मजे मजे की आशिकी में गयी जान – भाग 2

पति को उस ने जैसेतैसे नाश्ता करवा कर उस का टिफिन तैयार कर दिया था और वहीं किचन में खड़ी हो कर उस युवक के खयालों को उधेड़बुन कर रही थी. कभी मन कहता कि उस हैंडसम युवक से दोस्ती कर ले, कभी मन कहता कि अब तू सुहागन है, किसी की पत्नी है, तेरी जिंदगी में अब ऐसे पराए मर्द से दोस्ती करने की कोई जगह नहीं है.

“ऊंह!’’ मीना ने मन के तानेबाने से खुद को उबार कर गरदन झटकी, ‘दोस्ती हीतो कर रही हूं, उसे अपना शौहर थोड़ी न बना रही हूं.’

मीना हो गई बेचैन

उस युवक के लिए दोस्ती की चाह मन में पैदा हुई तो मीना उस युवक की तलाश करने के लिए उतावली हो गई. ‘कहां मिल सकता है वह, कल तो अपनी बात कह कर वह एकदम गायब हो गया था. कौन है, कहां रहता है? कुछ भी तो मालूम नहीं हो सका था उस के बारे में. फिर आज वह उसे कैसे ढूंढ पाएगी?’

“सोनिया की मदद लेती हूं,’’ मीना ने निर्णय लिया. मीना ने सोनिया को फोन मिला दिया. सोनिया की आवाज में वही शोखी और शरारती भरी थी, ‘‘क्यों मेरी जान, नींद नहीं आई क्या रात भर, कैसे आएगी शन्नो रानी? वह अजनबी दिल निकाल कर जो ले गया.’’

सोनिया के ये शब्द सुन कर मीना का दिल धक से रह गया. सोचने लगी कि इस चुड़ैल ने कैसे अंदाजा लगा लिया कि मेरे दिल में क्या पक रहा है?

“बोलती क्यों बंद हो गई यार?’’ दूसरी ओर से सोनिया चहकी, ‘‘मैं ने कोई गलत थोड़ी कहा है.’’

“तुम ने कैसे अंदाजा लगा लिया?’’ मीना ने धडक़ते दिल से कहा, ‘‘मैं ने तो तुझे अभी कुछ बताया ही नहीं है.’’

“मैं उड़ती चिडिय़ा के पर गिन लेती हूं, मेरी बिल्लो. कल शौपिंग के वक्त वह छेड़छाड़ कर के गायब हो गया था, तभी से तू उस के लिए बेचैन नजर आ रही थी.’’ सोनिया ने कहने के बाद पूछा, ‘‘बता तू उसी के लिए परेशान है न?’’

“हां यार,’’ मीना ने गहरी सांस भर कर कहा, ‘‘कमबख्त का चेहरा रहरह कर आंखों के आगे घूम रहा है. सोच रही हूं कि उसे तलाश कर लूं.’’

“तलाश कर के क्या करेगी?’’

“दोस्ती के काबिल है वह, बस दोस्ती करूंगी. दिन भर जो बोरियत होती है, वह खत्म हो जाएगी.’’

“उसे अब तलाश कहां करोगी?’’

“तू है न, तू उसे तलाश करने में मेरी मदद कर सकती है.’’

“तू आराम से उस के सपने देख लाडो,’’ सोनिया गंभीर हो गई, ‘‘मैं शाम तक तुझे वह युवक तलाश कर के देती हूं.’’ कह कर सोनिया ने काल डिसकनेक्ट कर दी. मीना ने चैन की सांस ली. उसे सोनिया पर पूरा भरोसा था. वह जो कह रही है, कर के दिखा भी सकती है. मीना इस विश्वास को मन में ले कर घर के काम निपटाने में व्यस्त हो गई.

उस अजनबी युवक का नाम जतिन था. सोनिया ने उसे शाम तक ढूंढ निकाला था, उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया था और अपनी सहेली मीना को यह जानकारी दे कर चौंका दिया.

प्यार में बदल गई दोस्ती

सोनिया ने बताया था कि जतिन ने उन्हें सौरभ की दुकान पर देखा था. जिस प्रकार वह लोग सौरभ से बातें कर रही थीं, जतिन ने अनुमान लगा लिया था कि सौरभ ही मीना का पति है. उसे विश्वास था कि मीना अपने पति सौरभ की दुकान पर दूसरे दिन भी आ सकती है, इसलिए वह दूसरे दिन शाम को पालिका बाजार में पहुंचा था. सोनिया इसी अनुमान के आधार पर उस से मिली थी. अपनी सहेली मीना की तड़प का जिक्र कर के उस ने युवक का नामपता और मोबाइल नंबर हासिल कर लिया था.

मीना को उस युवक का मोबाइल नंबर मिला तो उस ने धडक़ते दिल से उसे फोन मिला दिया. फोन पर जतिन की आवाज सुनाई दी तो मीना ने दिल थाम लिया.

“कैसी हो मीनाजी,’’ जतिन के स्वर में कशिश थी, ‘‘मुझे मालूम था आप मेरी तरफ दोस्ती का हाथ जरूर बढ़ाएंगी, में रात भर आप का खयाल कर के बेचैन रहा हूं.’’

“मैं भी रात भर सो नहीं पाई थी जतिन,’’ मीना ने ठंडी सांस भरी, ‘‘पता नहीं उस अजनबी मुलाकात में क्या जादू कर गए थे

आप, दिल आप के लिए रात भर तड़पा है.’’

“तो आप को मेरी दोस्ती कुबूल है?’’ खुश हो कर जतिन ने पूछा.

“न होती तो आप की तलाश अपनी सहेली से नहीं करवाती. मुझे आप की प्यारभरी दोस्ती कुबूल है.’’

“तब इस दोस्ती को सेलिब्रेट कहां करना चाहोगी?’’

“जहां आप चाहें.’’

“कल दोपहर पहाडग़ंज के किसी रेस्तरां में आ जाइए आप, वहां कुछ मीठा हो जाएगा.’’ मीना ने अपना प्रस्ताव बेहिचक रखा, जिसे जतिन ने हंसते हुए स्वीकार कर लिया.

दूसरे दिन निर्धारित समय पर दोनों पहाडग़ंज की चूनामंडी के एक रेस्टोरेंट में मिले. हायहैलो के बाद जतिन ने कोल्डड्रिंक और समोसे मंगवाए. दोनों एकदूसरे को अपने विषय में बताते हुए इस पहली मुलाकात का सेलिब्रेशन करते रहे. इस पहली मुलाकात के बाद मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. उन के बीच आप की दीवार ढह गई.

अब दोनों एकदूसरे को तुम कह कर पुकारने लगे थे. उन की दोस्ती इन मुलाकातों के कुछ दिनों बाद प्यार में बदल गई. मीना को जतिन इतना पसंद आया कि वह उसे सौरभ की जगह रख कर प्यार लुटाने लगी, जिस पर केवल सौरभ का अधिकार था. जतिन भी मीना को टूट कर चाहने लगा था. वह भूल गया था कि मीना किसी की ब्याहता है, उस से प्यार करना उस के लिए गुनाह है. इस का परिणाम उस के लिए घातक भी हो सकता है.

बस, दोनों सारी सीमाएं, सारी मर्यादाएं लांघ कर दिल्ली के रेस्तरां, पिकनिक स्पाट और होटलों के बाद कमरों में मिलने लगे थे. उन का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ रहा था, जिस की चर्चा अब धीरेधीरे मीना के घर तक पहुंचने लगी थी. मीना को इस की परवाह नहीं थी या वह परवाह करना नहीं चाहती थी. जतिन उस के मन का मीत जो बन गया था.

जतिन की हत्या की मिली खबर

27 जनवरी, 2023 को मध्य दिल्ली के थाना नबी करीम को लेडी हार्डिंग अस्पताल से सूचना दी गई कि यहां एक युवक को लाया गया है, जिस के सीने में चाकू घोंपा गया है. उस युवक की मौत हो गई है. एसएचओ अशोक कुमार सूचना पा कर एसआई हर्ष को साथ ले कर लेडी हार्डिंग अस्पताल पहुंच गए. जिस युवक को चाकू मारा गया था, अभी वार्ड में उस का शव पड़ा हुआ था. जिस बैड पर उसे लिटाया गया था, उस की चादर खून से भीग गई थी. युवक के सीने में बाईं ओर गहरा जख्म था. खून अधिक बह जाने के कारण उस की मौत हो गई थी.

लेडी हार्डिंग में ड्ïयूटी पर तैनात कांस्टेबल ने नबी करीम थाने में सूचना दी थी, क्योंकि उस युवक को नबी करीम इलाके से उपचार के लिए उस के घर वाले लाए थे. इमरजेंसी विभाग के डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया था. एसएचओ ने मृतक का नाम मालूम किया तो उस के भाई ने उस का नाम जतिन बताया.

“इसे चाकू कहां मारा गया है?’’ एसएचओ ने पूछा.

“पहाडग़ंज के आकर्षण रोड पर हमें इस की लाश मिली है सर. मेरा भाई रात को अपने दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए घर से निकला था.’’ उस युवक ने बताया.

एसएचओ अशोक कुमार ने लाश की अच्छे से जांच की. उस चाकू के जख्म के अलावा जतिन के शरीर पर किसी प्रकार के मारपीट के निशान नहीं थे. एसएचओ ने आवश्यक काररवाई निपटा कर अपने उच्चाधिकारियों को इस हत्या की जानकारी दे दी. उन के आदेश पर जरूरी काररवाई करने के बाद जतिन की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

मजे मजे की आशिकी में गयी जान – भाग 1

20 वर्षीया मीना बहुत देर से महसूस कर रही थी कि एक युवक काफी समय से उसे ही देख रहा है. वह जहां जा रही है, वह भी वहीं उस के पीछेपीछे पहुंच रहा है. मीना जब उस युवक को देखती तो वह उसे कनखियों से देख कर धीरे से मुसकरा देता था. उस की चोरी पकड़ी जाती तो वह चेहरा घुमा लेता था. वह क्यों उस के पीछे लगा है, यही जानने के लिए मीना ने साथ आई अपनी सहेली से कहा, ‘‘सोनिया, उसे देख रही है?’’

“किसे?’’ सहेली बोली.

“अरे वह, जो सामने की कल्पना शर्ट शौप पर खड़ा है.’’

सोनिया ने उस दुकान की ओर नजरें गड़ा दीं. वहां खड़े एक युवक को देख कर उस ने होंठों को गोल सिकोड़ कर अंदर सांस खींचते हुए आह भरी, ‘‘वाव, क्या हैंडसम सिंगल पीस है. यार मीना, तेरी पसंद तो बहुत लाजवाब है.’’

“पागल, वह मेरी पसंद नहीं है.’’ मीना झल्ला कर बोली, ‘‘वह मेरे पीछेपीछे आ रहा है.’’

“किस्मत वाली हो यार,’’ सोनिया ने ठंडी सांस भरी, ‘‘काश! वह मेरे पीछेपीछे आता, रुमाल में लपेट कर पर्स में डाल लेती.’’

“क्या अनापशनाप बक रही है,’’ मीना उस के कंधे पर हाथ मार कर झुंझलाए स्वर में बोली, ‘‘जो कह रही हूं, वह समझ.’’

“समझ गई हूं मेरी जान,’’ सोनिया ने फिर मसखरी की, ‘‘वह जवान और हैंडसम है, तुम भी किसी हसीना से कम नहीं हो. तुम उसे अच्छी लगी हो, इसीलिए तो पीछे लग गया है.’’

“मैं तेरा मुंह नोच लूंगी,’’ चिढ़ कर मीना बोली, ‘‘मैं उस की हरकत से परेशान हूं और तू है कि कुछ दूसरा पुलाव पका रही है.’’ इस बार सोनिया सीरियस हो गई, ‘‘यार, अगर वह हमारे पीछे लगा है तो लगा रहने दे. यह मर्दों की फितरत होती है, कोई सुंदर चीज उसे पसंद आती है तो उसे पाने को मचल उठता है, चाहे वह उस के हाथ में आए या न आए. यहां भी ऐसा ही है, हम यहां पालिका बाजार में कितनी देर के लिए आए हैं घंटा दो घंटा. इतनी देर में वह पीछे लगता है तो लगा रहने दो. हम शौपिंग कर के चले जाएंगे तो वह भी अपने रास्ते चला जाएगा.’’

“फिर भी, उसे इस तरह हमारे पीछे नहीं लगना चाहिए.’’

“यार मीना, तू बेकार की टेंशन ले बैठती है, मस्त हो कर खरीदारी कर. वह क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है, करने दे.’’ सोनिया ने समझाया. लेकिन मीना कहां समझने वाली थी. वह सहेली सोनिया के साथ शौपिंग करते हुए उसी युवक को देख रही थी. एक कास्मेटिक की दुकान से निकल कर वह दूसरी दुकान की तरफ बढ़ी तो देखा वह युवक उन के पीछे आने लगा. मीना को गुस्सा आ गया. उस ने देखा कि सोनिया अपनी धुन में उस दुकान की तरफ जा रही थी.

मीना अपनी जगह रुक गई तो वह युवक हड़बड़ा गया. वह भी रुक गया और दूसरी ओर देखने लगा. मीना उस के पास आ गई और उस का कंधा थपथपा कर बोली, ‘‘ऐ मिस्टर, यह क्या हरकत है?’’

“जी…’’ वह युवक अचकचा कर बोली, ‘‘आप ने मुझ से कुछ कहा?’’

“हां, तुम से ही कह रही हूं. यह तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?’’

युवक बेहिचक मुसकरा कर बोला, ‘‘जो चीज अच्छी लगे उसे देखने में क्या बुराई है? आप बेहद सुंदर हैं, इसलिए मेरी नजर आप पर से हट नहीं पा रही है.’’

“मेरी मांग में तुम्हें सिंदूर दिखाई दे रहा है?’’ मीना झल्ला कर बोली, ‘‘ये मेरे सुहाग की निशानी है.’’

“एक चुटकी सिंदूर ही तो है,’’ युवक मुसकरा कर बेबाकी से बोला, ‘‘यदि इसे धो डालो तो कसम से कोई नहीं कहेगा कि आप सुहागन हैं. आप को कुंवारी समझ कर आप की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने को कोई भी मचल जाएगा, मुझे तो सिंदूर में भी आप की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने का मन हो रहा है.’’

मीना उलझ गई अजनबी से

मीना उस की बेबाकी और जिंदादिली पर अवाक रह गई. कुछ कहते नहीं बना. वह कुछ कहती, उस से पहले ही सोनिया उस के पास पहुंच गई, ‘‘यार मीना, तुम भी गजब हो, मैं तुम्हें वहां ढूंढ रही हूं और तुम यहां इन से उलझ रही हो. चलो, मैं ने तुम्हारे लिए एक ब्रेसलेट पसंद किया है.’’

सोनिया उसे बाजू से पकड़ कर घसीटती ले जाने लगी तो उसे उस युवक के ठंडी सांस भर कहे गए शब्द सुनाई दिए, ‘‘अब तो तुम से दोस्ती कर के ही चैन पाऊंगा, मीनाजी.’’

मीना कुछ कह नहीं पाई. सोनिया उसे घसीट कर उस दुकान पर ले आई, जहां पर वह ब्रेसलेट पसंद कर के गई थी. मीना को ब्रेसलेट पसंद आया तो उस ने उसे खरीद लिया. कुछ देर बाद मीना ने पलट कर पीछे देखा तो वह युवक वहां नहीं था. वह बेचैन हो कर उसे इधरउधर तलाश करने लगी, लेकिन शायद वह वहां से जा चुका था. जाने के बाद वह मीना के दिल में अजीब सी हलचल पैदा कर गया था.

मीना अपने पति सौरभ के साथ मध्य दिल्ली में नबी करीम के मुल्तानी ढांढा में रहती थी. सौरभ अभी 23 साल का था. मीना के साथ शादी को अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ था. दोनों एकदूसरे को पा कर खुश थे. सौरभ कनाट प्लेस के पालिका बाजार में टैटू बनाने का काम करता था. अपनी दुकान थी, जिसे वह अपने बड़े भाई अक्षय के साथ चलाता था.

सौरभ की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी कि मीना की शौपिंग के दौरान एक युवक से हुई अनजानी मुलाकात से गृहस्थी की खुशियों का रंग, बदरंग होना शुरू हो गया. मीना चाहती तो उस अजनबी युवक से हुई अनजानी मुलाकात को एक इत्तफाक या हादसा मान कर भुला सकती थी, लेकिन मीना उस मुलाकात की गहराई में उतरने की वही भूल कर बैठी, जो अकसर ऐसी मुलाकातों में अन्य महिलाएं कर बैठती हैं.

वह मुझे देख रहा था, मेरा पीछा कर रहा था, देखने में तो ठीक ही था, कहीं से सडक़छाप मजनूं भी नहीं लग रहा था, सभ्य और पढ़ालिखा भी था किंतु था निडर, बेबाक और दिल को हथेली पर ले कर चलने वाला इंसान. बड़े निर्भीक और सहजता से उस ने अपने मन की बात कह दी थी. ऐसे ही विचार मीना के दिमाग में घूम रहे थे.

उस का किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था. रहरह कर उस अजनबी युवक का चेहरा उस की आंखों के सामने उभर आता था. उस युवक के चेहरे की लुभावनी मुसकान उसे कल किसी कांटे की तरह चुभ रही थी तो आज उसी मुसकान की वह दीवानी हो कर आहें भर रही थी.

परी का प्यार हुआ जानलेवा – भाग 1

एकलौती बिटिया होने की वजह से मालती अपने मांबाप की लाडली थी. उस के पापा के पास इतना कुछ था कि जब जो चाहा उसे मिला. पापा बालमुकुंद चौहान और मम्मी उस की हर इच्छा को पूरा करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे.  मांबाप के प्यार की वजह से बलिग होतेहोते मालती काफी जिद्ïदी हो गई थी. वैसे उसे ज्यादा जिद करने की जरूरत नहीं पड़ती थी, वह जो भी कह देती, मम्मीपापा और भाई आंख मूंद कर पूरी कर देते थे.

मूलरूप से मध्य प्रदेश में ग्वालियर जिले की भितरवार तहसील के मोहनगढ़ गांव के रहने वाले बालमुकुंद चौहान और भूपेंद्र जाट आमनेसामने रहते थे. इस वजह से उन का न सिर्फ एकदूसरे के परिवार से घरोवा था, बल्कि पड़ोस में रहने की वजह से दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना भी था.  मालती और भूपेंद्र सिंह का बेटा पवन साथ में खेल कर बड़े हुए थे.

मालती खूबसूरत थी तो पवन भी कम आकर्षक नहीं था. वह लंबाचौड़ा, गोराचिट्टा युवक था. अपने आकर्षक व्यक्तित्त्व के बल पर वह किसी को भी बांध लेने की क्षमता रखता था, इसलिए पवन से मिलना मालती को भी अच्छा लगता था.

किशोरावस्था में हुआ प्यार

किशोरावस्था में कदम रखते ही पवन मालती की ओर आकर्षित हो गया था. कई साालों तक चोरीछिपे दोनों का प्यार परवान चढ़ता गया. लेकिन परिवार वालों के डर की वजह से अपने मन की बात अपने घरवालों से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. हालांकि मालती ने बिना किसी संकोच के अपने मातापिता को बता दिया था कि वह पवन से प्यार करती है और उसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहती है.

इस पर उस के पापा ने उसे बड़े प्यार से समझाया, ‘‘बेटी, पवन से रिश्ता जुडऩा नामुमकिन है. इस की पहली वजह तो यह है कि वह हमारी बिरादरी का नहीं है और दूसरे उस की और हमारे परिवार की हैसियत बराबर नहीं है. वह हमारे मुकाबले कुछ भी नहीं है.’’

पापा की बात यह सुन कर मालती के पैरों तले की जमीन खिसक गई. मालती के मम्मीपापा करते थे कि उन की बेटी जिद्ïदी स्वभाव की है. उस की इस आदत को देखते हुए मम्मीपापा ने उस के घर से निकलने पर सख्त पाबंदी लगा दी. मालती समझ गई कि अब पवन के साथ जिंदगी बिताने का उस का सपना महज सपना ही बन कर रह जाएगा. क्योंकि घर वाले उस का रिश्ता प्रेमी पवन के साथ नहीं करेंगे.

उधर बालमुकुंद चौहान मालती की शादी के लिए लडक़ा तलाशने लगे. काफी दौड़धूप के बाद बालमुकुंद चौहान को दतिया जिले के इंदरगढ़ में रहने वाला सोनू चौहान अपनी बेटी के लिए पसंद आ गया. इस के बाद उन्होंने बड़ी धूमधाम से मालती की शादी सोनू चौहान के साथ कर दी.  मालती दुलहन बन कर ससुराल पहुंच गई. सोनू मालती जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर काफी खुश था. यही वजह थी कि वह पत्नी की हर इच्छा का खयाल रखता था.

इस के बावजूद मालती अपने प्रेमी पवन को नहीं भुला पाई. उसे जब भी मौका मिलता, वह फोन पर अपनी सहेली से प्रेमी पवन के बारे में बतियाना शुरू कर देती और पवन के बारे में सारी जानकारी ले लेती. धीरेधीरे 2 साल गुजर गए, पवन भी मालती को नहीं भुला सका था. दिनरात मालती उस के खयालों में छाई रहती. वह अपनी जिंदगी मालती की यादों में काटना चाहता था. इस वजह से उस ने शादी भी नहीं की थी.

शादी के बाद बने रहे संबंध

उधर मालती के मम्मीपापा और भाई को लगने लगा था कि शादी के बाद मालती पवन को भूल चुकी होगी, इसलिए उन्होंने उसे गांव में किसी के भी घर आनेजाने की छूट दे दी. पवन और मालती मौके की तलाश में रहने लगे, एक दिन मौका पा कर सब की नजरों से बचते हुए दोनों मिले. इस मुलाकात में मालती ने बताया कि वह अपनी शादी से जरा भी खुश नहीं है तो पवन चौंका. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि मालती अब भी उसे अपने दिल में बसाए हुए होगी.

उसे लगता था कि मालती उसे भुला कर अपने पति के प्रेम में रम गई होगी. पवन ने मालती से पूछा, ‘‘क्या तुम अब भी मेरे साथ जिंदगी गुजारने को तैयार हो?’’

“हां, मैं तुम्हारे लिए अपना बसाबसाया घर छोडऩे को तैयार हूं.’’

मायके से मालती ने भागना उचित नहीं समझा. क्योंकि इस से उस के मायके वालों की बदनामी होती. फिर योजना के अनुसार, दोनों ने एकदूसरे के नए मोबाइल नंबर ले लिए. मालती ने पवन का मोबाइल नंबर सहेली के नाम से सेव कर लिया.

3 दिन बाद मालती का पति सोनू उसे लेने अपनी ससुराल मोहनगढ़ आया तो वह बेमन से ससुराल चली गई. ससुराल में किसी को भी उस के शादी से पूर्व के प्रेम प्रसंग के बारे में जानकारी नहीं थी, इसलिए उसे देर रात मोबाइल पर बतियाते देख किसी को उस पर संदेह नहीं हुआ. ससुराल वाले यही समझते रहे कि वह अपने मांबाप की लाडली बेटी है उन्हीं से बतियाती होगी.

इत्तफाक से एक दिन मालती के पति सोनू की देर रात अचानक नींद टूट गई, तब उस ने उसे किसी पुरुष से खिलखिला कर हंसते हुए वीडियो कालिंग पर बात करते हुए देखा. इस से सोनू को मालती पर शक हो गया. उसे कतई उम्मीद नहीं थी कि शादी के बाद भी पत्नी का किसी अन्य पुरुष से चक्कर चल रहा होगा. काफी प्रयत्न करने पर सोनू को पता चला कि मालती का प्रेम प्रसंग मोहनगढ़ गांव के पवन से चल रहा है. इस जानकारी से सोनू को गहरा झटका लगा.

अब इसे ले कर आए दिन पतिपत्नी के बीच झगड़ा होने लगा. धीरेधीरे उन के रिश्तों में दरार आती चली गई. यह दरार इतनी बढ़ी कि सोनू ने अपने सुसर को फोन कर उन से साफ कह दिया कि अब वह मालती को पत्नी के तौर पर अपने घर पर नहीं रख सकता. आप इंदरगढ़ आ कर मालती को हमेशा के लिए ले जाएं.

प्यार के लिए अपहरण – भाग 3

अजीम अहमद की इस नेकी से आसिफा बहुत प्रभावित हुई. उस ने उसे चाय पिए बगैर नहीं जाने दिया. आसिफा से उस की यह दूसरी मुलाकात थी. बातचीत में आसिफा ने बताया कि वह मोहम्मद शमीम की दूसरी बीवी है. हमजा और अयान उस की पहली बीवी के बच्चे हैं. पहली बीवी की मौत के बाद मोहम्मद शमीम ने उस से निकाह किया था. जवान बीवी को यहां अकेली छोड़ कर वह सऊदी अरब में कोई बिजनैस कर रहा है.

आसिफा ने बताया था कि ये दोनों बच्चे उस की बहन के हैं. आसिफा बेहद खूबसूरत थी. अजीम को जब पता चला कि अभी उस के बच्चे नहीं हुए हैं तो उस का झुकाव आसिफा की तरफ हो गया. वह मन ही मन उसे चाहने लगा. वक्तजरूरत के लिए दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने फोन नंबर भी दे दिए थे.

इस के बाद अजीम जबतब आसिफा से फोन पर बातें करने लगा था. किसी न किसी बहाने वह उस के घर भी जाने लगा. आसिफा से नजदीकी बढ़ाने के लिए उस ने उस के दोनों बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने की पेशकश की. आसिफा ने हामी भर दी तो वह स्कूल से छुट्टी के बाद हमजा और अयान को ट्यूशन पढ़ाने उन के घर जाने लगा. अयान पास के ही एक स्कूल में यूकेजी में पढ़ता था.

अजीम का कहना था कि घर आनेजाने से आसिफा और उस के बीच नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. आसिफा भी उस से प्यार करने लगी थी. बात आगे बढ़ी तो दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. अजीम के अनुसार दोनों ने साथ रहने की ठान ली थी. बच्चों को भी साथ रखने की बात तय हो गई थी. आसिफा से बात होने के बाद ही वह बच्चों को ले गया था. जैसे ही बच्चे कनफैक्शनरी की दुकान के नजदीक पहुंचे थे, उस ने हमजा और अयान को चीज दिलाने के बहाने बाइक पर बैठा लिया था. आसिफा को भी आना था, लेकिन बाद में उस ने आने से मना कर दिया था.

आसिफा का मना करना अजीम को अच्छा नहीं लगा. दबाव बनाने के लिए उस ने आसिफा को धमकी दी कि अगर आसिफा नहीं आएगी तो वह बच्चों को जान से मार देगा. लेकिन आसिफा उस की धमकी में नहीं आई. तब वह बच्चों को ले कर हरिद्वार के लिए रवाना हो गया. श्यामपुर के नजदीक उसे जंगल दिखाई दिया तो उस ने हमजा को वहीं खत्म करने की योजना बना डाली.

मोटरसाइकिल को सड़क के किनारे खड़ी कर के वह हमजा को जंगल में ले गया और जिस जंजीर से उस की बाइक की चाबी बंधी थी, उसी जंजीर से उस का गला घोंटने लगा. हमजा जमीन पर औंधी पड़ी थी. उस ने गले पर जंजीर के नीचे 2 अंगुलियां लगा ली थीं, जिस से उस का गला घुट नहीं सका और वह बेहोश हो कर रह गई. अजीम को लगा कि वह मर चुकी है, इसलिए वह अयान को ले कर हरिद्वार के अपने एक दोस्त के घर चला गया.

थोड़ी देर बाद हमजा को होश आया तो वह जंगल में खुद को अकेली पा कर डर के मारे रोने लगी. वह ऐसा जंगल था, जहां जंगली जानवर घूमते रहते थे. वनकर्मी भी उधर बंद गाड़ी ले कर जाते थे. लेकिन इत्तफाक से उस समय कोई जंगली जानवर उधर नहीं आया था.

संयोग से उधर कुछ वनकर्मी आए तो अकेली लड़की को देख कर वे चौंके. हमजा ने उन्हें सारी बात बताई तो वनकर्मी हमजा को थाना श्यामपुर ले गए. थानाप्रभारी चंदन सिंह ने मुरादाबाद की 11 साल की लड़की हमजा के बरामद होने की सूचना एसपी सिटी सुरजीत सिंह पंवार को दी तो उन्होंने यह खबर मुरादाबाद के एसएसपी को दे दी.

अगली सुबह यानी 26 नवंबर, 2013 को अजीम अयान को मोटरसाइकिल से ले कर निकला. वह उसे भी ठिकाने लगाना चाहता था. इस के लिए वह देहरादून की तरफ चल दिया. बच्चे को मोटरसाइकिल से अपहरण कर के ले जाने की खबर देहरादून के पुलिस कंट्रोलरूम से फ्लैश होने के बाद पूरे शहर में वाहनों की चैकिंग शुरू हो गई थी. इसलिए सुबह 9 बजे के करीब अजीम ने आईएसबीटी पुलिस चौकी के नजदीक चैकिंग होती देखी तो डर की वजह से अयान को वहीं उतार कर भाग गया. अकेले पड़ने पर अयान रोने लगा तो पुलिस उस के पास पहुंच गई, जिस से वह भी सकुशल मिल गया.

अजीम अब कहीं दूर भाग जाना चाहता था, इसलिए उस ने अपनी मोटरसाइकिल देहरादून रेलवे स्टेशन की पार्किंग में खड़ी कर दी और ट्रेन से दिल्ली में रहने वाले अपने दोस्त जुबैर के पास चला गया. जुबैर कपड़ों की सिलाई करता था. दूसरी ओर मुरादाबाद पुलिस उस के मोबाइल फोन के जरिए उस के पास पहुंचने की कोशिश कर रही थी. इस से पहले मुरादाबाद पुलिस जुबैर के पास पहुंचती, वह वहां से मांडवा में रहने वाले अपने दोस्त अनमोल के यहां चला गया. लेकिन वहां अनमोल नहीं मिला.

अजीम को पैसों की जरूरत थी. तब वह अपना सैमसंग का मोबाइल फोन 2 हजार रुपए में बेच कर बंगलुरु चला गया. इस बीच वह एसटीडी बूथ से घर वालों को फोन करता रहता था. जब उसे पता लगा कि उस के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हो चुका है और पुलिस कुर्की की काररवाई कर रही है तो वह अजमेर आ गया. वह मुरादाबाद पहुंच कर पुलिस के सामने हाजिर होना चाहता था, लेकिन मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उसे अजमेर से गिरफ्तार कर लिया.

अजीम के फोन की काल डिटेल्स से पुलिस को यह भी पता चल गया था कि अजीम की आसिफा से अकसर बात होती रहती थी. कभीकभी ये बातें काफी लंबी होती थीं. पुलिस यह जानने की कोशिश कर रही है कि उन दोनों के बीच किस तरह के संबंध थे. बहरहाल, पुलिस ने अजीम उर्फ अजमल से पूछताछ कर के उसे न्यायालय में पेश कर दिया था, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 3

एक विवाहित औरत का किसी पुरुष को इस तरह ताकने का मतलब राजेश्वर तुरंत समझ गया. बोतल खुली और शराब का दौर चलने लगा. दोनों ने एकएक पैग पिया था कि अनीता ने राजेश्वर की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘आज आप पहली बार हमारे घर आए हैं, इसलिए बिना खाना खाए मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी.’’

‘‘नहीं भाभी, आज नहीं. घर जाने में देर हो जाएगी तो घर वाले परेशान होंगे. अगली बार आऊंगा तो जरूर खा कर जाऊंगा. उसी बहाने आप से मिलने का मौका भी मिल जाएगा.’’ राजेश्वर ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया.

‘‘आइएगा जरूर, मुझे आप का इंतजार रहेगा. अब भाभी कहा है तो मेरा आप पर कुछ तो हक बनता ही है.’’

‘‘कुछ नहीं, आप का मेरे ऊपर पूरा हक बनता है. जल्दी ही मैं आप के हाथ का खाना खाने आऊंगा.’’ राजेश्वर ने कहा और वहां से चला गया.  यह बात बिलकुल सच है कि भूख आदमी के ईमान को कभी भी डिगा सकती है, चाहे वह पेट की भूख हो या शरीर की. भूखे इंसान को भटकने में देर नहीं लगती. और तब तो बिलकुल नहीं, जब सामने आंखों को भाने वाला खाना या साथी मौजूद हो.

ऐसा ही हुआ अनीता के साथ. राजेश्वर जैसे सजीले नौजवान को देख कर उस का भी ईमान डोल गया. कपड़ों की छपाई के गुर सीखने आया राजेश्वर अपने काम को भूल कर ज्यादा दिनों तक अनीता नाम की इस कामाग्नि से खुद को बचा नहीं सका और उस आग में खुद को स्वाहा कर दिया.

यह भी सच है कि जवानी नौजवानों को गुस्ताख बना देती है. जिस पर जवानी चढ़ती है वह अपने सामाजिक ही नहीं, पारिवारिक दायित्वों को भी भूल जाता है. ऐसा ही कुछ राजेश्वर के साथ भी हुआ.  जवान हुए राजेश्वर को अपने मातापिता का सहारा बनना चाहिए था, जबकि वह एक विवाहिता औरत के प्रेम में ऐसा उलझा कि मांबाप का सहारा बनने के बजाय जान तक गंवा बैठा.

राजेश्वर अनीता के जाल में उलझा तो काम से लगातार गैरहाजिर रहने लगा. जब इस बात की खबर राजकुमार तक पहुंची तो उन्होंने पता किया कि राजेश्वर काम पर क्यों नहीं जाता.  उन्हें जो जानकारी मिली, वह परेशान करने वाली थी. उन्हें पता चला कि उन का बेटा एक शादीशुदा औरत के चक्कर में पड़ गया है. वह उस पर काफी पैसा भी खर्च कर चुका है. उस ने अपनी जो मोटरसाइकिल बेची थी, उस का पैसा भी उस ने उसी पर खर्च किया था.

राजकुमार समझदार आदमी थे. उन्होंने दुनिया देखी थी. वह जानते थे कि सख्ती से बेटा बगावत कर सकता है, इसलिए एक दिन उन्होंने राजेश्वर को अपने पास बिठा कर प्यार से समझाया कि वह जो कर रहा है, वह न तो उस के लिए ठीक है और न घरपरिवार के लिए. अपना फर्ज समझते हुए राजेश्वर ने पिता की बातें ध्यान से सुनी ही नहीं, बल्कि वादा भी किया कि वह उन की बातों पर गौर करेगा. लेकिन पिता के पास से हटते ही उस ने पिता की जो बातें सुनी थीं, दूसरे कान से निकाल दीं. वह अनीता से पहले की ही तरह मिलता रहा.

राजकुमार ने जब देखा कि उन की बातों का बेटे पर कोई असर नहीं पड़ रहा है तो उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. हद तो तब हो गई, जब मार्च के अंतिम सप्ताह में राजेश्वर ने घर में रखे 10 तोले के सोने के गहने चोरी से ले जा कर अनीता को दे दिए. जब इस चोरी की जानकारी बिटई देवी को हुई तो बिना देर किए वह लोनी में रह रही अनीता के घर जा पहुंचीं.  उन्होंने अनीता को बुराभला तो कहा ही, साथ ही धमकी भी दी कि अगर उस ने गहने वापस नहीं किए तो वह उस के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देंगी.

बिटई देवी ने अनीता को रिपोर्ट दर्ज कराने की धमकी जरूर दी थी, लेकिन उन्हें इस बात का भी डर था कि अगर बात पुलिस तक पहुंचेगी तो उन का बेटा भी इस मामले में फंसेगा. इसलिए वह सिर्फ धमकी ही दे कर रह गई थीं.  लेकिन बिटई देवी की इस धमकी से अनीता और नीरज इस कदर डर गए थे कि वे बचने का रास्ता खोजने लगे. काफी सोचविचार कर उन्हें जो रास्ता सूझा, वह काफी खतरनाक था. फिर भी उन्होंने उसी पर चलने का निश्चय कर लिया.

19 अप्रैल की शाम को अनीता ने 7 बजे फोन कर के राजेश्वर को घर बुलाया और पति के साथ मिल कर दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. राजेश्वर की हत्या कर के लाश उन्होंने कमरे में ही छोड़ दी और बाहर से ताला लगा कर रात 2 बजे फरार हो गए.

राजेश्वर की हत्या की सारी कहानी उगलवा कर थाना लोनी पुलिस ने अगले दिन नीरज और अनीता को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थे. उन के बच्चों को घर वाले आ कर ले गए.

प्यार के लिए अपहरण – भाग 2

हमजा को अपनी सुपुर्दगी में ले कर पुलिस ने उस से पूछताछ की तो पता चला कि उसे और उस के भाई अयान को उन्हें ट्यूशन पढ़ाने वाला अजीम मोटरसाइकिल से ले गया था. हमजा की बातों से साफ हो गया कि बच्चों का अपहरण करने वाला कोई और नहीं, उन्हें ट्यूशन पढ़ाने वाला अजीम था.

हमजा तो सकुशल मिल गई थी, लेकिन उस का भाई अयान अभी भी अजीम के कब्जे में था. पुलिस को आसिफा से अजीम की मोटरसाइकिल का नंबर मिल गया था, इसलिए हरिद्वार पुलिस ने कंट्रोलरूम द्वारा उस की मोटरसाइकिल का नंबर फ्लैश करा कर जगहजगह बैरिकेड्स लगा कर वाहनों की चैकिंग शुरू करा दी. कोतवाली पुलिस हमजा को ले कर मुरादाबाद लौट आई. हमजा के गले व हाथ की अंगुलियों पर चोट के निशान थे, इसलिए पुलिस पहले उसे इलाज के लिए जिला चिकित्सालय ले गई. वहां से लौट कर उस से विस्तार से पूछताछ की गई.

चूंकि अयान अभी भी अजीम के कब्जे में था, इसलिए पुलिस को इस बात का डर सता रहा था कि कहीं वह उस के साथ कुछ बुरा न कर दे. मुरादाबाद पुलिस के आग्रह पर हरिद्वार पुलिस अपने स्तर से उस की तलाश कर रही थी. संभावना यह भी थी कि कहीं वह अयान को ले कर देहरादून न चला गया हो. इसलिए हरिद्वार पुलिस ने इस बात की सूचना देहरादून पुलिस को भी दे दी थी.

मामला एक मासूम की जान का था, इसलिए देहरादून पुलिस ने भी वाहनों की चैकिंग शुरू करा दी. पुलिस की इस मुस्तैदी का नतीजा यह निकला कि 25 नवंबर की सुबह यही कोई 9 बजे देहरादून की आईएसबीटी पुलिस चौकी के पास पुलिस ने एक बच्चे को बरामद किया, जिस ने अपना नाम अयान बताया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह मुरादाबाद का रहने वाला है. बच्चा बहुत घबराया हुआ था. देहरादून के पुलिस अधिकारियों ने अयान से पूछताछ के बाद मुरादाबाद पुलिस को सूचना दे दी. इस के बाद मुरादाबाद पुलिस देहरादून पहुंची और अयान को ले आई. बेटे को सहीसलामत पा कर आसिफा सारे दुख भूल गई.

बच्चों को सकुशल बरामद कर के पुलिस का आधा काम खत्म हो चुका था. अब उसे बच्चों का अपहरण करने वाले अजीम को गिरफ्तार करना था. वह मुरादाबाद के बंगला गांव में रहता था, जबकि मूलरूप से वह बिजनौर के स्योहरा का रहने वाला था. एक पुलिस टीम स्योहरा भेजी गई तो दूसरी ने बंगला गांव वाले कमरे पर भी दबिश दी. लेकिन वह दोनों जगहों पर नहीं मिला.

पुलिस को अजीम का मोबाइल नंबर मिल गया था. उस की लोकेशन का पता किया गया तो वह दिल्ली की मिली. एक पुलिस टीम दिल्ली रवाना कर दी गई. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने अजीम के भाई हफीज को कोतवाली में बैठा लिया था. उस से अजीम के ठिकानों के बारे में पूछताछ की जा रही थी.

अजीम को जब पता चला कि पुलिस ने उस के भाई को उठा लिया है तो उस ने 26 नवंबर की सुबह साढ़े 10 बजे आसिफा को फोन कर के अपने भाई को पुलिस से छुड़वाने के लिए कहा. इस बातचीत में आसिफा ने उसे आश्वासन दिया कि वह मुरादाबाद आ जाए. अगर वह कहेगा तो वह मुकदमा भी वापस ले लेगी.

दिल्ली पहुंची पुलिस टीम को अजीम तो नहीं मिला, लेकिन उस का मोबाइल फोन जरूर मिल गया. जिस आदमी के पास वह मोबाइल फोन मिला, उस आदमी से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि अजीम वह मोबाइल उसे बेच गया था. फोन बेच कर वह कहां गया, यह उसे पता नहीं था. पुलिस टीम दिल्ली से मुरादाबाद लौट आई. अजीम के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हो चुका था. पुलिस कुर्की की तैयारी कर रही थी. इस के अलावा एसएसपी ने उस की गिरफ्तारी पर ढाई हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया था. इस तरह उसे घेरने की पूरी काररवाई कर ली गई थी.

आखिर एक मुखबिर की सूचना पर 12 दिसंबर, 2013 को पुलिस ने आरोपी अजीम को अजमेर से गिरफ्तार कर लिया. कोतवाली ला कर अजीम उर्फ अजमल से पूछताछ की गई तो बच्चों के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली.

अजीम अहमद उर्फ अजमल स्योहरा, बिजनौर के रहने वाले अब्दुल हमीद का बेटा था. उस के पिता और भाई सऊदी अरब में नौकरी करते थे. वह भी पढ़लिख कर कोई सरकारी नौकरी करना चाहता था. देहरादून के डीएवी कालेज से एमए करने के बाद वह नौकरी की तैयारी करने के लिए मुरादाबाद आ गया. यहां वह बंगला गांव में किराए पर रहने लगा. अपना खर्च चलाने के लिए वह मुरादाबाद के सिविललाइंस स्थित एस.एस. चिल्ड्रन एकेडमी में क्लर्क के रूप में काम करने लगा. यह करीब 5 साल पहले की बात है.

अपनी लच्छेदार बातों से वह स्कूल के प्रिंसिपल और टीचरों का प्रिय बन गया. अगर किसी वजह से स्कूल में पढ़ने वाले किसी बच्चे का रिक्शे वाला नहीं आ पाता तो वह अपनी मोटरसाइकिल से उस बच्चे को उस के घर तक छोड़ आता था. इस तरह अभिभावकों की नजरों में भी वह भलामानस बन गया था.

पिछले साल मुरादाबाद के ही रेती स्ट्रीट की रहने वाली आसिफा अपनी बेटी हमजा का छठी क्लास में दाखिला कराने के लिए एस.एस. चिल्ड्रन एकेडमी गई तो किसी वजह से वहां बेटी का एडमिशन नहीं हो रहा था. बाद में अजीम अहमद की मदद से हमजा का दाखिला उस स्कूल में हो गया. बेटी के एडमिशन के बाद आसिफा उस की अहसानमंद हो गई.

3, साढ़े 3 महीने पहले की बात है. एक दिन स्कूल की छुट्टी के बाद अजीम गेट की तरफ जा रहा था तो वहां हमजा खड़ी दिखाई दी. स्कूल के ज्यादातर बच्चे जा चुके थे. उसे अकेली देख कर अजीम ने उस से वहां खड़ी होने की वजह पूछी तो उस ने बताया कि उस का रिक्शे वाला अभी तक नहीं आया है. स्कूल का काम निपटाने के बाद अजीम मोटरसाइकिल से हमजा को ले कर उस के घर पहुंच गया.

प्यार के लिए अपहरण – भाग 1

हमजा और अयान पास की ही कनफैक्शनरी की दुकान से केक लेने गए थे. काफी देर होने के बाद भी वे घर नहीं लौटे तो मां आसिफा परेशान हो उठीं. घर से दुकान ज्यादा दूर नहीं थी. उतनी देर में बच्चों को आ जाना चाहिए था. वे कहीं खेलने तो नहीं लगे, यह सोच कर वह कनफैक्शनरी की दुकान की ओर चल पड़ी. उसे रास्ते में ही नहीं, दुकान पर भी बच्चे दिखाई नहीं दिए.

उस ने दुकानदार से बच्चों के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उस के बच्चे तो दुकान पर आए ही नहीं थे. यह सुन कर आसिफा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. क्योंकि बच्चे घर से शाम सवा 5 बजे निकले थे और उस समय 6 बज रहे थे. उसे बताए बगैर उस के बच्चे कहीं नहीं जाते थे. वह परेशान हो गई कि बच्चे कहां चले गए.

आसिफा के पति सऊदी अरब में थे. घर पर वह अकेली ही थी. इसलिए बच्चों के न मिलने से वह परेशान थी. उस ने बच्चों को इधरउधर गलियों में ढूंढ़ने के अलावा रिश्तेदारों और जानकारों को फोन कर के पूछा. लेकिन कहीं से भी उसे बच्चों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. यह 24 नवंबर, 2013 की बात है.

आसिफा के बच्चों के लापता होने की बात थोड़ी ही देर में मोहल्ले भर में फैल गई. हमदर्दी में सभी लोग अपनेअपने स्तर से बच्चों को इधरउधर ढूंढ़ने लगे. लेकिन तमाम कोशिश के बावजूद किसी को भी पता नहीं चल सका कि दुकान तक गए बच्चे आखिर कहां चले गए. बच्चों की तलाश कर के थक हार कर आसिफा मोहल्ले के लोगों के साथ रात 8 बजे के आसपास मुरादाबाद शहर की कोतवाली जा पहुंची. क्योंकि वह रेती स्ट्रीट मोहल्ले में रहती थी और यह मोहल्ला कोतवाली के अंतर्गत आता था.

आसिफा ने बच्चों के गायब होने की बात कोतवाली प्रभारी को बताई तो उन्होंने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया. दोनों बच्चों के गायब होने से आसिफा के दिल पर क्या बीत रही थी, इस बात को कोतवाली प्रभारी ने समझने के बजाए सीधा सा जवाब दे दिया कि बच्चे इधरउधर कहीं खेलने चले गए होंगे, 2-4 घंटे में खुद ही लौट आ जाएंगे.

कोतवाली प्रभारी की यह बात आसिफा को ही नहीं, उस के साथ आए लोगों को भी अच्छी नहीं लगी. लिहाजा सभी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आशुतोष कुमार के पास जा पहुंचे. जब उन लोगों ने 11 साल की हमजा और 6 साल के अयान के गायब होने की जानकारी उन्हें दी तो उन्होंने इस बात को गंभीरता से लिया. इस के बाद उन के आदेश पर कोतवाली में बच्चों की गुमशुदगी दर्ज कर के मामले की जांच शुरू कर दी गई.

जिस दुकान से बच्चे केक खरीदने गए थे, पुलिस उस दुकान के मालिक को पूछताछ के लिए कोतवाली ले आई. दुकानदार ने पुलिस को बताया कि वह सुबह से दुकान पर ही बैठा था, शाम तक उस के यहां कोई भी बच्चा केक खरीदने नहीं आया था.

बच्चों के पिता मोहम्मद शमीम सऊदी अरब में कोई बिजनैस करते थे, इसलिए पुलिस को इस बात की भी आशंका थी कि कहीं फिरौती के लिए तो नहीं बच्चों को उठा लिया गया. लेकिन अगर ऐसी बात होती तो अब तक फिरौती के लिए फोन आ गया होता. बच्चों की चिंता में आसिफा का रोरो कर बुरा हाल था. उस के निकट संबंधी उसे समझाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन आसिफा की चिंता कम नहीं हो रही थी.

एसएसपी आशुतोष कुमार भी कोतवाली पहुंच गए थे. वहीं पर उन्होंने एसपी सिटी महेंद्र सिंह यादव, क्षेत्राधिकारी रफीक अहमद को बुला कर कोतवाली प्रभारी के साथ मीटिंग की. रेती स्ट्रीट मोहल्ला अतिसंवेदनशील माना जाता है, इसलिए एसएसपी ने इस मामले को जल्द ही खोलने के निर्देश दिए, ताकि मोहल्ले के लोग किसी तरह का हंगामा न खड़ा करें.

क्षेत्राधिकारी रफीक अहमद ने आसिफा से किसी से दुश्मनी या रंजिश के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि इस तरह की उस के साथ कोई बात नहीं है. घूमफिर कर पुलिस को यही लग रहा था कि बच्चों का अपहरण शायद फिरौती के लिए किया गया है. इसीलिए पुलिस ने आसिफा से भी कह दिया था कि अगर किसी का फिरौती की बाबत फोन आता है तो वह फोन करने वाले से विनम्रता से बात करेगी और इस की जानकारी पुलिस को अवश्य देगी. रात के 10 बज चुके थे. लेकिन हमजा और अयान का कुछ पता नहीं चला था. बच्चों को ले कर आसिफा के दिमाग में तरहतरह के विचार आ रहे थे, जिस से वह काफी परेशान हो रही थी.

अपहरण की आशंका की वजह से पुलिस इलाके के आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को उठाउठा कर पूछताछ करने लगी. उन से भी बच्चों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

24 नवंबर की रात 11 बजे के आसपास एसएसपी आशुतोष कुमार को हरिद्वार के एसपी सिटी सुरजीत सिंह पंवार द्वारा मिली सूचना से काफी राहत मिली. सुरजीत सिंह पंवार ने उन्हें बताया था कि थाना श्यामपुर के रसिया जंगल में 11 साल की एक लड़की हमजा मिली है. उस के शरीर पर कुछ चोट के निशान हैं, लेकिन वह सकुशल है. पूछताछ में उस ने बताया है कि वह मुरादाबाद के मोहल्ला रेती स्ट्रीट की रहने वाली है.

एसएसपी ने यह खबर आसिफा को दी तो वह घर वालों के साथ कोतवाली पहुंच गई. हमजा हरिद्वार कैसे पहुंची, यह बात उस से बात कर के ही पता चल सकती थी. कोतवाली पुलिस रात में ही हरिद्वार के लिए रवाना हो गई और रात दो, ढाई बजे थाना श्यामपुर पहुंच गई.

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 2

मकान मालिक के पास नीरज शर्मा और उस की पत्नी अनीता का फोन नंबर तो था, लेकिन उस के घरपरिवार के बारे में उसे कुछ पता नहीं था. यह भी पता नहीं था कि वह नौकरी कहां करता था. तब पुलिस ने उस से पूछा कि उस ने उसे अपना मकान किस के कहने पर किराए पर दिया था. इस पर प्रदीप ने बताया कि उस ने पड़ोस में रहने वाले श्यामवीर के कहने पर अपना मकान किराए पर दिया था. वह भी फिरोजाबाद का ही रहने वाला था. शायद उसे नीरज के बारे में पता होगा. क्योंकि उस ने उसी की जिम्मेदारी पर अपना कमरा किराए पर दिया था.

श्यामवीर के बारे में पता किया गया तो वह गांव गया हुआ था. मकान मालिक से नीरज और अनीता के फोन नंबर मिल गए थे. लेकिन जब उन नंबरों पर फोन किया गया तो वे बंद थे. शायद उन्हें पता था कि मोबाइल फोन से पुलिस उन तक पहुंच सकती है, इसलिए उन्होंने फोन बंद कर दिए थे.

जब थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव को नीरज और अनीता तक पहुंचने का कोई भी सूत्र नहीं मिला तो उन्होंने फोरेंसिक टीम बुला कर जरूरी साक्ष्य जुटाए और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पोस्टमार्टम के बाद 2-3 दिनों तक लाश शिनाख्त के लिए रखी रही, लेकिन सड़ीगली लाश ज्यादा दिनों तक रखी भी नहीं जा सकती थी, इसलिए उस लावारिस लाश का अंतिम संस्कार करवा दिया गया.

जांच की जिम्मेदारी मिलते ही भानुप्रताप सिंह ने नीरज और अनीता के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए थे. लेकिन उन के फोन बंद होने की वजह से उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. श्यामवीर गांव से लौट कर आया तो उस से नीरज के घर का पता मिल गया. तब लोनी पुलिस ने फिरोजाबाद जा कर स्थानीय पुलिस की मदद से उस के घर छापा मारा. लेकिन वे दोनों वहां भी नहीं थे. वहां पता चला कि वे वहां आए तो थे, लेकिन कुछ दिनों बाद ही चले गए थे. वहां से जाने के बाद वह कहां है, यह किसी को पता नहीं था.

नीरज शातिर दिमाग है. अब तक यह सीनियर सबइंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह की समझ में आ गया था. लेकिन फिलहाल वह इस मामले में कुछ नहीं कर पा रहे थे. लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद थी कि एक न एक दिन उन दोनों के मोबाइल फोन जरूर चालू होंगे. और सचमुच ढाई महीने बाद अचानक अनीता का फोन चालू हुआ. साइबर एक्सपर्ट ने जांच अधिकारी भानुप्रताप सिंह को बताया कि अनीता ने अपने मोबाइल फोन में नया सिम डाल कर लोनी की ही रहने वाली किसी सुनीता को फोन किया था. इस के बाद वह फोन फिर बंद कर दिया गया था.

पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो मिली जानकारी के अनुसार वह नंबर सुनीता के नाम से ही लिया गया था. फोन भले ही बंद हो गया था, लेकिन पुलिस को उस तक पहुंचने का रास्ता मिल गया था. पुलिस ने उस नंबर वाली कंपनी से सुनीता का पता ले कर अगले ही दिन लोनी स्थित उस के घर छापा मार दिया.

सुनीता को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि अनीता उस की सहेली है और आजकल वह मोहननगर चौराहे के पास किराए के मकान में छिप कर रह रही है. लेकिन उसे यह पता नहीं था कि वह किस मकान में रह रही थी.

पुलिस के लिए इतनी जानकारी काफी थी. पुलिस ने मोहननगर चौराहे के आसपास अपने मुखबिरों का जाल बिछा दिया. इस का परिणाम पुलिस के लिए सुखद ही निकला. मुखबिरों ने कुछ ही दिनों में नीरज और उस की पत्नी अनीता को ढूंढ निकाला. इस के बाद मुखबिरों की सूचना पर थाना लोनी पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन्होंने राजेश्वर की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

राजकुमार अपनी पत्नी बिटई देवी और 4 बच्चों के साथ दिल्ली के दयालपुर की गली नंबर-3 में रहते थे. वह जिस मकान में रहते थे, वह उन का अपना था. गुजरबसर के लिए उन्होंने मकान के ऊपरी हिस्से में कपड़े की छपाई का कारखाना लगा रखा था. इस काम से इतनी आमदनी हो जाती थी कि उन्हें किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता था.

इसी कमाई से उन्होंने दोनों बड़ी बेटियों की शादी कर दी थी, जो अपनेअपने घरपरिवार की हो चुकी थीं. उन के बाद था बेटा राजेश्वर, जिस ने किसी तरह बारहवीं पास कर लिया था. वह उसे आगे पढ़ाना चाहते थे, लेकिन आगे पढ़ने की उस की हिम्मत नहीं हुई.

राजेश्वर ने पढ़ाई छोड़ दी तो राजकुमार उसे काम से लगाना चाहते  थे. राजकुमार के एक मित्र लोनी में रहते थे, जो उन्हीं की तरह कपड़ों की छपाई का काम करते थे. राजकुमार ने सोचा, बेटा उन के पास रहेगा तो मालिक की तरह रहेगा, इसलिए अगर उसे काम सिखाना है तो कहीं और ही भेजना ठीक रहेगा. इसलिए उन्होंने राजेश्वर को अपने उसी लोनी वाले दोस्त के यहां भेजना शुरू कर दिया.

राजेश्वर जहां जाता था, वहां तमाम लोग काम करते थे. उन्हीं में से एक फिरोजाबाद का रहने वाला नीरज शर्मा था. 35 वर्षीय नीरज शर्मा अच्छा कारीगर था. एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि वह छपाई के काम का उस्ताद था. लेकिन उस में एक कमी यह थी कि वह पक्का शराबी था.

चूंकि वह काम में माहिर था, इसलिए मालिक से ले कर साथ काम करने वाले तक उस की इज्जत करते थे. इतनी इज्जत मिलने के बावजूद शराब देखते ही उस के मुंह में पानी आने लगता था. फिर तो वह सारे कामधाम भूल कर शराब का हो जाता था. अधिक शराब पीने की वजह से उस का शरीर एकदम खोखला हो चुका था. सही बात तो यह थी कि अब वह शराब नहीं, बल्कि शराब उसे पी रही थी.

कुछ दिनों तक साथ काम करने के बाद राजेश्वर जान गया कि अगर नीरज से छपाई के गुर सीखने हैं तो इसे इस की पसंद शराब की दावत देनी पड़ेगी. यही सोच कर एक दिन वह शराब की बोतल ले कर उस के घर पहुंच गया. राजेश्वर को शराब की बोतल के साथ अपने घर आया देख कर नीरज की आंखों में चमक आ गई. उस ने उसे अंदर बुला कर प्यार से बैठाया.  राजेश्वर की आवभगत में नीरज की पत्नी अनीता ने भी पति का साथ दिया. राजेश्वर मजबूत कदकाठी का जवान और खूबसूरत लड़का था, इसलिए अनीता की नजरें उस पर जम गईं.

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 4

हर रोज सुबह को बीना के सासससुर रेस्टोरेंट पर चले जाते थे. थोड़ी देर बाद देवर सुनील भी रेस्टोरेंट पर चला जाता था. एंजल के स्कूल का समय भी वही होता था. उधर सुधीर भी अपने काम के लिए सुबह को निकलता था तो शाम को वापस लौटता था.  सब के जाने के बाद बीना घर में अकेली रह जाती थी. यह समय उस के लिए उपयुक्त था, इसलिए अगले दिन ही उस ने फोन कर के मृदुल को घर बुला लिया.

बातचीत हुई तो मृदुल बीना से बोला, ‘‘एक बार फिर सोच लो, तुम्हें बहुत कठिन परीक्षा से गुजरना होगा जिस में तुम्हें काफी कष्ट सहना पड़ेगा.’’

‘‘मैं अपने पति के लिए किसी भी परीक्षा से गुजरने को तैयार हूं. हर कष्ट सहूंगी मैं. आप बताइए मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘दरअसल, मैं काला जादू करूंगा. इस में थोड़ी तकलीफ तो होती है, पर रिजल्ट एक दम परफैक्ट आता है. अगर थोड़ा कष्ट सह सकती हो, तो कोई परेशानी ही नहीं है.’’

‘‘बताइए तो मुझे करना क्या होगा?’’

मृदुल ने कोई जवाब देने के बजाए पूरे मकान में घूम कर देखा. तभी उसे किचन में काफी ऊपर लगा लोहे का एक जंगला नजर आ गया. उसे देख कर वह बीना से बोला, ‘‘मैं इस जंगले में रस्सी बांध कर उस के दूसरे सिरे में फांसी का फंदा बनाऊंगा. वह फंदा गले में डाल कर तुम्हे स्टूल पर खड़ा होना पड़ेगा. फिर मैं तंत्रमंत्र से अपना काला जादू शुरू कर दूंगा. जब मंत्र पूरे हो जाएंगे तो तुम्हें यह कह कर पैर से स्टूल गिरा देना होगा कि मेरे पति के जीवन में कोई प्रेमिका न रहे. स्टूल गिरने से फांसी का फंदा तुम्हारे गले में कस जाएगा और तुम्हें तकलीफ होने लगेगी.’’

घबराई हुई बीना बड़े ध्यान से मृदुल की बात सुन रही थी. उसे शांत देख मृदुल बोला, ‘‘डरने की जरूरत नहीं है, तुम्हें जब ज्यादा तकलीफ होगी तो इशारा कर देना, मैं तुम्हें संभाल कर फंदा गले से निकाल दूंगा. इस क्रिया में होगा यह कि तुम्हारा गला घुटने से जितनी तकलीफ तुम्हें होगी, उस से चार गुना ज्यादा तकलीफ तुम्हारे पति की प्रेमिका को होगी. इस तरह मौत के डर से वह तुम्हारे पति का खयाल अपने मन से निकाल देगी.’’

एक पल रुक कर मृदुल बोला, ‘‘काले जादू का यह अनुष्ठान पूरे 40 दिन चलेगा, लेकिन रोजाना नहीं बल्कि हफ्ते में एक बार. अगर तुम तैयार हो तो हम आज से ही शुरू कर देते हैं. हां, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है. मैं हूं सब कुछ संभालने के लिए.’’

बीना डर तो रही थी, पर पति को बचाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. इसलिए बिना दूरगामी परिणाम सोचे उस ने हां कर दी. उस की स्वीकृति मिलते ही मृदुल ने जंगले में रस्सी बांध कर उस के दूसरे सिरे पर फांसी का फंदा बना दिया. इस के बाद उस ने बीना को स्टूल पर खड़ा कर के फंदा उस के गले में डाल दिया. शुरू में तो बीना को डर लग रहा था, लेकिन जब मृदुल उस के चारों ओर चक्कर लगा कर मंत्र पढ़ने लगा तो उस का डर कम हो गया.

करीब 20-25 मिनट का आडंबर रचने के बाद मृदुल ने बीना से स्टूल गिराने को कहा तो उस ने पैर से स्टूल गिरा दिया. स्टूल गिरते ही उस का गला रस्से के फंदे में फंस गया, लेकिन मृदुल ने फंदा कुछ इस तरह बनाया था कि उसे तकलीफ तो हो पर गला पूरी तरह न घुटे. इस तरह बीना ने 5-7 मिनट तकलीफ झेली, तत्पश्चात मृदुल ने उसे नीचे उतार लिया. यह सब आडंबर उस ने बीना का विश्वास जीतने के लिए किया था.

बीना का विश्वास जीतने के बाद मृदुल चला गया. बीना को उस पर किसी तरह का कोई संदेह नहीं था. इसी का लाभ उठा कर उस ने ऐसा 2 बार किया. अब बीना स्टूल को लात मार कर बेहिचक नीचे कूदने लगी थी. यानि मृदुल के लिए मैदान साफ था.

योजना पहले ही तैयार थी. 8 जून को रविवार था. उस दिन बीना का फोन आया तो मृदुल शाम 7 बजे अपने पिता श्याम कुमार और मनीष धूसिया के साथ उस के पास पहुंच गया. मनीष को उस ने इसलिए बाहर छोड़ दिया ताकि वह बाहर नजर रख सके. अपने पिता श्याम कुमार के साथ वह अंदर चला गया.

उस दिन मृदुल ने बीना से कहा, ‘‘आज आखिरी पूजा है, इसलिए मैं अपने चेले को भी साथ लाया हूं. आज काम हो जाएगा और अब किसी पूजा पाठ या तंत्रमंत्र की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’ सुन कर बीना खुश हो गई. उस दिन भी मृदुल ने पूरी क्रिया दोहराई, लेकिन इस से पहले उस ने रस्सी में बने फांसी के फंदे को थोड़ा ढीला कर के ऐसा बना दिया था कि बीना के बचने की कोई गुंजाइश न रहे. इस बार बीना को न बचाना था, न वह बच सकी. मृदुल और श्याम कुमार के सामने ही उस ने छटपटाते हुए दम तोड़ दिया.

बीना के घर आनेजाने के चक्कर में मृदुल को यह पता चल गया था कि थोड़ी सी कोशिश कर के जीने की कुंडी अंदर की तरह बाहर से भी खोली और बंद की जा सकती है. जाते वक्त उस ने इसी का लाभ उठाया. अपना काम कर के बाप बेटे मनीष धूसिया को ले कर वहां से फार हो गए.

पूरी कहानी पता चलने के बाद पुलिस ने मनीष धूसिया, रूबी यादव और तांत्रिक अकबर शाह उर्फ शाकिर अली को भी गिरफ्तार कर लिया. श्याम कुमार को शुक्लागंज उन्नाव से पकड़ा गया. सभी आरोपियों को पुलिस ने 15 जुलाई को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. फिलहाल सभी जेल में हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 1

उत्तरपूर्वी दिल्ली के दयालपुर की गली नंबर 3 के रहने वाले राजकुमार का बेटा राजेश्वर उर्फ मोनी देर रात तक घर लौट कर नहीं आया तो उन्हें बेटे की चिंता हुई. उस का फोन भी बंद था, इसलिए यह भी पता नहीं चल रहा था कि वह कहां है. उन्होंने उस के बारे में जानने की काफी कोशिश की, न जाने कितने फोन कर डाले, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

जब उन्हें बेटे के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उन का जी घबराने लगा. एक बाप के लिए जवान बेटे का इस तरह लापता होना कितना दुखदाई हो सकता है, यह बात हर बाप को पता होगी. राजकुमार भी परेशान थे, क्योंकि वही उन का भविष्य था.  जब राजेश्वर का कहीं कुछ पता नहीं चला तो उन की बेचैनी बढ़ने लगी. अचानक आई इस आफत में उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें. संयोग से उस समय घर में वही अकेले थे. घर के बाकी लोग शादी के चक्कर में बनारस गए हुए थे.

जब राजकुमार का धैर्य जवाब देने लगा तो उन्होंने राजेश्वर के गायब होने की सूचना पत्नी बिटई देवी को दी. उन्हें जैसे ही यह जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत गाड़ी पकड़ी और दिल्ली आ गईं. इस बीच दिल्ली में रहने वाले कुछ रिश्तेदार उन के घर आ गए थे.

राजकुमार और उन के रिश्तेदारों ने राजेश्वर की खोज में दिनरात एक कर दिया, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. अपने हिसाब से खोजतेखोजते 4 दिन बीत गए. लेकिन उस के बारे में कुछ पता न चलने से उन की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया.

23 अप्रैल, 2014 की दोपहर को राजकुमार अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना खजूरी खास पहुंचे और थानाप्रभारी को प्रार्थनापत्र दे कर बेटे की गुमशुदगी दर्ज करने की प्रार्थना की. थाना खजूरी खास के थानाप्रभारी ने राजेश्वर की गुमशुदगी दर्ज कर के राजकुमार को आश्वासन भी दिया कि वह जल्दी से जल्दी उन के बेटे का पता लगाने का प्रयास करेंगे. लेकिन जैसा कि आमतौर पर होता है कि पुलिस गुमशुदगी तो दर्ज कर लेती है, लेकिन खोजने की कोशिश नहीं करती, ऐसा ही इस मामले में भी हुआ. पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर के समझ लिया था कि उस का फर्ज पूरा हो चुका है.

29 अप्रैल, 2014 दिन रविवार को सुबहसुबह राजकुमार को कहीं से पता चला कि 23 अप्रैल को थाना लोनी पुलिस ने एक मकान से एक युवक की लाश बरामद की थी. यह जानकारी होते ही राजकुमार पत्नी बिटई देवी को साथ ले कर थाना लोनी जा पहुंचे कि कहीं वह लाश उन के बेटे की तो नहीं थी.

उन्होंने थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव के सामने राजेश्वर का फोटो रख कर कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम राजकुमार है. यह मेरे बेटे राजेश्वर उर्फ मोनी की फोटो है, जो पिछले 10 दिनों से गायब है. मैं ने थाना खजूरी खास में इस की गुमशुदगी भी दर्ज करा रखी है. आज सुबह ही मुझे पता चला है कि 23 तारीख को आप ने एक मकान से एक लड़के की लाश बरामद की थी. मैं उसी के बारे में पता करने आया हूं.’’

थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने फोटो ले कर गौर से देखा. उस के बाद एक सिपाही को बुला कर कहा कि पुलिस चौकी लालबाग के प्रभारी एसआई विजय सिंह को फोन कर के कहो कि वह 23 तारीख को राजनजर कालोनी में मिली लाश के कपड़े और फोटो ले कर तुरंत थाने आ जाएं.

थोड़ी देर बाद सबइंसपेक्टर विजय सिंह थाने आए तो उन्होंने जो कपड़े और लाश के फोटो राजकुमार और बिटई देवी को दिखाए, उन्हें देखते ही वे दोनों रोने लगे. इस का मतलब था कि राजनगर कालोनी में मिली वह लाश राजकुमार के 25 वर्षीय बेटे राजेश्वर उर्फ मोनी की थी. जवान बेटे की हत्या हो जाने से राजकुमार और बिटई देवी का बुरा हाल था. साथ आए लोगों ने किसी तरह उन्हें संभाला.

थाना लोनी पुलिस ने लाश की शिनाख्त न होने की वजह से अब तक मुकदमा दर्ज नहीं किया था. राजकुमार ने लाश की शिनाख्त कर दी तो उन की ओर से थानाप्रभारी ने हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर इस मामले की जांच इंद्रापुरी चौकीप्रभारी सबइंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह को सौंप दी.

दरअसल, 23 अप्रैल, 2014 की सुबह थाना लोनी पुलिस को गाजियाबाद की राजनगर कालोनी के रहने वाले प्रदीप उर्फ बबलू ने सूचना दी थी कि उन के मकान के एक किराएदार के कमरे से बहुत ज्यादा बदबू आ रही है. उस कमरे में रहने वाला किराएदार कमरे में ताला बंद कर के 3 दिनों से गायब है. बदबू किसी जानवर के सड़ने जैसी है.

यह सूचना मिलते ही थाना लोनी के थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव पुलिस बल के साथ राजनगर कालोनी पहुंच गए थे. उन्होंने उस कमरे का ताला तोड़वा कर अंदर प्रवेश किया तो कमरे में एक युवक की लाश पड़ी मिली. गरमी की वजह से वह फूल कर काफी हद तक सड़ गई थी. मृतक के शरीर पर किसी भी तरह की चोट का निशान नजर नहीं आ रहा था. इस से अनुमान लगाया गया कि हत्या जहर दे कर या गला दबा कर की गई थी.

थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने मकान मालिक प्रदीप से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के इस कमरे में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद का रहने वाला नीरज शर्मा रहता था. उस ने उसे यह कमरा 15 सौ रुपए महीने के किराए पर उसी महीने की 3 तारीख को दिया था. इस में वह अपनी पत्नी अनीता और 3 बच्चों के साथ रहता था.

प्रदीप से मृतक के बारे में पूछा गया तो वह उस के बारे में कुछ नहीं बता सका. मकान के अन्य किराएदार भी उस के बारे में कुछ अधिक नहीं बता सके. उन्होंने इतना जरूर बताया कि मृतक नीरज के घर अकसर आता रहता था. सुबह वह नीरज की पत्नी अनीता को मोटरसाइकिल पर बैठा कर निकल जाता था तो शाम को ही पहुंचाने आता था. इस से पुलिस को लगा कि यह हत्या अवैध संबंधों की वजह से हुई है.