दो प्रेमियों की बेरहम जुदाई : जब प्यार बन गया जहर

हसनप्रीत सिंह लाइब्रेरी में अपने सामने अखबार फैलाए बैठा था. फिर भी उस का सारा ध्यान सीढि़यों की तरफ ही लगा हुआ था. सीढि़यों पर जैसे ही किसी के आने की आहट होती, वह चौकन्ना हो कर उधर देखने लगता. उसे पूरी उम्मीद थी कि रमनदीप कौर जरूर आएगी. दरअसल वह खुद ही तयशुदा वक्त से 15-20 मिनट पहले आ गया था.

कस्बे में उन दोनों की मुलाकातें न के बराबर ही हो पाती थीं. सारा दिन एकदूसरे के लिए तड़पते रहने के बावजूद वे 10-15 दिनों में एकाध बार, बस 3-4 मिनट के लिए ही मिल पाते थे. इस छोटी सी मुलाकात के दौरान भी आमतौर पर उन में आपस में कोई बात नहीं हो पाती थी.

उन की बातचीत का माध्यम वे पर्चियां ही रह गई थीं, जो एकदूसरे को लिखा करते थे. इन्हीं पर्चियों में वे अपनी सब भावनाएं, अपने सब दर्द उड़ेल दिया करते थे. इन्हीं पर्चियों में उन की अगली मुलाकात की जगह और उस का वक्त तय होता था.

दरअसल, खेमकरण जैसे छोटे से उस कस्बे में लड़केलड़की का आपस में बात करना इतना आसान नहीं था. फिर बात जब एक ही गांव और एक ही बिरादरी की हो तो और भी मुश्किलें पैदा हो जाती हैं.

बात तो कहीं न कहीं की जा सकती थी, पर बात करने की खबर पूरे कस्बे में फैलते देर नहीं लगती थी. कम उम्र होने के बावजूद लड़केलड़की में इतनी समझ थी कि वे न तो अपनी और न अपने घर वालों की बदनामी होने देना चाहते थे.

इसलिए जब भी वे मिलते तो यही कोशिश करते कि बात न की जाए. हां, कभीकभार मौका मिल जाने पर एकाध वाक्य का आदानप्रदान हो जाया करता था. बावजूद इतनी सावधानी के आखिर एक दिन उन की चोरी पकड़ी गई और उस दिन दोनों के घर में जो तूफान उठा, वह बड़ा भयानक था. दरअसल, उन के मोहल्ले के किसी आदमी ने दोनों को एक साथ देख कर उन के घर शिकायत कर दी थी.

हसनप्रीत सिंह के पिता परविंदर सिंह भारतपाक सीमा पर बसे कस्बा खेमकरण सेक्टर के वार्ड-2 में रहते थे. परविंदर सिंह के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा अर्शदीप सिंह जो शादीशुदा था और छोटा बेटा 21 वर्षीय हसनप्रीत, जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता के साथ खेतीबाड़ी करता था.

जाट परिवार से संबंधित परविंदर सिंह के पास कई एकड़ उपजाऊ भूमि है और उन की गिनती बड़े किसानों में होती थी. उन के पास धनदौलत, ऐश्वर्य किसी चीज की कमी नहीं थी.

वहीं रमनदीप कौर के पिता जस्सा सिंह की गिनती भी बड़े किसानों में होती थी. उन के पास भी कई एकड़ उपजाऊ भूमि और सुखसुविधाओं का सभी सामान था. जस्सा सिंह का परिवार परविंदर के घर से कुछ दूरी पर वार्ड नंबर-2 में ही रहता था. दोनों परिवारों में अच्छा मेलमिलाप था पर वर्चस्व को ले कर कभीकभार कहासुनी हो जाती थी.

बहरहाल, हसनप्रीत अखबार सामने रखे अपने आसपास बैठे लोगों पर भी नजर रखे हुए था. यह ध्यान रखना बेहद जरूरी था कि उन लोगों में से कोई उस की जानपहचान का न हो. साथ ही इस बात का भी खयाल रखना जरूरी था कि वहां बैठे किसी आदमी को उस पर यह शक न हो जाए कि वह वहां अखबार पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि किसी और इरादे से आया है.

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एक समस्या और भी थी. सामने के किताबों से भरी अलमारियों वाले कमरे में लाइब्रेरियन के अलावा कई लोग मौजूद थे. उस कमरे में लोगों का आनाजाना भी लगा रहता था.

हसन और रमनदीप की मुलाकात करीब 2 साल पहले एक शादी में हुई थी. 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद हसन एग्रीकल्चर का डिप्लोमा कर के पिता के साथ अपने खेतों में आधुनिक तरीके से खेती का काम करने लगा था.

रमनदीप कौर सामान्य कद की गोरी लेकिन साधारण सी लड़की थी. उस की यही साधारणता उस के आकर्षण का कारण थी, जिस पर हसनप्रीत पूरी तरह कुरबान था.

शहर में 2 लाइब्रेरियां थीं. एक तो बहुत छोटी थी, जिस में मात्र 4-6 लोग बड़ी मुश्किल से बैठ पाते थे. वहां मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता था. हां, यह दूसरी लाइब्रेरी काफी बड़ी थी.

वे लोग इसी लाइब्रेरी में मिला करते थे. अब दोनों कोडवर्ड के जरिए मिलने की जगह, तारीख और समय तय कर लेते और इस तरह 10-15 दिनों में एक बार मिला करते.

