पिता ही बन गया प्यार का दुश्मन

उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ की कोतवाली पट्टी का एक गांव है असुढ़ी. इसी गांव के रहने वाले भास्कर पांडेय का बेटा सौरभ प्रतापगढ़ शहर में रह कर बीकौम कर रहा था. वह जिस कालेज में पढ़ता था, उसी कालेज में गांव धनगढ़ सराय छिवलहां के रहने वाले राकेश कुमार सिंह की बेटी संजू सिंह भी बीएड कर रही थी. सौरभ और संजू आसपास के गांवों के रहने वाले थे, इसलिए दोनों में जानपहचान हो गई. दोनों की यह जानपहचान जल्दी ही दोस्ती में बदली तो दोनों अकसर मिलनेजुलने लगे. लगातार मिलने से दोनों में प्यार हो गया. धीरेधीरे उन का प्यार बढ़ता गया. फिर तो यह हाल हो गया कि जब तक दोनों एकदूसरे को देख न लेते, बातचीत न कर लेते, उन्हें चैन न मिलता.

सौरभ और संजू का यह प्यार परवान चढ़ा तो उन्होंने साथसाथ जीनेमरने की कसमें ही नहीं खाईं, बल्कि निश्चय कर लिया कि कुछ भी हो, लोग कितना भी विरोध करें, वे शादी जरूर करेंगे. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. इस की वजह यह थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी.

सच है, प्यार न तो जाति देखता है और न ही धर्म. संजू और सौरभ के साथ भी यही हुआ था. उन के प्यार को जमाने की नजर न लगे, उन्हें किसी तरह जुदा न कर दिया जाए, यह सोच कर उन्होंने शादी करने का फैसला ही नहीं किया, बल्कि पड़ोसी जिला इलाहाबाद जा कर पानदरीबा स्थित आर्यसमाज मंदिर में वहां की रीतिरिवाज के अनुसार विवाह कर लिया. यह 1 जुलाई, 2016 की बात है.

विवाह करने के बाद संजू अपने घर आ गई थी. उस के विवाह की भनक घर के किसी भी आदमी को नहीं लग पाई थी. शादी के बाद सौरभ आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ चला गया. वहां वह पढ़ाई के साथसाथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहा था.

सौरभ के लखनऊ चले जाने के बाद संजू की उस से मोबाइल पर बातें जरूर हो रही थीं, लेकिन वह खुद को अकेली महसूस कर रही थी. उसे सौरभ की दूरी बहुत परेशान कर रही थी. संजू भी पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी, इसलिए सौरभ ने आगे की पढ़ाई के लिए कानपुर में उस का एमएड में रजिस्ट्रेशन करा दिया.

कानपुर आने के बाद संजू सौरभ के साथ रहने की जिद करने लगी और 18 सितंबर, 2016 को वह लखनऊ आ गई. सौरभ लखनऊ के आशियाना में रहता था. संजू उसी के साथ उस के कमरे पर रहने लगी.

आगे चल कर कोई परेशानी न हो, इस के लिए 20 सितंबर, 2016 को सौरभ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में संजू के साथ कोर्टमैरिज कर ली. इस के बाद संजू के घर वालों को सौरभ के साथ उस की शादी का पता चल गया. चूंकि सौरभ उन की जाति का नहीं था, इसलिए पूरा परिवार आगबबूला हो उठा. बेटी द्वारा लिया गया यह निर्णय किसी को स्वीकार नहीं था. खास कर संजू के पिता राकेश कुमार सिंह को.

बेटी की इस हरकत से वह काफी नाराज थे. जबकि सौरभ के घर वाले बेटे के इस प्यार के बारे में जानते तो थे ही, उन्हें संजू बहू के रूप में स्वीकार भी थी. संजू के पिता राकेश सिंह जनता इंटर कालेज उड़ैयाडीह के प्रधानाचार्य थे. ऐसे में अपनी इज्जत को ले कर वह काफी परेशान थे. किसी भी कीमत पर वह इस शादी के लिए तैयार नहीं थे.

बेटी की इस हरकत से वह काफी तनाव में रहने लगे थे. वैसे भी वह काफी उग्र स्वभाव के थे. यही कारण था कि उन के घर के अन्य लोग संजू का प्रेम विवाह चाह कर भी स्वीकार करने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे.

संजू के लखनऊ आने के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहते हुए अपनी आगे की पढ़ाई कर रहे थे और भविष्य के सपनों में खोए रहते थे. उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था कि एक ऐसा तूफान आने वाला है, जो उन की जिंदगी को झकझोर कर रख देगा.

सौरभ और संजू के दिन अच्छी तरह से कट रहे थे. लेकिन 10 अक्तूबर, 2016 को संजू के पिता राकेश कुमार सिंह अचानक सौरभ के कमरे पर आ धमके तो उन्हें देख कर पहले तो दोनों डरे, लेकिन जब उन्होंने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है, उन्होंने उन्हें माफ कर दिया है तो दोनों को थोड़ी राहत मिली.

राकेश कुमार सिंह ने कहा, ‘‘बच्चो, तुम्हारी शादी से हमें कोई परेशानी नहीं है. जो होना था, वह हो गया है. अब हम चाहते हैं कि समाज के जो रीतिरिवाज हैं, उन का पालन किया जाए.’’

इस के बाद संजू और सौरभ को विश्वास में ले कर गांव में धूमधाम से दोनों की शादी की बात कह कर राकेश कुमार सिंह संजू को अपने साथ ले कर गांव लौट आए.

सौरभ भी खुश था कि चलो देर ही सही, उस के ससुरजी ने नाराजगी त्याग कर बेटी को और उसे अपना लिया है. लेकिन संजू के गांव जाने के बाद जब उस ने उस से बात करने की कोशिश की तो बात नहीं हो सकी. क्योंकि संजू को उस से बात नहीं करने दी जा रही थी.

संजू पर तमाम पाबंदियां लगा दी गई थीं. एक तरह से उसे बंधक बना लिया गया था. 10 अक्तूबर, से 31 अक्तूबर, 2016 तक जब संजू से बात न हो पाई तो सौरभ अपनी ससुराल जा पहुंचा. लेकिन संजू से मिलने की कौन कहे, उसे घर पर रुकने तक नहीं दिया गया. उसे दुत्कार कर भगा दिया गया.

ऐसा कई बार हुआ तो सौरभ ने पत्नी को पाने के लिए हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से गुहार लगाई. इस का नतीजा यह निकला कि 3 नवंबर, 2016 को हाईकोर्ट ने संजू को उसे सौंपने का आदेश तो दे दिया, साथ ही हाईकोर्ट में भी पेश करने को कहा. लेकिन निर्धारित तारीख पर संजू को हाईकोर्ट में पेश नहीं किया गया.

इस के बाद पट्टी कोतवाली पुलिस ने राकेश कुमार सिंह को संजू के साथ थाने बुलाया, जहां हुई पंचायत में संजू अपने पिता के साथ जाने को तैयार नहीं थी. वह बारबार अपने पति सौरभ के साथ जाने की बात कर रही थी. उस का कहना था कि उस ने सौरभ को ही अपना सब कुछ मान लिया है, अब वह मरेगी तो उसी के साथ और जिएगी भी तो उसी के साथ.

थाने में हुई पंचायत में संजू के फैसले एवं हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद राकेश कुमार सिंह पुलिस पर दबाव डलवा कर संजू को अपने साथ घर ले आए. जबकि सौरभ ने पुलिस को हाईकोर्ट का आदेश दिखाने के साथ कोर्टमैरिज का प्रमाणपत्र भी दिखाया था. लेकिन पुलिस ने उस की एक नहीं सुनी थी.

30 अक्तूबर को दीपावली का त्यौहार था, जिस की वजह से कुछ नहीं हो सका. अगले दिन 31 अक्तूबर को पट्टी कोतवाली में सौरभ ने अपनी पत्नी संजू की जान का खतरा बताते हुए उस के पिता राकेश कुमार सिंह समेत 3 लोगों के खिलाफ नामजद तहरीर देते हुए न्याय की गुहार लगाई.

इस के अलावा सौरभ एसपी माधवप्रसाद वर्मा से मिला और उन्हें भी तहरीर दे कर पत्नी की जान बचाने की गुहार लगाई. एसपी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए न केवल संजू को सौरभ के सुपुर्द कराने के निर्देश दिए, बल्कि सौरभ की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर काररवाई करने का भी आदेश दिया.

उन के आदेश का यह असर हुआ कि पट्टी कोतवाली पुलिस ने 2 नवंबर, 2016 को सौरभ की तहरीर पर राकेश कुमार सिंह, उस के छोटे भाई धीरेंद्र सिंह और छोटे बेटे शुभम के खिलाफ अपराध संख्या 376/2016 पर भादंवि की धारा 368 के तहत मुकदमा तो दर्ज कर लिया, लेकिन तुरंत कोई काररवाई नहीं की.

2 नवंबर को गांव धनगढ़ के लोगों से पट्टी पुलिस को पता चला कि संजू की मौत हो गई है तो पुलिस के हाथपांव फूल गए. पुलिस तुरंत गांव पहुंची और आननफानन संजू की लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया, साथ ही अपहरण के मुकदमे में हत्या की धारा 302 जोड़ कर नामजद लोगों की तलाश शुरू कर दी.

3 नवंबर, 2016 की सुबह संजू के पिता राकेश कुमार सिंह को उड़ैयाडीह मोड़ से गिरफ्तार कर लिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि संजू की मौत जहर से हुई थी. थाने ला कर राकेश कुमार सिंह से पूछताछ की गई तो उन्होंने कहा कि संजू ने उन की इज्जत से खिलवाड़ किया था, जिस की सजा जहर दे कर उस की हत्या कर के दी गई.

पूछताछ के बाद पटटी कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर राजकिशोर ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस के बाद वह संजू के चाचा धीरेंद्र सिंह तथा भाई शुभम की तलाश में लगे थे. कथा लिखे जाने तक दोनों पकड़े नहीं जा सके थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आखिर क्या था कमरा नंबर 104 का रहस्य

अमृतसर के सिटी सैंटर स्थित होटल सिंह इंटरनेशनल के रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर दीपक से आने वाले युवक ने कहा था कि उसे ठहरने के लिए कमरा चाहिए तो उन्होंने रूम बौय को आवाज दे कर उसे कमरा दिखाने भेज दिया था. रूमबौय उस युवक को कमरा दिखाने फर्स्ट फ्लोर पर ले जाने लगा तो उस ने साथ आई युवती को स्वागतकक्ष में ही बैठा दिया था और खुद कमरा देखने चला गया था. युवक को कमरा पसंद आ गया तो दीपक ने एंट्री रजिस्टर उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, इस में आप अपना नामपता और फोन नंबर आदि लिख कर अपनी और मैडम की आईडी दे दीजिए. कमरे का किराया एक हजार रुपए प्रतिदिन होगा और नियम के अनुसार चैकआउट का समय दोपहर 12 बजे होगा.’’

दीपक से एंट्री रजिस्टर ले कर उस ने युवक ने अपना नाम रणवीर सिंह और साथ आई युवती को पत्नी बता कर उस का नाम मोनिका लिख दिया. पता उस ने 26-ए, नियर केवीएस मालवीय रोड, जयपुर, राजस्थान लिखा. मोबाइल नंबर- 8766711800 लिख कर अपनी और पत्नी मोनिका की आईडी दीपक के पास जमा करा दी. इस के बाद रूम बौय ने उन्हें होटल के कमरा नंबर 104 में पहुंचा दिया. यह 12 नवंबर, 2016 की बात है. उस समय शाम के यही कोई साढे़ 4 बज रहे थे.

कुछ देर आराम करने के बाद दोनों ने चायनाश्ता किया और स्वर्णमंदिर श्री हरमिंदर साहिब के दर्शन करने चले गए. लौट कर उन्होंने रात का खाना होटल से ही मंगवा कर खाया. अगले दिन यानी 13 नवंबर को दोनों सुबह 11 बजे घूमने के लिए निकले तो रात करीब साढ़े 8 बजे लौटे. खाना वगैरह खा कर वे सो गए तो अगले दिन यानी 14 नवंबर को दोनों में से न कोई बाहर आया और न चायनाश्ता या खाना मंगाया.

पूरा दिन बीत गया और उस कमरे में कोई हलचल नहीं हुई तो रात 10 बजे के करीब होटल मैनेजर दीपक यह पता करने के लिए कमरा नंबर 104 के सामने जा पहुंचे कि आखिर ऐसा क्या हुआ है कि करीब 30 घंटे से इस कमरे से कोई बाहर नहीं निकला है.

दीपक ने दरवाजा भी खटखटाया और आवाजें भी दीं, लेकिन अंदर किसी तरह की हलचल नहीं हुई. उन्होंने डुप्लीकेट चाबी से दरवाजा खोला. अंदर उन्हें जो दिखाई दिया, वह परेशान करने वाला था. वह भाग कर नीचे आए और होटल के मालिक करनदीप सिंह को फोन कर के कहा, ‘‘सरदारजी, कमरा नंबर 104 में एक लाश पड़ी है.’’

करनदीप सिंह फौरन होटल पहुंचे तो सारा स्टाफ कमरा नंबर 104 के सामने खड़ा था. उन्होंने देखा, कमरे के बैड पर 24-25 साल की एक युवती की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. पूछने पर मैनेजर दीपक ने बताया, ‘‘यह युवती 2 दिनों पहले ही अपने पति रणवीर सिंह के साथ होटल में आई थी.’’

‘‘इस का पति कहां है?’’

‘‘13 नवंबर की रात से वह दिखाई नहीं दिया.’’ दीपक ने कहा.

इस के बाद करनदीप सिंह ने थाना रामबाग की बसअड्डा पुलिस चौकी को फोन कर के मुंशी संजीव कुमार को इस बात की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही चौकीइंचार्ज एएसआई सुशील कुमार पुलिस बल के साथ होटल सिंह इंटरनेशनल आ पहुंचे. होटल में लाश मिलने की सूचना उन्होंने थाना रामबाग के थानाप्रभारी, एसीपी और क्राइम टीम को भी दे दी थी.

उन्हीं की सूचना पर थाना रामबाग के थानाप्रभारी इंसपेक्टर दलविंदर कुमार, एसीपी (ईस्ट) गुरमेल सिंह भी होटल आ पहुंचे थे. पुलिस ने कमरे और लाश का निरीक्षण किया. बैड पर लाश पड़ी थी. उसी के पास रखी टेबल पर खून सनी एक हथौड़ी रखी थी. उसी टेबल पर पानी का जग और 2 गिलास रखे थे.

मृतका के सिर के पिछले हिस्से में गहरे घाव थे. चेहरे पर भी चोटों के गंभीर निशान थे, जो संभवत: हथौड़ी के वार से हुए थे. फिंगरप्रिंट विशेषज्ञों के अनुसार, हत्यारा इतना चालाक था कि उस ने कमरे की इस तरह सफाई की थी कि कहीं भी उस की अंगुली के निशान नहीं मिले थे. हथौड़ी पर भी अंगुलियों के निशान नहीं थे.

चौकीइंचार्ज ने लाश को कब्जे में ले कर सारी काररवाई निपटाई और पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर अपराध संख्या 460/2016 पर हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस ने होटल में लगे सीसीटीवी कैमरों की 12 नवंबर से 15 नवंबर तक की फुटेज कब्जे में ले ली थी. रजिस्टर में दर्ज रणवीर और मोनिका का पता, फोन नंबर नोट कर के रणवीर द्वारा होटल में जमा कराई गई आईडी भी अपने कब्जे में ले ली.

पुलिस को पूरा विश्वास था कि हत्या रणवीर ने ही की है, इसलिए चौकीइंचार्ज सुशील कुमार ने उस की तलाश के लिए एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने एएसआई बलदेव सिंह, हैडकांस्टेबल बलविंदर सिंह, हीरा सिंह, बूटा सिंह, गुरचरण सिंह, गुरप्रीत सिंह, हरप्रीत सिंह, हरजिंदर सिंह और कांस्टेबल रणजीत सिंह को शामिल किया.

होटल के रजिस्टर में रणवीर द्वारा लिखवाया गया मोबाइल नंबर चैक किया गया तो वह फरजी पाया गया. जयपुर भेजी गई पुलिस टीम ने लौट कर बताया कि होटल में रणवीर ने जो पता लिखाया था और जो आईडी दी थी, वे सब फरजी थीं. इस के बाद सीसीटीवी फुटेज से मिले रणवीर और मोनिका के फोटो पंजाब और राजस्थान के सभी थानों को भेज कर कहा गया कि अगर इन के बारे में कोई जानकारी मिले तो सूचना दी जाए.

लाश का पोस्टमार्टम होने के बाद शिनाख्त न होने की वजह से चौकीइंचार्ज सुशील कुमार ने अपने खर्चे से उस का अंतिम संस्कार करा दिया. लाख प्रयास के बाद भी रणवीर और मृतका के बारे में कोई जानकारी न मिलने से सुशील कुमार भी शांत हो गए.

लेकिन 8 दिसंबर, 2016 को अचानक बाड़मेर, राजस्थान के पुलिस अधीक्षक गगन सिंगला के औफिस से एक संदेश मिला, जिस में कहा गया था कि अमृतसर के होटल सिंह इंटरनेशनल के कमरा नंबर 104 में पत्नी भावना चौधरी की हत्या कर के फरार हुआ हत्यारा राजेंद्र चौधरी उन की हिरासत में है.

सूचना महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए चौकीइंचार्ज सुशील कुमार अपने साथ हैडकांस्टेबल हरप्रीत सिंह, हरजिंदर सिंह और बलविंदर सिंह को ले कर 9 दिसंबर को बाड़मेर पहुंच गए. थाना सदर के थानाप्रभारी जयराम चौधरी के सामने उन्होंने राजेंद्र चौधरी से शुरुआती पूछताछ कर के विस्तारपूर्वक पूछताछ करने एवं सबूत जुटाने के लिए 10 दिसंबर, 2016 को उसे बाड़मेर के जेएमसी अंबिका सोलंकी बल्होत्रा की अदालत में पेश कर के 3 दिनों के ट्रांजिट रिमांड पर ले लिया.

राजेंद्र चौधरी उर्फ रणवीर सिंह को अमृतसर ला कर ड्यूटी मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर के रिमांड पर लिया और पुलिस चौकी ला कर पूछताछ की गई तो होटल सिंह इंटरनेशनल के कमरा नंबर 104 में हुई युवती की हत्या के बारे में की गई पूछताछ में उस ने जो कहानी बताई, वह घरेलू कलह और संदेह के घेरे में कैद एक अविवेकी पुरुष की मानसिकता से जुड़ी कहानी थी.

राजेंद्र प्रकाश चौधरी राजस्थान के जिला बाड़मेर के सारणनगर-जालिया के रहने वाले तगाराम का बेटा था. राजेंद्र के अलावा उन की 2 संतानें और थीं, एक बेटा और एक बेटी. 12वीं करने के बाद राजेंद्र डिस्कौम कंपनी में इलैक्ट्रिशियन की नौकरी करने लगा था. पितापुत्र की कमाई से घर के खर्च आराम से चल जाते थे.

राजेंद्र की नौकरी लग गई तो घर वालों ने लड़की देख कर 10 जून, 2014 को भावना से उस की शादी कर दी. भावना बहुत खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन खराब भी नहीं थी. पतिपत्नी दोनों सामान्य शक्लसूरत के थे, इसलिए दोनों ही एकदूसरे को दिल से चाहते थे. पर इस में परेशानी तब खड़ी हुई, जब राजेंद्र पत्नी पर संदेह करने लगा.

दरअसल, भावना का हंसमुख स्वभाव ही उस के लिए दुश्मन बन गया. अपने इसी स्वभाव की वजह से वह हर किसी से हंसहंस कर बातें कर लेती थी. उस के इसी स्वभाव की वजह से घर वाले ही नहीं, बाहर वाले भी उसे पसंद करते थे. लेकिन राजेंद्र को उस का यह स्वभाव यानी हर किसी से हंसनाबोलना जरा भी पसंद नहीं था.

इसी बात को ले कर पहले तो थोड़ीबहुत कहासुनी होती रही, लेकिन धीरेधीरे इस कहासुनी ने झगड़े का रूप ले लिया. जब यह झगड़ा रोजरोज होने लगा तो राजेंद्र की मोहल्ले में बदनामी होने लगी. इस बदनामी से बचने के लिए उस ने घर छोड़ दिया और नेहरूनगर में किराए का मकान ले कर पत्नी के साथ रहने लगा.

राजेंद्र ने घर जरूर बदल लिया था, लेकिन न उस का स्वभाव बदला था और न भावना का. इसलिए घर वालों से अलग होने के बाद पतिपत्नी के बीच होने वाले झगड़े और ज्यादा होने लगे. वह भावना को किसी से बातें करते देख लेता तो उस का खून खौल उठता. भावना लाख सफाई देती, लेकिन वह उस की बातों पर बिलकुल विश्वास नहीं करता था. इसी वजह से वह शराब भी पीने लगा.

एक दिन झगड़ा करने के बाद राजेंद्र ने शराब पी तो उस के दिमाग में आया कि ऐसी बेशर्म और बदचलन औरत को मौत के घाट उतार देना ही ठीक है. यह जब तक जिंदा रहेगी, उसे इसी तरह जिल्लत और बदनामी झेलनी पड़ेगी. बस इसी के बाद वह भावना की हत्या के बारे में सोचने लगा.

वह भावना की हत्या कुछ इस तरीके से करना चाहता था कि किसी भी सूरत में पकड़ा न जाए. इस के लिए वह साइबर कैफे जा कर इंटरनेट पर भावना की हत्या के लिए आइडिया ढूंढ़ने लगा. आखिर एक दिन उसे आइडिया मिल गया. इस के बाद उस ने बाजार से एक सर्जिकल ब्लेड और हथौड़ी खरीद कर रख ली.

इस के बाद राजेंद्र ने साइबर कैफे से ही अपने और भावना के फरजी नाम रणवीर और मोनिका के नाम से पहचान पत्र बनाया. योजना के अनुसार, उस ने भावना से लड़ाईझगड़ा बंद कर दिया और उसे विश्वास में लेने के लिए प्यार से बातें करने लगा. फरजी पहचान पत्र से नया सिम खरीद कर उस ने भावना से कहा, ‘‘अब हमारे घर का झगड़ाक्लेश खत्म हो गया है, क्यों न हम कहीं घूमने चलें?’’

भावना को भला इस में क्या ऐतराज हो सकता था. वह तैयार हो गई तो 10 नवंबर, 2016 को फरजी पहचान पत्र से टिकट करा कर वह भावना के साथ अमृतसर आ गया. घर से चलते समय उस ने अपना मोबाइल फोन घर में ही खड़ी मोटरसाइकिल की डिक्की में रख दिया था, जिस से कभी कोई बात हो तो उस के फोन की लोकेशन घर की मिले.

अमृतसर में उस ने होटल सिंह इंटरनेशनल में कमरा नंबर 104 बुक कराया और उसी में भावना के साथ ठहर गया. 13 नवंबर को दिन में उस ने भावना को अमृतसर में घुमाया और रात 9 बजे लौट कर होटल के कमरे में ही शराब पीने बैठ गया. बातोंबातों में प्यार की दुहाई दे कर उस ने भावना को भी शराब पिला दी.

रात के 11 बजे के करीब राजेंद्र ने देखा कि भावना की नशे और नींद की खुमारी में आंखें बंद हो रही हैं तो पहले उस ने उसे पीटपीट कर अधमरा कर दिया. इस के बाद साथ लाई हथौड़ी से उस के सिर और चेहरे पर कई वार किए. वह बेहोश हो गई तो सर्जिकल ब्लेड से श्वांस नली काट दी.

भावना की हत्या करने के बाद उस ने कमरे में मौजूद एकएक चीज से अपनी अंगुलियों के निशान मिटाए. इस के बाद 12 बजे के करीब कमरे का दरवाजा बंद कर के वह होटल के बाहर निकल गया. रेलवे स्टेशन से उस ने ट्रेन पकड़ी और बाड़मेर पहुंच गया.

घर आने पर उसे पता चला कि उस की अनुपस्थिति में उस का साला देवेंद्र भावना के बारे में पता करने आया था. इस के बाद जब उस से भावना के बारे में पूछा गया तो सारी सच्चाई सामने आ गई और भावना की हत्या का राज खुल गया.

सबूत जुटाने के लिए राजेंद्र को 2 दिनों के रिमांड पर और लिया गया. इस बीच उस की निशानदेही पर उस के घर से सर्जिकल ब्लेड बरामद कर ली गई. हथौड़ी होटल के कमरे से बरामद ही हो चुकी थी, इसलिए 2 दिनों का रिमांड समाप्त होने पर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

निक्की यादव की बेरहम हत्या : नई दुल्हन बेड पर, पहली फ्रिज में – भाग 3

‘‘आज तुम्हारे साथ निक्की नजर नहीं आ रही है, जो रोज तुम्हारे साथ ही बस में दिखलाई देती थी.’’ उस लड़की ने पूछा.

‘‘तुम जानती हो निक्की को?’’ साहिल ने उतावलेपन से पूछा.

‘‘जानती हूं, मैं उस की सहेली हूं.’’

‘‘अरे वाह!’’ साहिल खुश हो कर बोला, ‘‘आज मैं तुम से ही निक्की के बारे में सब जान लूंगा.’’

युवती मुसकराई, ‘‘क्यों, क्या निक्की तुम्हें पसंद आ गई है?’’

‘‘बहुत ज्यादा.’’ साहिल ठंडी सांस भर कर बोला, ‘‘निक्की कौन है, कहां से आती है, मैं सब जानना चाहता हूं.’’

‘‘तो फिर निक्की से क्यों नहीं पूछ लेते?’’

‘‘डरता हूं यार, अगर उस का मिजाज गरम हुआ तो आंखें सेंकने का जो मौका रोज मिल रहा है, वह कहीं हाथ से चला न जाए.’’

‘‘नहीं जाएगा.’’ वह युवती हंस कर बोली,  ‘‘लो पूछ लो, निक्की से जो पूछना चाहते हो.’’ कहने के बाद उस लड़की ने चेहरे से दुपट्टा हटा दिया.

साहिल चौंक पड़ा. दुपट्टे के पीछे खुद निक्की ही थी, वह मंदमंद मुसकरा रही थी. साहिल उसे देख कर बगलें झांकने लगा था.

‘‘पूछो न,’’ निक्की ने शरारत की, ‘‘अब सिट्टीपिट्टी क्यों गुम हो गई? तुम आज चेहरा छिपा कर बस में आई हो निक्की, तुम्हें बस में न देख कर मेरी आधी जान निकल गई थी.’’ साहिल ने ठंडी सांस भर कर कहा.

‘‘मैं रोज तुम्हें ताड़ रही थी. तुम चोरीचोरी मुझे देखते रहते थे, तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार है या तुम यूं ही आंखें सेंकते रहते हो, यही जानने के लिए मैं ने आज चेहरा ढंका था. मैं देख रही थी, मुझे बस में न देख कर तुम परेशान और उदास हो गए हो.’’

‘‘हां निक्की, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं, तभी तो तुम्हें आज बस में नहीं पाया तो मन बेचैन और उदास हो गया.’’

‘‘अब तो खुश हो?’’ निक्की ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘बहुत ज्यादा.’’ साहिल ने बेझिझक निक्की का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘चलो, आज प्यार के नाम पर कोचिंग से बंक मारते हैं.’’

‘‘चलो, किसी रेस्तरां में बैठते हैं, वहां हम एकदूसरे को पहचानेंगे, तुम अपनी कहना, मैं अपनी.’’ निक्की ने कहा.

दोनों एक रेस्तरां में आ कर बैठ गए. साहिल ने कौफी, बिसकुट, समोसे आदि मंगा लिए. कौफी पीने के दौरान दोनों ने एकदूसरे के बारे में बहुत कुछ जान लिया.

इस तरह हुई प्यार की शुरुआत

निक्की ने बताया कि वह हरियाणा के झज्जर की रहने वाली है. उस के पिता सुनील यादव हैं. वह उन की लाडली बेटी है. पिता उसे अच्छी शिक्षा दिलवाना चाहते हैं तभी कोचिंग के लिए यहां भेजा है. वह दिल्ली के द्वारका इलाके में किराए पर अपनी बहन के साथ रहती है.

साहिल ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मेरे पिता का नजफगढ़ के मित्राऊं गांव में खेत है, उसी में ढाबा है, जिसे पिताजी चलाते हैं. हम जाति से गहलोत हैं. मेरे पिता मुझे भी अच्छी शिक्षा दिलवाना चाहते हैं. यहां मैं एसएससी की तैयारी कर रहा हूं. मैं अपने पिता की इकलौती संतान हूं.’’

एकदूसरे की पृष्ठभूमि जान लेने के बाद उन्होंने इस दोस्ती को कुबूल कर के आगे कदम बढ़ा दिया. उन की यह मुलाकात 2018 में शुरू हुई थी, जो धीरेधीरे इतनी गहरी हो गई कि दोनों एकदूसरे को दिल की गहराइयों से प्यार करने लगे.

बाद में साहिल ने ग्रेटर नोएडा के एक कालेज में डीफार्मा में प्रवेश ले लिया था. निक्की ने भी उसी कालेज में बीए (इंग्लिश आनर्स) में दाखिला ले लिया. वे दोनों घर से दूर एक ही कमरे में किराए पर रहने लगे.

साहिल निक्की को मनाली, ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून सहित कई हिल स्टेशनों पर घुमाने ले जा चुका था. निक्की को ऐसी जगह बहुत पसंद थी, दोनों पूरी मस्ती से सैरसपाटा कर के जिंदगी को एंजौय कर रहे थे. उन्हें रोकनेटोकने वाला कोई था नहीं. न साहिल ने अपने घर में निक्की का जिक्र किया था, न निक्की ने अपने परिवार में साहिल की दोस्ती और उस से प्यार हो जाने की बात बताई थी.

कोरोना काल में वे दोनों ग्रेटर नोएडा छोड़ कर अपनेअपने घर चले गए थे. बाद में फिर ग्रेटर नोएडा आ कर एक साथ रहने लगे. ग्रेटर नोएडा के ही एक आर्यसमाज मंदिर में दोनों ने पहली अक्तूबर, 2020 को शादी भी कर ली. यह बात दोनों ने ही अपने घर वालों को नहीं बताई.

कुछ दिनों बाद साहिल के घर वालों को जब पता चला कि उन के इकलौते बेटे ने यादव जाति की निक्की से शादी कर ली है तो उन्हें बहुत दुख हुआ. उन्होंने उसे अपनी बहू के रूप में स्वीकारने से मना कर दिया. वह अपनी बिरादरी की लड़की से ही उस की शादी करना चाहते थे. इसलिए दिसंबर 2022 में उन्होंने दिल्ली के मंडोला गांव की लड़की के साथ उस की शादी तय कर दी और 9 फरवरी, 2023 को सगाई की तारीख तय कर दी. साहिल घर वालों की किसी बात का विरोध नहीं कर पा रहा था, वह निक्की को शादी की बात बता कर नाराज नहीं करना चाहता था.

शादी की बात पर भड़की निक्की

लेकिन किसी तरह से निक्की को यह बात पता चल ही गई. उसे यह भी पता चल गया कि 9 फरवरी, 2023 को साहिल की घुड़चढ़ी है और 10 फरवरी को बारात जाएगी. इस खबर ने निक्की की नींद उड़ा दी. उसे बिलकुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि साहिल उस के साथ इतना बड़ा धोखा करेगा. निक्की ने साहिल से मुलाकात कर अपना विरोध जताया.

इस में सरासर गलती साहिल की थी, इसलिए वह शांत हो कर निक्की के गुस्से को झेलता रहा. उस ने कहा, ‘‘निक्की, मैं सच में घर वालों का विरोध नहीं कर सका. लेकिन मैं सच कहता हूं कि मेरी शादी भले ही कहीं और हो जाए पर मेरा प्यार हरगिज कम नहीं होगा. मैं पहले ही तरह ही तुम से प्यार करता रहूंगा.’’

‘‘साहिल, प्यार कोई सामान नहीं है जो बांटा जाए. तुम्हारे ऊपर सिर्फ मेरा हक है. मैं ने तुम से शादी की है, जिस का हमारे पास सबूत भी है. इसलिए अपने प्यार को मैं हरगिज भी बंटने नहीं दूंगी,’’ निक्की ने साफ कह दिया.

‘‘निक्की, तुम ठीक कह रही हो, मैं भी तुम्हें ही प्यार करता हूं,’’ कुछ देर सोचने के बाद साहिल बोला, ‘‘देखो, अब मैं शादी के चक्कर में फंस ही गया हूं. 10 फरवरी को मेरी शादी है. इस से पहले कि मेरी शादी हो, हम दोनों यहां से गोवा भाग चलेंगे. फिर हम कहीं रह लेंगे.’’

साहिल की इस बात पर निक्की सहमत हो गई. 9 फरवरी, 2023 को साहिल की घुड़चढ़ी हुई. अगले दिन बारात जानी थी. इस से पहले घर से भागने की योजना वह निक्की के साथ पहले ही बना चुका था. इसलिए 9-10 फरवरी की रात को लगभग एक बजे वह द्वारका की परमार कालोनी में निक्की के फ्लैट पर अपने चचेरे भाई की कार ले कर पहुंच गया. वहां निक्की अपनी छोटी बहन के साथ रहती थी. कभीकभी साहिल भी उस के फ्लैट पर पहुंच जाता था.

आबरू की खातिर कातिल बन गई रीना

उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में ग्रीन पार्क कालोनी का रहने वाला 50 साला सोमपाल एक कालेज में गणित का टीचर था. उस के पास शिक्षा व गृहस्थी दोनों का तजरबा था. बाहरी तौर पर वह अच्छा दिखता था और लोगों से कम ही वास्ता रखता था. परिवार में पत्नी के अलावा 3 बच्चे थे, जिन में 2 बेटियां व सब से छोटा बेटा था. इन बच्चों में 16 साला रीना (बदला नाम) बड़ी थी. 11वीं क्लास में पढ़ने वाली रीना पढ़ाई में बेहद होशियार थी. क्लास में उस की अच्छी पोजीशन आती थी. उस का सपना आईएएस बनने का था.

सोमपाल खुद तो आसपड़ोस में कम ही रिश्ता रखता था, साथ ही उसे यह भी पसंद नहीं था कि उस की पत्नी या बच्चे किसी से ज्यादा वास्ता रखें. सोमपाल की ससुराल पक्ष से भी नहीं बनती थी. पत्नी के वहां जाने पर वह उस से झगड़ा किया करता था.

नहीं थे नेक इरादे

बेटी रीना को लेकर पिता सोमपाल के इरादे नेक नहीं थे. वह बहाने से उसे छूने की कोशिश करता था. जवान होती बेटी के जिस्म पर उस की नजरें अकसर फिसलती थीं.

जब बेटी बाथरूम आतीजाती थी, तो वह उसे अजीब नजरों से देखता था. कभी रात में वह जागता, तो भी रीना को अजीब नजरों से घूरता.

रीना ने शुरू में इन बातों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन पिता का बरताव उसे समय के साथ खटकने लगा. वह उम्र के उस पायदान पर थी, जहां मर्द की घूरती नजरों का मतलब समझने लगी थी.

कई दिन सोचनेसमझने के बाद उस ने अपनी मां से दबी जबान से पिता की इन आदतों की शिकायत की, लेकिन मां ने इसे बेटी की गलतफहमी समझा और उसे भी भविष्य में चुप रहने की हिदायत दी.

जनवरी महीने में एक दिन रीना की मां ने मायके जाने की बात कही, तो सोमपाल ने उसे इस की इजाजत दे दी. वह 2 बच्चों के साथ कुछ दिनों के लिए उत्तराखंड के पंतनगर में अपने मायके चली गई.

रीना भी मां के साथ जाना चाहती थी, लेकिन सोमपाल ने पढ़ाई का वास्ता दे कर उसे भेजने से मना कर दिया.

कत्ल की रात…

वाकिआ 2 जनवरी, 2017 की रात को हुआ. रात में दोनों ने साथ खाना खाया. तकरीबन 10 बजे दोनों सोने चले गए. पिता के कमरे में ही रीना दूसरे पलंग पर लेट गई.

रीना को पता नहीं था कि उस रात सोमपाल की नीयत में पूरी तरह से खोट आ चुका था. सोमपाल ने पहले तो बेटी रीना से इधरउधर की बातें कीं, फिर उस से अपने ही बैड पर आ कर सोने को कहा. वह सहज भाव से वहां आ कर सो गई.

रात के तकरीबन 2 बजे उस की आंख खुली, तो उस ने सोमपाल का हाथ अपने ऊपर रखा पाया. उस ने सोचा कि पिता का हाथ करवट लेते वक्त धोखे से उस के ऊपर आ गया होगा. उस ने हाथ हटा दिया, लेकिन कुछ देर बाद ही सोमपाल की हरकतें बढ़ती गईं. वह उस के नाजुक अंगों पर हाथ लगा कर सहलाने लगा.

रीना ने विरोध कर के बचने की कोशिश की, तो वह जबरन कब्जा कर उस से गलत काम करने की कोशिश करने लगा.

रीना ने अपनी इज्जत बचाने की ठान ली. वह उस के चंगुल से छूट कर बैड से उतरी, तो सोमपाल ने उसे फिर से दबोच लिया. कुछ नहीं सूझा, तो रीना इस बार उस से छूट कर ड्राइंगरूम में पहले से रखी लोहे की छड़ निकाल लाई और सोमपाल के सिर पर 2-3 वार कर दिए. सोमपाल लहूलुहान हो कर गिर पड़ा. रीना सिर थाम कर बैठ गई. बाद में उस ने अपनी मां को फोन से इस की सूचना दी.

सुबह की सनसनी

सोमपाल के ससुर ने तड़के पुलिस कंट्रोल को सूचना दी और तकरीबन 6 बजे खुद भी पहुंच गए. बैडरूम के दरवाजे पर सोमपाल की लाश पड़ी थी. बिस्तर पर खून के निशान थे. कमरे से बह कर खून बरामदे तक फैला हुआ था. पुलिस ने खून से सनी हत्या में इस्तेमाल की गई छड़ बरामद कर ली.

फोरैंसिक ऐक्सपर्ट टीम को भी मौके पर बुला लिया गया, जिस ने फिंगर प्रिंट व फुट प्रिंट समेत कई सुबूत इकट्ठा किए. मौके का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था. शक यह भी था कि रीना ने मनगढ़ंत कहानी न बनाई हो.

पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल भी निकलवाई. उस के बयानों को सच की कसौटी पर परखा गया. परिवार वालों से भी गहन पूछताछ की गई.

रीना ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था. उस के मुताबिक, पिता की हरकतों से घर उस के लिए कैदखाना बन गया था. वह सनकी इनसान था. वह छड़ से पिता को डरा कर अपनी इज्जत बचाना चाहती थी.

अगर रीना ऐसा नहीं करती, तो खुद मारी जाती, क्योंकि सोमपाल ने उस के हाथ से छड़ छीन कर उस पर ही वार करने की कोशिश की, जिस के बाद हाथापाई कर के रीना ने छड़ छीन कर पिता पर ही वार कर दिया.

सोमपाल के परिवार वाले को रीना की कहानी पर भरोसा नहीं था, लेकिन उस की पत्नी ने स्वीकार किया कि रीना ने कई बार पिता की शिकायत उस से की थी. उस ने सोचा नहीं था कि कभी ऐसा भी हो सकता है. शिकायत को गंभीरता से लिया होता, तो शायद यह दिन नहीं देखना पड़ता.

रिश्ते को बदनाम करती इस वारदात ने समाज के सामने अहम सवाल छोड़ दिया. मनोवैज्ञानिक डाक्टर सुविधा शर्मा कहती हैं, ‘‘यह कोई साधारण बात नहीं है. डाक्टरी भाषा में इसे टास्क ओरिएंटिड रिऐक्शन कहा जाता है और इस में भी यह अटैक रिऐक्शन है. लड़की को फैमिली सपोर्ट की जरूरत थी. पिता परेशान कर रहा था और मां मदद नहीं कर रही थी. समझदारी वाला कोई कदम उठाया गया होता, तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती.’’

पिता के कत्ल की आरोपी रीना अब नारी सुधारगृह में है. उस के पक्ष में सामाजिक संगठन भी उतरे हैं.

लड़की का कहना था कि उस का इरादा हत्या करना नहीं था. बचाव में उस ने हमला किया, जिस से पिता की मौत हो गई. इस वारदात का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था.

लड़की के बयान और हालात के हिसाब से पुलिस ने जांच की. बकौल एसपी समीर सौरभ, ‘‘लड़की ने सैल्फ डिफैंस में पिता पर हमला किया, इसलिए गैरइरादतन हत्या के मद्देनजर जांचपड़ताल आगे बढ़ाई.’’

दूसरी तरफ कानून के जानकारों का यह मानना है कि रीना ने अपनी आबरू बचाने के लिए ऐसा सख्त कदम उठाया. उसे कानून की हमदर्दी तो मिलेगी ही, बशर्ते उसे यह साबित करना होगा कि यह हत्या उस ने सैल्फ डिफैंस में की थी. अगर वह ऐसा नहीं कर पाई, तो उस को सजा भी हो सकती है.

एहसान फरामोश : भांजे ने की मामा की हत्या – भाग 2

विजय और प्रदीप ज्यादा नहीं पढ़ पाए थे. शादी के बाद दोनों भाई खेती करने के अलावा खर्चे के लिए गांव में ही घर की जरूरतों के सामानों की एक दुकान खोल ली थी. दोनों भाई भले ही नहीं पढ़ पाए थे, लेकिन वे अपने छोटे भाइयों संदीप और देवेंद्र की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे रहे थे.

इसी का नतीजा था कि संदीप ने बीटेक कर लिया. इस के बाद उसे दिल्ली में नौकरी मिल गई तो वह देवेंद्र को भी अपने साथ दिल्ली ले आया. देवेंद्र नौकरी करने के साथसाथ सीए की तैयारी भी कर रहा था. विजय का अपना परिवार तो व्यवस्थित हो गया था, लेकिन बड़ी बहन मंजू के पति की मौत हो जाने से वह परेशानी में पड़ गई. उस के 3 बच्चे थे, 2 बेटे शिवम और दीपक तथा एक बेटी मानसी.

पति की मौत से मंजू को खर्चा चलाना मुश्किल हो गया तो विजय भांजों की पढ़ाई का नुकसान न हो, यह सोच कर उन्हें अपने घर ले आया. उधर मंजू को एक स्कूल में आया की नौकरी मिल गई तो उस की परेशानी थोड़ी कम हो गई.

शिवम ने मामा के घर रह कर इंटर तक की पढ़ाई की. बहन की परेशानी को देखते हुए विजय उसे अपने घर रख कर पढ़ा तो रहा था, लेकिन वह भांजे से खुश नहीं था. इस की वजह यह थी कि उस के खर्चे बहुत ज्यादा थे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह रुपए कहां खर्च करता है.

जब तक शिवम ननिहाल में रहा, तब तक थोड़ाबहुत मामा के अंकुश में रहा. लेकिन 12वीं पास कर के वह मां के पास आ गया तो पूरी तरह से आजाद हो गया. फिरोजाबाद में उस ने बीएससी करने के लिए एक कालेज में दाखिला ले लिया.

ननिहाल से उसे पढ़ाई का खर्चा मिल रहा था, इस के बावजूद अपने अन्य खर्चों के लिए वह जब चाहता, घर का कोई न कोई सामान बेच देता. इसी तरह धीरेधीरे एकएक कर के उस ने पिता की बैंड पार्टी के सारे बाजे बेच दिए. उस की इन हरकतों से मां ही नहीं, मामा भी दुखी थे. लेकिन सब यही सोच रहे थे कि पढ़लिख कर वह कुछ करने लगेगा तो चिंता खत्म हो जाएगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

सब की अपनीअपनी परेशानियां थीं, ऐसे में शिवम पर नजर रखना आसान नहीं था. शिवम ने बीएससी कर लिया तो विजय ने गुड़गांव में अच्छी कंपनी में इंजीनियर के रूप में काम करने वाले अपने छोटे भाई संदीप से कहा कि वह शिवम को अपने साथ रख कर कहीं कोई काम दिला दे, वरना वह हाथ से निकल जाएगा.

संदीप गुड़गांव में छोटे भाई देवेंद्र के साथ रहता था. वह वहां एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर था. उसे बढि़या तनख्वाह मिल रही थी. वह अपनी रिश्तेदारी की एक लड़की उमा से प्यार करता था. वह आगरा के दयालबाग में परिवार के साथ रहती थी. लेकिन उमा के घर वाले संदीप से उस की शादी नहीं करना चाहते थे.

जबकि उमा ने घर वालों से साफ कह दिया था कि वह शादी संदीप से ही करेगी. यही नहीं, वह संदीप से खुलेआम मिलनेजुलने भी लगी थी. दोनों जल्दी ही शादी करने वाले थे.

भाई के कहने पर संदीप ने शिवम को अपने पास गुड़गांव बुला लिया और किसी प्राइवेट कंपनी में उस की नौकरी लगवा दी. सब को लगा कि अब शिवम सुधर जाएगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. उस ने करीब एक साल तक नौकरी की, लेकिन इस बीच एक पैसा उस ने न मां को दिया और न मामा को. देने की कौन कहे, वह उलटा मां या मामाओं से पैसे लेता रहा.

फिर एक दिन अचानक शिवम नौकरी छोड़ कर फिरोजाबाद चला गया. वहां वह एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगा. सब ने सोचा कि कुछ तो कर ही रहा है, इसलिए किसी ने कुछ नहीं कहा. लेकिन जब मंजू को पता चला कि शिवम जो कमाता है, वह जुए और शराब पर उड़ा देता है तो उसे चिंता हुई. उस ने यह बात भाइयों को बताई तो वे भी परेशान हो उठे.

मामा शिवम की जिंदगी बनाना चाहते थे. इस की वजह यह थी कि उन्हें बहन की चिंता थी. फिरोजाबाद में रहते हुए शिवम को किसी लड़की से प्यार हो गया. अब उस का एक खर्च और बढ़ गया. उस के इस प्यार की जानकारी संदीप को हुई तो उस ने उसे समझाया कि उस की कमाईधमाई है नहीं और वह लड़की के चक्कर में पड़ा है.

पर शिवम को कहां किस की फिक्र थी. वह तो अपने में ही मस्त था. उसी बीच एक दिन वह गुड़गांव पहुंचा और संदीप से कहा कि वह एक बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया है.

उस की प्रेमिका गर्भवती हो गई है. अगर किसी को पता चल गया तो वह मुसीबत में फंस जाएगा. अगर वह उसे कुछ पैसे दे दें तो वह इस मुसीबत से छुटकारा पा ले.

शिवम की बात पर संदीप को गुस्सा तो बहुत आया, पर मरता क्या न करता. मुसीबत से बचने के लिए संदीप ने उसे 6 हजार रुपए दे दिए.

गुड़गांव में नौकरी करते हुए संदीप और देवेंद्र ने ब्राबो टेक्सटाइल्स नाम से एक कंपनी खोली. उन्हें उत्तर प्रदेश में मार्केटिंग के लिए एक तेजतर्रार आदमी की जरूरत थी. अब तक संदीप को पता चल चुका था कि शिवम ने प्रेमिका के गर्भवती होने की बात बता कर जो पैसे लिए थे, वह झूठी थी. इस के बावजूद उस ने सोचा कि अगर वह शिवम को उत्तर प्रदेश में मार्केटिंग में लगा दें तो शायद वह सुधर जाए.

संदीप ने शिवम को फोन कर के गुड़गांव बुलाया और ऊंचनीच समझा कर उस से अपने लिए काम करने को कहा. संदीप के कहने पर शिवम उस के लिए काम करने को तैयार हो गया. संदीप ने उसे 12 हजार रुपए प्रति महीना वेतन देने को कहा. कारोबार के लिए के.के. नगर, आगरा में एक कमरा भी ले लिया.

रौंग नंबर करके शादीशुदा को फांसा – भाग 3

सवा 3 बजे सचिन का नंबर हेमा के मोबाइल फोन के स्क्रीन पर चमका. साथ ही फोन की घंटी बजने लगी. हेमा ने तुरंत काल रिसीव की, ‘‘कहां हो सचिन?’’

‘‘मैं बस से उतर गया हूं. तुम बताओ, मुझे कहां आना है?’’

हेमा ने उसे बाहर मेनरोड पर आने का पूरा विवरण समझाते हुए कहा, ‘‘मैं बाहर मेनगेट के दाईं ओर खड़ी हूं.’’

उम्मीद से भी ज्यादा हैंडसम निकला प्रेमी

कुछ ही देर में सचिन आनंद विहार के प्रवेश द्वार पर पहुंच गया. लाल साड़ी में सजीसंवरी खड़ी युवती पर नजर पड़ी तो सचिन ने अनुमान लगा लिया कि वही हेमा है. उस ने अपना हाथ उठा कर हिलाया. हेमा अपने से कुछ दूरी पर खड़े जवान और हैंडसम युवक को टकटकी बांधे देखती रह गई.

उस की सोच से कहीं अधिक स्मार्ट था वह युवक. किसी हीरो जैसा खूबसूरत, यही सचिन होगा. अनुमान लगा कर हेमा उस युवक की ओर लपकी. सचिन भी उस की तरफ लपका. दोनों करीब आ गए तो हेमा के मुंह से चहकता स्वर निकला, ‘‘सचिन?’’

‘‘हेमा…’’ सचिन उत्साह से बोला.

और उस ने हेमा की ओर से हां का इशारा मिलते ही जोश में भर कर हेमा का हाथ पकड़ कर चूम लिया, ‘‘तुम्हारी आवाज ही नहीं, तुम भी बहुत स्वीट हो हेमा.’’

हेमा शरमा गई. सचिन द्वारा बेहिचक हाथ पकड़ कर चूम लेने से उस के गालों पर सुर्खी दौड़ गई. वह शरमाए स्वर में बोली, ‘‘यह पब्लिक प्लेस है सचिन, हाथ छोड़ो.’’

सचिन मुसकराया और उस ने हेमा का हाथ छोड़ दिया. कुछ क्षण वे एकदूसरे को ऊपर से नीचे तक देखते रहे. जैसे मन ही मन निर्णय ले रहे हो कि उन दोनों से दोस्त चुनने में कोई चूक तो नहीं हो गई. जब दोनों ने एकदूसरे को जी भर कर देख लिया तो सचिन बोला, ‘‘चलो किसी अच्छे रेस्टोरेंट में चल कर खाना खाएंगे, वहीं बैठ कर बातें भी

कर लेंगे.’’

‘‘चलो,’’ हेमा ने कहा.

दोनों एक आटो में सवार हो गए. हेमा ने आटो वाले को मयूर विहार फेज-1 चलने को कहा. आटो में बैठे दोनों एकदूसरे की धड़कनों की आवाज सुनते रहे. होंठों से इन के कोई बोल नहीं निकला.

आटो से वे मयूर विहार फेज-1 आ गए.  आटो का किराया सचिन ने दिया. हेमा यहां के बाजार में कई बार आई थी, उस ने अपने पति के साथ एक रेस्टोरेंट में बैठ कर एक बार डोसा खाया था. वह सचिन को उसी रेस्टोरेंट में ले कर आई. दोनों एक खाली टेबल के पास पड़ी कुरसियों पर बैठ गए. वेटर तुरंत उन के करीब आ गया.

‘‘क्या खाओगी हेमा?’’ सचिन ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.

‘‘जो तुम्हें पसंद हो,’’ हेमा ने मुसकरा कर कहा.

सचिन ने वेटर को डोसा का आर्डर दे दिया. हेमा की यही चौइस थी. सचिन ने उस की मनपसंद डिश मंगवाई थी. डोसा आ गया तो दोनों खाने लगे. दोनों कनखियों से एकदूसरे को देख रहे थे. खामोशी अखरने लगी तो सचिन ने हेमा की ओर झुक कर इस खामोशी को तोड़ा.

‘‘अपने बारे में बताओ हेमा, मंडावली में कहां रहती हो? घर में कौनकौन हैं तुम्हारे?’’

‘‘मैं अपनी सच्चाई तुम से नहीं छिपाऊंगी सचिन,’’ हेमा गंभीर स्वर में बोली, ‘‘अगर छिपाऊंगी तो बाद में मेरे विषय में सब मालूम होने पर तुम्हें मुझ से नफरत हो सकती है. अभी हमारी पहली मुलाकात है, तुम्हें मेरी सच्चाई सुन लेने के बाद फैसला लेने का पूरा अधिकार होगा कि तुम इस दोस्ती को निभाओ या यहीं से दोस्ती तोड़ कर मथुरा लौट जाओ.’’

‘‘ऐसी क्या बात है हेमा, जो तुम इतना गंभीर हो गई?’’ सचिन हैरान हो कर बोला.

‘‘सचिन, मैं शादीशुदा औरत हूं. मेरा पति भी है और 2 बेटे भी हैं.’’

‘‘और कुछ?’’ सचिन ने मुसकरा कर कहा.

‘‘तुम मुसकरा रहे हो?’’ हेमा ने उसे आश्चर्य से देखा, ‘‘तुम्हें मेरी सच्चाई सुन लेने के बाद तो उठ कर चले जाना चाहिए था.’’

‘‘हेमा, मैं ने पहली बार तुम्हें फोन लगाया था, तभी अनुमान लगा लिया था कि तुम शादीशुदा हो. हां, तुम 2 बेटों की मां हो, यह अब मालूम हुआ है.’’

‘‘तो अब आगे?’’ हेमा ने उस की आंखों में देखा.

‘‘अरे मैडम, जब शादी हुई तो बच्चे भी होंगे 2 हों या 4, मुझे फर्क नहीं पड़ता. तुम जैसी हो, मेरी नजर में अच्छी हो.’’ सचिन इस बार गंभीर हो गया.

‘‘मेरी उम्र 37 साल हो गई है सचिन, क्या तब भी तुम्हारी दोस्ती मेरे लिए कायम रहेगी?’’ हेमा ने पूछा.

‘‘हां हेमा,’’ सचिन के स्वर में वही गंभीरता थी, ‘‘मैं ने तुम्हारी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, मेरी दोस्ती तुम कुबूल करोगी या नहीं, अब यह तुम्हें बताना है.’’

‘‘मैं तो खुद को भाग्यशाली मान रही हूं सचिन, तुम्हारे जैसा सच्चा दोस्त मुझे मिला है. बस मुझे कभी भुला मत देना,’’ हेमा ने भावुक स्वर में कहा.

‘‘कभी नहीं. अभी मैं सिर्फ 22 साल का हूं हेमा, मैं 82 साल का हो जाऊंगा, तब भी तुम्हें यूं ही अपनी दोस्त मानता रहूंगा.’’ सचिन ने दृढ़ स्वर में कहा.

डोसा खत्म हुआ तो सचिन ने रसमलाई और फिर आइसक्रीम भी मंगवा कर हेमा को पहली मुलाकात और दोस्ती के नाम पर खिला कर विदा लिया. शाम को वह वापस मथुरा के लिए रवाना हो गया. इस के बाद दोनों की फोन पर बातें होती रहतीं.

पति को ले कर पहुंची अस्पताल

दिसंबर 2022 को हेमा घबराई हुई अपने घर से निकल कर अपनी पड़ोसन सुधा (परिवर्तित नाम) के घर पहुंची. सुधा उस की हालत देख कर चौंक पड़ी. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या हुआ हेमा? तू इतनी घबराई हुई क्यों है?’’

‘‘मेरे पति सुरेश ने बहुत ज्यादा शराब पी रखी है दीदी, काफी देर से सो रहे हैं. जब मैं ने उठाने की कोशिश की तो वह उठ नहीं रहे. चल कर देखो तो…’’ हेमा घबराए स्वर में बोली.

‘‘चलो, देखती हूं.’’ सुधा ने कहा और हाथ में उठाया जग नीचे रख कर वह दौड़ती हुई हेमा के साथ उस के घर में आ गई. एक चारपाई पर हेमा का पति सोता नजर आया. सुधा ने उस के पास पहुंच कर 2-3 बार पुकारा, ‘‘भाई सुरेश, आंखें खोलो. भाई उठ कर बैठो.’’

सुरेश बेहोश पड़ा रहा. तब सुधा ने उसे जोरजोर से हिलाया. सुरेश के शरीर में कोई हरकत न होते देख कर वह घबरा गई, ‘‘हेमा, मुझे तो लगता है ज्यादा पी लेने से बेहोश हो गया है. इसे अस्पताल ले जाओ.’’

‘‘दीदी, आप भी साथ चलिए, मेरा तो जी घबरा रहा है.’’ हेमा कहते हुए लगभग रो पड़ी.

‘‘हिम्मत रखो हेमा. चलो, मैं साथ चलती हूं. मैं मीना (परिवर्तित नाम) को भी साथ चलने को कह देती हूं.’’ सुधा ने कहा और तेजी से बाहर निकल गई.

थोड़ी ही देर में हेमा, सुधा और मीना के साथ अपने बेहोश पड़े पति सुरेश को ले कर पास में ही स्थित लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल के लिए आटो से निकली.

स्वार्थ की राह पर बिखरा अपनों का खून – भाग 2

मन में अजीब सी कशमकश लिए महावीर दिल्ली चला तो गया लेकिन वहां उस का मन नहीं लगा. निर्मला उस के जेहन में हलचल मचाती रही. 15 दिन बाद उस ने फिर छुट्टी ली और घर आ गया. इतनी जल्दी घर लौटने पर घर वालों ने पूछा तो उस ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया.

महावीर को मालूम था कि बदन सिंह दोपहर के समय खेतों पर चला जाता है और फिर शाम ढले ही लौटता है. इसी मौके का फायदा उठा कर वह निर्मला का दिल टटोलना चाहता था. अगले दिन दोपहर में वह नहाधो कर तैयार हुआ और पत्नी से यह कह कर घर से निकल गया कि वह डाक्टर के पास दवा लेने जा रहा है. अपने घर से वह सीधा बदन सिंह के घर पहुंचा.

अचानक महावीर को आया देख कर निर्मला बोली, ‘‘अरे देवरजी, तुम इतनी जल्दी दिल्ली से आ गए.’’

‘‘आप को देखने का दिल कर रहा था, इसलिए आ गया.’’ महावीर ने मजाक किया. उस की बात पर निर्मला हंसते हुए बोली, ‘‘आप तो बड़े मजाकिया हो.’’ कह कर निर्मला रसोई में गई और फिर कुछ देर में उस के लिए चाय बना कर ले आई.

महावीर चुपचाप चाय पीने लगा. उस के दिमाग में यही बात घूम रही थी कि अपने मन की बात उस से कैसे कहे. तभी निर्मला ने उस से पूछा, ‘‘चुप क्यों हो, क्या हमारी देवरानी से झगड़ा हुआ है?’’

‘‘नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल, मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं थी पर आप की इस चाय ने मुझे भलाचंगा कर दिया है.’’

‘‘क्यों, हमारी देवरानी को चाय बनानी भी नहीं आती क्या?’’ कहते हुए निर्मला हंसी.

‘‘नहीं भाभी, वो सब तो ठीक है पर बहुत सी बातें हैं जो आप को आती हैं और उसे नहीं आतीं. भाभी, कभी आप ने खुद को आईने के सामने गौर से देखा है. आप जितनी सुंदर हैं, पूरे गांव में इतनी सुंदर औरत कोई नहीं है.’’ महावीर ने तारीफ की.

‘‘ओह देवरजी, बहुत हो गया. अब मुद्दे पर आ जाओ. आखिर इतनी तारीफें क्यों कर रहे हो. कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है?’’ निर्मला हंसते हुए बोली.

इस से महावीर की थोड़ी हिम्मत बढ़ी, तभी उस ने आगे बढ़ कर निर्मला का हाथ पकड़ लिया. महावीर की इस हरकत से निर्मला को झटका सा लगा. उस ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, ‘‘ये सब क्या है?’’

‘‘भाभी, मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं. पर यह सच है कि मैं आप से बहुत प्यार करता हूं.’’

‘‘अजीब आदमी हो, तुम जानते हो कि अगर तुम्हारे दोस्त को पता चल गया तो क्या होगा? लगता है तुम्हारी तबीयत सचमुच ठीक नहीं है इसलिए अभी अपने घर चले जाओ और आराम करो.’’  निर्मला ने नसीहत दी.

महावीर ने तो सोचा था कि वह अपनी मीठीमीठी बातों से निर्मला को बहला लेगा पर पासा उलटा पड़ गया. वह अपमानित सा वहां से चला आया और घर में आ कर सिर पकड़ कर बैठ गया.

केला चाय बना कर ले आई और पूछा, ‘‘दवा ले आए?’’

‘‘नहीं, डाक्टर की दुकान बंद थी.’’

केला कुछ नहीं बोली. महावीर चाय पी कर चादर ओढ़ कर लेट गया. उसे इस बात का डर था कि अगर निर्मला ने अपने पति को उस के बारे में बता दिया तो तूफान आ जाएगा. पर रात तक कुछ नहीं हुआ तो महावीर ने चैन की सांस ली. अगले दिन महावीर दिल्ली चला गया.

बेशक निर्मला ने उस के प्यार को स्वीकार नहीं किया था फिर भी दिल्ली में उस का मन नहीं लगा. आखिर नौकरी छोड़ कर वह घर लौट आया.

सामान सहित घर लौटे महावीर को देख कर घर वाले चौंके. पत्नी ने पूछा, ‘‘ये सब क्या है?’’

‘‘तुम हमेशा कहती थी न कि मैं खेती देखूं. अब हम साथसाथ रहेंगे. सच कहूं केला, तुम्हारे और यशवीर के बिना मेरा दिल्ली में दिल नहीं लगता था इसलिए चला आया.’’ महावीर ने कहा. पर इस की असल वजह उस के अलावा कोई नहीं जानता था.

बदन सिंह ने जब निर्मला को बताया कि महावीर नौकरी छोड़ कर आ गया है तो वह उस के गांव लौटने की असल वजह समझ गई.

निर्मला ने उस दिन महावीर का प्रस्ताव ठुकरा दिया था पर बाद में न जाने क्यों उस का झुकाव महावीर की ओर हो गया था. उसे अब अपने किए का पछतावा हो रहा था. उस का मन कर रहा था कि वह महावीर से इस  के लिए माफी मांगे. इसी तरह के विचार उसे बेचैन कर रहे थे.

आखिर निर्मला को एक तरीका सूझा. उस ने पति का मोबाइल चैक किया तो उसे उस में महावीर का नंबर मिल गया. दोपहर को जब बदन सिंह खेत पर चला गया तो उस ने महावीर का नंबर मिलाया. महावीर ने हैलो कहा तो निर्मला के दिल की धड़कनें तेज होने लगीं. तभी महावीर ने कहा, ‘‘अरे भाई बोलो भी, चुप क्यों हो.’’

तभी निर्मला ने हैलो कहा तो महावीर के दिल में घंटियां सी बजने लगीं. निर्मला अब सीधेसीधे मुद्दे पर आ गई. उस ने कहा, ‘‘आग लगा कर अब दूर क्यों भाग रहे हो?’’

‘‘ये क्या कह रही हो भाभी, मैं ने क्या किया?’’ वह नासमझ बनते हुए बोला.

‘‘ओह, तो यह भी हम ही बताएं कि तुम ने किया क्या है. यहां हम बेचैन हो रहे हैं और तुम वहां मौज कर रहे हो. अच्छा, सुनो आज रात को घर आ जाना. तुम्हारे दोस्त बाहर जा रहे हैं.’’

महावीर का हाल अजीब था. दिल की धड़कनें बेकाबू हो रही थीं. उस ने अच्छा कह कर फोन काट दिया और सोचने लगा कि क्या सचमुच निर्मला भी उसे चाहने लगी है. दिन भर वह सोच में रहा. न ठीक से खाया न ही खेत पर चैन मिला. वह बड़ी बेसब्री से रात होने का इंतजार करने लगा.

इंजीनियर ने किये ताई के 10 टुकड़े – भाग 2

13 दिसंबर, 2022 को शाम के वक्त मोनिका ने देखा कि अनुज दीवार पर घिसता हुआ कुछ साफ कर रहा है. मोनिका उस के पास गई. उस ने देखा कि दीवार पर कुछ लाल धब्बे थे, जिन पर अनुज डिटरजेंट का झाग रगड़ रहा था. वह उस पर अंगुली लगा कर पूछ बैठी, ‘‘अनुज, यह तो खून के धब्बे लगते हैं, दीवार पर कैसे?’’

‘‘अरे, दीदी! ये मेरे नाक के हैं. मैं नकसीर से परेशान हो गया हूं. आज ही दिन में नाक से खून निकल पड़ा था. हाथ में लग गया था.’’ घबराहट के साथ अनुज बोला.

‘‘अरे भाई, तू ठीक से इलाज क्यों नहीं करवाता है?’’ कह कर मोनिका वहां से चली गई.

थोड़ी देर बाद वह दोबारा उस दीवार के पास आई, जहां अनुज ने सफाई की थी. वहां खून के कई छोटेबड़े साफ किए गए निशान थे. वह उलझन में पड़ गई कि नकसीर में इतना सारा खून निकला है, वह भी सर्दी में.

वह यह नहीं समझ पा रही थी कि अनुज से इस बारे में पूछने पर घबरा क्यों गया था. उस वक्त उस के चेहरे का रंग सफेद क्यों पड़ गया था?

अपने मन की बात उस ने शिवी को भी बताई. शिवी ने अनुज की नकसीर वाली बात सिरे से इनकार कर दी. वह यहां तक बोली कि ऐसा अनुज की किसी बीमारी के बारे में पहली बार सुनने को मिला है.

शिवी को भी अनुज की नकसीर वाली बात हजम नहीं हुई. वह अनुज के पागलों जैसे तेवर और उस की आदतों से परिचित थी. कई बार उस ने उसे काफी तनाव में भी देखा और उस की अनर्गल बातें भी सुनी थीं. उस से वह न केवल आत्महत्या की बातें करता रहा था, बल्कि उस की डेट तक निर्धारित कर देता था. उस की बातों को वह मजाक में टाल दिया करती थी.

किंतु मोनिका की बात सुन कर वह भी चौंक गई. मन तो नहीं मान रहा था, फिर भी सोच में पड़ गई कि कहीं अनुज ने ताई के साथ कुछ गलत न कर दिया हो. तुरंत अपने मन को समझाया, ‘नहीं नहीं, उस का भाई ऐसा हरगिज नहीं कर सकता. क्योंकि वह तो धार्मिक विचारों का भी है. मंदिरों के कीर्तन और दूसरे धार्मिक समागम में शामिल होता रहता है. जयपुर के अलावा दिल्ली के धार्मिक संस्थानों से भी जुड़ा हुआ है.’

फिर भी उस ने एक बार उस से पूछने की हिम्मत जुटाई. शिवी ने अपनी ताई के बारे में अनुज को कुरेद दिया. अनुज पहले तो सकपकाया, सिर्फ इतना ही बताया कि जब वह इंदौर गई हुई थी, उस रोज ताई से थोड़ी बकझक हो गई थी. ताई के डांटने पर वह नाराज हो कर घर से चला गया था.

शिवी ने दीवार पर लगे खून और नकसीर की बात भी पूछी. उस के जवाब में अनुज ने स्वीकार कर लिया कि नकसीर की बात गलत है, लेकिन उस ने एक नई बात बताई. वह सुन कर शिवी चौंक पड़ी.

उस ने बताया कि वह जिस रोज पापा के साथ इंदौर गई हुई थी, उसी रोज ताई से तूतूमैंमैं हो गई थी. तब बात बहुत बढ़ गई थी. उन्होंने मारने के लिए उस पर हाथ उठा लिया था.

तब उस ने बचाव करते हुए ताई को धक्का दे दिया था. इसी धक्के के चलते ताई का सिर दीवार से टकरा गया था. उन के सिर से खून भी निकल आया था. इस के बाद वह उसी वक्त घर से चली गई थीं.

अनुज ने बताया कि उस के थोड़ी देर बाद ही वह भी घर से चला गया था. वापस लौटने पर उस ने दीवार पर खून के धब्बे देखे थे, जो सूख चुके थे. उसे ही साफ करते हुए मोनिका ने देखा था. शिवी को अनुज की बात न जाने क्यों अधूरी और कुछ छिपाने जैसी लगी कि ताई के साथ जरा सी बात पर उस ने आखिर जोर का धक्का क्यों मारा होगा?

ताई तो अकसर उसे किसी न किसी बात पर समझाती रहती थीं, उस की आदतों को सुधारने की कोशिश में लगी रहती थीं. डांटती जरूर थीं, लेकिन मां की तरह प्यारदुलार भी करती थीं.

शिवी ने अनुज की कहानी पापा को बताई. साथ ही उस ने आशंका जताई, ‘‘पापा, कहीं अनुज ने ताई का मर्डर तो नहीं कर दिया. वह सनकी तो है ही.’’

‘‘अरे नहीं…नहीं! तुम्हारा भाई ऐसा कर ही नहीं सकता है. वह समझदार है. पढ़ालिखा इंजीनियर है. ताई को मां की तरह मानता है. हां, मां के निधन के बाद थोड़ा दुखी जरूर रहता है. मां के जाने का गम भुला नहीं पाया है…’’ बद्रीप्रसाद बेटी को समझाते हुए बोले.

‘‘लेकिन पापा, उस ने मोनिका दीदी को कुछ और बताया और मुझे कुछ और!’’ शिवी ने तर्क किया.

‘‘तुम कहती हो तो मैं उस से कल दिन में पूछूंगा, यदि इस में जरा सा भी मुझे शक हुआ तो मैं उसे कानून के हवाले करने से पीछे नहीं हटूंगा.’’ बद्री प्रसाद बोले.

शिवी का अनुज पर शक बना हुआ था. इसी तरह मोनिका ने भी जब से अनुज को दीवार पर खून के धब्बे साफ करते देखा था, तभी से उस पर संदेह करने लगी थी. उस के दिमाग में भी एक ही विचार बारबार आ रहा था कि कहीं अनुज ने उस की मां को मार न डाला हो. वह तो है ही अधपागल इंसान.

परिवार में सभी के मन में अनुज के प्रति शक का कीड़ा दौड़ने लगा था. इस का कारण भी था कि 5 दिन बीत जाने के बावजूद लापता सरोज शर्मा का कोई सुराग नहीं मिल रहा था.

इसी बीच मोनिका की बहन पूजा भी अपनी ससुराल से अजमेर पहुंच चुकी थी. उस की नजर अपार्टमेंट में लगे सीसीटीवी कैमरे पर गई. उस ने इस की जांच करवाने के लिए पुलिस को कहा.

उस से पहले उस ने 11 दिसंबर की फुटेज देखी. उस में अनुज शाम को बाल्टी और सूटकेस ले कर आता हुआ दिखा.

यह बात उस ने सिर्फ अपनी बहन मोनिका को बताई और अगले रोज 16 दिसंबर को दोनों बहनें विद्यानगर थाने जा कर एसएचओ वीरेंद्र कुरील से मिलीं और नए सिरे से जांच करने का अनुरोध किया. उन्होंने अपनी मां की हत्या की आशंका जताई. चचेरे भाई अनुज शर्मा को बुला कर उस से पूछताछ करने की विनती की. कारण, जिस दिन उन की मां लापता हुई थीं, उस दिन घर में केवल अनुज ही था.

नौकर के प्यार में : परिवार को बनाया निशाना – भाग 2

वैभव को पुचकार कर पुलिस अधिकारियों ने कुछ और जानकारी पूछी तो उस ने एक पत्र ला कर पुलिस अधिकारियों को दिया. वैभव ने कहा, ‘‘यह चिट्ठी मेरी बड़ी बहन, जो शादीशुदा है, ने पापा को लिखी थी. यह पत्र हम भाईबहनों को मिला तो हम ने छिपा दिया था.’’

उस पत्र में मृतक की बड़ी बेटी ने पापा प्रेमनारायण को लिखा था कि वह मम्मी को बदनाम नहीं करना चाहती है. नौकर जितेंद्र को अब अपने यहां नहीं रखना चाहिए.

पुलिस ने चिट्ठी के आधार पर तथा वारदात से जुड़े अन्य पहलुओं पर जांच करते हुए जांच आगे बढ़ाई. पुलिस ने साइबर एक्सपर्ट सत्येंद्र सिंह की भी मदद ली.

बच्चों ने पुलिस अधिकारियों से यहां तक कहा कि पापा की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि मम्मी ने ही नौकर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा (मेघवाल) के साथ मिल कर रात में की है. रात में वैभव कमरे से बाहर आना चाहता था मगर कमरा बाहर से लौक था. इस कारण वह वापस जा कर सो गया था.

इसी दौरान मुखबिरों ने भी पुलिस को जानकारी दी. इन सब तथ्यों पर गौर किया गया तो मृतक की पत्नी का किरदार संदिग्ध नजर आया. पुलिस अधिकारियों ने तब उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने रुक्मिणी से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में वह टूट गई. उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने अपने प्रेमी व नौकर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा और एक अन्य हंसराज भील के साथ मिल कर पति की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. बस, फिर क्या था, पुलिस ने उसी दिन जितेंद्र और हंसराज भील को भी दबोच लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की.

पूछताछ में उन्होंने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया.  जितेंद्र ने बताया कि वह पिछले 2 साल से टीचर प्रेमनारायण के घर नौकर था. वह खेतों की रखवाली और खेतीबाड़ी करता था. जितेंद्र को 65 हजार रुपए सालाना तनख्वाह पर रखा हुआ था.

प्रेमनारायण ज्यादातर समय अपनी ड्यूटी पर फतेहगढ़, मध्य प्रदेश में रहते थे. वह 15-20 दिन बाद ही अपने गांव आखाखेड़ी आते थे. प्रेमनारायण की अपनी बीवी से नहीं बनती थी. दोनों में मनमुटाव रहता था. इस कारण रुक्मिणी ने पति की गैरमौजूदगी में अपने नौकर से अवैध संबंध बना लिए थे.

प्रेमनारायण की बड़ी बेटी ने एक दिन अपनी मम्मी और नौकर जितेंद्र को रंगरलियां मनाते देख लिया था. इस कारण वह चिट्ठी लिख कर पापा को अपनी मम्मी की करतूत बताना चाहती थी. मगर यह चिट्ठी उस के छोटे भाईबहनों के हाथ लग गई थी. तब उन्होंने चिट्ठी पढ़ कर छिपा ली.

26 मार्च, 2021 को यह चिट्ठी बच्चों ने पुलिस अधिकारियों को सौंपी. तब जा कर इस घटना की परतें खुलनी शुरू हुईं. प्रेमनारायण को किसी तरह बीवी और नौकर के अवैध संबंधों की खबर लग गई थी. इस कारण वह इन दोनों के बीच राह का रोड़ा बन चुके थे. इस रोड़े को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने के लिए रुक्मिणी ने एक योजना बना ली.

फिर जितेंद्र ने 31 वर्षीय हंसराज भील को 20 हजार रुपए दे कर योजना में शामिल कर लिया. हंसराज जितेंद्र का दोस्त था. पुलिस ने मात्र 3 घंटे में ही मास्टर प्रेमनारायण मीणा की हत्या का राजफाश कर दिया.

मृतक के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया गया. परिजनों ने उसी रोज दोपहर बाद अंतिम संस्कार कर दिया. आखाखेड़ी में मास्टर की मौत से सनसनी फैल गई थी. जिस ने भी बीवी और उस के प्रेमी नौकर की करतूत के बारे में सुना, सन्न रह गया.

आरोपी पुलिस हिरासत में थे, जिन से पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ की. पूछताछ में जो घटना प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.

प्रेमनारायण मीणा अपनी पत्नी रुक्मिणी और 3 बच्चों के साथ जिला बारां के गांव आखाखेड़ी में रहते थे. वह सरकारी अध्यापक थे.

प्रेमनारायण की ड्यूटी इन दिनों मध्य प्रदेश के जिला गुना के फतेहगढ़ में थी. वह महीने में एकाध बार अपने गांव बीवीबच्चों से मिलने आते रहते थे.

प्रेमनारायण जहां शांत स्वभाव के थे तो वहीं उन की बीवी कर्कश स्वभाव की थी. उन की शादी को 20 साल से ज्यादा हो गए थे मगर इतना समय साथ गुजारने के बाद भी मियांबीवी में अकसर झड़प हो जाया करती थी. उन के बच्चे बड़े हो गए थे. मगर दोनों का मनमुटाव कम नहीं हुआ.

रुक्मिणी दिनरात काम कर के थक जाने का रोना रोती रहती थी. तब प्रेमनारायण ने वार्षिक तनख्वाह पर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा  को 2 साल पहले घर का नौकर रख लिया. जितेंद्र जहां खेतों पर काम करता, वहीं घर पर भी काम करता था. रुक्मिणी और जितेंद्र का रिश्ता मालकिन और नौकर का था. मगर पति के दूर रहने और मनमुटाव के चलते रुक्मिणी शारीरिक सुख से वंचित थी.

जब उसे जितेंद्र नौकर के रूप में मिला तो वह उसे बिस्तर तक ले आई. रुक्मिणी की उम्र 40 साल थी. इस के बावजूद वह अपने से 8 साल छोटे नौकर के साथ सेज सजाने लगी. उस ने नौकर को प्रेमी बना लिया और उस की बांहों में झूला झूलने लगी.

रुक्मिणी की बड़ी बेटी शादी लायक हो गई थी. इस के बावजूद अधेड़ उम्र में उस पर वासना का ऐसा भूत सवार हुआ कि वह जबतब मौका पा कर नौकर जितेंद्र बैरवा के साथ शारीरिक संबंध बनाने लगी.

हत्या के 7 साल बाद मिली आरती – भाग 2

पत्नी आरती की गुमशुदगी की रिपोर्ट सोनू ने थाने में नहीं लिखाई. क्योंकि उसे डर था कि आरती खुद अपने घर से भाग कर आई है. ऐसे में यदि वह पुलिस के पास गया तो एक नई आफत गले लग जाएगी. उस की गुमशुदगी लिखा कर वह कोई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता था. सोनू अपने दोस्तों के साथ आरती को तलाश करता रहा. जब आरती नहीं मिली तो थकहार कर वह मेहंदीपुर बालाजी में एक दुकान पर काम करने लगा.

जेल से बाहर आने के बाद दौसा आ कर सोनू और गोपाल दोनों दुकानों पर काम करने लगे. इस के साथ ही दोनों अपने स्तर से आरती की तलाश भी करते रहे. साल 2021 में सोनू को पता चला कि उस की पत्नी आरती जिंदा है.

हुआ यह कि मेहंदीपुर बालाजी में एक युवक की सोनू के दोस्त गोपाल से मुलाकात हुई. वह युवक भी एक दुकान पर काम करता था. बातों ही बातों में उस युवक ने गोपाल को बताया कि रेबारी समाज के एक घर में उत्तर प्रदेश के जालौन की एक महिला कोर्ट मैरिज कर कुछ सालों से रह रही है. गोपाल को शक हुआ तो उस ने सोनू को यह बात बताई. इस के बाद दोनों दोस्तों ने आरती को तलाशने की योजना बनाई.

सोनू और गोपाल को पता चला कि आरती दौसा के विशाला गांव में दूसरे की पत्नी के रूप में रह रही है. इस जानकारी के बाद सोनू और गोपाल भेष बदल कर कभी सब्जी वाला तो कभी ऊंट गाड़ी चलाने वाला बन कर पहुंचे. इसी दौरान गांव में उन्हें आरती दिखाई दी, जिसे उन्होंने पहचान लिया.

आरती के जिंदा होने की जानकारी दोनों ने 5 फरवरी, 2021 को मेहंदीपुर बालाजी थाने में दी. इस पर पुलिस ने उन से आरती के दस्तावेज मांगे. तब गोपाल और सोनू ने एक योजना बनाई.

सोनू और गोपाल ने एक युवक को स्वच्छ भारत मिशन का कर्मचारी बना कर विशाला गांव के उस घर में भेजा, जहां आरती रह रही थी. यहां इस युवक ने सरकारी योजना के तहत शौचालय बनाने और पैसा देने का झांसा दिया तो घर के लोग लालच में आ गए.

युवक ने कहा, ‘‘योजना का लाभ लेने के लिए घर की महिला मुखिया के दस्तावेज चाहिए.’’

उन्होंने इस योजना के लिए घर की महिला मुखिया के सारे दस्तावेज युवक को दे दिए. इन दस्तावेजों से स्पष्ट हो गया कि महिला कोई और नहीं, बल्कि आरती ही थी. सोनू और गोपाल ने आरती की आईडी भी सरकारी कार्यालय के माध्यम से निकलवाई, जिस में कई महीने लग गए.

पहचानपत्र हाथ लगने और पूरी तरह पुष्टि होने के बाद दोनों बेगुनाहों ने दौसा जिले के बालाजी एसएचओ अजीत बड़सरा से संपर्क कर उन्हें सभी पेपर्स सौंप दिए.

इस के बाद दौसा पुलिस ने वृंदावन थाना पुलिस को सूचना दी. मृत महिला के जिंदा होने की खबर पा कर स्वाट टीम प्रभारी अजय कौशल और वृंदावन थाने के एसएचओ विजय कुमार सिंह सूचना के बाद टीम सहित दौसा पहुंचे.

दोनों पीडि़तों की निशानदेही पर जब पुलिस ने महिला की तलाश की तो वह बैजूपारा थाना क्षेत्र के विशाला गांव में अपने दूसरे पति भगवान सिंह रेबारी  के साथ रहती मिली. 11 दिसंबर, 2022 को विशाला गांव पहुंची टीम के एक सदस्य ने वेरीफिकेशन के लिए अकेले पहुंच कर पहले महिला से बात कर पहचान की पुष्टि की और दस्तावेजों का सत्यापन किया गया. इस के बाद टीम ने दबिश दे कर उसे हिरासत में ले लिया.

उत्तर प्रदेश पुलिस भी आरती को जिंदा देख हैरान रह गई. आरती पिछले 7 सालों से दूसरी शादी कर भगवान सिंह रेबारी के साथ रह रही थी. वृंदावन थाने में 13 दिसंबर, 2022 को आरती को कागजों में दर्ज कर लिया गया.

पुलिस ने उरई में महिला के मातापिता से संपर्क किया. उन्होंने फोटो देख कर उसे पहचानने से इंकार कर दिया. पिता सूरज प्रसाद ने कहा है कि पुलिस ने जिस महिला को पकड़ा है वो उन की बेटी आरती हो ही नहीं सकती, उन की बेटी मर चुकी है. उन का कहना था कि मगोर्रा में जो शव मिला था, उस के बारे में अखबार में पढ़ा था, जिस के बाद वे थाने गए.

पुलिस ने मरी हुई महिला की फोटो दिखाई थी, जिस की उन्होंने बेटी आरती के रूप में शिनाख्त भी की थी. अगर पुलिस पकड़ी गई आरती से आमनासामना कराएगी, तब देख कर बता सकेंगे कि वह उन की बेटी आरती है या कोई और महिला.

इस के बाद पुलिस पिता सूरज प्रसाद गुप्ता व मां उर्मिला को वृंदावन अपने साथ ले आई. देर रात यहां पर आरती के सामने आते ही पिता सूरज प्रसाद ने आखिरकार उसे पहचान लिया. बेटी को जिंदा देख मातापिता की आंखों में आंसू छलक आए. आरती के मातापिता का कहना है कि फोटो देख कर वे आरती को नहीं पहचान सके थे.

आरती की कहानी भी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है. पुलिस को जानकारी देते हुए आरती ने बताया कि दूसरे पति भगवान के साथ शादी किए लगभग 7 साल हो गए हैं. अभी 6 महीने पहले भगवान के छोटे भाई को पता चला कि मेरा पहला पति सोनू और उस का दोस्त गोपाल उसे तलाश रहे हैं. इस के बाद देवर ने उसे नागौर जिले के कुचामन सिटी में रहने वाले एक व्यक्ति को 5 लाख रुपए में बेच दिया.

कुचामन सिटी का रहने वाला वह व्यक्ति आरती को अपने साथ ले गया. अभी 20 दिन पहले ही आरती कुचामन सिटी से भाग कर वापस विशाला गांव अपने दूसरे पति भगवान के पास पहुंची. आरती का कहना था कि वह अपने दूसरे पति भगवान के साथ ही रहना चाहती है.

देवर द्वारा उसे बेच दिए जाने के बारे में उस का कहना था कि मेरा पति ड्राइवर है. वह अकसर घर से बाहर रहता है. उसे धोखे में रख कर देवर ने उसे बेच दिया था. यह हमारे घर का मामला है. हम उसे निपटा लेंगे.

आरती ने पहले पति सोनू पर आरोप लगाते हुए कहा कि सोनू ने उसे छोड़ दिया था. सोनू से शादी बांदीकुई कोर्ट में हुई थी. इस के बाद वह पति सोनू और ननदोई के साथ बाइक से गोवर्धन घूमने गई. 2 दिन बाद तीनों वापस बालाजी पहुंचे. तब सास ने पति सोनू से कहा, ‘‘आरती को घर ले कर मत आना. उसे वहीं छोड़ दे.’’ इस के बाद सोनू ने उसे बालाजी से हिंडौन की बस में बैठा दिया.