खतरनाक मंसूबे की चपेट में नीलम

4 अप्रैल, 2019 गुरुवार का दिन था. सुबह के लगभग साढ़े 4 बजे थे. सिपाही नीलम शर्मा की सुबह 5 बजे से दोपहर एक  बजे तक मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर ड्यूटी थी. नीलम ने तैयार हो कर अपना लंच बौक्स पिट्ठू बैग में रखा और दामोदरपुरा के मुख्यद्वार पर प्याऊ के पास पहुंच गई. यहीं पर रोजाना उसे लेने के लिए पुलिस की बस आती थी. प्याऊ के पास खड़ी हो कर वह स्टाफ की बस का इंतजार करने लगी.

बस आने के लगभग 5 मिनट पहले एक कार नीलम शर्मा से लगभग 200 मीटर की दूरी पर आ कर रुकी. उस समय नीलम का ध्यान अपनी बस के आने की तरफ था. अचानक आगे बढ़ी कार नीलम के पास आई. झटके से रुकी कार से उतर कर एक युवक तेजी से नीलम की ओर बढ़ा. जबकि कार में बैठे अन्य युवकों ने कार स्टार्ट रखी.

कार से उतरे युवक ने नीलम से कुछ बात की, इस के बाद उस ने नीलम के ऊपर तेजाब फेंक दिया. नीलम ने अपना बैग उस के मुंह पर मारा तो वह फुरती से कार में जा कर बैठ गया. कार वहां से कुछ दूर जा कर खड़ी हो गई.

अचानक हुए एसिड अटैक से झुलसी 26 वर्षीय नीलम घबरा गई. वह तेजाब की जलन से तड़पने लगी. उस ने शोर मचाया. मदद के लिए वह इधरउधर भागने लगी. जो भी उसे मिला, उस ने उसी से मदद की गुहार लगाई.

इस बीच अखबार के एक हौकर ने महिला सिपाही को बचाने का प्रयास किया. तभी हमलावरों ने उन दोनों पर कार चढ़ाने की कोशिश की. लेकिन हौकर महिला सिपाही को ले कर एक तरफ हट गया, जिस से दोनों बच गए. हौकर ने उस कार पर पत्थर भी फेंके पर कार रुकी नहीं, तेज गति से चली गई.

रोते बिलखते वह सिपाही एक दुकान के आगे गिर गई और दर्द की वजह से चीखने लगी. तेजाब से नीलम के कपड़े भी जल गए थे. यह देख दुकानदार ने मौर्निंग वाक पर निकली महिलाओं को बुलाया और उन की चुन्नी से नीलम को ढंका. उसी समय किसी ने इस घटना की जानकारी फोन द्वारा पुलिस को दे दी.

नीलम ने किसी तरह अपनी सहकर्मी सिपाही नीतू को फोन कर दिया था. थोड़ी देर में पुलिस मौके पर पहुंच गई और नीलम को जिला अस्पताल में भरती करा दिया.

जानकारी मिलते ही एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह, एसपी (क्राइम) अशोक कुमार मीणा, एसपी (सुरक्षा) ज्ञानेंद्र कुमार सिंह भी अस्पताल पहुंच गए. फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर साक्ष्य जुटाए. यह घटना विश्वप्रसिद्ध धार्मिक नगरी मथुरा में घटी थी.

नीलम पिछले एक साल से थाना सदर बाजार क्षेत्र के दामोदरपुरा में प्रधान सुरेंद्र सिंह के यहां अपनी सहकर्मी नीतू के साथ रह रही थी. नीलम के मकान मालिक सुरेंद्र सिंह भी नीतू के साथ अस्पताल पहुंच गए.

महिला सिपाही नीलम पर एसिड अटैक की घटना से पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. पूछताछ में नीलम ने पुलिस को बताया कि इस वारदात को संजय नाम के युवक ने अपने साथियों के साथ अंजाम दिया था.

वह संजय को पहले से जानती थी. नीलम ने सदर बाजार थाने में संजय सिंह उर्फ बिट्टू निवासी नेमताबाद, खुर्जा (बुलंदशहर) व सोनू सहित 4 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. भादंवि की धारा 326(ए), 332 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज कर पुलिस हमलावरों की तलाश में जुट गई.

नीलम की हालत थी नाजुक

जिला अस्पताल के डाक्टरों ने बताया कि नीलम तेजाब से लगभग 45 फीसदी झुलस गई है. एसिड से उस का चेहरा, एक आंख, हाथ व शरीर के अन्य हिस्से जल गए थे. नीलम की नाजुक हालत को देखते हुए उसी दिन शाम को उसे आगरा के सिकंदरा क्षेत्र स्थित सिनर्जी अस्पताल रेफर कर दिया गया. एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह खुद उसे ले कर सिनर्जी अस्पताल में भरती कराने पहुंचे.

सिनर्जी अस्पताल के डाक्टर नीलम के इलाज में जुट गए. उन्होंने बताया कि नीलम की हालत स्थिर बनी हुई है. जब नीलम के घर वालों को बेटी के साथ घटी दिल दहलाने वाली घटना की जानकारी मिली तो उन के होश उड़ गए. वे भी सीधे सिनर्जी अस्पताल पहुंच गए.

आगरा के सिनर्जी अस्पताल में भरती नीलम इस हादसे से बेहद डरी हुई थी. कहने को अस्पताल में पर्याप्त सुरक्षा लगाई गई थी लेकिन पीडि़ता के परिजनों ने पुलिस अधिकारियों से और कड़ी सुरक्षा की मांग की. उन्हें डर था कि फरार संजय उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा.

इस पर एसएसपी ने पीडि़ता व उस के घर वालों को हरसंभव सुरक्षा देने का वायदा किया. घर वालों के अलावा अन्य किसी को भी अस्पताल में पीडि़ता से मिलने पर रोक लगा दी गई.

महिला सिपाही पर एसिड अटैक की यह दुस्साहसिक घटना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गई थी. हर कोई पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहा था. इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में यह खबर सुर्खियां बन गई थीं. इस से पुलिस की किरकिरी हो रही थी.

अभियुक्तों के फरार होने को ले कर उस दिन सोशल मीडिया पर भी सवाल खड़े होते रहे. लोगों का कहना था कि जब पुलिस वाले ही सुरक्षित नहीं रहेंगे तो भला आम आदमी का क्या होगा.

उत्तर प्रदेश पुलिस के मुखिया ओ.पी. सिंह ने मथुरा के एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज से महिला कांस्टेबल नीलम शर्मा पर हुए एसिड अटैक की पूरी जानकारी ली. उन्होंने निर्देश दिए कि हमलावरों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए. इस एसिड अटैक के लिए जिम्मेदार कहीं भी हों, उन्हें ढूंढ निकाला जाए.

मथुरा में पुलिसकर्मी नीलम पर हुए एसिड अटैक के बाद महिला संगठनों के साथसाथ छात्राओं ने भी आक्रोश व्यक्त किया. वात्सल्य पब्लिक स्कूल, राधाकुंड, चरकुला ग्लोबल पब्लिक स्कूल और गौड़ शिक्षा निकेतन में शिक्षिकाओं एवं छात्रछात्राओं ने पीडि़ता के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की.

उन्होंने एसिड फेंकने वाले दोषी लोगों को फांसी देने की मांग की. वहीं आगरा के सिनर्जी अस्पताल में भरती नीलम को देखने के लिए महिला शांति सेना की सदस्याएं पहुंची. संरक्षिका कुंदनिका शर्मा ने आरोपियों को शीघ्र पकड़ने व कड़ी सजा दिलाने की मांग की.

पकड़ा गया मुख्य आरोपी

एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज ने आरोपियों को पकड़ने के लिए अलगअलग थानों के तेजतर्रार पुलिस अफसरों की 5 पुलिस टीमें बनाईं. ये टीमें मथुरा के अलावा खुर्जा और बुलंदशहर जा कर आरोपियों को तलाशने लगीं. इस बीच पुलिस को हमलावरों की कार नंबर डीएल 2पीए8381 घटनास्थल से कुछ दूर लावारिस हालत में खड़ी मिली. कार पुलिस ने जब्त कर ली.

पुलिस टीम ने अगले दिन 5 अप्रैल को शाम 5 बजे मुखबिर की सूचना पर एक आरोपी सोनू को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि नीलम शर्मा के ऊपर तेजाब संजय सिंह ने डाला था. सोनू की निशानदेही पर रात करीब 11 बजे घटना के मुख्य आरोपी संजय सिंह को मुठभेड़ के बाद यमुनापार इलाके के राया रोड स्थित राधे कोल्डस्टोरेज के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.

मुठभेड़ के दौरान संजय के बाएं पैर में गोली लग गई थी. पुलिस ने इलाज के लिए उसे अस्पताल में भरती करा दिया था. संजय के कब्जे से पुलिस ने एक तमंचा और एक बाइक बरामद की. पुलिस ने संजय सिंह से जब सख्ती से पूछताछ की तो सिपाही नीलम शर्मा पर एसिड अटैक करने की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की चाशनी में डूबी हुई निकली—

नीलम शर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की कोतवाली शिकारपुर के गांव आंचरू कलां की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम सुंदरलाल शर्मा था. जबकि मुख्य आरोपी संजय सिंह खुर्जा में एक कंप्यूटर सेंटर चलाता था. जब नीलम पढ़ाई कर रही थी, तब उस का संजय सिंह की दुकान पर आनाजाना लगा रहता था.

संजय और नीलम की मुलाकात कंप्यूटर सेंटर में हुई जो बाद में दोस्ती में बदल गई थी. दोस्त बन जाने के बाद दोनों फोन पर भी बातें करने लगे. दोस्ती बढ़ी तो संजय नीलम को एकतरफा प्यार करने लगा, जबकि नीलम उसे केवल अपना दोस्त ही समझती थी.

एक दिन संजय ने अपने मन की बात नीलम के सामने जाहिर कर दी तो नीलम ने उसे झिड़क दिया और उस से दूरी बना ली. इस पर संजय ने इस बारे में नीलम के घर वालों से बात की. चूंकि संजय उन की बिरादरी का नहीं था, इसलिए नीलम के पिता सुंदरलाल शर्मा ने नीलम की शादी संजय से करने को मना कर दिया.

इस के बाद नीलम की सन 2016 में उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर नौकरी लग गई. नौकरी लगने के बाद भी संजय ने उसे परेशान करना बंद नहीं किया. और कोई रास्ता न देख नीलम ने अपना फोन नंबर बदल दिया. लेकिन इस के बावजूद संजय ने उसे ढूंढ निकाला और परेशान करने लगा.

संजय लगातार उस पर शादी के लिए दबाव डाल रहा था. इस से परेशान हो कर नीलम के घर वालों ने उस की शादी कहीं दूसरी जगह तय कर दी.यह बात संजय को बुरी लगी. उसे लगने लगा कि उस की प्रेमिका अब किसी और की हो जाएगी.

सन 2017 में नीलम की पोस्टिंग मथुरा में हो गई. कुछ दिनों वह पुलिस लाइन में रही, इस के बाद सन 2018 में उस की तैनाती श्रीकृष्ण जन्मस्थली की सुरक्षा में हो गई. इस पर नीलम मथुरा के दामोदरपुरा में प्रधान सुरेंद्र सिंह के यहां किराए पर रहने लगी. उस ने अपनी बैचमेट और सहेली नीतू को भी उस कमरे में अपने साथ रख लिया था.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में संजय सिंह ने बताया कि वह नीलम से प्यार करता था. उस से उस की पिछले 10 सालों से जानपहचान थी. वह उस से शादी करना चाहता था, लेकिन उस ने बात तक करनी बंद कर दी थी. जब उसे पता चला कि नीलम की शादी कहीं और तय हो गई है, तब उस ने तय कर लिया था कि वह अपनी प्रेमिका को किसी और की हरगिज नहीं होने देगा.

खतरनाक इरादे

उस की शादी रोकने के लिए उस ने नीलम के ऊपर तेजाब डालने का फैसला कर लिया. इस काम के लिए उस ने अपने दोस्तों हिमांशु ठाकुर, बौबी, किशन शर्मा और सोनू को भी तैयार कर लिया. ये सब उस की प्रेम कहानी को जानते थे.

सब से पहले इन लोगों ने नीलम के आनेजाने के मार्ग की रेकी की. इस से पता लग गया कि उस की ड्यूटी श्रीकृष्ण जन्मस्थली की सुरक्षा पर लगी है और वह सुबह पैदल ही दामोदरपुरा के प्याऊ पर पहुंचती है. वहां से वह पुलिस की बस में बैठ कर जाती है.

उन्होंने प्याऊ के पास ही योजना को अंजाम देने का फैसला कर लिया. यह भी तय कर लिया था कि यदि नीलम बच गई तो उसे गोली मार देंगे. और अगर उस के साथ उस की सहेली नीतू हुई तो उसे भी जिंदा नहीं छोड़ेंगे.

सभी ने बौबी की कार से घटना को अंजाम देने की बात तय कर ली. योजना बनाने के बाद संजय ने खुर्जा में पाहसू रोड स्थित दुकानदार पुनीत शर्मा के यहां से तेजाब खरीद लिया. फिर 4 अप्रैल, 2019 की सुबह उन्होंने वारदात को अंजाम दे दिया.

संजय की निशानदेही पर पुलिस ने तेजाब विक्रेता पुनीत शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद पुलिस ने संजय सिंह, सोनू और पुनीत शर्मा को कोर्ट में पेश कर संजय का रिमांड मांगा.

गोली लगने की वजह से संजय अस्पताल में भरती था. अदालत ने पुलिस की मांग मंजूर कर सोनू और पुनीत शर्मा को जेल भेज दिया और गोली से घायल संजय को पुलिस कस्टडी में सौंप दिया.

पुलिस को अभी कई आरोपी गिरफ्तार करने थे. संजय की निशानदेही पर 6 अप्रैल को पुलिस ने बौबी और किशन शर्मा को गोकुल बैराज मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. शाम 6 बजे के करीब वे दोनों मथुरा आए हुए थे. पुलिस के अनुसार, उन का अपराध इसलिए भी गंभीर हो गया क्योंकि उन्होंने संजय को रोकने के बजाए उकसाया था.

पुलिस ने दोनों आरोपियों से पूछताछ कर रविवार को जेल भेज दिया. एसिड अटैक के अब तक 5 आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके थे. अभी एक आरोपी हिमांशु ठाकुर पुलिस की गिरफ्त से दूर था.

पुलिस को 9 अप्रैल, 2019 को पता चला कि फरार आरोपी हिमांशु मथुरा आ रहा है. इस के बाद स्वाट टीम प्रभारी राजीव कुमार, थाना सदर बाजार प्रभारी लोकेश भाटी और छाता कोतवाली प्रभारी हरवेंद्र मिश्रा ने घेराबंदी कर के गोकुल बैराज पर उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह फायर कर के बाइक से भागने लगा. उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने भी गोली चलाई.

गोली उस की दाहिनी टांग में लगी थी. घायल आरोपी वहीं गिर गया. इस के बाद पुलिस ने उसे हिरासत में लेने के बाद जिला अस्पताल में भरती करा दिया.

अपराध में हिमांशु भी था बराबर का हिस्सेदार

हिमांशु की सीधे हाथ की अंगुलियां तेजाब से जल गई थीं. पुलिस ने उस के पास से बाइक व तमंचा भी बरामद कर लिया. पूछताछ में उस से काम की कई बातें पता चलीं. हिमांशु को भी अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

उधर मुख्य आरोपी संजय सिंह जिस की बाईं टांग में गोली लगी थी, उस का औपरेशन किया गया. उसे 2 यूनिट खून भी चढ़ाया गया.

प्रैस कौन्फ्रैंस में एसएसपी ने बताया कि आरोपी संजय ने जबरन शादी के लिए इस घटना को अंजाम दिया था. महिला पुलिसकर्मी पर एसिड अटैक की दिल दहला देने वाली घटना में शामिल सभी 6 आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए.

इन में से 4 को जेल भेज दिया गया, जबकि 2 घायल आरोपी अस्पताल में भरती हैं, जहां उन का उपचार चल रहा है. सभी पर एनएसए भी लगाया जाएगा. एसिड अटैक से घायल महिला पुलिसकर्मी नीलम की हरसंभव सहायता की जाएगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तीसरे पति की चाहत में – भाग 3

इधर राजू आरती को साथ ले कर लखनऊ से कानपुर आ गया. वहां उस ने विजय नगर कच्ची बस्ती में एक मकान किराए पर ले लिया और आरती के साथ रहने लगा. एक महीने बाद दोनों ने शास्त्री नगर स्थित काली मंदिर में एकदूसरे को जयमाला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया.

प्रेम विवाह करने के बाद दोनों सुखमय जीवन व्यतीत करने लगे. राजू और आरती दोनों एकदूसरे को टूट कर चाहते थे. राजू आरती को हर तरह से खुश रखने में लगा रहता था. आरती भी अपने दूसरे पति का भरपूर खयाल रखती थी.

हंसीखुशी 3 साल बीत गए. उस के बाद आरती का मन राजू से भर गया. अब वह राजू से दूरियां बनाने लगी. दरअसल, राजू की आर्थिक स्थिति अब कमजोर हो गई थी. उस की कमाई का आधा हिस्सा आरती अपने शृंगार व कपड़ों पर ही खर्च कर देती थी. फिर मकान का किराया और गृहस्थी के अन्य खर्चों की वजह से पैसे का अभाव हो जाता था. इसे ले कर आरती और राजू में झगड़ा होने लगा था.

राजू का एक दोस्त निर्मल श्रीवास्तव था. वह भी राजू के साथ मजदूरी करता था. दोनों में खूब पटती थी. कभी कभी शाम को राजू के घर दोनों की महफिल भी जम जाती थी. वह राजू की आर्थिक मदद भी करता रहता था. इसलिए राजू निर्मल के अहसानों तले दबा रहता था. निर्मल आरती को मन ही मन चाहता था, लेकिन आरती से अपनी बात कह नहीं पाता था.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – जब सिरफिरा आशिक बन गया वहशी कातिल

कहते हैं औरत की निगाह पारखी होती है. आरती जानती थी कि निर्मल उसे मन ही मन चाहता है. अत: आरती ने अपने कदम निर्मल की तरफ बढ़ा दिए. आरती निर्मल के साथ होने वाली हंसीमजाक की सीमाएं भी लांघने लगी.

निर्मल श्रीवास्तव कमाता तो था लेकिन तनहा जिंदगी व्यतीत कर रहा था. उसे औरत की कमी खलती थी. आरती ने जब उसे भाव देना शुरू किया तो वह आरती के प्रेम में डूबता चला गया. निर्मल ने अब राजू की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आना शुरू कर दिया. निर्मल जब भी आता, आरती के लिए कुछ न कुछ उपहार जरूर लाता.

एक दोपहर निर्मल घर आया तो उस ने आते ही आरती को अपनी बांहों में भर लिया और प्रणय निवेदन करने लगा. आरती उस की बांहों में कसमसाते हुए बोली, ‘‘बाहर का दरवाजा खुला है. कोई देख लेगा तो बिना मतलब फजीहत होगी.’’

निर्मल ने आरती को बाहुपाश से मुक्त किया और बाहर का दरवाजा बंद कर फिर उसे बांहों में जकड़ लिया. आरती भी निर्मल का साथ देने लगी. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

इस के बाद निर्मल और आरती का मिलन अकसर होने लगा. आरती निर्मल की ऐसी दीवानी बन गई कि उस ने उसे तीसरे पति के रूप में चुन लिया. यही नहीं, उस ने राजू को बिना बताए कामेश्वर मंदिर, विजय नगर में निर्मल से प्रेम विवाह भी कर लिया. अब आरती और निर्मल गुपचुप तरीके से पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

राजू को जब निर्मल और आरती के संबंधों की बात पता चली तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उस ने आरती की जम कर पिटाई की तथा निर्मल को भी भलाबुरा कहा. इस के बाद राजू ने विजय नगर वाला मकान छोड़ दिया और काकादेव थानांतर्गत मतैयापुरवा में अमित राजपूत के मकान में किराए पर रहने लगा. यह बात अगस्त 2018 की है.

आरती, राजू के साथ मतैयापुरवा वाले मकान में रहने जरूर लगी, लेकिन उस ने निर्मल का साथ नहीं छोड़ा. राजू घर से काम पर चला जाता तो आरती सजसंवर कर निर्मल के पास पहुंचा जाती. फिर मौजमस्ती कर वापस आ जाती. राजू को आरती पर शक रहने लगा था, इसलिए निर्मल को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा होने लगा था. झगड़े के दौरान ही एक दिन आरती ने बता दिया कि उस ने निर्मल से ब्याह रचा लिया है और अब वह निर्मल की पत्नी बन कर उस के साथ ही रहेगी.

आरती की बात सुन कर राजू सन्न रह गया. उस ने आरती को बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानी. इस के बाद वह राजू का साथ छोड़ कर निर्मल के साथ विजय नगर में रहने लगी.

पत्नी की बेवफाई से राजू टूट गया. वह परेशान रहने लगा तथा शराब भी ज्यादा पीने लगा. पत्नी की बेवफाई में उस ने कई पत्र लिखे. आखिर में राजू ने आरती को बेवफाई की सजा देने का निश्चय कर लिया.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – तहसीलदार का खूनी इश्क

26 फरवरी, 2019 की दोपहर राजू ने आरती से मोबाइल पर बात की और उस से घर आने का आग्रह किया. आरती ने पहले तो मना कर दिया लेकिन राजू के बारबार आग्रह से वह पिघल गई.

लगभग 2 बजे आरती राजू के मतैयापुरवा वाले कमरे पर पहुंची. राजू ने आरती को मना कर फिर से उस की जिंदगी में लौट आने की मिन्नत की. लेकिन आरती ने दो टूक जवाब दे दिया. इस के बाद बेवफाई को ले कर आरती और राजू में तीखी बहस शुरू हो गई.

इसी बहस के दौरान राजू अचानक ही दुपट्टे से आरती का गला कसने लगा. बचाव में आरती की चूडि़यां भी टूट गईं और कपड़े भी अस्तव्यस्त हो गए. आरती ने जान बचाने की पूरी कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सकी. राजू के हाथ तभी ढीले पड़े, जब उस ने आरती का काम तमाम कर दिया.

आरती की हत्या के बाद राजू ने निर्मल को फोन के जरिए जानकारी दी कि उस ने आरती को मार दिया है, उस की लाश उस के कमरे में पड़ी है, आ कर लाश ले जाए. इस के बाद राजू कमरे में ताला लगा कर फरार हो गया.

इधर निर्मल बदहवास हालत में राजू के कमरे पर पहुंचा तो कमरे में ताला लगा था. उस ने खिड़की से झांक कर देखा तो आरती की लाश पड़ी थी. निर्मल ने शोर मचाया तो मकान मालिक अमित कुमार आ गया. इस के बाद अमित कुमार थाना काकादेव पहुंचा और आरती की हत्या की सूचना दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी राजीव सिंह घटनास्थल पर पहुंचे और शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की.

3 मार्व, 2019 को थाना काकादेव पुलिस ने अभियुक्त राजू को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. मृतका आरती के प्रेमी (पति) निर्मल श्रीवास्तव का हत्या में कोई हाथ नहीं था इसलिए पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – प्रेमी का जोश, उड़ा गया होश

तीसरे पति की चाहत में – भाग 2

राजू मूलरूप से गोंडा के ही कटरा बाजार का निवासी था. लखनऊ में रह कर वह मजदूरी करता था. गोमतीनगर स्थित जिस बहुमंजिला इमारत के निर्माण में रमेश राजमिस्त्री का काम करता था, उसी में राजू मजदूरी करता था.

रमेश और राजू दोनों ही गोंडा के रहने वाले थे, इसलिए दोनों में खूब पटती थी. काम खत्म करने के बाद दोनों शराब के ठेके पर साथ बैठ कर शराब पीते थे. शराब के लिए पैसे राजू ही देता था.

एक शाम दोनों के कदम शराब ठेके पर जा कर रुके तो रमेश बोला, ‘‘यार राजू, तुम अकसर अपने पैसों से मुझे शराब पिलाते हो, लेकिन आज मैं तुम्हें शराब की दावत दूंगा. शराब के साथ आज का खाना तुम मेरे घर पर ही खाओगे.’’

राजू इस के लिए राजी हो गया. रमेश यह सोच कर खुश था कि दोस्ती में उस ने यह नेक काम किया है. लेकिन यही उस की सब से बड़ी गलती थी.

उसी शाम राजू रमेश के घर पहुंचा तो पहली बार आरती से सामना हुआ. नजरें मिलीं तो मानो उलझ कर रह गई. राजू के मन में विचार आया कि आरती कहां रमेश के पल्ले पड़ गई.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल

रमेश अधेड़ उम्र का कालाकलूटा और आरती खूबसूरत. इसे तो मेरे नसीब में होना चाहिए था. दूसरी तरफ आरती के दिल में भी राजू को देख कर हलचल मच गई थी. आरती की नजरों में राजू सच में ऐसा पुरुष था, जैसी उस ने कल्पना की थी.

उस रोज राजू ने आरती के हाथ का बना खाना खाया तो उस ने उस की जम कर तारीफ की. खाने पीने के दौरान कई बार राजू और आरती की आंखें चार हुईं. इस अल्प अवधि में ही राजू और आरती में आंखों के जरिए नजदीकियां बन गईं.

दोनों के अंदर आग एक जैसी थी, इसलिए संपर्क बनाए रखने के लिए उन्होंने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए. इस के बाद वे आपस में बातचीत करने लगे. कुछ दिनों तक औपचारिक बातचीत हुई, फिर यही बातचीत प्यार मोहब्बत तक पहुंच गई.

एक दिन दोपहर को राजू मौका निकाल कर रमेश के घर जा पहुंचा. उस समय रमेश साइट पर था और बच्चे स्कूल गए थे. घर में आरती अकेली थी. आरती के सौंदर्य को देख कर राजू खुद को रोक न सका और उस ने आगे बढ़ कर आरती को अपनी बांहों में भर लिया. आरती ने दिखावे के लिए छूटने का प्रयास किया, लेकिन छूट न सकी.

राजू की बांहों में आरती जो सुख महसूस कर रही थी, वह उस सुख से काफी समय से वंचित थी. उस की तमन्नाएं अंगड़ाई लेने लगीं. फिर वह भी अमरबेल की तरह राजू से लिपट गई. इस के बाद दोनों ने मर्यादाएं लांघ कर अपनी हसरतें पूरी कीं.

