स्कैम 2003 : द तेलगी स्टोरी (वेब सीरीज रिव्यू)

स्कैम 2003 : द तेलगी स्टोरी (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 3

गरिमा तरपड़े के रिकमंडेशन पर तेलगी को स्टैंप पेपर वेंडर का लाइसैंस मिल जाता है. गरिमा तलपड़े का रोल भावना बलसावर ने निभाया है. इस के बाद तेलगी का नंबर 2 का यह धंधा तेजी से चल पड़ता है. लेकिन बाद में गरिमा तलपड़े से विवाद हो जाता है तो वह उस की पार्टी को देने वाला फंड रोक देता है.

कस्टम अधिकारी उसे समझाता भी है कि ऐसा करने से उस का नुकसान हो सकता है, पर वह नहीं मानता, जिस का खामियाजा उसे जेल जा कर भुगतना पड़ता है. कस्टम अधिकारी का रोल निखिल रत्नापारखी ने किया है. गरिमा तलपड़े नकली स्टैंप पेपर का मामला विधानसभा में उठाती है, जिस की वजह से जांच बैठा दी जाती है. परिणामस्वरूप तेलगी को जेल तो जाना ही पड़ता है, उस का स्टैंप पेपर का लाइसैंस भी कैंसिल हो जाता है.

जेल में उस की मुलाकात अब्दुल से होती है, जहां वह एक नया बिजनैस प्लान करता है, क्योंकि जेल जाने के बाद उस का धंधा बंद हो गया था. इस बीच तेलगी ने अपने लिए मकान और गाड़ी खरीद ली थी.

चौथे एपीसोड में शौकतभाई तेलगी की जमानत करा देता है, पर उसे नफीसा और दीया से दूर रहने को कहता है. पर तेलगी दोनों को अपने घर ले आता है. इस के बाद वह नासिक जा कर अब्दुल से मिलता है, जहां दोनों नए बिजनैस के बारे में विचार करते हैं.

नासिक में जिस इंडियन सिक्योरिटी प्रैस में स्टैंप पेपर छपते हैं, वहां की पुरानी मशीनें खोल कर अन्य कंपनियों को बेचनी थीं. तेलगी वहां के मैनेजर को पटा कर अपना बिजनैस शुरू करना चाहता था, पर वह बहुत ही सख्त और ईमानदार था.

तेलगी रिजेक्ट स्टैंप पेपर के साथ अच्छे स्टैंप पेपर निकलवाना चाहता है. पर जब बात नहीं बनती तो वह पौलिटिशियन से मिल कर प्रैस में अपने आदमी मधुसूदन मिश्रा को मैनेजर बनवा देता है और प्रैस की एक मशीन के सारे पार्ट्स खरीद कर अपना प्रैस लगा लेता है. वह प्लेट भी बदलवा कर निकलवा लेता है, साथ ही कागज और स्याही भी हासिल कर लेता है.

फिर तो तेलगी का धंधा चल निकलता है, लेकिन वह जितने जोरों पर अपना धंधा चलाना चाहता था, उस तरह उस का धंधा नहीं चल रहा होता.

चूहा बन कर रहा तेलगी

वह पूरे भारत में अपने स्टैंप पेपर बेचना चाहता था. इस के लिए वह मैनेजर मधुसूदन मिश्रा से कहता है कि वह अपनी मशीन कुछ दिनों के लिए खराब कर दे, जिस से देश में स्टैंप पेपर की कमी हो जाएगी तो उस के स्टैंप पेपर धड़ल्ले से बिकेंगे.

मैनेजर मधुसूदन मिश्रा की भूमिका विवेक मिश्रा ने की है. पहले तो मैनेजर तैयार नहीं होता, पर तेलगी उसे तैयार कर लेता है. इस तरह तेलगी पैसे कमाता नहीं, बनाता था. इन्हीं पैसों से उस ने खानपुर में अपनी अम्मी के लिए बहुत बड़ा मकान बनवाया था, जबकि वह दिखावा पसंद नहीं करता था.

पांचवें एपीसोड में तेलगी के स्टैंप पेपर खूब बिक रहे होते हैं. तेलगी कस्टम अफसर के पास एक फ्लौपी भेजता है, जिस में आई लव यू वायरस होता है, जो स्टैंप पेपर के आर्डर में गड़बड़ी कर देता है, जिस से जहां 30 हजार स्टैंप पेपर जाने होते हैं, वहां 3 हजार पहुंचते हैं और जहां 3 हजार जाने होते हैं, वहां 30 हजार स्टैंप पेपर पहुंच जाते हैं.

सरकार सारे ट्रक वापस बुला लेती है. जिस से देश में स्टैंप पेपर की तंगी हो जाती है. तेलगी की एक मशीन इस मांग को पूरा नहीं कर पाती तो इंडिया सिक्योरिटी प्रैस की मशीनें फिर खराब होने लगती हैं. तमाम पौलिटिशियन और नीचे से ले कर ऊपर तक सारे पुलिस अधिकारी तेलगी के दोस्त होते हैं.

तुकाराम की एनजीओ के जो 2 लड़के तेलगी के यहां काम कर रहे होते हैं, उन में से सुलेमान चोरी से स्टैंप पेपर बेचने लगता है. तेलगी को पता चलता है तो वह उसे खूब मारता है. सुलेमान का रोल यूसुफ मोहम्मद ने किया है.

इस बीच नई पार्टी सत्ता में आती है तो उस के आदमी पुलिस की मदद से तेलगी की फैक्ट्री में तोड़फोड़ कर देते हैं. इस के बाद तेलगी नई पार्टी के नेता जाधव को पार्टनर बना लेता है और उस के गोडाउन में काम करने लगता है. जाधव की भूमिका भरत दाभोलकर ने की है. इस की वजह यह थी कि तेलगी चूहा बन कर रहना चाहता था. जिस से जाहिर न हो सके कि वह कितने पैसे कमाता है. इस के अलावा जाधव के यहां काम करने से पुलिस प्रोटेक्शन भी मिलता रहेगा.

इस जीत का जश्न मनाने तेलगी एक दिन बार में जाता है, जहां बार डांसर पर करीब 90 लाख रुपए उड़ा देता है. यह खबर अखबारों में छप जाती है. होटल के कमरे में तेलगी सुबह उस बार डांसर के साथ उठता है तो उस के पास पुलिस अधिकारियों, नेताओं और बिजनैस पार्टनर के फोन आने लगते हैं, जो अपना हिस्सा मांग रहे होते हैं.

क्योंकि तेलगी अब चूहा नहीं रहा. सभी को पता चल जाता है कि उस के पास बहुत पैसा है. इस के आगे कहानी अगले सीजन में आएगी, जो जल्द ही रिलीज होने वाली है.

गगनदेव रियार

गगनदेव रियार मूलरूप से थिएटर कलाकार है. इस समय उसे स्कैम 2003 में अब्दुल करीम तेलगी की भूमिका निभाने के लिए जाना जाने लगा है. इस के अलावा गगनदेव ने “सोनचिरैया’ और सीरीज “ए सूटेबल बौय’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया है. उस के पास 15 सालों से अधिक का थिएटर अनुभव है. उस ने स्वर्गीय पंडित सत्यदेव दुबे, सुनील शानबाग, रंजीत कपूर, पूर्व नरेश और अतुल कुमार जैसी कई थिएटर हस्तियों के साथ काम किया है.

गगनदेव मूलरूप से पंजाब के पठानकोट का रहने वाला है. गगनदेव पंजाब के पठानकोट में 1992 में पैदा हुआ था. उस का पालनपोषण और शिक्षा वहीं हुई है. अब तक वह पूरी दुनिया में अपना प्रदर्शन कर चुका है. उस ने “स्टोरीज इन ए सांग’, “ओके टाटा बाय बाय’, “रावणलीला’ और “पिया बहरूपिया’ जैसे लोकप्रिय नाटकों में अभिनय किया है. उसे युवा थिएटर पेशेवरों के लिए प्रतिष्ठित विनोद दोशी फेलोशिप पुरस्कार 2013 से भी सम्मानित किया गया था.

उस ने “पिया बहरूपिया’ (शेक्सपियर के ट्वेल्थ नाइट का हिंदी रूपांतरण) में सर टोबी बेल्व के किरदार के लिए साल 2014 में सहायक अभिनेता का मेटा पुरस्कार हासिल किया था. गगनदेव को सोनी लिव की वेब सीरीज “स्कैम 2003: द तेलगी स्टोरी’ से प्रसिद्धि मिली, जो कर्नाटक के खानपुर में पैदा हुए एक फल विक्रेता अब्दुल करीम तेलगी के जीवन और भारत के सब से बड़े घोटालों में से एक मास्टरमाइंड बनने की जीवनयात्रा पर आधारित है.

सना अमीन शेख

सना अमीन शेख एक भारतीय अभिनेत्री और रेडियो जौकी है, जो मुख्यरूप से हिंदी टेलीविजन शो और फिल्मों में दिखाई देती है. सना मुंबई से है. उस के परदादा अशरफ खान गुजराती थिएटर में एक अभिनेता और गायक थे. उस ने फिल्म निर्माता महबूब खान की फिल्म “रोटी’ में कथावाचक की भूमिका निभाई थी.

साल 2016 में उस ने एजाज शेख से शादी की, पर 2022 में उस का तलाक हो गया. सना 2004 से रेडियो मिर्ची 98.3 में आरजे के रूप में काम कर रही है. एक दिन क्लास में मिर्ची सुनते हुए उस ने एक आरजे को श्रीताओं को रेडियो जौकी बनने के लिए औडिशन के लिए आमंत्रित करते हुए सुना.

एक सफल औडिशन के बाद में उसे तुरंत आरजे के रूप में स्टेशन में शामिल होने लिए कहा गया. उस ने मिर्ची लव, इश्क एफएम के साथ और खूबसूरत सना के साथ और टीआरपी-टेलीविजन, रेडियो पर आरजे शो की मेजबानी की है.

सना ने एक बाल कलाकार के रूप में अभिनय शुरू किया और जीटीवी पर “हसरतें’ में युवा सावी की भूमिका निभाई. साल 1995 में डीडी चैनल पर धारावाहिक “जुनून’ में वैशाली का किरदार निभाया. 2009 में वह एक बार उभरी और मुख्य भूमिकाओं में से एक भूमिका निभाने के लिए प्रसिद्ध हुई.

डिज्नी चैनल इंडिया ओरिजनल सीरीज “क्या मस्त है लाइफ’ में रितु शाह के बाद धारावाहिक “जीत जाएंगे हम’ में मुख्य अभिनेत्री के रूप में सुमन की भूमिका निभाई. इस के बाद “मेरा नाम करेगी रोशन’ और “मन की आवाज’, “ससुराल सिमर का’ और “गुस्ताख दिल’ के अलावा 30 से अधिक धारावाहिकों में काम किया.

रोहित शेट्टी की फिल्म “सिंघम’ में अभिनय किया है. इस के अलावा हंसल मेहता की वेब सीरीज “स्कैम 2003’ में अब्दुल करीम तेलगी की पत्नी की भूमिका निभा कर प्रसिद्धि पा रही है.

स्कैम 2003 : द तेलगी स्टोरी (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 2

तेलगी की डिग्री से प्रभावित हो कर शौकतभाई उसे अपने यहां काम करने के लिए मुंबई बुला लेता है. शौकतभाई की भूमिका तलत अजीज ने की है. वह गजल गायक भी है. शौकतभाई से मुलाकात के बाद तेलगी अपने घर जाता है और यह बात वह अपनी मां और भाई से बताता है. उस के पिता की मौत हो चुकी है.

तेलगी ने चलाया शातिर दिमाग

अब्दुल करीम तेलगी शौकतभाई के पास खाली जेब मुंबई पहुंच जाता है. वहां उस का होटल का बिजनैस था, लेकिन उस का यह बिजनैस खास नहीं चल रहा होता. तेलगी यहां अपना दिमाग लगाता है और टैक्सी, पान की दुकान वालों को ही नहीं वड़ापाव वालों तक को उन के होटल का कार्ड दे कर आता है. टैक्सी वालों को ग्राहक लाने पर 5 रुपए कमीशन देता है.

इस तरह शौकतभाई का होटल चल निकलता है. इस बीच शौकतभाई की बेटी नफीसा तेलगी को पसंद आ जाती है. नफीसा का रोल सना अमीन शेख ने निभाया है. वह सुंदर भी है और अपनी भूमिका में अच्छी भी लगती है. शौकतभाई दोनों का निकाह करा देते हैं. इस के अलावा उस की एक और बेटी है दीया.

ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में तेलगी गल्फ देश चला जाता है, जहां 7 सालों तक रहता है, लेकिन परिवार की याद आती है तो मुंबई वापस आ जाता है और यहां फरजी दस्तावेज तैयार कर के लोगों को गल्फ और यूएई जैसे देशों में भेजने लगता है. लेकिन इस फरजीवाड़े में पकड़ा जाता है. थाने में उस की जम कर ठुकाई होती है.

इंसपेक्टर मधुकर डोंबे की भूमिका नंदू माधव ने की है. पर एक इंसपेक्टर किस तरह काम करता है, यह वह ठीक से कर नहीं पाया. इसे डायरेक्टर की कमी कही जा सकती है. क्योंकि अभिनेता तो उसी तरह काम करता है, जैसा डायरेक्टर कराता है.

थाने में तेलगी को उस के जैसा ही एक आदमी मिलता है कौशल झवेरी. वह भी उस के साथ पिट रहा होता है. कौशल का रोल हेमंग व्यास ने निभाया है. यहीं तेलगी और कौशल अच्छे दोस्त बन जाते हैं. शौकतभाई तेलगी की जमानत करा देता है और उस से पुलिस रिकौर्ड से अपना नाम निकलवाने के लिए कहता है.

इस के लिए वह उसे एक वकील के पास भेजता है. वकील बहुत ज्यादा पैसे मांगता है, पर तेलगी यहां उस वकील को अपनी बातों में फंसा कर उसी से पैसे भरवा कर अपना काम करवा लेता है कि वह उस का काम करवा कर फेमस हो जाएगा और अपने नेटवर्क का यूज कर के वह उसे खूब क्लाइंट दिलवाएगा, फिर वह खूब पैसे कमाएगा.

वैसे यह सीन ओवर लगता है, क्योंकि एक वकील अपने पैसे खर्च कर के भला किसी क्लाइंट का काम क्यों कराएगा? पर डायरेक्टर की समझ की बात है. शायद वह तेलगी को कुछ ज्यादा ही सयाना दिखाना चाहता था. इसलिए उस ने ऐसा किया है. पर इस सीन पर दर्शकों को हंसी ही आएगी.

क्लर्क से मिल कर बनाया नया प्लान

तेलगी के इस टैलेंट को देख कर कौशल उस से खूब प्रभावित होता है और अपना बिजनैस पार्टनर बना लेता है. इस के बाद कौशल तेलगी को अपना बिजनैस मौडल समझाता है कि जब भी कोई कंपनी बड़े अमाउंट में शेयर खरीदती है तो उस का शेयर सर्टिफिकेट इशू होता है.

फिर जब भी कोई शेयर मार्केट में ये शेयर खरीदता है तो ये शेयर सर्टिफिकेट उसे ट्रांसफर होता है, जिस के ऊपर एक स्टैंप लगाया जाता है और उस पर एक साइन होता है. यह प्रोसेस सिर्फ 5 बार होता है, जिस के बाद ये शेयर सर्टिफिकेट किसी काम के नहीं रहते. इन्हें डेड शेयर सर्टिफिकेट कहा जाता है. इस के बाद नया शेयर सर्टिफिकेट जारी किया जाता है. अब इन डेड सर्टिफिकेट की कंपनी को कोई जरूरत नहीं रहती. जिस के बाद कंपनी इन्हें गोडाउन में स्टोर कर के रख देती है.

कौशल कंपनी के क्लर्क से मिल कर इन डेड शेयर सर्टिफिकेट को निकलवा लेता था और कैमिकल की मदद से स्टैंप और साइन को हटा कर स्टौक एक्सचेंज में जा कर इन्हें सस्ते दामों में बेच देता था, जिस से वह महीने में 15 हजार तक कमा लेता था. लेकिन बाद में पता चला कि कोलकाता गैंग उस से भी कम प्राइस में बेच रहा है.

तेलगी और कौशल मोनोपोली मेनटेन करने के लिए नुकसान में भी स्टैंप बेचने का प्लान बनाते हैं और ओल्ड कस्टम हाउस जहां कोलकाता गैंग का बिजनैस होता है, वहां जा कर क्लर्क के साथ अपनी डील फाइनल करते हैं.

वह क्लर्क अगले दिन स्टैंप के साथ कुछ स्टैंप पेपर भी देता है. यह देख कर कौशल उस पर गुस्सा होता है. यह सब चल रहा होता है कि कोलकाता गैंग उन पर हमला कर देता है और सभी को खूब मारता है. तभी तेलगी की नजर एक आदमी पर पड़ती है, जो स्टैंप पेपर ले रहा होता है और स्टैंप फेंक देता है.

अगले दिन वह क्लर्क से मिलने जाता है तो क्लर्क उस पर भड़क उठता है, क्योंकि वह बड़ी मुश्किल से वह स्टैंप और स्टैंप पेपर ले कर आया था. इस पर तेलगी उसे समझाता है कि मार तो सभी ने खाई है. इस के बाद वह पूछता है कि वह आदमी स्टैंप क्यों फेंक रहा था और स्टैंप पेपर क्यों कलेक्ट कर रहा था.

तब वह क्लर्क बताता है कि वे सारे स्टैंप पेपर थे और स्टैंप से स्टैंप पेपर का बिजनैस कहीं बड़ा और फायदेमंद है. तेलगी उस क्लर्क से सारी इन्फौर्मेशन लेता है, जिस से उस के दिमाग में एक और बिजनैस प्लान आता है और वह कौशल को समझाता है कि सरकार हर साल 33 हजार करोड़ स्टैंप पेपर से कमाती है, जिस में से 80 प्रतिशत स्टैंप पेपर मुंबई से और 10 प्रतिशत महाराष्ट्र से और बाकी 10 प्रतिशत अन्य सब जगहों से मिला कर आता है.

अगर वह केवल मुंबई के स्टैंप पेपर में एक प्रतिशत का भी हिस्सा ले लेता है तो 70 से 80 करोड़ रुपया कमाया जा सकता है और इसी प्लान के साथ तेलगी और कौशल अपना नया बिजनैस शुरू करते हैं.

दूसरे एपीसोड के शुरुआत में दिखाया गया है कि वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के वैश्वीकरण के कारण देश काफी आर्थिक प्रगति कर रहा होता है. लेकिन उसी दौरान बाबरी मसजिद विध्वंस के कारण मुंबई में दंगे हो रहे होते हैं तो दूसरी ओर तेलगी अपने साथी कौशल के साथ मिल कर नकली स्टैंप पेपर खपाने की योजना बना रहा होता है.

वह एक प्रैस में नकली स्टैंप पेपर छपवाता है और वाणी बंदर रेलवे स्टेशन के पहले पुणे से छप कर आने वाले ओरिजनल स्टैंप पेपर चोरी करवा कर उस की जगह नकली स्टैंप पेपर रखवा देता है, लेकिन उस ने जैसा सोचा था, उस हिसाब से वह स्टैंप पेपर बेच नहीं पाता.

नेता ने भी किया तेलगी को सहयोग

तब वह पुलिस से सांठगांठ करता है और स्टैंप पेपर वेंडर का लाइसेंस लेने के लिए विधायक तुकाराम से मिलता है, लेकिन वह भी उस का काम नहीं करवा पाता. विधायक तुकाराम का रोल समीर धर्माधिकारी ने किया है. इस बीच उस का अपने साथी कौशल से झगड़ा हो जाता है, क्योंकि तेलगी का ही नाम हो रहा था और उसे कोई नहीं जानता. इस झगड़े के बाद कौशल उसे छोड़ कर चला जाता है.

तीसरे एपीसोड में तेलगी स्टैंप पेपर वेंडर के लाइसैंस के लिए एक बार फिर विधायक तुकाराम से मिलता है और चुनाव के लिए उसे मोटी रकम देने के लिए कहता है. तब विधायक तुकाराम उसे गरिमा तलपड़े से मिलवाने यूनाइटेड शक्ति पार्टी के हैडऔफिस ले जाता है.

स्कैम 2003 : द तेलगी स्टोरी (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 1

प्रोड्यूसर : हरिलाल जे. ठक्कर

डायरेक्टर: तुषार हीरानंदानी

लेखक: करण व्यास

कहानी: केदार पटनाकार, किरण

सिनेमैटोग्राफी: स्टेनली मुद्दा

म्यूजिक: इशान चाबड़ा

आर्ट डायरेक्शन: फोरम सनूरा

कास्ट्यूम डिजाइन: अरुण जे. चौहान

कलाकार :  गगन देव रियार, मुकेश तिवारी, सना अमीन शेख, नंदू माधव, समीर धर्माधिकारी, जादव, शाद रंधावा, किरन करमाकर, इरावती हर्षे, पंकज बेरी, तलत अजीज, अमन वर्मा, दिनेश लाल यादव, कोमल छाबरिया, भावना बलसावर

साल 2020 में हंसल मेहता और तुषार हीरानंदानी की जोड़ी “स्कैम 1992’ में हर्षद मेहता की कहानी ले कर आई थी. हर्षद मेहता ऐसा शख्स था, जिस की वजह से स्टाक एक्सचेंज, सेबी और यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय तक की नींद हराम हो गई थी.

हंसल मेहता शायद अपनी इस सीरीज में यह दिखाना चाहते थे कि हमारे यहां इस के पहले ऐसा नहीं हुआ था. हमारे यहां बायोपिक बनाने के लिए उन लोगों को चुना जाता है, जिन्होंने अपने जीवन में कुछ कमाल किया हो. कमाल शब्द का प्रयोग अधिकतर पौजिटिव मामलों में किया जाता है. हर्षद मेहता अपनी कहानी का हीरो और देश का विलेन था, लेकिन इन की मौलिकता को ले कर जेहन में अनेक सवाल उठते हैं.

उसी तरह अब 3 साल बाद एक बार फिर तुषार हीरानंदानी “स्कैम 2003: द तेलगी स्टोरी’ (टीवी सरीज 2023) के साथ हाजिर है. इस बार कहानी घोटालेबाज अब्दुल करीम तेलगी की है, जिस ने सरकारी फरजी स्टैंप पेपर छापने शुरू कर दिए थे. कहा जाता है कि उस ने 30 हजार करोड़ रुपए का घोटाला किया था.

ट्रेन में घूमघूम कर फल बेचने वाला अब्दुल करीम तेलगी अचानक अरबपति बन गया था. यह ऐसा कांड था कि पुलिस से ले कर सरकारें तक उस के पीछे पड़ गई थीं. जबकि यही वे लोग थे, जिन्होंने उसे इतना बड़ा अपराधी बनने दिया था.

तेलगी के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत वाकपटु था. उसे बातें बनानी आती थीं. अपनी इसी कला का इस्तेमाल उस ने पैसा बनाने में किया था. जबकि वह खुद को अमीर दिखाने में विश्वास नहीं करता था. इतना बड़ा कांड कर के बेइंतहा पैसा कमाने के बावजूद वह एकदम साधारण कपड़ों में दिखाई देता था. वह मटीरियलिस्टिक आदमी नहीं था. वह बालबच्चेदार, परिवार वाला था.

अब्दुल करीम तेलगी को इस सीरीज में ठीक उसी तरह दिखाने की कोशिश की गई है, मगर तमाम कोशिशों और वन लाइनर्स के बावजूद यह सीरीज उतनी एंटरटेनिंग नहीं बन पाई. इस की वजह यह है कि फरजी स्टैंप पेपर छापना कोई मजेदार काम नहीं है.

हालांकि सीरीज में इस विषय पर बहुत डिटेल में दिखाया गया है, पर डायरेक्टर को सोचना चाहिए था कि दर्शकों को इस में क्या आनंद आएगा. जबकि अब तो स्टैंप ई-पेपर आ गए हैं. कहां छपते हैं, कैसे छपते हैं, कैसे बाजार में आते हैं, यह सब सीरीज में जरूर दिखाया गया है, लेकिन अब यह दर्शकों के मतलब की चीज नहीं रह गई है. इस के अलावा तेलगी भी कोई मजेदार आदमी नहीं था, जिस से दर्शक कुछ सीख सकें.

“स्कैम 2003’ तेलगी के आसपास की दुनिया को बड़े करीब से देखती है. पर यह समझ में नहीं आता कि तेलगी का जो मकसद था, वह क्यों था? यह सब सीरीज में साफ नहीं हो पाता. यह बात सच है कि वह बहुत गरीब परिवार से था, जहां उसे भरपेट खाना भी नहीं मिलता था. वह पैसों का भूखा था. सीरीज में उस की कहानी को क्रम से दिखाया गया है, पर ऐसे तमाम दृश्य हैं, जिन्हें देख कर लगता है कि यह ओवर हो गया है.

दर्शकों की सोच नहीं समझ पाया डायरेक्टर

अपराध कथाओं पर सीरीज बनाने में डायरेक्टर यह नहीं देखते कि दर्शक क्या पसंद करता है या क्या चाहता है. सभी जिस अपराधी के अपराध को ले कर सीरीज बना रहे होते हैं, अपना पूरा ध्यान उसी पर देते हैं. जबकि दर्शक पुलिस की कारवाई और नेताओं की भूमिका को ज्यादा देखना चाहते हैं. यही गलती हंसल मेहता ने भी की है.

उन्होंने सिर्फ तेलगी को और उस के कारनामों को दिखाया है, जबकि पुलिस और नेताओं के कारनामों पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया. जबकि दर्शक यह जानना चाहता है कि पुलिस को तेलगी के कारनामों का कैसे पता चला? तेलगी ने पुलिस को पटाया, नेताओं से कैसे दोस्ती की?

डायरेक्टर ने इस तरह की बातों पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया. इसलिए सीरीज एकदम बकवास हो गई है. अगर इन बातों पर ध्यान दिया होता तो यह सीरीज कुछ सही बन सकती थी, जिसे दर्शक पसंद भी करते.

यह सत्यकथा पत्रकार संजय सिंह की लिखी किताब “तेलगी स्कैम: रिपोर्टर की डायरी से’ ली गई है. सीरीज की कहानी तेलगी के 30 हजार करोड़ के स्टांप पेपर घोटाले को ले कर है, जिस में अब्दुल करीम तेलगी के ऊंचाइयों तक पहुंचने से ले कर जेल तक की यात्रा की कहानी है.

ट्रेन में घूमघूम कर फल बेचने वाला अब्दुल करीम तेलगी एक दिन देश का सब से बड़ा कुख्यात घोटालेबाज बनेगा, यह किसी ने नहीं सोचा था. अब्दुल करीम तेलगी का जीवन संघर्षों से भरा रहा है. मजे की बात यह है कि वह अन्य घोटालेबाजों के विपरीत ऐसा इंसान नहीं था, जिस की पर्सनैलिटी या लाइफस्टाइल चर्चा में रही हो. फिर भी वह हजारों करोड़ रुपए के घोटाले का सरगना बना.

तेलगी की सरलता, सादगी को देख कर कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि वह इतना बड़ा घोटालेबाज हो सकता है. तेलगी एक रिलेटेबल आदमी था. वह ऐसा आदमी था, जिसे भीड़ में देख कर कोई नोटिस नहीं कर सकता था. उस ने अपने इसी आम आदमीपन को इस्तेमाल किया था. वह खुद को चूहा बोलता था, क्योंकि उसे शेर नहीं बनना था. शेर का शिकार किया जा सकता है, चूहे का नहीं.

हर पैसा बनाने वाले, क्राइम करने वाले की पर्सनैलिटी आकर्षक हो, यह जरूरी नहीं है. इसलिए इस सीरीज की शुरुआत तो फुल स्पीड में होती है, मगर दूसरे, तीसरे एपीसोड तक पहुंचते पहुंचते बोरियत होने लगती है. पांचवें एपीसोड में रफ्तार हासिल करती है, पर बीच के 2 एपीसोड इतने भारी पड़ जाते हैं कि सीरीज से जुड़ाव कमजोर पड़ जाता है.

यह एक ऐसे आदमी की कहानी है, जो ख्वाब को जिंदगी से बढ़ कर मानता है. उस का कहना है कि इंसान को जिंदगी एक ही मिलती है और इस जिंदगी में सपने पूरे नहीं किए तो जिंदगी अधूरी रह जाएगी. सीरीज की शुरुआत अब्दुल करीम के नारको टेस्ट से होती है. उसे डाक्टर एक इंजेक्शन लगाता है और वह अर्धबेहोशी की हालत में चला जाता है फिर डाक्टर पूछता है कि तुम्हारे साथ कौन कौन पौलिटिशियन इस स्कैम में शामिल थे?

तब तेलगी कहता है, “पौलिटिशियंस आर द बैक बोन औफ द बिजनैस.’

इस के बाद कहानी फ्लैशबैक में चलती है. तेलगी अपनी कहानी सुनाता है. कर्नाटक का खानपुर, जहां बीकौम कंपलीट करने के बाद तेलगी ट्रेन में फल बेचा करता था और अपनी वाकपटुता तथा मीठीमीठी बातों से सारे फल बेच दिया करता था. तभी शौकतभाई से उस की मुलाकात होती है.

वह उसे अपनी बीकौम की डिग्री के फोटोस्टेट में फल देता है, जिस से उस की काबीलियत का पता चलता है यानी फ्री की मार्केटिंग. अब्दुल करीम तेलगी की भूमिका गगनदेव रियार ने की है. इस की वजह यह है कि देखने में वह तेलगी जैसा लगता है. उस की पर्सनैलिटी भी तेलगी जैसी ही है.