गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 4

अलबत्ता विनीत को यह जरूर पता थी कि गोवा पुलिस महेंद्र और कामिनी की तलाश में है. वह चूंकि कई मामलों में महेंद्र का साथ दे चुका था अत: उसे खुद के फंसने का भी डर था. वह चंद्रप्रकाश और उन के साथियों को इस शर्त पर महेंद्र और कामिनी का पता बताने को तैयार हो गया कि वे लोग उस के बारे में न तो पुलिस को बताएंगे और न उसे कुछ कहेंगे.

चंद्रप्रकाश का निशाना सागर दंपति थे न कि विनीत. अत: चंद्रप्रकाश ने उस की यह शर्त स्वीकार कर ली. विनीत ने उन्हें बताया कि महेंद्र और कामिनी मेरठ में किराए के एक मकान में रह रहे हैं. उस ने उन का पता भी बता दिया.

यह जानकारी मिलने के बाद चंद्रप्रकाश अपने कुछ दोस्तों और रिश्तेदारों को साथ ले कर मेरठ पहुंचे. उन के साथ 1-2 लोग महेंद्र और कामिनी को पहचानने वाले भी थे. मेरठ पहुंच कर ये लोग एसपी सिटी से मिले. चंद्रप्रकाश ने एसपी सिटी को पूरी बात बता कर महेंद्र और कामिनी का पता दे दिया.

एसपी सिटी ने तुरंत काररवाई करते हुए पुलिस की एक छापामार पार्टी महेंद्र सागर के घर भेज दी. फलस्वरूप महेंद्र और कामिनी पुलिस के हत्थे चढ़ गए. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. महेंद्र के घर की तलाशी लेने पर पुलिस को गोवा में कत्ल की गई सोनम का पर्स, 2 सलवारसूट और गोवा से छपने वाले अखबार टाइम्स वीकेंडर के एक अंक की 2 प्रतियां भी मिलीं.

अखबार की इन प्रतियों में पतिपत्नी दोनों के फोटो और इन्हें पकड़वाने वाले को 20 हजार रुपए इनाम देने की घोषणा छपी थी. बरामद सामान सहित पुलिस दोनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के एसएसपी औफिस ले गई. जहां उन से विस्तार से पूछताछ की गई.

महेंद्र और कामिनी दोनों ही बहुत तेज थे और धाराप्रवाह अंगरेजी में बात कर रहे थे. शुरू में दोनों ने पुलिस को भ्रमित करने का भरपूर प्रयास किया. लेकिन पुलिस के पास चूंकि उन के खिलाफ  पर्याप्त सुबूत थे, इसलिए उन्हें सच्चाई पर आना ही पड़ा.

भारत के सब से अच्छे 5 स्कूलों में से एक में शिक्षा प्राप्त और कई साल अमेरिका में कंप्यूटर इंजीनियर रह चुके महेंद्र सागर और दिल्ली के एक सुप्रसिद्ध कालेज से शिक्षा प्राप्त कामिनी के उत्थान और पतन की कहानी पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंग कर अपने संस्कारों से अलगथलग ऐशओआराम की जिंदगी जीने की चाह में भटके एक ऐसे दंपति की कहानी थी, जिस का उद्देश्य ऐशोआराम और वैभवता से परिपूर्ण जिंदगी जीने के अलावा कुछ नहीं था.

इस के लिए उन्हें कुछ भी करने में कोई आपत्ति नहीं थी. चाहे बात ईमान बेचने की हो, इंसानियत को ठेंगे पर रखने की हो या पैसे के लिए शरीर बेचने की.

अतिसंपन्न परिवार के महत्त्वाकांक्षी युवक महेंद्र सागर ने नैनीताल के एक प्रसिद्ध कानवेंट स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के बाद दिल्ली आ कर उच्चशिक्षा प्राप्त की थी. दिल्ली में पढ़ाई के दौरान ही उस की मुलाकात प्रभावशाली व्यक्तित्व की अत्यंत खूबसूरत युवती कामिनी से हुई. पहली ही मुलाकात में उस ने कामिनी के लिए अपने दिलोदिमाग के सारे दरवाजे खोल दिए थे.

महेंद्र के व्यक्तित्व में भी कुछ ऐसा था जो पहली नजर में ही कामिनी की आंखों में उतर गया था. उस दिन के बाद महेंद्र और कामिनी आए दिन मिलने लगे. जल्दी ही वे दोनों एकदूसरे के प्यार में आकंठ डूब गए. प्रेम डगर पर साथसाथ चलते हुए ही उन्होंने जीवन भर एकदूसरे का साथ निभाने का फैसला किया.

कामिनी से शादी करने के बाद महेंद्र उस के साथ अमेरिका चला गया. वहां उस के करीबी रिश्तेदार रहते थे. अमेरिका जा कर महेंद्र ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग का डिप्लोमा किया. लेकिन किन्हीं कारणों से वह कंप्यूटर इंजीनियर की डिग्री प्राप्त नहीं कर सका. उस के और कामिनी के 8 साल अमेरिका में ही गुजरे.

8 साल अमेरिका में रहने के बाद महेंद्र और कामिनी के मन और जीवन में पश्चिमी सभ्यता रचबस गई थी. उन के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. उन्होंने अमेरिका प्रवास के दौरान अपनी जिंदगी खूब शानोशौकत और ऐशोआराम से गुजारी थी. वहीं रहते वे 2 बच्चों के मांबाप बने.

महेंद्र और कामिनी को तो अमेरिका पसंद था लेकिन अमेरिका को वे दोनों पसंद नहीं आए. कारण क्या रहे, यह तो वही जाने, लेकिन दोनों को अमेरिका छोड़ कर स्वदेश लौटना पड़ा. महेंद्र और कामिनी दिल्ली लौट तो आए, लेकिन यहां आ कर भी अपनी शाही आदतों को न बदल सके. उन्होंने वही ठाठ और ऐशोआराम बनाए रखने का प्रयास किया जो अमेरिका में थे. लेकिन आय के साधन न होने की वजह से खर्चे कैसे पूरे होते? फलस्वरूप हेराफेरी ही एक विकल्प बचा.

फलस्वरूप महेंद्र और कामिनी ने हाईसोसाइटी की जिंदगी जीने की चाह में पतन की पगडंडी पर पांव रख दिया. महेंद्र ने हालांकि एक कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर की नौकरी जौइन कर ली थी लेकिन उस नौकरी से जितना पैसा मिलता था, उस से उन का 10 दिन का खर्च भी पूरा नहीं होता था.

लोगों को जाल में फंसाने के लिए महेंद्र के पास दिमाग था, वाकपटुता थी, विदेशी शैली में बोली जाने वाली धाराप्रवाह अंगरेजी थी. बचीखुची कमी कामिनी की खूबसूरती, चित्ताकर्षक व्यक्तित्व और बेलौस अदाएं पूरा कर सकती थीं. महेंद्र और कामिनी रहनसहन और अदाओं के हिसाब से हाईक्लास के लोग थे. अत: उन्होंने अपने लिए हाईक्लास में ही जगह बनानी शुरू की.

हाई सोसाइटी के बीच हाई स्टेटस मेंटेन कर के लोगों को आसानी से बेवकूफ बनाया जा सकता है, यह बात दोनों अच्छी तरह जानते थे. जब महेंद्र और कामिनी का उच्चस्तरीय सर्किल बन गया तो उन्होंने लोगों को विभिन्न तरीकों से ठगना शुरू कर दिया.

सागर दंपति अमेरिका में रहे थे. सोच में वे दिल्ली वालों से सैकड़ों कदम आगे थे. शारीरिक संबंध उन के लिए महज एंटरटेन की चीज थी. इसलिए महेंद्र और कामिनी दिल्ली में 2-3 सैक्स क्लबों के सदस्य बन गए थे ताकि अमीरजादों को अपनी खूबसूरती और अदाओं के जाल में फांस कर मनमाफिक उल्लू बनाया जा सके.

दरअसल, कोठियों, फार्महाउसों और दक्षिण दिल्ली के 1-2 गुमनाम होटलों में कई ऐसे क्लब चलते थे, जहां बिना जोड़े के कोई प्रवेश नहीं कर सकता था. इन क्लबों में पर्चियों या कार की चाबियों से लौटरी निकाल कर मौजमस्ती के लिए पत्नियां बदली जाती थीं.

जाहिर है ऐसे क्लबों में अत्याधुनिक या रिश्तों की जगह सैक्स को महत्त्वपूर्ण समझने वाले पतिपत्नी ही जाते थे. इन क्लबों में कितने ऐसे अविवाहित युवक भी मौजमस्ती के लिए जाते थे जो अपनी किसी गर्लफ्रैंड या कालगर्ल्स को साथ ले जाते थे. उस के बदले उन्हें किसी न किसी की पत्नी भोगने को मिल जाती थी. महेंद्र और कामिनी सेक्स क्लबों में ऐसे ही अमीरजादों को ढूंढते थे.

पत्नी पर दांव : एक और द्रोपदी

दिलीप को पता था कि उस के गुरू पं. भगवती प्रसाद चौबे सवेरेसवेरे मोहल्ले के नाई से मालिश करवाते थे. उस वक्त वह फुरसत में होते थे, इसलिए उन से बातचीत की जा सकती थी. वह चोटी के वकील थे. उन की बैठक में पहुंच कर दिलीप ने नमस्ते किया तो वह मुसकुराए. उन्होंने दिलीप को देखते ही पूछा, “आओ दिलीप बेटा, सुबहसुबह कैसे?”

“बाबूजी, मैं ने वकालत तो शुरू कर दी है, पर मेरी मां कहती हैं कि इस पेशे में झूठ बहुत बोलना पड़ता है, जिस से चरित्रहीनता आ जाती है.”

“बेटे, हर झूठ, झूठ नहीं होता. हमें देखना होता है कि क्या, किस से, कहां और क्यों बोला जा रहा है और कितना बोला जा रहा है.”

“यानी झूठ कई तरह के होते हैं?”

“यही तो समझने की बात है. मिसाल के तौर पर एक फौजदारी अदालत में पुलिस ने एक नाजायज तमंचा रखने पर अभियुक्त को न्यायालय में पेश कर दिया. पुलिस ने 4 चश्मदीद गवाह पेश किए, जिन्होंने अभियुक्त के पास से पिस्तौल की बरामदगी की पक्की गवाही दी. जबकि अभियुक्त ने अपने वकील को बताया है कि रंजिश की वजह से उस पर झूठा मुकदमा बनाया गया है और गवाह पुलिस के दबाव से झूठी गवाही दे रहे है. वकील साहब जिरह करते करते थक गए, पर कोई गवाह सच नहीं बोला.”

“इस का मतलब बेगुनाह गया जेल.” दिलीप ने कहा.

“अब या तो वकील यह नाइंसाफी देखता रहे या फिर इस की कुछ काट कर के अभियुक्त को बचा ले.”

“बाबूजी, ऐसी स्थिति में भला क्या हो सकता है?”

“हो क्यों नहीं सकता.” भगवतीप्रसाद चौबे बोले, “वकील को जैसे का तैसा जवाब देना चाहिए, मतलब उसे भी 4 झूठे गवाह पेश करने चाहिए. यह झूठ चूंकि सच उगलवाने के लिए बोला जाएगा, इसलिए झूठ नहीं कहलाएगा. क्योंकि इस से किसी निर्दोष की जान बचेगी.”

“ऐसा भी होता है क्या?” दिलीप ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा.

“ज्यादातर मामलों में ऐसा ही करना पड़ता है, वरना हमारी तो वकालत ही बंद हो जाएगी.”

चौबे साहब से बात कर के दिलीप जब वापस अपने औफिस पहुंचा तो वहां करीब 60 साल की उम्र वाला एक व्यक्ति बैठा था. अभिवादन करने के बाद उस ने कहा, “वकील साहब, मेरा एक औरत भगाने का मुकदमा है. आप उस की पैरवी कर दीजिए. फीस जो आप कहेंगे, मिल जाएगी.”

“यह तो बहुत गंभीर केस है, इस के लिए किसी सीनियर वकील की सेवाएं लो. मैं तो अभी बहुत जूनियर हूं.”

“उन लोगों के पास हो कर यहां आया हूं. सब ने इनकार कर दिया है. मेरा यह केस अब आप को ही लडऩा होगा. वकील साहब मैं आप को दोगुनी फीस दूंगा.”

दिलीप ने उस के कागजात, गवाहों के बयान, एफआईआर तथा डाक्टरी रिपोर्ट देख कर उस के बारे में पूरी जानकारी ली. उस व्यक्ति ने इस मुकदमे के बारे जो बताया, वह कुछ इस तरह था.

रायबरेली जिले में एक कस्बा है बछरावां. वहां से 4 किलोमीटर दूर ठाकुरों का एक गांव था, जिस के प्रधान थे रंजीत सिंह. उन का एक बेटा था बिच्छू सिंह, जो 22 साल का दबंग व रंगीला नौजवान था. वह खूब शराब पीता था और अपने साथियों के साथ जुआ खेलने के अलावा मेलेठेले में अपनी पसंद का शिकार करता था.

इसी गांव का एक पुरवा था राधेग्राम, जहां गरीब खेतिहर मजदूर रहते थे. इसी पुरवा में आसरे नाम का एक 20 साल का लडक़ा रहता था. इस के पास थोड़ी खेती की जमीन थी, बाकी वह मेहनतमजदूरी कर के अपना काम चला लेता था. राधा से उस की नईनई शादी हुई थी. राधा एक सुंदर सुशील लडक़ी थी. उसने एक गाय पाला रखी थी, जिस का दूध बेच कर कुछ आमदनी हो जाती थी.

बिच्छू सिंह के गुर्गों ने जब उसे राधा की सुंदरता के बारे में बताया तो बिच्छू सिंह उसे पाने के लिए अपने अवारा साथियों से सलाह करने लगा. उस ने आसरे को अपने खेतों पर डबल मजदूरी पर काम दे दिया और उस के साथ देसी शराब के ठेके पर भी जाने लगा. वहां वह एक बोतल शराब और एक प्लेट मछली ले कर उस के साथ खातापीता.

कुछ दिनों बाद बिच्छू सिंह ने आसरे से कहा, “का रे आसरे, ताश खेलना जानता है? हमारे सब साथी तो रात में ताश खेलते है.”

“छोटे ठाकुर, हम तो ताश कभी देखे भी नहीं, भला खेलेंगे क्या?”

“लो कर लो बात, इतना बड़ा हो गया और ताश खेलना भी नहीं जानता. चल मैं तुझे सिखाता हूं. पहले तू ताश के पत्ते पहचान ले, बाकी खेल देख कर खुद ही सीख जाएगा.”

इस तरह छोटे ठाकुर ने आसरे को न केवल शराब का आदी बना दिया, बल्कि जुआ खेलना भी सिखा दिया. वह आसरे के साथ ऐसी तिकड़म से जुआ खेलता कि आसरे हर बार 100-200 रुपए जीत कर नशे की हालत में घर जाता और पत्नी से छोटे ठाकुर की बहुत तारीफ करता.

एक दिन राधा ने उसे समझाया, “देखो जी, शराब व जुआ बहुत बुरी चीज है. इस से घर बरबाद हो जाते हैं. महाभारत का युद्ध इसी जुए के कारण हुआ था.”

“मैं क्या तुम्हें बेवकूफ लगता हूं? मुझे जिस काम में फायदा नजर आएगा, वही करूंगा न, तुझे तो पूरा पैसा देता हूं.” आसरे ने गुस्से में जवाब दिया.

“मुझे हराम का पैसा नहीं चाहिए. बरकत ईमानदारी के पैसे से होती है. वैसे भी शराब से तुम्हारा शरीर खराब हो रहा है.”

“तू बड़े आदमियों को नहीं जानती. वे मुझे अपना दोस्त कहते हैं. चल खाना दे, बड़े जोर की भूख लगी है.”

एक दिन छोटे ठाकुर ने आसरे से कहा, “आज हम तुम्हारे घर ताश खेलने चलेंगे. वहीं शराब भी चलेगी.”

आसरे तैयार हो गया और सब को साथ ले कर अपने घर आ गया. सब ने बाहरी कोठरी में अड्डा जमाया. छोटे ठाकुर ने बोतल खोली और आसरे की पत्नी से कुछ नमकीन मांगी. जब वह चना ले कर आई तो बिच्छू सिंह ने कहा, “तेरी पत्नी तो हीरोइन है आसरे. बहुत किस्मत वाला है. बोल मेरी पत्नी से बदलेगा.”

इस फूहड़ मजाक पर सब जोरजोर से हंसने लगे. राधा जल्दी से अंदर चली गई. जुआ शुरू हुआ. उस दिन आसरे हारने लगा. जब उस के सारे पैसे खत्म हो गए तो छोटे ठाकुर ने खेलने के लिए उसे कुछ रुपए उधार दे दिए. जब आसरे उन्हें भी हार गया तो उस ने कहा,”छोटे ठाकुर, अब हमारे पल्ले कुछ नहीं बचा. खानेपीने के भी लाले पड़ जाएंगे.”

“तू घबरा मत, मैं हूं ना. अभी भी तू हारी हुई अपनी सारी रकम जीत सकता है.”

“वह कैसे?”

“एक तगड़ा दाव खेल जा, सब कुछ तेरा.”

“कैसे खेलूं ठाकुर, मेरे पल्ले तो अब कुछ है नहीं.”

“जैसे महाभारत में युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगाया था, उसी तरह तू भी लगा दे पत्नी को दांव पर, पत्नी का तो कुछ नहीं होगा. ढेर सारा पैसा जरूर आ जाएगा.”

एक तो आसरे पहले ही नशे में था, ऊपर से ठाकुर ने उसे चढ़ा दिया. कुछ सोचने के बाद वह उस दांव को खेलने के लिए राजी हो गया. इस बार खेल बड़ा था. वही हुआ, जो ठाकुर चाहता था. आसरे अपनी पत्नी हार गया.

उस के हारते ही ठाकुर के तेवर बदल गए. उस ने गुर्रा कर कहा, “अब राधा मेरी हो गई. तेरा उस पर कोई अधिकार नहीं रहा. रात को इसे खेतों वाले मकान पर पहुंचा देना, नहीं तो जबरदस्ती करनी पड़ेगी.”

इस के बाद वे भी चले गए, आसरे मुंह लटकाए बाहर बैठा सोचता रहा कि पत्नी को कैसे बचाए. काफी देर बाद जब वह घर के अंदर आया तो राधा गायब थी. उस ने चारों ओर ढूंढा, ठाकुर से पूछा, पर राधा का कुछ पता नहीं चला.

राधा के बारे में जैसे ही ठाकुर को पता चला, उस ने साइकिलों से अपने आदमी थाने चौकी व रेलवे स्टेशन की ओर दौड़ाए और खुद बसअड्डे जा पहुंचा. वहीं उस ने राधा को एक तैयार बस में बैठे देख लिया.

वह भी उस बस में चढ़ गया और राधा से बहुत प्यार एवं इज्जत से बोला, “राधा, तुम ख्वाहमख्वाह नाराज हो कर चली आईं. अरे हम तो रामलीला की तरह महाभारत लीला खेल रहे थे. भला आजकल के जमाने में कोई पत्नी को संपत्ति समझ कर जुआ खेल सकता है? पुलिस हमारी हड्डी पसली तोड़ देगी. चलो घर चलो, मजाक को मजाक ही समझा करो.”

लेकिन राधा इन चिकनीचुपड़ी बातों में नहीं आई. उस ने साफसाफ कहा, “ठाकुर, तुम नीचे उतरो, वरना हम शोर मचा कर सामने खड़ी पुलिस को बुला लेंगे.”

ठाकुर बाजी हार कर बस से नीचे उतर आया, बस चली गई. रास्ते में एक शरीफ आदमी मिला तो उस ने राधा के सिर पर हाथ रख कर उस की मदद की जिम्मेदारी ली. राधा के पिता के उम्र का वह आदमी अगले स्टाप पर उसे फुसला कर अपने घर ले गया.

“बेटी, तुम आराम करो. खानापानी कर लो. अभी रात हो गई. सुबह मैं तुम्हें तुम्हारे पिता के पास पहुंचा दूंगा. और हां, दरवाजा अंदर से बंद कर लेना.”

राधा ने ऐसा ही किया. परंतु राधा के कान तब खड़े हुए, जब वह व्यक्ति अपनी पत्नी से कहने लगा, “तुम्हारे भाई की शादी कहीं नहीं हो रही है. उस के लिए एक दुलहन ले कर आया हूं. सुबह को इसे तेरे गांव ले जा कर साले से इस की शादी करा दूंगा. लडक़ी अच्छी है, लगता है घर से भागी है.”

सुन कर राधा सन्न रह गई. जिस पर विश्वास किया, वही दामन चाक करने को तैयार था. कमरे की पिछली खिडक़ी खुली थी, उस में सलाखें भी नहीं लगी थीं. राधा धीरे से उस खिडक़ी से बाहर आई और रात भर सडक़ पकड़ कर चलती रही. उसे कुछ पता नहीं था कि वह कहां है और किधर जा रही है.

भोर होतेहोते वह एक गांव में पहुंची, जहां लोगों ने उस अजनबी महिला को देख कर चोर समझ लिया, वे उसे ले कर प्रधान के पास पहुंचे, “वीरजी, यह महिला गांव की नहीं है. चुपकेचुपके गांव में घुस रही थी. हम इसे पकड़ लाए. कोई चोर लगती है. घरों का भेद जान कर यह अपने साथियों को इशारे से बुला लेगी.”

वीरजी को लडक़ी परेशान व थकी हुई लगी. उस ने पूछा “भूखी हो?”

“हां, लेकिन मैं चोर नहीं, बल्कि एक दुखयारी औरत हूं. मेरे पीछे बदमाश पड़े हैं और मेरी इज्जत खतरे में है. आप मेरी मदद कर के मुझे मेरे पिता के घर पहुंचा दीजिए.”

वीरजी ने उस से उस के पिता का पता पूछा. फिर कहा कि वह थोड़ा आराम कर ले, कुछ खापी ले. उसे उस के घर पहुंचा दिया जाएगा. अब उसे डरने की जरूरत नहीं है. वीरजी ने राधा की कदकाठी और उम्र देखी तो उस के मुंह में पानी आ गया. उस ने सोचा कि क्यों न इसे पुत्तनबाई के हाथ बेच दिया जाए. वहां से अच्छे पैसे मिल जाएंगे, साथ ही वहां उस का आनाजाना भी होता रहेगा.

राधा थकी थी. नाश्ता कर के लेटी तो उसे नींद आ गई. उस की आंख खुली तो देखा वीरजी पास खड़ा उसे ललचाई नजरों से देख रहा है. वह हड़बड़ा कर उठ बैठी तो वीरजी बोले, “बेटी, बस का समय हो गया है. मैं तुम्हें जगाने आया था. चलो, पास ही बस स्टाप है, वहीं से बस पकड़ लेंगे.”

राधा अपनी साड़ी ठीक कर के तैयार हो गई. दोनों बसस्टाप पर आ गए. बस आई तो वह वीरजी के साथ बस में बैठ गई. अब वह बहुत चौकन्नी थी. उसे वीरजी अच्छा आदमी नहीं लग रहा था. बस जब फर्रुखाबाद बस अड्डे पर पहुंची तो वीरजी ने राधा को बस से उतारा और बाहर की ओर ले कर चल दिया. वहीं फाटक पर एक सिपाही ड्यूटी पर था.

राधा जोर से चिल्लाई तो सिपाही ने पास आ कर पूछा, “क्या बात है, क्यों शोर मचा रही है?”

“यह आदमी मुझे घर से भगा कर कहीं खतरे की जगह ले जा रहा है. आप मेरी मदद कीजिए.”

वीरजी ने पासा पलटते देखा तो धीरे से वहां से खिसक गया. राधा के इशारे पर सिपाही ने उसे रोक लिया और दोनों को सीधे पुलिस थाने ले गया. राधा ने वहां अपना पूरा हाल बताया तो थानेदार ने रिपोर्ट लिख कर वीरजी को लौकअप में डाल दिया और राधा को डाक्टरी मुआएने के लिए भेज दिया.

बाद में राधा तो अपने पिता के घर पहुंच गई, परंतु वीरजी को मजिस्ट्रेट ने जेल भेज दिया. वीरजी ने अपने घर वालों को बुला कर जमानत कराई और सीधे रायबरेली पहुंच कर दिलीप के पास पहुंचा. चूंकि मुकदमा इसी जिले का था, इसलिए फर्रुखाबाद थाने ने बछरावां थाने को तफतीश के लिए कागजात भेज दिए. मुकदमा यहीं चलना था.

बछरावां के थानेदार ने बिच्छू सिंह से ले कर वीरजी तक सभी को इस मुकदमे में मुलजिम बनाया और न्यायालय में चार्जशीट दाखिल कर दी. चूंकि मुकदमा भादंवि की धारा 365, 366 के अंतर्गत था, इसलिए निचली अदालत ने इसे सेशन कोर्ट के सुपुर्द कर दिया. जब इस न्यायालय में काररवाई शुरु हुई तो सब से पहले सरकारी वकील ने अभियुक्तों को न्यायालय में हाजिर किया.

उस के बाद अभियुक्तों के विरुद्ध अभियोग पढ़ा और बताया कि इसे सिद्ध करने के लिए वकील साहब क्या साक्ष्य पेश करेंगे. न्यायालय ने कागजात और अभियोग को देखते हुए दिलीप से इस पर बहस करने को कहा, पर दिलीप ने इनकार कर दिया.

इस के बाद जज ने अभियुक्तों पर धारा 365, 366, 368 का अभियोग लगाया तो अभियुक्तों ने यह आरोप मानने से इनकार करते हुए मुकदमा लडऩे की प्रार्थना की. इस पर जज साहब ने अगली तारीख पर अभियोजन पक्ष को साक्ष्य पेश करने को कहा. साथ ही उन के गवाहों को सम्मान जारी कर के बुलाया गया.

अगली तारीख पर सरकारी वकील ने 3 गवाह व अन्य सबूत न्यायालय में पेश किए, जिन से दिलीप ने एक ही प्रश्न पूछा, “क्या आप ने देखा था कि राधा अपने घर से बिच्छू सिंह के साथ जबरदस्ती ले जाई जा रही थी?”

“जी नहीं, मुझे गांव में पता चला था.” गवाह ने जवाब दिया.

“आप राधा को पहचानते हैं?” दिलीप का अगला सवाल था.

“जी हां, उसे गांव में देखा था.”

“बताइए, न्यायालय में हाजिर 4 महिलाओं में राधा कौन है?” दिलीप ने पूछा.

गवाहों ने राधा को नहीं पहचाना.

“आप बिच्छू सिंह और वीरजी को इस अदालत में 10 आदमियों के बीच में पहचान सकते हैं?”

“जी हां.”

लेकिन उन्होंने 3 गलतियां करने के बाद भी उन्हें नहीं पहचाना.

सरकारी गवाह जब पूरे उतर गए तो दिलीप ने बचाव में कोई गवाह पेश नहीं किया. इस के बाद मुकदमा बहस में पहुंच गया. बहस में सरकारी वकील ने कहा, “सर, औरत चूंकि 18 साल से अधिक उम्र की है, इसलिए यह अपहरण का मुकदमा बनता है.”

वकील एक पल रुक कर बोला, “पहली बात तो यह कि बिच्छू सिंह ने बुरी नीयत से आसरे से राधा को जुए के दांव पर लगवाया और उसे चालाकी से जीत कर अपने खेतों वाले घर पर जबरन बुलाया. यह बात गवाही से साबित हो चुकी है.

दूसरे शेष 2 अभियुक्तों, जिन में वीरजी भी शामिल हैं, ने राधा को बुरी नीयत से अपनेअपने घरों में बंद कर के रखा, जो कानूनन उतना ही बड़ा जुर्म है, जितना अपहरण. इतना ही नहीं, राधा को शादी के लिए मजबूर करना भी गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है.”

सरकारी वकील ने आखिर में कहा कि गवाहों और राधा द्वारा यह आरोप पूरी तरह सिद्ध कर दिए गए हैं कि इन लोगों ने कानूनी अपराध तो किया ही है, एक महिला के साथ दुर्व्यवहार भी किया है, जो एक सामाजिक अपराध है. इसलिए इन्हें सख्त सजा दी जाए.”

इस के बाद दिलीप ने अपना बचाव पक्ष रखा, “सर, मैं सच्चाई से पूरा खुलासा करना चाहता हूं ताकि न्यायालय को न्याय करने में आसानी रहे.”

आरोपियों की ओर देख कर दिलीप ने कहना शुरू किया, “पहली बात तो यह कि अपहरण का आरोप साबित नहीं हो सका कि बिच्छू सिंह ने राधा को उस के घर से भगाया था. वह उसे बसअड्डे पर मिली थी, वहां भी उस के साथ कोई जोरजबरदस्ती नहीं की गई. वीरजी राधा को उस के पिता के घर ले जा रहा था. वह पुलिस को देख कर डर कर भागा, जो अपराध नहीं है.

“वीरजी के मन की बात सरकारी वकील नहीं साबित कर सके. लिहाजा वही माना जाए, जो उस ने राधा से चलते समय कहा. दूसरे न तो गवाहों ने यह नहीं कहा और न ही राधा ने दुर्व्यवहार की शिकायत की. यह सरकारी वकील का अनुमान ही हो सकता है. तीसरे आसरे को धोखा दे कर जुआ खिलाया गया और शराब पिला कर राधा को दांव पर लगवाया गया. अत: उस की भी गलती सिद्ध नहीं हुई.”

अंत में दिलीप ने कहा, “सर, निवेदन है कि अभियुक्तों को बेगुनाह मानते हुए इज्जत के साथ दोषमुक्त कर दिया जाए.”

अगली तारीख पर जज साहब ने सभी अभियुक्तों को मुक्त कर दिया, पर बिच्छू सिंह को धोखाधड़ी के इलजाम में 6 महीने की सजा बामशक्कत सुनाई गई.

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 3

रविंद्र ने 6 साल की बच्ची को बनाया था पहला शिकार

सन 2008 की बात है. उस समय रविंद्र करीब 17 साल का था. एक बार वह आधी रात को दोस्तों से फारिग हो कर अपने घर लौट रहा था. उस ने कराला में एक झुग्गी के बाहर मांबाप के साथ सो रही बच्ची को देखा. उस बच्ची की उम्र कोई 6 साल थी.

उस बच्ची को देख कर रविंद्र की कामवासना जाग उठी. वह चुपके से गहरी नींद में सो रही उस बच्ची को उठा ले गया. बच्ची के मांबाप को पता ही नहीं चला कि उन की बेटी उन के पास से गायब हो चुकी है. रविंद्र उस बच्ची को सूखी नहर की तरफ ले गया. जैसे ही उस ने उस बच्ची को जमीन पर लिटाया वह जाग गई.

खुद को सुनसान और अंधेरे में देख कर वह डर गई. वहां उस के मांबाप की जगह एक अनजान आदमी था. वह रोने लगी तो रविंद्र ने डराधमका कर उसे चुप करा दिया. उस के बाद उस ने उस के साथ कुकर्म किया. बच्ची दर्द से चिल्लाने लगी तो उस ने उस का मुंह दबा दिया. कुछ ही देर में वह बेहोश हो गई. भेद खुलने के डर से उस ने बच्ची की गला दबा कर हत्या कर दी और अपने घर चला गया.

अगली सुबह झुग्गी के बाहर सो रहे दंपति को जब अपनी बेटी गायब मिली तो वह उसे खोजने लगे. उसी दौरान उन्हें सूखी नहर में बेटी की लाश पड़ी होने की जानकारी मिली तो वे वहां पहुंचे. इस मामले की थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई, लेकिन पुलिस केस को नहीं खोल सकी.

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केस न खुलने से रविंद्र की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद सन 2009 में बाहरी दिल्ली के ही विजय विहार, रोहिणी इलाके से 6- 7 साल के एक लडक़े को बहलाफुसला कर वह सुनसान जगह पर ले गया और कुकर्म करने के बाद उस की हत्या कर दी. इस मामले को भी पुलिस नहीं खोल सकी.

रविंद्र को अपनी कामवासना शांत करने का यह तरीका अच्छा लगा. क्योंकि वह 2 हत्याएं कर चुका था और दोनों ही मामलों में वह सुरक्षित रहा, इस से उस के मन का डर निकल गया. इस के बाद वह कंझावला इलाके में एक बच्ची को बहलाफुसला कर सुनसान जगह पर ले गया और उस के साथ कुकर्म कर के उस की हत्या कर दी.

बच्चियों को देख कर जाग जाती थी कामकुंठा

वह कोई एक काम जम कर नहीं करता था. कभी गाड़ी पर हेल्परी का काम करता तो कभी बेलदारी करने लगता. नोएडा के सेक्टर-72 में वह एक बिल्डिंग में काम कर रहा था. वहां भी उस ने अपने साथ काम करने वाली महिला बेलदारों की 2 बच्चियों को अलगअलग समय पर अपनी हवस का शिकार बनाया. वह उन बच्चियों को चौकलेट दिलाने के लालच में गेहूं के खेत में ले गया था. वहीं पर उस ने उन की गला दबा कर हत्या कर दी थी.

उस के पिता ब्रह्मानंद का दिल्ली आने के बाद अपने गांव जाना नहीं हो पाता था, लेकिन रविंद्र कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. खानदान के और लोग भी दिल्ली और नोएडा चले आए थे. रविंद्र जब भी गांव जाता, गंज डुंडवारा के पास गांव नूरपुर में अपनी मौसी मुन्नी देवी के यहां ठहरता था. वहीं पास के ही बिरारपुर गांव में उस की बुआ कृपा देवी का घर था. कभीकभी वह उन के यहां भी चला जाता था.

उस की हैवानियत वहां भी जाग उठी तो उस ने वहां भी अलगअलग समय पर 2 बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाया. अब तक रविंद्र सैक्स एडिक्ट हो चुका था. उस की मानसिकता ऐसी हो गई थी कि वह अपने शिकार को तलाशता रहता. बच्चे उस का शिकार आसानी से बन जाते थे, इसलिए वे उस का सौफ्ट टारगेट बन जाते थे. ज्यादातर वह झुग्गीझोपडिय़ों या गरीब परिवारों के बच्चों को ही निशाना बनाता था, ताकि वे लोग ज्यादा कानूनी काररवाई न कर सकें.

इस तरह उस ने दिल्ली के निहाल विहार, मुंडका, कंझावला, बादली, शालीमार बाग, नरेला, विजय विहार, अलीपुर के अलावा हरियाणा के बहादुरगढ़, फरीदाबाद, उत्तर प्रदेश के सिकंदराऊ, अलीगढ़ आदि जगहों पर 6 से 9 साल के करीब 40 लडक़ेलड़कियों को अपना निशाना बनाया. उस की मानसिकता ऐसी हो गई थी कि वह कुकर्म के बाद हर बच्चे की हत्या कर देता था. ज्यादातर के साथ उस ने मारने के बाद कुकर्म किया था.

पहली बार दोस्त के साथ हुआ गिरफ्तार

उस ने कई बच्चों की लाशें ऐसी जगहों पर डाली थीं कि पुलिस भी उन्हें बरामद नहीं कर सकी. 4 जून  को उस ने अपने दोस्त राहुल के साथ अपनी ही बस्ती जैन नगर के कृष्ण कुमार के 6 साल के बेटे शिबू को सोते हुए उठा लिया. दोनों उसे आधा किलोमीटर दूर सुनसान जगह पर ले गए और उस के साथ कुकर्म किया.

राहुल नाई था. वह अपने साथ उस्तरा भी ले गया था. बाद में उस ने उसी उस्तरे से उस का गला काट कर लाश सूखे गटर में डाल दी थी. बच्चे को गटर में डालते हुए उन्हें किसी ने देख लिया था. उन दोनों ने तो यही समझा था कि शिबू मर चुका है, लेकिन वह जीवित था. अगले दिन जब खोजबीन हुई तो वह सूखे गटर में पड़ा मिला.

जिस शख्स ने रविंद्र और राहुल को देखा था, उसी ने अगले दिन पुलिस को सब बता दिया. नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने रविंद्र और राहुल को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

रविंद्र जिस सन्नी के साथ ट्रेलर पर हैल्परी करता था, उसी सन्नी के रविंद्र की मां मंजू से अवैध संबंध थे. रविंद्र के जेल जाने के बाद मंजू परेशान हो गई. वह बेटे की जमानत की कोशिश में लग गई. कहसुन कर उस ने सन्नी के पिता सुरेंद्र से बेटे की जमानत करवा ली. लिहाजा 20 मई, 2015 को रविंद्र जेल से बाहर आ गया.

बात 13 जुलाई की है. मंजू अपने घर में अकेली थी. उस ने फोन कर के अपने प्रेमी सन्नी को घर पर बुला लिया. दोनों अपनी हसरतें पूरी करते, अचानक रविंद्र घर आ गया था. सन्नी उस समय मंजू से बातें कर रहा था. इसलिए रविंद्र को उस पर कोई शक वगैरह नहीं हुआ. रविंद्र के आने के बाद मंजू और सन्नी की योजना खटाई में पड़ती नजर आ रही थी.

बेटे को बाहर भेजने के लिए मंजू ने घर में पड़ा टेप रिकौर्डर रविंद्र को देते हुए कहा कि वह उसे ठीक करा लाए. मां के कहने पर रविंद्र टेप रिकौर्डर ठीक कराने चला गया.

एक रात में टूटी दोस्ती की इमारत – भाग 3

18 जुलाई को जावेद ने फोन कर के गौहर को जयपुर से फर्रूखाबाद बुलाया. वह 19 जुलाई की सुबह फर्रूखाबाद पहुंच गया. काम के सिलसिले में दोनों पूरे दिन भागदौड़ करते रहे. गौहर ने चौक क्षेत्र स्थित एक एटीएम से कई बार में 50 हजार रुपए निकाले. उसे इन पैसों की किसी काम के लिए जरूरत थी.

रात में गौहर हमेशा की तरह जावेद के घर रुका. रात में सब के सो जाने के बाद रुखसाना गौहर के कमरे में पहुंच गई और रोजाना की तरह दोनों मस्ती के खेल में डूब गए. रात में जावेद बाथरूम जाने के लिए उठा तो उसे गौहर के कमरे से आवाजें आती सुनाई दीं. उस ने अंदर झांक कर देखा तो उस की आंखें हैरत से फटी रह गईं. उस का दोस्त गौहर उस के घर की इज्जत से खेल रहा था.

यह देख कर वह गुस्से से भर उठा. लेकिन किसी तरह उस ने खुद पर काबू पाया और वहां से अपने कमरे में चला आया. उसे दोस्ती में इतना बड़ा धोखा मिलने की कतई उम्मीद नहीं थी. इस धोखे से जावेद इतना तिलमिला उठा कि उस ने गौहर की हत्या करने की ठान ली. इसी उधेड़बुन में वह पूरी रात नहीं सो सका.

अगले दिन यानी 20 जुलाई की सुबह वह उठ कर बाइक से बाजार गया और 70 रुपए में एक छुरी खरीद कर अपनी बाइक की डिक्की में डाल ली. इस के अलावा उस ने नींद की गोलियां भी खरीद कर, पीसने के बाद जेब में रख लीं. दिन में गौहर और जावेद काम के सिलसिले में घूमते रहे. इसी बीच गौहर ने एटीएम से कई बार पैसे निकाले. अब कुल मिला कर उस के पास एक लाख रुपए की रकम हो गई थी.

जावेद के मोहल्ले में ही कासिम नाम का एक युवक रहता था. वह फर्रूखाबाद थाना कोतवाली के पास बूरा वाली गली में स्थित एक होटल में काम करता था. जावेद उस होटल में जाता रहता था. कासिम उसी के मोहल्ले में रहता था. जावेद उसे चेले के रूप में अपने साथ रखने लगा था. वह शराब पीता या होटल में खाता था तो कासिम को भी शामिल कर लेता था.

20 जुलाई को जब जावेद गौहर के साथ था तो कासिम उसे मिल गया. उस ने कासिम को भी अपनी बाइक पर बैठा लिया. रात में गौहर को जयपुर वापस जाना था, इसलिए उस ने अपना बैग साथ में ले रखा था. बैग में उस के कपड़े व एटीएम से निकाले गए एक लाख रुपए थे.

कासिम को साथ लेने के बाद जावेद और गौहर असगर रोड गए. गौहर को जाने से पहले अपने मामा आफाक से मिलना था. वहां जा कर कासिम बाहर रोड पर ही उतर गया. जबकि गौहर जावेद के साथ मामा के घर चला गया. वहां से दोनों देर शाम निकले. कासिम बाहर ही उन का इंतजार कर रहा था. वह फिर बाइक पर उन के साथ हो लिया.

रात 8 बजे जावेद दोनों को ले कर चौक स्थित एक जूस के स्टाल पर गया. वहां उस ने गौहर के गिलास में नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया. जूस पीने के बाद वह कासिम के साथ गौहर को बाइक पर बैठा कर कायमगंज रोड पर ले गया. तब तक गौहर अर्द्धमूर्छित हो गया था. जावेद ने सारी योजना पहले ही बना रखी थी. वह बाइक सड़क से 300 मीटर दूर बजरंग ईंट भट्ठे के पास एक खेत में ले गया. वहां उस ने गौहर को धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया.

जब जावेद ने डिक्की से छुरी निकाली तो उस की मंशा भांप कर कासिम उस का साथ देने से मना कर के जाने लगा. इस पर जावेद ने उसे धमकाया कि अगर वह उस का साथ नहीं देगा तो वह गौहर के साथसाथ उसे भी जान से मार देगा.

जावेद ने कासिम के साथ मिल कर गौहर को दबोच लिया. इस के बाद जावेद गौहर के सीने पर बैठ गया और साथ लाई तेज धारदार छुरी से गौहर का गला काटने लगा. अर्द्धमूर्छित होने की वजह से गौहर अपने बचाव में कुछ नहीं कर सका. जावेद ने गौहर के सिर को काट कर धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद उस ने गौहर की कमीज और पैंट उस के शरीर से निकाल कर वहीं डाल दी.

उधर कासिम ने गौहर के बैग में रखे कपड़े निकाल कर जमीन पर फेंक दिए. बैग में रखे पैसे निकाल कर कुछ रुपए कासिम ने जावेद की आंख बचा कर अपने जेब में ठूंस लिए, बाकी पैसे उस ने जावेद को दे दिए.

जावेद ने गौहर के कपड़ों की तलाशी ली तो उस का मोबाइल मिल गया. जावेद ने खाली बैग में गौहर के कटे सिर को रखने के बाद उसी में हत्या में इस्तेमाल की गई छुरी और गौहर का मोबाइल डाला और बैग बंद कर दिया. इस के बाद जावेद कासिम के साथ घटियाघाट पुल पर गया. वहां उन्होंने बैग से सिर, छुरी और मोबाइल निकाल कर गंगा नदी में फेंक दिए, साथ ही खाली बैग भी उसी नदी में फेंक दिया. तत्पश्चात दोनों अपने घर लौट आए.

लाश की शिनाख्त न हो पाए, इसी वजह से जावेद और कासिम ने गौहर का सिर काट कर गंगा नदी में फेंका था, लेकिन उन की एक गलती उन्हें भारी पड़ गई. तलाशी में वह गौहर का एटीएम कार्ड नहीं देख पाए, उसी एटीएम कार्ड से पुलिस लाश की शिनाख्त कर के उन तक पहुंच गई.

यह सच है कि गुनहगार कितनी सफाई से भी अपराध को अंजाम दे, कोई न कोई सुबूत छोड़ ही देता है, जो उस के गले का फंदा बन जाता है. यही जावेद और कासिम के साथ हुआ.

पुलिस ने जावेद से पूछताछ के बाद गौहर से लूटे गए 65 हजार रुपए और गौहर की होंडा बाइक उस के घर से बरामद कर ली. गौहर के सिर की बरामदगी के लिए कई बार गोताखोरों को गंगा नदी में उतारा गया, लेकिन सिर बरामद नहीं हो सका.

थानाप्रभारी राघवन सिंह ने 26 जुलाई की शाम 4 बजे कासिम को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस के घर से लूटे गए 15 हजार रुपए भी बरामद कर लिए.

बाद में पुलिस ने इस केस में भादंवि की धारा 404/34 और बढ़ा दी. साथ ही केस में जावेद के साथ ही कासिम को भी नामजद कर दिया गया. इस के बाद दोनों आरोपियों को अदालत पर पेश कर के न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बुरी नीयत वाला दोस्त

सुबह के लगभग 9 बजे थाना गोरेगांव पश्चिम में ड्यूटी पर तैनात पुलिस उपनिरीक्षक कादवाने को सूचना मिली कि  गोरेगांव के प्रेमनगर के विश्वकर्मा रोड की अंकुर बिल्डिंग के पास हाइपर सिटी मौल के पीछे से बहने वाले नाले में एक लाश पड़ी है. मामला हत्या का लगता है. यह सूचना उन्हें पुलिस कंट्रोल रूम से मिली थी. उन्होंने तुरंत यह जानकारी थाने में उपस्थित पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर को दी.

भाई माहाडेश्वर सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल थाना से लगभग 1 किलोमीटर दूर था. घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने देखा, प्लास्टिक की एक बड़ी सी थैली में लाश भरी थी, जिस का मुंह मजबूत रस्सी से बंधा हुआ था. पुलिस ने थैली को नाले से बाहर निकाल कर खुलवाया. लाश निकाल कर उस का निरीक्षण शुरू हुआ.

मृतक की उम्र 35 से 40 साल के बीच थी. उस की हत्या जिस बेरहमी से की गई थी, इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे को मृतक से गहरी नफरत थी. उस के गले, पेट, सीने और सिर पर काफी बड़ेबड़े घाव थे. लाश मोटी सी चादर में लपेट कर थैली में भरी गई थी. पूरी चादर खून से भीगी हुई थी.

पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि सूचना पा कर थाना गोरेगांव के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक अरुण जाधव भी आ पहुंचे. वह भी शव का बारीकी से निरीक्षण करने लगे. निरीक्षण के बाद शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की जा रही थी कि पुलिस उपायुक्त महेश पाटिल और सहायक पुलिस आयुक्त उत्तम खैर भोड़े भी आ पहुंचे. पुलिस अधिकारियों ने भी शव और घटनास्थल का निरीक्षण किया.

पुलिस अधिकारी शव एवं घटनास्थल का निरीक्षण कर के चले गए. इस के बाद वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक अरुण जाधव ने घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी कीं और शव को पोस्टमार्टम के लिए बोरीवली के भगवती अस्पताल भिजवा दिया. न तो लाश की शिनाख्त हुई थी, न घटनास्थल से ऐसी कोई चीज मिली थी, जिस से मामले की जांच में उन्हें मदद मिलती. उन्होंने इस मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर को सौंप दी.

पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर ने जांच को आगे बढ़ाने के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में सहायक पुलिस निरीक्षक प्रकाश जाधव, पुलिस उपनिरीक्षक संजय निवालकर, सिपाही प्रमोद तावड़े, मंगेश घोमणे, शिवराज सावंत, किरण लंगड़े और रामचंद्र सारंग को शामिल किया. पुलिस टीम यह पता लगाने में जुट गई कि मृतक कौन था, क्योंकि जब तक शिनाख्त नहीं हो जाती, जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी.

पहले तो इस टीम ने मृतक का हुलिया बता कर शहर के सभी पुलिस थानों से यह जानने की कोशिश की इस तरह के आदमी की कहीं गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. जब इस पुलिस टीम को शहर के किसी थाने में कोई गुमशुदगी न दर्ज होने की सूचना मिली तो पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर ने मुंबई से निकलने वाले सभी दैनिक समाचार पत्रों में शव की तसवीरें छपवा कर शिनाख्त की अपील की. मगर इस से भी कोई लाभ नहीं हुआ.

जब पुलिस टीम को कोई रास्ता नहीं सूझा तो टीम में शामिल पुलिस उपनिरीक्षक संजय निवालकर ने मृतक की फ्रिंगरप्रिंट ब्यूरो भेज कर यह जानने की कोशिश की कि उस के बारे में कोई जानकारी तो नहीं दर्ज है.  आखिर सप्ताह भर बाद फिंगरप्रिंट ब्यूरो से मृतक के बारे में जो जानकारी मिली, वह चौंकाने वाली थी. फ्रिंगरप्रिंट ब्यूरो के रिकौर्ड के अनुसार मृतक का नाम मोहम्मद अब्दुल हसन बाबू चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला था. वह मालाड पूर्व के मातंगगढ़ की स्लम बस्ती की पिपली पाड़ा पानी की टंकी के पास रहता था.

वह अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति था. 2002 में उसे थाना मालाड कुराद विलेज पुलिस ने दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार कर के जेल भेजा था. इस मामले में उसे सन 2003 में 7 साल की सजा हुई थी. लेकिन उस ने यह सजा पूरी नहीं की. 2005 में वह पैरोल पर बाहर आया तो वापस जेल नहीं गया.

मृतक की शिनाख्त हो गई तो पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर उस के बारे में पता लगाने लगे. वह फिंगरप्रिंट ब्यूरो द्वारा मिले पते पर पहुंचे तो वहां उस की पूर्व पत्नी रेहाना चौधरी मिली. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उस का और बाबू लाईटवाले का वैवाहिक संबंध 2001 में उसी दिन खत्म हो गया था, जिस दिन वह दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार कर के जेल भेजा गया था. उस के जेल जाने के बाद उस ने अजीत पटेल से विवाह कर के अपनी अलग गृहस्थी बसा ली थी. उस के बाद बाबू लाईटवाला का उस से कोई संबंध नहीं रह गया था.

रेहाना चौधरी के इस बयान से पुलिस की उम्मीदों पर पानी फिर गया था. लेकिन पुलिस निराश नहीं हुई. रेहाना चौधरी को विश्वास में ले कर बाबू लाईटवाला के दोस्तों के बारे में पूछा गया तो उस ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘उस के दोस्तों के बारे में मुझे अधिक तो नहीं मालूम, लेकिन 3 महीने पहले उस का एक दोस्त मेरे पास पैसों के लिए आया था. उस ने फोन कर के कहा था कि उसे पैसों की बहुत जरूरत है, इसलिए वह अपने एक दोस्त को भेज रहा है. उसे एक हजार रुपए दे देना.’’

रेहाना चौधरी की इस बात से पुलिस टीम को आशा की एक किरण दिखाई दी. आगे की जांच के लिए पुलिस ने रेहाना चौधरी से वह मोबाइल नंबर ले लिया, जिस से बाबू लाईटवाला ने फोन कर के 1 हजार रुपए मंगाए थे. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर चेक की तो उस में एक नंबर ऐसा था, जिस पर उस नंबर से सब से ज्यादा बात हुई थी.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद था. तब पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर नीलेश का था. लेकिन उस की आईडी में जो पता लिखा था, उस पर वह नहीं मिला. तब पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में भी एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर उस ने सब से अधिक बात की थी. पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह चल रहा था. बातचीत में पता चला कि वह नंबर नीलेश की प्रेमिका का था.

पुलिस नीलेश के बारे में पता करने उस की प्रेमिका के पास पहुंची तो पूछताछ में उस ने बताया कि कुछ दिनों पहले नीलेश ने उसे फोन कर के बताया था कि उस पर लाईटवाला की हत्या का आरोप है, इसलिए इन दिनों वह उस से मिलने नहीं आ सकता. उस ने यह भी कहा था कि वह उसे भूल जाए और किसी दूसरे से शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा ले. प्रेमी की इस बात से वह काफी परेशान थी.

इस बात से साफ हो गया था कि बाबू लाईटवाला की हत्या नीलेश ने की थी. अब पुलिस उसे गिरफ्तार करने की फिराक में लग गई थी. प्रेमिका से पुलिस को नीलेश का पता मिल ही गया था. पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो संयोग से वह घर पर ही मिल गया. लेकिन बड़ी आसानी से वह पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया.

दरअसल पुलिस टीम उसे पहचानती तो थी नहीं, इसलिए उस के घर पहुंच कर जब पुलिस वालों ने उसी से नीलेश के बारे में पूछा तो उस ने पुलिस से कह दिया कि वह शूटिंग पर गया है, शाम को मिलेगा. पुलिस टीम वापस चली गई तो वह फरार हो गया.   बाद में जब पुलिस टीम को इस बात की जानकारी हुई तो वह हाथ मल कर रह गई. लेकिन पुलिस टीम निराश नहीं हुई. वह नीलेश की तलाश में तेजी से लग गई. आखिर अपने मुखबिरों की मदद से पुलिस ने नीलेश को ढूंढ़ निकाला.

10 अक्तूबर, 2013 को पुलिस टीम को सूचना मिली कि नीलेश अपने किसी रिश्तेदार से मिलने गोरेगांव राम मंदिर रोड़ पर स्थित एमएमआरडी में आने वाला है. इसी सूचना के आधार पर पुलिस टीम ने घेर कर उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो मोहम्मद अब्दुल हसन चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

तमिलनाडु का रहने वाला 30 वर्षीय नीलेश गोडसे लगभग 10 साल पहले मुंबई आया तो गोरेगांव पूर्व चरण देव पाड़ा आदर्श नगर आरे कालोनी में रह रहे अपने 2 भाइयों संतोष गोडसे, शंकर गोडसे और भाभी सविता के साथ रहने लगा. नीलेश सुंदर, स्वस्थ और महत्त्वाकांक्षी युवक था. गांव से 10वीं पास कर के कामधाम की तलाश में वह मुंबई में रहने वाले अपने भाइयों और भाभी के पास आया था. यहां वह फिल्मों में डुप्लीकेट का काम करने लगा.

मोहम्मद अब्दुल हसन चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला पैरोल पर जेल से बाहर आने के बाद वापस नहीं गया तो अपने रहने और छिपने के लिए स्थाई ठिकाना ढूंढ़ने लगा. क्योंकि पुलिस से बचने के लिए उसे इधरउधर भागना पड़ रहा था. इस बीच वह अपने खर्च के लिए फिल्मों के सेटों पर जा कर छोटामोटा लाईट का काम कर लेता था. उसी दौरान किसी फिल्म की शूटिंग के सेट पर बाबू लाईटवाला की मुलाकात नीलेश से हुई तो दोनों में जल्दी ही गहरी दोस्ती हो गई.

दोस्ती होने के बाद बाबू लाईटवाला ने अपनी परेशानी नीलेश को बताई तो आंख बंद कर के वह उस की मदद को तैयार हो गया. उस ने अपने पड़ोस में ही बाबू लाईटवाला को एक कमरा किराए पर दिला दिया. यही नहीं, उस ने कामधाम के लिए बाबू लाईटवाला को 80 हजार रुपए उधार भी दिए. इन पैसों से बाबू लाईटवाला अवैध झोपड़े बना कर बेचने लगा.

जैसा कि कहा जाता है, सांप को कितना भी दूध पिलाओ, मौका मिलने पर वह डंसने से नहीं चूकता. कुछ ऐसा ही हाल बाबू लाईटवाला का भी था. उस की नजर नीलेश की खूबसूरत भाभी पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. उसे जब भी मौका मिलता, नीलेश की भाभी सविता से गंदेगंदे मजाक करने लगता.

कुछ दिनों तक सविता ने बाबू लाईटवाला की इस हंसीमजाक पर ध्यान नहीं दिया. इस से उस का साहस बढ़ता गया और वह शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा. सविता को जब बाबू लाईटवाला के बुरे इरादे का अहसास हुआ तो उस ने यह बात अपने पति संतोष तथा देवरों नीलेश और शंकर को बताई.

बाबू लाईटवाला की गंदी नीयत का पता जब तीनों भाइयों को चला तो उन का खून खौल उठा. उन्होंने उसे सबक सिखाने का क्रूर फैसला ले लिया और इस में नीलेश गोडसे ने अपने एक दोस्त सतीश यादव को भी शामिल कर लिया.

अपने उसी फैसले के अनुसार 9 अक्तूबर, 2013 की शाम को बाबू लाईटवाला जब अपने कमरे पर आया तो नीलेश ने पार्टी के बहाने उसे अपने घर बुला लिया. उस बस्ती में नीलेश के 3 कमरे थे, जिन में से एक में नीलेश अकेला ही रहता था. नीलेश गोडसे ने पहले बाबू लाईटवाला को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में धुत हो गया तो तीनों भाइयों ने सतीश यादव की मदद से उसे मौत के घाट उतार दिया. बाबू लाईटवाला की हत्या करते समय सतीश यादव जख्मी भी हो गया.

बाबू लाईटवाला की हत्या करने के बाद उन्होंने लाश को मोटी चादर में लपेटी और एक बड़ी सी प्लास्टिक की थैली में भर कर उस का मुंह मजबूत रस्सी से बांध दिया. लाश ठिकाने लगाने के लिए वे रात होने का इंतजार करने लगे. रात गहरी होने पर वे लाश को ले जा कर आभू कालोनी के घने जंगलों में फेंक देना चाहते थे. लेकिन इस के लिए नीलेश तैयार नहीं हुआ, क्योंकि उसे संदेह था कि अगर लाश आभू कालोनी के घने जंगलों में फेंकी गई तो बरामद होने पर पुलिस और बस्ती वालों को उसी पर शक होगा.

क्योंकि बाबू लाईटवाला और नीलेश की दोस्ती के बारे में वहां सभी को पता था. इसलिए वह लाश को ऐसी जगह फेंकना चाहता था, जहां उसे कोई न पहचान सके. रात होने पर नीलेश अपने एक दोस्त की एसेंट कार यह कह कर मांग लाया कि उस की मां को दिल का दौरा पड़ा है, जिसे उसे अस्पताल ले जाना है.

उसी कार की डिग्गी में बाबू लाईटवाला की लाश रख कर चारों ठिकाने लगाने के लिए निकल पड़े. घूमतेफिरते वे गोरेगांव (पश्चिम) हाइपर सिटी मौल के पीछे पहुंचे तो उन्हें नाला दिखाई दिया. सुनसान जगह देख कर उन्होंने लाश को उसी नाले में फेंक दी और चलते बने.

बाबू लाईटवाला हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त नीलेश पुलिस टीम के हाथ लग गया था. लेकिन अभी 3 लोगों को गिरफ्तार करना था. पुलिस टीम उन की तलाश में लग गई. पुलिस को सभी के मोबाइल नंबर मिल ही गए थे. उन्हीं से पुलिस उन लोगों की लोकेशन पता करने लगी.

संतोष और शंकर के मोबाइल फोन की लोकेशन उन के घर की ही मिल रही थी. पुलिस टीम उन के घर पहुंची तो घर के बाहर ताला लगा था. यह देख कर पुलिस पशोपेश में पड़ गई, क्योंकि मोबाइल फोन की लोकेशन के अनुसार उन्हें घर पर ही होना चाहिए था. पुलिस ने आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ की तो वे भी कुछ नहीं बता सके. अंत में मोहल्ले वालों की उपस्थिति में घर का ताला तोड़ा गया तो दोनों भाई घर के अंदर ही छिपे मिल गए.

अब पुलिस को सतीश यादव को गिरफ्तार करना था. उस के मोबाइल फोन की लोकेशन निकलवाई गई तो वह मुंबई के जे.जे. अस्पताल की मिली. पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई. लेकिन जब पुलिस वहां पहुंची तो पता चला कि जब वे लोग बाबू लाईटवाला की चापड़ से हत्या कर रहे थे तो सतीश को चोट लग गई थी. सतीश वहां भरती हो कर उसी का इलाज करा रहा था.

अस्पताल पहुंच कर भी सतीश को  गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को काफी परेशान होना पड़ा था. क्योंकि वहां वह नाम बदल कर वहां भरती था. इस वजह से पुलिस को अस्पताल का एकएक बेड चैक करना पड़ा था. इस के बावजूद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था.

मोहम्मद अब्दुल हसन बाबू चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला की हत्या करने वाले चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के पुलिस ने महानगर मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक किसी भी अभियुक्त की जमानत नहीं हुई थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर – भाग 3

रईस मंसूरी ने बाद में इनवर्टर का काम शुरू कर दिया. उस ने एकएक कर के 4 शादियां कीं. 3 बीवियों को वह तलाक दे चुका था, अब चौथी बीवी नुसरतजहां के साथ रह रहा था. पति के मरने के बाद तसलीमा को आर्थिक परेशानी हुई तो रईस ने उस की काफी मदद की. इस वजह से वह रईस की एहसानमंद हो गई.

तसलीमा की बेटियां जवान हो चुकी थीं. रईस की नीयत उस की बड़ी बेटी पर खराब हो गई. वह उसे फंसाने की कोशिश करने लगा. उसे इस बात की भी शर्म नहीं आई कि वह उस के लंगोटिया यार की बेटी है. एक तरह से वह उस की बेटी की तरह है. लेकिन उस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

उसे फंसाने के लिए वह उस की पसंद की चीजें खरीद कर देने लगा. आखिर एक दिन वह अपनी योजना में सफल हो गया. नाजायज संबंध बने तो यह सिलसिला काफी दिनों तक चला. उस ने उस के अंतरंग संबंधों की मोबाइल से फिल्म भी बना ली थी.

तसलीमा के घर वालों को रईस मंसूरी पर इतना विश्वास था कि कोई उस के बारे में कुछ गलत सोच भी नहीं सकता था. इसी की आड़ में वह अपने मंसूबे पूरे कर रहा था. कुछ दिनों बाद तसलीमा की बेटी ने महसूस किया कि रईस से संबंध बना कर उस ने ठीक नहीं किया, क्योंकि वह उस की पिता की उम्र का है. उस से वह शादी भी नहीं कर सकती.

यह अहसास होने के बाद वह उस से दूरियां बनाने लगी. लेकिन रईस उस का पीछा छोडऩे को तैयार नहीं था. उस ने जो वीडियो बना रखी थी, उसी के बल पर वह उसे ब्लैकमेल करने लगा. रईस ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उस वीडियो को इंटरनेट पर डाल देगा. इस धमकी से वह डर गई. इस तरह रईस उस का शारीरिक व मानसिक शोषण करने लगा.

तसलीमा का बेटा आलम अब जवान हो चुका था. वह दुनियादारी समझने लगा था. अपने घर आने वाले रईस की गतिविधियां उसे अच्छी नहीं लगती थीं. क्योंकि वह जब भी उस के घर आता था, उस की बहन के आगेपीछे मंडराता रहता था. वह रईस से तो कुछ कह नहीं कहा, क्योंकि वह उस के मरहूम पिता की उम्र का था. उस की अम्मी भी उस की बड़ी इज्जत करती थी. इसलिए उस ने बहन को ही डांटा कि वह रईस ज्यादा बातें न किया करे.

आलम को पता नहीं था कि बात तो उस की बहन भी नहीं करना चाहती, पर रईस ने वीडियो फिल्म का ऐसा खौफ उस के दिल में बैठा दिया है कि ना चाहते हुए भी वह रईस की हर बात मानती है. एक दिन आलम के एक दोस्त ने अपने मोबाइल में उसे एक वीडियो दिखाई. वह वीडियो देख कर आलम का खून खौल उठा. उस वीडियो में उस की बहन रईस के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थी. उस के दोस्त को वह फिल्म रईस ने ही दी थी.

इस के बाद रईस आलम का दुश्मन बन गया. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि वह उसे उस के किए की सजा जरूर देगा. अपने दिल में उठ रहे गुस्से के सैलाब को उस ने जाहिर नहीं होने दिया और रईस को ठिकाने लगाने का उपाय खोजने लगा. आखिर उस ने एक खौफनाक योजना बना ही ली.

आलम को अपने घर में इनवर्टर लगवाना था. चूंकि रईस इनवर्टर का काम करता था, इसलिए उस ने रईस को इनवर्टर लगाने के लिए 5 हजार रुपए दे दिए. रईस के पास काम ज्यादा था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे टाइम मिलेगा, वह आलम के यहां जा कर इनवर्टर लगा देगा.

आलम ने रईस को फोन किया तो उस ने आलम से कह दिया कि 15 दिसंबर की शाम को वह उस के यहां इनवर्टर लगा देगा. आलम ने उसी दिन रईस को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. इस काम में उस ने अपने एक दोस्त शोएब को भी शामिल कर लिया.

उस दिन शाम को वह रईस के आने का इंतजार करने लगा. शाम साढ़े 7 बजे तक रईस उस के यहां नहीं पहुंचा तो उस ने उसे फोन किया. फोन पर बात करने के कुछ देर बाद रईस अपनी स्कूटी से आलम के यहां पहुंच गया.

योजना के अनुसार, आलम ने शराब की एक बोतल पहले से ही खरीद कर रख ली थी. रईस ने जब उस के यहां इनवर्टर लगा दिया तो वह रईस को एक कमरे में ले गया. उस कमरे में मेज पर शराब की बोतल और नमकीन पहले से ही रखी थी.

आलम ने कहा, “इनवर्टर लगने की खुशी में मैं ने छोटी सी पार्टी रखी है.”

रईस मना नहीं कर सका और आलम तथा शोएब के साथ शराब पीने बैठ गया. आलम ने तेज आवाज में डेक बजा दिया. जैसे ही उन का पीनेपिलाने का दौर खत्म हुआ, आलम अपनी जगह से उठा और कमरे में पहले से रखे हथौड़े से रईस के सिर पर जोरदार वार कर दिया. एक ही वार में रईस बिना कोई आवाज किए नीचे गिर गया. सिर से खून बहने लगा. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

हत्या के बाद उन के सामने समस्या लाश ठिकाने लगाने की थी. नाराज आलम ने उस की गरदन काट दी. इस के बाद उस ने लाश के टुकड़े कर के 4 बोरों में भर दिए और आधी रात को उन बोरों को एकएक कर के रामगंगा नदी के किनारे फेंक आया. कमरे में जमीन पर जो खून फैला था, उसे भी उस ने मिट्टी सहित कुरच कर एक बोरे में भर दिया और उसे भी जामा मस्जिद के नाले में डाल आया. उस की स्कूटी को उस ने रामगंगा नदी के पार मजार के पास बने कुंड में फेंक दी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने आलम के साथी शोएब को भी गिरफ्तार कर लिया. आलम की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा, चाकू, आरी के ब्लेड, मृतक का मोबाइल फोन और स्कूटी बरामद कर ली. इस के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों व अभियुक्त आलम के बयान पर आधारित. कथा में तसलीमा परिवर्तित नाम है)

एक और युग का अंत – भाग 3

राजेश की ऊपर की कमाई तो पहले ही बंद हो चुकी थी, अब नौकरी भी चली गई. दूसरी नौकरी के लिए उस ने बहुत कोशिश की, लेकिन कहीं जुगाड़ नहीं बन सका. कहीं कोई उम्मीद भी नजर नहीं आ रही थी. मौजमजे की जिंदगी जी रहा राजेश दवरे एक एक पैसे के लिए मोहताज हो गया. उस का अपना और घर का खर्च कैसे चले, इस बात को ले कर वह परेशान रहने लगा.

अपनी इस स्थिति के लिए राजेश डा. मुकेश चांडक और उन के बेटे युग को जिम्मेदार मान रहा था. उसे लगता था कि यह सब युग की वजह से हुआ है. वह इस बात को हजम नहीं कर पा रहा था. उसे डा. मुकेश चांडक और युग से पहले ही नफरत थी. कहीं कामधाम न मिलने की वजह से धीरेधीरे वह बढ़ती ही गई और हालात यह हो गए कि वह डा. मुकेश चांडक से अपमान का बदला लेने और युग को उस के किए की कठोर से कठोर सजा देने के बारे में सोचने लगा.

इसी सोचनेविचारने में उस के दिमाग में युग के अपहरण की बात आ गई. उस ने सोचा कि युग का अपहरण कर के वह उसे खत्म कर देगा. उस के बाद फिरौती के रूप में डाक्टर से मोटी रकम वसूल करेगा. इस से बाप बेटे दोनों को सबक मिल जाएगा.

राजेश दवरे की यह योजना खतरनाक तो थी ही, उस के अकेले के वश की भी नहीं थी. इस के लिए उसे एक साथी की जरूरत थी. उस ने साथी की तलाश शुरू की तो उस की नजर अपने दोस्त अरविंद सिंह पर टिक गई. उस ने उसे अपनी योजना समझा कर मोटी रकम का लालच दिया तो वह उस का साथ देने को तैयार हो गया.

राजेश दवरे ने अरविंद से कहा था कि युग का अपहरण कर के वह डा. मुकेश चांडक से 15 करोड़ रुपए फिरौती में वसूल करेगा. इस से उस का बदला भी पूरा हो जाएगा और मिली हुई रकम से दोनों पार्टनशिप में एक अच्छा सा होटल खरीदेंगे, जिस में बीयर बार खोल कर दोनों मौजमस्ती करेंगे.

25 वर्षीय अरविंद सिंह राजेश दवरे के पड़ोस में ही रहता था. उस का परिवार काफी संपन्न था, लेकिन आवारा दोस्तों के साथ रहने की वजह से वह बिगड़ गया था. राजेश के साथ रहते हुए उसे भी मौजमस्ती का शौक लग गया था. इसीलिए वह राजेश के बहकावे में आ गया था. राजेश को डा. मुकेश चांडक के बारे में सब पता था. वह जानता था कि डा. चांडक अपने लाडले बेटे युग के लिए आसानी से 10-15 करोड़ रुपए दे देगा.

अरविंद तैयार हो गया तो युग को उठाने की जिम्मेदारी राजेश ने उसे ही सौंपी. क्योंकि उसे युग और सोसायटी के गार्ड पहचानते थे. वह यह भी जानता था कि युग उस के साथ कभी नहीं जाएगा. इसलिए उस ने अरविंद को युग के बारे में सब कुछ समझा कर उसे धोखा देने के लिए अपनी वह शर्ट दे दी, जो उसे क्लिनिक में काम करते समय पहनने को दी गई थी.

1 सितंबर को अरविंद सिंह पूरी तैयारी कर के अपनी स्कूटी से उस सोसायटी में जा पहुंचा, जिस में डा. चांडक परिवार के साथ रहते थे. उस समय दिन के पौने 4 बज रहे थे. उस ने सोसायटी के गार्ड से युग के बारे में पूछा. तब तक युग स्कूल से आया नहीं था. अरविंद की यही गलती गिरफ्तारी की वजह बनी. गार्ड ने उसे बताया था कि युग 4 बजे आएगा. 4 बजे युग की स्कूल बस आई तो वह स्कूटी ले कर उस के पास जा पहुंचा.

बस से उतर कर युग घर की ओर बढ़ा तो अरविंद ने उस के सामने आ कर कहा, ‘‘युग जल्दी चलो, तुम्हारे पापा ने तुम्हें बुलाया है.’’

चूंकि अरविंद डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक में पहनी जाने वाली शर्ट पहने था, इसलिए युग को उस पर सहज ही विश्वास हो गया. उस ने अपना स्कूल बैग सिक्योरिटी गार्ड की खाली पड़ी कुर्सी पर फेंका और अरविंद सिंह की स्कूटी पर कूद कर बैठ गया. अरविंद उसे ले कर सोसायटी के बाहर रास्ते में खड़े राजेश के पास जा पहुंचा. युग कुछ समझ पाता, उस के पहले ही राजेश दवरे ने क्लोरोफार्म में भीगी रूमाल उस की नाक पर रख दी, जिस से वह बेहोश हो गया. इस के बाद वह पीछे बैठ गया.

राजेश दवरे और अरविंद सिंह ने युग का अपहरण तो आसानी से कर लिया, लेकिन अब उसे वे छिपा कर रखे कहां, इस की उन के पास कोई व्यवस्था नहीं थी. इसलिए उन्होंने उसे तुरंत ठिकाने लगाने यानी खत्म करने की योजना बना डाली. वे उस की हत्या करने के इरादे से उसे शहर से बाहर खापरघेड़ा की ओर ले कर चल पड़े.

शहर से 20 किलोमीटर दूर लोणखेरी पहुंचतेपहुंचते अंधेरा हो चुका था. उन्हें इस बात का भी डर सता रहा था कि अगर युग को होश आ गया तो संभालना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए वे जल्द से जल्द युग को ठिकाने लगा देना चाहते थे.

लोणखेरी के पास सड़क पर उन्हें एक पुल दिखाई दिया तो उन्होंने स्कूटी रोक दी. वह स्थान सुनसान था. युग को उठा कर दोनों पुल के नीचे ले गए. अब तक युग को होश आ गया था. वह समझ गया कि वे उसे वहां क्यों ले आए हैं. वह रोते हुए प्राणों की भीख मांगने लगा. लेकिन नफरत की आग में जल रहे राजेश दवरे को उस मासूम पर बिलकुल दया नहीं आई और गला दबा कर उस ने उसे मार डाला.

युग को मौत के घाट उतार कर उन्होंने स्कूटी में रखे पेचकस से एक गड्ढा खोदा और शव को उसी में रख कर ढंक दिया. युग की हत्या करने के बाद उन्होंने डा. चांडक को फोन कर के 15 करोड़ की फिरौती मांगी, लेकिन वे रकम लेने की जगह तय कर पाते, उस के पहले ही पकड़ लिए गए.

पूछताछ में उन्होंने पुलिस को बताया कि फिल्म इनकार में जिस तरह फिरौती की रकम ली गई थी, उसी तरह वे फिरौती की रकम लेना चाहते थे. फिल्म में फिरौती की रकम बैग में भर कर चलती ट्रेन से फेंकने की बात दिखाई गई थी. पुलिस ने दोनों को साथ ले जा कर पुल के नीचे से युग का शव बरामद कर लिया था, जिसे पोस्टमार्टम के बाद घर वालों की सौंप दिया गया था.

पूछताछ के बाद इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार ने राजेश दवरे और अरविंद सिंह को थाना लकड़गंज पुलिस के हवाले कर दिया. थाना लकड़गंज के थानाप्रभारी एस.के. जैसवाल ने वह स्कूटी भी बरामद कर ली थी, जिस से उन्होंने युग का अपहरण किया था.

इस के बाद दोनों के खिलाफ अपहरण और हत्या का मुकदमा दर्ज कर के अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. नागपुर के पुलिस कमिश्नर ने थाना गणेशपेढ की पुलिस टीम को 5 हजार रुपए का नकद इनाम दे कर सम्मानित किया था, क्योंकि इस टीम ने मात्र 12 घंटे में इस मामले को सुलझा लिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 3

चंद्रप्रकाश और उन के साथियों ने अनुज और सोनम के मामले में हुई काररवाई पर रोष व्यक्त करते हुए पुलिस से उन का पोस्टमार्टम दोबारा कराने की अपील की. इस सिलसिले में वे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से भी मिले. संदिग्ध हालात में हुई नवदंपति की हत्या की स्थितियों को देखते हुए पुलिस अधिकारी दोबारा पोस्टमार्टम कराने के लिए तैयार हो गए.

3 डाक्टरों के पैनल से जब अनुज और सोनम की लाशों का पोस्टमार्टम कराया गया तो पता चला कि उन की मौत शरीर में कोई तीक्ष्ण जहर जाने के बाद पानी में डूबने से हुई थी. यह तथ्य प्रकाश में आते ही गोवा पुलिस ने अनुज और सोनम की मौत के मामले को अपहरण, लूट, हत्या और धोखाधड़ी के तहत दर्ज कर के तेजी से जांच शुरू कर दी.

प्राथमिक जांच में पता चला कि अनुज और सोनम को 3 दिन पहले दोपहर बाद और रात को एक ऐसे खूबसूरत जोड़े के साथ देखा गया था जिन के पास सफेद रंग की आल्टो कार थी. इस मामले की जांच कर रहे सहायक पुलिस आयुक्त विनायक ने होटल के कर्मचारियों, अंजुना बीच के एक रेस्तरां के मालिक और कुछ पर्यटकों से पूछताछ की.

उन्हें पता चला कि अनुज और सोनम ने 3 दिन पहले दोपहर को एक युवा जोड़े के साथ अंजुना बीच के एक रेस्तरां में खाना खाया था. रेस्तरां के कर्मचारियों के अनुसार खाना खाते समय अनुज और सोनम के साथ जो जोड़ा था, वह देखने में पतिपत्नी लगते थे और धाराप्रवाह अंगरेजी में बात कर रहे थे. आचारव्यवहार से वे किसी संपन्न घराने के लगते थे. अनुज और सोनम को दोपहर को भी उसी जोड़े के साथ देखा गया था और रात को भी. इस से पुलिस को शक हुआ कि उन के साथ जो भी हुआ, उस का जिम्मेदार वही जोड़ा रहा होगा.

सहायक पुलिस आयुक्त विनायक ने होटल के कर्मचारियों, अंजुना बीच के रेस्तरां मालिक और कुछ पर्यटकों से पूछताछ के बाद अनुज और सोनम के साथ देखे गए युवा जोड़े का पूरा हुलिया एकत्र कर के कंप्यूटर स्केच तैयार करवाया. जिन लोगों ने उस जोड़े को अनुज और सोनम के साथ देखा था, उन के अनुसार कंप्यूटर स्केच और उस जोड़े की शक्ल काफी मिलतीजुलती थी.

इस पर जांच अधिकारी विनायक ने उस जोड़े के चित्रों वाला स्केच गोवा पर्यटन से जुड़े तमाम लोगों को दिखाया. इस छानबीन में विनायक को जानकारी मिली कि उस हुलिए के एक जोड़े को अकसर महंगे होटलों, नाइट क्लबों, डिस्कोथेक, शराबखानों और समुद्र तटों पर कितनी ही बार देखा गया था. कभी वह जोड़ा देशी पर्यटकों के साथ होता था तो कभी विदेशी पर्यटकों के साथ.

केस भी दर्ज हो गया था और जांच भी शुरू हो चुकी थी. रोतेबिलखते चंद्रप्रकाश बेटे और पुत्रवधू के शवों को ले कर अपने साथियों के साथ दिल्ली लौट आए. यह मामला चंद्रप्रकाश के परिवार और सोनम के मायके वालों के लिए दिल दहला देने वाला था. उन लोगों ने एक माह पूर्व जिस युवा जोड़े को बड़े अरमानों के साथ शादी के बंधन में बांधा था, उसी की लाशें उन के सामने पड़ी थीं.

बहरहाल, सोनम और अनुज का एक साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. अनुज और सोनम की क्रिया आदि से निपटने के बाद चंद्रप्रकाश पुन: गोवा पहुंचे. इस बीच गोवा पुलिस ने अपनी छानबीन से यह पता लगा लिया था कि अंतिम दिन अनुज और सोनम के साथ जिस जोड़े को देखा गया था, उन के नाम महेंद्र सागर और कामिनी सागर थे.

प्राप्त जानकारी के अनुसार पतिपत्नी का ये स्मार्ट और खूबसूरत जोड़ा संपन्न परिवार के सदस्यों की तरह रहता था और धाराप्रवाह अंगरेजी में बात करता था. अपनी वाकपटुता से महेंद्र और कामिनी किसी भी पर्यटक को अपने जाल में फंसाने में सक्षम थे. गोवा के विभिन्न थानों में उन दोनों के खिलाफ धोखाधड़ी के दर्जनों मामले दर्ज थे. पुलिस रिकौर्ड में सागर दंपति का चित्र उपलब्ध था.

अनुज व सोनम की हत्या और लूटपाट के बाद सागर दंपति ने गोवा छोड़ दिया होगा, यह सोचते हुए गोवा पुलिस ने विवरण सहित उन के चित्र देश भर के पुलिस मुख्यालयों में भिजवा दिए.

गोवा पुलिस को पक्का विश्वास हो गया था कि नकद रकम और लाखों रुपए के जेवरात लूटने के लिए अनुज और सोनम की हत्या महेंद्र और कामिनी ने ही की थी. ये पतिपत्नी चूंकि बड़ेबड़े होटलों, नाइटक्लबों और डिस्कोथेक में अकसर जाते रहते थे इसलिए गोवा पुलिस ने ऐसे स्थानों पर भी इन दोनों के बारे में जानकारियां एकत्र कीं.

इस छानबीन में पता चला कि यह दंपति गोवा में जिस मकान में रहता था, उसी में छोटी सी एक लौज भी चलाता था. सागर दंपति के घर और लौज में पुलिस को कोई विशेष सामान नहीं मिला. पुलिस ने उन के मकान और लौज सील कर दिए. महेंद्र और कामिनी के जहांजहां मिलने की संभावनाएं थीं, गोवा पुलिस ने वहांवहां छापे मारे. लेकिन वे पुलिस के हाथ नहीं लगे.

जब महेंद्र और कामिनी को पकड़ने में किसी तरह की सफलता नहीं मिली तो गोवा पुलिस थकहार कर बैठ गई. इस बीच कई महीने गुजर चुके थे. पुलिस ने भले ही हार मान ली थी, लेकिन अनुज के पिता चंद्रप्रकाश ने हार नहीं मानी. उन्हें महेंद्र और कामिनी के बारे में जहां भी जरा सी जानकारी मिलती, वे वहीं पहुंच जाते.

उन की कोशिशें रंग लाईं और किसी से उन्हें महेंद्र सागर के पिता का नामपता मिल गया. वह हरियाणा के रहने वाले थे. लेकिन महेंद्र चूंकि अपने हिस्से की सारी जमीनजायदाद बेच चुका था इसलिए गांव से उस का कोई संबंध नहीं था. उस की पत्नी कामिनी के बारे में चंद्रप्रकाश को पता चला कि उच्च शिक्षा प्राप्त कामिनी दिल्ली की ही रहने वाली है.

घटना के 11 महीने बाद चंद्रप्रकाश को जानकारी मिली कि महेंद्र सागर का एक काफी करीबी रह चुका विनीत नाम का एक युवक जोधपुर में कहीं रहता है. चंद्रप्रकाश के पास हालांकि विनीत के बारे में आधीअधूरी जानकारी थी फिर भी वह जोधपुर गए और हफ्तों की भागदौड़ के बाद उसे ढूंढ निकाला.

चंद्रप्रकाश के साथ उन के 2-3 घर वाले भी थे. खुद को कई लोगों से घिरा देख विनीत घबरा गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि वह महेंद्र सागर का सहयोगी रह चुका है और उस ने ठगी के कई मामलों में उस की मदद की थी. लेकिन विनीत को अनुज और सोनम की हत्या के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

सवा करोड़ के गहनों की लूट