उस दिन के बाद आरती राजू के प्यार में इतनी ज्यादा दीवानी हो गई कि वह पति से ज्यादा प्रेमी राजू का खयाल रखने लगी. राजू भी अपनी कमाई आरती पर खर्च करने लगा. रमेश शराब का लती था. उस की इस कमजोरी का राजू ने भरपूर फायदा उठाया. वह हर शाम शराब की बोतल ले कर उस के घर पहुंच जाता. वह खुद कम पीता और रमेश को अधिक पिला कर नशे में चूर कर देता. जब रमेश सो जाता, तब आरती और राजू वासना का खेल खेलते.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – एक फूल दो माली : प्रेमियों की कुर्बानी

एक रात रमेश की नींद खुल गई. उस ने आरती व राजू को आपत्तिजनक स्थिति में देखा तो क्रोध से पगला गया. गाली गलौज कर के उस ने राजू को भगा दिया. इस के बाद उस ने आरती की खूब पिटाई की. मौके की नजाकत भांप कर आरती ने रमेश से वादा किया कि आइंदा वह राजू से किसी तरह का संबंध नहीं रखेगी.

आरती ने पति से यह वादा कर तो लिया लेकिन 2-4 दिन बाद ही उसे राजू की याद सताने लगी. वहीं राजू को भी चैन नहीं था. लिहाजा मौका देख कर आरती राजू को फोन लगा देती और दोनों बात कर लेते.

एक दिन रमेश साइट पर गया, लेकिन किसी कारणवश काम बंद था. अत: वह वापस घर पहुंच गया. कमरा अंदर से बंद था. तभी उसे कमरे के अंदर से पत्नी के हंसने की आवाज सुनाई दी. उस ने दरवाजा खुलवाने के बजाए दरवाजे की झिर्री से अंदर झांका तो अंदर का दृश्य देख कर सन्न रह गया. कमरे में आरती राजू के साथ मौजमस्ती कर रही थी.

दोस्त के साथ पत्नी को एक बार फिर देख कर रमेश का खून खौल उठा. लेकिन वह बोला कुछ नहीं. कुछ देर वह जड़वत खड़ा रहा. उस के बाद दरवाजा खुलवाया तो अपराधबोध से आरती व राजू कांपने लगे. दोनों ने रमेश से माफी मांगी. पर उस ने माफ नहीं किया. रमेश ने राजू को फटकार लगाई, ‘‘आस्तीन के सांप, भाग जा घर से वरना मैं तेरा गला घोंट दूंगा.’’

राजू बिना कुछ बोले वहां से चला गया.

इस के बाद रमेश ने सारा गुस्सा आरती पर उतारा. वह आरती को तब तक पीटता रहा, जब तक वह थक नहीं गया. आरती कई दिन तक चारपाई पर पड़ी रही. लेकिन आरती की इस पिटाई ने आग में घी का काम किया. वह पति से नफरत करने लगी. उस ने घर में कलह भी शुरू कर दी. आरती जान गई थी कि अब उस का ऐसे जुल्मी पति के साथ गुजारा संभव नहीं है.

अत: उस ने एक दिन राजू से मुलाकात की और उसे बताया कि यदि वह उसे सच्चा प्यार करता है तो उसे अपने साथ ले चले, वरना वह अपनी जान दे देगी. राजू भी यही चाहता था. अत: उस ने आरती को समझाया कि वह धैर्य रखे. शीघ्र ही वह उसे अपना जीवनसाथी बना लेगा. आश्वासन पा कर आरती खुश हो गई.

आरती अब घर में खुश रहने लगी थी. पति की बात भी मानने लगी थी. इतना ही नहीं, उस ने घर में लड़ना भी बंद कर दिया था. घर का सारा काम भी वह समय पर करने लगी थी. पत्नी में आए इस बदलाव से रमेश हैरान था. वह यही सोच रहा था कि आरती को अपनी गलती का अहसास हो गया है, जिस से वह सुधर गई है.

लेकिन एक दिन जब शाम को रमेश घर आया तो बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे. पूछने पर बच्चों ने बताया कि वे जब स्कूल से घर वापस आए तो मम्मी घर में नहीं थीं. उन्होंने पासपड़ोस में खोजा, लेकिन वह नहीं मिली.

बच्चों की बात सुन कर रमेश का माथा ठनका. उस ने घर में नजर दौड़ाई तो संदूक का ताला खुला था. संदूक में रखे पैसे गायब थे. संदूक में रखे आरती के कपड़े भी गायब थे. उस ने सोचा कि आरती कहीं बच्चों को छोड़ कर भाग तो नहीं गई. लेकिन उसे लगा कि आरती बच्चों को छोड़ कर नहीं जा सकती.

रमेश के मन में तरहतरह के विचार आ ही रहे थे कि तभी उस की निगाह अलमारी में रखे एक कागज पर पड़ी. उस कागज को खोल कर रमेश ने पढ़ा तो उस के होश उड़ गए.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – बदनामी से बचने के लिए खेला मौत का खेल

कागज में लिखा था, ‘मैं तुम जैसे राक्षस के साथ जिंदगी नहीं बिता सकती. इसलिए राजू के साथ जा रही हूं. मुझे खोजने की कोशिश मत करना. बच्चे तुम ने पैदा किए हैं, इसलिए उन्हें तुम्हारे पास ही छोड़ रही हूं.’

तीसरे पति की चाहत में – भाग 1

उस दिन फरवरी, 2019 की 26 तारीख थी. शाम 5 बजे का वक्त था. थाना काकादेव के एसओ राजीव सिंह थाने से कहीं जाने के लिए निकलने ही वाले थे, तभी एक आदमी बदहवास हालत में उन के पास पहुंचा.

वह अपनी सांसों को दुरुस्त करते हुए बोला, ‘‘सर, जल्दी चलिए, हमारे मकान में एक महिला की हत्या कर दी गई है.’’

हत्या शब्द सुनते ही एसओ चौंके. उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महिला की हत्या किस ने की, पूरी बात बताओ.’’

‘‘सर, मेरा नाम अमित राजपूत है और मैं मतैयापुरवा में रहता हूं. मेरे मकान में राजू नाम का युवक किराए पर रहता था. उसी ने अपनी पत्नी आरती की हत्या कर दी और फरार हो गया.’’

एसओ राजीव सिंह जिस काम के लिए निकलने वाले थे, वहां जाने के बजाय वह अमित राजपूत को साथ ले कर उस के गांव मतैयापुरवा के लिए निकल गए. मौके पर निकलने से पहले उन्होंने हत्या की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी.

जब वह अमित को ले कर उस के घर पहुंचे तो वहां गांव वालों की भीड़ जुटी हुई थी. जिस कमरे में महिला की लाश पड़ी थी, उस के दरवाजे पर ताला पड़ा था. खिड़की से देखा तो महिला की लाश फर्श पर पड़ी दिखाई दी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे. अमित ने बताया कि इस कमरे में राजू अपनी पत्नी आरती के साथ रहता था, अब राजू लापता है.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – भोगनाथ का भोग : क्या पूरे हो पाए भोगनाथ के अरमान

पुलिस ने वहां मौजूद लोगों की मौजूदगी में दरवाजे का ताला तोड़ा और कमरे का निरीक्षण किया तो वहां टूटी हुई चूडि़यां मिलीं. इस से पता चला कि मृतका ने अपनी जान बचाने के लिए विरोध किया था.

मृतका की उम्र यही कोई 35 साल थी. लाश के पास ही 3 पेज का एक नोट मिला. यह मृतका आरती के पति राजू की तरफ से लिखा गया था. उस नोट में राजू ने पत्नी की बेवफाई का जिक्र किया था. इस नोट को पुलिस ने सुरक्षित रख लिया.

एसओ राजीव सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि उसी समय एसपी (वेस्ट) संजीव सुमन तथा सीओ (स्वरूपनगर) अजीत सिंह चौहान भी वहां पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया था. टीम ने मौके से जरूरी सबूत जुटाए.

उसी दौरान सीओ अजीत सिंह ने मकान मालिक अमित राजपूत से पूछताछ की तो उस ने बताया कि आरती की हत्या उस के पति राजू ने ही की है. यह बात उसे राजू के दोस्त निर्मल ने बताई थी. उन्होंने एसओ राजीव सिंह को निर्देश दिए कि वह निर्मल श्रीवास्तव को हिरासत में ले कर पूछताछ करें.

इस के बाद एसओ ने मौके की काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भेज दी. निर्मल श्रीवास्तव भी घटनास्थल पर आ गया था. एसओ राजीव सिंह ने उसे हिरासत में ले लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आए.

पूछताछ करने पर निर्मल ने बताया कि वह राजू का दोस्त है. दोनों साथ काम करते हैं. राजू के घर उस का आना जाना था. आते जाते ही राजू की पत्नी से उस के प्रेम संबंध हो गए. कुछ दिनों पहले वह राजू को छोड़ कर उस के साथ रहने लगी थी. बाद में दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया था. राजू ने आज आरती को किसी बहाने से बुलाया और उसे मार डाला.

निर्मल के बयानों से स्पष्ट था कि आरती की हत्या नाजायज रिश्तों के चलते राजू ने ही की थी. अत: एसओ राजीव सिंह ने मकान मालिक अमित राजपूत को वादी बना कर राजू के खिलाफ धारा 302 आईपीसी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

चूंकि वह फरार था, इसलिए पुलिस ने उसे ढूंढना शुरू कर दिया. पता चला कि राजू मूलरूप से गोंडा के कटरी बाजार का रहने वाला था. एसपी (वेस्ट) संजीव सुमन ने एक विशेष टीम गोंडा भेजी. टीम ने गोंडा के कटरी बाजार स्थित राजू के घर पर छापा मारा. लेकिन वह घर पर नहीं मिला. इस के बाद पुलिस टीम ने अनेक संभावित स्थानों पर उसे तलाशा, लेकिन राजू हाथ नहीं लगा.

4 मार्च, 2019 की सुबह 10 बजे एसओ राजीव सिंह को उन के खास मुखबिर से सूचना मिली कि हत्यारोपी राजू इस समय रावतपुर रेलवे स्टेशन पर है. सूचना मिलते ही एसओ पुलिस टीम के साथ रावतपुर स्टेशन पहुंच गए. राजू स्टेशन पर मिल गया. वह कहीं जाने के लिए वहां ट्रेन का इंतजार कर रहा था. उसे हिरासत में ले कर राजीव सिंह थाना काकादेव लौट आए.

थाने में जब उस से आरती की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने बड़ी आसानी से आरती की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. यही नहीं, उस ने घर में छिपा कर रखा गया वह दुपट्टा भी बरामद करा दिया, जिस से उस ने आरती का गला घोंटा था.

राजू से की गई पूछताछ के आधार पर एक ऐसी औरत की कहानी सामने आई, जिस ने तीसरे पति की चाहत में अपनी जान गंवा दी.

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के संडीला कस्बे से 7 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है नैपुरवा. इसी गांव में जयशंकर अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में 3 बेटियां आरती, पार्वती, शांति तथा एक बेटा गौरव था.

जयशंकर के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. जमीन उपजाऊ थी, इसलिए किसी तरह से उस के घर का गुजारा चल रहा था. जयशंकर की आर्थिक स्थिति तो मजबूत नहीं थी, लेकिन वह व्यवहार कुशल था.

जयशंकर की बड़ी बेटी आरती ने गांव के ही जूनियर स्कूल से 8वीं की परीक्षा पास की. वह आगे पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन गांव के माहौल को देखते हुए मां ने उसे गांव से बाहर पढ़ाने को मना कर दिया. इस के बाद वह मां के साथ घरेलू काम में हाथ बंटाने लगी. समय बीतते आरती सयानी हुई तो वह उस के लिए लड़का देखना शुरू किया. जयशंकर को अपने एक रिश्तेदार के माध्यम से रमेश नाम के युवक के बारे में जानकारी मिली.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – साजन की सहेली : वंदना कैसे बनी शिकार

रमेश मूलरूप से गोंडा जिले के गांव रसूलपुर का रहने वाला था. उस के मातापिता की मौत हो चुकी थी. उस का बड़ा भाई उमेश गांव में रहता था, जबकि रमेश लखनऊ शहर में रहता था. वह राजमिस्त्री था.

रमेश सांवले रंग का जरूर था, लेकिन उस का व्यवहार अच्छा था. जयशंकर ने रमेश को देख कर उसे अपनी बेटी आरती के लिए पसंद कर लिया. हालांकि रमेश की उम्र आरती से काफी ज्यादा थी, लेकिन अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण जयशंकर ने इन बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. बहरहाल, आरती का विवाह रमेश से कर दिया.

शादी से पहले आरती रमेश से नहीं मिली थी. उस ने रमेश को पहले फोटो में ही देखा था. शादी के समय जब उस ने पहली बार रमेश को देखा तो उस के अरमानों पर पानी फिर गया.

विदा हो कर वह ससुराल चली तो गई लेकिन वहां बेमन से रही. आरती कुछ माह ससुराल में रही फिर रमेश उसे लखनऊ ले आया. वहां गोमतीनगर में उस ने किराए पर कमरा ले रखा था. लखनऊ में वह रमेश के साथ रहने लगी. आरती को शराब से नफरत थी, जबकि रमेश शराब का आदी था. शराब पीने को ले कर दोनों में अकसर तकरार होती रहती थी.

बढ़ते समय के साथ आरती 2 बच्चों की मां बन गई. 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद उस के शरीर की कसावट बनी हुई थी. वह बनसंवर कर रहती थी, जिस से वह पहले से अधिक सुंदर दिखने लगी थी.

रमेश राजमिस्त्री था. दिन भर धूपछांव में काम कर के जब वह शाम को घर आता तो इतना थका होता कि खाना खा कर निढाल हो कर सो जाता. आरती उसे झिंझोड़ती तो कभी वह बेमन से उस की इच्छा पूरी करता.

पति की उपेक्षा से आरती परेशान थी. यूं तो आरती का दांपत्य सामान्य नहीं था. भले ही रास रंग में अब रमेश की पहले जैसी रुचि नहीं रह गई थी, मगर आरती की ख्वाहिशों का जलजला कम नहीं हुआ था. तभी अचानक उस के जीवन में राजू नाम का युवक आया.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – प्यार पर प्रहार : आशिक बना कातिल

इंटीरियर डिजाइनर का खूनी इश्क

निशा के जीवन की रक्तिम रात – भाग 3

जितेंद्र सुबह 9 बजे घर से निकलता तो उस की घर वापसी रात 12 बजे से पहले नहीं होती थी. एक दिन अचानक तबीयत खराब हुई तो जितेंद्र शाम 5 बजे ही घर जा पहुंचा. जब वह अपने घर पहुंचा, कमरे के अंदर से निशा की खिलखिलाहट सुनाई दी. जितेंद्र के पैर जहां के तहां ठिठक गए. वह मन ही मन सोचने लगा कि जब मैं घर में होता हूं तो निशा की त्यौरियां चढ़ रहती हैं. कुछ कहता हूं तो चिढ़ जाती है. कहीं वजह इस खिलखिलाहट में ही तो नहीं छिपी.

जितेंद्र का माथा ठनका. उस ने कदम बढ़ाया, लेकिन फिर पीछे खींच लिया. निशा कह रही थी, ‘‘तुम्हारे जोश की तो मैं दीवानी हूं. अरे छोड़ो यार, तुम किस लल्लू का जिक्र कर रहे हो. कहां तुम कहां वह. पति किसी लायक होता तो तुम से क्यों दिल लगाती.’’

निशा किस से बात कर रही थी, यह तो नहीं पता चला लेकिन वह यह जरूर समझ गया कि निशा खुश भी है और जोश में भी. उस की आवाज फिर सुनाई दी. वह कह रही थी, ‘‘तुम्हारे इसी जोश की तो मैं दीवानी हूं.’’

एकतरफा संवाद से जितेंद्र ने अनुमान लगाया कि कमरे में निशा के अलावा कोई और नहीं है. वह मोबाइल पर किसी से रसीली बातें कर रही होगी. जितेंद्र की खोपड़ी घूम गई. निशा बीवी उस की थी और जोश का गुणगान किसी दूसरे का कर रही थी. गुस्से में उस ने दरवाजे को धक्का दिया. भीतर से बंद न होने के कारण दरवाजा खुल गया.

सामने ही निशा कान से मोबाइल लगाए टहलते हुए किसी से बातें कर रही थी. पति को देखते ही हड़बड़ा कर उस ने मोबाइल डिसकनेक्ट कर दिया. निशा ने चेहरे पर मुसकान सजाने की जबरन कोशिश करते हुए कहा, ‘‘अरे तुम, आज इतनी जल्दी आ गए?’’

‘‘यह जानने के लिए कि तू किस के जोश की दीवानी है.’’ जितेंद्र ने लपक कर निशा के हाथ से मोबाइल छीन लिया.

फोन का काल लौग चैक करने पर जितेंद्र ने पाया कि निशा जिस नंबर पर बात कर रही थी, वह होटल के मैनेजर विकास का था. वही विकास जिसे उस ने ही नौकरी पर रखा था. जितेंद्र का दिमाग पहले से गरम था, अब और भी गरम हो गया. उस ने निशा की कनपटी पर जोरदार थप्पड़ जड़ा और उसे धाराप्रवाह गालियां देने लगा.

निशा विकास के जोश की तारीफ करते रंगेहाथ पकड़ी गई थी, इसलिए उस के पास सफाई में कहने को कुछ नहीं था. निशा की खामोशी उस के गुनाह का इकरार था. पलपल जितेंद्र का क्रोध बढ़ता गया. उस ने निशा को लात, घूसों और थप्पड़ों से खूब धुना. हर प्रहार के साथ उस का प्रश्न होता था, ‘‘बता, तू विकास के जोश की दीवानी क्यों और कैसे हुई? कब से चल रहा है ये सब?’’

पति के तेवर देख निशा समझ गई कि जान बचानी है तो सच उगलना ही पड़ेगा. अंतत: उस ने पिटते पिटते रोते और सिसकते हुए अपने पतन की पूरी कहानी बयान कर दी. साथ ही दोबारा गलती न करने का वादा भी किया.

निशा को मारपीट कर जितेंद्र होटल पहुंचा तो विकास उसे काउंटर पर ही मिल गया. उसे देखते ही जितेंद्र आपा खो बैठा. वह विकास को घसीटते हुए कमरे में ले गया और बोला, ‘‘मैं ने तुझ पर तरस खा कर नौकरी दी और भरोसा कर के तुझे घर जाने की छूट दी. लेकिन तूने मेरी ही इज्जत पर डाका डाल दिया. मैं तुझे आज और इसी वक्त नौकरी से निकाल रहा हूं. आज के बाद तू न तो होटल में नजर आएगा और न ही मेरे घर के आसपास.’’

पत्नी की बेवफाई से टूट गया जितेंद्र

विकास समझ गया कि किसी तरह उस के और निशा के नाजायज संबंधों की जानकारी जितेंद्र को हो गई है. वह वहां से चला गया. इस घटना के बाद निशा और विकास का मिलन बंद हो गया. लेकिन विकास के प्यार में पागल निशा ज्यादा दिनों तक उस से दूर नहीं रह सकी. उस ने फिर से विकास से संपर्क बना लिया. इस के बाद दोनों का फिर से शारीरिक मिलन होने लगा. यह अलग बात थी कि अब उन का मिलन घर के बजाए बाहर होता था.

इधर पत्नी की बेवफाई से जितेंद्र बुरी तरह टूट गया था. वह शराब तो पहले भी पीता था. लेकिन अब कुछ ज्यादा ही पीने लगा था. होटल से वह रात 12 बजे नशे में धुत हो कर घर आता और कभी खाना खा कर तो कभी बिना खाए ही बैड पर पसर कर सो जाता. नाजायज रिश्तों को ले कर अब निशा और जितेंद्र में अकसर झगड़ा होने लगा था. कभीकभी झगड़ा इतना बढ़ जाता था कि जितेंद्र निशा की पिटाई कर देता. बाद में निशा पूरे दिन सिसकियां भरती रहती.

बन गई खतरनाक योजना

रोजरोज के झगड़े व पिटाई से तंग आ कर एक दिन निशा ने एकांत में विकास से मुलाकात की और उस से बोली, ‘‘विकास, मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती. जितेंद्र हम दोनों के मिलन में बाधक है. इस बाधा को दूर कर दो. अगर किसी दिन उस ने हम दोनों को रंगेहाथ पकड़ लिया तो हमारी जान ही ले लेगा.’’

‘‘आप कहना क्या चाहती हैं भाभी,  साफसाफ बताओ.’’ विकास ने निशा के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं.

‘‘यही कि जितेंद्र को रास्ते से हटा दो. उस की करोड़ों की जायदाद है, हम दोनों मौज करेंगे.’’

‘‘यह पाप है भाभी.’’ मरने मारने की बात से विकास हड़बड़ा गया.

‘‘जब तू मेरे शरीर से खेलता है, तब तुझे पाप दिखाई नहीं देता. बड़ा आया पाप पुण्य वाला.’’ निशा का बातचीत का अंदाज ही बदल गया, ‘‘मैं ने तो सुना था कि प्रेमी अपनी प्रेमिका को पाने के लिए एक कत्ल तो क्या, खून की नदी बहाने को तैयार हो जाते हैं. एक तू है जो एक खून के लिए घबरा रहा है, धिक्कार है तेरी मर्दानगी पर.’’

निशा ने विकास की मर्दानगी को चुनौती दी तो विकास जितेंद्र का खून करने को राजी हो गया. इस के बाद दोनों ने सिर से सिर जोड़ कर हत्या की योजना बनाई.

इस योजना के तहत विकास फतेहपुर शहर के चौगलिया बाजार गया और वहां से तेज धार वाला चाकू खरीद लाया. चाकू उस ने छिपा कर अपने बैग में रख लिया. योजना के तहत ही निशा ने अपने दोनों बच्चों तनु मनु को ननिहाल भेज दिया था. इस के बाद वे दोनों सही समय का इंतजार करने लगे.

30 अप्रैल, 2019 की रात जितेंद्र यादव महेंद्र होटल से 12 बजे अपने घर गढ़ीवा पहुंचा. उस समय वह नशे में धुत था, आते ही पलंग पर पसर गया और कुछ देर बाद खर्राटे लेने लगा.

सही मौका देख कर निशा ने विकास को वाट्सऐप मैसेज भेजा कि वह तुरंत आ जाए. रात को लगभग एक बजे विकास निशा के घर पहुंच गया. निशा ने मेनगेट पहले ही खोल रखा था. विकास आसानी से घर के अंदर दाखिल हो गया.

निशा और विकास ने कमरे के अंदर सो रहे जितेंद्र पर एक नजर डाली, फिर दोनों ने मिल कर जितेंद्र के शरीर को चाकू से गोद डाला. नशे की अधिकता के कारण जितेंद्र ज्यादा चीखचिल्ला भी नहीं सका. जितेंद्र के शरीर से खून की धार बहने लगी, जिस से बिस्तर व फर्श पर खून ही खून नजर आने लगा.

जितेंद्र की हत्या के बाद निशा व विकास ने लूट का नाटक रचा. विकास ने अलमारी खोल कर उस का सारा सामान बिखेर दिया और निशा ने आभूषण व नकदी निकाल कर विकास को थमा दिए. इस के बाद विकास ने खून से सने कपड़े, चाकू, बेल्ट तथा जूता अपने बैग में रख लिए. उस ने खून सने हाथ बाथरूम में जा कर धोए. वह एक जोड़ी कपड़े साथ लाया था, सो उस ने साथ लाए कपड़े बदल लिए.

इस के बाद विकास ने निशा को दूसरे कमरे में ले जा कर उस की साड़ी से उस के हाथपैर बांध दिए और बाहर से कुंडी लगा दी. फिर वह बैग ले कर घर से निकल गया. बैग ले जा कर उस ने बैजू बनिया बाग में शिवमंदिर के पास कुएं में फेंक दिया.

इधर निशा कमरे में कुछ देर शांत रही, फिर सुबह 4 बजे दरवाजा पीटने लगी. आवाज सुन कर किराएदार विनोद आया और उस ने कमरे की कुंडी खोली. कमरे के अंदर निशा बदहवास थी. विनोद ने साड़ी से बंधे उस के हाथपैर खोले और पानी पिलाया.

बंधन खुलते ही निशा दहाड़ मार कर रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी आ गए. जिन्हें निशा ने बताया कि रात में 2 बदमाश लूट के इरादे से घर में घुस आए थे. जितेंद्र ने लूट का विरोध किया तो उन्होंने उस की हत्या कर दी और जेवर, नकदी लूट ले गए. इसी बीच किसी ने कोतवाली पुलिस को सूचना दे दी थी. पुलिस जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या का परदाफाश हुआ.

3 मई, 2019 को थाना कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त विकास यादव और निशा यादव को फतेहपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

निशा के जीवन की रक्तिम रात – भाग 2

मैनेजर विकास को जितेंद्र ने ही नौकरी पर रखा था

विकास यादव होटल का मैनेजर था और जितेंद्र यादव ने ही उसे मैनेजर के पद पर नियुक्त किया था. पूछताछ से यह भी पता चला कि विकास यादव का जितेंद्र के घर आनाजाना लगा रहता था.

होटल स्टाफ से पूछताछ के बाद पूजा यादव का माथा ठनका. वह सोचने लगीं कि कहीं विकास और निशा के बीच नाजायज संबंध तो नहीं थे, जिस के चलते दोनों ने मिल कर जितेंद्र की हत्या कर दी हो और निशा लूट का नाटक रच कर पुलिस को गुमराह कर रही हो. लेकिन बिना सबूत के दोनों पर शक नहीं किया जा सकता था. इस बारे में पूजा यादव ने सीओ कपिलदेव मिश्रा से विचारविमर्श किया. मिश्रा भी पूजा की बात से सहमत थे.

पूजा यादव के पास निशा का मोबाइल फोन था. उन्होंने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि एक विशेष नंबर पर वह रोजाना लंबीलंबी बातें किया करती थी. उस नंबर की जांच की गई तो वह फतेहपुर शहर के रामगंज पक्का तालाब निवासी विकास यादव का निकला. यह विकास यादव कोई और नहीं, बल्कि महेंद्र सिंह के होटल का मैनेजर ही था. मोबाइल की जांच से यह भी पता चला कि निशा ने घटना वाली रात इसी नंबर पर वाट्सऐप मैसेज भेज कर विकास को घर बुलाया था.

अब सबूत मिल चुका था, लिहाजा 2 मई 2019 की शाम को एडिशनल एसपी पूजा यादव ने अपनी टीम सहित जा कर निशा यादव और विकास यादव को उन के घरों से हिरासत में ले लिया. थाना कोतवाली ला कर दोनों से जितेंद्र की हत्या के संबंध में पूछा गया तो दोनों साफ मुकर गए. लेकिन जब सख्ती की गई तो दोनों टूट गए और जितेंद्र की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने जितेंद्र के हत्यारों को तो पकड़ लिया, लेकिन अभी तक हत्या में इस्तेमाल हथियार और गहने आदि बरामद नहीं हो पाए थे. इस संबंध में पुलिस ने विकास यादव से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कत्ल वाला चाकू और गहने उस ने भिटौरा रोड पर स्थित बैजू बनिया बाग में शिवमंदिर के कुएं में छिपा दिए हैं.

यह पता चलते ही पुलिस विकास को कुएं पर ले गई. वहां उस ने कुएं से बैग बरामद करा दिया. उस बैग में खून से सना चाकू, खून सने कपड़े, जूते व बेल्ट थी. यह सारा सामान पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. विकास यादव ने एक दूसरी जगह से गहने और नकदी भी बरामद करा दी. गहनों को निशा ने पहचान लिया. गहने उसी के ही थे, जो उस ने पति के कत्ल के बाद विकास को दे दिए थे.

जितेंद्र की हत्या का खुलासा करने व अभियुक्तों की गिरफ्तारी की सूचना एडिशनल एसपी पूजा यादव ने एसपी कैलाश सिंह को दे दी. एसपी ने आननफानन में प्रैसवार्ता की और अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. निशा यादव ने अपना सिंदूर खुद ही मिटाने की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर शहर के गढ़ीवा निवासी जितेंद्र यादव की शादी निशा से करीब 10 साल पहले हुई थी. निशा बला की खूबसूरत थी. निशा को पा कर जितेंद्र खूब खुश था. जितेंद्र का अपना दोमंजिला मकान था. उस के पास जरूरत की सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं.

जितेंद्र यादव के चाचा महेंद्र सिंह यादव शहर के चर्चित कारोबारी थे. वह समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता थे. उन की पत्नी फूलमती बहुआ ब्लौक प्रमुख थीं. शहर के वर्मा चौराहे पर उन का आलीशान महेंद्र कांटिनेंटल होटल था. इस होटल का संचालन उन का भतीजा जितेंद्र यादव करता था. होटल के अलावा भी जितेंद्र उन के दूसरे कारोबारों की देखरेख करता था. महेंद्र यादव की शहर में अच्छीखासी प्रौपर्टी थी. वह साफसुथरी छवि वाले नेता थे.

जितेंद्र यादव पढ़ालिखा व हंसमुख था. उस के इसी स्वभाव व कुशल संचालन से महेंद्र होटल सदैव गुलजार रहता था. महेंद्र सिंह यादव जितेंद्र पर पूरा विश्वास करते थे.

होटल चलाने में उन का कोई दखल नहीं था. जितेंद्र सुबह 9 बजे घर से निकलता था. उस की वापसी देर रात ही हो पाती थी. निशा की नजरें हर समय जितेंद्र के इंतजार में दरवाजे पर लगी रहती थीं.

जितेंद्र के घर सारी सुखसुविधाएं थीं. उस का जीवन सुखमय था. कालांतर में निशा ने 2 बेटों तनु व मनु को जन्म दिया. 2 बच्चों के जन्म के बाद घर में खुशी छा गई. निशा की बोरियत भी कम हो गई. वह बच्चों की देखभाल में जुटी रहती थी. समय के साथ बच्चे बड़े हुए तो वे स्कूल जाने लगे.

2 बच्चों के जन्म के बाद जितेंद्र ने पत्नी निशा की तरफ ध्यान देना कम कर दिया. वहीं निशा की कामेच्छा बढ़ गई थी. जितेंद्र रात 12 बजे घर आता और खाना खा कर सो जाता था. निशा उसे सैक्स के लिए उकसाती तो वह उसे झिड़क देता था.

विकास आया निशा की जिंदगी में

निशा रात भर गीली लकड़ी तरह सुलगती रहती थी. कामेच्छा की पूर्ति न होने से निशा का स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया था. वह बातबात पर पति से झगड़ने लगी थी.

उन्हीं दिनों निशा की नजर विकास यादव पर पड़ी. विकास यादव रामगंज पक्का तालाब के पास रहता था और महेंद्र कांटिनेंटल होटल में मैनेजर था. उसे निशा के पति जितेंद्र यादव ने ही मैनेजर के पद पर नियुक्त किया था. किसी न किसी काम से विकास का जितेंद्र के घर आनाजाना लगा रहता था. विकास शरीर से हृष्टपुष्ट था और स्मार्ट भी.

विकास निशा को भाभी कहता था. वह हंसमुख व बातूनी था, इसलिए निशा जल्दी ही उस से घुलमिल गई थी. विकास निशा की सुंदरता पर रीझ गया था और मन ही मन उसे चाहने लगा था. लेकिन वह अपनी चाहत का इजहार नहीं कर पा रहा था. जबकि निशा विकास की नजरों की चाहत भांप गई थी. उसे अब पति जितेंद्र विकास की तुलना में कमतर नजर आने लगा था. इसलिए वह विकास को ज्यादा तवज्जो देने लगी थी.

विकास जब भी निशा के सामने होता, वह उस की सुंदरता की तारीफ करता और अपनी लच्छेदार बातों से उसे रिझाता. इस सब में निशा को खूब आनंद आने लगा था. ज्यादातर औरतें अपनी प्रशंसा सुन कर गदगद हो जाती हैं. निशा को भी अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता था.

एक दिन मन के भाव जाहिर न कर के उस ने विकास से पूछा, ‘‘विकास, मुझ में तुम्हें ऐसा क्या खूबसूरत लगा कि मेरी तारीफ करते नहीं थकते? कुछ कहने से पहले यह भी सोच लेना चाहिए कि मैं 2 बच्चों की मां हूं.’’

‘‘भाभी, तुम 2 बच्चों की मां जरूर हो, लेकिन इस से तुम्हारी खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई है. तुम्हारे लंबे बाल, शरबती आंखें, रसीले होंठ सब कुछ लाजवाब हैं.’’ विकास आप से तुम पर आ गया.

‘‘पर तुम्हारे भैया ने तो मेरी खूबसूरती की कभी तारीफ नहीं की.’’ निशा ने बात आगे बढ़ाने वाली चाल चली.

‘‘भैया बुद्धू हैं, वह रातदिन होटल में व्यस्त रहते हैं. उन्हें शायद पता नहीं है कि औरत को पेट की भूख के अलावा और भी कुछ चाहिए होता है. मैं ने कुछ गलत तो नहीं कहा, भाभी.’’

‘‘नहीं, तुम सच कह रहे हो, विकास. मैं वाकई उन के साथ नीरस जिंदगी जी रही हूं. जब से तुम घर आने लगे हो तब से मेरे मन में कुछ आस जागी है. तुम्हारी रसभरी बातों से मुझे सुकून मिलता है. जब तुम चले जाते हो तो घर फिर सूनासूना सा लगने लगता है.’’

भले ही स्वार्थ के लिए सही, निशा और विकास दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे. लेकिन दिल की बात खुल कर कहने में दोनों ही संकोच कर रहे थे. दोनों तरफ प्यार की आग बराबर लगी थी.

एक दिन दोपहर को विकास, निशा के घर पहुंचा. इधरउधर की बातें करने के बाद उस ने निशा को छेड़ा, ‘‘भाभी, कब तक तड़पाओगी’’

‘‘तुम निरे बुद्धू हो, विकास. मैं तुम्हें नहीं तड़पा रही, बल्कि तुम मुझे तड़पा रहे हो.’’ कहते हुए निशा की आंखों में निमंत्रण उतर आया.

निशा के इस आमंत्रण पर विकास रोमांचित हो गया. उस की नसों में सनसनी सी दौड़ गई. उस ने आगे बढ़ कर निशा को अपनी बाहों में भींच लिया. निशा भी विकास से लता की तरह लिपट गई.

थोड़ी देर बाद जब दोनों एकदूसरे से अलग हुए तो खूब खुश थे. दोनों के मन की चाहत पूरी हो गई थी.

उस दिन के बाद जब भी निशा और विकास को मौका मिलता, एकदूसरे को अपनी देह समर्पित कर देते. निशा अब तन के साथसाथ मन से भी विकास की हो गई थी. अब वह अपने प्रेमी विकास का तो खूब खयाल रखती थी, लेकिन पति की उपेक्षा करने लगी थी. कभीकभी वह बिना बात के पति से झगड़ने भी लगती थी. जितेंद्र निशा की बेरुखी और बदले हुए व्यवहार का कारण नहीं समझ पा रहा था.

निशा के जीवन की रक्तिम रात – भाग 1

कुछ लोग सुबह 5 बजे उठ जाते हैं, जबकि ज्यादातर लोगों के लिए यह गहरी नींद का समय होता है. ऐसे में किसी के रोने की आवाज कानों में पड़ जाए तो उस की स्थिति बड़ी अजीब हो जाती है. क्योंकि रोने की आवाज को इग्नोर कर के बिस्तर पर पड़े रहना मुश्किल होता है.

1 मई, 2019 की सुबह भी यही हुआ था. कानपुर के गढ़ीवा मोहल्ले में रहने वाले जितेंद्र के घर से आती रोनेपीटने की आवाजों ने अड़ोसपड़ोस के लोगों की नींद खराब कर दी. रोने वाली जितेंद्र की पत्नी निशा थी.

कुछ लोग और महिलाएं जितेंद्र के घर पहुंचे तो निशा छाती पीटपीट कर रो रही थी. लोगों को आया देख उस का रुदन और तेज हो गया. वह रोने के साथसाथ छाती पीटते हुए कहने लगी, ‘‘मैं तो लुट गई, बरबाद हो गई. अब मेरा और मेरे बच्चों का क्या होगा?’’

‘‘आखिर हुआ क्या?’’ एक महिला ने पूछा तो निशा कमरे की ओर इशारा करते हुए बोली, ‘‘घर में बदमाश घुस आए और लूटपाट करने लगे. मनु के पापा ने विरोध किया तो उन्होंने मार डाला उन्हें.’’

अपनी बात कह कर निशा फिर जोरजोर से रोने लगी. मनु निशा के बेटे का नाम था. अब औरतें समझ गईं कि निशा के पति की हत्या हो गई है. जितेंद्र के कत्ल की बात सुन कर मोहल्ले के तमाम लोग एकत्र हो गए. मोहल्ले भर में कोहराम सा मच गया. जितेंद्र फतेहपुर के रहने वाले समाजवादी पार्टी के नेता और कारोबारी महेंद्र सिंह का भतीजा था.

कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई. किसी ने मोबाइल पर इस बात की सूचना महेंद्र सिंह को दे दी. साथ ही पुलिस को भी बता दिया. सूचना मिलते ही थाना कोतवाली के प्रभारी इंसपेक्टर एस.के. सिंह पुलिस टीम के साथ गढ़ीवा मोहल्ले में जितेंद्र के घर पहुंच गए. उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी.

कुछ ही देर में एसपी कैलाश सिंह, एडिशनल एसपी पूजा यादव और सीओ कपिलदेव मिश्रा भी वहां आ गए. फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया था.

पुलिस ने देखा मकान के एक कमरे के अंदर बैड पर जितेंद्र की लाश पड़ी थी. हत्यारों ने उस का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया था. उस की गरदन, पेट और सीने पर चाकू के करीब दरजन भर घाव थे. बिस्तर और फर्श खून से लाल थे. कमरे की अलमारी खुली हुई थी. देखने से लग रहा था कि जितेंद्र की हत्या लूट के चक्कर में की गई थी. फोरैंसिक टीम ने बैड, अलमारी और कुछ अन्य जगहों से फिंगरप्रिंट उठाए.

इस बीच निशा जितेंद्र के शव के पास आ बैठी थी और निरंतर रोए जा रही थी. मोहल्ले की औरतें उसे संभाल रही थीं. एडिशनल एसपी पूजा यादव भी उन महिलाओं में शामिल हो गईं.

उन्होंने उस से घटना के बारे में पूछा तो निशा ने रोतेरोते बताया, ‘‘रात में करीब 12 बजे ये होटल से घर आए थे. खाना खा कर हम लोग कुछ देर बातें करते रहे. फिर ये उसी बैड पर सो गए. मैं भी सोने चली गई. कुछ देर बाद कमरे में खटपट की आवाज सुनाई दी तो मेरी आंखें खुल गईं. मैं ने कमरे में जा कर देखा तो 2 बदमाश थे, जो अलमारी का सामान निकाल कर फेंक रहे थे.

‘‘मैं ने उन का विरोध किया तो बदमाशों ने चाकू निकाल लिया, जिसे देख कर मेरी घिग्घी बंध गई. तभी ये भी जाग गए. इन्होंने बदमाशों का विरोध किया तो उन्होंने इन के ऊपर चाकू से हमला कर दिया और इन्हें चाकू से गोद कर मार डाला. इस के बाद वे लाखों के जेवर, नकदी लूट कर ले गए.

‘‘मैं चीखने लगी तो बदमाशों ने मेरी गरदन पर चाकू रख दिया. फिर मुझे बगल वाले कमरे में ले गए और हाथपैर साड़ी से बांध दिए. फिर वे लोग बाहर से कमरे की कुंडी बंद कर के भाग गए.’’

निशा ने आगे बताया कि कुछ देर बाद वह घिसट घिसट कर दरवाजे के पास आई और दरवाजा पीटने लगी. डर की वजह से उस की आवाज भी नहीं निकल रही थी.

दरवाजा पीटने की आवाज सुन कर किराएदार विनोद आया और उस ने बाहर की कुंडी खोल कर उसे कमरे से बाहर निकाला. सब से पहले उस ने विनोद को ही घटना की जानकारी दी. बाद में अड़ोस पड़ोस की औरतें भी आ गईं.

किराएदार विनोद घटनास्थल पर मौजूद था. एसपी कैलाश सिंह ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह रात करीब 10 बजे अपने कमरे में सो गया था. सुबह लगभग 4 बजे उसे दरवाजा पीटने की आवाज सुनाई दी. इस के बाद वह कमरे के पास पहुंचा और बाहर से कुंडी खोल कर कमरे के अंदर गया.

वहां देखा तो निशा भाभी के हाथपैर बंधे हुए थे और उन के मुंह से आवाज तक नहीं निकल रही थी. उन के हाथ पैरों को खोलने के बाद उस ने उन्हें पीने के लिए एक गिलास पानी दिया. फिर निशा भाभी ने बताया कि बदमाशों ने जितेंद्र भैया की हत्या कर दी है और सामान लूट ले गए हैं.

पुलिस अधिकारियों ने पूरे घर को खंगाला तो पाया कि घर में घुसने का एक ही रास्ता है मेनगेट. सवाल यह था कि बदमाश घर के अंदर दाखिल हुए तो कैसे? घर में 2 ही लोग थे विनोद व निशा. इस का मतलब यह कि बदमाशों के लिए या तो विनोद ने दरवाजा खोला या फिर निशा ने. निशा जिस तरह से पति की मौत पर आंसू बहा रही थी, उस स्थिति में उसे थाने ले जा कर उस से पूछताछ करना संभव नहीं था. इसलिए पुलिस ने निशा को तो हिरासत में नहीं लिया, लेकिन विनोद को पूछताछ के लिए थाने ले आई.

बहरहाल, शुरुआती पूछताछ के बाद पुलिस ने जितेंद्र का शव पोस्टमार्टम के लिए फतेहपुर जिला अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही खून आलूदा मिट्टी का नमूना ले कर जांच के लिए सुरक्षित रख लिया गया.

इस बीच मृतक जितेंद्र के चाचा सपा नेता महेंद्र सिंह भी घर आ गए थे. उन्होंने भतीजे की हत्या पर आश्चर्य व्यक्त किया. साथ ही कोतवाली फतेहपुर जा कर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या व लूट की रिपोर्ट दर्ज करा दी. उन्होंने पुलिस अधिकारियों से अनुरोध किया कि वे जल्द से जल्द हत्यारों का पता लगाने की कोशिश करें.

एडिशनल एसपी और सीओ को सौंपी गई जांच

चूंकि मामला रसूखदार व्यवसायी व नेता महेंद्र सिंह के भतीजे की हत्या का था, इसलिए एसपी कैलाश सिंह ने इस हत्याकांड की जांच एडिशनल एसपी पूजा यादव और सीओ (सदर) कपिलदेव मिश्रा को सौंप दी.

युवा व तेजतर्रार पुलिस अफसर पूजा यादव ने अपनी टीम के साथ एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने इस बात का पता लगाया कि घटनास्थल के आसपास कहीं सीसीटीवी कैमरे तो नहीं लगे हैं. इस में उन्हें सफलता मिल गई. मृतक के घर के सामने ही सीसीटीवी कैमरा लगा था.

पुलिस ने घर के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे की रात की फुटेज देखी. घटना वाली रात को फुटेज में एक व्यक्ति करीब एक बजे मेनगेट से जितेंद्र के घर में प्रवेश करता हुआ दिखा. फिर वही व्यक्ति रात में 2 बजे उसी मेनगेट से निकल कर बाहर आता दिखाई दिया. फुटेज धुंधली होने से घर में प्रवेश करने वाले उस शख्स का चेहरा साफ नहीं दिख रहा था.

फुटेज देख कर पुलिस औफिसर पूजा यादव का माथा ठनका. क्योंकि मृतक जितेंद्र की पत्नी निशा यादव ने अपने बयान में कहा था कि उस के घर में 2 बदमाश घुसे थे. जबकि सीसीटीवी फुटेज में एक ही आदमी दिख रहा था. इस से जाहिर हो रहा था कि निशा झूठ बोल रही थी. उस के झूठ में क्या राज छिपा है, उन्हें इस का पता लगाना था. निशा संदेह के घेरे में आई तो पूजा यादव ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया.

पूजा यादव को यह भी शक हुआ कि फुटेज में दिख रहा व्यक्ति विनोद तो नहीं है. कहीं विनोद और निशा ने मिल कर तो जितेंद्र  की हत्या नहीं कर दी. विनोद पुलिस हिरासत में पहले से था. अब पूजा यादव ने उस से सख्ती से पूछताछ की. लेकिन वह अपने बयान पर कायम रहा.

उस ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हत्या में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया. हां, उस ने यह जरूर बताया कि किसी बात को ले कर कुछ दिन पहले जितेंद्र भैया और निशा भाभी में खूब झगड़ा हुआ था. तब भैया ने भाभी को पीटा भी था.

काफी पूछताछ के बाद जब लगा कि विनोद बेकसूर है तो एडिशनल एसपी पूजा यादव ने उसे क्लीन चिट दे कर घर भेज दिया. इस के बाद पूजा यादव सीओ कपिलदेव मिश्रा को ले कर वर्मा चौराहा स्थित महेंद्र कांटिनेंटल होटल पहुंचीं.

यह आलीशान होटल सपा नेता महेंद्र सिंह यादव का था और इस होटल का संचालन मृतक जितेंद्र सिंह यादव करता था. पुलिस अधिकारियों ने होटल स्टाफ से पूछताछ की तो पता चला कि किसी बात को ले कर जितेंद्र की विकास यादव से तूतू मैंमैं हुई थी.

एकतरफा प्यार में मासूम की हत्या

उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर से कोई 40-45 किलोमीटर दूर बसा है बीरबल अकबरपुर गांव. इसी गांव में शिवबालक निषाद अपनी पत्नी ममता और 2 बेटियों व एक बेटे के साथ रहता था.

बात 25 जनवरी, 2019 की है. शिवबालक शाम को घर लौटा तो उस का 10 वर्षीय बेटा विवेक घर में नहीं दिखा. पूछने पर बड़ी बेटी ने बताया कि विवेक दोपहर 12 बजे स्कूल से लौट कर खाना खाने के बाद घर से यह कह कर निकला था कि खेलने जा रहा है, तब से वह घर नहीं लौटा.

बेटी की बात सुन कर शिवबालक का माथा ठनका. उस की समझ में नहीं आया कि आखिर बेटा कहां चला गया जो अभी तक नहीं आया. पत्नी घर में नहीं थी, वह अपने मायके फफुआपुर गई हुई थी, इसलिए वह बेटे को ढूंढने के लिए निकल पड़ा. उस ने पड़ोस के बच्चों से पूछा तो उन्होंने बताया कि दोपहर के समय तो विवेक उन के साथ खेल रहा था. उस के बाद कहां गया, उन्हें पता नहीं.

शिवबालक के पड़ोस में हरिकिशन का घर था. शिवबालक ने उस के मंझले बेटे अनिल को विवेक के गायब होने की बात बताई तो वह भी परेशान हो उठा. वह गांव के युवकों को ले कर शिवबालक के साथ विवेक को ढूंढने में जुट गया. इन लोगों ने गांव का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन विवेक का कहीं पता नहीं चला. घुरऊपुर, गुरडूनपुरवा टैंपो स्टैंड, सजेती बसस्टाप, बाजार आदि जगहों पर भी उस की खोज की गई, लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

शिवबालक ने बेटे के गायब होने की जानकारी पत्नी को दे दी थी. ममता को यह खबर मिली तो वह तुरंत गांव लौट आई. उस ने भी अपने हिसाब से विवेक को खोजा. आधी रात तक खोजबीन के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला.

किसी अनहोनी की आशंका में शिवबालक और ममता ने जैसेतैसे रात बिताई. रात भर उन के मन में तरहतरह के खयाल आते रहे. सवेरा होते ही पड़ोसी हरिकिशन का बेटा अनिल शिवबालक के पास आया. वह बोला, ‘‘चाचा, विवेक को हम लोगों ने बहुत खोज लिया. अब हमें पुलिस का सहारा लेना चाहिए. चलो थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देते हैं.’’

उस की बात शिवबालक को भी ठीक लगी. तब दोनों थाना सजेती जा पहुंचे. सुबह का समय था, इसलिए एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह थाने में ही मौजूद थे. शिवबालक ने उन्हें अपने बेटे के गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने विवेक की गुमशुदगी दर्ज करा कर जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

अमरेंद्र बहादुर भी कई सिपाहियों के साथ गांव के नजदीक के खेतों में बच्चे को ढूंढने लगे. पुलिस के साथ गांव वाले भी थे. वह भी पुलिस की मदद कर रहे थे. इस बीच पुलिस ने गौर किया कि विवेक की खोज में अनिल निषाद कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखा रहा है.

सर्च अभियान के दौरान ही अनिल ने एसओ से कहा, ‘‘दरोगाजी, चलिए उधर सरसों के खेत में देख लेते हैं.’’

अनिल की यह बात एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह की समझ में नहीं आई कि यह सरसों के खेत की ओर चलने को क्यों कह रहा है. फिर भी वह बिना कुछ कहे अनिल के पीछेपीछे सरसों के खेत की ओर चल पडे़.

खेत के अंदर जा कर उस ने सरसों के कुछ पौधों को हाथ से इधरउधर किया, फिर चीख कर बोला, ‘‘सर, विवेक की लाश यहां पड़ी है.’’

उस की बात सुनते ही एसओ तुरंत उस के पास पहुंच गए. सचमुच सरसों की फसल के बीच विवेक की लाश पड़ी थी. लाश को घासफूस से ढका गया था. लेकिन हवा के झोंकों से घासफूस बिखर गया था. जिस से लाश साफ दिखाई दे रही थी.

बेटे की लाश देख कर शिवबालक दहाड़ें मार कर रोने लगा. इस के बाद तो गांव में जिस ने भी सुना, वही लाश देखने भाग खड़ा हुआ. सूचना मिलने पर मृतक विवेक की मां ममता भी रोतीबिलखती वहां पहुंच गई और शव से लिपट कर रोने लगी.

इधर थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर ने बच्चे की लाश बरामद करने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. नतीजतन कुछ देर बाद एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह और सीओ (घाटमपुर) शैलेंद्र सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया.

उन्हें उस के शरीर पर कोई घाव दिखाई नहीं दिया. गले के निशान से ही अंदाजा लग गया कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई होगी. उस के मुंह और नाक में मिट्टी भी भरी हुई थी. हत्या के समय हत्यारे ने यह शायद इसलिए किया होगा ताकि मृतक की आवाज न निकल सके.

सीओ शैलेंद्र सिंह ने विवेक के पिता शिवबालक से पूछा कि उन्हें बेटे की हत्या का किसी पर शक तो नहीं है.

‘‘साहब, बीते साल जून महीने में गांव के इंद्रपाल निषाद के बेटे सर्वेश ने मेरी बेटी नीलम (परिवर्तित नाम) को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी. इस की रिपोर्ट दर्ज कराई गई तो पुलिस ने उसे पकड़ कर जेल भेज दिया था. 2 महीने पहले ही वह जेल से छूट कर आया है. हो सकता है मेरे बेटे की हत्या में उस का हाथ हो.’’ शिवबालक ने बताया.

उसी समय थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर सिंह की निगाह अनिल निषाद पर पड़ी. वह कुछ दूरी पर एक बच्चे से बात कर रहा था और उसे अंगुली दिखा कर धमका रहा था.

थानाप्रभारी की निगाह में अनिल पहले ही शक के घेरे में था. अब उन का शक और गहरा गया. जिस बच्चे को वह धमका रहा था, उन्होंने उस बच्चे को अपने पास बुला कर पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है, किस गांव में रहते हो?’’

‘‘मेरा नाम सुमित है. मैं इसी गांव में रहता हूं.’’ बच्चे ने बताया.

‘‘तुम विवेक को जानते थे?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘हां साहब, वह मेरा पक्का दोस्त था. वह कक्षा 3 में और मैं कक्षा 4 में पढ़ता हूं.’’

‘‘विवेक को कल किसी के साथ जाते देखा था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां साहब, अनिल उसे खेतों की ओर ले गया था. अनिल ने मुझे 20 रुपए दे कर विवेक को बुलवाया था. तब मैं विवेक को बुला लाया था. इस के बाद अनिल उसे खेतों की तरफ ले कर चला गया था. अनिल अभी मुझे इसी बात की धमकी दे रहा था कि यह बात किसी को न बताना.’’ सुमित ने बताया.

सुमित ने जो बातें पुलिस को बताईं, उस से अनिल पूरी तरह से शक के घेरे में आ गया. उधर शिवबालक के बयानों से सर्वेश पर भी शक था. गांव वालों से भी पुलिस को पता चला कि सर्वेश और अनिल गहरे दोस्त हैं. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह को दे दी तो उन्होंने उन दोनों लड़कों से पूछताछ करने के निर्देश दिए.

इस के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के विवेक का शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय, कानपुर भिजवा दिया. फिर उन्होंने सर्वेश निषाद और अनिल को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और थाने ले आए.

पुलिस ने सब से पहले सर्वेश निषाद को अनिल से अलग ले जा कर विवेक की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने विवेक की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सर्वेश ने बताया कि उस ने अपने दोस्त अनिल की मदद से विवेक की हत्या की थी.

सर्वेश निषाद ने हत्या का जुर्म कबूला तो अनिल को भी टूटते देर नहीं लगी. दोनों से पूछताछ के बाद विवेक की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर से 47 किलोमीटर दूर एक बड़ी आबादी वाला गांव बीरबल अकबरपुर बसा हुआ है. यह एक ऐतिहासिक गांव है. मुगल बादशाह अकबर का यहां किला है, जो समय के थपेड़ों के साथ अब खंडहर में तब्दील हो गया है.

यमुना किनारे बसे इस गांव की आबादी लगभग 10 हजार है. बताया जाता है कि मुगल बादशाह अकबर जब आगरा से अकबरपुर आते थे, तो इसी किले में दरबार लगाते थे.

इसी किले में अकबर की मुलाकात बीरबल से हुई थी. बीरबल की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हो कर बादशाह अकबर ने उन्हें अपने दरबार में रख लिया. अपनी बुद्धिमत्ता के चलते बीरबल दरबार में चर्चित हुए तो इस अकबरपुर गांव का नाम बीरबल अकबरपुर पड़ गया. समय बीतते सरकारी रिकौर्ड में भी गांव का नाम बीरबल अकबरपुर दर्ज हो गया.

हाजिरजवाबी और बुद्धिमत्ता का लोहा मनवाने वाले बीरबल का जन्म अकबरपुर गांव से एक किलोमीटर दूर तिलौची में हुआ था. बीरबल के बाल्यावस्था के समय ही उन के पिता की मृत्यु हो गई थी. निर्धन परिवार में जन्मे बीरबल का पालनपोषण उन की मां ने बड़ी कठिन परिस्थितियों में किया था. खेतों पर मजदूरी करने के दौरान मां बीरबल को बांस की टोकरी में लिटा कर लाती थीं और खेत के एक कोने में टोकरी को रख देती थीं.

कहा जाता है कि एक रोज एक साधु खेत से हो कर गुजर रहा था, तभी उस की नजर बीरबल पर पड़ी. उस साधु ने बीरबल की हस्तरेखा तथा मस्तक की लकीरों को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘माई, तुम्हारा यह लाल बड़ा बुद्धिमान होगा. यह अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा बड़ेबड़ों से मनवाएगा और पूरे देश में चर्चित होगा. यह राजदरबारी होगा.’’

उस साधु की बात सुन कर बीरबल की मां उस के चरणों में झुक गईं और बोलीं, ‘‘बाबा, मैं मजदूरी करती हूं. बेहद गरीब हूं. तुम्हें दक्षिणा भी नहीं दे सकती और न ही भोजन करा सकती हूं. मुझे क्षमा करना.’’ कहते हुए वह रोने लगीं.

साधु बोला, ‘‘रो मत माई, मैं तुम से कुछ मांगने नहीं आया हूं. मैं तो इधर से जा रहा था तो मेरी नजर पड़ गई.’’

इस के बाद वह साधु बीरबल को आशीर्वाद दे कर चला गया. समय बीतते इस साधु की भविष्यवाणी सच निकली. बीरबल, अकबर के राजदरबारी बने और अपनी हाजिरजवाबी के लिए चर्चित हुए.

इसी बीरबल अकबरपुर गांव में शिवबालक निषाद अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा विवेक था.

शिवबालक ड्राइवर था. वह लोडर चलाता था. इस के अलावा उस के पास 3 बीघा खेती की जमीन भी थी. लेकिन वह जमीन ऊसरबंजर थी. उस में ज्वारबाजरा के अलावा कोई दूसरी फसल नहीं होती थी. अतिरिक्त आमदनी के लिए शिवबालक ने दूध का व्यवसाय शुरू कर दिया था. वह सुबह उठ कर गांव से दूध इकट्ठा करता फिर दूध को घाटमपुर कस्बा ले जा कर बेचता था.

वक्त यों ही गुजरता गया. वक्त के साथ शिवबालक के बच्चे भी सालदरसाल बड़े होते गए. बड़ी बेटी नीलम 14 साल की उम्र पार कर चुकी थी. तीनों बच्चे गांव के एसएस शिक्षा सदन स्कूल में पढ़ते थे. नीलम नौवीं कक्षा में पढ़ रही थी.

शारदा के घर से कुछ दूरी पर सर्वेश निषाद रहता था. वह एक अच्छे परिवार का था. सर्वेश अपने पिता की 3 संतानों में मंझला था. वह थोक में सब्जी बेचने का काम करता था. गांव के किसानों से सस्ते दाम पर सब्जियां खरीद कर उन्हें कानपुर की नौबस्ता थोक सब्जी मंडी में अच्छे दामों पर बेचा करता था.

चूंकि सर्वेश अच्छा कमाता था, सो खूब ठाटबाट से रहता था. गले में सोने की चेन, अंगुलियों में अंगूठियां और कलाई में महंगी घड़ी उस की पहचान थी. उस के पास महंगा मोबाइल रहता था. सर्वेश जिस तरह से अच्छी कमाई करता था, उसी तरह शराब और अय्याशी में वह अपनी कमाई लुटाता था.

उस के पिता इंद्रपाल उस की इस फिजूलखर्ची से परेशान थे. उन्होंने उसे बहुत समझाया और डांटा फटकारा भी लेकिन सर्वेश का रवैया नहीं बदला.

एक रोज नीलम स्कूल जा रही थी, तभी सर्वेश की नजर उस पर पड़ी. खूबसूरत नीलम को देख कर सर्वेश का मन मचल उठा. वह उसे फांसने का तानाबाना बुनने लगा. मौका मिलने पर वह उस से बात करने का प्रयास करता. लेकिन नीलम उसे झिड़क देती थी. तब सर्वेश खिसिया जाता.

आखिर जब उस के सब्र का बांध टूट गया तो उस ने एक रोज मौका मिलने पर नीलम का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें चाहता हूं. तुम्हारी खूबसूरती ने मेरा चैन छीन लिया है. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.’’

नीलम अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से से बोली, ‘‘सर्वेश, तुम यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो, मैं तुम्हारी जातिबिरादरी की हूं और इस नाते तुम मेरे भाई लगते हो. भाई को बहन से इस तरह की बातें करते शर्म आनी चाहिए.’’

‘‘प्यार अंधा होता है नीलम. प्यार जातिबिरादरी नहीं देखता.’’ वह बोला.

‘‘होगा, लेकिन मैं अंधी नहीं हूं. मैं ऐसा नहीं कर सकती. नफरत करती हूं. और हां, आइंदा कभी मेरा रास्ता रोकने या हाथ पकड़ने की कोशिश मत करना, वरना मुझ से बुरा कोई न होगा, समझे.’’ नीलम ने धमकाया.

सर्वेश समझ गया कि नीलम अब ऐसे नहीं मानेगी. उसे अपनी खूबसूरती और जवानी का इतना घमंड है तो वह उस के घमंड को हर हाल में तोड़ कर रहेगा.

सर्वेश का एक दोस्त था अनिल निषाद. दोनों ही हमउम्र थे सो उन में खूब पटती थी. एक रोज दोनों शराब पी रहे थे, उसी दौरान सर्वेश बोला, ‘‘यार अनिल, मैं नीलम से प्यार करता हूं, लेकिन वह हाथ नहीं रखने दे रही.’’

‘‘देख सर्वेश, मैं एक बात बताता हूं कि नीलम ऐसीवैसी लड़की नहीं है. उस का पीछा छोड़ दे. कहीं ऐसा न हो कि उस का पंगा तुझे भारी पड़ जाए.’’ अनिल ने सर्वेश को समझाया.

‘‘अरे छोड़ इन बातों को, मैं भी जिद्दी हूं. मैं आज चैलेंज करता हूं कि नीलम अगर राजी से नहीं मानी तो मुझे दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा.’’ सर्वेश ने कहा.

सर्वेश ने नीलम के ऊपर लाख डोरे डालने की कोशिश की लेकिन हर बार उसे बेइज्जती का सामना करना पड़ा. बात 13 जून, 2018 की है. उस रोज शाम 5 बजे नीलम दिशा मैदान जाने को घर से निकली, तभी सर्वेश ने उस का पीछा किया. नीलम जैसे ही झाडि़यों की तरफ पहुंची, तभी सर्वेश ने उसे दबोच लिया और उसे जमीन पर पटक कर उस के साथ जबरदस्ती करने लगा.

नीलम उस की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी लेकिन सर्वेश पर जुनून सवार था. तब नीलम ने हिम्मत जुटाई और सर्वेश के हाथ पर दांत से काट लिया. सर्वेश की पकड़ ढीली हुई तो वह चिल्लाती हुई सिर पर पैर रख कर गांव की ओर भागी. अपने घर पहुंचते ही नीलम मूर्छित हो कर देहरी पर गिर पड़ी.

ममता ने नीलम को अस्तव्यस्त कपड़ों में देखा तो समझ गई कि उस के साथ क्या हुआ है. मां ने नीलम के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो कुछ देर बाद उस ने आंखें खोल दीं. उस के बाद उस ने मां को सर्वेश की करतूत बताई. यह सुन कर ममता गुस्से से भर उठी.

वह शिकायत ले कर सर्वेश के पिता इंद्रपाल के पास पहुंची तो उस ने बेटे को डांटनेसमझाने के बजाय उस का पक्ष लिया और उलटे उस की बेटी नीलम के चरित्र पर ही अंगुली उठाने लगा.

ममता ने यह बात अपने पति को बताई. इस के बाद दोनों पतिपत्नी थाना सजेती पहुंच गए. उन्होंने सर्वेश के खिलाफ दुष्कर्म की कोशिश करने का मुकदमा दर्ज करा दिया. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस सक्रिय हुई और आननफानन में सर्वेश को गिरफ्तार कर कानपुर जेल भेज दिया.

सर्वेश 4 महीने जेल में रहा. 20 अक्तूबर, 2018 को उस की जमानत हुई. जेल से बाहर आने के बाद सर्वेश के दिल में ममता और उस की बेटी नीलम के प्रति बदले की आग भभक रही थी. क्योंकि उन की वजह से वह जेल जो गया था.

बदला कैसे लिया जाए, इस विषय पर उस ने अपने दोस्त अनिल से विचारविमर्श किया तो तय हुआ कि ममता के कलेजे के टुकड़े विवेक को मार दिया जाए. विवेक शिवबालक का एकलौता बेटा था. इस के बाद दोनों ने योजना बनाई और समय का इंतजार करने लगे.

25 जनवरी, 2019 को अपराह्न 2 बजे शिवबालक का 10 वर्षीय बेटा विवेक अपने साथियों के साथ गली में खेल रहा था, तभी सर्वेश की नजर उस पर पडी़. अनिल भी उस के साथ था. सर्वेश ने अनिल के कान में कुछ कानाफूसी की फिर गांव के बाहर चला गया.

इधर अनिल ने विवेक के साथ खेल रहे सुमित को अपने पास बुलाया और उसे 20 रुपए का नोट दे कर कहा, ‘‘सुमित, तुम विवेक को ले कर गांव के बाहर ले आओ. वहां तुम दोनों को बिस्कुट, टौफी खिलाएंगे.’’

सुमित लालच में आ गया. वह विवेक को ले कर गांव के बाहर पहुंच गया. अनिल वहां विवेक के आने का ही इंतजार कर रहा था.

अनिल ने सुमित को वहीं से वापस कर दिया. वह विवेक को बहला कर सरसों के खेत पर ले गया. वहां सर्वेश पहले से मौजूद था. नफरत से भरे सर्वेश ने विवेक का हाथ पकड़ा और उसे घसीटते हुए खेत के अंदर ले गया. और विवेक को जमीन पर पटक कर बोला, ‘‘तेरी बहन ने मुझे जेल भिजवाया था. उस का बदला आज तुझे जान से मार कर लूंगा.’’

अनिल जो अब तक खेत के बाहर रखवाली कर रहा था, वह भी खेत के अंदर पहुंच गया. इस के बाद दोनों मिल कर विवेक का गला दबाने लगे. विवेक चीखने लगा तो दोनों ने गला दबाकर विवेक को मार डाला और फिर लाश को घासफूस से ढक कर वापस घर आ गए.

इधर शाम 5 बजे शिवबालक घर आया तो उसे विवेक दिखाई नहीं दिया, विवेक के बारे में उस ने शारदा से पूछा तो उस ने गली में खेलने की बात बताई. लेकिन शिवबालक का माथा ठनका.

वह उस की खोज में जुट गया. लेकिन विवेक नहीं मिला. दूसरे दिन उस की लाश सरसों के खेत में पुलिस की मौजूदगी में मिली. पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो बदला लेने के लिए मासूम की हत्या का परदाफाश हुआ.

27 जनवरी, 2019 को थाना सजेती पुलिस ने अभियुक्त सर्वेश निषाद व अनिल को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंटीरियर डिजाइनर का खूनी इश्क – भाग 3

योजना के अनुसार, अमृता ने इस दौरान ओमवीर से दूरी बना ली. उसे ओमवीर से जो बात करनी होती वह या तो उसे फोन कर देती या फिर वाट्सऐप पर मैसेज कर के बात कर लेती थी. इधर रूपेंद्र इस बात से अनजान था कि ओमवीर तथा अमृता उस के खिलाफ एक खूनी साजिश रच चुके हैं. इस साजिश को अमली जामा पहनाने के लिए ओमवीर ने अपनी ही सोसायटी के एक गार्ड सुमित को भी पैसे का लालच दे कर साजिश में शामिल कर लिया.

सुमित हापुड़ जिले की बाबूगढ़ तहसील के गांव भडंगपुर का रहने वाला था. पिछले 2 सालों से वह गैलेक्सी-2 सोसायटी में गार्ड की नौकरी कर रहा था. सुमित हैबतपुर गांव में किराए का एक कमरा ले कर रह रहा था.

सुमित ओमवीर से कई बार कह चुका था कि वह कोई ऐसा काम बताए, जिस से उसे मोटी रकम मिल सके. उस रकम से वह अपना कोई कामधंधा शुरू कर लेगा. ओमवीर के कहने पर सुमित ने जिला बुलंदशहर के बीबीनगर के रहने वाले अपने एक दोस्त भूले को भी इस साजिश में शामिल कर लिया.

लेकिन बिना पैसा लिए वे इस काम को अंजाम देने के लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने इस काम के लिए 3 लाख रुपए की मांग की थी. ओमवीर ने यह बात अमृता को बताई तो अमृता ने 23 अप्रैल को ओमवीर के साथ जा कर अपनी सोने की 2 चूडि़यां और एक हार बेच कर एडवांस में डेढ़ लाख रुपए दे दिए.

लालची ओमवीर ने इन पैसों में से 50 हजार रुपए अपने पास रख कर 50-50 हजार रुपए सुमित और भूले को दे दिए. बाकी रकम उस ने काम पूरा होने के बाद देने का वायदा कर लिया.

काम को अंजाम देने के लिए सुमित ने 8 हजार रुपए में .32 बोर की कंट्री मेड पिस्टल और कुछ कारतूस खरीद लिए. अब सही मौका देख कर सुमित की हत्या की वारदात को इस तरह अंजाम देना था कि लूट की घटना लगे.

28 अप्रैल, 2019 को रविवार का दिन था और रूपेंद्र की उस दिन छुट्टी थी. ओमवीर ने उस दिन को खासतौर से इसलिए चुना था क्योंकि उन्हें जो कहानी बनानी थी, उस के लिए रूपेंद्र की छुट्टी का दिन ही सब से मुफीद लगा था.

ओमवीर छुट्टी के दिन अकसर रूपेंद्र के घर उस से मिलने चला जाता था. उस दिन भी वह उस के घर आया. वे दोनों चाय पी कर निबटे ही थे कि अमृता ने रूपेंद्र से दोपहर के वक्त कहा कि रसोई की चिमनी खराब हो गई है उसे दूसरी चिमनी खरीदनी है. लिहाजा दोपहर के वक्त रूपेंद्र चिमनी खरीदने की बात कह कर अपने फ्लैट से निकला.

घर में घुस कर विश्वास जीता फिर लगा दिया ठिकाने

रूपेंद्र के साथ लिफ्ट में नीचे तक ओमवीर भी आया. लेकिन वह नीचे आ कर रूपेंद्र से यह कह कर अपने फ्लैट की तरफ बढ़ गया कि उसे हैबतपुर जाना है, वह पार्किंग से गाड़ी निकाल कर सोसायटी के बाहर उस का इंतजार करे. तब तक वह अपने फ्लैट से कुछ सामान ले कर आता है.

रूपेंद्र अपनी कार निकालने के लिए पार्किंग की तरफ चला गया. तभी ओमवीर ने सुमित और भूले को सोसायटी के बाहर पहुंचने को कहा. इतनी देर में ओमवीर अपने फ्लैट पर पहुंचा और वहां से पिस्टल और कारतूस जेब में रख कर सोसायटी के बाहर पहुंच गया.

रूपेंद्र को भी पार्किंग से कार ले कर बाहर पहुंचने में 15 मिनट का समय लगा. वहां रुक कर वह ओमवीर का इंतजार करने लगा. सोसायटी से थोड़ा आगे वह रूपेंद्र के पास पहुंचा तो उस ने कुछ ही दूरी पर खड़े सुमित व भूले से पूछा, ‘‘अरे भाई, तुम यहां कैसे खड़े हो, किस का इंतजार कर रहे हो?’’

सुमित ने जोर से चिल्ला कर कहा, ‘‘भैया, आटो का इंतजार कर रहे हैं. तिगड़ी गोलचक्कर तक जाना है.’’

ओमवीर ने वहीं से चिल्ला कर कहा, ‘‘अरे आ जाओ, रूपेंद्र भैया उधर ही जा रहे हैं. तुम लोगों को भी छोड़ देंगे.’’

ओमवीर खुद तो रूपेंद्र की कार में बैठ ही गया, उस ने रूपेंद्र से सुमित व उस के साथी को भी तिगड़ी गोलचक्कर तक लिफ्ट देने की सिफारिश कर कार में बिठा लिया.

गरमी के कारण गौर सिटी की हैबतपुर जाने वाली सर्विस रोड पर दिन के वक्त छुट्टी वाले दिन कुछ ज्यादा ही सन्नाटा रहता है. सोसायटी के करीब ढाई किलोमीटर दूर जाने पर अचानक ओमवीर ने रूपेंद्र से कार रोकने को कहा तो रूपेंद्र ने बिना कुछ सोचेसमझे कार रोक दी.

कार रोकने के बाद उस ने ओमवीर से जैसे ही पूछा कि क्या हुआ, कार क्यों रुकवाई तो वह यह देख कर चौंक गया कि तब तक ओमवीर अपनी कमर में खोंसे पिस्टल को निकाल कर उस की तरफ तान चुका था. जब तक रूपेंद्र कुछ समझता तब तक ओमवीर ने उस की कनपटी से पिस्टल सटा कर गोली चला दी.

गोली चलते ही खून की धारा बहने के साथ ही रूपेंद्र का सिर स्टीयरिंग पर लुढ़क गया. उसे जब इत्मीनान हो गया कि वह ढेर हो चुका है तो उन तीनों ने रूपेंद्र की घड़ी, पर्स, अंगूठी और गले में पहनी सोने की चेन निकाल ली ताकि पुलिस यही समझे कि मामला लूटपाट के लिए हुई हत्या का है. चूंकि दोपहर के वक्त इलाके में सन्नाटा था, इसलिए न तो किसी ने गोली की आवाज सुनी और न ही किसी ने उन्हें वारदात को अंजाम देते हुए देखा.

इस के बाद तीनों वहां से निकले और पिस्टल बाकी बचे कारतूसों के साथ कुछ ही दूरी पर झाडि़यों के पीछे एक गड्ढे में फेंक दी. भूले वारदात के बाद अपने गांव चला गया था, जबकि ओमवीर तथा सुमित सोसायटी में वापस आ गए. सुमित वापस आ कर सोसायटी में अपनी ड्यूटी करने लगा जबकि ओमवीर ने घर पर आ कर अपने कपड़े बदले क्योंकि उस की शर्ट पर खून के निशान लग गए थे.

इस के 3-4 घंटे बाद योजना के मुताबिक अमृता ने अपना नाटक शुरू किया. उस ने ओमवीर को बुला कर कहा कि अब सभी से यही कहना है कि रूपेंद्र घर से गहने ले कर निकला था. वह गहने उसे गाजियाबाद में पीसी ज्वैलर्स के पास गिरवी रखने थे. दोनों ने यही कहानी गढ़ी.

उसी के बाद ओमवीर ने घटना का गवाह बनाने के लिए रूपेंद्र के पड़ोसी प्रशांत को फोन कर के इस बारे में बताया और उस के बाद रूपेंद्र को ढूंढने का नाटक शुरू हुआ. सब कुछ पहले से तय था. इन लोगों ने सुमित को इसलिए जानबूझ कर साथ लिया कि वह नाटक रचते हुए उन्हें रूपेंद्र की कार तक ले जाए. यही उस ने किया भी.

चूंकि पुलिस को जांच के दौरान पता चला था कि रूपेंद्र का मोबाइल तो उस की जेब में है लेकिन उस का पर्स, अंगूठी और सोने की चेन उस के पास नहीं थी, इसलिए उस रात पुलिस भी इस वारदात को लूटपाट के लिए हुई हत्या की घटना मान कर जांच करने में लगी थी.

ये भी पढ़ें – दुराचारी पिता का हश्र

अमृता का व्यवहार ही बना शक की वजह

लेकिन अगले दिन बिसरख के एसएचओ मनोज पाठक को पहली बार रूपेंद्र की पत्नी अमृता का यह व्यवहार अजीब लगा कि पति की हत्या की सूचना के बाद जब वह घटनास्थल पर पहुंची तो उस ने पुलिस को कोई शिकायत नहीं दी. वह बस यही कहती रही कि किसी ने जेवर लूटने के लिए उस के पति की हत्या कर दी. अगले दिन भी जब उस ने कोई शिकायत नहीं दी तो उस पर शक और गहरा गया.

जांच में एसएचओ का शक उस वक्त और भी ज्यादा बढ़ गया जब अमृता से पूछताछ की तो वह एक रटीरटाई थ्यौरी के मुताबिक बेधड़क हो कर मामले को लूटपाट का बताने पर अड़ी रही.

जब उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि जिस समय दोपहर में रूपेंद्र को गोली मारी गई थी, उसी वक्त ओमवीर ने उसे फोन कर के लंबी बातचीत की थी और वाट्सऐप पर कहा था कि काम हो गया है.

हालांकि ओमवीर और सुमित ने पूछताछ में यह बताया था कि वे वारदात के वक्त सोसायटी में थे. लेकिन वारदात के वक्त उन के मोबाइल की लोकेशन रूपेंद्र के मोबाइल की लोकेशन के साथ ही मैच हो रही थी.

सोसायटी के आउट गेट पर लगे सीसीटीवी कैमरे की जांच करने पर पता चला कि जिस वक्त रूपेंद्र सोसायटी के बाहर अपनी कार ले कर निकला था, उस के 2-4 मिनट के अंतराल से ओमवीर तथा सुमित एक अन्य व्यक्ति के साथ पैदल सोसायटी के बाहर निकले थे. इतना ही नहीं, सुमित और ओमवीर डेढ़ घंटे बाद एक साथ सोसायटी के अंदर प्रवेश करते हुए सीसीटीवी फुटेज में दिखे.

ओमवीर और सुमित के बीच इसी दौरान हुई बातचीत और ओमवीर की अमृता के साथ लंबीलंबी बातचीत तथा वाट्सऐप संदेशों ने भी पुलिस को ओमवीर तथा अमृता पर शक करने की वजह दे दी. ओमवीर पर पुलिस का शक उस वक्त यकीन में बदल गया जब 29 अप्रैल की सुबह रूपेंद्र के बैंक खाते से किसी ने 10 हजार रुपए की 2 बार एटीएम में ट्रांजैक्शन की. इस का मैसेज पुलिस के कब्जे में मौजूद रूपेंद्र के फोन पर आया तो पुलिस चौंकी.

पुलिस की एक टीम उसी समय उस एटीएम की जांच करने के लिए गई. शाम होतेहोते सीसीटीवी की फुटेज देखने पर पुलिस को पता चला कि यह रकम एटीएम से ओमवीर ने निकाली थी. बस फिर क्या था, पुलिस के सामने सारी कडि़यां जुड़ती चली गईं. पुलिस ने सब से पहले ओमवीर को हिरासत में ले कर कड़ी पूछताछ की. उस ने सारा सच उगल दिया. इस के बाद इंसपेक्टर पाठक की टीम ने उसी दिन सुमित और भूले को भी धर दबोचा.

जब तीनों को पुलिस ने गिरफ्तार किया, तभी अमृता को अपनी गिरफ्तारी की आशंका हो गई थी. पुलिस उस तक पहुंचती, उस से पहले ही वह फरार हो गई. इंसपेक्टर पाठक ने ओमवीर तथा उस के साथियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पिस्टल और कई जिंदा कारतूस भी बरामद किए.

पुलिस ने ओमवीर, सुमित और भूले को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने अमृता को पकड़ने के लिए जाल बिछाया. सर्विलांस की मदद से आखिर 4 मई को अमृता को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने उस से मिली जानकारी के बाद ओमवीर को एक बार फिर से पुलिस रिमांड पर लिया तो उस की शिनाख्त पर पुलिस ने ज्वैलर्स के यहां से डेढ़ लाख रुपए में बेचे गए आभूषण भी बरामद कर लिए.

अगर पुलिस रूपेंद्र की हत्या को केवल लूटपाट का विरोध करने के दौरान हुई मौत पर ही अपनी जांच केंद्रित करती तो अमृता और ओमवीर अपनी साजिश में कामयाब हो जाते. आरोपियों ने एक के बाद एक ऐसी कई छोटीछोटी गलतियां कर दी थीं कि पुलिस धीरेधीरे उन कडि़यों को जोड़ कर उन तक पहुंच गई.

—कथा पुलिस की आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित