जिस्म की आग में मां बेटी ने खेला खूनी खेल

8 नवंबर, 2016 को किसी ने राजस्थान के बाड़मेर जिले के थाना पचपदरा पुलिस को फोन कर के सूचना दी कि मंडापुरा साजियाली फांटा के पास सड़क किनारे झाडि़यों में एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी जयकिशन सोनी पुलिस टीम के साथ सूचना में बताई गई जगह पर पहुंच गए. वहां बबूल की झाडि़यों में 25-26 साल के एक युवक की लाश पड़ी थी. उस के गले में रस्सी का फंदा लगा था. इस से यही लग रहा था कि उस की हत्या रस्सी से गला घोंट कर की गई थी. लाश के पास किसी आदमी के पैरों के निशान के साथ मोटरसाइकिल के टायरों के भी निशान थे.

पुलिस ने वहां पर मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की, पर मृतक को कोई भी पहचान नहीं सका. थानाप्रभारी ने अज्ञात युवक की लाश मिलने की सूचना बाड़मेर के एसपी डा. गगनदीप सिंगला और बालोतरा के एडिशनल एसपी कैलाशदान रतनू को भी दे दी थी.

कुछ ही देर में एसपी और एडिशनल एसपी भी मौके पर पहुंच गए. लाश का निरीक्षण कर उन्होंने भी वहां मौजूद लोगों से बात की. इस के बाद दोनों पुलिस अधिकारी थानाप्रभारी जयकिशन सोनी को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए बालोतरा के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया.

लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सलाहमशविरा कर के लाश के फोटो वाट्सएप ग्रुप में शेयर कर लोगों से शिनाख्त की अपील की. पुलिस की यह तरकीब काम कर गई और किसी ने उस की शिनाख्त कर दी. उस का नाम गोमाराम था और वह थाना धोरीमन्ना के गांव कोठाला के रहने वाले गुमानाराम का बेटा था.

जयकिशन सोनी ने गुमानाराम को बुलवाया तो उन्होंने बालोतरा अस्पताल जा कर लाश देखी और उस की शिनाख्त अपने बेटे गोमाराम के रूप में कर दी. शिनाख्त हो गई तो पोस्टमार्टम के बाद लाश घर वालों को सौंप दी गई. घर वालों ने पुलिस को बताया कि गोमाराम की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. इस से मामला और पेचीदा हो गया. पुलिस ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर केस की जांच शुरू कर दी.

एसपी डा. गगनदीप सिंगला ने इस केस को सुलझाने के लिए 2 पुलिस टीमें बनाई. पहली टीम में थाना नागाणा के थानाप्रभारी देवीचंद ढाका, एसपी (स्पेशल टीम) कार्यालय से भूपेंद्र सिंह तथा ओमप्रकाश और दूसरी टीम में कल्याणपुर के थानाप्रभारी चंद्र सिंह व उन के थाने के तेजतर्रार सिपाहियों को शामिल किया.

दोनों टीमों का निर्देशन एडिशनल एसपी कैलाशदान रतनू कर रहे थे. पुलिस ने मृतक के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि बाटाड़ू गांव का एक लड़का मृतक के साथ आताजाता रहता था. 2 महीने पहले वह गांव लुखू स्थित मृतक की ससुराल भी गया था.

उस युवक की पहचान गंगाराम निवासी दुर्गाणियों का तला, थाना लुंदाड़ा गिड़ा, के रूप में हुई. पुलिस ने 13 नवंबर, 2016 को उसे जोधपुर से धर दबोचा. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो सारा सच सामने आ गया.

उस ने बताया कि गोमाराम की हत्या में उस की पत्नी वीरो और सास जीतो भी शामिल थीं. पुलिस ने 14 नवंबर की सुबह उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों से पूछताछ के बाद गोमाराम की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

राजस्थान का बाड़मेर जिला जाट बाहुल्य है. यहां के लोगों का मुख्य पेशा खेतीकिसानी है. पहले राजस्थान में बालविवाह का प्रचलन था. दादादादी अथवा नानानानी की मौत होने पर मौसर (मृत्युभोज) की कड़ाही पर नन्हें बच्चों का बालविवाह करने की परंपरा थी.

अक्षय तृतीया को भी हजारों की संख्या में बालविवाह किए जाते थे. इसी जिले के गांव कोठाला के रहने वाले गोमाराम का भी 15-16 साल पहले लुखू गांव के श्रवणराम चौधरी की बेटी के साथ बालविवाह हुआ था. उस समय वीरो की उम्र 4 साल थी, जबकि गोमाराम 10 साल का था.

घर वालों ने गुड्डेगुडि़यों के खेल की तरह छोटी सी उम्र में इन दोनों की शादी कर दी थी. इस से पहले गोमाराम की शादी अपनी ही बिरादरी की एक लड़की के साथ हो गई थी, पर गौना होने से पहले ही उस की बीवी टांके में डूब कर मर गई थी. राजस्थान में अंडरग्राउंड बने पानी के टैंक को टांका कहते हैं.

वक्त के साथ गोमाराम और वीरो जवान हो गए. दोनों ने घर वालों से सुन रखा था कि उन की बचपन में ही शादी हो चुकी है. गोमाराम ने स्कूली पढ़ाई के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी, जबकि वीरो जब 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी, तभी उस का गौना गोमाराम से कर दिया गया था.

वीरो ने अपने वैवाहिक जीवन को ले कर कई रंगीन ख्वाब देखे थे, मगर गौने के बाद जब गोमराम से उस का सामना हुआ तो उस के ख्वाब टूट गए. किसी सुंदरस्वस्थ युवक के बजाय उस का पति दुबलापतला और शराबी था. चूंकि उस के साथ उस की शादी हो चुकी थी, इसलिए निभाना उस की मजबूरी थी.

गोमाराम हर समय शराब के नशे में डूबा रहता था. पत्नी से जैसे उसे कोई लगाव ही नहीं था. वह तो केवल शराब को अपनी जरूरत समझता था. नईनवेली दुलहन का दुखसुख पूछना तो दूर, वह उस से रात में भी बात नहीं करता था. शराब पी कर वह बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क जाता था.

गौने के कुछ दिनों बाद ससुराल से वीरो जब मायके आई तो उस ने अपना दुखड़ा अपनी मां जीयो से कह सुनाया. उस ने साफसाफ कहा कि ऐसे शराबी के साथ वह जिंदगी कैसे गुजारेगी. बेटी की व्यथा सुन कर जीयो को भी महसूस हुआ कि बचपन में गोमाराम के साथ बेटी की शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी.

मां ने उसे दिलासा दी कि वक्त के साथ सबकुछ ठीक हो जाएगा. गौने के बाद वीरो स्कूल की गर्मियों की छुट्टियों में ससुराल गई. मगर पति की शराब की आदत में कोई सुधार नहीं आया. गौने के डेढ़ साल तक वह ससुराल में रही. उस ने अपने प्यार से पति का दिल जीतना चाहा, पर पति पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा.

वीरो ने मायके आ कर मां को सारी बातें बताईं तो बेटी का दुख देख कर जीयो को बड़ा झटका लगा. गोमाराम जोधपुर शहर की एक फैक्ट्री में नौकरी करता था. उस के साथ गंगाराम और उस का भाई चूनाराम भी काम करते थे. तीनों आपस में अच्छे दोस्त थे.

गोमाराम अपनी ज्यादातर कमाई शराब पर उड़ा देता था. वहीं गंगाराम और चूनाराम शराब को हाथ तक नहीं लगाते थे. वे अपनी तनख्वाह बचा कर रखते थे.  गोमाराम की बीवी वीरो पिछले 6 महीने से मायके में थी. गोमाराम कभीकभी उस से फोन पर बातें कर लेता था. वह उस से आने को कहती तो वह पैसे न होने का बहना कर देता. उस के पास पैसे होते भी कहां से, क्योंकि वह सारे पैसे शराब में उड़ा देता था.

एक बार पैसे न होने पर गोमाराम ने अपना मोबाइल चूनाराम को बेच दिया. चूनाराम ने वह मोबाइल अपने भाई गंगाराम को दे दिया. वीरो को यह बात पता नहीं थी, इसलिए जब उस ने पति को फोन किया तो फोन गंगाराम ने रिसीव किया. वीरो ने पूछा, ‘‘कैसे हो?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं. तुम कैसी हो?’’ गंगा ने पूछा.

उस की आवाज सुन कर वीरो चौंकी, क्योंकि एक तो वह आवाज उस के पति की नहीं थी, दूसरे पति ने कभी उस से इतनी तमीज से बात नहीं की थी. उस ने कहा, ‘‘यह नंबर तो गोमाराम का है, आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘मैं गोमाराम का दोस्त गंगाराम बोल रह हूं. उन का फोन मैं ने ले लिया है. आप इसी नंबर पर फोन करना, मैं गोमा से बात करा दूंगा.’’

‘‘बात क्या करनी है, उन्हें तो शराब पीने से ही फुरसत नहीं है. उन के लिए कोई मरे या जिए, उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है.’’ वीरो ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘आप सही कह रही हैं, उसे सचमुच किसी की परवाह नहीं है. आप को मायके गए कितने दिन हो गए, मिलने तक नहीं जाता. पता नहीं कैसा आदमी है. दिनरात शराब में मस्त रहता है.’’

‘‘बिलकुल सही कह रहे हैं आप.’’ वीरों ने लंबी सांस ले कर कहा.

इस बातचीत से गंगाराम समझ गया कि वीरो अपने पति से खुश नहीं है. इसलिए जब भी वीरो उस से बात करती, वह उस से बड़ी तहजीब से बातें करता.

गंगाराम की यही आदत वीरो को भा गई. वह अकसर उस से मोबाइल पर बातें करने लगी. उसे गंगारम ने बताया कि उस का बचपन में बालविवाह हुआ था. वीरो जब भी गंगाराम से बातें करती, उसे अपनेपन का अहसास होता.

थोड़े दिनों तक फोन पर होने वाली बातों से दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. वीरों ने अपनी मां जीयो को भी गंगाराम के बारे में बता दिया. जीयो ने भी गंगाराम से बात की. उसे भी गंगाराम का व्यवहार सही लगा. इस के बाद जीयो ने गंगाराम से कहा कि गोमाराम के साथ उस की बेटी खुश नहीं है. अगर वीरो का उस से तलाक हो जाए तो नाताप्रथा के तहत वह बेटी का ब्याह उस के साथ कर देगी.

इस बात से गंगाराम का दिल बागबाग हो उठा. वीरो ने भी गंगाराम से कहा कि वह गोमाराम का दोस्त है, उसे तलाक के लिए मनाए. एक दिन गोमा जब शराब के नशे में धुत था तो गंगाराम ने उस से कहा, ‘‘तुम वीरो का जीवन क्यों बरबाद कर रहे हो. उसे तलाक दे दो.’’

‘‘तलाक… मैं उसे इस जनम में तो तलाक नहीं दूंगा. वह अपने आप को बहुत सुंदर और होशियार समझती है. मुझे शराबी, निकम्मा और न जाने क्याक्या कहती है. इसलिए जीते जी मैं उसे तलाक नहीं दे सकता. वह शादीशुदा हो कर भी विधवा की तरह जीती रहे. बस मैं यही चाहता हूं?’’ गोमाराम ने कहा.

गंगाराम ने यह बात जब वीरो को बताई तो उस ने अपनी मां से बात की. इस के बाद उन्होंने गंगाराम को अपने गांव लुखू बुलाया. यह 2 महीने पहले की बात है. गंगाराम अपनी प्रेमिका वीरो से मिलने लुखू पहुंच गया. वहां पर गंगाराम और वीरो ने एकदूसरे को देखा.

दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया. बस फिर क्या था, मांबेटी ने गंगाराम से कहा कि वह गोमाराम से वीरो का तलाक करवा दे. अगर वह तलाक के लिए राजी न हो तो उसे रास्ते से हटा दे. गंगाराम को भी उन की बात पसंद आ गई.

गंगाराम गोमाराम को रास्ते से हटाने का मौका तलाशने लगा. वीरो और उस की मां की गंगाराम से अकसर मोबाइल पर बातें होती रहती थीं. दोनों उसे उकसाती रहती थीं कि जल्द से जल्द गोमाराम का पत्ता साफ करे. गंगाराम भी इसी धुन में था, मगर मौका नहीं मिल रहा था.

गोमाराम ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की बीवी और सास उस की हत्या का तानाबाना बुन रही हैं. वह तो अपनी मस्ती में मस्त था. आखिर 7 नवंबर, 2016 को गंगाराम को उस समय मौका मिल गया, जब दिन में ही गोमाराम उसे शराब के नशे में धुत मिल गया. इस मौके को भला वह हाथ से क्यों जाने देता.

उस ने रात होने का इंतजार किया. रात करीब 8 बजे गंगाराम ने अपनी मोटरसाइकिल पर गोमाराम को बिठाया और गांव चलने को कहा. गोमाराम उस मना नहीं कर सका. बालोतरा रोड पर मोटरसाइकिल पहुंची तो रास्ते में भांडू गांव के ठेके से गंगाराम ने शराब की बोतल खरीद कर गोमाराम को दी. एक जगह बैठ कर वह उसे पी गया. इस के बाद दोनों ने कल्याणपुर के एक ढाबे पर खाना खाया.

गंगाराम को लग रहा था कि गोमाराम अभी भी होश में है. उस ने पचपदरा में जोधपुर रोड पर उसे फिर शराब पिलाई. इस से उसे गहरा नशा हो गया. मोटरसाइकिल के पीछे बैठ कर वह लहराने लगा. गंगाराम इसी मौके की ताक में था. वह गोमा को मोटरसाइकिल से उतार कर बबूल की झाडि़यों के बीच ले गया और वहीं उस का गला दबा कर मार डाला. लाश को वहीं पड़ी छोड़ कर वह मोटरसाइकिल से जोधपुर चला गया.

गंगाराम ने गोमाराम की हत्या करने की बात वीरो तथा जीयो को बता दी थी. वीरो खुश थी कि अब गंगाराम से वह नाता के तहत ब्याह कर लेगी. गंगाराम भी यही सोच रहा था. मगर पुलिस ने उन के मंसूबों पर पानी फेरते हुए 5 दिनों में इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 16 नवंबर, 2016 को तीनों को पचपदरा की कोर्ट में पेश किया, जहां से वीरो और जीयो को केंद्रीय कारागार जोधपुर और गंगाराम को बालोतरा जेल भेज दिया गया. क्योंकि बालोतरा जेल में महिलाओं को रखने की जगह नहीं है. इस मामले में भी वही हुआ, जो ऐसे मामलों में होता है. थानाप्रभारी जयकिशन सोनी इस मामले की जांच कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

महबूबा के लिए बेटे ने कर दिया मां का कत्ल

पुराने भोपाल में बन्ने मियां और उन की पत्नी जमीला का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं था. उन्हें वहां हर कोई जानता था. बन्ने मियां की इमेज एक भाजपा समर्थक मुसलमान नेता की थी. वह आपातकाल के समय गिरफ्तार कर के जेल भी भेजे गए थे. वह बड़ी शान से खुद को मीसाबंदी बताते हुए जेल के उस समय यानी सन 1975 के किस्से लोगों को सुनाते रहते थे कि कांग्रेसी शासनकाल में हम नई आजादी के सिपाहियों पर किसकिस तरह के जुल्मोसितम ढाए गए थे.

48 साल की जमीला बेगम उन की दूसरी पत्नी थीं. वह भी राजनीति में जरूरत के हिसाब से सक्रिय रहने वाली महिला थीं और कदकाठी से भी काफी मजबूत थीं. उन की इमेज झुग्गीझोपड़ी की राजनीति करने वाली औरत की थी, जो अपने पति की पहुंच और रसूख के दम पर झुग्गीझोपड़ी का कारोबार भी करती थी. इस काम से उन्होंने खासा पैसा बनाया था. हालांकि पैसों की कमी उन्हें वैसे भी नहीं थी, क्योंकि बन्ने मियां खानदानी आदमी थे. उन्हें विरासत में ही कोई 25 एकड़ जमीन मिली थी, जिस की कीमत अब करोड़ों में थी.

दूसरी शादी कर के बन्ने मियां गौतमनगर थाना इलाके के इंदिरानगर में रहने लगे थे. जमीला से उन्हें एक बेटा अमन था, जो अब 22 साल का बांका जवान हो चुका था. बन्ने मियां की पहली बीवी अपने 4 बच्चों के साथ गांधीनगर इलाके में रहती थी. उन के बच्चों में से एक बेटा अपराधी प्रवृत्ति का था. जिंदगी में कई उतारचढ़ाव देखने वाले बन्ने मियां यह कहने का हक तो रखते ही थे कि मियां ऊपर वाले के फजल से सब कुछ है मेरे पास, किसी चीज की कमी नहीं है.

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा अब कहने भर का रह गया है, जिस में पुराने जमाने के इनेगिने नेता ही सक्रिय हैं और इस इकाई को जैसेतैसे ढो रहे हैं. लेकिन उन्हें इस का अच्छाखासा फायदा मिल रहा है. बन्ने मियां और जमीला बेगम सियासत करते हुए तबीयत से भाजपाई राज में चांदी काट रहे थे. इन दोनों ने मिल कर अपना खासा समर्थक वर्ग भी तैयार कर रखा था.

30 नवंबर की दोपहर को अचानक जमीला बेगम की मौत की खबर आग की तरह फैली. दोपहर के वक्त इंदिरानगर में आमतौर पर औरतें और बच्चे ही होते थे. मर्द अपनेअपने काम पर निकल चुके होते थे. अमन ने तंग गली में बने अपने मकान के बाहर आ कर शोर मचाया तो वहां मौजूद तमाम औरतें अपना कामधंधा छोड़ कर जमीला के घर की ओर भागीं. हर एक की जुबान पर यही सवाल था कि क्या हुआ?

जवाब में घबराए अमन ने बताया कि अम्मी को करंट लगा है. औरतों ने देखा कि जमीला बेगम खाट पर लेटी थीं और उन के शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी. लिहाजा तुरंत नजदीक से औटो बुलवा कर उन्हें हमीदिया अस्पताल ले जाया गया. घर आई औरतों में कुछ औरतें हैरानी से घर की दीवारों को देख रही थीं कि जमीला को करंट लगा कैसे? यह सवाल अमन से किया गया तो वह घबराहट में कोई जवाब नहीं दे सका. औरतों ने भी उस की हालत देखते हुए ज्यादा कुरेदना ठीक नहीं समझा.

अलबत्ता, जमीला को जब औटो से ले जाया जा रहा था तो जरूर कुछ औरतों ने उस के बाएं कंधे के नीचे एक सुराख देखा था. लेकिन अस्पताल पहुंचने की जल्दबाजी में किसी ने इस बाबत सवाल नहीं किया. बन्ने मियां उस समय अपनी मीसाबंदियों वाली पेंशन लेने बैंक गए हुए थे. जैसे ही उन्हें बीवी की मौत की खबर मिली, वह भी भागेभागे हमीदिया अस्पताल पहुंचे. तब तक डाक्टरों ने जमीला का निरीक्षण कर उन्हें मृत घोषित कर दिया था. अस्पताल में खासी भीड़ जमा हो गई थी. जमीला बेगम के दफनाए जाने की यानी अंतिम संस्कार की बातें और तैयारियां दोनों शुरू हो गई थीं.

जमीला की मौत की खबर थाना गौतमनगर के थानाप्रभारी मुख्तार कुरैशी तक पहुंची तो वह तुरंत हरकत में आ गए. जमीला की मौत कुदरती नहीं, बल्कि संदिग्ध थी. यह बात उन्हें अपने सूत्रों से पता चल चुकी थी, साथ ही यह भी कि जमीला के घर वाले यानी खासतौर पर पति बन्ने मियां और बेटा अमन इस मौत को राज ही रखना चाहते हैं, इसलिए कफनदफन के इंतजाम में जुट गए हैं.

मुख्तार कुरैशी के लिए जमीला की मौत संदिग्ध इस लिहाज से भी थी कि 2 दिनों पहले ही ट्रैक्टर रखने को ले कर कुछ पड़ोसियों से जमीला का विवाद हुआ था. कुछ लोगों के खिलाफ जमीला ने थाने में शिकायत भी दर्ज करा रखी थी. कुरैशी नहीं चाहते थे कि किसी को कुछ कहने का मौका मिले, क्योंकि मामला एक भाजपा नेत्री की संदिग्ध मौत का था, जिस पर उचित काररवाई न करने पर बवाल भी मच सकता था. लिहाजा वह बगैर वक्त गंवाए हमीदिया अस्पताल पहुंच गए.

उन का शक सच निकला. जमीला बेगम के बाएं कंधे के नीचे सुराख था. लेकिन हैरान करने वाली बात यह थी कि खून का कहीं नामोनिशान नहीं था. कुरैशी ने तुरंत जमीला के कंधे पर बने सुराख का एक्सरे कराया तो इस बात की पुष्टि हो गई कि उन की मौत करंट लगने से नहीं, बल्कि गोली लगने से हुई थी. साफ हो गया कि यह हत्या का मामला था. एक्सरे रिपोर्ट से यह भी साफ हो गया था कि कंधे में धंसी गोली 318 बोर के कट्टे की थी.

जमीला के अंतिम संस्कार की बात अब खत्म हो गई थी और उन का पोस्टमार्टम शुरू हो चुका था. पोस्टमार्टम के बाद उन का शव घर वालों यानी बन्ने मियां और अमन को सौंप दिया गया. पूछताछ में पुलिस को अमन से कुछ हासिल नहीं हुआ. वह कभी करंट लगने की बात कहता था तो कभी यह शक भी जाहिर करता था कि मुमकिन है कि मम्मी को किसी ने घर में घुस कर गोली मारी हो, जिस का उसे पता नहीं चला, क्योंकि उस वक्त वह सो रहा था.

दूसरी ओर शहर में यह अफवाह फैल चुकी थी कि जमीला की हत्या की गई है, पर हत्यारे कौन हैं, इस का पता नहीं चल पा रहा है. पुलिस को अमन पर शक था, लेकिन उसे कातिल ठहराने की कोई ठोस वजह उन के पास नहीं थी. पूछताछ में पड़ोसियों से विवाद की बात भी सामने आई थी. उस से भी ज्यादा दिलचस्प लेकिन गंभीर बात यह भी उजागर हुई थी कि बन्ने मियां का पहली पत्नी से कुछ दिनों पहले ही जायदाद को ले कर झगड़ा हुआ था, जिस का एक बेटा अपराधी प्रवृत्ति का था. लिहाजा वह भी शक के दायरे में आ गया था.

आमतौर पर हत्या के ऐसे मामलों में पुलिस 1-2 दिन में ही असली कातिल तक पहुंच जाती है, लेकिन जमीला बेगम की हत्या पुलिस वालों के लिए गुत्थी बनती जा रही थी. पड़ोसियों से पूछताछ की गई तो झगड़े की बात तो उन्होंने स्वीकारी, लेकिन जमीला की मौत के तार उन से जुड़ नहीं पाए. बन्ने मियां की पहली बीवी और बच्चों से भी पूछताछ की गई, लेकिन कोई ऐसी वजह सामने नहीं आई, जिस से उन पर शक किया जाता.

कोई नतीजा न निकलते देख एसपी (नौर्थ) अरविंद सक्सेना ने यह मामला क्राइम ब्रांच के सुपुर्द कर दिया. अब मामला क्राइम ब्रांच के एएसपी शैलेंद्र सिंह के हाथ में आ गया, जो अपनी खास स्टाइल के चलते ऐसे ब्लाइंड मर्डर सुलझाने के लिए जाने जाते हैं.

मुखबिरों के जरिए और जो नई बातें पता चलीं, उन में एक अहम बात यह थी कि हादसे के वक्त बन्ने मियां पेंशन लेने बैंक नहीं गए थे, जैसा कि उन्होंने बताया था, बल्कि वह एक फड़ पर बैठे ताश खेल रहे थे. दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह भी पता चली थी कि कुछ दिनों पहले ही बन्ने मियां और जमीला का किसी बात पर इतना झगड़ा हुआ था कि जमीला नाराज हो कर घर छोड़ कर अपनी बहन के यहां चली गई थी, जहां से बाद में बन्ने मियां उसे मना कर ले आए थे. आते हुए उन्होंने साली से अपनी गलती के लिए माफी भी मांगी थी.

अब शक की सुई बन्ने मियां पर घूमी तो वह झल्ला उठे और एसपी (नौर्थ) से मिल कर शिकायत की कि बीवी के कत्ल के मामले में पुलिस वाले उन के घर वालों को पूछताछ के नाम पर परेशान कर रहे हैं. पुलिस वाले बन्ने मियां को हलके में लेने की भूल नहीं कर रहे थे, जो पेशे से नेता थे और बातबात में नेतागिरी के दम पर सिर पर आसमान उठाने के हुनर में माहिर थे.

पर अब उन में पहले सा आत्मविश्वास नहीं रह गया था, इसलिए पुलिस वाले ताड़ गए कि दाल में कुछ काला जरूर है. पर दाल कहां और कितनी काली है, वहां तक पहुंचने के लिए सब्र की जरूरत थी. लिहाजा ढील दे कर पतंग उड़ाने की शैली अपनाई गई. बन्ने मियां पर शक की वजह यह मनोवैज्ञानिक पहलू भी था कि कई बार कलह के बाद शौहर सुलह करता है तो एक खतरनाक खयाल उस के दिमाग में बीवी को देख लेने या उसे सबक सिखाने का भी पनप रहा होता है.

पुलिस की बारबार की पूछताछ और छानबीन कम हो जाने से बन्ने मियां और अमन को थोड़ा सुकून मिला. अब तक जमीला बेगम की हत्या हुए 3 हफ्ते गुजर चुके थे और लोग इस मामले को भूल चुके थे. जिन्हें याद था, उन्होंने अपनी तरफ से उसे ब्लाइंड मर्डर की लिस्ट में डाल दिया था.

आखिरकार 20 दिसंबर, 2016 को सनसनीखेज तरीके से इस हत्याकांड से पुलिस ने परदा उठाया तो लोग एक बार फिर यह जान कर चौंके कि बेटा अमन ही अपनी मां जमीला का हत्यारा था और हत्या की वजह एक लड़की थी, जो उस की माशूका थी. पूछताछ में अमन टूट गया था और अपना जुर्म कबूल करते हुए उस ने हत्या में प्रयुक्त कट्टा भी बरामद करा दिया था.

अमन निकम्मा और आलसी किस्म का बेजा लाड़प्यार में पला लड़का था, जिस का एक शौक बाइक चलाना भी था. कई लड़कियों से उस की दोस्ती थी. लेकिन मोहल्ले की ही एक लड़की से उसे सच्चा प्यार हो गया था. लड़की चूंकि बिरादरी की थी, इसलिए उस के लिहाज से शादी में कोई अड़चन पेश नहीं आनी थी. लेकिन इस प्रेमप्रसंग की गहराई के बारे में जब जमीला बेगम को पता चला तो वह दुखी भी हुईं और बेटे पर भड़क भी उठीं, क्योंकि उन्होंने अपनी रिश्तेदारी की एक लड़की को बहू के रूप में चुन रखा था और उन रिश्तेदारों को वह जुबान भी दे चुकी थीं.

जमीला ने तरहतरह से अमन को समझाया, पर वह टस से मस नहीं हुआ. वारदात की दोपहर वह सो कर उठा तो मम्मी से चाय की फरमाइश की. इस पर जमीला बाहर नुक्कड़ की किराने की दुकान पर गईं और दूध का पैकेट तथा लड्डू ले आईं. बेटे के लिए चाय बनातेबनाते उन का ध्यान इस तरफ गया कि बिस्तर पर पड़ा बेटा अपनी माशूका से गुफ्तगू कर रहा है तो उन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उन्होंने उसे खुली चेतावनी दे दी, ‘तेरी शादी वहीं होगी, जहां मैं तय कर चुकी हूं. अपनी पसंद की लड़की से शादी करना है तो मेरे मरने के बाद कर लेना.’

इस कलयुगी आशिक बेटे ने मां की हिदायत कुछ इस तरह मानी कि तकिए के नीचे रखा कट्टा निकाला और उन पर गोली दाग दी. अब वह मां के मरने के बाद अपनी मरजी से शादी करने के लिए आजाद था. मां के कंधे से निकले खून को उस ने गीले कपड़े से पोंछ दिया. हत्या के बाद जो हुआ, वह शुरू में बताया जा चुका है.

जल्दी ही बन्ने मियां की समझ में आ गया था कि उन की बीवी का कत्ल किस ने किया है. बीवी तो वह खो ही चुके थे, अब बेटे को नहीं खोना चाहते थे. लिहाजा जांच के दौरान पड़ोसियों से ट्रैक्टर को ले कर झगड़े को उन्होंने तूल दे कर पुलिस का ध्यान बंटाने की कोशिश की और पहली बीवी से हुए विवाद को भी उन्होंने तूल दिया, जो पुलिसिया जांच में खारिज हो गए थे.

बिगड़ैल अमन मांबाप के बेजा लाड़प्यार के चलते ज्यादा पढ़लिख नहीं पाया था. लेकिन इश्क में मास्टर डिग्री हासिल कर चुका था. उस की महबूबा एकांत में अकसर उस के साथ होती थी और दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाते रहते थे. नई आजादी के सिपाही बन्ने मियां की दुनिया लुट चुकी है. कातिल बेटा जेल में है और करोड़ों की पुश्तैनी जायदाद अब उन्हें मुंह चिढ़ा रही है, जिस का पहली बीवी और बच्चों के हिस्से में जाना तय दिख रहा है.

जमीला की जिद खुद उन्हें भारी पड़ी. अगर वह पुरानी कहानी की तरह बेटे को उस की माशूका को देने के लिए अपना कलेजा सौंप देतीं तो बात बन जाती. इधर अमन का सोचना यह था कि अगर अपनी मरजी से शादी की तो मांबाप के पैसों पर ऐश करने को नहीं मिलेगा. तय है कि जमीला को इस बात का अहसास नहीं था कि बेटा गले तक इश्क के समंदर में डूब चुका है. गोली मारने के पहले उस ने कहा भी था कि अब्बा ने भी तुम से इसी तरह शादी की थी.

पुराने भोपाल के गरीब जरूरतमंद बाशिंदों को झोपड़ी दिलाने का कारोबार करने वाली जमीला का घर अब उजड़ चुका है, जिस में अब बन्ने मियां गमगीन से बैठे रहते हैं. बेटे की परवरिश में कहां गलती हो गई, यह अब उन्हें सब कुछ लुटने के बाद समझ आ रहा है.

प्रेमी की आरजू : जब पत्नी ने किया पति का कत्ल – भाग 1

रुखसाना काफी परेशान थी. वह पिछले 10 महीने से थानों तथा वकीलों के चक्कर काट रही थी, मगर उस की कहीं पर भी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी. उस के दिमाग में अब बारबार यह सवाल उठ रहा था कि वह अब क्या करे? पुलिस और अदालत भी उसे इंसाफ देने में देरी कर रहे थे. स्थानीय नेता भी कई बार उस की मदद कर चुके थे, फिर भी उसे लगता था कि अभी इंसाफ उस से कोसों दूर है.

रुखसाना अकसर अपने बीते दिनों को याद करती. उस का सपना था कि वह अपने बेटे मेहताब का निकाह कर के जो चांद जैसी दुलहन लाएगी, वह घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल लेगी और बहू उस की भी खूब सेवा किया करेगी, लेकिन हुआ इस का उलटा.

आरजू नाम की जिस बहू को वह ब्याह कर लाई थी, उस ने रुखसाना के सारे अरमानों पर पानी फेर दिया था.

बात पिछले साल की है. रमजान का महीना शुरू हो गया था. रात को 11 बजे खाना खा कर मेहताब और आरजू अपने कमरे में सोने चले गए. रुखसाना ने सुबह 3 बजे अपने बेटे मेहताब के कमरे का दरवाजा खटखटा कर आवाज लगाई, ‘‘आरजू-मेहताब, उठ जाओ, सेहरी का वक्त हो गया है.’’

2-3 बार दरवाजा खटखटा कर आवाज लगाने के बाद रुखसाना को बहू आरजू का अलसाया हुआ स्वर सुनाई दिया, ‘‘अम्मी, इन की तबियत खराब है, सो रहे हैं. यह रोजा नहीं रखेंगे.’’

रुखसाना बड़बड़ाई, ‘‘रात तो अच्छाभला सोने गया था, तबियत कैसे खराब हो गई?’’ रुखसाना मायूसी से अपने कमरे में लौट आई.

9 बजे तक अच्छाखासा दिन निकल आया था. रुखसाना हैरान थी, अभी तक न आरजू अपने कमरे से निकल कर आई थी, न मेहताब. ‘कहीं मेहताब की तबियत ज्यादा खराब तो नहीं है?’ सोच कर रुखसाना फिर से आरजू के कमरे के दरवाजे पर पहुंच गई. दरवाजा अभी भी बंद पड़ा था.

रुखसाना ने जोर से दरवाजा खटखटाया और चीखी, ‘‘बहू उठती क्यों नहीं, दिन चढ़ आया है और तुम लोग अभी तक घोड़े बेच कर सो रहे हो, यह अच्छी बात नहीं है.’’

‘‘अम्मी इन की तबियत ज्यादा खराब है, रजाई ओढ़ कर गहरी नींद सो रहे हैं, इसीलिए मैं भी लेटी हूं.’’ अंदर से आरजू का स्वर उभरा, ‘‘आप भी जा कर आराम करें.’’

‘‘आराम कैसे करूं, मेहताब की तबियत खराब बता रही है तू. दरवाजा खोल, मैं देखती हूं उसे क्या हुआ है.’’ परेशानहाल रुखसाना ने कहा.

लेकिन आरजू ने अपनी सास की बात अनसुनी कर दी. उस ने दरवाजा नहीं खोला. रुखसाना बहू आरजू की इस हरकत पर संदेह में पड़ गई.

‘आरजू आखिर दरवाजा क्यों नहीं खोल रही है, बात क्या है. मेहताब ठीक तो है न?’ अनेक तरह की शंकाए मन में उमड़ीं तो रुखसाना अपने कमरे में लौट आई. उस ने फोन द्वारा अपने नजदीकी रिश्तेदारों को आरजू के दरवाजा न खोलने वाली बात बता कर घर आने को कह दिया.

कुछ ही देर में पास के कुछ रिश्तेदार उस के घर पहुंच गए. उन्होंने मेहताब के कमरे का दरवाजा जोरजोर से खटखटा कर आरजू को तुरंत दरवाजा खोलने के लिए कहा. दरवाजा न खोलने पर दरवाजा तोड़ने की धमकी भी दी तो इस बार आरजू ने दरवाजा खोल दिया.

रिश्तेदारों ने अंदर कदम रखा तो मेहताब फर्श पर रजाई ओढ़ कर लेटा पड़ा था. मेहताब के चाचा ने मेहताब के ऊपर से रजाई खींची तो सभी हैरान रह गए. मेहताब एकदम नग्नावस्था में बेहोशी की हालत में पड़ा था.

मेहताब के चाचा ने उस की नब्ज टटोली तो उन का दिल धड़क उठा, क्योंकि उस की नब्ज में कोई धड़कन नहीं थी. वह लोग मेहताब को चाहर में लपेट कर तुरंत अस्पताल की तरफ दौड़ पड़े. भूमानंद अस्पताल ज्यादा दूर नहीं था. इमरजेंसी में वह मेहताब को ले कर पहुंचे तो डाक्टर ने उस की जांच करते ही बता दिया कि यह मर चुका है. डाक्टर ने इस की सूचना तुरंत कोतवाली ज्वालापुर को दे दी.

आरजू और रुखसाना बाद में अस्पताल पहुंची थीं. बेटे मेहताब की मौत की खबर लगते ही रुखसाना विलाप करने लगी. साथ आए रिश्तेदार मेहताब की इस रहस्यमयी मौत से सन्नाटे में थे, उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब अचानक कैसे हो गया. आरजू एक ओर गुमसुम खड़ी आंसू बहा रही थी.

कोतवाली ज्वालापुर के कोतवाल आर.के. सकलानी अपने साथ थानेदार शेख सद्दाम हुसैन को ले कर भूमानंद अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने मृतक की लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. उस के शरीर पर चोट के निशान नहीं थे. अब यह पोस्टमार्टम होने पर ही पता चल सकता था कि मेहताब की मौत किस प्रकार हुई.

कोतवाल सकलानी ने वहां मौजूद रिश्तेदारों और रुखसाना से मेहताब की मौत का कारण पूछा. रिश्तेदार तो नहीं, रुखसाना ने यह संदेह जरूर जाहिर किया कि मेहताब की मौत में आरजू का हाथ है.

कोतवाल सकलानी ने आरजू की ओर देखा. वह गम में डूबी एक ओर खड़ी आंसू बहा रही थी. सकलानी उस के पास आ गए. उन्हें देख कर आरजू सकपका गई.

कोतवाल सकलानी ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा, ‘‘तुम्हारा पति मेहताब कैसे मर गया?’’

‘‘म…मैं क्या बताऊं. रात को तो यह खाना खाने के बाद अच्छेभले मेरे साथ बैडरूम में आए थे.’’

कोतवाल सकलानी ने आरजू की बात काट दी, ‘‘अच्छेभले तुम्हारे साथ बैडरूम में मेहताब आया फिर क्या हुआ कि वह मौत के मुंह में चला गया..?’’

‘‘मैं नहीं जानती साहब, यह तो डाक्टर ही बताएंगे कि इन की अचानक मौत क्यों और कैसे हो गई.’’

‘‘यह तो हम पोस्टमार्टम से मालूम कर लेंगे, बस मुझे इतना बताओ कि क्या इस की मौत में तुम्हारा हाथ है?’’

‘‘म…मैं अपने पति को क्यों मारूंगी साहब.’’ आरजू एकाएक भड़क उठी, ‘‘आप मुझ पर झूठी तोहमत लगा रहे हैं. मैं पहले ही अपने पति की मौत से सदमे में हूं, मैं इस समय बहुत दुखी हूं. आप मुझे परेशान न करें.’’

कोतवाल सकलानी मन ही मन मुसकराए. वह समझ रहे थे कि आरजू कितनी दुखी और सदमे में है. वह दिखावटी आंसू बहा रही है. यह उन की पारखी नजरों से छिपा नहीं रह सका था. फिलहाल उस से वह अधिक सवालजवाब नहीं कर सकते थे, क्योंकि अभी माहौल वहां गमगीन था.

उन्होंने आवश्यक काररवाई निपटा कर मेहताब की लाश को पोस्टमार्टम के लिए हरिमिलापी अस्पताल हरिद्वार भेज दिया. और इस मामले की जांच का जिम्मा थानेदार शेख सद्दाम हुसैन को सौंप दिया.

जैसी करनी, वैसी भरनी

पहली मई, 2017 को सोबरन सिंह अदालत के कटघरे में खड़ा था. उस दिन उस की जिंदगी का अहम फैसला होने वाला था. उस की आंखों में याचना थी. अपराध ऐसा था, जिसे सुन कर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएं. फिर भी उसे उम्मीद थी कि सामने डायस पर बैठे जज साहब उसे जीवनदान दे देंगे.

आखिर गलती किससे नहीं होती. लेकिन उस ने जो किया था, उसे गलती नहीं, गुनाह कहते हैं. विवाह से ले कर जुर्म करने तक का घटनाक्रम किसी चलचित्र की तरह उस की आंखों के सामने घूम गया था. जब 15 साल पहले उस की शादी ममता से हुई तब वह बहुत खुश था. ममता उत्तर प्रदेश के जिला फर्रुखाबाद के गांव समसुइया निवासी सतीशचंद्र की बेटी थी.

शादी के बाद ममता अपनी ससुराल रूपपुर पहुंची तो घर खुशियों से भर उठा. बहू के आने पर बूढ़ी सास को राहत मिली थी, क्योंकि उन का बड़ा बेटा पन्नालाल पत्नी को ले कर अलग रहता था. वह छोटे बेटे सोबरन के साथ रहती थीं. आते ही ममता ने घर संभाल लिया. समय के साथ ममता 3 बेटियों और 2 बेटों की मां बनी.

घर में खुशहाली थी. सोबरन ठीकठाक कमाता था, इसलिए आराम से गुजारा हो रहा था. भाई पन्नालाल पड़ोस में ही रहता था, लेकिन उस से उस के संबंध अच्छे नहीं थे.

अचानक ममता को पति में बदलाव महसूस होने लगा. वह घर खर्च के लिए जो पैसे देता था, उस में कमी कर दी थी. पूछने पर कहता कि आजकल काम ठीक नहीं चल रहा है. कभी पैसे गिर जाने का बहाना बना देता. ममता की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?

ममता को लग रहा था कि कुछ गड़बड़ जरूर है. उस ने पता लगाया कि पति कहांकहां बैठता है. उसे पता चला कि वह गांव के कुछ आवारा और शराबी लोगों के साथ उठताबैठता है और उन्हीं के साथ ढाबे पर खापी कर आता है. ममता ने पति से कहा, ‘‘तुम अपनी कमाई शराब और ढाबे पर खाने में खर्च देते हो, मैं इन बच्चों को क्या खिलाऊं, यह घर कैसे चलाऊं?’’

पत्नी की यह बात सोबरन को बहुत बुरी लगी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘तू कौन होती है, मुझ से सवाल करने वाली? मैं कमाता हूं, मेरी मरजी कि मैं अपनी कमाई किस तरह और किस पर खर्च करूं.’’

‘‘तुम अपनी कमाई शराब में उड़ा दो और बच्चे भूखे रहें, इस बात को मैं सहन नहीं कर सकती.’’ ममता ने कहा.

‘‘ओह, तो तू अब मुझ पर हुकुम चलाएगी.’’ कह कर सोबरन ममता पर टूट पड़ा. ममता हैरान रह गई. सोबरन ने पहली बार उस पर हाथ उठाया था. पत्नी की पिटाई कर के वह सीधे ठेके पर गया और नशे में झूमता हुआ घर लौटा. उस की इस हरकत से ममता और बच्चे सहम उठे थे.

crime

उस दिन के बाद सोबरन किसी न किसी बात को ले कर ममता की पिटाई करने लगा. ममता पति की इस हरकत से परेशान रहने लगी. एक दिन वह अपनी बुआ सुदामा के घर गई, जो मैनपुरी के नगला पजावा में रहती थी. उस ने बुआ को सारी बात बताई तो सुदामा भी परेशान हो उठी. सुदामा का बेटा रजनेश भी वहीं था. उस ने कहा कि वह सोबरन जीजा को समझाएगा.

एक दिन रजनेश रूपपुर गया और सोबरन को समझाने की कोशिश की तो उस ने कहा, ‘‘अगर तुम्हें अपनी बहन और बच्चों की इतनी ही फिक्र है तो ले जाओ उन्हें अपने घर.’’

रजनेश की समझ में नहीं आ रहा था कि इस स्थिति में वह क्या करे? बहन के घर में कलह बढ़ रही थी और वह कुछ कर नहीं पा रहा था. आखिर सभी ने ममता और उस के बच्चों को उन के हालात पर छोड़ दिया.

ममता ने भी तय कर लिया कि सोबरन जिस हालत में रखेगा, वह उसी हालत में रहने की कोशिश करेगी. पर उस ने यह कभी नहीं सोचा था कि पति की इन हरकतों से जीवन में ऐसा तूफान आएगा कि सब तबाह हो जाएगा.

सोबरन दिनोंदिन शराब का आदी होता जा रहा था. नशा उसे वहशी बना रहा था. नशे में एक दिन उस ने पिता की झोपड़ी में आग लगा दी. उस समय झोपड़ी में उस के पिता और बच्चे सो रहे थे. गांव वालों ने बड़ी मुश्किल से आग बुझा कर उन्हें बाहर निकाला.

गांव वालों की नजर में सोबरन हिंसक और एक शराबी था. सभी उस से दूरियां बनाने लगे थे. गांव वालों की नफरत भी सोबरन को अपराधी बनने की ओर ले जा रही थी. उस के हिंसक स्वभाव की वजह से पत्नी और बच्चे घर में सहमे रहते थे.

सोबरन इतना क्रूर हो जाएगा, यह किसी ने नहीं सोचा था. 29 जून, 2014 की शाम को सोबरन नशे में लड़खड़ाता हुआ घर आया तो उस के डर से सभी बच्चे छिप गए.

ममता ने पति को धिक्कारा कि कुछ तो शरम करे, बच्चों को पेट भर खाना नहीं मिलता और वह है कि उसे पीने से ही फुरसत नहीं है. इस पर सोबरन ने गुस्से में ममता को एक थप्पड़ जड़ दिया. संयोग से उसी समय उस के पिता बाबूराम सामने आ गए तो सोबरन ने हंसते हुए कहा, ‘‘चल बापू, आज तू भी शराब पी ले. तू भी देख, इसे पीने पर कैसा मजा आता है.’’

इस के बाद बापबेटे ने मिल कर शराब पी और फिर किसी बात पर दोनों में झगड़ा होने लगा. नतीजतन दोनों में मारपीट शुरू हो गई. बेटे का गुस्सा देख कर बाबूराम डर गया और पत्नी के साथ बाहर चला गया.

सोबरन को लगा कि इतना पीने के बाद भी अभी नशा नहीं चढ़ा है. उस ने ममता से पैसे मांगे. ममता ने पैसे देने से मना कर दिया. वह उसे पीटने लगा. ममता क्या करती, उस ने सौ रुपए निकाल कर दे दिए. सोबरन उस समय जैसे दानव बन गया था. उस की नजर अपनी 11 साल की बेटी सपना पर पड़ी तो उसे पास बुला कर कहा, ‘‘ये पैसे अंदर रख दे.’’

सपना पैसे ले कर अंदर चली गई. पीछेपीछे सोबरन भी गया और सपना को पीटने लगा. बेटी को पिटता देख ममता डर गई और अकेली ही पड़ोसी के घर में जा छिपी. बाकी बच्चे एक चारपाई पर लेटे चादर के अंदर से सब देख रहे थे. सपना को बचाने वाला वहां कोई नहीं था.

सपना चीखचिल्ला रही थी, लेकिन सोबरन को उस पर तनिक भी दया नहीं आ रही थी. वह उसे पीटते हुए खेतों की ओर खींच कर ले गया. कुछ देर बाद सपना को गोद में लेकर लौटा और जमीन पर पटक दिया. सपना बेहोश थी. 7 साल की पूनम ने अपनी आंखों से अपनी बड़ी बहन को तड़पते देखा. उस ने देखा कि पिता ने किस तरह उस की गरदन पर पैर रख कर तब तक दबाए रखा, जब तक तड़पतड़प कर उस की सांसें बंद नहीं हो गईं. सपना की आंखों, कानों और मुंह से खून निकल रहा था. वह मर चुकी थी.

बेटी को मौत के घाट उतार कर भी सोबरन पर कोई असर नहीं हुआ. वह पूरी तरह बेखौफ था. वह छत पर गया और वहीं से ममता को आवाज दी कि सपना को बुखार है, आ कर उसे दवा दे दे.

यह सुन कर ममता भागी चली आई. वह नहीं जानती थी कि कसाई उसे भी हलाल करने को तैयार है. ममता के आते ही सोबरन उसे डंडे से पीटते हुए बाहर ले आया. बाहर ला कर उसे ईंट से मारा और नाले में डुबो दिया. इतने से भी मन शांत नहीं हुआ तो घसीट कर घर ले आया. तब तक ममता भी दम तोड़ चुकी थी.

सोबरन को लगा कि दोनों मर चुकी हैं तो लाशों को एकएक कर के सीढि़यों से घसीटता हुआ छत पर ले गया और बड़े भाई पन्नालाल की छत पर डाल दिया. इस के बाद उस ने रात भर पूरे घर की सफाई की और खून के निशान मिटाए. सुबह होने पर उस ने बच्चों को धमकाया कि अगर उन्होंने किसी को कुछ बताया तो उन का भी यही हाल होगा.

इस के बाद सोबरन मोटरसाइकिल ले कर निकल गया. जाने से पहले 7 साल की बेटी पूनम से कहा कि वह तारीख पर कोर्ट जा रहा है. उस के जाते ही पूनम रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी और मोहल्ले के लोग आ गए. रोतेरोते उस ने सारी बात उन लोगों को बताई तो लोगों ने छत पर जा कर देखा. वहां सचमुच मांबेटी की लाशें पड़ी थीं.

गांव के किसी आदमी ने रजनेश को फोन कर के सारी बात बता दी. बहन और भांजी की हत्या की खबर सुन कर रजनेश के पैरों तले से जमीन खिसक गई. मां को सारी बात बता कर वह तुरंत थाना करहल गया और थानाप्रभारी को सारी बात बताई.

हत्या का पता चलते ही थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ रूपपुर गांव पहुंच गए. वहां गांव वालों की भीड़ इकट्ठा थी. पुलिस ने पन्नालाल की छत से ममता और 11 साल की सपना की लाशें बरामद कर लीं.

ममता और सपना की बेरहमी से की हत्या से पूरा गांव सहमा था. दोनों के शरीर पर चोटों के निशान थे. जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. घटना की चश्मदीद गवाह पूनम थी. पूछताछ के लिए पुलिस पूनम को अपने साथ थाने ले आई.

रजनेश की ओर से सोबरन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया गया. पुलिस ने चश्मदीद गवाह पूनम के बयान दर्ज कर लिए. पूनम के दिल में क्रूर पिता के प्रति इतनी नफरत थी कि उस ने अपने बयान में बताया कि अब वह अपने पिता की शक्ल भी नहीं देखना चाहती. वह उसे फांसी पर लटका देखना चाहती है.

ममता और सपना की जघन्य हत्या ने पूरे परिवार को हिला कर रख दिया था. सोबरन को पुलिस ने उसी दिन गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के समय उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी. पूरे मामले की जांच कर 23 अगस्त, 2014 को थानाप्रभारी बलबीर सिंह ने सोबरन के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी.

इस के बाद मामले की सुनवाई शुरू हुई तो रजनेश ने तय कर लिया कि कुछ भी हो, वह सोबरन को जेल से बाहर नहीं आने देगा. सभी रिश्तेदार सोबरन से नफरत करने लगे थे. रजनेश ने मन लगा कर मुकदमे की पैरवी की. यही वजह थी कि सोबरन की जमानत अर्जी हाईकोर्ट तक खारिज हो गई.

दोहरे कत्ल का यह मामला अपर जिला जज एवं सत्र न्यायाधीश (प्रथम) गुरुप्रीत सिंह बावा की अदालत में पहुंचा. माननीय न्यायाधीश ने मामले को बहुत गंभीरता से लिया. पत्नी और बेटी के कातिल सोबरन के खिलाफ काफी मजबूत सबूत थे. कातिल की बेटी पूनम घटना की चश्मदीद गवाह थी, उस ने अदालत को घटनाक्रम बता दिया था. उस के बयान से ही पता चल रहा था कि वह अपने शराबी पिता से कितनी नफरत करती थी.

गवाहियां पूरी हो चुकी थीं. अगले दिन फैसला सुनाया जाना था. घर वाले चाहते थे कि सोबरन को फांसी हो. लगभग 3 साल तक मुकदमा चला. फैसले की तारीख अदालत ने तय कर दी थी. 1 मई, 2017 को फैसला सुनाया जाना था. मृतका ममता के मांबाप सुदामा के यहां नगला पजावा मैनपुरी आ गए थे. सभी के चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं. पुलिस मुलजिम सोबरन को कोर्टरूम ले आई और उसे कटघरे में खड़ा कर दिया गया. वह काफी बेचैन लग रहा था.

11 बजे माननीय न्यायाधीश गुरुप्रीत सिंह बावा अदालत में आए तो सन्नाटा सा छा गया. जज साहब ने अपना फैसला सुनाया. उन्होंने कहा कि मुलजिम ने जो अपराध किया है, वह समाज के लिए घातक है. अत: आरोपी सोबरन सिंह दया का पात्र नहीं है. अदालत ने उस के अपराध को अतिजघन्य माना और भारतीय दंड विधान की धारा 302 के अंतर्गत उसे फांसी की सजा दी.

अदालत के इस फैसले को सुन कर सोबरन फूटफूट कर रोने लगा. पुलिसकर्मियों ने उसे मुश्किल से शांत किया. इस फैसले से सोबरन के घर वालों और ममता के घर वालों ने राहत की सांस ली. सतीशचंद्र और तारावती अपनी बेटी और धेवती के कातिल को दी जाने वाली सजा से संतुष्ट हैं. बेटी और धेवती की याद में उन की आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘जैसी करनी, वैसी भरनी.’’

सोबरन निचली अदालत के फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करेगा या नहीं, यह पता नहीं. पर यह फैसला समाज के लिए एक सबक  जरूर है.

हवस के दरिंदों की करतूत

उत्तर प्रदेश का जाट बहुल जिला बागपत जिस रोंगटे खड़े कर देने वाली वारदात से रूबरू हुआ, उसे वहां के बाशिंदे शायद ही कभी भुला सकें. कई धरनेप्रदर्शनों के बाद पुलिस के शिकंजे में गुनाहगार आ गए थे, लेकिन जो हकीकत खुल कर सामने आई, उस ने सभी को चौंका दिया.

10वीं जमात में पढ़ने वाली छात्रा साक्षी चौहान अपने पिता ईश्वर सिंह की हत्या के बाद अमीनगर सराय कसबे के नजदीक खिंदौड़ा गांव में अपने ननिहाल में रह कर पढ़ाई कर रही थी. 31 दिंसबर को वह स्कूल गई, लेकिन इस के बाद उस का कहीं पता नहीं चला, तो परिवार वालों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.

आखिरकार 10 जनवरी को साक्षी की लाश नजदीक के गांव पूठड़ में ईंख के खेत में पड़ी मिली. वारदात वाली जगह पर हत्या का कोई निशान नहीं था. साक्षी स्कूली कपड़ों में थी. ऐसा लगता था कि उस की लाश को वहां ला कर फेंक दिया गया था.

साक्षी चौहान का अपहरण भले ही कई दिन पहले किया गया था, लेकिन उस की हत्या लाश मिलने से 24 घंटे पहले ही की गई थी. इस से  लोगों का गुस्सा और भी भड़क गया और पुलिस पर साक्षी चौहान की बरामदगी में तेजी न बरतने का आरोप लगाया.

पोस्टमार्टम के दौरान साक्षी के शरीर पर नोचे जाने और अंदरूनी हिस्सों पर चोटों के निशान पाए गए. चंद रोज की जांचपड़ताल में पुलिस ने इस मामले में 4 नौजवानों को गिरफ्तार कर लिया.

पकड़े गए आरोपियों में सैड़भर गांव के बिट्टू, मोनू, सौरभ व अन्नु शामिल थे. इन सभी की उम्र 20 से 24 साल के बीच थी. स्कूल जाते समय वे साक्षी को मोटरसाइकिल पर बैठा कर बिट्टू के घर ले गए. इस के बाद चारों आरोपियों ने उसे बंधक बना कर दरिंदगी की थी.

crime

यह सिलसिला 10 दिनों तक चला. वे साक्षी को नशीली चीज देते थे, ताकि वह बेहोश रहे. उन्हें डर था कि अगर साक्षी को छोड़ दिया गया, तो वे सभी फंस जाएंगे. पकड़े जाने के डर से उन्होंने गला दबा कर उस की बेरहमी से हत्या कर दी और मारुति कार में उस की लाश रख कर ईंख के खेत में फेंक गए.

उन चारों के सिर पर हवस का फुतूर सवार था. वे अकसर आनेजाने वाली छात्राओं पर फब्ति यां कसते थे और उन्हें अपना शिकार बनाने का घिनौना ख्वाब देखते थे.

इस तरह के मामलों में लड़कियां अकसर ऊंची जाति के लोगों की हैवानियत और हवस का शिकार होती हैं. हरियाणा के सोनीपत में कुछ दबंगों ने एक दलित लड़की को खेत में खींच कर उस के साथ गैंगरेप किया. बाद में पीडि़ता ने मौत को गले लगा लिया देहात के इलाकों में दलित बेचारे बेसहारा होते हैं. बैकवर्ड क्लासों में  दबंगों का बोलबाला होता है. लिहाजा, पुलिस भी ऐसे मामलों में लचीला बरताव करती है. होहल्ला होने पर कुरसी बचाने तक की सख्ती दिखाई जाती है. कितने मामले ऐसे भी होते हैं, जब दबंगों के डर से पीडि़त परिवार पुलिस तक पहुंचने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते.

पिछले साल हरदोई जिले में एक दलित लड़की के साथ हैवानियत की गई. मौत का मामला उछलने के बाद पुलिस हरकत में आई.

दबंगों की इस दरिंदगी का शिकार साक्षी चौहान कोई अकेली शिकार नहीं थी. उत्तर प्रदेश के ही सहारनपुर जनपद में भी एक दहलाने वाली वारदात हुई.

लेबर कालोनी की रहने वाली 11 साल की दलित लड़की तान्या 5 जनवरी को लापता हो गई. 2 दिन बाद तान्या की लाश पुलिस को झाडि़यों में मिली. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे और उस के साथ रेप किया गया था.

इस मामले में 3 नौजवानों को गिरफ्तार किया गया. दरअसल, अंबेडकर कालोनी के रहने वाले इंद्रजीत, धर्मवीर और शिवकुमार शराब की लत के शिकार थे. उन तीनों ने खेतों में बनी एक झोंपड़ी को शराब का अड्डा बनाया हुआ था. वे अकसर वहां बैठ कर शराब पीते थे और सैक्स से जुड़ी बातें करते थे.

धीरेधीरे वे यह सोचने लगे कि किसी को अपना शिकार बनाया जाए. एक शाम उन तीनों ने जम कर शराब पी और तान्या को मोटरसाइकिल से अगवा कर लिया.

इंद्रजीत तान्या को पहले से जानता था. वह चाट खिलाने के बहाने उसे अपने साथ ले गया. झोंपड़ी में ले जा कर तीनों ने बारीबारी से उसे अपना शिकार बनाया. तान्या चीखीचिल्लाई, तो उन्होंने गला दबा कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश को पुआल में छिपा दिया.

अगले दिन उन्होंने तान्या की लाश को तकरीबन 2 सौ मीटर दूर झाडि़यों में फेंक दिया. आरोपियों तक पहुंचने में ट्रैकर कुत्ते ने अहम भूमिका निभाई. लाश पर मिले फूस और गीली मिट्टी के सहारे ही कुत्ता झोंपड़ी तक पहुंच पाया.

बकौल एसएसपी आरपी सिंह, ‘‘आरोपियों पर पाक्सो ऐक्ट के तहत कार्यवाही की गई है. फौरैंसिक जांच के सुबूतों से भी आरोपियों को सजा दिलाई जाएगी.’’

बरेली में 29 जनवरी को घुमंतू जाति की एक दलित लड़की के साथ सारी हदों को लांघ दिया गया. नवाबगंज इलाके के गांव आनंदापुर में महावट जाति की बस्ती है. हेमराज की बेटी आशा अपनी मां के साथ खेत में चारा लेने गई थी. आशा को चारा ले कर घर भेज दिया गया, पर घर में चारा रख कर वह दोबारा खेत पर जा रही थी, तो लापता हो गई.

crime

खोजबीन के बाद महेंद्रपाल नामक आदमी के खेत में आशा की बिना कपड़ों की लाश मिली. गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई थी और अंग में लकड़ी ठूंस दी गई थी. उस के शरीर को भी नोचा गया था. मौके पर उसे घसीटे जाने के निशान भी थे.

पुलिस ने इस मामले में गांव के बिगड़ैल नौजवान की तलाश की, तो एक नौजवान मुरारी गंगवार का नाम सामने आया. पुलिस ने उसे उठा कर सख्ती से पूछताछ की, तो मामला खुल गया.

मुरारी और उस का दोस्त उमाकांत शराब पी कर खेतों की तरफ निकले थे. उन की नजर लड़की पर पड़ी, तो सिर पर हैवानियत सवार हो गई. वे दोनों उसे खेत में खींच कर ले गए. उस का मुंह दबा कर पहले उमाकांत ने उस के साथ बलात्कार किया और फिर मुरारी ने. उन दोनों ने उस के नाजुक अंगों पर हमला भी किया. उन के बीच काफी खींचतान हुई. लड़की मुरारी को पहचानती थी, इसलिए गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई.

मुरारी पहले भी गांव के एक बच्चे और पशुओं के साथ गलत काम करने की कोशिश कर चुका था, जिस के बाद उस की पिटाई हुई थी.

जबरन सैक्स और हत्या के मामले समाज और कानून दोनों को ही दहलाने का काम करते हैं. हवस के ऐसे अपराधी हर जगह हैं, जो कब किस को अपना शिकार बना लें, कोई नहीं जानता.

इस तरह के मामलों में सामने आता है कि ऐसे नौजवान किसी लड़की को भोगने के बाद 2 वजह से हत्या करते हैं. पहली, अपने पहचाने जाने के डर से. दूसरी, चीखनेचिल्लाने और पकड़े जाने के डर से. इस तरह के नौजवान समाज और कानून के लिए खतरा बन जाते हैं.

डाक्टर आरवी सिंह कहते हैं कि ऐसा करने वाले सैक्सुअल डिसऔर्डर बीमारी का शिकार होते हैं. विरोध करने पर उन में गुस्सा पैदा हो जाता है. वे अपनी कुंठा को मनमुताबिक शांत करना चाहते हैं. ऐसे लोग सैडेस्टिक टैंडैंसी से भी पीडि़त होते हैं. ऐसे शख्स को किसी का खून बहता देख कर खुशी होती है. यह एक तरह की दिमागी बीमारी है.

दबंगों ने शराब पिला कर बनाया शिकार

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में 27 जनवरी को कुछ दबंगों के सिर पर हवस का फुतूर सिर चढ़ कर बोला. कांधला थाना क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली दलित किशोरी अपनी मां के साथ चारा लेने खेत पर गई थी. किसी बात पर नाराजगी हुई, तो मां ने उसे वापस घर चले जाने को कहा. जब वह रास्ते में पहुंची, तो गांव के ही 3 दबंग नौजवानों ने उसे दबोच लिया. वे उसे खींच कर खेत में ले गए. पहले उन्होंने उसे जबरन शराब पिलाई और फिर उस के साथ रेप किया. रेप करने के बाद सभी आरोपी जान से मारने की धमकी देते हुए फरार हो गए.

किशोरी जब शाम तक घर नहीं पहुंची, तो परिवार वालों ने उस की तलाश की. वह खेत में पड़ी मिली. होश में आने पर उस ने आपबीती सुनाई. बात यहीं खत्म नहीं हुई. आरोपी नौजवान ने दबंगई दिखाते हुए पुलिस कार्यवाही न करने का दबाव भी बनाया, लेकिन इस मामले में रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. बाद में पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया, जबकि उस के साथी फरार थे.

ममता का कातिल : बेटे ने की मां की हत्या

50 वर्षीय इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे महानगर मुंबई के उपनगर सांताकु्रज (पूर्व) की प्रभात कालोनी की ए.जी. पार्क इमारत की तीसरी मंजिल पर स्थित फ्लैट नंबर 303 में परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी दीपाली के अलावा 20 साल का बेटा सिद्धांत गणोरे था. इस समय वह मुंबई उपनगर के थाना खार में तैनात थे.

थाना खार में तैनाती होते ही उन्हें महानगर मुंबई के हाईप्रोफाइल शीना बोरा हत्याकांड जैसे मामले की जांच से जूझना पड़ा था. इस मामले की सूचना सब से पहले उन्हें ही मिली थी. इस के बाद थानाप्रभारी दिनेश कदम के साथ मिल कर उन्होंने इस हत्याकांड की तह तक पहुंच कर शीना बोरा के गुनहगार पीटर मुखर्जी और उन की पत्नी इंद्राणी मुखर्जी के साथ उन के ड्राइवर को सलाखों के पीछे पहुंचाया था. इस के बाद इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी.

यही इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे 16 मई, 2017 की सुबह 11 बजे पत्नी दीपाली और बेटे सिद्धांत के साथ नाश्ता कर के अपनी ड्यूटी पर चले गए थे. दरअसल, उन्हें एक अतिमहत्त्वपूर्ण केस की तैयारी करनी थी. उस दिन वह काफी व्यस्त रहे. शाम 6 बजे के करीब घर का हालचाल लेने के लिए उन्होंने फोन किया तो फोन बेटे सिद्धांत ने उठाया. उन्होंने पत्नी के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मां सिनेमा देखने गई हैं, देर रात तक लौटेंगी. मैं भी अपने दोस्त के यहां जा रहा हूं.’’

घर का हालचाल ले कर ज्ञानेश्वर गणोरे फिर उसी केस की फाइलों में व्यस्त हो गए थे. सारा काम निपटा कर रात 11 बजे के करीब वह घर पहुंचे तो घर का दरवाजा बंद था. कई बार डोरबेल बजाने और दरवाजा खटखटाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो उन्होंने पत्नी और बेटे को फोन किया. लेकिन दोनों का फोन बंद होने से बात नहीं हो सकी.

फोन बंद होने से ज्ञानेश्वर गणोरे को चिंता हुई. उन्होंने पड़ोसियों से पूछा कि बाहर जाते समय सिद्धांत घर की चाबी तो नहीं दे गया? लेकिन वह किसी को चाबी नहीं दे गया था, इसलिए अब उन के पास इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था. वह इंतजार करने लगे. रात के एक बज गए, अब तक न उन की पत्नी आईं और न ही बेटा. उन का कोई फोन भी नहीं आया.

ज्ञानेश्वर गणोरे को चिंता हुई. उन के मन में तरहतरह के बुरे खयाल आने लगे. चिंता बेचैनी में बदली तो वह पुलिसिया अंदाज में फ्लैट की चाबी ढूंढने लगे. काफी मेहनत के बाद आखिर उन्हें चप्पलों की रैक में फ्लैट की चाबी मिल गई. फ्लैट का दरवाजा खोल कर वह अंदर पहुंचे तो जिस बात को ले कर उन्हें बुरे खयाल आ रहे थे, वही हुआ था.

उन की आंखों के सामने जो मंजर था, उस ने उन के होश उड़ा दिए थे. सामने ही हाल के फर्श पर उन की पत्नी दीपाली का लहूलुहान शव पड़ा था. लाश के आसपास फर्श पर खून ही खून फैला था.

कुछ समय तक तो वह पत्नी का शव देखते रहे. उस के बाद एक अनुभवी पुलिस अधिकारी होने के नाते उन्होंने खुद को संभाला और सावधानीपूर्वक फ्लैट का जायजा लिया. पत्नी की हत्या हो चुकी थी और बेटा गायब था. मामला काफी गंभीर था, इसलिए उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम और थाना वाकोला पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही थाना वाकोला के थानाप्रभारी महादेव बावले ने तुरंत डायरी बनवाई और 10-15 मिनट में ही पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. इस बीच यह खबर सोसायटी में फैल गई थी, जिस से रात 2 बजे भी इमारत के कंपाउंड में काफी लोगों की भीड़ जमा हो गई थी.

पुलिस टीम भीड़ के बीच से होते हुए लिफ्ट द्वारा फ्लैट नंबर 303 के सामने पहुंची तो फ्लैट के बाहर ही गैलरी में इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे खड़े मिल गए. पड़ोसी उन्हें धीरज बंधा रहे थे. महादेव बावले उन से औपचारिक बातचीत कर सहायकों के साथ फ्लैट में दाखिल हुए तो उन के साथ ज्ञानेश्वर गणोरे भी अंदर आ गए.

फ्लैट के अंदर का दृश्य काफी मार्मिक  था. इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे की पत्नी दीपाली की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. हत्या जिस चाकू से की गई थी, वह लाश के पास ही पड़ा था. मृतका के शरीर पर 10-11 घाव थे, जो काफी गहरे थे. इस से लग रहा था कि हत्यारे ने पूरी ताकत से वार किए थे.

इस के अलावा पुलिस को जो खास बात देखने को मिली, वह मृतका के खून से दीवार पर लिखा एक संदेश था. संदेश के नीचे एक स्माइली भी बना था. निश्चित ही वह हत्यारे का लिखा था. संदेश में लिखा था, ‘टायर्ड औफ हर. कैच मी एंड हैंग मी’ यानी इस से थक गया था. मुझे पकड़ो और फांसी पर लटका दो. यह संदेश सभी को अटपटा और रहस्यमय लगा.

महादेव बावले सहायकों के साथ घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि मुंबई के सीपी दत्तात्रय पड़सलगीकर, जौइंट सीपी देवेन भारती, एसीपी चेरिंग दोरजे, एडीशनल सीपी अनिल कुंभारे भी आ गए. इन्हीं अधिकारियों के साथ पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम और फोरैंसिक टीम भी आई थी.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. इस के बाद थानाप्रभारी महादेव बावले तथा क्राइम ब्रांच की टीम को दिशानिर्देश दे कर सभी अधिकारी चले गए.

अधिकारियों के जाने के बाद महादेव बावले और क्राइम ब्रांच पुलिस ने घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर के चाकू, मृतका दीपाली तथा सिद्धांत का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और लाश को पोस्टमार्टम के लिए विलेपार्ले कूपर अस्पताल भिजवा कर थाने आ गए.

घटनास्थल की स्थिति से स्पष्ट था कि मामला सीधासादा बिलकुल नहीं था. एक पुलिस अधिकारी की पत्नी की हत्या हो चुकी थी और बेटा गायब था. इस से यह भी अंदाजा लगाया जा रहा था कि किसी ने इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे से बदला तो नहीं लिया?

क्योंकि पुलिस अधिकारी होने के नाते उन का ऐसे तमाम अपराधियों से वास्ता पड़ा होगा, जो काफी शातिर रहे होंगे. यह काम कोई ऐसा अपराधी कर सकता था, जो उन से काफी नाराज रहा हो. उन्हें सबक सिखाने के लिए उस ने उन की पत्नी की हत्या कर बेटे का अपहरण कर लिया हो और दीवार पर संदेश लिख कर उन्हें चुनौती दी हो?

लेकिन दीवार पर लिखे संदेश के एकएक शब्द और वह स्माइली पर गंभीरता से विचार किया गया तो इस का कुछ अलग ही अर्थ निकल रहा था. यह बच्चों जैसा संदेश किसी शातिर अपराधी के दिमाग की उपज नहीं हो सकती थी. एक ओर जांच अधिकारी आपस में इस मामले को ले कर उलझे हुए थे, वहीं इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे भी अपने घर में घटी इस घटना पर गंभीरता से विचार कर रहे थे.

काफी सोचनेविचारने के बाद ज्ञानेश्वर गणोरे को अपने ही खून पर संदेह होने लगा. उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी थानाप्रभारी महादेव बावले को दे दी, क्योंकि वह अपने बेटे सिद्धांत की लिखावट से अच्छी तरह परिचित थे.

ज्ञानेश्वर गणोरे के संदेह के बाद राइटिंग एक्सपर्ट से उस संदेश की जांच कराई गई तो रिपोर्ट के अनुसार ज्ञानेश्वर गणोरे की बात सही निकली. उस के बाद सिद्धांत की तलाश शुरू हुई. इमारत और आसपास लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी निकलवा कर देखी गई. इस के बाद तो साफ हो गया कि दीपाली की हत्या किसी और ने नहीं, सिद्धांत ने ही की है. फिर तो पुलिस उस की तलाश में जीजान से जुट गई.

पुलिस को अपने सूत्रों से पता चला कि वह सूरत गया था, ज उसे राजस्थान के जोधपुर जाने वाली गाड़ी में बैठते देखा गया है. वह कहां जा रहा था, इस बात का अंदाजा नहीं लग रहा था.

पुलिस इस कोशिश में जुट गई कि वह जोधपुर से आगे न जा सके. इस के लिए वाट्सऐप द्वारा सिद्धांत का फोटो भेज कर जोधपुर के पुलिस कमिश्नर से बात की गई. उन्होंने इस मामले को जोधपुर रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित थाना उदयमंदिर के थानाप्रभारी इंसपेक्टर मदनलाल नवीवाल को सौंप दिया.

मदनलाल नवीवाल ने तुरंत एक टीम गठित की, जिस में एएसआई पूनाराम, जय सिंह, सिपाही पुनीत त्यागी और विनोद शर्मा को शामिल किया. अपनी इस टीम के साथ वह सिद्धांत की गिरफ्तारी के लिए स्टेशन के आसपास लग गए.

दूसरी ओर मुंबई पुलिस भी खामोश नहीं बैठी थी. वह भी मामले पर नजर गड़ाए हुए थी. इस का नतीजा यह निकला कि मुंबई पुलिस ने सिद्धांत के ईमेल को ट्रैस कर लिया और इस बात की जानकारी थाना उदयमंदिर पुलिस को दे दी. उदयमंदिर पुलिस ने तुरंत रेलवे स्टेशन के पास स्थित होटल धूम में छापा मार कर सिद्धांत गणोरे को गिरफ्तार कर लिया.

दरअसल, सिद्धांत गणोरे जोधपुर पहुंचतेपहुंचते काफी थक चुका था. वह आराम करने के लिए धूम होटल में कमरा लेने पहुंचा तो वहां उसे आईडी की जरूरत पड़ी. इस के लिए उस ने एक नया मोबाइल फोन खरीदा और जब उस में अपना मेल लौगिन किया तो मुंबई पुलिस को उस के जोधपुर में होने की जानकारी मिल गई.

इस बात की सूचना उदयमंदिर पुलिस को दी गई तो उन्होंने उसे गिरफ्तार कर लिया. इंसपेक्टर मदनलाल नवीवाल ने सिद्धांत गणोरे से पूछताछ कर उसे थाना वाकोला पुलिस के हवाले कर दिया. थाना वाकोला पुलिस सिद्धांत गणोरे को मुंबई ले आई और उस से पूछताछ की तो दीपाली गणोरे की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी.

यह सच है कि मांबाप कभी भी अपने बच्चों से न तो ईर्ष्या करते हैं और न दुर्व्यवहार. उन के डांटफटकार और मारपीट में भी उन का कोई स्वार्थ नहीं होता. वह मारतेपीटते भी हैं तो बच्चे की भलाई के लिए ही. क्योंकि वे हमेशा अपने बच्चों की भलाई चाहते हैं. लेकिन अब समय काफी बदल गया है. बच्चे इलैक्ट्रौनिक युग में जी रहे हैं. वे वैसा ही सोचते हैं, जैसा घर का माहौल होता है. घर के वातावरण का बच्चों के दिमाग पर गहरा असर पड़ता है. ऐसा ही सिद्धांत गणोरे के साथ भी हुआ.

इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे महाराष्ट्र के देवलाली कैंप के जनपद भगूर के रहने वाले थे. उन के पिता खेतीकिसानी करते थे. वह गांव में ही रह कर पढ़ेलिखे. लेकिन उन के मन में कुछ करने की तमन्ना थी, यही वजह थी कि पढ़ाई पूरी होते ही वह सबइंसपेक्टर के रूप में पुलिस विभाग में भरती हो गए. वह मेहनती तो थे ही, ईमानदार भी थे, इसलिए आज वह मुंबई पुलिस में इंसपेक्टर हैं.

पुलिस की नौकरी में आने के बाद उन की शादी दीपाली से हुई थी. दीपाली एलएलबी किए थी. पति की तरह वह भी महत्त्वाकांक्षी थी. वह एक प्रतिष्ठित वकील बनना चाहती थी. इस के लिए ज्ञानेश्वर गणोरे ने बेटे सिद्धांत के जन्म के बाद उसे एलएलएम की पढ़ाई के लिए लंदन भेज दिया था. यह अलग बात है कि लंदन से लौटने के बाद दीपाली ने कुछ दिनों ही वकालत की थी.

ज्ञानेश्वर गणोरे का बेटा सिद्धांत पहले तो पढ़ने में ठीक था, लेकिन हाईस्कूल के बाद उस का दाखिला मुंबई में करवाया गया तो पता नहीं क्या हुआ कि यहां उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा. इंटर तो उस ने किसी तरह कर लिया, लेकिन कालेज के दूसरे साल में वह फेल हो गया. इस की वजह थी, घर का माहौल.

दरअसल, घर में अकसर मातापिता में लड़ाईझगड़ा होता रहता था. दीपाली को शक था कि उस के पति का किसी महिला से अफेयर है. सिद्धांत को यह पसंद नहीं था. वह मांबाप के रोजरोज के लड़ाईझगड़े से ऊब चुका था.

लेकिन मांबाप सिद्धांत को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाना चाहते थे. पर उन का यह सपना पूरा नहीं हो सका. मांबाप के प्यार से वंचित सिद्धांत की दोस्ती कालेज के कुछ आवारा युवकों से हो गई थी, जिन के साथ रह कर वह ड्रग्स लेने लगा था.

इस बात की जानकारी दीपाली और ज्ञानेश्वर गणोरे को हुई तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. दोनों सिद्धांत पर नजर रखने लगे. उस के फोन और लैपटौप के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई. इस से सिद्धांत परेशान रहने लगा.

दीपाली ने कोशिश कर के सिद्धांत का दाखिला बांद्रा के नेशनल कालेज में बीएससी में करवा दिया. वह खुद सिद्धांत को कालेज छोड़ने जाती थीं, लेकिन उन के वापस आते ही सिद्धांत अपने आवारा और नशेड़ी दोस्तों के साथ निकल जाता. घर में दीपाली उस के साथ मां की तरह नहीं, तानाशाह जैसा व्यवहार करती थीं. उस की किताबें, नोटबुक और लैपटौप चेक करती थीं.

काम पूरा न होने पर उस से तरहतरह के सवाल करतीं और ताना मारतीं. अगर ज्ञानेश्वर गणोरे बेटे का पक्ष लेते तो वह उन से भी उलझ जातीं. यह सब सिद्धांत को अच्छा नहीं लगता था.

घटना वाले दिन सिद्धांत ने मां से कुछ पैसे मांगे. दीपाली ने पैसे देने से साफ मना कर दिया. मांबेटे के बीच कहासुनी होने लगी तो ज्ञानेश्वर गणोरे दोनों को समझाबुझा कर अपनी ड्यूटी पर चले गए, लेकिन दीपाली शांत नहीं हुईं. वह सिद्धांत को अपनी मार्कशीट दिखाने को कह रही थीं, लेकिन सिद्धांत मार्कशीट दिखाता कैसे, उस ने तो परीक्षा ही नहीं दी थी. यह जान कर दीपाली को गुस्सा आ गया.

सिद्धांत को आड़ेहाथों लेते हुए उन्होंने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. दीपाली की बातें सिद्धांत के बरदाश्त से बाहर होती जा रही थीं. जब उस की सहनशक्ति समाप्त हो गई तो उस का मानसिक संतुलन बिगड़ गया. पहले तो उस ने अपने हाथों की नसें काट कर आत्महत्या करनी चाही. लेकिन अचानक उस का विचार बदल गया. आत्महत्या करने के बजाय उसे अपनी मां दीपाली की हत्या करना उचित लगा.

वह किचन में गया और सब्जी काटने वाला चाकू उठा लाया. दीपाली हाल में बैठी टीवी देख रही थीं. वह उन के पास पहुंचा और उन पर हमला कर दिया. अचानक हुए हमले से दीपाली संभल नहीं सकीं और फर्श पर लुढ़क गईं. वह चीखतीचिल्लाती रहीं, पर सिद्धांत को उस पर जरा भी दया नहीं आई. आखिर उस ने उन्हें मौत के घाट उतार कर ही दम लिया.

अपनी जन्म देने वाली मां की हत्या कर के सिद्धांत खड़ा ही हुआ था कि पिता का फोन आ गया. उस ने फोन रिसीव कर के बड़ी ही शांति से कहा कि मां फिल्म देखने गई हैं. वह देर रात तक आएंगी. वह भी बाहर जा रहा है. पिता से बात करने के बाद सिद्धांत ने चाकू मां की लाश के पास फेंका और भड़ास निकालने के लिए उस ने मां के खून से दीवार पर संदेश लिख कर उस के नीचे स्माइली बना दिया.

इस के बाद उस ने बैडरूम में रखी अलमारी में रखे 2 लाख रुपए निकाले और अपने तथा मां के फोन को बंद कर के सिम निकाल कर अपने पास रख लिया. पुलिस अधिकारी का बेटा होने के नाते उसे पता था कि मोबाइल रखना खतरे से खाली नहीं है. उस ने सोचा तो ठीक था, लेकिन पकड़ा मोबाइल फोन से ही गया.

अब तक रात के 8 बज चुके थे. उस के पिता कभी भी आ सकते थे, इसलिए अब वह वहां से निकल जाना चाहता था. घर से बाहर आ कर वह सांताकु्रज लोकल स्टेशन पहुंचा, जहां से बोरीवली गया. वहां से गुजरात एक्सप्रैस पकड़ कर सूरत और वहां से जोधपुर एक्सप्रैस से जोधपुर चला गया. जोधपुर से कहीं और जाता, उस के पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी महादेव बावले ने सिद्धांत के खिलाफ मां की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अदालत में पेश किया, जहां से उसे आर्थर रोड जेल भेज दिया गया. सिद्धांत अपनी ही मां की हत्या के आरोप में जेल में बंद है. लेकिन उसे मां की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं है. सोचने वाली बात यह है कि अगर बेटे इस तरह क्रूर हो जाएंगे तो मांबाप की ममता का क्या होगा.

जिस ने लूटा, वही बना सुहाग

जिस लड़की ने कुछ महीने पहले ही अपने करोड़पति बौयफ्रैंड पर बहका कर जिस्मानी संबंध बनाने, मारपीट करने और जातिसूचक गाली देने का आरोप लगा कर हंगामा खड़ा किया था, उस के ही गले में वरमाला डाली और उस के नाम का सिंदूर अपनी मांग में भर लिया.

बिहार के इस हाईप्रोफाइल केस में लड़का एक रिटायर्ड आईएएस अफसर का बेटा और करोड़पति औटोमोबाइल कारोबारी निखिल प्रियदर्शी है, वहीं लड़की बिहार के पूर्व मंत्री की बेटी सुरभि है.

9 महीने तक चले इस हंगामे के बाद दोनों ने शादी रचा कर मामले को ठंडा तो कर दिया, पर इस मामले में सुरभि ने निखिल के साथसाथ बिहार कांग्रेस के उपाध्यक्ष पर भी जिस्मानी शोषण का आरोप लगाया था.

इस आरोप में पिता समेत जेल जाने के बाद निखिल ने अदालत में समझौता याचिका दायर की और आरोप लगाने वाली सुरभि से शादी करने की बात कही थी. उस ने याचिका में कहा था कि सुरभि से अब उस का कोई झगड़ा नहीं है और दोनों शादी करने के लिए राजी हैं.

कोर्ट के आदेश के बाद 6 नवंबर, 2017 को पटना के रजिस्ट्रार के सामने निखिल और सुरभि ने शादी रचा ली.

इस शादी के पीछे एक लंबी कहानी है. 22 दिसंबर, 2016 को सुरभि ने निखिल, उस के भाई मनीष और पिता कृष्ण बिहारी प्रसाद के खिलाफ पटना के एससीएसटी थाने में एफआईआर दर्ज की थी. उस के बाद 8 मार्च, 2017 को पीड़िता ने बुद्धा कालोनी थाने में उस की पहचान उजागर करने, एक करोड़ रुपए और औडी कार मांगने की बातों को सोशल मीडिया पर वायरल करने को ले कर निखिल और ब्रजेश पांडे पर एफआईआर दर्ज कराई थी.

सीआईडी की सुपरविजन रिपोर्ट में मुख्य आरोपी निखिल को कुसूरवार करार दिया गया था. अनुसूचित जाति थाने के आईओ द्वारा की गई जांच में सीआईडी के डीएसपी ने सुपरविजन किया था.

सीआईडी के एडीजे विनय कुमार ने सुपरविजन की समीक्षा करने के बाद निखिल के खिलाफ लगाए गए बलात्कार के आरोप को सही पाया था.

आईजी (कमजोर वर्ग) अनिल किशोर यादव ने भी कहा था कि निखिल पर लगे आरोप सही पाए गए हैं.

निखिल को करीब से जानने वाले बताते हैं कि पावर, पैसा, पौलिटिक्स और पुलिस से निखिल की खूब यारी थी. निखिल एक नामी कार कंपनी के शोरूम का मालिक है. उस के बूते उस ने नेताओं और अफसरों के बीच खासी पैठ बना रखी थी. रसूखदारों से मिलना, उन के साथ उठनाबैठना और पार्टियां करने में उसे खूब मजा आता था. इन सब पर वह जमकर पैसा खर्च करता था.

यौन उत्पीड़न और सैक्स रैकेट चलाने के साथ ही बैंकों से लेनदेन को ले कर भी निखिल के खिलाफ कानूनी मामला चल रहा है. कुछ बैंकों से करोड़ों रुपए के लोन लेने के मामले में वह डिफौल्टर करार दिया गया है और बैंकों ने उस पर केस कर दिया है. बैंकों को रुपए लौटने के मामले में निखिल हाथ खड़े कर चुका है.

मुंबई हाईकोर्ट के आदेश पर निखिल प्रियदर्शी के बेली रोड पर बने कार शोरूम को सील कर दिया था.

टाटा कैपिटल फाइनैंशियल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने निखिल की जायदाद जब्त करने का आदेश पुलिस को दिया था. टाटा कैपिटल का करोड़ों रुपए का लोन निखिल नहीं चुका रहा था. सगुना मोड़ के पास बना उस का दूसरा शोरूम पहले ही जब्त किया जा चुका है.

निखिल समेत कांग्रेस नेता ब्रजेश पांडे और संजीत शर्मा पर सुरभि ने बलात्कार और सैक्स रैकेट चलाने का आरोप लगाया था. निखिल ऊंचे ओहदे पर बैठे कई नेताओं और अफसरों को लड़कियां सप्लाई किया करता था.

सुरभि ने एसआईटी को बताया था कि शादी का झांसा दे कर निखिल उसे महंगी गाडि़यों में घुमाता था. एक दिन वह उसे बोरिंग रोड इलाके के एक फ्लैट में ले गया. उसे कोल्ड ड्रिंक पीने के लिए दी. उसे पीने के बाद वह बेहोश हो गई.

कुछ देर बाद जब उसे थोड़ा होश आया तो देखा कि ब्रजेश पांडे और संजीत शर्मा उस के साथ गलत हरकतें कर रहे थे. बाद में उस ने निखिल को फटकार लगाई और उस पर शादी करने का दबाव बनाया तो निखिल ने उस के साथ मारपीट की.

सुरभि ने मार्च महीने में पुलिस को दिए बयान में कहा था कि वह निखिल से प्यार करती थी और उस से शादी करना चाहती थी. निखिल ने उसे शादी करने का भरोसा दिया था, पर उस के बाद वह लगातार टालमटोल कर रहा था.

पहले तो कई महीनों तक शादी का झांसा दे कर निखिल ने उस के साथ जिस्मानी संबंध बनाए. उस के बाद उसे गलत कामों को करने पर जोर देने लगा. वह अपने दोस्तों के सामने उस के जिस्म को परोसना चाहता था.

एक दिन बोरिंग रोड के एक फ्लैट में ब्रजेश पांडे के सामने सुरभि को परोसने की कोशिश की. ब्रजेश ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. जब पीडि़ता ने उस का विरोध किया तो उस के साथ मारपीट की गई.

सुरभि ने पुलिस को बताया था कि निखिल उस के साथ गलत हरकतें करता था. पहले वह इस बारे में खुल कर कुछ नहीं कह पाती थी, क्योंकि परिवार की बदनामी का डर था. अब उस का परिवार उस के साथ खड़ा है तो वह खुल कर बोल सकती है.

सुरभि ने बताया कि ब्रजेश उसे अपने साथ दिल्ली ले जाना चाहता था. उस ने कई बार उसे दिल्ली चलने को कहा. रुपयों का लालच भी दिया, लेकिन उस ने निखिल के साथ जाने से इनकार कर दिया.

निखिल गांजा पीता था और ज्यादा डोज लेने के बाद वह जानवरों की तरह बरताव करने लगता था. वह उस के जिस्म को नोचनेखसोटने लगता था.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, फेसबुक और ह्वाट्सऐप के जरीए लड़कियों से चैटिंग करना निखिल का शौक था. कई लड़कियों को वह सैक्स के घिनौने खेल में जबरन उतार चुका था. लड़कियों को परोस कर उस ने सत्ता के गलियारों और पुलिस महकमे में अपनी गहरी पैठ बना रखी थी.

दिखावे के तौर पर तो निखिल कारों का कारोबार करता था, लेकिन लग्जरी कारों के साथसाथ खूबसूरत लड़कियां भी उस की कमजोरी थीं. अफसरों और नेताओं को औडी और जगुआर जैसी महंगी कारों में घुमा कर उन से दोस्ती गांठने में वह माहिर था.

सुरभि ने जब निखिल पर यौन शोषण का आरोप लगा कर केस दर्ज किया था तो निखिल फरार हो गया था. एसआईटी ने उस की खोज में देश के कई राज्यों में छापामारी की. उसे पता था कि पुलिस उस की खोज में भटक रही है, इसलिए वह लगातार अपने ठिकाने बदलता रहा.

साढ़े 3 महीने तक फरार रहने और पुलिस की आंखों में धूल झोंकने वाला निखिल प्रियदर्शी और उस के रिटायर आईएएस पिता कृष्ण बिहारी प्रसाद को 14 मार्च को उत्तराखंड से गिरफ्तार किया गया था.

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के लक्ष्मण झूला थाने के चीला ओपी इलाके से उन्हें सुबहसुबह दबोचा गया. बिहार पुलिस को निखिल के उत्तराखंड में होने की सूचना मिली थी.

पटना के एसएसपी मनु महाराज ने पौड़ी गढ़वाल जिले के एसएसपी और अपने बैचमेट मुख्तार मोहसिन को फोन कर उन्हें निखिल के बारे में सूचना दी. उस के बाद ही उत्तराखंड पुलिस निखिल की खोज में लग गई थी. चीला इलाके में गाड़ी चैकिंग के दौरान निखिल अपनी औडी गाड़ी के साथ पकड़ा गया. गाड़ी में उस के पिता भी बैठे हुए थे.

पुलिस ने बताया कि निखिल और उस के पिता के पास पहचानपत्र था. इस वजह से वे किसी होटल में नहीं रुक पा रहे थे. तकरीबन 3 महीने तक बापबेटे ने दिनरात औडी कार में ही गुजारे. वे किसी पब्लिक प्लेस पर कार खड़ी कर के आराम किया करते थे. सार्वजनिक शौचालय में फ्रैश होते और उस के बाद फिर से कार से ही आगे की ओर बढ़ जाते थे.

अब शादी करने के बाद निखिल और सुरभि की नई जिंदगी क्या करवट लेगी, यह देखने वाली बात होगी.