Delhi News : बच्चों की हत्या कर पत्नी व प्रेमिका संग इमारत से कूदा कपड़ा व्यापारी

Delhi News : गुलशन वासुदेवा एक अच्छे व्यवसाई थे. दिल्ली की गांधीनगर मार्केट में उन का जींस का कारोबार था. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ, जो उन्हें अपने 2 बच्चों की हत्या करने के बाद अपनी पत्नी और प्रेमिका संजना के साथ 8वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या करनी पड़ी…

गुलशन वासुदेवा उर्फ हरीश यूं तो मूलरूप से पूर्वी दिल्ली की झिलमिल कालोनी के रहने वाले थे. लेकिन अक्तूबर 2019 से वे इंदिरापुरम की कृष्णा अपरा सफायर सोसायटी की आठवीं मंजिल पर स्थित फ्लैट संख्या ए-806 में किराए पर आ कर रहने लगे थे. उन के साथ उन का बेटा रितिक (13), बेटी कृतिका (18), पत्नी परमीना (43) और उन की मैनेजर संजना (26) भी साथ रहती थी. गुलशन का दिल्ली के गांधीनगर की रेडीमेड कपड़ों की मार्केट में जींस का कारोबार था. कृतिका और रितिक दिल्ली के श्रेष्ठ विहार स्थित डीएवी पब्लिक स्कूल में क्रमश: 12वीं और 9वीं कक्षा में पढते थे. कृतिका की फैशन में बहुत रुचि थी. इसलिए वह 12वीं के बाद फैशन इंस्टीट्यूट में एडमिशन लेने की की भी तैयारी कर रही थी.

उस का सपना एक कामयाब फैशन डिजाइनर बनने का था. इस के लिए वह काफी मेहनत भी करती थी. गुलशन को भी अपने दोनों बच्चोें से बेहद प्यार था. इसलिए वह उन की हर ख्वाहिश पूरी करते थे. जींस के कारोबार के साथ गुलशन के कई और भी कारोबार थे. उन्होंने प्रौपर्टी के काम में काफी पैसा निवेश किया हुआ था. कोलकाता में एक बड़े बिजनेसमैन के साथ भी उन्होंने लाखों का निवेश किया हुआ था. लेकिन पिछले कुछ समय से उन का करीब 2 करोड़ से अधिक का ये निवेश बुरी तरह फंस गया था. देश में जब से नोटबंदी हुई थी उन का पैसा वापस मिलना बंद हो गया था. लेकिन इस के बावजूद गुलशन के परिवार में सब एकदूसरे से बहुत ज्यादा प्यार करते थे. गुलशन को जब भी फुरसत मिलती तो परिवार को ले कर अकसर घूमने निकल जाते थे.

जिस अपरा सफायर सोसाइटी में गुलशन 2 महीने पहले रहने के लिए आए थे, उस से पहले वह करीब 4 सालों तक पास की ही एटीएस सोसायटी में रहे थे. उस वक्त उन के साथ में 80 वर्षीय पिता नारायण दास वासुदेवा भी रहते थे. गुलशन की पत्नी परमीना बहुत समझदार महिला थीं. वह अपने बीमार ससुर की बहुत सेवा करती थीं. नारायण दास अपने बेटे से ज्यादा बहू परमीना को मानते थे. लेकिन अचानक खराब होती आर्थिक परिस्थितियों के कारण गुलशन ने जब मकान बदला तो उन्होंने पिता को बड़े भाई सतपाल के घर रहने के लिए छोड़ दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उन की आर्थिक बदहाली से पिता की सेहत पर बुरा असर पड़े.

गुलशन वासुदेवा 3 भाई व एक बहन में सब से छोटे थे. सब से बड़ी बहन विधवा है और अपने बच्चों के साथ रहती है. जबकि उन के दोनों बड़े भाई देवेंद्र और सतपाल भी विवाहित हैं. दोनों भाई अपने परिवार के साथ दिल्ली की झिलमिल कालोनी में ही रहते हैं. उन का भी गांधीनगर में रेडीमेड गारमेंट का कारोबार है. पिता नारायण दास रेलवे से सेवानिवृत्त  हुए थे. चूंकि पिता की देखभाल गुलशन ही करता था, लिहाजा पिता अपनी सारी पेंशन विधवा बेटी को भेज देते थे. हालांकि उन के दोनों बड़े भाई काफी समृद्ध हैं. इधर कई सालों से कारोबार में घाटे के बाद दोनों भाइयों ने शुरूशुरू में तो गुलशन व उस के परिवार की काफी मदद की, लेकिन बाद में अपनी खुद की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्होंने भी सहयोग देना बंद कर दिया. यही कारण रहा कि परिवार के लोगों से गुलशन की दूरी बनने लगी थी.

एटीएस सोसाइटी में गुलशन के पास 2 बैडरूम वाला फ्लैट था, जबकि कृष्णा अपरा सोसाइटी में उन्होंने 3 बैडरूम का फ्लैट लिया था. इसी कारण उन की मैनेजर संजना भी उन के साथ आ कर रहने लगी थी. 3 दिसंबर, 2019 की सुबह के करीब पौने 5 बजे का वक्त था. कृष्णा अपरा सोसाइटी के गेट पर तैनात तीनों सुरक्षा गार्ड कुर्सियों पर बैठे अलाव से हाथ सेंकते हुए ठंड दूर करने का प्रयास कर रहे थे. अचानक उन्हें सोसाइटी के टावर-ए के पास से धड़ाम की ऐसी आवाज आई जैसे ऊपर की किसी मंजिल से कोई भारी चीज सड़क पर आ कर गिरी हो.

एक सिक्योरिटी गार्ड वहीं रुक गया, बाकी 2 गार्ड देखने के लिए उस तरफ चले गए, जहां से आवाज आई थी. दोनों गार्ड जैसे ही टावर-ए के पास पहुंचे तो बिजली की रोशनी में उन्होंने देखा कि सड़क पर 3 लोग खून से लथपथ पडे़ हैं. उन में एक पुरुष व 2 महिलाएं थीं. ऐसा लगता था जैसे ऊपर की मंजिल के किसी फ्लैट से या तो वे गिर पड़े थे या किसी ने उन्हें धक्का दिया था. गिरने के कारण आसपास काफी खून फैल चुका था. एक पुरुष व एक महिला के शरीर लगभग निर्जीव हो चुके थे, जबकि एक महिला के मुंह से दर्दभरी आह सुनाई पड़ रही थी और शरीर में हल्की हरकत भी थी. दोनों गार्डों ने तत्काल आवाज दे कर तीसरे गार्ड को भी अपने पास बुला लिया.

तीनों गार्डों ने सड़क पर खून से लथपथ तीनों लोगों को जब गौर से देखा तो वे देखते ही पहचान गए कि खून से लथपथ पडे़ वे तीनों लोग गुलशन वासुदेवा, उन की पत्नी परमीना और उन के साथ रहने वाली संजना थी. गार्डों ने दी सूचना सोसाइटी के तीनों गार्डों ने तत्काल सोसाइटी के प्रेसीडेंट व सेक्रेटरी को सूचना दी तो वे भी मौके पर आ गए. चंद मिनटों में ही सोसाइटी के अन्य लोग भी इस घटना की एकदूसरे से मिली जानकारी पा कर वहां पहुंच गए थे. दयानंद नाम के एक गार्ड ने तब तक पुलिस कंट्रोल रूम को इस हादसे की जानकारी दे दी थी.

पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना उसी समय स्थानीय इंदिरापुरम थाने को दी गई. एसएचओ इंदिरापुरम इंसपेक्टर महेंद्र सिंह पूरी रात गश्त के बाद थाने में अपने कार्यालय में आ कर बैठे थे और थकान उतारने के लिए चाय की चुस्की ले ही रहे थे कि उसी वक्त मुंशी ने आ कर उन्हें कंट्रोलरूम से अपरा सोसाइटी में हुई घटना के बारे में बताया. खबर ऐसी थी जिसे सुन कर चाय का घूंट इंसपेक्टर महेंद्र सिंह के गले से नीचे उतरना भारी हो गया उन्होंने एसआई शिशुपाल सिंह, धीरेंद्र सिंह, हैडकांस्टेबल धर्मेंद्र कुमार, कांस्टेबल विकासवीर, श्यामलाल को साथ लिया और अगले 10 मिनट के भीतर कृष्णा अपरा सोसाइटी पुहंच गए.

पुलिस के वहां पहुंचने से पहले ही सोसाइटी के लोगों ने समीप के शांति गोपाल अस्पताल में फोन कर के एंबुलेंस बुलवा ली थी. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह जब घटनास्थल पर पहुंचे तो खून से लथपथ तीनों लोगों की नब्ज टटोलने के बाद उन के सामने ये बात साफ हो चुकी थी कि गुलशन सचदेवा और उन की पत्नी परमीना दम तोड़ चुके हैं. जबकि उन के परिवार की एक दूसरी महिला सदस्य संजना की सांसें चल रही थीं. लिहाजा एंबुलेंस आने के बाद पुलिस ने आननफानन में उसे शांतिगोपाल अस्पताल भिजवा दिया. साथ में एसआई शिशुपाल सिंह भी अस्पताल पहुंचे थे. इधर, घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने का काम शुरू कर दिया. मौके पर मौजूद लोगों से पूछताछ करने पर पता चला कि छत से गिरने वाले गुलशन वासुदेवा और उन के घर के तीनों सदस्य थे.

सोसाइटी के लोगों से पूछताछ करने पर यह भी पता चल गया कि गुलशन टावर-ए की 8वीं मंजिल के फ्लैट संख्या 806 में अपने परिवार के साथ रहते हैं. सोसाइटी के पदाधिकारियों और व अपने सहयोगियों को ले कर इंसपेक्टर महेंद्र सिंह जब 8वीं मंजिल के उस फ्लैट पर पहुंचे तो वहां दरवाजा भीतर से लौक मिला. गार्डों की मदद से दरवाजे की कुंडी को तोड़ क र पुलिस ने भीतर प्रवेश किया. 2 लाशें और मिलीं कमरे में ड्राइंगरूम की दीवारों पर कई जगह परिवार की तसवीरें फ्रेम में लगी हुई थीं, जिस में परिवार के सदस्यों की बचपन से लेकर अभी तक की लगभग सभी तसवीरें थीं. पुलिस ने एकएक कर सभी कमरों का निरीक्षण किया, जिस के बाद पता चला कि घर के सिर्फ 3 सदस्यों की ही मौत नहीं हुई थी, बल्कि घर के भीतर भी 2 लाशें और पड़ी थीं, जिस में एक लाश लड़की व दूसरी लड़के की थी.

सोसाइटी के लोगों ने बताया कि वे गुलशन के बच्चे कृतिका व रितिक थे. उन की हत्या गला रेत कर की गई थी. उसी कमरे में एक खरगोश का शव भी मिला, ऐसा लग रहा था कि पालतू खरगोश को गरदन मरोड़ कर मारा गया था. इस बीच भोर का उजाला पूरी तरह अपने पांव पसार चुका था. 5 लोगों की मौत की खबर पूरी सोसाइटी में जंगल की आग की तरह फैल गई. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने अपने क्षेत्र के एएसपी केशव कुमार के साथ एसपी (सिटी) मनीष मिश्रा और एसएसपी सुधीर कुमार सिंह को फोन कर के पूरे हादसे की इत्तिला दे दी. मामला इतना बड़ा था कि सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद जिले के सभी आला अधिकारी मौके पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम के अलावा मीडिया के लोग भी जानकारी पा कर घटनास्थल पर पहुंच चुके थे. एक तरह से कृष्णा अपरा सोसाइटी के भीतरबाहर लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई. हर कोई माजरा जानना चाहता था कि इतने बड़े हादसे की वजह आखिर क्या थी.

पुलिस के तमाम आला अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल के अलगअलग जगह से फोटो और फिंगरप्रिंट एकत्र किए. उन तमाम सबूतों को अपने कब्जे में लिया, जिस से वारदात का खुलासा करने में मदद मिल सकती थी. इस बीच वारदात की सूचना गुलशन के कुछ नजदीकी मित्रों और झिलमिल कालोनी में रहने वाले उस के परिजनों के पास भी पहुंच गई थी. सुबह होतेहोते वे भी घटनास्थल पर पहुंच गए. सभी से इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने पूछताछ की, उन के बयान दर्ज किए. करीब 11 बजतेबजते पुलिस ने पांचों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए.

इस दौरान पुलिस की जांच में पाया गया कि गुलशन वासुदेवा ने बच्चों की हत्या करने के बाद खुद भी फांसी का फंदा लगा कर आत्महत्या करने का प्रयास किया था. क्योंकि पुलिस को एक कमरे में पंखे से लगा एक फंदा भी मिला. ऐसा प्रतीत होता था शायद एक कमरे में ही 3 फंदे लगाने की जगह न होने पर उस ने आत्महत्या करने का तरीका बदला. गुलशन उस की पत्नी व साथ में ही खुदकुशी करने वाली संजना ने बालकनी में लाइन से कुर्सियां लगाईं और फिर तीनों एक साथ नीचे कूद गए. कूदते समय उस कमरे को चुना, जिस की बालकनी में जाली नहीं लगी थी. ड्राइंगरूम वाले कमरे में दीवार पर एक बड़ा प्रोजेक्टर लगाया था. बड़ा होम थिएटर भी लगा था, जिस से लग रहा था कि पूरा परिवार डिजिटल उपकरणों का काफी प्रयोग करता था.

पुलिस को एक कमरे से आला कत्ल चाकू व रस्सी बरामद हुई. संभवत: उसी से दोनों बच्चों की गला रेत कर हत्या की गई थी. कमरे से 5-5 सौ के 18 नोट और 100 के नोट भी मिले. जो कुल रकम करीब 10 हजार थी. कालोनी के लोगों से पूछताछ में पता चला कि जिस रात पूरे परिवार ने बच्चों की हत्या कर खुदकुशी की, उसी दिन उन्होंने गार्ड, मेड व सोसायटी के अन्य कर्मचारियों को जैकेट व कंबल बांटे. शाम को घर में बने मंदिर में परिवार के साथ पूजाअर्चना की थी. पूरी घटना का विश्लेषण करने के बाद एक बात स्पष्ट हो रही थी कि गुलशन नहीं चाहता था कि परिवार का कोई भी सदस्य जिंदा बचे. इस के लिए शायद उस ने मौत को गले लगाने के कई तरीके सोचे थे.

रसोई में मिली सल्फास और 3 गिलास, बाथरूम में मिली सिरींज तथा बैडरूम में मिले चाकू व रस्सी इस बात की गवाही दे रहे थे कि गुलशन हर हाल में बच्चों की हत्या करना चाहता था, ताकि उस के मरने के बाद किसी को कोई तकलीफ भरी जिंदगी न गुजारनी पड़े. ऐसा लगता था कि गुलशन ने पहले बेटाबेटी को खाने में नशीला पदार्थ मिला कर बेहोश किया, फिर सोने के बाद उन का पहले गला दबाया फिर गला काट कर हत्या कर दी. जिस के बाद गुलशन ने परमीना और संजना के साथ 8वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली.

वारदात की पहले ही कर ली थी प्लानिंग पूरे हालात को देखने के बाद ये भी स्पष्ट था कि गुलशन व दोनों महिलाओं ने सहमति से कूदने का फैसला लिया था. हो सकता है कि दोनों बच्चों को उन की मौत के बारे में पता न चले, इसलिए दोनों को पहले भारी नशे की डोज दी गई हो. अगर नशे की डोज नहीं दी होती और सहमति नहीं होती तो मारने के दौरान बच्चों के चीखनेचिल्लाने की आवाज जरूर आती. कालोनी के लोगों से पूछताछ में यह भी पता चला कि गुलशन ने काफी दिन पहले ही शायद इस हादसे को अंजाम देने का मन बना लिया था, क्योंकि उस के घर पर एक मेड कुंती काम करती थी. कुंती की मौसी गीता ने पुलिस को बताया कि गुलशन के घर पर कुंती ने एक महीने काम किया था. 27 नवंबर को गुलशन ने उस का हिसाब कर दिया. इस के बाद कहा कि वह कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं.

एक सब से अहम बात यह थी कि ड्राइंगरूम में कमरे की दीवार पर पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला, जिस में गुलशन ने लिखा था कि उन सभी की मौत के लिए उस का साढ़ू राकेश वर्मा जिम्मेदार है. साथ ही उस ने अपनी अंतिम इच्छाभी दीवार पर लिखी थी कि उन सभी के शव का एक साथ एक ही जगह पर अंतिम संस्कार किया जाए. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने उच्चाधिकारियों से मशविरा करने के बाद उसी दिन इंदिरापुरम थाने में अपराध भादंसं की धारा 302 का मुकदमा पंजीकृत कर लिया. चूंकि जांच में सामने आ चुका था कि गुलशन के साढ़ू राकेश वर्मा ने उस के लाखों रुपए हड़प लिए थे और वापस नहीं किए थे, जिस के कारण आर्थिक तंगी और अवसाद में आ कर गुलशन को बच्चों की हत्या कर मौत को गले लगाना पड़ा.

जांच अधिकारी महेंद्र सिंह ने इस मामले में धारा 306 भी जोड़ दी. मौके से बरामद हुए सीरींज, सल्फास और तीनों गिलासों से बरामद हुए पेय पदार्थ, चाकू व रस्सी को जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया गया. गुलशन के परिजनों से बातचीत करने के बाद पुलिस को राकेश वर्मा से गुलशन के सारे लेनदेन की बात भी पता चल चुकी थी. मामला बड़ा होने से पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल ने किया. जिलाधिकारी से रात में पोस्टमार्टम की अनुमति मांगी गई. अगली सुबह तक सभी का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हुआ खुलासा इधर पांचों शवों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को प्राप्त हो गई. सामने आया कि कृतिका की मौत फंदे पर लटकाने के कारण हुई थी. जबकि बेटे रितिक की मौत चाकू से गला रेतने के कारण हुई. गुलशन, परमीना और संजना की मौत हैमरेज से हुई. यानी गुलशन ने पहले बेटी कृतिका को फंदे पर लटकाया, उस के बाद उस का गला रेता था. यानी उस का गला रेतने से पहले ही उस की मौत हो चुकी थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक गुलशन के शरीर पर 4 जगहों पर चोट आईं, जबकि परमीना और संजना के शरीर पर करीब 6-6 जगहों पर चोट आई थीं. मृतकों ने विषैला पदार्थ खाया था या नहीं, इस का खुलासा विसरा की उस रिपोर्ट के बाद ही पता चल सकेगा, जिसे पुलिस ने फोरैंसिक जांच के लिए भेजा है. इस के अलावा यह बात भी साफ हो गई कि सभी लोगों की मौत 4 घंटे के अंदर हुई थी. इसी बीच पुलिस ने अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद पांचों शव गुलशन के परिजनों को सौंप दिए. चूंकि गुलशन, उस की पत्नी परमीना व दोनों बच्चे एक ही परिवार के सदस्य थे, इसलिए परिजनों ने उन के शव की सुपुर्दगी ले कर उसी दिन हिंडन घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया. जबकि संजना जो कि गुलशन की मैनेजर थी, उस का शव लेने के लिए उस की मां नूरजहां व भाई फिरोज वहां पहुंच गए थे, इसलिए वे उस का शव ले कर गए और उसे सुपुर्दे खाक कर दिया गया.

दूसरे धर्म की थी संजना 5 लोगों की मौत के मामले में सब से अधिक चर्चा संजना पर छिड़ी हुई थी. दूसरे समुदाय की संजना गुलशन वासुदेवा परिवार के साथ जान देने को कैसे तैयार हो गई, इस पर चर्चाओं में सवाल उठाए जाने लगे. सवाल था कि संजना के साथ गुलशन के रिश्ते का नाम क्या था? हालांकि संजना की मां और भाई ने पुलिस को जो बयान दिए उस से स्थिति काफी हद तक साफ हो गई. यह बात साफ हो गई कि दिल्ली के वेलकम इलाके की रहने वाली संजना करीब 7 सालों से गुलशन के साथ थी. शुरुआत में तो वह फैक्ट्री में काम देखती थी लेकिन धीरेधीरे उस का गुलशन के घर में आनाजाना शुरू हो गया. डेढ़ महीने पहले गुलशन परिवार के साथ एटीएस सोसायटी से कृष्णा अपरा सफायर सोसायटी में शिफ्ट हुए. तब से संजना उन के साथ ही रह रही थी. लेकिन संजना का गुलशन से क्या रिश्ता था, यह किसी को नहीं पता.

संजना मुसलिम समुदाय से थी. उस का असली नाम गुलशन था. 3 साल पहले उस ने अपना नाम संजना कर लिया था. 26 वर्षीय संजना करीब 7 साल से गुलशन वासुदेवा की फैक्ट्री में बतौर सुपरवाइजर काम कर रही थी. इसी दौरान दोनों एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. दोनों के बीच बेहद करीबी रिश्ते कायम हो गए. करीब डेढ़ साल पहले संजना घर छोड़ कर गई तो यह कह कर गई थी कि वह गुलशन वासुदेवा से शादी करने जा रही है. उस के कुछ दिन बाद वह घर आई और अपने कपड़े व अन्य सामान ले कर चली गई. संजना अब गुलशन के कारोबार में पूरी तरह से उस की मदद करने लगी थी.

परमीना के परिजनों ने पुलिस को बताया कि गुलशन वासुदेवा और संजना पहले कुछ समय तक लिवइन रिलेशन में रहे. उन्होंने शायद चोरी से शादी भी कर ली थी, इस का पता परमीना को भी हो गया था. पतिपत्नी के बीच जब इस मुद्दे पर बात हुई तो परमीना ने पति की खुशी के लिए संजना को पत्नी के तौर पर साथ में रहने की अनुमति दे दी थी. इसलिए जब गुलशन अपरा सोसाइटी में आए तो उन्होंने संजना से किराए का फ्लैट छुड़वा दिया और अपने परिवार के साथ फ्लैट में ले आए. साढ़ू पर लगाया आरोप इस बात की पुष्टि किसी ने नहीं की कि संजना वाकई गुलशन की पत्नी थी या प्रेमिका. लेकिन यह बात स्पष्ट थी कि पूरे परिवार में संजना व गुलशन के रिश्ते को मान्यता मिली हुई थी. इस से भी बड़ी बात यह थी कि संजना पूरे परिवार से इस तरह जुड़ी थी कि गुलशन के साथ उस ने भी खुशीखुशी मौत को गले लगाया था.

लेकिन सब से बड़ी बात यह थी कि आखिर गुलशन ने इतना बड़ा कदम क्यों  उठाया? जांच में यह बात भी स्पष्ट हो गई. परमीना की बड़ी बहन संगीता का पति राकेश वर्मा जो साहिबाबाद के शालीमार गार्डन में रहता है, उस ने कुछ समय पहले गुलशन से प्रौपर्टी के कारोबार में निवेश करने को कहा था. गुलशन ने उसे सवा करोड़ रुपए दिए थे. बदले में राकेश वर्मा ने 2015 में अपनी मां फूला वर्मा से शालीमार गार्डन स्थित कोठी का एग्रीमेंट गुलशन के करीबी सीए प्रवीण बख्शी के नाम करा दिया. लेकिन 2018  में उक्त कोठी 1.49 करोड़ रुपये में किसी और को बेच दी. राकेश ने खुद ही पैसा निवेश नहीं किया था बल्कि अपने कुछ दोस्तों से भी उधार पैसे ले कर निवेश करा दिया था.

इस पर गुलशन ने पैसे मांगे तो राकेश ने चैक दिए जो बाउंस हो गए. तगादा करने के बावजूद राकेश द्वारा पैसे नहीं लौटाने से गुलशन व उस का पूरा परिवार तनाव में आ गया. जिस के बाद कई बार मांगने पर भी राकेश वर्मा ने पैसे वापस नहीं लौटाए. उस का साफ कहना था कि जिन प्रौपर्टी में उस ने राकेश व उस के जरिए मिले दूसरे लोगों को पैसा निवेश किया था, उन सभी प्रौपर्टी के दाम नोटबंदी और रियल एस्टेट में आई मंदी के कारण भाव काफी गिर गए हैं. निराश हो कर गुलशन ने राकेश वर्मा और उस की मां के खिलाफ साहिबाबाद थाने में धोखाधड़ी, चेक बाउंस होने व अमानत में खयानत का मामला दर्ज कराया, जिस के आधार पर साहिबाबाद पुलिस ने मामला दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. बाद में दोनों की उच्च न्यायालय से जमानत हो गई थी.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर महेंद्र सिंह को जांचपड़ताल करने पर पता चला कि राकेश वर्मा प्रौपर्टी कारोबारी तो है ही, वह पंजाब में होटल भी चलाता था. आर्थिक तंगी के कारण वहां भी घाटा उठाना पड़ रहा था. झूठ और फरेब पर चल रहा था कारोबार उस का कारोबार झूठ और फरेब के आधार पर कई राज्यों में पसरा था. पुलिस को अभी तक कोलकाता, दिल्ली और नोएडा में उस के कारोबार की पुख्ता जानकारी मिली है. राकेश वर्मा ने पटना, उत्तराखंड और झारखंड तक में संपत्तियां बनाईं. इन संपत्तियों को बनाने के लिए उस ने केवल गुलशन वासुदेव को ही नहीं, कई अन्य जानकारों और रिश्तेदारों को मोहरा बनाया था. राकेश वर्मा ने कई जगह होटल कारोबार में भी अपने हाथ डाले थे.

गोवा जैसे कुछेक स्थानों पर होटल किराए पर ले कर संचालन किया, लेकिन हर जगह उसे घाटा उठाना पड़ा. इसलिए वह गुलशन का पैसा लौटाने में नाकामयाब रहा. एक तरफ राकेश के ऊपर कर्ज का दबाव बढ़ गया था, वहीं दूसरी ओर खरीदी या विकसित की गई प्रौपर्टी निकल नहीं पा रही थी. बीते 4-5 सालों से वह खुद भी आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था. इधर करोड़ों के नुकसान तले दबा गुलशन पहले कई सालों तक तो घाटे से उबरने की जद्दोजेहद में जुटा रहा. लेकिन अपने लेनदारों का दबाव गुलशन की सहनशक्ति से अब बाहर हो चुका था. कुछ दिन पहले कोलकाता की कंपनी में करीब 60 लाख रुपए डूबने का पता लगने पर वह बुरी तरह टूट गया और आखिरकार परिवार के खात्मे का फैसला ले लिया.

इंदिरापुरम पुलिस ने सभी तथ्य सामने आने के बाद गुलशन के साढ़ू राकेश वर्मा को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. हालांकि राकेश की मां फूला देवी इस से पहले ही फरार हो गई.  इस लोमहर्षक हत्या व आत्महत्या कांड के बाद पुलिस मामले की पड़ताल कर आरोप पत्र तैयार करने के काम में लगी थी.

(कथा पुलिस व परिजनों से पूछताछ पर आधारित)

 

Jharkhand Crime : कर्ज से बचने के लिए महिला को मिट्टी के तेल से जलाया

Jharkhand Crime : उधार की रकम कभीकभी अपराध को भी जन्म देती है. अंजलि के साथ यही हुआ. मोटे ब्याज के चक्कर में उस ने फिरदौस, रमन और आरती को काफी रकम उधार दे दी थी. एक दिन यही रकम अंजलि की जान की ऐसी दुश्मन बनी कि…

झारखंड के रांची जिले के कस्बा अरगोड़ा की 33 वर्षीय अंजलि उर्फ विनीता तिर्की पति मुंसिफ खान के साथ किराए के मकान में रहती थी. दोनों ने कई साल पहले प्रेम विवाह किया था. हालांकि अंजलि पहले से शादीशुदा थी. पहला पति रमन सिमडेगा शहर के सलगापुर गांव में अपने दोनों बच्चों के साथ रहता था. रमन मानसिक रूप से अस्वस्थ था. स्वच्छंदता और आधुनिकता का अंजलि पर ऐसा रंग चढ़ा कि पति और बच्चों को छोड़ कर वह अरगोड़ा के मोहल्ला महावीर नगर में प्रेमी से पति बने मुंसिफ खान के साथ आ कर बस गई थी. ऐसे में जब बच्चों की ममता अंजलि को तड़पाती थी तब वह बच्चों से मिलने चली जाया करती थी.

एकदो दिन उन के पास बिता कर फिर महावीर नगर मुंसिफ खान के पास चली आती थी. वर्षों से अंजलि और मुंसिफ खान दोनों साथ मिल कर सूद पर रुपए बांटने का धंधा करते थे. सूद के कारोबार में उन के लाखों रुपए बाजार में फंस चुके थे. इस के बावजूद भी उन्हें इस धंधे में बड़ा मुनाफा हो रहा था. सूद के साथसाथ उन्होंने जुए का भी धंधा शुरू कर दिया था. जुए के धंधे ने उन के बिजनैस में चारचांद लगा दिए. दिन दूनी, रात चौगुनी आमदनी उन्हें हो रही थी. अंजलि एक बेहद खूबसूरत और चंचल किस्म की महिला थी. महिला हो कर भी उस ने एक ऐसे धंधे में अपने पांव पसार दिए थे जहां ग्राहक घड़ी दर घड़ी औरतों को भूखे भेडि़ए की नजरों से घूरते हैं.

ऐसे में अंजलि ‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ जैसा व्यवहार रखती थी. पते की बात तो यह थी कि सूद और जुए का धंधा तो गंदा जरूर था पर अंजलि चरित्र के मामले में बेहद पाकसाफ और सतर्क रहती थी. बुरी नजरों से देखने वालों के साथ वह सख्ती से पेश आती थी. बहरहाल, अंजलि और मुंसिफ खान के धंधे में साथ देने वालों में कई नाम शुमार थे. जिन में फिरदौस रसीद और आरती के नाम मुख्य थे. फिरदौस रसीद और आरती दोनों ही लोअर बाजार इलाके के कलालटोली चर्च रोड मोहल्ले में अगलबगल रहते थे. धंधे की वजह से फिरदौस और आरती का अंजलि के यहां आनाजाना लगा रहता था. जिस की वजह से दोनों पर अंजलि अंधा विश्वास करती थी. कभीकभी वह अपना धंधा फिरदौस और आरती के भरोसे छोड़ जाती थी. ईमानदारी के साथ वे दोनों धंधा करते और सही हिसाब उन्हें सौंप देते थे.

बात 25 दिसंबर, 2019 की है. अंजलि शाम करीब साढ़े 6 बजे घर से किसी काम से अपनी आल्टो 800 कार ले कर निकली. कई घंटे बीत जाने के बाद भी न तो उस का फोन आया और न ही वह घर लौटी. जबकि घर से निकलते वक्त वह पति मुंसिफ खान से कह गई थी कि जल्द ही लौट कर आ जाएगी. उस के जाने के बाद मुंसिफ भी थोड़ी देर के लिए बाजार टहलने निकल गया था. करीब 2 घंटे बाद जब वह बाजार से घर लौटा तो अंजलि तब तक घर नहीं लौटी थी. ये देख कर वह परेशान हो गया. मुंसिफ खान ने अंजलि के मोबाइल फोन पर काल की तो उस का फोन बंद आ रहा था. यह देख कर वह और भी हैरान हो गया कि उस का फोन बंद क्यों आ रहा है? क्योंकि वह कभी भी फोन बंद नहीं रखती थी.

रात भर ढूंढता रहा मुंसिफ खान बारबार फोन स्विच्ड औफ आने से मुंसिफ खान बहुत परेशान हो गया था. पहली बार ऐसा हुआ था जब अंजलि का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. मुंसिफ ने अपने जानपहचान वालों को फोन कर के अंजलि के बारे में पता किया, लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस के बाद मुंसिफ को यह बात खटकने लगी कि कहीं उस के साथ कोई ऊंचनीच की बात तो नहीं हो गई. अंजलि की तलाश में मुंसिफ खान ने पूरी रात यहांवहां ढूंढ़ते हुए बिता दी, लेकिन उस का पता नहीं चला. अगली सुबह मुंसिफ थकामांदा घर पहुंचा तो दरवाजा देख कर आश्चर्य के मारे उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. उस के कमरे का ताला टूटा हुआ था. कमरे के भीतर रखी अलमारी के दोनों पाट खुले हुए थे और अलमारी का सारा सामान फर्श पर बिखरा हुआ था.

अलमारी की हालत देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी को अलमारी में किसी खास चीज की तलाश थी और उस व्यक्ति को पता था कि वह खास चीज इसी अलमारी में है, इसीलिए उस ने अलमारी के अलावा घर में रखी किसी भी वस्तु को हाथ नहीं लगाया था. मुंसिफ अंजलि को ले कर पहले से ही परेशान था, ऊपर से एक और मुसीबत ने दस्तक दे कर परेशानी और बढ़ा दी थी. मुंसिफ ने जब अलमारी चैक की तो उस में रखी ज्वैलरी और रुपए गायब थे. ये सोच कर वह परेशान था कि यह किस की हरकत हो सकती है?

मुंसिफ को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? किस के पास जाए? इसी उलझन में डूबे हुए कब दिन के 11 बज गए उसे पता ही नहीं चला. उसी समय उस ने अपना व्हाट्सएप यह सोच कर औन किया कि अंजलि के बारे में कहीं कोई सूचना तो नहीं आई है. एकएक कर के ग्रुप में आए मैसेज को सरसरी निगाहों से वह देखता चला गया. एक मैसेज पर जा कर उस की नजर ठहर गई. मैसेज में एक महिला की बुरी तरह जली लाश की फोटो पोस्ट की गई थी. लाश झुलसी हुई थी इसलिए पहचान में नहीं आ रही थी. वह लाश खूंटी थाना क्षेत्र में कालामाटी के तिरिल टोली गांव के एक खेत से मिली थी. उस मैसेज में लाश का जो हुलिया दिया गया था, वह उस की पत्नी अंजलि की कदकाठी से काफी मेल खाता हुआ नजर आ रहा था.

मैसेज पढ़ कर मुंसिफ खान दंग रह गया था. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा था. अंजलि को ले कर उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे थे. मैसेज पढ़ कर मुंसिफ जल्द ही बाइक से खूंटी की तरफ रवाना हो गया. रांची से खूंटी करीब 50-60 किलोमीटर दूर था. तेज गति से बाइक चला का मुंसिफ खान करीब एक घंटे में वह खूंटी थाना पहुंच गया था. उस ने थानाप्रभारी जयदीप टोप्पो से मुलाकात की. थानाप्रभारी ने अपने मोबाइल द्वारा उस लाश के खींचे गए फोटो मुंसिफ को दिखाए. फोटो देख कर मुंसिफ की सारी आशंका दूर हो गई क्योंकि लाश उस की पत्नी अंजलि उर्फ विनीता तिर्की की ही थी. हत्यारों ने बेरहमी से उसे जला दिया था. थानाप्रभारी को इस बात की आशंका थी कि कहीं अंजलि के साथ रेप कर के उस की हत्या तो नहीं कर दी.

थानाप्रभारी ने मुंसिफ से बात की तो उन्हें मुंसिफ की बातों और बौडी लैंग्वेज से उसी पर शक हो रहा था. उन्हें लग रहा था कि कहीं इसी ने तो अपनी पत्नी की हत्या कर के लाश यहां फेंक दी हो और पुलिस से बचने का नाटक कर रहा हो. इसी आशंका के मद्देनजर थानाप्रभारी टोप्पो ने मुंसिफ खान को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. उस से की गई लंबी पूछताछ के बाद पुलिस को उस से कुछ भी हासिल नहीं हुआ. पूछताछ में उस ने बताया कि अंजलि उस की पत्नी थी. दोनों 10 सालों से दीया और बाती की तरह घुलमिल कर रहते थे. दोनों ने प्रेम विवाह किया था. उन का जीवन खुशहाली में बीत रहा था, तो वो भला पत्नी की हत्या क्यों करेगा.

उस की यह बात सुन कर थानाप्रभारी भी सोच में पड़ गए कि वह जो कह रहा है, सच हो सकता है. इसलिए उन्होंने कुछ हिदायत दे कर उसे छोड़ दिया. अगले दिन यानी 27 दिसंबर, 2019 को अंजलि उर्फ विनीता तिर्की की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस के पास आ चुकी थी. रिपोर्ट पढ़ कर इस बात की पुष्टि हो चुकी थी कि मृतका के साथ दुष्कर्म नहीं किया गया था. रिपोर्ट में यह जरूरी उल्लेख किया गया था कि मृतका की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के बाद बदमाशों ने लाश पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा थी. एसपी ने संभाली कमान अंजलि उर्फ विनीता तिर्की हत्याकांड की मानिटरिंग एसपी आशुतोष शेखर कर रहे थे. उन्होंने घटना के खुलासे के लिए एसडीपीओ आशीष कुमार के नेतृत्व में एक स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम (एसआईटी टीम) का गठन किया. उस टीम में इंसपेक्टर राधेश्याम तिवारी, दिग्विजय सिंह,

राजेश प्रसाद रजक, खूंटी थानाप्रभारी जयदीप टोप्पो, एसआई मीरा सिंह, नरसिंह मुंडा, पुष्पराज कुमार, रजनीकांत, रंजीत कुमार यादव, बिरजू प्रसाद, दीपक कुमार सिंह, पंकज कुमार और विवेक प्रशांत शामिल थे. चूंकि मृतका अंजलि दूसरे जिला यानी रांची की रहने वाली थी. इसलिए पुलिस ने सच की तह तक पहुंचने के लिए रांची से ही घटना की जांच शुरू की. इंसपेक्टर राधेश्याम तिवारी ने रांची पहुंच कर अंजलि के पति मुंसिफ खान से फिर से पूछताछ की और उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि अंजलि के मोबाइल फोन पर आखिरी बार काल 25 दिसंबर, 2019 को शाम साढ़े 6 बजे की गई थी. जिस नंबर से काल की गई थी, छानबीन में वह नंबर इसी जिले के लोअर बाजार थाने के कलालटोली चर्च मोहल्ले की रहने वाली आरती का निकला.

28 दिसंबर को लोअर बाजार थाना पुलिस की मदद से एसआईटी टीम और खूंटी पुलिस ने आरती को उस के घर से पूछताछ के लिए उठा लिया. पुलिस उसे लोअर बाजार थाने ले आई. पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो आरती उस के सामने पूरी तरह से टूट गई और अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने पुलिस के सामने सच्चाई उगल दी. उस पता चला कि उस ने अपने साथियों फिरदौस रसीद और रमन कुमार के साथ मिल कर अंजलि की हत्या की थी. लाश की शिनाख्त आसानी से न होने पाए, इसलिए तीनों ने मिल कर उसे जला दिया था.

हत्थे चढ़े आरोपी फिर क्या था? आरती के बयान के बाद पुलिस ने फिरदौस रसीद को कलालटोली चर्च मोहल्ले में स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया और दोनों को रांची से खूंटी ले आई. दोनों का तीसरा साथी रमन फरार था. पूछताछ में आरती और फिरदौस ने अंजलि की हत्या की वजह बता दी. उस के बाद दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने अंजलि की हत्या के बाद लूटी गई उस की अल्टो कार, उस के घर से लूटे गए जेवरात और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया. गिरफ्तार दोनों आरोपियों के द्वारा बताई गई कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

बिंदास अंजलि उर्फ विनीता तिर्की सूद कारोबार से बेहद फलफूल गई थी. जिंदगी और बिजनैस दोनों का साथ देने वाला प्रेमी पति मुंसिफ खान साये के समान 24 घंटे उस से चिपका रहता था. वह पत्नी के एक हुक्म पर आसमान से तारे तोड़ लाने के लिए तैयार रहता था. सूद के कारोबार से उस ने बहुत पैसे कमाए. जब पैसे आने लगे तो उस ने अपने कारोबार का विस्तार किया और मोहल्ले के एक गुप्त स्थान पर बड़ा कमरा ले कर जुए का अड्डा बना लिया और वहीं जुआ खिलाती थी. जब अंजलि का कारोबार बढ़ा तो उसे बिजनैस संभालने के लिए आदमियों की जरूरत महसूस हुई. उस ने ऐसे आदमियों की तलाश शुरू की जो उसी की तरह ईमानदार और विश्वासपात्र हो.

बिजनैस में बेईमानी करने वाला न हो.अंजली के पड़ोस में फिरदौस रसीद, रमन और आरती रहते थे. तीनों से अंजलि की खूब पटती थी. वे उस से अकसर सूद पर पैसे लेते थे और समय पर ब्याज चुकता भी कर देते थे. तीनों की ईमानदारी और व्यवहार से अंजलि बेहद खुश थी. उस के कहने पर वे कभीकभी जुए का अड्डा संभालने में उस की मदद कर दिया करते थे. फिरदौस रसीद, रमन और आरती तीनों कलालटोली चर्च मोहल्ले में अगलबगल रहते थे. तीनों एकदूसरे के पड़ोसी थे. तीनों का अपना भरापूरा परिवार था. बस कुछ नहीं था तो वह थी अच्छी सी नौकरी. इस वजह से उन के पास पर्याप्त और खाली समय रहता था. खाली समय में वे करते तो क्या करते?

आरती को छोड़ कर दोनों बालबच्चेदार थे. परिवार का खर्च चलाने के लिए उन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी. शार्टकट तरीके से वे कम समय में ज्यादा पैसे कमाना चाहते थे. पैसे कमाने के लिए जुआ खेलने अंजलि के अड्डे पर चले जाते थे. जुए की लत ने बनाया कंगाल फिरदौस रसीद को जुए की लत ने कंगाल बना दिया था. फिरदौस के साथसाथ आरती और रमन भी जुएबाज बन गए थे. फिरदौस तो जुए में बीवी के गहने तक हार गया था. गहने वापस पाने के लिए फिरदौस यारदोस्तों से कुछ कर्ज ले कर फिर से अपनी किस्मत आजमाने अंजलि के अड्डे पर चला गया. लेकिन उस की किस्मत ने उसे फिर से दगा दे दी. कर्ज ले कर जिन पैसों से अपनी किस्मत बदलने फरदौस आया था, वो तो हार ही गया, धीरेधीरे वह अंजलि का लाखों रुपए का कर्जदार भी हो गया. ये बात दिसंबर, 2019 के पहले हफ्ते की थी.

अंजलि अपने पैसों के लिए फिरदौस रसीद से हर घड़ी तगादा करती थी. फिरदौस के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उस का कर्ज चुकता कर सके. अंजलि के तगादे से वह बच कर भागाभागा यहांवहां फिरता था. धीरेधीरे एक पखवाड़ा बीत गया. न तो वह कर्ज का एक रुपया चुका सका और न ही वह अंजलि के सामने ही आया. उस के बारबार टोकने से फिरदौस खुद की नजरों में अपमानित महसूस करता था. उस की समझ नहीं आ रहा था वह क्या करे. कैसे उस से छुटकारा पाए. इसी परेशानी के दौर में उस के दिमाग में एक खतरनाक योजना ने जन्म लिया. उस ने सोचा कि क्यों न अंजलि को ही रास्ते से हटा दें. न वह रहेगी और न ही उसे कर्ज चुकाना पड़ेगा. यानी न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. यह विचार मन में आते ही वह खुशी से झूम उठा.

फिरदौस रसीद ने योजना तो बना ली थी लेकिन योजना को अंजाम देना उस के अकेले के बस की बात नहीं थी. उस ने अपनी योजना में आरती और रमन को भी शामिल कर लिया. आरती और रमन साथ देने के लिए तैयार हो गए थे. दरअसल, वे दोनों भी अंजलि से नफरत करते थे. वे भी उस से जुए में एक बड़ी रकम हार चुके थे. जिस से कर्जमंद हो गए थे. रकम वापसी के लिए अंजलि उन पर तगादे का चाबुक चलाए हुई थी. आरती और रमन के पास एक फूटी कौड़ी नहीं थी. तो वे इतनी बड़ी रकम कहां से चुकाते. अंजलि के बारबार तगादा करने से वे परेशान हो चुके थे, इसलिए उन्होंने फिरदौस का साथ देना मंजूर कर लिया.

तीनों दुश्मनों ने बनाई योजना अब एकदो नहीं बल्कि अंजलि के 3 दुश्मन सामने आ चुके थे. तीनों ही मिल कर अंजलि से बदला लेने के लिए तैयार थे. तीनों ने मिल कर योजना बना ली थी कि किस तरह अंजलि को रास्ते से हटाना है. 25 दिसंबर यानी क्रिसमस का त्यौहार था. उन के लिए यह मौका सब से अच्छा था क्योंकि क्रिसमस के त्यौहार की वजह से सभी लोग अपनेअपने घरों में दुबके रहेंगे. वैसे भी अंजलि को कोई पूछने वाला तो था नहीं, इसलिए सुनहरे मौके को तीनों किसी कीमत पर हाथ से गंवाना नहीं चाहते थे. यही मौका उन्हें ठीक लगा. इसी योजना के मुताबिक, फिरदौस ने अंजलि को फोन कर के शाम साढ़े 6 बजे एक पार्टी दी और रिंग रोड बुलाया. उस ने यह भी कहा कि तुम्हारे पैसे तैयार हैं, उन्हें भी लेती जाना.

पैसों का नाम सुनते ही अंजलि की आंखों में चमक जाग उठी थी. उसे क्या पता था कि पैसे तो एक बहाना है, दरअसल उन्होंने उस के इर्दगिर्द मौत का जाल बिछा दिया था. उस जाल में वह फंस चुकी थी. वह दिन उस का आखिरी दिन था. बहरहाल, अंजलि ने फिरदौस से बता दिया कि वो रिंग रोड पर ही उस का इंतजार करे, कुछ ही देर में वह वहां पहुंच रही है. अंजलि की ओर से हां का जवाब मिलते ही फिरदौस, आरती और रमन की आंखों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. तकरीबन शाम 7 बजे अंजलि रिंग रोड पहुंच गई. जहां पर फिरदौस, आरती और रमन उसी के इंतजार में पलक बिछाए बैठे थे. फिरदौस के साथ आरती और रमन को देख कर अंजलि थोड़ी चौंकी थी.

अंजलि के रिंग रोड पहुंचते ही तीनों उस की कार में सवार हो गए. फिरदौस आगे की सीट पर बैठ गया था और आरती व रमन पीछे वाली सीट पर सवार थे. अंजलि ड्राइविंग सीट पर बैठी कार चला रही थी. उस ने कार जैसे ही आगे बढ़ाई, अचानक पीछे से अंजलि ने अपनी गरदन पर दबाव महसूस किया और वह चौंक गई.  उस के हाथ से स्टीयरिंग छूटतेछूटते बचा और कार हवा में लहराती हुई सड़क के दाईं ओर जा कर रुक गई. अभी वह कुछ समझ पाती तब तक फिरदौस और आरती भी उस पर भूखे भेडि़ए के समान टूट पड़े. रमन पहले ही फिरदौस के इशारे पर टूट पड़ा था.

चलती कार में घोटा गला तीनों दरिंदों के चंगुल से आजाद होने के लिए अंजलि फड़फड़ा रही थी लेकिन उन की मजबूत पकड़ से वह आजाद नहीं हो पाई और वह मौत की आगोश में सदा के लिए समा गई. अंजलि की मौत हो चुकी थी. उस की मौत के बाद तीनों बुरी तरह डर गए कि अब इस की लाश का क्या होगा? जल्द ही फिरदौस ने इस का रास्ता भी निकाल लिया. पहले तीनों ने मिल कर उस की लाश पीछे वाली सीट पर बीच में ऐसे बैठाई जैसे वह आराम से बैठीबैठी सो रही हो. उस के अगलबगल में रमन और आरती बैठ गए. फिरदौस ड्राइविंग सीट पर बैठ गया. वहां से तीनों खूंटी पहुंचे. खूंटी के कालामाटी के तिरिल टोली गांव के बाहर सूनसान खेत में अंजली का शव ले कर गए. उस के ऊपर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा दी और कार ले कर वापस रांची पहुंचे.

इधर मुंसिफ खान अंजलि की तलाश में यहांवहां भटक रहा था. उधर तीनों अंजलि के घर पहुंचे और उस के घर की अलमारी तोड़ कर उस में से उस के सारे गहने लूट लिए और वहां से रफूचक्कर हो गए. तीनों ने जिस चालाकी से अंजलि की हत्या कर के उस की पहचान मिटाने की कोशिश की थी उन की चाल सफल नहीं हुई. आखिरकार पुलिस उन तक पहुंच ही गई और उन्हें उन के असल ठिकाने तक पहुंचा दिया. तीनों आरोपियों से पुलिस ने अंजलि के घर से लूटे गहने और कार बरामद कर ली थी.  कथा लिखने तक पुलिस अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Lucknow Crime : बेवफा बीवी ने प्रेमी के साथ मिल कर बनाया पति का मर्डर प्‍लान

Lucknow Crime : कमला और रामकुमार की अच्छीभली गृहस्थी थी. लेकिन जब ज्ञान सिंह दोनों के बीच आया तो उन की गृहस्थी भी बिखरने लगी और रिश्तों के धागे भी उलझ गए. अब कमला और उस के चाहने वाले ज्ञान सिंह के पास एक ही विकल्प था कि…

शाम के यही कोई 6 बजे थे. धुंधलका उतर आया था. लखनऊ से सीतापुर जाने वाले मार्ग पर एक कस्बा है बख्शी का तालाब. इसी कस्बे से शिवपुरी बराखेमपुर गांव को एक रोड जाती है. सायंकाल का वक्त होने के कारण वह रोड सुनसान थी. अचानक गुडंबा की तरफ से आ रही एक बाइक गोलइया मोड़ पर आ कर रुकी. बाइक पर 3 व्यक्ति सवार थे. वे सड़क किनारे खड़े हो कर किसी के आने का इंतजार करने लगे. कुछ देर के बाद सामने से एक बाइक आती हुई दिखाई दी, जिस पर 2 लोग बैठे थे. इस से पहले कि मामला कुछ समझ में आता कि सड़क किनारे खड़े उन तीनों व्यक्तियों में से एक ने सामने से आती हुई उस बाइक को रोका. उस बाइक पर रामकुमार और उस का भतीजा मतोले बैठे थे, जो शिवपुरी बराखेमपुर में रहते थे.

जैसे ही रामकुमार ने बाइक की गति धीमी की, तभी उन तीनों में से एक व्यक्ति ने तमंचे से फायर कर दिया. गोली बाइक रामकुमार के लगी जिस से बाइक सहित वे दोनों लड़खड़ा कर गिर पड़े. उन के गिरते ही तीनों हमलावर घटनास्थल से फरार हो गए. यह घटना 25 दिसंबर, 2019 की है. रात काफी हो गई थी. मतोले ने उसी समय फोन कर के यह सूचना रामकुमार की पत्नी कमला को देते हुए कहा, ‘‘चाची, ज्ञानू ने अपने 2 साथियों राजा व अंकित के साथ चाचा रामकुमार पर हमला कर दिया है. उन के पेट में गोली लगी है. चाचा गोलइया मोड़ के पास घायल पड़े हैं.’’

यह खबर सुनते ही कमला फफक कर रो पड़ी. उस ने अपने जेठ यानी मतोले के पिता जयकरण व देवर दिनेश व अन्य परिवारजनों को यह जानकारी दे दी. घटनास्थल गांव से 4-5 सौ मीटर की दूरी पर था. इसलिए जल्द ही परिवार व मोहल्ले वाले घटनास्थल पर पहुंच गए. परिवारजन घायल रामकुमार कोे बाइक से बख्शी के तालाब तक ले आए, फिर वहां से वाहन द्वारा लखनऊ के केजीएमयू मैडिकल अस्पताल ले गए. रामकुमार की हालत गंभीर थी. उस के पेट में गोली लगने से खून ज्यादा मात्रा में बह चुका था, डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी रामकुमार को बचाया नहीं जा सका. मैडिकल कालेज में उपचार के दौरान उस की मृत्यु हो गई.

चूंकि मामला हत्या का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की सूचना स्थानीय थाना बख्शी का तालाब में दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी बृजेश सिंह, एसएसआई कुलदीप कुमार सिंह और एसआई योगेंद्र कुमार, अवनीश कुमार और सिपाही नितेश मिश्रा के साथ मैडिकल कालेज जा पहुंचे. डाक्टरों से बातचीत करने के बाद उन्होंने मृतक के परिजनों से पूछताछ की तो मतोले ने थानाप्रभारी को हमलावरों के नाम भी बता दिए. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने रामकुमार का शव अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रात में ही घटनास्थल पर पहुंच गए. रोशनी की व्यवस्था कर उन्होंने घटनास्थल से खून आलूदा मिट्टी से सबूत एकत्र किए.

अगले दिन 26 दिसंबर, 2019 को पोस्टमार्टम होने के बाद रामकुमार का शव उस के परिजनों को सौंप दिया. अंतिम संस्कार के बाद थानाप्रभारी ने रामकुमार की पत्नी कमला की ओर से ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू और राजा के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी व एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. चूंकि मुकदमे में एससी/एसटी एक्ट की धारा भी लगी थी, इसलिए इस की जांच की जिम्मेदारी सीओ स्वतंत्र सिंह ने संभाली. पुलिस ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक की पत्नी कमला का चरित्र ठीक नहीं था, इसलिए पुलिस ने कमला का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और उस से ज्ञान सिंह यादव का फोन नंबर भी प्राप्त कर लिया. पुलिस ने उन के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

घटना का चश्मदीद मृतक का भतीजा मतोले था, पूछताछ करने पर मतोले ने पुलिस को बताया कि पड़ोस की दूध की डेयरी पर काम करने वाले ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू ने उस से कई बार कहा कि तुम शहर में कामधंधे के लिए अपने चाचा रामकुमार के साथ न जाया करो, क्योंकि तुम्हारे चाचा से मेरी रंजिश चल रही है. उस ने अपने दोस्तों के साथ घेर कर चाचा को गोली मार दी. उधर पुलिस ने कमला और ज्ञान सिंह के फोन नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो इस बात की पुष्टि हो गई कि कमला और ज्ञान सिंह के बीच दाल में कुछ काला अवश्य है.

एसएसआई कुलदीप सिंह ने इस बारे में मतोले से पूछा तो उस ने हां में सिर हिला दिया. ऐसे में कमला से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए 26 दिसंबर, 2019 की शाम एसएसआई कुलदीप सिंह अपने सहयोगियों एसआई अवनीश कुमार, हंसराज, महिला सिपाही श्रद्धा शंखधार, नेहा शर्मा को साथ ले कर कमला के घर पहुंचे. रात में पुलिस को अपने घर आया देख कर कमला सकपका गई. उस के चेहरे का रंग उतर गया. उस ने पूछा, ‘‘दरोगाजी, इतनी रात को घर आने का क्या मकसद है?’’

‘‘मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से तुम्हारे पति रामकुमार की कोई रंजिश थी? मुझे पता चला है कि तुम्हारे पति पर ज्ञान सिंह ने ही भाड़े के लोगों के साथ हमला कराया था. पुलिस उसी की तलाश में गांव आई है.’’ एसएसआई ने कहा. यह कह कर एसएसआई ने कमला के दिमाग से शक का कीड़ा निकाल दिया, ताकि उसे लगे कि वह पुलिस के शक के दायरे में नहीं है. इस केस की जांच में सहयोग करने के लिए तुम्हें कल सुबह थाने आना होगा. इस पूछताछ में पुलिस को ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व अंकित यादव के खिलाफ कुछ और तथ्य मिल गए.

अगले दिन पुलिस टीम ज्ञान सिंह यादव उर्फ ज्ञानू, अंकित आदि की तलाश में उन के घर गई तो वे घरों पर नहीं मिले. पता चला कि कमला भी अपने घर से फरार हो गई है. इस से पुलिस को पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग इस अपराध से जुड़े हैं. इसलिए पुलिस ने तीनों के पीछे मुखबिर लगा दिए. मुखबिरों द्वारा पुलिस को पता चला कि कमला अपने प्रेमी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व उस के दोस्त अंकित यादव के साथ फरार होने के लिए गांव से निकल कर भगतपुरवा तिराहा, भाखामऊ रोड पर खड़ी है. कुछ ही देर में थाना बख्शी का तालाब से एक पुलिस टीम वहां पहुंच गई. वहीं से पुलिस ने कमला, ज्ञान सिंह और अंकित को गिरफ्तार कर लिया.

एक मुखबिर की सूचना पर एक अन्य आरोपी उत्तम कुमार को भैसामऊ क्रौसिंग से एक तमंचे व 2 कारतूस सहित गिरफ्तार कर लिया गया. थाने पहुंच कर कमला निडरता के साथ बोली, ‘‘दरोगाजी, हमें थाने बुला कर काहे बारबार परेशान कर रहे हैं.’’

इतना सुनते ही थानाप्रभारी बृजेश कुमार सिंह ने महिला सिपाही नेहा शर्मा और सिपाही शंखधार को बुला कर कहा, ‘‘इस औरत को हिरासत में ले लो. एक तो इस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर अपने पति की हत्या करने की साजिश रची और ऊपर से स्वयं पतिव्रता बनने का नाटक कर रही है.’’

थानाप्रभारी ने हंसते हुए कमला से कहा, ‘‘परेशान न हो शाम तक तुम्हें घर वापस भेज दिया जाएगा. कुछ अधिकारी यहां आ रहे हैं, तुम उन्हें सचसच बता देना.’’

सीओ स्वतंत्र सिंह भी जांच हेतु थाने पहुंच गए. सूचना पा कर एसपी (ग्रामीण) आदित्य लंगेह भी थाना बख्शी का तालाब आ पहुंचे. चारों आरोपियों को अधिकारियों के सामने पेश किया गया. चारों आरोपियों ने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि कमला के गांव के ही निवासी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से अवैध संबंध थे. उन्होंने ही रामकुमार को ठिकाने लगाया था. उन चारों से हुई पूछताछ के आधार पर रामकुमार हत्याकांड की गुत्थी सुलझ गई. पूछताछ में कमला और ज्ञान सिंह के अवैध संबंधों की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार है—

लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर लखनऊ-सीतापुर राजमार्ग के किनारे तहसील बख्शी का तालाब है. इसी क्षेत्र में गांव शिवपुरी बरा खेमपुर है. रामकुमार रावत का परिवार इसी गांव में रहता था. रामकुमार रावत अपने परिवार में सब से बड़ा था. उस के अन्य 2 भाई दिनेश (35 साल) व राजेश (30 साल) थे. रामकुमार का विवाह करीब 15 साल पहले मूसानगर के निकट कुरसी गांव की रहने वाले शिवचरण रावत की बेटी कमला के साथ हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. रामकुमार लखनऊ के आसपास कामधंधे की तलाश में जाता रहता था. उस के पड़ोस में ही ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू रहता था, जो मूलरूप से शिवपुरी मानपुर लाला, थाना बख्शी का तालाब का रहने वाला था. ज्ञान सिंह अविवाहित था.

रामकुमार की पत्नी कमला की उम्र लगभग 40 वर्ष के आसपास रही होगी. कमला की एक बहन रामप्यारी शिवपुरी मानपुर लाला में रहती थी. निकटवर्ती रिश्तेदारी होने के कारण कमला का अपनी बहन के गांव शिवपुरी मानपुर लाला अकसर आनाजाना लगा रहता था. ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अपने गांव में दूध की डेयरी का काम करता था. वह रोजाना अपने गांव से दूध इकट्ठा कर बाइक से बख्शी का तालाब कस्बे में बेचने के लिए आताजाता था. कमला की बहन रामप्यारी के कहने पर ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को अपने साथ दूध के काम पर लगा दिया. इस के बाद दूध इकट्ठा करने का काम रामकुमार करने लगा. बाद में वह दूध बेचने के लिए लखनऊ व निकटवर्ती इलाकों में निकल जाता था और दूध बेच कर शाम तक अपने गांव शिवपुरी बराखेमपुर लौट आता था.

रामकुमार की दिन भर की यही दिनचर्या थी. इस तरह कई सालों तक रामकुमार ज्ञान सिंह के साथ रह कर दूध बेचने का काम करता रहा. चूंकि ज्ञान सिंह और रामकुमार के गांवों में महज 3 किलोमीटर की दूरी थी. ज्ञान सिंह का रामकुमार के घर भी आनाजाना हो गया और धीरेधीरे रामकुमार ज्ञान सिंह का विश्वासपात्र बन गया. इसी दौरान ज्ञान सिंह की नजरें रामकुमार की पत्नी कमला पर जा टिकीं. रामकुमार दिन में जब दूध ले कर शहर को निकल जाता तो ज्ञान सिंह दोपहर के वक्त कमला के घर में बैठ कर उस से घंटों बतियाता. दरअसल वह उस के मन को टटोला करता था. कमला की नजरों ने ज्ञान सिंह के मन को भांप लिया कि वह क्या चाहता है. ज्ञान सिंह कमला को भाभी कहता था.

उम्र में वह कमला से काफी छोटा था. इसलिए दोनों में नजदीकियां काफी बढ़ गईं. वक्तजरूरत पर ज्ञान सिंह ने पैसे से मदद कर कमला का मन जीत लिया था. धीरेधीरे वह भी उस की तरफ आकर्षित होने लगी और कमला का झुकाव ज्ञान सिंह की तरफ हो गया था. फिर दोनों में करीबी रिश्ता बन गया. एक दिन कमला ने मौका देख कर ज्ञान सिंह से कहा, ‘‘तुम मेरे मकान के नजदीक खाली पड़े खंडहर में दूध की डेयरी का काम क्यों नहीं शुरू कर देते. तुम्हारे भाईसाहब को भी शिवपुरी मानपुर लाला से जा कर रोजाना दूध लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी और उन्हें भी आसानी हो जाएगी. समय निकाल कर मैं भी दूध की डेयरी पर हाथ बंटा दिया करूंगी. बच्चों का खर्च उठाने के लिए मुझे भी धंधा मिल जाएगा.’’

कमला की बात सुन कर ज्ञान सिंह हंसते हुए बोला, ‘‘अच्छा तो यह बात है. मैं अपने रिश्तेदार अंकित यादव से इस बारे में बात करूंगा.’’

ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अंकित यादव का रिश्तेदार था. उस के अंकित के परिवार से अच्छे संबंध थे. ज्ञान सिंह ने अंकित के सामने यह प्रस्ताव रखा कि वह शिवपुरी बरा खेमपुर में दूध की डेयरी खोलना चाहता है. अंकित ने ज्ञान सिंह के प्रस्ताव को सुन कर हामी भर ली और शिवपुरी बरा खेमपुर में रामकुमार के आवास के पास ही दूध की डेयरी खोल ली और दूध के कारोबार की जिम्मेदारी कमला के पति रामकुमार को सौंप दी. कमला ज्ञान सिंह की इस पहल से काफी खुश थी. गांव में दूध की डेयरी खुल जाने के बाद कमला और ज्ञान सिंह की नजदीकियां बढ़ गईं तो दोनों ने इस का भरपूर फायदा उठाया. रामकुमार भी पहले से अधिक ज्ञान सिंह की डेयरी पर समय बिताने लगा. रामकुमार ज्ञान सिंह की काली करतूतों से अनजान था.

धीरेधीरे ज्ञान सिंह और कमला की नजदीकियों की चर्चा रामकुमार के कानों तक पहुंच गई. पहले तो रामकुमार ने इन चर्चाओं पर विश्वास नहीं किया. उस ने कहा कि जब तक वह आंखों से देख नहीं लेगा, विश्वास नहीं करेगा. लेकिन फिर एक दिन कमला और ज्ञान सिंह को रामकुमार ने अपने ही घर में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय रामकुमार कमला से कुछ नहीं बोला लेकिन रात का खाना खा कर रामकुमार ने फुरसत के क्षणों में कमला से पूछा, ‘‘क्यों, मैं जो कुछ सुन रहा हूं और जो कुछ मैं ने अपनी आंखों से देखा, वह सच है?’’

चतुर कमला ने दोटूक जवाब देते हुए ज्ञान सिंह से अपने संबंधों की बात नकार दी. लेकिन रामकुमार के मन में संदेह का बीज पनपते ही घर में कलह की नींव पड़ गई. धीरेधीरे उस का मन ज्ञान सिंह की डेयरी पर काम करने को ले कर उचटने लगा. मन में दरार पड़ते ही उस ने ज्ञान सिंह से साफ कह दिया कि उस की पत्नी और उस के बीच जो कुछ भी चल रहा है, वह उस के जीवन में जहर घोल रहा है. उस ने ज्ञान सिंह से उस की डेयरी पर काम करने के लिए न केवल इनकार कर दिया, बल्कि ज्ञान सिंह की डेयरी पर काम भी छोड़ दिया. दोनों की दोस्ती कमला को ले कर दुश्मनी में बदल गई. यह बात ज्ञान सिंह और कमला को अच्छी नहीं लगी. कमला ने पति से कहा कि उस ने ज्ञान सिंह का कारोबार छोड़ कर दुश्मनी मोल ले ली है,

लेकिन रामकुमार ने उस की एक नहीं सुनी. इतना ही नहीं, उस ने पत्नी कमला पर दबाव बना कर पत्नी की तरफ से ज्ञान सिंह के खिलाफ थाना बख्शी का तालाब में एससी/एसटी एक्ट के तहत शिकायत दर्ज करवा दी. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद ज्ञान सिंह की बदनामी हुई तो कुछ लोगों ने गांव में ही दोनों का फैसला करा दिया. ज्ञान सिंह की दूध की डेयरी पर काम बंद करने एवं थाने में शिकायत दर्ज कराने को ले कर ज्ञान सिंह के मन में काफी खटास पैदा हो गई थी. दूसरे, दूध की डेयरी की जिम्मेदारी भी ज्ञान सिंह पर स्वयं आ पड़ी. रामकुमार ने भी अपनी मेहनतमजदूरी के वास्ते शहर जा कर काम ढूंढ लिया. पुलिस की जानकारी में आया कि एक बार ज्ञान सिंह ने शहर के एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा रामकुमार पर हमला करवा दिया था. उस दिन से रामकुमार और ज्ञान सिंह दोनों एकदूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए. उस दिन घर लौट कर रामकुमार ने कमला को खूब खरीखोटी सुनाई थी.

रामकुमार ने कमला को हिदायत देते हुए ज्ञान सिंह ने दूर रहने की चेतावनी दे दी. ऐसा न करने पर उस ने अंजाम भुगतने की धमकी भी दी. लेकिन दोनों में से कोई भी रामकुमार की हिदायतों को मानने के लिए तैयार नहीं था. इधर कमला की भी मजबूरी थी. वह ज्ञान सिंह द्वारा वक्तवक्त पर आर्थिक मदद के कारण उस के दबाव और अहसानों से दबती चली गई. रामकुमार इस बात से बिलकुल अंजान था. कमला ने ज्ञान सिंह से ली हुई रकम को चुकता करने के लिए डेयरी पर आनेजाने का सिलसिला जारी रखा. वह चाहती थी कि ज्ञान सिंह की दूध की डेयरी पर अधिक से अधिक दिनों तक काम कर के उस की ली हुई आर्थिक मदद में उधार की रकम की देनदारी को चुकता कर दे.

रामकुमार को कमला का उस की डेयरी पर आनाजाना बिलकुल नहीं भाता था. लेकिन कमला ने पति की चिंता नहीं की. वह पति से ज्यादा प्रेमी ज्ञान सिंह को चाहती थी. इस की एक वजह यह थी कि ज्ञान सिंह उच्च जाति का धनवान व्यक्ति था. रामकुमार से अनबन कर लेने पर उसे कोई नुकसान नहीं था, लेकिन ज्ञान सिंह से अलग हो जाने पर गृहस्थी का सारा खेल बिगड़ सकता था. इसी वजह से कमला ने ज्ञान सिंह से मिलनाजुलना जारी रखा. रामकुमार मन ही मन कुढ़ता रहता और रोजाना घर में कलह होती रहती. पति के चाहते हुए भी कमला ज्ञान सिंह को अपनी जिंदगी से दूर करने का विकल्प नहीं ढूंढ पा रही थी.

ज्ञान सिंह ने एक दिन कमला से कहा, ‘‘भाभी, पानी सिर से ऊपर हो चुका है. अब एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं. तुम ही बताओ कुछ न कुछ तो करना होगा.’’

कमला ने कहा, ‘‘तुम ही बताओ, कौन सा रास्ता निकाला जाए.’’

ज्ञान सिंह ने कमला से मिल कर अपने मन की छिपी हुई बात बताते हुए कहा कि तुम्हारे पास मेरी जो 20 हजार रुपए की रकम है, वह तुम्हें वापस करनी थी. उन में से अब 13 हजार रुपए देने होंगे और रामकुमार को किराए के लोगों से बुला कर शाम के समय लखनऊ से गांव लौटते समय रास्ते से हटा देंगे. इस प्रस्ताव को सुन कर कमला भी खुश हो गई. उस ने ज्ञान सिंह को रजामंदी दे दी, फिर ज्ञान सिंह ने कमला के साथ मिल कर षडयंत्रपूर्वक एक योजना बना ली. तब ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को रास्ते से हटाने के लिए अंकित यादव को इस वारदात के लिए राजी कर लिया. ज्ञान सिंह ने उस से और किराए के आदमी जुटाने को कहा.

तब अंकित यादव ने रामकुमार की हत्या के लिए 20 हजार रुपए में सौदेबाजी पक्की कर ली. इस काम के लिए उस ने राजा, निवासी बरगदी, के.डी. उर्फ कुलदीप सिंह निवासी बख्शी का तालाब, उत्तम कुमार निवासी अस्ती रोड, गांव मूसानगर को तैयार किया. राजा के कहने पर कमला और ज्ञान सिंह ने 13 हजार रुपए अंकित यादव को सौंप दिए और 7 हजार रुपए काम हो जाने के बाद देने का वादा कर लिया गया. सभी ने तय किया कि 25 दिसंबर, 2019 को लखनऊ से आते समय भखरामऊ गोलइया मोड़ पर रामकुमार की हत्या को अंजाम दिया जाएगा. योजना के अनुसार 25 दिसंबर, 2019 की शाम को के.डी. सिंह के साथ राजा और उस के साथी पहुंच गए. राजा ने रामकुमार पर बाइक से आते समय तमंचे से हमला कर दिया. उस समय बाइक रामकुमार स्वयं चला रहा था और उस का भतीजा मतोले पीछे बैठा हुआ था.

पुलिस को अभी 2 अभियुक्तों राजा व कुलदीप सिंह की तलाश थी. पुलिस द्वारा मुखबिरों का जाल फैला दिया गया था. मुखबिर की सूचना पर 3 जनवरी, 2020 को राजा व कुलदीप दोनों को मय तमंचे और बाइक के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. राजा ने पुलिस के साथ जा कर हमले में उपयोग किया गया तमंचा बरामद करा दिया. पुलिस ने अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

 

Agra Crime : पति की लाश को संदूक में बंद कर यमुना में फेंका

Agra Crime : पतिपत्नी के रिश्ते कितने भी मधुर क्यों न हों, अगर उन के बीच ‘वो’ आ जाए तो न केवल रिश्तों का माधुर्य बिखर जाता है बल्कि किसी एक को मिटाने की भूमिका भी बन जाती है. हरिओम और बबली के साथ भी यही हुआ. इन के रिश्तों में जब कमल की एंट्री हुई तो…

मानने वाले प्रेमीप्रेमिका और पतिपत्नी का रिश्ता सब से अजीम मानते हैं. लेकिन जबजब ये रिश्ते आंतरिक संबंधों की महीन रेखा को पार करते हैं, तबतब कोई न कोई संगीन जुर्म सामने आता है. हरिओम तोमर मेहनतकश इंसान था. उस की शादी थाना सैंया के शाहपुरा निवासी निहाल सिंह की बेटी बबली से हुई थी. हरिओम के परिवार में उस की पत्नी बबली के अलावा 4 बच्चे थे. हरिओम अपनी पत्नी बबली और बच्चों से बेपनाह मोहब्बत करता था. बेटी ज्योति और बेटा नमन बाबा राजवीर के पास एत्मादपुर थानांतर्गत गांव अगवार में रहते थे, जबकि 2 बेटियां राशि और गुड्डो हरिओम के पास थीं. राजवीर के 2 बेटों में बड़ा बेटा राजू बीमारी की वजह से काम नहीं कर पाता था. बस हरिओम ही घर का सहारा था, वह चांदी का कारीगर था.

हरिओम और बबली की शादी को 15 साल हो चुके थे. हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घटी, जिस से पूरे परिवार में मातम छा गया.  3 नवंबर, 2019 की रात में हरिओम अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ घर से लापता हो गया. पिछले 12 साल से वह आगरा में रह रहा था. 36 वर्षीय हरिओम आगरा स्थित चांदी के एक कारखाने में चेन का कारीगर था. पहले वह बोदला में किराए पर रहता था. लापता होने से 20 दिन पहले ही वह पत्नी बबली व दोनों बच्चियों राशि व गुड्डो के साथ आगरा के थानांतर्गत सिकंदरा के राधानगर इलाके में किराए के मकान में रहने लगा था.

आगरा में ही रहने वाली हरिओम की साली चित्रा सिंह 5 नवंबर को अपनी बहन बबली से मिलने उस के घर गई. वहां ताला लगा देख उस ने फोन से संपर्क किया, लेकिन दोनों के फोन स्विच्ड औफ थे. चित्रा ने पता करने के लिए जीजा हरिओम के पिता राजबीर को फोन कर पूछा, ‘‘दीदी और जीजाजी गांव में हैं क्या?’’

इस पर हरिओम के पिता ने कहा कि कई दिन से हरिओम का फोन नहीं मिल रहा है. उस की कोई खबर भी नहीं मिल पा रही. चित्रा ने बताया कि मकान पर ताला लगा है. आसपास के लोगों को भी नहीं पता कि वे लोग कहां गए हैं. किसी अनहोनी की आशंका की सोच कर राजबीर गांव से राधानगर आ गए. उन्होंने बेटे और बहू की तलाश की, लेकिन उन की कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर पिता राजबीर ने 6 नवंबर, 2019 को थाना सिकंदरा में हरिओम, उस की पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा दी. जांच के दौरान हरिओम के पिता राजबीर ने थाना सिकंदरा के इंसपेक्टर अरविंद कुमार को बताया कि उस की बहू बबली का चालचलन ठीक नहीं था. उस के संबंध कमल नाम के एक व्यक्ति के साथ थे, जिस के चलते हरिओम और बबली के बीच आए दिन विवाद होता था.

पुलिस ने कमल की तलाश की तो पता चला कि वह भी उसी दिन से लापता है, जब से हरिओम का परिवार लापता है. पुलिस सरगरमी से तीनों की तलाश में लग गई. इस कवायद में पुलिस को पता चला कि बबली सिकंदरा थानांतर्गत दहतोरा निवासी कमल के साथ दिल्ली गई है. उन्हें ढूंढने के लिए पुलिस की एक टीम दिल्ली के लिए रवाना हो गई. शनिवार 16 नवंबर, 2019 को बबली और उस के प्रेमी कमल को पुलिस ने दिल्ली में पकड़ लिया. दोनों बच्चियां भी उन के साथ थीं, पुलिस सब को ले कर आगरा आ गई. आगरा ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो मामला खुलता चला गया. पता चला कि 3 नवंबर की रात हरिओम रहस्यमय ढंग से लापता हो गया था. पत्नी और दोनों बच्चे भी गायब थे. कमल उर्फ करन के साथ बबली के अवैध संबंध थे. वह प्रेमी कमल के साथ रहना चाहती थी.

इस की जानकारी हरिओम को भी थी. वह उन दोनों के प्रेम संबंधों का विरोध करता था. इसी के चलते दोनों ने हरिओम का गला दबा कर हत्या कर दी थी. बबली की बेहयाई यहीं खत्म नहीं हुई. उस ने कमल के साथ मिल कर पति की गला दबा कर हत्या दी थी. बाद में दोनों ने शव एक संदूक में बंद कर यमुना नदी में फेंक दिया था. पूछताछ और जांच के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

फरवरी, 2019 में बबली के संबंध दहतोरा निवासी कमल उर्फ करन से हो गए थे. कमल बोदला के एक साड़ी शोरूम में सेल्समैन का काम करता था. बबली वहां साड़ी खरीदने जाया करती थी. सेल्समैन कमल बबली को बड़े प्यार से तरहतरह के डिजाइन और रंगों की साडि़यां दिखाता था. वह उस की सुंदरता की तारीफ किया करता था. उसे बताता था कि उस पर कौन सा रंग अच्छा लगेगा. कमल बबली की चंचलता पर रीझ गया. बबली भी उस से इतनी प्रभावित हुई कि उस की कोई बात नहीं टालती थी. इसी के चलते दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे. अब जब भी बबली उस दुकान पर जाती, तो कमल अन्य ग्राहकों को छोड़ कर बबली के पास आ जाता.

वह मुसकराते हुए उस का स्वागत करता फिर इधरउधर की बातें करते हुए उसे साड़ी दिखाता. कमल आशिकमिजाज था, उस ने पहली मुलाकात में ही बबली को अपने दिल में बसा लिया था. नजदीकियां बढ़ाने के लिए उस ने बबली से फोन पर बात करनी शुरू कर दी. जब दोनों तरफ से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो नजदीकियां बढ़ती गईं. फोन पर दोनों हंसीमजाक भी करने लगे. फिर उन की चाहत एकदूसरे से गले मिलने लगी. बातोंबातों में बबली ने कमल को बताया कि वह बोदला में ही रहती है. इस के बाद कमल बबली के घर आनेजाने लगा. जब एक बार दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूटी तो फिर यह सिलसिला सा बन गया. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में मिल लेते थे.

हरिओम की अनुपस्थिति में बबली और कमल के बीच यह खेल काफी दिनों तक चलता रहा. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं, एक दिन हरिओम को भी भनक लग गई. उस ने बबली को कमल से दूर रहने और फोन पर बात न करने की चेतावनी दे दी. दूसरी ओर बबली कमल के साथ रहना चाहती थी. उस के न मानने पर वह घटना से 20 दिन पहले बोदला वाला घर छोड़ कर सपरिवार सिकंदरा के राधानगर में रहने लगा. 3 नवंबर, 2019 को हरिओम शराब पी कर घर आया. उस समय बबली मोबाइल पर कमल से बातें कर रही थी. यह देख कर हरिओम के तनबदन में आग लग गई. इसी को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ तो हरिओम ने बबली की पिटाई कर दी.

बबली ने इस की जानकारी कमल को दे दी. कमल ने यह बात 100 नंबर पर पुलिस को बता दी. पुलिस आई और रात में ही पतिपत्नी को समझाबुझा कर चली गई. पुलिस के जाने के बाद भी दोनों का गुस्सा शांत नहीं हुआ, दोनों झगड़ा करते रहे. रात साढे़ 11 बजे बबली ने कमल को दोबारा फोन कर के घर आने को कहा. जब वह उस के घर पहुंचा तो हरिओम उस से भिड़ गया. इसी दौरान कमल ने गुस्से में हरिओम का सिर दीवार पर दे मारा. नशे के चलते वह कमल का विरोध नहीं कर सका. उस के गिरते ही बबली उस के पैरों पर बैठ गई और कमल ने उस का गला दबा दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद हरिओम की मौत हो गई. उस समय दोनों बच्चियां सो रही थीं. कमल और बबली ने शव को ठिकाने लगाने के लिए योजना तैयार कर ली. दोनों ने शव को एक संदूक में बंद कर उसे फेंकने का फैसला कर लिया, ताकि हत्या के सारे सबूत नष्ट हो जाएं.

योजना के तहत दोनों ने हरिओम की लाश एक संदूक में बंद कर दी. रात ढाई बजे कमल टूंडला स्टेशन जाने की बात कह कर आटो ले आया. आटो से दोनों यमुना के जवाहर पुल पर पहुंचे. लाश वाला संदूक उन के साथ था. इन लोगों ने आटो को वहीं छोड़ दिया. सड़क पर सन्नाटा था, कमल और बबली यू टर्न ले कर कानपुर से आगरा की तरफ आने वाले पुल पर पहुंचे और संदूक उठा कर यमुना में फेंक दिया. इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. दूसरे दिन 4 नवंबर को सुबह कमल बबली और उस की दोनों बच्चियों को साथ ले कर दिल्ली भाग गया.

बबली की बेवफाई ने हंसतेखेलते घर को उजाड़ दिया था. उस ने पति के रहते गैरमर्द के साथ रिश्ते बनाए. यह नाजायज रिश्ता उस के लिए इतना अजीज हो गया कि उस ने अपने पति की मौत की साजिश रच डाली. पुलिस 16 नवंबर को ही कमल व बबली को ले कर यमुना किनारे पहुंची. उन की निशानदेही पर पीएसी के गोताखोरों को बुला कर कई घंटे तक यमुना में लाश की तलाश कराई गई, लेकिन लाश नहीं मिली. अंधेरा होने के कारण लाश ढूंढने का कार्य रोकना पड़ा. रविवार की सुबह पुलिस ने गोताखोरों और स्टीमर की मदद से लाश को तलाशने की कोशिश की. लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला.

बहरहाल, पुलिस हरिओम का शव बरामद नहीं कर सकी. शायद बह कर आगे निकल गया होगा. पुलिस ने बबली और उस के प्रेमी कमल को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Uttar Pradesh Crime : सुभाष बाथम से 24 बच्चों को कैसे बचाया गया

Uttar Pradesh Crime : समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो यह सोचते हैं कि वे जो कह रहे हैं, कर रहे हैं वही सही है. सुभाष बाथम भी इसी सोच का था. इसी के चलते उस ने 24 मासूम बच्चों को घर में कैद कर लिया. लेकिन उसे मिला क्या, मौत. आखिर उस ने…

30 जनवरी, 2020 की शाम 4 बजे फर्रुखाबाद जिले के करथिया गांव में एक दहशतजदा खबर फैली. खबर यह थी कि गांव के ही सुभाष बाथम ने अपने घर में 2 दरजन मासूम बच्चों को बंधक बना लिया है. उस ने बच्चों को अपनी एक साल की बेटी गौरी के जन्मदिन पर खाने की चीजें देने के बहाने बुलाया था, जिस के बाद उन्हें कैद कर लिया. जिस ने भी यह खबर सुनी, सुभाष के घर की ओर दौड़ पड़ा. कुछ ही देर में उस के घर के बाहर भीड़ जुटने लगी. सभी खौफजदा थे, लेकिन उन लोगों का हाल बेहाल था, जिन के जिगर के टुकड़े घर के अंदर कैद थे.

यह खबर तब फैली जब सुभाष बाथम के पड़ोस में रहने वाले आदेश बाथम की पत्नी बबली अपनी बेटी खुशी और बेटे आदित्य को बुलाने उस के घर पहुंची. उस ने सुभाष के घर का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उस ने दरवाजा खोलने से मना कर दिया. उस ने जब ज्यादा जिद की तो सुभाष बोला, ‘‘पहले गांव के लालू को बुला कर ला.’’

बबली ने मना किया तो वह गालीगलौज करने लगा. बदहवास बबली अपने घर आई और अपने पति आदेश तथा अन्य घरवालों को बच्चों को बंधक बनाए जाने की जानकारी दी. उस के बाद यह खबर पूरे गांव में फैल गई. बच्चों को बंधक बनाए जाने की खबर ग्रामप्रधान शशि सिंह और उन के पति हरवीर सिंह को मिली तो उन्होंने तत्काल डायल 112 को सूचना दी. खबर मिलते ही पीआरवी आ गई. पीआरवी के जवान जयवीर तथा अनिल ने सुभाष के घर का दरवाजा खटखटाया और कहा, ‘‘सुभाष, दरवाजा खोलो. तुम्हारी जो भी समस्या होगी, उस का निदान किया जाएगा, बच्चों को छोड़ दो.’’

लेकिन सुभाष बाथम ने दरवाजा नहीं खोला. परेशान हो कर दीवान जयवीर ने कोतवाली मोहम्मदाबाद को सूचना दी. इस पर कोतवाल राकेश कुमार पुलिस बल के साथ करथिया गांव आ गए. सुभाष के घर के बाहर ग्रामीणों की भीड़ जुटी थी. इंसपेक्टर राकेश कुमार ने अपना परिचय दे कर दरवाजा खोलने को कहा तो सुभाष बोला, ‘‘मैं ने बच्चों को बंधक बना लिया है, दरवाजा तभी खुलेगा जब डीएम, एसपी और विधायक यहां आएंगे.’’

इसी के साथ सुभाष ने गोली चलानी शुरू कर दी. इतना ही नहीं, उस ने अंदर से हैंडग्रैनेड भी फेंका, जिस से इंसपेक्टर राकेश कुमार, दरोगा संजय सिंह, दीवान जयवीर और सिपाही अनिल कुमार घायल हो गए. इंसपेक्टर राकेश कुमार को समझते देर नहीं लगी कि मामला बेहद गंभीर है. चूंकि घर के अंदर 2 दरजन बच्चे बंधक थे, ऐसे में बिना बड़े अधिकारियों के आदेश से कोई कदम नहीं उठाया जा सकता था. दूसरी बात बच्चों को बंधक बनाने वाला सुभाष खुद भी एसपी, डीएम और विधायक को बुलाने की मांग कर रहा था. राकेश कुमार ने तत्काल पुलिस अधिकारियों, डीएम तथा क्षेत्रीय विधायक को फोन कर के घटना की सूचना दी और तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने को अनुरोध किया.

आपात जैसी स्थिति और मासूम बच्चे चूंकि मामला मासूम बच्चों को बंधक बनाने का था, इसलिए सूचना मिलते ही शासनप्रशासन में हड़कंप मच गया. एसपी डा. अनिल कुमार मिश्र, एएसपी त्रिभुवन प्रताप सिंह तथा सीओ (मोहम्मदाबाद) राजवीर सिंह करथिया गांव आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फर्रुखाबाद जिले के कई थानों की फोर्स बुलवा ली. जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह तथा भोजपुर विधायक नागेंद्र राठौर भी सूचना पा कर करथिया गांव आ गए. एसपी डा. अनिल कुमार मिश्र ने गांव वालों से जानकारी जुटाई तो पता चला सुभाष के घर एक साल से ले कर 13 साल तक के 24 बच्चे बंधक हैं. सुभाष बाथम की पत्नी रूबी और उस की एक वर्षीया बेटी गौरी भी घर के अंदर थीं.

गांव के जिन मासूमों को बंधक बनाया गया था, उन में आर्बी पुत्री आनंद, रोशनी पुत्री सत्यभान, अरुण, अंजलि, लवी पुत्र नरेंद्र, भानु पुत्र मदनपाल, खुशी, मुसकान, आदित्य पुत्र आदेश विनीत पुत्र रामकिशोर, पायल, प्रिंस पुत्र नीरज, प्रशांत, नैंसी पुत्री राकेश, आकाश, लक्ष्मी पुत्री ब्रजकिशोर, अक्षय पुत्र अरुण, गौरी पुत्री लालजीत, लवकुमार, सोनम, शबनम और गुगा, जमुना पुत्री आशाराम शामिल थे. इन बच्चों में सब से बड़ी नरेंद्र की बेटी अंजलि थी जो 13 वर्ष की थी. जबकि सब से छोटी शबनम 6 महीने की थी. पुलिस अधिकारियों ने सुभाष बाथम को समझाया, साथ ही आश्वासन दिया कि उस की जो भी डिमांड होगी, पूरी की जाएगी. वह बच्चों को रिहा कर दे, वे भूखप्यास से तड़प रहे होंगे.

इस पर सुभाष ने घर के अंदर से धमकी दी कि अगर पुलिस ने उस के घर में घुसने की जुर्रत की तो वह पूरे घर को बारूद से उड़ा देगा. सारे बच्चे मारे जाएंगे, क्योंकि उस के पास 32 किलो बारूद है. इस चेतावनी के बाद पुलिस पीछे हट गई. पुलिस अधिकारी सूझबूझ से काम ले रहे थे ताकि शातिर बाथम कोई खुराफात न कर बैठे. इस बीच विधायक नागेंद्र सिंह राठौर आगे आए. उन्होंने पुलिस अधिकारी से माइक ले कर सुभाष से बात करने का प्रयास किया तो उस ने उन्हें निशाना बना कर फायर झोंक दिया. इस हमले में विधायक बालबाल बचे. उस ने विधायक को वापस चले जाने को कहा. इस के बाद वह पीछे हट गए. इधर पुलिस अधिकारियों को पता चला कि गांव का अनुपम दुबे सुभाष का मित्र है. वह उस के साथ उठताबैठता है. चोरी के एक मामले में उस ने सुभाष को जमानत पर रिहा कराया था.

यह भी पता चला कि सुभाष की पत्नी रूबी की पड़ोसन विनीता से पटरी बैठती है. संभव है कि इन दोनों के समझाने पर सुभाष मान जाए और बच्चों को रिहा कर दे. पुलिस अधिकारियों ने अनुपम दुबे और विनीता को मौके पर बुलवा लिया और सुभाष को समझाने का अनुरोध किया. अनुपम दुबे के आवाज देने पर सुभाष मुख्य दरवाजे पर आ कर उस से बात करने लगा. उस ने कहा कि गांव वालों ने उसे चोरी के झूठे इलजाम में फंसाया था, अब भुगतो. जब अनुपम दुबे उसे समझाने लगा तो सुभाष गुस्से में आ गया. उस ने दरवाजे के नीचे अनुपम पर फायर कर दिया. गोली अनुपम के पैर में लगी और वह तड़पने लगा. उसी समय विनीता हिम्मत जुटा कर आगे बढ़ी और रूबी को ऊंची आवाज में पुकारने लगी.

रूबी तो सामने नहीं आई लेकिन सुभाष ने विनीता पर भी फायर झोंक दिया. वह भी घायल हो कर तड़पने लगी. पुलिस ने तत्काल दोनों को इलाज के लिए डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल भेजा. अब तक क्यूआरटी और एसओजी टीम भी घटनास्थल पर आ गई थीं. फोर्स ने आते ही सुभाष के घर को चारों ओर से घेर कर मोर्चा संभाल लिया. पुलिस ने कई बार घर के अंदर घुसने का प्रयास किया, लेकिन बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए पीछे हट जाती. सुभाष घर के अंदर से संवाद भी करता जा रहा था और गोली भी चला रहा था. कभी वह बच्चों के लिए बिसकुट की डिमांड करता तो कभी मीडिया वालों को बुलाने की बात करता.

पुलिस अधिकारी बराबर सुभाष के घर की टोह ले रहे थे. लेकिन उन्हें बच्चों के रोनेचिल्लाने या बोलने की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी. जबकि घर के अंदर 1-2 नहीं बल्कि 24 बच्चे कैद थे. बच्चों की आवाज न आने से पुलिस अधिकारी परेशान थे. डर के बावजूद तमाशा जारी था बच्चों के बंधक बनाए जाने की खबर पा कर मीडियाकर्मियों का भी जमावड़ा शुरू हो गया था. न्यूज चैनलों ने खबर का सीधा प्रसारण शुरू कर दिया, जिस से उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में खलबली मच गई. चैनलों की बे्रकिंग न्यूज लोगों की धड़कनें बढ़ा रही थीं. सभी के मन में जिज्ञासा थी कि बंधक बनाए गए बच्चों के साथ क्या होने वाला है.

करथिया गांव के अलावा पासपड़ोस के दरजनों गांवों में भी खबर फैल गई थी, सुन कर गांवों के हजारों लोग वहां आ गए. गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका था. पुलिस के लिए भीड़ को संभालना मुश्किल होता जा रहा था. भीड़ के कारण पुलिस के काम में बाधा आ रही थी. भीड़ को रोकने के लिए पुलिस बीचबीच में बल भी प्रयोग कर रही थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रयागराज, गोरखपुर के कार्यक्रमों में शिरकत कर लखनऊ लौटे तो उन्हें फर्रुखाबाद के करथिया गांव में 2 दरजन मासूम बच्चों के बंधक बनाए जाने की जानकारी हुई. उन्होंने फर्रुखाबाद के एसपी व डीएम को फटकार लगाई, फिर औपरेशन मासूम के नाम पर उच्चस्तरीय बैठक की.

इस बैठक में प्रमुख सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी, डीजीपी ओमप्रकाश सिंह और एडीजी (ला ऐंड और्डर) पी.वी. राम शास्त्री ने भाग लिया. योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों से बच्चों को सुरक्षित निकालने का आदेश दिया. उन्होंने कहा कि बच्चों को सुरक्षित बचाना हमारी प्राथमिकता है. किसी के शरीर पर खरोंच भी नहीं आनी चाहिए. मुख्यमंत्री का आदेश पाते ही डीजीपी ओमप्रकाश सिंह ने औपरेशन मासूम की कमान आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल को सौंपी और उन्हें तत्काल करथिया गांव रवाना कर दिया. एडीजी (ला ऐंड और्डर) पी.वी. राम शास्त्री ने एटीएस टीम को तुरंत करथिया गांव भेजा. अधिकारी डीजीपी औफिस से औपरेशन मासूम की मौनिटरिंग करने लगे.

मासूमों की जिंदगी से चिंतित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना की जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को भी दी. योगी ने गृहमंत्री अमित शाह से एनएसजी कमांडो भेजने को कहा. फलस्वरूप एनएसजी कमांडोज को करथिया गांव रवाना कर दिया गया. तब तक रात के 10 बज चुके थे. भीषण ठंड के बावजूद हजारों लोग घटनास्थल पर मौजूद थे. पुलिस की टीम तो थी ही. सब की निगाहें सुभाष के घर को ताक रही थीं. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बच्चों को कैसे मुक्त कराया जाए. पुलिस असहज थी, लोग दहशत में थे. सब से ज्यादा वे महिलाएं बेहाल थीं, आंसू बहा रही थीं, जिन के जिगर के टुकड़े मकान में कैद थे.

जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह और एसपी डा. अनिल कुमार मिश्रा शातिर अपराधी सुभाष की गतिविधियों पर नजर गड़ाए थे. उस का ध्यान बंटाने के लिए उन्होंने गांव के 4 युवकों को लगा रखा था, जो उसे अच्छी तरह से जानते थे. इन्हीं में से एक युवक ने कहा कि डीएम साहब आ गए हैं, घर के बाहर आ कर अपनी बात कहो. इस पर सुभाष बोला, ‘‘मैं ने कई बार कलेक्ट्रेट के चक्कर लगाए. कालोनी मांगी, शौचालय मांगा, लेकिन कुछ नहीं मिला. अब चाहे कोई भी आ जाए, मैं दरवाजा नहीं खोलूंगा.’’

थोड़ी देर बाद सुभाष ने दीवार के छेद से एक पत्र बाहर फेंका. जिलाधिकारी को संबोधित उस पत्र में उस ने कई समस्याएं लिखीं. उस ने लिखा कि वह मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार को पालता है. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कालोनी आई, लेकिन प्रधान शशि सिंह और उन के पति ने नहीं दी. शौचालय भी नहीं बनवाया. सेक्रेटरी के पास गया, कलेक्ट्रेट के चक्कर लगाए, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ. प्रति बच्चा एक करोड़ मांगे सुभाष बाथम ने एसओजी के सिपाही ललित से बात की और तमाम इलजाम लगाए. उस ने कहा कि एसओजी के सिपाही सचेंद्र व अनुज ने उसे चोरी के इलजाम में झूठा फंसाया, उसे मारापीटा, करेंट लगाया. उस ने मोहम्मदाबाद थाने के सिपाही लल्लू पर भी प्रताडि़त करने का आरोप लगाया.

मकान के अंदर से केवल सुभाष ही संवाद नहीं कर रहा था, बल्कि उस की पत्नी रूबी भी बात कर रही थी. गांव के एक युवक अमित ने जब रूबी से बात की तो उस ने धनाढ्य बनने की लालसा जाहिर की. उस ने प्रति बच्चा छोड़ने की कीमत एक करोड़ रुपया रखी. कहा कि यदि अधिकारी 24 करोड़ रुपए देने को राजी हो जाएं तो वह सभी बच्चों को रिहा कर देगी. साथ ही उस ने सुभाष के खिलाफ चल रहे सभी मुकदमों को खत्म करने की भी शर्त रखी. रात 11 बजे पुलिस ने भीड़ को खदेड़ कर सुभाष बाथम के घर की नाकेबंदी कर दी. इसी बीच सुभाष के एक परिचित अंशुल दुबे ने डीएम व एसपी की मौजूदगी में सुभाष से बात की. अंशुल ने सुभाष से कहा कि उस की कैद में 6 महीने की शबनम है. वह भूखीप्यासी होगी, उसे बाहर निकाल दे.

इस पर कुछ देर बाद उस ने मासूम शबनम को पीछे वाले कमरे की दीवार के छेद से अंशुल को थमा दिया. शबनम को उस की मां ने सीने से लगा लिया. उस की बेटी सोनम और बेटा लवकुमार अब भी सुभाष की कैद में थे. लगभग 7 घंटे बाद पहली बच्ची कैद से छूटी तो अधिकारियों को लगा कि शायद सुभाष और उस की पत्नी का रुख नरम पड़ रहा है. इधर आईजी मोहित अग्रवाल लगभग 4 घंटे का सफर तय कर के रात साढ़े 12 बजे करथिया गांव पहुंचे. गांव पहुंचते ही उन्होंने औपरेशन मासूम की पहल शुरू कर दी. मोहित अग्रवाल एसओजी टीम के साथ सुभाष बाथम के मकान की छत पर पहुंचे और वहां का जायजा लिया.

फिर वह पड़ोस के मकान की छत पर पहुंचे और पूरी स्थिति को भांपा. उन्होंने छतों पर अत्याधुनिक हथियारों को लोड करा कर पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया और अलर्ट रहने को कहा. फिर उन्होंने सुभाष के घर का एक चक्कर लगा कर जायजा लिया. इसी बीच सुभाष बाथम को महसूस हुआ कि पुलिस की गतिविधियां तेज हो रही हैं. उस ने दहशत फैलाने के लिए लगातार 2 फायर किए. दोनों फायरिंग में लगभग 10 सेकेंड का अंतराल था. आईजी मोहित अग्रवाल ने महसूस किया कि अगर सुभाष पर काबू पाना है तो औपरेशन को 10 सेकेंड में पूरा करना होगा. क्योंकि वह एक बार फायर करने के बाद 10 सेकेंड में हथियार लोड करता है.

उन्होंने यह भी देख लिया कि घर के अंदर जाने के 2 दरवाजे हैं. मुख्य दरवाजा सामने है जो लोहे का बना है, जबकि दूसरा मकान के पीछे था जो लकड़ी का था. तय हुआ कि जब सुभाष गोली चलाएगा, तभी पुलिस पीछे का दरवाजा तोड़ कर घर के अंदर दाखिल होगी और 10 सेकेंड के अंदर उसे पकड़ लेगी. यह भी तय हुआ कि दरवाजा टूटने की भनक सुभाष और उस की पत्नी को न लगे, इसलिए कुछ स्थानीय युवकों को घर के सामने से पत्थरबाजी करने व शोर मचाने को कहा गया. आईजी की रणनीति में फंसा सुभाष सुभाष आईजी की इस रणनीति में फंस गया. कुछ देर बाद सुभाष ने जैसे ही गोली चलाई, पुलिस टीम ने पीछे का दरवाजा तोड़ा और घर के अंदर दाखिल हो गई.

जब तक पुलिस सुभाष के सामने पहुंची, तब तक वह दोबारा गोली लोड कर चुका था. उस ने गोली चलाई जो आईजी मोहित अग्रवाल की बुलेटप्रूफ जैकेट में लगी. वार खाली जाते देख वह पत्नी रूबी के साथ गेट खोल कर बाहर की ओर भागा. भीड़ ने रूबी को घेर लिया और मारोमारो कहते हुए उस पर टूट पड़ी. यह देख कर सुभाष घबरा गया और पीछे उसी कमरे की ओर भागा जहां बच्चे कैद थे. योजना के मुताबिक वहां पहले से ही पुलिस तैनात थी. पुलिस को देखते ही उस ने एसओजी प्रभारी दिनेश कुमार गौतम पर फायर कर दिया. इस बार भी उस की गोली बुलेटप्रूफ जैकेट में फंस गई.

सुभाष दोबारा फायर करने ही वाला था, तभी एसओजी के सिपाही नवनीत कुमार ने एके47 से सुभाष पर फायर झोंक दिया. वह घायल हो कर गिर पड़ा और मौके पर ही दम तोड़ दिया. इधर भीड़ ने सुभाष की पत्नी रूबी को पीटपीट कर बुरी तरह घायल कर दिया. बड़ी मशक्कत के बाद पुलिस रूबी को भीड़ के चंगुल से छुड़ा पाई. उसे इलाज के लिए डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया. उस की हालत गंभीर होने के कारण डाक्टरों ने उसे सैफई रेफर कर दिया. लेकिन उस ने सैफई पहुंचने के पहले ही रास्ते में दम तोड़ दिया. पुलिस उस के शव को वापस ले आई.

सुभाष बाथम ने कमरे के अंदर एक तहखाना बना रखा था, जिस में सभी बच्चे कैद थे. तहखाने का दरवाजा अंदर से बंद था. पुलिस ने दरवाजा पीटा और पुलिस की मौजूदगी का आभास कराया, इस पर अंजलि नाम की बालिका ने दरवाजा खोला. उस के बाद आईजी मोहित अग्रवाल ने सभी बच्चों को रिहा करा कर उन के मातापिता को सौंप दिया. अपने बच्चों को सहीसलामत पा कर उन की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. पुलिस ने उस कमरे से एक मासूम को भी बरामद किया. यह मासूम औपरेशन के दौरान मारे गए सुभाष बाथम की एक वर्षीय पुत्री गौरी थी. आईजी मोहित अग्रवाल ने उसे गोद में लिया, दुलारा फिर महिला सिपाही रजनी को सौंप दिया.

अब तक एनएसजी टीम दिल्ली से आगरा पहुंच चुकी थी. टीम को औपरेशन मासूम सफल होने की जानकारी मिली तो टीम आगरा से वापस लौट गई. लखनऊ से रवाना एटीएस टीम भी औपरेशन पूरा होने के बाद ही पहुंच पाई. आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल ने सभी बंधक बच्चों को सकुशल मुक्त कराने और अपराधी सुभाष बाथम के मारे जाने की जानकारी डीजीपी ओमप्रकाश सिंह, प्रमुख सचिव (गृह) तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दी, तो सभी के चेहरे खिल उठे. मुख्यमंत्री ने आईजी मोहित अग्रवाल को बधाई दी और उन की टीम को ईनामस्वरूप 10 लाख रुपए देने की घोषणा की.

31 जनवरी, 2020 की सुबह पौ फटते ही बच्चों को बंधक बनाने वाले सुभाष बाथम के मारे जाने तथा बच्चों के सकुशल मुक्त होने की खबर जंगल की आग की तरह फैली तो कई गांवों के लोग सुभाष का शव देखने के लिए उमड़ पड़े. चारों तरफ पुलिस जिंदाबाद के नारे लगने लगे. एडीजी (कानपुर जोन) जे.एन. सिंह तथा कमिश्नर सुधीर एम. बोवडे भी घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने भी पुलिस पार्टी की प्रशंसा की. इस के बाद सुभाष और उस की पत्नी रूबी के शवों को पोस्टमार्टम हाउस फर्रुखाबाद भेज दिया गया. सुभाष बाथम के घर की तलाशी तथा विस्फोटक बरामदगी हेतु एएसपी त्रिभुवन सिंह की देखरेख में बम निरोधक टीम करथिया गांव पहुंची. बम निरोधक दस्ते ने सुभाष के घर की तलाशी ली तो तहखाने में 5 किलो के गैस सिलेंडर में विस्फोटक भरा मिला. साथ ही 4 बड़े तथा 4 छोटे बम भी मिले.

इस के अलावा भारी मात्रा में बारूद, गंधक, पोटाश, बजरी और तार बरामद हुआ. तेज धमाके वाले 100 पटाखे व 30 अर्धनिर्मित बम भी बरामद हुए. घर में एक .315 बोर का तमंचा, एक राइफल, 20 खोखे और 2 दरजन से अधिक जिंदा कारतूस बरामद हुए. एक मोबाइल फोन भी बरामद हुआ. सुभाष बाथम के घर से विस्फोटक का जो जखीरा मिला, उस से साफ हो गया कि अगर धमाका होता तो 40 मीटर के दायरे में तबाही मच जाती. यह बात भी साफ थी कि सुभाष बम बनाना जानता था. सिलेंडर को सौर ऊर्जा की प्लेट और नीचे बैटरी के तार से जोड़ा गया था. दोनों तारों के कनेक्शन आपस में जुड़ जाते तो बड़ा धमाका हो जाता.

बच्चों ने झेली थी मानसिक यंत्रणा दूसरी तरफ फोरैंसिक टीम ने तमंचा, राइफल तथा कारतूसों को साक्ष्य के तौर पर सील कर दिया. एएसपी त्रिभुवन सिंह ने सुभाष के मोबाइल को जांच हेतु जाब्ते में शामिल कर लिया. पूरे घर को खंगालने के बाद पुलिस ने सुभाष बाथम के मकान को सील कर के बाहर पुलिस का पहरा बिठा दिया. इधर आईजी मोहित अग्रवाल ने डीएम मानवेंद्र सिंह, विधायक नागेंद्र सिंह राठौर, एसपी डा. अनिल कुमार मिश्र और गांव वालों की मौजूदगी में बंधक बनाए गए कुछ बच्चों से बातचीत की. इन में गांव के दिवंगत नरेंद्र की 13 वर्षीय बेटी अंजलि भी थी. अंजलि नौवीं कक्षा की छात्रा थी, समझदार. अंजलि ने कैद के दौरान उन 11 घंटों की खौफनाक दास्तां बताई तो सभी के रोंगटे खड़े हो गए.

अंजलि ने बताया कि जब वह चाचा (सुभाष) के घर पहुंची तो तहखाने में 12 बच्चे मौजूद थे. इस के बाद धीरेधीरे उस की तरह 24 बच्चे आ गए. बच्चों को एक दरी दी गई, सब उसी पर बैठ गए. वहां जन्मदिन मनाने जैसा कोई इंतजाम नहीं था, जिस से उस के मन में कुछ संशय हुआ. कुछ देर में बच्चे शोर मचाने लगे तो सुभाष चाचा ने उन्हें डांटा और धमकी दी कि शोर मचाया तो बम से उड़ा देंगे. धमकी से बच्चे डर गए. इस के बाद तो बच्चों की सिसकियों पर भी पाबंदी लग गई. भूख और प्यास पर खौफ हावी हो गया. सामने मौत खड़ी थी, लेकिन कोई आवाज भी निकालता तो दूसरा बच्चा उस के मुंह पर हाथ लगा देता.

खौफनाक मंजर का हाल बताते समय अंजलि के चेहरे पर दहशत झलक रही थी. उस ने बताया कि तहखाने के अंदर एक बोरी में बारूद रखा था, जिस में बिजली का तार लगा था. एक 5 किलोग्राम का गैस सिलेंडर भी रखा था. उस में से भी तार निकला था, जो ऊपर कमरे की ओर गया था. सुभाष चाचा बारबार धमकी दे रहे थे कि अगर मुंह से आवाज निकाली तो सब को बम से उड़ा देंगे. धमकी देने के बाद चाचा तहखाने से बाहर गए तो उस ने लपक कर तहखाने का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. फिर चाचा के कहने पर भी नहीं खोला.

अंजलि ने बताया कि जब उस की निगाह बोरी और सिलेंडर पर पड़ी तो उसे लगा कि चाचा बोरी में रखे बारूद से ही उड़ाने की धमकी दे रहा है. उस ने हिम्मत जुटा कर बोरी के बाहर निकला तार दांत से काट दिया, फिर गैस सिलेंडर से निकला तार भी दांत से काट दिया. चाची (रूबी) ने दरवाजे के नीचे से बिसकुट और खाना दिया, लेकिन किसी ने कुछ नहीं खाया और चुप रहे. रात करीब डेढ़ बजे पुलिस के कहने पर उस ने अंदर से दरवाजा खोला. सुभाष और रूबी का शव कोई भी लेने को तैयार नहीं था, उस की मां सुरजा देवी भी इनकार कर चुकी थी. अंतत: पुलिस ने दोनों शवों का अंतिम संस्कार कर दिया. सुभाष कौन था, वह अपराधी कैसे बना, उस ने मासूम बच्चों को बंधक क्यों बनाया, उस की पत्नी रूबी ने उस का साथ क्यों दिया? यह सब जानने के लिए अतीत में लौटना होगा.

फर्रुखाबाद जिले के थाना मोहम्मदाबाद क्षेत्र में एक गांव है करथिया. इटावा बेबर रोड पर बसा यह गांव जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर है. करथिया में 300 परिवार रहते हैं और यहां की आबादी है 1200. ज्यादातर परिवार खेतीकिसानी करते हैं. गरीब परिवार अधिक हैं जो मेहनतमजदूरी कर अपनी जीविका चलाते हैं. इसी करथिया गांव के जगदीश प्रसाद बाथम का बेटा था सुभाष. वह शुरू से ही क्रोधी और सनकी था. वह आवारा लोगों के साथ घूमता, उन के साथ बैठ कर शराब पीता, शराब पी कर उत्पात मचाता. मात्र 13 साल की उम्र में सुभाष चोरी करने लगा. सन 1998-99 में उस पर चोरी के 2 मुकदमे दर्ज हुए, जिन के इलजाम में थाना मोहम्मदाबाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया.

जेल से बाहर आने के बाद वह फिर अपराध करने लगा. वह जबरदस्ती घर का अनाज बेच देता, मां विरोध करती तो उस के साथ मारपीट करता. पति की मौत के बाद दुष्ट बेटे से तंग आ कर सुरजा देवी अपनी बहन के घर अहकारीपुर जा कर रहने लगी. स्वभाव से चिड़चिड़ा और सनकी था सुभाष सुभाष की मौसी सुमन इसी करथिया गांव में मेघनाथ को ब्याही थी. मेघनाथ गांव के स्कूल में चपरासी था. सुभाष का मौसा मेघनाथ सुभाष को इसलिए पसंद नहीं करता था क्योंकि वह चोरी करता था. मेघनाथ उसे सुधर जाने की नसीहत देता था. इस के चलते सुभाष अपने मौसा से खुन्नस खाने लगा था. इसी खुन्नस में उस ने 25 नवंबर, 2001 की सुबह 8 बजे चाकू घोंप कर मौसा मेघनाथ की हत्या कर दी.

सुमन ने पति की हत्या की रिपोर्ट सुभाष के खिलाफ लिखवाई. थाना मोहम्मदाबाद पुलिस ने सुभाष को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. सन 2005 में सुभाष को 10 साल की सजा सुनाई गई. सजा की अवधि 2015 में पूरी हुई. उस के बाद वह जेल से घर आ गया और मेहनतमजदूरी कर के अपना भरणपोषण करने लगा. हालांकि उस ने चोरी करना अब भी नहीं छोड़ा था.सुभाष की गांव के वीरपाल कठेरिया से दोस्ती थी. दोनों साथ बैठ कर शराब पीते थे. एक दिन सुभाष की नजर वीरपाल कठेरिया की साली रूबी पर पड़ी. पहली ही नजर में रूबी सुभाष के मन को भा गई. उस ने रूबी के सामने प्यार का इजहार किया और शादी का प्रस्ताव रखा. रूबी राजी हो गई. इस के बाद सुभाष ने रूबी के साथ प्रेम विवाह कर लिया. दलित की बेटी बाथम परिवार में बहू बन कर आई तो बाथम बिरादरी के लोगों ने सुभाष का बहिष्कार कर दिया.

रूबी से शादी करने के बाद सुभाष ने अपनी 4 बीघा जमीन बेच दी. इस पैसे से उस ने बंकरनुमा घर बनाया. घर के भीतर के गोपनीय ठिकानों की किसी को जानकारी न हो, इस के लिए उस ने बाहर से राजमिस्त्री या मजदूर बुलाने के बजाय पत्नी के साथ मिल कर निर्माण किया. कमरे के अंदर ही उस ने तहखाना बनाया. इसी बीच उस ने सरकारी कालोनी तथा शौचालय पाने का प्रयास किया, लेकिन मिला कुछ नहीं. सन 2019 के जनवरी महीने में रूबी ने एक बच्ची को जन्म दिया. बेटी गौरी के जन्म से रूबी सुभाष दोनों खुश थे. गौरी अभी 6 महीने की थी कि एसओजी ने सुभाष को फतेहगढ़ में हुई चोरी के आरोप में पकड़ लिया. पुलिस ने उस को खूब टौर्चर किया और जेल में भेज दिया.

3 महीने पहले वह जमानत पर घर आया तो उस के मन में टीस बनी रही. यह भी खुन्नस थी कि बिरादरी के लोग उस का साथ नहीं देते थे. उस के मन में इस बात की टीस भी थी कि सरकारी सिस्टम से उसे कोई मदद नहीं मिल रही थी. उसे टौर्चर करने वाली पुलिस, ग्रामप्रधान, जो उस के खिलाफ थी, पर भी गुस्सा था. खतरनाक इरादा था इसी सब की वजह से सुभाष ने कुछ ऐसा धमाका करने की सोची, जिस से वह सब से हिसाब बराबर कर सके. सुभाष को मोबाइल फोन चलाना अच्छी तरह आता था. उस ने गूगल व यूट्यूब से सर्च कर के बम बनाना और इस के लिए उपकरण बनाना सीखा. गूगल सर्च में ही उस ने मास्को (रूस) में बंधक बनाए गए बच्चों का वीडियो देखा.

वीडियो को देख कर उस ने भी मासूम बच्चों को बंधक बनाने की योजना तैयार की. इस के बाद वह तैयारी में जुट गया. उस ने अपने घर को बारूद के ढेर पर खड़ा कर दिया. उस के पास तमंचा व राइफल पहले से ही थी. सुभाष ने कारतूस भी खरीद कर रख लिए. 30 जनवरी को उस की बेटी का बर्थडे था. उस ने दोपहर बाद से बच्चों को बर्थडे पार्टी में बुलाना शुरू कर दिया. 3 बजे तक 24 बच्चे उस के घर आ गए. इन बच्चों को उस ने तहखाने में बंधक बना लिया और धमकी दी कि शोर मचाया तो वह सब को बम से उड़ा देगा. घटना की जानकारी तब हुई, जब बबली अपने बच्चों को बुलाने गई. इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने सर्च औपरेशन कर बंधक बच्चों को छुड़ाया और अपराधी को मार गिराया.

7 फरवरी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने 5, कालिदास मार्ग स्थित आवास पर सभी 24 बच्चों को सम्मानित किया. योगी ने इस अवसर पर मारे गए सुभाष बाथम की बेटी गौरी की परवरिश सरकार द्वारा किए जाने की घोषणा की. इस के अलावा सिलेंडर बम का तार निकाल कर तहखाने में बंधक बच्चों की जान बचाने वाली 13 वर्षीया अंजलि को बतौर पुरस्कार 51 हजार रुपए दिए जाने की घोषणा की. उसे एक टैबलेट दे कर सम्मानित भी किया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Madhya Pradesh Crime : दो हजार रुपए की लालच में मां ने अपने ही प्रेमी से कराया बेटी का रेप

Madhya Pradesh Crime : पैसे ले कर बलात्कार के लिए अपनी नाबालिग बेटी को किसी वहशी को सौंपने वाली कई मांएं होंगी, जिन्हें मां के नाम पर कलंक ही कहा जा सकता है. ऊषा भी ऐसी ही मां थी, जिस ने मात्र 600 रुपए में अपनी नाबालिग बेटी को अपने यार महमूद को सौंप  दिया. लेकिन…

बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. मध्य प्रदेश के धार जिले के थाना बगदून के टीआई आनंद तिवारी अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन के पास एक महिला आई. उस महिला के साथ 12-13 साल की एक किशोरी भी थी. महिला के साथ आई किशोरी काफी डरी हुई थी. अनीता नाम की महिला ने टीआई को बताया कि इस लड़की के साथ बहुत ही घिनौना कृत्य किया गया है. महिला की बात को समझ कर थानाप्रभारी ने तुरंत एसआई रेखा वर्मा को बुला लिया. रेखा वर्मा ने उस महिला व उस के साथ आई लड़की से पूछताछ की तो उन की कहानी सुन कर वह आश्चर्यचकित रह गईं. वह सोच में पड़ गईं कि क्या कोई मां ऐसी भी हो सकती है. उन दोनों ने पूछताछ के बाद महिला एसआई रेखा वर्मा ने टीआई आनंद तिवारी को सारी बात बता दी.

सुन कर टीआई भी बुरी तरह चौंके. वही क्या कोई भी इस बात पर भरोसा नहीं कर सकता था कि एक मां अपनी मासूम बेटी के साथ एक अधेड़ व्यक्ति से बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करवाया. प्रारंभिक पूछताछ में थाने आई किशोरी ने बताया था कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है. पिता मांगीराम की मौत के बाद मां 4 भाईबहनों के साथ रह कर मेहनतमजदूरी करती थी. लेकिन 4 साल पहले मां ने तब मजदूरी करनी छोड़ दी जब उस की दोस्ती मटन बेचने वाले महमूद से हुई. तब से महमूद अकसर उस के घर आने लगा था. पीडि़त बच्ची ने आगे बताया कि महमूद के आने पर मां सब भाईबहनों को बाहर के कमरे में बैठा कर खुद उस के साथ कमरे में चली जाती थी.

ऐसा बारबार होने लगा तो मैं ने एक दिन चुपचाप झांक कर देखा. मां और महमूद पूरी तरह नंगे हो कर गंदा खेल खेल रहे थे. मैं ने मां को इस बात के लिए मना किया तो उस ने उलटा मुझे डांट दिया और खामोश रहने की हिदायत दी. उस लड़की ने आगे बताया कि 15 अक्तूबर को महमूद शाम को हमारे घर आया तो मां ने मुझे उस के साथ पीछे के कमरे में भेज दिया. उस कमरे में महमूद मुझ से अश्लील हरकतें करने लगा. मैं ने भागने की कोशिश की तो मां ने मेरे हाथपैर बांध दिए और खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई. तब महमूद ने मेरे साथ गंदा काम किया.

इस के बाद वह मां को 600 रुपए दे कर चला गया. इस बात की जानकारी मैं ने पड़ोस में रहने वाली अनीता आंटी को दी तो उन्होंने मदद करने का वादा किया. आज फिर महमूद हमारे घर आया और मुझे पकड़ कर पीछे के कमरे में ले जाने लगा, जिस पर मैं मां और उस की पकड़ से छूट कर बाहर भाग आई. काफी देर बाद जब घर वापस लौटी तो मेरी मां ने मेरे साथ मारपीट की, जिस के बाद मैं आंटी को ले कर थाने आ गई. पड़ोस में रहने वाली अनीता के साथ आई मासूम बच्ची के झूठ बोलने की कोई संभावना और कारण नहीं था, इसलिए टीआई आनंद तिवारी ने उसी वक्त मासूम किशोरी का मैडिकल परीक्षण करवाया, जिस में उस के साथ दुष्कर्म किए जाने की पुष्टि हुई.

इस के बाद टीआई ने किशोरी की आरोपी मां ऊषा और उस के आशिक महमूद शाह के खिलाफ बलात्कार एवं पोक्सो एक्ट का मामला दर्ज कर के इस घटना की जानकारी एसपी (धार) आदित्य प्रताप सिंह को दे दी. जबकि वह स्वयं पुलिस टीम ले कर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए निकल गए. दोनों आरोपी घर पर ही मिल गए. आधे घंटे में पुलिस 30 वर्षीय ऊषा और उस के 42 वर्षीय आशिक महमूद को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. पूछताछ की गई तो पहले तो मां और उस का आशिक दोनों बेटी को झूठा बताने की कोशिश करते रहे. लेकिन थोड़ी सी सख्ती करने पर उन्होंने सच्चाई बता दी. उन से पूछताछ के बाद जो हकीकत सामने आई, उस ने मां शब्द पर ही ग्रहण लगा दिया. कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि मां ऐसी भी हो सकती है.

मध्य प्रदेश के धार जिले के पीतमपुर गांव की रहने वाली ऊषा के पति मांगीराम की अचानक मौत हो गई थी. पति की मौत के बाद ऊषा के सामने बच्चों को पालने की समस्या खड़ी हो गई. उस के 4 बच्चे थे. 30 वर्षीय ऊषा को किसी तरहघर का खर्च तो चलाना ही था, लिहाजा वह मेहनतमजदूरी करने लगी. जवान औरत के सिर से अगर पति का साया उठ जाए तो कितने ही लोग उसे भूखी नजरों से देखने लगते हैं. ऊषा पर भी तमाम लोगों ने डोरे डालने शुरू कर दिए थे. इसी दौरान खूबसूरत ऊषा पर मटन की सप्लाई करने वाले महमूद शाह की नजर पड़ी. महमूद का बगदून में पोल्ट्री फार्म था. अपने फार्म से वह ढाबे और होटलों में मटन सप्लाई करता था.

महमूद ऊषा के नजदीक पहुंचने के लिए जाल बुनने लगा. इस से पहले महमूद गरीब घर की ऐसी कई लड़कियों और महिलाओं को अपना शिकार बना चुका था, वह जानता था कि गरीब औरतें जल्दी ही पैसों के लालच में आ जाती हैं. उस ने काम के बहाने ऊषा से जानपहचान बढ़ाई और उस के बिना मांगे ही उसे मटन देने लगा. ऊषा ने जब उस से कहा कि वह पैसा नहीं चुका पाएगी तो उस ने कहा कि कभी मुझे अपने घर बुला कर मटन खिला देना. मैं समझ लूंगा कि सारे पैसे वसूल हो गए. जवाब में ऊषा ने कह दिया कि आज ही आ जाना, खिला दूंगी. इस पर महमूद ने मिर्चमसाले आदि के लिए उसे 200 रुपए भी दे दिए.

ऊषा खुश हुई. उस ने उस के लिए मटन बना कर रखा लेकिन महमूद नहीं आया. अगले दिन ऊषा ने महमूद से शिकायत की तो उस ने कोई बहाना बना दिया और फिर किसी दिन आने को कहा. उस के बाद अकसर ऐसा होने लगा. ऊषा मटन बना कर उस का इंतजार करती. अब वह मटन के साथ उसे खर्च के पैसे भी देने लगा. इस तरह ऊषा का उस की तरफ झुकाव होने लगा. महमूद ऊषा की बातों और मुसकराहट से समझ गया था कि वह उस के जाल में फंस चुकी है, लिहाजा एक दिन वह दोपहर के समय ऊषा के घर चला गया. उस समय ऊषा के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने गए हुए थे. महमूद को घर आया देख ऊषा खुश हुई. महमूद उस से प्यार भरी बातें करने लगा. उसी दौरान दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.

हालांकि महमूद शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता था. लेकिन ऊषा ने जिस तरह उसे खुश किया, उस से वह बहुत प्रभावित हुआ. इस के बाद उसे जब भी मौका मिलता, ऊषा के घर चला आता. कुछ महीनों बाद उस के कहने पर ऊषा ने मजदूरी करना बंद कर दिया. उस के घर का पूरा खर्च महमूद ही उठाने लगा. वह भी दिन भर महमूद के साथ बिस्तर में पड़ी रहने लगी. ऊषा की बड़ी बेटी 12-13 साल की थी. मां के साथ महमूद को देख कर वह भी समझ गई थी कि मां किस रास्ते पर चल रही है. बेटी ने मां की इस हरकत का विरोध करने की कोशिश की. लेकिन ऊषा पर बेटी के समझाने का तो कोई फर्क नहीं पड़ा, उलटे महमूद की नजर बेटी पर जरूर खराब हो गई.

कुछ समय बाद महमूद ने ऊषा को 2 हजार रुपए दे कर बड़ी बेटी को उस के साथ सोने के लिए तैयार करने को कहा. 2 हजार रुपए देख कर वह लालच में अंधी हो गई और बेटी को उसे सौंपने को तैयार हो गई. जिस के चलते 15 अक्तूबर की शाम को महमूद ऊषा की बेटी के संग ऐश करने की सोच कर उस के घर पहुंचा. ऊषा ऐसी निर्लज्ज हो गई थी कि वह अपनी कोमल सी बच्ची को उस के हवाले करने को तैयार हो गई. महमूद के पहुंचने पर ऊषा ने बेटी को महमूद के साथ बात करने के लिए कमरे में भेज दिया. उसे देखते ही महमूद उस पर टूट पड़ा तो वह रोनेचिल्लाने लगी.

यह देख बेदर्द ऊषा कमरे में आई और बेटी की चीख पर दया दिखाने के बजाए उलटा उसे समझाने लगी, ‘‘कुछ नहीं होगा, थोड़ा प्यार कर लेने दे. तू महमूद को खुश कर देगी तो यह तुम्हें लैपटौप और मोबाइल दिला देंगे.’’

बच्ची डर के मारे रो रही थी. वह नहीं मानी तो बेहया ऊषा ने अपनी बेटी के हाथ और पैर बांध कर बिस्तर पर पटक दिया. इस के बाद महमूद को अपनी मन की करने का इशारा कर के वह कमरे के दरवाजे पर बैठ कर चौकीदारी करने लगी. महमूद वासना का भूखा भेडि़या बन कर उस कोमल बच्ची पर टूट पड़ा. असहाय और मासूम बच्ची दर्द से कराहती रही, लेकिन न तो उस दानव का दिल पसीजा और न ही जन्म देने वाली मां का. उस के नाजुक जिस्म को लहूलुहान करने के बाद महमूद मुसकराते हुए उठा और अपने कपड़े पहनने के बाद ऊषा को 600 रुपए दे कर दूसरे दिन फिर आने को कह कर वहां से चला गया.

बच्ची अपने शरीर से बहता खून देख कर डर गई तो ऊषा ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘नाटक मत कर. हर लड़की के साथ पहली बार यही होता है. तू इस से मरेगी नहीं, 1-2 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’’

दूसरे दिन हवस का भेडि़या बन कर महमूद फिर आया पर ऊषा ने उसे समझाया कि बच्ची अभी घायल है. 2-4 दिन उस से मुलाकात नहीं कर सकती. इस पर महमूद ऊषा के संग कमरे में कुछ समय बिता कर चला गया. इधर डर के मारे बच्ची कांप रही थी. वह सीधे आंटी अनीता के पास पहुंची और उन से मदद की गुहार लगाई. 21 अक्तूबर को ऊषा ने फिर अपनी बेटी को महमूद के साथ कमरे में भेजने की कोशिश की, जिस पर वह घर से बाहर भाग गई. लौटने पर ऊषा ने उस की पिटाई की तो उस ने अनीता आंटी को सारी बात बताई.

इस के बाद अनीता बच्ची को ले कर थाने पहुंच गईं. पुलिस ने कलयुगी मां ऊषा और उस के प्रेमी महमूद से पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा में अनीता परिवर्तित नाम है

 

Social Crime : बीटेक छात्रा से रेप करने के बाद सबूत मिटाने के लिए कपड़े और फोन को जलाया

Social Crime : अपराधी प्रवृत्ति का राहुल हत्या और बलात्कार के मामले में पकड़ा गया और उसे जेल भेज दिया गया. लेकिन वह पैरोल पर आ कर भाग निकला. उस ने कई लड़कियों के साथ व्यभिचार किया और उन्हें मार डाला. ऐसे खतरनाक अपराधी…

झारखंड की राजधानी रांची स्थित सीबीआई कोर्ट के जज ए.के. मिश्र की अदालत में 22 दिसंबर, 2019 को कुछ ज्यादा ही भीड़ थी. वकीलों के अलावा कुछ अन्य लोग भी अदालत की काररवाई शुरू होने से पहले कोर्टरूम में पहुंच चुके थे. अदालत परिसर में तमाम मीडियाकर्मी भी थे. दरअसल, उस दिन रांची के बहुचर्चित बीटेक की छात्रा माही हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. करीब 3 साल पहले हुई हत्या की यह वारदात काफी दिनों तक मीडिया की सुर्खियों में रही थी. जब थाना पुलिस इस केस को नहीं खोल सकी तो यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था. सीबीआई इंसपेक्टर परवेज आलम की टीम ने लंबी जांच के बाद न सिर्फ इस केस का परदाफाश किया, बल्कि आरोपी राहुल कुमार उर्फ राहुल राज उर्फ आर्यन उर्फ रौकी राज उर्फ अमित उर्फ अंकित को भी गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.

पता चला कि रेप की वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी फरार हो जाता था या नाम बदल कर कहीं दूसरी जगह रहने लगता था. इस तरह वह एकदो नहीं, बल्कि 10 लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बना चुका था. एक तरह से वह साइको किलर बन चुका था. इस वहशी दरिंदे के खिलाफ सीबीआई की विशेष अदालत में केस चल रहा था. सीबीआई की ओर से इस मामले में 30 गवाह पेश किए गए थे. जज ए.के. मिश्र ने तमाम गवाह और सबूतों के आधार पर 30 अक्तूबर, 2019 को छात्रा माही हत्याकांड में आरोप तय करते हुए राहुल कुमार को दोषी ठहराया. उन्होंने सजा सुनाए जाने के लिए 22 दिसंबर, 2019 का दिन निश्चित किया.

सीबीआई की विशेष अदालत में 22 दिसंबर को जितने भी लोग बैठे थे, उन सभी के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था कि जज साहब साइको किलर राहुल कुमार को क्या सजा सुनाएंगे. इस वहशी दरिंदे ने जिस तरह कई लड़कियों की जिंदगी तबाह की थी, उसे देखते हुए उन्हें उम्मीद थी कि उसे फांसी की सजा दी जानी चाहिए. राहुल कुमार कौन है और वह कामुक दरिंदा कैसे बना, यह जानने के लिए उस के अतीत को जानना होगा. 25 वर्षीय राहुल कुमार बिहार के नालंदा जिले के एकंगर सराय थाना क्षेत्र के गांव धुर का रहने वाला था. उस के पिता उमेश प्रसाद पेशे से आटो चालक थे. 3 भाईबहनों में राहुल सब से बड़ा था.

कहते हैं कि पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं. ऐसा ही कुछ राहुल के साथ भी हुआ. बचपन से ही राहुल जिद्दी और झगड़ालू किस्म का था. वह एक बार जो करने की ठान लेता था, उसे पूरा कर के ही मानता था. इस दौरान वह किसी की भी नहीं सुनता था. मांबाप की डांटफटकार का भी उस पर कोई असर नहीं होता था. राहुल जैसेजैसे बड़ा होता गया, उस की संगत आवारा किस्म के लड़कों से होती गई. घर से उस का मतलब केवल 2 वक्त की रोटी से होता था. जब उस के पिता उमेश प्रसाद आटो ले कर शहर की ओर निकलते, वह भी घर से निकल जाता था. फिर दिन भर आवारा दोस्तों के साथ घूमता रहता था.

बचपन से ही जिद्दी आवारा था राहुल मटरगश्ती करने के लिए वह मां से जबरन पैसे लिया करता था. अगर मां उसे पैसे नहीं देती तो वह लड़झगड़ कर पैसे छीन लेता था. दिन भर दोस्तों के बीच घूमनेफिरने के बाद वह शाम ढलने पर घर लौटता था. घर का वह एक काम तक नहीं करता था, रात को जब आटो चला कर उमेश प्रसाद घर लौटता तो उस की पत्नी राहुल की दिन भर की शिकायतों की पोटली खोल कर बैठ जाती. उमेश राहुल को डांटता और समझाता, पर पिता की बातों को वह अनसुना कर देता. ऐसे में उमेश माथे पर हाथ रख कर चिंता में डूब जाता.

उमेश प्रसाद ने राहुल को समझाने और सही राह पर लाने के बहुत उपाय किए, लेकिन राहुल सुधरने के बजाए दिनबदिन जरायम की दलदल में उतारता गया. शुरुआत उस ने अपने घर के पैसे चुराने से की थी. इस के बाद उस ने औरों के घरों में भी चोरी करनी शुरू की. भेद न खुलने पर उस की हिम्मत बढ़ती गई. चोरी के साथसाथ राहुल लड़कियों को अपनी हवस का शिकार भी बनाने लगा. बात सन 2012 की है. राहुल ने पटना के जीरो रोड पर स्थित एक घर में चोरी की. इतना ही नहीं, उस ने वहां एक युवती को अपनी हवस का शिकार भी बनाया. युवती से दुष्कर्म के मामले में 29 जून, 2012 को उसे बेउर जेल भेजा गया. जब वह जेल में था, तभी उस के चाचा की मौत हो गई. श्राद्धकर्म में शामिल होने के लिए वह 4 सितंबर, 2016 को पैरोल पर अपने गांव गया, उस समय वह पुलिस की सुरक्षा में था.

श्राद्धकर्म के बाद शातिर राहुल ने सिपाहियों को शराब पिलाई और अनुष्ठान का बहाना बना कर फरार हो गया. इस के बाद पुलिस उसे छू तक नहीं सकी. पुलिस अभिरक्षा से फरार होने के बाद उस ने जो कांड किया, उस ने समूचे झारखंड को हिला कर रख दिया. राहुल नालंदा से भाग कर रांची आ गया था और वहां वह नाम बदल कर राज के नाम से रहने लगा. राहुल हर बार जुर्म करने के बाद अपना नाम बदल लेता था, ताकि पुलिस उस तक आसानी से न पहुंच सके. खैर, वह राहुल से राज बन कर रांची की बूटी बस्ती में पीतांबरा पैलेस के सामने वाली गली में स्थित दुर्गा मंदिर के कमरे में रहने लगा. यहां उस ने मंदिर कमेटी के पदाधिकारियों से आग्रह किया था. कमेटी के बंटी नामक युवक ने उस पर तरस खा कर वहां रखवाया था.

यहां रह कर राहुल उर्फ राज कमरा खोजने लगा. कमरे की तलाश में वह बीटेक की छात्रा माही के घर पहुंच गया. लेकिन वहां कमरा किराए पर नहीं मिला. राहुल का मुख्य पेशा चोरी था. उसे घूमतेघूमते पता चल गया कि माही के घर में सिर्फ लड़कियां रहती हैं. उस दिन के बाद से वह आतेजाते माही का पीछा करने लगा. माही इतनी खूबसूरत थी कि एक ही नजर में उस पर मर मिटा था. 23 वर्षीया माही मूलरूप से झारखंड के बरकाकाना जिले के थाना सिल्ली क्षेत्र की रहने वाली थी. उस के पिता संजीव कुमार बरकाकाना में सेंट्रल माइन प्लानिंग ऐंड डिजाइन इंस्टीट्यूट लिमिटेड (सीएमपीडीआई) में नौकरी करते थे.

संजीव कुमार की 2 बेटियां रवीना और माही थीं. दोनों पढ़ने में अव्वल थीं. इसीलिए पिता संजीव भी उन्हें उन के मनमुताबिक पढ़ाना चाहते थे. वह अपनी बेटियों पर पानी की तरह पैसे बहा रहे थे. बच्चों के भविष्य के लिए संजीव कुमार ने सन 2005 में रांची की बूटी बस्ती में एक प्लौट खरीदा था. उस पर उन्होंने घर भी बनवा दिया था. घटना से करीब 2 साल पहले यानी 2017 में उन की दोनों बेटियां रवीना और माही वहीं रह कर पढ़ाई करती थीं. संजीव और परिवार के अन्य सदस्य बरकाकाना में रहते थे. बड़ी बेटी रवीना रांची शहर के एक प्रतिष्ठित कालेज से स्नातक कर रही थी, जबकि छोटी बेटी माही ओरमांझी के एक इंजीनियरिंग कालेज से बीटेक के चतुर्थ सेमेस्टर की छात्रा थी. माही का 15 दिसंबर, 2016 को रिजल्ट आने वाला था. उस के पिता रिजल्ट देखने बरकाकाना से रांची आए थे. रिजल्ट देखने के लिए वह माही के कालेज गए और वहीं से बरकाकाना वापस लौट गए.

दरिंदे ने भांप लिया था कि अकेली है माही बहरहाल, रिजल्ट देखने के बाद माही जब कालेज से बूटी बस्ती स्थित अपने आवास जाने लगी तो पहले से घात लगाए बैठा राज पीछेपीछे उस के घर तक पहुंच गया. माही घर में बैग रख कर वापस बाहर आई. उस ने अपने घर के पास एक दुकान से मैगी खरीदी और वापस चली गई. इस से राज आश्वस्त हो गया था कि घर में माही अकेली है. घर में अगर कोई और होता तो माही के बजाए वही सामान खरीदने आता. इत्तफाक की बात यह थी कि कुछ दिनों पहले बड़ी बहन रवीना किसी जरूरी काम से अपने गांव बरकाकाना चली गई थी. माही के घर पर अकेला होने की जानकारी शातिर राज को पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए वह निश्चिंत हो गया और उस ने फैसला कर लिया कि आज रात माही को अपनी हवस का शिकार बना कर रहेगा.

उसी रात करीब साढ़े 10 से 11 बजे के बीच राहुल कुमार उर्फ राज माही के घर पहुंचा. उस के मुख्य दरवाजे पर लोहे का मजबूत ग्रिल लगा था. ग्रिल पर भीतर की ओर से बड़ा ताला लगा था. उस के पास मास्टर चाबी रहती थी, जिस से वह कोई भी ताला आसानी से खोल सकता था. मास्टर चाबी से उस ने माही की ग्रिल का ताला खोल लिया. माही जिस कमरे में सो रही थी, उस में सिटकनी नहीं लगी थी. दबेपांव वह उस के कमरे में आसानी से पहुंच गया और गहरी नींद में सोई माही का गला दबाने लगा. तभी माही की आंखें खुल गईं. उसे देख कर वह डर गई.

इस से पहले कि वह शोर मचाती, राज ने उसे धमका दिया. डर की वजह से माही चुप हो गई. राहुल ने उस के साथ रेप किया. उस दौरान उस ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दीं. इस दरम्यान माही के नाजुक अंग से रक्तस्राव हुआ, जिस से वह बेहोश हो गई. उस के बाद दरिंदे राहुल उर्फ राज ने मोबाइल के चार्जर वाले तार से उस का गला घोंट दिया ताकि वह किसी को कुछ बता न सके. हैवानियत पर उतरे राज ने सबूत मिटाने के लिए माही को निर्वस्त्र कर दिया, फिर उस के कपड़ों को एक जगह रख कर उस पर मोबिल औयल डाल कर आग लगा दी. आग लगाने के बाद वह वहां से फरार हो गया. दरअसल, साक्ष्य मिटाने का यह तरीका उस ने अपने ही एक जुर्म से सीखा था.

अपराध की दुनिया में कदम रखते समय राहुल पहली बार पटना में एक घर में चोरी करने की नीयत से घुसा था. यह भी इत्तफाक था कि घर के एक कमरे में 11 वर्षीय नेहा अकेली सो रही थी. बाकी के लोग दूसरे कमरे में सो रहे थे. उस समय रात के करीब 3 बज रहे थे. अकेली नेहा को देख कर उस के जिस्म में वासना की आग धधक उठी. हैवान राहुल जिस्म की आग ठंडी करने के लिए मासूम नेहा की जिंदगी तारतार कर के भाग गया. लेकिन कानून के लंबे हाथों से कुकर्मी राहुल ज्यादा दिनों तक नहीं बच सका. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. तब राहुल को पता चला कि नेहा के अंडरगारमेंट में उस का सीमेन (वीर्य) मिला था, जिस से वह दोषी पाया गया था. इस घटना से ही सीख लेते हुए उस ने बीटेक की छात्रा माही से दुष्कर्म के बाद उस के अंडरगारमेंट के साथ अन्य कपड़े भी जला दिए थे ताकि वह पकड़ा न जा सके.

खैर, अगली सुबह यानी 16 दिसंबर, 2019 की सुबह रहस्यमय तरीके से जली हुई माही की लाश उस के कमरे में पाई गई थी. दरअसल, रात में उस के पिता संजीव कुमार फोन कर के उस का हालचाल लेना चाहते थे. चूंकि दिन में कालेज का रिजल्ट आ चुका था. वह कालेज तक उस के साथ गए भी थे, इसलिए वह फोन कर उसे घर आने के लिए कहना चाहते थे. लेकिन उस का फोन नहीं लग रहा था. फोन बारबार स्विच्ड औफ बता रहा था. बेटी का फोन स्विच्ड औफ होने से वह परेशान हो गए. रात भी काफी गहरा चुकी थी, इसलिए किसी और के पास फोन भी नहीं कर सके थे, जिस से माही का हालचाल मिल पाता. अगली सुबह जब सदर थाने के थानेदार बांकेलाल का फोन उन के पास पहुंचा तो बेटी की मौत की सूचना पा कर संजीव सकते में आ गए.

केस की जांच पर निगाह रखे था राहुल बेटी की मौत की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया था. परिवार के लोगों को साथ ले कर संजीव रांची पहुंचे. शराफत का चोला पहने दरिंदा राज भी अपने दोस्त बंटी के साथ घटनास्थल पर पहुंचा था. वहां पहुंच कर वह यह जानना चाहता था कि पुलिस क्या काररवाई कर रही है. तब उस के दोस्त बंटी ने उस के सामने ही अज्ञात दरिंदे को भद्दीभद्दी गालियां देनी शुरू कर दीं तो राज ने बंटी को समझाया कि किसी को भी इस तरह गालियां देना ठीक नहीं है. उस दिन के बाद से वह बंटी से पुलिस की गतिविधि पूछता था कि माही के हत्यारों तक पुलिस पहुंची या नहीं. उस के केस में क्या हो रहा है. यह बात बंटी को बड़ी अटपटी लगती थी कि राहुल उर्फ राज माही के केस में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है.

बहरहाल, पुलिस ने अपनी काररवाई कर माही की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट पढ़ कर थानाप्रभारी बांकेलाल दंग रह गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि पहले पीडि़ता के साथ बलात्कार किया गया था, फिर किसी पतले तार से गला कस कर उस की हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद पुलिस ने अज्ञात हत्यारे के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 376, 499, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर मामले की छानबीन शुरू कर दी. घटना के करीब 6 महीने बीत जाने के बाद भी पुलिस जहां की तहां खड़ी रही. न तो वह हत्या का कारण जान सकी और न ही हत्यारों का पता लगा पाई.

माही हत्याकांड को ले कर रांची समेत समूचे झारखंड में बवाल मचा हुआ था. पुलिस की कार्यप्रणाली पर लोग अंगुलियां उठा रहे थे. पीडि़ता के पिता संजीव ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की. यह आवाज प्रदेश सरकार के कान तक पहुंची तो सरकार ने जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा कर दी. जब मामला सीबीआई के पास पहुंचा तो सीबीआई के तेजतर्रार इंसपेक्टर परवेज आलम के नेतृत्व में पुलिस टीम बनाई गई. टीम में एसआई नीरज कुमार यादव, कांस्टेबल प्रभात कुमार, आरिफ हुसैन, नैमन टोप्पो, अशोक कुमार, रितेश पाठक, महिला सिपाही जूही खातून आदि को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर परवेज आलम झारखंड पुलिस में सन 1994 में एसआई पद पर भरती हुए थे. वह ड्यूटी मीट के ओवरआल चैंपियन भी रह चुके थे. झारखंड पुलिस में उन का डीएसपी पद पर प्रमोशन हो चुका था. फिर भी सीबीआई में इंसपेक्टर थे. इंसपेक्टर परवेज आलम ने माही का केस लेने के बाद झारखंड पुलिस द्वारा दिए गए दस्तावेजों व साक्ष्यों का पूरा अध्ययन किया. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों से पूरी रिपोर्ट पर चर्चा की. डाक्टरों ने सीबीआई को बताया कि मृतका के नाखूनों और वैजाइनल स्वैब राज्य विधिविज्ञान प्रयोगशाला भेजे गए हैं. इंसपेक्टर परवेज आलम ने एफएसएल की रिपोर्ट में पाया कि नाखून व वैजाइनल स्वैब में केवल एक ही पुरुष होने के सबूत मिले हैं.

इस से जांच टीम आश्वस्त हो गई थी कि केवल एक ही व्यक्ति ने इस घटना को अंजाम दिया है. घटना की तह तक जाने के लिए इंसपेक्टर परवेज आलम ने अपने अधिकारियों से बूटी बस्ती में रहने की इजाजत मांगी. सीबीआई मुख्यालय के आदेश पर परवेज आलम अपनी टीम के साथ बूटी बस्ती में किराए पर कमरा ले कर रहने लगे. वहीं रह कर वह गुप्त तरीके से हत्यारोपी के बारे में छानबीन करने में जुट गए. बूटी बस्ती की रहने वाली एक बूढ़ी महिला ने उन्हें बताया कि एक युवक यहां अकसर घूमता था, जो मंदिर परिसर के एक कमरे में रहता था. वह अब दिखाई नहीं दे रहा.

इंसपेक्टर आलम के लिए यह सुराग महत्त्वपूर्ण साबित हुआ. इसी सुराग के आधार पर उन्होंने 300 से अधिक लोगों के काल डंप डाटा के आधार पर छानबीन की. जांच में पता चला कि उन में से करीब 150 फोन नंबर घटनास्थल के आसपास के हैं, उन में कुछ नंबर मृतका के संबंधियों और दोस्तों के भी थे. सीबीआई ने शक के आधार पर 150 संदिग्धों में से 11 लोगों के खून के नमूने ले कर जांच के लिए केंद्रीय विधिविज्ञान प्रयोगशाला, दिल्ली भेजे. इस बीच सीबीआई राहुल के दोस्त बंटी तक पहुंच गई. बंटी से उस संदिग्ध युवक यानी राज के बारे में पूछताछ की गई जो मंदिर के पास अकसर घूमता था.

बंटी ने बताया कि उस का नाम राहुल उर्फ राज है. वह बिहार के नालंदा जिले के एकंगर सराय के गांव धुर का रहने वाला है. इंसपेक्टर परवेज आलम की मेहनत रंग लाई. उन्हें संदिग्ध युवक राहुल उर्फ राज का पता मिल चुका था. वह टीम के साथ नालंदा स्थित उस के घर जा पहुंचा. वहां से पता चला कि राहुल फरार है. परवेज आलम ने एकएक तथ्य जुटाया वहां उन्हें एक और चौंकाने वाली बात पता चली कि राहुल दुष्कर्म के आरोप में पटना की बेउर जेल में बंद था. चाचा की मौत पर वह जेल से पैरोल पर घर आया था और चकमा दे कर पुलिस हिरासत से भाग गया था. तब से वह फरार है. इस के बाद सीबीआई की टीम ने राहुल की मां निर्मला देवी व पिता उमेश प्रसाद को बुलाया.

संदिग्ध आरोपी राहुल उर्फ राज की सच्चाई पता लगाने के लिए उन्होंने उस के मातापिता के खून के नमूने लिए और जांच के लिए केंद्रीय विधिविज्ञान प्रयोगशाला दिल्ली भेज दिए. वहां माही के नाखून व वैजाइनल स्वैब से मिले पुरुष के डीएनए से संदिग्ध आरोपी राहुल उर्फ राज की मां निर्मला देवी का डीएनए मैच कर गया. जबकि पिता उमेश प्रसाद का मैच नहीं किया. डीएनए रिपोर्ट के आधार पर यह तय हो गया कि माही का कातिल राहुल उर्फ राज ही है. राहुल उर्फ राज की तलाश में सीबीआई ने कोलकाता, वाराणसी सहित कई जगहों पर छापेमारी की, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला.

इसी बीच 15 जून, 2019 को राहुल उर्फ राज लखनऊ में मोबाइल चोरी के एक केस में पकड़ा गया. सीबीआई इंसपेक्टर परवेज आलम राहुल के पीछे पड़े ही थे. उन्हें उस की गिरफ्तारी की सूचना मिली, तो वह लखनऊ पहुंच गए. वहां से राहुल उर्फ राज को ट्रांजिट रिमांड पर 22 जून, 2019 को रांची लाया गया. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने माही हत्याकांड की पूरी कहानी बयां कर दी. राहुल ने सीबीआई को बताया कि पटना में 11 साल की नेहा से दुष्कर्म करने के मामले में वह पकड़ा गया था. तभी उसे पता चला नेहा के अंडरगारमेंट में उस का सीमेन मिला था, जिस से वह पकड़ा गया था. सीख लेते हुए उस ने माही से दुष्कर्म के बाद उस के कपड़े जला दिए थे.

यही नहीं, उस ने फरारी के दौरान इसी जिले की अगस्त 2018 की एक घटना का भी राजफाश किया. जिस घर में वह चोरी की नीयत से घुसा तो वहां 9 वर्षीय सोनी को अकेली सोता देख कर वह उस पर टूट पड़ा. बेटी की चीख सुन कर मां के बेटी के कमरे में आ जाने से सोनी की अस्मत लुटने से तो बच गई लेकिन उस दिन की घटना के बाद से वह आज तक सदमे से उबर नहीं पाई है. सीबीआई की पूछताछ में क्रूर दरिंदे राहुल उर्फ राज ने कबूल किया कि उस ने हर घटना में अपना नाम बदल कर अपराध किया था. अब तक उस ने 10 मासूमों की जिंदगी तबाह की थी, जिस में कई तो असमय काल का ग्रास बन गई थीं और कई विक्षिप्त अवस्था में पहुंच गई थीं.

बहन ने पहचाना दरिंदे को राहुल उर्फ राज की शिनाख्त माही की बड़ी बहन रवीना से कराई गई तो उस ने आरोपी राहुल उर्फ राज को देख कर शिनाख्त कर ली. रवीना से इस मामले में अदालत में गवाही दर्ज कराई. रवीना ने अदालत को बताया कि घटना के कुछ दिन पहले राहुल किराए का कमरा लेने के लिए उस के घर आया था. हम ने उसे कमरा देने से मना कर दिया था. उस दिन के बाद कई बार अहसास हुआ कि राहुल उस की बहन का पीछा करता है. घटना से पहले उसे घर के आसपास घूमते हुए भी देखा था. जबकि घटना के बाद से उसे कभी नहीं देखा गया. इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर परवेज आलम ने सूक्ष्मता से एकएक सबूत जुटाया. फिर विशेष अदालत में चार्जशीट पेश की. जज ए.के. मिश्र ने सजा सुनाए जाने से पहले केस की फाइल पर नजर डाली.

तभी शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि योर औनर, मुजरिम राहुल कुमार ने जो अपराध किया है, वह रेयरेस्ट औफ रेयर है. ऐसे व्यक्ति का समाज में रहना ठीक नहीं है. यह समाज के लिए जहर के समान है. ऐसे पेशेवर अपराधी को फांसी की सजा देनी चाहिए. तभी बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि मुजरिम राहुल को अपने किए पर पछतावा है, इसलिए उसे सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए. उन्होंने उसे कम से कम सजा सुनाए जाने की अपील की. दोनों वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जज ए.के. मिश्र ने कहा कि कटघरे में खड़ा यह अपराधी समाज के लिए एक कलंक है. इस ने योजनाबद्ध तरीके से घटना को अंजाम दिया था. इस के सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं है. इस का अपराध रेयरेस्ट औफ रेयर है. इसलिए इसे मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाया जाए.

फैसला सुनाने के बाद पुलिस ने मुजरिम राहुल कुमार को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया. वहीं फैसला आने के बाद कोर्ट में मौजूद मृतका के पिता संजीव कुमार घटना को याद कर रोने लगे. उन्होंने कहा कि फांसी की सजा भी अपराधी के लिए कम ही है, परंतु संतोष है कि अदालत ने न्याय किया है. इस प्रकार के फैसले से समाज को शुभ संदेश जाएगा.

—कथा में माही, नेहा और सोनी परिवर्तित नाम हैं.

 

 

Uttar Pradesh Crime : प्रेमिका के भाई को मारा फिर बोरी में बंद कर रेत में दफना डाला

Uttar Pradesh Crime : आजकल के ज्यादातर युवा तो प्यार को जानते हैं और जानना चाहते हैं. उन के लिए शारीरिक आकर्षण ही प्यार होता है. इसी आकर्षण को प्यार समझ कर वे ऐसीऐसी कंदराओं में खो जाते हैं, जो अपने अंदर का अंधेरा उन के जीवन में भर देती हैं. ऐसा ही विकास के साथ भी हुआ. आखिर…  

रोजाना की तरह पूनम उस दिन भी स्कूल जाने के लिए अपनी साइकिल से निकली तो रास्ते में पहले से उस का इंतजार कर रहे विकास ने उस के पीछे अपनी साइकिल लगा दी. पूनम ने विकास को पीछे आते देखा तो अपनी साइकिल की गति और तेज कर दी. विकास अपनी साइकिल की रफ्तार और तेज कर के पूनम के आगे जा कर इस तरह खड़ा हो गया कि अगर वह अपनी साइकिल के ब्रेक लगाती तो जमीन पर गिर जाती. साइकिल संभालते हुए पूनम साइकिल से उतर कर खड़ी हुई और बोली, ‘‘देख नहीं रहे हो, मैं स्कूल जा रही हूं. आज वैसे भी देर हो गई है. अगर हमें किसी ने देख लिया तो बिना मतलब बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगेगी.’’

‘‘जिसे जो बातें बनानी हैं, बनाता रहे. मुझे किसी की परवाह नहीं है.’’ विकास ने बड़े प्यार से अपनी बात कह डाली.

पूनम स्कूल जाने के लिए मन ही मन बेचैन थी. उस ने विकास की तरफ देखा और उस से अनुरोध करते हुए बोली, ‘‘देखो, मुझे देर हो रही है. अभी मुझे स्कूल जाने दो. मैं तुम से बाद में मिल लूंगी. तुम्हें जो बात करनी हो, कर लेना.’’

विकास पूनम की बात सुन कर नरम पड़ गया. वह अपनी साइकिल को साइड में कर के पूनम के चेहरे को देखते हुए बोला, ‘‘पूनम, तुम मेरी आंखों में झांक कर देखो, इस में तुम्हें बेपनाह मोहब्बत नजर आएगी. तुम्हें पता है, तुम्हारी चाहत में मैं सब कुछ भूल गया हूं. मुझे दिनरात बस तुम ही तुम नजर आती हो.’’

‘‘वह सब तो ठीक है विकास, पर तुम्हें यह तो पता है कि हम एक ही जगह के हैं और हमारे तुम्हारे घर के बीच बहुत ज्यादा फासला नहीं है. अगर हम दोनों इस तरह प्यारमोहब्बत की पेंग बढ़ाएंगे तो मोहल्ले वालों से हमारा प्रेम कब तक छिपा रहेगा

‘‘तुम मेरे पिता को तो जानते हो, बातबात में गुस्सा हो जाते हैं. अगर उन्हें हम दोनों के प्रेम की भनक लगी तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. फिर मेरे पिता मेरी क्या गत बनाएंगे, यह तो ऊपर वाला ही जाने.’’ वह बोली.

‘‘पूनम, मैं सपने में भी तुम्हें बदनाम करने की नहीं सोच सकता. तुम तो मेरी मोहब्बत हो और मोहब्बत के लिए लोग जाने क्याक्या कर जाते हैं. तुम सिर्फ जरा सी बदनामी से डरती हो. पता है, मैं तुम से मिलने और बातें करने के लिए क्याक्या तिकड़म भिड़ाता हूं

‘‘तब कहीं जा कर तुम से तनहाई में मुलाकात होती है. देखो पूनम, मैं तुम्हें बदनाम नहीं होने ही दूंगा. और हां, मैं ने निर्णय ले लिया है कि शादी करूंगा तो सिर्फ तुम से. मेरी दुलहन तुम्हारे अलावा कोई दूसरी नहीं होगी, फिर बदनामी कैसी.’’

पूनम कुछ देर शांत मन से विकास की बातें सुनती रही. फिर लंबी सांस ले कर बोली, ‘‘अच्छा, अब बस करो, मैं स्कूल जा रही हूं. मुझे काफी देर हो चुकी है.’’

पूनम ने इतना कह कर अपनी साइकिल आगे बढ़ाई ही थी कि विकास मुसकराता हुआ बोला, ‘‘हां जाओ, लेकिन मिलने के लिए थोड़ा समय निकाल लिया करो.’’

पूनम बिना कुछ बोले अपने स्कूल की ओर बढ़ गई. पूनम के स्कूल जाने वाले रास्ते के उस मोड़ के पास विकास अकसर उस का रास्ता रोक कर कभी प्रेम से तो कभी थोड़ा गुस्से में अपने प्रेम का इजहार करने लगता था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर, थाना स्वार की चौकी मसवासी के अंतर्गत एक मोहल्ला है भूबरा. वीर सिंह अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. परिवार में उस की पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. वीर सिंह और उस की पत्नी प्रेमवती दोनों दिव्यांग थे. वीर सिंह हाईस्कूल पास था. वह मोहल्ले के छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. बड़ा बेटा गिरीश नौकरी करता था. बापबेटे मिल कर परिवार का बोझ उठाते थे.

वीर सिंह की बेटी पूनम खूबसूरत भी थी और चंचल भी. वीर सिंह और प्रेमवती उसे बहुत चाहते थे. पूनम एक स्थानीय स्कूल में दसवीं में पढ़ती थी. 15 वर्षीय पूनम उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां शरीर में काफी बदलाव जाते हैं और दिल में उमंग की लहरें हिचकोले लेने लगती हैं. पूनम पहले से ही सुंदर थी, लेकिन जब कुदरत ने उस के बदन को खूबसूरती के सांचे में ढाल कर आकर्षक आकार दिया तो उस की सुंदरता कयामत ढाने लगी, जिस का पूनम को भी अहसास हो गया था. अपनी सुंदरता पूनम को लुभाती तो थी, लेकिन लोगों की चुभती नजरों से बचने के लिए उसे तरहतरह के जतन करने पड़ते थे. वह लोगों की गिद्ध दृष्टि को अच्छी तरह पहचानती थी. लेकिन विकास उन सब से अलग था. उस की आंखों में पूनम को अपने लिए अलग तरह की चाहत दिखती थी. विकास स्मार्ट भी था और खूबसूरत भी.

विकास मौर्य भी भूबरा मोहल्ले में ही रहता था. पूनम के घर से उस के घर की दूरी महज ढाई सौ मीटर थी. विकास के पिता नरपाल मौर्य खेतीकिसानी का काम करते थे. घर में पिता के अलावा उस की मां जगदेवी, एक बड़ा भाई और 3 बहनें थीं. वीर सिंह और नरपाल मौर्य के परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. इसी आनेजाने में जब विकास की नजर जवान होती पूनम पर पड़ी तो वह बरबस उस की ओर आकर्षित होगया और उसे मन ही मन चाहने लगालेकिन पूनम के घर वालों की वजह से उसे अकेले में पूनम से बात करने का मौका नहीं मिल पाता था. विकास हमेशा इस फिराक में रहता था कि मौका मिले तो पूनम से बात करे.

संयोग से एक साल पहले विकास को मौका मिल गया. पूनम के घर वाले किसी शादी समारोह में गए हुए थे. पूनम घर पर अकेली थी. यह पता चलते ही विकास बहाने से वीर सिंह के घर पहुंच गया और दरवाजे पर दस्तक दी. पूनम उस समय पढ़ रही थी. दस्तक सुन कर उस ने दरवाजा खोला तो सामने विकास खड़ा था. विकास को देख वह बोली, ‘‘सब लोग शादी में गए हैं. घर में कोई नहीं है.’’

विकास ने पूनम की बात खत्म होते ही कहा, ‘‘देखो पूनम, आज मैं सिर्फ तुम से ही मिलने आया हूं. चाचा से मिलना होता तो कभी भी मिल लेता.’’

‘‘ठीक है, अंदर जाओ और बताओ मुझ से क्यों मिलना है.’’ पूनम के कहने पर विकास अंदर गया

विकास के अंदर आते ही पूनम फिर से बोली, ‘‘हां विकास, बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

विकास एकटक पूनम की ओर देखते हुए बोला, ‘‘दरअसल, मैं बहुत दिनों से तुम से एकांत में मिलना चाह रहा था. मैं तुम्हें दिल से चाहने लगा हूं. मुझे तुम से प्यार हो गया है. दिल नहीं माना तो तुम से मिलने चला आया.’’

विकास आगे कुछ और बोलता, इस से पहले ही पूनम के होंठों पर हंसी गई. वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘आतेजाते तुम मुझे जिस तरह से देखते थे, उस से ही मुझे आभास हो गया था कि जरूर तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई चाहत है.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी मुझे पसंद करती हो. तुम्हारी इन बातों से विश्वास हो गया कि हम दोनों के दिल में एकदूसरे के प्रति प्यार है.’’ विकास कुछ और बोल पाता, तभी पूनम बोल पड़ी, ‘‘मम्मीपापा के आने का समय हो गया है. इसलिए तुम अभी यहां से चले जाओ. मुझे मौका मिला तो मैं फिर बात कर लूंगी.’’

पूनम के इतना कहने के बाद भी विकास वहीं खड़ा रहा और पूनम की खूबसूरती के कसीदे पढ़ता रहा. पूनम से रहा नहीं गया तो वह जबरदस्ती विकास का हाथ पकड़ कर उसे मेनगेट तक ले आई और उसे बाहर कर के मेनगेट बंद कर लिया. लेकिन जातेजाते विकास पूनम को यह याद कराना नहीं भूला कि उस ने बाहर मिलने का वादा किया है. पूनम अपने वादे को नहीं भूली और अगले दिन स्कूल जाते समय रास्ते में विकास दिखा तो उस ने इशारे से बता दिया कि स्कूल से वापस लौटते समय उस से मिलेगीविकास समय से पहले ही पूनम के वापस लौटने वाले रास्ते पर उस का इंतजार करने लगा. पूनम स्कूल से लौटी तो विकास से उस की मुलाकात हुई. उस ने विकास के प्यार को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार को स्वीकार कर रही हूं और चाहती हूं कि हम बदनाम हों. इसलिए तुम्हें भी सावधान रहना होगा ताकि किसी को हमारे प्यार की भनक लगे.’’

विकास पूनम के हाथों को अपने हाथों में लेता हुआ बोला, ‘‘तुम भी कैसी बातें करती हो? क्या कभी कोई प्रेमी चाहेगा कि उस की प्रेमिका की समाज में रुसवाई हो? तुम मुझ पर भरोसा रखो.’’

समय बीतता रहा. दोनों लोगों की नजरों से बच कर चोरीछिपे मिलते रहे. दोनों का प्यार इतना बढ़ गया कि वे एकदूसरे के लिए कुछ भी कर सकते थे. यहां तक कि एकदूजे के लिए जान भी दे सकते थे. पर एकदूसरे से अलग होना उन्हें किसी भी हाल में मंजूर नहीं था. बीते 9 दिसंबर को पूनम का सब से छोटा 7 वर्षीय भाई अंश दोपहर 2 बजे के करीब घर के बाहर खेल रहा था, लेकिन अचानक वह लापता हो गया. बडे़ भाई गिरीश ने अपने भाईबहनों के साथ उसे काफी खोजा लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. एक दिन पहले ही किसी अनजान युवक ने अंश को 10 रुपए दिए थे. यह बात अंश ने घर कर बताई थी. लेकिन घर के लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था, इस के अगले दिन यह घटना घट गई

जब किसी तरह से अंश का पता नहीं चला तो 10 दिसंबर, 2019 को गिरीश ने स्वार थाने जा कर इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार सिंह को पूरी बात बताई. सतेंद्र सिंह ने गिरीश की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने गिरीश और उस के पिता के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए, ताकि अपहर्त्ता फिरौती के लिए फोन करें तो ट्रेस किया जा सके. 11 दिसंबर, 2019 को अपहर्त्ता ने वीर सिंह के नंबर पर काल कर के अंश को रिहा करने के एवज में 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. सर्विलांस टीम और अंश के घर वालों द्वारा सूचना देने पर मसवासी चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी अंश के घर गए और उस के घर वालों से पूछताछ की.

जिस नंबर से काल की गई थी, वह फरजी आईडी पर खरीदा गया था. जिस मोबाइल में वह सिम डाला गया था, उस मोबाइल में उस से पहले जो सिम डाले गए थे, उन की जांचपड़ताल करने के बाद पुलिस अपहर्त्ता तक पहुंच गई. वह कोई और नहीं, अंश की बड़ी बहन पूनम का प्रेमी विकास मौर्य था. 12 दिसंबर को इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने मानपुर तिराहे से विकास मौर्य को उस के साथी अनुराग शर्मा के साथ गिरफ्तार कर लिया. दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपने 3 अन्य साथियों विकास सैनी, रवि सैनी और रोहित के नाम बताए. इन सब ने साथ मिल कर अंश का अपहरण कर हत्या कर देने की बात कबूल कर ली. साथ ही हत्या के पीछे की कहानी भी बयान कर दी

विकास मौर्य और पूनम का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ रहा था, वह भी सब की नजरों से बच कर. लेकिन एक दिन पूनम के छोटे भाई अंश ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में एक साथ देख लिया. पूनम ने जैसेतैसे अंश को समझा दिया और उसे अपने साथ घर ले गई, लेकिन विकास इस बात से डर गया कि कहीं वह घर वालों को उन दोनों के बारे में बता दे. इसी वजह से उस ने अंश का अपहरण कर उसे मार देने का फैसला किया. इस बारे में उस ने पूनम को भनक तक नहीं लगने दी. उस ने अपने दोस्तों सीतारामपुर गांव निवासी अनुराग शर्मा, विकास सैनी, रवि सैनी और भूबरा मोहल्ला निवासी रोहित से बात की. दोस्ती की खातिर ये सब विकास का साथ देने को तैयार हो गए.

8 दिसंबर, 2019 को अंश घर के बाहर बच्चों के साथ खेल रहा था. तभी विकास के साथ अनुराग वहां गया. विकास ने अनुराग को अंश की तरफ इशारा कर के उस की पहचान कराई. अनुराग अंश के पास पहुंचा और उस से प्यार से बात की, साथ ही उसे 10 रुपए दिए. मासूम अंश ने उस से 10 रुपए ले लिए. अनुराग उस से दोस्ती कर के चला गया. अंश ने घर जा कर इस अनजान दोस्त से मिले पैसों के बारे में बताया तो किसी ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया. अगले दिन 9 दिसंबर को योजनानुसार दोपहर 2 बजे विकास अनुराग के साथ बाइक से अंश के घर के पास पहुंचा. रोज की तरह उस समय अंश बच्चों के साथ खेल रहा था. विकास ने उस से कहा कि उस के बड़े भैया गिरीश उसे बुला रहे हैं. वह आगे खड़े हैं. मासूम अंश उन के साथ बाइक पर बैठ गया.

आगे कुछ दूरी पर विकास सैनी, रवि और रोहित खड़े थे. अंश को उन के साथ देख कर वे भी उन के साथ हो लिए. अंश को वे बेलवाड़ा गांव के जंगल में ले गए. वहां रुमाल से बनाया फंदा अंश के गले में डाल कर कस दिया, जिस से अंश की दम घुटने से मौत हो गई. इस के बाद अंश की लाश को एक प्लास्टिक की बोरी में डाल कर रेत में दबा दिया. इस के बाद 11 दिसंबर को विकास ने केस की दिशा मोड़ने के लिए फरजी सिम से अंश के पिता को काल कर के 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. इस से केस की दिशा तो नहीं बदली, लेकिन उस के पकड़े जाने का रास्ता जरूर खुल गया. विकास की यह गलती उसे और उस के साथियों को भारी पड़ी.

12 दिसंबर को ही विकास मौर्य और अनुराग शर्मा की निशानदेही पर इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने एसडीएम राकेश कुमार गुप्ता की मौजूदगी में रेत में दबी अंश की लाश बरामद कर ली. इस के बाद मुकदमे में दर्ज धारा 363 को भादंवि की धारा 364, 302, 201, 34 तरमीम कर दिया गया. पुलिस ने 14 दिसंबर, 2019 को मुंशीगंज तिराहे से विकास सैनी और रवि सैनी को भी गिरफ्तार कर लिया

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से सब को जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक रोहित फरार था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पूनम परिवर्तित नाम है.

          

 

 

  

Family dispute : दहेज नहीं मिला तो बीवी को लगा दिया HIV इंजेक्शन

Family dispute : उत्तर प्रदेश में एक ऐसा चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिस ने न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है.

घटना इंसानियत को शर्मसार करने वाली है, जहां एक पति ने महज दहेज में स्कौर्पियो न मिलने की वजह से अपनी ही पत्नी की जिंदगी बरबाद करने की साजिश रच दी और उस ने पत्नी को HIV संक्रमित इंजेक्शन लगा दिया.

क्या है पूरा मामला

घटना यूपी के सहारनपुर जिले की है. पीड़ित महिला का आरोप है कि उस के ससुराल वालों की दहेज की मांग पूरी नहीं हुई तो उसे HIV इंजेक्शन लगा दिया है. इंजेक्शन लगाने के बाद महिला की हालत गंभीर हो गई है.

पुलिस आई हरकत में

पुलिस ने महिला की शिकायत के आधार पर काररवाई करते हुए आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है.

थाना प्रभारी रोजंत त्यागी ने बताया कि महिला के पिता ने बताया कि उन की बेटी की शादी 15 फरवरी, 2023 को हरिद्वार निवासी अभिषेक से हुई थी. शादी के वक्त उन्होंने अपनी क्षमता के अनुसार बेटी को धन दिया, जिस में नगद, ज्वैलरी से ले कर कार भी शामिल थी. इस के बाद भी ससुराल वाले संतुष्ट नहीं थे.
ससुराल वाले 25 लाख रुपए और एक स्कौर्पियो की मांग करते रहते थे. जब उन्होंने उन की यह मांग पूरी करने में असमर्थता जताई तो वह बेटी को प्रताड़ित करने लगे.

पीड़िता के मायके वालों ने आरोप लगाया है कि दहेज की मांग पूरी नहीं करने पर बेटी को ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया और उसे मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने लगे.

पंचायत का हस्तक्षेप

आरोप है कि पंचायत के हस्तक्षेप के बाद जब बेटी दोबारा ससुराल लौटी तो वहां उसे HIV संक्रमित इंजेक्शन लगा कर जान से मारने की कोशिश की गई. इस के बाद बेटी की तबियत बिगड़ने लगी तो परिजनों ने उसे अस्पताल में भरती कराया, जहां जांच में बेटी को एचआईवी पौजिटिव बताया गया.

एसएचओ के अनुसार, पीड़िता के मातापिता ने बेटी के ससुराल वालों पर आरोप लगाया है कि बेटी को जानबूझ कर बेतरतीब दवा दी गई और एचआईवी इंजेक्शन भी लगाया गया, जिस से उस की जान को खतरा है.

पीडिता को चाहिए न्याय

इस के बाद न्याय पाने की तालाश में पीड़िता के परिवार वालों ने 10 फरवरी को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई. इस के बाद 11 फरवरी को गंगोह थाने में पीड़िता के पति, देवर समेत 4 लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया है. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

Agra Crime : पहले पति को मारा, फिर लाश पर चढ़ा दी कार

Agra Crime : ‘नार नहीं नौरंगी है, ढक ले तो सारे कुल को ढक ले वरना नंगी की नंगी है’ इस कहावत का आशय स्त्री के चाल, चरित्र और चेहरे को दर्शाने से है, जो सही है. भावना की जिंदगी में सब कुछ था, अफसर पति, कोठी, कार और 2 बच्चे, लेकिन उस ने…

मानव मन को समझना आसान नहीं है. इंसान कब किस को प्यार करने लगे और कब प्यार नफरत में बदल जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता. ऐसा ही कुछ भावना के साथ भी हुआ. एक अच्छे और संभ्रांत परिवार की बेटी और बहू भावना कुछ ऐसा कर बैठेगी, किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था. कहते हैं, विनाश काल में इंसान की सकारात्मक सोच बंद हो जाती है. फिर समय की इस आंधी में सब कुछ तहसनहस हो जाता है. बिना सोचेसमझे भावना ने जो कदम उठाया, उस से कई जिंदगियां तबाह हो गईं और खुशियां मुट्ठी में बंद रेत की तरह फिसल गईं. ताजनगरी आगरा दुनिया भर में प्रसिद्ध है, जहां देशविदेश से पर्यटक आते हैं और शाहजहां मुमताज की यादगार मोहब्बत को नमन करते हैं. वहीं मोहब्बत की इस नगरी में खून से लथपथ आशिकी की अनगिनत कहानियां दफन हैं.

आगरा के अशोक विहार में नाथूराम अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन बिता रहे थे. उन के 3 बेटे थे सुशील, वीरेंद्र और नरेंद्र. नाथूराम सेना में सीनियर औडिटर थे. उन का बड़ा बेटा सुशील भी सेना में ही था. छोटा नरेंद्र पढ़ रहा था और मंझले बेटे वीरेंद्र की नौकरी पंजाब में भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) में लग गई थी. कुल मिला कर नाथूराम का अच्छा खुशहाल और आर्थिक रूप से संपन्न परिवार था. लेकिन समय के चक्र के साथ जीवन में बदलाव आते रहते हैं. 14 साल पहले नाथूराम के मंझले बेटे वीरेंद्र की शादी गढ़ी भदौरिया निवासी ओमप्रकाश की बेटी भावना के साथ हुई थी. भावना की 2 बहनें शादीशुदा थीं और खुशहाल जीवन बिता रही थीं. इन का एक भाई था.

वीरेंद्र गंभीर प्रवृत्ति का व्यक्ति था. उस की जिंदगी की गाड़ी ठीक चल रही थी. भावना ने कालांतर में आयुष और शुभि को जन्म दिया. सब कुछ ठीक था, भावना अपने पति और बच्चों के साथ खुश थी. वीरेंद्र भी अपनी सरकारी नौकरी की जिम्मेदारियां निभा रहा था. लेकिन अचानक कालचक्र अपनी धुरी पर उल्टा घूमने लगा. वीरेंद्र ने आगरा की पंचशील कालोनी में अपनी कोठी बनवाई. वीरेंद्र अपनी पत्नी और बच्चों को खुशहाल जीवन देना चाहता था. करीब 3 साल पहले वीरेंद्र का तबादला आगरा हो गया वह अपने परिवार के साथ पंचशील कालोनी स्थित अपनी कोठी नंबर 12 में रहने लगा. वीरेंद्र बीएसएनएल में जूनियर इंजीनियर के पद पर था. उस की तैनाती आगरा के बिजली घर स्थित बीएसएनएल औफिस में थी. अपने पद के अलावा उस के पास एसडीओ का चार्ज भी था.

वीरेंद्र के पिता फौज की नौकरी से रिटायर हो चुके थे. अपने औफिस जाने से पहले वीरेंद्र पिता के लिए खाना देने उन के अशोक विहार स्थित घर पर जाता था. कालांतर में सुशील भी लांस नायक पद से रिटायर हो गए. जबकि नरेंद्र बीटेक के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. यानी सभी अपनेअपने काम में व्यस्त थे. जिंदगी के रंगों को अचानक छुआ भावना की साड़ी ने

एक दिन वीरेंद्र अपनी पत्नी और बच्चों के साथ किसी शादी समारोह में गया. वहां भावना अचानक उस समय एक युवक से टकरा गई, जब दोनों प्लेट में खाना ले कर निकल रहे थे. युवक ने सौरी कहा. जवाब में भावना ने हंसते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं, भीड़भाड़ में ऐसा हो जाता है.’’

‘‘लेकिन आप की साड़ी में दाग लग गया है,’’ युवक ने विनम्रता से कहा.

‘‘दाग साड़ी पर ही तो लगा है, धुल जाएगा. बस जीवन पर नहीं लगना चाहिए.’’ भावना बोली.

युवक ने भावना को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘अच्छी फिलौसफी है आप की मैडम, आप के लिए कुछ लाऊं?’’

भावना को युवक की विनम्रता पसंद आई. वह बोली, ‘‘हां, कुछ मीठा ले आइए.’’

युवक आइसक्रीम ले आया. आइसक्रीम देने के बाद वह बोला, ‘‘मैडम, क्या मैं जान सकता हूं कि आप कहां रहती हैं?’’

‘‘मैं पंचशील कालोनी में रहती हूं,’’ भावना ने इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘अच्छा, मैं जाती हूं, बच्चों ने कुछ खाया है या नहीं?’’ कह कर भावना वहां से चली गई.

वह युवक दिल्ली नगर निगम में जूनियर इंजीनियर था. नाम था कपिल.

29 साल का कपिल एक रिटायर्ड अफसर का बेटा था. उस के पिता सूरजभान एफसीआई से रिटायर थे.  वह दिल्ली के अशोक विहार में रहते थे. उन का बड़ा बेटा देवेंद्र भी दिल्ली नगर निगम में जूनियर इंजीनियर था, अत: कपिल ने देवेंद्र के पास रह कर ही पढ़ाई की थी. कपिल शनिवार और रविवार की छुट्टियों में घर पर ही रहता था. नौकरी मिलने के बाद उस ने दिल्ली में किराए पर अलग कमरा ले लिया था. कपिल का दोस्त मनीष कपिल के साथ उस के कमरे में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. वह बीटेक पास कर चुका था और आगरा की पंचशील कालोनी स्थित अपने घर आनाजाना रहता था.

उस दिन शादी समारोह में कपिल और भावना की वह छोटी सी मुलाकात कुछ ऐसा गुल खिलाएगी, जिस में सब कुछ तबाह हो जाएगा, किसी ने कल्पना तक नहीं की थी. दिल्ली आने के बाद कपिल ने मनीष को बताया कि आगरा में शादी समारोह में उसे पंचशील कालोनी की एक महिला मिली थी, जिस से उस की बातचीत भी हुई थी. तुम तो पंचशील कालोनी में ही रहते हो, जरा पता लगाना कि कौन है. मनीष ने ठहाका लगाया, ‘‘तूने मुझे क्या जासूस समझ रखा है? पंचशील में क्या वही एक औरत ही रहती है? अरे भाई, न नाम, न पता, इतनी बड़ी कालोनी में कैसे ढूंढेंगे उसे. वैसे उस औरत में ऐसा क्या है जो उसे तलाश कर उसे तुझ से मिलाना चाहिए.’’

‘‘कुछ नहीं यार, बस जरा यूं ही. उस से एक बार फिर बात करने की इच्छा हो रही है.’’

‘‘ठीक है इस बार आगरा चलेंगे तो कालोनी के चक्कर लगाएंगे, शायद वह कहीं मिल जाए.’’ कह कर मनीष ने बात खत्म की.

भावना का पति वीरेंद्र व्यस्त अधिकारी था. उसे सुबह 10 बजे औफिस पहुंचना होता था और शाम 6 बजे घर लौटता था. सुबहशाम वह पिता को अशोक विहार स्थित घर जा कर खाना भी पहुंचाता था. कुल मिला कर भावना को लगता कि उस का पति आम पतियों की तरह उस की भावनाओं पर ध्यान नहीं देता. फिर अचानक उस के जेहन में शादी समारोह में मिला वह युवक घूमने लगता था. एक दिन अचानक फेसबुक पर भावना को एक फ्रैंड रिक्वेस्ट आई. फोटो देख कर वह चौंकी. अरे यह तो वही युवक है. उस के दिल की धड़कनें तेज होने लगीं. उस ने खुद को आईने में निहारा और सोचा उस के चेहरे पर अभी भी कुछ ऐसा है, जो किसी युवक को आकर्षित कर सकता है.

साड़ी का रंग सोच में उतरने लगा भावना जानती थी कि वह 39 साल की है और 2 बच्चों की मां भी. जबकि युवक काफी कमउम्र का था. समय काटने के लिए दोस्त बना लेने में कोई हर्ज नहीं है. सोच कर उस ने कपिल नाम के उस युवक की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. कपिल बहुत खुश था, उसे मनचाही मुराद मिल गई थी. फेसबुक पर बात का सिलसिला शुरू हो गया, जो निकट भविष्य में कुछ और ही रंग लाने वाला था. चैटिंग के दौरान एक दिन कपिल ने भावना की एक फोटो पर लिख कर भेजा, ‘‘आप बहुत सुंदर हैं.’’

अपनी तारीफ सुन कर भावना का दिल बल्लियों उछलने लगा. उस ने थैंक्स के साथ लिखा कि आज तक मेरी किसी ने तारीफ नहीं की. उस दिन भावना देर तक सोचती रही कि उस ने वीरेंद्र के साथ शादी कर के गलती कर दी थी. पैसा ही सब कुछ नहीं होता. वह उसे कोमल भावनाओं से भरी पत्नी नहीं बल्कि मशीन की तरह इस्तेमाल करता है. वीरेंद्र के प्रति वितृष्णा के भाव मन में आ चुके थे. उस रात काम खत्म कर के जब वह पलंग पर आई तो वीरेंद्र एक फाइल देख रहा था. भावना ने कहा, ‘‘कभी अपनी बीवी के दिल की फाइल भी पढ़ लिया करो.’’

वीरेंद्र हंसते हुए बोला, ‘‘बताओ, क्या है तुम्हारे दिल में?’’

‘‘यह तो तुम भी जानते हो कि पत्नी क्या चाहती है?’’ वह बोली.

‘‘सब कुछ तो है तुम्हारे पास. खर्चे के लिए मैं पैसा भी बराबर देता हूं, जो जरूरत हो ले लो.’’ वीरेंद्र ने कहा.

‘‘मुझे जो चाहिए, उसे पैसे से नहीं खरीदा जा सकता. क्या तुम अपनी पत्नी की तारीफ में दो मीठे बोल भी नहीं कह सकते. बताओ क्या मैं सुंदर नहीं हूं?’’

‘‘ओह तो यह बात है.’’ वीरेंद्र बोला, ‘‘कभी आईने में खुद को गौर से देखा है. 2 बच्चों की मां हो, उन का भी कुछ खयाल किया करो. तुम जैसी हो वैसी ही रहोगी, तारीफ करने से कुछ भी बदलने वाला नहीं है. अच्छा, अब बहुत रात हो गई है. चलो सो जाओ.’’

पति की बातें भावना को चुभ गईं. उस ने सोचा कि इस से अच्छा तो वह कपिल है जो उस की तारीफ करता है. धीरेधीरे कपिल उस के दिलोदिमाग पर छाने लगा. दोनों में चैटिंग तो होती ही थी दोनों ने फोन नंबर और अपना पता एकदूसरे को बता दिया. इस के बाद कभीकभी कपिल छुट्टी ले कर आगरा आने लगा. मौका देख कर वह भावना से भी मिलने लगा. कपिल को यह बात अच्छी तरह पता चल चुकी थी कि पति और बच्चों के होते हुए भी भावना बिलकुल तनहा है. वह वीरेंद्र के साथ खुश नहीं है. कभीकभी भावना कहती, ‘‘कपिल, यह जिंदगी एक जेल की तरह है और मैं खुद को आजीवन कारावास की सजा पाए हुए कैदी की तरह महसूस करती हूं.’’

‘‘तो फिर निकल जाओ न इस कैद से.’’ नादान कपिल ने सलाह दी.

‘‘मैं एमएससी पास हूं. कुछ कर के अपनी जिंदगी संवार सकती थी, पर पिता ने मुझे बोझ की तरह उतार फेंका. पढ़ाई के बाद कुछ भी मन का नहीं करने दिया और इस जंजाल में फंस गई. बच्चे पैदा कर के उन की आया बन जाओ और दिनरात घर के लोगों के लिए खाना पकाओ. बस, यही जिंदगी है मेरी.’’

भावना की खीझ और कुंठा उस के व्यक्तित्व को घेर रही थी और उस का नादान प्रेमी उन शोलों को हवा दे रहा था. दोनों इस बात से अनजान थे कि यदि ये शोले भड़क गए तो सब जल कर राख हो जाएगा. भावना और कपिल के बीच नाजायज संबंध बन चुके थे. भावना खुद को कपिल की बांहों में सुरक्षित महसूस कर रही थी. वह यह भूल गई थी कि वह उम्र में कपिल से बड़ी है और विवाह जैसे बंधन को अपवित्र कर एक बड़ा गुनाह कर रही है. लेकिन कपिल के प्रति उस की दीवानगी ने उस की सोच पर परदा डाल दिया था. धीरेधीरे वक्त गुजर रहा था और दीवानगी भरी मोहब्बत के बंधन और मजबूत हो रहे थे. भावना पति और बच्चों की परवाह किए बिना कुछ पाने की चाह में खतरनाक राह पर चली जा रही थी.

काश! वीरेंद्र ने स्थिति को संभाला होता वीरेंद्र अभी तक इस खेल से अनजान था. बच्चों को भी कोई जानकारी नहीं थी, पर कोई भी गुनाह ज्यादा दिन तक नहीं छिप पाता. यह गुनाह भी नहीं छिप पाया. एक दिन वीरेंद्र औफिस से कुछ जल्दी ही वापस आ गया. उस ने देखा कि कोई युवक अभीअभी उस के घर से बाहर निकला था. इस से पहले कि वह अपनी गाड़ी लौक कर के उसे पहचान पाता, वह चला गया. वीरेंद्र ने डोरबैल बजाई तो भावना ने दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘अरे तुम फिर वापस आ गए.’’

लेकिन सामने वीरेंद्र खड़ा था. पति को देखते ही भावना का चेहरा पीला पड़ गया. वीरेंद्र ने उस से पूछा, ‘‘कौन था वह?’’

‘‘कौन..? किस की बात कर रहे हो तुम?’’ वह बोली.

‘‘वही जो अभीअभी घर से निकल कर गया है.’’ वीरेंद्र ने कहा.

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम, यहां से तो कोई नहीं निकला. तुम ने जरूर कहीं और  किसी को देखा होगा. चलो आओ, चाय बनाती हूं.’’ भावना ने बात संभालते हुए कहा.

लेकिन वीरेंद्र के दिल में शक का बीज पड़ चुका था. पिछले कुछ समय से उसे पत्नी का व्यवहार परेशान कर रहा था. अंदर आ कर उस ने देखा कि मेज पर बादाम, काजू की प्लेटें रखी थीं. भावना ने वीरेंद्र की नजरों को भांप लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने सोचा कि बच्चों के लिए कुछ बनाऊंगी, अभीअभी निकाले हैं. तुम खाओ, मैं चाय लाती हूं.’’ कह कर भावना किचन में चली गई. वीरेंद्र को समस्या और उस के हल को खोजना था. पत्नी किस के साथ दोस्ती पाले हुए है, यह जानना बहुत जरूरी था. इस से पहले कि वीरेंद्र भावना का फोन चैक करता, भावना ने कपिल की दी हुई सिम फोन में से निकाल दी.

भावना और कपिल के संबंधों की जानकारी वीरेंद्र को करीब डेढ़ साल बाद मिली, तब तक नाजायज संबंधों की बेल काफी बढ़ चुकी थी. इतना ही नहीं, बल्कि दोनों का संबंध खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका था. इधर कपिल के पिता सूरजभान ने उस के लिए रिश्ते की तलाश शुरू कर दी, लेकिन कपिल तय कर चुका था कि भावना ही उस की हमसफर बनेगी. एक दिन उस ने मन की बात भावना को बताई तो वह चौंकी.

‘‘ये क्या कह रहे हो तुम? मैं तुम से उम्र में बड़ी हूं और 2 बच्चों की मां भी. ऐसे में मेरे बच्चों का क्या होगा?’’

‘‘बच्चे काफी बड़े हैं. उन्हें उन का बाप देखेगा. और रही उम्र की बात तो तुम्हारी उम्र से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. तुम तलाक ले लो वीरेंद्र से.’’ कपिल ने साफ कहा.

‘‘ठीक है, मैं सोचूंगी.’’ भावना ने कहा.

इधर वीरेंद्र काफी डर गया था. क्योंकि भावना का रवैया पिछले कुछ दिनों से अच्छा नहीं था. वीरेंद्र जानता था कि वासना से पीडि़त बुद्धिहीन औरत कुछ भी कर सकती है. सुरक्षा के लिहाज से उस ने दरवाजों पर लोहे के जालीदार दरवाजे भी लगवा दिए पर वह यह भी जानता था कि खतरा कहीं बाहर नहीं बल्कि वह तो उस के घर में ही मौजूद है. वीरेंद्र ने अपने कुछ खास परिचितों को बताया भी था कि वह इन दिनों खुद को खतरे में महसूस कर रहा है, पर खतरा कैसा है यह वह किसी को बता नहीं पाया. आखिर एक दिन वीरेंद्र को यह बात पता चल ही गई कि दिल्ली नगर निगम में काम करने वाले कपिल का उस की पत्नी के पास आनाजाना है. यह जान कर वह सन्न रह गया. समस्या को जान लेने के बाद उस का उपचार कैसे किया जाए, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी.

इधर कपिल इस बात पर जोर दे रहा था कि भावना जल्द से तलाक ले ले. लेकिन भावना जानती थी कि अगर उस ने वीरेंद्र से तलाक ले लिया तो संपत्ति से हाथ धो बैठेगी. उस ने साफ कह दिया कि तलाक तो नहीं ले सकती, कुछ और सोचो. इधर वीरेंद्र ने भी तय किया कि वह पत्नी पर नजर रखेगा. इसलिए वह जबतब अचानक घर आ जाता. पति की इस हरकत से भावना का गुस्सा बढ़ गया. आए दिन दोनों में झगड़ा होता. दोनों बच्चे सहमे हुए रहने लगे. एक दिन वीरेंद्र ने कहा कि भावना इस बार तुम अपना बर्थडे सेलिब्रेट करना, मैं तुम्हें एक अच्छा गिफ्ट दूंगा. वीरेंद्र ने ऐसा ही किया भी. उस ने पत्नी को एक महंगा मोबाइल फोन गिफ्ट किया.

इतना ही नहीं वीरेंद्र ने भावना के लिए कार भी खरीदी. उस ने सोचा कि शायद उस के व्यवहार से प्रभावित हो कर भावना सही रास्ते पर आ जाए और दोनों का वैवाहिक जीवन बिगड़ने से बच जाए. पर भावना पर आशिकी का नशा इतना चढ़ चुका था कि उतरने के लिए किसी बड़ी साजिश का इंतजार कर रहा था. संदेह था वीरेंद्र की हत्या हुई  5 जनवरी, 2020 की रात 3 बजे आगरा के एस.एन. अस्पताल में 2 लोग एक व्यक्ति को जख्मी हालत में लाए. उन्होंने बताया कि वे लोग घायल को पहले साकेत कालोनी के प्रशांत अस्पताल ले गए थे. लेकिन उन्होंने भरती करने से इनकार कर दिया. तब वे उसे दिल्ली गेट स्थित पुष्पांजलि अस्पताल ले गए. लेकिन हालत गंभीर होने के कारण उसे एस.एन. मैडिकल कालेज रैफर कर दिया गया है.

पूछताछ में पता चला कि वह जख्मी व्यक्ति बीएसएनएल का जेटीओ है. जख्मी का डाक्टरों ने परीक्षण किया तो वह मृत पाया गया. प्रथमदृष्टया यह मामला हत्या का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने तुरंत पुलिस को सूचना दे दी. थाना शाहगंज के इंसपेक्टर अरविंद कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ तुरंत अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने यह बात उच्चाधिकारियों को भी बता दी. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मृतक को इमरजेंसी में लाने वाले मृतक के बड़े भाई सुशील वर्मा और उन का बेटा प्रशांत थे. पोस्टमार्टम के बाद जो रिपोर्ट आई, उस से पता चला कि वीरेंद्र की मौत चेहरे और छाती पर लगे जख्मों और पसलियों के टूटने से हुई थी. पसलियां किसी भारी चीज से तोड़ी गई मालूम होती हैं. संभवत: हत्या को एक्सीडेंट केस बनाने की कोशिश की गई थी. रिपोर्ट में गला दबाना भी बताया गया था.

पूछताछ में सुशील ने पुलिस को बताया कि रात को उस की भाभी भावना का फोन आया कि वीरेंद्र किसी का फोन सुन कर घर से 7 हजार रुपए ले कर पैदल ही चले गए. जब वह नहीं लौटे तो उस ने उन्हें फोन किया. लेकिन काल रिसीव नहीं की गई. फिर फोन स्विच्ड औफ हो गया. भावना ने आगे बताया था कि किसी परिचित ने 10 हजार रुपए मांगे थे, लेकिन घर में 7 हजार रुपए ही थे. सुशील ने बताया कि भावना की बात सुनते ही वह अपने बेटे के साथ भाई को खोजने निकल गया. रात लगभग 3 बजे वीरेंद्र जख्मी हालत में घर से करीब 400 मीटर की दूरी पर दीप इंटर कालेज के पास खाली प्लौट के सामने मिले, जिन्हें वह गाड़ी में डाल कर ले आया.

पुलिस ने सुशील की तहरीर पर आईपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. सुशील ने पुलिस को बताया कि वीरेंद्र किसी को पैसे देने के लिए रात को एक बजे अकेले ही घर से निकले थे. लेकिन मौकाएवारदात पर पुलिस को कोई पैसा या मोबाइल नहीं मिला था. मृतक की हत्या जिस तरीके से की गई थी, उसे देख कर लूट का मामला तो बिलकुल भी नहीं लग रहा था. यह बात सुशील के गले भी नहीं उतर रही थी, क्योंकि वीरेंद्र शाम के बाद कभी अकेले घर से नहीं निकलते थे. पुलिस ने फूटफूट कर रो रही भावना से पूछताछ की तो उस ने कहा कि उस ने पति को अकेले रात में बाहर निकलने से मना किया था, पर वह नहीं माने और चले गए. भावना के हावभावों से पुलिस को शंका हो रही थी.

मामले की जांच का कार्य एसएसपी बबलू कुमार ने सीओ नम्रता श्रीवास्तव को सौंप दिया. शाहगंज थाने की टीम और सर्विलांस टीम को भी इस केस की जांच में लगाया गया. इसी के साथ हत्याकांड के खुलासे में एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन, प्रमोद और उन की टीम भी लग गई. एसपी (सिटी) खुद इंजीनियर हैं, सर्विलांस टीम में भी कई इंजीनियर थे. पुलिस ने सब से पहले मृतक के एक नजदीकी रिश्तेदार से पूछताछ की. उस ने बताया कि भावना की कपिल नाम के एक युवक के साथ दोस्ती थी और कपिल का गहरा दोस्त था मनीष. 2 साल पहले कपिल की नौकरी दिल्ली नगर निगम में लग गई थी. वह अपने दोस्त मनीष के साथ किराए के कमरे में रहता है और मनीष का पूरा खर्च उठाता है.

अब पुलिस का फोकस नाजायज संबंधों पर ठहर गया. पुलिस ने कपिल और मनीष के बारे में जांच कर पता लगा लिया कि आगरा की पंचशील कालोनी में रहने वाला मनीष राम सिंह का बेटा है, जो एक फैक्ट्री में काम कर के परिवार पालता है. मनीष का एक छोटा भाई भी है. पुलिस मनीष को दिल्ली से ले आई और उस से पूछताछ शुरू कर दी. उधर पुलिस की एक टीम पंचशील कालोनी और घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच कर रही थी. लेकिन कोहरे के कारण किसी सीसीटीवी कैमरे में कोई फोटो नहीं आ पाई थी, पर कालोनी के लोगों ने बताया कि 5 जनवरी, 2020 की रात में वीरेंद्र के घर पास एक कार देखी गई थी.

वीरेंद्र के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस के फोन की आखिरी लोकेशन कालोनी में ही मिली. पुलिस को गुमराह करने के लिए हत्यारे ने फरजी नामपते पर एक सिम ली थी. साजिश को अंजाम देने के लिए उसी सिम से वीरेंद्र को काल की गई थी. शक होने पर पुलिस ने भावना को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने मनीष और भावना से सख्ती से पूछताछ की तो उन के टूटने में ज्यादा देर नहीं लगी. इस के बाद कपिल को भी पुलिस दिल्ली से गिरफ्तार कर ले आई. पूछताछ में उन्होंने अपना गुनाह कबूल कर लिया. पता चला कि नाजायज रिश्ते बरकरार रखने और अपनीअपनी खुशियां पाने के लिए उन्होंने हत्या की साजिश एक महीने पहले रची थी और उसे 4 जनवरी को अंजाम दिया था. अपनी खुशी और सुख पाने के लिए भावना इतनी अंधी हो गई थी कि उस ने यह तक नहीं सोचा कि उस के इस कदम के बाद बच्चों का क्या होगा.

योजना के मुताबिक, 5 जनवरी, 2020 को कपिल अपने दोस्त दीपक की कार ले कर मनीष के साथ रात में आगरा पहुंचा. उस समय रात के करीब 12 बज चुके थे. भावना ने अपने घर का बाहरी दरवाजा खुला छोड़ दिया. दोनों अंदर आ गए. उस समय वीरेंद्र सो रहा था. कपिल ने तकिए से उस का मुंह और मनीष ने गला दबाया. भावना ने पति के पैर पकड़ लिए ताकि वह विरोध न कर सके.  जब वीरेंद्र ने छटपटाना बंद कर दिया तो तीनों ने मिल कर उसे कार में डाला और दीप इंटर कालेज के पास एक खाली प्लौट के सामने चार फुटा रोड पर डाल दिया. इस के बाद कई बार उस की लाश पर कार चढ़ाई, जिस से उस की पसलियां टूट गईं.

कोशिश की, लेकिन पुलिस को नहीं लगा एक्सीडेंट बेशक कातिलों ने हत्या को एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की, पर पुलिस की सूझबूझ से राज खुल ही गया. इश्क की मारी भावना का कोई ड्रामा काम नहीं आया. हत्या के बाद कपिल और मनीष दिल्ली आए थे लेकिन उन दोनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन निकलवाई गई तो मनीष के फोन की लोकेशन घटनास्थल पर और फिर दिल्ली की पाई गई. भावना ने फोन की काल डिटेल्स निकाली गई तो हत्या से पहले उस की कपिल से बात होने की पुष्टि हुई. पुलिस ने 48 घंटे में इस हत्याकांड से परदा उठा दिया और तीनों आरोपियों भावना, कपिल और मनीष को गिरफ्तार कर 8 जनवरी, 2020 को पुलिस जब कोर्ट ले गई तो उन्हें देखने के लिए भारी भीड़ जमा हो गई. तीनों को सुरक्षा घेरे में ले कर अदालत में पेश किया गया. जैसे ही अदालत ने उन्हें जेल भेजने के आदेश दिए तो तीनों आरोपी रोने लगे.

अपने सुख के लिए पति नाम के कांटे को रास्ते से हटाने के लिए भावना ने गहरी चाल चली थी. भावना ने सोचा था कि विधवा हो जाने पर उसे सहानुभूति और प्रौपर्टी दोनों ही मिलेंगी, पर इस अपराध के लिए उसे मिली जेल. कुछ रिश्तेदारों और अपनों ने भावना से मुंह फेर लिया. अब उस के पास काली अंधी दुनिया के सिवाय कुछ नहीं है. भावना का बेटा 7वीं कक्षा में और बेटी 6ठी कक्षा में पढ़ती है. उन्हें नहीं मालूम कि मां ने उन्हें अनाथ क्यों किया. एक कातिल मां की इस कारगुजारी का बच्चों पर क्या असर होगा, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा. पर मां ने फिलहाल तो उन से उन के हिस्से की खुशियां छीन ही लीं.