
अजय परेशान था कि ऐसा क्या काम करे कि उसे मोटी कमाई हो. तभी उस के दिमाग में उच्च परिवार की तलाकशुदा ऐसी महिलाओं को ठगने का आइडिया आया जो फिर से शादी करना चाहती हों. इस के लिए उस ने जीवनसाथी डौटकौम वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करा कर अपनी आकर्षक प्रोफाइल बनाई.
प्रोफाइल में उस ने अपना नाम बदल कर राजीव यादव लिखा और अपनी जगह किसी दूसरे का फोटो लगा दिया. नोएडा के छलेरा गांव के रहने वाले युवक अमित चौहान को उस ने मोटी तनख्वाह पर नौकरी पर रख लिया था.
प्रभाव जमाने के लिए अजय ने खुद को आईपीएस अफसर और मिजोरम में डीआईजी के पद पर तैनात बताया. इस आकर्षक प्रोफाइल को देख कर ही अनुष्का उस के जाल में फंसी थी. जिस से उस ने साढ़े 24 लाख रुपए ठग लिए थे
पुलिस ने जालसाज अजय यादव उर्फ राजीव यादव और अमित चौहान को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल तो भेज दिया. लेकिन इस के बाद भी अनुष्का की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. अब अदालत की काररवाई में उसे कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.
अनुष्का की ही तरह शालिनी भी शादी के विज्ञापन की वेबसाइट के जरिए एक ऐसे व्यक्ति के चंगुल में फंसी कि उस युवक ने उस के 6 लाख रुपए बड़ी आसानी से ठग लिए.
दिल्ली के कृष्णानगर इलाके के रहने वाला वरुण बीए सेकेंड ईयर किए हुए है. उस ने दरजनों संस्थानों में जौब की, लेकिन कहीं भी टिक नहीं पाया. इसी दौरान उस ने टीवी पर एक क्राइम शो देखा. शो में दिखाया गया था कि एक शख्स मैट्रीमोनियल साइट्स पर एकाउंट बना कर किस तरह महिलाओं को ठगता था. उसी टीवी शो से प्रेरित हो कर वरुण पाल ने भी मैट्रीमोनियल साइट्स के जरिए ठगी करने की योजना बनाई.
योजना के तहत उस ने मैट्रीमोनियल की 3 बड़ी वेबसाइट्स पर अपने कई एकाउंट बनाए और फेसबुक में हैंडसम दिखने वाले लड़कों की तसवीरें लगा दीं. अपनी प्रोफाइल में उस ने खुद को माइक्रोसाफ्ट कंपनी का आईटी मैनेजर बताया. अपना प्रभाव जमाने के लिए वरुण ने अपनी फेसबुक में कुछ अच्छे बंगलों की तसवीरें भी अपलोड कर दीं. उन बंगलों को वह अपने बताता था. खुद को रसूख वाला प्रोजैक्ट करने के बाद कई महिलाएं उस के जाल में फंसीं.
महिलाओं को अपने जाल में फांसने के बाद वह उन से मुलाकात करता और किसी तरह उन के न्यूड फोटोग्राफ हासिल कर लेता था. इस के बाद वरुण का ठगी का खेल शुरू हो जाता था. वह बिजनैस में मोटा घाटा होने की बात कह कर उन से मोटी रकम ऐंठता. जब कोई महिला पैसे देने में आनाकानी करती तो वह न्यूड तसवीरों के जरिए उसे ब्लैकमेल करता.
शालिनी भी मैट्रीमोनियल साइट के जरिए वरुण पाल के जाल में फंस गई. वरुण ने शालिनी को शादी के जाल में फांस कर 6 लाख रुपए ठग लिए थे. शालिनी से जब वरुण ने और पैसों की डिमांड की तो शालिनी को अहसास हो गया कि उसे ठगा जा रहा है. उस ने और पैसे देने से मना कर दिया तो वरुण ने उसे धमकी दी कि यदि पैसे नहीं दिए तो वह उस के न्यूड फोटो इंटरनेट पर डाल देगा.
शालिनी अब समझ चुकी थी कि जिसे वह अपना जीवनसाथी चुनने जा रही थी, वह बहुत शातिर ठग है. उस ने उसे सबक सिखाने के लिए दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच में लिखित शिकायत कर दी.
आर्थिक अपराध शाखा के डीसीपी एस.डी. मिश्रा ने इस मामले में त्वरित काररवाई करते हुए एक पुलिस टीम बनाई. पुलिस टीम ने 8 अगस्त, 2014 को आरोपी वरुण पाल को गिरफ्तार कर लिया.
मैट्रीमोनियल साइटों पर आज भी तमाम फरजी एकाउंट एक्टिव हैं. जिन लोगों ने ऐसे एकाउंट बना रखे हैं, उन का मकसद भोलीभाली लड़कियों, महिलाओं को अपने जाल में फंसा कर उन का आर्थिक और शारीरिक शोषण करना होता है.
ऐसे विज्ञापनों के जरिए शादी के बंधन में बंधने वालों को पहले अच्छी तरह से छानबीन कर लेनी चाहिए कि उस ने अपने प्रोफाइल में जो कुछ दे रखा है, वह सही है या नहीं. यदि बिना जांच किए शादी का प्रपोजल स्वीकार कर लिया तो अनुष्का और शालिनी की तरह पछताना पड़ सकता है.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. अनुष्का और शालिनी नाम परिवर्तित हैं.
रात बीत गई, लेकिन कोई भी फोन नहीं आया. न तो अपहरणकर्ता ने ही दोबारा फोन किया और न ही फोन पर रुद्राक्ष के मिलने की कोई खबर मिली.
पूरी रात आंसुओं में बीतने के बाद दूसरे दिन शुक्रवार का सूरज निकल आया. पुनीत और श्रद्धा को उम्मीद थी कि आज रुद्राक्ष का पता लग जाएगा. वे दुआ मांग रहे थे कि किसी भी तरह रुद्राक्ष सुरक्षित लौट आए.
रुद्राक्ष का पता लग भी गया, लेकिन पुनीत और श्रद्धा का सब कुछ लुट चुका था. उस दिन सुबहसुबह कोटा के पास तालेड़ा इलाके में एक नहर में बच्चे का शव पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस मौके पर पहुंची. पुनीत और श्रद्धा को भी बुला लिया गया. शव रुद्राक्ष का ही था. बेटे का शव देख कर श्रद्धा पछाड़ खा कर गिर पड़ीं. परिवार वालों ने उन्हें संभाला और घर ले गए. अपहर्ताओं ने मासूम रुद्राक्ष को मार कर नहर में फेंक दिया था.
रुद्राक्ष का शव नहर में मिलने की बात पूरे शहर में तेजी से फैली तो लोगों में आक्रोश फैल गया. मासूम रुद्राक्ष की मौत से पूरा शहर रो पड़ा. पुलिस ने जरूरी काररवाई के बाद शव घर वालों को सौंप दिया. दोपहर में गमगीन माहौल में रुद्राक्ष का अंतिम संस्कार कर दिया गया.
अब यह मामला संगीन हो चुका था. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के निर्देश पर जयपुर से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, कोटा के प्रभारी मंत्री यूनुस खान तथा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) अजीत सिंह कोटा पहुंच गए. उन्होंने पीडि़त परिवार से मिल कर सांत्वना दी और रुद्राक्ष के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का भरोसा दिलाया.
मासूम रुद्राक्ष की हत्या ने कोटा के नागरिकों को इतना आहत किया कि 11 अक्टूबर को पूरा शहर बंद रहा. चाय की गुमटी व पानसिगरेट तक की दुकानें नहीं खुलीं. वकीलों ने कामकाज बंद रखा. लोगों ने कैंडल मार्च निकाल कर रुद्राक्ष को श्रद्धांजलि दी.
रुद्राक्ष का शव मिलने के बाद अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह के निर्देशन में पुलिस दल ने नए सिरे से जांचपड़ताल शुरू कर दी. पुलिस की 10 से ज्यादा टीमें रुद्राक्ष के अपहरणकर्ताओं की जानकारी जुटाने लगी. सबूत मिलने लगे तो अपराध की अलगअलग कडि़यां जुड़ने लगीं. इस बीच रुद्राक्ष की हत्या को ले कर पूरे कोटा संभाग में जनाक्रोश बढ़ता जा रहा था. जगहजगह आंदोलन हो रहे थे. आसपास के शहर भी अलगअलग दिन बंद रहे. पुलिस के लिए रुद्राक्ष के अपहरण और हत्या का मामला चुनौती बन गया था.
5 दिनों तक दिनरात चली जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने विभिन्न तरीकों से इस मामले में सभी जरूरी ठोस सबूत जुटा लिए. 14 अक्टूबर की रात पुलिस अधिकारियों ने कोटा में प्रेस कौन्फ्रैंस कर के दावा किया कि रुद्राक्ष के कातिल की पहचान कर ली गई है. रुद्राक्ष का अपहरण कर के उस की हत्या करने वाला शख्स अंकुर पाडि़या है.
अधिकारियों ने दावा किया कि जांचपड़ताल में पुलिस को अंकुर पाडि़या के बारे में कई सनसनीखेज एवं तथ्यात्मक जानकारियां मिली हैं. पुलिस का कहना था कि अंकुर पाडि़या का पर्दाफाश क्लोरोफार्म की आनलाइन शौपिंग के लिए किए गए ई-मेल से हुआ है.
प्रेस कौन्फ्रैंस में अधिकारियों ने बताया कि पुलिस की जांचपड़ताल में पता चला है कि अंकुर का रहनसहन और जीवनशैली हाईप्रोफाइल है. हाई सोसायटी में उठनाबैठना, महंगी गाडि़यों में घूमना, लड़कियों से अय्याशी करना, क्रिकेट मैच पर सट्टा लगाना उस का शौक था. अय्याशी का जीवन जीने वाला अंकुर कई बार विदेश जा चुका है. अलगअलग जगहों पर उस के कई फ्लैट हैं.
बारां रोड पर एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में उस का एक फ्लैट पूरी तरह साउंडपू्रफ है. इस फ्लैट में वह केवल पार्टियां करता था. वहां ऐशोआराम की तमाम सुविधाएं हैं. ओम एन्क्लेव के एक फ्लैट से पुलिस को अंकुर की कई कीमती चीजें मिली हैं. विदेशों में भी उस के कई दोस्त हैं. जांचपड़ताल में पुलिस को अंकुर के भाई अनूप की भी जानकारी मिली. अनूप भगोड़ा था. वह 5 साल पहले पुलिस हिरासत से भाग गया था. उस पर लोगों से करोड़ों रुपए ठगने का आरोप था.
पुलिस ने अपनी छानबीन के आधार पर बताया कि अंकुर पाडि़या कोटा के ओम एन्क्लेव के सी ब्लाक में चौथी मंजिल पर अपनी पत्नी व मातापिता के साथ रहता था. उस के फ्लैट के ठीक सामने कोटा में तैनात यातायात पुलिस की डीएसपी तृप्ति विजयवर्गीय का फ्लैट है. जांच में यह बात भी सामने आई कि वारदात के बाद अंकुर अपने इस फ्लैट में आताजाता रहा, लेकिन न तो पड़ोसी डीएसपी को उस पर शक हुआ और न ही किसी और को.
जांच दलों को अंकुर के पुलिस अधिकारियों से भी अच्छे संपर्क होने की जानकारी मिली. जांच में यह भी पता चला कि रुद्राक्ष के अपहरण की रात पुलिस जब उस की निशान माइक्रा कार का सत्यापन करने के लिए उस के घर पहुंची तो उस ने जांच के लिए आए पुलिस दल को एक उच्चाधिकारी से फोन करवा कर कहलवाया कि वह गाड़ी के कागज एक दिन बाद दिखा देगा.
पुलिस ने रुद्राक्ष के अपहरण की सूचना और निशान माइक्रा कार की फुटेज मिलने के बाद उसी रात कार कंपनी के शोरूम से कोटा में चल रही निशान माइक्रा कारों और उन के मालिकों की सूची हासिल कर ली थी. इसी सूची के आधार पर घटना के कुछ घंटे बाद ही आधी रात को पुलिस अंकुर के घर उस की कार का सत्यापन करने के लिए पहुंची थी. पुलिस अधिकारियों ने माना कि अगर उस रात अंकुर की कार का सत्यापन हो जाता तो शायद रुद्राक्ष जीवित मिल जाता.
पुलिस अधिकारियों ने यह भी बताया कि जांच में यह बात सामने आई कि अंकुर पाडि़या क्रिकेट का सट्टा लगाता था. सट्टे में वह करोड़ों रुपए की रकम गंवा चुका था. इसी की भरपाई के लिए उस ने रुद्राक्ष के अपहरण की साजिश रची थी. इस के लिए उस ने कई दिनों तक पार्क की रैकी करने के बाद रुद्राक्ष को चुना था. रुद्राक्ष के पिता पुनीत हांडा बैंक मैनेजर थे और मां श्रद्धा टीचर. इस से अंकुर को उम्मीद थी कि रुद्राक्ष का अपहरण कर के उसे मोटी रकम मिल जाएगी, जिस से वह अपना कर्ज उतार देगा.
राजस्थान पुलिस ने 14 अक्टूबर की रात रुद्राक्ष के अपहरण और उस की हत्या के मामले का पर्दाफाश जरूर कर दिया, लेकिन अंकुर पाडि़या पुलिस की पकड़ से दूर था. अलबत्ता पुलिस ने दावा किया कि अंकुर के ठिकानों की जानकारी मिल चुकी है और वह जल्द से जल्द पकड़ में आ जाएगा.
पुलिस ने अंकुर पाडि़या की जन्म कुंडली और उस के भगोड़े भाई अनूप की अपराध कुंडली हासिल कर के एक मोर्चे पर सफलता हासिल कर ली थी. उसे उम्मीद थी कि अपराधी अब ज्यादा दिन भाग नहीं सकेंगे. पुलिस ने जिस तरह के दावे किए थे, उस से कोटा की जनता और रुद्राक्ष के मातापिता को भी यह उम्मीद बंधी थी कि अपराधी जल्दी ही गिरफ्तार हो जाएंगे.
लेकिन यह इतना आसान साबित नहीं हुआ. पुलिस अंकुर की गिरफ्तारी को जितना आसान मान रही थी, वह उतना ही मुश्किल साबित हो रहा था. अंकुर पुलिस से भी ज्यादा शातिर और चालाक साबित हुआ. पुलिस जब तक उस के ठिकाने पर पहुंचती, वह वहां से निकल चुका होता था. उधर कातिल का पर्दाफाश हो जाने के बावजूद गिरफ्तारी नहीं होने से कोटा में जनाक्रोश बढ़ता जा रहा था. पुलिस परेशान थी. कई टीमें अंकुर की तलाश में देश भर में उस के संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थीं, लेकिन सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहे थे.
अनुष्का का शक गहरा गया. वह दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त रविंद्र यादव से मिली और उन्हें अपने साथ घटी पूरी कहानी बता दी. रविंद्र यादव को यह मामला काफी गंभीर लगा. उन्होंने अनुष्का को क्राइम ब्रांच के पुलिस उपायुक्त भीष्म सिंह के पास भेज दिया साथ ही डीसीपी को निर्देश दिए कि वह जल्द से जल्द जरूरी काररवाई करें.
डीसीपी ने अनुष्का की शिकायत पर थाना क्राइम ब्रांच में 7 मार्च, 2014 को राजीव यादव, अजय यादव, अमित चौहान आदि के खिलाफ धोखाधड़ी करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही उन्होंने एसीपी होशियार सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई जिस में तेजतर्रार सबइंसपेक्टर विनय त्यागी, अतुल त्यागी, हेडकांस्टेबल संजीव कुमार, जुगनू त्यागी, नरेश पाल, राजकुमार, उपेंद्र, कांस्टेबल राजीव सहरावत, विपिन, संदीप आदि को शामिल किया गया.
जिस फोन नंबर से राजीव अनुष्का से बात करता था, वह उस ने बंद कर रखा था. पुलिस टीम ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और उस काल डिटेल्स का अध्ययन कर के यह जानने में जुट गई कि राजीव यादव की ज्यादातर किन फोन नंबरों पर बातें होती थीं. इस के अलावा जिन बैंक खातों में अनुष्का ने साढ़े 24 लाख रुपए जमा कराए थे, उन की भी जांचपड़ताल शुरू कर दी.
इस जांच से पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि राजीव यादव का असली नाम अजय यादव है और जिस अमित चौहान को उस ने अपना बौडीगार्ड बताया था, वह उस का ड्राइवर है. खुफिया तरीके से जांच करने पर पता चला कि अमित चौहान नोएडा के छलेरा गांव का रहने वाला है और अजय यादव दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 का. ये दोनों ही अपने घरों से फरार थे. उन की तलाश के लिए मुखबिर भी लगा दिए.
इसी बीच 21 मार्च, 2014 को पुलिस टीम को सूचना मिली कि अजय यादव आज अपनी होंडा सिटी कार डीएल4सीएएच 9066 से गुड़गांव-आयानगर जाएगा. यह खबर मिलते ही पुलिस टीम बौर्डर पर पहुंच गई और उधर से गुजरने वाली कारों पर नजर रखने लगी. उसी दौरान पुलिस को उक्त नंबर की होंडा सिटी कार आती दिखी तो उस ने उसे रोक लिया. उस समय कार में ड्राइवर के अलावा अधेड़ उम्र का एक आदमी बैठा हुआ था.
कार रुकते ही ड्राइवर बोला, ‘‘आप को पता नहीं गाड़ी किस की है?’’
‘‘नहीं, बताओ तभी तो पता चलेगा.’’ एक पुलिसकर्मी बोला.
‘‘ये गाड़ी डीआईजी साहब की है जो गाड़ी में ही बैठे हुए हैं.’’ ड्राइवर ने बताया.
इस से पहले कि पुलिस कुछ कहती, कार में बैठे शख्स ने ड्राइवर से बात कर रहे पुलिसकर्मी को इशारे से अपने पास बुलाया. पास में खड़े एसआई विनय त्यागी कार में बैठे उस शख्स के पास पहुंचे तो उस शख्स ने खुद को डीआईजी इंटेलीजेंस ब्यूरो बताया.
एसआई विनय त्यागी को यह जानकारी मिल ही चुकी थी कि अजय यादव बहुत ही शातिर किस्म का है. इसलिए उन्होंने उस से आइडेंटिटी कार्ड मांगा तो वह आईडी कार्ड तो क्या ऐसी कोई चीज नहीं दिखा सका जिस से साबित हो सके कि वह पुलिस में है. लिहाजा वह उन दोनों को क्राइम ब्रांच औफिस ले आए.
औफिस में जब उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम अजय यादव उर्फ राजीव यादव व अमित चौहान बताए. इन के खिलाफ ही अनुष्का ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी.
पूछताछ में पता चला कि अजय यादव बहुत अच्छे परिवार से है. उस के पिता आईएएस औफीसर थे. प्रतिष्ठित परिवार का अजय यादव एक ठग कैसे बना, इस बारे में जब उस से पूछताछ की गई तो उस के शातिर ठग बनने की एक दिलचस्प कहानी सामने आई.
अजय सिंह यादव के पिता जय नारायण सिंह आईएएस अधिकारी थे. वह सन 1979 में दिल्ली में एमसीडी के कमिश्नर रह चुके थे. अजय सिंह ने दिल्ली के किरोड़ीमल कालेज से 1976 में ग्रैजुएशन पूरा किया. पिता चाहते थे कि वह भी भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी करे. इस के लिए दिनरात एक करना होता है. यह सब करने के लिए अजय तैयार नहीं था. तब जयनारायण सिंह ने अपने प्रभाव से अजय की नौकरी फल एवं सब्जीमंडी आजादपुर में प्रवर्तन अधिकारी के पद पर लगवा दी.
चूंकि अजय की शुरू से ही खुले हाथों से पैसे खर्च करने की आदत थी. इसलिए नौकरी से उसे जो पैसे मिलते थे, वह उस की आंख तले नहीं आते थे. इस के अलावा उस की नौकरी बड़ी आसानी से लगी थी इसलिए उस नौकरी पर उस का मन नहीं लगा. 5-6 साल बाद ही उस ने वह नौकरी छोड़ दी.
उस का मानना था बिजनैस में मोटी कमाई होती है इसलिए अब वह किसी बिजनैस में हाथ आजमाना चाहता था. उसे चूंकि बिजनैस का कोई अनुभव नहीं था इसलिए पिता ने उसे बिजनैस करने को मना किया, लेकिन वह नहीं माना. उस ने एक नामी ब्रांड के रिफाइंड तेल की डिस्ट्रीब्यूशनशिप ले ली. राजस्थान में उस ने अपना कारोबार शुरू कर दिया. लेकिन घाटा होने की वजह से उस ने इस कारोबार को बंद कर दिया.
अजय यादव तेजतर्रार और पढ़ालिखा युवक था. पिता के प्रभाव की वजह से उस के कुछ राजनीतिज्ञों से भी अच्छे संबंध हो गए थे. रिफाइंड तेल का बिजनैस बंद करने के बाद वह केंद्र सरकार के तत्कालीन कृषि मंत्री का पीए बन गया. वहां उस की मुलाकात तमाम अधिकारियों से होती रहती थी. वहां रह कर वह पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की बात और काम करने की शैली सीख गया था.
अजय यादव अविवाहित था. प्रशासनिक अधिकारी का बेटा होने की वजह से उस के लिए अच्छे परिवारों से रिश्ते आने लगे. सन 1981 में राजस्थान सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री की बेटी से उस की शादी हो गई.
कालेज के दिनों से ही वह खर्चीली लाइफस्टाइल जीने का शौकीन था. यही आदत उस की अब भी बनी हुई थी. मंत्री का पीए बनने के बाद वह जो कमा रहा था, उस कमाई से भी वह संतुष्ट नहीं था. लिहाजा उस ने मंत्री के पीए की नौकरी भी छोड़ दी.
उसी दौरान उस ने दिल्ली में कुछ ब्लूलाइन बसें चलवाईं. बसों से उसे जो आमदनी होती थी, उस से ज्यादा उस के खर्चे थे. ऊपर से बसों की मेंटीनेंस में उस के मोटे पैसे खर्च हो जाते थे लिहाजा उस ने वे भी बेच दीं. सन 1990 में अजय ने देहरादून स्थित अपने बंगले में होटल खोला, लेकिन उस से भी उसे अपेक्षा के मुताबिक इनकम नहीं मिली.
अजय के खर्चे बढ़ते जा रहे थे, लेकिन आमदनी का कोई स्थाई स्रोत नहीं था. लिहाजा वह परेशान रहने लगा. तब उस ने दिल्ली और हरियाणा की रीयल एस्टेट कंपनियों में नौकरियां कीं. नौकरी में उस की भागदौड़ ज्यादा हो गई थी जिस की वजह से उसे शुगर, उच्च रक्तचाप और अन्य कई बीमारियों ने घेर लिया. 2008-09 में वह पूरी तरह बेरोजगार हो गया तो उसे पैसों की तंगी होने लगी.
बहरहाल, अमरजीत सिंह के गायब होने के बाद उन के दोनों बेटे, गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह हर संभावित जगह पर उन की तलाश करते रहे. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चल रहा था. ऐसे में ही किसी दिन उन की मुलाकात गांव के ही कृपाल सिंह से हुई तो उस ने उन्हें बताया कि जिस दिन से सरदार जी गायब हैं, उस दिन सुबह वह खेतों पर जा रहा था तो उस ने उन्हें स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर के साथ देखा था. उस समय वह काफी नशे में लग रहे थे.
उस के पूछने पर सुखमीत कौर ने बताया था कि वे सरदारजी को अपने भाई की जमीन दिखाने यूपी ले जा रहे हैं. उस समय वे लोग ब्रह्मकुमारी सदन के मोड़ पर खड़े थे. कुछ देर बाद एक इंडिका कार आई तो सभी उस में सवार हो कर चले गए थे.
कृपाल सिंह से मिली जानकारी चौंकाने वाली थी, क्योंकि पिता के स्वर्ण सिंह के साथ जाने की बात उन्हें बिलकुल पता नहीं थी. स्वर्ण सिंह ने भी यह बात नहीं बताई थी. इस के अलावा अमरजीत सिंह के औफिस से ढाई करोड़ रुपए की जमीन के सौदे के कागजात भी मिल गए थे, जिन्हें देख कर दोनों भाइयों ने अंदाजा लगाया कि कहीं इसी ढाई करोड़ रुपए की जमीन के लिए तो उन के पिता का अपहरण नहीं किया गया.
इस के बाद गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह को लगा कि अब समय बेकार करना ठीक नहीं है. दोनों भाई थाना सदर के थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ से मिले और उन्हें पूरी बात बताई. चूंकि अमरजीत सिंह ग्रेवाल बड़े और जानेमाने आदमी थे, सो अमनदीप सिंह बराड़ ने गुरदीप सिंह के बयान के आधार पर ही अमरजीत सिंह के मामले को अपराध संख्या 124/2013 पर भादंवि की धारा 364-120बी के तहत दर्ज कर मामले की सूचना उच्चाधिकारियों को दे कर खुद इस की जांच शुरू कर दी.
थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने स्वर्ण सिंह और उस की तलाश के लिए एक टीम बनाई, जिस में एएसआई रामपाल सिंह, दविंदर सिंह, मुख्तियार सिंह, हेडकांस्टेबल कुलवंत सिंह, हरपाल सिंह, सुखविंदर सिंह और तलविंदर सिंह को शामिल किया गया. अगले ही दिन इस पुलिस टीम ने मुखबिरों की सूचना पर लुधियाना के बाहरी क्षेत्र से स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर को कार सहित गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर इन से पूछताछ की जाने लगी तो इन्होेंने अमरजीत सिंह के साथ यूपी जाने की बात से साफ मना कर दिया. उन का कहना था कि उन्होंने अमरजीत सिंह को जगराओं के निकट एक जमीन दिखा कर उन्हें उन के घर छोड़ दिया था.
पुलिस टीम ने लाख कोशिश की, लेकिन वे अपने बयान पर अड़े रहे. इधर थाना पुलिस पूछताछ में लगी थी तो दूसरी ओर गुरदीप सिंह जीटी रोड स्थित शंभू बार्डर के टोल टैक्स नाका से सीसीटीवी की फुटेज ले आया. थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने वह फुटेज देखी तो उस में स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि 25 अगस्त की सुबह 9 बजे के आसपास इंडिका कार, जिस का नंबर पीबी19ई-2277 था. उस की अगली सीट पर नशे की हालत में अमरजीत सिंह बैठे थे. ड्राइवर की सीट पर स्वर्ण सिंह बैठा था और पीछे की सीट पर सुखमीत कौर बैठी थी. अगले दिन यानी 26 अगस्त की शाम को वही गाड़ी लौटी थी, लेकिन उस में अमरजीत सिंह नहीं थे.
फुटेज देख कर स्वर्ण सिंह कुछ कहने लायक नहीं रह गया था. फिर भी उस ने बात को घुमाने की कोशिश की. उस ने कहा कि कुछ जमीन अंबाला के पास थी. सरदारजी ने कहा था कि जब यहां तक आए हैं तो लगे हाथ उसे भी देख लेते हैं. उसे देखने के लिए वे अंबाला चले गए थे. लेकिन स्वर्ण सिंह का यह बहाना भी नहीं चला और उसे अपना अपराध स्वीकार करना पड़ा.
स्वर्ण सिंह ने बताया था कि अमरजीत की हत्या कर के उन की लाश को उन लोगों ने नहर में फेंक दी थी. स्वर्ण सिंह के बताए अनुसार, इस हत्याकांड में 5 लोग शामिल थे, एक तो वह स्वयं था, दूसरा उस का भाई गुरचरन सिंह, तीसरा साला कुलविंदर सिंह, चौथा पत्नी सुखमीत कौर और पांचवां था अमित कुमार.
स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर पुलिस गिरफ्त में थे. उन के बयान के बाद पुलिस ने इस मुकदमे में धारा 364-120बी के साथ 302-201बी, 25-54-59 आर्म्स एक्ट जोड़ कर स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर को ड्यूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से विस्तृत पूछताछ के लिए 2 दिनों के रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान ही उन की निशानदेही पर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर से उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया.
रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर के साथ गुरचरण सिंह एवं कुलविंदर सिंह को अदालत में पेश कर के लाश एवं सुबूत जुटाने के लिए 9 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान ही अभियुक्तों की निशानदेही पर पंजाब पुलिस ने उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद से उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के निकट रामगंगा नदी में जाल डाल कर मृतक अमरजीत सिंह की लाश की तलाश के लिए मीरजापुर से जलालाबाद तक जाल डाला. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी लाश बरामद नहीं हो सकी.
पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों की निशानदेही पर इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त अमित कुमार उर्फ विजय उर्फ रोहित चोपड़ा की तलाश में कई जगह छापे मारे, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगा. इस बीच पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त कार, डंडा, 32 और 315 बोर के 2 रिवाल्वर के साथ 10 लाख रुपए नकद बरामद किए थे.
रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने चारों अभियुक्तों स्वर्ण सिंह, उस की पत्नी सुखमीत कौर, उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जिला जेल भेज दिया गया.
गिरफ्तार चारों अभियुक्तों से की गई पूछताछ में अमरजीत सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह ठगी, बेईमानी, ईर्ष्या और उच्च महत्त्वाकांक्षा की पृष्ठभूमि पर तैयार की गई थी. सही बात तो यह थी कि इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि काफी पहले ही तैयार कर ली गई थी. अगर हत्यारे अपनी योजनानुसार अपने इरादों में सफल हो जाते तो उन की जगह मृतक के दोनों बेटे पिता की हत्या के आरोप में जेल की हवा खा रहे होते और अभियुक्त उन की प्रौपर्टी पर ऐश कर रहे होते.
11 दिसंबर, 2013 को राजीव ने अनुष्का को फोन कर के कहा, ‘‘अनुष्का, मेरे साथ एक वाकया हो गया है. कल रात बदमाशों से हुई मुठभेड़ के दौरान मेरे पैर में गोली लग गई है. इस के अलावा मेरे कूल्हे की हड्डी में भी फ्रैक्चर हो गया है. इस समय मैं मिजोरम के एक प्राइवेट अस्पताल में हूं.’’
यह खबर सुनते ही अनुष्का घबरा गई. वह फोन पर ही इस घटना पर दुख जताने लगी. तभी राजीव बोला, ‘‘अनुष्का, तुम मेरी चिंता मत करो. जल्दी ही ठीक हो जाऊंगा. लेकिन तुम्हें तो मालूम ही है कि कल मेरा एटीएम कार्ड कहीं गिर गया था. यहां अस्पताल में कुछ पैसों की जरूरत है.
यदि संभव हो सके तो कुछ पैसे औनलाइन ट्रांसफर कर दो. ठीक होने के बाद मुझे विभाग से सारा पैसा मिल जाएगा, तब मैं तुम्हारे पैसे लौटा दूंगा. मैं अपने बौडीगार्ड का एकाउंट नंबर मैसेज कर रहा हूं. उसी में डाल देना. बौडीगार्ड बैंक से पैसे ला कर अस्पताल में जमा करा देगा.’’
कुछ ही देर बाद अनुष्का के फोन पर राजीव द्वारा भेजा गया मैसेज मिला. उस ने मैसेज में बैंक का खाता नंबर भेजा था. अनुष्का ने 12 दिसंबर 2013 को राजीव के भेजे गए कार्पोरेशन बैंक के खाता नंबर 124800101003359 में 75 हजार रुपए औनलाइन ट्रांसफर कर दिए.
अनुष्का कामना करने लगी कि राजीव जल्द ठीक हो जाए. चूंकि राजीव उस का होने वाला पति था इसलिए उस का ध्यान उस की तरफ ही लगा हुआ था. वह दिन में कईकई बार फोन कर के उस का हालचाल मालूम करती रहती थी.
19 दिसंबर, 2013 को राजीव ने अनुष्का को फोन कर के कहा कि उस की हालत ठीक न होने की वजह से उसे चेन्नई के अपोलो अस्पताल ले जाया जा रहा है. वहां उस के औपरेशन वगैरह पर मोटा पैसा खर्च होने की उम्मीद है. उस ने उस से और पैसे भेजने को कहा.
अनुष्का नहीं चाहती थी कि राजीव को कुछ हो जाए, इसलिए उस ने उसी दिन उस के द्वारा भेजे गए खाता नंबर में सवा 4 लाख रुपए जमा करा दिए. 13 दिसंबर जो शादी की तारीख मुकर्रर की गई थी, वह अचानक आई विपदा की वजह से निकल गई. धीरेधीरे 2013 बीत कर नया साल 2014 भी आ गया. अनुष्का का मन कर रहा था कि अस्पताल जा कर वह राजीव को देख आए लेकिन बिजनैस और अन्य वजहों से वह चेन्नई नहीं जा सकी. वह फोन पर जरूर उस के संपर्क में रही.
अनुष्का ने राजीव से कह दिया था कि वह इलाज की चिंता न करे. जितना भी संभव हो सकेगा वह उस की मदद करेगी. एक दिन राजीव ने उस से कहा, ‘‘डाक्टरों ने बताया है कि इलाज लंबा चलेगा, जिस में पैसों की भी जरूरत पड़ेगी. मेरे ठीक होने तक तुम जरूरत के मुताबिक पैसे देती रहना. ठीक होने पर मैं तुम्हारे सारे पैसे वापस कर दूंगा.’’
‘‘आप पैसों की चिंता न करें, बस अपना खयाल रखें.’’ अनुष्का बोली.
‘‘अनुष्का मेरे एक दोस्त हैं अजय सिंह यादव जो यहीं पर डीआईजी हैं. मैं उन का आईसीआईसीआई बैंक का खाता नंबर एसएमएस कर रहा हूं. तुम उस में भी पैसे भेज सकती हो. पैसे भेजने के बाद तुम मुझे फोन जरूर कर देना.’’ राजीव ने बताया.
इस तरह 12 दिसंबर, 2013 से 7 फरवरी, 2014 तक अनुष्का अलगअलग बैंक खातों में राजीव यादव के साढ़े 24 लाख रुपए भेज चुकी थी. इसी बीच राजीव ने उसे बताया कि उस का ब्लड प्रेशर लगातार बढ़ रहा है और कूल्हे का औपरेशन करने के लिए उसे चेन्नई से हैदराबाद के अपोलो अस्पताल भेजा जा रहा है.
राजीव की हालत दिनप्रतिदिन बिगड़ने की बात सुन कर अनुष्का को और ज्यादा चिंता होने लगी. उस ने राजीव को अस्पताल जा कर देखने का प्रोग्राम बना लिया. 21 फरवरी, 2014 को वह हैदराबाद के अपोलो अस्पताल पहुंच गई. अस्पताल पहुंचने पर उसे जो सूचना मिली, उसे सुन कर उस के होश ही उड़ गए.
अस्पताल से उसे जानकारी मिली कि राजीव यादव नाम का कोई पुलिस अधिकारी अस्पताल में भरती ही नहीं है. जबकि राजीव ने उसे उसी अस्पताल में भरती होने की बात कही थी.
जब वह इस अस्पताल में नहीं है तो कहां गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे किसी और अस्पताल भेज दिया हो? यह सोच कर उस ने उसी समय राजीव को फोन मिलाया. उस का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. कई बार फोन मिलाने के बाद भी फोन स्विच्ड औफ मिलता रहा तो निराश हो कर वह कानपुर लौट आई.
घर लौटने के बाद उस ने राजीव को फिर से फोन मिलाया. इस बार फोन मिलने पर बात हुई तो राजीव ने अपनी सफाई में कहा कि सुरक्षा कारणों से वह अस्पताल में दूसरे नाम पर भरती हुआ है.
राजीव ने उस से पैसों की और डिमांड की तो अनुष्का ने उसे अब पैसे न होने का बहाना बना दिया. अनुष्का ने जब उस से पूछा कि वह अस्पताल में किस नाम से भरती है तो उस ने वह नाम नहीं बताया बल्कि उस ने फोन फिर से स्विच्ड औफ कर लिया.
इस से अनुष्का को राजीव की बातों पर शक होने लगा था. उस ने राजीव को आईसीआईसीआई, ओरियंटल बैंक औफ कौमर्स और कार्पोरेशन बैंक के जिन खातों में पैसे भेजे थे. वह अपने स्तर से यह पता लगाने में जुट गई कि यह खाते किन नामों पर हैं.
उसे पता चला कि आईसीआईसीआई बैंक और ओरियंटल बैंक औफ कौमर्स के खाते अजय सिंह यादव के थे, जो ग्रेटर कैलाश पार्ट-2, नई दिल्ली का रहने वाला था जबकि कार्पोरेशन बैंक का खाता अमित चौहान का निकला जो नोएडा के छलेरा गांव का रहने वाला था. जिस वोडाफोन मोबाइल नंबर से राजीव यादव बात करता था वह भी अमित चौहान के नाम पर लिया गया था.
इसी बीच 26 फरवरी, 2014 को अनुष्का को राजीव यादव ने फोन कर के बताया कि वह अस्पताल से डिस्चार्ज हो रहा है. डिस्चार्ज होने के कुछ दिनों बाद उसे आईएएस एकेडमी मसूरी भेजा जाएगा. वह वहां कुछ दिनों इंस्ट्रक्टर के रूप में काम करेगा.
राजीव ने अस्पताल का बिल चुकाने के लिए अनुष्का से कुछ पैसे और भेजने को कहा. चूंकि अनुष्का को राजीव पर शक हो गया था इसलिए उस ने उस की बात को फोन में रिकौर्ड करना शुरू कर दिया था. अपनी मजबूरी बताते हुए उस ने उसे और पैसे देने में असमर्थता जता दी.
और पैसे न मिलने की बात सुन कर राजीव यादव ने फोन फिर से स्विच्ड औफ कर लिया. इस के बाद वह फोन औन नहीं हुआ. शादी के जाल में फंस कर अनुष्का राजीव को साढ़े 24 लाख रुपए दे चुकी थी. और पैसे न मिलने की बात पर जिस तरह राजीव यादव ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर लिया था, उस से अनुष्का को लगा कि उस के साथ कोई बड़ा फ्रौड हुआ है.
अपने स्तर से जानकारी पाने के लिए वह दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 में उस पते पर गई जहां वह रहता था, जिस के खातों में उस ने मोटी रकम ट्रांसफर की थी. राजीव ने अजय यादव को मिजोरम का डीआईजी बताया. लेकिन पड़ोसियों से बात करने पर पता चला कि वहां कोई पुलिस अधिकारी नहीं रहता.
उस दिन अक्टूबर की 9 तारीख थी. धरती पर सुरमई शाम उतर आई थी. सूरज दूर पहाड़ों की ओट में छिपने लगा था. राजस्थान में चंबल नदी के किनारे बसे और पूरे देश में एजुकेशन हब के नाम से मशहूर शहर कोटा की पौश कालोनी तलवंडी निवासी पुनीत हांडा बैंक से अभीअभी घर लौटे थे.
दिनभर के थकेमांदे पुनीत ने घर आते ही पत्नी श्रद्धा से बेटे रुद्राक्ष के बारे में पूछा. रसोई में पुनीत के लिए चाय बनाने में व्यस्त श्रद्धा ने वहीं से हंसते हुए कहा, ‘‘आप को पता तो है, रुद्राक्ष पड़ोस के हनुमान मंदिर पार्क में खेलने जाता है, फिर भी आप रोजाना घर आते ही उस के बारे में पूछते हैं.’’
पत्नी के जवाब से संतुष्ट हो कर पुनीत फ्रेश होने के लिए बाथरूम में घुस गए. कुछ देर में वह हाथमुंह धो कर बाथरूम से निकल आए. इतनी देर में श्रद्धा चाय और एक प्लेट में बिस्किट ले कर ड्राइंगरूम में आ गई. दोनों चाय की चुस्कियां लेते हुए इधरउधर की बातें करने लगे.
इसी बीच पुनीत की नजर दीवार पर टंगी घड़ी पर पड़ी. शाम के 7 बज चुके थे, रुद्राक्ष अभी तक घर नहीं लौटा था. पुनीत ने श्रद्धा की ओर देखते हुए कहा कि रुद्राक्ष रोजाना तो ज्यादा से ज्यादा साढे़ 6 बजे तक घर लौट आता था. आज क्यों नहीं आया?
श्रद्धा साड़ी के पल्लू से चेहरे को पोंछते हुए बोलीं, ‘‘हो सकता है, वह अपने दोस्तों के साथ अभी तक खेलने में लगा हो. फिर भी पापा से कहती हूं कि अपने लाडले पोते को पार्क से ले आएं.’’
श्रद्धा ने ससुर एम.एम. हांडा को रुद्राक्ष के अब तक घर नहीं आने की बात बताई तो वह उसे पार्क से लाने के लिए जाने लगे, तभी घर के लैंडलाइन पर फोन की घंटी बजने लगी. पुनीत ने फोन उठाया. फोन पर दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘तू पुनीत बोल रहा है?’’
फोन सुन कर पुनीत को झटका सा लगा. भद्दी आवाज में कोई उन्हें तू कह कर बोल रहा था. फिर भी उन्होंने यह सोच कर कि हो न हो कोई दोस्त हो, आवाज पहचानने की कोशिश की, लेकिन कुछ याद नहीं आया.
पुनीत कुछ पूछते, इस से पहले ही फोन पर दूसरी ओर से रौबीली आवाज सुनाई दी, ‘‘तू बैंक मैनेजर है ना… तेरी बीवी का नाम श्रद्धा है और वह टीचर है. रुद्राक्ष तेरा ही बेटा है ना…?’’
पुनीत इस तरह के सवालों से झल्ला गए. फिर भी उन्होंने शांत स्वर में कहा, ‘‘हां.’’
पुनीत के हां कहते ही फोन पर दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘सुन, तेरे बेटे रुद्राक्ष का अपहरण हो गया है. हम उसे कश्मीर भेज रहे हैं. कल सुबह तक 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लेना.’’
पुनीत कुछ पूछते, इस से पहले ही फोन करने वाले ने कहा, ‘‘याद रखना, पुलिस को सूचना दी तो बच्चा जिंदा नहीं बचेगा. जितनी तेजी से फोन करने वाले ने बात की थी. उतनी ही तेजी से दूसरी तरफ से फोन कट गया.’’
फोन सुन कर पुनीत सन्न रह गए. एकाएक यह बात उन की समझ में नहीं आई कि क्या करें? उन्होंने श्रद्धा को आवाज दे कर बुलाया और उन्हें फोन पर हुई सारी बातें बताईं.
रुद्राक्ष के अपहरण और 2 करोड़ की फिरौती मांगने की बातें सुन कर श्रद्धा बेसुध हो गईं. उन की आंखों से आंसू टपकने लगे. श्रद्धा ने पुनीत से कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? हमारे बच्चे का अपहरण भला कोई क्यों करेगा? हमारी तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है.’’
पुनीत ने श्रद्धा को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘हिम्मत रखो, सब ठीक हो जाएगा. पुनीत कहीं नहीं गया होगा, चलो पार्क में ढूंढ़ते हैं.’’
बात वाकई चिंता की थी. फोन पर इस तरह का मजाक भी संभव नहीं था. रुद्राक्ष और श्रद्धा अपने घर के पड़ोस वाले पार्क में पहुंचे, लेकिन वहां कोई नहीं था. चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था. रुद्राक्ष के दोस्तों से पूछताछ के लिए वे आसपास रहने वाले बच्चों के घर गए. बच्चों से पता चला कि 3-4 दिन से रोजाना एक व्यक्ति पार्क में आता था.
निशान माइक्रा कार से आने वाला वह व्यक्ति पार्क में बच्चों से बड़े प्यार से बातें करता था, उन से स्पेलिंग वगैरह के अलावा उन के मातापिता के कामकाज के बारे में भी पूछा करता था. साथ ही बच्चों को चौकलेट भी देता था. 3-4 दिन में ही वह पार्क में आने वाले बच्चों से काफी घुलमिल गया था. रुद्राक्ष के साथ खेलने वाले बच्चों ने बताया कि वही व्यकित रुद्राक्ष को अपने साथ ले गया था.
पार्क में खेलने वाले बच्चों ने जो कुछ बताया, उस से यह बात साफ हो गई कि फोन झूठा नहीं था और न ही उन से कोई मजाक किया गया था. मतलब साफ था कि 7 साल के मासूम रुद्राक्ष का वाकई अपहरण हो गया था.
अपहरण की बात सामने आने के बाद पुनीत व श्रद्धा की रुलाई फूट पड़ी. रुद्राक्ष उन के जिगर का टुकड़ा था, लेकिन रोने से कुछ नहीं होने वाला था. पुनीत ने सोचविचार कर अपने परिचितों को फोन कर के तुरंत घर पर बुलाया.
कुछ ही देर में पुनीत के यारदोस्त व करीबी रिश्तेदार आ गए तो पुनीत ने उन्हें रुद्राक्ष के अपहरण होने और 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगने की बात बताई. रुद्राक्ष के अपहरण की बात सुन कर सभी को झटका लगा. सभी ने पुनीत और श्रद्धा को हिम्मत से काम लेने और पुलिस को सूचना देने की सलाह दी. पुनीत ने अपने कुछ परिचितों के साथ थाना जवाहरनगर पहुंच कर रुद्राक्ष के अपहरण और फोन पर 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगे जाने की सूचना दे दी. पुलिस ने तत्काल अपहरण का केस दर्ज कर लिया.
पुनीत हांडा कोटा के संभ्रांत नागरिक हैं. वे बूंदी सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक की तालेड़ा शाखा के मैनेजर हैं. उन की पत्नी श्रद्धा हांडा स्कूल में टीचर हैं. रुद्राक्ष के अपहरण और फिरौती मांगे जाने की बात पूरे शहर में रात को ही आग की तरह फैल गई. लोकल चैनलों पर खबरें आने लगीं.
कोटा के सांसद ओम बिड़ला को इस मामले की जानकारी मिली तो वह विधायक संदीप शर्मा के साथ पुनीत हांडा के घर पहुंचे और उन्हें भरोसा दिलाया कि चिंता न करें, रुद्राक्ष को सहीसलामत घर ले कर आएंगे. ओम बिड़ला दबंग सांसद हैं. उन्होंने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से फोन पर बात की और रुद्राक्ष के अपहरण के मामले की जानकारी दे कर बच्चे का तुरंत सुराग लगवाने का आग्रह किया.
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे उस दिन जयपुर में ही थीं और एक दिन बाद सिंगापुर के दौरे पर जाने की तैयारियों में लगी थीं. उन्होंने मामले की संवेदनशीलता को महसूस कर के तुरंत प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओमेंद्र भारद्वाज को तलब कर अपहृत बच्चे का पता लगाने के निर्देश दिए. डीजीपी ने कोटा के पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि जैसे भी संभव हो, रुद्राक्ष का पता लगाएं. इस के लिए विशेष पुलिस टीमें तैनात की जाएं.
डीजीपी के निर्देश पर कोटा के आईजी डा. रविप्रकाश, एसपी ग्रामीण डा. विकास पाठक, कार्यवाहक एसपी मनीष अग्रवाल, एएसपी सिटी राजन दुष्यंत और डीएसपी हिमांशु सहित तमाम पुलिस अधिकारी रुद्राक्ष की तलाश में जुट गए. इस के साथ ही कोटा और आसपास के इलाके में कड़ी नाकेबंदी कर दी गई.
सब से पहले अपहरणकर्ताओं का पता लगाना जरूरी था. इस के लिए पुलिस ने पार्क में रुद्राक्ष के साथ खेलने वाले बच्चों, पार्क में आने वाले लोगों, पार्क में बने हनुमान मंदिर के पुजारी और अन्य लोगों से पूछताछ की. पार्क के आसपास के मकानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने के बाद निशान माइक्रा कार को चिह्नित कर लिया गया. परेशानी यह थी कि कैमरों की फुटेज में न तो कार का नंबर दिखाई दे रहा था, न ही कार चलाने वाले का चेहरा नजर आ रहा था. कार के शीशों पर काली फिल्म चढ़ी थी. फिर भी पुलिस उस निशान माइक्रा कार की तलाश में जुट गई.
पूरी रात पुलिस रुद्राक्ष के अपहरण की गुत्थी सुलझाने के प्रयास में जुटी रही. दूसरी ओर पुनीत के घर आधी रात तक लोगों का आनाजाना लगा रहा. लोग उन्हें दिलासा देते रहे. बेटे रुद्राक्ष का फोटो देखदेख कर श्रद्धा बारबार रो रही थीं. एक बार तो वह गश खा कर अचेत भी हो गईं. पुनीत व श्रद्धा समेत पूरे परिवार के लोगों ने पूरी रात जाग कर गुजारी. उन्हें उम्मीद थी कि पता नहीं कब पुलिस का फोन आ जाए कि रुद्राक्ष का पता लग गया है या अपहर्ताओं का ही दोबारा फोन आ जाए.
मैट्रीमोनियल वेबसाइटों पर दिए फरजी विज्ञापनों के जाल में फंस कर कई लोग ठगी का शिकार भी हो जाते हैं. जब तक उन्हें हकीकत पता चलती है तब तक उन का बहुत कुछ लुट चुका होता है. जल्दबाजी में उठाए गए ऐसे कदमों की वजह से उन्हें जिंदगी भर पछताना भी पड़ जाता है.
उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के गीतानगर की रहने वाली अनुष्का एक उच्चशिक्षित परिवार से ताल्लुक रखती थी. उस के यहां किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, इसलिए उस का पालनपोषण बड़े ही नाजों में हुआ था. उस की पढ़ाईलिखाई भी अच्छे स्कूल, कालेज में हुई थी. उच्च शिक्षा पूरी करतेकरते अनुष्का जवान हो चुकी थी. तब पिता ने उस की शादी अपनी ही हैसियत वाले परिवार में कर दी. शादी के बाद अनुष्का पति के घर चली गई.
कहते हैं कि शादी के बाद लड़की के नए जीवन की शुरुआत अपने पति के संग होती है. वहां उसे ससुराल के मुताबिक ही खुद को ढालना होता है. अनुष्का ने भी ऐसा ही किया. अपने गृहस्थ जीवन से वह खुश थी. इसी बीच वह एक बेटी की मां बनी. बेटी के जन्म के बाद उस की खुशी और बढ़ गई. लेकिन उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी.
पति से उस के मतभेद हो गए. हालत यह हो गए कि उस का ससुराल में रहना दूभर हो गया तो वह मायके आ गई. हर मांबाप चाहते हैं कि उन की बेटी ससुराल में हंसीखुशी के साथ रहे. अनुष्का गुस्से में जब मायके आई तो मांबाप ने उसे व दामाद को समझाया. समझाबुझा कर उन्होंने बेटी को ससुराल भेज दिया.
उन्होंने अनुष्का को ससुराल भेजा तो इसलिए था कि गिलेशिकवे दूर होने के बाद उस की गृहस्थी की गाड़ी सही ढंग से चलेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कुछ दिनों बाद ही पति के साथ उस का तलाक हो गया. यह करीब 20 साल पहले की बात है.
पति से तलाक होने के बाद अनुष्का बेटी के साथ मायके में ही रहने लगी. अनुष्का पढ़ीलिखी थी इसलिए अब अपने पैरों पर खड़े होने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि वह आत्मनिर्भर बन कर बेटी को ऊंची तालीम दिलाएगी. इधरउधर से पैसों की व्यवस्था कर के उस ने रेडीमेड गारमेंट का बिजनैस शुरू कर दिया. कुछ सालों की मेहनत के बाद उस का बिजनैस जम गया और उसे अच्छी कमाई होने लगी.
अनुष्का अपनी बेटी की पढ़ाई की तरफ पूरा ध्यान दे रही थी. वह चाहती थी कि बेटी को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाए कि उस का भविष्य उज्ज्वल बन सके. उस की बेटी इस समय मुंबई के एक नामी इंस्टीट्यूट से एमबीए कर रही है. अनुष्का भी अब 47 साल की हो चुकी थी. अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने के लिए उसे कभीकभी जीवनसाथी की जरूरत महसूस होने लगी थी. इस के लिए उस ने वैवाहिक विज्ञापनों की वेबसाइट जीवनसाथी डौटकौम पर नवंबर, 2013 में अपना रजिस्ट्रेशन भी करा दिया था.
वैवाहिक विज्ञापनों की इसी साइट पर राजीव यादव नाम के एक आदमी ने भी रजिस्ट्रेशन करा रखा था. 58 वर्षीय राजीव यादव ने अपनी पर्सनल डिटेल में खुद को आईपीएस बताया था. वह भी अपने लिए जीवनसंगिनी तलाश कर रहा था. राजीव रोजाना जीवनसाथी डौटकौम साइट पर अपनी पसंद की महिला की तलाश करने लगा. साइट सर्च के दौरान उस की नजर अनुष्का की प्रोफाइल पर ठहर गई.
उस ने जल्दी ही अनुष्का को ईमेल भेज कर बात करने की इच्छा जाहिर की. अनुष्का ने उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया. तब राजीव यादव ने उस से खुद को आईपीएस अफसर बताते हुए कहा कि उस की पोस्टिंग भारत के नार्थईस्ट इलाके मिजोरम में डीआईजी के पद पर है और वह वहां अकेला रहता है.
राजीव ने जब अपने बारे में बताया तो अनुष्का को लगा कि उस की बाकी जिंदगी राजीव के साथ ठीक से कट जाएगी. कुल मिला कर राजीव उसे अच्छा लगा. सोचविचार कर अनुष्का ने भी राजीव को अपना परिचय दे दिया और कहा कि पहले पति से उस की एक बेटी है, जो मुंबई में एमबीए की पढ़ाई कर रही है. राजीव ने उस की बेटी को भी अपनाने की हामी भर ली.
इस के बाद दोनों के बीच फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. इसी दौरान राजीव ने बताया कि जब वह छोटा था कि उस के मांबाप की मौत हो गई थी. एक छोटा भाई था जो भारतीय सेना में ब्रिगेडियर था. उस की पोस्टिंग जम्मूकश्मीर में थी. लेकिन वहां हुए एक बम विस्फोट में उस की मौत हो चुकी है.
कुछ दिनों की बातचीत के बाद राजीव और अनुष्का ने शादी की बात फाइनल कर ली. उन्होंने तय कर लिया कि वे 13 दिसंबर, 2013 को शादी कर लेंगे. राजीव यादव ने कहा कि वह मिजोरम से 13 दिसंबर को कानपुर पहुंच जाएगा और परिवार के नजदीकी लोगों के बीच एक सादे समारोह में उसी दिन शादी कर के वापस लौट आएगा.
अनुष्का की यह दूसरी शादी थी इसलिए वह भी शादी के समय कोई बड़ा दिखावा और तामझाम नहीं चाहती थी. इसलिए उसे राजीव का प्रस्ताव पसंद आ गया. शादी करने से 3 दिन पहले 10 दिसंबर को राजीव ने अनुष्का से फोन पर बात की. बातचीत के दौरान उस ने बताया कि उस का पर्स कहीं गिर गया है. उस में एटीएम कार्ड व अन्य कार्ड थे.
अनुष्का ने राजीव की इस बात को सीरियसली नहीं लिया क्योंकि आए दिन तमाम लोगों के एटीएम कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस आदि महत्त्वूपर्ण सामान चोरी होते रहते हैं या कहीं खो जाते हैं. इसलिए उस ने राजीव से यह कहा कि जो एटीएम कार्ड पर्स में थे, उन्हें लौक जरूर करा दें ताकि कोई उन का दुरुपयोग न कर सके. अनुष्का ने अपने होने वाले पति को यह सुझाव दे तो दिया लेकिन उसे यह पता नहीं था कि राजीव यह छोटी सी सूचना दे कर उसे ऐसे जाल में फांसने जा रहा है, जहां से निकलना उस के लिए आसान नहीं होगा.
दोनों की फोन पर रोजाना ही बातचीत होती थी. अनुष्का उस की बातों से इतनी प्रभावित हो गई थी कि उस पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगी थी. 13 दिसंबर की दोनों की शादी होने वाली थी इसलिए अब केवल 2 दिन ही बचे थे. 2 दिनों बाद वे एकदूसरे से पहली बार मिलने जा रहे थे. अनुष्का की खुशी बढ़ती जा रही थी. ये 2 दिन उसे 2 साल से भी ज्यादा लंबे लग रहे थे. एकएक पल का वह बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी.
इस से पहले कि अनुष्का राजीव यादव के साथ शादी के बंधन में बंध पाती, उसे ऐसी खबर मिली कि उस के पैरों तले जैसे जमीन ही खिसक गई.
सुबह के नाश्ते पर आने की कोई बात ही नहीं थी. लेकिन दोपहर का खाना खाने से पहले ज्ञान कौर काफी देर तक अपने पति अमरजीत सिंह की राह देखती रहीं. धीरे धीरे 3 बज गया और अमरजीत सिंह घर नहीं आए तो उन्हें थोड़ी चिंता हुई. यह स्वभाविक भी था.
वह सोचने लगीं, सरदारजी ने रात में न आने की बात की थी, सुबह भी नहीं आए तो कोई बात नहीं थी. अब वह खाना खाने भी नहीं आए, जबकि फिर वह खाना समय पर खाते थे. आज वह बिना बताए कहां चले गए? कहीं कोई जमीन तो देखने नहीं चले गए या फिर किसी जमीन के कागज बनवाने तो नहीं चले गए? काम में फंसे होने की वजह से बता नहीं पाए होंगे.
ज्ञान कौर ने 3-4 बार अमरजीत सिंह के मोबाइल पर फोन किया था, लेकिन संपर्क नहीं हो सका था. तरहतरह की बातें सोचते हुए ज्ञान कौर ने खाना खाया और आराम करने के लिए लेट गईं. सरदारजी के बारे में ही सोचते हुए वह सो गई तो शाम को उठीं. उस समय भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे थे. शाम को ही नहीं, रात बीत गई और सरदारजी लौट कर नहीं आए.
कई बार ज्ञान कौर के मन में आया कि सरदारजी के घर न आने की बात वह अपने बड़े बेटे गुरचरण सिंह को बता दें. लेकिन उन के मन में आता कि बच्चे बेवजह ही परेशान होंगे. सरदारजी कोई बच्चे तो हैं नहीं कि गायब हो जाएंगे. 70 साल के स्वस्थ और समझदार आदमी हैं. वह ऐसे हैं कि खुद ही दूसरों को गायब कर दें, उन्हें कौन गायब करेगा?
इसी उहापोह और असमंजस की स्थिति में ज्ञान कौर का वह दिन भी बीत गया. जब दूसरी रात भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे तो ज्ञान कौर ने परेशान हो कर अगली सुबह यानी 27 अगस्त, 2013 को गांव में रह रहे अपने बड़े बेटे गुरचरन सिंह के पास खबर भेजने के साथ बाघा बार्डर पर ड्यूटी कर रहे छोटे बेटे गुरदीप सिंह को भी फोन द्वारा सरदार अमरजीत सिंह के 2 दिनों से घर न आने की सूचना दे दी.
गुरदीप सिंह भारतीय सेना की 69 आर्म्स बटालियन में सिपाही था. इन दिनों वह बाघा बार्डर पर तैनात था. मां से पिता के 2 दिनों से घर न आने की जानकारी मिलते ही गुरदीप सिंह छुट्टी ले कर गांव आया और सब से पहले भाई को साथ ले कर थाना सदर जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद दोनों भाई पिता की तलाश में जुट गए.
सरदार अमरजीत सिंह लुधियाना के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले गांव झांदे में रहते थे. काफी और उपजाऊ जमीन होने की वजह से गांव में उन की गिनती बड़े जमीनदारों में होती थी. गांव के बीचोबीच उन की महलनुमा शानदार कोठी थी, जिस में वह पत्नी ज्ञान कौर और 2 बेटों गुरचरन सिंह और गुरदीप सिंह के साथ रहते थे. दोनों बेटे पढ़ाई के साथसाथ खेती में भी बाप का हाथ बंटाते थे. बड़ा बेटा गुरचरन सिंह पढ़ाई पूरी कर के जमीनों की देखभाल करने लगा तो छोटा गुरदीप सिंह भारतीय सेना में भर्ती हो गया.
गुरचरन सिंह और गुरदीप सिंह कामधाम से लग गए तो सरदार अमरजीत सिंह ने उन की शादियां कर दीं. उन की भी अपनी संतानें हो गई थीं. इस तरह उन का भरापूरा खुशहाल परिवार हो गया था. वैसे भी धनदौलत की उन के पास कोई कमी नहीं थी, लेकिन जब देहातों का शहरीकरण होने लगा तो उन्होंने अपनी काफी जमीनें करोड़ो रुपए में बेच कर बरनाला में उन्होंने इस के बदले दोगुनी जमीन खरीद कर बटाई पर दे दी. बाकी पैसों से उन्होंने प्रौपर्टी डीलर का काम शुरू कर दिया.
अमरजीत की जमीनों, मंडियों और आढ़त आदि का सारा काम बड़ा बेटा गुरचरन सिंह देखता था. जबकि अमरजीत सिंह अपने प्रौपर्टी डीलर वाले काम में व्यस्त रहते थे. इस के लिए उन्होंने गांव के बाहर लगभग 5 सौ वर्गगज में एक आलीशान औफिस और कोठी बनवा रखी थी. वह अपनी पत्नी ज्ञान कौर के साथ उसी में रहते थे, जबकि परिवार के अन्य लोग गांव वाली कोठी में रहते थे.
अमरजीत सिंह का इधर ढाई, 3 सालों से बगल के गांव थरीके के रहने वाले स्वर्ण सिंह के साथ कुछ ज्यादा ही उठना बैठना था. वैसे तो स्वर्ण सिंह मोगा का रहने वाला था, लेकिन उस ने और उस के भाई गुरचरन सिंह ने मोगा की सारी जमीन बेच कर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर में काफी जमीन खरीद ली थी. जिस की देखभाल गुरचरन सिंह भाई स्वर्ण सिंह के साले कुलविंदर सिंह के साथ करता था.
जबकि स्वर्ण सिंह थरीके में रहते हुए प्रौपर्टी का काम करता था. ऐसे में जब उसे पता चला कि झांदे गांव के रहने वाले अमरजीत सिंह का प्रौपर्टी का बड़ा काम है तो वह उन के पास भी आनेजाने लगा. उस ने उन से 3-4 प्लाटों के सौदे भी करवाए, जिन से उन्हें अच्छाखासा लाभ मिला. उन्होंने स्वर्ण सिंह का पूरा कमीशन तो दिया ही, लेकिन इस के बाद से उन्हें उस पर पूरा भरोसा हो गया था. साथसाथ खानापीना होने लगा तो दोनों में मित्रता भी हो गई. इस के बाद अमरजीत सिंह का कोर्टकचहरी जा कर कागजात आदि बनवाने और प्लाट वगैरह दिखाने का ज्यादातर काम स्वर्ण सिंह ही करने लगा.
उसी बीच स्वर्ण सिंह ने अमरजीत सिंह की मुलाकात अमित कुमार से करवाई. अमित ने उन्हें बताया था कि वह गोल्ड मैडलिस्ट वकील है. लेकिन वह वकालत न कर के प्रौपर्टी का बड़ा काम करता है. वह छोटेमोटे नहीं, बड़े सौदे करता और करवाता है.
अमित कुमार ने अमरजीत सिंह से इस तरह बातें की थीं कि वह उस से काफी प्रभावित हुए थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह को 2-3 प्लाट भी खरीदवाए थे, जिन्हें बेच कर अमरजीत सिंह ने अच्छाखासा लाभ उठाया था.
स्वर्ण सिंह की ही तरह अमरजीत सिंह अमित कुमार पर भी विश्वास करने लगे थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह के साथ मिल कर करीब ढाई करोड़ रुपए का एक सौदा किया, जिस के लिए उन्होंने 50-50 लाख रुपए का 2 बार में भुगतान किया था. इस सौदे में स्वर्ण सिंह गवाह था. लेकिन इतने बड़े सौदे की अमरजीत सिंह के घर के किसी भी सदस्य को कोई जानकारी नहीं थी.