पराई मोहब्बत में दी जान : धोकेबाज प्रेमी – भाग 3

‘‘क्या तुम प्यार की जगह अपने तन का सौदा करना चाहती हो?’’ दलबीर ने पूछा.

‘‘जब प्यार की जगह स्वार्थ पनप गया हो तो समझ लो कि मैं भी तन का सौदा करना चाहती हूं. अब तुम मेरे शरीर से तभी खेल पाओगे, जब एक लाख रुपया मेरे हाथ में थमाओगे.’’

‘‘यदि रुपयों का इंतजाम न हो पाया तो..?’’ दलबीर ने पूछा.

‘‘…तो मुझे भूल जाना.’’

दलबीर को सपने में भी उम्मीद न थी कि सरिता तन के सौदे की बात करेगी. उसे उम्मीद थी कि वह उस से माफी मांग कर तथा कुछ आर्थिक मदद कर उसे मना लेगा. पर ऐसा नहीं हुआ बल्कि सरिता ने उस से बड़ी रकम की मांग कर दी.

इस के बाद सरिता और दलबीर में दूरियां और बढ़ गईं. जब कभी दोनों का आमनासामना होता और दलबीर सरिता को मनाने की कोशिश करता तो वह एक ही जवाब देती, ‘‘मुझे तन के बदले धन चाहिए.’’

13 जनवरी, 2021 की सुबह 5 बजे दलबीर सिंह ने सरिता को फोन कर के अपने प्लौट में बनी झोपड़ी में बुलाया. सरिता को लगा कि शायद दलबीर ने रुपयों का इंतजाम कर लिया है. सो वह वहां जा पहुंच गई.

सरिता के वहां पहुंचते ही दलबीर उस के शरीर से छेड़छाड़ तथा प्रणय निवेदन करने लगा. सरिता ने छेड़छाड़ का विरोध किया और कहा कि वह तभी राजी होगी, जब उस के हाथ पर एक लाख रुपया होगा.

सरिता के इनकार पर दलबीर सिंह जबरदस्ती करने लगा. सरिता ने तब गुस्से में उस की नाक पर घूंसा जड़ दिया. नाक पर घूंसा पड़ते ही दलबीर तिलमिला उठा. उस ने पास पड़ी ईंट उठाई और सरिता के सिर पर दे मारी.

सरिता का सिर फट गया और खून की धार बह निकली. इस के बाद उस ने उस के सिर पर ईंट से कई प्रहार किए. कुछ देर छटपटाने के बाद सरिता ने दम तोड़ दिया. सरिता की हत्या के बाद दलबीर सिंह फरार हो गया.

इधर कुछ देर बाद सरिता की देवरानी आरती किसी काम से प्लौट पर गई तो वहां उस ने झोपड़ी में सरिता की खून से सनी लाश देखी. वह वहां से चीखती हुई घर आई और जानकारी अपने पति मुकुंद तथा जेठ अरविंद को दी.

दोनों भाई प्लौट पर पहुंचे और सरिता का शव देख कर अवाक रह गए. इस के बाद तो पूरे गांव में सनसनी फैल गई और मौके पर भीड़ जुटने लगी.

इसी बीच परिवार के किसी सदस्य ने थाना फफूंद पुलिस को सरिता की हत्या की सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह पुलिस फोर्स के साथ लालपुर गांव की ओर रवाना हो लिए. रवाना होने से पहले उन्होंने पुलिस अधिकारियों को भी सूचित कर दिया था. कुछ देर बाद ही एसपी अपर्णा गौतम, एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित तथा सीओ (अजीतमल) कमलेश नारायण पांडेय भी लालपुर गांव पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा मृतका सरिता के पति अरविंद दोहरे तथा अन्य लोगों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए तथा फिंगरप्रिंट लिए.

एसपी अपर्णा गौतम ने जब मृतका के पति अरविंद दोहरे से हत्या के संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी सरिता के दलबीर सिंह से नाजायज संबंध थे, जिस का वह विरोध करता था. इसी नाजायज रिश्तों की वजह से सरिता की हत्या उस के प्रेमी दलबीर सिंह ने की है. दलबीर और सरिता के बीच किसी बात को ले कर मनमुटाव चल रहा था.

अवैध रिश्तों में हुई हत्या का पता चलते ही एसपी अपर्णा गौतम ने थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह को आदेश दिया कि वह आरोपी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार करें.

आदेश पाते ही राजेश कुमार सिंह ने मृतका के पति अरविंद दोहरे की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 तथा (3) (2) अ, एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दलबीर सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया तथा उस की तलाश में जुट गए.  15 जनवरी, 2021 की शाम चैकिंग के दौरान थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह को मुखबिर से सूचना मिली कि हत्यारोपी दलबीर सिंह आरटीओ औफिस की नई बिल्डिंग के अंदर मौजूद है.

मुखबिर की सूचना पर थानाप्रभारी ने आरटीओ औफिस की नई बिल्डिंग से दलबीर सिंह को गिरफ्तार कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त खून सनी ईंट तथा खून सने कपड़े बरामद कर लिए.

दलबीर सिंह ने बताया कि सरिता से उस का नाजायज रिश्ता था. सरिता उस से एक लाख रुपए मांग रही थी. इसी विवाद में उस ने सरिता की हत्या कर दी.

राजेश कुमार सिंह ने सरिता की हत्या का खुलासा करने तथा आरोपी दलबीर सिंह को गिरफ्तार करने की जानकारी एसपी अपर्णा गौतम को दी, तो उन्होंने पुलिस लाइन सभागार में प्रैसवार्ता की और आरोपी दलबीर सिंह को मीडिया के समक्ष पेश कर हत्या का खुलासा किया.

16 जनवरी, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त दलबीर सिंह को औरैया कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मृतक पहुंचा सलाखों के पीछे – भाग 3

यह आइडिया आते ही सुदेश ने दिमाग लगाना शुरू कर दिया कि वह खुद को इसी तरह जेल जाने से बचा सकता है. सुदेश ने जब अपनी पत्नी को दिल की बात बताई तो थोड़ी नानुकुर के बाद अनुपमा को भी यह बात पसंद आ गई. वैसे भी कौन पत्नी नहीं चाहेगी कि उस का पति जेल जाने से बच जाए.

काफी विचारविमर्श के बाद सुदेश व अनुपमा ने इस काम के लिए एक मजदूर का इंतजाम करने के लिए अपनी छत को ठीक कराने का बहाना बनाया. इस के लिए सुदेश 18 नवंबर, 2021 को लेबर चौक गया और अपनी कदकाठी के एक मजदूर, जिस का नाम दोमन रविदास था और वह बिहार के गया जिले के अतरी का रहने वाला था, को ले आया.

18 नवंबर को सुदेश ने पहले दिन अपनी छत की स्लैब डलवाई. मजदूर रविदास के कपडे़ काफी पुराने व फटी हालत में थे लिहाजा सुदेश ने उसे अपना ट्रैकसूट पहनने के लिए दे दिया जिस की जर्सी कौफी कलर की थी और लोअर नीले रंग का था.

अगले दिन भी काम होना था, इसलिए सुदेश ने रविदास को अगले दिन फिर आने के लिए कहा.

19 नवंबर को दोमन रविदास उसी के कपड़े पहन कर फिर काम पर आया. शाम होतेहोते जब काम खत्म हो गया तो शाम को दारू पार्टी के बहाने रोक लिया. दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. इस दौरान सुदेश खुद कम शराब पीता रहा जबकि उस ने रविदास को बड़ेबड़े पैग पिलाने शुरू कर दिए.

रात करीब 9 बजे रविदास को खूब नशा हो गया. इस दौरान सुदेश और उस अनुपमा ने पहले ही तय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है. इस दौरान उन्होंने चारपाई के पाये से रविदास के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर हत्या कर दी.

यह बात बेटे सुनील को पता नहीं चले इसलिए उस ने सुनील को अपनी परचून की दुकान पर बैठने के लिए भेज दिया था.

सुदेश ने पहले ही तय कर लिया था कि वे रविदास की हत्या कर उसे सुदेश के रूप में अपनी पहचान देगा. इसीलिए एक दिन पहले उस ने अपना ट्रैकसूट रविदास को पहनने के लिए दिया था. खुद को वह दुनिया की निगाहों में मुर्दा करार दे सके, इस के लिए भी उस ने पूरी प्लानिंग कर ली थी.

सुदेश व अनुपमा को जब इत्मीनान हो गया कि रविदास की मौत हो चुकी है तो कमरे को पानी से साफ कर उस के शव को पहले एक पन्नी में लपेटा. उस के बाद उसे बोरी में भर दिया.

रात को करीब 11 बजे जब इलाके में सन्नाटा पसर गया और उस का बेटा भी सो गया तो सुदेश बोरे में भरे रविदास के शव को साइकिल पर रख कर लोनी बौर्डर थाना क्षेत्र की इंद्रापुरी कालोनी में खाली प्लौट में ले गया.

वहां शव को बोरी से निकाल कर उस के चेहरे और शरीर के ऊपरी हिस्से पर अखबार के कागज व टाट की बोरी रख कर जला दिया ताकि शव की पहचान न हो सके.

शव की पहचान सुदेश के रूप में कराने के लिए उस ने अपना आधार कार्ड रविदास की जेब में रख दिया था. पहले से तय योजना के मुताबिक सुदेश अपने घर गया और पत्नी को आ कर बताया कि जब पुलिस उस से रविदास के शव की शिनाख्त कराए तो वह उस की पहचान कर ले.

सुदेश की पूरी प्लानिंग थी कि वह रविदास को सुदेश साबित कर दे, इसलिए पत्नी के साथ बनी योजना के तहत वह इस के बाद चोरीछिपे देर रात में ही घर आता और इस के अलावा इधरउधर छिप कर अपना वक्त बिताता था.

10 दिसंबर को सुदेश ने अपनी पत्नी को फोन कर के कहा कि वह रात को घर आएगा घर की लाइट जला कर रखना. यदि सब कुछ ठीक हो तो गेट पर सफेद कपड़ा डाल देना. यह बात पुलिस ने सर्विलांस के दौरान सुन ली और पुलिस पहले से आरोपी की तलाश में उस के घर पहुंच गई और लाइट जला कर गेट पर सफेद कपड़ा डाल दिया.

सुदेश के पहुंचते ही पुलिस ने आरोपी व उस की पत्नी को दबोच लिया.

पूछताछ में सुदेश ने बताया कि जेल और सजा से बचने के लिए उस ने खौफनाक घटना को अंजाम दिया था. जेल जाने से बचने के लिए उस ने अपनी पत्नी के साथ मिल कर यह साजिश रची थी. लेकिन उस ने पहली भूल यह कर दी कि काफी प्रयास के बाद भी अपने ही कदकाठी के मजदूर को नहीं तलाश सका था.

सुदेश और अनुपमा की साजिश यह थी कि इस साजिश के पूरा होने पर वे दिल्ली छोड़ कर चले जाएंगे, लेकिन आखिरकार उस के बिना जले आधार कार्ड, सीसीटीवी कैमरे की तसवीरों और दूसरे सबूतों ने उस की खौफनाक साजिश का खुलासा कर दिया.

इस दौरान पुलिस ने करावल नगर थाने और मंडोली जेल से रिकौर्ड निकलवा कर पता कर लिया था कि सुदेश की हाइट 5 फुट 6 इंच है जबकि इंद्रापुरी इलाके में जो शव मिला था, उस की हाइट 5 फुट 3 इंच थी यानी 3 इंच कम.

इसी के बाद पुलिस ने सुदेश के घर की निगरानी शुरू की. उस की पत्नी के फोन को सर्विलांस पर लगाया और वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

पुलिस ने सुदेश के साथ उस की पत्नी को भी डोमन रविदास की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर हत्या में प्रयुक्त चारपाई का पाया व शव को ठिकाने लगाने वाली साइकिल बरामद कर ली.

सुदेश व अनुपमा की गिरफ्तारी के बाद मुकदमे में भादंवि की धारा 201, 419, 420 व 120बी जोड़ कर उन्हें अदालत में पेश कर दिया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

दूसरी तरफ लोनी बौर्डर पुलिस ने मृतक मजूदर डोमन रविदास की करावल नगर थाने में दर्ज गुमशुदगी को अपने यहां ट्रांसफर करवा ली. रविदास के साथियों के साथ जा कर रविदास के बेटे ने थाना करावल नगर दिल्ली में जा कर घटना के 3 दिन बाद गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

—कथा पुलिस की जांच और आरोपियों तथा पीडि़त परिवार से बातचीत पर आधारित

जीजा के प्यार की धार : शबाना हुई बंदिशों का शिकार

खंडवा थाने की रामनगर चौकी के प्रभारी एसआई सुभाष नावडे, को 29 जून, 2021 की सुबह 9 बजे किसी ने सूचना दी कि चीराखदान तालाब में एक लाश तैर रही है. यह लाश तालाब के पास खेलते हुए बच्चों ने देखी थी. सूचना मिलने के बाद चौकी इंचार्ज सुभाष नावड़े ने सूचना टीआई बी.एल. मंडलोई को दे दी और वह टीम के साथ उस तालाब के पास पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की खबर मिली थी.

पुलिस ने सब से पहले लाश को पानी से बाहर निकलवाया. वह लाश चादर के साथ चटाई में लिपटी थी. थोड़ी देर में खंडवा थाने के टीआई बी.एल. मंडलोई वहां पहुंच गए.

वह अर्द्धनग्न लाश किसी युवक की थी. पुलिस उस लाश की जांच करने में जुट गई. उस के सिर, गले और हाथ पर धारदार हथियार के निशान थे. तब तक आसपास भीड़ भी लग चुकी थी. संयोग से भीड़ में से एक व्यक्ति ने लाश  की पहचान संजय बामने उर्फ संजू के रूप में की.

कुछ समय में वहां रोती हुई पहुंची महिला ने पुलिस को बताया कि लाश उस के पति की है और उस का नाम शबाना है.

777बरामद लाश को देख कर इतना तो साफ हो गया था कि उस की हत्या कर तालाब में फेंकी गई थी. उस का घर नजदीक के माता चौक पर मल्टी में बताया गया. इस की सूचना मिलते ही मृतक का भाई और परिवार के अन्य सदस्य भी वहां पहुंच गए.

उन्होंने ही बताया कि शबाना संजय की ब्याहता पत्नी नहीं है, बल्कि वह उस के साथ पिछले 2 सालों से लिव इन में रह रही थी. उन्होंने हत्या का सीधा आरोप शबाना पर ही मढ़ दिया. घर वालों से शुरुआती पूछताछ के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

एसपी (खंडवा) ललित गठरे ने इस केस का खुलासा करने के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. टीम में टीआई बी.एल. मंडलोई, एसआई राजेंद्र सोलंकी, चौकी इंचार्ज (रामनगर) सुभाष नावड़े, परिणीता बेलेकर, एएसआई रमेश मोरे, हिफाजत अली, हैड कांस्टेबल ललित कैथवास, पंकज सोलंकी, कांस्टेबल ब्रजपाल चंदेल, आकाश जादौन, लक्ष्मी चौहान, निकता तिवारी आदि को शामिल किया.

आगे की जांच के लिए पुलिस मल्टी पहुंची, जहां मृतक संजय शबाना के साथ रहता था. टीआई मंडलोई ने उस के घर का बारीकी से मुआयना किया, वहां उन्हें खून के कुछ धब्बे मिले. उन में कुछ धब्बे मिटाने के भी निशान थे.

वहीं शबाना की 13 वर्षीया बेटी मिली. वह काफी घबराई हुई थी. कुछ पड़ोसी भी मौजूद थे. पूछताछ में उन्होंने बताया कि शबाना और संजय के बीच अकसर झगड़ा होता रहता था. संजय खूब शराब पीता था, शराब के नशे में शबाना के साथ वह मारपीट किया करता था.

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इस के अलावा घर में शबाना के बहनोई हाकिम का भी आनाजाना था. यह बात संजय को पसंद नहीं थी. हाकिम के जाने के बाद संजय शबाना पर बेहद नाराज होता था.

इस जानकारी के आधार पर ही सीएसपी ललित गठरे ने शबाना और उस के बहनोई हाकिम को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. पूछताछ के दौरान दोनों ने घुमाफिरा कर जवाब दिए. उन की बातों से पुलिस ने अंदाजा लगा लिया कि यह दोनों बहुत कुछ छिपा रहे हैं और हत्या की जानकारी देने से बचना चाहते हैं.

पुलिस ने जब उन के साथ थोड़ी सख्ती की और संजय के घर से बरामद सामान दिखाए तो वे दोनों टूट गए. फिर उन्होंने राज की सारी बातें बता दीं. उस में जीजासाली के बीच प्रेम कहानी का खुलासा हुआ. साथ ही उन की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल किए गए ब्लेड, खून लगा सिलबट्टा और खून सने कपड़े बरामद कर लिए.

शबाना और हाकिम की प्रेम कहानी के साथ शबाना और संजय के लिवइन रिलेशन की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार है—

कहानी की शुरुआत शबाना, उस की 32 वर्षीया बड़ी बहन जायरा और 46 वर्षीय हाकिम से होती है. बात तब की है, जब शबाना महज 16 साल की थी. वह खुद से करीब दोगुने उम्र के हाकिम से इश्क कर बैठी थी.

उन की मोहब्बत पर उम्र के अंतर का कोई असर नहीं था. दोनों एकदूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करते थे. शबाना हाकिम को अपना सब कुछ सौंप चुकी थी.

वे निकाह भी करना चाहते थे, लेकिन जब इस की जानकारी उस के परिवार को हुई तब उन्होंने उम्र के अंतर को देखते हुए उस की बड़ी बहन जायरा का विवाह हाकिम से कर दिया.

उस के बाद हाकिम शबाना का प्रेमी से जीजा बन गया. हाकिम खूबसूरत जायरा को पा कर बेहद खुश हुआ, लेकिन उस के लिए शबाना को दिल से निकलना मुश्किल हो रहा था.

जायरा जीजासाली के प्रेम संबंध को जानती थी, फिर भी उस ने हाकिम के साथ निकाह इसलिए कर लिया था कि उस की छोटी बहन शबाना ने उस से वादा किया था कि वह उस की खुशी के लिए अपने इश्क को दफन कर देगी.

वह उन की जिंदगी से दूर चली जाएगी. दूसरी तरफ जायरा ने हाकिम पर ऐसी लगाम लगाई कि वह चाह कर भी शबाना से नहीं मिल पाता था.

जल्द ही शबाना का भी एक युवक के साथ निकाह हो गया, उस के बाद शबाना अपने वादे के मुताबिक जायरा और हाकिम की जिंदगी से दूर चली गई. उस की अपनी अलग गृहस्थी और दुनिया बस गई थी.

10 सालों के दौरान शबाना 3 बच्चों की मां भी बन गई. हालांकि शबाना अपने शौहर के व्यवहार से दुखी रहती थी, कारण शौहर को उस के निकाह से पहले के प्रेम संबंध की आधीअधूरी जानकारी हो चुकी थी.

वह बारबार उस को अतीत के प्रेम को ले कर ताने देता था. जब भी किसी घरेलू मसले पर विवाद होता, तब बहस के दौरान कई बार उस ने गुस्से में कह दिया था कि वह अपने प्रेमी हाकिम के पास ही चली जाए.

पति की यह बात शबाना को न केवल चुभ जाती थी, बल्कि इस से उस की पुरानी मोहब्बत की यादें भी ताजा हो जाती थीं. वह एकदम से तिलमिला जाती थी.

बारबार की इस चिकचिक से उस ने एक दिन शौहर से अलग रहने का निर्णय ले लिया और अपनी 10 साल की बेटी के साथ अलग रहने लगी. 2 बच्चे उस ने शौहर के पास ही छोड़ दिए.

किशोरावस्था से ही इश्क का स्वाद ले चुकी शबाना के लिए किसी नए प्रेमी की तलाश करना मुश्किल नहीं था. जल्द ही उसे संजय बामने नाम का युवक मिल ही गया.

संजय उम्र में छोटा था तो क्या हुआ वह उस की भावना को समझता था और उस के सेक्स की भूख भी मिटाता था.

जल्द ही संजय भी खुद से बड़ी उम्र की प्रेमिका को जीजान से प्यार करने लगा. अपना घरबार छोड़ कर बगैर शादी किए हुए शबाना के साथ रामनगर मल्टी में किराए के मकान में रहने लगा था.

कुछ समय तक संजय और शबाना के बीच लिवइन की मधुरता बनी रही, लेकिन उन के रिश्ते में खटास तब आ गई जब शबाना का पूर्व प्रेमी यानी उस का जीजा हाकिम उस की जिंदगी में वापस आ गया.

दरअसल, हाकिम ने जायरा से निकाह करना इसलिए स्वीकार कर लिया था, क्योंकि तब उसे लगा था कि शबाना उस से पहले की तरह ही मिलतीजुलती रहेगी. लेकिन ऐसा नहीं होने पर हाकिम उस की याद में बेचैन हो गया. जब उसे शबाना के अकेली रहने के बारे में मालूम हुआ, तब उस ने उस से मिलने की योजना बना ली.

हालांकि शबाना और हाकिम के मिलने की राह में जायरा रोड़ा बनी हुई थी. बावजूद इस के लंबे समय बाद जब हाकिम अपनी साली और पुरानी प्रेमिका शबाना से मिलने उस के पास गया तब उस ने उसे बाहों में भर लिया. उस ने हाकिम की खूब आवाभगत की.

उस की खिदमतगारी में कोई कोर कसर नहीं रहने दी. उन का अधूरा मोहब्बतनामा फिर से लिखा जाने लगा. लेकिन इस की जानकारी भी संजय को जल्द हो गई.

शबाना अब 2-2 प्रेमियों के साथ लिव इन में रह रही थी. लेकिन लंबे समय तक इस तरह रहना आसान नहीं था. संजय ही शबाना के घरेलू खर्च और उस की बेटी के पालनपोषण का जिम्मा उठाए हुए था.

संजय को यह बात पता चल गई थी कि शबाना के पास उस का जीजा हाकिम भी आता है. इसलिए उस ने शबाना से साफसाफ कह दिया कि अपने घर में किसी दूसरे मर्द को वह नहीं देखना चाहता.

इस पर शबाना ने रिश्ते की बात कह कर कुछ समय तक संजय को बहला दिया. फिर भी संजय ने हिदायत दी कि उस के नाजुक रिश्ते में किसी की भी दखलंदाजी नहीं होनी चाहिए. यदि ऐसा होता रहा तो वह हरगिज बरदाश्त नहीं करेगा.

संजय की सख्ती और फरमानों को ले कर शबाना उस से नाराज रहने लगी. संजय की एक बुरी आदत शराब पीने की भी थी. शबाना उसे हमेशा कहती थी कि वह घर में शराब न पीए. उस की बड़ी हो रही बेटी भी साथ में रहती है. उस पर बुरा असर पड़ेगा.

जब से संजय और शबाना के बीच हाकिम को ले कर मतभेद उभरे थे, तब से संजय के शराब पीने की आदत बढ़ गई थी. बाहर तो पीता ही था, रात में भी घर आ कर भी बोतल खोल लेता था.

एक दिन तो संजय ने हद ही कर दी. शराब पी कर आया और आते ही शबाना का गुस्सा उस की बेटी पर निकालने लगा. उसे बुरी तरह से डांटनेफटकारने लगा. उस के पकाए खाने में कमियां निकालने लगा.

जब शबाना ने इस का विरोध किया और कहा कि वह ऐसा न करे, तब संजय ने उस पर हाथ उठा दिया. उस रोज संजय ने मांबेटी दोनों की शराब के नशे में पिटाई कर दी.

इस मारपीट में शबाना की बेटी के सिर में चोट भी आ गई और शबान भी जख्मी हो गई. गनीमत यह रही कि घर में डिटौल रखी थी, जिस से अपने और बेटी की चोटों के खून को बंद करने में सफल रही.

सुबह होने पर संजय ने उन से रात की मारपिटाई को ले कर माफी मांग ली और अच्छी तरह से मरहमपट्टी के लिए पैसे दे कर चला गया. साथ में हिदायत भी दी कि इस बारे में किसी को भी न बताए.

2 दिनों तक तो घर में शांति बनी रही, लेकिन तीसरे दिन संजय फिर शबाना से दिन में ही उलझ गया. पड़ोसियों ने आ कर उसे समझाया तब गुस्से में चला गया. उसी रोज हाकिम भी शबाना से मिलने आया. शबाना और उस की बेटी ने रोरो कर संजय की ज्यादती उस से बयां की.

हाकिम यह सुन कर सन्न रह गया. उस ने शबाना को आस्वस्त किया कि वह इस का समाधान जल्द निकालेगा. इतना कह कर वह वहां से चला गया, लेकिन उस के मन में साजिश की योजना बन रही थी.

उसी के अनुसार 28 जून, 2021 की तारीख मुकर्रर की गई. कैसे योजना को अंजाम देना है, इस बारे में शबाना से बात कर ली. फिर 22 तारीख की आधी रात को शबाना ने हाकिम को फोन कर के अपने घर बुला लिया. हाकिम बताए समय पर आ गया. फिर उस ने गहरी नींद में सो रहे संजय के सिर पर मसाला पीसने वाला सिलबट्टा दे मारा.

सिलबट्टे के हमले से संजय बेहोश हो गया. फिर हाकिम और शबाना ने मिल कर उस के गले को सर्जिकल ब्लेड से काट डाला. वह ब्लेड हाकिम अपने साथ ले कर आया था.

संजय की हत्या के बाद सुबह के 4 बजे हाकिम ने संजय की लाश पहले अच्छी तरह चादर में लपेटी फिर चटाई में बांध कर पास के चीराखदान तालाब में फेंक आया.

घर पर शबाना ने घर में बिखरे खून के धब्बे साफ किए. अगले रोज 29 जून, 2021 को पुलिस ने तालाब से संजय की लाश बरामद कर ली.

इस हत्याकांड की जांच पूरी होने के बाद हाकिम और शबाना पर हत्या एवं सबूत मिटाने की धाराएं लगा कर फाइल तैयार कर ली गई. जांचकर्ता पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश किया, वहां से उन्हें अपराध का दोष साबित होने तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

धोखे की नाव पर सवार : अपनों ने ही ली जान

—श्वेता पांडेय

गंगाराम अपनी मां दुलारीबाई से किसी भटियारिन की तरह हाथ नचाता हुआ गुस्से से बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें कितनी बार बोला है कि मुझे निकासी के लिए रास्ता दो. मुझे लंबा चक्कर काट कर घर तक पहुंचना पड़ता है. उस समय तो और परेशानी बढ़ जाती है जब खेतों से फसल बैलगाड़ी में लाद कर लाते हैं.

‘‘आखिर मेरी बात तुम कब समझोगी. हर साल इसी बात का रोना होता है. सवा महीने बाकी हैं, फसल तैयार हो चुकी है. मुझे निकासी के लिए रास्ता चाहिए. और उस 2 एकड़ खेत में से हिस्सा भी चाहिए. मैं भी परिवार वाला हूं.’’

‘‘अच्छा. अभी तो मांबाप को पूछता नहीं है और जिस दिन जमीन से हिस्सा मिल गया, मांबाप मानने से भी इनकार कर देगा. गंगाराम, मैं ने दुनिया देखी है. बंटवारा हुआ नहीं कि मांबाप के हाथ में कटोरा थमा दोगे. बुढ़ौती में भीख मांगनी पड़ जाएगी.

दोनों मांबेटे में इसी तरह काफी देर तक झगड़ा चलता रहा. उसी समय गंगाराम के पिता बालाराम खेत से घर लौटे. दुलारी ने बेटे की शिकायत अपने पति से की, ‘‘लो, संभालो अपने बेटे को, जो जी में आता है बोलता ही चला जाता है.’’

गंगाराम अपने पिता से बोला, ‘‘बाबूजी, मां को समझाओ और संभालो नहीं तो किसी दिन मेरा मूड खराब हो गया तो इसे गंडासे से काट कर नदी में.’’

बालाराम ने बीच में हस्तक्षेप किया, ‘‘बहुत बोल चुका,’’ उन्होंने अपनी पत्नी दुलारी का पक्ष लिया, ‘‘अब अगर तू अपनी मां को एक भी शब्द बोला तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

इस झगड़े के बीच गंगाराम की पत्नी निर्मला पति का हाथ पकड़ कर बाहर लाने लगी. गंगाराम ने निर्मला का हाथ झटक दिया, ‘‘आज मैं बुड्ढे बुढि़या को छोड़ूंगा नहीं.’’

कहता हुआ गंगाराम अपने पिता बालाराम से जा भिड़ा. बापबेटे को एकदूसरे से हाथपाई करते देख गांव के लोग जमा हो गए.

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गांव वालों ने बापबेटे को बड़ी मुश्किल से एकदूसरे से अलग किया. गंगाराम लोगों की बांहों में जकड़ा हुआ कसमसा रहा था. साथ ही गुस्से से चीखता रहा.

दोनों एकदूसरे के कट्टर विरोधी हो गए. कोढ़ में खाज यह हुआ कि इसी बीच निर्मला बीमार रहने लगी. इस के लिए निर्मला अपनी सास दुलारीबाई को जिम्मेदार ठहराने लगी. वह सास पर यह आरोप लगाती कि उस ने उस के ऊपर कोई टोनाटोटका करा दिया है.

गंगाराम ने कई ओझागुनिया को पत्नी को दिखाया. मर्ज यह था कि निर्मला के सिर में दर्द बना रहता था और शाम को बुखार चढ़ने लगता था.

झाड़फूंक से कोई सुधार न हुआ तो वह डाक्टर के पास गया. टेस्ट करवाने पर पता चला कि निर्मला को टायफायड है. एलोपैथी दवा भी चली और झाड़फूंक भी. पता नहीं किस ने असर दिखाया, निर्मला धीरेधीरे ठीक होने लगी.

गंगाराम और उस की पत्नी निर्मला के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उस की सास दुलारीबाई किसी तांत्रिक ओझा से मिल कर उन्हें बरबाद करने पर तुली है.

इस बात पर गंगाराम की सोच भी निर्मला की सोच से अलग नहीं थी. निर्मला जब पूरी तरह से ठीक हो गई और उस के शरीर में जान आ गई तब वह अपनी सास पर इलजाम लगाने लगी.

एक बार फिर दोनों पक्षों में तकरार और झिकझिक होने लगी. वह एकदूसरे के लिए गलत भावनाएं रखने लगे. फिर वही समय आया, नवंबर दिसंबर का. फसल तैयार हो कर खेत से कोठरी में जाने को तैयार थी.

मुद्दा फिर वही उठा कि बैलगाड़ी में रखे अनाज को दूसरे रास्ते से लाना होगा. बालाराम और दुलारी किसी भी तरह से इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि निकासी के लिए बाड़ी से जगह दी जाए. हर साल फसल तैयार होने के बाद यही सवाल खड़ा हो जाया करता था.

कई सालों से यह निकासी का मसला न तो सुलझ रहा था और न ही दूरदूर तक कोई समाधान ही दिखाई दे रहा था.

आज भी इसी विवाद को ले कर गंगाराम और निर्मला दोनों का मन खिन्न था. खाना खाने के बाद दोनों पतिपत्नी टीवी देखने लगे.

टीवी पर वह क्राइम स्टोरी पर आधारित सीरियल देख रहे थे. उस सीरियल की कहानी उन की जिंदगी से जुड़ी जैसी थी. दोनों ने बड़े ध्यान से खामोशी के साथ वह सीरियल देखा. सीरियल खत्म होने के बाद दोनों ने उस पर चर्चा की.

गंगाराम और उस की पत्नी को इस बात की चिंता हो रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि मांबाप पूरी जमीन छोटे भाई रोहित के नाम कर जाएं. वैसे भी छोटा होने के नाते वह मांबाप का चहेता था.

इस सोच ने निर्मला और गंगाराम को परेशान कर डाला. जब इंसान को कोई चीज मिलने की संभावना दिखाई न देती है, तब वह उसे किसी दूसरे ही तरीके से हासिल करने की कोशिश में लग जाता है. इन दोनों ने भी एक योजना बना ली.

गंगाराम और निर्मला ने एक योजना के तहत अपने व्यवहार में थोड़ाबहुत बदलाव किया. अपने पिता बालाराम और मां दुलारीबाई से सहजता से पेश आने लगे. बालाराम और दुलारी को आश्चर्य हुआ कि हमेशा कड़वे बोल बोलने वालों की जुबान में शहद कैसे घुल गया.

इस के बाद उन दोनों ने विचारविमर्श किया कि अपनी योजना में किसे शामिल किया जाए, जिस से उन की योजना सफल हो जाए. नजर और दिमाग के घोड़े दौड़ाने के बाद गंगाराम ने धुधवा गांव के ही नरेश सोनकर, योगेश सोनकर और कोपेडीह निवासी रोहित सोनकर से जिक्र किया.

पैसों के लालच में तीनों ही उन की योजना में शामिल हो गए. तीनों ने योजना बना कर वारदात को अंजाम देने के लिए 21 दिसंबर, 2020 का दिन तय किया.

योजना के अनुसार, चारों लोग खेत पर पहुंच गए. वहां बालाराम और उस का छोटा बेटा रोहित तड़के में खेतों पर पानी लगा रहे थे. उन्होंने उन दोनों को दबोच लिया और सीमेंट की बनी पानी की हौदी में डुबो कर दोनों को मार दिया.

अगला निशाना अब दुलारीबाई और उस की बहू कीर्तिनबाई रही. चारों दबेपांव वहां पहुंचे, जहां वे सब्जियों का गट्ठर तैयार करने में व्यस्त थीं. शिकारी की तरह दबेपांव वे उन के करीब पहुंचे और कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ वार कर उन दोनों की जिंदगी भी खत्म कर दी.

इतना सब कुछ करने के बाद उन लोगों ने चैन की सांस ली. यहां यह बताते चलें कि निर्मला उन चारों को ऐसा करते हुए दरवाजे की ओट से देख रही थी. काम को अंजाम देने के बाद गंगाराम ने तीनों साथियों को वहां से रवाना कर दिया.

निर्मला और गंगाराम दोनों ने मिल कर कुल्हाड़ी को बाड़ी में ही दबा दिया. सुबह के 5 बजतेबजते पूरे खुरमुड़ा गांव में इस दहला देने वाली हत्या की चर्चा होने लगी.

अम्लेश्वर थाने में संजू सोनकर निवासी खुरमुड़ा की रिपोर्ट पर अमलेश्वर थानाप्रभारी वीरेंद्र श्रीवास्तव ने इस नृशंस हत्याकांड की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी.

जांचपड़ताल के लिए फोरैंसिक टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. आईजी विवेकानंद सिन्हा के सुपरविजन में जांच होती रही. पुलिस को किसी तरह का कोई सूत्र नहीं मिल रहा था जिस से जांच आगे बढ़ती.

डौग स्क्वायड टीम घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी. मृतकों के शव के समीप ले जा कर कुत्ते को छोड़ दिया गया. खोजी कुत्ता गोलगोल चक्कर लगाता हुआ मृतकों को सूंघ कर खेत की ओर कुछ दूर तक गया.

मौके की जांच से इतना तो स्पष्ट था कि हत्यारे 2-3 से कम नहीं थे. खेत में रासायनिक छिड़काव कर दिया गया था, जिस के कारण खोजी कुत्ते को सही दिशा नहीं मिल पा रही थी.

बहरहाल, पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. जब पुलिस को किसी तरह का सूत्र नहीं मिला तो पुलिस ने गंगाराम के साढ़ू नरेश सोनकर को विश्वास में ले कर मुखबिरी का जिम्मा सौंपा.

नरेश मंझा हुआ खिलाड़ी था. उस ने पुलिस को मुखबिरी करने के बहाने उलझाए रखा. जांच के लिए आईजी विवेकानंद सिन्हा ने कुछ बिंदु तय किए.

उन बिंदुओं को आधार बना कर पुलिस जांच में जुटी रही. इस सामूहिक हत्याकांड को हुए 3 महीने बीत चुके थे. लेकिन अपराधियों का कोई अतापता नहीं था.

थानाप्रभारी वीरेंद्र श्रीवास्तव ने अपने एक मुखबिर को नरेश के पीछे लगा दिया. नरेश की एक्टिविटी पुलिस को शुरू से ही संदेहास्पद लगी थी.

फोरैंसिक विशेषज्ञों की टीम के सहयोग से भौतिक साक्ष्य जुटाया गया. टीम ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी साक्ष्य को आधार बना कर बारीकी से पूछताछ कर जानकारी इकट्ठी की.

पुलिस ने संदेहियों को हिरासत में ले कर सघन पूछताछ की. इस घटना का मास्टरमाइंड बालाराम का अपना सगा बड़ा बेटा गंगाराम निकला.

गंगाराम की स्वीकारोक्ति के बाद योगेश सोनकर, नरेश सोनकर, रोहित सोनकर उर्फ रोहित मौसा को गिरफ्तार कर लिया गया. सभी को घटनास्थल पर ले जा सीन रीक्रिएशन कराया गया.

आरोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी पुलिस ने बालाराम की बाड़ी से बरामद कर ली.

घटना के वक्त पहने गए कपड़ों को इन चारों ने ठिकाने लगा दिया था. 18 मार्च, 2021 को आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिस में निर्मला भी शामिल थी. इन चारों आरोपियों का नारको टेस्ट भी कराया गया.

आईजी विवेकानंद सिन्हा ने अमलेश्वर थाना स्टाफ की पीठ थपथपाई. पुलिस ने सभी आरोपियों गंगाराम, उस की पत्नी निर्मला, योगेश सोनकर, नरेश सोनकर और रोहित सोनकर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

रजनी को भाया प्रेमी का धमाल

रजनी उर्फ कुंजावती अपने भाईबहनों में सब से बड़ी ही नहीं बल्कि कदकाठी से भी ठीक ठाक थी. इसलिए अपनी उम्र से काफी बड़ी लगती थी. उस का परिवार उत्तर प्रदेश के शहर इटावा में रहता था. उस के पिता किसान थे. जैसे ही वह जवान हुई तो उस के मातापिता उस के लिए योग्य वर की तलाश में लग गए.

उन्हें इस बात का डर था कि कहीं रजनी के कदम बहक गए तो उन की इज्जत पर दाग लग जाएगा. उन्होंने रजनी की शादी के लिए ग्वालियर जिले के महाराजपुरा कस्बे के गांव गुठीना में रहने वाले सुलतान माहौर को पसंद कर लिया. फिर जल्द ही उन्होंने उस की शादी सुलतान के साथ कर दी.

रजनी सुंदर तो थी ही, दुलहन बनने के बाद उस की सुंदरता में पहले से ज्यादा निखार आ गया. रजनी जैसी सुंदर पत्नी पा कर सुलतान बेहद खुश था. दोनों के दांपत्य की गाड़ी खुशहाली के साथ चलने लगी. समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा और रजनी 3 बच्चों की मां बन गई. लेकिन कुछ दिनों बाद आर्थिक परेशानियों ने परिवार की खुशी पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया.

शादी से पहले सुलतान छोटामोटा काम कर के गुजरबसर कर लेता था, लेकिन 3 बच्चों का बाप बन जाने से घर के खर्चे भी बढ़ गए थे. वहीं रजनी की बढ़ती ख्वाहिशों ने उस के खर्चों में काफी इजाफा कर दिया था.

आर्थिक परेशानी से उबरने के लिए  वह एक शोरूम में रात के समय चौकीदारी भी करने लग गया था. इस दौरान उसे शराब पीने की भी लत लग गई, जिस की वजह से वह पैसे शराबखोरी में उड़ा देता था. इस के चलते घर की माली हालत डांवाडोल होने लगी थी. यहां तक कि उस ने कई लोगों से कर्ज ले लिया था.

उधर जब से कोविड के कारण लौकडाउन लगा, तब से सुलतान की मजदूरी और चौकीदारी का काम भी छूट गया था. इस के बावजूद वह लोगों से पैसा उधार ले कर शराब पी लेता था और हद तो तब हो गई जब अपनी पत्नी रजनी उर्फ कुंजावती को शराब के नशे में जराजरा सी बात पर पीटना शुरू कर देता था.

पति की ये आदतें रजनी को काफी सालती थीं. सुलतान के पड़ोस में अजीत उर्फ छोटू कोरी रहता था. वह रजनी को भाभी कहता था, इसलिए दोनों में हंसीमजाक होता रहता था.

रजनी को अजीत से मजाक करने में किसी तरह का संकोच नहीं होता था. एक दिन दोनों हंसीमजाक कर रहे थे तो रजनी ने कहा, ‘‘देवरजी, कब तक इस तरह हंसीमजाक कर के दिन काटोगे? कहीं से घरवाली ले आओ.’’

‘‘भाभी, घरवाली मिलती तो जरूर ले आता. जब तक कोई नहीं मिल रही आप से हंसीमजाक कर संतोष करना पड़ रहा है.’’ अजीत ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘जब तक घरवाली नहीं मिल रही तो इधरउधर से जुगाड़ कर लो.’’ रजनी ने बिना किसी हिचकिचाहट के अजीत की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

‘‘कौन फिक्र करता है भाभी भूखे आदमी की. जिस का पेट भरा रहता है, उसे ही हर कोई पूछता है,’’ अजीत ने शरमाते हुए कहा.

‘‘क्या तुम ने कभी किसी से अपनी परेशानी का जिक्र कर के देखा है?’’

‘‘कोई फायदा नहीं भाभी, लोग मेरी हंसी ही उड़ाएंगे.’’ वह बोला.

‘‘अजीत, जब तक तुम किसी से कहोगे नहीं, कोई तुम्हारी मदद कैसे करेगा?’’ रजनी ने कहा.

‘‘भाभी, अगर आप से कहूं तो क्या आप मेरी मदद करना पसंद करेंगी? भलाबुरा कहते हुए गालियां जरूर देंगी,’’ अजीत ने रजनी के चेहरे पर नजरें गड़ा कर कहा.

रजनी ने चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘एक बार कह कर तो देखो. अरे, मैं तुम्हारी मुंहबोली भाभी हूं अजीत, भला पड़ोसी पड़ोसी की मदद नहीं करेगा तो क्या बाहर वाला मदद करने आएगा.’’

अब इस से भी ज्यादा रजनी क्या कहती. अजीत इतना भी नासमझ नहीं था कि वह रजनी की बात का मतलब न समझ पाता.

‘‘जरूर भाभी, मौका मिलने पर कह दूंगा.’’ वह मुसकराते हुए बोला.

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संयोग से अगले दिन अजीत को पता चला कि सुलतान किसी काम से बाहर गया है. उस दिन अजीत का मन अपने काम में नहीं लगा रहा था. दिन भर उसे रजनी की याद सताती रही. शाम होने पर घर आने पर वह रजनी की एक झलक देखने को बेचैन हो उठा.

रजनी भी पति की गैरमौजूदगी में अजीत को रिझाने के लिए जैसे ही सजसंवर कर दरवाजे पर आई  तो उस की नजर अजीत पर पड़ी. अजीत भी रजनी को देख कर बिना वक्त जाया किए उस के घर पर जा पहुंचा.

अजीत को अचानक इस तरह आया देख कर रजनी ने हंसते हुए कहा, ‘‘देवरजी, आज आप अपने काम से जल्दी लौट आए?’’

‘‘क्या बताऊं भाभी, आज मेरा मन काम में जरा भी नहीं लगा.’’

‘‘क्यों?’’ रजनी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘सच बताऊं?’’

‘‘हां, मुझे तो सचसच बताओ.’’

‘‘भाभी, जब से तुम्हें और तुम्हारी सुंदरता  को देखा है, मेरा मन किसी काम में लगता ही नहीं है. आप सच में बेहद खूबसूरत है.’’

‘‘ऐसी सुंदरता किस काम की, जिस की कोई कदर ही न हो,’’ रजनी ने लंबी सांस लेते हुए कहा.

‘‘क्या भैया तुम्हारी कोई कदर नहीं करते भाभी?’’

‘‘सब कुछ जानते हुए भी अनजान मत बनो, तुम तो जानते हो कि मेरे वो रात में चौकीदारी करते हैं, सो रात को घर से बाहर रहते हैं. ऐसे में मेरी रातें कैसे गुजरती हैं, वो तो मुझे ही पता है.’’

‘‘भाभीजी, जिस स्थिति से आप गुजर रही हैं, ठीक वही स्थिति मेरी है. मैं भी रात भर करवटें बदलता रहता हूं. अगर आप मेरा साथ दें तो हम दोनों की समस्या खत्म हो सकती है,’’ यह कहते हुए अजीत ने रजनी को अपनी बांहों में भर लिया.

पुरुष सुख से वंचित रजनी चाहती तो यही थी, मगर उस ने हावभाव बदलते हुए बनावटी गुस्से में कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हो, छोड़ो मुझे. बच्चे देख लेंगे.’’

‘‘बच्चे तो अपनी मौसी के बच्चों के साथ बाहर खेल रहे हैं. भाभी, आप ने तो मेरा सुखचैन सब छीन रखा है,’’ अजीत ने कहा.

‘‘नहीं अजीत, छोड़ो मुझे. मैं बदनाम हो जाऊंगी, कहीं की नहीं रहूंगी मैं.’’ वह बनावटी बोली.

‘‘नहीं भाभी, अब यह संभव नहीं है. कोई बेवकूफ ही होगा जो रूपयौवन के इस प्याले के इतने नजदीक पहुंच कर पीछे हटेगा,’’ इतना कह कर अजीत ने बांहों का कसाव बढ़ा दिया.

दिखाने के लिए रजनी न…न…न करती रही, जबकि वह स्वयं अजीत के जिस्म से बेल की तरह लिपटी जा

रही थी.

इस के बाद वह पल भी आ गया, जब दोनों ने मर्यादा भंग कर दी. एक बार मर्यादा मिटी तो यह सिलसिला चल निकला. जब भी उन्हें मौका मिलता, इच्छाएं पूरी कर लेते.

दोनों पड़ोस में रहते थे, इसलिए उन्हें मिलने में कोई परेशानी भी नहीं होती थी. रजनी अब कुछ ज्यादा ही खुश रहने लगी थी, क्योंकि उस का प्रेमी मौका मिलने पर बिस्तर पर धमाल मचाने आ जाता था.

अब उस की आर्थिक परेशानी भी दूर हो गई थी. रजनी खर्चे के लिए अजीत से जब भी रुपए मांगती, वह बिना नानुकुर के चुपचाप निकाल कर रजनी के हाथ पर रख देता था.

रजनी और अजीत के बीच अवैध संबंध बने तो उन की बातचीत और हंसीमजाक का लहजा बदल गया. अब दोनों एकदूसरे का खयाल भी कुछ ज्यादा ही रखने लगे थे, इसलिए आसपड़ोस वालों को शक होने लगा.

लोग इस बात को ले कर चर्चा करने लगे. नतीजा यह निकला कि इस बात की जानकारी सुलतान को भी हो गई. सुलतान ने लोगों की बातों पर विश्वास न कर के खुद सच्चाई का पता लगाने का निश्चय किया.

वह जानता था कि यदि इस बारे में पत्नी से पूछताछ करेगा तो वह सच बात बताएगी नहीं, बल्कि होशियार हो जाएगी. सच पता लगाने के लिए वह एक दिन बाहर जाने के बहाने घर से निकला और छिप कर रजनी और अजीत पर नजर रखने लगा.

एक दिन दोपहर के समय उस ने रजनी और अजीत को रंगेहाथों पकड़ लिया. गुस्से में  उस ने रजनी की जम कर पिटाई कर दी. रजनी के पास सफाई देने को कुछ नहीं था, इसलिए वह भविष्य में कभी ऐसा न करने की कसम खाते हुए माफी मांगने लगी.

गुस्से में सुलतान ने अजीत को भी कई थप्पड़ जड़ दिए. साथ ही चेतावनी दी कि आज के बाद वह उस के घर के आसपास भी दिखाई दिया तो ठीक नहीं होगा.

रजनी सुलतान की सिर्फ पत्नी ही नहीं, उस के 3 बच्चों की मां भी थी, इसलिए बच्चों के भविष्य की फिक्र करते हुए उस ने दोबारा ऐसी गलती न करने की चेतावनी दे कर उसे माफ कर दिया.

यह बात सच है कि जिस महिला का पैर एक बार बहक चुका हो, उसे संभालना मुश्किल होता है. यही हाल रजनी का भी था.

कुछ दिनों तक अपनी कामोत्तेजना पर जैसेतैसे काबू रखने के बाद वह फिर चोरीछिपे अजीत से मिलने लगी.

इस का पता सुलतान को चला तो उस ने रजनी को काफी बुराभला कहा. इस के बाद रजनी का अजीत से मेलजोल कुछ कम हो गया, लेकिन बंद नहीं हुआ.

जब मिलने में परेशानी होने लगी तो एक दिन रजनी ने अजीत से कहा, ‘‘मुझ से तुम्हारी दूरी बरदाश्त नहीं होती. अब मैं सुलतान के साथ नहीं रहना चाहती.’’

‘‘अगर ऐसा है तो उसे ठिकाने लगा देते हैं. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. वह शराब पीता ही है, खाना खा कर बेसुध हो जाता है, इसलिए उस की हत्या करना भी आसान है.’’

इसी के साथ दोनों ने सुलतान की हत्या की योजना बना ली.

5 जून, 2021 की रात सुलतान शराब पी कर बेसुध सो गया. सोने से कुछ समय पहले ही उस ने रजनी के साथ मारपीट की थी. पति के सोने के बाद रजनी ने प्रेमी अजीत को फोन कर के बुला लिया. मगर जैसे ही अजीत आया सुलतान की नींद खुल गई.

रजनी और अजीत ने सुलतान को पकड़ा और उस के गले में रस्सी का फंदा बना कर उस का गला घोंट दिया. इस के बाद अजीत काफी डर गया तो वह अपने घर भाग गया, मगर रजनी कशमकश में फंस गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे?

आखिर उस का मन नहीं माना तो वह घर के पास में रहने वाली अपनी बहन के घर चली गई. यहां पर रजनी की मां भी आई हुई थी. उस ने हिचकियां लेले कर रोते हुए बहन और मां को बताया कि उस के पति ने आत्महत्या कर ली है.

इन लोगों को रजनी की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. शायद इसी वजह से एक बार तो लगा कि वह फूटफूट कर रो पड़ेगी, लेकिन किसी तरह खुद को संभालते हुए आखिर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या आप लोगों को मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है?’’  बाद में यह बात पूरे मोहल्ले में फैल गई.

सुबह होते ही गंधर्व सिंह ने महाराजपुरा थानाप्रभारी प्रशांत यादव को फोन कर इस घटना की सूचना दे दी. थानाप्रभारी प्रशांत यादव ने इस घटना को काफी गंभीरता से लिया.

बात सिर्फ आत्महत्या कर लेने भर तक सीमित नहीं थी, बल्कि इस से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि गुठीना जैसे छोटे से गांव में इस तरह की घटना घट गई और किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी प्रशांत यादव  एसआई जितेंद्र मवाई के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. चलने से पहले उन्होंने इस की सूचना सीएसपी रवि भदौरिया को भी दे दी थी.

प्रशांत यादव घटनास्थल का निरीक्षण शुरू करने वाले थे कि सीएसपी भदौरिया भी आ पहुंचे. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी आई थी.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो सीएसपी लौट गए. उन के जाने के बाद  थानाप्रभारी प्रशांत यादव ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और घटनास्थल की औपचारिक काररवाई निपटा कर सुलतान की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

रजनी और उस के प्रेमी ने जिस रस्सी से फंदा बना कर सुलतान का गला घोंटा था, वह भी पुलिस ने अपने कब्जे में ले ली. उस के बाद थानाप्रभारी ने गंधर्व सिंह की तरफ से अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

थानाप्रभारी इस केस की जांच में जुट गए. उन्होंने इस बारे में मृतक की पत्नी रजनी से पूछताछ की. थाने पहुंचते ही रजनी डर गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपने प्रेमी अजीत के साथ मिल कर पति को ठिकाने लगाया था.

पुलिस ने 6 जून, 2021 को ही रजनी के प्रेमी अजीत को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों ने ही सुलतान की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया.

इस के बाद दोनों ने सुलतान की हत्या की जो सनसनीखेज कहानी सुनाई, वह परपुरुष की बांहों में सुख तलाशने वाली औरत के अविवेक का नतीजा थी.

पूछताछ  और सारे साक्ष्य जुटाने के बाद  पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. रजनी के साथ उस का 3 वर्षीय सब से छोटा बेटा भी जेल गया है.

रजनी ने जो सोचा था, वह पूरा नहीं हुआ. वह एक हत्या की अपराधिन बन गई. उस के साथ उस का पे्रमी भी. जो सोच कर उन दोनों ने सुलतान की हत्या की, वह अब शायद ही पूरा हो, क्योंकि यह तय है कि दोनों को सुलतान की हत्या के अपराध में सजा होगी.

खून के रिश्तों पर शक का हथौड़ा

गांवों में दिनचर्या अमूमन अल सुबह ही शुरू हो जाती है. अंबेडकर नगर माजरा गांव में भी लोग सुबह उठ कर अपने काम में जुटना शुरू हो गए थे, लेकिन उस सुबह का आगाज अच्छा नहीं हुआ, क्योंकि गांव के ही सईद अहमद के घर से रोनेपीटने की आवाजें आने लगी थीं. सईद के परिवार में पत्नी शकीला (50 वर्ष) 3 बेटियां रजिया (20 वर्ष), सुलताना (18 वर्ष), शबाना (15 वर्ष) और 2 बेटे दिलशाद व शमशाद थे.

शमशाद बाहर नौकरी करता था जबकि दूसरा बेटा दिलशाद अपनी पत्नी नसरीन के साथ इसी घर में बने दूसरे कमरे में रहता था. रोने की आवाजें सुन कर लोग दौड़ कर सईद के घर की तरफ पहुंचे तो वहां का मंजर खौफनाक था.

यह देख कर हर किसी के पैरों तले से जमीन खिसक गई. लोगों ने जो कुछ देखा वह उन की कल्पनाओं से जुदा था. एक कमरे में शकीला व उस की 2 बेटियां रजिया व शबाना खून से लहूलुहान मृत पड़ी थीं, जबकि सुलताना कराह रही थी. सईद का वहां कुछ पता नहीं था.

लोगों ने इस की सूचना पुलिस को दी. यह दिल दहला देने वाली घटना उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के शिकारपुर थाना क्षेत्र के गांव अंबेडकरनगर माजरा में 3 मार्च, 2021 की देर रात हुई थी.

दिन निकलते ही तिहरे हत्याकांड की सूचना से पुलिस विभाग में भी हड़कंप मच गया.  थानाप्रभारी सुभाष सिंह मौके पर पहुंचे. वारदात की सूचना मिलने पर एसएसपी संतोष सिंह, एसपी (क्राइम) कमलेश बहादुर व सीओ गोपाल सिंह भी वहां आ पहुंचे. पुलिस ने मौका मुआयना किया. मृतकाओं के सिर पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किए गए थे.

घर में लूटपाट भी नहीं हुई थी. पुलिस की नजर वहां पड़े एक हथौड़े पर गई. उस पर खून लगा था. पहली नजर में पुलिस समझ गई कि उसी हथौड़े से हत्याएं की गई हैं. पुलिस ने सब से पहले घायल सुलताना को अस्पताल पहुंचाया.

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हैरानी की बात यह थी कि घर या आसपड़ोस में किसी को वारदात का पता तक नहीं चला था. घटना का पता सब से पहले सईद की बहू नसरीन को चला था.

पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘सर, मैं हर रोज की तरह सुबह सो कर उठी तो अम्मीजान के कमरे से कराहने की आवाज आ रही थी. मैं उस तरफ  पहुंची तो अम्मी व मेरी ननद इस हालत में पड़े थे. यह देख कर मेरी चीख निकल गई, मैं ने पड़ोस में अपनी ददियासास संतो को दौड़ कर बुलाया फिर गांव वाले आ गए.’’

पुलिस ने उस के बयान को गंभीरता से सुन कर नोट कर लिया. नसरीन के बयानों में सच्चाई थी. शक सईद पर था, क्योंकि वह लापता था. सब से बड़ा सवाल यह था कि यदि हत्याएं वाकई सईद ने की थीं तो फिर इस की आखिर क्या वजह थी?

बहरहाल, पुलिस ने मौके पर काररवाई पूरी कर सभी शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए. हत्याओं में इस्तेमाल हथौड़े को कब्जे में लिया. सईद के खिलाफ  उस के बेटे शमशाद की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस सईद की तलाश में जुट गई, लेकिन अगले कई दिनों तक भी उस का कोई पता नहीं चल सका. हत्याओं की असल वजह से परदा उठाने वाला एक सईद ही था, जो फरार था.

पुलिस टीमें सईद की तलाश में लगी हुई थीं. उस की नातेरिश्तेदारियों में भी दबिशें दी गईं. सईद का पता नहीं चला तो पुलिस ने उस के ऊपर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. उधर सईद की घायल बेटी सुलताना खतरे से बाहर आ चुकी थी.

सईद पुलिस के लिए एक तरह से चुनौती बन चुका था. इस बीच पुलिस को पता चला कि सईद पहले पंजाब के मोहाली में भी नौकरी करता था, वहां भी वह छिप सकता था.

पुलिस टीम वहां पहुंची और उस की पुरानी पहचान के हिसाब से लोगों से जानकारियां एकत्र कीं. इस से पुलिस को सफलता मिली, और वह 21 मई, 2021 को सईद तक पहुंच गई.

सईद मोहाली की ही मानकपुर शरीफ  दरगाह में शरण लिए हुए था. पुलिस टीम सईद को दबोच कर बुलंदशहर ले आई. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने पत्नी व बेटियों की हत्या करना स्वीकार कर लिया.

गहनता से की गई पूछताछ में ऐसी कहानी निकलकर सामने आई कि पुलिस भी सोचने पर मजबूर हो गई. चौंकाने वाली बात यह थी कि सईद ऐसा हैवान था जिसे अपने परिवार को उजाड़ने का जरा भी अफसोस नहीं था.

सईद मेहनतमजदूरी करता था. किसी तरह परिवार की गाड़ी चल रही थी. सईद की कमाई इतनी नहीं थी कि परिवार का खर्च चल सके.

परिवार को सहारा मिल सके इसलिए शकीला ने भी लोगों के खेतों में काम करना शुरू कर दिया. शकीला को घर आने में देरसबेर भी हो जाती थी. यह बात सईद को पसंद नहीं थी.

‘‘शकीला मुझे इस तरह तुम्हारा काम करना पसंद नहीं है.’’ एक दिन सईद ने अपने मन की बात पत्नी से कह दी.

‘‘यह सब मैं अपने लिए नहीं बल्कि परिवार के लिए कर रही हूं. गांव की अन्य औरतें भी तो काम करती हैं, फिर मैं कर रही हूं तो इस में बुराई ही क्या है.’’ पत्नी का जवाब सुन कर सईद देखता रह गया.

शकीला की बात अपनी जगह बिलकुल सही थी. सईद से घर के हालात छिपे नहीं थे, लेकिन उस की परेशानी दूसरी थी. दरअसल उस के दिमाग में शक का कीड़ा घर कर गया था. वह पत्नी पर शक करने लगा था.

शक ऐसा रोग है कि जिस का इलाज किसी के पास नहीं होता. सईद का शक्की स्वभाव ज्यादा बढ़ने लगा तो परिवार में झगड़े होने लगे.

जबकि शकीला ने कुछ सालों की मेहनत से कई मजदूर महिलाओं को अपने साथ जोड़ लिया था और आलू खुदाई आदि के ठेके भी लेने लगी थी.

जब भी वह घर देर से आती तो सईद झगड़ा जरूर करता. एक दिन शकीला ने सईद को समझाया भी, ‘‘देखो तुम्हारे शक की कोई वजह नहीं है, तुम्हे शक करने की बीमारी हो गई है. इस उम्र में मेरे लिए क्या बिगड़ना बचा है.’’

‘‘मैं सब जानता हूं. तुम जैसी औरतें अपने शौहर को बहलाने के लिए इसी तरह की नौटंकियां किया करती हैं.’’ सईद ने उसे गहरी नजरों से घूरते हुए कहा.

‘‘तुम्हें तो फिक्र है नहीं, कल को बेटियां जवान हो रही हैं, कभी सोचा है कि इन की शादियां कैसे होंगी. तुम यूं ही शक करते रहे, तो न जाने एक दिन क्या होगा.’’ शकीला बोली.

सईद अपने शक से बाहर निकलने को कतई तैयार नहीं था. समय के साथ परिवार कलह का अखाड़ा बन गया और नौबत मारपीट तक आने लगी.

शकीला पति को समझाते समझाते थक चुकी थी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं होता था. शकीला अब बेटियों को भी यदाकदा काम पर ले जाती थी. इस से परिवार में झगड़ा व मारपीट और भी ज्यादा बढ़ गया.

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घर में जब भी झगड़ा होता था तो बेटियां मां के साथ हो जाती थीं. एक दिन बेटी रजिया ने तो सईद का सीधे सामना किया, ‘‘अब्बू तुम जो बारबार अम्मी पर तोहमत लगाते हो, वह अच्छी बात नहीं है. बहुत जुल्म हो गए तुम्हारे.’’

बेटी की बात पर सईद को ताव आ गया, ‘‘मां की तरह तुम्हारी भी जुबान चलने लगी है.’’ कहते हुए उस ने बेटी को तमाचा जड़ दिया. इस से रजिया रोते हुए बिफर गई.

‘‘रोजरोज के झगड़ों से हम भी तंग आ चुके हैं, अब यदि तुम ने कुछ किया तो हम पुलिस में शिकायत कर देंगे.’’ बेटी ने कहा तो सईद नरम पड़ गया.

कहते हैं कि शक इंसान को किसी भी हद तक सोचने पर मजबूर कर देता है. उस रात सईद को पूरी रात नींद नहीं आई, क्योंकि उस के दिमाग में नई बात चल चुकी थी कि बेटियां भी उस की पत्नी की तरह हो गई हैं.

वह उन के चरित्र पर भी शक कर बैठा. एक बार इस शक ने पैर जमाए तो वह दिमाग में घर कर के बैठ गया. शकीला घर से बाहर जाती तो बेटियों को भी साथ ले जाती थी. सईद हमेशा शक की नजर से देखता था और उन के वापस आने पर तानेबाजी कर के उन से झगड़ा किया करता था.

लाख समझाने के बाद भी सईद का शक बढ़ता गया तो वह  खोयाखोया रहने लगा. खातेपीते, सोतेजागते उसे दिमाग में सिर्फ  शक ही चलता रहता था.

शक पूरी तरह उस की जिंदगी का हिस्सा बन चुका था. एक दिन शकीला देर शाम काम से घर वापस आई तो सईद ने घर में तूफान खड़ा कर दिया, ‘‘मैं जानता हूं तू यारों के साथ गुलछर्रे उड़ा कर आई होगी.’’

‘‘तुम्हें शर्म आनी चाहिए ऐसी बात कहते हुए’’ शकीला ने जवाब दिया.

‘‘तुम्हें गलत करते हुए शर्म नहीं आती तो मुझे बोलते हुए क्यों आएगी.’’ वह बोला.

‘‘कोई एक बात तो बताओ जो मुझे गलत साबित कर दे. कम से कम लोगों से जा कर ही पूछ लो. मैं इसलिए मेहनत करती हूं ताकि घर अच्छे से चल सके.’’ शकीला ने समझाया.

‘‘मुझे किसी से पूछने की जरूरत नहीं है. मैं सब जानता हूं. तुझे घर चलाने की फिक्र नहीं यारों से मिलने की ज्यादा होती है.’’ सईद ने ताना दिया.

‘‘घर में बेटीबहू हैं, लेकिन तुम्हें इस उम्र में भी ऐसी बात करते हुए जरा भी शर्म नहीं आती. बेगैरती की हदों को लांघ चुके हो तुम.’’ पत्नी ने कहा.

‘‘एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी, मुझ से जबान लड़ाती है. सब को बरबाद कर दूंगा.’’ सईद चीख कर बोला और शकीला को पीटना शुरू कर दिया.

शकीला को उस की बेटियों ने बचाया. बड़ी बेटी रजिया उसी समय पुलिस को फोन करना चाहती थी, लेकिन बदनामी परिवार की ही होनी थी इसलिए शकीला ने ही उसे रोक दिया.

सईद के दोनों बेटों व बहू नसरीन ने भी सईद को कई बार समझाया, लेकिन अपने सामने वह किसी की सुनने को तैयार ही नहीं होता था. पिता के गुस्सैल व झगड़ालू स्वभाव के चलते बेटों ने मां को संभल कर रहने की सलाह दी.

उधर सईद ने मन ही मन पूरे परिवार को खत्म करने की ठान ली. 2 /3 मार्च की देर रात तक सईद जागता रहा. वह बाहर घर की बैठक में सोता था. उस की पत्नी व बेटियां एक कमरे में जबकि बेटा दिलशाद व उस की पत्नी दूसरे कमरे में.

12 बजे के बाद का समय था. पूरे गांव में सन्नाटा था. सईद ने हथौड़ा उठाया और चुपके से शकीला के कमरे में दाखिल हो गया. उस समय शकीला उस की बेटियां रजिया, शबाना व सुलताना गहरी नींद में थीं. सईद ने सब से पहले पूरी ताकत से शकीला के सिर पर हथौड़े से वार किए, उस की चीख भी नहीं निकल सकी. सईद के शक्की स्वभाव ने उसे शैतान बना दिया.

इस के बाद उस ने बेटियों के सिर पर भी ताबड़तोड़ प्रहार कर दिए. खून के रिश्तों पर शक का हथौड़ा बरसाते हुए उस के हाथ नहीं कांपे. सईद का इरादा अपनी बहू को भी खत्म करने का था. वह उस के कमरे की तरफ  गया, लेकिन दरवाजा बंद देख कर उस ने अपना इरादा टाल दिया.

इस के बाद वह बैठक में आया और घर से निकल गया. अल सुबह उस ने बस पकड़ी और पंजाब के मोहाली में दरगाह में खुद को गरीब मजदूर बता कर पनाह ले ली. बहुत साल पहले वह पंजाब में नौकरी कर चुका था इसलिए उसे अपने लिए वह सुरक्षित ठिकाना लगा. सईद को लगता था कि वह कभी पकड़ा नहीं जाएगा, लेकिन वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने सईद को अदालत में पेश किया जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

सईद ने यदि अपने शक्की स्वभाव को काबू रख कर, परिवार पर भरोसा कर के जिंदगी जी होती तो शायद ऐसी नौबत कभी भी नहीं आती.

पति और कातिल, दोनों में से कौन बड़ा हैवान – भाग 2

सोनी के घर वालों से कत्ल और कातिल का कोई सुराग नहीं मिला था. इसलिए सेक्टर-126 थाने की पुलिस ने आसपड़ोस के लोगों से भी पूछताछ की ताकि पता चल सके कि सोनी का चालचलन कैसा था और संदीप की गैरमौजूदगी में किसी ने उस के घर में किसी को आतेजाते तो नहीं देखा था. लेकिन कालोनी के लोगों से पूछताछ में भी कोई मदद नहीं मिली.

अब बारी थी संदीप से कुछ अहम मुद्दों पर पूछताछ करने की. संदीप ने पुलिस को बताया कि उस की पत्नी के शायद अपने ही गांव के अजय नाम के लड़के से शादी से पहले ही संबंध थे. संदीप ने आशंका जताई कि हो सकता है उस ने ही सोनी को मार दिया हो.

यह जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी. इसलिए पुलिस की एक टीम उसी दिन कासगंज रवाना हो गई और अजय को हिरासत में ले कर नोएडा ले आई.

दरअसल, अजय को पूछताछ के लिए लाने का आधार यह था कि पुलिस ने संदीप से मिली जानकारी के आधार पर सोनी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई और जब उसे खंगाला गया तो पता चला कि सोनी और अजय के बीच हर दिन कई बार फोन पर लंबीलंबी बातें होती थीं और वाट्सऐप पर मैसेज का आदानप्रदान भी होता था.

मोबाइल काल डिटेल्स की रिपोर्ट साफ बता रही थी कि दोनों के बीच साधारण संबंध नहीं थे. अजय से जब पूछताछ हुई तो पहले उस ने पुलिस को बरगलाने का प्रयास किया, लेकिन जब उस के साथ सख्ती की गई तो वह टूट गया और कुबूल कर लिया कि सोनी के साथ उस के पिछले कई सालों से संबंध थे.

सोनी की जब से शादी हुई थी, इस के बाद भी जब वह अपने गांव आती थी तो दोनों मौका मिलने पर एकांत में मिल कर अपनी पुरानी मोहब्बत की यादों को ताजा करते रहते थे.

थानाप्रभारी राठी ने जब अजय का मोबाइल फोन चैक कराया तो उन्हें उस में सोनी तथा अजय के कुछ ऐसी अवस्था के फोटो मिले जो दोनों के बीच के नाजायज रिश्ते को साबित करते थे.

लेकिन अजय के फोन की काल डिटेल्स रिपोर्ट और उस की लोकेशन से कहीं भी यह साबित नहीं हो रहा था कि वह सोनी की हत्या वाले दिन या उस से पहले नोएडा आया था या फिर उस ने किसी संदिग्ध नंबर पर बात की थी.

इंसपेक्टर राठी एक बात तो अच्छी तरह समझ गए कि अजय और सोनी के बीच संबंध होने के बावजूद अजय के पास सोनी की हत्या का कोई मोटिव नहीं था, लेकिन संदीप जिस को यह बात पता थी कि उस की बीवी के अजय से संबंध हैं तो उस के पास तो सोनी की हत्या करने का पुख्ता आधार था.

‘एक सीधे से दिखने वाले अनपढ़ आदमी ने पुलिस को कैसे अपने जाल में फंसा कर गुमराह कर दिया,’ बड़बड़ाते हुए राठी ने मुक्का मेज पर मारते हुए उसी समय एसआई राजेंद्र सिंह को तत्काल सोनी के पति संदीप यादव की काल डिटेल्स निकलवाने का आदेश दिया.

थानाप्रभारी राठी को न जाने क्यों यकीन होने लगा था कि सोनी की हत्या के पीछे कहीं न कहीं संदीप का हाथ हो सकता है, इसीलिए उन्होंने उस की काल डिटेल्स निकलवाई थी. लेकिन उस में कोई ऐसी जानकारी, संदिग्ध नंबर या लोकेशन नहीं मिली, जिस से इस मामले में अजय की भूमिका को साबित किया जा सके.

एक सप्ताह बीत चुका था पुलिस को सोनी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई थी. जिस बात का शक था वही हुआ. लक्ष्मी की मौत सिर में चोट लगने से हुई थी. इतना ही नहीं, उस की मौत के बाद उस के साथ शारीरिक संबंध भी बनाया गया था.

बस यही वो कारण था जिस की वजह से पुलिस को संदीप यादव पर किए गए शक से अपना ध्यान हटाना पड़ा. क्योंकि कोई भी पति किसी दूसरे आदमी को अपनी पत्नी की हत्या के बाद उस के शव के साथ ऐसा घिनौना काम न तो खुद करेगा न ही किसी दूसरे को करने देगा.

संदीप को संदेह से बाहर करने का दूसरा कारण यह भी था कि एक तो उस की काल डिटेल्स में कोई संदिग्ध बात नहीं मिली.

दूसरे महामाया फ्लाईओवर के नीचे रेहड़ी पटरी लगाने वाले कई लोगों से पूछताछ के बाद इस बात की पुष्टि भी हो गई थी कि संदीप यादव उस शाम को हमेशा की तरह शाम को 6 बजे अपना काम खत्म कर के साइकिल ले कर वहां से गया था.

इस के बाद संदीप पर शक करने की कोई वजह पुलिस के पास नहीं थी. राठी ने एक बार फिर से घटनास्थल के आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ करने का फैसला किया.

इसी कड़ी में पुलिस इलाके के हर घर में जा कर पूछताछ कर रही थी, लेकिन पुलिस ने तब पहली बार नोटिस किया कि एक प्लौट पर बना कमरा ऐसा था, जो घटना वाली रात को पूछताछ करते हुए भी पुलिस को बंद मिला और एक सप्ताह बाद जब पुलिस ने दोबारा छानबीन की तब भी बंद पाया गया.

पुलिस ने जब आसपास के लोगों से इस मकान में रहने वाले शख्स के बारे में पूछा तो पता चला कि बुलंदशहर के छतारी कस्बे का रहने वाला रामवीर साहू उस कमरे में रहता है.

रामवीर साहू पहले तो गुड़ बेचने का काम करता था, लेकिन 3-4 महीनों से वह आटोरिक्शा चलाने का काम कर रहा था. लोगों ने बताया कि जिस दिन सोनी की हत्या हुई, उस दिन सुबह के वक्त तो वह अपने घर में दिखा था, लेकिन इस के बाद से वह किसी को दिखाई नहीं दिया.

यह जानकारी साहू को संदेह के दायरे में लाने के लिए काफी थी. पुलिस ने जब संदीप यादव से रामवीर साहू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि कालोनी में रहने के कारण उस की साहू से जानपहचान तो है लेकिन वह उस के बारे में बहुत अधिक नहीं जानता.

संदीप ने बताया कि कभीकभी साहू महामाया मेट्रो स्टेशन के नीचे जहां वह कचौरी बेचता है, सवारी लेने के लिए आ कर खड़ा हो जाता था. संदीप ने बताया कि इसी कारण अकसर उस की साहू से बातचीत हो जाती थी.

संदीप और कालोनी के दूसरे लोगों से साहू के बारे में जो सब से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली, वह यह थी कि वह अकसर शराब के नशे में रहता था. शराब तो मजदूर तबके के ज्यादातर लोग पीते हैं लेकिन साहू एक तरह से शराब का लती था. दिन हो या रात, वह अकसर शराब के नशे में दिख जाता था.

साहू के बारे में कुछ और जानकारी एकत्र की गई तो पता चला कि वह अविवाहित था और इस इलाके में आने से पहले अपनी बहन के पास छलेरा गांव में रहता था.

रामवीर साहू थानाप्रभारी राठी के रडार पर आ चुका था. उन्होंने साहू की बहन का पता हासिल कर लिया और छलेरा में जा कर जब उस की बहन से उस के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि 20 जनवरी, 2022 की रात को वह उस के पास आया था लेकिन उस ने बहुत शराब पी रखी थी.

अगली सुबह जब उस ने साहू को शराब पी कर अपने घर आने की बात पर खरीखोटी सुनाई तो वह दोपहर को वहां से गांव जाने की बात कह कर चला गया. साहू के बारे में जैसेजैसे जानकारियां मिल रही थीं, उस के खिलाफ शक का दायरा बढ़ता जा रहा था.

सोनी हत्याकांड की जांच में अब तक हुई प्रगति के बारे में जब एडीसीपी रणविजय सिंह को साहू के बारे में तमाम जानकारियां मिलीं तो उन्होंने थानाप्रभारी राठी को उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के लिए कहा.

राठी ने काल डिटेल्स निकलवा कर उस के फोन को ट्रेसिंग पर भी लगवा दिया. एसआई राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम लगातार साहू के पीछे लगी थी. पुलिस टीम बुलंदशहर में उस के गांव छतारी पहुंची तो पता चला कि साहू 21 जनवरी को अपने गांव आया तो था लेकिन गांव में कोई नहीं था.

क्योंकि उस का एक भाई दिल्ली के शाहदरा इलाके में रहता है. उस की बेटी की 10 फरवरी को शादी थी. उसी में शरीक होने के लिए मातापिता और परिवार के दूसरे लोग गए हुए थे.

पुलिस की एक टीम रामवीर साहू के भाई अजयवीर के घर का पता ले कर वहां पहुंची तो पता चला कि 23 जनवरी को रामवीर वहां आया जरूर था, लेकिन परिवार को उस का शराब पीना पसंद नहीं था और उस ने खूब शराब पी हुई थी. इसलिए परिवार वालों ने उसे वहां से यह कह कर भगा दिया कि उन के यहां शराबियों के लिए कोई जगह नहीं है.

पुलिस टीम को वहीं से यह जानकारी मिली कि रामवीर की एक मौसी इंद्रवती उत्तरपूर्वी दिल्ली के घड़ौली में रहती है, जिन से उस की खूब पटती भी है. हो सकता है रामवीर उन के यहां गया हो.

मौसी का पता ले कर जब पुलिस टीम घड़ौली में उस की मौसी इंद्रवती के घर पहुंची तो पता चला कि 25 जनवरी को रामवीर उन के यहां आया था, लेकिन वह काफी शराब पिए हुए था और काफी डरासहमा हुआ था.

मां का इश्क चढ़ा परवान : बेटे को उतारा मौत के घाट

10 अगस्त को भागवत नाम के एक बुजुर्ग व्यक्ति की शिकायत सुन कर थाना समानपुर के प्रभारी उमाशंकर यादव सन्न रह गए. उन्होंने हैरत से उस बुजुर्ग पर नाराजगी जताते हुए कहा, ‘‘क्या अनापशनाप बोल रहे हो? ऐसा भी भला कहीं होता है क्या?’’

‘‘जी साहब, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मेरी बहू कविता ने ही 15 साल के अपने बेटे को मारा है क्योंकि वह बदचलन है,’’ बुजुर्ग विश्वास दिलाते हुए बोला.

‘‘तुम्हारे पोते की लाश कहां है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साबजी, लाश दफना दी गई है. आप उस का पोस्टमार्टम करवा लेंगे तो सच्चाई सामने आ जाएगी,’’ बुजुर्ग बोले.

थानाप्रभारी यादव को जब बुजुर्ग भागवत ने अपनी बहू कविता के बारे में विस्तार से जानकारी दी तो वह माजरा समझ गए. भागवत ने थानाप्रभारी को जो कुछ बताया, वह इस प्रकार है—

3 अगस्त, 2021 की सुबह 9 साढ़े 9 बजे के करीब भागवत को अपने 15 वर्षीय पोते सोनू की मृत्यु की खबर मिली थी. सोनू अपने गांव में ही अपनी मां कविता के साथ रहता था. वह घर पास में ही था. कविता का पति शिवराज घर वालों से अलग गांव के बाहर ही रहता था. काम की वजह से उस का आसपास गांवों में आनाजाना लगा रहता था. वह अपने पिता से 8-10 दिनों बाद मिलने आ जाया करता था.

शिवराज डिंडोरी में पिछले कुछ महीने से रह रहा था. उस के अलग रहने का कारण उस की पत्नी कविता ही थी. वह उस के व्यवहार और आचरण से वह दुखी था.

भागवत की बातें सुनने के बाद थानाप्रभारी यादव ने मामले को गंभीरता से लिया. उन्होंने इस की जानकारी एसपी संजय कुमार सिंह को दी. उस के बाद अदालत के आदेश पर सोनू की दफन लाश को निकलवा कर उस का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम से यह स्पष्ट हो गया कि उस की मृत्यु किसी बीमारी से नहीं, बल्कि सिर में चोट लगने से हुई थी.

पोस्टमार्टम में हत्या की बात सामने आते ही पुलिस ने तुरंत सोनू की मां कविता और उस के तथाकथित प्रेमी लालसिंह को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. उन से सख्ती से पूछताछ की गई.

थाने में उन के खिलाफ सबूत होने की बात कही गई तो कविता ने भी सोनू की मौत से जुड़ी सारी बातें बता दीं. इस के बाद सोनू की हत्या का सच कुछ इस प्रकार सामने आया—

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कविता की जब शिवराज के साथ शादी हुई थी, तब वह मात्र 16-17 साल की थी. आदिवासी परिवार में जन्मी कविता सांवली हो कर भी काफी सुंदर दिखती थी. उस के जैसा समाज में दूरदूर तक कोई नहीं था.

उस की नाकनक्श, बड़ीबड़ी आंखें, काले लहराते केश, उन्नत उभार, सुडौल मांसल देह के कमर की लचक आदि पहली नजर में ही किसी को भी आकर्षित करने के लिए काफी थी.

इसलिए उस के चाहने वालों की कमी नहीं थी. इस में कविता को भी अच्छा लगता था कि वह कइयों की पसंद बन चुकी है. वह गांव में सभी से हंसबोल कर बातें करती थी, लेकिन किसी को अपने करीब आने से रोकने में भी चतुर थी. बड़ी चतुराई से अपने दीवानों से पल्ला झाड़ लिया करती थी.

शिवराज की दुलहन बनने के बाद कविता और भी बेफिक्री के साथ कभी अपने मायके तो कभी ससुराल आतीजाती रहती थी. क्योंकि उस की ससुराल मायके के पास स्थित गांव में ही थी. बहुत जल्द ही उस के अल्हड़पन से ससुराल के युवक और दूसरे उम्रदराज मर्द भी परिचित हो गए थे.

उस पर प्यार का भूत सवार हो चुका था. वह चाहती थी कि पति शिवराज हमेशा उस के साथ रहे. सारे कामधंधे को छोड़ उस की मरजी के मुताबिक उस के साथ बना रहे. और वह हमेशा शिवराज की बाहों में ही सिमटी रहे.

लेकिन रोज खानेकमाने वाले शिवराज के लिए यह कतई संभव नहीं था. कविता तन की प्यासी थी, जबकि उस का पति शिवराज पेट की आग बुझाने की चिंता में घुलता रहता था.

उस ने प्यार से कविता को समझाया कि वह उस के साथ हमेशा कमरे में ही बंद रहेगा तो उन का और परिवार का पेट कैसे भरेगा. कविता को शिवराज की बातों का कोई असर नहीं होता था.

तन की प्यासी कविता अपने मन को नहीं समझा पाई. नतीजा यह हुआ कि वह दूसरी राह तलाशने लगी. सुंदर तो वह थी ही, इसलिए ससुराल के गांव में भी उस के चाहने वालों की कमी नहीं थी. फिर क्या था, उस ने शिवराज की गैरमौजूदगी का नाजायज फायदा उठाया और कई युवकों से संबंध बना लिए. किसी के साथ मजेदार बातें कर दिल बहलाया तो किसी के साथ हमबिस्तर हो कर तनमन की प्यास बुझाई.

इस की जानकारी जल्द ही शिवराज के मातापिता को भी हो गई. लोग गांव में ही दबी जुबान से कविता की बदचलनी की चर्चा करने लगे. भागवत को इस से काफी दुख पहुंचा.

भागवत ने बहू पर लगाम लगाने की कोशिश की. किंतु कोई नतीजा नहीं निकला. उल्टे घर में आए दिन विवाद होने लगा. फिर एक दिन विवाद इतना अधिक बढ़ गया कि शिवराज और कविता गांव में ही अलग रहने लगे.

अपनी ससुराल के घर से अलग रहना कविता के लिए यह और भी अच्छी बात हुई. उस की एक तरह से मन की मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई थी. संयोग से पड़ोस में ही रहने वाले लालसिंह को वह पहले से जानती थी.

वह भी कविता का आशिक बना हुआ था, लेकिन उस ने कभी भी अपनी मंशा जाहिर नहीं की थी. कविता के पड़ोस में आने पर एक दिन उस ने मौका पा कर अपने दिल की बात कह डाली.

बदले में छोटीमोटी जरूरतों के लिए घर और बाजार के काम में वह उस की मदद करने लगा. इस तरह से वह शिवराज का दोस्त बन गया. संयोग से दोनों शराब के प्रेमी थे. अभी तक शिवराज घर से बाहर ही शराब पीता था, लेकिन लालसिंह के कहने पर शिवराज घर पर ही शराब पीने लगा.

लालसिंह उस के लिए शराब लाया करता था. दोनों शराब की पार्टी करने लगे. शिवराज और लालसिंह के साथसाथ कविता भी शराब पीने लगी.

उधर कविता ने मर्दों की आशिकी और मतलबी दुनिया को काफी नजदीक से देखा था. इसलिए वह जल्द ही लालसिंह की मंशा को भी भांप गई. एक समय ऐसा भी आया जब लालसिंह ने शिवराज को नशे में धुत कर दिया और कविता को अपनी बाहों में भर लिया. कविता इसी इंतजार में थी. उस की मंशा पूरी हो गई.

गांव में काम नहीं मिलने की स्थिति में शिवराज मजदूरी करने के लिए कई हफ्तों और महीनों तक बाहर रहता था. इस का फायदा उठाकर कविता की रातें लालसिंह के जरिए ही रंगीन होती थी.

समय बीतते देर नहीं लगती है. कविता एक बच्चे की मां बनी और धीरेधीरे उस का बेटा सोनू 15 साल को भी हो गया. फिर भी कविता के चालचलन में कमी नहीं आई.

थोड़ा फर्क यह हुआ कि अब वह शिवराज के अलावा सिर्फ लालसिंह की ही चहेती थी. एक के लिए वैध बीवी थी, तो दूसरे के साथ अवैध रखैल की जिंदगी से खुश थी. उसे भी शराब की लत लग चुकी थी.

उधर उस का बेटा सोनू किशोरावस्था में पहुंच चुका था. उस का लगाव जितना अपनी मां और पिता से नहीं था, उस से कहीं अधिक वह दादादादी के करीब था. उस का ज्यादा समय दादादादी के साथ ही बीतता था. वे भी सोनू को बहुत प्यार करते थे.

वह कभीकभार ही अपने घर जाता था. कविता के लिए यह और भी अच्छा था. क्योंकि लालसिंह बेफिक्री से उस के पास आताजाता था.

सोनू के दादा भागवत को भी कविता और लालसिंह के संबंधों के बारे में भनक लग चुकी थी. इस कारण वह रात के समय सोनू को अपनी मां के पास सोने के लिए भेजने लगे थे.

इसे ले कर कविता और लालसिंह के अवैध संबंधों की जिंदगी में खलल पड़ने लगी. कविता ने जल्द ही इस का हल निकाल लिया. वह बेटे सोनू के सो जाने के बाद लालसिंह को पीछे के दरवाजे से घर बुलाने लगी.

सब कुछ पहले जैसा चलने लगा. घटना 2 अगस्त, 2021 की है. सोनू अपने नियत समय पर मां कविता के पास आया और सीधे अपने कमरे में सोने के लिए चला गया.

आधी रात होने पर लालसिंह शराब की बोतल ले कर कविता के पास पहुंचा. दोनों ने पहले बोतल खाली की, फिर अय्याशी के नशे मे डूब गए.

उस रोज कविता को कुछ ज्यादा ही नशा हो गया था. इसलिए उसे इस बात का ध्यान नहीं रहा कि उस का किशोर उम्र का बेटा भी घर में मौजूद है.

नशे में दोनों कुछ ज्यादा ही मस्ती करने लगे, जिस से शोर होने पर सोनू की नींद टूट गई. उसे मां अपने कमरे में नहीं दिखी तो वह पास वाले दूसरे कमरे में चला गया. कमरे के खुले दरवाजे पर जा कर उस ने जो देखा तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. मां और पड़ोस के काका लालसिंह को निर्वस्त्र लिपटे देख कर वह सन्न रह गया.

सोनू इतना तो समझ ही गया था कि उस की आंखों के सामने जो कुछ था, वह गलत था. वह समझ नहीं पाया कि क्या करे. वह तुरंत वहां से भाग कर अपने बिस्तर में आ कर एक चादर के नीचे दुबक गया.

दरवाजे पर सोनू के आने और उस के हड़बड़ा कर भागने से हुई आवाज की आहट कविता और लालसिंह को भी हुई. वह समझ गए कि उन्हें सोनू ने देख लिया है. लालसिंह तुरंत कपड़े पहन कर भागने लगा, तो कविता ने उसे रोक दिया.

उस ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘सोनू ने हम दोनों को रंगेहाथों देख लिया है. सुबह होते ही वह सारी बात अपने दादादादी को बता देगा. उस के बाद बखेड़ा खड़ा हो जाएगा. फिर हम दोनों के खिलाफ कुछ भी कदम उठाए जा सकते हैं.’’

‘‘इस पर क्या किया जाए?’’ लालसिंह ने पूछा तो कविता चुपचाप उठी और कमरे में गई, वहां कोने से 2 लाठी निकाल लाई. एक लाठी लालसिंह को पकड़़ाई और दूसरी अपने हाथ में ले कर सोनू के कमरे की ओर जाने के लिए मुड़ी.

तब तक लालसिंह भी समझ चुका था कि आगे क्या करना है. कुछ पल में ही दोनों बिछावन पर चादर के नीचे बिस्तर में दुबके सोनू के कमरे में थे. उन्होंने एकदूसरे को देखा और एक साथ लाठी से उस के ऊपर वार करने लगे. लगातार लाठी की मार से सोनू की वहीं मृत्यु हो गई.

यह देख कर कविता ने राहत की सांस ली. उस के बाद सुबह होते ही लालसिंह अपने घर चला गया और कविता ने फोन लगा कर अपने पति को बेटे सोनू के मौत की खबर दे दी. उस ने पति को बताया कि रात में उठी खांसी से उस की मौत हो गई. चूंकि सोनू किशोर था, इसलिए उस की लाश दफन कर दी गई थी.

कविता अपनी योजना मे सफल हो गई थी, लेकिन सोनू की मौत उस के दादा के गले नहीं उतर रही थी. इसलिए उन्होंने 8 दिन बाद थाने में जा कर अपना शक जाहिर करते हुए थानाप्रभारी से हत्या की शिकायत दर्ज की.

उस के बाद पुलिस ने काररवाई कर आरोपी कविता और उस के प्रेमी लालसिंह के खिलाफ काररवाई कर उन दोनों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पराई मोहब्बत में दी जान : धोकेबाज प्रेमी – भाग 2

‘‘अरे भाभी, औरत की खूबसूरती सब को रास थोड़े ही आती है. अरविंद भैया तो अनाड़ी हैं. शराब में डूबे रहते हैं. इसलिए तुम्हारी कद्र नहीं करते.’’

‘‘और तुम?’’ सरिता ने आंखें नचाते हुए पूछा.

‘‘मुझे सचमुच तुम्हारी कद्र है भाभी. यकीन न हो तो परख लो. अब मैं तुम्हारी खैरखबर लेने आता रहूंगा. छोटाबड़ा जो भी काम कहोगी, करूंगा.’’ दलबीर सिंह ने सरिता की चिरौरी सी की.

दलबीर सिंह की यह बात सुन कर सरिता खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘तुम आराम से चारपाई पर बैठो. मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

थोड़ी देर में सरिता 2 कप चाय ले आई. दोनों पासपास बैठ कर गपशप लड़ाते हुए चाय पीते रहे और चोरीछिपे एकदूसरे को देखते रहे. दोनों के दिलोदिमाग में हलचल सी मची हुई थी. सच तो यह था कि सरिता दलबीर पर फिदा हो गई थी. वह ही नहीं, दलबीर सिंह भी सरिता का दीवाना बन गया था.

दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद दलबीर सिंह अकसर सरिता से मिलने आने लगा. सरिता को दलबीर सिंह का आना अच्छा लगता था.

जल्द ही वे एकदूसरे से खुल गए और दोनों के बीच हंसीमजाक होने लगा. सरिता चाहती थी कि पहल दलबीर सिंह करे, जबकि दलबीर चाहता था कि जिस्म की भूखी सरिता स्वयं उसे उकसाए.

आखिर जब सरिता से नहीं रहा गया तो एक रोज रात में उस ने दलबीर सिंह को अपने घर रोक लिया. फिर तो उस रात दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. हर रिश्ता टूट कर बिखर गया और एक नए रिश्ते ने जन्म लिया, जिस का नाम है अवैध संबंधों का रिश्ता.

उस दिन के बाद सरिता और दलबीर सिंह अकसर एकांत में मिलने लगे. लेकिन यह सच है कि ऐसे संबंध ज्यादा दिनों तक छिपते नहीं हैं. उन का भांडा एक न एक दिन फूट ही जाता है. सरिता और दलबीर के साथ भी ऐसा ही हुआ.

एक रात जब सरिता और दलबीर सिंह देह मिलन कर रहे थे तो सरिता की देवरानी आरती ने छत से दोनों को देख लिया. उस ने यह बात अपने पति मुकुंद को बताई. फिर तो यह बात गांव में फैल गई. और उन के नाजायज रिश्तों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी.

सरिता के पति अरविंद दोहरे को जब सरिता और दलबीर सिंह के संबंधों का पता चला तो उस के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. उस ने इस बारे में पत्नी व दोस्त दलबीर से बात की तो दोनों मुकर गए और साफसाफ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है. गांव के लोग उन्हें बेवजह बदनाम कर रहे हैं.

लेकिन एक रोज अरविंद ने जब दोनों को हंसीठिठोली करते अचानक देख लिया तो उस ने सरिता की पिटाई की तथा दलबीर सिंह को भी फटकारा. लेकिन उन दोनों पर इस का कोई

असर नहीं हुआ. दोनों पहले की तरह ही मिलते रहे.

पत्नी की इस बेवफाई से अरविंद टूट चुका था. महीना-15 दिन में जब वह घर आता था तो दलबीर को ले कर सरिता से उस की जम कर तकरार होती थी. कई बार नौबत मारपीट तक आ जाती थी. अरविंद का पूरा परिवार और गांव वाले इस बात को जान गए थे कि दोनों के बीच तनाव सरिता और दलबीर सिंह के नाजायज संबंधों को ले कर है.

अरविंद की जब गांव में ज्यादा बदनामी होने लगी तो उस ने फफूंद कस्बे में रहना जरूरी नहीं समझा और अपने गांव आ कर रहने लगा. पर सरिता तो दलबीर सिंह की दीवानी थी. उसे न तो पति की परवाह थी और न ही परिवार की इज्जत की. वह किसी न किसी बहाने दलबीर से मिल ही लेती थी.

हां, इतना जरूर था कि अब वह उस से घर के बजाय बाहर मिल लेती थी. दरअसल घर से कुछ दूरी पर अरविंद का प्लौट था. इस प्लौट में एक झोपड़ी बनी हुई थी. इसी झोपड़ी में दोनों का मिल लेते थे.

जुलाई, 2020 में सरिता का छोटा बेटा नीरज उर्फ जानू बीमार पड़ गया. उस के इलाज के लिए सरिता ने अपने प्रेमी दलबीर सिंह से पैसे मांगे, लेकिन उस ने धंधे में घाटा होने का बहाना बना कर सरिता को पैसे देने से इनकार

कर दिया.

उचित इलाज न मिल पाने से एक महीने बाद सरिता के बेटे जानू की मौत हो गई. बेटे की मौत का सरिता को बेहद दुख हुआ.

विपत्ति के समय आर्थिक मदद न करने के कारण सरिता दलबीर सिंह से नाराज रहने लगी थी. वह न तो स्वयं उस से मिलती और न ही दलबीर को पास फटकने देती. सरिता सोचती, ‘जिस प्रेमी के लिए उस ने पति से विश्वासघात किया. परिवार की मर्यादाओं को ताक पर रख दिया, उसी ने बुरे वक्त पर धोखा दे दिया. समय रहते यदि उस ने आर्थिक मदद की होती, तो आज उस का बेटा जीवित होता.’

सरिता ने प्रेमी से दूरियां बनाईं तो दलबीर सिंह परेशान हो उठा. वह उसे मनाने की कोशिश करता, लेकिन सरिता उसे दुत्कार देती. दलबीर सरिता को भोगने का आदी बन चुका था. उसे सरिता के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था.

आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने सरिता को मनाने के लिए उसे प्लौट में बनी झोपड़ी में बुलाया. सरिता वहां पहुंची तो दलबीर ने उस से पूछा, ‘‘सरिता, तुम मुझ से दूरदूर क्यों भागती हो. मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करता हूं.’’

‘‘तुम मुझ से नहीं, मेरे शरीर से प्यार करते हो. तुम्हारा प्यार स्वार्थ का है. सच्चे प्रेमी सुखदुख में एकदूसरे का साथ देते हैं. लेकिन तुम ने हमारे दुख में साथ नहीं दिया. जब तुम स्वार्थी हो, तो अब मैं भी स्वार्थी बन गई हूं. अब मुझे भी तन के बदले धन चाहिए.’’