘‘क्या कहा, मेरा प्यार अब फालतू की बात हो गया. तुम्हारी ही वजह से मैं सूरत में पड़ा था और तुम्हारी ही वजह से लगी लगाई नौकरी छोड़ आया हूं. अब तुम्हारे पास मेरे लिए समय नहीं है. लगता है, तुम बदल गई हो?’’

‘‘तुम ने तो पढ़ाई छोड़ दी है, इसलिए पढ़ाई के महत्त्व को तुम समझ नहीं सकते. लेकिन मुझे पढ़ाई के महत्त्व का पता है. इसलिए मैं अभी फालतू की बातों में पड़ कर डिस्टर्ब नहीं होना चाहती.’’

‘‘मेरे प्यार का क्या होगा?’’ ओमवीर ने पूछा तो पूजा बोली, ‘‘पहले पढ़ाई, उस के बाद प्यार. वैसे भी हमारे और तुम्हारे यहां से दुश्मनी है. मेरे घर वाले कतई नहीं चाहेंगे कि मैं तुम से संबंध रखूं.’’

ओमवीर समझ गया कि अब यह पहले वाली पूजा नहीं रही. यह बदल गई है. इस बदलाव के पीछे जरूर कोई राज है. पूजा जाने लगी तो उस ने पूछा, ‘‘अब कब मिलोगी?’’

‘‘तुम्हें सूरत जा कर अपनी नौकरी करनी चाहिए,’’ पूजा ने कहा, ‘‘यहां मेरे पीछे नहीं घूमना चाहिए.’’

ओमवीर के गांव आने से अनोखेलाल परेशान हो उठा था. क्योंकि वह जानता था कि अब गांव वाले फिर पूजा और ओमवीर को ले कर तरहतरह की चर्चाएं करेंगे.

दूसरी ओर ओमवीर इस बात को ले कर परेशान था कि पूजा उस की उपेक्षा क्यों कर रही है. इस के समाधान के लिए एक दिन उस ने पूजा को फिर घेरा. तब पूजा ने कहा, ‘‘मुझे अपनी पढ़ाई की चिंता है और तुम्हें अपने प्यार की पड़ी है. तुम्हारे इस प्यार से पेट भरने वाला नहीं है. भूखे पेट प्यार भी अच्छा नहीं लगता. मेरी तुम से यही प्रार्थना है कि तुम अपने काम से काम रखो और मुझे अपना काम करने दो.’’

पूजा के इस व्यवहार से ओमवीर परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर पूजा बदल क्यों गई? अचानक उसे खयाल आया कि कहीं पूजा किसी दूसरे से तो प्यार नहीं करने लगी. इस के बाद वह अपने हिसाब से इस बारे में पता करने लगा. थोड़े प्रयास के बाद उसे पता चला कि पूजा का अब अल्लीपुर के योगेंद्र से चक्कर चल रहा है.

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज के थाना अमांपुर के गांव टिकुरिया के रहने वाले अनोखेलाल की पत्नी बेटी को जनम दे कर गुजर गई थी. सब  इस बात को ले कर परेशान थे कि उस नवजात बच्ची को कौन संभालेगा. लेकिन उस बच्ची की जिम्मेदारी अनोखेलाल की बहन ने ले ली तो उसे अपने अन्य बच्चों की चिंता हुई. उस के 3 बच्चे और थे. जिन में सब से बड़ी बेटी अनिता थी तो उस के बाद बेटा सुनील तो उस से छोटी पूजा.

पत्नी की मौत के बाद बड़ी बेटी अनिता ने घर संभाल लिया था. अपनी जिम्मेदारी निभाने में उस की पढ़ाई जरूर छूट गई थी, लेकिन भाईबहनों की ओर से उस ने बाप को निश्चिंत कर दिया था. घरपरिवार संभालने के चक्कर में बड़ी बेटी की पढ़ाई छूट ही गई थी. अब अनोखेलाल सुनील और पूजा को खूब पढ़ाना चाहता था.

पूजा खूबसूरत थी ही, पढ़ाई में भी ठीकठाक थी. उस का व्यवहार भी बहुत अच्छा था, इसलिए उस से घर वाले ही नहीं, सभी खुश रहते थे. समय के साथ अनोखेलाल पत्नी का दुख भूलने लगा था. अब उस का एक ही उद्देश्य रह गया था कि किसी तरह बच्चों की जिंदगी संवर जाए. बाप बच्चों का कितना भी खयाल रखे, मां की बराबरी कतई नहीं कर सकता. इस की वजह यह होती है कि पिता को घर के बाहर के भी काम देखने पड़ते हैं.

अनोखेलाल की छोटी बेटी पूजा हाईस्कूल में पढ़ रही थी. वह पढ़लिख कर अध्यापिका बनना चाहती थी. इस के लिए वह मेहनत भी खूब कर रही थी. लेकिन जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वह मोहब्बत के जाल में ऐसी उलझी कि उस का सपना ही नहीं टूटा, बल्कि जिंदगी से ही हाथ धो बैठी.

गांव का ही रहने वाला ओमवीर अचानक पूजा की जिंदगी में आ गया. जबकि ओमवीर और पूजा के घर वालों के बीच बरसों से दुश्मनी चली आ रही थी.

ओमवीर के पिता नेम सिंह ने पूजा के दादा गंगा सिंह (अनोखेलाल के ताऊ) की हत्या कर दी थी. हत्या के इस मामले में वह जेल भी गया था. कुछ दिनों पहले ही वह जमानत पर जेल से बाहर आया था. इतनी बड़ी दुश्मनी होने के बावजूद पूजा ओमवीर को दिल दे बैठी थी.

स्कूल आतेजाते जब कभी पूजा दिखाई दे जाती, ओमवीर उसे चाहतभरी नजरों से ताकता रहता. क्योंकि पूजा उसे बहुत अच्छी लगती थी. शुरूशुरू में तो पूजा ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उसे इस बात का अहसास हुआ तो दुश्मन के बेटे के लिए जवानी की दहलीज पर कदम रख रही पूजा का दिल धड़क उठा. इस के बाद वह भी अपने पीछेपीछे आने वाले ओमवीर को पलटपलट कर देखने ही नहीं लगी, बल्कि नजर मिलने पर मुसकराने भी लगी.

गांव से स्कूल का रास्ता खेतों के बीच से होने की वजह से लगभग सुनसान रहता था. इसलिए गांव की लड़कियां एक साथ स्कूल जाती थीं. लड़कियों के साथ होने की वजह से ओमवीर को पूजा से अपने दिल की बात कहने का मौका नहीं मिलता था. लेकिन जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है. ओमवीर पूजा के पीछे पड़ा ही था. पूजा के मन में भी उस के लिए चाहत जाग उठी थी.

पूजा को भी पता था कि वह सहेलियों के साथ रहेगी तो ओमवीर से उस की बात कभी नहीं हो सकेगी. उस से बात करने के लिए ही एक दिन वह घर से थोड़ा देर से निकली. वह जैसे ही गांव से बाहर निकली, ओमवीर उस के पीछेपीछे चल पड़ा. खेतों के बीच सुनसान जगह देख कर ओमवीर उस के पास जा कर बोला, ‘‘आज तुम अकेली ही स्कूल जा रही हो?’’

पूजा का दिल धड़क उठा. उस ने कांपते स्वर में कहा, ‘‘आज मुझे थोड़ी देर हो गई, इसलिए बाकी सब चली गईं.’’

‘‘पूजा, मुझे तुम से कुछ कहना था?’’ ओमवीर ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘मुझे पता है, तुम क्या कहना चाहते हो?’’ पूजा ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं क्या कहना चाहता हूं?’’ ओमवीर ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं बेवकूफ थोड़े ही हूं? तुम कितने दिनों से मेरे पीछे पड़े हो. कोई लड़का किसी लड़की के पीछे क्यों पड़ता है, इतना तो मुझे भी पता है.’’ पूजा ने बेबाकी से कहा तो ओमवीर में भी हिम्मत आ गई. उस ने कहा, ‘‘क्या करूं, तुम मुझे इतनी अच्छी लगती हो कि मन यही करता है कि हर वक्त तुम्हीं को देखता रहूं.’’

‘‘तो देखो न, मना किस ने किया है.’’ पूजा ढि़ठाई से बोली.

‘‘सिर्फ देखने से ही मन नहीं भरता. पूजा, मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

‘‘यह तो और भी अच्छी बात है. इस के लिए भी मैं ने कहां मना किया है. भई तुम्हारा मन है, वह किसी से भी प्यार कर सकता है.’’ कह कर पूजा हंस पड़ी तो ओमवीर को भी हंसी भी आ गई.

इस तरह दोनों ने जो चाहा था, वह पूरा हो गया. दोनों खुशीखुशी स्कूल चले गए. इस के बाद तो दोनों अकसर गांव के लड़केलड़कियों का साथ छोड़ कर खेतों के बीच मिलने लगे. इन मुलाकातों के साथ उन का प्यार बढ़ता गया. तब न पूजा को इस बात की चिंता थी और न ही ओमवीर को कि उन के इस प्यार का अंजाम क्या होगा? हर चिंता से मुक्त दोनों अपनी प्यारभरी दुनिया में डूबे रहते.

चोरीछिपे होने वाली मुलाकातों से दोनों दिनोंदिन करीब आते जा रहे थे. एक दिन ऐसा भी आया जब दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. उसी बीच अनोखेलाल ने अनिता की शादी कर दी तो घर की सारी जिम्मेदारी पूजा पर आ गई. पूजा ने घर की जिम्मेदारी बखूबी निभाते हुए अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. अनोखेलाल का भी कहना था कि अगर पढ़लिख कर वह कुछ बन जाएगी तो उस की जिंदगी संवर जाएगी अन्यथा अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए वह उस की शादी कर देगा.

पूजा पढ़ रही थी, जबकि ओमवीर ने पढ़ाई छोड़ दी थी. उस का बड़ा भाई मुकेश बाप के साथ खेती के कामों में उस की मदद करता था. पढ़ाई छोड़ कर ओमवीर को भी लगने लगा कि उसे भी कुछ करना चाहिए. क्योंकि वह पूजा को दीवानगी की हद तक प्यार करता था. और पूजा उसे तभी मिल सकती थी, जब वह उस के लायक बन जाए. इस के लिए वह भी पिता के साथ लग गया. उस ने पूजा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था. इसलिए वह उस की खातिर कुछ भी करने को तैयार था.

संयोग से उसी बीच किसी दिन गांव के किसी आदमी ने पूजा को ओमवीर के साथ देखा तो उसे बड़ी हैरानी हुई. उस ने यह बात अनोखेलाल को बताई तो वह भी हैरान रह गया. अपनी इस होनहार बेटी से उसे इस तरह की उम्मीद बिलकुल नहीं थी. दुश्मन के बेटे से अपनी बेटी का मिलनाजुलना वह कैसे बरदाश्त कर सकता था. उस ने अपनी आंखों से कुछ देखा नहीं था, इसलिए वह पूजा से सीधे कुछ कह भी नहीं सकता था. फिर गांव में तो इस तरह की चर्चाएं होती ही रहती हैं.