दीवानगी की हद से आगे मौत

बीते 10 अक्तूबर की रात की बात है, रतलाम के औद्योगिक क्षेत्र के थाने की थानाप्रभारी डीएसपी (ट्रेनिंग) मणिक मणि कुमावत थाने में बैठी थीं. तभी रतलाम के इंद्रानगर क्षेत्र में रहने वाला बाबूलाल चौधरी थाने पहुंचा. वह काफी घबराया हुआ था. बाबूलाल ने थानाप्रभारी को बताया कि वह इप्का फैक्ट्री में ठेकेदारी का काम करता है. उस के परिवार में उस के अलावा उस की पत्नी, एक बेटा नीलेश और बेटी रेणुका है.

बाबूलाल ने बताया कि उस का बेटा नीलेश बीती रात से घर नहीं लौटा है. बाबूलाल ने अपने साले ईश्वर जाट के 21 वर्षीय बेटे बादल पर शक जताते हुए कहा कि बादल ही नीलेश को साथ ले गया है. थानाप्रभारी मणि कुमावत के पूछने पर बाबूलाल ने दिनभर का घटनाक्रम बता दिया. बाबूलाल के अनुसार उस का बेटा नीलेश रतलाम के आईटीआई से डिप्लोमा कर रहा था. वह सुबह 7 बजे घर से निकलता था और 3 बजे घर लौट आता था. जब वह 4 बजे तक नहीं लौटा तो उस की मां और बहन ने मोबाइल पर उस से संपर्क किया.

लेकिन नीलेश का फोन स्विच्ड औफ था. बादल का फोन भी स्विच्ड औफ था. जब बारबार मिलाने पर फोन बंद मिलता रहा तो मांबेटी को चिंता हुई. वे दोनों नीलेश का पता लगाने के लिए आईटीआई पहुंची. उन्होंने नीलेश के दोस्तों और साथ पढ़ने वालों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि सुबह नीलेश का मौसेरा भाई बादल जाट आया था, वही नीलेश को साथ ले गया.

बाबूलाल ने बताया कि उस के दूसरे साले रमेश जाट का बेटा जितेंद्र रतलाम में रह कर कोचिंग क्लासेज चलाता था. संभावना थी कि नीलेश और बादल जितेंद्र के पास चले गए हों. संगीता और रेणुका ने जितेंद्र से बात की.

उस ने बताया कि बादल सुबह उस के कोचिंग सेंटर आया था और उस के कमरे की चाबी मांग कर ले गया था. उस का कहना था कि वह गांव से अपनी पत्नी को ले कर आया है और कुछ देर उस के साथ गुजारना चाहता है. जितेंद्र ने उसे चाबी दे दी थी.

सवाल यह था कि बादल अगर अपनी पत्नी को ले कर आया था तो नीलेश को बुला कर ले जाने का कोई तुक नहीं था. एक सवाल यह भी था कि जब उस की पत्नी कविता नामली गांव में उस के साथ रहती थी तो बादल को उसे रतलाम ला कर उस के साथ कुछ समय गुजारने की क्या जरूरत थी.

यह जानकारी मिलने के बाद संगीता और रेणुका जितेंद्र के अलकापुरी स्थित घर पहुंचीं. वहां कमरे का दरवाजा खुला मिला, अंदर कोई नहीं था. मांबेटी ने अंदर जा कर देखा तो पता चला कमरे का फर्श पानी से धोया गया था. दीवारों पर खून के छींटे भी नजर आए.

बकौल बाबूलाल शाम को जब वह फैक्ट्री से लौट कर आया तो मांबेटी ने उसे पूरी बात बताई. उस के बाद ही वह रिपोर्ट दर्ज करवाने आया था. थानाप्रभारी कमावत को मामला गंभीर लगा. उन्होंने इस मामले की सूचना रतलाम के एसपी गौरव तिवारी को दी.

उन के निर्देश पर एडिशनल एसपी प्रदीप शर्मा के साथ सीएसपी विवेक सिंह चौहान, एसआई विजय सागरिया, एसआई और अमित शर्मा की टीम जितेंद्र के घर की जांच करने गई. वहां दीवारों पर खून के ताजे निशान पाए गए. पूछताछ के दौरान जितेंद्र ने बताया कि सुबह बादल उस की कोचिंग क्लास में गया था और घर की चाबी मांग कर ले गया था.

लेकिन जब वह शाम को घर आया तो वहां कोई नहीं था. दरवाजे भी खुले हुए थे. सीएसपी चौहान को मामला संदिग्ध लग रहा था.

कमरे की दीवारों पर लगे खून के निशान बता रहे थे कि कमरे में कुछ ऐसा हुआ है जो नहीं होना चाहिए था. पूछताछ में पुलिस इस बात का पता लगा चुकी थी कि उस रोज बादल के साथ उस के ताऊ का बेटा संदीप भी रतलाम आया था.

पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी के निर्देश पर थानाप्रभारी मणिक मणि कुमावत, एसआई विजय सागरिया, प्रमोद राठौर, एसआई अमित शर्मा, भूपेंद्र सिंह सोलंकी आदि की टीम बनाई गई. इस टीम ने बादल व उस के चचेरे भाई संदीप, पिता भूरूलाल जाट की खोजबीन शुरू की.

पुलिस की मेहनत बेकार नहीं गई. रात गहराते ही इस टीम ने बादल और संदीप को छत्री गांव से हिरासत में ले लिया. दोनों के चेहरों का रंग उड़ा देख टीआई कुमावत समझ गए कि नीलेश के साथ कुछ बुरा हो चुका है, इसलिए उन्होंने पूछताछ में सख्ती बरतनी शुरू कर दी.

नतीजा यह निकला कि सख्ती के चलते कुछ ही देर में बादल और संदीप ने नीलेश की हत्या की बात स्वीकार कर ली. उन्होंने बताया कि नीलेश की लाश रतलाम से 140 किलोमीटर दूर मांडू के पास घाटी में फेंकी थी. रात में 2 बजे पुलिस टीम लाश बरामद करने के लिए मांडू रवाना हो गई.

दिन निकलते ही पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर मांडू से थेड़ा पहले आलमगीर गेट के पास 40 फुट गहरी खाई में पड़ा लोहे का बक्सा खोज निकाला.

इस बक्से को निकालने में पुलिस को काफी मेहनत करनी पड़ी. बक्से को खोला गया तो उस के अंदर दरी में लिपटी नीलेश की लाश मिल गई. लाश के हाथपैर बंधे हुए थे और उस के गले पर चाकू का गहरा घाव था.

जहां बक्से में लाश मिली थी, उस से थोड़ा पहले एक गहरी घटी में बेसबाल का बल्ला, चाकू और आरोपियों के कपड़े भी मिल गए. आरोपियों ने बताया कि मृतक का मोबाइल उन्होंने रतलाम से मांडू जाते समय कहीं रास्ते में फेंक दिया था.

मोबाइल खोजने के लिए पुलिस की एक टीम लगा दी गई. प्राथमिक काररवाई कर के पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए लाश धार के अस्पताल भेज दी.

पूछताछ के लिए दोनों आरोपियों को एक दिन के रिमांड पर लिया गया. पूछताछ में बादल जाट ने नीलेश की हत्या का जो कारण बताया, उस से कहानी कुछ इस तरह सामने आई.

नीलेश के पिता बाबूलाल मूलरूप से पचोड गांव के रहने वाले थे. पिछले कई दशकों से वह इप्का कंपनी में ठेका लिया करते थे, इंद्रलोक नगर में उन्होंने अपना घर बना लिया था और परिवार के साथ रहते थे.ठेकेदारी के चलते कंपनी के अधिकारियों से उन की अच्छी जानपहचान थी.

इसलिए बारहवीं के बाद उन्होंने बेटे नीलेश को आईटीआई से टर्नर ग्रेड का कोर्स करने की सलाह दी, ताकि पढ़ाई के बाद अपने संबंधों का लाभ उठा कर उसे आसानी से नौकरी दिला सकें.

नीलेश की एक मौसी बिलपांक थाना क्षेत्र के छत्री गांव में रहती थी. उस का बेटा बादल नीलेश का हमउम्र होने के साथसाथ उस का अच्छा दोस्त भी था. बादल 12वीं करने के बाद बीए कर रहा था. चूंकि उस के पिता की गांव में अच्छीखासीखेतीकिसानी थी, सो उसे नौकरी की चिंता नहीं थी.

बीते साल अप्रैल महीने में घर वालों ने उस की शादी मांडू इलाके के एक गांव में रहने वाली 18 वर्षीय कविता से कर दी थी. कविता केवल नाम की ही कविता नहीं थी, बल्कि उस के स्वभाव में भी कविता सी रचीबसी थी. खूबसूरत तो वह थी ही.

हाल ही में 18 साल पूरे करने वाली कविता का अल्हड़पन अभी गया नहीं था. शादी के समय जिस ने भी कविता को दुलहन के रूप में देखा, तो देखता ही रह गया. बारात में शामिल बड़ेबुजुर्ग जहां दुलहन में लक्ष्मी का रूप देख रहे थे, वहीं युवक रति का. नीलेश तो कविता को देख कर पगला सा गया था.

बहरहाल, बादल की शादी के कुछ दिन बाद नीलेश उसे भूल कर अपनी पढ़ाई में जुट गया. इसी दौरान एक रोज बादल कविता को ले कर रतलाम आया और दिन में आराम करने के लिए जितेंद्र से चाबी ले कर उस के कमरे पर पहुंच गया. उस ने भाभी को साथ ले कर आने की बात नीलेश को बताई.

साथ ही मिलने के लिए उसे जितेंद्र के कमरे पर बुला लिया. नीलेश जितेंद्र के घर पहुंचा तो बंद दरवाजे के पीछे से आ रही चूडि़यां खनकने की आवाज सुन कर चौंका. वह दरवाजे की झिर्री से अंदर झांकने लगा. उस ने कमरे के अंदर का नजारा देखा तो उस का खून गरम होने लगा.

छोटे से गांव से आई कविता देह के खेल में न केवल बादल का साथ दे रही थी, बल्कि उस माहौल में भी पूरी तरह डूबी हुई थी. कविता का यह रूप देख कर नीलेश का दिल और दिमाग दोनों घूम गए. उसे लगने लगा कि कविता अगर उसे मिल जाए तो उस की दुनिया भी रंगबिरंगी हो जाएगी. कुछ देर बाद जब कविता और बादल अलग हुए तो नीलेश ने दरवाजे पर दस्तक दी.

बादल ने दरवाजा खोल कर उसे अंदर बुला लिया. नीलेश जब तक वहां रहा, तब तक चोर निगाहों से कविता को ही निहारता रहा. बातबात में उस ने कविता से उस का वाट्सऐप नंबर ले लिया. इस के बाद उस ने कविता से वादा किया कि वह उसे रोज मैसेज भेजा करेगा.

इस के बाद नीलेश कविता को दिन में कईकई बार मैसेज भेजने लगा. कभीकभी वह फोन भी कर लेता था. कविता स्वभाव से चंचल तो थी ही, कभीकभी वह देवर से हंसीमजाक कर लेती थी. नीलेश तो जैसे भाभी से हंसीमजाक को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानता था. धीरेधीरे वह नीलेश के मजाक का जवाब भी मजाक में देने लगी.

इस से नीलेश को लगा कि कविता उस की ओर आकर्षित है. इसी बात को ध्यान में रख कर कुछ दिन बाद वह उसे वाट्सऐप पर अश्लील चुटकुले और फोटो भी भेजने लगा. पहले तो कविता ने इस का कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन कुछ समय बाद वह भी ऐसे चुटकलों पर प्रतिक्रिया देने लगी. इसे लाइन क्लीयर मान कर नीलेश ने उसे अश्लील वीडियो भेजने शुरू कर दिए. साथ ही वह फोन पर मिलने की बात भी करने लगा.

बताते हैं कि कविता का गांव ज्यादा दूर नहीं था. 1-2 बार वह कविता से मिलने छत्री गांव भी पहुंच गया. लेकिन इस से पहले कि नीलेश की बात बन पाती, इस बात की बादल को खबर लग गई.

उस ने नीलेश से इस तरह की हरकतें बंद करने का कहा, लेकिन नीलेश कविता में ऐसा खो चुका था कि उसे कविता के सिवा कुछ और दिखता ही नहीं था. उस ने बादल की बात पर ध्यान नहीं दिया. वह पहले की तरह ही कविता को वाट्सऐप पर हर तरह के मैसेज, फोटो और वीडियो भेजता रहा.

इस बात को ले कर कई बार बादल और उस के बीच झगड़ा भी हुआ. इस के बावजूद नीलेश के सिर से कविता भाभी की चाहत का भूत नहीं उतरा तो बादल ने उस की हत्या करने की ठान ली.

इस के लिए योजना बना कर वह 10 अक्तूबर को अपने चचेरे भाई संदीप को ले कर रतलाम आया. रतलाम आ कर उस ने मौसेरे भाई जितेंद्र से झूठ बोल कर उस के कमरे की चाबी ले ली. फिर वह आईटीआई पहुंचा, जहां उस ने नीलेश से कविता के रतलाम आने की बात कही और उस से मिलने के लिए जितेंद्र के कमरे पर चलने को कहा.

कविता रतलाम आई है, बादल खुद उसे कविता से मिलवाने के लिए बुलाने आया है. यह सोच कर नीलेश के मन में लड्डू फूटने लगे. वह बिना सोचेसमझे क्लास छोड़ कर बादल के साथ अलकापुरी स्थित जितेंद्र के कमरे पर पहुंच गया.

वहां बादल कविता को मैसेज भेजने की बात को ले कर उस से विवाद करने लगा. नीलेश को भी तैश आ गया. उसे यह पता नहीं था कि बादल योजना बना कर आया है.

कुछ देर बाद बादल और संदीप ने उस के ऊपर बेसबाल के बल्ले से वार कर दिया. नीलश ने विरोध किया तो दोनों ने उस के हाथपैर बांध दिए. फिर दोनों ने उसे जी भर कर मारापीटा. बाद में बादल ने चाकू से उस का गला रेत दिया.

कुछ देर तड़पने के बाद नीलेश मर गया तो दोनों बाजार से बड़ा संदूक खरीद कर लाए और नीलेश की लाश बोरे में भरने के बाद दरी में लपेट कर संदूक में बंद कर दी.

इस के बाद वे फर्श पर गिरा खून साफ करने लगे. इसी दौरान जितेंद्र कोचिंग सेंटर से घर लौटने लगा तो उस ने बादल को फोन किया. इस से दोनों घबरा गए और दीवारों का खून साफ किए बिना मोटरसाइकिल पर नीलेश की लाश ले कर मांडू के लिए रवाना हो गए.

बादल की ससुराल मांडू के पास थी, वहां आतेजाते उस ने गहरी घाटियों को पहले से देख रखा था. रतलाम से 40 किलोमीटर दूर जा कर दोनों ने संदूक में बंद नीलेश की लाश आलमगीर दरवाजे के पास घाटी में फेंक दी.

इस के बाद दोनों अपने घर छत्री पहुंच गए, लेकिन तब तक पुलिस उन्हें पकड़ने के लिए घेरा डाल चुकी थी.

रतलाम के एसपी गौरव तिवारी और एएसपी प्रदीप शर्मा के निर्देशन और सीएसपी विवेक चौहान के नेतृत्व में थानाप्रभारी डीएसपी (प्रशिक्षु) मणिक मणि कुमावत की टीम में शामिल एसआई विजय सागरिया, प्रमोद राठौर अमित शर्मा आदि ने कुछ ही घंटों में दोनों आरोपियों को दबोच कर उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

दिलफेंक हसीना : कातिल बना पति – भाग 4

राजनीति के मंझे खिलाड़ी भरत दिवाकर ने पत्नी नमिता से छुटकारा पाने की ऐसी योजना बना रखी थी कि किसी को उस पर शक ही न हो. उस ने ऐसा जाल इसलिए बिछाया था ताकि उस का राजनीतिक कैरियर बचा रहे. इस के बाद उस ने पत्नी को विश्वास में लेना शुरू कर दिया.

भरत ने नमिता को यकीन दिलाते हुए कहा, ‘‘नमिता, बीते दिनों जो हुआ उसे भूल जाओ. अब से हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं, जहां हमारे अलावा चौथा कोई नहीं होगा. जो हुआ, अब वैसा कभी नहीं होगा. इसीलिए मैं ने घर वालों से दूर हो कर यहां अलग रहने का फैसला किया है.’’

पति की बातें सुन कर नमिता की आंखें भर आईं. दरअसल, भरत चाहता था कि नमिता उस के बिछाए जाल में चारों ओर से घिर जाए. अपने मकसद में वह कामयाब भी हो गया था. भोलीभाली नमिता पति के छलावे को नहीं समझ पाई थी.

अपनी योजना के अनुसार भरत ने 14 जनवरी, 2020 को बेटी तान्या को बड़ी साली के घर पहुंचा दिया. रात 8 बजे के करीब भरत नमिता से बोला, ‘‘एक दोस्त के यहां पार्टी है. पार्टी में शहर के बड़ेबड़े नामचीन लोग शामिल हो रहे हैं, तुम भी अच्छे कपड़े पहन कर तैयार हो जाओ. बहुत दिन से मैं ने तुम्हें कहीं घुमाया भी नहीं है. आज पार्टी में चलते हैं.’’

यह सुन कर नमिता खुश हुई. वह फटाफट तैयार हो गई. रात करीब 9 बजे दोनों अपनी कार से मुलायमनगर की एक मिठाई की दुकान पर पहुंचे. वहां से भरत ने मिठाई खरीदी. यहीं पर भरत से एक चूक हो गई. मिठाई खरीदते समय उस की और नमिता की एक साथ की तसवीर सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई.

यही नहीं, वहां से निकलने के बाद दोनों ने एक होटल में खाना भी खाया. वहां भी खाना खाते समय दोनों सीसीटीवी में कैद हो गए. इसी सीसीटीवी फुटेज के जरिए पुलिस की जांच को गति मिली थी.

बहरहाल, खाना खाने के बाद भरत और नमिता होटल से निकले. भरत ने ड्राइवर रामसेवक को इशारों में संकेत दिया कि कार बरुआ सागर बांध की ओर ले चले. मालिक का इशारा पा कर उस ने यही किया. रामसेवक कार ले कर सुनसान इलाके में स्थित बांध की ओर चल दिया. भरत और नमिता कार की पिछली सीट पर बैठे थे.

गाड़ी जैसे ही शहर से दूर सुनसान इलाके की ओर बढ़ी, तो निर्जन रास्ते को देख नमिता को पति पर शक हुआ क्योंकि उस ने पार्टी में जाने की बात कही थी. नमिता ने जैसे ही सवालिया नजरों से पति की ओर देखा तो वह समझ गया कि नमिता खतरे को भांप चुकी है. आखिर उस ने चलती कार में ही अपने मजबूत हाथों से नमिता का गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

योजना के मुताबिक, भरत ने पहले से ही कार की पीछे वाली सीट के नीचे एक प्लास्टिक का बड़ा बोरा रख लिया था. यही नहीं, बरुआ सागर बांध में लाश ठिकाने लगाने के लिए दिन में ही एक नाव की व्यवस्था भी कर ली थी.

इस काम के लिए भरत ने हरिहरपुर निवासी नाव मालिक रामसूरत से एक नाव की व्यवस्था करने के लिए कह दिया था. बदले में उस ने रामसूरत को कुछ रुपए एडवांस में दे दिए थे. रामसूरत ने भरत से नाव के उपयोग के बारे में पूछा तो उस ने डांट कर चुप करा दिया था.

सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. लाश ठिकाने लगाने के लिए भरत रात 12 बजे के करीब कार ले कर बरुआ सागर बांध पहुंचा. बांध से कुछ दूर पहले रामसेवक ने कार रोक दी. दोनों ने मिल कर कार में से नमिता की लाश नीचे उतारी और उसे बोरे में भर दिया. फिर बोरे के मुंह को प्लास्टिक की एक रस्सी से कस कर बांध दिया.

उस के बाद बोरे के एक सिरे को भरत ने पकड़ लिया और दूसरा सिरा रामसेवक ने. दोनों बोरे को ले कर नाव के करीब पहुंच गए. वहां दोनों ने एक दूसरे बोरे में करीब एक क्विंटल का बड़ा पत्थर भर दिया, जिसे लाश की कमर में बांध दिया गया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि लाश उतरा कर पानी के ऊपर न आने पाए और राज हमेशा के लिए पानी में दफन हो कर रह जाए.

भरत दिवाकर और रामसेवक ने दोनों बोरों को उठा कर नाव में रख दिया. फिर दोनों नाव में इत्मीनान से बैठ गए. नाव की पतवार रामसेवक ने संभाल रखी थी. कुछ ही देर में दोनों नाव ले कर बीच मंझधार में पहुंच गए, जहां अथाह गहराई थी. भरत ने रामसेवक को इशारा किया कि लाश यहीं ठिकाने लगा दी जाए.

इत्तफाक देखिए, जैसे ही दोनों ने लाश नाव से गिरानी चाही, नाव में एक तरफ अधिक भार हो गया और वह पानी में पलट गई. नाव के पलटते ही लाश सहित वे दोनों भी पानी में जा गिरे. रामसेवक तैरना जानता था, इसलिए वह तैर कर पानी से निकल आया और बांध पर खड़े हो कर मालिक भरत की बाट जोहने लगा. घंटों बीत जाने के बाद जब वह पानी से बाहर नहीं आया तो रामसेवक डर गया कि कहीं मालिक पानी में डूब तो नहीं गए.

जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो वह अपने घर लौट आया और इत्मीनान से सो गया. अगली सुबह यानी 15 जनवरी को उस ने भरत की छोटी बहन सुमन को फोन कर के भरत के बरुआ सागर बांध में डूब जाने की जानकारी दी.

इधर बेटी के अचानक लापता होने से परेशान पिता यशवंत सिंह ने भरत दिवाकर को आरोपी मानते हुए भरतकूप थाने में शिकायत दर्ज करा दी. बाद में बरुआ सागर बांध से नमिता की लाश पाए जाने के बाद पुलिस ने भरत दिवाकर और रामसेवक निषाद के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

घटना के 9 दिनों बाद उसी बरुआ सागर से भरत दिवाकर की भी सड़ीगली लाश बरामद हुई, जो भोलीभाली पत्नी नमिता की हत्या को राज बनाना चाहता था. प्रकृति में भरत दिवाकर को अपने तरीके से अनोखी मौत दे कर नमिता को हाथोंहाथ इंसाफ दे दिया.

पत्नी की विदाई : पति ही बना कातिल – भाग 3

इस की वजह यह थी कि नैंसी अकसर फोन पर व्यस्त रहती थी. देर रात तक वह किसी से फोन पर बातें करती थी. साहिल का कहना था कि दिन में वह किसी से भी बात करे, उसे कोई ऐतराज नहीं है लेकिन उस के औफिस से लौटने के बाद उस के पास भी बैठ जाया करे.

साहिल जब नैंसी से पूछता कि वह किस से बात करती है तो वह कह देती कि दोस्तों से बात करती है. पत्नी की यह बात साहिल को गले इसलिए नहीं उतरती थी, क्योंकि शादी से पहले नैंसी ने उसे बताया था कि उस का कोई भी दोस्त नहीं है.

जब शादी से पहले उस का कोई दोस्त नहीं था तो शादी होते ही अब कौन ऐसे नए दोस्त बन गए जो घंटों तक उस से बतियाने लगे. यही बात साहिल के दिल में वहम पैदा कर रही थी. नैंसी की बातों और व्यवहार से साहिल को शक था कि उस की पत्नी का जरूर किसी से कोई चक्कर चल रहा है, जिसे वह उस से छिपा रही है.

पति या पत्नी दोनों के मन में संदेह पैदा हो जाए तो वह कम होने के बजाए बढ़ता जाता है और फिर कभी भी विस्फोट के रूप में सामने आता है. जिस नैंसी को साहिल दिलोजान से प्यार करता था, वही उस के साथ कलह करने लगी थी. कभीकभी तो दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ जाता था कि साहिल उस की पिटाई भी कर देता था.

साहिल का उग्र रूप देख कर नैंसी को महसूस होने लगा था कि साहिल को अपना जीवनसाथी चुनना उस की बड़ी भूल थी. उसे इतनी जल्दी फैसला नहीं लेना चाहिए था.

चूंकि उस ने अपनी पसंद से की शादी थी, इसलिए इस की शिकायत वह अपने पिता से भी नहीं कर सकती थी. हां, अपनी सहेलियों से बात कर के वह अपना दर्द बांट लिया करती थी.

साहिल पत्नी की

रोजरोज की कलह से तंग आ चुका था. आखिर उस ने फैसला कर लिया कि रोजरोज की किचकिच से अच्छा है कि नैंसी का खेल ही खत्म कर दे. इस बारे में साहिल ने अपने औफिस में काम करने वाले शुभम (24) से बात की. शुभम साहिल का साथ देने को तैयार हो गया.

साहिल को शुभम ने बताया कि उस का एक ममेरा भाई है बादल, जो करनाल के पास स्थित घरोंडा गांव में रहता है. उसे भी साथ ले लिया जाए तो काम आसान हो जाएगा.

साहिल ने शुभम से कह दिया कि इस बारे में वह बादल से बात कर ले. शुभम ने बादल से बात की तो उस ने हामी भर ली. योजना को कैसे अंजाम देना है, इस बारे में साहिल ने बादल और शुभम के साथ प्लानिंग की. बादल ने सलाह दी कि नैंसी को किसी बहाने पानीपत ले जाया जाए और किसी सुनसान इलाके में ले जा कर उस का काम तमाम कर दिया जाए.

योजना को कहां अंजाम देना है, इस की रेकी के लिए तीनों लोग 10 नवंबर, 2019 को पानीपत गए. काफी देर घूमने के बाद उन्हें रिफाइनरी के पास की सुनसान जगह ठीक  लगी. रेकी करने के बाद तीनों दिल्ली लौट आए.

इसी बीच नैंसी और साहिल के बीच की कलह चरम पर पहुंच गई, तभी नैंसी ने अपनी सहेलियों प्रांजलि और सरानिया को फोन कर के बता दिया था कि आजकल साहिल उस के साथ मारपीट करने लगा है. उस ने उस के घर से बाहर जाने पर भी पाबंदी लगा दी है, उस के साथ कुछ भी हो सकता है.

नैंसी को शायद पति का व्यवहार देख कर अपनी मौत की आहट मिल गई थी, तभी तो उस ने सहेलियों से कह दिया था कि अगर 2 दिनों तक उस का फोन न मिले तो समझ लेना कि साहिल ने उस की हत्या कर दी है.

चूंकि साहिल को अपनी योजना को अंजाम देना था, इसलिए उस ने 11 नवंबर को सुबह से ही नैंसी के साथ प्यार भरा व्यवहार शुरू कर दिया. पति का बदला रुख देख कर नैंसी भी खुश हो गई. दोनों ने खुशी के साथ लंच किया.

लंच करने के दौरान ही साहिल ने नैंसी से कहा, ‘‘नैंसी, आज मुझे पानीपत में किसी से उधार की रकम लानी है. रकम ज्यादा है, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम भी पिस्टल ले कर मेरे साथ चलो.’’

नैंसी के पास एक पिस्टल थी, जो उसे उस के किसी दोस्त ने 2 साल पहले गिफ्ट में दी थी. नैंसी ने उस पिस्टल के साथ कई फोटो भी खिंचवा रखे थे. पति के कहने पर नैंसी उस के साथ पानीपत जाने को तैयार हो गई.

शाम करीब साढ़े 6 बजे साहिल पत्नी को ले कर घर से अपनी कार में निकला. शुभम और बादल को भी उस ने घर पर बुला रखा था. शुभम कार चला रहा था और बादल शुभम के बराबर वाली सीट पर बैठा था. जबकि साहिल और नैंसी कार की पिछली सीट पर थे. कार में ही साहिल ने पत्नी से पिस्टल ले कर उस में 2 गोलियां डाल ली थीं.

नैंसी को यह पता नहीं था कि उस का पति उस के सामने ही मौत का सामान तैयार कर रहा है. उन्हें पानीपत पहुंचतेपहुंचते रात हो गई. शुभम कार को रिफाइनरी के पास ददलाना गांव की एक सुनसान जगह पर ले गया. वहीं पर साहिल ने बाथरूम जाने के बहाने कार रुकवा ली. इस से पहले कि नैंसी कुछ समझ पाती, आगे की सीट पर बैठे शुभम और बादल ने उसे दबोच लिया.

तभी साहिल ने नैंसी के सिर से सटा कर गोली चला दी, लेकिन गोली नहीं चली और हड़बड़ाहट में साहिल के हाथ से पिस्टल छूट कर नीचे गिर गई. नैंसी अब पूरा माजरा समझ गई थी कि पति उसे यहां मारने के लिए लाया है. वह साहिल के सामने अपनी जान बचाने की गुहार लगाने लगी, लेकिन पत्नी के गिड़गिड़ाने का उस पर असर नहीं हुआ.

साहिल ने फुरती से कार में गिरी पिस्टल और गोली उठाई. गोली उस ने दोबारा लोड की और नैंसी के सिर से सटा कर गोली चला दी. इस बार गोली उस के सिर के आरपार हो गई. तभी उस ने दूसरी गोली भी मार दी.

गोली लगते ही नैंसी के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह सीट पर ही लुढ़क गई. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. फिर तीनों ने उस की लाश उठा कर झाडि़यों में फेंक दी. साहिल ने उस का मोबाइल अपने पास रख लिया. लाश ठिकाने लगा कर तीनों दिल्ली लौट आए. साहिल अपने घर जाने के बजाए दोनों साथियों के साथ जनकपुरी सी-1 ब्लौक और डाबड़ी के बीच स्थित एक लौज में रुका.

अपनी कार उस ने पास में ही स्थित सीतापुरी इलाके में ऐसी जगह खड़ी की, जहां स्थानीय लोग अपनी कारें खड़ी करते थे. यह इलाका चानन देवी अस्पताल के नजदीक है. नैंसी का मोबाइल साहिल ने सुभाषनगर मैट्रो स्टेशन के पास फेंक दिया था.

अगले दिन शुभम और बादल अपनेअपने घर चले गए. साहिल भी इधरउधर छिपता रहा.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस उन्हें ले कर पानीपत में उसी जगह पहुंची, जहां उन्होंने नैंसी की लाश ठिकाने लगाई थी. उन की निशानदेही पर पुलिस ने ददलाना गांव की झाडि़यों से नैंसी की सड़ीगली लाश बरामद कर ली. जरूरी काररवाई कर पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए नैंसी की लाश पानीपत के सरकारी अस्पताल में भेज दी.

इस के बाद पुलिस के तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश कर उन का 2 दिन का रिमांड लिया. रिमांड अवधि में आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने चानन देवी अस्पताल के नजदीक खड़ी साहिल की कार बरामद की. कार की मैट के नीचे छिपाई गई वह पिस्टल भी पुलिस ने बरामद कर ली, जिस से नैंसी की हत्या की गई थी. पुलिस नैंसी का मोबाइल बरामद नहीं कर सकी.

आरोपी साहिल चोपड़ा, शुभम और बादल से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

अनूठा बदला : पति से लिया बदला – भाग 3

कुछ ऐसा ही हाल कंचन का भी था. वह भी अपनी बरबादी का कारण प्रमोद को मानती थी. इसलिए वह प्रमोद को अकसर ताना मारती रहती थी. इसी के बाद दोनों में लड़ाईझगड़ा होता और मारपीट हो जाती. कंचन प्रमोद से पीछा छुड़ाना चाहती थी, इसलिए उस ने प्रमोद से पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उस ने जिला कौशांबी के रहने वाले अपने एक परिचित सुरेश दूबे से बात की. वह कौशांबी के मंझनपुर में भार्गव इंटर कालेज में बाबू था. सुरेश ने कंचन का भार्गव इंटर कालेज में दाखिला ही नहीं करा दिया, बल्कि उसे इंटर पास भी कराया.

इस के बाद सुरेश दूबे ने ही डिग्री कालेज मंझनपुर से कंचनलता को प्राइवेट फार्म भरवा कर बीए करा दिया. सन 2010 में कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर की भरती हुई तो कंचनलता होमगार्ड में प्लाटून कमांडर बन गई. वर्तमान में वह महिला थाना कौशांबी में तैनात थी. प्लाटून कमांडर होने के बाद कंचन कौशांबी में रहने लगी तो प्रमोद मीरजापुर में अकेला ही रहता रहा. दोनों बच्चे भी बाहर रहते थे. प्रमोद कालीन बुनाई का काम करता था. वह अकेला पड़ गया तो कारखाना मालिक ने उस से कारखाने में ही रहने को कहा. इस से दोनों का ही फायदा था.

मालिक को कम पैसे में चौकीदार मिल गया तो प्रमोद को सोने के भी पैसे मिलने लगे थे. अब प्रमोद 24 घंटे कारखाने में ही रहने लगा था. पतिपत्नी में वैसे भी नहीं पटती थी.अलगअलग रहने से दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. कंचनलता जब तक प्रमोद के साथ रही, डर की वजह से उस ने मायके वालों से संपर्क नहीं किया था. लेकिन जब वह कौशांबी में अकेली रहने लगी तो वह घर वालों से संपर्क करने की कोशिश करने लगी.

करीब 21 साल बाद उस ने अपने परिचित सुरेश दूबे को संत कबीर नगर में रहने वाली अपनी बहन के यहां भेज कर अपने बारे में सूचना दी. इस के बाद बहन को उस का मोबाइल नंबर मिल गया. दोनों बहनों की बातचीत होने लगी. बहन ने ही उसे मायके का भी नंबर दे दिया था.

कंचन की मायके वालों से बातें होने ही लगीं, तो वह मायके भी गई.अंबरीश गाजियाबाद की एक मोटर पार्ट्स की दुकान में नौकरी करता था. वह मोटर पार्ट्स लाने ले जाने का काम करता था, इसलिए उस का हर जगह आनाजाना लगा रहाता था. उसे भी बहन कंचन का नंबर मिल गया था, इसलिए वह भी बहन से बातें करने लगा था.

अंबरीश बहन से अकसर प्रमोद का मीरजापुर वाला घर दिखाने को कहता था, क्योंकि वह प्रमोद की हत्या कर अपने परिवार की बदनामी और बरबादी का बदला लेना चाहता था. अपनी इसी योजना के तहत वह 1 फरवरी, 2020 को दिल्ली से चल कर 2 फरवरी को मंझनपुर में रह रही बहन कंचन के यहां पहुंचा.

अगले दिन यानी 3 फरवरी की सुबह उस ने कंचन को विश्वास में ले कर उस का मोबाइल फोन बंद कर के कमरे पर रखवा दिया. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस मोबाइल की लोकेशन से अपराधियों तक पहुंच जाती है. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर दिया. दिन के 10 बजे वह कंचन को मोटरसाइकिल से ले कर मीरजापुर के लिए चल पड़ा.

दोनों 4 बजे के आसपास मीरजापुर पहुंचे. पहले उन्होंने विंध्याचल जा कर मां विंध्यवासिनी के दर्शन किए. इस के बाद दोनों इधरउधर घूमते हुए रात होने का इंतजार करने लगे.रात 11 बजे जब दोनों को लगा कि अब तक कारखाने में काम करने वाले मजदूर चले गए होंगे और प्रमोद सो गया होगा तो कंचन उसे ले कर कारखाने पर पहुंच गई. कंचन अंबरीश को कारखाना दिखा कर बाहर ही रुक गई.

अंबरीश अकेला कारखाने के अंदर गया तो प्रमोद को सोते देख खुश हुआ. क्योंकि अब उस का मकसद आसानी से पूरा हो सकता था. उस ने देर किए बगैर वहां रखी ईंटों में से एक ईंट उठाई और प्रमोद के सिर पर दे मारी. ईंट के प्रहार से प्रमोद उठ कर बैठ गया पर वह अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उस के पहले ही अंबरीश ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कसना शुरू कर दिया.

अपने बचाव में प्रमोद ने संघर्ष किया, जिस से अंबरीश को भी चोटें आईं. पर एक तो प्रमोद पहले ही ईंट के प्रहार घायल हो चुका था, दूसरे अंगौछा से गला कसा हुआ था, इसलिए काफी प्रयास के बाद भी वह स्वयं को नहीं बचा सका.

गला कसा होने की वजह से वह बेहोश हो गया तो अंबरीश ने उसी ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. खुद को बचाने के लिए प्रमोद संघर्ष करने के साथसाथ ‘बचाओ…बचाओ’ चिल्ला भी रहा था.
उस की ‘बचाओ…बचाओ’ की आवाज सुन कर कंचन जब अंदर आई, तब तक अंबरीश उस की हत्या कर चुका था. अंबरीश का काम हो चुका था, इसलिए वह बहन को ले कर रात में ही मोटरसाइकिल से मंझनपुर चला गया.

अगले दिन पुलिस ने जब कंचनलता को प्रमोद की हत्या की सूचना दे कर थाना विंध्याचल बुलाया तो कंचन ने अंबरीश को खलीलाबाद भेज दिया. इस की वजह यह थी कि प्रमोद जब खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब उसे चोटें आ गई थीं.उस के शरीर पर चोट के निशान देख कर पुलिस को शक हो जाता और वे पकड़े जाते. अंबरीश को खलीलाबाद भेज कर कंचनलता सुरेश दुबे के साथ थाना विंध्याचल आई. इस के बाद वह भी फरार हो गई.

दोनों ने बड़ी होशियारी से प्रमोद की हत्या की, पर कारखाने में लगे सीसीटीवी ने उन की पोल खोल दी. और वे पकड़े गए. अंबरीश की निशानदेही पर पुलिस ने झाडि़यों से वह ईंट बरामद कर ली थी, जिस से प्रमोद की हत्या की गई थी.

इस तरह प्रमोद की नादानी से दो परिवार बरबाद हो गए. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस के पास प्रमोद के घर का पता नहीं था, इसलिए पुलिस ने थाना विंध्याचल को उस की हत्या की सूचना दे कर थाना सहजनवां पुलिस को खबर भिजवाई.

दिलफेंक हसीना : कातिल बना पति – भाग 3

भरत दिवाकर नमिता को पा कर बेहद खुश था, नमिता भी खुश थी. दिवाकर की रगों में दशोदिया देवी के खानदान का खून दौड़ रहा था, जहां से राजनीति की धारा फूटती थी. लोग दशोदिया देवी की कूटनीति का लोहा मानते थे तो पौत्र कहां पीछे रहने वाला था. उसे जो पसंद आ जाता था, उसे हासिल कर के ही दम लेता था. इसी के चलते वह अपनी पसंद की दुलहन घर लाया था.

भरत ने दादी से राजनीति का ककहरा सीख लिया था. राजनीति के अखाड़े में मंझा पहलवान बन कर उतरे भरत ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. वह जानता था कि राजनीति अवाम पर हुकूमत करने के लिए एक सुरक्षा कवच है और बहुत बड़ी ताकत भी. वह इस ताकत को हासिल कर के ही रहेगा.

अपनी मेहनत और संपर्कों के बल पर उस ने पार्टी और कर्वी ब्लौक में अच्छी छवि बना ली थी. इस का परिणाम भरत के हक में बेहतर साबित हुआ.

भरत दिवाकर कर्वी ब्लौक का प्रमुख चुन लिया गया. ब्लौक प्रमुख चुने जाने के बाद यानी सत्ता का स्वाद चखते ही उस के पांव जमीन पर नहीं रहे. सत्ता के गुरूर में भरत अंधा हो चुका था. इतना अंधा कि वह यह भी भूल गया था उस की एक पत्नी है, जिस ने अपने परिवार से बगावत कर के उस का दामन थामा था. पत्नी के प्रति फर्ज को भी वह भूल गया था.

कल तक भरत जिस नमिता के पीछे भागतेभागते थकता नहीं था, अब उसे देखने के लिए उस के पास वक्त नहीं होता था. यह बात नमिता को काफी खलती थी. इस की एक खास वजह यह थी कि न तो उसे परिवार का प्यार मिल रहा था और न ही किसी का सहयोग.

घर भौतिक सुखसुविधाओं से भरा था. भरत के मांबाप ने नमिता को भले ही अपना लिया था, लेकिन उसे बहू का दरजा नहीं दिया गया था. कोई उस से बात तक करना पसंद नहीं करता था. ऐसे में पति का ही एक सहारा था. लेकिन वह भी सत्ता की चकाचौंध में खो गया था.

अब नमिता को अपनी भूल का अहसास हो रहा था. मांबाप की बात न मान कर उस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी. अब वह वापस घर भी नहीं लौट सकती थी. पिता ने उस से सारे रिश्ते तोड़ कर सदा के लिए दरवाजा बंद कर दिया था.

नमिता को भविष्य की चिंता सताने लगी थी. चिंता करना इसलिए जायज था, क्योंकि वह भरत के बच्चे की मां बन चुकी थी. समय के साथ उस ने एक बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम तान्या रखा गया था. बेटी के भविष्य को ले कर नमिता चिंता में डूबी रहती थी.

ससुराल की रुसवाइयां और पति की दूरियां नमिता के लिए शूल बन गई थीं. भरत कईकई दिनों तक घर से बाहर रहता था और जब लौटता था तो शराब के नशे में धुत होता था. पति का घर से बाहर रहना फिर भी नमिता ने सहन कर लिया था, लेकिन शराब पी कर घर आना उसे कतई बरदाश्त नहीं था.

एक रात वह पति के सामने तन कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं नहीं जानती थी कि आप ऐसे निकलेंगे. आप ने मेरी जिंदगी नर्क से बदतर बना दी और खुद शराब की बोतलों में उतर गए. मैं सिर्फ इस्तेमाल वाली चीज बन कर रह गई हूं, जिसे इस्तेमाल कर के कपड़े के गट्ठर की तरह कोने में फेंक दिया गया है. कभी सोचा आप ने कि मैं आप के बिना कैसे जीती हूं?’’

दोनों हथेलियों से आंसू पोंछते हुए वह आगे बोली, ‘‘मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस के लिए मैं अपना सब कुछ न्यौछावर कर रही हूं, वह शराबी निकलेगा, सितमगर निकलेगा. अरे मेरा न सही कम से कम बेटी के बारे में तो सोचते, जो इस दुनिया में अभीअभी आई है. कैसे जालिम पिता हो आप, ढंग से गोद में उठा कर प्यार भी नहीं कर सकते?’’

नशे में धुत भरत चुपचाप खड़ा पत्नी की डांट सुनता रहा. उस से ढंग से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. शरीर हवा में झूमता रहा. फिर वह बिस्तर पर जा गिरा और पलभर में खर्राटें भरने लगा.

नमिता से जब बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने अपनी नाक पल्लू से ढंक ली. फिर उसे घूरती हुई बोली, ‘‘मेरी तो किस्मत ही फूटी थी जो इन से शादी कर ली. उधर मायका छूट गया और इधर… कितनी बदनसीब हूं मैं जो किसी के कंधे पर सिर रख कर आंसू भी नहीं बहा सकती.’’

उस दिन के बाद पति और पत्नी के बीच तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. पतिपत्नी के साथ हाथापाई की नौबत आने लगी. अब तो जब भी भरत शराब के नशे में घर लौटता, अकारण ही पत्नी के साथ मारपीट करता. दोनों के रोजरोज की किचकिच से घर युद्ध का मैदान बन गया था. बेटे और बहू के झगड़ों से तंग आ कर मांबाप ने उन्हें घर छोड़ कहीं और चले जाने को कह दिया.

मांबाप का तल्ख आदेश सुन कर भरत गुस्से में तिलमिला उठा. उस ने सारा दोष पत्नी के मत्थे मढ़ दिया कि उसी की वजह से घर में अशांति फैली है. गलत वह खुद था न कि नमिता. लेकिन पुरुष होने के नाते उस की नजर में गलत नमिता थी, सो वह नमिता को ही मिटाने की सोचने लगा.

नमिता से छुटकारा पाने के लिए भरत ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. योजना को अंजाम देने के लिए उस ने मोहल्ले में ही थोड़ी दूरी पर किराए का एक कमरा ले लिया और पत्नी और बेटी को ले कर वहां शिफ्ट कर गया. अपनी खतरनाक योजना में उस ने अपने ड्राइवर और ठेका पट्टी की देखभाल करने वाले रामसेवक निषाद को मिला लिया.

दरअसल भरत का 5 साल का ब्लौक प्रमुख का कार्यकाल पूरा हो चुका था, ब्लौक प्रमुख की कुरसी जा चुकी थी. उस के बाद उसे भरतकूप थानाक्षेत्र स्थित बरुआ सागर बांध का ठेका पट्टा मिल गया था. उस ने वहां बड़े पैमाने पर मछलियां पाल रखी थीं. मछलियों के व्यापार से उसे काफी अच्छी आय हो जाती थी. इस की देखरेख उस ने अपने विश्वासपात्र ड्राइवर रामसेवक को सौंप रखी थी. वह मछलियों की रखवाली भी करता था और मालिक की गाड़ी भी चलाता था. यह बात अक्तूबर 2019 की है.

पत्नी की विदाई : पति ही बना कातिल – भाग 2

थाने लौटने के बाद उन्होंने नैंसी और साहिल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. साहिल चोपड़ा की काल डिटेल्स से पुलिस को पता चला कि 11 नवंबर की रात और 12 नवंबर को वह शुभम और बादल नाम के लड़कों के संपर्क में था. इन दोनों के साथ उस की लोकेशन हरियाणा के पानीपत की थी. जांच में पता चला कि शुभम उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर का और बादल करनाल के घरोंडा गांव का रहने वाला है.

ये तीनों पानीपत क्यों गए थे, यह जानकारी तीनों में से किसी से पूछताछ करने पर ही मिल सकती है. साहिल तो घर से लापता था, इसलिए पुलिस टीम सब से पहले करनाल के गांव घरोंडा स्थित बादल के घर पहुंची. वह घर पर मिल गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने शुभम को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया. पूछताछ में पता चला कि शुभम साहिल के औफिस में काम करता था और बादल शुभम का ममेरा भाई था.

दिल्ली ला कर जब दोनों से नैंसी के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि नैंसी अब दुनिया में नहीं है. साहिल ने उस की हत्या कर लाश पानीपत में फेंक दी थी. थानाप्रभारी ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी.

चूंकि नैंसी के पिता संजय शर्मा ने साहिल और उस के घर वालों के खिलाफ अपहरण और दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था, इसलिए पुलिस ने साहिल के घर वालों को थाने बुलवा लिया.

किसी तरह साहिल चोपड़ा को जब यह खबर मिली कि उस के घर वालों को पुलिस ने थाने में बैठा रखा है तो वह खुद भी थाने पहुंच गया. साहिल को यह पता नहीं था कि पुलिस उस की साजिश का न सिर्फ परदाफाश कर चुकी है बल्कि शुभम और बादल पकड़े भी जा चुके हैं.

पुलिस ने साहिल से नैंसी के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने 11 नवंबर, 2019 को नैंसी को पश्चिम विहार फ्लाईओवर के पास छोड़ दिया था.

थानाप्रभारी जयप्रकाश समझ गए साहिल बेहद चालाक है, आसानी से अपना जुर्म नहीं कबूलेगा. लिहाजा उन्होंने हिरासत में लिए गए शुभम और बादल को साहिल के सामने  बुला लिया. उन दोनों को देखते ही साहिल हक्काबक्का रह गया. उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

अब उस के सामने सच बोलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था, लिहाजा उस ने स्वीकार कर लिया कि वह अपनी पत्नी नैंसी की हत्या कर चुका है. अपने कर्मचारी शुभम और उस के दोस्त बादल के साथ नैंसी की हत्या करने के बाद उन लोगों ने उस की लाश पानीपत में ठिकाने लगा दी थी.

इस के बाद एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा की मौजूदगी में साहिल चोपड़ा, शुभम और बादल से पूछताछ की गई तो नैंसी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह झकझोर देने वाली थी—

पश्चिमी दिल्ली के हरिनगर के रहने वाले संजय शर्मा इलैक्ट्रिक मोटर वाइंडिंग का काम करते थे. उन की बड़ी बेटी नैंसी शर्मा (17 वर्ष) करीब 3 साल पहले विकासपुरी में कंप्यूटर सेंटर में जाती थी. वह कंप्यूटर कोर्स कर रही थी. वहीं पर उस की मुलाकात साहिल चोपड़ा (18 वर्ष) से हुई. साहिल चोपड़ा का पास में ही सेकेंडहैंड कारों की सेल परचेज का औफिस था. साहिल से पहले यह व्यवसाय उस के पिता अश्विनी चोपड़ा संभालते थे.

साहिल चोपड़ा का कार सेल परचेज का व्यवसाय अच्छा चल रहा था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. नैंसी शर्मा और साहिल की मुलाकात धीरेधीरे दोस्ती में बदल गई. दोनों ही जवानी के द्वार पर खड़े थे, इसलिए आकर्षण में बंध कर एकदूसरे को चाहने लगे.

इस के बाद नैंसी साहिल के साथ कार में बैठ कर सैरसपाटे करने लगी. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. इतना ही नहीं, उन्होंने जीवन भर साथ रहने का वादा भी कर लिया था.

नैंसी उस समय नाबालिग थी, इस के बावजूद वह साहिल के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी. करीब 3 साल तक सुभाषनगर में लिवइन रिलेशन में रहने के बाद दोनों ने 27 मार्च, 2019 को गुरुद्वारे में शादी कर ली.

नैंसी ने शादी अपने घर वालों की मरजी के बिना की थी, इसलिए वह उस से खुश नहीं थे. घर वालों को शादी की सूचना भी उस समय मिली, जब नैंसी ने अपनी ससुराल पहुंच कर वाट्सऐप पर शादी के फोटो भेजे.

दरअसल, नैंसी तब छोटी ही थी, जब उस की मां उसे और पिता को छोड़ कर कहीं चली गई थी. वह अपने साथ छोटे बेटे को ले गई थी. नैंसी की परवरिश उस की दादी और चाची ने की थी. संजय शर्मा बिजनैस के सिलसिले में राजस्थान जाते रहते थे. बाद में उन्होंने दूसरी शादी कर ली.

बेटी बालिग थी. उस ने साहिल चोपड़ा से शादी अपनी मरजी से की थी, इसलिए वह कर भी क्या सकते थे. जवान बेटी के इस तरह चले जाने पर उन्हें बदनामी के साथ दुख भी अधिक हुआ.

नैंसी जनकपुरी के बी-ब्लौक स्थित अपनी ससुराल में पति के साथ खुश थी. साहिल उस का हर तरह से खयाल रखता था. बहरहाल, उन की जिंदगी हंसीखुशी बीत रही थी. लेकिन उन की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी. नैंसी और साहिल के बीच कुछ महीनों बाद ही मतभेद शुरू हो गए.

दिलफेंक हसीना : कातिल बना पति – भाग 2

पुलिस गोताखोर के साथ पूरा दिन बांध की खाक छानती रही लेकिन न तो भरत का कोई पता चला और न ही नमिता का. उधर पुलिस ने भरत दिवाकर के ड्राइवर रामसेवक निषाद को हिरासत में ले कर पूछताछ जारी रखी थी.

लगातार चली कड़ी पूछताछ के बाद रामसेवक पुलिस के सामने टूट गया. उस ने जुर्म कबूलते हुए पुलिस को बताया कि भरत ने अपनी पत्नी नमिता की हत्या कर दी थी. वे दोनों उस की लाश को बोरे में भर कर ठिकाने लगाने के लिए बरुआ बांध लाए थे. लाश ठिकाने लगाने में मैं ने उन का साथ दिया. गाड़ी में से लाश निकाल कर हम ने एक बोरे में भर दी. फिर हम ने दूसरे बोरे में करीब एक क्विंटल का पत्थर भर कर नमिता की कमर में बांध दिए, ताकि लाश पानी के ऊपर न आ सके और उस की मौत का राज सदा के लिए इसी बांध में दफन हो कर रह जाए.

रामसेवक के बयान से साफ हो गया था कि भरत दिवाकर ने ही अपनी पत्नी नमिता की हत्या की थी और लाश ठिकाने लगाने के चक्कर में वह पानी में गिर कर डूब गया था.

खैर, उस दिन पुलिस की मेहनत का कोई खास परिणाम नहीं निकला. शवों की बरामदगी के लिए एसपी अंकित मित्तल ने इलाहाबाद के स्टेट डिजास्टर रिस्पौंस फंड (एसडीआरएफ) से संपर्क कर मदद मांगी.

अगली सुबह यानी 16 जनवरी, 2020 की सुबह 11 बजे एसडीआरएफ की टीम चित्रकूट पहुंची और अपने काम में जुट गई. बांध काफी बड़ा और गहरा था. टीम को सर्च करते हुए सुबह से शाम हो गई, इस बीच नमिता की लाश तो मिल गई, लेकिन भरत दिवाकर का कहीं पता नहीं चला. बांध से नमिता की लाश मिलने के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि भरत की लाश भी इसी बांध में कहीं फंसी पड़ी होगी.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के नमिता की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पुलिस को नमिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई.

रिपोर्ट में उस का गला दबा कर हत्या करने की पुष्टि हुई. यानी भरत दिवाकर ने नमिता की गला दबा कर हत्या की थी. अब सवाल यह था कि उस ने उस की हत्या क्यों की? इस का जवाब भरत से ही मिल सकता था, जबकि वह अभी भी लापता था. सच्चाई का पता लगाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी.

आखिरकार नौवें दिन यानी 22 जनवरी को उस समय भरत दिवाकर का चैप्टर बंद हो गया, जब उस की लाश बांध के अंदर पानी में उतराती हुई मिली. इस से लोगों के बीच चल रही तरहतरह की अटकलों पर हमेशा के लिए विराम लग गया.

नमिता हत्याकांड राज बन कर रह गया था. इस राज से परदा उठाना पुलिस के लिए लाजिमी हो गया था.

उधर पुलिस ने नमिता की लाश मिलने के बाद पति भरत दिवाकर और ड्राइवर रामसेवक निषाद के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर रामसेवक को गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भरत दिवाकर के साथ नमिता की लाश ठिकाने लगाने में उस का साथ दिया था. रामसेवक और घर वालों से हुई पूछताछ के बाद नमिता हत्याकांड की कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व एसआई यशवंत सिंह भरतकूप इलाके में परिवार के साथ रहते हैं. पत्नी विमला देवी और पांचों बच्चों के साथ वह खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे. उन के बच्चों में 4 बेटियां और एक बेटा था. बेटियों में नमिता उर्फ मीनू तीसरे नंबर की थी. बेटा सब से बड़ा था. यशवंत सिंह ने उस की गृहस्थी बसा दी थी.

चारों ननदों में से अर्चना की नमिता से ही अच्छी पटती थी. अर्चना नमिता की भाभी ही नहीं, अच्छी सहेली भी थी. वह अपने दिल की हर बात, हर राज भाभी से शेयर करती थी. भरत दिवाकर से प्रेम वाली बात जब नमिता ने अर्चना से बताई तो वह चौंके बिना नहीं रह सकी.

ननद नमिता को उस ने बड़े प्यार से समझाया कि अपनी और घर की मानमर्यादा का खयाल जरूर रखे. कहीं कोई ऐसा कदम न उठाए जिस से जगहंसाई हो. भाभी को उस ने विश्वास दिलाया कि वह कोई ऐसा काम नहीं करेगी, जिस से मांबाप का सिर समाज में झुके. उस के बाद उस ने भाभी से अपने प्यार की कहानी सिलसिलेवार बता दी थी.

बात नमिता के कालेज के दिनों की है. उन्हीं दिनों कालेज में भरत दिवाकर भी पढ़ता था. कालेज में नमिता की खूबसूरती के खूब चर्चे थे. नमिता के दीवानों में भरत दिवाकर भी था, जो उस की खूबसूरती पर फिदा था. कालेज में आने के बाद भरत पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय नमिता के पीछे चक्कर काटता रहता था.

आखिरकार नमिता कुंवारे दिल को कब तक अपने दुपट्टे के पीछे छिपाए रखती. अंतत: उस के दिल के दरवाजे पर भरत दिवाकर के प्यार का ताला लग ही गया.

खूबसूरत नमिता ने भरत की आंखों के रास्ते उस के दिल की गहराई में मुकाम बना लिया था. दिन के उजाले में भरत की आंखों के सामने मानो हर घड़ी नमिता की मोहिनी सूरत थिरकती रहती थी. नमिता के दिल में भी ऐसी ही हलचल मची थी, जैसे किसी शांत सरोवर में किसी ने कंकड़ फेंक कर लहरें पैदा कर दी हों.

भरत दिवाकर और नमिता के दिलों में मोहब्बत की मीठीमीठी लहरें उठने लगीं. दोनों एकदूसरे की सांसों में समा चुके थे. चाहत दोनों ओर थी, सो धीरेधीरे बातें शुरू हुईं और फिर दोनों मिलने भी लगे. इस से चाहत भी बढ़ती गई और नजदीकियां भी. प्यार की इस बुनियाद को पक्का करने के लिए दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

प्यार की राह में नमिता ने कदम आगे बढ़ा तो लिया था, लेकिन उस के अंजाम को सोच कर वह सिहर उठी थी. वह जानती थी कि उस के प्यार पर उस के पिता स्वीकृति की मोहर नहीं लगाएंगे. अपने प्यार को पाने के लिए उसे घर वालों से बगावत करनी होगी. इस के लिए वह मानसिक रूप से तैयार थी.

आखिरकार सन 2014 में नमिता ने घरपरिवार से बगावत कर के प्यार की राह थाम ली और भरत दिवाकर की दुलहन बन गई. भरत और नमिता ने कोर्टमैरिज कर ली. अनमने ढंग से ही सही भरत के घर वालों ने नमिता को स्वीकार कर लिया था.

बेटी द्वारा उठाए कदम से यशवंत सिंह की बरसों की कमाई सामाजिक मानमर्यादा धूमिल हो गई थी. पिता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का अपना खून अपनों को ही कलंकित कर देगा.

जिस दिन बेटी ने अपनी मरजी से पिता की दहलीज लांघी थी, उसी दिन से उन्होंने सीने पर पत्थर रख कर नमिता से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था.

परिवार से उन्होंने कह दिया था कि आज के बाद नमिता हमारे लिए मर चुकी है. गलती से जिस ने भी उस से रिश्ता जोड़ने की कोशिश की, वह भी मरे के समान होगा. यशवंत सिंह के फैसले से सब डर गए और अपनेअपने दिलों से नमिता की यादों को सदा के लिए निकाल फेंका. उस दिन के बाद यशवंत सिंह के घर में नमिता नाम का चैप्टर बंद हो गया.