साधु के वेश में 23 साल बाद मिला कातिल प्रेमी – भाग 2

इन दिनों सूरत की पुलिस ने मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की मुहिम शुरू कर रखी है. पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा ने 3 सितंबर, 2001 को विजय साचीदास नाम के युवक की हत्या कर दी थी, वह सूरत से भाग गया था. पुलिस उसे सालों तक सूरत और उस के पैतृक गांव ओडिशा के गंजाम जिले में तलाश करती रही. वह हाथ नहीं लगा तो उस पर 45 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया गया. निराश हो कर इस केस की फाइल बंद कर दी गई.

23 साल बाद पकड़ा गया हत्यारा

23 साल बाद विजय साचीदास हत्याकांड की फाइल फिर से खोली गई. पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने भगोड़े मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की मुहिम शुरू की थी. इसी मुहिम के तहत पीसीबी (प्रिवेशन औफ क्राइम ब्रांच) के 2 एएसआई और एक हैडकांस्टेबल को विजय साचीदास हत्याकांड की फाइल सौंपी गई.

हत्यारे पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा के बारे में पुलिस को पता चला कि वह पुलिस से बचने के लिए साधु बन गया है और इस समय उत्तर प्रदेश में रह रहा है. उसे ढूंढते हुए यह टीम मथुरा आई. साधु वेश बना कर इस टीम ने 8 दिनों में 100 से अधिक धार्मिकस्थल, आश्रम और मठों की खाक छानी. इसी दौरान एक सर्विलांस टीम ने सूचना दी कि पदम साधु बना हुआ मथुरा के नंदगांव में रह रहा है, इसलिए यह टीम साधु के वेश में कुंजकुटी आश्रम में पहुंची.

पदम उन्हें कुंजकुटी आश्रम में मिला. साधु वेश धारण कर के 23 साल से वह यहां छिपा बैठा था. तेजतर्रार अपराध शाखा की टीम ने उसे अपनी सूझबूझ से ढूंढ निकाला. पदम उर्फ चरण पांडा की कनपटी पर रिवौल्वर रख कर एएसआई सहदेव ने अपने साथियों को इशारा किया. वह तुरंत पदम के सिर पर पहुंच गए.

पदम को घेर कर हथकड़ी लगा दी गई.

आश्रम में हडक़ंप मच गया. एक साधु जो 23 साल से कुंजकुटी आश्रम में रह रहा था, उस के हाथ में हथकड़ी देख कर सभी आश्रमवासी चौंक गए.

एएसआई सहदेव ने उन्हें इस साधु पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा की हकीकत बताई तो सभी दंग रह गए. एक हत्यारा 23 सालों से साधु बन कर वहां रह रहा था. अपराध शाखा की टीम पदम उर्फ चरण पांडा को ले कर 28 जून, 2023 को मथुरा से सूरत के लिए रवाना हो गई. जाने से पहले उन्होंने नंदगांव पुलिस चौकी के इंचार्ज सिंहराज के पास अपनी रवानगी दर्ज करवा दी थी.

पदम को रजनी से हुआ प्यार

पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा मूलरूप से ओडिशा के गंजाम जिले के श्रीराम नगर इलाके का निवासी था. उस का मांबाप और बहनभाई का एक बड़ा परिवार था, लेकिन इस परिवार के गुजरबसर के लिए ज्यादा कमाई नहीं थी. पदम के पिता मजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार की गाड़ी को धकेल रहे थे.

पदम जवान हुआ तो घर की गरीबी उस से देखी नहीं गई. वह काम की तलाश में ट्रेन में सवार हो कर सूरत शहर आ गया. बहुत कम पढ़ालिखा था, इसलिए कोई अच्छी नौकरी तो मिलने वाली नहीं थी, मेहनत मजदूरी पदम करना नहीं चाहता था. यही करना था तो गंजाम जिले में ऐसे कामों की कमी नहीं थी.

बहुत सोचविचार कर के पदम ने गांधी चौराहे पर थोड़ी सी जगह ढूंढ कर भजिया (पकौड़े) की रेहड़ी लगा ली. पदम का यह काम चल निकला. उस ने शांतिनगर सोसायटी में रहने के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया. भजिया रेहड़ी से अच्छी कमाई हो रही थी. पदम बनसंवर कर रहने लगा. कमरे का किराया और अपना खर्चा निकाल कर वह अब गंजाम में अपने मांबाप के पास बचा हुआ पैसा भेजने लगा था.

शांतिनगर सोसायटी में ही किराए पर रजनी नाम की युवती रहती थी. रजनी 23 साल की साढ़े 5 फुट की नवयौवना थी. रंग गोरा, नाकनक्श तीखे, होंठ संतरे के फांक जैसे. जवानी के बोझ से लदी रजनी को देख कर कोई भी फिदा हो सकता था. पदम की नजर सीढिय़ों से उतरते हुए रजनी पर पड़ी तो वह उस के रूपयौवन का दीवाना हो गया. पहली नजर में ही उस को रजनी से प्यार हो गया.

रजनी ने भी किया प्यार का इजहार

वह रोज सीढिय़ों से चढ़ कर ऊपर तीसरी मंजिल पर अपने कमरे में जाता तो रजनी के कमरे के सामने तब तक रुकता था, जब तक रजनी दरवाजे पर नहीं आ जाती थी. रजनी यह भांप चुकी थी कि इसी सोसाइटी में रहने वाला यह युवक उस का दीवाना है. अब वह पदम के शाम को लौट कर आने के वक्त पर खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी होने लगी थी.

उस की नजरें पदम से टकरातीं तो वह शरम से नजरें झुका लेती, ठंडी सांस भर कर आह भरता हुआ पदम सीढिय़ां चढ़ जाता था. पदम यह महसूस कर चुका था कि रजनी उसे चाहने लगी है. उस से मेलजोल बढ़ाने के इरादे से एक शाम वह भजिया मिर्च को अखबार में पैक कर के ले आया. रजनी अन्य दिनों की तरह उस दिन भी दरवाजे पर खड़ी मिली. पदम ने हिम्मत बटोर कर भजियामिर्च का पैकेट रजनी की तरफ बढ़ा दिया.

“क्या है इस में?” पहली बार उस की कोयल जैसी आवाज पदम के कानों में पड़ी.

“आप खुद देख लीजिए” पदम कह कर तेजी से सीढ़ियां चढ गया. दिन में रजनी उसे दिखाई नहीं देती थी, शायद वह कहीं काम पर जाती थी, लेकिन सुबह जब पदम सीढ़ियां उतर कर नीचे आया तो रजनी अपने दरवाजे पर खड़ी दिखाई दी.

पदम को देख कर वह मुसकराई, “भजिया स्वादिष्ट थी. कहां से लाए थे?”

“मेरे ठेले की है. मैं गांधी चौक पर भजिया का ठेला लगाता हूं, आप को भजिया स्वादिष्ट लगी है तो मैं रोज शाम को ले आया करूंगा.” पदम के स्वर में उत्साह भरा था.

“नहीं, अब तो मैं तुम्हारे पास गांधी चौक पर आ कर ही भजिया खाया करूंगी,” रजनी ने हंस कर कहा.

“मैं एक शर्त पर आप को भजिया खिलाऊंगा.”

“कैसी शर्त?”

“आप भजिया के पैसे नहीं देंगी.”

“ऐसा क्यों?” हैरानी से रजनी ने पूछा.

“अपनों से कोई पैसा नहीं लेता,” पदम ने हिम्मत बटोर कर कह डाला, “आप को दिल से प्यार करने लगा हूं मिस…”

हया से सिर झुका कर बोली रजनी, “मेरा नाम रजनी है, मैं भी आप को चाहने लगी हूं.”

पदम खुशी से उछल पड़ा. उस ने रजनी का हाथ पकड़ कर चूम लिया. रजनी शरमा कर अंदर भाग गई.

प्यार में मिला धोखा

उस दिन के बाद से रजनी शाम को उस के ठेले पर आने लगी. पदम उसे भजिया खिलाता. इस बीच दोनों प्यार भरी बातें करते. ये मुलाकातें भजिया की ठेली से हट कर सूरत के पिकनिक स्पौट, सिनेमा हाल और रेस्टोरेंट तक पहुंच गईं. पदम जो कमाता था, वह रजनी पर खर्च करने लगा. वह रजनी को सच्चे दिल से चाहने लगा था. रजनी से वह शादी करने का प्लान भी बना रहा था. रजनी से उस ने वादा भी ले लिया था कि वह उस से शादी करेगी.

दिल मांगे मोर – भाग 1

दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम को दोपहर 3 बजे के आसपास सूचना मिली कि मदनपुर खादर के श्रीराम चौक से आगे यमुना खादर की झाडि़यों में एक लाश पड़ी है. चूंकि यह इलाका दक्षिणपूर्वी  जिले के थाना जैतपुर के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना जैतपुर को दे दी. इसी के साथ पीसीआर वैन भी सूचना में बताए पते पर रवाना कर दी गई. यह 10 दिसंबर, 2013 की बात है.

थाने में उस समय इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर मौजूद थे. जैसे ही उन्हें थानाक्षेत्र में लाश पड़ी होने की सूचना मिली, वह सबइंसपेक्टर नरेंद्र, हेमंत कुमार, हेडकांस्टेबल बलिंदर को ले कर श्रीराम चौक के लिए रवाना हो गए. श्रीराम चौक थाने से करीब 200 मीटर दूर था, इसलिए 5 मिनट में ही सभी वहां पहुंच गए.

वहां उन्हें पता चला कि लाश पुश्ता से करीब 500 मीटर दूर यमुना खादर की झाडि़यों में पड़ी है. वहीं से झाडि़यों के पास कुछ लोग खड़े दिखाई दिए तो इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर साथियों के साथ उसी जगह पहुंच गए. वहां पीसीआर वैन भी खड़ी थी. झाडि़यों के बीच में एक युवक की लाश पड़ी थी. उस की उम्र 25-30 साल रही होगी. वह युवक जींस और गुलाबी रंग का स्वेटर पहने था. उस का सिर और चेहरा कुचला हुआ था. पास ही एक ईंट पड़ी थी, जिस पर खून लगा था. उस में कुछ बाल भी चिपके हुए थे.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने इसी ईंट से इस का चेहरा इसलिए कुचला होगा, ताकि लाश की शिनाख्त न हो सके. लाश देख कर ही लग रहा था कि चेहरे और गरदन का मांस किसी जानवर ने खाया है. चेहरा कुचला होने की वजह से वहां मौजूद कोई भी आदमी लाश की शिनाख्त नहीं कर सका. तलाशी लेने पर उस की जेब से एक पर्स मिला, जिस में 6 फोटोग्राफ्स थे. उन में से 2 फोटोग्राफ्स पुरुष के थे और 4 किसी महिला के.

इस के अलावा पर्स में कुछ विजिटिंग कार्ड्स भी थे. वे सभी एसी, कूलर की सर्विस आदि से संबंधित थे. जेब में 1400 रुपए नकद के अलावा बैंक में पैसे जमा करने की एक स्लिप भी थी. वह स्लिप जामिया कोऔपरेटिव बैंक मदनपुर खादर की थी, जिस से नबी मोहम्मद ने शहनाज के खाते में जुलाई महीने में 40 हजार रुपए जमा किए थे. मृतक की जेब से नकदी मिलने के बाद यह तो साफ हो गया था कि हत्या लूट के लिए नहीं की गई थी.

हत्या क्यों की गई और किस ने की, यह जांच का विषय बाद का था. सब से पहला काम लाश की शिनाख्त कराना था. उस की जेब से जो विजिटिंग कार्ड्स मिले थे, पुलिस ने उन में लिखे फोन नंबरों पर संपर्क किया तो उन में से किसी से मृतक के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

अब पुलिस के पास केवल बैंक पर्ची बची थी. इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर ने आगे की जांच के लिए 2 कांस्टेबलों को जामिया कोऔपरेटिव बैंक भेज दिया. वहां से पता चला कि वह एकाउंट जिस शहनाज के नाम था, वह शाहीन बाग में रहती थी. वहां से शहनाज का मोबाइल नंबर भी मिल गया था.

घटनास्थल पर पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की मोर्चरी में रखवा दिया. इस ब्लाइंड मर्डर को सुलझाने के लिए डीसीपी डा. पी. करुणाकरन ने सरिता विहार के एसीपी विपिन कुमार नायर की देखरेख में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी अरविंद कुमार, इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर, एसआई नरेंद्र, हेमंत कुमार, रोहित कुमार, हेडकांस्टेबल बलिंदर, रविंदर, कांस्टेबल विकास, कुलदीप, निरंजन, मामचंद, बृजपाल, हवा सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस को बैंक से शहनाज का जो फोन नंबर मिला था, उसे अपने फोन से मिलाया. फोन इरफान नाम के किसी आदमी ने उठाया. इंसपेक्टर तोमर ने कहा, ‘‘हमें यमुना खादर की झाडि़यों से एक युवक की लाश मिली है. मरने वाले की जेब से कुछ फोटो भी मिले हैं. उन फोटोग्राफ्स को पहचानने के लिए तुम थाना जैतपुर आ जाओ.’’

‘‘सर, मैं तो इस समय बाहर हूं, लेकिन अपने छोटे भाई को थाने भेज रहा हूं.’’ इरफान ने जवाब दिया.

आधे घंटे बाद ही इरफान का भाई थाने आ गया. पुलिस ने जब उसे वे फोटो दिखाए तो उस ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. इंसपेक्टर तोमर ने अपने मोबाइल फोन से लाश के कुछ फोटो खींच लिए थे. खींचे गए वे फोटो जब उसे दिखाए गए तो वह लाश को भी नहीं पहचान सका. इस के 2 घंटे बाद इरफान भी थाने आ गया.

इंसपेक्टर तोमर ने जब पर्स में मिले फोटो उसे दिखाए तो फोटो देखते ही वह बोला, ‘‘ये फोटो तो नबी मोहम्मद के हैं.’’

यह जरूरी नहीं था कि पर्स में नबी मोहम्मद के फोटो मिले थे तो लाश भी उसी की रही हो. इसलिए उन्होंने मोबाइल फोन से खींचे गए लाश के फोटो इरफान को दिखाए तो उस ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. इरफान से पूछताछ में पता चला कि नबी मोहम्मद नोएडा के गांव कुलेसरा का रहने वाला था. चूंकि उस दिन अंधेरा घिर चुका था, इसलिए पुलिस ने अगले दिन नोएडा जाने का कार्यक्रम बनाया.

11 दिसंबर, 2013 को एक पुलिस टीम नोएडा के कुलेसरा स्थित नबी मोहम्मद के घर पहुंची. वहां नबी मोहम्मद की बीवी नूर फातिमा मिली. पुलिस ने जब उस से उस के पति के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘वह कल से कहीं गए हुए हैं. लेकिन मुझे बता नहीं गए कि वह कहां गए हैं? वैसे भी वह अकसर घर से बिना बताए 2-3 दिनों के लिए गायब हो जाते हैं. आज या कल लौट आएंगे. मगर आप लोग उन के बारे में क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘दरअसल कल दिल्ली के यमुना खादर में एक लाश मिली है. थाने चल कर तुम लाश के फोटो और सामान देख लो.’’ पुलिस वालों ने कहा तो नूर फातिमा उन के साथ थाना जैतपुर आ गई.

इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर ने अपने मोबाइल फोन से खींचे गए लाश के फोटो पर फातिमा को दिखाए तो वह बोली, ‘‘वह कपड़े तो इसी तरह के पहने हुए थे, लेकिन चेहरा कुचला होने की वजह से पहचान में नहीं आ रहा है.’’

मृतक के पर्स से जो फोटो मिले थे, पुलिस ने उन्हें भी नूर फातिमा को दिखाए. पता चला कि उन में से 2 फोटो नबी मोहम्मद के थे और 4 नूर फातिमा के. लाश की शिनाख्त के लिए पुलिस नूर फातिमा को एम्स की मोर्चरी ले गई. लाश का चेहरा भले ही कुचला हुआ था, मगर कपड़े और कदकाठी से उस ने तुरंत पहचान लिया. लाश उस के पति नबी मोहम्मद की ही थी. फातिमा फफकफफक कर रोने लगी.

साधु के वेश में 23 साल बाद मिला कातिल प्रेमी – भाग 1

उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी मथुरा के बरसाना का नंदगांव यहीं है कुंजकुटी आश्रम. तपती 25 जून, 2023 को जून की गरमी से बेहाल 3 साधुओं की टोली कुंजकुटी आश्रम के दरवाजे पर आ कर रुक गई. इन के शरीर पर लाल, पीले रंग के साधुओं वाले कपड़े थे, तीनों ने सिर पर सफेद, भगवा अंगौछे बांध रखे थे. गले में रुद्राक्ष की माला और माथे पर चंदन का लेप था. तीनों साधु पसीने से तरबतर थे.

कंधे पर लटक रही लाल रंग की झोली से भगवा रुमाल निकाल कर चेहरे का पसीना पोंछते हुए एक साधु हैरत से बोला, “दरवाजे पर क्यों रुक गए गुरुदेव, भीतर प्रवेश नहीं करेंगे क्या?”

“मछेंद्रनाथ, मैं किसी आश्रम वासी के बाहर आने की राह देख रहा हूं. बगैर इजाजत लिए किसी भी जगह प्रवेश करना उचित नहीं होता.”

“आप का कहना ठीक है गुरुदेव,” मछेंद्रनाथ विचलित हो कर बोला, “लेकिन मुझे जोरों की भूख लग रही है. हम अंदर जाते तो मैं पेट की भूख शांत कर लेता.”

उस की बात पर दोनों साधु हंसने लगे. हंसते हुए गुरुदेव, जिन का नाम हरिहरनाथ था, बोले, “देखा कालीनाथ, इस पेटू मछेंद्र को, इसे खाने के अलावा कुछ नहीं सूझता.”

फिर वह मछेंद्रनाथ की तरफ पलटे और कुछ कहना ही चाहते थे कि आश्रम के दरवाजे पर एक भगवा वस्त्र धारी दुबलापतला साधु आ गया.

“आप दरवाजे पर क्यों रुक गए?” उस साधु के स्वर में हैरानी थी, “कोई और आने वाला है क्या?”

“नहीं महाराज, हम तो अंदर आने की इजाजत की प्रतीक्षा में यहां रुक गए थे.” हरिहरनाथ ने मुसकरा कर कहा.

“यहां इजाजत कौन देगा जी, गुरुजी की ओर से इस आश्रम में हर किसी को आने की छूट है. आप लोग अंदर आ जाइए.”

हरिहरनाथ अपनी साधु टोली के साथ अंदर आ गए. आश्रम में एक ओर रहने के लिए कमरे बने हुए थे. सामने दाहिनी ओर छप्परनुमा शेड था. नीचे चबूतरा था, इस के बीच में अग्निकुंड बना हुआ था. अग्निकुंड में लकडिय़ों की धूनी सुलग रही थी. उस के आसपास कई जटाधारी साधु बैठे हुए थे. कुछ चिलम पी रहे थे. कुछ आपस में बातें कर रहे थे. एक साधु बैठा हुआ कोई धार्मिक ग्रंथ पढऩे में तल्लीन था.

तीनों साधुओं को वहां लाने वाला साधु आदर से बोला, “आप लोग चाहें तो स्नान आदि कर लीजिए. मैं आप के खाने का बंदोबस्त करता हूं, खापी कर आप आराम कर लेना. गुरुदेव अपने कक्ष में हैं, उन से आप की भेंट शाम को 5 बजे होगी.”

“ठीक है महाराज,” हरिहर मुसकरा कर बोले.

वह अपनी टोली के साथ आश्रम के कोने में लगे हैंडपंप पर आ गए. उन्होंने बाहर ही हैंडपंप पर नहानाधोना किया. फिर चबूतरे पर आ गए. उन्हें वहां भोजन परोसा गया. खापी लेने के बाद वे चटाइयों पर विश्राम करने के लिए लेट गए.

अन्य साधुओं से बढ़ाई घनिष्ठता

शाम को उन की मुलाकात इस आश्रम के गुरु महाराज से हुई. वह वयोवृद्ध थे. उन्हें हरिहरनाथ ने हाथ जोड़ कर प्रणाम करने के बाद बताया, “हम काशी विश्वनाथ होते हुए मथुरा आए थे. यहां आप के आश्रम कुंजकुटी की बहुत चर्चा सुनी तो आप के दर्शन करने आ गए. हम यहां कुछ दिन ठहरना चाहेंगे गुरुदेव.”

“आप का आश्रम है हरिहरनाथ, आप अपनी मंडली के साथ ताउम्र यहां रहिए. यह साधुसंतों का डेरा है, यहां कोई भी कभी भी आजा सकता है.”

“धन्यवाद गुरुदेव,” हरिहरनाथ ने कहा.

गुरु महाराज के पास से उठ कर हरिहरनाथ ने चबूतरे के एक कोने में अपने उठने बैठने की व्यवस्था कर ली. तीनों ने वहां चटाइयां बिछा कर बिस्तर लगा लिया.

2-3 दिनों में ही हरिहरनाथ, मछेंद्रनाथ और कालीनाथ वहां आनेजाने और रहने वाले साधुसंतों से घुलमिल गए थे. वह उन से आध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा करते. अपना मोक्ष पाने के लिए साधु वेश धारण करने की बात बता कर यह पूछते कि वह साधु क्यों बने? यह वेश धारण कर के उन्हें कैसा अनुभव हो रहा है?

आज उन्हें कुंजकुटी आश्रम में रुके हुए 4 दिन हो गए थे. गुरु हरिहरनाथ आज सुबह से ही उस साधु के साथ चिपके हुए थे जो पहले दिन उन्हें सब से अलग बैठा कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ता दिखाई दिया था. यह 50 वर्ष से ऊपर का व्यक्ति था. दुबलापतला गेहुंए रंग का वह व्यक्ति लाल कुरता, पीली जैकेट और लुंगी पहनता था. उस की दाढ़ीमूंछ के बालों में सफेदी झलकने लगी थी. यह साधु पहले दिन से ही सभी से अलगथलग रहने वाला दिखाई दिया था.

हरिहरनाथ ने शाम को खाना खा लेने के बाद उस के साथ गांजे की चिलम भर कर पी. गांजे का नशा हरिहरनाथ के दिमाग पर छाने लगा तो वह सिर झटक कर बोले, “मजा आ गया आप की चिलम में महाराज, मैं ने पहली बार गांजा की चिलम पी है. यह नशा मेरा सिर घुमा रहा है.”

“मैं रोज पीता हूं हरिहरनाथ. इसे पी लेने के बाद न अपना होश रहता है, न दुनिया की फिक्र.”

“क्यों क्या आप का इस दुनिया में अपना कोई नहीं है?” हरिहरनाथ ने पूछा.

“थे. मांबाप, बहनभाई और…” बतातेबताते वह रुक गया.

“एक पत्नी.” हरिहरनाथ ने उस की बात को पूरा किया, “क्यों मैं ने ठीक कहा न?”

वह साधु हंस पड़ा, “पत्नी नहीं थी, वह मेरी प्रेमिका थी, मैं उसे बहुत प्यार करता था.”

“प्यार करते थे तो पत्नी क्यों नहीं बना सके उसे?”

“वह बेवफा निकली हरिहर,” वह साधु गहरी सांस भर कर बोला, “उस ने किसी और से दिल लगा लिया था.”

“ओह!” हरिहरनाथ ने अफसोस जाहिर किया, “ऐसी बेवफा प्रेमिका को तो सजा मिलनी चाहिए थी. मेरी प्रेमिका ऐसा करती तो मैं उस का गला काट देता.”

“नहीं हरिहर, मैं ने उस बेवफा से सच्ची मोहब्बत की थी. मैं उस के गले पर छुरी नहीं चला सकता था. मैं ने उस को नहीं, उस के प्रेमी को यमलोक पहुंचा दिया.”

“ओह! आप ने अपनी प्रेमिका के यार को ही उड़ा डाला.” हरिहर हैरानी से बोले, “फिर तो आप को कत्ल के जुर्म में सजा हुई होगी.”

गांजे के नशे में आई सच्चाई बाहर

चिलम का एक गहरा कश लगा कर धुंआ ऊपर छोड़ते हुए वह साधु हंसने लगा, “सजा किसे मिलती महाराज, कातिल तो कत्ल कर के फुर्र हो गया था. आज 23 साल हो गए उस बात को, मैं साधु बन कर यहां बैठा हूं, पुलिस वहां मेरे लिए हाथपांव पटक रही है. सुना है, मुझ पर 45 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया है पुलिस कमिश्नर ने.” साधु फिर हा…हा… कर के हंसने लगा.

हंसी थमी तो बोला, “हरिहर, मुझ पर पुलिस 45 हजार क्या 45 लाख का इनाम घोषित कर दे, तब भी वह मुझे नहीं पकड़ पाएगी.”

हरिहर के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. वह कमर की ओर हाथ बढ़ाते हुए बोले, “तुम ने सुन रखा होगा मिस्टर पदम, कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं. देख लो, फांसी का फंदा तुम्हारे गले तक पहुंच गया.”

“पदम,” वह साधु चौंक कर बोला, “तुम मेरा नाम कैसे जानते हो हरिहर?”

हरिहर का हाथ कमर से निकल कर बाहर आया तो उस में रिवौल्वर था. रिवौल्वर साधु की कनपटी पर सटा कर हरिहर गुर्राए, “मैं तेरा नाम भी जानता हूं और तेरा भूगोल भी. तू सूरत में विजय साचीदास की हत्या कर के फरार हो गया था. आज 23 साल बाद तू हमारी पकड़ में आया है.”

आप को बताते चलें कि साधु के वेश में यह सूरत की क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार एएसआई सहदेव थे, इन के साथ जो 2 साधु वेशधारी मछेंद्रनाथ और कालीनाथ थे, उन के नाम जनार्दन हरिचरण और अशोक थे. ये दोनों भी सूरत की क्राइम ब्रांच में एएसआई और हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात हैं.

आरजू की लाश पर सजाई सेज

दरोगा की टेढ़ी सोच

प्रियंका को जल्दीजल्दी तैयार होता देख उस की मां चित्रा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, आज कहीं जल्दी जाना है क्या, जो इतनी  जल्दी उठ कर तैयार हो गई?’’

‘‘हां मम्मी, परसों जो मैडम आई थीं, जिन्हें मैं ने अपने फोटो, आई कार्ड और सीवी दिया था, उन्होंने बुलाया है. कह रही थीं कि उन्होंने अपने अखबार में मेरी नौकरी की बात कर रखी है. इसलिए मुझे टाइम से पहुंचना है.’’

प्रियंका ने कहा तो चित्रा ने टिफिन में खाना पैक कर के उसे दे दिया. प्रियंका ने टिफिन अपने बैग में रखा और शाम को जल्दी लौट आने की बात कह कर बाहर निकल गई.   कुछ देर बाद प्रियंका के पापा जगवीर भी अपने क्लीनिक पर चले गए तो चित्रा घर के कामों में व्यस्त हो गई. उस दिन शाम को करीब साढ़े 5 बजे जगवीर सिंह के मोबाइल पर उन के साले ओमदत्त का फोन आया.

ओमदत्त ने उन्हें बताया, ‘‘जीजाजी, मेरे फोन पर कुछ देर पहले प्रियंका का फोन आया था. वह कह रही थी कि बच्चू सिंह ने अपने बेटे राहुल और कुछ बदमाशों की मदद से उस का अपहरण करवा लिया है और वह अलीगढ़ के पास खैर इलाके के वरौला गांव में है.’’

ओमदत्त की बात सुन कर जगवीर सिंह की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. उन्होंने जैसेतैसे अपने आप को संभाला और क्लीनिक बंद कर के घर आ गए. तब तक उन का साला ओमदत्त भी उन के घर पहुंच गया था. मामला गंभीर था. विचारविमर्श के बाद दोनों गाजियाबाद के थाना कविनगर पहुंचे और लिखित तहरीर दे कर 25 वर्षीया प्रियंका के अपहरण की नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी.

जगवीर सिंह सपरिवार गोविंदपुरम गाजियाबाद में किराए के मकान में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी चित्रा के अलावा 3 बच्चे थे—बेटी प्रियंका और 2 बेटे पंकज व तितेंद्र. उन का बड़ा बेटा पंकज एक टूर ऐंड ट्रैवल कंपनी की गाड़ी चलाता था, जबकि छोटा तितेंद्र सरकारी स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा था.

जगवीर सिंह ने 7 साल पहले प्रियंका की शादी गुलावठी के धर्मेंद्र चौधरी के साथ कर दी थी. धर्मेंद्र एक ट्रैवल एजेंसी में काम करता था. शादी के 1 साल बाद प्रियंका एक बेटे की मां बन गई थी, जो अब 6 साल का है. आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से जगवीर अपने बच्चों को अधिक पढ़ालिखा नहीं सके. उन का छोटा सा क्लीनिक था, जहां वह बतौर आरएमपी प्रैक्टिस करते थे. यही क्लीनिक उन की आय का एकमात्र साधन था.

प्रियंका शहर में पलीबढ़ी महत्त्वाकांक्षी लड़की थी. शादी के बाद गांव उसे कभी भी अच्छा नहीं लगा. इसी को ले कर जब पतिपत्नी में अनबन रहने लगी तो प्रियंका ने पति से अलग रहने का निर्णय ले लिया और बेटे सहित धर्मेंद्र का घर छोड़ कर मातापिता के पास गाजियाबाद आ गई. जगवीर सिंह की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब थी. बेटे सहित प्रियंका के मायके आ जाने से उन के पारिवारिक खर्चे और भी बढ़ गए.

किसी भी मांबाप के लिए यह किसी विडंबना से कम नहीं होता कि उन की बेटी शादी के बाद भी उन के साथ रहे. इस बात को प्रियंका अच्छी तरह समझती थी. इसलिए वह अपने स्तर पर नौकरी की तलाश में लग गई. काफी खोजबीन के बाद भी जब उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उस ने एक मोबाइल शौप पर सेल्सगर्ल की नौकरी कर ली.

मोबाइल शौप पर काम करते हुए प्रियंका की मुलाकात तरुण से हुई. तरुण चढ़ती उम्र का अच्छे परिवार का लड़का था. पहली ही मुलाकात में तरुण आंखों के रास्ते प्रियंका के दिल में उतर गया. बातचीत हुई तो दोनों ने अपनाअपना मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिया. इस के बाद दोनों प्राय: रोज ही एकदूसरे से फोन पर बातें करने लगे. जल्दी ही मिलनेमिलाने का सिलसिला भी शुरू हो गया. दोनों एकदूसरे को दिन में कई बार फोन और एसएमएस करने लगे. जब समय मिलता तो दोनों साथसाथ घूमते और रेस्टोरेंट वगैरह में जाते. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं.

तरुण के पिता बच्चू सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर थे और गाजियाबाद के थाना मसूरी में तैनात थे. जब तरुण और प्रियंका के संबंध गहराए तो उन दोनों की प्रेम कहानी का पता बच्चू सिंह को भी लग गया.   उन्होंने जब इस बारे में तरुण से पूछा तो उस ने बेहिचक सारी बातें पिता को बता दीं. प्रियंका के बारे में भी सब कुछ और यह भी कि वह उस से शादी की इच्छा रखता है. उधर प्रियंका भी तरुण से शादी का सपना देखने लगी थी.

बेटे की प्रेमकहानी सुन कर बच्चू सिंह बहुत नाराज हुए. उन्होंने तरुण से साफसाफ कह दिया कि वह प्रियंका से दूर रहे, क्योंकि एक तलाकशुदा और एक बच्चे की मां कभी भी उन के परिवार की बहू नहीं बन सकती. इतना ही नहीं, उन्होंने प्रियंका को भी आगे न बढ़ने की सख्त चेतावनी दी. प्रियंका और अपने बेटे की प्रेम कहानी को ले कर वह तनाव में रहने लगे.

बच्चू सिंह ने प्रियंका और तरुण को चेतावनी भले ही दे दी थी, पर वे जानते थे कि ऐसी स्थिति में न लड़का समझेगा न लड़की. इसी वजह से उन्हें इस समस्या का कोई आसान हल नहीं सूझ रहा था. आखिर काफी सोचविचार कर उन्होंने प्रियंका को समझाने का फैसला किया.

बच्चू सिंह ने प्रियंका को समझाया भी, लेकिन वह शादी की जिद पर अड़ी रही. इतना ही नहीं, ऐसा न होने पर उस ने बच्चू सिंह को परिवार सहित अंजाम भुगतने की धमकी तक दे डाली. अपनी इस धमकी को उस ने सच भी कर दिखाया.

1 मार्च, 2013 को उस ने थाना कविनगर में बच्चू सिंह, उन की पत्नी, बेटे राहुल, नरेंद्र, प्रशांत और रोबिन के खिलाफ धारा 376, 452, 323, 506 व 406 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया, जिस में उस ने घर में घुस कर मारपीट, बलात्कार और 70 हजार रुपए लूटने का आरोप लगाया. बलात्कार का आरोप लगने से बच्चू सिंह के परिवार की बड़ी बदनामी हुई.

इस मामले में बच्चू सिंह का नाम आने पर उन का तबादला मेरठ के जिला बागपत कर दिया गया. मामला चूंकि एक पुलिसकर्मी से संबंधित था, सो इस सिलसिले में गंभीर जांच करने के बजाय विभागीय जांच के नाम पर इसे लंबे समय तक लटकाए रखा गया.

जबकि दूसरे आरोपियों के खिलाफ कानूनी काररवाई की गई. उधर बच्चू सिंह के खिलाफ कोई विशेष काररवाई न होते देख प्रियंका ने उन के बड़े बेटे राहुल और उस के दोस्त के खिलाफ 17 जून, 2013 को छेड़खानी व मारपीट का एक और मुकदमा दर्ज करा दिया. इस से बच्चू सिंह का परिवार काफी दबाव में आ गया.

2-2 मुकदमों में फंसने से बच्चू सिंह और उन के परिवार को रोजरोज कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे थे. इसी सब के चलते 31 नवंबर, 2013 को प्रियंका घर से गायब हो गई. प्रियंका के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज होने पर थानाप्रभारी कविनगर ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी सबइंसपेक्टर शिवराज सिंह को सौंप दी. शिवराज सिंह प्रियंका द्वारा दर्ज कराए गए पिछले 2 केसों की भी जांच कर रहे थे. उन्होंने पिछले दोनों केसों की तरह इस मामले में भी कोई विशेष दिलचस्पी नहीं ली.

दूसरी ओर प्रियंका के मातापिता लगातार थाने के चक्कर लगाते रहे. उन्होंने डीआईजी, आईजी और गाजियाबाद के एसपी, एसएसपी तक सभी अधिकारियों को अपनी परेशानी बताई . लेकिन किसी भी स्तर पर उन की कोई सुनवाई नहीं हुई. इसी बीच अचानक थानाप्रभारी कविनगर का तबादला हो गया. उन की जगह नए थानाप्रभारी आए अरुण कुमार सिंह.

अरुण कुमार सिंह ने प्रियंका के अपहरण के मामले में विशेष दिलचस्पी लेते हुए इस की जांच का जिम्मा बरेली से तबादला हो कर आए तेजतर्रार एसएसआई पवन चौधरी को सौंप कर कड़ी जांच के आदेश दिए. पवन चौधरी ने जांच में तेजी लाते हुए इस मामले में उस अज्ञात नामजद महिला पत्रकार के बारे में पता किया, जिस ने लापता होने वाले दिन प्रियंका को नौकरी दिलाने के लिए बुलाया था.

छानबीन में यह भी पता चला कि उस महिला का नाम रश्मि है और वह अपने पति के साथ केशवपुरम में किराए के मकान में रहती है. यह भी पता चला कि वह खुद को किसी अखबार की पत्रकार बताती है. पवन चौधरी ने रश्मि का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से यह बात साफ हो गई कि 31 नवंबर को उसी ने प्रियंका को फोन किया था.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने 18 फरवरी, 2014 को रात साढ़े 12 बजे रश्मि और उस के पति अमरपाल को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने पर जब दोनों से पूछताछ की गई तो पहले तो पतिपत्नी ने पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, लेकिन जब उन के साथ थोड़ी सख्ती की गई तो वे टूट गए. मजबूर हो कर उन दोनों ने सारा राज खोल दिया. पता चला कि प्रियंका की हत्या हो चुकी है.

रश्मि और उस के पति अमरपाल के बयानों के आधार पर 19 फरवरी को सब से पहले सिपाही विनेश कुमार को गाजियाबाद पुलिस लाइन से गिरफ्तार किया गया. इस के बाद उसी दिन इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड बच्चू सिंह को टटीरी पुलिस चौकी, बागपत से गिरफ्तार कर गाजियाबाद लाया गया.

थाने पर जब सब से पूछताछ की गई तो पता चला कि बच्चू सिंह प्रियंका द्वारा दर्ज कराए गए मुकदमों से बहुत परेशान रहने लगे थे. इसी चक्कर में उन का तबादला भी बागपत कर दिया गया था. यहीं पर बच्चू सिंह की मुलाकात उन के साथ काम करने वाले सिपाही राहुल से हुई.

राहुल अलीगढ़ का रहने वाला था. बच्चू सिंह ने अपनी समस्या के बारे में उसे बताया. राहुल पर भी अलीगढ़ में एक मुकदमा चल रहा था, जिस के सिलसिले में वह पेशी पर अलीगढ़ आताजाता रहता था. राहुल का एक दोस्त विनेश कुमार भी पुलिस में था और गाजियाबाद में तैनात था. विनेश जब एक मामले में अलीगढ़ जेल में था तो उस की मुलाकात एक बदमाश अमरपाल से हुई थी.

विनेश ने अमरपाल की जमानत में मदद की थी. इस के लिए वह विनेश का एहसान मानता था. बच्चू सिंह ने राहुल और विनेश कुमार के माध्यम से अमरपाल से प्रियंका की हत्या का सौदा 2 लाख रुपए में तय कर लिया. योजना के अनुसार अमरपाल ने इस काम के लिए अपनी पत्नी रश्मि की मदद ली. उस ने रश्मि को प्रियंका से दोस्ती करने को कहा.  उस ने प्रियंका से दोस्ती गांठ कर उसे विश्वास में ले लिया.

रश्मि को जब यह पता चला कि प्रियंका को नौकरी की जरूरत है तो उस ने खुद को एक अखबार की पत्रकार बता कर प्रियंका को 30 नवंबर, 2013 की सुबह फोन कर के घर से बाहर बुलाया और बसअड्डे ले जा कर उसे अमरपाल को यह कह कर सौंप दिया कि वह अखबार का सीनियर रिपोर्टर है और अब आगे उस की मदद वही करेगा.

अमरपाल प्रियंका को बस से लालकुआं तक लाया, जहां पर रितेश नाम का एक और व्यक्ति मोटरसाइकिल लिए उस का इंतजार कर रहा था. तीनों उसी बाइक से ले कर देर शाम अलीगढ़ पहुंचे.वहां से वे लोग खैर के पास गांव बरौला गए. तब तक प्रियंका को शक हो गया था कि वह गलत हाथों में पहुंच गई है. जब एक जगह बाइक रुकी तो प्रियंका ने बाथरूम जाने के बहाने अलग जा कर अपने मामा को फोन कर के अपनी स्थिति बता दी.

बाद में जब इन लोगों ने एक नहर के पास बाइक रोकी तो प्रियंका ने भागने की कोशिश भी की. लेकिन वह गिर पड़ी. यह देख अमरपाल और रितेश ने उसे पकड़ लिया और उस की गला घोंट कर हत्या कर दी. हत्या के बाद इन लोगों ने प्रियंका की लाश नहर में फेंक दी और अलीगढ़ स्थित अपने घर चले गए. इस हत्याकांड में बच्चू सिंह के बेटे राहुल की भी संलिप्तता पाए जाने पर पुलिस ने अगले दिन उसे भी गिरफ्तार कर लिया.

इस हत्याकांड में नाम आने पर सिपाही राहुल फरार हो गया था, जिसे पुलिस गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही थी. पूछताछ के बाद सभी गिरफ्तार अभियुक्तों को अगले दिन गाजियाबाद अदालत में पेश किया गया, जहां से रश्मि, बच्चू सिंह, विनेश कुमार और तरुण को जेल भेज दिया गया. जबकि अमरपाल को रिमांड पर ले कर प्रियंका की लाश की तलाश में खैर इलाके का चक्कर लगाया गया.

लेकिन वहां पर लाश का कोई अवशेष नहीं मिला. पुलिस ने उस इलाके की पूरी नहर छान मारी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. रिमांड अवधि पूरी होने पर अमरपाल को भी डासना जेल भेज दिया गया. फिलहाल सभी अभियुक्त डासना जेल में बंद हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इश्क के दरिया में जुर्म की नाव – भाग 4

उस समय तक टिंकू लाश को ठिकाने लगाने के लिए बाजार से गंडासा और प्लास्टिक के कुछ खाली कट्टे, रस्सी खरीद लाया था. संदीप कमरे पर पहुंचा तो टिंकू ने कहा, ‘‘यार, यह अपनी पत्नी से झगड़ रहा था, मैं ने बीचबचाव किया तो इस का सिर दीवार से लग गया और इस का काम तमाम हो गया. अब यह मुसीबत गले पड़ी है तो इसे ठिकाने लगाना भी जरूरी है. इसी के लिए मैं ने तुझे बुलाया है.’’

ऐसी मुसीबत से बाहर निकालने में संदीप ने उस का साथ देने की हामी भर दी. टिंकू ने इंद्रपाल की लाश ठिकाने लगाने की योजना पहले ही बना रखी थी. उसी योजना के अनुसार उस ने सब से पहले गंडासे से इंद्रपाल की गरदन काट कर धड़ से अलग की. सिर को उस ने एक बड़ी सी पौलीथिन थैली में रख लिया.  धड़ को प्लास्टिक के कट्टे में भर कर कट्टे को रस्सी से अच्छी तरह लपेट दिया. फिर उस कट्टे को दूसरे कट्टे में रखा और उसे अच्छी तरह बांध दिया.

लाश की अच्छी तरह पैकिंग करने के बाद अब वह रास्तों के सुनसान होने का इंतजार करने लगा. आधी रात के बाद धड़ वाले कट्टे को टिंकू ने अपने कंधे पर रखा और सिर वाली थैली संदीप ने ले ली. दोनों साढ़े 3 पुश्ता से होते हुए मेन रोड पर पहुंचे. फिर वहां से वे खादर की तरफ उतर कर गैस पाइपलाइन से थोड़ा आगे चल कर पानी के गड्ढे में सिर वाली थैली डाल दी.

धड़ वाला कट्टा उन्होंने तीसरे पुश्ते के पास डाल दिया. लाश को ठिकाने लगाने के बाद संदीप रात में ही नांगलोई लौट गया और टिंकू अपने कमरे पर लौट आया. कमरे में खून फैला हुआ था. टिंकू ने रात में ही खून को साफ किया. उस के कपड़ों पर खून के जो छींटे आ गए थे, उन्हें भी उस ने साफ किए. सुबह होने पर करावलनगर चला गया. करावल नगर में जिस जगह उस का काम चल रहा था, वहीं पर उस ने अपना सामान वगैरह रख दिया और वहीं रहने लगा.

उधर शशिबाला छोटी बहन सुषमा के कमरे पर गई तो उस ने शशिबाला से पूछा कि जीजू कहां हैं, वह क्यों नहीं आए?

तब शशिबाला ने उस से यह कह दिया कि वह घर पर बैठ कर ही खापी रहे हैं. शशिबाला की बुआ विनोद नगर में रहती थीं. उन से मिले हुए उसे काफी दिन हो गए थे. वह सुषमा के साथ उन से मिलने के लिए चली गई. वहां से वह उसी इलाके में रहने वाली चचेरी बहन संगीता के यहां भी गईं.

अगले दिन बुआ के घर से लौटते समय सुषमा ने कहा, ‘‘दीदी, जीजू से नहीं मिली हूं, चलो पहले तुम्हारे कमरे पर चलते हैं. जीजू से मिल कर फिर तुम मेरे साथ ही मेरे कमरे पर चलना.’’

‘‘उन से क्या मिलेगी. शराब पी कर कहीं घूमफिर रहे होंगे. फिर भी जब तेरा मन उन से मिलने को हो रहा है तो तू चल.’’ कहते हुए शशिबाला अपने कमरे पर गई तो वहां ताला लगा था. ताला देखते ही वह सुषमा से बोली, ‘‘मैं कह रही थी न कि वह कहीं घूमफिर रहे होंगे. तू ही देख, कमरे को बंद कर के पता नहीं कहां चले गए. मुझे लगता है शराब पी कर कहीं पड़े होंगे.’’

सुषमा को क्या पता था कि जिस जीजा से वह मिलने की इच्छा जता रही है, उस का काम तमाम हो चुका है और बहन उसे बेवकूफ बना रही है. खैर, बहन के कमरे का ताला बंद होने पर सुषमा बहन और उस के बच्चों को अपने कमरे पर ले आई. शशिबाला उस दिन सुषमा के यहां रही.

अगले दिन भी इंद्रपाल का पता नहीं चला तो सुषमा ने उस की सूचना थाने में दर्ज कराने को कहा. बहन के दबाव डालने पर शशिबाला ने 20 मार्च, 2014 को पति की गुमशुदगी थाने में दर्ज करा दी.

इस के बाद पुलिस मामले की छानबीन में लग गई. उस बीच टिंकू और शशिबाला की फोन पर बातें होती रहीं. जब उसे पता चला कि पुलिस बहुत सक्रिय हो गई है तो टिंकू ने 22 मार्च को सुषमा के कमरे पर पहुंच कर शशिबाला से मुलाकात की और उस से कहा कि वह पुलिस से काररवाई बंद करने की बात कह कर अपने गांव चली जाए. बाद में जब मामला शांत हो जाएगा तो वह उसे वहां से बुला लाएगा, फिर कहीं दूसरी जगह रहा जाएगा.

शशिबाला को उस का सुझाव पसंद आ गया और वह अगले दिन 23 मार्च की सुबह ही सुषमा और उस के पति को ले कर थाने पहुंच गई. लेकिन इत्तफाक से उसी समय थाने में सुषमा के मोबाइल पर टिंकू का फोन आ गया तो पुलिस टिंकू तक पहुंच गई.

टिंकू से पूछताछ के बाद पुलिस टीम ने 24 मार्च को संदीप और शशिबाला को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने टिंकू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त गंडासा और कपड़े आदि भी बरामद कर लिए.

पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को कड़कड़डूमा न्यायालय में अतिरिक्त सत्र दंडाधिकारी शरद गुप्ता की कोर्ट में पेश किया. जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया. मामले की विवेचना इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह कर रहे हैं. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित.

इश्क के दरिया में जुर्म की नाव – भाग 3

शशिबाला पहली बार दिल्ली आई थी. यहां आ कर उस का भी मन लग गया. इसी बीच वह एक बेटी की मां बनी. मां बनने के बाद इंद्रपाल और शशिबाला की खुशी का ठिकाना न रहा.  उन के दिन हंसीखुशी से गुजर रहे थे. इस के बाद शशिबाला एक और बेटी की मां बनी. 2 बच्चों के जन्म के बाद भी शशिबाला के हुस्न में जबरदस्त आकर्षण था. बल्कि इस के बाद तो उस के रूप में और भी निखार आ गया था.

इंद्रपाल जिस ठेकेदार के साथ काम करता था, उस का नाम टिंकू था. टिंकू बिहार के जिला मुंगेर के पहाड़पुर गांव के रहने वाले मुदीन सिंह का बेटा था. बीए पास टिंकू 3 साल पहले काम की तलाश में दिल्ली आया था. काफी कोशिश के बाद जब उस की कहीं नौकरी नहीं लगी तो उस ने कंस्ट्रक्शन कंपनियों में लेबर सप्लाई का काम शुरू कर दिया. कंस्ट्रक्शन ठेकेदारों के संपर्क में रहरह कर उसे भी मकान बनवाने के काम का अनुभव हो गया. फिर उस ने भी बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के ठेके लेने शुरू कर दिए.

इंद्रपाल कुछ दिनों से टिंकू के साथ ही काम कर रहा था. करीब एक साल पहले की बात है. टिंकू का काम उस्मानपुर में चल रहा था. वह वहीं अपने रहने के लिए किराए का कमरा देख रहा था, ताकि अपने काम पर नजर रख सके. किराए के कमरे के बारे में उस ने इंद्रपाल से बात की. इंद्रपाल न्यू उस्मानपुर के गौतम विहार में पवन शर्मा के यहां रहता था. उस ने 2 कमरे किराए पर ले रखे थे.

उस ने टिंकू से कहा, ‘‘मेरे पास 2 कमरे हैं. चाहो तो तुम उन में से एक कमरा ले सकते हो. एक में मेरा परिवार रह लेगा.’’

टिंकू जब उस का कमरा देखने गया तो इंद्रपाल ने अपनी बीवी को बताया कि यह हमारे ठेकेदार हैं और इन्हें हमारा कमरा पसंद आ गया तो यह यहीं रहेंगे. ठेकेदार के घर आने पर शशिबाला ने उस की जम कर खातिरदारी की.  29 साल का टिंकू शशिबाला की मेहमाननवाजी से बहुत प्रभावित हुआ. उसे इंद्रपाल का कमरा भी पसंद आ गया तो अगले दिन से वह वहां रहने लगा.

टिंकू कमरे पर अकेला रहता था. उस की आमदनी अच्छी थी, इसलिए वह जी खोल कर पैसे खर्च करता था. चूंकि शशिबाला बराबर वाले कमरे में रहती थी, इसलिए उस की बेटियों के लिए वह अकसर खानेपीने की चीजें लाता रहता था. जिस की वजह से दोनों बच्चियां उस से घुलमिल गई थीं. कभीकभी वह शराब पीता तो इंद्रपाल को भी अपने कमरे पर बुला लेता था. फ्री में शराब मिलने पर इंद्रपाल की भी मौज आ गई थी.

इंद्रपाल जो कमाता था, उस से उस के घर का गुजारा तो हो जाता था, लेकिन वह बीवीबच्चों की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाता था. जबकि टिंकू बहुत ठाठबाट से रहता था. 32 साल की शशिबाला की भी कुछ ख्वाहिशें थीं. पति की कमाई से उसे ख्वाहिशें पूरी होती नजर नहीं आ रही थीं. इसलिए उस ने अपने कदम टिंकू की तरफ बढ़ा दिए.

टिंकू जवान और अविवाहित था. अनुभवी शशिबाला ने अपने हुस्न के जाल में उसे जल्द ही फांस लिया. उन दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. यह करीब एक साल पहले की बात है.

अपनी उम्र से छोटे टिंकू के साथ संबंध बन जाने के बाद शशिबाला को अपना 40 वर्षीय पति बासी लगने लगा. अब वह उस में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाती. इंद्रपाल सुबह का घर से निकलने के बाद शाम को ही लौटता था, जबकि टिंकू का जब मन होता घर आ जाता था. मौका मिलने पर वे अपनी हसरतें पूरी कर लेते. इस तरह दोनों का यह खेल चलता रहा.

टिंकू अब शशिबाला को आर्थिक सहयोग भी करने लगा था. इस के अलावा वह उस के पसंद के कपड़े आदि भी खरीदवा देता. शशिबाला भी उस की खूब सेवा करती. पत्नी की बेरुखी को इंद्रपाल समझ नहीं पा रहा था.  वह पत्नी से इस की वजह पूछता तो वह उलटे उस पर झुंझला जाती. तब इंद्रपाल उस की पिटाई कर देता. अगर उस समय टिंकू घर पर होता तो बीचबचाव कर देता और नहीं होता तो शशिबाला को वह जम कर धुन डालता था.

पति द्वारा आए दिन पिटने से शशिबाला आजिज आ चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उसे पति की पिटाई से कैसे निजात मिले.  टिंकू के सामने उस की प्रेमिका की पिटाई हो, यह बात उसे अच्छी नहीं लगती थी. शशिबाला चाहती थी कि वह हमेशा टिंकू के साथ ही पत्नी की तरह रहे. लेकिन इंद्रपाल के होते हुए ऐसा मुमकिन नहीं था.

इस बारे में उस ने टिंकू से भी बात की तो टिंकू ने उसे भरोसा दिलाया कि समय आने दो, सब कुछ ठीक हो जाएगा. शशिबाला जानती थी कि टिंकू जो कहता है, उस काम को पूरा जरूर कर देता है. इसलिए उसे विश्वास था कि वह पति से छुटकारा दिलाने का कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेगा.

होली के मौके पर टिंकू ने इंद्रपाल के बीवीबच्चों पर खूब खर्च किया. खानेपीने के सामान के अलावा उस ने बच्चों को भी रंग और उन की पसंद की पिचकारियां दिलवाईं. बड़ी हंसीखुशी से त्यौहार मनाया. इंद्रपाल को भी जम कर शराब पिलाई.

18 मार्च, 2014 को इंद्रपाल का नशा उतरा तो किसी बात को ले कर उस की पत्नी से कहासुनी हो गई. उस समय दोनों बेटियां छत पर खेल रही थीं. दोनों के बीच झगड़ा बढ़ा तो इंद्रपाल ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. इत्तफाक से टिंकू उस समय कमरे पर ही था. शोरशराबा सुन कर टिंकू वहां पहुंच गया. उस ने जब इंद्रपाल को रोकना चाहा तो इंद्रपाल ने उल्टे उसे ही झटक दिया. इस पर टिंकू को भी गुस्सा आ गया. उस ने इंद्रपाल को जोर से धक्का दिया तो इंद्रपाल का सिर दीवार से टकरा गया.

दीवार से सिर टकराने पर इंद्रपाल बेहोश हो कर नीचे गिर गया. यह देख कर टिंकू और शशिबाला घबरा गए. उन दोनों ने सोचा कि इंद्रपाल शायद मर चुका है.

शशिबाला ने टिंकू से कहा, ‘‘अब सब कुछ तुम्हें ही संभालना है, मैं अभी अपनी बहन सुषमा के घर जा रही हूं. जब काम हो जाए तो फोन कर देना.’’

इंद्रपाल को ठिकाने लगाने का टिंकू के पास इस से अच्छा मौका नहीं था. उस ने उसी समय दोनों हाथों से उस का गला घोंट दिया. इस के बाद इंद्रपाल का शरीर ठंडा पड़ता गया.  इंद्रपाल की हत्या के बाद उस के सामने इस बात की समस्या यह थी कि लाश को ठिकाने कहां लगाए. तब तक शशिबाला दोनों बेटियों को ले कर वहां से 200 मीटर दूर जयप्रकाश नगर में रहने वाली सुषमा के यहां चली गई थी.

कुछ देर सोचने के बाद टिंकू ने नांगलोई के चंदन विहार में रहने वाले अपने दोस्त संदीप को फोन कर के कहा, ‘‘यार संदीप, इस समय मैं एक बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं. तू इसी समय मेरे कमरे पर आ जा.’’

23 वर्षीय संदीप भी मूलरूप से टिंकू के ही गांव का रहने वाला था. वह 3 साल पहले ही दिल्ली आया था. फिलहाल वह टिंकू के साथ ही राजमिस्त्री का काम कर रहा था. दोस्त टिंकू की परेशानी की बात सुन कर संदीप तुरंत अपने कमरे से निकल गया और रात करीब 8 बजे टिंकू के कमरे पर पहुंच गया.

जबरदस्ती का प्यार

देह की राह के राही – भाग 3

पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना पा कर थाना सिंहानी गेट के थानाप्रभारी मनोज कुमार यादव, सीनियर सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश चतुर्वेदी, सबइंसपेक्टर विनोद कुमार त्यागी, अवधेश कुमार, हेडकांस्टेबल के.पी. सिंह के साथ नंदग्राम स्थिति मंजू शर्मा के घर पहुंच गए. लाश की स्थिति से ही पता चल रहा था कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई थी. क्योंकि उस के गले से चुन्नी लिपटी हुई थी, गले पर कसने के निशान भी थे.

सुमन को कमरा बबिता ने दिलाया था, इसलिए मंजू ने उसे भी सुमन की हत्या की सूचना दे दी थी, जिस से इस बात की सूचना सुमन के घर वालों तक पहुंच गई थी.

पुलिस घटनास्थल एवं लाश का निरीक्षण कर मकान मालकिन मंजू शर्मा से पूछताछ कर रही थी कि रोतेबिलखते सुमन के घर वाले भी पहुंच गए. थोड़ी देर के लिए वहां का माहौल काफी गमगीन हो गया.

पुलिस को मंजू शर्मा से मृतका के बारे में काफी जानकारी मिल चुकी थी. उस ने बताया कि मृतका यहां अकेली रहती थी. उस का अपने पति से कोई संबंध नहीं था. उस से मिलने एक लड़का आता था. कभीकभी वह उस के कमरे पर रुकता भी था. इस से पुलिस को लगा कि यह हत्या अवैध संबंधों की वजह से हुई है.

पुलिस ने सुमन के घर वालों को ढांढस बंधाया और घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए हिंडन स्थित मोर्चरी भिजवा दिया. इस के बाद थाना सिंहानी गेट पुलिस मृतका सुमन के घर वालों को साथ ले कर थाने आ गई, जहां मृतका की छोटी बहन राखी की ओर से सुमन की हत्या का मुकदमा धूकना निवासी सत्येंद्र त्यागी के बेटे राजीव उर्फ राजू उर्फ नोनू त्यागी के खिलाफ दर्ज कर लिया.

मामला हत्या का था और रिपोर्ट नामजद दर्ज थी, इसलिए क्षेत्राधिकारी अनुज यादव ने अगले दिन अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए थानाप्रभारी मनोज कुमार यादव के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी.  इस टीम ने राजीव को गिरफ्तार करने के लिए धूकना स्थित उस के घर छापा मारा, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. इस के बाद पुलिस टीम ने कई जगहों पर छापा मारा, लेकिन वह पुलिस टीम के हाथ नहीं लगा.

इस के बाद राजीव की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी सीनियर सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश चतुर्वेदी को सौंप दी गई. उन्होंने राजीव को काबू में करने के लिए उस का मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस से उन्हें उस की लोकेशन का पता चल गया.

मोबाइल के लोकेशन के आधार पर ही सीनियर सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश ने अपनी टीम की मदद से गाजियाबाद के पुराने बसअड्डे के पास से 5 जून की शाम 7 बजे उसे गिरफ्तार कर लिया. राजीव को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने किसी भी तरह की बहानेबाजी किए बगैर सुमन की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह इस प्रकार थी.

शुरूशुरू में राजीव और सुमन का संबंध लेनदेन का रहा. वह सुमन के खर्च उठाता था और सुमन उसे औरत वाला सुख देती थी. राजीव ने सुमन से ये संबंध सिर्फ औरत का सुख पाने के लिए बनाए थे, लेकिन कुछ दिनों बाद सुमन कहने लगी कि उसे उस से प्यार हो गया है. उसे खुश करने के लिए राजीव ने भी कह दिया कि वह भी उस से प्यार करता है.

सुमन ने राजीव की इस बात को सच माना और उस के साथ शादी के सपने ही नहीं देखने लगी, बल्कि उसे साकार करने की कोशिश भी करने लगी. राजीव उसे टालता रहा.  सुमन को जब लगा कि राजीव उसे टाल रहा है तो वह उस पर शादी के लिए दबाव बनाने के साथसाथ ज्यादा से ज्यादा माल झटकने की कोशिश करने लगी.

सुमन की हरकतों से राजीव को लगने लगा कि मौजमस्ती के लिए की गई यह दोस्ती गले का फांस बन रही है. वह सुमन से बचने की कोशिश करने लगा. लेकिन उस से मिलने वाले सुख के बिना वह रह नहीं सकता था, इसलिए मजबूर हो कर उसे उस के पास आता भी रहा.

3 जून की शाम को राजीव सुमन से मिलने आया तो सुमन ने एक बड़ी फरमाइश कर डाली. उस ने मुरादनगर में एक प्लौट दिलाने को कहा. हजारों की बात होती तो शायद राजीव तैयार भी हो जाता, लेकिन यहां तो मामला लाखों का था, इसलिए राजीव ने मना कर दिया. तब सुमन उसे फंसाने की धमकी देने लगी.

सुमन द्वारा धमकी देने पर राजीव को गुस्सा आ गया कि इस औरत के लिए उस ने कितना कुछ किया. उस का एहसान मानने के बजाय यह उसे बेनकाब करने की धमकी दे रही है. उसी गुस्से में उस ने सुमन के गले में पड़ी चुन्नी को पकड़ा और लपेट कर कस दिया. सुमन फर्श पर गिरी और मर गई. उसे उसी तरह छोड़ कर राजीव भाग गया. घबराहट में वह सुमन के कमरे का दरवाजा भी बंद करना भूल गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने राजीव के खिलाफ सारे सुबूत जुटा कर अगले दिन अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह देह का यह राही जेल पहुंच गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इश्क के दरिया में जुर्म की नाव – भाग 2

दूसरे सुषमा ने टिंकू वाली बात पुलिस को बताई तो शशिबाला उस के कान में खुसरफुसर क्यों कर रही थी? इस का मतलब यह हुआ कि शशिबाला और टिंकू की इस बीच फोन पर भी बातचीत होती रही होगी. इन सब बातों से शशिबाला पर इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह का शक का दायरा बढ़ता जा रहा था.

पहले तो पुलिस यही समझ रही थी कि इंद्रपाल के साथ टिंकू भी गायब है, लेकिन अब यह बात साफ हो चुकी थी कि टिंकू कहीं और रह रहा है. वह कहां रह रहा है, इस बात को शशिबाला जरूर जानती होगी. इसलिए इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने शशिबाला से ही टिंकू के बारे में पूछताछ की तो उस ने साफसाफ कह दिया कि उसे नहीं पता कि अब वह कहां रह रहा है?

जिस समय पुलिस शशिबाला से पूछताछ कर रही थी, सुषमा भी वहीं थी. तभी सुषमा के फोन की घंटी बजी. सुषमा ने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से टिंकू की आवाज आई.   सुषमा को पता था कि पुलिस टिंकू से पूछताछ करना चाहती है, इसलिए उस ने अपने फोन के स्पीकर पर हथेली रखी, ताकि उस की आवाज टिंकू तक न पहुंचे.

फिर वह इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह से आहिस्ता से बोली, ‘‘सर, टिंकू का फोन आया है.’’

जितेंद्र सिंह ने उस से धीरे से कहा, ‘‘उसे तुम किसी तरह शास्त्री पार्क बुला लो.’’

सुषमा ने ऐसा ही किया. उस ने टिंकू से बात करनी शुरू की तो टिंकू ने कहा, ‘‘सुषमा जी, मैं आप से एक जरूरी बात करना चाहता हूं.’’

सुषमा ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम शास्त्री पार्क बस स्टौप पर आ जाओ. मैं भी वहीं पहुंच रही हूं.’’

इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने सुषमा द्वारा टिंकू से कही गई बात सुन ली थी, इसलिए वह 2-3 पुलिसकर्मियों को साथ ले कर सुषमा के साथ शास्त्री पार्क बस स्टौप पर पहुंच गए. पुलिस टीम सादा लिबास में थी.

सुबह साढ़े 10 बजे के करीब वहां एक युवक पहुंचा. वह जैसे ही सुषमा से बात करने लगा तो पुलिस ने सोचा कि यही टिंकू होगा, उसे दबोच लिया. पूछताछ में उस ने अपना नाम टिंकू बताया. उसे ले कर पुलिस थाने पहुंची तो उस से पहले शशिबाला थाने से जा चुकी थी. वह वहां से क्यों और कहां गई, यह बाद की बात थी. उस से पहले इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने टिंकू से इंद्रपाल के बारे में मालूमात की.

टिंकू पहले तो उन के सामने झूठ बोलता रहा. लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे उस का झूठ ज्यादा देर तक नहीं टिक सका. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने इंद्रपाल की हत्या करने के बाद उस की लाश को तीसरे पुश्ते के पास डाल दिया है. टिंकू ने बताया था कि उस की हत्या 18 मार्च को ही कर दी गई थी.

उस की लाश को जंगल में डाले हुए 6 दिन हो गए थे. लाश को कहीं जंगली जानवर वगैरह न खा गए हों, इसलिए पुलिस टिंकू को साथ ले कर तीसरे पुश्ते की तरफ चल दी. पुलिस के साथ इंद्रपाल के चाचा और चचेरा भाई भी था.

पुलिस तीसरे पुश्ते के पास यमुना खादर पहुंची और वहां टिंकू की निशानदेही पर झाडि़यों से प्लास्टिक का एक कट्टा बरामद किया. उस कट्टे का मुंह एक रस्सी से बंधा हुआ था. टिंकू ने बताया कि इंद्रपाल की लाश इसी कट्टे में है.  इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने फोन कर के क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी वहां बुलवा लिया. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के सामने जब उस कट्टे को खोला गया तो उस के अंदर रस्सी से लपेटा हुआ एक और कट्टा निकला.

उस कट्टे को खोला गया तो उस में एक आदमी की लाश थी. लेकिन उस लाश का सिर गायब था. सिर के बारे में टिंकू से पूछा गया तो उस ने कहा कि सिर को जानवर खा गए होंगे. यह बात जितेंद्र सिंह के गले नहीं उतरी, क्योंकि जब प्लास्टिक के कट्टे रस्सी से बंद थे तो जानवर सिर कैसे खा सकते थे. इस का मतलब टिंकू उन से झूठ बोल रहा था. उन्होंने उस से सख्ती की तो उस ने बताया कि सिर पाइपलाइन के पास खादर में पानी के एक गड्ढे में डाल दिया था.

पुलिस वहां से एक-डेढ़ किलोमीटर दूर टिंकू की बताई जगह पर पहुंची. वहां गैस पाइपलाइन के पास पानी से भरे एक गड्ढे में एक पौलीथिन की थैली दिखाई दी. उस थैली को निकलवाया गया तो उस में सिर निकला. सुषमा और इंद्रपाल के रिश्तेदारों ने उस की पहचान इंद्रपाल के सिर के रूप में की.

पुलिस ने इंद्रपाल के सिर और धड़ को कब्जे में ले कर पंचनामा करने के बाद उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और थाने लौट कर इंद्रपाल की गुमशुदगी के मामले को हत्या कर लाश को छिपाने की धाराओं में दर्ज कर लिया.

अब पुलिस यह जानना चाह रही थी कि जिस इंद्रपाल के साथ टिंकू की गहरी दोस्ती थी, उसी इंद्रपाल के उस ने टुकड़े क्यों कर दिए? यह जानने के लिए पुलिस ने टिंकू से पूछताछ की तो इंद्रपाल की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस की वजह उस की बीवी शशिबाला निकली.

इंद्रपाल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के कस्बा सिंभावली के नजदीक बसे गांव भगवानपुर का रहने वाला था. सन 1999 में उस की शादी जिला हापुड़ के ही गांव पटना मुरादपुर की रहने वाली शशिबाला से हुई थी.   जिस दिन शशिबाला की शादी हुई थी, उसी दिन उस की छोटी बहन सुषमा की शादी विक्रम के साथ हुई थी. यानी दोनों बहनों की शादी एक ही मंडप के नीचे हुई थी.

शादी के 7 साल बाद भी शशिबाला जब मां नहीं बनी तो वह बहुत टेंशन में रहने लगी. इंद्रपाल भी परेशान रहता था. उस ने बीवी का इलाज करवाया. जिस की वजह से उस पर कुछ लोगों का कर्ज भी हो गया.   वह गांव में खेतीकिसानी करता था. इस काम से उसे अपने ऊपर का कर्ज उतरने की कोई उम्मीद नहीं थी. इसलिए उस ने दिल्ली जा कर कमाने की सोची. उस के गांव के कई लड़के दिल्ली में काम करते थे, इसलिए वह भी दिल्ली आ गया.

वह मामूली पढ़ालिखा था, इसलिए उसे उस की इच्छा के मुताबिक नौकरी नहीं मिली. तब उस ने मजबूरी में बेलदारी करनी शुरू कर दी. दिल्ली में इस काम के बदले उसे जो मजदूरी मिल रही थी, वह उस के हिसाब से अच्छी थी. इसलिए कुछ दिनों बाद ही वह पत्नी शशिबाला को भी दिल्ली लिवा लाया और उत्तरपूर्वी दिल्ली के न्यू उस्मानपुर में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा.