ज़रा सी भूल ने खोला क़त्ल का राज – भाग 1

मगनलाल कोठारी बहुत खुश था. इंडियन काफी हाउस से नाश्ता कर के वह हलके स्वर में सीटी बजाते हुए धीरेधीरे कनाटप्लेस की ओर  जा रहा था. उसे केवल एक घंटे का समय बिताना था. एक घंटा बाद टिकट ले कर उसे प्लाजा सिनेमा में फिल्म देखनी थी.

हकीकत में उसे फिल्म नहीं देखनी थी बल्कि यह उस की योजना का हिस्सा था. उसे बस सिनेमा हाल में टिकट ले कर घुसना भर था ताकि वह अपनी मौजूदगी पक्की कर ले कि वह 12 से 3 बजे वाले शो में फिल्म देख रहा था.

40-42 साल का मगनलाल कोठारी खुद को बहुत होशियार समझता था. सचमुच वह चतुर चालाक था भी. दिल्ली में वह पिछले 6 सालों से कारोबार कर रहा था और उस में सफल भी था. लेकिन जब से उस ने एक पंजाबी युवती से शादी की थी तब से उस की सोच कुछ टेढ़ी हो गई थी. अब वह अपने पूरे कारोबार का एकछत्र मालिक बनने की सोचने लगा था, लेकिन उस की राह का कांटा था रामलाल गोयल, उस का पार्टनर.

रामलाल गोयल स्वभाव का अच्छा व्यक्ति था. व्यवसाय में ज्यादातर पैसा भी उसी का लगा हुआ था. अच्छे पार्टनर की तरह उसे कोठारी पर पूरा भरोसा था. कोठारी और गोयल ने सालों पहले पार्टनरशिप में बिजनैस शुरू किया था जो अच्छाभला चल रहा था. रामलाल गोयल करीब 50 साल का था लेकिन अविवाहित और अकेला. वह अपना खाली समय सिनेमा, टीवी और पत्रपत्रिकाओं वगैरह से बिताता था.

जबकि कोठारी के मनोरंजन के साधन कुछ और ही थे. उस के मनोरंजन का साधन होती थीं औरतें. वह चूंकि शादीशुदा था, इसलिए अपने इस शौक को वह बड़ी सावधानी से छिपाने का अभ्यस्त हो गया था. कोठारी की परेशानी यह थी कि रामलाल गोयल को बिना अपने रास्ते से हटाए वह सारे कारोबार का अकेला मालिक नहीं बन सकता था.

उसे रास्ते से हटाने के बारे में वह इसलिए भी सोचता था क्योंकि गोयल वैसे तो अकेला था लेकिन मध्यप्रदेश के उस के पैतृक घर में उस के भाई वगैरह थे. यह अलग बात है वह काफी पहले उन से संबंध तोड़ चुका था और दिल्ली में अकेला रह रहा था. कोठारी सोचता था कि अगर गोयल उस की राह से हट जाता है तो वह सारे कारोबार का अकेला मालिक बन जाएगा.

थोड़ी देर पहले कोठारी अपनी पत्नी और उस के रिश्ते के ममेरे भाई के साथ बाजार में था. उसे अपना यह साला सख्त नापसंद था. वह बिल्कुल नहीं चाहता था कि उस की खूबसूरत बीवी लफंगे टाइप के उस साले से मिलेजुले, पर पत्नी का दिल न दुखे इसलिए उसे यह बर्दाश्त करना पड़ता था. उन लोगों ने करोलबाग में कुछ खरीददारी की थी और जब वापस लौटने लगे थे तो कोठारी एक आदमी से मिलने का बहाना बना कर कनाट प्लेस आ गया था और इधरउधर घूम कर इंडियन काफी हाउस में जा बैठा था.

थोड़ी देर बाद जब दोपहर के शो का समय हो गया तो वह अपनी योजनानुसार प्लाजा सिनेमा की ओर चल दिया. वहां उसे अपने परिचित सिनेमा मैनेजर से मिलना था, फिर टिकट लेना था और अपने जानकार गेटकीपर को ठीक से अपना चेहरा दिखा कर हाल में घुस जाना था. फिर सब की आंख बचा कर उसे चुपके से हाल से निकल कर अपना काम करना था. इस के बाद, फिल्म समाप्ति पर उसे सिनेमा हाल से बाहर निकलने वाली भीड़ में शामिल हो कर मैनेजर से दो बातें कर के वापस लौट आना था.

मगन लाल कोठारी ने अपनी योजना पर कई दिनों तक काफी सोचविचार किया था. इस से 2-3 दिन पहले उस ने बिना अपने परिचित मैनेजर से मिले चुपके से जा कर सिनेमा हाल में लगी फिल्म देख ली थी और उस की कहानी भी अच्छी तरह याद कर ली थी.

सिनेमा हाल के पास वाली दुकान से सिगरेट खरीद कर वह कश लेता हुआ मैनेजर के औफिस में गया. मैनेजर ने उस का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया. फिर बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘क्यों मि. कोठारी, फिल्म देखेंगे न?’’

‘‘हां भई, इसीलिए तो आया हूं. जरा टिकट मंगवा दीजिए.’’ कोठारी ने पैसे देने चाहे तो मैनेजर ने आजीजी से कहा, ‘‘पैसों की क्या बात है, आप चलें, मैं बैठा देता हूं.’’

‘‘देखो भाई,’’ कोठारी बोला, ‘‘घोड़ा घास से दोस्ती नहीं करता. दोस्ती हम दोनों की है, मालिक का क्यों नुकसान करते हो?’’

मैनेजर मुसकरा कर रह गया, वह कोठारी की आदत जानता था. उस ने चपरासी से ड्रेस सर्किल की एक टिकट मंगवा दी. कोठारी गेट से हाय हैलो कर के अंदर चला गया. फिल्म शुरू होने से पहले बत्तियां बुझ गईं. हाल में अंधेरा छाते ही कोठारी एक्जिट की ओर बढ़ गया. उस वक्त उस ने नकली दाढ़ी मूंछें लगा रखी थीं जो उस ने पिछले दिन ही खरीदी थीं. उस वक्त 2-3 युवक अंदर आ रहे थे. उस ने इस का लाभ उठाया. फलस्वरूप उसे गेटपास भी नहीं लेना पड़ा. गेटकीपर उसे पहचानता था, लेकिन वह उस वक्त दूसरी ओर पीठ किए खड़ा था इसलिए कोठारी को देख नहीं सका.

सिनेमा हाल के पिछवाड़े की गली उसे मालूम थी, उसी से वह सड़क पर आ गया. वहां से एक टैक्सी ले कर वह सीधा अपने औफिस आया जो साउथ ऐक्सटेंशन के पास था. वह जानता था, कि औफिस 1 से 3 बजे तक बंद रहता है. दरअसल इस बीच रामलाल दोपहर में लंच करने के लिए पास ही के रेस्तरां में जाता था और फिर लौट कर 3 बजे तक औफिस में ही आराम करता था. औफिस का चपरासी 2 बजे भोजन करने अपने घर जाता था. उस के लौटने का समय हो रहा था. कोठारी ने हाथ में रूमाल लपेट कर चाबी से औफिस का मुख्य दरवाजा खोला और अंदर घुस कर दरवाजा फिर से बंद कर दिया.

उस ने धीरे से जेब थपथपाई, फिर आगे बढ़ गया. रामलाल गोयल के चैंबर का दरवाजा खुला हुआ था. धीरे से थोड़ा सा परदा हटा कर उस ने अंदर झांका. रामलाल फाइलों से लदी मेज के पार आराम कुर्सी पर मुंह खोले खर्राटे ले रहा था. कोठारी के होंठों पर कुटिल मुसकान फैल गई. वह सोचने लगा कितना आसान है किसी का खून करना. लोग बिना वजह घबराते हैं. अगर योजना सही हो तो कोई दिक्कत नहीं होती. पर योजना भी तो परफेक्ट होनी चाहिए. कोठारी दबे पांव अंदर चला गया.

                                                                                                                                           क्रमशः

अमीर बनने की चाहत – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जनपद गाजियाबाद के पौश इलाके राजनगर एक्सटेंशन की वीवीआईपी सोसाइटी में 30 नवंबर, 2015 की सुबह हडक़ंप मचा हुआ था. इस की वजह वह थी कि इस सोसाइटी में रहने वाले कारोबारी विवेक महाजन का बेटा रहस्यमय ढंग से गायब हो गया था. दरअसल उन का 13 वर्षीय बेटा जयकरन 29 नवंबर की दोपहर सोसाइटी में ही बने मैदान में खेलने के लिए गया था.

इसी बीच वह लापता हो गया था. जब वह शाम तक घर नहीं पहुंचा तो घर वालों को चिंता हुई. चिंता के बादल तब और गहरे हो गए, जब यह पता चला कि जयकरन का मोबाइल भी स्विच्ड औफ है. परिचितों और जयकरन के दोस्तों के यहां भी उस की खोजबीन की जा चुकी थी. लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं लग पा रहा था. थकहार कर विवेक महाजन ने स्थानीय थाना सिंहानी गेट में बेटे की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. पुलिस ने उन्हें नातेरिश्तेदारों के यहां खोजबीन करने की सलाह दे कर जयकरन का फोटो और हुलिया नोट कर लिया था.

विवेक महाजन के परिवार में पत्नी अमिता के अलावा 2 ही बच्चे थे, बेटी संस्कृति और बेटा जयकरन. अमिता पेशे से डाक्टर थीं, उन का अपना नैचुरोपैथी क्लिनिक था. जयकरन शहर के ही एक पब्लिक स्कूल में कक्षा 8 में पढ़ रहा था. उस के लापता होने से अनहोनी की आशंकाएं जन्म ले रही थीं. पूरी रात जयकरन का इंतजार होता रहा. लेकिन न तो वह आया और न ही उस के मोबाइल पर संपर्क हो सका. चिंताओं के बीच किसी तरह रात बीत गई. 30 नवंबर की सुबह सूरज की रेशमी किरणों से नई उम्मीदों का उजाला तो हुआ, लेकिन महाजन परिवार की उदासी और परेशानी ज्यों की त्यों बनी रही.

करीब सवा 10 बजे अमिता के मोबाइल की घंटी बजी. उन्होंने बुझे मन से मोबाइल की स्क्रीन को देखा तो उस पर जयकरन का नंबर डिस्प्ले हो रहा था. उन्होंने झट से फोन का बटन दबा कर के कान से लगाया, “ह…ह…हैलो जयकरन बेटा, कहां है तू?”

“घबराओ नहीं डाक्टर साहिबा, जयकरन हमारे पास सलामत है.” किसी अनजबी की आवाज सुन कर अमिता के दिल की धडक़नें बढ़ गईं और आवाज गले में अटक सी गई, “अ…अ…आप कौन, मेरा बेटा कहां है? उस से मेरी बात कराइए.” अमिता ने कहा.

लेकिन फोन करने वाला ठंडे लहजे में बोला, “इतनी भी क्या जल्दी है, बेटे से बात करने की. अभी एक ही रात के लिए तो दूर हुआ है. बाई द वे वह बिल्कुल ठीक है. हम पूरा खयाल रख रहे हैं उस का.”

कुछ पल रुक कर उस ने आगे कहा, “रही हमारी बात तो इतना बताना ही काफी है कि आप लोग फटाफट 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो. जैसे ही 2 करोड़ दे दोगे, बेटा तुम्हें मिल जाएगा.”

यह सुन कर अमिता के होश उड़ गए. वह समझ गईं कि उन के बेटे का अपहरण हुआ है. वह गिड़गिड़ाईं, “देखो प्लीज, तुम मेरे बेटे को छोड़ दो.”

उन की बेबसी पर फोनकर्ता ने पहले ठहाका लगाया, फिर वह कठोर लहजे में बोला, “कहा तो है छोड़ देंगे. तुम रकम का इंतजाम करो. हम तुम्हें दोबारा फोन करेंगे.” थोड़ा रुक कर वह आगे बोला, “और हां, पुलिस को फोन करने की गलती कतई मत करना, वरना तुम्हारा बेटा टुकड़ों में मिलेगा.”

“तुम लोग गलत कर रहे हो. हम पर रहम करो, प्लीज मेरे बेटे को छोड़ दो.”

अमिता ने कहा तो दूसरी ओर से फोन कट गया. उन्होंने काल बैक की, लेकिन तब तक मोबाइल फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.

जयकरन के अपहरण की बात से महाजन परिवार में कोहराम मच गया. सोसाइटी के लोग भी एकत्र हो गए. विवेक महाजन ने इस की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस विभाग तुरंत हरकत में आ गया. मामला एक हाईप्रोफाइल कारोबारी के बच्चे के अपहरण का था, लिहाजा कुछ ही देर में थानाप्रभारी रणवीर ङ्क्षसह विवेक महाजन के घर पहुंच गए. बाद में एसएसपी धर्मेंद्र यादव, एसपी (सिटी) अजयपाल शर्मा व सीओ विजय प्रताप यादव भी वहां आ गए.

यह बात पूरी तरह साफ हो गई थी कि जयकरन का अपहरण फिरौती के लिए किया गया था. अपहर्ता उस के साथ कुछ भी कर सकते थे. ऐसे में पुलिस के सामने जयकरन को बचाना बड़ी चुनौती थी. मेरठ जोन के आईजी आलोक शर्मा व डीआईजी आशुतोष कुमार ने सतर्कता के साथ अविलंब काररवाई निर्देश दिए.

एसएसपी धर्मेंद्र यादव ने जयकरन की सकुशल रिहाई के लिए एसपी अजयपाल शर्मा के निर्देशन में एक पुलिस टीम गठित कर दी. इस टीम में थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच के प्रभारी अवनीश गौतम व उन की टीम को भी शामिल किया गया.

इस बीच पुलिस ने जयकरन की गुमशुदगी को अपहरण में तरमीम कर के अज्ञात अपहर्ताओं के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया था. पुलिस ने जयकरन का मोबाइल नंबर ले कर सॢवलांस पर लगा दिया. पुलिस को उम्मीद थी कि सीसीटीवी की मदद से संभवत: कोई ऐसा सुराग मिल जाएगा, जिस से यह पता चल जाएगा कि जयकरन को कालोनी के बाहर कब और कैसे ले जाया गया. लेकिन पुलिस की यह उम्मीद तब टूट गई, जब पता चला कि वीवीआईपी सोसाइटी में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं.

इस बीच पुलिस इतना अंदाजा जरूर लगा चुकी थी कि जयकरन के अपहरण में किसी ऐसे व्यक्ति का हाथ है, जिसे वह पहले से जानता रहा होगा. क्योंकि अगर उसे जबरन ले जाया गया होता तो शोरशराबा होता या घटना का कोई प्रत्यक्षदर्शी मिल जाता.

पुलिस ने जयकरन के घर वालों और अन्य लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई ऐसा सुराग नहीं मिला, जिस के आधार पर पुलिस आगे बढ़ पाती. पुलिस ने जयकरन के दोस्तों और सोसाइटी के संदिग्ध लोगों के बारे में पूछताछ की तो एक चौंकाने वाली जानकारी मिली. एक व्यक्ति ने बताया, “सर, 2 लडक़े हैं जो अब नहीं दिख रहे. वे दोनों जयकरन के दोस्त भी हैं.”

“कौन हैं वे?” पुलिस अधिकारी ने पूछा तो उस व्यक्ति ने बताया, “दीपक और संदीप. दोनों सोसाइटी में ही किराए पर अकेले रहते हैं. रात और सुबह 9 बजे तक तो दोनों यहीं पर थे, लेकिन अब नहीं दिख रहे हैं.”

यह पता चलने पर पुलिस उन दोनों के फ्लैट पर पहुंची, लेकिन वहां ताला लटका हुआ था. इस से पुलिस को उन पर थोड़ा शक हुआ. उन के बारे में ज्यादा कोई कुछ नहीं जानता था. बस इतना ही पता चला कि वे दोनों 2 महीने पहले ही सोसाइटी में रहने के लिए आए थे. दोनों बहुत मिलनसार थे और बच्चों के साथ क्रिकेट खेलते थे. जयकरन को चूंकि क्रिकेट का बहुत शौक था, इसलिए उस की उन से अच्छी जानपहचान थी.

“वे दोनों काम क्या करते थे?”

“नहीं पता सर.”

पुलिस के शक की सूई उन दोनों के इर्दगिर्द घूमने लगी. तभी एक युवक ने अपना मोबाइल आगे बढ़ाते हुए कहा, “यह देखिए सर, दीपक का फोटो.” फोटो पर नजर पड़ते ही एसपी अजयपाल शर्मा चौंके. उस में दीपक अपने हाथ में अवैध पिस्टल लिए हुए था. दरअसल दीपक ने वह फोटो व्हाट्सएप ग्रुप में खुद ही पोस्ट की थी. पुलिस ने पहली नजर में ही ताड़ लिया कि पिस्टल अवैध थी. इस से पुलिस का शक उन दोनों पर और भी बढ़ गया. पुलिस ने पूछताछ कर के दीपक का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया.

यादगार केस : दुआ को मिला इन्साफ – भाग 1

अतिरिक्त जिला जज आफाक अहमद ने सामने बैठे डीएसपी खावर रंधावा पर गहरी नजर  डाल कर कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम्हारा आखिरी केस यादगार बन जाए, इसलिए खलील मंगी को कल जेल से अदालत लाने और फैसले के बाद हिफाजत से उस के घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मैं तुम्हें सौंपना चाहता हूं.’’

सामने बैठे डीएसपी खावर रंधावा ने पहलू बदलते हुए कहा, ‘‘इस में यादगार बनने वाली क्या बात है? यह तो मेरा फर्ज है, जिसे मैं और मेरे साथी बखूबी निभाएंगे.’’

जज आफाक अहमद और डीएसपी खावर रंधावा पुराने दोस्त तो थे ही, समधी बन जाने के बाद उन की यह दोस्ती रिश्तेदारी में भी बदल गई थी.

‘‘मैं ने मंगी को रिहा करने का फैसला कर लिया है.’’ आफाक अहमद ने यह बात कही तो डीएसपी रंधावा को झटका सा लगा. हैरानी से वह अपने बचपन के दोस्त का चेहरा देखते रह गए. जबकि वह एकदम निश्चिंत नजर आ रहे थे. जिस आदमी के बारे में मीडिया और कानून के जानकार ही नहीं, पूरे देश में मशहूर था कि उन्होंने आज तक किसी भी गुनहगार को नहीं छोड़ा, शायद उन्होंने जिंदगी का मकसद ही गुनाहगार को सजा देना बना लिया था, आज वही शख्स एक घिनौने और बेरहम अपराधी को छोड़ने की बात कर रहा था.

उन्होंने कहा, ‘‘तुम उस घिनौने कातिल को छोड़ दोगे, जिस ने 15 साल की एक मासूम बच्ची को अपनी हवस का शिकार बना कर बेरहमी से मार डाला था. भई, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि तुम ऐसा काम करोगे. जिस आदमी की ईमानदारी और फर्ज अदायगी पर लोग आंख मूंद कर यकीन करते हों, वह भला ऐसा काम कैसे कर सकता है?’’

रंधावा की बातों में शिकायत थी. आफाक अहमद निराशा भरे अंदाज में अपना सिर कुरसी की पुश्त से टिकाते हुए धीरे से बोले, ‘‘जिस तरह मेरे आदेश पर तुम उस की हिफाजत करने के लिए मजबूर हो, उसी तरह कानूनी मजबूरियों की वजह से मैं भी उसे रिहा करने को मजबूर हूं.’’

रंधावा होंठ भींचे उन्हें देखते रहे तो आफाक अहमद ने आगे कहा, ‘‘तुम अदालती काररवाई के बारे में तो जानते ही हो. चश्मदीद गवाहों ने अपने बयान बदल दिए हैं, मैडिकल रिपोर्ट भी पैसे के बल पर बदलवा दी गई है, केवल घटना के आधार पर तो सजा नहीं दी जा सकती. फिर कोई मजबूत पक्ष भी नहीं है, इसलिए मुझे मजबूरन कल उसे रिहा करना होगा.’’

रंधावा के चेहरे पर निराशा के भाव साफ झलकने लगे. दोस्त वाकई बेबस था. मजबूत एफआईआर के साथ अगर गवाह अपने बयानों पर टिके रहते तो दुनिया की कोई भी ताकत खलील मंगी को फांसी पर चढ़ने से नहीं रोक सकती थी.

आफाक अहमद के कमरे में खामोशी छा गई. उस समय दीवार पर लगी आधा दरजन घडि़यों की टिकटिक की आवाज ही आ रही थी जो उन के कमरे की दीवारों पर चारों ओर लगी थीं. तरहतरह की नईपुरानी घडि़यों को जमा करना और उन्हें दीवारों पर लगाना आफाक अहमद का शौक था. रंधावा ने अचानक कहा, ‘‘फिर तो खलील के हाथों मारी गई दुआ के लिए दुआ ही की जा सकती है. उस का भाई शाद अली, जो कैप्टन था, अच्छा होगा वह अपने दावे में कामयाब हो जाए.’’

आफाक अहमद ने भी दुखी लहजे में कहा, ‘‘खुदा करे, वह अपने मकसद में कामयाब हो.’’

फौज में कैप्टन शाद अली ने 2 बार हिरासत के दौरान खलील मंगी पर कातिलाना हमला किया था. लेकिन वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका था. उस के बाद वह एकदम से गायब हो गया था.

इलेक्ट्रौनिक मीडिया के जरिए उस ने दावा किया था कि अगर खलील मंगी को अदालत से रिहा किया तो वह अदालत में जज के सामने ही उसे जान से मार देगा. इस तरह की बातों को उछालने में मीडिया को वैसे भी बड़ा मजा आता है. इसलिए न्यूज चैनलों ने इसे बारबार दिखा कर लोगों में एक अजीब तरह का एक्साइटमेंट पैदा कर दिया था. इसीलिए यह फैसला मीडिया, अवाम और कानून के लिए एक चुनौती बन गया था.

कमरे की सभी घडि़यों ने 9 बजने की घोषणा की तो तरहतरह के म्यूजिक ने कमरे के सन्नाटे को भंग कर दिया. चंद पलों के लिए आफाक अहमद ने अपनी आंखें बंद कर लीं. ये आवाजें उन्हें बड़ा सुकून देती थीं. आवाजों के बंद होने पर उन्होंने कहा, ‘‘दोस्त हमें अपना फर्ज अदा करना है और उस सिरफिरे कैप्टन से मंगी को बचाना है. अब देखना है कि आखिर कौन कामयाब होता है?’’

रंधावा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरी सारी दुआएं उस सिरफिरे कैप्टन के साथ हैं. खुदा करे वह अपने मकसद में कामयाब हो जाए. दिल तो चाहता है कि मैं ही उस की कोई मदद कर दूं. लेकिन अगले हफ्ते मैं खुद ही रिटायर हो रहा हूं. इसलिए अपने बेदाग कैरियर पर मैं कोई धब्बा नहीं लगने देना चाहता. इस इमेज को बनाने में मैं ने पूरी उम्र लगा दी है, अब उसे दांव पर नहीं लगा सकता. फिर भी दुआ तो कर ही सकता हूं कि शाद अली उस जालिम कातिल को बरी होने के बाद खत्म कर दे.’’

रंधावा के लहजे में नफरत साफ झलक रही थी.

आफाक अहमद ने चिंतित स्वर में कहा, ‘‘डीएसपी रंधावा, इसीलिए मैं ने तुम्हें इस काम के लिए चुना है, क्योंकि मुझे यकीन है कि यह मामला तुम्हारे लिए यादगार होगा.’’

डीएसपी रंधावा ने रात को ही अपने तेजतर्रार साथी इंसपेक्टर गुलाम भट्टी के साथ मिल कर अगले दिन की सुरक्षा व्यवस्था की पूरी योजना बना डाली थी. अतिरिक्त पुलिस बल की भी व्यवस्था कर ली गई थी. खलील मंगी को बख्तरबंद गाड़ी से अदालत ले आने और ले जाने की व्यवस्था पहले से ही थी. सुरक्षा की पूरी योजना बना कर गुलाम भट्टी ने कहा, ‘‘सर, हम लोगों को अपना पूरा ध्यान अदालत के कमरे पर रखना होगा.’’

रंधावा ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘मुझे तो लगता है कि अदालत के कमरे में खलील मंगी को मौत के घाट उतारने वाली बात उस ने केवल हमें भटकाने के लिए कही है. कैप्टन अदालत के बाहर कहीं पर भी उस पर हमला कर सकता है.’’

‘‘फिर तो बख्तरबंद गाड़ी को हमें अदालत के अहाते के बजाय अदालत के कमरे तक ले जाना चाहिए.’’ गुलाम भ्टटी ने कहा.

अगले दिन खलील मंगी को बख्तरबंद गाड़ी से अदालत के कमरे तक लाया गया. और जज आफाक अहमद की मेज के दाईं तरफ बने मुल्जिमों के कटघरे में खड़ा किया गया. उस की आंखों में जीत की चमक साफ झलक रही थी. उसे पूरा यकीन था कि थोड़ी देर में उसे रिहा कर दिया जाएगा. उस ने ताजा शेव किया हुआ या और कौटन का सफेद सलवार कुरता पहने था.

                                                                                                                                           क्रमशः

ट्रंक की चोरी : ईमानदार चोर ने किया साजिश का पर्दाफाश – भाग 1

निक वेल्वेर एक अलग तरह का चोर था. वह एक दिन सुबह साढ़े 10 बजे पब्लिक लाइब्रेरी में बैठा हुआ पिछले 2 घंटे से मैगजीन पढ़ रहा  था. इसी दौरान उस के दिमाग में एक आइडिया आया कि क्यों न वह चोरी के टौपिक पर एक किताब लिखे, जिस का शीर्षक हो ‘चोरी एक आर्ट’.

इस विषय पर क्याक्या लिखा जाए, इस बारे में वह सोच ही रहा था, तभी एक मोटा सा आदमी आ कर उस के पास वाली कुरसी पर बैठ गया. उस के बैठते ही निक उठने लगा. तभी वह मोटा आदमी बोला, ‘‘हैलो मिस्टर निक, शायद तुम मुझे नहीं जानते होगे लेकिन मैं तुम्हें जानता हूं. किसी के रेफरेंस से ही तुम्हारे पास तक पहुंचा हूं. मेरा नाम विक्टर एलियानोफ है.’’

निक विक्टर को गौर से देखने लगा तभी विक्टर ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलने यहां इसलिए आया हूं कि मैं तुम से एक ट्रंक चोरी करवाना चाहता हूं.’’

इतना सुनते ही वेल्वेर ने कहा, ‘‘जब आप को किसी ने मेरे पास भेजा है तो यह भी बताया होगा कि मैं सिर्फ फालतू और मामूली चीजों की ही चोरी करता हूं. ऐसी चीजों के चुराने में किसी को दुख भी नहीं होता.’’

‘‘हां, मैं जानता हूं. जिस संदूक के बारे में मैं बात कर रहा हूं वह पुराना और जंग लगा है. वह कोई 70-80 साल पुराना है.’’

‘‘जब इतना पुराना है, तब तो यह ऐतिहासिक महत्त्व की चीज होगी?’’

‘‘नहीं ऐसा कुछ नहीं है. यह एक फालतू पुराना ट्रंक है. उसे कोई कबाड़ी भी लेना पसंद नहीं करेगा, डेढ़ फीट ऊंचा 2 फीट चौड़ा और 4 फीट लंबा है.’’

‘‘जब किसी महत्त्व का नहीं है, तो आप इसे चोरी करवाना क्यों चाहते हैं?’’

‘‘मैं समझता हूं कि इस बात से तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए. तुम अपना काम करो और काम के जो पैसे बनते हैं लो.’’

‘‘मेरी फीस पता है, मैं 25 हजार डालर लेता हूं.’’

विक्टर ने एक लिफाफा निकाल कर उस के सामने रखते हुए कहा, ‘‘ये रहे 10 हजार डालर बाकी काम होने के बाद.’’

निक ने लिफाफा देखे बगैर पूछा, ‘‘अब यह बताओ कि ये ट्रंक किस जगह पर है?’’

विक्टर एलियानोफ ने एक कागज उस के सामने रखते हुए कहा, ‘‘ये है उस जगह का पता. उस इमारत के तहखाने में तुम्हें यह संदूक मिल जाएगा.’’

निक ने कागज को देखते हुए कहा, ‘‘ये जगह कस्बा ‘न्यूपालिट’ में है, जो यहां से करीब 100 मील दूर है.’’

‘‘तुम्हें ट्रंक चोरी करने में ज्यादा दिक्कत पेश नहीं आएगी. जिस घर में यह रखा है, उस घर के लोग न्यूयार्क गए हुए हैं. बस एक बूढ़ा चौकीदार वहां होता है. मुझे यकीन है कि तुम उस चौकीदार की आंखों से बच कर आसानी से अपना काम कर लोगे.’’ विक्टर ने कहा.

‘‘मुझे अपना काम करना आता है. तुम यह बताओ कि ट्रंक पहुंचाना कहां है?’’

विक्टर ने एक पता लिखी परची उसे देते हुए कहा, ‘‘ट्रंक इस अपार्टमेंट में पहुंचाना होगा. ये रही अपार्टमेंट की चाबी. काम खत्म होने के बाद तुम मुझे फोन कर देना, मैं मिल लूंगा.’’ विक्टर ने निक को अपना फोन नंबर देते हुए कहा.

उस समय मौसम सुहाना था. निक ने अपनी दोस्त ग्लोरिया को फोन किया, ‘‘ग्लोरिया, हम न्यूपालिट घूमने चलेंगे. वहां मछली का शिकार और बोटिंग करेंगे.’’

न्यूपालिट एक बहुत खूबसूरत जगह थी इसलिए वहां जाने की बात सुनते ही ग्लोरिया बहुत खुश हुई, उस ने निक के साथ घूमने के लिए हामी भर ली. थोड़ी देर बाद निक अपनी कार से एक निर्धारित जगह पर पहुंच गया. वहां उसे ग्लोरिया उस का इंतजार करती मिली.

ग्लोरिया को कार में बैठा कर वह न्यूपालिट की ओर चल दिया. ग्लोरिया निक के बारे में सब जानती थी. निक ने उसे नए केस के बारे में बता दिया. ग्लोरिया तो वहां जाने से खुश थी. न्यूयार्क की भीड़भाड़, उमस से दूर वे चले जा रहे थे.

दोपहर साढ़े 12 बजे वे लोग न्यूपालिट पहुंच गए. झील के किनारे मशहूर होटल माउंटेन हाऊस में उन्होंने कमरा बुक कराया. खाना खा कर दोनों घूमने निकल गए. उसी दौरान निक उस मकान को एक नजर देख लेना चाहता था, जहां से उसे ट्रंक चुराना था.

कुछ देर बाद वह उस अपार्टमेंट के पास पहुंच गया. वह अपार्टमेंट लाल पत्थरों से बना था. अपार्टमेंट के चारों तरफ पेड़ और हरियाली थी. बाहर लोहे का बड़ा सा गेट लगा था. सीढि़यों के पास बैठा एक बूढ़ा चौकीदार सिगरेट पीता नजर आया. उस के कंधे पर स्टेनगन टंगी थी. अपार्टमेंट की चारदीवारी ज्यादा ऊंची नहीं थी. पीछे की चारदीवारी एक पहाड़ी ढलान से मिली हुई थी.

अपार्टमेंट का मुआयना करने के बाद पूरे दिन प्रेमिका के साथ घूमता रहा. दोनों ने बोटिंग की, शिकार किया. अपना काम करने के लिए निक रात 10 बजे अकेला उस अपार्टमेंट की तरफ रवाना हो गया. रात सुनसान और अंधेरी थी. निक ने अपनी कार एक पेड़ के नीचे खड़ी कर दी. फिर वह बड़ी आसानी से दीवार कूद कर अपार्टमेंट की तरफ बढ़ ही रहा था कि सन्नाटे में किसी कार की आवाज आई. निक पौधों की आड़ में हो गया.

एक कार फाटक पर आ कर रुकी. 3 बार हार्न बजाने पर गेट पर लगी बड़ी लाइट जला कर स्टेनगनधारी चौकीदार गेट के पास पहुंच गया. तभी कार में से एक लड़की उतरी उस ने चौकीदार से कुछ कहा. वह लाइट में खड़ी थी. चौड़े भारी बदन की वह लड़की तंग जींस और स्कीवी पहने हुई थी. वह चौकीदार से हाथ हिलाहिला कर कुछ कह रही थी. इस के बाद वह वापस मुड़ कर चली गई. गेट पर खड़ा चौकीदार बड़े गौर से उसे देखता रहा.

निक को फ्लैट में घुसने का यह सही मौका लगा, वह फुरती से चुपचाप खुले दरवाजे से अंदर दाखिल हो गया. अंदर गहरा अंधेरा था. निक ने जेब से पेंसिल टौर्च निकाली पर जलाई नहीं. दाईं तरफ कोने के कमरे में हलकी रोशनी हो रही थी.

वह ऊपरी मंजिल की सीढि़यों पर झुक कर खड़ा हो गया. तभी उसे ऊपरी मंजिल से कुछ आहट महसूस हुई. 2-3 मिनट वह चुपचाप खड़ा रहा. फिर उसे दरवाजा बंद करने की आवाज आई. एक साया, जो शायद चौकीदार, हलकी लाइट वाले कमरे में चला गया. उस के बाद वहां की लाइट भी बंद हो गई.

निक दबेपांव वहां से निकला और तहखाने की सीढि़यां ढूंढ कर धीरेधीरे नीचे उतरने लगा. तहखाने में उस ने टौर्च जला कर देखा. वहां पुराना सामान, टूटा फरनीचर, रद्दी अखबार वगैरह पड़े थे. सब चीजों पर धूल चढ़ी हुई थी और वहां मकडि़यों के जाले थे. यह सब देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वहां कोई काफी दिनों से नहीं आया हो. एक कोने में पुराना, जंग लगा एक ट्रंक पड़ा था. निक समझ गया कि यही वह ट्रंक है.

अजीब बात यह थी कि ट्रंक पर धूल नहीं थी. जबकि वहां रखे हर सामान पर धूल चढ़ी हुई थी. निक ने उसे उठा कर सिर पर रखा. सीढि़यों के ऊपर पहुंच कर जरा रुक वह यह देखने लगा कि बाहर निकलने में उसे कोई खतरा तो नहीं है.

पूरी तरह सन्नाटा होने पर वह धीरे से दरवाजा खोल कर फ्लैट से बाहर निकल गया. आराम से चारदीवारी फांद कर वह बाहर पहुंचा. कार की डिक्की खोल कर ट्रंक उस में रखने लगा तभी उसे ट्रंक के अंदर से किसी चीज के खड़खड़ाने की आवाज आई. वैसी ही आवाज उसे ट्रंक उठाते समय भी आई थी. उस ने सोचा ट्रंक खोल कर देखा जाए कि उस में क्या है.

वह ट्रंक खोलने को हुआ उसी वक्त अपार्टमेंट के अंदर से कुछ उठापटक की आवाजें आने लगीं. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जोर से दरवाजा बंद किया हो. फिर किसी के दौड़ने की आवाज, कुछ शोर, कुछ भारी चीज गिरने की आवाज के साथ फायर होने की 2 आवाजें सुनाई दीं. निक ने ट्रंक खोलने का इरादा छोड़ दिया. उस ने वहां से जल्द खिसकने में भलाई समझी.

                                                                                                                                           क्रमशः

स्पा के दाम में फाइव स्टार सेक्स – भाग 1

24 मई, 2023 को शाम के करीब 6 बजे का समय था. तारकोल की चिकनी सडक़ पर तेजी से दौड़ती चमचमाती कार सुजुकी अर्टिगा गाजियाबाद के लिंक रोड थानाक्षेत्र में स्थित पैसिफिक माल के सामने आकर रुकी. कार की ड्राइविंग सीट से सफेद वरदी पहना ड्राइवर तेजी से बाहर आया. उस ने कार का पिछला दरवाजा खोला और अदब से एक ओर खड़ा हो गया.

कार से जो शख्स उतरा, वह थुलथुले शरीर वाला नाटा सा व्यक्ति था. उस का चेहरा गोल और आंखें छोटीछोटी थीं. सिर पर आधी खोपड़ी गंजी थी, लेकिन जो बाल थे, वह ब्लैक डाई से रंगे हुए अलग ही पहचाने जा सकते थे. इस व्यक्ति के शरीर पर बेशकीमती ब्राऊन कलर का सफारी सूट था. पैरों में कीमती जूते चमचमा रहे थे. यह पैसों वाला अमीर व्यक्ति जान पड़ता था.

छोटीछोटी आंखों को जबरदस्ती फैला कर वह ड्राइवर से बोला, “मुन्ना देखो, मैं अपना फोन गाड़ी में ही छोड़ कर जा रहा हूं, यदि पीछे से तुम्हारी मालकिन सुनीता का फोन आए तो उस से कहना कि साहब हलका होने गए हैं, समझ गए.” कहने के बाद वह मानीखेज अंदाज में मुसकराया.

मुन्ना ने भद्दे पीले दांत चमकाए और धीरे से बोला, “समझ गया मालिक.”

वह व्यक्ति आगे बढ़ता, तभी मुन्ना ने मासूमियत से उसे टोका, “मालिक?”

वह व्यक्ति रुका, पलटा, “क्या?”

मुन्ना ने दोनों हाथ बांधे और जांघों के बीच में दबा कर खींसे निपोरते हुए बोला, “मालिक, कभी मुझे भी हलका होने के लिए ले चलिए न.”

“शटअप!” वह नाटा व्यक्ति गुस्से में बोला, “शक्ल देखी है कभी अपनी आईने में?”

“सौरी मालिक.” मुन्ना झेंप कर बोला.

वह व्यक्ति लंबेलंबे डग भरता हुआ पैसिफिक माल में चला गया तो मुन्ना ने उसे भद्ïदी सी गली दी, “हरामी कहीं का. घर में इतनी सुंदर बीवी है और रोज यहां गटर में डुबकी मारने आ जाता है.”

पैसिफिक माल में वेश्यावृत्ति

अपनी भड़ास निकाल लेने के बाद मुन्ना ने अपनी जेब से बीड़ी का बंडल निकाल कर बीड़ी सुलगा ली, उस ने बीड़ी का गहरा कश ले कर धुआं बाहर उगला, तभी उस के मोबाइल की घंटी बजने लगी. मुन्ना ने मोबाइल के स्क्रीन पर नजर डाली, उस पर उस के दोस्त गणेशी का नंबर चमक रहा था.

काल रिसीव करते हुए चहक कर बोला, “हैलो, मैं मुन्ना हूं. अबे तू 20 दिन से कहां मर गया था?”

“गांव गया था यार, बीवी की तबीयत खराब थी.”

“अब कैसी है भाभी?”

“अच्छी है अब.” गणेशी की आवाज उभरी, “तू कहां पर है?”

“मालिक को गटर में गोते खिलाने के लिए पैसिफिक माल में लाया हूं.”

“गटर में गोते? अबे तू क्या बक रहा है, तेरा मालिक पैसिफिक माल में कहां के गटर में गोते लगाता है?”

मुन्ना हंसा, “अमा यार, पैसिफिक माल में कई स्पा सेंटर हैं, यहां एक से बढ़ कर एक हसीन लडक़ी मिल जाती है. यहां स्पा की आड़ में जिस्मफरोशी का धंधा खूब होता है. मेरा मालिक सात दिन से रोज इसी वक्त यहां आता है. अमीर है, इसलिए मौज मार रहा है. मैं उस का 15 हजार रुपल्ली का ड्राइवर हूं. मैं बाहर बैठ कर अपनी बदकिस्मती पर सिसकता रहता हूं. काश! मैं भी किसी धन्ना सेठ के यहां पैदा हुआ होता.” मुन्ना ने आह भरी.

दूसरी तरफ गणेशी हंस पड़ा, “रोता क्यों है यार, अपने भी दिन आएंगे कभी मौजमस्ती के.”

“नहीं आएंगे. हम लोगों के नसीब में शादी के वक्त जो औरत पल्ले बांध दी गई है, बस उसी से अपनी हसरतें पूरी करना लिखा है.”

“छोड़ ये बातें, बता घर कब आएगा?”

“इस इतवार को छुट्टी करूंगा, तब आता हूं, भाभी के हाथ की चाय पीने.”

“आ जा, चाय के बाद तुझे बढिय़ा शराब की दावत दूंगा.”

“ठीक है,” मुन्ना ने खुश हो कर कहा, “इतवार की छुट्टी तेरे नाम की.” कहने के बाद मुन्ना ने काल डिसकनेक्ट कर दी. उसे तब अहसास भी नहीं था कि उस की गणेशी से हुई बात को वहीं पास में खड़े एक व्यक्ति ने सुन लिया है. मुन्ना बीड़ी के सुट्टे मारता हुआ ड्राइविंग सीट पर बैठा, तब उस की बातें सुनने वाला व्यक्ति किसी को फोन लगाने लगा था.

मुन्ना की अपने दोस्त गणेशी से होने वाली बातों को सुनने वाला वह व्यक्ति पुलिस का खास मुखबिर जगदीश उर्फ जग्गी था. उस ने तुरंत साहिबाबाद के एसीपी भास्कर वर्मा को फोन लगा कर यह जानकारी दी कि गाजियाबाद के पैसिफिक माल में चल रहे स्पा सेंटर में देह व्यापार का अनैतिक काम चल रहा है.

एसीपी भास्कर वर्मा ने जग्गी को स्पा सेंटरों में चल रहे देह धंधे की पुष्टि कर के उन्हें हकीकत से अवगत करने का निर्देश दे दिया. जग्गी इन कामों का मंझा हुआ खिलाड़ी था. वह उसी वक्त पैसिफिक माल में घुस गया. एक घंटे बाद उस ने एसीपी भास्कर वर्मा को दोबारा फोन लगाया.

“हां जग्गी?” एसीपी ने उतावलेपन से पूछा, “तुम ने मालूम किया?”

“साहब, ईनाम में 5 हजार लूंगा. यहां पैसिफिक माल में एक नहीं पूरे 8 स्पा सेंटर हैं, सभी में लड़कियों से देह धंधा करवाया जा रहा है. इस वक्त छापा डालेंगे तो देह धंधे में लिप्त सैकड़ों लड़कियां, उन के दलाल, मैनेजर और मौजमस्ती करने आए अय्याश लोग भी आप के हाथ आ सकते हैं.”

“ठीक है, तुम्हारा ईनाम पक्का. मैं छापा डालने की तैयारी करवाता हूं.” एसीपी भास्कर वर्मा ने कहा और जग्गी की काल डिसकनेक्ट कर उन्होंने दूसरी जगह फोन घुमाना शुरू कर दिया.

स्पा सेंटर में देह धंधे की खबर से चौंके डीसीपी

एसीपी भास्कर वर्मा ने थाना लिंक रोड, स्वाट टीम ट्रांस हिंडन जोन तथा पुलिस लाइंस कमिश्नरेट गाजियाबाद को फोन कर के तुरंत पुलिस बल सहित महाराजपुर पुलिस चौकी पर पहुंचने का निर्देश दे दिया. उन्होंने ट्रांस हिंडन जोन के डीसीपी विवेक चंद यादव को भी पैसिफिक माल में स्थित 8 स्पा सेंटरों में देह व्यापार होने की सूचना दे कर उन से निर्देश मांगा. डीसीपी विवेक चंद यादव ने चौकी आने की बात कही.

आधा घंटे में ही महाराजपुर पुलिस चौकी में थाना लिंक रोड, स्वाट टीम ट्रांस हिंडन जोन और पुलिस लाइंस कमिश्नरेट गाजियाबाद का पुलिस बल और अधिकारी पहुंच गए. महाराजपुर पुलिस चौकी छावनी में तब्दील होने जैसी प्रतीत होने लगी. डीसीपी विवेक चंद्र यादव और एसीपी भास्कर वर्मा ने आपस में सलाहमशविरा कर इस माल में चल रहे 8 स्पा सेंटरों में एक साथ छापा डालने के लिए 8 पुलिस टीमों का गठन कर दिया. इन टीमों के प्रभारी नियुक्त किए गए.

उधार का चिराग – भाग 1

मुझे उन्होंने मारने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन संयोग अच्छा था कि मैं बच गया था. उन की चलाई गोली मेरे सिर को छूती हुई निकल गई थी. उस के बाद जान बचाने के  लिए मैं ने सरपट दौड़ लगा दी थी. जिन लोगों ने मुझे मारने की कोशिश की थी, उन से मेरी कोई दुश्मनी नहीं थी और जिस ने उन्हें इस काम के लिए भेजा था, उस से भी मेरी कोई दुश्मनी नहीं थी. इस के बावजूद मारने वाले मुझे मारना चाहते थे तो मरवाने वाला मुझे मरवाना चाहता था.

इस कहानी की शुरुआत उस दिन हुई थी, जिस दिन मेरे बौस अजहर अली ने मुझे अपने चैंबर में पहली बार बुलाया था. वह अपनी सख्ती और खड़ूसपने के लिए मशहूर थे. उन का एक्सपोर्टइंपोर्ट का बहुत बड़ा कारोबार था.  कंपनी के सारे कर्मचारी उन से बहुत डरते थे. चैंबर में घुसते ही उन्होंने बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘शहबाज तुम्हारा ही नाम है?’’

‘‘जी सर.’’ मैं ने बैठते हुए अदब से कहा था.

‘‘तुम यहां अकेले ही रहते हो या परिवार के साथ?’’

‘‘सर, मैं बिल्कुल ही अकेला हूं, मेरा कोई नहीं है.’’

उन्होंने मुझे गौर से देखा. इस के बाद कुछ सोचते हुए पूछा, ‘‘अभी शादी भी नहीं की?’’

‘‘जी नहीं.’’

मुझे उन की बातों पर हैरानी हो रही थी. उन्होंने मेरे चेहरे पर नजरें जमा कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारे काम से बहुत खुश हूं. तुम काफी मेहनती और ईमानदार हो. मैं ने तुम्हारी रिपोर्ट देखी है. मैं तुम्हें प्रमोशन देना चाहता हूं. शाम को मेरे घर आ जाना, वहीं इत्मीनान से बातें करेंगे.’’

यह मेरी खुशनसीबी ही थी कि मुझे इस तरह का मौका मिल रहा था. शाम को मैं बौस अजहर अली के घर पहुंच गया. उन का घर बहुत शानदार था. ड्राइंगरूम बेशकीमती चीजों से सजा हुआ था. बाहर कई गाडि़यां खड़ी थीं. कई नौकर इधरउधर घूम रहे थे.

अजहर अली एक छरहरी खूबसूरत औरत के साथ ड्राइंगरूम में दाखिल हुए. उन्होंने औरत की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘यह मेरी वाइफ नाजनीन है.’’

मैं ने सलाम किया. सभी लोग बैठ गए. अजहर अली ने औफिस और काम की बातें शुरू कीं. उन्होंने कुछ खास जिम्मेदारियां सौंपते हुए ओहदा और वेतन बढ़ाने की बात कही. तभी उन के मोबाइल पर किसी का फोन आ गया तो वह उठ कर बाहर चले गए.

उन के जाते ही नाजनीन अपनी जगह से उठी और मेरे पास आ कर बैठ गई. उस के परफ्यूम की खुशबू ने मुझे मदहोश सा कर दिया. मेरी धड़कन एकदम से बढ़ गई. उस ने बड़े प्यार से पूछा, ‘‘आप के शौक क्या क्या हैं, आप जिम जाते हैं?’’

‘‘मैडम, मैं इतने महंगे शौक कैसे पाल सकता हूं?’’ मैं ने कहा.

‘‘अब तुम गरीब नहीं रहोगे.’’ उस ने प्यार से कहा.

उस के इस अंदाज से मैं हैरान था. मैं ने कहा, ‘‘मैं समझा नहीं मैडम?’’

‘‘अजहर तुम पर मेहरबान हैं. वह तुम्हें अपनी फर्म का जनरल मैनेजर बनाने जा रहे हैं. इस के बाद पैसे की कमी कहां रहेगी. मैनेजर बनते ही तुम्हें क्लब की मैंबरशिप मिल जाएगी. बड़े आदमी बन जाओगे तो तुम्हें बड़े लोगों के साथ उठनाबैठना होगा न?’’

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि पहली मुलाकात में यह कैसी बातें कह रही हैं. अजहर अली लौट कर आए. आते ही उन्होंने कहा, ‘‘नाजनीन ने तुम्हें सब बता ही दिया होगा. मुझे एक जरूरी मीटिंग में जाना है, इसलिए मैं चलता हूं.’’

‘‘लेकिन सर मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि यह कैसे हो सकता है?’’ मैं ने घबरा कर कहा.

‘‘इस में समझना क्या है. बस यह समझो कि तुम्हारी किस्मत जाग उठी है. कल तुम औफिस जाओगे तो तुम्हें अपौइंटमेंट लेटर मिल जाएगा.’’

मैं परेशान था कि आखिर मुझ पर यह मेहरबानी क्यों हो रही है? मैनेजर की पोस्ट, तगड़ा वेतन, गाड़ी के साथसाथ अन्य तमाम सुविधाएं. आखिर यह सब क्यों किया जा रहा है?

अजहर अली अपनी बीवी को बाय कह कर चले गए. उन के जाने के बाद नाजनीन ने कहा, ‘‘अब तो तुम्हें यकीन हो गया होगा कि आप अमीर आदमी बन गए हैं. मैं भी यही चाहती हूं.’’

‘‘मुझे तो यह सब एक सपना सा लग रहा है.’’ मैं ने कहा.

‘‘लेकिन तुम्हारा सपना हकीकत बन गया है. अब तुम जा सकते हो.’’

अपने किराए के फ्लैट पर पहुंच कर भी मुझे यह सब एक सपना ही लग रहा था. मैं ने अपने उस किराए के छोटे से पुराने फ्लैट को देखा, अब मुझे एक शानदार घर मिलने वाला था. किस्मत मुझ पर मेहरबान जो थी. अगले दिन बौस ने मुझे अपने चैंबर में बुलाया तो मैं धड़कते दिल के साथ पहुंचा.

उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा लेटर तैयार हो गया है. अभी जो मैनेजर था, उस का ट्रांसफर कर दिया गया है. 3 दिन वह तुम्हारे साथ रह कर तुम्हें सारे काम समझा देगा.’’

मन यही कर रहा था कि मैं उठ कर नाचने लगूं. साथ काम करने वालों के लिए यह एक हैरानी की बात थी. सभी ने मुझे मुबारकबाद दी. मैनेजर का चैंबर काफी बड़ा और शानदार था. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं बौस का शुक्रिया कैसे अदा करूं?

एकाउंटेंट ने मेरे चैंबर में आ कर मुझे मुबारकबाद दे कर कहा, ‘‘शहबाज साहब, आप इस फर्म के जनरल मैनेजर हो गए हैं. लेकिन एक बात याद रखना कि अब आप को दोधारी तलवार पर चलना होगा. जितना बड़ा ओहदा होता है, जिम्मेदारियां उतनी ही बढ़ जाती हैं.’’

इस के बाद वह मुझे औफिस के काम और जिम्मेदारियां समझाने लगा. काफी बड़ी फर्म थी. कुछ मैं पहले से जानता था, बाकी पहले के मैनेजर और एकाउंटेंट ने समझाना और सिखाना शुरू कर दिया.

3-4 दिनों बाद अजहर अली ने मुझे बुला कर पूछा, ‘‘शहबाज, कोई मुश्किल तो नहीं आ रही है? काम समझ में आ रहा है न?’’

मैं ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा, ‘‘जी सर, सब ठीक चल रहा है.’’

उन्होंने मुझे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘आज शाम को तुम मेरे घर आ जाना. नाजनीन तुम्हें साथ ले जा कर क्लब का मेंबर बनवा देगी.’’

‘‘जी सर.’’

किस्मत मुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी. नाजनीन मेरी राह देख रही थी. उस ने आगे बढ़ कर बड़ी गर्मजोशी से मुझ से हाथ मिलाया. मैं थोड़ा नर्वस जरूर हुआ.

वह बहुत अच्छी तरह से तैयार हुई थी, जिस से बहुत ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. उस का परफ्यूम मुझे मदहोश कर रहा था. उस ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं?’’

‘‘बहुत अच्छी लग रही हैं.’’ मैं ने कहा.

मेरे बाजू को थपथपाते हुए उस ने कहा, ‘‘अब तुम्हें हाई सोसायटी के तौरतरीके सीखने पड़ेंगे.’’

गाड़ी वह खुद चला रही थी. मैं उस की बगल वाली सीट पर बैठा था. क्लब में उस ने अपने सभी जानने वालों से मेरा परिचय कराया. आधे घंटे में मैं क्लब का मेंबर बन गया. यह वह क्लब था, जिस के सामने से गुजरते हुए मैं सोचा करता था कि इस में क्या होता होगा, कैसे कैसे लोग आते होंगे? आज मैं खुद उस के अंदर था.                                                                                                                            

बेरुखी : बनी उम्र भर की सजा – भाग 1

यह सच है कि अगर मेरे शौहर सुलतान अहमद मुझ से मेरी जान भी मांगते तो मैं देने में एक लमहे की भी देर न करती. उन का छोटे से छोटा काम  भी मैं खुद किया करती थी, हालांकि घर में नौकरनौकरानियां भी थीं. इस में ताज्जुब की कोई बात नहीं थी. अकसर औरतें अपने पतियों की ताबेदारी में खुशी महसूस करती हैं. फिर भी उन्होंने कभी मेरे साथ मुसकरा कर बात नहीं की थी.

दूसरों के सामने तो वह मेरे साथ नरम पड़ जाते थे, मगर तनहाई में या बच्चों के सामने बिलकुल अजनबी से बन जाते थे. ऐसा भी नहीं था कि वह स्वभाव से ऐसे थे. दूसरों के लिए वह बहुत हंसमुख थे. खासतौर पर बच्चों पर तो जान छिड़कते थे. उन के बीच वह बेतकल्लुफ दोस्त बन जाते थे.

उन की हर फरमाइश मुंह से निकलते ही पूरी किया करते, मगर मेरे लिए उन के पास सिवाय बेगानगी के और कुछ नहीं था. मुझे देखते ही सुलतान अहमद के चेहरे पर अजीब सी संजीदगी भरी सख्ती छा जाती. अगर वह बोल रहे होते तो मेरे आते ही खामोश हो जाते. हमारा बेडरूम साझा था, मगर वह वहां देर रात को आते थे. घर में उन का अधिक समय अपने स्टडी रूम में गुजरता था. वह कभी मेरे साथ शौपिंग के लिए नहीं गए.

सुलतान अहमद आला ओहदे पर लगे हुए थे. दफ्तर की तरफ से उन्हें मकान और गाड़ी मिली हुई थी. वह अपनी सारी तनख्वाह अपना खर्च निकाल कर मेरे हवाले कर देते थे और फिर पलट कर यह नहीं पूछते थे कि मैं ने क्या खर्च किया, कहां खर्च किया, क्यों खर्च किया और क्या बचाया.

उन का यह रवैया मैं कोई 1-2 साल से नहीं, बल्कि पिछले 25 सालों से बरदाश्त कर रही थी. एक चौथाई सदी के इस अरसे में उन की तरफ से चाहत का एक भी फूल मेरे आंचल में नहीं डाला गया था. इस सितम के बावजूद वह मेरे सिर का ताज थे. उन की सेवा करना, उन के काम करना मेरी जिंदगी का अहमतरीन मकसद था. सुलतान अहमद भी इतनी बेरुखी के बावजूद अपना हर काम मुझ से ही करवाना पसंद करते थे.

सुबह 8 बजे तक वह और बच्चे घर से निकल जाते थे. उन के जाने के बाद मैं नौकरानी से सफाई करवाती. फिर बर्तन और कपड़े धोने वाली आ जाती. मगर मैं सिर्फ अपने और बच्चों के कपड़े धुलवाती. सुलतान अहमद के कपड़े मैं अपने हाथों से ही धोया करती थी. फिर मैं दोपहर के खाने की तैयारी में लग जाती. बच्चे 1 बजे तक स्कूलकालेज से आ जाते थे और सुलतान अहमद भी दोपहर का खाना घर में ही आ कर खाते थे.

दफ्तर से आमतौर पर वह शाम 6 बजे तक आ जाते थे. फ्रेश हो कर लाउंज में बच्चों के पास बैठ जाते थे. इस दौरान वह उन के मनोविनोद और तालीमी सरगर्मियों के बारे में पूछते. चाय पीते और फिर अपने स्टडी रूम में चले जाते, जहां से वह रात के खाने के वक्त ही निकलते थे. खाने के बाद वह फिर स्टडीरूम में वापस चले जाते और लगभग 11, साढ़े 11 बजे बेडरूम में आते थे.

सुलतान अहमद आर्थिक मामलों में माहिर थे. वह आडिट और एकाउंट के विषय में खास अधिकार रखते थे. इस विषय पर उन की लिखी हुई किताबें बहुत मकबूल थीं. अपने स्टडी रूम में वह लिखनेपढ़ने का काम करते थे. इन सारी बातों से आप ने अंदाजा लगा लिया होगा कि उन के पास मेरे लिए एक लमहा भी नहीं था. यह मैं बता चुकी हूं कि सुलतान अहमद स्वभाव से ऐसे नहीं थे.

तब मुझे इतनी लंबी और कड़ी सजा देने की वजह क्या हो सकती थी, यह बताने के लिए मुझे अपनी जिंदगी की किताब के उन पन्नों को खोलना पड़ेगा, जिन की बातें आज तक किसी पर जाहिर नहीं की थीं. हमारे समाज में जब कोई औलाद लगातार तीसरी लड़की होने के नाते इस दुनिया में आंख खोलती है तो आमतौर पर उसे इस जुर्म की सजा तकरीबन उस सारे अरसे भुगतनी पड़ती है, जब तक वह बाप के घर रहती है.

मगर मेरी खुशकिस्मती थी कि जब बेटे की जगह मैं इस दुनिया में आई तो सब ने बड़ी मोहब्बत से मेरा स्वागत किया. यह मेरी खूबसूरती का करिश्मा था. दादी अम्मा, जो मेरी पैदाइश से पहले उठतेबैठते अम्मी को बेटा पैदा करने की याद दिलाना भूलती नहीं थी, मुझे देख कर खुश हो गईं. उन का कहना था कि हमारी 7 पीढि़यों में कोई इतनी हसीन बच्ची पैदा नहीं हुई.

मेरी पैदाइश के बाद भाइयों का जन्म शुरू हो गया. अब्बू तरक्की पर तरक्की करते गए. खुशहाली के सारे दरवाजे खुल गए. इस तरह मुझे पैदाइशी भाग्यशाली का दर्जा हासिल हो गया. होश संभालते ही मुझे जो पहला अहसास हुआ या फिर मेरे घर वालों ने अहसास दिलाया, वह यह था कि मैं बेहद खूबसूरत हूं.

स्कूल में दाखिले के समय मैं ने उस स्कूल में पढ़ने से साफ इनकार कर दिया, जहां मेरी दोनों बड़ी बहनें तालीम हासिल कर रही थीं. उस की बेरौनक इमारत, मामूली फर्नीचर और सादा लिबास लड़कियां मेरी पसंद से  कतई मेल नहीं खाती थीं. मैं ने अम्मीअब्बू से साफ कह दिया कि मैं उस गंदेसंदे स्कूल में उन गंदीसंदी लड़कियों के साथ हरगिज नहीं पढूंगी. यह सुनते ही दोनों बहनों ने हंगामा खड़ा कर दिया कि क्या हम गंदीसंदी हैं? अम्मी ने भी मेरी बात का बुरा तो माना, लेकिन दरगुजर कर गईं. उन्होंने दोनों बहनों को भी समझा लिया.

‘‘तो क्या तुझे किसी अंगरेजी स्कूल में पढ़ाऊं?’’ उन्होंने दबेदबे लहजे में कहा.

‘‘मैं ने कह दिया कि मैं उस स्कूल में नहीं पढूंगी, बस.’’ मैं ने ठुनक कर कहा.

अब्बू ने मेरी हिमायत की. उन्होंने अम्मी से कहा, ‘‘ठीक तो कह रही है मेरी बेटी. वह स्कूल भला इस के लायक है?’’

‘‘तो फिर दाखिल करा दें किसी बढि़या स्कूल में और दें भारी भरकम फीस.’’ अम्मी भन्ना कर बोलीं.

अब्बू ने भागदौड़ कर के मेरा दाखिला शहर के एक आला इंगलिश मीडियम स्कूल में करा दिया. घर से दूर होने की वजह से मुझे गाड़ी लेने और छोड़ने आया करती थी. स्कूल में मैं ने चुनचुन कर खूबसूरत और नफासतपसंद लड़कियों को सहेली बनाया. टीचरें भी मुझे पसंद करती थीं, जिस का सब से बड़ा फायदा मुझे तालीम हासिल करने में हुआ. मैं अपनी क्लास की बेहतरीन स्टूडेंट्स में गिनी जाती थी.

                                                                                                                                          क्रमशः

बदनामी सह न सकी बदनाम औरत

फिलिप्स हर उस बदनाम गली और अड्डे पर हो आया था, जहां अकसर जाया करता था.  लेकिन कहीं भी उस का मन घंटे भर तो क्या, पल भर भी बैठने को नहीं हुआ. रंगीनमिजाज फिलिप्स ने किसी एक का हो कर रहना सीखा ही नहीं था. 30 साल का होने के बावजूद उस ने शादी नहीं की थी. शादी की उस ने जरूरत ही नहीं महसूस की, क्योंकि वह 15-16 साल का था, तभी से बदनाम गलियों का चक्कर लगाने लगा था.

सारा दिन वह मेहनत कर के जो भी कमाता था, उस का एक बड़ा हिस्सा बदनाम औरतों के साथ कुछ समय गुजार कर खर्च कर देता था. तभी तो वह हर बदनाम गली की हर बदनाम औरत का नाम ही नहीं, उस के शरीर की नापतौल भी बता सकता था.

फिलिप्स में एक आदत यह थी कि वह जिस औरत के साथ एक बार समय गुजार लेता था, उस के पास दोबारा नहीं जाता था. जब उन गलियों में उसे कोई नई औरत बैठने को नहीं मिली तो वह बीयर बार चला गया.  बीयर बार में शराब के 4-5 बड़े पैग गले से नीचे उतरे तो वहां भी उस का मन नहीं लगा, बल्कि उस की इच्छा और बढ़ गई. वहां की बारगर्ल्स के अधखुले अंगों को देख कर उस का मन और बेचैन हो उठा. मन तो किया, उन्हीं में से किसी को साथ बैठने का औफर दे दे, लेकिन वे ऐसा काम नहीं करती थीं, इसलिए वह उन्हें सिर्फ छू कर रह गया था.

फिलिप्स अभी कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि उस की नजर एक साइबर कैफे पर पड़ी. वह साइबर कैफे में घुस गया और वहां एक कंप्यूटर के सामने जा बैठा. उस ने वहां कालगर्ल्स की साइटें खोल कर खंगालनी शुरू कीं. उस की मेहनत रंग लाई और उस की पसंद की एक कालगर्ल मिल गई.

वह हसीन तो थी ही, उस की अदाएं भी कातिल थीं. उस के शरीर पर 2 ही कपड़े थे, एक ब्रा और दूसरी पैंटी. गोरे रंग पर गुलाबी रंग के ये दोनों कपड़े खूब फब रहे थे. फिलिप्स की नजर स्क्रीन पर उभरे फोटो से हट ही नहीं रही थी. मन कर रहा था, हाथ डाल कर खींच ले. साइट पर दिए विवरण को पढ़ कर फिलिप्स जैसे उस में डूबा जा रहा था. अंत में लिखा था, ‘अगर दीदार करना है तो एक पल का भी इंतजार न करें. तुरंत दिए मोबाइल नंबर पर फोन करें.’

दिए गए मोबाइल नंबर पर फिलिप्स ने फोन किया तो दूसरी ओर से एक मीठी और सैक्सी आवाज आई, ‘‘बहुत देर कर दी, इतनी देर तक क्या सोचते रहे? सोचविचार में कितने हसीन पल गंवा दिए? मेरे बारे में तो सब जान ही लिया है. अब कीमत सुन लो. एक घंटे के मात्र 3 सौ डौलर, ज्यादा नहीं हैं न? जन्नत की सैर के लिए यह रकम कोई ज्यादा नहीं है.’’

‘‘मुझे यह कीमत मंजूर है. तुम कहां मिलोगी?’’ फिलिप्स ने पूछा.

‘‘मेरे यहां ही आ जाओ. पता है—द हाउस विद लाइट्स औन. और हां, अब देर मत करो. मैं इंतजार कर रही हूं.’’

‘‘आप ने अपना नाम तो बताया ही नहीं?’’ फिलिप्स ने पूछा.

‘‘वैसे नाम की क्या जरूरत है. लेकिन आप पूछ रहे हैं तो बता देती हूं, मुझे ब्रांडी कहते हैं.’’ इतना कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

फिलिप्स तो कब से बेचैन था. पैसे उस की जेब में थे ही, उस ने टैक्सी पकड़ी और द हाउस विद लाइट्स औन पहुंच गया. यह शहर से थोड़ा हट कर एक कम रिहायशी इलाके में बनी आलीशान कोठी थी. सड़क पर ज्यादा भीड़भाड़ भी नहीं थी. कोठी के नीचे जरूर कुछ नौजवान टहल रहे थे.

कोठी नाम के एकदम अनुरूप थी. लाइट हलकी जरूर थी, पर जगमगा रही थी. देख कर यही लग रहा था कि यहां कभी रात होती ही नहीं.  फिलिप्स अंदर घुसते हुए सहमा सा था. वह अंदर पहुंचा तो उस के कानों में मिठास घोलने वाले ये शब्द पड़े, ‘‘लगता है पेनीलोपे, तुम यहां खुश नहीं हो?’’

यही आवाज फिलिप्स ने फोन पर सुनी थी. उस ने खुली खिड़की से अंदर झांका. संगमरमर के फर्श पर संगमरमर सी काया वाली एक लड़की बैठी थी. शायद वही पेनीलोपे थी. उस की बगल में एक औरत और बैठी थी. उसी से फिलिप्स की बात हुई थी. वह ब्रांडी थी. वह पेनीलोपे के गुलाबी गाल पर अंगुलियां फेरते हुए कह रही थी, ‘‘पता नहीं क्यों तुम्हें यहां अच्छा नहीं लग रहा? अरे यहां नएनए आशिक तो आते ही हैं, मोटी कमाई भी होती है.’’

‘‘लेकिन मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘पेनीलोपे! तुम अपनी कीमत समझो? तुम जिस से शादी करोगी, वह भी तुम्हें नोचेगा, खसोटेगा. बदले में क्या देगा, दो जून की रोटी और तन के कपड़े. जबकि यहां जो चाहोगी, वह मिलेगा.’’ ब्रांडी ने कहा.

‘‘तुम बहुत खराब हो मैम.’’ पेनीलोपे शरमाते हुए बोली. शायद उस पर ब्रांडी की बातों का जादू चल गया था.

‘‘वह तो हूं.’’ ब्रांडी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अब देर मत करो, जल्दी से तैयार हो जाओ. लोग आते ही होंगे.’’

ब्रांडी की बात पूरी ही हुई थी कि नौकरानी ने आ कर कहा, ‘‘मैम, फिलिप्स नाम का एक लड़का आप से मिलने आया है.’’

‘‘ठीक है, उसे मेरे कमरे में भेज दो.’’ कह कर ब्रांडी अपने कमरे की ओर बढ़ गई. ब्रांडी का कमरा किसी जन्नत से कम नहीं था. कमरे के बीचोबीच बेड पड़ा था, जो बेहद कीमती था. उस के सिरहाने एक छोटी सी टेबल रखी थी, जिस पर सुगंधित मोमबत्ती जल रही थी. हलका उत्तेजक संगीत बज रहा था. मोमबत्ती की हलकी रोशनी में पारदर्शी गाउन पहने ब्रांडी लेटी थी.

उसे देख कर फिलिप्स की आंखें हैरत से फटी रह गई थीं. उसे ब्रांडी नहीं, जन्नत दिखाई दे रही थी. वह होश खो बैठा. उसे आगे बढ़ने का होश ही नहीं रहा. उसे ठगा सा देख ब्रांडी ने कहा, ‘‘एक घंटे के लिए मैं तुम्हारी हो चुकी हूं, जिस की कीमत तुम अदा कर चुके हो. अब दूर खड़े क्या देख रहे हो, करीब आ जाओ.’’

फिलिप्स जैसे ही बेड के नजदीक पहुंचा, ब्रांडी ने उसे खींच लिया. फिलिप्स बेड पर गिर पड़ा. उसे बांहों में भर कर ब्रांडी ने कहा, ‘‘मेरा नाम ही ब्रांडी नहीं है, मुझ में ब्रांडी जैसा नशा भी है. जहां भी होंठ रखोगे, मदहोश हो जाओगे.’’

फिलिप्स को लगा, उस की खोज पूरी हो चुकी है. वह जिस काम के लिए ब्रांडी के पास आया था, पूरा होने के बाद ब्रांडी ने कहा, ‘‘आप मेरी सेवा से खुश तो हैं?’’

‘‘उम्मीद से ज्यादा.’’ फिलिप्स ने कहा.

‘‘और चुकाई गई कीमत से भी ज्यादा.’’ ब्रांडी ने कहा तो फिलिप्स को हंसी आ गई. उसी के साथ ब्रांडी भी हंसने लगी.

एक कालगर्ल के अड्डे पर दोबारा न जाने वाले फिलिप्स की रातें अब ब्रांडी की कोठी पर बीतने लगीं. इस की वजह यह थी कि उस की यह इच्छा यहीं पूरी हो जाती थी. उसे यहीं रोजरोज नई लड़कियां मिल जाती थीं.

लेकिन एक रात फिलिप्स ब्रांडी की ‘द हाउस विद लाइट्स औन’ कोठी पर पहुंचा तो उसे वहां एक पुलिस जीप खड़ी दिखाई दी. वह काफी देर उस जीप के जाने का इंतजार करता रहा. जब वह काफी देर तक नहीं गई तो वह लौट गया. अगले दिन वह गया तो ब्रांडी ने बताया कि पुलिस उसे पकड़ने आई थी. लेकिन उसे ले जाने के बजाय हुस्न और दौलत ले कर चली गई.

ब्रांडी ने उसे बताया कि जब पुलिस उस के यहां आई तो ब्रांडी और उस के साथ की लड़कियां हाथों में डौलर की गड्डियां लिए उन के सामने आ खड़ी हुईं. उस समय उन के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था.

उस हालत में पुलिस वाले अपनी वर्दी का फर्ज और आने का मकसद भूल गए. डौलरों को जेब के हवाले किया और लड़कियों के साथ कमरों में घुस गए. 3-4 घंटे गुजार कर वे जैसे आए थे, उसी तरह खाली हाथ लौट गए. लेकिन उस के कुछ दिनों बाद ही एक बार फिर पुलिस ने उस के यहां छापा मारा. इस बार ब्रांडी की कोई चाल कामयाब नहीं हुई. दरअसल ब्रांडी के खिलाफ काफी शिकायतें हो चुकी थीं. इसलिए यह मामला अंडर कवर डिटेक्टिव एजेंसी के पास पहुंच गया था.

किसी ने फोन द्वारा पुलिस को सूचना दी थी कि शाम ढलते ही जैसे द हाउस विद लाइट्स औन कोठी में लाइट जलती है, बाहर गाडि़यों की लाइन लग जाती है. नएनए लोग गाडि़यों से आते हैं और घंटे-2 घंटे रुक कर चले जाते हैं. उस में रहने वाली ब्रांडी ने एलीक्स 38डी नाम से वेबसाइट बना रखी है. एलीक्स उस का दूसरा नाम है. उस के नाम के साथ जो 38 लगा है, वह उस की ब्रा का साइज है. इस साइट पर कालगर्ल्स की फोटो के साथ उन के साथ रात गुजारने की कीमत भी लिखी है.

उस व्यक्ति के अलावा भी कुछ अन्य लोगों ने शिकायतें की थीं. उन लोगों का भी यही कहना था कि ब्रांडी के यहां गलत काम होता है. उस के यहां तरहतरह के लोग आते हैं. उस की वजह से उन का जीना दूभर हो गया है. क्रिसमस की रात उस के यहां ऐसा जश्न मनाया गया था कि उस की कोठी के आगेपीछे दूरदूर तक पैर रखने की जगह नहीं थी. जश्न शाम से शुरू हुआ था तो सुबह 4 बजे तक चला था.

इस के अलावा एक महिला ने शिकायत की थी कि उस का अय्याश पति ब्रांडी के घर हर रात 3 से 5 सौ डौलर खर्च कर के आता है. घर आ कर कहता है कि उसे जो सुख वहां मिलता है, कहीं और नहीं मिल सकता. कई शिकायतें हो गई थीं, इसलिए पुलिस को सख्त काररवाई करनी पड़ी.

पहले छापे में मिली नाकामी को ध्यान में रख कर इस बार ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारियों की टीम को ब्रांडी के घर भेजा गया था.   छापे में ब्रांडी के अलावा 3 अन्य कालगर्ल्स पकड़ी गई थीं. इन के साथ तमाम आपत्तिजनक सामान भी बरामद किया गया था. पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर ब्रांडी चिल्लाचिल्ला कर कह रही थी, ‘‘न तो मैं कालगर्ल हूं और न ही ऐसा कोई रैकेट चलाती हूं. यह सब मेरे पति ने मुझ से बदला लेने के लिए किया है. मुझे झूठे इलजाम में फंसाया जा रहा है. मैं जेल नहीं जाऊंगी. इस से बेहतर है मैं मर जाऊं.’’

पुलिस ने उस की एक नहीं सुनी और हथकड़ी पहना दी. अदालत से उसे जेल भेज दिया गया. मगर मानसिक हालत ठीक न होने की वजह से उसे जल्दी ही जमानत मिल गई. जमानत पर छूट कर घर आते ही उस ने जो कहा था, कर दिखाया. उस ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

ब्रांडी मर गई, मगर उस की कहानी खत्म नहीं हुई. उस का अतीत वाकई चौंका देने वाला था. उस का असली नाम ब्रिटन था. बचपन से ही वह कुशाग्र बुद्धि थी.

हर कक्षा में अव्वल आने वाली ब्रिटन खेलकूद में भी आगे रहती थी. अखबारों में वह लेख भी लिखती थी. उस ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से जीव विज्ञान और समाज विज्ञान से डिग्री लेने के बाद इलाइट यूनिवर्सिटी से पीएचडी किया था. उस के नाम के साथ डाक्टर जैसा सम्मानित शब्द जुड़ गया तो उसे मैरीलैंड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर की नौकरी मिल गई. तब वह 30 साल की थी.

न जाने क्यों ब्रिटन ने 1999 में यूनिवर्सिटी की नौकरी से इस्तीफा दे दिया. सन 2002 में उस की मुलाकात इसामु तुबीयामी से हुई. यह मुलाकात इंटरनेट के माध्यम से हुई थी. जल्दी ही दोनों एकदूसरे को समझ गए तो प्यार की राह पर चल पड़े. प्यार गहराया तो दोनों ने शादी कर ली. लेकिन उन का दांपत्य सुखी नहीं रहा. इस की वजह यह थी कि इसामु जैसा दिखता था, वैसा था नहीं. वह हिंसक प्रवृत्ति का था.

एकांत के क्षणों में इसामु ब्रिटन को तरहतरह की यातनाएं दे कर अपनी विकृत यौन कुंठा को संतुष्ट करता था. यही नहीं, उसे मारतापीटता भी था. उस की इन्हीं हरकतों से तंग आ कर शादी के मात्र 6 महीने बाद ही ब्रिटन ने उस से तलाक ले लिया.

उस समय ब्रिटन के पास कोई नौकरी नहीं थी. आमदनी का कोई जरिया न होने की वजह से किसी की सलाह पर उस ने कालगर्ल का धंधा अपना लिया. पहले ही दिन एक ही ग्राहक से उसे इतनी कमाई हो गई कि वह उतना पूरे महीने बच्चों को पढ़ा कर नहीं कमा पाती थी.  ब्रिटन को अच्छी कमाई के साथ देह की संतुष्टि का यह पेशा इतना अच्छा लगा कि वह पूरी तरह से इस धंधे से जुड़ गई. उस ने अपने अलगअलग नाम रख लिए. कहीं वह ब्रांडी होती थी तो कहीं एलीक्स.

यही नहीं, वह जहां कालगर्ल रैकेट चलाने वाली एक कुख्यात मैडम रिंग से जुड़ी थी, वहीं उस ने अपनी वेबसाइट भी बना डाली. जिस का नाम रखा— एलीक्स 38डी. इस से उस का धंधा इतना चमका कि उस ने एक आलीशान कोठी खरीद ली. जरूरतमंद लड़कियों को सब्जबाग दिखा कर देह के धंधे से खूब दौलत बटोरने लगी. वह आम लोगों की ही नहीं, कई नामीगिरामी राजनैतिक हस्तियों की भी रातें रंगीन करती थी.

ब्रिटन उर्फ ब्रांडी भले ही गलत काम कर रही थी, लेकिन वह बेहद भावुक थी. यही वजह थी कि धंधे का खुलासा होने और पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर उस ने आत्मग्लानि के चलते आत्महत्या कर ली थी.   ब्रिटन द्वारा आत्महत्या करने पर उसी रैकेट की डी.सी. मैडम ने कहा था कि उस ने कायरतापूर्ण कदम उठाया है.  संयोग देखो, आगे चल कर डी.सी. मैडम को भी यही कदम उठाना पड़ा.

डी.सी. मैडम का पूरा नाम था डीबोराह जीन पालफ्रे. वह देह के धंधे की कुख्यात और मास्टरमाइंड खिलाड़ी थी. जवानी में डीबोराह ने अपनी खूबसूरत देह से अकूत दौलत कमाई थी. तब वह कई बार पकड़ी भी गई थी.

लेकिन जब जवानी ढल गई तो उस के ग्राहकों की संख्या एकदम से घट गई. इस के बाद उस ने ‘पामेला मार्टिन ऐंड एसोसिएट्स’ नाम की एक एस्कार्ट एजेंसी खोल ली. उस की इस एजेंसी में ऐसी तमाम जवान खूबसूरत लड़कियां थीं, जो मजबूरी की मारी थीं या फिर ऐश की जिंदगी जीने के लिए कुछ भी करने को तैयार थीं.

रैकेट में वह डी.सी. मैडम के नाम से प्रसिद्ध थी. उन्हीं लड़कियों की बदौलत उस ने अपनी पहुंच ऊपर तक बना ली थी. राजनैतिक गलियारों में भी उस के नाम की धमक थी. कई राजनीतिज्ञ अपनी रात रंगीन करने के लिए उस की सेवा लिया करते थे. वह उन के साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी दिखाई देने लगी थी, जिस से उस का धंधा और चमक उठा था.

58 वर्षीया डी.सी. मैडम सालों तक देह का अपना यह धंधा इन्हीं पहुंच के दम पर चलाती रही. लेकिन जब भारी दबाव पड़ा तो 15 अप्रैल, 2008 को उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

उस की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि 24 जुलाई, 2007 को उस ने वाशिंगटन पौलीटिकल ग्रुप के सीनेटर डेविड विट्टर के लिए अपने रैकेट की एक कालगर्ल भेजी थी, जबकि अदालत में सुनवाई के दौरान वह चीखचीख कर कह रही थी, ‘‘मुझ पर देह व्यापार का इलजाम लगाना गलत है. किसी ने दुश्मनी की वजह से मुझे फंसाया है.’’

लेकिन उस की यह आवाज सुबूतों के बोझ तले दब कर रह गई थी. उस पर यह भी आरोप था कि 15 अप्रैल, 2008 को उस ने एक मेल के जरिए अपने इस काले धंधे के काले धन को अवैध रूप से विदेशी बैंक में जमा कराया था. तब उस ने सफाई में कहा था कि अब तक वह शरम के मारे चुप थी, लेकिन अब खुल कर बोलेगी. वह उन राजनीतिज्ञों के नाम उजागर करेगी, जिन की उस ने रातें रंगीन कराई थीं.

उसी के जुबान खोलने पर सीनेटर विट्टर को अदालत में तलब किया गया था. उस ने विटनेस बौक्स में खड़े हो कर स्वीकार किया कि डी.सी. मैडम कालगर्ल रैकेट चलाती थी और उस ने उस के रैकेट की एक कालगर्ल के साथ एक रात बिताई थी.

इस के बाद डी.सी. मैडम कुछ बोल नहीं सकी, क्योंकि सुबूत सामने था. लेकिन इस के बावजूद भी वह यही कहती रही, ‘‘यह झूठ है. मैं ने कितने भी जुर्म किए हों, पर मैं जेल में कदम नहीं रखूंगी.’’

और वाकई उस ने जेल में कदम नहीं रखा. 1 मई, 2008 को वह अपनी 76 वर्षीया मां बलान्ये पालफ्रे से मिलने गई तो वहां से जिंदा नहीं लौटी. उस का परिवार टारपोन स्प्रिंग्स, फ्लोरिडा के जिस मोबाइल होम में रहता था, पुलिस को उस से उस का शव मिला था. उस ने नायलौन की रस्सी का फंदा गले में डाल कर आत्महत्या कर ली थी.

पहले प्रोफेसर ब्रिटन और अब डी.सी. मैडम द्वारा आत्महत्या कर लेने के बाद वाशिंगटन की राजनीतिक हस्तियों ने राहत की सांस ली. क्योंकि वे जिंदा रहतीं तो उन के नाम उजागर कर सकती थीं, जो अपनी रातें रंगीन करने के लिए उन की सहायता लिया करते थे.

आवारगी में गंवाई जान

नन्हा हत्यारा, जिसने पूरा पंजाब हिला दिया

संगीता 16 जनवरी, 2017 की शाम को नौकरी से घर पहुंची तो उस के दोनों बच्चे चारपाई पर बैठे रो रहे थे. डेढ़ साल की बेटी काजल जोरजोर से रो रही थी, जबकि 4 साल का राहुल सिसकते हुए उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था. संगीता ने काजल को उठा कर सीने से लगाया और दूसरे हाथ से राहुल की आंखें पोंछते हुए 8 साल के बेटे दीपू को आवाज दी. दीपू नहीं बोला तो संगीता काजल को गोद में लिए बड़बड़ाते हुए घर के बाहर आ गई. उस ने गली में खेल रहे बच्चों से दीपू के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि आज वह उन्हें दिखाई नहीं दिया. खीझ कर वह लौट आई और बड़बड़ाते हुए घर के कामों में लग गई. साढ़े 7 बजे तक घर के काम निपटा कर संगीता खाली हुई तो एक बार फिर दीपू की तलाश में निकल पड़ी.

काफी तलाश के बाद भी जब उस का कुछ पता नहीं चला तो उसे चिंता हुई. अब तक अंधेरा भी घिर आया था. ऐसे में दीपू का न मिलना उसे बेचैन करने लगा था. संगीता घर के बाहर खड़ी सोच रही थी कि अब वह दीपू को कहां ढूंढे, तभी सामने से पति दिलीप कुमार को आते देख कर उसे थोड़ी राहत महसूस हुई. पत्नी के चेहरे पर परेशानी के बादल मंडराते देख दिलीप ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, यहां क्यों खड़ी हो?’’

‘‘दीपू पता नहीं कहां चला गया है. मैं ने उसे सब जगह तलाश लिया है, उस का कुछ पता नहीं चल रहा है.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है,’’ दिलीप ने पत्नी को सांत्वना दी, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं देखता हूं वह कहां है.’’

कह कर दिलीप ने दीपू की तलाश शुरू कर दी. दीपू के गायब होने की जानकारी पड़ोसियों को हुई तो वे भी उस के साथ दीपू की तलाश में जुट गए. आधी रात तक तलाश करने पर भी जब दीपू का कुछ पता जब नहीं चला तो थकहार कर सभी अपनेअपने घर चले गए. दिलीप और संगीता ने वह रात आंखों में काटी.

अगले दिन सवेरा होते ही दिलीप और संगीता नौकरी पर जाने के बजाए दीपू की तलाश में जुट गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर दीपू कहां चला गया? दीपू एक समझदार बच्चा था. भले ही परिस्थितियों ने उसे स्कूल का मुंह नहीं देखने दिया था, पर वह अपनी जिम्मेदारियां भलीभांति निभा रहा था.

मातापिता और 15 साल के बड़े भाई दीपक कुमार के नौकरी पर चले जाने के बाद अपने 4 साल के छोटे भाई राहुल और डेढ़ साल की बहन काजल की देखभाल वही करता था. आज तक उस ने शिकायत का कोई मौका नहीं दिया था. लेकिन उस दिन वह पता नहीं कहां चला गया था. जब दीपू का कुछ पता नहीं चला तो दिलीप और संगीता ने उस के लापता होने की सूचना थाना पुलिस को दे दी थी.

इस तरह के मामलों में जैसा होता है, उसी तरह पुलिस ने उन्हें 24 घंटे बाद आने को कहा था. उसी दिन 4 बजे शाम को एक मजदूर ने एक खाली प्लौट में कुछ कुत्तों को आपस में लड़ते देखा. कुत्ते किसी चीज को ले कर छीनाझपटी कर रहे थे. मजदूर ने नजदीक जा कर देखा तो कुत्ते प्लास्टिक के कट्टे को ले कर छीनाझपटी कर रहे थे. वहां 2 कट्टे पड़े थे. कुत्तों को भगा कर उस ने जिज्ञासावश एक कट्टे का मुंह खोला तो उस में जो देखा, डर के मारे पीछे हट गया. कट्टे में मानव अंग थे.

उस ने यह बात मोहल्ले वालों को बताई तो किसी ने इस की सूचना स्थानीय थाना दुगड़ी पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही ड्यूटी अफसर जतिंदर सिंह, हैडकांस्टेबल प्रीतपाल सिंह और कांस्टेबल प्रभजोत सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस वालों ने प्लास्टिक के कट्टों को खोल कर देखा तो उन में किसी बच्चे की लाश के टुकड़े भरे थे. किसी ने बेरहमी से बच्चे के शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर के दोनों कट्टों में भर कर वहां फेंक दिए थे.

बच्चे की लाश मिलने की खबर मोहल्ले में फैली तो लाश देखने दिलीप और संगीता भी वहां पहुंच गए. लाश देखते ही संगीता और दिलीप दहाड़े मार कर रोने लगे. क्योंकि लाश उन के बेटे दीपू की थी. पतिपत्नी दीपू की लाश के टुकड़ों से लिपट कर रो रहे थे. एसआई जतिंदर सिंह ने समझाबुझा कर दोनों को वहां से अलग किया और घटना की सूचना अधिकारियों तथा क्राइम टीम को दे दी.

सूचना मिलते ही थाना दुगड़ी के थानाप्रभारी इंसपेक्टर प्रेम सिंह, सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर हरपाल सिंह ग्रेवाल घटनास्थल पर आ गए थे. दीपू की लाश के टुकड़े मिलने से मोहल्ले वालों में बड़ा रोष था. लोगों की नाराजगी को देखते हुए प्रेम सिंह ने सारी काररवाई पूरी कर के पोस्टमार्टम के लिए लाश के टुकड़ों को सिविल अस्पताल भिजवा दिया था.

इस के बाद मृतक के पिता दिलीप की ओर से थाना दुगड़ी में दीपू की हत्या का मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया था.

लुधियाना के सिविल अस्पताल में 17 जनवरी को दीपू की लाश के टुकड़ों का पोस्टमार्टम किया गया. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों ने पुलिस को बताया कि बच्चे का दिल गायब है. इस खबर से लोग तरहतरह की अटकलें लगाने लगे. लेकिन पुलिस लोगों की बातों पर ध्यान न दे कर अपने हिसाब से काम में जुटी रही.

पूछताछ में दिलीप ने बताया था कि वह उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना बिहार के गांव छेदा का रहने वाला था. रोजीरोजगार की तलाश में वह कई सालों पहले लुधियाना  आ गया था. लुधियाना में वह थाना दुगड़ी की शेख कालोनी के सूआ रोड पर किराए के मकान में परिवार के साथ रहता था.

उस ने 5 साल पहले संगीता से विवाह किया था. संगीता तलाकशुदा थी. पहले पति ननकूराम से उसे 2 बेटे थे, जो दिलीप से शादी के समय 9 साल और 3 साल के थे. दिलीप से भी उसे 2 बच्चे राहुल और बेटी काजल हुई थी. पतिपत्नी दोनों नौकरी करते थे. संगीता का बड़ा बेटा दीपक, जो अब 15 साल का था, वह भी नौकरी करता था. सब के नौकरी पर चले जाने के बाद 8 साल का दीपू अपने छोटे भाई और बहन की देखभाल करता था.

दिलीप के बयान के आधार पर प्रेम सिंह ने एएसआई राम सिंह और एसआई रामपाल के नेतृत्व में एक टीम उत्तर प्रदेश के उन्नाव संगीता के पूर्वपति ननकूराम से पूछताछ के लिए भेजी. लेकिन पूछताछ में ननकूराम निर्दोष पाया गया. इस के बाद पुलिस ने अपना ध्यान इलाके में ही लगा दिया.

पुलिस हत्यारे के बारे में सोच रही थी कि मातानगर के होली सीनियर सैकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल ने फोन द्वारा इंसपेक्टर प्रेम सिंह को सूचना दी कि उन के स्कूल के ग्राउंड में एक जगह मानव दिल पड़ा है. सूचना मिलते ही प्रेम सिंह और हरपाल सिंह होली सीनियर सैकेंडरी स्कूल पहुंच गए और दिल बरामद कर उसे सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

सिविल अस्पताल के सीनियर डाक्टरों ने दिल की जांच कर बताया कि बरामद दिल मृतक बच्चे दीपू का था. इस तरह दीपू के सभी अंग पूरे हो गए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार दीपू की गला दबा कर हत्या की गई थी. उस के बाद किसी ऐसे हथियार से उस के शरीर के टुकड़े किए गए थे, जिस की धार बहुत तेज नहीं थी.

पुलिस को हत्यारे तक पहुंचने का कोई सूत्र नहीं मिला तो उस ने अपने मुखबिरों को सक्रिय कर दिया. इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने इलाके के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी थी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ था. तभी किसी मुखबिर ने प्रेम सिंह को बताया कि 16 जनवरी की दोपहर करीब डेढ़ बजे दीपू मोहल्ले के ही रमेश (बदला हुआ नाम) के साथ दिखाई दिया था.

शक के आधार पर प्रेम सिंह रमेश को थाने ले आए. उस से पूछताछ की जाने लगी तो वह पुलिस को बहकाने लगा. लेकिन उस की बातों से पुलिस को यकीन हो गया कि भले ही यह बच्चा है, लेकिन है यह घुटा हुआ. मजबूर हो कर प्रेम सिंह और हरपाल सिंह ने जब थोड़ी सख्ती की तो रमेश ने अपना अपराध स्वीकार कर के सच्चाई उगल दी कि उसी ने दीपू की हत्या कर उस की लाश के टुकड़े कर खाली प्लौट में फेंक आया था.

रमेश द्वारा अपराध स्वीकार करने पर वहां मौजूद लोग हैरान रह गए. खतरनाक से खतरनाक हादसे और वारदातें देखने वाले पुलिस अफसर भी सिहर उठे. क्योंकि हत्यारा मात्र 13 साल का था. एडीसीपी क्राइम बलकार सिंह और एसीपी योगीराज के सामने प्रेम सिंह ने जब रमेश से विस्तारपूर्वक पूछताछ की तो किसी हौरर फिल्म की कहानी की तरह रमेश ने जो कहानी सुनाई, वह इस तरह थी—

रमेश मृतक दीपू के घर से 3 घर छोड़ कर अपने मांबाप के साथ किराए के मकान में रहता था. वह मातानगर के होली सीनियर सैकेंडरी स्कूल में 8वीं में पढ़ता था. लेकिन कुछ दिनों पहले उसे स्कूल से निकाल दिया गया था. दरअसल रमेश बचपन से ही अपराधी प्रवृत्ति का जिद्दी लड़का था.

गरीब मातापिता गुजरबसर के लिए सुबह ही काम पर चले जाते थे. उस के बाद रमेश घर में अकेला ही रह जाता था. मांबाप मुश्किल से गुजरबसर कर रहे थे, इस के बावजूद बेटे का भविष्य संवारने के लिए उसे अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे थे लेकिन रमेश स्कूल न जा कर इधरउधर आवारागर्दी किया करता था.

कमजोर और छोटे बच्चों पर धौंस जमाना, दादागिरी करना और उन से पैसे तथा खानेपीने की चीजें छीनना उस की आदत बन गई थी. यही नहीं, वह पढ़ने वाले बच्चों से मारपीट करता था और उन की किताबें चोरी कर के कबाड़ी को बेच कर मौज करता था. इसी वजह से क्लास टीचर ने सब के सामने पिटाई कर के उसे स्कूल से निकाल दिया था. स्कूल और क्लास टीचर से बदला लेने के लिए ही उस ने दिल  दहला देने वाला यह कांड कर डाला था.

दरअसल, स्कूल से निकाले जाने के बाद वह क्लास टीचर को सबक सिखाना चाहता था. रमेश टीवी पर आने वाले आपराधिक सीरियल खूब देखता था. इन्हीं धारावाहिकों से आइडिया ले कर वह कम उम्र के बच्चे की तलाश में जुट गया. किसी दिन उस की नजर गली में खेल रहे दीपू पर पड़ी तो उसे लगा कि इस बच्चे से उस के 2 काम हो सकते हैं.

योजना बना कर रमेश बाजार से पतंग ले आया और मोहल्ले वालों की नजर बचा कर दीपू के घर पहुंच गया. उसे पता ही था कि दीपू का भाई और मांबाप काम पर चले जाते हैं, उस के बाद वह घर पर अकेला ही रहता है. दीपू के घर जा कर उसे पतंग दिखाते हुए उस ने कहा, ‘‘देख मेरे पास ढेर सारी पतंगें हैं. चल मेरे घर की छत पर चल कर पतंग उड़ाते हैं.’’

दीपू छोटे भाई और बहन को छोड़ कर जाना तो नहीं चाहता था, पर पतंग उड़ाने के लालच में वह रमेश के साथ चला गया. अपने घर आ कर रमेश ने कहा, ‘‘चल, पहले कुछ खा लेते हैं, उस के बाद छत पर चल कर पतंग उड़ाएंगे.’’

इस तरह रमेश दीपू को अपने कमरे में ले जा कर अंदर से कुंडी बंद कर ली. इस के बाद उसे उठा कर पलंग पर पटक दिया. अचानक हुए इस हमले से दीपू घबरा गया और खुद को रमेश के चंगुल से छुड़ाने के लिए हाथपैर चलाने लगा. दीपू छोटा और उस से कमजोर था, इसलिए उस का मुकाबला नहीं कर सका. उस ने रमेश को 2-3 जगह दांतों से काटा भी. लेकिन रमेश उस की छाती पर सवार हो गया और उस का गला दबा कर उसे मार डाला.

दीपू की हत्या करने के बाद रमेश ने लाश को पलंग से नीचे उतारा और घसीट कर बाथरूम में ले गया. इस के बाद घर में रखी खुरपी से उस के शरीर के टुकड़े कर प्लास्टिक के कट्टे में भर दिए. दिल निकाल कर उस ने अलग पौलीथिन में रख लिया. जब गली में कोई नहीं दिखाई दिया तो लाश के टुकड़ों वाले कट्टे ले जा कर खाली प्लौट में फेंक आया.

इस के बाद बाथरूम को साफ कर दिया. अब बची दिल वाली पौलीथिन, जिसे ले कर जा कर वह स्कूल के ग्राउंड में फेंक आया. जिस समय रमेश अपने घर पहुंचा, सभी दीपू की तलाश कर रहे थे. वह भी सब के साथ दीपू की तलाश करने लगा.

20 जनवरी, 2017 को प्रेम सिंह ने रमेश को हत्या के अपराध में बच्चों की अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान पूछताछ में बताया कि उस ने दिल स्कूल में इसलिए फेंका था कि अगर वहां दिल मिलेगा तो लोगों को लगेगा कि स्कूल में बच्चों के अंग निकाल कर बेचा जाता है. बाद में वह क्लासटीचर के बारे में अफवाह फैला देता कि वह इस तरह के काम करता है. इस तरह स्कूल भी बदनाम हो जाता और क्लासटीचर भी.

इस के अलावा रमेश दीपू के अपहरण की बात कह कर दिलीप से फिरौती वसूलना चाहता था. लेकिन पुलिस का दबाव बढ़ने की वजह से वह फिरौती के लिए दिलीप को फोन नहीं कर सका था. पुलिस ने रमेश की निशानदेही पर घर से खुरपी बरामद कर ली थी. रिमांड खत्म होने पर पुलिस ने उसे फिर से बच्चों की अदालत में पेश किया था, जहां से उसे बालसुधार गृह भेज दिया गया था.