दीवानगी की हद में मंगेतर बना दरिंदा

अपनी रोजमर्रा की रफ्तार से चल रहे कोटा शहर का शुक्रवार 8 दिसंबर का दिन बेहद सर्द था.  एक दिन पहले बारिश हो कर हटी थी, जिस से ठिठुरन में खासा इजाफा हो गया था. बादलों की वजह से सूरज सुबह से ही ओझल था. लिहाजा पूरा शहर धुंधलके की गिरफ्त में था. चंबल नदी के करीब होने के कारण शहर के स्टेशन का इलाका कुछ ज्यादा ही सर्द था. लगभग आधा दरजन छोटीमोटी बस्तियों में बंटे इस इलाके में तकरीबन 20 हजार की आबादी वाला क्षेत्र नेहरू नगर कहलाता है.

मिलीजुली बिरादरी वालों की इस बस्ती में ज्यादातर निम्नमध्य वर्ग के दिहाड़ी कामकाजी लोग रहते हैं. बस्ती के करीब से अच्छीखासी चौड़ाई में फैला एक नाला गुजरता है. इसलिए इस की तरफ से गुजरने वाला करीब एक फर्लांग का फासला कुछ संकरा हो जाता है.

इसी बस्ती की रहने वाली शाहेनूर अपनी छोटी बहन इशिका के साथ कोचिंग के लिए जा रही थी. हाथों में किताबें थामे दोनों बहनें चलतेचलते आपस में बातचीत करती जा रही थीं. जैसे ही वे नेहरू नगर बस्ती से निकलने वाले रास्ते की तरफ कदम बढ़ाने को हुईं, शाहेनूर एकाएक ठिठक  कर रह गई.

किसी अनचाहे शख्स के अंदेशे में उस ने पलट कर पीछे देखा. पीछे एक बाइक सवार को देख कर उस की आंखों में खौफ की छाया तैर गई क्योंकि वह उस युवक को जानती थी. शाहेनूर ने तुरंत अपनी छोटी बहन का हाथ जोर से पकड़ा और घसीटते हुए कहा, ‘‘जरा तेज कदम बढ़ाओ.’’

इशिका ने बहन को खौफजदा पाया तो फौरन पलट कर पीछे देखा. वह भी पूरा माजरा समझ गई. इस के बाद दोनों बहनें फुरती से तेजतेज चलने लगीं.

दाढ़ीमूंछ और सख्त चेहरे वाला वह युवक साबिर था, जो शाहेनूर का मंगेतर था. पर किसी वजह से उस से सगाई टूट गई थी. उस युवक को देख कर दोनों बहनों की चाल में लड़खड़ाहट आ गई थी. आशंका को भांप कर शाहेनूर ने मोबाइल निकाल कर किसी का नंबर मिलाया.

वह मोबाइल पर बात कर पाती, उस के पहले ही साबिर उस के पास पहुंच गया. उस ने मोबाइल वाला हाथ झटकते हुए शाहेनूर का गला दबोच लिया. गले पर कसती सख्त हाथों की गिरफ्त से छूटने के लिए शाहेनूर ने जैसे ही हाथ चलाने की कोशिश की, साबिर ने जेब में रखा मिर्च पाउडर उस के ऊपर फेंक दिया.

चीखते हुए शाहेनूर ने एक हाथ से आंखें मलने लगी और दूसरे हाथ से छोटी बहन इशिका का हाथ पकड़ने की कोशिश की. इशिका भी बहन के लिए चीखने लगी. तभी साबिर ने चाकू निकाल कर शाहेनूर पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए.

बदहवास इशिका ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उस के गले से आवाज निकलने के बजाय वह जड़ हो कर रह गई. तब तक दरिंदगी पर उतारू साबिर शाहेनूर पर ताबड़तोड़ वार करता हुआ उसे छलनी कर चुका था. उस की दर्दनाक चीखों से आसपास का इलाका गूंज रहा था और उस के शरीर से फव्वारे की मानिंद छूटता खून जमीन को सुर्ख कर रहा था.

उधर से गुजरते लोगों ने यह खौफनाक नजारा देखा भी, लेकिन बीचबचाव करने की हिम्मत कोई नहीं कर सका. सभी मुंह फेर कर चलते बने. इशिका ने राहगीरों को मदद के लिए पुकार भी लगाई, लेकिन उस की कोशिश नाकाम रही. नतीजतन उस ने वापस अपने घर की तरफ गली में दौड़ लगा दी. घर पहुंच कर उस ने बहन पर हमले वाली बात घर वालों को बता दी.  यह खबर सुन कर घर वालों की चीख निकल गई.

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वे रोतेबिलखते इशिका के साथ चल दिए. करीब 5 मिनट बाद वे घटनास्थल पर पहुंच गए. शाहेनूर की खून से लथपथ लाश वहां पड़ी थी. घर वाले दहाड़ें मार कर रोने लगे. कुछ लोग वहां जमा हो चुके थे. खबर आग की तरह इलाके में फैली तो भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा.

किसी ने इस वारदात की खबर फोन द्वारा भीममंडी थाने को दी तो कुछ ही देर में थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतका की छोटी बहन इशिका ने सारी बात पुलिस को बता दी. इस से पुलिस को पता चल गया कि इस का हत्यारा साबिर है. घटनास्थल पर उस की मोटरसाइकिल भी खड़ी थी.

पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो गली में दूर तक खून सने पावों के निशान मिले, जो निश्चित रूप से भागते हुए साबिर के थे. थानाप्रभारी ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और खुद वहां मौजूद लोगों से बातें करने लगे. अभी यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसपी अंशुमान भोमिया, एडिशनल एसपी अनंत कुमार और सीओ शिवभगवान गोदारा समेत अन्य पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. दिनदहाड़े हुई हत्या के बाद लोगों में डर बैठ गया. एसपी अंशुमान भोमिया ने सीओ शिवभगवान गोदारा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा सहित अन्य तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को शामिल किया.

टीम ने आरोपी साबिर की संभावित जगहों पर तलाश की, पर कोई जानकारी नहीं मिली. उस के बाद मुखबिर की सूचना पर साबिर को मुरगीफार्म के पास जंगल से दबोच लिया गया. वह चंबल नदी क्षेत्र के घने जंगल में छिपने की कोशिश कर रहा था. अगर एक बार वह बीहड़ में पहुंच जाता तो उस का गिरफ्त में आना मुश्किल था.

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शाहेनूर की मां शमीम बानो

छाबड़ा में तैनात शाहेनूर के पिता असलम खान को हादसे की खबर कर दी गई, लेकिन तब तक वह कोटा नहीं पहुंचे थे. शव इस कदर क्षतविक्षत था कि एक पल के लिए तो डाक्टर भी स्तब्ध रह गए. उन के मुंह से निकले बिना नहीं रहा कि लगता है हमलावर साइकोपेथी का शिकार था और वह अपना दिमागी संतुलन पूरी तरह खो चुका था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शाहेनूर के शरीर पर 2 दरजन से ज्यादा घाव मिले थे. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक मौत की वजह वे घातक वार बने, जिन्होंने दाएं फेफड़े और लीवर को पंक्चर कर दिया था. चाकू के गहरे वार पीठ, सीना, हाथ सिर, मुंह और आंखों सहित हर जगह पाए गए. चाकू का हर वार 2 से 3 सेंटीमीटर चौड़ा था. डाक्टरों के मुताबिक हर वार पूरी ताकत से किया गया था.

शुरुआती पूछताछ में शाहेनूर के मामा फिरोज अहमद और मां शमीम बानो ने पुलिस को बताया कि पिछले साल अगस्त में शाहेनूर उर्फ शीनू की मंगनी साबिर हुसैन से की गई थी. साबिर फेब्रिकेशन का काम करता था. इस के बाद साबिर का उन के घर आनाजाना शुरू हो गया.

इसी दौरान उन्हें साबिर के चालचलन के बारे में कई जानकारियां मिलीं. पता चला कि साबिर न सिर्फ अव्वल दरजे का नशेड़ी है, बल्कि उस की सोहबत जरायमपेशा किस्म के लोगों से भी है. शमीम बानो ने कहा, ‘तब हम ने घर बैठ कर आपस में मशविरा कर के इस नतीजे पर पहुंचे कि साबिर से बेटी का रिश्ता कायम रखने का मतलब शाहेनूर सरीखी संजीदा लड़की का भविष्य दांव पर लगाना होगा. नतीजतन रिश्ता तोड़ना ही बेहतर समझा गया. काफी सोचनेसमझने के बाद करीब 6 महीने पहले हम ने साबिर से रिश्ता तोड़ दिया.’

साबिर असलम खान के घर आनेजाने का आदी हो चुका था और शाहेनूर से प्यार भी करने लगा था. वह शाहेनूर से शादी करना चाहता था. शमीम बानो का कहना था कि मंगनी तोड़ने से साबिर इस हद तक बौखला गया कि एक दिन वह तूफान मचाता हुआ घर पहुंच गया. उन की मौजूदगी में शाहेनूर के साथ मारपीट कर बैठा.

शाहेनूर के पिता असलम उन दिनों घर पर नहीं थे. वह छाबड़ा में अपनी नौकरी पर थे. असलम छोटीछोटी बातों पर बहुत गुस्सा करने वाले इंसान थे. बेटी की पिटाई वाली बात उन्हें इसलिए नहीं बताई गई कि वह गुस्से में आगबबूला हो कर कोई अनर्थ न कर बैठें या कहीं कोई बवाल ना मच जाए.

इस के बाद यह बात आईगई हो गई. साबिर का भी असलम के यहां आनाजाना एक तरह से बंद हो गया. पर वह अकसर शाहेनूर के घर के आसपास की गलियों में घूमता दिखाई देता था.

बाद में जब असलम को बात पता चली तो उन्होंने पुलिस में जाना इसलिए जरूरी नहीं समझा, क्योंकि खामखाह बिरादरी में बदनामी होती. शाहेनूर से दूरी बनाने के बजाय साबिर उसे फोन पर परेशान करने लगा. शाहेनृर ने यह बात घर वालों को बताई तो घर वालों ने उस से यह कह दिया कि वह साबिर से बात न करे.

साबिर की हिम्मत दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. शाहेनूर 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी. उस ने ऐच्छिक विषय उर्दू ले रखा था, इस की वजह से वह 3 बजे के करीब एक इंस्ट्टीयूट में उर्दू की पढ़ाई करने जाती थी. साबिर जब शाहेनूर को रास्ते में परेशान करने लगा तो घर का कोई न कोई सदस्य उसे कोचिंग तक छोड़ने जाने लगा.

4 बेटियों के पिता असलम खान कोटा से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर बारां जिले के छाबड़ा कस्बे में नौकरी करते थे. वह थर्मल में बतौर तकनीशियन तैनात थे. शाहेनूर और इशिका के अलावा उन की 2 बेटियां और थीं, जो काफी छोटी थीं. नौकरी के लिहाज से असलम छाबड़ा में ही रहते थे. लेकिन हफ्तापंद्रह दिन में कोटा में अपने घर आते रहते थे.

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पुलिस ने जिस वक्त चंबल के बीहड़ों से साबिर को गिरफ्तार किया था. उस की कलाइयां लहूलुहान थीं और वो नशे में धुत था. तलाशी में पुलिस ने उसकी जेब से पाउडर सरीखा जहरीला पदार्थ बरामद किया था. पूछताछ में उस ने कबूल किया कि आत्महत्या करने की कोशिश में उस ने अपनी कलाई की नसें काटने की कोशिश की थी. जहर की पुडि़या भी उस ने खुदकुशी की खातिर ही अपने पास रखी थी. लेकिन वह उसे इस्तेमाल करता, इस से पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

साबिर ने पुलिस को बताया कि वह पहले अपने परिवार के साथ बोरखेड़ा में रहता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से खेडली इलाके में कमरा किराए  पर ले कर अकेला रह रहा था. पूछताछ के दौरान वह हर सवाल पर ठहाके मार कर हंस रहा था.

सुबह होने पर जब उस का नशा उतरा तो उस ने रोना शुरू कर दिया. शायद उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था. पुलिस ने उसे भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर सोमवार 12 दिसंबर को कोर्ट में पेश कर 2 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

13 दिसंबर को पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने शाहेनूर की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का दिल तो उसी दिन टूट गया था, जिस दिन शाहेनूर से उस का रिश्ता टूटा था. वह उसे दिलोजान से चाहता था, पर उस ने मेरी मोहब्बत को तरजीह नहीं दी.

साबिर ने बताया कि उसे मारने के बाद वह खुद भी मर जाना चाहता था. इसलिए उस ने अपनी कलाई की नसें काटीं. वह जंगल में जहर खा कर मर जाता, लेकिन पुलिस ने उस की मंशा पूरी नहीं होने दी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मामले की जांच थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कनाडा से मिला सुराग : प्यार में जिम ट्रेनर बना कातिल

करीब ढाई साल पहले पति विनोद बराड़ा की हत्या कराने के बाद निधि ने पति के इंश्योरेंस के 50 लाख रुपए और करोड़ों की संपत्ति पर कब्जा कर लिया था, लेकिन कनाडा से मिले एक क्लू के बाद पुलिस ने जब इस केस की दोबारा जांच की तो हत्या का ऐसा खुलासा हुआ कि पुलिस अधिकारी भी चौंक गए.

पानीपत (हरियाणा) पुलिस के एसपी अजीत सिंह शेखावत उस दिन बेहद उलझन में थे, क्योंकि  उन के पास पिछले 2 दिनों से वाट्सऐप पर लगातार एक विदेशी फोन नंबर से मैसेज आ रहा था. मैसेज भेजने वाले ने बताया था कि सदर थाना क्षेत्र की परमहंस कुटिया कालोनी में ढाई साल पहले 15 दिसंबर, 2021 को विनोद बराड़ा नाम के व्यक्ति की घर में घुस कर देव वर्मा उर्फ दीपक नाम के व्यक्ति ने 2 गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

मैसेज भेजने वाले ने खुद को मृतक विनोद बराड़ा का भाई बताते हुए दावा किया था कि उसे शक है कि इस हत्याकांड को देव वर्मा से अंजाम दिलवाया गया है. अगर पुलिस ठीक से जांच करे तो इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड और कारण दोनों सामने आ सकते हैं.

वाट्सऐप मैसेज के कारण उलझन में फंसे एसपी अजीत सिंह ने सीआईए-3 के प्रभारी इंसपेक्टर दीपक कुमार को अपने पास बुलाया और उन्हें मैसेज दिखा कर मैसेज भेजने वाले का पता करने और विनोद बराड़ा नाम के व्यक्ति की हत्या से जुड़ी जानकारी जुटाने के काम पर लगा दिया.

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     मृतक विनोद बरारा पत्नी निधि के साथ

2 दिन बाद सीआईए-3 के इंसपेक्टर दीपक कुमार ने बताया कि वाट्सऐप पर आए ये मैसेज आस्ट्रेलिया के नंबर से भेजे गए थे और वह किसी प्रमोद कुमार का नंबर है. प्रमोद कुमार मृतक विनोद बराड़ा का छोटा भाई है, जो आस्ट्रेलिया में रहता है. इस के अलावा इंसपेक्टर दीपक कुमार ने रिकौर्ड रूम से निकलवाई गई विनोद बराड़ा हत्याकांड की फाइल भी उन के सामने रख दी.

अजीत सिंह शेखावत ने जब हत्याकांड की फाइल का अध्ययन किया तो अचानक ही इस मामले में उन की दिलचस्पी बढऩे लगी. क्योंकि देखने में यह एक सीधासादा और बदला लेने के लिए हुई हत्या का केस नजर आ रहा था.

दरअसल, हुआ यूं था कि पानीपत शहर में परमहंस कुटिया कालोनी में अपनी पत्नी निधि और एक बेटे व बेटी के साथ रहने वाला विनोद बराड़ा सुखदेव नगर में एक कंप्यूटर सेंटर चलाता था.

5 अक्तूबर, 2021 की शाम विनोद बराड़ा परमहंस कुटिया के गेट पर बैठा था, तभी पंजाब नंबर की एक पिकअप गाड़ी के ड्राइवर ने विनोद बराड़ा को सीधी टक्कर मार दी थी. इस एक्सीडेंट में विनोद की जान तो बच गई, लेकिन उस की दोनों टांगे टूट गईं.

विनोद के पड़ोस में रहने वाले उस के चाचा वीरेंद्र सिंह ने सिटी थाने में आरोपी गाड़ी चालक के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया था. पुलिस ने गाड़ी के चालक पंजाब के भटिंडा निवासी देव वर्मा उर्फ दीपक को शहर थाना पुलिस ने लापरवाही से गाड़ी चलाने के आरोप में गिरफ्तार कर उस की गाड़ी जब्त कर के उसे जेल भेज दिया था. 3 दिन बाद वाहन चालक देव वर्मा की कोर्ट से जमानत भी हो गई.

लेकिन इस के करीब 15 दिन बाद देव वर्मा परमहंस कुटिया कालोनी में विनोद बराड़ा के घर पहुंच गया. वह दुर्घटना के लिए माफी मांगने लगा और विनोद से कहने लगा कि उस के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस ले ले.

लेकिन विनोद ने समझौता करने से मना कर दिया, क्योंकि उस के कारण वह अपनी टांगें तुड़वा चुका था. लेकिन ऐसा लगता था कि ऐक्सीडेंट करने वाली गाड़ी का चालक देव वर्मा कोई सनकी या पागल इंसान था, क्योंकि जातेजाते वह विनोद बराड़ा को समझौता नहीं करने का अंजाम भुगतने की धमकी दे कर चला गया.

घर में घुसा और मार दी गोली

विनोद बराड़ा ऐसे लागों को अच्छी तरह जानता था, इसलिए इस बात को वह एक पागल आदमी की बात समझ कर भूल गया. लेकिन देव वर्मा नहीं भूला. इस बात की रंजिश उस ने इस हद तक कर ली कि देव वर्मा 15 दिसंबर, 2021 को पिस्तौल ले कर विनोद के घर पर आया और अंदर घुस कर दरवाजा बंद कर कुंडी लगा ली.

यह देख किचन में काम कर रही विनोद की पत्नी शोर मचाते हुए घर के बाहर भागी और पड़ोस में रहने वाले चाचा ससुर वीरेंद्र को सहायता के लिए पुकारने लगी. 1-2 पड़ोसियों के साथ वीरेंद्र सिंह जब विनोद के घर पहुंचे तो पाया कि विनोद के कमरे की कुंडी अंदर से बंद थी.

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            आरोपी देव वर्मा

दरवाजा खोलने की कोशिश की, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. इस के बाद उन्होंने खिड़की से देखा तो आरोपी देव ने विनोद को बैड से नीचे गिरा कर पिस्तौल से कमर और सिर में गोली मार दी.

इस के बाद जैसे ही वह कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर निकला तो वीरेंद्र सिंह ने अपने बेटे यश और एक पड़ोसी चंदन के साथ आरोपी देव को मौके पर ही पहले तो काबू किया, उस के बाद पड़ोसियों के साथ मिल कर जम कर पीटा. फिर पुलिस को बुला कर उस के हवाले कर दिया था.

वीरेंद्र सिंह खून से लथपथ अपने भतीजे विनोद को अग्रसेन हौस्पिटल ले कर गए. वहां डाक्टरों ने विनोद को मृत घोषित कर दिया. पति की मौत पर वीरेंद्र की पत्नी निधि का रोरो कर बुरा हाल था.

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वीरेंद्र सिंह की शिकायत पर थाना सिटी में हत्या का मुकदमा दर्ज कर कानूनी काररवाई अमल में लाई गई. इस मामले में पुलिस ने हत्या के आरोप में आरोपी देव वर्मा को जेल भेज दिया. उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया था. कुछ महीने बाद पुलिस ने उस के खिलाफ हत्या की चार्जशीट भी अदालत में दाखिल कर दी. इस मामले में ट्रायल भी शुरू हो गया था.

वैसे तो फाइल पढऩे से एसपी अजीत सिंह शेखावत को ये साधारण केस ही लगा था. लेकिन अचानक वाट्सऐप पर विनोद के भाई प्रमोद के मैसेज का खयाल आते ही उन के जेहन में सवाल उठा कि देव के ऊपर दर्ज हुए ऐक्सीडेंट का केस तो एक मामूली केस था. इसलिए इस में समझौता न करने पर आखिर कोई हत्या क्यों करेगा. क्योंकि सड़क हादसे के केस में न ही बहुत ज्यादा सजा होती है और ये धारा भी जमानती होती है. जबकि हत्या के केस में उम्रकैद से ले कर फांसी तक हो सकती है. फिर देव वर्मा ने ऐसा घातक काम क्यों किया.

आस्ट्रेलिया वाले भाई ने दिया खास क्लू

एसपी अजीत सिंह को यहीं से शक शुरू हो गया. उन्हें लगा कि कहीं न कहीं कोई ऐसी वजह जरूर है, जिस के कारण प्रमोद भाई की हत्या में अन्य लोगों के शामिल होने का शक जता रहा है.

उन्हें लगा कि प्रमोद ने जो दावा किया है, कहीं न कहीं उस के पीछे कोई वजह जरूर होगी. उन्होंने तय किया कि सारा माजरा समझने के लिए उन्हें प्रमोद से बात करनी होगी. लिहाजा उन्होंने प्रमोद को वाट्सऐप पर एक मैसेज भेजा कि वह उन से बात करे.

जिस के बाद प्रमोद ने उन से वाट्सऐप पर आस्ट्रेलिया से बात की. प्रमोद ने बताया कि वह पिछले 15 सालों से आस्ट्रेलिया में नौकरी करता है. भाई की हत्या के बाद उस ने अपने पिता हरेंद्र सिंह व भाई प्रमोद के बड़े बेटे हर्ष को अपने पास ही बुला लिया था.

”प्रमोदजी, मैं आप से यह जानना चाहता हूं कि आप को इस बात का कैसे शक है कि आप के भाई की हत्या में देव वर्मा के अलावा कोई और भी शामिल है?’’ एसपी अजीत सिंह शेखावत ने प्रमोद से सवाल किया तो उस ने जो जवाब दिया उसे सुन कर शेखावत के कान खड़े हो गए.

प्रमोद ने बताया कि उस के भाई विनोद बराड़ा (48 वर्ष) का जब ऐक्सीडेंट हुआ था तो उस के बाद से भाई विनोद और भाभी निधि में अकसर किसी न किसी बात को ले कर झगड़ा होता रहता था. प्रमोद ने बताया कि उस के भाई ने एक बार बातों बातों में इशारा किया था कि निधि अपने जिम ट्रेनर के साथ इश्क के चक्कर में पड़ी हुई है.

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                        जिम ट्रेनर सुमित उर्फ बंटू पुलिस कस्टडी में 

यह बात भाई विनोद को पता चल गई थी, इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा होता था. इस के अलावा जब विनोद की हत्या हो गई तो उस के बाद उस की भाभी निधि का व्यवहार भी एकदम बदल गया था. वह उस के पिता हरेंद्र सिंह से बदतमीजी से बात करने लगी थी.

उस के भाई विनोद के इंश्योरेंस के 50 लाख रुपए में से निधि ने परिवार को फूटी कौड़ी भी नहीं दी. उस ने सारी प्रौपर्टी और दुकान मकान पर एक तरह से अपना हक कायम कर लिया था. इतना ही नहीं, वह परिवार वालों से बिना अनुमति लिए अकसर कईकई दिनों के लिए बाहर घूमने चली जाती थी.

इतना ही नहीं, जब अदालत में देव वर्मा के खिलाफ उस के भाई की हत्या का ट्रायल शुरू हुआ तो अचानक निधि मार्च, 2022 में कोर्ट में अपने बयान से मुकर गई और उस ने देव को पहचानने से ही इंकार कर दिया कि हत्या वाले दिन वह उस के घर आया था.

प्रमोद ने एसपी अजीत सिंह शेखावत को बताया कि उसे लगा कि हो न हो उस के भाई की हत्या में निधि या उस के किसी करीबी की भी मिलीभगत हो सकती है. इसीलिए उस ने अपने पिता को जो भाई की हत्या के बाद से निधि के पास रहने लगे थे, उन्हें व भतीजे हर्ष को भारत से अपने पास ही बुला लिया.

प्रमोद बराड़ा से पूरी बात जानने के बाद शेखावत की समझ में सारा माजरा आ गया. उन्होंने प्रमोद से कहा, ”मिस्टर प्रमोद, आप जल्द से जल्द भारत आ जाइए, हम आप का केस फिर से इनवेस्टिगेट करा रहे हैं.’’

प्रमोद ने उन्हें आश्वस्त कर दिया कि वह अगले हफ्ते तक भारत आ जाएगा.

ढाई साल बाद फिर से शुरू हुई जांच में क्या मिला

इस के बाद एसपी अजीत सिंह ने मामले की गंभीरता को समझते हुए सीआईए-3 प्रभारी इंसपेक्टर दीपक कुमार को इस मामले की गोपनीय तरीके से जांच करने और कानूनी प्रक्रिया अपनाने का आदेश दिया. इंसपेक्टर दीपक कुमार ने इस केस की जांच के लिए एक अलग टीम बना कर उस में शामिल पुलिसकर्मियों को अलगअलग काम पर लगा दिया.

एक टीम ने अदालत में चल रही काररवाई की फाइल की कौपी हासिल की तो एक टीम ने मृतक के चाचा वीरेंद्र सिंह को बुला कर उन से केस से जुड़ी जानकारी हासिल की. पुलिस ने हत्या के आरोपी देव वर्मा के मोबाइल की पुरानी डिटेल्स निकाल कर उस की भी छानबीन शुरू कर दी.

इस दौरान विनोद के चाचा वीरेंद्र से निधि का मोबाइल नंबर भी हासिल कर लिया और उस की पिछले 3 सालों की सारी काल डिटेल्स निकलवा ली.

एक टीम को अदालत में दर्ज केस की फाइल में लगे सबूतों को स्टडी करने के काम पर लगा दिया गया. जब जांच आगे बढ़ी तो कडिय़ां भी जुडऩे लगीं. सामने आया कि विनोद की हत्या के आरोपी देव वर्मा की विनोद की हत्या से 4 महीने पहले से सुमित उर्फ बंटू  नाम के युवक से लगातार बातचीत होती थी.

पुलिस ने जब बंटू के फोन नंबर की काल डिटेल निकाली तो पता चला कि वह गोहाना का रहने वाला है और पानीपत शहर में सेक्टर 11/12 की मार्केट में ‘योर बौडी फिटनैस सेंटर’ में जिम ट्रेनर था. मृतक विनोद बराड़ा की पत्नी निधि से सुमित उर्फ बंटू काफी बातचीत करता था.

दोनों के बीच विनोद की हत्या से काफी पहले से ही बातचीत व वाट्सऐप मैसेज के आदानप्रदान का सिलसिला चल रहा था. निधि के मोबाइल के काल रिकौर्ड से भी पता चला कि वह लगातार सुमित उर्फ बंटू से बातचीत करती थी.

इतना ही नहीं, जब पुलिस ने निधि के बैंक खाते की डिटेल निकाली तो पता चला कि वह अब तक अपने बैंक खाते से करीब 20 लाख रुपए निकाल चुकी थी.

इस तमाम जांच से अब तक यह बात तो साफ हो गई कि इस पूरे मामले में कहीं न कहीं निधि और सुमित उर्फ बंटू विनोद बराड़ा के हत्यारोपी देव वर्मा के साथ जुड़ रहे थे और वह एक पूरी कड़ी थी, जो साबित करती थी कि विनोद बराड़ा की हत्या में उन का हाथ है.

एक सप्ताह के बाद प्रमोद भी भारत आ गया और वह पानीपत पहुंच कर एसपी अजीत सिंह शेखावत से मिला. उस ने रूबरू हो कर उन्हें सारी कहानी सुनाई.

इस दौरान पुलिस टीम ने फाइल का दोबारा गहनता से अध्ययन किया और नए साक्ष्यों का संदर्भ दे कर कोर्ट से अनुमति ले कर विनोद बराड़ा केस की दोबारा से आधिकारिक जांच करने की अनुमति मांगी. अच्छी बात यह रही कि अदालत ने अनुमति भी दे दी, फिर पुलिस ने जांच शुरू कर दी.

पुलिस टीम ने विनोद की हत्या के बाद उस के घर में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज जब्त की थी, जो अदालत में जमा थी. पुलिस टीम ने नई जांच के संदर्भ में जब इस सीसीटीवी फुटेज को दोबारा देखा तो साफ हो गया कि वारदात वाले दिन निधि ने अपने पति विनोद बराड़ा को बचाने की कोई कोशिश नहीं की थी.

सीसीटीवी  फुटेज में साफ दिखाई दे रहा था कि आरोपी ने घर के अंदर आते ही विनोद की पत्नी निधि को नमस्ते किया और फिर वह विनोद के कमरे में घुस गया. तभी निधि अपनी बेटी के साथ घर से बाहर भाग गई. इस के बाद कमरा अंदर से बंद कर आरोपी ने विनोद की गोली मार कर हत्या कर दी.

सीसीटीवी फुटेज में निधि अपनी बेटी के साथ बाहर भागती दिखाई दी. इस के थोड़ी देर बाद बाहर से 2 लोग अंदर आए और दरवाजा खोलने की कोशिश करने लगे, लेकिन तब तक शूटर अंदर कुंडी लगा कर विनोद बराड़ा को गोलियां मार चुका था.

किन सबूतों पर गिरफ्तार किए गए आरोपी

पुलिस के पास अब शक के दायरे में आए सभी आरोपियों को हिरासत में ले कर पूछताछ करने के पर्याप्त आधार थे. लिहाजा पुलिस ने सब से पहले देव वर्मा से गहनता से पूछताछ करने के लिए 3 जून, 2024 को जेल से उसे 5 दिनों की रिमांड पर लिया. देव से कड़ी पूछताछ हुई तो उस ने चौंकाने वाली जानकारी दी.

इस के बाद सीआईए टीम ने 7 जून, 2024 को आरोपी सुमित उर्फ बंटू को सेक्टर 11/12 की मार्केट स्थित उस के जिम से हिरासत में लिया और कड़ी पूछताछ शुरू कर दी. पहले तो वह खुद को बेगुनाह बता कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करता रहा, लेकिन जब उसे निधि और देव वर्मा से हुई बातचीत की काल डिटेल्स दिखाई गई तो उस ने अपना गुनाह स्वीकार लिया.

पुलिस ने आरोपी सुमित उर्फ बंटू को गिरफ्तार कर कोर्ट से उसे 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. उस ने जो जानकारी दी, उस के बाद 10 जून, 2024 को निधि को भी हिरासत में ले लिया गया.

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                                             एसपी अजीत सिंह शेखावत

तीनों आरोपियों को आमनेसामने बैठा कर जब एसपी अजीत सिंह शेखावत ने खुद पूछताछ की तो ढाई साल पहले हुई विनोद बराड़ा की हत्या की असल कहानी सामने आ गई.

आरोपी सुमित उर्फ बंटू ने पुलिस को बताया कि साल 2021 में वह पानीपत के एक जिम में ट्रेनिंग देता था. विनोद की पत्नी निधि भी वहां एक्सरसाइज करने के लिए आती थी. निधि खूबसूरत और जवान होने के साथ चंचल स्वभाव की थी. सुमित भी हंसमुख स्वभाव का था, दोनों की दोस्ती हो गई. दोनों आपस में काफी बातचीत करने लगे.

निधि और सुमित की दोस्ती कब शारीरिक आकर्षण में बदल गई, पता ही नहीं चला. दरअसल, निधि का पति विनोद उसे प्यार तो बहुत करता था, लेकिन उस के प्यार में वो कशिश नहीं थी, जो निधि को बांध कर रख सके. इसीलिए जब उसे अपने मिजाज के सुमित से लगाव हुआ तो वह पूरी तरह उस के बहाव में बह गई.

कहते हैं इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. ऐसा ही हुआ. जिम जातेजाते अचानक निधि की जीवनशैली में बदलाव और उस का बातबात में चीजों को छिपाने से विनोद को लगा कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला हैं. उस ने निधि की निगरानी की तो जल्द ही पता चल गया कि वह अपने जिम ट्रेनर सुमित के इश्क में डूबी हुई है.

विनोद को उन दोनों के बारे में पता चला तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. जिस बीवी को उस ने खुद से ज्यादा चाहा और उस के मुंह से निकली हर फरमाइश पूरी की, उस ने उस के साथ धोखा कैसे कर दिया. इस के बाद विनोद निधि के साथ झगड़ा भी करने लगा. सुमित से भी उस की जम कर कहासुनी हुई.

लेकिन जब तक ये हुआ, पानी सिर से उपर जा चुका था. निधि और सुमित साथ जीनेमरने की कसमें खा चुके थे.

जब विनोद ने निधि पर हाथ छोडऩा शुरू किया तो विनोद के लिए उस के दिल में बचा हुआ प्यार भी खत्म हो गया. लिहाजा दोनों ने मिल कर फैसला लिया कि विनोद से छुटकारा पाने के लिए उस की हत्या करवा दी जाए. इस के बाद इस बात पर मंथन शुरू हो गया और लंबी बातचीत के लिए उन्होंने विनोद को ऐक्सीडेंट में मरवाने का फैसला कर लिया.

सुमित उर्फ बंटू का एक जानकार ट्रक ड्राइवर था देव वर्मा उर्फ दीपक, जो भटिंडा के बलराज नगर का रहने वाला था. उस के परिवार में 2 बच्चे व पत्नी थी. उस ने देव को अपने भरोसे में ले कर कहा कि अगर वह एक्सीडेंट कर के विनोद बराड़ा की हत्या कर देगा तो उसे 5 लाख रुपए देगा. इतना ही नहीं, वह उस की जमानत भी करा देगा और एक्सीडेंट करने के लिए गाड़ी भी खरीद कर देगा.

हत्या करने के क्यों बनाए 2 प्लान

देव मुफलिसी की जिंदगी जी रहा था, इसलिए वह लालच में आ गया और यह काम करने के लिए तैयार हो गया.

सुमित ने देव को पंजाब के नंबर की एक पुरानी लोडिंग पिकअप गाड़ी खरीद कर दे दी. इस के बाद देव विनोद की लगातार रेकी करने लगा कि वह किस वक्त घर से निकलता है, कब घर लौटता है.

देव वर्मा ने 5 अक्तूबर, 2021 को इसी पिकअप गाड़ी से विनोद को सीधी टक्कर मार कर उस का ऐक्सीडेंट कर दिया. उस वक्त विनोद परमहंस कुटिया कालोनी के गेट पर बैठा था. ऐक्सीडेंट में विनोद की मौत तो नहीं हुई, लेकिन उस की दोनों टांगें टूट गईं. इस मामले में देव गिरफ्तार हो गया और उस की 3 दिन में जमानत भी हो गई. पहली प्लानिंग फेल हो चुकी थी. लिहाजा निधि और सुमित ने फिर से प्लानिंग बनाई और दोनों ने गोली मार कर विनोद को मरवाने का प्लान बनाया.

उन्होंने देव वर्मा की जमानत करवाई और उस को दोबारा से विनोद की हत्या के लिए राजी किया और वादा किया कि उसे 5 लाख रुपए और दिए जाएंगे तथा उस के परिवार तथा बच्चों की पढ़ाई के साथ मुकदमा लडऩे का खर्च भी वही उठाएंगे. बाद में चश्मदीद गवाह के रूप में गवाह बनने के बाद निधि अपने बयान से भी मुकर जाएगी.

प्लान फुलप्रूफ था, इसलिए पैसे के लालच में देव वर्मा फिर से तैयार हो गया. सुमित ने उसे अवैध पिस्तौल व कारतूस खरीद कर दे दिए. हथियार उपलब्ध करवाने के बाद पहले देव को माफी मांगने के बहाने विनोद बराड़ा के पास भेजा गया.

समझौता नहीं होने के बाद अंजाम भुगतने की धमकी भी दिलाई गई ताकि पूरी तरह लगे कि उस ने इंतकाम लेने के लिए विनोद की हत्या की. इस के बाद 15 दिसंबर, 2021 को देव वर्मा ने घर में घुस कर तमंचे से विनोद बराड़ा की गोली मार कर हत्या कर दी.

सुमित व निधि ने हत्या की जैसी स्क्रिप्ट लिखी थी, सब कुछ वैसा ही हुआ और विनोद की हत्या के आरोप में देव वर्मा जेल चला गया. चूंकि ओपन व शट केस था और देव वर्मा हत्या के बाद मौके पर ही पकड़ा गया था, इसलिए पुलिस ने भी उस वक्त गहनता से जांच नहीं की और वह जेल चला गया. सुमित उर्फ बंटू जेल में बंद देव के केस और घर पर परिवार का पूरा खर्च खुद देता रहा था. प्लान के अनुसार निधि मार्च 2024 में अदालत में अपनी गवाही से मुकर गई.

निधि ने विनोद की हत्या के बाद अपनी आगे की जिंदगी के लिए एक पूरी योजना बना रखी थी. इस योजना के मुताबिक, पहले विनोद का कत्ल होना था. इस के बाद उस की प्रौपर्टी और इंश्योरेंस की रकम से शूटर की डिमांड पूरी करनी थी और ये सब होने के बाद जिम ट्रेनर सुमित के साथ जिंदगी शुरू करनी थी.

निधि अपनी हवस की आग में इस कदर अंधी थी कि विनोद की हत्या के कुछ दिन बाद वह बहाने से सुमित के साथ घूमने मनाली भी गई. लोग हैरान थे कि अपने पति को खोने वाली निधि के चेहरे से गम के आंसू इतनी जल्दी कैसे सूख गए. शायद किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि उस पूरे हत्याकांड को अंजाम देने वाली निधि ही थी.

तीनों आरोपियों से रिमांड अवधि में पूछताछ पूरी होने के बाद पुलिस ने देव वर्मा के साथ निधि व सुमित को भी हत्या व साजिश रचने का आरोपी मान कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेजा गया. इतना ही नहीं, अब आरोपियों के खिलाफ ऐक्सीडेंट केस में भी भादंवि धारा 307 और 120बी जोड़ ली गई है.

—कहानी पुलिस जांच व दिए गए तथ्यों पर आधारित

प्रेमी को पाने के लिए रची अनूठी साजिश

28 नवंबर, 2017 की सुबह 8 बजे के करीब सुधाकर किसी काम से बाहर गया हुआ था. स्वाति बच्चों  को स्कूल के लिए तैयार कर के उन के लंच बौक्स में खाना रख रही थी. उसे खुद भी अस्पताल जाना था, इसलिए वह सारे काम जल्दी जल्दी निपटा रही थी. जब वह लंच बौक्स तैयार कर के बच्चों के बैग में रख रही थी, तभी उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी.

स्वाति ने मोबाइल उठा कर स्क्रीन पर नजर डाली तो डिसप्ले हो रहा नंबर बिना नाम का था. मतलब फोन किसी अपरिचित का था. उस ने फोन रिसीव कर के जैसे ही हैलो कहा, दूसरी ओर से किसी पुरुष की दमदार आवाज आई, ‘‘यह नंबर सुधाकर रेड्डी का है?’’

‘‘जी, यह उन्हीं का नंबर है. मैं उन की पत्नी बोल रही हूं. आप कौन हैं और उन से क्या काम है? वह अभी बाहर गए हुए हैं. घर आते ही उन्हें बता दूंगी.’’ स्वाति ने कहा.

‘‘बताने की कोई जरूरत नहीं है. वह मेरे परिचितों में हैं.’’ दूसरी ओर से हड़बड़ाई आवाज में कहा गया.

‘‘फिर फोन क्यों किया?’’ स्वाति ने पूछा.

‘‘भाभीजी, कालोपुर कालोनी के पास किसी ने सुधाकर पर तेजाब फेंक कर उसे घायल कर दिया है.’’

‘‘क्याऽऽ?’’ सुन कर स्वाति घबरा गई. फोन काट कर वह कालोपुर कालोनी की ओर भागी. वहां पहुंच कर उस ने देखा तो पति सड़क किनारे घायल पड़ा तड़प रहा था. उस ने फोन कर के यह जानकारी सास को दी. इस के बाद तो घर में ही नहीं, रिश्तेदारी में भी कोहराम मच गया.

थोड़ी देर में सभी वहां पहुंच गए. सुधाकर को जिला अस्पताल ले जाया गया, वहां के डाक्टरों ने उस की हालत देख कर हैदराबाद रेफर कर दिया. स्वाति पति सुधाकर को ले कर हैदराबाद पहुंची, जहां उसे जाने माने अपोलो अस्पताल में भरती कराया गया. दूसरी ओर सुधाकर के भाई ने थाना नगरकुरनूल में उस पर हुए हमले की अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

सुधाकर रेड्डी का चेहरा और सीना तेजाब से बुरी तरह से झुलस गया था. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस उस का बयान लेने अस्पताल पहुंची. लेकिन वह बयान देने की स्थिति में नहीं था.

पुलिस अपनी जरूरी काररवाई कर के चली गई. पुलिस के जाने के बाद स्वाति ने सासससुर को फोन कर के बताया कि डाक्टरों ने चेहरे के दागों को मिटाने के लिए उस के चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करने की सलाह दी है. इस के लिए घर वालों ने हामी भर दी. उन्होंने कहा कि जैसा डाक्टर कहते हैं, वह करे. सर्जरी में जो भी खर्च आएगा, वे देने को तैयार हैं. पैसे की कोई चिंता न करे, बस सुधाकर किसी भी तरह स्वस्थ हो जाए.

सुधाकर का चेहरा तेजाब से बुरी तरह विकृत हो गया था और सूजा हुआ था. एकबारगी देख कर उसे कोई भी नहीं पहचान सकता था. लेकिन जब से वह इलाज के लिए अस्पताल में भरती हुआ था, तब से अजीब अजीब हरकतें कर रहा था. नाते रिश्तेदार उसे देखने आ रहे थे. लेकिन वह उन में से बहुतों को पहचान नहीं पा रहा था. यह देख कर घर वाले और रिश्तेदार हैरान थे कि उस की याद्दाश्त को क्या हो गया है? वह किसी को पहचान क्यों नहीं पा रहा है? कहीं सुधाकर की जगह वह कोई बहुरूपिया तो नहीं है.

आखिर घर वालों ने यह सोच कर संतोष कर लिया कि यह उन का वहम भी हो सकता है. संभव है, इस हादसे का उस के दिमाग पर गहरा असर हुआ हो, जिस की वजह से वह अजीबगरीब हरकतें कर रहा है. इस के बाद उन लोगों ने उस की हरकतों पर ध्यान देना बंद कर दिया. कोई रिश्तेदार कुछ कहता तो वह कह देते कि हादसे की वजह से शायद इस की याद्दाश्त चली गई है. स्वाति हर समय अस्पताल में पति के साथ मौजूद रहती थी.

8 दिसंबर, 2017 को स्वाति सुधाकर की देखरेख के लिए एक रिश्तेदार को छोड़ कर किसी काम के लिए बाहर चली गई. रिश्तेदार भरोसे का था, इसलिए वह निश्चिंत थी. मरीजों को खाना अस्पताल से ही मिलता था और रोजाना अलगअलग खाना दिया जाता था. उस दिन नाश्ते में मटन सूप था. खाना देने वाला बौय मटन सूप ले कर आया और उसे सुधाकर को पीने को दिया तो वह नाराज हो कर बोला, ‘‘तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं शुद्ध शाकाहारी हूं. मांस मछली खाने की कौन कहे, मैं छूता तक नहीं.’’

सुधाकर की यह बात सुन कर रिश्तेदार चौंका. वह सोच में पड़ गया कि ऐसा कैसे हो सकता है. सुधाकर तो मांसाहारी खाना खाता था. मटन सूप तो उसे खूब पसंद था. फिर उस ने मना क्यों किया. उस की अजीब हरकतों को ले कर सब वैसे ही परेशान थे, इस बात ने उन की परेशानी और बढ़ा दी.

अस्पताल में मटन सूप न पीने पर हुआ शक

यह बात उस रिश्तेदार के दिमाग में खटकी लेकिन उस ने कुछ कहा नहीं. थोड़ी देर में स्वाति आई तो उस ने यह बात उस से भी नहीं कही. बिना कुछ कहे ही वह चला गया. उस रिश्तेदार ने यह बात स्वाति से भले ही नहीं कही, लेकिन सुधाकर के पिता को जरूर बता दी. साथ ही उन से पूछा भी, ‘‘सुधाकर तो मांस मछली का बड़ा शौकीन था, उस ने यह सब खाना कब से छोड़ दिया था? अस्पताल में उसे मटन सूप पीने को दिया गया तो वह चिल्लाने लगा कि वह मांसाहारी नहीं शाकाहारी है.’’

इस बात ने सुधाकर के पिता को भी हैरान कर दिया. वह भी सोच में पड़ गए. इस की वजह थी सुधाकर की अजीब हरकतें. वह सोच ही रहे थे कि क्या करें, तभी उसी दिन दोपहर किसी ने फोन कर के उन्हें जो बताया, उसे सुन कर वह हैरान रह गए. सहसा उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ.

उस आदमी ने उन्हें बताया कि अस्पताल में भरती जिस आदमी के इलाज पर वह लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं, वह उन का बेटा एम. सुधाकर रेड्डी नहीं, बल्कि एक तरह से उन का दुश्मन है. वह सुधाकर की हत्या कर के उस की जगह लेने की कोशिश कर रहा है.

यह जान कर सुधाकर के पिता परेशान हो उठे कि यह हो क्या रहा है, ऐसा कैसे हो सकता है. कोई आदमी किसी की हत्या कर के उस की जगह कैसे ले सकता है. यह सब सोच कर वह चिंतित हो उठे. इस तरह उन के सामने 2 चीजें आ गईं, जिन से उन्हें शंका हुई.

सुधाकर जब से अस्पताल में भरती हुआ था, तब से उस का बातव्यवहार, चालचलन और हावभाव काफी बदला बदला सा लग रहा था. कभीकभी घर वालों को उस पर शक तो होता था कि वह उन का बेटा सुधाकर नहीं है, लेकिन उन के पास कोई सबूत नहीं था. लेकिन जब ये 2 बातें उन के सामने आईं तो उन का शक यकीन में बदल गया.

उन्होंने यह बात पत्नी को बताई तो पत्नी ने कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? यह कोई फिल्म थोड़े ही है कि कोई किसी की हत्या कर के उस की जगह ले ले.’’

सुधाकर के पिता ने पत्नी को इस बात के लिए राजी किया कि क्यों न हकीकत का पता लगाया जाए कि वह हमारा बेटा सुधाकर ही है या कोई और, जो बेटे के रूप में उस की जगह लेना चाहता है. पत्नी राजी हो गईं तो वह कुछ रिश्तेदारों को ले कर अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने रिश्तेदारों के सामने खड़ा कर के सुधाकर से पूछा कि ये हमारे कौन रिश्तेदार हैं, कहां रहते हैं, इन का नाम क्या है?

यह पूछने पर सुधाकर एकदम से हड़बड़ा गया. वह चूंकि उन रिश्तेदारों को पहचानता ही नहीं था तो क्या बताता. वह चुप रहा तो सुधाकर के मातापिता जहां परेशान हो उठे, वहीं स्वाति भी परेशान हुई. वह इधरउधर की बातें करने लगी.

अब सुधाकर के घर वालों को पूरा विश्वास हो गया कि दाल में कुछ काला जरूर है. सुधाकर का भाई प्रभाकर पिता के साथ थाना नगरकुरनूल गया और थानाप्रभारी श्रीनिवास राव को सारी बात बता कर सच्चाई का पता लगाने का आग्रह किया.

आधार कार्ड से खुली पोल

मामला हैरान करने वाला था. श्रीनिवास राव ने उन्हें आश्वासन दे कर घर भेज दिया. वह भी सोच में पड़ गए, क्योंकि ऐसा मामला उन की जिंदगी में पहली बार सामने आया था. उन्होंने एसपी एस. कमलेश्वर को पूरी बात बताई. वह भी हैरान रह गए. यह मामला किसी सस्पेंस फिल्म जैसा पेचीदा था. जिस व्यक्ति को खुद घर वाले नहीं पहचान पा रहे थे, उसे दूसरा कोई कैसे पहचान सकता था.

एसपी एस. कमलेश्वर ने औफिस में मीटिंग बुलाई, जिस में एडीशनल एसपी जे. चेनायाह, एएसपी लक्ष्मीनारायण और थानाप्रभारी श्रीनिवास राव शामिल हुए.

मीटिंग से पहले श्रीनिवास राव ने सुधाकर के पिता से उस की पहचान से संबंधित जरूरी जानकारी के अलावा आधार कार्ड, पैनकार्ड तथा वोटर आईडी वगैरह ले लिया था.

पुलिस अधिकारियों के सामने चुनौती यह थी कि अस्पताल में जिस आदमी का इलाज चल रहा था, वह सुधाकर रेड्डी नहीं था तो कौन था? इस की पहचान कैसे की जाए. एस. कमलेश्वर ने सुधाकर की पहचान के सारे प्रमाण अपने पास मंगवा लिए थे. 2-3 घंटे चली बैठक में काफी माथापच्ची के बाद पुलिस अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सुधाकर रेड्डी की पहचान आधार कार्ड के माध्यम से की जाए, क्योंकि उस में फिंगरप्रिंट होते हैं, जो दूसरे से कभी नहीं मिलेंगे.

थानाप्रभारी श्रीनिवास राव मीटिंग से सीधे अस्पताल पहुंचे और जब सुधाकर रेड्डी का अंगूठा रख कर उस का आधार खोला गया तो सुधाकर का आधार कार्ड खुलने के बजाय किसी सी. राजेश रेड्डी का आधार कार्ड खुल गया. इस से पूरा मामला साफ हो गया.

श्रीनिवास राव ने यह बात एसपी एस. कमलेश्वर को बताई तो वह भी समझ गए कि अस्पताल में भरती युवक एम. सुधाकर रेड्डी नहीं बल्कि उस की जगह राजेश रेड्डी इलाज करा रहा है. अब यह पता लगाना जरूरी हो गया था कि राजेश रेड्डी कौन है और सुधाकर रेड्डी की जगह अस्पताल में क्यों भरती है. अगर वह राजेश रेड्डी है तो सुधाकर रेड्डी कहां है? साथ ही यह भी कि स्वाति उस अजनबी को सुधाकर रेड्डी यानी अपना पति बता कर उस का इलाज क्यों करा रही है?

एसपी एस. कमलेश्वर ने थानाप्रभारी श्रीनिवास को आदेश दिया कि स्वाति और राजेश को किसी तरह का कोई शक हो, इस से पहले स्वाति को हिरासत में ले कर पूछताछ करो और राजेश के कमरे के बाहर पुलिस का पहरा बैठा दो.

10 दिसंबर, 2017 की सुबह महिला पुलिस की मदद से स्वाति को हिरासत में ले लिया गया और राजेश के कमरे के बाहर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया, जिस से वह भाग न सके. स्वाति को थाना नगरकुरनूल लाया गया, जहां उस से पूछताछ शुरू हुई. स्वाति कोई क्रिमिनल तो थी नहीं, जो पूछताछ में पुलिस को छकाती. पूछताछ में उस ने जल्दी ही सारी सच्चाई उगल दी.

उस ने बताया कि अस्पताल में भरती युवक उस का पति एम. सुधाकर रेड्डी नहीं बल्कि प्रेमी सी. राजेश रेड्डी है. प्रेमी के साथ मिल कर उस ने सुधाकर की 26 नवंबर की सुबह हत्या कर के उस की लाश को वहां से 150 किलोमीटर दूर जिला महबूबनगर के मैसन्ना जंगल में ले जा कर जला दिया था.

उस ने पुलिस को सुधाकर की हत्या से ले कर राजेश के तेजाब से झुलस कर अस्पताल में भरती होने तक की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर पुलिस हैरान रह गई. स्वाति ने पुलिस को सुधाकर की हत्या और राजेश के तेजाब से झुलस कर अस्पताल में भरती होने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

32 वर्षीय एम. सुधाकर रेड्डी मेहनती आदमी था, उस का भरापूरा परिवार था. वह नगरकुरनूल की पौश कालोनी कोलापुर में पत्नी एम. स्वाति रेड्डी और 2 बच्चों आशीष और मिली के साथ किराए के मकान में रहता था. जबकि उस के मांबाप छोटे बेटे प्रभाकर के साथ गांव में रहते थे. सुधाकर पत्थर तोड़ने वाले एक यूनिट में नौकरी करता था. उसे वहां से अच्छाखासा पैसा मिलता था. नौकरी की वजह से उसे ज्यादातर घर से बाहर रहना पड़ता था. स्वाति एक प्राइवेट अस्पताल में नर्स थी.

स्वाति जवान और खूबसूरत थी. उस के दिल में कुछ अरमान थे. उन्हीं के सहारे वह जी रही थी. पति काम की वजह से अकसर बाहर ही रहता था. पति के बिना स्वाति को बिस्तर काटने को दौड़ता था. उस की रातें करवटें बदलते हुए बीतती थीं. पति घर आता तो स्वाति उस से मन की पीड़ा कहती, सुधाकर पत्नी की पीड़ा को समझता था, लेकिन वह चाह कर भी उस की इच्छा पूरी नहीं कर पाता था. वह नौकरी की दुहाई दे कर उसे समझाता. स्वाति पति की विवशता समझती थी, लेकिन वह मन का क्या करती, जो उस के काबू में नहीं था.

पहली ही मुलाकात में राजेश रेड्डी को दे बैठी दिल

स्वाति नर्स थी. अस्पताल के काम से उसे दूसरे अस्पतालों में फिजियोथेरैपिस्ट से मिलने जाना पड़ता था. बात 2 साल पहले की है. वह अस्पताल की ओर से एक प्राइवेट अस्पताल के फिजियोथेरैपिस्ट से मिलने गई थी. वहीं उस की मुलाकात सी. राजेश रेड्डी से हुई. उसे देख कर वह चौंकी, क्योंकि उस का चेहरा मोहरा और कदकाठी उस के पति सुधाकर से काफी मेल खा रहा था.

एकबारगी उसे देख कर कोई भी उस में और सुधाकर में फर्क नहीं कर सकता था. इसी पहली मुलाकात में स्वाति उस की मुरीद हो गई. स्वाति सुंदर तो थी ही, राजेश ने भी पहली मुलाकात में ही उसे अपने दिल की मलिका बना लिया. स्वाति अपना काम कर के चली तो आई लेकिन दिल राजेश के पास ही छोड़ आई.

इस के बाद किसी न किसी बहाने दोनों की मुलाकातें होने लगीं. इन्हीं मुलाकातों ने उन दोनों को एकदूसरे से प्यार करने को मजबूर कर दिया. राजेश की शादी नहीं हुई थी, जबकि स्वाति शादीशुदा थी. उस के 2 बच्चे भी थे. लेकिन अब यह सब कोई मायने नहीं रखते थे. राजेश की पर्सनैलिटी पर स्वाति इस तरह मर मिटी कि उसे न पति का खयाल रहा, न बच्चों का.

राजेश रेड्डी अपने मांबाप और भाई के साथ कोलापुर में रहता था. उस का परिवार काफी संपन्न था. मांबाप उसे पढ़ालिखा कर डाक्टर बनाना चाहते थे. राजेश मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए जीजान से जुटा भी रहा, लेकिन वह डाक्टर नहीं बन सका. हां, फिजियोथेरैपिस्ट जरूर बन गया. पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी मिल गई थी, वहीं उस की मुलाकात स्वाति से हुई थी.

स्वाति और राजेश का प्यार दिनोंदिन बढ़ता गया. एक ऐसा समय भी आया जब वे एकदूसरे को देखे बिना नहीं रह पाते थे. उन के बीच की सारी दूरियां मिट चुकी थीं. मर्यादाओं को तोड़ कर वे कब के जिस्म के बंधन में बंध गए थे. स्वाति को राजेश के जिस्म की खुशबू सुधाकर के जिस्म से ज्यादा अच्छी लग रही थी. अब उसे पति से ज्यादा प्रेमी प्यारा लगने लगा था.

स्वाति के संबंध पतिपत्नी की तरह बन गए थे. स्वाति का हाल तो यह था कि वह राजेश की एक दिन की जुदाई भी बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. पति जितने दिन बाहर रहता, स्वाति उसे साथ रखती थी. बच्चे छोटे थे, इसलिए वे कुछ भी नहीं जानसमझ पा रहे थे. स्वाति राजेश से कहने लगी थी कि वह उस से शादी कर के उसे सुधाकर से मुक्ति दिलाए. 2 सालों तक दोनों के प्यार की किसी को भनक तक नहीं लग पाई थी.

स्वाति चाहती तो सुधाकर से तलाक ले कर राजेश से शादी कर सकती थी लेकिन न जाने क्यों उसे लगता था कि सुधाकर के जीते जी ऐसा नहीं हो पाएगा. उसे लगता था कि राजेश से तभी शादी कर पाएगी, जब सुधाकर रास्ते से हट जाए.

यही सोच कर स्वाति राजेश के साथ मिल कर सुधाकर को रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगी. लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था. सुधाकर को ठिकाने लगाना तो आसान था, लेकिन खुद बचाना भी जरूरी था. वे दोनों इस के लिए आपराधिक धारावाहिक और इसी तरह की फिल्में देखने लगे. आखिर उन्हें श्रुति हसन की सुपरहिट फिल्म ‘येवाडु’ से सुधाकर को रास्ते से हटाने का आइडिया मिल गया.

इस फिल्म में दिखाया गया था कि पत्नी प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर देती है और बाद में प्लास्टिक सर्जरी के जरिए प्रेमी का चेहरा पति जैसा करा देती है. उस के बाद प्रेमी प्रेमिका के साथ उसी के घर में रहने लगता है. कुछ दिनों बाद दोनों वह शहर छोड़ कर दूसरे शहर में रहने चले जाते हैं.

जैसा फिल्म में देखा था, स्वाति और राजेश ने तय किया कि वे भी ऐसा ही करेंगे. सुधाकर की हत्या कर के बाद में प्लास्टिक सर्जरी के जरिए राजेश का चेहरा सुधाकर जैसा बनवा दिया जाएगा. उस के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह साथ रहेंगे. इस से किसी को शक भी नहीं होगा. कुछ दिनों बाद वे यह शहर छोड़ कर पुणे जा कर बस जाएंगे.

सुधाकर के पास कार और स्कूटर दोनों थे. कभी वह नौकरी पर कार से जाता था तो कभी स्कूटर से. 21 नवंबर को वह स्कूटर से ड्यूटी पर गया था. उस के जाने के बाद स्वाति ने फोन कर के राजेश को बुला लिया और कार से उस के साथ घूमने निकल गई.

संयोग से सुधाकर के चचेरे भाई ने उसे राजेश के साथ कार में जाते देख लिया. वह राजेश को पहचानता नहीं था, इसलिए उस ने भाभी को किसी अजनबी के साथ जाने की बात सुधाकर को फोन कर के बता दी.

प्रेमी को ले कर पति से हुआ झगड़ा

सुधाकर चिंता में पड़ गया कि पत्नी किस के साथ घूम रही है. उसे गुस्सा भी आया. यह बात उसे परेशान कर रही थी. उस का मन नौकरी पर नहीं लगा तो वह घर वापस आ गया. तब तक स्वाति घर नहीं आई थी. जब वह आई तो राजेश को ले कर पतिपत्नी में खूब झगड़ा हुआ. सुधाकर राजेश के बारे में पूछता रहा लेकिन स्वाति ने कुछ नहीं बताया. ऐसा 3 दिनों तक चलता रहा.

स्वाति ने राजेश से कह दिया कि उस की वजह से 3 दिनों से घर में लड़ाई झगड़ा हो रहा है. उन के संबंधों के बारे में किसी और को पता चले, उस के पहले ही सुधाकर को रास्ते से हटा दिया जाए. राजेश स्वाति की बात मान कर उस का साथ देने को तैयार हो गया.

25 नवंबर को राजेश मां से विजयवाड़ा जाने की बात कह कर घर से निकला और सीधे स्वाति के घर जा पहुंचा. उस समय सुधाकर कहीं गया हुआ था.

स्वाति ने राजेश को घर में ही बैड के नीचे छिपा दिया. उस दिन भी स्वाति और सुधाकर में खूब झगड़ा हुआ था, लेकिन स्वाति ने यह नहीं बताया था कि राजेश कौन है और उस का उस से क्या संबंध है. इसी वजह से घर में खाना तक नहीं पका था. स्वाति ने राजेश को घर में छिपा तो लिया था, लेकिन उसे डर लग रहा था कि अगर राजेश के घर में होने की खबर सुधाकर को हो गई तो कयामत आ जाएगी.

बहरहाल, किसी तरह रात कट गई. 26 नवंबर की सुबह 4 बजे के आसपास स्वाति जागी. दबे पांव बिस्तर से उतर कर उस ने बैड के नीचे छिपे राजेश को उठाया. इस के बाद पर्स से एनेस्थेसिया का इंजेक्शन निकाला और राजेश की मदद से सुधाकर की गरदन में लगा दिया. सुधाकर बेहोश हो गया.

इस के बाद राजेश ने उस के मुंह पर तकिया रख कर तब तक दबाए रखा, जब तक कि उस की मौत नहीं हो गई. उसे हिलाडुला कर देखा गया तो उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. वह मर चुका था. लाश को उन्होंने कार में रखा और उसे 150 किलोमीटर दूर महबूबनगर के मैसन्ना जंगल में ले गए. जंगल में बीचोबीच लाश जला कर वे लौट आए.

स्वाति और राजेश खुश थे कि उन्होंने रास्ते का कांटा हटा दिया है. अब उन्हें कोई रोकने टोकने वाला या लड़ाई झगड़ा करने वाला नहीं बचा. साजिश का पहला पायदान वे चढ़ चुके थे. अब दूसरी साजिश को अंजाम देना था.

योजनानुसार प्रेमी के ऊपर खुद फेंका तेजाब

27 नवंबर की सुबह स्वाति और राजेश शहर के एक प्राइवेट अस्पताल पहुंचे, जहां सर्जरी की सुविधा उपलब्ध थी. दोनों ने वहां पता किया कि 30 प्रतिशत तक जले मरीज की सर्जरी पर कितना खर्च आता है. वहां उन्हें बताया गया कि इस तरह के मरीज पर 3 से 5 लाख रुपए का खर्च आ सकता है.

दोनों घर लौट आए और आगे क्या और कैसे करना है, इस की रूपरेखा तैयार की. स्वाति और राजेश ने तय किया कि अगली सुबह कालोनी के बाहर सुनसान जगह पर दूसरी घटना को अंजाम दिया जाएगा.

28 नवंबर की सुबह साढ़े 7 बजे स्वाति ने बच्चों को स्कूल भेज दिया और राजेश को ले कर कालोनी के बाहर सुनसान जगह पर पहुंच गई. योजना के अनुसार, स्वाति और राजेश पहले गले मिले, उस के बाद साथ लाए तेजाब को स्वाति ने राजेश के चेहरे पर फेंक दिया. चेहरे के साथ उस की गरदन भी झुलस गई. प्रेमी की पीड़ा से स्वाति को काफी दुख पहुंचा, लेकिन ऐसा करना उस की मजबूरी थी. क्योंकि अब राजेश को सुधाकर बनवाना था. योजना को अंजाम दे कर वह घर लौट आई.

घर पहुंच कर स्वाति ने त्रियाचरित्र रचते हुए सासससुर को फोन कर के बताया कि सुधाकर के ऊपर किसी ने तेजाब फेंक दिया है. वह उसे ले कर अस्पताल जा रही है. सासससुर के अस्पताल पहुंचने तक राजेश के चेहरे पर मरहमपट्टी हो चुकी थी. चेहरा पट्टी से ढका होने के कारण वे उसे पहचान नहीं सके.

लेकिन शारीरिक बनावट और कदकाठी देख कर उन्हें संदेह तो हुआ, पर उस समय वे कुछ कह नहीं सके. राजेश को सुधाकर बना कर अस्पताल लाने वाली स्वाति ने सासससुर को अपनी बातों में कुछ इस तरह उलझाए रखा कि उन्हें राजेश को सुधाकर मानने के लिए विवश होना पड़ा.

सुधाकर पर हुए तेजाब के हमले की जांच पुलिस कर रही थी. इस जांच में पुलिस को कोलापुर कालोनी के पास लगे सीसीटीवी कैमरे से इस हमले की फुटेज मिल गई. उस फुटेज में साफ दिख रहा था कि स्वाति राजेश के साथ कालोनी के बाहर हंसहंस कर बातें करते हुए टहल रही थी. दोनों गले मिले और उस के बाद स्वाति ने बोतल का तेजाब राजेश के चेहरे पर फेंक दिया. राजेश तेजाब की जलन से वहीं बैठ कर छटपटाने लगा, जबकि स्वाति घर चली गई. इस के बाद क्या हुआ, कहानी के शुरू में ही उल्लेख किया जा चुका है.

स्वाति द्वारा रची गई साजिश का परदाफाश हो गया था. प्रेमी को पति का रूप दे कर जीवन भर साथ रहने का उस का सपना टूट चुका था. दूसरी ओर राजेश की मां बेटे को ले कर परेशान थी. वह शादी में विजयवाड़ा जाने की बात कह कर निकला था. कई दिन बीत जाने के बाद भी वह घर नहीं लौटा था. उसे किसी अनहोनी की आशंका होने लगी थी, क्योंकि राजेश से फोन पर भी बात नहीं हो पा रही थी.

प्रेमी को पति बनाने की ख्वाहिश रह गई अधूरी

बेटे को ले कर परेशान राजेश की मां ने स्वाति से कई बार पूछा था, लेकिन उस ने उन्हें कुछ नहीं बताया था. दरअसल, उन्हें राजेश और स्वाति के संबंधों के बारे में पता था. राजेश ने ही मां को उस के बारे में बताया था. इसलिए वह स्वाति से राजेश के बारे में बारबार पूछ रही थीं. जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो वह इतनी शर्मिंदा हुई कि राजेश के कहने पर भी उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

स्वाति और राजेश की साजिश का खुलासा होने के बाद 10 दिसंबर, 2017 को पुलिस ने एम. सुधाकर रेड्डी की हत्या के आरोप में उस की पत्नी एम. स्वाति रेड्डी को गिरफ्तार कर लिया था. सी. राजेश रेड्डी का अभी इलाज चल रहा था, इसलिए पुलिस ने उसे फिलहाल गिरफ्तार नहीं किया. पूछताछ में उस ने भी सुधाकर की हत्या का अपना अपराध कबूल कर लिया था.

राजेश के इलाज का खर्च 5 लाख आया था, जिस में से सुधाकर के मांबाप ने बेटा समझ कर डेढ़ लाख रुपए अस्पताल में जमा करा दिए थे. सच्चाई का पता चलने के बाद बाकी रकम उन्होंने जमा नहीं की. अब बाकी पैसे राजेश से मांगे जा रहे थे. पुलिस को उस के स्वस्थ होने का इंतजार था ताकि स्वस्थ होते ही उसे गिरफ्तार किया जा सके.

पुलिस ने एम. सुधाकर रेड्डी की हत्या के आरोप में स्वाति और राजेश के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था. स्वाति जेल में बंद है, जबकि राजेश का अभी इलाज चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमिका की हत्या का गवाह बना सूटकेस

एसएचओ ने घटनास्थल पर पहुंच कर देखा तो वहां वास्तव में एक सूटकेस अधजली हालत में पड़ा था. उसी के साथ कुछ अधजली लकड़ियों से पेट्रोल की गंध भी महसूस हुई. इस से उन्होंने अंदाजा लगाया कि किसी ने बाहर से यह सूटकेस यहां ला कर उस पर लकड़ियों रख कर पेट्रोल डाल कर जलाने की कोशिश की थी.

सूटकेस में एक युवती की लाश निकली, लेकिन वहां मौजूद लोगों में से कोई भी मृतका की शिनाख्त नहीं कर पाया तो यही लगा कि मृतका आसपास के क्षेत्र की रहने वाली नहीं होगी. मृतका की उम्र यही कोई 24-25 साल थी.

गुजरात के शहर राजकोट के बाहर ग्रामीण इलाके में गांव पदधारी के पास काफी जमीन बंजर पड़ी है. इस जमीन पर घास के अलावा और कुछ नहीं होता, इसलिए उधर लोग कम ही आतेजाते थे. केवल जानवर चराने वाले दोपहर बाद अपने जानवर ले कर चराने के लिए आते थे.

9 अक्तूबर, 2023 की दोपहर के बाद जब कुछ लोग अपने जानवर उस सुनसान बंजर जमीन पर चराने के लिए ले आए तो उन्हें ही वहां वह अधजला सूटकेस दिखाई दिया था.

उन लोगों ने इस बात की सूचना गांव के सरपंच कनुभाई परमार को दी. कुछ ही देर में कनुभाई गांव के कई लोगों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. सभी को मामला गड़बड़ लगा.

सरपंच ने तुरंत इस की सूचना क्षेत्रीय थाना पदधारी में दे दी. सरपंच की सूचना पर ही थाना पदधारी के एसएचओ जी.जे. जाला सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे थे.

घटनास्थल पर काफी लोग जमा थे. जिस स्थिति में लाश मिली थी, साफ था कि यह सुनियोजित हत्या कर लाश ठिकाने लगाने का मामला था. लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए पुलिस ने आसपास का निरीक्षण शुरू किया कि शायद वहां कोई ऐसी चीज मिल जाए, जिस से लाश की शिनाख्त हो जाए.

काफी कोशिश के बाद भी वहां कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से लाश के बारे में कुछ पता चलता. सिर्फ एक गाड़ी के टायरों के निशान जरूर दिखाई दिए. वे निशान भी थोड़ा अलग थे. वे निशान किसी बड़ी गाड़ी के दिख रहे थे, क्योंकि वह निशान चौड़े टायरों के थे.

एसएचओ ने फोटोग्राफर के साथसाथ फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. घटनास्थल की सारी काररवाई करने के बाद पुलिस ने सूटकेस जब्त कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

थाने लौट कर एसएचओ जी.जे. जाला ने पूरे स्टाफ को बुला कर कहा, ”सब से पहले तो यह पता लगाओ कि आसपास के किसी गांव की इस उम्र की कोई युवती गायब तो नहीं है? इस के बाद यह पता करो कि जिले के किसी थाने में इस तरह की युवती की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज कराई गई? क्योंकि लाश की जो हालत थी, उस से साफ लग रहा था कि उस युवती की हत्या कम से कम 3 दिन पहले हुई थी.

पुलिस अपने सूत्रों से यह पता लगाने में जुट गई कि लाश वाली युवती कौन हो सकती है? आसपास के ही नहीं, पूरे राजकोट के सभी थानों से पता किया गया कि किसी थाने में 24-25 साल की युवती की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज कराई गई है. दुर्भाग्य से राजकोट के किसी थाने में उस तरह की युवती की कोई गुमशुदगी नहीं दर्ज थी.

कहीं किसी मुखबिर से भी सूचना नहीं मिल रही थी कि उस तरह की युवती कहां रहती थी और अब दिखाई नहीं दे रही है. जब जिले के किसी थाने से कोई जानकारी नहीं मिली तो एसएचओ ने अगलबगल के जिलों से पता किया. पर इस में भी उन्हें निराश ही होना पड़ा. अब क्या किया जाए, एसएचओ ने सहयोगियों के साथ सलाह मशविरा किया. क्योंकि बिना शिनाख्त के हत्यारे तक पहुंचा नहीं जा सकता था.

जब कोई सहयोगी उचित सलाह नहीं दे सका तो एसएचओ जी.जे. जाला ने खुद ही अपना दिमाग लगाया. उन्होंने वह सूटकेस मंगवाया, जिस में रख कर लाश जलाई गई थी. उन्होंने उस अधजले सूटकेस को उलटपलट कर देखा तो उस में उस के ब्रांड का नाम मिल गया यानी यह पता चल गया कि वह सूटकेस किस कंपनी का था.

यह पता चलते ही एसएचओ ने ड्राइवर से थाने की जीप निकलवाई और 2 सिपाहियों को साथ ले कर शहर में उस ब्रांड के सूटकेस के जितने भी शोरूम थे, सभी पर जा पहुंचे. लाश 9 अक्तूबर को मिली थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि हत्या 6 अक्तूबर को की गई थी. इसलिए पहली अक्तूबर, 2023 से ले कर 8 अक्तूबर, 2023 तक उस ब्रांड के उस साइज के जितने भी सूटकेस बिके थे, शोरूमों से उन्हें खरीदने वालों के नाम, पते और फोन नंबर प्राप्त कर लिए.

पता चला कि इस बीच उस तरह के कुल 27 सूटकेस बिके थे. दरअसल, यह ब्रांडेड सूटकेस था और इस की वारंटी होती है, इसलिए वापसी का चक्कर रहता है. यही वजह थी कि इसे खरीदने वाला ग्राहक बिल में अपना पूरा नाम, पता और फोन नंबर लिखवाता है.

यह सब करते करते एक महीने का समय निकल गया था. यानी नवंबर महीना चल रहा था. थाने आ कर एसएचओ जी.जे. जाला ने उस बीच उस ब्रांड के सूटकेस खरीदने वाले एकएक आदमी को फोन करना शुरू किया. अपना परिचय दे कर एसएचओ उस के द्वारा खरीदे गए सूटकेस के बारे में पूछते तो हर आदमी सूटकेस खरीदने की वजह बताने के साथसाथ वीडियो काल पर सूटकेस भी दिखा देता.

किसी का सूटकेस किसी रिश्तेदार के यहां होता तो वह अपने रिश्तेदार से बात करा देता. अगर किसी से फोन पर बात न हो पाती तो जी.जे. जाला शोरूम से मिले पते के आधार पर उस के घर पहुंच जाते और पूरी बात बता कर उस के द्वारा खरीदे गए सूटकेस के बारे में पता करते.

इसी तरह एसएचओ जी.जे. जाला ने 26 सूटकेसों के बारे में पता कर लिया. जब उन्होंने 27वें आदमी को फोन किया तो वह बहाने बनाने लगा. कभी वह कहता कि सूटकेस कोई ले गया है तो कभी कहता कि जो सूटकेस ले गया है, अभी दे कर नहीं गया. जब जी.जे. जाला सूटकेस ले जाने वाले का पता पूछते तो वह पता बताने को तैयार नहीं होता.

मजबूर हो कर जी.जे. जाला राजकोट के गांधीग्राम इलाके के आत्मन अपार्टमेंट में रहने वाले उस व्यक्ति मेहुल चोटलिया के यहां पहुंच गए. जब वह आत्मन अपार्टमेंट पहुंचे तो अपार्टमेंट के नीचे उन्हें एक एसयूवी दिखाई दी, जिस के टायर उतने ही चौड़े थे, जितने चौड़े टायर के निशान घटनास्थल पर मिले थे. उस एसयूवी को देखते ही उन्हें लगा कि हो न हो, इसी आदमी ने उस घटना को अंजाम दिया होगा.

उस समय मेहुल चोटलिया घर पर ही था. पुलिस ने उस के फ्लैट की घंटी बजाई तो उस ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर पुलिस देख कर वह घबरा गया. क्योंकि उस के मन में चोर था.

एसएचओ ने उस की शक्ल देख कर ही अंदाजा लगा लिया कि वह सही ठिकाने पर आ गए हैं. उन्होंने आने की वजह बताई तो वह सूटकेस दिखाने में पहले की ही तरह बहानेबाजी करता रहा.

पुलिस को उस पर शक तो था ही, इसलिए उन्होंने उस के फ्लैट की तलाशी ली तो उस के फ्लैट से ऐसी तमाम चीजें मिलीं, जिन का उपयोग महिलाएं करती हैं. लेकिन जब उस से पूछा गया कि उस के फ्लैट में तो कोई महिला है नहीं, यह सामान किस का है? तब पुलिस के इस सवाल का मेहुल कोई उचित जवाब नहीं दे सका.

तब पुलिस ने उस से तरहतरह के सवाल करने शुरू किए. मेहुल झूठ पर झूठ बोलता रहा. पुलिस उसे ले कर नीचे आई तो सामने ही उस की एसयूवी खड़ी थी. पुलिस ने जब उस एसयूवी के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि यह गाड़ी उसी की है.

पुलिस ने उस गाड़ी के टायर एक बार फिर देखे तो वे वैसे ही थे, जिस तरह के निशान उस जली हुई लाश के पास पाए गए थे. एसएचओ जी.जे. जाला को पूरा विश्वास हो गया कि पदधारी गांव के पास सूटकेस में जो लाश जलाई गई थी, वह इसी मेहुल चोटलिया ने ही जलाई थी.

मेहुल को थाने ला कर पूछताछ शुरू हुई. मेहुल मानने को तैयार ही नहीं था कि वह लाश उसी ने जलाई थी. वह लगातार झूठ बोलते हुए इस बात से इनकार करता रहा. चूंकि पुलिस को अब तक काफी सबूत मिल चुके थे, इसलिए पुलिस भी लगातार उस से पूछताछ करती रही.

आखिर झूठ बोलते बोलते जब मेहुल थक गया तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने अपने साथ रहने वाली अपनी लिवइन पार्टनर आयशा मकवाना की हत्या कर उस की लाश वहां ले जा कर जलाई थी.

इस के बाद मेहुल ने आयशा से प्यार करने से ले कर उस की हत्या कर के लाश को सूटकेस में रख कर जलाने तक की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

मेहुल चोटलिया राजकोट का ही रहने वाला था. होटल मैनेजमेंट की पढाई करने के बाद उसे राजकोट में ही एक होटल में मैनेजर की नौकरी मिल गई थी. मेहुल थोड़ा आजाद खयाल युवक था, इसलिए नौकरी लगने के बाद उस ने राजकोट के ही गांधीग्राम इलाके के आत्मन अपार्टमेंट में एक फ्लैट खरीद लिया था और उसी में अकेला ही रहने लगा था. उसे गाड़ी का शौक था, इसलिए उस ने चौड़े टायरों वाली एसयूवी कार खरीद ली थी.

आजाद खयाल मेहुल चोटलिया को होटल से अच्छा खासा वेतन मिलता था, इसलिए वह मौज से रहता था. उस के पास अब सब कुछ था, लेकिन कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी. मेहुल को गर्लफ्रेंड की कमी बहुत खलती थी. उस ने इस के लिए प्रयास करना शुरू किया तो एक दिन उसी के होटल में उस की मुलाकात आयशा मकवाना से हो गई.

24 साल की आयशा अहमदाबाद की रहने वाली थी. राजकोट में वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती थी और राजकोट में अकेली ही रहती थी. आयशा भी आजादखयाल थी. वह जीवन के सारे सुख भोगना चाहती थी, पर जिम्मेदारियों का बोझ नहीं उठाना चाहती थी.

ऐसा ही हाल लगभग मेहुल का भी था. इसलिए जब दोनों की मुलाकात हुई तो दोनों के विचार आपस में मिलने की वजह से उन में दोस्ती हो गई. यह दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई तो दोनों ने बिन फेरे हम तेरे बनने का फैसला कर लिया.

यानी वह लिवइन रिलेशन में रहने लगे. इस तरह साथ रहने को आज की नई पीढ़ी पसंद भी करती है. इस में रहते तो दोनों पतिपत्नी की तरह हैं, पर दोनों ही एकदूसरे के प्रति न तो जिम्मेदार होते हैं और न ही एकदूसरे का कहना मानते हैं और न ही एकदूसरे के लिए कुछ करना चाहते हैं. सिर्फ मौजमजे के साथी होते हैं.

मेहुल और आयशा भी इसी तरह लिवइन में साथसाथ पतिपत्नी की तरह रह रहे थे. रहते जरूर दोनों साथसाथ पतिपत्नी की तरह थे, लेकिन अपनी अपनी मरजी के मालिक थे, इसलिए दोनों में अकसर लड़ाई झगड़ा होता रहता था.

6 अक्तूबर, 2023 को भी किसी बात को ले कर मेहुल और आयशा में लड़ाई हो रही थी, तभी गुस्से में आयशा ने मेहुल को एक तमाचा मार दिया. एक लड़की हो कर आयशा ने एक मर्द मेहुल को तमाचा मार दिया था, इसलिए मेहुल से यह अपमान बरदाश्त नहीं हुआ और उस ने गुस्से में आयशा का गला इतनी जोर से दबा दिया कि उस की मौत हो गई.

गुस्से में मेहुल ने आयशा की हत्या तो कर दी, लेकिन अब पकड़े जाने का डर सताने लगा था. उसे पता था कि अगर पुलिस ने आयशा की हत्या के आरोप में उसे पकड़ लिया तो उस की बाकी की जिंदगी जेल में ही कटेगी.

यह 6 अक्तूबर की शाम घटना थी. उस ने आयशा की लाश को बैडबौक्स में छिपा दिया और इस बात पर विचार करने लगा कि वह आयशा की लाश को कैसे और कहां ठिकाने लगाए कि पुलिस उस की शिनाख्त न करा सके. क्योंकि अब तक वह इतना तो जान ही चुका था कि जब तक लाश की शिनाख्त नहीं हो सकेगी, तब तक पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाएगी.

यही सोचते सोचते वो रात भी बीत गई और अगला पूरा दिन भी. 8 अक्तूबर को लाश से बदबू आने लगी. इस से मेहुल डर गया कि अगर बदबू ज्यादा बढ़ेगी तो पड़ोसी पुलिस को सूचना दे देंगे. तब वह पकड़ा जाएगा.

काफी सोचविचार कर वह बाजार गया और वहां एक सूटकेस के शोरूम से एक ट्रौली वाला सूटकेस खरीद लाया. उसे अंदाजा था कि आयशा की लंबाई ज्यादा नहीं है, इसलिए उस की लाश आराम से उस सूटकेस में आ जाएगी. चूंकि वह शोरूम ब्रांडेड सूटकेस का था, इसलिए बिल बनाते समय उस के नामपते के साथ फोन नंबर भी लिखा गया.

मेहुल सूटकेस ले कर घर आया और आयशा की लाश बैडबौक्स से निकाल कर उस सूटकेस में रख ली. इस के बाद उस ने लिफ्ट से सूटकेस नीचे उतारा और एसयूवी कार में रख कर पास के बाजार गया, जहां से उस ने लकडिय़ां खरीदीं. पेट्रोल पंप से एक बोतल पेट्रोल खरीदा और अपनी एसयूवी से शहर से बाहर ग्रामीण इलाके में आ गया.

कार चलाते हुए वह पदधारी गांव के पास पहुंचा तो गांव के पास उसे सुनसान इलाका दिखाई दिया. उस ने वहीं पर कार से सूटकेस निकाला और उस पर लकडिय़ां रखीं, फिर पेट्रोल डाल कर आग लगा दी.

जब तक लकडिय़ां जलती रहीं, वह वहीं खड़ा रहा. लकडिय़ों की आग बुझने लगी तो वह कार ले कर घर वापस आ गया. उसे जरा भी नहीं लग रहा था कि पुलिस उस तक पहुंच जाएगी, इसलिए निश्चिंत हो कर अपने घर में रह रहा था. लेकिन पुलिस 2 महीने बाद उस तक पहुंच ही गई.

थाना पुलिस ने अहमदाबाद में रहने वाले आयशा के घर वालों को सूचना दी. घर वालों ने आ कर लाश की फोटो देख कर शिनाख्त कर दी. पुलिस ने उन की डीएनए जांच भी कराई है. पूछताछ के बाद पुलिस ने मेहुल चोटलिया को राजकोट की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

17 महीने से छिपी लाश का रहस्य

नाले के पास बिना सिर वाला एक धड़ पड़ा हुआ है, जिस के बदन पर नीले कलर की टीशर्ट पर लाल सफेद लाइनिंग साफ नजर आ रही थी. मरने वाले के हाथ में लोहे का कड़ा और पीले लाल कलर का धागा बंधा हुआ था. उस के शरीर के निचले हिस्से में लाल रंग की अंडरवियर और बनियान थी. सिर के बाल  तथा दाढ़ी व मूंछ में मेहंदी कलर लगा हुआ था. जिस जगह यह सिर कटा धड़ पड़ा हुआ था, उस के कुछ ही दूरी पर एक प्लास्टिक की बोरी भी पड़ी हुई थी.

पुलिस टीम ने जब उस बोरी को खोला तो उस में मृतक का सिर मिला. पहली नजर में हत्या का मामला दिख रहा था. लिहाजा उन्होंने सीन औफ क्राइम मोबाइल यूनिट के प्रभारी डा. आर.पी. शुक्ला को मौके पर बुला लिया.

फोरैंसिक एक्सपर्ट डा. आर.पी. शुक्ला ने मौका मुआयना कर शव को देख कर बताया कि मरने वाले की उम्र 35 साल से अधिक लग रही है. लाश को देखने से प्रतीत हो रहा है कि लाश महीनों पुरानी है और उस की गरदन काट कर हत्या की गई होगी.

एफएसएल टीम ने मौकामुआयना कर वैज्ञानिक साक्ष्य एकत्र कर धड़ को संजय गांधी मैडिकल कालेज की फोरैंसिक शाखा भेज दिया. यह बात 26 अक्तूबर, 2022 की है.

सोशल मीडिया पर यह खबर जंगल की आग की तरह फैलते ही कुछ ही घंटों में पुलिस को पता चल गया कि बिना सिर वाली लाश पास के गांव ऊमरी में रहने वाले 42 साल के रामसुशील पाल की है.

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           एसपी नवनीत भसीन

रीवा जिले के एसपी नवनीत भसीन ने मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य, एसआई लालबहुर सिंह, एएसआई आदि के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर जल्द ही रामसुशील की हत्या का खुलासा करने का निर्देश दिया.

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         टीआई श्वेता मौर्य

पुलिस टीम जांच करने जब ऊमरी गांव पहुंची तो पूछताछ में पता चला कि रामसुशील ऊमरी गांव में रहने वाले साधारण किसान मोहन पाल का सब से बड़ा बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. अपने पेशे की वजह से वह कईकई महीने तक घर से बाहर रहता था.

रामसुशील की पहली पत्नी की मौत के बाद करीब 4 साल पहले उस ने मिर्जापुर निवासी रंजना पाल से विवाह किया था. शादी के शुरुआती समय तो सब ठीकठाक चलता रहा, मगर कुछ समय बाद ही दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था.

पुलिस टीम ने जब घर के आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि रामसुशील तो पिछले डेढ़ साल से गांव में किसी को दिखा ही नहीं. जब गांव के लोग पूछताछ करते तो पत्नी रंजना बताती कि उस का पति काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर गया है.

पुलिस को रामसुशील के घर जा कर यह भी मालूम हुआ कि रंजना भी कुछ दिनों पहले अपने बच्चों को ले कर मायके मिर्जापुर गई हुई है. इस वजह से पुलिस के शक की सूई रंजना की तरफ ही घूम रही थी. लिहाजा पुलिस की एक टीम रंजना की तलाश के लिए मिर्जापुर भेजी गई.

पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए रंजना से पूछताछ की तो उस ने पति की मौत की पूरी कहानी बयां कर दी.

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के मऊगंज जनपद पंचायत के छोटे से गांव ऊमरी श्रीपथ में रहने वाले किसान मोहन पाल के 3 बेटों में 42 साल का रामसुशील सब से बड़ा था. उस के बाद अंजनी पाल और सब से छोटा 30 साल का गुलाब था.

रामसुशील पेशे से ट्रक ड्राइवर था. उस की पहली शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी. एक बेटे और बेटी के जन्म के बाद वह अपनी पत्नी के साथ बुरा व्यवहार करने लगा था. नशे की लत और उस की प्रताडऩा से तंग आ कर पत्नी ने आग लगा कर आत्महत्या कर थी.

उस समय उस के बच्चों की उम्र कम थी, इसलिए समाज के लोगों ने रामसुशील के मातापिता को बच्चों की परवरिश के लिए उस की दूसरी शादी करने की सलाह दी.

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में रहने वाली रंजना पाल भी पति की मारपीट से तंग आ कर मायके में रह रही थी. उस के 2 बेटे थे. समाज के लोगों ने यही सोच कर दोनों की शादी करा दी कि दोनों के बच्चों की परवरिश होने लगेगी.

इस तरह ढह गई मर्यादा की दीवार

रामसुशील नशे का आदी होने की वजह से घरपरिवार की जिम्मेदारियों से बेखबर रहता था. लिहाजा दोनों के बीच तकरार बढऩे लगी.

रामसुशील का परिवार गांव में घर के 3 हिस्सों में अलगअलग रहता था. एक हिस्से में रामसुशील का परिवार, दूसरे हिस्से में उस का भाई अंजनी पाल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ, जबकि सब से छोटा भाई गुलाब  मातापिता के साथ रहता था. उस समय गुलाब की शादी नहीं हुई थी.

रामसुशील काम के सिलसिले में अकसर 15-15 दिन घर से बाहर रहता था. इस का फायदा उठाते हुए रंजना का झुकाव अपने देवर गुलाब की तरफ हो गया. उस समय गुलाब 30 साल का गोराचिट्टा जवान व कुंवारा था.

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   आरोपी गुलाब पाल

गुलाब भाभी का लाडला देवर था, परंतु रामसुशील की बुरी आदतों की वजह से अपने भाइयों से नहीं पटती थी. रामसुशील पैतृक संपत्ति का ज्यादा भाग खुद उपयोग कर रहा था. इस वजह से उस के भाई भी उस से नफरत करते थे.

ऐसे में रंजना ने गुलाब पर डोरे डालने शुरू कर दिए. गुलाब उम्र की जिस दहलीज पर खड़ा था, वहां पर शादीशुदा नाजनखरों वाली भाभी रंजना के बिछाए प्रेम जाल में वह फंस ही गया. लिहाजा जल्द ही दोनों के बीच अवैध संबंध हो गए.

इस के बाद तो गुलाब और रंजना का इश्क परवान चढऩे लगा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे अपनी हसरतों को पूरा कर लेते. लेकिन कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही हाल हुआ भौजाई रंजना और देवर गुलाब के इश्क का. आखिर पति रामसुशील को देवर भौजाई के चोरीछिपे चल रहे इश्क का पता चल ही गया.

एक दिन शराब के नशे में चूर रामसुशील जब घर पहुंचा तो रंजना पर बरस पड़ा, ”छिनाल, तूने आखिर अपनी औकात दिखा ही दी. गुलाब के साथ रंगरलियां मना रही है.’’

रामसुशील ने भद्दी गालियां देते हुए रंजना की पिटाई कर दी. अब तो आए दिन दोनों के बीच झगड़ा आम बात हो गई थी. जब रामसुशील गुस्से में रंजना की पिटाई करता तो प्रेमी गुलाब के सीने पर सांप लोट जाता.

छोटा भाई क्यों बना जान का दुश्मन

रोजरोज अपनी प्रेमिका की पिटाई से उसे दुख पहुंचता. एक दिन मौका पा कर गुलाब ने रंजना से साफसाफ कह दिया, ”भौजी, हम से तुम्हारा दर्द देखा नहीं जाता. आखिर कब तक जुल्म सहती रहोगी.’’

”कुछ समझ भी नहीं आता, आखिर ऐसे मर्द के साथ मैं निभाऊं कैसे.’’ रंजना बोली.

”मेरी तो इच्छा है कि ऐसे मर्द को तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर कर दूं, फिर हमारे प्यार में कोई अड़चन ही नहीं होगी.’’ गुलाब रंजना से बोला.

”लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है. यदि यह राज किसी को पता चल गया तो जेल में चक्की पीसेंगे हम दोनों.’’ रंजना ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा.

”मेरे पास एक प्लान है, तुम अगर मानो तो किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ गुलाब चहकते हुए बोला.

”बताओ, ऐसा कौन सा प्लान है तुम्हारे पास?’’ रंजना बोली.

”भौजी, मैं बाजार से चूहे मारने वाली दवा ला कर दूंगा, तुम चुपचाप खाने में मिला कर रामसुशील भैया को खिला देना.’’ गुलाब बोला.

”फिर… घर के लोगों को क्या बताएंगे कि कैसे मर गए?’’ रंजना आगे की मुश्किल देखते हुए बोली.

”तुम इस की चिंता मत करो. रातोंरात मैं लाश को ठिकाने लगा दूंगा और लोगों से कह देंगे कि भैया काम के सिलसिले में बाहर गए हुए हैं.’’ गुलाब रंजना को आश्वस्त करते हुए बोला.

गुलाब और रंजना का प्यार अब घर वालों को भी पता चल चुका था. गुलाब के रंजना से संबंधों की भनक पिता मोहन पाल को लगी तो उन्होंने माथा पीट लिया. समाज में ऊंचनीच न होने के भय से उन्होंने यह सोच कर गुलाब की शादी कर दी कि शादी होते ही वह अपनी भाभी से दूर रहने लगेगा.

मगर शादी होने के बाद भी गुलाब की रंजना से नजदीकियां कम नहीं हुईं. गुलाब की पत्नी भी गुलाब की इन हरकतों से परेशान थी. गुलाब अपनी नवविवाहिता पत्नी पर फिदा होने के बजाय रंजना भाभी की जवानी के गुलशन का भंवरा बना हुआ था. गुलाब की नईनवेली पत्नी जब गुलाब को रंजना से दूर रहने को कहती तो वह उलटा उस के साथ ही मारपीट करने लगता.

रामसुशील जब भी घर आता तो वह देखता कि गुलाब रंजना के इर्दगिर्द घूमता रहता है. इस बात को ले कर वह गुलाब को भलाबुरा भी कह चुका था. गुलाब अपने भाई से जब जमीन के बंटवारे की बात कहता तो रामसुशील उसे डराधमका कर चुप करा देता.

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         आरोपी अंजनी पाल

जमीनजायदाद के बंटवारे को ले कर जब भी उन का आपसी विवाद होता तो उस के चाचा रामपति और उस के लड़के सूरज और गुड्डू भी गुलाब और अंजनी का पक्ष लेते. इस से रामसुशील अपने चाचा और उन के बेटों के साथ गालीगलौज करता.

समोसे की चटनी में मिलाया जहर

रामसुशील से तंग आ कर 2021 के मई महीने में रंजना और गुलाब ने रामसुशील को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया और एक रात रंजना ने घर पर स्वादिष्ट समोसे बनाए.

समोसे खाने का रामसुशील शौकीन था, उसे टमाटर की चटनी के साथ समोसे खाना बहुत अच्छा लगता था. रंजना ने समोसे के साथ परोसी गई चटनी में चूहे मारने की दवा मिला दी थी.

रामसुशील चटखारे मार कर समोसे खा गया, मगर उसे इस बात का पता नहीं था कि उस की पत्नी ने जो प्यार जता कर समोसे परोसे हैं, उस में उस की मौत छिपी हुई थी.

पेट भर समोसे खा लेने के बाद रामसुशील सोने चला  गया. बच्चों के सोने के बाद जब रंजना रात के करीब 12 बजे पति के बिस्तर पर पहुंची तो उस ने हिलाडुला कर पति की नब्ज टटोली.

कोई हलचल न पा कर रंजना ने गुलाब को फोन कर खबर कर दी. गुलाब भी इसी पल का इंतजार कर रहा था. उस ने जमीन के बंटवारे में हिस्सा दिलाने का लालच दे कर अपने भाई अंजनी पाल को भी साथ ले लिया.

जैसे ही गुलाब और अंजनी भाभी के बुलावे पर रामसुशील के पास कमरे में पहुंचे तो रामसुशील को बेहोश देख कर बहुत खुश हुए. उन्हें लगा कि भाई जिंदा न बचे, इसलिए अपने साथ लाए धारदार हथियार से गुलाब ने रामसुशील का गला काट कर भाई अंजनी की मदद से धड़ और सिर प्लास्टिक की बोरी में भर दिया.

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर अंधेरे में ही गुलाब लाश वाली बोरी को साइकिल पर लाद कर अपने चाचा रामपति पाल के खेत पर पहुंच गया. वहां चाचा के लड़के सूरज और गुड्डू की मदद से भूसा रखने वाले कमरे में उस ने लाश की बोरी दबा दी.

इस काम में चाचा के बेटों गुड्डू पाल और सूरज पाल ने इसलिए मदद की क्योंकि एक बार जमीनी विवाद में इन का झगड़ा रामसुशील से हो गया था, तब रामसुशील ने पूरे गांव के सामने उन का अपमान किया था. अपने अपमान का बदला लेने के लिए वे गुलाब के इस प्लान में शामिल हो गए.

सुबह जब बच्चे सो कर उठे तो उन्हें रंजना ने बताया कि उस के पापा काम के सिलसिले में बाहर गए हैं. रामसुशील को रास्ते से हटाने के बाद गुलाब और रंजना के प्रेम की राह आसान हो गई थी. अब वे अपनी मरजी के मुताबिक जिंदगी जी रहे थे. गुलाब अपनी बीवी की उपेक्षा कर भाभी रंजना पर अपनी कमाई लुटा रहा था. रंजना भी गुलाब की दीवानगी का खूब फायदा उठा रही थी.

17 महीने बाद कैसे खुला राज

लाश को छिपाए करीब 17 महीने बीतने को थे, परंतु हर समय गुलाब के मन में पकड़े जाने का भय बना रहता था. गुलाब के चाचा रामपति को जब इस बात का पता चला तो वह गुलाब पर लाश को वहां से हटाने का दबाव बनाने लगे थे.

उन्होंने साफतौर पर कह दिया था, ”भूसा भरने वाले कमरे से वह जल्द ही लाश को हटा दे, नहीं तो वह पुलिस को सब कुछ बता देंगे.’’

पशुओं के लिए रखा भूसा भी खत्म होने को था. 25 अक्तूबर, 2022 की रात को गुलाब ने लाश वाली बोरी ला कर पास के गांव निबिहा के नाले के पास फेंक दी और घर जा कर चैन की नींद सो गया.

अगली सुबह रामसुशील की लाश मिलते ही गुलाब राज खुलने के डर से भयभीत हो गया और उस ने फोन लगा कर रंजना को बताते हुए सचेत कर दिया था.

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                                                    हिरासत में आरोपी

सूचना मिलने पर मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंची और सिर व धड़ बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए. पुलिस जांच में रंजना से पूछताछ की गई तो थोड़ी सख्ती से रंजना जल्दी ही टूट गई और पुलिस को उस ने सच्चाई बता दी.

देवरभाभी के प्रेम और वासना की आग में अंधे हो कर रामसुशील को ठिकाने लगा कर यही समझ बैठे थे कि वे पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर कानून की नजरों से बच जाएंगे, परंतु उन का यह भ्रम जल्दी ही टूट गया.

17 महीने तक भूसे के ढेर में दबी लाश जब बाहर निकली तो रामसुशील की हत्या का पूरा सच सामने आ गया.

पुलिस ने गुलाब, रंजना के साथ उस के भाई अंजनी व चाचा रामपति को भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मामला कायम कोर्ट में पेश किया, जहां से रंजना को महिला जेल रीवा और गुलाब, अंजनी और रामपति को उपजेल मऊगंज भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक 2 आरोपी जेल में बंद थे और उन के खिलाफ आरोपपत्र कोर्ट में पेश किया जा चुका था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रागिनी गायिका को मिला मौत का तोहफा

ग्रेटर नोएडा की बीटा-2 कोतवाली के प्रभारी सुरजीत उपाध्याय शाम 8 बजे खाना खाने के बाद अपने औफिस में पहुंचे. वह वहां से गश्त के लिए निकलने की तैयारी कर रहे थे, तभी पीसीआर द्वारा उन्हें सूचना मिली कि मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी के गेट पर बदमाशों ने एक महिला की गोली मार कर हत्या कर दी है. महिला को उस के साथी कैलाश अस्पताल ले कर गए हैं.

हत्या जैसी वारदात किसी भी अधिकारी के मुंह का स्वाद कसैला कर देती है. बावजूद इस के सुरजीत उपाध्याय ने देर नहीं की. उन्होंने एसआई अनूप के नेतृत्व में एक टीम मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी की तरफ रवाना कर दी और खुद एसआई संदीप कालखंडे, हेडकांस्टेबल किशोरीलाल, कांस्टेबल अंशुल, दीपक, राशिद और सुमित को ले कर कैलाश अस्पताल पहुंच गए.

वहां पता चला कि जिस महिला को गोली लगी है, वह रागिनी व लोकगीतों की मशहूर गायिका सुषमा है. अस्पताल में सुषमा के परिवार और जानपहचान वालों की भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस के अस्पताल पहुंचने से पहले ही डाक्टरों ने सुषमा को मृत घोषित कर दिया था. जिस कारण अस्पताल में सुषमा के परिजनों का विलाप शुरू हो गया था.

चूंकि अब यह वारदात हत्या की हो चुकी थी, इसलिए परिजनों से पूछताछ करने से पहले थानाप्रभारी सुरजीत उपाध्याय ने इस घटना की जानकारी ग्रेटर नोएडा की सीओ (प्रथम) तनु उपाध्याय के साथ एसपी (ग्रामीण) रणविजय सिंह और एसएसपी वैभव कृष्ण को दे दी. कुछ ही देर में ये तीनों अधिकारी भी कैलाश अस्पताल पहुंच गए.

सुषमा की बहन सोनू ने घटना के बारे में विस्तार से पुलिस को सारी बात बता दी.

सोनू ने बताया कि उस रात यानी पहली अक्तूबर की रात के करीब 8 बजे वह अपनी बहन सुषमा, सहेली वैशाली और ड्राइवर सचिन के साथ अपनी ब्रेजा कार से ग्रेटर नोएडा स्थित मित्रा सोसायटी के बाहर पहुंची थी. उस की बहन सुषमा दूध लेने के लिए सोसाइटी के बाहर ही कार से नीचे उतर गई थी.

ठीक उसी वक्त मित्रा सोसाइटी के गेट से एक पल्सर बाइक बाहर निकली, जिस पर चालक समेत 2 लोग सवार थे. दोनों ने ही  हेलमेट पहने हुए थे. एक क्षण के लिए उन की बाइक सोसाइटी के बाहर सुषमा की कार के समीप आ कर रुकी. तब तक सुषमा अपनी कार का दरवाजा खोल कर नीचे उतर चुकी थी.

अचानक रुकी बाइक की पिछली सीट पर बैठा युवक बाइक से नीचे उतर कर सुषमा के बेहद करीब पहुंच गया. फुरती के साथ उस ने जेब से पिस्टल निकाली और सुषमा पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं.

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सुषमा को 4 गोलियां लगीं, जिस में से एक सिर में, दूसरी सीने में और बाकी 2 गोलियां शरीर के दूसरे हिस्सों में लगीं. एक के बाद एक 4 गोलियां लगने के बाद सुषमा लहरा कर वहीं गिर पड़ी. अचानक सुषमा पर हुए इस हमले को जब तक वे तीनों समझते और कार से नीचे उतर कर सुषमा की मदद करते, तब तक गोलीबारी करने वाले बाइक पर सवार हो कर फरार हो गए थे.

जिस समय यह वारदात हुई थी, उस वक्त सोसाइटी में चहलपहल थोड़ी कम थी. लेकिन इस के बावजूद मुख्य द्वार पर बने गार्ड रूम से सिक्योरिटी गार्ड बाहर निकल आए और गोलियों की आवाज सुन कर सोसाइटी में इधरउधर टहल रहे लोग भी दरवाजे पर आ गए.

किसी की समझ में नहीं आया कि अचानक यह हमला कैसे हुआ और हमलावर कौन थे. वे सोसाइटी के भीतर कैसे पहुंचे. सुषमा की बहन सोनू मदद के लिए चीखने चिल्लाने लगी तब तक वहां लोगों की भीड़ एकत्र हो चुकी थी. किसी ने सुषमा को जल्द हौस्पिटल ले जाने की बात कही, तो सोनू ने सचिन की मदद से खून से लथपथ सुषमा को दोबारा अपनी गाड़ी में डाला.

कुछ ही देर में उन की कार समीप के कैलाश हौस्पिटल पहुंची, जहां तत्काल सुषमा को आईसीयू में भरती कर के उस का उपचार शुरू कर दिया गया. तब तक सोनू ने अपने परिचितों और परिवार वालों को फोन कर के सुषमा पर हुए हमले की जानकारी दे दी और उन से अस्पताल पहुंचने के लिए कहा. इस दौरान किसी ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को भी गोलीबारी से हुए इस हमले की सूचना दे दी थी.

जिस के बाद पीसीआर की गाड़ी जब मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी पर पहुंची तो पता चला कि इस हमले में रागिनी गायिका सुषमा गंभीर रूप से घायल हुई है और उसे कैलाश अस्पताल ले जाया गया है.

जिस जगह यह वारदात हुई थी, वह क्षेत्र बीटा-2 कोतवाली क्षेत्र में आता है. पीसीआर ने बीटा-2 कोतवाली को पूरी वारदात की जानकारी दे कर आगे की काररवाई के लिए कैलाश अस्पताल पहुंचने को कहा था.

थानाप्रभारी सुरजीत उपाध्याय ने सुषमा की बहन सोनू के साथ कार में सवार वैशाली और कार चालक सचिन के बयान भी दर्ज किए. सोनू के बयान के आधार पर थानाप्रभारी ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसएसपी वैभव कृष्ण ने एसपी (ग्रामीण) रणविजय सिंह को निर्देश दिया कि वह अपनी निगरानी में जल्द से जल्द हत्या की इस वारदात का खुलासा करें. इसीलिए एसपी रणविजय सिंह ने बीटा-2 थानाप्रभारी सुरजीत उपाध्याय को इस केस की जांच का जिम्मा सौंप कर उन की मदद के लिए क्राइम ब्रांच की स्टार-2 टीम के इंचार्ज यतेंद्र सिंह, हेड कांस्टेबल सत्येंद्र सिंह, कृष्ण कुमार, प्रवीण मलिक, अमित शर्मा और उदयवीर को तैनात कर दिया. सीओ तनु उपाध्याय को पूरे मामले की मौनिटरिंग करने की जिम्मेदारी सौंपी गई.

मरने वाली सुषमा उसी मित्रा एन्क्लेव सोसायटी के फ्लैट नंबर सी-104 में रहती थी. जिस वक्त अपार्टमेंट के बाहर सुषमा को गोली मारी गई थी, उस वक्त सुषमा का पति गजेंद्र भाटी अपने 2 बच्चों के साथ घर में ही मौजूद था. जैसे ही उसे पत्नी को गोली मारे जाने की सूचना मिली तो उस के होशोहवास उड़ गए और वह तत्काल कैलाश हौस्पिटल पहुंच गया.

मामला दर्ज करने के बाद पुलिस ने जांच का काम तेजी से शुरू कर दिया. पुलिस की टीमें प्रत्यक्षदर्शियों से पूछताछ करने लगीं. पुलिस ने सुषमा के फोन की काल डिटेल्स खंगाली. मित्रा सोसाइटी के गेट और आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज को देखा जाने लगा, सुषमा की जिंदगी के हर पन्ने को पुलिस बारीकी से पढ़ने लगी.

सुषमा से दोस्ती और दुश्मनी रखने वाले तमाम लोगों को पुलिस ने जांच के केंद्र में ले लिया और धीरेधीरे पुलिस कातिलों के करीब पहुंचने लगी.

6 अक्तूबर, 2019 की शाम करीब 7 बजे का वक्त था. एक अहम सूचना के बाद थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच की स्टार-2 की टीम ने सिग्मा-4 सैक्टर के समीप सर्विस रोड पर बदमाशों को पकड़ने के लिए घेराबंदी की हुई थी. तभी तेजी से आती एक फौर्च्युनर कार को पुलिस ने वहां रोकने का प्रयास किया. लेकिन कार चालकों ने कार को रोकने के बजाए पुलिस पर गोली चला दी.

इस के बाद दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं. 10 मिनट बाद कार से उतर कर भाग रहे 2 बदमाशों के पैरों पर पुलिस ने गोली चलाई, जिस से वे घायल हो गए. पुलिस ने जब उन्हें काबू कर के पूछताछ की तो हैरान करने वाली जानकारी सामने आई.

दोनों कुख्यात अपराधी थे. इन में से एक मुकेश पड़ोसी जिले बुलंदशहर के थाना अगौता के गांव जोलीगढ़ का और दूसरा संदीप गौतमबुद्ध नगर के थाना जेवर इलाके में स्थित गांव थोरा का रहने वाला था.

दोनों बदमाशों के पैर में गोली लगी थी, इसलिए उन्हें तत्काल इलाज के लिए अस्पताल में भरती करा दिया गया. पुलिस की एक टीम जहां उन से पूछताछ का काम कर रही थी तो दूसरी टीम उन से पूछताछ में मिली जानकारी के आधार पर छापेमारी करने में जुट गई. संदीप और मुकेश जिस फौर्च्युनर गाड़ी में सवार थे, पुलिस ने उस की तलाशी ली तो उस में से एक 30 एमएम का पिस्टल और .315 बोर का तमंचा बरामद हुआ था.

बुलंदशहर के रहने वाले मुकेश के बारे में जब जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि उस के खिलाफ लूट, डकैती जैसे गंभीर अपराधों के 22 मुकदमे पहले से दर्ज हैं, जबकि संदीप के खिलाफ भी लूट के 2 मुकदमे दर्ज होने की जानकारी सामने आई.

पुलिस की टीम ने जब इलाज के दौरान दोनों से पूछताछ की तो अचानक रागिनी गायिका सुषमा की हत्या की गुत्थी सुलझती चली गई. संदीप और मुकेश से हुई पूछताछ के आधार पर पुलिस की 2 अलगअलग टीमों ने छापेमारी शुरू कर दी.

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पुलिस ने उसी रात सुषमा के पति गजेंद्र भाटी, गजेंद्र के ड्राइवर अमित, गजेंद्र के गांव बिलासपुर में रहने अमित के तयेरे भाई अजब सिंह, बुलंदशहर के मेहसाना गांव में रहने वाले अजब सिंह के दोस्त प्रमोद को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

जब इन सभी आरोपियों से पूछताछ हुई, तो सुषमा हत्याकांड की हैरान कर देने वाली कहानी सामने आई-

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के जहांगीरपुर थाना क्षेत्र में एक गांव है नेकपुर. इसी गांव में रहने वाले जाट परिवार में सुषमा का जन्म हुआ था. 26 साल की सुषमा अपने मातापिता की 6 संतानों में सब से बड़ी थी. सुषमा की 5 बहनें और एक भाई है. भाई तीसरे नंबर का है. 3 छोटी बहनों को छोड़ कर सभी का विवाह हो चुका था.

सुषमा जब स्कूल में पढ़ती थी और उस की उम्र 13 साल थी, उसी समय से उसे रागिनी और लोकगीत गाने का ऐसा शौक लगा कि वह जल्द ही रागिनी गायकों की मंडली में जा कर गाने लगी.

16 साल की उम्र तक आतेआते सुषमा इलाके की जानीमानी युवा रागिनी गायिका बन गई. सुषमा को उस के गांव के नाम नेकपुर के नाम से पुकारा जाने लगा. धीरेधीरे उस की पहचान रागिनी गायिका सुषमा नेकपुर के रूप में कायम हो गई.

सुषमा की कला को देख कर उस की तीसरे नंबर की बहन सोनू को भी स्कूली समय से ही गानेबजाने का शौक लग गया और वह भी बाद में अपनी बहन सुषमा की तरह न सिर्फ स्टेज पर रागिनी गायिका की तरह परफौर्म करने लगी, बल्कि रागिनी पर होने वाले ग्रुप डांस में भी शामिल होने लगी. सोनू को बचपन से ही मर्दाना लिबास और मर्दाना रूपरंग में रहने का शौक था. इसलिए वह ज्यादातर पैंटशर्ट पहनती. उस के हेयरस्टाइल भी मर्दों जैसे ही थे.

धीरेधीरे सोनू के साथ एक उपनाम भी जुड़ गया सम्राट और लोग उसे सोनू सम्राट के नाम से जानने लगे.

सुषमा ने छोटी बहन सोनू के हुनर को देख कर उसे भी अपने साथ जोड़ लिया. सुषमा और सोनू की मंडली का ग्रेटर नोएडा की सिसौदिया म्यूजिक कंपनी से करार था. सुषमा के स्टेज शो को सिसौदिया म्यूजिक कंपनी ही रिकौर्ड कर के उस की सीडी बाजार में बेचती थी. साथ ही सुषमा के स्टेज शो और रागिनी के वीडियो यूट्यूब पर भी डाले जाते थे, जिस पर सिसौदिया म्यूजिक कंपनी का ही अधिकार था.

सुषमा और सोनू सम्राट कुछ ही सालों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ले कर हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी इतनी लोकप्रिय हो गईं कि लोग जागरण से ले कर स्टेज शो कराने के लिए उन्हें मुंहमांगी रकम दे कर बुलाने लगे.

गांव देहात में रहने वाले लोगों को जवान होती बेटी के हाथ पीले करने की बहुत जल्दबाजी होती है. सुषमा ने जैसे ही जवानी की दहलीज पर कदम रखा, उस के मातापिता ने उस के लिए लड़के देखने शुरू कर दिए. लेकिन इसी दौरान सुषमा को गाजियाबाद में रहने वाला एक युवक संदीप कौशिक पसंद आ गया.

जब परिवार वालों ने सुषमा के लिए लड़कों की खोजबीन शुरू की, तो सुषमा ने उन्हें अपनी पसंद के बारे में बताया. सुषमा अपने पैरों पर खड़ी थी, वह बालिग थी और साथ ही परिवार की मदद भी करती थी. इसलिए मातापिता ने विजातीय होने के बावजूद सुषमा को संदीप कौशिक से शादी करने की मंजूरी इसलिए दे दी, क्योंकि वह ब्राह्मण जैसी उच्च जाति का लड़का था.

संदीप एक बड़ी कंपनी में नौकरी करता था. संयुक्त परिवार में रहता था और विजातीय होने के कारण उस के परिवार के रस्मोरिवाज और संस्कार भी सुषमा से अलग थे.

सुषमा ज्यादातर जागरण की पार्टियों और शादी समारोह के फंक्शन में अपने ग्रुप के साथ जाती थी. इन सब कारणों से सुषमा समय बेसमय अपनी ससुराल आतीजाती थी, जिस के चलते जल्द ही अपने पति संदीप कौशिक और उस के परिवार वालों से सुषमा की अनबन शुरू हो गई.

7-8 महीने भी नहीं बीते थे कि सुषमा और संदीप का मनमुटाव इस मुकाम तक पहुंच गया कि उस ने सुषमा से अलग होने का फैसला कर लिया.

सुषमा और संदीप अलगअलग तो रहने लगे, लेकिन उन का संबंध इतनी आसानी से खत्म नहीं हुआ. परिवार वालों के कहने पर सुषमा ने गाजियाबाद कोर्ट में अपने पति संदीप के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करवा दिया.

यह मामला 2-3 साल तक अदालत में चलता रहा. इस दौरान सुषमा अपनी बहन सोनू के साथ पूरी तरह रागिनी गायन के कार्यक्रमों में व्यस्त रहने लगी. सुषमा ने अब अपने गांव नेकपुर की जगह ग्रेटर नोएडा में ही फ्लैट ले कर रहना शुरू कर दिया था. क्योंकि गांव से आनेजाने में उसे काफी परेशानी होती थी.

सुषमा दिनोंदिन लोकप्रियता की सीढि़यां चढ़ रही थी. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले रागिनी के शौकीनों में उस की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही थी. इधर 4 साल पहले अदालत में चल रहे दहेज उत्पीड़न के मुकदमे से परेशान हो कर संदीप कौशिक ने सुषमा से अदालत से बाहर उसे 10 लाख रुपए का हरजाना दे कर समझौता कर लिया और दोनों के बीच रजामंदी से तलाक हो गया.

पति से तलाक के बाद सुषमा एक बार फिर आजाद हो गई. सुषमा अब अपने रागिनी गायन के काम में पूरी तरह खो गई थी. अब ग्रामीण क्षेत्र की बहुत सी लड़कियां भी सुषमा की शिष्या बन कर उस से रागिनी की कला और गायन विद्या सीखने लगी थीं.

जिन दिनों अदालत में सुषमा का अपने पति से तलाक का मुकदमा चल रहा था, उन्हीं दिनों सुषमा की जिंदगी में गजेंद्र भाटी ने प्रवेश किया. गौतमुद्धनगर के बिलासपुर का रहने वाला गजेंद्र भाटी (30) एक जमींदार परिवार का नौजवान था.

परिवार में पत्नी रीना के अलावा 3 बच्चे भी थे. गजेंद्र भाटी को उस के दोस्त गज्जी के नाम से पुकारते थे. उस के बिलासपुर और दनकौर में 2 ईंट भट्ठे थे. इस के अलावा गांव में उस की खेती की कई बीघा जमीन थी. उस ने ग्रेटर नोएडा में साईं प्रौपर्टी के नाम से प्रौपर्टी डीलिंग का औफिस भी खोल रखा था. ग्रेटर नोएडा की कई सोसाइटियों में उस ने फ्लैट खरीद कर पैसे का निवेश भी किया हुआ था.

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      हत्यारोपी गजेंद्र भाटी

कहते हैं जब इंसान के पास दौलत आती है तो साथ में बुरी आदतें भी आनी शुरू हो जाती हैं. गजेंद्र को भी अमीरी के साथ शराब पीने और लड़कियों के साथ अय्याशी की लत लग गई थी. वह अकसर दोस्तों के साथ अपने औफिस और फार्महाउसों में शराब की पार्टियां करता था. कभीकभी इन पार्टियों में कालगर्ल भी बुलाई जाती थी.

गज्जी की पत्नी रीना गांव की एक सीधीसादी और साधारण शक्लसूरत वाली थी, इसलिए वह घर से बाहर खूबसूरत लड़कियों में अपने लिए खुशी तलाशता था. करीब 5 साल पहले गज्जी की सुषमा से पहली मुलाकात नोएडा की सिसौदिया कैसेट कंपनी के औफिस में हुई थी. गजेंद्र भाटी वहां सुषमा की आवाज में एक भजन की कैसेट रिकौर्ड करवाने के लिए आया था.

अमूमन सोनू और सुषमा साथ ही परफौर्म करती थीं, पर उस भजन कैसेट में सुषमा ने अकेले ही परफौर्म किया था, क्योंकि ये भाटी की डिमांड थी. गजेंद्र पहली मुलाकात में ही सुषमा पर फिदा हो गया. उस ने सुषमा को उस भजन के लिए मुंहमांगी रकम दी थी, जिस से सुषमा भी पहली ही बार में उस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी थी.

सुषमा और गजेंद्र की मुलाकात जल्द ही दोस्ती में बदल गई. सुषमा की लोकप्रियता के चर्चे गजेंद्र ने पहले भी सुने थे. जब सुषमा हकीकत में गजेंद्र की दोस्त बन गई तो गजेंद्र उसे अपने साथ इधरउधर घुमाने लगा.

गजेंद्र के पास पैसे की कमी नहीं थी. लिहाजा सुषमा को प्रभावित करने के लिए वह उसे महंगे तोहफे देता था. इस सब का असर यह हुआ कि दोनों के बीच एकदूसरे के लिए प्यार और अपनत्व के भाव पैदा हो गए.

हर औरत को एक मर्द के सहारे की जरूरत होती है. लिहाजा जब गजेंद्र जैसा अमीर और जवान दोस्त सुषमा के प्यार में डूबा तो सुषमा भी उस के प्यार में डूबने से बच न सकी. दोनों के बीच जल्द ही जिस्मानी संबध भी कायम हो गए.

एक बार दोनों के बीच रिश्ते कायम हुए तो फिर अकसर ही ऐसा होने लगा. इस के बाद जल्द ही गजेंद्र ने सुषमा के सारे खर्चे भी उठाने शुरू कर दिए. जिस फ्लैट में सुषमा अपनी बहन सोनू सम्राट के साथ रहती थी, उस के किराए से ले कर घर के तमाम खर्चे भी गजेंद्र ही उठाने लगा. एक तरह से गजेंद्र और सुषमा बिना शादी के पतिपत्नी के तौर पर साथ रहने लगे थे.

चूंकि तब तक सुषमा का संदीप के साथ कानूनी तलाक नहीं हुआ था, इसलिए सुषमा और गजेंद्र ने लिवइन रिलेशन में रहने के बावजूद अपने संबंधों को दुनिया से छिपा रखा था. लेकिन जब 4 साल पहले सुषमा का तलाक हो गया तो सुषमा ने अपने परिवार के सामने गजेंद्र के साथ अपने प्रेम संबधों का इजहार कर दिया.

चूंकि गजेंद्र ने सुषमा से वायदा किया था कि वह जल्द ही उस के साथ शादी कर लेगा, इसलिए सुषमा के परिजनों ने गजेंद्र के साथ भी उस के संबधों को कबूल कर लिया.

इस के बाद कुछ ऐसा हुआ कि सुषमा की जिद पर गजेंद्र ने एक मंदिर में जा कर पुजारी के सामने सुषमा के गले में माला डाल कर मांग में सिंदूर भर कर उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. लेकिन उस ने वायदा किया कि अपने परिवार को मनाने और पत्नी को तलाक देने के बाद वह उस के साथ विधिवत रूप से शादी कर लेगा. सुषमा ने उस वक्त गजेंद्र की इस बात पर पूरी तरह भरोसा कर लिया.

गुपचुप ढंग से की गई शादी के कुछ दिन बाद सुषमा को पहले पति से हरजाने के रूप में जो 10 लाख रुपए मिले थे, उस में से 7 लाख रुपए गजेंद्र ने सुषमा से ये कह कर ले लिए थे कि उस के सारे खाते इनकम टैक्स विभाग ने सीज कर दिए हैं और उसे पैसों की जरूरत है.

सुषमा से लिए हुए पैसों से भाटी ने ब्रेजा कार खरीदी, लेकिन उसे भी उस ने अपने नाम करा लिया था. ये कार उस ने किसी ब्रजपाल नाम के व्यक्ति के नाम पर ली, जिस के बारे में सुषमा को जरा सा भी इल्म नहीं हुआ. यही कार उस ने सुषमा को इस्तेमाल करने के लिए दी हुई थी.

इधर वक्त बीतने के साथ सुषमा बीचबीच में अकसर पूरे समाज के सामने गजेंद्र को शादी करने का वचन याद दिलाने लगी. वक्त इसी तरह तेजी से बीतने लगा. इस दौरान उस ने गजेंद्र के 2 बच्चों के रूप में साढे़ 3 साल पहले एक बेटी और उस के डेढ़ साल बाद एक बेटे को जन्म दिया. हालांकि गजेंद्र अब समाज में सुषमा को एक पत्नी की हैसियत से अपने साथ ले कर आताजाता था. लेकिन उस ने अपने परिवार के बीच अभी भी उसे वह दरजा नहीं दिया था.

गजेंद्र ने जब सुषमा से संबध बनाए थे, तभी उस ने वायदा किया था कि वह उस के और बच्चों के भविष्य की सुरक्षा के लिए एक फ्लैट खरीद कर देगा. 2 साल पहले उस ने ग्रेटर नोएडा के बीटा-2 सेक्टर की मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी में सी-104 नंबर का 3 बैडरूम का फ्लैट खरीदा और तभी से सुषमा अपनी बहन और बच्चों के साथ वहां जा कर रहने लगी थी. लेकिन गजेंद्र ने इस मकान की रजिस्ट्री अपने नाम कराई थी.

इस फ्लैट को भाटी ने यह बोल कर खरीदा था कि वो सुषमा के लिए है. इसीलिए सुषमा ने कहा कि मेरे नाम मत खरीदो, इसे बेटे के नाम कर दो. लेकिन उस ने दोनों के नाम न कर के रजिस्ट्री खुद के नाम करा ली. इस से सुषमा को अपने दोनों बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी थी.

इन वजहों से अब गजेंद्र और सुषमा के बीच अकसर विवाद होने लगा था. पहला तो यह कि सुषमा पूरे समाज के सामने गजेंद्र से अपने संबधों की मान्यता चाहती थी, दूसरे वह अपने व अपने बच्चों के भविष्य के लिए मित्रा सोसाइटी के फ्लैट को अपने नाम कराने की जिद करने लगी थी.

यह विवाद वक्त के साथसाथ इस तरह बढ़ने लगा कि अकसर कईकई दिन तक दोनों के बीच बातचीत तक बंद हो जाती थी. मकान की रजिस्ट्री अपने नाम कराने का विवाद धीरेधीरे इस कदर बढ़ता चला गया कि सुषमा अब गजेंद्र से अपना और अपने बच्चों का हक भी मांगने लगी थी.

तब गजेंद्र को लगने लगा कि उस ने अपने गले में मुसीबत डाल ली है. वह कभीकभी इतना परेशान हो जाता कि खुद को खत्म करने की बात सोचने लगता, तो कभी उस के मन में सुषमा से पीछा छुड़ाने के खयाल आने लगते.

13 फरवरी, 2018 को तो सुषमा और गजेंद्र के बीच इसी बात को ले कर विवाद इतना बढ़ गया कि गजेंद्र ने सुषमा को अपनी जान देने की धमकी देनी शुरू कर दी. एक दिन उस ने सुषमा को डराने के लिए आत्महत्या का नाटक भी किया. उस ने स्टूल पर चढ़ कर फांसी लगाने का नाटक किया था. लेकिन बाद में उस का ये नाटक हकीकत में बदल गया. उस का पैर स्टूल से ऐसे फिसला कि वो वहीं लटक गया.

उस दिन घर में मौजूद सुषमा व सोनू ने किसी तरह उसे रस्सी के फंदे से उतार कर अस्पताल पहुंचाया और उसे बचा लिया. ठीक होने के बाद कुछ दिन तक सब कुछ सामान्य रहा. लेकिन बाद में सुषमा अपने बच्चों के लिए जमीन में हिस्सेदारी और अन्य तरह की मांगें फिर करने लगी.

रोजरोज की समस्या को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए गजेंद्र ने आखिर फैसला किया कि अपनी जान देने से अच्छा है कि सुषमा नाम के कांटे को ही अपनी जिंदगी से निकाल दिया जाए. इसीलिए करीब 7 महीने पहले से ही गजेंद्र ने सुषमा की हत्या की साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया.

इस के लिए पहले गजेंद्र ने सुषमा के मोबाइल फोन पर कुछ ऐेसे संदिग्ध फोन कर के उसे जान से मारने की धमकी देनी शुरू कर दी, जिस से लोगों को लगे कि सुषमा को पहले से ही धमकियां दी जा रही थीं. बाद में उस ने अपने लोगों के जरिए सुषमा के फेसबुक व सोशल मीडिया पर अश्लील टिप्पणियां करवानी शुरू कर दीं, ताकि वह बदनाम हो जाए.

जब यह बात सुषमा ने गजेंद्र को बतानी शुरू की तो गजेंद्र ने सुषमा को ये विश्वास दिलाना शुरू कर दिया कि शायद सुषमा का पहला पति संदीप उसे परेशान कर रहा है. दरअसल अब गजेंद्र को सुषमा पर यह भी शक होने लगा था कि सुषमा का उस के अलावा किसी अन्य के साथ भी संबध बना हुआ है. क्योंकि वह अब ज्यादातर घर से बाहर रहने लगी थी.

जब गजेंद्र उर्फ गज्जी समझ गया कि सुषमा को रास्ते से हटाने की पृष्ठभूमि तैयार है तो उस ने अपने ड्राइवर अमित से एक दिन कहा कि यार ये सुषमा आजकल बहुत परेशान कर रही है. कोई ऐसा आदमी बता, जो सफाई से इस का काम कर दे और मेरे ऊपर भी कोई शक न जाए. गजेंद्र ने ये भी कहा कि इस काम के लिए वो कितना भी पैसा खर्च करने के लिए तैयार है.

अमित गजेंद्र का बहुत पुराना ड्राइवर था. उस के हर सुखदुख के साथ उस के हर राज में भागीदार रहता था. जब उस ने देखा कि गजेंद्र भैया बहुत परेशान हैं, तो उस ने इस बारे में अपने गांव बिलासपुर में रहने अपने चाचा अजब सिंह से बात की. अजब सिंह कुंवारा था. क्योंकि बचपन से ही वह अपराधियों की सोहबत में रहा था, इसलिए उस ने शादी भी नहीं की थी.

अजब सिंह ने अमित और गजेंद्र से इस बारे में विस्तार से बात की. जब वह उन का मकसद समझ गया तो अजब सिंह ने बुलंदशहर के मेहसाणा गांव में रहने वाले अपने दोस्त प्रमोद को एक दिन ग्रेटर नोएडा बुलवा लिया.

प्रमोद ने जब पूरी बात जान ली तो उस ने गजेंद्र से सुषमा की हत्या करने के लिए 15 लाख रुपए मांगे. लेकिन जब गजेंद्र ने इतने रुपए देने से मना किया तो सौदेबाजी होने लगी. आखिर में 8 लाख रुपए में प्रमोद से सुषमा की हत्या का सौदा तय हो गया.

गजेंद्र ने तय रकम में से आधे यानी 4 लाख एडवांस दे दिए थे, जबकि बाकी काम होने के बाद देने तय हुए. लेकिन गजेंद्र ने शर्त रखी थी कि काम इस तरह होना चाहिए कि उस के ऊपर कोई आंच न आए. लिहाजा इस के लिए एक योजना तैयार की गई.

प्रमोद ने इस के लिए एक क्लाइंट बन कर सुषमा से मुलाकात की और अपने गांव मेहसाणा में 19 अगस्त, 2019 को एक रागिनी कार्यक्रम के लिए उसे 15 हजार रुपए में आमंत्रित कर लिया. इस के अलावा प्रमोद ने अपने गांव में भी समारोह के लिए टैंट आदि लगवाए और उस में लोगों को आमंत्रित कर लिया. इस काम में भी जो खर्चा हुआ, वह गजेंद्र ने ही वहन किया था.

19 अगस्त, 2019 को सुषमा सोनू व एक शिष्या वैशाली और ड्राइवर को ले कर मेहसाणा गांव पहुंच गई. उस के ग्रुप के बाकी लोगों को सीधे अपने साधन से वहीं पहुंचना था. लेकिन वहां जा कर एक अजीब सा हादसा हो गया.

सुषमा को तो लगा था कि गांव में पहुंच कर उस का भव्य स्वागत होगा. हालांकि वह तय समय पर ही समारोह में पहुंच गई थी, लेकिन वहां पहंचते ही समारोह के आयोजक प्रमोद के अलावा कई लोगों ने उन के साथ इस बात को ले कर झगड़ा करना शुरू कर दिया कि वे समारोह में 2 घंटे देर से पहुंचे हैं और उन के बहुत से मेहमान वापस लौट गए. सुषमा ने जब उन्हें समझाना चाहा कि वे समय पर पहुंचे हैं तो प्रमोद व उस के साथी भड़क गए.

कई लोग उन से हाथापाई करने लगे. कुछ लोगों ने अचानक उस की गाड़ी पर लाठियों से हमला बोल दिया, जिस से उस की गाड़ी के शीशे टूट गए.

1-2 लोगों ने जब लाठियों का रुख सुषमा की तरफ किया तो सुषमा मौके की नजाकत को समझ कर तत्काल गाड़ी में बैठ गई. इस से पहले कि कोई कुछ समझता, ड्राइवर सचिन ने गाड़ी वहां से दौड़ा दी. लेकिन इस आपाधापी में सुषमा को कुछ चोटें जरूर लगीं.

इस घटना में सुषमा के साथ उस की बहन और साथी जान बचा कर भाग निकलने में कामयाब रहे थे. सुषमा के कहने पर सचिन ने गाड़ी का रुख बुलंदशहर कोतवाली देहात की तरफ मोड़ दिया. उस ने वहां जा कर कार्यक्रम के संचालक प्रमोद के अलावा अंजान लोगों के खिलाफ जानलेवा हमले का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

इधर जब ग्रेटर नोएडा वापस लौटने के बाद सुषमा ने गजेंद्र को अपने ऊपर हुए हमले की जानकारी दी तो उस ने सुषमा को बताया कि हो न हो, इस हमले के पीछे भी संदीप के लोगों का ही हाथ है. हालांकि उस दिन सुषमा का खात्मा नहीं होने के कारण गजेंद्र को अजब सिंह, अमित और प्रमोद पर गुस्सा तो बहुत आया था, लेकिन उस ने किसी तरह खुद को संभाल लिया.

गजेंद्र ने उस दिन सुषमा के साथ ऐसा बर्ताव किया मानो उसे ही सुषमा की सब से ज्यादा फिक्र हो और उस के लिए बेहद चिंतित है. गजेंद्र ने सुषमा को तमाम मतभेदों के बाद इस बात की सख्त हिदायत दी कि अब वह जहां भी जाएगी, अपने बारे सारी जानकारी उसे जरूर देगी ताकि उसे पता तो रहे कि वह कहां है और क्या कर रही है.

मेहसाणा गांव में सुषमा की हत्या करने की योजना के नाकाम होने से सुषमा की हत्या की सुपारी लेने वाला प्रमोद, अजब सिंह और अमित हतोत्साहित जरूर हुए थे. लेकिन इस के बावजूद उन्होंने गजेंद्र भाटी से वायदा किया कि हर हाल में वे अब की बार शिकार का कत्ल कर के ही उसे अपना मुंह दिखाएंगे.

इस के बाद अजब सिंह और प्रमोद ने इस काम को अंजाम देने के लिए अपने परिचित जेवर के एक अपराधी संदीप और अगौता के रहने वाले मुकेश को इस योजना में शामिल कर लिया. प्रमोद ने सुपारी की रकम में से 2 लाख रुपए भी उन दोनों को दिए साथ ही उन्हें अलीगढ़ से एक पिस्टल व तमंचा खरीद कर उन दोनों को ला कर दे दिया.

इधर, बुलंदशहर कोतवाली देहात पुलिस ने प्रमोद के खिलाफ जो मुकदमा दर्ज किया था, उस में उन्होंने प्रमोद की तलाश शुरू की दी थी, लेकिन वह अपने घर से फरार था. लिहाजा पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर दिया. इस दौरान सुषमा लगातार बुलंदशहर पुलिस के अधिकारियों से संपर्क कर के खुद पर जानलेवा हमला करने वालों की गिरफ्तारी का दबाव बनाती रही.

दूसरी तरफ गजेंद्र भी सुषमा की हत्या के लिए फाइनल साजिश तैयार करने में जुटा था. उस ने एक दिन इस साजिश में शामिल लोगों को ग्रेटर नोएडा बुला कर उन्हें पूरी रणनीति समझा दी. उस ने सभी आरोपियों को वारदात करने के लिए नए सिमकार्ड खरीद कर दिए और हिदायत दी कि इस काम के संबध में सभी लोग नए सिम का ही प्रयोग करेंगे.

इस के अलावा गजेंद्र ने संदीप, मुकेश, प्रमोद, अजब सिंह और अमित को 15 सिंतबर को मित्रा सोसायटी के सामने बनी अंसल सोसाइटी में एक फ्लैट किराए पर ले कर दिया और सभी बदमाशों ने उस फ्लैट में डेरा डाल दिया. इस फ्लैट में गजेंद्र भी जाता रहता था.

घटना वाली सुबह गजेंद्र सुषमा के साथ ही घर में था. सुषमा अपनी बहन और वैशाली को साथ ले कर उसे यह बता कर बुलंदशहर गई थी कि वह शाम तक लौट आएगी.

गजेंद्र ने उसी दिन सुषमा की हत्या का फैसला कर लिया. क्योंकि सुषमा उसे बता चुकी थी कि वह 1-2 दिन में बीजेपी जौइन करने वाली है. गजेंद्र जानता था कि कि अगर सुषमा ने सत्ताधारी पार्टी को जौइन कर लिया तो उसे मारना भी मुश्किल हो जाएगा और बुलंदशहर में हमले का राज भी खुल सकता है. क्योंकि पुलिस उस की छानबीन फिर तेज कर सकती है.

गजेंद्र जानता था कि सुषमा ने बतौर कलाकार के तौर पर तो बहुत नाम कमा लिया था. लेकिन वह अब राजनीति में जा कर कोई मुकाम हासिल करना चाहती थी. हालांकि उस ने कई साल पहले ही बीएसपी जौइन कर ली थी. 2017 के विधानसभा चुनाव में बुलंदशहर के किसी विधानसभा क्षेत्र से वह पार्टी का टिकट चाहती थी. लेकिन पार्टी ने उसे टिकट नहीं दिया था.

सुषमा ने उस वक्त कई मौकों पर खुद को बतौर बीएसपी की भावी विधानसभा प्रत्याशी के तौर पर प्रचारित करते हुए उस के पोस्टर व होर्डिंग भी लगवाए थे. इसीलिए निराश हो कर अब उस ने भाजपा नेताओं के साथ अपनी जानपहचान बढ़ानी शुरू कर दी थी और जल्द ही पार्टी में शामिल होने वाली थी.

उस दिन सुषमा इसी मकसद से बुलंदशहर गई थी, जहां वह बुलंदशहर भाजपा जिला अध्यक्ष हिमांशु मित्तल से जिला कैंप कार्यालय पर मिली थी. मित्तल ने उसे 1-2 दिन में ही किसी कार्यक्रम में पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराने का आश्वासन दिया था. राजनीति में आने के बाद सुषमा अपनी पकड़ मजबूत कर के जल्द ही चुनाव लड़ने का सपना देख रही थी.

राजनीतिक रूप से मजबूत होने के बाद सुषमा उस के लिए और ज्यादा घातक और बड़ी मुसीबत बन सकती है, इसलिए उस दिन दोपहर बाद से ही गजेंद्र सुषमा से लगातार फोन पर बात करते हुए उस की लोकेशन की पलपल की जानकारी ले कर अपने साथियों को देता रहा. उस ने उन्हें हिदायत दी कि सुषमा का आज ही काम तमाम होना है.

शाम 6 बजे गजेंद्र की सुषमा से हुई बात से यह पता चल गया कि अगले 2 घंटे के भीतर सुषमा घर लौट आएगी तो मुकेश व संदीप अपनी बाइक ले कर हैलमेट लगा कर पहले ही सोसाइटी में आ कर छिप गए. संयोग से किसी ने उन्हें भीतर आने से नहीं रोका, न ही उन की गाड़ी का नंबर नोट किया गया.

वारदात को अंजाम देने के बाद मुकेश व संदीप को बैकअप देने के लिए सोसाइटी से कुछ ही दूर गजेंद्र की फौर्च्युनर कार में अमित, प्रमोद व अजब सिंह भी बैठे थे. वारदात से आधा घंटा पहले संदीप और मुकेश ने अपने मोबाइल बंद कर दिए थे. क्योंकि गजेंद्र उन्हें बता चुका था कि किसी भी वक्त सुषमा अपनी ब्रेजा कार से सोसायटी के गेट पर आ कर रुकने वाली है.

गजेंद्र ने उन्हें यह भी बता दिया था सुषमा गेट पर ही गाड़ी से उतर जाएगी क्योंकि उस ने सोसाइटी के बाहर एक स्टाल से दूध लाने के लिए उसे बोला है. बस मुकेश और संदीप सोसाइटी के भीतर बाइक पर सवार हो कर मुख्यद्वार की तरफ देखने लगे ताकि जैसे ही सुषमा गेट पर उतरे, वे उस का काम तमाम कर दें. वैसा ही हुआ जैसी योजना तैयार हुई थी.

सोसाइटी के मुख्य द्वार पर सुषमा ने गाड़ी रुकवाई और वह नीचे उतर गई. ठीक उसी समय दोनों शूटर संदीप और मुकेश ने बाइक स्टार्ट की और ठीक मुख्यद्वार के पास सुषमा के समीप जा कर रोक दी. बाइक पर पीछे बैठे मुकेश ने नीचे उतर कर पिस्टल निकाल कर सुषमा पर ताबड़तोड़ 4 गोलियां चला दीं. मुश्किल से 2 से 3 मिनट में संदीप और मुकेश ने अपने काम को अंजाम दे दिया और उस के बाद बाइक से फरार हो गए.

करीब 2 किलोमीटर दूर जाने के बाद मुकेश ने अपने मोबाइल में से नया सिम निकाल कर उस में अपना पुराना सिम डाला और उस से गजेंद्र के पर्सनल नंबर पर फोन कर के सूचना दी कि उन्होंने अपना काम कर दिया है. बस यहीं पर उन से चूक हो गई.

पुलिस ने जब इस मामले की छानबीन शुरू की तो मामले के जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय ने ऐसा महसूस किया कि सुषमा की हत्या के बाद गजेंद्र और उस का चालक अमित सब से ज्यादा ड्रामा कर रहे हैं. दोनों ही अस्पताल में सब से ज्यादा रो रहे थे. ऐसा आमतौर पर वही लोग करते हैं जो ऐसा जताना चाहते हैं कि उन पर किसी को शक न हो.

हालांकि गजेंद्र पोस्टमार्टम आदि कराने के बाद नेकपुर स्थित सुषमा के गांव भी पहुंचा था और उस ने ही सुषमा के शव को मुखाग्नि भी दी थी. यही कारण था कि सुषमा के परिवारजनों को उस पर जरा भी शक नहीं हुआ था.

मामले के जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय को सुषमा की बहन सोनू ने सिर्फ यही बताया था कि वारदात वाली रात 8 बजे वह अपनी बहन सुषमा के साथ बुलंदशहर जिले से लौटी थी. वहां वे किसी काम से भाजपा कार्यालय गए थे. इस के बाद सुषमा कोतवाली देहात थाने में अपने ऊपर हमले के पुराने केस के सिलसिले में भी प्रगति जानने के लिए पहुंची थी.

वारदात वाले दिन सुषमा की कार खुर्जा के कलेना गांव निवासी उस का ड्राइवर सचिन चला रहा था. साथ में उस की शिष्या वैशाली भी थी. वारदात वाली रात को सोनू ने किसी पर भी शक नहीं जताया था. लेकिन अगली सुबह उस ने पुलिस को जो शिकायत लिख कर दी, उस में सोनू ने लिख कर दिया था कि हैलमेट लगाने वाले हमलावर मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी में रहने वाले बृजेश की बाइक पर सवार थे. इस शिकायत में बाइक का नंबर भी लिखा गया था.

पुलिस ने जब सोसाइटी में रहने वाले बृजेश से पूछताछ की तो पता चला उस के पास तो बाइक है ही नहीं. यह भी पता चला कि न तो वह सुषमा को जानता है और न ही सुषमा से उस का कोई लेनादेना है. साथ ही छानबीन में पता चला कि जो नंबर सोनू ने शिकायत में लिख कर दिया था, उस नंबर की कोई बाइक पंजीकृत ही नहीं थी.

जब जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय ने सोनू से इस बारे में बात की तो उस ने बताया कि यह शिकायत उस के जीजा गजेंद्र भाटी ने लिख कर उसे दी थी. बस इसी के बाद गजेंद्र भाटी जांच अधिकारी के शक के दायरे में आ गया.

गजेंद्र भाटी पर पुलिस का शक तब यकीन में बदल गया, जब अगले दिन सोनू ने जांच अधिकारी के सामने एक नया खुलासा किया.

दरअसल, सोनू इस बात से भलीभांति वाकिफ थी कि सुषमा और गजेंद्र में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसीलिए सोनू ने वारदात के बाद ही गजेंद्र से पूछ लिया था कि गजेंद्र सच बताओ इस के पीछे किस का हाथ है.

गजेंद्र जानता था कि सोनू बहुत कुछ जानती है और वह सुषमा और उस के बारे में पुलिस को काफी कुछ बता सकती है. इसलिए उस ने सुषमा का अंतिम संस्कार करने के बाद सोनू से कहा, ‘‘सोनू, तुम तो जानती ही हो कि सुषमा ने किस तरह मेरी जिंदगी को नरक कर के रख दिया था, इसलिए मजबूरी में मुझे ही सुषमा का काम तमाम कराना पड़ा.’’

चूंकि गजेंद्र जानता था सुषमा की मौत के बाद अब उस के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रह जाएगी. इसलिए उस ने सोनू को लालच दिया कि वह किसी तरह पुलिस को बरगला कर इस मामले को शांत करवा दे इस के बदले वह उसे 50 लाख रुपया दे देगा ताकि उस की आगे की जिंदगी संवर सके.

लेकिन सोनू ने अगले ही दिन यह बात जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय को बता दी, जिस के बाद गजेंद्र पूरी तरह पुलिस की नजर में चढ़ गया. इसी के बाद पुलिस ने गजेंद्र और सुषमा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली. इस की जांचपड़ताल के बाद पता चला कि वारदात वाले दिन गजेंद्र ने सुषमा से अन्य दिनों की अपेक्षा ज्यादा बात की थी.

साथ ही यह बात भी पता चली कि गजेंद्र सुषमा से बात होने के बाद हर बार अलगअलग नंबरों पर कुछ देर बात करता था. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि जिस वक्त सुषमा को गोली लगी, उस के कुछ देर बाद गजेंद्र के मोबाइल पर एक अलग नंबर से काल आई थी.

क्राइम ब्रांच की टीम के प्रभारी यतेंद्र ने जब उस नंबर की जांच की तो पता चला कि यह नंबर उसी मोबाइल फोन में चल रहा था, जिस पर सुषमा की हत्या होने से पहले एक दूसरा सिम लगा था और गजेंद्र उस नंबर पर बात कर रहा था.

इस जांच के बाद कडि़यों से कडि़यां जुड़ती चली गईं और पुलिस की दोनों जांच टीमों ने गजेंद्र, उस के ड्राइवर अमित, अमित के चाचा अजब सिंह, प्रमोद, संदीप और मुकेश को संदेह के दायरे में रख कर जांच आगे बढ़ानी शुरू कर दी.

तब तक पुलिस ने गजेंद्र को ये आभास नहीं होने दिया कि वह शक के दायरे में है. इन सभी के मोबाइल की निगरानी शुरू की गई तो पता चला 6 अगस्त की शाम को इन सभी की लोकेशन एक ही जगह पर है.

इसी के आधार पर पुलिस ने अपनी घेराबंदी शुरू कर दी और शाम को मुकेश और संदीप के साथ पुलिस की मुठभेड़ हो गई, जिस में घायल होने के बाद संदीप और मुकेश पुलिस के चंगुल में फंस गए.

बस इस के बाद पुलिस को जांच के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा और इस के बाद गजेंद्र, अमित, अजब सिंह और प्रमोद सभी पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

सभी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद जांच अधिकारी सुरजीत उपाध्याय ने मित्रा एन्क्लेव सोसाइटी के गेट से कब्जे में ली गई सीसीटीवी फुटेज से भी सुषमा पर गोली चलाने वाले संदीप और मुकेश के हुलिए का मिलान कराया तो उन का हुलिया मेल खा गया.

पुलिस ने वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जिसे हत्या को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल किया गया था.

पूछताछ में पता चला कि गजेंद्र पिछले कई महीनों से सुषमा से छुटकारा पाने की साजिश बनाने में जुटा था. किसी को उस पर शक न हो इस के लिए उस ने वारदात के बाद सुषमा के पूर्व पति संदीप कौशिक के खिलाफ सुषमा के मन में जहर भरना शुरू कर दिया था. ताकि सुषमा की हत्या के बाद पुलिस पूरी तरह संदीप कौशिक को शक के दायरे में रख कर जांचपड़ताल में उलझ जाए.

इस के लिए सुषमा ने गजेंद्र के कहने पर अपनी हत्या से कुछ माह पहले बीटा-2 थाने में और व एसएसपी कार्यालय में शिकायत दी थी कि उस का पहला पति उसे इसलिए परेशान करता है, क्योंकि उस ने दूसरी शादी कर ली है.

सुषमा ने संदीप कौशिक के खिलाफ फेसबुक समेत सोशल मीडिया पर उस के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी किए जाने की शिकायत पुलिस से की थी. लेकिन पुलिस ने इस शिकायत को उस वक्त गंभीरता से नहीं लिया था.

इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी सुलझाने वाली बीटा-2 थाने की पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम को गौतमबुद्धनगर के एसएसपी वैभव कृष्ण ने 25 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की है.

—कथा पुलिस जांच व अभियुक्तों और परिजनों से हुई पूछताछ पर आधारित

मंगेतर की जिद ने ले ली जान

उस युवती की उम्र कोई ज्यादा नहीं होगी. 20-22 साल के आसपास की थी वह. एकएक अंग सांचे में ढला हुआ था. ऐसा लग रहा था कि किसी मूर्तिकार ने बहुत फुरसत से उसे तराशा है. उस की हिरणी सी आंखों में गजब का आकर्षण था, उस के संतरे की फांक जैसे पतले और रसीले होंठों की मुसकान बरबस मन को मोह लेती थी. यौवन रस से भरपूर उस की जवानी उफान पर थी.

सुलतान की नजरें उस हसीन युवती पर से हट ही नहीं रही थीं. हटतीं भी कैसे. पार्टी के जश्न में आई हुई अनेक युवतियों में एक वह ही हसीन और बला की खूबसूरत नजर आ रही थी.

वह हसीना लाल रंग की शार्ट कुरती और मखमली शरारा पहने हुई थी. वक्ष पर गुलाबी रंग का सितारों जड़ा दुपट्टा था, जो उस के कंधे से बारबार फिसल रहा था. जब उस का दुपट्टा फिसलता था, उस के उन्नत उभारों की झलक मिल जाती थी, जो दिल की धड़कनें बढ़ा देती थीं.

वह हसीन युवती अपनी सहेली से बातें कर रही थी, किंतु तिरछी नजर से वह सुलतान को भी घूर रही थी. शायद उसे यह अहसास हो गया था कि वह युवक उसे बहुत देर से देख रहा है.

सुलतान को जैसे उस का कोई खौफ नहीं था. होता भी क्यों, भला उस की आंखों का क्या दोष, वह हसीन चीजों को तो ताकेंगी ही. वह अपनी आंखों से उस युवती की खूबसूरती को अपलक ताक रहा था.

एकाएक वह हसीन युवती अपनी जगह से हिली. उस ने सुलतान को फाड़ खाने वाली नजरों से देखा, फिर उस की तरफ बढ़ गई. सुलतान संभल कर खड़ा हो गया. उस की आंखें अब भी उस युवती के ऊपर जमी हुई थीं.

वह युवती पास आ कर रुकी और नागिन की तरह फुंफकार कर बोली, ”ऐ मिस्टर, यह क्या बदतमीजी है.’’

सुलतान ने चौंकने का शानदार अभिनय किया, ”क्या आप ने मुझ से कुछ कहा?’’

”नहीं,’’ युवती ने उसे घूरा, ”यहां आप का जिन्न खड़ा है, मैं उसी से कह रही हूं.’’

”तो कहिए, आप को किस ने रोका है.’’

”ऐ मिस्टर, मैं आप से कह रही हूं.’’

”मेरा नाम सुलतान है मिस हसीना.’’ सुलतान ने मुसकरा कर कहा.

”मेरा नाम भी हसीना नहीं, शमा है.’’ युवती ने झुंझला कर कहा, ”मैं काफी देर से देख रही हूं, आप मुझे घूर रहे हैं.’’

”आप बेहद हसीन हैं इसलिए. हसीन चीज को देखना गुनाह नहीं हो सकता.’’ सुलतान ने सादगी से कहा.

”मैं इसे गुस्ताखी कहूंगी. यहां पार्टी में मैं अकेली तो नहीं हूं, जो मुझे ही देखा जाए.’’

”कमाल हो तुम.’’ सुलतान तुरंत तुम पर उतर आया, ”कभी आईना देखना. इस महफिल में तुम से हसीन कोई भी नहीं है.’’

”तुम बातूनी और चालाक हो.’’ शमा झुंझला कर बोली.

”शुक्रिया मेरी तारीफ के लिए.’’

”मुझे तुम से हसीन युवती यहां नजर आती तो मैं उसे देखता, लेकिन सच कह रहा हूं, तुम्हारे मुकाबले में एक भी लड़की यहां नहीं है.’’

”लेकिन मिस्टर सुलतान, इस तरह युवतियों को घूरना अच्छे इंसान को शोभा नहीं देता. मैं काफी देर से देख रही थी, तुम एकटक मुझे ही देखे जा रहे थे, इसलिए मुझे यहां आना पड़ा.’’ इस बार शमा कुछ नरम लहजे में बोली.

सुलतान ने आह भरी, ”मशविरे के लिए शुक्रिया. वैसे इतनी गुस्ताखी कर चुका हूं तो एक गुस्ताखी और कर लेता हूं. क्या मुझे बताओगी, तुम कहां रहती हो?’’

”क्या करोगे जान कर?’’ शमा ने उसे घूरा.

”तुम्हारे घर आऊंगा और तुम्हारे अब्बा से तुम्हारा हाथ मागूंगा.’’

”शक्ल देखी है आईने में?’’ शमा ने मुंह बिगाड़ा, ”लंगूर जैसे लगते हो तुम.’’

सुलतान हंसा, ”निकाह के बाद तुम्हें अपनी उछलकूद से खूब हंसाऊंगा. इस लंगूर के साथ तुम्हारी जिंदगी हंसीखुशी से गुजर जाएगी.’’

”ख्वाब देखते रहो. मेरे लिए एक से एक खूबसूरत लड़कों की लाइन लगी हुई है. मैं तुम्हें घास नहीं डालने वाली.’’

”देखूंगा.’’ सुलतान इस बार गंभीर हो गया, ”तुम मुझे घास भी डालोगी और प्यार से मुझ से गले भी मिलोगी.’’

”इतना कौंफीडेंस है तुम्हें.’’ शमा ने उसे घूरा.

”हां, मेरी जिंदगी भी अब रोशन इसी शमा से होगी. यह याद रखना.’’ सुलतान दृढ़ स्वर में बोला.

”मुंह धो लेना किसी गटर के पानी से. तुम्हारी यह हसरत कभी पूरी नहीं होगी.’’ शमा ने कहा और पांव पटकती हुई अपनी सहेली की तरफ बढ़ गई.

सुलतान मुसकरा कर उस ओर बढ़ गया जहां कोल्ड ड्रिंक सर्व की जा रही थी. शमा उस के जज्बात भड़का गई थी. सुलतान ठंडा पी कर उन जज्बातों को शांत करना चाहता था.

आज मौसम बहुत सर्द था. नवंबर महीने का बेहद ठंडा दिन कह सकते है इसे. मंसूर ऊपर से नीचे तक गरम कपड़े पहन कर काम पर आया था. वह दिल्ली के विश्वास नगर में स्थित एक मकान के फस्र्ट फ्लोर पर आ कर बंद दरवाजे के पास बैठ गया था, क्योंकि शानू अभी तक नहीं आया था. इस फ्लोर की चाबी शानू के पास ही रहती थी.

इस फ्लोर पर मोहम्मद सुलतान ने फ्लिपकार्ट के डिलीवरी होने वाले सामानों का गोदाम बना रखा था. शानू और मंसूर वहीं पर पैकिंग का काम करते थे.

पौलीथिन में पैक मिली लड़की की लाश

सर्दी से मंसूर कांप रहा था. वह चाहता था कि शानू जल्दी से आ जाए ताकि दरवाजा खोल कर वह इत्मीनान से कमरे में बैठ सके. दोपहर 2 बजे शानू आया. वह भी गरम जैकेट, टोपी पहने था.

”कितनी देर से बैठे हो?’’ उस ने मंसूर से पूछा.

”बाद में पूछना यार. जल्दी से दरवाजा खोल, मेरी कुल्फी जम रही है.’’

शानू ने जेब से चाबी निकाल कर दरवाजे पर लटक रहा ताला खोलते हुए कहा, ”आज कल से ज्यादा ठंड है.’’

मंसूर बोला नहीं. शानू ने जैसे ही ताला खोला, मंसूर दरवाजे को धकेल कर अंदर आ गया.

शानू भी अंदर आ गया. उस ने लाइट जलाई और दरवाजा बंद कर के कुरसी की तरफ बढ़ा तो सामने दीवार से टिके एक बड़े से पौलीथिन बैग को देख चौंक पड़ा.

”इतना बड़ा बैग यहां कहां से आ गया, हमारे यहां से तो छोटे बंडल पैक होते हैं.’’

”सुलतान ने माल मंगवाया होगा. यह तो सुलतान ही बताएगा कि उस ने फ्लिपकार्ट से क्या आइटम मंगवाया है.’’ मंसूर ने बैग पर एक सरसरी नजर डाल कर कहा और कुरसी सरका कर बैठ गया. शानू भी बैठ गया.

यह सुलतान का औफिसनुमा गोदाम था. वह यहां ईकामर्स कंपनी फ्लिपकार्ट का माल मंगवा कर औनलाइन बेचता था. मंसूर और शानू उस के इस काम में हैल्पर थे. सुलतान ने इन्हें अच्छी तनख्वाह पर काम पर लगा रखा था.

दोनों बहुत भरोसे के आदमी थे. सुलतान के इस औफिस की एक चाबी शानू के पास रहती थी, एक सुलतान अपने पास रखता था. सुलतान की गैरमौजूदगी में औफिस खोल लेता था. उन की ड्यूटी डेढ़ बजे से रात 9 बजे तक की थी.

दोनों अपने काम में लग गए. जो माल का और्डर सुलतान ने रजिस्टर में दर्ज किया हुआ था, उस की वह पैकिंग बनाने में लग गए. वे काम में इस कदर मशगूल हुए कि उन्हें समय का कुछ पता ही नहीं चला.

शाम के साढ़े 6 बजे मंसूर उठा और बाथरूम की ओर वह गया. जब वह वापस आया तो उस ने दीवार से सटे बैग की ओर देखा. उस में से हलकी बदबू आ रही थी.

नथुनों को सिकोड़ कर उस ने लंबी सांस खींची तो उस का जी खराब हो गया. तेज बदबू आ कर नाक में समा गई थी.

”यार शानू, तुझे कुछ बदबू सी आ रही है क्या?’’ मंसूर ने पूछा.

”हां. मैं काफी समय से महसूस कर रहा हूं कि कमरे में अजीब सी बदबू भरी है ऐसी जैसे कोई चीज सड़ रही हो यहां. तू खामोशी से काम कर रहा था, इसलिए मैं ने कुछ नहीं बोला. यह बदबू इस पौलीथिन बैग से आ रही है. मैं ने अभी जोर से सांस ली तो मुझे यह महसूस हुई है. जरा देख तो इस में क्या चीज है.’’ मंसूर ने कहा.

शानू अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. पौलीथिन बैग के पास आ कर उस ने उस की रस्सी खोली तो उस के मुंह से दहशत भरी चीख निकल गई.

”लाऽऽश…’’

लाश का नाम सुनते ही मंसूर घबरा गया. वह लपक कर पास आ गया. उस ने बैग के खुले मुंह से अंदर झांका तो उस के हाथपांव कांप गए. वह घबरा कर पीछे हट गया.

”शानू, इस में किसी युवती की लाश है. यहां से भाग चलते हैं.’’

”भागने से तो हम ही फंस जाएंगे.’’ शानू हिम्मत बटोर कर बोला, ”सभी जानते हैं हम यहां दोपहर की ड्यूटी में काम करने आते हैं.’’

”तो क्या करें?’’ मंसूर ने पूछा.

”पुलिस को फोन करते हैं. ऐसा करने से हमारी जिम्मेदारी पुलिस महसूस करेगी और हम लपेटे में नहीं आएंगे.’’

”चल, तू जैसा ठीक समझे. नीचे पब्लिक बूथ से हम पुलिस को यहां लाश मिलने की जानकारी दे देते हैं.’’

शानू ने सिर हिलाया और मंसूर के साथ वह पहली मंजिल से नीचे गली में आ गया. नीचे पब्लिक बूथ से शानू ने उसी समय फर्श बाजार थाने की पुलिस को विश्वास नगर की गली नंबर-10 के मकान नंबर डी-510 में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना दे दी. दोनों इस वक्त काफी डरे हुए थे.

मंसूर ने कांपती हुई आवाज में शानू से कहा, ”तुम सुलतान को भी फोन कर दो. वह यहां आ जाएगा.’’

शमा की किस ने की थी हत्या

शानू ने अपने मोबाइल से सुलतान को फोन मिलाया तो दूसरी ओर से स्विच्ड औफ होने की सूचना मिली. काफी समय तक वह सुलतान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ ही बताता रहा.

इसी बीच वहां पर पुलिस जीप आ गई. पुलिस जिप्सी से इंसपेक्टर बाबूलाल उतरे. उन के साथ 3 पुलिसकर्मी भी थे.

शानू और मंसूर उन के पास आ गए. बाबूलाल ने दोनों को सिर से पांव तक देखा और पूछा, ”क्या तुम ने ही पुलिस को फोन किया था?’’

”हां सर!’’

”लाश कहां है?’’

”आप साथ आइए.’’ शानू हिम्मत बटोर कर बोला और सीढिय़ों से उन को ऊपर ले आया. कमरे में ला कर उस ने पौलीथिन बैग दिखा दिया.

इंसपेक्टर बाबूलाल ने आगे बढ़ कर पौलीथिन बैग को टटोला. अंदर युवती की लाश देख कर उन्होंने सब से पहले इस की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. फोरैंसिक टीम को भी उन्होंने इत्तला दे दी. उन्होंने उच्चाधिकारियों के आने तक कमरे का निरीक्षण किया और शानू तथा मंसूर से पूछताछ करते रहे.

”यहां क्या काम होता है?’’

”साहब हमारे मालिक का नाम मोहम्मद सुलतान है. यहां पर वह ईकामर्स फ्लिपकार्ट से माल मंगवा कर औनलाइन सप्लाई करते हैं. मैं और मंसूर उन के पास काम करते हैं.’’

”यह लाश यहां गोदाम में किस ने ला कर रखी?’’

”मालूम नहीं साहब. मैं शानू और मेरा साथी मंसूर दोपहर 2 बजे काम पर आए थे. एक चाबी मेरे पास रहती है. मैं ने ताला खोला था. यह पौलीथिन बैग मुझे और मंसूर को कमरे में घुसते ही नजर आ गया था. हम ने सोचा सुलतान ने माल मंगवाया होगा. ज्यादा इस पर ध्यान न दे कर हम काम करने में व्यस्त हो गए. 2-ढाई घंटे बाद मंसूर और मुझे बदबू महसूस हुई तो मैं ने बैग देखने की इच्छा से इस का मुंह खोल दिया. अंदर नजर पड़ी तो दहशत से मेरी चीख निकल गई. अंदर युवती की लाश देख कर हम घबरा गए. हम ने पब्लिक बूथ से फोन कर के थाने में इत्तला दे दी.’’

”मोहम्मद सुलतान आज नहीं आया क्या?’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने पूछा.

”वह सुबह आते हैं. किसी दिन नहीं आते तो फोन से हमारी बात हो जाती है. आज वह यहां आए थे या नहीं, मालूम नहीं. उन का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है.’’

”सुलतान का नंबर लिखवा दो मुझे.’’

शानू ने सुलतान का नंबर बता दिया. इंसपेक्टर बाबूलाल ने यह नंबर अपने फोन से मिलाया तो उन्हें भी स्विच्ड औफ होने का संदेश सुनाई दिया.

नीचे डीसीपी रोहित मीणा, एडीशनल डीसीपी राजीव कुमार, एसीपी विजय नागर (शाहदरा) और एसीपी गुरुदेव आ गए थे. वह सब ऊपर कमरे में आ गए. फोरैंसिक टीम भी उन के साथ आ गई थी. फोरैंसिक टीम ने डीसीपी रोहित मीणा के इशारे पर अपना काम शुरू कर दिया. पौलीथिन बैग के ऊपर से फिंगरप्रिंट्स उठाने के बाद उस की फोटोग्राफी की गई, फिर उस में से लाश को बाहर निकाला गया.

यह 20-22 साल की जवान युवती की लाश थी. उस के हाथपांव रस्सी से बंधे हुए थे और गले में चुन्नी लिपटी हुई थी. चुन्नी से उस का गला घोंटा लगता था, क्योंकि युवती की आंखें दम घुटने से फट पड़ी थीं. वह छरहरे जिस्म वाली खूबसूरत युवती थी.

शानू और मंसूर उस युवती की लाश देख कर हैरत में आ गए थे. इंसपेक्टर बाबूलाल ने यह बात महसूस की तो शानू के पास आ गए.

”कौन है यह युवती?’’ शानू के चेहरे पर नजरें जमा कर उन्होंने धीरे से पूछा.

”इस का नाम शमा है साहब, यह हमारे मालिक की मंगेतर है.’’

”ओह!’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने होंठ सिकोड़े, ”तुम्हारा मालिक सुलतान मोबाइल स्विच्ड औफ कर के बैठा है. जाहिर है उस ने अपनी मंगेतर की गला घोंट कर हत्या कर दी और फरार हो गया.’’

”ऐसा नहीं है साहब. हमारे मालिक सुलतान तो शमा भाभी को दिल से प्यार करते रहे हैं.’’ शानू ने अपनी बात कही तो इंसपेक्टर बाबूलाल मुसकरा दिए, ”ऐसी बात है तो वह फोन स्विच्ड औफ क्यों कर के बैठा है.’’

”यह तो मैं नहीं बता सकता, साहब.’’

”शमा कहां रहती है और तुम्हारे मालिक सुलतान का ठिकाना कहां है, सब सहीसही हमें नोट करवा दो. झूठ बोलोगे तो मैं तुम्हें अंदर कर दूंगा.’’

शानू ने शमा और सुलतान के एड्रैस इंसपेक्टर बाबूलाल को बता दिए.

मंगेतर सुलतान पर हुआ शक

डीसीपी रोहित मीणा और एडिशनल डीसीपी राजीव कुमार ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. यह युवती का गला घोंट कर हत्या किए जाने का मामला था. फोरैंसिक टीम ने अपनी ओर से सारे सबूत एकत्र कर लिए थे.

इंसपेक्टर बाबूलाल ने अधिकारियों को शानू द्वारा पूछताछ में मिली सारी जानकारी दे दी.

पुलिस को मृतका का नाम और पता मालूम हो गया था. उन का पूरापूरा संदेह सुलतान पर जा रहा था. उन्होंने इंसपेक्टर बाबूलाल को निर्देश दिया कि वह मोहम्मद सुलतान को दोषी मान कर अपनी जांच करें. इस के बाद उच्चाधिकारी वहां से चले गए.

लाश की कागजी काररवाई निपटाने के बाद उसे पोस्टमार्टम हेतु सरकारी अस्पताल भेज दिया गया.

इंसपेक्टर बाबूलाल ने सुलतान का फोन फिर मिलाया, किंतु वह अभी भी स्विच औफ ही आ रहा था. थाने आ कर उन्होंने मुकदमा संख्या 548/23, आईपीसी की धारा 302/201 के अंतर्गत मामला रजिस्टर में दर्ज कर लिया.

उसी दिन 25 नवंबर, 2023 की रात करीब 10 बजे शमा के परिजन थाना फर्श बाजार (शाहदरा) पहुंचे. उन्होंने थाने में शमा की गुमशुदगी दर्ज करवाई. उस वक्त इंसपेक्टर बाबूलाल थाने में ही मौजूद थे.

पुलिस की 2 टीमें जुटीं जांच में

शमा की हत्या का केस डीसीपी रोहित मीणा ने उन्हें ही देखने के लिए कहा था और इस सिलसिले में वह फर्श बाजार के एसएचओ अमूल त्यागी के साथ बैठ कर विचारविमर्श कर रहे थे. तभी एक सिपाही ने यह सूचना दी कि शमा नाम की लड़की की गुमशुदगी दर्ज करवाने उस के परिजन आए हैं. इंसपेक्टर बाबूलाल और एसएचओ अमूल त्यागी उठ कर अपने कक्ष से बाहर आ गए. वहां बाहर शमा की अम्मी और चाचा खड़े थे.

”आप ही शमा की गुमशुदगी दर्ज करवाने आई हैं?’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने पूछा.

”जी साहब, मेरी बच्ची सुबह अपने काम पर गई थी, वह अभी तक वापस नहीं आई है. हम यहां उस की गुमशुदगी दर्ज करवाने आए हैं. आप मेरी बच्ची को ढूंढ दीजिए.’’ शमा की अम्मी गिड़गिड़ाते हुए बोली.

”शमा कहां काम करती थी?’’

”जी हेडगेवार हौस्पिटल के पास ब्यूटी पार्लर है, वह वहीं काम करने जाती थी.’’

”आप को किसी पर संदेह है क्या?’’

”मुझे सुलतान पर शक है, साहब. मेरी बेटी शमा उस से प्यार करती है. उसी के साथ शमा की शादी हम लोगों ने तय कर दी है लेकिन…’’

”लेकिन क्या?’’ बाबूलाल ने शमा की अम्मी के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

”सुलतान चालाक है, वह मेरी बेटी के लायक नहीं है, लेकिन शमा की खातिर हमें सुलतान की मम्मी के आगे झुकना पड़ा है. अब देखें आप, हम दोपहर से सुलतान को फोन लगा रहे हैं, लेकिन वह फोन उठा ही नहीं रहा है. अब तो उस का फोन भी बंद हो गया है.’’

”वह फोन उठाएगा भी नहीं,’’ इंसपेक्टर बाबूलाल गंभीर हो गए, ”क्योंकि वह शमा की हत्या कर के फरार हो गया है.’’

इंसपेक्टर बाबूलाल के मुंह से यह सुनते ही शमा की मां दहाड़े मार कर रोने लगी. अन्य परिजन भी गमगीन हो गए. कुछ देर तक वहां पर गम का माहौल बना रहा. फिर शमा की मां ने सिसकते हुए पूछा, ”यह आप किस आधार पर कह रहे हैं कि मेरी बेटी शमा की हत्या हो गई है.’’

”हम ने शाम को विश्वास नगर की गली नंबर 10 से शमा की लाश बरामद की है. उस को गला घोंट कर मारा गया है. अब उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल में है, आप लोग वहां जा कर पोस्टमार्टम के बाद लाश को अपने कब्जे में ले कर उस का क्रियाकर्म करवाइए. मैं आप लोगों के साथ सिपाही यतेंद्र को भेज रहा हूं.’’

”साहब, मेरी बेटी का कातिल सुलतान ही है. विश्वास नगर में गली नंबर-10 में उसी का गोदाम है. मेरी बेटी उसी से मिलने उस के गोदाम पर गई होगी, जहां उस ने शमा की हत्या कर दी.’’ शमा की मां ने भर्राए गले से कहा.

”हमें भी सुलतान पर शक है. उस की तलाश की जा रही है.’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने कहा फिर कांस्टेबल यतेंद्र को समझा कर उन लोगों को जिला अस्पताल के लिए भेज दिया.

मामला दिल्ली ईस्टर्न रेंज के एडिशनल सीपी सागर कलसी की जानकारी में आ चुका था, इसलिए डीसीपी रोहित मीणा ने शमा की हत्या में संदिग्ध मोहम्मद सुलतान को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस और स्पैशल स्टाफ की एक टीम गठित कर दी.

टीम में थाना फर्श बाजार (शाहदरा) के इंसपेक्टर बाबूलाल, एएसआई दीपक (टेक्नीकल सर्विस) डा. विजय खोखर, एसआई सुनील (स्पैशल स्टाफ शाहदरा), हैडकांस्टेबल शशांक (फर्श बाजार थाना), कांस्टेबल यतेंद्र, एसआई पंकज कसाना और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर विकास कुमार को शामिल किया गया. इस टीम का नेतृत्व विकास कुमार को सौंपा गया था.

इस टीम ने विश्वास नगर की गली नंबर 10 को जोडऩे वाले मुख्य मार्ग पर लगे सीसीटीवी कैमरों को चैक किया. सुलतान के घर दबिश दी गई, लेकिन वह घर नहीं मिला. उस की मां नूरजहां ने पुलिस पर आरोप मढ़ा कि वह उस के बेटे सुलतान को फंसाना चाहती है. वह तो खुद 25 नवंबर से लापता है.

नूरजहां ने 26 नवंबर को फर्श बाजार थाने में जा कर सुलतान के गुम होने की सूचना लिखवा दी. उस ने कहा कि वह कल 25 नवंबर को सुबह ही शमा के घर न्यू संजय अमर कालोनी में जा कर सुलतान का रिश्ता शमा से तय कर आई है. ऐसे में सुलतान अपनी मंगेतर शमा की हत्या क्यों करेगा. सुलतान से चिढऩे वाले किसी व्यक्ति ने सुलतान का अपहरण कर लिया है.

पुलिस उस के किसी तर्क को मानने को तैयार नहीं थी. चूंकि सुलतान कल से ही लापता था और उस ने फोन भी औफ कर लिया था, शक उसी पर जा रहा था कि वह अपनी मंगेतर शमा की हत्या कर के फरार हो गया है.

पुलिस टीम ने सुलतान के फोन की लोकेशन मालूम करने के लिए उस का नंबर सर्विलांस पर लगा दिया. आखिर 27 नवंबर, 2023 को पुलिस को सफलता मिली. सर्विलांस टीम को उस के फोन की लोकेशन मुंबई की मिली.

तुरंत एक टीम मुंबई भेज दी गई. उस ने सर्विलांस की मदद से आखिर में मुंबई के मुलुंद इलाके से सुलतान को दबोच लिया. वहां पुलिस औपचारिकता पूरी करने के बाद टीम 28 नवंबर को सुलतान को दिल्ली ले कर चल दी. दिल्ली पहुंच कर उसे कोर्ट में पेश कर के 3 दिन की रिमांड पर ले लिया गया.

सुलतान ने क्यों की मंगेतर शमा की हत्या

रिमांड में पूछताछ हुई तो सुलतान ने चुपचाप स्वीकार कर लिया कि उस ने 25 नवंबर, 2023 की शाम को अपने विश्वास नगर वाले औफिस में शमा का उसी की चुन्नी से गला घोंट कर हत्या कर दी थी. शव छिपाने के उद्ïदेश्य से उस ने शमा की लाश बड़े पौलीथिन बैग में हाथपांव बांध कर ठूंस दी थी. वह उसे ठिकाने नहीं लगा सका. डर की वजह से वह लाश औफिस में छोड़ कर ताला बंद कर के भाग गया था.

उस ने नई दिल्ली से रात 10 बजे मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ ली थी. रास्ते में उस ने शमा का फोन फेंक दिया था. उस ने शमा को क्यों मारा, इस सवाल पर उस ने बताया, ”3 साल पहले शमा को मैं ने एक पार्टी में देखा था, तभी उस के लिए मेरे दिल में प्यार जाग गया था. शमा गुरूर से भरी थी, वह मुझ से शुरू में दोस्ती नहीं करना चाहती थी, लेकिन मैं उसे बारबार फोन करता रहा तो वह पिघल गई और मुझ से मिलने आने लगी. मैं और शमा 3 साल से गहरे अटूट प्यार में बंधे खुशीखुशी जी रहे थे. मैं शमा को अपनी पत्नी बनाना चाहता था.

”मेरे पिता मोहम्मद सलाउद्दीन गांव चिरइया, जिला मोतिहारी (बिहार) में रहते है. मेरी मां नूरजहां दिल्ली में मेरी बड़ी बहन के पास रहती है. मैं भी फर्श बाजार में बहन के साथ रहता हूं. मेरी 5 बहनें हैं. 3 की शादी हो गई है. 2 कुंवारी हैं. मैं फ्लिपकार्ट कंपनी के माल को औनलाइन बेचने का खुद का काम करता हूं. विश्वास नगर में राजीव शर्मा के फ्लैट में मैं ने फस्र्ट फ्लोर पर अपना औफिस बना रखा है. यह फ्लैट गली नंबर 10 में है. मेरे साथ मंसूर और शानू भी काम करते थे.

”मैं शमा को दिल से चाहता था, लेकिन मैं ने उसे किसी दूसरे युवक से बातें करते देख लिया था. शमा का मेरी तरफ झुकाव भी कम होने लगा था. मैं परेशान था, इसलिए मैं ने फोन कर के शमा को 25 नवंबर को विश्वास नगर बुलाया. वह ब्यूटी पार्लर में नौकरी करती है. मेरी उम्र 19 साल है, जबकि 4 साल बड़ी शमा 23 साल की है. शमा काम पर नहीं गई, वह सुबह मेरे औफिस में आ गई थी. शानू और मंसूर 2 बजे औफिस में आते थे.

”शमा को मैं ने प्यार से समझाया कि वह मुझ से प्यार करती है, शादी करना चाहती है तो दूसरे युवक से बात न करे. शमा ने कहा कि मैं उसे दूसरे युवक से बातें करने से नहीं रोकूंगा. मेरा मन जहां चाहेगा, मैं वहां हंसूंगी बोलूंगी. शादी के बाद भी यही होगा.

”साहब, बहुत समझाने पर भी शमा नहीं मानी तो मैं ने गुस्से में उसे नीचे पटक दिया और चुन्नी से उस का गला घोंट कर मार दिया. मुझे उस की हत्या करने का दुख है, लेकिन वह जिद्दी थी, इसलिए मैं ने उसे मार दिया.’’

सुलतान ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था. पुलिस ने उसे फिर से कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमी ने किए प्रेमिका के 31 टुकड़े

पुलिस टीम जब उस जंगल में पहुंची, तब तक वहां पर ग्रामीणों की भारी भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस ने जब गड्ढे की खुदाई कराई तो वहां का मंजर देख कर सभी के दिल दहल उठे थे. एक युवती की लाश के पूरे 31 टुकड़े कर हत्यारे ने जमीन में दफन कर रखे थे.

जब लाश के टुकड़ों को गड्ढे से बाहर निकाला गया तो वह टुकड़े पिछले 3 दिनों से लापता तिलबती के निकले. लाश की सूचना मिलते ही पुलिस ने तिलबती के घर वालों को घटनास्थल पर बुलवा लिया. घर वालों ने लाश की शिनाख्त लापता तिलबती के रूप में कर दी. पुलिस अब आगे की जांच में जुट गई थी.

शाम का धुंधलका चारों तरफ घिर आया था. अंधेरा घिरते ही गांव के सभी लोग अपनेअपने घरों को रोजमर्रा की भांति लौटने लगे थे. गांव के अन्य लोगों की तरह लुदुराम गोंड भी अपने खेत से काम निपटा कर अपने घर पहुंच गया था.

जब वह अपने घर पहुंचा तो उस ने देखा कि उस की पत्नी मृदुला कुछ परेशान सी दिखाई दे रही थी. पत्नी के माथे पर उसे चिंता की लकीरें साफसाफ नजर आ रही थीं. यह सब देख कर लुदुराम का चौंकना स्वाभाविक था.

”अरे मृदुला क्या बात है, आज तुम कुछ परेशान सी दिखाई दे रही हो?’’ लुदुराम ने पत्नी से पूछा.

”अब मैं परेशान न होऊं तो क्या करूं? अरे हमारे घर में एक बहुत परेशानी वाली बात जो हो गई है.’’ मृदुला ने चिंता भरे स्वर में कहा.

”जरा मुझे भी तो बताओ, आखिर बात क्या है?’’ लुदुराम ने पूछा.

”तुम्हारी लाडली बेटी तिलबती सुबह 10 बजे से घर से निकली हुई है, अब शाम के 6 बज गए हैं, लेकिन अभी तक लौट कर घर नहीं आई है.’’ मृदुला ने कहा.

”अगर वह अभी तक घर नहीं लौटी है तो बेटे माधव से पता करा सकती थी न तुम?’’ लुदुराम बोला.

”माधव शाम को 5 बजे से अपनी छोटी तिलबती को इधरउधर ढूंढने में ही तो लगा हुआ है. मगर तिलबती का अब तक कहीं भी कोई पता नहीं चला.’’ मृदुला ने चिंतित होते हुए कहा.

पत्नी मृदुला की बात सुन कर लुदुराम भी एकदम चिंता में पड़ गया था. तिलबती (23 वर्ष) उस के जिगर का टुकड़ा थी, जिसे वह अपने सभी बच्चों से ज्यादा प्यार करता था.

”देखो मृदुला, तुम घबराओ मत. मैं गांव में उसे ढूंढने जा रहा हूं. हमारी बिटिया हमें जल्द ही मिल जाएगी.’’ कहते हुए लुदुराम घर से निकल पड़ा था.

तिलबती अकसर अपनी सहेली निर्मला के घर अपने करिअर की बातें करने चली जाया करती थी. लुदुराम सब से पहले निर्मला के घर पर गया, जो उस के घर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था. लुदुराम ने निर्मला का दरवाजा खटखटाया तो निर्मला ने दरवाजा खोल दिया.

”अरे काका, आप इतनी शाम को कैसे हमारे घर पर आ गए? आइए बैठिए तो.’’ निर्मला ने लुदुराम को अंदर आने को कहा.

”अरे बेटी, हमारी तिलबती का सुबह से ही कुछ पता नहीं चल रहा है. जरूर तुम्हारे घर पर ही आई होगी. हम सब बहुत परेशान हो रहे हैं.’’ लुदुराम ने जल्दीजल्दी कहा.

”काका, तिलबती को तो मैं ने सुबह से ही नहीं देखा है. आज उस का फोन भी नहीं आया, नहीं तो वह मुझे दिन में एक बार फोन तो जरूर कर लेती है. अरे काका, आप घबराओ मत, मैं अभी उस से बात करती हूं.’’ कहते हुए निर्मला ने अपने मोबाइल से फोन किया.

मगर दूसरी तरफ से मोबाइल स्विच्ड औफ का मैसेज आ रहा था. निर्मला ने 4-5 बार काल किया, मगर दूसरी ओर से हर बार यही मैसेज सुनने को मिल रहा था.

”क्या हुआ बेटी, तिलबती का फोन लगा क्या?’’ लुदुराम ने आशाभरी निगाहों से देखते हुए कहा.

”नहीं काका, तिलबती का फोन तो बंद आ रहा है. चलो काका, मैं भी आप के साथ तिलबती को ढूंढने चलती हूं.’’ कहती हुई निर्मला भी लुदुराम साथ चल पड़ी थी.

तब तक तिलबती के गायब होने की बात सुन कर गांव के अन्य लोग भी लुदुरामू के साथ आ गए थे. सभी ने मिल कर तिलबती को ढूंढा, परंतु उस का पता नहीं चल पाया. बेटी के न मिलने के कारण तिलबती की मां मृदुला का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. गांव की महिलाएं उसे ढांढस बंधा रही थीं.

पूरी रात भर सभी गांव वालों ने मिल कर तिलबती की पूरे गांव भर में तलाशी ली, परंतु उस का कहीं भी कुछ भी सुराग नहीं मिल सका.

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      मृतका तिलबती

लुदुराम गोंड ओडिशा के नवरंगपुर जिले के गांव बागबेड़ा, थाना राईघर का रहने वाला एक किसान था. उस के परिवार में एक बेटा माधव व 2 बेटियां सौम्या और तिलबती थीं. सब से बड़ी बेटी सौम्या का विवाह हो चुका था, उस से छोटा बेटा माधव था, जो खेती में लुदुराम का हाथ बंटाता था, जबकि सब से छोटी बेटी तिलबती थी, जिस की उम्र 23 वर्ष की हो चुकी थी.

तिलबती को पढऩे लिखने, चित्रकारी करने और सिलाईकढ़ाई करने का बड़ा शौक था. उस ने बारहवीं कक्षा पास करने के बाद कई कोर्स कर लिए थे और वह नौकरी के लिए काफी लंबे समय से प्रयासरत भी थी. लेकिन वह 22 नवंबर, 2023 को ऐसी गायब हुई कि उस का पता नहीं चला.

अगले दिन बृहस्पतिवार 23 नवंबर को लुदुराम गांव के कुछ संभ्रांत लोगों के साथ थाना राईघर पहुंचा और बेटी के गायब होने की सूचना दर्ज करा दी.

पुलिस पूछताछ में लुदुराम ने बेटी तिलबती के अपहरण की आशंका से साफ इंकार किया तो पुलिस भी पशोपेश में पड़ गई थी. तब पुलिस को ऐसा लगा कि किसी ने रंजिशन तिलबती को गायब करा दिया होगा.

जब लुदुराम ने किसी से रंजिश होने से इंकार किया तो पुलिस की यह आशंका भी निर्मूल साबित हुई. प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद पुलिस अपनी आवश्यक खोजबीन में जुट गई.

तिलबती के मिले 31 टुकड़े

5 दिन से लापता तिलबती की खोज में राईघर पुलिस दिनरात जांच में जुटी थी, तभी एक मुखबिर ने एसडीपीओ आदित्य सेन को एक गुप्त सूचना देते हुए कहा, ”हुजूर, मुरुमडीही गांव के पास स्थित जंगल में एक गड्ढे के अंदर से किसी का हाथ बाहर दिखाई दे रहा है. शायद किसी जंगली जानवर ने इंसान की लाश को खाने की वजह से खोद डाला. वहां पर गांव वाले भी इकट्ठा हो गए हैं. मामला काफी गंभीर लग रहा है?’’

यह सूचना सुन कर एसडीपीओ आदित्य सेन तुरंत अपनी पुलिस टीम व फोरैंसिक टीम को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े.

पुलिस जंगल में पहुंची तो वहां भारी संख्या में लोग जमा थे. पुलिस ने जब गड्ढा खुदवाया तो उस में एक युवती की 31 टुकड़ों में कटी लाश मिली. लाश की शिनाख्त 23 वर्षीय तिलबती के रूप में हुई. लाश के टुकड़े देख कर गांव के लोग आक्रोशित हो गए और वह पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे.

आखिर किस ने की तिलबती की हत्या

सचमुच में प्यार एक ऐसा अहसास है, जिसे समझ पाना बड़ा ही मुश्किल होता है. प्यार एक ऐसा अहसास होता है, जिस में किसी के प्रति हर दिन बहुत ही लगाव बढऩे लगता है. जो भी इस अनोखे प्यार में अपने आप को डाल देता है, वह पहले से ज्यादा खुश और खूबसूरत हो जाता है.

ऐसा ही कुछ तिलबती के साथ भी हुआ. तिलबती एक दिन बाजार जाने के लिए बस का इंतजार कर रही थी, तभी एक युवक बाइक ले कर उस के पास आ कर रुक गया.

दोनों की नजरें मिलीं तो युवक ने तिलबती से कहा, ”मुझे लगता है कि आप शायद मार्केट की तरफ जा रही हैं. अभी करीब एक घंटे तक यहां बस आने की कोई उम्मीद नहीं है. मैं मार्केट की तरफ ही जा रहा हूं. अगर आप चाहें तो मैं आप को वहां ड्रौप कर दूंगा.’’

”ये कौन सी बात हुई कि जान न पहचान, मैं तेरा मेहमान. मैं तो आप को जानती तक नहीं हूं.’’ तिलबती ने गुस्से से कहा.

”देखिए जी, मैं रोज इसी जगह से निकलता हूं, आप को देखता हूं. आज एक बस का एक्सीडेंट हो गया है, इसलिए बाकी बसें उसी जगह पर खड़ी हैं. पब्लिक ने बवाल कर के रख दिया है वहां पर. वैसे मैं तो आप की मदद ही करना चाहता था, मगर आप तो तो मुझ पर गुस्सा करने लगी हैं.’’ युवक ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा.

”अरे आप तो बड़े अजीब इंसान हैं, इतनी जल्दी नाराज हो गए.’’ तिलबती ने मुसकराते हुए कहा, ”आप ने बात ही ऐसी की थी कि मेरा नाराज होना स्वाभाविक था. चलना है तो बताओ, मुझे देर हो रही है,” युवक ने अपनी बाइक स्टार्ट करते हुए कहा.

”आप कम से कम अपना नाम तो बता दीजिए जनाब?’’ तिलबती ने कहा.

”मेरा नाम चंद्रा राउत है, मैं मुरुमडीही गांव का रहने वाला हूं और खेतीकिसानी करता हूं.’’ युवक ने अपना परिचय देते हुए कहा.

”अरे वाह, आप का नाम तो बहुत ही सुंदर है. मेरा नाम…’’

तिलबती अपनी बात भी पूरी नहीं कर सकी, तभी चंद्रा राउत बोल पड़ा, ”मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानता हूं. तुम्हारा नाम तिलबती गोंड पिता का नाम लुदुराम गोंड, गांव बागबेड़ा. यही है न!’’ चंद्रा राउत ने मुसकराते हुए कहा.

”अरे, तुम्हें तो मेरे बारे में सब कुछ पता है. इसलिए मैं अब आप के साथ चल सकती हूं.’’ तिलबती ने चंद्रा की बाइक पर बैठते हुए कहा.

उस दिन के बाद से दोनों में दोस्ती हो गई थी. चंद्रा राउत रोजरोज बाइक से तिलबती को पास के कस्बे में ले जाने लगा था. उन दिनों तिलबती पास के कस्बे से सिलाई का कोर्स कर रही थी. उस के अलावा तिलबती नौकरी के लिए औनलाइन आवेदन भी करती रहती थी, जिस में चंद्रा राउत अब तिलबती की मदद करता रहता था.

अब तिलबती चंद्रा राउत के साथ फिल्म देखने भी जाने लगी थी. इस दौरान तिलबती यह महसूस करने लगी थी कि बातचीत करने के दौरान चंद्रा राउत उस के नजदीक आने की काफी कोशिश करता है. चंद्रा राउत की बात भी बड़ी मजेदार होती थीं. अब तिलबती को भी लगने लगा था कि वह चंद्रा के प्रति आकर्षित होती जा रही है.

एक दिन चंद्रा राउत ने तिलबती से कहा, ”तिलबती, मैं एकांत में तुम से कुछ बात करना चाहता था.’’

तिलबती ने सोचा कि कुछ बात करना चाहता होगा, इसलिए उस ने हामी भर दी. यह चंद्रा राउत की एक चाल थी. उस ने कस्बे के एक होटल में एक कमरा पहले से बुक करा रखा था. चंद्रा उसे उस कमरे में ले गया.

”ये तुम मुझे अकेले में कहां पर ले कर आ गए हो चंद्रा?’’ तिलबती ने पूछा.

”तिलबती, मैं तुम से बेइंतहा मोहब्बत करने लगा हूं,’’ चंद्रा ने होटल के कमरे में उसे बांहों में भरते हुए कहा.

”अरे, ये तुम क्या कर रहे हो? तुम्हें पता है न कि मैं एक कुंवारी लड़की हूं. कहीं कुछ ऊंचनीच हो गई तो मैं कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी.’’ तिलबती अपने आप को चंद्रा की बाहों से छुड़ाते हुए बोली.

”देखो तिलबती, मेरी मोहब्बत के दिल को देखो, वह तुम्हारे लिए कितना तड़प रहा है. मैं तुम से प्यार करता हूं, तुम से मैं बाकायदा सब के सामने विवाह करूंगा. मेरे पास धनदौलत की बिलकुल भी कमी नहीं है. मैं तुम्हें सदा अपने दिल की रानी बना कर रखूंगा,’’ कहते हुए चंद्रा ने तिलबती को एक बार फिर अपनी बाहों में जकड़ लिया और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

तिलबती को लगा कि जब उस का प्रेमी उस को जिंदगी भर के लिए अपनाने को तैयार है और अब वह भी उस को प्यार करने लगी है तो उसे लगा कि सब कुछ अब उस के कंट्रोल से बाहर होता जा रहा है. उस दिन की तन्हाई में चंद्रा राउत ने आखिरकार उस दिन अपनी हसरतें पूरी कर ही लीं. उस दिन के बाद से उन दोनों के बीच अवैध संबंध स्थापित हो गए. इस के बाद तो उन की दुनिया ही बदल गई थी.

सहेली से पता चला प्रेमी का राज

एक दिन तिलबती चंद्रा राउत से मिल कर आ रही थी, तभी उस की सहेली निर्मला ने उसे रोक लिया. वह बोली, ”कहो तिलबती, कहां से मौजमस्ती कर के आ रही हो?’’ निर्मला ने सीधेसीधे उस पर सवाल दाग दिया.

”अरे निर्मला तुम. कहीं से नहीं यार, बस एक दोस्त से मिल कर आ रही थी.’’ तिलबती ने मुसकराते हुए कहा.

”देखो तिलबती, हम दोनों बचपन से एक साथ पलेबढ़े, एक साथ स्कूल में भी पढे हैं. तुम तो अब एकदम बदल ही गई हो. सचमुच मुझे तुम से ऐसी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी. पहले तो तुम मुझे रोज मिला करती थी, अपनी सारी बातें मुझे सिलसिलेवार बताया करती थी. मगर पिछले कुछ महीनों से तुम मुझ से बहुत कुछ छिपाने लगी हो.’’ निर्मला ने उसे अपने कमरे में बुला लिया था.

”निर्मला, ऐसी बात तो नहीं है. बस मैं प्यार में इतनी मदहोश हो गई थी कि सचमुच तुम्हें भी भूल गई थी. मुझे माफ कर देना प्लीज,’’ कहते हुए तिलबती ने निर्मला के दोनों हाथ पकड़ लिए थे.

”तिलबती तुम इतनी समझदार हो कर भी ऐसे कैसे बहक सकती हो. तुम्हारे घर वाले तुम्हें इतना प्यार करते हैं. उन्होंने तुम्हें इतनी छूट दे रखी है तो इस का मतलब तो यह नहीं कि तुम उन सब को खुलेआम धोखा दे डालो?’’ निर्मला ने उस की आंखों में आंखें डालते हुए कहा.

”साफ साफ बताओ निर्मला, आखिर तुम कहना क्या चाहती हो?’’ तिलबती ने गुस्से से कहा.

”तो सुनो, तुम पिछले 2 सालों से चंद्रा राउत के प्यार में पड़ी हो और यह बात अब मुझे पता चली!’’ निर्मला ने कहा.

”अरे यार निर्मला, प्यार करना गुनाह है क्या? वैसे मैं तुम्हें बताने ही वाली थी, मगर इतनी ज्यादा व्यस्त थी कि तुम से बात करने का मौका ही नहीं मिल सका.’’ तिलबती बोली.

निर्मला ने कहा, ”तुम्हें फुरसत कहां है तिलबती, दिनरात चंद्रा के साथ गुलछर्रे उड़ाने से तुम्हें समय कहां मिल पाता है. अब तो पानी सिर के ऊपर आ गया है. तुम इतनी बेवकूफ होगी, मुझे ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता था तिलबती,’’

”निर्मला, प्यार करना अगर बेवकूफी है तो हां, मैं हूं बेवकूफ. बस और भी कुछ कहना है तुम्हें तो कहो, मैं अपने घर जा रही हूं.’’ तिलबती अब उठ कर खड़ी हो गई थी.

”जरा, ये तो सुन कर जाओ कि जिस से तुम पिछले 2 सालों से बेइंतहा प्यार कर रही हो, वह शादीशुदा है.’’ निर्मला ने जब यह बात कही तो तिलबती चौंक गई.

”तुम यह कैसे जानती हो? और चंद्रा राउत के बारे में तुम्हें क्याक्या पता है? सब कुछ कह दो,’’ तिलबती बोली.

”चंद्रा राउत हमारी दूर की रिश्तेदारी में आता है. मुझे तो यह बात कल ही पता चली कि तुम और चंद्रा एकदूसरे से प्यार करते हो. मैं ने सोचा चंद्रा तो एक मर्द हो कर भूल कर सकता है, मगर तुम तो एक लड़की हो. भला इतनी बड़ी भूल कैसे कर सकती हो. आगे सुनो, चंद्रा की पत्नी का नाम सिया राउत है और उस के 5 बच्चे भी हैं.’’

”बसबस आगे तुम कुछ मत कहो निर्मला, चंद्रा का घर मुरुमडीही में कहां पर है?’’ तिलबती ने पूछा.

”चंद्रा राउत का गांव में आखिरी घर है और वहां से जंगल का इलाका शुरू हो जाता है.’’ निर्मला और कुछ भी कहना चाहती थी परंतु तिलबती यह सुनते ही अपने घर की ओर चल पड़ी थी.

प्रेमी की पत्नी हुई हत्या में शामिल

चंद्रा के बारे में यह जानकारी पा कर उस पूरी रात तिलबती सो न सकी थी. चंद्रा राउत अपने प्रेम के जाल में फंसा कर उस का शारीरिक शोषण कर रहा था, यह बात बारबार तिलबती के दिल को कचोट रही थी. उस ने फैसला कर लिया था कि वह चंद्रा राउत से मिल कर उसे सबक जरूर सिखाएगी ताकि वह किसी दूसरी लड़की के साथ ऐसा घिनौना काम न कर सके.

प्रेमी से मिलने 10 किलोमीटर पैदल चली थी तिलबती, जहां पर मिली मौत की सौगात.

रात तो किसी तरह तिलबती ने गुजार दी, मगर सुबहसुबह किसी से मिलने का बहाना बना कर वह पैदल ही घर से निकल गई. प्रेम प्रसंग के चलते तिलबती कई बार चंद्रा राउत से शादी की जिद भी कर चुकी थी, लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना बना कर चंद्रा शादी करने से मना कर देता था.

उस दिन तिलबती आर या पार का फैसला अपने मन में बना कर अपने प्रेमी से मिलने उस के घर पहुंच गई. वहां पहुंचते ही उस ने चंद्रा राउत के ऊपर गालियों की बौछार कर दी थी.

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             चंद्रा राउत

चंद्रा राउत की पत्नी सिया राउत पहले कुछ नहीं समझी, परंतु जब सारी बात उस की समझ में आई तो उस ने अपने पति से तिलबती को घर के भीतर बुलाने को कहा. चंद्रा राउत भी किसी न किसी तरह तिलबती से अपना पीछा छुड़ाना चाहता था. उधर दूसरी तरफ सिया भी अपने और अपने 5 बच्चों के भविष्य को ले कर चिंता में पड़ गई थी, इसलिए दोनों ने आंखों ही आंखों में एक खतरनाक फैसला कर लिया. उन्होंने तिलबती को अपने रास्ते से हमेशा हमेशा के लिए हटाने की बात तय कर ली.

प्लान के मुताबिक चंद्रा राउत ने तिलबती को अंदर आ कर बात करने के लिए समझाया और कहा, ”तिलबती, तुम घर के भीतर तो चलो, यहां बाहर चिल्ला कर इस समस्या का हल होने वाला नहीं है. मेरी पत्नी सिया भी एक समझदार औरत है, हम तीनों आपस में बैठ कर इस समस्या का कोई न कोई हल अवश्य निकाल लेंगे.’’

तिलबती प्रेमी चंद्रा राउत की बातों में आ कर उस के साथ कमरे में चली गई. जैसे ही तिलबती घर के भीतर घुसी, सिया राउत ने घर का दरवाजा बंद कर के चिटकनी और कुंडा लगा दिया.

दोनों ने मिल कर पहले तिलबती से जम कर मारपीट की, जब तिलबती घायल हो गई तो दोनों ने मिल कर उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

हत्यारे यहीं नहीं रुके उन्होंने मीट काटने वाले चापड़ से तिलबती की लाश के पूरे 31 टुकड़े कर दिए. उस के बाद उन्होंने अंधेरा होने का इंतजार किया और फिर अंधेरा होने पर लाश जंगल में ले गए. जंगल में गड्ढा खोद कर तिलबती की लाश के टुकड़े दफन कर दिए. उन्होंने लाश के टुकड़ों के ऊपर नमक डाल दिया था ताकि वह जल्दी गल जाएं.

चंद्रा राउत और उस की पत्नी सिया राउत ने सोचा कि तिलबती को गांव में आते किसी ने देखा भी नहीं होगा. उस की लाश उन्होंने नमक डाल कर दफन कर दी. इसलिए उन का राज हमेशा हमेशा के लिए दफन हो कर रह जाएगा, मगर ऐसा न हो सका.

अपराध चाहे कैसा भी क्यों न हो, कितनी ही चतुराई से क्यों न किया गया हो, उस का परदाफाश हो ही जाता है.

तिलबती मर्डर केस में भी ऐसा ही हुआ. रात को जंगली जानवरों ने गड्ढे को खोद दिया, जिस में से तिलबती का हाथ बाहर आ गया. जिसे गांव के एक युवक ने देख लिया और पुलिस को खबर कर दी. इस घटना के बाद ग्रामीणों में काफी रोष था. उन्होंने दोनों आरोपियों के लिए फांसी का मांग की थी.

एक युवती को प्यार करने की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी, उसे ऐसी दर्दनाक मौत दी गई कि जिसे सुन कर रोंगटे खड़े हो जाएं.

युवती का कसूर सिर्फ इतना ही था कि वह जिस शख्स से प्यार करती थी, उस के साथ अपनी सारी जिंदगी गुजारना चाहती थी, लेकिन वह पहले से ही शादीशुदा था. बावजूद इस के उस कातिल प्रेमी ने उसे अपने प्यार के जाल में फंसाया, जिस का अंजाम युवती को अपनी जान दे कर भुगतना पड़ा.

कथा लिखी जाने तक राईघर गांव पुलिस ने इस संबंध में आईपीसी की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर दोनों आरोपियों चंद्रा राउत और उस की पत्नी सिया राउत को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

—कथा में मृदुला, सौम्या, माधव और निर्मला परिवर्तित नाम हैं. कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है.

समाज की डोर पर 2 की फांसी

डेयरी संचालक भूरा राजपूत अपना काम निपटा कर वापस घर आया तो उस की नजर घरेलू कामों में लगीं बेटियों पर पड़ी. उन की 4 बेटियों में 3 तो घर में थीं लेकन सब से बड़ी बेटी शैफाली घर में नजर नहीं आई. उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘‘रेनू, शैफाली दिखाई नहीं दे रही. वह कहीं गई है क्या?’’

‘‘अपनी सहेली शिवानी के घर गई है. कह रही थी, उस की किताबें वापस करनी हैं.’’ रेनू ने पति को बताया.

पत्नी की बात सुन कर भूरा झल्ला उठा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितनी बार समझाया है कि शैफाली को अकेले घर से मत जाने दिया करो, लेकिन मेरी बात तुम्हारे दिमाग में घुसती कहां है. उसे जाना ही था तो अपनी छोटी बहन को साथ ले जाती. उस पर अब मुझे कतई भरोसा नहीं है.’’

पति की बात सही थी. इसलिए रेनू ने कोई जवाब नहीं दिया.

शैफाली सुबह 10 बजे अपनी मां रेनू से यह कह घर से निकली थी कि वह शिवानी को किताबें वापस कर घंटा सवा घंटा में वापस आ जाएगी. लेकिन दोपहर एक बजे तक भी वह घर नहीं लौटी थी. उसे गए हुए 3 घंटे हो गए थे. जैसेजैसे समय बीतता जा रहा था, वैसेवैसे रेनू और उस के पति भूरा की चिंता बढ़ती जा रही थी.

रेनू बारबार उस का मोबाइल नंबर मिला रही थी, लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. जब भूरा से नहीं रहा गया तो शैफाली का पता लगाने के लिए घर से निकल पड़ा. उस ने बेटे अशोक को भी साथ ले लिया था.

शैफाली की सहेली शिवानी का घर गांव के दूसरे छोर पर था. भूरा राजपूत वहां पहुंचा तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. भूरा ने दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद शिवानी के भाई संदीप ने दरवाजा खोला. शैफाली के पिता को देख कर संदीप घबरा गया. लेकिन अपनी घबराहट को छिपाते हुए उस ने पूछा, ‘‘अंकल आप, कैसे आना हुआ?’’

भूरा गुस्से में बोला, ‘‘शैफाली और शिवानी कहां हैं?’’

‘‘अंकल शैफाली तो यहां नहीं आई. मेरी बहन शिवानी मातापिता और भाई के साथ गांव गई है. वे लोग 2 दिन बाद वापस आएंगे.’’ संदीप ने जवाब दिया.

संदीप की बात सुन कर भूरा अपशब्दों की बौछार करते हुए बोला, ‘‘संदीप, तू ज्यादा चालाक मत बन. तू ने मेरी भोलीभाली बेटी को अपने प्यार के जाल में फंसा रखा है. तू झूठ बोल रहा है कि शैफाली यहां नहीं आई. उसे जल्दी से घर के बाहर निकाल वरना पुलिस ला कर तेरी ऐसी ठुकाई कराऊंगा कि प्रेम का भूत उतर जाएगा.’’

‘‘अंकल मैं सच कह रहा हूं, शैफाली नहीं आई. न ही मैं ने उसे छिपाया है.’’ संदीप ने फिर अपनी बात दोहराई.

यह सुनते ही भूरा संदीप से भिड़ गया. उस ने संदीप के साथ हाथापाई की. फिर पुलिस लाने की धमकी दे कर चला गया. उस के जाते ही संदीप ने दरवाजा बंद कर लिया. यह बात 13 जून, 2019 की है. भूरा राजपूत लगभग 2 बजे पुलिस चौकी मंधना पहुंचा.  संयोग से उस समय बिठूर थाना प्रभारी विनोद कुमार सिंह भी चौकी पर मौजूद थे.

भूरा ने उन्हें बताया, ‘‘सर, मेरा नाम भूरा राजपूत है और मैं कछियाना गांव का रहने वाला हूं. मेरे गांव में संदीप रहता है. उस ने मेरी बेटी शैफाली को बहलाफुसला कर अपने घर में छिपा रखा है. शायद वह शैफाली को साथ भगा ले जाना चाहता है. आप मेरी बेटी को मुक्त कराएं.’’

चूंकि मामला लड़की का था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह पुलिस के साथ कछियाना गांव निवासी संदीप के घर जा पहुंचे. घर का मुख्य दरवाजा बंद था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई, साथ ही आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.

संदीप के दरवाजे पर पुलिस देख कर पड़ोसी भी अपने घरों से बाहर आ गए. वे लोग जानने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर संदीप के घर ऐसा क्या हुआ जो पुलिस आई है. जब दरवाजा नहीं खुला तो थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ पड़ोसी विजय तिवारी की छत से हो कर संदीप के घर में दाखिल हुए.

घर के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर सभी पुलिस वाले दहल उठे. कमरे के अंदर संदीप और शैफाली के शव पंखे के सहारे साड़ी के फंदे से झूल रहे थे. इस के बाद गांव में कोहराम मच गया. भूरा राजपूत और उस की पत्नी रेनू बेटी का शव देख कर फफक पड़े. शैफाली की बहनें भी फूटफूट कर रोने लगीं. पड़ोसी विजय तिवारी ने संदीप द्वारा आत्महत्या करने की सूचना उस के पिता दिनेश कमल को दे दी.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने प्रेमी युगल द्वारा आत्महत्या करने की बात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर बाद एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ अजीत कुमार घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और फंदों से लटके शव नीचे उतरवाए. मृतक संदीप की उम्र 20-22 वर्ष थी, जबकि मृतका शैफाली की उम्र 18 वर्ष के आसपास. मौके पर फोरैंसिक टीम ने भी जांच की.

टीम ने मृतक संदीप की जेब से मिले पर्स व मोबाइल को जांच के लिए कब्जे में ले लिया. मृतका शैफाली की चप्पलें और मोबाइल भी सुरक्षित रख ली गईं. पुलिस टीम ने वह साड़ी भी जांच की काररवाई में शामिल कर ली जिस से प्रेमीयुगल ने फांसी लगाई थी.

दोनों के परिजनों ने लगाए एकदूसरे पर आरोप

अब तक मृतक संदीप के मातापिता  व भाईबहन भी गांव से लौट आए थे और शव देख कर बिलखबिलख कर रोने लगे. संदीप की मां माधुरी गांव जाने से पहले उस के लिए परांठा सब्जी बना कर रख कर गई थी. संदीप ने वही खाया था.

पुलिस अधिकारियों ने मृतकों के परिजनों से घटना के संबंध में पूछताछ की और दोनों के शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल कानपुर भिजवा दिए. मृतकों के परिजन एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे, जिस से गांव में तनाव की स्थिति बनती जा रही थी. इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सुरक्षा की दृष्टि से गांव में पुलिस तैनात कर दी. साथ ही आननफानन में पोस्टमार्टम करा कर शव उन के घर वालों को सौंप दिए.

कानपुर महानगर से 15 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है मंधना. जो थाना बिठूर के क्षेत्र में आता है. मंधना कस्बे से कुरसोली जाने वाली रोड पर एक गांव है कछियाना. मंधना कस्बे से मात्र एक किलोमीटर दूर बसा यह गांव सभी भौतिक सुविधाओं वाला गांव है.

भूरा राजपूत अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता है. उस के परिवार में पत्नी रेनू के अलावा एक बेटा अशोक तथा 4 बेटियां शैफाली, लवली, बबली और अंजू थीं. भूरा राजपूत डेयरी चलाता था. इस काम में उसे अच्छी आमदनी होती थी. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

भाईबहनों में बड़ी शैफाली थी. वह आकर्षक नयननक्श वाली सुंदर युवती थी. वैसे भी जवानी में तो हर युवती सुंदर लगती है. शैफाली की तो बात ही कुछ और थी. वह जितनी खूबसूरत थी, पढ़ने में उतनी ही तेज थी. उस ने सरस्वती शिक्षा सदन इंटर कालेज मंधना से हाईस्कूल पास कर लिया था. फिलहाल वह 11वीं में पढ़ रही थी.

पढ़ाई लिखाई में तेज होने के कारण उस के नाज नखरे कुछ ज्यादा ही थे. लेकिन संस्कार अच्छे थे. स्वभाव से वह तेजतर्रार थी, पासपड़ोस के लोग उसे बोल्ड लड़की मानते थे.

कछियाना गांव के पूर्वी छोर पर दिनेश कमल रहते थे. उन के परिवार में पत्नी माधुरी के अलावा 2 बेटे थे. संदीप उर्फ गोलू, प्रदीप उर्फ मुन्ना और बेटी शिवानी थी. दिनेश कमल मूल रूप से कानपुर देहात जनपद के रूरा थाने के अंतर्गत चिलौली गांव के रहने वाले थे. वहां उन की पुश्तैनी जमीन थी. जिस में अच्छी उपज होती थी. दिनेश ने कछियाना गांव में ही एक प्लौट खरीद कर मकान बनवा लिया था. इस मकान में वह परिवार सहित रहते थे. वह चौबेपुर स्थित एक फैक्ट्री में काम करते थे.

दिनेश कमल का बेटा संदीप और बेटी शिवानी पढ़ने में तेज थे. इंटरमीडिएट पास करने के बाद संदीप ने आईटीआई कानपुर में दाखिला ले लिया. वह मशीनिस्ट ट्रेड से पढ़ाई कर रहा था.

शैफाली की सहेली का भाई था संदीप

शिवानी और शैफाली एक ही गांव की रहने वाली थीं, एक ही कालेज में साथसाथ पढ़ती थीं. अत: दोनों में गहरी दोस्ती थीं. दोनों सहेलियां एक साथ साइकिल से कालेज आतीजाती थीं. जब कभी शैफाली का कोर्स पिछड़ जाता तो वह शिवानी से कौपी किताब मांग कर कोर्स पूरा कर लेती और जब शिवानी पिछड़ जाती तो शैफाली की मदद से काम पूरा कर लेती. दोनों के बीच जातिबिरादरी का भेद नहीं था. लंच बौक्स भी दोनों मिलबांट कर खाती थीं.

एक रोज कालेज से छुट्टी होने के बाद शिवानी और शैफाली घर वापस आ रही थीं. तभी रास्ते में अचानक शैफाली का दुपट्टा उस की साइकिल की चेन में फंस गया. शैफाली और शिवानी दुपट्टा निकालने का प्रयास कर रही थीं, लेकिन वह निकल नहीं रहा था.

उसी समय पीछे से शिवानी का भाई संदीप आ गया. वह मंधना बाजार से सामान ले कर लौट रहा था. उस ने शिवानी को परेशान हाल देखा तो स्कूटर सड़क किनारे खड़ा कर के पूछा, ‘‘क्या बात है शिवानी, तुम परेशान दिख रही हो?’’

‘‘हां, भैया देखो ना शैफाली का दुपट्टा साइकिल की चेन में फंस गया है. निकल ही नहीं रहा है.’’

‘‘तुम परेशान न हो, मैं निकाल देता हूं.’’ कहते हुए संदीप ने प्रयास किया तो शैफाली का दुपट्टा निकल गया. उस रोज संदीप और शैफाली की पहली मुलाकात हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. खूबसूरत शैफाली को देख कर संदीप को लगा यही मेरी सपनों की रानी है. हृष्टपुष्ट स्मार्ट संदीप को देख कर शैफाली भी प्रभावित हो गई.

सहेली के भाई से हो गया प्यार

उसी दिन से दोनों के दिलों में प्यार की भावना पैदा हुई तो मिलन की उमंगें हिलोरें मारने लगीं. आखिर एक रोज शैफाली से नहीं रहा गया तो उस के कदम संदीप के घर की ओर बढ़ गए. उस रोज शनिवार था. आसमान पर घने बादल छाए थे, ठंडी हवा चल रही थी. संदीप घर पर अकेला था. वह कमरे में बैठा टीवी पर आ रही फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ देख रहा था. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. संदीप ने दरवाजा खोला तो सामने खड़ी शैफाली मुसकरा रही थी.

‘‘शिवानी है?’’ वह बोली.

‘‘वह तो मां के साथ बाजार गई है, आओ बैठो. मैं शिवानी को फोन कर देता हूं.’’ संदीप ने कहा.

‘‘मैं बाद में आ जाऊंगी.’’ शैफाली ने कहा ही था कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.

‘‘अब कहां जाओगी?’’

‘‘जी.’’ कहते हुए शैफाली कमरे में आ गई और संदीप के पास बैठ कर फिल्म देखने लगी.

कमरे का एकांत हो 2 युवा विपरीत लिंगी बैठे हों, और टीवी पर रोमांटिक फिल्म चल रही हो तो माहौल खुदबखुद रूमानी हो जाता है. ऐसा ही हुआ भी शैफाली ने फिल्म देखते देखते संदीप से कहा, ‘‘संदीप एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो?’’

‘‘प्यार करने वालों का अंजाम क्या ऐसा ही होता है.’’

‘‘कोई जरूरी नहीं.’’ संदीप ने कहा, ‘‘प्यार  करने वाले अगर समय के साथ खुद अनुकूल फैसला लें और समझौता न कर के आगे बढ़ें तो उन का अंत सुखद होगा.’’

‘‘अपनी बात तो थोड़ा स्पष्ट करो.’’

‘‘देखो शैफाली, मैं समझौतावादी नहीं हूं. मैं तो तुरत फुरत में विश्वास करता हूं और दूसरे मेरा मानना है कि जो चीज सहज हासिल न हो उसे खरीद लो.’’

‘‘अच्छा संदीप अगर मैं कहूं कि मैं तुम से प्यार करती हूं, तब तुम मेरा प्यार हासिल करना चाहोगे या खरीदना पसंद करोगे?’’

शैफाली के सवाल पर संदीप चौंका. उस का चौंकना स्वाभाविक था. वह यह तो जानता था कि शैफाली बोल्ड लड़की है, लेकिन उस की बोल्डनैस उसे क्लीन बोल्ड कर देगी, वह नहीं जानता था. संदीप, शैफाली के प्रश्न का उत्तर दे पाता, उस के पहले ही शिवानी मां के साथ बाजार से लौट आई. आते ही शिवानी ने चुटकी ली, ‘‘शैफाली, संदीप भैया से मिल लीं. आजकल तुम्हारे ही गुणगान करता रहता है ये.’’

‘‘धत…’’ शैफाली ने शरमाते हुए उसे झिड़क दिया. फिर कुछ देर दोनों सहेलियां हंसी मजाक करती रहीं. थोड़ा रुक कर शैफाली अपने घर चली गई.

बढ़ने लगा प्यार का पौधा

उस दिन के बाद दोनों में औपचारिक बातचीत होने लगी. दिल धीरेधीरे करीब आ रहे थे. संदीप शैफाली को पूरा मानसम्मान देने लगा था. जब भी दोनों का आमना सामना होता, संदीप मुसकराता तो शैफाली के होंठों पर भी मुसकान तैरने लगती. अब दोनों की मुसकराहट लगातार रंग दिखाने लगी थी.

एक रविवार को संदीप यों ही स्कूटर से घूम रहा था कि इत्तेफाक से उस की मुलाकात शैफाली से हो गई. शैफाली कुछ सामान खरीदने मंधना बाजार गई थी. चूंकि शैफाली के मन में संदीप के प्रति चाहत थी. इसलिए उसे संदीप का मिलना अच्छा लगा. उसने मुसकरा कर पूछा, ‘‘तुम बाजार में क्या खरीदने आए थे?’’

‘‘मैं बाजार से कुछ खरीदने नहीं बल्कि घूमने आया था. मुझे पंडित रेस्तरां की चाय बहुत पसंद है. तुम भी मेरे साथ चलो. तुम्हारे साथ हम भी वहां एक कप चाय पी लेंगे.’’

‘‘जरूर.’’ शैफाली फौरन तैयार हो गई.

पास ही पंडित रेस्तरां था. दोनों जा कर रेस्तरां में बैठ गए. चायनाश्ते का और्डर देने के बाद संदीप शैफाली से मुखातिब हुआ, ‘‘बहुत दिनों से मैं तुम से अपने मन की बात कहना चाह रहा था. आज मौका मिला है, इसलिए सोच रहा हूं कि कह ही दूं.’’

शैफाली की धड़कनें तेज हो गईं. वह समझ रही थी कि संदीप के मन में क्या है और वह उस से क्या कहना चाह रहा है. कई बार शैफाली ने रात के सन्नाटे में संदीप के बारे में बहुत सोचा था.

उस के बाद इस नतीजे पर पहुंची थी कि संदीप अच्छा लड़का है. जीवनसाथी के लिए उस के योग्य है. लिहाजा उस ने सोच लिया था कि अगर संदीप ने प्यार का इजहार किया तो वह उस की मोहब्बत कबूल कर लेगी.

‘‘जो कहूंगा, अच्छा ही कहूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने शैफाली का हाथ पकड़ा और सीधे मन की बात कह दी, ‘‘शैफाली मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

शैफाली ने उसे प्यार की नजर से देखा, ‘‘मैं भी तुम से प्यार करती हूं संदीप, और यह भी जानती हूं कि प्यार में कोई शर्त नहीं होती. लेकिन दिल की तसल्ली के लिए एक प्रश्न पूछना चाहती हूं. यह बताओ कि मोहब्बत के इस सिलसिले को तुम कहां तक ले जाओगे?’’

साथ निभाने की खाईं कसमें

‘‘जिंदगी की आखिरी सांस तक.’’ संदीप भावुक हो गया, ‘‘शैफाली, मेरे लफ्ज किसी तरह का ढोंग नहीं हैं. मैं सचमुच तुम से प्यार करता हूं. प्यार से शुरू हो कर यह सिलसिला शादी पर खत्म होगा. उस के बाद हमारी जिंदगी साथसाथ गुजरेगी.’’

शैफाली ने भी भावुक हो कर उस के हाथ पर हाथ रख दिया, ‘‘प्यार के इस सफर में मुझे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?’’

‘‘शैफाली,’’ संदीप ने उस का हाथ दबाया, ‘‘जान दे दूंगा पर इश्क का ईमान नहीं जाने दूंगा.’’

शैफाली ने संदीप के होंठों को तर्जनी से छुआ और फिर उंगली चूम ली. उस की आंखों की चमक बता रही थी कि उसे जैसे चाहने वाले की तमन्ना थी, वैसा ही मिल गया है.

शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी शुरू हो चुकी थी. गुपचुप मेलमुलाकातें और जीवन भर साथ निभाने के कसमेवादे, दिनों दिन उन का पे्रमिल रिश्ता चटख होता गया. दोनों का मेलमिलाप कराने में शैफाली की सहेली शिवानी अहम भूमिका निभाती रही.

एक दिन प्यार के क्षणों में बातोंबातों में संदीप ने बोला, ‘‘शैफाली, अपने मिलन के अब चंद महीने बाकी हैं. मैं कानपुर आईटीआई से मशीनिस्ट टे्रड का कोर्स कर रहा हूं. मेरा यह आखिरी साल है. डिप्लोमा मिलते ही मैं तुम से शादी कर लूंगा.’’

संदीप की बात सुन कर शैफाली खिलखिला कर हंस पड़ी.

संदीप ने अचकचा कर उसे देखा, ‘‘मैं इतनी सीरियस बात कर रहा हूं और तुम हंस रही हो.’’

‘‘बचकानी बात करोगे तो मुझे हंसी आएगी ही.’’

‘‘मैं ने कौन सी बचकानी बात कह दी?’’

‘‘शादी की बात.’’ शैफाली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘बुद्धू शादी के बाद पत्नी की सारी जिम्मेदारियां पति की हो जाती हैं. एक पैसा तुम कमाते नहीं हो, मुझे खिलाओगे कैसे? मेरे खर्च और शौक कैसे पूरे करोगे?’’

‘‘यह मैं ने पहले से सोच रखा है,’’ संदीप बोला, ‘‘डिप्लोमा मिलते ही मैं दिल्ली या नोएडा जा कर कोई नौकरी कर लूंगा. शादी के बाद हम दिल्ली में ही अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.’’

बनाने लगे सपनों का महल

संदीप की यह बात शैफाली को मन भा गई. दिल्ली उस के भी सपनों का शहर था. इसीलिए संदीप ने उस से दिल्ली में बसने की बात कही तो उस का मन खुशी से झूम उठा.

संदीप और शैफाली का प्यार परवान चढ़ ही रहा था कि एक दिन उन का भांडा फूट गया. हुआ यूं कि उस रोज शैफाली अपने कमरे में मोबाइल पर संदीप से प्यार भरी बातें कर रही थी. उस की बातें मां रेनू ने सुनीं तो उन का माथा ठनका. कुछ देर बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘शैफाली, ये संदीप कौन है? उस से तुम कैसी अटपटी बातें करती हो?’’

शैफाली न डरी न लजाई, उस ने बता दिया, ‘‘मां संदीप मेरी सहेली शिवानी का भाई है. गांव के पूर्वी छोर पर रहता है. बहुत अच्छा लड़का है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

रेनू कुछ देर गंभीरता से सोचती रही, फिर बोली, ‘‘बेटी अभी तो तुम्हारी पढ़ने लिखने की उम्र है. प्यारव्यार के चक्कर में पड़ गई. वैसे तुम्हारी पसंद से शादी करने पर मुझे कोई एतराज नहीं है. किसी दिन उस लड़के को घर ले अना, मैं उस से मिल लूंगी और उस के बारे में पूछ लूंगी. सब ठीकठाक लगा तो तुम्हारे पापा को शादी के लिए राजी कर लूंगी.’’

3-4 दिन बाद शैफाली ने संदीप को चाय पर बुला लिया. होने वाली सास ने बुलाया है. यह जान कर संदीप के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे विश्वास हो था कि शैफाली के घर वालों की स्वीकृति के बाद वह अपने घर वालों को भी मना लगा. उस ने अभी तक अपने मांबाप को अपने प्यार के बारे में कुछ भी नहीं बताया था. घर में उस की बहन शिवानी ही उस की प्रेम कहानी जानती थी.

शैफाली की मां रेनू ने संदीप को देखा तो उस की शक्ल सूरत, कदकाठी तो उन्हें पसंद आई. लेकिन जब जाति कुल के बारे में पूछा तो रेनू की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. संदीप दलित समाज का था.

नहीं बनी शादी की बात

संदीप के जाने के बाद रेनू ने शैफाली को डांटा, ‘‘यह क्या गजब किया. दिल लगाया भी तो एक दलित से. राजपूत और दलित का रिश्ता नहीं हो सकता. तू भूल जा उसे, इसी में हम सब की भलाई है. समाज उस से तुम्हारा रिश्ता स्वीकर नहीं करेगा. हम सब का हुक्कापानी बंद हो जाएगा. तुम्हारी अन्य बहनें भी कुंवारी बैठी रह जाएंगी. भाई को भी कोई अपनी बहनबेटी नहीं देगा.’’

शैफाली ने ठंडे दिमाग से सोचा तो उसे लगा कि मां जो कह रही हैं, सही बात है. इसलिए उस ने उस वक्त तो मां से वादा कर लिया कि वह संदीप को भूल जाएगी. लेकिन वह अपना वादा निभा नहीं सकी. वह संदीप को अपने दिल से निकाल नहीं पाई.

संदीप के बारे में वह जितना सोचती थी उस का प्यार उतना ही गहरा हो जाता. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, वह संदीप का साथ नहीं छोड़ेगी. शादी भी संदीप से ही करेगी.

भूरा राजपूत को शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी का पता चला तो उस ने पहले तो पत्नी रेनू को आड़े हाथों लिया, फिर शैफाली को जम कर फटकार लगाई. साथ ही चेतावनी भी दी, ‘‘शैफाली, तू कान खोल कर सुन ले, अगर तू इश्क के चक्कर में पड़ी तो तेरी पढ़ाई लिखाई बंद हो जाएगी और तुझे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलेगी.’’

घर वालों के विरोध के कारण शैफाली भयभीत रहने लगी. वह अच्छी तरह जान गई थी कि परिवार वाले उस की शादी किसी भी कीमत पर संदीप के साथ नहीं करेंगे. उस ने यह बात संदीप को बताई तो उस का दिल बैठ गया. वह बोला, ‘‘शैफाली घर वाले विरोध करेंगे तो क्या तुम मुझे ठुकरा दोगी?’’

‘‘नहीं संदीप, ऐसा कभी नहीं होगा., मैं तुम से प्यार करती हूं और हमेशा करती रहूंगी. हम साथ जिएंगे, साथ मरेंगे.’’

‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी, शैफाली.’’ कहते हुए संदीप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.

रेनू अपनी बेटी शैफाली पर भरोसा करती थीं. उन्हें विश्वास था कि समझाने के बाद उस के सिर से इश्क का भूत उतर गया है. इसलिए उन्होंने शैफाली के घर से बाहर जाने पर एतराज नहीं किया. लेकिन उस का पति भूरा राजपूत शैफाली पर नजर रखता था. उस ने  पत्नी से कह रखा था कि शैफाली जब भी घर से निकले, छोटी बहन के साथ निकले.

संदीप ने बुला लिया शैफाली को

13 जून, 2019 की सुबह 8 बजे संदीप के पिता दिनेश कमल अपनी पत्नी माधुरी बेटी शिवानी तथा बेटे मुन्ना के साथ अपने गांव चिलौली (कानपुर देहात) चले गए. दरअसल, बरसात शुरू हो गई थी. उन्हें मकान की मरम्मत करानी थी. उन्हें वहां सप्ताह भर रुकना था. जाते समय संदीप की मां माधुरी ने उस से कहा, ‘‘बेटा संदीप, मैं ने पराठा, सब्जी बना कर रख दी है. भूख लगने पर खा लेना.’’.

मांबाप, भाईबहन के गांव चले जाने के बाद घर सूना हो गया. ऐसे में संदीप को तन्हाई सताने लगी. इस तनहाई को दूर करने के लिए उस ने अपनी प्रेमिका शैफाली को फोन किया, ‘‘हैलो, शैफाली आज मैं घर पर अकेला हूं. घर के सभी लोग गांव गए हैं. तुम्हारी याद सता रही थी. इसलिए जैसे भी हो तुम मेरे घर आ जाओ.’’

‘‘ठीक है संदीप, मैं आने की कोशिश करूंगी.’’ इस के बाद शैफाली तैयार हुई और मां से प्यार जताते हुए बोली, ‘‘मां, कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली शिवानी से कुछ किताबें लाई थी. उसे किताबें वापस करने उस के घर जाना है. घंटे भर बाद वापस आ जाऊंगी.’’ मां ने इस पर कोई ऐतराज नहीं किया.

शैफाली किताबें वापस करने का बहाना बना कर घर से निकली ओर संदीप के घर जा पहुंची. संदीप उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के आते ही संदीप ने उसे बांहों में भर कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद दोनों प्रेमालाप में डूब गए.

दोनों ने लगा लिया मौत को गले

इधर भूरा राजपूत घर पहुंचा तो उसे अन्य बेटियां तो घर में दिखीं पर शैफाली नहीं दिखी. उस ने पत्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह सहेली के घर किताबें वापस करने लगने लगी थी. यह सुनते ही भूरा का मथा ठनका. उसे शक हुआ कि शैफाली बहाने से घर से निकली है और प्रेमी संदीप से मिलने गई है.

भूरा ने कुछ देर शैफाली के लौटने का इंतजार किया, फिर उस की तलाश में घर से निकल से निकल पड़ा. वह सीधा संदीप के घर पहुंचा. संदीप घर पर ही था. शैफाली के बारे में पूछने पर उस ने भूरा से झूठ बोल दिया कि शैफाली उस के घर नहीं है. शैफाली को ले कर भूरा की संदीप से हाथापाई भी हुई फिर वह पुलिस लाने की धमकी दे कर वहां से पुलिस चौकी चला गया.

संदीप ने शैफाली को घर में ही छिपा दिया था. पिता की धमकी से वह डर गई थी. उस ने संदीप से कहा, ‘‘संदीप, घर वाले हम दोनों को एक नहीं होने देंगे. और मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती. अब तो बस एक ही रास्ता बचा है वह है मौत का. हम इस जन्म में न सही अगले जन्म में फिर मिलेंगे.’’

संदीप ने शैफाली को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘शैफाली मैं भी तुहारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हारा साथ दूंगा. इस के बाद दोनों ने मिल कर पंखे के कुंडे से साड़ी बांधी और साड़ी के दोनों किनारों का फंदा बनाया, एकएक फंदा डाल कर दोनों झूल गए. कुछ ही देर में उन की मौत हो गई.

इधर भूरा राजपूत अपने साथ पुलिस ले कर संदीप के घर पहुंचा. बाद में पुलिस को कमरे में संदीप और शैफाली के शव फंदों से झूले मिले. इस के बाद दोनों परिवारों में कोहराम मच गया.

इश्क में अंधी मां का गुनाह

11 साल के वंश (Vansh) और 7 साल के यश (Yash) की लाशें गन्ने के खेत में पड़ी थीं. उन की हत्या गला घोंट कर की गई थी. दोनों ही बच्चे स्कूल की ड्रेस में थे. दोनों भाइयों की लाशें देख कर पुलिस का कलेजा भी कांप उठा था. पुलिस ने मौके पर ही फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. मौके की सारी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों बच्चों की लाशें पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दीं.

सोनीपत (Sonipat), हरियाणा के खूबसूरत पिकनिक स्थल सिटी पार्क के अंदर दाखिल हो कर रूबी ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. अंदर घास पर और पेड़ों के नीचे अनेक प्रेमी जोड़े सिर से सिर जोड़े बैठे प्रेमालाप में मग्न दिखाई दिए. उन में वह नहीं था, जिस के लिए रूबी अपना काम छोड़ कर यहां आई थी.

रूबी का मन उदास हो गया. निराशा उसे घेरती इस से पहले ही किसी ने उस के पीछे से उस की आंखों पर हथेलियां रख दीं, एक चहकता स्वर रूबी के कानों से टकराया, ”पहचानो कौन?’’

”नितिन,’’ रूबी खुशी से चहक पड़ी. उस ने हाथ बढ़ा कर आंखें बंद करने वाले के हाथ पकड़ लिए और उस की तरफ पलट गई.

उस के सामने नितिन खड़ा मुसकरा रहा था. वह फूलों के डिजाइन वाली शानदार शर्ट और आसमानी रंग की जींस पहने हुए था, पैरों में काले रंग के स्पोट्र्स शूज थे. आधुनिक कपड़ों में उस की पर्सनैल्टी बहुत प्रभावित कर रही थी.

नितिन को ऊपर से नीचे तक हैरानी से देखते हुए रूबी बोली, ”आज तो बहुत जंच रहे हो.’’

”तुम भी तो कयामत बरपा रही हो जान,’’ नितिन ने उस के गाल पर चिकोटी काटते हुए कहा.

”तुम्हें यहां न देख कर मैं निराश हो गई थी,’’ रूबी ने विषय बदला, ”कहां रह गए थे?’’

”यहीं था, उस पेड़ के पीछे खड़ा तुम्हारी राह देख रहा था. तुम्हें छकाने के लिए पेड़ की ओट में छिप गया था.’’

”छिपे क्यों?’’ रूबी ने हैरानी से पूछा.

”देख रहा था, मुझे न पा कर तुम कितनी बेचैन होती हो.’’

रूबी ने गहरी सांस भरी. नितिन की बांहों को थाम कर वह भावुक स्वर में बोली, ”मैं तुम्हारे बगैर एक पल भी नहीं रह पाऊंगी नितिन, यह मुझे आज महसूस हुआ. यहां तुम नजर नहीं आए तो मेरा दिल तड़प उठा था. मैं यूं उदास हो गई, जैसे मेरी अपनी कोई प्यारी चीज गुम हो गई हो.’’

नितिन ने रूबी को बांहों में ले लिया, ”मेरा भी हाल तुम्हारे जैसा ही है रूबी. तुम्हें बगैर एक बार देखे मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. तुम्हारे लिए मैं बेचैन हो जाता हूं.’’

”तो फिर मुझे हमेशा के लिए अपना क्यों नहीं बना लेते तुम?’’

”अपनाऊंगा मेरी जान, इसी विषय पर बात करने के लिए मैं ने तुम्हें आज काम से नागा कर यहां बुलाया है.’’ नितिन थोड़ा गंभीर हो गया, ”आओ, कहीं बैठ कर बात करते हैं.’’

रूबी की कमर में हाथ डाले नितिन पार्क में एक पेड़ की तरफ बढ़ गया, उस पेड़ के आसपास कोई जोड़ा नहीं बैठा था. एकदम सन्नाटे भरी जगह थी वह. दोनों पेड़ से सट कर बैठ गए.

”तुम मुझे कितना चाहती हो रूबी?’’ नितिन ने रूबी की आंखों में झांकते हुए पूछा.

”अपनी जान से ज्यादा.’’ रूबी तपाक से बोली, ”लेकिन तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो?’’

”तुम शादीशुदा हो न रूबी?’’ नितिन एकदम गंभीर हो गया.

”शादीशुदा हूं नहीं, थी नितिन. मैं ने अपने पति से 4 साल पहले तलाक ले लिया था. यह बात मैं ने तुम्हें उसी वक्त बता दी थी, जब तुम प्यार का इजहार करने पहली बार मेरे करीब आए थे.’’

”हां. तब तुम ने यह भी बताया था कि तुम अपनी स्वर्गवासी बहन के 2 बच्चे पाल रही हो.’’

”तब तुम ने आज यह सवाल क्यों उठाया है?’’

”इसलिए कि तुम्हारा मुझ से शादी करने के बाद फिर से अपने पूर्वपति की ओर झुकाव तो नहीं हो जाएगा.’’

रूबी ने नितिन को घूरा, ”दारू पी कर आए हो क्या आज?’’ रूबी तिलमिला गई, ”यदि मुझे ऐसा ही करना होता तो मैं तुम्हारी ओर प्यार भरा हाथ नहीं बढ़ाती, कभी का अपने पूर्व पति की चौखट पर चली जाती. लेकिन मैं ने ऐसा नहीं किया. मैं ने अपने पति से तलाक लिया है. 4 साल से उस से अलग रह रही हूं. 4 साल बहुत होते हैं नितिन. मैं ने पति को छोड़ कर अकेला जीना सीख लिया है. तुम मेरी जिंदगी में आने वाले दूसरे मर्द हो, तुम्हें मैं ने अपना दिल दिया है, मैं तुम से सच्ची मोहब्बत करती हूं. यदि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है तो हम रास्ता बदल लेते हैं.’’

”ऐसा मत कहो रूबी, तुम मेरी जान हो, मेरी जिंदगी हो.’’ नितिन का स्वर भीग गया. उस की आंखों में आंसू आ गए.

”रास्ता बदलने की बात फिर कभी मत करना. मैं जी नहीं पाऊंगा तुम्हारे बगैर,’’ रूबी ने तेवर ढीले कर लिए. उस ने अपनी बाहें फैला दीं और नितिन को अपनी ओर खींच लिया. नितिन उस के सीने से बच्चे की तरह सट गया. अब दोनों की ही आंखें बरस रही थीं. यह उन के प्यार का सच्चा सबूत हो सकता था.

22 फरवरी, 2024 को अच्छी धूप खिली थी. सोनीपत के सिविल लाइंस थाने के एसएचओ सतबीर सिंह कक्ष से बाहर धूप में बैठे अखबार देख रहे थे, तभी एक 30-32 साल की महिला बदहवासी की हालत में वहां आई.

एसएचओ सतबीर ने अखबार एक ओर कर के उस महिला को गौर से देखते हुए पूछा, ”क्या हुआ, तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?’’

”साहब, मेरे बच्चे गुम हो गए हैं.’’

”बच्चे…’’ एसएचओ चौंके, ”कितने बच्चे गुम हुए हैं तुम्हारे?’’

”2 बच्चे साहब. कल दोनों सुबह स्कूल गए थे, लेकिन तब से अभी तक घर नहीं लौटे हैं.’’ कहते हुए महिला रोने लगी.

एसएचओ उठ कर खड़े हो गए. उन्होंने हैरानी से पूछा, ”कल बच्चे स्कूल गए थे और घर नहीं लौटे. वे दोपहर में घर आते होंगे तब कल से अभी तक तुम यह गुमशुदगी दर्ज करवाने यहां क्यों नहीं आई?’’

”साहब, मैं एक फैक्ट्री में काम करने जाती हूं. सुबह जाती हूं तो शाम को ही लौटती हूं. कल बच्चों को स्कूल भेज कर मैं काम पर चली गई थी. शाम को लौटी तो मुझे घर के दरवाजे पर ताला लगा दिखा. जबकि रोज घर का दरवाजा खुला मिलता था. मैं ने सोचा बच्चे आसपड़ोस में जा कर बैठ गए होंगे. मैं ने आसपास के घरों में उन्हें तलाश किया.

मुझे पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने बच्चों को दोपहर में यहां नहीं देखा. वह घर लौटे या नहीं, उन लोगों को नहीं मालूम. तब मैं बहुत घबरा गई. मैं ने बच्चों के स्कूल जा कर पता किया तो वहां मौजूद चौकीदार ने बताया कि बच्चे दोपहर को स्कूल बंद हुआ तो घर के लिए चले गए थे. मैं रात भर इधरउधर जानपहचान वालों के घर दौड़ती रही, लेकिन बच्चे कहीं भी नहीं मिले. साहब, मेरे बच्चों का किसी ने अपहरण कर लिया है. आप उन्हें ढूंढ दीजिए,’’ महिला जोरजोर से रोने लगी.

”चुप हो जाओ.’’ एसएचओ ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ”रोने से बच्चे नहीं मिलेंगे. बैठ जाओ और विस्तार से सब बताओ मुझे.’’

महिला कुरसी पर बैठ गई. उस ने दुपट्टे से अपने आंसू पोंछे तो एसएचओ ने एक सिपाही से पानी मंगवा कर महिला को पीने को दिया. जब वह थोड़ा सामान्य हुई तो एसएचओ ने दूसरी कुरसी पर बैठते हुए पूछा.

”क्या नाम है तुम्हारा?’’

”जी रूबी.’’

”जो बच्चे गुम हुए हैं उन के नाम, उम्र बताओ.’’

”बड़े का नाम वंश है साहब, उम्र 11 वर्ष है. दूसरे का नाम यश है, वह 7 साल का है.’’

”इन के पिता का नाम क्या है?’’

”बच्चों के पिता का नाम राहुल है साहब, लेकिन उस से मेरा 7 साल बाद तलाक हो गया था. मैं उस से अलग आदर्श नगर की गली नंबर 5 में बच्चों के साथ रहती हूं साहब. एक फैक्ट्री में काम कर के अपना और बच्चों का पेट भरती हूं.’’

”बच्चे किस स्कूल में पढ़ते थे?’’ एसएचओ सतवीर सिंह ने पूछा.

”वह मशद मोहल्ला में स्थित स्कूल में पढ़ते थे साहब, आप उन्हें तलाश करवाइए साहब. मैं अपने बच्चों के बगैर जिंदा नहीं रह पाऊंगी,’’ रूबी फिर से रोने लगी .

”बच्चों के फोटो लाई हो तुम?’’

”जी हां, साहब.’’ रूबी ने कहने के बाद चोली में रखे पर्स से निकाल कर दोनों बच्चों के फोटो एसएचओ को दे दिए.

एसएचओ ने रूबी के दोनों बच्चों की गुमशुदगी को अज्ञात के खिलाफ धारा-365 के अंतर्गत दर्ज करवा कर रूबी से 2-3 सवाल और पूछे. फिर उसे यह आश्वासन दे कर रूबी को घर भेज दिया कि उस के बच्चों की तलाश में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी जाएगी.

एसएचओ सतबीर ने रूबी के 2 बच्चों के लापता होने की जानकारी डीसीपी नरेंद्र कादयान और एसीपी नरसिंह को भी दे दी.

2 बच्चों का अपहरण बहुत गंभीर बात थी. डीसीपी नरेंद्र कादयान ने इस मामले की जांच के लिए सेक्टर-7 की एंटी गैंगस्टर यूनिट को जिम्मेदारी सौंपते हुए एसएचओ सतबीर सिंह को भी पूरी तरह मामले में सक्रिय रहने का निर्देश दे दिया.

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एसआई सबल सिंह

एंटी गैंगस्टर यूनिट का गठन आपराधिक गतिविधियों में लिप्त गैंगस्टर्स और पेचीदा केसेस के लिए किया गया था. इस यूनिट के इंचाज इंसपेक्टर अजय धनखड़ थे. इन की टीम में एसआई रविकांत, सबल सिंह, एएसआई संदीप, जितेंद्र, हैडकांस्टेबल प्रदीप और सिपाही विनोद कुमार थे.

इंसपेक्टर अजय धनखड़ ने रूबी के बच्चों वंश और यश के फोटो एसएचओ सतबीर सिंह से ले कर सभी थानों में फ्लैश करवा दिए. थानों में सूचना भिजवा दी गई कि इन बच्चों के विषय में कोई भी जानकारी मिलने पर एंटी गैंगस्टर यूनिट, सेक्टर-7 को सूचित किया जाए.

यूनिट की टीम सब से पहले रूबी से पूछताछ करने उस के घर गली नंबर- 5 आदर्श नगर पहुंच गई. रूबी घर पर ही थी. उस ने बच्चों के विषय में पूछताछ करने पर इस टीम को भी वही सब कुछ बताया, जो वह सिविल लाइंस थाने के एसएचओ सतबीर को कल सुबह बता कर आई थी.

”तुम्हारा पति से तलाक क्यों हुआ था?’’ इंचार्ज धनखड़ ने उस से सवाल पूछा.

”मेरा पति राहुल और उस के परिवार वाले अच्छे लोग नहीं थे साहब, मुझे शादी के बाद से ही छोटीछोटी बातों पर परेशान करते थे. राहुल दारू पीता था और घर वालों के उकसाने पर मुझे मारता था. मैं उस के 2 बच्चों की मां बन गई, फिर भी राहुल का व्यवहार मेरे प्रति पहले जैसा ही रहा. वह घर वालों के कहने पर चलने वाला अक्खड़ इंसान था. आखिर तंग आ कर मैं ने उस से कोर्ट द्वारा तलाक ले लिया और यहां रहने लगी.’’

”बच्चे तो राहुल के भी थे, उस ने अपने बच्चे तुम्हें कैसे सौंप दिए?’’

”वह बच्चे नहीं देता साहब. यह तो मैं ने कोर्ट से गुहार लगाई कि बच्चे छोटे हैं, उन्हें मैं ही पाल सकती हूं, इन का बाप दारूबाज और लापरवाह इंसान है. वह बच्चों को ठीक से नहीं संभाल पाएगा, तब कोर्ट ने बच्चों को मेरे हवाले कर दिया था.’’

”तुम्हारा पति राहुल कहां रहता है, उस का पता बताओ.’’

”वह विकास नगर में रहता है साहब.’’ रूबी ने कहने के बाद राहुल का पता टीम इंचार्ज को लिखवा दिया. फिर रोते हुए बोली, ”साहब, वंश और यश मेरी आंखों के तारे हैं, मेरे बुढ़ापे का सहारा वही बनते साहब. आप मेरे बच्चों की तलाश कर के उन्हें मेरी झोली में डाल दीजिए.’’

”तुम्हें किसी पर शक है? ऐसा व्यक्ति जो तुम्हारे साथ दुश्मनी रखता हो?’’

”यहां आप आसपड़ोस में मेरे व्यवहार के बारे में पूछताछ कर लें, मैं सभी के साथ अच्छे पड़ोसी की तरह रहती आई हूं. यहां सभी मेरे बच्चों से बहुत प्यार करते थे, इसलिए यहां तो मेरे बच्चों का कोई दुश्मन नहीं हो सकता. हां, मुझे राहुल पर शक है, वह बच्चों को अपने साथ रखने के लिए उन का अपहरण कर सकता है. आप उस से पूछताछ करिए.’’

”ठीक है, हम राहुल से पूछताछ कर लेंगे. तुम्हें यदि बच्चों के बारे में कुछ भी पता चले तो हमें खबर देना.’’

रूबी को हिदायत दे कर इस टीम ने रूबी के आसपड़ोस में उस के बच्चों वंश और यश से रूबी के व्यवहार के विषय में जानकारी जुटाई. उन्हें बताया गया कि रूबी अपने बच्चों से बहुत प्यार करती थी, वह यहां सब के साथ मेलमिलाप के साथ रहती है. उस के बच्चों से सभी प्यार करते हैं. दोनों बच्चे बहुत मासूम और हंसमुख हैं, उन्हें जल्दी तलाश किया जाए.

इंचार्ज अजय धनखड़ ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि रूबी के बच्चों को शीघ्र सकुशल तलाश कर के रूबी को सौंप दिया जाएगा. टीम रूबी के पूर्वपति से पूछताछ करने के लिए विश्वास नगर के लिए रवाना हो गई.

एंटी गैंगस्टर यूनिट की टीम ने राहुल के बारे में धारणा बनाई थी कि वह नशेड़ी स्वभाव और अक्खड़ दिमाग वाला व्यक्ति होगा, लेकिन जब टीम राहुल के घर गई तो शांत स्वभाव वाले दुबले पतले व्यक्ति ने उन का स्वागत किया. यह राहुल था.

राहुल को देख कर नहीं लगता था कि वह नशा करता होगा. इस टीम को अपने दरवाजे पर देख कर उस ने बहुत हैरानी से पूछा, ”कौन हैं आप लोग? मैं ने आप को पहले कभी नहीं देखा.’’

”हम हरियाणा पुलिस की एंटी गैंगस्टर यूनिट से हैं, तुम से मिलने आए हैं.’’ एसआई सबल सिंह ने बताया.

”ओह!’’ राहुल चौंक कर बोला, ”आप सब अंदर आ कर बैठिए.’’

टीम में 7 लोग थे, वे अंदर आ गए.

यह साधारण सा कमरा था, बहुत व्यवस्थित और साफसुथरा. अंदर पलंग और सोफा था. एंटी गैंगस्टर यूनिट के लोग पलंग और सोफा पर बैठ गए.

”क्या सेवा करूं मैं आप लोगों की?’’ हाथ जोड़ कर राहुल ने शिष्टाचार दर्शाते हुए पूछा, ”ठंडा लेंगे या गरम?’’

”हम कुछ देर पहले ही लंच कर के तुम्हारे पास आए हैं, इसलिए परेशान मत होओ. सामने बैठ जाओ, हमें तुम से कुछ पूछताछ करनी है.’’ राहुल स्टूल खींच कर उस पर बैठ गया, ”पूछिए साहब, आप मुझ से क्या पूछना चाहते हैं?’’

”राहुल, तुम्हारे बच्चे वंश और यश का 21 फरवरी को किसी ने अपहरण कर लिया है.’’ टीम इंचार्ज अजय धनखड़ ने गंभीर स्वर में कहा तो राहुल कुछ पल के लिए हैरान रह गया.

”क्या कह रहे हैं साहब,’’ राहुल विचलित हो कर अपनी जगह खड़ा हो गया, ”किस ने किया मेरे बच्चों का अपहरण?’’

”यह हम तुम से पूछने आए हैं, तुम्हारी पूर्वपत्नी रूबी का कहना है कि तुम ने बच्चों का अपहरण किया है.’’

”झूठ बोलती है साहब रूबी, भला मैं अपने बच्चों का अपहरण क्यों करूंगा. मेरी तो वे आंखों के तारे हैं, साहब.’’

”तुम्हारे बच्चे 21 फरवरी को स्कूल गए थे, तभी से वे घर नहीं लौटे हैं. रूबी ने उन्हें हर जगह ढूंढ लिया है. तुम्हें किसी पर शक है?’’ राहुल कुछ देर शांत बैठा कुछ सोचता रहा. फिर एकदम से बोला, ”साहब, यह काम रूबी ही कर सकती है, बच्चे रूबी ने ही लापता किए हैं. नाम मेरा ले रही है.’’

”रूबी बच्चों को अपनी जान से ज्यादा चाहती है, वह अपने ही बच्चों को भला क्यों गायब करेगी.’’

”उसे अपने प्रेमी से शादी रचानी है साहब. बच्चों को उस ने लापता ही नहीं किया होगा, हो सकता है कि उस ने बच्चों का अहित भी कर दिया हो.’’ राहुल आक्रोश में आ गया, ”मैं ने तलाक के समय ही कोर्ट से प्रार्थना की थी कि बच्चे मुझे सौंपे जाएं, मैं बाप हूं उन का, लेकिन कोर्ट ने बच्चे उस निर्लज्ज रूबी के हवाले कर दिए. आज अपनी आशिकी में अंधी हो कर उस ने बच्चों को गायब कर दिया है.’’

राहुल द्वारा बताई गई बात ने सभी को चौंका दिया. यूनिट इंचार्ज अजय धनखड़ ने हैरानी से पूछा, ”क्या तुम दावे के साथ कह रहे हो कि रूबी का कोई आशिक भी है.’’

”आशिक है साहब, मुझ से तलाक लेने के बाद ही रूबी उस के प्रेमजाल में फंस गई थी.’’

”उस का नामपता, ठिकाना जानते हो तुम?’’

”हां, नितिन पुत्र राकेश सिंह. साहब, यह बागपत के बरनावा गांव का है, वह सेक्टर-27, कबीरपुर में किराए पर रहता है. यहां बढ़ई का काम करता है. मेरे बच्चों का अपहरण इस ने ही रूबी के कहने पर किया होगा.’’

”तुम ने हमें नई जानकारी दी है. हम नितिन को चैक करते हैं.’’ टीम इंचार्ज अजय धनखड़ उठते हुए बोले. वह टीम के साथ बाहर आ गए. राहुल की जानकारी से इस केस में नया मोड़ आ गया था.

एंटी गैंगस्टर यूनिट (क्राइम ब्रांच) की टीम को राहुल के बयान से एक नई राह मिल गई थी. वह उसी दिशा में काम कर रही थी. 2 दिन बीत गए थे, लेकिन अभी तक रूबी के लापता हुए दोनों बेटों वंश और यश का कुछ पता नहीं चला था. रूबी 2 दिनों से थाना सिविल लाइंस के चक्कर लगा रही थी, उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया था.

एसएचओ सतबीर उसे एक ही बात कहते, ”धीरज रखो, तुम्हारे बच्चों की खोज जारी है, वह शीघ्र मिल जाएंगे. उन्हें सकुशल हासिल किया जाएगा.’’

इधर एंटी गैंगस्टर यूनिट के एसआई सबल सिंह टीम के साथ उस स्कूल में पहुंच गए थे, जहां वंश और यश पढ़ते थे. स्कूल प्रशासन का कहना था, ”21 फरवरी को दोनों बच्चों को उन की मां रोज की तरह स्कूल छोडऩे आई थी. दोनों बच्चे दोपहर में स्कूल की छुट्टी होने तक स्कूल में ही थे. फिर छुट्टी के बाद अपने घर के लिए निकल गए थे.’’

बच्चे स्कूल से अपने घर आदर्श नगर के लिए पैदल ही जाते थे तो जाहिर सी बात थी स्कूल और घर के बीच ही उन का अपहरण किया गया होगा.

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                                                 मृतक यश और वंश

एंटी गैंगस्टर यूनिट टीम स्कूल के आसपास लगे सीसीटीवी चैक करना चाहती थी. स्कूल के सामने वाली सड़क पर सीसीटीवी कैमरा था, जो मुख्य दरवाजे को कवर कर रहा था. यूनिट टीम ने उस सीसीटीवी कैमरे की फुटेज हासिल कर के देखी तो उन के चेहरे खुशी से चमक उठे.

21 फरवरी की फुटेज में वंश और यश स्कूल के मेनगेट से थोड़ा आगे एक बाइक पर बैठते दिखाई दे गए. बाइक को पकड़ कर जो व्यक्ति खड़ा था, वह लंबे कद वाला दुबलापतला था. एंटी गैंगस्टर यूनिट वाले उसे उस कैमरे की फुटेज में नहीं पहचान पाए. आगे लगे दूसरे कैमरों की फुटेज देखी गई तो यूनिट के लोगों की बांछें खिल गईं.

आगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में उस बाइक वाले का चेहरा साफ दिखाई दे रहा था. वंश और यश बाइक के पीछे जिस इत्मीनान से बैठे थे, उस से लग रहा था कि वह बाइक वाले से अच्छी तरह परिचित हैं. अनुमान लगाया गया कि यह रूबी का प्रेमी नितिन ही होगा.

नितिन को दबोचना जरूरी था. क्योंकि बच्चे वही ले कर गया था. एंटी गैंगस्टर यूनिट के टीम प्रभारी अजय घनखड़ के नेतृत्व में सेक्टर-27 के कबीरपुर में पहुंच गई. नितिन का घर ढूंढने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा.

यह यूनिट टीम अभी नितिन के घर पहुंची भी नहीं थी कि घर की छत से कोई भागने के चक्कर में नीचे कूदा. यूनिट की टीम उस की तरफ दौड़ी, लेकिन वह कूद कर भागने लायक नहीं रह गया था. उस की टांग टूट गई थी. दर्द से वह बुरी तरह चीखने लगा था.

”कौन हो तुम?’’ टीम इंचार्ज अजय धनखड़ ने उसे घूरते हुए पूछा.

”नितिन,’’ वह दर्द से कराहते हुए बोला.

एंटी गैंगस्टर यूनिट टीम ने उसे वैन में डाल लिया और सोनीपत के जिला अस्पताल में ले आए. उसे वहां उपचार के लिए भरती करवा दिया गया. डाक्टरों को जब मालूम हुआ कि यह व्यक्ति मुलजिम है और साथ में पुलिस की टीम है तो उस की टूटी हुई टांग का तुरंत एक्सरे आदि कर के प्लास्टर चढ़ा दिया गया. नितिन दर्द सह सके, इस के लिए उसे पेनकिलर दवा दे दी गई.

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                                                          हत्यारोपी नितिन

जब नितिन थोड़ा सामान्य हुआ तो एंटी गैंगस्टर यूनिट इंचार्ज अजय धनखड़ ने उस से पूछताछ शुरू की. बगैर भूमिका बांधे उन्होंने नितिन से सवाल किया, ”नितिन, तुम 21 फरवरी को वंश और यश को स्कूल पास से बाइक पर बिठा कर कहां ले गए थे?’’

”हम घूमने गए थे साहब,’’ नितिन ने हलकी कराहट के साथ बताया, ”बच्चे कई दिनों से घूमने की जिद कर रहे थे मुझ से.’’

”ओह!’’ अजय घनखड़ उस के सफेद झूठ पर मुसकराए, ”घूमने गए थे तो, तुम ने वापसी में दोनों बच्चों को कहां छोड़ा था? बच्चे तो उस दिन घर पहुंचे ही नहीं.’’

”मैं ने तो दोनों को आदर्श नगर में ही छोड़ा था साहब, मुझे नहीं पता फिर बच्चे कहां गए.’’ इस बार भी उस ने सफेद झूठ बोला था.

अजय धनखड़ ने उस के प्लास्टर वाली टांग पर जोर से प्रहार किया तो नितिन दर्द से बिलबिला कर बुरी तरह चीखा.

”झूठ बोलोगे तो मैं तुम्हारी टांग दोबारा तोड़ दूंगा. मुझे सचसच बताओ, वंश और यश कहां हैं?’’

”मैं ने उन्हें मार दिया साहब,’’ नितिन ने कराहते हुए खुलासा किया तो एंटी गैंगस्टर यूनिट की टीम के लोग स्तब्ध रह गए.

थोड़ी देर तक सभी सदमे में रहे. टीम इंचार्ज अजय धनखड़ ने चुप्पी तोड़ी, ”तुम ने बच्चों की हत्या कहां की थी?’’

”साहब, बागपत के पास बाघु और नौराजपुर गांव के बीच में गौरीपुर गांव के गन्ने के खेत हैं. मैं दोनों बच्चों को घुमाने के बहाने से गन्ने के खेत में ले गया और बारीबारी से उन की गरदन दबा कर उन्हें मार दिया है. उन की लाश गन्ने के खेत में ही छिपा दी थी मैं ने.’’ नितिन बोला.

”एक बात बताओ, तुम और रूबी एकदूसरे से गहरा प्रेम करते थे फिर तुम को वंश और यश की हत्या करने की क्यों सूझी. उन मासूम बच्चों से तुम्हें क्या परेशानी थी?’’ प्रभारी अजय धनखड़ ने पूछा.

”साहब, वे बच्चे राहुल के थे. रूबी मुझ पर शादी का दबाब डाल रही थी. मैं उसे अपनाने को तैयार था, लेकिन मैं नहीं चाहता था कि मेरे साथ शादी के बंधन में बंध जाने के बाद वह पिछली शादी की यादें मेरे घर, मेरी जिंदगी में लाए. पहले रूबी कहती थी कि बच्चे उस की स्वर्गवासी बहन के हैं. बाद में मुझे मालूम हुआ कि बच्चे रूबी के ही हैं.

”इस बात पर मेरा रूबी से कई बार झगड़ा हुआ, लेकिन रूबी बच्चों को खुद से दूर करने को राजी नहीं हुई तो मैं ने मन ही मन कठोर निर्णय कर लिया कि मैं बच्चों को रास्ते से हटाने के लिए उन की हत्या कर दूंगा.

”मैं ने यही किया. रूबी ने थाने में बच्चों की गुमशुदगी लिखवा दी थी. तब मैं ने रूबी को बता दिया कि मैं वंश और यश की हत्या कर चुका हूं. रूबी थोड़ी देर रोई, फिर मेरे प्यार की खातिर वह खामोश हो गई. अब वह मुझ से शादी करना चाहती है.’’ नितिन इतना बता कर चुप हो गया.

”कैसी खुदगर्ज औरत है यह. मां के नाम पर कलंक.’’ टीम इंचार्ज बड़बड़ाए.

दोनों बच्चे अब इस दुनिया में नहीं रहे थे. उन की मौत की खबर रूबी को देने पर उसे किसी प्रकार का शाक नहीं लगना था, क्योंकि वह पहले से ही यह बात जानती थी. हां, इस खबर से यदि किसी को दुख पहुंचता तो वह रूबी का पूर्वपति राहुल था. उसे बच्चों की हत्या हो जाने की खबर देना आवश्यक थी.

यूनिट के प्रभारी अजय धनखड़ ने फोन द्वारा राहुल को फौरन सोनीपत के जिला अस्पताल में आने को कह दिया. उन्होंने टीम के एएसआई जितेंद्र और हैडकांस्टेबल प्रदीप को रूबी को यहां लाने के लिए भेज दिया. इन लोगों को यह हिदायत दी गई कि वह रूबी से अभी कुछ न बताएं.

करीब आधा घंटे में राहुल जिला अस्पताल आ गया. वह हैरान था कि यूनिट टीम के इंचार्ज अजय धनखड़ ने उसे अस्पताल में क्यों बुलाया है. उसे अजय धनखड़ बाहर गेट पर ही मिल गए. अजय धनखड़ उसे ले कर उस कमरे में आ गए जहां पर नितिन को रखा गया था.

”इसे पहचानते हो राहुल?’’ अजय धनखड़ ने नितिन की ओर इशारा कर के पूछा.

”यही तो रूबी का प्रेमी है साहब.’’ राहुल ने हैरानी से कहा, ”यह यहां? इस हाल में कैसे है?’’

अजय धनखड़ गंभीर हो गए, ”तुम्हारे बेटों की हत्या की है इस ने, हम इसे पकडऩे इस के घर गए, यह छत से भागने के इरादे से कूदा तो टांग टूट गई.’’

दोनों बेटों की हत्या हो जाने की बात पर राहुल रो पड़ा. टीम इंचार्ज उसे कंधा थपथपा कर सांत्वना देते रहे.

कुछ देर के लिए वहां का माहौल बोझिल बना रहा, फिर राहुल आंसू पोंछता हुआ एक स्टूल पर जा कर बैठ गया. उस ने रूबी को उस कक्ष में टीम के लोगों के साथ अंदर आता देख लिया था.

एएसआई जितेंद्र और हैडकांस्टेबल प्रदीप के साथ रूबी वहां आई थी. अपने प्रेमी नितिन को बैड पर पड़ा देख कर वह समझ गई कि वंश और यश की हत्या का भेद अब भेद नहीं रह गया है. वह मुंह छिपा कर रोने लगी.

”तुम्हारे आंसू अब किसी की सहानुभूति नहीं बटोर सकते रूबी, तुम मां नहीं मां के नाम पर कलंक हो. अपनी मांग में नितिन का सिंदूर सजाने के लिए तुम ने दोनों बेटों की बलि चढ़वा दी.’’ अजय धनखड़ मुंह बिगाड़ कर बोले, ”यह मालूम होते हुए भी कि नितिन तुम्हारे बच्चों की हत्या कर चुका है. तुम पुलिस के साथ उन को ढूंढ लेने की नौटंकी करती रही हो, तुम भूल गई कि अभी हम लोग जिंदा हैं, ऐसे केस का राज जगजाहिर करने के लिए हम रातदिन एक कर देते हैं.’’

”मैं प्यार में अंधी हो गई थी साहब, अपने स्वार्थहित में मैं ने अपने फूल जैसे बच्चों को खो दिया.’’ रूबी कहने के बाद फूटफूट कर रोने लगी.

टीम इंचार्ज अजय धनखड़ आगे की काररवाई में लग गए थे.

एंटी गैंगस्टर यूनिट टीम रात के समय नितिन और रूबी को साथ ले कर बागपत पहुंच गई. गौरीपुर गांव से संबधित थाने में यहां आने का मकसद बता कर उन्होंने आमद दर्ज करवाई. एसएचओ ने एसीपी नरेंद्र प्रताप सिंह को सूचना दी तो वह आधी रात को थाना में आ गए. बिना समय गंवाए सभी नितिन द्वारा बताए जा रहे गौरीपुर गांव में उस गन्ने के खेत में पहुंच गए, जहां नितिन ने वंश और यश की हत्या कर दिए जाने की बात कुबूली थी.

नितिन ने टौर्च की रोशनी में खेत में छिपा कर रखी लाशें बरामद करवा दीं. दोनों बच्चों के शरीर पर स्कूल की ड्रैस थी. उन की लाशें देख कर रूबी दहाड़े मार कर रोने लगी. वहां मौजूद सभी पुलिस वालों की आंखें भी नम हो गईं.

भारी मन से वहां की कागजी काररवाई पूरी की गई और रात के 4 बजे बच्चों की लाश ले कर एंटी गैंगस्टर यूनिट टीम वापस सोनीपत के लिए रवाना हो गई.

सिविल लाइंस थाना सेक्टर-27 में पहुंच कर टीम इंचार्ज अजय धनखड़ ने वंश और यश की लाशें पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल भिजवा दीं. नितिन ने इन बच्चों की हत्या का आरोप स्वीकार कर लिया था. उस के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 302, 364 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

एंटी गैंगस्टर टीम की सफलता पर उन्हें बधाई देने पुलिस कमिश्नर सतीश वालान, डीसीपी नरेंद्र कादयान और एसीपी नरसिंह थाने में आ गए. इस मामले में एसएचओ सतबीर सिंह, कोर्ट के पास वाली ओल्ड चौकी इंचार्ज एसआई रोहित तथा एसआई शिव माणी और हैडकांस्टेबल टीकम का भी योगदान था. सभी की पीठ थपथपा कर उच्चाधिकारियों ने शाबाशी दी.

नितिन और रूबी को उसी दिन कोर्ट में पेश किया गया. नितिन को न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया. रूबी की ओर से उस के पिता हरपाल सिंह ने बेटी की शक्ल देखने से मना कर दिया था, अत: कोर्ट ने रूबी को नारी निकेतन भेज दिया.

पोस्टमार्टम हो जाने के बाद दोनों बच्चों के शव राहुल को सौंप दिए गए. उस ने परिजनों के साथ नम आंखों से बच्चों का अंतिम संस्कार कर दिया. अब उस के पास बच्चों की यादों के अलावा कुछ भी नहीं बचा था.