हिमानी का याराना : आशिक बना हथियार

24 वर्षीय सोनू अपनी पत्नी हिमानी के साथ बाहरी दिल्ली स्थित बादली गांव के सिसोदिया मोहल्ले में रहता था. वह और हिमानी घर की ऊपरी मंजिल पर रहते थे, जबकि उस के पिता माधव सिंह और बहन पिंकी ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे. सोनू पेशे से ड्राइवर था और एक टूरिस्ट कंपनी की कार चला कर पूरे परिवार की जीविका चलाता था. 7 सितंबर, 2019 की रात 11 बजे तक परिवार के सभी सदस्य खाना खा चुके थे. सोनू को नींद आ रही थी, इसलिए वह हिमानी और डेढ़ साल के बच्चे के साथ पहली मंजिल पर अपने बैडरूम की ओर बढ़ गया. बेटे और बहू के जाने के बाद घर के बाकी सदस्य भी सोने चले गए.

सुबह करीब 7 बजे भाभी हिमानी के चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर पिंकी उस के कमरे में गई तो हिमानी ने रोते हुए बताया कि रात को किसी बदमाश ने इन की हत्या कर दी है. अभी थोड़ी देर पहले जब नींद खुली तो देखा तो ये मरे पड़े थे.

बैड पर भाई सोनू की लाश देख कर पिंकी ने बदहवास हो कर रोना शुरू कर दिया. बेटी और बहू के रोने की आवाज सुन कर सोनू के मातापिता भी भागते हुए वहां पहुंच गए. सोनू की लाश देख कर चीखपुकार मच गई.

तभी पिंकी ने अपने मोबाइल से 100 नंबर पर पुलिस को फोन कर अपने भाई की हत्या की सूचना दे दी. थोड़ी देर बाद बादली थाने से एसआई मनीष कुमार वहां पहुंच गए. लाश को दख्ेने के बाद उन्होंने पाया कि सोनू के गले पर एक स्याह निशान बना हुआ था. चूंकि मामला हत्या का था, इसलिए उन्होंने इस मामले की सूचना थानाप्रभारी अक्षय कुमार को दे दी.

थोड़ी देर में थानाप्रभारी अक्षय कुमार थाने में मौजूद पुलिस स्टाफ के साथ सिसोदिया मोहल्ला स्थित माधव सिंह के घर जा पहुंचे. घर की पहली मंजिल पर पहुंच कर उन्होंने लाश का मुआयना किया तो मृतक के गले पर गहरा स्याह निशान मिला.

ऐसा लग रहा था मानो किसी ने रस्सी या चुन्नी से उस का गला घोंटा हो. कमरे का बारीकी से निरीक्षण करने पर उन्होंने पाया कि सभी सामान अपनी जगह पर था. घर से कोई सामान गायब नहीं था. मतलब हत्यारा जो भी रहा हो, उस की मंशा सिर्फ सोनू की हत्या करने की रही थी.

थानाप्रभारी ने फोरैंसिक टीम को बुला लिया. मृतक के पिता माधव सिंह से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि रात के 12 बजे सोनू अपनी पत्नी हिमानी के साथ ग्राउंड फ्लोर से पहली मंजिल स्थित इस कमरे में आ गया था. इस के बाद सुबह 7 बजे हिमानी ने नीचे आ कर बताया कि सोनू की हत्या कर दी है.

यह सुन कर थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने मृतक की पत्नी हिमानी से पूछताछ की. पति की मौत से बुरी तरह आहत हिमानी की स्थिति बहुत खराब थी. वह छाती पीटपीट कर लगातार रोए जा रही थी. उस ने बस इतना बताया कि वह डेढ़ साल की बेटी के साथ पति की बगल में सो रही थी. गरमी ज्यादा होने के कारण ये कमरे का दरवाजा खुला छोड़ कर सोते थे. पता नहीं रात में वहां कौन आया और इन की हत्या करने के बाद फरार हो गया.

थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने उस वक्त हिमानी से ज्यादा पूछताछ करना उचित नहीं समझा. क्योंकि घर में सभी रोपीट रहे थे और माहौल गमगीन था. अलबत्ता उन्हें हिमानी पर शक हुआ.

फोरैंसिक एक्सपर्ट का काम निपट जाने के बाद उन्होंने एसआई मनीष कुमार तथा अन्य स्टाफ के साथ घर का मुआयना करना शुरू किया तो देखा बगल की छत उन की छत से मिली हुई थी. यह देख कर उन्होंने अनुमान लगाया कि हत्यारा संभवत: इसी रास्ते सोनू के कमरे तक पहुंचा होगा और वारदात को अंजाम देने के बाद चुपचाप इसी रास्ते फरार हो गया होगा. एसआई मनीष की भी यही सोच थी.

संदेह की हुई शुरुआत मौकामुआयना करने के बाद पुलिस टीम ने सोनू की लाश पोस्टमार्टम के लिए बाबू जगजीवन राम अस्पताल, जहांगीरपुरी भेज दी. वहां की सारी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस टीम थाने लौट गई.  10 सितंबर को मृतक की बहन पिंकी की शिकायत पर थाने में सोनू की हत्या का मामला सागर उर्फ बलवा और राहुल के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत दर्ज कर लिया गया.

मामले की जांच खुद थानाप्रभारी अक्षय कुमार कर रहे थे. उन्होंने एसआई मनीष को कुछ निर्देश दे कर दोबारा मृतक के परिजनों को टटोलने के लिए उन के घर भेजा. वहां सभी ने सोनू की हत्या में पड़ोस में रहने वाले बदमाश सागर उर्फ बलवा पर शक जताया. एफआईआर में भी सागर को ही नामजद किया गया था.

पूछताछ के दौरान एसआई मनीष ने मृतक की पत्नी हिमानी को बुला कर उस से एक बार फिर पूछताछ की तो उन्हें ऐसा लगा जैसे वह जानबूझ कर इस केस का रुख दूसरी दिशा में मोड़ना चाह रही हो. यह देख कर उन्होंने उस का मोबाइल नंबर नोट कर लिया.

थाने लौट कर उन्होंने हिमानी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई और उस का बारीकी से निरीक्षण करने लगे. काल डिटेल्स की जांच के दौरान वह यह देख कर चौंके कि हिमानी लगातार एक मोबाइल नंबर के संपर्क में थी. वारदात वाली रात में भी हिमानी ने इस नंबर पर काफी देर बात की थी. मनीष कुमार ने यह बात थानाप्रभारी को बताई तो उन्होंने उस नंबर की काल डिटेल्स निकालने के आदेश दिए. मोबाइल नंबर की जांच की गई तो नंबर उसी सागर उर्फ बलवा का निकला, जिस पर मृतक के पिता एवं परिवार के अन्य लोगों ने सोनू की हत्या का आरोप लगाया था.

यह देख कर थानाप्रभारी और एसआई मनीष के चेहरों पर मुसकराहट दौड़ गई. उन्हें लगा कि हत्यारा अब उन की पकड़ से ज्यादा दूर नहीं है.  11 सितंबर की शाम को थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने हिमानी को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. पूछताछ के दौरान हिमानी मासूम बन कर चालाकी से पुलिस की जांच की दिशा भटकाने की कोशिश करती रही लेकिन जब उस के सामने उस की काल डिटेल्स दिखा कर उस के और सागर के रिश्तों के बारे में पूछा गया तो उस का हलक सूख गया.

आखिरकार उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के और सागर उर्फ बलवा के बीच जिस्मानी रिश्ते हैं और उस ने सागर के साथ मिल कर 7-8 सितंबर के तड़के पति की हत्या की थी.

जुर्म स्वीकार कर लेने के बाद हिमानी को गिरफ्तार कर लिया गया. उसी शाम सागर के घर पर दबिश दे कर उसे भी दबोच लिया गया. पूछताछ के दौरान जब उसे बताया गया कि उस की माशूका हिमानी को गिरफ्तार कर लिया गया है, तो वह बुरी तरह चौंका. जब उसे उस की काल डिटेल्स दिखाई गई तो उस ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. बाद में दोनों की निशानदेही पर सोनू की हत्या में प्रयुक्त वह रस्सी भी बरामद कर ली, जिस से सोनू का गला घोंटा गया था. सोनू हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह है.

बाहरी दिल्ली जिले में एक गांव है बादली. माधव सिंह अपने परिवार के साथ यहीं रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी अंजू (काल्पनिक नाम), 24 साल का बेटा सोनू, बेटी पिंकी थे. माधव सिंह की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. वह एक होटल में काम करते थे. सोनू पेशे से ड्राइवर था, जबकि पिंकी एक बड़े अस्पताल में काम करती थी.

शादी के बाद खुश थे दोनों सोनू की शादी करीब 3 साल पहले हिमानी के साथ हुई थी. हिमानी गोरे रंग, आकर्षक नैननक्श की खूबसूरत युवती थी. हंसमुख और मिलनसार स्वभाव की हिमानी को पत्नी के रूप में पा कर सोनू बहुत खुश था. हिमानी भी इस घर में आ कर खुश थी. पिंकी भाभी का पूरा खयाल रखती थी.

सोनू और हिमानी अपनी दुनिया में खुश रहते थे. सोनू का काम ऐसा था कि वह सुबह घर से निकलता था. इस के बाद उसे खुद भी पता नहीं रहता था कि वह घर कब लौटेगा.

हिमानी अपनी सास के साथ घर का कामकाज निबटाती और दिन का बाकी समय टीवी देखती या सो कर गुजारती थी. जब कभी उसे सोनू की याद सताती तो वह उस के मोबाइल पर फोन कर के उस का हालचाल पूछ लिया करती थी. सोनू भी खाली वक्त में फोन करता था. बेटी के जन्म से घर में सभी खुश थे.

हिमानी का कमरा घर की पहली मंजिल पर था. जब कभी उसे बोरियत महसूस होती तो वह अपना मन बहलाने के लिए बालकनी में आ कर खड़ी हो जाती थी. इसी दौरान एक दिन उस की निगाहें पड़ोस में रहने वाले युवक सागर की निगाहों से टकराईं तो उस के तनबदन में सिहरन सी दौड़ गई.

पहले भी उस ने गौर किया था कि वह किसी न किसी बहाने उस के घर के सामने आ कर उसे एकटक निहारता है. उस दिन तो उसे सागर का यूं अपनी ओर बेशरमी से देखना अच्छा नहीं लगा, लेकिन बाद में उसे लगा कि पति के अलावा पड़ोस के लड़के भी उसे पसंद करते हैं तो उस के चेहरे पर मुसकराहट तैरने लगी.

हौलेहौले चाहत भरी नजरों के इस खेल में उसे भी मजा आने लगा. उस ने भी सागर की नजरों से नजरें मिलानी शुरू कर दीं. बात बढ़ती गई और मामला बातचीत से शुरू हो कर मोबाइल नंबर के आदानप्रदान तक पहुंच गया.

सागर में घुलमिल गई हिमानी सागर हिमानी को फोन कर के उस से मिलने की जिद करने लगा तो एक दिन जब वह घर में अकेली थी तो उस ने मौका देख कर सागर को अपने कमरे में बुला लिया. सागर बहुत बातूनी युवक था. उस ने हिमानी को अपनी मीठीमीठी बातों में ऐसा फंसाया कि वह उस की बांहों में अपनी सुधबुध खो बैठी.

हिमानी के बदन से खेलने के बाद सागर वहां से चला गया, लेकिन उस दिन के बाद जब कभी हिमानी को मौका मिलता, वह सागर को मिलने के लिए अपने घर में बुला लेती थी. कभीकभी वह खुद भी किसी काम के बहाने घर से निकल कर सागर की बताई हुई जगह पर पहुंच जाती थी.

शुरुआत में हिमानी और सागर के अवैध रिश्तों की जानकारी किसी को नहीं हुई, लेकिन यह बात ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकी. एक दिन सोनू को उस के किसी दोस्त ने उस की बीवी की बेवफाई की दास्तान बताई तो उसे उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. लेकिन जब लोगों ने सागर के साथ हिमानी का नाम जोड़ कर छेड़ना शुरू कर दिया तो उसे उन की बात पर विश्वास करना पड़ा.

सागर मोहल्ले का दबंग युवक था. लोग उस के सामने आने में कतराते थे. फिर भी सोनू ने उस से कहा कि वह हिमानी से मिलना छोड़ दे. सागर ने उस समय तो उस की बात मान ली लेकिन उस ने अपनी हरकतें जारी रखीं.

घटना के 4 दिन पहले सोनू और सागर के बीच बच्चों को ले कर जोरदार झगड़ा हुआ. इस दौरान सागर ने सोनू को 8 दिनों के अंदर जान से मारने की धमकी दी.

हिमानी का दिल अपने पति सोनू से भर चुका था. उसे सोनू से सागर ज्यादा प्यारा था, इसलिए जब सागर ने सोनू की हत्या करने की बात उसे बताई तो वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गई.

योजना के अनुसार 8 सितंबर की रात हिमानी ने सोनू के खाने में नींद की गोलियां मिला दीं. आधी रात को जब वह हिमानी के साथ अपने बैडरूम में पहुंचा तो लेटते ही नींद की आगोश में चला गया.

रात के करीब ढाईतीन बजे के बीच जब सारा मोहल्ला चैन की नींद सो रहा था, तभी हिमानी ने फोन कर सागर को अपने कमरे में आने के लिए कहा. सागर को पहले से ही हिमानी के फोन का इंतजार था. जैसे ही हिमानी ने बुलाया, वह दबे पांव छत के रास्ते हिमानी के कमरे में पहुंचा और एक रस्सी से सोनू का गला घोंट दिया.

रात भर हिमानी अपने पति की लाश के साथ सोई रही. सुबह 7 बजे उठ कर उस ने अपने ससुर माधव सिंह तथा सास अंजू को पति की हत्या होने की जानकारी दी.

12 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने सोनू हत्याकांड के दोनों आरोपियों हिमानी और सागर उर्फ बलवा को रोहिणी कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. इस हत्याकांड में दूसरे नामजद आरोपी राहुल का कोई हाथ न होने के कारण उस के खिलाफ काररवाई नहीं की गई. मामले की जांच थानाप्रभारी अक्षय कुमार कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कुंवारा था कुंवारा ही रह गया

वीरू सैनी अपनी पत्नी शारदा और बच्चों के साथ मुरादाबाद के मोहल्ला झांझनपुर में रहते थे. उन के परिवार में 2 बेटों संजय कुमार और प्रदीप कुमार के अलावा 2 बेटियां थीं. बेटियों की वह शादी कर चुके थे. वैसे वीरू सैनी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के ही जिला संभल के शहर चंदौसी के रहने वाले थे, जो करीब 30 साल पहले काम की तलाश में मुरादाबाद आ गए थे.

वह एक अच्छे कुक थे, इसलिए मुरादाबाद दिल्ली रोड पर पीएसी के सामने स्थित त्यागी ढाबे पर उन की नौकरी लग गई थी. कुछ साल पहले उन के बड़े बेटे संजय की भी शहर की आशियाना कालोनी स्थित एक होटल में नौकरी लग गई थी.

घर में सब कुछ ठीक चल रहा था, इसी बीच उन की पत्नी शारदा की तबीयत खराब हो गई और फिर मौत हो गई. पत्नी की मृत्यु के बाद घर में खाना बनाने की परेशानी होने लगी. इसलिए वीरू ने संजय की शादी करने की सोची.

वैसे भी एकदो साल बाद उस की शादी करनी ही थी. बेटे की जल्द शादी कराने के लिए उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों से भी कह दिया. उन्होंने कह दिया कि लड़की चाहे गरीब परिवार से हो, लेकिन घर के कामकाज करने वाली होनी चाहिए.

एक दिन वीरू सैनी के दूर के रिश्ते का भांजा राजपाल उन के यहां आया. वह संभल के सरायतरीन मोहल्ले में रहता था. वीरू ने उस से संजय के लिए कोई लड़की बताने को कहा तो राजपाल ने बताया, ‘‘मामाजी, बरेली में एक ठेकेदार मेरे जानकार हैं. उन्होंने मुझ से एक लड़की की चर्चा की थी. लड़की अपनी ही जाति की है. उस के मांबाप नहीं हैं और अपनी मौसी के साथ रहती है. गरीब लोग हैं. चाहो तो उसे देख लो. बात बन गई तो आप को ही दोनों तरफ की शादी का खर्च उठाना होगा.’’

वीरू ने सोचा कि लड़की गरीब घर की है तो वह जिम्मेदारी के साथ घर को संभाल लेगी. लिहाजा उन्होंने लड़की देखने की हामी भर दी. उन्होंने यह भी पूछा कि लड़की की मौसी को शादी के लिए कितने पैसे देने होंगे. तब राजपाल ने कहा कि केवल 35 हजार दे देना. उसी में वह काम चला लेगी. क्योंकि शादी तो मंदिर में होनी है. इन पैसों से तो वह केवल लड़की के लिए कपड़े वगैरह खरीदेगी. और हां, लड़की पसंद आ जाए, पैसे तभी देना. वीरू इस के लिए तैयार हो गया.

इस के बाद 27 जुलाई, 2019 को वीरू, उन के चारों बच्चे, दोनों दामाद और बहन लड़की देखने के लिए राजपाल के साथ बरेली पहुंच गए. तय हुआ कि पुराने किले के पास स्थित हनुमान मंदिर के नजदीक लड़की दिखा दी जाएगी. लिहाजा वे सभी हनुमान मंदिर के पास पहुंच गए. कुछ देर बाद एक महिला और एक आदमी लड़की के साथ वहां पहुंचे. राजपाल ने बताया कि लड़की का नाम पूजा है और साथ में उस की मौसी आशा है.

सब को लड़की आ गई पसंद वीरू और उन के बच्चों, दोनों दामादों ने लड़की को देखते ही पसंद कर लिया. चूंकि वीरू को राजपाल ने पहले ही बता दिया था कि लड़की पसंद आने पर शादी के लिए 35 हजार रुपए उन्हें ही देने होंगे, इसलिए वीरू ने 35 हजार रुपए उसी समय राजपाल को दे दिए. राजपाल ने वह रकम लड़की पूजा की मौसी आशा को दे दी.

इस के बाद राजपाल ने कहा कि इस की मौसी जल्द से जल्द पूजा की शादी करना चाहती हैं, इसलिए आप पंडित से बात कर के शादी की तारीख निकलवाओ. वीरू को तो शादी की वैसे भी जल्दी थी. वह चाह रहे थे कि पूजा जल्द ही बेटे की बहू बन कर घर आ जाए.

मुरादाबाद लौटने के बाद वीरू ने पंडितजी को बेटे संजय और पूजा की कुंडली दिखाई तो दोनों की कुंडली मिल गई. पंडित ने शादी के लिए 2 अगस्त, 2019 की तारीख बताई. यह खबर उन्होंने राजपाल के माध्यम से लड़की की मौसी आशा तक भिजवा दी. उन्होंने यह भी कह दिया कि शादी झांझनपुर, मुरादाबाद के बालाजी मंदिर के प्रांगण में होगी.

शादी की तारीख निश्चित हो जाने के बाद वीरू बेटे की शादी की तैयारी में जुट गए. धीरेधीरे वह तारीख भी आ गई, जिस का उन्हें इंतजार था. झांझनपुर स्थित बालाजी मंदिर के प्रांगण में वीरू ने पंडाल लगा कर शादी की सारी व्यवस्था कर ली थी. 2 अगस्त की सुबह ही बरेली से आशा पूजा को ले कर बालाजी मंदिर पहुंच गई थी.

मंदिर प्रांगण में हिंदू रीतिरिवाज से पूजा और संजय सैनी का विवाह हो गया. वहीं पर वीरू ने अपने मोहल्ले वाले व अन्य लोगों के लिए खाने की व्यवस्था की थी. कन्यादान पूजा की मौसी आशा ने किया था.

शादी की सभी रस्में पूरी होने के बाद संजय सैनी पत्नी पूजा को विदा करा कर अपने घर ले आया. पूजा की मौसी भी बरेली वापस जाने के बजाए वीरू के यहां आ गई. उस ने कहा कि वह 2 दिन बाद चली जाएगी.

नईनवेली दुलहन के घर आने से खुशी का माहौल था. शादी का घर था, संजय के रिश्तेदार, बहन, भांजीभांजे भी घर पर थे. अगले दिन यानी 3 अगस्त को घर में शादी के बाद की रस्में शुरू हो गईं. अगली सुबह नईनवेली दुलहन पूजा ने घर पर रुके सभी रिश्तेदारों के लिए खाना बनाया. उस ने आलू बड़ी की सब्जी व कचौड़ी बनाई थी. उस के बनाए खाने की घर में रुके सभी रिश्तेदारों ने तारीफ की.

दिन में बहू की मुंहदिखाई की रस्म भी हुई. इस रस्म में पूजा के पास कई हजार रुपए इकट्ठे हो गए थे, जो उस ने अपने पास ही रखे. 3 अगस्त की शाम को पूजा ने खाना बनाया. शाम के खाने में उस ने कढ़ीचावल और रोटी बनाई. सभी ने हंसीखुशी खाना खाया.

पूजा की मौसी आशा ने कढ़ीचावल नहीं खाए. वह बोली कि मैं कढ़ी नहीं खाती. इसलिए उस ने सुबह की बची कचौड़ी व आलू बड़ी की सब्जी खाई.

वीरू सैनी जिस ढाबे पर काम करते थे, अपना खाना वह वहीं से पैक कर के ले आए थे. उन्होंने घर पर शराब के 2 पैग ले कर खाना खाया. खाना खा कर वह अपने कमरे में जा कर सो गए. खाना खा कर घर के अन्य सदस्य व मेहमान भी अलगअलग कमरों में जा कर सो गए.

उस रात संजय की सुहागरात थी, इसलिए वह मारे खुशी के फूले नहीं समा रहा था. वह भी अपने कमरे में पहुंच गया, जहां उस की पत्नी उस का पलक पांवड़े बिछाए इंतजार कर रही थी.

पूरे घर में केवल एक ही बाथरूम था, जो ग्राउंड फ्लोर पर था. संजय के बहनोई विनोद कुमार पहली मंजिल पर स्थित कमरे में बच्चों के साथ सोए थे. उन्हें रात 3 बजे के करीब लघुशंका के लिए जब पहली मंजिल से नीचे आना पड़ा तो उन्होंने देखा कि घर का मुख्य दरवाजा खुला है.

उन्होंने बाहर आ कर देखा तो सब सुनसान था. उन्होंने नीचे कमरे में सो रहे अपने ससुर वीरू सैनी को जगाते हुए कहा कि मेनगेट खुला पड़ा है, क्या कोई बाहर गया हुआ है?

दुलहन पूजा ने खेला खेल वीरू सैनी ने संजय के कमरे में आवाज दी तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. फिर उन्होंने संजय को जोरजोर आवाजें लगाईं तो संजय तो नहीं उठा लेकिन पिता की आवाज से ऊपर के कमरे में सोया उन का छोटा बेटा प्रदीप जरूर जाग गया.

वह नीचे उतर कर आया और संजय के कमरे में जा कर देखा, संजय बेसुध अवस्था में सोया हुआ था. उस ने उसे उठाना चाहा तो वह नहीं उठा. वह बेहोशी की हालत में था.

घर से नईनवेली दुलहन पूजा व उस की मौसी आशा गायब थीं. दूसरे कमरे में संजय की बहनें व भांजेभांजियां भी बेहोशी की हालत में थे. इस के बाद तो पूरे घर में कोहराम मच गया. शोर सुन कर आसपड़ोस के लोग भी जाग गए थे.

उसी समय 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को भी सूचना दे दी गई. थोड़ी देर में पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी वहां पहुंच गई.

पुलिस वालों को मामला समझने में देर नहीं लगी और वे घर में बेहोशी की हालत में पड़े संजय, उस की बहनें मंजू व लक्ष्मी तथा उन के बच्चों चंचल व अंकित को अपनी गाड़ी से दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल ले गए.

अस्पताल में भरती सभी 5 लोगों की हालत नाजुक बनी हुई थी. डाक्टर उन के इलाज में जुटे थे. सूचना पा कर थाना सिविल लाइंस के प्रभारी शक्ति सिंह व क्षेत्राधिकारी राजेश कुमार भी अस्पताल पहुंच गए. अगले दिन उन्हें होश आया तो थानाप्रभारी ने उन से पूछताछ की.

संजय सैनी ने उन्हें बताया कि उस की नईनवेली पत्नी पूजा ने उसे खाना खिलाया. खाना खाने के बाद उसे बेहोशी सी छाने लगी थी. इस के बाद उसे पता नहीं रहा. आंखें खुलीं तो उस ने खुद को अस्पताल में पाया. तब घर वालों ने बताया कि पूजा और उस की मौसी घर का कीमती सामान ले कर लापता हो चुकी हैं.

इस के बाद संजय के बहनोई और मोहल्ले के लोग पूजा और उस की मौसी को ढूंढने के लिए रेलवे स्टेशन, बसअड्डा आदि जगहों पर चले गए. लेकिन उन दोनों में से कोई भी नहीं मिला. निराश हो कर वे घर लौट आए.

पुलिस ने जब वीरू सैनी से गायब सामान के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि दुलहन पूजा और उस की मौसी घर से 16 हजार रुपए नकद, सोने की चेन, सोने के कुंडल, पेंडल समेत अन्य जेवर और कीमती कपड़े ले गई हैं.

वीरू सैनी की तहरीर पर पुलिस ने पूजा और उस की मौसी आशा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस हरकत में आ गई.

 

मुरादाबाद के एसएसपी अमित पाठक ने लुटेरी दुलहन और उस के गैंग के लोगों को गिरफ्तार करने के लिए एसपी (सिटी) अंकित मित्तल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी शक्ति सिंह, हरथला पुलिस चौकी इंचार्ज वीरेंद्र कुमार राणा आदि को शामिल किया गया.

राजपाल नाम के जिस बिचौलिए के मार्फत संजय की शादी कराई गई थी, पुलिस ने उस का फोन मिलाया लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. साथ ही पूजा की मौसी का फोन भी नहीं लग रहा था.

इसी बीच थानाप्रभारी शक्ति सिंह का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह इंसपेक्टर नवल मारवाह ने थाने का कार्यभार संभाला. वह इस केस की जांच में जुट गए. पुलिस ने आरोपियों के फोन सर्विलांस पर लगा दिए. इस के अलावा मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.

इस काररवाई के आधार पर पुलिस ने 30 अगस्त, 2019 को बरेली के कस्बा बहेड़ी के मोहल्ला महादेवपुरा से अभियुक्त पूजा को गिरफ्तार कर लिया. पूजा के घर से पुलिस को एक अन्य युवती भी मिली. उस का नाम जयंती था.

जयंती से पुलिस ने जब सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह जिला ऊधमसिंह नगर के कस्बा सितारगंज के शक्ति फार्म की निवासी है. वह एक बेटी की मां है. अपने पति को उस ने छोड़ रखा है. उस ने बताया कि वह भी पूजा की तरह शादी करने के बाद लोगों को लूटती है. यह काम वह मौसी आशा के इशारे पर करती है. पुलिस पूजा और जयंती को गिरफ्तार कर मुरादाबाद ले आई.

थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो जयंती ने बताया कि मौसी आशा ने जन्माष्टमी से 2 दिन पहले 22 अगस्त, 2019 को अरुण नामक युवक से मंदिर में उस की शादी करवाई थी. इस शादी के बदले आशा ने उसे 10 हजार रुपए देने का वादा किया था.

शादी के बाद घूमने के बहाने वह और उस का कथित पति अरुण व मौसी आशा के साथ ऊधमसिंह नगर के एक होटल में आ कर ठहरे थे. वहां पर आशा ने अरुण से और पैसों की मांग की. अरुण के पास उस समय पैसे नहीं थे. उस ने कहा कि वह पैसे कल दे देगा. जब अरुण सो गया तो आशा मौसी और वह उसे सोता छोड़ कर भाग गए थे.

जयंती भी शामिल थी इस गिरोह में   जयंती ने बताया कि वह मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली है. उस की शादी एक जेल वार्डन के बेटे से हुई थी. समस्या यह थी कि ससुराल में नौनवेज कोई नहीं खाता था, जबकि जयंती मीट, मछली खाने की शौकीन थी. यह बात उसने अपने पति से बताई तो उस ने भी कह दिया कि यहां नौनवेज खाना तो दूर, पकाने तक पर भी प्रतिबंध है.

ऐसी हालत में जयंती का वहां रहना मुश्किल था, लिहाजा वह वहां से रिश्ता तोड़ कर चली आई और किसी के जरिए आशा मौसी के संपर्क में आई. फिर आशा ने उसे अपने गिरोह में शामिल कर लिया.

जयंती के पास से पुलिस को 2 जोड़ी पाजेब, नाक का एक फूल, सोने की एक अंगूठी मिली. अभियुक्त पूजा उर्फ कविता की शादी पीलीभीत में हुई थी. पूजा का 6 साल का एक बेटा भी है, जो पिता के पास ही रहता है. पुलिस छानबीन में पता चला कि उक्त गिरोह में 6 लोग शामिल हैं, जोकि लोगों को ठगी का शिकार बनाने के लिए अलगअलग शहरों में किराए का मकान ले कर ऐसे परिवारों के सदस्य का पता लगाते थे, जिस की शादी नहीं हो पा रही हो.

ये लोग ऐसे लोगों को अपने जाल में फंसा कर पहले लड़की दिखाते हैं. लड़की पसंद आने के बाद इस गिरोह का मास्टरमाइंड बरेली का एक कथित ठेकेदार राम सिंह एडवांस में मोटी रकम ऐंठ लेता है. वही शादी की तारीख देता है. तय समय में शादी हो जाती थी.

जब बहू विदा हो कर ससुराल जाती थी तो इन की कथित मौसी आशा बहू के साथ रह जाती थी. वही कन्यादान भी करती थी. रात के खाने में नशीला पदार्थ मिला कर परिवार के लोगों को खिलाया जाता. फिर जब सब नशे में बेहोश हो जाते तो दोनों जेवर, रुपए व कीमती कपड़े ले कर फरार हो जातीं.

अभी तक पुलिस को इस गिरोह के 6 लोगों का पता चला है. पुलिस ने 30 अगस्त, 2019 को दोनों लुटेरी दुलहनों पूजा उर्फ कविता और जयंती को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

मामले की विवेचना मौजूदा थानाप्रभारी नवल मारवाह कर रहे हैं. कथा लिखने तक पुलिस अन्य आरोपियों की सरगरमी से तलाश रही थी.

फेसबुक से निकली मौत

22जून, 2019 की सुबह पुणे शहर के पौश इलाके में स्थित मुढ़वा की रहने वाली 40 वर्षीय राधा अग्रवाल घर से अपनी स्कूटी ले कर निकली थी. उस ने घर पर बताया था कि वह अपनी सहेलियों के साथ साईंबाबा के दर्शन करने शिरडी जा रही है. 2 दिन में घर लौट आएगी. घर से निकलते समय वह अपने सारे गहने पहने हुई थी. जब वह 25 जून तक नहीं लौटी तो पति किशोरचंद्र अग्रवाल ने उस का फोन मिलाया. लेकिन राधा का फोन स्विच्ड औफ मिला.

राधा के 16 वर्षीय बेटे मानव अग्रवाल ने इस बारे में अपनी मां की सहेलियों से बात की तो उन्होंने बताया कि वह तो शिरडी गई ही नहीं थी, न ही उन्हें राधा के शिरडी जाने की कोई जानकारी है.

राधा की सहेलियों से यह जानकारी मिलने पर परिवार के लोग परेशान हो गए. चूंकि उस दिन राधा अग्रवाल गहने पहन कर गई थी, इसलिए उन की चिंता और भी बढ़ गई. 25 जून की शाम को ही मानव अग्रवाल अपने 3-4 सगेसंबंधियों के साथ थाना मुढ़वा पहुंच गया. उस ने वहां मौजूद थानाप्रभारी संपतराव भोसले को अपनी मां के लापता होने की विस्तार से जानकारी दे दी.

राधा अग्रवाल शहर के करोड़पति रियल एस्टेट कारोबारी किशोरचंद्र अग्रवाल की पत्नी थी. मानव अग्रवाल की बात सुन कर थानाप्रभारी भी आश्चर्य में पड़ गए कि आशा अग्रवाल आखिर अपनी मरजी से कहां चली गई.

बहरहाल, उन्होंने राधा अग्रवाल की डिटेल्स लेने के बाद मानव को भरोसा दिया कि पुलिस उन्हें अपने स्तर से ढूंढने की कोशिश करेगी.

चूंकि मामला एक प्रतिष्ठित परिवार की महिला से जुड़ा था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. इस के बाद उन्होंने राधा अग्रवाल की गुमशुदगी की काररवाई शुरू कर दी. उन्होंने फोटो सहित उस का हुलिया पुणे शहर के सभी पुलिस थानों को भिजवा दिया. इस के अलावा उन्होंने मुखबिरों को भी लगा दिया.

थानाप्रभारी ने मामले की जांच के लिए एसआई अमोल गवली, स्वप्निल पाटील, हैडकांस्टेबल कैलाश चह्वाण, निलेश जगताप, श्रीनाथ जाधव, अमोल चह्वाण और एस.ए. काकड़े को शामिल कर एक टीम बनाई. पुलिस टीम अपने स्तर से राधा अग्रवाल को तलाशने लगी.

जांच में पता चला कि राधा अग्रवाल शादी के पहले से ही खुले विचारों वाली थी. वह किसी प्रकार के बंधनों को नहीं मानती थी. शादी के बाद उसे परिवार भी वैसा ही मिला था. घर में उसे किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी. अभाव केवल एक यह था कि पति का ज्यादा संग नहीं मिल पाता था, क्योंकि पति किशोरचंद्र अग्रवाल अपने रियल एस्टेट कारोबार में ज्यादा व्यस्त रहते थे. एक बेटा था जो पढ़ाई कर रहा था.

सोशल मीडिया पर रहने का शौक  राधा के पास भले ही रुपएपैसों की कमी नहीं थी, लेकिन वह पति का साथ चाहती थी जो उसे नहीं मिल पाता था. वह कसे हुए बदन की सुंदर महिला थी. एक युवक की मां होने के बाद भी उस का शारीरिक आकर्षण बरकरार था. यही वजह थी कि राधा ने अपना मन बहलाने के लिए जब सोशल मीडिया का सहारा लिया तो कुछ ही दिनों में उस के हजारों फालोअर्स और सैकड़ों दोस्त बन गए थे.

राधा ने घूमने के लिए एक स्कूटी ले रखी थी, जिस से वह अपने दोस्तों और सहेलियों से मिलने जाया करती थी. वह तरहतरह के पोज में खींचे गए अपने फोटो फेसबुक पर डाल दिया करती थी, जिस से उसे काफी प्रशंसा मिलती थी. सोशल मीडिया से जुड़ने के बाद राधा अग्रवाल के चेहरे पर अकसर चमक दिखाई देती थी. वह अपनी इस जिंदगी से काफी खुश रहने लगी थी.

यह जानकारी मिलने के बाद जांच अधिकारी को इस बात का पूरा भरोसा हो गया कि राधा अग्रवाल की गुमशुदगी के पीछे कोई गहरा रहस्य है, जिस का परदा उठाना जरूरी है. पुलिस ने राधा अग्रवाल का मोबाइल नंबर ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो अंतिम लोकेशन पुणे के ही भोसले नगर, रेंज हिल इलाके की मिली.

पुलिस वहां पहुंच गई और इधरउधर खोजबीन करने लगी. वहां पर एक स्कूटी मिली, जो राधा अग्रवाल की ही थी. पुलिस ने स्कूटी की डिक्की खोल कर देखी तो उस में राधा का मोबाइल फोन मिला. फोन डिस्चार्ज हो चुका था.

जब मोबाइल को चार्ज कर औन किया किया तो वाट्सऐप और फेसबुक पर महिला और युवक दोस्तों की लंबी फेहरिस्त देख पुलिस टीम हैरान रह गई. राधा अग्रवाल के फोन पर जिस नंबर से आखिरी बार बातचीत हुई थी, पुलिस ने उस नंबर की जांच की तो वह नंबर आनंद निगम का निकला, जो कर्नाटक का रहने वाला था. पुलिस टीम उस के घर पहुंच गई लेकिन वह घर से फरार मिला. परिवार वालों से पूछताछ कर के आखिरकार पुलिस उस के पास पहुंच ही गई. आनंद निगम को हिरासत में ले कर पुलिस पुणे लौट आई.

आनंद निगम से थाने में पूछताछ की जानी थी, इसलिए सूचना पा कर डीसीपी सुहास बाबचे और एसीपी सुनील देशमुख भी थाना मुढ़वा पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के सामने थानाप्रभारी संपतराव भोसले ने आनंद निगम से राधा अग्रवाल के बारे में पूछताछ की तो पहले तो वह यही कहता रहा कि राधा अग्रवाल नाम की किसी महिला को नहीं जानता.

लेकिन पुलिस ने जब वाट्सऐप और फेसबुक पर उस की और राधा की चैटिंग दिखाई तो वह सहम गया. वह चाह कर भी अपना झूठ नहीं छिपा सका. सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने स्वीकार कर लिया कि वह राधा अग्रवाल की हत्या कर चुका है.

हत्या की बात सुनते ही पुलिस चौंक गई. आनंद से उस की लाश के बारे में पूछा गया तो उस ने बता दिया कि लाश ताम्हिणी के वर्षाघाट के जंगलों में है. हत्या करने के बाद वह उस के सभी गहने और नकदी ले भागा था.

पुलिस को किसी भी तरह राधा अग्रवाल की बौडी बरामद करनी थी. उसे संशय था कि कहीं जंगली जानवरों ने शव को नष्ट न कर दिया हो. इसलिए पुलिस आनंद निगम को ले कर 12 जुलाई, 2019 को ताम्हिणी वर्षा घाट के जंगल में जा पहुंची.

लेकिन जंगल में राधा अग्रवाल के केवल अस्थिपंजर और कपड़े मिले. उस का मांस जंगली जानवर नोंचनोंच कर खा चुके थे. पुणे पुलिस ने स्थानीय पुलिस के सहयोग से कंकाल बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद पुलिस आनंद निगम को ले कर पुणे लौट आई.

पूछताछ करने पर आनंद निगम ने राधा अग्रवाल की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी.

आनंद की अपनी कहानी  31 वर्षीय आनंद निगम मूलरूप से कर्नाटक का रहने वाला था. उस के पिता का नाम शिवाजी निगम था. परिवार में उस के मातापिता के अलावा एक छोटी बहन थी. परिवार की माली स्थिति साधारण थी.

जब उस के पिता का निधन हो गया तो घर की जिम्मेदारी आनंद पर आ गई. वह रोजीरोटी की तलाश में परिवार के साथ पुणे आ गया और वहां की वृंदावन कालोनी के तापकीर नगर में रहने लगा. पुणे में रहते हुए उस की मां ने एक दूसरे आदमी का हाथ पकड़ लिया था. बहन जवान हुई तो उस ने भी लवमैरिज कर ली. इस के बाद आनंद ने भी अंतरजातीय विवाह कर अपना घर बसा लिया. समय गुजरता गया और वह 2 बच्चों का बाप बन गया.

अपनी रोजीरोटी के लिए उस ने एक पुरानी कार ले ली और लोगों को कार चलाना सिखाने लगा. उस के पास ड्राइविंग सीखने के लिए ज्यादातर महिलाएं आती थीं. व्यवहारकुशल होने के नाते अधिकतर महिलाएं उस के प्रभाव में आ जाती थीं, जो उस की दोस्त बन जाती थीं. वह उन से फेसबुक, वाट्सऐप के माध्यम से चैटिंग किया करता था, जिस का असर उस के व्यवसाय पर पड़ने लगा था.

यह बात जब उस की पत्नी को मालूम हुई तो उस ने उसे आड़ेहाथों लिया. विवाद इतना बढ़ा कि उसे अपना कार ड्राइविंग का धंधा बंद करना पड़ा. इस के बाद उसे परिवार चलाने के लिए कोई काम तो करना ही था. उस ने अपने जानपहचान वालों और दोस्तों से ब्याज पर पैसे ले कर भोसले नगर के रेंज हिल इलाके में एक टी-स्टाल शुरू कर दिया. स्टाल पर वह बीड़ीसिगरेट भी बेचता था.

इस काम में उस की मां भी मदद किया करती थी. पूरा दिन खपाने के बाद भी इस काम में कोई खास आमदनी नहीं हो पाती थी. घर का खर्च भी बमुश्किल चलता था. ऐसे में उसे कर्ज उतारना भी मुश्किल हो गया था. नतीजा यह हुआ कि उस का कर्ज बढ़तेबढ़ते 2 लाख के करीब पहुंच गया. वह इसी चिंता में रहता कि कर्ज कैसे उतारे.

आनंद सोशल साइट्स पर एक्टिव रहता था. एक दिन उस ने फेसबुक पर राधा अग्रवाल का प्रोफाइल देखा तो उस पर मोहित हो गया. उस ने बिना देर किए फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज दी. राधा अग्रवाल ने भी आनंद निगम का फोटो देखते ही उस की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

हालांकि राधा अग्रवाल और आनंद निगम की उम्र में काफी अंतर था. राधा अग्रवाल आनंद निगम से करीब 10 साल बड़ी थी. लेकिन दोनों को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. कुछ दिनों की चैटिंग के दौरान दोनों में गहरी दोस्ती हो गई और धीरेधीरे वे एकदूसरे के करीब आने लगे.

राधा अग्रवाल के पास पैसों की कमी नहीं थी. खर्च करने के लिए उस के पास पैसा ही पैसा था. जबकि कहीं आनेजाने के लिए स्कूटी थी. वह आनंद निगम के संपर्क में आ कर कुछ इस प्रकार फिसली कि अपनी मर्यादा की लक्ष्मण रेखाओं को भी लांघ गई. जब भी मौका मिलता, दोनों पुणे शहर के किसी भी होटल में जा कर मौजमजे कर लेते थे.

समय अपनी गति से चल रहा था. राधा अग्रवाल अब पूरी तरह से आनंद निगम पर आंख मूंद कर भरोसा करने लगी थी. आनंद निगम उस से जो भी कहता, उसे वह तहेदिल से स्वीकार करती थी. आनंद निगम को जब इस बात का पूरा यकीन हो गया कि राधा पूरी तरह उस की दीवानी है, तो उस ने अपने ऊपर चढ़े कर्जे को उतारने की एक खतरनाक योजना तैयार कर ली. वैसे तो राधा अग्रवाल लाख दो लाख रुपए उसे ऐसे ही दे सकती थी. लेकिन आनंद अपने ऊपर किसी प्रकार का बोझ नहीं रखना चाहता था. इस से रिश्ता खराब होने पर राधा अग्रवाल भी उस से अपना पैसा मांग सकती थी. यही सब सोच कर वह सिर्फ अपनी योजना पर ध्यान देने लगा.

योजना को अंजाम देने के लिए एक दिन उस ने राधा से कहा, ‘‘राधा, तुम इतनी खूबसूरत हो कि अगर किसी मैगजीन में तुम्हारे फोटो भेजे जाएं तो वे कवर पेज पर छप सकते हैं.’’

यह सुन कर खुश होते हुए राधा बोली, ‘‘सच!’’  ‘‘हां, क्या तुम ने अपने फोटोजेनिक चेहरे को कभी गौर से नहीं देखा?’’ आनंद बोला,  ‘‘देखो, मैं चाहता हूं कि किसी नैचुरल जगह पर तुम्हारा फोटोशूट कर के फोटो मैगजीन वगैरह में भेजे जाएं.’’

‘‘ठीक है, मैं इस के लिए तैयार हूं.’’ राधा बोली.  ‘‘तो ठीक है, तुम कल अपने सारे गहने पहन कर आ जाओ. हम पुणे से कहीं दूर चलेंगे.’’

राधा उस पर आंखें मूंद कर भरोसा करती ही थी. इसलिए 22 जून की सुबह अपने सारे गहने पहन कर घर से निकली. घर वालों से उस ने कह दिया कि वह अपनी सहेलियों के साथ स्कूटी से साईंबाबा के दर्शन करने शिरडी जा रही है. 2 दिन में लौट आएगी.

इस के बाद वह स्कूटी ले कर आनंद द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गई. आनंद वहां पहले ही खड़ा था. वहां से आनंद ने राधा की स्कूटी संभाली और राधा उस के पीछे चिपक कर बैठ गई.

राधा छली गई ग्लैमर के चक्कर में दोनों आपस में हंसीमजाक करते हुए कब पुणे से 80 किलोमीटर दूर निकल गए, पता ही नहीं चला. और जब पता चला तो वह ताम्हिणी के वर्षाघाट के जंगलों में पहुंच गए थे. आनंद निगम को अपनी योजना के अनुसार वह जगह उपयुक्त लगी. उस ने स्कूटी एक तरफ खड़ी कर दी. इस के बाद उस ने राधा से फोटो सेशन के लिए तैयार होने को कहा.

राधा अग्रवाल खुशीखुशी अपना फोटो सेशन कराने के लिए तैयार हो गई. सड़क से कुछ दूर जंगल में जा कर आनंद अलगअलग ऐंगल से उस के फोटो खींचने लगा. फिर आनंद ने राधा से एकदो हौरर फोटो खींचने के लिए अनुरोध किया. हौरर फोटो सेशन करने के लिए आनंद ने राधा की सहमति से पहले उस की आंखों पर पट्टी बांधी. फिर उस के हाथपैर बांध कर फोटो खिंचवाने को कहा.

राधा उस के कहने के अनुसार करती रही. हाथपैर बांधने के बाद आनंद ने उस के सारे गहने उतार कर अपने पास रख लिए. इस के बाद उस ने साथ छिपा कर लाए गए तेज धारदार चाकू से राधा अग्रवाल का गला रेत दिया. राधा अग्रवाल की एक मार्मिक चीख निकल कर निर्जन जंगल में खो गई.

राधा अग्रवाल की हत्या करने के बाद आनंद निगम ने उस का मोबाइल फोन स्कूटी की डिक्की में रख दिया. उस के हैंडबैग से नोटों से भरा पर्स निकाल लिया और स्कूटी ले कर पुणे की तरफ लौट पड़ा था. ताम्हिणी वर्षा घाट से कुछ दूर आनंद ने पर्स से सारे पैसे निकालने के बाद उसे भी फेंक दिया.

इस के बाद वह घोरपेड़ फाटक पर आ कर एक पान की दुकान पर रुका. वहां पर उस ने एक सिगरेट पी.

वहां से आनंद निगम अपने घर न जा कर सीधे अपने टी-स्टाल पर पहुंचा. उस समय रात का एक बजा था. चारों तरफ सन्नाटा था. उस ने राधा की स्कूटी अपने टी-स्टाल के पीछे खड़ी कर चाकू टी-स्टाल के अंदर छिपा दिया. फिर वह निश्चिंत हो कर अपने घर चला गया.

2 दिन निकल जाने के बाद राधा अग्रवाल के लूटे गए गहनों में से 7 तोले सोने के गहनों को वह अपने एक रिश्तेदार के यहां छिपा कर रख आया. बाकी बचे गहनों को ज्वैलर्स के यहां बेच कर अपना कर्ज उतार दिया. इतना करने के बाद वह पुणे शहर को छोड़ कर कर्नाटक में अपने गांव निकल गया.

आनंद निगम से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू और राधा अग्रवाल के गहने बरामद कर लिए. उसे भादंवि की धारा 302, 201, 363, 364(ए) के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे पुणे की यरवडा जेल भेज दिया गया.

—कथा में किशोरचंद्र और मानक नाम परिवर्तित हैं.

दगाबाज दोस्त, बेवफा पत्नी

रघुनाथ सिंह लोधी

दौलत व शोहरत की दौड़ में दबंगता के साथ आगे बढ़ते रहे मिक्की बख्शी को अपने अतीत पर ज्यादा रंज नहीं था. यह जरूर था कि वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता था जिस से उसे फिर से जेल जाना पड़े. अपराध के क्षेत्र के जानेमाने चेहरे अब भी उस के नाम से खौफ खाते थे.

वह रसूखदार लोगों की महफिलों में शिरकत करने लगा था. उस ने साफसुथरी जिंदगी का नया सफर शुरू करने का संकल्प ले लिया था. अब वह पढ़ीलिखी बीवी व एकलौते बेटे को कामयाबी के शिखर पर देखना चाहता था.

उस ने बीवी के नाम न केवल घर कारोबार कर दिया था, बल्कि नई चमचमाती कार की चाबी भी सौंप दी थी. जिस बीवी के लिए उस ने इतना सब कुछ किया, वही उस के जिगरी दोस्त ऋषि खोसला के साथ मिल कर उस के सीने में छुरा घोंपेगी, उस ने कभी सोचा भी नहीं था.

नागपुर ही नहीं मध्यभारत में कूलर कारोबार में खोसला कूलर्स एक बड़ा नाम है. जानेमाने कूलर ब्रांड के संचालक ऋषि खोसला का भी अपना अलग ठाठ रहा है. हैंडसम, स्टाइलिश पर्सनैलिटी के तौर पर वह यारदोस्तों की महफिलों की शान हुआ करता था. कई छोटीमोटी फिल्मों में भी वह दांव आजमा चुका था. इन दिनों जमीन कारोबार में मंदी का दौर सा चल रहा है, लेकिन ऋषि मंदी के दौर में भी जमीन कारोबार में अच्छा कमा रहा था. लोग उसे बातों का धनी भी कहते थे. वह अपना कारोबार बढ़ाने की कला अच्छी तरह जानता था.

47 वर्षीय ऋषि नागपुर के जिस बैरामजी टाऊन परिसर में रहता था, उसे करोड़पतियों की बस्ती भी कहा जाता है. उस बस्ती में लग्जीरियस लाइफ स्टाइल के शख्स रहते थे. ऋषि का छोटा सा परिवार था. परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा व एक बेटी थे. 18 वर्षीय बेटा विदेश में रह कर पढ़ाई कर रहा था, जो छुट्टी मनाने घर आया हुआ था.   20 अगस्त, 2019 की रात करीब 9 बजे की बात है. ऋषि का भाई मनीष और बेटा शिरडी में साईं बाबा के दर्शन कर घर लौट रहे थे. ऋषि अपने कारोबार के जरूरी काम निपटा कर समय से पहले ही घर पहुंच गया था. घर पर उस ने बेटे व भाई से मुलाकात की. भूख लगी थी सो पत्नी को खाना लगाने को कहा. इसी बीच ऋषि खोसला के पास मधु का फोन आया.

मधु उस की खास महिला मित्र थी. वह उस के अजीज दोस्त विक्की बख्शी की पत्नी थी. कारोबार में भी मधु ऋषि की मदद लिया करती थी. मधु ने उस से कहा कि कड़बी चौक के नजदीक उस की गाड़ी पंक्चर हो गई है. आप तुरंत आ जाइए.

‘‘तुम वहीं रहो, मैं 5 मिनट में पहुंचता हूं.’’ कह कर ऋषि बिना खाना खाए ही घर से निकल गया. मधु का घर कड़बी चौक के पास कश्मीरी गली में था. कश्मीरी गली को नागपुर की सब से प्रमुख पंजाबियों की बस्ती भी कहा जाता है. यहां बड़े कारोबारियों के बंगले हैं. कुछ देर में ऋषि मधु के पास पहुंच गया और मधु को घर पहुंचा आया. मधु को घर छोड़ने के बाद ऋषि अपनी कार नंबर पीबी08ए एक्स0909 से घर लौटने लगा.

ऋषि खोसला ने चुकाई भारी कीमत  रात के करीब 11 बजे होंगे. ऋषि किसी काम से कड़बी चौक पर खड़ा था, तभी वहां खड़ी उस की कार में एक आटोरिक्शा चालक ने टक्कर मार दी. ऋषि ने आटो चालक को फटकार लगाई तो आटो से उतर कर आए 3 युवक ऋषि से झगड़ा करने लगे. चौक पर वाहनों का आनाजाना चल रहा था. झगड़ा होता देख वहां लोग जमा होने लगे.

ऋषि की नजर आटोरिक्शा में बैठे एक शख्स पर गई. उसे देख कर ऋषि को यह समझने में देर नहीं लगी कि आटो में आए लोग संदिग्ध हैं और वे उस के साथ कुछ भी कर सकते हैं.

कई दिनों से उसे हमला होने का अंदेशा था. ऋषि ने चतुराई से काम लिया. वह उन लोगों से झगड़ने के बजाए कार ले कर सीधे घर की ओर चल पड़ा. वह काफी घबराया हुआ था. बैरामजी टाउन में ऋषि के घर से कुछ देरी पर गोंडवाना चौक है. ऋषि ने अचानक कार रोकी. उसे लग रहा था कि आटो वाले लोग उसे खोजते हुए उस के घर भी पहुंच सकते हैं.

वह अपने बचाव के लिए कहीं भाग जाना चाहता था. ऋषि कार से उतरा. भागने की फिराक में उस ने मोबाइल निकाल कर अपनी दोस्त मधु को जानकारी देने के लिए फोन किया. उस ने मधु को बताया कि उस के घर से लौटते समय कड़बी चौक में उस पर हमला होने वाला था.

वह इस के आगे कुछ कहता, इस से पहले ही आटो और बाइक पर आए लोगों ने ऋषि पर हमला कर दिया. फरसे के पहले ही वार में ऋषि की चीख निकल गई. मोबाइल उस के हाथ से छूट कर 10 फीट दूर जा कर गिरा.

इस के बाद भी उन लोगों ने ऋषि पर कई वार किए. अपना काम कर के हमलावर आटोरिक्शा से फरार हो गए. एक हमलावर वहां से ऋषि की कार ले गया ताकि कोई कार से उसे इलाज के लिए अस्पताल न ले जा सके. उस ने ऋषि की कार सदर क्षेत्र के एलबी होटल के पास ले जा कर खड़ी कर दी. हथियार भी उन्होंने वहीं आसपास डाल दिए थे.

ऋषि की फोन पर मधु से बात चल रही थी लेकिन जब अचानक बातचीत बंद हो गई तो वह घबरा गई. वह उसी समय गोंडवाना चौक पहुंच गई. उस समय वहां काफी लोग जमा थे. वहां पड़ी ऋषि की लाश को देख कर वह चीख पड़ी. इसी बीच किसी ने फोन से पुलिस को सूचना दे दी थी.

सूचना पा कर सदर पुलिस थाने की पुलिस वहां पहुंच गई. पुलिस उपायुक्त विनीता साहू भी वहां पहुंच गईं. मधु ने पुलिस को बताया कि ऋषि उस का प्रेमी था और उस की हत्या उस के पति मिक्की बख्शी व भाई सुनील भाटिया ने की है.

ऋषि को मेयो अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. इधर पुलिस लोगों से पूछताछ कर ही रही थी कि तभी मधु आत्महत्या के लिए निकल पड़ी.

वह फुटाला तालाब की ओर जा रही थी. पुलिस उपायुक्त विनीता साहू समझ गईं कि वह कोई आत्मघाती कदम उठाने जा रही है, इसलिए उन्होंने उसे रोक कर समझाया. विनीता ने मधु को आश्वस्त किया कि मिक्की व सुनील को जल्द ही पकड़ लिया जाएगा.

तब तक पुलिस आयुक्त डा. भूषण कुमार उपाध्याय भी वहां पहुंच गए थे. डीसीपी विनीता साहू ने उन्हें पूरी जानकारी से अवगत कराया. पुलिस कमिश्नर डा. उपाध्याय मिक्की की प्रवृत्ति से भलीभांति अवगत थे. क्योंकि वह आपराधिक प्रवृत्ति का था. उन्होंने उसी समय थाना सदर के प्रभारी को आदेश दिया कि मिक्की को इसी समय उठवा लो.

मिक्की बख्शी राजनगर में रहता था. थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम मिक्की के घर भेज दी. घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद थाना सदर पुलिस मधु को ले कर थाने लौट आई. मधु से कुछ जरूरी पूछताछ के बाद उसे घर भेज दिया.

उधर पुलिस टीम मिक्की बख्शी के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाने ले आई. पुलिस ने मिक्की से ऋषि खोसला की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह कहता रहा कि ऋषि तो उस का दोस्त था, भला वह अपने दोस्त को क्यों मारेगा. उस की बात पर पुलिस को यकीन नहीं हो रहा था.

पुलिस जानती थी कि वह ढीठ किस्म का अपराधी है, इसलिए पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सच उगल दिया. उस ने स्वीकार किया कि ऋषि खोसला की हत्या उस ने अपने जानकार लोगों से कराई थी. उस की हत्या कराने की उस ने जो कहानी बताई, वह काफी दिलचस्प थी—

मिक्की कैसे बना दबंग  रूपिंदर सिंह उर्फ मिक्की बख्शी नागपुर शहर का काफी चर्चित व्यक्ति था. करीब 2 दशक पहले शहर में प्रौपर्टी के कारोबार में उस का सिक्का चलता था. विवादित जमीनों से कब्जा खाली कराने के लिए उस के पास अच्छेबुरे हर किस्म के लोग आतेजाते थे.

शुरुआत में मिक्की ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में कांस्टेबल की नौकरी की थी. उस की तैनाती नक्सल प्रभावित क्षेत्र गढ़चिरौली के भामरागढ़ में थी. उसी दौरान निर्माण ठेकेदारों और सरकार के लोगों की फिक्सिंग का विरोध करते हुए उस ने नौकरी छोड़ दी थी. बाद में नागपुर में उस ने बीयरिंग बेचने का व्यवसाय किया.

मिक्की दबंग स्वभाव का तो था ही, जल्द ही उस के पास दबंग युवाओं की टीम तैयार हो गई. शहर ही नहीं, शहर के आसपास भी उस का नाम चर्चाओं में आ गया. वह कारोबारियों का मददगार होने का दावा करता था, लेकिन उस की पहचान वसूलीबाज अपराधी की भी बनने लगी थी.

बाद में मिक्की ने यूथ फोर्स नाम का संगठन तैयार किया. यूथ फोर्स के माध्यम से उस ने युवाओं की टीम का विस्तार किया गया. उस के संगठन में बाउंसर युवाओं की संख्या बढ़ने लगी. यही नहीं यूथ फोर्स के नाम पर मिक्की ने युवाओं के लिए प्रशिक्षण केंद्र भी शुरू कर दिया. बाद में उस ने यूथ फोर्स नाम की सिक्युरिटी एजेंसी खोल ली.

शहर में सब से महंगी व अच्छी सिक्युरिटी एजेंसी के तौर पर यूथ फोर्स की अलग पहचान बन गई. इस एजेंसी में अब भी करीब 3000 सिक्युरिटी गार्ड हैं. 2 दशक पहले शहर में ट्रक व्यवसाय को ले कर बड़ा विवाद हुआ था. कई ट्रक कारोबारी बातबात पर पुलिस व आरटीओ से उलझ पड़ते थे.  आरोप था कि ट्रक कारोबारियों को जानबूझ कर परेशान किया जा रहा है. उन से अंधाधुंध वसूली हो रही है. उस स्थिति में मिक्की ने उत्तर नागपुर के महेंद्रनगर में यूथ फोर्स संगठन का कार्यालय खोला. उस के कार्यालय में ट्रक कारोबारी फरियाद ले कर जाते थे. मिक्की ने अपने स्तर से कई मामले सुलझा दिए. दरअसल, पुलिस विभाग में मिक्की के कई दुश्मन थे तो कई दोस्त भी थे.

नाम चला तो पैसा भी आने लगा. मिक्की कारों के काफिले में घूमने लगा. 20-25 युवक उस की निजी सुरक्षा में रहते थे. सार्वजनिक जीवन में अपना नाम बढ़ाने का प्रयास करते हुए मिक्की ने एक साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन भी किया.

राजनीति के क्षेत्र में भी उस ने पैर जमाने की कोशिश की. लगभग सभी प्रमुख पार्टियों के बड़े नेताओं से उस के करीबी संबंध बन गए थे. उन पर वह खुले हाथों से पैसे खर्च करता था. मिक्की ने भाजपा के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के समर्थक के तौर पर पहचान बना रखी थी. वह गडकरी के जन्मदिन पर एक भंडारे का आयोजन करता था.

दोस्त ने ही जोड़ा था रिश्ता  सन 2002 की बात है. तब तक मिक्की की पहचान सेटलमेंट कराने के एवज में बड़ी वसूली करने वाले अपराधी के तौर पर हो गई थी. एक मामले में तत्कालीन पुलिस कमिश्नर एस.पी.एस. यादव ने मिक्की को गिरफ्तार करा कर सड़क पर घुमाया था. उस की आपराधिक छवि के कारण उस की शादी भी नहीं हो पा रही थी. शादी की उम्र निकलने लगी थी. उस के दोस्तों ने उस के लिए इधरउधर रिश्ते की बात छेड़ी. उस के दोस्तों में ऋषि खोसला व सुनील भाटिया प्रमुख थे.

तीनों ने शहर के हिस्लाप कालेज में साथसाथ पढ़ाई की थी. ऋषि खोसला मिक्की का दोस्त ही नहीं, बतौर कार्यकर्ता भी काम करता था. कई मामलों में वह मिक्की के लिए प्लानर की भूमिका निभाता था. हरदम साए की तरह उस के साथ लगा रहता था.

ऋषि को अभिनय का भी शौक था. उस ने कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया. हिंदी फिल्म ‘आशा: द होप’ में उस ने मुख्य विलेन का किरदार निभाया था. उस फिल्म में अभिनेता शक्ति कपूर थे. शक्ति कपूर से ऋषि खोसला के पारिवारिक संबंध भी बन गए थे.

सुनील भाटिया मिक्की व ऋषि के साथ ज्यादा नहीं रहता था, लेकिन कम समय में उस ने सट्टा कारोबार में बड़ी पहचान बना ली थी. यह वही सुनील भाटिया था जो आईपीएल मैच स्पौट फिक्सिंग के मामले में दिल्ली में पकड़ा गया था. तब सुनील के गिरफ्तार होने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के कुछ क्रिकेटर भी जांच की चपेट में आए थे.

बताते हैं कि सुनील भाटिया ने क्रिकेट सट्टा की बदौलत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करोड़ों की दौलत एकत्र की थी. वह आए दिन विदेश में रहता था. पिछले कुछ समय से वह स्वयं को साईंबाबा के भक्त के तौर पर स्थापित कर रहा था. उस ने नागपुर में कड़बी चौक परिसर में  साईं मंदिर भी बनवाया था. वहां हर गुरुवार को वह बड़ा भंडारा कराता था.

शिरडी साईंबाबा के दर्शन के लिए उस ने नागपुर से वातानुकूलित बस की नि:शुल्क सेवा उपलब्ध करा रखी थी. क्रिकेट और राजनीति के अलावा भाटिया के आपराधिक क्षेत्र में भी देशदुनिया के कई बड़े लोगों से सीधे संबंध थे.  मिक्की के लिए रिश्ते की बात चल रही थी. लेकिन सामान्य संभ्रांत परिवार से कोई रिश्ता नहीं आ रहा था. अपराधी के हाथ में कोई अपनी बेटी का हाथ देने को तैयार नहीं था. ऐसे में ऋषि खोसला को न जाने क्या सूझी, एक दिन उस ने दोस्तों की पार्टी में कह दिया कि मिक्की भाई के लिए चिंता करने की जरूरत नहीं है.

कहीं बात नहीं बन रही है तो हम कब काम आएंगे. शादी के लिए सुनील भाई की बहन मधु भी तो है. सुनील भाटिया की बहन मधु ने एमबीए कर रखा था. कहा गया कि वह मिक्की ही नहीं, उस के कारोबार को भी अच्छे से संभाल लेगी. बात व प्रस्ताव पर विचार हुआ.

उस समय सुनील भाटिया हत्या के एक मामले में जेल में था. मधु मिक्की से उम्र में 10 साल छोटी थी. इस के बावजूद वह मिक्की से शादी के लिए राजी हो गई. लिहाजा बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हुई. कई जानीमानी हस्तियां शादी समारोह में शरीक हुई थीं. मधु का मिजाज भी दबंग किस्म का था. शादी के कुछ दिनों बाद ही उस ने मिक्की के संगठन यूथ फोर्स के कारोबार में दखल देना शुरू कर दिया. वह सुरक्षा प्रशिक्षण अकादमी की संचालक बन गई.

मिक्की कारोबार की जिम्मेदारी से मुक्त हो कर अपनी नई दुनिया को संवारने लगा. राजनीति में भी उस का दबदबा कायम होने लगा. सन 2007 व 2012 के महानगर पालिका के चुनाव में मिक्की ने यूथ फोर्स का पैनल लड़ाया. पैनल के उम्मीदवार तो नहीं जीते लेकिन मिक्की की पहचान उभरते नेता के तौर पर बनने लगी थी.

हत्याकांड ने बदल दी जिंदगी  इस बीच एक ऐसा कांड हुआ, जिस ने मिक्की की जिंदगी के सुनहरे रंगों को ही छीन लिया. सन 2012 की बात है. कोराड़ी रोड पर जमीन विवाद के एक मामले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता गणेश मते का अपहरण कर लिया गया. बाद में उन की हत्या कर लाश कलमना में रेलवे लाइन पर डाल दी गई. इस हत्या का सूत्रधार मिक्की ही था. मामला 2 करोड़ की वसूली का था. तब राज्य में कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेतृत्व की सरकार थी. गृहमंत्री राष्ट्रवादी कांग्रेस के ही थे.

सत्ताधारी पार्टी के नेता की हत्या के मामले को स्थानीय से ले कर प्रदेश स्तर के नेताओं ने चुनौती के तौर पर लिया. मिक्की बचाव का प्रयास करता रह गया. उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

वह करीब 3 साल तक जेल में रहा. जेल से छूटा तो मिक्की के लिए सारा नजारा बदल सा गया था. उस की पत्नी मधु ने यूथ फोर्स सिक्युरिटी एजेंसी का कारोबार न केवल संभाल लिया था बल्कि अधिकृत तौर पर उसे अपने नाम कर लिया था. मिक्की के साथ साए की तरह रहने वाले ऋषि खोसला के व्यवहार में भी बदलाव आ गया था. ऋषि उस के बजाए उस की पत्नी मधु से ज्यादा लगाव दिखाने लगा था.

जेल में रहते मिक्की की सेहत में भी काफी बदलाव आ गया था. वह सेहत सुधारने के लिए सुबहशाम सदर स्थित जिम में जाया करता था. मधु अकसर ऋषि के साथ घर से गायब रहती थी. कभी किसी पार्टी में तो कभी क्लबों में वह ऋषि के साथ दिखती.

पहले तो मिक्की को लग रहा था कि पारिवारिक संबंध होने के कारण मधु ऋषि से अधिक घुलीमिली है. वैसे भी दोनों की शादी से पहले की पहचान थी, लेकिन संदेह हुआ तो एक दिन मिक्की ने मधु पर पाबंदी लगाने का प्रयास किया. मजाक में उस ने कह दिया कि ऋषि से ज्यादा चिपकना ठीक नहीं है. यहां कौन किस का सगा है, सब ने सब को ठगा है.

मिक्की की नसीहत का मधु पर कोई फर्क नहीं पड़ा. एक दिन जब मिक्की और मधु के बीच किसी बात को ले कर विवाद हुआ तो सब कुछ खुल कर सामने आ गया. मधु ने साफ कह दिया कि ऋषि से उस के प्रेम संबंध हैं. ऋषि से उसे वह सारी खुशी मिलती है, जिन की हर औरत को जरूरत होती है.

घूम गया मिक्की का दिमाग  यह सुनते ही मिक्की का दिमाग घूम गया. मधु ने यह भी बता दिया कि जब तुम जेल में थे, तब ऋषि कैसे काम आता था. कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने से ले कर कई मामलों में ऋषि ने अपने घरपरिवार की जिम्मेदारी की परवाह तक नहीं की. उस समय ऋषि ही उस का एकमात्र सहारा था. अब वह किसी भी हालत में ऋषि को खोना नहीं चाहती.

मिक्की ने पत्नी को बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानी. तब मिक्की ने मधु के भाई सुनील भाटिया को सारी बात बता दी  सुनील की समाज में काफी इज्जत ही नहीं बल्कि रुतबा भी था, इसलिए उस ने भी बहन मधु को समझाने की कोशिश की पर मधु तो ऋषि खोसला की दीवानी हो चुकी थी, इसलिए उस ने अपने प्रेमी की खातिर पति और भाई की इज्जत को धूमिल करने में हिचक महसूस नहीं की. वह बराबर ऋषि से मिलती रही.

अपनी बहन मधु पर जब सुनील का कोई वश नहीं चला तो वह तैश में आ गया. उस ने न केवल ऋषि को धमकाया बल्कि उस की पत्नी को भी चेतावनी दी कि वह पति को समझा दे या फिर अपनी मांग का सिंदूर पोंछ ले. मधु और मिक्की के बीच विवाद बढ़ता गया तो मधु ने कश्मीरी गली वाला मिक्की का फ्लैट हड़प कर उस में रहना शुरू कर दिया. वह उसी फ्लैट में रह कर कारोबार संभालती रही.

समय का चक्र नया मोड़ ले आया. एक ऐसा मोड़ जहां शेर की तरह जीवन जीने वाले व्यक्ति को भी भीगी बिल्ली की तरह रहना पड़ रहा था. मिक्की बख्शी नाम के जिस शख्स का नाम सुन कर अच्छेअच्छे तुर्रम खां डर के मारे पानी मांगने लगते थे, वह खुद को एकदम लाचार, असहाय समझने लगा.

मिक्की ने बीवी को क्या कुछ नहीं दिया था. उस ने अपनी आधी से अधिक दौलत उस के नाम कर दी थी. अपने सैकड़ों समर्थकों व चेलों को उस के निर्देशों का गुलाम बना दिया था. वही बीवी अब निरंकुश हो गई थी.

मिक्की ने दोहरी पहचान के साथ इज्जत का महल खड़ा किया था. एक तरफ अपराध क्षेत्र के भाई लोग उस की चरण वंदना करते थे तो वहीं नामचीन व रुतबेदार लोगों के बीच भी उस का उठनाबैठना था.

बन गई योजना जब मधु ने ऋषि खोसला का साथ नहीं छोड़ा तो अंत में मिक्की और सुनील ने फैसला कर लिया कि ऋषि को ठिकाने लगाना ठीक रहेगा. मिक्की जब जेल में बंद था तो उस की जानपहचान गिरीश दासरवार नाम के 32 वर्षीय बदमाश से हो गई थी. मिक्की ने ऋषि खोसला को निपटाने के लिए गिरीश से बात की. इस के बदले में मिक्की ने उसे अपने एक धंधे में पार्टनर बनाने का औफर दिया. गिरीश इस के लिए तैयार हो गया.

सौदा पक्का हो जाने के बाद गिरीश ने ऋषि खोसला की हत्या करने के संबंध में अपने शागिर्दों राहुल उर्फ बबन राजू कलमकर, निवासी जीजामातानगर, कुणाल उर्फ चायना सुरेश हेमणे, निवासी बीड़गांव, आरिफ इनायत खान निवासी खरबी नंदनवन और अजीज अहमद उर्फ पांग्या अनीस अहमद निवासी हसनबाग से बात की.

ये सभी गिरीश का साथ देने को तैयार हो गए. इस के बाद ये सभी ऋषि खोसला की रेकी करने लगे. 20 अगस्त, 2019 को उन्हें यह मौका मिल गया, तब उन्होंने गोंडवाना चौक पर उस की फरसे से प्रहार कर हत्या कर दी.

मिक्की बख्शी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने गिरीश दासरवार को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ करने पर उस ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. चूंकि इन दोनों से और पूछताछ करनी थी, इसलिए मिक्की व गिरीश को प्रथम श्रेणी न्याय दंडाधिकारी एस.डी. मेहता की अदालत में पेश कर 31 अगस्त तक पुलिस रिमांड मांगा. बचाव पक्ष के वकील प्रकाश नायडू ने पुलिस रिमांड का विरोध किया.

दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद अदालत ने दोनों को 25 अगस्त तक का पुलिस रिमांड दे दिया. घटना के 3 दिन बाद अन्य आरोपियों राहुल उर्फ बबन राजू कलमकर, कुणाल उर्फ चायना सुरेश हेमणे, आरिफ इनायत खान और अजीज अहमद उर्फ पांग्या अनीस अहमद को भी बाड़ी क्षेत्र के एक धार्मिक स्थल की इमारत की छत से गिरफ्तार कर लिया. इन आरोपियों पर हत्या, डकैती, सेंधमारी, अपहरण व मारपीट सहित अन्य मामले दर्ज थे.

हत्याकांड को अंजाम देने वाले गिरीश दासरवार पर हत्या के 4 मामले दर्ज थे. सन 2011 में गिरीश दासरवार ने अपने दोस्त जगदीश के साथ मिल कर दिनेश बुक्कावार नामक चर्चित प्रौपर्टी डीलर की हत्या कर दी थी. हत्या के बाद दिनेश के शव को उस ने अपने घर में ड्रम के अंदर छिपा कर रखा था.

आरोपियों में कुछ ओला कैब चलाते हैं. डीसीपी विनीता साहू के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम में एसीपी, पीआई महेश बंसोडे, अमोल देशमुख के अलावा विनोद तिवारी, सुशांत सालुंखे, सुधीर मडावी, संदीप पांडे, बालवीर मानमोडे शामिल थे. पुलिस ने सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

डोसा किंग: तीसरी शादी पर बर्बादी

चेन्नई के वेल्लाचीरी के बहुचर्चित प्रिंस शांता कुमार हत्याकांड की गवाही पूरी हो चुकी थी. 29 मार्च, 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा. साथ ही आदेश दिया कि प्रिंस शांताकुमार के हत्यारे पी. राजगोपाल, डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन को 7 जुलाई, 2019 तक कोर्ट में सरेंडर करना होगा.दरअसल, 19 मार्च, 2009 को चेन्नई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बानुमति और जस्टिस पी.के. मिश्रा की बेंच ने प्रिंस शांताकुमार की हत्या और हत्या की साजिश करार देते हुए इस केस के सभी दोषियों को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था. साथ ही हत्याकांड के मुख्य आरोपी और डोसा किंग के नाम से मशहूर पी. राजगोपाल पर 55 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया था, जिस में से 50 लाख रुपए मृतक की पत्नी जीवज्योति को दिए जाने थे. शेष रकम कोर्ट में जमा करानी थी.

हाईकोर्ट ने जब पी. राजगोपाल और उस के साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई तो पी. राजगोपाल ने इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस की याचिका सिरे से खारिज कर दी और हाईकोर्ट की सजा को बरकरार रखते हुए 7 जुलाई, 2019 तक हाईकोर्ट, चेन्नई में सरेंडर करने का आदेश दिया था.

पी. राजगोपाल ने घाटघाट का पानी पी रखा था. उस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए एक चाल चली. सरेंडर करने की आखिरी तारीख से 3 दिन पहले यानी 4 जुलाई, 2019 को पी. राजगोपाल नाटकीय ढंग से तमिलनाडु के वाडापलानी स्थित विजया अस्पताल में जा कर भरती हो गया.

अस्पताल में उसे औक्सीजन मास्क लगा दी गई. समाचार पत्रों और इलैक्ट्रौनिक मीडिया को इस बात का पता तब चला जब उस की औक्सीजन मास्क लगी फोटो सामने आई. खबर थी कि प्रिंस शांताकुमार का हत्यारा डोसा किंग पी. राजगोपाल गंभीर रूप से बीमार होने की वजह से विजया अस्पताल में भरती है.

पी. राजगोपाल ने ये चाल जेल जाने से बचने के लिए चली थी ताकि कोर्ट को उस पर दया आ जाए और उसे जेल जाने से बचा ले. अस्पताल में भरती होने के 4 दिन बाद यानी 9 जुलाई, 2019 को वह मास्क लगाए एंबुलेंस से चेन्नई हाईकोर्ट में सरेंडर करने जा पहुंचा.

कोर्ट ने उसे 7 जुलाई तक की मोहलत दे रखी थी, लेकिन दिमाग का शातिर राजगोपाल कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए जानबूझ कर 2 दिन बाद कोर्ट में सरेंडर करने पहुंचा था, जबकि उस के पांचों साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन ने पहले ही सरेंडर कर दिया था.

पी. राजगोपाल के वकील ने उसे बचाने के लिए कोर्ट के सामने उस के गंभीर रूप से बीमार होने के दस्तावेज पेश किए. लेकिन हाईकोर्ट ने उस की एक नहीं सुनी. न्यायालय ने कहा कि सुनवाई के दौरान कोर्ट को उस के बीमार होने की कोई सूचना नहीं दी गई थी, इसलिए उसे जेल जाना होगा.

जेल से अस्पताल पहुंचा राजगोपाल  कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पी. राजगोपाल को हिरासत में ले कर पुजहाल जेल भिजवा दिया. ऐसा करना कोर्ट की विवशता थी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश था. जेल जाने के 10 दिनों बाद पी. राजगोपाल की तबीयत सचमुच बिगड़ गई.

18 जुलाई को उसे जेल से निकाल कर सरकारी अस्पताल स्टेनली मैडिकल कालेज, चेन्नई में भरती कराया गया. तबीयत में कोई सुधार न होता देख राजगोपाल के बेटे ने अधिकारियों से इजाजत ले कर उसे इलाज के लिए उसे एक निजी अस्पताल में भरती कराया. अगले दिन इलाज के दौरान सुबह करीब 10 बजे पी. राजगोपाल ने दम तोड़ दिया. राजगोपाल की मौत के साथ शांताकुमार के एक हत्यारे की कहानी का अंत हो गया.

प्रिंस शांताकुमार कौन था? पी. राजगोपाल ने उस की हत्या क्यों की या करवाई, वह हत्यारा कैसे बना? इन सवालों से साइड बाई साइड निकली कहानी रोचक और रोमांचक है. प्याज उगाने वाले एक मामूली किसान का बेटा पी. राजगोपाल पिता की कर्मस्थली से भाग कर कैसे फर्श से अर्श तक पहुंचा, इस कहानी को जानने के लिए हमें पी. राजगोपाल के शुरुआती जीवन के पन्नों को पलटना होगा.

राजगोपाल मूलरूप से तमिलनाडु के तूतीकोरिन के पुन्नाइयादी का रहने वाला था. वह अपने मांबाप की एकलौती संतान था. उस के पिता प्याज की खेती करते थे. इस कहानी की शुरुआत होती है 1973 से. पिता की ख्वाहिश थी कि राजगोपाल खेती में उन का हाथ बंटाए ताकि प्याज का पुश्तैनी कारोबार चलता रहे. प्याज की पैदावार ही उन के परिवार के भरणपोषण का एकमात्र साधन थी.

राजगोपाल मांबाप का एकलौता बेटा था. उसे पिता के साथ खेती करना मंजूर नहीं था. वह गांव छोड़ कर चेन्नई (तब मद्रास) चला आया. चेन्नई के के.के. नगर में उस ने किराने की एक छोटी सी दुकान खोल ली.

करीब 8 साल तक उस ने किराने की दुकान चलाई. इसी दौरान उस की दुकान पर एक ज्योतिषी आया. ज्योतिषी ने बताया कि अगर वह किराने की दुकान के बजाए रेस्टोरेंट खोले तो ज्यादा मुनाफा होगा.

राजगोपाल ने ज्योतिषी की बात मान ली. उस ने किराने की दुकान बंद कर के उसी जगह पर छोटा सा रेस्टोरेंट खोल लिया. उस ने रेस्टोरेंट को नाम दिया— सर्वना भवन. अपने रेस्टोरेंट में उस ने डोसा, इडली, पूड़ी और वड़ा बेचना शुरू किया.

वह दौर ऐसा था, जब अधिकांश भारतीय बाहर खाने के बारे में सोचते तक नहीं थे, लेकिन राजगोपाल ने रिस्क लिया. उस ने डोसा, पूड़ी, वड़ा और इडली बनाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करना शुरू किया. साथ ही मसाले भी अच्छी क्वालिटी के लगाए.

कीमत रखी प्रति थाली सिर्फ 1 रुपया. नतीजा यह हुआ कि उसे एक महीने में 10 हजार रुपए का घाटा हो गया. लेकिन वह न तो कारोबार में हुए घाटे से पीछे हटा और न ही गुणवत्ता के मामले में कोई समझौता किया.

पी. राजगोपाल की मेहनत रंग लाई. बीतते वक्त के साथ कुछ ऐसा हुआ कि चेन्नई में अगर किसी का बाहर खाने का मन होता तो उस की पहली पसंद सर्वना भवन ही होती थी. उस के स्टाफ में जितने भी कर्मचारी थे, सब को अच्छी सैलरी देनी शुरू कर दी.

निचले स्तर के कर्मचारियों को उस ने मैडिकल की सुविधा भी देनी शुरू कर दी. नतीजा यह निकला कि उस का स्टाफ उसे अन्नाची (बड़ा भाई) कहने लगा. पी. राजगोपाल के अच्छे व्यवहार से उस के कर्मचारी उसे दिल से चाहते थे. अगर उसे छींक भी आ जाती तो वे तड़प उठते थे.

अरबपति बनने की राह पर  राजगोपाल की मेहनत और निष्ठा से उस का कारोबार चल निकला. नतीजा यह निकला कि राजगोपाल का ज्योतिषी पर भरोसा बढ़ गया. बहरहाल, जो भी हो वक्त के साथ कारोबार इतना बढ़ा कि राजगोपाल ने रेस्टोरेंट की चेन शुरू कर दी. धीरेधीरे लोग राजगोपाल का नाम भूल गए और उसे डोसा किंग के नाम से जानने लगे.

ज्योतिषी की सलाह पर राजगोपाल ने रंगीन कपड़े पहनने छोड़ दिए थे. वह झक सफेद पैंट और शर्ट पहनने लगा. साथ ही माथे पर चंदन का बड़ा टीका भी लगाता.

इतना ही नहीं, उस ने अपने रेस्टोरेंट में अपने ज्योतिषी की तसवीर भी लगवा दी. जीवन में आए इस बदलाव की वजह से उस ने ज्योतिषी को भगवान का दरजा दे दिया. ज्योतिषी जो कहता, राजगोपाल वही करता था.

20 साल के अंदर राजगोपाल का सर्वना भवन देश में ही नहीं, विदेशों में भी मशहूर हो गया. सिंगापुर, मलेशिया, थाइलैंड, हौंगकौंग, सऊदी अरब, ओमान, कतर, बहरीन, कुवैत, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड्स, बेल्जियम, स्वीडन, कनाडा, आयरलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इटली और रोम में भी राजगोपाल के आउटलेट्स खुल गए.

डोसा किंग पी. राजगोपाल की किस्मत आसमान में तारे की तरह चमक रही थी. कारोबार में नोट बरस रहे थे. डोसे की कमाई से उस के पास इतने पैसे आ गए कि वह नोटों के बिस्तर पर सोने लगा. उसी दौरान पी. राजगोपाल ने एक नहीं, 2-2 शादियां कीं. लेकिन दोनों पत्नियां उस के साथ नहीं टिकीं और हमेशाहमेशा के लिए उस का साथ छोड़ कर चली गईं.

यह वह समय था जब अर्श तक पहुंचे राजगोपाल की बरबादी की कहानी लिखी जानी शुरू हो गई थी. राजगोपाल के पास अकूत संपत्ति तो थी, लेकिन वह घरगृहस्थी के सुख के लिए तरस रहा था.

हर काम ज्योतिषी से पूछ कर करने वाले राजगोपाल ने उसी ज्योतिषी से सलाह ली.

ज्योतिषी ने उसे तीसरी शादी का सुझाव दिया. राजगोपाल ने उस का सुझाव मान लिया. अब सवाल यह था कि तीसरी शादी किस से की जाए, क्योंकि तब तक राजगोपाल की आयु 50-55 बरस हो चुकी थी. इस उम्र में कोई उसे अपनी बेटी क्यों देता.

राजगोपाल की तीसरी शादी की बात बरबादी के रूप में आई. शादी के चक्कर में उस का टकराव जीवज्योति से हुआ. बात सन 2000 के शुरुआत की है. जीवज्योति पी. राजगोपाल से कुछ पैसे उधार लेने के लिए आई. वह उन्हीं की कंपनी में काम करने वाले असिस्टेंट मैनेजर रामास्वामी की बेटी थी.

जीवज्योति का पति शांता कुमार ट्रैवल एजेंसी शुरू करना चाहता था, जिस के लिए उसे मोटी रकम की जरूरत थी. इसीलिए पति के कहने पर वह राजगोपाल के पास गई. उस के पिता रामास्वामी बेटी को अकेला छोड़ कर थाइलैंड चले गए थे. वह होते तो यह रकम वह अपने पिता से ले सकती थी.

राजगोपाल ने जब बला की खूबसूरत जीवज्योति को पहली बार देखा तो वह देखता ही रह गया. उस की खूबसूरती आंखों के रास्ते दिल में उतर जाने वाली थी. उस समय जीवज्योति की उम्र 27-28 साल रही होगी. वह राजगोपाल के दिल में उतर गई. उस ने जीवज्योति को तीसरी पत्नी बनाने की ठान ली.

लेकिन यहां राजगोपाल गलत था, क्योंकि वह प्रिंस शांताकुमार की पत्नी थी. जीवज्योति ने शांताकुमार से बहुत पहले ही लव मैरिज कर ली थी. यह बात राजगोपाल को पता भी चल गई थी. फिर भी वह जीवज्योति की खूबसूरती पर मर मिटा.

दरअसल शांताकुमार प्रोफेसर था. वह रामास्वामी की बेटी जीवज्योति को मैथ्स पढ़ाने के लिए उस के घर आता था. वह स्मार्ट और गबरू जवान था, चेन्नई के वेल्लाचीरी का रहने वाला. पढ़ातेपढ़ाते शांताकुमार का दिल जीवज्योति के लिए धड़कने लगा. जीवज्योति का भी हाल कुछ ऐसा ही था.

दोनों को इस बात का अहसास तब होता था, जब ट्यूशन के बाद दोनों अलग होते थे. जीवज्योति ने अपने गुरु की आंखों में अपने प्रति पलते प्यार को देख लिया था. जीवज्योति का दिल भी शांताकुमार के लिए बेकरार था. अंतत: दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया. फिर दोनों ने चुपचाप मंदिर में जा कर शादी भी कर ली.

यह बात सन 1999 की है. जीवज्योति ने भले ही अपने प्यार और शादी के राज को दबाए रखा, लेकिन उस का यह राज उस के पिता रामास्वामी के सामने आ ही गया. रामास्वामी को जब यह राज पता चला तो उन्हें धक्का लगा. उन्हें यह शादी मंजूर नहीं थी, क्योंकि शांताकुमार क्रिश्चियन था और जीवज्योति ब्राह्मण.

तमाम विरोधों के बावजूद जीवज्योति और शांताकुमार ने अपनी राह चुन ली थी घर वालों ने इस शादी का घोर विरोध किया. परिवार वालों के विरोध के चलते जीवज्योति अपने मांबाप का घर छोड़ कर प्रेमी से पति बने शांताकुमार के घर चली गई. बेटी के इस कदम से आहत हो कर रामास्वामी थाइलैंड चले गए और वहीं बस गए.

शादी के कुछ समय बाद शांताकुमार की नौकरी छूट गई और वह बेरोजगार हो गया. उस ने अपना व्यवसाय करने के बारे में सोचा. जीवज्योति पी. राजगोपाल को जानती थी, क्योंकि उस के पिता की वजह से राजगोपाल उसे बेटी कहता था और मानता भी खूब था.

पति शांताकुमार ने ही जीवज्योति को सुझाया था कि वह राजगोपाल के पास जा कर कुछ रकम उधार मांगे. जब बिजनैस से पैसा आएगा, तो उस की रकम लौटा देंगे. पति के सुझाव पर जीवज्योति राजगोपाल के पास पैसा मांगने गई. पी. राजगोपाल ने जीवज्योति को उतनी रकम दे दी, जितनी उसे जरूरत थी. इस रकम से शांता कुमार ने ट्रैवलिंग एजेंसी शुरू भी कर दी.

लेकिन दूसरी ओर जीवज्योति को देख कर राजगोपाल की नीयत खराब हो गई थी. उसे जीवज्योति इतनी पसंद आई कि वह उस से तीसरी शादी करने की योजना बनाने लगा. इतना ही नहीं, उस ने जीवज्योति को महंगेमहंगे गिफ्ट भेजने भी शुरू कर दिए.

राजगोपाल की इस मेहरबानी को न तो जीवज्योति समझ पाई थी और न ही उस का पति शांताकुमार. लेकिन जल्द ही दोनों उस की नीयत को समझ गए कि उस के दिमाग में कितनी गंदगी भरी हुई है. तभी तो बेटी कहने वाला राजगोपाल उस पर नजर गड़ाए हुए था.

दरअसल, राजगोपाल ने एक दिन जीवज्योति को अपने औफिस बुलाया. औफिस में उस की खूब आवभगत की और उस के सामने अपने दिल की बात रख दी कि वह अपने पति शांताकुमार को छोड़ कर उस से शादी कर ले.

उस की बात सुन कर जीवज्योति बुरी तरह भड़क गई और उसे खूब खरीखोटी सुना कर घर लौट आई. इस के बाद राजगोपाल ने पतिपत्नी के बीच दूरी पैदा करने की कोशिश शुरू कर दी.

पी. राजगोपाल अपने बुरे इरादों में कामयाब नहीं हो पाया. फिर भी उस ने जीवज्योति को फोन करना और महंगे तोहफे भेजना बंद नहीं किया. जब से राजगोपाल ने जीवज्योति से शादी की बात की थी, तभी से वह राजगोपाल पर भड़की हुई थी. ऊपर से उस का रोज फोन आना और महंगे तोहफे भेजना, इस सब से वह परेशान हो गई थी. जब उस ने देखा कि पानी सिर से ऊपर बह रहा है तो वह उस के प्रति और सख्त हो गई.

पी. राजगोपाल के फोन करने और महंगे तोहफों से परेशान हो कर जीवज्योति ने उस की शिकायत पुलिस में करने की धमकी दी. लेकिन इस धमकी का उस पर कोई असर नहीं हुआ. इस के बावजूद वह जीवज्योति को रोज फोन करता और महंगे तोहफे भेजता.

जीवज्योति का पति शांताकुमार काफी समझदार था. वह जानता था कि पी. राजगोपाल रसूखदार इंसान है. उस की ऊपर तक पहुंच है. उस से पंगा लेना आसान नहीं होगा. काफी सोचविचार करने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा कि इस शहर को ही छोड़ दिया जाए.

प्रिंस शांताराम और उस की पत्नी चेन्नई छोड़ पाते, उस से पहले ही 28 सितंबर, 2001 को पी. राजगोपाल अपने 5 साथियों के साथ उन के घर जा पहुंचा. उस ने जीवज्योति से धमकी भरे लहजे में कहा कि 2 दिन के अंदर वह अपने पति से रिश्ता तोड़ दे और उस से शादी कर ले नहीं तो इस का बहुत बुरा अंजाम होगा. जीवज्योति डरी नहीं, उस ने उस के मुंह पर ही कह दिया कि वह अपने पति से किसी भी तरह अलग नहीं हो सकती, चाहे वह जो भी कर ले.

जीवज्योति के मुंह से न सुनते ही पी. राजगोपाल आगबबूला हो उठा. वह न सुनने का आदी नहीं था. वह ऐसा शख्स था, जिस चीज पर उस का दिल आ जाता था, उसे साम, दाम, दंड, भेद चारों नीति अपना कर उसे हासिल कर लेता था, चाहे इस के लिए उसे भारी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

राजगोपाल को जीवज्योति पसंद आ गई थी. लेकिन उस ने उस के मुंह पर ही मना कर दिया था. उसे यह बात बहुत बुरी लगी, इसलिए उसे गुस्सा आ गया. वह उसे हासिल किए बिना इतनी आसानी से कैसे जाने देता.

जीवज्योति के मना करने के बाद राजगोपाल का इशारा पा कर उस के 5 साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन ने शांताकुमार को जबरन एक कार में बिठाया और राजगोपाल के के.के. नगर स्थित पुराने गोदाम में ले गए.

जीवज्योति की आंखों के सामने उस के पति का अपहरण हुआ था. वह इसे कैसे सहन कर सकती थी. उस ने के.के. नगर थाने में राजगोपाल और उस के 5 साथियों के खिलाफ शांताकुमार के अपहरण की नामजद तहरीर दी. लेकिन पुलिस ने उस का मुकदमा दर्ज नहीं किया.

जीवज्योति कई दिनों तक थाने के चक्कर काटती रही, लेकिन उस का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ. इस बीच वह अपने स्तर पर पति का पता लगाती रही लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

पति को ले कर जीवज्योति निराश हो गई थी. वह सोचती थी कि पता नहीं राजगोपाल के आदमियों ने शांताकुमार के साथ कैसा सुलूक किया होगा. उस ने पति के जीवित होने की आशा छोड़ दी थी. बस वह यही प्रार्थना करती थी कि वह जहां भी हो, सहीसलामत रहे.

अपहरण के 14वें दिन यानी 12 अक्तूबर, 2001 को शांताकुमार अपहर्ताओं के चंगुल से बच निकला और सीधे पुलिस कमिश्नर के औफिस पहुंच गया. उस ने अपनी आपबीती कमिश्नर को सुना दी.

पुलिस ने बात तो सुनी पर नहीं की ठोस काररवाई  शांताकुमार की पूरी बात सुन कर पुलिस कमिश्नर हतप्रभ रह गए. उन्होंने के.के. नगर थाने के थानेदार को जम कर फटकार लगाई और पीडि़त शांताकुमार का मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया. इस के बाद पुलिस को राजगोपाल के खिलाफ मुकदमा लिखना ही पड़ा.

पी. राजगोपाल और उस के 5 साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद शांताकुमार और जीवज्योति को यकीन हो गया था कि पुलिस दोषियों के खिलाफ कड़ी काररवाई करेगी. इस के बाद वे दोनों अपनी तरफ से यह सोच कर थोड़ा लापरवाह हो गए थे कि मुकदमा दर्ज हो जाने के बाद राजगोपाल की हेकड़ी कम हो जाएगी, वह दोबारा कोई ओछी हरकत नहीं करेगा.

लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद पी. राजगोपाल और भी आक्रामक हो गया था. एक अदना सी औरत उस से टकराने की जुर्रत कर रही थी, यह उसे यह बरदाश्त नहीं था. उस ने सोच लिया कि जीवज्योति को इस की सजा मिलनी चाहिए.

2-4 दिन तक जब राजगोपाल की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो शांताकुमार और जीवज्योति को लगा कि अब मामला सुलझ जाएगा.

लेकिन यह उन का भ्रम था. 6 दिन बाद 18 अक्तूबर, 2001 को एक बार फिर से शांताकुमार का अपहरण हो गया. अपहरण राजगोपाल ने ही करवाया था.

शांताकुमार का अपहरण करवाने के बाद पी. राजगोपाल फिर से जीवज्योति पर शादी के लिए दबाव डालने लगा. उस ने फिर से फोन करना शुरू कर दिया. जीवज्योति ने भी साफ कह दिया कि वह मर जाएगी लेकिन शादी के लिए तैयार नहीं होगी.

14 दिनों बाद 31 अक्तूबर, 2001 को कोडैकनाल के टाइगर चोला जंगल में शांताकुमार की डेडबौडी मिली. पति की लाश बरामद होने के बाद जीवज्योति ने थाने जाने के बजाय अदालत की शरण लेना बेहतर समझा. उस का पुलिस से भरोसा उठ चुका था, इसलिए उस ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट का फैसला जीवज्योति के पक्ष में आया और अदालत ने केस दर्ज करने का आदेश दे दिया.

कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पी. राजगोपाल और उस के 5 साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन के खिलाफ अपहरण, हत्या की साजिश और हत्या का केस दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस राजगोपाल की तलाश में जुट गई.

आखिर झुकना पड़ा कानून के सामन  अंतत 23 नवंबर, 2001 को राजगोपाल ने चेन्नई पुलिस के समने सरेंडर कर दिया. उस के सरेंडर करने से पहले पुलिस पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी. करीब डेढ़ साल तक जेल में रहने के बाद 15 जुलाई, 2003 को पी. राजगोपाल को जमानत मिल गई.

पी. राजगोपाल के जमानत पर बाहर आते ही जीवज्योति फिर से कोर्ट पहुंच गई. उस समय शांताकुमार का केस बहुचर्चित केस था, सो मामला स्पैशल कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया.

सन 2004 में सेशन कोर्ट का फैसला आ गया. कोर्ट ने अपहरण, हत्या की कोशिश और हत्या के मामले में पी. राजगोपाल और 5 दूसरे लोगों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन को 10-10 साल कैद की सजा सुनाई.

जीवज्योति इस सजा से खुश नहीं थी. उस ने हाईकोर्ट में अपील कर दी. करीब 5 साल तक मामला हाईकोर्ट में चलता रहा और फिर मार्च, 2009 में हाईकोर्ट का फैसला भी आ गया.

19 मार्च, 2009 को हाईकोर्ट के जस्टिस बानुमति और जस्टिस पी.के. मिश्रा की बेंच ने इसे हत्या और हत्या की साजिश का मामला करार देते हुए सभी दोषियों को मिली 10-10 साल की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. साथ ही पी. राजगोपाल पर 55 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया, जिस में से 50 लाख रुपए जीवज्योति को दिए जाने थे.

जब पी. राजगोपाल और उस के साथियों को हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी तो पी. राजगोपाल ने इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.  29 मार्च, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए आदेश दिया कि राजगोपाल को 7 जुलाई, 2019 तक सरेंडर करना होगा.

पी. राजगोपाल का पासा पलट गया था. अब उस का साथ न तो वक्त दे रहा था और न ही ज्योतिषी. सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद राजगोपाल की आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया. लेकिन वह इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं था.

उस ने नया पैंतरा चला. पी. राजगोपाल 4 जुलाई को अस्पताल में दाखिल हो गया. 7 जुलाई को सरेंडर करने की तारीख बीत गई तो उस ने 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में अपील की. उस ने कहा कि वह गंभीर रूप से बीमार है. उसे थोड़ी और मोहलत दी जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट पर उस की दलीलों का कोई असर नहीं हुआ.

जस्टिस एन.वी. रमन्ना की खंडपीठ ने कहा कि उसे हर हाल में कोर्ट में सरेंडर करना ही होगा. क्योंकि उस ने केस की सुनवाई के दौरान अपनी बीमारी का जिक्र नहीं किया था. इस के बाद 9 जुलाई, 2019 को वह मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा. एक एंबुलेंस उसे कोर्ट ले कर गई थी. नाक में औक्सीजन मास्क लगा हुआ था. कोर्ट के आदेश पर पी. राजगोपाल को जेल भेज दिया गया. 10 दिन जेल में रह कर उस की हालत सचमुच बिगड़ गई. उसे सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया, जहां 19 जुलाई, 2019 को पी. राजगोपाल का निधन हो गया. राजगोपाल के निधन के बाद केस की काररवाई बंद कर दी गई. बाकी पांचों आरोपी जेल में सजा काट रहे हैं.    —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अंजाम: स्वामी जी के चंगुल से कैसे निकली सुचित्रा

रात के 2 बज गए थे. बहुत कोशिश के बाद भी प्रोफेसर मुकुल बनर्जी को नींद नहीं आई. पत्नी सुचित्रा नींद के आगोश में थी. मुकुल ने उसे नींद से जगा कर फिर से अनुनयविनय करने का विचार किया. उन्हें लग रहा था कि जब तक संबंध नहीं बनाएंगे, नींद नहीं आएगी. इस के लिए वह शाम से ही बेकल थे.

सोने से पहले उसे अपनी भावना से अवगत भी कराया था. लेकिन उस ने साफ मना कर दिया था.  बोली, ‘‘बहुत थकी हूं. आप को तो पता है कल कंपनी के काम से 10 दिन के लिए इटली जा रही हूं. सुबह 6 बजे तक नहीं उठूंगी तो फ्लाइट नहीं पकड़ पाऊंगी. प्लीज सोने दीजिए.’’

उन्होंने उसे समझाने और मनाने की कोशिश की, पर कोई फायदा नहीं हुआ. वह सो गई. बाद में उन्होंने भी सोने की कोशिश की किंतु नींद नहीं आई.  26 वर्ष पहले जब उन्होंने सुचित्रा से विवाह किया था तो वह 24 वर्ष की थी. उन से 2 साल छोटी. तब वह ऐसी न थी. जब भी अपनी इच्छा बताते थे, झट से राजी हो जाती थी. उत्साह से साथ भी देती थी.

उस के साथ हंसतेखेलते कैसे वर्षों गुजर गए, पता ही नहीं चला. इस बीच उन की जिंदगी में बेटा गौरांग और बेटी काकुली आए.

गौरांग 2 साल पहले पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया था. 4 साल का कोर्स था. काकुली उस से 4 वर्ष छोटी थी. मां को छोड़ कर कहीं नहीं गई, वह कोलकाता में ही पढ़ रही थी.

सुचित्रा में बदलाव साल भर पहले से शुरू हुआ था. तब तक वह कंपनी में वाइस प्रेसीडेंट बन चुकी थी.

वाइस प्रेसीडेंट बनने से पहले औफिस से शाम के 6 बजे तक घर आ जाती थी. अब रात के 10 बजे से पहले शायद ही कभी आई हो.  कपड़े चेंज करने के बाद बिस्तर पर ऐसे गिर पड़ती थी जैसे सारा रक्त निचुड़ गया हो.

ऐसी बात नहीं थी कि वह उसे सिर्फ रात में ही मनाने की कोशिश करते थे. छुट्टियों में दिन में भी राजी करने की कोशिश करते थे, पर वह बहाने बना कर बात खत्म कर देती थी.

कभी बेटी का भय दिखाती तो कभी नौकरानी का. कभीकभी कोई और बहाना बना देती थी.  ऐसे में कभीकभी उन्हें शक होता था कि उस ने कहीं औफिस में कोई सैक्स पार्टनर तो नहीं बना लिया है.

ऐसे विचार पर घिन भी आती थी. क्योंकि उस पर उन का पूरा भरोसा था.  कई बार यह खयाल भी आया कि सुचित्रा उन की पत्नी है. उस के साथ जबरदस्ती कर सकते हैं, लेकिन कभी ऐसा किया नहीं.

लेकिन आज उन की बेकरारी इतनी बढ़ गई थी कि उन्होंने सीमा लांघ जाने का मन बना लिया.  उन्होंने सोचा, ‘एक बार फिर से मनाने की कोशिश करता हूं. इस बार भी राजी नहीं हुई तो जबरदस्ती पर उतर जाऊंगा.’

उन्होंने नींद में गाफिल सुचित्रा को झकझोर कर उठाया और कहा, ‘‘नींद नहीं आ रही है. प्लीज मान जाओ.’’  सुचित्रा को गुस्सा आया. दोचार सुनाने का मन किया. पर ऐसा करना ठीक नहीं लगा. उस ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘दिल पर काबू रखने की आदत डाल लीजिए, प्रोफेसर साहब. जबतब दिल का मचलना ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम्हें पाने के लिए मेरा दिल हर पल उतावला रहता है तो मैं क्या करूं? ऐसा लगता है कि अब तुम्हें मेरा साथ अच्छा नहीं लगता…’’   ‘‘यह आप का भ्रम है. सच यह है कि औफिस से आतेआते बुरी तरह थक जाती हूं.’’

‘‘रात के 10 बजे घर आओगी तो थकोगी ही. पहले की तरह शाम के 6 बजे तक क्यों नहीं आ जातीं?’’

‘‘आप समझते हैं कि मैं अपनी मरजी से देर से आती हूं. बात यह है कि पहले वाइस प्रेसीडेंट नहीं थी. इसलिए काम कम था. जब से यह जिम्मेदारी मिली है, काम बढ़ गया है.’’

‘‘जिंदगी भर ऐसा चलता रहेगा तो मैं कहां जाऊंगा. मेरे बारे में तो तुम्हें सोचना ही होगा.’’ उन की आवाज में झल्लाहट थी.

स्थिति खराब होते देख सुचित्रा ने झट से उन का हाथ अपने हाथ में लिया और प्यार से कहा, ‘‘नाराज मत होइए. वादा करती हूं कि इटली से लौट कर आऊंगी तो पहले आप की सुनूंगी, फिर औफिस जाऊंगी. फिलहाल आप सोने दीजिए.’’

सुचित्रा फिर सो गई. वह झुंझलाते हुए करवटें बदलने लगे. चाह कर भी जबरदस्ती न कर सके. जबरदस्ती करना उन के खून में था ही नहीं.

तन की ज्वाला शांत हुए बिना मन शांत होने वाला नहीं था. इसलिए उन्होंने सुचित्रा से बेवफाई करने का मन बना लिया.  वह समझ गए थे कि कारण जो भी हो, सुचित्रा अब पहले की तरह साथ नहीं देगी. कुछ न कुछ बहाना बनाती रहेगी.

उन्होंने जब ऐसी स्त्रियों को याद किया जो बिना शर्त, बिना हिचक संबंध बना सकती थी तो पहला नाम रूना का आया. उस से पहली मुलाकात शादी समारोह में हुई थी. 4 महीना पहले सुचित्रा की सहेली की बेटी की शादी थी. वह उस के साथ समारोह में गए थे.

पार्टी में काफी भीड़ थी. 10-15 मिनट बाद सुचित्रा बिछड़ गई. उस के बिना मन नहीं लगा तो बेचैन हो कर उसे ढूंढने लगे. 20-25 मिनट बाद मिली तो उन्होंने उलाहना दिया, ‘‘कहां चली गई थीं? ढूंढढूंढ कर परेशान हो गया हूं.’’

उस के साथ एक महिला भी थी. उस की परवाह किए बिना उन्हें झिड़कते हुए बोली, ‘‘मैं क्या 18-20 की हूं कि किसी के डोरे डालने पर उस के साथ चली जाऊंगी. आप भी अब 53 के हो गए हैं. इस उम्र में 18-20 वाली बेताबी मत दिखाइए, नहीं तो लोग हंसेंगे.’’

उस के बाद वह उस महिला के साथ चली गई. वह ठगे से खड़े रह गए. सुचित्रा ने उन के वजूद को उस ने पूरी तरह नकार दिया था.

अपनी बेइज्जती महसूस की तो वह भीड़ से अलग अकेले में जा कर बैठ गए. पत्नी से अपमानित होने के दर्द ने मन को भिगो दिया, आंखों से आंसू छलक आए.  आंसू पोंछने के लिए जेब से रुमाल निकालने की सोच ही रहे थे कि अचानक एक युवती अपना रुमाल बढ़ाती हुई बोली, ‘‘आंसू पोंछ लीजिए, प्रोफेसर साहब.’’

युवती की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. सलवार सूट से सुसज्जित लंबी कदकाठी थी. सुंदरता कूटकूट कर भरी थी.  उन्होंने कहा, ‘‘आप को तो मैं जानता तक नहीं. रुमाल कैसे ले लूं?’’

‘‘पहली बात यह कि मुझे आप मत कहिए. आप से छोटी हूं. दूसरी बात यह कि यह सच है कि आप मुझे नहीं जानते, पर मैं आप को खूब अच्छी तरह से जानती हूं.’’

युवती ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘आप की पत्नी ने कुछ देर पहले आप के साथ जो व्यवहार किया था, वह किसी भी तरह से ठीक नहीं था. इस से पता चल गया कि प्यार तो दूर, वह आप की इज्जत भी नहीं करती.’’  उन्हें लगा कि वह 50 हजार के सूटबूट, 1 लाख की हीरे की अंगूठी, गले में सोने की कीमती चेन और विदेशी कलाई घड़ी से अवश्य सुसज्जित हैं, पर उस युवती की सूक्ष्म दृष्टि ने भांप लिया है कि वजूद का तमाम हिस्सा जहांतहां से रफू किया हुआ है.

युवती से किसी भी तरह की घनिष्ठता नहीं करना चाहते थे. इसलिए झटके से उठ कर खड़े हो गए.

भीड़ की तरफ बढ़ने को उद्यत ही हुए थे कि युवती ने हाथ पकड़ कर फिर से बैठा दिया और कहा, ‘‘आप का दर्द समझती हूं. पत्नी को बहुत प्यार करते हैं, इसीलिए उस की बुराई नहीं सुनना चाहते. पर सच तो सच होता है. देरसबेर सामना करना ही पड़ता है.’’

युवती की छुअन से 53 साल की उम्र में भी उन के दिल की घंटी बज उठी. युवती खुद उन से आकर्षित थी, अत: उस का दिल तोड़ना ठीक नहीं लगा. न चाहते हुए भी उन्होंने उस का परिचय पूछ ही लिया.

उस ने अपना नाम रूना बताया. मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करती थी. ग्रैजुएट थी. अब तक अविवाहित थी.  मातापिता, भाईबहन गांव में रहते थे. शहर में अकेली रहती थी. पार्कस्ट्रीट में 2 कमरे का फ्लैट ले रखा था.

रूना ने बताया, ‘‘पहली बार आप को पार्क में मार्निंग वाक करते देखा था. आप की पर्सनैलिटी पर मुग्ध हुए बिना न रह सकी थी. लगा था कि आप अधिक से अधिक 40 के होंगे. आप की पत्नी ने आज आप को उम्र का अहसास कराया तो पता चला कि 53 के हैं. पर देखने में आप 40 से अधिक के नहीं लगते.’’

रूना आगे बोली, ‘‘रोजाना पार्क में वाक के लिए जाती थी, उस दिन के बाद आप को छिपछिप कर देखने लगी थी. आप से बात करने का मन होता था पर हिम्मत नहीं होती थी.  ‘‘एक दिन पार्क में आप को कोई परिचित मिल गया था. उस के साथ आप की जो बात हुई, उस से पता चला कि आप प्रोफेसर हैं. शादीशुदा तो हैं ही, 2 बड़ेबड़े बच्चों के पिता भी हैं.

‘‘किस कालेज में पढ़ाते हैं और कहां रहते हैं, इस का पता भी चल गया था. इस के बावजूद आप के प्रति मेरा झुकाव कम नहीं हुआ.  ‘‘आज इस पार्टी देने वाले की कृपा से आप से बात करने का मौका मिला है.यहां आते ही आप पर मेरी नजर पड़ी थी. मिलूं या न मिलूं, इसी उधेड़बुन में थी कि पत्नी से अपमानित हो कर आप इधर आ गए.

‘‘दुख में आप का साथ देना मुनासिब समझा और आप के पीछे आ गई. मेरी दोस्ती कबूल करें या न करें, पर जीवन भर आप को याद रखूंगी’’  उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रूना उन के शानदार व्यक्तित्व की कायल है.

इसी तरह कालेज लाइफ में भी कई लड़कियां उन पर घायल थीं. कुछ ने शादी का प्रस्ताव भी दिया था. लेकिन उन्होंने किसी का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था. उस समय कैरियर ही सब कुछ था.

शिक्षा क्षेत्र में जाना चाहते थे, इसीलिए एमए के बाद पीएचडी की. फिर थोड़े से प्रयास के बाद कालेज में नियुक्ति हो गई.  एक वर्ष बाद शादी की सोची तो सुचित्रा  से परिचय हुआ. शादी का प्रस्ताव उसी ने दिया था. वह उन से बहुत प्रभावित थी.

काफी सोचने के बाद सुचित्रा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था. कारण यह कि वह अपने मातापिता की एकलौती बेटी थी. उस के पिता शहर के नामी अमीरों में थे. उन का कई तरह का बिजनैस था. उस का बड़ा भाई राजनीति में था, बहुत रुतबे वाला. उस के परिवार के सामने उन की कोई हैसियत नहीं थी.

उन का परिवार सामान्य था. पिता शिक्षक थे. मां हाउसवाइफ थी. कुछ दिन पहले ही कुछ अंतराल पर दोनों का देहांत हुआ था.  संपत्ति के नाम पर पार्कस्ट्रीट पर 6 कट्ठा में बना 4 मंजिला मकान था. दूसरी मंजिल उन के पास थी. बाकी किराए पर दे रखा था. अच्छाखासा किराया आता था. कुछ बैंक बैलेंस भी था.

सुचित्रा सुंदर थी और स्मार्ट भी. सीए के बाद भी उस ने कई डिग्रियां हासिल की थीं. उस के घर वाले भी उन से प्रभावित थे. फलस्वरूप जल्दी ही धूमधाम से दोनों की शादी हो गई.

उन के मना करने पर भी सुचित्रा के पापा ने दोनों के नाम एक आलीशान मकान खरीद दिया तो उन्होंने अपना घर किराए पर दे दिया और सुचित्रा के साथ नए मकान में आ गए.

सुचित्रा के पिता के पास बाकुड़ा और मिदनापुर में 3 फार्महाउस थे. मिदनापुर वाला फार्महाउस 20 एकड़ का था. उसे उन्होंने सुचित्रा को दे दिया था. जबकि सुचित्रा कोलकाता में ही रह कर जौब करना चाहती थी. इसलिए फार्महाउस में मैनेजर रख दिया गया.

शादी के कुछ महीने बाद सुचित्रा ने जौब करने की बात कही तो उन्होंने इजाजत दे दी. वह होनहार थी ही. जल्दी ही एक बड़ी मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर जौब मिल गया.

एकदूसरे की मोहब्बत से लबरेज जिंदगी समय की धारा के साथ दौड़ती चली गई. उन्हें लगा था कि सुचित्रा जीवन भर अपने प्यार के झूले पर झुलाती रहेगी, पर ऐसा नहीं हुआ. पिछले एक साल से न जाने क्यों वह उन से कतराने लगी थी.

कभी पराई स्त्री से संबंध बनाने के बारे में सोचना पड़ेगा, उन्होंने सोचा तक नहीं था. लेकिन सुचित्रा की अवहेलना से वह ऐसा करने पर मजबूर हो गए थे.

रूना से दोस्ती करने के बाद उस से बराबर मिलते रहे. उस के साथ मौल में 2 बार रोमांटिक मूवी भी देख आए थे. कालेज से छुट्टी ले कर पिकनिक भी मना चुके थे.

एक बार रूना उन्हें घर ले गई थी. बातोंबातों में वह अचानक उन से लिपट गई और बोली, ‘‘यदि आप की पत्नी नहीं होती तो आप से शादी कर लेती. आप को प्यार जो करने लगी हूं.’’

उन्होंने भी रूना को एकाएक बांहों में कस लिया था. सीमाएं लांघ पाते, उस से पहले ही उन का विवेक लौट आया.

रूना को अपने से अलग कर के उन्होंने कहा, ‘‘दोस्ती की एक सीमा होती है. मैं हमेशा तुम्हें दोस्त बनाए रखना चाहता हूं.’’

फिर रूना के कुछ कहने से पहले ही वहां से चले गए थे.  इस के बावजूद रूना ने उन से मिलना बंद नहीं किया था. वह नियमित मिलती रही थी.

इस तरह 4 महीने में ही रूना ने उन के वजूद को कोहरे की चादर की तरह ढंक लिया था. इसीलिए सुचित्रा से बेवफाई करने का मन हुआ तो उस से ही संबंध बनाने का फैसला किया.  अगले दिन सुचित्रा सुबह 8 बजे एयरपोर्ट चली गई तो उन्होंने रूना को फोन किया. वह चहकती हुई बोली, ‘‘सुबहसुबह कैसे याद किया प्रोफेसर साहब? सब खैरियत है न?’’

‘‘खैरियत नहीं है. अकेला हूं और तनहाई में तुम्हारा साथ चाहता हूं.’’

‘‘मतलब?’’ रूना ने चौंक कर पूछा.   ‘‘एक बार मैं ने मना कर दिया था. पर अब मैं तुम्हें पाने के लिए बेचैन हूं. तुम मिलोगी न?’’ उन्होंने बगैर कोई संकोच के अपने मन की बात कह दी.

‘‘आप को इतना प्यार करती हूं कि जान भी दे सकती हूं. शाम को कालेज से छुट्टी होते ही मेरे घर आ जाइए. पलकें बिछा कर आप की प्रतीक्षा करूंगी.’’

वह खुशी से झूम उठे. सारा दिन कैसे बीता, पता ही नहीं चला. रूना से मिलने की कल्पना से पुलकित होते रहे थे.  छुट्टी हुई तो बिना देर किए उस के घर चले गए. रूना ने उन का भरपूर स्वागत किया.

रात के 11 बजे अपने घर वापस लौट रहे थे तो जैसे हवा में उड़ रहे थे. पहली बार महसूस किया कि कभीकभी अपनों से अधिक परायों से सुख मिलता है. रूना से उन्होंने भरपूर सुख महसूस किया था.

अचानक मोबाइल पर रूना का मैसेज आया, ‘‘आप को मैं अच्छी लगी तो जब जी चाहे, आ सकते हैं. आप मेरे रोमरोम में बस गए हैं. आप को नजरअंदाज कर जी नहीं सकती.’’

रूना का प्यार देख कर मन मयूर नाच उठा. फिर उन्होंने भी मैसेज किया, ‘‘तुम मेरी धड़कन बन चुकी हो. मैं भी अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’  अगले दिन से ही वह प्रतिदिन बेटी से कोई न कोई बहाना बना कर रूना के घर जाने लगे.

कहावत है कि सच्चाई जानते हुए भी आंखें मूंद लेने में दिल को बहुत सुकून मिलता है. उन्होंने भी ऐसा ही किया.  वह अच्छी तरह जानते थे कि जो हो रहा है, वह मृगतृष्णा है, जहां रेत को पानी समझ कर मीलों दौड़ते रहना पड़ता है.

इस के बावजूद शबनम की बूंदों सी बरसती प्यार की तपिश को महसूस करने के लिए उन्होंने शतुरमुर्ग की तरह रेत में अपना मुंह छिपा लिया था.  जिस दिन सुचित्रा इटली से लौट कर आई, उस दिन वह रूना के घर नहीं गए. कुछ दिनों तक उस से न मिलने का फैसला लिया था.

मुकुल रूना को अपना फैसला फोन पर बताने की सोच ही रहे थे कि उस का ही फोन आ गया, बोली, ‘‘जानती हूं, आप की पत्नी इटली से वापस आ गई है. अब आप नहीं आ पाएंगे. आएंगे भी तो कभीकभी. कोई बात नहीं. आप आएं या न आएं, मैं तो सदैव आप को याद रखूंगी.

‘‘आप भी मुझे हमेशा याद रखेंगे. इस के लिए कुछ उपाय मैं ने किए हैं. फोन पर भेज रही हूं. अच्छे से देख लीजिए और सोचसमझ कर कदम उठाइए.’’

फिर मोबाइल पर रूना के मैसेज पर मैसेज आने लगे. उन्होंने मैसेज खोलना शुरू किया तो दिल की धड़कन बेतरह बढ़ गई. आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

मैसेज में कई एक फोटो थे. सारे के सारे रूना और उन के अंतरंग क्षणों के थे. जाहिर था रूना ने कैमरा लगा रखा था या फिर उस के किसी साथी ने छिप कर फोटो खींचे थे.

उन की समझ में आ गया कि सारा कुछ सुनियोजित था. उन के हाथपैर कांपने लगे. घबराहट में भय से रुलाई छूट गई.

ऐसे फोटो देखने के बाद समाज में उन की इज्जत राईरत्ती भी नहीं रहती. पत्नी की नजर में भी सदैव के लिए गिर जाते. वह उन्हें तलाक भी दे सकती थी.

कुछ देर बाद अपने आप को काबू में कर रूना को फोन किया, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? तुम तो मुझे प्यार करती थी.’’  ‘‘प्यार तो अब भी करती हूं प्रोफेसर साहब, पर प्यार से पेट थोड़े भरता है. इस के लिए रुपए की जरूरत होती है. मांगने से तो देते नहीं, इसीलिए ऐसा करना पड़ा.

‘‘लेकिन आप डरिए मत. बेफिक्र हो कर मेरे घर आ जाइए. मेरी बात मान लेंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’ अगले दिन वह रूना के घर गए तो उस का रूप देख कर दंग रह गए. पहले तो उस ने 30 करोड़ रुपए मांगे. उन के गिड़गिड़ाने पर 25 करोड़ पर रुक गई, जबकि वह उसे 5 लाख से अधिक नहीं देना चाहते थे.

दोनों में बहुत देर तक गरमागरम बहस हुई. कोई समझौता नहीं हुआ तो रूना बोली, ‘‘आज एक सच बताती हूं. वह यह कि मैं किसी कंपनी में जौब नहीं करती. एक आश्रम के लिए काम करती हूं.

‘‘उस आश्रम के मालिक स्वामी सच्चिदानंद हैं. उन के कहने पर ही आप को अपने जाल में फंसा कर फोटो और वीडियो बनाया था. अंतिम फैसला स्वामीजी ही करेंगे.’’

उन्होंने आश्रम में जा कर स्वामीजी से बात की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. वह 30 करोड़ से कम पर राजी नहीं हुए.

उन्होंने कैश न होने की बात की तो स्वामीजी ने कहा, ‘‘आप के पास कैश है कि नहीं, मैं नहीं जानता. पर इतना जानता हूं कि आप के पास एक पुश्तैनी मकान है जो आज की तारीख में 30-35 करोड़ का है. उसे आश्रम के नाम कर दीजिए. बात खत्म हो जाएगी.’’

वह समझ गए कि रोनेगिड़गिड़ाने से कोई फायदा नहीं होगा. इस के लिए कोई योजना बना कर उन के जाल से निकलना होगा.

सोचनेसमझने के नाम पर उन्होंने स्वामीजी  से 10 दिन का समय मांग लिया और घर आ कर उन्हें कानूनी चंगुल में फंसाने की योजना बनाई.

2 दिन बाद उन्होंने रूना को फोन पर कहा, ‘‘तुम से एक समझौता करना चाहता हूं, जिस में तुम्हें बहुत बड़ा फायदा होगा.’’

रूना ने अपने घर बुला लिया तो उन्होंने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘मुझे अपना मकान किसी को देना ही है तो स्वामीजी को क्यों दूं? तुम्हें क्यों न दूं? सुख तो मुझे तुम से मिला है.   ‘‘इस के बदले में तुम्हें मेरे मोबाइल में स्वामीजी के खिलाफ अपना बयान रिकौर्ड करा देना है. तुम्हें कुछ नहीं होगा, स्वामीजी जेल चले जाएंगे.’’

‘‘स्वामीजी को कानून के जाल में फंसाना इतना आसान नहीं है. आप मेरे बयान पर पुलिस की मदद लेंगे तो वह आप की पत्नी को अपना हथियार बना कर आप को सरेंडर करने पर मजबूर कर देंगे.’’

उन्होंने चौंक कर पूछा, ‘‘मैं कुछ समझा नहीं. मेरे और स्वामीजी के बीच मेरी पत्नी कहां से आ गई?’’

‘‘बात यह है कि आप की पत्नी स्वामीजी पर फिदा है. वह साल भर से उन की गुलामी कर रही है. स्वामीजी ने आप की पत्नी की कई तरह की पोर्न फिल्में बना रखी हैं.‘‘आप समझते हैं कि रात के 9 बजे तक वह औफिस में रहती है इसीलिए रात 10 बजे घर आती है. जबकि सच्चाई यह नहीं है. सच्चाई यह है कि रोज औफिस से शाम 5 बजे फ्री हो जाती है. फिर स्वामीजी के आश्रम जा कर स्वामीजी के साथ मौजमस्ती करती है, फिर घर जाती है.

‘‘10 दिनों के लिए आप की पत्नी कंपनी के काम से इटली नहीं गई थी. वह स्वामीजी के साथ मौजमस्ती करने इटली गई थी.’’

प्रमाणस्वरूप रूना ने अपने मोबाइल में उन की पत्नी और स्वामीजी का अंतरंग क्षणों का वीडियो दिखा कर कहा, ‘‘इसे मैं ने स्वामीजी से छिप कर इसलिए शूट किया था ताकि जरूरत पड़ने पर उन के खिलाफ इस्तेमाल कर सकूं.’’

सुन कर वह सकते में आ गए. जिस पत्नी को वह चरित्रवान समझ रहे थे, वह बदचलन निकली. बहुत देर बाद उन्होंने अपने आप को समझाया.

रूना से रिक्वेस्ट कर के उन्होंने अपने मोबाइल में वीडियो सेंड करवाया और यह कह कर चले गए कि 2-3 दिन में अच्छी योजना के साथ उस से मिलेंगे. उन्होंने उसे यह भी कहा कि वह हर हाल में अपना मकान उसे ही देंगे.

3 दिन बाद जबरदस्त योजना ले कर वह रूना के घर आ भी गए. योजना सुन कर वह खुशी से उछल पड़ी. वाकई जबरदस्त योजना थी.  ‘‘मेरी जान भले चली जाए, लेकिन मैं आप की योजना सफल बना कर रहूंगी. मगर आप अपना मकान मेरे नाम कब करेंगे?’’ रूना ने पूछा.

‘‘मैं मकान के पेपर तैयार कर के साथ लाया हूं. योजना सफल होते ही उस पर दस्तखत कर दूंगा. इतना ही नहीं, मैं ने तुम से शादी करने का भी फैसला किया है.’’  ‘‘यह कैसे होगा? आप की पत्नी जो है?’’

‘‘अब मैं उसे अपने साथ नहीं रखना चाहता. वह भी मुझे तलाक देने के लिए राजी है.’’

रूना खुशी के मारे उन से लिपट गई.  रूना को हर तरह से खुश करने के बाद उन्होंने सब से पहले पूरे कमरे में सीसीटीवी कैमरे लगाए. उस के बाद स्वामीजी के खिलाफ रूना का बयान अपने मोबाइल में रिकौर्ड किया.  जरूरी काम कर के स्वामीजी को फोन किया, ‘‘आप के आश्रम के नाम मैं ने मकान के पेपर बनवा लिए हैं. शाम के 6 बजे रूना के घर आ जाइए. पेपर पर आप दोनों के सामने दस्तखत कर दूंगा.’’

स्वामीजी ने उन्हें पेपर ले कर आश्रम आने के लिए कहा. वह आश्रम में जाने के लिए राजी नहीं हुए तो स्वामी साढे़ 6 बजे अपने 2 सहयोगी के साथ रूना के घर आ गया.

आते ही स्वामी ने मकान के पेपर मांगे तो उन्होंने कहा, ‘‘पेपर तो दूंगा ही. पहले आप यह बताइए कि मेरी पत्नी पर आप ने कौन सा जादू कर रखा है कि आप की गुलाम बन गई है. खुशीखुशी अपना सर्वस्व तक सौंप देती है? उस से आप चाहते क्या हैं?’’

‘‘मेरी शिष्या नमिता जिस कंपनी में चेयरमैन है, उसी में आप की पत्नी है. नमिता से ही पता चला कि आप की पत्नी के पास एक फार्महाउस है और आप के पास पुश्तैनी मकान है.

‘‘नमिता को आप की पत्नी के पीछे लगा दिया. वह वाइस चेयरमैन बनना चाहती थी, सो मेरे इशारे पर चलने लगी. बाद में मैं ने रूना को आप के पीछे लगा दिया था.’’  स्वामीजी आगे कुछ कहते, उस से पहले दरवाजे की घंटी बजी. रूना ने दरवाजा खोला तो सुचित्रा थी.

वह कुछ कहती, उससे पहले सुचित्रा यह कहते हुए अंदर आ गई, ‘‘मैं जानती हूं, स्वामीजी और मेरे पति अंदर हैं. मुझे तुम लोगों के बारे में सब कुछ मालूम हो गया है. स्वामीजी से बात कर के चली जाऊंगी.’’

रूना दरवाजा बंद करने लगी तो सुचित्रा ने मना कर दिया. कहा, ‘‘2 मिनट में लौट जाऊंगी. दरवाजा बंद करने की जरूरत नहीं है.’’

सुचित्रा के आ जाने से सभी सकते में थे. रूना भी परेशान हो गई थी. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि अब उसे क्या करना चाहिए.

सुचित्रा स्वामीजी से बोली, ‘‘आप को एक सच बताने आई हूं.’’ ‘‘क्या?’’ स्वामीजी ने पूछा.

‘‘मेरे पति रूना को प्यार करते हैं. मुझे तलाक दे कर उस से शादी करना चाहते हैं. अपना मकान भी उसी को देना चाहते हैं. इसलिए मैं ने भी अपना फार्महाउस आप के आश्रम को दे कर अपनी शेष जिंदगी आप के साथ बिताने का फैसला किया है.’’

सुचित्रा के चुप होते ही स्वामीजी दहाड़ उठे, ‘‘तुम तो अपनी संपत्ति दोगी ही. तुम्हारे पति को भी देनी होगी. अपनी संपत्ति रूना को देने वाला वह कौन होता है. यदि वह मेरी बात नहीं मानेगा तो मेरे लोग यहीं पर उस का कत्ल कर देंगे.’’

स्वामीजी प्रोफेसर साहब से कुछ कहते, उस से पहले खुले दरवाजे से पुलिस आ गई.  स्वामीजी और उन के दोनों सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया. रूना को भी गिरफ्तार कर लिया.

इंसपेक्टर ने स्वामीजी से कहा, ‘‘आप पर बहुत दिनों से पुलिस की नजर थी. सबूत के अभाव में गिरफ्तार नहीं कर पा रहे थे. आज पक्का सबूत मिल गया. कमरे में आप लोगों के बीच जो बातें हुई हैं, वे सब सीसीटीवी कैमरे में कैद हो चुकी हैं.’’

बात यह थी कि प्रोफेसर साहब को जब रूना से यह पता चला कि उन की पत्नी सुचित्रा दुश्चरित्र है, स्वामीजी के साथ उस का अवैध संबंध है तो उन का दिल टूट गया.

पहले तो उन्होंने उस से शादी तोड़ लेने का विचार किया. पर तुरंत अपने विचार को दरकिनार कर उसे एक मौका देने का फैसला कर लिया. वह वाकई पत्नी को बहुत प्यार करते थे.

उन्होंने सुचित्रा से स्वामीजी के बाबत पूछा तो वह फफकफफक कर रोने लगी. उन्होंने उसे आश्वस्त किया तो बोली, ‘‘आप को सब कुछ बताना चाह रही थी, पर हिम्मत नहीं जुटा पाई. अब आप को सब कुछ पता चल ही गया है तो मैं अपनी गलती स्वीकार करती हूं. प्लीज मुझे माफ कर दीजिए.’’

फिर उस ने सब कुछ सचसच बता दिया.  दरअसल, सुचित्रा कंपनी का चेयरमैन बनना चाहती थी, पर वह बन नहीं सकी. उस से 2 साल जूनियर नमिता भट्टाचार्य चेयरमैन बन गई. वह किसी की सिफारिश पर बनी थी.

इस से वह दुखी थी और जौब से त्यागपत्र देने का मन बना लिया था.  त्यागपत्र देती उस से पहले नमिता भट्टाचार्य ने उस से कहा, ‘‘जानती हूं, तुम चेयरमैन नहीं बन सकी इसलिए दुखी हो. तुम त्यागपत्र मत दो. मुझ पर भरोसा रखो. जल्दी ही तुम्हें वाइस चेयरमैन बनवा दूंगी.’’

‘‘वह कैसे?’’   ‘‘तुम्हारे जूनियर रहते हुए भी जिस ने मुझे अपने पावर से चेयरमैन बनवाया है, वही तुम्हें वाइस चेयरमैन बनवा देंगे. 3-4 महीने बाद वाइस चेयरमैन का पद खाली होने वाला है.’’

‘‘कौन है वह?’’ सुचित्रा ने पूछा.  ‘‘2 दिन बाद उन के पास ले चलूंगी. सब कुछ जान जाओगी.’’

वाइस चेयरमैन का पद सुचित्रा को खराब नहीं लगा. 2 दिन बाद नमिता भट्टाचार्य उसे एक आश्रम में ले गई. स्वामीजी से पहली बार उस का परिचय हुआ. वहीं पर उसे पता चला कि वह सर्वशक्तिमान हैं. कुछ भी कर सकते हैं.

स्वामीजी 40-45 साल के थे. बड़े ही हैंडसम और स्मार्ट. वाकपटुता में दक्ष थे. सुचित्रा उन से बहुत प्रभावित हुई.

स्वामीजी ने उसे कहा, ‘‘3 महीने बाद मैं तुम्हें हर हाल में वाइस चेयरमैन बना दूंगा. पर याद रखना किसी को कभी भी बताना मत कि तुम्हें किस ने वाइस चेयरमैन बनवाया है. दूसरी बात यह कि इस के लिए तुम्हें 3 महीने तक रोज आश्रम में आ कर साधना करनी होगी. पर घर वालों को इस के बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए.’’

सुचित्रा उन की बात मान गई. अगले दिन औफिस से छुट्टी होते ही आश्रम जा कर साधना करने लगी. इस के लिए उसे घर में तरहतरह के बहाने बनाने पड़ते थे.

2 महीने में ही वह स्वामीजी से घुलमिल गई. स्वामी उसे अच्छा और सच्चा इंसान लगा. लेकिन उन की सच्चाई जल्दी ही सामने आ गई.  हुआ यह कि एक दिन स्वामीजी ने चरणामृत के नाम पर उसे कुछ ऐसी चीज पिलाई कि अचेत हो गई.

एक घंटे बाद होश आया तो अपने आप को स्वामीजी के बिस्तर पर पाया.  वह चिंता में पड़ गई. सोचने लगी कि स्वामीजी ने कहीं उस की इज्जत तो नहीं लूट ली?  तभी स्वामीजी बोले, ‘‘तुम चिंता मत करो. तुम्हारी इज्जत सलामत है. हालांकि चाहता तो आराम से सब कुछ कर सकता था. लेकिन जो आनंद स्वेच्छा में है, वह जबरदस्ती या धोखे में नहीं.

‘‘यह सच है कि मैं तुम्हें पाना चाहता हूं लेकिन तुम्हें राजी कर के, जबरदस्ती नहीं. मैं तुम्हारा काम करूंगा तो क्या तुम मुझे खुश नहीं कर सकतीं? बेहतर यही है कि तुम मुझे खुश कर दो. वैसे भी ताली दोनों हाथों से बजती है.’’

वह हर हाल में वाइस चेयरमैन बनना चाहती थी, अत: पतिव्रता धर्म को दरकिनार कर यह सोच कर अपने आप को स्वामीजी के हवाले कर दिया कि सिर्फ एक दिन की बात है.

पति से बेवफाई करते समय उसे बहुत बुरा लगा था. लेकिन स्वामीजी से अथाह सुख पा कर बेवफाई की भावना को मन से निकाल फेंका.  वैसा सुख उसे पति से कभी नहीं मिला था. इसलिए चाह कर भी स्वामीजी से नफरत नहीं कर सकी. उन के द्वारा दिए गए जिस्मानी सुख को दिल से लगा बैठी.

इसी कारण 2 दिन बाद स्वामीजी ने उसे फिर से बांहों में भरा तो सुचित्रा ने कोई विरोध नहीं किया. फिर तो सिलसिला बन गया.  स्वामीजी खिलाड़ी थे, औरतों के रसिया. उन्हें ऐसी मुद्राएं आती थीं, जिन्हें समझ पाना और अमल में लाना आम आदमी के वश की बात नहीं थी. उन की इस कला से औरतें खुश रहती थीं.  स्वामीजी से तरहतरह का सुख पा कर सुचित्रा आत्मविभोर हो उठती थी. इसी वजह से पति से विमुख हो कर उस ने पूरा ध्यान स्वामीजी पर केंद्रित कर दिया था.

वाइस चेयरमैन बनने के बाद स्वामीजी की सलाह पर वह प्रतिदिन औफिस से छूटते ही आश्रम में जा कर उन के साथ मौजमस्ती करने लगी थी.

स्वामीजी से उस का भ्रम तब टूटा जब उन के साथ इटली में 10 दिनों तक भरपूर आनंद लेने के बाद कोलकाता आई.

बातोंबातों में उस ने स्वामीजी से कहा, ‘‘आप मेरी जिंदगी में नहीं आते तो कुएं का मेंढक ही बनी रहती. पता ही नहीं चलता कि समुद्र क्या होता है. उस की लहरें क्या होती हैं. लहरों से कितना सुख मिलता है. मैं आप को कभी नहीं भूल सकती. जरूरत पड़ी तो आप पर अपनी जान भी न्यौछावर कर दूंगी.’’

ठीक मौका देख कर स्वामीजी ने कहा, ‘‘ऐसी बात है तो यह बताओ, अगर मैं कुछ मांगू तो दोगी?’’

‘‘क्यों नहीं दूंगी? मांग कर देखिए.’’  ‘‘तुम्हारा फार्महाउस चाहिए. उस पर एक नया आश्रम बनाना चाहता हूं.’’

अब स्वामीजी की चाल उस की समझ में आ गई. इस में कोई शक नहीं था कि उसे उन से अथाह सुख मिला था. आगे भी मिलने रहने की संभावना थी. परंतु इस के लिए बच्चों का अधिकार किसी और को देना उसे मुनासिब नहीं लगा. नतीजतन उस ने स्वामीजी को फार्महाउस देने से मना कर दिया.

स्वामीजी ने उसे बहुत समझाया पर वह नहीं मानी. तब उन्होंने अपने मोबाइल में ऐसा फोटो दिखाया कि उस के होश उड़ गए.  उस ने अब तक पति के अलावा सिर्फ स्वामीजी से संबंध बनाया था, जबकि फोटो में उसे अलगअलग 4 अजनबियों से 4 लोकेशन में संबंध बनाते हुए दिखाया गया था.

उसे समझते देर नहीं लगी कि स्वामीजी ने यह सब उस का फार्महाउस लेने के लिए षडयंत्र के तहत किया था. वह उन के षडयंत्र में बुरी तरह फंस गई थी.

वह बहुत रोईगिड़गिड़ाई. लेकिन स्वामीजी पर कोई असर नहीं हुआ. अंतत: उस ने सोचने के लिए कुछ दिन का समय ले लिया.

4 दिन बीत गए, लेकिन उसे स्वामीजी के चक्रव्यूह से निकलने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया तो उस ने सब कुछ पति को बता देने का निश्चय किया.

पति पर उसे भरोसा था कि माफ कर देंगे और स्वामीजी के चंगुल से निकलने का कोई रास्ता भी निकाल लेंगे.  सुचित्रा से सच जानने के बाद उन्होंने भी अपनी और रूना की बात बता कर माफी मांगी.

एकदूसरे को माफ करने के बाद दोनों ने मिल कर स्वामीजी और रूना को जेल भेजने की योजना बनाई.

सुचित्रा की सहेली का पति पुलिस में उच्च अधिकारी था. उन्हें सच्चाई बता कर मदद की गुहार की तो पुलिस की तरफ से भरपूर मदद मिल गई.

सादे लिबास में कुछ पुलिस वालों को रूना के घर के बाहर तैनात कर दिया गया. उन्हें बता दिया गया था कि घर के अंदर क्या होने वाला है और उन्हें अंदर कब आना है.

स्वामीजी और रूना को पुलिस गिरफ्तार कर ले गई तो पतिपत्नी दोनों अपनी योजना की सफलता पर खुश हो कर एकदूसरे से लिपट गए.  अपनों को छोड़ कर दूसरों में सुख ढूंढने के अंजाम से दोनों वाकिफ हो गए थे.

जिंदगी की चादर के छेद : प्रेम ने किया रिश्तों का अंत

उत्तर प्रदेश के बदायूं शहर के सिविल लाइंस इलाके में एक स्कूल है होली चाइल्ड. निशा इसी स्कूल में पढ़ाती थी. उस का पति राजकुमार पादरी था और उस की पोस्टिंग बदायूं जिला मुख्यालय से लगभग 23 किलोमीटर दूर वजीरगंज की एक चर्च में थी. चर्च में जब ज्यादा काम रहता था तो राजकुमार रात में वहीं रुक जाता था.

निशा को स्कूल की बिल्डिंग में ही रहने के लिए कमरा मिला हुआ था, जहां पर वह पति राजकुमार और 2 बेटियों रागिनी व तमन्ना के साथ रहती थी. राजकुमार और निशा की मुलाकात लखनऊ में पादरी के काम की ट्रेनिंग के दौरान हुई थी, जोकि वीसीसीआई संस्था द्वारा अपने धर्म प्रचारकों को दी जाती है. कुछ मुलाकातों के बाद दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे.

निशा मूलरूप से गोरखपुर जिले की रहने वाली थी. उस के पिता दयाशंकर पादरी थे. निशा की बड़ी बहन शारदा की शादी बरेली निवासी रघुवीर मसीह के बेटे दिलीप के साथ हुई थी. इसी के चलते बहन के देवर राजकुमार से निशा की नजदीकियां बढ़ने लगीं. दोनों जानते थे कि घर वालों को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं होगा, अत: दोनों ने अपनी पसंद की बात अपने परिवार वालों को बता दी थी.

राजकुमार ने लखनऊ में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली लेकिन किन्हीं कारणों से निशा को ट्रेनिंग बीच में ही छोड़ देनी पड़ी. राजकुमार बरेली निवासी रघुवीर मसीह का बेटा था. रघुवीर मसीह पुलिस विभाग में वायरलैस मैसेंजर के पद पर बदायूं में तैनात था.

सन 2014 में पारिवारिक सहमति से राजकुमार और निशा का विवाह हो गया. रघुवीर मसीह के 4 बेटे और 2 बेटियां थीं. सब से बड़ा बेटा रवि था, जिस की शादी बाराबंकी निवासी अनुराधा से हुई थी. दूसरा दिलीप था, जिस की शादी निशा की बड़ी बहन शारदा से हुई थी. उस से छोटा राजकुमार था और सब से छोटा राहुल.

राजकुमार की पहली पोस्टिंग कासगंज जिले के सोरों कस्बे में नवनिर्मित चर्च में हुई थी. इसी बीच राजकुमार की शादी हो गई और रघुवीर मसीह ने कोशिश कर के राजकुमार का तबादला कासगंज से वजीरगंज करवा दिया.

शादी के बाद कुछ समय तो अच्छा कटा. राजकुमार की मां आशा मसीह ने नवविवाहिता बहू निशा को हाथोंहाथ लिया, पर निशा को राजकुमार के घर का माहौल रास नहीं आया. इसलिए उस ने पति से कहा कि वह घर में बैठ कर वक्त बरबाद नहीं करना चाहती.

निशा इंटरमीडिएट पास थी और उस की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी. वह सोचती थी कि किसी भी इंग्लिश स्कूल में उसे नौकरी मिल सकती है.

नौकरी करने वाली बात निशा ने पति और सासससुर से बताई तो उन्हें इस पर कोई ऐतराज नहीं हुआ. निशा को इजाजत मिल गई और थोड़ी कोशिश से निशा को होली चाइल्ड स्कूल में नौकरी मिल गई.

कालांतर में निशा 2 बेटियों की मां बनी, जिन के नाम रागिनी और तमन्ना रखे गए. अब उन का छोटा सा खुशहाल परिवार था. वे स्कूल परिसर में स्थित कमरे में रहते थे. राजकुमार और निशा का दांपत्य जीवन काफी सुखद था. किन्हीं खास मौकों पर वे लोग बरेली चले जाते थे.

बदलने लगी निशा की सोच  सब कुछ ठीक चल रहा था, पर वक्त कब करवट ले लेगा, इस का आभास किसी को नहीं था. स्कूल की नौकरी करतेकरते निशा को लगने लगा था कि राजकुमार से शादी करना उस के जीवन की सब से बड़ी भूल थी. वह अच्छाखासा कमा लेती है. अगर उस ने शादी की जल्दबाजी न की होती तो उसे कोई पढ़ालिखा अच्छा पति मिलता और वह ऐश करती.

ऐसे विचार मन में आते ही उस का दिल बेचैन होने लगा. जितना उसे मिला था, उस से उसे संतोष नहीं था. उस की कुछ ज्यादा पाने की चाहत बढ़ रही थी.  कहते हैं, अकसर ज्यादा पाने की चाह में लोग बहुत कुछ गंवा देते हैं. निशा का भी यही हाल था. अब धीरेधीरे राजकुमार और निशा के जीवन में तल्खियां बढ़ने लगीं. निशा छोटीछोटी बातों को ले कर मीनमेख निकालती और उस से झगड़ा करने की कोशिश करती.

सीधेसादे राजकुमार को हैरानी होती थी कि निशा को आखिर हो क्या गया है. एक दिन निशा ने कहा, ‘‘तुम क्या थोड़ी और पढ़ाई नहीं कर सकते थे? कम से कम मेरी तरह इंटर तो पास कर लेते. पढ़ेलिखे होते तो तुम्हारा दिमाग भी खुला होता.’’

‘‘मैं ज्यादा पढ़ालिखा न सही, पर अपने काम में तो परफैक्ट हूं. लोगों को अपने धर्म का ज्ञान बेहतर तरीके से देता हूं. हालांकि मैं केवल हाईस्कूल पास हूं लेकिन मैं ने यह ठान लिया है कि अपनी बेटियों को खूब पढ़ाऊंगा.’’ राजकुमार बोला.

‘‘बेटियों की फिक्र तुम छोड़ो. यह सब मुझे सोचना है कि उन के लिए क्या करना है.’’ निशा ने पति की बात काटते हुए कहा. राजकुमार तर्क कर के बात बढ़ाना नहीं चाहता था. इसलिए वह पत्नी के पास से उठ गया. दोनों बेटियों को साथ ले कर वह यह सोच कर घर से बाहर निकल गया कि थोड़ी देर में निशा का गुस्सा शांत हो जाएगा.

थोड़ी देर बाद जब वह घर पहुंचा तो निशा नार्मल हो चुकी थी. राजकुमार ने राहत की सांस ली. निशा ने राजकुमार का खाना लगा दिया, तभी स्कूल का चपरासी 20 वर्षीय अर्जुन आया और वह निशा को चाबियां देते हुए बोला, ‘‘मैडम, मैं ने बाकी ताले बंद कर दिए हैं. आप केवल बाहरी गेट का ताला लगा लेना, मैं घर जा रहा हूं.’’

‘‘अर्जुन, बैठो, चाय पी कर जाना.’’ निशा ने कहा.  निशा के कई बार कहने पर अर्जुन कुरसी पर बैठ गया. अर्जुन बाबा कालोनी निवासी ओमेंद्र सिंह का बेटा था. वह स्कूल में चपरासी था और उस का छोटा भाई किरनेश स्कूल के प्रिंसिपल के घर का नौकर था.

कुछ देर में निशा चाय बना कर ले आई. चाय पी कर अर्जुन चला गया. लेकिन राजकुमार के दिल में कुछ खटकने लगा. उस ने निशा से कहा, ‘‘मुझे इस अर्जुन की आदतें कुछ अच्छी नहीं लगतीं. वैसे भी ये स्कूल का चपरासी है और तुम टीचर, तुम्हें अपने स्टैंडर्ड का ध्यान रखना चाहिए.’’

निशा ने तुनक कर कहा, ‘‘मैं ने ऐसा क्या कर दिया जो तुम मेरे स्टैंडर्ड को कुरेद रहे हो.’’

राजकुमार ने कोई जवाब नहीं दिया. वह बात को बढ़ाना नहीं चाहता था. लेकिन उस दिन के बाद निशा का ध्यान अर्जुन पर टिक गया. जब वह अकेली होती तो अचानक अर्जुन उस के जेहन में आ बैठता.

निशा के दिल के दरवाजे पर दस्तक दी अर्जुन ने  कुछ दिनों बाद राजकुमार की तबीयत खराब हो गई. वह कभीकभी 2 दिन तक चर्च में ही रुक जाता और बदायूं नहीं आ पाता था. इस अकेलेपन ने निशा को गुमराह कर दिया. अर्जुन एक स्वस्थ और स्मार्ट युवक था. वैसे भी निशा के साथ वह घुलनेमिलने लगा था. अब राजकुमार की गैरमौजूदगी में वह निशा के कमरे में आ जाता और उस की बेटियों के लिए खानेपीने की चीजें ले आता था.

निशा के मन में अर्जुन अपनी जगह बनाने लगा था. निशा भी अर्जुन के बारे में सोचती रहती थी. वह उस की मजबूत बांहों में समाने के लिए बेताब रहने लगी थी. उधर अर्जुन निशा को चाहता तो था लेकिन निशा के पति की वजह से पहल करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

कहा जाता है कि फिसलन की ओर बढ़ने वाले कदम आसानी से दलदल तक पहुंच जाते हैं. यही निशा के साथ हुआ. एक दिन शाम को निशा के पास राजकुमार का फोन आया. उस ने कहा कि वह आज रात को घर नहीं आ पाएगा. इस फोन काल ने निशा के दिल में हलचल मचा दी. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

निशा के दिमाग में अर्जुन घूम रहा था. उस ने कमरे से बाहर निकल कर देखा तो उस समय अर्जुन स्कूल के अपने काम निपटा कर घर जाने की तैयारी कर रहा था. तभी निशा ने उसे आवाज दे कर बुलाया, ‘‘अर्जुन, तुम कमरे में आओ, कुछ बात करनी है.’’

अर्जुन कमरे में आ गया. निशा उस के लिए चाय बना कर ले आई. निशा ने चाय का प्याला उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अर्जुन, आज रात राजकुमार घर नहीं आएगा. अकेले में मुझे डर लगेगा, तुम आज रात यहीं रुक जाओ, जिस से मेरा भी मन लगा रहेगा.’’

अर्जुन ने गहरी नजर से निशा को देखा. उसे निशा का अंदाज कुछ अजीब सा लगा. उस की चुप्पी देख कर निशा ने पूछा, ‘‘कुछ परेशानी है क्या?’’

‘‘नहीं मैडम, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं सोच रहा हूं कि अगर साहब को पता चला तो पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे, वह तो वैसे भी मुझे पसंद नहीं करते.’’

‘‘तुम उन की चिंता मत करो. तुम्हें मैं तो पसंद करती हूं न.’’ निशा ने मुसकराते हुए कहा तो अर्जुन की भावनाओं में जैसे तूफान उठने लगा. उस ने उसी समय जेब से मोबाइल निकाला और अपने घर फोन कर के बता दिया कि स्कूल में कुछ काम होने की वजह से वह आज घर नहीं आ पाएगा.

इस के बाद अर्जुन उस के कमरे में बैठ गया. निशा ने खाना बनाने की तैयारी शुरू कर दी. तब तक अर्जुन उस के दोनों बच्चों के साथ खेलने लगा. खाना बनने के बाद निशा ने बच्चों को पहले खाना खिलाया और उन्हें सुला दिया.

फिर निशा ने अपना और अर्जुन का खाना लगाया. खाना खातेखाते अर्जुन उस के खाने की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘मैडम, आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं.’’

‘‘खाना बनाना ही नहीं, मैं बहुत से काम बहुत अच्छे से करती हूं.’’ कह कर निशा हंसने लगी. फिर उस ने एक प्रश्न किया, ‘‘अर्जुन, तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

अर्जुन निशा को गौर से देखते हुए बोला, ‘‘रिश्ते तो कई आए थे मैडम, लेकिन जब से आप को देखा है मेरा इरादा बदल गया है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ निशा ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मतलब यह कि मुझे आप जैसी स्मार्ट जीवनसाथी की जरूरत है.’’

निशा की चाहत बन गया अर्जुन  अर्जुन की बात सुन कर निशा मन ही मन खुश हुई कि इस का मतलब वह उसे पहले से ही चाहता है. निशा कुछ नहीं बोली बल्कि मुसकराने लगी. खाना खाते हुए दोनों इसी तरह की बातें करते रहे.

खाना खाने के बाद निशा ने अर्जुन का बिस्तर जमीन पर लगाते हुए कहा कि वह यहां आराम कर सकता है. इस के बाद रसोई का काम खत्म कर के वह भी आ गई. उस ने चटाई बिछा कर अपना बिस्तर भी जमीन पर लगा लिया. धीरेधीरे रात गहराती जा रही थी और वहां भी कुछ ऐसा होने वाला था, जो किसी के लिए बरबादी ला सकता था.

निशा की आंखों में नींद नहीं थी. उस ने अर्जुन की तरफ देखा तो वह भी करवटें बदल रहा था. उस ने पूछा, ‘‘अर्जुन, नींद नहीं आ रही क्या?’’  ‘‘हां, नींद नहीं आ रही. पर सोच रहा हूं कि आप के पति तो अकसर वजीरगंज में ही रुक जाते हैं, फिर आप ने आज मुझे यहां क्यों रोका है?’’

निशा ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम क्या सचमुच अनाड़ी हो या अनजान बनने का नाटक कर रहे हो. मैं ने तुम्हारी आंखों में कुछ खास देखा था, वही पिछले कई दिनों से मुझे परेशान कर रहा है. अर्जुन भूख अकसर 2 लोगों को एकदूसरे के करीब ले आती है.’’

‘‘यह क्या कह रही हैं आप?’’ अर्जुन बोला.  ‘‘ठीक ही कह रही हूं. मैं तुम से प्यार करने लगी हूं अर्जुन.’’

अर्जुन को जैसे करंट सा लगा, पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था. निशा ने आगे बढ़ कर अर्जुन का हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘डरो मत अर्जुन, मैं सचमुच तुम्हें चाहती हूं और यह कोई गुनाह नहीं है. मैं अपने पति से तंग आ चुकी हूं.’’

अर्जुन फिसलन की कगार पर खड़ा था. निशा के स्पर्श से वह दलदल में जा गिरा. शादीशुदा और 2 बच्चों की मां ने उसे एक ऐसे दलदल में खींच लिया, जिस के अंदर जाना तो आसान था पर बाहर आने का कोई रास्ता नहीं था.

उस दिन के बाद रिश्तों की दिशा और दशा ही बदल गई. अपनी तबाही से बेखबर राजकुमार अगले दिन घर आ गया. राजकुमार की बरबादी की नींव रखी जा चुकी थी. बीवी ने बेवफाई करने के लिए कमर कस ली थी. अब आए दिन वह पति से झगड़ने लगी. राजकुमार भी महसूस कर रहा था कि स्कूल का चपरासी अर्जुन अब पहले की तरह उस की इज्जत नहीं करता.

एक दिन वह जब वजीरगंज से लौटा तो उस ने अर्जुन को कमरे में चारपाई पर पसरा हुआ देखा. यह देख कर राजकुमार का माथा गरम हो गया. वह बोला, ‘‘अर्जुन, तुम यहां क्या कर रहे हो? लगता है, तुम अपनी औकात भूल रहे हो. मेरी गैरमौजूदगी में तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं है.’’

उस समय तो अर्जुन वहां से चला गया. उस ने खुद को अपमानित महसूस किया और तय किया कि राजकुमार को सबक सिखाएगा.  राजकुमार के तेवर देख कर निशा भी डर गई थी. राजकुमार ने कहा, ‘‘निशा, यह अर्जुन मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं है. तुम इस से दूर ही रहो. देखो, मैं सोच रहा हूं कि अपना तबादला बरेली में ही करा लूं. पापा भी रिटायर हो गए हैं, अपना मकान भी उन्होंने बना लिया है. फिर तुम्हें भी बरेली में कहीं नौकरी मिल ही जाएगी.’’

‘‘देखो, अर्जुन इसी स्कूल में काम करता है. तुम्हारे जाने के बाद वह मार्केट से घर की जरूरत का सामान भी ला देता है. तुम खामख्वाह उस पर गरम हो रहे थे. देखो, हमें यहां कमरा मिला हुआ है. यहां कोई परेशानी भी नहीं है. और फिर यह बात तुम जानते हो कि मैं जौइंट फैमिली में नहीं रह सकती.’’ निशा ने पति को समझाया.

‘‘इस मामले में मैं घर वालों से बात करूंगा.’’ कह कर राजकुमार बाथरूम चला गया.

राजकुमार अनभिज्ञ था पत्नी के संबंधों से राजकुमार को अभी तक यह पता नहीं था कि अर्जुन और उस की पत्नी निशा के बीच किस तरह के संबंध हैं. पिछले 6 महीने से वह महसूस कर रहा था कि निशा बदल रही है.  कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता. निशा और अर्जुन के संबंधों की असलियत भी सामने आ ही गई. उस दिन अर्जुन घर जाने ही वाला था कि राजकुमार का पत्नी के पास फोन आ गया कि वह आज रात को घर नहीं आएगा.

यह खबर सुन कर निशा खुश हुई. उस ने अर्जुन को बुला कर कहा, ‘‘आज रात फिर अपनी ही है क्योंकि राजकुमार आज भी नहीं आएगा. ऐसा करो कि तुम नहाधो कर फ्रैश हो जाओ. तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

निशा ने गैस पर चाय चढ़ा दी. अर्जुन भी फ्रैश होने के लिए बाथरूम में घुस गया. फ्रैश होने के बाद वह निशा के साथसाथ चाय पीने लगा. चाय की चुस्कियां लेते हुए वह बोला, ‘‘ऐसा आखिर कब तक चलेगा, हमें कुछ करना ही होगा.’’

‘‘हां करेंगे.’’ कहते हुए निशा ने कहा, ‘‘अभी तो इन पलों को जिओ, जो हमें मिल रहे हैं.’’  इस के बाद दोनों मौजमस्ती में लीन हो गए. अर्जुन इस बात से बेखबर था कि उस ने बाहरी गेट बंद नहीं किया था. तभी अचानक दबेपांव राजकुमार वहां आ गया. बीवी को अर्जुन की बाहों में देख कर वह आगबबूला हो गया. उस ने अर्जुन की टांग पकड़ कर खींची और उसे कई तमाचे जड़ दिए.

किसी तरह अर्जुन उस के चंगुल से निकल कर भाग गया. तभी राजकुमार ने कहा कि वह इस की शिकायत स्कूल से करेगा.

अर्जुन के चले जाने के बाद राजकुमार ने निशा को जम कर लताड़ा. निशा उस के पैरों में गिर कर अपनी गलती की माफी मांगने लगी, पर राजकुमार के तेवर सख्त थे. उस ने  कह दिया कि अब हम यहां नहीं रहेंगे. राजकुमार ने पिता को फोन पर सारी बातें बता दीं और कहा कि अब हम बरेली में नेकपुर स्थित अपने घर में रहेंगे.

पति का फैसला सुन कर निशा परेशान हो गई. वह किसी भी हालत में बदायूं को छोड़ना नहीं चाहती थी. अत: उस ने तय कर लिया कि वह पति नाम के इस कांटे को अपनी जिंदगी से उखाड़ फेंकेगी.

अगले दिन राजकुमार वजीरगंज चला गया. निशा ने मौका मिलते ही अर्जुन को एकांत में बुला कर कहा, ‘‘अगर मुझे चाहते हो तो तुम्हें राजकुमार को रास्ते से हटाना होगा.’’

अर्जुन का दिल तेजी से धड़कने लगा क्योंकि ऐसा तो उस ने कभी सोचा ही नहीं था.  उसे चुप देख निशा बोली, ‘‘हां, मैं ठीक ही कह रही हूं. आज राजकुमार जब घर आएगा तो तुम घर आ कर उस से अपनी गलती की माफी मांगना और उस का विश्वास जीतना. इस के आगे क्या करना है, मैं बाद में बताऊंगी.’’

अर्जुन ने ऐसा ही किया. राजकुमार जब घर पहुंचा तो अर्जुन उस के घर चला गया. उसे देखते ही राजकुमार उस पर भड़का तो अर्जुन ने उस से अपनी गलती पर अफसोस जताते हुए माफी मांग ली. सीधेसादे राजकुमार ने उसे माफ कर दिया और कहा कि अब वैसे भी हमें यहां नहीं रहना है.

माफी मांग कर काट दी जीवन की डोर  पर अर्जुन के दिल में राजकुमार के प्रति क्या था, यह बात राजकुमार नहीं जानता था. राजकुमार मौत की दस्तक को सुन ही नहीं पाया था. 15 जून, 2019 को अपनी योजना के मुताबिक अर्जुन अपनी बाइक पर आया. उस ने राजकुमार से कहा, ‘‘चलिए, मछली लेने चलते हैं.’’

राजकुमार भी माहौल का तनाव कम करना चाहता था. वह अर्जुन को माफ कर चुका था.  साजिश से अनजान राजकुमार अर्जुन के साथ बाइक पर बैठ गया. अर्जुन बाइक को इधरउधर घुमाता रहा. फिर बाइक मझिया गांव के सुनसान इलाके में ले गया और बोला, ‘‘अब बाइक आप चलाओ, मैं पीछे बैठता हूं.’’

राजकुमार ने ड्राइविंग सीट संभाली. दोनों शर्की रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर पहुंचे थे कि बाइक पर पीछे बैठे अर्जुन ने जेब से तमंचा निकाला और राजकुमार के सिर पर गोली मार दी. राजकुमार का बैलेंस बिगड़ा और वह बाइक समेत जमीन पर गिर गया. राजकुमार खून से लथपथ था. अब योजना के मुताबिक राजकुमार को रेलवे ट्रैक पर डालना था ताकि उस की मौत ट्रेन एक्सीडेंट लगे.

अर्जुन चाहता था ट्रेन एक्सीडेंट समझा जाए  खून से लथपथ राजकुमार को अर्जुन ने रेलवे ट्रैक पर डाल दिया. उस के कपडे़ भी खून से लथपथ थे. रेलवे लाइन पर पड़ा राजकुमार तड़प रहा था. वह अभी जिंदा था पर अर्जुन ने जो सोचा था, हो नहीं सका. कासगंज से बरेली जाने वाली ट्रेन तब तक गुजर गई थी. अब सुबह 5 बजे से पहले वहां से कोई गाड़ी निकलने वाली नहीं थी.

अर्जुन ने बाइक स्टार्ट की और घर आ गया. उस ने खून सने कपड़े उतारे. कपड़ों पर लगा खून देख कर घर वाले सन्न रह गए. उन्होंने अर्जुन से जब सख्ती से पूछताछ की तो पता चला कि अर्जुन ने राजकुमार का कत्ल कर दिया है.

अर्जुन ने अपने कपड़े धो डाले और घर वालों से सख्त लहजे में कहा कि कोई भी अपना मुंह नहीं खोलेगा. उस ने निशा को काम हो जाने की खबर फोन पर दे दी.

रात जैसेतैसे गुजर गई. सुबह मार्निंग वाक पर निकले लोगों ने रेलवे ट्रैक पर लाश देखी तो किसी ने इस की सूचना रेलवे पुलिस को दे दी. पुलिस वहां आ गई और लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. पर उस की शिनाख्त नहीं हो पाई. सिविल लाइंस थाने की पुलिस भी वहां पहुंच गई.

उधर राजकुमार को 15 जून को बरेली जाना था, यह बात उस ने फोन पर अपने पिता रघुवीर को बता दी थी, लेकिन वह रात में घर नहीं पहुंचा तो घर वाले परेशान हो गए.  इधर थाना सिविल लाइंस के थानाप्रभारी ओ.पी. गौतम, सीओ राघवेंद्र सिंह राठौर और एसपी (सिटी) जितेंद्र कुमार श्रीवास्तव भी मौके पर पहुंच गए थे. फोरैंसिक टीम भी जांच के लिए पहुंच गई थी. जांच में पुलिस को मृतक की जेब से 100 रुपए का एक नोट और एक परची मिली. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.  17 जून को लाश का फोटो अखबारों में छपा तो रघुवीर के एक रिश्तेदार जे.पी. मसीह ने उन्हें फोन कर के पूछा कि राजकुमार कहां है? रघुवीर ने कहा कि राजकुमार को बरेली आना था, पर आया नहीं है.

सब जगह फोन कर लिया, पर उस का कुछ पता नहीं है. तब जे.पी. मसीह अखबार ले कर रघुवीर के घर पहुंच गए और उन्हें अखबार दिखाया. अखबार में अपने बेटे की लाश का फोटो देख कर रघुवीर की आंखों से आंसू निकल आए. वह परेशान हो गए तभी उन के पास पुलिस कंट्रोल रूम से भी फोन आ गया.

रघुवीर अपने रिश्तेदारों के साथ पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए और लाश की शिनाख्त बेटे राजकुमार के रूप में कर दी. निशा भी किसी से खबर पा कर घडि़याली आंसू बहाती हुई पोस्टमार्टम हाउस पहुंची. वह वहां इस तरह से रो रही थी, जैसे उस का सब कुछ लुट गया हो.

पोस्टमार्टम के बाद लाश बरेली ला कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया. निशा के हावभाव देख कर रघुवीर की समझ में कुछकुछ आ रहा था. उन्हें शक था कि उन के बेटे की हत्या निशा ने कराई होगी. क्योंकि उसे रंगेहाथ पकड़ने पर राजकुमार ने उस की शिकायत अपने पिता से कर दी थी.

रघुवीर ने जांच अधिकारी के सामने अपनी पुत्रवधू और अर्जुन के नाजायज संबंधों का खुलासा कर दिया था. पुलिस ने अर्जुन को हिरासत में ले लिया. अर्जुन ने अपने हाथ पर ब्लेड से निशा का नाम लिख रखा था.

पुलिस ने निशा और अर्जुन को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की तो दोनों एकदूसरे पर इलजाम लगाने लगे. उन की दीवानेपन आशिकी की हवा निकल चुकी थी. दोनों ने ही अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. अब दोनों को जेल जाने का डर सता रहा था.

पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201 के तहम मुकदमा दर्ज कर के उन से विस्तार से पूछताछ की और कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.  रागिनी और तमन्ना ने मांबाप दोनों को खो दिया था. राजकुमार की मां आशा मसीह ने कहा कि उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि उन की बहू उन के सीधेसादे बेटे को मरवा सकती है. अब इस उम्र में उन्हें अपने बेटे की बच्चियों की परवरिश के लिए जीना होगा.

निशा के पिता दयाशंकर और मां गीता को बेटी के इस गुनाह पर अफसोस होता है. उन्होंने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि निशा ऐसा भी कर सकती है. काश, राजकुमार मौत की दस्तक को सुन पाता तो उसे अपनी जान से हाथ न धोना पड़ता.

शक्की पति की मजबूर पत्नी

देहरादून के ट्रांसपोर्टर अशोक रोहिल्ला का घर माता मंदिर रोड पर था, जो थाना नेहरू कालोनी क्षेत्र में आता था. रोहिल्ला परिवार में 3 ही सदस्य थे, खुद अशोक रोहिल्ला, उस की पत्नी कामना रोहिल्ला और 3 साल की बेटी जाह्नवी. कामना ने कालोनी में ही बुटीक खोल रखा था. जाह्नवी छोटी थी, इसलिए उसे वह दिन भर साथ रखती थी.

29 अगस्त, 2019 की बात है. रात गहराते ही अशोक और कामना खाना  खा कर सोने चले गए थे. जाह्नवी पहले ही सो चुकी थी. रात के 11 और 12 बजे के बीच अशोक के घर से 2 गोलियां चलने की आवाज आई. गोलियों की आवाज सुन कर पड़ोसी घबराए, उन्हें लगा कि लूटपाट के लिए अशोक के घर में बदमाश घुस आए हैं. अशोक या उस की पत्नी ने विरोध किया होगा, जिस की वजह से बदमाशों ने गोलियां चला दी होंगी.

हकीकत जानने के लिए एक पड़ोसी घर के बाहर निकला तो उस ने स्ट्रीट लाइट की रोशनी में देखा कि अशोक अपनी कार ड्राइव करते हुए कहीं जा रहा है. वह घबराया सा लग रहा था.

पासपड़ोस के लोग अशोक के घर के सामने एकत्र हो गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है. हकीकत जानने की उत्सुकता सभी के मन में थी, इसलिए हिम्मत कर के कुछ अशोक के घर के अंदर घुस गए. अंदर सभी लाइटें जल रही थीं.

घर का सारा सामान यथावत था. ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा था कि वहां कुछ हुआ है. उन लोगों ने अशोक के बैडरूम में झांका तो सन्न रह गए. बैड पर कामना की खून से लथपथ लाश पड़ी थी.

उस के सिर से बहता खून फर्श पर फैलता जा रहा था. कामना के पास ही उस की बेटी जाह्नवी सोई थी. उस वक्त सभी को लगा कि कामना की हत्या अशोक ने ही की होगी, इसीलिए वह भाग गया.

लाश देखते ही अंदर गए लोग कमरे से बाहर आ गए. उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर घटना की सूचना दे दी. थोड़ी देर बाद नेहरू कालोनी थाने के थानेदार दिलबर नेगी पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर आ गए. उस वक्त रात का डेढ़ बजा था.

थानेदार दिलबर नेगी ने मौकाएवारदात का निरीक्षण किया. कमरे की एकएक चीज अपनी जगह मौजूद थी. खास बात यह थी कि इस हादसे से अनभिज्ञ कामना की बेटी जाह्नवी मां की लाश के पास सोई थी. देखने से ऐसा कतई नहीं लग रहा था कि वारदात को लूट, चोरी या डकैती के लिए अंजाम दिया गया था. क्योंकि ऐसा होता तो घर की सभी चीजें यथास्थिति में नहीं होतीं.

पुलिस को पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि कामना का पति अशोक गोली चलने के बाद तेजी से कार ले कर कहीं भाग गया था, जिसे एक पड़ोसी ने देखा था.

चकरा गई पुलिस  एसओ दिलबर नेगी ने घटना की सूचना सीओ (डालनवाला) जया बलूनी, एसपी (सिटी) श्वेता चौबे और एसएसपी अरुण मोहन जोशी को दे दी. घटना की सूचना मिलने के आधे घंटे के भीतर सीओ जया बलूनी और एसपी सिटी श्वेता चौबे मौके पर पहुंच गईं. जिस कमरे में बैड पर कामना की लाश पड़ी थी, उस से करीब 5 मीटर दूर बड़ी मात्रा में ताजा खून पड़ा था.

पुलिस ने इस से अनुमान लगाया कि संभव है गोली अशोक को भी लगी हो या फिर उस ने पत्नी की हत्या कर के खुद को गोली मार ली हो. यह भी सोचा गया कि लूटपाट की नीयत से कमरे में घुसे बदमाशों से हाथापाई के बीच गोली चली हो, जिस से गोली लगने से कामना की मौत हो गई हो और अशोक को गोली लगी हो.

क्राइम सीन देख कर पुलिस का दिमाग चकरा गया था. स्पष्ट तौर पर यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि मामला है क्या. अशोक के सामने आने पर ही असलियत सामने आ सकती थी. पुलिस अशोक का पता लगाने में जुटी थी.

पड़ोसियों से अशोक का मोबाइल नंबर मिल गया तो उसे फोन कर के उस की सही लोकेशन पूछी गई, उस ने बताया कि वह श्रीमंत इंदिरेश अस्पताल में भरती है. उस ने पुलिस को यह भी बताया कि लूट की नीयत से घर में घुसे बदमाशों ने पत्नी की हत्या कर के उसे भी पीठ में गोली मार दी थी.

अशोक रोहिल्ला की बातें पुलिस को हजम नहीं हुईं. पुलिस यह सोच कर परेशान थी कि बदमाशों ने गोली दोनों को मारी थी तो अशोक पत्नी को अस्पताल ले जाने के बजाए उसे घर पर ही छोड़ कर इलाज के लिए खुद अस्पताल क्यों चला गया?

मामला जरूर कुछ और था. जांचपड़ताल के बाद ही सच्चाई सामने आ सकती थी. रात में ही इस घटना की सूचना कामना के मायके वालों को दे कर उन्हें बुला लिया गया.

पुलिस अशोक की सच्चाई का पता लगाने के लिए श्रीमंत इंदिरेश अस्पताल पहुंची, जहां वह आईसीयू में भरती था. गोली लगने से उस के शरीर से काफी खून बह चुका था और उस की हालत गंभीर बनी हुई थी. अशोक ही एक ऐसा चश्मदीद था, जिस ने सब कुछ अपनी आंखों से देखा था.

मतलब उस ने हत्यारे को अपनी आंखों से देखा था. संभव था कि हत्यारे ने अपनी पहचान छिपाने के लिए अशोक पर भी यह सोच कर गोली चलाई हो कि उस की मौत के बाद पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच पाएगी.

अशोक रोहिल्ला जिंदा है, यह सोच कर पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली. बहरहाल, मौके पर जांच में जुटी पुलिस ने एक बार फिर से कामना की लाश की पड़ताल की.

जांच के दौरान पता चला कि हत्यारे ने कामना को सिर के पीछे से गोली मारी थी. कमरे में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे, लेकिन डीवीआर मौके से नदारद थी. इस का मतलब था कि हत्यारा अपनी पहचान छिपाने के लिए डीवीआर भी साथ ले गया था ताकि पुलिस उस तक पहुंच न सके.

क्राइम सीन की पड़ताल से एक बात तो तय थी कि हत्यारा जो भी रहा हो, पेशेवर नहीं था. अगर वह पेशेवर होता तो अपना काम कर के भाग जाता, न कि डीवीआर साथ ले जाता. यानी हत्यारा जो भी था, रोहिल्ला परिवार को जानने वाला था.

दूसरे अगर वह कामना को गोली मारता तो सीधे उस के माथे पर जा कर लगती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था. इस का मतलब कामना, उस के पति और बच्चे के अलावा कोई और भी वहां था, जिस ने इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया था.

कामना की बेटी उसी की बगल में सोई हुई थी. हत्यारे ने उस नन्ही सी जान को छुआ तक नहीं था. उस का जो भी मकसद रहा हो, उस का निशाना कामना और अशोक ही थे. एक की उस ने जान ले ली थी और दूसरा अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहा था.

बहरहाल, पुलिस ने कानूनी काररवाई पूरी की. मृतका का भाई रमेश आ चुका था. पुलिस ने 3 साल की जाह्नवी को उसे सौंप दिया. कामना की लाश पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दी गई.

कागजी काररवाई पूरी करतेकरते सुबह के करीब साढ़े 4 बज गए थे. यह घटनाक्रम 29/30 अगस्त, 2019 की रात का था. 31 अगस्त को कामना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कामना को काफी नजदीक से गोली मारे जाने का उल्लेख था, लेकिन गोली उस के सिर में नहीं मिली थी. गोली दाईं आंख को चीरते हुए निकल गई थी, जबकि पुलिस को घटनास्थल से कोई गोली बरामद नहीं हुई थी.

अशोक का बयान जरूरी था  पुलिस अशोक के स्वास्थ्य की पलपल की जानकारी ले रही थी. उस के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हो रहा था. पुलिस को अशोक के आईसीयू से जनरल वार्ड में पहुंचने की प्रतीक्षा थी. पुलिस को आशंका थी कि हो सकता है हत्यारा उस पर दोबारा हमला करने की कोशिश करे. इसीलिए उस की सुरक्षा के लिए 24 घंटे 2 पुलिसकर्मी तैनात कर दिए गए. पहली सितंबर, 2019 को अशोक रोहिल्ला को आईसीयू से जनरल वार्ड में शिफ्ट किया गया तो थानेदार दिलबर नेगी उस से पूछताछ करने इंदिरेश अस्पताल पहुंचे.

अब अशोक पूरी तरह खतरे से बाहर था. गोली उस के पेट को छूती हुई निकल गई थी. एसओ नेगी ने उस से घटना के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि 29 अगस्त की रात करीब साढ़े 11 बजे बुआ का बेटा रिंकू उर्फ अजय वर्मा उस से मिलने आया था. रिंकू अमन विहार, थाना रायपुर में रहता है. उस के साथ 2 और लोग थे.

रिंकू और उस के दोस्तों को ड्राइंगरूम में बैठा कर वह अंदर कमरे में चला गया. रिंकू के पानी मांगने पर वह किचन में पानी लेने चला गया. तभी रिंकू बैडरूम में गया और वहां 3 साल की बेटी के साथ सो रही कामना के सिर से रिवौल्वर सटा कर गोली मार दी.

गोली की आवाज सुन कर वह जैसे ही वहां पहुंचा तो रिंकू ने उस पर भी फायर झोंक दिया. गोली लगते ही वह जान बचा कर वहां से से भाग निकला और अस्पताल जा पहुंचा. उस के बाद क्या हुआ, उसे कुछ पता नहीं.

रिंकू वर्मा का नाम सुनते ही पुलिस के हाथपांव फूल गए. वह रायपुर थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास के कई मुकदमे दर्ज थे. पुलिस के लिए वह वांछित अपराधी था. उसे पकड़ने के लिए उस पर बड़ा ईनाम रखा गया था.

रिंकू अपने पास मोबाइल नहीं रखता था, इसलिए पुलिस उस तक नहीं पहुंच पा रही थी. दोहरे हत्याकांड ने एक बार फिर पुलिस की नाक में दम कर दिया.

अशोक रोहिल्ला के बयान के आधार पर पुलिस ने कामना रोहिल्ला की हत्या और अशोक की हत्या के प्रयास की धारा के साथ रिंकू उर्फ अजय वर्मा को नामजद कर रिपोर्ट रोजनामचे में दर्ज कर ली. रिंकू के खिलाफ मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस उसे पकड़ने के लिए सक्रिय हो गई. अशोक के बयान को ले कर पुलिस फिर उलझ गई थी.

पूछताछ के दौरान पुलिस को अशोक यह नहीं बता सका कि रिंकू ने कामना की हत्या और उसे मारने की कोशिश क्यों की? आखिर कामना से उस की क्या दुश्मनी थी? अशोक के बयान ने पुलिस को उस पर शक करने को मजबूर कर दिया.

पुलिस सच की तलाश में जुटी थी और गहराई में जाने के लिए उस ने कामना और अशोक के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स खंगाली, जिस से यह पता लग सके कि घटना वाली रात दोनों ने किसकिस से बात की थी. इसी दरमियान मृतका कामना के भाई ने पुलिस को बहनोई अशोक के बारे में एक ऐसी चौंकाने वाली जानकारी दी, जिस ने जांच की दिशा ही बदल दी.

पुलिस ने जब अशोक के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना वाली रात उस की आखिरी बात मेरठ के सरधना निवासी दीपक शर्मा से हुई थी. उधर रिंकू वर्मा को पकड़ने के लिए भी पुलिस की खोजबीन जारी थी.

इस प्रयास में पुलिस ने रिंकू के कुछ साथियों को पकड़ लिया. उन से रिंकू के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो पता चला कि रिंकू सालों से नजर नहीं आया. किसी को भी उस का पता नहीं था.

रिंकू के साथियों से मिली जानकारी और कामना के भाई द्वारा बताई गई बातों से पुलिस को यकीन हो गया कि कामना की हत्या के पीछे उस के पति अशोक रोहिल्ला का ही हाथ है. पुलिस को अशोक के खिलाफ कई ठोस सबूत मिल गए थे. अब बस इंतजार था अशोक के स्वस्थ होने का.

2 दिनों बाद नेहरू कालोनी के थानेदार दिलबर नेगी सबूतों के साथ अस्पताल पहुंचे. अशोक आईसीयू से जनरल वार्ड में शिफ्ट हो चुका था. थानेदार नेगी बात घुमानेफिराने की बजाए सीधेसपाट शब्दों में बोले, ‘‘तुम्हारा खेल खत्म हुआ अशोक. अब हमें बता दो कि तुम ने अपनी पत्नी की हत्या क्यों कराई? तुम तो जानते हो कि कानून के हाथ कितने लंबे होते हैं. तुम्हारे तीनों कमीने नगीने कानून के फंदे में फंस गए हैं.’’

हत्यारा अशोक ही था   एसओ नेगी की बात सुन कर अशोक को सांप सूंघ गया. वह अवाक सा दिलबर नेगी का मुंह ताकता रह गया. नेगी ने आगे कहा, ‘‘तुम्हारे बचने के सारे रास्ते बंद हो चुके हैं. सारे सबूत तुम्हारे खिलाफ हैं. पुलिस को सच्चाई पता चल चुकी है.’’

अशोक को काटो तो खून नहीं, गरमी में भी चेहरा सर्द हो गया. वह समझ गया था कि पुलिस को सच्चाई का पता चल चुका है. झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं था. अंतत: उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया कि उस ने ही 2 लाख की सुपारी दे कर अपनी पत्नी की हत्या कराई थी. उस ने इस की जो कहानी सुनाई, वह रोंगटे खड़े कर देने वाली थी.

स्वास्थ्य लाभ होने तक पुलिस आरोपी अशोक रोहिल्ला को गिरफ्तार नहीं कर सकी. लेकिन उसे हिरासत में ले कर उस के इर्दगिर्द पुलिस बल बढ़ा दिया गया ताकि वह भाग न सके. कामना रोहिल्ला हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

35 वर्षीय अशोक रोहिल्ला मूलरूप से मेरठ के सरधना का रहने वाला था. वह देहरादून में रह कर ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था. माल ढुलाई के लिए उस के पास कई निजी ट्रक थे. ट्रांसपोर्ट कारोबार में उसे अच्छी कमाई होती थी. अशोक के मांबाप और भाईबहन मेरठ में ही रहते थे. अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा वह घर खर्च में लगा देता था. उस का भरापूरा समृद्धशाली परिवार था. रुपएपैसों से भी और मानसम्मान से भी.

अशोक भाईबहनों में दूसरे नंबर का था. बचपन से ही मेहनतकश इंसान. मेहनत के बलबूते पर ही उस ने इतनी कम उम्र में बुलंदियों को छुआ था. पैसा आने के बावजूद उस में अभिमान नाम की कोई चीज नहीं थी. बड़ा हो या छोटा, वह सभी का सम्मान करता था.

कारोबार के चलते अशोक रोहिल्ला का ज्यादातर समय देहरादून में बीतता था. बात 2009 की है. देहरादून के जिस इलाके में अशोक का ट्रांसपोर्ट का कारोबार था, उस के औफिस के ठीक सामने एक दुकान पर पीसीओ था.

दुकान पर कभी औसत कदकाठी और साधारण शक्लसूरत की लड़की रेखा बैठती थी, तो कभी उस का भाई सुरेश. अशोक को जब भी कहीं बात करनी होती थी तो वह सुरेश के पीसीओ से ही बात करता था.

वह उस वक्त बात करने जाता था, जब वहां रेखा होती थी. धीरेधीरे अशोक और सुरेश के बीच दोस्ती हो गई. अशोक ने सुरेश से दोस्ती रेखा का सान्निध्य पाने के लिए की थी.

अशोक जवान था और खूबसूरत भी. उम्र के जिस पायदान पर वह खड़ा था, वहां किसी लड़की का सान्निध्य पाने की चाहत स्वाभाविक थी. रेखा जवान हो चुकी थी. उस के अंगअंग से कौमार्य की खुशबू आती थी. रेखा के कौमार्य की खुशबू जब अशोक के दिलोदिमाग तक पहुंची तो वह सुधबुध खो बैठा.

रेखा ने अशोक के मनोभावों को पढ़ लिया था. वह खुद भी सजीले जवान अशोक से प्रभावित थी. प्रेम का बीज दोनों के मन में अंकुरित हो गया था. अभी अशोक और रेखा दिल की जमीन पर मोहब्बत की फसल उगा ही रहे थे कि दोनों के बीच चुपके से एक नई कहानी ने जन्म ले लिया.

एक स्थाई ग्राहक कामना रेखा के पीसीओ पर अकसर बात करने आया करती थी. वह बहुत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन उस में ऐसा कुछ जरूर था कि लोग उस की ओर आकर्षित हो जाते थे.

अशोक ने जब से कामना को देखा था, वह रेखा को भूल कर उस पर लट्टू हो गया था. जबकि अशोक अच्छी तरह जानता था कि कामना उस के दोस्त सुरेश की प्रेमिका है, फिर भी वह उसे जुनून की हद तक चाहने लगा. अशोक ने उसे हर हाल में अपनी बनाने की सोच ली.

अशोक रोहिल्ला बिजनैसमैन था. उस ने बिजनैसमैन वाला दिमाग इस्तेमाल किया. धीरेधीरे उस ने कामना को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की तो वह इस में सफल हो गया.

अशोक ने कामना को बनाया जीवनसाथी  कामना के जिंदगी में आते ही अशोक ने रेखा से मुंह मोड़ लिया था. बहरहाल, अशोक कामना को और कामना उसे प्यार करने लगे. अशोक की बांहों में जाते ही कामना ने पहले प्रेमी सुरेश को अपनी जिंदगी से मक्खी की तरह निकाल दिया. प्रेमिका की बेवफाई को वह सहन न कर सका तो देहरादून छोड़ कर हमेशा के लिए कहीं और चला गया.

अशोक और कामना खुले आसमान में कुलांचे भरने लगे. मोहब्बत की डगर पर चलतेचलते दोनों ने एकदूसरे के बिना जीने की कल्पना ही छोड़ दी. 6 सालों तक लुकाछिपी का खेल खुल कर खेलने के बाद अशोक और कामना ने 2014 में कोर्टमैरिज कर ली.

अब दोनों प्रेमीप्रेमिका से पतिपत्नी बन गए. अदालती विवाह करने के बाद अशोक और कामना नेहरू कालोनी इलाके की पौश कालोनी कामना माता मंदिर रोड पर किराए का फ्लैट ले कर रहने लगे. बाद में दोनों के परिवार वालों ने उन्हें स्वीकार कर लिया और धूमधाम से दोनों की शादी संपन्न हुई.

अशोक का जमाजमाया कारोबार था. दिन में वह अपने काम पर चला जाता था. दूसरी ओर कामना अकेली घर में बोर हो जाती थी. कामना ने इस खाली वक्त का इस्तेमाल करने के लिए बुटीक खोलने का फैसला किया. इस बारे में उस ने अशोक से बात की तो उस ने भी हां कर दी और पैसा लगाने को भी तैयार हो गया.

बुटीक चलाने के लिए उसे जिस भी चीज की जरूरत होती, अशोक ला कर दे देता था. पति के सहयोग से कामना ने मोहल्ले में ही बुटीक खोल लिया. थोड़ी सी मेहनत के बाद उस का बुटीक चल निकला.

2 साल बाद कामना ने एक बेटी को जन्म दिया. दोनों ने बड़े लाड़प्यार से उस का नाम जाह्नवी रखा. जाह्नवी के आने से कामना की जिंदगी और व्यस्त हो गई थी. देखभाल के लिए बेटी को वह अपने साथ बुटीक ले आती थी.

अशोक और कामना की जिंदगी बड़े मजे से कट रही थी. पतिपत्नी दोनों कमा रहे थे. अशोक की बुआ का बेटा रिंकू उर्फ अजय वर्मा अकसर भाईभाभी से मिलने उन के घर आता था. इत्तफाक की बात यह थी कि वह जब भी आता था, उस की मुलाकात अशोक से नहीं हो पाती थी. क्योंकि वह काम के सिलसिले में घर से बाहर रहता था. देवर के रिश्ते को महत्त्व देते हुए कामना उस की खूब खातिरदारी करती थी.

जब अशोक को पता चला कि रिंकू उस की अनुपस्थिति में घर पर पत्नी से मिलने आता है, तो वह पत्नी पर भड़क गया. उस ने कामना से कहा कि जब भी वह घर आए तो उसे बैठाने के बजाए बाहर से ही विदा कर दिया करे. रिंकू अपराधी किस्म का इंसान है.

पुलिस ने उस पर बड़ा ईनाम रख रखा है. उस की वजह से हम भी मुसीबत में आ सकते  हैं. कामना ने पति की बात सुन तो ली लेकिन उस पर अमल नहीं कर पाई. इस के बावजूद अशोक ने खुद भी साफतौर पर रिंकू को घर आने से मना कर दिया.

दरअसल, 6 साल पहले रिंकू ने अपने 6 साथियों के साथ मिल कर एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी. उस के बाद रिंकू ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उस ने ताबड़तोड़ कई बड़े अपराध किए. जल्द ही वह अपराध की दुनिया में कुख्यात हो गया. पुलिस ने उसे पकड़ने के लिए उस पर बड़ा ईनाम रख दिया.

रिंकू के अपराधी बन जाने के बाद उस के घर वालों ने भी उसे अपनी जिंदगी और संपत्ति से बेदखल कर दिया. जब घर वालों ने रिंकू का परित्याग कर दिया तो उस ने उधर मुड़ कर नहीं देखा. वह रायपुर थाने के शास्त्रीनगर कालोनी में किराए का कमरा ले कर छिपछिपा कर रहने लगा.

अशोक को पता था कि उस के मना करने के बावजूद रिंकू घर आता है और घंटों तक कामना के पास रहता है. यह बात उसे नागवार लगती थी. वह नहीं चाहता था कि रिंकू उस के घर आए और पत्नी से मिले.

इसी बीच अशोक को कहीं से भनक लगी कि कामना और रिंकू के बीच लंबे समय से अवैध संबंध हैं. इसी के चलते रिंकू कामना से मिलने घर आता है और उस के साथ लंबा समय बिताता है.

रिंकू को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद हो गया. कामना ने पति को लाख सफाई दी कि रिंकू के साथ उस का कोई अनैतिक संबंध नहीं है, लेकिन वह इस बात पर यकीन करने के लिए तैयार ही नहीं था. हकीकत भी यही थी कि कामना और रिंकू के बीच कोई अवैध संबंध नहीं था.

पहले रिंकू को लगाया ठिकाने  अशोक के मन में रिंकू नाम की शक की चिंगारी भड़की तो वह शोलों का रूप लेती गई. शक की आग में जलते अशोक ने एक खतरनाक फैसला ले लिया. यह फैसला था रिंकू को रास्ते से हटाने का. उस ने कामना को इस की भनक तक नहीं लगने दी.

योजना के अनुसार, 3 नवंबर, 2018 को अशोक ने रिंकू को अपने जन्मदिन की पार्टी में सहस्त्रधारा रोड स्थित एक मित्र के आवास पर बुलाया, जहां पर रात में पार्टी हुई. उस पार्टी में अशोक के दोस्त दीपक शर्मा, उस का छोटा भाई गौरव शर्मा और परवेज उर्फ बसरू निवासी सरधना, मेरठ शामिल थे.

इस पार्टी में कामना को नहीं बुलाया गया था. दीपक, गौरव और परवेज 4 नवंबर की सुबह रिंकू को नौकरी दिलाने के बहाने अपने साथ ले कर राजस्थान चले गए. जाने के लिए अशोक ने उन्हें कार बुक करा दी थी. रास्ते में परवेज ने धोखे से रिंकू को शराब में जहर दे दिया.  बाद में उसे गला दबा कर मारने के बाद तीनों ने उस की लाश चुरू की झाडि़यों में फेंक दी और देहरादून लौट आए. रिंकू चूंकि घर से बेदखल था, इसलिए किसी ने उसे ढूंढने की कोशिश नहीं की.

अशोक ने कामना के आसपास से भले ही रिंकू नाम के कांटे को सदा के लिए निकाल फेंका था, लेकिन वह अब भी शक की आग में जल रहा था. अशोक के शक करने की बीमारी से दोनों के बीच मतभेद गहरा गए थे. एक छत के नीचे रहते हुए भी उन में बहुत कम बात होती थी, सिर्फ जरूरत भर की.

इस बार अशोक को पता चला कि कामना का किसी फाइनेंसर के साथ चक्कर है. इसे ले कर उन के बीच जो बचेखुचे रिश्ते थे, वे भी खत्म हो गए. परिवार के टूटने से कामना बुरी तरह टूट गई थी. पति को उस ने लाख सफाई देनी चाही, लेकिन वह अपनी गृहस्थी बचाने में कामयाब नहीं हुई.

जो अशोक कभी उसे दिल की गहराइयों से चाहता था, उसी को कामना की सूरत से भी घृणा हो गई थी. बेइंतहा प्यार अब बेइंतहा नफरत में बदल गया था. 5 सालों के भीतर इश्क का आशियाना तिनकातिनका हो कर बिखर गया था. अकेलापन दूर करने के लिए अशोक के दिल में फिर से रेखा के लिए प्यार उमड़ आया. वह एक बार फिर रेखा की बांहों में जा गिरा. अशोक रेखा का पहला प्यार था, वह भी उसे भुला नहीं पाई थी. जब अशोक उस की पनाह में आया तो उस ने उसे दिल में जगह दे दी.

कामना से पति की यह बातें छिपी नहीं रह सकीं. जब उसे पति की सच्चाई पता चली तो घर में महाभारत छिड़ गया. गुस्से में आ कर अशोक ने यहां तक कह दिया कि जाह्नवी उस की बेटी नहीं है, बल्कि किसी और की नाजायज औलाद है. कामना को पति की यह बात दिल में चुभ गई. इस बात को ले कर दोनों के बीच खूब झगड़े हुए.

अशोक रोजरोज की चिकचिक से ऊब गया था और डिप्रेशन में रहने लगा था. अब कामना उसे फूटी आंख नहीं सुहाती थी. अंतत: उस ने पत्नी को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. उस ने 2 लाख में पत्नी की हत्या की सुपारी दे दी. यह काम मेरठ के कस्बा सरधना निवासी दीपक, गौरव और परवेज को करना था. योजना बनी कि घटना को अंजाम देने के बाद हत्या का दोष रिंकू के सिर मढ़ दिया जाएगा. पुलिस रिंकू की तलाश में मारीमारी फिरती रहेगी.

सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था. गौरव शर्मा ने बतौर पेशगी अशोक से एक लाख रुपए ले लिए थे. बाद में उस ने उस से 50 हजार रुपए और लिए. उन रुपयों में से उस ने 30 हजार रुपए का एक रिवौल्वर खरीदा. 28 अगस्त, 2019 की शाम गौरव अपने साथियों दीपक और परवेज को ले कर मेरठ से देहरादून पहुंचा, लेकिन उस दिन सही मौका न मिलने से ये लोग अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके.

29 अगस्त की रात कामना घर का कामकाज निपटा कर बेटी के साथ जल्द सो गई थी. अशोक भी जल्दी घर आ गया था. पत्नी के गहरी नींद में डूबते ही अशोक ने करीब 11 बजे गौरव को फोन कर घर बुला लिया.

गुमराह नहीं हो पाई पुलिस तीनों बदमाश एक होटल में कमरा ले कर ठहरे थे ताकि किसी को उन पर शक न हो. अशोक की ओर से हरी झंडी मिलते ही साढ़े 11 बजे दीपक शर्मा, गौरव शर्मा और परवेज अशोक के घर पहुंच गए. अशोक के घर में चारों ओर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. गौरव ने देखा तो सहम गया. उस ने अशोक से कैमरे औफ करने के लिए कहा तो उस ने कैमरे बंद कर दिए.

खैर, अशोक ने तीनों को ड्राइंग रूम में बैठाया. गौरव ने उस से कामना के बारे में पूछा तो उस ने कमरे की ओर इशारा कर के बता दिया कि वह कमरे में सो रही है. उस के साथ बेटी भी सो रही है. उसे कुछ नहीं होना चाहिए. इशारे से अशोक ने उसे समझाया तो उस ने सिर हिला कर भरोसा दिया कि बच्ची को कुछ नहीं होगा.

तीनों बदमाश दबे पांव उस कमरे में पहुंचे, जहां कामना गहरी नींद में सो रही थी. गौरव ने कमर से पिस्टल निकाला और उस के सिर के पीछे सटा कर ट्रिगर दबा दिया. गोली उस की दाईं आंख को चीरती हुई पार हो गई और बैड में जा धंसी. कुछ पल के लिए कामना हिली, फिर शांत हो गई.

पुलिस को गुमराह करने के लिए अशोक ने गौरव से उस पर भी फायर करने के लिए कह दिया था ताकि लगे कि बदमाश लूट की नीयत से घर में घुसे थे. विरोध करने पर उन्होंने कामना और उस के पति को गोली मार दी, जिस में कामना की मौत हो गई और यह बच गया. अशोक के कहने पर गौरव ने उसे पीछे से गोली मारी. गोली अशोक की पीठ और पेट को चीरती हुई दीवार में धंसी.

उस के बाद गौरव, दीपक और परवेज सीसीटीवी कैमरे की डीवीआर उखाड़ अपने साथ ले गए ताकि पुलिस उन तक किसी भी कीमत पर न पहुंच सके, लेकिन वे अपने मकसद में सफल नहीं हो सके. पुलिस काल डिटेल्स और सर्विलांस के जरिए कातिलों तक पहुंच ही गई. अशोक ने रिंकू को फंसा कर पुलिस को उलझाने की जो तरकीब निकाली थी, वह धरी की धरी रह गई.

पुलिस ने रिंकू और कामना की हत्या के लिए दीपक शर्मा, गौरव शर्मा, अशोक रोहिल्ला और परवेज के खिलाफ हत्या और आपराधिक षडयंत्र रचने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. रिंकू की लाश का पता लगाने के लिए पुलिस तीनों आरोपियों दीपक, गौरव और परवेज को ले कर राजस्थान के चुरू गई,

लेकिन उस की लाश नहीं मिल सकी.  शक की बीमारी ने न जाने कितनी गृहस्थियां उजाड़ी हैं. अशोक के साथ यही हुआ. अगर उस ने विवेक से काम लिया होता तो कामना जिंदा होती और वह जेल के बाहर.

रेखा और सुरेश परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मर कर भी न होंगे जुदा

उत्तर प्रदेश का एक शहर एवं जिला मुख्यालय है फिरोजाबाद. यह शहर कांच की चूडि़यों के लिए प्रसिद्ध है. इसी जिले के थाना बसई मोहम्मदपुर के गांव आलमपुर कनैटा में राजवीर सिंह लोधी अपने परिवार के साथ रहता था. उस की पत्नी की करीब 3 साल पहले मौत हो गई थी.

राजवीर की गांव में आटा चक्की थी. उस के 2 बेटे बलजीत व जितेंद्र के अलावा 2 बेटियां राधा, ललिता उर्फ लता थीं. वह एक बेटे और एक बेटी की शादी कर चुका था. छोटा बेटा जितेंद्र पिता के साथ चक्की के काम में हाथ बंटाता था जबकि ललिता उर्फ लता गांव के ही स्कूल में पढ़ रही थी.

इसी गांव में रामवीर सिंह लोधी भी अपने परिवार के साथ रहता था. वह निजी तौर पर पशुओं का इलाज करने का काम करता था. उस के 4 बेटों में अनिल कुमार सब से छोटा था. वह बीएससी कर चुका था और नौकरी की तलाश में था. अनिल का बड़ा भाई जितेंद्र दिल्ली के एक होटल में नौकरी करता था.

ललिता 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. जब वह स्कूल जाती, तो रास्ते में अकसर उसे गांव का युवक अनिल मिल जाता था. वह उसे चाहत भरी नजरों से देखता था. उस की उम्र करीब 20 साल थी. लता ने भी उन्हीं दिनों जवानी की दहलीज पर कदम रखा था. अनिल लता की जाति का ही था. लता को भी अनिल अच्छा लगता था. उस का झुकाव भी अनिल की तरफ होने लगा. दोनों ही एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे.

दोनों के बीच यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करने में सकुचा रहे थे, क्योंकि उन का यह पहलापहला प्यार था. आखिर एक दिन अनिल ने हिम्मत कर के लता से पूछ ही लिया, ‘‘लता, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?’’

लता को तो जैसे इसी पल का ही इंतजार था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरी पढ़ाई तो ठीक चल रही है, पर तुम कैसे हो?’’

‘‘मैं अच्छा हूं,’’ अनिल ने जवाब दिया.  इस औपचारिक बातचीत के बाद दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने फोन नंबर भी दे दिए थे, जिस से उन के बीच फोन पर भी बातचीत होने लगी. रही बात मिलने की तो लता के स्कूल जातेआते समय अनिल पहुंच जाता था, जिस से वे एकदूसरे से मिल लेते थे.

धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. कभीकभी लता सहेली के पास जाने की बात कह कर घर से निकल जाती और अनिल से एक निश्चित जगह पर मिल लेती थी. उन के प्रेम संबंध यहां तक पहुंच गए थे कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था.

उस समय अनिल बेरोजगार था. उस ने लता से वादा किया कि शादी के लिए हम तब तक इंतजार करेेंगे, जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता. नौकरी लगने के बाद वह उसे अपने साथ ले जाएगा. यह बात सुन कर ललिता बहुत खुश हुई.

दोनों एक ही जाति के थे, इसलिए उन्हें पूरा विश्वास था कि दोनों के घर वालों को उन की शादी पर कोई ऐतराज नहीं होगा. पिछले डेढ़ साल से दोनों का प्रेम प्रसंग बिना किसी बाधा के चल रहा था.

मिलने और मोबाइल पर बात करने में दोनों पूरी सावधानी बरतते थे. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं. किसी तरह लता के परिजनों को उन के प्रेम संबंधों की भनक लग गई.

लिहाजा उन्होंने लता को समझाया कि वह अनिल से मिलना बंद कर दे. इस से परिवार की बदनामी ही हो रही है. लता ने उस समय तो उन से वादा कर दिया कि वह घर की मानमर्यादा का ध्यान रखेगी. उस के वादे से घर वाले निश्चिंत हो गए.

2-4 दिनों तक तो लता ने अनिल से बात नहीं की. लेकिन इस के बाद प्रेमी की यादें उसे विचलित करने लगीं. उधर अनिल भी परेशान रहने लगा. दोनों की यह बेचैनी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी.

दिल की लगी नहीं छूटी  घर वालों की बातों को दरकिनार कर के लता ने अनिल से फोन पर बतियाना शुरू कर दिया. लेकिन अब वह सावधानी बरतने लगी ताकि घर वालों को पता न चले.

लेकिन एक बार लता की मां ने रात में उसे मोबाइल पर बात करते देख लिया. उस ने यह बात पति राजवीर को बताई. उस ने जब लता का मोबाइल चैक किया तो पता चला कि वह अनिल से ही बात कर रही थी.

यह जान कर राजवीर का खून खौल उठा. उस ने लता को बहुत लताड़ा और उस पर पहरा लगा दिया. इतना ही नहीं, राजवीर ने इसकी शिकायत अनिल के पिता रामवीर सिंह से भी कर दी. रामवीर ने भी अनिल को बहुत डांटा.

अब दोनों पर ही पाबंदियां लग गई थीं, जिस से वे बेचैन रहने लगे. लता का फोन भी उस के घर वालों ने अपने पास रख लिया था. लता किसी भी तरह अनिल से बात करना चाहती थी. एक दिन लता को यह मौका मिल गया. घर पर उस की सहेली मिलने आई थी. लता ने उस के मोबाइल फोन से अनिल से बात की और कहा कि यह दूरियां अब उस से सही नहीं जा रही हैं.

तब अनिल ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘लता, कुछ दिनों के लिए मैं भाई के पास दिल्ली जा रहा हूं. जब मामला ठंडा पड़ जाएगा तो मैं गांव आ जाऊंगा.’’

लता को भी अनिल की बात सही लगी और उस ने न चाहते हुए भी दिल पर पत्थर रख कर उसे दिल्ली जाने की इजाजत दे दी. अनिल अपने भाई जितेंद्र के पास दिल्ली पहुंच गया. जितेंद्र ने अनिल की नौकरी एक निजी अस्पताल में लगवा दी.

दिल्ली जा कर अनिल के नौकरी करने की जानकारी लता के पिता राजवीर को हुई तो उस ने राहत की सांस ली. उस ने निर्णय लिया कि मौका अच्छा है, क्यों न लता के हाथ पीले कर दिए जाएं. लिहाजा आननफानन में उस ने लता के लिए लड़का तलाशना शुरू कर दिया गया.

यह तलाश जल्द ही पूरी हो गई. एटा जिले के जलेसर नगर में सुनील नाम का लड़का पसंद कर लिया गया. शादी की बात भी पक्की कर दी गई. दोनों पक्षों ने इसी साल नवंबर महीने में देवउठान के पर्व पर शादी करने की बात तय कर ली.

लता को जब अपनी शादी तय होने की बात पता चली, तो उस की नींद उड़ गई. क्योंकि वह तो अनिल की दुलहन बनने का सपना संजोए बैठी थी. लता ने अपनी शादी का विरोध किया लेकिन घर वालों के आगे उस की एक नहीं चली.

अनिल भी उस समय दिल्ली में था. लता ने उसे फोन कर के अपनी शादी तय होने की बात बता दी. यह बात सुन कर वह भी परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या करे.

जुलाई के पहले सप्ताह में गोदभराई की रस्म संपन्न हो गई. लता गोदभराई के दिन चाह कर भी किसी से कुछ नहीं कह सकी. वह उदास थी. उस का दिल रो रहा था. वह अनिल से मिलने के लिए तड़प रही थी.

15 अगस्त को रक्षाबंधन था. लता को पता था कि रक्षाबंधन पर अनिल गांव जरूर आएगा. उस ने सोचा तभी अनिल से मिल कर अपने मन की बात कहेगी. इतना ही नहीं, लता ने निर्णय ले लिया था कि अनिल के गांव आने पर वह अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ अनिल के साथ शादी कर लेगी, चाहे इस के लिए उसे अपना घर छोड़ कर भागना ही क्यों न पड़े.

प्रेमी के लिए तड़प रही थी लता  लेकिन लता के अरमानों पर उस समय बिजली गिर गई, जब रक्षाबंधन के दिन भी अनिल गांव नहीं आया, इस से वह बहुत निराश हुई. घर वालों ने लता को उस का मोबाइल फोन लौटा दिया था. लता ने अनिल को फोन किया तो उस ने बताया कि छुट्टी नहीं मिलने की वजह से वह इस बार घर नहीं आ सका. लेकिन अगले महीने गांव जरूर आएगा.

लता को अब तसल्ली नहीं हो रही थी. उस के घर वालों ने शादी की खरीदारी शुरू कर दी थी. उसे अपने ही घर में एकएक दिन काटना बड़ा मुश्किल हो रहा था. सारीसारी रात वह बिस्तर पर करवटें बदलती रहती. उस ने एक दिन रात में ही निर्णय लिया, जिस की भनक उस ने अपने परिजनों को नहीं लगने दी.

16-17 अगस्त, 2019 की रात को जब लता के घर वाले सोए हुए थे, सुबह 4 बजे वह घर से गायब हो गई. परिजन जब सो कर उठे तो ललिता घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा कि वह मंदिर गई होगी. जब काफी देर तक वह वापस नहीं आई तो उस की तलाश की गई. उस का मोबाइल भी बंद था.

बदनामी के डर से इस की सूचना पुलिस को भी नहीं दी गई. सुबह के समय गांव के कुछ लोगों ने ललिता को बाइक पर किसी युवक के साथ जाते देखा था. यह जानकारी राजवीर सिंह को मिली तो उस ने बदनामी की वजह से यह बात भी पुलिस तक को बताना ठीक नहीं समझा.

राजवीर व उस के परिवार वालों को शक था कि ललिता अनिल के पास दिल्ली चली गई होगी. राजवीर ने रामवीर से दिल्ली में रह रहे उस के बेटे अनिल का मोबाइल नंबर ले कर उस से बात की. अनिल ने बताया कि लता उस के पास नहीं आई है. इस के बाद घर वाले लगातार लता के मोबाइल पर फोन करते रहे, लेकिन उस का फोन बंद मिला. 17 अगस्त की दोपहर में राजवीर ने जब लता को फोन मिलाया तो उस से बात हो गई.

19 अगस्त, 2019 की सुबह थाना मटसेना के आकलपुर गांव की कुछ महिलाएं जंगल की तरफ गईं तो उन्होंने गांव के बाहर बेर की बगिया में एक पेड़ से फंदों पर 2 शव लटके देखे. इन में एक शव युवक का था और दूसरा युवती का.

यह देख कर महिलाएं भाग कर घर आईं और यह बात लोगों को बता दी. इस के बाद तो आकलपुर गांव में कोहराम मच गया. जिस ने सुना, वही बगिया की ओर दौड़ पड़ा.

सूरज की पौ फटतेफटते वहां सैकड़ों की भीड़ जुट गई. गांव के लोगों ने पेड़ पर शव लटके देख पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही थानप्रभारी मोहम्मद उमर फारुक पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

पुलिस ने फोटो खींचने के बाद दोनों शव नीचे उतरवाए. उन की तलाशी ली तो दोनों के पास आधार कार्ड मिले. पुलिस को पता चला कि मृतक युवक आलमपुर कनैटा निवासी रामवीर का 20 वर्षीय बेटा अनिल कुमार था, जबकि मृतका उसी गांव के रहने वाले राजवीर की बेटी ललिता उर्फ लता थी.

थानाप्रभारी ने घटना की जानकारी अपने आला अधिकारियों के साथ ही युवकयुवती के घर वालों को भी दे दी. सूचना मिलते ही दोनों परिवारों में कोहराम मच गया. आकलपुर गांव आलमपुर गांव की सीमा से सटा हुआ था, इसलिए घर वाले रोतेबिलखते वहां पहुंच गए. इसी दौरान सीओ (सदर) बलदेव सिंह खनेड़ा व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. अपने बच्चों की लाशें देख कर दोनों के परिजनों का रोरो कर बुरा हाल था.

पुलिस को दोनों के पास से सुसाइड नोट भी मिले. अनिल का सुसाइड नोट उस की पैंट की जेब से जबकि ललिता ने सुसाइड नोट अपनी कलाई में बंधे कलावे से बांध रखा था. आधार कार्ड, सुसाइड नोट के अलावा दोनों के मोबाइल फोन पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए. जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए.

पुलिस ने जब केस की जांच शुरू की तो पता चला कि अनिल और ललिता ने गांव लौटने का फैसला कर लिया था और यह बात घर वालों को बता दी थी. ऐसे में दोनों के शव पेड़ से लटके मिलने पर सवाल उठने लगे.

मिलन नहीं तो मौत ही सही  इस प्रेमी युगल की प्रेम कहानी की इबारत सुसाइड नोट में लिखी मिली. दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसम खाई और सुसाइड नोट लिखे. ललिता ने अपने सुसाइड नोट में अनिल के अलावा किसी और से शादी न करने की बात लिखी थी. एक पेज के सुसाइड नोट में उस ने लिखा था कि मैं अनिल के पास दिल्ली चली गई थी.

मेरे घर वालों ने मेरी शादी तय कर दी थी, जबकि मैं किसी दूसरे से शादी नहीं कर सकती थी. अनिल मुझ से घर वापस जाने के लिए कह रहा था, लेकिन मैं घर नहीं जाना चाहती थी. मैं अनिल के बिना नहीं रह सकती. इसलिए अपनी मरजी से आत्महत्या कर रही हूं. इस के लिए किसी को परेशान न किया जाए.

वहीं अनिल ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि ललिता मेरे पास दिल्ली आ गई थी. 18 अगस्त को वह उसे गांव छोड़ने आया था, लेकिन लता ने अपने घर जाने से इनकार कर दिया. उस ने लिखा कि मम्मीपापा मुझे माफ कर देना. मैं लता के बिना नहीं रह सकता. मैं अपनी मरजी से आत्महत्या कर रहा हूं.

पुलिस ने अनिल के घर मिले एक रजिस्टर से उस के सुसाइड नोट की राइटिंग का मिलान भी किया.

प्रेम विवाह को ले कर परिवार के लोगों ने दोनों के बीच में दीवारें खड़ी कर दीं तो प्रेमी युगल ने मरने का फैसला ले लिया. प्रेमी जोड़े ने इतना बड़ा कदम उठा लिया कि एक पेड़ पर एक ही दुपट्टे से एक ही फंदे पर लटक कर मौत को गले लगा लिया.

इस प्रेम कहानी का अंत लता के घर वालों की जिद के कारण हुआ. 16 अगस्त को जब लता अचानक गांव से गायब हो गई थी, तब वह सीधे दिल्ली में रह रहे अपने प्रेमी अनिल के पास पहुंची थी. 17 अगस्त को लता के पिता की उस से मोबाइल पर बात भी हुई.

लता ने परिजनों को सारी बात बताई और कहा कि उस ने अनिल के साथ शादी करने का फैसला कर लिया है. घर वालों ने इस रिश्ते को मानने से इनकार कर दिया और उसे ऊंचनीच समझाते हुए घर लौटने को कहा. इस के बाद प्रेमी युगल ने घर वालों से 18 अगस्त को गांव आने की बात कही थी. लेकिन 19 अगस्त को दोनों ने आत्महत्या कर ली.

चूंकि मृतकों के परिजनों ने पुलिस को कानूनी काररवाई करने की कोई तहरीर नहीं दी, इसलिए पुलिस ने कोई मामला दर्ज नहीं किया. इस के अलावा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया कि अनिल और लता ने आत्महत्या की थी. अत: पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

गुनाहगार पति : नतीजों का मिला फल

उस दिन अक्तूबर 2019 की 14 तारीख थी. इटावा कोतवाली प्रभारी निरीक्षक अनिलमणि त्रिपाठी अपने कार्यालय में बैठे थे. शाम करीब 4 बजे एक उम्रदराज व्यक्ति उन के पास आया. उस के चेहरे से भय व दुख साफ झलक रहा था. त्रिपाठी ने उसे सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया फिर पूछा, ‘‘आप कुछ परेशान दिख रहे हैं. बताइए, क्या बात है?’’

‘‘सर, मेरा नाम प्रमोद कुमार मिश्रा है और मैं शहर के कटरा बलसिंह मोहल्ले में रहता हूं. मेरी बहू दिव्या मिश्रा की किसी ने हत्या कर दी है.’’ उस ने बताया.

शहर के बीचोंबीच स्थित मोहल्ले में दिनदहाड़े महिला की हत्या की बात सुन कर कोतवाल अनिलमणि त्रिपाठी चौंक पड़े. उन्होंने महिला की हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी, फिर आवश्यक पुलिस के साथ कटरा बलसिंह मोहल्ला स्थित प्रमोद कुमार मिश्रा के मकान पर पहुंच गए.

उस समय घर के बाहर भीड़ जुटी थी. प्रमोद कुमार मिश्रा कोतवाल को तीसरी मंजिल पर स्थित उस कमरे में ले गए, जहां उन की बहू दिव्या की लाश पड़ी थी. लाश खून से लथपथ थी.

उस के सिर के पिछले भाग में चोट का गहरा निशान था. लाश के पास ही चीनी मिट्टी का बना फूलदान टूटा पड़ा था. संभवत: उसी गुलदस्ते से प्रहार कर उस की हत्या की गई थी. कमरे का सामान अस्तव्यस्त था. देखने से प्रतीत होता था कि दिव्या ने हत्यारे से संघर्ष किया था.

कोतवाल अनिलमणि त्रिपाठी अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एएसपी (सिटी) डा. रामयश सिंह, एएसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह तथा सीओ चंद्रपाल सिंह वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक तथा डौग स्क्वायड टीम को भी मौके पर बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. इसी दौरान अधिकारियों ने मृतका की देह में कुछ हरकत महसूस की. जीवित होने की संभावना पर दिव्या को आननफानन में जिला अस्पताल भेजा गया, लेकिन डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया.

फोरैंसिक टीम ने जहां घटनास्थल की गहन जांच कर फिंगरप्रिंट लिए, वहीं खोजी कुत्ता घटनास्थल पर पड़े खून को सूंघ कर कमरे में चक्कर लगाता रहा फिर मकान के नीचे उतरा और लडैती भवन तक गया. उस के बाद वापस आ गया. खोजी कुत्ता मददगार साबित नहीं हुआ.

पुलिस अधिकारियों को पूछताछ से पता चला कि दिव्या मिश्रा, टीवी एंकर अजितेश मिश्रा की पत्नी थी. घटना के समय अजितेश मिश्रा नोएडा में था. पिता प्रमोद मिश्रा ने फोन कर के उसे दिव्या की मौत की सूचना दे दी.

प्रमोद ने दिव्या के मायके वालों को भी उस की मौत की खबर दे दी थी. खबर पा कर दिव्या का भाई, पिता, नानी आदि जिला अस्पताल पहुंच गए. सब दिव्या की मौत पर आंसू बहा रहे थे.

जिला अस्पताल में सिटी मजिस्ट्रैट सत्येंद्र नाथ पांडेय की उपस्थिति में दिव्या के शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया. रात 10 बजे शव का पोस्टमार्टम डा. पल्लवी दीक्षित, डा. उदय प्रताप तथा डा. ऋषि यादव ने किया. लेकिन पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को नहीं सौंपा गया. क्योंकि पुलिस को अभी कुछ और जांच करनी थी. हालांकि शव लेने मृतका का पति अजितेश आ गया था.

दरअसल, उस दिन एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा विभाग की लखनऊ में आयोजित की गई क्राइम मीटिंग में गए थे. वापस आने पर उन्हें हत्याकांड की जानकारी हुई तो वह रात 10 बजे घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने पुन: फोरैंसिक टीम को बुलाया और जांच कराई.

मिश्रा रात 2 बजे तक घटनास्थल पर रहे और एकएक बिंदु की बारीकी से जांच की. जांच प्रभावित न हो इसलिए दिव्या का शव परिजनों को नहीं सौंपा गया था. उन के द्वारा जांच कराए जाने के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया.

शव का दाह संस्कार करने के बाद प्रमोद कुमार मिश्रा सिविल लाइंस कोतवाली पहुंचे और अज्ञात के खिलाफ बहू की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. एसएसपी ने इस हाईप्रोफाइल केस की जांच के लिए सीओ (सिटी) चंद्रपाल सिंह के नेतृत्व में एक विशेष टीम बनाई. विशेष टीम में कोतवाल अनिलमणि त्रिपाठी, स्वाट टीम प्रभारी सत्येंद्र सिंह यादव के अलावा तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का एक बार फिर से निरीक्षण किया, फिर घर के मुखिया प्रमोद कुमार मिश्रा से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वह कर्वा खेड़ा जनता माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे, जहां से एक साल पहले सेवानिवृत्त हुए थे. घर में पत्नी के अलावा बहू दिव्या मिश्रा तथा बूढ़ी मां रहती थी. पत्नी कुछ दिन पहले बड़े बेटे के पास चली गई थी.

स्कूल से सेवानिवृत्त होने के बाद प्रमोद कुमार सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहने लगे थे. वह सुबह 11 बजे नाश्ता कर के घर से निकलते, फिर डेढ़दो बजे तक घर वापस आते थे. शाम को फिर 5 बजे घर से निकलते और रात 8 बजे घर वापस आ जाते थे. उन के कमरे का दरवाजा बाहर की ओर खुलता था. उसी से वह आतेजाते थे. मकान के मुख्य दरवाजे से उन का ज्यादा वास्ता नहीं रहता था.

14 अक्तूबर, 2019 को वह 11 बजे नाश्ता कर के घर से कर्वा खेड़ा स्कूल जाने को निकले. स्कूल स्टाफ ने उन्हें किसी जरूरी काम के लिए बुलाया था. स्कूल का काम निपटा कर वह अपराह्न लगभग 2 बजे घर आए. उन्होंने खाना देने हेतु बहू दिव्या को आवाज लगाई, लेकिन बहू ने कोई जवाब नहीं दिया. फिर उन्होंने उस से मोबाइल पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उस ने मोबाइल रिसीव नहीं किया. इस से उन्हें लगा कि शायद बहू सो गई है. वह भी आराम करने लगे.

लगभग 3 बजे उन की आंखें खुलीं तो निगाह मेनगेट पर चली गई, जो खुला हुआ था. वह समझ गए कि घर में किसी का आनाजाना हुआ है. घर में कौन आयागया, यह पता लगाने के लिए वह तीसरी मंजिल पर पहुंचे. बहू दिव्या का कमरा खुला था. उन्होंने आवाज लगाई. लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. तब उन्होंने कमरे में प्रवेश किया.

कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. बहू दिव्या फर्श पर खून से लथपथ पड़ी थी. फूलदान टूटा हुआ था. चिल्लाते हुए वह बाहर आए और पड़ोसियों को जानकारी दी. उस के बाद वह थाने पहुंचे.

प्रमोद मिश्रा की बात सुनने के बाद सीओ चंद्रपाल सिंह ने पूछा, ‘‘आप को किसी पर शक है? या फिर आप के घर किसी विशेष व्यक्ति का आनाजाना था?’’

‘‘सर, दिव्या किसी अनजान व्यक्ति के लिए गेट नहीं खोलती थी. मेरी गैरमौजूदगी में अगर कोई आता भी था तो वह यह कह कर वापस कर देती थी कि पापा घर पर नहीं हैं.’’

‘‘हत्या कहीं लूट के इरादे से तो नहीं की गई?’’ सीओ चंद्रपाल सिंह ने उन से पूछा.

‘‘नहीं सर, घर में लूट नहीं हुई. घर का कीमती सामान, आभूषण तथा नकदी सब सुरक्षित है. मैं ने सब चैक कर लिया है.’’ प्रमोद मिश्रा ने बताया.

पति आया शक के दायरे में

घर में घटना के समय प्रमोद मिश्रा की वृद्ध मां मौजूद थीं. वह चलनेफिरने और बोलनेचालने में भी लाचार थीं. उन्हें दिखाई भी कम देता था. ऐसी स्थिति में पुलिस ने उन से पूछताछ करना उचित नहीं समझा.

पुलिस टीम ने प्रमोद मिश्रा के पड़ोसियों से भी पूछताछ की. लेकिन हत्या के संबंध में वह कोई जानकारी नहीं दे सके. टीम ने मृतका दिव्या के भाई सचिन कुमार तथा अन्य परिजनों से पूछताछ की, लेकिन वह भी कोई खास जानकारी नहीं दे पाए.

दिव्या का पति अजितेश मिश्रा पुलिस टीम को जांच में सहयोग नहीं कर रहा था. टीम के सदस्य जब भी उस से पूछताछ करने की कोशिश करते, वह बेहोश हो जाने का नाटक करता. उस के इस नाटक से पुलिस टीम को शक हुआ. वैसे भी पुलिस टीम को किसी करीबी पर ही शक था.

अत: पुलिस टीम ने कुछ सख्त रुख अपनाया. तब वह बोला, ‘‘सर, दिव्या को मैं बेहद प्यार करता था. वह भी मुझे बहुत चाहती थी. वह मेरे साथ नोएडा में ही रहती थी. कुछ दिनों पहले मेरी मां जब बड़े भाई के पास नासिक चली गईं, तब मैं ने ही दिव्या को अपनी दादी और पापा की देखभाल के लिए नोएडा से घर भेज दिया था. पता नहीं मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उन्होंने मेरी पत्नी को मुझ से छीन लिया. पत्नी के जाने के बाद मेरा तो जीवन ही बरबाद हो गया.’’

अब तक पुलिस टीम को दिव्या की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक दिव्या की मौत सिर में गंभीर चोट लगने से हुई थी. उस का गला भी कसा गया था. बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई थी, फिर भी स्लाइड बना ली गई थी.

पुलिस टीम को मृतका के पति पर शक था. अत: पुलिस टीम ने अजितेश और दिव्या के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहनता से छानबीन की तो पता चला अजितेश 4 मोबाइल नंबरों पर ज्यादा बातें करता था, जिस में एक नंबर उस की पत्नी दिव्या का था, दूसरा उस के पिता प्रमोद मिश्रा का था. तीसरे और चौथे नंबर संदिग्ध थे.

इन संदिग्ध नंबरों के विषय में पूछने पर अजितेश ने बताया कि ये नंबर एफएम टीवी न्यूज चैनल में उस के साथ काम करने वाली भावना आर्या तथा दोस्त अखिल कुमार के हैं. इस में भावना आर्या के फोन पर अजितेश की लगभग हर रोज बातें होती थीं.

टीवी चैनल की मेकअप आर्टिस्ट से था चक्कर  कहीं भावना व अजितेश के बीच नाजायज संबंधों का मकड़जाल तो नहीं? इस की जानकारी करने पुलिस टीम 16 अक्तूबर, 2019 को एफएम टीवी न्यूज चैनल के सेक्टर-63 नोएडा स्थित औफिस पहुंची और कई लोगों से पूछताछ की. पता चला कि भावना आर्या और अजितेश के बीच कुछ ज्यादा ही गहरे प्रेम संबंध हैं.

इन संबंधों के कारण पतिपत्नी के बीच तनाव बढ़ गया था. अखिल दोनों के प्यार की धुरी बना हुआ था. यह जानकारी भी मिली कि अजितेश की पत्नी दिव्या अखिल को अपना मुंहबोला भाई मानती थी और उसे राखी बांधती थी.

यह पता चलते ही पुलिस टीम ने भावना आर्या और अखिल कुमार को उन के कार्यालय से हिरासत में ले लिया और उन्हें ले कर इटावा आ गई. पुलिस ने सिविल लाइंस कोतवाली में अजितेश को भी बुलवा लिया. अजितेश का सामना भावना आर्या और अखिल से हुआ तो उस का चेहरा फीका पड़ गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले अखिल से पूछताछ की. अखिल पहले तो पुलिस टीम को बरगलाता रहा और कहता रहा कि दिव्या उस की मुंहबोली बहन थी. भला एक भाई अपनी बहन की हत्या कैसे कर सकता है.

लेकिन जब पुलिस टीम ने उस पर सख्ती की तो वह टूट गया. उस ने दिव्या की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि हत्या का षडयंत्र अजितेश और उस की प्रेमिका भावना आर्या ने रचा था. पैसों का लालच दे कर उसे दिव्या की हत्या के लिए इटावा भेजा गया था. अखिल ने स्वीकार कर लिया कि दिव्या की हत्या उस ने ही की थी.

अखिल के बाद अजितेश और भावना ने भी जुर्म कबूल कर लिया. भावना ने बताया कि वह अजितेश से प्यार करती थी. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन अजितेश की पत्नी दिव्या उस के प्यार में बाधक थी, इसलिए षडयंत्र रच कर उस को मरवा दिया.

अजितेश ने बताया कि उस की शादी को 3 वर्ष बीत चुके थे, लेकिन दिव्या संतान सुख नहीं दे पाई, जिस से वह उस से दूर भागने लगा. इसी बीच साथ काम करने वाली भावना से उस की दोस्ती हुई. दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों शादी करने को राजी हो गए. लेकिन इस में पत्नी दिव्या दीवार बन गई थी, इसलिए उसे रास्ते से हटा दिया गया.

न्यूज एंकर और उस की  प्रेमिका ने स्वीकारा जुर्म  पुलिस टीम ने दिव्या हत्याकांड का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा को दे दी. मिश्राजी ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित कर अभियुक्तों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. प्रैसवार्ता में एसएसपी ने घटना का खुलासा करने वाली टीम को 15 हजार रुपए पुरस्कार देने की भी घोषणा की.

चूंकि कातिलों ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, अत: पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत अजितेश मिश्रा, भावना आर्या तथा अखिल कुमार सिंह को नामजद कर के उन्हें विधिसम्मत बंदी बना लिया. पुलिस जांच से पति द्वारा पत्नी की हत्या किए जाने की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाना अंतर्गत एक मोहल्ला कटरा बलसिंह पड़ता है. शहर के बीचोंबीच स्थित इस मोहल्ले में प्रमोद कुमार मिश्रा अपने परिवार के साथ रहते थे.

उन के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा 3 बेटे थे, जिस में अजितेश सब से छोटा था. प्रमोद कुमार मिश्रा कर्वा खेड़ा जनता माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे, किंतु अब रिटायर हो चुके थे. मोहल्ले में उन की अच्छी प्रतिष्ठा थी. उन का अपना 3 मंजिला मकान था. उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी.

प्रमोद कुमार मिश्रा स्वयं उच्चशिक्षा प्राप्त थे, अत: उन्होंने तीनों बेटों को उच्चशिक्षा दिलाई थी. उन के 2 बेटे पढ़लिख कर नासिक में नौकरी करने लगे थे. उन्होंने दोनों बेटों की शादी भी अच्छे घरानों में की थी. होली दीवाली जैसे बड़े त्यौहारों पर बेटेबहू इटावा आते थे और घर में खुशियां मनाते थे.

अजितेश अपने अन्य भाइयों की अपेक्षा ज्यादा स्मार्ट तथा तेजतर्रार था. अजितेश पढ़लिख कर एफएम टीवी न्यूज चैनल नोएडा में काम करने लगा था. वह वहां न्यूज एंकर था. अजितेश कमाने लगा तो प्रमोद मिश्रा ने उस की शादी इटावा की ही फ्रैंड्स कालोनी निवासी राजीव तिवारी की बेटी दिव्या से सन 2015 में कर दी. दिव्या एमए की पढ़ाई कर रही थी. दिव्या बेहद खूबसूरत थी.

खूबसूरत पत्नी पा कर जहां अजितेश खुश था, वहीं उस के मातापिता भी फूले नहीं समा रहे थे. दिव्या ने ससुराल आते ही घर संभाल लिया था. वह पति का तो खयाल रखती ही थी, सासससुर की सेवा में भी कोई कोरकसर नहीं छोड़ती थी. वह अपनी ददिया सास का भी पूरा खयाल रखती थी.

दिव्या कुछ महीने ससुराल में रही, उस के बाद नोएडा चली गई और पति अजितेश के साथ रहने लगी. दिव्या और अजितेश का वैवाहिक जीवन सुखमय बीतने लगा. अजितेश को जब समय मिलता, वह दिव्या को सैरसपाटे के लिए भी ले जाता था.

दिव्या अखिल को मानती थी भाई  दिव्या के नोएडा स्थित घर पर अखिल कुमार सिंह का आनाजाना लगा रहता था. अखिल कुमार दिव्या के पति अजितेश के साथ चैनल में काम करता था. दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी.

अखिल दिव्या को बहन मानता था. दिव्या ने भी उसे मुंहबोला भाई बना लिया था. अखिल मूलरूप से अमर नगर, फरीदाबाद का रहने वाला था और अजनारा हाउस, ग्रेटर नोएडा में रहता था. दिव्या अखिल को अपना विश्वासपात्र मानती थी.

सुखमय जीवन व्यतीत करते 3 साल कब बीत गए, इस का अजितेश और दिव्या को पता ही नहीं चला. लेकिन इन 3 सालों में दिव्या मां नहीं बन सकी थी. जहां दिव्या के मन में गोद सूनी होने का दर्द था तो वहीं अजितेश के मन में भी मलाल था कि वह अभी तक बाप नहीं बन सका.

ऐसा नहीं था कि दिव्या ने अपना इलाज न कराया हो पर वह संतान सुख प्राप्त नहीं कर सकी थी. दिव्या जब भी ससुराल जाती तो सास उसे टोकती, ‘‘बहू, तू खुशखबरी कब देगी. खुशखबरी सुनने के लिए मेरे कान तरस रहे हैं.’’

दिव्या लजातेसकुचाते हुए सास को जवाब दे देती. धीरेधीरे अजितेश के मन में यह बात घर कर गई कि शायद दिव्या अब कभी मां नहीं बन पाएगी. इस टीस ने दोनों के प्यार में दरार पैदा कर दी. अब अजितेश दिव्या से दूर भागने लगा. मन ही मन वह उस से नफरत करने लगा.

अजितेश और भावना  इस तरह आए नजदीक  उन्हीं दिनों अजितेश की नजर खूबसूरत भावना आर्या पर पड़ी. भावना आर्या के पिता ललित नारायण आर्या नई दिल्ली स्थित नैशनल स्टेडियम में नौकरी करते थे. भावना आर्या उन की लाडली बेटी थी. वह पढ़ीलिखी और तेजतर्रार थी. भावना भी एमएम टीवी न्यूज चैनल में मेकअप आर्टिस्ट थी. अजितेश और भावना एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते थे. अकसर दोनों के बीच बातें होती रहती थीं.

इन्हीं बातों के चलते अजितेश भावना को चाहने लगा. वैसे तो वह कई सालों से उसे देखता आ रहा था, लेकिन उस के मन में भावना के प्रति प्यार तब जागा, जब संतान न होने पर पत्नी से उस की दूरियां बढ़ीं.

टीवी चैनल में मेकअप आर्टिस्ट होने की वजह से भावना का रहनसहन और व्यवहार उसी तरह का हो गया था. वह बनसंवर कर घर से आती थी तो देर रात को ही घर लौटती.

भावना की खूबसूरती अजितेश को अपनी ओर आकर्षित करने लगी थी. दिल के हाथों मजबूर अजितेश भावना का सामीप्य पाने को बेचैन रहने लगा था. इस के लिए वह भावना से नजदीकियां बढ़ाने लगा था, लेकिन वह उस से दिल की बात कह नहीं पा रहा था.

लेकिन दिल तो दिल है, वह कब किस पर आ जाए, कोई नहीं जानता. जब अजितेश से रहा नहीं गया तो एक दिन उस ने भावना से दिल की बात कह दी, ‘‘भावना, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारा प्यार पाने को मैं बेचैन हूं. तुम मेरे दिल में रचबस गई हो.’’

अजितेश की बात सुन कर भावना बोली, ‘‘अजितेश, तुम शादीशुदा हो. फिर मेरा प्यार क्यों पाना चाहते हो. रही बात प्यार की, वह मैं तुम्हें पहले से ही करती हूं.’’

‘‘दिव्या और मेरे प्यार के बीच दरार पड़ गई है. मैं उस से नफरत करने लगा हूं. दिव्या खूबसूरत जरूर है पर 3 साल बाद भी वह मां नहीं बन सकी.’’ वह बोला.

भावना आर्या अजितेश को पहले से ही प्यार करती थी. अत: जब उसे वजह पता चली तो उस ने उस का प्यार स्वीकार कर लिया. इस के बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों साथसाथ घूमने जाने लगे और लंच व डिनर साथ लेने लगे. जवानी के जोश में दोनों ने मर्यादा की दीवार भी गिरा दी. इतना ही नहीं, उन्होंने एक साथ रहने का भी फैसला कर लिया.

अजितेश और भावना के बीच नाजायज रिश्ता बना तो अजितेश घर में देरसवेर आने लगा. कभी वह पत्नी का बनाया हुआ खाना खाता तो कभी बिना खाए ही सो जाता. दिव्या कुछ कहती तो वह उस पर बरस पड़ता. दिव्या कहीं बाहर चल कर मूड फ्रैश करने को कहती तो मना कर देता.

अब उस ने दिव्या की फरमाइश पूरी करनी भी बंद कर दी थीं. दिव्या की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर अजितेश को हो क्या गया है.

एक दिन अखिल घर आया तो दिव्या ने उसे अजितेश के दुर्व्यवहार के संबंध में बताया और लेट घर आने के बारे में पूछा.

अखिल ने पहले तो बात टालने का प्रयास किया, लेकिन जब दिव्या ने कसम दिलाई तो अखिल ने सच्चाई बता दी, ‘‘दीदी, भैया आजकल न्यूज चैनल में मेकअप आर्टिस्ट भावना आर्या के प्यार में उलझे हैं. वह उसी के साथ आजकल मौजमस्ती करते हैं.’’

अखिल की बात सुन कर दिव्या अवाक रह गई. उसे अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा. क्योंकि कोई भी औरत भूख, गरीबी तो सह सकती है, लेकिन पति का बंटवारा सहन नहीं कर सकती. तो भला दिव्या यह सब कैसे सहन कर लेती.

इसलिए उस ने अजितेश और भावना के अवैध संबंधों का विरोध करना शुरू कर दिया. इस विरोध के कारण घर में कलह होने लगी. लेकिन दिव्या के विरोध के बावजूद अजितेश ने भावना का साथ नहीं छोड़ा.

दिव्या पढ़ीलिखी और संस्कारवान थी, इसलिए उस ने अजितेश को प्यार से समझाया और पिता की इज्जत का वास्ता दिया. साथ ही भावना को भी उस ने आड़े हाथों लिया. उस ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. दिव्या की खरीखोटी से भावना तिलमिला उठी. उस ने अजितेश से दिव्या की शिकायत की.

अक्तूबर के पहले सप्ताह में दिव्या नोएडा से अपनी ससुराल इटावा आ गई. दरअसल दिव्या की सास अपने बड़े बेटे के पास नासिक चली गई थी, अत: ससुर प्रमोद कुमार मिश्रा ने उसे घर की देखभाल के लिए बुलवा लिया था. घर में प्रमोद मिश्रा की बूढ़ी मां थीं, जिन की देखभाल के लिए दिव्या का वहां रहना जरूरी था.

दिव्या ससुराल जरूर आ गई थी, लेकिन वह अजितेश से मोबाइल पर संपर्क बनाए रखती थी. बातचीत के दौरान वह पति को भावना से दूर रहने की नसीहत देती रहती थी. अजितेश दिव्या को आश्वासन दे देता कि उस ने भावना से दूरी बना ली है. जबकि हकीकत इस के उलट थी. दोनों मस्ती में चूर थे.

7 अक्तूबर, 2019 की दोपहर दिव्या ने पति को फोन किया तो फोन भावना ने रिसीव किया. दिव्या समझ गई कि भावना और अजितेश एक साथ रूम में हैं, अत: उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. दिव्या ने फोन पर ही भावना को खूब फटकारा और यहां तक कह दिया कि उस के शरीर में ज्यादा गरमी है तो कोठे पर क्यों नहीं बैठ जाती.

तीखी नोकझोंक के बाद दिव्या ने  फोन बंद कर दिया. चंद मिनट बाद ही दिव्या के पास अजितेश का फोन आ गया. उस ने दिव्या को फटकार लगाते हुए कहा कि उसे भावना से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी.

दिव्या के व्यंग बाणों से भावना का दिल छलनी हो गया था. उस ने उसी दिन निश्चय कर लिया कि अब या तो दिव्या अजितेश के साथ रहेगी या फिर वह.

उस ने इस बारे में अजितेश से बात की, ‘‘देखो अजितेश, एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकतीं. दिव्या और मैं भी एक साथ नहीं रह सकते. इसलिए अब तुम्हें हम दोनों में से किसी एक को चुनना होगा. 2 दिन बाद तुम मुझे अपने निर्णय से अवगत करा देना.’’

अजितेश भावना के प्यार में आकंठ डूबा था. उस ने पत्नी के बजाए प्रेमिका को चुना. 2 दिन बाद भावना मिली तो उस ने उसे अपने निर्णय से अवगत करा दिया. इस के बाद अजितेश और भावना ने सिर से सिर जोड़ कर दिव्या की हत्या का षडयंत्र रचा.

इस षडयंत्र में अजितेश ने रुपयों का लालच दे कर दोस्त अखिल कुमार को भी शामिल कर लिया. दरअसल दिव्या अखिल को अपना मुंहबोला भाई मानती थी और उस पर विश्वास भी करती थी. इस नाते अखिल दिव्या तक आसानी से पहुंच सकता था.

योजना के तहत अजितेश ने एक नया सिम और मोबाइल खरीद कर अखिल कुमार को दे दिया. साथ ही इस नए मोबाइल पर ही बात करने को कहा. हत्या की पूरी योजना समझाने के बाद 14 अक्तूबर, 2019 की सुबह अजितेश ने अखिल को दिव्या की हत्या करने के लिए बस द्वारा इटावा भेज दिया.

लालच में अखिल हो गया हत्या करने को तैयार  लगभग 7 घंटे का सफर तय करने के बाद दोपहर 12 बजे अखिल कुमार इटावा पहुंच गया. इस बीच अजितेश अपनी पत्नी दिव्या और पिता प्रमोद से मोबाइल पर बात करता रहा ताकि दोनों की लोकेशन मिलती रहे. इस लोकेशन से अजितेश अखिल को भी अवगत कराता रहा.

लगभग एक बजे अखिल कुमार कटरा बलसिंह स्थित दिव्या के मकान पर पहुंचा और डोरबेल बजा दी. दिव्या ने तीसरी मंजिल से नीचे झांक कर देखा तो गेट पर उस का मुंहबोला भाई अखिल खड़ा था.

वह उसे देखते ही खुश हो गई और नीचे उतर आई. गेट खोल कर वह अखिल को अपने कमरे में ले आई. उस समय दिव्या के ससुर प्रमोद कुमार घर पर नहीं थे. वह स्कूल के कार्यक्रम में गए थे और बूढ़ी ददिया सास सो रही थीं.

दिव्या ने 2 कप चाय बनाई और अखिल के साथ चाय पीने लगी. इस बीच उस ने अपनी शादी का एलबम अखिल को दिखाया तथा अखिल से कहा कि वह अपने भाई को समझाए कि वह भावना के प्यार के जाल में न फंसे. लेकिन अखिल तो कुछ और ही सोच रहा था. उस की निगाह कमरे में रखे चीनी मिट्टी के फूलदान पर पड़ी. मौका पाते ही उस ने फूलदान उठाया और दिव्या के सिर पर दे मारा.

फूलदान के प्रहार से दिव्या का सिर फट गया. फिर दिव्या को समझते देर नहीं लगी कि अखिल को उस की हत्या के लिए भेजा गया है. इसलिए बचाव के लिए वह अखिल से भिड़ गई लेकिन अधिक खून बहने से वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. इस बीच अखिल ने अजितेश को मैसेज भेजा कि दिव्या की सांसें चल रही हैं.

इस पर अजितेश ने मैसेज का जवाब दिया कि सांसें थाम दो. तब अखिल ने दिव्या का सिर जमीन पर पटकपटक कर सांसें थाम दीं. दिव्या की हत्या करने के बाद वह आराम से गेट खोल कर घर से निकल गया. बस स्टाप पहुंच कर वह नोएडा के लिए रवाना हो गया.

इधर 2 बजे प्रमोद कुमार मिश्रा घर आए. उन्होंने खाना देने के लिए दिव्या को आवाज दी तथा फोन भी लगाया. लेकिन कोई रिस्पौंस नहीं मिला. तब उन्हें लगा कि शायद बहू सो गई है. तब वह भी आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गए.

एक घंटे बाद वह जागे तो मेनगेट खुला था. वह समझ गए कि घर के अंदर कोई आयागया है. पता करने के लिए वह कमरे में पहुंचे तो बहू दिव्या खून से लथपथ पड़ी थी.

हत्यारोपी अजितेश मिश्रा, अखिल कुमार तथा भावना आर्या से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें 18 अक्तूबर, 2019 को इटावा कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट श्री जे.पी. शर्मा की अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित