हवस का शिकार पति

ज्यों ज्यों रात बीतती जा रही थी, त्योंत्यों महाराज सिंह की चिंता बढ़ती जा रही  थी. उन की निगाह कभी घड़ी की सुइयों पर टिक जाती तो कभी दरवाजे पर. बात ही कुछ ऐसी थी, जिस से वह बेहद परेशान थे.

उन का बेटा सुनील कुमार जो उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में टीचर था, घर नहीं लौटा था. वह घर से यह कह कर कार से निकला था कि घंटे 2 घंटे में लौट जाएगा, लेकिन आधी रात बीत जाने पर भी वह वापस नहीं आया था. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. यह बात 30 मई, 2019 की है.

सुबह हुई तो महाराज सिंह ने अपने कुनबे वालों को सुनील कुमार के लापता होने की जानकारी दी तो वे भी चिंतित हो उठे और महाराज सिंह के साथ सुनील को ढूंढने में जुट गए. महाराज सिंह ने मोबाइल से फोन कर के नाते रिश्तेदारों से बेटे के बारे में पूछा. लेकिन सुनील कुमार का कोई पता नहीं चला.

दुर्घटना की आशंका को देखते हुए इटावा, भरथना, सैफई आदि के अस्पतालों में भी जा कर देखा गया, लेकिन सुनील की कोई जानकारी नहीं मिली.

घर वालों के साथ बेटे की खोजबीन कर महाराज सिंह शाम को घर लौटे तो उन की बहू रेखा दरवाजे पर ही खड़ी थी. उस ने महाराज सिंह से पूछा, ‘‘पिताजी, उन का कहीं कुछ पता चला?’’

जवाब में ‘नहीं’ सुन कर रेखा फूटफूट कर रोने लगी. महाराज सिंह ने उसे धैर्य बंधाया, ‘‘बहू, सब्र करो. सुनील जल्द ही वापस आ जाएगा.’’

सुनील कुमार का एक दोस्त था सुखवीर सिंह यादव. वह भी टीचर था और कुसैली गांव में रहता था. उस का सुनील के घर खूब आनाजाना था. महाराज सिंह ने उसे सुनील के लापता होने की जानकारी दी तो वह तुरंत उन के यहां आ गया और महाराज सिंह के साथ सुनील की खोज में जुट गया. वह उन के साथ जरूरत से कुछ ज्यादा ही अपनत्व दिखा रहा था.

उस ने महाराज सिंह से कहा कि वह परेशान न हों, सुनील मनमौजी है इसलिए बिना कुछ बताए कहीं घूमनेफिरने चला गया होगा. कुछ दिन घूमघाम कर वापस लौट आएगा.

महाराज सिंह की बहू रेखा जो अब तक आंसू बहा रही थी, सुखवीर के आने के बाद उस के आंसू रुक गए. वह भी सुखवीर की हां में हां मिलाने लगी थी. वह अपने ससुर महाराज सिंह को तसल्ली दे रही थी कि पिताजी सुखवीर भाईसाहब सही कह रहे हैं. वह कहीं घूमने चले गए होंगे जल्दी ही लौट आएंगे. घबराने की जरूरत नहीं है.

बहू के इस बदले हुए व्यवहार से महाराज सिंह को आश्चर्य तो हुआ लेकिन उन्होंने उस से कुछ कहासुना नहीं. महाराज सिंह बेटे की खोज कर ही रहे थे कि एक अज्ञात नंबर से उन के मोबाइल पर काल आई. फोन करने वाले ने बताया कि सुनील की कार कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर कार पार्किंग में खड़ी है.

यह बताने के बाद उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. महाराज सिंह ने कुछ और जानकारी के लिए काल बैक की तो स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद उन्होंने कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे.

रेखा के पास पति की कार की डुप्लीकेट चाबी थी. वह पति के दोस्त सुखवीर सिंह तथा ससुर महाराज सिंह के साथ कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंची. वहां पार्किंग में सुनील की कार खड़ी थी. पार्किंग वालों को उन लोगों ने सुनील के बारे में बताया, फिर तीनों वहां से कार ले कर लौट आए. घर पहुंच कर सुखवीर सिंह और रेखा ने महाराज सिंह को एक बार फिर धैर्य बंधाया.

लेकिन जब एक सप्ताह बीत गया और सुनील वापस नहीं आया तो महाराज सिंह का धैर्य जवाब देने लगा. उन्होंने बहू रेखा पर दबाव डाला कि वह थाने जा कर सुनील की गुमशुदगी दर्ज कराए. रेखा रिपोर्ट दर्ज कराना नहीं चाहती थी, लेकिन दबाव में उसे तैयार होना पड़ा.

8 जून, 2019 को रेखा अपने ससुर महाराज सिंह के साथ थाना चौबिया पहुंची और थानाप्रभारी सतीश यादव को अपना परिचय देने के बाद पति सुनील कुमार के सप्ताह भर पहले लापता होने की जानकारी दी. बहू के साथ आए महाराज सिंह ने भी थानाप्रभारी से बेटे को खोजने की गुहार लगाई.

थानाप्रभारी सतीश यादव ने सुनील कुमार की गुमशुदगी दर्ज कर के उन दोनों से कुछ जरूरी जानकारियां हासिल कीं, फिर उन्हें भरोसा दिया कि वह सुनील को ढूंढने की पूरी कोशिश करेंगे.

सुनील कुमार गांव केशवपुर राहिन के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक  था. उस का समाज में अच्छा सम्मान था. उस के अचानक लापता होने से विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षकों व आसपास के कई गांवों के शिक्षकों में बेचैनी थी. पुलिस की निष्क्रियता से उन का रोष बढ़ता जा रहा था. शिक्षक भी अपने स्तर से सुनील कुमार की खोज कर रहे थे, पर उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी.

आखिर जब शिक्षकों के सब्र का बांध टूट गया तो उन्होंने और माखनपुर गांव के लोगों ने थाना चौबिया के सामने धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया. सूचना पा कर इटावा के एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा, एडिशनल एसपी (सिटी) डा. रामयश सिंह तथा एडिशनल एसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह थाना चौबिया पहुंच गए.

उन्होंने धरनाप्रदर्शन कर रहे शिक्षकों को समझा कर आश्वासन दिया कि सुनील कुमार की खोज के लिए एक स्पैशल टीम गठित की जाएगी ताकि जल्द से जल्द उन का पता चल सके. एसएसपी के इस आश्वासन के बाद शिक्षकों ने आंदोलन समाप्त कर दिया.

इस के बाद एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा ने एक स्पैशल टीम गठित कर दी. टीम में थाना चौबिया प्रभारी सतीश यादव, क्राइम ब्रांच प्रभारी सत्येंद्र यादव, सीओ (सैफई), अपराध शाखा तथा फोरैंसिक टीम के सदस्यों को शामिल किया गया. टीम का संचालन एडिशनल एसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह तथा एडिशनल एसपी (सिटी) डा. रामयश सिंह को सौंपा गया.

पुलिस टीम ने जांच शुरू की तो पता चला कि लापता शिक्षक सुनील कुमार की दोस्ती कुसैली गांव के शिक्षक सुखवीर सिंह यादव से है. उस का सुनील के घर बेधड़क आनाजाना था.

पुलिस टीम ने गुप्त रूप से पड़ोसियों से पूछताछ की तो पता चला कि सुखवीर सिंह यादव सुनील की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आता था. यह भी पता चला कि सुनील की पत्नी रेखा और सुखवीर के बीच नाजायज संबंध हैं. रेखा सुखवीर के साथ घूमने भी जाती थी.

अवैध रिश्तों की जानकारी मिली तो पुलिस टीम का माथा ठनका. टीम को शक हुआ कि कहीं अवैध रिश्तों के चलते इन दोनों ने सुनील को ठिकाने तो नहीं लगा दिया.

बहरहाल, पुलिस टीम को पक्का विश्वास हो गया था कि सुनील के लापता होने का भेद रेखा और सुखवीर के पेट में ही छिपा है. लिहाजा पुलिस ने 15 जून, 2019 को शक के आधार पर रेखा और सुखवीर को उन के घरों से हिरासत में ले लिया.

थाने ले जा कर पुलिस ने उन दोनों के मोबाइल कब्जे में ले कर उन की काल डिटेल्स की जांच की तो 30 मई की शाम से ले कर रात तक दोनों की कई बार बात होने की पुष्टि हुई. सुखवीर के मोबाइल से एक और नंबर पर कई बार बात हुई थी. उस नंबर के बारे में पूछने पर सुखवीर ने बताया कि यह नंबर उस के रिश्तेदार रामप्रकाश यादव का है, जो औरैया जिले के ऐरवा कटरा थाना के बंजाराहारा गांव में रहता है.

पुलिस टीम ने रेखा और सुखवीर सिंह से लापता शिक्षक सुनील कुमार के संबंध में पूछताछ शुरू की. सख्ती करने पर दोनों टूट गए.

उस के बाद सुखवीर सिंह ने जो बताया, उसे सुन कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. उस ने बताया कि सुनील कुमार अब इस दुनिया में नहीं है. उस ने अपने रिश्तेदार रामप्रकाश की मदद से उस की हत्या कर शव के टुकड़ेटुकड़े कर गड्ढे में डाल कर जला दिए. फिर झुलसे हुए शव को गड्ढे में ही दफन कर दिया.

पुलिस टीम सुनील कुमार के शव को बरामद करने के लिए सुखवीर को साथ ले कर उस के गांव कुसैली पहुंची. गांव में उस के 2 मकान थे. एक मकान में वह स्वयं रहता था तथा दूसरा खाली पड़ा था.

इसी खाली मकान में उस ने अपने दोस्त का शव दफनाया था. सुखवीर की निशानदेही पर पुलिस टीम ने एक कमरे में खुदाई कराई तो गड्ढे से सुनील कुमार की लाश के जले हुए टुकड़े बरामद हो गए.

टीम ने शव बरामद होने की जानकारी एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा को दी तो वह मौकामुआयना करने वहां पहुंच गए. बुलाई गई फोरैंसिक टीम ने भी साक्ष्य जुटाए. जिस फावड़े से हत्या की गई थी, उसे भी बरामद कर लिया गया.

यह जानकारी जब गांव वालों को हुई तो वहां भीड़ जुट गई. मृतक के घर वाले भी वहां आ पहुंचे. बढ़ती भीड़ को देखते हुए एसएसपी ने आसपास के थानों से भी पुलिस फोर्स बुला ली. महाराज सिंह बेटे का शव देख कर बदहवास थे. उन की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

पुलिस टीम ने भारी पुलिस सुरक्षा के बीच मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए इटावा भेज दी. सुखवीर सिंह की निशानदेही पर हत्या में शामिल उस के रिश्तेदार रामप्रकाश को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब रेखा और सुखवीर से उस का सामना हुआ तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. रामप्रकाश ने बताया कि सुखवीर सिंह ने उसे हत्या करने में सहयोग करने के लिए 10 हजार रुपए दिए थे.

इस के बाद एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैसवार्ता की और तीनों कातिलों को पत्रकारों के सामने पेश कर शिक्षक सुनील कुमार की हत्या का खुलासा कर दिया. पुलिस कप्तान ने केस का खुलासा करने वाली टीम को 10 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा की.

कानपुर देहात जिले का बड़ी आबादी वाला एक कस्बा है रूरा. इसी रूरा कस्बे में भगवानदीन अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रुचि के अलावा 2 बेटियां रेखा व बरखा थीं. भगवानदीन गल्ले का व्यापार करते थे. इस धंधे में उन्हें अच्छी कमाई होती थी. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

भगवानदीन स्वयं तो ज्यादा पढ़लिख नहीं पाए थे, लेकिन वह बेटियों को पढ़ालिखा कर योग्य बनाना चाहते थे. उन की बड़ी बेटी रेखा खूबसूरत और पढ़नेलिखने में तेज थी. वह बीए में पढ़ रही थी, उसी दौरान उसे शिक्षा मित्र के पद पर नौकरी मिल गई. वह गुलाबपुर भोरा गांव के प्राथमिक स्कूल में पढ़ाने लगी.

जब रेखा शादी योग्य हुई तो भगवानदीन उस के लिए वर की खोज में जुट गए. रेखा चूंकि शिक्षक थी, इसलिए भगवानदीन उस के लिए शिक्षक वर की ही तलाश रहे थे. काफी दौड़धूप के बाद भगवान दीन को रेखा के लिए सुनील कुमार पसंद आ गया.

सुनील कुमार इटावा जिले के माखनपुर गांव के रहने वाले महाराज सिंह का बेटा था. सुनील के अलावा महाराज सिंह की एक बेटी थी, जिस की वह शादी कर चुके थे. सुनील उच्चतर माध्यमिक विद्यालय केशवपुर रोहिन में पढ़ाता था.

उम्र में सुनील रेखा से करीब 7 साल बड़ा था, पर वह सरकारी नौकरी पर था इसलिए रेखा को भी उस से शादी करने में कोई आपत्ति नहीं थी. अंतत: जनवरी 2008 में उन का विवाह हो गया.

ससुराल में रेखा खुश थी. दोनों का दांपत्य जीवन सुखमय बीतने लगा. सुनील के पास कार थी. छुट्टी वाले दिनों में वह रेखा को कार से घुमाने के लिए निकल जाता था, जिस से उस की खुशियां और भी बढ़ जाती थीं.

समय बीतता गया और रेखा एक के बाद एक 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई. बच्चों के जन्म से घर में किलकारियां गूंजने लगी थीं. रेखा के ससुर महाराज सिंह घर में केवल खाना खाने के लिए ही आते थे. उन का ज्यादातर समय खेतों पर ही बीतता था. वहां उन्होंने एक कमरा भी बनवा लिया था. वह उसी कमरे में रहते थे. वहां रह कर वे ट्यूबवेल तथा फसल की रखवाली करते थे.

रेखा 3 बच्चों की मां जरूर बन गई थी, लेकिन उस की सुंदरता में कमी नहीं आई थी. इस के अलावा वह बिस्तर पर पति का रोजाना ही साथ चाहती थी. लेकिन सुनील उस का साथ नहीं दे पाता था, जिस की वजह से रेखा के स्वभाव में बदलाव आ गया था. वह बात बेबात पति से झगड़ने लगी.

सुनील कुमार का एक शिक्षक दोस्त सुखवीर सिंह यादव था. वह चौबिया थाने के कुसैली गांव का रहने वाला था. दोनों दोस्तों में खूब पटती थी. सुखवीर की आर्थिक स्थिति सुनील से बेहतर थी. वह ठाटबाट से रहता था.

एक रोज सुनील ने अपने दोस्त सुखवीर सिंह यादव को पार्टी देने के लिए अपने घर बुलाया. उस रोज पहली बार सुखवीर ने रेखा को देखा था. पहली नजर में ही रेखा उस की आंखों में रचबस गई. खानेपीने के दौरान सुखवीर की निगाहें रेखा की खूबसूरती पर ही टिकी रहीं. रेखा भी अपनी खूबसूरती का जादू चला कर सुखवीर के दिल को घायल करती रही.

पार्टी के बाद सुखवीर जब जाने लगा तो उस ने रेखा से कहा, ‘‘भाभी, आप बेहद खूबसूरत हैं.’’

यह सुन रेखा सुखवीर को गौर से निहारने लगी फिर उस ने मुसकरा कर सिर झुका लिया. रेखा को दिल में बसा कर सुखवीर चला गया.

इस के बाद सुनील व सुखवीर जब कभी मिलते तो सुनील उसे घर ले आता. सुखबीर चाहता भी यही था. रेखा व उस के बच्चों को रिझाने के लिए कभी वह खानेपीने की चीजें लाता तो कभी खिलौने.

रेखा इन चीजों को थोड़ा नानुकुर के बाद स्वीकार कर लेती थी. सुनील को शक न हो या बुरा न लगे, इस के लिए वह सुनील की भी खातिरदारी करता. दरअसल, सुखवीर बियर पीने का शौकीन था. उस ने इस का चस्का सुनील को भी लगा दिया था.

30-32 वर्षीय सुखवीर शरीर से हृष्टपुष्ट व हंसमुख स्वभाव का था. रेखा से नजदीकी बनाने के लिए वह खूब खर्च करता था. कभीकभी वह रेखा के हाथ पर भी हजार 2 हजार रुपए रख देता था. रेखा मुसकरा कर उन्हें रख लेती थी.

बाद में सुखवीर सुनील की गैरमौजूदगी में भी आने लगा था. वह रेखा को भाभी कहता था. इस बहाने वह उस से खुल कर हंसीमजाक भी करनेलगा. रेखा उस की हंसीमजाक का बुरा नहीं मानती थी, बल्कि सुखवीर की रसीली बातें उस के दिल में हलचल पैदा करने लगी थीं.

सच तो यह है कि रेखा भी सुखवीर को चाहने लगी थी. क्योंकि सुखवीर एक तो उम्र में उस के बराबर था, दूसरे वह हंसमुख स्वभाव का था.

एक रोज सुखवीर स्कूल न जा कर रेखा के घर जा पहुंचा. उस समय रेखा घर में अकेली थी. बच्चे स्कूल गए थे और पति सुनील अपनी ड्यूटी पर. घर का कामकाज निपटा कर रेखा नहाधो कर सजीसंवरी बैठी थी कि सुखवीर आ गया. रेखा की खूबसूरती पर रीझ कर सुखवीर बोला, ‘‘भाभी, बनसंवर कर किस का इंतजार कर रही हो. क्या सुनील भैया जल्दी घर आने वाले हैं?’’

‘‘उन्हें मेरी फिक्र ही कब रहती है, जो जल्दी घर आएंगे.’’ रेखा तुनक कर बोली.

‘‘भैया को फिक्र नहीं तो क्या हुआ, मुझे तो आप की फिक्र है. मैं तो रातदिन तुम्हारी ही खूबसूरती में डूबा रहता हूं.’’ कहते हुए सुखवीर ने दरवाजा बंद किया और रेखा को अपनी बांहों में भर लिया. इस के बाद उस ने रेखा से छेड़छाड़ शुरू कर दी.

दिखावे के लिए रेखा ने उस की छेड़छाड़ का हलका विरोध किया, लेकिन जब उसे सुखद अनुभूति होने लगी तो वह भी उस का सहयोग करने लगी. इस तरह दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

एक ओर सुखवीर जहां रेखा से मिले सुख से निहाल था, वहीं रेखा भी थकी सांसों वाले पति सुनील से ऊब गई थी. सुखवीर का साथ पा कर वह फूली नहीं समा रही थी. उन दोनों ने एक बार मर्यादा की सीमा लांघी तो फिर लांघते ही चले गए. दोनों को जब भी मौका मिलता, एकदूसरे में समा जाते.

सुनील पत्नी के प्रेम प्रसंग से अनभिज्ञ था. उसे पत्नी व दोस्त दोनों पर भरोसा था. लेकिन दोनों ही उस के विश्वास का गला घोंट रहे थे.

सुनील भले ही पत्नी के प्रेम प्रसंग से अनभिज्ञ था, लेकिन पासपड़ोस के लोगों में रेखा और सुखवीर के नाजायज रिश्तों की चर्चा चल पड़ी थी. लेकिन उन दोनों ने इस की परवाह नहीं की. सुखवीर रेखा का दीवाना था तो रेखा उस की मुरीद. रेखा पत्नी तो सुनील की थी, लेकिन उस पर अधिकार उस के प्रेमी सुखवीर का हो गया था.

रेखा और सुखवीर के संबंधों के चर्चे गांव की हर गली के मोड़ पर होने लगे तो बात सुनील के कानों तक पहुंची. उस ने इस बारे में पत्नी से पूछा, ‘‘रेखा, आजकल तुम्हारे और सुखवीर के बारे में गांव में जो चर्चा है, क्या वह सच है?’’

‘‘कैसी चर्चा?’’

‘‘यही कि तुम्हारे और सुखवीर के बीच नाजायज संबंध हैं.’’

‘‘गांव वाले हमें बदनाम करने के लिए तुम्हारे कान भर रहे हैं. इस के बाद भी अगर तुम्हें अपने दोस्त पर भरोसा नहीं तो उस से साफसाफ कह दो कि वह घर न आया करे.’’

सुनील ने उस समय पत्नी की बात पर भरोसा कर लिया, लेकिन उस के मन में शक जरूर बैठ गया. अब वह दोनों को रंगेहाथ पकड़ने की जुगत में लग गया. उसे यह मौका जल्द ही मिल गया.

उस रोज रविवार था. सुनील ने रेखा से कहा कि वह किसी काम से इटावा जा रहा है, देर शाम तक ही वापस आ पाएगा.

इधर सुनील घर से निकला उधर रेखा ने फोन कर के सुखवीर को घर बुला लिया. आते ही सुखवीर ने रेखा को बांहों में कैद किया और बिस्तर पर जा पहुंचा. इसी दौरान रेखा को दरवाजा पीटने की आवाज सुनाई दी. रेखा ने कपड़े दुरुस्त करने के बाद दरवाजा खोला तो सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया और उस की घिग्घी बंध गई.

सुनील पत्नी की घबराहट भांप गया. रेखा को परे ढकेल कर सुनील घर के अंदर गया तो कमरे में उस का दोस्त सुखवीर बैठा मिला. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.

सुनील को देख कर सुखवीर चेहरे पर बनावटी मुसकान बिखेरते हुए बोला, ‘‘आप तो इटावा गए थे. रेखा ने चंद मिनट पहले ही बताया था. मैं इधर से चौबिया जा रहा था तो सोचा आप से मिलता चलूं.’’

सुनील बोला, ‘‘हां दोस्त, गया तो इटावा था लेकिन यह सोच कर वापस आ गया कि तुम दोनों घर में क्या गुल खिला रहे हो, यह भी देख लूं. बहरहाल, तुम ने दोस्ती का अच्छा फर्ज निभाया और मेरी ही इज्जत पर डाका डाल दिया. तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो. अब तुम्हारी खैरियत इसी में है कि आज के बाद हमारे घर में कदम मत रखना.’’

सुखवीर एक तरह से रंगेहाथ पकड़ा गया था. इसलिए वह बिना जवाब दिए ही घर से चला गया. उस के बाद सुनील का सारा गुस्सा रेखा पर उतरा. उस ने पत्नी को बेतहाशा पीटा. रेखा पिटती रही लेकिन अपराध बोध के कारण उस ने जवाब नहीं दिया.

उस दिन के बाद रेखा और सुखवीर का मिलना बंद हो गया. सुनील और सुखवीर की दोस्ती में भी गांठ पड़ गई. लेकिन यह दूरियां अधिक दिनों तक नहीं चल पाईं. एक दिन जब दोनों का सामना हुआ तो सुखवीर ने पैर पकड़ कर सुनील से माफी मांग ली.

सुनील साफ दिल का था इसलिए उस ने उसे माफ कर दिया. इस के बाद दोनों में पहले जैसी दोस्ती हो गई. फिर से सुखवीर के घर आनेजाने लगा. रेखा इस से बहुत खुश थी.

एक रोज सुनील घर से निकला तो इत्तफाक से सुखवीर आ गया. रेखा और सुखवीर अपने प्यार के सिलसिले में बातें करने लगे. तभी रेखा बोली, ‘‘सुखवीर इस तरह लुकाछिपी का खेल कब तक चलेगा?’’

‘‘जब तक तुम चाहोगी.’’

‘‘नहीं, मुझे यह पसंद नहीं. अब मैं कोई स्थाई समाधान चाहती हूं.’’ रेखा ने कहा.

‘‘मतलब?’’ सुखवीर चौंकते हुए बोला.

‘‘मतलब यह कि मैं सुनील से छुटकारा चाहती हूं. अब मैं तुम से तभी बात करूंगी, जब तुम सुनील से छुटकारा दिला दोगे.’’

सुखवीर कुछ पल गहरी सोच में डूबा रहा फिर बोला, ‘‘ठीक है, मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है.’’

इस के बाद रेखा और सुखवीर ने मिल कर सुनील की हत्या की योजना बनाई. अपनी इस योजना में सुखवीर ने अपने एक रिश्तेदार रामप्रकाश को 10 हजार रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया.

योजना के अनुसार, 30 मई, 2019 की शाम 4 बजे सुखवीर सिंह अपने दोस्त सुनील कुमार के घर पहुंचा और उस ने उसे पार्टी की दावत दी. सुनील राजी हो गया तो सुखवीर ने अपने रिश्तेदार रामप्रकाश को फोन कर घर पहुंचने को कहा.

शाम लगभग 6 बजे सुखवीर, सुनील को साथ ले कर अपने गांव कुसैली आ गया. सुनील अपनी कार से आया था. सुखवीर ने सुनील को अपने खाली पड़े मकान में ठहराया. फिर वहीं पर पार्टी की व्यवस्था की. रात 8 बजे के लगभग रामप्रकाश भी कुसैली पहुंच गया. उस के बाद तीनों ने मिल कर बियर की पार्टी की. खाने पीने के बाद सुनील वहीं चारपाई पर सो गया.

आधी रात को जब गांव में सन्नाटा पसर गया तब सुखवीर और रामप्रकाश ने गहरी नींद सो रहे सुनील को दबोच लिया और फावड़े से गरदन काट कर उसे मौत की नींद सुला दी. इस के बद उन दोनों ने शव को दफनाने के लिए कमरे में गहरा गड्ढा खोदा और शव को फावड़े से काट कर कई टुकड़ों में विभाजित कर गड्ढे में डाल दिया.

लाश के उन टुकड़ों पर उस ने केरोसिन उड़ेल कर आग लगा दी फिर उन अवशेषों को गड्ढे में दफन कर दिया. सुबह होने से पहले रामप्रकाश ने गड्ढे को समतल कर गोबर से लीप दिया और उस के ऊपर चारपाई बिछा दी.

लोगों को गुमराह करने के लिए सुखवीर सुनील की कार को कानपुर ले आया और कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन के बाहर पार्किंग में खड़ी कर वापस आ गया. 3 दिन बाद उस ने ही अज्ञात फोन नंबर से फोन कर कार पार्किंग में खड़ी होने की सूचना सुनील के पिता महाराज सिंह को दे दी.

इधर रात 8 बजे महाराज सिंह खेत से घर भोजन करने आए तो पता चला कि सुनील कार ले कर कहीं गया है और वापस नहीं आया. महाराज सिंह यह सोच कर घर में रुक गए कि बच्चेबहू घर में अकेले हैं. जब तक सुनील वापस नहीं आया तो उन की चिंता बढ़ती गई.

धीरेधीरे एक सप्ताह बीत गया पर सुनील का पता न चला, तब महाराज सिंह ने बहू रेखा पर दबाव डाल कर थाना चौबिया में गुमशुदगी दर्ज कराई.

17 जून, 2019 को थाना चौबिया पुलिस ने सुखवीर सिंह यादव, रामप्रकाश यादव तथा रेखा से विस्तार से पूछताछ करने के बाद तीनों को 17 जून को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें इटावा की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेवफाई का बेरहम बदला

कोटा के तुल्लापुर स्थित पुरानी रेलवे कालोनी के सेक्टर-3 के क्वार्टर नंबर 169 से गुनीषा नाम की 6 साल की बच्ची गायब हो गई. यह क्वार्टर श्रीकिशन कोली का था जो रेलवे कर्मचारी था.

6 वर्षीय गुनीषा श्रीकिशन की बेटी गीता की बेटी थी. रात को जब परिवार के सभी सदस्य गहरी नींद में थे, तभी कोई गुनीषा को उठा ले गया था. बच्ची के गायब होने से सभी हैरान थे, क्योंकि गीता अपनी बेटी गुनीषा के साथ दालान में सो रही थी. क्वार्टर का मुख्य दरवाजा बंद था. किसी के भी अंदर आने की संभावना नहीं थी.

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श्रीकिशन के क्वार्टर में शोरशराबा हुआ तो अड़ोस पड़ोस के सब लोग एकत्र हो गए. पता चला घर में 9 सदस्य थे, जिन में गुनीषा गायब थी. जिस दालान में ये लोग सो रहे थे, उस के 3 कोनों में कूलर लगे थे. रात में करीब एक बजे गीता की मां पुष्पा पानी पीने उठी तो उस ने गुनीषा को सिकुड़ कर सोते देखा. कूलरों की वजह से उसे ठंड लग रही होगी, यह सोच कर पुष्पा ने उसे चादर ओढ़ा दी और जा कर अपने बिस्तर पर सो गई.

रात को साढ़े 3 बजे गीता जब बाथरूम जाने के लिए उठी तो बगल में लेटी गुनीषा को गायब देख चौंकी. उस ने मम्मीपापा को उठाया. उन का शोर सुन कर बाकी लोग भी उठ गए. गुनीषा को घर के कोनेकोने में ढूंढ लिया गया, लेकिन वह नहीं मिली. उन लोगों के रोने चीखने की आवाजें सुन कर पास पड़ोस के लोग भी आ गए.

मासूम बच्चियों के साथ हो रही दरिंदगी की सोच कर लोगों ने श्रीकिशन कोली को सलाह दी कि हमें तुरंत पुलिस के पास जाना चाहिए.

पड़ोसियों और घर वालों के साथ श्रीकिशन कोली जब रेलवे कालोनी थाने पहुंचा, तब तक सुबह के 4 बज चुके थे. गुनीषा की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी अनीस अहमद ने इस की सूचना एसपी सुधीर भार्गव को दी और श्रीकिशन के साथ पुलिस की एक टीम घटनास्थल की छानबीन के लिए भेज दी.

अनीस अहमद ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना देते हुए अलर्ट भी जारी करवा दिया. मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने पूरे मकान को खंगाला. पुलिस टीम को श्रीकिशन की इस बात पर नहीं हुआ कि मकान का मुख्य दरवाजा भीतर से बंद रहते कोई अंदर नहीं आ सकता. लेकिन जब पुलिस की नजर पिछले दरवाजे पर पड़ी तो उन की धारणा बदल गई.

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                       गुनीषा

पिछले दरवाजे की कुंडी टूटी हुई थी. दरवाजा तकरीबन आधा खुला हुआ था. 3 कमरों वाले उस क्वार्टर में एक रसोई के अलावा बीच में दालान था. मकान की छत भी करीब 10 फीट से ज्यादा ऊंची नहीं थी. पूरे मकान का मुआयना करते हुए एसआई मुकेश की निगाहें बारबार पिछले दरवाजे पर ही अटक जाती थीं.

इसी बीच एक पुलिसकर्मी रामतीरथ का ध्यान छत की तरफ गया तो उस ने श्रीकिशन से छत पर जाने का रास्ता पूछा. लेकिन उस ने यह कह कर इनकार कर दिया कि ऊपर जाने के लिए सीढि़यां नहीं हैं.

आखिर पुलिसकर्मी कुरसी लगा कर छत पर पहुंचा तो उसे पानी की टंकी नजर आई. उस ने उत्सुकतावश टंकी का ढक्कन उठा कर देखा तो उस के होश उड़ गए. रस्सियों से बंधा बच्ची का शव टंकी के पानी में तैर रहा था.

बच्ची की लाश देख कर पुलिसकर्मी रामतीरथ वहीं से चिल्लाया, ‘‘सर, बच्ची की लाश टंकी में पड़ी है.’’

रामतीरथ की बात सुन कर सन्नाटे में आए एसआई मुकेश तुरंत छत पर पहुंच गए. यह रहस्योद्घाटन पूरे परिवार के लिए बम विस्फोट जैसा था. बालिका की हत्या और शव की बरामदगी की सूचना मिली तो थानाप्रभारी अनीस अहमद भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि बच्ची का गला किसी बनियाननुमा कपड़े से बुरी तरह कसा हुआ था. गुनीषा की हत्या ने घर में हाहाकार मचा दिया.

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इसी पानी की टंकी में मिला था गुनीषा का शव

यह खबर कालोनी में आग की तरह फैली. पुलिस टीम ने गुनीषा के शव को कब्जे में कर तत्काल रेलवे हौस्पिटल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बच्ची की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद पुलिस ने यह मामला धारा 302 में दर्ज कर लिया.

एडिशनल एसपी राजेश मील और डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़ भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने मौके पर पहुंचे अपराध विशेषज्ञों तथा डौग स्क्वायड टीम की भी सहायता ली. लेकिन ये प्रयास निरर्थक रहे. न तो अपराध विशेषज्ञ घटनास्थल से कोई फिंगरप्रिंट ही उठा सके और न ही खोजी कुत्ते कोई सुराग ढूंढ सके.

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  एडिशनल एसपी राजेश मील

लेकिन एडिशनल एसपी राजेश मील को 3 बातें चौंकाने वाली लग रही थीं, पहली यह कि जब घर में पालतू कुत्ता था तो वह भौंका क्यों नहीं. इस का मतलब बच्ची का अपहर्त्ता परिवार के लिए कोई अजनबी नहीं था.

दूसरी बात यह थी कि गीता का अपने पति घनश्याम यानी गुनीषा के पिता से तलाक का केस चल रहा था. कहीं इस वारदात के पीछे घनश्याम ही तो नहीं था. श्रीकिशन कोली ने भी घनश्याम पर ही शक जताया. उस ने मौके से 3 मोबाइल फोन के गायब होने की बात बताई. राजेश मील यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर उन मोबाइलों में क्या राज छिपा था कि किसी ने उन्हें गायब कर दिया.

गुरुवार 30 मई को पोस्टमार्टम के बाद बच्ची का शव घर वालों को सौंप दिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बच्ची का गला घोंटा जाना ही मृत्यु का मुख्य कारण बताया गया.

जिस निर्ममता से बच्ची की हत्या की गई थी, उस का सीधा मतलब था कि किसी पारिवारिक रंजिश के चलते ही उस की हत्या की गई थी. पुलिस अधिकारियों के साथ विचारविमर्श के बाद एसपी सुधीर भार्गव ने एडिशनल एसपी राजेश मील के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़, रोहिताश्व कुमार और सीआई अनीस अहमद को शामिल किया गया.

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            सीआई अनीस अहमद

पूरे घटनाक्रम का अध्ययन करने के बाद एएसपी राजेश मील ने हर कोण से जांच करने के लिए पहले श्रीकिशन के उन नाते रिश्तेदारों को छांटा, जो परिवार के किसी भलेबुरे को प्रभावित कर सकते थे. साथ ही इलाके के ऐसे बदमाशों की लिस्ट भी तैयार की, जिन की वजह से परिवार के साथ कुछ अच्छाबुरा हो सकता था.

पुलिस ने गीता से उस के पति  घनश्याम से चल रहे विवाद के बारे में पूछा तो वह सुबकते हुए बोली, ‘‘वह शराब पी कर मुझ से मारपीट करता था. इसलिए मुझे उस से नफरत हो गई थी. मैं तलाक दे कर उस से अपना रिश्ता खत्म कर लेना चाहती थी.’’

उस का कहना था कि उस की वजह से मैं पहले ही अपनी एक औलाद खो चुकी हूं. यह बात संदेह जताने वाली थी, इसलिए डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़ ने फौरन पूछा, ‘‘क्या घनश्याम पहले भी तुम्हारे बच्चे की हत्या कर चुका है?’’

गीता ने जवाब दिया तो हिंगड़ हैरान हुए बिना नहीं रहे. उस ने बताया, ‘‘साहबजी, उस के साथ लड़ाई झगड़े के दौरान मेरा गर्भपात हो गया था.’’

पुलिस संभवत: इस विवाद की छानबीन कर चुकी थी, इसलिए हिंगड़ ने पूछा कि तुम ने तो घनश्याम के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करा रखा है. गीता जवाब देने के बजाए इधरउधर देखने लगी तो हिंगड़ को लगा कि कुछ न कुछ ऐसा है, जिसे छिपाया जा रहा है.

थाने में चली लगातार 12 घंटे की पुलिस पूछताछ में श्रीकिशन यह तो नहीं बता पाया कि गुनीषा के गले में कसा पाया गया बनियान किस का था, लेकिन 2 बातें पुलिस के लिए काफी अहम थीं. पहली, जब आरोपी गुनीषा को उठा कर ले जा रहा था तो उस ने चीखने चिल्लाने की कोशिश की होगी. लेकिन उस की आवाज किसी को सुनाई क्यों नहीं दी?

इस सवाल पर श्रीकिशन सोचते हुए बोला, ‘‘साहबजी, आवाज तो जरूर हुई होगी, लेकिन अपहरण करने वाले ने बच्ची का मुंह दबा दिया होगा. यह भी संभव है कि हलकी फुलकी चीख निकली भी होगी, तो 3 कूलरों की आवाज में सुनाई नहीं दी होगी.’’

पुलिस ने श्रीकिशन से पूछा कि मौके से जो 3 मोबाइल गायब हुए, वे किस किस के थे. इस बात पर श्रीकिशन ने भी हैरानी जताई. फिर उस ने बताया कि उस का, गीता का और उस के बेटे राजकुमार के मोबाइल गायब थे.

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पुलिस अधिकारियों ने घटना के समय घर में मौजूद सभी परिजनों के अलावा अन्य नातेरिश्तेदारों, इलाके में नामजद अपराधियों सहित करीब 100 लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई.

संदेह के घेरे में आए गीता के पति घनश्याम की टोह लेने के लिए थानाप्रभारी अनीस अहमद गुरुवार 30 मई को तड़के उडि़या बस्ती स्थित उस के घर जा पहुंचे. उस का पता भी श्रीकिशन कोली ने ही बताया था. पुलिस जब घनश्याम तक पहुंची तो वह अपने घर में सो रहा था.

इतनी सुबह आधीअधूरी नींद से जगाए जाने और एकाएक सिर पर खड़े पुलिस दस्ते को देख कर घनश्याम के होश फाख्ता हो गए. अजीबोगरीब स्थिति से हक्काबक्का घनश्याम बुरी तरह सन्नाटे में आ गया. उस के घर वाले भी जाग गए. घनश्याम के पिता मच्छूलाल और परिवार के लोगों ने ही पूछने का साहस जुटाया, ‘‘साहब, आखिर हुआ क्या? क्या कर दिया घनश्याम ने?’’

उसे जवाब देने के बजाए थानाप्रभारी अनीस अहमद ने उसे डांट दिया. मच्छूलाल ने एक बार अपने रोआंसे बेटे की तरफ देखा, फिर हिम्मत कर के बोला, ‘‘साहब, आप बताओ तभी तो पता चलेगा?’’

‘‘गुनीषा बेटी है न घनश्याम की?’’ थानाप्रभारी ने कड़कते स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारा बेटा सुबह 3 बजे उस की हत्या कर के यहां आ कर सो गया.’’

मच्छूलाल तड़प कर बोला, ‘‘क्या कहते हो साहब, घनश्याम तो रात एक बजे ही दिल्ली से आया है. वहीं नौकरी करता है. खानेपीने के बाद हमारे साथ बातें करते हुए सुबह 4 बजे सोया था.’’

थानाप्रभारी अनीस अहमद के चेहरे पर असमंजस के भाव तैरने लगे. लेकिन उन का शक नहीं गया. उन्होंने घनश्याम को थाने चलने को कहा. घनश्याम के साथ तमाम लोग थाने आए.

भीड़ में उन्हें दिलीप नामक शख्स ऐतबार के काबिल लगा. उस का कहना था, ‘‘साहब, खूनखराबा घनश्याम के बस का नहीं है. यह तो अपनी बेटी से इतना प्यार करता था कि उस के बारे में बुरा करना तो दूर, सोच भी नहीं सकता. वैसे भी यह दिल्ली रेलवे में नौकरी करता है. कल रात ही तो आया था. नहीं साहब, किसी ने आप को गलत सूचना दी है.’’

घनश्याम के पक्ष की बातें सुन कर अनीस अहमद को उस की डोर ढीली छोड़ना ही बेहतर लगा. उन्होंने उसे अगले दिन सुबह आने को कह कर जाने दिया.

शुक्रवार 31 मई को घनश्याम नियत समय पर थाने पहुंच गया. इस से पहले कि पुलिस उस से कुछ पूछती, उस की आंखों में आंसू आ गए, ‘‘साहब, गीता से तो मेरी नहीं पटी पर अपनी बेटी गुनीषा से मुझे बहुत प्यार था. मुझे गीता से अलग होने का कोई दुख नहीं था लेकिन मुझे बेटी गुनीषा की बहुत याद आती थी. इतना घिनौना काम तो मैं…’’

‘‘तुम्हारे बीच अलगाव कैसे हुआ?’’ पूछने पर घनश्याम कुछ देर जमीन पर नजरें गड़ाए रहा. उस ने डबडबाई आंखों को छिपाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘सर, छोटी तनख्वाह में बड़े अरमान कैसे पूरे हो सकते हैं?’’

कोटा शहर में रेलवे कर्मचारियों के लिए बनाए गए आवास 2 कालोनियों में बंटे हुए हैं. अधिकारी और उन के मातहत कर्मचारी नई कालोनी में रहते हैं. यह कालोनी कोटा रेलवे जंक्शन से सटी हुई है. नई कालोनी करीब 2 रकबों में फैली है. जबकि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नजदीक की तुल्लापुर इलाके में आवास आवंटित किए गए हैं.

रेलवे स्टेडियम के निकट बनी इस कालोनी को पुरानी रेलवे कालोनी के नाम से जाना जाता है. लगभग 300 क्वार्टरों वाली इस कालोनी में क्वार्टर नंबर 169 में श्रीकिशन रह रहा था. श्रीकिशन की पत्नी का नाम पुष्पा था.

इस दंपति के गीता और मीनाक्षी 2 बेटियों के अलावा 2 बेटे राजकुमार और राहुल थे. श्रीकिशन की संगीता और जैमा नाम की 2 बहनें भी थीं. दोनों बहनें विवाहित थीं. लेकिन घटना के दिन श्रीकिशन के घर आई हुई थीं.

लगभग 25 साल की सब से बड़ी बेटी गीता विवाहित थी. लापता हुई 6 वर्षीया गुनीषा उसी की बेटी थी. करीब 7 साल पहले गीता का विवाह तुल्लापुरा के निकट ही उडि़या बस्ती में रहने वाले मच्छूलाल के बेटे घनश्याम से हुआ था.

घनश्याम दिल्ली स्थित तुगलकाबाद रेलवे स्टेशन पर नौकरी कर रहा था. घनश्याम और गीता का दांपत्य जीवन करीब 4 साल ही ठीकठाक चला. बाद में उन के बीच झगड़े शुरू हो गए. पतिपत्नी के रिश्ते इतने तनावपूर्ण हो गए थे कि नौबत तलाक तक आ पहुंची.

गीता पिछले 3 सालों से अपने पिता के पास कोटा में ही रह रही थी. तलाक का मामला कोटा अदालत में विचाराधीन था. गीता ने कोटा के महिला थाने में घनश्याम के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला भी दर्ज करा रखा था.

छानबीन के इस दौर में पुलिस के सामने 3 बातें आईं. इन गुत्थियों को सुलझा कर ही  हत्यारे तक पहुंचा जा सकता था. पहली यह कि आरोपी जो भी था, घर के चप्पे चप्पे से वाकिफ था. ऐसा कोई परिवार का सदस्य भी हो सकता था और परिवार से बेहद घुलामिला व्यक्ति भी, जिस निर्दयता से मासूम बच्ची की हत्या की गई थी, निश्चित रूप से वह गीता से गहरी नफरत करता होगा.

गीता ज्यादा कुछ बोलने बताने की स्थिति में नहीं थी. वह सदमे में थी और बारबार बेहोश हो रही थी. वैवाहिक विवाद की स्थिति में घनश्याम सब से ज्यादा संदेहास्पद पात्र था. पुलिस ने हर कोण और हर तरह से उस से पूछताछ की लेकिन वह कहीं से भी अपराधी नहीं लगा. आखिर उसे इस हिदायत के साथ जाने दिया गया कि वह पुलिस को बताए बिना कोटा से बाहर न जाए.

राजेश मील को यह बात बारबार कचोट रही थी कि गीता जवान है, कमोबेश खूबसूरत भी है. लेकिन ऐसा क्या था कि अपनी बसीबसाई गृहस्थी छोड़ कर पिता के पास रह रही थी. पति घनश्याम के बारे में जो जानकारी पुलिस ने जुटाई थी, उस से उस का हत्या का कोई ताल्लुक नहीं दिखाई दे रहा था.

इस बीच पुलिस को यह भी पता चल चुका था कि वह सीधासादा नेकनीयत का आदमी था. इतना सीधा कि उसे कोई भी घुड़की दे कर डराधमका सकता था.

सवाल यह था कि दिल्ली जैसे शहर में रहते हुए क्या पतिपत्नी के बीच कोई तीसरा भी था? ऐसे किस्से की तसदीक तो मोबाइल ही हो सकती है. लिहाजा राजेश मील ने फौरन सीआई को हिदायत देते हुए कहा, ‘‘अनीस, गीता के गायब हुए मोबाइल का नंबर है न तुम्हारे पास? फौरन उस की काल डिटेल्स ट्रैस करने का बंदोबस्त करो.’’

अनीस अहमद फौरन इस काम पर लग गए. काल ट्रैसिंग के नतीजे वाकई चौंकाने वाले थे. अनीस अहमद ने जो कुछ बताया, उस ने एसपी राजेश मील की आंखों में चमक पैदा कर दी. गीता के मोबाइल की मौजूदगी दिल्ली के तुगलकाबाद में होने की तसदीक कर रही था. साफ मतलब था कि आरोपी दिल्ली के तुगलकाबाद में मौजूद था.

सीआई अनीस अहमद के नेतृत्व में दिल्ली पहुंची पुलिस टीम ने जो जानकारी जुटाई, उस के मुताबिक आरोपी का नाम कालूचरण बेहरा था. कालूचरण को पुलिस ने घनश्याम के पुल प्रह्लादपुर स्थित घर के पास वाले मकान से धर दबोचा.

कालूचरण घनश्याम का पड़ोसी निकला. गीता के दिल्ली में रहते हुए कालूचरण से प्रेमिल संबंध बन गए थे. घनश्याम और गीता के बीच अलगाव की बड़ी वजह यह भी थी. दिल्ली गई पुलिस टीम ने घनश्याम के मकान सहित अन्य जगहों से कई महत्त्वपूर्ण सुराग एकत्र किए. कालूचरण दिल्ली स्थित कानकोर में औपरेटर था.

पुलिस कालूचरण बेहरा को दिल्ली से हिरासत में ले कर सोमवार 3 जून को कोटा पहुंची. यहां शुरुआती पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की गिरफ्तारी दिखा कर मंगलवार 4 जून को न्यायालय में पेश कर 3 दिन के रिमांड पर ले लिया. पुलिस की शुरुआती पूछताछ में मासूम गुनीषा की हत्या को ले कर कालूचरण ने जो खुलासा किया, वह चौंकाने वाला था.

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                पुलिस हिरासत में अभियुक्त कालूचरण

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रह्लादपुर में घनश्याम के पड़ोस में रहने के दौरान ही कालूचरण के घनश्याम की पत्नी गीता से प्रेमिल संबंध बन गए थे. गीता के कोटा चले जाने के बाद भी कालू कोटा आ कर गीता से मिलताजुलता रहा. लेकिन पिछले कुछ दिनों से गीता के किसी अन्य युवक से संबंध बन गए थे. नतीजतन उस ने कालू से कन्नी काटनी शुरू कर दी थी.

कालू ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो उस ने उसे बुरी तरह दुत्कार दिया था. बेवफाई और अपमान की आग में सुलगते कालू ने गीता को सबक सिखाने की ठान ली. इस रंजिश की बलि चढ़ी मासूम गुनीषा.

पड़ोसी होने के नाते घनश्याम और कालू के बीच अच्छा दोस्ताना था. पतिपत्नी के बीच अकसर होने वाले झगड़े में कालू गीता का पक्ष लेता था. नतीजतन गीता का झुकाव कालू की तरफ होने लगा. गीता का रंगरूप बेशक गेहुआं था, लेकिन भरे हुए बदन की गीता के नैननक्श काफी कटीले थे.

कालू से निकटता बढ़ी तो गीता पति की अनुपस्थिति में कालू के कमरे पर भी आने लगी. यहीं दोनों के बीच अनैतिक संबंध बने. अनैतिक संबंध बनाने के लिए कालू ने उसे अपने प्यार का भरोसा दिलाते हुए कहा था कि वह शादी नहीं करेगा और सिर्फ उसी का हो कर रहेगा.

दिल्ली में पतिपत्नी के बीच झगड़े इस कदर बढे़ कि गीता ने घनश्याम को छोड़ने का फैसला कर लिया और बेटी गुनीषा को ले कर कोटा आ गई.

पिता के लिए बेटी का साझा दुख था. इसलिए उस ने भी बेटी का साथ दिया. यह 3 साल पहले की बात है. इस बीच गीता ने घनश्याम पर दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए तलाक का मुकदमा दायर कर दिया था. यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है.

गीता के कोटा आ जाने के बावजूद कालू के साथ उस के संबंध बने रहे. कालू अकसर कोटा आता रहता था और 4-5 दिन गीता के घर पर ही रुकता था. कालू ने गीता को खुश रखने के लिए पैसे लुटाने में कोई कसर नहीं रखी थी.

पिछले करीब 6 महीने से कालू को अपने और गीता के रिश्तों में कुछ असहजता महसूस होने लगी. दिन में 10 बार फोन करने वाली गीता न सिर्फ उस का फोन काटने लगी थी, बल्कि अपने फोन को व्यस्त भी दिखाने लगी थी. कालू ने गीता की बेरुखी का सबब जानने की जुगत लगाई तो पता चला कि उस की माशूका किसी और के हाथों में खेल रही है. उस ने अपने रसूखों से इस बात की तसदीक भी कर ली.

हालात भांपने के लिए जब वह कोटा पहुंचा तो गीता में पहले जैसा जोश नहीं था. उस ने कालू को यहां तक कह दिया कि अब वह यहां न आया करे. गुस्से में उबलता हुआ कालू दिल्ली लौटा तो इसी उधेड़बुन में जुट गया कि गीता को कैसे उस की बेवफाई का ताजिंदगी याद रखने वाला सबक सिखाए. उस ने गीता की बेटी और पूरे परिवार की चहेती गुनीषा को मारने का तानाबाना बुन लिया.

अपनी योजना को अंजाम देने के लिए वह 29 मई की रात को ट्रेन से कोटा आया. घर का चप्पाचप्पा उस का देखाभाला था.  30 मई की देर रात वह करीब 2 बजे पीछे के रास्ते से घर में घुसा और सब से पहले उस ने तख्त पर पड़े तीनों मोबाइल कब्जे में किए. फिर गीता के पास सोई गुनीषा को चद्दर समेत ही उठा लिया.

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नींद में गाफिल गुनीषा कुनमुनाई भी, लेकिन कालू ने उस का मुंह बंद कर दिया. कूलरों के शोर में वैसे भी गुनीषा की कुनमुनाहट दब गई. गुनीषा का गला घोंट कर टंकी में डालने की योजना वह पहले ही बना चुका था. छत पर जाने का रास्ता भी उसे पता था.

गुनीषा को दबोचे हुए वह छत पर पहुंचा. अलगनी से उठाई गई बनियान से उस का गला घोंट कर कालू ने उसे पानी की टंकी में डाल दिया फिर वह जिस खामोशी से आया था, उसी खामोशी से बाहर निकल गया. मोबाइल इस मंशा से उठाए थे, ताकि इस बात की तह तक पहुंचा जा सके कि गीता के आजकल किस से संबंध थे. लेकिन मोबाइल ही उस की गिरफ्तारी का कारण बन गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार में हुई संतकबीर नगर की नेत्री की हत्या

भीड़ समझ नहीं पा रही थी कि रोते रोते आरती राजभर ने कमरे की ओर इशारा क्यों किया? आखिर वहां  क्या हो सकता था? कुछ गांव वाले हिम्मत कर के कमरे की ओर बढ़े तो कमरे के अंदर का दिल दहला देने वाला नजारा देख कर कांप उठे.

फर्श पर चारों ओर खून फैला था और नंदिनी राजभर (Nandini Rajbhar) अपने ही खून में सनी पड़ी थी. किसी ने नंदिनी का कत्ल कर दिया था, वह मर चुकी थी. दिनदहाड़े नंदिनी (Nandini Rajbhar Murder) की हत्या की खबर सुनते ही वहां भीड़ जमा होने लगी थी.

हत्या किसी आम इंसान की नहीं हुई थी, बल्कि एक राजनीतिक पार्टी (Political Party) की प्रदेश महासचिव की हुई थी. देखते ही देखते पलभर में यह खबर जंगल में आग की तरह समूचे संतकबीर नगर (Sant Kabir Nagar)  जिले में फैल गई थी. उसी भीड़ में से किसी ने पुलिस कंट्रोलरूम को फोन कर के घटना की सूचना दे दी थी.

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संतकबीर नगर जिले की कोतवाली थाने के अंतर्गत एक गांव पड़ता है (Digha) डीघा. इस गांव में अधिकांश लोग राजभर बिरादरी के रहते हैं. इसी गांव में बालकृष्ण राजभर अपने परिवार के साथ रहते थे. परिवार में पतिपत्नी के अलावा 2 बेटे थे, जो परदेश में जा कर कमाते थे.

क्षेत्र में बालकृष्ण की गिनती मजबूत हैसियतदार और बड़े काश्तकारों में होती थी. लेकिन उन का रहन सहन मध्यमवर्गीय परिवार जैसा ही था. उन्हें देख कर कोई यह नहीं कह सकता था कि वह दौलतमंद इंसान होंगे. इन्हीं की बहू थी नंदिनी राजभर, जो घरपरिवार और गांव समाज का नाम रोशन कर रही थी.

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28 वर्षीय नंदिनी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (महिला प्रकोष्ठ) की प्रदेश महासचिव थी. नंदिनी जितनी सौम्य और गंभीर थी, उतनी ही खूबसूरत भी थी. किसी जन्नत की हूर से कम नहीं थी वह. उसे अपनी खूबसूरती पर बहुत नाज और गुरूर भी था.

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खैर, वह राजनीति की एक नवोदित नेत्री थी, जो अपनी मेहनत की बदौलत वटवृक्ष का रूप ले रही थी. उस के गांव समाज को उस पर नाज था. क्योंकि नंदिनी गांव की बहू होने के साथ दबे कुचले और मजलूमों का एक मजबूत सहारा बनी हुई थी तो एक बुलंद आवाज भी.

गांव के किसी भी व्यक्ति को कोई तकलीफ होती तो वह एक पैर उन के साथ खड़ी रहती थी. तभी तो गांव वाले उसे अपनी पलकों पर बिठा कर रखते थे और उसे एक मंत्री बनते हुए देखना चाहते थे.

खैर, बात 10 मार्च, 2024 की शाम की है, जब नंदिनी की सास आरती देवी बाहर काम से अपने घर लौटी थीं. उस समय शाम के 4 बजे थे. बाहर का दरवाजा आपस में भिड़का हुआ था. जब वह पहुंचीं तो दरवाजे पर खड़ी हो कर ही बहू नंदिनी को 3-4 बार आवाज दी. भीतर से कोई आवाज नहीं आई.

उन्हें लगा कि शायद बहू दरवाजा बंद कर सो रही है. कई बार आवाज देने के बाद जब बहू नंदिनी ने दरवाजा नहीं खोला तो आरती देवी ने दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया. धक्का देते ही दरवाजे के दोनों पट भीतर की ओर खुल गए.

थकी प्यासी आरती देवी बाहर से आई थीं. जोरों की प्यास और भूख भी लगी थी, इसलिए धड़धड़ाती हुई वह कमरे में दाखिल हुईं. उन्हें बहू पर गुस्सा आ रहा था कि इतनी देर से वह उसे बुला रही हैं, लेकिन वो है कि जवाब ही नहीं दे रही. आखिर कर क्या रही है?

बरामदे से होती हुई वह सीधा बहू नंदिनी के कमरे में दाखिल हुईं. कमरे में पूरी तरह से अंधेरा था. वह दरवाजे पर खड़ी हो गईं और वहीं खड़ी हो कर भीतर का जायजा लेने लगीं. भीतर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था तो दरवाजे के दाईं ओर लगे बोर्ड से स्विच औन किया.

स्विच औन होते ही कमरा रोशनी से भर गया. आरती देवी ने कमरे में इधर उधर देखा. फिर जैसे ही उन की नजर बेड के नीचे फर्श पर पड़ी तो उन के मुंह से एक दर्दनाक चीख निकल पड़ी. वह चीखती हुई उल्टे पांव बाहर की ओर भागीं.

आरती देवी की चीख सुन कर पासपड़ोस के लोग वहां जमा हुए थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक से उन्हें क्या हो गया जो इतनी जोरजोर से चीख रही थीं. वह कमरे की ओर इशारा कर गश खा कर जमीन पर दोहरी होती हुई गिर पड़ीं.

मौके पर जमा लोग जब कमरे में पहुंचे तो वहां आरती देवी की बहू नंदिनी राजभर लहूलुहान हालत में मृत पड़ी थी. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि दिनदहाड़े किस ने घर में घुस कर उन्हें चाकू से गोद डाला.

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस भी आश्चर्यचकित रह गई. आननफानन में पुलिस कंट्रोल रूम ने घटना की जानकारी कोतवाली थाने के इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल को देते हुए फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंचने को कह दिया.

घटना की सूचना मिलते ही इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल आननफानन में फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का जायजा लिया. मृतका नंदिनी राजभर की खून में लथपथ लाश का मुआयना करने लगे.

इस बीच घटना की सूचना सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (Suheldev Bharatiya Samaj Party) के अध्यक्ष और योगी सरकार में मंत्री बने ओमप्रकाश राजभर को मिल गई थी. सूचना मिलते ही वह भी स्तब्ध रह गए कि नंदिनी अब इस दुनिया में नहीं रही. खुद को संभालते हुए उन्होंने स्थानीय कार्यकर्ताओं को घटना की जानकारी दी और मौके पर पहुंचने का आदेश दिया.

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                    लोगों को सांत्वना देते अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर

अध्यक्ष ओमप्रकाश का आदेश मिलते ही पार्टी कार्यकर्ता मौके पर जुट गए और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. इधर इंसपेक्टर पटेल घटनास्थल की जांच करने में जुटे हुए थे. उन्होंने बड़ी बारीकी से मौके का जायजा लिया. हत्यारों ने चाकू से गला रेत कर नंदिनी की हत्या की थी. शरीर पर चाकू के कई निशान मौजूद थे.

क्राइम सीन स्टडी करने से यही लग रहा था जैसे हत्यारा मृतका से काफी खार खाए हुए था, तभी तो उस ने चाकू से ताबड़तोड़ वार कर उसे निर्ममतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया था. यही नहीं हत्यारे ने किसी भारी चीज से उसके सिर पर भी वार किया था, क्योंकि मृतका के सिर के पिछले वाले हिस्से पर चोट के निशान मौजूद थे और वहां का खून उस समय भी हलका हलका गीला था.

कमरे की छानबीन करने पर सभी चीजें अपनी जगह पर तरीके से रखी मिलीं, बस मृतका का मोबाइल फोन ही कहीं नहीं दिख रहा था. आशंका जताई जा रही थी कि सबूत छिपाने के लिए हत्यारे उसे अपने साथ ले गए होंगे, ताकि पुलिस उस तक आसानी से पहुंच न सके.

एक बात तो साफ जाहिर हो रही थी कि हत्यारों का निशाना सिर्फ नंदिनी ही थी. इसीलिए उन्होंने घर के किसी भी सामान को हाथ नहीं लगाया था. इस बीच फोरैंसिक टीम ने भी मौके पर पहुंच कर घटनास्थल की जांच कर ली थी. टीम फर्श पर पड़े खून को एक छोटी डिब्बी में तेज चाकू से खुरच कर रख रही थी. मौके से उन्हें कोई फिंगरप्रिंट नहीं मिला था.

पुलिस और फोरैंसिक टीम अपनी काररवाई में जुटी थी. तब तक डीएम महेंद्र सिंह तंवर, एसपी सत्यजीत गुप्ता, एएसपी शशिशेखर सिंह, सांसद प्रवीण निशाद सहित कई थानों की पुलिस मौके पर पहुंच चुकी थी. पुलिस लाश का पंचनामा भर कर जैसे ही पोस्टमार्टम के लिए बौडी ले कर जाने के लिए तैयार हुई, तभी गांव वाले गुस्से में आ गए और लाश को हाथ लगाने से पुलिस को मना कर दिया.

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इधर गुस्साए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के कार्यकर्ता अपनी नेता नंदिनी राजभर के हत्यारों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. उन का कहना था कि जब तक नंदिनी के हत्यारों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, तब तक पुलिस लाश को यहां से ले कर नहीं जा सकती. आंदोलनकारियों और गांव वालों ने गांव के ही एक यादव परिवार पर अपने नेता की हत्या किए जाने का आरोप लगाया.

ससुर के हत्यारों से जुड़े नंदिनी केस के तार

दरअसल, 10 दिन पहले 29 फरवरी, 2024 की सुबह खलीलाबाद रेलवे लाइन के पास नंदिनी के चचिया ससुर बालकृष्ण राजभर की संदिग्ध अवस्था में लाश पाई गई थी. पहली नजर में यह मामला हत्या का लग रहा था, लेकिन परिस्थितियां आत्महत्या की ओर भी संकेत कर रही थीं. लेकिन उन के आत्महत्या किए जाने की बात किसी के गले से नहीं उतर था.

इस के पीछे का तर्क यह था कि बालकृष्ण ने गांव के श्रवण यादव, धु्रवचंद यादव और पन्ने यादव से अपनी जमीन का सौदा किया था. यादव बंधुओं ने जमीन की कीमत पहले से कम आंकी थी और पैसे देते वक्त तय रकम में से भी औनेपौने दाम दे कर जमीन पर कब्जा जमा लिया.

अपने साथ हुए धोखे से बालकृष्ण राजभर काफी दुखी थे. उन्होंने अपनी बात बहू नंदिनी से बता कर न्याय की गुहार भी लगाई. चूंकि नंदिनी की पहुंच सत्ता के गलियारों तक थी. उन्हें यकीन था कि उन की बहू राजनीतिक दबाव बना कर उन के पैसे दिलवा देगी. नंदिनी ने चचेरे ससुर को विश्वास भी दिलाया था कि वह उन के साथ अन्याय नहीं होने देगी, यादव बंधुओं से बकाए की रकम दिलवा कर ही दम लेगी.

अभी ये सलाहमशविरा हो ही रहा था कि 29 फरवरी को बालकृष्ण के आत्महत्या करने की बात सामने आ गई. उन के आत्महत्या करने पर किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था.

नंदिनी ने श्रवण यादव, धु्रवचंद यादव और पन्ने यादव के खिलाफ कोतवाली थाने में ससुर बालकृष्ण राजभर की हत्या किए जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भेजने के लिए पुलिस पर दबाव डालने लगी थी. तीनों आरोपियों में से एक श्रवण यादव गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था. बाकी दोनों आरोपी फरार थे.

इस के ठीक 10वें दिन दिनदहाड़े नंदिनी की भी हत्या हो गई. इसीलिए ग्रामीणों ने नंदिनी की हत्या का आरोप यादव बंधुओं पर लगा कर उन्हें तत्काल गिरफ्तार करने की मांग की. इस के बाद ही मृतका का शव वहां से ले जाने की बात कही थी.

पुलिस, ग्रामीण और आंदोलनकारियों के बीच मान मनौवल का खेल करीब 6 घंटों तक चलता रहा. एसपी सत्यजीत गुप्ता ने आक्रोशित लोगों को विश्वास दिलाया कि उन के साथ न्याय होगा. दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वो कितने भी ताकतवर क्यों न हों, उन्हें उन के किए की सजा कानून से मिल कर ही रहेगी.

फिर एसपी गुप्ता ने मंत्री ओमप्रकाश राजभर से बात कर न्यायिक कार्य में सहयोग करने की अपेक्षा रखी. मंत्री राजभर ने कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाया कि उन के प्रिय नेता के साथ न्याय होगा और हत्यारे पकड़े जाएंगे. पुलिस को उन का काम करने दें. तब कहीं जा कर रात 11 बजे आंदोलनकारियों ने पुलिस को पोस्टमार्टम के लिए शव ले जाने दिया.

इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल ने लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए संतकबीर नगर जिला अस्पताल भिजवा दी और मृतका की सास आरती देवी की लिखित तहरीर पर 5 आरोपियों आनंद यादव, धु्रव यादव, श्रवण यादव, पन्ने यादव और निर्मला यादव के खिलाफ हत्या की धारा 302 का मुकदमा दर्ज कर उन की गिरफ्तारी के लिए दबिश देनी शुरू कर दी थी. उक्त नामजद आरोपियों में श्रवण यादव, बालकृष्ण राजभर की संदिग्ध मौत के आरोप में पहले से ही जेल में बंद था.

अगले दिन 11 मार्च को पुलिस ने अन्य नामजद आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर सुबहसुबह दबिश दी थी. मौके से धु्रव यादव, पन्ने यादव और निर्मला पकड़ लिए गए. चौथा आरोपी आनंद यादव फरार हो गया था.

आनंद ही नंदिनी को धमकी दे रहा था कि वह बालकृष्ण की मौत की अदालत में पैरवी करना बंद कर दे, चुपचाप अपनी राजनीति करे, वरना इस का अंजाम बहुत बुरा हो सकता है.

कुल मिलाजुला कर पुलिस ने मृतका नंदिनी राजभर हत्याकांड में नामजद 5 आरोपियों में से 4 को गिरफ्तार कर घटना की इतिश्री कर दी थी. गिरफ्तार चारों आरोपियों से कोतवाली थाने में सख्ती से पूछताछ जारी थी.

काल डिटेल्स से क्यों घूम गई जांच

आरोपी रट्टू तोते की तरह एक ही जवाब दिए जा रहे थे कि नंदिनी की हत्या से उन का कोई लेनादेना नहीं है. उन्होंने उसे नहीं मारा है, लेकिन पुलिस आरोपियों के जवाब को सिरे से नकार रही थी और अपने हिसाब से जितनी सख्ती बरती जानी थी, उतनी सख्ती से पेश आने में किसी किस्म का गुरेज नहीं कर रही थी.

क्योंकि बालकृष्ण राजभर की मौत में यादव परिवार का तार जुड़ चुका था, ऊपर से नंदिनी को धमकी भी इसी परिवार मिल रही थी, इसलिए पुलिस अपनी जगह कायम थी कि नंदिनी की हत्या में इसी परिवार का हाथ है. धमकी आनंद यादव दे रहा था, जो मौके से फरार था.

परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से आईने की तरह घटना साफ हो चुकी थी कि नंदिनी राजभर की हत्या यादव परिवार ने की है. लेकिन फिर भी पुलिस को पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा था जैसे घटना आईने की तरह साफ होते हुए भी साफ नहीं है. मसलन यह कि उन की नजरों से कुछ छूट रहा है. जो दिख रहा है, आधा सच है, फिर आधा सच और क्या हो सकता है?

खैर, पुलिस इधर जांच के दौरान ही कहानी में एक नया मोड़ आया. डीआईजी (रेंज बस्ती) आर.के. भारद्वाज ने इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल से घटना में हुई लापरवाही के एवज में थानेदारी छीन ली थी और उन्हें अपने दफ्तर से अटैच कर दिया था. इस लापरवाही की जांच एएसपी शशिशेखर सिंह को सौंप दी गई थी.

साथ ही हत्याकांड की जांच और भूमाफियाओं के द्वारा जबरन जमीन लिखवाने वालों को चिह्नित कर काररवाई करने लिए एसआईटी गठित की गई थी और इस की मौनिटरिंग खुद डीआईजी रेंज आर.के. भारद्वाज ने अपने हाथों में ले ली थी, ताकि काररवाई की पलपल की सूचना उन्हें मिलती रहे.

पुलिस अपनी जांच की दिशा सही मान कर उसी दिशा की ओर फूंकफूंक कर कदम बढ़ा रही थी. जांच को और तेज करते हुए उस ने सब से पहले मृतका के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स खंगाली तो तमाम नंबरों में 2 ऐसे नंबर मिले जो संदिग्ध थेे.

उन दोनों नंबरों में से एक नंबर से नंदिनी की लंबी लंबी और सब से ज्यादा बातें हुुई थीं, जबकि दूसरे नंबर पर थोड़ा कम. घटना वाले दिन भी घटना से कुछ देर पहले उसी पहले वाले नंबर से नंदिनी की बात हुई थी. इसीलिए पुलिस ने उस नंबर की मृतका के पति विजय से पहचान कराई, लेकिन वह नंबर पहचान नहीं पाया.

पुलिस ने दोनों नंबरों की डिटेल्स निकलवाई. एक नंबर आनंद यादव के नाम से आवंटित था, जिस पर थोड़ी बातचीत हुई थी जबकि दूसरा नंबर किसी साहुल राजभर का था, जिस से मृतका (नंदिनी) की लंबीलंबी बातें होती रहती थीं.

पुलिस ने विजय को थाने बुला कर साहुल के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि साहुल पड़ोसी तेनू राजभर का साला है. उस की बहन की शादी उस से हुई है और वो यहीं (डीघा गांव) रहता है. यहीं रह कर मैडिकल स्टोर चलाता है.

साहुल राजभर के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के बाद कोतवाली पुलिस ने विजय को घर भेज दिया. पुलिस नंदिनी और साहुल के बीच के रिश्ते को खंगालने में जुट गई थी. तकनीकी साक्ष्य और मुखबिर के जरिए पुलिस को दोनों के रिश्तों के बारे में चौंकाने वाली एक ऐसी सूचना मिली, जिस से उस के पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई.

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            आरोपी साहुल राजभर

पता चला कि नंदिनी और साहुल के बीच करीब एक साल से प्रेम संबंध चल रहा था. किसी बात को ले कर इन दिनों उन के बीच अनबन चल रही थी और घटना वाले दिन भी दोनों के बीच फोन पर काफी विवाद हुआ था. इस जानकारी ने घटना की दिशा ही मोड़ दी. मसलन नंदिनी की हत्या जमीनी विवाद में नहीं, बल्कि प्रेम प्रसंग में हुई थी.

ये जानकारी इंसपेक्टर शैलेष सिंह ने कप्तान सत्यजीत गुप्ता को दी तो वह भी चौंक गए थे. उन्होंने शैलेष सिंह को कुछ जरूरी हिदायत दे कर जल्द से जल्द केस वर्कआउट करने का आदेश दिया.

इंसपेक्टर सिंह ने ऐसा ही करने का वायदा किया और आगे की प्रक्रिया में जुट गए थे. उन्होंने मृतका नंदिनी और साहुल के रिश्तों की बाबत जानकारी जुटाई तो मुखबिर की बात सच निकली. फिर क्या था, 21 मार्च, 2024 की सुबह डीघा गांव में उस के बहनोई के घर से साहुल को गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए कोतवाली थाने ले आए.

प्रेमी ने क्यों की नंदिनी की हत्या

करीब 2 घंटे चली कड़ी पूछताछ के बाद साहुल ने अपना अपराध कुबूल कर लिया कि उसी ने अपनी प्रेमिका नंदिनी की हत्या की थी. उस ने हत्या की वजह का विस्तार करते हुए आगे बताया कि उस ने उस के साथ धोखा किया था, इसलिए उसे मौत के घाट उतार दिया. और फिर पूरी कहानी विस्तार से पुलिस के सामने बयान करता चला गया.

12 दिनों से जो नंदिनी हत्याकांड विवादों के चक्रव्यूह में उलझा हुआ था, पुलिस ने उस की गुत्थी सुलझा ली थी. आननफानन में उसी दिन (21 मार्च) शाम 3 बजे एसपी सत्यजीत गुप्ता ने पुलिस लाइंस में प्रैसवार्ता का आयोजन किया और पत्रकारों के सामने नंदिनी की हत्या का खुलासा कर दिया.

उस के बाद पुलिस ने आरोपी साहुल राजभर को अदालत में पेश किया. अदालत ने आरोपी साहुल को 14 दिनों की न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजने का आदेश दिया. आरोपी ने प्रेमिका नंदिनी की हत्या की जो कहानी पुलिस के सामने बयां की थी, वह कुछ इस तरह थी.

27 वर्षीय साहुल राजभर की बहन ममता की शादी डीघा गांव निवासी तेनू राजभर के साथ हुई थी. बीते कई सालों से साहुल अपने बहनोई तेनू के घर रहता था. वहीं रह कर वह एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी करता था. पढ़ालिखा तो था ही, ऊपर से काफी जीनियस भी था. उस के घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी. अच्छी नौकरी की तलाश में वह यहांवहां हाथपैर मार रहा था. लेकिन उसे अच्छी नौकरी नहीं मिली. जब उस के मनमुताबिक अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उस ने एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी कर ली थी, क्योंकि उसे पैसों की सख्त जरूरत थी.

बात घटना से करीब डेढ़ साल पहले की है. नंदिनी राजभर नाम की एक बेहद खूबसूरत युवती ने साहुल की जिंदगी में दबे पांव कदम रखा तो जैसे उस को जीवन जीने के लिए संजीवनी मिल गई हो. नीरस हो चुके जीवन में बहार आ चुकी थी.

एक दिन की बात है. सुबह का समय था. दुकान पर उस समय कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी. एकदो ग्राहक ही दवा लेने पहुंचे थे. उस समय वह दुकान पर अकेला ही था और स्टाफ अभी आए नहीं थे, आने वाले ही थे. खैर, जैसे ही वह एक ग्राहक को दवा देने के लिए पलटा, एक मीठी आवाज उस के कानों के परदे से टकराई, ”एक्सक्यूज मी, भाईसाहब.’’

आवाज सुनते ही साहुल के कदम वहीं रुक गए, जहां वह खड़ा था. पलट कर सामने देखा तो पिंक साड़ी में गोरीचिट्टी और बला की खूबसूरत एक युवती खड़ी थी और उस ने ही आवाज दी थी. उस खूबसूरत युवती को देख कर एक पल के लिए जैसे उस ने अपनी सुधबुध खो दी थी, ”आ रहा हूं दवा ले कर, एक सेकेंड रुकिए.’’ साहुल ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

”कोई बात नहीं, मैं वेट करती हंू. आप इन को दवा दे दीजिए.’’ युवती ने भी मुसकराते हुए जवाब दिया.

वह युवती कोई और नहीं नंदिनी राजभर थी. कुछ पल बाद वह दवा ग्राहक को दे कर वह नंदिनी की ओर मुखातिब हुआ. उस समय नंदिनी दुकान पर अकेली थी.

”जी मैम, बताएं मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’ साहुल ने नंदिनी की ओर देखते हुए कहा.

”ये दवा चाहिए थी मुझे.’’ नंदिनी ने दवा की परची उस की तरफ बढ़ा कर पूछा, ”क्या ये दवा मिल सकती है, अर्जेंट था?’’

साहुल ने परची ले कर उस में लिखी दवा का नाम पढ़ा और दवा निकाल कर उसे दे दी. दवा ले कर नंदिनी वहां से चली गई. साहुल अपलक उसे तब तक निहारता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हुई थी.

ऐसे पनपा नंदिनी और साहुल का प्यार

नंदिनी दवा ले कर चली तो गई थी, लेकिन साहुल उस की खूबसूरती के तीर से घायल हो गया था. पहली ही नजर में साहुल नंदिनी को दिल दे बैठा. अभी भी उस की आंखों के सामने नंदिनी का मुसकराता हुआ गोरा मुखड़ा थिरक रहा था. कुछ पल सोचने के बाद उस के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी और मुसकराता हुआ वह अपने काम में जुट गया.

उस दिन के बाद साहुल हर सुबह नंदिनी के आने की राह ताकता रहता था और दिल से पुकारता था कि उस की एक झलक दिख जाए. जिस दिन नंदिनी का दीदार नहीं होता था, साहुल दिन भर बेचैन रहता था. जैसे ही उसे देखता, उस की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहता था. मन नाच उठता था उस का.

दवा की दुकान पर आतेजाते नंदिनी और साहुल दोनों के बीच एक मधुर परिचय बन गया था. साहुल उसे जान भी गया था और पहचान भी गया था. जिस दिन से उस ने नंदिनी को देखा था और उस की सलोनी सूरत दिल में घर कर गया था, उस दिन के बाद से उस ने उस के बारे में सारी जानकारियां जुटानी शुरू कर दी थीं.

साहुल जान चुका था कि वह एक बड़ी पौलिटिकल हस्ती है और सुहेलदेव भारतीय समाजवादी पार्टी की प्रदेश महासचिव भी. उसी गांव में वह भी रहती है, जिस गांव में वह रहता है. वह यही सोचता था कि नंदिनी भले ही किसी ब्याहता हो, इस से उसे कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है. अब से नंदिनी पर सिर्फ मेरा हक होगा, सिर्फ मेरा, किसी भी कीमत पर उसे पा कर रहूंगा. चाहे इस के लिए कोई भी कुरबानी क्यों न देनी पड़े, पीछे नहीं हटूंगा.

नंदिनी कोई दूधपीती बच्ची नहीं थी, जो साहुल के मंसूबे को नहीं समझती. वह जान चुकी थी कि साहुल उसे प्यार करता है. धीरेधीरे वह भी उस की ओर आकर्षित होती चली गई. बातचीत करने के लिए दोनों ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए. मोबाइल नंबर मिल जाने के बाद दोनों फोन पर प्यार भरी लंबीलंबी बातें करते थे. फोन पर ही दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी किया था.

आहिस्ता आहिस्ता दोनों का प्यार परवान चढऩे लगा. साहुल प्रेमिका नंदिनी को ले कर उस के साथ प्यार का घरौंदा बसाने का आंखों में सुनहरा सपना संजोने लगा. कहते हैं खुली आंखों से दिन में देखे गए सपने कभी पूरे नहीं होते. फिर ये सपने सिर्फ साहुल के थे, जिसे खुली आंखों से वह दिन में देख रहा था.

प्यार जब परवान चढ़ा तो प्रेमिका अपनी छोटी छोटी जरूरतों के लिए प्रेमी साहुल से पैसों की डिमांड करने लगी. ये प्यार प्यार नहीं था, बल्कि नंदिनी के लिए साहुल एक एटीएम मशीन बन कर रह गया था. जब चाहती प्यार का कार्ड डाल कर कैश कर लेती थी.

दिल की गहराइयों से प्यार करने वाला, प्यार में अंधा साहुल उसे पैसे दे देता था. पैसों के साथसाथ उस ने 25 हजार रुपए का सैमसंग  कंपनी का एक मोबाइल फोन भी उसे गिफ्ट किया था.

नंदिनी जितनी खूबसूरत दिखती थी, उस का प्यार उतना ही खूबसूरत छलावा था. दिखावे के तौर पर वह साहुल से प्यार का नाटक कर रही थी, उस के दिल को खिलौना समझ कर खेल रही थी. ऐसे नहीं वह राजनीति का चमकता हुआ सितारा कहलाती थी. उस की झोली में साहुल जैसे न जाने कितने आशिक पड़े रहे होंगे, जो उस के हुस्न के दीवाने थे, लेकिन उस ने किसी को भी घास नहीं डाली थी.

वह बखूबी जानती थी कि इश्क के राज से जब परदा उठेगा तो समाज में कितनी बदनामी होगी. मुंह दिखाना दुश्वार हो जाएगा. लोग क्या कहेंगे? वह तो बस उस के लिए एक टाइम पास है, जब तक दिल चाहेगा, इश्क का छलावा करती रहूंगी, फिर उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह अपने जिंदगी से निकाल फेंकूंगी.

ऐसी सोच रखती थी नंदिनी अपने प्रेमी साहुल के लिए, जबकि साहुल तो उस के प्यार में मजनू बना फिरता था. उस की रगों में बहने वाले खून की धारा में नंदिनी समाई हुई थी. दिल के हरेक पन्ने पर प्रेमिका नंदिनी का नाम लिख दिया था. उसी के नाम से सुबह होती थी तो रात भी उसी के नाम से.

नंदिनी के प्यार से साहुल की जिंदगी महक उठी थी. उसे क्या पता था कि जिसे वह प्यार की देवी समझ रहा है, जिस पर अपनी जान छिड़कता है, उस के दिल में उस के लिए कितना प्यार है, वह तो जहरीली नागिन से कम नहीं है.

साहुल को क्यों हुआ प्रेमिका पर शक

बहरहाल, साहुल के प्रति नंदिनी का प्यार धीरेधीरे कम होता गया और अब उसे देख कर वह रास्ता बदल लेती थी. उस से पीछा छुड़ाने के लिए वह दूरियां भी बनाती गई और तो और साहुल उसे जब भी काल करता, उस का फोन व्यस्त मिलता था.

यह देख उसे गुस्सा भी आता और परेशान भी रहता था. उस के मन में नंदिनी के प्रति शक का बीज अंकुरित हो गया था. उसे यह शक हो चला था कि नंदिनी का किसी और के साथ चक्कर चल रहा है. तभी तो वह इतनी लंबी लंबी बातचीत करने में व्यस्त रहती है. इसीलिए उस से दूरियां बढ़ानी शुरू की है.

नंदिनी के इस बर्ताव से साहुल टूट गया था. वह उस से मिल कर अनजाने में हुए सारे गिलेशिकवे दूर करना चाहता था, लेकिन नंदिनी उस से बात करने के लिए तैयार नहीं थी, न ही फोन पर और न ही मिल कर. उस की इस हरकत से साहुल और भी गुस्से से पागल हो गया था.

इसी गुस्से में आ कर उस ने उसे जो भी गिफ्ट, पैसे और मोबाइल फोन दिया था, उसे वापस करने के लिए उस पर दबाव बनाने लगा था. नंदिनी ने उसे कुछ भी वापस लौटाने से इंकार कर दिया था. फिर साहुल ने उसे गिफ्ट वापस न लौटाने पर बुरा अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने की धमकी भी दी.

कल तक नंदिनी पर जान छिड़कने वाला प्रेमी साहुल अब बदले की आग में धधकने लगा था. उसे हर कीमत पर पाना चाहता था. उस ने यह भी निश्चय कर लिया था कि उस का दिल कोई खिलौना नहीं था, जिसे जब तक चाहा खेला और जब जी भर गया तो तोड़ दिया. अगर वह मेरी नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी. उसे तो मरना ही होगा.

इश्क की आग में जलता हुआ प्रेमी साहुल 10 मार्च, 2024 को दोपहर करीब 2 बजे नंदिनी के घर पहुंचा. उसे पता था उस समय घर पर उस के सिवाय कोई और नहीं है. घर के सभी सदस्य अपनेअपने काम से बाहर गए हुए थे.

दोपहर का समय होने की वजह से घर के आसपास गहरा सन्नाटा भी फैला हुआ था. नंदिनी घर पर अपने कमरे में अकेली बैड पर लेटी हुई थी. कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. साहुल ने इधर उधर देखा, जब उसे कोई नहीं दिखाई दिया तो दबे पांव कमरे में घुस गया और भीतर से दरवाजे पर सिटकनी चढ़ा दी ताकि कमरे में कोई आ न सके.

दरवाजे की सिटकनी बंद होने की आवाज सुन कर नंदिनी उठ बैठी. देखा तो सामने साहुल खड़ा था. यह देख कर नंदिनी गुस्से से चिल्ला उठी, ”तुम्हारी इतनी हिम्मत कि बिना आवाज लगाए मेरे कमरे में घुस आए! तुम जानते नहीं कि मैं कौन हूं और तुम्हारी इस बदतमीजी की क्या सजा दे सकती हूं?’’

”जानता हूं, अच्छी तरह जानता हूं, तुझ जैसी दो टके की औरतों को. जिस का न तो कोई ईमान होता है और न कोई धर्म.’’ साहुल आग की दरिया में धधकता हुआ आगे बोला, ”आज मैं तुम से कोई बहस करने नहीं आया हूं. अपने प्यार का हिसाब करने आया हूं. मेरे सवालों का सीधासीधा जवाब दे दो, मैं यहां से चुपचाप चला जाऊंगा…’’

”और जवाब न दिया तो…’’ नंदिनी बीच में बात काटती हुई बोली.

इतना सुनते ही साहुल को गुस्सा आ गया. उस ने आव देखा न ताव, कमर में खोंसा फलदार चाकू निकाला. चाकू देख कर नंदिनी बुरी तरह डर गई और जान बचाने के लिए बैड से कूद कर नीचे भागी.

लेकिन अपने मजबूत हाथों से साहुल ने उसे पकड़ लिया और फर्श पर पटक दिया और फलदार चाकू से शरीर पर ताबड़तोड़ वार तब तक करता रहा, जब तक उस की मौत न हुई. इतने पर भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उस ने बैड के पास रखे हथौड़े से उस के सिर पर वार किया.

जब उसे यकीन हो गया कि नंदिनी मर चुकी है तो उस ने उस का फोन और हथौड़ा अपने कब्जे में लिया और चुपके से दरवाजा खोल कर फुरती से बाहर निकला और तेजी से चला गया. न तो उसे आते हुए किसी ने देखा था और न ही जाते हुए.

इधर कमरे के फर्श पर नंदिनी अपने ही खून में सनी मरी पड़ी थी. शाम 4 बजे जब उस की सास आरती देवी बाहर से घर लौटीं तो बहू को खून में सना देखा.

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कहानी लिखे जाने तक पुलिस ने प्यार में धोखा खाए प्रेमी साहुल राजभर के खिलाफ आरोपपत्र अदालत में दाखिल करने की तैयारी कर ली थी. हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू और हथौड़ा भी पुलिस ने आरोपी की निशानदेही पर बरामद कर लिया. साहुल जेल में बंद अपने किए की सजा काट रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लाश को मिला नाम

पंचकूला के थाना मनसादेवी के पास सेक्टर-5 के निकट मजदूरों और कामगारों ने अपने रहने के लिए कच्चे  झोपड़ीनुमा मकान बना रखे हैं. 27 अप्रैल, 2019 की सुबह 6 बजे इन्हीं झुग्गियों की कुछ महिलाएं जंगल की तरफ गईं तो उन्होंने झाडि़यों के बीच एक लाश से धुआं उठते देखा.

यह देखते ही महिलाएं उलटे पांव भागती हुई बस्ती में लौट आईं. उन्होंने शोर मचा कर यह बात सब को बताई. लाश के जलने की बात सुन कर बस्ती के लोग महिलाओं द्वारा बताई जगह पर पहुंच गए. उन्होंने भी वहां एक लाश से धुआं उठते देखा. लाश बुरी तरह झुलस चुकी थी.

इसी दौरान किसी ने पुलिस कंट्रोलरूम को फोन किया. चंडीगढ़ पुलिस कंट्रोलरूम ने घटना की सूचना संबंधित थाना मनीमाजरा को भेज दी. थोड़ी देर बाद थाना मनीमाजरा पुलिस मौके पर पहुंची तो उस ने बताया कि जिस जगह लाश पड़ी है, वह क्षेत्र के पंचकूला इलाके में आता है.

मनीमाजरा पुलिस ने यह खबर पंचकूला के थाना मनसादेवी को भेज दी. सूचना मिलने पर थाना मनसादेवी के एसएचओ विजय कुमार अपनी टीम के साथ तुरंत मौके पर पहुंच गए. साथ ही उन्होंने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी दी.

कुछ ही देर में डीसीपी कमलदीप गोयल, एसीपी (क्राइम) नुपूर बिश्नोई, पंचकूला क्राइम इनवैस्टीगेशन एजेंसी के प्रभारी अमन कुमार फोरैंसिक टीम सहित मौके पर पहुंच गए. जिस लाश के बारे में सूचना दी गई थी, वह मनसादेवी कौंप्लेक्स, विश्वकर्मा मंदिर की बैक साइड पर थाना मनसादेवी से मात्र 500 मीटर की दूरी पर झाडि़यों में पड़ी थी.

पुलिस जब वहां पहुंची, तब भी शव से धुआं उठ रहा था. इस से पुलिस को लगा कि कुछ देर पहले ही शव में आग लगाई गई थी. वह लाश किसी युवती की थी. पुलिस ने मौके पर देखा कि उस के गले में फंदा लगा हुआ था. युवती की जीभ भी बाहर निकली हुई थी और टांगें पूरी तरह फैली हुई थीं. यह सब देख कर दुष्कर्म की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता था.

मौके पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने भी वहां से कुछ सबूत जुटाए. झाडि़यों पर पड़ी बोरी भी कब्जे में ले ली गई. पुलिस की प्राथमिक जांच में सामने आया कि युवती की किसी अन्य जगह पर गला घोंट कर हत्या करने के बाद शव को यहां ठिकाने लगाने की कोशिश की गई थी.

शिनाख्त जरूरी थी

झाडि़यों के पास कच्चे रास्ते पर किसी दोपहिया वाहन के टायरों के निशान भी मिले. ऐसा लगता था, युवती का शव किसी वाहन से वहां तक लाया गया होगा. पुलिस को लगा, जब हत्यारे शव लाए होंगे तो कहीं न कहीं किसी सीसीटीवी कैमरे में कैद जरूर हुए होंगे. युवती के शरीर पर घाव के कई निशान भी मिले.

बहरहाल, मनसादेवी थाना पुलिस ने घटनास्थल पर सब से पहले पहुंचे पीसीआर में तैनात हैडकांस्टेबल सतीश की सूचना पर हत्या और लाश को ठिकाने लगाने की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. शव को सेक्टर-6 जनरल अस्पताल की मोर्चरी में 72 घंटों के लिए सुरक्षित रखवा दिया गया.

लाश इतनी बुरी तरीके से जल चुकी थी कि उस की शिनाख्त करनी बहुत मुश्किल थी. पुलिस के सामने पहला अहम काम था शव की शिनाख्त कराना. उस के बाद ही हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था.

पुलिस ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों को चैक किया. चंडीगढ़ पुलिस से भी घटनास्थल के रास्ते की तरफ आने वाले क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरों को चैक करने की सहायता मांगी गई. इस काम में सीआईए, सेक्टर-19, क्राइम ब्रांच और कई थानों की टीमें लगी थीं.

मृतका के फोटो भी सभी थानों में भिजवा दिए गए थे और पिछले माह लापता हुई 20 से 30 साल की युवतियों के रिकौर्ड भी खंगाले गए. इस के अलावा अधजले शव की पहचान के लिए डीसीपी कमलदीप गोयल के आदेश पर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर की पुलिस को भी सूचना भेज दी गई.

सीआईए इंसपेक्टर अमन कुमार ने सीसीटीवी कैमरे में दिखने वाली एक कार के चालक को हिरासत में ले लिया था, लेकिन लंबी पूछताछ के बाद जब उस से हत्या के संबंध में कोई क्लू नहीं मिला तो उसे छोड़ दिया गया. वहीं मनसादेवी थाना पुलिस ने भी इस मामले में कई संदिग्ध लोगों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ की, पर कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस इस मामले की हर पहलू से जांच कर रही थी.

कार चालक को सीआईए ने भले ही छोड़ दिया था, लेकिन उसे क्लीन चिट नहीं दी थी क्योंकि उस की काले रंग की अल्टो कार की लोकेशन आईटी पार्क से मनसादेवी कौंप्लेक्स के बीच रात एक से 3 बजे के बीच ट्रेस की गई थी.

पुलिस ने मृतका की शिनाख्त के लिए गली गली में उस के पोस्टर लगवा दिए थे, इस के अलावा विभिन्न अखबारों, लोकल टीवी चैनलों पर भी उस की फोटो दिखाई गई थी. इस का नतीजा यह निकला कि लाश मिलने के 2 दिन बाद अखबार से खबर पढ़ कर इंदिरा कालोनी निवासी लल्लन प्रसाद थाना मनसादेवी पहुंच गया.

उस ने एसएचओ से कहा, ‘‘साहब, अखबार में जो अधजली लाश बरामद होने की खबर छपी है, वह लाश मेरी बेटी गुरप्रीत की है.’’

लल्लन की बात सुन कर एसएचओ ने उस से पूछा, ‘‘आप को किसी पर शक है?’’

‘‘हां साहब, मुझे शक नहीं विश्वास है कि यह काम मेरी बेटी के प्रेमी ने किया होगा.’’ लल्लन ने फूटफूट कर रोते हुए यह बात पुलिस को बताई.

लल्लन ने बताया कि उस की बेटी गुरप्रीत नौवीं कक्षा में पढ़ती थी. उस का प्रेम प्रसंग इंदिरा कालोनी के ही रहने वाले एक लड़के से चल रहा था. वह लड़का दूसरी बिरादरी का था, इसलिए हम ने अपनी बेटी को समझाया और जब वह नहीं मानी तो हम ने 2 महीने पहले उस की मंगनी अपनी रिश्तेदारी के एक लड़के के साथ तय कर दी थी.

वह 23 मार्च, 2019 को सुबह 8 बजे स्कूल जाने के लिए घर से निकली थी. लेकिन शाम तक नहीं लौटी. हम ने भी इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि गुरप्रीत इस से पहले भी अपने प्रेमी के साथ घर से चोरीछिपे कई बार जा चुकी थी. लेकिन 1-2 दिन बाद वह अपने आप ही घर लौट आती थी. उन्हें उम्मीद थी कि इस बार भी वह 1-2 दिन में लौट आएगी. पर इस बार ऐसा नहीं हुआ.

जब 2 दिन तक वह घर नहीं लौटी तो हम ने पहले तो रिश्तेदारी में बेटी की तलाश की, लेकिन जब उस का कहीं कुछ पता नहीं चला तो चंडीगढ़ के मनीमाजरा थाने में उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी. वह तो नहीं मिली लेकिन इस बार उस की मौत की खबर जरूर मिल गई.

हालांकि पहले तो पुलिस ने उस की बातों पर विश्वास नहीं किया, लेकिन जब युवती की फोटो सीआईए प्रभारी के पास पहुंची तो वह भी दंग रह गए.

पहचान ली गई लाश

उन्होंने तुरंत वह फोटो मनसादेवी थानाप्रभारी को भेजी और दावा करने वाले व्यक्ति को एसएचओ विजय कुमार के पास भेज दिया. विजय कुमार ने उसे मोर्चरी में रखी झुलसी हुई लाश को पहचानने के लिए अस्पताल चलने को कहा. इस पर लल्लन अपनी पत्नी प्रभा के साथ अस्पताल पहुंच गया.

दोनों को मोर्चरी में रखी लाश दिखाई दी तो लल्लन प्रसाद और उस की पत्नी प्रभा ने लाश को पहचान कर उस की शिनाख्त अपनी बेटी गुरप्रीत के रूप में की. अखबारों से मिली जानकारी के बाद उसी दिन अधजले शव की पहचान के लिए अस्पताल में 60 से अधिक लोग पहुंचे थे, जिस में ट्राइसिटी के अलावा पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर आदि जगहों के लोग भी शामिल थे, जिन की बेटियां, पत्नियां पिछले कुछ महीनों से लापता थीं. लेकिन शव की शिनाख्त उन में से किसी ने भी नहीं की थी.

30 अप्रैल, 2019 को डाक्टरों के पैनल ने लाश का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि मृतका की हत्या गला घोंट कर की गई थी और उस के पेट में चाकू से 3 वार भी किए गए थे. महिला 5 माह की गर्भवती थी. अंत में कागजी काररवाई करने के बाद उस की लाश लल्लन के हवाले कर दी गई थी. उसी दिन उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया था.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस को अब लल्लन की बेटी के हत्यारों और हत्या के कारण का पता लगाना था. इस के पहले कि इस मामले में पुलिस आगे कुछ कर पाती, अगले दिन दिनांक 30 अप्रैल को कहानी में एक नया मोड़ आ गया.

कहानी में आया नया मोड़

इस ट्विस्ट से पंचकूला पुलिस भी आश्चर्यचकित रह गई. लल्लन अपनी जिस बेटी गुरप्रीत का अंतिम संस्कार कर चुका था, वही गुरप्रीत अपने गायब होने के करीब 38 दिनों बाद 30 अप्रैल को रात करीब 9 बजे आईटी थाने में अचानक पहुंच गई.

उस ने पुलिस को बताया कि मैं जिंदा हूं, मेरे प्रेमी को बेवजह मेरी हत्या के आरोप में फंसाया जा रहा है. इस में मेरे पिता की कोई चाल हो सकती है. गुरप्रीत ने बताया कि वह जहां भी गई थी, अपनी मरजी से गई थी. जब उस ने समाचारपत्रों में अपनी हत्या की खबर पढ़ी तो वह हैरान रह गई. इसलिए सच्चाई बताने के लिए वह सीधे थाने चली आई.

आईटी थानाप्रभारी लखबीर सिंह ने इस बात की सूचना एसएचओ मनसादेवी को देने के बाद देर रात तक गुरप्रीत से पूछताछ की. अगले दिन यानी पहली मई को उस का मैडिकल करवाने के बाद उसे सिटी मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर उस का इकबालिया बयान दर्ज करवाया.

एसएचओ मनसादेवी विजय कुमार ने जब लल्लन और उस की पत्नी प्रभा को थाने बुला कर इस बारे में पूछा तो वह गिड़गिड़ा कर कहने लगा, ‘‘साहब, आप ने लाश और उस के जो फोटो हमें दिखाए थे, उस के नाक और कान मेरी बेटी से बिलकुल मिलते थे. इसीलिए हम ने उसे अपनी बेटी की लाश समझा.’’

लल्लन तो इतनी बात कह कर बच निकला पर पंचकूला पुलिस को इस मामले से बचना इतना आसान नहीं था. उस की खिल्ली उड़ रही थी. बहरहाल, गुरप्रीत के लौट आने से लल्लन और चंडीगढ़ पुलिस ने तो चैन की सांस ली पर पंचकूला पुलिस की मुश्किलें बढ़ गई थीं.

लल्लन के गलत शिनाख्त करने के बाद पुलिस ने मृतका को गुरप्रीत मान कर उस का अंतिम संस्कार करवा दिया था और आस लगाए बैठी थी कि लाश की शिनाख्त हो गई है तो उस के हत्यारे भी जल्द पकड़े जाएंगे, पर नए हालात में पुलिस के हाथ खाली थे.

पुलिस एक ऐसी अंधेरी खाई में घुस चुकी थी, जहां से जल्दी निकलना संभव नहीं था. न तो पुलिस के पास मृतका के बारे में कोई जानकारी थी और न हत्यारों का कोई सुराग. कुल मिला कर पुलिस को इस ब्लाइंड केस को सुलझाने के लिए नए सिरे से तहकीकात करनी थी. क्योंकि मृतका गर्भवती थी, इसलिए पुलिस अब इसे औनर किलिंग के एंगल से भी देख रही थी.

दूसरी ओर लल्लन की बेटी के वापस आने से उस के तथाकथित प्रेमी की मां ताज ने अपने रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों के साथ थाने जा कर हंगामा खड़ा कर दिया और थाने में बैठे लल्लन और उस की पत्नी प्रभा को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘मैं कहती थी न कि मेरा बेटा ऐसा कभी नहीं कर सकता, वह गुरप्रीत से सच्ची मोहब्बत करता है, उस की हत्या नहीं कर सकता. लल्लन और उस के परिवार ने पुरानी रंजिश निकालने के  लिए मेरे बेटे को फंसाने की कोशिश की है.’’

आखिर लाश की हो गई शिनाख्त

अब थाना मनसादेवी पुलिस इस की जांच करने में जुट गई कि आखिर वह युवती कौन थी, जिस का अंतिम संस्कार लल्लन ने अपनी बेटी गुरप्रीत जान कर किया. थोड़ी कोशिश के बाद मनसादेवी पुलिस को मृतका के बारे में एक छोटी सी जानकारी मिली.

पता चला कि वह लाश सूरजपुर की रहने वाली किसी युवती की थी. पुलिस जब सूरजपुर पहुंची तो वहां मृतका का पिता ऋषिपाल मिला. मनसादेवी पुलिस ने ऋषिपाल से बात की तो उस ने बताया कि उस की बेटी आरती 26 अप्रैल की रात से लापता है. उस ने पुलिस में गुमशुदगी दर्ज करा दी है.

इस बार पुलिस कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. पुलिस ने युवती की झुलसी हुई लाश के जो सैंपल सुरक्षित रखे हुए थे, उन से ऋषिपाल का डीएनए मैच करवा कर देखा तो वह मिल गया. इस से यह बात भी साबित हो गई कि मृतका ऋषिपाल की ही बेटी थी. अब इस बात की पुष्टि हो गई कि वह अधजला शव ऋषिपाल की 28 वर्षीय बेटी सुनीता उर्फ आरती का था.

सुनीता शादीशुदा महिला थी. उस की 11 साल की एक बेटी भी है. सुनीता की शादी लगभग 12 साल पहले हुई थी. पिछले 3-4 सालों से उस की अपने पति से अनबन चल रही थी, जिस कारण वह अपने मातापिता और भाई भाभी के साथ सूरजपुर में ही रह रही थी.

पुलिस ने मृतका के परिजनों से उस का मोबाइल नंबर ले कर उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की. उस में एक ऐसा नंबर हाथ लगा, जिस से मृतका की घंटों तक बातें हुआ करती थीं. वह नंबर चेक टाउन के रहने वाले 26 वर्षीय आनंद नाम के युवक का था.

पुलिस ने आनंद के नंबर की जांच की तो 27 अप्रैल, 2019 को उस के फोन की लोकेशन भी उसी जगह की मिली, जहां सुनीता उर्फ आरती की झुलसी हुई लाश मिली थी. सारे सबूत मिल जाने के बाद 3 मई, 2019 को सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर अमन कुमार ने अपनी टीम के साथ मनीमाजरा, पीपली से आनंद और उस के छोटे भाई आजाद को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ के दौरान आनंद ने बिना कोई नौटंकी किए अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उस ने ही सुनीता उर्फ आरती की हत्या की थी, क्योंकि वह उसे शादी करने के लिए ब्लैकमेल कर रही थी.

हालांकि बाद में ब्लैकमेल वाली बात झूठी साबित हुई थी. बहरहाल, उसी दिन डीएसपी कमल गोयल ने प्रैसवार्ता कर इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया था. अगले दिन आनंद और आजाद को अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड के दौरान की गई विस्तृत पूछताछ में इस हत्याकांड की कहानी कुछ इस प्रकार सामने आई.

जिस प्रकार मृतका सुनीता उर्फ आरती का अपने पति से विवाद चल रहा था और वह अपनी बेटी के साथ अपने भाई के घर अकेली रह रही थी, ठीक उसी तरह से आनंद भी अपनी पत्नी के साथ विवाद के चलते अकेला अपने मांबाप के साथ रह रहा था.

आज से लगभग 9 महीने पहले सुनीता अपनी भाभी के साथ किसी शादी में जाने के लिए लहंगा खरीदने सेक्टर-19 की मार्केट स्थित एक शोरूम में गई थी. आनंद भी उसी शोरूम पर काम करता था. यहीं दोनों की पहली मुलाकात हुई थी और पहली नजर में ही दोनों एकदूसरे को अपना दिल दे बैठे थे. दोनों ने अपने अपने फोन नंबर एकदूसरे को दे दिए थे और अकसर रात को फोन पर घंटों बातें किया करते थे.

अकेले रहने के कारण दोनों देहसुख पाने के लिए तड़प रहे थे. सो इस के बाद दोनों के बीच संबंध बन गए थे. पहले तो दोनों बाहर कहीं होटल आदि में मिल कर अपनी प्यास बुझा लिया करते थे, लेकिन बाद में मृतका आनंद के घर पीपली टाउन जाने लगी थी.

वैसे इन दोनों के संबंधों का दोनों के घर वालों को पता था. उन दोनों के बीच सब ठीकठाक ही चल रहा था. दोनों खुश भी थे और आपस में शादी कर लेना चाहते थे.

एक दिन अचानक सुनीता को पता चला कि वह गर्भवती हो गई है तो उस ने यह बात आनंद को बताते हुए कहा कि वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है और अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. आनंद को यह बात अच्छी नहीं लगी. उस ने बात टालते हुए कहा, ‘‘इस बारे में बाद में बात करेंगे.’’

सुनीता को उस का यह रूखा व्यवहार अच्छा नहीं लगा. कहां तो उस ने सोचा था कि बच्चे वाली बात सुन कर आनंद खुश हो जाएगा, लेकिन यहां तो बात उलटी ही निकली. बच्चे की बात को ले कर दोनों के बीच तनाव पैदा हो गया था. आरती जब भी आनंद से शादी की बात करती तो वह टाल देता था. इसी तरह तनाव भरे माहौल में समय बीतता गया और आरती के पेट में पल रहा बच्चा 5 माह का हो गया था.

अब तो आरती के शरीर में भी परिवर्तन आ गया था. दूसरी ओर आनंद शादी से साफ इनकार करने लगा था. दरअसल आनंद शुरू से ही शादी वादी के लिए तैयार नहीं था. वह बस मुफ्त में मजे लेने के पक्ष में था. उस का कहना था कि हम दोनों केवल अपने अपने शरीर की जरूरतें पूरी करते हैं. जबकि सुनीता इस मामले में गंभीर थी.

छली गई थी सुनीता

आनंद हर समय सुनीता पर इस बात का दबाव डालता था कि वह अबार्शन करवा कर इस मुसीबत से छुटकारा पा ले. एक दिन तो शादी को ले कर हो रही बहस के दौरान उस ने आरती से यहां तक कह दिया, ‘‘मैं कैसे मान लूं कि यह बच्चा मेरा ही है. क्या पता मेरे अलावा तुम्हारे संबंध न जाने किनकिन लोगों के साथ होंगे.’’

यह बात आरती को बहुत बुरी लगी. इस बात को ले कर दोनों में काफी नोकझोंक हुई. आनंद सुनीता से अपना पीछा छुड़ाने की पहले से ही योजना बना चुका था. अब उसे अपनी योजना को अमली जामा पहनाना था. 26 अप्रैल को दोनों की फोन पर शादी वाली बात को ले कर काफी बहस हुई. अंत में आनंद ने उसे रात 8 बजे घर पर मिलने के लिए बुलाया.

जब सुनीता वहां पहुंची तो आनंद के साथ उस का छोटा भाई आजाद भी था. आनंद ने फिर से उसे गर्भपात कराने के लिए कहा, जबकि सुनीता किसी भी कीमत पर गर्भपात कराने के लिए तैयार नहीं थी. वह अपनी बात पर अड़ी थी. इसे ले कर आनंद और सुनीता के बीच झगड़ा हो गया.

आनंद ने सुनीता पर अबार्शन का दबाव बनाने के लिए गुस्से में आ कर कई थप्पड़ मारे. इस पर सुनीता ने गुस्से में आ कर अपना गला अपनी चुन्नी से दबा लिया, जिस से वह बेहोश हो कर जमीन पर पड़ी थी. तभी दोनों भाइयों ने वह चुन्नी और खींच दी, जिस से उस का गला घुटने से मौत हो गई और उस की जीभ भी बाहर निकल आई. इस के बाद आनंद ने चाकू से पेट और आसपास के हिस्से में 3 वार किए.

हत्या करने के बाद दोनों भाइयों ने सुनीता के शव को जूट की बोरी में डाला और लाश को सुनीता की ही एक्टिवा पर अगले हिस्से में रख लिया. मनीमाजरा से चल कर दोनों भाई मनसादेवी थाने के क्षेत्र में पहुंचे, जहां उन्होंने सुनीता का शव झाडि़यों में डाल दिया. वहां घुप्प अंधेरा था और जगह भी एकदम सुनसान थी.

लाश को ठिकाने लगाने के लिए उन्हें यह जगह ठीक लगी. इस के बाद दोनों भाई मनीमाजरा स्थित पैट्रोल पंप पर पहुंचे, जहां उन्होंने एक्टिवा की टंकी फुल करवाई और वापस लाश के पास पहुंच गए.

एक्टिवा की टंकी से पैट्रोल निकाल कर उन्होंने लाश पर छिड़का और आग लगा कर वहां से अपने घर चले आए. यह बात 26-27 अप्रैल की रात की है. हालांकि आरोपियों ने अपनी तरफ से हत्या का कोई सबूत नहीं छोड़ा था, फिर भी पुलिस मोबाइल डिटेल्स के सहारे दोनों हत्यारोपियों तक पहुंच ही गई.

दोनों भाइयों से पूछताछ करने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड अवधि के दौरान सीआईए पुलिस ने मृतका की एक्टिवा और हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. मामले की तफ्तीश चल रही है. पुलिस महिला की हत्या के आरोपी आनंद और आजाद को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है.

पुलिस को संदेह है कि इस हत्याकांड में कोई और भी शामिल हो सकता है. पुलिस सभी पहलुओं पर जांच कर रही है. इस के अलावा पुलिस यह भी जांच कर रही है कि 38 दिनों तक गुरप्रीत आखिर कहां और किस के साथ रही थी.

प्यार की खातिर : बचपन के प्यार को पाने की जिद

शाम का वक्त था. दिल्ली के वसंत कुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल का पूरा स्टाफ अपनी ड्यूटी पर था. तभी एक युवक अस्पताल के स्ट्रेचर को ठेलता हुआ अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंचा और बदहवासी में बोला, ‘‘डाक्टर साहब, मेरी वाइफ ने जहर खा लिया है, इसे बचा लो वरना मैं जी नहीं सकूंगा.’’

उस की बात सुन कर अस्पताल के डाक्टरों ने उस युवती का चैकअप शुरू किया. उस की नब्ज और धड़कन गायब थीं. चैकअप के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. डाक्टर द्वारा पूछे जाने पर मृतका के साथ आए युवक राहुल मिश्रा ने बताया कि उस ने औफिस से लौटने के बाद पूजा को फर्श पर बेसुध पड़े देखा, उस की बगल में ही एक सुसाइड नोट पड़ा था.

नोट को पढ़ने के बाद उस की समझ में आया कि पूजा ने जहर खा लिया है. इस के बाद वह पूजा को गाड़ी में डाल कर सीधे अस्पताल ले आया.

चूंकि मामला सुसाइड का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने पूजा राय की मौत की सूचना इलाके के थाना किशनगढ़ को दे दी. थोड़ी ही देर में किशनगढ़ थाने की पुलिस वहां पहुंच गई. पूजा की लाश को अपने कब्जे में ले कर पुलिस राहुल मिश्रा से घटना के बारे में पूछताछ करने लगी.

पूछताछ के दौरान राहुल मिश्रा ने पुलिस को बताया कि वह गुड़गांव की एक बड़ी कंपनी में मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर तैनात है. थोड़ी देर पहले जब वह फ्लैट में पहुंचा तो पूजा फर्श पर पड़ी थी और उस के बगल में सुसाइड नोट रखा था, जिस में उस ने सुसाइड करने की बात लिखी थी.

पूजा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए सफदरजंग अस्पताल भेज कर थानाध्यक्ष राजेश मौर्य पूजा के पति राहुल मिश्रा के साथ उस के फ्लैट में पहुंचे. राहुल ने उन्हें पूजा का लिखा हुआ सुसाइड नोट सौंप दिया. कमरे का मुआयना करने के बाद थानाध्यक्ष राजेश मौर्य किशनगढ़ थाना लौट गए. पहली नजर में उन्हें यह मामला सुसाइड का ही लग रहा था.

उसी दिन यानी 16 मार्च, 2019 को किशनगढ़ थाने में सीआरपीसी 173 के तहत यह मामला दर्ज कर लिया गया. अगले दिन डाक्टरों की एक टीम ने पूजा राय का पोस्टमार्टम किया. उस का विसरा भी जांच के लिए रख लिया गया. इस दौरान थानाध्यक्ष राजेश मौर्य ने पूजा के मायके सिंदरी, झारखंड को इस घटना की सूचना दे कर उस के पिता सुरेश राय को दिल्ली बुला लिया.

सुरेश राय ने अपने दामाद पर आरोप लगाते हुए थानाध्यक्ष राजेश मौर्य से कहा, ‘‘मेरी बेटी पूजा ने सुसाइड नहीं किया है, बल्कि उस की हत्या की गई है.’’

राजेश पर आरोप लगने के बाद पुलिस ने 18 मार्च को 3 डाक्टरों के पैनल से पूजा का पोस्टमार्टम कराया. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम के बाद उस के विसरा को जांच के लिए भेज दिया. करीब एक महीने के बाद 27 अप्रैल, 2019 को पूजा का पोस्टमार्टम तथा विसरा रिपोर्ट आ गई, जिस में उस के मरने का कारण उस के सिर में घातक चोट का लगना तथा जहर मिला जूस पीना बताया गया.

इस के बाद पुलिस ने 31 अप्रैल को पूजा राय की हत्या का मामला आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत दर्ज कर लिया. इस मामले की तफ्तीश थानाध्यक्ष राजेश मौर्य को सौंपी गई.

केस की जांच संभालते ही थानाध्यक्ष राजेश मौर्य ने अपने आला अधिकारियों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट तथा केस में आए इस बदलाव से अवगत करा दिया. साउथ वेस्ट दिल्ली के डीसीपी देवेंद्र आर्य इस मामले में पहले से ही दिलचस्पी ले रहे थे.

उन्होंने केस का खुलासा करने के लिए एसीपी ईश्वर सिंह की निगरानी में एक टीम बनाई, जिस में थानाध्यक्ष राजेश मौर्य, इंसपेक्टर संजय शर्मा, इंसपेक्टर नरेंद्र सिंह चहल, एसआई मनीष, पंकज, एएसआई अजीत, कांस्टेबल गौरव आदि को शामिल किया गया.

थानाध्यक्ष ने उसी दिन मृतका के पति राहुल मिश्रा को थाने बुला कर उसे बताया कि पूजा ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि किसी ने उस की हत्या की है. इसलिए वह इस मामले को सुलझाने में सहयोग करें.

थानाध्यक्ष की बात सुन कर राहुल को हैरानी हुई. वह बोला, ‘‘सर, पूजा की तो किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. ऐसे में भला उस की हत्या कौन कर सकता है? अगर ऐसा है तो मेरी पत्नी के हत्यारे का पता लगा कर उसे जल्द से जल्द पकड़ने की कोशिश करें.’’

‘‘चिंता मत करो, पुलिस अपना काम करेगी. बस आप जांच में सहयोग करते रहना.’’ थानाध्यक्ष ने कहते हुए राहुल से उस से और पूजा से मिलने आने वाले सभी लोगों के फोन नंबर ले कर सभी नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की बारीकी से जांच की. राहुल की काल डिटेल्स में एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर उस की ज्यादा बातें होती थीं.

वह नंबर पद्मा तिवारी का था, जो दिल्ली के मयूर विहार में रहती थी. राहुल ने बताया कि पद्मा उस की दोस्त है. घटना वाले दिन भी पद्मा ने शाम के वक्त राहुल के मोबाइल पर फोन कर उस से काफी देर तक बातें की थीं. इस से दोनों ही पुलिस के शक के दायरे में आ गए.

इस के बाद थानाध्यक्ष राजेश मौर्य ने राहुल के फ्लैट पर पहुंच कर वहां आसपड़ोस में रहने वालों से पूछताछ की तो पता चला कि 16 मार्च, 2019 की सुबह पद्मा तिवारी पूजा से मिलने उस के फ्लैट पर आई थी. इस के बाद किसी ने पूजा को फ्लैट से बाहर निकलते नहीं देखा था. अलबत्ता शाम के वक्त राहुल पूजा को बेहोशी की हालत में ले कर फोर्टिस अस्पताल गया था.

थानाध्यक्ष को अब मामला कुछकुछ समझ में आने लगा था, लेकिन उस वक्त उन्होंने राहुल मिश्रा से ऐसा कुछ नहीं कहा जिस से उसे पता चले कि उन्हें उस के ऊपर शक हो गया है.

राहुल से पूछताछ के बाद जब वह अपनी टीम के साथ वहां से चलने को हुए तो राहुल को फिर से थाने में आने का आदेश दिया. इस के अलावा उन्होंने राहुल की दोस्त पद्मा तिवारी को भी फोन कर उसे किशनगढ़ थाने में पहुंच कर मामले की जांच में सहयोग करने के लिए कह दिया.

जब राहुल और पद्मा किशनगढ़ थाने में पहुंचे तो उन दोनों से उन की काल डिटेल्स तथा उन के द्वारा पूर्व में दिए गए बयानों में आ रहे विरोधाभासों के आधार पर अलगअलग पूछताछ की गई तो उन के बयानों में फिर से काफी विरोधाभास नजर आया.

सुसाइड नोट की राइटिंग की जांच के लिए पुलिस ने पद्मा की हैंडराइटिंग की जांच की. इस जांच में पुलिस को सुसाइड नोट की राइटिंग और पद्मा की हैंडराइटिंग काफी हद तक एक जैसी लगी.

तीखे पुलिसिया सवालों से आखिर पद्मा टूट गई. उस ने पूजा की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. फिर राहुल ने भी मान लिया कि पूजा की हत्या पूरी तरह सुनियोजित थी. इतना ही नहीं, घटना वाले दिन पद्मा ने उस के मोबाइल पर फोन कर उसे पूजा की हत्या की जानकारी दी थी.

उन्होंने पूजा की हत्या क्यों की, इस बारे में जब उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो पूजा राय की हत्या के पीछे जो तथ्य उभर कर सामने आए, वह बचपन के प्यार को पाने की जिद की एक हैरतअंगेज कहानी थी.

कहा जाता है कि बचपन की दोस्ती और स्कूल के दिनों का प्यार भुलाए नहीं भूलता. और जब शादी के बाद वही बचपन का प्यार उस के शादीशुदा जीवन में अचानक सामने आ कर खड़ा हो जाए तो जिंदगी किस दोराहे या चौराहे पर पहुंचेगी, यह अनुमान लगाना आसान नहीं होता. कुछ ऐसा ही हुआ 32 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर राहुल मिश्रा और उस के बचपन की दोस्त 33 वर्षीय एमबीए पद्मा तिवारी के साथ.

राहुल मिश्रा अपने पिता रामदेव मिश्रा के साथ झारखंड के शहर सिंदरी में रहता था. वह वहां के डिनोबली स्कूल में पढ़ता था. पद्मा तिवारी भी उस के क्लास में थी. पद्मा तिवारी के मातापिता भी सिंदरी में रहते थे. दोनों बचपन से ही एकदूसरे के दोस्त थे. उम्र बढ़ने के साथ उन की दोस्ती प्यार में बदल गई.

12वीं पास करने के बाद दोनों आगे की पढ़ाई के लिए न चाहते हुए भी एकदूसरे से बिछड़ गए, क्योंकि राहुल मिश्रा ने ग्वालियर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली थी और सन 2010 में गुड़गांव स्थित एक कंपनी में उस की नौकरी लग गई. राहुल अपनी नौकरी में व्यस्त था. उस का पद्मा तिवारी से एक तरह से संपर्क टूट गया था.

सन 2015 में राहुल मिश्रा के स्कूल के दोस्तों ने एक वाट्सऐप ग्रुप बनाया, जिस में राहुल मिश्रा और पद्मा तिवारी का नाम भी शामिल था. इस ग्रुप के द्वारा पद्मा ने राहुल मिश्रा से मोबाइल फोन पर संपर्क किया. चूंकि उन की काफी दिनों बाद बातचीत हुई थी, इसलिए वे बहुत खुश हुए.

बातचीत से पता चला कि पद्मा ने नोएडा में रह कर एमबीए किया था. उस के बाद उसे नोएडा की एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई थी. इस समय वह नोएडा में नौकरी कर रही थी, जहां उसे अच्छी खासी तनख्वाह मिलती थी. इस के बाद दोनों लगातार एकदूसरे से फोन पर बातें करने लगे.

इस से उन के स्कूल के दिनों का प्यार फिर से जीवित हो गया. अब दोनों ही अच्छी सैलरी ले रहे थे, इसलिए उन का जब मन होता, वे इधर उधर घूम कर दिल की बातें कर लेते थे. उन की नजदीकियां उस मुकाम पर पहुंच चुकी थीं कि अब दोनों को कोई जुदा नहीं कर सकता था.

लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. सन 2017 में जब राहुल मिश्रा के घर में उस की शादी की बात चली तो उन लोगों ने अपनी बहू के रूप में सिंदरी की ही रहने वाली पूजा राय को पसंद कर लिया. इस पर राहुल ने अपने घर वालों को बताया कि वह सिंदरी की रहने वाली सहपाठी पद्मा तिवारी से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है.

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                                                 राहुल और पूजा

राहुल ने घर वालों को यह भी बताया कि एमबीए करने के बाद पद्मा नोएडा की एक कंपनी में ऊंचे पद पर नौकरी कर रही है. लेकिन राहुल के पिता रामदेव मिश्रा ने राहुल की बात को हलके में लिया और उस की बात अनसुनी करते हुए पूजा से ही उस की शादी पक्की कर दी.

बनने लगी हत्या की योजना

राहुल को इस बात का दुख हुआ. वह अब ऐसा उपाय सोचने लगा कि किसी तरह उस की पूजा से शादी टूट जाए. उस ने तय कर लिया कि वह पूजा से मिल कर बता देगा कि उस का पद्मा के साथ अफेयर चल रहा है.

एक दिन वह पूजा राय के पास पहुंचा और अपने व पद्मा तिवारी के बीच सालों से चले आ रहे अफेयर की बात यह सोच कर बता दी कि यह सुन कर शायद वह उस से शादी करने से मना कर देगी. लेकिन पूजा समझदार लड़की थी.

वह राहुल की इस बात पर नाराज नहीं हुई बल्कि उसे उस की साफगोई अच्छी लगी कि राहुल दिल का साफ है जो उस ने यह बात उसे बता दी. यानी अपने होने वाले पति के मुंह से उस के पुराने अफेयर के बारे में जानकारी मिलने के बाद भी पूजा उस से शादी के लिए तैयार थी.

अप्रैल, 2017 में राहुल मिश्रा की शादी पूजा राय से हो गई. शादी के बाद राहुल पूजा को ले कर दिल्ली आ गया और साउथ दिल्ली के किशनगढ़ इलाके में किराए का एक फ्लैट ले कर रहने लगा. राहुल से शादी कर के पूजा बहुत खुश थी.

उस ने तय कर लिया था कि वह राहुल को इतना प्यार देगी कि वह अपना पिछला प्यार भूल जाएगा. पूजा ने राहुल की सेवा करने में सचमुच कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि महंगाई के कारण घर चलाने के लिए जब अधिक रुपयों की जरूरत महसूस हुई तो उस ने भी नौकरी करने का फैसला कर लिया.

उधर राहुल पूजा से शादी के बाद भी पद्मा को अपने दिल से नहीं निकाल सका. पद्मा का हाल भी राहुल की तरह ही था. दोनों वक्त निकाल कर एकदूसरे से मिलतेजुलते रहे. पद्मा मयूर विहार में एक किराए के फ्लैट में रहती थी.

अक्तूबर 2018 में जब पूजा की नौकरी करने के लिए उस का बायोडाटा तैयार करने की बात आई तो राहुल ने इसी बहाने पद्मा को अपने फ्लैट पर बुला लिया. पद्मा ने पूजा का बायोडाटा तैयार कर दिया. आगे चल कर पूजा को भी गुड़गांव की एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई. इस के बाद पद्मा किसी न किसी बहाने उस के यहां आती रही.

जब पद्मा का राहुल के यहां ज्यादा आनाजाना बढ़ गया तो पूजा को पद्मा और राहुल के रिश्तों पर शक हो गया. उसे पद्मा का बारबार फ्लैट पर आना अखरने लगा. तब पूजा उस के साथ रूखा व्यवहार करने लगी.

इतना ही नहीं, वह पद्मा को हंसीमजाक के दौरान राहुल को ले कर कुछ ऐसी बात कर देती जिसे सुन कर वह तिलमिला कर रह जाती थी. पर पद्मा दिल के हाथों मजबूर थी. वह राहुल को बहुत चाहती थी. इसलिए उस ने राहुल के फ्लैट पर आना नहीं छोड़ा. इसलिए पूजा के व्यंग्य करने के बाद भी वह उस के यहां आती रही.

पद्मा ने ही ली पूजा की जान

लेकिन जब पूजा ने उस के और राहुल के रिश्तों को ले कर जलीकटी सुनानी जारी रखीं तो एक दिन उस ने यह बात राहुल को बताई और इस का कोई हल निकालने को कहा. पद्मा की बात सुन कर राहुल को अपनी पत्नी पर बहुत गुस्सा आया. उसी दिन दोनों ने मिल कर निश्चय कर लिया कि वे इस के बदले पूजा को जरूर सबक सिखाएंगे. दोनों ने इस के लिए एक योजना भी बना ली.

16 मार्च, 2019 को शनिवार का दिन था. योजना के अनुसार राहुल सुबह तैयार हो कर गुड़गांव स्थित अपने औफिस चला गया. चूंकि पूजा की उस दिन छुट्टी थी, इसलिए वह फ्लैट पर अकेली आराम कर रही थी. राहुल के जाने के कुछ देर बाद पद्मा पूजा से मिलने फ्लैट पर पहुंची तो पूजा ने उस से कहा कि उसे किसी काम से बाहर निकलना है, इसलिए वह उसे अधिक समय नहीं दे पाएगी.

इस पर पद्मा ने उस से कहा, ‘‘कुछ देर बातचीत कर के मैं चली जाऊंगी तो तुम चली जाना.’’

पद्मा अपने साथ 2 गिलास फ्रूट जूस ले कर आई थी. उस ने दोनों गिलास पूजा के सामने टेबल पर रख दिए. उस वक्त काम करने वाली आया घर का कामकाज निपटा रही थी. इस बीच पूजा ने पद्मा के साथ नाश्ता किया. जब आया अपना काम खत्म कर वहां से चली गई तो पद्मा ने पूजा से जूस पी लेने के लिए कहा.

जैसे ही पूजा ने जूस पीने के लिए गिलास उठाना चाहा तो पद्मा ने कहा कि वह उस के लिए एक गिलास पानी ले आए. यह सुन कर पूजा जूस का गिलास वहीं छोड़ कर पानी लाने के लिए चली गई.

पूजा के जाते ही पद्मा ने अपने कपड़ों में छिपा कर लाया जहरीला पदार्थ उस के गिलास में डाल कर मिला दिया. पूजा किचन से पानी का गिलास ले कर लौटी और गिलास पद्मा को दे दिया. इस के बाद पूजा ने पद्मा द्वारा लाया जूस का गिलास उठाया और धीरेधीरे पूरा जूस खत्म कर दिया.

जूस पीने के थोड़ी देर बाद अचानक उस की तबीयत खराब होने लगी. उल्टी और पेट दर्द की शिकायत होने पर उस ने फ्लैट से बाहर निकलना चाहा लेकिन पद्मा ने उसे पकड़ कर दबोच लिया. पूजा के बेहोश होने पर पद्मा ने उस का सिर बारबार फर्श से पटका ताकि उस के जीवित रहने की संभावना न रहे.

पूजा की हत्या करने के बाद पद्मा ने फ्लैट को अच्छी तरह साफ किया और पेपर के बने उन दोनों गिलासों को अपने साथ ले कर वहां से मयूर विहार अपने कमरे पर लौट आई. शाम को उस ने अपने प्रेमी राहुल मिश्रा को फोन कर बता दिया कि आज उस ने उस की पत्नी पूजा का किस्सा तमाम कर दिया है.

साथ ही उस ने यह भी बताया कि उस ने पूजा के पास में सुसाइड नोट भी लिख कर छोड़ दिया है, जिसे पढ़ कर पुलिस और तमाम लोग यह समझेंगे कि पूजा ने किसी कारण परेशान हो कर सुसाइड कर लिया है.

शाम के वक्त राहुल औफिस से अपने फ्लैट पर पहुंचा तो योजना के अनुसार पूजा की डैडबौडी को ले कर वसंत कुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल पहुंचा और वहां डाक्टर से नाटक करते हुए अपनी पत्नी की जान बचा लेने की गुहार लगाई.

लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हेड इंजरी तथा पूजा को जूस में जहर देने की बात सामने आई, जिस से राहुल और पद्मा द्वारा रचे गए पूजा के नकली सुसाइड के रहस्य से पदा हटा दिया.

अगले दिन पुलिस ने दोनों आरोपियों को अदालत में पेश कर दिया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

रहस्य एक बर्निंग कार का

17 मई, 2018 को रात के कोई 8 बजे का वक्त रहा होगा. हल्द्वानी भीमताल मार्ग पर गांव सिलुड़ी के पास सड़क के किनारे खड़ी कार से अचानक ही आग की लपटें उठने लगीं, जिसे देखते ही हाइवे पर अफरा तफरी मच गई. देखते ही देखते आसपास रहने वाले लोगों के अलावा राहगीर भी इकट्ठे हो गए थे. उस वक्त वहां पर मौजूद लोग इस बात को ले कर हैरान थे कि न तो उस कार का कोई एक्सीडेंट हुआ था और न ही उस जलती कार से किसी के रोनेचिल्लाने की आवाज ही आ रही थी.

वहां मौजूद लोगों में से किसी ने उस की सूचना पुलिस को और दमकल विभाग को दे दी. लेकिन जब तक दमकलकर्मी वहां पहुंचे, कार पूरी तरह से जल चुकी थी. कार से धुआं उठ रहा था. दमकलकर्मियों ने आग बुझाई.

कार के जलने की सूचना पर थाना काठगोदाम व थाना भीमताल की पुलिस भी पहुंच चुकी थी. पुलिस ने जब जांच की तो ड्राइवर की बगल वाली सीट पर एक व्यक्ति का जला शव कंकाल के रूप में मिला. वह शव इतनी बुरी तरह से जल चुका था कि उस की यह भी शिनाख्त नहीं हो पाई थी कि वह किसी महिला का है या किसी पुरुष का.

पुलिस ने जांचपड़ताल करने के बाद वहां पर रह रहे कुछ स्थानीय लोगों से उस कार के बारे में पूछताछ की तो सभी ने यही बताया कि कार से किसी के चीखने की आवाज नहीं आई थी. मौके की जांचपड़ताल करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी, साथ ही उस का डीएनए सैंपल भी सुरक्षित रखवा लिया.

इस कार की सच्चाई जानने के लिए अगले दिन सुबह से ही भीमताल पुलिस जांच में जुट गई थी. पुलिस ने जिले के सभी थानों को इस बर्निंग कार की जानकारी देते हुए पूछा था कि किसी भी थाने में किसी इंसान के लापता होने की रिपोर्ट तो दर्ज नहीं है. इस कोशिश में भी पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं मिला.

पुलिस के सामने सब से बड़ी समस्या यह आ रही थी कि कार से जो जला हुआ शव मिला था, उस की शिनाख्त कैसे हो. शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद पुलिस ने गाड़ी की जांचपड़ताल की तो पुलिस के हाथ छोटा सा सुराग लगा. मृतक ने जो जूता पहन रखा था, वह ऊपर से तो जल गया था, लेकिन उस का तलवा कार से ही चिपक गया था. पुलिस ने उस जूते के तलवे को किसी तरह छुड़ाया तो पता चला कि मृतक 7 नंबर का जूता पहनता था. लेकिन उस जूते के नंबर से भी यह साफ नहीं हो पा रहा था कि वह जूता किसी मर्द का है या किसी औरत का.

पुलिस अपनी जांचपड़ताल में जुटी थी कि अगले ही दिन सामिया लेक सिटी रुद्रपुर निवासी नीलम नाम की एक महिला सुबहसुबह रुद्रपुर कोतवाली पहुंची. उस ने पुलिस को जानकारी दी कि उस का पति अवतार सिंह कल से लापता है. नीलम ने पुलिस को बताया कि कल शाम से उन का मोबाइल भी बंद आ रहा है. वह सारी रात अपने परिजनों के साथ उन की तलाश करती रही, लेकिन उन के बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिल पाई.

नीलम ने पुलिस को जानकारी देते हुए बताया कि कल शाम वह अपने पति के साथ अपना इलाज कराने के लिए रुद्रपुर से हल्द्वानी आई थी. लेकिन डाक्टर के न मिलने के बाद अवतार ने बताया था कि उन्हें पहाड़ पर अपना कुछ काम है. तब वह उसे कालू सिद्ध मंदिर के पास उतार कर चले गए थे. जहां से देर रात वह दवा ले कर रुद्रपुर अपने घर पहुंच गई थी. घर पहुंचने के बाद उन का मोबाइल नंबर मिलाया तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला.

मृतक की बीवी नीलम से विस्तृत पूछताछ करने के उपरांत थानाप्रभारी ने इस की सूचना हल्द्वानी के एसएसपी को दे दी. एसएसपी ने एएसपी व सीओ (भवाली) के निर्देशन में 6 पुलिस टीमें गठित कीं, जिस में प्रशिक्षु एसपी अमित कुमार, कोतवाली हल्द्वानी के इंसपेक्टर विक्रम राठौर, काठगोदाम के थानाध्यक्ष कमाल हसन, भीमताल थानाप्रभारी अनवर, एसओजी प्रभारी दिनेशचंद्र पंत को शामिल किया गया था.

एसएसपी के निर्देश पर थानाप्रभारी ने कुछ औपचारिकताएं  पूरी करते हुए नीलम को सीधे भीमताल भेज दिया था ताकि वह घटनास्थल पर मिली कार की कुछ शिनाख्त कर सके.

नीलम रुद्रपुर से सीधे थाना भीमताल पहुंची और पुलिस के सामने पति अवतार सिंह के गायब होने की बात बताते हुए कहा कि उस के पति सिडकुल की कंपनियों में मैनपौवर सप्लाई करते हैं.

नीलम ने पुलिस को बताया कि पहले वह किसी के साथ पार्टनरशिप में काम करते थे, लेकिन करीब साल भर से उन्होंने अपना काम अलग कर लिया था. उस के बाद उन्होंने रुद्रपुर में अपना औफिस बना लिया था. वैसे वह मूलरूप से हरियाणा के निवासी थे और अब से लगभग 10 साल पहले रुद्रपुर आ कर बस गए थे.

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          मृतक अवतार सिंह

नीलम ने नहीं पहचानी लाश

नीलम की बात सुनने के बाद पुलिस को लगा कि अब बर्निंग कार की गुत्थी शीघ्र ही सुलझ सकती है. पुलिस नीलम को अपने साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंची लेकिन नीलम ने जली कार को देखते ही उसे पहचानने से मना कर दिया. यही नहीं उस ने उस कार में कंकाल के रूप में मिली लाश भी नहीं पहचानी. उस का कहना था कि उस के पति तो हल्द्वानी तक मेरे साथ ही थे, वह कार खुद ही चला रहे थे. फिर उन की बगल वाली सीट पर वह कंकाल किस का हो सकता है.

उसी दौरान पुलिस ने उस जली कार की गहनता से जांचपड़ताल की तो पुलिस के हाथ ऐसा सूत्र हाथ लगा जो इस केस की जड़ों तक जा सकता था. छानबीन के दौरान पुलिस के हाथ गाड़ी के बोनट वाली डिक्की में रखा इंश्योरेंस का अधजला कागज मिला. पुलिस ने उस मिले कागज के आधार पर कार का पता किया तो वह अवतार सिंह के नाम से ही थी.

लेकिन उस वक्त पुलिस के सामने एक और समस्या आ खड़ी हुई थी. नीलम ने उस कार से मिले कंकाल को पहचानने से ही इनकार कर दिया था. नीलम का कहना था कि जिस वक्त उस के पति ने उसे वहां छोड़ा था तो वह कार में अकेले ही थे. फिर अगर कंकाल ड्राइवर की सीट पर होता तो वह मान सकती थी कि लाश पति की हो सकती है.

नीलम की बात सुनते ही पुलिस फिर से चक्कर में पड़ गई. उस के बाद तो पुलिस के सामने इस केस को खोलने के लिए एक ही रास्ता बाकी बचा था, वह रास्ता था पोस्टमार्टम और डीएनए की रिपोर्ट का.

यह खबर तमाम अखबारों में प्रमुखता से छपी थी. इस खबर को पढ़ने के बाद 18 मई, 2019 को अंबाला निवासी अवतार सिंह के पिता गुलजार सिंह, मां नक्षत्रो देवी और भाई जगतार सिंह हल्द्वानी पहंचे.

पुलिस पूछताछ में गुलजार सिंह ने अपने बेटे अवतार सिंह की हत्या की आशंका जाहिर करते हुए उस की बीवी पर संदेह प्रकट किया. उस के बाद इंसपेक्टर विक्रम राठौर ने गुलजार सिंह और उन के बेटे जगतार सिंह से लगभग आधे घंटे तक पूछताछ की.

इस पूछताछ में कई चौंकाने वाले राज खुल कर सामने आए. इस हादसे से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आने के उपरांत उसी रात पुलिस ने गुलजार सिंह की तहरीर के आधार पर नीलम और उस के करीबी माने जाने वाले उस के दोस्त मनीष मिश्रा के खिलाफ थाना भीमताल में मुकदमा दर्ज करा दिया.

इस सब काररवाई से निपटने के बाद पुलिस ने इस मामले की तह तक पहुंचने के लिए उस के परिजनों से पूछताछ करनी ही उचित समझी.

अवतार सिंह के पिता और भाई के बयानों के आधार पर पुलिस को विश्वास हो गया था कि यह कोई हादसा नहीं बल्कि मर्डर है, जिस को अंजाम देने के लिए पूरी साजिश रची गई थी. इंसपेक्टर विक्रम राठौर ने इस मामले की गहराई तक पहुंचने के लिए उस हाइवे पर जगहजगह लगे लगभग 200 सीसीटीवी कैमरे खंगाले. इस मामले में पुलिस लगभग 30-35 अलगअलग लोगों से पूछताछ कर चुकी थी.

लेकिन सीसीटीवी कैमरे से मिली जानकारी के बाद पुलिस ने अपना फोकस कैमरों को ही बना लिया था. इस दौरान रुद्रपुर से ले कर काठगोदाम तक सीसीटीवी की जांच में पुलिस के हाथ कई अहम सुराग लगे. जांचपड़ताल के दौरान पुलिस को उस कार में आगे की सीट पर 2 लोग बैठे दिखाई दिए. लेकिन उन दोनों की तसवीर साफ नजर नहीं आ रही थी. उस वक्त उस गाड़ी को कौन चला रहा था और उस के पास वाली सीट पर कौन बैठा हुआ था, यह जानकारी भी रहस्य बनी हुई थी.

सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद पुलिस इतना तो जान ही चुकी थी कि उस कार में 2 बैठे हुए व्यक्तियों में से एक जरूर हत्यारा रहा होगा, वरना वह भी कार में जल चुका होता. इस सब जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने अपना ध्यान उस दूसरे व्यक्ति पर लगा दिया जो कार जलने से पहले ही वहां से गायब हो गया था.

यह सब जानकारी हासिल करने के बाद पुलिस ने नीलम की सच्चाई जानने के लिए उस के मोबाइल को भी सर्विलांस पर लगा दिया था. उसी दौरान पुलिस ने मृतक अवतार के घर से उस के महत्त्वपूर्ण कागजात अपने कब्जे में लेते हुए उन की गहनता से जांचपड़ताल की. उन्हीं कागजों से पता चला कि अवतार ने 15 दिन पहले ही 50 लाख रुपए का टर्म इंश्योरेंस लिया था, जिस में उस ने अपनी पत्नी नीलम को ही नौमिनी बनाया था.

यह सच्चाई सामने आने के बाद पुलिस को पूरा विश्वास हो गया कि कहीं इस रकम को हड़पने की कोशिश में ही तो नीलम ने अपने पति की हत्या नहीं करा दी. उसी जांचपड़ताल के दौरान पुलिस को पता चला कि सामिया लेक सिटी स्थित अवतार का मकान भी उस की पत्नी नीलम के नाम पर था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चली हकीकत

उधर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने सभी पुलिस अधिकारियों को चौंकाने पर मजबूर कर दिया था. रिपोर्ट के अनुसार, मृतक की हत्या जलने से पूर्व ही हो चुकी थी. रिपोर्ट से पता चला कि मृतक की सांस नली ठीकठाक निकली, जबकि अगर कोई इंसान आग में जल कर मरता है तो उस की सांस नली में धुएं (कार्बन) के कण जरूर मिलते हैं.

जबकि कार से बरामद शव की सांस नली में ऐसा कुछ भी नहीं मिला. जिस से साफ हो गया था कि अवतार को कहीं और खत्म करने के बाद उस की लाश को कार में जला कर हादसे का रूप देने की कोशिश की गई थी.

नीलम का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगाने के बाद पुलिस के सामने और भी चौंकाने वाले तथ्य उभर कर सामने आए. नीलम के फोन की काल डिटेल्स में एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर वह दिन में सब से ज्यादा बातें करती थी. पुलिस ने उस नंबर का पता लगाया तो जानकारी मिली कि वह नंबर मनीष नाम के व्यक्ति का है, जो नीलम के पास में ही रहता था.

नीलम के साथ मनीष का नाम जुड़ते ही पुलिस ने फिर से रुद्रपुर में मृतक अवतार के पड़ोसियों से पूछताछ की तो सब कुछ सामने आ गया.

पुलिस को इस बात की पुख्ता जानकारी मिल गई कि मनीष और नीलम के बीच काफी समय से चक्कर चल रहा था, जिसे ले कर अवतार और उस की बीवी में अकसर नोंकझोंक हो जाती थी.

इस मामले के सामने आते ही पुलिस ने नीलम को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. पुलिस ने नीलम को साथ ले कर घटनास्थल के 3 चक्कर लगाए. इस के बाद उस से पूछताछ की.

इस पूछताछ के दौरान नीलम ने आखिर सच्चाई बता ही दी. इस बर्निंग कार का रहस्य जब लोगों के सामने आया तो सभी के होश फाख्ता हो गए. मृतक अवतार सिंह हरियाणा के अंबाला कैंट थाना क्षेत्र के गांव घसीटपुर के रहने वाले गुलजार सिंह का बेटा था. कई साल पहले अंबाला कैंट थाना क्षेत्र में ही अवतार सिंह के भाई जगतार सिंह एक कैमिकल फैक्ट्री चलाते थे. उस वक्त अवतार सिंह भी अपने भाई के साथ फैक्ट्री के काम में हाथ बंटाता था. उसी काम के दौरान ही अवतार की मुलाकात नीलम से हुई थी.

नीलम बागेश्वर जिले के गांव बनलेख कारोली गांव की रहने वाली थी. वह देखनेभालने में खूबसूरत थी. उस की खूबसूरती पर अवतार सिंह रीझ गया था.

फिर दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई. यह मुलाकात दोस्ती से शुरू हो कर प्यार तक पहुंच गई. बात यहां तक पहुंच गई थी कि उन्होंने आपस में शादी करने का फैसला ले लिया. लेकिन उन की शादी के लिए दोनों के घर वाले राजी नहीं हुए, तब उन्होंने अपनी मरजी से शादी कर ली. करीब एक साल बाद नीलम ने एक बेटी को जन्म दिया.

लगभग 10 साल पहले अवतार रुद्रपुर में काम की तलाश में आया था. यहां पर उस ने अपने किसी दोस्त के साथ पार्टनरशिप में सिडकुल की कंपनियों में मैनपौवर सप्लाई का काम शुरू कर दिया था. कुछ दिनों बाद ही उन का काम तेजी पकड़ गया. जब काम ठीकठाक चल निकला तो अवतार ने 2 साल पहले रुद्रपुर में ही अपना अलग काम शुरू कर लिया, वहीं पर उस ने अपना औफिस भी खोल लिया था.

बाद में अवतार सिंह ने रुद्रपुर में ही अपना मकान भी बना लिया था. अवतार सिंह के घर के सामने ही मनीष मिश्रा का मकान था. मनीष मूलरूप से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के गांव नंदोत फूलपुर का निवासी था. मनीष करीब 2 साल पहले रुद्रपुर आया था. मनीष शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था लेकिन उस का परिवार प्रयागराज में ही रहता था. वह रुद्रपुर में अकेला ही रहता था.

मनीष ने रुद्रपुर में सिक्योरिटी एजेंसी का औफिस खोला था. वह रुद्रपुर की ही विभिन्न फैक्ट्रियों में सुरक्षाकर्मियों को लगा कर उन से अच्छाखासा कमीशन कमा लेता था. उधर अवतार सिंह फैक्ट्रियों में हाउसकीपिंग ठेकेदार था. आमनेसामने रहने और एक ही लाइन से जुड़े होने के कारण अवतार सिंह और मनीष के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी. उन का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था.

इसी दौरान नीलम और मनीष के बीच प्रेमप्रसंग शुरू हो गया. उन के बीच संबंध इतने प्रगाढ़ हो गए थे कि दोनों ने अवतार सिंह की गैरमौजूदगी में बाहर भी घूमनाफिरना शुरू कर दिया था. मनीष ने अपने दोस्त के साथ दोस्ती में दगा करते हुए उस के बिस्तर पर भी कब्जा कर लिया. जब कभी भी अवतार किसी काम से घर से बाहर जाता तो उस रात मनीष पूरी तरह से नीलम के घर पर ही रहता था.

इस तरह की बातें लाख छिपाने के बावजूद भी ज्यादा दिनों तक नहीं छिप पाती हैं. लिहाजा किसी तरह उन के संबंधों की भनक अवतार को भी लग गई. उस ने इस बारे में पत्नी से पूछताछ की, लेकिन नीलम ने सफाई देते हुए कहा कि उस के और मनीष के बीच ऐसा कुछ नहीं है, किसी ने जरूर कान भरे होंगे. पत्नी की इस सफाई पर अवतार उस समय शांत जरूर हो गया लेकिन उस के मन का शक दूर नहीं हुआ था. वह पत्नी पर नजर रखने लगा.

4 महीने पहले की बात है. अवतार एक योजना के अनुसार, किसी काम के बहाने घर से बाहर गया हुआ था, तभी नीलम ने मौके का फायदा उठाते हुए अपने प्रेमी मनीष को बुला लिया. कुछ देर बाद अवतार घर लौट आया तो मनीष उसे घर पर ही मिल गया. मनीष को नीलम के साथ देख कर अवतार का खून खौल उठा.

उसी दौरान दोनों में हाथापाई हो गई थी. यही नहीं अवतार ने मनीष को डराने की नीयत से अपनी पिस्टल की नाल उस के मुंह में डाल कर सुधरने की धमकी भी दी थी. उसी दौरान अवतार ने पुलिस को फोन कर घर बुला लिया. मनीष को पुलिस अपने साथ ले गई.

उस के बाद चौकी में बैठ कर दोनों के बीच सुलहनामा हो गया. उसी दौरान अवतार ने पुलिस के सामने ही मनीष को उस के घर पर न आने की हिदायत दी. मनीष ने भी वादा किया कि वह आइंदा उस के घर नहीं जाएगा.

फैसला हो जाने के बाद मनीष अपने घर चला गया. लेकिन उस के मन में उस दिन से अवतार सिंह के प्रति नफरत का बीज अंकुरित हो गया था. मनीष ने मन ही मन ठान लिया था कि वह किसी भी तरह से अपने अपमान का बदला ले कर ही रहेगा. मनीष जानता था कि अवतार की अपनी बीवी नीलम से नहीं बनती है. और वैसे भी अवतार उस वक्त करोड़ों का मालिक था.

करोड़ों रुपए की संपत्ति का मालिक था अवतार

हालांकि नीलम ने अवतार सिंह के साथ लवमैरिज की थी. लेकिन उस की संपत्ति को देख कर वह भी बौखला गई थी. उस के बावजूद भी वह अवतार से सीधे मुंह बात नहीं करती थी. जबकि अवतार उसे जीजान से चाहता था. उस का मकान भी अच्छा बना हुआ था. इस के अलावा हरियाणा में भी उस के नाम पर काफी संपत्ति थी.

पुलिस चौकी में हुए फैसले के बाद मनीष ने कुछ दिनों के लिए नीलम से मिलनाजुलना बंद कर दिया था. लेकिन फोन के द्वारा उस का और नीलम का संपर्क बना हुआ था. उसी दौरान मनीष ने नीलम से मिल कर अवतार को अपने रास्ते से हटाने की बात की तो नीलम भी तैयार हो गई. इस के बाद दोनों ने योजना बनानी शुरू कर दी.

मार्च, 2019 में उन्होंने योजना को अंतिम रूप दे दिया लेकिन किसी वजह से वह अपनी योजना को अंजाम नहीं दे पा रहे थे. मनीष जानता था कि अवतार सिंह को रास्ते से हटा देने पर वह करोड़ों का मालिक बन सकता है.

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                           अभियुक्त मनीष मिश्रा और नीलम  

मनीष का एक पुराना दोस्त था अजय यादव, जो जौनपुर जिले के दौलतिया गांव का रहने वाला था. मनीष ने अपने दिल की पीड़ा उस के सामने रखते हुए इस मामले में उस का साथ मांगा तो वह साथ देने के लिए तैयार हो गया. फिर योजना के अनुसार, अजय यादव 15 मई, 2019 को मनीष के पास पहुंच गया था. मनीष और नीलम ने पूरी योजना पहले ही तैयार कर रखी थी.

योजना के तहत मनीष ने नीलम को नींद की गोलियां ला कर दे दीं. 16 मई, 2019 को नीलम ने ग्लूकोन डी के पाउडर में नींद की 10 गोलियां पीस कर मिला दी थीं. वही ग्लूकोन डी पाउडर उस ने एक गिलास पानी में घोल कर अवतार को पिला दिया.

नींद की गोलियों ने कुछ देर में असर दिखाया तो अवतार नींद में झूमने लगा. जब उसे लगा कि अब अवतार पूरी तरह से नशे में हो चुका है तो उस ने तुरंत ही मनीष को फोन कर के उस की स्थिति बता कर उसे घर से निकलने के लिए कह दिया.

नीलम ने बेहोश पति को जैसे तैसे कर अपनी कार में ही अगली सीट पर बिठा दिया. नीलम ने खुद कार चलाई और सीधे हल्द्वानी में मुखानी चौराहे पर स्थित डा. नीलांबर भट्ट के क्लीनिक पहुंची. योजनानुसार मनीष मिश्रा और उस का दोस्त अजय यादव भी पल्सर बाइक से उस के पीछे लगे रहे. उसी दौरान उन्होंने रास्ते से ही पैट्रोल भी खरीद लिया था.

हल्द्वानी पहुंचते ही नीलम ने वह कार मनीष के हवाले कर दी थी. मनीष कार को ले कर गांव सलड़ी के रास्ते निकल गया. उस का दोस्त अजय यादव उस के पीछेपीछे बाइक से चल रहा था. सलड़ी गांव के पास पहुंचते ही एकांत जगह पा कर मनीष ने अजय के सहयोग से गले में गमछा लपेट कर अवतार की हत्या कर दी.

अवतार की हत्या करने के बाद मनीष और अजय ने उस के गले में पड़ी सोने की चेन और अंगुली से सोने की अंगूठी भी निकाल ली थी. इस के बाद मनीष ने गाड़ी में पैट्रोल छिड़क कर उसे आग के हवाले कर दिया. यह काम करने के बाद मनीष और अजय यादव उसी बाइक से हल्द्वानी की ओर आ गए. उस वक्त तक नीलम भी सिटी बस से रुद्रपुर चली गई थी.

योजना को अंजाम देने के बाद नीलम ने अगली सुबह ही रुद्रपुर जा कर पुलिस के सामने अपनी पीड़ा सुना दी. नीलम और मनीष इस कदर चालाक थे कि उन्होंने अवतार हत्याकांड को पूरी तरह से हादसा दिखा कर सारे सबूत खत्म करने की योजना बनाई थी. लेकिन पुलिस के सामने उन की योजना धरी की धरी रह गई. उन की असली योजना अवतार को गायब होना दिखाना था. लेकिन वह अपनी मंशा में पूरी तरह से असफल रहे.

पुलिस ने मनीष मिश्रा को भी गिरफ्तार कर लिया, जो इस वारदात को अंजाम देने के बाद से ही लापता हो गया था. पुलिस ने नीलम और उस के प्रेमी मनीष मिश्रा से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया था. जबकि पुलिस तीसरे अभियुक्त अजय यादव को तलाश कर रही थी. जो घटना वाले दिन से ही फरार हो गया था. कथा लिखने तक पुलिस मामले की तहकीकात कर रही थी कि इस हत्याकांड में कहीं और कोई तो शामिल नहीं था.

मौसेरे भाई बहन के घातक रिश्ते की डोर

कानपुर जनपद के टिक्कन-पुरवा के रहने वाले पुत्तीलाल मौर्या की बेटी कोमल शाम को नित्य क्रिया जाने की बात कह कर घर से निकली थी, लेकिन जब वह रात 8 बजे तक घर लौट कर नहीं आई तो घर वालों को चिंता  हुई. उस का फोन भी बंद था. इसलिए यह भी पता नहीं चल पा रहा था कि वह कहां है.

पुत्तीलाल की पत्नी शिवदेवी ने बेटी को इधर उधर ढूंढा लेकन वह नहीं मिली. इस के बाद पुत्तीलाल भी उसे तलाशने के लिए निकल गया. पर उस को पता नहीं लगा. पुत्तीलाल का घबराना लाजिमी था. अचानक आई इस आफत से उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. बेचैनी से शिवदेवी का हलक सूखने लगा तो वह पति से बोली, ‘‘कोमल हमारी इज्जत पर दाग लगा कर कहीं प्रमोद के साथ तो नहीं भाग गई?’’

‘‘कैसी बातें करती हो, शुभशुभ बोलो. फिर भी तुम्हें शंका है तो चल कर देख लेते हैं.’’

इस के बाद पुत्तीलाल अपनी पत्नी के साथ प्रमोद के पिता रामसिंह मौर्या के घर जा पहुंचे जो पास में ही रहता था. वैसे रामसिंह रिश्ते में पुत्तीलाल का साढ़ू था. उस समय रात के 10 बज रहे थे. रामसिंह पड़ोस के लोगों के साथ अपने चबूतरे पर बैठा था.

पुत्तीलाल को देखा तो उस ने पूछा, ‘‘पुत्तीलाल, इतनी रात गए पत्नी के साथ. सब कुशल मंगल तो है.’’

‘‘कुछ भी ठीक नहीं है भैया. कोमल शाम से गायब है. उस का कुछ पता नहीं चल रहा. मैं आप से यह जानकारी करने आया हूं कि प्रमोद घर पर है या नहीं?’’ पुत्तीलाल बोला.

‘‘प्रमोद भी घर पर नहीं है. उस का फोन भी बंद है. शाम 7 बजे वह पान मसाला लेने जाने की बात कह कर घर से निकला था. तब से वह घर वापस नहीं आया. इस का मतलब प्रमोद और कोमल साथ हैं.’’ रामसिंह ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘हां, भैया मुझे भी ऐसा ही लगता है. उन्हें अब ढूंढो. कहीं ऐसा न हो कि दोनों कोई ऊंचनीच कदम उठा लें, जिस से हम दोनों की बदनामी हो.’’ इस के बाद दोनों मिल कर प्रमोद और कोमल को खोजने लगे. उन्होंने बस अड्डा, रेलवे स्टेशन के अलावा हर संभावित जगह पर दोनों को ढूंढा. लेकिन उन का कुछ भी पता नहीं चला. यह बात 27 मार्च, 2019 की है.

28 मार्च, 2019 की सुबह गांव की कुछ महिलाएं जंगल की तरफ गईं तो उन्होंने गांव के बाहर शीशम के पेड़ से फंदा से लटके 2 शव देखे. यह देख कर महिलाएं भाग कर घर आईं और यह बात लोगों को बता दी. इस के बाद तो टिक्कनपुरवा गांव में कोहराम मच गया. जिस ने सुना, वही शीशम के पेड़ की ओर दौड़ पड़ा. सूरज की पौ फटतेफटते वहां सैकड़ों की भीड़ जुट गई. पेड़ से लटकी लाशें कोमल और प्रमोद की थीं.

चूंकि कोमल और प्रमोद बीतीरात से घर से गायब थे. अत: दोनों के परिजन भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पेड़ से लटके अपने बच्चों के शवों को देखते ही वे दहाड़ें मार कर रो पड़े. कोमल की मां शिवदेवी तथा प्रमोद की मां मंजू रोते बिलखते अर्धमूर्छित हो गईं.

घटनास्थल पर प्रमोद का भाई पंकज भी मौजूद था. वह सुबक तो रहा था, लेकिन यह भी देख रहा था कि दोनों मृतकों के पैर जमीन छू रहे हैं. वह हैरान था कि जब पैर जमीन छू रहे हैं तो उन की मौत भला कैसे हो गई.

उसे लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि प्रमोद को कोमल के घर वालों ने मार कर पेड़ से लटका दिया है. पंकज ने यह बात अपने घर वालों को बताई तो उन्हें पंकज की बात सच लगी. इस से घर वालों में उत्तेजना फैल गई. गांव के लोग भी खुसरफुसर करने लगे.

इसी बीच किसी ने बिठूर थाने में फोन कर के पेड़ से 2 शव लटके होने की जानकारी दे दी. सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी सुधीर कुमार पवार कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. पवार ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

उन्होंने देखा कि प्लास्टिक के मजबूत फीते को पेड़ की डाल में लपेटा गया था फिर उस फीते के एकएक सिरे को गले में बांध कर दोनों फांसी पर झूल गए थे. लेकिन उन के पैर जमीन को छू रहे थे. उन के होंठ भी काले पड़ गए थे. कोमल के पैरों में चप्पलें थीं, जबकि प्रमोद के पैर की एक चप्पल जमीन पर पड़ी थी. घटनास्थल पर बालों में लगाने वाली डाई का पैकेट, एक ब्लेड तथा मोबाइल पड़ा था. इन सभी चीजों को पुलिस ने जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लिया.

सुधीर कुमार ने फोरैंसिक टीम को मौके पर बुलाए बिना दोनों शवों को चादर में लपेट कर मंधनाबिठूर मार्ग पर रखवा दिया और शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजने हेतु लोडर मंगवा लिया.

मृतक प्रमोद के भाई पंकज व अन्य लोगों ने आरोप लगाया कि यह आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का मामला है. इसलिए मृतक के भाई पंकज ने हत्या का आरोप लगा कर थानाप्रभारी सुधीर कुमार पवार से कहा कि वे मौके पर फोरैंसिक व डौग स्क्वायड टीम को बुलाएं. लेकिन पंकज की बात सुन कर थानाप्रभारी सुधीर कुमार की त्योरी चढ़ गईं. उन्होंने पंकज और उस के घर वालों को डांट दिया.

थानाप्रभारी की इस बदसलूकी से मृतक के परिजन व ग्रामीण भड़क उठे और पुलिस से उलझ गए. उन्होंने पुलिस से दोनों शव छीन लिए और पथराव कर लोडर को भी क्षतिग्रस्त कर दिया.

इतना ही नहीं, ग्रामीणों ने मंधनाबिठूर मार्ग पर जाम लगा दिया और हंगामा करने लगे. उन्होंने मांग रखी कि जब तक क्षेत्रीय विधायक व पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर नहीं आ जाते तब तक शवों को नहीं उठने नहीं देंगे.

आक्रोशित ग्रामीणों को देख कर थानाप्रभारी पवार ने पुलिस अधिकारियों तथा क्षेत्रीय विधायक को सूचना दे दी. सूचना पाते ही एडिशनल एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजय कुमार घटनास्थल पर आ गए. तनाव को देखते हुए उन्होंने आधा दरजन थानों की फोर्स बुला ली.

सीओ अजय कुमार ने मृतक प्रमोद के भाई पंकज से बात की. पंकज ने हाथ जोड़ कर फोरैंसिक टीम व डौग स्क्वायड टीम को घटनास्थल पर बुलाने की विनती की ताकि वहां से कुछ सबूत बरामद हो सकें. इस के अलावा उस ने थानाप्रभारी द्वारा की गई बदसलूकी की भी शिकायत की.

इसी बीच क्षेत्रीय विधायक अभिजीत सिंह सांगा भी वहां आ गए. उन के आते ही ग्रामीणों में जोश भर गया और वह पुलिस विरोधी नारे लगाने लगे. विधायक के समक्ष उन्होंने मांग रखी कि बदसलूकी करने वाले थानाप्रभारी पवार को तत्काल थाने से हटाया जाए तथा मौके पर फोरैंसिक टीम को बुला कर जांच कराई जाए.

अभिजीत सिंह सांगा बिठूर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के चर्चित विधायक हैं. उन्होंने ग्रामीणों को समझाया और उन की मांगें पूरी करवाने का आश्वासन दिया तो लोग शांत हुए.

इस के बाद उन्होंने धरना प्रदर्शन बंद कर जाम खोलवा दिया. तभी सीओ अजय कुमार ने फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड टीम को बुलवा लिया. यही नहीं उन्होंने आननफानन में जरूरी काररवाई करा कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया.

फोरैंसिक टीम ने एक घंटे तक घटनास्थल पर जांच कर के साक्ष्य जुटाए. वहीं डौग स्क्वायड ने भी खानापूर्ति की. खोजी कुत्ता कुछ देर तक घटनास्थल के आसपास घूमता रहा फिर पास ही बह रहे नाले तक गया. वहां टीम को एक चप्पल मिली. यह चप्पल मृतक प्रमोद की थी. उस की एक चप्पल पुलिस घटनास्थल से पहले ही बरामद कर चुकी थी.

एडिशनल एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन ने बवाल की आशंका को देखते हुए टिक्कनपुरवा  गांव में भारी मात्रा में पुलिस फोर्स तैनात कर दी थी. इतना ही नहीं पोस्टमार्टम हाउस पर भी पुलिस तैनात कर दी. प्रमोद व कोमल के शव का पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल ने किया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि उन की मौत हैंगिंग से हुई थी. रिपोर्ट में डाई पीने की पुष्टि नहीं हुई. पोस्टमार्टम के बाद कोमल व प्रमोद के शव उन के परिजनों को सौंप दिए गए. परिजनों ने अलगअलग स्थान पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया.

प्रमोद और कोमल कौन थे और उन्होंने एक साथ आत्महत्या क्यों की, यह जानने के लिए हमें उन के अतीत में जाना होगा.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर से 25 किलोमीटर दूर एक धार्मिक कस्बा है बिठूर. टिक्कनपुरवा इसी कस्बे से सटा हुआ गांव है. यह बिठूर मंधना मार्ग पर स्थित है. इसी गांव में पुत्तीलाल मौर्या अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शिवदेवी के अलावा 4 बेटियां थीं. इन में कोमल सब से बड़ी थी. पुत्तीलाल खेतीबाड़ी कर के अपने परिवार का भरण पोषण करता था.

टिक्कनपुरवा गांव में ही शिवदेवी की चचेरी बहन मंजू ब्याही थी. मंजू का पति रामसिंह मौर्या दबंग किसान था. उस के पास खेती की काफी जमीन थी. रामसिंह के 2 बेटे प्रमोद व पंकज के अलावा एक बेटी थी. प्रमोद पढ़ालिखा था. वह कल्याणपुर स्थित एक बिल्डर्स के यहां बतौर सुपरवाइजर नौकरी करता था. जबकि पंकज कास्मेटिक सामान की फेरी लगाता था.

चूंकि रामसिंह व पुत्तीलाल के बीच नजदीकी रिश्ता था. अत: दोनों परिवारों में खूब पटती थी. उनके बच्चों का भी एक दूसरे के घर बेरोकटोक आना जाना था. जरूरत पड़ने पर दोनों परिवार एक दूसरे के सुखदुख में भी भागीदार बनते थे. पुत्तीलाल को जब भी आर्थिक संकट आता था, रामसिंह उस की मदद कर देता था.

कोमल ने आठवीं पास करने के बाद सिलाई सीख ली थी. वह घर में ही सिलाई का काम करने लगी थी. 18 साल की कोमल अब समझदार हो चुकी थी. वह घर के कामों में मां का हाथ भी बंटाती थी. प्रमोद अकसर अपनी मौसी शिवदेवी के घर आता रहता था. कोमल से उस की खूब पटती थी, क्योंकि दोनों हमउम्र थे. बचपन से दोनों साथ खेले थे, इसलिए एकदूसरे से खूब घुलेमिले हुए थे.

दोनों भाईबहन जरूर थे लेकिन वह जिस उम्र से गुजर रहे थे, उस उम्र में यदि संयम और समझदारी से काम न लिया जाए तो रिश्तों को कलंकित होने में देर नहीं लगती. कह सकते हैं कि अब प्रमोद का कोमल को देखने का नजरिया बदल गया था. वह उसे चाहने लगा था.

लेकिन जब उसे अपने रिश्ते का ध्यान आता तो वह मन को निंयत्रित करने की कोशिश करता. प्रमोद ने बहुत कोशिश की कि वह रिश्ते की मर्यादा बनाए रखे लेकिन दिल के मामले में उस का वश नहीं चला. वह कोशिश कर के हार गया, क्योंकि वह कोमल को चाहने लगा था.

दरअसल, कोमल के दीदार से उस के दिल को सुकून मिलता था और आंखों को ठंडक. दिन में जब तक वह 1-2 बार कोमल से मिल नहीं लेता, बेचैन सा रहता था. वह चाहता था कि कोमल हर वक्त उस के साथ रहे. लेकिन कोमल का साथ पाने की उस की इच्छा पूरी नहीं हो सकती थी.

काफी सोचविचार के बाद प्रमोद ने फैसला किया कि वह कोमल से अपने दिल की बात जरूर कहेगा. कोमल की वजह से प्रमोद अकसर मौसी के घर पड़ा रहता था. बराबर उस के संपर्क में रहने के कारण कोमल भी उस के आकर्षणपाश में बंध गई थी.

एक दिन कोमल अपने कमरे मे बैठी सिलाई कर रही थी कि तभी प्रमोद आ गया. वह मन में ठान कर आया था कि कोमल से अपने दिल की बात जरूर कहेगा. वह उस के पास बैठते हुए बोला, ‘‘कोमल, आज मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या कहना चाहते हो बताओ?’’ कोमल ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मुझे डर है कि तुम मेरी बात सुन कर नाराज न हो जाओ.’’ प्रमोद बोला.

‘‘पता तो चले, ऐसी क्या बात है, जिसे कहने से तुम इतना डर रहे हो.’’

‘‘कोमल, बात दरअसल यह है कि मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. क्या तुम मेरे प्यार को स्वीकार करोगी?’’ प्रमोद ने कोमल का हाथ अपने हाथ में लेकर एक ही झटके में बोल दिया.

‘‘क्या…?’’ सुन कर कोमल चौंक पड़ी, उसे एकाएक अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ.

‘‘हां कोमल, मैं सही कह रहा हूं. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘प्रमोद तुम ये कैसी बातें कर रहे हो? तुम अच्छी तरह जानते हो कि हमारे बीच भाईबहन का रिश्ता है.’’

‘‘कोमल, मैं ने कभी भी तुम्हें बहन की नजर से नहीं देखा. मुझे अपने प्यार की भीख दे दो. मैं तुम्हारे लिए पूरी दुनिया से लड़ जाऊंगा.’’ उस ने मिन्नत की.

‘‘हम घर परिवार व समाज की नजर में भाईबहन हैं. जब लोगों को पता चलेगा तो जानते हो क्या होगा? तुम किसकिस से लड़ोगे?’’

‘‘मुझे किसी की फिक्र नहीं है.  बस, तुम मेरा साथ दो. तुम इस बारे में ठंडे दिमाग से सोच लो. कल सुबह मुझे कंपनी के काम से लखनऊ जाना है. शाम तक लौट आऊंगा. तब तक तुम सोच लेना और मुझे जवाब दे देना.’’ कह कर प्रमोद कमरे से बाहर चला गया.

रात को खाना खाने के बाद कोमल जब बिस्तर पर लेटी तो नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उस के कानों में प्रमोद के शब्द गूंज रहे थे. उसने अपने दिल में झांकने की कोशिश की तो उसे लगा कि वह भी जाने अनजाने में प्रमोद से प्यार करती है. लेकिन भाईबहन के रिश्ते के डर से प्यार का इजहार नहीं कर पा रही है.

उस ने सोचा कि जब प्रमोद प्यार की बात कर रहा है तो उसे भी पीछे नहीं हटना चाहिए. जिंदगी में सच्चा प्यार हर किसी को नहीं मिलता. ऐसे में वह प्रमोद के प्यार को क्यों ठुकराए? काफी सोचविचार कर उस ने आखिर फैसला ले ही लिया.

अगले दिन सुबह कोमल के लिए कुछ अलग ही थी. वह प्रमोद के प्यार में डूबी हुई, खोईखोई सी थी. लेकिन घर में किसी को भनक तक नहीं लगी कि उस के दिमाग में क्या चल रहा है. अब वह प्रमोद के लौटने का बेसब्री से इंतजार करने लगी. प्रमोद रात को लगभग 8 बजे घर लौटा और घर के लोगों से मिल कर सीधा कोमल के कमरे में पहुंच गया. उस ने आते ही कोमल से पूछा, ‘‘कोमल, जल्दी बताओ तुम ने क्या फैसला लिया?’’

‘‘प्रमोद, मैं ने रात भर काफी सोचा और फैसला लिया कि…’’ कोमल ने अपनी बात बीच में ही रोक दी.

यह देख प्रमोद के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. वह उत्सुकतावश कोमल का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘बोलो कोमल, मेरी जिंदगी तुम्हारे फैसले पर टिकी है. तुम्हारे इस तरह चुप हो जाने से मेरा दिल बैठा जा रहा है.’’

प्रमोद की हालत देख कर कोमल एकाएक खिलखिला कर हंस पड़ी. उसे इस तरह हंसते देख प्रमोद ने उस की ओर सवालिया निगाहों से देखा तो वह बोली, ‘‘मेरा फैसला तुम्हारे हक में है.’’

यह सुन कर प्रमोद खुशी से झूम उठा और उस ने कोमल को बांहों में भर लिया. कोमल खुद को उस से छुड़ाते हुए बोली, ‘‘अपने ऊपर काबू रखो, अगर किसी ने हमें इस तरह देख लिया तो कयामत आ जाएगी. हमारा प्यार शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगा.’’

‘‘ठीक है, लेकिन लोगों की नजर में हम भाईबहन हैं, इसलिए वे हमारी शादी नहीं होने देंगे.’’

‘‘हमारी शादी जरूर होगी और कोई भी हमें नहीं रोक पाएगा. लेकिन यह तो बाद की बात है. वैसे एक बात बताऊं कि हमारे बीच जो भाईबहन का रिश्ता है, यह एक तरह से अच्छा ही है. इस से हम पर कोई जल्दी शक नहीं करेगा.’’ प्रमोद मुसकराते हुए बोला.

कोमल भी प्रमोद की बात से सहमत हो गई ओैर फिर उस दिन से दोनों का प्यार परवान  चढ़ने लगा. समय निकाल कर दोनों धार्मिक स्थल बिठूर घूमने पहुंच जाते फिर नाव मेें बैठ कर गंगा की लहरों के बीच अठखेलियां करते. कभीकभी दोनों फिल्म देखने के लिए कानपुर चले जाते थे.

प्रमोद और कोमल मौसेरे भाईबहन थे. ऐसे में उन के बीच जो कुछ भी चल रहा था उसे प्यार नहीं कहा जा सकता था. दोनों बालिग थे, इसलिए इसे नासमझी भी नहीं समझा जा सकता था. कहा जा सकता था. बहरहाल उन के बीच पक रही खिचड़ी की खुशबू बाहर पहुंची तो लोग उन्हें शक की नजरों से देखने लगे और तरह तरह की बातें करने  लगे.

धीरेधीरे यह खबर दोनों के घर वालों तक पहुंच गई. सच्चाई का पता लगते ही दोनों घरों में कोहराम मच गया. परिवार के लोगों ने एक साथ बैठ कर दोनों को समझाया.

रिश्ते की दुहाई दी . लेकिन उन दोनों पर कोई असर नहीं हुआ. हालाकि घर वालों के सामने दोनों ने उन की हां में हां मिलाई और एकदूसरे से न मिलने का वादा किया. उस वादे को दोनों ने कुछ दिनों तक निभाया भी, लेकिन बाद में दोनों फिर मिलने लगे.

यह देख कर पुत्तीलाल व उस की पत्नी शिवदेवी ने कोमल पर सख्ती की और उस का घर से निकलना बंद कर दिया. यही नहीं उन्होंने प्रमोद के अपने घर आने पर भी प्रतिबंध लगा दिया. इस से प्रमोद और कोमल का मिलनाजुलना एकदम बंद हो गया. दोनों के पास मोबाइल फोन थे अत: जब भी मौका मिलता मोबाइल पर बातें कर के अपनेअपने मन की बात कह देते.

इधर रामसिंह और पुत्तीलाल व उन की पत्नियों ने इस समस्या से निजात पाने के लिए गहन विचारविमर्श किया. विचारविमर्श के बाद तय हुआ कि दोनों की शादी कर दी जाए. शादी हो जाएगी तो समस्या भी हल हो जाएगी. कोमल अपनी ससुराल चली जाएगी तो प्रमोद भी बीवी के प्यार में बंध कर कोमल को भूल जाएगा.

इस के बाद रामसिंह प्रमोद के लिए तो पुत्तीलाल कोमल के लिए रिश्ता ढूंढ़ने लगे. रामसिंह को जल्द ही सफलता मिल गई. दरअसल उस के गांव का एक परिवार गुजरात के जाम नगर में बस गया था, जो उस की जातिबिरादरी का था. होली के मौके पर वह परिवार गांव आया था. इसी परिवार की लड़की से रामसिंह ने प्रमोद का रिश्ता तय कर दिया. 7 मई को तिलक तथा 12 मई को शादी की तारीख तय हो गई.

यद्यपि प्रमोद इस रिश्ते के खिलाफ था लेकिन घर वालों के आगे उस की एक नहीं चली. प्रमोद के रिश्ते की बात कोमल को पता चली तो उसे सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं हुआ. सच्चाई जानने के लिए कोमल ने घर वालों से छिप कर प्रमोद से मुलाकात की और पूछा, ‘‘प्रमोद, तुम्हारा रिश्ता तय हो जाने के बारे में मैं ने जो कुछ सुना है, क्या वह सच है?’’

‘‘हां, कोमल, तुम ने जो सुना है वह बिलकुल सच है. घर वालों ने मेरी मरजी के बिना रिश्ता तय कर दिया है.’’  प्रमोद ने बताया.

प्रमोद की बात सुन कर कोमल ने नाराजगी जताई और याद दिलाया, ‘‘प्रमोद तुम ने तो जीवन भर साथ रहने का वादा किया था. अब क्या हुआ. तुम्हारे उस वादे का?’’

इस पर प्रमोद ने उस से कहा कि वह अपने वादे को नहीं भूला है. उस के अलावा वह किसी और को अपनी जिंदगी नहीं बना सकता.

‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी.’’ कह कर कोमल उसके गले लग गई. फिर वह वापस घर आ गई.

इधर पुत्तीलाल ने भी कोमल का रिश्ता उन्नाव जिले के परियर सफीपुर निवासी विनोद के साथ तय कर दिया था. गुपचुप तरीके से पुत्तीलाल ने कोमल को दिखला भी दिया था. विनोद और उस के घर वाले कोमल को पसंद कर चुके थे. गोदभराई की तारीख 28 मार्च तय हो गई थी.

एक दिन कोमल ने अपने रिश्ते के संबंध में मांबाप की खुसुरफुसुर सुनी तो उस का माथा ठनका. उस से नहीं रहा गया तो उस ने मां से पूछ लिया. ‘‘मां, तुम पिताजी से किस के रिश्ते की खुसुरफुसुर कर रही थीं?’’

‘‘तेरे रिश्ते की. मैं ने तेरा रिश्ता परियर सफीपुर गांव के विनोद के साथ कर दिया है. 28 मार्च को तेरी गोद भराई है.’’ शिवदेवी बोली.

कोमल रोआंसी हो कर बोली, ‘‘मां आप ने मुझ से पूछे बिना ही मेरा रिश्ता तय कर दिया. जबकि आप जानती हैं कि मैं प्रमोद से प्यार करती हूं और उसी से शादी करना चाहती हूं.’’

‘‘मुझे पता है कि तू रिश्ते को कलंकित करना चाहती है. पर मैं अपने जीते जी ऐसा होने नहीं दूंगी. इसलिए तेरा रिश्ता पक्का कर दिया है. वेसे भी जिस प्रमोद से तू शादी करने की बात कह रही है. उस का भी रिश्ता तय हो चुका है. इसलिए मेरी बात मान और पुरानी बातों को भूल कर इस रिश्ते को स्वीकार कर ले.’’

कोमल मन ही मन बुदबुदाई कि मां यह तो समय ही बताएगा कि तुम्हारी बेटी दुलहन बनती है या फिर उस की अर्थी उठती है. फिर वह कमरे में चली गई और इस गंभीर समस्या के निदान के लिए मंथन करने लगी. मंथन करतेकरते उस ने सारी रात बिता दी लेकिन कोई हल नहीं निकला. आखिर उसने प्रमोद से मिल कर समस्या का हल निकालने की सोची.

दूसरे रोज कोमल ने किसी तरह प्रमोद से मुलाकात की और कहा, ‘‘प्रमोद मेरे घर वालों ने भी मेरी शादी तय कर दी है और 28 मार्च को गोदभराई है. लेकिन मैं इस शादी के खिलाफ हूं. क्योंकि मैं ने जो वादा किया है, वह जरूर निभाऊंगी. प्रमोद मैं आज भी कह रही हूं कि तुम्हारे अलावा किसी अन्य की दुलहन नहीं बनूंगी.

कोमल और प्रमोद किसी भी तरह एकदूसरे से जुदा नहीं होना चाहते थे. अत: दोनों ने सिर से सिर जोड़ कर इस गंभीर समस्या का मंथन किया. हल यह निकला कि दोनों के घर वाले इस जनम में उन्हें एक नहीं होने देंगे. इसलिए दोनों मर कर दूसरे जनम में फिर मिलेंगे. यानी दोनों ने साथसाथ आत्महत्या करने का फैसला कर लिया.

उन्होंने अपने घर वालों तक को यह आभास नहीं होने दिया कि वे कौन सा भयानक कदम उठाने जा रहे हैं.

27 मार्च, 2019 की दोपहर प्रमोद कस्बा बिठूर गया. वहां एक दुकान से उस ने बालों पर कलर करने वाली डाई के 2 पैकेट तथा एक ब्लेड खरीदा और घर वापस आ गया. शाम 7 बजे उस ने घर वालों से कहा कि वह पान मसाला लेने जा रहा है. कुछ देर में आ जाएगा. गांव के बाहर निकल कर उस ने कोमल को  फोन किया कि वह नाले के पास आ जाए. वह उस का वही इंतजार कर रहा है.

कोमल की दूसरे रोज यानी 28 मार्च को गोदभराई थी. वह गोदभराई नहीं कराना चाहती थी, इसलिए वह शौच के बहाने घर से निकली और गांव के बाहर बह रहे नाले के पास जा पहुंची.

प्रमोद वहां पहले से ही उस का इंतजार कर रहा था. कोमल को साथ ले कर उस ने नाला पार किया. नाला पार करते समय उस की एक चप्पल टूट गई. इस के बाद दोनों शीशम के पेड़ के पास पहुंचे.

वहां बैठ कर दोनों ने कुछ देर बातें कीं. फिर प्रमोद ने जेब से डाई के पैकेट निकाले. उस ने एक पैकेट को ब्लेड से काट कर खोला. उन का मानना था कि डाई में भी जहरीला कैमिकल होता है. इसे पीकर दोनों अत्महत्या कर लेंगे लेकिन डाई को घोलने के लिए उन के पास न पानी था और न गिलास. अत: दोनों ने सूखी डाई फांकने का प्रयास किया. जिस से डाई उन के होंठों पर लग गई.

उसी समय प्रमोद की निगाह प्लास्टिक के फीते पर पड़ी जो सामने के खेत के चारों ओर बंधा था. प्रमोद ब्लेड से फीते को काट लाया. उस ने पेड़ पर चढ़ कर डाल में फीते को राउंड में लपेट दिया. इस के बाद उस ने फीते के दोनों सिरों पर फंदे बना दिए.

फिर एकएक फंदे में गरदन डाल कर दोनों झूल गए. कुछ देर बाद गला कसने से दोनों की मौत हो गई. मृतकों के शरीर के भार से प्लास्टिक का फीता खिंच गया, जिस से दोनों के पैर जमीन को छूने लगे थे.

28 मार्च, 2019 की सुबह जब गांव की कुछ औरतें नाले की तरफ गईं तो उन्होंने दोनों को शीशम के पेड़ से लटके देखा. उन की सूचना पर ही गांव वाले मौके पर पहुंचे.

चूंकि मृतकों के परिजनों ने पुलिस को कोई तहरीर नहीं दी. इसलिए पुलिस ने कोई मामला दर्ज नहीं किया. इस के अलावा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया कि प्रमोद और कोमल ने आत्महत्या की थी. अत: पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी. लेकिन लापरवाही बरतने के आरोप में एडिशनल एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन ने थानाप्रभारी सुधीर कुमार पवार को लाइन हाजिर कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दोस्ती की अधूरी कहानी : एकतरफा प्यार में प्रेमिका की हत्या

बीते 6 मार्च की सुबह की बात है. होटल माही-7 के रूम अटेंडेंट ने कमरा नंबर 107 के दरवाजे की कुंडी खटखटाई. लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई. उस ने 1-2 बार फिर कुंडी बजाई. फिर भी कमरे के अंदर कोई हलचल सुनाई नहीं दी.

परेशान हो कर रूम अटेंडेंट ने होटल के रिसैप्शन पर जा कर मैनेजर और अन्य कर्मचारियों को यह बात बताई. इस पर होटल के कर्मचारियों ने उस कमरे के बाहर पहुंच कर कई बार कुंडी खटखटाई. साथ ही तेज स्वर में आवाजें भी दीं. लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आया. कर्मचारी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर बात क्या है.

होटल कर्मचारियों ने खिड़की से अंदर झांक कर देखा तो उन्हें मामला कुछ गड़बड़ नजर आया. कमरे में ठहरा हुआ दिव्यांग युवक ओमप्रकाश जाखड़ फर्श पर पड़ा था. होटल कर्मचारी ओमप्रकाश जाखड़ को जानते थे. लग रहा था जैसे वह अचेत हो. कमरे में बैड पर एक युवती पड़ी दिख रही थी. खिड़की से देखने पर न तो युवक में कोई हलचल नजर आ रही थी और न ही युवती में. होटल कर्मचारियों ने इस बारे में पुलिस को सूचना देना मुनासिब समझा.

फोन पर मिली सूचना के आधार पर पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने होटल के कमरे का दरवाजा खुलवाया. कमरे के अंदर बैड पर एक युवती पड़ी थी, जिस का मुंह कंबल से ढका हुआ था. गले पर गहरे निशान थे. साथ ही गले में कपड़ा भी बंधा हुआ था. उस की सांसें थम चुकी थीं.

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पुलिस अधिकारियों ने उस की नब्ज देखी, लेकिन उस में जीवन के लक्षण नजर नहीं आए. लग रहा था कि वह घंटों पहले मरी होगी. मौके के हालात से यह स्पष्ट नहीं हो रहा था कि युवती के साथ दुष्कर्म या सहवास तो नहीं हुआ था.

कमरे में फर्श पर पड़े दिव्यांग युवक ओमप्रकाश जाखड़ की सांसें चल रही थीं, वह अचेत था. पुलिस अधिकारियों ने ओमप्रकाश को तत्काल अस्पताल भिजवाया. युवती के शव को भी पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया. होटल के कमरे में युवती का शव और बेहोश युवक मिलने की बात सुन कर बड़ी संख्या में आसपास के लोग एकत्र हो गए. पुलिस ने होटल के कमरे की तलाशी ली. तलाशी में युवक युवती के शैक्षणिक दस्तावेज और 2-3 जोड़ी कपड़े मिले.

इस के अलावा सब्जियों पर छिड़कने वाला जहरीला कैमिकल भी मिला. इस से अंदाजा लगाया गया कि युवक ने जहरीला कैमिकल खा लिया होगा, जिस से वह अचेत हो गया था. यह बात साफ नहीं हो सकी कि युवती ने भी जहरीला कैमिकल खाया था या नहीं.

होटल वाले ओमप्रकाश को पहचानते थे, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि वह कहां का रहने वाला है. वहां मिले दस्तावेजों के आधार पर पता चला कि ओमप्रकाश जाखड़ सीकर में दासा की ढाणी निवासी हरलाल जाखड़ का बेटा था. युवती का नाम कल्पना (बदला हुआ नाम) था. वह भी सीकर की रहने वाली थी.

पुलिस ने होटल कर्मचारियों से युवक युवती के ठहरने के संबंध में पूछताछ की. पता चला कि ओमप्रकाश इसी होटल के पास डीजे की दुकान चलाता था. इसलिए होटल मालिक और होटल के सभी कर्मचारी उसे खूब अच्छी तरह जानते थे.

वह उस युवती के साथ 5 मार्च की शाम को अपने दोस्त श्रवण के साथ अर्टिगा कार से होटल आया था. होटल के कर्मचारियों ने उसे ठहरने के लिए कमरा नंबर 107 दिया था.

कमरे में ठहरने के बाद ओमप्रकाश ने अपने दोस्त श्रवण से बातें की थीं. बाद में उस ने अपने बिजनैस पार्टनर मनोज को बुला कर उस से भी कुछ बातें की थीं. मनोज को उस ने करीब 70 हजार रुपए भी दिए थे. 1-2 अन्य लोगों से भी उस ने मुलाकात की थी.

6 मार्च की सुबह करीब 7 बजे ओमप्रकाश ने अपने कमरे में चाय मंगा कर पी थी. बाद में उस ने अपने दोस्त श्रवण को होटल बुलाया. होटल से श्रवण और ओमप्रकाश कहीं गए थे. कुछ देर बाद दोनों वापस लौट आए थे. आपस में कुछ बातें करने के बाद ओमप्रकाश होटल के कमरे में चला गया और श्रवण वहां से लौट गया था.

काफी देर बाद जब होटल कर्मचारियों ने ओमप्रकाश के कमरे के दरवाजे की कुंडी खटखटाई तो अंदर से कोई हलचल सुनाई नहीं दी. इस पर पुलिस को सूचना दे दी गई थी. पूछताछ में यह बात सामने आई कि होटल में ठहरे ओमप्रकाश और कल्पना के बीच कई साल से प्रेम संबंध थे.

यह घटना राजस्थान के सीकर की है. होटल माही-7 जयपुर-झुंझुनू रोड पर है. कल्पना की मौत का पता चलने पर उस के घर वाले भी होटल पहुंच गए. कल्पना का शव देख कर उस का भाई गश खा कर जमीन पर गिर गया. वहां मौजूद लोगों ने उसे संभाला. काफी देर बाद वह होश में आया.

घर वालों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने एक दिन पहले यानी 5 मार्च को उद्योग नगर थाने में कल्पना की गुमशुदगी की सूचना दी थी. उस के परिजनों ने होटल मालिकों और कर्मचारियों पर संदेह जताते हुए पुलिस को बताया वे 5 मार्च की शाम को होटल आए थे और होटल में ओमप्रकाश की स्कूटी खड़ी देखी थी. स्कूटी वहां खड़ी देख कर उन्होंने कल्पना और ओमप्रकाश के बारे में पूछताछ की थी, लेकिन होटल वालों ने कहा था कि यहां कोई नहीं ठहरा है.

होटल में शव मिलने पर कल्पना के घर वालों ने थाना उद्योग नगर में दिव्यांग ओमप्रकाश जाखड़, होटल संचालक मनफूल जाखड़, अरविंद, सोनू जाखड़ और अन्य लोगों के खिलाफ अपहरण, सामूहिक ज्यादती और हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

परिजनों ने पुलिस को बताया कि एमए फाइनल में पढ़ने वाली कल्पना पड़ोस में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने जाती थी. वह 5 मार्च की शाम को भी घर से स्कूटी पर ट्यूशन पढ़ाने के लिए निकली थी, लेकिन वापस घर नहीं लौटी तो उन्होंने पुलिस में गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

उन्होंने पुलिस को यह भी बताया कि करीब 6 महीने पहले कल्पना ने उन्हें बताया था कि ओमप्रकाश उसे फोन कर परेशान करता है. इस पर घर वालों ने ओमप्रकाश को समझाया था. इस के बावजूद ओमप्रकाश ने कहा था कि एक दिन वह कल्पना को उठा ले जाएगा. लेकिन कल्पना के घर वालों ने इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था. ओमप्रकाश कई साल पहले 8वीं कक्षा में कल्पना के साथ पढ़ा था.

उधर अचेत अवस्था में अस्पताल में भरती कराए गए दिव्यांग ओमप्रकाश की हालत नाजुक बनी हुई थी, इसलिए डाक्टरों ने सीकर से उसे जयपुर रैफर कर दिया.

कल्पना के परिजनों ने शव का पोस्टमार्टम मैडिकल बोर्ड से कराने और आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग करते हुए शव लेने से इनकार कर दिया. करीब 7 घंटे तक चली समझाइश में पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ जल्द काररवाई का आश्वासन दिया. इस के बाद पोस्टमार्टम करवा कर कल्पना का शव उस के परिजनों को सौंपा गया.

इस दौरान पुलिस ने होटल के कमरे से घटना से संबंधित तथ्य जुटाए. प्रारंभिक जांच पड़ताल के साथसाथ होटल के सीसीटीवी कैमरों की डीवीआर जब्त कर ली गई. होटल के 2 कर्मचारियों को भी पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया. पुलिस को होटल परिसर में दिव्यांग युवक ओमप्रकाश की स्कूटी भी खड़ी मिल गई.

पुलिस ने जो जांचपड़ताल शुरू की, लेकिन जांच से कई सवाल ऐसे उठे, जिन के जवाब मिलने पर ही जांच आगे बढ़ सकती थी. पहला सवाल तो यह था कि जब होटल के पास ही ओमप्रकाश की डीजे की दुकान थी, तो उसे युवती के साथ होटल वालों ने कमरा कैसे और किस आधार पर दिया.

दूसरे कमरे में ओमप्रकाश को जहरीला पदार्थ किस ने दिया और कब ला कर दिया. युवती का ओमप्रकाश से संपर्क कैसे और कब हुआ और वह घर से होटल तक कैसे पहुंची.

ओमप्रकाश दिव्यांग था, उसे उतारने चढ़ाने के लिए आमतौर पर किसी के सहारे की जरूरत पड़ती थी. फिर उस ने युवती की हत्या कैसे की होगी.

इन सवालों के जवाब पुलिस को ओमप्रकाश से ही मिल सकते थे, लेकिन दूसरे दिन 7 मार्च को अस्पताल में उस की मौत हो गई. हालांकि इस से पहले 6 मार्च की शाम को कुछ देर होश में आने पर उस ने पुलिस को बयान दे दिए थे. इन बयानों में उस ने कल्पना की हत्या की बात स्वीकार की थी. ओमप्रकाश ने भले ही पुलिस को बयान दे दिए थे, लेकिन विस्तृत पूछताछ नहीं होने से कई सवालों के जवाब पुलिस को अभी नहीं मिल सके थे.

अपने बयानों में ओमप्रकाश ने बताया कि वह कल्पना से प्रेम करता था और उस से शादी करना चाहता था. इस के लिए उस ने दासा की ढाणी के रहने वाले अपने दोस्त श्रवण के साथ मिल कर योजना बनाई थी. लेकिन कल्पना शादी के लिए तैयार नहीं थी.

कल्पना को समझाने के लिए वह उस के साथ होटल आ कर वहां ठहरा था. कल्पना के शादी से इनकार करने की बात पर दोनों के बीच काफी देर बहस चलती रही. इस बीच दोनों में झगड़ा हो गया. इस से वह तनाव में आ गया.

वह काफी देर तक सोचता रहा. कल्पना भी होटल के कमरे में बैड पर पड़ी रोती रही. आधी रात के बाद ओमप्रकाश ने होटल के कमरे में बैड पर बिछी बैडशीट को फाड़ कर अपने हाथों से कल्पना का गला घोंट दिया. वह तब तक उस के गले को दबाए रहा, जब तक उस की आंखें बाहर नहीं निकल आईं.

कल्पना की मौत हो जाने पर ओमप्रकाश उसी बैड पर लाश के पास बैठा रहा. वह आगे की बातें सोचने लगा. उसे होटल वालों से रात को ही यह पता चल गया था कि कल्पना के घर वाले उन्हें ढूंढ रहे हैं. उसे पता था कि यह मामला पुलिस में जाएगा तो पुलिस उसे तलाश करेगी. इसलिए उस ने भी अपनी जान देने का फैसला कर लिया.

सुबह उस ने होटल वालों से मंगा कर चाय पी. फिर अपने दोस्त श्रवण को फोन कर के होटल बुलाया. श्रवण कुछ ही देर में होटल आ गया. ओमप्रकाश ने उसे कल्पना की हत्या के बारे में बता दिया. साथ ही यह भी बता दिया कि अब वह भी जीवित नहीं रहेगा. ओमप्रकाश ने जहरीला पदार्थ खा कर अपनी जान देने की बात कही.

श्रवण ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन ओमप्रकाश नहीं माना. श्रवण और ओमप्रकाश जहरीला पदार्थ लाने के लिए बाजार गए. वहां से लौट कर ओमप्रकाश होटल के कमरे में चला गया और श्रवण अपने घर लौट गया. ओमप्रकाश ने होटल के कमरे में जा कर जहरीला पदार्थ खा लिया. इस से वह अचेत हो गया.

पुलिस के लिए अब सब से पहले श्रवण को ढूंढना जरूरी था. उसी से ओमप्रकाश और कल्पना के बारे में सारी बातें पता चल सकती थीं. पुलिस ने श्रवण की तलाश में उस के घर दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला.

पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ाते हुए मृतक ओमप्रकाश के बिजनैस पार्टनर मनोज और होटल मालिक अमित से पूछताछ की. मृतका कल्पना के घर वालों से भी पूछताछ कर पुलिस ने मामले की तह में जाने का प्रयास किया.

इस बीच पुलिस ने ओमप्रकाश के मोबाइल की जांचपड़ताल की, जिस से ओमप्रकाश और कल्पना की प्रेम कहानी सामने आ गई. पता चला कि दोनों के बीच लंबे समय से बातचीत हो रही थी. कल्पना की मौत से पहले 5 दिनों के भीतर दोनों के बीच करीब 6 घंटे से ज्यादा समय तक बातचीत हुई थी.

जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने 10 मार्च को वह अर्टिगा कार जब्त कर ली, जिस से ओमप्रकाश और श्रवण कल्पना के साथ होटल पहुंचे थे. यह कार दिनेश पंवार की थी. दिनेश कार को किराए पर चलाता था. श्रवण 5 मार्च को यह कार दिनेश से ले गया था. दिनेश के बारे में पता लगने पर पुलिस उस की तलाश में जुट गई थी.

कई दिनों तक तमाम लोगों से पूछताछ और भागदौड़ के बाद पुलिस ने 15 मार्च को होटल माही-7 के संचालक अमित कुमार उर्फ सोनू को गिरफ्तार कर लिया. वह भी दासा की ढाणी का रहने वाला था.

कई दिनों से फरार चल रहा दासा की ढाणी का ही रहने वाला श्रवण भी पुलिस की गिरफ्त में आ गया. पुलिस ने श्रवण और अमित उर्फ सोनू से पूछताछ की तो होटल में कल्पना की हत्या और उस के प्रेमी ओमप्रकाश के जहर खा कर जान देने की अधूरी प्रेम कहानी सामने आ गई.

सीकर के दासा की ढाणी में रहने वाला ओमप्रकाश दिव्यांग था. वह पैरों से चलने में लाचार था, लेकिन उस का बदन मजबूत था. कल्पना सीकर की रहने वाली थी. कल्पना और ओमप्रकाश एक स्कूल में पढ़े थे. इसी दौरान ओमप्रकाश मन ही मन कल्पना से प्यार करने लगा.

कल्पना की नजर में ओमप्रकाश उस का सहपाठी था. वह उस से हंसबोल लेती थी. स्कूली पढ़ाई छोड़ने के बाद कल्पना तो पढ़ाई में आगे बढ़ती गई. लेकिन ओमप्रकाश आगे नहीं पढ़ सका.

उस ने कुछ साल पहले अपने दोस्त मनोज के साथ मिल कर शादीब्याह में डीजे बजाने का काम शुरू कर दिया था. इस के लिए उन्होंने होटल माही-7 के पास ही दुकान ले रखी थी. ओमप्रकाश और मनोज का डीजे का काम अच्छा चल रहा था. इस से दोनों को अच्छी कमाई हो जाती थी.

इस बीच कल्पना ग्रैजुएशन करने के बाद एमए की पढ़ाई करने लगी थी. पढ़ाई के साथ वह बच्चों के घर जा कर उन्हें ट्यूशन भी पढ़ाती थी. ओमप्रकाश उसे फोन करता रहता था. कल्पना उसे दोस्त समझ कर उस से बात कर लेती थी. कभी कभी ओमप्रकाश प्रेम प्यार की बातें भी करता था, लेकिन कल्पना उस की बातों को तवज्जो नहीं देती थी.

कुछ महीने पहले ओमप्रकाश ने कल्पना को फोन कर के प्यार की पींगें बढ़ाने की कोशिश की तो कल्पना ने अपने परिवार वालों से उस की शिकायत कर दी. इस पर कल्पना के घर वालों ने ओमप्रकाश को समझाया था, लेकिन वह समझने के बजाए उल्टी सीधी बातें करने लगा.

बाद में ओमप्रकाश ने जब कई बार मोबाइल पर काल की तो कल्पना ने उस से बात नहीं की. एक दिन गलती से कल्पना ने उस का फोन उठा लिया तो ओमप्रकाश अपनी गलती के लिए माफी मांगने लगा. इस पर कल्पना ने भी पुरानी बातों को भुला दिया.

फिर न जाने ऐसा क्या हुआ कि ओमप्रकाश और कल्पना दोबारा मोबाइल पर बातें करने लगे. उन की रोजाना कई बार बातें होने लगीं. ओमप्रकाश कल्पना से शादी रचाने के सपने संजोने लगा था. कल्पना की उस के साथ सहानुभूति तो थी, लेकिन उस ने ओमप्रकाश के साथ शादी के बारे में कभी नहीं सोचा था.

ओमप्रकाश के लिए भी यह काम आसान नहीं था. इसलिए उस ने कल्पना को झांसे में ले कर सीकर से बाहर ले जा कर शादी करने की योजना बनाई.

इस काम में ओमप्रकाश ने अपने दोस्त श्रवण की मदद ली. श्रवण को उस ने अपनी पूरी योजना बता दी थी. श्रवण ने इस बारे में टैक्सी का काम करने वाले अपने दोस्त दिनेश पंवार से बात की. दिनेश ने एक प्रेमी जोड़े को देहरादून ले जा कर अपने परिचित दलाल के माध्यम से उन की शादी करवाई थी.

दिनेश ने श्रवण की देहरादून के अपने परिचित दलाल से बात भी करा दी. साथ ही सीकर से देहरादून जाने के लिए किराए पर अपनी अर्टिगा कार भी भेजने की बात पक्की कर ली. श्रवण ने ओमप्रकाश से बात कर 5 मार्च को गाड़ी भेजने की बात तय कर ली.

योजना के अनुसार, ओमप्रकाश ने 4 मार्च को ही कल्पना को कह दिया कि वह अगले दिन तैयार रहे, कहीं बाहर चलेंगे. ओमप्रकाश ने कल्पना को अपनी मार्कशीट और शैक्षणिक योग्यता के दस्तावेज के अलावा 2-3 जोड़ी कपड़े भी साथ लाने को कह दिया था. कल्पना ने थोड़ी नानुकुर के बाद साथ चलने की हामी भर ली. उस समय तक ओमप्रकाश ने कल्पना को शादी के बारे में नहीं बताया था.

6 मार्च को ओमप्रकाश और श्रवण अर्टिगा कार ले कर कल्पना के घर के पास पहुंच गए. कल्पना अपने घर से स्कूटी पर आई तो उस की स्कूटी को उन्होंने रास्ते में खड़ी करवा दी. फिर कल्पना को साथ ले कर ओमप्रकाश और श्रवण अर्टिगा कार से दिल्ली की ओर रवाना हो गए.

सीकर से कुछ आगे चलने पर ओमप्रकाश ने कल्पना को बताया कि वे कहीं बाहर चल कर शादी करेंगे. शादी की बात सुन कर कल्पना नाराज हो गई. इस पर ओमप्रकाश और उस के बीच विवाद होने लगा. दोनों के बीच काफी देर तक विवाद होता रहा.

इस पर ओमप्रकाश ने रास्ते में एक जगह गाड़ी रुकवा कर कल्पना को समझाने की कोशिश की, लेकिन कल्पना किसी भी कीमत पर ओमप्रकाश से शादी को तैयार नहीं हुई.

कल्पना के विरोध को देखते हुए ओमप्रकाश और श्रवण ने वापस सीकर लौटने का मन बना लिया. उन्होंने ड्राइवर से गाड़ी वापस सीकर ले चलने को कहा. सीकर पहुंच कर ओमप्रकाश ने कल्पना को किसी होटल के कमरे में बैठ कर बातें करने के लिए राजी कर लिया.

ओमप्रकाश, कल्पना और श्रवण 6 मार्च की शाम को अर्टिगा कार से होटल माही-7 पहुंच गए. ओमप्रकाश को होटल के सभी कर्मचारी जानते थे. वह भी होटल मालिकों से ले कर सभी कर्मचारियों को जानता था. इसलिए होटल स्टाफ ने उसे कमरा नंबर 107 दे दिया.

रात होने पर कल्पना अपने घर जाने को कहने लगी. ओमप्रकाश उसे समझाने की कोशिश करता रहा. कल्पना ने उस से शादी करने से साफतौर पर इनकार कर दिया तो दोनों में फिर विवाद शुरू हो गया. रात गहराने के साथ दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. अंतत: ओमप्रकाश ने कल्पना की हत्या करने का फैसला कर लिया.

आधी रात के बाद जब कल्पना बैड पर दूसरी ओर मुंह कर लेटी हुई अपनी गलतियों के बारे में सोच रही थी, तब ओमप्रकाश ने होटल के कमरे में बैड पर बिछी बैडशीट फाड़ कर उस से कल्पना का गला घोंट दिया. इस से कल्पना की आंखें बाहर निकल आईं और उस की सांसें थम गईं.

कल्पना की हत्या करने के बाद ओमप्रकाश अपने भविष्य के बारे में सोचने लगा. उसे अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा था. निस्संदेह पुलिस और कल्पना के घर वालों को सब कुछ पता चल जाना था. ओमप्रकाश ने सोचा कि पुलिस उसे गिरफ्तार करेगी तो उस की और परिवार की बदनामी होगी.

यह सोच कर उसे अपनी करतूत पर पछतावा होने लगा. लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था. काफी सोचविचार के बाद ओमप्रकाश ने फैसला किया कि वह भी अपनी जान दे देगा. उस ने मन ही मन सोचा कि जब कल्पना उस की नहीं हो सकी तो वह भी जी कर क्या करेगा.

सुबह होने पर ओमप्रकाश ने होटल स्टाफ से चाय मंगा कर पी. फिर अपने दोस्त श्रवण को फोन कर के होटल बुलाया. श्रवण को उस ने कल्पना की हत्या की बात बता दी और अपनी जान देने के फैसले के बारे में भी बता दिया. श्रवण ने उसे काफी समझाया, लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ा रहा.

आखिर श्रवण उसे बाजार ले जाने को तैयार हो गया. ओमप्रकाश और श्रवण होटल से स्कूटी द्वारा बाजार गए, जहां ओमप्रकाश ने बीज भंडार की एक दुकान से 360 रुपए में सब्जियों पर छिड़कने वाला कीटनाशक खरीदा.

वहां से दोनों वापस होटल आ गए. श्रवण के वापस लौट जाने के बाद ओमप्रकाश ने होटल के कमरे में जा कर कीटनाशक खा लिया. कुछ घंटों तक जिंदगी और मौत से जूझने के बाद ओमप्रकाश ने भी दम तोड़ दिया.

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पुलिस ने बाद में कल्पना के अपहरण में सहयोगी मानते हुए अर्टिगा कार के मालिक दिनेश पंवार को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने वे 70 हजार रुपए भी बरामद कर लिए, जो ओमप्रकाश ने 5 मार्च की शाम को अपने बिजनैस पार्टनर मनोज को दिए थे. मनोज ने यह रकम होटल स्टाफ को रखने के लिए दे दी थी.

हत्या से पहले युवती से दुष्कर्म हुआ या नहीं, इस की स्लाइड जांच के लिए भेज दी गई. पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि ओमप्रकाश और कल्पना के बीच दिन में 10 से 15 बार तक बातें होती थीं.

यह तय है कि अगर श्रवण और होटल वालों ने गलतियां नहीं की होतीं तो शायद कल्पना और ओमप्रकाश आज जीवित होते. होटल वालों ने 5 मार्च की शाम को सच्चाई छिपा ली थी.

कल्पना के घर वाले जब पूछताछ करने होटल पहुंचे तो उन्होंने उस के वहां नहीं होने की बात कही, जबकि उस समय ओमप्रकाश और कल्पना होटल के कमरे में ही थे. श्रवण ने भी सब कुछ पता होने के बावजूद किसी को इस की जानकारी नहीं दी.

विडंबना यह रही कि ओमप्रकाश ने एकतरफा प्यार किया. कल्पना से कभी उस के दिल की बात नहीं पूछी. कल्पना भी उसे अपना दोस्त मानती रही. दोनों की नासमझी ने दोस्ती की कहानी को अधूरा छोड़ कर उस के पन्ने ही फाड़ दिए.

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निशा के जीवन की रक्तिम रात