रिश्तों का कत्ल : पैसों के लिए की दोस्त की हत्या – भाग 1

आगरा के संजय पैलेस स्थित आईसीआईसीआई बैंक के कैशियर के सामने जैसे ही एक करोड़ रुपए का चैक आया, उस ने नजरें उठा कर चैक रखने वाले को देखा तो एकदम से उस के मुंह से निकल गया, ‘‘नमस्कार इमरान भाई, कहो कैसे हो?’’

‘‘ठीक हूं भाईजान, आप कैसे हैं?’’ जवाब में इमरान ने कहा.

‘‘मैं भी ठीक हूं्.’’ कैशियर ने कहा.

‘‘भाईजान थोड़ा जल्दी कर देंगे, बड़े भाईजान का फोन आ चुका है. वह मेरा ही इंतजार कर रहे हैं.’’ इमरान ने कहा.

कैशियर अपनी सीट से उठा और मैनेजर के कक्ष में गया. थोड़ी देर बाद लौट कर उस ने कहा, ‘‘इमरानभाई, आज तो बैंक में इतनी रकम नहीं है. जो है वह ले लीजिए, बाकी का भुगतान कल कर दूं तो..?’’

‘‘कोई बात नहीं. आज कितना कर सकते हैं?’’ इमरान ने पूछा.

‘‘20-25 लाख होंगे. ऐसा है, आप को आज 20 लाख दे देता हूं. बाकी कल ले लीजिएगा.’’ कैशियर ने कहा तो इमरान ने एक करोड़ वाला चैक वापस ले कर 20 लाख का दूसरा चैक दे दिया. कैशियर ने उसे 20 लाख रुपए दिए तो उन्हें बैग में डाल कर वह बाहर खड़ी अपनी मारुति 800 से शहर से 15 किलोमीटर दूर कुबेरनगर स्थित अपने ताऊ के बेटे पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) की ओर चल पड़ा.

यह शाम के सवा 4 बजे की बात थी. साढे़ 4 बजे के आसपास इमरान पैसे ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंचा था कि उस के बड़े भाई इरफान का फोन आ गया. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, ‘‘भाईजान, बैंक से 20 लाख रुपए ही मिल सके हैं. मैं उन्हें ले कर 10-15 मिनट में पहुंच रहा हूं.’’

इमरान ने 10-15 मिनट में पहुंचने को कहा था. लेकिन एक घंटे से भी ज्यादा समय हो गया और वह स्लाटर हाउस नहीं पहुंचा तो उस के बड़े भाई इरफान को चिंता हुई. उस ने इमरान को फोन किया तो पता चला कि उस के दोनों फोन बंद हैं. इरफान परेशान हो उठा.  वह बारबार नंबर मिला कर इमरान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से संपर्क नहीं हो पाया. अब तक शाम के 7 बज गए थे. इरफान को हैरानी के साथसाथ चिंता भी होने लगी.

इमरान और इरफान आगरा छावनी से बसपा के विधायक रह चुके जुल्फिकार अहमद भुट्टो के चचेरे भाई थे. दोनों भाई आगरा शहर से यही कोई 15 किलोमीटर दूर कुबेरपुर स्थित जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) का कामकाज देखते थे. इरफान फैक्ट्री का एकाउंट संभालता था तो उस से छोटा इमरान फील्ड का काम देखता था. बैंक में रुपए जमा कराने, निकाल कर लाने आदि का काम वही करता था.

चूंकि उन के चचेरे भाई बसपा के विधायक रह चुके थे, इसलिए यह काम इमरान अकेला ही करता था. अपने साथ वह कोई हथियार भी नहीं रखता था. इस की वजह यह थी कि वह खुद तो साहसी था ही, फिर सिर पर बड़े भाई का हाथ भी था. लेकिन जब से उस के बड़े भाई इरफान का साला भोलू स्लाटर हाउस से जुड़ा था, वह इमरान के साथ रहने लगा था. बड़े भाई का साला होने की वजह से भोलू भरोसे का आदमी था. इसीलिए बैंक आनेजाने में इमरान उसे साथ रखने लगा था.

लेकिन 3 दिसंबर को भोलू ने फोन कर के कहा था कि वह जानवरों की खरीदारी के लिए शमसाबाद जा रहा है, इसलिए आज नहीं आ पाएगा. भोलू ने यह बात इमरान और इरफान दोनों भाइयों को बता दी थी, जिस से वे उस का इंतजार न करें. भोलू नहीं आया तो इमरान अकेला ही बैंक चला गया था. वह चला तो गया था, लेकिन लौट कर नहीं आया था.

7 बजे के आसपास पैसे ले कर इमरान के वापस न आने की बात इरफान ने बड़े भाई जुल्फिकार अहमद भुट्टो को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. उन्हें पैसों की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी भाई की थी. वह इमरान को बहुत पसंद करते थे. इसीलिए उन्होंने उसे अपने यहां रखा था. उन के यहां काम करते उसे लगभग ढाई साल हो गए थे. इस बीच उस ने एक पैसे की भी हेराफेरी नहीं की थी.

जुल्फिकार अहमद भुट्टो ने भी इमरान के दोनों नंबरों पर फोन किया. जब दोनों नंबर बंद मिले तो वह इरफान के अलावा फैक्ट्री के 20-25 लोगों को 6-7 गाडि़यों से ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर जा पहुंचे, क्योंकि इमरान ने वहीं से बड़े भाई इरफान को आखिरी फोन किया था. इधरउधर तलाश करने के बाद वहां के दुकानदारों से ही नहीं, बीट पर मौजूद सिपाहियों से भी पूछा गया कि यहां कोई हादसा तो नहीं हुआ था.

वाटर वर्क्स चौराहे पर इमरान के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वाटर वर्क्स चौराहे से फैक्ट्री तक ही नहीं, पूरे शहर में उस की तलाश की गई. लेकिन उस के बारे में कहीं कुछ पता नहीं चला. सब हैरानपरेशान थे. लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इमरान कहां चला गया. ऐसे में जब कुछ लोगों ने आशंका व्यक्त की कि कहीं पैसे ले कर इमरान भाग तो नहीं गया, तब पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद ने चीख कर कहा था, ‘भूल कर भी ऐसी बात मत करना. वह मेरा भाई है, ऐसा हरगिज नहीं कर सकता.’

सुबह होते ही फिर इमरान की खोज शुरू हो गई थी. उस के इस तरह गायब होने से उस के घर में कोहराम मचा हुआ था. घर के किसी भी सदस्य के आंसू थम नहीं रहे थे. सब को इस बात की आशंका सता रही थी कि कहीं इमरान के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. बैंक जा कर भी इमरान के बारे में पूछा गया. बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी देखी गई. पता चला, वह बैंक में अकेला ही आया था और अकेला ही गया था.

अब इमरान के घर वालों के पास इमरान की गुमशुदगी दर्ज कराने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. जुल्फिकार अहमद भुट्टो पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार से मिले और उन्हें सारी बात बताई. उन्होंने तुरंत थाना हरिपर्वत के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को इस मामले को प्राथमिकता से देखने का आदेश दिया.

थाना हरि पर्वत पुलिस ने इमरान की गुमशुदगी दर्ज कर इमरान के दोनों नंबर सर्विलांस सेल को दे कर उन की काल डिटेल्स और आखिरी लोकेशन बताने का आग्रह किया.

जमीन हड़पने वाले भूमाफिया – भाग 4

फरजीवाड़े में इस्तेमाल हुए पुराने स्टांप पेपर

उन्हीं दिनों सालों से पुराने स्टांप इकट्ठा करने वाले एक माफिया के.पी. सिंह से जुड़ा मामला भी उजागर हो गया था. इस धंधे में उस ने करोड़ों रुपए कमाए थे और मालामाल बन गया था. सहारनपुर का एक भूमाफिया इस फरजीवाड़े के लिए लंबे समय से पुराने स्टांप इकट्ठा कर रहा था. वह इन स्टांपों को देहरादून और सहारनपुर के स्टांप वेंडरों से खरीदता था. इस के लिए एक स्टांप के लाखों रुपए तक अदा किए गए थे. जबकि, इन का इस्तेमाल कर वह करोड़ों कमा कर मालामाल हो गया था.

इन्हीं के आधार पर पुराने मूल बैनामों की प्रतियां जला कर नष्ट कर दी गई थीं और इन के बदले स्टांप को लगा कर नए दस्तावेज बना लिए गए थे. इतनी बड़ी संख्या में 1970 से 1990 के बीच प्रचलन में रहे ये स्टांप कहां से खरीदे थे, इस की जानकारी गिरफ्तार किए गए के.पी. सिंह से मिली थी.

के.पी. सिंह को कोतवाली ला कर पूछताछ की गई थी. पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया कि उस ने किसी एक वेंडर से स्टांप नहीं खरीदे थे, बल्कि इस के लिए वह सालों से प्रयास करता रहा था. उसे जैसे ही पता चलता था कि किसी के पास पुराने स्टांप हैं, वह उस से ऊंचे दाम दे कर पुराने स्टांप को खरीद लेता था. ये स्टांप उसे आसानी से सहारनपुर में भी मिल गए थे.

इस के अलावा उस ने देहरादून के स्टांप वेंडरों से भी ये स्टांप खरीदे थे. हालांकि, पुलिस अब भी यह मान कर चल रही है कि कहीं न कहीं स्टांप को फरजी तरीके से बनवाया भी गया होगा. हो सकता है उस ने फरजी स्टांप घोटाले के सरगना अब्दुल करीम तेलगी के नकली स्टांप भी इस्तेमाल किए हों. लेकिन के.पी. सिंह से इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई थी.

इस सिलसिले में पूरणचंद नाम के स्टांप वेंडर का नाम भी सामने आया. जिन स्टांप का इस्तेमाल हुआ था, उन पर पूरणचंद नाम के स्टांप वेंडर की मुहर और रजिस्ट्रैशन संख्या दर्ज पाई गई थी. उस के बारे में तहकीकात करने पर मालूम हुआ कि पूरणचंद नाम का स्टांप वेंडर कभी देहरादून में रहा ही नहीं था. ऐसे में ही स्टांप के फरजी बनाए जाने की आशंका बनी थी.

—कथा एसआईटी सूत्रों पर आधारित

जमीन फरजीवाड़े में 3 वकील भी

देहरादून में जमीन हड़पने की होड़ में भूमाफिया के साथसाथ वकील भी सक्रिय थे. एसआईटी के शिकंजे में आने वाले 3 वकीलों में एक की गिद्धदृष्टि सरकारी जमीनां पर बनी हुई थी. पिछले दिनों 16 नवंबर को गिरफ्तार वकील देवराजा तिवारी ने रक्षा मंत्रालय की जमीन का फरजी बैनामा बना लिया था. वह देहरादून कचहरी में प्रैक्टिस करते थे. हालांकि एसआईटी रजिस्ट्री फरजीवाड़े में लिखे जाने तक 3 अधिवक्ताओं को गिरफ्तार कर चुकी है. इस में और कई गिरफ्तारियां हो सकती हैं.

जांच में पाया गया कि आरोपी वकील रक्षा मंत्रालय की जमीन का फरजी बैनामा अंगरेजी में ड्राफ्ट करवाया था. इस के बाद जमीन पर कब्जे के लिए एसडीएम कोर्ट और हाईकोर्ट में मुकदमा भी दायर किया गया था. इस मामले में एसएसपी अजय सिंह के अनुसार माजरा स्थित रक्षा मंत्रालय की 55 बीघा जमीन का फरजी बैनामा बनवाने के आरोप में नगीना (बिजनौर) के रहने वाले हुमायूं परवेज भी गिरफ्तार किया गया था.

एसआईटी से पूछताछ में उसी ने तिवारी का नाम ले लिया था. इस के बाद ही देवराज तिवारी गिरफ्तार किया गया था. वह मधुर विहार फेजटू, बंजारावाला का रहने वाला है.

पूछताछ में तिवारी ने बताया कि वह वर्ष 2014 में मदन मोहन शर्मा निवासी दूधली की ओर से माजरा स्थित इस जमीन का मुकदमा लड़ रहा था. वर्ष 2017 में शर्मा ने इस मुकदमे को वापस ले लिया था. इस दरम्यान वह समीर कामयाब के गोल्डन फौरेस्ट का केस भी अपने हाथ में ले लिया था. उन्हीं दिनों एक दिन समीर कामयाब और हुमायूं परवेज ने देवराज तिवारी से माजरा की इस जमीन का फरजी बैनामा बनाने की बात कही. समीर की सहारनपुर में रजिस्ट्रार औफिस में पहचान थी.   उस ने ही वहां से जरूरी जानकारी जुटाई थी.

इस के बाद इन लोगों ने जमीन के असली मालिक लाला सरनीमल और लाला मणिराम के नाम से 1958 का एक फरजी बैनामा तैयार कर लिया था. इसे हुमायूं के पिता जलीलुह रहमान और समीन के पिता अर्जुन प्रसाद के नाम करवा लिया. इसी बैनामे की अंगरेजी में ड्राफ्टिंग अधिवक्ता देवराज तिवारी ने की थी.

रजिस्ट्री के कागजों में नकल सना ने की थी. उस की पहुंच रिकौर्ड रूप में थी. इस बारे में बताया कि उस ने कैसे सहारनपुर के रिकौर्ड रूम में जिल्द चिपकाने के लिए वहां तैनात देव कुमार का सहारा लिया था और उसे इस काम के 3 लाख रुपए दिए थे. 3-4 दिन बाद वहां से नकल ले कर इस पर कब्जा के लिए मामले को एसडीएम कोर्ट में दायर कर दिया था.

यही नहीं फरजी रजिस्ट्री बनाने के लिए समीर सहारनपुर में अब्दुल गनी नाम के कबाड़ी की दुकान पर भी गया था. वहां से बहुत से पुराने कागजों के ढेर में से समीर ने पेपर की साइज में कटिंग और लाइनिंग की थी. इस पर छपाई कार्ड वालों के यहां करवाई गई थी. फरजी रजिस्ट्री के पेपर को पुराना दिखाने के लिए कौफी या चाय के पानी में डुबो कर उन्हें सुखाया जाता था, फिर उन पर प्रेस की जाती थी.

फितरती औरत की साजिश : सुधा पटवाल

जमीन हड़पने वाले भूमाफिया – भाग 3

जांच में पता चला कि इस गिरोह के लोग देहरादून में काफी समय से खाली पड़ी जमीनों पर नजर रखते थे. ऐसी जमीनों के जो मालिक विदेशों में होते थे, सब से पहले वह उन्हीं को अपना निशाना बनाते थे. इस के बाद मौका मिलते ही जमीनों के फरजी कागजात तैयार कर लिए जाते थे. उन कागजों को दिखा कर जमीन अन्य लोगों को बेच दिया करते थे.

रजिस्ट्री में फरजीवाड़ा करने के लिए 30 से 50 साल पुराने स्टांप पेपरों का इस्तेमाल किया जाता था. ताकि इन्हें उसी वक्त के बैनामे के तौर पर दर्शाया जा सके.

इस के बाद रजिस्ट्रार कार्यालय में फरजी व्यक्तियों के नाम पर इन जमीनों को दर्ज किया गया. इस बाबत कोतवाली (नगर) देहरादून में 9 मुकदमे दर्ज किए जा चुके थे. जब इस की जांचपड़ताल हुई, तब 6 अक्तूबर को एक आरोपी अजय मोहन पालीवाल गिरफ्तार कर लिया गया. उस के बारे में बड़ा खुलासा हुआ.

उस ने बताया कि अजय मोहन फोरैंसिक एक्सपर्ट था. उस ने आरोपी कमल विरमानी, के.पी. सिंह आदि के साथ मिल कर कई बड़े फरजीवाड़े किए थे. जमीनों के फरजी बैनामों में फरजी राइटिंग और सिग्नेचर बनाए गए थे.

इन्होंने ही एनआरआई महिला रक्षा सिन्हा की राजपुर रोड पर स्थित जमीन का फरजी बैनामा तैयार किया था. इस जमीन के कागज को रामरतन शर्मा के नाम से बनाया गया था. पहले भी कई विवादित जमीनों में इस की संलिप्तता रही है.

जांच में जब फरजीवाड़ा सही पाया गया, तब संदीप श्रीवास्तव ने एसआईटी में इस फरजीवाडे का मुकदमा अपराध क्रमांक 281/2023 पर आईपीसी की धाराओं 120बी, 420, 467, 468 व 471 के तहत दर्ज करा दिया था. इस के बाद ही जिले के नए एसएसपी अजय सिंह ने एसआईटी की 4 टीमों का गठन किया था और उन्हें इन भूमाफियाओं को गिरफ्तार करने के लिए लगा दिया था.

रजिस्ट्रार कार्यालय की रही संदिग्ध भूमिका

संदीप श्रीवास्तव ने एसआईटी को बताया था कि सबरजिस्ट्रार कार्यालय के कुछ दस्तावेजों पर जो मोहरें व स्याही लगी हुई थी, उन मोहरों का साइज सबरजिस्ट्रार कार्यालय की मोहरों के साइज से मेल नहीं खा रहा था. साथ ही स्याही के रंग में भी काफी अंतर था.

जिलाधिकारी देहरादून के जनता दरबार में भी अकसर सबरजिस्ट्रार कार्यालय में जमीनों के फरजी नाम परिवर्तन की शिकायतें ज्यादा आने के बाद ही एसआईटी ने जमीनों के फरजीवाड़े के मुकदमे दर्ज किए गए थे.

7 अक्तूबर, 2023 को टीम ने आरोपियों संजय शर्मा, ओमवीर तोमर और सतीश को गिरफ्तार किया था. टीम ने जब इन तीनों से इस फरजीवाड़े की बाबत पूछताछ की, तब कुछ फरजी दस्तावेजों पर अजय मोहन पालीवाल द्वारा बनाए गए हस्ताक्षर के बारे में भी जानकारी मिली.

पता चला कि ओमवीर तोमर की जानपहचान सहारनपुर निवासी के.पी. सिंह से थी. उसे के.पी. सिंह से जानकारी मिलती थी कि किस की जमीनें कहां हैं और वे कहां रहते हैं. इस के बाद ये लोग उस जमीन के फरजी कागजात तैयार करते थे. इस काम में एडवोकेट कमल विरमानी द्वारा उन दस्तावेजों को सबरजिस्ट्रार कार्यालय में भेजा जाता था.

तीनों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद एसएसपी अजय सिंह ने इन्हें 8 अक्तूबर, 2023 को मीडिया के सामने पेश कर दिया था. तीनों कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिए गए थे. इन्हें गिरफ्तार करने वाली टीम में एसआईटी के इंसपेक्टर राकेश गुसाईं, एसओजी के इंसपेक्टर नंद किशोर भट्ट, एसएसआई प्रदीप रावत, एसआईटी के थानेदार मनमोहन नेगी, थानेदार हर्ष अरोड़ा, अमित मोहन ममगई और सिपाही किरण, ललित, देवेंद्र, पंकज आदि ने अहम भूमिका निभाई थी.

आरोपियों का आपराधिक इतिहास खंगाले जाने के बाद पाया कि आरोपी ओमवीर तोमर के खिलाफ देहरादून के थाना क्लेमेंटाउन में वर्ष 2014 में धोखाधडी का मुकदमा दर्ज हुआ था. इस के बाद उस के खिलाफ वर्ष 2015 में अपहरण व हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज हुआ था तथा वर्ष 2017 में उस के खिलाफ जालसाजी, मारपीट करने व धमकी देने के मुकदमे दर्ज हुए थे.

19 आरोपी हुए गिरफ्तार

इस के बाद जांच टीम ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में जा कर भूमाफियाओं और जालसाजों के ठिकानों पर दबिशें देनी शुरू कर दी थीं. इस बारे में प्रशासन और सबरजिस्ट्रार कार्यालय के आला अधिकारियों का कहना था कि सबरजिस्ट्रार कार्यालय का रिकौर्ड स्थाई किस्म का है तथा वह संपत्ति स्वामित्व का मूल आधार है.

भूमाफियाओं और जालसाजों द्वारा उक्त रिकौर्ड के साथ छेड़छाड़ करना और उन के प्रपत्रों के माध्यम से मूल विलेख को बदलना गंभीर अपराध है. भूमाफियाओं का यह कृत्य भूस्वामियों के अधिकार का तो हनन करता ही है साथ ही यह अनावश्यक विवाद को जन्म भी देता है.

एसआईटी ने इस मामले में जिन्हें गिरफ्तार किया था, उन के नामपते इस प्रकार हैं—

  1. मक्खन सिंह निवासी माधवतुंडा, पीलीभीत, उत्तर प्रदेश.
  2. संतोष अग्रवाल निवासी बोगीबिल डिब्रूगढ़, असम.
  3. दीपचंद अग्रवाल निवासी चलखोवा डिब्रूगढ़, असम.
  4. डालचंद निवासी रेसकोर्स, देहरादून.
  5. इमरान निवासी बल्लूपुर, देहरादून.
  6. अजय छेत्री निवासी बल्लूपुर, देहरादून.
  7. रोहताश पुत्र महेंद्र ग्राम पुनिसका जिला रेवाड़ी, हरियाणा.
  8. विकास पांडे निवासी बंजारवाला, देहरादून.
  9. एडवोकेट कमल विरमानी निवासी चकरौता रोड, देहरादून.
  10. कंवरपाल सिंह उर्फ के.पी. सिंह निवासी कस्बा नकुड, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश.
  11. विशाल निवासी गांव कूकड़ा, जिला मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश.
  12. महेश निवासी मोहल्ला पुष्पांजलि, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश.
  13. अजय मोहन पालीवाल निवासी आदर्श नगर मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश.
  14. सुखदेव सिंह निवासी कोटला, अफगान रोड साहनेवाल, लुधियाना, पंजाब.
  15. हुमायूं परवेज निवासी काजी सराय नगीना जिला बिजनौर.
  16. देवराज तिवारी निवासी टीएचडीसी कालोनी, मधुर विहार देहरादून.
  17. सतीश निवासी जनकपुरी, जिला मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश.
  18. संजय शर्मा निवासी पंचेड़ा रोड, जिला मुजफ्फरनगर.
  19. ओमवीर सिंह तोमर निवासी डिफेंस कालोनी, देहरादून, उत्तराखंड.

इस फरजीवाड़े की कहानी लिखे जाने तक एसआईटी की जमीनों के घोटाले की लगभग 81 शिकायतें प्राप्त हो चुकी थीं. शिकायतों की जांच उन की प्रकृति के अनुसार की जा रही थी.

टीम का कार्यकाल नवंबर माह तक का था. जबकि यह अनुमान लगाया गया कि शिकायतों की संख्या में और भी बढ़ोत्तरी हो सकती है. फरजीवाड़े के बड़े रूप को देखते हुए टीम आम जनता से सीधे भी शिकायतें प्राप्त करने लगी थी.

स्टांप एवं रजिस्ट्रैशन मुख्यालय स्थित एसआईटी के कार्यालय में एस.एस. रावत जमीनों के फरजीवाड़े की शिकायतें प्राप्त करने के लिए मौजूद होते थे. प्राप्त शिकायतों को उस की प्रकृति और श्रेणी के अनुसार जांच हेतु तहसील अथवा उपजिलाधिकारी कार्यालय भेजा जाता है.

कथा लिखे जाने तक जमीनों के फरजीवाड़े में पकड़े गए 19 आरोपी अभी तक जेल में थे तथा एसआईटी द्वारा जांच जारी थी. एसआईटी द्वारा गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट लगाने के बाद अब एसआईटी उन के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट लगाने पर भी विचार कर रही थी.

जमीन हड़पने वाले भूमाफिया – भाग 2

एसआईटी को मिली शिकायत

जांच टीम ने अगले ही पल फरजीवाड़े की जांच शुरू कर दी थी. जांच की शुरुआत जमीनों के दस्तावेज तैयार करने वालों पर नजर रखने से की गई. दस्तावेज में जमीन के नकली मालिक और खरीदारों के नाम आदि की जांच करना, वह भी बगैर किसी सबूत के एक बड़ी चुनौती थी.

एसआईटी जांच में तेजी लाने के लिए एसएसपी ने जिले के सभी थानों के एसएचओ को जमीन से जुड़ी किसी भी तरह की शिकायत की डिटेल्स मांगी थी. जल्द ही टीम को दिल्ली के पंजाबी बाग के रहने वाले दीपांकुर मित्तल की शिकायत भी मिल गई. मित्तल ने अपनी शिकायत 16 मार्च, 2023 को की थी

उन्होंने अपनी शिकायत में लिखा था, ‘‘नवादा में मेरी एक जमीन है, जो मुझे पिता की 2 साल पहले देहांत के बाद मिल गई थी. यह मेरी पुश्तैनी जमीन है. उस जमीन पर हम खेती करते हैं. हालांकि मेरा उसी जमीन को ले कर ताऊ रवि मित्तल के साथ अदालत में एक विवाद भी चल रहा है.’’

उन्होंने आगे लिखा कि देहरादून तहसील में मेरी उसी जमीन का दाखिल खारिज अपने नाम कराने के लिए सुखदेव सिंह पुत्र बलवीर सिंह ने आवेदन दिया हुआ है. सुखदेव सिंह ने इस के लिए जो कागजात बनाए हैं, वे नकली और मनगढ़ंत हैं. जबकि यह जमीन काफी समय से मेरे परिवार वालों के नाम ही चली आ रही है.

मित्तल ने अपनी शिकायत में यह भी लिखा कि हम में से किसी ने भी सुखदेव को कोई जमीन नहीं बेची है. एक समय में हम ने इस जमीन पर ईंटभट्ठा भी शुरू किया था. इस जमीन पर चल रहे बिजली और पानी के कनेक्शन पहले से ही हमारे परिवार वालों के नाम हैं.

इसी के साथ मित्तल ने आशंका जताते हुए लिखा, ‘‘मुझे लगता है कि देहरादून में सक्रिय कुछ भूमाफियाओं द्वारा हमारी जमीन के फरजी स्टांप बनवा लिए गए हैं और सुखदेव हमारी जमीन हड़पना चाहता है.’’

इसी शिकायत के साथ मित्तल ने एसएचओ से मांग की कि आप मुझे सुरक्षा प्रदान करते हुए मेरी प्राथमिकी दर्ज कर भूमाफियाओं और जालसाजों के खिलाफ काररवाई करने की कृपा करें.

दीपांकुर मित्तल द्वारा कोतवाली (नगर) में आईपीसी की धाराओं 420, 467, 468 व 471 के तहत दर्ज शिकायत की जांच के लिए एसआईटी ने कोतवाल राकेश गुसाईं और थानेदार नवीन जुराल को लगा दिया.

जांच के दौरान मित्तल के बयान के साथसाथ उन से मालिकाना हक के कागजों की फोटोकौपी भी ली गई. टीम ने मित्तल के प्रपत्रों को सबरजिस्ट्रार कार्यालय और सरकारी वकील को दिखाया. इसी के साथ सुखदेव के मालिकाना कागजों की फोटोकौपी तहसील से हासिल की गई.

जब दोनों दस्तावेजों की जांच की गई, तब टीम ने पाया कि मित्तल के दस्तावेज सही हैं. सुखदेव के दस्तावेज ही संदिग्ध पाए गए. उस के बाद टीम सुखदेव के बारे में अन्य जानकारी मालूम करने में जुट गई. टीम ने पाया कि सुखदेव मूलरूप से पंजाब में लुधियाना स्थित कोटला, अफगान रोड, निहाल फील्ड, साहनेवाल जिले का रहने वाला है. इस के बाद पुलिस सुखदेव की तलाश में जुट गई.

पुलिस ने भूमाफियाओं पर कसा शिकंजा

मित्तल की शिकायत और जांच की शुरुआत के बाद एसआईटी ने भूमाफियाओं के फरजीवाड़े पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था. इसी दौरान एक नया मामला एक एनआरआई महिला रक्षा सिन्हा का भी आ गया. उन की देहरादून की राजपुर रोड पर मधुबन होटल के सामने ढाई बीघा जमीन थी.

रक्षा सिन्हा इंगलैंड में रहती हैं, जबकि उन के पिता पी.सी. निश्चल देहरादून में ही रहते थे. उन की मृत्यु हो चुकी है. रक्षा सिन्हा काफी सालों से देहरादून नहीं आई थीं. रक्षा सिन्हा को जब पता चला कि उस की जमीन को कोई अपना बता कर बेचने वाला है, तब वह सतर्क हो गई थीं.

टीम ने उन के जमीन के कागजातों की भी जांच की. साथ ही सबरजिस्ट्रार कार्यालय में भी कागजों की जांच की. रक्षा सिन्हा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, उन की जमीन मुजफ्फरनगर निवासी रामरतन शर्मा के नाम हो गई है. जबकि सबरजिस्ट्रार कार्यालय के रिकौर्ड में भी रक्षा सिन्हा के पिता पी.सी. निश्चल द्वारा वर्ष 1979 में रामरतन शर्मा को बेचने के कागज लगे थे.

इस के बाद एसआईटी को यह जानकारी मिली कि सबरजिस्ट्रार कार्यालय में ही इन भूमाफियाओं के गुर्गे तैनात हैं और वे यहीं से भूमाफियाओं के लिए काम कर रहे हैं. इस सिलसिले में जब एसआईटी ने रक्षा सिन्हा की जमीन के बारे में जानकारी मालूम की कि कौन उन की जमीन को अपना बता कर बेच रहा है तो 3 जालसाजों के नाम सामने आ गए.

उन में एक नाम संजय पुत्र रामरतन शर्मा निवासी पंचेडा रोड, मुजफ्फरनगर का था. दूसरा नाम ओमवीर तोमर पुत्र ओम प्रकाश, निवासी डिफेंस कालोनी देहरादून का था, जबकि तीसरा नाम सतीश कुमार पुत्र फूल सिंह निवासी जनकपुरी, मुजफ्फरनगर था.

ऐसे हुआ बड़ा खुलासा

यहां इंगलैंड निवासी एनआरआई महिला की करोड़ों की भूमि के फरजी दस्तावेज बनाए गए थे. आखिरकार पुलिस ने फरजी दस्तावेज बनाने वाले गिरोह का पता लगा ही लिया.

इस सिलसिले में यह कहानी लिखे जाने तक 16 शातिर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया था. गिरोह के सदस्य ओमवीर सिंह के खिलाफ जमीन धोखाधड़ी के कई मुकदमे पहले से दर्ज थे.

उस का जमीनों के फरजीवाड़े का आपराधिक इतिहास रहा है. पहले भी कई विवादित जमीनों में इस की संलिप्तता पाई गई. इस जांच के बाद ही टीम ने कुछ वैसे जालसाजों को चिह्निïत किया था, जो इस फरजीवाड़े में शामिल थे. 6 अक्तूबर, 2023 को टीम के हत्थे एक जालसाज अजय मोहन पालीवाल चढ़ गया था. वह पहले विधि विज्ञान प्रयोगशाला में फोरैंसिक एक्सपर्ट था.

उस ने एडवोकेट कमल विरमानी, के.पी. सिंह आदि कई जालसाजों के साथ मिल कर कई जमीनों के कूट रचित विलेख फरजी हैंडराइटिंग के आधार पर तैयार किए थे. उन फरजी प्रपत्रों को सबरजिस्ट्रार कार्यालय के बाइंडर सोनू द्वारा रिकौर्ड में चस्पा कर दिया जाता था.

रजिस्ट्रार कार्यालय के रिकौर्ड में फरजी विलेख लग जाने के कारण रिकौर्ड फरजी भूस्वामियों के नामपते शो करने लगे थे. इस से असली भूस्वामी परदे के पीछे चले गए थे, जबकि फरजी लोग प्रौपर्टी मालिक बन गए थे. इस के बाद इन भूमाफियाओं व जालसाजों ने अब उन जमीनों को आगे बेचना शुरू कर दिया था.

भूमाफियाओं द्वारा सबरजिस्ट्रार कार्यालय में फरजीवाड़ा करने की जानकारी जब एडीएम (वित्त) देहरादून व सहायक महानिरीक्षक निबंधन संदीप श्रीवास्तव को मिली तो सब से पहले उन्होंने ही इस बाबत जांच की थी.

जमीन हड़पने वाले भूमाफिया – भाग 1

जमीन हड़पने वाले गिरोह के लोग देहरादून में काफी समय से खाली पड़ी जमीनों पर नजर रखते थे. जिन जमीनों के मालिक विदेशों में होते थे, सब से पहले वे उसी जमीन को अपना निशाना बनाते थे. उस के बाद मौका मिलते ही जमीनों के फरजी कागजात तैयार कर लिए जाते थे. उन कागजों को दिखा कर जमीन अन्य लोगों को बेच दिया करते थे.

रजिस्ट्री में फरजीवाड़ा करने के लिए 30 से 50 साल पुराने स्टांप पेपरों का इस्तेमाल किया जाता था, ताकि उन्हें उसी वक्त के बैनामे के तौर पर दर्शाया जा सके. इस के बाद रजिस्ट्रार कार्यालय में फरजी व्यक्तियों के नाम पर उन जमीनों को दर्ज कर दिया जाता था.

उन्हीं दिनों सालों से पुराने स्टांप इकट्ठा करने वाले एक माफिया के.पी. सिंह से जुड़ा मामला भी उजागर हो गया था. इस धंधे में उस ने करोड़ों रुपए कमाए थे और मालामाल हो गया था. सहारनपुर का एक भूमाफिया इस फरजीवाड़े के लिए लंबे समय से पुराने स्टांप इकट्ठा कर रहा था. वह इन स्टांपों को देहरादून और सहारनपुर के स्टांप वेंडरों से खरीदता था. इस के लिए एक स्टांप के लाखों रुपए तक अदा किए गए थे. इन्हीं के आधार पर पुराने मूल बैनामों की प्रतियां जला कर नष्ट कर दी गई थीं और इन के बदले स्टांप को लगा कर नए दस्तावेज बना लिए गए थे.

उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी सरकार ने 16 जुलाई, 2022 को अचानक एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए देहरादून के डीएम और एसएसपी का तबादला कर दिया था. प्रशासनिक स्तर पर डा. आर. राजेश कुमार की जगह सोनिका को जिला मजिस्ट्रैट बनाए जाने की काफी चर्चा हुई थी. कारण सोनिका अपर सचिव के पद पर तैनात थीं और उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी के तौर पर जिलाधिकारी का कार्यभार सौंपा गया था.

यह कदम अपने आप में बेहद हैरानी भरा इसलिए था, क्योंकि जिला मजिस्ट्रैट की जिम्मेदारियां आमतौर पर एक पूर्णकालिक कार्य माना जाता है और इन्हें अतिरिक्त सचिव जैसी जिम्मेदारियों के साथ मिलाना सामान्य तौर पर नहीं देखा जाता है.

इस चर्चा के बीच सोनिका के सामने चुनौती दोहरी जिम्मेदारी के निर्वहन की आ गई थी, लेकिन तब तक उन्हें शायद ही मालूम हो पाया था कि उन के सामने भूमाफियाओं का मकडज़ाल है और उन के कारनामों से निपटने की भी नई चुनौती आने वाली है.

पद संभालते ही जमीन की खरीदबिक्री में हेराफेरी और फरजीवाड़े की शिकायतें मिलने लगी थीं. कुछ शिकायतें पहले की भी थीं. वे शिकायतें न केवल थानों में दर्ज नई पुरानी एफआईआर की थीं, बल्कि कार्यालय के फोन पर भी पीडि़त मोटी रकम ठगे जाने को ले कर इंसाफ की गुहार करने लगे थे.

शिकायतों में गलत प्लौट बता कर पैसे ठग लेना या फिर एक ही प्लौट को कई लोगों के हाथों बेचने के साथसाथ नकली कागजात बनाने की भी थीं. डीएम सोनिका को यह जान कर आश्चर्य तब हुआ, जब उन्हें मालूम हुआ कि इस धंधे में न केवल भूमाफिया, बल्कि राजस्व अधिकारी, स्टांप वेंडर और दूसरे छोटेबड़े चपरासी से ले कर क्लर्क तक शामिल हैं.

जब उन्होंने पीडि़तों की शिकायतें पढ़ीं, तब वह हैरान रह गईं कि बेची और खरीदी जाने वाली अधिकतर जमीनों के मालिक विदेशों में बसे हुए थे और उन्हें पता ही नहीं था कि उन की पुश्तैनी जमीन भूमाफियाओं के लिए दुधारू गाय बन चुकी है.

साल 2023 के शुरुआत के महीनों में डीएम सोनिका की टेबल पर जमीन से संबंधित शिकायतों का पुलिंदा और भी मोटा हो गया था. इस संबंध में वह कई दफा अपने अधीनस्थ उपजिलाधिकारियों, तहसीलदारों और राजस्व अधिकारियों की बैठकें कर चुकी थीं. उन्हें उन की जिम्मेदारियों से अवगत करवाते हुए आवश्यक निर्देश और जांच के आदेश भी दे चुकी थीं. फिर भी काररवाई के नाम पर कोई नतीजा नहीं आ रहा था.

अंकुर शर्मा ने डीएम को दी गोपनीय जानकारी

इसी सिलसिले में डीएम कार्यालय में एक दिन अंकुर शर्मा नाम के व्यक्ति का फोन आया. शर्मा ने अपनी बात डीएम साहिबा से करवाने की जिद की. उस ने कहा कि उस के पास जमीन फरजीवाड़े के संबंध में कई महत्त्वपूर्ण गोपनीय जानकारियां हैं. डीएम औफिस के कर्मचारी ने उस के आग्रह को गंभीरता से लिया और सीधे डीएम सोनिका से ही बात करवा दी.

शर्मा ने अपना परिचय एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में दिया. उन्हें बताया कि रजिस्ट्रार औफिस में फरजीवाड़े का गोरखधंधा काफी समय से चल रहा है. वहां के अधिकारियों और शहर के भूमाफिया की जबरदस्त सांठगांठ बनी हुई है. एक भूमाफिया गिरोह देहरादून में आसपास की खाली पड़ी उन जमीनों पर नजर रखे हुए है, जिन के मालिक शहर से बाहर या विदेशों में रहते हैं.

यह गिरोह सबरजिस्ट्रार कार्यालय में अधिकारियों और दूसरे कर्मचारियों से मिल कर जमीन के दस्तावेज से असली मालिक का नाम ही बदलवा लेता है. उस के बाद उस जमीन को नए ग्राहक के हाथों बेच देते हैं. इस काम में कई ग्राहक ठगे भी जा चुके हैं. उन्हें लाखों का चूना लग चुका है.

इसी के साथ शर्मा ने बताया कि यह धंधा देहरादून को साल 2000 में उत्तराखंड के नए राज्य की राजधानी बनने के बाद ही शुरू हो गया था. तब से गिरोह की जड़ें काफी मजबूत हो चुकी हैं. पहले वे बेशकीमती जमीनों पर कब्जा करने के लिए सबरजिस्ट्रार कार्यालय से किसी भी प्रौपर्टी के मालिकाना हक की सत्यापित नकल निकाल लेते हैं. उसे खरीदार को दिखा कर जमीन बेच देते हैं.

डीएम सोनिका के लिए यह जानकारी काफी चौंकाने वाली थी. उसी दिन उन्होंने अपने आला अधिकारियों और आयुक्त गढ़वाल रेंज से इस बारे में विचारविमर्श किया. काफी विचारविमर्श के बाद फरजीवाडे की जांच और जालसाज भूमाफियाओं को पकडऩे के लिए एसआईटी गठन करने की योजना बनाई गई.

डीएम द्वारा जल्द ही इस के गठन का निर्देश जारी कर दिया गया और उसे एसएसपी दिलीप सिंह कुंवर के दिशानिर्देश पर एसआईटी गठित भी कर दी गई. टीम में सर्वेश पंवार एसपी (ट्रैफिक) प्रभारी बनाया गया, जबकि सीओ नीरज सेमवाल, कोतवाल (नगर) राकेश गुसाईं, एसआई नवीनचंद जुराल, एसआई प्रदीप रावत और एसओजी के एसआई हर्ष अरोड़ा शामिल कर लिए गए.

समलैंगिक फेसबुक फ्रेंड दे गया मौत

एल्विश यादव : जहर भी, ड्रग्स भी, सांप भी, लड़कियां भी

फितरती औरत की साजिश : सुधा पटवाल – भाग 3

सुधा का एक आपराधिक प्रवृत्ति का दोस्त था उमेश चौधरी. वह हरिद्वार के थाना कनखल के रहने वाले मदनपाल का बेटा था. उस के खिलाफ अलगअलग जिलों में हत्या के 4 मुकदमे दर्ज थे. उमेश की दोस्ती सुधा से भी थी और हरिओम से भी. बात कर के सुधा ने युद्धवीर को खत्म करने के लिए उमेश को 5 लाख रुपए की सुपारी दे दी. रकम काम होने के बाद देना था.

उमेश तैयार हो गया तो सुधा ने कहा, ‘‘तुम्हें हरिओम के साथ ही देहरादून आना है, लेकिन तुम इस बारे में उसे कुछ नहीं बताओगे.’’

‘‘सुपारी ली है मैडम तो बात भी मानूंगा.’’ उमेश ने कहा.

इस के बाद सुधा ने हरिओम को फोन किया, ‘‘1 अगस्त को तुम देहरादून आ जाना. इंतजाम कर के तुम्हारे पैसे दे दूंगी.’’

सुधा की इस बात से खुश हो कर हरिओम ने कहा, ‘‘इस बार मुझे मेरे पूरे पैसे देने होंगे.’’

‘‘ठीक है, हरिओम मैं खुद ही तुम्हारे पैसे दे देना चाहती हूं. लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरियां हैं. और हां, तुम एक काम करना.’’

‘‘क्या?’’

‘‘आते समय अपने साथ उमेश को भी लेते आना.’’

‘‘ठीक है.’’ इस के बाद फोन काट दिया गया.

1 अगस्त को हरिओम अपनी स्कार्पियो से पहले हरिद्वार पहुंचा और वहां से उमेश को ले कर देहरादून पहुंच गया. वह उमेश के साथ त्यागी रोड स्थित एक होटल में ठहरा. सुधा हरिओम से मिलने आई तो 3-4 दिनों में उस ने रुपए देने की बात कही. इस के बाद भी सुधा की हरिओम से मोबाइल पर तो बात होती ही रहती थी, वह उस से मिलने भी आती रही. वह हरिओम को एकएक दिन कर के टाल रही थी.

8 अगस्त को हरिओम ने हरिद्वार के रहने वाले अपने दोस्त संजीव को फोन कर के बुला लिया. उसी दिन सुधा ने हरिओम को बताया कि उसे युद्धवीर की हत्या करनी है, क्योंकि युद्धवीर को 14 लाख रुपए वापस करने हैं. अगर उस ने उस के पैसे नहीं लौटाए तो वह उस की हत्या करा देगा. इस काम में उसे उस का साथ देना होगा. इस के बाद वह उस के बाकी पैसे वापस कर देगी.

उसी बीच उमेश ने सुधा का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘क्या फर्क पड़ता है यार हरिओम. मुझे इस काम के लिए मैडम ने 5 लाख रुपए देने को कहा है. काम होने पर उस में से मैं आधे तुम्हें दे दूंगा. इस के अलावा तुम्हें अपनी डूबी रकम भी मिल जाएगी. इसलिए तुम्हें मैडम का साथ देना चाहिए.’’

हरिओम इस बात से बेखबर था कि युद्धवीर की हत्या का उमेश से पहले ही सौदा हो चुका है. आखिर कुछ देर की बातचीत के बाद हरिओम साथ देने को तैयार हो गया. सुधा का सोचना था कि युद्धवीर की हत्या के बाद उसे 14 लाख रुपए वापस नहीं करने पड़ेंगे. इस के अलावा अगर युद्धवीर का लाया एडमिशन हो गया तो 60 लाख में से बाकी के 46 लाख रुपए भी उसे मिल जाएंगे. इस के बाद वह हरिओम को भी ब्लैकमेल करतेहुए उस के रुपए देने से मना कर देगी.

8 अगस्त को बलराज अपने पैसे लेने आया तो युद्धवीर ने सुधा को फोन किया. सुधा ने उसे गुरुद्वारा साहिब पहुंचने को कहा. प्रदीप चौहान ने उसे गुरुद्वारा साहिब छोड़ दिया. इस के बाद सुधा ने उसे चकराता रोड आने को कहा. उस ने हरिओम को भी वहीं बुला लिया था. हरिओम अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से था, जबकि सुधा अपनी स्कूटी से आई थी. उस ने हरिओम का परिचय छद्म नाम से कराते हुए युद्धवीर से कहा, ‘‘यह अनिल श्रीवास्तव हैं.यही कालेज के एडमिशन हेड हैं. इन्हीं को मैं ने 14 लाख रुपए दिए थे. हमें राजपुर रोड चलना होगा. वहीं यह हमें पैसे देंगे.’’

युद्धवीर को क्या पता था कि उसे जाल में उलझाया जा रहा है. पैसों के लिए वह साथ चलने को तैयार हो गया. सुधा युद्धवीर को स्कूटी से ले कर आगेआगे चलने लगी तो उस के पीछेपीछे हरिओम भी अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से चल पड़ा. राजपुर रोड पर आ कर सभी रुक गए.

सुधा ने अपनी स्कूटी वहीं खड़ी कर दी और गाड़ी चला रहे हरिओम के बगल वाली सीट पर बैठ गई. युद्धवीर पिछली सीट पर उमेश और संजीव के साथ बैठ गया. स्कार्पियो एक बार फिर चल पड़ी. उन लोगों के मन में क्या है, युद्धवीर को पता नहीं था. चलते हुए ही युद्धवीर ने रुपए लौटाने की बात शुरू की तो सुधा का चेहरा तमतमा उठा.

सुधा के इस अंदाज और अंजान लोगों के साथ होने से युद्धवीर को उस पर शक हुआ तो उस ने भागना चाहा. लेकिन स्कार्पियो के दरवाजे से सिर टकरा जाने की वजह से वह गाड़ी के अंदर ही गिर गया. तभी उमेश ने उस के गले में रस्सी डाल कर एकदम से कस दिया. युद्धवीर जान बचाने के लिए छटपटाया, लेकिन उन की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह कुछ नहीं कर सका. अंतत: उस की मौत हो गई.

युद्धवीर की हत्या कर के वे उस की लाश को सहस्रधारा नदी की उफनती धारा में फेंकना चाहते थे. युद्धवीर की लाश को उन्होंने बाएं दरवाजे की ओर इस तरह बैठा दिया कि देखने वाले को लगे कि वह सो रहा है. युद्धवीर के मोबाइल फोन जेब से निकाल कर स्विच औफ कर दिए.

रास्ते में एक जगह पुलिस वाहनों की चैकिंग कर रही थी, जिसे देख कर हरिओम घबरा गया और आगे जाने से मना कर दिया. सुधा और उमेश ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना और गाड़ी घुमा ली. लौटते हुए ही उन्होंने लाश आनंदमयी आश्रम के पास सड़क के किनारे फेंक दी. सुधा अपनी स्कूटी ले कर अपने घर चली गई, जबकि हरिओम, उमेश और संजीव स्कार्पियो से हरिद्वार चले गए.

युद्धवीर की हत्या कर सुधा निश्चिंत हो गई कि अब उसे किसी के पैसे नहीं देने पड़ेंगे. उसे विश्वास था कि अगर उस का नाम सामने आया भी तो अपने प्रभाव से वह छूट जाएगी. लेकिन उस के मंसूबों पर पानी फिर गया. हरिओम और सुधा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी बरामद कर ली. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इस के बाद पुलिस ने उमेश को भी गिरफ्तार कर लिया. जबकि संजीव हरिद्वार में अपने खिलाफ पहले से दर्ज छेड़छाड़ के एक मामले की जमानत रद्द करवा कर जेल चला गया. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. सुधा ने महत्त्वाकांक्षाओं में जिंदगी को न उलझाया होता और युद्धवीर ने उस पर विश्वास न किया होता तो शायद यह नौबत न आती.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित