इंटीरियर डिजाइनर का खूनी इश्क – भाग 2

सुबह से ही इंसपेक्टर पाठक ने रूपेंद्र हत्याकांड की जांच का काम तेज कर दिया. उन्होंने एसआई पीयूष और वीरपाल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. साथ ही उन्होंने एसपी (देहात) की टीम के कांस्टेबल सुधीर और संजीव को मृतक के परिवार के सभी सदस्यों के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाने और उन के फोन को सर्विलांस पर लगवाने की जिम्मेदारी सौंप दी.

पुलिस टीम ने रूपेंद्र के परिजनों से पूछताछ की. इस के अलावा गैलेक्सी सोसायटी में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगालनी शुरू कर दी.

काल डिटेल्स, सीसीटीवी कैमरों की फुटेज आदि की जांच के बाद पुलिस ने पहली मई को ओमवीर को हिरासत में ले लिया. ओमवीर मृतक का बहनोई था. इंसपेक्टर मनोज पाठक ने थाने ला कर जब उस से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपने खिलाफ पुलिस के पास मौजूद सबूतों को देख कर आसानी से सच उगल दिया.

पुलिस के सामने जब रूपेंद्र की हत्या का सच आया तो सब हैरान रह गए क्योंकि ओमवीर ने रूपेंद्र की हत्या अपनी सोसायटी के गार्ड सुमित और एक अन्य साथी भूले के साथ मिल कर की थी. पुलिस की एक टीम ने उसी दिन उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया. ओमवीर और उस के दोनों साथियों से पूछताछ हुई तो रूपेंद्र हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

रूपेंद्र सिंह चंदेल (33 वर्ष) मूलरूप से उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के गांव मोहारी का रहने वाला था. उस के पिता अर्जुन सिंह चंदेल पीएसी में हैडकांस्टेबल हैं और इन दिनों उन की नियुक्ति प्रयागराज में है. रूपेंद्र का एक मंझला भाई राघवेंद्र भी शादीशुदा है और गांव में रहता है. राघवेंद्र वकालत की पढ़ाई कर रहा है. रूपेंद्र का एक छोटा भाई भी है, जो दिल्ली में रहता है. रूपेंद्र ने एमबीए किया था और पढ़ाई पूरी करने के बाद सन 2012 में उस की नौकरी ग्रेटर नोएडा की बिसकुट कंपनी हिंज प्राइवेट लिमिटेड में लग गई थी.

नौकरी लगने के एक साल बाद सन 2013 में परिवार वालों ने उस की शादी महोबा की रहने वाली अमृता सिंह से कर दी. अमृता न सिर्फ सुंदर थी बल्कि पोस्टग्रैजुएट भी थी. अमृता से शादी के बाद रूपेंद्र की जिंदगी में तेजी से बदलाव आने लगा.

एक साल बाद ही वह एक बच्चे का पिता बन गया, जिस का नाम आयुष्मान रखा. अमृता के जीवन में आने के बाद रूपेंद्र ने तेजी के साथ तरक्की की सीढि़यां चढ़ीं और वह सेल्स मैनेजर के ओहदे तक पहुंच गया.

करीब 3 साल पहले उस ने फोर्ड फिगो कार खरीदी थी, उस के बाद एक साल पहले यानी मई 2018 में रूपेंद्र ने गैलेक्सी नार्थ एवेन्यू-2 में 35 लाख रुपए में 2 बैडरूम का फ्लैट भी खरीद लिया था. रूपेंद्र की अच्छी सैलरी थी, इसलिए ये तमाम चीजें उस ने लोन ले कर खरीदी थीं. मकान खरीदने के बाद रूपेंद्र ने अपने मकान में 2-3 लाख रुपए खर्च कर के इंटीरियर डिजाइनिंग का कुछ काम भी कराया था.

ओमवीर इंटीरियर डिजाइनर से बना बहनोई

रूपेंद्र के फ्लैट में इंटीरियर का काम उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के मोहारी गांव के रहने वाले ओमवीर सिंह ने किया था. ओमवीर गैलेक्सी-2 सोसायटी के फ्लैट संख्या ई-244 में अपने भाई कृष्णवीर तथा 2 रिश्तेदारों के साथ रहता था. ये सभी गौर सिटी की सोसायटियों में इंटीरियर डिजाइनिंग का काम करते थे.

उस ने गैलेक्सी-2 सोसायटी में भी करीब 20 से अधिक फ्लैटों का इंटीरियर डिजाइन किया था. रूपेंद्र को जब ओमवीर से बातचीत में यह बात पता चली कि ओमवीर भी ठाकुर है तो उस ने अपने फ्लैट की इंटीरियर डिजाइन का काम ओमवीर से ही कराया.

कुछ दिन रूपेंद्र के घर में काम करने के दौरान ओमवीर और रूपेंद्र की दोस्ती हो गई. ओमवीर 4 भाइयों में सब से बड़ा था. उस का एक छोटा भाई कृष्णवीर उसी के साथ काम करता था जबकि बाकी दोनों भाई गांव में ही रह कर खेती करते थे. ओमवीर पढ़ालिखा और अच्छे परिवार का लड़का था.

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जब रूपेंद्र से ओमवीर की दोस्ती हो गई तो रूपेंद्र के घर उस का अकसर आनाजाना हो गया. रूपेंद्र रोजाना सुबह को नौकरी पर निकल जाता और शाम को ही घर लौटता था. लेकिन ओमवीर का अपना काम था. वह ज्यादातर गैलेक्सी सोसायटी में ही रहता था. इसलिए वह जब तब रूपेंद्र की गैरमौजूदगी में भी उस के घर चला जाता था.

चूंकि ओमवीर रूपेंद्र का दोस्त था, इसलिए ओमवीर जब भी रूपेंद्र की अनुपस्थिति में उस के घर जाता तो अमृता ओमवीर को एक पारिवारिक दोस्त की तरह सम्मान और सत्कार देती थी. शुरुआत में तो ओमवीर कभीकभार ही रूपेंद्र के घर आता था, लेकिन धीरेधीरे अमृता की खूबसूरती उस के मन में बस गई.

अमृता को पति से प्यारा लगने लगा ओमवीर

इस के बाद तो वह रोज ही कुछ घंटों के लिए रूपेंद्र की गैरमौजूदगी में उस के घर जाने लगा. शुरू में ओमवीर और अमृता औपचारिक रूप से ही बातचीत करते थे, लेकिन जब ओमवीर का अकसर आनाजाना शुरू हुआ तो दोनों की झिझक दूर हो गई और वे खुल कर बातचीत करने लगे.

जनवरी 2019 में दोनों की झिझक इस हद तक दूर हो गई कि ओमवीर अमृता से शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा. जब अमृता ने उस की इस तरह की हंसीमजाक का कोई विरोध नहीं किया तो ओमवीर की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद वह इस से भी एकदो कदम आगे बढ़ गया.

उस ने हंसीमजाक में पहले अमृता को एकदो बार अपनी बांहों में भर लिया था. लेकिन जब अमृता ने इस का भी विरोध नहीं किया तो बात इस के आगे चुंबन तक पहुंच गई. दरअसल, रूपेंद्र जहां गंभीर और सीधे स्वभाव का युवक था, वहीं ओमवीर तेजतर्रार और आधुनिक विचारधारा का लड़का था.

अमृता ओमवीर जैसे तेजतर्रार लोगों को पसंद करती थी. यही कारण रहा कि उस ने कभी ओमवीर की किसी हरकत का बुरा नहीं माना था. इस से ओमवीर की हरकतें और बढ़ने लगीं. फिर एक दिन ऐसा भी आया कि दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूट गई. दोनों के बीच उस रिश्ते ने जन्म ले लिया, जिसे समाज अवैध संबंध कहता है. अमृता को ओमवीर के जिस्म का ऐसा चस्का लगा कि बाद में दोनों के बीच अकसर ही यह खेल खेला जाने लगा.

रूपेंद्र उन के खेल से पूरी तरह अनजान था. अमृता की शारीरिक जरूरतें पूरी होने लगीं तो उस ने धीरेधीरे पति में दिलचस्पी लेनी बंद कर दी. ओमवीर ही उस के लिए सब कुछ हो गया था. लेकिन ओमवीर के मन में कुछ और ही खिचड़ी पकने लगी थी. उस ने सोचा कि अमृता के साथ अगर रूपेंद्र का ये मकान भी उसे मिल जाए तो नोएडा जैसी औद्योगिक नगरी में वह अपना बड़ा बिजनैस खड़ा कर सकता है. इसलिए अब उस ने धीरेधीरे अमृता के दिलोदिमाग में रूपेंद्र के खिलाफ जहर के बीज बोने शुरू कर दिए.

अपनी लच्छेदार बातों में फंसा कर ओमवीर ने अमृता के दिमाग में नफरत भर दी. बात यहीं खत्म नहीं हुई. 2019 के फरवरी महीने में रूपेंद्र की मौसी की लड़की शिखा 15 दिन के लिए रूपेंद्र के घर रहने के लिए आई थी. शिखा अमृता जैसी खूबसूरत तो नहीं थी लेकिन सीधीसादी थी. उसे देख कर ही ओमवीर के मन में खयाल आया कि क्यों न रूपेंद्र के घर में बेरोकटोक आने के लिए शिखा से शादी कर ली जाए.

जब यह बात उस ने अमृता से कही तो बात उस की भी समझ में आ गई. अमृता ने इस बारे में पति से बात की तो रूपेंद्र को भी लगा कि जवान मौसेरी बहन के लिए अगर ओमवीर जैसा बिरादरी का ही लड़का मिल जाए तो इस से अच्छा और क्या होगा. ओमवीर ठीकठाक कमा भी लेता था.

रूपेंद्र ने जब महोबा में रहने वाली अपनी मौसी से यह बात की तो वह तैयार हो गईं. फरवरी के आखिरी हफ्ते में दोनों परिवारों की रजामंदी से ओमवीर और शिखा की शादी हो गई. शादी के कुछ रोज बाद शिखा अपने पति ओमवीर के पास नोएडा आ गई. वह गैलेक्सी-2 सोसायटी में पति के साथ रहती थी. शिखा का अभी गौना भी होना था, लिहाजा 10 दिन बाद वह अपने मायके चली गई.

लेकिन इसी दौरान एक दिन न जाने क्यों रूपेंद्र को अमृता के किसी व्यवहार से शक हो गया कि ओमवीर से उस के संबंध कुछ अलग तरह के हो चुके हैं. हालांकि उसे सिर्फ शक था लेकिन फिर भी उस के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा था. लिहाजा रूपेंद्र ने अमृता से ओमवीर से दूरी बना कर रखने की बात कह दी. रूपेंद्र के ऐसा कहते ही अमृता समझ गई कि हो न हो रूपेंद्र को उन के संबंधों पर शक हो गया है.

बनने लगी हत्या की योजना

अमृता ने जब यह बात ओमवीर को बताई तो उसे भी लगा कि उसे अगर अमृता व उस की संपत्ति हासिल करनी है तो रूपेंद्र को रास्ते से हटाना होगा. यह काम करने का यही अच्छा मौका है. यह बात उस ने अमृता से कही. अमृता तो उस के प्यार में अंधी हो चुकी थी, लिहाजा वह पति की हत्या कराने के लिए तैयार हो गई.

ओमवीर ने अमृता से कहा कि अगर वह कुछ पैसे खर्च कर दे तो वह ऐसे लोगों का इंतजाम कर देगा जो रूपेंद्र को उन के रास्ते से हटा देंगे. अमृता ने ओमवीर से कह दिया कि वह उसे पैसे दे देगी, वह भाड़े के हत्यारों का इंतजाम कर ले.

बीवी का डबल इश्क पति ने उठाया रिस्क

तीसरी ताकत का खेल

दिल्ली के दक्षिण पश्चिमी जिले में दिनदहाड़े एक युवक की हत्या और 77 हजार रुपए लूटने की खबर जब वायरलैस पर प्रसारित हुई तो पूरे जिले की पुलिस हरकत में आ गई. यह वारदात 23 सितंबर, 2014 को थाना उत्तरी द्वारका के क्षेत्र में घटी थी.

सूचना मिलने पर जिले की डीसीपी सुमन गोयल ने सभी थानाप्रभारियों को अपनेअपने क्षेत्र में बैरिकेड्स लगा कर वाहनों की सघन तलाशी के आदेश दिए. लुटेरे बाइक पर सवार थे, इसलिए पुलिस की निगाहें बाइक सवारों पर थीं. थाना दिल्ली कैंट की पुलिस भी बैरिकेड्स लगा कर लुटेरों की जांच में लगी हुई थी.

उसी समय दोपहर एक बजे के करीब कैंट इलाके में आरआर अस्पताल के पीछे से एक आदमी भाग कर आता हुआ दिखाई दिया. उस की उम्र करीब 25-30 साल थी. उस के सिर से खून बह रहा था. उस ने पिकेट पर तैनात पुलिस को अपना नाम कीरत सिंह बताया. उस ने बताया कि उस के दोस्त नकुल धीर और मुकीम ने चलती कार में उस के सिर पर गोली मारी है, जान बचाने के लिए वह कार से कूद कर भाग आया है.

कीरत सिंह के सिर से खून बह रहा था इसलिए पुलिस उसे तुरंत एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) के ट्रामा सेंटर ले गई और यह सूचना थाना कैंट के ड्यूटी औफिसर को दे दी. जिस इलाके में घटना घटी थी वह कैंट थाने की सुब्रोतो पार्क चौकी क्षेत्र में आता था. चौकी इंचार्ज के.बी. झा को खबर मिली तो वह भी उस जगह पहुंच गए जहां घटना घटी थी. इस के बाद वह एम्स के ट्रामा सेंटर पहुंचे.

कीरत सिंह का इलाज कर रहे डाक्टरों ने सबइंसपेक्टर के.बी. झा को बताया कि वह बेहोश है और बयान देने की स्थिति में नहीं है. कीरत सिंह कहां का रहने वाला था, उस के दोस्त कहां रहते थे और उन्होंने उसे गोली क्यों मारी? यह सारी जानकारी उस से बात करने के बाद ही मिल सकती थी. लिहाजा के.बी. झा उस के होश में आने का इंतजार करने लगे.

दोस्तों ने कीरत सिंह के सिर में 2 गोलियां मारी थीं. दोनों गोलियां सिर के पिछले हिस्से को छूती हुई निकली थीं. इसलिए उस की हालत कोई ज्यादा सीरियस नहीं थी. अगले दिन जब वह होश में आया तो चौकी इंचार्ज के.बी. झा ने उस से बात की.

कीरत सिंह ने उन्हें बताया कि वह शाहदरा की चंद्रलोक कालोनी में रहता है. कल वह अपने दोस्त नकुल धीर, जो नवीन शाहदरा में रहता है, के साथ कार से गुड़गांव जा रहा था. रास्ते में नकुल का दोस्त मुकीम उर्फ राहुल मिला. राहुल लोनी में रहता है. कार पालम फ्लाईओवर के नजदीक पहुंची तभी मुकीम ने उसे मारने के लिए उस के सिर पर 2 गोलियां चलाईं. लेकिन वह अपनी जान बचाने के लिए चलती कार से ही कूद गया.

कीरत सिंह से पूछताछ के बाद सबइंसपेक्टर के.बी. झा ने यह बात दिल्ली कैंट के थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा को बताई. चूंकि हत्यारों का नामपता पुलिस को मिल चुका था इसलिए डीसीपी सुमन गोयल ने अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा, चौकीइंचार्ज के.बी. झा, एसआई राजेंद्र सिंह, एएसआई जयकिशन, कांस्टेबल अवतार सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने नकुल धीर और मुकीम के घरों पर दबिश डाली लेकिन वे दोनों अपनेअपने घरों से फरार मिले. उन्हें उन के और भी संभावित ठिकानों पर तलाशा गया लेकिन वे नहीं मिले. असफलता मिलने पर पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया. 3 अक्तूबर को एक मुखबिर द्वारा चौकी इंचार्ज के.बी. झा को सूचना मिली कि आरोपी नकुल धीर अपने घर आया हुआ है. खबर मिलते ही पुलिस टीम उस के नवीन शाहदरा स्थित घर पहुंच गई.

मुखबिर की सूचना सही निकली. नकुल धीर घर पर ही मिल गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. पुलिस चौकी सुब्रोतो पार्क ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने अपने दोस्त कीरत सिंह पर जानलेवा हमला करने की बात स्वीकार ली. उस ने कहा कि वह कीरत सिंह की हत्या करना चाहता था, लेकिन इत्तेफाक से निशाना चूक गया जिस से गोली उस के सिर को छूती हुई निकल गई और वह बच गया.

वह कीरत की हत्या क्यों करना चाहता था, यह पूछने पर उस ने जो कहानी बताई, वह नाजायज संबंधों के तानेबाने पर गढ़ी हुई निकली.

28 वर्षीय कीरत सिंह अपने परिवार के साथ उत्तर पूर्वी दिल्ली के शाहदरा क्षेत्र स्थित चंद्रलोक कालोनी में रहता था. उस के परिवार में पत्नी ममता के अलावा मांबाप और एक बहन थी. वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. उसी से उस के परिवार का भरणपोषण होता था.

कीरत सिंह का एक दोस्त था नकुल धीर, जो नवीन शाहदरा में ही रहता था. उस का टूर ऐंड ट्रैवल का काम था, जिस से उसे अच्छी आमदनी होती थी. दोस्त होने की वजह से नकुल धीर का कीरत के यहां आनाजाना था. नकुल की जैसी आमदनी थी, उसी के अनुसार वह अपने ऊपर खर्च भी करता था. उसे बनठन कर रहने का शौक था.

कीरत सिंह की आमदनी सीमित थी. महीने की जो बंधीबंधाई तनख्वाह मिलती थी, उसी से वह घरपरिवार का गुजारा करता था. ममता उस से अपनी कोई फरमाइश करती तो वह कोई न कोई बहाना बना देता था, जिस से वह खिन्न हो जाती थी. उस के अरमान तंगहाली की आंच में झुलस रहे थे. मगर कीरत सिंह को इस बात की कोई फिक्र नहीं थी. वह उस की भावनाओं की कद्र करने के बजाय बाहरी महिलाओं के साथ मौजमस्ती करता था.

कीरत सिंह 1 बच्चे का बाप बन चुका था, इस के बावजूद वह बाहरी महिलाओं के चक्कर में लगा रहता था. ममता को जब पति की हरकतों की जानकारी मिली तो वह बहुत नाराज हुई. उस ने पति को समझाया लेकिन उस ने अपनी छिछोरेपन की आदत नहीं छोड़ी. इसी बात को ले कर पतिपत्नी के बीच अकसर नोकझोंक होती रहती थी.

पिछले साल तो कीरत सिंह ने हद कर दी. उस ने शाहदरा की ही रहने वाली अलका नाम की एक परिचित युवती के साथ बलात्कार कर दिया. अलका ने शाहदरा थाने में उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी, जिस के बाद उसे जेल भी जाना पड़ा. पति की इस कारगुजारी पर ममता को बहुत शर्मिंदा होना पड़ा.

पति के जेल जाने के बाद ममता के सामने आर्थिक परेशानी खड़ी हो गई. पति ही कमाने वाला था. वह भी इतनी पढ़ीलिखी नहीं थी, जिस से उसे आसानी से नौकरी मिल जाती. इस परेशानी में उस की मदद पति के 26 वर्षीय दोस्त नकुल धीर ने की.

नकुल ने आर्थिक सहयोग तो किया ही, साथ ही वह कीरत को जेल से बाहर निकलवाने की कोशिश में भी लग गया. ममता के साथ वह वकील के पास जाता और जेल जा कर कीरत से मुलाकात भी करता. कुल मिला कर नकुल ममता की हर तरह से मदद कर रहा था.

लंबे समय तक नकुल धीर के साथ रहने पर ममता का उस से लगाव हो गया. यहां तक कि बाद में उन के बीच अवैध संबंध भी बन गए. ममता को कोई रोकने टोकने वाला तो था नहीं, इसलिए वह उस के साथ बिना किसी डर के मौजमस्ती करने लगी. चूंकि नकुल के द्वारा ममता की ख्वाहिशें पूरी हो रही थीं इसलिए वह उस से खुश थी.

उन दोनों के बीच यह खेल लंबे समय तक चलता रहा. इसी वजह से ममता नहीं चाहती थी कि उस का पति जेल से जमानत पर बाहर आए. लेकिन अपने सासससुर के दबाव की वजह से उसे पति की जमानत के लिए पैरवी करनी पड़ी. अंतत: करीब सवा साल जेल में रहने के बाद कीरत सिंह की जमानत हो गई.

बाहर आने के बाद कीरत सिंह ने किसी तरह अलका को समझाबुझा कर केस वापस लेने के लिए तैयार कर लिया. अलका द्वारा केस वापस लेने पर कीरत ने राहत की सांस ली. इसी बीच उसे यह भी जानकारी मिल गई कि उस के जेल में रहने के दौरान उस की पत्नी नकुल के साथ गुलछर्रे उड़ाती थी. कीरत ने इस बारे में ममता से बात की तो उस ने बताया कि लोग उसे बिना वजह बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं.

पत्नी का जवाब सुन कर कीरत ने बात रफादफा जरूर कर दी थी लेकिन उस के दिमाग में शक का कीड़ा घर कर चुका था. वह पत्नी की गतिविधियों पर इस तरह नजर रखने लगा ताकि उसे आभास न हो.

उधर पति की मौजूदगी के मद्देनजर ममता ने भी नकुल से मिलने में सावधानी बरतनी शुरू कर दी थी. एक बार पति के सो जाने के बाद ममता बाथरूम में जा कर फोन पर अपने आशिक नकुल से बात कर रही थी. आधी रात के करीब कीरत सिंह की आंखें खुलीं तो उस ने पत्नी को बेड से नदारद पाया. उस ने सोचा कि शायद वह टायलेट गई होगी. 15 मिनट बाद तक भी जब ममता कमरे में नहीं लौटी तो वह बिस्तर से उतर कर दबेपांव कमरे से बाहर निकला.

तभी उस ने बाथरूम की तरफ पत्नी की आवाज सुनी. वह धीरे से जा कर बाथरूम के बाहर खड़ा हो गया और कान लगा कर पत्नी की बातें सुनने लगा. वह फोन पर प्यारभरी बातें कर रही थी. कीरत समझ गया कि जरूर वह अपने यार से बात कर रही है. उस का मन तो किया कि अभी उस की जम कर धुनाई करे, लेकिन आधी रात को वह कोई हंगामा खड़ा नहीं करना चाहता था.

गुस्से का घूंट पी कर वह कमरे में आ कर बिस्तर पर लेट गया. उस के सामने पत्नी की बेवफाई की तसवीरें घूमने लगीं. नींद उस की आंखों से कोसों दूर जा चुकी थी. उस ने तय कर लिया कि सुबह होते ही वह ममता की खबर लेगा.

अपने प्रेमी नकुल से काफी देर बतियाने के बाद ममता चुपके से आ कर पति के पास बिस्तर पर लेट गई. जब वह बिस्तर पर आई, तब कीरत जाग रहा था. वह चुपचाप लेटा अंदर ही अंदर गुस्से से भुन रहा था.

सुबह होने पर कीरत ने पत्नी से पूछा, ‘‘रात को तुम कहां चली गई थी, मेरी आंख खुली तो तुम बिस्तर पर नहीं थीं?’’

‘‘बाथरूम गई थी.’’ ममता ने साधारण तरीके से जवाब दिया.

‘‘बाथरूम में किस से बात कर रही थीं?’’

इतना सुनते ही ममता सकपकाते हुए बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’

‘‘झूठ मत बोलो, सच बताओ तुम किस से बात कर रही थीं?’’ कहते हुए कीरत ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. साथ ही उसे हिदायत दी कि यदि उस ने अपना रवैया नहीं बदला तो वह उसे घर से निकाल देगा.

पिटाई से ममता का शरीर दुख रहा था. 2-4 दिन वह घर में ही रही. उस ने नकुल से भी बात नहीं की. बाद में नकुल धीर का फोन आया तो उस ने पिटाई की बात उसे बता दी. इस का नकुल को बहुत दुख हुआ.

एक दिन मौका पा कर ममता ने नकुल से मुलाकात कर के उस के सामने अपना दर्द बयान कर दिया. नकुल ने उसे कीरत को ठिकाने लगाने की सलाह दी. उस ने कहा कि कीरत को रास्ते से हटाने के बाद हम लोग शादी कर लेंगे.

यह बात ममता की समझ में आ गई. उस ने इस के लिए हामी भर दी. यह काम नकुल अकेले नहीं कर सकता था. उस ने लोनी के रहने वाले मुकीम उर्फ राहुल से बात की. इस के बदले में उस ने मुकीम को 50 हजार रुपए देने की पेशकश की तो मुकीम इस के लिए तैयार हो गया.

इस के बाद नकुल धीर, मुकीम और ममता ने कीरत सिंह को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. इस योजना के अनुसार 23 सितंबर, 2014 को नकुल धीर अपने एक दोस्त की मारुति जेन कार ले कर कीरत के घर पहुंचा. किसी बहाने से उस ने कीरत को गुड़गांव जाने के लिए तैयार कर लिया. कीरत को कार में बिठा कर वह गुड़गांव की ओर निकल गया. रास्ते में नकुल ने एक अन्य युवक को कार में बैठा लिया. नकुल ने उस का नाम मुकीम बताते हुए कहा कि वह उस का दोस्त है.

कार नकुल चला रहा था, कीरत उस के बराबर वाली सीट पर बैठा था. मुकीम पीछे की सीट पर बैठ गया. कार अपनी गति से आगे बढ़ रही थी. तीनों आपस में बातें कर रहे थे. तभी कार के दिल्ली कैंट की तरफ जाने वाले फ्लाईओवर पर चढ़ने से पहले ही मुकीम ने तमंचा निकाल कर कीरत पर एक फायर कर दिया. गोली उस के सिर को छूती हुई चली गई. उसी समय नकुल ने भी तमंचे से एक फायर कीरत के सिर पर किया.

वह गोली भी कीरत के सिर को छूती हुई निकल गई. कीरत समझ गया कि उस की जान खतरे में है. इसलिए वह कार का गेट खोल कर चलती कार से कूद गया. उस के सिर से खून बह रहा था. वह भागता हुआ पिकेट पर तैनात पुलिस के पास पहुंच गया और सारी बात बता दी. पुलिस उसे एम्स के ट्रामा सेंटर ले गई.

नकुल धीर से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 4 अक्तूबर को कीरत सिंह की पत्नी ममता और मुकीम उर्फ राहुल को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उन्होंने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. 4 अक्तूबर को ही पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को पटियाला हाउस कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी धीरज मित्तल के समक्ष पेश कर के उन्हें 3 दिन के रिमांड पर लिया.

रिमांड अवधि में पुलिस ने उन की निशानदेही पर मारुति जेन कार, वारदात में प्रयुक्त तमंचे आदि बरामद किए. काररवाई पूरी होने पर पुलिस ने आरोपियों को पुन: न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. उधर कीरत सिंह की हालत सुधरने पर उस की अस्पताल से छुट्टी कर दी गई थी. उस का कहना है कि वह बेवफा पत्नी से वास्ता नहीं रखेगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं.

इंटीरियर डिजाइनर का खूनी इश्क – भाग 1

पिछले 15-20 सालों में नोएडा और ग्रेटर नोएडा का बहुत तेजी से विकास हुआ है. इस के आसपास के गांव भी विकास की दौड़ में शामिल हैं. ग्रेटर नोएडा क्षेत्र का गांव बिसरख 20 साल पहले भले ही गांव था, लेकिन अब छोटेमोटे शहरों से बेहतर है. यहां पर गौर सिटी-2 की टाउनशिप बन गई है.

प्रशांत कुमार गौर सिटी-2 के गैलेक्सी नार्थ एवेन्यू-2 के फ्लैट नंबर ए-1468 में रहता था. उस के फ्लैट से 2 फ्लोर नीचे उस के दोस्त रूपेंद्र सिंह चंदेल का फ्लैट था. प्रशांत और रूपेंद्र के बीच गहरी दोस्ती थी.

28 अप्रैल, 2019 को रविवार की छुट्टी थी. उस दिन शाम करीब साढ़े 6 बजे प्रशांत घर पर ही था और पत्नी व बच्चों के साथ मौल घूमने जाने की तैयारी में लगा था. उसी वक्त उस के मोबाइल पर रूपेंद्र के बहनोई ओमवीर का फोन आया.

ओमवीर इसी सोसायटी के फ्लैट नंबर-244 में रहता था. ओमवीर ने फोन पर प्रशांत को जो कुछ बताया, उसे सुन कर वह चिंतित हो उठा. ओमवीर ने बताया था कि रूपेंद्र दोपहर में अपनी सफेद रंग की फोर्ड फिगो कार ले कर घर से गया था. उसे कुछ पैसों की जरूरत थी. वह घर से पत्नी के गहने ले कर गाजियाबाद के पी.सी. ज्वैलर्स के पास गिरवी रखने के लिए निकला था. लेकिन साढ़े 3 घंटे गुजर जाने के बावजूद अभी तक वह घर नहीं लौटा है.

ओमवीर ने यह भी बताया कि रूपेंद्र की पत्नी अमृता और वह खुद कई बार रूपेंद्र से फोन पर संपर्क करने की कोशिश कर चुके हैं, मगर दूसरी ओर से काल रिसीव नहीं की जा रही.

यह ऐसी बात थी जिसे सुन कर किसी को भी चिंता हो सकती थी. रूपेंद्र तो वैसे भी प्रशांत का बहुत अच्छा दोस्त था. लिहाजा वह फटाफट जीने की सीढि़यां उतर कर रूपेंद्र के फ्लैट पर पहुंच गया. ओमवीर वहां पहले से ही मौजूद था. रूपेंद्र की पत्नी अमृता के चेहरे पर उड़ रही हवाइयां साफ बता रही थीं कि वह बेहद परेशान है. प्रशांत ने जब अमृता से रूपेंद्र के बारे में पूछा तो उस ने भी वही सब बताया जो कुछ देर पहले ओमवीर ने फोन पर उसे बताया था.

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वह घबराते हुए बोली, ‘‘भैया, वो सोने के जेवर ले कर गए हैं. इतनी देर हो गई, न तो वापस आए हैं और न ही फोन रिसीव कर रहे हैं. मेरा दिल बहुत घबरा रहा है. आप को तो पता है कि यह इलाका कितना खराब है. यहां आए दिन लूटपाट और न जाने क्याक्या होता रहता है. कहीं उन के साथ कुछ ऐसावैसा तो नहीं हो गया? मैं चाहती हूं कि एक बार आप लोग सोसायटी के बाहर जा कर उन्हें आसपास के इलाके में देख लें.’’

कहतेकहते अमृता की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘घबराइए मत भाभीजी, कुछ नहीं होगा रूपेंद्र को. हम लोग अभी पुलिस को खबर कर देते हैं.’’ प्रशांत ने कहा.

‘‘नहीं प्रशांत भाई, अभी हमें पुलिस को इनफौर्म नहीं करना है. मैं चाहता हूं कि पहले हम कुछ लोग मिल कर रूपेंद्र को तलाश कर लें, अगर वह नहीं मिलता तो फिर पुलिस को सूचना दे देंगे.’’ ओमवीर ने बीच में बात काट कर अपनी राय दी.

‘‘हां, यह भी ठीक है. पहले हम लोग तलाश कर लेते हैं.’’ प्रशांत बोला.

पुलिस में जाने से पहले प्रशांत की खोजबीन

इस के बाद प्रशांत और ओमवीर सोसायटी के दफ्तर में पहुंचे. वहां से ओमवीर ने सोसायटी के गार्ड और औपरेटर का काम करने वाले सुमित को अपने साथ ले लिया. प्रशांत ने सोसायटी में रहने वाले अपने दोस्तों संजीव और रोबिन को भी साथ ले लिया.

इस के बाद वे सभी कार ले कर आसपास के इलाके में रूपेंद्र को तलाश करने के लिए निकल पड़े. एक घंटे में उन लोगों ने आसपास के 6-7 किलोमीटर का रास्ता देख लिया लेकिन न तो उन्हें कहीं रूपेंद्र की कार दिखाई दी और न ही आसपास के इलाके में कहीं कोई दुर्घटना होने की जानकारी मिली.

सभी लोग आगे की काररवाई पर विचार करने के लिए वापस सोसायटी की तरफ लौटने लगे. तब तक रात के 10 बज चुके थे. गौर सिटी से कुछ दूर ब्रह्मा मंदिर है. जैसे ही वे लोग कार से मंदिर के पास से गुजरे कि तभी सुमित ने चिल्ला कर कहा, ‘‘सर, कार रोको… कार रोको.’’

‘‘क्या हुआ भाई, कुछ हो गया क्या?’’ कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे प्रशांत ने कार की गति धीमी करते हुए सुमित से पूछा.

सुमित ने मंदिर के पास सर्विस रोड की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘सर, वो देखो वहां एक सफेद रंग की कार खड़ी है. मुझे लगता है, वह रूपेंद्र सर की ही है.’’

सभी ने चौंकते हुए सर्विस रोड की तरफ देखा तो वहां वाकई एक सफेद रंग की कार खड़ी नजर आई. प्रशांत ने फौरन अपनी कार आगे बढ़ा दी. कुछ दूर आगे जा कर यू टर्न ले कर वह कार को सर्विस रोड पर वहां ले गया, जहां सफेद रंग की कार खड़ी थी.

पास पहुंचते ही प्रशांत ने देखा कि वाकई वह फोर्ड फिगो कार थी और उस का नंबर यूपी95जे 9096 था, जो रूपेंद्र की कार का था. कार का नंबर पढ़ते ही प्रशांत और ओमवीर साथियों के साथ जल्दी से नीचे उतरे और उन्होंने गाड़ी के शीशे से भीतर झांका तो उन के हलक से चीख निकल गई. क्योंकि कार के भीतर ड्राइविंग सीट पर खून से लथपथ रूपेंद्र का शव पड़ा था.

प्रशांत व ओमवीर ने दरवाजा खोल कर रूपेंद्र को हिलाडुला कर देखा तो ओमवीर की मौत हो चुकी थी.

‘‘ओह माई गौड! मुझे जिस बात का शक था, वही हुआ. लगता है बदमाशों ने लूटपाट कर के रूपेंद्र को मार दिया है.’’ कहते हुए ओमवीर ने अपना माथा पकड़ लिया.

जिस की तलाश में प्रशांत और उस के साथी निकले थे, वह तलाश पूरी हो चुकी थी. रूपेंद्र जिंदा तो नहीं मिला अलबत्ता उस की लाश जरूर मिल गई थी. उस की मौत कैसे हुई? क्या हादसा हुआ? यह पता लगाना पुलिस का काम था.

लिहाजा करीब साढ़े 10 बजे प्रशांत ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को फोन कर के इस घटना की सूचना दे दी. कुछ ही देर में पीसीआर की गाड़ी वहां पहुंच गई. ओमवीर ने भी तब तक अपनी पत्नी और रूपेंद्र की पत्नी को इस बारे में खबर कर दी थी. गौर सिटी के कुछ दूसरे लोग भी रूपेंद्र की लाश मिलने की सूचना पा कर वहां पहुंच गए.

पीसीआर गाड़ी से आए पुलिसकर्मियों ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद यह खबर स्थानीय बिसरख थाने को दे दी. बिसरख थाने के एसएचओ मनोज पाठक पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल की जांचपड़ताल के बाद सीओ पीयूष कुमार सिंह, एसपी (देहात) विनीत जायसवाल और फोरैंसिक टीम को खबर कर दी. कुछ ही देर में फोरैंसिक टीम और पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

जांचपड़ताल में पुलिस को घटनास्थल पर ऐसा कोई निशान नहीं मिला, जिस से पता चल पाता कि रूपेंद्र की हत्या लूटपाट के लिए या लूटपाट का विरोध करने के कारण हुई है. सब से बड़ी बात यह थी कि उस की हत्या उस के निवास से करीब ढाई किलोमीटर की दूरी पर हुई थी.

रूपेंद्र की पत्नी अमृता भी अपने 6 साल के बेटे आयुष्मान के साथ वहां पहुंच गई थी. पति की मौत के बाद एक पत्नी का दुख और सदमा उस पर क्या असर करता है, अमृता का विलाप देख कर समझा जा सकता था. ओमवीर की पत्नी शिखा जो रिश्ते में अमृता की ननद थी, उस ने कुछ दूसरी महिलाओं व लोगों के साथ मिल कर रो रही अमृता को सांत्वना दी.

फोरैंसिक टीम ने मृतक की कार के भीतर से फिंगरप्रिंट व दूसरी तरह के नमूने एकत्र कर लिए थे. मौके की काररवाई निपटाने के बाद इंसपेक्टर मनोज पाठक ने रूपेंद्र का शव रात में ही पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही उन्होंने मृतक के परिजनों से इस मामले की एफआईआर दर्ज कराने के लिए लिखित शिकायत देने के लिए अगली सुबह थाना बिसरख आने के लिए कहा.

थाने में रिपोर्ट लिखाने से भी किया मना

लेकिन हैरत की बात यह कि अगली सुबह रूपेंद्र की पत्नी या उस के बहनोई ओमवीर में से कोई भी थाने नहीं पहुंचा. हां, रूपेंद्र का दोस्त प्रशांत जरूर अपने दोस्तों को ले कर बिसरख थाने पहुंच गया था. इंसपेक्टर पाठक ने जब उस से पूछा कि रूपेंद्र की पत्नी या परिवार के लोगों में से कोई एफआईआर कराने क्यों नहीं आया तो प्रशांत ने बताया कि उस ने रूपेंद्र के परिवार वालों से थाने चलने के लिए कहा था. लेकिन उन्होंने कहा कि रिपोर्ट लिखाने से क्या होगा, इस से रूपेंद्र जिंदा तो हो नहीं जाएंगे.

परिजनों का जवाब बेहद चौंकाने वाला था, लेकिन पुलिस को जांच आगे बढ़ाने के लिए महज शिकायत की जरूरत होती है. घटना से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा कोई भी शख्स शिकायत कर सकता है.

लिहाजा इंसपेक्टर पाठक ने प्रशांत से ही लिखित में शिकायत ले कर 29 अप्रैल, 2019 को भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने उसी दिन रूपेंद्र के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव उस के घर वालों को सौंप दिया. तब तक रूपेंद्र के पिता और भाई के अलावा उस के दूसरे रिश्तेदार तथा अमृता के परिजन भी आ चुके थे.

वरदीवाला दिलजला : प्रेमिका और उसके मंगेतर की हत्या

दिल्ली से सटे गाजियाबाद में हिंडन नदी किनारे स्थित साईं उपवन बड़ा ही रमणीक स्थल है. यहां पर साईंबाबा का प्रसिद्ध मंदिर है. 25 मार्च, 2019 सोमवार को सुबह का वक्त था. श्रद्धालुजन साईं मंदिर में आते जा रहे थे. उसी समय लाल रंग की स्कूटी से गोरे रंग की खूबसूरत युवती और एक स्मार्ट सा दिखने वाला युवक वहां पहुंचे.

स्कूटी को उपवन परिसर के बाहर एक ओर खड़ी कर वे दोनों मंदिर में प्रवेश कर गए. कोई 10 मिनट के बाद जब वे दोनों साईंबाबा के दर्शन कर के बाहर निकले तो उन के चेहरे खिले हुए थे. यह हसीन जोड़ा आसपास से गुजरने वाले लोगों की नजरों का आकर्षण बना हुआ था. लेकिन उन दोनों को लोगों की नजरों की रत्ती भर भी परवाह नहीं थी. वे अपनी ही दुनिया में मशगूल थे.

जैसे ही दोनों बाहर निकले वह रमणीक इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. तभी वहां मौजूद लोगों को एक आदमी युवक युवती की लाशें बिछा कर तेजी से लिंक रोड की तरफ भागता हुआ दिखाई दिया. लोगों ने देखा कि लाशें उसी नौजवान खूबसूरत जोड़े की थीं, जो अभीअभी वहां से हंसते मुसकराते हुए मंदिर से बाहर निकला था. इसी दौरान किसी ने इस सनसनीखेज घटना की सूचना 100 नंबर पर गाजियाबाद पुलिस को दे दी.

थोड़ी ही देर में सिंहानी गेट के थानाप्रभारी जयकरण सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. मंदिर परिसर के अंदर लाल सूट पहने एक युवती और एक युवक की रक्तरंजित लाशें औंधे मुंह पड़ी थीं. जयकरण सिंह ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया.

युवक युवती के कपड़े खून से सने थे. वहां पर काफी लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. जयकरण सिंह ने उन की नब्ज टटोली, लेकिन उन की सांसें उन का साथ छोड़ चुकी थीं. उन्होंने जल्दी से क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम को बुला कर घटनास्थल की फोटोग्राफी करवाई और वहां उपस्थित चश्मदीदों से इस घटना के बारे में पूछताछ करनी शुरू की.

कुछ लोगों ने बताया कि मृतक युवती और युवक कुछ ही देर पहले लाल स्कूटी से एक साथ मंदिर आए थे, जब दोनों साईं बाबा के दर्शन करने के बाद बाहर निकल रहे थे, तभी पहले से घात लगाए हत्यारे ने इस वारदात को अंजाम दे दिया.

पुलिस ने जब दोनों लाशों की शिनाख्त कराने की कोशिश की तो भीड़ ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. यह देख इंसपेक्टर जयकरण सिंह ने आरटीओ औफिस से उस लाल रंग की स्कूटी का विवरण मालूम किया, जिस से वे आए थे. आरटीओ औफिस से मृतका की शिनाख्त प्रीति उर्फ गोलू, निवासी विजय विहार (गाजियाबाद) के रूप में हुई.

तय हो गई थी शादी

पुलिस द्वारा सूचना मिलने पर थोड़ी देर में युवती के घर वाले भी रोते बिलखते हुए घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने युवती की शिनाख्त के साथसाथ युवक की भी शिनाख्त कर दी. मृतक सुरेंद्र चौहान उर्फ अन्नू था. उन्होंने यह जानकारी भी दी कि उन की बेटी प्रीति और सुरेंद्र चौहान बहुत जल्द परिणय सूत्र में बंधने वाले थे. सुरेंद्र के मातापिता भी इस रिश्ते के लिए राजी थे.

घटनास्थल की जांच के दौरान वहां पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के कुछ खोखे और मृतका प्रीति की लाल रंग की स्कूटी बरामद हुई, जिसे पुलिस टीम ने अपने कब्जे में ले लिया. मृतका के पिता प्रमोद कुमार से युवक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह के बारे में जानकारी मिल गई. पुलिस ने उन्हें भी इस दुखद घटना के बारे में बता दिया. इस के बाद खुशहाल सिंह भी अपने परिजनों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि दोनों लाशों की शिनाख्त हो चुकी थी, लिहाजा थानाप्रभारी ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाशें पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दीं.

25 मार्च को ही मृतका प्रीति के पिता प्रमोद कुमार की शिकायत पर इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा कोतवाली सिंहानी गेट में अज्ञात अपराधियों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया.

इस केस की आगे की तफ्तीश थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने खुद संभाली. उन्होंने इस घटना के बारे में एसपी श्लोक कुमार और सीओ सिटी धर्मेंद्र चौहान को भी अवगत करा दिया.

एसएसपी उपेंद्र कुमार अग्रवाल ने इस दोहरे हत्याकांड को सुलझाने के लिए एसपी श्लोक कुमार के निर्देशन और सीओ धर्मेंद्र चौहान के नेतृत्व में एक टीम बनाई. इस टीम में थानाप्रभारी जयकरण सिंह के साथ इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) राजेश कुमार, एसआई श्रीनिवास गौतम, हैडकांस्टेबल राजेंद्र सिंह, माइकल बंसल, कांस्टेबल अशोक कुमार, संजीव गुप्ता, सेगेंद्र कुमार, संदीप कुमार और गौरव कुमार को शामिल किया गया.

जांच टीम ने एक बार फिर साईं उपवन पहुंच कर वहां के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ शुरू की तो पता चला कुछ लोगों ने एक लंबी कदकाठी के आदमी को वहां से भागते हुए देखा था. वह अधेड़ उम्र का आदमी था जो कुछ दूरी तक भागने के बाद वहां खड़ी एक कार में सवार हो कर फरार हो गया था.

हालांकि मंदिर परिसर में 8 सीसीटीवी कैमरे लगे थे लेकिन दुर्भाग्यवश सभी खराब थे. मृतका के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि प्रीति सुबह 7 बजे ड्यूटी पर जाने के लिए निकली थी. वह वसुंधरा के वनस्थली स्कूल के यूनिफार्म स्टौल पर नौकरी करती थी.

उस के काम पर चले जाने के बाद  वह बुलंदशहर जाने वाली बस में सवार हो गए थे. अभी उन की बस लाल कुआं तक ही पहुंची थी कि उन्हें मोबाइल फोन पर प्रीति को गोली मारे जाने का दुखद समाचार मिला. जिसे सुनते ही वह फौरन घटनास्थल पर आ गए थे.

पिता ने बताई उधार की कहानी

प्रमोद कुमार से पूछताछ के बाद पुलिस ने मृतक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह को भी कोतवाली बुला कर उन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन के बेटे की हत्या में कल्पना नाम की औरत का हाथ हो सकता है. दरअसल, सुरेंद्र का गाजियाबाद के ही प्रताप विहार में शीशे के सामान का कारोबार था, इसी कारोबार के लिए सुरेंद्र ने कुछ समय पहले कल्पना से कुछ रुपए उधार लिए थे. कल्पना रुपए वापस करने के लिए लगातार तकादा कर रही थी.

चूंकि सुरेंद्र के पास उसे देने लायक पैसे इकट्ठे नहीं हुए थे. इसलिए वह कल्पना को कुछ दिन तक और रुकने को कह रहा था.

2 दिन पहले शनिवार के दिन भी कल्पना उन के घर पर अपने रुपए लेने आई थी, इस दौरान कल्पना ने गुस्से में आ कर सुरेंद्र को बहुत बुराभला कहा था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम इस हत्याकांड की गुत्थी को सुलझाने के लिए उन तमाम पहलुओं पर विचारविमर्श करने लगी, जिस पर आगे बढ़ कर हत्यारे तक पहुंचा जा सकता था. इस में पहला तथ्य घटनास्थल पर मिले पौइंट 9 एमएम पिस्टल से फायर की गई गोलियों के खोखे थे. इस प्रकार के पिस्टल का इस्तेमाल आमतौर पर पुलिस अधिकारी करते हैं. यह सुराग इस तथ्य की ओर इशारा कर रहा था कि हत्यारे का कोई न कोई संबंध पुलिस डिपार्टमेंट से है.

दूसरा तथ्य मृतक सुरेंद्र उर्फ अन्नू के पिता खुशहाल सिंह के अनुसार उन के बेटे को कर्ज देने वाली औरत कल्पना से जुड़ा था. तीसरा सिरा मृतका प्रीति और उस के मंगेतर सुरेंद्र की बेमेल उम्र से ताल्लुक रखता था.

दरअसल प्रेमी सुरेंद्र की उम्र अभी केवल 26 साल थी जबकि उस की प्रेमिका प्रीति की उम्र 32 साल थी. इसलिए यहां इस बात की संभावना थी कि उन के बीच उम्र का यह फासला उन के परिवार के लोगों में से किसी सदस्य को पसंद नहीं आ रहा हो और आवेश में आ कर उस ने इस घटना को अंजाम दे दिया हो.

इस के अलावा एक और भी महत्त्वपूर्ण बिंदु था, जिसे कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. प्रीति उर्फ गोलू की उम्र अधिक थी. यह भी संभव था कि उस के प्रेम संबंध पहले से किसी और युवक के साथ रहे हों. पहले प्रेमी को पता चल गया हो कि प्रीति की शादी सुरेंद्र चौहान से हो रही है. संभव था कि उस ने प्रीति को सबक सिखाने के लिए सुरेंद्र का काम तमाम कर दिया.

चूंकि वारदात के समय उस के साथ उस का मंगेतर सुरेंद्र चौहान भी था, इसलिए गुस्से से बिफरे पहले प्रेमी ने उस को भी मार डाला हो. बहरहाल इन तमाम बिंदुओं पर विचार विमर्श कर के पुलिस टीम हत्यारे तक पहुंचने के प्रयास में जुटी थी.

पुलिस टीम ने 27 मार्च को एक बार फिर दोनों के परिवार के पुरुष और महिला सदस्यों तथा वारदात के वक्त साईं उपवन में मौजूद चश्मदीदों को बुला कर पूछताछ की. साथ ही प्रीति और सुरेंद्र के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की गहन जांच की.

इस जांच में चौंकाने वाली बातें सामने आईं. प्रीति के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि उन का एक रिश्तेदार दिनेश कुमार दिल्ली ट्रैफिक पुलिस में एएसआई के पद पर तैनात है. उस का चौहान परिवार के घर पर काफी आनाजाना था.

लेकिन जिस दिन यह दोहरा हत्याकांड हुआ उस दिन के बाद वह बुलाए जाने के बावजूद वारदात वाली जगह पर नहीं आया था. और तो और प्रीति के अंतिम संस्कार में भी वह शामिल नहीं हुआ था. यह बात प्रमोद कुमार और उन के परिवार के सदस्यों को बहुत अटपटी लगी थी. जब पुलिस ने उन से डिटेल्स में बात की तो प्रमोद कुमार ने अपने मन की सब बातें विस्तार से बता दीं.

जिन्हें सुनते ही पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस में ट्रैफिक विभाग में तैनात एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करने का मन बना लिया. चूंकि घटनास्थल पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के खाली खोखे मिले थे, जिस की वजह से भी वारदात में किसी पुलिस वाले के शामिल होने का शक था, इसलिए अब एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करना बेहद जरूरी हो गया था.

पुलिस वाला आया शक के घेरे में

थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने एएसआई दिनेश कुमार से संपर्क करने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हुए. आखिरकार 30 मार्च की सुबह एक मुखबिर की सूचना पर उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया. जब उस से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ शुरू की गई तो उस ने जो कुछ बताया उस से रिश्तों में उलझी एक सनसनीखेज कहानी उभर कर सामने आई.

प्रमोद कुमार अपने परिवार के साथ गाजियाबाद के विजय विहार में रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. वह बड़ी बेटी के हाथ पीले कर चुके थे. दूसरी बेटी प्रीति उर्फ गोलू और उस से छोटी बेटी अभी पढ़ाई कर रही थी. 22 वर्षीय प्रीति मिलनसार स्वभाव की थी. वह जिंदगी के हर एक पल का पूरा लुत्फ उठाने में विश्वास रखती थी.

बड़ी बेटी की शादी के एक साल बाद प्रमोद कुमार ने प्रीति के भी हाथ पीले कर देने की सोची. उन्होंने उस के लिए कई जगह रिश्ते की बात चलाई, मगर आखिर अपनी हैसियत के अनुसार मौके पर प्रीति किसी न किसी बहाने से शादी करने से इनकार कर देती थी.

प्रीति का अपनी बड़ी बहन के घर काफी आनाजाना था. अपने हंसमुख स्वभाव की वजह से वह बहन की ससुराल में भी काफी घुलमिल गई थी. उस के जीजा का जीजा दिनेश कुमार दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल था. दिनेश मूल रूप से उत्तर प्रदेश के पिलखुआ का रहने वाला था.

उस की पत्नी और बच्चे पिलखुआ में ही रहते थे. दिनेश जब भी रमेश के घर आता वह प्रीति से खूब बातेें करता था. बला की हसीन और दिलकश प्रीति की चुलबुली मीठी बातें सुन कर वह भावविभोर हो जाता था.

प्रीति को भी दिनेश से बातें करने में खुशी मिलती थी. वह उस समय उम्र के उस पड़ाव पर भी पहुंच गई थी, जहां एक मामूली सी चूक भविष्य के लिए नासूर बन जाती है. लेकिन इस समय प्रीति या उस की बहन सीमा ने इन बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

धीरेधीरे प्रीति की जिंदगी में दिनेश का दखल बढ़ने लगा. अब वह प्रीति से उस के गाजियाबाद स्थित घर पर भी मिलने आने लगा था. इतना ही नहीं जब कभी प्रीति या उस के परिवार में अधिक रुपयों की जरूरत होती वह अपनी ओर से आगे बढ़ कर उन की मदद करता था.

प्रीति के पिता प्रमोद कुमार भी दिनेश कुमार के बढ़ते अहसानों के बोझ तले इतने दब चुके थे कि दिनेश के रुपए वापस करना उन के वश के बाहर हो गया. दिनेश कुमार ये रुपए प्रीति के घर  वालों को यूं ही उधार नहीं दे रहा था.

रिश्तों में सेंध

दरअसल दिनेश कुमार अपनी उम्र से लगभग आधी उम्र की प्रीति के ऊपर न केवल पूरी तरह से फिदा था बल्कि उस के साथ उस के शारीरिक संबंध भी स्थापित हो चुके थे. वह प्रीति को किसी न किसी बहाने से अपने साथ घुमाने ले जाता था, जहां दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

समय का पहिया अपनी गति से आगे बढ़ता रहा, दिनेश कुमार सन 1994 में कांस्टेबल के पद पर दिल्ली पुलिस में भरती हुआ था. सन 2008 में उस का प्रमोशन हेड कांस्टेबल के पद पर हो गया. इस के 8 साल बाद एक बार फिर उस का प्रमोशन हुआ और वह एएसआई बन गया. इन दिनों वह ट्रैफिक विभाग में सीमापुरी सर्कल में तैनात था.

प्रीति के साथ जिस सुरेंद्र कुमार नाम के युवक की जान गई थी, वह मूलरूप से उत्तराखंड का रहने वाला था. उस के पिता खुशहाल सिंह सेना में रह चुके थे. रिटायरमेंट के बाद वह अपने गांव में सेटल हो गए. 2 बेटों के अलावा उन की 2 बेटियां थीं. सब से बड़ा बेटा सुधीर हरिद्वार में रहता था. वह अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुके थे और इन दिनों एक पोल्ट्री फार्म चला रहे थे.

करीब 2 साल पहले उन का छोटा बेटा सुरेंद्र कुमार उर्फ अन्नू उत्तराखंड से गाजियाबाद आ गया था और प्रताप विहार में शीशे का बिजनैस करने लगा था. 2 साल तक अथक मेहनत करने के बाद आखिर उस का काम चल निकला.

इस के बाद उस ने अपने मातापिता को भी अपने पास बुला लिया था. कुछ ही महीने पहले उस की मुलाकात प्रीति उर्फ गोलू से हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे थे.

सुरेंद्र से मुलाकात होने के बाद प्रीति फोन से सुरेंद्र से अकसर बात करती रहती थी. दिन गुजरने लगे उन के प्यार का रंग गहरा होता चला गया. कुछ दिनों के बाद सुरेंद्र और प्रीति का प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. प्रीति के घर वाले इस के लिए राजी हो गए थे. शादी की बात तय हो जाने पर दोनों प्रेमी खुश हुए. हालांकि प्रीति की उम्र सुरेंद्र से करीब 6 साल ज्यादा थी मगर दोनों में से किसी को इस पर जरा भी एतराज नहीं था.

प्रीति सुरेंद्र के साथ शादी के लिए तो दिलोजान से रजामंद थी किंतु उस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि दिनेश के साथ उस के विगत कई सालों से जो प्रेमिल संबंध थे उन से निकलना आसान नहीं था. वजह यह कि दिनेश कुमार किसी भी हालत में उस की शादी किसी और से नहीं होने देना चाहता था.

प्रीति को अपने काबू में रखने के लिए उस ने उस की हर जायज नाजायज मांगें पूरी की थीं. हाल ही में उस ने प्रीति के पिता को 3 लाख रुपए उधार भी दिए थे. एएसआई दिनेश कुमार के बयान कितने सच और कितना झूठ है यह तो पुलिस की जांच के बाद पता चलेगा. परंतु इतना तय है कि प्रीति के घर में उस का इतना दखल था कि वह बेधड़क जब चाहे तब उस के घर आ जा सकता था.

प्रीति और सुरेंद्र के बीच जब से प्यार का सिलसिला शुरू हुआ था तब से प्रीति ने एएसआई दिनेश से मिलनाजुलना कम कर दिया था. पहले तो दिनेश कुमार प्रीति और सुरेंद्र के प्यार से अनजान था, लेकिन 4-5 दिन पहले जब प्रीति ने उस का फोन रिसीव करना बंद कर दिया तो वह सोच में पड़ गया.

दिल्ली पुलिस में 25 सालों से नौकरी कर रहे एएसआई दिनेश कुमार को यह समझने में देर नहीं लगी कि मामला बेहद गंभीर है. फिर भी उस ने किसी तरह प्रीति को फोन कर के उस से बातें करने की कोशिश जारी रखी. लेकिन 2 दिन पहले प्रीति ने दिनेश कुमार के लगातार आने वाले फोन से परेशान हो कर अपने मोबाइल फोन का सिम बदल लिया.

मामला बिगड़ता देख एएसआई दिनेश कुमार समझ गया कि प्रीति किसी कारण उस से संबंध तोड़ने पर आमादा है. जिस के फलस्वरूप उस ने प्रीति को सबक सिखाने की ठान ली. 24 मार्च, 2019 को दिनेश की रात की ड्यूटी थी.

25 मार्च की सुबह अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद वह शाहदरा निवासी अपने दोस्त पिंटू शर्मा के पास गया. उस की मारुति स्विफ्ट कार पर सवार हो कर वह प्रीति के घर जा पहुंचा. कार पिंटू शर्मा चला रहा था. प्रीति के घर पहुंच कर जब उसे पता चला कि प्रीति साईं उपवन मंदिर गई है तो वह उस का पीछा करता हुआ वहां भी पहुंच गया.

अचानक की गईं दोनों की हत्याएं

उधर साईं मंदिर में दर्शन करने के बाद जैसे ही प्रीति और सुरेंद्र अपने जूतों की ओर बढ़े, तभी एएसआई दिनेश कुमार प्रीति से बातें करने के लिए आगे बढ़ा. उस ने प्रीति को अपनी ओर बुलाया मगर प्रीति ने उस की ओर देख कर अपनी नजरें फेर लीं.

यह देख दिनेश कुमार की त्यौरियां चढ़ गईं. वह आगे बढ़ा और प्रीति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचने लगा, मगर प्रीति ने उस का हाथ झटक दिया. प्रीति की यह बात एएसआई दिनेश कुमार को बहुत बुरी लगी. तभी उस ने अपना सर्विस पिस्टल निकाला और प्रीति के ऊपर फायर कर दिए.

प्रीति को खतरे में देख कर सुरेंद्र उसे बचाने के लिए दौड़ा तो दिनेश ने उस के भी सीने में 3 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह बाहर स्विफ्ट कार में इंतजार कर रहे पिंटू शर्मा के साथ वहां से फरार हो गया.

गाजियाबाद पुलिस की नजरों से बचने के लिए 5 दिनों तक दिनेश कुमार अपने रिश्तेदारों के घर छिपा रहा. दिनेश की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने शाहदरा से इस हत्याकांड में शामिल रहे उस के दोस्त पिंटू को भी गिरफ्तार कर लिया.

वारदात में प्रयोग की गई एएसआई दिनेश कुमार की सर्विस पिस्टल, 3 जीवित कारतूस तथा स्विफ्ट कार भी गाजियाबाद पुलिस ने बरामद कर ली. 2 अप्रैल, 2019 को दिल्ली पुलिस ने भी एएसआई दिनेश कुमार को उस के पद से बर्खास्त कर दिया. इस समय दोनों हत्यारोपी जेल में बंद हैं.

उधर गाजियाबाद पुलिस के आला अधिकारियों ने इस सनसनीखेज वारदात की गुत्थी सुलझाने वाली टीम का मनोबल बढ़ाते हुए 25 हजार रुपए के पुरस्कार से नवाजा है, पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

सूइयों के सहारे सीने में उतरी मौत

राजेश विश्वास के घर पर कोहराम मचा हुआ था. सुबहसवेरे उस की पत्नी प्रिया जोरजोर से रो रही थी और राजेश को पुकार रही थी. रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. लोगों ने घर में देखा तो राजेश मृत अवस्था में पड़ा हुआ था.

लोगों ने कयास लगाया कि राजेश की  मौत हो गई है. राजेश विश्वास का बड़ा भाई  रमेश विश्वास, उस की पत्नी और समाज के लोग भी आ जुटे और फटाफट उसे यह सोच कर स्थानीय सरकारी अस्पताल ले जाया गया कि शायद उस की सांस चल रही हो, लेकिन डाक्टरों ने परीक्षण के बाद राजेश विश्वास की मृत्यु की घोषणा कर दी.

चूंकि उस की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई लग रही थी, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की सूचना धर्मजयगढ़ पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही सुबहसवेरे एसएचओ अमित तिवारी सहयोगियों के साथ मौके पर पहुंचे और राजेश विश्वास के शव की जांच कर उस का पंचनामा बनाया गया. कागजी काररवाई पूरी कर वह थाने लौट आए.

यह करीब एक साल पहले की बात है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के मोवा स्थित बालाजी हौस्पिटल में एक बिस्तर पर लीवर और किडनी का इलाज करवा रहे राजेश विश्वास ने रुंधे गले से बमुश्किल कहा, ”यह लाइलाज बीमारी मेरा पीछा पता नहीं कब छोड़ेगी. कितने रुपए लग गए, मगर मैं ठीक ही नहीं हो पा रहा हूं. और शायद कभी हो भी नहीं पाऊंगा…’’

यह सुनते ही उस की पत्नी प्रिया ने अपने हाथ की अंगुलियां पति राजेश के मुंह पर रख चुप कराते हुए ढांढस बंधाते कहा, ”ऐसा नहीं कहते, मर्ज जब आता है तो धीरेधीरे ठीक भी हो जाता है…’’

इस पर दुखी स्वर में राजेश ने कहा, ”मेरे गैरेज का कामधंधा बंद हो गया, इनकम का साधन भी नहीं रहा. मैं कमाऊंगा नहीं तो मेरा इलाज कैसे होगा. फिर तुम्हारे लिए भी तो कुछ जिम्मेदारियां हैं मेरी.’’

इस पर प्रिया ने कहा, ”आप के घर वाले देखो, किस तरह हाथ पैर बांधे बैठे हुए हैं. उन्हें कम से कम इस समय तो मदद के लिए आना चाहिए. कितने दिन बीत गए, मदद की बात तो दूर कोई देखने तक भी नहीं आया है.’’

ऐसी ही अनेक परेशानियों को झेलते हुए राजेश विश्वास (32 वर्ष) और प्रिया विश्वास (24 वर्ष) युगल दंपति छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बालाजी हौस्पिटल में महीना भर रहे. इलाज के बाद जब राजेश विश्वास कुछ स्वस्थ हुआ तो दोनों वापस रायगढ़ के धर्मजयगढ़ में स्थित अपने घर आ गए.

राजेश विश्वास का प्रिया से कुछ महीनों पहले ही विवाह हुआ था. विवाह से पहले भी वह यदाकदा बीमार रहता था, मगर प्रिया को अपनी बुरी आदत और बीमारी के बारे में बिना बताए ही विवाह की डोर में बंध गया.

उन का दांपत्य जीवन धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था और उस के साथ ही राजेश की बीमारी सामने आती चली गई. अब सब कुछ प्रिया के सामने था. मगर विवाह बंधन के बाद उस के पास और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था. रायपुर में इलाज चलने लगा था.

राजेश और प्रिया का जीवन इस तरह धीरेधीरे जिंदगी की दुश्वारियों से गुजरता हुआ खट्टेमीठे रिश्तों के साथ आगे बढऩे लगा.

अस्पताल में प्रिया ने की खूब सेवा

प्रिया विश्वास पति की देखरेख करती थी और जिंदगी की गाड़ी धीरेधीरे चल रही थी. वैवाहिक जीवन की शुरुआत में ही उस के चेहरे की खुशियां मानो उड़ सी गई थीं. वह चाह कर भी हंस नहीं पाती थी. पति की बीमार सूरत हमेशा उस के आगे घूमती रहती थी. वह क्या करे, जिस से कि उस का जीवन खुशियों से भर जाए. सोचती रहती थी.

उसे धीरेधीरे लगने लगा कि उस की जिंदगी रेगिस्तान बन गई है, जहां उसे आने वाले समय में दूरदूर तक कहीं भी खुशियों की आहट दिखाई नहीं दे रही थी. वह कभीकभी अपने भाग्य को रोती आंसू बहा लेती थी.

धर्मजयगढ़ के पास ही दुर्गापुर में रहने वाली प्रिया उस दिन को कोसती थी, जब उस ने राजेश को पसंद किया था और उस के प्रपोज करने पर उस के साथ जिंदगी के रास्ते तय करने की स्वीकृति दे कर विवाह बंधन में बंध गई थी.

धीरेधीरे राजेश के स्वास्थ्य को ले कर सारा सच उस के सामने आईने की तरह उजागर हो चुका था. साथ ही कभीकभी वह दुव्र्यवहार पर उतर आता था. ज्यादा शराब पीने के बाद लीवर और फिर किडनी की दिक्कत के कारण राजेश का मिजाज नरम गरम बना रहता था.

यह देखते समझते प्रिया की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था. क्या वह जिंदगी भर दुखदर्द से जिएगी, यह सोच कर ही प्रिया बहुत परेशान हो गई. मगर अब देर हो चुकी थी, उस के पास रास्ता क्या बचा था?

नवंबरदिसंबर 2023 के एक दिन प्रिया पति राजेश विश्वास को बालाजी हौस्पिटल में इलाज के लिए फिर रायपुर ले आई. राजेश को अस्पताल में भरती कर लिया गया था. प्रिया सब कुछ संभाल रही थी. एक स्त्री होने के बावजूद जिस तरह राजेश का सहारा बन कर पत्नी के रूप में प्रिया ने अस्पताल में भूमिका निभाई, उस से राजेश विश्वास भी मन ही मन प्रिया का मुरीद  हो गया था.

दूसरी तरफ आत्मविश्वास के साथ हौस्पिटल के डाक्टर से बात करती और दवाइयों की व्यवस्था करती. पति के इलाज के लिए उस ने अपना सोने का एक कंगन भी बेच दिया था. यह सब राजेश देख रहा था और मन ही मन प्रिया के प्रति उस का प्रेम बढ़ता चला गया.

कभीकभी राजेश सोचता कि प्रिया जैसी पत्नी उसे मिल गई, यह उस का भाग्य ही तो है वरना कौन आज किसी का इस तरह साथ देता है.

मगर प्रिया के पत्नी भाव को देख कर राजेश की आंखें भर आती हैं. आखिरकार एक दिन राजेश से रहा नहीं गया तो उस ने कहा, ”तुम ने मुझे बताया भी नहीं और अपना सोने का कंगन बेच दिया, तुम ने भला ऐसा क्यों किया?’’

इस पर इठला कर प्रिया ने कहा, ”सोने का कंगन मैं ने अपने सुहाग के लिए बेचा है तो भला क्या गलत किया है. बताओ तो सही.’’

”नहींनहीं तुम्हें अपने गहने बेचने की जरूरत नहीं है, मै कहीं से भी रुपए की व्यवस्था कर लूंगा.’’ राजेश ने कहा.

”वह जब होगा, कर लेना, आज आप के इलाज के लिए हमे यहां रुपयों की जरूरत है. भला हमें यहां कौन पैसे देगा और फिर यह सोनाचांदी होता ही इसी दुख की घड़ी के लिए तो है.’’

”तुम ठीक कर रही हो,’’ राजेश की आंखें भींग आईं.

इसी दरमियान एक दिन राजेश और प्रिया की मुलाकात अस्पताल के कंपाउंडर फिरीज यादव उर्फ कृष से हुई. उस समय राजेश को कुछ दवाइयों की जरूरत थी और प्रिया के पास रुपए खत्म हो गए थे. प्रिया सोच रही थी कि क्या करूं. प्रिया को असमंजस में देख कर फिरीज ने पूछ लिया था, ”क्या हुआ, क्या बात है? आप दवाइयां क्यों नहीं ला रही हैं?’’

प्रिया के भावशून्य चेहरे को देख कर के शायद फिरीज समझ गया. बिना कुछ कहे उस ने प्रिया के हाथ से दवाइयां लिखा कागज ले कर उधार में दवाइयां ले कर इलाज शुरू करवा दिया. इस घटना के बाद राजेश, प्रिया विश्वास और फिरीज यादव में एक तरह से आत्मीय संबंध बनते चले गए.

धीरेधीरे प्रिया का आकर्षण फिरीज यादव के प्रति बढऩे लगा. बालाजी अस्पताल में कोई भी आवश्यकता होती, इशारा करते ही फिरीज यादव सामने खड़ा होता.

दोनों ही आपस में बातें करते. प्रिया उसे अपना सारा दुखदर्द बताती कि अब तो राजेश उस के साथ मारपीट भी करने लगा है. एक दिन तो गुस्से में उस पर मिट्टी का तेल उड़ेल दिया था और वह थाने तक चली गई थी. अब तो उस की जिंदगी मानो उजाड़ हो गई है.

प्रिया की दास्तां सुन कर फिरीज यादव सहानुभूति व्यक्त कर कोई न कोई रास्ता निकल आने की बात कह तसल्ली देता.

प्रिया को चिकनीचुपड़ी बातों में फंसा लिया कंपाउंडर ने

एक दिन बातोंबातों में फिरीज यादव ने कहा, ”तुम सचमुच ग्रेट हो, आज की दुनिया में तुम जैसा मैं ने नहीं देखा. पति के प्रति तुम्हारा समर्पण प्रेम पागलपन से भरा हुआ है. मगर एक बात कहूं, बुरा मत मानना.’’

”नहींनहीं बोलिए क्या बात है, क्या कहना चाहते हैं.’’ वह बोली.

”तुम्हारे पति राजेश ने तुम्हें धोखा दिया है, तुम से झूठ बोला और शादी कर ली.’’

”क्या झूठ बोला है मेरे सुहाग ने मुझ से.’’ अंजान सी बन प्रिया विश्वास बोली.

”वह खुद बिस्तर पर है गंभीर बीमारी से घिरा हुआ है और तुम से उस ने झूठ बोल कर विवाह कर लिया. उस ने तुम्हें बताया भी नहीं कि ऐसी बीमारियों के बाद उसे तुम से प्यार और ब्याह नहीं करना चाहिए था. यह तो सरासर धोखा है. मैं तो कहता हूं कि तुम जैसी मासूम की जिंदगी बरबाद करने का उसे क्या अधिकार था.’’

”नहींनहीं, इस में सिर्फ उन की ही गलती नहीं, यह सब ऊपर वाले का दोष है.’’ आंसू बहाते हुए प्रिया विश्वास ने कहा.

इस पर फिरीज यादव उर्फ कृष ने कहा, ”तुम जैसी भोलीभाली लड़कियां इस तरह भ्रमजाल में फंस कर अपनी जिंदगी बरबाद कर लेती हैं. मगर मैं यह मानता हूं कि तुम्हारे साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है.’’

धर्मजयगढ़ वापस आ जाने के बाद राजेश और प्रिया विश्वास की जिंदगी की गाड़ी धीरेधीरे चल रही थी. राजेश कभी बीमार पड़ जाता तो स्थानीय स्तर पर ही उस का इलाज करा लेते थे. उस ने बीमारी के कारण अपने गैरेज के साथ एक स्कौर्पियो खरीद ली, जिसे वह किराए पर चला रहा था, जिस से परिवार का खर्च आराम से निकल रहा था.

एक दिन फिरीज यादव को प्रिया विश्वास ने मोबाइल पर काल की. उस ने मधुर स्वर में कहा, ”प्रिया, कैसी हो, मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है. तुम्हारी जिंदगी का दर्द, तुम्हारा चेहरा मैं भूल नहीं पाता हूं और सोचता हूं कि इस में भला तुम्हारी मैं क्या मदद कर सकता हूं.’’

फिरीज यादव की बातें सुन कर प्रिया विश्वास ने कहा, ”क्या तुम मेरी कोई मदद नहीं कर सकते. मेरी जिंदगी दोराहे पर खड़ी है, जहां सिर्फ पतझड़ ही पतझड़ नजर आती है. सच कहूं तो मुझे समझ में नहीं आता कि मैं किस पिंजरे में आ कर फंस गई हूं. मेरा क्या होगा, मैं अब जिंदगी से निराश हो चली हूं.’’

”बताओ, मैं क्या कर सकता हूं?’’ फिरीज यादव ने असहाय स्वर में कहा.

”देखो, मेरी एक सहेली है पायल, मैं उस से दिल की हर बात करती हूं. वह कह रही थी कि तुम एक डाक्टर हो, इतने बड़े अस्पताल में हो, कुछ तो रास्ता होगा?’’ प्रिया विश्वास ने आशा के भाव से कहा.

”अच्छा कौन है पायल, बात करवाना मुझ से. खैर, तुम इतना कह रही हो तो मैं कुछ योजना बनाता हूं. मेरे अनुसार अगर तुम दोनों चल सकीं तो कुछ दिनों में तुम्हारी जिंदगी बदल जाएगी.’’

”सच! भला वह कैसे?’’ उत्सुकता से प्रिया विश्वास ने कहा.

इस के बाद फिरीज यादव ने प्रिया की सहेली पायल से बात की और फिर यह सिलसिला चल निकला. एक दिन प्रिया को विश्वास में लेते हुए भविष्य के लिए कुछ करने को कहा तो प्रिया तुरंत तैयार हो गई और फिर आगे एक ऐसी योजना बनाई गई, जिसे भविष्य में 4 लोगों ने अंजाम दिया.

फिल्म अभिनेत्री पायल को किया साजिश में शामिल

15 जनवरी, 2024 दिन सोमवार की शाम फिरीज यादव रायपुर से चल कर के खरसिया स्टेशन पर उतरा और वहां से बस से धर्मजयगढ़ पहुंच गया. यहां उसे प्रिया विश्वास के कहने पर शेख मुईन ने बाइक से पहुंच कर रिसीव किया और होटल सीएम में पहले बुक किए गए रूम में ठहराया. दूसरी तरफ राजेश और प्रिया विश्वास अपने घर पर सामान्य सा दिन व्यतीत कर रहे थे. राजेश ने देर शाम तक शराब पी और खाना खा कर रात 11 बजे बिस्तर पर लेट गया.

फिरीज यादव को प्रिया की पड़ोस में रहने वाली सहेली पायल विश्वास के कहने पर बौयफ्रेंड शेख मुईन रात को फिरीज यादव को होटल से ले कर आ गया. उस समय राजेश गहरी नींद में सो रहा था. मौका देख कर फिरीज एक इंजेक्शन राजेश के सीने में लगा रहा था तभी आधी नींद में राजेश ने चीख कर एक लात पैरों के पास खड़ी प्रिया को मारी. फिरीज यादव घबरा गया, जिस से इंजेक्शन की सुई भी टेढ़ी हो गई. मगर राजेश विश्वास अभी भी नींद में था और उस पर इंजेक्शन का असर दिखाई देने लगा था.

इस के बाद सोए हुए राजेश विश्वास के पैर उस की पत्नी प्रिया विश्वास ने पकड़े, हाथों को शेख मुईन ने पकड़ लिया और राजेश के सीने में फिरीज यादव ने एनेस्थीसिया के कुल 3 इंजेक्शन एकएक कर के लगा दिए.

इस से निपट कर फिरीज यादव ने कहा, ”प्रिया, मेरे अनुमान से अब यह कभी होश में नहीं आएगा…’’

और वह रहस्यमय ढंग से मुसकराने लगा. इस पर प्रिया बोली, ”मुझे तो शक है, कहीं यह होश में आ गया तो?’’

कुछ सोचविचार करने के बाद फिर फिरीज ने कहा, ”ऐसा है तो मैं कुछ और इंजेक्शन लगा देता हूं.’’ और उस ने 3 इंजेक्शन और सीने में लगा दिए. थोड़ी ही देर में उन्होंने महसूस किया कि राजेश विश्वास की नींद में ही मौत हो गई है.

16 जनवरी, 2024 को सुबह के समय प्रिया के रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग जमा हो गए. सभी लोग अचानक राजेश की मौत पर अचंभे में पड़ गए. राजेश का भाई तुरंत राजेश को अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल प्रशासन की सूचना पर पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

इस दरमियान डाक्टरों की टीम ने सनसनीखेज खुलासा किया कि मृतक राजेश विश्वास के सीने में 6 निशान सूई से इंजेक्ट हैं. यह सुनते ही एसएचओ अमित तिवारी के कान खड़े हो गए. उन्हें लगभग 10 साल पहले हुए एक हत्याकांड की याद आ गई.

छत्तीसगढ़ के बालोद शहर में ऐसे ही हृदय के पास इंजेक्शन दे कर 2 व्यक्तियों की हत्या की गई थी, जिस का आरोपी पकड़ते पकड़ते बच निकला था. अमित तिवारी ने दृढ़ निश्चय किया कि राजेश की हत्या के मामले में तत्काल जांचपड़ताल शुरू की जाएगी, ताकि आरोपी कानून की जद से बच न सके.

एसएचओ अमित तिवारी ने तत्काल अपने उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन लिया और जांच तेज कर दी. दूसरी तरफ राजेश विश्वास के घर और शहर का माहौल गमगीन बन गया था. राजेश विश्वास लोकप्रिय शख्स था, जिस के कारण लोग और परिचित तरहतरह की बातें करने लगे थे. पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद राजेश विश्वास का शव परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए सौंप दिया.

17 जनवरी को आशीष विश्वास अध्यक्ष बंग समाज, धर्मजयगढ़ के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने थाने पहुंच कर के एसडीपीओ दीपक मिश्रा से मुलाकात की और मृतक राजेश विश्वास की संदिग्ध मृत्यु को ले कर एक ज्ञापन सौंपा और निष्पक्ष जांच कर के दोषियों को पकडऩे की गुहार लगाई.

राजेश विश्वास का मामला दीपक मिश्रा के निगाहों में था. उन्होंने एसपी (रायगढ़) सदानंद कुमार से मार्गदर्शन लिया और एसएचओ अमित तिवारी व साइबर सेल को जांच कर के आरोपियों को पकडऩे की जिम्मेदारी दे दी.

प्रिया ने उगल दिया सारा राज

राजेश विश्वास की पत्नी प्रिया से एसएचओ अमित तिवारी ने पूछताछ शुरू की और पहला सवाल किया, ”यह बताओ कि राजेश विश्वास की हत्या करने में और किस ने तुम्हारा साथ दिया है?’’

यह सुनते ही प्रिया विश्वास घबरा कर इधरउधर देखने लगी और कोई जवाब नहीं दिया.

इस पर अमित तिवारी ने उसे अलग से बुला कर कहा, ”देखो, अगर तुम से अनजाने में यह भूल हो गई है तो सच बता दो. आज तो मैं जा रहा हूं, मगर कल तुम्हें मैं हिरासत में ले लूंगा.’’

पुलिस ने प्रिया विश्वास के मोबाइल को अपने कब्जे में ले लिया और दूसरे दिन पाया कि बहुत सी जानकारियां मोबाइल से डिलीट कर दी गई हैं. साइबर क्राइम के सहयोग से जब मोबाइल की जानकारियां रिकवर की गईं तो कई ऐसी बातें सामने आ गईं, जिस से प्रिया विश्वास के फिरीज यादव से बातचीत और वाट्सऐप और सीसीटीवी के सबूतों से खुलासा होता चला गया कि प्रिया विश्वास का पति राजेश विश्वास की हत्या में हाथ है.

इस के बाद तथ्यों को सामने रखते हुए मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रिया से पूछताछ की तो आखिरकार प्रिया विश्वास टूट गई और अपना अपराध स्वीकार कर के अपना इकबालिया बयान दिया, जिस की पुलिस ने वीडियो रिकौर्डिंग भी करा ली.

प्रिया से पूछताछ के बाद फिरीज यादव को रायपुर  पुलिस की मदद से मोवा में पकड़ लिया. उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि प्रिया विश्वास के प्यार में पागल हो कर उस ने राजेश विश्वास के सीने में बेहोशी के इंजेक्शन में काम आने वाली एनेस्थीसिया का प्रयोग किया था और राजेश को मौत की नींद सुला दिया. उसे विश्वास था कि पोस्टमार्टम होते होते एनेस्थीसिया का असर खत्म हो जाएगा और उसे कोई पकड़ नहीं सकता.

राजेश विश्वास की हत्या में इस तरह प्रिया विश्वास, उस की खास सहेली छत्तीसगढ़ी फिल्म अभिनेत्री और धर्मजयगढ़ निवासी पायल विश्वास और उस के बौयफ्रेंड शेख मुईन ने साथ दिया था. पुलिस ने इन्हें भी हिरासत में ले लिया और उन के बयान दर्ज कर लिए.

19 जनवरी, 2024 को पुलिस अधिकारियों ने प्रैस कौन्फ्रेंस कर के मामले का खुलासा कर दिया. एसडीपीओ (धर्मजयगढ़) दीपक मिश्रा ने मीडिया को बताया कि आरोपियों के कब्जे से हत्या की वारदात में प्रयुक्त मोटरसाइकिल, फिरीज यादव से बस टिकट, होटल के फुटेज, इस्तेमाल किए गए ग्लव्स और सिरिंज, घटना के समय फिरीज यादव द्वारा पहने गए कपड़े, सभी के मोबाइल फोन पुलिस द्वारा जब्त कर लिए.

पूछताछ में पता चला कि वारदात को अंजाम देने के लिए मृतक की पत्नी प्रिया विश्वास, प्रेमी फिरीज यादव, फिल्म अभिनेत्री पायल विश्वास और उस के प्रेमी शेख मुईन राजा ने मिल कर योजना बनाई. योजना के तहत फिरीज यादव के रुकने की व्यवस्था करने के लिए पायल विश्वास ने नकद और फोन पे के जरिए पैसे शेख मुईन को दिए थे. उस ने धर्मजयगढ़ के होटल सीएम पार्क में अपनी आईडी से रूम बुक किया.

चारों आरोपी गिरफ्तार कर भेजे जेल

फिरीज यादव उर्फ कृष रायपुर बस से 15 जनवरी की शाम धर्मजयगढ़ पहुंचा. इस केबाद शेख मुईन से वाट्सऐप काल के जरिए बात की. फिर चारों ने 15 की रात तक राजेश की हर गतिविधि पर नजर रखी और मौका देख कर जब प्रिया ने काल की तो फिरीज यादव होटल से राजेश के घर पंहुच गया.

एसएचओ अमित तिवारी के नेतृत्व में प्रिया विश्वास और पायल विश्वास को धर्मजयगढ़ के निवास से गिरफ्तार किया गया. शेख मुईन खान पहले से भाग कर छाल में छिपा बैठा था. पुलिस टीम ने छाल हाटी रोड पर घेराबंदी कर उसे गिरफ्तार कर लिया. वारदात के बाद फिरीज यादव रायपुर आ गया था. प्रिया विश्वास की गिरफ्तारी के बाद पहले से रायपुर में उपस्थित एसडीओपी दीपक मिश्रा ने रायपुर एएसपी और क्राइम डीएसपी की निगरानी में पंडरी मोवा थाना पुलिस

की मदद से उसे हिरासत में लिया.

पुलिस की जांच में यह बात सामने आई  कि फिरीज यादव ने अपने सोशल मीडिया में स्वयं को डाक्टर बताया है. पुलिस ने चारों आरोपियों फिरीज यादव उर्फ कृष उर्फ बबलू यादव (24 साल) निवासी गोपाल भौना, जिला सारंगढ़- बिलाईगढ़ हाल मुकाम दलदल सिवनी, जिला रायपुर, शेख मुईन राजा (20 साल) निवासी बेहरा पारा, धरमजयगढ़, जिला रायगढ़, प्रिया विश्वास (24 साल) निवासी धर्मजयगढ़ जिला रायगढ़ और पायल उर्फ मोनी विश्वास (28 साल) को भादंवि की धारा 302, 201, 120 के तहत गिरफ्तार कर लिया.

चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस ने 19 जनवरी, 2024 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में पेश किया, जहां से चारों आरोपियों को पुलिस रिमांड में जिला जेल रायगढ़ भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस की जांच जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सलमा का लाल सलाम

अक्तूबर के दूसरे सप्ताह से इंदौर में 3 दिनों के लिए ग्लोबल इनवेस्टर्स मीट का आयोजन था. इस आयोजन में करीब 2500 देसी विदेशी उद्योगपति, व्यवसाई आने थे. मीट का शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करना था. इस की तैयारी युद्ध स्तर पर चल रही थी. हर उस रास्ते को सजाया गया था, जहांजहां से मेहमानों का आवागमन होने वाला था. आईजी पुलिस से ले कर सिपाही तक समयसमय पर रातदिन इन रास्तों पर गश्त करते रहते थे.

23 सितंबर को दिन के 10 बजे एरोड्रम थानाप्रभारी कन्हैयालाल दांगी इसी सिलसिले में क्षेत्र की गश्त पर थे. सुपर कारिडोर से गुजरते समय उन्होंने सर्विस रोड पर भीड़ देखी तो फौरन अपनी जीप भीड़ के पास ले गए. वहां एक 40 वर्षीय व्यक्ति का शव पड़ा था. पास ही एक बाइक भी पड़ी थी. आधा शव घास पर था तो पैरों की ओर वाला आधा हिस्सा वही गिरी पड़ी बाइक पर था. ऐसा लग रहा था जैसे दुर्घटना हुई हो.

कन्हैयालाल ने थाना एरोड्रम फोन कर के कुछ सिपाही बुला लिए. साथ ही फोरेंसिक एक्सपर्ट और पुलिस के बड़े अधिकारियों को भी सूचित कर दिया.

घटनास्थल पर आ कर लाश देखने के बाद फोरेंसिंक एक्सपर्ट ने बताया कि मृतक की मौत दुर्घटना से नहीं हुई है. लाश को घसीटने के भी निशान नहीं थे. अलबत्ता मृतक के शरीर पर चोट के निशान जरूर थे. लाश को इस तरह रख कर यह दर्शाने की कोशिश की गई थी, जैसे मृतक दुर्घटना में मरा हो. जबकि हकीकत में उस की हत्या की गई थी. मृतक के कपड़ों की तलाशी में ऐसी एक भी चीज नहीं मिली, जिस से पता चल पाता कि वह कौन था.

प्राथमिक जांच के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. हालांकि यह ब्लाइंड मर्डर था, पर गनीमत यही थी कि रोशनी की एक किरण के रूप में मृतक की बाइक मौजूद थी. बाइक के नंबर से पता लगाया जा सकता था कि मृतक कौन है.

अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी कन्हैयालाल दांगी ने मामले की जांच शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने बाइक के नंबर के आधार पर आरटीओ औफिस से बाइक मालिक का पता लगाया. वह बाइक देवास जिले के बदरका गांव निवासी सादिक पटेल के नाम पर रजिस्टर्ड थी.

पुलिस ने बदरका गांव के सादिक पटेल से संपर्क किया तो उस ने बताया कि बाइक उसी की है, पर उसे उज्जैन के गांव मलानाकलां का रहने वाला अरमान पटेल ले गया था. इस पर पुलिस ने सादिक को बताया कि अरमान पटेल की लाश इंदौर के थाना एरोड्रम क्षेत्र में मिली है. सादिक से अरमान के पिता इब्राहीम पटेल का मोबाइल नंबर मिल गया. थानाप्रभारी कन्हैयालाल ने इब्राहीम पटेल को यह दुखद सूचना दे कर इंदौर आने को कहा.

सूचना मिलते ही इब्राहीम पटेल कार से अपने परिवार के साथ इंदौर आ गए.

थानाप्रभारी कन्हैयालाल ने उन्हें अस्पताल लेजा कर लाश दिखाई तो पूरा परिवार बिलखने लगा. लाश उन के बेटे अरमान की ही थी. पुलिस ने लिखापढ़ी कर के अरमान की लाश उस के घरवालों को सौंप दी, जिसे वे उज्जैन ले गए.

पूछताछ में इब्राहीम पटेल ने यह बात साफ कर दी थी कि अरमान की किसी से रंजिश थी या नहीं, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. कन्हैयालाल दांगी ने उन से अरमान का मोबाइल नंबर ले लिया.

मामले की जांच आगे बढ़ाने के लिए कन्हैयालाल दांगी ने अरमान के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस डिटेल्स में एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर रोजाना लंबीलंबी बातें होती थीं.

उस नंबर के बारे में पता लगाया गया तो वह धार के पास स्थित गुनावदा गांव की एक महिला सलमा का निकला. अरमान की हत्या से पहले सलमा की अरमान से लंबी बातें हुई थीं. खास बात यह कि इस बातचीत के वक्त सलमा के नंबर की लोकेशन धार में थी. दांगी ने सलमा के नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई. उस की और अरमान की काल डिटेल्स में कुछ ऐसे नंबर भी मिले, जिन पर दांगी को संदेह हुआ.

जिन नंबरों पर संदेह हुआ, घटना के दिन उन की भी लोकेशन धार की ही थी. जिन नंबरों पर शक था, कन्हैयालाल दांगी ने उन नंबरों की सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों से उन के धारकोें के नामपते निकलवाए. उन में 2 नंबर अल्लाहनूर और अमजद के थे, एक रईस का और एक देवीलाल कुमावत का. इन में अल्लाहनूर और अमजद के पिता का नाम मुराद और पता एक ही था. इस का मतलब वे दोनों सगे भाई थे.

चूंकि ये सब लोग धार के ही रहने वाले थे, इसलिए इमरान की हत्या का शक इन्हीं लोगों पर गया. दांगी ने अल्लाहनूर, अमजद, आई एफ रईस और देवीलाल कुमावत तक पहुंचने के लिए एक पुलिस टीम गठित की, जिस में सबइंसपेक्टर पवार, सिपाही जीतू सरदार, कमलेश रविंद्र और दीनदयाल को शामिल किया गया.

इस पुलिस टीम को सब के पते दे कर धार रवाना कर दिया गया. पुलिस टीम ने मुराद के घर पर छापा मारा तो उस का 23 वर्षीय बेटा अल्लाहनूर घर पर ही मिल गया. जबकि अमजद फरार था. रईस अल्लाहनूर के मामा का लड़का था, वह भी घर पर ही मिल गया. पुलिस ने पूछताछ के लिए दोनों को हिरासत में ले लिया.

देवीलाल गांव कोटा मिडोला, थाना सरदारपुर जिला धार का रहने वाला था. पुलिस उस के घर गई तो वह भी फरार मिला. इस पर पुलिस टीम रईस और अल्लाहनूर को ले कर इंदौर लौट आई. थाने ला कर जब दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने कहा कि वे लोग इस बारे में कुछ नहीं जानते.

लेकिन जब पुलिस ने उन के साथ सख्ती बरतते हुए उन्हें बताया कि उन के मोबाइल की काल डिटेल्स से पता चल गया है कि उन दोनों के अलावा उन के साथी अमजद और देवीलाल के नंबर न केवल अरमान की काल डिटेल्स में पाए गए हैं, बल्कि घटना के समय उन के नंबरों की लोकेशन भी इंदौर में थी तो वे टूट गए.

अल्लाहनूर और रईस से पूछताछ के बाद पता चला कि यह मामला प्रेमप्रसंग का था. इस के पीछे की जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी.

करीब 5 साल पहले सन 2010 में देवास के पास एक गांव में शादी समारोह था. इस शादी में मुराद के घर वाले भी शामिल हुए और जिला उज्जैन के गांव मलानाकलां के इब्राहीम पटेल के घर वाले भी. यहीं पर अरमान की मुलाकात धार निवासी मुराद की बेटी सलमा से हुई.

अरमान और सलमा दोनों ही न केवल शादीशुदा थे, बल्कि मांबाप भी थे. अरमान के 4 बच्चे थे तो सलमा 2 बच्चों की मां थी. अरमान लंबे कद का आकर्षक व्यक्तित्व वाला आदमी था. सलमा भी कम खूबसूरत नहीं थी. सलमा और अरमान को शादी के समारोह में 4 दिन रुकना पड़ा. इन 4 दिनों में वे एकदूसरे से खूब घुलमिल गए.

शादी समारोह के बाद अरमान अपने गांव मलानाकलां चला गया और सलमा जिला धार स्थित अपनी ससुराल गुनावदा. सलमा का मायका धार में था. समारोह के दौरान ही सलमा और अरमान ने अपने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए थे. इस के बाद दोनों के बीच मोबाइल पर बात करने का सिलसिला जुड़ गया.

जब सलमा का पति अंसार पटेल काम पर चला जाता था और बच्चे स्कूल तो फ्री हो कर वह अरमान से बात करती थी. लंबीलंबी बातें होने से दोनों धीरेधीरे एकदूसरे से खुलने लगे. सलमा को पति की वजह से एहतियात बरतनी पड़ती थी, इसलिए उस ने अरमान से कह रखा था कि अगर उसे खतरा महसूस हुआ तो वह कभी भी मोबाइल स्विच्ड औफ कर सकती है.

अगर बात करतेकरते कभी खतरा महसूस होता था तो सलमा फोन काट देती थी. इस के बाद अरमान दोबारा फोन नहीं मिलाता था. यह बात दोनों के बीच तय थी.

एक दिन अरमान ने फोन कर के सलमा से कहा कि वह धार आ रहा है. वह भी मायके जाने की बात कह कर गुनावदा से धार आ जाए. अरमान ने उस से यह भी कहा था कि वह धार के जिस होटल में ठहरेगा, फोन कर के उसे बता देगा. वह बुरका पहन कर वहां आ जाए, ताकि किसी की नजर न पड़े.

धार पहुंचने के बाद अरमान ने फोन कर के सलमा को सूचना दे दी कि वह कौन से होटल के किस कमरे में ठहरा है. अरमान का गांव मलानाकलां धार से करीब 125 किलोमीटर दूर था. वह बाइक से धार पहुंचा था. उस का फोन मिलने पर सलमा बस पकड़ कर गुनावदा से 20-22 किलोमीटर दूर धार आ गई. वह पति से मायके जाने की बात कह कर आई थी.

धार आ कर उस ने बुरका पहना और सीधे होटल पहुंच गई. वहां दोनों ने खुल कर अपने अरमान पूरे किए. इस के बाद सलमा ने फिर बुरका पहना और अपने मायके चली गई. मायके में थोड़ी देर रुक कर वह अपनी ससुराल गुनावदा चली गई.

इस के बाद बुरके की आड़ में यह सिलसिला चल पड़ा. जब भी मन होता अरमान धार जा कर उसी होटल में ठहर जाता और सलमा मायके जाने के बहाने वहां आ जाती. मौजमस्ती के बाद दोनों अपनीअपनी राह चले जाते.

सब ठीकठाक चल रहा था कि एक बार सलमा का पति अंसार किसी काम से जल्दी घर आ गया. सलमा उस वक्त फोन पर अरमान से बातें कर रही थी. उस की बातों के कुछ आपत्तिजनक अंश अंसार ने सुन लिए.

सलमा ने अंसार को सामने देखा तो जल्दी से फोन काट दिया. उस के चेहरे पर घबराहट साफ नजर आ रही थी. अंसार समझ तो बहुत कुछ गया था, पर बोला कुछ नहीं. अलबत्ता उस के मन में शक की बुनियाद पड़ गई.

अब की बार सलमा जब मायके जाने के बहाने धार गई तो उस के जाने के घंटा भर बाद अंसार भी बाइक ले कर घर से निकल गया. वह सीधा अपनी ससुराल पहुंचा, लेकिन सलमा वहां नहीं थी. अंसार ने किसी से कुछ कहासुना नहीं. वह एकडेढ़ घंटा ससुराल में रुक कर अपने घर लौट आया. तब तक सलमा लौट आई थी.

अंसार ने उस से पूछा, ‘‘हो आईं मायके?’’

‘‘हां, वहां सब ठीकठाक हैं. तुम्हें पूछ रहे थे.’’ सलमा ने कहा तो अंसार के तनबदन में आग लग गई. इस के बावजूद उस ने सलमा से न कुछ कहा और न पूछा. अलबत्ता वह समझ जरूर गया कि सलमा कुछ गड़बड़ घोटाला कर रही है.

करीब 15 दिनों बाद सलमा जब फिर मायके जाने के बहाने धार के लिए रवाना हुई तो पहले से तैयार अंसार के एक दोस्त ने फोन कर के उसे बता दिया कि सलमा बस से निकल गई है. इस पर अंसार ने उस दोस्त से कहा कि वह सीधा धार बस स्टैंड पहुंचे, वह वहीं आ रहा है.

दोनों दोस्त धार बस स्टैंड पहुंच गए. इस के थोड़ी देर बाद गुनावदा की बस आ गई. अंसार और उस का दोस्त दूर खड़े देख रहे थे. तभी बुरका पहने चेहरा ढंके एक महिला बस से उतरी. अंसार ने बुरके के डिजाइन से पहचान लिया कि वह सलमा ही है. अंसार और उस के दोस्त ने थोड़ा फासला रख कर सलमा का पीछा किया. वे उस समय आश्चर्य में रह गए, जब सलमा मायके जाने के बजाय एक होटल में चली गई.

वे दोनों भी उस के पीछे पीछे होटल पहुंच गए. अंसार ने अपने दोस्त को अंदर भेज दिया और खुद बाहर ही खड़ा रहा. दोस्त ने लौट कर बताया कि होटल के एक कमरे के बाहर एक गोराचिट्टा आदमी खड़ा था, सलमा उस के साथ कमरे में चली गई. इस के बाद दोनों उस कमरे में गए.

उन्होंने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से एक व्यक्ति की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’ इस पर अंसार के दोस्त ने कहा, ‘‘साहब, नाश्ता.’’

अरमान ने दरवाजा खोला तो दोनों अंदर घुस गए. अरमान ने उन्हें अंदर आया देख कहा कि यह क्या बदतमीजी है.

अंसार जो देखना चाहता था, देख चुका था. सलमा का बुरका और ओढ़नी कमरे में पड़ी टेबल पर रखे थे. वह कमरे में डबल बेड पर बैठी थी. अंसार को देख कर उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं. अरमान चुपचाप सिर झुकाए खड़ा था. वह समझ गया था कि आगंतुक कौन है. न तो अरमान के मुंह से एक शब्द निकला और न ही सलमा के मुंह से. दोनों रंगेहाथ पकड़े गए थे.

अंसार ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘आज से हमारे सारे रिश्ते खत्म हो गए. मैं अभी इसी समय तुम्हें तलाक देता हूं, तलाक तलाक तलाक.’’

अपनी बात कह कर अंसार तेजी से कमरे के बाहर चला गया. उस ने सिर्फ कहा ही नहीं, बल्कि सलमा को अपने दिल से, अपनी जिंदगी से निकालने का फैसला भी कर लिया. उस ने घर आते ही सलमा का सारा सामान पैक किया और बच्चों को ले कर उस के मायके छोड़ आया. यह देख कर सलमा के अब्बा और भाई सन्न रह गए. सलमा कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी.

बाद में मुराद अपने बेटे अल्लाहनूर और अमजद को ले कर अंसार के गांव गुनावदा गए. उन्होंने उस से सलमा को इस तरह छोड़ आने का कारण पूछा तो अंसार गुस्से में बोला, ‘‘बेहतर होगा, यह बात आप अपनी बेटी से ही पूछें. बस इतना समझ लीजिए कि अब मैं उस औरत को बिलकुल बरदाश्त नहीं कर सकता.’’

‘‘हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं.’’ मुराद ने कहा तो अंसार बोला, ‘‘आप की बेटी के उज्जैन के अरमान से नाजायज संबंध हैं, मैं ने होटल में दोनों को रंगेहाथों पकड़ा है. ऐसी बदचलन औरत से मैं अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता.’’

जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो आदमी क्या कर सकता है? मुराद अपनी बेइज्जती को बरदाश्त कर के बेटों के साथ धार लौट गए. घर लौट कर उन्होंने सलमा को खूब लताड़ा. इस के बाद बाप होने के नाते मुराद ने काफी कोशिश की कि अंसार सलमा को ले जाए. लेकिन वह पत्नी को किसी भी कीमत पर साथ ले जाने को तैयार नहीं हुआ.

मजबूरी में मुराद को बेटी को अपने ही घर में पनाह देनी पड़ी, पर इस हिदायत के साथ कि आइंदा वह कोई भी ऐसीवैसी हरकत नहीं करेगी. अगर उस ने कुछ भी ऐसावैसा किया तो वे उसे घर से निकाल देंगे.

समय के साथ सब कुछ सामान्य हो गया. देखते देखते एक वर्ष बीत गया. इस बीच सलमा और अरमान का संपर्क चूंकि पूरी तरह टूटा रहा, इसलिए बात आई गई हो गई. चूंकि दोनों के ही परिवार इज्जतदार थे, सो इस नाजायज रिश्ते की बात दब सी गई.

कहावत है कि चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए. इस मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ. अरमान ने एक मोबाइल खरीद कर अपने एक परिचित के माध्यम से सलमा के पास भिजवा दिया. सलमा ने उस के भेजे मोबाइल को घर वालों से छिपा कर रखा. वह उस फोन की हिफाजत अपनी जान से भी ज्यादा करती थी.

घर वालों की वजह से सलमा और अरमान के बीच बातचीत तो कम ही हो पाती थी, पर मैसेजबाजी खूब होती थी. अरमान टाइल्स कटिंग और फिटिंग का कुशल कारीगर था. इस काम से उसे अच्छी आय होती थी. इस बीच सलमा चूंकि घर से बाहर आनेजाने लगी थी, इसलिए होटलों में फिर से दोनों का मिलना होने लगा था.

सब कुछ ठीक चल रहा था. अरमान और सलमा फिर से मिलने लगे हैं, इस बात की किसी को भनक तक नहीं थी. लेकिन यह बात छिप नहीं सकी. हुआ यह कि एक दिन सलमा बाथरूम में नहाने गई तो मोबाइल बेड पर रखा छोड़ गई.

इत्तफाक से तभी अल्लाहनूर घर आ गया. वह किसी काम से सलमा के कमरे में गया तो बेड पर मोबाइल रखा देख चौंका. उसी वक्त मोबाइल पर एक मैसेज आ गया. मैसेज अरमान का था. उस ने लिखा था कि वह 12-1 बजे के आसपास आएगा. मैसेज देखने के बाद अल्लाहनूर ने मोबाइल उसी जगह रख दिया. यह 22 सितंबर, 2014 की बात है.

इस से यह बात खुल गई कि सलमा के पास मोबाइल है और वह अभी भी अरमान के संपर्क में है. अल्लाहनूर ने सलमा के पास मोबाइल होने और उसे अरमान का मैसेज आने की बात अमजद को बताई. अमजद ने सुना तो उस के भी तनबदन में आग लग गई.

दोनों भाइयों ने मिल कर तय किया कि जिस अरमान की वजह से उन की बहन का घर टूटा है और जो अब भी उसे बरबादी की ओर ले जा रहा है, उसे सबक जरूर सिखाएंगे. लेकिन दोनों ने इस मुद्दे पर जब गंभीरता से बात की तो उन्हें लगा कि इस काम के लिए एकदो साथी और होने चाहिए.

इस के लिए अल्लाहनूर और अमजद ने अपने मामा इशाक पटेल के बेटे रईस से बात की. रईस भी उन दोनों का हमउम्र था. अल्लाहनूर और अमजद ने परिवार की इज्जत का वास्ता दे कर रईस को सारी बातें बता दीं. शुरू में तो रईस डर रहा था, लेकिन परिवार की इज्जत के नाम पर वह साथ देने को तैयार हो गया. लेकिन इस शर्त पर कि अरमान को जान से नहीं मारा जाएगा.

रईस का दोस्त था देवीलाल कुमावत. वह गांव कोटा मिडोला का रहने वाला था. रईस ने उस से बात की तो दोस्ती के नाम पर वह भी साथ देने के लिए तैयार हो गया. इस के बाद चारों ने मिल कर योजना बनाई. तय हुआ कि अल्लाहनूर और अमजद फोन पर बात कर अरमान से मिलने की बात करेंगे.

इस के बाद लेबड़ गांव के थोड़ा पहले रास्ते के किनारे खड़े हो कर उस के लौटने का इंतजार करेंगे. रईस और देवीलाल छिप कर खड़े हो जाएंगे. जब अरमान आएगा तो दोनों बातचीत के बहाने उसे रोक लेंगे. सब मिल कर उसे समझाएंगे और थोड़ा धमकाएंगे भी. जिस रास्ते पर मिलने की बात हुई थी, वह इंदौर से धार की ओर आने का शार्टकट रास्ता था.

योजनानुसार 23 सितंबर को अल्लाहनूर और अमजद लेबड़ गांव से थोड़ा पहले रास्ते के किनारे खड़े हो कर अरमान के आने का इंतजार करने लगे. रईस और देवीलाल छिप कर खड़े हो गए. दिन के करीब एक बजे अरमान बाइक से आता दिखाई दिया. उस वक्त दोपहर का समय था और उस रास्ते पर आवाजाही बिलकुल नहीं थी. जब अरमान पास आया तो अल्लाहनूर और अमजद ने बात करने के बहाने उसे रोक लिया.

अरमान के रुकते ही अल्लाहनूर बोला, ‘‘अरमान भाई, हम आप से जरूरी बात करना चाहते हैं. यहां सड़क पर बात करना ठीक नहीं है. अगर आप को परेशानी न हो तो आप हमारे साथ चलिए, पास ही हमारा खेत है, वहीं बैठ कर आराम से बात करेंगे.’’

अरमान को किसी तरह का कोई शक तो था नहीं, सो उस ने अल्लाहनूर को अपनी बाइक पर बैठा लिया. वह उसे रास्ता बताने लगा. अमजद इन दोनों के साथ अपनी अलग बाइक पर चल रहा था.

रईस और देवीलाल के पास भी बाइक थी. वे दोनों कुछ फासले से उन के पीछे चल दिए. करीब 10 किलोमीटर चलने के बाद वे एक खेत में रुके, जहां एक झोपड़ी बनी हुई थी. जब अल्लाहनूर, अमजद और अरमान वहां पहुंचे तो पीछे से रईस और देवीलाल भी आ गए. इस के बाद चारों ने मिल कर अरमान को दबोच लिया.

वहां दूरदूर तक इन पांचों के अलावा कोई नहीं था. इन लोगों ने अरमान को एक पेड़ से बांध कर उस के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया और फिर सब ने लातघूंसों और बेल्ट से उस की जम कर पिटाई की. पिटते पिटते अरमान बेहोश हो गया. अल्लाहनूर, अमजद, रईस और देवीलाल जब उसे पीटते पीटते थक गए तो वहीं बैठ कर अपनी थकान उतारने लगे.

थोड़ी देर बाद अल्लाहनूर ने अरमान को झंझोड़ कर जगाना चाहा, लेकिन वह मर चुका था. यह देख कर चारों घबरा गए. जल्दबाजी में कुछ नहीं सूझा तो वे उसे खोल कर घसीटते हुए झोपड़े में ले गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे करें तो क्या करें, क्योंकि वह खेत उन के एक रिश्तेदार का था. लाश को वहां छोड़ना ठीक नहीं था. इसलिए सब ने मिल कर तय किया कि रात हो जाने पर लाश को कहीं दूर फेंक आएंगे.

रात 8 बजे के बाद इन लोगों ने अरमान की लाश को जैसेतैसे बाइक पर बीच में बिठाया और अपनेअपने चेहरे पर रूमाल बांध लिए. उन्होंने अरमान की लाश के मुंह पर भी रूमाल बांध दिया. एक बाइक देवीलाल ने तो दूसरी रईस ने संभाली. अल्लाहनूर और अमजद ने अरमान की बाइक पर बीच में उस की लाश रख ली.

इस के बाद ये लोग वहां से करीब 60 किलोमीटर दूर इंदौर के एरोड्रम थानाक्षेत्र में बने 8 लेन मार्ग सुपर कारीडोर तक आए. तब तक रात गहरा गई थी. इन लोगों ने अरमान की लाश को एक जगह सुपर कारीडोर की सर्विस रोड पर घास पर लिटा दिया. उस की बाइक भी इन्होंने वहीं डाल कर, उस का एक पैर बाइक पर इस तरह रख दिया जैसे हादसा हुआ हो और उसी की वजह से उस की मौत हो गई हो.

23 सितंबर को थानाप्रभारी श्री दांगी ने गश्त के वक्त अरमान की लाश देखी थी. पोस्टमार्टम में पता चला कि अरमान की मौत बहुत ज्यादा मारपीट के कारण हुई थी. अल्लाहनूर और रईस पकड़े जा चुके थे. अगले 24 घंटे में देवीलाल भी पकड़ा गया.

अल्लाहनूर ने रोते हुए अपने बयान में बताया कि उन लोगों ने अरमान को कई बार समझाया था कि वह सलमा से मिलना छोड़ दे. उन्होंने अरमान की पत्नी को भी उस की करतूत बता दी थी. पर वह बाज नहीं आ रहा था. उन लोगों का इरादा उसे जान से मारने का बिलकुल नहीं था. देवीलाल ने भी यही बयान दिया.

विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने सभी अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस तरह सलमा और अरमान के नाजायज रिश्ते की वजह से दो हंसते खेलते परिवार बरबाद हो गए. अमजद अभी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है. पुलिस उसे खोज रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

बहन के प्रेमी के साथ मिल कर रची अपने ही अपहरण की साजिश

बात 12 दिसंबर, 2018 की है. भोपाल के ऐशबाग के टीआई अजय नायर रात 8 बजे के करीब अपने औफिस में थे तभी ऐशबाग के रहने वाले शील कुमार अपनी 24 वर्षीय बेटी रुचिका चौबे के साथ थाने पहुंचे.

उन्होंने बताया कि उन का 19 वर्षीय बेटा आयुष शाम को किसी से मिलने एक कोचिंग की तरफ घर से निकला था. लेकिन इस के कुछ देर बाद ही बेटे के मोबाइल फोन से किसी ने काल कर के कहा कि आयुष उस के कब्जे में है. बेटे को छोड़ने के बदले उस ने एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. शील कुमार ने बेटे के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर उसे बरामद करने की मांग की.

मामला अपहरण का था, इसलिए टीआई ने उसी समय सूचना एसपी राहुल लोढ़ा व एडीशनल एसपी संजय साहू तथा जहांगीरबाद सीएसपी सलीम खान को भी दे दी. सूचना मिलते ही दोनों पुलिस अधिकारी ऐशबाग थाने पहुंच गए.

शील कुमार अपनी बेटी के साथ थाने में ही मौजूद थे. एसपी राहुल लोढा ने बाप बेटी दोनों से गहन पूछताछ की. पर उन की कहानी एसपी साहब के गले नहीं उतरी. इस का कारण यह था कि शील कुमार एक निजी बस कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करते थे. उन का वेतन इतना कम था कि घर भी ठीक से नहीं चल सकता था. जबकि उन की बेटी रुचिका एक बीमा कंपनी में 14 हजार रुपए महीने की सैलरी पर नौकरी कर रही थी.

जाहिर है, कोई बदमाश एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए ऐसे साधारण परिवार के बेटे का अपहरण नहीं करेगा. बाप बेटी ने यह भी बताया कि आयुष के घर से निकलने के कुछ ही घंटे बाद बदमाश ने फिरौती की रकम के लिए फोन किया था. जबकि बदमाश किसी का अपहरण कर के 2-4 दिन बाद फिरौती की मांग तब करते हैं जब पीडि़त परिवार टूट चुका होता है.

फिरौती के लिए शील कुमार के घर जो फोन काल आई थी वह भी आयुष के फोन से की गई थी. बाद में फोन स्विच्ड औफ कर दिया गया था. बहरहाल, पुलिस ने शील कुमार और उन की बेटी से जरूरी जानकारी लेने के बाद आयुष के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हें यह आश्वासन दे कर घर भेज दिया कि पुलिस जल्द ही आयुष को तलाश लेगी.

इस के बाद एसपी के निर्देशन में थानापुलिस आयुष को तलाशने लगी. पुलिस ने आयुष के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया था. इस के अलावा पुलिस ने जांच कर यह भी पता लगा लिया कि जिस समय आयुष के फोन से फिरौती की काल की गई, उस समय उस की लोकेशन बीना शहर में थी.

इस के बाद फोन बंद कर दिया गया था. कोई और रास्ता मिलते न देख पुलिस अपहर्त्ताओं के फोन आने का इंतजार करने लगी. पुलिस ने शील कुमार को समझा दिया था कि उन्हें फोन पर अपहर्त्ताओं से कैसे बात करनी है.

एक तरफ पुलिस आयुष का पता लगाने में जुटी हुई थी, वहीं दूसरी ओर उस पर आयुष को सुरक्षित बरामद करने का दबाव बढ़ता जा रहा था. आयुष की बहन रुचिका और उसी क्षेत्र में रहने वाला उन के परिवार का पुराना परिचित गौरव जैन थानाप्रभारी से मिलने रोज थाने आते और आयुष के बारे में जल्द पता लगाने की मांग करते थे.

अपहर्त्ता ने बताई जगह

पुलिस ने अपने मुखबिरों का जाल फैला रखा था. आयुष के साथ पढ़ाई कर रहे उस के दोस्तों से भी आयुष के बारे में पूछताछ की कि उस की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी या किसी लड़की के साथ प्यार का चक्कर तो नहीं था. दोस्तों ने दोनों ही बातों से इनकार किया. पुलिस को कोई ऐसा ठोस सुराग हाथ नहीं मिला, जिस से जांच की काररवाई आगे बढ़ पाती.

उधर समय बीतने के साथ अपहर्त्ता बारबार फोन कर के आयुष के परिवार पर जल्द से जल्द फिरौती की रकम पहुंचाने का दबाव बना रहे थे. लेकिन समस्या यह थी कि वह हर बार नई जगह से फोन करते थे. 24 दिसंबर को एक बदमाश ने आयुष के पिता को फोन कर के धमकी दी और कहा कि वह कल यानी 25 दिसंबर को दोपहर में सीहोर के क्रिसेन वाटर पार्क पर पैसा ले कर पहुंच जाए. पैसे मिलने के बाद आयुष को रिहा कर दिया जाएगा.

शील कुमार ने यह बात एडीशनल एसपी संजय साहु और टीआई अजय नायर को बता दी. एसपी ने इस बात से अनुमान लगा लिया कि बदमाश बहुत चालाक हैं. क्योंकि 25 दिसंबर को प्रदेश में नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह था और आला अधिकारियों को उस समारोह में व्यस्त रहना था.

लेकिन एडीशनल एसपी संजय साहू यह मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने टीआई के अलावा अन्य पुलिस टीमों को सादा कपड़ों में सुबह से ही सिहोर के क्रिसेन वाटर पार्क में तैनात कर दिया ताकि अपहर्त्ता किसी भी हाल में बच न पाएं.

पुलिस को यह पता लग गया था कि 24 दिसंबर को अपहर्त्ता के फोन की लोकेशन विदिशा जिले के गंज वासोदा में थी. बहरहाल पुलिस ने सुबह से ही क्रिसेन वाटर पार्क में घेराबंदी कर दी और शपथ ग्रहण कार्यक्रम से फुरसत होते ही एडीशनल एसपी भी सादा कपड़ों में वहां जा पहुंचे. पुलिस वहां दिनभर नजरें गड़ाए रही लेकिन शील कुमार से रुपयों से भरा बैग लेने कोई नहीं पहुंचा, इसलिए पुलिस टीम निराश हो कर शाम को वापस लौट आई. लेकिन इस बीच टीआई अजय नायर को आशा की एक किरण नजर आने लगी थी.

हुआ यूं कि घर वापस आने के कुछ देर बाद ही शील कुमार के पास अपहर्त्ता की तरफ से फोन आया जिस में उस ने पुलिस को साथ लाने के लिए उन्हें भद्दीभद्दी गालियां दीं. साथ ही धमकी भी दी कि आगे से पुलिस को साथ ले कर आए तो आयुष की लाश तुम्हारे घर भेज दी जाएगी. यह सुन कर शील कुमार घबरा गए. उन्होंने बदमाश की इस नई धमकी के बारे में टीआई अजय नायर को भी बता दिया.

पुलिस को मिली जांच की सही दिशा

अब तक पुलिस बाहरी लोगों पर ही शक कर रही थी. अब वह समझ गई कि आयुष के परिवार के साथ ऐसा व्यक्ति मिला हुआ है जो उन की सारी गतिविधियों की जानकारी बदमाशों तक पहुंचा रहा है. इसीलिए टीआई अजय नायर ने शील कुमार से पूछा कि ‘‘आप के अलावा आप के परिवार में या फिर जानपहचान वालों में से ऐसा कौन व्यक्ति है जिसे पुलिस की एकएक गतिविधि की जानकारी मिल रही है.’’

‘‘सर, मैं अपनी बेटी रुचिका के अलावा और किसी को कुछ नहीं बताता.’’ शील कुमार बोले. टीआई ने सोचा कि सगी बहन भाई का अपहरण करने वाले का साथ क्यों देगी.

एएसपी संजय साहू के निर्देश पर टीआई नायर ने रुचिका चौबे की काल डिटेल्स निकलवाई. साथ ही रुचिका के बारे में और भी जांच कराई. पता चला कि मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखने वाली रुचिका की न केवल जीवनशैली हाईप्रोफाइल थी, बल्कि उस के सपने भी ऊंचे थे.

पुलिस को यह खबर भी लग गई थी रुचिका का एक बौयफ्रैंड गौरव जैन भी उस आयुष के बारे में काफी रुचि ले रहा था. गौरव जैन रुचिका का पड़ोसी था और दवा कारोबारी था. ऐसे में पुलिस के समाने शक करने के लिए 2 नाम थे. पहला रुचिका जो खुद आयुष की सगी बड़ी बहन थी और दूसरा गौरव जैन जो शहर का बड़ा थोक दवा कारोबारी था.

पुलिस ने रुचिका और गौरव जैन के फोन नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो एएसपी साहू के चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. उन्होंने देखा कि जितनी बार भी अपहर्त्ता ने शील कुमार के नंबर पर फिरौती के लिए फोन किया था, उस के कुछ देर पहले और कुछ देर बाद रुचिका ने गौरव से फोन पर बात की थी.

घर से ही खेला जा रहा था खेल

इतना ही नहीं रुचिका से बात होने के ठीक बाद गौरव ने हर बार एक दूसरे फोन नंबर पर बात की थी. यह संयोगवश नहीं हो सकता था. क्योंकि संयोग एक बार होता है, बारबार नहीं. पुलिस ने यह जानकारी भी जुटा ली कि रुचिका से बात करने के बाद गौरव जिस फोन नंबर पर बात करता था, वह उस की दुकान पर काम करने वाले नौकर अतुल का है. पुलिस टीम ने अतुल के बारे में पता कराया तो मालूम हुआ कि वह उसी दिन से छुट््टी ले कर गायब है, जिस दिन आयुष लापता हुआ था.

इस जानकारी के बाद एएसपी संजय साहू के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. इसलिए उन्होंने पुलिस टीम को गौरव को हिरासत में लेने के निर्देश दे दिए. पता चला कि गौरव भी भोपाल में नहीं है. उस के मोबाइल की लोकेशन आगरा की आ रही थी. इसलिए ऐशबाग थाने की टीम आगरा रवाना हो गई.

लेकिन इस से पहले कि टीम आगरा पहुंचती, गौरव के मोबाइल की लोकेशन आगरा से चल कर भोपाल की तरफ बढ़ने लगी. लोकेशन बदलने के समयानुसार पुलिस ने हिसाब लगाया कि गौरव तमिलनाडु एक्सप्रेस में सवार हो कर भोपाल आ रहा है. इसलिए ट्रेन के भोपाल पहुंचने से पहले ही पुलिस की टीम ने वहां पहुंच कर टे्रन से उतरे गौरव को हिरासत में ले लिया.

जाहिर है इस बात की उम्मीद गौरव के अलावा किसी और को भी नहीं थी. जैसे ही गौरव को पूछताछ के लिए पुलिस हिरासत में थाने लाया गया. उस के पकड़े जाने की बात सुन कर रुचिका भी थाने पहुंच गई. यह देख कर एएसपी श्री साहू समझ गए कि पुलिस ने सही जगह निशाना साधा है.

गौरव आदतन अपराधी तो था नहीं, जो पुलिस को चकमा देने की कोशिश करता, इसलिए जरा सी पूछताछ में ही वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि अपनी प्रेमिका रुचिका की आर्थिक मदद करने के लिए उस ने आयुष के अपहरण का नाटक रचा था, जिस में रुचिका के साथ खुद आयुष भी शामिल था. गौरव ने यह भी बताया कि इस काम में उस ने अपने नौकर अतुल को भी शामिल कर रखा था.

गौरव ने पुलिस को यह भी बता दिया कि कल तक आयुष और अतुल भी उस के साथ आगरा में थे. वहां से तीनों साथ ही लौटे थे. आयुष अलग डिब्बे में सवार था. आयुष भोपाल स्टेशन पर उतर कर दूसरी ट्रेन में सवार हो कर इंदौर चला गया. जबकि अतुल उस के साथ ही था. चूंकि पुलिस अतुल को नहीं पहचानती थी इसलिए जैसे ही स्टेशन पर पुलिस ने गौरव को दबोचा उस से चंद कदम पीछे चल रहा अतुल वहां से गायब हो गया.

अब आगे की काररवाई से पहले आयुष को गिरफ्तार करना जरूरी था. पुलिस ने गौरव से यह जानकारी ले ली कि आयुष इंदौर में कहां ठहरेगा. इस के बाद भोपाल पुलिस ने यह जानकारी इंदौर पुलिस को दे दी. इंदौर पुलिस ने आयुष को गिरफ्तार कर लिया और उसे लाने के लिए भोपाल पुलिस की एक टीम इंदौर के लिए रवाना हो गई.

भोपाल पुलिस टीम आयुष को इंदौर से ले कर आ गई. पूरे मामले में रुचिका का नाम पहले ही सामने आ चुका था. इसलिए पुलिस ने रुचिका को भी गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों की गिरफ्तारी के बाद आयुष के अपहरण की सनसनीखेज कहानी सामने आई.

दवाइयों का थोक कारोबारी गौरव जैन भी ऐशबाग थाना इलाके की उसी गली में रहता था जिस में रुचिका अपने मातापिता और छोटे भाई आयुष के साथ रहती थी. सीमित आय वाले परिवार के पास जो कुछ उल्लेखनीय था वह केवल रुचिका की सुंदरता और गरीबी में भी अच्छे तरीके से रहने का उस का अंदाज था.

रुचिका के सपने भी बड़े थे. वह अपने भाई को बड़ा आदमी बनाना चाहती थी. इसलिए स्वयं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने एक निजी बीमा कंपनी में नौकरी कर ली थी. वैसे रुचिका के पिता मूलरूप से जबलपुर के रहने वाले थे.

संयोग से पड़ोस में रहने वाले गौरव जैन का अपनी दुकान पर जाने और रुचिका का औफिस के लिए निकलने का समय एक ही था, सो गली में दोनों का अकसर रोज ही आमनासामना हो जाता था. जिस के चलते पहले आंखों से आंखें टकराईं फिर एकदूसरे को देख कर चेहरे पर मुसकराहटें आनी शुरू हो गईं.

गौरव और रुचिका की प्रेम कहानी

गौरव का दिल रुचिका पर आ गया था. दूसरी ओर रुचिका के मन को भी गौरव भा गया था. आखिर रुचिका ने जल्द ही उस के बढ़े कदमों को दिल तक आने का रास्ता दे दिया. दोनों में प्यार हुआ तो पहले घर से बाहर मुलाकातों का सिलसिला चला, फिर गौरव ने रुचिका के परिवार वालों से भी मिलना शुरू कर दिया.

बाद में गौरव रुचिका के घर भी आनेजाने लगा. रुचिका के परिवार की आर्थिक स्थिति गौरव से छिपी नहीं थी. जबकि गौरव की जेब में कभी पैसों की कमी नहीं रहती थी. वह समयसमय पर रुचिका के कहने पर उस के परिवार की आर्थिक मदद करने लगा.

जाहिर सी बात है ऐसे मददगार के लिए आदमी खुद अपनी आंखें बंद कर लेता है, यह समझते हुए भी कि जवान खूबसूरत बेटी का दोस्त बिना किसी मतलब के यूं मेहरबान नहीं होता. रुचिका के मातापिता सब कुछ जान कर अंजान बने रहे. जिस से रुचिका और गौरव का प्यार दिनबदिन गहराता गया.

इतना ही नहीं गौरव रुचिका को अपने साथ ले कर घूमने जाता तो लौटने पर उस की मां भी बेटी से कोई सवाल नहीं करती. क्योंकि गौरव ने उस समय इस परिवार की मदद की थी जब पैसों के अभाव में रुचिका के छोटे भाई आयुष का दाखिला अटकता दिखाई दे रहा था.

आयुष अब बड़ा हो चुका था. वह अच्छी तरह से जानता था कि गौरव केवल उस की बहन से दोस्ती रखने के लिए ही परिवार की मदद करता है. यह जानने के बाद भी वह गौरव को पसंद करता था. इतना ही नहीं कई बार तो वह गौरव और बहन के साथ घूमने भी चला जाता था. जब उसे लगता कि उसे दोनों के साथ नहीं होना चाहिए तो वह किसी बहाने से दाएं बाएं हो जाता था. इसलिए धीरेधीरे रुचिका और गौरव का प्यार इस हद तक पहुंच गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

रुचिका के परिवार को तो इस शादी से कोई ऐतराज नहीं था. गौरव की जिद के चलते उस के परिवार वाले भी उन दोनों के विवाह के लिए मन बना चुके थे. गौरव रुचिका की लगातार आर्थिक मदद कर रहा था. लेकिन रुचिका की जरूरतें गौरव की मदद से कहीं बड़ी थीं. जरूरतें पूरी करने के लिए रुचिका ने विभिन्न बैंकों से बड़ा कर्ज ले लिया था. वह सोचती थी कि कुछ समय बाद जब गौरव से उस की शादी हो जाएगी तो गौरव उस का कर्ज चुका देगा.

 पिता ने शराब के नशे में बिगाड़ा खेल

लेकिन इसी बीच हालात ने पलटा खाया. हुआ यह कि करीब 2 साल पहले गौरव के घर में आयोजित एक पारिवारिक कार्यक्रम में रुचिका के परिवार को भी आमंत्रित किया गया. रुचिका अपनी मां और भाई के साथ उस कार्यक्रम में शामिल हुई. उस के पिता उस समय कंपनी की बस ले कर खंडवा गए थे.

संयोग से जब रुचिका का परिवार कार्यक्रम में गया हुआ था. तभी उस का पिता शील कुमार शराब पी कर घर लौट आया. घर पर ताला बंद देख कर उसे गुस्से आ गया. जब उसे पता चला कि रुचिका के साथ पूरा परिवार गौरव के यहां गया हुआ है, तो वह नशे की हालत में वहां पहुंच कर गालीगलोच करने लगा. उस ने गौरव के रिश्तेदारों के सामने रुचिका और गौरव के संबंधों को भी उजागर कर दिया.

इस घटना के बाद गौरव के घर वाले इस रिश्ते के खिलाफ हो गए, जिस के चलते गौरव को मजबूरी में रुचिका के बजाए परिवार की पसंद की लड़की से शादी करना पड़ी. इस घटना के बाद गौरव का रुचिका के घर भले ही आनाजाना कम हो गया लेकिन दोनों के प्रेमसंबंध पहले की तरह बने रहे. इस में रुचिका का भाई आयुष भी दोनों की मदद करता था.

इस के बदले गौरव भी दोनों की कुछ न कुछ मदद करता रहता था. लेकिन गौरव से शादी हो जाने के भरोसे रुचिका ने बैंकों से जो लोन लिया था, वह उस के गले की फांस बन गया. क्योंकि रुचिका की आय इतनी नहीं थी कि वह उस लोन की किश्त भी समय पर चुका पाती.

गौरव उस की मदद तो करना चाहता था पर इतनी बड़ी रकम का इंतजाम कर पाना उस के लिए भी संभव नहीं था. इसलिए आयुष, रुचिका और गौरव तीनों मिल कर इस समस्या से निपटने का रास्ता खोजने लगे. इस के लिए रुचिका और आयुष ने अपने पिता पर भी दबाव बनाया कि वह जबलपुर स्थित अपने हिस्से की पुश्तैनी जमीन बेच दे.

दोनों का मानना था कि उस से लगभग एक करोड़ रुपए हाथ आ जाएंगे. लेकिन शील कुमार इस के लिए तैयार नहीं था. गौरव की पत्नी के पेट में इन दिनों 7 महीने का गर्भ था. इसलिए गौरव ज्यादा से ज्यादा वक्त रुचिका के साथ बिताना चाहता था. उस की योजना आयुष की मदद से नए साल पर रुचिका को ले कर भोपाल से बाहर जाने की थी.

उस का विचार था कि आयुष अपनी बहन को साथ ले कर निकलेगा और पीछे से वह उन के साथ हो जाएगा. इस की योजना बनाने के लिए कुछ दिन पहले तीनों एक होटल में मिले. आयुष ने गौरव से कहा कि तुम दीदी को ले कर कहीं चले जाओ. इधर हम उस के अपहरण की बात फैला कर पिताजी से एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग लेंगे. इस तरह आप को दीदी के साथ नया साल मनाने का मौका मिल जाएगा और हमें पैसा.

‘‘आइडिया अच्छा है, लेकिन तुम्हारी दीदी और मैं एक साथ गायब हुए तो पल भर में सब को बात समझ में आ जाएगी. हां, एक काम हो सकता है कि तुम गायब हो जाओ. तुम्हारे अपहरण के नाम पर 2-4 दिन में ही तुम्हारे पिता से मैं ओर रुचिका पैसा ले लेंगे. फिर नए साल पर हम तीनों घूमने चलेंगे.’’ गौरव ने कहा.

मिलजुल कर बनाई योजना

गौरव का सुझाया यह आइडिया तीनों को अच्छा लगा. योजना बनी कि आयुष गायब हो जाएगा और इधर बेटे को बचाने के लिए रुचिका के पिता शील कुमार आसानी से जबलपुर की जमीन बेच कर फिरौती में एक करोड़ रुपए दे देंगे. जिस से रुचिका का कर्ज भी चुक जाएगा और बाकी की जिंदगी भी आराम से गुजर जाएगी.

इस काम में फिरौती के लिए फोन करने और फिरौती की रकम लेने जाने के लिए गौरव ने अपनी दुकान के एक नौकर अतुल को पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया. इस के बाद पूरी योजना को फाइनल कर 12 दिसंबर को कोचिंग के नाम पर आयुष घर से निकल कर गौरव से मिला. गौरव ने उसे अतुल के साथ मिसरोद के एक होटल में ठहरा दिया. कुछ ही देर बाद अतुल ने आयुष के घर फिरौती के लिए फोन कर दिया.

एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए फोन आने के बाद पुलिस सक्रिय हो गई तो आयुष को मिसरोद से निकाल कर पहले कुछ दिन छतरपुर में रखा गया और फिर उसे अतुल के साथ आगरा भेज दिया गया. लेकिन इस बीच एसपी अतुल लोढ़ा के निर्देशन और एएसपी संजय साहू के नेतृत्व में आयुष की तलाश में जुटी पुलिस टीम ने एकएक कदम आगे बढ़ाते हुए केस का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने रुचिका उस के भाई आयुष और प्रेमी गौरव जैन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. जबकि कथा लेखन तक अतुल की तलाश जारी थी.

डा. सरिता तोषनीवाल हत्याकांड : एकतरफा प्यार का खतरनाक कनेक्शन

डिब्रूगढ़ का असम मैडिकल कालेज अस्पताल असम राज्य का जानामाना सरकारी मैडिकल कालेज और अस्पताल  है. 24 वर्षीय डाक्टर सरिता तोषनीवाल इसी मैडिकल कालेज की अंतिम वर्ष की छात्रा थीं. अस्पताल के महिला रोग विभाग में बतौर जूनियर डाक्टर उन की अकसर ड्यूटी लगती रहती थी. 8 मई, 2014 की रात भी वह अपनी ड्यूटी पर थीं. उस रात उन्होंने महिला वार्ड में सुबह 4 बजे तक ड्यूटी की. इस के बाद वह डाक्टर विश्रामगृह में आराम करने चली गईं.

सुबह 7 बजे ड्यूटी पर आई एक नर्स को जब डा. सरिता तोषनीवाल दिखाई नहीं दीं, तो वह यह सोच कर डाक्टर विश्रामगृह में चली गई कि रात की थकीहारी डा. सरिता शायद गहरी नींद सो गई होंगी. उस समय महिला वार्ड में लेडी डाक्टर की जरूरत थी. डा. सरिता विश्रामगृह में बेड पर कंबल ओढ़े लेटी थीं. नर्स ने उन्हें उठाने के लिए कई आवाजें दीं, लेकिन उन के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई.

संदेह हुआ तो नर्स ने डा. सरिता के शरीर पर पड़ा कंबल हटा कर देखा. कंबल हटाते ही उस के मुंह से चीख निकल गई. डा. सरिता का शरीर खून से लथपथ था और उन के गले में चाकू घुसा हुआ था. यह देख कर नर्स चीखते हुए बाहर भागी. वह बदहवासी की स्थिति में थी और रोने चीखने के अलावा किसी को कुछ नहीं बता पा रही थी.

नर्स का इशारा समझ कर कई डाक्टर, नर्स, वार्डबौय और अन्य कर्मचारी दौड़ कर विश्राम गृह में पहुंचे. डा. सरिता की हालत देख कर सभी हतप्रभ रह गए. निस्संदेह उन की मौत हो चुकी थी. अस्पताल में हत्या जैसा बड़ा हादसा हुआ था, इसलिए तुरंत इस की सूचना स्थानीय थाने को दी गई.

सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई. डा. सरिता की हत्या औपरेशन में इस्तेमाल होने वाले सर्जिकल चाकू से की गई थी और हत्या के बाद चाकू को गले में ही छोड़ दिया गया था.

मृतका के शरीर के कपड़े उतारे गए थे, इस से लगा कि डा. सरिता के साथ दुष्कर्म करने की भी चेष्टा की गई थी. डैड बौडी और घटनास्थल का मुआयना करने के बाद पुलिस ने डा. सरिता का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. साथ ही रात्रि ड्यूटी पर मौजूद डाक्टरों, नर्सों और वार्डबौय से भी पूछताछ की गई. इस बीच इस घटना की सूचना डा. सरिता के घर वालों को भी दे दी गई थी.

डा. सरिता का परिवार डिबू्रगढ़ से 470 किलोमीटर दूर जिला शिवसागर के अमोला पट्टी में रहता था. उन के पिता किशनलाल तोषनीवाल का सेंट्रल मार्केट में अपना व्यवसाय था, जबकि मां कृष्णा तोषनीवाल गृहिणी थीं. यह परिवार मूलत: राजस्थान का रहने वाला था, जो सालों पहले असम जा कर बस गया था. घटना वाले दिन सरिता की मां कृष्णा राजस्थान गई हुई थीं, उन्हें वहीं सूचना दी गई.

डा. सरिता तोषनीवाल की उसी अस्पताल में हत्या कर दी गई थी, जहां वह काम करती थीं. अंगे्रजों के जमाने में बने असम मैडिकल कालेज अस्पताल की गिनती प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में होती है. वहां के अस्पताल में एक डाक्टर की हत्या हो जाना कोई मामूली बात नहीं थी. इस घटना से राजधानी डिबू्रगढ़ में तहलका सा मच गया था.

असम मैडिकल कालेज अस्पताल का पूरा स्टाफ और स्टूडेंट घबराए हुए थे. स्थिति को देखते हुए क्षेत्रीय एसपी राणा भुईंया ने इस मामले की जांच की कमान खुद संभाली. उन्होंने अपनी टीम के साथ सब से पहले उन लोगों से पूछताछ करने का निर्णय लिया, जो उस रात ड्यूटी पर थे.

पुलिस टीम ने तत्काल पूरे स्टाफ को एकत्र कर लिया. जब सब लोगों से पूछताछ की जा रही थी तो एक पुलिस अफसर की निगाह वार्डबौय किरु मैक के चेहरे पर ठहर गई. उस के चेहरे पर किसी के नाखूनों के ताजा निशान थे. पुलिस अफसर को शक हुआ तो उस ने किरु मैक से तीखे स्वर में सीधा सवाल किया, ‘‘तुम ने डा. सरिता की हत्या क्यों की? बलात्कार करना चाहते थे क्या?’’

पल भर के लिए किरु के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. उस की समझ में नहीं आया कि क्या जवाब दे. फिर भी वह जैसे तैसे खुद को संभालते हुए बोला, ‘‘सर, आप को गलतफहमी हो रही है, मैं ने कुछ नहीं किया. मैं तो ड्यूटी पर था, मुझे कुछ पता नहीं है.’’

‘‘ठीक है, थाने चल कर गलतफहमी दूर कर लेते हैं.’’ कह कर अफसर ने किरु का हाथ पकड़ा तो उस के शरीर की कंपकंपाहट अफसर से छिपी न रह सकी. अफसर ने एसपी राणा भुईंया को बता दिया कि हत्यारा किरु मैक है. पुलिस उसे साथ ले कर थाने लौट आई.

थाने में किरु मैक से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि डा. सरिता तोषनीवाल की हत्या उसी ने की थी, लेकिन अकेले नहीं. इस हत्या में डा. सरिता का बैचमेट डा. दीपमणि सैकिया भी शामिल था. डा. दीपमणि का नाम सामने आने से पुलिस भी हैरान रह गई.

किरु मैक से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के और डा. दीपमणि सैकिया के विरुद्ध भादंवि की धारा 302/34 और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही पुलिस ने मुर्दाघर में रखी डा. सरिता की डैडबौडी के नाखूनों के अंदर फंसी खाल के कण भी प्राप्त कर लिए, ताकि उन कणों का मिलान लेबोरेटरी में किरु मैक की स्किन से कराया जा सके.

एक ओर पुलिस ने डा. दीपमणि की खोजबीन शुरू की तो दूसरी ओर किरु मैक का सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने इकबालिया बयान दर्ज कराया. इस के साथ ही उसे 4 दिनों के पुलिस रिमांड पर भी ले लिया गया.

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डा. सरिता तोषनीवाल की हत्या को ले कर असम मैडिकल कालेज अस्पताल में ही नहीं, बल्कि पूरे डिब्रूगढ़ में असंतोष फैला हुआ था. लोग तुरंत डा. दीपमणि की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे. देर शाम तक डा. सरिता के घर वाले भी डिबू्रगढ़ पहुंच गए. बेटी की लाश देख कर वे होश खो बैठे. राजस्थान में होने की वजह से डा. सरिता की मां कृष्णा उस दिन डिब्रूगढ़ नहीं पहुंच पाई थीं.

पुलिस ने डा. दीपमणि को पकड़ने की काफी कोशिश की, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगा. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद डा. सरिता की लाश उन के घर वालों के हवाले कर दी गई. मैडिकल कालेज और अस्पताल का पूरा स्टाफ ही नहीं, बल्कि डिब्रूगढ़ के हजारों लोग भी डा. सरिता के परिवार के साथ थे और हत्यारे डाक्टर को जल्दी से जल्दी गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे.

लोगों के विरोध प्रदर्शन के बाद भी जब डा. दीपमणि सैकिया को गिरफ्तार नहीं किया जा सका तो असम मैडिकल कालेज अस्पताल के डाक्टरों ने हड़ताल कर दी. उन्होंने ऐलान किया कि जब तक हत्यारा नहीं पकड़ा जाता और हकीकत सामने नहीं आती हड़ताल जारी रहेगी. डाक्टरों के दबाव की वजह से पुलिस डा. दीपमणि को गिरफ्तार करने की पूरी कोशिश कर रही थी.

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डा. सरिता के घर वालों और सहकर्मियों से पता चला कि उन का और उन के बैचमेट डा. रोशन अग्रवाल का विवाह तय हो गया था. दोनों की शादी. 7 जुलाई, 2014 को होनी थी और इस के लिए दोनों परिवार तैयारियों में लगे थे. यह उन दोनों का प्रेमविवाह था, जो दोनों के परिवारों की सहमति से हो रहा था.

डा. सरिता और डा. रोशन के बीच पढ़ाई के दौरान ही प्यार हुआ था. 2013 में दोनों ने अपनी शादी की इच्छा अपनेअपने घर वालों से जाहिर कर दी थी. इस के बाद आपसी बातचीत कर के दोनों परिवार उन की शादी के लिए तैयार हो गए थे. लेकिन डा. सरिता की हत्या ने दोनों परिवारों की खुशियां लील लीं.

काफी भागदौड़ के बाद पुलिस ने आखिर 14 मई को डा. दीपमणि सैकिया को गिरफ्तार कर लिया. इस बीच वह समझ चुका था कि अब किसी तरह भी बचना संभव नहीं है. इसलिए पुलिस पूछताछ में उस ने डा. सरिता की हत्या की पूरी कहानी बता दी. हत्या की योजना डा. सैकिया की खुद की थी, जबकि किरु को उस ने लालच दे कर इस पाप में शामिल किया था.

दरअसल, सरिता, रोशन और दीपमणि असम मैडिकल कालेज में साथसाथ पढ़ रहे थे. हंसमुख स्वभाव की खूबसूरत सरिता सभी साथियों को पसंद थी. पढ़ाईलिखाई में भी वह होशियार थी. सरिता के दीपमणि से भी अच्छे संबंध थे और रोशन अग्रवाल से भी. तीनों के बीच खूब बातें होती थीं, आमने सामने भी और फोन पर भी. इसी सब के चलते दीपमणि सैकिया सरिता से एकतरफा प्यार करने लगा था. अपने मन की बात वह सरिता से कह नहीं पाया, यह अलग बात थी.

डाक्टरी की पढ़ाई के आखिरी साल में सरिता और उन के बैचमेट्स डा. दीपमणि की ड्यूटी बतौर जूनियर डाक्टर असम मैडिकल कालेज के अस्पताल में लगा दी गई. सरिता और दीपमणि चूंकि महिला रोग चिकित्सक के रूप में ग्रैजुएशन कर रहे थे, इसलिए दोनों की ड्यूटी महिला रोग एवम प्रसूति विभाग में लगाई गई. जबकि डा. रोशन अग्रवाल का विषय अलग था, सो उन की ड्यूटी दूसरे विभाग में लगी.

डा. रोशन अग्रवाल और डा. सरिता तोषनीवाल पिछले 2 सालों से एकदूसरे को पसंद करते थे. इसी बीच दोनों में प्यार हुआ और दोनों के परिवारों की सहमति से शादी तय हो गई थी. डा. रोशन अग्रवाल नगांव कठिया तुली के रहने वाले थे.

डा. सरिता और डा. दीपमणि एक विभाग में तैनात होने की वजह से एकदूसरे से मोबाइल पर बात भी करते रहते थे और यदाकदा मैसेज भी भेजते रहते थे. डा. सरिता समझदार लड़की थीं. जब उन्होंने देखा कि डा. दीपमणि उन के साथ कुछ ज्यादा ही नजदीकियां बनाने की कोशिश कर रहा है तो उन्होंने उस से बात करना बंद कर दिया. इस की वजह यह थी कि उन की शादी तय हो चुकी थी और वह कतई नहीं चाहती थीं कि किसी के मन में कोई गलतफहमी पैदा हो.

एक लड़की के रूप में लिया गया उन का यह फैसला बिलकुल सही था. लेकिन डा. सरिता का बातचीत बंद करना डा. दीपमणि सैकिया को बहुत बुरा लगा. उस ने डा. सरिता को कई मैसेज भेजे, ताकि वह उस की भावनाओं को समझ सकें, लेकिन उन्होंने उस के किसी मैसेज का जवाब देने के बजाय उसे लताड़ दिया.

डा. दीपमणि को यह बात बहुत बुरी लगी और उस ने मन ही मन डा. सरिता को सबक सिखाने का फैसला कर लिया. यह काम चूंकि वह स्वयं नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने वार्डबौय किरु मैक की मदद लेने का फैसला किया. किरु मैक डिब्रूगढ़ के गांव लाहोवाल का रहने वाला था. वह कई अपराधों में शामिल रह चुका था. इस के बावजूद किसी की सिफारिश पर उसे असम मैडिकल कालेज अस्पताल में अस्थाई वार्डबौय की नौकरी मिल गई थी.

डा. दीपमणि किरु मैक को पसंद करता था और उस की ड्यूटी अपनी ड्यूटी के समय ही लगवाता था. जब डा. सरिता ने डा. दीपमणि से बातें करना बंद कर दिया तो एक दिन उस ने किरु मैक से कहा, ‘‘अगर तुम एक काम में मेरी मदद करोगे तो मैं अस्पताल के अध्यक्ष महेंद्र पटवारी से कह कर तुम्हारी नौकरी स्थाई करा दूंगा. वह मेरे काफी करीबी हैं.’’

किरु लालच में आ गया तो डा. दीपमणि ने उसे बता दिया कि डा. सरिता को ठिकाने लगाना है. सुन कर पहले तो वह हिचका, लेकिन जब दीपमणि ने उसे लालच दे कर अपनी योजना समझाई तो वह मान गया. दोनों ने तय किया कि वे 24 अप्रैल को अपनी योजना को अंजाम देंगे. लेकिन 24 अप्रैल को मरीजों की संख्या अधिक थी, जिस की वजह से डा. सरिता की व्यस्तता बढ़ गई थी. फलस्वरूप उस दिन इन लोगों की योजना सफल नहीं हो सकी.

पहली नाकामयाबी के बाद इन दोनों ने अपनी योजना के लिए अगली तारीख 9 मई तय की. 8 मई की शाम को डा. सरिता समय पर अस्पताल आईं और अपनी ड्यूटी पर लग गईं. उस वक्त वह बहुत खुश थीं. डा. दीपमणि की भी उस दिन नाइट ड्यूटी थी, लेकिन उस ने अपनी तबीयत खराब बता कर छुट्टी ले ली थी. इस के बावजूद वह अस्पताल में ही छिप कर बैठ गया था. उस ने ड्यूटी पर तैनात किरु मैक से कह दिया था कि जब मौका मिले उसे बता दे. हर हालत में आज काम हो जाना चाहिए.

डा. सरिता ने रात भर ड्यूटी की और करीब 4 बजे डाक्टर विश्रामगृह में जा कर सो गईं. रात्रि ड्यूटी वाली एक नर्स वहां पहले ही सोई हुई थी. 9 मई की सुबह साढ़े 5 बजे वार्डबौय किरु मैक रोजाना की तरह अस्पताल का  रजिस्टर वार्ड में जमा कराने जा रहा था, तभी ब्लड बैंक के पास छिपे डा. दीपमणि ने उस से पूछा कि रात की ड्यूटी वाली नर्स गई क्या? इस पर उस ने बताया कि नर्स अभी सो रही है. डा. दीपमणि ने उस से कहा, ‘‘उसे कहो कि ड्यूटी का समय खत्म हो चुका है, इसलिए अब घर जाए.’’

रजिस्टर जमा कराने के बाद किरु मैक विश्रामगृह में पहुंचा और नर्स को जगा कर कहा, ‘‘7 बज गए हैं, घर नहीं जाना क्या?’’

उस समय साढ़े 5 बजे थे. नर्स नींद में थी. उसे लगा किरु कह रहा है तो 7 ही बजे होंगे. वक्त पर ध्यान न दे कर वह बाहर निकल गई. उस के जाने के 10 मिनट बाद डा. दीपमणि और किरु मैक पिछले दरवाजे से आईसीयू के पास स्थित डाक्टर विश्रामगृह में जा पहुंचे.

डा. दीपमणि सैकिया पहले ही सोच कर आया था कि उसे क्या करना है. इस के लिए वह एक सर्जिकल चाकू और फिनाइल की बोतल साथ लाया था. उस ने हाथों में डाक्टरों द्वारा ड्यूटी के समय इस्तेमाल किए जाने वाले ग्लव्ज पहन रखे थे. ये तीनों चीजें उस ने अस्पताल से ही हासिल की थीं. विश्रामगृह में आ कर डा. दीपमणि ने दरवाजे की कुंडी अंदर से बंद कर दी.

डा. सरिता उस समय गहरी नींद में थीं. किरु और दीपमणि ने मिल कर सरिता का गला दबाना शुरू कर दिया. इस से उन की आंख खुल गईं और अपना बचाव करने के लिए उन्होंने हाथ बढ़ा कर किरु मैक का चेहरा पकड़ने की कोशिश की. इसी चक्कर में उस के गालों पर डा. सरिता के नाखूनों के निशान बन गए.

हालांकि गला दबाने से डा. सरिता अधमरी हो गई थीं, लेकिन डा. दीपमणि उन्हें किसी भी तरह जिंदा नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने साथ लाई फिनाइल की बोतल खोल कर डा. सरिता के मुंह में उड़ेल दी. इतना सब करने के बाद भी दीपमणि को चैन नहीं मिला तो उस ने साथ लाए सर्जिकल चाकू से डा. सरिता के गले की नस काट कर चाकू गले में ही छोड़ दिया.

इस तरह डा. सरिता को ठिकाने लगा कर डा. दीपमणि और किरु मैक ने मिल कर डा. सरिता के कपड़े उतार दिए और उन की लाश पर कंबल डाल कर पिछले दरवाजे से अस्पताल के बाहर चले गए.

विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने किरु मैक की निशानदेही पर उस के कमरे से डा. सरिता का मोबाइल बरामद कर लिया. उस की जांच से पता चला कि उन्होंने रात में आखिरी काल अपने मंगेतर डा. रोशन अग्रवाल को की थी. अपनी जांच में पुलिस ने डा. दीपमणि सैकिया और किरु मैक के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की भी जांच की.

पता चला कि डा. सरिता ने पिछले एक महीने से डा. दीपमणि को न तो कोई फोन किया था और न कोई मैसेज भेजा था. अलबत्ता दीपमणि और किरु मैक के बीच बातें जरूर हुई थीं. पुलिस हिरासत में किरु मैक चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि डा. सरिता की हत्या के लिए वह दोषी जरूर है, लेकिन उस से बड़ा गुनाहगार डा. दीपमणि सैकिया है. इसलिए फांसी की सजा दोनों को मिलनी चाहिए.

बहरहाल, विस्तृत पूछताछ के बाद दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. वैसे इस मामले में डा. दीपमणि सैकिया के मातापिता का कहना है कि उन के बेटे को साजिशन फंसाया गया है. शेष सच विस्तृत जांच के बाद ही सामने आएगा.