हुस्न की मछली का कांटा

एक आधा अधूरा खतरनाक खेल – भाग 3

शालू ने आगे बताया कि उस ने अपनी पहली एफआईआर में रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का नाम नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर लिखवाया है, जिन्हें वह जानती तक नहीं थी. शालू शर्मा के इस इकबालिया बयान को अगले दिन धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराया गया.

शालू के इस बयान के बाद इस मामले की सभी बिखरी कडि़यां जुड़ गई थीं. पुलिस ने मुखबिरों की निशानदेही और फोन लोकेशन के आधार पर जाल बिछा कर 20 फरवरी, 2014 की सुबह साढ़े 9 बजे बसअड्डे के सामने संतोष अस्पताल के गेट के पास से नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद निवासी बंगाली पीर, कस्बा लोनी और बृजेश कौशिक निवासी शिवपुरम, मेरठ को गिरफ्तार कर लिया. उस समय ये तीनों काली वैगनआर कार से कहीं भागने की फिराक में थे.

तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो नगेश चंद्र शर्मा ने बताया कि वह रविंद्र सैनी व कामेश सक्सेना को पहले से ही जानता था. दोनों ही करोड़पति हैं. उन्हें वह दुष्कर्म के झूठे केस में फंसा कर मोटी रकम वसूलना चाहता था. नगेशचंद्र शर्मा खुद को एटूजेड न्यूज चैनल का पत्रकार बताता था. इसी नाम से उस ने नवयुग मार्केट में औफिस भी खोल रखा था. जबकि शहजाद फोटोग्राफर था और नगेशचंद्र शर्मा के साथ ही रहता था. वैसे एटूजेड चैनल का कहना है कि उस ने नगेशचंद्र शर्मा को काफी पहले निकाल दिया था.

बहरहाल, आरोपी शहजाद ने बताया कि उस ने जो भी किया, नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था, वह भी रविंद्र और कामेश को नहीं जानता था. बृजेश कौशिक का भी यही कहना था कि उस ने भी जो किया वह नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था. वह भी रविंद्र सैनी या कामेश सक्सेना को नहीं जानती थी.

66 वर्षीय रविंद्र सैनी अपने परिवार के साथ सैक्टर 9, राजनगर गाजियाबाद में रहते थे. उन के दोनों बेटे उच्च शिक्षा प्राप्त थे और अपने अपने परिवार के साथ अमेरिका और बंगलूरु में रहते थे. रविंद्र सैनी स्टेट बैंक औफ इंडिया की महाराजपुर, गाजियाबाद शाखा से 1998 में रिटायर हुए थे. डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने रिटायर होने से पहले एक आवासीय समिति बनाई थी. यह उस समय की बात है, जब दिल्ली और एनसीआर में जमीनों के दाम बहुत कम थे. तब जमीनें आसानी से उपलब्ध थीं.

उसी जमाने में रविंद्र सैनी ने किसानों से 14 एकड़ जमीन खरीद कर एक सोसायटी बनाई, जिस का नाम रखा गया राष्ट्रीय बैंककर्मी एवं मित्रगण आवास समिति. यह आवासीय समिति सदरपुर गाजियाबाद के पास है. इस आवास समिति के पहले चुनाव में प्रमोद कुमार त्यागी को अध्यक्ष व रविंद्र सैनी को सचिव पद के लिए चुना गया था. इस समिति के 203 सदस्य हैं. इस समिति ने जो आवासीय कालोनी बनाई उस का नाम संयोगनगर रखा गया.

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि समिति के पहले चुनाव में ही रविंद्र सैनी को सर्वसम्मति से आजीवन सचिव बनाया गया था.

इस पद पर कार्य करते हुए अध्यक्ष प्रमोद त्यागी को जब कई तरह की वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त पाया गया तो 2005 के चुनाव में उन्हें पद से हटा दिया गया. उन की जगह वीरेंद्र त्यागी को अध्यक्ष चुना गया. प्रमोद त्यागी ने पद से हटाए जाने का कारण रविंद्र सैनी को माना और उन से रंजिश रखने लगे.

करीब 2 साल तक चुप रहने के बाद प्रमोद त्यागी ने अधिगृहीत जमीन के किसानों के साथ मिल कर कई तरह की अनियमितताओं की शिकायतें जीडीए व अन्य सरकारी विभागों में कीं. लेकिन जब कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अपने एक दोस्त विजय पाल त्यागी द्वारा सितंबर, 2010 में रविंद्र सैनी के खिलाफ गाजियाबाद की सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दर्ज कराया.

इस में कहा गया था कि रविंद्र सैनी ने गाजियाबाद के डूंडाहेड़ा इलाके में उन्हें एक भूखंड दिलाने की एवज में 3 किश्तों में 16 लाख 10 हजार रुपए लिए थे, जिन्हें हड़प लिया है और जमीन की रजिस्ट्री भी नहीं कराई है.

यह मुकदमा आज भी अदालत में विचाराधीन है. 18 अक्टूबर 2013 को दोपहर करीब 1 बजे रविंद्र सैनी को जैन नाम के किसी व्यक्ति ने फोन कर के कहा कि वह उन का मकान किराए पर लेना चाहता है.

लेकिन रविंद्र सैनी जब वहां पहुंचे तो बंदूक और रिवाल्वर की नोक पर उन्हें बंधक बना कर उन के बैंक कालोनी स्थित मकान की तीनों मंजिलों की रजिस्ट्री उन के नाम करने, 15 लाख रुपए नकद देने तथा समिति के सचिव पद से हट जाने को कहा गया. ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई.

इस घटना की तहरीर उसी दिन देर शाम रविंद्र सैनी ने थाना कविनगर में दर्ज कराने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया. इस पर रविंद्र सैनी ने अदालत की शरण ली.

अदालत के आदेश पर नामजद अभियुक्तों प्रमोद कुमार त्यागी और विजय पाल त्यागी के खिलाफ 18 अक्तूबर, 2013 को भादंवि की धारा 384, 323, 386, 452, 504 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन कोई भी काररवाई नहीं की गई.

कोई काररवाई न होती देख रवींद्र सैनी ने अपनी व्यथा एसएसपी गाजियाबाद, डीआईजी मेरठ जोन, मंडलायुक्त मेरठ, डीजीपी लखनऊ, मानव अधिकार आयोग व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक भी पहुंचाई. लेकिन सिवाय आश्वासनों के उन्हें कुछ नहीं मिला.

अभी तक यह लड़ाई और रंजिश व्यक्तिगत थी, लेकिन अब उन्हें एक और झूठे दुष्कर्म केस में फंसाने की कोशिश की गई. इस मामले में नाम आने पर रवींद्र सैनी और उन के परिवार की काफी बदनामी होती, लेकिन पुलिस की तत्परता से वह बालबाल बच गए. इस कथित दुष्कर्म कांड में नामजद दूसरे आरोपी कामेश सक्सेना, गाजियाबाद के बिजली विभाग में कार्यरत हैं और परिवार सहित विजयनगर में रहते हैं.

20 फरवरी, 2014 को रवींद्र सैनी द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर भादंवि धारा 384/511 व 120बी के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद व बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया.

इसी मामले में एक अन्य एफआईआर कथित पीडि़ता सुनीता शर्मा उर्फ शालू द्वारा भी दर्ज कराई गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद और बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इन के खिलाफ धारा 376, 342, 506 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर काररवाई की गई. गिरफ्तार किए गए तीनों आरोपियों को उसी दिन गाजियाबाद कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है

एक आधा अधूरा खतरनाक खेल – भाग 2

चूंकि दुष्कर्म का मामला दर्ज हो चुका था, इसलिए पुलिस ने रात में ही रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना को थाने बुला लिया. दोनों का ही कहना था कि उन पर यह झूठा आरोप लगाया जा रहा है, पुलिस चाहे तो उन की काल डिटेल्स रिकलवा कर उन की लोकेशन पता कर सकती है. चूंकि पुलिस को शालू की बातों पर शक था, इसलिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का उस से आमना सामना नहीं कराया.

इस की जगह उन्होंने एक बार फिर पीडि़ता शालू से गहन पूछताछ का मन बनाया, ताकि सच्चाई सामने आ सके. लेकिन इस से पहले पुलिस टीम में पीडि़ता और दोनों नामजद आरोपियों के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक कर लिया. तीनों की काल डिटेल्स की पड़ताल से पता चला कि पूरे दिन शालू और कामेश सक्सेना के फोन लोकेशन कलेक्ट्रेट या लोनी के आसपास नहीं थी.

जबकि शालू अपने बयान में दावा कर रही थी कि वह कामेश से कलक्ट्रेट पर मिली थी. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि रविंद्र सैनी का कामेश सक्सेना या पीडि़ता से एक बार भी मोबाइल फोन से संपर्क नहीं हुआ था. इस से पुलिस को लगा कि शालू संभवत: कामेश सक्सेना और रविंद्र सैनी को जानती ही नहीं है.

ऐसी स्थिति में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था कि हो न हो शालू किसी लालच के तहत या किसी के कहने पर रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर आरोप लगा रही हो. इस सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना सहित 8 लोगों को शालू के सामने खड़ा कर के पूछा कि वह दुष्कर्मियों को पहचाने. लेकिन वह रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना में से किसी को नहीं पहचान सकी. इस का मतलब वह झूठ बोल रही थी.

पुलिस की इस काररवाई ने जांच की दिशा ही बदल दी. अब शालू खुद ही जांच के दायरे में आ गई. दोनों आरोपियों की काल डिटेल्स से यह साबित हो गया था कि वे दोनों भी एकदूसरे के संपर्क में नहीं थे. जबकि पीडि़ता ने अपने बयान में कहा था कि कामेश ने ही उसे रविंद्र से सोसाइटी के औफिस में मिलवाया था. अगर ऐसा होता तो दोनों के बीच बातचीत जरूर हुई होती.

इसी बात को ध्यान में रख कर जब शालू की काल डिटेल्स को फिर से जांचा गया तो उस में एक खास नंबर पर पुलिस की निगाह पड़ी. शालू ने मेरठ से गाजियाबाद आने के बाद उस नंबर पर दिन में कई बार बात की थी.

काल डिटेल्स से यह बात भी सामने आ गई थी कि शालू और उस नंबर से फोन करने वाले की ज्यादातर लोकेशन नवयुग मार्केट, गाजियाबाद के आसपास थी. शालू की तथाकथित चाची बृजेश के मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई थी. जांच में पता चला कि दिनभर वह भी उस नंबर के संपर्क में रही थी. उस नंबर से उस के मोबाइल पर कई बार फोन आए थे. जब उस संदिग्ध फोन नंबर की आईडी निकलवाई गई तो पता चला कि वह नंबर नगेशचंद्र शर्मा, निवासी गांव रामपुर, जिला हापुड़ का है.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद मिला. इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि इस मामले में कोई न कोई झोल जरूर है. अगले दौर की पूछताछ के लिए शालू उर्फ सुनीता शर्मा को एक बार फिर से तलब किया गया. इस बार शालू से जब उस के फोन की काल डिटेल्स को आधार बना कर पूछताछ की गई तो वह अधिक देर तक पुलिस के सवालों का सामना नहीं कर सकी. उस ने इस फरजी दुष्कर्म कांड का सारा राज खोल दिया.

मेरठ रोड, नई बस्ती निवासी तेजपाल शर्मा की बेटी सुनीता शर्मा उर्फ शालू भले ही अभावों में पलीबढ़ी थी, लेकिन थी महत्त्वाकांक्षी, जब वह 16 साल की थी, तभी उस की शादी मेरठ के ही प्रवीण शर्मा से हो गई. मायके में तो गरीबी थी ही, शालू की ससुराल की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. शादी के 2 साल बाद ही शालू प्रवीण के बेटे की मां बन गई.

शालू और प्रवीण में वैचारिक मतभेद रहते थे, जो धीरेधीरे बढ़ते गए. जब दोनों में झगड़ा रहने लगा तो शालू ससुराल छोड़ कर अपने बेटे के साथ मायके में रहने आ गई. अपने और बेटे के पालनपोषण के लिए चूंकि नौकरी करना जरूरी था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में लग गई. नौकरी तो उसे नहीं मिली, पर राजकुमार गुर्जर उर्फ राजू भैया जरूर मिल गया, जो बसपा के टिकिट पर जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहा था.

राजनीति की नैया पर सवार हो कर आगे बढ़ने की चाह में शालू ने राजकुमार गुर्जर से नजदीकियां बना लीं और उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी. लेकिन कुछ दिनों बाद शालू को लगने लगा कि उसे अपने और अपने बेटे के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी. नौकरी की जरूरत महसूस हुई तो शालू ने पड़ोस में रहने वाली अपनी रिश्ते की चाची बृजेश कौशिक से मदद मांगी. उस के कहने पर ही वह गाजियाबाद आई थी.

पुलिस को दिए अपने इकबालिया बयान में शालू शर्मा ने बताया था कि वह अपनी चाची बृजेश कौशिक के माध्यम से नगेशचंद्र शर्मा को जानती थी और उसी के बुलाने पर 19 फरवरी को मेरठ से गाजियाबाद आई थी. नगेशचंद्र का औफिस नवयुग मार्केट में था. उस के नवयुग मार्केट स्थित औफिस पहुंचने के कुछ देर बाद उस की चाची बृजेश कौशिक भी वहां आ गई थी.

नगेशचंद्र शर्मा ने शालू को एक परचा लिख कर दिया, जिस पर 2 आदमियों के नाम व फोन नंबर लिखे थे. इन में एक नाम रविंद्र सैनी का और दूसरा कामेश सक्सेना का था. नगेश ने उन दोनों के फोटो शालू को दिखा कर कहा कि उसे उन के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराना है. जब वह एफआईआर दर्ज करा देगी तो उसे 20 हजार रुपए दिए जाएंगे. उस कागज को पढ़ कर शालू ने चाची की ओर देखा तो उस ने कहा कि अगर पैसों की ज्यादा जरूरत है तो यह काम कर दे. इस काम में वह भी उस की मदद करेगी.

इस के बाद नगेश ने फोन कर के लोनी के एक लड़के शहजाद को बुलाया. उस के आने के बाद नगेश ने उसे कप में डाल कर चाय पिलाई, जिसे पी कर शालू अर्द्धबेहोशी की हालत में आ गई. इस बीच नगेश शहजाद को वहीं छोड़ कर चाची के साथ बाहर चला गया. अर्द्धबेहोशी की हालत में शहजाद ने उस के साथ दुष्कर्म किया.

एक आधा अधूरा खतरनाक खेल – भाग 1

19 फरवरी 2014 की बात है. करीब 8 बजे गाजियाबाद, हापुड़ रोड पर सड़क किनारे  बने एक स्थानीय बस स्टैंड के पास 25-26 साल की एक लड़की के रोने की आवाज सुन कर लोगों का ध्यान उस की ओर चला गया. लग रहा था कि लड़की किसी हादसे का शिकार हुई है. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वह नशे की वजह से ठीक से नहीं बोल पा रही थी. उस की हालत देख कर किसी व्यक्ति ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

कुछ ही देर में इलाकाई गश्ती पुलिस की जीप वहां पहुंच गई. पुलिस को आया देख वहां मौजूद तमाशबीन इधरउधर हट गए. पुलिस ने लड़की से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम शालू शर्मा बताया. वह मेरठ की रहने वाली थी.

शालू ने बताया कि वह आज सुबह ही काम की तलाश में गाजियाबाद आई थी. यहां कुछ लोगों ने उस का अपहरण कर के उस के साथ बलात्कार किया और उसे एक काली गाड़ी से यहां फेंक कर भाग गए.

सामूहिक दुष्कर्म की बात सुन कर पुलिस टीम ने इस घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और पीडि़ता को जीप में बिठा कर महिला थाना ले आई. अभी पुलिस शालू से पूछताछ कर ही रही थी कि एक अन्य महिला पीडि़ता को ढूंढते हुए थाने पहुंच गई. उस औरत ने अपना नाम बृजेश कौशिक बताते हुए कहा कि वह मेरठ की रहने वाली है और शालू की चाची है.

बृजेश के अनुसार वह शालू को ढूंढ रही थी. तभी उसे बस स्टैंड के पास अस्तव्यस्त हालत में मिली एक लड़की के बारे में पता चला तो वह थाने आ गई. इस मामले की सूचना पा कर थाना कविनगर के थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह, सीओ (द्वितीय) अतुल कुमार यादव, एसपी (सिटी) शिवहरि मीणा व एसएसपी धर्मेंद्र कुमार यादव भी महिला थाना आ गए.

पीडि़ता ने पूछताछ में बताया कि उस का नाम सुनीता शर्मा उर्फ शालू शर्मा है और वह पति से अनबन की वजह से अलग किराए के मकान में रहती है. आज सुबह ही वह काम की तलाश में मेरठ से गाजियाबाद आई थी.

गाजियाबाद में कलेक्ट्रेट के पास उस की मुलाकात कामेश सक्सेना नाम के व्यक्ति से हुई, जिस ने उसे काम दिलाने का भरोसा दिया. बातचीत के बाद वह उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर लोनी स्थित विधि विभाग के औफिस ले गया. इस के बाद वह उसे कुछ उच्च अधिकारियों से मिलवाने के बहाने बैंक कालोनी गाजियाबाद स्थित मित्रगण सहकारी आवास समिति के औफिस ले गया.

वहां शाम 6 बजे कामेश ने उसे रविंद्र कुमार सैनी व कुछ अन्य लोगों से यह कह कर मिलवाया कि ये सब गाजियाबाद के बड़े लोग हैं. ये काम भी दिलवाएंगे और पैसा भी देंगे. वहीं पर उसे एक कप चाय पिलाई गई, जिसे पी कर वह बेहोश हो गई. बेहोशी की ही हालत में उन सभी ने उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया. बाद में वे उसे एक काली कार मे डाल कर हापुड़ रोड पर गोविंदपुरम के पास फेंक कर भाग गए.

शालू जिस तरह बात कर रही थी, उस से पुलिस को कतई नहीं लग रहा था कि उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है. दूसरे बिना किसी सूचना के उस की चाची का थाने आना भी पुलिस को अजीब लग रहा था. इसलिए पुलिस ने आगे बढ़ने से पहले दोनों से ठीक से पूछताछ कर लेना उचित समझा.

पूछताछ में शालू ने बताया था कि पति से अलग रहने की वजह से उस का और उस के बेटे का खर्चा नहीं चल पा रहा था. उसे नौकरी की तलाश थी. उस ने नौकरी के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली अपनी चाची बृजेश कौशिक से कह रखा था. वह चूंकि समाजसेविका थी और उस के संपर्क भी अच्छे लोगों से थे इसलिए वह उसे नौकरी दिला सकती थी.

19 फरवरी की सुबह उस की चाची का फोन आया कि वह गाजियाबाद आ जाए. वह उसे नौकरी दिला देगी. उस ने यह भी कहा कि वह उसे गाजियाबाद कलेक्ट्रेट के पास मिलेगी. चाची के कहने पर ही वह गाजियाबाद कलेक्ट्रेट पहुंची थी. वहां चाची तो नहीं मिली, कामेश सक्सेना मिल गया. वह काम दिलाने के नाम पर उसे अपने साथ ले गया था.

उधर बृजेश ने बताया था कि जब वह कलेक्ट्रेट पहुंची तो शालू उसे वहां नहीं मिली. उस के बाद वह दिन भर उसे ढूंढती रही. उसे शालू की बहुत चिंता हो रही थी. फिर रात गए जब उसे पता चला कि हापुड़ रोड के एक बसस्टैंड के पास एक लड़की पड़ी मिली है और उसे महिला थाने ले जाया गया है तो वह यहां आ गई. यहां पता चला कि वह लड़की शालू ही थी और उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था.

शालू और बृजेश के बयानों में काफी विरोधाभास था. पुलिस को शक हुआ तो उस ने शालू और बृजेश से पूछा कि जब दोनों के पास मोबाइल फोन थे तो उन्होंने एकदूसरे से फोन पर बात क्यों नहीं की. इस पर दोनों नेटवर्क का रोना रोने लगीं. यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी, जिस से उसे शालू और बृजेश की बातों पर कुछ शक हुआ.

बहरहाल, पुलिस ने शालू शर्मा के बयान के आधार पर नामजद अभियुक्तों के खिलाफ रात साढ़े 8 बजे धारा 342, 506 व 376 के तहत केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही उसे मैडिकल जांच के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. मैडिकल जांच में इस बात की पुष्टि हो गई कि शालू के साथ दुष्कर्म हुआ था.

चूंकि शालू गैंगरेप की बात कर रही थी, इसलिए मामले की गंभीरता को समझते हुए पुलिस उच्चाधिकारियों ने मीटिंग की और इस की जांच का जिम्मा सीओ (द्वितीय) अतुल यादव को सौंप दिया. उन्हें निर्देश दिया गया कि आरोपियों को गिरफ्तार कर के जल्द से जल्द मामले का खुलासा करें.

सीओ अतुल कुमार यादव, थानाप्रभारी कविनगर अरुण कुमार सिंह, महिला थानाप्रभारी अंजू सिंह तेवतिया व सबइंस्पेक्टर अमन सिंह ने इस मामले पर आपस में विचारविमर्श किया तो उन्हें शालू और बृजेश के बयानों में विरोधाभास नजर आया.

रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना के फोन नंबर शालू से ही मिल गए. पुलिस ने उन से संपर्क किया तो बात भी हो गई. दोनों ही सम्मानित व्यक्ति थे. रविंद्र सैनी प्रौपर्टी का काम करते थे, जबकि कामेश सक्सेना बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर थे.

सुंदरियों के हसीन सपने

हुस्न की मछली का कांटा – भाग 3

एक दिन आरती को कृष्ण कुमार की याद आई. वह कभीकभी उस से फोन पर बातें किया करती थी. उस ने मुकीम को भी उस के बारे में बता कर कहा, ‘‘कृष्ण कुमार बड़े आदमी हैं. अगर इन अंकल से एक बार मोटी रकम मिल जाए तो फिर हमें छोटीछोटी वारदातें करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

‘‘लेकिन इन्हें फांसा कैसे जाएगा?’’ मुकीम ने पूछा.

‘‘देखो, उन्हें मैं बुला तो सकती हूं. लेकिन आगे का सारा काम तुम लोग ही करना.’’ आरती ने कहा.

इस तरह बातोंबातों में इस गिरोह का निशाना कृष्ण कुमार पर सध गया. 29 दिसंबर, 2013 को आरती ने मुकीम के मोबाइल से कृष्ण कुमार के मोबाइल पर फोन किया, ‘‘अंकल मुझे अच्छा सा परफ्यूम और एक बढि़या सी घड़ी चाहिए. क्या आप ये चीजें कैंटीन से ला सकते हैं?’’

‘‘हां बेटा, ला दूंगा. मगर तू मुझे मिलेगी कहां?’’ कृष्ण कुमार ने पूछा.

‘‘मैं आज ही ले आऊंगा और तेरे कमरे पर सामान देता हुआ घर निकल जाऊंगा.’’

उस के बाद आरती ने उन्हें पूरे दिन में करीब 6-7 बार फोन किया.

‘‘अंकल मैं ने उस दिन आप को जो लोनी वाला पता दिया था, वहीं पर रह रही हूं.’’

कैंटीन से सामान लेने के बाद कृष्ण कुमार उस दिन ड्यूटी पूरी होने से एक घंटे पहले ही निकल गए. वह सीधे आरती के बताए पते पर पहुंचे, जहां आरती उन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी.

उस को देख कर आरती चहकते हुए बोली, ‘‘मैं आप का कब से इंतजार कर रही थी. आप ने आने में इतनी देर क्यों लगा दी?’’

‘‘क्या करूं बेटा, काम ही इतना ज्यादा था कि निकलतेनिकलते देर हो गई. फिर भी तुम्हारी खातिर एक घंटे पहले निकल आया था. यह लो तुम्हारा परफ्यूम और तुम्हारे लिए बढि़या सी घड़ी.’’

कृष्ण कुमार ने दोनों चीजें आरती की तरफ बढ़ाईं तो वह बोली, ‘‘आप ही मुझ पर सेंट छिड़क दो न अंकल.’’

जब वह आरती पर सेंट छिड़क रहे थे, तभी मुकीम, नीरज और दीपक वहां पर आ गए. मुकीम भड़कते हुए बोला, ‘‘ऐ बुड्ढे तू कौन है और मेरी पत्नी के साथ मेरे घर में क्या कर रहा है?’’

‘‘तमीज से बात करो, आरती ने खुद मुझ से सेंट और घड़ी ले कर आने के लिए कहा था. चाहो तो इस से पूछ लो. क्यों आरती मैं ठीक कह रहा हूं न बेटा?’’ कृष्ण कुमार बोले.

‘‘बेटा, कौन बेटा. आप से मैं कुछ क्यों मंगाऊंगी. मैं तो जानती तक नहीं कि यह कौन हैं?’’ आरती ने कहा तो कृष्ण कुमार उस का मुंह देखते रह गए.

‘‘अब बहुत हो गया तेरा ड्रामा. चुपचाप वो कर, जो हम कहते हैं,’’ मुकीम ने अंटी से तमंचा निकाल कर कृष्ण कुमार की ओर तानते हुए कहा. यह देख कर कृष्ण कुमार डर गए. उन्हें जरा भी आभास नहीं था कि आरती ऐसा कर सकती है. तभी मुकीम और नीरज ने 52 वर्षीय कृष्ण कुमार की पिटाई करनी शुरू कर दी. आरती चुपचाप देखती रही. उन लोगों ने उन की जेब से उन का पर्स निकाल लिया. सोने की अंगूठी और गले की चेन भी उतार कर रख ली.

पर्स में केवल 500 सौ रुपए पड़े थे. पर्स में उन का एटीएम कार्ड भी था. कार्ड अपने कब्जे में ले कर मुकीम ने उन से पासवर्ड पूछा. काफी पूछने पर उन्होंने पासवर्ड बता दिया.

नंबर जान लेने के बाद वे तीनों पंजाब नेशनल बैंक के एटीएम बूथ पर पैसे निकालने के लिए पहुंचे. लेकिन कृष्ण कुमार ने जो पासवर्ड दिया था, वह डालने के बाद भी पैसे नहीं निकले. ऐसा उन्होंने कई बार किया. जब पैसे नहीं निकले तो वह समझ गए कि पासवर्ड गलत बताया होगा.

वे लोग गुस्से में कमरे पर पहुंचे और कृष्ण कुमार की बुरी तरह से पिटाई कर दी. इस के बाद मुकीम ने उन से 2 लाख रुपए की मांग की. तब कृष्ण कुमार ने कहा, ‘‘मेरे पास तो इतने पैसे हैं नहीं. तुम मेरे घर पर बात करवाओ. घर से कोई न कोई पैसे ले कर आ जाएगा.’’

‘‘हमें बेवकूफ समझता है क्या? तेरे घर फोन कर के तो हम फंस जाएंगे. तू हमें पासवर्ड नंबर बता दे नहीं तो हम तुझे गोली मार देंगे,’’ मुकीम ने कृष्ण कुमार की पिटाई करते हुए कहा. लेकिन उन्होंने एटीएम कार्ड का पिन नंबर नहीं बताया. मुकीम और नीरज ने उन्हें कमरे में बंद कर दिया और उन्हें पानी तक नहीं दिया.

उन लोगों ने कृष्ण कुमार को फांसा तो इसलिए था कि उन से मोटी रकम हासिल की जा सकती है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अब वे यह सोच कर परेशान थे कि अगर वह उन्हें छोड़ देते हैं तो बात पुलिस तक पहुंचेगी, क्योंकि वह आरती को पहचानते थे. मुकीम ने एक बार फिर उन से एटीएम का पिन नंबर पूछा, लेकिन उन्होंने उसे एटीएम का पिन नंबर नहीं बताया. इस पर मुकीम ने नीरज से उन्हें पकड़ने को कहा. नीरज और दीपक ने कृष्ण कुमार को कस कर पकड़ लिया और मुकीम ने उन के सीने पर तमंचे से गोली मार दी.

गोली लगते ही कृष्ण कुमार की छाती से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह वहीं गिर पड़े. कुछ ही देर में उन की मौत हो गई. यह देख कर आरती बोली, ‘‘यह तुम लोगों ने क्या कर दिया? इन को मारने के लिए किस ने कहा था?’’

‘‘तो क्या करते? जाने देते इसे? इस ने हमें पहचान लिया था. यह यहां से सीधा पुलिस के पास जाता और हम सब जेल की कोठरी में.’’ मुकीम और नीरज ने कहा.

29 दिसंबर, 2013 की पूरी रात कृष्ण कुमार की लाश उसी कमरे में पड़ी रही. लाश को उन्होंने चादर में बांध दिया था. लाश अगले दिन 30 दिसंबर को रात गहराने पर ठिकाने लगाई जानी थी.

30 दिसंबर की रात को ठंडक होने की वजह से करीब 9 बजे ही मोहल्ले में सन्नाटा छा गया. इस का फायदा उठा कर नीरज, दीपक और मुकीम ने कृष्ण कुमार की लाश को लोनी के किशन बिहार, फेस-2, सहबाजपुर गांव में एक सुनसान जगह पर झाडि़यों के पास फेंक दिया, जिसे अगले दिन थाना लोनी पुलिस ने बरामद कर लिया था.

सभी आरोपी पुलिस से बचने के लिए इधरउधर छिपते रहे. लेकिन कविनगर थाना पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरती, मुकीम और नीरज को दबोच लिया. लोनी पुलिस ने मुकीम से कृष्ण कुमार का एटीएम कार्ड भी बरामद कर लिया. दीपक की तलाश में पुलिस ने कई जगह छापेमारी की, लेकिन वह कहीं नहीं मिल सका. गिरफ्तार अभियुक्तों को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

वेश्या बाजार से मुक्त हुई रोमा बनी मिसाल

उत्तर प्रदेश के जिला मऊ के मोहल्ला मुंशीपुरा की रहने वाली रोमा बच्ची थी, तभी उस के पिता की मौत हो गई थी. बाप की मौत के बाद मां अकेली ही उसे पालपोस  रही थी. दूसरों के घर मेहनतमजदूरी कर के मां किसी तरह घरखर्च चला रही थी. रोमा भी कभीकभार मां के साथ मदद के लिए चली जाती थी. ज्यादातर वह मोहल्ले की लड़कियों के साथ घूमती रहती थी. उस की सब से ज्यादा निशा से पटती थी. निशा उम्र में उस से थोड़ी बड़ी जरूर थी, लेकिन रहती थी सहेली की तरह.

निशा अकसर अपने रिश्तेदारों, अजय और प्रकाश के साथ वाराणसी घूमने जाती रहती थी. वहां से लौट कर वह अपनी सहेली रोमा को देखी गई फिल्म की कहानी के साथसाथ शहर का आंखों देखा हाल सुनाती. मऊ जैसे छोटे से शहर में रहने वाली रोमा के लिए वाराणसी मुंबईदिल्ली से कम नहीं लगता था. उस का भी मन वाराणसी जा कर घूमनेफिरने और फिल्म देखने का होता, लेकिन उसे मौका ही नहीं मिलता था.

उन दिनों रोमा उम्र के जिस दौर में थी, उस उम्र की लड़कियों को फुसलाना आसान होता है. निशा के रिश्तेदारों अजय और प्रकाश ने रोमा को देखा तो उस पर उन की नीयत खराब हो गई. उन्होंने निशा से उसे वाराणसी ले चलने को कहा.

रोमा तो पहले से ही वाराणसी जाने को लालायित थी. निशा ने जैसे ही उस से वाराणसी चलने को कहा, वह तैयार हो गई. लेकिन वाराणसी कोई गांव की बाजार तो थी नहीं कि अभी गए और घूम कर लौट आए. वहां तो सुबह का गया, रात को ही लौट सकता था. ऐसे में मां किसी गैर के साथ घूमने के लिए जवान हो रही बेटी को कैसे जाने देती. तब अजय, प्रकाश और निशा ने उसे सलाह दी कि वह मां को बताए बगैर ही वाराणसी चले. शाम तक तो वे लौट ही आएंगे. मां को पता ही नहीं चलेगा कि वह कहां गई थी.

रोमा को सहेली पर पूरा विश्वास था, इसलिए वह उस के कहने पर उन के साथ घूमनेफिरने और फिल्म देखने वाराणसी चली गई. शाम को लौटने का समय हुआ तो सभी उसे एक कमरे पर ले गए. रोमा को लगा कि यहां उस के साथ कुछ गलत हो सकता है, इसलिए वह उन लोगों से चलने को कहने लगी. लेकिन वे वहां उसे चलने के लिए थोड़े ही ले गए थे.

अजय और प्रकाश ने निशा को दूसरे कमरे में भेज दिया और रोमा के साथ जबरदस्ती करने लगे. अजय रोमा के साथ दुष्कर्म कर रहा था तो प्रकाश मोबाइल फोन से उस की वीडियो क्लिप बना रहा था. जब प्रकाश उस के साथ दुष्कर्म करने लगा तो अजय ने वीडियो क्लिप बनाई. यही क्रम पूरी रात चलता रहा.

रोमा के लिए वह रात किसी नरक से कम नहीं थी. वह दोनों से रहम की भीख मांगती रही, लेकिन उन्होंने उस पर रहम नहीं किया. यह सिलसिला लगभग पूरे सप्ताह चलता रहा. रोमा पहले तो रोतीगिड़गिड़ाती रही, लेकिन बाद में विरोध पर उतर आई. उस ने धमकी दी कि छूटते ही वह सारी बात मां को बताएगी.

रोमा की इस धमकी से अजय और प्रकाश डर गए. उन्हें लगा कि रोमा ने घर जा कर सारी बात मां को बता दी तो मामला निश्चित रूप से पुलिस तक पहुंचेगा. क्योंकि अब तक रोमा की मां उमा कोतवाली में रोमा की गुमशुदगी दर्ज करा चुकी थी. ऐसे में रोमा के घर पहुंचते ही पुलिस उस से पूछताछ करने पहुंच जाएगी और रोमा जैसे ही उन का नाम लेगी, उस के बाद उन की पूरी जिंदगी जेल में ही बीतेगी. क्योंकि रोमा अभी नबालिग थी. यही वजह थी कि उन्होंने सोचा कि अब रोमा को छोड़ना ठीक नहीं है.

एक सप्ताह तक रोमा के साथ जबरदस्ती करने के बाद अजय और प्रकाश ने उसे छोड़ना उचित नहीं समझा. लेकिन वे उसे बांध कर भी नहीं रख सकते थे. इसलिए किसी तरह उस से छुटकारा पाना भी जरूरी था. दोनों को इस बात का डर सता रहा था कि आजाद होते हुए रोमा सब को सच्चाई बता देगी. उस के बाद उन का क्या होगा, यह उन्हें पता ही था.

काफी सोचविचार कर आखिर प्रकाश ने रोमा से छुटकारा पाने का रास्ता निकाल ही लिया. उस की जानपहचान वाराणसी की शिवदासपुर वेश्या बाजार की रहने वाली अफजल बेगम से थी. अफजल बेगम देहधंधे के लिए लड़कियों की खरीदफरोख्त करती रहती थी. प्रकाश ने उस के यहां जा कर जब उस से बताया कि वह उस के लिए एक लड़की लाया है तो अफजल बेगम ने बिना किसी लागलपेट के पहला सवाल किया, ‘‘लड़की की उम्र क्या है?’’

‘‘13-14 साल.’’ प्रकाश ने सोचा था कि कमउम्र सुन कर बेगम खुश होगी.

‘‘अरे अभी तो वह नाबालिग है. तुम्हें पता नहीं, नाबालिग लड़कियों को खरीदना बहुत खतरनाक हो गया है. ऐसी लड़कियों के लिए पुलिस बहुत ज्यादा पैसे मांगती है और परेशान भी करती है. पकड़े जाने पर जल्दी जमानत भी नहीं होती.’’ अफजल बेगम ने कहा.

‘‘आप भी क्या बात करती हैं अफजल बेगम. 2-4 दिन आप के यहां रहेगी, अपने आप बालिग दिखने लगेगी. वैसे काफी हद तक हम ने उसे बालिग बना दिया है. बाकी आप के आदमी बना देंगे.’’ प्रकाश ने एक आंख दबा कर बेगम को समझाया.

‘‘साल छह महीने की बात होती, तब तो चल जाता. अभी लड़की को बालिग होने में 3-4 साल लगेंगे.’’ अफजल बेगम ने कहा.

दरअसल बेगम पुरानी खिलाड़ी थी. ऐसे लोगों को कैसे बेवकूफ बनाया जाता है, यह उसे अच्छी तरह पता था .वह यह भी जानती थी कि ये नए लोग हैं. इन्हें क्या पता कि यहां क्या और कैसे होता है. इसलिए उन्हें बेवकूफ बनाते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम तो पैसे ले कर चलते बनोगे. उस के बाद संभालना मुझे पड़ेगा. ऐसी लड़कियों को संभालना आसान नहीं होता. क्योंकि ये भागने की बहुत कोशिश करती है.’’

‘‘बेगम, तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. यह भागने की कोशिश बिलकुल नहीं करेगी, क्योंकि हम ने इस की वीडियो क्लिप बना ली है.’’ प्रकाश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कहो तो दिखाएं?’’

‘‘भई, तुम तो बड़े छिपे रुस्तम निकले. चलो, अब तुम इतना कह रहे हो तो हम इसे रख ही लेते हैं. लेकिन अगर कोई परेशानी हुई तो झेलना तुम्हें ही होगा. हम तुम्हारा नामपता ले लेंगे. इस के लिए मैं तुम्हें 30 हजार रुपए दूंगी.’’ अफजल बेगम ने कहा.

‘‘कहा न, तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. तुम इसे निश्चिंत हो कर रखो. प्रकाश ने कहा. क्योंकि वह भी सोच रहा था कि किसी तरह इस बला से पिंड छूटे. इस से जो पैसे मिल रहे हैं, वे पुलिस से बचने में मदद करेंगे.

प्रकाश और अजय ने अफजल बेगम से पैसे ले कर रोमा को उस के हवाले कर दिया. इस के बाद रोमा के साथ शुरू हुई दरिंदगी. पहले तो उसे लाइन पर लाने के लिए अफजल बेगम के आदमियों ने उस के साथ दुष्कर्म किया. मजबूर हो कर रोमा ने धंधे के लिए हां कर दी. इस के बाद मासूम के नाम पर उस से मोटी कमाई की जाने लगी.

अफजल बेगम लड़कियों से केवल देहधंधा ही नहीं कराती थी, बल्कि अश्लील फिल्में बनवा कर बाजार में सप्लाई करती थी. इस तरह वह दोहरा लाभ कमा रही थी. जिन लड़कियों की अश्लील फिल्में बाजार में पहुंच जाती थीं, वे भागने का साहस नहीं कर पाती थीं.

कमउम्र की लड़कियों को जल्दी जवान करने के लिए हारमोंस के इंजेक्शन दिए जाते थे. अजय और प्रकाश ने मोबाइल फोन से रोमा की वीडियो क्लिप बनाई थी, जबकि अफजल बेगम के यहां वीडियो कैमरे का उपयोग होता था. अफजल बेगम अपने यहां आने वाले ग्राहकों को भी ब्लू फिल्में दिखाती थी, जिस के लिए वह अलग से पैसे लेती थी.

रोमा नरक से भी बदतर जिंदगी जी रही थी. हर रात कईकई लोग उसे रौंदते थे. अगर कभी वह धंधे से मना कर देती तो उस की बुरी तरह पिटाई होती. तरहतरह की शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी जातीं. यह सब सिर्फ रोमा के साथ ही नहीं हो रहा था, बल्कि उस जैसी 3 लड़कियां और भी थीं. शायद उन्हें भी रोमा की ही तरह खरीदा गया था.

वहां रहने वाली लड़कियों की बातों से रोमा को पता चल गया था कि यहां से निकलना आसान नहीं है. रोमा को पता चला कि यहां बनने वाली अश्लील फिल्मों की सीडियां बाहर भेजी जाती हैं. कई बार तो ग्राहक अश्लील फिल्मों की सीडी साथ ले कर आते थे और उन में जिस तरह लड़कियां काम करती थीं, उसी तरह से उसे भी करने को कहते थे. कमउम्र होने की वजह से रोमा की मांग सब से अधिक थी, क्योंकि ग्राहक उसे डराधमका कर जैसा चाहते थे, वैसा करा सकते थे.

रोमा को अफजल बेगम के यहां आए धीरेधीरे 2 साल हो गए. इस तरह वह समय से पहले ही जवान हो गई. यहां वह सब से कम उम्र की थी. कई बार अफजल बेगम ग्राहकों से कह भी देती थी कि यह पहली बार ऐसा करने जा रही है. तकलीफ से रोमा रोने लगती तो ग्राहक को बेगम की बात सही लगती. ग्राहक नशे में होता था, इसलिए उसे सच्चाई का पता नहीं चलता था.

रोमा के लिए उस समय मुसीबत खड़ी हो गई, जब पता चला कि वह गर्भवती है. इस बात की जानकारी अफजल बेगम को हुई तो उस ने रोमा को गर्भ गिराने की दवा दी. लेकिन रोमा का गर्भ नहीं गिरा. तब अफजल को लगा कि अस्पताल ले जा कर ही इस का बच्चा गिरवाना पड़ेगा, क्योंकि वह इतने दिन इंतजार नहीं कर सकती थी.

लेकिन रोमा को बाहर ले जाना खतरे से खाली नहीं था. इसलिए अफजल बेगम ने रोमा को समझाते हुए कहा, ‘‘रोमा, तुम किसी भी तरह बच्चा गिरवा दो, क्योंकि अगर यह बच्चा पैदा हुआ तो न तुम्हारे लिए ठीक रहेगा, न बच्चे के लिए. लड़का हुआ तो दलाल बनेगा और लड़की हुई तो तुम्हारी तरह लोगों का बिस्तर गरम करेगी.’’

रोमा के गर्भवती होने से अफजल बेगम का नुकसान हो रहा था, क्योंकि ग्राहक अब उस के पास जाना नहीं चाहते थे. इसलिए अब वह अफजल बेगम को बोझ लगने लगी थी. दूसरी ओर कहीं से रोमा की मां को पता चल गया था कि रोमा वाराणसी की वेश्याबाजार में है. यह जानकारी मिलते ही वह वाराणसी आ गई और थाने जा कर बेटी की मुक्ति की गुहार लगाई. लेकिन पुलिस उस की क्यों सुनती, क्योंकि उसे भी वेश्या बाजार से पैसा मिलता था, इसलिए पुलिस ने उसे समझाबुझा कर वापस भेज दिया.

रोमा की मां ने देखा कि पुलिस कुछ नहीं कर रही है तो वह स्वयंसेवी संगठन गुडि़या संस्था जा पहुंची. गुडि़या संस्था वाराणसी में वेश्या उन्मूलन और उन की जिंदगी को बेहतर बनाने की दिशा में काम करता है. वाराणसी के मड़ुवाडीह में वेश्याओं के बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल भी चलाता है.

यह संस्था अजीत सिंह चलाते हैं, जिन्होंने कई बार इलाहाबाद, मेरठ और वाराणसी में छापा मरवा कर तमाम नाबालिग बच्चियों को देहधंधे से मुक्त कराया है. इस नेक काम के लिए उन्हें देशविदेश में कई सम्मान भी मिल चुके हैं. रोमा की मां गुडि़या संस्था के संचालक अजीत सिंह से मिली और अपनी परेशानी बताई.

दूसरी ओर रोमा की मां के वाराणसी आने की खबर अफजल बेगम को मिल चुकी थी. उसे लगा कि अगर रोमा उस के अड्डे से पकड़ी गई तो वह मुश्किल में फंस जाएगी. इसलिए वह चाहती थी कि रोमा भाग जाए. उस ने अपने अड्डे की पुष्पा को सिखापढ़ा कर रोमा को बाजार ले जाने को कहा. उस ने उस से कह दिया था कि वह उसे भाग जाने का मौका दे देगी. आखिर रोमा भाग निकली.

रोमा सीधे वाराणसी रेलवे स्टेशन पहुंची और पैसेंजर टे्रन पकड़ कर मऊ आ गई. स्टेशन से वह घर आई और मां के सामने फूटफूट कर रोने लगी. रोमा ने पूरी बात मां को बताई तो वह बेटी को ले कर मऊ कोतवाली जा पहुंची. रोमा ने पूरी कहानी पुलिस को बताई तो कोतवाली पुलिस ने उसे वाराणसी जाने को कहा, क्योंकि कोतवाली पुलिस मुकदमा दर्ज कर के सिरदर्द नहीं लेना चाहती थी.

रोमा की मां बेटी को ले कर गुडि़या संस्था के संचालक अजीत सिंह से मिली. वह मांबेटी को ले कर थाने गए और रोमा के मामले की रिपोर्ट लिखानी चाही, लेकिन पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया.

जब थाना पुलिस में सुनवाई नहीं हुई तो गुडि़या संस्था ने मामले की जानकारी पुलिस अधिकारियों, मानवाधिकार आयोग तथा अन्य संस्थाओं को दी. जब दबाव बनाया गया, तब पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और धारा 164 के तहत रोमा का बयान दर्ज कराया.

इस के बाद आरोपी रोमा की मां को डराधमका कर मुकदमा वापस लेने के लिए दबाव बनाने लगे. मारनेपीटने की धमकी दी जाने लगी. मांबेटी ने पुलिस से इस की शिकायत की, लेकिन पुलिस ने कोई मदद नहीं की. इस बीच रोमा की मां ने गर्भपात करा कर अपने दूर के रिश्तेदार की मदद से देवरिया में रोमा की शादी तय कर दी.

रोमा की शादी सुरेश प्रसाद से हो गई. ससुराल में पति के अलावा सास मालती देवी थी. पति मुंबई में रहता था. इसलिए ससुराल में सिर्फ सासबहू ही रहती थीं. रोमा ने पति को अपनी पूरी कहानी बता दी थी. सुरेश ने उसे दिल से अपनाया था. यह बात अलग थी कि रोमा की सास उस से खुश नहीं थी. शादी के कुछ दिनों बाद सुरेश मुंबई चला गया तो एक दिन अफजल बेगम अपने कुछ साथियों को ले कर रोमा की ससुराल जा पहुंची. उस समय रोमा और उस की सास घर पर ही थीं.

अफजल बेगम ने रोमा के साथ मारपीट कर के धमकी दी कि अगर उस ने अदालत में उस के खिलाफ बयान दिया तो उस की मां को जान से मार दिया जाएगा. इस के बाद अफजल बेगम मालती देवी को 30 हजार दे कर रोमा को अपने साथ वाराणसी ले आई. इस बात की जानकारी गुडिया संस्था और शिवदासपुर पुलिस को हुई तो 9 जुलाई को गुडिया संस्था ने पुलिस के साथ अफजल बेगम के अड्डे पर छापा मार कर रोमा को एक बार फिर मुक्त कराया.

अफजल बेगम भागने में सफल रही. थाना शिवदासपुर पुलिस ने अफजल बेगम को गिरफ्तार करने के लिए मुखबिरों को सतर्क कर दिया. परिणामस्वरूप 23 नवंबर को अफजल बेगम पुलिस के हाथ लग गई. उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया. जिला अदालत से ही नहीं, गुडि़या संस्था के प्रयास से अफजल बेगम की जमानत हाईकोर्ट से भी 2 बार खारिज हो चुकी है.

अफजल बेगम के आदमी रोमा पर अपना मुकदमा वापस लेने के लिए दबाव डाल रहे थे. उसे और उस की मां को जान से मारने की धमकियां दी जा रही थीं. रोमा ने मुकदमा वापस लेने से मना किया तो एक बार फिर उस का अपहरण कर लिया गया. उसे डराने के लिए उस के साथ एक बार फिर सामूहिक दुष्कर्म किया गया. गुडि़या संस्था की कोशिश से पुलिस ने रोमा को अफजल बेगम के आदमियों के चंगुल से मुक्त कराया.

इतनी कोशिश के बाद भी पुलिस विवेचना आगे नहीं बढ़ी तो रोमा की मां ने अदालत में धारा 156(3) के तहत प्रार्थना पत्र दिया, जिस के बाद मुकदमा कायम हुआ. रोमा का बयान भी अदालत में दर्ज हुआ है. अब रोमा ने इस लड़ाई को लड़ने के लिए कमर कस ली है. वह अफजल बेगम, अजय और प्रकाश तथा अन्य लोगों को सजा दिलाना चाहती है.

अदालत में मुकदमे की स्थिति मजबूत होने की वजह से अब विरोधियों का दबाव कम हो गया है. रोमा अब अपनी ससुराल में रह रही है. गुडि़या संस्थान ने उसे सिलाई मशीन दिलाई है, जिस से कपड़ों की सिलाई कर के वह अपनी आजीविका चला रही है. रोमा अब ज्यादातर अपनी मां के पास मऊ में रहती है.

अपनी बीती जिंदगी के बारे में उस का कहना है, ‘‘उस समय तो लग ही नहीं रहा था कि मैं दोबारा अपनी जिंदगी शुरू कर पाऊंगी, लेकिन ससुराल वाले ऐसे मिले, जिन्होनें सब कुछ जान कर भी मुझे अपना लिया. अब मैं अपनी लड़ाई खुद लड़ रही हूं. मैं अफजल बेगम को सजा दिलवा कर रहूंगी. लड़कियों का मानना है कि वेश्या बाजार से बाहर आने के बाद कोई उन्हें अपनाएगा नहीं, इसलिए वे वहीं रह जाती हैं. मैं उन के लिए प्रेरणा बनना चाहती हूं कि वेश्या बाजार से आ कर देखो मैं ने घर बसा लिया है.’’

स्वयंसेवी संस्था ‘गुडि़या’ के संचालक अजीत सिंह का कहना है, ‘‘पिछले 20 सालों से अभियान चला कर हम ने तमाम नाबालिग लड़कियों को उस गंदी जगह से मुक्त कराया है. लेकिन बहुत कम परिवार हैं, जिन्होंने अपनी लड़कियों को अपनाया है. ऐसी लड़कियों को हम अपनी ओर से सहारा दे कर अपने पैरों पर खड़ी होने के लिए प्रेरित करते हैं.

हम उन लड़कियों के मुकदमे भी लड़ रहे हैं, जो अपनी लड़ाई ठीक से नहीं लड़ पातीं. क्योंकि ऐसे में ही आरोपी छूट जाते हैं और उन्हें कानून का भय नहीं रहता है. पुलिस भी ऐसे मामलों में मदद नहीं करती, क्योंकि उसे ऐसे लोगों से पैसा मिलता है. नाबालिग लड़कियों को फुसला कर वेश्याबाजार में बेचने का एक संगठित उद्योग बन चुका है. ये गरीब और दलित लड़कियों को अपना निशाना बनाते हैं. इन की कोई सुनने वाला भी नहीं होता, जिस से इन की लड़कियां सदासदा के लिए वेश्याबाजार की हो कर रह जाती हैं.’’

हुस्न की मछली का कांटा – भाग 2

शादी के एक साल बाद आरती ने एक बेटे को जन्म दिया. गौरव सुबह ही टैंपो ले कर निकल जाता था. आरती जब कोई सामान आदि खरीदने बाजार जाती तो आतेजाते कुछ लड़के उसे छेड़ा करते थे. उस ने यह बात पति को कई बार बताई, लेकिन उस ने यह कह कर आरती को चुप करा दिया कि वे लड़के आवारा किस्म के हैं. उन से झगड़ा कर के दुश्मनी मोल लेना ठीक नहीं है. तुम उन की बातों पर ध्यान ही मत दो. एक न एक दिन वे अपने आप शांत हो जाएंगे.

पति की बातें सुन कर आरती चुप तो रह गई, लेकिन उसे गौरव पर गुस्सा भी आया. वह सोचती कि पता नहीं कैसे डरपोक के पल्ले बंध गई, जो उन लोगों से कुछ कहने के बजाय उलटा उसे ही चुप रहने को कहता है. ऐसा एक बार नहीं, बल्कि कई बार हुआ. आरती के पड़ोस में राजू नाम का युवक रहता था. पास में रहने की वजह से दोनों एकदूसरे से बातें करते रहते थे. राजू के घर उस के दोस्त नीरज और मुकीम भी आते रहते थे. 25 साल का मुकीम अपने शरीर का बहुत ध्यान रखता था. वह जिम भी जाता था. इलाके में उसे लोग ‘बौडीगार्ड’ के नाम से जानते थे.

आरती ने राजू के मुंह से कई बार मुकीम का नाम सुना था. यह भी कि वह बहादुर है. एक दिन उस ने राजू से कह कर मुकीम को अपने घर बुलवाया और उसे आवारा लड़कों द्वारा छेड़ने वाली बात बताई.

आरती सुंदर तो थी ही, उसे देखते ही मुकीम का मन भी डोल गया. उस ने आरती की तरफ चाहत भरी नजरों से देखा तो आरती ने भी उस की नजरों में अपनी नजरें उतार दीं. उस ने नजरों के जरिए उसे अपने दिल में बसा लिया. वह मन ही मन सोचने लगी, ‘काश ऐसा ही कोई बांका जवान मेरा जीवनसाथी होता तो कितना अच्छा होता.’

‘‘भाभीजी, क्या सोच रही हैं. आप मुझे उन लड़कों को बस एक बार दिखा दीजिए जो आप को छेड़ते हैं. फिर मैं उन से खुद निपट लूंगा.’’ मुकीम ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम अभी मेरे साथ चलो. वे वहीं बैठे होंगे.’’

आरती ने मुकीम और राजू को उन लड़को दिखा दिया. अगले दिन मुकीम, आरती और अपने कई दोस्तों के साथ उन लड़कों के पास पहुंच गया. उस ने उन्हें चेतावनी दी कि आइंदा उन में से किसी ने भी आरती से कुछ कहा तो अंजाम बहुत बुरा होगा.

मुकीम की इस धमकी का इतना असर हुआ कि उन लड़कों ने आरती के साथ छेड़छाड़ बंद कर दी. मुकीम की इस बहादुरी से आरती बहुत प्रभावित हुई. वह उसे अपना दिल दे बैठी. दूसरी तरफ मुकीम भी उस का दीवाना बन गया. मुकीम का उस के यहां आनाजाना भी बढ़ गया. वह उस के यहां उस वक्त आता, जब उस का पति घर पर नहीं होता. दोनों का प्यार बढ़ने लगा तो फिर जल्दी ही शारीरिक संबंधों के मुकाम तक जा पहुंचा.

आरती का मुकीम की तरफ इतना ज्यादा झुकाव हो गया कि वह पति से दूरियां बनाने लगी. वह चाहती थी कि मुकीम ही उस का जीवनसाथी बन जाए. एक दिन उस ने मुकीम से कह दिया, ‘‘तुम मुझे यहां से कहीं दूर ऐसी जगह ले चलो, जहां सिर्फ मैं और तुम हों.’’ अविवाहित मुकीम इस के लिए तैयार हो गया. तब मौका पा कर एक दिन आरती पति और बच्चे को छोड़ कर मुकीम के साथ चली गई.

मुकीम ने नंदनगरी के पास मंडोली में किराए पर कमरा ले लिया. जहां दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. जब आरती की मां पुष्पा को पता चला कि उस की बेटी पति को छोड़ कर दूसरे धर्म के लड़के के साथ रह रही है तो समझाने के बजाय उस ने आरती को संरक्षण देने के लिए उसे और मुकीम को अपने पास रहने के लिए गाजीपुर बुला लिया.

अनुभवी पुष्पा को अंदेशा था कि कुछ दिनों बाद मुकीम आरती को छोड़ कर जा सकता है. इसलिए उस ने उन दोनों को समझाया, ‘‘तुम दोनों जल्द से जल्द शादी कर लो, ताकि दुनिया वाले तुम्हारे रिश्ते को शक की नजरों से न देखें.’’

‘‘मैं खुद चाहता हूं कि आरती मेरे साथ ब्याह कर ले, लेकिन यह मानने को तैयार नहीं है,’’ मुकीम बोला.

‘‘नहीं मां, मैं मुकीम के साथ शादी नहीं करना चाहती. हम ऐसे ही ठीक हैं.’’ आरती ने कहा.

इस पर मुकीम और आरती का झगड़ा बढ़ गया तो मुकीम ने आरती को 2-4 थप्पड़ जड़ दिए. आरती जिद्दी और गुस्सेबाज थी. उस ने उसी समय पुलिस को फोन कर दिया. उस की शिकायत पर गाजीपुर थाना पुलिस मुकीम को थाने ले गई, लेकिन बाद में पुष्पा थाने में बात कर के मुकीम को घर ले आई. उस के बाद पुष्पा ने मुकीम और आरती की शादी का कभी जिक्र नहीं किया.

एक दिन मुकीम और आरती लेटेलेटे आपस में बातें कर रहे थे तो मुकीम ने कहा, ‘‘मैं सोचता हूं कि आखिर हम कब तक इसी तरह गरीबी का जीवन जीते रहेंगे?’’

‘‘तो तुम ही बताओ, हम दौलत कहां से लाएं?’’ आरती ने पूछा तो मुकीम बोला, ‘‘ऊपर वाले ने तुम्हें रूप के साथ कोयल जैसी मीठी आवाज दी है, क्यों न हम इन्हें ही कमाई का जरिया बनाएं.’’ यह सुन कर आरती उस की तरफ आश्चर्य से देखने लगी.

उसे इस तरह देखते देख मुकीम बोला, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? मैं सच कह रहा हूं.’’

‘‘वह कैसे?’’

इस पर मुकीम ने आरती को अपनी सारी योजना समझा दी. आरती सहमत तो हो गई, लेकिन उस ने कहा, ‘‘यह काम कोई बच्चों का खेल नहीं है. बहुत ही जोखिम भरा काम है. अगर जरा सा भी चूके तो समझो जेल ही आखिरी पड़ाव होगा,’’

‘‘तुम चिंता मत करो, मैं ने सब सोच लिया है. मेरा जिगरी दोस्त नीरज कब काम आएगा.’’ कह कर मुकीम ने मोबाइल निकाला और नीरज को फोन कर के मिलने के लिए कहा.

नीरज मिला तो मुकीम ने उसे अपनी सारी योजना समझा दी. नीरज बेरोजगार था, इसलिए वह मुकीम और आरती का साथ देने के लिए राजी हो गया. नीरज के बाद राजू और दीपक को भी उन्होंने योजना में शामिल कर लिया. इस के लिए मुकीम ने लोनी में एक कमरा भी किराए पर ले लिया था.

पूरी योजना तैयार करने के बाद जब इन लोगों ने पहली बार अपने काम को अंजाम दिया तो उस में उन्हें सफलता हाथ लगी. उस में जो भी सामान हाथ लगा, उसे सभी ने आपस में मिल कर बांट लिया. पहली सफलता के बाद उन के हौसले बढ़ गए और एक के बाद एक वारदात को अंजाम देने लगे.

दरअसल आरती मोबाइल फोन से कोई भी 10 डिजिट का नंबर मिलाती. नंबर मिलने पर अगर दूसरी तरफ की आवाज किसी महिला की होती तो वह सौरी कह कर फोन काट देती. अगर कोई पुरुष काल रिसीव करता तो उसे वह अपनी मीठीमीठी बातों में फंसा कर उस के सामने कुछ इस तरह प्रेमप्रस्ताव रखती कि वह इनकार नहीं कर पाता था. 2-4 बार की बातों के बाद वह व्यक्ति खुद ही आरती से मिलने के लिए कहता तो वह उसे कभी किसी पार्क में तो कभी किसी रेस्टोरेंट में बुला लेती थी.

रेस्टोरेंट में वह मजे से उस के साथ खातीपीती, फिर अकेले में बातें करने की गुजारिश कर के उसे किसी पार्क या अपने लोनी वाले कमरे में ले जाती. पार्क या कमरे में पहुंचने से पहले आरती मुकीम को फोन कर के बता देती थी. उस के साथ हमबिस्तर होने का नाटक करते हुए पहले वह उस शख्स के कपड़े उतार देती थी.

इस से पहले कि उस के अपने कपड़े उतारने की नौबत आती, इस से पहले ही मुकीम और नीरज आ जाते थे. आरती के साथ मौजूद आदमी के साथ वे लोग मारपिटाई कर के उस से उस का सारा सामान, पैसे आदि छीन कर उसे भगा देते थे. लोगों को डरानेधमकाने के लिए मुकीम ने एक देशी तमंचा भी खरीद लिया था.

आरती के चक्कर में फंस कर लुटने वाला शख्स लोकलाज के डर से पुलिस में शिकायत करने भी नहीं जाता था. इस तरह इन लोगों ने कई लोगों को अपना शिकार बनाया था.

इस योजना में शामिल राजू आरती को मन ही मन चाहने लगा था, लेकिन उसे अपने दिल की बात आरती से कहने का मौका नहीं मिल पा रहा था. एक दिन जब कमरे में आरती अकेली थी तब राजू उस के पास पहुंच गया. हिम्मत कर के उस ने आरती के सामने अपना प्रेमप्रस्ताव रख दिया. आरती ने उस के प्रेम आमंत्रण को स्वीकार करते हुए उस के गले में अपनी दोनों बांहें डाल दीं. यह देख कर राजू गदगद हो उठा. वह मारे खुशी से फूले नहीं समा रहा था.

इस से पहले कि वे दोनों और आगे बढ़ते कि अचानक मुकीम और नीरज वहां आ गए. उन्हें देख कर आरती और राजू घबरा गए. अकसर ऐसे मौके पर महिला तुरंत गिरगिट की तरह रंग बदल लेती है. खुद को पाकसाफ दिखाने के लिए मुकीम के सामने आरती नाटक करने लगी. उस ने राजू पर गंभीर आरोप मढ़ दिए. यह सुन कर मुकीम और नीरज को राजू पर गुस्सा आ गया और दोनों ने राजू की बुरी तरह से पिटाई कर दी.

राजू के पास जितने पैसे और सामान था, वह सब उन्होंने छीन लिया. राजू जान बचा कर वहां से भाग गया. राजू के जाने के बाद मुकीम के गैंग में सिर्फ 4 लोग ही रह गए थे, मुकीम, नीरज, आरती और दीपक.

हुस्न की मछली का कांटा – भाग 1

2 दिन बीत चुके थे, लेकिन कृष्ण कुमार अभी तक घर नहीं आए थे. उन का फोन भी नहीं लग रहा था, इसलिए घर के सभी लोग परेशान  थे. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि आखिर वह गए तो कहां गए. कृष्ण कुमार दिल्ली के धौलाकुआं स्थित डिफेंस सर्विस औफिसर इंस्टीट्यूट की कैंटीन में नौकरी करते थे. उन की पत्नी मीनू उन का पता लगाने के लिए 31 दिसंबर की सुबह बेटे के साथ धौलाकुआं  स्थित मिलिट्री कैंटीन पहुंची. वहां उन्होंने अपने पति के बारे में मालूमात की तो पता चला कि वह 29 दिसंबर, 2013 को ड्यूटी पर आए थे.

इस के बाद वह वहां नहीं आए. यह पता चलने पर वे और ज्यादा परेशान हो गए. उन्हें ले कर उन के मन में तरहतरह के खयाल आने लगे. बिना इसलिए समय गंवाए वे धौलाकुआं पुलिस चौकी पहुंच गए और कृष्ण कुमार के गायब होने की सूचना दर्ज करवा दी. सूचना दर्ज करने के बाद पुलिस ने कृष्ण कुमार को तलाशने की जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

घर पहुंचने के बाद कपिल ने अपने सभी रिश्तेनातेदारों के घर फोन कर के पिता के बारे में पता किया. लेकिन उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कपिल घर में था. उसे किसी परिचित से पता चला कि लोनी थाना क्षेत्र में किसी अज्ञात आदमी की लाश मिली है.

यह खबर मिलते ही कपिल और उस के परिवार वाले शाम 7 बजे थाना लोनी पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद एसएसआई संजीव कुमार शुक्ला से बात की तो उन्होंने अपने मोबाइल फोन से ली गई एक फोटो दिखाई. वह फोटो उस अज्ञात आदमी की लाश की थी, जो उन्होंने आज सुबह किशन विहार फेज-2 से बरामद हुई थी. उन के मोबाइल फोन में फोटो देखते ही परिवार वालों के पैरों तले से जमीन खिसक गई. सभी रोने लगे.

कपिल अपने आंसू पोंछते हुए बोला, ‘‘सर, यह तो हमारे पिताजी हैं. इन्हें हम 2 दिनों से तलाश कर रहे हैं. लेकिन हमारी समझ में ये नहीं आ रहा कि इन की यह हालत कैसे हुई?’’

एसएसआई संजीव कुमार ने उन्हें बताया, ‘‘दरअसल, आज करीब 10 बजे एक व्यक्ति ने हमें फोन कर के बताया था कि लोनी के किशन विहार, फेस-2, सहबाजपुर गांव में एक अज्ञात आदमी की लाश पड़ी है.

हम वहां पहुंचे तो वाकई वहां करीब 50-51 साल के एक आदमी की लाश पड़ी थी. जिस के सीने में गोली का निशान था, लेकिन वहां ज्यादा खून नहीं था. इस का मतलब हत्या की वारदात को कहीं और अंजाम दिया गया था और लाश यहां ला कर फेंक दी गई थी. फिलहाल लाश गाजियाबाद के एमएमजी अस्पताल की मोर्चरी में रखी हुई है.’’

कपिल ने वैसे तो मोबाइल में खिंचे फोटो को देख कर पिता की लाश पहचान ली थी, लेकिन जब एसएसआई ने उस से गाजियाबाद की मोर्चरी में लाश रखी होने के बारे में बताया तो वह उन के साथ गाजियाबाद मोर्चरी पहुंच गया. पुलिस ने वहां रखी लाश उसे दिखाई तो उस ने उस की पहचान अपने पिता कृष्ण कुमार के रूप में की.

लोनी पुलिस पहले ही अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या कर के लाश ठिकाने लगाने का मामला दर्ज कर चुकी थी. चूंकि अब लाश की शिनाख्त हो गई थी, इसलिए अब पुलिस का काम हत्यारों का पता लगा कर उन्हें गिरफतार करना था. थाने लौटने के बाद एसएसआई संजीव कुमार शुक्ला ने सब से पहले कपिल से ही पूछा कि तुम्हारे पिता किस तरह लापता हुए थे और तुम्हारा किसी पर कोई शक है?

‘‘सर, मेरे पिता धौलाकुआं (दिल्ली) की मिलिट्री कैंटीन में नौकरी करते थे. वह सुबह ही घर से निकलते थे और रात 8 बजे घर लौटते थे. 29 दिसंबर, 2013 को वह घर नहीं लौटे तो हम ने सोचा कि वहीं रुक गए होंगे, क्योंकि कभीकभी वह 1-2 दिन वहीं रुक जाते थे. उन का फोन मिलाया तो वह बंद निकला.

2 दिनों बाद भी जब वह नहीं लौटे और न ही उन का फोन मिला तो हमें चिंता हुई. हम ने उन के औफिस में जा कर संपर्क किया तो पता चला कि वह 29 दिसंबर के बाद ड्यूटी पर नहीं आए थे. रही बात दुश्मनी की तो सर मैं बताना चाहता हूं कि हमारे परिवार में सब सीधेसादे लोग हैं. दुश्मनी तो बड़ी बात, हमारा किसी से कोई झगड़ा तक नहीं हुआ. न ही हमारा किसी से कोई लेनदेन था.’’

जरूरी जानकारी हासिल करने के बाद पुलिस ने कपिल और उस के घर वालों को घर भेज दिया.

कृष्ण कुमार के मोबाइल पर आखिरी बार 29 दिसंबर को मोबाइल नंबर 9990733333 से बात हुई थी. हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में एसएसआई संजीव कुमार शुक्ला, कांस्टेबल अजय शंकर, मंगल त्यागी, जितेंद्र, सतवीर, अमरदीप के अलावा एसओजी प्रभारी रतेंद्र सिंह गहलौत को शामिल किया गया.

टीम ने सब से पहले मृतक कृष्ण कुमार के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकालवाई. उस डिटेल में पता चला कि इस नंबर से उन की 5-7 मर्तबा बात हुई थी. इस नंबर का पता किया गया तो वह नंबर मुकीम नाम के आदमी का निकला.

मुकीम नंदनगरी के पास स्थित मंडोली की गली नंबर-6 में रहता था. बिना समय गंवाए पुलिस उस के घर पहुंच गई. मुकीम घर पर नहीं मिला. घर पर उस की मां थी. उस ने पुलिस को बताया, ‘‘मुकीम को हम अपने घर मकान, रूपएपैसों से पूरी तरह से बेदखल कर चुके हैं. अब हमारा उस से कोई लेनादेना नहीं है. वह कहां जाता है, क्या करता है हमें उस के बारे में कुछ भी नहीं मालूम.’’

लेकिन उस ने पुलिस को एक बात बताई है कि हो सकता है वह पुष्पा के साथ गाजीपुर में रह रहा हो.’

‘‘यह पुष्पा कौन है?’’ पुलिस ने पूछा.

‘‘आरती की मां. आरती की वजह से ही वह आवारा हो गया.’’

पुलिस ने दिल्ली स्थित गाजीपुर में भी मुकीम की तलाश की, लेकिन वह वहां भी नहीं मिला. पुलिस ने उसे हर संभावित जगह पर तलाशा, लेकिन हर जगह नाकामी ही हाथ लगी. कोई रास्ता न देख पुलिस ने मुखबिरों का सहारा लिया. साथ ही आसपास के सभी थानों में इस की सूचना भी दे दी.

लोनी पुलिस तो मुकीम को ढूंढती रही, लेकिन गाजियाबाद के कविनगर थाने की पुलिस ने मुकीम और उस के साथियों को धर दबोचा.

हुआ यह कि 16 जनवरी, 2014 को कवि नगर थानाप्रभारी पंकज पंत को एक मुखबिर ने सूचना दी कि पिछले दिनों लोनी थानाक्षेत्र में जिस फौजी को मार कर फेंक दिया गया था, उस के हत्यारे इस वक्त राजनगर में एएलटी के पास मौजूद हैं. इस सूचना को सही मान कर थानाप्रभारी ने एसओजी प्रभारी रतेंद्र सिंह गहलौत, हेडकांस्टेबल देवपाल सिंह, हरीश राघव, कांस्टेबल लोकेंद्र सिंह, सतवीर सिंह, संदीप आदि की टीम बनाई और मुखबिर के साथ एएलटी भेज दिया. वहां पर पुलिस को एक महिला सहित 3 लोग खड़े मिले.

पुलिस उन सभी को हिरासत में थाने ले आई. थाने में उन तीनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम नीरज, मुकीम और आरती बताए उन्होंने कुबूल किया कि कृष्ण कुमार फौजी की हत्या उन्होंने ही की थी. हत्या के बाद उन लोगों ने उस की लाश लोनी क्षेत्र में डाल दी थी. पुलिस ने मुकीम के पास से एक देशी तमंचा भी बरामद किया.

चूंकि यह मामला लोनी थाने में दर्ज था, इसलिए थानाप्रभारी पंकज पंत ने अभियुक्तों की गिरफ्तारी की जानकारी लोनी थाने के प्रभारी गोरखनाथ यादव को दे दी. इस के बाद तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया. लोनी के थानाप्रभारी संजीव कुमार शुक्ला सूचना मिलते ही गाजियाबाद न्यायालय पहुंच गए. उन के आवेदन पर कोर्ट ने तीनों अभियुक्तों को लोनी पुलिस के सुपुर्द कर दिया. थाने ले जा कर जब तीनों अभियुक्तों से पूछताछ की गई तो उन्होंने कृष्ण कुमार फौजी की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.

52 वर्षीय कृष्ण कुमार अपने परिवार के साथ उत्तरांचल कालोनी, लोनी बार्डर में रहते थे. परिवार में पत्नी मीना के अलावा 4 बच्चे थे. कपिल उन का सब से बड़ा बेटा था. कृष्ण कुमार दिल्ली में धौलाकुआं स्थित ‘डिफेंस सर्विस औफिसर इंस्टीट्यूट’ की कैंटीन में कैंटीन संचालक के पद पर कार्यरत थे. उन का बेटा कपिल एक कुरियर कंपनी में नौकरी करता था. कुल मिला कर उन का परिवार हर तरह से संपन्न था.

करीब 12-13 साल पहले की बात है. कृष्ण कुमार के मकान में सोनपाल नाम का एक आदमी अपनी पत्नी पुष्पा और बेटी आरती के साथ किराए पर रहता था. उन दिनों आरती की उम्र 12-13 साल थी.

सोहनपाल कोई खास काम तो नहीं करता था, लेकिन इतना जरूर कमा लेता था कि परिवार का गुजरबसर आराम से हो जाता था. वह अकसर मकान मालिक कृष्ण कुमार से पैसे उधार ले लिया करता था. बाद में वह उधार के पैसे चुका भी देता था. चूंकि कृष्ण कुमार के परिवार से उसे काफी सहारा मिलता था, इसलिए दोनों परिवारों के बीच अच्छे और गहरे संबंध बन गए थे. कृष्ण कुमार उसे अपनी कैंटीन से सस्ते दामों में सामान भी ला कर दे दिया करता था. सोहनपाल कृष्ण कुमार के मकान में करीब 8 सालों तक रहा.

अब तक आरती बड़ी हो गई थी. विवाह लायक होने पर सोहनपाल उस के लिए लड़का ढूंढने लगा. जल्दी ही गाजियाबाद के भौपुरा में रहने वाला गौरव उसे पसंद आ गया. वह किराए पर टैंपो चलाता था और बहुत सीधासादा था. बातचीत हो जाने के बाद आरती की शादी गौरव से कर दी गई. बेटी के ससुराल जाने के बाद सोनपाल ने कृष्ण कुमार का मकान खाली कर दिया और पत्नी के साथ दिल्ली के गाजीपुर इलाके में किराए पर रहने लगा.

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