अधेड़ उम्र की चाहत

‘‘अब तक तो उन्हें घर आ जाना चाहिए था, दिन निकल चुका है… न तो इन्हें खाने की सुध है और न ही घर के कामकाज की, बस जंगल की रखवाली की ही फिक्र रहती है.’’ घर के आंगन में झाड़ू लगाते हुए पति जमुना प्रसाद के खयाल में डूबी शांति के मन में जो विचार आ रहे थे, वह बके जा रही थी.

झाड़ू लगाने के बाद वह दरवाजे पर आ कर पति की राह देखने लगी थी. जी नहीं माना तो बेटे संजय को आवाज लगाती हुई बोली, ‘‘जरा जा कर जंगल की ओर तो देख आते कि तुम्हारे बापू अभी तक आए क्यों नहीं?’’

मां की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि संजय ने मां की बात को काटते हुए तपाक से कहा, ‘‘तुम भी मां सुबहसुबह चिल्लाना शुरू कर देती हो. जानती हो न, बापू को कोई मिल गया होगा पीनेखाने वाला, सो लेट हो गए होंगे. आते होंगे न, क्यों शोर मचा रही हो.’’

जमुना वन विभाग में चौकीदार था.

बेटे की बात सुन कर शांति देवी शांत हो कर बैठ गई थी, लेकिन उस का मन नहीं मान रहा था. न जाने क्यों उसे रहरह कर मन में कुछ गलत खयाल आ रहे थे, जिस से उस का जी घबराने लगा था.

कुछ देर बीता था कि जब उस का मन नहीं लगा तो वह धीरे से उठी और जंगल की ओर चल दी. वह घर से तकरीबन 200 मीटर की दूरी पर पहुंची ही थी कि अचानक जंगल से लगे रास्ते के किनारे पति जमुना की लाश देख कर वह दहाड़े मार कर रोने लगी.

शांति की चीखपुकार सुन कर मौके पर ग्रामीण जमा होने लगे थे. जंगल में शांति के पति जमुना की लाश देख कर हर कोई हैरान और परेशान था. किसी को कुछ समझ में नहीं आ पा रहा था कि उस की हत्या किस ने कर दी. शांति भी रोने के सिवा कुछ बोल नहीं पा रही थी.

जंगल में वन विभाग के चौकीदार की लाश मिलने की यह खबर कानोकान होते हुए हलिया थाने तक पहुंच गई थी. यह खबर पा कर एसएचओ संजीव कुमार सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ मौके पर पहुंच गए.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो किसी वजनी पत्थर से हत्या करने का शक हुआ. वह अधेड़ उम्र का था. मृतक के घर वालों ने उस की शिनाख्त जमुना के रूप में कर ली. थानाप्रभारी ने हत्या के संबंध में वहां मौजूद लोगों से बात करने के बाद इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

सूचना पा कर वन क्षेत्राधिकारी रामनारायण जैसल, स्क्वायड टीम प्रभारी पवन कुमार सिंह, संतोष कुमार के साथ वहां पहुंच गए. सभी अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण करने लगे.

इस के बाद उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय भिजवा दी. फिर मृतक जमुना के बेटे धर्मेंद्र कुमार की तरफ से भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के जांच शुरू कर दी थी. यह बात शनिवार 4 फरवरी, 2023 की है.

मृतक की पहचान पहले ही वन विभाग के चौकीदार जमुना प्रसाद धरिकार (58 वर्ष) निवासी ग्राम फुलयारी के रूप में हो चुकी थी. जमुना वन विभाग के हलिया वन रेंज अंतर्गत चौराबीट जंगल में पेड़पौधों की रखवाली करता था. पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि उस की हत्या किन परिस्थितियों में किस ने और क्यों की है?

पूछताछ के दौरान मृतक के घर वाले भी कुछ बता पाने में जहां असमर्थ थे, वहीं आसपास के लोग भी इस मामले से साफ पल्ला झाड़ रहे थे. ऐसे में पुलिस के सामने हत्या के कारणों को ले कर कई जटिल सवाल खड़े हो रहे थे. फिर भी पुलिस छानबीन की दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश में जुट गई थी.

मीरजापुर के एसपी संतोष कुमार मिश्रा ने एएसपी श्रीकांत प्रजापति, एएसपी (औपरेशन) महेश अत्री व सीओ (लालगंज) की निगरानी में स्वाट टीम प्रभारी राजेश चौबे, इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस प्रभारी, एसओजी प्रभारी माधव सिंह एवं थाना हलिया की पुलिस टीमें गठित कर घटना का जल्द से जल्द खुलासा कर अभियुक्तों की गिरफ्तारी करने के निर्देश दिए.

उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले के हलिया थाना क्षेत्र में एक गांव है फुलयारी. यहीं का रहने वाला जमुना प्रसाद धरिकार वन विभाग में चौकीदार (वाचर) था. उस की ड्यूटी हलिया वन रेंज के चौराबीट में थी. चौराबीट जमुना के घर से तकरीबन 200 मीटर की दूरी पर है, जहां वह रोज पेड़पौधों की रखवाली के लिए जाया करता था और शाम होने पर अपने घर लौट आता था. यह उस की दिनचर्या थी.

3 फरवरी, 2023 को भी वह अपनी ड्यूटी के लिए निकल गया था, जो काफी रात होने के बाद भी घर नहीं लौटा था. उस की दूसरे दिन 4 फरवरी, 2023 को सुबह लाश मिली थी.

मीरजापुर जिले का हलिया थाना जिला मुख्यालय से तकरीबन 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. हलिया थाना और हलिया वन रेंज दोनों ही जिले के अंतिम छोर पर स्थित होने के साथसाथ मध्य प्रदेश की सीमा से लगते हैं.

यह इलाका उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का सरहदी इलाका भी कहलाता है. अपराध के साथसाथ हलिया वन रेंज क्षेत्र में रहने वाले दुर्लभ वन्यजीवों के लिए भी यह क्षेत्र सुविख्यात है. यहां तेंदुआ, मगरमच्छ, हिरन, भालू, जंगली सूअर, सांभर, अजगर सहित कई अन्य वन्य जीव पाए जाते हैं. इन में कुछ दुर्लभ वन्यजीव भी हैं.

यह जंगल कभी शेर और चीते की आवाजों से गूंजा करता था. दूरदूर तक फैले हरेभरे घनघोर जंगल और पहाड़ के चलते यहां लकड़ी माफियाओं से ले कर शिकारियों की भी आहट होती रहती है. ऐसे में इस क्षेत्र में पुलिस के साथसाथ वन विभाग द्वारा जंगली जीव और पेड़पौधों की सुरक्षा की खातिर व्यापक पैमाने पर वाचर (चौकीदारों) की तैनाती की गई है, जो पेड़पौधों की सुरक्षा से ले कर जंगली जीवजंतुओं के शिकार तथा पेड़ों के कटान पर नजर रखते हैं.

ऐसे में पुलिस टीम को वाचर जमुना प्रसाद की हत्या में शिकारियों या वन माफियाओं की संलिप्तता को ले कर भी संदेह बना हुआ था. इस संदेह के 2 कारण थे. पहला यह था कि शुक्रवार को जमुना जब घर से 200 मीटर दूर पौधरोपण की देखभाल करने के लिए गया था तो जंगल से कुछ लोग जलावनी लकडि़यों को काट कर ले जा रहे थे. उस ने उन लोगों को पकड़ कर काटी गई लकडि़यां और उन्हें काटने में प्रयुक्त होने वाली कुल्हाड़ी आदि अपने कब्जे में ले कर घर भिजवा दी थी.

उस के बाद वह फिर देखभाल करने के लिए जंगल में चला गया था, जहां से काफी देर होने के बाद भी वह घर नहीं लौटा था. शाम ढलने के बाद रात हो गई थी लेकिन उस का कुछ अतापता नहीं चला था. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. ऐसे में उस का इंतजार करतेकरते घर वाले रात काफी होने पर सो गए थे.

दूसरे जमुना प्रसाद पर एक साल पहले हमला हुआ था, जिस की शिकायत उस ने हलिया थाने में की थी. घर वालों से मिली इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए पुलिस टीम इस पर भी नजर गड़ाए हुए थी.

जमुना प्रसाद के घर वालों से मिली जानकारी और एसपी के निर्देशन में गठित पुलिस टीमों द्वारा इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस एवं भौतिक साक्ष्यों के आधार पर छानबीन की जा रही थी कि इसी बीच मुखबिर की एक सूचना ने पुलिस टीम को मानो डूबते को तिनके का सहारा देते हुए इस घटना के खुलासे के करीब पहुंचने की राह दिखाई.

एसएचओ संजीव कुमार सिंह इस केस को ले कर उलझे हुए थे कि तभी उन का एक खास मुखबिर उन के पास आ कर बोला, ‘‘साहब, आप के लिए एक बहुत खास सूचना ले कर आया हूं?’’

‘‘…तो फिर बोलो पहेलियां क्यों बुझा रहे हो?’’

‘‘हुजूर, आप जिस बात को ले कर उलझन में पड़े हुए हैं उस उलझी हुई कड़ी की दूसरी कड़ी मृतक के घर से ही सुलझ सकती है.’’ वह बोला.

मुखबिर के मुंह से इतनी बात सुन कर एसएचओ उस की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘मतलब मैं नहीं समझा कि तुम क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘साहब, सीधी सी बात है जमुना प्रसाद की हत्या का राज तो उस के घर में ही छिपा हुआ है.’’

इस के बाद मुखबिर ने सारी जानकारी उन्हें दे दी. मुखबिर की इस सूचना से संजीव कुमार सिंह के चेहरे पर खुशी के भाव दिखाई देने लगे थे. यह बात 10 फरवरी, 2023 की है. इस के बाद पुलिस टीम ने मृतक जमुना के दोनों बेटों संजय कुमार (30 वर्ष), बुद्धसेन (20 वर्ष) व फूलचंद्र धरिकार (50 वर्ष) निवासी फुलयारी को हिरासत में ले लिया. इन से जमुना की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो इन्होंने जमुना की हत्या करने का अपराध कुबूल कर लिया.

पूछताछ के बाद जमुना की हत्या की जो कहानी खुल कर सामने आई, वह न केवल हैरान कर देने वाली थी, बल्कि बापबेटी के समान ससुर और बहू के रिश्ते को तारतार कर देने वाली निकली, जो इस प्रकार से है—

फुलयारी गांव के रहने वाले जमुना प्रसाद धरिकार (58) का 5 बेटों और 4 बेटियों का भरापूरा परिवार था. बेटों और बेटियों का घर बसा कर जमुना अपने परिवार के साथ राजीखुशी से रह रहा था.

बेटे जहां मेहनतमजदूरी कर घर चला रहे थे तो वह वन विभाग में वाचर (चौकीदार) था. खापी कर सुबह जाता था तो शाम ढले घर लौट आया करता था.

एक दिन की बात है. रोज की तरह जमुना जल्दी से तैयार हो कर घर से निकलने ही वाला था कि तभी उस की पत्नी उस के पास आ कर बोली, ‘‘बस 5 मिनट रुको, बहू खाना ले कर आ रही है. कुछ खा लो तब जाना. मैं भी बकरियों को घास खिलाने ले जा रही हूं.’’

पत्नी की बात सुन कर जमुना रुक गया था. शांति घर से बाहर निकली थी कि तभी बेटे संजय की पत्नी सुमन भोजन की थाली ले कर आ खड़ी हुई थी. बहू के हाथ में भोजन की थाली देख कर जमुना ने भी सोचा कि जब बहू खाना ले ही आई तो खा लेता हूं. इस के बाद वह खाना खाने के लिए नीचे जमीन पर बिछी चटाई पर बैठ गया.

जमुना के चटाई पर बैठते ही सुमन भोजन की थाली नीचे रखने के लिए झुकी ही थी कि उस की साड़ी का पल्लू पूरी तरह से सरक कर नीचे आ गया, जिस से उस के गदराए बदन को देखते ही जमुना के तनमन में विचलन होने लगी थी.

झट से साड़ी का पल्लू संभालते हुए सुमन मारे शर्म से लालपीली होती हुई कमरे में चली गई तो वहीं जमुना उसे एकटक देखता ही रह गया था. खाना खाने के बाद जमुना बहू को आवाज लगाते हुए जंगल की ओर निकल तो गया था, लेकिन उस के दिलोदिमाग में बहू का गदराया बदन, उस के उभार उसे चैन से रहने नहीं दे रहे थे.

सुमन भी उस पल को याद कर शर्म से लाल हुए जा रही थी तो कभी साड़ी का पल्लू दांतों से दबाए हुए मन ही मन हंस पड़ती थी. 2 दिन बीते थे कि अचानक सुमन का सामना ससुर जमुना से हुआ तो वह उसी पल को याद कर शर्म से पानीपानी हुए जा रही थी, जबकि जमुना उसे एकटक देखे जा रहा था.

उस दिन शाम के समय जमुना जब काम से लौटा तो बहू को पानी के लिए आवाज लगाई. जैसे ही सुमन ने पानी भरा गिलास ससुर के आगे बढ़ाया तो जमुना ने गिलास के साथ बहू के हाथों को भी थाम लिया था. झट से हाथ छुड़ा कर सुमन मुसकान बिखेरते हुए चली गई थी. बहू की बस यही अदा जमुना को दीवाना कर गई थी.

फिर क्या था, जमुना अब अवसर की तलाश में जुट गया था. कुछ ही दिन बीते थे कि एक रोज जमुना दोपहर में ही घर लौट आया.

बेटे जहां कामधंधे पर निकले थे तो वहीं पत्नी शांति भी छोटी बेटी व बहू के साथ खेतों की ओर गई थी. घर में अकेली सुमन ही थी. वह भी घर के कामकाज से खाली हो कर आंगन में नहाने के लिए बैठी थी.

चूंकि उस दिन अचानक से हवा तेज होने से ठंड का असर बढ़ गया था सो उस ने यही सोचा कि थोड़ा धूप कड़क हो जाए तो नहाया जाए. सुमन जैसै ही सारे कपड़े उतार कर सिर्फ पेटीकोट पहने नहाने को हुई थी कि तभी अचानक से ससुर आंगन में आ गया. सामने बहू को उस अवस्था में देख जहां उस की आंखें फटी रह गईं तो वहीं बहू सुमन ने अपने उभारों को दोनों हाथों से ढकने का प्रयास करते हुए गरदन झुका ली.

यह देख कर झट से जमुना पीछे मुड़ा और घर की किवाड़, जो आते वक्त खुला हुई थी, को बंद कर वापस लौट आया. बिना देर किए उस ने बहू सुमन को बांहों में भर लिया और उस के बदन को सहलाने लगा.

ससुर की इस हरकत का सुमन ने विरोध करते हुए उस की बांहों की जकड़न से छूटने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘ब..ब.. बाबूजी, ये क्या कर रहे हैं आप? हटिए, छोडि़ए…’’

सुमन का इतना कहना था कि जमुना ने अपनी बांहों के बंधन को और मजबूत करते हुए उस के अधरों को चूमना शुरू कर दिया.

‘‘बाबूजी छोडि़ए, कोई आ गया तो…’’

उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि जमुना बोला, ‘‘इस की फिक्र मत करो, मैं ने किवाड़ की कुंडी चढ़ा दी है, जिसे तू चढ़ाना भूल गई थी.’’

इतना कह कर उस ने सुमन को गोद में उठा लिया. पहले तो सुमन ससुर की बांहों से मुक्त होने के लिए हाथपैर मार रही थी, लेकिन धीरेधीरे उस ने हाथपैर मारने बंद किए तो जमुना भी उस की मौन सहमति को समझ गया. फिर आंगन में ही बिछी चारपाई पर ले जा कर सुमन को लिटा दिया. इस के बाद उस ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

जिस्मों की प्यास बुझी तो दोनों अलग हुए. एक बार यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर यह चलता ही रहा. दोनों को जब भी समय मिलता, दो जिस्म एक जान हो जाते थे.

ससुरबहू की इस लुकाछिपी का खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. किसी तरह बात पत्नी शांति के कानों से होते हुए बेटे संजय तक पहुंच गई थी. फिर क्या था, पूरे घर में भूचाल आ गया था.

इस बात को ले कर घर में आए दिन कलह होने लगी. अंत में वही हुआ, जिस की जमुना ने सपने में भी कल्पना नहीं की होगी.

काफी समझाने, घर की इज्जत का हवाला देने के बाद भी जब जमुना नहीं माना तो बेटे संजय ने अपने भाई बुद्धसेन को यह बात बताई.

पिता की इस करतूत ने दोनों भाइयों के खून में उबाल ला दिया. फिर उन्होंने अपने दोस्त और पड़ोसी फूलचंद्र धरिकार के साथ मिल कर पिता को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

फिर योजना के अनुसार संजय कुमार ने अपने भाई बुद्धसेन व पड़ोसी फूलचंद्र धरिकार के साथ मिल कर घर पर ही पिता के सिर पर पत्थर से प्रहार कर हत्या कर दिया. किसी को शक न हो, इसलिए शव को घर से कुछ दूरी पर ले जा कर डाल दिया था और हत्या में प्रयुक्त पत्थर भी छिपा दिया.

पुलिस ने संजय कुमार, बुद्धसेन व फूलचंद्र धरिकार से पूछताछ के बाद इन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पत्थर भी बरामद कर लिया इस के बाद सभी आरोपियों को सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया है.

एसपी संतोष कुमार मिश्रा ने केस का खुलासा करने वाली टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा करने के साथ पीठ भी थपथपाई.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं

यहां मिलती है किराए पर दुल्हन

अमित सहराना ने सपने में भी नहीं सोचा था कि यह सौदा इतना महंगा पड़ेगा कि जान पर बन आएगी. दिल्ली में एक नामी कंपनी में बतौर सौफ्टवेयर इंजीनियर काम कर रहे युवा अमित की शादी कहीं नहीं हो पा रही थी. दिक्कत यह थी कि उस की बंजारा बिरादरी में उतनी खूबसूरत लड़कियां होती नहीं, जितनी कि आजकल बगल में चिपका कर ले जा कर महफिल में भभका डाला जाता है. दूसरे उस के साथ घरपरिवार की भी कुछ समस्याएं भी थीं.

दिखने में ठीकठाक अमित की सैलरी दिल्ली जैसे महानगर के हिसाब से खासी अच्छी थी, लेकिन जाति आड़े आने से उसे मनपसंद जीवनसंगिनी नहीं मिल पा रही थी.

लंबी भागादौड़ी करने के बाद भी बात कहीं बनी नहीं तो एक दिन अमित ने मध्य प्रदेश के शिवपुरी का रुख किया. उस ने सुन रखा था कि यहां एक तयशुदा रकम देने के एवज में एक साल तक के लिए किराए पर बीवी मिलती है.

दिल्ली से शिवपुरी तक के सफर में उस का दिल हालांकि घोड़ी पर बैठे दूल्हे की तरह बल्लियों उछल रहा था, लेकिन कुछ आशंकाएं भी उसे घेर लेती थीं.

मसलन क्या पता कैसे लोग मिलेंगे वहां, पसंद की बीवी मिले या नहीं और मिली भी तो ज्यादा नखरे वाली न हो. लेकिन अगर अच्छी निकली तो फिर लाइफ बन जाएगी.

वह 29 जनवरी, 2022 की सुबह थी जब अमित शिवपुरी पहुंचा. चंबल ग्वालियर इलाके की हाड़ कंपा देने वाली ठंड से उस के इरादे और फैसले पर कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि अब वे अरमानों में तब्दील हो चुके थे.

लाल लंहगा पहने, हाथ में जयमाला लिए एक सकुचाई सी दुलहन उस के जेहन में मुकम्मल जगह बना चुकी थी, जिस के लिए कोई भी कीमत अदा करने को उस की जेब और बैंक एकाउंट में पैसा था.

दोपहर में तैयार हो कर वह उस जगह पहुंचा, जहां किराए की दुलहन मिलती हैं. लेकिन जैसा उस ने सुना था, वैसा माहौल देखने में नहीं आया कि बहुत सी लड़कियों की मंडी लगी है और देश भर से आए लोग उन का मोलभाव कर रहे हैं और तरहतरह से लड़कियों की नापातौली कर रहे हैं.

पूछतेपूछते वह एक अधपके मकान में जा पहुंचा, जहां लड़की सीमा (बदला नाम) और उस के घर वाले होने वाले टेंपरेरी दामाद का इंतजार कर रहे थे.

औपचारिक हायहैलो के बाद मुद्दे की बात पैसों की शुरू हुई. सीमा को देखते ही रवि को लगा कि यही है उस के सपनों की रानी. पेशेवर अंदाज में सीमा के घर बालों ने जो कीमत मांगी, वह बहुत ज्यादा तो नहीं थी पर रवि ने सुन रखा था कि यहां भावताव बहुत होता है इसलिए कुछ कम कराने की कोशिश करना, जोकि उस ने की. किसी सधे हुए व्यापारी की तरह अमित ने अपनी कीमत बता दी, जिस पर सहमति नहीं बनी तो वह वहां से चलता बना.

वह चला तो गया, लेकिन दिल तो पहली ही नजर में सीमा की अदाओं का दीवाना हो चुका था. इस के बाद भी उस ने सब्र से काम लिया. नहीं तो एक मन कह रहा था कि बेकार भावताव में उलझ गया, मुंहमांगी रकम दे देता तो सीमा दिल्ली में उस के घर बैडरूम में होती और वह सुहागरात मना रहा होता. सजेधजे कमरे में फूलों की सुगंध महक रही होती, वह बिस्तर पर पसरा होता, तभी सीमा दूध का गिलास ले कर कमरे में दाखिल होती तो वह उस का आंचल खींच कर अपने आगोश में ले लेता. फिर कमरे की लाइट बंद हो जाती.

अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं था, लिहाजा दूसरे दिन वह फिर सीमा के घर जा पहुंचा. जिस के सयाने घर वाले समझ गए कि पंछी नया है, लिहाजा इसे तबियत से निचोड़ लिया जाए. जितनी समझदारी अमित दिखा रहा था, वह दरअसल अव्वल दरजे की नादानी और नातजुर्बेकारी इन खेलेखाए खिलाडि़यों के सामने थी.

इस बार बात कुछ बनती दिखी. लेकिन फिर पैसों पर अटक गई तो अमित फिर वापस चला आया. इतना तो उसे समझ आ गया था कि इन लोगों को पैसों की सख्त जरूरत है. लिहाजा बेकार की हड़बड़ाहट दिखाते ज्यादा पैसा क्यों दिया जाए. दूसरे माहौल को ले कर उस का डर भी खत्म हो गया था कि यहां से किसी खासतौर से पुलिस वालों को कोई मतलब नहीं. इस बार भी वह अपनी औफर प्राइस दे कर चला आया.

इस तरह आतेजाते फरवरी का पूरा महीना निकल गया इस दौरान वह कई बार दिल्ली से शिवपुरी आया. आखिरकार सौदा पट ही गया. सीमा के घर वाले 20 हजार रुपए में मान गए, जो अमित के लिहाज से मामूली रकम थी. 3 मार्च, 2022 को उस की और सीमा की शादी हो गई.

शिवपुरी की इस तरह की शादियों में कोई मंडप बारात और दूसरी रस्में नहीं होतीं, बल्कि विकसित देशों को भी मात करती ये शादियां स्टांप पेपर पर होती हैं. यानी कोई होहल्ला नहीं, तामझाम नहीं, बस लड़के और लड़की की सहमति काफी होती है. सहूलियत के लिए इन्हें कौन्ट्रैक्ट मैरिज कहा जा सकता है.

अमित और सीमा की शादी में तो स्टांप पेपर की भी जरूरत नहीं पड़ी, बल्कि लिखापढ़ी सादे कागज पर ही कर ली गई. जिस के मसौदे में खास इतना भर था कि दोनों रजामंदी से एकदूसरे को पतिपत्नी स्वीकार करते हैं, लेकिन इन की शादीशुदा जिंदगी की मियाद केवल एक साल होगी.

सीमा पत्नी की तरह अमित के साथ रहेगी और वे तमाम सुख उसे देगी, जो एक पत्नी अपने पति को देती है. इस बाबत तय रकम 20 हजार रुपए अमित ने सीमा के घर वालों को दे दी है. एक साल बाद यह करार खत्म हो जाएगा और अमित सीमा को वापस यहीं छोड़ जाएगा.

अमित की नजर में ये शर्तें मामूली थीं और वैसी ही थीं जैसी वह चाहता था कि कोई झंझट नहीं. सब कुछ यूज एंड थ्रो जैसा है. अगर मन करे और दोनों पक्ष राजी हों तो यह एग्रीमेंट आगे भी बढ़ाया जा सकता है, जिस की कीमत उसी वक्त तय की जाएगी.

कुछ साल पहले तक इस करार के मसौदे को शादी के फेरों के सात वचन की तरह दोनों पक्ष निभाते थे, लेकिन अब गड़बड़ होने लगी है, जैसी कि अमित के मामले में हुई.

सीमा जैसी सैकड़ों किराए की दुलहनें शिवपुरी में बेहद सहूलियत से और सस्ती मिलती हैं और जिन लोगों की शादी किसी भी वजह से नहीं होती है, वे यहां से साल भर तक के लिए किराए पर दुलहन ले जाते हैं. दुलहन का किराया उस की सेहत और उम्र पर निर्भर करता है कि वह कितना होगा.

मोटे तौर पर यह 25 हजार से ले कर एक लाख रुपए तक होता है. इसे ‘धडीचा प्रथा’ कहा जाता है, जो सदियों से इस इलाके में है और कोई इस का विरोध नहीं करता. सरकार ने कानूनन इस रिवाज को गैरकानूनी घोषित किया हुआ है, लेकिन दोटूक कहें तो यह देह व्यापार का एक अनूठा तरीका है, लेकिन इस पर देह व्यापार की ही तरह कोई रोक लगाना मुमकिन नहीं.

शिवपुरी के एक बुजुर्ग नागरिक के मुताबिक, इस रिवाज की शुरुआत अंगरेजों के जमाने में ही हो गई थी. इस की वजह पिछड़ापन, शोषण, गरीबी और जातिगत भेदभाव ज्यादा समझ आते हैं. क्योंकि किराए पर जाने वाली अधिकतर लड़कियां छोटी जाति की होती हैं.

पहले आसपास के जिलों के ही लोग यहां बीवी किराए पर लेने आते थे, लेकिन अब दूरदराज के प्रदेशों से भी आने लगे हैं. क्योंकि इस की चर्चा देश भर में होने लगी है. यह सच है कि कुछ साल पहले तक लड़कियों की नीलामी बोली लगा कर होती थी, पर अब ऐसा कम ही देखने में आता है. लोग सीधे लड़की के घर जाते हैं और सौदा कर लेते हैं.

किराए और शादी की लिखापढ़ी स्टांप पेपर पर होती है, जिस के कोई खास कानूनी माने नहीं होते. यह भी ‘धडीचा प्रथा’ का एक चला आ रहा पहलू है. पैसा लड़की के घर वाले रख लेते हैं, यही उन की रोजीरोटी है. जाहिर है निकम्मे मर्दों की वजह से लड़कियां यहां बिकती हैं, जिस में किसी को शर्म नहीं आती, क्योंकि इसे सभी ने अपना भाग्य या नियति जो भी कह लें, मान रखा है.

बात हैरत की इस लिहाज से भी नहीं है कि लड़कियों की खरीदफरोख्त का रिवाज देश में हर कहीं किसी न किसी शक्ल में है. मध्य प्रदेश के ही निमाड़ इलाके के मंदसौर और नीमच जिलों में बांछड़ा समुदाय के लोग खुलेआम लड़कियों से देह व्यापार करवाते हैं, लेकिन वह कुछ घंटों या एक रात का होता है साल भर का नहीं.

औरतों की यूं खरीदफरोख्त सभ्य समाज के लिए कलंक है और कानून के लिए चुनौती  भी है. धडीचा के तहत पत्नी बनी महिला के कोई कानूनी अधिकार और घरगृहस्थी नहीं होते. वह एक के बाद एक कर बिकती ही रहती है. जो बच्चे कौन्ट्रैक्ट मैरिज से पैदा होते हैं, उन को न तो किसी पिता का नाम मिलता और न ही इन बच्चों का कोई भविष्य होता है. बड़े हो कर वे भी इसी गंदगी का हिस्सा बन कर दलाली करने लगते हैं.

औरतों को जायदाद समझने का गुनाह वेद पुराणों के जमाने से होता रहा है, वह देश के कुछ हिस्सों में आज भी दिखता है.

फसाद की जड़ अगर गरीबी और शोषण है तो उस का कोई हल अभी तक नहीं ढूंढा जा सका है. इस कुप्रथा में बिकी औरतों को बीच में करार तोड़ने का हक होता है. लेकिन ऐसा करने से पहले उन्हें ली गई कीमत अपने टेंपरेरी पति को लौटानी पड़ती है. ऐसा तभी होता है जब कोई दूसरा मर्द उन्हें ज्यादा पैसा देता है.

शिवपुरी का पिछड़ापन किसी सबूत का मोहताज नहीं रहा. नशा और देह व्यापार यहां खुलेआम होता है, लेकिन हालत कालगर्ल्स की भी अच्छी नहीं है. धडीचा में कोई उन का मुफ्त में इस्तेमाल नहीं कर सकता, यह अगर खुश होने वाली बात है तो क्या खा कर इस पर खुशी मनाई जाए.

यह भी कम हैरत की बात नहीं कि अभी तक किसी नाबालिग के बिकने की शिकायत सामने नहीं आई है, जबकि बिकने वाली औरतों में कुंवारी लड़कियों से ले कर उम्रदराज शादीशुदा औरतें भी होती हैं, जिन्हें पति कुछ हजार रुपए के लिए खुशीखुशी किराए पर दे देता है.

मुमकिन है कि नाबालिग भी किराए पर चलती हों और कोई इस की शिकायत करने की जरूरत नहीं समझता हो. कोई काररवाई अगर होनी होती तो वह बालिगों की बिक्री पर भी हो सकती है, जो खुलेआम भाजीतरकारी की तरह होती है. अब जबकि शिकायतें सामने आने लगी हैं, तब भी जिम्मेदार लोगों के कान पर जूं नहीं रेंग रही.

सीमा से शादी के महज 23 दिन बाद ही अमित शिवपुरी के एसपी के औफिस में अपना दुखड़ा रोने गया था. जिस ने सोचा यह भी था कि महज 2 हजार रुपए महीने पर न केवल चौबीसों घंटे सैक्स सुख देने वाली बीवी मिल रही है, बल्कि मुफ्त के भाव की नौकरानी भी मिल रही है जो खाना बनाएगी, घर की साफसफाई करेगी, बरतन और कपड़े भी धोएगी.

दिल्ली में ऐसी नौकरानी लगभग 7 हजार रुपए महीना पगार लेती है. इस लिहाज से उस ने घाटे का सौदा नहीं किया था.

लेकिन जल्द ही उसे समझ आ गया कि यह बेहद घाटे का सौदा था. शादी के बाद एक हफ्ता भी वह किराए की बीवी के साथ सुकून से नहीं गुजार पाया था कि सीमा के घर वालों ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया.

वे उस से मकान दिलाने के लिए दबाब बनाने लगे. मना करने पर 5 लाख रुपए की एफडी और हर महीने 20 हजार रुपए मांगने लगे. इस में भी उस ने असर्मथता जाहिर की तो उसे जान से मारने की धमकियां दी जाने लगीं.

इस पर घबराया अमित पुलिस के पास गया पर बात आईगई हो गई. जिस उत्साह से वह एक साल पहले दिल्ली से शिवपुरी आया था, उस से भी ज्यादा मायूसी और निराशा ले कर वह शिवपुरी से दिल्ली वापस लौट गया.

उम्मीद है कि जल्द ही वह इस हादसे को भूल कर परमानेंट बीवी ले आएगा और सुखचैन से जिएगा.    द्य

प्रेमी के कारण तनु ने भाई को मारा

आटासाटा सामाजिक रीति के अनुसार चित्तौड़गढ़ में भाई बहन महेंद्र और तनु की शादी की तारीखें इसी साल फरवरी की तय हो चुकी थीं. इस रीति के मुताबिक महेंद्र की जिस लड़की से शादी होनी थी, उस के भाई से तनु की शादी होनी तय हुई थी. दोनों की शादी के लिए तारीखें और विवाह कार्यक्रम नवंबर 2022 में ही तय हो गए थे. अब परिवार में सिर्फ रस्मों की अदायगी का इंतजार था.

तैयारियां शुरू हो गई थीं. महेंद्र ब्याह होने को ले कर खुश था. मन में शादी के लड्डू फूटने लगे थे. उस की शादी मनपसंद सुंदर लड़की से तय हुई थी. महेंद्र ने उसे शादी से पहले ही पसंद कर लिया था.

गोविंद मध्य प्रदेश के जिला मंदसौर के गांव राइका गरोठ के रहने वाले थे, जो इस समय भाटखेड़ा में रह रहे थे. उन के 3 बच्चों में बेटा महेंद्र के अलावा उस से छोटी 2 बेटियां तनु और तनिष्का थीं. उन का साधारण खातापीता परिवार था. वह कपड़े धुलाई का पुश्तैनी काम कर रहे थे.

इस शादी को ले कर पूरे परिवार में काफी खुशी का माहौल बन गया था. सभी के चेहरे पर चमक थी और वे शादी की तैयारियों में जुट गए थे. इस शादी को ले कर अगर किसी के मन में दुविधा या नापसंद की बात थी तो वह थी तनु.

जब से उस की शादी की तारीख तय हुई थी, तभी से उस के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं और दिमाग में हलचल मची हुई थी. दरअसल, वह इस शादी को नहीं करना चाहती थी. हालांकि ऐसा भी नहीं था कि उस के मातापिता और भाई ने जो रिश्ता तय किया था, वह खोटा था. इस बारे में तनु ने पहले अपनी छोटी बहन से बात की. इस पर बहन ने तपाक से सुझाव दिया कि अगर उसे यह शादी पसंद नहीं है तो मां को बता दे.

तनु बड़ी हिम्मत कर मां आजोदिया बाई से बोली, ‘‘मां, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती हूं.’’

यह सुनते ही मां तड़ाक से बोलने लगी, ‘‘शादी नहीं करना चाहती है? क्यों नहीं करना चाहती है अभी? यह क्या बात हुई. तुम्हारे चलते महेंद्र कुंवारा बैठा रहेगा? और फिर तुम्हारी शादी होने के बाद ही तो छोटी बहन की शादी हो पाएगी? मैं देख रही हूं कि जब से तू ननिहाल से आई है, तेरे तो रंगढंग ही बदल गए हैं.’’

मां की तेज आवाज महेंद्र के कानों में भी पड़ी. वह तुरंत मां के पास आया और बोला, ‘‘क्या हो गया मां?’’

‘‘अरे देख तो इस छोरी के… इस के लक्षण ठीक न लागे सै… बोले सै अभी शादी ना करेगी… काहे ना करैगी?…ऐसे होवे सै का!… तू ही समझा इसे…बापू सुनेगा तो बहुत नाराज हो जावेगा… आ वह परिवार वाला का सोचेगा? समझा!’’

महेंद्र को समझते देर न लगी. वह भी मां के लहजे में बोल पड़ा, ‘‘माई सा, इसे मैं बहुत समझा चुका. इस का कुछ न होवेगा…हम सब की नाक कटावेगी छोरी.’’

‘‘नाक कटावेगी…तैं का बोले सैं?’’ मां आश्चर्य से बोली.

‘‘हां माई सा! छोरी के दू साल से नैन मटक्का चल रहे सै!… ओहे संग ब्याह रचैहें!…हमरे औ बापू से बोले के हिम्मत ना सै, तभी ताहे से विनती करै…!’’

महेंद्र की मां से बात हो ही रही थी. तनु तब किसी को कुछ न बोली और पैर पटकती हुई घर से बाहर चली गई. यह 3 साल पहले की बात है.

तनु उर्फ तनिष्का राइका भी भाई महेंद्र, मां आजोदिया बाई और छोटी बहन के साथ भाटखेड़ा में अपने मामा शांतिलाल राइका के यहां रह रही थी. वहीं धोबियों के मोहल्ले में गंगरार निवासी महावीर धोबी का भी घर है. उस का महेंद्र के पास आनाजाना शुरू हुआ, तब वह तनु को देखते ही उस पर फिदा हो गया था. बाद में तनु भी उसे प्यार करने लगी.

उन्हीं दिनों रक्षाबंधन का त्यौहार आया. महावीर ने होशियारी दिखाते हुए महेंद्र के सामने ही तनु की छोटी बहन से राखी बंधवा ली. उस वक्त तनु खुशी से बोल पड़ी, ‘‘यह बहुत अच्छा हुआ महेंद्र भैया, हमें एक और भाई मिल गया. आज से महावीर हम सभी का धर्मभाई बन गया है.’’

तनु और महावीर धर्मभाई और धर्मबहन की आड़ ले कर रासलीला में लगे रहे. उन के बीच फोन पर लगातार बातें होने लगीं.

एक दिन महेंद्र ने दोनों को चूमते हुए देख लिया था. वे घर में एकदूसरे से लिपटे हुए चूम रहे थे. उस वक्त तो महेंद्र किसी तरह से खुद को काबू में किया, लेकिन उस के जाते ही बहन पर बरस पड़ा, ‘‘तनु, तू हम सब की आंख में धूल झोंकै सै…अभी माई को बताता हूं.’’

‘‘ना ना वीरा! तैने गलत समझे!’’ तनु ने सफाई देनी चाही.

‘‘का गलत और का सही, सब कुछ आंखन के सामने सै…’’ महेंद्र बोला.

‘‘ना वीरा, ना! उस को थोड़ा पैसा चाहो. वही हम इंतजाम करे का वादो कियो…और वह खुशी में गले लाग गयो.’’ तनु मासूमियत से बोली.

महेंद्र भी बहन की बातों में आ गया. सिर्फ इतना पूछा उसे कितना पैसा चाहिए.

तनु ने कहा कि 40 हजार. महेंद्र तब बोला कि यह तो बहुत है. इस पर तनु उस की तारीफ करती हुई बोली कि वह कितना कुछ उन के लिए करता है. एक आवाज में मदद करने को आ जाता है. हम सभी उस पर भरोसा करते हैं.

महेंद्र भी जब ठंडे दिमाग से महावीर के बारे में सोचने लगा, तब उसे एहसास हुआ कि वह भी किसी न किसी रूप में उस के सहयोग के एहसान तले दबा हुआ है. उस ने उसे भी कोरोना के दौरान कामधंधा कम हो जाने की स्थिति में मदद पहुंचाई थी. महावीर उस के भी खास दोस्तों में से एक था.

भाई बन रहा था रुकावट

तनु से महावीर ने कर्ज के तौर पर 40 हजार रुपए लिए थे, जिस की जानकारी महेंद्र को भी थी. कई माह हो जाने के बाद भी जब महावीर ने कर्ज के पैसे तनु को वापस नहीं लौटाए, तब उस का तकादा महेंद्र भी करने लगा.

पैसे के लिए बारबार तकादा किए जाने के चलते महावीर ने महेंद्र के घर आनाजाना बंद कर दिया, लेकिन फोन पर तनु से बातचीत जारी रखी. उन के बीच प्रेम के साथसाथ एकदूसरे संग शादी रचाने की हूक उठी हुई थी. तनु को कर्ज के पैसे की चिंता नहीं थी. वह चाहती थी कि महावीर संग उस का ब्याह हो जाए. किंतु सामाजिक और पारिवारिक विसंगतियों के चलते उन की शादी में कई बाधाएं थीं.

सब से बड़ी बाधा उस के परिवार को ले कर ही थी. परिवार में महेंद्र की उज्जैन में शादी की बात चल रही थी. वे दहेज की बातें भी कर रहे थे, लेकिन जहां महेंद्र की शादी तय होने वाली थी, वहां के लड़की वालों ने एक शर्त रखी कि वह दहेज की रकम नहीं दे पाएंगे, किंतु आटासाटा में अपने बेटे की शादी उस परिवार की किसी लड़की से जरूर करना चाहेंगे.

यह बात महेंद्र के मातापिता को जम गई. उन्होंने तनु की शादी भी महेंद्र के साथसाथ तय कर दी. तनु किसी भी सूरत में वह शादी रोकना चाहती थी. जबकि आटासाटा में शादी तय होने का मतलब था, उस की शादी टूटती तो महेंद्र की शादी भी टूट जाती. जो महेंद्र कतई नहीं चाहता था.

तनु परेशान हो गई. बहन की सलाह पर उस ने मां से बात करने की कोशिश की, लेकिन सब से बड़ी बाधा महेंद्र ही बन गया.

तनु की तरह महावीर भी परेशान हो गया था. वह भी हर सूरत में तनु से ही शादी करना चाहता था. उस ने कुछ सोचविचार कर 11 नवंबर, 2022 को तनु के घर गया. महेंद्र से मिला. महेंद्र उसे कई हफ्ते बाद घर आया देख कर्ज के पैसे मांगते हुए बोला, ‘‘तूने जो उधार लिए, वह पैसे लौटा दे. हमारे घर में शादी होने वाली है.’’

महावीर सहम गया, लेकिन नरमी के साथ बोला, ‘‘देखो भाई, मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं. वैसे मैं तुम से अपनी शादी की बात करने आया हूं. तू हां कर देगा तो मेरा कर्ज भी उतर जाएगा और मेरे साथ तुम्हारी बहन भी खुश हो जाएगी.’’

‘‘मैं समझ गया तू क्या चाहता है? लेकिन सुन, वह मेरे जीते जी तो नहीं होने वाला है.’’ महेंद्र की नाराजगी कम नहीं हुई थी.

‘‘तो फिर देख ले, मैं भी जिद्दी किस्म का इंसान हूं. जो ठान लेता हूं वह हासिल कर ही छोड़ता हूं.’’ यह कहता हुआ महावीर जाने लगा, लेकिन जातेजाते बोल गया कि वह ठंडे दिमाग से उस की बात पर सोचे. तनु की शादी उस के साथ होने में ही सब के लिए अच्छा होगा.

जब से महेंद्र को लगा कि उस की शादी तनु और महावीर के चलते रुक सकती है, तब उस ने शादी में और जल्दबाजी कर दी. पंडित से पंचांगपत्रा दिखा कर फटाफट तारीखें निकलवा लीं.

दूसरी तरफ इन सब चीजों से परेशान हो कर तनु और महावीर ने महेंद्र को ही रास्ते से हटाने का प्लान बना लिया. उन्होंने ऐसा प्लान बनाया, ताकि वे पकड़े भी न जाएं. वे अपने प्लान में सफल भी हो गए, लेकिन पुलिस की गहन जांच से बच नहीं पाए. यहां तक कि तनु भी अपने परिवार को काफी गुमराह करती रही, लेकिन उस का भेद जब खुला, तब भाई और बहन के बीच पवित्र प्रेम पर भी खून का दाग लग गया.

गंगरार कस्बे की पुलिस 5 दिसंबर, 2022 को तब चौकन्नी हो गई, जब वहां के एसएचओ शिवलाल मीणा को हनुमान मंदिर के पीछे की तरफ करीब 200 फीट गहरे कुएं में अज्ञात व्यक्ति का सिर कटा धड़ होने की सूचना मिली.

यह सूचना एक राहगीर ने उस में से आ रही दुर्गंध फैलने पर दी थी. पुलिस ने काररवाई शुरू की. पुलिस टीम ने पहले लाश को कुएं से निकलवाया. उस की शिनाख्त की जाने लगी, लेकिन बगैर सिर के उसे पहचानना आसान नहीं था. हालांकि अगले दिन उस का सिर भी बरामद कर लिया गया.

प्रेमी की खातिर भाई को निपटाया

शव की शिनाख्त भी नाटकीय ढंग से हो पाई. शव को जब फिनाइल से साफ किया गया तब मृतक की बांह पर कुछ लिखा दिखा, जो पढ़ने में नहीं आ रहा था. पुलिस ने टौर्च की लाइट में देख कर कमलेश राइका पढ़ लिया. वहीं खड़ा महावीर एकदम से यह बोल उठा कि यह कमलेश नहीं बल्कि महेंद्र राइका लिखा हुआ है. इस तरह नाम के सही ढंग से पढ़ने पर पुलिस को तभी महावीर पर शक हो गया और उस पर नजर रखी जाने लगी.

शव की पहचान महेंद्र राइका के रूप में हो जरूर गई थी, लेकिन उस की मौत के बारे में खुलासा होना बाकी था. एसपी राजन दुष्यंत और एएसपी अर्जुन सिंह ने इस केस को गंभीरता से लिया.

डीएसपी भवानी सिंह के नेतृत्व में एक टीम बनाई गई. टीम में एसएचओ शिवलाल मीणा (थाना गंगरार), एएसआई नगजीराम, भैरूलाल, अमीचंद, हैडकांस्टेबल धर्मेंद्र, नरेंद्र व कांस्टेबल धर्मपाल, ओमप्रकाश, भीवाराम, माधवलाल, रोशनलाल, कालूराम, मनीष, वेदराम, राजेश, राजकुमार, कांस्टेबल राम अवतार, कमलेश, प्रवीण आदि को शामिल किया गया. टीम ने घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए.

जांच के बाद टीम ने मृतक महेंद्र की बहन तनु, उस के प्रेमी महावीर समेत एक अन्य महेंद्र को हिरासत में ले लिया. तीनों से पुलिस द्वारा अलगअलग पूछताछ की गई. जल्द ही उन्होंने महेंद्र के मारे जाने की बात स्वीकार कर ली.

महावीर ने बताया कि इस हत्या की साजिश महेंद्र की बहन तनु ने रची थी और इस वारदात में उस का दोस्त गंगरार के ही रहने वाले पन्नालाल धोबी का बेटा महेंद्र धोबी समेत एक नाबालिग भी है.

पूछताछ में पता चला कि 12 नवंबर को तनु और उस की छोटी बहन को बुआ के घर बर्थडे पार्टी के लिए कोटा जाना था. महावीर ने दोनों बहनों को अपनी वैन से गंगरार से चित्तौड़ शहर तक छोड़ दिया. उस दिन तनु ने महावीर से कहा था कि कोटा से लौटने के दिन ही महेंद्र को मारना है.

16 नवंबर को तनु छोटी बहन के साथ कोटा से घर लौट रही थी. इस की जानकारी तनु ने अपने भाई महेंद्र को फोन पर दे कर कहा कि वह महावीर की बाइक ले कर हमें लेने के लिए गंगरार चौराहे पर आ जाए. उसी समय तनु ने महेंद्र की लोकेशन महावीर को बता दी. महेंद्र घर से पैदल ही गंगरार के लिए रवाना हो गया.

महावीर अपनी वैन ले कर भाटखेड़ा की तरफ गया. रास्ते में उसे महेंद्र मिल गया. उसे वैन में बैठा कर अपने साथ ले कर चल पड़ा. बातों में फंसाकर उसे गंगरार किले पर हनुमान मंदिर के पास ले गया. महेंद्र को गांजा पीने की आदत थी. इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए महावीर ने कहा कि अभी तनु के गंगरार चौराहे तक आने में वक्त लगेगा तो क्यों न 2-4 कश गांजे का ले लें.

इस पर महेंद्र राजी हो गया और उस के साथ किले की ओर चल पड़ा. इसी बीच महावीर ने अपने दोनों साथियों महेंद्र धोबी व नाबालिग को गांजा ले कर आने के लिए बोल दिया. वहां पर चारों ने मिल कर गांजा पीया और महेंद्र को सारणेश्वर महादेव मंदिर के आगे सुनसान जगह पर ले गए.

अंधेरा होने के बाद तीनों ने मिल कर गमछा (तौलिया) से महेंद्र का गला घोट दिया तथा लाश को ठिकाने लगाने के लिए बिजली के वायर से हाथ व पैर बांध दिए. आरोपियों ने बताया कि हत्या करने के बाद रात करीब 10-11 बजे लाश को किले पर ले जा कर किले के पीछे स्थित कुएं में डाल दिया और अपनेअपने घर चले गए. कुएं में डालने के समय महेंद्र का सिर उस के धड़ से अलग हो गया. लाश गिराने पर सिर धड़ से अलग होने की बात पुलिस के भी गले नहीं उतरी थी.

प्लान के बाद पकड़े जाने से बचने के लिए महेंद्र का फोन बंद कर दिया और 5 दिन बाद 21 नवंबर को महावीर अपने मोबाइल को गंगरार में रख कर महेंद्र के मोबाइल को ले कर चित्तौड़गढ़ से ट्रेन द्वारा मंदसौर चला गया. मंदसौर रेलवे स्टेशन पर उतर कर महाराणा प्रताप सर्किल के पास मोबाइल औन कर तनु को फोन किया. तनु से बातचीत करने के बाद फोन को फेंक दिया. फिर सीधा गंगरार आ गया.

महावीर सामान्य बना रहा. तनु के परिवार वालों से मिलताजुलता रहा. तनु ने अपनी मां और छोटी बहन को गुमराह करने के लिए कहा कि 21 नवंबर को महेंद्र ने उसे फोन किया था और वह मंदसौर की तरफ एक ट्रक में है, जबकि महेंद्र की हत्या 16 नवंबर, 2023 को ही हो चुकी थी.

इस तरह से महेंद्र हत्याकांड में शामिल चारों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर दिया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.      द्य

प्रेमिका ने अपने बच्चे को मारा

बिजनौर जिले में एक कस्बा है नगीना. इसी कस्बे के भीड़भाड़ वाले इस इलाके में रात के 9 बजे एक युवती सड़क पर अचानक चिल्लाने लगी, ‘‘पकड़ो… पकड़ो… भाग गया… बदमाश भाग गया… ले कर भाग गया.’’

उस के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुन कर कुछ लोग उस के पास आ गए. पूछा, ‘‘अरे, क्या हुआ? क्यों चिल्ला रही हो?’’

‘‘बदमाश भाग गया… मेरा बच्चा ले कर भाग गया?’’ युवती बोली और सामने की ओर अंगुली उठा दी.

‘‘लेकिन उस ओर तो कोई नहीं दिख रहा और आगे का रास्ता भी बंद है.’’ एक व्यक्ति बोला.

‘‘अरे, वहीं पहले की गली में बाइक से भागा है बदमाश. मेरी गोद से बच्चा झपट्टा मार कर छीन ले गया,’’ युवती बोली और सिर पकड़ कर बैठ गई.

वहां मौजूद लोगों को हैरानी हुई. अभी तक राह चलती महिला के पर्स या गहने छीन कर भागने की बातें तो सुनी थीं, लेकिन बच्चा छीनने की बात पहली बार सुनने को मिली थी. एक व्यक्ति ने पूछा, ‘‘कितना बड़ा बच्चा था?’’

दूसरा बोला, ‘‘कौन लोग थे? कितने लोग थे? वे तुम्हारे जानने वाले थे…या कोई और?’’

‘‘आप लोग मुझ से ही सवाल करते रहोगे या कुछ करोगे भी,’’ देखने में अच्छीभली दिख रही युवती बिफरती हुई बोली.

उसी वक्त रात की गश्त पर निकली पुलिस कुछ लोगों की भीड़ देख कर पहुंच गई. पुलिस को लोगों ने युवती के साथ कुछ समय पहले की घटित घटना के बारे में बताया.

युवती ने भी पुलिस को वही सब बताया. वह अपने 6 महीने के बच्चे को गोद में लिए डाक्टर के पास जा रही थी. उस के पास अचानक एक बाइक आ कर रुकी. उस पर 2 लोग बैठे थे. वे हेल्मेट लगाए हुए थे. मेरे कुछ कहनेपूछने से पहले बाइक के पीछे बैठा बदमाश मेरी गोद से बच्चे को झपट्टा मार कर छीन लिया और फिर वे बाइक भगा ले गए.

‘‘तुम कहां से आ रही थी?’’ बाइक से गश्त लगाने वाली पुलिस ने पूछा.

‘‘जी, लाहौरी सराय मोहल्ले से.’’ युवती बोली.

‘‘तुम्हारा क्या नाम है?’’

‘‘खुदशिया तामजी, लेकिन परिवार में मुझे अफशा के नाम से जानते हैं. वहां मेरी ससुराल है. मेरे बेटे का नाम अरहान है.’’ युवती ने बताया.

‘‘बाइक का नंबर देखा था?’’ पुलिस वाले का अगला सवाल था.

‘‘जी नहीं.’’

‘‘कैसी बाइक थी?’’

‘‘काले रंग की. उसे चलाने वाला जींस पहने हुए मटमैला शर्ट पहने हुए था. पीछे बैठे बदमाश ने भी उसी तरह के कपड़े पहन रखे थे.’’

युवती से पूरी जानकारी नोट कर गश्त लगाने वाली पुलिस ने तुरंत इस घटना की सूचना नगीना थाने को भेज दी. उस वक्त एसएचओ प्रिंस शर्मा थाने पर ही मौजूद थे. सूचना मिलते ही वह एसआई देवेंद्र सिंह, कुलदीप राणा और 2 सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने भी अफशा से पूछताछ की. वह एक ही रट लगाए हुए थी, ‘‘मेरे अरहान को बदमाश ले कर भाग गए.’’

पुलिस ने कर दी नाकेबंदी

उस के इस बयान पर उन्होंने भी बच्चे के अपहरण का मामला दर्ज कर लिया. एसएचओ ने इस घटना की जानकारी एसपी (बिजनौर) दिनेश सिंह और एसपी (सिटी) प्रवीन रंजन सिंह को भी दे दी. यह बात 31 अगस्त, 2022 की है.

एसपी का निर्देश पा कर थाना पुलिस हरकत में आ गई. आसपास के नाकों पर अपनी निगाह गड़ा दी. मामला बच्चे के अपहरण का था. प्रिंस शर्मा ने अपहृत बच्चे की मां अफशा से पूछा, ‘‘देखो, मुझ से कुछ मत छिपाना. तुम्हारी अगर किसी से दुश्मनी है तो साफसाफ उस के बारे में बताओ. उस की पूरी जानकारी दो, तभी हम बच्चे को वापस ला पाएंगे.’’

इस बारे में अफशा कुछ नहीं बोली. उस की चुप्पी पर उन्होंने फिर पूछा, ‘‘तुम्हारी हालत देख कर तो ऐसा नहीं लगता है कि बच्चे का अपहरण फिरौती के लिए किया गया है. फिर भी बताओ, तुम्हारी पारिवारिक स्थिति कैसी है? तुम्हारे शौहर क्या करते हैं? परिवार में कौनकौन है? तुम्हारे परिवार में कोई ऐसा तो नहीं, जिसे लंबे समय से कोई औलाद न हुई हो?’’

इतने सारे सवालों से अफशा घबरा गई. सामान्य होने पर बताया कि उस का शौहर नौकरी के लिए सऊदी गया हुआ है. शादी से पहले से वहीं रहता है. सिर्फ शादी करने के लिए 2 साल पहले आया था और शादी के तुरंत बाद वापस लौट गया था. वहां जाते ही कोरोना का लौकडाउन लग गया था. पूरे साल भर बाद आया और कुछ दिन रह कर फिर चला गया.

अफशा की बातों से एसएचओ समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर बच्चे के अपहरण का क्या मकसद रहा होगा. उस की बातचीत से उन्हें उस के द्वारा गुमराह करने का भी संदेह हो रहा था. खैर, उस वक्त उसे बच्चा जल्द सकुशल वापस लाने का आश्वासन दे कर घर भेज दिया.

अगले दिन पहली सितंबर, 2022 की सुबह पुलिस ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों को चैक करवाया. उन की फुटेज में अफशा दिख गई. उस के साथ एक 8-9 साल की लड़की भी थी. उस के हाथ में एक बच्चा भी था. अगली फुटेज में वह बच्चे को बहते नाले में फेंकती दिखाई दी, जो उस के घर से 200 मीटर दूर बारात घर के पास था.

पुलिस तुरंत नाले के पास जा पहुंची. बच्चा वहीं नाले में पड़ा मिल गया. वह बहते हुए पानी के साथ प्लास्टिक कचरे के सहारे किनारे पर अटका हुआ था. उसे तुरंत बाहर निकाला गया. वह मर चुका था.

एसएचओ को मामला समझते हुए देर नहीं लगी. उन्होंने अफशा को तुरंत पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. पुलिस उस के साथ सख्ती दिखाते हुए जबरदस्त झाड़ लगाई और सीसीटीवी फुटेज के बारे में जानकारी दी.

सच्चाई आई इस तरह सामने

कैमरे में उस की वीडियो रिकौर्डिंग देख कर वह डर गई. उस ने हाथ जोड़ लिए. वह महिला पुलिस के पैरों पर गिर कर रोने लगी. गिड़गिड़ाने लगी. उस की इस हालत को देख कर थोड़ी देर के लिए पुलिस समझ नहीं पाई कि उस का रोनाधोना बच्चे के मरने के कारण है या फिर उस की चोरी और हरकत पकड़े जाने की वजह से है.

वह जल्द ही सामान्य हो गई. एसएचओ ने उसे अपने सामने कुरसी पर बिठा कर सचसच बताने के लिए कहा.

अफशा के पछतावे के आंसू देख कर एसएचओ प्रिंस शर्मा ने कहा कि उस के सच बताने पर उस ने जो भी जुर्म किया होगा, उस की सजा कम हो सकती है. माफी भी मिल सकती है.

कहते हैं न मरता क्या नहीं करता. ऐसी स्थिति अफशा की थी. उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया और सब कुछ बताने को तैयार हो गई. उस के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

अफशा निकाह कर 2 साल पहले अपनी ससुराल नगीना के लाहौरी सराय आई थी. उस का शौहर आसिफ बीते 5 सालों से सऊदी अरब में काम कर रहा था. वह बीचबीच में साल में एक बार घर आ जाता था और हफ्ते 2 हफ्ते रुक कर अपने काम पर चला जाता था. घटना के 6 माह पहले ही अफशा उस के बच्चे की मां बनी थी.

अफशा बच्चा पा कर बहुत खुश थी. उस का शौहर भी यह खबर सुन कर बहुत खुश हो गया. आसिफ की गैरमौजूदगी में आसिफ के परिवार वालों ने बच्चे के जन्म की खुशी में दावत का आयोजन किया था. उस समय उस का नाम अरहान रखा गया था. उस की वजह से पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई थी.

शौहर सऊदी में, बीवी कैसे संभाले जवानी

सिर्फ परिवार में किसी के आने का इंतजार तो आसिफ का था. उसे सऊदी में छुट्टी नहीं मिल पा रही थी. अफशा मन मसोस कर रह गई थी. उस के दिन तनहाई में बीत रहे थे. महीनों से पुरुष संसर्ग से वंचित थी. बच्चे के  जन्म के बाद उस का बदन और खिल उठा था. तंदुरुस्त दिखने लगी थी. देह की मांसलता, सुंदरता और सैक्स अपील किसी की निगाह में तुरंत आ जाती थी.

वैसे उस का मायका मुरादाबाद के ऊमरीकलां गांव में था. लेकिन मायके वाले मुरादाबाद के मंगल बाजार में रहते थे. शादी से पहले से ही अफशा पूरे मोहल्ले में इधरउधर घूमती रहने के चलते लड़कों के बीच चर्चित थी. कुछ लोगों को उस का चालचलन ठीक नहीं लगता था.

वहीं उस के चाहने वाले भी कम नहीं थे. उन्हीं में एक सलीम भी था, जो ऊमरीकलां का ही रहने वाला था. उस ने शादी से पहले अफशा से अपने दिल की बात कही थी, लेकिन तब तक उस का निकाह तय हो चुका था. सलीम उस का एक तरह से सच्चा प्रेमी था, उस ने अपनी प्रेमिका के अच्छे भविष्य और विदेश में नौकरी करने वाले पति के लिए अपने दिल पर पत्थर रख लिया था.

जबकि सच तो यह था कि सलीम और अफशा एकदूसरे के प्रेम को भूल नहीं पाए थे. सलीम अकसर अफशा की ससुराल लाहौरी सराय चला जाता था. वह मायके वालों की तरफ से परिवार से मिलता था और अफशा से अपने दिल की बातें किया करता था. सलीम अफशा के ससुराल वालों की नजर में भाईजान बना हुआ था. दोनों कई बार मौका देख कर नैनीताल आदि घूम आए थे. वहां उन्हें होटलों में ठहरने का मौका मिल गया था.

यह सिलसिला अफशा के मां बनने के बाद भी चलता रहा. उस के बाद से तो मानो ससुराल वालों की तरफ से उन दोनों को छूट मिल गई थी. एक बार सलीम बोला, ‘‘अरे यार, हम लोग कब तक ऐसे बहाने बना कर और छिपते हुए मिलते रहेंगे. मैं चाहता हूं कि तुम से निकाह कर हमेशा के लिए तुम्हें बना लूं.’’

‘‘अब कैसे मुमकिन है? मेरी गोद में आसिफ का बच्चा भी है.’’ अफशा बोली और बगल में बेफिक्री से सो रहे बच्चे पर एक नजर डाली.

‘‘उस के बारे में भी सोचता हूं.’’ सलीम यह कहता हुआ होटल के कमरे से बाहर निकल गया.

थोड़ी देर में ही कुछ खाने का सामान ले कर वापस लौट आया. उस वक्त अफशा बच्चे को दूध पिला रही थी. उस ने मजाक किया, ‘‘पूरे डेढ़ महीने बाद हमारा मिलना हुआ है. और तुम हो कि बच्चे में ही उलझी हो…’’

‘‘क्या करूं, यही मेरे दिल का टुकड़ा है.’’

‘‘और मैं?’’

‘‘अरे तुम तो मेरा दिल हो, जिस में मेरी जान बसती है,’’ अफशा भी सलीम से मजाकिया अंदाज में बोली.

‘‘हमारे आज के रोमांस का क्या होगा?’’ सलीम ने प्रश्न किया. तभी बच्चा रोने लगा. अफशा उसे चुप कराने लगी. लेकिन वह चुप ही नहीं हो रहा था.

‘‘हमारे प्यार में तुम्हारा बेटा ही बाधक बन गया है,’’ सलीम रोते बच्चे को देख कर बोला.

‘‘तो क्या करूं इस का? लगता है इसे कुछ तकलीफ है. कल सुबह डाक्टर को दिखाना होगा.’’

‘‘…और आज रात हमारी यूं ही कटेगी..’’ सलीम सांसें लेता हुआ बोला और वहीं पास बिछावन पर लेट गया. आधी रात को दोनों आलिंगनबद्ध थे कि बच्चा अचानक फिर से रोने लगा. ऐसे में उन का संसर्ग अधूरा रह गया. दोनों खिन्न हो गए. उन के चेहरे पर बच्चे को ले कर सवाल उभर आया था. सलीम ने सिर्फ इतना कहा, ‘‘इस का कुछ करो वरना!’’

मिलन में खलल बना बच्चा

अगले रोज अफशा बच्चे के साथ ससुराल आ गई. सलीम भी अपने घर लौट गया. दोनों के मन पर एक बोझ बना हुआ था. अफशा से विदा होते हुए सलीम ने पूछा, ‘‘बच्चे को कहीं ठिकाने नहीं लगाया जा सकता?’’

इस पर कुछ बोले बगैर अफशा अपनी ससुराल आ गई, लेकिन उस के दिमाग में बच्चे को ठिकाने लगाने का सवाल बना रहा. सलीम के साथ गुजारी उस रात में बच्चे को ले कर आई बाधा उस के दिमाग से निकल ही नहीं रही थी. उस बारे में सोचसोच कर वह उलझती ही जा रही थी. एक तरफ विदेश में बैठा उस का शौहर था तो दूसरी तरफ उस पर प्यार न्यौछावर करने वाला प्रेमी सलीम. वह अफशा पर दिल खोल कर खर्च करता था. उस के लिए मर मिटने की कसमें खाता था.

शादीशुदा अफशा भी आशिकी में कुछ भी करने को तैयार थी. सलीम की बच्चे को ठिकाने लगाने वाली बात उस के दिमाग से निकल ही नहीं पा रही थी. इसी बीच दिमाग में एक सवाल उभरा, ‘‘कैसे?’’

इसी के साथ उस ने पास में सो रहे बच्चे पर एक नजर डाली. दिमाग में खुराफाती विचार आए और उस ने तुरंत एक योजना बना ली.

अगले पल ही उस ने सलीम को फोन किया और उसे साजिश की योजना बता दी. अफशा की योजना सुन कर सलीम भी उछल पड़ा. फोन पर ही बोला, ‘‘इस से तो सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’

योजना के मुताबिक, अफशा 31 अगस्त, 2022 की रात साढ़े 8 बजे बेरहम बन गई. दिल को मजबूत किया. इश्क का भूत उस के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी था कि उस ने गहरी नींद में सो रहे बच्चे का गला दबा दिया. चंद मिनटों में ही बच्चा बेजान हो गया.

उस के बाद योजना के मुताबिक घर में काम करने वाली नौकरानी सुमैया से बच्चे को डाक्टर से दिखाने के लिए साथ चलने को बोली. घर से थोड़ी दूर पर जा कर उस ने नौकरानी को घर वापस जाने के लिए कहा.

नौकरानी के चले जाने के बाद अफशा ने मृत बच्चे को नाले में फेंक दिया. फिर उस ने योजना के मुताबिक थोड़ी दूर भीड़ वाली जगह पर जा कर बाइक सवार द्वारा बच्चा छीन कर ले भागने का शोर मचा दिया.

इस पूरे मामले की कहानी को पुलिस ने कलमबद्ध कर लिया और उस के बयानों के आधार पर अगली काररवाई शुरू कर दी. बच्चे अरहान के चाचा बिलाल ने अपनी भाभी अफशा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी. उस दिन पहली सितंबर, 2022 को उसे हिरासत में ले लिया गया.

कथा लिखे जाने तक उस का प्रेमी सलीम पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया था. पुलिस ने खुदशिया तामजी उर्फ अफशा से पूछताछ करने के बाद उसे कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जुनूनी इश्क में पागलपन

वह गांव की सीधीसादी लड़की थी. नाम था उसका लाडो. वह आगरा के थानातहसील शमसाबाद के गांव सूरजभान के रहने वाले किसान सुरेंद्र सिंह की बेटी थी. घर वाले उसे पढ़ालिखा कर कुछ बनाना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

इस की वजह यह थी कि 2 साल पहले उस के कदम बहक गए. उसे साथ पढ़ने वाले देवेंद्र से प्यार हो गया. वह आगरा के थाना डौकी के गांव सलेमपुर का रहने वाला था. शमसाबाद में वह किराए पर कमरा ले कर रहता था.

अचानक ही लाडो को देवेंद्र अच्छा लगने लगा था. जब उसे पता चला कि देवेंद्र ही उसे अच्छा नहीं लगता, बल्कि देवेंद्र भी उसे पसंद करता है तो वह बहुत खुश हुई.

एक दिन लाडो अकेली जा रही थी तो रास्ते में देवेंद्र मिल गया. वह मोटरसाइकिल से था. उस ने लाडो से मोटरसाइकिल पर बैठने को कहा तो वह बिना कुछ कहे देवेंद्र के कंधे पर हाथ रख कर उस के पीछे बैठ गई. देवेंद्र ने मोटरसाइकिल आगरा शहर की ओर मोड़ दी तो लाडो ने कहा, ‘‘इधर कहां जा रहे हो?’’

‘‘यहां हम दोनों को तमाम लोग पहचानते हैं. अगर उन्होंने हमें एक साथ देख लिया तो बवाल हो सकता है. इसलिए हम आगरा चलते हैं.’’ देवेंद्र ने कहा.

‘‘नहीं, आगरा से लौटने में देर हो गई तो मेरा जीना मुहाल हो जाएगा,’’ लाडो ने कहा, ‘‘इस के अलावा कालेज का भी नुकसान होगा.’’

‘‘हम समय से पहले वापस आ जाएंगे. रही बात कालेज की तो एक दिन नहीं जाएंगे तो क्या फर्क पड़ेगा.’’ देवेंद्र ने समझाया.

लाडो कशमकश में फंस गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह देवेंद्र के साथ जाए या नहीं? जाने का मतलब था उस के प्यार को स्वीकार करना. वह उसे चाहती तो थी ही, आखिर उस का मन नहीं माना और वह उस के साथ आगरा चली गई.

देवेंद्र उसे सीधे ताजमहल ले गया. क्योंकि वह प्रेम करने वालों की निशानी है. लाडो ने प्रेम की उस निशानी को देख कर तय कर लिया कि वह भी देवेंद्र को मुमताज की तरह ही टूट कर प्यार करेगी और अपना यह जीवन उसी के साथ बिताएगी.

प्यार के जोश में शायद लाडो भूल गई थी कि उस के घर वाले इतने आधुनिक नहीं हैं कि उस के प्यार को स्वीकार कर लेंगे. लेकिन प्यार करने वालों ने कभी इस बारे में सोचा है कि लाडो ही सोचती. उस ने ताजमहल पर ही साथ जीने और मरने की कसमें खाईं और फिर मिलने का वादा कर के घर आ गई.

इस के बाद लाडो और देवेंद्र की मुलाकातें होने लगीं. देवेंद्र की बांहों में लाडो को अजीब सा सुख मिलता था. दोनों जब भी मिलते, भविष्य के सपने बुनते. उन्हें लगता था, वे जो चाहते हैं आसानी से पूरा हो जाएगा. कोई उन के प्यार का विरोध नहीं करेगा. वे चोरीचोरी मिलते थे.

लेकिन जल्दी ही लोगों की नजर उन के प्यार को लग गई. किसी ने दोनों को एक साथ देख लिया तो यह बात सुरेंद्र सिंह को बता दी. बेटी के बारे में यह बात सुन कर वह हैरान रह गया. वह तो बेटी को पढ़ने भेजता था और बेटी वहां प्यार का पाठ पढ़ रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि लाडो ऐसा कैसे कर सकती है. वह तो भोलीभाली और मासूम है.

घर आ कर उस ने लाडो से सवाल किए तो उस ने कहा, ‘‘पापा, देवेंद्र मेरे साथ पढ़ता है, इसलिए कभीकभार उस से बातचीत कर लेती हूं. अगर आप को यह पसंद नहीं है तो मैं उस से बातचीत नहीं करूंगी.’’

सुरेंद्र सिंह ने सोचा, लोगों ने बातचीत करते देख कर गलत सोच लिया है. वह चुप रह गया. इस तरह लाडो ने अपनी मासूमियत से पिता से असलियत छिपा ली. लेकिन आगे की चिंता हो गई. इसलिए वह देवेंद्र से मिलने में काफी सतर्कता बरतने लगी.

लाडो भले ही सतर्क हो गई थी, लेकिन लोगों की नजरें उस पर पड़ ही जाती थीं. जब कई लोगों ने सुरेंद्र सिंह से उस की शिकायत की तो उस ने लाडो पर अंकुश लगाया. पत्नी से उस ने बेटी पर नजर रखने को कहा.

टोकाटाकी बढ़ी तो लाडो को समझते देर नहीं लगी कि मांबाप को उस पर शक हो गया है. वह परेशान रहने लगी. देवेंद्र मिला तो उस ने कहा, ‘‘मम्मीपापा को शक हो गया है. निश्चित है, अब वे मेरे लिए रिश्ते की तलाश शुरू कर देंगे.’’

‘‘कोई कुछ भी कर ले लाडो, अब तुम्हें मुझ से कोई अलग नहीं कर सकता. मैं तुम से प्यार करता हूं, इसलिए तुम्हें पाने के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’ देवेंद्र ने कहा.

प्रेमी की इस बात से लाडो को पूरा विश्वास हो गया कि देवेंद्र हर तरह से उस का साथ देगा. लेकिन बेटी के बारे में लगातार मिलने वाली खबरों से चिंतित सुरेंद्र सिंह उस के लिए लड़का देखने लगा. उस ने उस की पढ़ाई पूरी होने का भी इंतजार नहीं किया.

जब लाडो के प्यार की जानकारी उस के भाई सुधीर को हुई तो उस ने देवेंद्र को धमकाया कि वह उस की बहन का पीछा करना छोड़ दे, वरना वह कुछ भी कर सकता है. तब देवेंद्र ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘भाई सुधीर, मैं लाडो से प्यार करता हूं और उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारी यह हिम्मत?’’ सुधीर ने कहा, ‘‘फिर कभी इस तरह की बात की तो यह कहने लायक नहीं रहोगे.’’

देवेंद्र परेशान हो उठा. लेकिन वह लाडो को छोड़ने को राजी नहीं था. इसी बीच परीक्षा की घोषणा हो गई तो दोनों पढ़ाई में व्यस्त हो गए. लेकिन इस बात को ले कर दोनों परेशान थे कि परीक्षा के बाद क्या होगा? उस के बाद वे कैसे मिलेंगे? यही सोच कर एक दिन लाडो ने कहा, ‘‘देवेंद्र, परीक्षा के बाद तो कालेज आनाजाना बंद हो जाएगा. उस के बाद हम कैसे मिलेंगे?’’

‘‘प्यार करने वाले कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं, इसलिए तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. हम भी कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगे.’’ देवेंद्र ने कहा.

सुरेंद्र सिंह के घर से कुछ दूरी पर मनोज सिंह रहते थे. उन के 4 बच्चे थे, जिन में सब से बड़ी बेटी पिंकी थी, जो 8वीं में पढ़ती थी. पिंकी थी तो 12 साल की, लेकिन कदकाठी से ठीकठाक थी, इसलिए अपनी उम्र से काफी बड़ी लगती थी.

सुरेंद्र सिंह और मनोज सिंह के बीच अच्छे संबंध थे, इसलिए बड़ी होने के बावजूद लाडो की दोस्ती पिंकी से थी. लेकिन लाडो ने कभी पिंकी से अपने प्यार के बारे में नहीं बताया था. फिर भी पिंकी को पता था कि लाडो को अपने साथ पढ़ने वाले किसी लड़के से प्यार हो गया है.

गांव के पास ही केला देवी मंदिर पर मेला लगता था. इस बार भी 5 मार्च, 2017 को मेला लगा तो गांव के तमाम लोग मेला देखने गए. लाडो ने देवेंद्र को भी फोन कर के मेला देखने के लिए बुला लिया था. क्योंकि उस का सोचना था कि वह मेला देखने जाएगी तो मौका मिलने पर दोनों की मुलाकात हो जाएगी. प्रेमिका से मिलने के चक्कर में देवेंद्र ने हामी भर ली थी.

लाडो ने घर वालों से मेला देखने की इच्छा जाहिर की तो घर वालों ने मना कर दिया. लेकिन जब उस ने कहा कि उस के साथ पिंकी भी जा रही है तो घर वालों ने उसे जाने की अनुमति दे दी. क्योंकि गांव के और लोग भी मेला देखने जा रहे थे, इसलिए किसी तरह का कोई डर नहीं था.

लाडो और पिंकी साथसाथ मेला देखने गईं. कुछ लोगों ने उन्हें मेले में देखा भी था, लेकिन वे घर लौट कर नहीं आईं. दोनों मेले से ही न जाने कहां गायब हो गईं? शाम को छेदीलाल के घर से धुआं उठते देख लोगों ने शोर मचाया. छेदीलाल उस घर में अकेला ही रहता था और वह रिश्ते में सुरेंद्र सिंह का ताऊ लगता था. आननफानन में लोग इकट्ठा हो गए.

दरवाजा खोल कर लोग अंदर पहुंचे तो आंगन में लपटें उठती दिखाई दीं. ध्यान से देखा गया तो उन लपटों के बीच एक मानव शरीर जलता दिखाई दिया. लोगों ने किसी तरह से आग बुझाई. लेकिन इस बात की सूचना पुलिस को नहीं दी गई. मरने वाला इतना जल चुका था कि उस का चेहरा आसानी से पहचाना नहीं जा सकता था.

लोगों ने यही माना कि घर छेदीलाल का है, इसलिए लाश उसी की होगी. लेकिन लोगों को हैरानी तब हुई, जब किसी ने कहा कि छेदीलाल तो मेले में घूम रहा है. तभी किसी ने लाश देख कर कहा कि यह लाश तो लड़की की है. लगता है, लाडो ने आत्महत्या कर ली है. गांव वालों को उस के प्यार के बारे में पता ही था, इसलिए सभी ने मान लिया कि लाश लाडो की ही है.

लेकिन तभी इस मामले में एक नया रहस्य उजागर हुआ. मनोज सिंह ने कहा कि लाडो के साथ तो पिंकी भी मेला देखने गई थी, वह अभी तक घर नहीं आई है. कहीं यह लाश पिंकी की तो नहीं है. लेकिन गांव वालों ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और कहा कि पिंकी मेला देखने गई है तो थोड़ी देर में आ जाएगी. उसे कोई क्यों जलाएगा. इस बात को छोड़ो और पहले इस मामले से निपटाओ.

लोगों का कहना था कि लाडो ने आत्महत्या की है. अगर इस बात की सूचना पुलिस तक पहुंच गई तो गांव के सभी लोग मुसीबत में फंस जाएंगे, इसलिए पहले इसे ठिकाने लगाओ. मुसीबत से बचने के लिए गांव वालों की मदद से सुरेंद्र सिंह ने आननफानन में उस लाश का दाहसंस्कार कर दिया. लेकिन सवेरा होते ही गांव में इस बात को ले कर हंगामा मच गया कि पिंकी कहां गई? क्योंकि लाडो के साथ मेला देखने गई पिंकी अब तक लौट कर नहीं आई थी.

मनोज सिंह ने पिंकी को चारों ओर खोज लिया. जब उस का कहीं कुछ पता नहीं चला तो घर वालों के कहने पर वह थाना शमसाबाद गए और थानाप्रभारी विजय सिंह को सारी बात बता कर आशंका व्यक्त की कि लाडो और उस के घर वालों ने पिंकी की हत्या कर उस की लाश जला दी है और लाडो को कहीं छिपा दिया है.

लाडो की लाश का बिना पुलिस को सूचना दिए अंतिम संस्कार कर दिया गया था, इसलिए जब सुरेंद्र सिंह को पता चला कि मनोज सिंह थाने गए हैं तो डर के मारे वह घर वालों के साथ घर छोड़ कर भाग खड़ा हुआ. लेकिन पुलिस ने भी मान लिया था कि लाडो ने आत्महत्या की है, क्योंकि उस का देवेंद्र से प्रेमसंबंध था और घर वाले उस के प्रेमसंबंध का विरोध कर रहे थे. लेकिन पिंकी का न मिलना भी चिंता की बात थी. तभी अचानक थाना शमसाबाद पुलिस को मुखबिरों से सूचना मिली कि लाडो आगरा के बिजलीघर इलाके में मौजूद है. इस बात की जानकारी लाडो के घर वालों को भी हो गई थी. लेकिन बेटी के जिंदा होने की बात जान कर वे खुशी भी नहीं मना सकते थे.

आखिर वे आगरा पहुंचे और लाडो को ला कर पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस ने लाडो से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह जली हुई लाश पिंकी की थी. उसी ने उस की हत्या कर के लाश को कंबल में लपेट कर जलाने की कोशिश की थी, ताकि लोग समझें कि वह मर गई है. इस के बाद वह अपने प्रेमी के साथ कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसाना चाहती थी.

पिंकी के पिता मनोज की ओर से अपराध संख्या 88/2017 पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत सुरेंद्र सिंह, सुधीर सिंह और लाडो के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की जांच शुरू कर दी गई. पुलिस को लग रहा था कि लाडो पिंकी की हत्या अकेली नहीं कर सकती, इसलिए पुलिस ने शक के आधार पर 24 अप्रैल, 2017 को देवेंद्र को गिरफ्तार कर लिया.

देवेंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने लाडो के साथ मिल कर पिंकी की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पिंकी की हत्या की जो सनसनीखेज कहानी सुनाई, वह हैरान करने वाली कहानी कुछ इस प्रकार थी.

घर वालों की बंदिशों से परेशान लाडो और उस के प्रेमी देवेंद्र को अपने प्यार का महल ढहता नजर आ रहा था, इसलिए वे एक होने का उपाय खोजने लगे. इसी खोज में उन्होंने पिंकी की हत्या की योजना बना कर उसे लाडो की लाश के रूप में दिखा कर जलाने की योजना बना डाली. उन्होंने दिन भी तय कर लिया.

पिंकी और लाडो की उम्र में भले ही काफी अंतर था, लेकिन उन की कदकाठी एक जैसी थी. लाडो को पता था कि उस के दादा छेदीलाल मेला देखने जाएंगे, इसलिए मेला देखने के बहाने वह पिंकी को छेदीलाल के घर ले गई. कुछ ही देर में देवेंद्र भी आ गया, जिसे देख कर पिंकी हैरान रह गई. वह यह कह कर वहां से जाने लगी कि इस बात को वह सब से बता देगी.

लेकिन प्यार में अंधी लाडो ने उसे बाहर जाने का मौका ही नहीं दिया. उस ने वहीं पड़ा डंडा उठाया और पिंकी के सिर पर पूरी ताकत से दे मारा. पिंकी जमीन पर गिर पड़ी. इस के बाद लाडो ने उस के गले में अपना दुपट्टा लपेटा और देवेंद्र की मदद से कस कर उसे मार डाला.

लाश की पहचान न हो सके, इस के लिए लाश को छेदीलाल के घर में रखे कंबल में लपेटा और उस पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी. आग ने तेजी पकड़ी तो दोनों भाग खड़े हुए, पर योजना के अनुसार दोनों आगरा में मिल नहीं पाए. दरअसल, देवेंद्र काफी डर गया था. डर के मारे वह लाडो से मिलने नहीं आया. जबकि लाडो ने सोचा था कि वह देवेंद्र के साथ रात आगरा के किसी होटल में बिताएगी. लेकिन देवेंद्र के न आने से उस का यह सपना पूरा नहीं हुआ. लाडो के पास पैसे नहीं थे, इसलिए रात उस ने बिजलीघर बसस्टैंड पर बिताई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. चूंकि लाडो और देवेंद्र से पूछताछ में सुरेंद्र सिंह और उस के घर वाले निर्दोष पाए गए थे, इसलिए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया.

लाडो ने जो सोचा था, वह पूरा नहीं हुआ. वह एक हत्या की अपराधिन भी बन गई. उस के साथ उस का प्रेमी भी फंसा. जो सोच कर उस ने पिंकी की हत्या की, वह अब शायद ही पूरा हो. क्योंकि निश्चित है उसे पिंकी की हत्या के अपराध में सजा होगी.

सरप्राइज गिफ्ट : अवैद्य संबंधों के शक में बीवी की हत्या

19 जून, 2017 की शाम मनोज बेहद खुश था. लेकिन उस के दोस्त अनुज को उस की यह बेवजह की खुशी समझ में नहीं आ रही थी. जब रहा न गया तो अनुज ने पूछ ही लिया, ‘‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना क्यों हो रहा है, कुछ बताएगा भी या यूं ही बकवास करता रहेगा.’’

‘‘बताऊंगा, पर ऐसे नहीं. पहले मिल कर थोड़ा जश्न मनाते हैं. फिर अपनी खुशी का राज जाहिर करूंगा. ये ले पैसे और औफिसर्स चौइस की बोतल, तले हुए काजू, नमकीन और सिगरेट का पैकेट ले आ. सोच ले, आज मैं तुझे अपनी आजादी की पार्टी दे रहा हूं.’’ कह कर उस ने पर्स से 2 हजार रुपए का नोट निकाल कर अनुज को दे दिया.

अनुज की समझ में तो कुछ नहीं आया, लेकिन उस ने मनोज के हाथों से 2 हजार रुपए का नोट ले कर जेब में रखा और शराब के ठेके की ओर चला गया. कुछ देर बाद वह सारा सामान ले आया तो दोनों कमरे में पीने बैठ गए. मनोज ने 2 पैग बनाए और जाम से जाम टकराने के बाद दोनों शराब पीने लगे. जब मनोज पर नशे का सुरूर चढ़ा तो उस ने कहना शुरू किया, ‘‘अनुज, जानते हो मैं आज इतना खुश क्यों हूं.’’

‘‘जब तक तू बताएगा नहीं, तब तक मैं कैसे जानूंगा कि तेरे मन में किस बात को ले कर लड्डू फूट रहे हैं.’’ नशे की झोंक में अनुज उस की ओर देख कर बोला.

‘‘बेटे, आज मैं आजाद हो गया हूं.’’

‘‘पहेलियां न बुझा कर सीधी तरह बता, तेरी इस खुशी का राज क्या है?’’ अनुज ने चौथा पैग पीते हुए उत्सुकता से पूछा.

‘‘मैं ने तेरी भाभी को खुदागंज रवाना कर दिया है. मुझे उस से हमेशा के लिए छुटकारा मिल गया है.’’

मनोज की बात सुन कर अनुज को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब उस ने पूरी बात बताई तो उसे लगा कि हो न हो मनोज ने कोमल की हत्या कर दी है. अनुज का सारा नशा काफूर हो गया. थोड़ी देर तक वह मनोज की बात सुनता रहा, फिर पीना छोड़ कर उठ खड़ा हुआ और घर में किसी जरूरी काम का बहाना कर के वहां से चला गया.

बाहर आ कर वह कुछ दोस्तों से मिला और मनोज की बात उन्हें बताई. सब ने उसे यही सलाह दी कि इस बात की सूचना पुलिस को दे देनी चाहिए, क्योंकि बाद में वह भी पुलिसिया लफड़े में फंस सकता है. सोचविचार कर उस ने यह सूचना कंझावला थाने की पुलिस को दे दी.

पति द्वारा किसी औरत की हत्या की सूचना मिलते ही कंझावला थाने की पुलिस हरकत में आ गई. जेजे कालोनी सवदा पहुंच कर पुलिस ने मनोज गुजराती को हिरासत में ले लिया. थाने में जब मनोज से पूछताछ शुरू हुई, तब तक उस का नशा कम हो चुका था. पहले तो उस ने एसआई निखिल को बताया कि शराब के नशे में वह यह सब अपने दोस्त पर रौब जमाने के लिए  कह रहा था. लेकिन निखिल का एक करारा थप्पड़ उस के गले पर पड़ा तो उस के होश ठिकाने आ गए.

उस ने बताया कि वह अपनी पत्नी कोमल की हरकतों से बहुत परेशान था. इसलिए उस ने उसे बोंटा पार्क के जंगल में ले जा कर उस की हत्या कर दी है. बोंटा पार्क दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास है. कंझावला थाने से वह काफी दूर था. तब तक काफी रात हो चुकी थी, इसलिए अगली सुबह निखिल कांस्टेबल महेश और नरेश को साथ ले कर उत्तरी दिल्ली के मोरिसनगर थाने पहुंचे और वहां की थानाप्रभारी इंसपेक्टर आरती शर्मा को उन के इलाके के बोंटा पार्क में एक लड़की की हत्या किए जाने की सूचना दी.

17 जून, 2017 को कंझावला पुलिस द्वारा मिली इस सूचना को थाना मौरिसनगर के डीडी नंबर 14 ए में दर्ज करवा कर इंसपेक्टर आरती शर्मा ने अतिरिक्त थानाप्रभारी इंसपेक्टर  वीरेंद्र सिंह को इंसपेक्टर राकेश कुमार, एएसआई बिजेंद्र, हैडकांस्टेबल राजकुमार, सुखवीर, कांस्टेबल श्याम सैनी तथा महिला कांस्टेबल मधु को आरोपी मनोज और कंझावला पुलिस के साथ बोंटा पार्क भेजा.

पुलिस टीम पार्क के गेट नंबर 6 से अंदर दाखिल हुई. अंदर जा कर पुलिस कोमल की लाश की तलाश में जुट गई. मनोज ठीक से उस जगह के बारे में नहीं बता पा रहा था, जहां उस ने अपनी पत्नी कोमल की हत्या कर के उस की लाश छिपाई थी. पुलिस की तलाशी 12 घंटे तक जारी रही, लेकिन कोमल की लाश नहीं मिली. रात घिर आई थी, फिर भी तलाशी चलती रही.

रात के करीब 12 बजे मनोज पुलिस टीम को एक छोटी चट्टान के पास ले कर गया, जहां 22-23 साल की एक लड़की की लाश पड़ी थी. वह गुलाबी रंग का टौप और नीले रंग की जींस पहने थी. लाश की छानबीन करते समय इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह ने देखा कि उस के दाहिने हाथ पर कोमल गुदा हुआ था.

आरोपी मनोज ने लाश की ओर इशारा कर के बताया कि यह उस की पत्नी कोमल की लाश है, जिसे उस ने कल शाम को धोखे से यहां ला कर उस की हत्या कर दी थी. लाश की फोटोग्राफी कराने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए सब्जीमंडी मोर्चरी भेज दिया गया, साथ ही कोमल के घर वालों को फोन कर के उस की लाश की शिनाख्त के लिए सब्जी मंडी मोर्चरी बुला लिया गया.

17 जून को कोमल की बड़ी बहन गौरी सब्जी मंडी पहुंची,जहां लाश देखने के बाद उस ने उस की पहचान अपनी छोटी बहन और मनोज गुजराती की पत्नी कोमल के रूप में कर दी. कोमल की लाश की शिनाख्त होने के बाद गौरी की तहरीर पर उसी दिन कोमल की हत्या का मामला उस के पति मनोज गुजराती के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत दर्ज कर लिया गया. इस मामले की विवेचना इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह को सौंपी गई. गौरी के बयान तथा मनोज गुजराती के बयानों के बाद 2 साल की लव मैरिज का जो दर्दनाक वाकया सामने आया, वह इस प्रकार था—

कोमल के पिता चमनलाल का परिवार नांगलोई के चंचल पार्क में रहता था. उन के परिवार में पत्नी कमलेश के अलावा 4 बेटियां तथा 2 बेटे थे. इन में कोमल पांचवे नंबर की थी. घर के लोग उसे प्यार से कमली कह कर पुकारते थे. कोमल के बड़े भाई गंगाराम की शादी 8 साल पहले दिव्या से हुई थी. मनोज गुजराती दिव्या का चचेरा भाई था.

मनोज का परिवार कंझावला इलाके के सावदा गांव में रहता था. उस के परिवार में उस के अलावा इस के पिता राजू गुजराती, मां कमलेश तथा एक बहन परवीन थी. घर के बाहरी कमरे में मनोज की परचून की दुकान थी. दुकान अच्छीखासी चलती थी, जिस की वजह से मनोज की जेब हमेशा भरी होती थी. वह शौकीनमिजाज युवक था और हमेशा बनठन कर रहता था. चूंकि दोनों के परिवार आपस में रिश्तेदार थे, इसलिए समय समय पर उन का एकदूसरे के यहां आनाजाना लगा रहता था.

2 साल पहले एक दिन मनोज अपने दोस्तों के साथ मस्ती करने गुरुग्राम के सहारा मौल पहुंचा. वहां उस की नजर एक लड़की पर पड़ी, जो शक्लसूरत से जानीपहचानी लग रही थी. वह कोमल थी. मौडर्न कपड़ों, गहरे मेकअप और फ्लड लाइट की रंगबिरंगी रोशनी में कोमल बहुत ही सुंदर लग रही थी. दरअसल, कोमल वहां एक पब में नौकरी करती थी.

मनोज ने किसी बहाने से कोमल को अपने पास बुलाया तो दोनों ने एकदूसरे को पहचान लिया. बातोंबातों में मनोज ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया और जल्द ही उस के घर चंचल पार्क आने का वादा किया. कोमल ने मनोज की खूब आवभगत की और उसे अपने साथ काम करने वाली कुछ सहेलियों से भी मिलवाया.

कोमल के लटकेझटके देख कर मनोज पहली ही नजर में उसे दिल दे बैठा. इधर कोमल भी मनोज के प्रति आकर्षित हो गई. उस दिन मनोज घर लौटा तो उस के दिलोदिमाग में कोमल की मनमोहिनी सूरत बसी हुई थी. वह जल्दी से जल्दी उसे अपनी बना लेना चाहता था.

उस दिन के बाद दोनों एकदूसरे को फोन कर के अपने दिल की बातें शेयर करने लगे. कोमल मनोज को हमेशा मौल में आने वाले हाईफाई लोगों के बारे में तरहतरह के किस्से सुनाती, जो मनोज को बहुत अच्छे लगते. वह कोमल को प्रभावित करने के लिए उसे महंगे तोहफे देने लगा. धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों के घर वाले इस सब से कब तक अनजान रह सकते थे. उन्हें भी उन के प्यार की जानकारी हो गई.

मनोज और कोमल के घर वाले यों तो रिश्तेदार थे, लेकिन पता नहीं क्यों उन्हें यह रिश्ता मंजूर नहीं था. कोमल के पिता चमनलाल को लगता था कि मनोज उन की बेटी को ज्यादा दिनों तक खुश नहीं रख पाएगा. मनोज सावदा गांव में रहता था, जहां के लोगों का रहनसहन पुराने जमाने जैसा था.

उधर मनोज के घर वालों की सोच भी कुछ ऐसी ही थी. जब मनोज और कोमल ने अपनेअपने घरों में अपनी पसंद जाहिर की तो उन्होंने इसे सिरे से नकार दिया. लेकिन प्यार इन बंदिशों को कहां मानता है. वैसे भी दोनों ही अपने पैरों पर खड़े थे. इसलिए 5 जून, 2015 को कोमल ने अपने मम्मीपापा की मर्जी के खिलाफ जा कर तीसहजारी कोर्ट में मनोज से शादी कर ली. शादी के बाद दोनों रघुबीर नगर में किराए का मकान ले कर रहने लगे.

8-10 महीने तो दोनों ने खूब मौजमस्ती की, लेकिन बाद में मनोज को कोमल का सहारा मौल में काम करना बुरा लगने लगा. उस ने कोमल से यह काम छोड़ देने के लिए कहा, पर वह इस के लिए तैयार नहीं थी. उसे मौल में जा कर परफौरमेंस देना और नएनए लोगों से मिल कर हंसनाबोलना अच्छा लगता था. बात आगे बढ़ी तो दोनों के बीच झगड़े शुरू हो गए. पड़ोसियों ने दोनों को समझाया तो कोमल मनोज के घर जेजे कालोनी, सावदा में रहने को तैयार हो गई.

इस के बाद कोमल अपने पति मनोज के साथ सावदा में जा कर रहने लगी. लेकिन घर छोटा होने के कारण उसे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. मनोज की एक बहन परवीन थी, जिस से उस की कतई नहीं बनती थी. यह देख कर मनोज ने दूसरी जगह किराए पर एक घर ले लिया और दोनों उसी में रहने लगे. कुछ दिनों तक दोनों सुखचैन से रहे. मनोज की जिंदगी में अचानक भूचाल तब आया, जब एक दिन वह कोमल के सूटकेस में रखी उसकी एलबम देख रहा था. एक फोटो में वह एक लड़के के साथ बहुत खुश दिख रही थी.

मनोज ने कोमल को वह फोटो दिखा कर उस लड़के के बारे में पूछा तो कोमल ने बताया कि यह अमित है और उस के साथ सहारा मौल में नौकरी करता था. अमित महज उस का दोस्त है. लेकिन मनोज को कोमल की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. उस ने कोमल के जानकारों से अमित के बारे में पूछा तो पता चला कि शादी से पहले अमित कोमल का बौयफ्रैंड था. मनोज को यह जानकारी मिली तो वह परेशान हो गया. कोमल के बारे में यह जानकारी मिलने के बाद मनोज उस से उखड़ाउखड़ा रहने लगा.

कुछ ही दिनों बाद उन के बीच फिर से झगड़े शुरू हो गए. कोमल ने अपने घर में फोन कर के बताया कि मनोज उस से दहेज लाने के लिए दबाव डालता है और मना करने पर उस के साथ मारपिटाई करता है.

एक महीने बाद कोमल मनोज की मारपिटाई से दुखी हो कर अपनी बड़ी बहन किरण के पास रहने के लिए रघुवीरनगर चली गई. मनोज सावदा स्थित अपने घर में अकेला रह गया. एक दिन उसे पता चला कि कोमल फिर से अपने पुराने बौयफ्रैंड अमित से मिलने लगी है. यह जान कर मनोज को चिंता हुई कि कोमल कहीं उस से किनारा न कर ले. यही सोच कर उस ने कोमल के मोबाइल पर बात करने की कोशिश की. कुछ दिन तो कोमल मनोज के फोन को नजरअंदाज करती रही, लेकिन धीरेधीरे दोनों में बातचीत शुरू हो गई.

एक महीना पहले कोमल ने मनोज को बताया कि वह बहन पर बोझ नहीं बनना चाहती, इसलिए उस ने रघुवीरनगर के ही डी ब्लौक में अपने लिए अलग कमरा ले लिया है, जहां रह कर अब वह फिर से जौब पर जाएगी. घर में बैठेबैठे उस का मन नहीं लगता. दूसरे बिना पैसों के जिंदगी भी नहीं चलती. मनोज को उस की यह बात अच्छी नहीं लगी तो उस ने उस के नौकरी करने का विरोध करते हुए वापस घर लौट आने के लिए कहा. इस पर कोमल ने ऐतराज करते हुए मनोज से कहा कि वह उस के साथ गांव में नहीं रहेगी, क्योंकि वह उस के  साथ गालीगलौच करने के साथ मारपीट करता है. ऐसा जीवन वह नहीं जी सकती.

15 जून, 2017 को मनोज अपनी दुकान छोड़ कर कोमल से मिलने उस के घर पहुंचा. मनोज को आया देख कर उस ने उसे और उस के परिवार वालों को बहुत बुराभला कहा. कोमल की बातों से मनोज को लगा कि वह उस के साथ नहीं रहना चाहती. उसे बहुत गुस्सा आया. घर पहुंच कर वह सोचने लगा कि उस ने कोमल से कोर्टमैरिज की है और वह उस की पत्नी है. अगर वह उस के साथ नहीं रहेगी तो वह भी उसे उस की मनमर्जी से नहीं जीने देगा.

अगले दिन सुबह उस ने एक मोबाइल शौप पर जा कर नया सिम खरीदा और एक मैकेनिक के यहां से क्लच वायर ले आया. उसी सिम से उस ने कोमल से बड़े प्यार से बात की. बातोंबातों में उस ने कोमल को घूमने जाने के लिए राजी कर लिया. उस दिन काफी बारिश हुई थी, जिस से मौसम सुहाना हो गया था.

16 जून को मनोज ने कोमल को फिर फोन कर के मिलने के लिए सीमेंट गोदाम के पास बुलाया. कोमल ने कहा कि वह उस के पास पहुंच जाएगी. 2 बजे मनोज अपनी मोटरसाइकिल से सीमेंट गोदाम के पास पहुंचा तो थोड़ी देर बाद कोमल आ गई. उस ने कोमल को मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर बिठाया और रिंगरोड होते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी के बोंटा पार्क जा पहुंचा.

पार्क के गेट पर मोटरसाइकिल खड़ी कर के वह कोमल के साथ अंदर चला गया. कोमल को विश्वास में लेने के लिए वह उस से रोमांटिक बातें कर रहा था. वहां झाडि़यों के पास कई युवा जोड़े प्रेमालाप में मग्न थे. यह देख कर कोमल भी रोमांटिक हो गई. कोमल से प्यारीप्यारी बातें करते हुए मनोज उसे एकांत में ले गया, जहां दोनों एक साफसुथरी चट्टान पर बैठ गए. मनोज ने उसे बांहों में ले कर अपनी गलतियों के लिए माफी मांगी और फिर से ऐसा न करने की कसम खाई तो कोमल खुश हो गई.

जब मनोज को लगा कि मौका एकदम सही है तो उस ने कोमल से कहा, ‘‘तुम अपना मुंह पीछे की तरफ कर लो, मैं तुम्हारे लिए एक सरप्राइज गिफ्ट लाया हूं.’’

कोमल ने खुश हो कर मुंह पीछे की ओर कर लिया. उचित मौका देख कर मनोज ने जेब में रखा क्लच वायर निकाला और कोमल की गर्दन पर लपेट कर कस दिया. कोमल ने मनोज को वायर ढीला करने के लिए कहा, साथ ही बचने के लिए बहुत हाथपैर मारे, जिस की वजह से मनोज के हाथों में खरोंचे भी आ गईं. लेकिन उस ने वायर को ढीला नहीं किया.

कुछ ही पलों में कोमल ने आखिरी हिचकी ली और उस की गर्दन एक ओर लुढ़क गई. कोमल की लाश को परे धकेल कर वह पार्क से बाहर आ गया और अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो कर घर लौट आया. इस के बाद उस ने अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए अपने दोस्त अनुज के साथ शराब की पार्टी की, जहां कोमल की हत्या का राज उस पर जाहिर कर दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने 17 जून, 2017 को मनोज को तीसहजारी कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पिता का हत्यारा पुत्र

15 जून, 2017 की रात 10 बजे रिटायर्ड एएसआई मदनलाल  अपने घर वालों से यह कह कर मोटरसाइकिल ले निकले थे कि दरवाजा बंद कर लें, वह थोड़ी देर में वापस आ रहे हैं. लेकिन वह गए तो लौट कर नहीं आए. उन के वापस न आने से घर वालों को चिंता हुई. 65 वर्षीय मदनलाल पंजाब के जिला होशियारपुर राज्यमार्ग पर शामचौरासी-पंडोरी लिंक रोड पर स्थित थाना बुल्लेवाल के गांव लंबेकाने के रहने वाले थे.

मदनलाल सीआईएसएफ से लगभग 5 साल पहले रिटायर हुए थे. उन्हें पेंशन के रूप में एक मोटी रकम तो मिलती ही थी, इस के अलावा उन के 3 बेटे विदेश में रह कर कमा रहे थे. इसलिए उन की गिनती गांव के संपन्न लोगों में होती थी. उन के पास खेती की भी 8 किल्ला जमीन थी.

मदनलाल के परिवार में पत्नी निर्मल कौर के अलावा 3 बेटे दीपक सिंह उर्फ राजू, प्रिंसपाल सिंह, संदीप सिंह और एक बेटी थी, जो बीए फाइनल ईयर में पढ़ रही थी. दीपक और प्रिंसपाल कुवैत में रहते थे, जबकि संदीप ग्रीस में रहता था. उन के चारों बच्चों में से अभी एक की भी शादी नहीं हुई थी. बेटे कमा ही रहे थे, इसलिए मदनलाल को अब जरा भी चिंता नहीं थी.

मदनलाल सुबह जल्दी और रात में अपने खेतों का चक्कर जरूर लगाते थे. उस दिन भी 10 बजे वह अपने खेतों का चक्कर लगाने गए थे, लेकिन लौट कर नहीं आए थे. उन का बेटा दीपक एक सप्ताह पहले ही 8 जून को एक महीने की छुट्टी ले कर घर आया था.

सुबह जब दीपक को पिता के रात को घर न लौटने की जानकारी हुई तो वह मां निर्मल कौर के साथ उन की तलाश में खेतों पर पहुंचा. दरअसल उन्हें चिंता इस बात की थी कि रात में पिता कहीं मोटरसाइकिल से गिर न गए हों और उठ न पाने की वजह से वहीं पड़े हों.

खेतों पर काम करने वाले मजदूरों ने जब बताया कि वह रात को खेतों पर आए ही नहीं थे तो मांबेटे परेशान हो गए. वे सोचने लगे कि अगर मदनलाल खेतों पर नहीं गए तो फिर गए कहां  निर्मल कौर कुछ ज्यादा ही परेशान थीं. दीपक ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘मां, तुम बेकार ही परेशान हो रही हो. तुम्हें तो पता ही है कि वह अपनी मरजी के मालिक हैं. हो सकता है, किसी दोस्त के यहां या फिर बगल वाले गांव में चाचाजी के यहां चले गए हों ’’

crime

जबकि सच्चाई यह थी कि दीपक खुद भी पिता के लिए परेशान था. जब खेतों पर मदनलाल के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वह मां के साथ घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में उसे बगल के गांव में रहने वाले चाचा ओंकार सिंह और हरदीप मिल गए. उन के मिलने से पता चला कि मदनलाल उन के यहां भी नहीं गए थे. सभी मदनलाल के बारे में पता करते हुए शामचौरासी-पंडोरी फांगुडि़या लिंक रोड के पास पहुंचे तो वहां उन्होंने एक जगह भीड़ लगी देखी. सभी सोच रहे थे कि आखिर वहां क्यों लगी है, तभी किसी ने आ कर बताया कि वहां सड़क पर मदनलाल की लाश पड़ी है. यह पता चलते ही सभी भाग कर वहां पहुंचे. सचमुच वहां खून से लथपथ मदनलाल की लाश पड़ी थी. लाश देख कर सभी सन्न रह गए. मदनलाल के सिर, गरदन, दोनों टांगों और बाजू पर तेजधार हथियार के गहरे घाव थे.

इस घटना की सूचना तुरंत थाना बुल्लेवाल पुलिस को दी गई. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुखविंदर सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. भीड़ को किनारे कर के उन्होंने लाश का मुआयना किया. इस के बाद अधिकारियों को घटना की सूचना दे कर क्राइम टीम और एंबुलेंस बुलवा ली. उन्हीं की सूचना पर डीएसपी स्पैशल ब्रांच हरजिंदर सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे.

मामला एक रिटायर एएसआई की हत्या का था, इसलिए एसपी अमरीक सिंह भी आ पहुंचे थे. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर दिशानिर्देश दे कर पुलिस अधिकारी चले गए. मृतक मदनलाल का परिवार मौके पर मौजूद था, इसलिए सुखविंदर सिंह ने उन की पत्नी निर्मल कौर और बेटे दीपक से पूछताछ की. इस के बाद निर्मल कौर के बयान के आधार पर मदनलाल की हत्या का मुकदमा अपराध संख्या 80/2017 पर अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

मृतक मदनलाल की पत्नी और बेटे दीपक ने शुरुआती पूछताछ में जो बताया था, उस से हत्यारों तक बिलकुल नहीं पहुंचा जा सकता था. पूछताछ में पता चला था कि मदनलाल की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. गांव वाले उन का काफी सम्मान करते थे. इस की वजह यह थी कि वह हर किसी की परेशानी में खड़े रहते थे. अब तक मिली जानकारी में पुलिस को कोई ऐसी वजह नजर नहीं आ रही थी कि कोई उन की हत्या करता.

इस मामले में लूट की भी कोई संभावना नहीं थी. वह घर में पहनने वाले कपड़ों में थे और मोटरसाइकिल भी लाश के पास ही पड़ी मिली थी. गांव वालों से भी पूछताछ में सुखविंदर सिंह के हाथ कोई सुराग नहीं लगा. घर वालों ने जो बता दिया था, उस से अधिक कुछ बताने को तैयार नहीं थे.

चूंकि यह एक पुलिस वाले की हत्या का मामला था, इसलिए इस मामले पर एसएसपी हरचरण सिंह की भी नजर थी. 24 घंटे बीत जाने के बाद भी जब कोई नतीजा सामने नहीं आया तो उन्होंने डीएसपी हरजिंदर सिंह के नेतृत्व में एक स्पैशल टीम का गठन कर दिया, जिस में थानाप्रभारी सुखविंदर सिंह के अलावा सीआईए स्टाफ इंचार्ज सतनाम सिंह को भी शामिल किया था.

टीम ने नए एंगल से जांच शुरू की. सुखविंदर सिंह ने अपने मुखबिरों को मदनलाल के घरपरिवार के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिया था. इस के अलावा मदनलाल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, तलवार जैसे किसी हथियार से गले पर लगे घाव की वजह से सांस नली कट गई थी, जिस से उन की मौत हो गई थी. इस के अलावा शरीर पर 8 अन्य गंभीर घाव थे. पोस्टमार्टम के बाद लाश मिलते ही घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया था.

मुखबिरों से सुखविंदर सिंह को जो खबर मिली, वह चौंकाने वाली थी. मुखबिरों के बताए अनुसार, मृतक के घर में हर समय क्लेश रहता था. घरपरिवार में जैसा माहौल होना चाहिए था, मृतक के घरपरिवार में बिलकुल नहीं था. ऐसा एक भी दिन नहीं होता था, जिस दिन पतिपत्नी में मारपीट न होती रही हो. मदनलाल पत्नी ही नहीं, जवान बेटी को भी लगभग रोज मारतापीटता था.

सुखविंदर सिंह ने सारी बातें एसएसपी और एसपी को बता कर आगे के लिए दिशानिर्देश मांगे. अधिकारियों के ही निर्देश पर सुखविंदर सिंह और सीआईए स्टाफ इंचार्ज सतनाम सिंह ने गांव जा कर मृतक के घर वालों से एक बार फिर अलगअलग पूछताछ की. घर वालों ने इन बातों को झूठा बता कर ऐसेऐसे किस्से सुनाए कि पूछताछ करने गए सुखविंदर सिंह और सतनाम सिंह को यही लगा कि शायद मुखबिर को ही झूठी खबर मिली है.

लेकिन मदनलाल के फोन नंबर की काल डिटेल्स आई तो निराश हो चुकी पुलिस को आशा की एक किरण दिखाई दी. काल डिटेल्स के अनुसार, 15 जून की रात पौने 10 बजे मदनलाल को उन के बेटे दीपक ने फोन किया था. जबकि दीपक ने पूछताछ में ऐसी कोई बात नहीं बताई थी. इस का मतलब था कि घर वालों ने झूठ बोला था और वे कोई बात छिपाने की कोशिश कर रहे थे.

एसएसपी और एसपी से निर्देश ले कर सुखविंदर सिंह और सतनाम सिंह ने डीएसपी हरजिंदर सिंह की उपस्थिति में मदनलाल के पूरे परिवार को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. तीनों से अलगअलग पूछताछ शुरू हुई. दीपक से जब पिता को फोन करने के बारे में पूछा गया तो उस ने साफ मना करते हुए कहा, ‘‘सर, आप लोगों को गलतफहमी हो रही है. उस रात मैं घर पर ही नहीं था. एक जरूरी काम से मैं होशियारपुर गया हुआ था. अगर मैं गांव में होता तो पापा को खेतों पर जाने ही न देता.’’

‘‘हम वह सब नहीं पूछ रहे हैं, जो तुम हमें बता रहे हो. मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम ने उस रात अपने पिता को फोन किया था या नहीं ’’ सुखविंदर सिंह ने पूछा.

‘‘आप भी कमाल करते हैं साहब, मेरे पापा की हत्या हुई है और आप कातिलों को पकड़ने के बजाय हमें ही थाने बुला कर परेशान कर रहे हैं.’’ दीपक ने खड़े होते हुए कहा, ‘‘अब मैं आप के किसी भी सवाल का जवाब देना उचित नहीं समझता. मैं अपनी मां और बहन को ले कर घर जा रहा हूं. कल मैं आप लोगों की शिकायत एसपी साहब से करूंगा. आप ने मुझे समझ क्या रखा है. मैं भी एक पुलिस अधिकारी का बेटा और एनआरआई हूं.’’

दीपक की धमकी सुन कर एकबारगी तो पुलिस अधिकारी खामोश रह गए. लेकिन डीएसपी साहब ने इशारा किया तो दीपक को अलग ले जा कर थोड़ी सख्ती से पूछताछ की गई. फिर तो उस ने जो बताया, सुन कर पुलिस अधिकारी हैरान रह गए. पता चला, घर वालों ने ही सुपारी दे कर मदनलाल की हत्या करवाई थी, जिस में मदनलाल की निर्मल कौर ही नहीं, विदेश में रह रहे उस के दोनों बेटे भी शामिल थे. इस तरह 72 घंटे में इस केस का खुलासा हो गया.

पुलिस ने दीपक और उस की मां निर्मल कौर को हिरासत में ले लिया. अगले दिन दोनों को अदालत में पेश कर के विस्तार से पूछताछ एवं सबूत जुटाने के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान सब से पहले दीपक की निशानदेही पर इस हत्याकांड में शामिल 2 अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए छापा मारा गया.

इस छापेमारी में अहिराना कला-मोहितयाना निवासी सतपाल के बेटे सुखदीप को तो गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन दूसरा अभियुक्त सोहनलाल का बेटा रछपाल फरार हो गया. तीनों अभियुक्तों से पूछताछ में मदनलाल की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—

यह बात सही थी कि मदनलाल का परिवार रुपएपैसे से काफी सुखी था, लेकिन यह बात भी सही है कि रुपएपैसे से इंसान को वह सुख नहीं मिलता, जिस के लिए वह जीवन भर भागता रहता है. ऐसा ही कुछ मदनलाल के घर भी था. 5 साल पहले रिटायर हो कर वह अपने घर आए तो 2 साल तो बहुत अच्छे से गुजरे. घर का माहौल भी काफी अच्छा रहा.

लेकिन अचानक न जाने क्या हुआ कि मदनलाल डिप्रेशन में रहने लगे. धीरेधीरे उन की यह बीमारी बढ़ती गई. फिर एक समय ऐसा आ गया, जब छोटीछोटी बातों पर वह उत्तेजित हो उठते और आपे से बाहर हो कर घर वालों से मारपीट करने लगते. इस में हैरानी वाली बात यह थी कि मदनलाल का यह व्यवहार केवल घर वालों तक ही सीमित था. बाहर वालों के साथ उन का व्यवहार सामान्य रहता था.

बेटे जब भी छुट्टी पर आते, पिता को समझाते. उन के रहने तक तो वह ठीक रहते, उन के जाते ही वह पहले की ही तरह व्यवहार करने लगते. मदनलाल लगभग रोज ही पत्नी और बेटी के साथ मारपीट तो करते ही थे, इस से भी ज्यादा परेशानी की बात यह थी कि वह उन्हें घर से भी निकाल देते थे. ऐसे में निर्मल कौर अपनी जवान बेटी को ले कर डरीसहमी रात में किसी के घर छिपी रहती थीं.

अपनी परेशानी निर्मल कौर फोन द्वारा बेटों को बताती रहती थीं. पिता के इस व्यवहार से विदेश में रह रहे बेटे भी परेशान रहते थे. कभीकभी की बात होती तो बरदाश्त भी की जा सकती थी, लेकिन लगभग 3 सालों से यही सिलसिला चला रहा था.

पिता सुधर जाएंगे, तीनों बेटे इस बात का इंतजार करते रहे. लेकिन सुधरने के बजाय वह दिनोंदिन बिगड़ते ही जा रहे थे. घर से हजारों मील दूर बैठे बेटे हर समय मां और बहन के लिए परेशान रहते थे. आखिर जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो तीनों भाइयों ने मिल कर एक खतरनाक योजना बना डाली. यह योजना थी पिता के वजूद को ही खत्म करने की.

इस योजना में निर्मल कौर भी शामिल थी. हां, बेटी जरूर मना करती रही थी, पर उसे सभी ने यह कह कर चुप करा दिया कि वह पराया धन है, उसे आज नहीं तो कल इस घर से चली जाना है. वे सब कब तक इस तरह घुटघुट कर जीते रहेंगे  कल शादियां होने पर उन की पत्नियां आएंगी, तब वे क्या करेंगे.

भाइयों का भी कहना अपनी जगह ठीक था, इसलिए बहन खामोश रह गई. अब जो करना था, दीपक और निर्मल कौर को करना था. योजना के अनुसार, 9 जून, 2017 को दीपक कुवैत से घर आ गया. घर आते ही वह अपने दोस्तों सुखदीप सिंह और रछपाल से मिला और उन्हें पिता को रास्ते से हटाने की सुपारी 2 लाख रुपए में दे दी, साथ ही यह भी वादा किया कि वह उन्हें कुवैत में सैटल करा देगा.

इस के बाद दीपक के भाई प्रिंसपाल ने कुवैत से दीपक के खाते में डेढ़ लाख रुपए भेज दिए, जिस में से दीपक ने 1 लाख रुपए सुखदीप और रछपाल को दे दिए. बाकी पैसा उस ने काम होने के बाद देने को कहा.

दीपक के दोस्तों में सुखदीप तो सीधासादा युवक था, लेकिन रछपाल पेशेवर अपराधी था. उस पर सन 2011 से दोहरे हत्याकांड का केस चल रहा है. वह इन दिनों पैरोल पर जेल से बाहर आया हुआ था.

योजना के अनुसार, 15 जून की रात 9 बजे दीपक, सुखदीप और रछपाल शामचौरासी-पंडोरी रोड पर इकट्ठा हुए. वहीं से दीपक ने मदनलाल को फोन किया, ‘‘पापाजी, मेरी गाड़ी पंडोरी के पास खराब हो गई है. आप अपनी मोटरसाइकिल ले कर आ जाइए तो मैं आप के साथ आराम से चला चलूं.’’

मदनलाल किसी समस्या की वजह से मानसिक बीमारी से जरूर परेशान थे, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं था या वह अपना भलाबुरा नहीं समझते था. वह सिर्फ निर्मल कौर को ही देख कर उत्तेजित होते थे. वह ऐसा क्यों करते थे, इस बात को जानने की कभी किसी ने कोशिश नहीं की.

बहरहाल, दीपक का फोन आने के बाद मदनलाल ने कहा कि वह चिंता न करे, मोटरसाइकिल ले कर वह पहुंच रहे हैं. जबकि उस दिन उन की तबीयत ठीक नहीं थी और वह खेतों पर भी नहीं जाना चाहते थे. पर बेटे की परेशानी सुन कर उन्होंने मोटरसाइकिल उठाई और दीपक की बताई जगह पर पहुंच गए.

दीपक, रछपाल और सुखदीप तलवारें लिए वहां छिपे बैठे थे. मदनलाल के पहुंचते ही तीनों उन पर इस तरह टूट पड़े कि उन्हें संभलने का मौका ही नहीं मिला. पलभर में ही मदनलाल सड़क पर गिर कर हमेशा के लिए शांत हो गए. इस तरह बेटे के हाथों मानसिक रूप से बीमार पिता का अंत हो गया.

मदनलाल की हत्या कर सभी अपनेअपने घर चले गए. अगले दिन दीपक ने मां के साथ मिल कर पिता को खोजने का नाटक शुरू किया. लेकिन उस का यह नाटक जल्दी ही पुलिस ने पकड़ लिया.

पुलिस ने दीपक और सुखदीप की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तलवारें बरामद कर ली थीं. निर्मल कौर और उस के कुवैत में रहने वाले बेटे प्रिंसपाल सिंह पर भी पुलिस ने धारा 120 लगाई है. रिमांड खत्म होने पर पुलिस ने निर्मल कौर, दीपक तथा सुखदीप को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. तीसरा अभियुक्त रछपाल सिंह अभी पुलिस की पहुंच से दूर है. पुलिस उस की तलाश कर रही है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित