प्रेमिका क्यों बनी कातिल

मुकेश ने खेत में देखा तो हैरान रह गया. वहां भारी मात्रा में खून फैला हुआ था. यह देखते ही वह वहां से तुरंत उल्टे पैर भागा और सीधे  गांव के मास्टर हरिराम के घर पहुंचा.

मास्टर हरिराम ने जब यह बात सुनी तो वह भी हैरान रह गए. उन्होंने फोन कर के गांव के पूर्व सरपंच लाखन सिंह ठाकुर को भी बुला लिया. तीनों उसी जगह पर पहुंचे तो जहां खून पड़ा था, वहां घसीटने के भी निशान थे. उसी घसीटती हुई फसल का पीछा करते करते वह 100-200 मीटर भी नहीं पहुंचे थे कि तीनों के कदम ठहर गए. क्योंकि उन के सामने औंधे मुंह एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी.

वह जिस व्यक्ति की लाश थी, उसे पूर्व सरपंच लाखन सिंह ठाकुर जानते थे. लाश गांव की ही मौजूदा सरपंच फूलबाई कुशवाह के बेटे विशाल कुशवाहा की थी. पूर्व सरपंच ने देरी न करते हुए बैरसिया थाने के एसएचओ नरेंद्र कुलस्ते को फोन कर के सूचना दे दी.

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के देहात क्षेत्र में स्थित बैरसिया थाना है. इस में गांव दामखेड़ा पड़ता है. यह गांव थाने से करीब 15-16 किलोमीटर दूर है. इसी गांव में मास्टर हरिनारायण सक्सेना भी रहते हैं. उन्हें पूरा गांव मास्साब के नाम से ही जानता है. उन के ही खेत में एक टपरा है, जिस में उन का बेलदार मुकेश रहता था.

वह 10 मार्च की सुबह जल्दी उठा. क्योंकि उस दिन अमावस्या थी, इसलिए उसे गांव में स्थित हनुमान मंदिर में जल चढ़ाने जाना था. वह उठा और मंदिर में सुबह लगभग 7 बजे चला गया. मंदिर में जल चढ़ा कर वह आ रहा था, तब उसे दूर से मास्साब के खेत में लगी फसल का कुछ हिस्सा बिखरा नजर आया.

मुकेश को लगा कि कोई फसल काट ले गया है. इसलिए वह तुरंत तेज कदमों से वहां पहुंचा था.

एएसपी डा. नीरज चौरसिया

लाश मिलने की सूचना पाते ही एसएचओ तुरंत घटनास्थल के लिए निकल पड़े. रास्ते में ही एसएचओ ने एसपी प्रमोद कुमार सिन्हा, एएसपी डा. नीरज चौरसिया और प्रभारी एसडीओपी मंजू चौहान को यह जानकारी साझा कर दी.

एसडीओपी मंजू चौहान

एसएचओ नरेंद्र कुलस्ते मौके पर जा रहे थे, तभी उन के पास बैरसिया के एसडीओपी आनंद कलादगी की भी काल आ गई. वह भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं और इस वक्त बैरसिया (देहात) में एसडीओपी का चार्ज देख रहे थे. हालांकि जब यह घटना हुई तो वह अवकाश पर पुश्तैनी गांव कर्नाटक गए हुए थे. एसएचओ ने उन्हें सारी जानकारी दे दी. शव पड़े होने की जानकारी देते हुए एसएचओ ने बताया कि वह मौके पर पहुंच रहे हैं.

इस के बाद घटनास्थल पर फिंगरप्रिंट के अधिकारियों और डौग स्क्वायड को भी बुला लिया था. इस के अलावा उन्होंने लललिया चौकी के प्रभारी एसआई शंभू सिंह सेंगर और थाने में तैनात एसआई रिंकू जाटव को भी मौके पर बुला लिया.

ये 2 बातें मौके पर हो चुकी थीं तय

थानाप्रभारी नरेंद्र कुलस्ते हरिनारायण सक्सेना के खेत पर पहुंचते, उस से पहले ही उन्हें गोलू साहू के खेत पर भारी भीड़ नजर आई. उन्होंने वहां मौजूद भीड़ को नगर रक्षा समिति के सदस्य इजरायल की मदद से हटाया.

उस के बाद शव और जहां खून फैला था, उस जगह को सुरक्षित कराया. वहां धीरेधीरे कर के सारे अफसर आना शुरू हो गए. खबर मीडिया तक पहुंच गई थी तो पत्रकारों का भी वहां जुटना शुरू हो गया.

उसी समय वहां सरपंच फूलबाई कुशवाहा के पति रमेश कुशवाहा भी कुछ लोगों के साथ पहुंच गए. अपने 25 वर्षीय बेटे विशाल कुशवाहा की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगे. उस की कुछ महीने पहले ही शादी भी हुई थी. वह नौजवान और हैंडसम युवक था. इस के अलावा सरपंच का बेटा होने के कारण उस का गांव में जलवा था.

mritak-vishal-kushwaha

मृतक विशाल कुशवाहा

वह गांव में उगने वाली फसल को अपने लोडिंग वाहन में लोड कर के विदिशा जिले में लगने वाली मंडी में बेचने जाया करता था. जिस ग्रामीण को फसल उसे देनी होती थी, वह उसे पहले बता दिया करता था. इस कारण गांव के कई घरों में विशाल कुशवाहा का सीधा संपर्क था.

सबूत जुटाने में जुटे एसएचओ समेत तीनों अफसर नरेंद्र कुलस्ते, रिंकू जाटव और शंभू सिंह सेंगर मौके पर ही रणनीतियां बना रहे थे. इस दौरान हर स्तर का अफसर मौके पर आ कर एक नया टास्क टीम को दे कर जा रहा था.

एसएचओ मृतक विशाल कुशवाहा के शरीर में आए घावों को देख चुके थे. उस के बाएं कान के ऊपर भारी वस्तु से किए गए प्रहार के कारण सिर के भीतर दबा हिस्सा दिख रहा था. इस के अलावा सिर के पीछे और माथे पर धारदार हथियार के वार थे.

यह सभी अलगअलग तरह के थे. इसलिए यह तो साफ हो गया था कि उस की कई लोगों ने मिल कर हत्या की है. गरदन रेती गई थी, वह भी पेशेवर तरीके से. यानी यह भी साफ हो गया था कि वारदात करने वाला पेशेवर अपराधी है. गले को जिस जगह धारदार हथियार से रेता गया था, उस नाजुक जगह की जानकारी हर कोई नहीं रखता.

गांव से भागी महिला और उस के पति पर गया शक

घटनास्थल की बारबार तफ्तीश करने और विशाल कुशवाहा के कपड़ों की तलाशी लेने के बाद एसएचओ को सरकारी अस्पताल के 4 कंडोम मिले, इसलिए यह भी यकीन हो गया कि मामला अवैध संबंध से जुड़ा हो सकता है.

तभी एसएचओ का दिमाग ठनका और उन्होंने वहां मौजूद विशाल कुशवाहा के छोटे भाई मिथुन कुशवाहा से बातचीत शुरू की. क्योंकि वह उस वक्त होश में था.

उस ने बताया कि वह 2 भाई और 3 बहनें हैं, जिस में एक बहन की शादी हो गई है. मिथुन कुशवाहा से बातचीत में पता चला कि उन के गांव में चाची चली गई थी. वह गांव के दबंग अर्जुन कुशवाहा के साथ गई थी. उस से जरूर कुछ महीनों पहले विवाद की स्थिति बनी थी. लेकिन चाची और अर्जुन कुशवाहा घर छोड़ कर दूसरे गांव में रहने चले गए थे.

पुलिस ने उस की लोकेशन खंगाली तो वह संदेह के दायरे से बाहर हो गया. फिर आखिरी वक्त में कौन उस के साथ था, वह पता लगाया गया. तब मालूम हुआ कि गांव में रहने वाला बबलू कुशवाहा मृतक के पास आखिरी वक्त में था.

वह विशाल कुशवाहा की फसल और अपनी गाजर बेचने विदिशा गया हुआ था. उसे पुलिस ने काल करने की बजाय ग्रामीणों से काल लगा कर मौके पर बुलाया. उस को सीधे थाने ले जाया गया, जहां उस से पूछताछ अलग से की गई.

पड़ताल में मालूम हुआ कि बबलू कुशवाहा और विशाल कुशवाहा साथ में थे. जिस दिन लाश मिली, उस से एक दिन पहले रात 11 बजे लोडिंग वाहन उस के हवाले कर के वह चला गया था. लोडिंग वाहन में ही बबलू कुशवाहा को नींद की झपकी लग गई. बबलू कुशवाहा की नींद रात लगभग एक बजे खुली तो उस ने कई बार विशाल को फोन किया.

जब विशाल ने फोन नहीं उठाया तो बबलू ने उस के पापा रमेश कुशवाहा को फोन लगा कर बताया. उस ने बताया कि विशाल कुशवाहा ने सब्जी लोडिंग आटो में लोड कर ली थी. वह सुबह तक मंडी नहीं पहुंचाई तो खराब हो जाएगी. इस कारण रमेश कुशवाहा ने बबलू कुशवाहा के साथ दूसरे को भेज दिया.

यह बात पता चलने के बाद पुलिस ने बबलू कुशवाहा के अलावा विशाल कुशवाहा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकालने का काम शुरू कर दिया.

प्रेमिका के कांफिडेंस को देख कर थानाप्रभारी का हौसला हुआ पस्त

एसएचओ ने मिथुन कुशवाहा से पूछा, ”तुम्हारे भाई के किसी महिला से संबंध थे?’’

यह सुन कर वह बोला, ”हां, कुछ साल पहले तक उस के नीतू शाक्य के साथ रिश्ते थे. दोनों शादी भी करना चाहते थे. लेकिन पिता दूसरी जाति होने के कारण इस रिश्ते को अपनाने के लिए तैयार नहीं थे.’’

यह पता चलने के बाद उन्होंने विशाल कुशवाहा का रिश्ता विदिशा जिले के गंजबासौदा में स्थित गांव सलोई में रहने वाली हरीबाई से तय कर दिया गया. यह पता चलने के बाद नीतू शाक्य ने विशाल को फोन भी किया था. उस ने कहा था कि वह शादी करेगा तो अच्छा नहीं होगा.

aropi-neetu-shakya

आरोपी नीतू शाक्य

इस धमकी को घर वालों ने नजरअंदाज कर के शादी कर दी थीं. यह सुनने के बाद एसएचओ ने देर नहीं की और वह महिला कांस्टेबल शीला दांगी के साथ नीतू शाक्य के घर पहुंच गए और पूछताछ के लिए उसे थाने ले आए.

सरपंच के बेटे का दोस्त थाने पहुंच कर क्यों गिड़गिड़ाया

अब एसएचओ के सामने इस अंधे कत्ल को सुलझाने के लिए कई रास्ते थे. वह किन रास्तों पर जाएं, तय नहीं कर पा रहे थे. क्योंकि उन के सामने दामखेड़ा गांव के दबंग अर्जुन कुशवाहा की कहानी थी तो वहीं बबलू कुशवाहा भी था, जो घटना से कुछ देर पहले तक मृतक के साथ था. तीसरी नीतू शाक्य जो कुछ महीने पहले तक मृतक विशाल कुशवाहा की प्रेमिका थी.

इन सभी बातों के बीच एसएचओ ने मौके पर मिले कंडोमों के आधार पर तय किया कि वह नीतू शाक्य को फोकस करेंगे. इसी बीच उन्हें विशाल कुशवाहा के मोबाइल की काल डिटेल्स भी मिल गई. जांच में पता चला कि मृतक की आखिरी बातचीत अजय नामदेव के साथ हुई थी. वह विदिशा जिले का रहने वाला था.

पुलिस ने उसे भी पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. उस ने बताया कि यह सिम उस ने खरीद कर विशाल कुशवाहा को दी जरूर थी, लेकिन इस का इस्तेमाल वह नहीं करता था.

इस के बाद पुलिस ने अजय नामदेव के ही मोबाइल में हो रहे एक अन्य नंबर से बातचीत वाले को तलब किया. क्योंकि उस ने अजय नामदेव को उसी दिन कई बार फोन लगाया था.

उस का नाम आमीन मंसूरी था, जो दामखेड़ा गांव के नजदीक दूसरे गांव बबचिया का रहने वाला था. उस से पूछताछ का जिम्मा ललरिया चौकी में बैठे एसआई शंभु सिंह सेंगर को दिया गया. इधर, नीतू शाक्य पुलिस को कोई सहयोग नहीं कर रही थी. कई बार पुलिस पूछताछ की नाव गोते खा कर पलट रही थी.

constable-sheela-dhangi

थाने में एकमात्र महिला कांस्टेबल नीतू शाक्य से पूछताछ करने में कमजोर साबित हो रही थी. उधर, आमीन मंसूरी ने भी कम परेशान नहीं किया. उस के रिश्तेदार भी हत्याकांड में उसे घेरे जाने का पता चलने पर एकएक कर के थाने के बाहर जमा होने लगे. इस के बावजूद एसआई शंभु सिंह सेंगर की टीम ने सख्ती बरती तो वह टूट गया.

उस ने हत्याकांड को करना कुबूल लिया, जिस में नीतू शाक्य की सीधी भूमिका थी. उस ने यह भी बताया कि वह हत्या करने के लिए राजी नहीं था. लेकिन नीतू शाक्य ने उस को प्यार का हवाला दे कर हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया था.

शारीरिक संबंध बनाने से पहले नीतू ने रखी थी कौन सी शर्त

आमीन मंसूरी (18 वर्ष) द्वारा गुनाह कुबूल कर लेने के बाद नीतू ने भी रट्टू तोते की तरह सारी कहानी बयां कर दी. उस ने बताया कि वह विशाल कुशवाहा की बेवफाई से काफी आहत हो गई थी. इसलिए उस ने तय कर लिया था कि वह उस की हत्या करेगी.

आरोपी आमीन मंसूरी

इस के लिए उस ने गांव के ही कई युवकों के साथ दोस्ती भी की थी. उन के साथ रिश्ते बनाने से पहले यह शर्त थी कि उन्हें विशाल कुशवाहा को निपटाना होगा.

