15 दिन में सुनाया फैसला : मुजरिम को सजा ए मौत – भाग 1

इस धरती पर इंसान के रूप में ऐसे हैवान भी मौजूद हैं, जो अपनी काम पिपासा शांत करने के लिए किसी भी लडक़ी अथवा लडक़े को अपना शिकार बना लेते हैं. उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले का रहने वाला सैफ नाम के दरिंदे ने तो एक ऐसे मासूम पर नुकीले दांत गड़ा दिए, जो मात्र 9 साल का था. अभी उस ने न दुनिया को ठीक से देखा था, न समझा था. हंसतेखेलते उस मासूम के साथ सैफ ने कुकर्म ही नहीं किया, बल्कि उसे मौत की नींद भी सुला दिया था.

इस कृत्य और जघन्य हत्या के लिए सैफ को पोक्सो कोर्ट के कटघरे में खड़ा किया गया. यह पोक्सो कोर्ट मथुरा में थी और इस के जज थे राम किशोर यादव. उन की कोर्ट में 28 अप्रैल, 2023 को इस केस की चार्जशीट दाखिल की गई थी. 2 मई को अभियुक्त पर चार्ज लगाया गया.

अभियुक्त सैफ की ओर से बचाव पक्ष के रूप में बार एसोसिएशन के पूर्व सचिव साहब सिंह देशकर पैरवी कर रहे थे और अभियोजन पक्ष का जिम्मा जिला शासकीय अधिवक्ता (स्पैशल) अलका उपमन्यु ने संभाला था. इस केस में 14 गवाह पेश किए गए. पहली गवाही 8 मई को हुई और अंतिम गवाह 18 मई को पेश हुआ.

आज 22 मई, 2023 का दिन था. उस दिन इस जघन्य मामले में फाइनल बहस होनी थी. सुबह से ही कोर्टरूम में मीडियाकर्मी, मथुरा बार एसोसिएशन के वकील, पुलिस के आला अधिकारी. मृतक बच्चे के घर वाले, पासपड़ोस के लोग और शहर के कई प्रतिष्ठित नागरिक जमा हो गए थे.

इस केस की शासन और प्रशासन की ओर से मौनिटरिंग हो रही थी. डीएम पुलकित खरे, एसएसपी शैलेष कुमार पांडे, संयुक्त निदेशक अभियोजन सहसेंद्र मिश्रा इस मामले पर पैनी नजर रख रहे थे. वह इस वक्त कोर्टरूम में मौजूद थे. वहीं जिला शासकीय अधिवक्ता शिवराम तरकर तथा सदर कोतवाल जसवीर सिंह (जिन्होंने इस केस की छानबीन की थी) कोर्ट रूम में उपस्थित थे.

कोर्ट रूम में बने कटघरे में इस जघन्य कांड का आरोपी सैफ खड़ा था. बीच में लंबी मेज के पास लेखाकार के साथ बचाव पक्ष के वकील साहब सिंह देशकर बैठे हुए थे. उन के सामने मेज की दूसरी ओर अभियोजन पक्ष की वकील अलका उपमन्यु बैठी हुई इस केस की फाइल को गहरी नजरों से देख रही थीं.

दिलचस्प रही वकीलों की जिरह

जैसे ही कोर्टरूम की घड़ी ने 10 बजाए, अपने चैंबर से निकल कर माननीय जज राम किशोर यादव अपनी कुरसी के पास आ गए. कोर्ट में मौजूद हर शख्स ने सम्मान में उठ कर उन का अभिवादन किया. अभिवादन स्वीकार कर के जज महोदय अपनी कुरसी पर बैठ गए.

“कोर्ट की काररवाई शुरू की जाए. बचाव पक्ष अपनी दलील पेश करें.” माननीय जज ने साहब सिंह की ओर देख कर कहा.

साहब सिंह देशकर अपने काले कोट को दुरुस्त करते हुए उठे और गंभीर आवाज में बोले, “मी लार्ड, मैं मानता हूं मेरे मुवक्किल सैफ ने जघन्य गुनाह किया है. उस के विरुद्ध पुलिस ने ठोस साक्ष्य भी एकत्र कर के कोर्ट में पेश किए हैं, लेकिन मैं यही कहूंगा कि जिस वक्त सैफ ने यह गुनाह किया, वह बहुत नशे में था. नशा करने वाला व्यक्ति नशे में यह भूल जाता है कि वह जो कर रहा है या करने जा रहा है, वह गलत है. मेरे मुवक्किल ने जो भी किया वह नशे में किया है, उसे इस का अफसोस भी है.”

“इस के अफसोस करने से क्या वह मासूम बच्चा जीवित हो कर वापस आ जाएगा, जो इस की हैवानियत की भेंट चढ़ गया.”

अभियोजन पक्ष की वकील अलका उपमन्यु तमक कर खड़ी होते हुए गुस्से से बोलीं, “मी लार्ड, इस व्यक्ति ने ऐसा गुनाह किया है, जो क्षमा करने योग्य नहीं है. ऐसे व्यक्ति को कठोर से कठोर दंड मिलना चाहिए.”

“नहीं मी लार्ड,” बचाव पक्ष के वकील देशकर विनती करते हुए बोले, “मेरा मुवक्किल शादीशुदा है इस के छोटेछोटे बच्चे हैं. यह अपने बूढ़े मांबाप का बोझ भी उठाता है. इस के जेल चले जाने से इस के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा.”

“यह सब कुछ गुनाह करने से पहले सोचना चाहिए,” अलका उपमन्यु व्यंग्य से बोलीं.

“मैं ने कहा न, यह उस समय गहरे नशे में था. नशे में ही इस से गुनाह हो गया है.”

“मी लार्ड, जिस मासूम बच्चे को इस नराधम ने मौत के घाट उतारा है, वह अपने मांबाप की इकलौती संतान था. उस के पिता उसे इस उम्मीद से पालपोस कर बड़ा कर रहे थे कि वह बड़ा हो कर उन के बुढ़ापे की लाठी बनेगा. इस ने उन की लाठी तोड़ दी. उन के बुढ़ापे का सहारा छीन लिया. इसे कठोर से कठोर दंड मिलना ही चाहिए.”

माननीय जज राम किशोर यादव ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद गंभीर स्वर में कहा, “यह सिद्ध हो गया है कि कटघरे में खड़े इस शख्स सैफ ने जघन्य गुनाह किया है. स्वयं इस के वकील मिस्टर देशकर अपने मुंह से कुबूल कर रहे हैं कि इस ने जघन्य अपराध किया है, लेकिन नशे में किया है.

“मिस्टर देशकर यह नशे में था, इस बात को पुलिस नहीं मानती. इसे गिरफ्तार किया गया, तब यह पूरी तरह होशोहवास में था और यह बात इस से भी सिद्ध होती है कि बच्चे के साथ कुकर्म करने के बाद इस का दिमाग सचेत था, तभी तो इस ने सोचा कि यदि बच्चे को जिंदा छोड़ा तो बच्चा इस की पहचान और नाम बता सकता है.

“इसी भय से इस ने बच्चे की गला घोंट कर हत्या कर दी. इसलिए नशे में अपराध करने वाली बात का कोई तर्क नहीं बनता. इस पर रहम नहीं किया जा सकता. मैं इसे दोषी मानता हूं. 26 मई, 2023 को इस पर आरोप तय होगा और सोमवार 29 मई को इसे सजा सुनाई जाएगी. कोर्ट तब तक के लिए स्थगित की जाती है.”

कोर्ट की काररवाई समाप्त कर के जज महोदय अपने चैंबर में चले गए. कोर्ट रूम में मौजूद लोग एकदूसरे से बातें करते हुए बाहर निकल गए.

मुजरिम को सजा ए मौत

26 मई, 2023 को एक बार फिर से पोक्सो कोर्ट में जज राम किशोर यादव की अदालत लगी. 22 मई को कोर्ट रूम में जितनी भीड़ थी, उस से कहीं अधिक भीड़ कोर्ट रूम में उस दिन आई. जज महोदय ने ठीक 10 बजे अपनी कुरसी पर आ कर बैठे तो सभी की निगाहें उन की ओर हो गईं कि पता नहीं जज साहब क्या आरोप तय करेंगे.

उन्होंने अभियुक्त सैफ पर आरोप तय करने के लिए कहना शुरू किया, “सैफ को बच्चे के साथ कुकर्म कर के तार से उस का गला घोंट कर मार देने का आरोप सिद्ध हो गया है. इसे भारतीय दंड विधान की धारा 302 में आजीवन कारावास और 50 हजार रुपयों का जुरमाना लगाया जाता है.

धारा 377 भादंवि में 10 वर्ष का कठोर कारावास और 20 हजार रुपए का आर्थिक दंड लगाया जाता है. धारा 363 में 5 वर्ष सश्रम दंड और 20 हजार का आर्थिक जुरमाना. धारा 201 में 7 वर्ष का कठोर कारावास और 10 हजार रुपए का जुरमाना लगाया जाता है. वसूली का 80 प्रतिशत हिस्सा प्रतिकर के रूप में मृतक के मांबाप को दिया जाएगा.”

इस के बाद कोर्ट की अगली तारीख सोमवार तय कर के कोर्ट स्थगित कर दी गई.

29 मई, 2023 को पोक्सो कोर्ट के जज राम किशोर यादव ने सैफ को सभी धाराओं में दोषी करार देते हुए कहा, “मासूम के साथ कुकर्म और उस की हत्या का दोषी मोहम्मद सैफ धारा 6 लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 (यथा संशोधित 2019) के अंतर्गत मृत्युदंड से दंडित किया जाता है. सैफ को फांसी के फंदे पर तब तक लटकाया जाए, जब तक इस के प्राण न निकल जाएं.” जज महोदय ने सजा सुनाने के बाद अपने पैन की निब तोड़ दी और उठ कर अपने चैंबर में चले गए.

पोक्सो कोर्ट ने त्वरित न्याय का उदाहरण पेश कर के मात्र 15 दिन में अपना फैसला सुनाया. इस फैसले की सभी ने भूरिभूरि प्रशंसा की. मृतक बच्चे की मां नाजिस और पिता अफजल फूटफूट कर रोने लगे. उन का कहना था कि आज हमारे बेटे अरहान को न्याय मिला है. त्वरित काररवाई से हम संतुष्ट हैं. आज न्यायाधीश ने सच्चा न्याय किया है. उन के रुदन को देख कर एडवोकेट अलका उपमन्यु की भी आंखें भर आईं. वह मुंह घुमा कर रूमाल से अपने आंसू पोंछने लगीं.

गोवा की खौफनाक मुलाकात

समस्या समाधान के नाम पर ठगी

42 वर्षीय इंदरजीत कौर अकसर बीमार रहती थी. तमाम डाक्टरों से उस का इलाज चला, लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ. उस के पिता हरवंश सिंह एक सरकारी मुलाजिम थे. बेटी को ले कर वह बड़ा परेशान रहते थे. इंदरजीत कौर के अलावा उन के 2 बेटे भी थे.

हरवंश सिंह दक्षिणी दिल्ली के नेहरूनगर में परिवार के साथ रहते थे. छोटा परिवार होने के बावजूद वह हमेशा परेशान रहते थे. उन की यह परेशानी बेटी इंदरजीत कौर को ले कर थी. अब तक शादी के बाद उसे ससुराल में होना चाहिए था, लेकिन बीमारी की वजह से उस की शादी नहीं हो पाई थी. इस के अलावा दूसरी परेशानी बड़े बेटे को ले कर थी, जो शादी के 8 सालों बाद भी बाप नहीं बन पाया था. तीसरी परेशानी छोटे बेटे को ले कर थी, जो अभी तक बेरोजगार था.

इंदरजीत कौर पिता को अकसर समझाती रहती थी कि वह चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा. लेकिन वह ङ्क्षचता से उबर नहीं पा रहे थे. परिवार की जिम्मेदारी एक तरह से इंदरजीत ही संभाले थी. हरवंश सिंह सेवानिवृत्त हुए तो फंड के उन्हें जो 15 लाख रुपए मिले, उन में से 12 लाख रुपए उन्होंने इंद्रजीत के नाम जमा करा दिए थे. इस पर बेटों ने कोई ऐतराज नहीं किया था.

रिटायर होने के कुछ ही महीने बाद हरवंश सिंह की मौत हो गई थी. उन के मरने के 4 महीने बाद ही उन की पत्नी की भी मौत हो गई. 4 महीने में ही मांबाप दोनों की मौत हो जाने से इंदरजीत को गहरा सदमा लगा था. उन के मरने के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी उसी पर आ पड़ी थी.

हरवंश सिंह ने अपना एक फ्लैट कुसुमा को किराए पर दे रखा था. उन के मरने के बाद इंदरजीत ने वह फ्लैट खाली कराना चाहा तो उस ने फ्लैट खाली करने से साफ मना कर दिया, जिस का मुकदमा रोहिणी कोर्ट में चल रहा है.

इंदरजीत शारीरिक रूप से तो परेशान थी ही, मानसिक तौर पर भी परेशान रहने लगी थी. उस के छोटे भाई की उम्र 36 साल हो चुकी थी, उस की अभी तक न तो नौकरी लगी थी और न ही शादी हुई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि इन परेशानियों से कैसे निजात पाया जाए.

6 सितंबर को इंदरजीत के मोबाइल फोन पर एक एसएमएस आया, जिस में लिखा था, ‘जानिए कैसे होगा आप की समस्या का समाधान? नौकरी, व्यापार में घाटा, शादी, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्यार में असफलता, शौतन से छुटकारा, मुठकरनी आदि समस्याओं के समाधान की 100 प्रतिशत गारंटी.’

इंसान तमाम तरह की परेशानियों से घिरा हो और कोशिश करने के बावजूद उस की मुश्किलें कम न हो रही हों तो इस तरह के मैसेज में उसे समस्याओं का हल दिखाई देने लगेगा. मैसेज के अंत में एक फोन नंबर भी दिया था. मैसेज पढऩे के बाद इंदरजीत ने सोचा कि क्यों न वह एक बार उस फोन नंबर पर बात कर के देखे. शायद यहां उस की समस्याएं हल ही हो जाएं. इसी उम्मीद में इंदरजीत ने अपने फोन से मैसेज में दिए नंबर 012048823333 पर फोन किया.

दूसरी ओर से फोन रिसीव किया गया तो उस ने अपनी सारी समस्याओं के बारे में विस्तार से बता दिया. उधर से बाबा त्यागी, जिस ने फोन उठाया था, भरोसा दिया कि उस की समस्या का समाधान तो हो जाएगा, लेकिन वह एक घंटे बाद दोबारा करे. बाबा त्यागी ने दोबारा बात करने के लिए दूसरा फोन नंबर दे दिया था.

इंदरजीत कौर ने एक घंटे बाद बाबा द्वारा दिए नंबर पर फोन किया तो उधर से बाबा त्यागी ने कहा, “बच्चा, हम ने अपनी गद्दी पर बैठ कर अपने ईष्ट से बात कर ली है, पता चला है कि तुम परेशानियों से घिरी पड़ी हो.”

“हां बाबा, आप बिलकुल सही कह रहे हैं.” इंदरजीत ने कहा.

“तुम्हारे ऊपर दुष्ट प्रेतात्माओं के साथ एक भयानक जिन्न कब्जा जमाए है, इसी वजह से तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती. बच्चा अगर तुम ने इन से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं किया तो तुम्हारे घर में जल्दी ही 3 मौतें और हो सकती हैं.” तांत्रिक ने कहा.

“मौतेंऽऽ,” इंदरजीत कौर ने घबरा कर पूछा, “किसकिस की?”

“तुम्हारे बड़े भाईभाभी और छोटे भाई की,” बाबा ने कहा, “अगर तुम इस कहर से बचना चाहती हो तो तुम्हें तुरंत पूजा करवानी होगी.”

“पूजा में कितना खर्च आएगा बाबा?”

“यही कोई 80-90 हजार रुपए.”

घर की परेशानियों से छुटकारा के लिए इंदरजीत तैयार हो गई. उस ने कहा, “ठीक है बाबा, मैं पूजा कराने को तैयार हूं. आप तैयारी कीजिए. बताइए, पैसे ले कर कहां आना है?”

“तुम्हें मेरे पास आने की कोई जरूरत नहीं है. मैं तुम्हें आईसीआईसीआई बैंक का एक एकाउंट नंबर बता रहा हूं. तुम उसी में पैसे जमा कर के मुझे फोन कर दो. इस के बाद मैं पूजा शुरू कर दूंगा.” कह कर तांत्रिक ने आईसीआईसीआई बैंक का एकाउंट नंबर मैसेज कर दिया.

अगले दिन यानी 7 सितंबर को इंदरजीत कौर ने आईसीआईसीआई बैंक के एकाउंट में 80 हजार रुपए जमा करा कर तांत्रिक को फोन कर दिया. तांत्रिक ने बताया था कि पूजा श्मशान में होगी और पूरे 3 दिनों तक चलेगी.

पैसे जमा कराए एक महीने से ज्यादा हो गया, लेकिन इंदरजीत कौर को कोई फायदा नजर नहीं आया. उस ने बाबा को फोन किया तो फोन बाबा के बजाय उन के किसी चेले ने उठाया. उस का नाम सुनील कुमार था. उस ने कहा, “अभी तो बाबा पूजा करने उज्जैन गए हैं, वहां से एक महीने बाद लौटेंगे.”

इंदरजीत कौर ने 2 बार फोन किया तो दोनों बार फोन सुनील ने ही रिसीव किया. उस ने दोनों बार वही बताया. इस के बाद उस ने जब भी फोन किया, फोन सुनील ने ही रिसीव किया. हर बार उस ने वही बहाना बना दिया.

आखिर एक दिन बाबा ने फोन रिसीव किया. उस ने कहा, “कहो बच्चा, कैसे हो?”

“बाबा, मैं जैसी पहले थी, वैसी ही अभी भी हूं. मुझे कोई फर्क नजर नहीं आया.” इंदरजीत ने कहा.

“मैं तुम्हें फोन करने वाला था,” बाबा ने कहा, “मुझे लगा था कि दुष्ट आत्माएं काबू में आ गई होंगी, लेकिन वे इतनी दुष्ट हैं कि उन्हें काबू करने के लिए हमें बड़ी पूजा करनी पड़ेगी. अगर यह पूजा न की गई तो तुम्हारे यहां होने वाली मौतों को रोका नहीं जा सकता.”

इंदरजीत कौर बुरी तरह घबरा गई. वह अपने घर को उजड़ता नहीं देखना चाहती थी, इसलिए उस ने पूछा, “बाबा, बड़ी पूजा में कितना खर्च आएगा?”

“यही कोई एक लाख 30 हजार रुपए.” बाबा ने कहा.

इंदरजीत कौर ने अगले दिन अपने भारतीय स्टेट बैंक के खाते से एक लाख 30 हजार रुपए निकाल कर श्री शिवसेना समिति धार्मिक संस्थान के खाते में जमा करा दिए.

एक सप्ताह बीत गया, लेकिन इंदरजीत कौर की एक भी समस्या का समाधान नहीं हुआ. उस ने बाबा को फोन किया तो फोन सुनील ने रिसीव किया. उस ने बताया कि बाबा अभी श्मशान में शव साधना कर रहे हैं.

एक दिन बाद बाबा त्यागी ने खुद इंदरजीत कौर को फोन कर के कहा, “मैं ने जो शव साधना की है, उस से दुष्ट आत्माएं तो हमारी गिरफ्त में आ गई हैं, लेकिन वह जिन्न अभी काबू में नहीं आया है. उस के लिए हमें एक विशेष तरह का अनुष्ठान करना होगा, जिस के लिए कामाख्या मंदिर से गुरुजी को बुलाना होगा. गुरुजी श्मशान में 11 दिनों तक अनुष्ठान करेंगे.”

“बाबा आप को जो भी करना है, जल्दी कीजिए. इस में कितना खर्च आएगा, यह बता दीजिए.”

“इस अनुष्ठान में करीब 3 लाख रुपए खर्च हो जाएंगे.” बाबा त्यागी ने कहा.

“मैं कल ही 3 लाख रुपए आप के खाते में जमा करा दूंगी.” उस ने कहा और अगले दिन 3 लाख रुपए बाबा के बैंक खाते में जमा करा दिए.

अब तक इंदरजीत पूजा के नाम पर करीब 9 लाख रुपए बाबा के बताए बैंक खाते में जमा करा चुकी थी. पैसे जमा कराने के अगले दिन ही बाबा त्यागी ने फोन कर के कहा, “बेटा गजब हो गया, जो गुरुजी श्मशान में अनुष्ठान कर रहे थे, उन पर जिन्न ने हमला कर दिया. वह मरणासन्न हालत में हैं. उन का इलाज नहीं कराया गया तो उन की मौत हो सकती है. अगर उन की मौत हो गई तो इस का पाप तुम्हें ही लगेगा.”

“इस के लिए मुझे क्या करना होगा बाबा?”

“गुरुजी के इलाज के लिए संजीवनी बूटी मंगानी होगी, जिस पर 2 लाख रुपए का खर्च आएगा.”

इंदरजीत कौर अब तक पूजा के नाम पर 12 लाख रुपए तांत्रिक बाबा त्यागी के खाते में जमा करा चुकी थी. लेकिन फायदा कुछ नहीं हुआ था, इसलिए उसे शक होने लगा था कि कहीं वह किसी ठग के जाल में तो नहीं फंस गई है. इसलिए उस ने 2 लाख रुपए जमा करा दिए.

इंदरजीत कौर का छोटा भाई अपना कोई कारोबार शुरू करना चाहता था. उसे 8 लाख रुपए की जरूरत थी. उसी बीच उस ने बहन से ये रुपए मांगे तो उस ने रुपए बाबा त्यागी के खाते में जमा कराने की बात बता कर पैसे देने से मना कर दिया.

बहन की बात सुन कर छोटा भाई हैरान रह गया. उस ने अपना सिर पीट कर कहा, “पढ़ीलिखी होने के बावजूद दीदी तुम उस ढोंगी के जाल में कैसे फंस गईं? कम से कम मुझे तो बता देतीं. 3 साल से बाबा तुम्हें ठग रहा है और तुम ने कभी मुझ से चर्चा तक नहीं की.”

“क्या करूं भाई, उस ने मुझे इतना डरा दिया था कि मैं किसी से कुछ कह नहीं सकी.” कह कर इंदरजीत रोने लगी तो भाई ने उसे समझाते हुए कहा, “दीदी, तुम्हें अब पुलिस के पास जा कर उस ठग के खिलाफ रिपोर्ट लिखानी होगी. 12 लाख रुपए भले ही वापस न मिलें, लेकिन कम से कम उसे अपने किए की सजा तो मिलेगी.”

छोटे भाई की बात इंदरजीत कौर की समझ में आ गई. 24 नवंबर की शाम वह भाई के साथ थाना लाजपतनगर पहुंची और वहां मौजूद थानाप्रभारी रमेश कुमार कक्कड़ को पूरी बात बताई. इस के बाद इंदरजीत कौर की तहरीर पर थानाप्रभारी ने भादंवि की धारा 420/384/506134 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा को पूरे वाकये से अवगत करा दिया.

एक पढ़ीलिखी महिला को जिस तरह से एक तांत्रिक ने ठगा था, उस से डीसीपी को लगा कि ढोंगी तांत्रिक बेहद शातिर है. उस तांत्रिक को गिरफ्तार करने के लिए उन्होंने एसीपी एस.के. केन के नेतृत्व में एक जांच टीम गठित कर दी, जिस में थानाप्रभारी रमेश कुमार कक्कड़, इंसपेक्टर मानवेंद्र सिंह, प्रवीण कुमार, एसआई अमित भाटी, हैडकांस्टेबल सुधाकर, कांस्टेबल नीरज, संतोष, सुधीर आदि को शामिल किया गया.

इंदरजीत कौर के पास बाबा त्यागी का केवल फोन नंबर था. रमेश कुमार कक्कड़ ने उस ठग तांत्रिक को इंदरजीत के माध्यम से ही घेरने की योजना बनाई. उन्होंने इंदरजीत से बाबा त्यागी को फोन कराया. बाबा ने फोन उठाया तो इंदरजीत ने कहा,

“बाबा, अभी तक मुझे कोई फायदा नहीं हुआ. आप कुछ ऐसा कीजिए कि हमारे सारे दुख मिट जाएं. मैं इस के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं.”

“कामाख्या मंदिर वाले गुरुजी ने अनुष्ठान पूरा करने के बाद मुझे बताया था कि जिन्न और आत्माएं काबू में आ गई हैं. लेकिन जब तक तुम्हारे पिता का पिंडदान रामेश्वरम में नहीं कराया जाता, तब तक समस्याएं बनी रहेंगी.”

“तो फिर आप यह भी करवा दीजिए.”

“इस के लिए 33 ब्राह्मïणों को यज्ञ के लिए रामेश्वरम ले जाना होगा. ब्राह्मïणों का किराया, यज्ञ आदि पर कुल 1 लाख 80 हजार रुपए का खर्च आएगा.”

“ठीक है, मैं कल ही यह रकम दे दूंगी. लेकिन इस बार रकम बैंक में जमा नहीं करा सकती. क्योंकि मैं जब भी वहां पैसे जमा कराने जाती हूं, बैंक वाले पूछते हैं कि तुम इतनी बड़ीबड़ी रकम इस खाते में क्यों जमा कराती हो?” इंदरजीत कौर ने कहा.

बाबा त्यागी ने यूनियन बैंक औफ इंडिया का खाता नंबर दे कर उस में पैसे जमा कराने को कहा. इंदरजीत कौर थानाप्रभारी के कहे अनुसार काम कर रही थी. उन्होंने पैसे जमा कराने से मना किया तो शाम को बाबा त्यागी को फोन कर के इंदरजीत ने कहा, “बाबा, मैं बैंक में पैसे जमा कराने गई थी, बैंक वाले कह रहे थे कि इस खाते में 25 हजार रुपए से ज्यादा जमा नहीं कराए जा सकते. इसलिए आप कल अपना कोई आदमी भेज दीजिए, मैं उसे पूरे पैसे दे दूंगी.”

“ठीक है, कल सुबह मेरा आदमी तुम्हारे घर पहुंच जाएगा. तुम अपना पता मैसेज कर दो. लेकिन वह जिस टैक्सी से जाएगा, उस का किराया तुम्हें ही देना होगा.” बाबा त्यागी ने कहा.

“यही ठीक रहेगा. आप उन्हें भेज दीजिए. मैं उन्हें किराए के पैसे भी दे दूंगी.” कह कर इंदरजीत कौर ने फोन काट दिया.

25 नवंबर की सुबह थानाप्रभारी टीम के साथ आम कपड़ों में इंदरजीत कौर के घर के आसपास लग गए. सुबह 9 बजे के करीब एक टैक्सी इंदरजीत कौर के घर के सामने आ कर रुकी. टैक्सी से एक लडक़ा उतरा और इंदरजीत कौर के घर की डोरबैल बजा दी. इंदरजीत कौर ने दरवाजा खोला. युवक ने अपना नाम सुनील कुमार बताया.

इंदरजीत कौर उसे ड्राइंगरूम में ले आई. थानाप्रभारी अंदर ही बैठे थे. इंदरजीत ने उसे पानी पिलाया तो उस ने कहा, “मैडम, पैसे जल्दी दे दीजिए. बाबा ने मुझे जल्दी बुलाया है. अभी हमें पूजा का सामान वगैरह भी खरीदना है.”

इंदरजीत कौर ने अपने पर्स से थानाप्रभारी के हस्ताक्षर किए 5 हजार रुपए निकाल कर सुनील को देते हुए कहा, “पहले तुम टैक्सी के किराए के पैसे ले लो, बाकी के पैसे अभी दे रही हूं.”

पैसे गिन कर जैसे ही सुनील ने अपनी जेब में रखे, थानाप्रभारी ने उसे पकड़ लिया. इशारा करने पर मकान के बाहर मौजूद पुलिसकर्मी भी अंदर आ गए. सुनील को पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

थाने में हुई पूछताछ में सुनील कुमार ने जो बताया, उस के बाद पुलिस ने उसी दिन उत्तर प्रदेश के महानगर गाजियाबाद की कालोनी राजनगर स्थित एक मकान में छापा मारा. वहां का नजारा देख कर पुलिस हैरान रह गई. वहां इस तरह के लोगों को फंसाने के लिए एक काल सेंटर चल रहा था. अलगअलग 12 केबिन बने थे, जिन में 5 लडक़े और 7 लड़कियां बैठी थीं.

पुलिस को देख कर सभी के होश उड़ गए. उन्हीं के बीच एक भव्य औफिस बना था, जिस में शेष नारायण दुबे और पवन कुमार पांडेय नाम के 2 लोग बैठे थे. सुनील की निशानदेही पर पुलिस ने उन दोनों को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा काल सेंटर में काम करने वाले लडक़ेलड़कियों को भी पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

थाने में हुई पूछताछ में पता चला कि ठगी का यह सारा मायाजाल शेष नारायण दुबे उर्फ बाबा त्यागी का रचा था.

32 वर्षीय शेष नारायण दुबे गाजियाबाद की इंदिरापुरम कालोनी में रहने वाले रामबहादुर दुबे का बेटा था. रामबहादुर पंडिताई करते थे. पिता की देखादेखी शेष नारायण कोई ऐसा काम करना चाहता था, जिस में कम खर्च में अच्छी आमदनी हो.

उस ने अपने करीबी रिश्तेदार पवन कुमार पांडेय और सुनील कुमार से बात की तो उन्होंने तंत्रमंत्र के नाम पर ठगी का कारोबार करने की सलाह दी. इस के बाद शेषनारायण को बाबा त्यागी बना कर कारोबार शुरू भी कर दिया गया. इन्होंने शहर के राजनगर में एक कमरा किराए पर लिया, जिस में उन्होंने दरजन भर कंप्यूटर लगा कर लड़कियों व लडक़ों को नौकरी पर रख लिया.

इस के बाद मोबाइल कंपनी से हजारों ग्राहकों के फोन नंबर और पते हासिल किए. उन में से रोजाना कुछ नंबरों पर कालसेंटर द्वारा समस्याओं के समाधान के मैसेज भेजे जाने लगे. हर कोई किसी न किसी समस्या से ग्रस्त होता ही है, इसलिए अंधविश्वासी लोग मैसेज में दिए फोन नंबर पर समस्या के समाधान के लिए फोन करने लगे. ये लोग उन्हें परिवार के सदस्यों की मौत का भय दिखा कर बैंक खाते में मोटी रकम जमा करवाने लगे.

दिल्ली के लाजपतनगर के नेहरूनगर की रहने वाली इंदरजीत कौर को भी इन्होंने उस के भाइयों व भाभी की मौत का भय दिखा कर 12 लाख रुपए ठग लिए थे. पूछताछ में पता चला कि ये लोग अब तक करीब 3 सौ लोगों को इसी तरह ठग चुके हैं.

इन के कालसेंटर पर नौकरी करने वाले लडक़ेलड़कियों को पुलिस ने हिदायत दे कर छोड़ दिया. शेष नारायण दुबे उर्फ बाबा त्यागी, पवन कुमार पांडेय और सुनील कुमार को 26 नवंबर को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया है.

पुलिस ने इन के कालसेंटर को सील कर दिया है. कथा लिखे जाने तक इन में से किसी की भी जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ट्यूटर ही निकला अपहर्ता

उत्तराखंड के शहर जसपुर की नई बस्ती कालोनी में रहने वाले इकरामुल हक एक एनजीओ में मैनेजर थे, जिस की वजह से उन की समाज में अच्छी पकड़ थी. समाज के लोग भी उन का काफी सम्मान करते थे. लेकिन 21 नवंबर को उन के परिवार में एक ऐसी घटना घटी कि वही नहीं, उन के घर तथा मोहल्ले वाले भी परेशान हो उठे.

दरअसल, हुआ यह कि उस दिन इकरामुल हक का 11 साल का बेटा रिहानुल हक उर्फ रिहान अचानक अपने घर के मुख्य दरवाजे के पास खेलतेखेलते गायब हो गया था. घर वालों ने उसे गली में इधरउधर देखा, लेकिन वह दिखाई नहीं दिया. दरवाजे के सामने खेलतेखेलते वह कहां गायब हो गया, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी.

रिहानुल हक के गायब होने की जानकारी मोहल्ले वालों को हुई तो वे भी उसे ढंूढऩे में मदद करने लगे. सभी ने मोहल्ले की गलीगली छान मारी, पर बच्चे का पता नहीं चला. इकरामुल हक उस समय नजीबाबाद स्थित संस्था के औफिस में थे. बेटे के लापता होने की जानकारी उन्हें मिली तो वह तुरंत घर के लिए चल पड़े. घर पहुंचने तक शाम हो चुकी थी. उन की पत्नी और घर के अन्य लोग चिंता में बैठे थे.

इकरामुल हक ने अपने सभी रिश्तेदारों को फोन कर के बेटे के बारे में पूछा, पर कहीं से भी उस के बारे में कुछ पता नहीं चला. देर रात तक उन्होंने बेटे को संभावित जगहों पर तलाशा, पर कोई नतीजा नहीं निकला. पूरी रात घर के लोग परेशान होते रहे. सुबह होते ही इकरामुल हक रिश्तेदारों और मोहल्ले के कुछ लोगों के साथ शहर की कोतवाली पहुंचे. थानाप्रभारी डी.आर. आर्य को बच्चे के रहस्यमय ढंग से गायब होने की बात बता कर उस के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराने की मांग की.

बच्चे को गायब हुए 20 घंटे से ज्यादा हो चुके थे, इसलिए डी.आर. आर्य ने अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज कर लिया. उन्होंने इस मामले की जानकारी एसएसपी केवल खुराना को दी तो उन्होंने इस संवेदनशील मामले को सुलझाने के लिए 4 टीमें बनाईं.

पहली टीम में थानाप्रभारी डी.आर. आर्य के नेतृत्व में एसआई योगेंद्र कुमार, मदन सिंह विवट, कांस्टेबल मोहम्मद आसिफ को शामिल किया गया. दूसरी टीम काशीपुर के थानाप्रभारी वी.के. जेठा के नेतृत्व में और तीसरी टीम परतापपुर के चौकीइंचार्ज जसवीर सिंह चौहान के नेतृत्व में बनाई गई.

चौथी टीम में एसओजी के तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को भी शामिल किया गया. चारों टीमों का नेतृत्व सीओ (काशीपुर) जी.सी. टम्टा कर रहे थे. एसएसपी ने पूरे केस की कमान एएसपी कमलेश उपाध्याय के हाथों सौंपी थी.

चारों पुलिस टीमें अलगअलग एंगल से इस मामले में लग गईं. चूंकि इकरामुल हक सम्मानित आदमी थे, इसलिए पुलिस को पूरी संभावना थी कि बच्चे का अपहरण फिरौती के लिए किया गया है. इस संभावना को देखते हुए पुलिस ने इकरामुल हक से कह दिया था कि अगर उन के पास किसी का फिरौती के लिए फोन आता है तो उन्हें किस तरह बात करनी है.

इकरामुल हक ने पुलिस को बताया था कि उन की किसी से कोई रंजिश नहीं है. इस के बावजूद पुलिस मोहल्ले में और जहां वह नौकरी करते थे, वहां के लोगों से पूछताछ की. रिहान को गायब हुए कई दिन बीत गए, पर पुलिस को उस के बारे में कोई सुराग नहीं मिला, इस से घर वालों की चिंता बढ़ती जा रही थी.

पुलिस रिहान की खोज में लगी थी, तभी जसपुर से एक और बच्चा गायब हो गया. उस बच्चे के गायब होने के बाद शहर में यह अफवाह फैल गई कि शहर में बच्चे उठाने वाला गैंग सक्रिय है. इस के बाद लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया. उन का पुलिस से भी विश्वास उठने लगा.

पुलिस ने भी अपनी जांच बच्चा चोरी करने वाले गैंग की ओर मोड़ दी. बिजनौर, धामपुर, नजीबाबाद तक छानबीन की गई, लेकिन बच्चे का कुछ पता नहीं चला. आगे की जांच में पुलिस ने इकरामुल हक के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाली. फुटेज में रिहान घर से निकलते हुए खुश दिखाई दे रहा था. उस के साथ उसे ट्यूशन पढ़ाने वाला रवि कुमार भी था.

पुलिस ने पूछताछ के लिए रवि कुमार को थाने बुला लिया. उस से भी पूछताछ की गई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस ने उसे दोबारा पूछताछ के लिए बुलाया तो उस ने पुलिस को आत्महत्या की धमकी दे दी.

काफी खोजबीन के बाद भी जब रिहान का कहीं कुछ पता नहीं चला तो 28 नवंबर को जसपुर वालों ने एएसपी कमलेश उपाध्याय का घेराव किया, साथ ही रिहान के जल्दी न मिलने पर आंदोलन करने की चेतावनी दी. इस चेतावनी के बाद एसओजी टीम ने जसपुर में डेरा डाल दिया. पुलिस अभी बच्चे की खोज में इधरउधर हाथपांव मार ही रही थी कि उसी बीच 21 दिसंबर को रिहान के पिता को फिरौती का एक पत्र मिला. फिरौती के उस पत्र ने जांच की दिशा मोड़ दी.

पत्र में लिखा था, ‘बधाई हो आप का बेटा मिल गया. वह अभी जिंदा है. वह बारबार आप को याद कर रहा है. आप उसे सहीसलामत वापस पाना चाहते हैं तो दोपहर 12 बजे जसपुर से हरिद्वार को जाने वाली रोडवेज बस में एक बैग में 6 लाख रुपए रख दीजिए. जैसे हमें 6 लाख रुपए मिल जाएंगे, आप का बच्चा आप को सहीसलामत मिल जाएगा. अगर आप ने भूल से भी इस बात का जिक्र पुलिस से किया तो अपने बच्चे की मौत के आप खुद जिम्मेदार होंगे. इस पत्र को गंभीरता से लेना, क्योंकि आप के बच्चे की जिंदगी का सवाल है.’

इकरामुल हक नहीं चाहते थे कि उन के इकलौते बेटे की जिंदगी पर कोई आंच आए, इसलिए उन्होंने फिरौती के पत्र के बारे में पुलिस को कुछ नहीं बताया. उन्होंने एक बैग में 6 लाख रुपए भर कर अपने एक निजी संबंधी इकराम को दे दिए. इकराम वह पैसे ले कर दोपहर 12 बजे हरिद्वार जाने वाली परिवहन निगम की एक बस में बैठ गया.

हरिद्वार डिपो में पहुंचते ही इकराम नोटों से भरा बैग सीट पर छोड़ कर नीचे उतर गया. काफी देर बाद भी जब कोई उस बैग को लेने नहीं आया तो इकराम ने इकरामुल हक को फोन कर के पूछा कि अब वह क्या करे? जब पैसे लेने कोई नहीं आया तो इकरामुल हक ने पैसे ले कर उसे घर आने को दिया. इकराम वह बैग ले कर घर लौट आया.

उधर पुलिस के शक की सुई बारबार रिहान को ट्यूशन पढ़ाने वाले रवि कुमार पर जा रही थी. लेकिन रिहान के घर वालों को रवि पर इतना विश्वास था कि वे पुलिस से यही कह रहे थे कि वह रवि को परेशान न करे. इस के बाद पुलिस ने रवि के बारे में खुफिया जानकारी इकट्ठी करनी शुरू कर दी. पुलिस को पता चला कि जिस दिन से रिहान लापता हुआ था, रवि का उसी दिन से मोबाइल बंद था. रिहान को रवि से बेहद लगाव था. लेकिन उस के लापता होने के कई दिनों बाद भी रवि रिहान के बारे में पूछने उस के घर नहीं गया.

रवि को जब लगने लगा कि पुलिस उस के पीछे पड़ी हुई है तो वह जसपुर छोड़ कर धामपुर चला गया. इकरामुल हक के घर से कुछ दूरी पर किसी के घर के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. पुलिस ने उस कैमरे की फुटेज देखी तो उस में काले रंग की एक स्कूटी, जिस का नंबर यूपी 020 एएल 9540 था, नजर आई. उस पर 2 लोग सवार थे. रिहान उन दोनों के बीच बैठा था.

पुलिस ने वह वीडियो रिहान के घर वालों को दिखाई तो उन्होंने रिहान के आगेपीछे बैठे दोनों लोगों की पहचान रिहान के टीचर रवि कुमार और उस के मौसेरे भाई उमेश के रूप में की. उमेश जसपुर के छिपियान मोहल्ले में रहता था. इस फुटेज को देखने के बाद पुलिस को पूरा विश्वास हो गया कि रिहान के अपहरण में रवि का ही हाथ है. इस के बाद रिहान के घर वालों को भी रवि कुमार पर शक हो गया था.

पुलिस रवि की तलाश करने लगी तो पता चला कि वह धामपुर में किसी कोचिंग सेंटर में पढ़ा रहा है. इस के बाद पुलिस ने कांस्टेबल आसिफ और रिहान के मामा सरफराज को उस के पीछे लगा दिया. दोनों ही धामपुर के उस कोचिंग सेंटर पहुंच गए, जहां रवि पढ़ाता था. वह कोचिंग सेंटर किसी अनिल कुमार का था.

रहस्य खुलवाने के लिए आसिफ और सरफराज ने स्टूडेंट बन कर उस कोचिंग सेंटर में 2 दिनों की डैमो क्लास अटैंड करने का फैसला लिया. कांस्टेबल आसिफ ने क्लास अटैंड करने के बाद पहले दिन ही रवि कुमार से दोस्ती गांठ ली. 2 दिनों में ही वह उस से इतना घुलमिल गया कि आसिफ ने उस के पेट की सारी हकीकत निकाल ली.

रवि आसिफ और सरफराज के बारे में नहीं जानता था. वह परेशान नजर आ रहा था, इसी का फायदा दोनों ने उठाया था. कांस्टेबल आसिफ ने सारी बातें थानाप्रभारी डी.आर. आर्य को बता दीं. इस के बाद पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. उस की निशानदेही पर उस के मौसेरे भाई उमेश को भी पुलिस ने पकड़ लिया.

दोनों से रिहान के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि रिहान का अपहरण उन्होंने ही किया था और अब वह इस दुनिया में नहीं है. उन दोनों से उस की लाश के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उस की लाश आजमगढ़ के जंगल में है.

रात में ही उन दोनों को ले कर पुलिस आजमगढ़ पहुंची. उस घने जंगल में रवि और उमेश वह जगह भूल गए, जहां उन्होंने रिहान की लाश छिपाई थी. वह पुलिस को जंगल में घुमाते रहे. सर्च लाइट में कई घंटों की कड़ी मशक्कत के बाद आखिर एक जगह रिहान के कपड़े मिल गए. जहां पर कपड़े मिले थे उस जगह पर पहुंच कर रवि और उमेश को जगह याद आ गई.

वे पुलिस को जंगल में एक ऐसी जगह ले गए, जहां जमीन में एक बड़ी बिल बनी थी. उसी बिल में ही उन्होंने रिहान की लाश छिपाई थी. पुलिस ने उस बिल की खुदाई कराई तो उस में से एक कंकाल बरामद हुआ. वह कंकाल रिहान का ही हो सकता था. डेढ़ महीने में उस के शरीर को जंगली जानवर खा गए होंगे.

29 दिसंबर की सुबह पुलिस ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई कर के कंकाल और उस के कपड़ों को अपने कब्जे में ले लिया. इस के बाद दोनों अभियुक्तों को ले कर जसपुर लौट आई. रेहान के घर वालों को उस की हत्या का पता चला तो घर में कोहराम मच गया.

पुलिस द्वारा दोनों अभियुक्तों से की गई पूछताछ में रिहान के अपहरण और हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

रवि उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के कस्बा नजीबाबाद निवासी गजराम का बेटा था. गजराम सरकारी स्कूल में अध्यापक थे. उन के 4 बच्चों में रवि सब से छोटा था. रवि ने बिजनौर के वर्धमान डिग्री कालेज से बीएससी की थी. इस के बाद वह नौकरी के लिए तैयारी करने लगा था. काफी कोशिश के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली तो वह अप्रैल से जसपुर के एक निजी स्कूल में पढ़ाने लगा. खाली समय में वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ा दिया करता था.

रवि कोई ऐसा काम करना चाहता था, जिस से उसे अच्छी कमाई हो. वह सोचता था कि अगर वह अपना कोचिंग सैंटर खोल ले तो उस से उसे अच्छी कमाई हो सकती है. लेकिन कोचिंग सेंटर खोलने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. पैसे कहां से आएं, इस के लिए वह अपने दिमागी घोड़े दौड़ाने लगा.

उस के दिमाग में आया कि अगर वह किसी बच्चे का अपहरण कर के मोटी फिरौती ले कर अपना कोचिंग सेंटर खोल सकता है. उसे यह उपाय तो सही लगा, लेकिन पकड़े जाने के डर की वजह से वह किसी बच्चे के अपहरण का साहस नहीं कर पा रहा था. उस ने जब भी हिम्मत की, हर बार हिम्मत जवाब दे गई.

इस बारे में उस ने अपने मौसेरे भाई उमेश से सलाह की. उमेश जसपुर के मोहल्ला छिपियान में रहता था. उस के पिता राकेश कुमार का कुछ साल पहले निधन हो चुका था. उस के बाद उस के यहां आर्थिक समस्या खड़ी हो गई थी. उस की मां घर का खर्च चलाने के लिए कुछ लोगों के घरों में काम करती थी.

उमेश थोड़ा बड़ा हुआ तो काशीपुर में एक कलर लैब में नौकरी करने लगा. परिवार की सीमित आमदनी थी, जिस से उस के शौक पूरे नहीं हो पाते थे. यही वजह थी कि जब रवि ने उस से किसी बच्चे के अपहरण के बारे में सलाह मांगी तो वह खुद यह काम करने के लिए तैयार हो गया.

बिना मेहनत के अमीर बनने की बात आई तो वे सोचने लगे कि किस बच्चे को निशाना बनाया जाए. जिस के अपहरण से उन्हें मोटी रकम मिल जाए. उसी बीच रवि की निगाहों में रिहानुल हक उर्फ रिहान चढ़ गया. वह रिहान को ट्यूशन पढ़ाता ही था. उस के घर में उस की अच्छी पैठ भी थी. एक तरह से रिहान के घर वाले उसे अपने घर का सदस्य मानते थे. रवि उसे उसी के घर में ट्यूशन पढ़ाने के बाद अपने साथ स्कूल भी ले जाता था.

इसी वजह से उसे लगा कि रिहान का अपहरण करने से उस के घर वाले व अन्य लोग उस पर शक नहीं करेंगे. इस के बाद उस ने उमेश से बात की. रिहान के पिता अच्छी हैसियत वाले थे, इसलिए फिरौती में उन से मोटी रकम मिल सकती थी. वह उन का एकलौता बेटा था. योजना बनाने के बाद दोनों मौके की तलाश में लग गए.

21 नवंबर को रवि और उमेश ने रिहान के अपहरण की योजना बनाई और स्कूटी ले कर उस के घर की ओर चल पड़े. रिहान अपने दरवाजे पर खड़ा था. उन्हें देखते ही वह उन के पास आ गया. रवि ने उसे स्कूटी पर बैठा लिया. उस के बैठते ही वे तुरंत वहां से निकल गए. रिहान ने उन से पूछा कि वे कहां जा रहे हैं तो रवि ने कह दिया कि वे घूमने जा रहे हैं.

बच्चों को घूमना अच्छा लगता है. इसलिए जब वह पतरामपुर वाली रोड से होते हुए जंगल की तरफ चले तो जंगल देख कर रिहान खुश हो गया. उस समय वह अपने घर वालों को भूल गया. रिहान को घुमातेफिराते उस से बातें करते वे शहर से 20 किलोमीटर दूर कालू सिद्ध की मजार से आगे अमानगढ़ के जंगल में पहुंच गए. यह जंगल जिला बिजनौर में पड़ता है. रवि और उमेश रिहान को नदी तक स्कूटी से ले गए. इस के बाद नदी पार कर के जंगल में चले गए.

जंगल में रिहान डरने लगा. वह रोने लगा तो रवि ने उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन वह चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था. वह जोरजोर से रोनेचिल्लाने लगा तो कहीं कोई उस के रोनेचिल्लाने की आवाज सुन न ले, रवि और उमेश डर गए. उन्होंने उस के मुंह पर कपड़ा बांध दिया. वह कहीं भाग न जाए, इस के लिए उन्होंने उसे एक पेड़ से बांध दिया. इस के बाद वहीं बैठ कर आगे की योजना बनाने लगे.

उसी बीच दम घुटने से रिहान की मौत हो गई. उस के मरने से दोनों बुरी तरह घबरा गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वे क्या करें. फिरौती मांगने वाली बात उन के दिमाग से उड़ गई. उन्होंने जल्दी से उस के कपड़े उतारे और उसे वहीं किसी जानवर की बिल में डाल दिया. वहां से कुछ दूरी पर उस के कपड़े फेंक दिए.

रिहान को ठिकाने लगाने के बाद रवि ने 6 लाख की फिरौती के लिए इकरामुल हक के पते पर एक पत्र भेजा. उन्होंने फिरौती की रकम एक बैग में रख कर जसपुर से हरिद्वार को दोपहर 12 बजे जाने वाली बस में रखने को कहा. वह बस हरिद्वार करीब 4 बजे पहुंचती थी. इसलिए निर्धारित समय पर वह हरिद्वार के बसअड्डे पर खड़े हो कर जसपुर से आने वाली बस का इंतजार करने लगे.

वह बस हरिद्वार बसअड्डे पर पहुंची तो उन्होंने देखा कि उस में से एक आदमी नहीं उतरा था. रवि को लगा कि शायद वह पुलिस वाला है, इसलिए बैग लेने के लिए वह बस में नहीं घुसा और उमेश को ले कर वहां से चला गया.

जब लोगों को पता चला कि रिहान की हत्या किसी और ने नहीं, उस के टीचर ने की है तो लोग हैरान रह गए. गांवसमाज के ही नहीं, राजनैतिक लोग भी सांत्वना देने इकरामुल हक के यहां आने लगे. जिस स्कूल में रिहान पढ़ता था, उस स्कूल की प्रधानाचार्य मीनाक्षी चौहान भी शोक प्रकट करने आईं. शहर के अन्य स्कूलों के बच्चों ने कैंडिल मार्च निकाला.

कुमाऊं रेंज के डीआईजी ने मामले का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को 5 हजार रुपए तो एसएसपी केवल खुराना ने ढाई हजार रुपए का पुरस्कार दिया है. इस के अलावा एसएसपी ने कांस्टेबल मोहम्मद आसिफ को 1000 रुपए का नकद पुरस्कार दे कर उस के कार्य की सराहना की.

पूछताछ के बाद दोनों अभियुक्तों को पुलिस ने भादंवि की धारा 364ए/302/201 के तहत गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस ने शव के अवशेष को फोरेंसिक जांच व डीएनए जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया है. इस केस की जांच एसएसआई एस.सी. जोशी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दोस्ती में विश्वास की हत्या

दीपक कई दिनों से घरवालों से पहले की तरह ज्यादा बात नहीं कर रहा था. इस बात को उस की मां राजबाला अच्छे से समझ रही थीं. उन्होंने उस से कई बार  परेशानी की वजह जाननी भी चाही लेकिन वह कोई न कोई बहाना बना कर मां की बात टाल जाता था.

एक दिन दोपहर के समय दीपक घर लौटा तो राजबाला ने उस से बड़े प्यार से कहा, ‘‘क्या बात है बेटा, मैं कई दिनों से देख रही हूं कि आजकल तू किसी से ज्यादा बात भी नहीं करता और खोयाखोया सा रहता है.’’

‘‘नहीं मां, कोई खास बात नहीं है.’’ दीपक ने टालने वाले अंदाज में कहा. फिर वह विषय को बदलते हुए बोला, ‘‘मां मुझे तेज भूख लगी है. खाना लगा दो.’’

राजबाला ने भी सोचा कि जब यह खाना खा लेगा उस के बाद परेशानी की वजह बूझेगी. बेटे को खाना लाने के लिए रसोई में चली गईं और खाना परोस कर उसे दे दिया. दीपक ने खाना खाना अभी शुरू ही किया था कि उस के मोबाइल की घंटी बजी. दीपक ने मोबाइल स्क्रीन पर देखा तो वह नंबर उसे अनजाना लगा. इसलिए काल रिसीव करने के बजाय काट दी.

उस ने एकदो निवाले ही खाए थे कि फोन की घंटी फिर बजी. फोन उसी नंबर से था जिस से कुछ पल पहले आया था. दीपक झुंझला रहा था कि पता नहीं कौन है, जो ठीक से खाना भी नहीं खाने दे रहा. झुंझलाहट में उस ने काल रिसीव की.

दूसरी ओर से न मालूम किस की आवाज आई कि उसे सुनने के बाद उस का गुस्सा उड़न छू हो गया और बोला, ठीक है, मैं थोड़ी देर बाद पहुुंचता हूं.’’ कह कर फोन काट दिया.

उस समय राजबाला वहीं बैठी थीं. उन्होंने बेटे से मालूम भी किया कि किस का फोन था लेकिन दीपक ने नहीं बताया. फोन पर बात करने के बाद दीपक ने फटाफट खाना खाया और घर से बाहर की ओर निकल गया.

‘‘तू, मेरा मोबाइल लाने वाला था, क्या हुआ?’’ जाते समय मां ने पीछे से आवाज लगाई.

‘‘मम्मी, मुझे ध्यान है. आज वो भी ले लूंगा. पैसे मेरे पास ही हैं.’’ कह कर दीपक चला गया. यह बात 11 फरवरी की है.

दोपहर को घर से निकला दीपक जब देर शाम तक घर नहीं लौटा, तो राजबाला को चिंता हुई. उन्होंने उस का फोन मिलाया तो वह भी बंद आ रहा था, उन का बड़ा बेटा नितिन उस समय अपने काम पर गया हुआ था. राजबाला ने फोन कर के सारी बात नितिन को बता दी.

कुछ देर बाद वह भी घर आ गया. घर पहुंच कर नितिन ने सभी संभावित जगहों पर दीपक की तलाश की, लेकिन देर रात तक भी कोई नतीजा सामने नहीं आया. जवान बेटे के गायब हो जाने पर घर के सभी लोग परेशान थे. पिता जसवंत अग्रवाल थाना मुरादनगर पहुंचे और थानाप्रभारी को 25 वर्षीय बेटे दीपक अग्रवाल के गायब होने की जानकारी दी.

पुलिस ने भी सोचा कि दीपक कोई नासमझ तो है नहीं जो कहीं खो जाएगा. यारदोस्तों के साथ कहीं चला गया होगा और 2-4 दिन में घूमघाम कर लौट आएगा. यही सोच कर पुलिस ने उस की गुमशुदगी को गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन दीपक के मांबाप के दिलों पर क्या गुजर रही थी. इस बात को केवल वे ही महसूस कर रहे थे. बेटे की चिंता में एकएक दिन बड़ी मुश्किल से गुजर रहा था.

जसवंत अग्रवाल थाने के चक्कर लगातेलगाते परेशान हो रहे थे मगर पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी थी. इस के 3 दिन बाद 14 फरवरी को मुरादनगर पुलिस को सूचना मिली कि एनटीपीसी के जंगलों के पास खुर्रमपुर गांव के रहने वाले टीटू के गन्ने के खेत में एक लाश पड़ी है. यह इलाका थाना मुरादनगर क्षेत्र में ही आता है इसलिए खबर मिलते ही थानाप्रभारी अवधेश प्रसाद उस जगह पर पहुंच गए जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी.

उन्होंने देखा कि खेत में 25-30 साल के युवक की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. जितनी तादाद में वहां खून फैल कर जम चुका था, उस से लग रहा था कि उस की हत्या वहीं पर की होगी. उस के गले पर गोली का निशान दिख रहा था.

निरीक्षण में पता चला कि हत्यारों ने उस की पहचान मिटाने के लिए उस के चेहरे और लिंग को जला दिया था. इस से ऐसा लगा कि मारने वालों को उस से गहरी खुन्नस रही होगी. लाश विकृत अवस्था में थी, थानाप्रभारी ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

चूंकि मामला मर्डर का था इसलिए थानाप्रभारी ने जिले के आलाअधिकारियों को भी यह सूचना दे दी, तो जिले से एसएसपी और एसपी (आरए) भी घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश और घटनास्थल का मुआयना करने के बाद उन्होंने वहां मौजूद लोगों से बात की और थानाप्रभारी को कुछ निर्देश दे कर चले आए. थानाप्रभारी अवधेश प्रसाद ने लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए गाजियाबाद में हिंडन स्थित मोर्चरी भेज दिया.

हत्या के इस मामले की जांच थाना प्रभारी अवधेश प्रसाद ने शुरू कर दी. थानाप्रभारी के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि लाश की शिनाख्त न होने की वजह से उन्हें ऐसा कोई क्लू नहीं मिल पा रहा था, जिस से जांच आगे बढ़ सके. फिर उन्होंने इस काम में मुखबिरों को भी लगा दिया. इस से पहले कि उन्हें अज्ञात लाश के बारे में कहीं से कोई क्लू मिलता उन का वहां से तबादला हो गया.

इधर जसवंत अग्रवाल अपने लापता बेटे का पता लगवाने के लिए थाने के चक्कर लगाते रहे. पुलिस ने टीटू के गन्ने के खेत से जिस अज्ञात युवक की लाश बरामद की थी उस के बारे में भी जसवंत को कुछ नहीं बताया. जबकि अज्ञात लाश का हुलिया जसवंत के गायब बेटे दीपक से मिलताजुलता था.

जसवंत अग्रवाल ने भी हिम्मत नहीं हारी. उस ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सामने अपना दुखड़ा रोया. इस का नतीजा यह निकला कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के आदेश पर मुरादनगर के नए थानाप्रभारी ने 19 फरवरी को दीपक की गुमशुदगी के मामले को भांदंवि की धारा 364 के तहत दर्ज कर लिया और इस मामले की जांच के लिए एक पुलिस टीम बनाई गई. टीम में एसआई राजेश शर्मा, कांस्टेबल पुष्पेंद्र, कुंवर पाल, अवश्री आदि को शामिल किया गया.

सबइंस्पेक्टर राजेश शर्मा ने सब से पहले दीपक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि दीपक के मोबाइल पर आखिरी काल जिस नंबर से आई थी, वह नंबर एक पीसीओ का था. पुलिस ने उस पीसीओ के मालिक का पता लगा कर उसे पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया.

उस से पूछा गया कि 11 फरवरी को दोपहर के समय उस के यहां से किस ने काल की थी. उस के पीसीओ पर रोजाना तमाम लोग काल करने आते हैं. उन में से कुछ परिचित होते हैं, कुछ अपरिचित. अब 8-10 दिन पहले दोपहर को किनकिन लोगों ने बात की. उस के लिए यह बताना आसान नहीं था. उस से पूछताछ में कोई सफलता नहीं मिली तो पुलिस ने उसे घर भेज दिया.

पुलिस को गन्ने के खेत से मिली लाश के बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. हत्या के इस केस की तरह पुलिस टीम को दीपक के अपहरण के बारे में भी कोई सुराग न मिला तो पुलिस ने इस मामले को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया. थाने के चक्कर लगातेलगाते जसवंत भी थकहार गए.

7-8 महीने बीत गए पुलिस न तो उस अज्ञात लाश की ही शिनाख्त करा पाई और न ही दीपक के बारे में पता लगा पाई. इसी दौरान नए थानाप्रभारी रामप्रकाश शर्मा से जसवंत अग्रवाल ने मुलाकात की और बेटे का पता लगाने की अपील की.

थानाप्रभारी दीपक ने फोन की काल डिटेल्स का अध्ययन किया. जांच करने पर उन्हें यह पता चला कि दीपक की दोस्ती मोहित शर्मा नाम के एक युवक से थी. वह कृष्णा कालोनी में रहता था. वह एक अपराधी किस्म का व्यक्ति था. उस से खिलाफ थाना मुरादनगर में ही हत्या और आर्म्स एक्ट के तहत 2 मुकदमे दर्ज थे. जबकि दीपक एक शरीफ लड़का था.

अब थानाप्रभारी के दिमाग में यह बात घूम गई कि एक अपराधी के साथ दीपक का क्या रिश्ता हो सकता है? उन्हें लग रहा था कि तफ्तीश अब कुछ आगे बढ़ सकती है. उन्होंने मोहित शर्मा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

इस का अध्ययन करने पर पता चला कि मोहित 2 और फोन नंबरों पर ज्यादा बातें करता था. जिन नंबरों पर उस की ज्यादा बातें होती थीं. जांच में वह शशि और लक्ष्मण नाम के शख्स के पाए गए, जोकि मुरादनगर में ही रहते थे. उन दोनों के खिलाफ भी थाना मुरादनगर में कई मुकदमे दर्ज थे.

पुलिस ने मोहित शर्मा, शशि और लक्ष्मण को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. तीनों से दीपक के बारे में मालूमात की तो उन्होंने दीपक के बारे मे अनभिज्ञता जताई. जिस दिन मोहित गायब हुआ था उस दिन की इन तीनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन जांची तो वह कहीं और की पाई गईं. इस से पुलिस को वे बेकुसूर लगे. उन के खिलाफ कोई सुबूत न मिला तो पुलिस ने तीनों को छोड़ दिया.

थानाप्रभारी ने दीपक के फोन की काल डिटेल्स का फिर से अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि जिन नंबरों पर दीपक की अकसर बात होती थी उन में से एक नंबर दीपक के गुम होने के बाद से लगातार बंद आ रहा था. अब पुलिस ने यह पता लगाने की कोशिश की कि जिस फोन में वह नंबर चल रहा था. उस में अब कौन सा नंबर चल रहा है.

फोन के आईएमईआई नंबर के सहारे थानाप्रभारी को इस काम में सफलता मिल गई. उस फोन में जो नंबर चल रहा था वह कनक नाम की एक लड़की की आईडी पर लिया गया था. पुलिस ने कनक को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया.पू छताछ में पता चला कि वह दीपक की दोस्त है लेकिन उस ने दीपक के बारे में कोई भी जानकारी होने से इंकार कर दिया. जब सिम बदलने की वजह पूछी तो वह कोई उचित जवाब ना दे सकी और घबराहट में इधरउधर देखने लगी.

थानाप्रभारी को लगा कि दाल में जरूर कुछ काला है, इसलिए उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह अधिक देर ना टिक सकी और बोली कि दीपक अब इस दुनिया में नहीं है. उस के दोस्तों मोहित, लक्ष्मण और शशि ने उस की हत्या कर दी है.

कनक ने जिन लोगों के नाम बताए थे पुलिस ने उन के ठिकानों पर दविशें डालीं लेकिन वे फरार हो चुके थे और उन्होंने अपने मोबाइल फोन भी बंद कर दिए थे. फिर पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर 29 दिसंबर को तीनों को पाइपलाइन रोड से हथियार सहित गिरफ्तार कर लिया. उन सभी से पूछताछ करने पर ऐसे 2 मामलों का खुलासा हो गया जो पिछले 9 महीने से पुलिस के गले की फांस बने हुए थे. उन से पूछताछ के बाद दीपक की हत्या की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार निकली.

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले का एक थाना है मुरादनगर. मुरादनगर की ही कृष्णा कालोनी में जसवंत अग्रवाल अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी राजबाला के अलावा 4 बच्चे थे. 2 बेटे व 2 बेटियां. बेटियों की शादी वह अपनी नौकरी के दौरान ही कर चुके थे. बेटा नितिन फरीदाबाद में स्थित प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. जबकि छोटे बेटे दीपक को फरीदाबाद में जूतों की दुकान खुलवा दी थी.

कुछ समय बाद ही दीपक का मन इस दुकान से उचट गया, तो अपने घर वालों से बात कर के वह औनेपौने दामों में दुकान का सारा सामान बेच कर अपने घर मुरादनगर आ गया. दीपक मुरादनगर में ही रह कर कोई ऐसा काम करना चाहता था जिस से अच्छी आमदनी हो. मुरादनगर में ही कनक नाम की एक लड़की रहती थी उसी से जफर और लक्ष्मण के अवैध संबंध थे.

दीपक की लक्ष्मण और जफर से दोस्ती थी. इसलिए उसे कनक के अवैध संबंधों की जानकारी थी. चूंकि कनक के कदम बहक चुके थे, इसलिए उस ने दीपक से भी नजदीकी बना ली थी. बाद में उस ने लक्ष्मण और जफर को किनारे कर के 25 वर्षीय दीपक से अवैध संबंध बना लिए.

लक्ष्मण और जफर ने जब प्रेमिका की तरफ से बेरुखी महसूस की तो उन्होंने इस की वजह खोजनी शुरू कर दी. तब उन्हें पता चला कि इस की असली वजह दीपक है. यानी दीपक ने उन के प्यार में सेंध लगा दी है. ऐसे विश्वासघाती दोस्त को उन्होंने सबक सिखाने की योजना बना ली और तय कर लिया कि वह उसे ठिकाने लगा कर ही रहेंगे, इस योजना में उन्होंने अपने एक और दोस्त शशि को भी शामिल कर लिया.

फरीदाबाद की जूतों की दुकान बंद कर के दीपक बेरोजगार हो गया था. घर का खर्चा उस का बड़ा भाई नितिन ही चला रहा था. दीपक अकसर अपने कामधंधे को ले कर तनाव में रहने लगा था. इस बात को घर वाले भी महसूस कर रहे थे.

योजनानुसार 11 फरवरी को मोहित ने पीसीओ से दीपक को फोन किया और एक जरूरी काम का बहाना कह कर घर से बुला लिया. बाइक पर बिठा कर वह उसे एनटीपीसी के जंगल में ले गया. वहां पहले से ही लक्ष्मण, शशि के साथ जफर भी मौजूद था. इन सभी ने पहले वहां बैठ कर जम कर शराब पी. जब दीपक को अधिक नशा हो गया तो वे उसे पास ही के गन्ने के खेत में ले गए.

वहां पहुंचते ही जफर ने उस की गरदन पर  तमंचा सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही दीपक नीचे गिर गया. कुछ देर बाद उस की मौत हो गई. पहचान मिटाने के लिए उन्होंने उस के चेहरे और गुप्तांग पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी और वहां से चले गए. इस से पहले उन्होंने उस की जेब में रखे 10 हजार रुपए निकाल लिए. वह पैसे उस की मां ने फोन खरीदने के लिए दिए थे.

दीपक की हत्या के बाद जफर और शशि ने बिजनौर के पास दिल्ली के एक कार ड्राइवर से 2 लाख रुपए लूट लिए. विरोध करने पर उन्होंने उस की हत्या कर दी. बाद में जब यह मामला खुला तो बिजनौर पुलिस ने जफर और शशि को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

कुछ समय बाद शशि जमानत पर बाहर आ गया. जबकि जफर की जमानत नहीं हो सकी. उन से पूछताछ के बाद पता चला कि पुलिस ने 14 फरवरी को खुर्रमपुर के टीटू के खेत से जो अज्ञात लाश बरामद की थी, वह दीपक अग्रवाल की ही थी.

हत्याकांड की हर बिखरी कड़ी अब जुड़ चुकी थी. सो सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन्हें भादंवि की धारा 364, 302, 201, 34, 120बी के तहत गिरफ्तार कर गाजियाबाद की जिला अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें डासना जेल भेज दिया गया.

पुलिस हत्या में शामिल चौथे अभियुक्त जफर को अदालत में प्रार्थना पत्र दे कर, ट्रांजिट रिमांड पर लाने की तैयारी कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों एवं जनचर्चा पर आधारित. कनक परिवर्तित नाम है

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गलतफहमी ने बनाया दोस्त को दुश्मन

दोस्ती में आदमी एकदूसरे की आदतों, बातों और इरादों से अच्छी तरह परिचित हो जाता है. उस बीच दोनों एकदूसरे को काफी हद तक जान चुके होते हैं. दोस्ती की इसी पगडंडी पर चलते हुए शुरू किया गया प्यार का सफर लंबा चलता है. निश्चल ने भी राखी के साथ प्यार के खुशनुमा सफर की शुरुआत दोस्ती के बाद ही की थी.

उन का प्यार इतनी गहराई तक पहुंच गया था कि उन्होंने ख्वाबों का एक महल भी बना लिया था, लेकिन एक दिन निश्चल को अचानक अपने ख्वाब तब टूटते नजर आए, जब राखी की बातों में अचानक बेरुखी की हवाएं तैरने लगीं. पहले तो निश्चल ने प्रेमिका की बेरुखी को नजरंदाज करने की कोशिश की, लेकिन एक दिन तो हद हो गई.

उस दिन उस ने आदतन राखी के मोबाइल पर फोन किया तो उस ने बड़ी बेरुखी से कहा, “कहो, किसलिए फोन किया है?”

राखी के इस व्यवहार पर निश्चल पहले तो हैरान हुआ, फिर भी उस की बेरुखी को नजरअंदाज करते हुए बड़े प्यार से बोला, “कैसी बात कर रही हो, अपने प्यार से बात करने की भी कोई वजह होती है क्या. दिल ने याद किया तो मैं ने तुम्हारा नंबर मिला दिया.”

“वह तो ठीक है निश्चल, पर मैं चाहती हूं कि अब हमारा इस तरह ज्यादा बातें करना ठीक नहीं है.” राखी ने उसी लहजे में जवाब दिया.

राखी की इन बातों और व्यवहार से निश्चल का दिमाग घूम गया. उस ने कहा, “राखी, तुम्हें क्या हो गया है. तुम ये कैसी अजीब बातें कर रही हो?”

“मैं जो कह रही हूं, ठीक ही कह रही हूं. अब पता नहीं तुम्हें यह सब अजीब क्यों लग रहा है.” राखी तुनक कर बोली.

“मैं एक बात कहूं राखी?” निश्चल ने कहा.

“हां, कहो.”

“मैं पिछले 2-3 दिनों से महसूस कर रहा हूं कि तुम काफी बदल सी गई हो. बताओ मुझ से ऐसी क्या गलती हो गई है?” निश्चल ने माहौल सामान्य करने की गरज से कहा.

“ऐसी तो कोई बात नहीं है निश्चल. फिर भी तुम्हें ऐसा लगता है तो मैं भला इस में क्या कर सकती हूं.” राखी ने निराश करने वाले अंदाज में कहा.

“क्या तुम मेरे प्यार का इम्तिहान ले रही हो?” निश्चल ने पूछा.

“मैं कौन होती हूं ऐसा करने वाली. वैसे भी मुझे अभी बहुत काम है. अब हम बाद में बात करेंगे. ओके बाय.” कहने के साथ ही राखी ने फोन काट दिया.

निश्चल यह सोचसोच कर परेशान था कि राखी को अचानक न जाने ऐसा क्या हो गया है, जो वह इस तरह का व्यवहार करने लगी है. उसी दौरान उस के दिमाग में आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि राखी को उस की वे बातें पता चल गई हों, जो राज बनी रहनी चाहिए थीं.

इस के बाद वह यह सोचने लगा कि राखी को ऐसी बातें भला कौन बताएगा? इस पर उस ने सोच के घोड़े दौड़ाए तो कुछ देर बाद गहरी सांस ले कर हलके से बुदबुदाया, ‘ओह, अब समझ में आया, सजल ने ही राखी को उस के बारे में बताया होगा.’

अपने इस खयाल की पुष्टि के लिए उस ने फिर से राखी का मोबाइल मिलाया तो राखी ने पूछा, “अब क्या हुआ, मैं ने कहा तो था कि बाद में बात करेंगे.”

“राखी, मुझे एक बात पूछनी थी.” निश्चल बोला.

“बताओ क्या पूछना है?”

“मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या तुम्हारी सजल से कोई बात हुई थी?” निश्चल ने पूछा.

“हां, हुई तो थी, लेकिन इस में बुरा क्या है. वह तुम्हारा अच्छा दोस्त है.” राखी ने कहा.

“मुझे लगता है कि उसी ने मेरे बारे में तुम से कुछ उलटीसीधी बातें की हैं, तभी तुम बदल गई हो.” निश्चल ने अपने मन की बात कही.

“सौरी निश्चल, मैं इस बारे में कोई कमेंट नहीं करना चाहती.”

राखी बात को खींचना नहीं चाहती थी, इसलिए उस ने बात को यहीं विराम देना चाहा.

लेकिन निश्चल राखी से सच्चाई जानना चाहता था, इसलिए उस ने पूछा, “तो फिर इस बेरुखी की वजह क्या है, यह तो बता दो?”

“मैं कुछ नहीं बताना चाहती, बाय.” पीछा छुड़ाते हुए राखी ने अपनी बात खत्म कर दी. निश्चल उस के इस रूखे और उपेक्षित व्यवहार से ठगा सा रह गया.

निश्चल अरोड़ा उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के कस्बा बेहट की संजय कालोनी निवासी रमेश अरोड़ा का बेटा था. राखी भी उसी कालोनी में रहती थी. कुछ महीने पहले ही दोनों के बीच दोस्ती के बाद प्यार हो गया था. दोनों अकसर मोबाइल पर लंबीलंबी बातें और चैटिंग किया करते थे. राखी के प्यार से निश्चल की जिंदगी में जैसे बहार आ गई थी. लेकिन राखी का अचानक बदला रुख उसे परेशान करने लगा था. उस का ही एक दोस्त था सजल चुघ.

25 वर्षीय सजल की कस्बे में ही छोटे चौक पर पुश्तैनी किराने की दुकान थी. वह एक प्रतिष्ठित परिवार से था. उस के पिता राजेंद्र चुघ दुकान संभालते थे, जबकि चाचा मुकेश चुघ व्यापारी नेता थे. सजल व निश्चल न सिर्फ गहरे दोस्त थे, बल्कि वे एकदूसरे के हमराज भी थे. इसी दोस्ती के नाते निश्चल ने उस का परिचय अपनी प्रेमिका राखी से करा दिया था.

सजल निश्चल की गैरमौजूदगी में भी कभीकभी राखी से बातें कर लिया करता था. इसीलिए राखी के बदले रवैए के पीछे निश्चल यह मान बैठा था कि सजल ने ही उस के बारे में राखी से कोई ऐसी बात कह दी होगी, जिस से राखी उस से दूरियां बना रही है.

जिंदगी के बहुत मौकों पर इंसान गलतफहमियों का शिकार हो जाता है. गहरे दोस्त होने के नाते निश्चल को यूं तो अपने मन में पल रही गलतफहमियों को बातचीत के जरिए दूर कर लेना चाहिए था, लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. वह दोस्ती में ऐसी बातें कर के खुद को छोटा साबित नहीं करना चाहता था. अलबत्ता वह मन ही मन सजल से नाराज रहने लगा था. इतना ही नहीं, उस ने उस के खिलाफ एक खतरनाक योजना तक बना डाली थी.

12 नवंबर की रात को सजल दुकान बंद कर के घर आया और करीब सवा 8 बजे अपने दादा बाबूराम चुघ से घूमने जाने की बात कह कर घर से निकल गया. वह अकसर इसी तरह जाता था. लेकिन वह आधे घंटे बाद घर वापस आ जाता था, जब उस दिन 2 घंटे बाद भी वह वापस नहीं आया तो घर वालों ने उस के मोबाइल पर फोन किया. उस का फोन स्विच्ड औफ मिला.

सजल के पास एक और मोबाइल फोन था. घर वालों ने उस फोन का नंबर मिलाया. उस पर घंटी तो जा रही थी, लेकिन वह फोन रिसीव नहीं कर रहा था. घर वालों ने 2-3 बार उस नंबर पर फोन किया. हर बार घंटी बजती रही, लेकिन फोन नहीं उठा. इस के बाद घर के सभी लोग सजल को ढूंढऩे निकल पड़े. लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. रात में कई बार उसे फोन किया गया, लेकिन उस ने एक भी फोन का जवाब नहीं दिया. उस की चिंता में घर वाले रात भर जागते रहे.

अगली सुबह उस का दूसरा मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ हो गया. उस के इस तरह अचानक लापता होने का कारण किसी की समझ में नहीं आ रहा था. सजल के करीबी दोस्त निश्चल अरोड़ा और अनुज सक्सेना भी परेशान थे. सभी लोगों को यही लग रहा था कि किसी ने फिरौती के लिए उस का अपहरण कर लिया है. जब कहीं से सजल के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उस के पिता राजेंद्र चुघ अपने रिश्तेदारों के साथ थाना कोतवाली पहुंचे और थानाप्रभारी नरेश चौहान से मिल कर सजल की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

मामला एक प्रतिष्ठित व्यापारी के बेटे के लापता होने का था, इसलिए पुलिस भी इस मामले को ले कर चिंतित थी. उसी दिन पुलिस को सूचना मिली कि बेलका गांव के पास बेहट शाकुंभरी मार्ग पर ऋषिपाल के आम के बाग में एक युवक की लाश पड़ी है. खबर मिलते ही नरेश चौहान पुलिस टीम के साथ उस बाग में पहुंच गए. वह लाश एक 24-25 साल के लडक़े की थी.

शव खून से लथपथ था. देख कर ही लगता था कि उस के सिर पर गोली चलाई गई थी. शव के नजदीक ही 2 मोबाइल पड़े थे. एक मोबाइल की बैटरी निकली हुई थी, जबकि दूसरा स्विच्ड औफ था. उसी दिन व्यापारी राजेंद्र चुघ ने अपने बेटे सजल की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. उन्होंने उस का जो हुलिया बताया था, वह उस मृत युवक से मेल खा रहा था.

यह लाश कहीं सजल की तो नहीं है, जानने के लिए थानाप्रभारी ने फोन कर के राजेंद्र चुघ को बाग में ही बुला लिया. राजेंद्र चुघ अपनी पत्नी के साथ वहां पहुंचे तो लाश देखते ही रो पड़े. उन की पत्नी को तो इतना सदमा पहुंचा कि वह बेहोश हो गईं. राजेंद्र चुघ ने उस लाश की पहचान अपने बेटे सजल के रूप में की. उन्होंने बताया कि दोनों मोबाइल सजल के ही हैं. शव के पास लाल रंग की एक हवाई चप्पल पड़ी थी, जो मृतक की नहीं थी. पुलिस ने सोचा कि शायद यह हत्यारे की है.

मामला हत्या का था, इसलिए सूचना पा कर एसपी चरण सिंह यादव, एसपी (देहात) जगदीश शर्मा भी वहां पहुंच गए थे. उन्होंने भी मौकामुआयना किया. शव के आसपास किसी वाहन के टायरों के निशान भी थे.

सजल की हत्या से कस्बे में सनसनी फैल गई थी. हत्या के विरोध में कस्बे के बाजार बंद हो गए. सैकड़ों व्यापारी घटनास्थल पर जमा हो गए. सभी व्यापारी हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे. पुलिस ने व्यापारियों को समझाबुझा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया. एसएसपी राजेंद्र प्रसाद यादव ने नरेश चौहान को केस का जल्द से जल्द खुलासा करने को कहा. इस के अलावा उन्होंने क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार इंसपेक्टर संजय पांडेय को भी इस केस की जांच में लगा दिया.

पुलिस टीम हत्या की वजह तलाशने में जुट गई. पुलिस ने मृतक के घर वालों से पूछताछ की तो उन्होंने किसी से कोई रंजिश होने से इंकार कर दिया. एक बात साफ थी कि हत्यारे सजल के करीबी थे. क्योंकि इतनी दूर उन के साथ वह अपनी मरजी से ही गया था. जवान बेटे की मौत से चुघ परिवार में कोहराम मचा था. पुलिस अच्छी तरह जानती थी कि अगर केस का खुलासा नहीं हुआ तो बड़ा बखेड़ा खड़ा होगा, इसलिए पुलिस हत्यारों की तलाश में लग गई.

अगले दिन पुलिस को कुछ लोगों से पता चला कि 12 नवंबर की रात को उन्होंने सजल के साथ निश्चल और अनुज को जाते देखा था. इस खबर की पुष्टि के लिए पुलिस ने सजल के मोबाइल की लोकेशन के साथ निश्चल और अनुज के मोबाइल की लोकेशन निकलवाई.

तीनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन साथसाथ पाई गई. शक पुख्ता होने पर नरेश चौहान ने निश्चल और अनुज को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने सजल की हत्या में अपना हाथ होने से साफ इंकार कर दिया. लेकिन जब मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर उन से पूछताछ की तो वे ज्यादा देर तक पुलिस को गुमराह नहीं कर सके. उन्हें सच बोलने पर मजबूर होना पड़ा.

इस के बाद उन्होंने सजल की हत्या का चौंकाने वाला राज उगला. पता चला कि महज गलतफहमी में एक दोस्त दूसरे की जान का दुश्मन बन गया था.

दरअसल, निश्चल अपनी प्रेमिका राखी के व्यवहार में आए बदलाव की वजह नहीं समझ पाया था. इस बात को ले कर वह परेशान रहने लगा था. एक दिन उस ने राखी से जिद कर के पूछने की कोशिश करते हुए कहा, “राखी, तुम इतनी बदल क्यों गई हो?”

“निश्चल, ऐसा तुम्हें लगता है तो बताओ भला मैं क्या कर सकती हूं.” राखी ने टालने वाले अंदाज में कहा.

“नहीं, कोई तो वजह है. वह वजह क्या है, आज तुम्हें बतानी ही होगी.” निश्चल ने दबाव डालते हुए पूछा.

“कोई वजह नहीं है निश्चल. मैं तुम से और ज्यादा बात करना नहीं चाहती. इसलिए आगे से तुम इस बात का ध्यान रखना.” राखी ने दो टूक जवाब दिया.

राखी की यही बेरुखी उस पर बिजली बन कर गिरी थी. रहरह कर उस के दिमाग में यह बात आती रहती थी कि इस के पीछे सजल ही जिम्मेदार है. वही राखी को उस के खिलाफ भडक़ाने का काम कर रहा है. बस, वह मन ही मन सजल से रंजिश रखने लगा. उसे यह गलतफहमी हो गई कि सजल राखी को भडक़ा कर उस की खुशियों को छीनने का काम कर रहा है.

सजल को सबक सिखाने के लिए निश्चल ने एक खतरनाक योजना बना डाली. अपने दोस्त अनुज सक्सेना को भी उस ने अपनी इस योजना में शामिल कर लिया. यह योजना थी सजल की हत्या की. उस की हत्या के लिए उस ने एक तमंचे और कुल्हाड़ी का भी इंतजाम कर लिया.

वह सजल से लगातार मिलता रहा और अपने इरादों को बिलकुल भी जाहिर नहीं होने दिया. वैसे भी जब कोई अजीज दोस्त हो तो उस के इरादों को भांपना मुश्किल हो जाता है. सजल भी दोस्ती के विश्वास में निश्चल के इरादों से पूरी तरह अंजान था.

12 नवंबर की रात सजल घर से घूमने के लिए निकला तो उसे रास्ते में निश्चल व अनुज मिल गए. निश्चल चूंकि जानता था कि सजल रात में घूमने के लिए घर से रोजाना निकलता है, इसलिए पहले से ही वह अपनी आल्टो कार संख्या यूपी 16 एक्स-1015 लिए रास्ते में खड़ा था.

निश्चल और अनुज के इस तरह मिलने पर सजल को हैरानी नहीं हुई. कुछ देर में घूम कर आने की बात कह कर उन्होंने सजल को अपनी कार में बैठा लिया. सजल को अपने दोस्तों पर जरा भी शक नहीं हुआ. वे कार से ऋषिपाल के आम के बाग में पहुंच गए. उस वक्त वहां बिलकुल सुनसान था.

अनुज ने सजल को बातों में लगा लिया तो उसे बीच निश्चल ने तमंचा निकाल कर उस के सिर को टारगेट कर के गोली चला दी. गोली लगते ही सजल नीचे गिर गया और उस की मौत हो गई. अनुज ने भी तमंचा ले कर एक गोली और उस पर चलाई. सजल की हत्या करने के बाद उन्होंने सजल के दोनों मोबाइल फोन उस की जेब से निकाल कर वहीं फेंक दिए.

फेंकते समय ही एक मोबाइल की बैटरी निकल गई थी. सजल की हत्या कर के वे जल्दी से वहां से भागे, जिस से निश्चल की एक चप्पल वहीं छूट गई थी. घटनास्थल से कुछ दूर जा कर उन्होंने एक खेत में तमंचा व कुल्हाड़ी छिपा दी और अपनेअपने घर चले गए.

अगली सुबह तक सजल के लापता होने की खबर फैल चुकी थी. चूंकि वे उस के गहरे दोस्त थे, इसलिए सजल को ढुंढवाने का उन्होंने भी बराबर नाटक किया. सजल का शव मिलने पर वे भी घटनास्थल पर पहुंचे. दोनों ने सोचा था कि उन्हें सजल के साथ जाते हुए किसी ने नहीं देखा. लेकिन गांव के ही किसी व्यक्ति ने उन्हें सजल के साथ जाते देख लिया था. उसी के आधार पर वे पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

एसपी देहात जगदीश शर्मा और सीओ चरण सिंह भी थाने आ गए थे. पुलिस ने तमाम लोगों की मौजूदगी में हत्याकांड का खुलासा किया. जब कस्बे के लोगों को पता चला कि सजल की हत्या किसी और ने नहीं, उस के खास दोस्तों ने की थी तो सब हैरान रह गए.

पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर खेत से हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का तमंचा, खाली कारतूस और एक कुल्हाड़ी बरामद कर ली थी. हत्या में प्रयुक्त की गई कार भी पुलिस ने बरामद कर ली थी.

विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानतें नहीं हो सकी थी.

निश्चल ने गलतफहमी को दिल से नहीं लगाया होता और सजल दोस्त के इरादों को भांप गया होता तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती. न सजल दुनिया से जाता और न उस के दोस्त जेल जाते.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, राखी बदला हुआ नाम है.

संतान के लिए मासूम की बलि

उत्तर प्रदेश के जिला मुख्यालय अलीगढ़ से लगभग 30 किलो. मीटर दूर इगलास कोतवाली का एक कस्बा है बेसवां. इसी कस्बे के वार्ड नंबर 3 में श्रीकिशन अपनी पत्नी राखी के साथ रहता था. शादी के कई सालों बाद भी उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ था. उन्होंने तमाम डाक्टरों और हकीमों से इलाज कराया, लेकिन उन्हें संतान सुख नहीं मिल पाया. औलाद न होने से दोनों बहुत चिंतित रहते थे. राखी को तो और ज्यादा चिंता थी.

गांवदेहात में आज भी बांझ औरत को इज्जत की नजरों से नहीं देखा जाता. और तो और किसी शुभकार्य में बांझ औरत को बुलाया तक नहीं जाता. इस बात को राखी महसूस भी कर रही थी. इस से वह खुद को अपमानित तो समझती ही थी, मन ही मन घुटती भी रहती थी. उस की एक ही मंशा थी कि किसी भी तरह वह मां बन जाए. उस की गोद भर जाए, जिस से उस के ऊपर से बांझ का कलंक मिट जाए.

इस के लिए वह फकीरों और तांत्रिकों के पास भी चक्कर लगाती रहती थी. पर नतीजा कुछ नहीं निकल रहा था. श्रीकिशन का एक बड़ा भाई था धर्म सिंह, जो उस के साथ ही रहता था और अविवाहित था. वह कस्बे के ही श्मशान में जा कर तांत्रिक क्रियाएं करता रहता था.

एक दिन राखी गुमसुम बैठी थी. श्रीकिशन ने जब उस से वजह पूछी तो उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. पति ने उसे ढांढस बंधाया तो वह बोली, “पता नहीं हमारी मुराद कब पूरी होगी, कब तक हम यह दंश सहते रहेंगे?”

“राखी, हम ने अपना इलाज भी कराया और इधरउधर भी दिखाया. इस के बावजूद भी तुम मां नहीं बन सकीं तो इस में तुम्हारा क्या दोष है? हम लोग कोशिश तो कर ही रहे हैं.” श्रीकिशन ने समझाया.

“देखोजी, हम भले ही कोशिश कर चुके हैं. लेकिन एक बार क्यों न तुम्हारे भाई (जेठ) से कोई उपाय करने को कहें. श्मशान में न जाने कितने लोग अपनी समस्याएं ले कर उन के पास आते हैं, लेकिन हम ने उन्हें कुछ समझा ही नहीं. शायद उन्हीं की तंत्र विद्या से हमारा कुछ भला हो जाए.” राखी ने कहा.

“ठीक है, अब तुम सो जाओ, सुबह मैं उन से बात करूंगा.” श्रीकिशन ने कहा.

सुबह उठ कर श्रीकिशन ने बड़े भाई धर्म सिंह से राखी के मन की पीड़ा बताई. चाय बना रही राखी भी उस की बातें सुन रही थी. श्रीकिशन की बात पर धर्म सिंह ने कहा, “आज तू ने कहा है तो मैं जरूर कुछ करूंगा. ऐसा कर तू आज काम पर मत जा. पतिपत्नी गद्दी पर बैठो, तभी मैं कुछ उपाय बता सकूंगा.”

दोपहर के बाद धर्म सिंह मरघट से घर लौटा. जिस कमरे में वह रहता था, वहां भी उस ने तंत्र क्रियाएं करने के लिए गद्दी बना रखी थी. श्रीकिशन और राखी को सामने बैठा कर वह तंत्र क्रियाएं करने लगा. तंत्र क्रियाएं करतेकरते धर्म सिंह जैसे किसी अदृश्य शक्ति से बात करने लगा. इसी बातचीत में उस ने ऐसी बात कही, जिसे सुन कर श्रीकिशन और राखी के रोंगटे खड़े हो गए. राखी तो कांपने लगी. धर्म सिंह किसी की बलि देने की बात कर रहा था.

बातें खत्म हुईं तो श्रीकिशन ने अपने भाई से पूछा, “भैया बलि का काम तो बड़ा मुश्किल है, फिर आप ने बलि देने का वादा क्यों कर लिया?”

“तू चुप रह. तू नादान है, जिस बच्चे की बलि देनी है, ऊपर वाले ने उस बच्चे पर बलि का नाम लिख कर इस दुनिया में भेजा है.” धर्म सिंह ने उसे समझाते हुए कहा.

“बलि देने वाला वह बच्चा कौन है, यह कैसे पता चले?” श्रीकिशन ने शंका व्यक्त की.

“इस की चिंता तू मत कर. जब तेरी पत्नी पूजा के समय बैठी होगी, वह खुदबखुद हमें बताएगी.” धर्म सिंह ने धूर्त हंसी हंसते हुए कहा.

“किस की बलि देनी है, भला यह मुझे कौन बताएगा?” राखी ने पूछा.

“तुझे वही बताएगा, जो अभी मुझ से बातें कर रहा था. वह तुझे नाम भी बताएगा और पता भी.” धर्म सिंह ने कहा.

“फिर यहां तक उस बच्चे को ले कर कौन आएगा?” श्रीकिशन ने पूछा.

“वह खुद इस की गोद में आ जाएगा.” कह कर धर्म सिंह ने दोनों को वहां से हटा दिया.

2-3 दिन बाद राखी ने अपने जेठ से पूछा, “भाई साहब, पूजा वगैरह करने में अभी कितने दिन लगेंगे?”

“राखी, एक बात है, जो मैं तुम से नहीं कह पा रहा हूं. आखिर किस मुंह से कहूं?” धर्म सिंह ने कहा.

“कोई खास बात है, जो तुम इतना हिचक रहे हो?” राखी ने पूछा.

“हां, खास ही है.” उस ने कहा.

“तो बता दो, मैं भला कोई बाहरी थोड़े ही हूं, जो बुरा मान जाऊंगी. बता दो, क्या बात है?” राखी ने पूछा.

“दरअसल, बात यह है कि बलि से पूर्व कुछ तंत्र क्रियाएं करनी पड़ेंगी. उस वक्त तुझे गद्दी पर निर्वस्त्र हो कर बैठना होगा.” धर्म सिंह ने कहा.

“तो क्या हुआ. अपनी गोद भरने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं. देर मत करो, जल्द पूजा की तैयारी करो.”

राखी अपने जेठ का स्वभाव पहले से ही जानती थी. वह निहायत ही शरीफ इंसान था. शुरू से ही औरत जाति से परहेज रखता था.

श्रीकिशन की गैरहाजिरी में एक दिन धर्म सिंह ने अनुष्ठान शुरू किया. उस ने तंत्र क्रियाएं शुरू कीं. सामने बैठी राखी ने एकएक कर के सारे कपड़े उतार दिए. निर्वस्त्र बैठी राखी धर्म सिंह के कहे अनुसार हवन में आहुतियां देने लगी. उसी बीच धर्म सिंह ने जैसे ही शराब की शीशी खोल कर हवन कुंड में जल रही अग्नि पर डाली, राखी बैठेबैठे ही झूमने लगी.

तंत्र क्रिया करने वाले धर्म सिंह ने पूछा, “अब बता क्या नजर आ रहा है?”

इसी के साथ शराब की कुछ बूदें आग में डालीं. तभी राखी ने कहा, “यह तो मोहिनी है, विनोद की बेटी.”

“कहां है?” धर्म सिंह ने पूछा.

“यह आ गई मेरी गोद में.” राखी के दोनों हाथ ऐसे उठे, जैसे उस की गोद में कोई बच्चा आ गया हो. उस ने आगे कहा, “लो, दे दो इस की बलि.”

“ठीक है. तेरी मनोकामना शीघ्र ही पूरी होगी.” कह कर धर्म सिंह ने पानी के छींटे राखी पर फेंके. छींटे पड़ते ही राखी होश में ऐसे आ गई, जैसे नींद से जागी हो. वह उठी और सारे कपड़े समेट कर तेजी से दूसरे कमरे में भाग गई.

श्रीकिशन के घर के पास ही विनोद रहता था. उस के परिवार में 3 बेटे और एक बेटी मोहिनी थी.

23 अक्तूबर को 2 साल की मोहिनी घर के बाहर खेल रही थी. थोड़ी देर बाद उस की तो सीमा को उस का खयाल आया तो वह उसे लेने बाहर आई. लेकिन मोहिनी कहीं दिखाई नहीं दी. उस ने बच्चों से मोहिनी के बारे में पूछा. बच्चों ने कहा कि वह अभी तो यहीं खेल रही थी. सीमा ने उसे आसपास देखा. लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दी.

ऐसा भी नहीं था कि 2 साल की बच्ची खेलतेखेलते कहीं दूर चली जाए. फिर भी उस ने तमाम लोगों से बेटी के बारे में पूछा, पर कहीं से उस के बारे में पता नहीं चला. इस के बाद घर के सभी लोग मोहिनी को ढूंढने लगे. अंधेरा हो गया. गांव वाले भी मोहिनी को ढूंढने में मदद कर रहे थे. पर मोहिनी नहीं मिली.

पता नहीं क्यों सीमा एक ही रट लगाए रही कि मेरी बेटी कहीं नहीं गई, वह श्रीकिशन के घर में ही होगी. सीमा की इस रट पर दूसरे दिन सुबह मोहल्ले वालों ने धर्म सिंह से कहा कि जब सीमा कह रही है तो वह उस अपने घर में ढूंढऩे दे.

श्रीकिशन और धर्म सिंह ने साफ कहा कि उस के घर में कोई भी नहीं घुस सकता. गांव वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि इन दोनों भाइयों को अपने घर की तलाशी देने में क्यों ऐतराज है? घर की चौखट पर खड़ी राखी की घबराहट देख कर कुछ लोगों को शक हुआ कि कुछ गड़बड़ जरूर है. उसी दौरान किसी ने इगलास पुलिस को इस की सूचना दे दी थी.

उस दिन मोहर्रम था. थाना पुलिस मोहर्रम का जुलूस निकलवाने की तैयारी कर थी. इंसपेक्टर संजीव चौहान को बच्ची के गायब होने की जानकारी मिली तो वह पुलिस बल के साथ बेसवां जा पहुंचे. धर्म सिंह के घर के बाहर खड़े मोहल्ले के लोगों ने विनोद की बच्ची के कल से गायब होने की बात उन्हें बताने के साथ उन से यह भी कहा कि श्रीकिशन घर की तलाशी नहीं लेने दे रहा है.

संजीव चौहान कुछ लोगों के साथ श्रीकिशन के घर में घुस गए. तलाशी ली गई तो जीने के नीचे कबाड़ में मासूम मोहिनी की लाश मिल गई. संजीव चौहान लाश उठा कर बाहर ले आए.

मोहिनी के शरीर से निकला खून सूख चुका था. उस की जीभ पर चीरा लगा हुआ था. इस के अलावा उस के पूरे शरीर पर राख मली हुई थी. इस सब से साफ लग रहा था कि उस की बलि दी गई थी. लोगों का शक सही निकला. इस के बाद नाराज मोहल्ले वालों ने धर्म सिंह, श्रीकिशन और राखी की पिटाई शुरू कर दी.

पुलिस ने किसी तरह तीनों को भीड़ के चंगुल से छुड़ा कर अपने कब्जे में लिया. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के मोहिनी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस ने धर्म सिंह, श्रीकिशन और राखी के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 और 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर के पूछताछ की तो पता चला कि बलि देने के लिए राखी ने ही  मोहिनी का घर के बाहर से अपहरण किया था. अपहरण कर के उस ने उसे जेठ धर्म सिंह को सौंप दिया था.

उस के बाद तंत्र क्रियाएं करते समय धर्म सिंह ने ही उस मासूम बच्ची की गरदन व जीभ काट कर खून तंत्र क्रिया में चढ़ाया था. बच्ची के मरने के बाद उन्होंने लाश जीने के नीचे रखे कबाड़ में छिपा दी थी. जब मोहिनी को उस के घर वाले और कस्बे वाले ढूंढऩे लगे तो धर्म सिंह व श्रीकिशन घबरा गए. वह उस की लाश को कहीं ठिकाने लगाने का मौका ढूंढ़ रहे थे. अगली रात में शायद वह ऐसा करते, लेकिन उस के पहले ही पुलिस उन के यहां पहुंच गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इस घटना से यही लगता है कि इतनी तरक्की के बावजूद गांवों में आज भी शिक्षा का इतना प्रचारप्रसार नहीं हुआ है, जिस से लोगों की रूढि़वादी सोच में बदलाव आ सके. राखी और उस के घर वालों ने संतान की चाह में जो अपराध किया है, उस से वे तीनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं. अगर वे किसी अच्छे डाक्टर से सलाह ले कर अपना इलाज कराते तो शायद उन्हें संतान सुख अवश्य मिल जाता और उन के जेल जाने की नौबत भी न आती.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित