हत्यारी पत्नी सपना : कानपुर में मारा पति और ससुर को – भाग 2

करोड़पति परिवार में हुई सपना की शादी

ऋषभ के पिता किशोरचंद्र तिवारी कानपुर शहर के कल्याणपुर के शिवली रोड पर रहते थे. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में दरोगा के पद से रिटायर हो चुके थे. उन की पत्नी मधु तिवारी फूड इंसपेक्टर थीं. उन की असमय मौत हो चुकी थी.

किशोरचंद्र व मधु निस्संतान थे. ऋषभ को उन्होंने किसी आश्रम से बचपन में गोद लिया था. उन्होंने ऋषभ को पढ़ालिखा कर योग्य बनाया था. ऋषभ कंप्यूटर का व्यवसाय करता था.

किशोरचंद्र तिवारी की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. वह करोड़पति आदमी थे. शिवली रोड पर उन का तिमंजिला आलीशान मकान था. इस के अलावा कई प्लौट और लखनऊ में भी एक बड़ा प्लौट था. उन का बैंक बैलेंस भी अच्छाखासा था. इस पूरी प्रौपर्टी का वारिस ऋषभ ही था.

पत्नी की मौत के बाद घर संभालने वाला कोई नहीं था. इसलिए वह ऋषभ की शादी को लालायित थे. वह किसी सामान्य परिवार की ब्राह्मण लड़की को बहू बनाना चाहते थे. अत: जब राम औतार पांडेय अपनी बेटी सपना का रिश्ता ले कर आए तो उन्होंने रिश्ते को स्वीकार कर लिया.

इधर सपना को जब पता चला कि उस के घर वालों ने उस का रिश्ता तय कर दिया है, तो वह चिंतित हो उठी. उस ने इस रिश्ते का विरोध भी किया, लेकिन जब मां द्वारा उसे पता चला कि लड़का करोड़पति बाप का बेटा है और सास की भी समस्या नहीं है. वह घर पर एकछत्र राज करेगी तो उस का विरोध बंद हो गया.

उस ने तो तय कर लिया था कि वह ऋषभ से नहीं, उस की दौलत से शादी रचा रही है.

राजकपूर उर्फ राज को जब सपना की शादी तय हो जाने की जानकारी हुई तो उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उस ने उसी वक्त फोन पर सपना से बात की और उसे पतारा के रोड किनारे स्थित हनुमान मंदिर पर मिलने को कहा.

कुछ देर बाद सपना मंदिर पहुंची तो राज उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस ने सपना को अजीब नजरों से देखा फिर पूछा, ‘‘सपना, मैं ने सुना है कि तुम्हारी शादी तय हो गई है?’’

‘‘हां राज, तुम ने सच सुना है.’’

‘‘लेकिन प्यार तो तुम मुझ से करती हो. तुम ने मुझ से शादी रचाने का वादा भी किया था. फिर किसी दूसरे के साथ शादी क्यों रचा रही हो?’’

‘‘राज, यह मेरी मजबूरी है. घर वालों की इज्जत की खातिर मैं ऋषभ से शादी कर रही हूं. वह मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं है. मैं ने शादी का विरोध भी किया था. लेकिन घर वाले नहीं माने.’’

‘‘अब मेरा क्या होगा सपना? मैं तुम्हारे प्यार को सपना समझ कर नहीं भुला पाऊंगा.’’

‘‘राज, तुम परेशान मत हो. मैं जितना प्यार तुम से करती हूं, शादी के बाद भी उतना ही करती रहूंगी. तुम मेरा पहला प्यार हो, जिसे मैं ताउम्र नहीं भुला पाऊंगी. एक वादा मैं तुम से और करती हूं कि शारीरिक मिलन शादी के बाद भी होता रहेगा. इस के लिए मुझे चाहे कोई भी जतन करना पड़े. वैसे भी राज, मैं शादी ऋषभ से नहीं, उस की दौलत से कर रही हूं.’’

शादी के बाद भी बने रहे प्रेमी से संबंध

चूंकि सपना शादी को राजी हो गई थी. इसलिए राम औतार पांडेय ने 22 फरवरी, 2020 को सपना का विवाह ऋषभ तिवारी के साथ धूमधाम से कर दिया. सपना ऋषभ की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. ससुराल में सपना को जिस ने भी देखा, उसी ने उस के रूपसौंदर्य की सराहना की. किशोरचंद्र तिवारी भी सुंदर व पढ़ीलिखी बहू पा कर खुश थे.

शादी के बाद बड़े प्यार से सपना और ऋ़षभ ने जिंदगी की शुरुआत की. सपना ने ससुराल आते ही घर संभाल लिया था. उस ने ससुर किशोरचंद्र की सेवा कर उन का भी दिल जीत लिया था. वह सपना पर अटूट विश्वास करने लगे थे. यही कारण था कि उन्होंने सपना को घर की चाबी सौंप दी थी.

सपना ने बैंक में खाता खुलवा लिया था और लाकर भी ले लिया था. इस लाकर में सपना ने शादी में उपहारस्वरूप मिले लाखों रुपए के जेवरात रख दिए थे. इस तरह सपना ने लगभग 70 लाख रुपए की ज्वैलरी पर अपना अधिकार जमा लिया था.

किशोरचंद्र तिवारी बीमार रहते थे. वह शुगर व ब्लडप्रेशर के मरीज थे. सपना उन की सेवा में लगी रहती थी. खानेपीने व दवा देने का खयाल सपना ही रखती.

सपना अपनी इस सेवा के बदले ससुर से कोई न कोई डिमांड करती रहती थी. न चाहते हुए भी किशोरचंद्र को सपना की डिमांड पूरी करनी पड़ती थी. सपना ने अपनी खूबसूरती के लटकेझटके दिखा कर पति ऋषभ को भी अंगुलियों पर नचाना शुरू कर दिया था.

ससुराल में सपना मोबाइल फोन पर अपने प्रेमी राज से अकसर बातें करती थी. बतियाने को ले कर उस का पति ऋषभ उसे टोकता तो बहाना बना देती कि वह अपनी सहेली से बतिया रही थी.

शादी को अभी 6 महीने भी नहीं बीते थे कि राजकपूर सपना की ससुराल आनेजाने लगा. उस ने सपना से शारीरिक रिश्ता भी बना लिया था. वह प्रेमी राज को ऐसे समय बुलाती, जब उस का पति ऋषभ घर से बाहर होता और ससुर गहरी नींद में होते.

किशोरचंद्र के मकान में सुरेंद्र सिंह यादव नाम का एक युवक किराए पर रहता था. उस का घर से कुछ दूरी पर ही आशा मैडिकल स्टोर था. राजकपूर का घर में वक्तबेवक्त आना शुरू हुआ तो उस ने सपना से उस के बारे में पूछताछ की.

सपना ने उसे बताया कि राजकपूर उस का रिश्तेदार है. लेकिन सुरेंद्र सिंह को सपना की बात पर विश्वास नहीं हुआ और वह दोनों की निगरानी करने लगा. इस का परिणाम जल्द ही सामने आ गया. एक दोपहर सुरेंद्र सिंह ने राजकपूर व सपना को रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया.

रौंग नंबर करके शादीशुदा को फांसा – भाग 2

शराबी पति नहीं कर रहा था कद्र

हेमा पति से कहती थी, यदि वह शराब पीना छोड़ दे तो काफी पैसे बच जाएंगे, जिसे जोड़ कर वह अपना घर बना लेंगे. लेकिन सुरेश की दारू पीने की लत नहीं छूट रही थी. न वह यह छोड़ने वाला था.

वह हेमा को समझाता था, ‘‘फैक्ट्री में हाड़तोड़ मेहनत करने के कारण मेरा सारा शरीर बुरी तरह टूटने लगता है. 2 घूंट शराब पीने से मेरी थकान भी उतर जाती है और नींद भी अच्छी आती है. क्या तुम चाहती हो कि मैं शराब छोड़ दूं और थका बदन ले कर घर में पड़ा रहूं?’’

‘‘ना जी, तुम घर में पड़े रहोगे तो घर का खर्च कैसे पूरा होगा, बच्चे कैसे पढ़लिख पाएंगे? तुम शराब पीते हो तो कम पिया करो, इस से तुम्हारी सेहत ठीक रहेगी. मेरा तो बस यही कहना है.’’

‘‘कम तो पीता हूं हेमा. दूसरे शराबियों की तरह इतनी कहां पीता हूं कि पी कर किसी नाली में पड़ा रहूं.’’

‘‘देखो जी, अगर मैं तुम्हारे हाथपांव दबाऊं और रात को तुम्हारा पहलू गरम करूं तो क्या तुम्हारी थकान नहीं उतरेगी.’’ हेमा ने तर्क रखा.

‘‘अब तुम्हारे बदन में वह लोच, वह कसाव कहां रह गया है, जो मुझे पूरी संतुष्टि दे सके. 2 बच्चों की मां बन गई हो हेमा रानी, अब मेरी थकान तुम नहीं उतार सकती.’’ वह हंस कर कहता.

पति की इस बात पर हेमा गुर्रा पड़ती, ‘‘बस, यही मत कहा करो, 2 बच्चों की मां बन गई हूं लेकिन अभी मेरी देह में इतना आकर्षण है कि तुम्हारे जैसे लाखों को मैं पानी पिला सकती हूं और अपने सामने गिड़गिड़ाने को मजबूर कर सकती हूं.’’

सुरेश झेंप जाता, क्योंकि वह जानता था हेमा जो कह रही है, वह सच है. हेमा की देह में वह आकर्षण, वह कसाव अब भी वैसा ही है जैसा शादी के वक्त था. उस के पहले में वह टिक नहीं पाता था, हांफने लगता था. हकीकत जानते हुए भी सुरेश अपना तर्क उलटीसीधा इसलिए रखता था कि हेमा उसे शराब पीने से न रोके.

उधर हेमा पति को लताड़ तो देती लेकिन फिर उस की बात पर सोच में पड़ जाती, ‘क्या सचमुच उस की देह का कसाव और आकर्षण खत्म हो गया है? क्या पति उस से अब संतुष्ट नहीं हो पाता?’

‘ऊंह.’ अपने खयालों को वह जेहन से झटक देती, ‘बकवास करता है सुरेश, 2 बच्चे जन कर वह बूढ़ी थोड़ी हो गई है. अभी तो वह अच्छेअच्छों को पानी पिला सकती है.’

एकाएक उसे सचिन का ध्यान हो आया. सचिन उस की सुरीली आवाज सुन कर फिदा हो गया था.

‘लेकिन सचिन ने उस की आवाज सुनी है, उसे देखा नहीं है. उसे देखने के बाद वह उस से मुंह तो नहीं मोड़ लेगा?’ खुद ही बड़बड़ाती हुई हेमा सोच के भंवरजाल में फंस गई. सचिन ने उस की आवाज ही तो सुनी है, क्या उसे सचिन से मुलाकात कर के यह जान लेना चाहिए कि वह उस की आवाज का ही दीवाना है, क्या उस की देह उसे आकर्षित नहीं कर रही है?

इसे आजमाने के लिए हेमा उतावली हो गई. लेकिन 2 दिन से सचिन का फोन नहीं आया था. क्या वह उसे 2 दिन में ही भूल गया. क्या सचिन ने उस की आवाज की झूठी तारीफ की थी. उस ने 2 दिन से उसे दोबारा फोन क्यों नहीं किया. लेकिन उस ने भी कहां सचिन का नंबर मिलाया, नंबर तो उस के पास है.

उधेड़बुन में फंसी हेमा ने अंत में निर्णय ले लिया कि वह खुद सचिन से आज दोपहर में बात करेगी. वह सुबह जल्दी बिस्तर से उठी, सुरेश का डिब्बा तैयार कर के उसे काम पर भेजा. घर का झाड़ूपोंछा कर के काम निपटाया. फिर बाथरूम में बैठ कर बदन को खूब रगड़रगड़ कर साफ किया. नहाने के बाद इस तरह बनावशृंगार किया, जैसे सचिन से आज ही आमनासामना करेगी.

हेमा से मिलने सचिन पहुंच गया दिल्ली

दोपहर में बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेजने के बाद उस ने अंदर से दरवाजा बंद किया और पलंग पर बैठ गई. उस का दिल बहुत तेजी से धड़कने लगा. अपना मोबाइल रुमाल से साफ करने के बाद उस ने सचिन का नंबर निकाला और जब उस का नंबर मिलाया तो उस की अंगुलियां कांप रही थीं.

दूसरी ओर रिंगटोन बजते ही सचिन का उतावला स्वर उभरा, ‘‘मैं तुम्हारे ही फोन का इंतजार कर रहा था हेमा.’’

‘‘अच्छा?’’ हेमा खुश हो कर इतरा उठी. फिर दिखावटी नाराजगी जाहिर करती हुई बोली, ‘‘तुम ने 2 दिन से फोन क्यों नहीं किया?’’

‘‘डरता था हेमा, कहीं तुम मेरे दोबारा फोन करने से नाराज न हो जाओ.’’

‘‘लेकिन परसों तो बारबार फोन कर रहे थे. मैं तब भी तो नाराज हो सकती थी.’’

‘‘सौरी बाबा, मुझे दूसरे दिन ही तुम्हें फोन कर लेना चाहिए था,’’ सचिन अपनी गलती मान कर बोला, ‘‘अब बताओ, फोन कैसे किया?’’

‘‘तुम से बात करने का मन हुआ तो फोन मिला लिया.’’ हेमा आवाज में लोच पैदा कर के बोली.

‘‘बात करने का मन हुआ यानी मिलने का अभी मन नहीं हुआ है?’’ सचिन ने पूछा.

‘‘मिलने का भी मन हो रहा है, लेकिन मथुरा दूर है सचिन, मैं वहां नहीं आ सकती.’’

‘‘मैं दिल्ली आ जाता हूं यार. बोलो, कहां आऊं?’’ सचिन ने उतावलेपन से पूछा.

‘‘आनंद विहार आ जाओ बस से, मैं वहां मिल जाऊंगी.’’ हेमा ने अपनी धड़कनों को नियंत्रित करने की कोशिश कर के कहा.

‘‘मैं कल आ जाता हूं. तुम बताओ, कितने बजे बस अड्डे पर आ सकती हो. मैं उसी के हिसाब से मथुरा से बस पकड़ूंगा हेमा.’’

‘‘दोपहर 3 बजे आ जाना. मैं लाल साड़ी पहन कर आऊंगी. तुम बस से उतर कर मुझे फोन कर लेना, मेरा मोबाइल मेरे हाथ में ही रहेगा.’’

‘‘ठीक है, मैं कल आ रहा हूं.’’ सचिन ने कहा और फोन काट दिया.

हेमा ने खुशी से फोन को चूम लिया. यह मोबाइल उस के लिए लक्की साबित हो रहा था. जो एक चाहत रखने वाले अजनबी को उस के करीब ला रहा था. एक मादक अंगड़ाई ले कर हेमा ने आंखें बंद कर लीं. उस की कल सचिन से मुलाकात होगी, इस बात ने उसे रोमांच से भर दिया था.

हेमा ठीक 3 बजे आनंद विहार बस अड्डे पर पहुंच गई. उस ने लाल रंग की रेशमी जरी वाली साड़ी ब्लाउज पहना था. बालों का जूड़ा बना कर एक लट अपने माथे पर बिखेर दी थी. हाथ में अपना सफेद पर्स लटका कर वह उस गेट पर आ कर खड़ी हो गई जो मुख्य सड़क की ओर था. उस के हाथ में मोबाइल फोन था जिस पर सचिन की काल आने का उसे बेचैनी से इंतजार था.

मां-बाप के हत्यारे संदीप जैन को सजा-ए-मौत – भाग 2

‘‘सामाजिक तानाबाना एक सूत्र में पिरोया रहे, ऐसे में न्यायालयों का भी दायित्व है तथा ऐसे प्रकरणों में न्यायालयों से भी अपेक्षा होती है कि इस प्रकार की निर्दयी मानसिकता रखने वाले आरोपी को उदाहरणस्वरूप कठोर से कठोर दंड से दंडित किया जाए. आरोपी का अपराध प्लानिंग के तहत एवं संपूर्ण मानव समाज के लिए रोंगटे खड़ा कर देने वाला कृत्य है.

‘‘इसीलिए जन्मदाता की हत्या करने वाले आरोपी बेटे संदीप जैन को मृत्युदंड से दंडित किया जाना एकमात्र उचित व पर्याप्त दंड होगा. यह अदालत संदीप जैन को उस के क्रूरतम कार्य का दोषी करार देते हुए मृत्युदंड की सजा सुनाती है. इस कृत्य में संदीप जैन को हथियार देने वाले भगत सिंह गुरुदत्ता और शैलेंद्र सागर को 5-5 साल की कठोर सजा दी जाती है.’’

माननीय न्यायाधीश अपना फैसला सुनाने के बाद अपनी कुरसी से उठ गए.

पहली जनवरी, 2018 को संदीप जैन ने अपनी मां और पिता की बड़ी निर्ममता से हत्या कर दी थी. 5 साल बाद कोर्ट ने अपने 310 पेज के फैसले में संदीप जैन को दोषी करार दे कर मृत्युदंड दिया. इस जघन्य हत्याकांड की गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी.

रावतमल जैन कौन थे और किस तरह उन की और उन की पत्नी की हत्या की गई, यह जानने के लिए हमें अतीत में जाना होगा.

रावतमल जैन एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन की और पत्नी सूरजी देवी की हत्या का प्रकरण काफी दिनों तक इलेक्ट्रौनिक्स और प्रिंट मीडिया में चर्चा का विषय बना रहा था, लेकिन पुलिस ने पूरी मुस्तैदी दिखाते हुए अपराधी को धर दबोचा था. आज वह कानून के कटघरे में खड़ा था.

जानेमाने समाजसेवी और साहित्यकार थे रावतमल जैन

रावतमल जैन का जन्म मध्य प्रदेश के जिला दुर्ग में 4 जनवरी, 1938 को साजा तहसील के गांव परसबोड़ में हुआ था. उन के परिवार में पत्नी सूरजी देवी, एक बेटा संदीप और एक बेटी थी.

रावतमल जैन काफी धनी व्यक्ति थे. उन का काफी मानसम्मान था. वह एक समाजसेवी होने के साथसाथ नगपुरा तीर्थ पर उव सग्गहर पार्श्वतीर्थ के प्रमुख ट्रस्टी तथा सामाजिक गतिविधियों की तरह हिंदी की शिक्षा देने, भाषा साहित्य का प्रचारप्रसार करने, ग्रामीण क्षेत्रों में हिंदी भाषा के विस्तार के लिए पठन केंद्रों की स्थापना सहित दरजनों कार्य करते थे.

रावतमल जैन एक प्रसिद्ध साहित्यकार भी थे, उन्होंने 108 कृतियों की रचना की है, जिस में 8 काव्य संग्रह, 12 कहानियां संग्रह, 27 आयुर्वेद, समाजशास्त्र, राजनीति व विधि विषयक पुस्तकों के साथ जैन साहित्य और अनेक किताबों का संपादन भी किया है.

इकलौता बेटा होने के कारण संदीप शुरू से ही काफी लाड़प्यार में पला. अपनी हर बात मांबाप से मनवा लेने के कारण वह काफी जिद्दी भी हो गया था.

रावतमल जैन चाहते थे कि संदीप भी उन की तरह एक प्रसिद्ध समाजसेवी व्यक्ति बने, लेकिन संदीप का रुझान इस में नहीं था. वह इश्कविश्क, यारीदोस्ती में ही ज्यादा उलझा रहता था. पैसों की बरबादी करने में उसे बहुत आनंद आता था. रावतमल ने उसे जब बेकार के खर्च के लिए पैसे देने कम किए तो संदीप ने पिता से पैसा वसूलने के लिए दूसरा रास्ता अख्तियार कर लिया.

पिता की रुचि साहित्य की ओर थी, इसलिए संदीप ने शहर में कवि सम्मेलन करने के लिए कवियों को आमंत्रित करना शुरू कर दिया. वह मंच लगाता और उन पर कवियों का काव्य पाठ करवाता. श्रोताओं की भीड़ जुटती, लेकिन उन से कुछ हासिल होना नहीं था. इस के लिए वह पिता की पौकेट ढीली करवा लेता. तर्क देता कि इस प्रकार मंच पर कवि सम्मेलन कर के वह साहित्य की ओर धीरेधीरे अपने कदम बढ़ा रहा है.

पिता रावतमल जैन समझते कि बेटे ने अच्छी राह पकड़ ली है, वह संदीप को कवि सम्मेलन का मंच सजाने के लिए खर्चा दे देते. संदीप थोड़ाबहुत खर्च करता, बाकी जेब में सरका कर मौजमस्ती करता. अब रोजरोज तो कवि सम्मेलन होगा नहीं, यह सोच कर रावतमल जैन ने अपने घर के बाहरी कमरे में संदीप को एक साडि़यों की दुकान खुलवा दी.

रावतमल जैन चाहते थे, संदीप किसी भी तरह अच्छी राह पकड़ ले, ताकि वह उस की शादी कर सकें. बेटी बड़ी हो गई थी, इसलिए उन्होंने उस के हाथ पीले कर के उसे उस की ससुराल विदा कर दिया.

संदीप को दुकान पर खरीदारी करने आई सुधा से हो गया था प्यार

संदीप साड़ी की दुकान कभी खोलता, कभी नहीं. एक दिन वह साड़ी की दुकान पर बैठा मोबाइल पर अपने दोस्त से बात कर रहा था, तब एक महिला अपनी बेटी के साथ साड़ी खरीदने के लिए आई.

महिला के साथ आई उस की बेटी गोरी और तीखे नाकनक्श वाली थी, उम्र 21-22 साल के आसपास होगी. युवती ने हरे रंग का सलवारसूट पहन रखा था. उस के चेहरे पर हलकी मुसकान थी.

पहली नजर में ही संदीप उस पर मर मिटा. उस ने मुसकरा कर दोनों मांबेटी का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘गरमी बहुत है, आप बैठिए, मैं आप लोगों के लिए ठंडा ले कर आता हूं.’’

‘‘अरे बेटा, उस की क्या जरूरत है.’’ महिला ने जल्दी से कहा, ‘‘तुम हमें बस साडि़यां दिखला दो.’’

‘‘वह तो मैं दिखलाऊंगा ही मांजी, लेकिन पहले आप को ठंडा पिलाऊंगा. देखिए आप दोनों पसीने से तरबतर हो रही हैं.’’ कहने के बाद संदीप तेजी से बाहर निकला और घर में से कोल्डड्रिंक ले कर तुरंत वापस आ गया.

वह महिला उस की इस रिस्पेक्ट पर बहुत खुश और प्रभावित थी. कोल्डड्रिंक दोनों को देने के बाद संदीप अपनी गद्दी पर बैठ गया. उस की नजर उस युवती पर ही थी.

उस ने देखा कि युवती उसे चोर नजरों से देख रही है. संदीप के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. उस की नजरें उस युवती की नजरों से टकराईं तो युवती ने शरमा कर नजरें झुका लीं. संदीप भी मुसकरा पड़ा.

कोल्डड्रिंक पी लेने के बाद संदीप ने उस महिला को साडि़यां दिखलाईं. 2 साडि़यां पसंद कर के उस ने बिल चुकता किया. इस बीच युवती खामोश बैठी रही थी. वह अब भी चोर नजरों से संदीप की ओर देख रही थी.

‘‘बेटा, तुम्हारी दुकान में फ्रैश होने के लिए टायलेट नहीं है क्या?’’ उठतेउठते महिला ने पूछा.

‘‘है न!’’ संदीप जल्दी से बोला, ‘‘आप मेरे साथ आइए.’’

प्यार में कुलांचें भरने की फितरत – भाग 2

सरोजनी को घर में हर सुख नसीब था, लेकिन पति की सैक्स के प्रति कमी उसे खलती थी. वह हर रात पति की बांहों का हार बनना चाहती थी, पर ललित उस से दूर भागता था. दरअसल, ललित मेहनती था. वह सुबह से 12 बजे तक किराने की दुकान चलाता था. उस के बाद खेतों पर चला जाता था फिर शाम को ही घर लौटता था.

अंकुर से लड़ गए नैना

दिन भर की मेहनत से वह इतना थक जाता था कि उसे चारपाई ही सूझती थी. ललित रात में खर्राटें भरता रहता और सरोजनी गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहती.

ललित पासवान का एक दोस्त था अंकुर श्रीवास्तव. वह तुलसियापुर में ही ललित के घर से कुछ दूरी पर रहता था. अंकुर की विधनू कस्बे में सिलाई मशीनों की दुकान थी. वह नई मशीन तो बेचता ही था, पुरानी सिलाई मशीनों की मरम्मत भी करता था.

अंकुर मजाकिया स्वभाव का था. ललित को जब भी फुरसत मिलती तो वह अंकुर की दुकान पर पहुंच जाता था. वहां दोनों साथ खातेपीते और खूब बातें करते. ललित पहले शराब नहीं पीता था. अंकुर की संगत ने ही उसे शराब का लती बना दिया था.

सरोजनी सिलाई मशीन चलाती थी. वह अपने घर के कपड़े घर पर ही सिल लेती थी. एक दिन उस की मशीन खराब हो गई तो उस ने पति से मशीन मरम्मत कराने की बात कही. ललित ने तब मरम्मत के लिए अंकुर को बुलवा लिया.

ललित की दूसरी शादी के बाद अंकुर उस दिन पहली बार ललित के घर आया था. उस ने रूपयौवन से लदी हुई ललित की दूसरी पत्नी सरोजनी को देखा तो वह उस की आंखों में बस गई.

सिलाई मशीन ठीक होने के बाद सरोजनी अंकुर को पैसे देने लगी, तो अंकुर ने पैसे नहीं लिए. उस ने कहा, ‘‘भाभी, ललित भैया हमारे दोस्त हैं, फिर पैसे किस बात के. आप बहुत सुंदर है. एक बार देख कर मुसकरा देंगी तो हम समझेंगे कि पैसा मिल गया.’’

अपने रूप की तारीफ सुन कर सरोजनी अंकुर को गौर से निहारने लगी. फिर मुसकरा कर अपना सिर नीचे कर लिया. दिल में सरोजनी को बसा कर अंकुर भी वहां से चला गया. इस के बाद अंकुर और ललित जब कभी मिलते, ललित उसे घर ले आता. अंकुर चाहता भी यही था.

सरोजनी को आकर्षित करने के लिए वह कभी उस के लिए साड़ी ले आता तो कभी साजशृंगार का सामान. थोड़ी नानुकुर के बाद सरोजनी उस के गिफ्ट स्वीकार कर लेती. ललित को खुश करने के लिए वह उस के साथ शराब पार्टी करता था.

अंकुर श्रीवास्तव की आमदनी अच्छी थी, इसलिए वह खूब खर्च करता था. कभीकभी वह सरोजनी को भी हजार, 2 हजार रुपए दे देता था. इस तरह सरोजनी का झुकाव उस की तरफ होता गया.

दरअसल, सरोजनी पति से असंतुष्ट रहती थी. अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए उसे किसी मर्द की तलाश थी. इसलिए वह अंकुर की ओर आकर्षित होने लगी. वह अपने हावभाव से उसे रिझाने भी लगी.

जून की तपती दोपहर में एक दिन अंकुर सरोजनी के घर पहुंचा. उस समय सरोजनी घर पर अकेली थी. ललित किराने का सामान लेने कानपुर गया था और उस की बेटी अनन्या अपनी ननिहाल गई थी. सरोजनी उस समय कमरे में अकेली सो रही थी. गरमी अधिक होने की वजह से सरोजनी सिर्फ पेटीकोट व ब्लाउज पहने हुई थी. आसपास सन्नाटा पा कर अंकुर सरोजनी के घर पहुंचा तो उस का कमरा बंद था. मगर खिड़की खुली हुई थी.

बेलिबास में हुए बेहया

अंकुर ने खिड़की से कमरे में झांका तो अस्तव्यस्त कपड़े में सो रही सरोजनी को देख कर वह बेकाबू हो उठा. पेटीकोट से बाहर झांकती सरोजनी की अधखुली टांगें तथा उफनते वक्ष देख कर अंकुर की धड़कनें बढ़ गईं. उस ने दरवाजा खटखटाया तो सरोजनी की आंखें खुल गईं.

सरोजनी ने जैसे ही दरवाजा खोला, सामने मंदमंद मुसकराते अंकुर को देख कर वह शर्म से चारपाई की तरफ बढ़ी. उस ने चारपाई पर पड़ी साड़ी लपेटनी चाही, पर अंकुर ने उस की साड़ी एक तरफ फेंक कर दरवाजा भीतर से बंद कर लिया. इस के बाद सरोजनी को अपनी बांहों में भर कर बोला, ‘‘कब तक तरसाओगी भाभी?’’

इस के बाद अंकुर ने सरोजनी के बदन को चूमना शुरू कर दिया. सरोजनी ने उस का कोई विरोध नहीं किया तो अंकुर ने उस के बचे हुए कपड़े भी उतार दिए. सरोजनी भी उस से लिपट गई और चंद मिनटों में उन्होंने सारी मर्यादाएं तोड़ दीं. इस के बाद अवैध संबंधों का यह खेल आए दिन खेला जाने लगा.

ललित अपनी पत्नी सरोजनी पर अटूट विश्वास करता था. वह पत्नी के प्रेम प्रसंग से बिलकुल अंजान था. लेकिन उस के बगल में रहने वाले भाई राजेश व उस की पत्नी अंजू को अंकुर का देरसवेर सरोजनी के घर आना खलने लगा था. राजेश ने इस बाबत ललित को टोका और दोनों में मुंहाचाही भी हुई. अंजू ने भी जेठानी को घर की इज्जत संभाल कर रखने की नसीहत दी.

अंकुर के देरसवेर घर आने के बाबत जब ललित ने सरोजनी से सवालजवाब किए तो सरोजनी बिफर पड़ी, ‘‘क्या मैं तुम्हें बदचलन लगती हूं? जिन के पति अधिक उम्र के और दूसरी पत्नी ब्याह कर लाते हैं, उन पर ऐसे ही लांछन लगाए जाते हैं. यदि उन से कोई मर्द हंसबोल ले तो बदचलन कही जाने लगती है. मैं भी तुम्हारी दूसरी पत्नी हूं. तुम्हारा दोस्त अंकुर हंसबोल लेता है तो लोग बदचलन कहने लगे हैं.’’

सरोजनी यहीं नहीं रुकी. उस ने देवर राजेश व देवरानी अंजू को भी आड़ेहाथों लेते हुए कहा, ‘‘वे दोनों तुम्हारी खुशहाल जिंदगी में आग लगाना चाहते हैं. वे तो चाहते ही नहीं थे कि तुम दूसरी ब्याह कर लाओ. ताकि अनन्या की शादी के बाद घरजमीन पर उन का कब्जा हो जाए. तुम दरदर की ठोकरें खाते फिरो.’’

ललित को लगा कि सरोजनी सोलह आना सच कह रही है. अत: उस ने पत्नी पर लगे बदचलनी के इल्जाम को दरकिनार कर दिया. अंकुर को ले कर दोनों भाइयों में अकसर कहासुनी होने लगी थी. दोनों में कभीकभी बात इतनी बढ़ जाती कि नौबत मारपीट तक आ जाती थी. सरोजनी और अंजू के बीच भी कलह शुरू हो गई थी. तूतूमैंमैं के बाद दोनों में महीनों बोलचाल बंद हो जाती थी.

बीवी ने मरवाया अमीर पति को – भाग 2

रामखेलावन का आनाजाना पूनम की ससुराल में बढ़ा तो पूनम की सास माधुरी के कान खड़े हुए. उन्होंने फोन पर अमित से बात की और बहू व बच्चों को मुंबई अपने साथ ले जाने की सलाह दी. अमित मां का इशारा समझ चुका था, अत: वह पूनम व बच्चों को अपने साथ मुंबई ले आया.

मुंबई आ कर पूनम कुछ महीने तक पति के साथ खुश रही, उस के बाद फिर से उसे जीजा की याद सताने लगी.

चूंकि रामखेलावन भी साली के इश्क में अंधा था, सो पत्नी से बहाना कर वह मुंबई पहुंच गया. पूनम उसे देख कर चहक उठी. अमित भी साढ़ू को आया देख कर खुश हुआ. लेकिन मन में फांस भी चुभी कि वह साली से मिलने इतना लंबा सफर कर आ गया.

पूनम और रामखेलावन जब हंसतेबतियाते तो अमित विरोध नहीं करता. अमित ने कई बार पूनम को उस की हरकतों के लिए आगाह किया किंतु वह हर बार अमित को अपनी लगीलपटी बातों से फुसला लेती.

अमित खून का घूंट पी कर दिन काट रहा था. लेकिन पूनम पर अमित की इन बातों का कोई असर नहीं हुआ.

एक रोज अमित गुप्ता कारखाने से थकाहारा घर लौटा. उस ने घर के भीतर कदम रखा तो वह हैरान रह गया. भरी दोपहर में पूनम और रामखेलावन रंगरलियां मना रहे थे. कमरे का दरवाजा भीतर से बंद था. अमित के तनबदन में आग सी लग गई. उस ने उसी समय पूनम को भलाबुरा कहा और पिटाई भी कर दी. उस ने साढ़ू रामखेलावन को भी खूब लताड़ा और उसी समय घर से भगा दिया.

इस के बाद जीजा से नाजायज रिश्तों को ले कर अमित व पूनम में तकरार व मारपीट होने लगी. जिस दिन अमित पूनम को जीजा से फोन पर बतियाते सुन लेता, उस दिन वह उस की पिटाई कर देता. कई बार तो वह गुस्से में पूनम का मोबाइल फोन भी तोड़ कर फेंक चुका था.

घर में कलह शुरू हुई तो पतिपत्नी के रिश्तों में भी दरार पड़ गई. अब वे दोनों हफ्तों एकदूसरे से बात नहीं करते थे. बच्चे भी सहमेसहमे रहते. अमित का लगाव अब पत्नी से कम हो गया था. महीनों उन का शारीरिक मिलन नहीं होता था.

मुंबई में भी खरीद ली अच्छीखासी प्रौपर्टी

अमित को जब पत्नी से नफरत हो गई तो उस का मन भटकने लगा. वह अपने घर बिंदकी जल्दीजल्दी आने लगा. घर आतेजाते ही उस के मधुर संबंध परिवार की एक सजातीय महिला से बन गए. इस महिला से वह फोन पर भी बतियाने लगा था.

अमित गुप्ता ने अब तक अकूत संपत्ति हासिल कर ली थी. उस ने भिवंडी (मुंबई) में 6 फ्लैट खरीद लिए थे और करोड़ों का मालिक बन बैठा था. इन में से उस ने एक फ्लैट 40 लाख रुपए में बेच कर बिंदकी कस्बा के महाजनी गली में तीन मंजिला एक आलीशान मकान बना लिया था. इस मकान में अमित की मां माधुरी देवी व विधवा बहन अनीता अपने बच्चों के साथ रहने लगी थी.

पूनम को फ्लैट बेच कर कस्बे में मकान बनवाना नागवार लगा था. उस ने विरोध भी किया, लेकिन अमित ने उस की एक न सुनी. मकान बनवाने को ले कर दोनों के बीच महीनों झगड़ा चलता रहा.

एक रोज अमित किसी युवती से फोन पर रसीली बातें कर रहा था. पूनम ने उस की बातें सुनीं तो उस का माथा ठनका. क्या अमित के किसी महिला से नाजायज संबंध हैं. बात करने के बाद अमित बाथरूम गया तो पूनम ने उस का फोन चैक किया. वह जिस नंबर से बात कर रहा था, वह अर्चना के नाम सेव था. अमित बाथरूम से निकला तो उस ने आंखें नचा कर पूछा, ‘‘परी के पापा, यह अर्चना कौन है? इस से तुम्हारा क्या नाता है?’’

‘‘क्या करोगी जान कर? है कोई जिस से मैं अपनी बात कह लेता हूं. खैर छोड़ो, तुम बताओ, तुम्हें क्या परेशानी है?’’

‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं. मुझे पूरा हक है यह जानने का कि मेरी सौतन बनने की कौन कोशिश कर रही है?’’

‘‘क्या तुम पति धर्म निभा रही हो?’’ अमित ने व्यंग्य कसा.

‘‘तुम्हारे बच्चों की देखभाल कर रही हूं. उन्हें पढ़ालिखा रही हूं. यह पति धर्म नहीं तो और क्या है?’’

‘‘चुप भी करो. मेरा मुंह मत खुलवाओ. वरना घर में कलह होते देर न लगेगी.’’

पूनम ने ठान लिया था कि वह पता लगा कर ही रहेगी कि यह अर्चना कौन है. पति के उस के साथ क्या ताल्लुकात हैं. इस की जानकारी के लिए वह बच्चों को साथ ले कर मुंबई से अपनी ससुराल बिंदकी आ गई. यहां उस ने गुप्तरूप से जानकारी हासिल की तो पता चला कि अर्चना परिवार की ही युवती है.

लेकिन पूनम नहीं मानी. वह जीजा रामखेलावन के घर चमनगंज गई और आंसू बहा कर अपनी व्यथा बताई. रामखेलावन के घर उस समय अविनाश यादव उर्फ उमेंद्र भी मौजूद था. वह कानपुर के गांव बीरनखेड़ा का रहने वाला था. वह दबंग और लोडर चालक था. अपराधियों से उस की जानपहचान थी. रामखेलावन का वह दोस्त था और उस के घर उस का आनाजाना बना रहता था.

रामखेलावन के घर पर ही पूनम और अविनाश की पहली मुलाकात हुई. खूबसूरत पूनम को देख कर अविनाश पहली ही नजर में उस का दीवाना बन गया. उस ने पूनम से उस का मोबाइल फोन नंबर लिया और उसे मदद का आश्वासन दिया.

कहते हैं कि औरत जब फिसलती है तो वह फिसलती ही चली जाती है. यही पूनम के साथ भी हुआ. जीजा से उस का नाजायज रिश्ता पहले से ही था. अब उस ने जीजा के दोस्त अविनाश उर्फ उमेंद्र के साथ भी अवैध संबंध बना लिए थे.

लगभग एक महीने बाद अमित बिंदकी घर आया तो उसे पत्नी के नए आशिक अविनाश उर्फ उमेंद्र के बारे में पता चला. अमित उद्योगपति था. लड़ाईझगड़े से उस का ही नुकसान होता, अत: उस ने अविनाश से उलझना उचित नहीं समझा और पत्नी व बच्चों को साथ ले कर मुंबई आ गया.

पति की ‘वो’ से पूनम की बढ़ी चिंता

वापस मुंबई आने के बाद पूनम ने कुछ दिन तो ठीक से बिताए. इस के बाद वह फिर पुराने ढर्रे पर उतर आई. वह देर रात तक अपने जीजा व नए आशिक अविनाश से बतियाती और खूब हंसीठिठोली करती.

अमित कभी तो अनसुनी कर देता तो कभी गुस्से में आगबबूला हो जाता. इस के बाद पतिपत्नी में झगड़ा शुरू हो जाता. पूनम उलाहना देती जब तुम महिला मित्र से बात कर सकते हो तो वह पुरुष मित्र से बात क्यों नहीं कर सकती.

जेठ के चक्कर में पति की हत्या- भाग 2

मनमोहन दास जिला कामरूप मेट्रो, असम के रहने वाले थे. उन के 2 बेटे थे. बड़ा तपन और छोटा उत्तम. उत्तम ने रूपा से लवमैरिज की थी. रूपा उन महिलाओं की तरह थी, जो कभी एक मर्द के पल्ले से बंध कर नहीं रहतीं.

उत्तम से लव मैरिज के बाद रूपा को अहसास हुआ कि उस ने गलत और ठंडे व्यक्ति से शादी की है. रूपा चाहती थी कि उसे पति रात भर बांहों में भर कर मथता रहे. मगर उत्तम में इतना दमखम नहीं था.

ऐसे में जब कई महीनों तक भी रूपा के बदन की आग मंद नहीं पड़ी तब उस के कदम बहक गए. उस ने घर में ही अपने जेठ तपन दास पर ध्यान देना शुरू कर दिया. तपन उस से उम्र में 10 साल बड़ा था, मगर वह था गबरू. हृष्टपुष्ट तपन ने छोटे भाई की पत्नी रूपा को अपनी तरफ ताकते व मूक आमंत्रण देते देखा तो वह आशय समझ गया.

एक रोज घर में जब कोई नहीं था तो तपन ने रूपा को अपनी मजबूत बांहों में भर लिया. रूपा ने कुछ प्रतिक्रिया नहीं की, तो तपन का हौसला बढ़ गया. वह उसे बिस्तर पर ले गया. तब दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

वैसे तो रूपा तपन की बहू लगती थी. मगर उन दोनों ने जेठ बहू के रिश्ते को कलंकित कर के एक नया रिश्ता बना लिया था, अवैध संबंधों का रिश्ता. एक बार दोनों के बीच की मर्यादा रेखा टूटी तो वे अकसर मौका निकाल कर हसरतें पूरी करते रहे.

तपन उदयपुर, राजस्थान स्थित एक कंपनी में नौकरी करता था. वह छुट्टी पर घर आता तो रूपा के इर्दगिर्द ही मंडराता रहता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे. मगर कभीकभार उन का मन होने पर भी उत्तम के होने की वजह से संबंध नहीं बना पाते थे. ऐसे में उन्हें उत्तम राह का कांटा दिखने लगा.

उत्तम दास वहीं कामरूप में ही काम करता था. कई साल तक रूपा और तपन के बीच यह खेल चोरीछिपे चलता रहा. घरपरिवार में किसी को भनक तक नहीं लगी थी.

तपन की उम्र 50 वर्ष की हो गई थी फिर भी वह बिस्तर का अच्छा खिलाड़ी था. रूपा ने तय कर लिया कि वह उत्तम को रास्ते से हटवा कर उस की पैतृक संपत्ति एवं इंश्योरेंस के पैसे से तपन के साथ ताउम्र मौज करेगी.

उस ने अपनी योजना प्रेमी जेठ तपन को बताई तो वह बहुत खुश हुआ. वह भी यही चाहता था. सन 2020 में कोरोना के कारण कामधंधा बंद हो गया था. तपन उदयपुर से अपने घर कामरूप लौट आया.

जब कामधंधा शुरू होने वाला था तब तपन ने अपने भाई उत्तम से कहा, ‘‘उत्तम, यहां काम नहीं है. मैं ने तेरे लिए उदयपुर स्थित अपनी कंपनी में बात की है. तुम वहां जा कर साइट देख लो. पसंद आए तो वहीं काम करना.’’

उत्तम को बड़े भाई की बात बात जंच गई. वह अगले दिन ही उदयपुर के लिए निकल पड़ा. तपन ने इस से पहले रूपा के साथ मिल कर उत्तम की कहानी खत्म करने की योजना बना ली थी.

रूपा ने तपन को साढ़े 12 लाख रुपए दे कर कहा था कि पति जिंदा नहीं लौटना चाहिए. तपन अपने भाई से मोबाइल के जरिए कांटैक्ट में रहा. तपन ने उदयपुर में अपनी पहचान के राकेश लोहार को फोन कर के कहा, ‘‘एक आदमी जयपुर आ रहा है. उसे गाड़ी में ले जा कर उस का काम तमाम कर देना. तुम्हें साढ़े 12 लाख रुपए दे दूंगा.’’

‘‘ठीक है तपन भाई. उस का मोबाइल नंबर दे दो. मैं मिलता हूं और उस का खेल खत्म कर दूंगा.’’ राकेश लोहार ने भरोसा दिया.

राकेश लोहार ने उत्तम का मोबाइल नंबर ले लिया. राकेश ने अपने 4 साथियों सुरेंद्र, संजय, अजय व जयवर्द्धन को पूरी बात बता कर कहा कि एक दिन में 2-2 लाख रुपए मिलेंगे. राकेश ने खुद साढ़े 4 लाख रुपए रखे.

सब दोस्त गाड़ी ले कर जयपुर पहुंच गए. मोबाइल पर उत्तम से संपर्क कर उसे गाड़ी में बिठा लिया. उधर तपन भी असम से फ्लाइट पकड़ कर उदयपुर आ गया. ये लोग जयपुर से उदयपुर तक मौका नहीं मिलने के कारण उत्तम को मार नहीं सके. ये लोग उदयपुर आ गए. उन से तपन भी आ मिला. इस के बाद शराब में नींद की गोलियां डाल कर उत्तम को रास्ते में ही पिला कर नींद की आगोश में पहुंचा दिया.

प्यार से निकला नफरत का दर्द – भाग 2

30 वर्षीय रविंद्र महतो उर्फ रवि मूलरूप से झारखंड के गुमला शहर में स्थित गुमला थाने के अंतर्गत पतिया मोहल्ले का रहने वाला था. पत्नी पूनम और 2 बच्चे यही उस का परिवार था. अपने इस छोटे से परिवार में वह बेहद खुश था. प्राइवेट नौकरी थी, जितना कमाता था उस से परिवार का पालनपोषण आराम से हो जाता था.

जिस गांव में रविंद्र रहता था, उसी में कौशल्या भी रहती थी. वह विधवा थी. उस के पति की अज्ञात बीमारी से मौत हो चुकी थी. यह बात रविंद्र को पता थी.

जवानी में ही कौशल्या के सिर से पति का साया उठ गया था, यह बात रविंद्र को बहुत खलती थी. खलती इसलिए भी थी क्योंकि कौशल्या का पति उस के बचपन का दोस्त था. एक साथ पलेबढ़े और खेलेकूदे फिर वही उस का साथ छोड़ कर चल गया, यह बात सोचसोच कर रविंद्र का मन दुखी हो जाता था तो कौशल्या कितना दुखी होती होगी, इस की कल्पना ही की सकती है.

कौशल्या के जख्म पर सहानुभूति का मरहम लगातेलगाते कब रविंद्र खुद घायल हो गया, उसे पता ही नहीं चला. उसे अहसास तब हुआ जब वह कौशल्या से अलग होता था. वह उसे अपने आसपास होने को महसूस करता था. वह जब उस के पास नहीं होती थी तो उस के लिए बेचैन सा रहता था. यानी उसे कौशल्या से प्यार हो गया था.

कौशल्या एक विधवा थी. रविंद्र महतो के उस के प्रति आकर्षित होने की बात पता चल चुकी थी. वह यह भी जानती थी कि रविंद्र शादीशुदा है और उस के 2 बच्चे भी हैं. वह भी खुद को रोक नहीं सकी और उस की बांहों में झूल गई. दोनों ने एकदूसरे से अपने प्रेम का इजहार कर दिया.

जब से दोनों ने अपने प्यार का इजहार किया था, तब से इन के बीच शरमोहया मिट गई थी. रविंद्र महतो यह भी भूल गया था कि वह शादीशुदा है. उस का अपना घरपरिवार है. पत्नी को जब उस के इश्क के बारे में पता चलेगा तो उस के दिल पर क्या बीतेगी, उसे कितना दुख पहुंचेगा. विधवा कौशल्या के प्यार में रविंद्र इस कदर अंधा हो चुका था कि जागतेसोते, उठतेबैठते, खातेपीते हर घड़ी उसे सिर्फ कौशल्या ही नजर आ रही थी.

एक दिन की बात है. रात के करीब 8 बज रहे थे. कौशल्या घर में अकेली थी. खाना पका कर किचन से हाथमुंह धो कर कमरे में चारपाई पर जा कर बैठी थी कि तभी रविंद्र कहीं से घूमते हुए पहुंच गया था.

‘‘अरे, इतनी रात गए यहां? लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे?’’ कौशल्या उसे देखते ही हैरत से बोली.

‘‘लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे? जो सोचेंगे उन्हें सोचने दो. मुझे इस से क्या लेनादेना?’’ रविंद्र ने पलट कर जवाब दिया, ‘‘मैं ने किसी के सोचने का ठेका ले रखा है क्या? मैं तो अपने प्यार से मिलने आया हूं.’’ रविंद्र ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है तो मैं ने तुम को यहां आने से कब रोका है. तुम्हारे लिए मेरे दिल और घर दोनों के दरवाजे हमेशा खुले हैं. मैं तो यह कह रही थी…’’

‘‘क्या कह रही थी मेरी जान…’’ रविंद्र आशिकी भरे शब्दों में बोला, ‘‘इन सुरमई आंखों में डूब जाने का जी चाहता है.’’

‘‘तो डूब जाओ,’’ कौशल्या रविंद्र की आंखों में झांकती हुई बोली, ‘‘किस ने रोका है, ये दिल भी तुम्हारा है, ये जिस्म भी तुम्हारा. जिस्म का अंगअंग तुम्हारा है. डूब जाओ और मेरे जलते बदन को अपने प्यार की ठंडी फुहार से शांत कर दो.’’

कहती हुई कौशल्या बिस्तर पर बिछती गई. प्रेमिका की नशीली बातों से रविंद्र के जिस्म में पहले ही आग लग चुकी थी. उस के जिस्म को स्पर्श करते ही रविंद्र के जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ पड़ी. दिल जोरजोर से धड़कने लगा जैसे सीने से उछल कर बाहर आ जाएगा.

धीरेधीरे रविंद्र कौशल्या के गदराए जिस्म पर बिछता गया. थोड़ी देर में दोनों सामाजिक मर्यादा को तोड़ते हुए प्रेम के समंदर में डूब गए. जब होश आया तो दोनों के वासनायुक्त जिस्म में ठंडक पड़ चुकी थी. एकदूसरे से नजरें जब टकराईं तो दोनों मुसकरा उठे.

दोनों ने अपने अस्तव्यस्त कपड़े ठीक किए और रविंद्र ने कौशल्या से विदा होते हुए उस के गाल पर एक चुंबन जड़ दिया और अपने घर लौट गया.

कौशल्या बहुत खुश थी. उस के मन की मुराद बरसों बाद पूरी हुई थी. रविंद्र भी कुछ कम खुश नहीं था. वह तो अपनी प्रेमिका से भी ज्यादा खुश था. उस दिन के बाद रविंद्र और कौशल्या जब एक होते तब अपनी जिस्मानी प्यास बुझा लेते.

बात घटना से एक साल पहले नवंबर 2021 की है. रविंद्र उस दिन बहुत खुश था और खुशीखुशी कौशल्या से मिलने उस के घर पहुंचा. शाम के 4-5 बजे के आसपास का टाइम था. उसे देख कर वह उतनी खुश नहीं हुई, जितनी पहले होती थी. यह देख रविंद्र परेशान हो गया कि उस से ऐसी क्या खता हो गई, जो वह बदलीबदली सी नजर आ रही है. यहां तक कि उस ने ठीक से उस से बात भी नहीं की.

थोड़ी देर तक रविंद्र वहां बैठा रहा. जब उसे अपनी उपेक्षा का अहसास हुआ तो वह उठ कर अपने घर चला गया और घर लौटते समय रास्ते में यही सोच रहा था कि आखिर उस से गलती कहां हुई, जो उस की माशूका में इतना बदलाव आ गया.

यह रविंद्र के लिए काफी परेशान करने वाली बात थी. उस दिन के बाद से प्रेमिका कौशल्या रविंद्र को देख कर मुंह फेर लेती थी. इस बात से रविंद्र भीतर ही भीतर घुटने लगा था.

फिर क्या था, रविंद्र इस बात का पता लगाने में जुट गया कि प्रेमिका के अचानक मुंह मोड़ने के पीछे असल वजह क्या हो सकती है. आखिरकार पता लगाने में वह सफल हो ही गया. जब कौशल्या की सच्चाई रविंद्र के सामने खुल कर आई तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. जलन के मारे वह जलभुन गया.

दरअसल, कौशल्या का मन रविंद्र से भर गया था और वह पुराने कपड़े की तरह रविंद्र को बदल कर गांव के ही राजेंद्र साहू से दिल लगा बैठी थी. राजेंद्र साहू रविंद्र से ज्यादा मालदार था और स्वस्थ भी. पानी की तरह पैसे कौशल्या पर बहाता था. उस की इसी अदा पर वह फिदा थी.

यारों की बाहों में सुख की तलाश – भाग 2

3 नवंबर, 2022 को शाम करीब साढ़े 5 बजे मोहन सिंह मकान के बाहर कुरसी पर बैठा किसी से बात कर रहा था तभी काजल घबराई हुई उस के पास आई और रुआंसी आवाज में बोली, ‘‘भाईसाहब, मेरे पति ने फांसी लगा ली है. अभी जान है, चल कर नीचे उतारने में मेरी मदद करें. वह बच जाएंगे.’’

सुनते ही मोहन सिंह पड़ोसी के साथ सीढि़यों की तरफ दौड़ा. पीछेपीछे काजल भी लपकी.

मोहन सिंह ऊपर आया तो उस ने उत्तम को एक चुन्नी के सहारे छत में लगे पंखे से लटकता पाया. उस के शरीर में कोई हलचल नहीं थी.

‘‘यह तो मर गया लगता है.’’ मोहन सिंह घबराई आवाज में बोला.

सुनते ही काजल ने जोरजोर से रोना शुरू कर दिया. उस के रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग मोहन सिंह के मकान की ओर झांकने लगे. पड़ोस में ही राजेश रहता था. रोने की आवाज सुन कर वह दौड़ता हुआ उत्तम के कमरे में आ गया. उत्तम को फंदे से लटकता देख कर उस के होश गुम हो गए. उस ने चिल्ला कर कहा, ‘‘सरदारजी, इसे नीचे उतरवाइए.’’

‘‘ना…ना, मैं यह काम नहीं करूंगा. मामला पुलिस का बनता है, उसे बुलाना पड़ेगा.’’ मोहन सिंह घबरा कर बोला और तेजी से कमरे से बाहर हो गया.

राजेश ने खुद ही उत्तम की लाश को नीचे उतार लिया और उत्तम की नब्ज टटोलने लगा. उत्तम की नब्ज नहीं चल रही थी. राजेश ने बुझे मन से कहा, ‘‘यह मर चुका है. मैं पुलिस को खबर देता हूं.’’

काजल का रोना तेज हो गया. वह अपने बेटे शुभम को गले से लगा कर जोरजोर से रोने लगी.

राजेश ने राजौरी गार्डन थाने में उत्तम के फांसी लगा कर मर जाने की सूचना दी और बाहर खड़े मोहन सिंह के पास आ कर खड़ा हो गया.

आधा घंटा बीततेबीतते राजौरी गार्डन थाने के एसएचओ रविंद्र वर्मा, एसआई मुकेश यादव, हैडकांस्टेबल मनजीत, जया और संदीप के साथ वहां आ गए. मोहन सिंह के मकान में किराएदार ने फांसी लगा ली है, यह खबर आसपास में फैल चुकी थी. लोगों की भीड़ मोहन सिंह के मकान के बाहर जमा हो गई थी. पुलिस जिप्सी को देख कर भीड़ आजूबाजू हट गई.

 

एसएचओ रविंद्र वर्मा अपनी टीम के साथ ऊपरी मंजिल पर आ गए. वहां मोहन सिंह, उस की पत्नी, राजेश, उस की पत्नी और बच्चों के अलावा आसपड़ोस के 2-3 बुजुर्ग खड़े थे.

अभी तक काजल सिसक रही थी. पुलिस को देख कर वह दहाड़े मार कर रोने लगी. एसएचओ वर्मा ने हैडकांस्टेबल दीपा को इशारा किया तो वह काजल के पास पहुंच कर उसे ढांढस बंधाने लगी.

एसएचओ ने देखा. फांसी लगा कर मरने वाला युवक चारपाई पर चित पड़ा हुआ था. उस के पास मैरून कलर की चुन्नी और लाइट ब्लू रंग का एक परदा पड़ा हुआ था. परदे और चुन्नी के सिरे आपस में बंधे हुए थे. चारपाई पर एक पायल पड़ी थी.

एसएचओ ने युवक की नब्ज टटोली. नब्ज बंद थी स्पष्ट था कि वह मर चुका है. उन्होंने बारीकी से मृत पड़े युवक की जांच की तो उन्हें मृतक के गले पर चुन्नी के कसे जाने के निशान साफतौर पर दिखाई दिए. उस के जिस्म पर दूसरे कोई चोट के निशान नहीं थे. पहली ही नजर में लगता था कि युवक ने फंदे से लटक कर ही जान दी है. उस के जिस्म पर पायजामा और पूरे बांह की कमीज थी.

रविंद्र वर्मा ने काजल की तरफ देखा. वह अब सिसक रही थी, उस का जोरजोर से रोना रुक गया था. ऐसा हैडकांस्टेबल दीपा के समझाने से हुआ था.

‘‘क्या यह तुम्हारे पति थे?’’ एसएचओ ने काजल से प्रश्न किया.

‘‘जी… यह इन के पति थे,’’ उत्तर आगे आ कर राजेश ने दिया.

‘‘आप कौन हैं?’’ एसएचओ ने उसे गौर से देख कर पूछा.

‘‘मैं उत्तम को बड़ा भाई मानता था, इसी के गांव से हूं. मैं ने ही आप को इस के फांसी लगा लेने की सूचना मोबाइल से दी थी सर.’’

‘‘क्या नाम है आप का?’’

‘‘राजेश… मैं यहीं पास में किराए पर रहता हूं.’’ राजेश ने बताया.

‘‘इस ने फांसी क्यों लगा ली, बता सकते हो मुझे?’’

‘‘जी, यह बात तो मैं नहीं जानता, यह आप भौजी काजल से पूछिए.’’ राजेश ने धीरे से कहा.

‘‘काजल, ऐसा क्या हुआ था कि आप के पति को फांसी लगा कर अपनी जिंदगी खत्म करनी पड़ी.’’ श्री वर्मा ने काजल के चेहरे पर नजरें डाल कर पूछा.

काजल ने अपने आंसू पोंछते हुए गहरी सांस ली और रुंधे गले से बोली कि यह बहुत सीरियस किस्म के इंसान थे. छोटीछोटी बात पर गंभीर हो जाते थे. यह कह सकते हैं, यह जज्बाती किस्म के आदमी थे. आज शाम को काम से जल्दी घर लौट आए थे. मैं ने कारण पूछा तो बोले, ‘‘तबीयत ठीक नहीं लग रही है. 2-4 दिन से बुखार लग रहा है, थकान भी है.’’

‘‘अरे, तो आप फिर भी काम पर जा रहे थे. आप को आराम करना चाहिए था.’’ मैं ने कहा तो वह गंभीर हो गए.

अगर घर में रहूंगा तो घर कैसे चलेगा. शुभम को डाक्टर बनाने का मेरा सपना कैसे पूरा होगा.

काजल सांस लेने को रुकी और फिर से बताने लगी कि मैं ने इन्हें प्यार से समझाया कि हम कम खा लेंगे. थोड़े में गुजारा कर लेंगे. आप इतनी चिंता कर के अपनी सेहत से खिलवाड़ मत करिए. बस सर इतनी ही बात हुई थी.

मैं इन्हें कमरे में छोड़ कर छत पर कपड़े उतारने चली गई. नीचे आई तो यह पंखे से झूलते मिले. इन्हें शायद यह अच्छा नहीं लगा कि हम थोड़े में गुजरबसर करें.

एसएचओ को हैरत हुई कि इतनी छोटी बात को कोई दिल पर ले कर जान दे देगा. कुछ अटपटा सा लगता है.

‘‘कहा न सर, यह जज्बाती इंसान थे. हमें बहुत प्यार करते थे, हमारी खुशियों के लिए दिनरात मेहनत करते थे. उन्हें लगा होगा कि यदि बीमारी में घर बैठ गया तो मैं और शुभम क्या खाएंगे. बस, यही

बात सोच कर इन्होंने फांसी लगा ली.’’ काजल बोली.

एसएचओ ही नहीं, उन के साथ आए स्टाफ के लोग भी इस बात को हजम नहीं कर सके कि इतनी छोटी वजह से कोई अपनी जान दे सकता है.

श्री वर्मा ने अपने उच्चाधिकारियों को इस घटना की सूचना दे दी और फोरैंसिक टीम को भी घटनास्थल पर बुलवा लिया. 20-25 मिनट में डीसीपी (वेस्ट) घनश्याम बंसल और एसीपी इंद्रपाल (राजौरी गार्डन) घटनास्थल पर पहुंच गए. कुछ देर बाद फोरैंसिक टीम भी वहां आ गई और अपने काम में लग गई.

एसएचओ ने अधिकारियों को उत्तम के फांसी लगाने की वजह बताई तो वह गंभीर हो गए. डीसीपी घनश्याम बंसल ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘मिस्टर वर्मा, आत्महत्या करने के लिए कोई बड़ी वजह होती है, जैसे झगड़ा, अपमान, कर्ज या किसी जघन्य अपराध की वजह से शर्मिंदगी अथवा डर.

‘‘लेकिन यहां तो बात बीवीबच्चे के भविष्य को ले कर आत्महत्या की है, जबकि ऐसा हुआ भी नहीं था यानी उत्तम काम से हटा नहीं दिया गया था. जरा सोचिए, एकदो दिन कोई बीमारी के कारण घर रह जाए तो क्या उस के बीवीबच्चे की जिंदगी बेहाल हो जाएगी. हां, 2-3 महीना आदमी बेरोजगार रहे तो एक परसेंट ऐसा वह कर सकता है.’’

‘‘तो क्या सर, काजल झूठी मनगढ़ंत कहानी सुना रही है?’’ श्री वर्मा ने पूछा.

‘‘ऐसा ही लगता है,’’ डीसीपी गंभीर स्वर में बोले, ‘‘खैर, आप लाश का पंचनामा बना कर इसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवाइए. और यहां मिलने वाली छोटी से छोटी संदिग्ध वस्तु को कब्जे में लीजिए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा कि हकीकत क्या थी.’’

‘‘ठीक है सर, मैं काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा देता हूं.’’ श्री वर्मा ने कहा.

डीसीपी घनश्याम बंसल और एसीपी इंद्रपाल वापस लौट गए.

ले बाबुल घर आपनो : सीमा ने क्या चुना पिता का प्यार या स्वाभिमान – भाग 2

मीरा भी उन जैसा पति पा कर गर्व से फूल उठी थी और मन ही मन उस ने अपने मातापिता की बुद्धि को सराहा भी था. कुछ समय तक तो सबकुछ ठीकठाक चलता रहा था, लेकिन बाद में मीरा महसूस करने लगी थी जैसे पिताजी ने, दामाद नहीं, गुलाम खरीदा हो. शंभुजी सोए हों, या उस से प्रेमालाप कर रहे हों, बस पिताजी का एक बुलावा आया नहीं कि वे उठ कर चल देते. ऐसे में मीरा प्यार से उन्हें समझाती और कहती, ‘पिताजी से कह क्यों नहीं देते कि वक्तबेवक्त न बुलाया करें.’

‘अरे भई, काम होता है, तभी तो बुलाते हैं, और काम कोई वक्त देख कर तो नहीं आता,’ शंभूजी भी प्यार से जवाब देते.

‘पहले भी तो वे स्वयं काम संभालते थे, अब क्यों नहीं संभालते?’ मीरा उखड़ जाती.

‘इसी लिए तो उन्होंने तुम जैसी पत्नी का मुझे पति बना दिया है, ताकि मैं उन का बोझ हलका करूं,’ शंभुजी हंस कर टाल देते.

‘फिर उन्हें बेटी देने की क्या जरूरत थी. बोझ हलका करने के लिए तुम्हें रुपयों से खरीदा भी जा सकता था. तुम नहीं बोल सकते तो मैं पिताजी से कहूंगी कि आप साथसाथ काम करने के लिए कोई दूसरा नौकर रख लीजिए,’ मीरा नाराज हो जाती.

‘तुम तो बहुत भावुक हो, मीरा. जितनी मेहनत और ईमानदारी से अपने घर का आदमी काम कर सकता है, कोई दूसरा करेगा क्या?’ वे तर्क देते.

‘यह क्यों नहीं कहते कि तुम बिक गए हो. तुम्हें पत्नी की नहीं, सिर्फ दौलत की जरूरत थी,’ और मीरा फफक कर रो पड़ी थी.

शंभुजी कितने ही प्यार से क्यों न समझाते लेकिन मीरा को यह कतई पसंद नहीं था कि वे घरदामाद बन कर रहें. वह हमेशा यही कहती थी, ‘घरदामाद तो पालतू कुत्ते की तरह होता है, जो टुकड़े खा कर दिनरात वफादारी करता है. तुम क्यों नहीं अलग मकान ले लेते. तुम जैसे भी रखोगे, मैं उसी तरह रहूंगी. तुम से कभी गिला नहीं करूंगी. मुझे यह तो एहसास रहेगा, मेरा अपना घर है, तुम मेरे हो. यहां तो हमेशा मुझे ऐसा लगता है जैसे हम पिताजी की दया पर पल रहे हैं और तुम भी सोचते होगे कि यदि मैं ने कहीं विद्रोह किया, तो पिताजी रोजी ही न छीन लें.’

‘न जाने तुम क्यों गलत ढंग से सोचने लगी हो? मैं ने तो कभी इस तरह सोचा भी नहीं. मीरा, तुम पहले भी तो इस घर में रहती थीं, तब तुम ऐसा क्यों नहीं सोचती थीं?’

‘तब मैं कुआंरी थी. कुआंरी लड़की हमेशा अपनी नई दुनिया बसाने के सपने देखती है. एक ऐसे पति का सपना, जो उसे घर देगा, उस के सुखदुख का भागीदार होगा, और वह उस के हर सुखदुख की चादर अपने ऊपर ओढ़ लेगी. बताओ, क्या दिया तुम ने मुझे अपनी ओर से? बाकी सब छोड़ भी दें तो प्यार और विश्वास भी तुम नहीं दे सके, जिस समय भी मेरे पास होते हो, तुम्हें यही खयाल रहता है कि पिताजी के कहे काम सब पूरे हो गए कि नहीं, कहीं वे यह न सोचें, शादी होते ही लापरवाह हो गया है.’

इसी तरह तकरार और प्यार में वर्ष छलांगें लगाते निकल रहे थे. मीरा की गोद में सीमा भी आ गई थी. सीमा को पा कर मीरा काफी हद तक सहज हो गई थी. उन्होंने सोचा था, ‘मीरा सीमा को पा कर तनाव से शायद मुक्त हो गई है.’ लेकिन यह उन की भूल थी.

सीमा जैसेजैसे बड़ी होती गई, मीरा की खामोशी बढ़ती गई. वह हमेशा देखती, सीमा की हर जरूरत पिताजी पूरी करते हैं, उस का भविष्य कैसे संवारना है, यह भी पिताजी सोचते हैं. बिलकुल उसी तरह, जिस तरह उन्होंने उस के लिए सोचा था.

शंभुजी ने तो एक दिन भी यह महसूस नहीं किया कि बाप का अपनी संतान के लिए क्या कर्तव्य होता है. मीरा की जरूरत पिताजी आ कर पूछते. शंभुजी को इस से कोई अंतर नहीं पड़ता था. बस, उन्हें यही संतोष था कि पिताजी के होते उन्हें चिंता करने की क्या आवश्यकता है, या पिताजी उन पर कितने प्रसन्न हैं, क्योंकि उन्होंने उन का व्यापार और बढ़ा दिया था. मीरा की हर बात चिकने घड़े पर पड़े पानी की तरह उन के ऊपर से फिसल जाती थी.

एक दिन बेहद गुस्से में मीरा ने कहा था, ‘इन सुखों की खातिर तुम ने अपनेआप को बेच दिया है. अपनी आजादी, अपने आदर्शों तक को दांव पर लगा दिया है.’

‘तुम सुखी रहो, इसी लिए तो यह सब किया है मैं ने, वरना मैं अकेला तो दो रोटी और दो कपड़ों में ही प्रसन्न था. यदि तुम्हारी खुशी के लिए स्वयं मुझे भी बिकना पड़ा तो भी मैं पीछे नहीं हटूंगा, मीरा,’ शंभुजी ने हंस कर बात टालनी चाही थी.

‘मेरा नाम ले कर झूठ मत बोलो. तुम जानते हो इस पैसे की दुनिया से मुझे कभी प्यार नहीं रहा जहां आदमी आजादी से अपनी कोई इच्छा ही पूरी न कर सके, जहां आगेपीछे नौकरों की फौज खड़ी हो. मैं खुली हवा में सांस लेना चाहती हूं. प्लीज, मुझे अलग ले जाओ, ताकि मैं अपना छोटा सा संसार बना सकूं, और सोच सकूं, यह घर मेरा है, जहां सुकून हो, जहां तुम हो, हमारी बच्ची हो, और मैं होऊं,’ और मीरा रो पड़ी थी.

‘ठीक है, मीरा. मैं वचन देता हूं, हम उसी तरह रहेंगे जैसे तुम चाहती हो. मैं पिताजी से जरूर बात करूंगा,’ उन्होंने मीरा को प्यार से थपथपा दिया था.

जब मीरा ने देखा कि यह तकरार भी चिकने घड़े की बूंद बन गई है तो वह हमेशा के लिए चुप हो गई थी. शायद उस ने ‘जो है, सो ठीक है,’ समझ कर ही संतोष कर लिया था.

दूसरे बच्चे के समय मीरा की तबीयत बहुत बिगड़ गई थी. डाक्टरों की भीड़ भी उसे नहीं बचा सकी थी. तब यही शंभुजी सीमा को छाती से लगा कर फूटफूट कर रो पड़े थे. उन्होंने मन ही मन मीरा से कितनी बार माफी मांगी थी और वादा किया था, ‘तुम्हारी सीमा की मैं हर इच्छा पूरी करूंगा. मैं स्वयं उस का खयाल रखूंगा, उसे मां बन कर पालूंगा.’

कितना स्नेह और ममत्व उन्होंने बेटी को दिया था. उस के उठने से ले कर सोने तक, हर बात का ध्यान वे खुद रखते थे. बाहर जाना भी कितना कम कर दिया था. लेकिन कभीकभी जब सीमा उन्हें टकटकी लगाए देखने लगती थी तो न जाने वे क्यों सिहर उठते थे. उन्हें महसूस होता था, ये निगाहें सीमा की नहीं, मीरा की हैं, जो उन से कुछ कहना चाह रही हैं, तो वे घबरा कर यह पूछ बैठते, ‘कुछ कहना है, बेटी?’

‘कुछ नहीं, पापा,’ जब सीमा कहती तो उन की सांस की गति ठीक होती.

समय के साथ सीमा बड़ी हुई. मीरा के मातापिता का साथ छूटा. सारा कारोबार फिर एक बार शंभुजी पर आ पड़ा. यह वही जिम्मेदारी थी जो किसी को दी नहीं जा सकती थी और फिर धीरेधीरे वे पहले की तरह व्यस्तता के बीच खोने लगे थे.

एक दिन जब वे काफी रात गए घर लौटे थे, तो यह देख कर हैरान हो गए थे कि जल्दी सो जाने वाली सीमा, आज बालकनी में खड़ी उन का इंतजार कर रही है. वे हैरानी से बोले थे, ‘सोई क्यों नहीं?’

‘आप जल्दी क्यों नहीं आते? अकेले मेरा मन नहीं लगता,’ सीमा गुस्से में थी.

‘मेरा बहुत काम होता है, इसी लिए देर हो जाती है. आज कोई पहली बार तो मैं देर से नहीं आया?’ उन्होंने प्यार से समझाया था.

‘इतनी रात तक किसी का काम नहीं होता. आप झूठ बोलते हैं. आप पार्टियों में जाते हैं, शराब पीते हैं, इसी लिए आप को देर हो जाती है.’

‘सीमा,’ वे नाराज हो गए थे.

‘डांटिए मत, मैं कालेज से देर से आऊंगी, तब आप को अच्छा लगेगा?’ वह भी सख्ती से बोली थी, ‘मैं कहे देती हूं, अब आप देर से आएंगे तो मैं खाना नहीं खाऊंगी.’ और वह पैर पटकती हुई चली गई थी.

वे हैरान से खड़े देखते रह गए थे. मीरा और सीमा में कितना साम्य है. वह अगर हवा का तेज झोंका थी तो यह सबकुछ हिला देने वाली तेज आंधी.

निक्की यादव की बेरहम हत्या : नई दुल्हन बेड पर, पहली फ्रिज में – भाग 2

क्राइम ब्रांच की इस मीटिंग में तय किया गया कि सब से पहले साहिल की तलाश की जाएगी. यदि साहिल हाथ आ जाता है तो उस से निक्की के विषय में मालूम किया जा सकता है.

साहिल के पिता से और रिश्तेदारों से एकत्र किए गए साहिल के दोस्तों और साहिल के संभावित ठहरने के ठिकानों की छानबीन कर के साहिल को खोजा जा सकता था.

मुखबिर भी लगा दिए गए. साहिल के छिपने के संभावित ठिकानों पर दबिश दी जाने लगी. सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली गई. साहिल ने अपना मोबाइल बंद कर लिया था, फिर भी उस के नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया था, ताकि मोबाइल औन होने पर उस की लोकेशन का पता लग सके.

पुलिस की इस मुस्तैदी, छापेमारी का परिणाम सुखद रहा. साहिल को दक्षिण- पश्चिम दिल्ली के कैर गांव चौराहे से 12 फरवरी, 2023 को गिरफ्तार कर लिया गया. उसे क्राइम ब्रांच के औफिस में लाया गया. क्राइम ब्रांच के  स्पैशल कमिश्नर रविंद्र यादव और डीसीपी सतीश कुमार ने साहिल से पूछताछ की.

साहिल पक्का घाघ था, वह पहले क्राइम ब्रांच के इन दोनों अधिकारियों के प्रश्नों का गोलमोल जवाब देता रहा, लेकिन जब उस पर सख्ती बरती गई तो वह टूट गया. साहिल ने निक्की के विषय में जो खुलासा किया, उस से क्राइम ब्रांच के अफसरों के जैसे होश उड़ गए.

साहिल ने बताया कि उस ने निक्की यादव को 10 फरवरी की सुबह साढ़े 9 बजे के आसपास मोबाइल के डाटा केबल से गला घोट कर मार दिया था. उस ने निक्की की लाश को कार की अगली सीट पर सीट बेल्ट से बांध कर लगभग 50 किलोमीटर दूर अपने ढाबे तक का सफर तय किया था. वहां ढाबे में रखे फ्रिज में उस ने निक्की की लाश को छिपा दिया.

‘‘निक्की की हत्या तुम ने जिस कार में की थी, वह किस की थी?’’ सीपी रविंद्र यादव ने पूछा.

‘‘वो कार मेरे चाचा की थी.’’

‘‘तुम ने निक्की यादव को कहां पर मारा?’’ डीसीपी सतीश कुमार ने साहिल को घूरते हुए पूछा.

‘‘मैं रात को एक बजे निक्की के फ्लैट पर गया था. वहां से सुबह ही हम कार से निकल आए. फिर उसे कश्मीरी गेट की ओर ले आया, वहां मैं ने रोड किनारे कार खड़ी कर निक्की की हत्या कर दी.’’

‘‘तुम ने निक्की की हत्या क्यों की?’’ सीपी रविंद्र यादव ने पूछा.

‘‘सर, 10 तारीख को मेरी शादी थी, यदि निक्की को मैं जीवित रहने देता तो वह मेरी शादी में हंगामा खड़ा कर सकती थी. वह कार में भी मेरे साथ इसी बात पर झगड़ा कर रही थी कि मैं शादी न कर के उसे अपना लूं. वह अपने साथ शादी करने का मुझ पर दवाब बनाते हुए लड़ने लगी, तब मैं ने क्रोध में आ कर उस की हत्या कर दी.’’

क्राइम ब्रांच के आगे साहिल ने यह खुलासा कर दिया था कि वह निक्की की हत्या कर चुका है, इसलिए सब से पहले निक्की की लाश को कब्जे में लेना जरूरी था.

ढाबे के फ्रिज से बरामद की लाश

साहिल को साथ ले कर क्राइम ब्रांच की टीम नजफगढ़ के मित्राऊं गांव के खेत में बने उस के ढाबे पर पहुंच गई. साहिल के पिता वीरेंद्र सिंह को इस बात की सूचना पुलिस ने मोबाइल पर दे दी कि साहिल अपनी प्रेमिका निक्की की हत्या चुका है और उस ने निक्की की लाश को उन के ढाबे में रखे फ्रिज में छिपा कर रखा है. वह ढाबे पर पहुंच जाएं.

साहिल के पिता इस खबर से सन्नाटे में आ गए. उन के चेहरे से शादी की सारी खुशियां काफूर हो गईं. साहिल के घर वाले भी साहिल के द्वारा हत्या करने की खबर सुन कर सकते में आ गए थे. वीरेंद्र सिंह गहलोत अपने 2-3  रिश्तेदारों के साथ ढाबे की ओर रवाना हो गए.

वह ढाबे पर पहुंचे. तब साहिल को ले कर क्राइम ब्रांच की टीम उन्हीं का इंतजार कर रही थी.

उन के सामने डीसीपी सतीश कुमार ने साहिल द्वारा ढाबे के पिछले हिस्से में रखे नीले रंग के फ्रिज को खुलवाया.

निक्की की लाश फ्रिज में ठूंसी हुई थी. उसे बाहर निकाला गया. फोटोग्राफर और फोरैंसिक टीम को बुलवा लिया गया. निक्की की लाश का निरीक्षण किया गया. उस के गले पर वायर के लाल निशान अभी भी साफ दिखाई दे रहे थे. शरीर पर और किसी प्रकार के चोट के निशान नहीं थे.

तमाम आवश्यक काररवाई पूरी करने के बाद निक्की की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. क्राइम ब्रांच ने हत्या में इस्तेमाल कार व साहिल के मोबाइल का डाटा केबल कब्जे में ले लिया.

निक्की के परिजनों का पता निकाल कर झज्जर में उन्हें निक्की की हत्या हो जाने की सूचना दे दी गई. निक्की के पिता सुनील यादव को बता दिया गया कि निक्की की हत्या उस के साथ लिवइन में रहने वाले पार्टनर साहिल गहलोत ने की है, जो अब पुलिस के कब्जे

में है. निक्की की हत्या की खबर सुनते ही घर में कोहराम मच गया. सुनील यादव अपने कुछ परिचितों के साथ झज्जर से दिल्ली की ओर चल दिए.

उधर दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने साहिल से विस्तार से पूछताछ की तो निक्की यादव की हत्या की जो दिलचस्प कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

हरियाणा के झज्जर के रहने वाले सुनील यादव के परिवार में 2 बेटियों के अलावा एक बेटा था. इन में निक्की सब से बड़ी थी. खेतीकिसानी करने वाले सुनील यादव ने दोनों बेटियों को पढ़ाई के लिए दिल्ली भेज दिया था. वह द्वारका क्षेत्र में किराए पर फ्लैट ले कर रहने लगीं. निक्की उत्तम नगर के एक कोचिंग सेंटर से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. वह जिस बस से कोचिंग सेंटर आती थी, उसी में साहिल भी आता था. साहिल नजफगढ़ के पास स्थित मित्राऊं गांव के वीरेंद्र सिंह गहलोत का इकलौता बेटा था.

साहिल आज बहुत बेचैन और उदास था, क्योंकि उस दिन उस ने बस में निक्की को नहीं देखा था, जो रोज बस में उसी के साथ सफर करती थी. वे एक ही मंजिल के राही थे.

साहिल उस कोचिंग सेंटर से एसएससी की तैयारी कर रहा था. एक साथ एक ही बस से आने के बावजूद उन में अभी बातचीत और नहीं हुई थी. साहिल उसे मन ही मन चाहने लगा था और उस से दोस्ती करना चाहता था, लेकिन उसे मौका ही नहीं मिल पा रहा था.

…और उस दिन तो निक्की कोचिंग सेंटर ही नहीं आई थी. साहिल का मन उदास हो गया था, वह बस से उतर कर कोचिंग सेंटर की ओर चला जा रहा था कि उस के पीछे से किसी लड़की की आवाज आई, ‘‘ठहरो!’’

साहिल रुक कर पलटा. उस से कुछ दूरी पर एक युवती को देखा, जो उसी की तरफ चली आ रही थी. युवती ने सिर पर इस प्रकार दुपट्टा बांधा हुआ था कि केवल उस की आंखें ही दिख रही थीं. वह टौप और जींस पहने हुए थी, उस के हाथ में किताबें थीं.

साहिल को समझते देर नहीं लगी कि वह युवती किसी कालेज की छात्रा है. कौन है यह और इस ने उसे रुकने को क्यों कहा है? साहिल सोच ही रहा था कि वह उस के सामने आ गई.