नीतू से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने एकएक कर के सभी युवकों को थाने बुलाया. पता चला कि आमीन मंसूरी मटनचिकन की दुकान में काम भी करता था. उस के साथ 3 महीने पहले ही नीतू शाक्य ने दोस्ती की थी. एसएचओ इस बात को ले कर परेशान थे कि उस के पास विशाल कुशवाहा के दोस्त अजय नामदेव की मोबाइल सिम कैसे मिली. तब उस ने बताया कि वह मोबाइल और सिम उस को विशाल कुशवाहा ने ही खरीद कर बातचीत करने के लिए दी थी. शादी से पहले उसी मोबाइल के जरिए बातचीत होती थी.

हत्याकांड को अंजाम देने के लिए नीतू शाक्य ने विशाल कुशवाहा को फोन लगा कर हनुमान मंदिर के पास बुलाया था. लेकिन उस दिन घर में उस की मौसी आ गई थी. इस कारण वह रात 11 बजे उस के पास पहुंची थी. हालांकि इस से पहले 9 बजे मुलाकात होनी थी.

मर्डर करने के बाद लाश क्यों जलाना चाहती थी नीतू

उधर, आमीन मंसूरी ने बताया कि हत्याकांड में उस का दोस्त मनोज वंशकार भी शामिल था. 20 वर्षीय मनोज बबचिया गांव का रहने वाला था. लेकिन भोपाल के कोलार रोड स्थित ललिता नगर में रहने वाले भाई बलराम वंशकार और भाभी सुनीता वंशकार के साथ वह रहता था.

आरोपी मनोज वंशकार

आमीन मंसूरी ने बताया कि उस ने हत्या तो नहीं की थी, लेकिन उस की बाइक से वह मौके पर पहुंचा था. वह यह जानता था कि मैं अपनी प्रेमिका नीतू शाक्य के दुश्मन को मारने वाला हूं.

आमीन मंसूरी की कहानी और नीतू शाक्य की पटकथा मेल खाने लगी. यह देख कर पुलिस ने नीतू शाक्य को संदेही मान कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इधर, बैरसिया स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में हुए विशाल कुशवाहा के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ चुकी थी.

रिपोर्ट में आईं इन चोटों को ले कर नीतू शाक्य ने राज उजागर किया. उस ने बताया कि उसे पता था कि मृतक के साथ बबलू कुशवाहा है, इसलिए उसे अकेले नीतू ने बुलाया था.

विशाल को लगा कि आज वह एक बार फिर पुरानी यादों को नीतू के साथ शारीरिक संबंध बना कर ताजा करेगा. इस कारण वह अपने साथ 4 कंडोम ले कर पहुंचा था. वह नीतू को देख कर अपने अरमानों को रोक नहीं पा रहा था. विशाल यह नहीं जानता था कि नीतू आज प्रेमिका नहीं, बल्कि बदला लेने वाली दुश्मन है.

वह योजना के तहत पीछे की तरफ जा रही थी. जबकि विशाल उसे आलिंगन करने के लिए बढ़ रहा था. तभी नीतू ने विरोध करते हुए बोला कि वह उस का फोन क्यों नहीं उठाता. विशाल बोला कि अब वह शादीशुदा है. पत्नी को पता चलता है तो घर में बवाल होता है.

यह बोलते हुए वह नीतू को दबोचने के लिए आगे बढ़ा. लेकिन नीतू पीछे हुई, तभी उस के पैर से पत्थर टकराया जो उस ने कब उठाया, यह विशाल समझ ही नहीं पाया. विशाल ने जैसे ही कमर के पीछे से दोनों हाथ डाल कर दबोचना चाहा. तभी उस ने विशाल के कान के बाएं तरफ जोरदार पत्थर का वार किया.

लाश को छिपाने में दोस्त ने क्यों नहीं की मदद

विशाल कुशवाहा को जैसे ही बाएं कान की तरफ पत्थर लगा तो वह चीख पड़ा. उसी वक्त पीछे से आ कर आमीन मंसूरी ने छुरी से विशाल के सिर पर वार किया और उसे दबोच लिया. यह देख कर वह समझ गया कि उस के साथ क्या होने वाला है. उस ने तुरंत ही मास्टर हरिनारायण सक्सेना के खेत में रहने वाले बेलदार को नाम ले कर बचाने के लिए पुकारा.

उस की आवाज सुन कर नीतू बोली, ”आमीन, इस का मुंह बंद करो नहीं तो पूरे गांव वाले जाग जाएंगे.’’

यह बोलने के साथ ही उस ने अपना दुपट्टा भी उसे दिया. दुपट्टे से आमीन मंसूरी ने उस का मुंह बंद किया और चाकू से विशाल कुशवाहा का गला रेत दिया. इस काम में आमीन मंसूरी काफी एक्सपर्ट था. क्योंकि वह मीट की दुकान में काम करता था.

गला रेतने के बाद खून का फव्वारा छूट पड़ा था. इसलिए खेत में चारों तरफ खून ही खून फैल गया. फिर तय किया गया कि उसे दूसरी जगह ले जा कर जला देते हैं, ताकि उस का शव पहचान में नहीं आ सके.

सिरहाने की तरफ से आमीन मंसूरी ने पकड़ा. वहीं पैर की तरफ से नीतू शाक्य पकड़ कर खींचने लगी, लेकिन मरने के बाद विशाल का शरीर भारी हो गया था.

बदले की आग जब शांत हुई तो नीतू खून से सने विशाल को देख कर घबरा गई. लाश खींचने के दौरान मृतक की पैंट नीतू के हाथों में खिंच आई और वह गिर गई.

यह देख कर आमीन ने अपने दोस्त मनोज वंशकार को बुलाया. आमीन ने उस से कहा कि वह लाश को घसीटने में मदद करे, ताकि उसे जला कर उस की पहचान मिटा सकें. लेकिन ऐसा करने के लिए मनोज वंशकार राजी नहीं हुआ.

नतीजतन दोनों गोलू कुशवाहा के खेत तक ही लाश को ले जा सके. उसे वहीं पटक कर तीनों मौके से भाग गए.

सारी रात कैसे मिटाए सबूत

नीतू शाक्य की योजना यह थी कि विशाल कुशवाहा की हत्या में उस का दोस्त अजय नामदेव फंसे. इसलिए उस के नाम पर खरीदे गए मोबाइल और सिम का इस्तेमाल नीतू ने किया था. लेकिन सब कुछ उलटा हो गया तो रणनीतियां बदली जाने लगीं.

हत्याकांड के बाद आरोपी आमीन मंसूरी मृतक का मोबाइल और पर्स ले कर भाग गया. ताकि लाश देखने के बाद पुलिस को यह लगे कि उस की लूट के इरादे से हत्या की गई है. आमीन मंसूरी ने बबचिया गांव के नाले में उस का मोबाइल फेंक दिया.

खून से सना दुपट्टा और कपड़े उतार कर नीतू शाक्य ने घर की छत पर एक कोने में छिपा दिए. उन्हें अगले दिन जलाने की योजना थी. लेकिन उस से पहले ही पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई थी.

पुलिस ने पहले आमीन मंसूरी और उस की प्रेमिका नीतू शाक्य को गिरफ्तार किया. उस के अगले दिन मनोज वंशकार को भी हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने हत्याकांड में इस्तेमाल की गई मनोज वंशकार की बाइक भी जब्त कर ली. नीतू शाक्य ने मोबाइल की सिम तोड़ दी थी. लेकिन अजय नामदेव के नाम पर खरीदा गया मोबाइल उस के घर से बरामद किया गया.

पुलिस ने हत्या करने और सबूत मिटाने का मामला दर्ज करने के बाद आम्र्स एक्ट, लूट, साजिश रचने समेत कई अन्य धाराएं भी बढ़ा दीं. आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ये कैसा बदला : सुनीता ने क्यों की एक मासूम की हत्या?

चीचली गांव कहने भर को ही भोपाल का हिस्सा है, नहीं तो बैरागढ़ और कोलार इलाके से लगे इस गांव में अब गिनेचुने घर ही बचे हैं. बढ़ते शहरीकरण के चलते चीचली में भी जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं. इसलिए अधिकतर ऊंची जाति वाले लोग यहां की अपनी जमीनें बिल्डर्स को बेच कर कोलार या भोपाल के दूसरे इलाकों में शिफ्ट हो गए हैं.

इन गिनेचुने घरों में से एक घर है विपिन मीणा का. पेशे से इलैक्ट्रिशियन विपिन की कमाई भले ही ज्यादा न थी, लेकिन घर को घर बनाने में जिस संतोष की जरूरत होती है वह जरूर उस के यहां था. विपिन के घर में बूढ़े पिता नारायण मीणा के अलावा मां और पत्नी तृप्ति थी. लेकिन घर में रौनक साढ़े 3 साल के मासूम वरुण से रहती थी. नारायण मीणा वन विभाग से नाकेदार के पद से रिटायर हुए थे और अपनी छोटीमोटी खेती का काम देखते हैं.

इस खुशहाल घर को 14 जुलाई, 2019 को जो नजर लगी, उस से न केवल विपिन के घर में बल्कि पूरे गांव में मातम सा पसर गया. उस दिन शाम को विपिन जब रोजाना की तरह अपने काम से लौटा तो घर पर उस का बेटा वरुण नहीं मिला. उस समय यह कोई खास चिंता वाली बात नहीं थी क्योंकि वरुण घर के बाहर गांव के बच्चों के साथ खेला करता था. कभीकभी बच्चों के खेल तभी खत्म होते थे, जब अंधेरा छाने लगता था.

थोड़ी देर इंतजार के बाद भी वरुण नहीं लौटा तो विपिन ने तृप्ति से उस के बारे में पूछा. जवाब वही मिला जो अकसर ऐसे मौकों पर मिलता है कि खेल रहा होगा यहीं कहीं बाहर, आ जाएगा.

varun-meena-murder-chichli

वरुण 

विपिन वरुण को ढूंढने अभी निकला ही था कि घर के बाहर उस के पिता मिल गए. उन से पूछने पर पता चला कि कुछ देर पहले वरुण चौकलेट खाने की जिद कर रहा था तो उन्होंने उसे 10 रुपए दिए थे.

चूंकि शाम गहराती जा रही थी और विपिन घर के बाहर ही गया था, इसलिए उस ने सोचा कि दुकान नजदीक ही है तो क्यों न वरुण को वहीं जा कर देख लिया जाए. लेकिन वह उस वक्त चौंका जब वरुण के बारे में पूछने पर जवाब मिला कि वह तो आज उस की दुकान पर आया ही नहीं.

घबराए विपिन ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे कोई बच्चा खेलता नजर नहीं आया, जिस से वह बेटे के बारे में पूछता. एक बार घर जा कर और देख लिया जाए, शायद वरुण आ गया हो. यह सोच कर वह घर की तरफ चल पड़ा.

घर आने पर भी विपिन को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि वरुण अभी भी घर नहीं आया था. लिहाजा अब पूरा घर परेशान हो उठा. उसे ढूंढने के लिए विपिन ने गांव का चक्कर लगाया तो जल्द ही उस के लापता होने की बात भी फैल गई और गांव वाले भी उसे ढूंढने में लग गए.

रात 10 बजे तक सभी वरुण को हर उस मुमकिन जगह पर ढूंढ चुके थे, जहां उस के होने की संभावना थी. जब वह कहीं नहीं मिला और न ही कोई उस के बारे में कुछ बता पाया तो विपिन सहित पूरा घर किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा.

वरुण की गुमशुदगी को ले कर तरह तरह की हो रही बातों के बीच गांव वालों ने एक क्रेटा कार का जिक्र किया, जो शाम के समय गांव में देखी गई थी. लेकिन उस का नंबर किसी ने नोट नहीं किया था.

हालांकि चीचली गांव में बड़ीबड़ी कारों का आना कोई नई बात नहीं है, क्योंकि अकसर प्रौपर्टी ब्रोकर्स ग्राहकों को जमीन दिखाने यहां लाते हैं. लेकिन उस दिन वरुण गायब हुआ था, इसलिए क्रेटा कार लोगों के मन में शक पैदा कर रही थी.

थकहार कर कुछ गांव वालों के साथ विपिन ने कोलार थाने जा कर टीआई अनिल बाजपेयी को बेटे के गुम होने की जानकारी दे दी. उन्होंने वरुण की गुमशुदगी दर्ज कर तुरंत वरिष्ठ अधिकारियों को इस घटना से अवगत भी करा दिया.

टीआई पुलिस टीम के साथ कुछ ही देर में चीचली गांव पहुंच गए. गांव वालों से पूछताछ करने पर पुलिस का पहला और आखिरी शक उसी क्रेटा कार पर जा रहा था, जिस के बारे में गांव वालों ने बताया था.

पूछताछ में यह बात उजागर हो गई थी कि मीणा परिवार की किसी से कोई रंजिश नहीं थी जो कोई बदला लेने के लिए बच्चे को अगवा करता और इतना पैसा भी उन के पास नहीं था कि फिरौती की मंशा से कोई वरुण को उठाता.

तो फिर वरुण कहां गया. उसे जमीन निगल गई या फिर आसमान खा गया, यह सवाल हर किसी की जुबान पर था. क्रेटा कार पर पुलिस का शक इसलिए भी गहरा गया था क्योंकि कोलार के बाद केरवा चैकिंग पौइंट पर कार में बैठे युवकों ने खुद को पुलिस वाला बता कर बैरियर खुलवा लिया था और दूसरा बैरियर तोड़ कर वे कार को जंगलों की तरफ ले गए थे.

चीचली और कोलार इलाके में मीणा समुदाय के लोगों की भरमार है, इसलिए लोग रात भर वरुण को ढूंढते रहे. 15 जुलाई की सुबह तक वरुण कहीं नहीं मिला और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो लोगों का गुस्सा भड़कने लगा.

यह जानकारी डीआईजी इरशाद वली को मिली तो वह खुद चीचली पहुंच गए. उन्होंने वरुण को ढूंढने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान एसपी संपत उपाध्याय को सौंपी गई. दूसरी तरफ एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम जंगलों में जा कर वरुण को खोजने लगी.

पुलिस टीम ने 15 जुलाई को जंगलों का चप्पाचप्पा छान मारा लेकिन वरुण कहीं नहीं मिला और न ही उस के बारे में कोई सुराग हाथ लगा. इधर गांव भर में भी पुलिस उसे ढूंढ चुकी थी. एक बार नहीं कई बार पुलिस वालों ने गांव की तलाशी ली लेकिन हर बार नाकामी ही हाथ लगी तो गांव वालों का गुस्सा फिर से उफनने लगा.

बारबार की पूछताछ में बस एक ही बात सामने आ रही थी कि वरुण अपने दादा नारायण से 10 रुपए ले कर चौकलेट खरीदने निकला था, इस के बाद उसे किसी ने नहीं देखा. इस से यह संभावना प्रबल होती जा रही थी कि हो न हो, बच्चे को घर से निकलते ही अगवा कर लिया गया हो.

विपिन का मकान मुख्य सड़क से चंद कदमों की दूरी पर पहाड़ी पर है, इसलिए यह अनुमान भी लगाया गया कि इसी 50 मीटर के दायरे से वरुण को उठाया गया है.

लेकिन वह कौन हो सकता है, यह पहेली पुलिस से सुलझाए नहीं सुलझ रही थी. क्योंकि पूरे गांव व जंगलों की खाक छानी जा चुकी थी इस पर भी हैरत की बात यह थी कि बच्चे को अगवा किए जाने का मकसद किसी की समझ नहीं आ रहा था.

chichli-me-police-team

अगर पैसों के लिए उस का अपहरण किया गया होता तो अब तक अपहर्त्ता फोन पर अपनी मांग रख चुके होते और वरुण अगर किसी हादसे का शिकार हुआ होता तो भी उस का पता चल जाना चाहिए था. चीचली गांव की हालत यह हो चुकी थी कि अब वहां गांव वाले कम पुलिस वाले ज्यादा नजर आ रहे थे. इस पर भी लोग पुलिसिया काररवाई से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए माहौल बिगड़ता देख गांव में डीजीपी वी.के. सिंह और आईजी योगेश देशमुख भी आ पहुंचे.

2 बड़े शीर्ष अधिकारियों को अचानक आया देख वहां मौजूद पुलिस वालों के होश उड़ गए. चंद मिनटों की मंत्रणा के बाद तय किया गया कि एक बार फिर से गांव का कोना कोना देख लिया जाए.

इत्तफाक से इसी दौरान टीआई अनिल बाजपेयी की टीम की नजर विपिन के घर से चंद कदमों की दूरी पर बंद पड़े एक मकान पर पड़ी. उन का इशारा पा कर 2 पुलिसकर्मी उस सूने मकान की दीवार लांघ कर अंदर दाखिल हो गए. दाखिल तो हो गए लेकिन अंदर का नजारा देख कर भौचक रह गए क्योंकि वहां किसी बच्चे की अधजली लाश पड़ी थी.

बच्चे का अधजला शव मिलने की खबर गांव में आग की तरह फैली तो सारा गांव इकट्ठा हो गया. दरवाजा खोलने के बाद पुलिस और गांव वालों ने बच्चे की लाश देखी तो उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. लेकिन विपिन ने उस लाश की शिनाख्त अपने साढ़े 3 साल के बेटे वरुण के रूप में कर दी.

varun-ki-mother-tripti

                           रोती बिलखती वरुण मीणा की मां तृप्ति 

सभी लोग इस बात से हैरान थे कि पिछले 2 दिनों से जिस वरुण की तलाश में लोग आकाश पाताल एक कर रहे थे, उस की लाश घर के नजदीक ही पड़ोस में पड़ी है, यह बात किसी ने खासतौर से पुलिस वालों ने भी नहीं सोची थी.

वरुण के मांबाप और दादादादी होश खो बैठे, जिन्हें संभालना मुश्किल काम था. घर वाले ही क्या, गांव वालों में भी खासा दुख और गुस्सा था. अब यह बात कहने सुनने और समझने की नहीं रही थी कि मासूम वरुण का हत्यारा कोई गांव वाला ही है, लेकिन वह कौन है और उस ने उस बच्चे को जला कर क्यों मारा, यह बात भी पहेली बनती जा रही थी.

गुस्साए गांव वालों को संभालती पुलिसिया काररवाई अब जोरों पर आ गई थी. देखते ही देखते खोजी कुत्ते और फोरैंसिक टीम चीचली पहुंच गई.

डीआईजी इरशाद वली ने बारीकी से वरुण के शव का मुआयना किया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जिस किसी ने भी उसे जलाया है, उस ने धुआं उठने के डर से तुरंत लाश पर पानी भी डाला है. वरुण के शव पर गेहूं के दाने भी चिपके हुए थे, इसलिए यह अंदाजा भी लगाया गया कि उसे गेहूं में दबा कर रखा गया होगा. यानी हत्या कहीं और की गई है और लाश यहां सूने मकान में ला कर ठिकाने लगा दी गई है.

इस मकान के बारे में गांव वाले कुछ खास नहीं बता पाए सिवाए इस के कि कुछ दिनों पहले ही इसे भोपाल के किसी शख्स ने खरीदा है. पूछताछ करने पर विपिन ने बताया कि उस की किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है.

इस के बाद पुलिस ने लाश से चिपके गेहूं के आधार पर ही जांच शुरू कर दी. अच्छी बात यह थी कि खाली पड़े उस मकान से जराजरा से अंतराल पर गेहूं के दानों की लकीर दूर तक गई थी.

डीआईजी के इशारे पर पुलिस वाले गेहूं के दानों के पीछे चले तो गेहूं की लाइन विपिन के घर के ठीक सामने रहने वाली सुनीता के घर जा कर खत्म हुई. यह वही सुनीता थी जो कुछ देर पहले तक वरुण के न मिलने की चिंता में आधी हुई जा रही थी और उस का बेटा भी गांव वालों के साथ वरुण को ढूंढने में जीजान से लगा हुआ था.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ की तो उस का चेहरा फक्क पड़ गया. वह वही सुनीता थी, जो एक दिन पहले तक एक न्यूज चैनल पर गुस्से से चिल्लाती दिखाई दे रही थी. वह चीखचीख कर कह रही थी कि हत्यारों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

इस बीच पूछताछ में उजागर हुआ था कि सुनीता सोलंकी का चालचलन ठीक नहीं है और उस के घर तरह तरह के अनजान लोग आते रहते हैं. पर यह सब बातें उसे हत्यारी ठहराने के लिए नाकाफी थीं, इसलिए पुलिस ने सख्ती दिखाई तो सच गले में फंसे सिक्के की तरह बाहर आ गया.

वरुण जब चौकलेट लेने घर से निकला तो सुनीता को देख कर उस के घर पहुंच गया. मासूमियत और हैवानियत में क्या फर्क होता है, यह उस वक्त समझ आया जब भूखे वरुण ने सुनीता से रोटी मांगी. बदले की आग में जल रही सुनीता ने उसे सब्जी के साथ रोटी खाने को दे दी, लेकिन सब्जी में उस ने चींटी मारने वाली जहरीली दवा मिला दी.

वरुण दवा के असर के चलते बेहोश हो गया तो सुनीता ने उसे मरा समझ कर उस के हाथपैर बांधे और पानी के खाली पड़े बड़े कंटेनर में डाल दिया. इधर जैसे ही वरुण की खोजबीन शुरू हुई तो वह भी भीड़ में शामिल हो गई. इतना ही नहीं, उस ने दुख में डूबे अपने पड़ोसी विपिन मीणा के घर जा कर उन्हें चाय बना कर दी और हिम्मत भी बंधाती रही.

जबकि सच सिर्फ वही जानती थी कि वरुण अब इस दुनिया में नहीं है. उस की तो वह बदले की आग के चलते हत्या कर चुकी है. हादसे की शाम सुनीता का बेटा घर आया तो उसे बिस्तर के नीचे से कुछ आवाज सुनाई दी. इस पर सुनीता ने उसे यह कहते हुए टरका दिया कि चूहा होगा, तू जा कर वरुण को ढूंढ.

बाहर गया बेटा रात 8 बजे के लगभग फिर वापस आया तो नजारा देख कर सन्न रह गया, क्योंकि सुनीता वरुण की लाश को पानी के कंटेनर से निकाल कर गेहूं के कंटेनर में रख रही थी. इस पर बेटे ने ऐतराज जताया तो उस ने उसे झिड़क कर खामोश कर दिया. सुनीता ने मासूम की लाश को पहले गेहूं से ढका फिर उस पर ढेर से कपड़े डाल दिए थे.

16 जुलाई, 2019 की सुबह तड़के 5 बजे सुनीता ने घर के बाहर झांका तो वहां उम्मीद के मुताबिक सूना पड़ा था. वरुण की तलाश करने वाले सो गए थे. उस ने पूरी ऐहतियात से लाश हाथों में उठाई और बगल के सूने मकान में ले जा कर फेंक दी.

लाश को फेंक कर वह दोबारा घर आई और माचिस के साथसाथ कुछ कंडे (उपले) भी ले गई और लाश को जला दिया. धुआं ज्यादा न उठे, इस के लिए उस ने लाश पर पानी डाल दिया. जब उसे इत्मीनान हो गया कि अब वरुण की लाश पहचान में नहीं आएगी तो वह घर वापस आ गई.

हत्या सुनीता ने की है, यह जान कर गांव वाले बिफर उठे और उसे मारने पर आमादा हो आए तो उन्हें काबू करने के लिए पुलिस वालों को बल प्रयोग करना पड़ा. इधर दुख में डूबे विपिन के घर वाले हैरान थे कि सुनीता ने वरुण की हत्या कर उन से कौन से जन्म का बदला लिया है.

दरअसल बीती 16 जून को सुनीता 2 दिन के लिए गांव से बाहर गई थी. तभी उस के घर से कोई आधा किलो चांदी के गहने और 30 हजार रुपए नकदी की चोरी हो गई थी. सुनीता जब वापस लौटी तो विपिन के घर में पार्टी हो रही थी.

इस पर उस ने अंदाजा लगाया कि हो न हो विपिन ने ही चोरी की है और उस के पैसों से यह जश्न मनाया जा रहा है. यह सोच कर वह तिलमिला उठी और मन ही मन  विपिन को सबक सिखाने का फैसला ले लिया.

सुनीता सोलंकी दरअसल भोपाल के नजदीक बैरसिया के गांव मंगलगढ़ की रहने वाली थी. उस की शादी दुले सिंह से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए. इस के बाद भी पति से उस की पटरी नहीं बैठी क्योंकि उस का चालचलन ठीक नहीं था.

इस पर दोनों में विवाद बढ़ने लगा तो दुले सिंह ने उसे छोड़ दिया. इस के बाद मंगलगढ़ गांव के 2-3 युवकों के साथ रंगरलियां मनाते उस के फोटो वायरल हुए थे, जिस के चलते गांव वालों ने उसे भगा दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उस के चक्कर में आ कर गांव के दूसरे मर्द बिगड़ें.

इस के बाद तो सुनीता की हालत कटी पतंग जैसी हो गई. उस ने कई मर्दों से संबंध बनाए और कुछ से तो बाकायदा शादी भी की लेकिन ज्यादा दिनों तक वह किसी एक की हो कर नहीं रह पाई. आखिर में वह चीचली में ठीक विपिन के घर के सामने आ कर बस गई.

चीचली में भी रातबिरात उस के घर मर्दों का आनाजाना आम बात थी. इन में उस की बेटी का देवर मुकेश सोलंकी तो अकसर उस के यहां देखा जाता था. इस से उस की इमेज चीचली में भी बिगड़ गई थी. लेकिन सुनीता जैसी औरतें समाज और दुनिया की परवाह ही कहां करती हैं. गांव में हर कोई जानता था कि सुनीता के पास पैसे कहां से आते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता था.

चोरी के कुछ दिन पहले विपिन का भाई उस के यहां घुस आया था और उस ने सुनीता को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया था. इस पर भी विपिन के घर वालों से उस की कहासुनी हुई थी. यह बात तो आईगई हो गई थी, लेकिन वह चोरी के शक की आग में जल रही थी इसलिए उस ने बदला मासूम वरुण की हत्या कर के लिया.

गांव वालों के मुताबिक यह पूरा सच नहीं है बल्कि तंत्रमंत्र और बलि का चक्कर है. गांव वाले इसे चंद्रग्रहण से जोड़ कर देख रहे हैं. गांव वालों के मुताबिक वरुण की लाश के पास से मिठाई भी मिली थी. घटनास्थल के पास से अगरबत्ती और कटे नींबू मिलने की बात भी कही गई. इस के अलावा वरुण की लाश को लाल रंग के कपड़े से ही क्यों लपेटा गया, इस की भी चर्चा चीचली में है.

गांव वालों की इस दलील में दम है कि अगर वाकई सुनीता के यहां चोरी हुई थी तो उस ने इस का जिक्र किसी से क्यों नहीं किया था और न ही पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

वरुण के नाना अनूप मीणा तो खुल कर बोले कि उन के नाती की हत्या की असली वजह तंत्रमंत्र का चक्कर है. उन्होंने घटनास्थल पर मिले नींबू के अलावा घर के बाहर पेड़ पर लटकी काली मटकी का भी जिक्र किया.

वरुण की हत्या चोरी का बदला थी या तंत्रमंत्र इस की वजह थी, इस पर पुलिस बोलने से बच रही है. लेकिन उस की लापरवाही और नकारापन लोगों के निशाने पर रहा. चीचली के लोगों ने साफसाफ कहा कि लाश एकदम बगल वाले घर में थी और पुलिस वाले यहांवहां वरुण को ढूंढ रहे थे.

गांव वालों का यह भी कहना है कि अगर डीजीपी और आईजी गांव में नहीं आते तो ये लोग उस सूने मकान में भी नहीं झांकते और वरुण की लाश पता नहीं कब मिलती. उम्मीद के मुताबिक इस हत्याकांड पर राजनीति भी खूब गरमाई. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हादसे पर अफसोस जाहिर किया तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बिगड़ती कानूनव्यवस्था को ले कर सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे.

हैरानी तो इस बात की भी है कि गुमशुदगी का बवाल मचने के बाद भी सुनीता ने वरुण की लाश बड़े इत्मीनान से जला दी और किसी को खबर भी नहीं लगी. सुनीता को अपने किए का कोई पछतावा नहीं है. इस से लगता है कि बात कुछ और भी हो सकती है.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ करने के बाद उस के नाबालिग बेटे को भी हिरासत में ले लिया. उस का कसूर यह था कि हत्या की जानकारी होने के बाद भी उस ने पुलिस को नहीं बताया था. पुलिस ने सुनीता को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया जबकि उस के नाबालिग बेटे को बालसुधार गृह भेजा गया.

बेटे ने बना दी मम्मी की ममी

भोपाल के बागसेवनिया थाने के अंतर्गत आने वाले विद्यासागर के सेक्टर-सी स्थित फ्लैट रामवीर  सिंह ने 6 लाख रुपए में खरीदा था. रामवीर सिंह शहर के ही नेहरू नगर में निधि नाम का एक रेस्टोरेंट चलाते थे. उन के रेस्टोरेंट को इस इलाके में हर कोई जानता है. वजह यह भी है कि उन का रेस्टोरेंट अच्छाखासा चलता था. मूलत: ग्वालियर के रहने वाले रामवीर सिंह सालों पहले रोजगार की तलाश में भोपाल आए थे और फिर यहीं के हो कर रह गए थे.