इन्हीं मुलाकातों में वे भावनाओं से लबालब अपनीअपनी पर्चियां किसी न किसी तरीके से एकदूसरे को पकड़ा दिया करते थे. उस दिन उन का मिलना भी इसी तरह एक चिट्ठी के जरिए तय हुआ था.

हसनप्रीत की नजरें बारबार अपनी कलाई घड़ी से टकरातीं. तय वक्त से पूरे 7 मिनट ऊपर हो चुके थे. वह मायूस हो चुका था. उसे लगने लगा था कि अब रमन नहीं आएगी.

तभी हाथ में एक छोटा सा लिफाफा पकड़े रमन सीढि़यों पर नजर आई. बेंच पर संयोगवश हसनप्रीत के पास वाली जगह खाली थी, जहां आ कर रमन बैठ गई. आसपास इतने लोग बैठे थे कि बात करना बिलकुल असंभव लग रहा था. हसनप्रीत के दिल में तूफान सा मचल रहा था.

लाइब्रेरी में जमे तल्लीनता से अखबार पढ़ रहे लोगों के बीच पसरी चुप्पी के बावजूद बात करना कतई संभव नहीं लग रहा था. हसन ने कनखियों से रमन की ओर देखा. वह भी अखबार सामने रखे हुए उसे पढ़ने का नाटक करने लगी. इसी उधेड़बुन में कई मिनट बीत गए.

हसनप्रीत बड़ी बेचैनी सी महसूस कर रहा था. इस से पहले ऐसे कई मौके आए थे, जब वे इस तरह लाइब्रेरी में मिले थे और आपस में उन की कोई बात नहीं हो पाई थी. पर उन के लिए आज का दिन तो विशेष था.

रमन ने कोई खास बात करने के लिए हसन को बुलाया था. आखिर अपने चारों ओर देखने के बाद रमन ने चौकन्ने हो कर धीमे स्वर में कहा, ‘‘हसन, मेरे पिताजी किसी भी सूरत में हमारी शादी के लिए तैयार नहीं होंगे, इसलिए तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘अपने प्यार को भूलना क्या इतना आसान होता है? तुम भी पागलों जैसी बातें करती हो.’’ हसन ने रोआंसे हो कर कहा, ‘‘देखो मेरे पिता को देखो, वह मेरी खुशी की खातिर तुम्हें अपनी बहू बनाने को तैयार हो गए हैं. क्या तुम्हारे पिताजी मुझे अपना दामाद स्वीकार नहीं कर सकते?’’

‘‘यही तो विडंबना है मेरे भाग्य की. तुम्हारी जुदाई शायद मेरा नसीब है.’’

‘‘तुम भी बेकार की बातें करती हो. इंसान को अपनी कोशिश तब तक जारी रखनी चाहिए जब तक उस की समस्या का समाधान नहीं हो जाता.’’ हसनप्रीत ने रमन को हौसला बंधाते हुए कहा.

‘‘तुम पुरुष हो और तुम्हारे लिए ऐसी बातें करना सहज है, लेकिन मैं लड़की हूं. मैं इस समाज का और अपने परिवार का सामना नहीं कर सकती.’’

रमन के ये वाक्य उस के टूटे हृदय की वेदना और उस की हार की निशानी थे, जिसे हसनप्रीत ने स्पष्ट महसूस किया. इसलिए उस ने ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘एक काम करो, तुम सारी बातें उस वाहेगुरु पर छोड़ दो. अगर हमारा प्यार सच्चा है और इरादा पक्का है तो मुझे पूरा विश्वास है कि सच्चे पातशाह हमारी मदद जरूर करेंगे. वही कोई न कोई रास्ता निकालेंगे. बस तुम विश्वास रखना.’’

बातचीत के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए.

जस्सा सिंह और उस के भाइयों को जिस दिन से यह खबर लगी थी कि परविंदर का छोटा बेटा हसनप्रीत उन की बेटी रमनदीप में दिलचस्पी ले रहा है, उन्होंने उसी दिन से रमन पर नजर रखनी शुरू कर दी थी. यहां तक कि उसे किसी काम से अपने घर के सामने रहने वाले अपने चाचा के घर भी अकेले जाने की इजाजत नहीं थी.

ऐसे में हसन से मिलना तो बिलकुल संभव ही नहीं था, इसीलिए अपनी आखिरी मुलाकात में वह हसन को स्पष्ट कह आई थी कि शायद अब दोबारा मिलना कभी संभव न हो.

हसनप्रीत के कहने पर रमनदीप ने अपने जीवन की बागडोर वाहेगुरु के हाथों में सौंप दी थी और आने वाले समय का बड़ी बेसब्री से इंतजार करने लगी थी. हसन ने भी अपने आप को वाहेगुरु की मरजी के हवाले कर दिया था. अब उन की मुलाकातें लगभग समाप्त हो गई थीं.

दूसरी ओर जस्सा सिंह और उन के परिवार के दिमाग में यह फितूर अभी तक बना हुआ था. उन्हें हर समय यह संदेह घेरे रहता था कि हसन अब भी उन की लड़की से मिलताजुलता है. वह किसी न किसी बहाने से हसन और उस के परिवार को सबक सिखाने के लिए उतावले रहते थे.

13 मई, 2018 की बात है. शाम के लगभग 4 बजे का समय होगा. परविंदर ने अपने बेटे हसन से कहा कि वह बाड़े में जा कर पशुओं को चारा डाल आए. परविंदर के पास कई दुधारू पशु थे. उस ने पशुओं के लिए अपने घर के बाहर एक बाड़ा बना रखा था.

वह बाड़ा जस्सा सिंह के घर की तरफ था और पशुओं को प्रतिदिन चारा डालने की जिम्मेदारी हसन की थी. 13 तारीख रविवार की शाम 4 बजे भी वह रोज की तरह पशुओं को चारा डालने बाड़े में गया.

पशुओं को चारा डाल कर हसन लगभग 2 घंटे में लौट आता था, लेकिन उस दिन देर रात गए जब वह वापस नहीं लौटा तो परविंदर को उस की चिंता हुई. उन्होंने अपने बड़े बेटे अर्शदीप के साथ जा कर बाड़े में देखा तो हैरान रह गए. पशु चारे के बिना भूख से बिलबिला रहे थे.

इस का मतलब हसन बाड़े में आया ही नहीं था. परविंदर ने मन ही मन कुढ़ते हुए अर्शदीप से कहा, ‘‘बहुत लापरवाह लड़का है, भूखे पशुओं को छोड़ कर न जाने कहां आवारागर्दी कर रहा है. आज इस की खबर लेनी पड़ेगी.’’

इस के बाद दोनों बापबेटे ने मिल कर पशुओं को चारा खिलाया और हसन की तलाश शुरू कर दी. परविंदर के भाइयों को इस बात का पता चला तो वे भी हसन की तलाश में जुट गए.

सब को इस बात का आश्चर्य था कि आज से पहले हसन ने इस तरह की हरकत कभी नहीं की थी, फिर ऐसा क्या हुआ कि जो वह बिना कुछ बताए घर से लापता हो गया था. बहरहाल, रात भर हसन की तलाश की जाती रही पर उस की कहीं कोई खोजखबर नहीं मिली.

अगले दिन सुबह परविंदर सिंह को उन की रिश्तेदारी में लगते भाई दया सिंह ने आ कर बताया कि उस के लड़के हसन को जस्सा सिंह का परिवार पकड़ कर अपने घर ले गया है. उसे यह खबर किसी ने बताई थी. बताने वाले ने कहा था कि जिस समय हसन पशुओं को चारा डालने बाड़े की ओर जा रहा था तो उस ने देखा, जस्सा सिंह और उस के भाई हसन को अपने साथ अपने घर की ओर ले जा रहे थे.

यह पता चलते ही परविंदर, उस का बेटा अर्शदीप और उन के रिश्तेदार जस्सा सिंह के घर पहुंचे पर जस्सा सिंह ने हसन के वहां होने से साफ इनकार कर दिया. इतना ही नहीं, उस ने परविंदर और उन के साथ आए लोगों की बेइज्जती कर के अपने घर से भगा दिया.

जस्सा सिंह के ऐसे व्यवहार से परविंदर सिंह का शक विश्वास में बदल गया. किसी अनहोनी के डर से उन का तनमन बुरी तरह कांप उठा. वह वहीं से सभी लोगों के साथ थाना खेमकरण पहुंचे और थानाप्रभारी बलविंदर सिंह को हसनप्रीत के लापता होने की पूरी घटना बता कर जस्सा सिंह और उस के परिवार पर संदेह जताया.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने परविंदर की पूरी शिकायत सुनने के बाद उन के लिखित बयान दर्ज किए और एएसआई चरण सिंह, दर्शन सिंह, हैडकांस्टेबल दिलबाग सिंह, बलविंदर सिंह, इंदरजीत सिंह, मेजर सिंह, तरलोक सिंह और दलविंदर सिंह को साथ ले कर जस्सा सिंह के घर जा पहुंचे.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह द्वारा हसन के बारे में पूछने पर जस्सा सिंह ने बताया कि उन्होंने तो कई दिनों से हसन को नहीं देखा. इस के बाद थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने रमनदीप कौर के बारे में पूछा तो जस्सा सिंह ने बताया कि वह रिश्तेदारी में गई हुई है.

कहां गई है, यह पूछने पर वह बगलें झांकने लगा. इस से थानाप्रभारी बलविंदर सिंह का संदेह गहरा गया. उन्होंने परिवार के हर सदस्य से जब अलगअलग पूछताछ की तो सब के बयान एकदूसरे से भिन्न थे.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने अब वहां ठहरना उचित नहीं समझा और पूछताछ के लिए सब को हिरासत में ले कर थाने आ गए. थाने पहुंच कर जब सब से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उन लोगों ने मिल कर हसनप्रीत और रमनदीप कौर की हत्या कर के उन दोनों की लाशों को छिपा दिया है.

अपराध स्वीकृति के बाद थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने एसएसपी (तरनतारन) दर्शन सिंह मान को इस हत्याकांड की सूचना दे दी. उन के निर्देश पर जस्सा सिंह, उस की पत्नी मंजीत कौर और बेटा आकाश, उस के भाई हरपाल सिंह, शेर सिंह, मनप्रीत कौर, शेर सिंह के बेटे राणा और एक रिश्तेदार धुला सिंह को गिरफ्तार कर लिया.

इन सभी के खिलाफ भादंसं की धारा 302, 364, 201, 148, 149 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. हसनप्रीत सिंह और रमनदीप कौर की हत्या के अपराध में पुलिस ने इन सभी को सक्षम अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

पूछताछ के दौरान अभियुक्तों ने बताया कि दोनों की हत्या करने के बाद रमनदीप कौर का शव जस्सा सिंह के घर के सामने रहने वाले उस के भाई हरपाल सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपा दिया है, जबकि हसन की लाश को उन्होंने जस्सा सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपा दी ाि.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने अभियुक्तों की निशानदेही पर एसएसपी दर्शन सिंह मान और पट्टी के एसडीएम सुरिंदर सिंह की मौजूदगी में दोनों घरों से हसन और रमनदीप की लाशें बरामद कर के उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह 2 प्रेमियों को जुदा करने की क्रूरता भरी दास्तां थी.

हसनप्रीत सिंह और रमनदीप कौर दोनों एकदूसरे से बेहद प्रेम करते थे और शादी करना चाहते थे. लेकिन जस्सा सिंह को यह बात किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं थी. उस ने अपनी बेटी पर पहरा बैठा दिया था. उस का घर से बाहर तक निकलना बंद करवा दिया गया था.

पर इस के बावजूद जस्सा के मन में यह बात कहीं घर कर गई थी कि एक न एक दिन हसन उस की बेटी को भगा ले जाएगा या उस की बेटी घर वालों को धोखा दे कर हसन के साथ भाग कर शादी कर लेगी.

जस्सा को अपनी मूंछों पर बड़ा गर्व था, वह नहीं चाहता था कि बेटी को ले कर कभी उसे अपनी मूंछें नीची करनी पड़ें. इसलिए वह इस किस्से को ही जड़ से खत्म करना चाहता था.

उस का सोचना था कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी, इसलिए वह मौके की तलाश में रहने लगा. अपने भाइयों के साथ मिल कर हसन की हत्या की योजना वह बहुत पहले ही बना चुका था.

सो 13 मई की शाम जब हसन अपने पशुओं को चारा डालने बाड़े की ओर जा रहा था तो जस्सा सिंह और उस के भाई हरपाल ने उसे रास्ते में रोक लिया और कोई बात करने का बहाना बना कर अपने घर ले गए.

उन के घर पहुंचने पर घर की औरतों मंजीत कौर और मनप्रीत कौर ने घर का मुख्यद्वार बंद कर दिया और हसन से बिना कोई बात किए, बिना कोई मौका दिए ट्रैक्टर की लोहे की रौड उठा कर उस के सिर पर दे मारी.

अचानक हुए इस हमले से हसन चक्कर खा कर जमीन पर गिर गया. रमनदीप कौर अपने कमरे से यह सब देख रही थी. अपने प्रेमी की यह हालत देख वह उस का बचाव करने के लिए भागती हुई आई तो जस्सा सिंह ने उसी रौड का एक जोरदार वार उस के सिर पर भी कर दिया और चीखते हुए बोला, ‘‘अपने यार को बचाने आई है, अब तू भी मर.’’

इस के बाद सब ने मिल कर हसन और रमन पर रौड से तब तक प्रहार किए, जब तक उन के प्राण नहीं निकल गए.

2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद रमनदीप कौर का शव जस्सा सिंह के घर के सामने रहने वाले उस के भाई हरपाल सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपाया गया और हसन की लाश को जस्सा सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में.

पुलिस रिमांड के दौरान अभियुक्तों की निशानदेही पर वह लोहे की रौड भी बरामद कर ली गई, जिस से दोनों प्रेमियों की हत्या की गई थी. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने इस हत्याकांड से जुड़े सभी आठों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जिला जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मृतक पहुंचा सलाखों के पीछे – भाग 3

यह आइडिया आते ही सुदेश ने दिमाग लगाना शुरू कर दिया कि वह खुद को इसी तरह जेल जाने से बचा सकता है. सुदेश ने जब अपनी पत्नी को दिल की बात बताई तो थोड़ी नानुकुर के बाद अनुपमा को भी यह बात पसंद आ गई. वैसे भी कौन पत्नी नहीं चाहेगी कि उस का पति जेल जाने से बच जाए.

काफी विचारविमर्श के बाद सुदेश व अनुपमा ने इस काम के लिए एक मजदूर का इंतजाम करने के लिए अपनी छत को ठीक कराने का बहाना बनाया. इस के लिए सुदेश 18 नवंबर, 2021 को लेबर चौक गया और अपनी कदकाठी के एक मजदूर, जिस का नाम दोमन रविदास था और वह बिहार के गया जिले के अतरी का रहने वाला था, को ले आया.

18 नवंबर को सुदेश ने पहले दिन अपनी छत की स्लैब डलवाई. मजदूर रविदास के कपडे़ काफी पुराने व फटी हालत में थे लिहाजा सुदेश ने उसे अपना ट्रैकसूट पहनने के लिए दे दिया जिस की जर्सी कौफी कलर की थी और लोअर नीले रंग का था.

अगले दिन भी काम होना था, इसलिए सुदेश ने रविदास को अगले दिन फिर आने के लिए कहा.

19 नवंबर को दोमन रविदास उसी के कपड़े पहन कर फिर काम पर आया. शाम होतेहोते जब काम खत्म हो गया तो शाम को दारू पार्टी के बहाने रोक लिया. दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. इस दौरान सुदेश खुद कम शराब पीता रहा जबकि उस ने रविदास को बड़ेबड़े पैग पिलाने शुरू कर दिए.

रात करीब 9 बजे रविदास को खूब नशा हो गया. इस दौरान सुदेश और उस अनुपमा ने पहले ही तय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है. इस दौरान उन्होंने चारपाई के पाये से रविदास के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर हत्या कर दी.

यह बात बेटे सुनील को पता नहीं चले इसलिए उस ने सुनील को अपनी परचून की दुकान पर बैठने के लिए भेज दिया था.

सुदेश ने पहले ही तय कर लिया था कि वे रविदास की हत्या कर उसे सुदेश के रूप में अपनी पहचान देगा. इसीलिए एक दिन पहले उस ने अपना ट्रैकसूट रविदास को पहनने के लिए दिया था. खुद को वह दुनिया की निगाहों में मुर्दा करार दे सके, इस के लिए भी उस ने पूरी प्लानिंग कर ली थी.

सुदेश व अनुपमा को जब इत्मीनान हो गया कि रविदास की मौत हो चुकी है तो कमरे को पानी से साफ कर उस के शव को पहले एक पन्नी में लपेटा. उस के बाद उसे बोरी में भर दिया.

रात को करीब 11 बजे जब इलाके में सन्नाटा पसर गया और उस का बेटा भी सो गया तो सुदेश बोरे में भरे रविदास के शव को साइकिल पर रख कर लोनी बौर्डर थाना क्षेत्र की इंद्रापुरी कालोनी में खाली प्लौट में ले गया.

वहां शव को बोरी से निकाल कर उस के चेहरे और शरीर के ऊपरी हिस्से पर अखबार के कागज व टाट की बोरी रख कर जला दिया ताकि शव की पहचान न हो सके.

शव की पहचान सुदेश के रूप में कराने के लिए उस ने अपना आधार कार्ड रविदास की जेब में रख दिया था. पहले से तय योजना के मुताबिक सुदेश अपने घर गया और पत्नी को आ कर बताया कि जब पुलिस उस से रविदास के शव की शिनाख्त कराए तो वह उस की पहचान कर ले.

सुदेश की पूरी प्लानिंग थी कि वह रविदास को सुदेश साबित कर दे, इसलिए पत्नी के साथ बनी योजना के तहत वह इस के बाद चोरीछिपे देर रात में ही घर आता और इस के अलावा इधरउधर छिप कर अपना वक्त बिताता था.

10 दिसंबर को सुदेश ने अपनी पत्नी को फोन कर के कहा कि वह रात को घर आएगा घर की लाइट जला कर रखना. यदि सब कुछ ठीक हो तो गेट पर सफेद कपड़ा डाल देना. यह बात पुलिस ने सर्विलांस के दौरान सुन ली और पुलिस पहले से आरोपी की तलाश में उस के घर पहुंच गई और लाइट जला कर गेट पर सफेद कपड़ा डाल दिया.

सुदेश के पहुंचते ही पुलिस ने आरोपी व उस की पत्नी को दबोच लिया.

पूछताछ में सुदेश ने बताया कि जेल और सजा से बचने के लिए उस ने खौफनाक घटना को अंजाम दिया था. जेल जाने से बचने के लिए उस ने अपनी पत्नी के साथ मिल कर यह साजिश रची थी. लेकिन उस ने पहली भूल यह कर दी कि काफी प्रयास के बाद भी अपने ही कदकाठी के मजदूर को नहीं तलाश सका था.

सुदेश और अनुपमा की साजिश यह थी कि इस साजिश के पूरा होने पर वे दिल्ली छोड़ कर चले जाएंगे, लेकिन आखिरकार उस के बिना जले आधार कार्ड, सीसीटीवी कैमरे की तसवीरों और दूसरे सबूतों ने उस की खौफनाक साजिश का खुलासा कर दिया.

इस दौरान पुलिस ने करावल नगर थाने और मंडोली जेल से रिकौर्ड निकलवा कर पता कर लिया था कि सुदेश की हाइट 5 फुट 6 इंच है जबकि इंद्रापुरी इलाके में जो शव मिला था, उस की हाइट 5 फुट 3 इंच थी यानी 3 इंच कम.

इसी के बाद पुलिस ने सुदेश के घर की निगरानी शुरू की. उस की पत्नी के फोन को सर्विलांस पर लगाया और वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

पुलिस ने सुदेश के साथ उस की पत्नी को भी डोमन रविदास की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर हत्या में प्रयुक्त चारपाई का पाया व शव को ठिकाने लगाने वाली साइकिल बरामद कर ली.

सुदेश व अनुपमा की गिरफ्तारी के बाद मुकदमे में भादंवि की धारा 201, 419, 420 व 120बी जोड़ कर उन्हें अदालत में पेश कर दिया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

दूसरी तरफ लोनी बौर्डर पुलिस ने मृतक मजूदर डोमन रविदास की करावल नगर थाने में दर्ज गुमशुदगी को अपने यहां ट्रांसफर करवा ली. रविदास के साथियों के साथ जा कर रविदास के बेटे ने थाना करावल नगर दिल्ली में जा कर घटना के 3 दिन बाद गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

—कथा पुलिस की जांच और आरोपियों तथा पीडि़त परिवार से बातचीत पर आधारित

मृतक पहुंचा सलाखों के पीछे – भाग 2

उस ने इस घटना के बाद मार्च 2018 में वंशिका की हत्या कर उस के शव को मंडोला में आवासविकास कालोनी के पास खाली जमीन में फेंक दिया. इस के बाद उस ने करावल नगर थाने में बेटी की गुमशुदगी की भादंवि की धारा 363 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

बाद में वंशिका का शव बरामद होने के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद सुदेश को अपनी बेटी की हत्या के आरोप में जेल भेज दिया था. तभी से सुदेश मंडोली जेल में बंद था.

लेकिन 2021 को कोरोना की दूसरी लहर में जब सरकार ने विचाराधीन कैदियों को पैरोल पर छोड़ने का फैसला किया तो 21 मई को सुदेश को भी अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया था. उसी वक्त से सुदेश अपने बच्चों के बीच था.

21 नवंबर को सुदेश की पैरोल अवधि खत्म हो गई थी. वह जेल में पेश होने के लिए गया, मगर वहां किसी कानूनी अड़चन के कारण उसे जेल में नहीं लिया गया और उसे 22 दिसंबर, 2021 दूसरी डेट पर जेल में पेश होने के लिए कहा गया.

लेकिन इसी बीच किसी ने बेदर्दी से सुदेश की हत्या कर दी. ऐसा कौन था, जिस से सुदेश की ऐसी दुश्मनी थी कि वह उस की इतनी बेदर्दी के साथ हत्या कर देगा.

यह सब जानने के लिए पुलिस ने सुदेश की पत्नी व उस के जानपहचान वालों से खूब कुरेद कर पूछताछ की, मगर सुदेश की हत्या का कारण व उस के कातिल का कोई सुराग नहीं मिल सका.

पुलिस को न तो किसी से सुदेश की दुश्मनी का सुराग मिल रहा था, न ही किसी से लेनदेन के विवाद की खबर मिल रही थी. लेकिन एक ऐसी बात जरूर थी, जिस के कारण जांच की कवायद से जुड़े एसपी देहात डा. ईरज राजा, सीओ रजनीश उपाध्याय और थानाप्रभारी सचिन कुमार उस पर घंटों से माथापच्ची कर रहे थे.

दरअसल, गहराई से पड़ताल करने के बाद कुछ ऐसे सवाल उभरे थे जिन का पुलिस को जवाब ढूंढना था. पुलिस को लाश की जेब से सुदेश कुमार का आधार कार्ड तो मिल गया था, लेकिन जो एक बात हैरान कर रही थी, वह यह कि लाश बेशक बुरी तरह जली हुई थी, लेकिन जेब में पड़ा आधार कार्ड बिलकुल सहीसलामत था, जिसे देखने से लगता था कि शायद यह कार्ड किसी ने आग बुझने के बाद लाश की जेब में डाल दिया हो.

बस यही बात थी जो पुलिस को लगातार खटक रही थी. क्योंकि अगर किसी ने सुदेश की हत्या करने के बाद उस के चेहरे को इसलिए जलाया था कि उस की पहचान न हो सके तो भला वह कातिल उस की जेब में आधार कार्ड क्यों छोड़ेगा.

दोनों ही बातें एकदम विरोधाभासी लग रही थीं और शक पैदा कर रही थीं. शक का एक दूसरा कारण और भी था. क्योंकि सुदेश की मौत के बाद जब उस के शव का पोस्टमार्टम हो गया तथा उस का अंतिम संस्कार हो गया तो 3 दिन बाद से ही उस की पत्नी लोनी बौर्डर थाने में आ कर पुलिस से सुदेश की मौत का डेथ सर्टिफिकेट देने की मांग करने लगी.

जिस महिला के पति की मौत होती है वह तो महीनों तक अपने गम व सदमे से उबर नहीं पाती, लेकिन दूसरी तरफ अनुपमा हर रोज थाने आ कर पुलिस से अपने पति की मौत का सर्टिफिकेट देने की मांग कर रही थी.

पुलिस के लिए उस का व्यवहार बड़ा अटपटा था. पुलिस ने जब उस से कारण पूछा तो वह कहने लगी कि उसे मंडोली जेल में सर्टिफिकेट देना है और उन्हें सुदेश के सरेंडर करने की डेट से पहले यह बताना है कि उस की मौत हो चुकी है.

अनुपमा का यह रवैया भी हैरान कर रहा था. इसलिए एसपी देहात ने इस केस की तफ्तीश को आगे बढ़ाने के लिए टैक्निकल सर्विलांस टीम के साथसाथ मुखबिरों की मदद लेने का फैसला किया. क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि सुदेश की हत्या के पीछे कोई गहरी साजिश हो सकती है.

सीओ उपाध्याय के निर्देश पर पुलिस की एक टीम ने गोपनीय ढंग से सुदेश के घर के आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज को खंगालने का काम शुरू किया ताकि पता लगाया जा सके कि वारदात से पहले सुदेश कब और किस के साथ घर से गया था और उस ने कौन से कपड़े पहने थे.

संयोग से सुदेश के घर से कुछ ही दूर लगे एक सीसीटीवी कैमरे में ऐसी फुटेज मिल गई, जिस ने पूरे केस की तसवीर ही बदल दी.

सीसीटीवी कैमरे में 19 नवंबर, 2021 की रात को एक संदिग्ध शख्स नजर आया. यह शख्स एक साइकिल पर एक बड़ी सी बोरी ले कर जा रहा था. पुलिस ने सीसीटीवी में दिख रहे इस शख्स की पहचान पता करने की कोशिश की और मुखबिरों को भी यह तसवीर दिखाई. तब आसपास के लोगों ने पुलिस को बताया कि वह शख्स कोई और नहीं बल्कि खुद सुदेश कुमार था.

इस का मतलब था कि सुदेश कुमार मरा नहीं, बल्कि अब भी जिंदा है. तो फिर उस की साइकिल पर जो बोरी लदी थी, उस में वह क्या ले कर जा रहा था?

सीसीटीवी में सब से हैरान करने वाली बात यह दिखी कि आखिरी बार देर रात को करीब 11 बजे अपने घर से निकले सुदेश के शरीर पर वह कपड़े भी नहीं थे जो इंद्रापुरी में जली हालत में मिली लाश के शरीर पर थे, जिसे अनुपमा ने अपने पति की बताया था.

राज बहुत गहरा था. इसीलिए इस की तह में जाने के लिए पुलिस की टीम ने आसपास में रहने वाले कुछ लोगों को अपने विश्वास में ले कर सुदेश के घर पर नजर रखने के लिए लगा दिया.

पुलिस को 1-2 दिन में ही जानकारी मिली कि सुदेश वाकई मरा नहीं जिंदा है और अकसर देर रात में अपने घर चोरीछिपे आता है ताकि किसी को भनक न लग सके.

इतनी जानकारी मिलने के बाद पुलिस समझ गई कि यह एक बड़ी साजिश है इसीलिए पुलिस ने अब सुदेश की पत्नी के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया.

पुलिस को फोन की सर्विलांस लगाने का फायदा मिला और एक ऐसा संदेश मिला जिस से पता चला कि सुदेश न सिर्फ जिंदा है बल्कि चोरीछिपे अपने परिवार से भी मिलता है.

इसी क्रम में वह 10 दिसंबर, 2021 की रात को अपने घर आया था और आसपास जाल बिछा कर खड़ी पुलिस टीम ने सुदेश को दबोच लिया. पुलिस ने उस की पत्नी अनुपमा को भी हिरासत में ले लिया.

दोनों को थाने ला कर उच्चाधिकारियों के सामने जब पूछताछ शुरू हुई तो एक ऐसे हत्याकांड की ऐसी कहानी सामने आई, जिस में मृतक मान कर पुलिस उस के कातिल को पकड़ने के लिए दिनरात एक कर रही थी लेकिन पता चला वह न सिर्फ जिंदा है बल्कि उस ने खुद को मरा साबित करने के लिए किसी और की हत्या कर उसे अपनी पहचान दे दी थी. और इस काम में उस की पत्नी ने उस की पूरी मदद की थी.

सुदेश व उस की पत्नी से पूछताछ में पता चला कि 22 दिसंबर को इसे वापस जेल जाना था. जब वह जेल में था तो उसे साथी कैदियों ने बताया था कि जिस तरीके के सबूत उस के खिलाफ हैं, उस के मुताबिक उसे सजा मिलनी तय थी और कम से कम उसे उम्रकैद की सजा मिलेगी.

जब 21 नवंबर को उसे जेल में नहीं लिया गया तो उस ने सोचा कि शायद ऊपर वाला भी नहीं चाहता कि वह जेल जाए. इस के बाद से ही उस ने इस बात पर दिमाग लगाना शुरू कर दिया कि कैसे जेल जाने से बचा जाए. कई दिन तक खूब दिमाग लगाया, लेकिन कोई तरकीब नहीं सूझी.

अचानक एक दिन टीवी पर एक फिल्म देख कर आइडिया मिल गया, जिस में जेल से भागे एक कैदी ने किसी आदमी की हत्या कर उसे अपने कपड़े पहना कर उस के चेहरे को जला दिया और पुलिस ने मान लिया कि कैदी मारा गया है.

मृतक पहुंचा सलाखों के पीछे – भाग 1

कमरे में गहरा सन्नाटा पसरा था. कमरे में सिर्फ 3 लोग बैठे थे, एसपी (देहात) डा. ईरज राजा के सामने लोनी सर्किल के सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय और लोनी बौर्डर थाने के थानाप्रभारी सचिन कुमार थे. पिछले 24 घंटे में उस पेचीदा मामले ने 3 अफसरों के दिमाग को हिला कर रख दिया था.

कत्ल की उस वारदात में कई ऐसे पेंच थे, जिस ने सवालों का अंबार खड़ा कर दिया था. उन्हीं उलझी हुई कडि़यों को जोड़ने के लिए तीनों अधिकारी माथापच्ची कर रहे थे. लेकिन अभी तक कोई ऐसा क्लू हाथ नहीं आ रहा था, जिस से कत्ल की इस वारदात का अंतिम सिरा हाथ आ सके.

20 नवंबर को लोनी के ए-105 इंद्रापुरी में रहने वाले मनीष त्यागी ने लोनी बौर्डर थाने में आ कर सूचना दी कि उस के घर के सामने खाली प्लौट में एक लाश पड़ी है.

इस सूचना पर लोनी बौर्डर थानाप्रभारी सचिन कुमार जब अपनी टीम के साथ वहां पहुंचे तो देखा कि वह किसी पुरुष की लाश थी. लाश बुरी तरह से जली हुई थी. खासकर लाश का चेहरा इतनी बुरी तरह तरह जला हुआ था कि उसे देख कर मरने वाले की पहचान कर पाना भी मुमकिन नहीं था.

पुलिस ने सब से पहले आसपास रहने वाले लोगों को बुला कर लाश की पहचान कराने की कोशिश की. लोगों से यह भी पूछा गया कि किसी घर से कोई लापता तो नहीं है.

लोगों ने लाश के कपड़ों व कदकाठी से उस की पहचान करने की कोशिश की, मगर पुलिस को इस काम में कोई सफलता नहीं मिली.

लाश की सूचना मिलने पर लोनी क्षेत्र के सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय और एसपी (देहात) डा. ईरज राजा भी घटनास्थल पर पहुंच चुके थे.

सभी ने एक खास बात नोट की थी कि हत्यारे ने लाश के चेहरे व ऊपरी भाग को ही जलाने का प्रयास किया था. धड़ से नीचे का हिस्सा व उस पर पहने हुए कपड़े सहीसलामत थे.

लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले पुलिस ने जब उस के पहने हुए कपड़ों की तलाशी ली तो आश्चर्यजनक रूप से उस में से डेढ़ सौ रुपए तथा एक आधार कार्ड बरामद हुआ.

आधार कार्ड मिलने के बाद पुलिस वालों की आंखें चमक उठीं. मृतक की जेब से जो आधार कार्ड मिला था, उस के मुताबिक मृतक 40 वर्षीय सुदेश कुमार पुत्र रामपाल था, जिस के निवास का पता मकान नंबर 331, गली नंबर 4, फेस -4 शिवविहार, करावल नगर, पूर्वी दिल्ली था.

एसपी (देहात) के आदेश पर एसएसआई प्रदीप शर्मा के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम को उत्तरपूर्वी दिल्ली के करावल नगर में उक्त पते पर भेजा.

पुलिस को वहां सुदेश की पत्नी अनुपमा मिली. पुलिस ने जब अनुपमा से उस के पति के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति एक दिन पहले किसी काम से बाहर गए हैं और अब तक लौट कर नहीं आए.

आशंकित अनुपमा ने जब पुलिस से इस पूछताछ का कारण जानना चाहा तो पुलिस को बताना पड़ा कि उन्हें लोनी बौर्डर के इंद्रापुरी इलाके में एक जली हुई लाश मिली है जिस की जेब में वह आधार कार्ड मिला है जिस की वजह से वो उनके घर पहुंची है.

‘‘हांहां, लाश उन्हीं की होगी, क्योंकि वह आधार कार्ड हमेशा अपनी जेब में रखते थे.’’ कहते हुए अनुपमा ठीक उसी तरह दहाड़ें मार कर रोने लगी, आमतौर पर जैसे एक औरत अपने पति की मौत के बाद विलाप करती है.

‘‘देखिए, आप रोना बंद कीजिए क्योंकि मरने वाले की जेब से जो आधार कार्ड मिला है वह आप के पति का है इसलिए पहले आप लाश की पहचान कर दीजिए. …हो सकता है जो शव मिला है वह आप के पति का न हो,’’ कहते हुए दिलासा दे कर एसएसआई प्रदीप शर्मा अनुपमा व उस के बेटे को अपने साथ ले गए.

तब तक थानाप्रभारी सचिन कुमार, एसपी (देहात) डा. ईरज राजा व सीओ उपाध्याय के कहने पर शव का पंचनामा तैयार कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. एसएसआई प्रदीप शर्मा अनुपमा व उस के बेटे को ले कर वहीं पहुंच गए.

उन्होंने जब अनुपमा को जली हुई अवस्था में मिला शव दिखाया तो अनुपमा का विलाप और भी बढ़ गया, क्योंकि उस ने शव देखते ही हृदयविदारक ढंग से रोना शुरू कर दिया था.

अब जबकि लाश की पहचान सुदेश कुमार के रूप में हो चुकी थी और उस की पत्नी ने ही पहचान की थी, इसलिए पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए डाक्टरों के सुपुर्द कर दिया. उसी दिन शव का पोस्टमार्टम हो गया और पुलिस ने सुदेश का शव उस की पत्नी अनुपमा के सुपुर्द कर दिया. अनुपमा ने उसी शाम अपने परिजनों व जानपहचान वालों की मौजूदगी में शव का अंतिम संस्कार भी कर दिया.

सवाल था कि सुदेश की हत्या क्यों और किस ने की है और शव को इतनी दूर ले जा कर ठिकाने लगाने व उस की पहचान मिटाने का काम किस ने किया है? इस गुत्थी को सुलझाने के लिए गहन जांचपड़ताल की जरूरत थी.

इसलिए डा. ईरज राजा ने सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. टीम में थानाप्रभारी सचिन कुमार, एसएसआई प्रदीप शर्मा, एसआई अमरपाल सिंह, ब्रजकिशोर गौतम, कृष्ण कुमार, हैडकांस्टेबल उदित कुमार, राजीव कुमार, अरविंद कुमार, महिला कांस्टेबल कविता, एसओजी के हैडकांस्टेबल अरुण कुमार, नितिन कुमार, पंकज शर्मा व अनिल सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी थी, इस के लिए सब से पहले पुलिस टीम ने सुदेश कुमार की जन्म कुंडली खंगालनी शुरू की. क्योंकि आमतौर पर जब कातिल गुमनाम हो तो कत्ल का सुराग मरने वाले की जन्म कुंडली में ही छिपा होता है.

पुलिस की टीम ने सुदेश कुमार की पत्नी, उस के बेटे व आसपड़ोस के लोगों से जा कर पूछताछ शुरू की तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. दरअसल, जिस सुदेश के कातिल को पुलिस तलाश कर रही थी, उस के बारे में जानकारी मिली कि वो तो खुद एक कातिल है और इस समय पैरोल पर है.

दरअसल अपने घर में ही परचून की दुकान चलाने वाले सुदेश के परिवार में पत्नी अनुपमा के अलावा 2 बच्चे थे. 17 साल का बड़ा बेटा सुनील और 13 साल की एक बेटी वंशिका. लेकिन बेटी इलाके के खराब माहौल के कारण गंदी सोहबत का शिकार हो गई और कम उम्र में ही उस के इलाके के किशोर लड़कों से प्रेम संबध बन गए.

सुदेश व उस की पत्नी ने बेटी को कई बार डांटफटकार कर उसे समझाना चाहा, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. एक दिन ऐसा हुआ कि सुदेश की बेटी इलाके के एक युवक के साथ घर से भाग गई.

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इस के कारण इलाके में उन की बहुत बदनामी हुई. काफी भागदौड़ के बाद बेटी घर तो वापस आ गई, लेकिन अपमान का घूंट सुदेश से पिया नहीं गया.