
नंदकुमार साहू का साथ पा कर चंद्रभाव और भी शातिर हो गया. मगर उन दोनों का यह काम ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाया. यात्रियों की शिकायत पर पुलिस सतर्क हुई तो दोनों ही चोरी करते पकड़े गए. इस के बाद दोनों के कुली के बैज छिन गए.
काम बंद हुआ तो दोनों के घरों में खाने के लाले पड़ गए. कमाई का कोई जरिया नहीं रहा तो दोनों पूरी तरह से अपराध की राह पर चल पड़े. अब वे ट्रेन से सफर करने वाले यात्रियों को किसी तरह अपने जाल में फंसाते और एकांत में ले जा कर उन्हें डराधमका कर लूट लेते. दोनों यह काम कुर्ला के लोकमान्य तिलक टर्मिनस से ले कर नासिक मनमाड़ रेलवे स्टेशन तक करते थे.
यात्रियों का ध्यान इधरउधर कर के चंद्रभाव और नंदकुमार महंगे मोबाइल, लैपटौप और बैग पर हाथ साफ कर देते. जब दोनों लगातार चोरियां करने लगे तो पकड़े भी गए. इस तरह नंदकुमार और चंद्रभाव के खिलाफ नासिक और मनमाड़ के जीआरपी थानों में कई मुकदमे दर्ज हो गए.
5 जनवरी, 2014 को विशाखापट्टनम एक्सपे्रस टे्रन से ईस्टर अनुह्या कुर्ला के लोकमान्य तिलक रेलवे टर्मिनस के प्लेटफार्म नंबर 5 और 6 पर उतरी. उस समय सुबह के साढ़े 4 बज रहे थे. बाहर अंधेरा और सुनसान होने की वजह से वह प्लेटफार्म पर ही बैठ कर उजाला होने का इंतजार करने लगी.
उसी बीच शिकार की तलाश में प्लेटफार्म पर घूम रहे चंद्रभाव और नंदकुमार की नजर उस पर पड़ गई. अकेली लड़की देख कर दोनों उस के पास पहुंचे. उस के महंगे मोबाइल और लैपटौप को देख कर उन के मुंह में पानी आ गया. वे उन्हें किसी भी तरह हासिल करने की योजना बनाने लगे.
लूट का इरादा बना कर चंद्रभाव और नंदकुमार ने कहा कि अगर वह चलना चाहे तो वे उसे अपनी टैक्सी से उस के हौस्टल तक पहुंचा सकते हैं, लेकिन ईस्टर अनुह्या प्रसाद ने मना कर दिया. जब चंद्रभाव और नंदकुमार लगातार आग्रह करने लगे तो ईस्टर अनुह्या उन के साथ जाने के लिए राजी हो गई. पैसा भी तय हो गया. दोनों ने उसे हौस्टल तक पहुंचाने के लिए 3 सौ रुपए मांगे थे.
किराया तय होने के बाद ईस्टर अनुह्या चंद्रभाव और नंदकुमार के साथ टर्मिनस से बाहर टैक्सी स्टैंड पर आई तो वहां उसे कोई टैक्सी दिखाई नहीं दी. वहां सिर्फ एक मोटरसाइकिल खड़ी थी. ईस्टर ने जब उन से टैक्सी के बारे में पूछा तो चंद्रभाव ने बड़ी ही विनम्रता से कहा, ‘‘मैडम, आप अकेली ही तो हैं. मैं आप को अपनी मोटरसाइकिल से आप के हौस्टल तक पहुंचा दूंगा.’’
ईस्टर अनुह्या ने मोटरसाइकिल से जाने से मना कर दिया तो चंद्रभाव ने कहा, ‘‘मैडम, आप को घबराने या डरने की जरा भी जरूरत नहीं है. हम शरीफ और बालबच्चे वाले आदमी हैं. इस पर भी आप को हमारे ऊपर विश्वास नहीं है तो आप हमारा मोबाइल नंबर ले कर अपने किसी परिचित या घर वाले को दे दीजिए.’’
उन की इस पेशकश पर ईस्टर को उन पर थोड़ा भरोसा हुआ. उस ने चंद्रभाव और नंदकुमार के मोबाइल नंबर ले तो लिए, लेकिन बदकिस्मती से मोबइल में बैलेंस न होने की वजह से वह उन के नंबर किसी को दे नहीं पाई. इस के बाद दोनों पर विश्वास कर के ईस्टर चंद्रभाव की मोटरसाइकिल पर बैठ गई. चंद्रभाव मोटरसाइकिल ले कर रवाना हो गया तो नंदकुमार वहां से चला गया.
चंद्रभाव ने ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर मोटरसाइकिल डाल दी तो ईस्टर ने टोका. तब उस ने कहा, ‘‘मैडम, यह रास्ता शौर्टकट है. आप जल्दी पहुंच जाएंगी.’’
रास्ते की जानकारी न होने की वजह से ईस्टर अनुह्या चुप हो गई. चंद्रभाव मोटरसाइकिल जरूर चला रहा था, लेकिन उस का दिमाग कहीं और ही भटक रहा था. क्योंकि उसे किसी ऐसी जगह की तलाश थी, जहां वह अपना काम आसानी से कर सके.
आखिर उसे वह स्थान मुलुंड और कांजुर मार्ग ईस्टर्न एक्सपे्रस हाईवे के किनारे बने सर्विस रोड पर मिल गया. उचित स्थान देख कर उस ने बीड़ी पीने के बहाने मोटरसाइकिल रोक दी. बीड़ी पीते हुए चंद्रभाव की नजर खूबसूरत अनुह्या पर पड़ी तो उस की नीयत खराब हो गई. उस का उस पर दिल आया तो उस ने उस के साथ जबरदस्ती करने का मन बना लिया.
चोरी के इरादे से ईस्टर को लाने वाले चंद्रभाव के मन में उस के प्रति कामवासना जागी तो सुनसान देख कर चंद्रभाव उसे समुद्री झाडि़यों में खींच ले गया. झाडि़यों में उस ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो वह पूरी तरह विरोध पर उतर आई.
ईस्टर का विरोध इतना जबरदस्त था कि चंद्रभाव अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका. इस स्थिति में अगर आदमी की इच्छा पूरी न हो तो जानवर से भी ज्यादा खूंख्वार हो जाता है. वही हाल चंद्रभाव का भी हुआ. इच्छा पूरी न होने पर चंद्रभाव भी खूंख्वार हो उठा और ईस्टर के गले में पड़ी चुन्नी को पकड़ कर पूरी ताकत से कस दिया.
नाजुक ईस्टर अनुह्या पल भर में खत्म हो गई. उस की शिनाख्त न हो सके, इस के लिए उस ने एक बड़ा सा पत्थर उठा कर उस के चेहरे को कुचल दिया. इस के बाद मोटरसाइकिल से पेट्रौल निकाल कर उसे जलाने की भी कोशिश की. शिनाख्त मिटाने के सारे उपाय करने के बाद उस ने अधजली लाश को उठा कर वहीं गहरी खाई में फेंक दिया और निश्चित हो कर अपने घर चला गया था. घर से उस ने इस घटना के बारे में नंदकुमार साहू को बताया तो वह परेशान हो उठा.
नंदकुमार साहू तुरंत चंद्रभाव के घर पहुंचा. उस से कोई गलती तो नहीं हुई, इस बात पर दोनों विचार करने लगे तो पता चला कि चंद्रभाव का मोबाइल घटनास्थल पर ही कहीं गिर गया था. दोनों मोबाइल फोन ढूंढ़ने के लिए घटनास्थल पर पहुंचे. काफी कोशिश के बाद भी उन्हें मोबाइल फोन नहीं मिला.
दोनों ने मोबाइल फोन की उम्मीद छोड़ कर ईस्टर अनुह्या का मोबाइल फोन, लैपटौप, बैग लिया और घर जाने के बजाय चंद्रभाव जहां नासिक के अपने गांव चला गया, वही नंदकुमार साहू झारखंड चला गया. नासिक पहुंच कर चंद्रभाव ने ईस्टर का कपड़ों सहित बैग एक भिखारी को दान कर दिया तो मोबाइल फोन और लैपटौप वहां की एक नदी में फेंक दिया.
जब चंद्रभाव को पता चला कि उस ने जिस लड़की की हत्या की है, उस की लाश मिल गई है और उस की हत्या की जांच चल रही है तो दाढ़ीमूंछ बढ़ा कर उस ने अपना भेष बदल लिया. वह मुंबई भी आनेजाने लगा. लेकिन उस का कोई भी नाटक पुलिस के सामने नहीं चला और पकड़ा गया. चंद्रभाव से पूछताछ के बाद उस के साथी नंदकुमार साहू को भी झारखंड के उस के गांव से गिरफ्तार कर के मुंबई लाया गया.
विस्तारपूर्वक पूछताछ के बाद क्राइम ब्रांच यूनिट-6 की पुलिस ने चंद्रभाव और नंदकुमार शाहू को थाना कांजुर मार्ग पुलिस के हवाले कर दिया. थाना पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में आर्थर रोड जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
16 जनवरी, 2014 को जौनथन प्रसाद अपने रिश्तेदारों के साथ मुलुंड और कांजुर मार्ग ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे के किनारे से गुजर रहे थे तो उन्हें किसी शव के सड़ने की दुर्गंध महसूस हुई. इस गंध ने उन्हें बेचैन कर दिया. मन अशांत हो उठा. न चाहते हुए भी उन्होंने उन दोनों सिपाहियों को फोन कर के वहां बुला लिया. सिपाहियों के आने पर वह उस ओर बड़े, जिधर से दुर्गंध आ रही थी.
जौनथन प्रसाद सिपाहियों के साथ सर्विस रोड से 10 फुट अंदर समुद्र के किनारे की झाडि़यों में घुसे तो वहां एक खाई में क्षतविक्षत अवस्था में एक शव पड़ा दिखाई दिया. दूर से उसे पहचाना नहीं जा सकता था, क्योंकि उसे बेरहमी से जलाने की कोशिश की गई थी. लेकिन यह साफ दिख रहा था कि वह शव महिला का था.
जौनथन प्रसाद की बेटी गायब थी. लाश महिला की थी. कहीं यह लाश ईस्टर की तो नहीं, यह सोच कर वह खाई में उतर गए. करीब से देखने पर पता चला कि वह लाश उन की बेटी ईस्टर अनुह्या की ही थी. बेटी की हालत देख कर वह रो पड़े.
लाश जहां पड़ी थी, वह स्थान थाना कांजुर मार्ग के अंतर्गत आता था. इसलिए लाश पड़ी होने की सूचना थाना कांजुर मार्ग पुलिस को दी गई. थाना पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर खाई से शव निकलवाया. घटनास्थल के निरीक्षण और काररवाई के बाद शव को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए जे.जे. अस्पताल भिजवा दिया.
अगले दिन ईस्टर अनुह्या की हत्या का समाचार दैनिक अखबारों में छपा तो मामले ने तूल पकड़ लिया. मामला हाईप्रोफाइल परिवार का था, इसलिए मुंबई पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने इसे गंभीरता से लिया. उनहोंने तत्काल इस मामले की जांच की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय को सौंप दी.
एक ओर जहां जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस और थाना कांजुर मार्ग पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी, वहीं दूसरी ओर अपर पुलिस कमिश्नर निकेत कौशिक, अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर अंबादास पोटे, सहायक पुलिस कमिश्नर प्रफुल्ल भोसले के निर्देशन में क्राइम ब्रांच की 5 यूनिटें इस मामले की जांच में लगी थीं.
पुलिस अधिकारियों ने जांच की दिशा तय करने के लिए जौनथन प्रसाद को क्राइम ब्रांच के औफिस में बुला कर विस्तार से बातचीत कर के ढेर सारी जानकारी इकट्ठा की.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ऐसा कोई क्लू नहीं मिला था कि जांच आगे बढ़ पाती. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उस के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था. इस से अंदाजा लगाया गया कि या तो दुष्कर्मी ने असफल होने पर हत्या की थी या फिर उस की हत्या लूटपाट के लिए की गई थी.
सामान के नाम पर ईस्टर के पास मोबाइल फोन, लैपटौप और कुछ कपड़े थे. ज्यादा पैसे भी नहीं थे. पुलिस ने जब इस मामले पर गहराई से विचार किया तो लगा कि इस मामले में किसी ऐसे लुटेरे का हाथ हो सकता है, जो बैग, मोबाइल और लैपटौप चोरी करता था.
ईस्टर लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर उतरी थी. उस की लाश कांजुर मार्ग ईस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर मिली थी, इसलिए पुलिस ने अपने जांच का दायरा स्टेशन से लाश मिलने के स्थान तक बनाया. टर्मिनस से ले कर कांजुर मार्ग तक टैक्सी ड्राइवर, औटोरिक्शा ड्राइवर, टर्मिनस के कुली, सफाई कर्मचारी, चरसी आदि से पूछताछ करने के साथसाथ यह पता लगाने की कोशिश की गई कि यहां इस तरह की चोरी करने वाले कौनकौन हैं.
यूनिट-1 के सीनियर इंसपेक्टर नंद कुमार गोपाल, यूनिट 25 के सीनियर इंसपेक्टर अविनाश सावंत, यूनिट 6 के सीनियर इंसपेक्टर श्रीपाद काले, यूनिट 7 के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट पाटिल, इंसपेक्टर संजय सुर्वे, इंसपेक्टर अशोक खोत, इंसपेक्टर अनिल ढोले की संयुक्त टीम स्टेशन पर काम करने वाले ही नहीं, वहां गलत काम करने वालों पर खुद तो नजर रख ही रही थी, मुखबिरों को भी लगा दिया गया था.
स्टेशन पर लगे सीसीटीवी कैमरे ही नहीं, हाईवे पर लगे सीसीटीवी कैमरों की भी फुटेज देखी गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. मामले में प्रगति न होते देख जौनथन प्रसाद का धैर्य जवाब देने लगा. इंसाफ पाने के लिए वह दिल्ली गए और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, सीपीएम की नेता वृंदा करात, आम आदमी पार्टी के नेता योगेंद्र यादव से मिल कर ईस्टर के हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए गुहार लगाई.
लेकिन उन की इस दौड़भाग का कोई लाभ नहीं हुआ. तमाम कोशिशों के बाद भी पुलिस ईस्टर के हत्यारों तक नहीं पहुंच पाई. धीरेधीरे 2 महीने का समय बीत गया. इस से यही लग रहा था कि ईस्टर की हत्या जिस ने भी की थी, वह काफी होशियार और शातिर था. उस ने कोई भी ऐसा सुबूत नहीं छोड़ा था कि पुलिस उस तक पहुंच पाती. पुलिस जांच का कोई दूसरा रास्ता निकालती, पुलिस के कई बड़े अधिकारियों का तबादला हो गया.
मुंबई पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. उस के बाद राकेश मारिया मुंबई के नए पुलिस कमिश्नर बने. इस के साथ क्राइम ब्रांच में भी काफी उलटपुलट हुआ. ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय और अपर पुलिस कमिश्नर निकेत कौशिक की जगह पर नए जौइंट पुलिस कमिश्नर सदानंद दाते और अपर पुलिस कमिश्नर राजवर्धन को लाया गया.
नए पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया इस के पहले क्राइम ब्रांच के चीफ थे, इसलिए उन्हें जटिल से जटिल मामलों को सुलझाना अच्छी तरह आता था. कार्यभार संभालते ही उन्होंने चर्चा में रहे ईस्टर हत्याकांड को सुलझाने के लिए सहायकों के साथ जांच की रूपरेखा तैयार की. इस के बाद उसी रूपरेखा पर जांच की जिम्मेदारी नए क्राइम ब्रांच के जौइंट कमिश्नर सदानंद दाते, अपर पुलिस कमिश्नर राजवर्धन, सत्यनारायण चौधरी, एडिशनल कमिश्नर अंबादास पोटे और असिस्टैंट कमिश्नर प्रफुल्ल भोंसले को सौंप दी गई.
इन नए अधिकारियों के निर्देशन में एक बार फिर क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने सरगर्मी से मामले की जांच शुरू की. इस बार उन्होंने 2 हजार लोगों से पूछताछ की. मुखबिर भी जीजान से लगे थे. इसी के साथ सीसीटीवी के कैमरों की फुटेज एक बार फिर देखी गई. इस बार फुटेज देखते समय जौनाथन प्रसाद को भी साथ बैठाया गया था. इस बार की मेहनत रंग लाई और फुटेज में ईस्टर के साथ एक ऐसा आदमी दिखाई दिया, जो स्टेशन से बैग, मोबाइल और लैपटौप की चोरी करता था.
इसी के बाद 2 मार्च, 2014 को यूनिट-6 के सीनियर इंस्पेक्टर व्यंकट पाटिल ने अपने सहायक इंस्पेक्टर संजय सुर्वे, अशोक खोत और अनिल ढोले के साथ भांडूप के एक घर से उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया गया था. उस का नाम था चंद्रभाव उर्फ चौक्या सुदाम सापन.
मिली जानकारी के अनुसार यही चंद्रभाव उर्फ चौक्या सुदाम सापन सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में ईस्टर के साथ जाता दिखाई दिया था. पूछताछ में पता चला कि वही ईस्टर का हत्यारा था. उसे क्राइम ब्रांच के औफिस ला कर पूछताछ की गई तो उस ने ईस्टर अनुह्या की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.
चंद्रभाव उर्फ चौक्या ने क्राइम ब्रांच अधिकारियों को ईस्टर की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.
28 वर्षीया चंद्रभाव उर्फ चौक्या मूलरूप से नासिक जनपद के गांव मधमलाबाद का रहने वाला था. संतानों में बड़ा होने की वजह से मांबाप का कुछ ज्यादा ही लाडला था, जिस की वजह से वह आवारा हो गया था. पढ़ाई छोड़ कर वह दोस्तों के साथ मटरगश्ती किया करता था. पिता सुदाम सापन सीएसटी टर्मिनस पर कुली का काम करते थे. मुंबई में वह उपनगर कांजुर मार्ग स्थित कर्वेनगर साईंकृपा सोसायटी की इमारत नंबर वी-2 के रूम नंबर 208 में परिवार के साथ रहते थे.
चंद्रभाव चौक्या की शादी मांबाप ने यह सोच कर कर दी थी कि जिम्मेदारी पड़ने पर शायद वह सुधर जाएगा. वह एक बेटी का बाप भी बन गया, लेकिन वह जस का तस ही रहा.
2005 में सुदाम सापन गंभीर रूप से बीमार हुए तो रेलवे के अधिकारियों से पैरवी कर के अपना कुली वाला बैज चंद्रभाव उर्फ चौक्या के नाम करा दिया था. इस के बाद चंद्रभाव सीएसटी रेलवे टर्मिनस पर बाप की जगह कुली का काम करने लगा था.
जब थोड़ाबहुत पैसा आने लगा तो चंद्रभाव के शौक बढ़ने लगे. घर में खूबसूरत पत्नी के होते हुए भी वह अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा खानेपीने और पराई औरतों पर उड़ाने लगा. अपने यही शौक पूरे करने के लिए कभीकभी वह यात्रियों के सामान उड़ाने लगा. 2 सालों तक सीएसटी रेलवे टर्मिनस पर कुलीगीरी करने के बाद उस ने यह काम छोड़ दिया.
2007 में वह कुर्ला लोकमान्य तिलक रेलवे टर्मिनस पर आ गया, जहां उस की दोस्ती नंदकुमार साहू से हुईं. नंदकुमार साहू भी कुली था और उस में भी वे सभी बुरी आदतें थीं, जो चंद्रभाव में थी. वह भी मौजमस्ती के लिए यात्रियों के सामानों की चोरी करता था.
क्यों की चन्द्रभाव ने ईस्टर की हत्या? जानने के लिए पढ़िए इस Social Crime Story का अगला भाग.
सुबह सो कर उठते ही एस. जौनथन प्रसाद के घर वाले एकदूसरे से पूछने लगे थे कि ईस्टर का फोन आया या नहीं? जब सभी ने मना कर दिया कि फोन नहीं आया तो एस. जौनथल प्रसाद और उन की पत्नी को हैरानी हुई. क्योंकि वह तो कब का कमरे पर पहुंच गई होगी, अब तक उस ने फोन क्यों नहीं किया? वह व्यस्त होगी, यह सोच कर उन्होंने फोन नहीं किया.
जब घर के सभी लोगों ने नहाधो कर नाश्ता भी कर लिया और ईस्टर का फोन नहीं आया तो जौनथन प्रसाद से रहा नहीं गया. उन्होंने खुद ही फोन मिला दिया. तब दूसरी ओर से आवाज आई कि फोन पहुंच से बाहर है. उन्होंने दोबारा फोन लगाया तो पता चला कि फोन बंद है. इस के बाद उन्होंने न जाने कितनी बार फोन मिला डाला, हर बार फोन से स्विच्ड औफ होने की ही आवाज आई.
फोन न मिलने से जौनथन प्रसाद परेशान हो उठे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ईस्टर अनुह्या का फोन बंद क्यों है. मन में तरहतरह के खयाल आने लगे. कभी लगता कि फोन चार्ज न होने की वजह से ऐसा होगा तो कभी लगता कि किसी वजह से उस ने फोन बंद कर दिया होगा. लेकिन ईस्टर इतनी लापरवाह नहीं थी कि फोन बंद हो और उसे पता न चले. फिर उसे मुंबई पहुंच कर औफिस जाने की सूचना भी तो देनी थी.
बेटी से बात न हो पाने की वजह से जौनथन प्रसाद काफी परेशान थे. उन्हें इस तरह बेचैन देख कर पत्नी ने कहा, ‘‘मेरी समझ में यह नहीं आता कि आप इतना परेशान क्यों हैं? ईस्टर बच्ची नहीं है. किसी काम में फंस गई होगी या कोई मीटिंग वगैरह होगी, जिस की वजह से फोन बंद कर दिया होगा. मौका मिलेगा तो जरूर फोन करेगी. वह अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह समझती है.’’
‘‘पता नहीं क्यों मेरा दिल बहुत घबरा रहा है,’’ जौनथन प्रसाद ने कहा, ‘‘ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. वह कितनी भी व्यस्त रही हो, फोन करने में जरा भी लापरवाही नहीं करती थी. आज पहली बार ऐसा हो रहा है, इसीलिए चिंता हो रही है.’’
जौनथन प्रसाद की इस बात का पत्नी के पास कोई जवाब नहीं था. फिर भी उन्होंने पति को धीरज बंधाया. वह पति को भले ही धीरज बंधा रही थीं, लेकिन उन का खुद का मन भी उतना ही बेचैन था. बेटी का कोई हाल समाचार न पा कर उन का खुद का दिल भी किसी अज्ञात भय से बैठा जा रहा था.
वह पूरा दिन और रात इसी इंतजार में बीत गया कि ईस्टर किसी जरूरी काम में फंसी होगी, इसलिए उस ने फोन बंद कर दिया है. इस के बावजूद जौनथन प्रसाद लगातार फोन करते रहे कि शायद अब ईस्टर का फोन चालू हो गया हो. लेकिन जब अगले दिन भी फोन चालू नहीं हुआ तो उन की हिम्मत जवाब देने लगी. इस बीच पतिपत्नी न कुछ खा सके थे और न एक पल के लिए आंखें झपका सके थे.
अगले दिन जब ईस्टर के फोन आने और मिलने की उम्मीद पूरी तरह खत्म हो गई तो जौनथन प्रसाद मुंबई के चैंबूर में अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के सारी बात बता कर ईस्टर अनुह्या के बारे में पता लगाने की विनती की. इस के बाद उन्होंने ईस्टर की कंपनी को फोन किया तो वहां से पता चला कि पिछले दिन वह औफिस आई ही नहीं थी.
जौनथन प्रसाद को जब पता चला कि वह औफिस नहीं गई थी तो उन्होंने तुरंत उस के हौस्टल फोन किया. वहां से जब उन्हें बताया गया कि वह वहां भी नहीं पहुंची है तो वह परेशान हो उठे. अब उन्हें किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. वह मन को सांत्वना देने के लिए ईस्टर की सहेलियों और परिचितों को फोन कर के पूछने लगे कि वह उन के यहां तो नहीं गई है या उन्हें कुछ बताया तो नहीं है? जब कहीं से ईस्टर के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उन की बेचैनी और बढ़ गई.
दूसरी ओर जब ईस्टर की सहेलियों, परिचितों, कंपनी और हौस्टल वालों को उस के लापता होने का पता चला तो वे सब भी परेशान हो उठे, क्योंकि अब तक उसे गायब हुए 24 घंटे से अधिक बीत चुके थे. उस का किसी से भी संपर्क नहीं हुआ था, इसलिए सभी को उस के साथ किसी अनहोनी की आशंका सताने लगी थी.
23 वर्षीया ईस्टर अनुह्या प्रसाद आंध्र प्रदेश के शहर मछलीपट्टनम के रहने वाले एस. जौनथन प्रसाद की बेटी थी. वह शहर के प्रतिष्ठित नागरिक थे. राजनेताओं से अच्छे संबंध होने की वजह से स्थानीय राजनीति में भी उन की अच्छीखासी पकड़ थी. मछलीपट्टनम के सांसद पी.के. नारायण राव और उन के भाई जगन्नाथ राव से उन के पारिवारिक संबंध थे.
इस तरह के परिवार की लाडली बेटी अनुह्या बहुत ही महत्त्वाकांक्षी और तेजतर्रार लड़की थी. उस ने बंगलुरु युनिवर्सिटी से बीएससी कर के सौफ्टवेयर इंजीनियरिंग की. आगे की पढ़ाई के लिए वह जर्मनी जाना चाहती थी, लेकिन मांबाप ने इस के लिए इजाजत नहीं दी. मातापिता का कहना था कि अब आगे की पढ़ाई वह शादी के बाद करे.
मांबाप ने मना कर दिया तो आगे की पढ़ाई का खयाल छोड़ कर ईस्टर अनुह्या ने बंगलुरु में ही टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विस) कंपनी में नौकरी कर ली. कुछ दिनों बाद कंपनी ने उसे एक बड़ा प्रमोशन दे कर महानगर मुंबई के उपनगर गोरेगांव स्थित कंपनी की शाखा में भेज दिया. यहां उसे असिस्टेंट सिस्टम इंजीनियर बनाया गया था. यहां उस ने अपने रहने की व्यवस्था अंधेरी के एमआईडीसी डब्ल्यूएचसीए महिला हौस्टल में की थी.
25 दिसंबर को ईसाइयों का सब से बड़ा त्यौहार होता है, जिसे ये लोग नाताल कहते हैं. इसी त्यौहार को घर वालों के साथ मनाने के लिए ईस्टर अनुह्या ने 8 दिनों की छुट्टी ली और मछलीपट्टनम आ गई थी.
छुट्टी खत्म होने पर ईस्टर अनुह्या ने 4 जनवरी, 2014 की सुबह 8 बजे मछलीपट्टनम के विजयवाड़ा रेलवे टर्मिनस से विशाखापट्टनम एक्सप्रेस पकड़ कर मुंबई के लिए रवाना हुई. उस का पूरा परिवार उसे टे्रन पर बैठाने आया था. उस का एसी (प्रथम) में रिजर्वेशन था. मांबाप ने उसे समझाबुझा कर विदा किया था कि अपना खयाल रखना, मुंबई पहुंचने तक किसी अजनबी से बात मत करना. पहुंच कर फोन करना. ईस्टर ने मुंबई पहुंचने पर मातापिता को विश्वास दिलाया था कि वह वैसा ही करेगी, जैसा उन्होंने उसे समझाया है.
5 जनवरी, 2014 की सुबह 5 बजे तक मुंबई के कुर्ला लोकमान्य तिलक टर्मिनस पहुंचने तक ईस्टर का संपर्क मांबाप से बना रहा. लेकिन उस के बाद जब संपर्क टूटा तो फिर संपर्क नहीं हो सका.
जब कहीं से भी ईस्टर के बारे मे कोई जानकारी नहीं मिली तो जौनथन प्रसाद बेटे के साथ प्लेन पकड़ कर मुंबई आ गए. हवाई अड्डे से वह सीधे अपने उस रिश्तेदार के यहां गए और उस से सारी जानकारी ली. इस के बाद वह बेटी की तलाश में उन स्थानों पर गए, जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी, जब ईस्टर अनुह्या के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस के पास जाने के अलावा उन्हें कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आया.
पुलिस की मदद लेने के लिए जौनथन प्रसाद थाना कुर्ला पहुंचे. जब उन्होंने वहां के थानाप्रभारी से अपनी समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह जीआरपी थाना विजयवाड़ा का मामला है. मजबूरन उन्हें जीआरपी थाना विजयवाड़ा जाना पड़ा. जीआरपी थाना विजयवाड़ा पुलिस ने ईस्टर अनुह्या प्रसाद की गुमशुदगी दर्ज कर के मामले को मुंबई के जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस को ट्रांसफर कर दिया.
जीआरपी थाना विजयवाड़ा से शिकायत मिलने के बाद जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस ने ईस्टर की तलाश शुरू कर दी. लेकिन उन की यह तलाश काफी धीमी गति से चल रही थी.
शिकायत दर्ज कराने के बाद जौनथन प्रसाद मुंबई आ गए. वह खुद भी अपने रिश्तेदारों और परिचितों के साथ मिल कर बेटी की तलाश करने लगे. एक पुलिस के उच्च अधिकारी के कहने पर उन की मदद के लिए 2 पुलिस वाले हमेशा उन के साथ लगा दिए गए थे. वह अपने हिसाब से बेटी की तलाश कर रहे थे. उन की नजर उस रास्ते पर थी, जो स्टेशन से ईस्टर के हौस्टल तक जाता था.
आखिर उन की मेहनत रंग लाई. जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस कुछ कर पाती, उस के पहले उन्होंने खुद ही बेटी की लाश खोज निकाली. संयोग से उस समय वे दोनों पुलिस वाले भी उन के साथ वहीं थे.
क्या अनहोनी हो गयी थी ईस्टर अनुह्या के साथ? पढ़ेंगे इस Society Crimes Story के अगले अंक में.