रेस्टोरेंट चल निकला और कुछ पैसा भी इकट्ठा हो गया तो उन्होंने उस पैसे को कहीं लगा देने की बात सोची. रामवीर के रेस्टोरेंट पर कभीकभार आने वाला एक ग्राहक अमित श्रीवास्तव भी था. अमित पर उन का ध्यान इसलिए भी गया था कि वह आमतौर पर शांत और गुमसुम सा रहता था.

उस की बोलचाल में रामवीर को ग्वालियर, चंबल का लहजा लगा तो उन के मन में उस के बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा हुई. दोनों में बातचीत होने लगी तो रामवीर को पता चला कि अमित ग्वालियर का ही रहने वाला है और विद्यानगर में अपनी बूढ़ी मां विमला देवी के साथ रहता है.

एक दिन यूं ही उन के बीच हुई बातों में रामवीर को पता चला कि अमित अपना फ्लैट बेचना चाहता है. यह बात रामवीर को इसलिए अच्छी लगी क्योंकि अपने रेस्टोरेंट की वजह से वह उसी इलाके में रहने के लिए फ्लैट खरीदना चाहते थे.

दोनों के बीच बात चली तो सौदा भी पट गया. 6 लाख रुपए में एक बड़े रूम, किचन और बालकनी वाला फ्लैट रामवीर को घाटे का सौदा नहीं लगा. लिहाजा उन्होंने अमित से बात पक्की कर ली.

जून 2018 में रामवीर ने फ्लैट देख कर उस की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली. इसी दौरान उन्हें अहसास हुआ कि इस संभ्रांत कायस्थ परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. फ्लैट विमला के नाम पर था, जिसे बेचने की सहमति उन्होंने रामवीर को दे दी थी. अमित पहले कहीं नौकरी करता था जो छूट गई थी. उस के घर में उस की बूढ़ी लकवाग्रस्त मां विमला श्रीवास्तव ही थीं, जिन की देखरेख की जिम्मेदारी अमित पर थी.

रजिस्ट्री के वक्त रामवीर ने अमित को ढाई लाख रुपए दिए थे और बाकी रकम भोपाल विकास प्राधिकरण यानी बीडीए में जमा कर दी थी, क्योंकि फ्लैट बीडीए का था. इस तरह अमित का हिसाब किताब बीडीए से चुकता हो गया तो कागजों में फ्लैट पर उन का मालिकाना हक हो गया.

जैसा सोचा था, अमित वैसा नहीं निकला

रजिस्ट्री के पहले ही अमित ने उन से कहा था कि वे मकान खाली करवाने की बाबत जल्दबाजी न करें, कहीं और इंतजाम होते ही वह उस में शिफ्ट हो जाएगा और फ्लैट की चाबी उन्हें सौंप देगा.

चूंकि अमित देखने में उन्हें ठीकठाक और शरीफ लगा था, इसलिए उस की बूढ़ी मां का लिहाज कर के इंसानियत के नाते उन्होंने अमित को कुछ मोहलत दे दी. वैसे आजकल खरीदार रजिस्ट्री तभी करवाता है, जब उसे मकान, दुकान या फ्लैट खाली मिलता है.

उस वक्त रामवीर को जरा भी अंदाजा नहीं था कि यह मानवता उन्हें कितनी महंगी पड़ने वाली है. या कहें उन्होंने फ्लैट नहीं बल्कि एक आफत मोल ले ली है.

दरअसल, अमित उतना सीधासादा या भोला नहीं था, जितना कि वह देखने में लगता था. चूंकि सौदा बिना किसी अड़चन और दलाल के हो गया था, इसलिए उन्होंने किसी बात पर गौर नहीं किया, सिवाय इस के कि अब रजिस्ट्री तो उन के नाम हो ही चुकी है. जब अमित अपना कोई इंतजाम कर चाबी उन्हें सौंप देगा तो मकान की साफसफाई और रंगाईपुताई करा कर वे उस में रहने लगेंगे.

रजिस्ट्री के बाद भी अकसर अमित उन के रेस्टोरेंट पर आता रहता था और उन्हें आश्वस्त करता रहा था कि वह मकान ढूंढ रहा है और ढंग का मकान मिलते ही फ्लैट छोड़ देगा. जब वह कुछ दिन नहीं आता तो रामवीर उस से मोबाइल फोन पर बात कर लेते थे.

जून से ले कर अगस्त, 2018 तक तो अमित उन के संपर्क में रहा, लेकिन फिर उस का फोन एकाएक बंद जाने लगा. इस से रामवीर थोड़ा घबराए, क्योंकि अमित ने उन्हें फ्लैट खाली करने की सूचना नहीं दी थी. जब उस का फोन लगातार बंद जाने लगा तो वे फ्लैट पर पहुंचे, लेकिन वहां हर बार उन का स्वागत लटकते ताले से होता.

अड़ोसपड़ोस में पूछताछ करने पर भी कुछ हासिल नहीं हुआ. कोई भी यह नहीं बता पाया कि अमित और विमला कहां गए. अलबत्ता रामवीर को यह अंदाजा जरूर लग गया था कि अमित ने वादे के मुताबिक फ्लैट खाली नहीं किया है और उस का सामान भी वहीं रखा है.

कानूनन फ्लैट अब उन का हो चुका था, लेकिन ताला तोड़ कर उस में घुसना उन्हें ठीक नहीं लगा, इसलिए वे इंतजार करते रहे कि आज नहीं तो कल अमित उन से संपर्क करेगा. आखिर कोई इतना सामान तो छोड़ कर जाता नहीं. जब भी वह सामान लेने आएगा तब वे चाबी उस से ले लेंगे. यह सोचसोच कर वे खुद को तसल्ली देते रहे.

जब इंतजार और बेचैनी सब्र की हदें तोड़ने लगे और जनवरी तक अमित का कोई पता नहीं चला तो दिल कड़ा कर रामवीर ने फ्लैट का ताला तोड़ कर उस पर अपना हक लेने का फैसला कर लिया. आखिर उन की खून पसीने की गाड़ी कमाई का 6 लाख रुपया उस में लगा था.

दीवान में निकली लाश

रविवार 3 फरवरी को रामवीर ने डुप्लीकेट चाबी से फ्लैट का ताला खोला और साफसफाई की जिम्मेदारी अपने बेटे धर्मेंद्र और 2 मजदूरों को दे दी. इन लोगों ने जब फ्लैट में पांव रखा तो उस में चारों तरफ से बदबू आ रही थी. चूंकि 8-9 महीने से मकान बंद पड़ा था, इसलिए बदबू आना स्वाभाविक बात थी. बदबू से ध्यान हटा कर उन्होंने सफाई शुरू कर दी. चारों तरफ कचरा फैला था और सामान भी अस्तव्यस्त पड़ा था.

मजदूरों ने कमरे में रखे एक दीवान को बाहर निकालने की कोशिश की तो भारी होने की वजह से वह हिला तक नहीं. इस पर धर्मेंद्र ने मजदूरों से कहा कि पहले प्लाई हटा लो फिर दीवान बाहर रख देना. जब मजदूरों ने दीवान की प्लाई हटाई तो तेज बदबू का ऐसा झोंका आया कि वे लोग बेहोश होते होते बचे. उन्हें लगा कि शायद कोई चूहा दीवान के अंदर सड़ रहा है, इसलिए इतनी बदबू आ रही है.

चूहा ढूंढने के लिए मजदूरों ने दीवान में ठुंसे कपड़े हटाने शुरू किए तो कुछ साडि़यां कंबल और एकएक कर 11 रजाइयां निकलीं. आखिरी कपड़ा हटाते ही तीनों की चीख निकल गई. दीवान के अंदर चूहे की नहीं बल्कि किसी इंसान की लाश थी.

खुद को जैसेतैसे संभाल कर मजदूर आए और पुलिस को खबर दी. उस वक्त दोपहर के 2 बज चुके थे. बागसेवनिया थाने के पुलिसकर्मियों के अलावा मिसरोद थाने के एसडीपीओ दिशेष अग्रवाल भी सूचना मिलने पर घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मौके पर पहुंच कर जांच शुरू की तो कई रहस्यमय और चौंका देने वाली बातें सामने आईं. फ्लैट विमला श्रीवास्तव के नाम था जो कुछ साल पहले तक मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम में नौकरी करती थीं. पति ब्रजमोहन श्रीवास्तव की मौत के बाद उन्हें उन के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति मिल गई थी. परिवहन निगम घाटे की वजह से बंद हो गया था. सभी कर्मचारियों की तरह विमला को भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी.

विमला इस फ्लैट में साल 2003 से अपने 32 वर्षीय बेटे अमित के साथ रह रही थीं. 60 वर्षीय विमला धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. अपार्टमेंट में हर कोई उन्हें जानता था. वे अकसर शाम को 4 बजे के लगभग कैंपस में बने मंदिर में पूजापाठ करने जाती थीं और रास्ते में जो भी मिलता था, उसे राधेराधे कहना नहीं भूलती थीं. मंदिर में बैठ कर वह सुरीली आवाज में भजन गाती थीं तो अपार्टमेंट के लोग मंत्रमुग्ध हो उठते थे.

अमित हो गया मनोरोगी

कभीकभी भगवान की मूर्ति के सामने बैठेबैठे वे रोने भी लगती थीं. विमला भगवान से अकसर अपने बेटे अमित के लिए सद्बुद्धि मांगा करती थीं और कभीकभी उन के मन की बात होंठों तक इस तरह आ जाती थी कि आसपास के लोग भी उसे सुन लेते थे. लेकिन भगवान कहीं होता तो उन की सुनता और अमित को रास्ते पर लाता.

श्रीवास्तव परिवार का मिलनाजुलना किसी से इतना नहीं था कि उसे पारिवारिक संबंधों के दायरे में कहा जा सके. विमला तो फिर भी कभीकभार अड़ोसी पड़ोसी से बतिया लेती थीं, लेकिन अमित किसी से कोई वास्ता नहीं रखता था. कुछ दिन पहले तक वह कहीं नौकरी पर जाता था, लेकिन कुछ दिनों से नौकरी पर नहीं जा रहा था. घर पर भी वह कम ही रहता था.

पड़ोसियों की मानें तो अमित विक्षिप्त यानी साइको था. उस की हरकतें अजीबोगरीब और असामान्य थीं. वह एक खास तरह की पिनक और सनक में रहता और जीता था, जो पिछले कुछ दिनों से कुछ ज्यादा बढ़ गई थी. विमला को कुछ महीनों पहले लकवा मार गया था, जिस से वह चलने फिरने से भी मोहताज हो गई थीं. उन्हें किडनी की शिकायत भी रहने लगी थी. अब वह पहले की तरह न मंदिर जाती थीं और न ही किसी को उन के भजन सुनने को मिलते थे. चूंकि अमित किसी से संबंध नहीं रखना चाहता था, इसलिए अपार्टमेंट के लोग भी फटे में टांग अड़ाने से हिचकिचाते थे.

पर यह बात हर किसी को अखरती थी कि कई बार वह अपनी मां को मारने पीटने लगता था. ये आवाजें अब उन के फ्लैट से बाहर आती थीं तो लोग कलयुग है कह कर कान ढंकने की नाकाम कोशिश करने लगते थे. कान ढंकने पर एक मर्तबा आवाज न भी आए, लेकिन आंखें लोग बंद नहीं कर पाते थे. जब अमित विमला को मारता पीटता गैलरी में ला पटकता था तो यह देख कर लोगों का कलेजा फटने लगता था.

राक्षसी प्रवृत्ति का हो गया अमित

पूत कपूत बन चला था, लेकिन कोई कुछ बोल नहीं पाता था तो यह उन की किसी के मामले में दखल देने की आदत कम बल्कि बुजदिली ज्यादा थी. जवान हट्टाकट्टा बेटा उन के सामने ही बूढ़ी अपाहिज मां से मारपीट करता था और लोग तमाशा देखने के अलावा कुछ नहीं करते थे. निस्संदेह ये लोग सभ्य समाज का हिस्सा नहीं थे. हैवानियत और राक्षसी प्रवृत्ति वास्तव में क्या होती है, यह अमित की हरकतों से समझा जा सकता था.

पड़ोसी तो छोडि़ए, अमित ने नाते रिश्तेदारों से भी सबंध नहीं रखे थे. लाश मिलने के बाद यह बात तो एक कागज के जरिए पता चली कि विमला के ससुराल पक्ष के रिश्तेदार ग्वालियर में रहते हैं. बहरहाल, कई दिनों तक जब विमला नहीं दिखीं तो उन की कुछ सहेलियों ने उन की खोजखबर लेने की कोशिश की.

अपार्टमेंट की कुछ बुजुर्ग महिलाएं मई के महीने में उन से मिलने पहुंचीं तो अमित ने उन्हें बेइज्जत किया और दुत्कार कर भगा दिया था. उस दौरान वह अपनी सोती हुई मां का चेहरा कपड़े से ढक कर कह रहा था सो जा मां सो जा…

पुलिस ने जब फ्लैट की तलाशी ली तो उस के हाथ कई अहम सुराग लगे. लेकिन पहली चुनौती लाश की शिनाख्त की थी. लाश बिलकुल सड़ी गली नहीं थी, क्योंकि उसे रजाइयों, कंबल और साडि़यों से ढक कर रखा गया था, जिस से उस का संपर्क हवा से नहीं हो पाया था.

ममी के रूप में मिली लाश

ममी जैसी हालत वाली यह लाश विमला की ही है, इस के लिए पोस्टमार्टम जरूरी था जो एम्स भोपाल में ही कराया गया. पुलिस वालों का शुरुआती अंदाजा यही था कि लाश किसी महिला की ही होनी चाहिए, लेकिन वे दावे से यह बात नहीं कर पा रहे थे.

लाश निकालते वक्त नजारा बहुत वीभत्स था. लाश के पैर दीमक ने कुतर दिए थे और अस्थिपंजर पर मांस बिलकुल भी नहीं था. हड्डियों के ढांचे और ऊपरी परत को देख कर यह नहीं लग रहा था कि उस पर किसी धारदार हथियार का इस्तेमाल किया गया होगा. किसी तरह के चोट के निशान भी लाश पर नहीं थे.

पुलिस ने फ्लैट की तलाशी ली तो उसे विमला और अमित के आधार कार्ड के अलावा बैंक पासबुक, वोटर आईडी, गैस कनेक्शन के कागजात और बिजली के बिल के अलावा अमित की बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी भोपाल की एक मार्कशीट भी मिली जोकि कटीफटी थी.

सब से हैरान कर देने वाली चीज भांग की गोलियों के रैपर थे, जिन से लगता था कि अमित भांग के नशे का आदी था. अमित की शुरुआती पढ़ाई भोपाल के ही सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी.

विमला की एक सहेली जया एंटनी की मानें तो अमित निहायत ही वाहियात लड़का था, जो मैले कुचैले कपड़े पहने रहता था और कई दिनों तक नहाता भी नहीं था. खुद जया ने जब कई दिनों तक विमला को नहीं देखा था तो उन्होंने घटना के कोई 3 महीने पहले पुलिस को खबर की थी. उन्हें शक था कि कहीं विमला किसी अनहोनी का शिकार न हो गई हो. लेकिन पुलिस ने उन की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया. जया ने यह शिकायत कब और किस से की थी, इस का विवरण वे नहीं दे पाईं.

जैसे ही ममी मिलने की खबर भोपाल से होती हुई देश भर में फैली तो सुनने वाले हैरान रह गए. हर किसी ने यही अंदाजा लगाया कि अमित ने ही अपनी मां विमला की हत्या की होगी. इस के पीछे लोगों की अपनी दलीलें भी थीं. कइयों को भोपाल का उदयन भी याद हो आया, जिस ने रायपुर में अपने मांबाप की हत्या कर उन की कब्र बना कर दफना दिया था. उदयन अब पश्चिम बंगाल की एक जेल में सजा काट रहा है.

विमला की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उजागर हुआ कि लाश महिला की ही है और उस की हत्या करीब 3 महीने पहले की गई  थी. एम्स के 3 डाक्टरों की टीम ने मृतका की उम्र 50 साल के लगभग आंकी. पोस्टमार्टम के बाद लाश को विमला की ही मान कर उसे मोर्चरी में रखवा दिया गया. पुलिस की एक टीम अब तक ग्वलियर भी रवाना हो चुकी थी, जिस से विमला के परिजन अगर कोई मिलें तो उन्हें खबर कर दें ताकि वे अंतिम संस्कार कर दें. साथ ही अमित का सुराग ढूंढना भी जरूरी था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लाश के किसी अंग की हड्डी टूटी नहीं पाई गई. चूंकि लाश काफी पुरानी हो चुकी थी, इसलिए डाक्टर मौत की स्पष्ट वजह नहीं बता पाए.

अमित का नहीं लगा सुराग

पुलिस ने तेजी से अमित की खोजबीन शुरू कर दी, जिस से हत्या या मौत पर से परदा हट सके. लेकिन वह ऐसा गायब हुआ था जैसे गधे के सिर से सींग. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अमित का कोई अतापता नहीं चला था. पुलिस ने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स भी निकलवाई, पर उस से भी कुछ खास हाथ नहीं लगा.

5 फरवरी को विमला के जेठ व भतीजा सुरेंद्र श्रीवास्तव ग्वालियर से भोपाल आए लेकिन वे भी कोई ठोस जानकारी नहीं दे पाए. सुरेंद्र का कहना था कि पिछले 25 सालों से विमला या अमित ने उन से कोई संपर्क नहीं रखा है.

उन का मायका भिंड जिले के मडगांव में है लेकिन अमित अपने मामा पक्ष से भी संबंध या संपर्क नहीं रखता था. विमला की 2 बेटियां भी थीं, जिन की काफी पहले मौत हो चुकी थी. सुरेंद्र ने भोपाल के सुभाष नगर विश्राम घाट पर विमला का अंतिम संस्कार किया.

मां की हत्या की हैरान कर देने वाली गुत्थी अब तभी सुलझेगी जब अमित का कुछ पता चलेगा. यह अंदाजा या शक हालांकि बेहद पुख्ता है कि उसी ने ही विमला की हत्या की होगी. लगता ऐसा है कि नशे का आदी हो गया अमित अपनी बीमार और अपाहिज मां के प्रति अवसाद के चलते क्रूर हो गया होगा और उन से छुटकारा पाने की गरज से उस ने इसी सनक में हत्या कर दी होगी.

चूंकि भरेपूरे घने इलाके से लाश ले जा कर कहीं ठिकाने लगाना आसान काम नहीं था, इसलिए अपना जुर्म छिपाने के लिए उस ने लाश को कपड़ों से ढक दिया और घर से भाग गया. लेकिन कहां गया और जिंदा है भी या नहीं, यह किसी को नहीं मालूम.

पुलिस की इस थ्योरी में दम है कि अमित ने जातेजाते एक मोमबत्ती टीवी के ऊपर जला कर रख दी थी, जिस से घर ही जल जाए और लोग इसे एक हादसा समझें. लेकिन मोमबत्ती से टीवी आधा ही जल पाया और वह आग भी नहीं पकड़ पाया.

बढ़ते शहरीकरण, एकल होते परिवार, बेरोजगारी के अलावा हत्या का यह मामला एक युवा के निकम्मेपन और अहसान फरामोशी का ही जीताजागता उदाहरण है, जो इस कहावत को सच साबित करता प्रतीत होता है कि एक मां कई बच्चों को पाल सकती है लेकिन कई संतानें मिल कर एक मां की देखभाल भी नहीं कर सकतीं.

बड़ी भाभी का दीवाना देवर 

भोपाल से 35 किलोमीटर दूर बैरसिया तहसील हमेशा से अनदेखी का शिकार रही है, जिस का फर्क यहां की जिंदगी पर भी पड़ा है. इस इलाके के पिछड़ेपन के चलते यहां अपराध की दर उम्मीद से ज्यादा है. जंगलों से घिरे बैरसिया के बाहरी इलाकों में आए दिन हत्या की वारदातें होती रहती हैं.

ऐसी ही एक वारदात बीती 26 नवंबर को हुई थी. उन दिनों पूरे मध्यप्रदेश की तरह इस क्षेत्र में भी चुनावी चर्चा और गतिविधियां शवाब पर थीं. चुनाव के वक्त पुलिस वालों को सोने के लिए वक्त नहीं मिलता. उस रात करीब 12 बजे नजीराबाद थाने के इंचार्ज योगेंद्र परमार थाने में बैठे कामकाज निपटा रहे थे कि तभी अधेड़ उम्र के एक शख्स ने थाने में कदम रखा.

इतनी रात गए जो भी थाने आता है वह कोई बुरी खबर ही लाता है, यह बात योगेंद्र परमार जानते थे. वह उस व्यक्ति के चेहरे की बदहवासी देख कर ही समझ गए कि जो भी होगी, अच्छी खबर नहीं होगी. लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि खबर हत्या की होगी.

आगंतुक ने अपना नाम लक्ष्मण सिंह गुर्जर, निवासी चंद्रपुर गांव बताया. लक्ष्मण सिंह ने आते ही परमार को बताया कि उस के भाई सोनाथ सिंह की हत्या हो गई है और उस की लाश गांव में उस के घर पर पड़ी है.

योगेंद्र परमार ने बिना वक्त गंवाए टेबिल पर बिखरे पड़े कागजात समेटे और लक्ष्मण सिंह के साथ चंद्रपुर गांव की रवानगी डाल दी. उन्होंने कुछ सिपाही भी साथ ले लिए थे. जातेजाते उन्होंने थाना क्षेत्र में हुई हत्या की खबर एसडीपीओ संजीव कुमार सिंह को भी दे दी.

घटनास्थल गांव के कोने का एक मकान था, जहां एक कमरे में 40 वर्षीय सोनाथ सिंह की लाश पड़ी थी. लाश के आसपास काफी मात्रा में खून फैला था. पहली नजर में ही समझ आ रहा था कि हत्या पूरी बेरहमी से की गई है, क्योंकि सोनाथ सिंह की गर्दन पर धारदार हथियार के आधा दर्जन से भी ज्यादा जख्म दिख रहे थे. अंदाजा लगाया जा सकता था कि ये निशान कुल्हाड़ी या फरसे के हैं, जिन का गांवों में अकसर इस्तेमाल होता है.

लाश पर भरपूर नजर डाल कर योगेंद्र परमार ने जब लक्ष्मण सिंह से हत्या के बारे में पूछा तो उस ने कुछ बातें चौंका देने वाली बताईं, जिस से योगेंद्र परमार समझ गए कि मामला जर, जोरू और जमीन में से जोरू का है.

बकौल लक्ष्मण सिंह जब वह खेत में पानी दे कर घर लौट रहा था तो उस ने गांव के बाहर अपनी भाभी भूलीबाई को भागते हुए देखा था. इतनी रात गए भाभी, भतीजी को ले कर कहां जा रही है, इस बात से चौंके लक्ष्मण सिंह ने भूलीबाई को रोक कर जब उस से बात करनी चाही तो बजाए रुकने के उस ने अपने कदमों की गति और बढ़ा दी.

लक्ष्मण सिंह ही नहीं, यह बात पूरा गांव जानता था कि भूलीबाई और सोनाथ सिंह में आए दिन लड़ाईझगड़ा होता रहता है. इसलिए उस ने यह अंदाजा लगाया कि दोनों में किसी बात पर चिकचिक हुई होगी. इसलिए भाभी यूं घर छोड़ जा रही है. पास के ही गांव कढ़ैया में उस का मायका था.

आखिर हुआ क्या, यह जानने के लिए लक्ष्मण सिंह सोनाथ सिंह के घर पहुंचा तो वहां उस का सामना भाई की लाश से हुआ. इस के बाद यह खबर देने के लिए वह थाने जा पहुंचा था.

पति की हत्या पर भूलीबाई ने कोई शोरशराबा नहीं मचाया था और न ही किसी से मदद की गुहार लगाई थी. यह बात ही उसे शक के कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी थी. लेकिन अंदाजे की बिना पर किसी नतीजे पर पहुंच जाना समझदारी नहीं थी, इसलिए योगेंद्र परमार ने तुरंत पुलिस टीम भेज कर भूलीबाई को थाने बुलवा लिया.

भूलीबाई के थाने आने से पहले की गई पूछताछ में पुलिस वालों को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी थी, सिवाय इस के कि मांगीलाल ने अपनी जमीन दोनों बेटों में बराबर बांट दी थी. लेकिन जमीन इतनी नहीं थी कि उस से किसी एक परिवार का भी गुजारा हो पाता इसलिए सोनाथ सिंह रोजगार की तलाश में बाहर चला गया था.

लेकिन साल में कुछ दिनों के लिए वह गांव जरूर आता था. उस की गैरमौजूदगी में भूलीबाई खेतीकिसानी संभालती थी. दोनों बच्चों में से बेटे को उस ने अपने मायके में छोड़ रखा था.

इन जानकारियों से एक कहानी तो आकार लेती दिख रही थी, जिस में भूलीबाई का रोल अहम था. लेकिन पुलिस किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रही थी. ऐसे में भूलीबाई के बयान ही सोनाथ सिंह की हत्या पर पड़ा परदा उठा सकते थे.

थाने आ कर अच्छेअच्छे मुलजिमों के हौसले पस्त पड़ जाते हैं, फिर भूलीबाई की क्या बिसात थी. लेकिन इस के बाद भी वह अनाडि़यों की तरह ही सही पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही.

पहले तो उस ने अपने देवर लक्ष्मण सिंह को ही फंसाने की गरज से यह बयान दे डाला कि जमीन जायदाद के लालच में उस ने सोनाथ की हत्या की है. साथ ही यह भी कि इस में उस के अलावा और लोग भी शामिल हैं. ये और लोग कौन हैं, इस सवाल पर वह चुप रही.

बात यहां तक तो सच लग रही थी कि सोनाथ सिंह की हत्या में एक से ज्यादा लोग शामिल हैं, क्योंकि एक हट्टेकट्टे मर्द को काबू करना आसान बात नहीं थी. दूसरे घटनास्थल पर किसी तरह के संघर्ष के निशान भी नजर नहीं आ रहे थे, इस का सीधा सा मतलब यह निकल रहा था कि पहले सोनाथ को काबू किया गया, फिर उस पर धारदार हथियार से प्रहार किए गए.

जाहिर था, हत्या अगर भूलीबाई ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी रहा होगा. लक्ष्मण सिंह पर शक करने की कोई वजह पुलिस वालों को समझ नहीं आ रही थी, क्योंकि वह कोई कहानी गढ़ता या झूठ बोलता नहीं लग रहा था.

उलट इस के भूलीबाई अपने बयानों में गड़बड़ा रही थी. पुलिस ने जब सख्ती दिखाई तो कुछ ही देर में उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. चूंकि सोनाथ सिंह उस के चालचलन पर शक करता और मारतापीटता था, इसलिए उस ने पति की हत्या कर दी.

लेकिन भूलीबाई ने पूरी बात अभी भी नहीं बताई थी. यह तो कोई बच्चा भी कह सकता था कि एक अकेली औरत धारदार हथियार से लगातार इतने वार, वे भी सोनाथ जैसे तगड़े मर्द पर, नहीं कर सकती थी. अब पुलिस को उस के और टूटने का इंतजार था, जिस से कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आ जाए.

सोनाथ सिंह की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई थी. दूसरी कानूनी औपचारिकताएं भी पुलिस वालों ने पूरी कर ली थीं. सुबह होतेहोते सोनाथ की हत्या की खबर पूरे इलाके में फैल चुकी थी. लोग चुनावी चर्चा छोड़ तरहतरह की बातें करने लगे थे.

भरेपूरे बदन की भूलीबाई को देख कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वह 2 बच्चों की मां है. 35 की उम्र में खासी जवान दिखने वाली भूलीबाई ने आखिरकार पति की हत्या क्यों की होगी, यह राज भी सुबह का सूरज उगने से पहले उस ने उगल ही दिया. पता चला कि इस वारदात में उस का चचेरा देवर प्रेम सिंह और उस का एक दोस्त पन्नालाल भी शामिल थे.

नाजायज संबंध का जो शक किया जा रहा था, वह सच निकला. हुआ यूं था कि उम्र में आधा रिश्ते का देवर प्रेमसिंह भूलीबाई को दिल दे बैठा था. आजकल हर हाथ में मोबाइल है, जिस का उपयोग प्रेमसिंह जैसे नौजवान पोर्न फिल्में देखने में ज्यादा करते हैं.

दिनरात ऐसी ही अश्लील और सैक्सी वीडियो के समंदर में डूबे प्रेमसिंह को औरत की तलब लगने लगी थी, पर प्यास मिटाने का जरिया उसे नजर नहीं आ रहा था. हालांकि गांव में लड़कियों की कमी नहीं थी, लेकिन पिछड़ेपन के चलते और प्राइवेसी न होने के कारण किसी को पटा पाना आसान काम नहीं था. इन दिनों गांवों में निकम्मे और अय्याश किस्म के नौजवानों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. उन में से एक प्रेमसिंह का दोस्त पन्नालाल भी था.

एक दिन प्रेमसिंह ने जब अपनी जरूरत पन्नालाल को खुल कर बताई तो वह हंस कर बोला, ‘‘लो, बगल में छोरा और गांव में ढिंढोरा.’’

इशारे में कही इस बात को प्रेमसिंह समझ नहीं पाया. लेकिन उम्मीद की एक किरण तो उसे बंधी थी कि पन्नालाल खेला खाया आदमी है, जो उस के लिए जरूर किसी औरत का इंतजाम कर देगा.

जल्द ही दारूमुर्गे की एक दावत हुई, जिस में पन्नालाल ने खुल कर उस से कहा कि तू अपनी भाभी भूलीबाई पर लाइन मार, काम बन जाएगा. बात का खुलासा करते हुए पन्नालाल ने उस की मनोवैज्ञानिक और शारीरिक वजहें भी बताईं. मसलन, तेरा चचेरा भाई साल भर बाहर रहता है, ऐसे में भूलीबाई को मर्द की जरूरत तो पड़ती ही होगी. भूलीबाई किसी को घास नहीं डालती, लेकिन तू ट्राई करेगा तो बात बन भी सकती है.

बात प्रेमसिंह की समझ में आ गई और उस रात वह सो नहीं पाया. रातभर ख्वाबों खयालों में वह भूलीबाई को उसी तरह लपेटे सैक्स करता रहा, जैसा कि पोर्न वीडियो में वह देखता था.

इस ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए प्रेमसिंह अकसर भूलीबाई के घर जा कर बैठने लगा. यह बात भी उसे समझ आ गई थी कि जल्दबाजी, बेसब्री और हड़बड़ाहट दिखाने से बात बिगड़ भी सकती है, इसलिए पहले औरत का दिल जीतो, फिर जिस्म तो वह खुद ही सौंप देती है.

इसी आनेजाने में वह रोज भूलीबाई के अंगों और उभारों को देखता था तो पागल सा हो जाता था. लेकिन प्रेमसिंह मौके की तलाश में था और दिल जीतने की राह पर चल रहा था. छोटे मोटे कामों में वह अपनी भाभी की मदद करने लगा था. यहां तक कि वह पैसा खर्च करने में भी नहीं हिचकता था. अच्छी बात यह थी कि उस पर कोई शक नहीं करता था, क्योंकि वह था तो परिवार के सदस्य सरीखा ही.

भूलीबाई को भी अब समझ आने लगा था कि जिस देवर को शादी के बाद उस ने गोद में खिलाया था, वह कौन सा खेल खेलने की जुगत में आता जाता है. जल्द ही उस की झिझक दूर होने लगी और पन्नालाल की यह सलाह साकार होती दिखने लगी कि एक बार भी सैक्स का लुत्फ उठा चुकी औरत सैक्स के बगैर ज्यादा दिन नहीं रह सकती.

अब दिक्कत यह थी कि प्रेमसिंह पहल कैसे करे. भूलीबाई उस की द्विअर्थी बातों पर हंस कर उसे शह देने लगी थी और इशारों में यदाकदा हल्कीफुल्की सैक्स की बातें भी कर लेती थी. लेकिन प्रेमसिंह को डर इस बात का था कि कहीं ऐसा न हो कि वह पहल करे और भाभी झिड़क दे. डर इस बात का भी था कि भूलीबाई ने अगर घर में शिकायत कर दी तो उस की खासी पिटाई होगी.

लेकिन जिस राह पर दोनों चल पडे़ थे, उस में बहाना खुद चाहने वालों को नजदीक लाने का मौका ढूंढ लेता है.

एक दिन यूं ही बातोंबातों में प्रेमसिंह ने डरतेडरते भूलीबाई को एक पोर्न फिल्म दिखा डाली तो भूलीबाई की भी कनपटियां गर्म हो उठीं. इस फिल्म में वह सब बल्कि उस से भी ज्यादा मौजूद था, जो वह सोचती रहती थी. बस फिर क्या था, एक दिन झिझक की दीवार टूटी तो दोनों बेशर्मी के समंदर में गोता लगा बैठे.

अब यह रोजरोज का काम हो चला था. कोई रोकटोक न होने से दोनों सैक्स का यह खेल आए दिन खेलने लगे. प्रेमसिंह ने भूलीबाई पर वे सारे टिप्स और तौरतरीके आजमा डाले जो पोर्न फिल्मों में दिखाए जाते हैं. मुद्दत से संसर्ग के लिए तरस रही भूलीबाई के लिए कुछ अनुभव एकदम नए और रोमांचक थे.

भूलीबाई के पास पुराना तजुर्बा था और प्रेमसिंह के पास नया जोश. सैक्स के दरिया में दोनों ऐसे डूबे कि उन्हें इस बात का भी होश नहीं रहा कि जो वे कर रहे हैं वह गैरकानूनी न सही लेकिन खतरनाक तो है.

हर साल की तरह बीती दीवाली पर भी सोनाथ सिंह गांव आया. लेकिन जब उस ने यह बताया कि इस बार वह 4-6 दिन नहीं बल्कि महीने भर से भी ज्यादा रुकेगा, तो भूलीबाई बजाय खुश होने के इस गम में डूब गई कि जब तक सोनाथ रुकेगा तब तक वह अपने किशोर प्रेमी से सैक्स का लुत्फ नहीं उठा पाएगी.

यही हाल प्रेमसिंह का था, जो अब एक दिन भी भूलीबाई के बगैर नहीं रह पाता था. वह मन ही मन भूलीबाई भाभी से प्यार भी करने लगा था. यह बेमेल प्यार भले ही शरीर की जरूरत भर था, जिसे वह खुद नहीं समझ पा रहा था.

सोनाथ ने ज्यादा दिन रुकने का फैसला बेवजह नहीं लिया था, बल्कि उसे भूलीबाई पर शक हो चला था. इस की पहली वजह तो यह थी कि भूलीबाई अब पहले की तरह सैक्स के लिए उतावली नहीं होती थी और दूसरी वजह वे बातें थीं जो उस ने उड़ते उड़ते सुनी थीं.

सोनाथ के पास अपने शक को ले कर कोई प्रमाण नहीं था, इसलिए वह गुपचुप भूलीबाई की निगरानी करने लगा. फिर एक दिन उस ने भूलीबाई और प्रेमसिंह को नग्नावस्था में रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. बात आई गई नहीं हुई, बल्कि सोनाथ को अब गांव के लोगों की कही पुरानी कहावत याद आने लगी कि खेती खुद न करो तो जमीन कोई और जोतने लगता है. यही बात औरत पर भी लागू होती है.

पत्नी की इस चरित्रहीनता को न तो वह पेट में पचाए रख सकता था और न ही सार्वजनिक कर सकता था, क्योंकि इस से जगहंसाई उस की ही होनी थी.

ठंडे दिमाग से विचार करने पर उस ने अब गांव में ही रहने का फैसला कर लिया, इस से भूलीबाई और प्रेमसिंह दोनों परेशान हो उठे, जिन्हें एकदूसरे का चस्का लग चुका था. यही लत उन्हें चोरी छिपे मिलने के लिए उकसाने लगी. सोनाथ ने पत्नी से पहले ही कह दिया था कि अब अगर वह प्रेमसिंह से मिली तो खैर नहीं.

पर वह यह भूल रहा था कि खैर तो अब उस की नहीं थी. एक दिन उस ने भूलीबाई को फोन पर बात करते पकड़ लिया, तो उस की खासी धुनाई कर डाली. यह बात जब प्रेमसिंह को पता चली तो उस का खून खौल उठा.

अपने इकलौते इश्किया सलाहकार पन्नालाल को उस ने बताया कि अब उस से भूलीबाई की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही है. दूसरे अगर सोनाथ भूलीबाई की पिटाई करे, यह उस से बरदाश्त नहीं हो रहा है. तैश में आ कर फिल्मी स्टाइल में उस ने सोनाथ के वे हाथ काट डालने की बात भी कह डाली, जो भूलीबाई पर उठे थे.

इस पर पन्नालाल ने बजाए समझाने के आग में घी डालते हुए कहा कि अकेले हाथ काटने से कुछ हासिल नहीं होगा, उलटे सोनाथ पुलिस में सारी बात बता देगा. अगर कांटे को जड़ से खत्म करना है तो सोनाथ की गरदन ही उड़ानी पड़ेगी.

बस फिर क्या था दोनों ने मिल कर सोनाथ के कत्ल की योजना बना डाली. दूसरी ओर वासना की आग में तड़प रही भूलीबाई भी उन का साथ देने तैयार हो गई. पन्नालाल ने प्रेमसिंह को यह भी मशविरा दिया कि सोनाथ के कत्ल के पहले वह जी भर कर भूलीबाई के जिस्म का सुख उठा ले, नहीं तो फिर 13 दिन मौका नहीं मिलेगा, क्योंकि इस दौरान भूलीबाई शोक में होगी और उस के आसपास कोई न कोई बना रहेगा.

ये तमाम बातें इस ढंग से हुईं, इस्तेमाल  मानो इन्हें कत्ल नहीं करना बल्कि बकरी का बच्चा पकड़ना है. हादसे की रात सोनाथ सिंह के गहरी नींद सो जाने के बाद भूलीबाई ने घर का दरवाजा खोला और प्रेमसिंह को अंदर बुला लिया. पहले तो दोनों ने जी भर के जिस्मों की प्यास बुझाई और फिर पन्नालाल को बुला कर हमेशा के लिए सोनाथ की जिंदगी का चिराग बुझा डाला.

सो रहे सोनाथ पर प्रेमसिंह और पन्नालाल ने कुल्हाड़ी से वार किए. इस दौरान भूलीबाई ने पति के पैर पकड़ रखे थे, सोनाथ सिंह नींद में ही नीचे से ऊपर कब पहुंच गया, यह उसे भी पता नहीं चला.

प्लान के मुताबिक भूलीबाई बेटी को गोद में उठा कर भागी, लेकिन इत्तफाकन लक्ष्मण ने उसे देख लिया और तीनों पकड़े गए. जो अब जेल में अपनी करनी की सजा भुगत रहे हैं.

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा – भाग 3

आयुष्मान कार्ड किसी से न करें शेयर

डा. राकेश बोहरे  (चीफ मैडिकल एंड हेल्थ औफिसर) नरसिंहपुर

सरकार जरूरतमंद लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिन के जरिए मरीज को हौस्पिटल में एडमिट कर कैशलेस इलाज किया जाता है, लेकिन सरकारी योजनाओं में बड़े पैमाने पर धांधली भी कुछ प्राइवेट हौस्पिटलों द्वारा की जा रही है.

नैशनल हेल्थ अथौरिटी (एनएचए) आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य स्कीम को ले कर पहले ही एंटी फ्रौड गाइडलाइंस जारी कर चुका है. इस के अलावा विभाग ने राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों में भी नैशनल एंटी फ्रौड यूनिट (एनएएफयू) गठित की है, जो इस योजना से संबंधित फरजीवाड़े की राज्य स्तर पर निगरानी कर सकें. सरकार इस स्कीम को जीरो टेलरेंस अप्रोच के तहत लागू कर रही है.

इस योजना का लाभ उठाने वाले लाभार्थियों को जरूरी दस्तावेजों को जमा करना पड़ता है और साथ ही उन्हें रोगी की औनबेड फोटो भेजनी पड़ती है. इस के अलावा इस स्कीम का फायदा उठाने के लिए आधार बेस्ड वेरिफिकेशन भी किया जाता है.

गांवों में रहने वाली देश की बड़ी आबादी अभी भी इतनी शिक्षित नहीं है कि वह सरकारी योजनाओं की जानकारी को पूरी तरह से समझ सके. जब किसी परिवार का कोई सदस्य गंभीर बीमारी का शिकार हो जाता है तो घर वाले उसे उन प्राइवेट हौस्पिटल में ले जाते हैं, जहां उसे मुफ्त इलाज मिलता है.

मरीज का इलाज शुरू होते ही फारमेलिटी के नाम पर सभी दस्तावेज जमा करवा लिए जाते हैं. रोगी की गंभीर हालत का खतरा दिखा कर कई बार जांच और दवाइयों के नाम पर कुछ रुपए भी जमा करवा लिए जाते हैं. बाद में पता चलता है कि प्राइवेट हौस्पिटल ने इलाज पर खर्च रुपयों से अधिक रुपए सरकारी खजाने से निकाल लिए.

आयुष्मान भारत योजना के तहत सरकार इलाज के लिए 5 लाख रुपए तक की मदद करती है. रोगी इस योजना के तहत रजिस्टर्ड किसी भी अस्पताल में अपना इलाज करा सकते हैं. इस के लिए सरकार के द्वारा 5 लाख रुपए तक की मदद की जाती है. कई दफा ठग रोगी की निजी जानकारियां चुरा कर इस स्कीम के तहत जालसाजी कर लेते हैं. इस के लिए उन की अस्पताल के साथ भी सांठगांठ रहती है.

इस से बचने के लिए अपनी निजी जानकारियों समेत इलाज से संबंधित जानकारियों को किसी के साथ शेयर नहीं करनी चाहिए. साथ ही यदि कोई प्राइवेट हौस्पिटल सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का मुफ्त लाभ देने में कोताही बरते या मरीज के परिवार से रुपए वसूले तो इस की शिकायत जरूर करनी चाहिए.

जिस तरह एटीएम कार्ड के जरिए साइबर फ्रौड की घटनाएं देश में बढ़ रही हैं, उसी तरह आजकल कुछ जालसाज भी लोगों को आयुष्मान कार्ड की आड़ में भी लूट रहे हैं.

ऐसे लोग प्राइवेट हौस्पिटल के डाक्टर्स के साथ मिल कर या कोई अन्य तरीकों से बीमा के पैसे निकालने की कोशिश कर रहे हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ मैडिकल काउंसिल ने 5 ऐसे डाक्टरों को पकड़ा, जो कार्डधारकों की झूठी मैडिकल रिपोर्ट बनाते थे और फिर उन के आयुष्मान कार्ड से इलाज के नाम का बिल लगा कर मोटी रााशि निकाल लिया करते थे.

इन सभी डाक्टरों को निलंबित कर दिया गया है. ऐसे में आप के लिए भी जरूरी है कि आप कुछ बातों का ध्यान रखें, ताकि आप धोखाधड़ी से बच सकें.

अगर आप आयुष्मान योजना के कार्डधारक हैं तो आप को भूल कर भी किसी के साथ अपने इस कार्ड की डिटेल्स शेयर नहीं करनी चाहिए. आप के इस कार्ड का गलत इस्तेमाल कर के कोई भी इस से उपचार के बहाने पैसे निकाल सकता है.

कोशिश करें कि कार्ड को अपने पास ही रखें और जरूरत पड़ने पर अधिकारियों को ही इसे दें. अन्यथा आप के कार्ड की जानकारी ले कर कोई भी इस का गलत इस्तेमाल कर सकता है.

अगर आप आयुष्मान कार्ड बनवा चुके हैं और आप को कस्टमर केयर बन कर कोई काल करता है और फिर आप से आप की बैंकिंग जानकारी अपडेट करने के लिए मांगता है तो आप को ऐसे काल्स से सावधान रहना है, क्योंकि ये जालसाज के काल्स होते हैं और ये आप को ठग सकते हैं.

जालसाज केवाईसी करवाने के नाम पर भी लोगों को ठग रहे हैं. इसलिए आप को ऐसे लोगों से सावधान रहना है, ये लोग आप को मैसेज, वाट्सऐप या ईमेल पर फरजी लिंक भेज कर भी चपत लगा सकते हैं.

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा – भाग 2

पुलिस को क्यों दर्ज करनी पड़ी रिपोर्ट

जानकारी में पता चला कि मैक्सकेयर हौस्पिटल द्वारा 2 बार में उस के कार्ड से लगभग 75 हजार रुपए निकाले गए हैं. यह जानकारी मिलते ही खालिद ने 2 अगस्त, 2022 को एसपी (भोपाल) से मिल कर मैक्सकेयर हौस्पिटल की धोखाधड़ी की शिकायत की, मगर कोई काररवाई नहीं हुई. हौस्पिटल संचालक डा. अल्ताफ मसूद  (Dr. Altaf Masood) के रसूख के चलते खालिद की शिकायत नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर दब गई.

तभी खालिद ने भोपाल के प्रसिद्ध वकील शारिक चौधरी (Advocate Shariq Choudhry) के बारे में सुना था कि वह लोगों की मदद करते हैं. एक दिन खालिद ने एडवोकेट शारिक चौधरी से मुलाकात कर अपने साथ हुई धोखाधड़ी की जानकारी उन्हें विस्तार से दी.

advocate-shariq-chaudhary-card-scam

तब एडवोकेट शारिक चौधरी ने सीआरपीसी की धारा 156 के तहत माननीय न्यायाधीश संदीप कुमार नामदेव प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट भोपाल की अदालत में परिवाद दायर किया. तब कोर्ट ने 8 नवंबर, 2023 को एसपी को आदेश दे कर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए.

भोपाल के टीला जमालपुरा स्थित हाउसिंग बोर्ड कालोनी निवासी 28 साल के खालिद अली की शिकायत पर भोपाल की तलैया पुलिस ने फतेहगढ़ स्थित मैक्सकेयर चिल्ड्रन अस्पताल के संचालक अल्ताफ मसूद पर धोखाधड़ी,  फरजी दस्तावेज तैयार करने के मामले में केस दर्ज कर लिया.

एफआईआर के बाद तलैया पुलिस थाने के एसआई कर्मवीर सिंह जब जांच के लिए अस्पताल पहुंचे तो अस्पताल संचालक वहां से गायब हो गया. एसआई शर्मा ने मौजूद स्टाफ से जोहान के इलाज संबंधी फाइल की जांच कर बयान दर्ज किए. जांच के दौरान इलाज करने वाला डाक्टर अस्पताल से नदारद मिला.

3 महीने तक मासूम को हौस्पिटल में भरती रखा गया, जिस में कई बार में दवाइयों और इलाज के नाम पर 3 लाख से अधिक रुपए वसूल लिए. खालिद जब भी बिल मांगता, अस्पताल प्रबंधन उसे टके सा जबाव दे देता, ”मरीज के डिस्चार्ज होने के समय पूरे बिल दे दिए जाएंगे, आप चिंता न करें.’‘

आखिरकार मासूम जोहान की मौत हो गई और बाद में पता लगा कि अस्पताल की ओर से आयुष्मान कार्ड से भी बच्चे के इलाज के नाम पर रकम सरकारी खजाने से ली गई है, जबकि खालिद के परिवार को इस की जानकारी नहीं दी गई थी. खालिद ने सब से पहले इस फरजीवाड़े की शिकायत पुलिस थाने में की तो सुनवाई नहीं हुई. तब जा कर कोर्ट में परिवाद दायर किया.

धोखाधड़ी का पता चलते ही खालिद ने सभी संबंधित सरकारी विभागों में इस की शिकायत की और आयुष्मान योजना के भोपाल औफिस से आए वेरीफिकेशन काल वालों को भी बताया कि उस ने अपने बेटे के इलाज का पूरा भुगतान कर दिया है. इस के बाद भी कहीं से कोई काररवाई नहीं हुई.

आखिरकार खालिद ने एडवोकेट शारिक चौधरी के माध्यम से धोखाधड़ी का परिवाद कोर्ट में दायर कर दिया. इस पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए पुलिस को धारा 120बी, 420, 468 और 471 के तहत एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए. इस के बाद भोपाल की तलैया पुलिस थाने में अस्पताल के संचालक डा. अलताफ मसूद के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर लिया.

dr-altaf-masood-card-fraud-bhopal

खालिद अली ने बताया कि डा. अल्ताफ मसूद सरकारी योजनाओं में जम कर भ्रष्टाचार कर रहा है और उस के खिलाफ शिकायतें भी हो रही हैं, मगर अपनी राजनीतिक पहुंच के चलते उस पर कोई काररवाई नहीं होती है.

भोपाल की तलैया पुलिस ने आयुष्मान भारत योजना के औफिस को पत्र लिख कर जानकारी चाही है कि इस योजना का लाभ हासिल करने और इलाज के दौरान भुगतान के कौन से नियम हैं. कथा लिखे जाने तक डा. अल्ताफ मसूद पर कोई काररवाई नहीं हुई थी.

आयुष्मान कार्ड धारकों में मध्य प्रदेश अव्वल

‘आयुष्मान भारत योजना’ के सब से ज्यादा आयुष्मान कार्डधारक मध्य प्रदेश में ही हैं. यहीं पर सब से ज्यादा लापरवाही देखी जा रही है. कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मध्य प्रदेश में आयुष्मान के लिए जिला स्तर पर शिकायत निराकरण समितियों का गठन नहीं किया गया है.

आयुष्मान योजना में सूचना शिक्षा और संवाद का प्लान तो बनाया, लेकिन उसे लागू नहीं किया गया. कैग की पैन इंडिया औडिट रिपोर्ट में अनियमितताओं के सब से ज्यादा मामले मध्य प्रदेश में ही हैं. मध्य प्रदेश में कई संदिग्ध कार्ड और मृत लोगों को भी लाभार्थी के रूप में रजिस्ट्रैशन की जानकारी पाई गई है.

कैग की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में करीब 25 अस्पताल ऐसे हैं, जिन्होंने क्षमता से अधिक बैड आक्यूपेंसी दिखाई. यानी कि इन अस्पतालों ने एक दिन में बैड क्षमता से ज्यादा मरीजों की भरती दिखा कर क्लेम लिया है. भोपाल के जवाहरलाल नेहरू कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में 20 मार्च, 2023 तक 100 बैड थे, लेकिन इस में 233 मरीजों को दिखाया गया.

कैग की रिपोर्ट में सरकारी अस्पताल समेत कुल 24 अस्पतालों के नाम शामिल हैं. कैग की रिपोर्ट में कहा गया डिफाल्टिंग अस्पतालों से होने वाली रिकवरी के मामले में मध्य प्रदेश के आंकड़े सब से खराब हैं.

आयुष्मान भारत योजना में 2022 में जबलपुर के एक निजी अस्पताल ने फरजीवाड़ा कर के सरकार को साढ़े 12 करोड़ का चूना लगाया था. इस अस्पताल ने मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म की तरह 4 हजार मरीजों को होटल में भरती कर के फरजी इलाज किया. अस्पताल ने कथित मरीजों के साथ उन्हें लाने वालों तक को कमीशन बांटा था.

जबलपुर पुलिस की टीम ने स्वास्थ्य विभाग के साथ मिल कर 26 अगस्त, 2022 को सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल में छापा मारा था. उस समय अस्पताल के अलावा बाजू में होटल वेगा में भी छापा मारा गया था. जांच के दौरान होटल वेगा और अस्पताल में आयुष्मान कार्डधारी मरीज भरती पाए गए थे.

अस्पताल संचालक डा. दुहिता पाठक और उस के पति डा. अश्विनी कुमार पाठक ने कई लोगों को फरजी मरीज बना कर यहां रखा था. होटल के कमरे में 3-3 लोग भरती पाए गए थे. अस्पताल ने फरजीवाड़ा कर के सरकार को साढ़े 12 करोड़ रुपए का चूना लगाया था.

अस्पताल ने कथित मरीजों के साथ उन्हें लाने वालों तक को कमीशन बांटा था. इस के बाद पुलिस ने डाक्टर दंपति के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था और डाक्टर दंपति को जेल की हवा खानी पड़ी थी.

इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया था. एसआईटी जांच में यह खुलासा हुआ था कि आयुष्मान भारत योजना के तहत सेंट्रल इंडिया किडनी हौस्पिटल में 2 से ढाई साल में लगभग 4 हजार मरीजों का इलाज हुआ था, जिस के एवज में सरकार द्वारा तकरीबन साढ़े 12 करोड़ रुपए का भुगतान अस्पताल को किया गया था.

इस के साथ ही इस बात के भी दस्तावेज मिले हैं कि दूसरे राज्यों के मरीजों का उपचार भी सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल में हुआ था, जोकि गैरकानूनी है.

एसआईटी ने सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल में कार्यरत कर्मचारियों से भी पूछताछ की, जिस में कई कर्मचारियों ने बताया कि वह अस्पताल में आयुष्मान योजना का लाभ लेने वाले लोगों को भरती करवाते थे तो अस्पताल संचालक दुहिता पाठक और उस के पति डा. अश्विनी पाठक बतौर कमीशन 5 हजार रुपए देते थे.

कमीशन लेने के लिए कर्मचारियों ने कई बार एक ही परिवार के लोगों को अलगअलग तारीखों में भरती किया था. उन के नाम पर आयुष्मान योजना का फरजी बिल लगा कर लाखों रुपए की वसूली की गई थी.

—कथा c, पीड़ित परिवार से बातचीत और पुलिस सूत्रों पर आधारित

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा – भाग 1

3 महीने तक चले इलाज के दौरान डाक्टरों ने कई बार जोहान को ब्लड देने की मांग की, तब एक बार खालिद और एक बार दादा जाकिर अली ने भी उसे खून दिया था. जबकि 2 बार खालिद के परिचितों ने जोहान के लिए ब्लड डोनेट किया था.

मैक्सकेयर हौस्पिटल (Max care Hospital) के डाक्टरों का ध्यान जोहान की सेहत के बजाय रुपए वसूलने पर ज्यादा था, इसलिए जोहान की हालत में कोई सुधार नहीं आया. रुपए खर्च कर परिवार के लोग थक चुके थे.

परिवार के लोग जोहान की हालत देख कर चिंतित हो जाते थे, उस के शरीर में केवल हड्डी और चमड़ी ही बची थी. एक दिन खालिद ने अस्पताल की संचालक डाक्टर से सवाल किया, ”सर, हमारे लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं. आखिर बच्चे की हालत में सुधार क्यों नहीं हो रहा? सुधार की जगह हमें गिरावट ही दिख रही है. डाक्टर साहब, उस की हालत कब सुधरेगी. अब तो हमारे पास पैसे भी नहीं बचे हैं.’‘

इस पर डाक्टर ने झल्ला कर जबाव दिया, ”हम लोग उस का इलाज कर रहे हैं न, पैसों की इतनी दिक्कत है तो किसी खैराती अस्पताल में जा कर उस का इलाज कराओ.’‘

जनवरी की वह रात बहुत सर्द थी. कमरे के अंदर भी हाथपांव ठंड की वजह से सुन्न हो रहे थे. मध्य प्रदेश के जिला भोपाल (Bhopal) के टीला जमालपुरा स्थित हाउसिंग बोर्ड कालोनी में रहने वाले 28 वर्षीय खालिद अली का 3 महीने का बेटा जोहान भी ठंड की वजह से परेशान था, उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. अपनी अम्मी की बाजू में लेटे जोहान के बदन की गरमाहट से उस की अम्मी का बुरा हाल था. उस ने घड़ी देखी, उस समय रात के 2 बज रहे थे. सुबह होने में अभी काफी वक्त था. शौहर खालिद गहरी नींद में खर्राटे भर रहा था.

परेशान हो कर वह बैड से उठी और बाजू के बैड पर सो रहे शौहर खालिद को झिंझोड़ते हुए बोली, ”जल्दी से उठिए, मुझे जोहान की तबीयत ठीक नहीं लग रही.’‘

”क्या हुआ, तुम मुझे सोने भी नहीं  देती?’‘खालिद ने आंखें मलते हुए लापरवाही से कहा.

”जोहान तेज बुखार से तप रहा है, उसे सर्दी भी है और उस की सांसें तेज चल रही हैं. जल्दी उठिए, उसे अस्पताल ले जाना पड़ेगा.’‘जोहान की अम्मी बोली.

तब तक खालिद नींद से पूरी तरह जाग चुका था, उस ने उठ कर जोहान की नब्ज टटोली और बीवी से बोला, ”जल्दी से तैयार हो जाओ, जोहान को तुरंत अस्पताल ले जाना होगा.’‘

तब तक खालिद के अब्बू जाकिर अली भी जाग चुके थे. उन्हें जैसे ही पोते की तबीयत खराब के बारे में बताया गया तो वह भी चिंता में पड़ गए. तब तक खालिद ने एक परिचित आटोरिक्शा वाले को फोन कर दिया था. रिक्शा आतेआते सुबह के 4 बज चुके थे. दादा जाकिर ने अच्छी तरह समझाते हुए कहा, ”बेटा, जोहान को फतेहगढ़ के मैक्सकेयर अस्पताल ही ले कर जाना.’‘

”हां अब्बू, तुम चिंता मत करो, हम वहीं ले कर जा रहे हैं.’‘खालिद ने आटोरिक्शा में बैठते हुए कहा.

चंद मिनटों में ही खालिद अपनी बीवी और बीमार बेटे को ले कर फतेहगढ़ इलाके में स्थित बच्चों के मशहूर मैक्सकेयर चिल्ड्रन हौस्पिटल पहुंच गया. इमरजेंसी वार्ड से जोहान को आईसीयू में भरती करा दिया. यह बात 4 जनवरी, 2022 की है.

इस के पहले भी जोहान को सर्दी जुकाम होने पर 26 नवंबर, 2021 को मैक्सकेयर हौस्पिटल में भरती कराया गया था. उस समय जोहान को हौस्पिटल में 6 दिसंबर, 2021 तक भरती रखा गया था.

डाक्टरों ने बुखार के मरीज को 3 महीने क्यों किया भरती

जब खालिद ने पहली बार अपने बेटे को मैक्सकेयर हौस्पिटल में भरती कराया था, तभी उस ने हौस्पिटल के संचालक डा. अल्ताफ मसूद से कहा था, ”सर, मेरे पास आयुष्मान कार्ड है, क्या इलाज में यह काम आएगा?’‘

”देखिए, हमारा हौस्पिटल अभी आयुष्मान योजना के पैनल में शामिल नहीं है, लेकिन जल्द ही हो जाएगा. आप के बेटे की हालत नाजुक है, ऐसे में आप अभी पेमेंट कर दें, यदि आगे लाभ मिलेगा तो इलाज का पैसा आप को वापस मिल जाएगा.’‘

बात बेटे जोहान की सेहत की थी, इसलिए खालिद ने बिना देर किए इलाज और जांच के लिए करीब 37 हजार रुपए जमा कर दिए. 28 साल का खालिद अली अपने 3 महीने के बेटे जोहान की सेहत के लिए हमेशा सचेत रहता था. वह नहीं चाहता था कि उस के मासूम बेटे जोहान को किसी भी तरह की तकलीफ हो.

मैक्सकेयर हौस्पिटल के संचालक के कहने पर 4 जनवरी, 2022 से 17 जनवरी, 2022 तक जोहान मैक्सकेयर हौस्पिटल में एडमिट रहा. इस दौरान अस्पताल प्रबंधन ने  आयुष्मान कार्ड से फ्री इलाज न कर खालिद अली से पैसे जमा कराए थे.

लाखों रुपए लुटाने के बाद भी बेटे की हालत में सुधार होते न देख खालिद उसे पहले भोपाल के एम्स ले गए, वहां से डीआईजी बंगले के पास स्थित अस्पताल में भरती कराया गया. आखिरकार, चंद ही घंटों में मासूम जोहान को मृत घोषित कर दिया गया.

जोहान की मौत का सदमा खालिद की बीवी को सब से ज्यादा लगा. बेटे की मौत के बाद उसे ऐसा लगा जैसे उस का सब कुछ चला गया.

खालिद अली ने अपने 3 महीने के बेटे को इलाज के लिए जनवरी, 2022 में भोपाल के फतेहगढ़ इलाके में मैक्सकेयर चिल्ड्रन अस्पताल में भरती कराया था. चूंकि खालिद के पास सरकार की आयुष्मान भारत योजना (Ayushman Bharat Yojna) का आयुष्मान कार्ड था. लिहाजा उस ने अस्पताल संचालक से कार्ड के माध्यम से इलाज की गुहार लगाई थी. लेकिन अस्पताल संचालक ने आयुष्मान कार्ड (Ayushman Card) के जरिए इलाज करने से साफ मना कर दिया.

अस्पताल संचालक द्वारा उसे बताया गया कि अभी यह अस्पताल योजना का लाभ देने के लिए लिस्ट में शामिल नहीं है. जबकि खालिद से सारे दस्तावेज जमा करवा लिए गए थे. अस्पताल ने बाद में खालिद से 37 हजार रुपए जमा भी करवाए और इलाज के नाम पर लाखों रुपए की दवाइयां भी उस ने खरीदीं. इलाज और दवाओं के कोई बिल भी अस्पताल की ओर से नहीं दिए गए.

खालिद अली ने एलएलबी की पढ़ाई की थी और कानून की उसे जानकारी भी थी, लिहाजा हौस्पिटल द्वारा की गई धोखाधड़ी पर वह चुप नहीं बैठा. अखबारों में खालिद ने आयुष्मान कार्ड घोटाले की खबरें पढ़ीं तो खालिद को शक हुआ कि कहीं उस के साथ भी हौस्पिटल द्वारा फ्राड तो नहीं किया गया है. उस ने आयुष्मान भारत योजना के भोपाल औफिस में सूचना के अधिकार के तहत एक आरटीआई दाखिल कर अपने कार्ड से हुए भुगतान की जानकारी मांग ली.

एक दिन खालिद को आयुष्मान भारत योजना की ओर से वेरीफिकेशन काल आई. काल करने वाले ने खालिद से पूछा, ”क्या आप खालिद अली बोल रहे हैं?’‘

”हां, मैं खालिद अली ही बोल रहा हूं.’‘खालिद ने जबाव दिया.

”क्या आप के बच्चे का इलाज मैक्सकेयर हौस्पिटल में चल रहा है?’‘काल करने वाले ने पूछा.

”हां जी, इलाज तो चला था, मगर अब बेटे की मौत हो चुकी है.’‘खालिद ने बताया.

”क्या आप के बेटे का इलाज आयुष्मान भारत योजना के तहत फ्री हुआ था. अस्पताल ने रुपए तो नहीं लिए?’’

पैसे की बात सुनते ही खालिद सकते में आ गया और उस ने बताया, ”मगर हम ने तो इलाज के लिए पूरा बिल अस्पताल को दिया है.’‘

वेरीफिकेशन करने वाले ने बताया कि अस्पताल की ओर से आयुष्मान कार्ड के खाते से भी पैसे निकाले गए हैं.

रोमानिया का जालसाज : एटीएम क्लोनिंग से अकाउंट साफ

रोमानिया का जालसाज : एटीएम क्लोनिंग से अकाउंट साफ – भाग 3

भोपाल और इंदौर में बैठे लोगों के मोबाइल पर पैसा निकलते ही मैसेज आने लगे तो लोग चौंक गए कि वह तो कभी दिल्ली गए ही नहीं और एटीएम उन की जेब में है. ऐसे में दिल्ली के एटीएम से किस ने उन के पैसे निकाल लिए. इस के बाद 15 दिन के भीतर 100 से ज्यादा लोगों ने साइबर फ्रौड की शिकायतें इंदौर-भोपाल में कीं.

12वीं पास आयोनियल साइबर फ्रौड करने के मामले में इतना शातिर था कि वह स्कीमर से एटीएम के क्लोन बना लेता था. एटीएम के जरिए किसी के अकाउंट से पैसे निकालने के लिए पासवर्ड जानने  के लिए उस ने फिरोज के जरिए एटीएम मशीन के कीपैड के ऊपर लगने वाले कई प्लेट्स मंगवाए. इन प्लेट्स के बीच में स्पैशल कैमरा फिट किया.

ये कैमरा एक माइक्रो एसडी कार्ड और छोटी बैटरी से कनेक्टेड था. आयोनियल ने कैमरे से लैस प्लेट्स को एटीएम मशीन के कीपैड पर कुछ इस तरह सेट किया कि सीधे इस की नजर पासवर्ड वाले नंबर्स पर ही पड़े.

इस के बाद दोनों सुबह से शाम तक उस एटीएम के बाहर ही भटकते रहते थे, जहां ये डिवाइस फिट करते थे. दोनों कैमरे की बैटरी खत्म होने से पहले ही प्लेट निकाल लेते थे. इस के बाद ट्रांजैक्शन टाइमिंग के हिसाब से हिडन कैमरे में रिकौर्डेड कोड को मैच करते थे. जिस कार्ड का पास कोड मैच होता, उस का क्लोन तैयार कर के रख लेते थे.

आरोपी ने भोपाल आ कर बैंक औफ बड़ौदा के एटीएम बूथों की रेकी की. फिर सुनसान जगह पर लगे बूथ में स्कीमिंग डिवाइस के साथ हिडन कैमरे फिट किए. इस के जरिए उन्होंने डाटा चुराया. इस के बाद वह पुराने गिफ्ट कार्ड का इंतजाम करते थे, इस में चुराए गए खाताधारक का डाटा डिजिटल एमएसआर (एटीएम कार्ड का क्लोन तैयार करने वाली मशीन) से उस में भर देते थे.

इस काम में आयोनियल मिउ माहिर था.उस ने रोमानिया में ही यह सब सीखा था. बाद में हिडन कैमरे की मदद से पिन नंबर हासिल कर लेते थे और फिर क्लोन कर बनाए नए एटीएम से बूथ में जा कर रुपए निकालते थे.

रोमानियन नागरिक आयोनियल मिउ मईजून महीने में भोपाल आया था. इस दौरान रातीबड़ के गांव मैंडारा में औनलाइन ऐप का उपयोग कर वह होम स्टे में रुका था. उसे रुकवाने और कार का इंतजाम फिरोज ही करवाता था. वह अपने ही दस्तावेज उस के नाम के साथ लगाया करता था.

आयोनियल मिउ का पासपोर्ट और वीजा तो पुलिस के पास 6 साल से जब्त है. मिउ पर 2017 में 2 साइबर अपराध मुंबई में दर्ज हैं, फिलहाल वह जमानत पर है, उस की जमानत भी फिरोज ने करवाई थी.

जालसाजों ने बैंक औफ बड़ौदा के एटीएम को ही क्यों चुना

मास्टरमाइंड आयोनियल मिउ रोमानिया और यूरोपियन जालसाजों के गिरोह में रह कर काम कर चुका है. वह विदेश से क्लोनिंग मशीन और हिडन कैमरे ले कर आया था. उक्त क्लोनिंग कियोस्क पुरानी तकनीक की हैं, जो मैग्नेटिक एटीएम कार्ड का डाटा ही कैप्चर कर सकती हैं. बैंक औफ बड़ौदा की कुछ पुरानी एटीएम मशीनें हैं. जालसाज के पास जो मशीनें थीं, वह पुरानी डिजाइंस के एटीएम मशीनों में ही लग सकती थी, इस कारण वह बैंक औफ बड़ौदा के एटीएम कियोस्क को चुनता था.

रोमानिया के आयोनियल के पास जो स्कीमर मशीन थी, वह चिप वाले एटीएम डिवाइस का क्लोन तैयार नहीं कर सकती थी. बैंक औफ बड़ौदा के कुछ खाताधारक अब भी पुराने ढर्रे के एटीएम काड्र्स उपयोग कर रहे थे. पुराने एटीएम कार्ड में चिप नहीं लगी थी, इन के पीछे ब्लैक कलर की एक मैग्नेटिक स्ट्रिप होती थी, जिसे एटीएम मशीन रीड करती थी.

इस के अलावा जिन एटीएम कियोस्क में डिवाइस फिट किए गए, वो भी अपडेटेड नहीं थी. इस कारण यहां से डाटा चुराना आसान था. यही कारण था कि आयोनियल ने बैंक औफ बड़ौदा को चुना.

रोज 50 हजार की कोकीन का सेवन करता था आयोनियल

जालसाज गिफ्ट वाउचर वाले कार्ड को एमएसआर मशीन से एटीएम के रूप में बनाता था. स्कीमिंग डिवाइसेस से एटीएम कार्ड की जानकारी लेता था. उसी समय ग्राहक द्वारा डाले गए पिन नंबर की जानकारी वह मशीन की स्क्रीन के ऊपर लगाए गए हाई रिजोल्यूशन कैमरे से निकाल लेता था. दोनों के डाटा को मैच करने के बाद वह एसएमआर मशीन से उक्त डाटा को गिफ्ट वाउचर के कार्ड में डालता था, जिस के बाद एटीएम कार्ड के रूप में इस्तेमाल कर पैसे निकालता था.

पूछताछ में पता चला है कि जालसाज आयोनियल मिउ ड्रग्स का आदी था. वह रोज 40 से 50 हजार रुपए की कोकीन या अन्य सिंथेटिक ड्रग्स का सेवन करता था. डीसीपी ने बताया कि हैवी ड्रग एडिक्ट होने के कारण भोपाल में जब रहने आया तो करीब एक महीने के उपयोग के लिए अपने साथ दिल्ली से ही बड़ी मात्रा में कोकीन ले कर आया था. बिना पासपोर्ट वीजा का एक अंतरराष्ट्रीय जालसाज भोपाल में किराए के कमरे में एक महीने रहा.

आयोनियल मिउ का पासपोर्ट जब्त होने के कारण भोपाल में फिरोज ने अपने दस्तावेज से मकान किराए पर लिया था.

19 अगस्त, 2023 को भोपाल पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्रा ने बैंक औफ बड़ौदा ठगी मामले का खुलासा एक प्रैस कौन्फ्रैंस में करते हुए बताया कि रोमानिया का रहने वाला आयोनियल केवल कैश में डील करता था. उस का कोई बैंक अकाउंट नहीं है.

पुलिस को फिरोज के कुछ बैंक डिटेल्स हाथ लगे हैं. उस की छानबीन की जा रही है. वहीं दोनों ने फरजी तरीके से 16 लाख रुपए जमा किए थे, जो दोनों ने अय्याशी में उड़ा दिए. दोनों के हर दिन का खर्चा करीबन 60 हजार रुपए था.

दोनों दिल्ली के महंगे होटलों में अय्याशी करने ही पहुंचे थे, लेकिन पकड़े गए. आयोनियल मिउ कोकीन और दूसरे नशे का भी आदी है, उसे ठीक से अंगरेजी नहीं आती, इसलिए पूछताछ में पुलिस को परेशान होना पड़ा.

भोपाल, इंदौर के साथ कई शहरों में जालसाजी करने के बाद वह अपने साथी फिरोज के साथ जयपुर में ठगी करने के लिए ही जाने वाला था. दोनों राजस्थान के जयपुर में रैकी भी कर चुके थे, लेकिन उस से पहले ही दबोच लिए गए. भोपाल पुलिस ने दोनों से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित