प्रेम के 11 टुकड़े : पति और सास ससुर ने की बहू की हत्या

6 मई, 2017 की बात है. दिन के यही कोई 9 बज रहे थे. नवी मुंबई के उपनगर रबाले के शिलफाटा रोड स्थित एमआईडीसी के बीच से बहने वाले नाले पर एक सुनसान जगह पर काफी लोग इकट्ठा थे. इस की वजह यह थी कि नाले की घनी झाडि़यों के बीच प्लास्टिक का एक बैग पड़ा था. उस में एक मानव धड़ भर कर फेंका गया था. उस का सिर, दोनों हाथ और पैर गायब थे.

यह हत्या का मामला था. इसलिए किसी जागरूक नागरिक ने इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी.

चूंकि घटनास्थल नवी मुंबई के थाना एमआईडीसी के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिलते ही थानाप्रभारी चंद्रकांत काटकर ने चार्जरूम में ड्यूटी पर तैनात सहायक इंसपेक्टर अमर जगदाले को बुला कर डायरी बनवाई और तुरंत सहायक इंसपेक्टर प्रमोद जाधव, अमर जगदाले और कुछ सिपाहियों को ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी चंद्रकांत काटकर ने वहां एकत्र भीड़ को हटा कर उस प्लास्टिक के बैग को झाडि़यों से बाहर निकलवाया. बैग में भरा धड़ बाहर निकलवाया गया. वह धड़ किसी महिला का था. हत्या के बाद लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस का सिर और हाथपैर काट कर केवल धड़ वहां फेंका गया था. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर चंद्रकांत काटकर ने धड़ को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लेकिन पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले उन्होंने डीएनए जांच के लिए सैंपल सुरक्षित करवा लिया था.

मृतका के बाकी अंग न मिलने से पुलिस समझ गई कि हत्यारा कोई ऐरागैरा नहीं, काफी होशियार और शातिर था. खुद को बचाने के लिए उस ने सबूतों को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

धड़ के साथ ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती. धड़ के निरीक्षण में पुलिस को उस की बची बांह पर सिर्फ गणेश भगवान का एक टैटू दिखाई दिया था. इस से यह तो स्पष्ट हो गया था कि मृतका हिंदू थी, लेकिन सिर्फ एक टैटू से शिनाख्त होना संभव नहीं था. फिर भी पुलिस को उम्मीद की एक किरण तो मिल ही गई थी.

घटनास्थल की काररवाई निपटा कर थानाप्रभारी थाने लौटे और सहायकों के साथ बैठ कर विचारविमर्श के बाद इस मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी इंसपेक्टर प्रमोद जाधव को सौंप दी थी.

मामले की जांच की जिम्मेदारी मिलते ही प्रमोद जाधव ने तुरंत मुंबई और उस के आसपास के सभी छोटेबड़े थानों को वायरलैस संदेश भिजवा कर यह पता लगाने की कोशिश की कि किसी थाने में किसी महिला की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. इसी के साथ उन्होंने मृतका की बाजू पर बने गणेश भगवान के टैटू को हाईलाइट करते हुए महानगर के सभी प्रमुख दैनिक अखबारों में फोटो छपवा कर उस धड़ की शिनाख्त की अपील की.

अखबार में छपी इस अपील का पुलिस को फायदा यह मिला कि धड़ की शिनाख्त हो गई. वह धड़ प्रियंका गुरव का था. उस की गुमशुदगी मुंबई के पौश इलाके के थाना वरली में दर्ज थी. ठाणे के डोंबिवली कल्याण की रहने वाली कविता दूधे और उन के भाई गणेश दूधे ने उस धड़ को अपनी छोटी बहन प्रियंका का धड़ बताया था.

अखबार में खबर छपने के अगले दिन सवेरे कविता दूधे अपने भाई गणेश दूधे के साथ थाना एमआईडीसी पहुंची और चंद्रकांत काटकर से मिल कर बांह पर बने गणेश भगवान के टैटू से आशंका व्यक्त की थी कि वह धड़ उन की बहन प्रियंका का हो सकता है. क्योंकि 5 मई, 2017 से वह गायब है.

ससुराल वालों के अनुसार, वह सुबह किसी नौकरी के लिए इंटरव्यू देने घर से निकली थी तो लौट कर नहीं आई थी. कविता ने बरामद धड़ देखने की इच्छा जाहिर की, क्योंकि वह उस टैटू को पहचान सकती थी. प्रियंका ने अपनी बांह पर वह टैटू उसी के सामने बनवाया था.

चंद्रकांत काटकर ने कविता और गणेश को धड़ दिखाने के लिए इंसपेक्टर प्रमोद जाधव के साथ अस्पताल के मोर्चरी भिजवा दिया. धड़ देखते ही कविता और गणेश फूटफूट कर रो पड़े थे. इस से साफ हो गया था कि वह धड़ प्रियंका का ही था. इस तरह धड़ की शिनाख्त हो गई तो जांच आगे बढ़ाने का रास्ता मिल गया.अब पुलिस को यह पता लगाना था कि प्रियंका की हत्या क्यों और किस ने की? पूछताछ में प्रियंका की बहन कविता और भाई गणेश ने बताया था कि प्रियंका ने वर्ली स्थित पीडब्ल्यूडी के सरकारी आवास में अपने परिवार के साथ रहने वाले सिद्धेश गुरव से 30 अप्रैल, 2017 को प्रेम विवाह किया था.

भाईबहन ने प्रियंका को इस विवाह से मना किया था. इस की वजह यह थी कि न सिद्धेश उस से विवाह करना चाहता था और न ही उस के घर वाले चाहते थे कि सिद्धेश प्रियंका से विवाह करे. आखिर वही हुआ, जिस की उन्हें आशंका थी. प्रियंका के हाथों की मेहंदी का रंग फीका होता, उस से पहले ही उस की जिंदगी का रंग फीका हो गया.

इस के बाद पुलिस ने मृतका के पति सिद्धेश और उस के घर वालों को थाने बुला कर पूछताछ की तो उन्होंने भी वही सब बताया, जो कविता और गणेश बता चुके थे. उन का कहना था कि 5 मई की सुबह इंटरव्यू के लिए गई प्रियंका रात को भी घर लौट कर नहीं आई तो उन्हें चिंता हुई. सभी पूरी रात उस की तलाश करते रहे. जब कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने अगले दिन यानी 6 मई को थाना वर्ली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

थाना एमआईडीसी पुलिस तो इस मामले की जांच कर ही रही थी, क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी भी इस मामले की जांच कर रहे थे. प्रियंका की ससुराल वालों ने जो बयान दिया था, उस में उन्हें दाल में कुछ काला नजर आ रहा था. जब उन्होंने प्रियंका के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई तो उन्हें पूरी दाल ही काली नजर आई.

ससुराल वालों ने जिस दिन प्रियंका के बाहर जाने की बात बताई थी, मोबाइल फोन की लोकेशन के अनुसार उस दिन पूरे दिन प्रियंका घर पर ही थी. वह घर से बाहर गई ही नहीं थी. इस के अलावा किसी संपन्न परिपवार की बहू विवाह के मात्र 5 दिनों बाद ही नौकरी के लिए किसी कंपनी में इंटरव्यू देने जाएगी, यह भी विश्वास करने वाली बात नहीं थी. उस समय तो वह पति के साथ खुशियां मनाएगी.

मामला संदिग्ध लग रहा था. लेकिन परिवार सम्मनित था, इसलिए उन पर हाथ डालने से पहले इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी ने अधिकारियों से राय ली. अधिकारियों ने आदेश दे दिया तो वह प्रियंका के पति सिद्धेश, ससुर मनोहर गुरव और मां माधुरी गुरव को क्राइम ब्रांच के औफिस ले आए.

सभी से अलगअलग पूछताछ की गई तो आखिर में प्रियंका की हत्या का खुलासा हो गया. पता चला कि इन्हीं लोगों ने प्रियंका की हत्या की थी. इस पूछताछ में प्रियंका की हत्या से ले कर उस की लाश को ठिकाने लगाने तक की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.

25 वर्षीय सिद्धेश गुरव का परिवार मुंबई से सटे ठाणे के उपनगर कल्याण बासिंद में रहता था. उस के पिता का नाम मनोहर गुरव और मां का माधुरी गुरव था. परिवार छोटा और सुखी था. मनोहर गुरव सरकारी नौकरी में थे. रहने के लिए सरकारी आवास मिला था. सिद्धेश गुरव उन का एकलौता बेटा था, जिसे पढ़ालिखा कर वह सीए बनाना चाहते थे.

सिद्धेश पढ़ाईलिखाई में तो ठीकठाक था ही, महत्त्वाकांक्षी भी था. वह सीए तो नहीं बन सका, लेकिन पढ़ाई पूरी होते ही उसे मुंबई के विक्रोली स्थित टीसीएस कंपनी में उसे अच्छी नौकरी मिल गई थी. बेटे को नौकरी मिलते ही मनोहर गुरव का भी प्रमोशन हो गया था. इस के बाद उन्हें रहने के लिए मुंबई के वर्ली स्थित पीडब्ल्यूडी कालोनी में बढि़या सरकारी आवास मिल गया. इस के बाद वह अपना बासिंद का घर छोड़ कर वर्ली स्थित सरकारी आवास में रहने आ गए.

22 साल की प्रियंका सिद्धेश के साथ ही पढ़ती थी. खूबसूरत प्रियंका की पहले सिद्धेश से दोस्ती हुई, उस के बाद दोनों में प्यार हो गया. आकर्षक शक्लसूरत और शांत स्वभाव का सिद्धेश प्रियंका को भा गया था. ऐसा ही कुछ सिद्धेश के साथ भी था.

प्रियंका अपनी बड़ी बहन कविता दूधे, भाई गणेश दूधे और बूढ़ी मां के साथ कल्याण के उपनगर दिवा गांव में रहती थी. पिता की बहुत पहले मौत हो चुकी थी. मां ने किसी तरह दोनों बेटियों और बेटे को पालपोस कर बड़ा किया था. कविता सयानी हुई तो मां की सारी जिम्मेदारी उस ने अपने कंधों पर ले ली. उस ने प्रियंका और भाई को पढ़ाया-लिखाया, जबकि वह खुद ज्यादा पढ़लिख नहीं पाई थी. लेकिन वह प्रियंका और गणेश को पढ़ालिखा कर उन्हें अच्छी जिंदगी देने का सपना जरूर देख रही थी.

प्रियंका और सिद्धेश की प्रेमकहानी की शुरुआत 3 साल पहले सन 2014 में हुई थी. उस समय डोंबिवली कालेज में दोनों एक साथ पढ़ रहे थे. दोनों में प्यार हुआ तो साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खाई गईं. इस के बाद दोनों में शारीरिक संबंध भी बन गए.

लेकिन जब सिद्धेश को नौकरी मिल गई और उस के पिता का प्रमोशन हो गया तो वह परिवार के साथ वर्ली रहने चला गया. इस के बाद कुछ दिनों तक तो वह प्रियंका से मिलता रहा और शादी करने की बात करता रहा, लेकिन धीरेधीरे उस ने प्रियंका से मिलनाजुलना कम कर दिया.

इस के बाद वह सिर्फ फोन पर ही प्रियंका से बातें कर के रह जाता था. प्रियंका जब भी उस से मिलने की बात करती, कोई न कोई बहाना बना कर वह टाल देता था. वह शादी की बात करती तो कहता कि अभी शादी की इतनी जल्दी क्या है, जब समय आएगा, शादी भी कर लेंगे.

अचानक प्रियंका को जो जानकारी मिली, उस से उस का सारा अस्तित्व ही हिल उठा. उसे कहीं से पता चला कि सिद्धेश के जीवन में कोई और लड़की आ गई है, जिस में उस के मांबाप की भी सहमति है. इस से वह परेशान हो उठी. जब इस बात की जानकारी उस के घर वालों को हुई तो उन्होंने उसे समझाया कि ऐसे में उस का सिद्धेश से विवाह करना ठीक नहीं है.

लेकिन प्रियंका ने तो ठान लिया था कि वह विवाह सिद्धेश से ही करेगी. क्योंकि वह मर्यादाओं की सारी सीमाएं तोड़ चुकी थी, इसलिए उस ने अपने घर वालों की बात भी नहीं मानी.

निश्चय कर के एक दिन प्रियंका सिद्धेश से मिली और विवाह के बारे में पूछा. सिद्धेश ने यह कह कर टालना चाहा कि वह उस के मांबाप को पसंद नहीं है, इसलिए वह उस से शादी नहीं कर सकता. इस पर प्रियंका ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे मांबाप पसंद नहीं करते तो न करें, तुम तो मुझे पसंद करते हो. शादी के बाद हम मांबाप को राजी कर लेंगे.’’

प्रियंका की इस बात का सिद्धेश के पास कोई जवाब नहीं था. कुछ देर तक चुप बैठा वह सोचता रहा, उस के बाद बोला, ‘‘मैं मजबूर हूं. मैं अपने मांबाप के खिलाफ नहीं जा सकता. तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘तुम मुझे भूल सकते हो, लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूल सकती. तुम ने मुझे खिलौना समझ रखा है क्या कि जब तक मन में आया खेला और जब मन भर गया तो फेंक दिया? शादी का वादा कर के मेरे मन और तन से खेलते रहे. देखा जाए तो एक तरह से मेरा यौनशोषण करते रहे. अब तुम्हें कोई दूसरी लड़की मिल गई है तो मुझ से पीछा छुड़ा रहे हो. अगर तुम ने शादी नहीं की तो मैं तुम्हारे खिलाफ शादी का झांसा दे कर यौनशोषण का मुकदमा दर्ज कराऊंगी.’’

प्रियंका की इस धमकी से सिद्धेश और उस के घर वाले घबरा गए. समाज और नातेरिश्तेदारों में बदनामी से बचने के लिए सिद्धेश ने प्रियंका से शादी कर ली. इस में घर वालों ने भी रजामंदी दे दी. इस तरह सिद्धेश और प्रियंका ने प्रेम विवाह कर लिया.

सिद्धेश ने विवाह तो कर लिया, लेकिन यह एक तरह की जबरदस्ती की शादी थी. इसलिए प्रियंका को ससुराल में जो प्यार और सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला. सम्मान देने की कौन कहे, उस के पति और सासससुर तो किसी तरह उस से पीछा छुड़ाने की सोच रहे थे.

इस के लिए सिद्धेश और उस के मांबाप ने साजिश रच कर 4-5 मई, 2017 की रात प्रियंका जब गहरी नींद में सो रही थी, तब सिद्धेश ने उस के मुंह पर तकिया रख कर उसे हमेशा के लिए सुला दिया.

प्रियंका की हत्या के बाद जब उस की लाश को ठिकाने लगाने की बात आई तो सिद्धेश और उस के मांबाप ने डोंबिवली के रहने वाले अपने परिचित अपराधी प्रवृत्ति के दुर्गेश कुमार पटवा से संपर्क किया. प्रियंका की लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस ने एक लाख रुपए मांगे.

सौदा तय हो गया तो दुर्गेश ने मदद के लिए डोंबिवली के ही रहने वाले अपने मित्र विशाल सोनी को सैंट्रो कार सहित बुला लिया. विशाल के आने पर दुर्गेश ने प्रियंका की लाश को बाथरूम में ले जा कर उस के 11 टुकड़े किए. लाश के टुकड़े करने के लिए हथियार वे अपने साथ लाए थे.

लाश के टुकड़ों को अलगअलग प्लास्टिक के बैग में अच्छी तरह से पैक कर विशाल ने उन्हें कार में रखा और 5-6 मई, 2017 की रात धड़ को रबाले के नाले में तो सिर को ले जा कर शाहपुर के जंगल में फेंका. कमर के नीचे के हिस्से और हाथों को अमरनाथ-बदलापुर रोड के बीच स्थित खारीगांव की खाड़ी में ले जा कर पैट्रोल डाल कर जला दिया.

लाश ठिकाने लग गई तो 6 मई को सिद्धेश अपने मांबाप के साथ थाना वर्ली पहुंचा और प्रियंका की गुमशुदगी दर्ज करा दी. उन्होंने तो सोचा था कि सब ठीक हो गया है, लेकिन 3 दिनों बाद ही सब गड़बड़ हो गया, जब क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी ने पूछताछ के लिए उन्हें अपने औफिस बुला लिया. मामले का खुलासा होने के बाद उन्होंने सभी को थाना एमआईडीसी पुलिस के हवाले कर दिया.

सिद्धेश, उस के पिता मनोहर तथा मां माधुरी से पूछताछ कर मामले की जांच कर रहे प्रमोद जाधव ने 12 मई, 2017 को दुर्गेश पटवा को डोंबिवली से तो 14 मई को विशाल सोनी को भी उस के घर से सैंट्रो कार सहित गिरफ्तार कर लिया. इन की निशानदेही पर पुलिस ने प्रियंका के सिर तथा बाकी अंगों की राख बरामद कर ली थी.

सबूत जुटा कर पुलिस ने सिद्धेश गुरव, उस के पिता मनोहर गुरव, मां माधुरी गुरव, दुर्गेश कुमार पटवा और विशाल सोनी को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

  • कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शैतान का कारनामा : इंसानियत हुई शर्मसार

लुधियाना के थाना सलेमटाबरी के मोहल्ला नानकनगर के रहने वाले देविंदर कुमार पेशे से फोटोग्राफर थे. उसी इलाके में उन की फोटोग्राफी की दुकान थी. अपनी दुकान पर तो वह फोटोग्राफी करते ही थे, जरूरत पड़ने पर थानों में जा कर पुलिस द्वारा पकड़े गए अभियुक्तों के फोटो खींच कर डोजियर भी बनाते थे. इस के अलावा लोकल समाचारपत्रों के लिए भी वह फोटोग्राफी करते थे.

हर किसी का दुखदर्द सुनने समझने वाले देविंदर कुमार काफी मिलनसार थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे, 8 साल का चेतन और 5 साल का जतिन था. उन के दोनों बेटे पढ़ने जाते थे. अपने इस छोटे से सुखी परिवार के साथ देविंदर खुद को बड़ा भाग्यशाली समझ रहे थे. पुलिस प्रशासन में उन की काफी पैठ थी, जिस से आम लोग उन की काफी इज्जत करते थे.

देविंदर कुमार की पत्नी का अपना ब्यूटीपार्लर था. उन के बड़े और छोटे भाई भी उसी मोहल्ले में रहते थे. 3 मई, 2017 की शाम 7 बजे के करीब देविंदर घर पहुंचे तो पता चला कि गली में खेलते हुए उन का बड़ा बेटा चेतन अचानक गायब हो गया है. हैरान परेशान देविंदर पत्नी के साथ बेटे की तलाश में निकल पड़े. चेतन का इस तरह गायब होना हैरानी की बात थी. क्योंकि वह कहीं आताजाता नहीं था.

चेतन सुबह 7 बजे स्कूल जाता था तो दोपहर साढ़े 12 बजे लौटता था. खाना खा कर वह 2 बजे पड़ोस में रहने वाली अपनी ताई के घर चला जाता था. 5 बजे तक उन्हीं के यहां रहता था. इस के बाद थोड़ी देर वह छोटे भाई और गली के लड़कों के साथ गली में खेलता था या साइकिल चलाता था. इस के बाद घर आ जाता था तो घर से बाहर नहीं निकलता था.

गली के बच्चों से पूछने पर पता चला कि शाम 7 बजे तक चेतन उन्हीं के साथ गली में खेल रहा था. उस की साइकिल भी घर में अपनी जगह खड़ी थी. इस का मतलब था, साइकिल खड़ी कर के वह कहीं गया था. उस के गायब होने की जानकारी पा कर देविंदर के भाई तो आ ही गए थे, मोहल्ले वाले भी उन की मदद के लिए आ गए थे.

लगभग 9 बजे गली के ही रहने वाले रोशनलाल ने बताया कि शाम 7 बजे के करीब वह काम से बाहर जा रहे थे तो उन्होंने गली के कोने पर चेतन को विक्की से बातें करते देखा था. विक्की उस समय मोटरसाइकिल से था. वह चेतन को मोटरसाइकिल पर बैठने के लिए कह रहा था. उन्होंने यह भी आशंका व्यक्त की कि शायद वह बाईपास की ओर गया.

crime

रोशनलाल से इतनी जानकारी मिलने पर सभी को थोड़ी राहत महसूस हुई कि चलो चेतन विक्की के साथ है. लेकिन देविंदर परेशान हो उठे थे, क्योंकि वह विक्की की आदतों के बारे में जानते थे. विक्की का नाम राहुल था. वह अमृतसर के रहने वाले देविंदर के सगे मामा का बेटा था. वह ज्यादातर यहां उन के छोटे भाई रवि के यहां रहता था. कभीकभार उन के यहां भी रहने आ जाता था. चेतन और जतिन उसे चाचा कहते थे. वह एक नंबर का शराबी और सट्टेबाज था. इसी वजह से उस की अपने पिता से नहीं पटती थी. इसी वजह से वह अपना घर छोड़ कर अपनी बुआ के बेटों के यहां पड़ा रहता था.

देविंदर सभी के साथ जालंधर बाईपास पर पहुंचे, लेकिन वहां न विक्की मिला और न चेतन. थकहार कर रात साढ़े 11 बजे वह सभी के साथ थाना सलेमटाबरी पहुंचे और पुलिस को सारी बातें बता कर मदद मांगी. लेकिन पुलिस वालों से अच्छे संबंध होने के बावजूद थाना सलेमटाबरी पुलिस ने उन से यह कह कर अपना पिंडा छुड़ा लिया कि पहले  आप बच्चे को अच्छी तरह से तलाश लो, उस के बाद आना.

जबकि देविंदर कुमार पुलिस से यही कहते रहे कि उन के बेटे का अपहरण हुआ है. वह अपहर्त्ता का नाम बताने के साथ उस की फोटो और मोटरसाइकिल का नंबर भी पुलिस को दे रहे थे. इस के बावजूद पुलिस ने उन की एक नहीं सुनी.

देविंदर कुमार सभी के साथ घर लौट कर आए. वे घर पहुंचे ही थे कि विक्की मिल गया. उस से चेतन के बारे में पूछा गया तो कुछ बताने के बजाय वह सभी को धमकाने लगा.

उसे थाने ले जाया गया तो नशे में होने की वजह से पुलिस ने उस से पूछताछ करने के बजाय यह कह कर वापस कर दिया कि यह घर का मामला है, इस में हम कुछ नहीं कर सकते. थाने से खाली हाथ लौटने के बाद देविंदर ने पुलिस अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अंत में उन्होंने पुलिस के हेल्पलाइन नंबर 181 पर फोन कर के शिकायत दर्ज कराई.

इस के बाद कुछ सिपाही चेतन की तलाश में उन के साथ निकले. देविंदर को किसी से पता चला कि बाईपास के पास एक खाली पड़े निर्माणाधीन मकान में विक्की अकसर अपने दोस्तों के साथ बैठ कर शराब पीता था. वह पुलिस के साथ वहां पहुंचे तो उन्हें वहां चेतन के रोने की आवाज सुनाई दी.

उन्होंने पुलिस से अंदर चल कर चेतन की तलाश करने को कहा, पर पुलिस वालों ने उन की एक नहीं सुनी और बाहर से ही लौट आए.

सुबह 6 बजे थाना सलेमटाबरी के थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ के आदेश पर एक पुलिस टीम देविंदर के साथ विक्की और चेतन की तलाश में अमृतसर गई. पुलिस को वह वहां अपने घर के पास एक पार्क में बैठा दिखाई दे गया. पुलिस टीम उस तक पहुंचती, उस के पहले ही वह पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया. पुलिस ने उस की तलाश में अन्य कई जगहों पर छापे मारे, पर वह नहीं मिला.

अगले दिन 6 मई, 2017 को लुधियाना के प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा. समाचार में पुलिस की लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के बारे में विस्तार से छपा था. इस समाचार को पढ़ कर पुलिस विभाग तत्काल हरकत में आ गया.

उसी दिन शाम को 6 बजे किसी राहगीर ने सूचना दी कि कोलकाता होजरी के पास एक खाली प्लौट में किसी बच्चे की अर्धनग्न लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही अमनदीप सिंह बराड़ देविंदर को ले कर पुलिस बल के साथ बताई गई जगह पर पहुंच गए. वहां सचमुच एक बच्चे की लाश पड़ी थी. वहां जो लाश पड़ी मिली थी, वह चेतन की ही थी. हालांकि लाश का चेहरा बुरी तरह कुचला था, उस के मुंह में कपड़ा भी ठूंसा हुआ था. उस पर पैट्रोल डाल कर जलाने की भी कोशिश की गई थी, इस के बावजूद देविंदर कुमार ने लाश की पहचान कर ली थी.

बेटे की हालत देख कर देविंदर फूटफूट कर रो पड़े. घटनास्थल पर पुलिस को चेतन की चप्पलों के अलावा और कुछ नहीं मिला था. लाश कब्जे में ले कर अमनदीप सिंह बराड़ ने पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर चेतन की गुमशुदगी की जगह अपराध संख्या 135/2017 पर भादंवि की धारा 302, 364/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

7 मई, 2017 को सिविल अस्पताल में 3 डाक्टरों के पैनल ने चेतन की लाश का पोस्टमार्टम किया. उस समय पुलिस अधिकारी भी अस्पताल में मौजूद थे.

अस्पताल में सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया था. इस की वजह यह थी कि पुलिस के रवैए से लोग काफी नाराज थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मृतक चेतन की एक टांग और बाजू की हड्डी टूटी हुई थी. दोनों बाजुओं पर चोटों के निशान थे. मुंह में कपड़ा ठूंस कर सिर और चेहरे पर ईंटों से वार किए गए थे. उस के साथ कुकर्म भी किया गया था.

पुलिस ने सुरक्षा की दृष्टि से उसी दिन चेतन का अंतिम संस्कार करवा दिया था. एडीशनल पुलिस कमिश्नर धु्रमन निंबले स्वयं पलपल की रिपोर्ट ले रहे थे. एडीसीपी क्राइम, एसीपी सचिन गुप्ता सहित सीआईए स्टाफ की टीमें आरोपी विक्की की तलाश में लगी थीं. इस के अलावा मुखबिरों को भी उस की तलाश में लगा दिया गया था.

7 मई, 2017 को ही एक मुखबिर की सूचना पर चेतन की हत्या के अभियुक्त विक्की को थाना लाडोवाल के एक शराब के ठेके से गिरफ्तार कर लिया गया था. उस समय वह नशे में था.

पुलिस विक्की को थाना सलेमटाबरी ले आई. पूछताछ में उस ने मासूम चेतन के अपहरण और हत्या का अपराध स्वीकार कर के जो कहानी सुनाई, वह इंसानियत को शर्मसार करने वाली थी. हम सभी शैतान का केवल नाम सुनते आए हैं, अगर शैतान होता होगा तो वह विक्की जैसा ही होगा.

विक्की को नशे की आदत थी. इस के अलावा वह जुआसट्टा भी खेलता था. सभी जानते थे कि वह नशे के लिए कुछ भी कर सकता था. लेकिन नशे के लिए वह इस तरह की हरकत भी कर सकता है, यह किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था.

उस दिन विक्की ने काफी शराब पी रखी थी. इस के बावजूद वह संतुष्ट नहीं था. अब उस के पास पैसे नहीं थे, जबकि अभी वह और पीना चाहता था. इस के अलावा नशे में होने की वजह से उस की शारीरिक संबंध बनाने की भी इच्छा हो रही थी. जबकि उस के पास न कोई लड़की थी और न ही पास में पैसे थे.

crime

वह इसी सोच में डूबा घर की ओर लौट रहा था, तभी गली के कोने पर उसे चेतन खेलता दिखाई दे गया. उसे देख कर अचानक उस के अंदर का शैतान जाग उठा. कैसे और क्या किया जाए, वह योजना बना रहा था कि तभी चेतन ने उस के नजदीक आ कर पूछा, ‘‘चाचा, यहां क्या कर रहे हो?’’

‘‘चलो चेतन, मैं तुम्हें मोटरसाइकिल पर बैठा कर घुमा लाता हूं. वैसे ही तुम्हें टौफी भी दिला दूंगा.’’ विक्की ने कहा.

चेतन बच्चा तो ही था. विक्की के इरादों से अंजान वह उस के साथ चल पड़ा. पहले वह ब्लैक में शराब बेचने वाली एक औरत के घर गया. उस समय उस के पास पैसे कम थे. उस ने चेतन को उस के पास गिरवी रख कर शराब ली और फिर कहीं जा कर सौ रुपए का इंतजाम किया. इस के बाद उस औरत को पैसे दे कर चेतन को छुड़ाया और उसे कोलकाता होजरी के पास वाली उस निर्माणाधीन इमारत में ले गया.

अब तक रात के लगभग 10 बज चुके थे. चेतन अब टौफी भूल कर घर जाने की जिद करने लगा था. विक्की ने उसे 2 थप्पड़ मार कर एक कोने में बैठा दिया और खुद साथ लाई शराब पीने लगा. जब उसे नशा चढ़ा तो इंसानियत की सारी हदें पार करते हुए वह मासूम के साथ कुकर्म करने लगा. दर्द से कराहते हुए अर्धबेहोशी की हालत में चेतन ने कहा, ‘‘चाचा, तुम बड़े गंदे हो, मैं यह सब को बता दूंगा.’’

यह सुन कर विक्की डर गया. उस ने चेतन के मुंह में कपड़ा ठूंस कर पहले उस की जम कर पिटाई की, उसे उठाउठा कर जमीन पर पटका. इस के बाद ईंट से उस के चेहरे पर कई वार किए. लेकिन अभी वह मरा नहीं था. उसी हालत में उस ने उसे ले जा कर खाली प्लौट में फेंक दिया और मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकाल कर उस के शरीर पर छिड़क कर आग लगा दी.

चेतन की लाश को जलाने के बाद वह अमृतसर चला गया. पुलिस वहां पहुंची तो वह तरनतारन भाग गया. पर हर जगह भटकने के 2 दिनों बाद वह अपनी मनपसंद की शराब पीने लुधियाना के बाहरी इलाके लाडोवाल पहुंचा तो मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

8 मई, 2017 को पूछताछ के बाद अमनदीप सिंह बराड़ ने उसे अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर खून सने कपड़े और वह ईंट बरामद कर ली गई, जिस से उस ने चेतन का चेहरा कुचला था. मोटरसाइकिल बरामद कर के पुलिस जांच कर रही है कि नशे में उस ने और क्याक्या किया था?

मृतक चेतन के पिता देविंदर कुमार को इस बात का मलाल जीवन भर रहेगा कि अगर पुलिस ने समय रहते उन की बात मान ली होती तो आज उन का बेटा चेतन जीवित होता.

– पुलिस सूत्रों व जनचर्चाओं पर आधारित

भाई ने ही कराई अपने भाइयों की हत्या

24 नवंबर, 2016 की रात पटना के जमाल रोड स्थित कुमार कौंप्लेक्स की चौथी मंजिल पर स्थित फ्लैट में रहने वाले शिवराज चौधरी के बेटों अभिषेक और सागर चौधरी की हत्या हो गई थी. दोनों भाइयों की लाशें पुलिस ने फ्लैट के एक ही कमरे से बरामद की थीं. दोनों भाई यह फ्लैट किराए पर ले कर रह रहे थे.

हत्यारों ने दोनों भाइयों की बड़ी बेरहमी से हत्या की थी. हत्या के बाद गुप्तांग भी काट लिए थे. अभिषेक का सिर धड़ से अलग कर दिया गया था. सागर के गले में प्लास्टिक की रस्सी लपेटी थी, जिस से अंदाजा लगाया गया था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी.

हत्यारों ने अभिषेक और सागर की हत्या में चाकू का भी उपयोग किया गया था. उन के शरीर पर चाकुओं के करीब 25-30 घाव थे. शरीर का कोई भी अंग बाकी नहीं था, जहां चाकू का घाव न रहा हो. इस से साफ लग रहा था कि हत्यारों को मृतकों से काफी खुन्नस थी.

पुलिस ने रोहतास, पटना और भोजपुर के ऐसे 9 लोगों से पूछताछ की, जिन का अभिषेक से संबंध था. ये सभी अभिषेक और सागर के करीबी रिश्तेदार थे. इन लोगों से पूछताछ में पता चला था कि सासाराम के बंजारी इलाके की रहने वाली किसी लड़की से अभिषेक का विवाह होने वाला था.

उस लड़की से अभिषेक की सगाई 16 सितंबर, 2016 को रोहतास में हुई थी. 23 नवंबर को शादी होने वाली थी. सगाई के बाद लड़की से अभिषेक की फोन पर बातें होने लगी थीं. लेकिन कुछ दिनों बाद ही सगाई टूट गई थी.

पुलिस ने जब इस की वजह पता की तो घर वालों ने बताया कि लड़की के सुंदर न होने की वजह से यह सगाई टूटी थी. अभिषेक के पिता शिवराज चौधरी का कहना था कि अभिषेक की सगाई होने के कुछ दिनों बाद ही उस की मर्चेंट नेवी में नौकरी लग गई थी.

मई, 2017 में उसे मुंबई जा कर नौकरी जौइन करनी थी. इसी बात को ले कर उसे विवाह में मामला उलझ गया था. अभिषेक के कैरियर को देखते हुए लड़की के घर वालों से विवाह के लिए मना कर दिया गया था, जिस की वजह से दोनों परिवारों में काफी विवाद हुआ था. अभिषेक के घर वालों ने दहेज के रूप में लड़की वालों से एक लाख रुपए एडवांस ले रखे थे.

24 नवंबर की सुबह 7 बजे अभिषेक नारायणपुर गांव के अपने घर से पटना पहुंचा था, जहां उस की मुलाकात कुछ दोस्तों से हुई थी. दोपहर 2 बजे वह अपने जीजा अमित से मिला था. वह पटना हाइकोर्ट में वकालत करते हैं. उसी दिन अभिषेक के मंझले भाई सागर को किसी काम से घर जाना था. वह घर के लिए निकला जरूर, पर पहुंचा नहीं.

अभिषेक और सागर के सब से छोटे भाई का नाम अमित चौधरी उर्फ भोलू है. पहले पुलिस को उसी पर दोनों भाइयों की हत्या का शक था. पुलिस उस से पूछताछ करना चाहती थी, लेकिन घर वाले पुलिस से कह रहे थे कि वह बीमार है. घर वालों का कहना था कि 2 भाइयों की हत्या की वजह से वह गहरे सदमे में हैं.

गौरतलब है कि हत्या के बाद भोलू और उस के मामा ही सब से पहले कमरे में पहुंचे थे. पुलिस को यह भी लग रहा था कि कहीं दोनों भाइयों की हत्या प्रेमप्रसंग की वजह से तो नहीं हुई है. लेकिन घटनास्थल की स्थिति से लग रहा था कि इस हत्याकांड में किसी जानपहचान वाले का हाथ है. इस की वजह यह थी कि हत्यारा आराम से दोनों के कमरे में पहुंच गया था और दोनों की हत्या कर के चला गया था.

हत्या वाले दिन दोपहर 2 बजे अभिषेक ने पिता शिवराज चौधरी और मां रेणु देवी को फोन कर के बात की थी. अभिषेक का बहनोई अमित दोनों का खाना पहुंचाता था. दोनों भाई पटना में रह कर मोबाइल फोन एसेसरीज का कारोबार करते थे. इस के अलावा दोनों भाई आरा से बिहटा ट्रक चलवाते थे.

उन का बालू का ठेका भी था. बालू के ठेके और ट्रक को ले कर कई बार दोनों भाई विवादों में फंस चुके थे. उन का एक डंपर उत्तर प्रदेश में भी चलता था. शिवराज चौधरी का कहना था कि उन के बेटों की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. दोनों बेटों की हत्या से उन के परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.

पहले दोनों भाई गांव में किराए पर जेनरेटर चलाते थे. इस के बाद उन्होंने पोल्ट्री फार्म और डेयरी फार्म का भी काम किया. पास में कुछ पैसे आए तो उन्होंने पटना में कारोबार करने का विचार किया. पटना आ कर दोनों ने 2 ट्रक खरीदे और उन्हें किराए पर चलाने लगे.

सन 2014 में जमाल रोड स्थित कुमार कौंप्लेक्स में उन्होंने रहने के लिए राजकुमार गुप्ता का फ्लैट किराए पर लिया था. मकान मालिक ने बताया था कि दोनों भाई काफी शांत स्वभाव के थे. उन का बाहरी लोगों से कोई लेनादेना नहीं था.

हत्यारा दोनों भाइयों के मोबाइल फोन भी ले गया था. शायद हत्यारों का सोचना था कि मोबाइल फोन गायब होने से पुलिस को कोई सबूत नहीं मिलेगा, लेकिन वही पुलिस के लिए तुरुप का पत्ता साबित हुआ.

पुलिस ने दोनों के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा ली थी. वहीं 24 साल के अमित को अपने भाइयों की हत्या करवाने का जरा भी मलाल नहीं था. उस का कहना था कि उसे अपने भाइयों से नफरत हो गई थी. बड़ा भाई अभिषेक हमेशा परेशान करता रहता था. मंझला भाई सागर हमेशा उसे डांटतामारता रहता था. उन्होंने अपना धंधा तो चमका लिया था, जबकि उसे कोई काम नहीं करने दे रहे थे.

जब अभिषेक ने उसे घर से भगा दिया तो उसे लगा कि अगर दोनों भाइयों को रास्ते से हटा दिया जाए तो पिता और भाइयों की सारी संपत्ति उस की हो जाएगी. उस के बाद वह अकेला ऐश करेगा. इसी लालच में उस ने अपने भाइयों अभिषेक और सागर की हत्या करने का विचार बना लिया था.

22 अक्तूबर को अभिषेक और सागर ने अमित को घर से भगा दिया था. पहले अभिषेक ने एक ट्रक खरीदा था, उस के कुछ दिनों बाद सागर ने एक ट्रक खरीदा था. दोनों मिल कर तीसरा ट्रक खरीदना चाहते थे. अमित भी अपना एक ट्रक खरीदना चाहता था, जिस के लिए वह भाइयों से रुपए मांग रहा था. लेकिन भाइयों ने रुपए देने से ही मना ही नहीं कर दिया, बल्कि उसे घर से भाग जाने के लिए कह दिया.

इसी से नाराज हो कर अमित ने दोनों बड़े भाइयों अभिषेक और सागर को सबक सिखाने का मन बना लिया. अभिषेक ने फ्लैट की 3 चाबियां बनवा रखी थीं, जिस में से एक चाबी अभिषेक के पास रहती थी तो दूसरी सागर के पास रहती थी. जबकि तीसरी चाबी दरवाजे के ऊपर वेंटीलेटर पर रखी रहती थी. उस के बारे में उन दोनों के अलावा अमित और उन के पिता शिवराज चौधरी को पता था.

अमित के रिश्तेदारों का कहना था कि अमित इधर गलत लोगों की संगत में पड़ गया था. ऐसे लोगों से दूर रखने के लिए अभिषेक ने उसे बालू के कारोबार में लगा दिया था, जहां वह रुपयों की हेराफेरी करने लगा था. अभिषेक ने उसे कई बार समझाया, पर वह नहीं माना. दिवाली के पहले अमित की चोरी पकड़ी गई तो सागर ने उस की पिटाई कर दी थी.

शायद पिटाई से ही नाराज हो कर अमित ने अपराधियों के साथ मिल कर भाइयों की हत्या की साजिश रच डाली थी. अमित अपना ट्रक खरीदना चाहता था, जिस के लिए वह भाइयों से रुपए मांग रहा था. रुपए देने के बजाय दोनों भाई यही सलाह दे रहे थे कि वह पहले ट्रक चलवाने वाले कारोबार को अच्छी तरह समझ ले, उस के बाद ही वह इस कारोबार को शुरू करे.

बगैर समझेबूझे कोई काम करने से रुपए डूब सकते हैं. अमित भाइयों की बात मानने के बजाय ट्रक खरीदने की जिद पर अड़ा था. अभिषेक ने रुपए देने से मना कर दिया तो अमित उस के दुश्मन संतोष से जा मिला. आरा के नारायणपुर गांव के ही रहने वाले संतोष से अभिषेक का कुछ दिनों पहले ही झगड़ा हुआ था.

अमित ने उसी के साथ मिल कर अभिषेक की हत्या की योजना बनाई. संतोष को भी अभिषेक से बदला लेना था, इसलिए वह तुरंत उस की हत्या करने को तैयार हो गया. उसे इस काम के लिए ढाई लाख रुपए देने को भी कहा था. संतोष ने उसे अपने गैंग में शामिल करने का वादा किया था.

कुमार कौंप्लेक्स से कुछ दूरी पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में पुलिस को 3 सदिग्धों की फोटो मिली. उन फोटो को ले कर पुलिस आरा पहुंची तो तीनों की पहचान हो गई. पता चला कि वे आरा के छुटभैए अपराधी थे, जिन का नाम संतोष, नीतीश और सच्चिदानंद था. इस के बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया तो उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया कि अमित ने ही उन्हें भाइयों की हत्या की सुपारी दी थी.

पुलिस ने अमित को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद उस की निशानदेही पर रितेश और रमेश को भी आरा से गिरफ्तार कर लिया गया. इन के पास से 8 मोबाइल फोन, 3 चाकू और एक हथौड़ा बरामद किया गया. संतोष अभी नहीं पकड़ा जा सका है. पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए ताबड़तोड़ छापे मार रही है. आरा में उस के खिलाफ दरजनों मामले दर्ज हैं.

पुलिस ने अमित से सख्ती से पूछताछ की तो वह घबरा गया. पुलिस ने उस से पूछा कि वह घटना वाले दिन कहां था तो उस ने कहा कि वह आरा में ही था. लेकिन मोबाइल फोन की लोकेशन से उस का झूठ पकड़ा गया. लोकेशन के अनुसार उस दिन वह पटना में था. इस के बाद पुलिस ने सख्ती की तो उस ने सच्चाई उगल दी.

अमित ने जो बताया उस के अनुसार, 23 नवंबर, 2016 की रात सागर जमाल रोड वाले फ्लैट में अकेला था. अमित, संतोष, सच्चिदानंद और नीतीश को साथ ले कर फ्लैट पर पहुंचा. अमित खुद नीचे रह गया, जबकि तीनों अपराधियों को ऊपर भेज दिया. हत्यारों ने सागर के सिर पर हथौड़ा मार कर बेहोश कर दिया.

उस के बाद अंगौछे से गला कस कर हत्या कर दी. उन्होंने अमित को बताया कि सागर को मार दिया है तो वह ऊपर पहुंचा और सागर की लाश को घसीट कर पूजाघर में छिपा दिया. सागर की हत्या कर के सभी बाहर आ गए और दरवाजा लौक कर के अभिषेक के पीछे लग गए.

24 नवंबर, 2016 को 10 बजे अभिषेक फ्लैट पर पहुंचा तो पीछा करता हुआ अमित, संतोष, रितेश और रमेश के साथ फ्लैट पर पहुंच गया. इस बार भी अमित नीचे ही खड़ा रहा और तीनों अपराधी अभिषेक के फ्लैट पर जा पहुंचे.

उन्होंने अभिषेक के सिर पर भी हथौड़ा मार कर बेहोश कर दिया और फिर गला रेत कर हत्या कर दी. उस के प्राइवेट अंगों को भी काट दिया. इस के बाद अमित कमरे में पहुंचा और अभिषेक की लाश को भी पूजाघर में ले जा कर छिपा दिया.

इस के बाद दोनों लाशों पर एसिड डाल कर जलाने की कोशिश की. उस ने कमरे में फैले खून को साफ किया और बाहर से दरवाजा बंद कर के सब के साथ फरार हो गया.

पटना के एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि संपत्ति विवाद और ईर्ष्या की वजह से अभिषेक और सागर के छोटे भाई अमित ने ही उन की हत्या करवाई थी. 3 भाइयों में अभिषेक सब से बड़ा था और सागर उस से छोटा, अमित सब से छोटा था. 23 नवंबर को अमित के मोबाइल फोन की लोकेशन पटना की पाई गई तो पुलिस का शक यकीन में बदल गया था.

बीए करने के बाद अमित नौकरी खोज रहा था. जब कहीं नौकरी नहीं मिली तो वह अपने दोनों बड़े भाइयों से रुपए मांगने लगा था. कुछ समय तक अभिषेक रुपए देता रहा. उस के बाद में उस ने अभिषेक से कहा कि वह अपना अलग धंधा करना चाहता है, जिस के लिए वह उसे रुपए दे.

पिछली दिवाली से ही अमित अपने भाइयों से कारोबार के लिए रुपए मांग रहा था. जबकि वे टालमटोल कर रहे थे. अभिषेक के रवैए से नाराज हो कर अकसर अमित घर में हंगामा करता रहता था.

शिवराज चौधरी के 7 बच्चे हैं. अभिषेक, सागर और अमित के अलावा उन की 4 बेटियां हैं. चारों बेटियों का विवाह हो चुका है. घर वालों का कहना है कि अमित के रवैए और उस की अपराधियों से दोस्ती की वजह से घर के सभी लोग परेशान थे. उस पर किसी के समझाने का असर नहीं हो रहा था. वह रातोंरात करोड़पति बनने के सपने देखा करता था.

अभिषेक और सागर को उस के ही छोटे भाई अमित ने मौत के घाट उतरवा दिया था. अब वह जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया है. एक साथ तीनों बेटों के खोने के दर्द में डूबे शिवराज चौधरी आंखों में आंसू लिए कहते हैं कि उन का परिवार और जिंदगी दोनों बरबाद हो गई.

उन की पत्नी रेणु चौधरी बुत बनी बैठी रहती हैं. उन्हें किसी चीज की सुध नहीं है. उन की सूनी आंखें मानो हर पल अपने बच्चों को ढूंढती रहती हैं. शिवराज कहते हैं कि दौलत के लिए भाइयों के झगड़े के बारे में कई कहानियां सुनी थीं, पर उन के ही बेटे ने एक दर्दनाक कहानी बना डाली. अब उन की जिंदगी बेकार है.

बेहयाई का सागर : अवैध संबंधों ने ली जान

रविवार को छुट्टी होने की वजह से फैक्ट्रियों में काम करने वाले अधिकांश कामगार अपने घरों की साफ सफाई और कपड़े आदि धोने का काम करते हैं. 25 साल का सागर और उस का छोटा भाई सरवन भी घर की साफसफाई में लगे थे. दोनों भाई एक गारमेंट फैक्ट्री में काम करते थे. शाम 5 बजे के करीब सारा काम निपटा कर सरवन कमरे में लेट कर आराम करने लगा तो सागर छत पर हवा खाने चला गया.

7 बजे सागर आया और नीचे सरवन से खाना बनाने को कहा. छोटेमोटे काम करा कर वह फिर छत पर चला गया. सरवन खाना बना रहा था. दोनों भाई लुधियाना के फतेहगढ़ मोहल्ले में पाली की बिल्डिंग में तीसरी मंजिल पर किराए का कमरा ले कर रहते थे.

इस बिल्डिंग में 30 कमरे थे, जिसे मकान मालिक ने प्रवासी कामगारों को किराए पर दे रखे थे. पास ही मकान मालिक की राशन की दुकान थी. सभी किराएदार उसी की दुकान से सामान खरीदते थे. इस तरह उस की अतिरिक्त आमदनी हो जाया करती थी. साढ़े 7 बजे के करीब पड़ोस में रहने वाले संजय ने आ कर सरवन को बताया कि सागर खून से लथपथ ऊपर के जीने में पड़ा है.

संजय का इतना कहना था कि सरवन खाना छोड़ कर छत की ओर भागा. ऊपर जा कर उस ने देखा सागर के शरीर पर कई घाव थे, जिन से खून बह रहा था. हैरानी की बात यह थी कि छत पर दूसरा कोई नहीं था. वह सोच में पड़ गया कि सागर को इस तरह किस ने घायल किया.

लेकिन यह वक्त ऐसी बातें सोचने का नहीं था. संजय व और अन्य लोगों की मदद से सरवन अपने घायल भाई को पास के राम चैरिटेबल अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. इस बीच किसी ने पुलिस को इस मामले की सूचना भी दे दी. यह 9 अप्रैल, 2017 की घटना है.

crime

सूचना मिलते ही थाना डिवीजन-4 के थानाप्रभारी मोहनलाल अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने वहां रहने वाले किराएदारों से पूछताछ शुरू कर दी. दूसरी ओर अस्पताल द्वारा भी पुलिस को सूचित कर दिया गया था. 2 पुलिसकर्मियों को घटनास्थल पर छोड़ कर थानाप्रभारी राम चैरिटेबल अस्पताल पहुंच गए.

उन्होंने सागर की लाश का मुआयना किया तो पता चला कि किसी नुकीले और धारदार हथियार से उस पर कई वार किए गए थे. जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी गई थी.

अस्पताल से फारिग होने के बाद थाना प्रभारी सरवन को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. अब तक सूचना पा कर एसीपी सचिन गुप्ता व क्राइम टीम भी घटनास्थल पर पहुंच गई थी. घटनास्थल का गौर से निरीक्षण किया गया. बिल्डिंग के बाहर मुख्य दरवाजे के पास गली में खून सने जूतों के हलके से निशान दिखाई दिए थे.

छत और जीने में भी काफी मात्रा में खून फैला था. बिल्डिंग के बाहर गली में करीब 2 दरजन साइकिलें खड़ी थीं, जो वहां रहने वाले किराएदारों की थीं. काफी तलाश करने पर भी वहां से कोई खास सुराग नहीं मिल सका.

लुधियाना में ऐसे कामगार मजदूरों के मामलों में अकसर 2 बातें सामने आती हैं. ऐसी हत्याएं या तो रुपएपैसे के लेनदेन में होती हैं या फिर अवैध संबंधों की वजह से. सब से पहले थानाप्रभारी मोहनलाल ने रुपयों के लेनदेन वाली थ्यौरी पर काम शुरू किया. पता चला कि मृतक सीधासादा इंसान था. उस का किसी से कोई लेनदेन या दुश्मनी नहीं थी.

इस के बाद थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एएसआई जसविंदर सिंह को करने के निर्देश दिए. उन्होंने मामले की जांच शुरू की तो उन्हें पता चला कि मृतक के कई रिश्तेदारों के लड़के यहां रह कर काम करते हैं, जिन में एक अशोक मंडल है, जो मृतक के ताऊ का बेटा है.

अशोक मंडल टिब्बा रोड की किसी सिलाई फैक्ट्री में काम करता था और उस का मृतक के घर काफी आनाजाना था. इसी के साथ यह भी पता चला कि अशोक का किसी बात को ले कर मृतक से 2-3 बार झगड़ा भी हुआ था.

एएसआई जसविंदर सिंह ने हवलदार अमरीक सिंह को अशोक मंडल के बारे में जानकारी जुटाने का काम सौंप दिया. थानाप्रभारी अपने औफिस में बैठ कर जसविंदर सिंह से इसी केस के बारे में चर्चा कर रहे थे, तभी उन्हें चाबी का ध्यान आया.

दरअसल घटनास्थल का निरीक्षण करने के दौरान बिल्डिंग के बाहर खड़ी साइकिलों के पास उन्हें एक चाबी मिली. वह चाबी वहां खड़ी किसी साइकिल के ताले की थी.

थानाप्रभारी ने उस समय उसे फालतू की चीज समझ कर उस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब न जाने क्यों उन्हें वह चाबी कुछ महत्त्वपूर्ण लगने लगी. वह एएसआई जसविंदर सिंह और कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर उसी समय पाली की बिल्डिंग पहुंचे. साइकिलें अब भी वहीं खड़ी थीं.

उन्होंने बिल्डिंग में रहने वाले सभी किराएदारों को बुलवा कर कहा कि अपनीअपनी साइकिलों के ताले खोल कर इन्हें एक तरफ हटा लो.

सभी किराएदार अपनीअपनी साइकिलों का ताला खोल कर उन्हें हटाने लगे. सभी ने अपनी साइकिलें हटा लीं, फिर भी एक साइकिल वहां खड़ी रह गई.

‘‘यह किस की साइकिल है ’’ एएसआई जसविंदर सिंह ने पूछा. सभी ने अपनी गरदन इंकार में हिलाते हुए एक स्वर में कहा, ‘‘साहब, यह हमारी साइकिल नहीं है.’’

इस के बाद थानाप्रभारी मोहनलाल ने अपनी जेब से चाबी निकाल कर जसविंदर को देते हुए कहा, ‘‘जरा देखो तो यह चाबी इस साइकिल के ताले में लगती है या नहीं ’’

जसविंदर सिंह ने वह चाबी उस साइकिल के ताले में लगाई तो ताला झट से खुल गया. यह देख कर मोहनलाल की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने उस साइकिल के बारे में सब से पूछा. पर उस के बारे में कोई कुछ नहीं बता सका.

इसी पूछताछ के दौरान पुलिस की नजर सामने की दुकान पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी. पुलिस कैमरे की फुटेज निकलवा कर चैक की तो पता चला कि घटना वाले दिन शाम को करीब पौने 7 बजे एक युवक वहां साइकिल खड़ी कर के पाली की बिल्डिंग में गया था. इस के लगभग 25 मिनट बाद वही युवक घबराया हुआ तेजी से बिल्डिंग के बाहर आया और साइकिलों से टकरा कर नीचे गिर पड़ा. फिर झट से उठ कर अपनी साइकिल लिए बगैर ही चला गया.

पुलिस ने वह फुटेज मृतक के भाई सरवन को दिखाई तो सरवन ने उस युवक को पहचानते हुए कहा, ‘‘यह तो मेरे ताऊ का बेटा अशोक मंडल है.’’

‘‘अशोक मंडल कल शाम तुम्हारे कमरे पर आया था क्या ’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, जब से भैया (मृतक) से इन का झगड़ा हुआ है, तब से यह हमारे कमरे पर नहीं आते हैं और न ही हम दोनों भाई इन के कमरे पर जाते थे.’’ सरवन ने कहा.

इस के बाद जसविंदर ने मुखबिरों द्वारा अशोक मंडल के बारे में पता कराया तो उन का संदेह विश्वास में बदल गया. उन्होंने सिपाही को भेज कर अशोक मंडल को थाने बुलवा लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई तो हर अपराधी की तरह उस ने भी खुद को बेगुनाह बताया. उस ने कहा कि घटना वाले दिन वह शहर में ही नहीं था. लेकिन थानाप्रभारी मोहनलाल ने उसे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज दिखाई तो वह बगलें झांकने लगा.

आखिर उस ने सागर की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस का बयान ले कर पुलिस ने उसे सक्षम न्यायालय में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पुलिस रिमांड के दौरान अशोक मंडल से पूछताछ में सागर की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह अवैध संबंधों पर रचीबसी थी—

अशोक मंडल मूलरूप से बिहार के अररिया का रहने वाला था. कई सालों पहले वह काम की तलाश में लुधियाना आया. जल्दी से लुधियाना में उस का काम जम गया था. वह एक्सपोर्ट की फैक्ट्रियों में ठेके ले कर सिलाई का काम करवाता था. उसे कारीगरों की जरूरत पड़ी तो गांव से अपने बेरोजगार चचेरे भाइयों व अन्य को ले आया. सभी सिलाई का काम जानते थे, इसलिए सभी को उस ने काम पर लगा दिया.

अन्य लोगों को रहने के लिए अशोक ने अलगअलग कमरे किराए पर ले कर दे दिए थे, लेकिन सागर को उस ने अपने कमरे पर ही रखा. अशोक शादीशुदा था. कुछ महीने बाद जब रोटीपानी की दिक्कत हुई तो अशोक गांव से अपनी पत्नी राधा को लुधियाना ले आया.

राधा एक बच्चे की मां थी. उस के आने से खाना बनाने की दिक्कत खत्म हो गई. सभी भाई डट कर काम में लग गए थे. इस बीच सागर ने अपने छोटे भाई सरवन को भी लुधियाना बुला लिया था.

देवरभाभी होने के नाते सागर और राधा के बीच हंसीमजाक होती रहती थी, जिस का अशोक ने कभी बुरा नहीं माना. पर देवरभाभी का हंसीमजाक कब सीमाएं लांघ गया, इस की भनक अशोक को नहीं लग सकी, दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे.

सागर कभी बीमारी के बहाने तो कभी किसी और बहाने से घर पर रुकने लगा. चूंकि अशोक ठेकेदार था, इसलिए उसे अपने सभी कारीगरों और फैक्ट्रियों को संभालना होता था. इस की वजह से वह कभीकभी रात को भी कमरे पर नहीं आ पाता था. ऐसे में देवरभाभी की मौज थी.

लेकिन इस तरह के काम ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. अशोक ने एक दिन दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय उसे गुस्सा तो बहुत आया, पर इज्जत की खातिर वह खामोश रहा. सागर और राधा ने भी उस से माफी मांग ली. अशोक ने उन्हें आगे से मर्यादा में रहने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

अशोक ने पत्नी और चचेरे भाई पर विश्वास कर लिया कि अब वे इस गलती को नहीं दोहराएंगे. पर यह उस की भूल थी. इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उस ने दोनों को फिर से रंगेहाथों पकड़ लिया. इस बार भी सागर और राधा ने उस से माफी मांग ली. अशोक ने भी यह सोच कर माफ कर दिया कि गांव तक इस बात के चर्चे होंगे तो उस के परिवार की बदनामी होगी.

लेकिन जब तीसरी बार उस ने दोनों को एकदूजे की बांहों में देखा तो उस के सब्र का बांध टूट गया. इस बार अशोक ने पहले तो दोनों की जम कर पिटाई की, उस के बाद उस ने सागर को घर से निकाल दिया. अगले दिन उस ने पत्नी को गांव पहुंचा दिया. यह अक्तूबर, 2016 की बात है.

अशोक से अलग होने के बाद सागर ने अपने छोटे भाई सरवन के साथ पाली की बिल्डिंग में किराए पर कमरा ले लिया. वह गांधीनगर स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था. बाद में उस ने उसी फैक्ट्री में सिलाई का ठेका ले लिया. वहीं पर उस का छोटा भाई सरवन भी काम करने लगा.

सागर को घर से निकाल कर और पत्नी को गांव पहुंचा कर अशोक ने सोचा कि बात खत्म हो गई, पर बात अभी भी वहीं की वहीं थी. शरीर से भले ही देवरभाभी एकदूसरे से दूर हो गए थे, पर मोबाइल से वे संपर्क में थे.

अशोक को जब इस बात का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया. समझदारी से काम लेते हुए उस ने सागर को समझाया पर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया.

अब तक गांव में भी उन के संबंधों की खबर फैल गई थी. लोग चटखारे लेले कर उन के संबंधों की बातें करते थे. गांव में अशोक के घर वालों की बदनामी हो रही थी. इस से अशोक बहुत परेशान था. वह सागर को एक बार फिर समझाना चाहता था.

9 अप्रैल, 2017 की शाम को फोन कर के उस ने सागर से पूछा कि वह कहां है  सागर ने उसे बताया कि वह छत पर है. अशोक अपने कमरे से साइकिल ले कर सागर को समझाने के लिए निकल पड़ा. नीचे स्टैंड पर साइकिल खड़ी कर उस में ताला लगा कर वह सीधे छत पर पहुंचा.

इत्तफाक से उस समय सागर फोन से अशोक की बीवी से ही बातें कर रहा था. उस की पीठ अशोक की तरफ थी. सागर राधा से अश्लील बातें करने में इतना लीन था कि उसे अशोक के आने का पता ही नहीं चला.

अशोक गया तो था सागर को समझाने, पर अपनी पत्नी से फोन पर अश्लील बातें करते सुन उस का खून खौल उठा. वह चुपचाप नीचे आया और बाजार से सब्जी काटने वाला चाकू खरीद कर सागर के पास पहुंच गया. कुछ करने से पहले वह एक बार सागर से बात कर लेना चाहता था.

उस ने सागर को समझाने की कोशिश की तो वह उस की बीवी के बारे में उलटासीधा बोलने लगा. फिर तो अशोक की बरदाश्त करने की क्षमता खत्म हो गई. उस ने सारे रिश्तेनाते भुला कर अपने साथ लाए चाकू से सागर पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. वार इतने घातक थे कि सागर लहूलुहान हो कर जीने पर गिर पड़ा.

सागर के गिरते ही अशोक घबरा गया, क्योंकि वह कोई पेशेवर अपराधी तो था नहीं. उसी घबराहट में वह अपनी साइकिल उठाए बिना ही भाग गया.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने अशोक से वह चाकू बरामद कर लिया था, जिस से उस ने सागर की हत्या की थी. रिमांड अवधि खत्म होने पर अशोक को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लव यू ! रेस्ट इन पीस : प्यार का अंत

3 जुलाई, 2017 को आतिश नाइक पत्नी तनुजा के साथ अपने गांव वरड़गांव आया था. तनुजा को घर में ही छोड़ कर वह दोपहर को होटल से खाना लाने गया तो शाम तक नहीं लौटा. इस बीच तनुजा भी घर से बाहर नहीं निकली तो पड़ोस में रहने वाली आतिश की चाची मोहिनी को चिंता हुई. क्या बात है, जानने के लिए उन्होंने आतिश के मोबाइल पर फोन किया तो उस का फोन बंद था.

उन्होंने आतिश के घर का दरवाजा खटखटाया तो अंदर से कोई आवाज नहीं आई. किसी अनहोनी की आशंका से उन का दिल बैठने लगा. जब आतिश से संपर्क नहीं हो सका और तनुजा ने भी दरवाजा नहीं खोला तो घबरा कर मोहिनी ने गोवा के मडगांवराय में रहने वाली आतिश की बहन को फोन कर के यह बात बता दी.

चाची की बात सुन कर आतिश की बहन घबरा गई. उस ने भी भाई को फोन किया, लेकिन संपर्क नहीं हो सका. इस के बाद वह पति के साथ वरड़ गांव के लिए रवाना हो गई. गांव पहुंच कर आतिश की बहन दूसरी चाबी से घर का ताला खोल कर अंदर दाखिल हुई तो वहां का मंजर देख उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. अंदर की स्थिति हैरान कर देने वाली थी. उस ने तुरंत पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी.

घटनास्थल चूंकि फोंडा पुलिस थाने के अंतर्गत आता था. पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना फोंडा को मिली तो थानाप्रभारी सुदेश आर. नाइक तुरंत इंसपेक्टर परेश सिनारी, नितिन हरर्णकर आदि के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल थाने से ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए पुलिस टीम 20 मिनट में वहां पहुंच गई. तब तक गांव के तमाम लोग इकट्ठा हो चुके थे.

पड़ोस में रहने वाली आतिश नाइक की चाची मोहिनी नाइक ने पुलिस को बताया कि आतिश अपनी पत्नी तनुजा के साथ उसी दिन सुबह करीब 8 बजे आया था और उन से अपने घर की चाबी ले गया था. घर के अंदर जाने के बाद दोनों के बीच कहासुनी होने लगी थी. पता नहीं वे किस बात पर झगड़ रहे थे. उन के लड़नेझगड़ने की आवाजें घर के बाहर तक आ रही थीं. पतिपत्नी के बीच इस तरह की कहासुनी होती रहती है, इसलिए उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था.

society

दोपहर करीब 12 बजे वह आतिश और तनुजा को खाने के लिए बुलाने गईं तो आतिश दरवाजे पर ताला लगा कर कहीं जा रहा था. उन्होंने उस से खाने के लिए पूछा तो उस ने कहा, ‘‘तनुजा नानवेज खाना चाहती है, इसलिए होटल से नानवेज लाने जा रहा हूं. तनुजा सोई हुई है, इसलिए दरवाजे पर ताला लगा दिया है.’’

दोपहर का गया आतिश शाम तक लौट कर नहीं आया तो उन्होंने यह बात आतिश के बहनबहनोई को बता दी. पुलिस टीम घर में दाखिल हुई तो कमरे में खाट पर तनुजा की लाश सीधी अवस्था में पड़ी थी. उस के सीने पर एक तकिया रखा था.

इस से लगा कि तनुजा की हत्या उसी तकिए से की गई थी. तकिए के बीचोबीच एक दिल बना था, जिस में ‘लव यू’ लिखा था. इस के अलावा तकिए के एक कोने में ‘रेस्ट इन पीस’ लिखा हुआ था. कातिल ने लव यू लिख कर अपने मन का दर्द जाहिर किया था और रेस्ट इन पीस लिख कर शांति से आराम करने को कहा था. शायद हत्या करने वाला मृतका से काफी दुखी था.

सूचना पा कर एसपी कार्तिक कश्यप और डीएसपी सुनीता सावंत भी घटनास्थल पर आ गई थीं. इन्हीं के साथ फोरैंसिक टीम भी आई थी. फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो अधिकारियों ने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. इस के बाद जरूरी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया गया.

मोहिनी नाइक की ओर से हत्या का मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी. हत्या का शक आतिश नाइक पर था. लेकिन वह फरार था. उस का पता नहीं चल रहा था. उस का फोन भी बंद था.

पुलिस आतिश को खोज रही थी, तभी पता चला कि उस ने अपनी बहन और बहनोई को फोन कर के कहा है कि उसी ने तनुजा की हत्या की है और वह गांव आ रहा है. यह पता चलते ही पुलिस सतर्क हो गई. फोंडा बसअड्डा और आतिश के घर के आसपास पुलिस लगा दी गई.

फोंडा आने वाली हर बस पर पुलिस की नजर थी. एक बस से जैसे ही आतिश उतरा, पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. डीएसपी सुनीता सावंत के सामने उस से पूछताछ शुरू हुई तो उस ने बिना हीलाहवाली के तनुजा की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पत्नी की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

26 साल के आतिश नाइक के मातापिता की मौत तभी हो गई थी, जब वह 4 साल का था. मांबाप की मौत के बाद उसे गोवा के तटवर्ती इलाके मड़गांवराय में रहने वाली उस की बहन और बहनोई ने पालापोसा. आतिश की बहन और बहनोई जिस मोहल्ले में रहते थे, उसी मोहल्ले में तनुजा का भी परिवार रहता था.

वैसे तनुजा के घर वाले मूलरूप से कर्नाटक के कारवार शहर के रहने वाले थे. रोजीरोटी की तलाश में वे गोवा के मड़गांवराय आए थे. तनुजा और आतिश हमउम्र थे. चूंकि दोनों के परिवार आसपास रहते थे, इसलिए उन के बीच पारिवारिक संबंध थे. आतिश और तनुजा एक ही क्लास में पढ़ते थे, इतना ही नहीं दोनों स्कूल भी साथसाथ आतेजाते थे.

पढ़ाई के मामले में तनुजा आतिश से होशियार थी. आतिश का मन पढ़ाई में कम लगता था, नतीजा यह हुआ कि वह 10वीं में फेल हो गया. फेल होने के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी और अपने बहनोई के साथ धंधे में लग गया, जबकि तनुजा पढ़ती रही. आतिश ने पढ़ाई भले छोड़ दी थी, लेकिन उस का तनुजा से मिलनाजुलना बरकरार था.

दोनों ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उन्हें एकदूसरे से प्यार हो गया. उन के दिलों में प्यार के अंकुर फूटे तो वे एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में देखने लगे. उन्हें लगता था, जैसे वे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं. दोनों सारी मर्यादाओं को ताक पर रख कर साथसाथ पार्क, पिकनिक, सिनेमा और रेस्टोरेंट जाने लगे.

समय के साथ दोनों का प्यार बढ़ता गया. आतिश ने अपना खुद का कैटरिंग का काम शुरू कर दिया, जो अच्छा चल निकला. तनुजा ने भी अच्छे नंबरों से 12वीं पास कर ली. अब दोनों शादी के बारे में सोचने लगे. लेकिन जब इस बात की जानकारी तनुजा के घर वालों को हुई तो वे सन्न रह गए. जबकि आतिश के घर वालों पर इस बात का किसी तरह का कोई असर नहीं हुआ.

तनुजा के घर वाले उस के भविष्य को ले कर परेशान थे. उन्होंने तनुजा को आतिश से मिलनेजुलने से रोका. तनुजा ने घर वालों की बात पर ध्यान न देते हुए कहा, ‘‘आखिर आतिश में बुराई क्या है, हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. उस का कामधंधा भी ठीक चल रहा है.’’

तनुजा की इस बात पर उस के पिता ने कहा, ‘‘बेटा, उस में कोई बुराई नहीं है, लेकिन तुम यह क्यों नहीं समझतीं कि वह तुम्हारे काबिल नहीं है. वह 10वीं फेल है. तुम्हारा भविष्य और कैरियर दोनों उज्ज्वल हैं. तुम पढ़लिख कर आगे बढ़ सकती हो. तुम्हें अच्छी नौकरी और शादी के लिए अच्छा परिवार मिल सकता है. हम जो भी कह रहे हैं, तुम्हारे भले के लिए कह रहे हैं.’’

‘‘लेकिन पापा…’’ तनुजा अपनी बात पूरी कर पाती, उस के पहले ही उस के पिता ने कहा, ‘‘देखो बेटी, अब तुम बच्ची नहीं हो, 20-22 साल की हो गई हो. तुम खुद सोचसमझ सकती हो, मेरी भी कुछ मानमर्यादा है, समाज है. हम बस यही चाहते हैं कि तुम कोई ऐसा कदम मत उठाना, जिस से समाज और सोसायटी में मेरा और परिवार का सिर शर्म से झुक जाए.’’

तनुजा अजीब स्थिति में फंस गई थी. एक तरफ मातापिता और परिवार था तो दूसरी ओर प्यार था. कुछ दिनों तक तनुजा के दिलोदिमाग में मंथन चलता रहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. आखिर उस ने परिवार के बजाय प्यार को ज्यादा महत्त्व दिया और घर वालों से बगावत कर के सन 2015 में आतिश से प्रेम विवाह कर लिया. इस विवाह में आतिश का पूरा परिवार उस के साथ था, जबकि तनुजा के परिवार का कोई भी सदस्य शादी में शामिल नहीं हुआ था. विवाह के बाद दोनों किराए का मकान ले कर रहने लगे. दोनों काफी खुश थे. उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं थी. आतिश अपने काम में रम गया तो तनुजा ने गृहस्थी संभाल ली.

लेकिन तनुजा जल्द ही घरगृहस्थी के कामों से ऊब गई. आतिश के काम पर जाने के बाद वह घर में अकेली रह जाती थी, जिस से उस का मन नहीं लगता था. ऐसे में उस ने आगे की पढ़ाई करने का फैसला लिया. उस के इस फैसले पर आतिश ने भी मोहर लगा दी. उस ने मड़गांवराय के एक कालेज में तनुजा का दाखिला करा दिया.

दाखिला होने से तनुजा बहुत खुश हुई. आतिश उस की पढ़ाई में हर तरह से सहयोग कर रहा था. लेकिन समय के साथ दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. इस की वजह यह थी कि तनुजा अब कालेज के माहौल में रम गई थी. उस का आचारविचार और व्यवहार बदल गया था.

उस के कई नए दोस्त और सहेलियां बन गई थीं. वह उन के बीच समय भी बिताने लगी थी. घर और आतिश के प्रति वह लापरवाह हो गई थी. कालेज से घर आने के बाद भी वह घंटों मोबाइल से चिपकी रहती, बिना बताए यारदोस्तों के साथ पार्टी और पिकनिक पर चली जाती.

यह सब देख कर आतिश के मन में तरहतरह के सवाल उठने लगे. वह उस पर शक करने लगा. उसे डर लगने लगा कि कहीं वह तनुजा को खो न दे. अपने इस डर को दूर करने के लिए जब भी वह उस से बात करने की कोशिश करता, तनुजा उस पर बरस पड़ती और ताने मारने के साथसाथ उस का अपमान भी करने से नहीं चूकती.

कभीकभी वह यह भी कह देती कि मेरे मांबाप ठीक ही कहते थे कि तुम मेरे लायक नहीं हो. पता नहीं मुझे क्या हो गया था कि मैं ने तुम जैसे कम पढ़ेलिखे से विवाह कर लिया. मेरा एहसान मानने के बजाय तुम मुझ पर संदेह करते हो. न तुम्हारे पास कोई अच्छी सर्विस है और न ही भविष्य उज्ज्वल है. इस के बावजूद मैं तुम पर भरोसा करती हूं, पर तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है.

दोनों के बीच विवाद बढ़ जाता तो तनुजा लड़झगड़ कर कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली जाती. कुछ दिनों बाद आतिश ससुराल जा कर उसे मना कर ले आता. मातापिता के समझाने के बाद तनुजा का रवैया कुछ दिनों तक तो ठीक रहता, लेकिन फिर वैसा ही हो जाता. धीरेधीरे तनुजा का व्यवहार और ताने आतिश की बरदाश्त से बाहर होते गए.

पहली जुलाई, 2017 को तनुजा कालेज से काफी देर से घर आई. घर आते ही वह मोबाइल फोन से चिपक गई तो आतिश का धैर्य जवाब दे गया. उसे यकीन हो गया कि उस का किसी से अफेयर चल रहा है. उस ने उस से कालेज से देर से आने और आते ही फोन करने के बारे में पूछा तो वह ठीक से जवाब देने के बजाय उसे ही चुप कराने लगी. इस से आतिश का रहासहा धैर्य भी जवाब दे गया. उस ने उसी समय एक खतरनाक फैसला ले लिया.

3 जुलाई, 2017 को आतिश गांव घुमाने के बहाने तनुजा को वहां ले गया. उसे मालूम था कि गांव वाले घर की एक चाबी चाची मोहिनी के पास रहती है. चाची ही उस के घर और काश्तकारी की देखरेख करती थीं. गांव पहुंच कर आतिश ने बीती बातों का जिक्र फिर से छेड़ दिया. वह उस पर कालेज छोड़ने और दोस्तों से ज्यादा बातें न करने का दबाव बनाने लगा, जबकि तनुजा यह नहीं चाहती थी. उसे अपनी कालेज लाइफ भी देखनी थी.

वह कह रही थी कि उस के दोस्त सिर्फ दोस्त हैं. इस के अलावा उन का उस से कोई और रिश्ता नहीं है. लेकिन संदेह का कीड़ा आतिश के दिमाग में घुस कर कुछ इस तरह हावी हो गया था कि उस की सोचने और समझने की शक्ति खत्म हो गई थी. उसे अब तनुजा की किसी भी बात पर भरोसा नहीं हो रहा था, जिस की वजह से आतिश ने सोते समय तनुजा के मुंह पर तकिया रख कर उस की हत्या कर दी.

पत्नी की हत्या कर के वह कुछ देर तक बुत बना उसे देखता रहा. इस के बाद उस ने तनुजा के पर्स से लिपस्टिक निकाली और तकिए के कवर पर दिल का आकार बना कर उस के अंदर ‘लव यू’ और तकिए के एक कोने में ‘रेस्ट इन पीस’ लिख दिया. इस के बाद जब वह बाहर आ कर मुख्य दरवाजे पर ताला लगा रहा था, तभी उस की चाची मोहिनी आ गईं. उस ने चाची को बताया कि वह तनुजा के लिए होटल से नानवेज लाने जा रहा है.

आतिश वहां से सीधे कर्नाटक के वेलगांव में रहने वाले अपने एक दोस्त के यहां चला गया. लेकिन वहां उसे सुकून नहीं मिला. उस के सामने बारबार तनुजा का सुंदर चेहरा घूम रहा था. अगले दिन सुबह उस ने अपनी बहन को फोन कर के अपना गुनाह कबूल करते हुए कहा कि अब वह भी अपने जीवन का अंत करने जा रहा है, क्योंकि तनुजा के बिना उस के जीवन में कुछ नहीं बचा है.

उस के बहनबहनोई ने उसे समझाते हुए ऐसा करने से मना किया और उसे गांव लौट आने को कहा. उन के समझाने पर आतिश जब अपने गांव पहुंचा तो उस की ताक में बैठी पुलिस ने उसे पकड़ लिया. आतिश ने अपना अपराध स्वीकार कर के पूरी बात पुलिस को बता दी.

विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने आतिश के खिलाफ तनुजा की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में था. मामले की जांच थानाप्रभारी सुरेश नाइक कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तिनके की तरह बिखरा परिवार

21 जून, 2017 की सुबह करीब 6 बजे की बात है. पूर्वी दिल्ली के सीमापुरी थाना के एएसआई हीरालाल नाइट ड्यूटी पर थे. उन्हें पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि दिलशाद गार्डन के पी ब्लौक के फ्लैट नंबर-पी 13 में हिंसक वारदात हो गई है. मामले की सूचना दर्ज कर वह हैडकांस्टेबल कर्मवीर को साथ ले कर मोटरसाइकिल से घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल थाने से करीब एक किलोमीटर दूर था, इसलिए वह 10 मिनट के अंदर ही वहां पहुंच गए. फ्लैट के बाहर खड़े लोग कानाफूसी कर रहे थे. हीरालाल ने उन में से किसी से घटना के बारे में पूछा तो पता चला कि उस फ्लैट में रहने वाले विनोद बिष्ट ने अपनी पत्नी रेखा के ऊपर कातिलाना हमला किया है.

हीरालाल फ्लैट के अंदर पहुंचे तो उन्हें कमरे के फर्श पर खून ही खून फैला दिखाई दिया. वहां मौजूद लोगों ने उन्हें बताया कि गंभीर रूप से घायल रेखा और उस के बेटे विनीत को पीसीआर वैन गुरु तेगबहादुर (जीटीबी) अस्पताल ले गई है. घटनास्थल की निगरानी के लिए एएसआई हीरालाल ने हैडकांस्टेबल कर्मवीर को वहीं छोड़ दिया और खुद जीटीबी अस्पताल पहुंच गए.

अस्पताल पहुंचने पर उन्हें पता चला कि रेखा ने अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया था. उस के बेटे विनीत का इलाज चल रहा था. हीरालाल विनीत से मिले. उस ने बताया कि मां को बचाने की कोशिश में उस के पिता ने उस के ऊपर भी चापड़ से वार कर दिया था, जिस से उस की हथेली कट गई थी. उन्होंने घायल विनीत का बयान दर्ज कर लिया.

विनीत का बयान ले कर एएसआई हीरालाल ने घटना की सूचना थानाप्रभारी संजीव गौतम को फोन द्वारा दे दी. इस के बाद अन्य औपचारिक काररवाई पूरी कर के उन्होंने रेखा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जीटीबी अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया.

थानाप्रभारी संजीव गौतम ने घटना की जानकारी एसीपी हरेश्वर वी. स्वामी और डीसीपी नूपुर प्रसाद को दी और खुद घटनास्थल के लिए चल दिए. थानाप्रभारी विनोद बिष्ट के पड़ोसियों से घटना के संबंध में पूछताछ कर रहे थे, तभी क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम, एसीपी हरेश्वर वी. स्वामी के साथ डीसीपी नूपुर प्रसाद भी पहुंच गईं. दोनों अधिकारियों ने घटनास्थल का मुआयना किया और जीटीबी अस्पताल में भरती विनीत से मिलने पहुंच गए.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम ने घटनास्थल से सबूत जुटाए. विनीत से बात कर के साफ हो गया था कि घर के मुखिया विनोद बिष्ट ने ही वारदात को अंजाम दिया था, इसलिए पुलिस ने विनोद के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 324 के तहत मामला दर्ज कर लिया.

विनोद बिष्ट फरार हो चुका था. उस की गिरफ्तारी के लिए डीसीपी नूपुर प्रसाद ने एसीपी हरकेश्वर वी. स्वामी के निर्देशन में सीमापुरी थाने और स्पैशल स्टाफ की एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी संजीव गौतम, अतिरिक्त थानाप्रभारी जे.के. सिंह, एसआई राहुल, गौरव, एएसआई हीरालाल, हैडकांस्टेबल कर्मवीर, कांस्टेबल जगवीर एवं स्पैशल स्टाफ के एएसआई अशोक राणा आदि को शामिल किया.

society

अतिरिक्त थानाप्रभारी जे.के. सिंह ने आरोपी के भाई मदन बिष्ट को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. उस से विनोद के मोबाइल नंबर, दोस्तों के नाम तथा उस के छिपने के संभावित जगहों के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि वह पौड़ी गढ़वाल स्थित अपने पैतृक घर जा सकता है.

एसीपी के निर्देश पर पुलिस टीमों को बसअड्डों तथा रेलवे स्टेशनों पर भेजा गया, मगर विनोद पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा. पुलिस टीमें खाली हाथ लौट आईं. पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था. मुखबिर की सूचना पर अतिरिक्त थानाप्रभारी जे.के. सिंह अपनी टीम के साथ विनोद के फ्लैट के निकट पहुंच कर उस का इंतजार करने लगे.

कुछ देर बाद किसी ने बताया कि पार्क के पास एक आदमी छिपा बैठा है. पुलिस टीम ने वहां पहुंच कर उस आदमी को हिरासत में ले लिया. वह कोई और नहीं, विनोद बिष्ट ही था. उस की पीठ पर एक पिट्ठू बैग था. बैग की तलाशी ली गई तो उस में से एक खून सनी शर्ट और एक चापड़ बरामद हुआ. पुलिस टीम उसे ले कर थाने आ गई. थाने में जब विनोद से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर पत्नी की हत्या करने की जो वजह बताई, वह इस प्रकार थी—

मूलरूप से उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल का रहने वाला विनोद अपने परिवार के साथ पिछले 30 सालों से दिल्ली के दिलशाद गार्डन के पी ब्लौक में रह रहा था. उस के परिवार में पिता सतीश बिष्ट, माता शकुंतला देवी, भाई मदन बिष्ट, उस की पत्नी कुसुम और विनोद की पत्नी रेखा तथा 2 बेटे थे.

उस का बड़ा बेटा विनीत पढ़ने में ठीकठाक था. वह 10वीं में पढ़ रहा था, जबकि छोटा बेटा संचित छठीं कक्षा में पढ़ता था. विनोद की सन 2001 में रेखा से शादी हुई थी.

शादी के बाद से पतिपत्नी अपने फ्लैट में खुशहाल जीवन गुजार रहे थे. विनोद कृष्णानगर के गुरमीत टेंटहाउस में मैनेजर था, जहां उसे अच्छा वेतन मिलता था. किसी बात की कमी न होने के कारण उस के दोनों बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे थे.

विनोद की ड्यूटी अकसर रात में होती थी. ऐसे में वह सुबह घर लौटता था. छोटा भाई मदन बिष्ट अपने परिवार के साथ पड़ोस में ही रहता था. दोनों भाई दिल्ली में ही रह रहे थे. उन्हें गांव जाने का मौका न के बराबर मिलता था, इसलिए कुछ सालों पहले विनोद ने अपने मातापिता को भी अपने पास दिल्ली बुला लिया था.

विनोद के बड़े बेटे विनीत को 10वीं में अच्छे नंबर मिले थे. बेटे के अंक देख कर विनोद और रेखा काफी खुश थे और उस के भविष्य की रूपरेखा तय करने में जुटे थे.

वैसे तो विनोद और रेखा का दांपत्य ऊपर से शांत और स्वच्छ नजर आ रहा था. लेकिन हकीकत कुछ और थी. रेखा की उम्र 36 साल के आसपास थी. लेकिन मौडर्न लाइफस्टाइल और आकर्षक डिजाइनर कपड़ों में वह मुश्किल से 25 साल की लगती थी. वह रोजाना अपने छोटे बेटे को स्कूल छोड़ने जाती थी, जहां और भी कई बच्चों के मातापिता आते थे.

उसी कालोनी का रहने वाला विकास भी अपने बेटे को स्कूल छोड़ने जाता था. उसे रेखा बहुत अच्छी लगती थी. वह चोरीछिपे उसे निहारता रहता था. रेखा उसे इस तरह चोरीछिपे ताकते हुए देखती तो उसे मन ही मन अजीब सी खुशी मिलती. विकास ऊंची कदकाठी का तनदुरुस्त युवक था. शक्लसूरत अच्छी होने के साथ वह खुद को मेंटेन रखता था. कुछ दिनों तक रेखा ने उसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी. वह उस की नजरों को नजरअंदाज करती रही.

पर रेखा ज्यादा दिनों तक अपने इस रुख पर कायम नहीं रह सकी. विकास की चाहत ने उस के दिल में घंटी बजानी शुरू कर दी. वह भी कनखियों से उसे देखने लगी. एक दिन दोनों की नजरें मिलीं तो रेखा ने मुसकरा दिया. इस के बाद विकास की हिम्मत बढ़ गई. उस के समीप आ कर उस ने पूछा, ‘‘कहां से आती हैं आप?’’

रेखा ने भी उसे निराश नहीं किया. जवाब में उस ने कहा, ‘‘पी ब्लौक से.’’

इस के बाद दोनों इधरउधर की बातें करने लगे. जाते समय दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने मोबाइल नंबर दे दिए.

इस के बाद उन्हें जब भी मौका मिलता, अपने दिल की बातें कर लेते. रात को विनोद घर पर नहीं होता था और रेखा के बच्चों का बैडरूम अलग था. अकेली तनहाई में जब रेखा को नींद न आती तो वह मोबाइल पर विकास से मीठीमीठी बातें कर के अपने दिल की आग को शांत करने की कोशिश करती.

दोनों जवान और खूबसूरत होने के साथ एकदूसरे के प्रति आकर्षित थे. कुछ ही दिनों में दोनों ने मोबाइल पर समय तय कर के  मिलना शुरू कर दिया. रेखा को घर के कामकाज से बाहर जाना ही पड़ता था. ऐसे में वह विकास को फोन कर देती थी. विकास उस से मिलने आ जाता था.

मुलाकातों का सिलसिला चल निकला तो दोनों करीब आ गए और उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. इस के बाद रेखा के स्वभाव में परिवर्तन यह आ गया कि उस ने पति की ओर ध्यान देना बंद कर दिया.

रेखा के बदलते रंगढंग देख कर विनोद को उस पर शक होने लगा. वह दिन में घर पर ही रहता था, इसलिए उस ने उस की हरकतों पर नजर रखनी शुरू कर दी. एक दिन उस ने रेखा के मोबाइल फोन के सारे नंबर चैक किए. जब भी उसे कोई अंजान नंबर दिखाई दे दिया, उस ने पूरी तसल्ली के साथ उस नंबर के बारे में पूछा. रेखा निडर हो कर जवाब दे रही थी, पर विनोद महसूस कर रहा था कि रेखा उस से कुछ छिपा रही है.

शक की दीवार रिश्तों के बीच आई तो दांपत्य में कड़वाहट घुलने लगी. उन के बीच अविश्वास की खाई चौड़ी होती गई. परिणामस्वरूप अकसर दोनों के बीच किसी न किसी बात को ले कर लड़ाईझगड़ा होने लगा.

कुछ दिनों पहले विनोद के मातापिता पौड़ी गढ़वाल चले गए. इसी बीच एक दिन रेखा बेटे को स्कूल से लाने गई तो उसे विकास मिल गया. विकास से बातें कर रेखा अपने सारे दुख दूर कर लेती थी. वह विकास से बातें कर रही थी कि उस के मोबाइल पर विनोद का फोन आ गया. वह पति का फोन रिसीव कर उस से बातें करने लगी. बीचबीच में वह अपने साथ चल रहे प्रेमी विकास से भी बातें करती रही.

वह प्रेमी से जो बातें कर रही थी, उसे विनोद भी सुन रहा था. विनोद ने उन बातों को अपने फोन में रिकौर्ड कर लिया था. रेखा की इन बातों से विनोद समझ गया कि रेखा का जरूर किसी से संबंध है. वह घर आई तो विनोद ने बेटे को दूसरे कमरे में भेज कर रेखा को अपने पास बिठा कर मोबाइल की रिकौर्डिंग सुनाई. रिकौर्डिंग में कुछ ऐसी बातें भी थीं, जो कोई औरत अपने पति या प्रेमी से ही कर सकती थी.

society

रिकौर्डिंग सुन कर रेखा सन्न रह गई. विनोद ने उस दिन रेखा को जम कर पीटा. शाम को उस ने रेखा को नया मोबाइल नंबर दिला दिया, साथ ही उस ने उसे चेतावनी दी कि अब अगर उस ने उस से बात की तो ठीक नहीं होगा. फोन नंबर बदलने के कारण उस की प्रेमी से बात नहीं हो पा रही थी. इस की वजह यह थी कि विकास का नंबर उसे याद नहीं था और विनोद ने फोन से उस का नंबर डिलीट कर दिया था. रेखा को प्रेमी से बात किए बिना चैन नहीं मिल रहा था. इसलिए उस ने अपना नया नंबर विकास को दे दिया. वह फिर प्रेमी से मिलने लगी. यानी उस ने प्रेमी से मिलनाजुलना नहीं छोड़ा.

विनोद को जब पता चला कि रेखा अब भी प्रेमी से मिलती है तो उसे बहुत गुस्सा आया. उस ने रेखा से साफ कह दिया कि अगर उसे उस के साथ रहना है तो ठीक से रहे अन्यथा अपने प्रेमी के साथ रहने चली जाए. वह उसे कुछ नहीं कहेगा.

लेकिन रेखा भी अब ढीठ हो गई थी. उस ने विनोद की बात एक कान से सुनी अैर दूसरे से निकाल दी. लिहाजा उन के बीच कलह बढ़ने लगी. जब भी दोनों के बीच ज्यादा झगड़ा होता, रिश्तेदार बीचबचाव कर के सुलह करा देते. इस की वजह से घरेलू कलह का मामला कभी थाने तक नहीं पहुंचा.

20 जून, 2017 मंगलवार को दिलशाद गार्डन में स्थानीय साप्ताहिक बाजार लगा था. बाजार में रेखा को विकास मिल गया. दोनों आपस में बातें करने लगे. उसी बीच वहां विनोद पहुंच गया. उस ने रेखा और विकास को देखा तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. लेकिन गुस्से को काबू कर वह अपने फ्लैट पर आ गया. रेखा घर लौटी तो उस ने दोटूक कहा, ‘‘तुम अब मेरे साथ नहीं रह सकती. तुम मेरा घर छोड़ कर उसी कमीने के साथ रंगरलियां मनाने चली जाओ.’’

इस पर रेखा ने कहा कि वह घर छोड़ कर नहीं जाएगी और जो उस का मन करेगा, वही करेगी. पत्नी की बात सुन कर विनोद को गुस्सा तो बहुत आया, पर वह कुछ सोच कर गुस्से को पी गया.

अगले दिन छोटे बेटे को स्कूल से लाने के लिए विनोद खुद गया और उसे उस के ननिहाल छोड़ कर अकेला घर आया. विनोद का साला भी दिलशाद गार्डन में ही रहता था. रेखा ने बेटे को मायके में छोड़ आने की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. शाम को दोनों में काफी लड़ाई हुई. इस के बाद विनोद ड्यूटी पर कृष्णानगर चला गया. वहां वह रात भर शराब पीता रहा. योजना बना कर उस ने मीट काटने वाला चापड़ अपने बैग में छिपा कर रख लिया और सुबह 5 बजे घर पहुंचा.

योजना को अंजाम देने के लिए विनोद ने छोटे भाई के कमरे की कुंडी बाहर से बंद कर दी. इस के बाद उस ने रेखा से दरवाजा खोलने को कहा. जैसे ही रेखा ने फ्लैट का दरवाजा खोला, विनोद ने उसे मारना शुरू कर दिया. रेखा ने बेटे विनीत को बचाने के लिए आवाज दी. उसी समय विनोद ने छिपाया चापड़ निकाल लिया.

खतरा भांप कर रेखा बचने के लिए बाहर भागी, लेकिन विनोद चौकन्ना था. वह किसी कीमत पर रेखा को छोड़ना नहीं चाहता था. उस ने चापड़ से रेखा के सिर पर वार कर दिया. रेखा के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. वह वहीं फर्श पर गिर पड़ी.

विनीत ने मम्मी को बचाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो चापड़ उस के हाथ पर लग गया. पापा की इस हरकत से डर कर विनीत चाचा मदन को बुलाने बाहर भागा. उस गुस्से में विनोद ने रेखा के ऊपर 35 वार किए. विनीत चाचा के कमरे की बाहर से लगी कुंडी खोल कर उन्हें बुला लाया. रेखा की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए थे. लोगों को देख कर विनोद वहां से भाग निकला.

आनंद विहार के पास एक सुनसान पब्लिक टायलेट में जा कर उस ने अपना रक्तरंजित शर्ट बदला और उसे पिट्ठू बैग में रख लिया. दिन भर उस ने कौशांबी में गुजारा. शाम को उसे अपने घायल बेटे विनीत की चिंता हुई तो वह उस के बारे में जानने के लिए फ्लैट पर आ रहा था. वह अपने कपड़े और नकदी ले कर पौड़ी गढ़वाल भाग जाना चाहता था, लेकिन अतिरिक्त थानाप्रभारी जे.के. सिंह की टीम ने उसे फ्लैट पर पहुंचने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया.

22 जून को पत्नी के के हत्यारे विनोद को कड़कड़डूमा की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. आखिर रेखा की चरित्रहीनता ने एक हंसतेखेलते परिवार को बरबाद कर दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमी की आरजू : जब पत्नी ने किया पति का कत्ल – भाग 3

आरजू मन मसोस कर रह गई. उस ने दूसरे दिन मेहताब के दुकान पर जाने के बाद चुपके से अपने प्रेमी कासिफ को फोन मिलाया और अपना जिस्म मैला हो जाने की जानकारी देते हुए आंसू बहाए, ‘‘अगर तुम ने मुझ से तुरंत निकाह कर लिया होता तो मैं तुम्हारे लिए अछूती ही आती कासिफ, लेकिन तुम्हारी लापरवाही से मैं अपना दामन मैला कर बैठी.’’

‘‘यह तो होना ही था आरजू.’’ कासिफ गंभीर स्वर में बोला, ‘‘यदि तुम मुझे प्यार करती तो मेहताब के साथ निकाह को मना कर देती. अब उसे शौहर बनाया है तो उस के पहलू में सोना भी पड़ेगा और उस की हर बात माननी भी पड़ेगी.’’

‘‘यानी कुसूर मेरा ही है.’’ आरजू गुस्से में बोली, ‘‘लड़की होते तो देखती तुम अपने अम्मीअब्बू या उन की इज्जत की खातिर उन की बात मानते या नहीं. मैं ने बहुत इंकार किया था इस निकाह के लिए, लेकिन अम्मी ने अपनी इज्जत की दुहाई दी तो मुझे निकाह के लिए हां कहना पड़ा. फिर भी कहूंगी तुम्हारी वजह से ऐसा हुआ, तुम अच्छी नौकरी पा जाते तो मैं तुम से निकाह कर लेती.’’

‘‘गुस्सा मत करो यार, जो हुआ उसे मजबूरी समझ कर सह लो. मैं जल्दी ही तुम्हें अच्छी खबर दूंगा.’’ कासिफ ने समझाया तो लंबी सांस ले कर आरजू ने फोन काट दिया और घर के काम में लग गई.

आरजू ने 2-3 महीने तक अच्छी बहू बन कर दिखाया. फिर वह घर के काम में लापरवाही बरतने लगी. थोड़ाबहुत काम करती. मेहताब के जाने के बाद वह कमरा बंद कर के फोन से चिपक जाती. रुखसाना बाकी काम समेटती. रोजरोज ऐसा होने लगा तो रुखसाना ने एक दिन आरजू को टोक दिया, ‘‘बहू अब तुम रोटी पकाती हो और फोन ले कर कमरे में बंद हो जाती हो. यह क्या चल रहा है?’’

‘‘क्या चल रहा है!’’ आरजू ने हैरानी व्यक्त की, ‘‘रोटी तो पका रही हूं न.’’

‘‘बाकी काम तो मुझे करने पड़ रहे हैं बहू.’’ रुखसाना ने शिकायत की.

‘‘अच्छा तो है, यूं खाओगी और पड़ी रहोगी तो हाथपांव जाम हो जाएंगे. चौकाबरतन करने से आप के हाथपांव चलेंगे, सेहत भी ठीक रहेगी.’’

रुखसाना को उस की बातों से एक झटका सा लगा लेकिन वह गुस्सा पी कर बोली, ‘‘यह कमरे में बंद हो कर किस से बातें करती हो सारा दिन?’’

‘‘मेरी सहेलियां हैं. क्या उन से बात करना गुनाह है?’’ आरजू ने सास को घूरा, ‘‘आप के मन में कोई और संदेह हो तो बता दीजिए.’’

‘‘सहेलियों से एकदो घंटे ही बातें की जाती हैं बहू, दोपहर से शाम तक तो कोई बात नहीं करेगा.’’

‘‘मैं तो करूंगी, आप मुझे आज के बाद नहीं टोकना,’’ गुस्से में भर कर आरजू ने कहा और अपने कमरे में जा कर दरवाजा बंद कर लिया.

रुखसाना ने जब बरदाश्त से बाहर हो गया तो बेटे मेहताब को सब कुछ बता दिया. मेहताब अम्मी की बात सुन कर हैरत में पड़ गया. कई दिनों से आरजू के बदले हुए व्यवहार को वह भी देख रहा था, लेकिन खामोश था. अम्मी की बात सुन कर उस ने आरजू को समझाया कि वह घर का पूरा काम करे और फोन पर सहेलियों से बातें करना बंद कर दे.

आरजू इस पाबंदी पर भड़क गई. उस दिन मेहताब और रुखसाना से उस ने लड़ाई की. फिर ऐसा रोज होने लगा.

रुखसाना देखती. अब वह अपने लिए रोटी बनाती और कमरे में बंद हो कर किसी से हंसहंस कर बातें करती रहती.

मेहताब आरजू को जब समझा कर हार गया तो उस ने अपने ससुर इसलाम को बुला कर आरजू के रूखे व्यवहार और लड़ाईझगड़ा करने की बात बताई. इसलाम ने बेटी को 2 दिन तक समझाया, लेकिन आरजू के रुख में बदलाव नहीं आया. इसलाम लौट गया तो आरजू ने पहले से ज्यादा क्लेश करना शुरू कर दिया.

मेहताब और रुखसाना के बीच 29 अप्रैल, 2022 को दिन में कोई कहासुनी नहीं हुई. रात 11 बजे वह खाना खा कर कमरे में सोने चले गए और 30 अप्रैल को मेहताब अपने कमरे में नग्नावस्था में अचेत पड़ा मिला, अस्पताल ले जाने पर डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया.

इस की जांच थानेदार शेख सद्दाम हुसैन कर रहे थे. उन्हें मेहताब की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल चुकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मेहताब की मौत दम घुटने से हुई थी. चूंकि रात को मेहताब के साथ उस की पत्नी आरजू सोई थी, इसलिए सद्दाम हुसैन को उसी पर शक हो रहा था.

रुखसाना ने भी ज्वालापुर कोतवाल से अपनी बहू आरजू को बेटे की मौत का जिम्मेदार बता कर उस के खिलाफ उचित काररवाई करने की गुहार लगाई थी.

आखिर 6 मई को भादंवि की धारा 304 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस मामले में आरोपी आरजू को बनाया गया था.

आरजू अपने खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होते ही अपने मायके चली गई. इस से वह पूरी तरह शक के दायरे में आ गई. थानेदार शेख सद्दाम हुसैन उस की गिरफ्तारी के लिए कोर्ट से आदेश लेते, उस से पहले ही आरजू के अब्बू इसलाम ने उच्च अधिकारियों से मिल कर आरजू को निर्दोष बताते हुए मेहताब हत्याकांड की जांच थाना कनखल (हरिद्वार) से करवाने का आदेश पारित करा लिया.

थाना कनखल के थानेदार अभिनव शर्मा ने पूरी रिपोर्ट पढ़ने के बाद आरजू के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक की तो एक नंबर से आरजू की लंबीलंबी बातें होने की जानकारी मिली. जांच में वह नंबर ज्वालापुर में रहने वाले कासिफ का निकला. बाद में पता चला कि वह आरजू का प्रेमी था.

पुलिस ने उसे उठा लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि आरजू ने उसे पाने के लिए अपने पति मेहताब की हत्या मेहताब के मुंह पर तकिया रख कर खुद की है. वह उस वक्त अपने घर पर था. इस हत्या में उसका हाथ नहीं है.

पुलिस ने उसे बुलाए जाने पर थाने में उपस्थित होने की हिदायत दे कर छोड़ दिया. उस की आवाज रिकौर्ड कर ली गई थी. इस के आधार पर थानेदार अभिनव शर्मा ने कोर्ट से आरजू की गिरफ्तारी के लिए गैरजमानती वारंट हासिल कर लिया.

इस का पता चलते ही आरजू अपने मायके से फरार हो गई. पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी करने लगी. वह नहीं मिली तो उस पर 10 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर के उस पर सीआरपीसी की धारा 82 के तहत संपत्ति कुर्क करने का आदेश ले लिया.

इसलाम ने तीसरी बार विवेचना बदलवा दी. केस थाना राजीपुर पहुंच गया. यहां भी जांच में आरजू दोषी पाई गई. तब चौथी बार इसलाम ने यह जांच थाना कनखल पहुंचा दी. इस से मीडिया ने पुलिस को ही सवालों के घेरे में ले लिया.

एसएसपी अजय सिंह ने कोतवाली ज्वालापुर को निर्देश दिया कि आरजू को तुरंत गिरफ्तार किया जाए. पुलिस ने पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन आरजू लगातार पुलिस को छका रही थी. इस केस की जांच थाना कनखल के थानेदार बी.एल. भारती कर रहे थे. उन्होंने इस मुकदमे की धारा 304 बदल कर हत्या की धारा 302 कर दी.

10 महीने तक आरजू के गिरफ्तार न होने से मीडिया भी पुलिस पर सवाल खड़े कर रही थी.

इस मामले में सब से अहम बात यह रही कि मेहताब की अम्मी रुखसाना ने 10 महीने तक अधिकारियों, कोर्ट कचहरी और अलगअलग पुलिस थानों के चक्कर काटने के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के यहां 25 जनवरी, 2023 को गुहार लगाई, जिस का जल्द ही नतीजा सामने आ गया.

आखिर 31 जनवरी, 2023 को थानेदार बी.एल. भारती ने महिला थानेदार पूजा पांडे और महिला सिपाही रुचिता के साथ रुड़की से आरजू को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने आरजू से पूछताछ की तो उस ने पति मेहताब की हत्या की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक आरजू हरिद्वार जेल में बंद थी. कनखल थाने के थानेदार बी.एल. भारती कथा लिखने तक इस केस का आरोपपत्र कोर्ट में भेजने की तैयारी कर रहे थे.      द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमी की आरजू : जब पत्नी ने किया पति का कत्ल – भाग 2

रुखसाना उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के ज्वालापुर के मोहल्ला कैस्थवाड़ा में अपने परिवार के साथ रहती थी. काफी समय पहले रुखसाना के पति नवाबुद्दीन की मौत हो गई थी. रुखसाना के पास वह 2 बेटे और 2 बेटियां छोड़ गया था, जिसे रुखसाना ने जैसेतैसे चौकाबरतन का काम कर के पाला था.

बेटा मेहताब जब समझदार हो गया तो उस ने ज्वालापुर में प्लास्टिक के सामान की दुकान खोल कर घर खर्च की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा ली. रुखसाना घर में बैठ गई तो उस ने सुकून की सांस ली. अब वह अपने मेहताब का घर बसाने का सपना देखने लगी.

मेहताब बहुत मेहनती था, वह जो कमाता था, वह ला कर अपनी अम्मी के हाथ पर रख देता था. रुखसाना बहुत किफायत से घर चलाती और 2 पैसे बचा कर रखती. जब उस के हाथ में 2 पैसे जुड़ गए तो उस ने रिश्तेदारी में मेहताब के लिए लड़की देखने की चर्चा कर दी.

रुखसाना अपने होनहार बेटे मेहताब के लिए चांद सी बहू लाना चाहती थी. ऐसी बहू जो उस के बेटे मेहताब का पूरा खयाल रखे और घर की जिम्मेदारी भी संभाल ले. मेहताब के लिए अनेक रिश्ते आए, जो रुखसाना के मनपसंद नहीं थे. उसे रुड़की के मोहल्ला सत्ती में रहने वाले इसलाम की बेटी आरजू पसंद आई. रुखसाना ने 25 नवंबर, 2021 को मेहताब के सिर पर सेहरा बंधवा दिया.

आरजू घर में दुलहन बन कर आई तो सभी ने रुखसाना को बधाई दी कि वह अपने बेटे मेहताब के लिए चांद सी बहू तलाश कर के लाई है. रुखसाना के कंधे गर्व से और चौड़े हो गए.

आरजू ने आने के बाद घर की जिम्मेदारी संभाल ली, लेकिन उस ने मेहताब को अभी तक अपने जिस्म को छूने भी नहीं दिया है, यह न रुखसाना जानती थी न कोई रिश्तेदार. जानता था सिर्फ उस का पति मेहताब, लेकिन वह सब्र वाला इंसान था.

सुहाग सेज पर आरजू का जब मेहताब ने घूंघट पलटा था तो आरजू शरमाई, सकुचाई नहीं थी. उस ने बड़े प्यार से मेहताब के अपने कपड़ों की तरफ बढ़ते हाथ थाम कर कहा था, ‘‘देखो जी, मैं ने एक मन्नत मांग रखी है, वह मन्नत सवा महीने में पूरी होगी. तब तक आप मुझे पाकसाफ रहने दें. मैं आप को सवा महीने बाद पूरा प्यार दूंगी, यह मैं आप से वादा करती हूं.’’

मेहताब ने उस की भावनाओं की कद्र करते हुए अपनी इच्छाओं पर काबू पा कर उस रात से अपना बिस्तर नीचे बिछाना शुरू कर दिया था. उस ने यह बात अम्मी और यारदोस्तों से छिपा ली थी.

चौथे दिन पहली बार आरजू अपनी ससुराल से मायके फेरा लगाने के लिए गई तो वह काफी खुश थी. शायद इसलिए कि वह जैसी पाकसाफ अपने शौहर के घर गई थी, वहां से पाकसाफ ही अपने मायके में लौटी थी.

इस की वजह यह थी कि वह ज्वालापुर के ही रहने वाले कासिफ नाम के युवक से प्यार करती थी. वह उस का दूर का रिश्तेदार भी था. उस ने कासिफ से वादा किया था कि उस की शादी मेहताब से हो जरूर रही है, लेकिन वह उसे अपना तन छूने तक नहीं देगी.

मायके लौटते ही उस ने अपने प्रेमी कासिफ को फोन किया. मोबाइल स्क्रीन पर आरजू का नंबर चमका तो कासिफ खुशी से उछल पड़ा. वह रिसीव करते हुए चहका, ‘‘कैसी हो आरजू?’’

‘‘तुम बताओ, कैसी हो सकती हूं?’’ दूसरी ओर से आरजू की आवाज में शोखी भरी हुई थी.

कासिफ ने गहरी सांस भरी. वह एकदम उदास हो गया, ‘‘शौहर के घर गई हो तो रातें हसीन और यादगार ही गुजर रही होंगी तुम्हारी.’’

‘‘न रातें हसीन होने दी हैं मैं ने, न कोई यादों का पुलिंदा शौहर के लिए छोड़ा है. मैं जैसी गई थी, वैसी ही पाकसाफ अपने मायके आई हूं. मैं ने यही वादा किया था न तुम से.’’

‘‘अरे! तुम मायके भी आ गई.’’ कासिफ चौंकता हुआ बोला.

‘‘हां. मैं रुड़की में हूं.’’ आरजू ने बताया.

‘‘यह पाकसाफ वाला क्या चक्कर है, क्या तुम्हारा शौहर तुम्हारे काबिल नहीं है?’’ कासिफ ने उतावलेपन से पूछा.

‘‘वह काबिल है या नहीं, कह नहीं सकती. मैं ने उसे अपने बदन को हाथ ही नहीं लगाने दिया है.’’

‘‘रियली!’’ कासिफ खुश हो कर बोला.

‘‘हां, मैं ने वादे के मुताबिक अपने आप को तुम्हारे लिए बचा कर रखा है.’’ आरजू ने बड़ी संजीदगी से कहा, ‘‘तुम बताओ अब कब मुझ से निकाह करोगे?’’

‘‘मैं अभी नौकरी की तलाश कर रहा हूं आरजू. पहले मुझे अपने पैरों पर तो खड़ा हो जाने दो, फिर हम निकाह भी कर लेंगे.’’

‘‘कासिफ, अब मैं लंबा इंतजार नहीं कर सकती. मैं ने शौहर को सवा महीने के लिए खुद से दूर रखा है. सवा महीने बाद मेरे पास दूसरा महीना नहीं बचेगा.’’

‘‘ठीक है मेरी आरजू, मैं जल्दी नौकरी ढूंढ लेता हूं. फिर मैं और तुम एक छत के नीचे एकदूसरे की बांहों में सोएंगे.’’ कासिफ ने रोमांटिक अंदाज में कहा, ‘‘तुम ससुराल कब लौटोगी?

‘‘8-10 दिन बाद.’’

‘‘तो फिर मैं रुड़की आ जाता हूं तुम से मिलने.’’

‘‘आ जाओ, मैं इंतजार करूंगी.’’ आरजू के स्वर में मदहोशी थी.

एक हफ्ते में ही मेहताब आरजू को लिवाने के लिए अपनी ससुराल रुड़की पहुंच गया. आरजू के अरमानों पर पानी फिर गया, उसे उम्मीद नहीं थी कि मेहताब इतनी जल्दी उसे लेने आ धमकेगा. ससुर इसलाम ने पहली बार घर आए दामाद की खूब खातिरदारी की. फिर आरजू को उस के साथ भेजने की तैयारी कर दी.

आरजू अभी जाने के मूड में नहीं थी. लेकिन उस के पास इंकार करने के लिए कोई बहाना नहीं था. उसे मेहताब के साथ वापस कैस्थवाड़ा आना पड़ा.

आरजू ने एक अच्छी बहू का किरदार निभाते हुए घर की जिम्मेदारी संभाल ली. वह खाना बनाती, घर के दूसरे काम करती. रुखसाना को वह किसी भी काम में हाथ नहीं लगाने देती. रुखसाना अपनी बहू की तारीफ में कसीदे पढ़ती. पासपड़ोस में बहू की अच्छाइयों का बखान करती. रिश्तेदारी में कहती, ‘आरजू लाखों में एक है, उस की सेवा से वह बहुत खुश है.’

इधर सवा महीने तक मेहताब ने अपना वादा निभाया. वह आरजू से अलग चटाई पर सोया, लेकिन सवा महीना बीतते ही वह आरजू के पलंग पर आ गया. आरजू घबरा गई, अब क्या बहाना करती. मेहताब ने उसे जबरन अपनी बाहों मे भर कर अपनी सुहागरात मना डाली.

मेरा कसूर क्या था

3 जुलाई, 2017 की रात कोई 10 बजे अफजल का परिवार खापी कर सोने की तैयारी कर रहा था कि उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. उस समय मोबाइल अफजल की बीवी नूरी के पास था. नूरी ने देखा, फोन हाशिम का है. हाशिम उस का सगा भाई था. भाई का नंबर देख कर उस ने जैसे ही फोन रिसीव किया, दूसरी ओर से हाशिम ने घबराए स्वर में कहा, ‘‘बाजी, मेरी कार का ऐक्सीडेंट हो गया है. तुम्हारी भाभी की हालत बहुत नाजुक है. आप लोग जितनी जल्दी हो सके, आ जाइए.’’

इस के बाद हाशिम ने बहन को वह जगह बता दी, जहां ऐक्सीडेंट हुआ था. बहन को ऐक्सीडेंट की बात बता कर हाशिम ने अपने घर वालों को भी फोन कर के ऐक्सीडेंट की बात बता दी थी. भाई की बात सुन कर नूरी हक्काबक्का रह गई. उस ने तुरंत यह बात अफजल और घर के अन्य लोगों को बताई.

अफजल ने हाशिम के ऐक्सीडेंट की बात रिश्तेदारों को बताई और नूरी को साथ ले कर चल पड़ा. ये लोग वहां पहुंचते, जहां ऐक्सीडेंट हुआ था, उस के पहले ही हाशिम खुद कार चला कर एक निजी अस्पताल पहुंच गया था. डाक्टरों ने उस की पत्नी यानी शाहीन को तो मृत घोषित कर दिया था, जबकि उसे भरती कर के उस का इलाज शुरू कर दिया था.

भरती होने से पहले हाशिम ने घर वालों को शाहीन के खत्म होने की बात बता दी थी. हाशिम की कार को ही देख कर लगता था कि उस की किसी चीज से जबरदस्त टक्कर हुई थी. उस की कार का शीशा बुरी तरह से टूटा हुआ था. इस में उस की पत्नी शाहीन की मौत हो गई थी, जबकि उस के सिर में मामूली चोट आई थी.

शाहीन की मौत की खबर सुन कर उस के घर में मातम छा गया था. वह 3 भाइयों की एकलौती बहन थी. वह 3 महीने की थी, तभी उस की मां की मौत हो गई थी. शाहीन के अब्बू नसीम और भाइयों ने जैसेतैसे पालपोस कर उसे बड़ा किया था. यही वजह थी कि उस की मौत की खबर से उस के घर में कोहराम मच गया था.

society

ऐक्सीडेंट का मामला होने के बावजूद न तो हाशिम ने और न ही उस के घर वालों ने इस बात की सूचना पुलिस को दी थी. रिश्तेदारों के कहने पर शाहीन के घरवालों ने भी ऐक्सीडेंट मान कर बिना पोस्टमार्टम कराए ही 3 जुलाई, 2017 को उत्तराखंड के काशीपुर के मोहल्ला करबला बस्ती अल्लीखां स्थित रहमत शाह बाबा वाले कब्रिस्तान में शाहीन की लाश को दफना दिया था.

लेकिन शाहीन को दफन कर सभी घर आए तो उन्हें एक बात परेशान करने लगी कि शाहीन की मौत ऐक्सीडेंट से हुई थी तो उस का शरीर नीला क्यों पड़ गया था? नसीम अहमद अपनी लाडली बेटी शाहीन का जनाजा उठते देख फूटफूट कर रो पड़े थे. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन की जवान बेटी की मौत इस तरह होगी.

घर आ कर नसीम अहमद और उन के बेटे इसी बात को ले कर परेशान थे. अब उन्हें इस बात का अफसोस होने लगा था कि उन्हें जल्दबाजी में शाहीन को दफनाना नहीं चाहिए था. उन्हें संदेह हुआ तो सब ने निर्णय लिया कि शाहीन की मौत की सच्चाई का पता लगाना जरूरी है. उन्होंने तय किया कि पुलिस की मदद से लाश कब्र से निकलवा कर उस का पोस्टमार्टम कराया जाए.

फिर क्या था, अगले दिन अफजल घर वालों के साथ काशीपुर कोतवाली पहुंचा और बहन की हत्या की आशंका प्रकट करते हुए बहनोई हाशिम अली के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. उस ने पुलिस को बताया कि मौत के बाद शाहीन का शरीर नीला पड़ गया था, इसलिए उन्हें लगता है कि उस की मौत कार ऐक्सीडेंट में नहीं, बल्कि किसी अन्य वजह से हुई है. इसलिए अब वह उस की लाश को कब्र से निकलवा कर पोस्टमार्टम कराना चाहता है.

मामले को गंभीरता से लेते हुए कोतवाली प्रभारी चंचल शर्मा ने एसडीएम विनीत तोमर से बात की तो उन्होंने लाश को कब्र से निकालने की अनुमति दे दी. अनुमति मिलते ही चंचल शर्मा, एसआई पी.डी. जोशी और अन्य पुलिसकर्मियों के साथ जा कर मृतका शाहीन के सगेसंबंधियों की मौजूदगी में कब्रिस्तान में दफनाई शाहीन की लाश निकलवा कर बारीकी से निरीक्षण किया तो उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नजर नहीं आया.

इस से साफ हो गया कि शाहीन की मौत ऐक्सीडेंट से नहीं, बल्कि किसी अन्य वजह से हुई थी. पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया.

शक के आधार पर पुलिस ने उसी दिन मृतका शाहीन के पति हाशिम अली को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने घटनास्थल का भी निरीक्षण किया. घटनास्थल पर कोई ऐसा सबूत नहीं मिला कि कार किसी वाहन से या किसी पेड़ से टकराई हो. कार का अगला हिस्सा बिलकुल सहीसलामत था, सिर्फ उस का आगे का शीशा टूटा हुआ था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार शाहीन की मौत 36 से 72 घंटे पहले हो चुकी थी, जबकि हाशिम के अनुसार, कार का ऐक्सीडेंट हुए हुए अभी 24 घंटे भी पूरे नहीं हुए थे.

इस के बाद हाशिम अली शक के दायरे में आ गया. पुलिस को अब विसरा रिपोर्ट का इंतजार था. विसरा रिपोर्ट आई तो उस में साफ लिखा था कि मृतका की मौत जहर से हुई थी. फिर तो साफ हो गया कि हाशिम अली ने बीवी की हत्या कर उस की मौत को ऐक्सीडेंट में दिखाने की कोशिश की थी.

इस के बाद पुलिस ने हाशिम अली को बाकायदा गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने घटनास्थल के पास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी तो हाशिम की करतूत का खुलासा हो गया. फिर तो हाशिम के झूठ बोलने का सवाल ही नहीं रहा. उस ने शाहीन की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

काशीपुर के मोहल्ला कानूनगोयान में मोहम्मद नसीम अपने परिवार के साथ रहते थे. पत्नी की मौत के बाद उन के परिवार में 3 बेटे अशरफ, अफजल और जाकिर तथा एक बेटी शाहीन थी. जिस समय नसीम की पत्नी की मौत हुई थी, बच्चे छोटेछोटे थे. बेटी शाहीन तो मात्र 3 महीने की थी. इस के बावजूद उन्होंने दूसरी शादी नहीं की.

जैसेतैसे नसीम ने बच्चों को पाला. बेटे थोड़ा बड़े हुए तो उन के काम में हाथ बंटाने लगे. अशरफ और जाकिर इनवर्टर मरम्मत का काम करने लगे तो अफजल वैल्डिंग का काम करने लगा. शाहीन बड़ी हुई तो उस ने पढ़ने से साफ मना कर दिया, क्योंकि वह अब्बू और भाइयों की परेशानी देख रही थी, इसलिए पढ़ाई छोड़ कर उस ने घरगृहस्थी संभाल ली.

समय पर नसीम ने बेटों की शादी कर दी थी. घर में बहुएं आ गईं तो शाहीन का बोझ काफी कम हो गया. तीनों भाइयों की शादी होतेहोते शाहीन भी शादी लायक हो गई. नसीम उस के लिए लड़का ढूंढने लगे. काशीपुर के ही मोहल्ला अली खां में नसीम का साढू मोहम्मद अली रहता था. उस से नसीम के 2 रिश्ते थे. एक रिश्ते से वह उन का साढ़ू लगता था तो दूसरे रिश्ते से समधी. क्योंकि मोहम्मद अली की बेटी नूरी उन के बेटे अफजल से ब्याही थी.

ऐसे में ही कभी नसीम ने शाहीन की शादी की बात मोहम्मद अली से चलाई तो उस ने कहा, ‘‘अरे समधीजी, बेटी की शादी को ले कर इतना परेशान क्यों हो रहे हो? आप की बेटी के लायक एक लड़का मेरी नजर में है. आप जब चाहें, देख लें.’’

मोहम्मद अली का इतना कहना था कि नसीम लड़का देखने के लिए बेताब हो उठे. उन्होंने लड़का दिखाने को कहा तो मोहम्मद अली ने अपने बेटे हाशिम अली को बुला कर कहा, ‘‘हमारा हाशिम भी तो शादी लायक है, क्यों न आप अपनी बेटी की शादी इसी से कर दें.’’

हाशिम अली को देख कर नसीम को झटका सा लगा. उन्होंने कहा, ‘‘आप कह तो ठीक रहे हैं, लेकिन इस के लिए बच्चों से सलाह लेनी पड़ेगी. उस के बाद ही कोई निर्णय लूंगा.’’

नसीम ने बेटों से बात की तो सभी को यह रिश्ता ठीक लगा. हाशिम देखने में तो ठीकठाक था ही, वह रोजीरोजगार से भी था. उस की काशीपुर की मेनबाजार में जूतेचप्पलों की दुकान थी. उस की दुकान चलती भी ठीकठाक थी, इसलिए नसीम के बेटों ने हामी भर दी. इस के बाद दोनों परिवारों ने बैठ कर शाहीन और हाशिम अली की शादी तय कर दी.

शाहीन और हाशिम अली की शादी तय हो गई तो दोनों के घर वाले शादी की तैयारी में जुट गए. इस के बाद 28 जुलाई, 2007 को दोनों का निकाह हो गया तो शाहीन ससुराल आ गई.

शादी के कुछ दिनों बाद तक सब ठीकठाक चला. हाशिम शाहीन को दिल से प्यार करता था. कभी भी उस ने किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं दिया. उस की दुकान अच्छी चल रही थी, जिस से उसे अच्छी आमदनी हो रही थी. दुकान की ही कमाई से उस ने सैंट्रो कार भी खरीद ली थी.

आदमी की कमाई अच्छी हो तो वह पैसे भी खुले हाथों से लुटाता है. लेकिन अगर वही पैसा गलत कामों में लगने लगे तो कमाई का कोई मतलब नहीं रह जाता. ऐसा ही हाशिम अली के साथ हुआ. वह शराब पीने लगा. शराब के बाद उसे शबाब का शौक लग गया. गलत लोगों के साथ पड़ कर वह इस तरह बिगड़ गया कि दोनों हाथों से पैसे लुटाने लगा.

आए दिन हाशिम दोस्तों के साथ अय्याशी करने रामनगर जाने लगा. वहां वह महंगे होटलों में लड़कियों के साथ मौजमस्ती करता. इस से पैसे तो बरबाद हो रहे ही थे, दुकानदारी पर भी असर पड़ रहा था.

अब तक शाहीन के 2 बच्चे हो चुके थे, बेटी लाइवा और बेटा हमजा. पति की करतूतों का पता शाहीन को चला तो उसे बच्चों की चिंता सताने लगी. उस ने हाशिम अली को बहुत समझाया, पर पत्नी के समझाने का असर उस पर जरा भी नहीं हुआ. मजबूर हो कर शाहीन ने हाशिम की शिकायत अपने अब्बू और भाइयों से कर दी. नसीम ने हाशिम अली को अपने घर बुला कर समझाने की कोशिश की तो उस ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को झूठा बताया.

शाहीन ने सोचा था कि शिकायत करने से हाशिम अली डर कर सुधर जाएगा, लेकिन हुआ इस का उलटा. हाशिम अली शाहीन से खफाखफा रहने लगा. अब वह उस से ठीक से न बात करता और न उस के पास उठताबैठता. ठीक से दुकान पर न बैठने की वजह से कमाई भी कम हो गई थी. जबकि हाशिम अली के खर्च बहुत बढ़ गए थे.

इस स्थिति में मियांबीवी में तनाव रहने लगा. शाहीन का समझाना हाशिम अली को बुरा लगता था. इसी वजह से हाशिम ज्यादातर घर से बाहर ही रहने लगा. हाशिम को आपराधिक धारावाहिक काफी पसंद थे. बीवी की पाबंदियों से वह परेशान रहने लगा था. शाहीन अब उसे पत्नी नहीं, चुडै़ल नजर आने लगी थी. जिसे अब वह एक पल भी नहीं देखना चहता था.

शायद यही वजह थी कि आपराधिक धारावाहिक देखतेदेखते उस ने खुद अपराध करने का विचार कर लिया. वह जानता था कि अपराध का परिणाम अच्छा नहीं होता, लेकिन उसे लगता था कि वह इस तरह अपराध करेगा कि कोई उसे पकड़ नहीं पाएगा. यही सोच कर उस ने शाहीन को खत्म करने की योजना बना डाली.

योजना बना कर हाशिम शाहीन को अपने मकड़जाल में फंसाने लगा. अपना व्यवहार बदल कर वह शरीफ बन गया. वह शाहीन और बच्चों को प्यार करने का नाटक करने लगा. उस के इस बदलाव से शाहीन हैरान थी, लेकिन उसे खुशी भी थी. उस ने यह बात मायके वालों से बताई तो उन्हें भी खुशी हुई.

हाशिम में आए बदलाव को देख कर शाहीन के भाइयों ने उसे अलग मकान दिलाने का विचार किया. अफजल ने बहन के लिए पदमावती कालोनी में एक मकान खरीद दिया. बस इसी के बाद हाशिम ने षडयंत्र रचना शुरू कर दिया. शाहीन को विश्वास में ले कर उस ने समझाया कि कारोबार बढ़ाने के लिए उसे पैसों की जरूरत है. क्यों न वह अपने मकान पर कर्ज ले ले.

शाहीन ने इस बारे में अब्बू और भाइयों से सलाह ली तो हाशिम अली की बेहतरी के लिए सभी ने हां कर दी. इस के बाद हाशिम अली ने मकान पर 12 लाख रुपए कर्ज ले लिया.

हाशिम अली ने बिना किसी को बताए शाहीन का 8 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा करा दिया, जिस का नामिनी उस ने खुद को बनाया. इतना सब कर के वह निश्ंिचत हो गया. शाहीन को लग रहा था कि हाशिम अब पूरी तरह से सुधर गया है, जबकि वह कुछ और ही तैयारी कर रहा था.

संयोग से उसी बीच शाहीन ने हाशिम अली को किसी औरत से फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो दोनों में संबंध फिर बिगड़ गए. इस तरह हाशिम की योजना पर पानी फिर गया. शाहीन को कहीं से पता चला कि हाशिम के एक नहीं, कई औरतों से संबंध हैं तो दोनों के बीच तनाव काफी बढ़ गया.

अब रोज ही घर में क्लेश होने लगा. इस से हाशिम अली शाहीन को रास्ते का कांटा समझ कर उसे जल्दी निकालने की योजना बनाने लगा. उसे पूरा विश्वास था कि वह अपनी बनाई योजना में शाहीन को खत्म भी कर देगा और किसी को उस पर शक भी नहीं होगा. शाहीन के खत्म होते ही वह मालामाल हो जाएगा. उस के मकान और बीमे से मिलने वाली रकम से वह मौज करेगा.

अपनी उसी योजना के अनुसार, हाशिम अली दिल्ली माल लाने गया तो वहीं से जहर ला कर घर में रख लिया. अब वह मौके की तलाश में लग गया. 1 जुलाई, 2017 की रात किसी बात को ले कर पतिपत्नी के बीच बहस हो गई. हाशिम जानता था कि इस तरह उस की योजना सफल नहीं हो पाएगी. योजना को सफल बनाने के लिए उस ने शाहीन से माफी मांग कर कहा कि अब वह ऐसी गलती फिर कभी नहीं करेगा.

भोलीभाली शाहीन उसे अब तक न जाने कितनी बार माफ कर चुकी थी, इसलिए उस दिन भी माफ कर दिया. अगले दिन यानी 2 जुलाई, शनिवार को हाशिम अली शाहीन और बच्चों को कार से घुमाने ले गया. दरअसल घुमाने के बहाने वह ऐसी जगह देखने गया था, जहां अपनी योजना को अंजाम दे सके. पहले रामनगर रोड पर गया, उस के बाद वह दढि़याल वाली रोड पर गया.

अपना काम करने के लिए दढि़याल वाली रोड उसे ज्यादा उचित लगी, क्योंकि रात को वह सुनसान हो जाती थी. जगह देख कर वह वापस आ गया. घर आ कर शाहीन बच्चों और हाशिम अली को खाना खिला कर घर के काम निपटाने लगी.

उसी बीच हाशिम अली ने कोल्डड्रिंक की बोतल में दिल्ली से लाया जहर मिला कर रख दिया. काम निपटा कर शाहीन उस के पास आ कर बैठी तो उस ने प्यार जताते हुए फ्रिज से कोल्डड्रिंक की बोतल ला कर जहर वाली कोल्डड्रिंक शाहीन को थमा दी और दूसरी खुद ले ली.

जहर वाली कोल्डड्रिंक पी कर शाहीन का काम तमाम हो गया तो हाशिम ने उसे बिस्तर से उतार कर नीचे लेटा दिया और खुद बच्चों के पास जा कर लेट गया. सुबह 4 बजे उठ कर उस ने शाहीन की लाश को कार की डिक्की में रख कर अपने 5 साल के बेटे हमजा को बगल वाली सीट पर बैठा कर कहा कि उस की मम्मी रामनगर में है, वह उसे वहीं ले चल रहा है.

3 जुलाई, 2017 को पूरे दिन वह शाहीन की लाश को ठिकाने लगाने के लिए इधरउधर घूमता रहा, लेकिन दिन में उसे मौका नहीं मिला. रात 8 बजे वह दढि़याल वाली रोड पर पहुंचा तो सुनसान जगह पर कार रोक कर अंधेरे का फायदा उठाते हुए अगली सीट पर सो रहे बेटे को पिछली सीट पर लिटा दिया और कार की डिक्की खोल कर शाहीन की लाश को निकाल कर अगली सीट पर इस तरह बैठा दिया, जैसे वह सो रही हो.

इस के बाद हाशिम ने कार का अगला शीशा तोड़ दिया और कार को सड़क के किनारे इस तरह खड़ी कर दी, जैसे कोई वाहन वाला उस की कार को टक्कर मार कर चला गया हो. शाहीन मरी पड़ी थी. जरा सा झटका लगते ही उस का सिर टूटे शीशे से जा टकराया. अपनी योजना को अंजाम दे कर खुद को चोटिल दिखाने के लिए उस ने अपना सिर कार की बौडी पर पटक दिया.

इस तरह उस ने अपनी योजना को अंजाम दे दिया. घर वालों ने शव भी दफना दिया. लेकिन शाहीन के घर वालों को शक इस बात पर हुआ कि शाहीन की लाश नीली क्यों थी?

हाशिम को सुंदर और सुशील बीवी मिली थी. ससुराल भी अच्छी थी. उस के फूल से 2 सुंदर बच्चे भी थे. लेकिन शराब और शबाब के चक्कर में उस ने अपनी बसीबसाई गृहस्थी उजाड़ दी. पत्नी को मार कर वह जेल चला गया, जिस से उस के बच्चे अनाथ हो गए.

हाशिम के अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने अपराध संख्या 350/2017 पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. शाहीन के बच्चे अब अपने मामा अफजल के पास हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित