इश्क जान भी लेता है – भाग 3

काफी समझाने के बावजूद भी जब मानसी ने उस की बात नहीं मानी तो अभिषेक उर्फ नीतू ने मानसी को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. उस ने उसे ठिकाने लगाने की योजना बना भी ली.

योजना के तहत 5 जुलाई, 2014 को नीतू अपने 2 दोस्तों खुशीराम और कपिल के साथ गुडग़ांव के सैक्टर-17 स्थित गंदे नाले के पास पहुंचा. नीतू मानसी का काम तमाम कर के लाश को उसी नाले में ठिकाने लगाना चाहता था, लेकिन मानसी को नाले के पास बुलाना आसान नहीं था, क्योंकि उस ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे.

नीतू जानता था कि मानसी बेहद लालची है. इसलिए उसे वहां बुलाने के लिए उस ने एक चाल चली. उस ने वहीं से मानसी को फोन किया. उस वक्त शाम को 5 बज रहे थे. उस ने कहा, “मानसी, मैं ने तुम्हारे लिए 8 तोले का एक हार बनवाया है. हार का डिजाइन इतना अच्छा है कि तुम्हें जरूर पसंद आएगा. आज रात ही मैं मुंबई जा रहा हूं. फिर हमारी मुलाकात हो या न हो, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम इस हार को ले लो.”

मानसी 8 तोला सोने के हार के लालच में आ गई. वह हार लेने के लिए साढ़े 5 बजे गंदे नाले के पास पहुंच गई. नीतू को देखते ही वह चहक कर बोली, “नीतू, तुम तो मुझे एकदम भूल गए. कभीकभार तो मुझ से मिलने आ जाय करो. मैं तुम्हें बहुत मिस करती हूं.”

कुछ देर बाद नीतू के दोस्त खुशीराम और कपिल वहां पहुंचे तो वह चौंकी, क्योंकि वह पहले से उन्हें जानती थी. मानसी ने सोचा कि उन से उसे क्या मतलब. उसे तो हार ले कर वहां से निकल जाना है. उस ने नीतू का हाथ पकड़ते हुए कहा, “लाओ, वह हार कहां है.”

नीतू ने जेब से चाकू निकाल कर लहराया, “अब हार पहन कर क्या करोगी, जब तुम जीवित ही नहीं रहोगी.”

चाकू देख कर और उस की बातें सुन कर मानसी घबरा गई. इस से पहले कि वह कुछ कह पाती, अभिषेक ने चाकू से ताबड़तोड़ वार कर दिए. मानसी वहीं गिर गई और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. इस के बाद खुशीराम और कपिल ने उस की लाश उठा कर नाले में फेंक दी.

4 दिनों बाद 9 जुलाई, 2014 को नाले में महिला की लाश पड़ी होने की सूचना थाना राजेंद्रपार्क पुलिस को मिली तो पुलिस ने नाले से लाश निकलवाई. लाश काफी सडग़ल गई थी. वह पूरी तरह कीचड़ में सनी हुई थी. मृतका कौन है, यह जानने के लिए पुलिस ने पहले लाश धुलवाई. उस का चेहरा गल चुका था, इसलिए वहां मौजूद भीड़ में से कोई भी उसे पहचान नहीं सका.

पुलिस को उस की बाईं हथेली पर नीतू नाम गुदा मिला. जब लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और लावारिस मान कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

अभिषेक उर्फ नीतू की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को पता चला कि 9 जुलाई, 2014 थाना राजेंद्रपार्क पुलिस ने नाले से जो महिला की लाश बरामद की थी, वह मानसी की थी. अगर नीतू पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ता तो मानसी की हत्या का राज उजागर ही न हो पाता.

एक दिन गुडग़ांव के सैक्टर-28 स्थित एक कैफे में मोहित अपने दोस्तों के साथ मौजूद था, तभी अभिषेक उर्फ नीतू अपने दोस्तों के साथ वहां पहुंचा. मोहित के दोस्तों ने नीतू का मजाक उड़ाया तो नीतू गालियां बकने लगा. तभी मोहित और उस के दोस्तों ने नीतू और उस के दोस्तों की पिटाई कर दी. उसी पिटाई का बदला लेने के लिए नीतू मौका ढूंढ़ रहा था.

25 अगस्त, 2015 की शाम को उसे यह मौका मिल गया. उसे पता चला कि मोहित अपने दोस्त सक्षम व मामा नाहर सिंह के साथ ओल्ड बौक्स कैफे में है तो वह अपने साथियों के साथ वहां पहुंच गया और मोहित की गोली मार कर हत्या कर दी.

मोहित की हत्या एवं मानसी की हत्या के आरोप में पुलिस ने अभिषेक उर्फ नीतू, ब्रजेश, दीपांकर, बौबी, आदित्य को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर के 2 दिनों की पुलिस रिमांड पर ले कर हत्या में प्रयुक्त रिवौल्वर व मानसी की हत्या में प्रयुक्त चाकू बरामद कर लिया. मानसी की हत्या में शामिल खुशीराम और कपिल को गिरफ्तार करने पुलिस पहुंची तो वे घर से फरार मिले. कथा लिखे जाने तक वे पकड़े नहीं जा सके थे. इस के बाद सभी अभियुक्तों को 29 अगस्त, 2015 को पुन: न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इश्क जान भी लेता है – भाग 2

नाहर सिंह ने शादी नहीं की थी. वह अपनी बहनों और भांजों को बेहद चाहते थे. उन की बहनें भी संपन्न थीं. वह खुद भी उन के लिए काफी खर्च करते थे. अपने भांजों को भी वह जेब खर्च के लिए इतने पैसे देते थे, जिन से एक मध्यमवर्गीय परिवार का एक महीने का खर्च चल सकता था.

दरअसल, नाहर सिंह की सोच थी कि पढ़लिख कर उन के भांजों को कोई बहुत अच्छी नौकरी तो मिलेगी नहीं, इसलिए वह उन्हें नेता बनाना चाहते थे और नेता बनने के लिए शैक्षिक योग्यता की जगह दबंगई होनी चाहिए. अपनी इसी सोच के चलते वह मोहित और सचिन को दबंग बना रहे थे. मामा की शह पर मोहित कुछ ज्यादा ही बिगड़ चुका था. लोगों से मारपीट कर आतंक फैला कर उस ने इलाके में अपनी दबंगई कायम कर ली थी. वह कई संगीन वारदातों को भी अंजाम दे चुका था.

दरअसल, मोहित और अभिषेक उर्फ नीतू पहले दोस्त थे. उन के बीच दुश्मनी की शुरुआत सन 2012 में तब हुई थी, जब मानसी से नीतू ने कोर्टमैरिज कर ली थी.

मानसी मूलरूप से बिहार के रहने वाले फकीरेलाल की बेटी थी. फकीरेलाल गुडग़ांव की एक कंपनी में काम करते थे और गुडग़ांव के सैक्टर- 4 में किराए पर कमरा ले कर अपने बच्चों के साथ सपरिवार रहते थे. मानसी फैशनपरस्त और बिंदास लडक़ी थी. उस की कई लडक़ों से दोस्ती थी. वह उन के साथ कार या बाइक से घूमती, फिल्में देखती और महंगे रैस्टोरैंट में खाना खाती. कई युवकों से उस के शारीरिक संबंध भी थे.

रोजाना नएनए लडक़ों के साथ घूमते हुए उसे मोहल्ले के अनेक लोगों ने देखा था. उन्होंने उस की शिकायत फकीरेलाल से की तो उन्होंने उसे डांटा. लेकिन मानसी बहक कर उस ढलान पर पहुंच चुकी थी, जहां से वापस आना उस के लिए आसान नहीं था. इसलिए पिता के समझाने का उस पर जरा भी असर नहीं हुआ.

मानसी का अपने पुरुष दोस्तों के साथ घूमनेफिरने का सिलसिला कायम रहा. इस से मोहल्ले में फकीरेलाल की बदनामी हो रही थी. लाख समझाने के बावजूद भी जब मानसी नहीं मानी तो तंग आ कर फकीरेलाल ने उसे घर से निकाल दिया.

घर से निकालने पर मानसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की, बल्कि वह सैक्टर-18 में किराए के फ्लैट में रहने लगी. अब उस से कोई टोकाटाकी करने वाला नहीं था, जिस से वह पूरी तरह से आजाद हो गई थी. उसे जब जहां मन होता, जाती थी. वह क्लबों और पबों में डांस भी करने लगी थी.

सन 2012 के फरवरी महीने में एक पब में मानसी की मुलाकात विक्की से हुई. पहली ही मुलाकात में मानसी विक्की के दिल में उतर गई. विक्की उस पर खूब रुपए लुटाता था. वह विक्की की गाड़ी में घूमतीफिरती. विक्की उस की हर फरमाइश पूरी करता. विक्की भी गुडग़ांव का रहने वाला था. वह भी एक अमीर परिवार से ताल्लुक रखता था. विक्की और मोहित आपस में गहरे दोस्त थे.

विक्की ने मानसी से साफ कह दिया था, “मानसी, मैं तुम से शादी तो नहीं कर सकता. पर हां, तुम्हारा सारा खर्च ताउम्र उठाता रहूंगा. तुम्हें जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं होने दूंगा. परंतु बदले में मुझे तुम से इसी तरह का प्यार चाहिए. तुम एक बात का खास ध्यान रखना कि किसी दूसरे पुरुष ने तुम्हें छुआ भी तो मैं हरगिज बरदाश्त नहीं करूंगा.”

मानसी उस की शर्त मानने को तैयार हो गई. तब जिस फ्लैट में मानसी रहती थी, उस का किराया, कार, सौंदर्य प्रसाधन और खानेपीने का सारा खर्च विक्की उठाने लगा. वह हफ्ते में 1-2 बार उस से मिलने उस के फ्लैट पर पहुंच जाता था.

विक्की से मुलाकात के बाद मानसी ने अपने और पुरुष दोस्तों से मिलनाजुलना बंद कर दिया. विक्की उस से हफ्ते में 1-2 बार ही मिलने आता था. उस के जाने के बाद मानसी का मन नहीं लगता था. रोजना ही नएनए दोस्त बनाने वाली मानसी भला विक्की के साथ बंध कर कैसे रह सकती थी. लिहाजा उस ने फिर से लोगों से दोस्ती करनी शुरू कर दी.

उसी दौरान उस की मुलाकात अभिषेक उर्फ नीतू से हुई. नीतू की शानोशौकत देख कर मानसी का झुकाव उस की तरफ हो गया. नीतू हर मायने में उसे विक्की से अच्छा लगा. विक्की को जब यह बात पता चली तो उस ने मानसी से कहा, “मैं ने कहा था न कि अगर किसी पराए पुरुष ने तुम्हारे शरीर को छुआ भी तो मैं बरदाश्त नहीं करूंगा.”

“विक्की, मैं भी इंसान हूं और मेरी भी कुछ भावनाएं हैं,” मानसी ने नाराजगी प्रकट करते हुए कहा, “मैं भी चाहती हूं कि मेरा पति हो, घर हो, बच्चे हों. यह सब तुम्हारे साथ नहीं हो सकता. इसलिए मैं रखैल नहीं, पत्नी बन कर जीना चाहती हूं.”

मानसी की बात सुन कर विक्की को गुस्सा आ गया, वह चिल्लाते हुए बोला, “मानसी, मेरे जीतेजी तुम ऐसा कभी नहीं कर पाओगी.”

“चिल्लाओ मत. मैं तुम्हारी ब्याहता नहीं हूं, जो इस तरह मुझ पर अपना हक जता रहे हो.” मानसी भी गुस्से में आ गई. वह आगे बोली, “मैं नीतू से शादी कर रही हूं. वह तुम से ज्यादा दौलतमंद है और मेरे सारे अरमान पूरे करने की उस की हैसियत भी है. और सुन लो, आज के बाद मेरा तुम से कोई वास्ता नहीं.”

विक्की मानसी को धमकाते हुए वहां से चला गया. विक्की का पत्ता काटने के बाद अप्रैल, 2012 में अभिषेक उर्फ नीतू ने मानसी से कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज की बात जब विक्की को पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा. गुस्से में तिलमिलाया हुआ वह नीतू से मिला.

“नीतू जब तुम्हें यह बात पता थी कि मानसी मेरी रखैल है तो तुम ने उस से कोर्टमैरिज क्यों कर ली?” विक्की ने पूछा.

“विक्की, मैं ने मानसी के साथ कोई जोरजबरदस्ती नहीं की. वह राजी थी, तभी तो शादी हुई. अगर वह मुझे नहीं चाहती तो भला मैं उसे कैसे पा सकता था. उस ने जब अपनी मरजी से शादी की है तो इस में तुम्हारे लिए बुरा मानने वाली क्या बात है.” नीतू बोला.

“देख नीतू, तू मेरा दोस्त है, इसलिए तुझे एक बात बता रहा हूं कि मानसी जैसी लड़कियां उसी पर प्यार न्यौछावर करती हैं, जिस के पास दौलत होती है. उस ने तुझ से यह जानने के बाद शादी की है कि तेरे पास मुझ से ज्यादा दौलत है. एक दिन उसे तुझ से ज्यादा पैसे वाला कोई और मिल गया तो वह तुझे भी ठुकरा देगी. फिर तुझे भी उस की हकीकत पता चलेगी और उस दिन तू बहुत पछताएगा.” यह कह कर विक्की वहां से चला गया.

समय गुजरता रहा और 2 साल बीत गए. नीतू तो उसे पहले की तरह प्यार करता था, लेकिन मानसी का प्यार जरूर फीका पड़ गया. उस का नीतू से एक तरह से मन भर गया था. हालांकि नीतू उस पर दोनों हाथों से पैसे खर्च कर रहा था. इस के बावजूद वह नए दोस्तों को तलाशने लगी. इस की वजह साफ थी कि उसे अलगअलग लोगों के साथ मौजमस्ती करने की आदत जो पड़ गई थी.

अभिषेक ने जब उसे डांस क्लबों में जाने से मना किया तो मानसी ने साफ कह दिया, “नीतू, मैं कोई ङ्क्षपजरे में बंद हो कर रहने वाली चिडिय़ा नहीं हूं. मेरा जो मन करेगा, मैं वही करूंगी. तुम कभी मुझे रोकने की कोशिश भी मत करना.”

इस के बाद वह नीतू को छोड़ कर अलग किराए के मकान में रहने लगी. अभिषेक उस से मिलने आता तो वह उसे दुत्कार देती. इस बात का अभिषेक को बड़ा दुख होता था. लाखों रुपए उस पर खर्च करने के बावजूद उसे प्रेमिका की दुत्कार मिलती थी.

दिल्ली का साहिल साक्षी केस : प्यार पर नफरत के वार

इश्क जान भी लेता है – भाग 1

नाहर सिंह गुडग़ांव के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले गांव इसलापुर के रहने वाले थे. गुडग़ांव, सोनीपत और हिसार में उन की हार्डवेयर की 3 दुकानें थीं. गांव में भी उन की कई एकड़ खेती की जमीन थी. इस के अलावा गुडग़ांव में उन के 2 आलीशान मकान थे. उन की 3 बहनें थीं, जिन की शादियां हो चुकी थीं.

छोटी बहन विमला की शादी दौलताबाद के रहने वाले देवेंद्र कुमार के साथ हुई थी. देवेंद्र भारतीय सेना में सूबेदार थे. उन की पोस्टिंग सिक्किम में थी. विमला घर पर ही रह कर बच्चों आदि को देखती थी. उन के 2 बेटे थे, सचिन और मोहित. दोनों ही जवान थे. बच्चों की देखरेख के लिए नाहर सिंह भी विमला के यहां ही रहते थे. देवेंद्र को फौज से जब भी छुट्टी मिलती थी, वह अपनी बीवीबच्चों के पास आ जाया करते थे.

25 अगस्त, 2015 की शाम लगभग 5 बजे नाहर सिंह छोटे भांजे मोहित और उस के दोस्त सक्षम के साथ गुडग़ांव के सैक्टर- 23 स्थित एक कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे, तभी वहां अभिषेक उर्फ नीतू अपने दोस्तों मन्ना, दीपांकर और नितेश के साथ आया. आते ही नीतू ने मोहित की मेज पर रखे कौफी के प्याले को उठा कर फेंक दिया.

नीतू की इस हरकत से मोहित और सक्षम को गुस्सा आ गया. पास बैठे नाहर सिंह समझ नहीं पाए कि नीतू ने ऐसा क्यों किया. इस से पहले कि नाहर सिंह कुछ कहते, सक्षम ने चिल्लाते हुए कहा, “लगता है, उस दिन की मार के तेरे निशान ठीक हो गए हैं, जो…”

उस की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि नीतू के दोस्त नितेश ने सक्षम के गाल पर जोरदार थप्पड़ मारते हुए कहा, “अपनी जुबान बंद रख, वरना अभी काट कर फेंक दूंगा.”

दोस्त की बेइज्जती मोहित बरदाश्त नहीं कर सका और नितेश से भिड़ गया, “तू ने इस पर हाथ उठाने की हिम्मत कैसे की?”

“ओए चल दूर हट यहां से. अब बहुत भौंक चुका तू.” नीतू ने अंटी से रिवौल्वर निकाल कर मोहित पर तानते हुए कहा, “मैं अपना अपमान कभी नहीं भूलता. अपमान का बदला जब तक ले न लूं, चैन की नींद सोना हराम समझता हूं. तेरी कोई आखिरी ख्वाहिश हो तो अपने मामू को बता दे.”

इसी के साथ नीतू के दोस्तों ने नाहर सिंह को हथियारों के बल पर काबू कर लिया था. नीतू की धमकी पर मोहित आगबबूला हो कर नीतू को पीटने के लिए आगे बढ़ा ही था कि अभिषेक ने उस पर एक के बाद एक कई फायर झोंक दिए. गोलियां मोहित के सीने, पेट व आंख के पास लगीं. मोहित लहूलुहान हो कर नीचे गिर कर कराहने लगा.

उस समय कैफे में और भी लोग थे. गोलियों की आवाज सुन कर सभी चौंके. लेकिन हथियारों को देख कर किसी की कुछ कहने की हिम्मत नहीं  हुई. वे सुरक्षित स्थान तलाशने लगे. अपने सामने भांजे के साथ हुई इस वारदात पर नाहर सिंह भी कुछ नहीं कर सके. मोहित की हत्या कर हमलावर कार से फरार हो गए.

नाहर सिंह ने तुरंत पुलिस को फोन कर के इस घटना की सूचना दी. गोली मारने की खबर पाते ही थाना पालम विहार के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह राणा पुलिस टीम के साथ थोड़ी ही देर में सैक्टर-23 के उस कैफे में पहुंच गए. मोहित की कुछ देर बाद ही मौत हो चुकी थी. पुलिस ने अपने आला अधिकारियों को भी इस हत्या की सूचना दे दी थी.

थानाप्रभारी ने नाहर सिंह से बात की तो उन्होंने पूरा वाकया बता दिया. इस के अलावा थानाप्रभारी ने कैफे के मैनेजर, वेटरों और वहां मौजूद ग्राहकों से भी पूछताछ की. इस के बाद घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. नाहर सिंह की तहरीर पर पुलिस ने नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली. मामला एकदम स्पष्ट था. कैफे में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में भी साफ नजर आ रहा था कि मोहित पर गोलियां अभिषेक उर्फ नीतू ने चलाई थीं. इसलिए पुलिस को सिर्फ हत्याभियुक्तों को गिरफ्तार करना था.

उन की गिरफ्तारी के लिए पुलिस कमिश्नर नवदीप सिंह विर्क ने एसीपी (क्राइम) राजेश कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह राणा, एसआई सुखजीत सिंह, एएसआई सुरेश कुमार, सुनीता कुमार, हैडकांस्टेबल संदीप, धीरज सर्वसुख के अलावा कांस्टेबल धर्मेंद्र, नीति आदि को शामिल किया गया.

अगले दिन 28 अगस्त को पुलिस ने नामजद अभियुक्तों के घरों पर दबिश दी तो वे सभी अपनेअपने घरों से फरार मिले. फिर उसी दिन शाम के समय एक मुखबिर की सूचना पर गुडग़ांव के हिमगिरी चौक से अभिषेक उर्फ नीतू, ब्रजेश उर्फ नोनी, दीपांकर, बौबी तथा आदित्य को गिरफ्तार कर लिया गया.

थाने में जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने मोहित की हत्या की वजह तो बता ही दी, साथ ही एक ऐसे हत्याकांड से भी परदाफाश किया, जिस की फाइल पुलिस बंद कर चुकी थी.

21 वर्षीय अभिषेक उर्फ नीतू एक अमीर बाप की बिगड़ी औलाद था. उस के पिता भानमल गुडग़ांव के धनवापुर गांव में अपने परिवार के साथ रहते थे. करीब 4 साल पहले एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ने उन की 5 एकड़ जमीन 22 करोड़ में खरीदी थी. जमीन बेचने के बाद उन्होंने आलीशान मकान बनवाया, नौकर रखे और 2 कारें खरीदीं. तब से यह परिवार ठाठबाट से रह रहा था.

अचानक पैसा आता है तो अपने साथ कई बुराइयां भी लाता है. ऐसा ही इस परिवार में भी हुआ. अभिषेक उर्फ नीतू भानमल का एकलौता बेटा था, इसलिए वह उस की हर फरमाइश पूरी करते थे. अभिषेक अपने यारदोस्तों के साथ कार ले कर दिन भर इधरउधर घूमता और अय्याशी करता. वह अपने पिता से जितने पैसे मांगता, वह उसे मिल जाते थे. जिन्हें वह खुले हाथों से खर्च करता था. इसलिए उस के दोस्त भी उस से खुश रहते थे.

उस के खास दोस्तों में 20 वर्षीय ब्रजेश उर्फ नोनी, 19 वर्षीय दीपांकर, 20 वर्षीय बौबी, 18 वर्षीय आदित्य थे. ये सभी उस के घर के आसपास ही रहते थे. ये सभी कार से जब भी घूमने निकलते, इतना ऊधम मचाते थे कि राहगीर भी परेशान हो जाते थे. कोई इन का विरोध करता तो ये उस की पिटाई कर देते. एक तरह से इलाके में इन का आतंक छा चुका था.

पिता ने भी कभी नीतू पर लगाम लगाने की कोशिश नहीं की, जिस से वह और ज्यादा उद्दंड होता चला गया. बातबात पर सीधेसादे लोगों को पीटना, राह चलती लड़कियों को छेडऩा, शराब पी कर हुड़दंग मचाना, हवाई फायर कर के दहशत फैलाना आदि नीतू का जैसे शगल बन गया था.

फुटबॉल खिलाड़ी शालिनी की अधूरी प्रेम कहानी

प्रेम की आग में भस्म – भाग 3

दीपक का एक दोस्त था वली, जिस के पास होंडा सिटी कार थी. दीपक पार्टी में जाने का बहाना कर के उस की कार मांग लाया. उस ने कार ला कर सुनील के घर के बाहर खड़ी कर दी. रात का खाना खाने के बाद सुनील ने रमा से बाहर घूमने जाने की बात कही तो वह चलने को तैयार हो गई.

12 नवंबर, 2013 की रात को सुनील रमा को होंडा सिटी कार में बैठा कर घूमने निकला. रमा उस वक्त काफी खुश थी. रमा को साथ ले कर सुनील चारकोप स्थित दीपक टाक के घर गया. सुनील ने उस से घूमने चलने को कहा तो वह बोला, ‘‘लौंग ड्राइव पर चलेंगे.’’

इस बात पर सुनील ने कोई आपत्ति नहीं की. लौंग ड्राइव के बहाने दीपक ने 5-5 लीटर की 2 खाली कैन और नायलौन की रस्सी का एक टुकड़ा कार में रख लिया. इस के बाद वे कार ले कर जिला ठाणे की तहसील भिवंडी की ओर चल दिए.

भिवंडी रोड पर जा कर दीपक टाक ने आदर्श पैट्रोल पंप से दोनों कैन पैट्रोल से भरवा लिए. इस के बाद ड्राइविंग सीट दीपक टाक ने संभाल ली. सुनील पीछे की सीट पर बैठ गया. इस बीच रमा ने घर लौट चलने को कहा तो वह बोला, ‘‘लौटने की इतनी जल्दी क्या है, इतने दिनों के बाद बाहर घूमने निकले हैं, घूमघाम कर आराम से लौटेंगे.’’

बातोंबातों में कार नासिक बाईपास रोड पर आ गई. तब तक रात के 12 बज गए थे. सडक़ सुनसान थी, सही मौका देख कर सुनील ने पीछे की सीट के पास पड़ी नायलौन की रस्सी उठाई और आगे की सीट पर बैठी रमा के गले में डाल कर तब तक कसता रहा, जब तक वह मर नहीं गई.

रमा की मौत हो चुकी थी. अब उन दोनों को उस की लाश ठिकाने लगानी थी. इस के लिए दीपक ने गाड़ी एक सुनसान जगह पर रोकी और दोनों ने रमा की लाश कार से निकाल कर सडक़ किनारे की खाई में डाल दी. इस के बाद उस पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. फिर दोनों घर लौट आए.

कांताबाई ने जब कई महीने तक रमा को सुनील के साथ नहीं देखा तो सुनील से उस के बारे में पूछताछ की. लेकिन वह कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया. उस का कहना था कि रमा गर्भवती थी, इसलिए उस ने उसे विरार में अपने एक रिश्तेदार के यहां भेज दिया है. इस से कांताबाई के मन में तरहतरह की आशंकाएं उठने लगीं.

संदेह हुआ तो कांताबाई ने ओशिवारा थाने जा कर सुनील के खिलाफ बेटी को गायब करने की रिपोर्ट लिखा दी. जब सुनील को इस बात का पता चला तो गिरफ्तारी और पुलिस पूछताछ से बचने के लिए उस ने हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली. इस तरह सुनील कांगड़ा ओशिवारा थाने की पुलिस के चंगुल से तो बच गया, लेकिन वह नारपोली थाने की पुलिस की गिरफ्त से नहीं बच सका.

नारपोली पुलिस के नवनियुक्त सीनियर इंसपेक्टर अनिल आकड़े ने लगभग 2 साल पुरानी फाइल को खोला और 2 साल पहले मौत के घाट उतारी गई महिला की पहचान कराई और फिर हत्यारे तक पहुंच गए. रमा का हत्यारा सुनील तो गिरफ्तार हो गया, लेकिन दीपक टाक घर से फरार हो गया था. उसे पुलिस ने काफी खोजा, कई जगह दबिश दी, लेकिन वह हत्थे नहीं चढ़ा.

जब दीपक टाक का कोई पता नहीं चला तो पुलिस ने सुनील से मिलने आने वाली उस की पत्नी बिंदिया जो दीपक टाक की बहन थी, को थाने बुला कर उस का मोबाइल चैक किया. उस के मोबाइल के वाट्सऐप में दीपक टाक का फोटो मिल गया. यह भी पता चल गया कि वह अपनी बहन के संपर्क में था. पुलिस ने वह तसवीर ले कर वाट्सऐप से मुखबिरों के मोबाइल पर भेज दीं.

इस का नतीजा जल्दी ही सामने आ गया. सुनील कांगड़ा की गिरफ्तारी के 15 दिनों बाद पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि दीपक टाक अपनी पत्नी के साथ घाटकोपर के फीनिक्स मौल में फिल्म देखने आने वाला है. सूचना महत्त्वपूर्ण थी. अनिल आकड़े अपनी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे और दीपक टाक को गिरफ्तार कर लिया. 26 वर्षीय दीपक को गिरफ्तार कर के थाना नारपोली लाया गया. पुलिस ने उसे मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर पूछताछ के लिए 7 दिनों का पुलिस रिमांड लिया.

रिमांड के दौरान उस से पूछताछ की गई तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने वह होंडा सिटी कार भी बरामद कर ली, जिस में रमा कांगड़ा की हत्या की गई थी.

सुनील कांगड़ा और दीपक टाक से विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उन के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 315, 201 और 34 के तहत केस बनाया और दोनों को अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. फिलहाल दोनों जेल में हैं. इस केस की तफ्तीश इंसपेक्टर प्रकाश पाटिल कर रहे हैं.

प्रेम की आग में भस्म – भाग 2

उस ने रमा कांगड़ा हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह स्तब्ध कर देने वाली थी.

रमा धनगांवकर के पिता तभी गुजर गए थे, जब वह 4 साल की थी. पति की मौत के बाद कांताबाई धनगांवकर ने अपनी चारों बेटियों को अपने दम पर पालापोसा और पढ़ायालिखाया. कांताबाई धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी. वक्त के साथ उस ने चारों बेटियों की शादियां भी कर दीं. रमा उन की सब से छोटी बेटी थी और लाडली भी. शायद इसी वजह से वह ससुराल से ज्यादा मायके में रहती थी. इसी बात को ले कर उस के और पति के बीच मतभेद बढ़े और नौबत तलाक तक आ गई.

तलाक के बाद रमा अपनी मां के पास रहने लगी. सुनील कांगड़ा का परिवार उसी कालोनी में रहता था, जिस में धनगांवकर परिवार रहता था. दोनों के घरों के बीच करीब 2 सौ कदम की दूरी थी. सुनील कांगड़ा और रमा धनगांवकर साथसाथ खेलकूद कर बड़े हुए थे. दोनों ने महानगर पालिका के स्कूल में पढ़ाई भी साथसाथ की थी.

25 वर्षीया रमा धनगांवकर सुंदर ही नहीं, स्वभाव से चंचल भी थी. उस में कुछ ऐसा आकर्षण था कि कोई भी उस की ओर आकर्षित हो सकता था. 27 वर्षीय सुनील कांगड़ा सुंदर और हृष्टपुष्ट था. उस के पिता आजाद कांगड़ा एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. लेकिन नौकरी के दौरान ही उन्हें लकवा मार गया था, जिस की वजह से कंपनी ने उन्हें रिटायर कर दिया था.

सुनील की एकलौती बहन की शादी हो चुकी थी. घर में मां, पिता और छोटा भाई ही थे. छोटा भाई भी चूंकि लकवे का शिकार था, इसलिए घरपरिवार की सारी जिम्मेदारी सुनील पर आ गई थी. उस ने परिवार का खर्च उठाने के लिए बीएमसी (मुंबई महानगर पालिका) में नौकरी कर ली थी.

सुनील कांगड़ा रमा से सीनियर था, लेकिन दोनों एक स्कूल में पढ़े थे. सीनियर होने के नाते सुनील पढ़ाईलिखाई में रमा की मदद किया करता था. इसी नाते दोनों के बीच बचपन से ही भावनात्मक लगाव था. दोनों एकदूसरे के घर भी आतेजाते थे. उम्र के साथसाथ दोनों का एकदूसरे के प्रति लगाव भी बढ़ता गया. पढ़ाई के बाद भी न तो दोनों का मिलनाजुलना कम हुआ और न ही भावनात्मक लगाव. जब दोनों जवान हुए तो उन का भावनात्मक लगाव प्यार में बदल गया और दोनों छिपछिप कर मिलने लगे.

जल्दी ही वह समय भी आ गया जब रमा और सुनील एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में देखने लगे. दोनों को ही ऐसा लगता था, जैसे वे बने ही एकदूसरे के लिए हैं. इस सब के चलते ही दोनों ने साथसाथ जीनेमरने की कसमें खा ली थीं.

रमा और सुनील के बीच पक रही प्यार की खिचड़ी की भनक जब रमा की मां को लगी तो उस ने यह बात अपनी तीनों बेटियों से बताई. मां और तीनों बहनों ने मिल कर रमा को ऊंचनीच समझाया, परिवार की इज्जत का वास्ता दिया, समाज का डर दिखाया तो रमा की सोच में थोड़ा बदलाव आ गया. रमा का मन बदल गया है, यह सोच कर मां और बहनों के प्रयास से रमा की शादी दूर की एक रिश्तेदारी में कर दी गई. यह अक्तूबर, 2005 की बात है. रमा ससुराल चली गई. उस का पति भी ठीकठाक था.

सुनील ने इसे रमा की बेवफाई समझा. लेकिन धीरेधीरे उस की समझ में यह बात आ गई कि इस के पीछे रमा की कोई मजबूरी रही होगी. समय के साथ वह रमा को भूलने की कोशिश करने लगा. इस में वह काफी हद तक कामयाब भी रहा. अंतत: मई, 2007 में उस ने कांदीवली, मुंबई की बिंदिया से शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा ली.

बिंदिया भी सुंदर और सुशील थी. वह सुनील के साथसाथ पूरे परिवार का खयाल रखती थी. समय के साथसाथ सुनील एक प्यारी सी बच्ची का पिता भी बन गया. घरगृहस्थी सब ठीम चल रही थी कि सुनील की जिंदगी में रमा तूफान बन कर फिर आ गई.

सन 2010 में रमा अपने पति से तलाक ले कर अपनी मां के पास आ गई और वहीं रहने लगी. यह बात सुनील को पता चली तो 5 सालों से उस के सीने में दबी प्यार की चिंगारी फिर से सुलगने लगी. यही हाल रमा का भी था. चाहत चूंकि दोनों ओर थी, इसलिए जल्दी ही दोनों ने एकदूसरे से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. दोनों नजरें बचा कर साथसाथ घूमनेफिरने लगे. इतना ही नहीं, दोनों ने फिर से एक होने का सपना देखना शुरू कर दिया.

कांताबाई को पता चला तो उस ने रमा को समझाया कि सुनील शादीशुदा और एक बच्ची का पिता है, इसलिए उस से दूर रहे. लेकिन रमा ने मां की बात पर ध्यान न दे कर सन 2011 में सुनील से कोर्टमैरिज कर ली. सुनील ने इस शादी को अपनी पत्नी और परिवार से छिपा कर रखा. कुछ समय तो सब ठीक चलता रहा, लेकिन यह बात छिपी न रह सकी.

जब यह बात सुनील की पत्नी को पता चली तो घर में आए दिन झगड़ा होने लगा. एक तो घर की कलह, ऊपर से पूरे परिवार का बोझ, इस सब से सुनील परेशान रहने लगा. समस्या यह थी कि न तो वह अपने परिवार को छोड़ सकता था और न रमा को.

इसी बीच सन 2013 में जब रमा गर्भवती हो गई तो उस का मानसिक संतुलन और भी बिगड़ गया. वह नहीं चाहता था कि रमा मां बने. उस ने रमा को गर्भपात कराने के लिए समझाया, लेकिन रमा इस के लिए तैयार नहीं हुई. इस पर रमा ने सुनील को काफी डांटाफटकारा. यह बात सुनील को बहुत बुरी लगी. आने वाली संतान को ले कर सुनील और रमा के बीच विवाद इतना बढ़ा कि रमा के प्रति सुनील के मन में समाया प्यार नफरत में बदल गया. वह रमा को अपनी जिंदगी से निकाल फेंकने की बात सोचने लगा.

आखिर सुनील ने तय कर लिया कि अब वह रोजरोज की कलह से मुक्ति पा कर रहेगा. फैसला कर लेने के बाद सुनील ने चारकोप, कांदीवली में रहने वाले अपने साले यानी पत्नी बिंदिया के भाई दीपक टाक से बात की. दीपक को यह बात कुछ जमी नहीं, उस ने सुनील को आड़े हाथों लिया, साथ ही मना भी कर दिया कि वह इस मामले में उस का साथ नहीं देगा.

इस पर सुनील ने भावनात्मक कार्ड खेलते हुए कहा, ‘‘तुम समझ नहीं रहे हो दीपक, उस के जिंदा रहने से तुम्हारी बहन का भविष्य खतरे में पड़ सकता है, साथ ही बच्चों का भी.’’

दीपक टाक उस के भावनात्मक जाल में फंस कर उस का साथ देने को तैयार हो गया. उस के तैयार होते ही दोनों ने रमा को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. उन की योजना के अनुसार एक कार की जरूरत थी, ताकि रमा को मुंबई के बाहर ले जा कर ठिकाने लगाया जा सके.

प्रेम की आग में भस्म – भाग 1

21 नवंबर, 2013 की सुबह के 6 बजे थे. मुंबई से सटे ठाणे जिले की तहसील भिवंडी के नारपोली थाने के असिस्टैंट इंसपेक्टर माले की नाइट ड्यूटी खत्म होने वाली थी. वह चार्ज दे कर घर जाने की सोच ही रहे थे कि ओवली गांव के रहने वाले कैलाश पाटिल थाने आ पहुंचे. पाटिल काफी घबराए हुए थे. उन्होंने माले को बताया, ‘‘मैं मौर्निंग वाक के लिए जा रहा था तो नासिक बाईपास रोड के किनारे वाली पाइप लाइन के पास खाई में एक महिला की अधजली लाश पड़ी दिखाई दी.’’

कैलाश पाटिल की सूचना की गंभीरता को देखते हुए असिस्टैंट इंसपेक्टर माले ने इस मामले से अपने सीनियर इंसपेक्टर डी.वी. पाटिल को अवगत कराया, साथ ही कंट्रोल रूम को भी यह सूचना दे दी. डी.वी. पाटिल ने माले से इस मामले की रिपोर्ट दर्ज कराने को कहा और खुद इंसपेक्टर प्रकाश पाटिल व पुलिस टीम को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

जब पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंची तो वहां काफी भीड़ एकत्र थी. पुलिस ने भीड़ को हटा कर लाश और घटनास्थल की जांच की. वहां पड़ी लाश 25-26 साल की महिला की थी. लाश को कुछ इस तरह से जलाया गया था कि मृतका को पहचाना न जा सके. उस के दोनों हाथ और पांव चिपके हुए थे. लाश के पास ही नायलौन की एक मजबूत रस्सी पड़ी थी. यह बात साफ थी कि पहले मृतका का गला घोंटा गया था और बाद में लाश पर पैट्रोल डाल कर जला दिया गया था.

पुलिस ने क्राइम टीम और डौग स्क्वायड को घटनास्थल पर बुला कर सबूत ढूंढने की कोशिश की, साथ ही घटनास्थल का भी बारीकी से निरीक्षण किया. प्राथमिक काररवाई निपटाने के बाद डी.वी. पाटिल ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए आईजीएम अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद इस मामले की जांच इंसपेक्टर प्रकाश पाटिल को सौंप दी.

घटनास्थल पर कोई भी ऐसा सबूत नहीं मिला था जिस से मृतका की पहचान हो पाती. वारदात की स्थिति से प्रकाश पाटिल ने अनुमान लगाया कि मृतका संभवत: तहसील भिवंडी की रहने वाली नहीं थी. हत्या का केस दर्ज हो चुका था. जबकि मृतका के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली थी. इस पर प्रकाश पाटिल ने कंट्रोल रूम के माध्यम से ठाणे, मुंबई और नवी मुंबई के सभी थानों को मृतका की उम्र और हुलिया बता कर वायरलैस मैसेज भिजवा दिया, ताकि कहीं से कोई महिला गायब हो तो उस की सूचना मिल सके.

इस के साथ ही अगले दिन के समाचारपत्रों में घटनास्थल और मृतका का जली अवस्था का फोटो, हुलिया और उम्र के बारे में भी छपवा दिया गया. लेकिन इस का भी कोई नतीजा नहीं निकला. इस बीच मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी, जिस में उस की मौत का कारण दम घुटने से सांस का अवरुद्ध होना बताया गया था. इस रिपोर्ट में उसे 7 माह की गर्भवती बताया गया था.

काफी कोशिशों के बाद भी पुलिस न तो मृतका का पता लगा पाई और न उस के हत्यारों का. समय के साथ यह मामला ठंडा पड़ता गया. कुछ और समय बीता तो इस केस की फाइल ठंडे बस्ते में चली गई. देखतेदेखते लगभग 2 साल बीत गए. इस बीच नारपोली पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर डी.वी. पाटिल का तबादला हो गया. उन की जगह मार्च, 2015 में नए सीनियर इंसपेक्टर आए अनिल आकड़े.

अनिल आकड़े ने जब पेंडिंग पड़े केसों की फाइलें खुलवाईं तो इस केस की फाइल भी उन के सामने आ गई. उन्होंने इस केस का अध्ययन किया. उन्हें इस में काफी संभावनाएं नजर आईं. पूरे केस को देखनेसमझने के बाद इंसपेक्टर अनिल आकड़े ने इस केस के विवेचनाधिकारी इंसपेक्टर प्रकाश पाटिल को बुला कर उन से उन की विवेचना के बारे में विस्तार से बात की. प्रकाश पाटिल से पूरी बातें जान कर अनिल आकड़े ने ठाणे के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त दाभांडे और सहायक पुलिस आयुक्त चंद्रकांत जोशी से विचारविमर्श किया और इस केस की फाइल फिर से खोल दी.

इस केस की जांच के लिए सीनियर इंसपेक्टर अनिल आकड़े ने अपनी तफ्तीश की दिशा तय करने के बाद पुलिस की 2 टीमें तैयार कीं. इन टीमों में प्रकाश पाटिल के अलावा असिस्टैंट इंसपेक्टर लक्ष्मण राठौर, हैडकांस्टेबल संजय भोसले, सत्यवान मोहिते, विक्रम उदमले वगैरह को शामिल किया.

इस केस में सब से बड़ी समस्या थी मृतका की पहचान की. क्योंकि बिना उस की पहचान के तफ्तीश को आगे बढ़ाना संभव नहीं था. मृतका की पहचान के लिए पुलिस की दोनों टीमों ने अपनेअपने मुखबिरों का सहारा लिया. थोड़ा समय तो लगा, पर मेहनत रंग लाई. एक मुखबिर ने पुलिस को बताया कि जिस औरत की 2 साल पहले हत्या कर के लाश को जला दिया गया था, उस का नाम रमा सुनील कांगड़ा था और वह जोगेश्वरी पश्चिम में रहती थी. उस ने यह भी बताया कि उस की गुमशुदगी जोगेश्वरी ओशिवारा थाने में दर्ज कराई गई थी. यह गुमशुदगी उस की मां कांताबाई धनगांवकर ने दर्ज कराई थी.

यह पता चलते ही अनिल आकड़े अपनी टीम के साथ जोगेश्वरी ओशिवारा थाने जा पहुंचे. वहां उन्होंने थानाप्रभारी सुभाष खानविलकर और इस मामले के जांच अधिकारी सबइंसपेक्टर ढवले से इस संबंध में विस्तार से बात की. उन्होंने बताया कि रमा की मां कांताबाई धनगांवकर ने अपनी बेटी की गुमशुदगी 21 मार्च, 2015 को लिखाई थी, जिस में उस ने संदेह व्यक्त किया था कि रमा को संभवत: उस के पति सुनील कांगड़ा ने मार डाला है, क्योंकि वह पिछले डेढ़ सालों से उसे रमा से नहीं मिलवा रहा था. पुलिस ने इस संबंध में सुनील से पूछताछ भी की थी, लेकिन उसे गिरफ्तार इसलिए नहीं किया गया, क्योंकि उस पर कोई अभियोग नहीं बन रहा था.

पता चला कि कांताबाई धनगांवकर और सुनील कांगड़ा दोनों ही जोगेश्वरी (पश्चिम) की यूसुफ हनीफ कालोनी, आदर्शनगर में रहते थे. इस जानकारी के आधार पर अनिल आकड़े अपनी पुलिस टीम के साथ यूसुफ हनीफ कालोनी जा कर कांताबाई से मिले. पूछताछ करने पर उस ने बताया कि उस की बेटी करीब 2 सालों से गायब है. वह रमा के पति सुनील कांगड़ा से पूछती है तो वह झूठ बोल कर पीछा छुड़ा लेता है. उस ने थाने में बेटी की गुमशुदगी भी लिखाई और उस की हत्या का संदेह भी जाहिर किया, लेकिन पुलिस कुछ नहीं कर पाई.

पुलिस ने कांताबाई को मृतका के फोटो दिखाए, लेकिन वह चूंकि बुरी तरह जली अवस्था में थी, इसलिए कांताबाई पहचान नहीं पाई. कांताबाई से पूछताछ के बाद पुलिस टीम सुनील कांगड़ा के घर पहुंची. पता चला कि पुलिस पूछताछ और गिरफ्तारी से बचने के लिए उस ने मुंबई हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले रखी थी. इस से पुलिस को पूरा विश्वास हो गया कि नारपोली थानाक्षेत्र में जो लाश मिली थी, वह रमा कांगड़ा की ही थी और सुनील कांगड़ा किसी न किसी रूप में उस की हत्या से जुड़ा हुआ था.

सुनील कांगड़ा ने चूंकि हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले रखी थी, इसलिए पुलिस उस से पूछताछ नहीं कर सकती थी. इस स्थिति से निपटने के लिए पुलिस ने उस के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि उसे अग्रिम जमानत सितंबर, 2015 तक के लिए मिली हुई थी. इस पर पुलिस ने उस की घेराबंदी का इंतजाम कर दिया, ताकि वह फरार न हो सके.

जैसे ही उस की जमानत की अवधि समाप्त हुई, नारपोली थाने की पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उसे थाने ला कर विधिवत पूछताछ की गई तो वह पुलिस को गुमराह करता रहा. उस ने यहां तक कह दिया कि वह किसी रमा को नहीं जानता. लेकिन जब उस के साथ सख्ती की गई तो वह टूट गया और अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

बेलगाम दिल का हश्र

11जुलाई, 2014 को सुबह साढ़े 10 बजे इंदौर के स्काई होटल के मालिक दर्शन पारिख ने अपने कर्मचारी को होटल के कमरा नंबर 202 में ठहरे व्यक्ति से 500 रुपए लाने को कहा. एक दिन पहले इस कमरे में रोहित सिंह अपनी छोटी बहन के साथ ठहरा था. कमरा बुक कराते समय उस ने कहा था कि वह कमरे में पहुंच कर फ्रैश होने के बाद पैसे दे देगा.

पैसे लेने के लिए कर्मचारी कमरा नंबर 202 पर पहुंचा तो उसे कमरे का दरवाजा अंदर से बंद मिला. उस ने कालबेल का बटन दबाया. बटन दबाते ही कमरे के अंदर लगी घंटी के बजने की आवाज उस के कानों तक आई तो वह दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगा.

कुछ देर बाद तक दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दोबारा घंटी बजाई. इस बार भी दरवाजा नहीं खुला और न ही अंदर से कोई आहट सुनाई नहीं पड़ी. फिर उस ने दरवाजा थपथपाया. इस के बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला तो वह कर्मचारी अपने मालिक दर्शन पारिख के पास पहुंचा और उन्हें दरवाजा न खोलने की बात बता दी. उस ने यह भी बता दिया कि कई बार घंटी बजाने के बाद भी कमरे में कोई हलचल नहीं हुई.

उस की बात सुन कर दर्शन पारिख खुद रूम नंबर 202 पर पहुंच गया और उस ने भी कई बार दरवाजा थपथपाया. उसे भी कमरे से कोई हलचल सुनाई नहीं दी. उसे शंका हुई कि कहीं मामला गड़बड़ तो नहीं है. उस ने उसी समय थाना खजराना फोन कर के इस बात की सूचना दे दी.

ऐसी कंडीशन में ज्यादातर कमरे के अंदर लाश मिलने की संभावना होती है. इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सी.बी. सिंह एसआई पी.सी. डाबर और 2 सिपाहियों को ले कर बाईपास रोड पर बने नवनिर्मित होटल स्काई पहुंच गए. उन्होंने भी रूम नंबर 202 के दरवाजे को जोरजोर से खटखटाया. जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस ने दर्शन पारिख से दूसरी चाबी ले कर दरवाजा खोला. अंदर फर्श पर एक लड़का और लड़की आलिंगनबद्ध मिले.

उन की सांसों को चैक किया तो लगा कि उन की सांसें टूट चुकी हैं. दर्शन पारिख ने उन दोनों को पहचानते हुए कहा कि कल जब यह लड़का आया था तो इस ने इस लड़की को अपनी बहन बताया था और इस समय ये इस हालत में पड़े हैं. कहीं उन की सांसें बहुत धीरेधीरे न चल रही हों, यह सोच कर पुलिस ने उन्हें अस्पताल भेजा. लेकिन अस्पताल के डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

इस के बाद पुलिस ने होटल के उस कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया. मौके पर फोरेंसिक अधिकारी डा. सुधीर शर्मा को भी बुला लिया गया. कमरे में मिठाई का एक डिब्बा, केक, जलेबी आदि खुले पड़े थे.  जिस जगह लाशें पड़ी थीं, वहीं पास में एक पुडि़या में पाउडर रखा था. उसे देख कर डा. सुधीर शर्मा ने बताया कि यह हाई ब्रोस्वोनिक नाम का जहरीला पदार्थ हो सकता है. इन्होंने मिठाई वगैरह में इस पाउडर को मिला कर खाया होगा. जिस की वजह से इन की मौत हो गई.

एसआई पी.सी. डाबर ने सामान की तलाशी ली तो उस में जो कागजात मिले, उन से पता चला कि उन के नाम रोहित सिंह और मीनाक्षी हैं. वहीं 20 पेज का एक सुसाइड नोट भी मिला. उस से पता चला कि वे मौसेरे भाईबहन के अलावा प्रेमी युगल भी थे. पुलिस ने कमरे में मिले सुबूत कब्जे में ले लिए.

कागजात की जांच से पता चला कि लड़की का नाम मीनाक्षी था. वह खंडवा जिले के नेहरू चौक सुरगांव के रहने वाले महेंद्र सिंह की बेटी थी, जबकि लड़के का नाम रोहित था. वह हरदा के चरवा बावडि़या गांव के रहने वाले सोहन सिंह का बेटा था. पुलिस ने दोनों के घरवालों को खबर कर दी तो वे रोतेबिलखते हुए अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने लाशों की पहचान रोहित और मीनाक्षी के रूप में कर दी. उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद दोनों लाशें उन के परिजनों को सौंप दी गईं.

दोनों के घर वालों से की गई बातचीत और सुसाइड नोट के बाद पुलिस जान गई कि रोहित और मीनाक्षी के बीच प्रेमसंबंध थे. उन के प्रेमप्रसंग से ले कर सुसाइड करने तक की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

मध्य प्रदेश के हरदा शहर के चरवा बावडि़या गांव के रहने वाले सोहन सिंह के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी और 2 बेटे थे. रोहित सिंह उन का दूसरे नंबर का बेटा था. बेटी को पढ़ानेलिखाने के बाद वह उस की शादी कर चुके थे. रोहित इंटरमीडिएट पास कर चुका था. उस की तमन्ना कृषि वैज्ञानिक बनने की थी, इसलिए पिता ने भी उस से कह दिया था कि उस की पढ़ाई में वह किसी तरह की रुकावट नहीं आने देंगे.

करीब 3 साल पहले की बात है. रोहित अपने परिजनों के साथ इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर अपनी मौसेरी बहन की शादी में गया था. उस शादी में रोहित की दूसरी मौसी की बेटी मीनाक्षी भी अपने घर वालों के साथ आई हुई थी.

मीनाक्षी बेहद खूबसूरत और हंसमुख थी. वह जीवन के 22 बसंत पार कर चुकी थी. मजबूत कदकाठी का 17 वर्षीय रोहित भी बहुत हैंडसम था. पूरी शादी में मीनाक्षी रोहित के साथ रही थी, दोनों ने शादी में काफी मस्ती भी की. मीनाक्षी की रोहित के प्रति दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी. चूंकि वे मौसेरे भाईबहन थे, इसलिए दोनों के साथसाथ रहने पर किसी को कोई शक वगैरह नहीं हुआ.

शादी के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. घर जाने के बाद मीनाक्षी के मन में उथलपुथल होती रही. शादी में रोहित के साथ की गई मस्ती के वह पल उस के दिमाग में घूम रहे थे. समझदार होने के बाद इतने ज्यादा समय तक मोहित उस के साथ पहली बार रहा था. मौसेरा भाई होने के बावजूद मीनाक्षी का उस की तरफ झुकाव हो गया. दोनों के पास एकदूसरे के फोन नंबर थे. समय मिलने पर वे फोन पर बात करते और एसएमएस भेजते रहते.

मीनाक्षी उसे अपने प्रेमी के रूप में देखने लगी. एक दिन उस ने फोन पर ही रोहित से अपने प्यार का इजहार कर दिया. रोहित भी जवानी की हवा में उड़े जा रहा था. उस ने उस का प्रस्ताव मंजूर कर लिया. उस समय वे यह भूल गए कि आपस में मौसेरे भाईबहन हैं. फिर क्या था, दोनों के बीच फोन पर ही प्यार भरी बातें होने लगीं. बातचीत, मेलमुलाकातों के साथ करीब 3 साल तक प्यार का सिलसिला चलता रहा. इस दौरान उन के बीच की दूरियां भी मिट चुकी थीं.

कहते हैं कि प्यार को चाहे कितना भी छिपाने की कोशिश की जाए, वह छिप नहीं पाता, लेकिन मीनाक्षी और रोहित के संबंधों पर घर वालों को जल्दी से इसलिए शक नहीं हुआ था, क्योंकि वे आपस में मौसेरे भाईबहन थे.

भाईबहन का रिश्ता होते हुए भी घर वालों ने जब उन्हें सीमाओं को लांघते देखा तो उन्हें शक हो गया. फिर क्या था, उन के संबंधों को ले कर घर में चर्चा होने लगी. पहले तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ. लेकिन उन की हरकतें ऐसी थीं कि संदेह पैदा हो रहा था. इस के बावजूद घर वाले लापरवाह बने रहे.

उधर मीनाक्षी और रोहित का इश्क परवान चढ़ता जा रहा था. अब मीनाक्षी 25 साल की हो चुकी थी और रोहित 20 साल का. वह रोहित से 5 साल बड़ी थी. इस के बावजूद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था.   दोनों ने शादी का फैसला तो कर लिया, लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि अपनी बात घर वालों से कहें कैसे.

सच्चे प्रेमियों को अपने प्यार के आगे सभी चीजें बौनी नजर आती हैं. वे अपना मुकाम हासिल करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. हालांकि उन्हें इस बात की उम्मीद नहीं थी कि उन के घर वाले उन की बात मानेंगे, लेकिन वे यह बात कह कर घर वालों को यह बता देना चाहते थे कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं. मौका पा कर रोहित और मीनाक्षी ने अपनेअपने घर वालों से साफसाफ कह दिया कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं और अब शादी करना चाहते हैं.

यह सुन कर घर वाले सन्न रह गए कि ये आपस में सगे मौसेरे भाईबहन हैं और किस तरह की बात कर रहे हैं? ऐसा होना असंभव था. घर वालों ने उन्हें बहुत लताड़ा और समझाया भी कि सगेसंबंधियों में ऐसा नहीं होता. मोहल्ले वाले और रिश्तेदार जिंदगी भर ताने देते रहेंगे. लेकिन रोहित और मीनाक्षी ने उन की एक न सुनी. उन्होंने आपस में मिलनाजुलना नहीं छोड़ा. घर वालों को जब लगा कि ये ऐसे नहीं मानेंगे तो उन्होंने उन पर सख्ती करनी शुरू कर दी.

मीनाक्षी और रोहित बालिग थे. उन्होंने अपनी गृहस्थी बसाने की योजना पहले ही बना ली थी. फिर योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए 15 जून, 2014 को वे अपने घरों से भाग कर इंदौर पहुंच गए. घर से भागने से पहले रोहित अपने दादा के पैसे चुरा कर लाया था तो वहीं मीनाक्षी भी घर से पैसे व जरूरी कपड़े आदि बैग में रख कर लाई थी. वे इंदौर आए और 3 दिनों तक एक होटल में रहे. इस के बाद उन्होंने राज मोहल्ला में एक मकान किराए पर ले लिया.

मीनाक्षी के अचानक गायब होने पर घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने सब से पहले उस का फोन मिलाया. वह बंद आ रहा था. फिर उन्होंने अपने खास लोगों को फोन कर के उस के बारे में पता किया. मामला जवान बेटी के गायब होने का था, इसलिए बदनामी को ध्यान में रखते हुए वे अपने स्तर से ही उसे ढूंढते रहे. बाद में जब उन्हें पता चला कि रोहित भी घर पर नहीं है तो उन्हें बात समझते देर नहीं लगी. फिर मीनाक्षी के पिता महेंद्र सिंह ने बेटी के लापता होने की थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

घर से भाग कर गृहस्थी चलाना कोई आसान काम नहीं होता. खास कर तब जब आमदनी का कोई स्रोत न हो. वे दोनों घर से जो पैसे लाए थे, वे धीरेधीरे खर्च हो चुके थे. अब पैसे कहां से आएं, यह उन की समझ में नहीं आ रहा था. एक दिन रोहित ने मीनाक्षी से कहा, ‘‘मैं घर जा कर किसी तरह पैसा लाता हूं. वहां से लौटने के बाद हमें गुजरबसर के लिए कुछ करना होगा.’’

मीनाक्षी को इंदौर में ही छोड़ कर रोहित अपने गांव चला गया. वह खंडवा रेलवे स्टेशन पर पहुंचा था कि तभी इत्तफाक से मीनाक्षी के भाई ने उसे देख लिया. उस ने उसे वहीं पर पकड़ लिया. वहां भीड़ जमा हो गई. भीड़ में उस के कुछ परिचित भी थे. उन्होंने रोहित से मीनाक्षी के बारे में पूछा, लेकिन रोहित ने कुछ नहीं बताया तो वह अपने परिचितों के सहयोग से उसे पकड़ कर थाने ले गया.

पुलिस ने रोहित से मीनाक्षी के बारे में पूछा तो उस ने बता दिया कि वह इंदौर में है. पुलिस उसे ले कर इंदौर के राज मोहल्ले में पहुंची. इस से पहले कि वह उस के कमरे पर पहुंच पाती, रोहित पुलिस को झांसा दे कर रफूचक्कर हो गया. पुलिस से छूट कर वह तुरंत अपने कमरे पर पहुंचा और वहां से मीनाक्षी को ले कर खिसक गया. कमरा छोड़ कर वे इंदौर के रेडिसन चौराहे के पास स्थित स्काई होटल पहुंचे.

उन के पास अब ज्यादा पैसे नहीं थे. होटल मालिक दर्शन पारिख से मीनाक्षी ने रोहित को अपना छोटा भाई बताया था. दर्शन पारिख ने जब कमरे का एडवांस किराया 500 रुपए जमा करने को कहा तो उस ने कह दिया कि पैसा हम सुबह दे देंगे, अभी जरा थोड़ा आराम कर लें.

कमरे में सामान रखने के बाद वे खाना खाने बाहर गए. वापस आते समय कुछ मिठाइयां आदि ले कर आए और सुबह होटल के कमरे में उन की लाशें मिलीं. अब संभावना यह जताई जा रही है कि उन्होंने मिठाइयों में वही जहरीला पदार्थ मिला कर खाया होगा, जो घटनास्थल पर मिला था.

कमरे से 20 पेज का जो सुसाइड नोट मिला है, उस में दोनों ने 5-5 पेज अपनेअपने घर वालों को लिखे हैं. रोहित ने लिखा है कि पापा मेरी आखिरी इच्छा है कि आप शराब पीना छोड़ दें. गांव में जा कर दादादादी के साथ रहें. मम्मी के लिए उस ने लिखा कि आप पापा, दादादादी, भैया का खयाल रखना. तुम मुझ से सब से ज्यादा प्यार करती हो, अब मैं यहां से जा रहा हूं.

मीनाक्षी ने भी अपने पिता को लिखा था कि पापा, मैं जो कुछ कह रही हूं, जो कुछ किया है, वह शायद किसी को अच्छा नहीं लगेगा कि मौसी के लड़के से प्यार करती हूं. आप के और रोहित के साथ रहना चाहती थी, लेकिन आप ने अनुमति नहीं दी, इसीलिए मैं ने यह कदम उठाया है. आप अपनी सेहत का ख्याल रखना और कमर दर्द की दवा बराबर लेते रहना. उस ने मां के लिए लिखा था कि आप पापा से झगड़ा मत करना.

उन्होंने सामूहिक सुसाइड नोट में लिखा था कि हमारे पत्र के साथ हमारे फोटो भी हैं. आत्महत्या का समाचार हमारे फोटो के साथ अखबारों में छापा जाए.

रोहित और मीनाक्षी की मौत के बाद उन के घर वाले सकते में हैं. सुसाइड नोट के बाद यह बात साबित हो गई थी कि वे दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. यह बात जगजाहिर होने के बाद दोनों के घर वालों का समाज के सामने सिर झुक गया. क्योंकि रोहित और मीनाक्षी के बीच जो संबंध थे, उसे हमारा समाज मान्यता नहीं देता.

बहरहाल, रोहित के पिता सोहन सिंह का बेटे को कृषि वैज्ञानिक बनाने का सपना धराशाई तो हो ही गया, साथ ही बेटा भी हमेशा के लिए उन से जुदा हो गया. इस के अलावा महेंद्र सिंह को भी इस बात का पछतावा हो रहा है कि जैसे ही उन्होंने मीनाक्षी और रोहित के बीच चक्कर चलने की बात सुनी थी, उसी दौरान वह उस की शादी कहीं और कर देते तो शायद यह दुखद समाचार सुनने को नहीं मिलता. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

बेईमान प्यार : बेमौत मारा गया परिवार