UP Crime : बॉयफ्रेंड के संग साजिश रचकर पत्नी ने कुल्हाड़ी से पति को मारवाया

UP Crime : पति, बच्चे और अच्छी गृहस्थी होने के बावजूद अगर कोई औरत सामाजिक मर्यादाओं को लांघ जाए तो बरबादी निश्चित होती है. प्रतीक्षा ने यही गलती की और…

यशवंत की जगह कोई दूसरा होता तो सुहागरात को ही प्रतिक्षा की कामेच्छाओं के वेग को समझ जाता, लेकिन यशवंत को इस बात का अहसास तक नहीं हुआ. पत्नी की खूबसूरती ने उसे कुछ भी सोचनेसमझने का मौका नहीं दिया, दिमाग कुंद हो गया था उस का. सुहागरात को यशवंत कमरे में पहुंचा तो प्रतीक्षा पलंग पर लेटी थी. उस की आहट पाते ही उस ने सिर उठा कर दरवाजे की ओर देखा. पति को आया देख वह उठ कर बैठ गई और साड़ी के पल्लू को घूंघट बना कर मुंह ढक लिया.

मिलन की उमंगों से भरा यशवंत अपनी दुलहन प्रतीक्षा के पास जा बैठा. उसे उन शादीशुदा दोस्तों की बातें याद आ रही थी, जिन्होंने उसे सुहागरात को बीवी का तनमन जीतने का हुनर सिखाया था. उसे दोस्तों की पहली टिप्स याद आई. जब तुम दुलहन का घूंघट उठाओगे, तब उस के गाल शर्म से गुलाबी हो जाएंगे. उस के होठों पर मुसकान तो रहेगी, मगर लाज से नजरें झुक जाएंगी. हालांकि सुहागरात का यह दूसरा अनुभव था यशवंत का, फिर भी वह प्रतीक्षा के सामने पहली बार बने दूल्हे की तरह व्यवहार कर रहा था. यशवंत ने उंगलियों से साड़ी का किनारा पकड़ा और अपनी दुलहन का घूंघट उलट दिया.

चेहरे की दमक तो सामने आ गई, लेकिन न तो लाज से दुलहन की नजरें झुकीं और न होठों पर सौम्य मुसकान आई. कुछ देर तक वह यशवंत की आंखों में देखती रही, फिर खिलखिला कर हंसने लगी. हतप्रभ यशवंत प्रतीक्षा का मुंह ताकता रह गया. पति के भावों को समझने की कोशिश करते हुए प्रतीक्षा शोखी से बोली, ‘‘ऐ ऐसे क्यों देख रहे हो, मैं पागल नहीं हूं.’’

‘‘तुम हंस क्यों रही हो?’’ कुछ नहीं सूझा तो हैरानपरेशान यशवंत ने सवाल किया, ‘‘दूल्हा घूंघट उठाए तो इस तरह नहीं हंसना चाहिए.’’

‘‘यह क्या बात हुई’’ प्रतीक्षा की हंसी घट कर मुसकान में तबदील हो गई. ‘‘सुहागरात को दुलहन पति के लिए निर्वस्त्र हो सकती है, मगर हंस नहीं सकती. मैं हंस दी तो कौन सा पाप हो गया?’’

‘‘पाप तो नहीं हुआ,’ यशवंत ने धीमे से मुंह खोला, ‘‘लेकिन दुलहनें इस तरह नहीं हंसा करतीं.’’

‘‘मैं पुराने जमाने की नहीं, इक्कीसवी सदी की दुलहन हूं’’ प्रतीक्षा का लहजा बेबाक था, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम मेरे पास क्यों आए हो. मैं जानती हूं कि तुम मेरे साथ क्याक्या करने वाले हो. मेरे मातापिता जानते हैं कि आज की रात दूल्हादुलहन कैसे खेलेंगे. तुम्हारे घर वालों ने तुम्हें मेरे पास खेलने के लिए ही भेजा है. सब जानते हैं कि आज क्या होगा, फिर मैं क्यों लाज का आडंबर करूं.’’

यशवंत हैरत से प्रतीक्षा का मुंह देखता रह गया. प्रतीक्षा अपनी रौ में बोली, ‘‘मैं जिंदगी के हर पल को शिद्दत से जीना चाहती हूं. आज रात हमारी देहों का मिलन होना है. लाज संकोच के बजाय अगर सबकुछ हंसीखुशी हो तो उस का आनंद ही निराला होगा.’’ वह यशवंत की आंखों में देखते हुए मुसकराई. ‘‘होगा न?’’

यशवंत प्रतीक्षा के तर्कों से प्रभावित हुआ. सोचा, नए जमाने की लड़कियां शर्म की गुडि़यां थोड़े ही बनेंगी. पुराने जमाने की बात अलग थी, जब लड़कियां स्त्रीपुरूष के अंतरंग संबंध से अंजान होती थीं. शादी के पहले भावी दुलहनों को रिश्ते की भाभियां समझाती थीं कि सुहागरात को दूल्हादुल्हन के बीच क्या होता है. अब तो फिल्मों, केबल और इंटरनेट सब कुछ सिखा देते हैं. लड़केलड़कियों को होश संभालते ही इस सब की समझ आने लगती है. यही सब सोच कर यशवंत के होठों पर मुसकान आ गई. ‘‘तुम सही कहती हो प्रतीक्षा, एक घंटे बाद हमें बेशर्म होना है तो क्यों न पहले ही शर्म का लबादा उतार कर खूंटी पर टांग दें. मिलन का आनंद दूना हो जाएगा.’’

‘‘तो फिर दूर क्यों हो, करीब आओ.’’ प्रतीक्षा ने मुसकरा कर बांहे फैला दी. यशवंत सारी बातें भूल कर प्रतीक्षा की बांहों में समा गया. 40 वर्षीय प्रतीक्षा फतेहपुर जनपद के दुर्गा कालोनी, हरिहरगंज की रहने वाली थी. उस की मां का नाम कमला और पिता का नाम चंद्रभान था. चंद्रभान विकास भवन में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे. प्रतीक्षा के अलावा उन की कोई संतान नहीं थी.

प्रतीक्षा मांबाप की एकलौती संतान थी. इसलिए न तो उस के कहीं घूमने पर पाबंदी थी, और न ही उसे किसी चीज के लिए तरसना पड़ता था. फरमाइश करते ही मनचाही चीज हाजिर हो जाती थी. संभवत: परिवार में मिली आजादी का ही नतीजा था कि प्रतीक्षा जीवन के हर पल को खुल कर और मस्ती से जीने की आदी हो गई थी. मांबाप भी प्रतीक्षा के खुल कर मस्ती से जीने के अंदाज को जानते थे. इसलिए जब वह जवान हुई तब उन्हें डर सताने लगा कि कहीं प्रतीक्षा जवानी को भी खुल कर एंजौय न करने लगे. यह अलग बात थी कि प्रतीक्षा ने न किसी से प्रेमिल संबंध बनाया, न किसी को अपने यौवन का अनमोल तोहफा दिया. उस ने अपना कौमार्य पति की अमानत समझ कर सहेजे रखा.

हां, उस की यह तमन्ना जरूर थी कि शादी के बाद का जीवन वह खुल कर मस्ती से जीएगी और इस की शुरुआत वह सुहागरात से ही कर देगी. क्रांतिकारी विचारधारा की पुत्री को मातापिता अधिक दिनों तक घर में बैठाए रखने के पक्ष में नहीं थे. जवानी का क्या भरोसा, कब बहक जाए. लेकिन सोचने भर से सब काम नहीं हो जाते. प्रतीक्षा के लिए कई रिश्ते देखे गए लेकिन बात नहीं बनी. शायद समय और किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. बीतते समय के साथ प्रतीक्षा की उम्र बढ़ती जा रही थी, लेकिन कहीं भी उस का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. ऐसे में उस के मांबाप को चिंता सताने लगी. जवान बेटी को अधिक दिनों तक घर में नहीं बैठाया जा सकता, लोग तरहतरह की बातें बनाने लगते हैं.

फतेहपुर के थाना हुसैनगंज क्षेत्र के गांव चांदपुर में भवानी शंकर सिंह रहते थे. वह एक स्कूल में अध्यापक थे. इस के साथ ही खेतीबाड़ी का काम भी करते थे. परिवार में पत्नी शिवरानी देवी और 3 बेटे थे. कालिका, रवींद्र और यशवंत. बेटे जवान हो गए तो उन्होंने अपनी जमीनजायदाद का बराबरबराबर बंटवारा कर दिया. बड़े बेटे कालिका का विवाह करने के बाद 1994 में भवानी शंकर दुनिया से चल बसे. रवींद्र शिक्षा पूरी करने के बाद सरकारी स्कूल में अध्यापक हो गया. सन 2000 में विवाह के बाद वह फतेहपुर शहर में शिफ्ट हो गया था.

सब से छोटा यशवंत सरल स्वभाव का था. बीएससी करने के बाद वह गांव में ही खेती करने लगा. 2003 में उस का विवाह फतेहपुर के मलौली थाना क्षेत्र की कुर्रा कनक गांव निवासी गुड्डन से हुआ. गुड्डन ने 2 बेटों को जन्म दिया लेकिन दूसरे बच्चे की डिलीवरी के समय उस की मृत्यु हो गई. गुड्डन की मौत के बाद दोनों बच्चों को उन की नानी अपने साथ ले गई. 2013 में चंद्रभान अपनी बेटी प्रतीक्षा का रिश्ता ले कर आए तो यशवंत के घर वाले मना नहीं कर पाए क्योंकि यशवंत के सामने लंबी जिंदगी पड़ी थी. बिना हमसफर के जिंदगी काटना मुश्किल था. शादी तय हो जाने के बाद दोनों का विवाह हो गया. प्रतीक्षा सुर्ख जोड़े में मायके से ससुराल आ गई.

ससुराल में दूल्हादुलहन के मिलन की पहली रात थी, अरमानों की रात सुहागरात. सुहागशैया पर यशवंत के घूंघट उठाते ही जिस तरह प्रतीक्षा खुलेपन से पेश आई, उस से यशवंत स्तब्ध रह गया. यह अलग बात है कि प्रतीक्षा ने उसे गलत सोचने नहीं दिया. उस ने यशवंत को विश्वास दिला दिया कि वह इक्कीसवीं सदी की औरत है, बिंदास जिंदगी के हर पल का आनंद ले कर शिद्दत से जीने वाली. नई और पुरानी का फर्क यशवंत को भी अलग अनुभव हुआ. पहली पत्नी गुड्डन पुराने ढर्रे पर चलने वाली ठेठ परिवारिक युवती थी. उस के साथ यशवंत ने वहीं अनुभव किया था जो वह सोच रहा था. लेकिन प्रतीक्षा के साथ उसे एक अलग ही अनुभव मिला.

जो युवती पहली रात को खुल कर खेल सकती थी, वह आगामी रातों में क्या गजब करेगी कहना मुश्किल था. यही सोच कर सशवंत के मन में संदेह का कीड़ा कुलबुलाने लगा. वह सोचने लगा कि प्रतीक्षा शायद ऐसा अनुभव मायके से ले कर आई है. यशवंत ने उसे कटघरे में खड़ा भी किया, मगर उस का जवाब था कि वह जीवन के हर पल को आनंद से जीने की आदी है. खुलापन उस के जीने का अंदाज है, चरित्रहीनता का प्रमाण नहीं. यशवंत उस समय तो चुप रहा, पर प्रतीक्षा की तरफ से उस का मन साफ नहीं हुआ. यशवंत ने किसी तरह प्रतीक्षा के मायके से जानकारी जुटाई तो उस पर उंगली उठाने लायक कोई बात पता नहीं चली. इस से यशवंत ने मान लिया कि प्रतीक्षा तबियत से शौकीन जरूर है, पर उस का चरित्र बेदाग है.

यह प्रतीक्षा का शौक ही था कि वह एक रात भी न तो यशवंत से अलग रहती थी और न उसे अलग सोने देती थी. फलस्वरूप प्रतीक्षा ने 5 वर्ष पूर्व एक पुत्र को जन्म दिया, जिस का नाम यतेंद्र रखा गया. उस के कुछ बड़ा होने पर दोनों ने उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए उस के नाना के घर भेज दिया. यशवंत की यह दूसरी शादी थी, उस की उम्र भी 40 के पार हो गई थी. अब उस में इतना दमखम नहीं रह गया था कि हर रोज प्रतीक्षा के बिस्तर का साथी बन कर रास रचाए. दूसरी ओर प्रतीक्षा को काफी देर से पुरूष सुख मिलना शुरू हुआ था, बढ़ती उम्र के साथ उस की कामेच्छाएं भी बढ़ गई थीं.

रात को यशवंत जब उस के पास नहीं आता तो वह झुंझला जाती. इस बात को ले कर दोनों में काफी बहस भी होती. प्रतीक्षा जिस तरह सुहागरात में यशवंत पर हावी हुई थी, उसी तरह समय के साथसाथ उस की जिंदगी पर भी हावी होती चली गई. उस के गलत व्यवहार के कारण ही यशवंत के भाई और परिवार उन दोनों से दूर हो गए थे. वे लोग उन से किसी तरह का संबंध नहीं रखते थे. यशवंत कभीकभी चोरीछिपे अपने भाइयों से बात कर लेता था. दूसरी ओर प्रतीक्षा ने शादी से पहले तक अपने यौवन को किसी के हवाले नहीं किया था, अब वह पति की बेरुखी के चलते अपने यौवन के खजाने को दूसरों पर लुटाने को अमादा थी. यशवंत के ठंडेपन के चलते वह अपनी मर्यादा की सीमा को भी लांघने को तैयार थी. लेकिन इस के लिए उसे उपयुक्त साथी की जरूरत थी.

नवंबर 2018 में यशवंत के बड़े भाई कालिका की मुत्यु हो गई. उस की तेरहवीं में खाना बनाने के लिए एक व्यक्ति से बात की गई. पेसा वगैरह तय हो जाने के बाद उसे खाना बनाने का काम दे दिया गया. खाना बनाने के लिए आए कारीगरों में 30 वर्षीय संग्राम सिंह भी था. संग्राम सिंह फतेहपुर के थाना मलवां के गांव नसीरपुर बेलवारा निवासी कुंवर बहादुर सिंह का बेटा था. जो अविवाहित था. खाना बनाने के दौरान संग्राम प्रतीक्षा के संपर्क में आया. प्रतीक्षा ने कुंवारे खूबसूरत जवान संग्राम को देखा तो वह उसे मन भा गया. कभी कोई सामान देने तो कभी खाना कैसे बनाना है, को ले कर प्रतीक्षा उसे अपने पास बुलाती और रिझाने की कोशिश करती.

प्रतीक्षा की चालढाल और उस की हरकतों से संग्राम को भी समझते देर नहीं लगी कि वह उस पर डोरे डाल रही है. संग्राम खुद से 10 साल बड़ी प्रतीक्षा की खूबसूरती पर फिदा हो गया. जब शिकार खुद शिकार होने को तैयार था तो शिकारी क्यों चिंता करता. दोनों में हंसीमजाक, चुहलबाजियां हुई लेकिन लोगों की नजरों से बच कर. संग्राम जब अपना काम निपटा कर जाने लगा तो प्रतीक्षा की नजरों में बेचैनी झलकने लगी, जिसे संग्राम ने अच्छी तरह समझ लिया था. वह प्रतीक्षा से बोला, ‘‘अब हमारी इतनी जानपहचान तो हो ही गई है कि आगे भी मिलते रहें.’’

संग्राम खेलने के लिए कूदा प्रतीक्षा की पिच पर प्रतीक्षा ने मुसकरा कर संग्राम को हरी झंडी दे दी. यशवंत के गांव चांदपुर से संग्राम के गांव की दूरी महज 8 किलोमीटर थी. उस दिन के बाद से संग्राम अपनी बाइक से प्रतीक्षा से मिलने आने लगा. जब वह आता तो यशवंत खेतों पर होता. घर में प्रतीक्षा अकेली रहती थी. बारबार मिलते रहने से उन के बीच की झिझक खत्म होती गई. झिझक खत्म होते ही दोनों एकदूसरे से बेशर्मी से पेश आने लगे. उन के बीच अश्लील मजाक भी होने लगे. एक दिन ऐसे ही अश्लील मजाक के दौरान संग्राम ने प्रतीक्षा को दबोच लिया. घबराने का नाटक करते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो संग्राम?’’

जबकि मन ही मन वह संग्राम की इस हरकत से खुश थी. संग्राम ने उस के नाटक को भांप लिया था, क्योंकि वह यह सब दिखावे के लिए कर रही थी. संग्राम ने प्रतीक्षा को और ज्यादा कसके दबोचते हुए कहा, ‘‘मैं तो वही कर रहा हूं, जो तुम चाहती हो.’’

‘‘मैं ऐसा चाहती हूं, यह मैं ने तुम से कहा?’’

‘‘हर बात जुबां से ही नहीं कही जाती, आंखों भी बहुत कुछ बता देती हैं. मुझे तुम्हारी खूबसूरत आंखों ने बता दिया कि तुम्हें मेरे प्यार की बेहद जरूरत है.’’

‘‘अच्छा जी, मेरी आंखों ने तुम्हें सब कुछ बता दिया. जब बता ही दिया तो मेरी देह की किताब के पन्ने भी खोल कर पढ़ लो.’’

प्रतीक्षा बेचैन हो कर संग्राम के बदन से लिपट गई. इस के बाद संग्राम ने उस की देह की किताब का एकएक पन्ना खोल कर ऐसा पढ़ा कि प्रतीक्षा उस की दीवानी हो गई. उस दिन के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. 29 जनवरी, 2020 की सुबह साढ़े 9 बजे प्रतीक्षा घर से निकल कर चीखनेचिल्लाने लगी. उस की चीखपुकार सुन कर गांव के लोग घर के सामने इकट्ठा हो गए. प्रतीक्षा ने बताया कि कुछ बदमाशों ने घर में घुस कर उस के पति यशवंत की हत्या कर दी है. लगभग 10 बजे प्रतीक्षा ने 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को घटना की सूचना दी. चूंकि घटनास्थल थाना हुसैनगंज क्षेत्र में आता था, सो कंट्रोल रूप से इस घटना की सूचना हुसैनगंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर इंसपेक्टर निशिकांत राय पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक यशवंत के शरीर, सिर व गले पर किसी तेज धारदार हथियार के निशान थे. प्रतीक्षा से पूछताछ की गई तो उस ने कुछ लोगों द्वारा घर में घुस कर यशवंत को मारने की बात बताई. प्रतीक्षा की बातें इंसपेक्टर राय के गले से नहीं उतर रही थीं. एक तो सुबह कोई घर में नहीं घुस सकता था. ऐसा होता तो हत्यारों के आते जाते या शोर मचने पर पड़ोसियों को पता चल जाता. दूसरे बदमाशों ने यशवंत की तो हत्या कर दी थी, लेकिन प्रतीक्षा को छोड़ दिया, उसे एक खरोंच तक नहीं आई थी. इस से इंसपेक्टर निशिकांत राय का शक प्रतीक्षा पर ही गया. फिलहाल उन्होंने यशवंत की लाश को पोस्टमार्टम के लिए मौर्चरी भेज दिया.

मौके पर आए यशवंत के भाई रविंद्र और पड़ोसियों से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर राय का शक प्रतीक्षा पर और गहरा हो गया. रविंद्र ने अपनी लिखित तहरीर में प्रतीक्षा और उस के प्रेमी संग्राम सिंह पर हत्या का शक जताया था. रविंद्र की तहरीर मिलने के बाद इंसपेक्टर निशिकांत राय ने थाने में प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के विरूद्ध भादवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. गिरफ्तार हुई प्रतीक्षा 31 जनवरी को इंसपेक्टर राय ने प्रतीक्षा को घर से गिरफ्तार कर लिया. महिला कांस्टेबल की उपस्थिति में जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने यशवंत की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. इस हत्या में उस का साथ उस के प्रेमी संग्राम सिंह ने दिया था.

प्रतीक्षा ने बताया कि जब उस के संग्राम से नाजायज संबंध बने, तो फिर बेरोकटोक जारी रहे. लेकिन ऐसा कब तक चलता. लोगों की नजरों में उन के नाजायज संबंध छिपे नहीं रह सके. गांव में तरहतरह की बातें होने लगीं. यशवंत के कानों तक भी प्रतीक्षा की बेवफाई के किस्से पहुंच गए. इस के बाद उस के और प्रतीक्षा के बीच काफी तीखी बहस होने लगी. लेकिन उस बहस का कोई नतीजा नहीं निकला, क्योंकि प्रतीक्षा पर उस का कोई असर नहीं हुआ था. यशवंत को उस के अवैध रिश्ते के बारे में पता चलने के बाद प्रतीक्षा संग्राम से खुल कर मिलने लगी. वह यशवंत की उपस्थित में भी आने लगा. वह पूरेपूरे दिन यशवंत के घर में पड़ा रहता.

यशवंत खून का घूंट पी कर रह जाता. जब उस से बर्दाश्त नहीं होता तो वह उन दोनों से भिड़ जाता था. लेकिन दोनों के सामने उस की एक नहीं चलती थी.  मिलन में यशवंत के बारबार व्यवधान डालने से प्रतीक्षा और संग्राम परेशान हो गए. इसलिए दोनों ने यशवंत नाम के कांटे को हमेशा के लिए हटाने का फैसला कर लिया. 28/29 जनवरी, 2020 की रात यशवंत के खाने में प्रतीक्षा ने कोई नशीला पदार्थ मिला दिया. खाना खाने के बाद यशवंत बेसुध हो कर बिस्तर पर लेट गया. संग्राम देर रात प्रतीक्षा के पास पहुंचा और बेसुध पड़े यशवंत पर कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ कई प्रहार कर दिए. यशवंत चीखचिल्ला भी न सका, उस ने दम तोड़ दिया.

इस के बाद संग्राम वहां से चला गया. सुबह साढ़े 9 बजे प्रतीक्षा ने चीखचिल्ला कर बदमाशों द्वारा यशवंत को मार देने की झूठी कहानी लोगों को सुनाई, लेकिन वह अपने को बचाने में सफल नहीं हो सकी. पुलिस ने प्रतीक्षा की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी बरामद कर ली. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. पुलिस के दबाव के चलते संग्राम सिंह ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Social Crime : Code के जरिए किया जाता था जिस्मफरोशी का धंधा

Social Crime : ज्यादातर युवतियां या महिलाएं देह व्यापार में अपनी मरजी से नहीं आतीं. उन्हें या तो रंगीन सपने दिखा कर जिस्म की मंडी में लाया जाता है या फिर मोटी कमाई के बहाने. कई लड़कियां ऐसी होती हैं जो शरीर को दांव पर लगा कर अमीर बनना चाहती हैं. बरेली की बबीता भी ऐसी ही लड़कियों…

एक मुखबिर ने बरेली के एएसपी अभिषेक वर्मा को उन के मोबाइल पर फोन कर के सूचना दी कि बबीता नाम की एक महिला सनसिटी विस्तार कालोनी के एक दोमंजिला मकान में बड़े स्तर पर जिस्मफरोशी का धंधा चला रही है. मुखबिर ने उन्हें बबीता का फोन नंबर भी दे दिया. इतना ही नहीं, उस ने बबीता से बात करने के कुछ कोड नाम भी दे दिए, जिन का उपयोग वह अपने धंधे में करती थी. खबर महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए एएसपी ने खुफिया तौर पर पहले इस सूचना की जांच कराई, तो खबर सही निकली. इस के बाद उन्होंने इज्जतनगर के थानाप्रभारी और महिला थाने की थानाप्रभारी को अपने औफिस बुलाया.

उन्होंने दोनों पुलिस अधिकारियों को इस सूचना से अवगत कराते हुए तुरंत रेड पार्टी तैयार करने को कहा. आननफानन में रेड पार्टी तैयार कर ली गई. टीम में शामिल एक हैड- कांस्टेबल को डिकोय कस्टमर (फरजी ग्राहक) बनाया गया. डिकोय कस्टमर ने बबीता का फोन नंबर मिलाया. जैसे ही बबीता ने हैलो कहा तो वह बोला, ‘‘मैडम, मैं अमरीश बोल रहा हूं. मुझे आप का नंबर रहमान भाई ने दिया है.’’ रहमान का नाम सुनते ही बबीता समझ गई कि यह कस्टमर वास्तविक है. वह बोली, ‘‘हां, बताइए अमरीशजी, मैं आप की क्या सेवा कर सकती हूं.’’

‘‘मैडम, रहमान भाई ने बताया था कि नईनई गाडि़यां हैं, जिन पर सवारी करने में बड़ा ही मजा आता है. ऐसी किसी अच्छी गाड़ी पर मैं भी सफर करना चाहता हूं.’’ उस ने कहा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, आप का स्वागत है. कल ही हमारे पास दिल्ली से 2 नई गाडि़यां आई हैं. आप आ जाइए. रहमान भाई ने हमारा पता तो बता ही दिया होगा.’’ वह बोली.

‘‘हांजी, उन्होंने बता दिया है.’’ डिकोय कस्टमर ने कहा.

‘‘ठीक है आप आ जाइए. और हां, जब आप मेरे यहां आएंगे तब गेट पर चौकीदार आप से कोड पूछेगा तो कोड ‘समंदर में तैरना है’ बता देना. वह आप को मेरे पास ले आएगा.’’

‘‘ठीक है, मैं अभी कुछ देर में आप के पास पहुंचता हूं.’’ इस के बाद डिकोय कस्टमर बने हैडकांस्टेबल ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. यह बात 12 नवंबर, 2019 की है.

बबीता से बात पक्की हो जाने के बाद 12 नवंबर, 2019 की रात 10 बजे ही एएसपी अभिषेक वर्मा के नेतृत्व में पुलिस टीम सनसिटी विस्तार कालोनी पहुंच गई. टीम के सभी सदस्य बबीता के घर से कुछ दूर अलगअलग गाडि़यों में रहे. केवल हैडकांस्टेबल ही फरजी ग्राहक बना कर उस के घर पहुंचा. उसे बबीता के घर के बाहर चौकीदार खड़ा मिला. उस ने चौकीदार से कहा, ‘‘मुझे बबीता मैडम से मिलना है.’’

‘‘क्या काम है?’’ चौकीदार ने पूछा.

‘‘समंदर में तैरना है.’’ डिकोय कस्टमर बने हैडकांस्टेबल ने कहा.

यह सुनते ही चौकीदार समझ गया कि वह ग्राहक है, इसलिए वह उसे ले कर घर के अंदर चला गया. वहां कमरे में एक महिला मौजूद थी. फरजी ग्राहक ने पूछा, ‘‘क्या आप ही बबीताजी हैं?’’

‘‘जी हां, वैसे नाम में क्या रखा है. असल में तो काम ही मायने रखता है.’’ बबीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘बैठिए, मैं आप को अभी गाडि़यां दिखाती हूं. वैसे मैं आप को एक बात और बताना चाहती हूं कि कस्टमर की डिमांड पर हम विदेशी गाडि़यों की भी डील करते हैं.’’

‘‘अरे वाह, यह तो बड़ी खुशी की बात है. फिलहाल तो आप हमें नई गाड़यां दिखाइए.’’ वह बोला.

तभी बबीता ने आवाज लगाई तो 2 युवतियां कमरे में आ कर खड़ी हो गईं. उन्हें देखते ही डिकोय कस्टमर ने कहा, ‘‘क्या बात है मैडम, जैसा हम ने सुना था, यहां तो उस से ज्यादा देखने को मिला. वास्तव में आप बहुत पहुंची हुई हैं. इन्हें देख कर मन कर रहा है कि दोनों को ही पसंद कर लूं. लेकिन फिलहाल मैं इन के साथ जाना पसंद करूंगा.’’ उस ने आसमानी रंग का टौप पहनी युवती की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘यह मोहिनी है. इस का 2 घंटे का चार्ज 3 हजार रुपए है.’’ बबीता ने कहा.

‘‘मैडम, आप पैसों की चिंता न करें.’’ कहते हुए डिकोय कस्टमर ने 3 हजार रुपए बबीता के हाथ में दे दिए. इस के बाद उस ने अपनी जेब से फोन निकालते हुए कहा, ‘‘इसे बंद कर देते हैं वरना बीच में डिस्टर्ब करेगा.’’ उसी समय डिकोय कस्टमर ने एएसपी अभिषेक वर्मा को फोन पर मिस काल कर दी थी. यह मिस काल बाहर इंतजार कर रही पुलिस टीम के लिए एक इशारा थी. कुछ देर बाद कमरे का दरवाजा खटखटाने पर फरजी ग्राहक बने हैडकांस्टबल ने दरवाजा खोल दिया. पुलिस टीम धड़धड़ाती हुई उस कमरे में आ गई.

महिला पुलिस ने बबीता की तलाशी ले कर वे 3 हजार रुपए बरामद कर लिए जो हेड कांस्टेबल ने सौदा तय करते समय उसे दिए थे. उन नोटों के नंबर एएसपी ने पहले से ही अपने पास लिख लिए थे. ऊपर की मंजिल पर 2 युवतियां कमरों में मिलीं चौकीदार पुलिस को आया देख भाग चुका था. कुल मिला कर पुलिस ने वहां से 6 युवतियों को हिरासत में ले लिया. सभी के मोबाइल फोन और पर्स पुलिस ने कब्जे में ले लिए कमरों से भी कई आपत्तिजनक वस्तुएं बरामद हुईं. बबीता का मोबाइल पुलिस ने चैक किया तो उस में जिस्मफरोशी का धंधा कराने वाली कई युवतियों के फोटो मिले. सभी को हिरासत में ले कर पुलिस थाना इज्जतनगर आ गई. वहां उन से पूछताछ की गई.

पूछताछ के बाद पता चला कि रैकेट की सरगना बबीता काफी समय से जिस्मफरोशी के धंधे का संचालन कर रही थी. 45 वर्षीय बबीता उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं के सिविल लाइंस एरिया की बाबा कालोनी की रहने वाली थी. वह शादीशुदा थी लेकिन अपने पति को छोड़ चुकी थी. बबीता फोन पर संपर्क के बाद वाट्सऐप पर ग्राहकों को युवतियों के आकर्षक फोटो भेज देती थी. इस के बाद रेट तय होने पर वह ग्राहक को अपने ठिकाने पर बुला लेती थी.

वहीं पर उस की मुलाकात बरेली के इज्जतनगर थानाक्षेत्र की सनसिटी विस्तार कालोनी में रहने वाले गोविंदा नाम के युवक से हुई थी. बाद में उस ने गोविंदा को भी अपने धंधे में शामिल कर लिया था. अपने धंधे को बढ़ाने के लिए बबीता ने छोटे शहर बदायूं से निकल कर महानगर बरेली में धंधा शुरू करने की सोची. चूंकि गोविंदा बरेली का ही रहने वाला था, इसलिए उस ने उस की सोच को और बढ़ावा दिया. करीब 6 महीने पूर्व बबीता ने गोविंदा के सहयोग से सनसिटी विस्तार कालोनी में किराए पर एक मकान ले लिया. वह मकान गोविंदा के घर के पास ही था. गोविंदा ग्राहकों को लाने के अलावा मकान के बाहर रह कर पहरेदारी करता था. दोनों ने धंधे के संचालन के लिए कुछ कोड वर्ड बना रखे थे. धीरेधीरे बबीता के संबंध दूसरे शहरों के संचालकों से भी हो गए.

वह दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु कोलकाता आदि शहरों से भी लड़कियां भी बुलाती थी. दबिश के दौरान पकड़ी गई 2 लड़कियां मोहिनी और प्रिया दिल्ली के तुगलकाबाद क्षेत्र की थीं. इन्हें बबीता ने दिल्ली से कुछ दिन पहले ही बुलवाया था. दिल्ली की रहने वाली मोहिनी के जिस्मफरोशी के धंधे में आने की कहानी रोमांस से शुरू हुई थी. मोहिनी खूबसूरत थी. उस का यौवन निखरा तो कोई भी उसे देख कर आकर्षित हो जाता था. एक दिन मोहिनी बाजार गई तो वहां कुछ लड़के उसे छेड़ने लगे. पहले तो वह कुछ नहीं बोली लेकिन जब परेशान हो गई तो उस ने शोहदों को झाड़ना शुरू कर दिया.

तभी एक युवक ने आगे आ कर उन लड़कों का विरोध किया तो वे लड़के मिल कर उसे पीटने लगे. इसी बीच वहां पुलिस आ गई और उन लड़कों को पकड़ कर ले गई. मोहिनी अपने कपड़े ठीक कर के उस अजनबी युवक के पास पहुंची, जो उस की इज्जत बचाने के लिए उन बदमाश लड़कों से भिड़ गया था. उस युवक के शरीर पर चोटें भी आई थीं. मोहिनी ने उस की चोटें देखीं तो उस की आंखों में आंसू भर आए. घर पहुंच कर मोहिनी को अपनी भूल का अहसास हुआ कि जिस युवक ने अपनी जान पर खेल कर उस की इज्जत बचाई थी, वह उस का नाम तक नहीं पूछ सकी. उस रात मोहिनी की आंखों से नींद कोसों दूर रही. वह पूरी रात उस अजनबी के बारे में न जाने क्याक्या सोचती रही.

कुछ दिनों बाद मोहिनी बाजार गई तो एक दुकान पर वही युवक दिखाई दे गया. मोहिनी तुरंत उस के पास पहुंच गई. नजरों से नजरें मिलीं तो दोनों मुसकरा दिए.

मोहिनी ने उस युवक के पास पहुंच कर पूछा, ‘‘कैसे हैं आप?’’

‘‘बिलकुल ठीक हूं, आप कैसी हैं?’’ उस ने कहा.

‘‘मैं भी ठीक हूं.’’ मोहिनी बोली.

उसे देख मोहिनी के दिल के तार झनझना उठे. वह उस युवक के चेहरे को निहारने लगी. फिर कुछ देर बाद खुद को संभाल कर बोली, ‘‘उस दिन भी मैं ने आप का नाम नहीं पूछा था और आज भी आप से बातें कर रही हूं, मगर नाम अभी भी नहीं पूछा.’’

‘‘मेरा नाम सूरज है. यहीं कुछ दूरी पर रहता हूं. अपना नाम भी बता दीजिए.’’

‘‘मुझे मोहिनी कहते हैं और मैं तुगलकाबाद में रहती हूं.’’

इस के बाद दोनों पास के एक रेस्टोरेंट में जा कर बैठ गए. चाय पीते हुए उस दिन मोहिनी और सूरज ने काफी बातें कीं. उस के बाद फिर मिलने का वादा कर के दोनों विदा हो गए. उस दिन के बाद मोहिनी और सूरज अकसर रोज ही मिलने लगे. मेलमुलाकातों में दोनों को ही पता नहीं चला कि वे कब एकदूसरे से प्यार की डोर में बंध गए. एक दिन मोहिनी ने अपने प्यार की बात घर में बता दी. इस से घर में तूफान आ गया. उसी दिन से उस पर तमाम तरह की पाबंदियां लग गईं. प्यार के नाम पर मोहिनी ने सख्त फैसला लिया और सूरज के लिए घर छोड़ दिया. सूरज भी यही चाहता था. वह दिल्ली में एक जगह किराए का कमरा ले कर मोहिनी के साथ रहने लगा. दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. जबजब मोहिनी सूरज से शादी करने की बात कहती तो वह किसी तरह उसे समझाबुझा कर शांत करा देता.

जब मोहिनी से उस का जी भर गया तो एक दिन वह उसे अकेला छोड़ कर फरार हो गया. मोहिनी ने सूरज को ढूंढने की काफी कोशिश की, लेकिन वह उसे नहीं मिला. वह निराश हो गई. मोहिनी की समझ में आ गया कि सूरज वास्तव में उस के रूप का लोभी भंवरा था. साल भर साथ रह कर वह उस का पराग चूसता रहा. मन भर गया तो दूसरे फूल की तलाश में उड़ गया. सूरज के जाने के बाद मोहिनी की भूखों मरने की नौबत आ गई. उसे एक कंपनी में काम मिल गया था. जहां वह काम करती थी, वहां के कर्मचारी उसे भूखे भेडि़ए की तरह देखते और उसे पाने के लिए अकसर मौके की तलाश में रहते थे.

मोहिनी उन की गंदी नजरों को पहचान नहीं पाई और एक दिन धोखे से उन की हवस का शिकार हो गई. उन्होंने पहले मोहिनी के जिस्म से खिलवाड़ किया फिर 3 हजार रुपए उस की झोली में डाल दिए. मोहिनी बेबस थी. उस ने अपने होंठ सिल लिए. इसी का लाभ उठा कर वे लोग समयसमय पर मोहिनी के साथ मौजमस्ती करने लगे. जब मोहिनी उन लोगों से ज्यादा परेशान हो गई तो उस ने सोचा कि अगर किस्मत में यही सब लिखा है तो क्यों न वह स्वयं अपनी शर्तों पर अपने जिस्म का सौदा करे. इस के बाद मोहिनी नौकरी छोड़ कर जिस्म बेचने लगी. धीरेधीरे वह हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट में शामिल हो गई, जिस में उसे कौंट्रैक्ट बेसिस पर दूसरे शहरों में भी भेजा जाने लगा. जब बरेली आई तो पकड़ी गई.

दिल्ली की दूसरी युवती प्रिया छात्र थी. अच्छे रहनसहन, खानपान और अपनी लग्जरी सुविधाओं का पूरा करने के लिए वह जिस्मफरोशी का धंधा करती थी. इसे वह गलत भी नहीं मानती थी. अगर अपने तन की कमाई से अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकती है तो इस में गुरेज ही क्या है. यही सोच उसे इस धंधे में ले आई. पुलिस हिरासत में ली गई तीसरी युवती बरेली के जोगी नवादा मोहल्ले की रहने वाली ज्योति थी. वह मध्यम परिवार से थी. अचानक उस के पिता की मृत्यु हो गई तो वह एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करने लगी. लेकिन ज्योति की मामूली तनख्वाह से खर्च पूरे नहीं होते थे, इसलिए वह किसी दूसरी अच्छी नौकरी की तलाश में लग गई.

पुरानी नौकरी के दौरान उस की मुलाकात चांदनी नाम की एक महिला से हुई. चांदनी को ज्योति की समस्या का पता लगा तो वह सोचने लगी कि वह किसी तरह ज्योति को रंगीन मर्दों की आंखों की ज्योति बना दे तो वह उस के लिए टकसाल साबित हो सकती है. चांदनी देह के धंधे में काफी समय से थी और शिकार की तलाश में रहती थी. चूंकि ज्योति अभावों से त्रस्त थी, इसलिए उस ने चांदनी को धैर्य रखने को कहा. ज्योति ने अपनी मजबूरी का रोना रोते हुए चांदनी से जल्दी नौकरी दिलाने को कहा तो चांदनी बोली, ‘‘चिंता मत करो ज्योति, मेरी बात मानोगी तो मैं तुम्हें हजारों रुपए कमाने वाली लड़की बना दूंगी.’’

‘‘कैसे?’’ ज्योति ने पूछा तो चांदनी ने अपने हाथ से उस की ठोड़ी उठाई और उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘जो काम लाखोंकरोड़ों में नहीं हो सकता, वह काम एक कमसिन, खूबसूरत और अनछुआ जिस्म बहुत आसानी से कर सकता है.’’

ज्योति को शांत देख चांदनी ने ऐसा बातों का जाल फेंका कि ज्योति के बचने के लिए एक छेद नहीं था. अपनी बात कह कर चांदनी चली गई. ज्योति घंटों सोचती रही. उस ने अपनी मजबूरी पर सोचा, भविष्य पर विचार किया. अंतत: उस ने फैसला कर ही लिया कि जिंदगी की हजारों सुनहरी रातों के लिए यह भी सही. बाद में ज्योति ने अपने फैसले से चांदनी को अवगत कराया तो वह बोली, ‘‘बेटी, मैं जानती थी कि तेरा यही फैसला होगा. इसीलिए मैं ने एक कंपनी के जनरल मैनेजर से बात कर ली है. रात करीब 9 बजे वह आएगा, तू सजसंवर कर तैयार रहना.’’

निश्चित समय पर एक अधेड़ व्यक्ति आया और ज्योति को कली से फूल बना गया. उस के जाने के बाद चांदनी ज्योति के पास पहुंची और उसे 5 हजार रुपए देते हुए बोली, ‘‘जीएम साहब खुश हो गए. जातेजाते ईनाम में ये रुपए दे गए हैं.’’

ज्योति ने वह रुपए रख लिए. अगले दिन चांदनी ज्योति से बोली, ‘‘बेटी, आज एक बड़ा आदमी आएगा उसे खुश करना है.’’

ज्योति को न चाहते हुए भी दूसरी रात काली करनी पड़ी. मैनेजर गया तो चांदनी ने उसे 3 हजार रुपए थमा दिए. इस के बाद तो यह रोज का काम हो गया. चांदनी आधा पैसा खुद रख लेती और आधा उसे दे देती थी. ज्योति मैली तो हो ही चुकी थी, उस ने इसी को अपनी नियति मान लिया और वह खुशीखुशी जिस्मफरोशी का धंधा करने लगी. इस समय वह बबीता के सैक्स रैकेट से जुड़ी थी. शाहजहांपुर के तारीन बहादुरगंज की रहने वाली 21 वर्षीय शिल्पी और बरेली के फरीदपुर की रहने वाली 45 वर्षीय रानी भी पैसों का अभाव दूर करने के लिए देहव्यापार की कुछ शातिर महिलाओं के चंगुल में फंस गई थीं.

पुलिस ने इन सभी से पूछताछ कर कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. पुलिस बबीता के धंधे के सहयोगी गोविंदा की तलाश कर रही थी. उस के बारे में जब विस्तृत जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि वह भी सनसिटी में ही रहता है और केबल का काम करता है. फरार होने के बाद उस ने अपने घर के दरवाजे ग्राहकों के लिए खोल दिए थे. 17 नवंबर की रात को एएसपी अभिषेक वर्मा ने इज्जतनगर थाना पुलिस और महिला थाना पुलिस के सहयोग से गोविंदा के घर पर दबिश दी तो गोविंदा घर पर ही मिल गया. उस के अलावा 2 अलगअलग कमरों में 2 ग्राहक 2 युवतियों के साथ आपत्तिजनक अवस्था में मिले. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

पकड़ी गई युवतियां श्याम और रश्मि बरेली के जोगी नवादा की रहने वाली थीं. आर्थिक अभावों के चलते वे भी इस धंधे में आ गई थीं और काफी समय से इस धंधे में थीं. पकड़े गए दोनों युवकों ने अपने नाम राशिद निवासी काजी टोला, खेड़ा कांठ, जिला मुरादाबाद और दूसरे ने संजीव सिंह गंगवार निवासी विष्णुधाम बीडीए कालोनी तुलाशेरपुर, थाना इज्जतनगर बरेली बताया. तलाशी में राशिद के पास से तमंचा मिला. पूछताछ में पता चला कि राशिद गैंगस्टर है. उस पर बरेली के सीबीगंज में लूट का मुकदमा दर्ज था. जबकि संजीव भी दुष्कर्म के केस में आरोपित है. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने सभी को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा में कई पात्रों के नाम बदले गए हैं.

 

Murder Stories : दुपट्टे से गला घोंटकर पड़ोसन को मार डाला

Murder Stories : शाहिद के दिमाग में पड़ोसन रेखा के प्रति नफरत की आग भर चुकी थी. वह आग शोला तब बनी जब शाहिद की 18 वर्षीय बेटी फातिमा घर से अचानक गायब हो गई. शाहिद को जब बेटी के गायब होने की सच्चाई पता चली तो…

लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा बनाई गई एक डूडा कालोनी है कांशीराम कालोनी, जो पारा थाने के अंतर्गत आती है. रमेश गौतम का परिवार इसी कालोनी में रहता था. उस की पत्नी रेखा (45 वर्ष) आलमबाग स्थित एक निजी क्लिनिक में वार्ड आया की नौकरी करती थी, जबकि उस का पति रमेश आटो मैकेनिक था. रेखा रोजाना सुबह के समय अपनी ड्यूटी के लिए निकलती थी और ड्यूटी पूरी कर के नियत समय पर घर लौट आती थी. 16 अक्तूबर, 2019 की शाम को रमेश घर लौटा तो पत्नी रेखा को घर न पा कर उस ने बेटी रीतू गौतम से पूछा, ‘‘अभी तक तुम्हारी मम्मी घर नहीं आई है?’’

‘‘नहीं पापा, मम्मी अभी नहीं आई है. पता नहीं आज कैसे इतनी देर हो गई?’’ रीतू ने बताया.

‘‘हो सकता है आज क्लिनिक में कोई जरूरी काम आ गया हो.’’ रमेश ने सोचा और पत्नी का इंतजार करने लगा.

काफी रात तक इंतजार करने के बाद भी रेखा नहीं आई तो रमेश पत्नी को देखने उस के क्लिनिक पहुंच गया. वहां उसे पता चला कि रेखा अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद शाम को घर चली गई थी. क्लिनिक के कर्मियों से पूछने पर रमेश को पता चला कि रेखा कृष्णानगर में टीपू नामक व्यक्ति से पैसे लेने की बात कह रही थी. जब देर रात तक रेखा घर वापस नहीं लौटी तो रमेश गौतम ने अगले दिन दोपहर तक उसे परिचितों के यहां तलाशा. इस के बाद भी जब उस का कोई सुराग न लगा तो उस ने थाना पारा पहुंच कर पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. अगले दिन 17 अक्तूबर, 2019 को थाना पारा के एसएसआई संतोष कुमार को एक दुखद सूचना मिली.

पता चला कि वहां से 25 किलोमीटर दूर थाना सरोजनी नगर के अंतर्गत आने वाले कालिया खेड़ा गांव के पास वन विभाग के जंगल में एक महिला का शव मिला है. पता चला कि वह शव पोस्टमार्टम हाउस की मोर्चरी में रखा हुआ है. चूंकि थाना पारा में रमेश गौतम ने पत्नी की गुमशुदगी दर्ज कराई थी, इसलिए एसएसआई संतोष कुमार ने अज्ञात लाश मिलने की सूचना रमेश गौतम को दे दी. रमेश गौतम मोर्चरी पहुंच गया. जब उसे सरोजनी नगर थाना पुलिस द्वारा बरामद की गई महिला की लाश दिखाई गई तो उस ने उस की शिनाख्त अपनी पत्नी रेखा के रूप में कर दी. फिर पोस्टमार्टम के बाद रेखा का शव रमेश को सौंप दिया गया.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी प्रमेंद्र सिंह ने रमेश गौतम की बेटी रीतू गौतम की तहरीर पर भादंवि की धारा 302, 201 के अंतर्गत टीपू निवासी कृष्णानगर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. टीपू को गिरफ्तार करने के लिए थानाप्रभारी प्रमेंद्र सिंह ने अतिरिक्त थानाप्रभारी अरविंद कुमार पांडेय, एसआई संजय कुमार सिंह, दिनेश बहादुर आदि के साथ उस के घर दबिश दी. वह घर पर ही मिल गया. पुलिस उसे थाने ले आई. थाने में टीपू से पूछताछ की गई तो उस ने रेखा की हत्या में अपना हाथ होने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन उस ने पुलिस को कुछ ऐसे सुराग दे दिए, जिस से पुलिस रेखा के सही कातिल तक पहुंच गई. टीपू द्वारा पुलिस को ज्ञात हुआ कि रेखा का पड़ोस में रहने वाले शाहिद अली से आपसी मनमुटाव लगभग 10 महीने पहले हो गया था. शाहिद अली रेखा से रंजिश रखता था.

मांगने पर रमेश गौतम ने पुलिस को रेखा गौतम और शाहिद अली के मोबाइल नंबर उपलब्ध करा दिए. पुलिस ने दोनों फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन का अध्ययन किया तो पता चला कि शाहिद अली ने 16 अक्तूबर, 2019 को रेखा को फोन किया था. यह जानकारी मिलने पर पुलिस शाहिद अली की तलाश में लग गई. इसी दौरान मुखबिर से पता चला कि शाहिद अली सरोजनी नगर इलाके में शहीद पथ तिराहे के पास मौजूद है. यह सूचना मिलने के बाद पुलिस टीम शहीद पथ तिराहे पर पहुंच गई. वहां शाहिद अली मिल गया. पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने रेखा गौतम की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

शाहिद अली मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा की तहसील कर्नलगंज के गांव बाबूदास भयापुरवा का रहने वाला था. शाहिद जब जवान हुआ तो उसे रोजगार की चिंता होने लगी. गांव में रोजगार का कोई साधन न होने की वजह से शाहिद कामधंधे की तलाश में लखनऊ आ गया. यह बात सन 2016 की है. शाहिद अली ने लखनऊ में कामधंधा तलाश किया. उस ने लखनऊ की डूडा कालोनी में किराए का एक कमरा ले लिया. वहां रह कर उस ने टैंपो चलाना शुरू किया. जब उस की आमदनी बढ़ी तो उस ने डूडा कालोनी में अपने नाम एक फ्लैट आवंटित करा लिया और अपनी पत्नी व बच्चों को लखनऊ बुला लिया. उस के फ्लैट के पास रमेश गौतम का फ्लैट था. रमेश गौतम के परिवार में पत्नी रेखा गौतम के अलावा 2 बच्चे थे. रेखा गौतम आलमबाग में स्थित एक क्लिनिक में आया थी.

आसपास रहने के कारण शाहिद अली की रमेश गौतम से अच्छी जानपहचान हो गई थी. दोनों के परिवार भी आपस में घुलमिल गए थे, जिस की वजह से दोनों परिवार एकदूसरे के घर आतेजाते थे. शाहिद अली सीधा व सरल स्वभाव का था, इसी वजह से रेखा उसे पसंद करती थी. रेखा गौतम बेहद चालाक व शातिर किस्म की महिला थी. उस ने शाहिद अली को अपने झांसे में ले लिया. शाहिद ने अपने परिवार के गुजरबसर के लिए रमेश गौतम से एक विक्रम टैंपो किराए पर दिलाने या खरीद कर देने की पेशकश की. उस ने रमेश को भरोसा दिलाया कि वह हर महीने टैंपो की किस्त का भुगतान करता रहेगा. रमेश गौतम ने शाहिद की यह बात रेखा को बताई तो वह कुछ देर तक सोचती रही. फिर उस ने हां में सिर हिला दिया और सहानुभूति दिखाते हुए शाहिद को एक पुराना टैंपो दिलवा दिया. रेखा ने वह टैंपो कुछ दिनों पहले ही किसी और से खरीदा था. यह सन 2017 की बात है.

शाहिद अली अवध अस्पताल इको गार्डन से ले कर पारा कालोनी होता हुआ बुद्धेश्वर चौराहे तक टैंपो चलाने लगा. धीरेधीरे पुलिस की मिलीभगत से यह टैंपो डग्गामारी में कई महीने तक चलता रहा. अचानक एक बार नहरिया अस्पताल के निकट शाहिद का टैंपो पुलिस ने चैकिंग के दौरान पकड़ा गया. पुलिस ने उस के कागज मांग कर छानबीन की तो टैंपो चोरी का निकला. रेखा ने शाहिद को उस टैंपो के फरजी कागज बना कर दिए थे. दरअसल, रेखा ने किसी को थोड़ीबहुत कीमत दे कर वह टैंपो खरीद लिया था, जो बाद में उस ने 60 हजार रुपए में शाहिद अली को बेच दिया. लेकिन शाहिद अली इस बात से बिलकुल अंजान था कि रेखा ने उस के साथ धोखा किया है. सन 2017 में शाहिद अली इसी टैंपो की चोरी के आरोप में जेल चला गया, जहां वह 3 महीने से अधिक जेल में रहा.

शाहिद के जेल जाने के बाद उस की पत्नी मेहरुन्निसा (परिवर्तित नाम) बेसहारा हो गई और उस की गुजरबसर की समस्या सामने आ खड़ी हुई. रेखा ने शाहिद की पत्नी को सहानुभूतिवश आर्थिक सहायता की. शाहिद जब जेल से छूट कर बाहर आया तो उसे पता चला कि उस की पत्नी मेहरुन्निसा रेखा से काफी घुलमिल गई है. इतना ही नहीं, उस ने मेहरुन्निसा के कानों में शाहिद के खिलाफ उलटी सीधी बातें भी भर दीं. इस का नतीजा यह निकला कि शाहिद के जेल से आने के बाद मेहरुन्निसा उस से तलाक देने की बातें करने लगी थी. शाहिद रेखा से बहुत खफा था लेकिन वक्तबेवक्त उस के द्वारा मदद करने के कारण वह उस के अहसानों से दबा हुआ था.

इसलिए उस की करतूतों और अपनी पत्नी का विरोध खुल कर नहीं कर पाता था, बल्कि वह पत्नी को सचेत करता रहता था कि कहां तुम रेखा के चक्कर में पड़ी रहती हो. वह बहुत शातिर किस्म की औरत है. लेकिन मेहरुन्निसा पति की एक भी बात नहीं सुनती थी. कहनेसुनने का पत्नी पर कोई फर्क न पड़ते देख शाहिद अली परेशान हो गया. उस की बेटी पर रेखा का कोई गलत प्रभाव न पड़े, इसलिए वह मजबूरीवश अपनी पत्नी और बेटी को अपने पैतृक गांव बाबूदास भयापुरवा, जिला गोंडा में छोड़ आया. इस के अलावा उस ने अपनी दूसरी बेटी फातिमा (18 वर्ष) को अपने बहनोई मुजीबुल्ला के घर छोड़ दिया. बहनोई का घर उस के डूडा कालोनी स्थित घर से कुछ दूर दरोगाखेड़ा में था.

कुछ समय के बाद शाहिद को पता चला कि रेखा फातिमा से मिलने दरोगाखेड़ा जाती है और उसे लालच दे कर अपने साथ बाहर घुमाने भी ले जाती है. शाहिद ने बेटी को समझाया और रेखा से दूर रहने को कहा लेकिन फातिमा ने रेखा का साथ नहीं छोड़ा. शाहिद दिन भर किराए का टैंपो चला कर मजदूरी कर के अपना पेट पालता था. वह अपना टैंपो ले कर सुबह निकल जाता और देर रात लौटता था. वह फातिमा के दिन भर के क्रियाकलापों से अंजान था. शाहिद अली जून, 2018 में अपने पैतृक निवास बाबूदास भयापुरवा आया हुआ था. इसी दौरान 30 जून, 2018 को उस की बेटी फातिमा दरोगाखेड़ा से कहीं गायब हो गई. शाहिद अली को शक हुआ कि रेखा ही उस की बेटी को बरगलाती रहती थी. उस ने ही फातिमा को कहीं गायब किया होगा. इसलिए उस ने लखनऊ आ कर रेखा से फातिमा के बारे में पूछा तो उस ने उस के बारे में अनभिज्ञता जता दी.

शाहिद पुलिस को सूचना दिए बगैर खुद ही बेटी को ढूंढता रहा, पर उस का पता नहीं चला. शाहिद रेखा की करतूतों से काफी तंग आ चुका था. उस की ही वजह से वह टैंपो चोरी के आरोप में जेल गया था और अब उस ने उस की बेटी को कहीं गायब करा दिया था. इस के अलावा वह उस की पत्नी मेहरुन्निसा को भी सिखापढ़ा कर घर को बरबाद करने पर तुली हुई थी. इन्हीं सब बातों को देखते हुए उस ने रेखा को सबक सिखाने का निर्णय ले लिया. अपने मकसद में कामयाब होने के लिए उस ने रेखा से दोस्ती गांठ कर अपने संबंध प्रगाढ़ एवं विश्वसनीय बना लिए. अब रेखा उस पर विश्वास करने लगी. शाहिद कभी रेखा को उस के क्लिनिक से टैंपो में बिठा कर उस के घर छोड़ आता था और कभी घर से उसे बाजार भी ले जाता था.

धीरेधीरे रेखा को शाहिद पर इतना विश्वास हो गया कि शाहिद उसे फोन कर के कहीं बुलाता तो वह वहीं चली जाती थी. रेखा भी क्लिनिक से घर वापस आने के लिए शाहिद को फोन करती तो शाहिद टैंपो ले कर पहुंच जाता था. 16 अक्तूबर, 2019 को शाम शाहिद अली ने रेखा को फोन कर के नादरगंज टैंपो स्टैंड पर बुलाया तो रेखा क्लिनिक से सीधे शाहिद अली की बताई गई जगह पर पहुंच गई. शाहिद ने अपना टैंपो नादरगंज में आटो मैकेनिक की दुकान पर खड़ा कर दिया था और उस ने कुछ देर के लिए मैकेनिक की बाइक मांग ली. वह रेखा को बाइक पर बैठा कर नादरगंज तिराहे से टीएस अस्पताल के निकट कलियाखेड़ा गांव की ओर जाने वाले सुनसान रोड पर ले गया. वहां एक जगह उस ने बाथरूम के बहाने बाइक रोकी. तभी उस ने बाइक की डिक्की से बांका निकाल कर रेखा के सिर और चेहरे पर हमला कर दिया.

रेखा घायल हो कर नीचे गिर पड़ी तो गुस्से से भरे शाहिद ने उसी के दुपट्टे से गला कस कर उस की हत्या कर दी. बाद में उस के शव को खींच कर वन विभाग के जंगल में डाल दिया, जबकि बांका और रेखा का दुपट्टा वहीं कुछ दूरी पर छिपा कर फरार हो गया. पुलिस ने शाहिद की निशानदेही पर 22 अक्तूबर, 2019 को हत्या में प्रयुक्त बांका, मृतका का दुपट्टा, प्रयोग में लाई गई बाइक बरामद कर ली. 23 अक्तूबर को सीजेएम न्यायालय में पेश करने के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया. पुलिस को इस जांच के दौरान ही पता चला कि शाहिद की बेटी फातिमा का पड़ोस में रहने वाले आलम नाम के युवक से प्रेम प्रसंग चल रहा था. वह 30 जून, 2018 को उस के साथ ही घर से भाग गई थी.

उस ने उस के साथ निकाह कर लिया था. बहरहाल, जिस बेटी के गायब कराने के शक में शाहिद ने रेखा की हत्या की थी, वह बेटी प्रेमी से पति बने आलम के साथ मौजमजे से रह रही है.

 

Crime Stories : लाठियों से पीटकर पिता ने बेटी को मारा डाला

Crime Stories : राहुल प्रीति को प्यार करता था, प्रीति भी प्यार के बंधन में बंधी थी. लेकिन प्रीति के घरवाले इस प्रेम के दुश्मन बन गए. उन्होंने प्रीति की हत्या कर उस की लाश न केवल जला दी, बल्कि उस से जुड़े सारे सबूत भी नदी में बहा दिए. राहुल इस से पूरी तरह अनभिज्ञ था. प्रीति की हत्या का राज 7 महीने बाद तब खुला जब…

राहुल सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गया. उसे सुबहसुबह बनसंवर कर जाते देख मां ऊषा देवी ने टोकते हुए कहा,‘‘राहुल, इतना बनसंवर कर कहां चल दिया?’’

‘‘मां, कितनी बार कहा है कि जाते समय पीछे से न टोका करो. मैं एक बहुत जरूरी काम से जा रहा हूं.’’

‘‘लेकिन बेटा, तू तो आज मेरे साथ बाजार जाने वाला था.’’

‘‘मां, बाजार शाम को चलेंगे. मैं लौट कर नहीं आऊंगा क्या, जाता हूं मुझे देर हो रही है.’’ इतना कह कर राहुल घर से निकल गया. थोड़ी देर में वह पूर्व निश्चित जगह पर पहुंच गया और इंतजार करने लगा. लगभग 20 मिनट बाद उस की नजर अपनी तरफ आती एक खूबसूरत युवती पर पड़ी तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. उस के पास आते ही राहुल बोला,‘‘इतनी देर क्यों लगा दी प्रीति, मैं कब से यहां बाजार में खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘जब प्यार किया है तो इंतजार तो करना ही पड़ेगा. वैसे अब तक तुम्हें इस की आदत पड़ जानी चाहिए थी.’’ प्रीति ने तिरछी नजरों से उसे देखते हुए शरारती लहजे में कहा.

‘‘क्या करूं प्रीति, यह कमबख्त दिल नहीं मानता. जब तक तुम्हारा दीदार नहीं हो जाता, मुझे चैन नहीं आता. मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं.’’

राहुल का प्यार देख प्रीति भावविभोर हो कर बोली,‘‘मुझे मालूम है राहुल, तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितना प्यार है. तुम्हारे इस प्यार के लिए तो मैं किसी से भी लड़ जाऊंगी. मेरी इन आंखों को भी तुम्हारा दीदार करने के बाद ही सुकून मिलता है.’’

‘‘प्रीति, आज कालेज की छुट्टी करो. खूब घूमेंगे, खाएंगे पीएंगे. आज मौसम भी काफी रोमांटिक है, खासतौर पर हम जैसे प्यार करने वालों के लिए.’’

प्रीति तैयार हो गई तो ही राहुल उसे बाजार घुमाने लगा. राहुल ने उस की पसंद की चीजें भी दिलाईं. फिर कुल्फी खरीदी और कुल्फी खातेखाते वह दूर एक सुनसान जगह पर पहुंच गए. वहां दोनों एक एकांत जगह देख बैठ गए. दोनों ही बहुत खुश थे. जिस दिन एक साथ घूमने का मौका मिल जाता था, दोनों दीनदुनिया से बेखबर हो कर एकदूसरे में डूब जाते थे. उन की शरारतें भी एकाएक बढ़ जाती थीं. प्रीति को तल्लीनता से कुल्फी खाते देख राहुल को शरारत सूझी. उस ने अचानक प्रीति का हाथ अपनी तरफ खींच कर उस की थोड़ी कुल्फी खा ली और आंख बंद कर के उस के स्वाद का आनंद लेते हुए बोला, ‘‘वाह प्रीति, तुम्हारी कुल्फी का तो जबाब नहीं. तुम्हारी कुल्फी मेरी कुल्फी से ज्यादा मीठी है.’’

‘‘राहुल, हम दोनों की कुल्फी एक जैसी है. फिर केवल मेरी कुल्फी कैसे ज्यादा मीठी हो सकती है.’’ प्रीति ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कुल्फी तुम्हारे गुलाबी होंठों से लग कर मीठी हुई है.’’ राहुल ने प्रीति के गुलाबी होंठों को अंगुली से छूते हुए कहा. इस पर प्रीति प्यार से राहुल के गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए बोली, ‘‘बहुत शरारती होते जा रहे हो. एक बार शादी हो जाने दो, फिर तुम्हारी सारी शरारतें छुड़वा दूंगी.’’

‘‘अभी शादी हुई नहीं और ये तेवर. अब तो मैं तुम से शादी ही नहीं करूंगा.’’

‘‘बच्चू, मुझ से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं है, शादी तो मैं तुम से ही करूंगी.’’ प्रीति ने इस अंदाज में कहा कि राहुल हंस पड़ा. उसे हंसते देख कर प्रीति भी हंस पड़ी. दोनों में काफी देर तक प्रेमिल नोंकझोंक होती रही. जब काफी समय हो गया तो दोनों एकदूसरे से विदा ले कर अपनेअपने घर चले गए. प्रीति जनपद प्रतापगढ़ के अंतू थाना क्षेत्र के गांव नंदलाल का पुरवा की रहने वाली थी, उस के दादा रामप्यारे वर्मा थे, जो खेतीकिसानी करते थे. परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे थे राजू, राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश. वे सभी भाई शादीशुदा थे. सभी बेटों के पास अपनेअपने हिस्से की जमीन थी. रामप्यारे के सभी बच्चे अपने परिवारों के साथ सुखी थे.

रामप्यारे का सब से बड़ा बेटा था राजू. वह सूरत में रह कर प्राइवेट नौकरी कर रहा था. उस के परिवार में पत्नी रमा के अलावा 2 बेटियां प्रीति और पूजा थीं. प्रीति निहायत खूबसरत थी. उस पर उस की कातिल मुसकान उस के चेहरे को और भी खूबसूरत बना देती थी. वह बीए तृतीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी. राहुल प्रतापगढ़ के सांगीपुर थानाक्षेत्र के गांव सिंघनी निवासी नन्हे वर्मा का बेटा था. नन्हे खेतीबाड़ी करते थे. नन्हे और ऊषा के 3 बेटों में राहुल बड़ा था. वह बीए तक पढ़ा था. राहुल काफी स्मार्ट था. राहुल के मामा फूलचंद्र वर्मा नंदलाल का पुरवा गांव के रहने वाले थे. फूलचंद्र राजू वर्मा का पड़ोसी था.

राहुल बाइक से अकसर अपने मामा के यहां जाता रहता था. इस आनेजाने में उस की नजर प्रीति पर पड़ी तो उस के दिल की घंटी बजने लगी. अब जब भी उस का मन होता माया के गांव जा कर प्रीति को देख ले. जब कभी प्रीति बाजार या सहेलियों के यहां जाती तो राहुल उस के पीछे लग जाता. प्रीति से उस की गतिविधियां छिपी नहीं थीं. उसे भी राहुल अन्य युवकों की अपेछा कुछ अलग सा लगा था. प्रीति रोज कालेज जाती थी. एक दिन रास्ते में खड़ा हो कर वह प्रीति का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर में प्रीति आती दिखाई दी. उसे देखते ही राहुल के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ गई. जैसे ही उस की नजरें प्रीति से टकराईं, उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. प्रीति ने उसे देख लिया था. वह राहुल के पास आ कर धीरे से मुसकराई और सामने से गुजर गई.

राहुल ने भी प्रीति के पीछे अपने कदम बढ़ा दिए. उस ने आसपास देखा और फि़र आहिस्ता से उसे आवाज दी, ‘‘प्रीतिजी!’’

प्रीति को भी आभास था कि राहुल उस के पीछे आ रहा है. लिहाजा चौंकने के बजाय उस पर नजर पड़ते ही प्रीति बोली, ‘‘त…तुम, मेरा मतलब आप..?’’

‘‘पहला संबोधन ही रहने दो, मुझे वही अच्छा लगता है.’’ राहुल ने उस के बराबर में आते हुए कहा.

‘‘सम्मान में बोलना चाहिए,’’ प्रीति बोली.

‘‘खैर छोडि़ए इन बातों को.’’ राहुल ने बातों का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा,‘‘आज इतनी देर कैसे हो गई आप को?’’

‘‘रात देर तक जागती रही, इसलिए सुबह देर से आंख खुली.’’ प्रीति ने शोखी से जवाब दिया.

‘‘मैं तो पूरी रात नहीं सो सका, सुबह के वक्त नींद आई.’’

‘‘क्या रात भर पढ़ते रहे?’’

‘‘हां, रात भर मैं तुम्हारे चेहरे की हसीन किताब अपनी आंखों के सामने रख कर पन्ने पलटता रहा.’’ राहुल ने कहा तो प्रीति ने शरमा कर अपना चेहरा झुका लिया. फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘इस तरह की बात न करो.’’

‘‘क्यों, क्या मेरी बात अच्छी नहीं लगी?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. आप की बातें रात को मुझे परेशान करेंगी. अब आप जाओ, कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें एक वादा करना होगा.’’

प्रीति चौंकी,‘‘कैसा वादा?’’

‘‘यही कि कल फिर मिलोगी.’’

‘‘देखूंगी.’’ कह कर प्रीति आगे बढ़ गई. राहुल उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

उस दिन राहुल का किसी काम में मन नहीं लगा. रात भी जैसेतैसे गुजरी. अगले दिन वह फिर उसी निर्धारित जगह जा पहुंचा. थोड़ी ही देर में प्रीति वहां आई तो वह भी उस के साथ हो लिया.

‘‘एक बात कहूं प्रीति?’’

‘‘कहो.’’

‘‘किसी से मिलने की चाहत हो या उस की एक झलक पाने की तड़प, बहुत अजीब सा लगता है न?’’ राहुल ने गंभीरता ने कहा तो प्रीति बोली, ‘‘पहेलियां क्यों बुझाते हो? जो कहना है, साफसाफ कहो.’’

‘‘सच कह दूं.’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और…’’ राहुल कुछ और भी कहना चाहता था, लेकिन प्रीति ने अपनी तर्जनी उस के होंठों पर रख कर चुप रहने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘सड़क पर सब को सुनाओगे क्या?’’ इसी के साथ उस के गालों पर सुर्खी दौड़ गई.

राहुल की खुशी का पारावार न रहा. वह प्रीति से बोला, ‘‘मेरी बात का जवाब नहीं दोगी?’’

‘‘क्या जवाब दूं?’’ प्रीति ने उल्टा प्रश्न किया.

‘‘जो तुम्हें अच्छा लगे.’’ राहुल बोला.

‘‘मुझे तो सभी कुछ अच्छा लगता है.’’

‘‘फिर भी.’’

‘‘इतने नासमझ तो नहीं हो, जो आंखों की भाषा भी न पढ़ सको. जरूरी नहीं कि जुबां से प्यार का इजहार किया जाए.’’

प्रीति की बात सुनते ही राहुल खुशी से झूम उठा. उस ने आसपास देखा, फिर प्रीति की कलाई पकड़ कर उस ने धीरे से दबा दी. राहुल के ऐसा करने से प्रीति के शरीर में सिहरन दौड़ गई. उस ने जल्दी से अपनी कलाई छुड़ा ली.

‘‘तुम बहुत अच्छी हो, प्रीति.’’

‘‘देखने वाले की नजर अच्छी हो तो सभी अच्छे लगते हैं.’’

इस के बाद दोनों ने एकदूसरे को हसरत भरी नजरों से देखा और अलगअलग रास्तों पर चले गए. फिर दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. हालांकि दोनों अपने प्रेमसंबंधों को ले कर काफी सावधानी बरतते थे. मगर गांव में उन्हें ले कर कानाफूसी होने लगी थी. दूसरी तरफ प्रीति ने हिम्मत कर के अपनी मां रमा से राहुल से शादी करने की बात बताई तो वह चीखती हुई बोली, ‘‘करमजली, इसी दिन के लिए तुझे पालपोस कर बड़ा किया था कि तू सरेराह नाक कटवाती घूमे. फिर जिस रिश्ते की कोई मंजिल नहीं, उस के बारे में बात करना ही बेकार है.’’

रमा उसे समझाते हुए बोली, ‘‘बेटी, देख हम तेरे दुश्मन नहीं हैं, इसलिए तुझे अच्छी शिक्षा ही देंगे. मेरी बात मान कर उसे भूल जा. वैसे भी रिश्ते में तू उस की मौसी लगती है, इसलिए तेरा विवाह उस से नहीं हो सकता. अपनी बिरादरी में कोई अच्छा लड़का देख कर तेरी शादी धामधाम से करेंगे.’’

‘‘तो एक बात मेरी भी कान खोल कर सुन लो. अगर हमारे दरवाजे पर राहुल के अलावा कोई और बारात ले कर आया तो इस घर से मेरी अर्थी ही उठेगी.’’ कह कर प्रीति पैर पटकते हुए घर से बाहर निकल गई. उस के बाद वह हिचकियां लेकर रो पड़ी. इन सब अड़चनों के बीच प्रीति और राहुल काफी चिंताग्रस्त रहने लगे. इन्हीं परेशानियों से घिर कर राहुल ने प्रीति के पिता राजू से जब विवाह की बाबत बात की तो वह एकाएक भड़क उठे, ‘‘अभी तक लोगों से तुम्हारी आवारगी के बारे में ही सुन रखा था, तुम तो चरित्र के भी गिरे निकले. तुम दोनों के बीच ऐसा रिश्ता है कि शादी तो संभव ही नहीं है. कान खोल कर सुन लो, आज के बाद तुम मेरी बेटी से नहीं मिलोगे.’’

राजू जानता था कि लाख चेतावनी के बाद भी दोनों मानेंगे नहीं, मिलेंगे जरूर. इसलिए वह प्रीति को अपने साथ सूरत ले गया. वहां एक निजी स्कूल में उस की अध्यापिका के पद पर नौकरी लगवा दी. राहुल भी दिल्ली चला गया और वहां प्राइवेट नौकरी करने लगा. राहुल और प्रीति मिल तो नहीं पाते थे लेकिन मोबाइल पर बातें कर लेते थे. इस बातचीत के दौरान ही दोनों ने परिजनों से बिना बताए विवाह करने का फैसला कर लिया. राहुल दिल्ली से सूरत गया. वहां दोनों ने एक मंदिर में विवाह कर लिया. राहुल की उम्र 21 वर्ष से कम थी, इसलिए कोर्ट मैरिज नहीं हो सकती थी. इस की भनक राजू को लग गई. वह प्रीति को ले कर अपने गांव वापस आ गया. आननफानन में प्रीति का विवाह प्रतापगढ़ के सांगीपुर थाना क्षेत्र के पूरे बक्शी गांव में तय कर दिया.

प्रीति बेचैन हो उठी. उस ने राहुल से बात की तो राहुल ने उसे घर वालों से विवाह का विरोध करने से मना कर दिया. उस ने कहा कि वह विवाह से पहले की रस्में कर ले और विवाह को कुछ समय तक टालने की कोशिश करे. जब तक विवाह का समय आएगा, तब तक उस की उम्र 21 वर्ष हो जाएगी. फिर दोनों किसी तरह से कोर्ट में जा कर विवाह कर लेंगे. प्रीति इस के लिए तैयार हो गई. 15 मई, 2019 को प्रीति के लापता होने पर उस के चाचा राजेश  वर्मा ने अंतू थाने में प्रीति के गुम होने की तहरीर दी. थानाप्रभारी संजय यादव ने प्रीति की गुमशुदगी दर्ज करा दी. लेकिन प्रीति का कोई पता नहीं चला.

समय बीतता चला गया. 11 नवंबर, 2019 को थाना अंतू के गांव पूरब निवासी काबीना मंत्री के रिश्तेदार सर्वेश उर्फ विक्की सिंह पर उस के पोल्ट्री फार्म के पास जानलेवा हमला हमला हुआ, जिस पर उसी दिन अंतू थाने में 307 आईपीसी में मुकदमा दर्ज हो गया. जांच के दौरान हमले में चिह्नित हुए अजय पासी निवासी टेकनिया, थाना सांगीपुर व पवन सरोज निवासी नेवादा, थाना सांगीपुर. दोनों हमलावरों पर पुलिस द्वारा 25-25 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया गया. इस केस पर एसटीएफ को भी लगाया गया. 11 फरवरी, 2020 को एसटीएफ के इंसपेक्टर हेमंत भूषण और उन की टीम ने अंतू थाना इंसपेक्टर मनोज तिवारी की मदद से दोनों ईनामी बदमाशों को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो पता चला कि अजय पासी गांव नंदलाल का पुरवा की प्रीति से एकतरफा प्यार करता था. लेकिन प्रीति काफी दिन से लापता है. प्रीति के चाचा राजेश वर्मा के साथ विक्की भी प्रीति की गुमशुदगी दर्ज कराने थाने गया था. अजय ने समझा कि विक्की सिंह ने ही प्रीति को गायब कराया है. उस के बाद पवन ने सरोज व एक अन्य साथी बाबू के साथ कई दिन तक विक्की सिंह की रेकी की फिर 11 नंवबर को उस ने विक्की सिंह पर कई राउंड गोलियां बरसाई. विक्की को मरा समझ कर दोनों फरार हो गए. विक्की इस हमले से बुरी तरह घायल हुआ था.

इंसपेक्टर मनोज तिवारी ने गहराई से जांच की तो पता चला कि लापता प्रीति वर्मा का प्रेम प्रसंग राहुल वर्मा से था. इस के बाद उन्होंने राहुल को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो राहुल ने जो कुछ बताया, उसे जान कर मनोज तिवारी को प्रीति के लापता होने का पूरा मामला समझ आ गया. राहुल से पूछताछ के बाद 12 फरवरी को इंसपेक्टर मनोज तिवारी ने प्रीति के पिता राजू वर्मा, चाचा राजेश वर्मा और जमुना प्रसाद वर्मा को हिरासत में ले कर पूछताछ की. उन्होंने प्रीति की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया और हत्या के पीछे की वजह भी बयान कर दी.

प्रीति का विवाह तय होने के बाद 13 मई, 2019 को उस की सगाई की तारीख निश्चित हुई. 13 मई को वर पक्ष के लोगों के आने के बाद प्रीति की सगाई की रस्म अदा की गई. वर पक्ष के लोगों के जाने के बाद प्रीति ने राहुल को फोन कर के मिलने के लिए बुलाया. रात 8 बजे प्रीति घर से कुछ दूर जा कर राहुल से मिली.  घर पर प्रीति को एकाएक न पा कर प्रीति के पिता राजू और तीनों चाचा राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश उसे खोजने निकले. कुछ दूरी पर प्रीति राहुल से बात करते दिखाई दी. राहुल ने उन को अपनी तरफ आते देख लिया. इस पर वह अपनी बाइक छोड़ कर वहां से भाग निकला.

प्रीति के पिता और चाचा उस के पीछे नहीं भागे, बल्कि प्रीति को मारतेपीटते हुए घर ले जाने लगे. राहुल काफी दूर जा कर बेबस खड़ा यह सब देखता रहा. जब वह लोग वहां से चले गए तो राहुल भी वहां से चला गया. दूसरी ओर पिता और उस के तीनों चाचाओं ने घर ले जा कर प्रीति को लाठीडंडों से पीटपीट कर मार डाला. घर की महिलाएं बेबस खड़ी देखती रहीं. अगले दिन 14 मई की रात प्रीति के पिता और उस के तीनों  चाचा उस की लाश को पूरब गांव ले गए. वहां नदी किनारे सिंघनी घाट पर प्रीति की लाश को जला दिया और साथ में उस के मोबाइल को भी आग के हवाले कर दिया. प्रीति की लाश को जलाने के बाद उस की राख नदी में बहा दी गई.

अगले दिन राजेश वर्मा ने विक्की सिंह के साथ अंतू थाने जा कर प्रीति की गुमशुदगी दर्ज करा दी. काफी समय बीत जाने पर भी पुलिस ने कुछ नहीं किया तो वे निश्चिंत हो गए कि प्रीति की हत्या रहस्य बन कर रह जाएगी, लेकिन गुनाह किसी न किसी तरह से सामने से आ ही जाता है. प्रीति के पिता राजू वर्मा और चाचा राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश का भी गुनाह सामने आ गया. इंसपेक्टर मनोज तिवारी ने सभी के विरुद्ध भांदंवि की धारा 193/302/201/34/204 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के बाद कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे तक ब्रजेश फरार था, पुलिस उस की तलाश कर रही थी. पुलिस ने प्रीति के प्रेमी को मुकदमे में गवाह बना लिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime : प्रेमिका ने शादी का प्रपोजल ठुकरा तो लवर ने मां बेटी का किया कत्ल

Love Crime :  समाज या लोग भले ही कहते रहें कि औरत अब अबला नहीं है. लेकिन सच यह है कि महिलाएं कुछ मामलों में पुरुष की ओर ही देखती हैं. सुमिता और समरिता के साथ भी यही हुआ, जिस की वजह से विक्रांत नागर ने…  दिल्ली, दिल्ली क्राइम, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश क्राइम दिल्ली क्राइम

राजधानी दिल्ली की पूर्वी सीमा पर बसा वसुंधरा एनक्लेव ऐसा पौश इलाका है, जहां अधिकतर उच्चमध्यम वर्गीय नौकरीपेशा लोग रहते हैं. कभी गाजीपुर, कोंडली से सटा ये इलाका पिछले कुछ सालों में ऊंची अट्टालिकाओं और बहुमंजिले सोसाइटी अपार्टमेंट से पट गया है. इन्हीं आलीशान सोसाइटी अपार्टमेंट्स में से एक है मनसारा अपार्टमेंट. वसुंधरा एनक्लेव स्थित इसी मनसारा अपार्टमेंट के बी ब्लौक में तीसरी मंजिल के फ्लैट संख्या  303 में कुछ सालों से सुमिता मैसी (45) और उन की बेटी समरिता मैसी (25) रहती थीं. मूलरूप से केरल की रहने वाली सुमिता के पति की करीब 20 साल पहले मौत हो गई थी. उस वक्त समरिता महज 5 साल की थी.

सुमिता ने विकासपुरी में रहने वाले एक व्यक्ति से प्रेम विवाह किया था. 20 साल पहले पति की मौत के बाद भी सुमिता कई सालों तक विकासपुरी में रहती रही. कुछ सालों पहले सुमिता ने नोएडा में अपनी जौब की वजह से विकासपुरी का इलाका छोड़ दिया और वसुंधरा एनक्लेव में आ कर रहने लगी. सुमिता की बहन और भाई केरल में रहते थे. सुमिता खुद नोएडा के सेक्टर 142 के एक एनजीओ में ऊंचे पद पर थीं. जबकि उन की बेटी समरिता पढ़ाई के बाद पिछले 5 महीने से एक 5 स्टार होटल में हौस्पिटैलेटी की ट्रेनिंग ले रही थी.

सुमिता सिंगल मदर थी. जवान बेटी को पालने के लिए जिंदगी में कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है, सुमिता को अच्छी तरह पता था. मांबेटी के बीच चूंकि दोस्ताना रिश्ता था, इसलिए सुमिता को ज्यादा चिंता नहीं होती थी. 9 मार्च सोमवार को होली का त्यौहार था, जबकि रविवार को अवकाश था. इसीलिए सुमिता व समरिता दोनों की ही 2 दिन छुट्टी थी. मांबेटी ने रविवार को ही प्लान बना लिया था कि 10 मार्च को होली का रंग खेलने के बाद अपने कुछ दोस्तों के घर मिलने जाएंगी.  9 मार्च की सुबह करीब 8 बजे सुमिता के यहां काम करने वाली नौकरानी चंदा जब काम करने के लिए उन के घर पहुंची और कालबेल बजाई, तो अंदर से किसी ने दरवाजा नहीं खोला.

कुछ देर इंतजार के बाद चंदा ने दोबारा कालबेल बजाई. इस बार भी न कोई जवाब मिला, न ही दरवाजा खोला गया. चंदा ने सुमिता को आंटी…आंटी कह कर दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया. लेकिन यह क्या, दरवाजा पहले से ही खुला था. हाथ लगते ही दरवाजे का पट खुल गया. चंदा ‘आंटी..आंटी’ पुकारते हुए फ्लैट के अंदर आ गई. जैसे ही वह सुमिता के कमरे में पहुंची तो उस के हलक से चीख निकल गई. वहां का नजारा देख वह हैरान रह गई. कमरे में चारों तरफ खून बिखरा हुआ था. खून के सैलाब में डूबा सुमिता का शव जमीन पर पड़ा था. चंदा न आई होती तो सुबह को पता नहीं चलता मां के साथ क्या हुआ, ये बताने के लिए चंदा तेजी से सुमिता की बेटी समरिता के कमरे में गई. लेकिन वहां का नजारा और भी दिल दहला देने वाला था.

मांबेटी के लहूलुहान शव देख कर कामवाली मेड चंदा थरथर कांपने लगी. अगले ही क्षण जब उस की तंद्रा लौटी तो वह शोर मचाते हुए फ्लैट से बाहर निकल आई और ‘खून…खून’ चिल्लाने लगी. शोर सुन कर आसपास के फ्लैटों में रहने वाले लोग घरों से बाहर निकल आए. चंदा ने हांफते रोते हुए एक ही सांस में सारी कहानी बता दी. उत्सुकतावश कुछ लोगों ने फ्लैट के भीतर जा कर देखा तो चंदा की बात सही निकली. जानकारी मिलने के बाद मनसारा अपार्टमेंट के सिक्युरिटी गार्ड और आरडब्लूए के पदाधिकारी मौके पर पहुंच गए. एक सुरक्षित सोसाइटी में फ्लैट के भीतर रहने वाले 2 लोगों का कत्ल हो जाए तो सोसाइटी की सुरक्षा पर सवाल खडे़ होना लाजिमी है.

पासपड़ोस के लोग सुरक्षा में ढिलाई को ले कर खुसरफुसर करने लगे. लोगों की भारी भीड़ एकत्रित हो चुकी थी, इसलिए सोसाइटी के लोगों ने तुरंत पुलिस कंट्रोलरूम को सोसाइटी में हुए दोहरे हत्याकांड की सूचना दे दी. सुबह के वक्त इलाके में हत्या जैसी वारदात, वह भी दोहरे हत्याकांड की सूचना मिल जाए, तो किसी भी पुलिस अधिकारी के मुंह का स्वाद कसैला होना स्वाभाविक है. न्यू अशोक नगर थाने के एसएचओ तेजराम मीणा की नींद ड्यूटी अफसर द्वारा दी गई इसी मनहूस सूचना से खुली. स्वाभाविक है उन के मुंह का जायका भी बिगड़ा ही होगा. लेकिन एक पुलिस अधिकारी के लिए हर दिन ऐसी वारदातों की सूचनाएं मिलना कोई नई बात नहीं होती.

इंसपेक्टर तेजराम मीणा ने तत्काल बिस्तर छोड़ा और तैयार हो कर अपने सहायक एसएचओ विनोद कुमार, इंसपेक्टर इन्वेस्टीगेशन सरिता व अन्य स्टाफ के साथ मौकाएवारदात की तरफ रवाना हो गए. रास्ते से ही उन्होंने फोन कर के अपने सबडिवीजन कल्याणपुरी के एसीपी जितेंद्री पटेल, डीसीपी जसमीत सिंह, एडीशनल डीसीपी राकेश पावरिया को भी सूचना दे दी थी. कमोबेश सभी अधिकारी थोड़े से अंतराल के बाद घटनास्थल पर पहुंच गए. मौके पर क्राइम और एफएसएल की टीम को भी बुला लिया गया. फ्लैट के बाहर खड़ी भीड़ को हटाने के बाद एसएचओ मीणा ने जब घर में प्रवेश किया तो मांबेटी के शव देख कर उन की भी रूह कांप उठी.

सुमिता के शरीर पर चाकू जैसे धारदार हथियार से करीब आधा दर्जन से ज्यादा वार किए गए थे, जबकि अपने बैडरूम में फर्श पर पड़ी उन की बेटी समरिता के शरीर पर धारदार हथियार के अनगिनत वार किए गए थे. दोनों के ही कमरों का सामान चारों तरफ बिखरा पड़ा था. घटनास्थल को देख कर साफ लग रहा था कि किसी ने लूटपाट का विरोध करने पर  दोनों हत्याओं को अंजाम दिया है. लेकिन यह बताने वाला कोई नहीं था कि हत्यारे घर से कितनी नकदी, कीमती सामान अपने साथ ले गए हैं. लेकिन अगले ही पल पुलिस को लूटपाट की अपनी थ्योेरी बदलनी पड़ी क्योंकि घर में फ्रैंडली एंट्री हुई थी.

घर में जबरन प्रवेश करने के कोई लक्षण नहीं थे, न ही पुलिस को हत्या के समय मांबेटी के साथ गलत नीयत से जोरजबरदस्ती के कोई निशान मिले थे. हां, 2 बातों की शंका जरूर थी कि हत्या करने वाला या वाले मृतक परिवार के परिचित रहे हों. दूसरी संभावना यह थी कि दोनों हत्याएं सोते वक्त की गई थीं या फिर उन्हें मारने से पहले नशीला पदार्थ दिया गया था. क्राइम और एफएसएल की टीमों ने अपना काम पूरा कर लिया था. डीसीपी जसमीत सिंह की अगुवाई में एसएचओ तेजराम मीणा और उन की टीम ने जांचपड़ताल का सारा काम पूरा कर लिया था, जिस के बाद सुमिता व समरिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

रहस्य थी मांबेटी की हत्या इस दौरान सोसाइटी में रहने वाले कुछ लोगों की मदद से पुलिस ने मृतक मांबेटी के कुछ स्थानीय परिचितों के नंबर हासिल कर के उन्हें इस वारदात की सूचना दी, तो एकएक कर के उन के ज्यादातर परिचितों को इस वारदात की खबर लग गई. पुलिस ने एकएक कर के उन सभी परिचितों से सवालजवाब और उन के बैकग्राउंड के बारे में जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी. मांबेटी की हत्या क्यों हुई, इस का तत्काल खुलासा तो नहीं हो सका लेकिन पुलिस ने पूछताछ के दौरान आपसी रंजिश, लूटपाट, प्रेम प्रसंग समेत तमाम दृष्टिकोणों से छानबीन कर के जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी.

इस दोहरे हत्याकांड में पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि सोसाइटी चारों तरफ से कवर थी, ऊंची बाउंड्री थी. गेट पर बिना पहचान बताए और बिना फ्लैट ओनर की रजामंदी के किसी को भीतर नहीं आने दिया जाता था. फिर ऐसा कैसे संभव हुआ कि रात के वक्त एक ही घर के 2 लोगों की हत्याएं कर के हत्यारे आसानी से फरार हो गए. पुलिस ने पिछले 24 घंटों के दौरान सोसाइटी की सिक्युरिटी में तैनात सभी गार्ड्स को बुला कर उन से एकएक कर के पूछताछ शुरू कर दी. चूंकि मनसारा अपार्टमेंट सोसाइटी में मुख्यद्वार से ले कर हर ब्लौक हर फ्लोर पर सीसीटीवी कैमरों का ऐसा जाल बिछा हुआ था कि कोई भी शख्स  किसी भी घर में जाते वक्त इन कैमरों की कैद में आने से नहीं बच सकता था.

एसएचओ मीणा की टीम ने कंट्रोल रूम में जा कर सभी कैमरों की फुटेज देखने का काम शुरू कर दिया. पुलिस टीमों की तरफ से शाम 3 बजे तक की गई कोशिशों से कम से कम इस दोहरे हत्याकांड पर पड़ी धुंध काफी हद तक हट गई. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि शुक्रवार को सुमिता व समरिता आखिरी बार अपनेअपने दफ्तर गई थीं. पुलिस को शुरू से ही लग रहा था कि इस वारदात को किसी जानकार ने ही अंजाम दिया है. सीसीटीवी की जांच और लोगों से पूछताछ के बाद यह बात साफ भी हो गई.

दरअसल, मृतका सुमिता मैसी की बेटी समरिता की एक सहेली प्रेरणा से पुलिस को जानकारी मिली कि समरिता नोएडा में स्कूली पढ़ाई के दौरान से उस की दोस्त थी. समरिता अपनी जिंदगी के बारे में प्रेरणा को अच्छीबुरी हर बात बताया करती थी. प्रेरणा ने पुलिस को बताया कि वारदात से एक दिन पहले यानी रविवार की रात को समरिता कार से अकेली घर लौट रही थी. उस वक्त उस ने गाना गाते हुए वाट्सऐप पर अपना स्टेटस अपडेट किया था. स्टेटस में वह काफी खुश दिख रही थी. प्रेरणा ने बताया कि करीब 3 साल पहले एक पुराने फ्रैंड की मदद से समरिता की दोस्ती विक्रांत नागर से हुई थी, जिस के बाद दोनों के मिलने का सिलसिला शुरू हुआ और बाद में दोनों लिवइन में रहने लगे. लेकिन एक साल पहले दोनों के बीच अनबन हो गई थी, जिस की वजह से समरिता उस से छुटकारा पाना चाहती थी.

समरिता उस से दूरी बनाने लगी थी, क्योंकि 2-3 महीने पहले समरिता की दोस्ती उस के ही साथ हौस्पिटैलिटी में कैरियर बना रहे एक अन्य युवक से हो गई थी और समरिता ने उस के साथ पार्टियों में जाना शुरू कर दिया था. प्रेरणा ने बताया कि हो सकता है विक्रांत नागर इस से नाखुश हो. हालांकि प्रेरणा ने यह भी बताया कि विक्रांत के बुलावे पर समरिता उस के दोस्तों के बीच पार्टी के लिए अब भी जाती थी. लेकिन उस ने तय कर लिया था कि वह उस के साथ शादी नहीं करेगी. पुलिस द्वारा यह पूछे जाने पर कि विक्रांत नागर कहां रहता है, प्रेरणा ने बताया कि वह सिर्फ इतना ही जानती है कि विक्रांत ने समरिता व उस की मां को बता रखा था कि उस के मातापिता नहीं हैं. वह अपनी मौसी के साथ अमर कालोनी के गढ़ी इलाके में रहता है.

‘‘विक्रांत काम क्या करता है?’’ एसएचओ मीणा ने सवाल किया तो प्रेरणा ने जवाब दिया, ‘‘काम क्या करता है ये तो पता नहीं सर, लेकिन समरिता ने बताया था कि वह आर्टिस्ट है. उस ने 1-2 टीवी शोज में काम किया था. उसे बौडी बनाने का भी शौक था. लेकिन समरिता और उस की मां विक्रांत की आर्थिक मदद किया करती थीं. वह अक्सर उन के घर पर भी रुक जाया करता था.’’

बेटी का दोस्त संदेह के घेरे में दोनों मांबेटी घर में अकेली रहती थीं, इस लिए विक्रांत के रुकने से उन्हें कोई परेशानी नहीं होती थी. उस के होने से घर में एक मर्द के होने से उन्हें सुरक्षा का अहसास होता था. सुमिता और समरिता बाजार से सामान खरीद कर उसे दिया करती थीं. कई बार तो वह अपने घर के लिए घरेलू सामान भी उन्हीं से खरीदवा कर ले जाया करता था. चूंकि विक्रांत अक्सर घर आता था. इसलिए सोसायटी के गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मी भी उसे परिवार का सदस्य मान कर नहीं रोकते थे. प्रेरणा से मिली जानकारी पुलिस के लिए काफी मददगार थी. वारदात की सूचना पा कर जितने भी परिचित वहां पहुंचे थे, उन में विक्रांत नहीं था. प्रेरणा ने पुलिस को विक्रांत नागर का मोबाइल नंबर दे दिया था. डीसीपी जसमीत सिंह के आदेश पर तत्काल उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स मंगवा ली गई और उस के फोन को सर्विलांस पर लगा दिया गया.

इसी दौरान पुलिस टीम को मनसारा अपार्टमेंट की सिक्युरिटी में तैनात गार्ड्स और सीसीटीवी की फुटेज से भी बड़ा खुलासा हुआ, जिस से पता चला कि बीती रात विक्रांत नागर सुमिता के घर पर आया हुआ था. रात को करीब 2.51 बजे वह समरिता की कार ले कर सोसाइटी से निकला था. उस के साथ गाड़ी में एक और युवक बैठा था. सोसाइटी से जाते समय वह इतनी हड़बड़ी में था कि उस की कार सोसायटी के गेट से टकरा गई थी और गेट का कुछ हिस्सा टूट गया था. सिक्युरिटी गार्ड ने बैरीकेड लगा कर उस की गाड़ी रुकवा ली थी, लेकिन विक्रांत ने उन से माफी मांगते हुए कहा कि उस की गाड़ी के ब्रेक में अचानक कुछ दिक्कत आ गई है, इसलिए गलती से गाड़ी टकरा गई.

सीसीटीवी से यह भी साफ हो गया कि विक्रांत और उस का दोस्त रात करीब सवा 11 बजे पैदल ही सोसाइटी में आए थे. उस के बाद सुमिता के फ्लैट के बाहर लगे सीसीटीवी से पता चला कि विक्रांत कुछ दूरी पर छिपा था और समरिता करीब डेढ़ बजे अपने फ्लैट का दरवाजा खोल कर बाहर आई थी. वह काफी देर तक नीचे टहलती रही. उस के बाद वह ऊपर फ्लैट में चली गई. इन तमाम सीसीटीवी फुटेज से यह बात साफ हो गई कि इस हत्याकांड के पीछे विक्रांत नागर व उस के दोस्त का ही हाथ था. क्योंकि हत्याकांड के वक्त वही परिवार के पास था और उस के बाद से उस का कोई पता नहीं था.

इसी बीच उच्चाधिकारियों के आदेश पर एसएचओ तेजराम मीणा ने न्यू अशोक नगर थाने में भादंसं की धारा 302 के तहत मामला दर्ज करवा दिया था. केस की जांच का जिम्मा उन्होंने खुद ही ले लिया था. समरिता के लिवइन पार्टनर के लापता होने और उस के बारे में अन्य जानकारी पुलिस के हाथ लग गई थी. जसमीत सिंह ने उस की गिरफ्तारी के लिए एसएचओ तेजराम मीणा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी, जिस में एएसआई किशनपाल सिंह, हेडकांसटेबल आदेश, कांसटेबल प्रवीण और नरेंद्र को शामिल किया गया. टीम का सुपरविजन करने की जिम्मेदारी एसीपी जितेंद्र पटेल को सौंपी गई. डीसीपी जसमीत सिंह ने न्यू अशोक नगर पुलिस की मदद के लिए जिले के स्पैशल स्टाफ व एटीएस की टीमों को भी जांच और गिरफ्तारी के काम में लगा दिया.

जांच अधिकारी मीणा ने साइबर सेल और सर्विलांस की मदद से पता लगवाया कि विक्रांत की लोकेशन कहां है. पता चला विक्रांत के मोबाइल की लोकेशन जयपुर में है. उसी शाम पुलिस की 2 टीमें जयपुर के लिए रवाना कर दी गईं. डीसीपी जसमीत सिंह ने जयपुर पुलिस से संपर्क साध कर उन्हें विक्रांत का मोबाइल नंबर और उस की लोकेशन से अवगत करा दिया. जयपुर पुलिस ने भी उस नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. विक्रांत था हत्यारा अगले तीन घंटों में पुलिस ने जयपुर में विक्रांत को उस होटल से दबोच लिया जहां वह ठहरा हुआ था. विक्रांत के पकड़े जाने की सूचना तत्काल दिल्ली पुलिस को दे दी गई.

दिल्ली पुलिस की 2 टीमें पहले ही जयपुर रवाना हो चुकी थीं. उन्होंने जयपुर पहुंचते ही विक्रांत को अपनी गिरफ्त में ले लिया. अगली दोपहर तक पुलिस की टीमें उसे दिल्ली  ले आईं. विक्रांत नागर ने न्यू अशोक नगर थाने आ कर पुलिस को बताया कि उस ने अपने दोस्त शैंकी शर्मा के साथ मिल कर अपनी प्रेमिका समरिता और उस की मां की हत्या की थी. वारदात को अंजाम देने के बाद विक्रांत नागर बस द्वारा दिल्ली से जयपुर चला गया था. उस ने बताया कि 2 साल तक लिवइन में रहने के बाद समरिता अक्सर उसे ताने देने लगी थी कि वह कुछ कमाताधमाता नहीं है और उन के टुकड़ों पर पलता है.

अगर दोनों की शादी हो गई तो वह उसे कमा कर कैसे खिलाएगा. शुरू में तो विक्रांत समरिता के तानों को हवा में उड़ा देता था, लेकिन बाद में यह बात जब ज्यादा बढ़ने लगी तो दोनों के बीच इस बात को ले कर अक्सर झगड़ा होने लगा. विक्रांत को 3 महीने पहले तब दिक्कत होने लगी, जब समरिता ने उस से साफ कह दिया कि वह उस के घर कम आयाजाया करे. साथ ही जब विक्रांत को यह खबर लगी कि आजकल समरिता अपने साथ होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले एक युवक के साथ इश्क कर बैठी है और दोनों एक साथ घूमतेफिरते भी हैं. यह जान कर विक्रांत का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया.

करीब 3 महीने पहले अपने प्रति समरिता के लगाव को परखने के लिए विक्रांत ने शादी का प्रपोजल दिया, जिसे समरिता ने ठुकरा दिया. इस के बाद साफ हो गया कि वह उस से किनारा कर रही है. विक्रांत ने अपने दोस्त शैंकी को एक दिन फोन कर के बताया कि अगर समरिता उस की ना हो सकी तो वह उसे किसी ओर की भी नहीं होने देगा. होली से 2 दिन पहले जब विक्रांत को पता चला कि होली से एक दिन पहले समरिता का नया प्रेमी होली की पार्टी दे रहा है और वह भी उस में जाने वाली है तो उस ने उसी दिन इरादा बना लिया कि वह समरिता को खत्म कर देगा. उस के दिमाग में एक खतरनाक प्लानिंग ने जन्म ले लिया.

इस से आहत हो कर उस ने अपने दोस्त शैंकी को उसी शाम मुंबई से दिल्ली पहुंचने के लिए कहा. शैंकी फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली आ गया. एयरपोर्ट से विक्रांत उसे साथ ले कर होली की रात को ही सीधे समरिता के घर पहुंच गया. होली की रात को दोनों समरिता के अपार्टमेंट में पहुंचे. घर के बाहर छिप कर उस ने समरिता को फोन किया और बातचीत के लिए नीचे बुलाया. जब समरिता नीचे आने लगी तो वे दोनों मौका पा कर घर में दाखिल हो गए. सुमिता अपने कमरे में लौटी सोने की तैयारी कर रही थी. विक्रांत और शैंकी ने रसोई से मीट काटने वाला चाकू ले कर सब से पहले बेरहमी से सुमिता पर 7-8 वार कर के उस की हत्या कर दी. इस के बाद दोनों समरिता का इंतजार करने लगे. जब समरिता घर में लौटी और कमरे में पहुंची तो दोनों ने उस के कमरे में ले जा कर उस की भी चाकू से गोद कर हत्या कर दी.

इस के बाद दोनों ने कीमती सामान की तलाश में कमरे की तलाशी ली. वहां से दोनों ने 43 हजार रुपए की नकदी और समरिता के डेबिट व क्रेडिट कार्ड अपने कब्जे में ले लिए. उस के बाद आधी रात को करीब 2:51 बजे दोनों पार्किंग में खड़ी समरिता की कार ले कर फरार हो गए. इसी हड़बड़ी में कार सोसाइटी के मेन गेट से टकरा गई थी. विक्रांत जयपुर में तो शैंकी मुंबई में मिला सोसाइटी से निकलने के बाद विक्रांत ने समरिता की कार को त्रिलोकपुरी इलाके में छोड़ दिया था. शैंकी वहां से आटो पकड़ कर ईस्ट औफ कैलाश स्थित एक होटल में चला गया. जबकि विक्रांत बस पकड़ कर जयपुर रवाना हो गया और वहां जा कर एक होटल में ठहर गया. जहां से उस के फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने उसे दबोच लिया था.

विक्रांत से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी शाम को ईस्ट औफ कैलाश में उस होटल पर छापा मारा, जहां शैंकी ठहरा हुआ था. शैंकी को उस वक्त गिरफ्तार किया गया, जब वह होटल का बिल चुका कर फरार होने की तैयारी में था. उसी शाम दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने त्रिलोकपुरी से समरिता की कार भी बरामद कर ली. साथ ही उन की निशानदेही पर वारदात में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया गया. यह चाकू समरिता के घर में ही छिपा कर रखा गया था.

जांच के बाद जांच अधिकारी तेजराम मीणा को यह भी पता चला कि विक्रांत को नशे की आदत थी. कुछ साल पहले इसी लत के कारण वह नशामुक्ति केंद्र में भी रह चुका था. उस ने इस वारदात को नशे में अंजाम दिया या नहीं, इस की जांच के लिए पुलिस ने उस के ब्लड सैंपल टेस्ट के लिए भेजे हैं. जांच में पता चला कि शैंकी मुंबई में रह कर मौडलिंग में अवसर ढूंढ रहा था. उस ने कुछ टीवी शोज में भी काम किया था. वहीं विक्रांत भी एक शो में काम कर चुका था इसी कारण दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी. पूछताछ में विक्रांत ने बताया कि वह और शैंकी हत्या करने के बाद घर में रखे 43 हजार रुपए अपने साथ ले कर निकले थे. इस रकम से दोनों ने नए मोबाइल ले लिए थे. समरिता के डेबिट और क्रेडिट कार्ड भी वे अपने साथ ले गए थे.

विक्रांत ने कनौट प्लेस में एक एटीएम से पैसे निकालने की कोशिश भी की थी, लेकिन समरिता ने कुछ दिन पहले ही अपना पिन बदल दिया था, जिस की जानकारी विक्रांत को नहीं थी. इसलिए वह एटीएम से रकम नहीं निकाल सका. पुलिस ने उसी शाम को विक्रांत और शैंकी के खिलाफ दर्ज हत्या के मामले में लूट की धारा भी जोड़ दी और दोनों को कड़कड़डूमा कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. उसी शाम पुलिस को मिली पोस्टमार्टम से खुलासा हुआ कि समरिता मैसी के शरीर पर 30 से ज्यादा चाकू के वार किए गए थे, जबकि मां सुमिता मैसी के शरीर पर चाकू के 10 घाव मिले थे.

सुमिता और समरिता को इस बात का अहसास भी नहीं था कि जिस विक्रांत को उन्होंने अपना सहारा मान कर घर में पनाह दी थी, वही आस्तीन का सांप निकलेगा और उन की जिंदगी को डस लेगा.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित

 

Ujjain Crime : चार्जर के वायर से घोंटा दोस्त का गला

Ujjain Crime : नितेश और राजेश साथसाथ काम करते थे और अच्छे दोस्त थे. जब राजेश ने दोस्ती की आड़ में नितेश की रिश्ते की बहन से प्यार की पींगें बढ़ानी शुरू कर दीं तो नितेश विरोध पर उतर आया. इस का नतीजा यह निकला कि राजेश ने अपने दोस्त जगदीश के साथ मिल कर…

नितेश चौहान के घर वाले उज्जैन के नागदा सिटी थाने के चक्कर लगातेलगाते परेशान हो चुके थे. लेकिन पुलिस नितेश के हत्यारों का पता नहीं लगा पा रही थी. दरअसल, किसी ने नितेश (19 साल) की हत्या कर दी थी. 10 जून, 2018 को उस का शव नागदा-जावरा रोड पर स्थित पार्क में मिला था. तत्कालीन टीआई अजय वर्मा ने केस की जांच की. वह इस केस को नहीं खोल पाए तो उच्चाधिकारियों के निर्देश पर जांच साइबर सेल को सौंप दी गई, लेकिन साइबर सेल भी हत्यारों तक नहीं पहुंच सकी. कहने का तात्पर्य यह है कि हत्या के 16 महीने बाद भी पुलिस इस केस को खोलने में नाकाम रही. उधर बेटे के हत्यारों का पता न चलने पर नितेश के मातापिता परेशान थे. वे लोग थाने से ले कर एसपी औफिस तक चक्कर काटतेकाटते थकहार चुके थे.

टीआई अजय वर्मा के स्थानांतरण के बाद टीआई श्यामचंद्र शर्मा ने नागदा सिटी थाने का पदभार संभाला तो बेटे की मौत के गम में डूबे नितेश के पिता ने श्यामचंद्र शर्मा से मुलाकात कर अपना दुखड़ा रोया. टीआई ने नितेश हत्याकांड की फाइल निकलवा कर उस का अध्ययन किया. उन्होंने इस संबंध में सीएसपी मनोज रत्नाकर से दिशानिर्देश ले कर फिर से केस की जांच शुरू कर दी. इस जांच में टीआई श्यामचंद्र शर्मा के हाथ कुछ ऐसे क्लू लगे, जिन के आधार पर वह नितेश चौहान के हत्यारों का पता लगाने में सफल हो गए. इतना ही नहीं उन्होंने 5 अक्तूबर, 2019 को आरोपी जगदीश और राजेश को नागदा स्थित उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया.

दोनों आरोपियों से थाने में पूछताछ की गई तो 19 वर्षीय नितेश चौहान की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

19 वर्षीय नितेश नागदा के ब्लौक 58 में रहने वाले गोविंद चौहान का बेटा था. गोविंद चौहान आटोरिक्शा चालक था. बड़े बेटे नितेश के अलावा गोविंद चौहान की 2 बेटियां थीं. बीकौम पास करने के बाद नितेश चंबल ब्रिज के पास स्थित सहारा अस्पताल में कंपाउंडर की नौकरी कर रहा था. इस पार्टटाइम नौकरी के अलावा वह उज्जैन के एक अस्पताल में नर्सिंग का कोर्स भी कर रहा था. 19 जून, 2018 को नितेश सहारा अस्पताल से घर जाने के लिए निकला. जब वह रास्ते में था, तभी उस की मां सुनीता ने उसे फोन कर के कहा कि वह घर आते समय दूध की एक थैली लेता आए. नितेश को नर्सिंग की ट्रेनिंग करते अभी 25 दिन ही हुए थे.

चूंकि वह नर्सिंग का काम जानता था, इसलिए वह वहां पूरी जिम्मेदारी से काम कर रहा था. अस्पताल में काम करने वाले सभी लोग उस से खुश थे. उस की योग्यता व लगन को देखते हुए अस्पताल के प्रबंधक ने उसे सम्मानित करने की घोषणा भी कर दी थी. नितेश ने अपनी मां से कहा कि वह कुछ ही देर में घर पहुंच जाएगा, लेकिन आधी रात से ज्यादा हो गई, वह घर नहीं आया. तब नितेश के पिता गोविंद चौहान ने बेटे के मोबाइल पर फोन किया. किसी ने फोन रिसीव तो किया लेकिन कोई बात नहीं हुई. फोन पर बाइक के चलने की आवाज आ रही थी. इस से उन्होंने अंदाजा लगाया कि शायद वह बाइक चला रहा होगा. कुछ देर में घर आ जाएगा.

लेकिन 2 घंटे बाद भी नितेश घर नहीं पहुंचा तो उन्होंने छत पर जा कर पड़ोस में रहने वाले नितेश के खास दोस्त ताहिर को आवाज लगाई. जवाब में ताहिर के घर से कोई आवाज नहीं आई तो वह घर में बैठ कर बेटे का इंतजार करते रहे. धीरेधीरे पूरी रात बीत गई लेकिन नितेश घर नहीं आया और न ही उस की कोई खबर आई. अब नितेश का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ हो गया था. दूसरे दिन सुबह लगभग साढ़े 6 बजे कुछ लोगों ने नागदा जावरा रोड पर स्थित अटल निसर्ग उद्यान में एक संदिग्ध बोरा पड़ा देखा. किसी ने यह सूचना नागदा सिटी थाने के तत्कालीन टीआई अजय वर्मा को दे दी. टीआई कुछ देर में अटल निसर्ग उद्यान पहुंच गए. पुलिस ने जब पार्क में पड़ा मिला वह बोरा खोल कर देखा तो उस में लगभग 19-20 साल के एक युवक की लाश मिली.

कुछ ही देर में पूरे नागदा में युवक की लाश मिलने की खबर फैल गई. चूंकि नितेश भी बीती रात से घर नहीं पहुंचा था, इसलिए गोविंद चौहान भी सूचना पा कर उस पार्क में पहुंच गए. लाश देखते ही गोविंद चौहान की चीख निकल गई, क्योंकि वह लाश उन के बेटे नितेश की ही थी. टीआई अजय वर्मा ने लाश मिलने की सूचना तत्कालीन एसपी (उज्जैन) सचिन अतुलकर को दे दी. खबर पा कर एसपी सचिन अतुलकर भी मौके पर पहुंच गए. एफएसएल अधिकारी डा. प्रीति गायकवाड़ ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर शव की जांच की. नितेश के शरीर पर चोटों के निशानों के अलावा गले पर भी निशान था, जिसे देख कर लग रहा था कि उस की हत्या किसी तार या पतली रस्सी से गला घोंट कर की गई है.

जांच के दौरान बोरे के ऊपर किसी महिला के सिर का बाल भी चिपका मिला. इस से पुलिस को औनर किलिंग की आशंका हुई. क्योंकि एक रोज पहले ही पास के गांव रूई में लगभग इसी उम्र की एक युवती का जला हुआ शव मिला था. इसलिए पुलिस नितेश की हत्या को उस युवती के शव के साथ जोड़ कर देख रही थी. पुलिस ने नितेश के दोस्तों से पूछताछ की, जिस में उस के एक खास दोस्त ने बताया कि नितेश का किल्लीपुरा की रहने वाली एक लड़की से प्रेम प्रसंग चल रहा था. जिस के चलते करीब 3 साल पहले उस के साथ मारपीट भी की गई थी. कुछ रोज पहले उस लड़की को ले कर रितेश का विवाद हुआ था. इस से पुलिस को यकीन हो गया कि मामला औनर किलिंग का ही हो सकता है.

संभावना थी कि रूई गांव में मिला शव नितेश की प्रेमिका का रहा होगा, इसलिए पुलिस ने नितेश की प्रेमिका की खोज शुरू कर दी, लेकिन प्रेमिका अपने घर में सुरक्षित मिली. पुलिस ने उस के बयान दर्ज कर उस की अंगुलियों के निशान भी मिलान के लिए ले लिए. 3 दिन बीत जाने पर भी पुलिस के खाली हाथ देख लोगों में गुस्सा बढ़ने लगा, जिस से पुलिस पर काम का दबाव बढ़ गया. पुलिस ने नितेश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकालने के अलावा सड़कों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी. फुटेज में नितेश 3 दोस्तों के साथ सड़क पर मस्ती करते हुए दिखाई तो दिया लेकिन उन लड़कों का चेहरा साफ दिखाई नहीं दे रहा था.

नितेश जिस अस्पताल में पार्टटाइम काम करता था, वहां के लोगों को जब वह फुटेज दिखाई गई तो उन दोनों लड़कों की पहचान हो गई. वे दोनों उस के साथ अस्पताल में ही काम करने वाले राजेश गहलोत और जगदीश बैरागी थे. पुलिस ने राजेश गहलोत और जगदीश बैरागी से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वे उस के साथ थे जरूर, लेकिन कुछ देर में वे आ गए थे. रात लगभग साढ़े 8 बजे नितेश घर जाने को बोल कर चला गया था. पुलिस को यह भी पता चला कि कुछ दिन पहले नितेश के साथ ट्रेनिंग ले रही एक युवती के कारण उज्जैन में भी उस का एक युवक से विवाद हुआ था. इसलिए पुलिस ने उज्जैन जा कर भी मामले को हल करने की कोशिश की, लेकिन उस के हाथ कुछ नहीं लगा. इस के बाद पुलिस ने नितेश की बहनों को केंद्र में रख कर जांच की, लेकिन इस दिशा में काम करने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली रहे.

जब थाना पुलिस इस केस को नहीं खोल सकी तो एसपी सचिन अतुलकर ने जांच थाना पुलिस से ले कर उज्जैन की साइबर सेल को सौंप दी. साइबर सेल की टीम ने शुरुआत से जांच की. टीम ने लगभग डेढ़ लाख फोन काल की जांच की. कई नंबरों को विशेष तौर पर जांच में लिया. इस जांच में नागदा के 3 युवक ताहिर, अशफाक और अजहर शक के दायरे में आए. पुलिस टीम ने उन से गहन पूछताछ की, लेकिन पुलिस को ऐसा कोई सिरा नहीं मिला, जिसे पकड़ कर वह नितेश के हत्यारों तक पहुंच पाती. कुल मिला कर साइबर सेल भी केस का खुलासा नहीं कर सकी तो समय के साथ मामला ठंडा पड़ता गया और धीरेधीरे लोग नितेश हत्याकांड को भूलने लगे. लेकिन पुलिस नहीं भूली थी, वह अपनी गति से मामले की जांच में जुटी थी.

इस केस में निर्णायक मोड़ नागदा सिटी थाने के नए टीआई श्यामचंद्र शर्मा के पदभार संभालने के बाद आया. उन्होंने इस हत्याकांड को एक चैलेंज के रूप में लिया. इस केस की फाइल का अध्ययन करने के दौरान जिन संदिग्ध लोगों के बयान पर उन्हें शक हुआ, उन्हें फिर से थाने बुला कर पूछताछ की गई. साथ ही नितेश के प्रेम प्रसंग को भी खंगाला गया. किल्लीपुरा में रहने वाली नितेश की प्रेमिका से भी कई बार फिर से पूछताछ की गई. इस के साथसाथ सीएसपी मनोज रत्नाकर के निर्देशन में टीआई श्यामचंद्र शर्मा ने एक बार फिर वे तमाम सीसीटीवी फुटेज खंगालने का काम शुरू कर दिया, जिन्हें पहले भी पुलिस कई बार खंगाल चुकी थी. विशेषकर सहारा  अस्पताल के फुटेज बारबार चैक किए गए क्योंकि नितेश वहां पार्टटाइम नौकरी करता था.

सहारा अस्पताल के फुटेज चैक करते हुए टीआई उस समय चौंके, जब उन्होंने देखा कि घटना वाली रात में 9 बज कर 34 मिनट के बाद एक मिनट कुछ सैकेंड की फुटेज गायब थी. जाहिर है या तो उस वक्त लाइट चली गई होगी या फिर कैमरा बंद किया गया होगा. नितेश भी लगभग इसी समय गायब हुआ था, इसलिए टीआई समझ गए कि नितेश हत्याकांड के तार कहीं और नहीं बल्कि उसी सहारा अस्पताल से जुड़े हैं, जहां वह नौकरी करता था. इस से टीआई शर्मा ने अस्पताल में नितेश के साथ काम करने वाले राजेश और जगदीश को बुला कर कई बार पूछताछ की, लेकिन उन के बयानों में ऐसा कुछ भी संदिग्ध नजर नहीं आया, जिस से उन दोनों को घेरा जा सके. इस के बावजूद टीआई शर्मा को पूरा भरोसा था कि नितेश हत्याकांड की पूरी कहानी अस्पताल में लगे सीसीटीवी कैमरे के मिसिंग फुटेज में ही छिपी है.

इसलिए सीएसपी मनोज रत्नाकर और टीआई शर्मा मिल कर अस्पताल की फुटेज की बारीकी से जांच करते रहे, जिस के चलते नितेश की हत्या के 16 महीने बाद एक ऐसा क्लू मिल गया जो उन्हें नितेश के हत्यारों तक ले गया. हुआ यह कि दोनों अधिकारी बारबार अस्पताल के कैमरे के उन फुटेज को देख रहे थे, जो रात में कैमरा बंद होने से पहले और बाद में रिकौर्ड हुए थे. इस दौरान अचानक उन की नजर अस्पताल की टेबल पर एक फाइल के ऊपर रखी दूध की थैली पर पड़ी. यह दूध की थैली उस वक्त फाइल पर नहीं थी, जब कैमरा बंद किया गया था. कैमरा वापस चालू होने पर थैली वहां रखी मिली.

घटना की रात नितेश भी दूध की थैली ले कर घर जाने वाला था. डेयरी वाले ने भी बताया कि उस रात नितेश ने उस से दूध की थैली खरीदी थी. मतलब साफ था कि अस्पताल से घर के लिए निकलने के बाद नितेश ने दूध की थैली खरीदी थी. इस के बाद वह दूध की थैली ले कर घर जाने से पहले एक बार फिर अस्पताल लौटा था, जिस के बाद अगले दिन उस की लाश ही मिली. टीआई ने अब अपना पूरा ध्यान सीसीटीवी कैमरे की फुटेज पर लगा दिया, जिस में उन्होंने पाया कि रात में कैमरे फिर से चालू होने के लगभग 20 मिनट बाद 9 बज कर 59 मिनट पर फिर बंद कर दिए गए थे. इस के बाद जब अगले दिन सुबह जगदीश और राजेश ने अस्पताल खोला तो कैमरे फिर चालू किए गए.

सुबह 7 बजे जब कैमरे चालू किए गए, उस वक्त भी दूध की थैली टेबल के ऊपर ही रखी थी, जो बाद में राजेश ने वहां से हटा दी थी. मतलब साफ था कि नितेश दूध ले कर अस्पताल गया था और उस के बाद वह वहां से निकला तो इस स्थिति में नहीं था कि अपने साथ दूध की थैली ले जा सके. यानी उस की हत्या अस्पताल के अंदर ही की गई थी. इस पूरे मामले पर सीएसपी मनोज रत्नाकर ने उज्जैन एसपी सचिन अतुलकर से लंबी चर्चा की. इस के बाद उन्होंने एक बार फिर राजेश गहलोत और जगदीश बैरागी को थाने बुला कर पूछताछ की. पूछताछ में दोनों अपने पुराने बयान ही दोहराते रहे.

जब टीआई ने देखा कि सीधी अंगुली से घी नहीं निकल सकता तो उन्होंने दोनों से सख्ती से पूछताछ की. जिस से कुछ ही देर में राजेश ने नितेश की हत्या की बात स्वीकार कर पूरी कहानी सुना दी, जो इस प्रकार है—

साथसाथ काम करते हुए नितेश और राजेश गहलोत के बीच अच्छीखासी दोस्ती हो गई थी. पास के एक शहर में नितेश के एक नजदीकी रिश्तेदार थे, जिन की बेटी नताशा थी. करीब 2 साल पहले नितेश काम के सिलसिले में नताशा के घर गया तो संयोग से राजेश भी उस के साथ था. वहां नितेश ने अपने रिश्ते की बहन नताशा से राजेश का परिचय करवाया था. उस रोज राजेश नितेश के साथ वापस नागदा तो आ गया, लेकिन अपना दिल नताशा के पास ही छोड़ आया था. उसे नताशा से प्यार हो गया था. नागदा आने के कुछ दिन बाद राजेश ने फेसबुक पर नताशा को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी, जो उस ने स्वीकार कर ली. इस के बाद फेसबुक के माध्यम से दोनों की दोस्ती बढ़ती गई. राजेश और नताशा में प्रेम संबंध बन गए. समय के साथ दोनों का प्रेम इतना आगे बढ़ गया कि राजेश नितेश से छिप कर नताशा से मिलने उस के शहर जाने लगा. इस दौरान राजेश नताशा को ले कर होटल में जाता था.

लेकिन कुछ दिनों बाद दोनों के प्रेम संबंधों की खबर उस के परिवार वालों को लग गई. उन्हें इस बात की जानकारी भी हो गई कि नताशा का प्रेमी युवक नितेश का दोस्त है और नितेश ने ही उस से नताशा को मिलवाया था. जबकि सच्चाई यह थी कि नितेश को नताशा और राजेश की प्रेम कहानी के बारे में कुछ पता नहीं था. घटना से कुछ रोज पहले राजेश अपनी प्रेमिका नताशा से एकांत में मिलने उस के शहर पहुंचा तो नताशा की बड़ी बहन को इस की जानकारी हो गई. बताते हैं कि बड़ी बहन ने नताशा को राजेश के साथ देख लिया तो उस ने वहीं खड़े हो कर नितेश को फोन कर दिया और उसे राजेश की हरकत के बारे में बताया.

इस पर नितेश ने राजेश को फोन कर तुरंत नागदा आने को कहा. नागदा पहुंच कर वह नितेश से मिला तो दोनों के बीच कुछ विवाद भी हुआ, लेकिन बाद में राजेश ने माफी मांगते हुए नताशा से न मिलने का वादा कर बात खत्म कर दी. राजेश और नताशा प्यार की डगर पर काफी आगे तक निकल चुके थे, लेकिन अब दोनों का मिलना मुश्किल हो गया था. दरअसल, राजेश कभी नागदा से बाहर जाता तो नितेश यह खबर नताशा की बड़ी बहन को कर देता था, जिस से वह नताशा पर नजर रखे. इस से धीरेधीरे राजेश और नताशा के मिलने पर पूरी तरह से रोक लग गई.

नितेश की जासूसी की बात राजेश को पता चली तो वह उस से रंजिश रखने लगा. साथ में काम करने वाले जगदीश को पहले से ही राजेश और नताशा की प्रेम कहानी की जानकारी थी. इसलिए जब राजेश नताशा से मिलने के लिए बेचैन रहने लगा तो दोनों ने मिल कर नितेश को ही ठिकाने लगाने की योजना बना ली. क्योंकि वही उन दोनों के रास्ते का कांटा था. 10 जून, 2018 को नितेश शाम को अस्पताल से घर के लिए निकला. तभी राजेश ने उसे फोन कर सिगरेट पीने के बहाने से वापस बुलाया. राजेश के बुलाने पर नितेश अस्पताल में आया, जहां राजेश और जगदीश ने मोबाइल चार्जर के वायर से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी और उस का शव बोरे में भर कर जावरा रोड पर स्थित पार्क में फेंक दिया.

अगले दिन जब पार्क में शव मिलने पर लोग जमा हुए तो दोनों हत्यारोपी भी नितेश के घर जा कर शोक में शामिल भी हो गए. घटना के बाद लंबा समय लग जाने पर भी पुलिस दोनों आरोपियों तक नहीं पहुंच सकी, जिस से उन्हें भरोसा हो गया था कि अब पुलिस उन्हें कभी नहीं पकड़ पाएगी. लेकिन टेबल पर रखी दूध की थैली ने दोनों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में नताशा परिवर्तित नाम है.

 

Love Crime Story : सगाई वाले दिन ही प्रेमिका का किया मर्डर

Love Crime Story : शादीशुदा युवराज उर्फ जुगराज सिंह ने हरप्रीत को प्यार के जाल में फांस तो लिया, लेकिन जब बात शादी तक पहुंची तो वह परेशान हो गया. गले में अटकी इस हड्डी को निकालने के लिए युवराज ने अपने दोस्तों सुखचैन सिंह व सुखविंदर के साथ ऐसी योजना बनाई कि…

कानपुर के जवाहर नगर निवासी सरदार गुरुवचन सिंह की 22 वर्षीय बेटी हरप्रीत कौर श्रमशक्ति एक्सप्रेस से दिल्ली जाने के लिए रात 9 बजे घर से निकली. रात 10 बजे कानपुर सेंट्रल पहुंचने पर हरप्रीत ने अपनी मां गुरप्रीत को फोन पर बताया कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है, उसे आसानी से सीट मिल जाएगी. बेटी की बात से संतुष्ट हो कर गुरप्रीत कौर निश्चिंत हो गई. दरअसल, 13 दिसंबर को कानपुर में हरप्रीत कौर की रिंग सेरेमनी थी. उस का मंगेतर युवराज सिंह दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. हरप्रीत कौर की भाभी व भाई सुरेंद्र सिंह भी दिल्ली में ही रहते थे. हरप्रीत भाई से मिलने तथा अपनी सगाई का सामान खरीदने के लिए 9 दिसंबर, 2019 की रात घर से निकली थी.

बेटी सफर में अकेली हो तो मांबाप की चिंता स्वाभाविक है. गुरुवचन सिंह को भी बेटी की चिंता थी. अत: हालचाल जानने के लिए उन्होंने रात 12 बजे बेटी को काल लगाई, पर उस का फोन स्विच्ड औफ था. उन्होंने सोचा कि वह सो गई होगी. लेकिन मन में शक का बीज पड़ गया था, जिस ने सवेरा होतेहोते वृक्ष का रूप ले लिया. सुबह 7 बजे उन्होंने फिर से हरप्रीत को काल लगाई, पर फोन अब भी बंद था. इस से गुरुवचन सिंह की चिंता और बढ़ गई. उन्होंने दिल्ली में रहने वाले बेटे सुरेंद्र सिंह को फोन पर सारी बात बताई. सुरेंद्र सिंह ने उन्हें बताया कि हरप्रीत कौर अभी तक यहां नहीं पहुंची है. इस के बाद सुरेंद्र सिंह बहन की खोज में निकल पड़ा.

सुरेंद्र सिंह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा क्योंकि श्रमशक्ति एक्सप्रैस नई दिल्ली तक ही आती है. वहां उस ने स्टेशन का हर प्लेटफार्म छान मारा लेकिन उसे हरप्रीत कौर नहीं दिखी. उस ने वेटिंग रूम में भी चेक किया, पर हरप्रीत कौर वहां भी नहीं थी. सुरेंद्र सिंह ने सोचा कि हो न हो, हरप्रीत अपने मंगेतर युवराज सिंह के पास चली गई हो? मन में यह विचार आते ही सुरेंद्र सिंह ने हरप्रीत के मंगेतर युवराज से फोन पर बात की, ‘‘युवराज, हरप्रीत तेरे पास तो नहीं आई?’’

‘‘नहीं तो,’’ युवराज ने जवाब दिया. फिर उस ने पूछा, ‘‘सुरेंद्र बात क्या है, हरप्रीत को ले कर तू इतना परेशान क्यों है?’’

‘‘क्या बताऊं… हरप्रीत कल रात कानपुर से दिल्ली आने को निकली थी, पर वह अभी तक यहां नहीं पहुंची. स्टेशन पर आ कर मैं ने चप्पाचप्पा छान मारा पर वह कहीं नहीं दिख रही. मैं बहुत परेशान हूं. समझ में नहीं आ रहा कि हरप्रीत गई तो कहां गई?’’

‘‘तुम परेशान न हो. मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं.’’ युवराज बोला और कुछ देर बाद वह नई दिल्ली स्टेशन पहुंच गया. वह भी सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की खोज करने लगा. दोनों ने नई दिल्ली स्टेशन का कोनाकोना छान मारा, लेकिन हरप्रीत का कुछ पता न चला. दिल्ली में सुरेंद्र व युवराज के कुछ परिचित थे. हरप्रीत भी उन्हें जानती थी. उन परिचितों के यहां भी सुरेंद्र सिंह ने बहन की खोज की, पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. सुरेंद्र सिंह के पिता गुरुवचन सिंह मोबाइल पर उस के संपर्क में थे. सुरेंद्र पिता को पलपल की जानकारी दे रहा था. जब सुबह से शाम हो गई और हरप्रीत का कुछ भी पता नहीं चला तो गुरुवचन सिंह चिंतित हो उठे. तब वह कानपुर रेलवे स्टेशन पर स्थित जीआरपी (राजकीय रेलवे पुलिस) थाना पहुंच गए.

उन्होंने थानाप्रभारी को बेटी के लापता होने की बात बताते हुए बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की मांग की. लेकिन थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह की बात को तवज्जो नहीं दी. उन्होंने यह कह कर उन्हें वापस भेज दिया कि बेटी जवान है हो सकता है किसी के साथ सैरसपाटा के लिए निकल गई हो, 1-2 रोज इंतजार कर लो. उस के बाद न लौटे तो हम गुमशुदगी दर्ज कर लेंगे. गुरुवचन सिंह बुझे मन से वापस घर आ गए. गुरुवचन सिंह और उन की पत्नी गुरप्रीत कौर ने वह रात आंखों ही आंखों में काटी. दोनों के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं. अब तक गुरुवचन सिंह की युवा बेटी के गायब होने की खबर कई गुरुदारों तथा सिख समुदाय में फैल गई थी. लोगों की भीड़ उन के घर पर जुटने लगी थी.

गुरुद्वारे के जत्थे की महिलाएं भी आ गई थीं. सभी तरहतरह के कयास लगा रही थीं. गुरुवचन सिंह ने अपने खास लोगों से बंद कमरे में विचारविमर्श किया और जीआरपी थाने जा कर हरप्रीत की गुमशुदगी दर्ज कराने का निश्चय किया. 11 दिसंबर, 2019 की दोपहर गुरुवचन सिंह अपने परिचितों के साथ एक बार फिर कानपुर जीआरपी थाने पहुंचे. इस बार दबाव में बिना नानुकुर के थाना पुलिस ने हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुरुवचन सिंह एवं उन के परिचितों ने पुलिस से सीसीटीवी की फुटेज दिखाने का अनुरोध किया. इस पर पुलिस ने व्यस्तता का हवाला दे कर फुटेज दिखाने को इनकार कर दिया लेकिन जब दवाब बनाया गया तो फुटेज दिखाई.

फुटेज में हरप्रीत कौर स्टेशन की कैंट साइड से बाहर निकलते दिखाई दी. उस के बाद पता नहीं चला कि वह कहां गई. गुरुवचन सिंह जवाहर नगर में रहते थे. यह मोहल्ला थाना नजीराबाद के अंतर्गत आता है. शाम 5 बजे वह परिचितों के साथ थाना नजीराबाद जा पहुंचे. उस समय थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी थाने पर ही मौजूद थे. गुरुवचन सिंह ने उन्हें अपनी व्यथा बताई और बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की गुहार लगाई. थानाप्रभारी ने तत्काल गुरुवचन सिंह की बेटी हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. उन्होंने बेटी को तलाशने में हर संभव कोशिश करने का आश्वासन दिया. इधर 12 दिसंबर की अपराह्न 3 बजे कानपुर के ही थाना महाराजपुर की पुलिस को हाइवे के किनारे झाडि़यों में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. सूचना पाते ही थानाप्रभारी ए.के. सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश तिवारीपुर स्थित राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय के समीप हाइवे किनारे झाडि़यों में पड़ी थी. उन्होंने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 22 साल के आसपास थी. उसे देखने से लग रहा था कि उस की हत्या 2-3 दिन पहले कहीं और कर के लाश वहां डाली गई थी. मृतका के शरीर पर कोई जख्म वगैरह नहीं था जिस से प्रतीत हो रहा था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई होगी. उस के पास ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से उस की शिनाख्त हो सके. थानाप्रभारी ने हुलिए सहित एक युवती की लाश पाए जाने की सूचना वायरलेस द्वारा कानपुर नगर तथा देहात के थानों को प्रसारित कराई ताकि मृतका की पहचान हो सके. इस सूचना को जब नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी ने सुना तो उन का माथा ठनका. क्योंकि उन के यहां भी एक दिन पहले 22 वर्षीय युवती हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज हुई थी.

उन्होंने आननफानन में हरप्रीत कौर के पिता गुरुवचन सिंह को थाने बुलवा लिया. फिर उन्हें साथ ले कर वह महाराजपुर में मौके पर पहुंच गए. गुरवचन सिंह उस लाश को देखते ही फफक पड़े, ‘‘सर, यह शव हमारी बेटी हरप्रीत का ही है. इसे किस ने और क्यों मार डाला?’’

हरप्रीत की लाश पाए जाने की सूचना जब अन्य घरवालों को मिली तो घर में कोहराम मच गया. मां, बहन, भाई व परिजन घटनास्थल पर पहुच गए. हरप्रीत का शव देख कर सभी बिलख पड़े. थानाप्रभारी ने हरप्रीत कौर की हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी. कुछ ही देर बाद एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह भी मौके पर पहुंच गईं. मौके से साक्ष्य जुटाए गए. खोजी कुत्ता शव को सूंघ कर राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय की ओर भौंकता हुआ आगे बढ़ा फिर कुछ दूर जा कर वापस आ गया.

खोजी कुत्ता हत्या से संबंधित कोई साक्ष्य नहीं जुटा पाया. घटना स्थल से न तो मृतका का मोबाइल फोन बरामद हुआ और न उस का बैग. निरीक्षण के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल भेज दिया. 13 दिसंबर, 2019 को हरप्रीत हत्याकांड की खबर समाचारपत्रों में सुर्खियों में छपी तो सिख समुदाय के लोगों में रोष छा गया. सुबह से ही लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचने लगे. दोपहर 12 बजे तक पोस्टमार्टम हाउस पर भारी भीड़ जुट गई. सपा विधायक इरफान सोलंकी तथा अमिताभ बाजपेई भी वहां पहुंच गए. विधायकों के आने से भीड़ ज्यादा उत्तेजित हो उठी. लोगों में पुलिस की लापरवाही के प्रति गुस्सा था.

अत: पुलिस विरोधी नारेबाजी शुरू हो गई. यह देख कर थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी के हाथपांव फूल गए. उन्होंने घटना की जानकारी आला अधिकारियों को दी तो एडीजी प्रेम प्रकाश, आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता, तथा सीओ गीतांजलि सिंह लाला लाजपतराय अस्पताल आ गईं. वहां जुटी भीड़ को देखते हुए एसएसपी ने मौके पर नजीराबाद, स्वरूप नगर, फजलगंज, काकादेव थाने की फोर्स भी बुला ली. बवाल की जानकारी पा कर जिलाधिकारी विजय विश्वास पंत भी मौके पर आ गए. सपा विधायक माहौल को बिगाड़ न दें, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने भाजपा विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा, कानपुर के नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह को वहां बुलवा लिया. भाजपा विधायक व पुलिस अधिकारियों ने मृतका के परिजनों से बातचीत शुरू की.

मृतका के पिता गुरुवचन सिंह ने आरोप लगाया कि पुलिस ने बेहद लापरवाही की. पुलिस यदि सक्रिय होती, तो शायद आज उन की बेटी जिंदा होती. वह थानों के चक्कर लगाते रहे, कहते रहे कि जल्द से जल्द उन की बेटी के हत्यारों को गिरफ्तार किया जाए. उन्होंने जिलाधिकारी के समक्ष तीसरी मांग यह रखी कि उन्हें कम से कम 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाए. गुरुवचन सिंह की इन मांगों के संबंध में विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह ने जिलाधिकारी तथा पुलिस अधिकारियों से विचारविमर्श किया. अंतत: उन की सभी मांगें मान ली गईं. अधिकारियों के आश्वासन के बाद माहौल शांत हो गया.

3 डाक्टरों के एक पैनल ने हरप्रीत कौर के शव का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डिप्टी सीएमओ डा. ए.बी. मिश्रा, डा. कृष्ण कुमार तथा डा. एस.पी. गुप्ता को शामिल किया गया. पोस्टमार्टम के दौरान वीडियोग्राफी भी की गई. डाक्टरों ने विसरा के साथ ही स्लाइड बना कर डीएनए सैंपल जांच के लिए सुरक्षित रख लिए. पोस्टमार्टम के बाद हरप्रीत के शव को जवाहर नगर गुरुद्वारा लाया गया. यहां जत्थे की महिलाओं की पुलिस से झड़प हो गई. सीओ गीतांजलि सिंह ने किसी तरह महिलाओं को समझाया. उस के बाद मृतका के शव को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच बर्रा स्थित स्वर्गआश्रम लाया गया. जहां परिजनों ने उसे नम आंखों से अंतिम विदाई दी.

दरअसल हरप्रीत कौर की 13 दिसंबर को कानपुर में रिंग सेरेमनी थी. सगाई वाले दिन ही उस की अर्थी उठी. इसलिए जिस ने भी मौत की खबर सुनी, उस की आंखें आंसू से भर आईं. यही कारण था कि उस की शवयात्रा में भारी भीड़ उमड़ी. भीड़ में गम और गुस्सा दोनों था. गम का आलम यह रहा कि सिख समुदाय के अनेक घरों तथा गुरुद्वारे में खाना तक नहीं बना. एसएसपी अनंतदेव तिवारी ने हरप्रीत हत्याकांड को बेहद गंभीरता से लिया. उन्होंने हत्या के खुलासे की जिम्मेदारी एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को सौंपी. अपर्णा गुप्ता ने खुलासे के लिए एक स्पैशल टीम गठित की.

इस टीम में नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी, सीओ गीतांजलि सिंह, कई थानों के तेजतर्रार दरोगाओं तथा कांस्टेबलों को सम्मिलित किया गया. अब तक थानाप्रभारी ने गुमशुदगी के इस मामले को भा.द.वि. की धारा 302, 201 के तहत अज्ञात हत्यारों के विरूद्ध तरमीम कर दिया था. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता द्वारा गठित टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के मुताबिक हरप्रीत की हत्या गला दबा कर की गई थी. दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइड बनाई गई थी तथा जहर की आशंका को देखते हुए विसरा भी सुरक्षित कर लिया गया था. स्लाइड व विसरा को परीक्षण हेतु लखनऊ लैब भेजा गया.

टीम ने मृतका के पिता गुरुवचन सिंह का बयान दर्ज किया. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी हरप्रीत कौर का रिश्ता दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारा में क्लर्क के पद पर सेवारत युवराज सिंह के साथ तय हुआ था. 13 दिसंबर को उस की सगाई थी. वह सामान की खरीदारी करने 9 दिसंबर को दिल्ली जाने के लिए कानपुर रेलवे स्टेशन पहुंची थी. बेटी तो दिल्ली नहीं पहुंची, अपितु उस की मौत की खबर जरूर मिल गई.

‘‘हरप्रीत का मंगेतर युवराज कहां है? क्या वह तुम से मिलने तुम्हारे घर आया है?’’ थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह से पूछा.

‘‘नहीं, वह मौत की खबर पा कर भी कानपुर नहीं आया. 12 दिसंबर को उस से बात जरूर हुई थी. उस के बाद उस से संपर्क नहीं हो पाया. युवराज का मोबाइल फोन भी बंद है.’’ गुरुवचन सिंह ने पुलिस को जानकारी दी. गुरुवचन सिंह की बात सुन कर मनोज रघुवंशी का माथा ठनका, इस की वजह यह थी कि जिस की होने वाली पत्नी की हत्या हो गई हो, वह खबर पा कर भी न आए, यह थोड़ा अजीब था. ऊपर से उस ने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया था. इन सब वजहों से उन्हें लगा कि कुछ तो गड़बड़ है. हरप्रीत कौर घर से कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंची थी. स्टेशन से ही वह गायब हुई थी. पुलिस टीम जांच करने स्टेशन पहुंची.

कानपुर रेलवे स्टेशन की जीआरपी पुलिस की मदद से सीसीटीवी फुटेज देखे गए तो हरप्रीत कौर स्टेशन से कैंट साइड में बाहर जाते दिखी. इस के बाद पुलिस ने रेल बाजार के हैरिशगंज क्षेत्र के एक सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो इस फुटेज में 9 दिसंबर की रात 10 बजे हरप्रीत के अलावा 3 अन्य लोग कार में बैठे दिखे. पुलिस ने उन की पहचान कराने के लिए यह फुटेज गुरुवचन सिंह को दिखाई तो उन्होंने उन में से एक युवक की तत्काल पहचान कर ली. यह कोई और नहीं बल्कि हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह था. 2 अन्य युवकों को वह नहीं पहचान पाए. युवराज सिंह पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस ने युवराज तथा हरप्रीत के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि 9 दिसंबर को युवराज और हरप्रीत के बीच कई बार बात हुई थी.

हरप्रीत ने अपने मोबाइल फोन से उसे आखिरी मैसेज भी भेजा था. लेकिन उस ने हरप्रीत से अपने एक दूसरे फोन नंबर से बात की थी. उस के पहले उस के फोन की लोकेशन 9 दिसंबर की रात दिल्ली की ही मिल रही थी. पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि युवराज सिंह शातिर दिमाग है. उस ने ही अपने साथियों के साथ मिल कर अपनी मंगेतर हरप्रीत की हत्या की है. पुलिस को उस पर शक न हो इसलिए वह अपना एक मोबाइल फोन दिल्ली में ही छोड़ आया था. हत्या में कार का प्रयोग भी हुआ था. इस का पता लगाने पुलिस टीम बारा टोल प्लाजा पहुंची. क्योंकि इसी टोल प्लाजा से कानपुर शहर का आवागमन दिल्ली आगरा की ओर होता है.

पुलिस टीम ने बारा टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज देखे तो हैरान रह गई. दिल्ली नंबर की टैक्सी वैगन आर कार 7 घंटे में 4 बार टोल से इधर से उधर क्रास हुई थी. 9 दिसंबर की रात साढ़े 8 बजे वह टैक्सी कानपुर शहर आई. रात 12.36 बजे वह वापस दिल्ली की तरफ गई. फिर 45 मिनट बाद रात 1.19 बजे कार वापस कानपुर की तरफ आई. इस के बाद रात 3.36 बजे वापस बारा टोल प्लाजा क्रास कर दिल्ली की ओर चली गई. इस बीच पुलिस ने डाटा डंप करा कर कई संदिग्ध नंबर निकाले तथा इन नंबरों की जानकारी जुटाई. कार पर अंकित नंबर डीएल1आरटीए 5238 की आरटीओ कार्यालय से जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि कार का रजिस्ट्रैशन तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के नाम है.

एक अन्य संदिग्ध मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि वह नंबर अमृतसर (पंजाब) जिले के जुगावा गांव निवासी सुखचैन सिंह का है. हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह भी इसी जुगावा गांव का रहने वाला था. पुलिस टीम जांच के आधार पर अब तक हरप्रीत कौर हत्याकांड के खुलासे के करीब पहुंच चुकी थी. अत: टीम ने जांच रिपोर्ट से एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को अवगत कराया तथा युवराज सिंह तथा उस के साथियों की गिरफ्तारी की अनुमति मांगी. अपर्णा गुप्ता ने जांच रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तारी का आदेश दे दिया. इस के बाद पुलिस पार्टी हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली व पंजाब रवाना हो गई.

15 दिसंबर, 2019 को पुलिस टीम युवराज सिंह की तलाश में दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारा पहुंची. पता चला कि युवराज सिंह का असली नाम जुगराज सिंह है. 5 दिसंबर से वह ड्यूटी पर नहीं आ रहा है. गुरुद्वारे में वह क्लर्क के पद पर तैनात था. युवराज सिंह जब गुरुद्वारे में नहीं मिला तब पुलिस टीम ने युवराज सिंह व उस के दोस्त सुखचैन सिंह की तलाश में उस के गांव जुगावा (अमृतसर) में छापा मारा. लेकिन वह दोनों अपनेअपने घरों से फरार थे. उन का मोबाइल फोन भी बंद था, जिस से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. युवराज सिंह तथा सुखचैन सिंह जब पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े तो पुलिस टीम को निराशा हुई लेकिन टीम ने हिम्मत नहीं हारी. इस के बाद टीम ने रात में तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के घर दबिश दी.

सुखविंदर सिंह घर में ही था और चैन की नींद सो रहा था. पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और उस की कार भी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस टीम कार सहित सुखविंदर सिंह को कानपुर ले आई. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह ने थाना नजीराबाद में सुखविंदर सिंह से हरप्रीत कौर की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने हत्या में शामिल होना कबूल कर लिया. कार की डिक्की से उस ने मृतका हरप्रीत का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया. सुखविंदर सिंह ने बताया कि हरप्रीत कौर की हत्या उस के मंगेतर जुगराज सिंह उर्फ युवराज सिंह ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह के साथ मिल कर रची थी. हत्या में वह भी सहयोगी था.

हत्या के बाद शव को ठिकाने लगाने के बाद वह तीनों रात में ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे. कार उस की खुद की थी. दिल्ली में वह उस कार को टैक्सी के रूप में चलाता था. सुखविंदर सिंह ने बताया कि वह हत्या करना नहीं चाहता था, लेकिन दोस्त जुगराज सिंह की शादीशुदा जिंदगी तबाह होने से बचाने के लिए वह हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल हो गया. चूंकि सुखविंदर सिंह ने हत्या का परदाफाश कर दिया था और हत्या में प्रयुक्त कार भी बरामद करा दी थी. साथ ही मृतका का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया था. अत: एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने सीओ गीतांजलि सिंह के कार्यालय परिसर में आननफानन में प्रैस वार्ता की.

पुलिस ने कातिल सुखविंदर सिंह को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. पुलिस पूछताछ में प्यार में धोखा खाई एक युवती की मौत की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई. उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के नजीराबाद थाना अंतर्गत एक मोहल्ला है जवाहर नगर. इसी मोहल्ले में स्थित गुरुद्वारे में गुरुवचन सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी गुरप्रीत कौर के अलावा 2 बेटे सुरेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह तथा 2 बेटियां जगप्रीत व हरप्रीत कौर थीं. गुरुवचन सिंह गुरुद्वारा में ग्रंथी व सेवादार थे. उन की अर्थिक स्थिति भले ही कमजोर थी पर मानसम्मान बहुत था. भाईबहनों में हरप्रीत कौर सब से छोटी थी. हरप्रीत जितनी सुंदर थी, पढ़ने में वह उतनी ही तेज थी.

उस ने ग्रैजुएशन तक पढ़ाई की थी. शारीरिक सौंदर्य बनाए रखने हेतु वह गतिका सीखती थी. गुरुद्वारे में वह सेवादार भी थी. जत्थे की महिलाओं का उस पर स्नेह था. हरप्रीत कौर का एक भाई सुरेंद्र सिंह दिल्ली के चांदनी चौक में अपने परिवार के साथ रहता था. हरप्रीत का अपने भैयाभाभी के घर आनाजाना बना रहता था. भाई के घर रहने के दौरान कभीकभी वह मत्था टेकने बंगला साहिब गुरुद्वारा भी चली जाती थी. हरप्रीत कौर धार्मिक प्रवृत्ति की थी. धर्मकर्म में उस की विशेष रुचि थी. गुरुनानक जयंती व गुरु गोविंद सिंह के जन्म पर्व पर वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

एक बार हरप्रीत अपने मातापिता के साथ बंगला साहिब गुरुद्वारा अपने भाई महिंद्र सिंह के लिए लड़की देखने गई. यहीं उस की मुलाकात एक खूबसूरत सिख युवक युवराज सिंह से हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए थे. इस के बाद दोनों की अकसर मुलाकातें होने लगीं. बाद में मुलाकातें प्यार में तब्दील हो गईं. दोनों एकदूसरे को टूट कर चाहने लगे. प्यार परवान चढ़ा तो दोनों एकदूजे का होने के लिए उतावले हो उठे. युवराज सिंह मूलरूप से पंजाब प्रांत के अमृतसर जिले के गांव जुगावा का रहने वाला था. वह शादीशुदा तथा एक बच्चे का पिता था. उस का परिवार तो गांव में रहता था, जबकि वह स्वयं दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. उस के मांबाप भी गुरुद्वारे में सेवादार थे. वह महीनोंमहीनों गुरुद्वारे में रहते थे.

युवराज सिंह छलिया आशिक था. उस का असली नाम जुगराज सिंह था. उस ने जानबूझ कर हरप्रीत कौर से अपनी पहचान, नाम व शादी वाली बात छिपा रखी थी. युवराज सिंह के प्यार में हरप्रीत ऐसी अंधी हो गई थी कि वह उस से ब्याह रचाने के सपने संजोने लगी. युवराज सिंह भी हरप्रीत से प्यार का ऐसा दिखावा करता था कि उस से बढ़ कर कोई आशिक हो ही नहीं सकता. उस ने हरप्रीत को कभी आभास ही नहीं होने दिया कि वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. हरप्रीत जब तक भाई के घर रहती, युवराज के साथ प्यार की पींगें बढ़ाती, जब वापस कानपुर आती तब मोबाइल फोन द्वारा दोनों घंटों तक बतियाते. हरप्रीत ने अपने मातापिता को भी अपने और युवराज के प्यार के संबंध में जानकारी दे दी थी. भाई सुरेंद्र सिंह को भी दोनों का प्यार पनपने की जानकारी थी.

एक रोज जब सुरेंद्र सिंह का दिल्ली में एक्सीडेंट हो गया, तब हरप्रीत अपने मांबाप के साथ भाई को देखने दिल्ली आ गई. हरप्रीत के दिल्ली आने की जानकारी पा कर युवराज भी सुरेंद्र सिंह को देखने आया. यहां भाई के घर पर हरप्रीत ने युवराज सिंह की मुलाकात अपने मांबाप से कराई. चूंकि युवराज सिंह देखने में स्मार्ट था, सो गुरुवचन सिंह ने उसे बेटी के लिए पसंद कर लिया. उन्होंने उसी समय युवराज सिंह को शगुन भी दे दिया. किंतु इन्हीं दिनों युवराज सिंह के छलावे की बात खुल गई. हरप्रीत को पता चला कि युवराज सिंह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. इस छलावे को ले कर हरप्रीत और युवराज सिंह के बीच जम कर झगड़ा हुआ. उस ने शिकवाशिकायत की, लेकिन युवराज  सिंह ने उस से माफी मांग ली.

हरप्रीत कौर, युवराज सिंह के प्यार में अंधी हो चुकी थी. वह प्यार की सब से ऊंची सीढ़ी पर पहुंच चुकी थी, जहां से नीचे उतरना उस के लिए संभव नहीं था. अत: शादीशुदा वाली बात जानने के बावजूद भी वह उस से शादी करने को अडिग रही. यद्यपि उस ने युवराज के शादीशुदा होने वाली बात अपने मातापिता से छिपा ली. हरप्रीत को शक था कि भेद खुल जाने से कहीं युवराज सिंह सगाई से मुकर न जाए. अत: वह युवराज सिंह पर जल्द सगाई करने का दबाव डालने लगी. उस ने अपने मांबाप पर भी सगाई की तारीख तय करने का दबाव बनाया.

दबाव के चलते युवराज सिंह सगाई करने को राजी हो गया. हरप्रीत के मांबाप ने सगाई की तारीख 13 दिसंबर, 2019 नियत कर दी. इस के बाद वह बेटी की सगाई की तैयारी में जुट गए. तय हुआ कि जवाहर नगर, कानपुर गुरुद्वारे में दोनों की सगाई होगी. युवराज सिंह हरप्रीत कौर से प्यार तो करता था, लेकिन सगाई नहीं करना चाहता था. क्योंकि सगाई से उस की खुशहाल जिंदगी तबाह हो सकती थी. उस ने हरप्रीत से 1-2 बार सगाई का विरोध भी किया था, लेकिन हरप्रीत ने उसे यह धमकी दे कर उस का मुंह बंद कर दिया कि वह सारी बात बंगला साहिब गुरुद्वारा तथा उस के परिवार में सार्वजनिक कर देगी. तब उस की नौकरी भी चली जाएगी और परिवार में कलह भी होगी. हरप्रीत की इसी धमकी के चलते वह उस से सगाई को राजी हो गया था.

युवराज ने हामी तो भर दी लेकिन वह किसी भी कीमत पर हरप्रीत से सगाई नहीं करना चाहता था, अत: जैसेजैसे सगाई की तारीख नजदीक आती जा रही थी, वैसेवैसे युवराज की चिंता बढ़ती जा रही थी. आखिर उस ने इस समस्या से निजात पाने के लिए अपनी प्रेमिका हरप्रीत कौर को शातिराना दिमाग से ठिकाने लगाने की योजना बनाई. इस योजना में उस ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह तथा दिल्ली के दोस्त सुखविंदर सिंह को एकएक लाख रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया. सुखविंदर सिंह मूलरूप से तरसिक्का (अमृतसर) का रहने वाला था. दिल्ली में वह पांडव नगर के पास गणेश नगर में रहता था. उस के पास वैगनआर कार थी, जिसे वह दिल्ली में टैक्सी के रूप में चलाता था.

हत्या की योजना बनाने के बाद युवराज सिंह हरप्रीत कौर व उस के मातापिता से मनलुभावन बातें करने लगा, ताकि उन्हें किसी प्रकार का शक न हो. बातचीत के दौरान युवराज सिंह को पता चला कि हरप्रीत 9 दिसंबर को भाई से मिलने तथा खरीदारी करने घर से दिल्ली को रवाना होगी. अत: युवराज सिंह ने 9 दिसंबर की रात ही उसे ठिकाने लगाने का निश्चय किया. उस ने इस की जानकारी अपने दोस्तों को भी दे दी. 9 दिसंबर, 2019 की सुबह 11 बजे युवराज सिंह व सुखचैन सिंह, सुखविंदर सिंह की कार से दिल्ली से कानपुर को रवाना हुआ. युवराज सिंह ने अपना एक मोबाइल घर पर ही छोड़ दिया ताकि उस की लोकेशन ट्रेस न हो सके. रास्ते में सुखचैन सिंह के मोबाइल से हरप्रीत व उस की मां से बतियाता रहा.

हालांकि उस ने यह जानकारी नहीं दी कि वह कानपुर आ रहा है. रात 8 बज कर 31 मिनट पर उस की कार ने बारा टोल प्लाजा पार किया, फिर साढ़े 9 बजे वह रेलवे स्टेशन से कैंट साइड में पहुंच गया. इधर हरप्रीत कौर भी दिल्ली जाने को कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंच गई थी. यह बात युवराज सिंह को पता थी. उस ने फोन कर के हरप्रीत को स्टेशन के बाहर कैंट साइड में बुलवा लिया. हरप्रीत उसे देख कर चौंकी तो उस ने कहा कि वह उसे ही लेने आया है. इस के बाद हरप्रीत ने मां को झूठी जानकारी दी कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है.

रात 10 बजे युवराज सिंह ने हरप्रीत को कार में बिठा लिया. फिर चारों गोविंदनगर आए. यहां सभी ने अनिल मीट वाले के यहां खाना खाया और कोल्डड्रिंक पी. युवराज सिंह ने चुपके से हरप्रीत की कोल्डड्रिंक में नशीली दवा मिला दी थी. हरप्रीत ने कोल्डड्रिंक पी तो वह कार में बेहोश हो गई. कार इटावा हाइवे की तरफ बढ़ी और उस ने रात 12:36 बजे बारा टोल प्लाजा पार किया. चलती कार में युवराज सिंह व सुखचैन सिंह ने शराब पी. युवराज सिंह ने दोस्तों को हरप्रीत के साथ दुष्कर्म करने को कहा लेकिन सुखचैन सिंह व सुखविंदर सिंह ने इस औफर को ठुकरा दिया. लगभग 45 मिनट बाद कार फिर कानपुर की तरफ वापस हुई और उस ने रात 1 बज कर 19 मिनट पर टोल प्लाजा को पार किया. फिर कार कानपुर हाइवे पार कर महराजपुर थाना क्षेत्र के तिवारीपुर गांव के समीप पहुंची. यहां युवराज सिंह ने सुनसान जगह पर हाइवे किनारे कार रुकवा ली.

इस के बाद बेहोशी की हालत में कार में बैठी हरप्रीत को युवराज सिंह ने दबोच लिया. सुखचैन सिंह तथा सुखविंदर सिंह ने हरप्रीत के पैर पकड़े तथा युवराज सिंह ने उस का गला घोंट दिया. हत्या करने के बाद तीनों ने मिल शव को हाइवे किनारे झाडि़यों में फेंक दिया. इस के बाद ये लोग कार से दिल्ली की ओर चल पड़े. उन की कार ने रात 3:36 बजे बारा टोल प्लाजा को पार किया. दिल्ली पहुंच कर युवराज सिंह हरप्रीत के भाई सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की तलाश का नाटक करता रहा. 12 दिसंबर को वह पकड़े जाने के डर से फरार हो गया. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर लिया था.

सुखविंदर सिंह को गिरफ्तार कर पुलिस ने उसे 17 दिसंबर, 2019 को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट बी.के. पांडेय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Superstition : लाखों रुपए से करोड़ों रुपए बनाने वाला तांत्रिक का हुआ पर्दाफाश

Superstition : कुछ लोग लालच में आ कर न सिर्फ अपना आर्थिक नुकसान करते हैं, बल्कि अपनी जान भी गंवा बैठते हैं. काश! ठेकेदार सुभाषचंद तांत्रिक अरशद के झांसे में न आता तो…

3 दिसंबर, 2019 का दिन था. उस वक्त सुबह के 8 बज रहे थे. उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के थाना फतेहपुर के थानाप्रभारी अमित शर्मा को किसी ने फोन कर के सूचना दी कि सहारनपुर-देहरादून हाइवे पर गांव नानका के पास सड़क किनारे एक एक्सयूवी 500 कार के अंदर किसी आदमी की लाश पड़ी है. सुबहसुबह लाश मिलने की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंक गए. उसी समय वह एसएसआई अजय प्रताप गौड़, एसआई रघुनाथ सिंह, दीपचंद, बिजेंद्र, हैडकांस्टेबल संजय, सचिन और महिला सिपाहियों ऊषा व अल्पना के साथ घटनास्थल की तरफ चल दिए.

घटनास्थल वहां से 3-4 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह 10 मिनट में ही वहां पहुंच गए. मौके पर काफी लोग जमा थे. वहां खड़ी एक्सयूवी500 कार नंबर यूके17सी 6808 की ड्राइविंग सीट पर एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. कार के पायदान पर भी खून पड़ा था. मृतक की उम्र करीब 40 साल थी. उस का गला कटा हुआ था. मृतक शायद आसपास के क्षेत्र का रहने वाला नहीं था, इसलिए कोई भी उसे पहचान नहीं सका. चेहरेमोहरे से मृतक किसी संपन्न परिवार का लग रहा था. लोगों ने बताया कि उन्होंने यह कार आज सुबह तब देखी थी, जब वे अपने खेतों की ओर जा रहे थे. लोगों ने यह भी बताया कि यह कार सुबह लगभग 4-5 बजे से यहां खड़ी है. उस वक्त अंधेरा था.

कार की ड्राइविंग सीट की ओर की खिड़की खुली हुई थी व कार का इंजन स्टार्ट था. पहले तो उधर से गुजरने वाले लोग कार को नजरअंदाज करते रहे, मगर जब 7 बजे सूरज की रोशनी बढ़ी तब ग्रामीणों ने कार के अंदर पड़े लहूलुहान शव को देखा था. थानाप्रभारी ने इस मामले की सूचना सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय, एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्रा तथा एसएसपी दिनेश कुमार पी. को दी. थानाप्रभारी अमित शर्मा ने जरूरी काररवाई करने के बाद कुछ ग्रामीणों की सहायता से शव को कार से बाहर निकाला और उस का निरीक्षण किया. कुछ ही देर में एसएसपी दिनेश कुमार पी., एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्र और सीओ रजनीश कुमार भी वहां फोरैंसिक टीम के साथ आ गए.

तीनों अधिकारियों ने भी लाश का मुआयना कर इस हत्याकांड के बारे में वहां खड़े लोगों से बात की. इस के बाद एसएसपी ने थानाप्रभारी शर्मा को आरटीओ से कार मालिक का पता लगाने व केस को खोलने के निर्देश दिए. पुलिस ने जब मृतक की तलाशी ली तो जेब से कुछ कागजात, मोबाइल फोन तथा पर्स में रखी नकदी मिली. पर्स में मिली नकदी और मोबाइल फोन से इस बात की तो पुष्टि हो ही गई कि उस की हत्या लूट के इरादे से नहीं की गई थी. पुलिस ने प्रारंभिक जांच का काम निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए सहारनपुर के जिला अस्पताल भेज दी. इस के बाद पुलिस ने कार मालिक की जानकारी करने के लिए परिवहन विभाग से संपर्क किया. परिवहन विभाग से पता चला कि उक्त नंबर की कार सुभाषचंद पुत्र ओमपाल, निवासी गांव महेश्वरी, थाना भगवानपुर, जिला हरिद्वार के नाम पर रजिस्टर्ड है.

कार मालिक के नाम की जानकारी मिलने के बाद थानाप्रभारी ने थाना भगवानपुर के एसओ से संपर्क कर इस मामले की जानकारी दी. भगवानपुर थाने की पुलिस ने जब गांव महेश्वरी में सुभाषचंद के घर पहुंच कर जब एक्सयूवी500 कार में शव मिलने की जानकारी दी तो सुभाष के भाई विश्वास ने बताया कि वह कल ही अपनी कार ले कर घर से निकले थे. इसलिए कार में शव मिलने की बात सुन कर विश्वास घबरा गया. वह अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ जिला अस्पताल सहारनपुर पहुंच गया. विश्वास और उस के रिश्तेदारों को जब मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो विश्वास वहीं बिलख पड़ा. उस ने स्वीकार किया कि यह लाश उस के भाई सुभाषचंद की ही है. इस के बाद तो सुभाषचंद के घर में भी कोहराम मच गया.

पूछताछ करने पर विश्वास ने पुलिस को बताया कि सुभाषचंद काफी समय से लोक निर्माण विभाग, रुड़की में ठेकेदारी कर रहे थे. पिछले दिन वह सुबह 9 बजे किसी काम से देहरादून जाने के लिए अपनी कार ले कर घर से निकले थे. शाम 4 बजे तक वह परिजनों से मोबाइल पर बात करते रहे. इस के बाद उन का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया. रात भर घर वाले बहुत परेशान रहे. सुभाषचंद के लापता होने पर घर वालों ने उन्हें आसपास रहने वाले रिश्तेदारों व उन के मित्रों के यहां तलाश किया. विश्वास से पूछताछ के बाद पुलिस ने सुभाषचंद के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और सुभाषचंद के बेटे दीपक चौधरी की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस हत्याकांड की विवेचना स्वयं थानाप्रभारी ने ही संभाली.

थानाप्रभारी अमित शर्मा ने परिजनों से पूछा कि सुभाषचंद की किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी. इस सवाल के जवाब में परिजनों का कहना था कि वह काफी मिलनसार थे तथा वह सहकारिता की राजनीति में सक्रिय थे. वह इकबालपुर गन्ना समिति में निदेशक भी रह चुके थे. पुलिस को सुभाषचंद की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई थी, जिस में उन की मौत का कारण गला कटना व गला कटने से ज्यादा खून निकलना बताया गया. काल डिटेल्स मिलने पर पुलिस ने जब सुभाषचंद के मोबाइल पर आए नंबरों की जांच की तो पुलिस को एक मोबाइल नंबर पर संदेह हुआ. वह नंबर सहारनपुर के थाना सदर अंतर्गत मोहल्ला गणेश विहार निवासी अरशद का था.

जब पुलिस ने अरशद के विषय में जानकारी जुटाई तो पुलिस को संदेह हो गया कि सुभाषचंद की हत्या में इस का हाथ हो सकता है. पुलिस के एक मुखबिर ने जानकारी दी कि 2 दिसंबर, 2019 को सुभाषचंद्र की एक्सयूवी-500 कार अरशद के घर के बाहर देखी गई थी. इस के अलावा मुखबिर ने पुलिस को यह भी जानकारी दी कि अरशद तंत्रमंत्र का काम करता है. यह जानकारी मिलने पर एसएसपी ने थानाप्रभारी अमित शर्मा को अरशद से पूछताछ के निर्देश दिए. अगले दिन 5 दिसंबर, 2019 को थानाप्रभारी ने अरशद के गणेश विहार स्थित मकान पर पहुंच कर दरवाजे पर दस्तक दी. तभी एक युवक ने दरवाजा खोला. वह युवक पुलिस देख कर सकपका गया और घबरा कर अंदर की ओर भागा.

उसे भागता देख कर पुलिस वालों ने उसे पकड़ लिया और उस से पूछा कि तू कौन है तथा अरशद कहां है. युवक ने घबराते हुए बताया कि मेरा नाम वकील उर्फ सोनू है तथा अरशद यहीं दूसरे कमरे में बैठा हुआ है. जब पुलिस टीम के साथ वकील नाम का वह युवक अरशद के कमरे में पहुंचा तो वहां बैठे अरशद को माजरा समझते देर न लगी. अरशद पुलिस को देख कर थरथर कांपने लगा था. उन्होंने अरशद को हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी शर्मा ने उसी समय अरशद से पूछा, ‘‘2 दिसंबर को सुभाषचंद की कार तुम्हारे घर के पास देखी गई थी, उसी रात तुम सुभाष के साथ गांव नानका के पास गए थे और वहां उसी की कार में तुम ने उस की हत्या कर दी.’’

थानाप्रभारी के इस सवाल का अरशद कोई उत्तर नहीं दे सका और चुप हो गया. थोड़ी देर चुप होने के बाद अरशद बोला, ‘‘सर, आप को जब इस बारे में पता चल ही गया है तो आप से कुछ छिपाने से कोई फायदा नहीं है. मैं आप को इस बारे में सब कुछ बताता हूं.’’

इस के बाद अरशद ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार थी—

सुभाषचंद लोक निर्माण विभाग, रुड़की में ठेकेदार थे. वह अपने परिवार के साथ हरिद्वार के महेश्वरी गांव में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा दीपक और एक बेटी थी. करीब 2 साल पहले सुभाष के ही एक दोस्त अतीत कटारिया, निवासी गांव झबीरन, हरिद्वार ने उन की मुलाकात सहारनपुर के ही मोहल्ला गणेश विहार निवासी अरशद से कराई थी. अरशद तंत्रमंत्र का काम करता था. अतीत कटारिया ने उन्हें बताया कि यह पहुंचे हुए तांत्रिक हैं. उस ने बताया कि यह तंत्रमंत्र द्वारा रकम को कई गुना बना सकते हैं. लालची स्वभाव के सुभाषचंद को इस बात पर विश्वास हो गया तो उन्होंने अरशद को साढ़े 3 लाख रुपए दिए थे और इस रकम को एक करोड़ रुपयों में बदलने को कहा था.

2 महीनों तक सुभाषचंद की रकम नहीं बढ़ी तो उन्होंने तांत्रिक अरशद से अपने पैसे मांगे. अरशद पैसे दैने में आनाकानी करने लगा तो ठेकेदार ने उस पर दबाव बनाया. इतना ही नहीं, उस ने उस तांत्रिक को पैसे देने के लिए धमका भी दिया. इस से तांत्रिक अरशद बहुत चिंतित रहने लगा. इसलिए तांत्रिक अरशद ने अपने दोस्तों टीलू और वकील उर्फ सोनू के साथ मिल कर सुभाष ठेकेदार को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. योजना के अनुसार, अरशद ने पहली दिसंबर, 2019 को सुभाषचंद को एक करोड़ रुपए ले जाने के लिए 2 बड़े थैले ले कर अपने घर बुलाया. 2 दिसंबर को सुभाषचंद खुश होते हुए अरशद के यहां पहुंचा. उसे उम्मीद थी कि आज अरशद उसे एक करोड़ रुपए दे देगा.

योजना के मुताबिक अरशद ने अपने घर पहुंचे सुभाष को अपनी बीवी फिरदौस से चाय बनवाई. अरशद की बेटियों आजमा व नगमा ने उस चाय में नशे की गोलियां मिला दीं. वह चाय सुभाषचंद को पीने को दी. चाय पीने के थोड़ी देर बाद सुभाष को बेहोशी सी छाने लगी तो उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया. रात होने पर अरशद के दोस्त वकील तथा टीलू भी वहां पहुंच गए. फिर सभी ने सुभाष को उठा कर उन की कार में डाला. अरशद और वकील कार ले कर सहारनपुर-देहरादून हाइवे पर गांव नानका के पास पहुंचे थे. टीलू भी बाइक से उन के पीछेपीछे पहुंच गया. सड़क किनारे कार खड़ी कर के उन्होंने सुभाषचंद को ड्राइविंग सीट पर बैठा दिया.

फिर टीलू ने गाड़ी के अंदर जा कर सुभाषचंद के हाथ पकड़ लिए और वकील ने सिर पकड़ कर पीछे की तरफ कर दिया. तभी अरशद ने ड्राइवर साइड की खिड़की खोल कर सुभाष का गला रेत दिया और चाकू से 3-4 प्रहार गरदन पर किए. सुभाषचंद को ठिकाने लगाने के बाद वे बाइक से घर लौट आए. अरशद से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने वकील से भी पूछताछ की तो उस ने भी अरशद के बयान की पुष्टि कर दी. अरशद व वकील की निशानदेही पर पुलिस ने सुभाषचंद की हत्या में प्रयुक्त चाकू, सुभाष के चाय में दी गई नशे की गोलियों का रैपर तथा अरशद के रक्तरंजित कपड़े अरशद के घर से ही बरामद कर लिए.

पुलिस ने इस केस में धारा 120बी व आर्म्स एक्ट की धारा 251/4 और बढ़ा दी. इस के बाद एसएसपी दिनेश कुमार पी. व एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्रा ने उसी दिन पुलिस लाइंस सभागार में प्रैसवार्ता आयोजित कर ठेकेदार सुभाषचंद की हत्या का खुलासा किया और दोनों आरोपियों को मीडिया के सामने प्रस्तुत किया था. दूसरे दिन ही पुलिस ने इस हत्याकांड में आरोपी अरशद की पत्नी फिरदौस के अलावा उस की बेटियों अजमा व नगमा को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. छठा आरोपी टीलू, निवासी नवादा फरार हो चुका था. पुलिस उसे सरगरमी से तलाश रही थी.  कथा लिखे जाने तक थानाप्रभारी अमित शर्मा केस की विवेचना पूरी करने के बाद सभी आरोपियों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट भेजने की तैयारी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Agra News : वकील का अपहरण करके मांगी 50 लाख रुपए की फिरौती

Agra News : एडवोकेट अकरम अंसारी का अपहरण फिल्मी अंदाज में किया था. बदमाश 50 लाख रुपए की फिरौती मांग रहे थे. पुलिस ने उन्हें फिरौती भी दे दी लेकिन बाद में अपहर्त्ता पुलिस के चंगुल में ऐसे फंसे कि…

फिरोजाबाद जिले के थाना दक्षिण के अंतर्गत एक मोहल्ला है राजपूताना. यहीं के निवासी 35 वर्षीय मोहम्मद अकरम अंसारी पेशे से वकील हैं. वह 3 फरवरी, 2020 को आगरा के बोदला निवासी अपने रिश्तेदार की बीमार बेटी को देखने के लिए आगरा के श्रीराम अस्पताल गए थे. बीमार बेटी को देखने के बाद वकील अकरम अंसारी घर जाने के लिए शाम के समय अस्पताल से निकले. चूंकि उन्हें बस अड्डे से बस पकड़नी थी, इसलिए बस अड्डा तक जाने के लिए उन के साढ़ू फैज अंसारी ने उन्हें कारगिल चौराहे से एक आटो में बैठा दिया था, लेकिन वह घर नहीं पहुंचे.

परिजन सारी रात बेचैनी से अकरम अंसारी का इंतजार करते रहे. बारबार वह अकरम को फोन मिला रहे थे, लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. इस से घरवालों की चिंता बढ़ रही थी. अगली सुबह अकरम के भाई असलम उन्हें तलाशने के लिए आगरा पहुंचे. वहां पता चला कि साढ़ू फैज अंसारी ने उन्हें बस अड्डा जाने वाले एक आटो में बैठा दिया था. वहां से वह कहां गए, किसी को पता नहीं. इस के बाद असलम ने भाई को रिश्तेदारी व अन्य परिचितों के यहां तलाशा. लेकिन अकरम कहीं नहीं मिले. तब असलम ने आगरा के थाना सिकंदरा में भाई की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

दूसरे दिन बुधवार को दोपहर डेढ़ बजे वकील अकरम के छोटे भाई असलम के पास एक फोन आया. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘अकरम हमारे कब्जे में है. अगर उस की सलामती चाहते हो तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. फिरौती की रकम कहां पहुंचानी है, इस बारे में फिर से फोन कर के बताएंगे और अगर, पुलिस को बताया तो ठीक नहीं होगा.’’

इस पर असलम ने कहा, ‘‘इतनी बड़ी रकम उन के पास नहीं है.’’

इस पर अपहर्त्ताओं ने कहा, ‘‘हमें पता है कि तुम्हारे 4 मकान हैं. इसलिए रुपयों का इंतजाम कर लो.’’ इस के बाद फोन कट गया. फिरौती मांगने से असलम का परिवार दहशत में आ गया. असलम ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी पुलिस को दी. इस पर सिकंदरा के थानाप्रभारी ने तुरंत अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद उन्होंने एक पुलिस टीम को अकरम की बरामदगी के लिए लगा दिया. वकील अकरम अंसारी का फिरौती के लिए आगरा से अपहरण करने का समाचार जब समाचारपत्रों के अलावा न्यूज चैनलों पर आया तो अधिवक्ताओं ने उन की बरामदगी के लिए पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.

मामला एक वकील का था, इसलिए पुलिस की 10 टीमें जांच में जुट गईं. इन टीमों का निर्देशन एसएसपी बबलू कुमार स्वयं कर रहे थे. जिस मोबाइल नंबर से असलम के पास फोन आया था सर्विलांस टीम उस की भी जांच में जुट गई. कई दिन बाद भी जब पुलिस एडवोकेट अकरम के बारे में कोई सुराग नहीं लगा पाई तो 7 फरवरी को फिरोजाबाद सदर तहसील के अधिवक्ताओं ने विरोध प्रदर्शन करते हुए वकील अकरम अंसारी की शीघ्र बरामदगी की मांग की. धीरेधीरे यह आग जनपद की तहसील शिकोहाबाद, जसराना, सिरसागंज के साथ ही आगरा के अधिवक्ताओं में भी फैल गई.

अकरम की बरामदगी न होने से परिजनों में दिनप्रतिदिन बेचैनी बढ़ रही थी. पिता आरिफ अंसारी और मां सरकरा बेगम सीने पर पत्थर रख कर बच्चों को तसल्ली दे रहे थे. अकरम की पत्नी रूबी उर्फ रुकैया अपने दोनों बच्चों के पूछने पर कहती कि पापा दिल्ली रिश्तेदारी में गए हैं, जल्दी आ जाएंगे. पुराने किडनैपरों की हुई तलाश उधर पुलिस ने 100 ऐसे बदमाशों की सूची बनाई जो अपहरण के मामलों में पिछले 5 सालों में जेल जा चुके थे. यह बदमाश आगरा, धालपुर, भरतपुर, फिरोजाबाद और इटावा के थे. इन पर काम करने के बाद 10 गिरोह चुने गए. इन के मोबाइल नंबर हासिल किए गए. 3 गिरोह पर पुलिस का शक था लेकिन तीनों ही उस समय मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं कर रहे थे.

इस पर पुलिस पूरी तरह अपने मुखबिरों पर आश्रित हो गई. एसएसपी बबलू कुमार और एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन प्रमोद लगातार पुलिस टीमों से संपर्क बनाए हुए थे. शासन से भी इस मामले में पुलिस से लगातार अपडेट लिया जा रहा था. पुलिस के आला अधिकारी भी पत्रकारों को कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थे. सिर्फ यही जवाब दिया जा रहा था कि जल्द ही कोई न कोई ठोस सुराग मिलने की उम्मीद है. अपहृत वकील अकरम के छोटे भाई असलम और मुकर्रम घटना के बाद से ही आगरा में डेरा डाले थे. जैसेजैसे एकएक कर दिन बीत रहे थे परिवार की दहशत बढ़ती जा रही थी.

उग्र हो गया आंदोलन उधर, अधिवक्ताओं का आंदोलन जोर पकड़ रहा था. आगरा व फिरोजाबाद जनपद के अधिवक्ताओं में अपहृत वकील के 12वें दिन भी बरामद न होने से आक्रोश बढ़ गया था. उन्होंने विरोध में हड़ताल शुरू कर दी थी. पुलिस दिनरात अपहृत वकील की तलाश में जुटी थी. आगरा में 24 फरवरी, 2020 को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ताजमहल देखने आने वाले थे. उन के आगमन से पूर्व तैयारियों का जायजा लेने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आगरा के दौरे पर आ रहे थे. पुलिस जानती थी कि अधिवक्ता मुख्यमंत्री से मिल कर इस मामले को जरूर उठाएंगे. इसलिए पुलिस के हाथपैर फूल रहे थे. इस बीच पुलिस टीमों ने बाह और धौलपुर के बीहड़ों में डेरा डाल रखा था.

उधर अपहृत वकील के भाई असलम के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं ने अलगअलग नंबरों व स्थानों से 4 बार फिरौती की काल कर के संपर्क किया. इस दौरान परिजन पुलिस के संपर्क में रहे. काल आने से पुलिस को बदमाशों की पहचान सुनिश्चित हो गई. लेकिन अपहृत की सकुशल बरामदगी को ले कर पुलिस फूंकफूंक कर कदम रख रही थी. बदमाशों ने जो 50 लाख फिरौती मांगी, उसे कम कर के वह 15 लाख पर आ गए. उन्होंने परिजनों से कह दिया कि इतनी भी रकम नहीं मिली तो वह अकरम को मार देंगे. अपहृत अकरम को सकुशल छुड़वाने के लिए पुलिस ने परिजनों के साथ मजबूत योजना बनाई. 16 फरवरी को अपहर्त्ताओं का फोन आने के बाद अकरम के परिजन बदमाशों के बताए गए स्थान आगरा में सिकंदरा स्थित गुरुद्वारे के पास पैसे ले कर पहुंच गए.

बदमाशों ने उन से पहचान के लिए अपनी गाड़ी पर झंडा लगाने को कहा था. भाई असलम अपने दोस्त के साथ किराए की गाड़ी पर झंडा लगा कर पहुंचा. तभी बदमाशों ने कहा कि बाड़ी कस्बा आ जाओ. वहां पहुंचे तो बदमाश लगातार काल कर के अलगअलग जगह बुलाते गए. करौली मार्ग पर आने के बाद उन्होंने कहा कि सिगरेट के 2 पैकेट ले कर आना. इस के बाद उन्होंने भरतपुर जनपद के गढ़ी भासला क्षेत्र के जंगल में स्थित भैरों बाबा के मंदिर पर रुपयों का बैग रखने को कहा. साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि यदि जरा सी भी चालाकी की या पुलिस को बताया तो अपने भाई को जिंदा नहीं देख सकोगे. वह लोग शाम 6 बजे बताए गए स्थान पर रुपयों से भरा बैग रख कर वापस आ गए. इस बीच पुलिस योजनाबद्ध तरीके से वहां मौजूद रही. बदमाशों ने परिजनों से सोमवार, 17 फरवरी को अधिवक्ता अकरम को गुरुद्वारा पर छोड़ने का वादा किया.

जंजीरों से बांध रखा था अकरम को फिरौती देने के बाद पुलिस टीम सक्रिय हो गई. पुलिस बैग उठाने वाले के पीछे लग गई. इतना ही नहीं, पुलिस ने कस्बा बाड़ी स्थित वह मकान भी पहचान लिया, जिस में अपहर्त्ता नोटों से भरा बैग ले कर गया था. मकान चिह्नित करने के बाद पुलिस ने रात लगभग 8 बजे उस मकान पर दबिश दे कर अपहृत अधिवक्ता अकरम को सकुशल बरामद कर लिया. अपहर्त्ताओं ने उन्हें जंजीरों से बांध कर रखा था. पुलिस ने मकान से 3 अपहर्त्ताओं 56 वर्षीय गैंग लीडर उग्रसैन निवासी कस्बा बाड़ी, धौलपुर, लाखन गुर्जर निवासी सूखे का पुरा, थाना कंचनपुरा, धौलपुर के अलावा सुरेंद्र गुर्जर निवासी कुआंखेड़ा, बिहारी का पुरा, थाना सदर, धौलपुर शामिल को हिरासत में ले लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने राकेश व उस के भाई मुकेश निवासी जमूहरा, थाना बाड़ी, धौलपुर के साथ उग्रसैन की पत्नी उर्मिला को भी गिरफ्तार कर लिया. राकेश व मुकेश दोनों उग्रसैन के साले हैं. फिरौती के लिए फोन लाखन करता था. लाखन पर 7-8 मुकदमे चल रहे हैं. उग्रसेन व सुरेंद्र गुर्जर पर भी कई मुकदमे हैं. इन में अपहरण व जानलेवा हमले शामिल हैं. सुरेंद्र गुर्जर पूर्व में राजस्थान के केशव और हनुमंत गिरोह में काम कर चुका है. उस के साथ उग्रसैन और लाखन भी थे. यह मध्य प्रदेश और आगरा में अपहरण कर फिरौती वसूल चुके हैं. गिरोह ने पहले आगरा के सदर क्षेत्र में दंत चिकित्सक का अपहरण कर मोटी फिरौती वसूली थी.

अधिवक्ता अकरम अंसारी की सकुशल बरामदगी की जानकारी जैसे ही उन के परिजनों को मिली तो पूरे परिवार की आंखें खुशी से छलछला उठीं. उन के आवास पर लोगों ने खुशी में आतिशबाजी की. पुलिस अधिकारी पूरे दिन अकरम से पूरे घटनाक्रम की जानकारी लेते रहे. 25 फरवरी को अकरम के घर आते ही मां ने उन्हें गले से लगा लिया. बच्चे भी उन से लिपट गए. अकरम ने बताया कि वह मौत के मुंह से निकल कर आए हैं. 26 फरवरी, 2020 को पुलिस लाइन में एडीजी अजय आनंद ने प्रैसवार्ता आयोजित कर इस सनसनीखेज अपहरण कांड का परदाफाश किया. उन्होंने बताया कि एसएसपी बबलू कुमार के निर्देशन में फूलप्रूफ औपरेशन चला कर पुलिसकर्मियों की 10 टीमें बनाई गई थीं.

जिस में सीओ (कोतवाली) चमन सिंह चावड़ा, सर्विलांस टीम प्रभारी नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर कमलेश सिंह, अरविंद कुमार, अनुज कुमार, अजय कौशल, राजकमल, बैजनाथ सिंह, उमेश त्रिपाठी, एसआई राजकुमार गिरि, कुलदीप दीक्षित अरुण कुमार बालियान, सुशील कुमार, हैड कांस्टेबल आदेश त्रिपाठी, कांस्टेबल अजीत, प्रशांत, करन, विवेक, राजकुमार, अरुण कुमार, आशुतोष त्रिपाठी, रविंद्र, प्रमेश आदि शामिल थे. पुलिस ने अधिवक्ता को सकुशल बरामद करने के साथ 5 अपहर्त्ताओं व एक महिला को गिरफ्तार कर फिरौती की रकम, जो 15 लाख बता कर केवल साढ़े 12 लाख बैग में रखी थी, भी बरामद कर ली. एडीजी ने बताया कि अपहृत को 2-3 दिन पहले बरामद कर सकते थे. लेकिन उन की सकुशल बरामदगी के लिए इंतजार करना पड़ा.

अलगअलग हुलिया बनाए पुलिस ने टीमों के साथ सीओ, एसपी, एसएसपी, तक ने बीहड़ में डेरा डाला. अपहर्त्ताओं की नजर से बचने के लिए पुलिसकर्मियों ने न सिर्फ अपना हुलिया बदला, बल्कि बकरी चराने से ले कर खेतों में मजदूर बन कर काम किया. पुलिस ने फिरौती के लिए फोन करने वाले की आवाज भी रिकौर्ड की. वह आवाज मुखबिरों को सुनाई गई. इस के बाद ही पुलिस को सुराग मिला. पुलिस ने 40 घंटे के औपरेशन के बाद अधिवक्ता अकरम अंसारी को मुक्त करा लिया. इस औपरेशन का नाम ‘अकरम मुक्ति’ रखा गया था. पुलिसकर्मी कोड वर्ड बांकेबिहारी और वंदेमातरम में एकदूसरे से बात करते थे.

बदमाशों ने फिरौती के लिए 4 बार फोन किया था. पहली काल 5 फरवरी को भरतपुर के रूपवास से की गई, इस के लिए सिम खेरागढ़ से ली गई थी. दूसरी काल 8 फरवरी को की गई, जबकि 12 व 15 फरवरी की काल कस्बा बाड़ी से की गई थीं. काल करने के लिए हर बार नया मोबाइल और नया सिम खरीदा गया था. इस के साथ ही हर बार अपहर्त्ता लोकेशन भी बदलते रहे थे. उन्होंने कहा कि पुलिस ने न सिर्फ अधिवक्ता अकरम अंसारी को सकुशल बरामद किया बल्कि 5 अपहर्त्ताओं और एक महिला को गिरफ्तार कर उन से फिरौती की वसूली गई रकम साढ़े 12 लाख भी बरामद कर ली. पुलिस ने बैग में रखी यह रकम 15 लाख बताई थी. डीजीपी ने टीम के इस कार्य की सराहना की. इस संबंध में अपहरण की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार थी—

राजस्थान के गुर्जर गैंग ने बीच आगरा शहर से अधिवक्ता अकरम अंसारी का अपहरण किया था. दरअसल 3 फरवरी, 2020 को अकरम को उन के साढ़ू ने फिरोजाबाद जाने के लिए एक आटो में बैठा दिया था. अकरम सिकंदरा स्थित आईएसबीटी पर उतरे लेकिन वहां फिरोजाबाद जाने के लिए कोई बस नहीं मिली. जब बस नहीं मिली तब अकरम दूसरे आटो से भगवान टाकीज पहुंच कर बस का इंतजार करने लगे. वहां पर आगरा आने व जाने वाली बसें रुकती हैं. शाम 7.20  बजे एक बोलेरो उन के पास आ कर रुकी और ड्राइवर ने पूछा, ‘‘कहां जाओगे?’’

अकरम ने फिरोजाबाद जाने की बात कही तो ड्राइवर ने कहा, ‘‘हां, फिरोजाबाद ही जा रहे हैं.’’ उस समय उस बोलेरो में चालक के अलावा 3 लोग और बैठे थे. उस गाड़ी में अकरम के बैठते ही ड्राइवर चलने लगा तो अकरम ने कहा कि और सवारियां ले लो तो चालक ने कहा कि आगे से ले लेंगे. 10-12 मिनट गाड़ी चलने के बाद अचानक बगल में यात्री के रूप में बैठे बदमाश ने अकरम को सीट के नीचे गिरा कर दबोच लिया और धमकी दी कि यदि चिल्लाया तो गोली मार देंगे. इस के साथ ही उन के ऊपर कपड़ा डाल दिया. बदमाश कह रहे थे यदि तू वीरेंद्र नहीं हुआ तो हम तुझे छोड़ देंगे. अपहर्त्ता ये बात इसलिए कह रहे थे ताकि वह शोर न मचाए. उन्होंने अकरम की आंखों पर पट्टी भी बांध दी.

गाड़ी चलती रही. रात 11 बजे अपहर्त्ता अधिवक्ता अकरम को एक सुनसान जगह पर ले गए. वहां एक घर में उन्हें रखा गया. यह घर धौलपुर के बाड़ी कस्बे में था. वहां 2-3 कमरे थे. पैरों में जंजीर बांध कर उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया. आंखों पर पट्टी बांधने के साथ ही अकरम के मुंह पर टेप भी लगा दिया. उन का मोबाइल उन लोगों ने गाड़ी में ही छीन लिया था. कमरे पर ही बदमाशों ने अकरम से उस के बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद दूसरे दिन फिरौती के लिए परिजनों को फोन किया था. कमरे में ही चटाई पर अकरम सोते थे. रात में सोने के लिए एक हलकी रजाई दी गई थी. 24 घंटे 2 युवक पहरेदारी पर रहते थे. रात में एक बदमाश भी पास में ही दूसरी चटाई पर सोता था. कई दिन बीत गए. बदमाश बीचबीच में आ कर उन्हें धमका जाते थे. कहते कि तेरे परिवार के लोग फिरौती की रकम नहीं दे पा रहे हैं, हम तुझे मार देंगे.

हालात देख कर बचना था मुश्किल वहां जिस तरह का माहौल चल रहा था इस से अकरम को लग रहा था कि वह अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएंगे. उन्हें डर था कि परिजन अपहर्त्ताओं की मांग पूरी नहीं कर पाएंगे. उन का अब घर जाना मुश्किल होगा. बदमाश खाने के लिए कभी रोटी सब्जी तो कभी रोटी दाल देते थे. अकरम रात को ही खाना खाते थे. 15 दिन तक अकरम को नहाने नहीं दिया गया. मकान में एक महिला और उस का पति था. मकान में आगे व पीछे दरवाजे थे. आगे के दरवाजे पर ताला लगा रहता था. अन्य लोग मकान के पीछे के दरवाजे से आतेजाते थे. अकरम ने बताया कि बदमाशों ने उन के साथ मारपीट नहीं की.

अकरम हर दिन यही दुआ करते थे कि पुलिस उन्हें कब छुड़ाएगी? दहशत की वजह से नींद भी नहीं आती थी. जैसेजैसे दिन निकलते जा रहे थे, उम्मीद भी कम होती जा रही थी. मगर, रविवार 23 फरवरी की रात को पुलिस आई और अकरम को मुक्त करा लिया. अपनी दास्ता बयां करतेकरते अकरम की आंखें भर आई थीं. पुलिस लाइन में अकरम के भाई मोउज्जम, असलम, मोहम्मद सोहेल, मुकर्रम और पिता आरिफ अंसारी आए थे. भाइयों ने अकरम को गले लगा लिया. परिवार से मिल कर अकरम की खुशी का ठिकाना नहीं था. पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता के दौरान अकरम ने पुलिस अधिकारियों को मिठाई खिलाई और उन को धन्यवाद दिया.

पुलिस ने बताया कि धौलपुर के बीहड़ में अपहर्त्ताओं के 25 गैंग सक्रिय हैं. यह गैंग शिकार को बीहड़ में पकड़ कर ले जाने के बाद फिरौती वसूलते हैं. पुलिस ने सौ से ज्यादा गैंग के बारे में पड़ताल की. इन में 25 गैंग के सक्रिय होने के बारे में पता चला. इन में गब्बर, केशव, रामविलास, भरत, धर्मेंद्र, लुक्का, मुकेश ठाकुर गैंग विशेष रूप से सक्रिय हैं. यह गैंग अलगअलग तरीके से फिरौती के लिए अपहरण की वारदात को अंजाम देते हैं. इन के खिलाफ उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अनेक मुकदमे दर्ज हैं.

अपहृत वकील को अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त कराने वाली पुलिस टीम को एडीजी अजय आनंद ने पुरस्कृत कर सम्मानित किया. पुलिस ने सारी काररवाई पूरी कर गिरफ्तार अपहर्त्ताओं को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

 

 

Uttar Pradesh Crime : शराब में जहरीला पदार्थ मिलाकर प्रेमी को मार डाला

Uttar Pradesh Crime : बेटी मानसी चौरसिया के कदम बहकने के बाद पिता रोहित चौरसिया को किसी भी तरह उस के कदमों को रोकना चाहिए था. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि वह बेटी के कहने पर बेटे के साथ मिल कर ऐसा  कुछ कर बैठा कि …

25 नवंबर, 2019 की बात है. उत्तर प्रदेश के गोंडा का रहने वाला रमेश गुप्ता घर में बिस्तर पर लेटा आराम कर रहा था. तभी अचानक उस के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठा कर काल रिसीव की, बात होने के बाद उस ने कपडे़ बदले और छोटे भाई सुरेश से यह कह कर चला गया कि मनोज के घर जा रहा है. अगर जरूरत हुई तो वह उन के घर पर रुक जाएगा. दरअसल, मनोज गुप्ता के ससुर बीमार थे, सुरेश उन की देखभाल के लिए उन के घर जाता रहता था. दोनों परिवारों के घ्निष्ठ संबंध थे. रमेश को गए काफी देर हो गई. जब वह नहीं लौटा तो सुरेश ने समझा कि वह मनोज के घर रुक गए होंगे. रमेश जब 26 नवंबर की सुबह तक भी नहीं लौटा तो सुरेश ने मनोज गुप्ता को फोन किया तो उन्होंने बताया कि रमेश कल रात को उन के यहां आया ही नहीं था.

यह जान कर सुरेश को चिंता हुई. रमेश जहांजहां जा सकता था, सुरेश ने उन सभी जगहों पर उस की खोज की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. 30 वर्षीय रमेश गुप्ता अपने परिवार के साथ जिला गोंडा के थाना कोतवाली क्षेत्र में स्थित विष्णुपुरी कालोनी में रहता था. जब सुरेश रिश्तेदारों, मित्रों और परिचितों से पूछपूछ कर परेशान हो गया तो उस ने 29 नवंबर को थाना कोतवाली जा कर भाई रमेश गुप्ता की गुमशुदगी दर्ज करा दी. कोतवाल आलोक राव ने सुरेश की तहरीर पर रमेश गुप्ता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने उस की तलाश के लिए आवश्यक काररवाई शुरू कर दी. गोंडा शहर के ही सिविल लाइंस क्षेत्र में अफीम कोठी मोहल्ले में एक खाली मैदान है, जिस में तमाम झाडि़यां थीं. इस खाली मैदान में 2 दिसंबर को कुछ लोग गए तो वहां बदबू के तेज भभके उठ रहे थे.

लोगों ने खोजबीन शुरू की तो वहां एक सूखे कुएं में क्षतविक्षत अवस्था में लाश पड़ी देखी. वह कुआं मिट्टी से आधा पट चुका था, इसलिए चित अवस्था में पड़ी उस लाश का चेहरा स्पष्ट दिख रहा था. उन लोगों ने वह लाश पहचान ली. वह लाश विष्णुपुरी कालोनी के रहने वाले रमेश गुप्ता की थी. रमेश के मकान से उस जगह की दूरी महज 200 मीटर थी. उन में से ही एक आदमी ने जा कर रमेश के भाई सुरेश गुप्ता को रमेश की लाश मिलने की सूचना दे दी. सुरेश तुरंत मौके पर पहुंचा तो उस ने कुएं में पड़ी भाई की लाश पहचान ली. सुरेश ने कोतवाल आलोक राव को भाई की लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर आलोक राव, एसएसआई राजेश मिश्रा आदि के साथ मौके पर पहुंच गए. मौके पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. इंसपेक्टर राव ने लाश कुएं से निकलवाई. लाश काफी सड़गल चुकी थी, इसलिए लाश का निरीक्षण करने पर मौत की वजह पता नहीं चल रही थी. इसी बीच एसपी राजकरन नैयर और एएसपी महेंद्र कुमार भी मौके पर पहुंच गए. लाश का मुआयना करने के बाद उन्होंने रमेश के भाई सुरेश से पूछताछ की. सुरेश ने भाई की हत्या में उस की प्रेमिका मानसी का हाथ होने का शक जताया. वैसे भी अफीम कोठी मोहल्ले में ही 100 मीटर की दूरी पर मानसी चौरसिया का मकान था.

सुरेश से पूछताछ के बाद पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. फिर सुरेश की तहरीर पर मानसी चौरसिया के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया. इंसपेक्टर राव ने मृतक रमेश गुप्ता के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो पता चला कि 25 नवंबर की रात को उस के मोबाइल पर जो काल आई थी, वह मानसी चौरसिया के फोन नंबर से ही की गई थी. अब मानसी से पूछताछ करनी जरूरी थी. लिहाजा 3 दिसंबर को इंसपेक्टर आलोक राव ओर एसएसआई राजेश मिश्रा ने महिला कांस्टेबल की मदद से मानसी को घर से पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. कोतवाली ला कर जब मानसी से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने बताया कि रमेश की हत्या करने में उस के दूसरे प्रेमी अंकित सिंह, पिता रोहित चौरसिया और भाई दीपू चौरसिया ने साथ दिया था. पूछताछ के बाद मानसी ने रमेश की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा की नगर कोतवाली अंतर्गत रामचंद्र गुप्ता अपने परिवार के साथ रहते थे. रामचंद्र के परिवार में उन की पत्नी राजकुमारी और 2 बेटियों के अलावा 3 बेटे दिनेश, रमेश और सुरेश थे. रामचंद्र प्राइवेट नौकरी करते थे. उन्होंने दिनेश का विवाह कर दिया था. दिनेश को विवाह के कुछ समय बाद ही चालचलन ठीक न होने पर रामचंद्र ने उसे घर से निकाल दिया. यह लगभग 8 साल पहले की बात है. इस समय दिनेश परिवार के साथ बस्ती जिले में रहता है. रामचंद्र ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया था. रमेश और सुरेश अभी अविवाहित थे. रमेश ने बीए तक पढ़ाई की थी. रामचंद्र के कूल्हे में रौड पड़ी थी. उस रौड की वजह से उन्हें इंफेक्शन हो गया था, जो कि किडनी और उस के आसपास फैल गया था. वह काफी समय से बीमार थे.

इस की वजह से उन की देखभाल बड़ा बेटा रमेश किया करता था. देखभाल करने के कारण रमेश कोई काम नहीं करता था. घर पर ही रहता था. जबकि सुरेश एक बैंक में मैनेजर के रहमोकरम पर काम करने लगा था. विष्णुपुरी कालोनी से सटा अफीम कोठी मोहल्ला था. इसी मोहल्ले में रोहित चौरसिया परिवार के साथ रहता था. रोहित रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की पत्नी जगदेवी का देहांत हो चुका था. रोहित के 2 बेटे दीपू चौरसिया और सूरज चौरसिया और एकलौती बेटी मानसी थी. दीपक का रीमा नाम की युवती से विवाह हो चुका था. सूरज अविवाहित था और मुंबई में रहता था. मानसी ने इंटरमीडिएट तक शिक्षा ग्रहण की थी, इस के बाद उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो वह घर के रोजमर्रा के काम करने लगी.

रमेश और मानसी के मकान के बीच महज 200 मीटर की दूरी थी. दोनों एकदूसरे से परिचित थे. मानसी काफी महत्त्वाकांक्षी थी. छरहरी काया वाली मानसी को लड़कों से दोस्ती करना बहुत अच्छा लगता था. उस की वजह थी कि उस के नाजनखरे उठाने में लड़कों की लाइन लगी रहती थी. उन के साथ घूमने, मौजमस्ती के उसे खूब मौके मिलते थे. रमेश मोहल्ले में ही घूमता रहता था, इसलिए वह मानसी के चालचलन से बखूबी वाकिफ था. उस ने भी मानसी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो मानसी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. दोनों की दोस्ती धीरेधीरे रंग दिखाने लगी. वैसे भी दोस्ती प्यार की पहली सीढ़ी होती है. रमेश और मानसी दोनों यह सीढ़ी चढ़ चुके थे.

दोनों साथ में काफी समय बिताने लगे. उन के बीच मोबाइल पर भी बातें होती रहती थीं. जैसेजैसे समय गुजरने लगा, दोनों को अहसास होने लगा कि दोनों दोस्ती की सीमाओं को पार कर उस से भी आगे निकल चुके हैं. उन के दिलों में प्यार की उमंगें हिलारें मार रही थीं. दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. यह भी तय कर लिया कि जीवन भर दोनों पतिपत्नी के रूप में साथसाथ रहेंगे. दोनों ने विवाह करने की बात अपने घरों में की तो रमेश के घर वालों को तो शादी से कोई ऐतराज नहीं था, लेकिन मानसी के पिता रोहित और भाई दीपू ने मना कर दिया. उन्होंने मानसी से कहा कि रमेश एक तो उन की जातिबिरादरी का नहीं और दूसरे वह निठल्ला है. कुछ कामधाम नहीं करता. ऐसे में शादी के बाद वह उसे कैसे रख पाएगा.

बाप की नसीहत बेटी के दिमाग में घर कर गई. मानसी ने अभी तक इस बारे में सोचा ही नहीं था. वह तो प्यार में इतनी डूब गई थी कि और कुछ सोचसमझ ही नहीं पा रही थी. बाप की नसीहत ने जैसे उस की आंखें खोल दी थीं. अब उस ने रमेश से दूरी बनानी शुरू कर दी. लेकिन रमेश था कि उस का पीछा छोड़ने को तैयार ही नहीं था. इसी बीच मानसी की मुलाकात कुछ दूर जानकीनगर मोहल्ला निवासी अंकित से हो गई. अंकित अच्छा कमाता था. रमेश के मुकाबले हर लिहाज से अंकित मानसी को अच्छा लगा था. दोनों की मुलाकातें दिनोंदिन बढ़ने लगीं. दोनों के बीच की दूरियां कम होती गईं. मानसी अंकित के साथ बहुत खुश थी. रमेश ने मानसी चौरसिया को अपने से दूरी बनाते देखा तो उसे अच्छा नहीं लगा. वह ऐसा क्यों कर रही है, यह जानने की उस ने कोशिश की तो उस के सामने हकीकत आते देर नहीं लगी.

रमेश को लगा कि दूसरा प्रेमी मिलते ही मानसी ने उस से किनारा कर लिया है. यह बात रमेश के दिमाग में बारबार कौंध रही थी. वह इसे बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. वह मानसी को हर हाल में पाना चाहता था. एक दिन रमेश ने मानसी से मिल कर उसे समझाया लेकिन मानसी नहीं मानी. मानसी ने उसे बताया कि परिवार वाले उस से विवाह करने को तैयार नहीं हैं और वह अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती. इस पर रमेश ने सीधे कहा कि ऐसे में तुम्हें अपने घर वालों को मनाना चाहिए. लेकिन तुम ने तो दूसरा प्रेमी ही ढूंढ लिया. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.

मानसी को न मानते देख रमेश ने उसे धमकाया कि अगर उस ने उसे छोड़ कर किसी दूसरे को चुना तो उस के जो अश्लील फोटो उस के पास हैं, वह उन्हें वायरल कर देगा. रमेश के इतना कहने पर मानसी डर गई लेकिन उस ने हिम्मत कर के कह दिया कि वह अब उस की नहीं हो सकती. इस के बाद मानसी के दिमाग में यही चलता रहता था कि कहीं रमेश उस के अश्लील फोटो को वायरल न कर दे. वह इसी डर में जी रही थी. ऐसे में उस ने रमेश को सबक सिखाने का फैसला कर लिया. उस ने अपने दूसरी प्रेमी अंकित से कहा कि कुछ दिनों पहले रमेश ने धोखे से उस के कुछ अश्लील फोटो खींच लिए थे, उन के बल पर वह उसे ब्लैकमेल कर फोटो वायरल करने की धमकी दे रहा है.

मानसी ने अंकित से कहा कि उसे रोकने का एक ही तरीका है कि उसे मार दिया जाए. अंकित इस काम में उस का साथ देने को तैयार हो गया. उसे कहां और कैसे मारना है, इस पर दोनों ने विचार कर लिया. इस के बाद दोनों को लगा कि वे दोनों इस काम को ठीक से अंजाम नहीं दे पाएंगे. इस पर मानसी ने रमेश को ठिकाने लगाने के लिए अपने पिता और भाई को राजी करने का उपाय सोचा. योजनानुसार मानसी ने रोते हुए अपने पिता रोहित चौरसिया और भाई दीपू को बताया कि रमेश के पास उस के कुछ अश्लील फोटो हैं. उन को वायरल कर के वह उस की जिंदगी बरबाद करना चाहता है. यह सुन कर दोनों को मानसी और रमेश पर गुस्सा आया. पर पहले तो उन्हें रमेश को देखना था, क्योंकि उन के लिए मानसी की इज्जत यानी परिवार की इज्जत पहले थी. इज्जत बचाने की खातिर उस के पिता व भाई रमेश को सबक सिखाने को तैयार हो गए.

तब मानसी ने दोनों को बता दिया था कि इस सब में उस का एक दोस्त अंकित भी मदद करने को तैयार है. इस के बाद एक दिन मानसी ने अंकित को घर बुला लिया. फिर सब ने मिल कर रमेश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. 25 नवंबर को मानसी के भाई दीपू की पत्नी रीमा अपने मायके गई हुई थी. योजनानुसार रात साढ़े 10 बजे मानसी ने फोन कर के रमेश को अपने घर बुलाया. रमेश अपने भाई सुरेश से घर के सामने रहने वाले मनोज गुप्ता के यहां जाने की बात कह कर निकला और सीधे मानसी के घर पहुंच गया.  वहां मानसी, उस के पिता रोहित, भाई दीपू के अलावा अंकित भी मौजूद था. रमेश के पहुंचने पर सब ने पहले उसे शराब पिलाई. शराब में पहले से ही जहरीला पदार्थ मिला दिया गया था. शराब में मिले जहर ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो रमेश की हालत बिगड़ने लगी. वह उठ कर जाने की कोशिश करने लगा तो सब ने मिल कर उसे दबोच लिया और गला दबा कर उसे मार डाला.

रमेश को मौत की नींद सुलाने के बाद रात एक बजे उस की लाश अपने घर के पीछे झाडि़यों से पटे खाली मैदान में बने सूखे कुएं में डाल दी. इस के बाद अंकित अपने घर चला गया. लेकिन उन का गुनाह छिप न सका. मानसी चौरसिया ने सभी के नाम खोले तो इंसपेक्टर आलोक राव ने अंकित, रोहित चौरसिया और दीपू चौरसिया की गिरफ्तारी के लिए दबिश देनी शुरू कर दी. मानसी के हिरासत में लिए जाने के बाद ही तीनों अपने घरों से फरार हो गए थे. पुलिस के बढ़ते दबाव के चलते अंकित ने 6 दिसंबर, 2019 को न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. 8 दिसंबर को इंसपेक्टर राव ने दीपू चौरसिया को गिरफ्तार कर लिया. आवश्यक लिखापढ़ी के बाद अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक रोहित चौरसिया फरार चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. मनोज गुप्ता परिवर्तित नाम है.