वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 2

जांच ने लिया नया मोड़

इस मामले को सुलझाने के लिए डीसीपी विक्रमजीत ने एसीपी ऋषिदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर जगमंदर दहिया, एएसआई सुरेंद्रपाल, हैडकांस्टेबल नरेंद्र कुमार, कांस्टेबल टी.आर. मीणा आदि को शामिल किया गया.

जिस बिल्डिंग में निशा की लाश मिली थी, उसी बिल्डिंग में पुलिस को जो ड्राइविंग लाइसेंस और कागजात मिले थे, उन की जांच शुरू की गई. ड्राइविंग लाइसेंस पर सन्नी पुत्र सुरेंद्र कुमार नाम लिखा था. उस पर जो पता लिखा था, वह कराला के जैन नगर का ही था. यानी यह पता वही था, जहां मरने वाली बच्ची रहती थी.

खैर, पुलिस सन्नी के घर पहुंच गई. लेकिन वह घर पर नहीं मिला. पता चला कि वह डा. अंबेडकर अस्पताल में भरती है. जब पुलिस अस्पताल पहुंची तो जानकारी मिली कि सन्नी को कुछ देर पहले ही डिस्चार्ज कर दिया गया था. लिहाजा उलटे पांव पुलिस जैन नगर लौट आई. सन्नी घर पर ही मिल गया. उस के हाथपैर और शरीर के अन्य भागों पर चोट लगी हुई थी.

पुलिस ने 14 जुलाई को ही सन्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कल रात पड़ोस के ही रविंद्र कुमार, उस के भाई सुनील और उस के दोस्त हिमांशु ने उस की खूब पिटाई की थी. पिटाई करने के बाद रविंद्र उस की जेब से मोबाइल, ड्राइविंग लाइसेंस, पैसे आदि निकाल कर ले गया था. मुझे उम्मीद है कि उसी ने यह सब किया होगा.

आरोपी रविंद्र तक ऐसे पहुंची पुलिस

रविंद्र का घर सन्नी के घर के पास ही था. पुलिस उस के घर गई तो वह और उस के भाई में से कोई नहीं मिला. घर पर मौजूद उस के पिता ने पुलिस को बताया कि दोनों भाई अपने किसी दोस्त के यहां गए हुए हैं. पुलिस उस के पिता को हिदायत दे कर चली आई.

पुलिस ने रविंद्र के बारे में छानबीन की तो जानकारी मिली कि पिछले साल उस ने बेगमपुर थानाक्षेत्र में ही एक बच्चे के साथ कुकर्म कर के उस की गला काट कर हत्या कर दी थी. इस की रिपोर्ट थाना बेगमपुर में ही भादंवि की धारा 363/307/377 के तहत लिखी गई थी. इस मामले में वह गिरफ्तार हुआ था. गिरफ्तारी के 6 महीने बाद सन्नी के पिता सुरेंद्र सिंह ने उस की जमानत कराई थी. तब वह जेल से बाहर आया था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को रविंद्र पर शक हुआ. उस का जो मोबाइल नंबर पुलिस को मिला था, वह स्विच्ड औफ था. पुलिस टीम रविंद्र को सरगर्मी से तलाशने लगी. 2 दिन बाद एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने 16 जुलाई  को उसे थाना क्षेत्र के ही सुखवीर नगर बस स्टौप से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब रविंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने निशा की हत्या का जुर्म तो स्वीकार कर ही लिया, इस के अलावा उस ने ऐसा खुलासा किया कि पुलिस हैरान रह गई. उस ने बताया कि वह निशा की तरह तकरीबन 40 बच्चों की हत्या कर चुका है. पुलिस तो केवल मर्डर के एक केस को खोलने के लिए रविंद्र को तलाश रही थी, लेकिन वह इतना बड़ा सीरियल किलर निकलेगा, पता नहीं था.

इंसपेक्टर जगमंदर दहिया के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी. उन्होंने उसी समय डीसीपी विक्रमजीत को यह जानकारी दी तो आधे घंटे के अंदर वह भी बेगमपुर थाने पहुंच गए. एक लाश और ड्राइविंग लाइसेंस ने ऐसे गुनाह से परदा उठा दिया था, जिसे सुन कर इंसानियत भी शर्मशार हो जाए. उस ने डीसीपी के सामने रोंगटे खड़ी कर देने वाली बच्चों की हत्या की जो कहानी बताई, वह नोएडा के निठारी कांड से कम नहीं थी.

रविंद्र ने बताया कि वह बच्चों की हत्या करने के बाद ही उन से कुकर्म करता था. उस के खुलासे पर डीसीपी भी चौंके. 24 साल के रविंद्र कुमार ने एक के बाद एक कर के करीब 40 बच्चों की हत्या करने और सैक्स एडिक्ट बनने की जो कहानी बताई, वह दिल को झकझोरने वाली थी.

गांव छोड़ कर दिल्ली आया था परिवार

रविंद्र मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज के कस्बा गंज डुंडवारा के रहने वाले ब्रह्मानंद का बेटा था. रविंद्र के अलावा उस के 3 और बेटे थे. ब्रह्मानंद प्लंबर का काम करता था, इसलिए उस की हैसियत ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ा सकता था.

लिहाजा जब उस के 2 बेटे बड़े हुए तो वह उन से भी मजदूरी कराने लगा. बेटे कमाने लगे तो उस के घर की माली हालत सुधरने लगी. उसी दौरान सन 1990 में गंज डुंडवारा में दंगा भडक़ गया तो ब्रह्मानंद अपनी पत्नी मंजू और बच्चों को ले कर दिल्ली आ गया.

बाहरी दिल्ली के कराला गांव में उस की जानपहचान के तमाम लोग रहते थे. लिहाजा वह भी उन के साथ कराला में रहने लगा. उस समय मंजू गर्भवती थी. कुछ दिनों बाद उस ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रविंद्र कुमार रखा. घर में सब से छोटा होने की वजह से वह सब का प्यारा था.

ब्रह्मानंद्र अपने बाकी बच्चों को तो पढ़ा नहीं सका था, लेकिन वह रविंद्र को पढ़ाना चाहता था. जब वह स्कूल जाने लायक हुआ तो उस ने उस का दाखिला सरकारी स्कूल में करा दिया, लेकिन मोहल्ले के बच्चों की संगत में पड़ कर वह पांचवीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ सका.

वह नशा करने वाले बच्चों की संगत में पड़ गया, जिस से वह भी चरस, गांजा आदि पीने लगा. घर वालों को जब पता चला तो उन्होंने उसे डांटा भी, लेकिन वह नहीं माना. रविंद्र नहीं पढ़ा तो ब्रह्मानंद उसे अपने साथ काम पर ले जाने लगा, लेकिन उस की आदत तो दोस्तों के साथ घूमने की थी.

पिता के साथ मेहनत का काम भला वह क्यों करता. इसलिए वह पिता के साथ भी ज्यादा दिन नहीं टिक सका. उसे जब खर्च के लिए पैसों की जरूरत होती, वह अपनी जानपहचान वाले ड्राइवर सन्नी के साथ हेल्परी करने चला जाता. सन्नी उसी के पड़ोस में रहता था और वह ट्रेलर चलाता था. उस का ट्रेलर मुंडका मैट्रो स्टेशन के निर्माण के कार्य में लगा हुआ था. रविंद्र वहां से जो भी कमाता, अपने नशा के शौक पर उड़ा देता था.

एक रात में टूटी दोस्ती की इमारत – भाग 2

जब अच्छी आमदनी होने लगी तो गौहर ने अपना खुद का जरदोजी का कारखाना खोल लिया. लगभग 5 महीने से जावेद उसी के कारखाने में काम करता था. जावेद फर्रूखाबाद के मोहल्ला खटकपुरा इज्जत खां में रहता था. उस के परिवार में पिता नियामतुल्ला के अलावा मां शाहीन बेगम, 3 भाई अजहर, आवेद व उबैद और 4 बहनें थीं. 3 बहनों का निकाह हो चुका था. जबकि सब से छोटी बहन रुखसाना (परिवर्तित नाम) अविवाहित थी.

जावेद ने अपने काम और व्यवहार से जल्द ही गौहर का विश्वास हासिल कर लिया. दोनों के बीच जल्द ही अच्छीभली दोस्ती हो गई. जावेद ने फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम कराने की बात गौहर के दिमाग में डाली तो उसे उस की बात जम गई. वैसे भी फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम बड़े पैमाने पर होता था. यह काम करने वालों की वहां कोई कमी नहीं थी.

समय पर अच्छा काम होने की लालसा में गौहर ने जावेद को फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम कराने का जिम्मा सौंप दिया. इस के लिए उस ने अपनी होंडा बाइक भी जावेद को दे दी. इस के बाद जावेद जयपुर से गौहर से जरदोजी का काम ले कर फर्रूखाबाद में करने वालों को बांटने लगा. काम पूरा होने पर जावेद पूरा माल जयपुर पहुंचवा देता था. काम पूरा हो जाता तो गौहर कारीगरों को देने वाली रकम उसे दे देता. काम अच्छा चलने लगा, तो गौहर और जावेद की उम्मीदों को नए पंख लग गए.

काम के चक्कर में गौहर भी फर्रूखाबाद आनेजाने लगा. वह जावेद के घर पर ही रुकता था. हालांकि उस के मामा आफाक उर्फ हद्दू फर्रूखाबाद में असगर रोड पर रहते थे. वह उन के घर जा कर मामा व ननिहाल वालों से मिल तो आता था लेकिन वहां रुकता नहीं था.

गौहर करीबकरीब हर हफ्ते ही फर्रूखाबाद आता था. जावेद के घरवालों से उस की खूब पटती थी. वैसे भी उसी की वजह से जावेद का काम अच्छा चल रहा था. घर पर जावेद की छोटी बहन रुखसाना ही ऐसी थी जो मेहमानों की खातिरतवज्जो करती थी.

गौहर के बारबार आने से उस से रुखसाना का ही ज्यादा वास्ता पड़ता था. इसी वजह से रुखसाना उस से काफी खुल गई थी. वह उस से बात करते मुसकराती रहती थी. उस की मुसकराहट और अल्हड़ता गौहर को मन भाने लगी थी. कामधंधे के चक्कर में गौहर की शादी की उम्र भले ही निकल गई थी, लेकिन वह था तो कुंवारा ही.

रुखसाना को देख कर उस के अरमान मचल उठे थे. अचानक ही उसे सारी दुनिया उसे अच्छी लगने लगी थी. धीरेधीरे रुखसाना उस की चाहत बन गई. रुखसाना जब भी उस के सामने आती तो वह उसे एकटक निहारता रह जाता. वह क्या बोलती क्या कहती, उसे सुध ही नहीं रहती थी. जब रुखसाना ने उसे इस स्थिति में देखा तो वह झेंपने लगी. लेकिन जल्द ही उसे गौहर की इस हालत की असलियत पता चल गई.

धीरेधीरे वह भी गौहर की चाहत के बारे में जान गई. गौहर कोई बात कहता या उस के साथ शरारत करता, तो वह शर्म से दोहरी हो जाती थी. मुंह से शब्द नहीं निकलते थे और वह वहां से मंदमंद मुसकराते हुए चली जाती थी. रुखसाना भी दिल से गौहर को अपना मान चुकी थी. इस बात को गौहर भी महसूस करने लगा था कि रुखसाना भी उसे दिल से चाहने लगी है.

दोनों एकदूसरे से दूर होते तो उन के दिल तड़प उठते और पास होते तो दिल को सुकून मिलता, आंखों को ठंडक पहुंचती. दोनों एकदूसरे से अपने दिल की बात कहने को आतुर थे, लेकिन पहल नहीं कर पा रहे थे.

इस बार जब गौहर आया तो उसे मौका भी मिल गया. उस दिन घर में कम लोग थे, वे भी दोपहर का खाना खाने के बाद सो गए थे. जबकि गौहर ऊपरी मंजिल पर टीवी देख रहा था. उसे अकेला बैठा देख रुखसाना भी वहां पहुंच गई. वह भी गौहर के साथ बेड पर बैठ कर टीवी देखने लगी. उस समय गौहर एक रोमांटिक फिल्म देख रहा था. फिल्म में कोई रोमांटिक सीन आता तो दोनों कनखियों से एकदूसरे को देखने लगते, उन के होंठ मुसकरा उठते. यह क्रम काफी देर यूं ही चलता रहा.

कुछ देर बाद गौहर ने बेड पर लेट कर अपना सिर रुखसाना की गोद में रख दिया. उस की इस अप्रत्याशित हरकत से वह पल भर के लिए चौंकी, लेकिन जब उस ने गौहर की आंखों में प्यार का सागर उमड़ते देखा तो वह विरोध न कर सकी. इस शरारत पर उस ने गौहर से पूछा, ‘‘तुम ने किस अधिकार से मेरी गोद में अपना सिर रख दिया?’’

गौहर उस की आंखों की गहराइयों में उतरते हुए बोला, ‘‘यह सवाल तुम अपने दिल से क्यों नहीं पूछतीं, जवाब खुद ब खुद मिल जाएगा.’’

‘‘अधिकार तुम जता रहे हो, और पूछूं मैं अपने दिल से?’’ रुखसाना थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘कोई जबरदस्ती है, मैं क्यों पूछूं अपने दिल से? तुम्हें बताना हो तो बताओ, नहीं तो मेरे ठेंगे से.’’ रुखसाना गौहर को ठेंगा दिखा कर दूसरी ओर देखने लगी.

गौहर जानता था कि रुखसाना नाराजगी का नाटक कर रही है, जबकि हकीकत में वह अपने दिल का हाल बयां कर देना चाहती है. गौहर यह भी जानता था कि इस के लिए पहल उसे ही करनी होगी. इसलिए वह उस का हाथ अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘रुखसाना, मैं तुम से प्यार करता हूं, अपनी जान से भी ज्यादा प्यार. मुझे यह भी मालूम है कि तुम भी मुझे दिल से चाहती हो, लेकिन कह नहीं पा रही हो. इसी प्यार के नाते मैं तुम पर अधिकार जता रहा था.’’

गौहर ने रुखसाना के जिस हाथ को अपने हाथों में ले रखा था, वह उस हाथ को उस के हाथों सहित अपने सीने पर रखती हुई बोली, ‘‘मैं जानती हूं, तुम ने प्यार के अधिकार से ही ऐसा किया है, लेकिन तुम प्यार की बात जुबां पर नहीं ला रहे थे. तुम से प्यार का इजहार करवाने के लिए ही मैं ने तुम्हें उकसाया था ताकि तुम अपने दिल की बात बेहिचक कह सको. गौहर… आई लव यू टू.’’

रुखसाना ने उस के प्यार को स्वीकार कर के जवाब में प्यार के मीठे बोल बोले तो गौहर ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. दोनों एकदूसरे के इतना करीब आ कर खुशी से झूम उठे. प्यार की खुशी में दोनों के तनमन मिले तो तन की गरमी का वेग बढ़ गया. नतीजतन वे उस राह पर उतर गए जो सामाजिक नजरिए से सही नहीं होती. लेकिन उन दोनों को इस की फिक्र नहीं थी. दुनिया से बेपरवाह हो कर दोनों प्यार की उस नदी में बह गए जिस का कोई छोर नहीं होता.

मन के साथ तन का मिलन हुआ तो उन के चेहरों पर अजीब सी खुशी झलकने लगी. उस दिन के बाद तो यह खुशी अकसर उन के चेहरों पर नजर आने लगी. रात में सब के सो जाने के बाद रुखसाना गौहर के पास उस के कमरे में आ जाती और दोनों मनचाही करते. मस्ती का खजाना लुटाने के बाद वह अपने कमरे में चली जाती. इस की किसी को कानोेंकान खबर तक नहीं होती.

सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर – भाग 2

इसी पूछताछ में पुलिस को पता चला कि नुसरत रईस की चौथी बीवी थी. रईस ने पहला निकाह अमरोहा की शबाना से किया था. उसे तलाक दे कर रईस ने गुइयाबाग निवासी नरगिस से दूसरा निकाह किया था. कुछ दिनों साथ रख कर रईस ने उसे भी छोड़ दिया था. इस के बाद रईस ने लालबाग निवासी रानी से निकाह किया. उसे भी छोड़ कर उस ने 8 साल पहले नुसरतजहां से निकाह किया, जिस से उसे 3 बच्चे थे.

पुलिस ने मृतक रईस मंसूरी के फोन नंबर को सॢवलांस पर लगाया तो वह बंद आ रहा था. लेकिन जांच में पता चला कि उस के फोन की अंतिम लोकेशन 15 दिसंबर की शाम को उसी इलाके में थी, जहां आलम रहता था. इस से यह तो पता चल रहा था कि रईस आलम के यहां गया था, लेकिन वहां जाने के बाद उस का फोन बंद क्यों हो गया? पुलिस को यही पता लगाना था.

पुलिस टीम बखलान के रहने वाले आलम के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई. अनिल कुमार वर्मा ने आलम से रईस की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू की तो वह यही कहता रहा कि उस के यहां इनवर्टर लगाने के बाद रईस चला गया था. इस के बाद वह कहां गया, उसे पता नहीं. वह खुद को बेकुसूर बता रहा था.

पूछताछ के दौरान ही एसएसआई मनोज कुमार सिंह को मुखबिर से पता चला कि मृतक रईस के आलम की बहन से नाजायज संबंध थे. यह बात उन्होंने अनिल कुमार वर्मा को बता दी. जिस तरह क्रूरता से रईस की लाश के टुकड़े कर के उस के गुप्तांग को काट कर फेंक दिया गया था, उस से अनिल कुमार वर्मा को लग रहा था कि हत्या के पीछे प्रेमप्रसंग का मामला है.

मनोज कुमार सिंह की बात ने उन के शक को पुख्ता कर दिया. उन्हें लगा कि आलम झूठ बोल रहा है. इसलिए उन्होंने उस से थोड़ी सख्ती की तो वह सारी सच्चाई बताने को तैयार हो गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि रईस मंसूरी की हत्या उसी ने की थी. उस ने उस के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे कि उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. आलम से पूछताछ में रईस मंसूरी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

रईस मंसूरी और आलम के पिता जमा खां आपस में अच्छे दोस्त थे. कहा जाता है कि दोनों बिजली की लाइनों का तार चोरी किया करते थे. चोरी किए तार से जो पैसा मिलता था, उसे वे आपस में बांट लेते थे. इसी काम से वे अपनेअपने परिवारों को पाल रहे थे. लेकिन जमा खां की पत्नी को जानकारी नहीं थी कि उस का पति बिजली के तार चोरी करता है. उसे तो जमा खां ने यही बताया था कि वह इलैक्ट्रिशियन है.

करीब 15 साल पहले की बात है. रईस और जमा खां काशीपुर की तरफ बिजली के तार काटने गए थे. जमा खां ने पत्नी को बताया था कि उसे काशीपुर में बिजली फिटिंग का एक बड़ा काम मिला है, रईस के साथ वह उस काम को करने जा रहा है. उस की पत्नी रईस को जानती थी, क्योंकि वह उस के यहां आताजाता रहता था. उस ने कहा था कि वह वहां से कई दिनों बाद लौटेगा. लेकिन वह वहां से जिंदा नहीं लौट सका.

दरअसल, हुआ यह कि जब दोनों रात को काशीपुर के जंगल में 11 हजार वोल्ट की लाइन के तार काट रहे थे, तभी जमा खां को बिजली ने करंट मार दिया. वह खंभे से नीचे गिरा और उस की मौत हो गई. दोस्त को मरा देख कर रईस डर गया. कहीं वह पुलिस के चक्कर में न फंस जाए, वह उसे वहीं छोड़ कर घर चला आया.

अगले दिन लोगों ने खेत में लाश देखी तो इस की सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस मौके पर पहुंची तो लाश के पास बिजली के तार काटने के औजार देख कर पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह बिजली के तार काटने वाला चोर है और बिजली के करंट की चपेट में आ कर मर गया है. पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर के लाश का पोस्टमार्टम कराया और शिनाख्त न होने के बाद अज्ञात मान कर उस का अंतिम संस्कार करा दिया.

इस के बाद एक दिन जमा खां की पत्नी को बाजार में रईस मिला तो वह उसे देख कर चौंकी, क्योंकि उस का पति तो रईस के साथ काम करने काशीपुर गया था. तसलीमा ने उस से पति के बारे में पूछा तो रईस ने बताया कि उस की एक हादसे में मौत हो गई है.

पति की मौत की बात सुन कर तसलीमा चौंकी, “यह तुम क्या कह रहे हो, यह नहीं हो सकता?”

“मैं सच कह रहा हूं भाभी, करंट लगने से जमा खां की मौत हो गई है.” रईस ने कहा.

“यह कैसे और कहां हो गया? तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?” तसलीमा ने पूछा.

“हम दोनों बिजली का तार काटने काशीपुर गए थे. वहीं तार काटते समय उन्हें 11 हजार वोल्ट का करंट लग गया, जिस से वह खंबे से नीचे गिर गया और उस की मौत हो गई.” रईस ने बताया.

“मेरे पति चोर नहीं थे, वह तो इलैक्ट्रिशियन थे. तुम झूठ बोल रहे हो.” तसलीमा रोते हुए बोली.

“नहीं भाभी, मैं बिलकुल सच कह रहा हूं. उन्होंने तुम्हें बताया होगा कि वह इलैक्ट्रिशियन हैं. हकीकत में हम दोनों तार काट कर बेचा करते थे.” रईस ने कहा.

“मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं हो रहा. मैं काशीपुर जा कर वहां की पुलिस से मिलूंगी.” तसलीमा ने कहा.

“तुम वहां जाना चाहती हो तो जरूर जाओ. लेकिन वहां जा कर तुम खुद भी फंस सकती हो. वहां की पुलिस ने जब जमा खां की लाश बरामद की थी, तब उस के साथ तार काटने के औजार भी मिले थे. जब तुम वहां जाओगी, पुलिस तुम से कहेगी कि एक चोर की बीवी हो कर तुम ने पुलिस को इस की खबर क्यों नहीं दी?” रईस ने उसे डराने के लिए कहा.

तसलीमा सीधीसादी औरत थी. वह रईस की बातों से डर कर काशीपुर नहीं गई और पति की मौत का गम सीने में दबा कर रहने लगी. उस समय उस का बेटा आलम 13 साल का था.

एक और युग का अंत – भाग 2

उन्होंने अपनी टीम के साथ डा. मुकेश चांडक के घर और डेंटल क्लिनिक से अपहर्त्ता की खोज शुरू की. उन्हें लग रहा था कि युग के अपहरण में निश्चित रूप से ऐसा कोई आदमी शामिल है, जो इस परिवार के बारे में सब कुछ अच्छी तरह से जानतापहचानता है.

इसी बात को ध्यान में रख कर इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार ने डा. मुकेश चांडक के घर और क्लिनिक में काम करने वाले सभी नौकरों के अलावा सोसायटी के सभी सिक्योरिटी गार्डों से भी लंबी पूछताछ की. इसी पूछताछ में उन्हें एक ऐसा सुराग मिला, जिस ने उन्हें युग के अपहर्त्ताओं तक पहुंचा दिया.

सोसायटी के एक सिक्योरिटी गार्ड ने उन्हें बताया, ‘‘सर, पौने चार बजे के आसपास सोसायटी के अंदर एक लड़का आया था, जो युग के बारे में पूछ रहा था. वह डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक की शर्ट पहने था, इसीलिए उस पर किसी तरह का संदेह नहीं किया जा सका था.’’ इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार को इस तरह एक अहम सुराग मिल गया था.

उन्होंने तुरंत डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक पर काम करने वाले सभी लड़कों को बुला कर उस गार्ड के सामने खड़ा किया तो वह युवक उन में नहीं था. इस से साफ हो गया कि युग के अपहरण में उसी युवक का हाथ था, जो उन की क्लिनिक की शर्ट पहन कर आया था.

अब पुलिस को यह पता करना था कि उस युवक को डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक में काम करने वाले लड़के जो शर्ट पहनते हैं, वह उसे कहां से मिली. या तो वह पहले उन की क्लिनिक में काम कर चुका था या फिर क्लिनिक में काम करने वाले किसी लड़के ने उसे वह शर्ट दी थी?

थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार ने डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक पर काम करने वाले सभी नौकरों से पूछताछ की. उन में से उन्हें कोई संदिग्ध नजर नहीं आया. इस का मतलब वह कोई बाहरी आदमी था. निश्चित ही उस की डाक्टर साहब से कोई दुश्मनी रही होगी. पुलिस चक्कर में पड़ गई कि डा. मुकेश चांडक का ऐसा कौन दुश्मन हो सकता है, जिस ने उन के बेटे का अपहरण किया है.

थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार ने डा. मुकेश चांडक से इस बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि कुछ दिनों पहले उन्होंने राजेश दवरे नामक युवक को डांटफटकार कर नौकरी से निकाल दिया था. उस का पता डा. मुकेश चांडक के पास था ही, थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार ने देर किए बगैर राजेश दवरे के घर पर छापा मार कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर राजेश दवरे से पूछताछ शुरू हुई तो काफी देर तक वह स्वयं को निर्दोष बताता रहा. उस का कहना था कि वह युग का अपहरण क्यों करेगा? लेकिन पुलिस को पूरा विश्वास था कि यह काम उसी ने किया है, इसलिए जब पुलिस ने उस के साथ थोड़ी सख्ती की तो उस ने युग के अपहरण और हत्या की सच्चाई उगल दी.

राजेश दवरे ने डा. मुकेश चांडक द्वारा किए गए अपमान का बदला लेने के लिए अपने दोस्त अरविंद सिंह की मदद से उन के बेटे युग का अपहरण कर के हत्या कर दी थी. हत्या के बाद उस ने डाक्टर से एक मोटी रकम वसूल करने की साजिश भी रची थी. इस के बाद पुलिस ने उस के साथी अरविंद सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन फिरौती की रकम वसूलने के पहले ही पकड़ा गया था. पुलिस पूछताछ में राजेश दवरे ने युग के अपहरण और हत्या के पीछे जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

22 वर्षीय राजेश दवरे अपने भाईबहनों के साथ नागपुर वांजरी लेक आउट में रहता था. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से वह 12वीं तक ही पढ़ सका था. पैसे के की वजह से वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सका तो कंप्यूटर सीख लिया और गुजरबसर के लिए छोटीमोटी नौकरी ढूंढ़ने लगा.

राजेश को कहीं से पता चला कि दंत चिकित्सक डा. मुकेश चांडक की डेंटल क्लिनिक में कंप्यूटर औपरेटर की जरूरत है तो वह उन के यहां जा पहुंचा. बातचीत से वह तेजतर्रार और व्यवहारकुशल लगा तो डा. मुकेश चांडक ने उसे अपने यहां रख लिया. क्लिनिक में उस का काम मरीजों से फीस लेना और उन्हें टोकन देना था. डा. साहब के यहां से उसे इतना वेतन मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. अपनी इस नौकरी से वह खुश भी था.

कुछ दिनों तक तो राजेश दवरे ने अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ किया. इस बीच उस ने डा. मुकेश चांडक के दिल में अपने लिए जगह भी बना ली. लेकिन जब उस ने देखा कि डाक्टर साहब उस पर कुछ ज्यादा ही विश्वास करने लगे हैं तो वह पैसों की हेराफेरी करने लगा.

क्लिनिक में मरीजों की भीड़भाड़ और उन से बरसती दौलत देख कर राजेश के मन में बेईमानी करने की बात आने लगी. वह क्लिनिक में आने वाले मरीजों के बिलों में हेराफेरी कर के अधिक पैसे वसूल करने लगा. इस के अलावा वह कुछ लोगों से फीस के अलावा भी कुछ पैसे ले कर उन्हें बिना नंबर के ही एंट्री दे देता. यही नहीं, वह कुछ मरीजों से फीस तो ले लेता था, लेकिन उसे चढ़ाता नहीं था.

इस तरह हेराफेरी कर के राजेश रोजाना 3-4 सौ रुपए अलग से कमाने लगा था. इन पैसों को वह घर में देने के बजाय दोस्तों के साथ बीयर बारों में जा कर अय्याशी करता था. बार डांसरों पर उड़ाता, उन के साथ मौजमस्ती करता. इस ऊपर की कमाई से राजेश और उस के दोस्तों की बल्लेबल्ले थी.

लेकिन यह भी सच है कि बुराई कोई भी हो, वह अधिक दिनों तक छिपी नहीं रहती. यही राजेश दवरे के साथ हुआ. युग देखने में भले छोटा था, लेकिन दिमाग का काफी तेज था. कंप्यूटर पर उस का दिमाग कंप्यूटर की ही तरह चलता था. स्कूल से छुट्टी होने के बाद वह अकसर क्लिनिक आ जाता और कंप्यूटर पर गेम खेलता रहता. गेम खेलने के दौरान ही उस ने राजेश की हेराफेरी पकड़ ली थी और डा. मुकेश चांडक से पूरी बात बता दी थी.

जब राजेश दवरे की हेराफेरी की जानकारी डा. मुकेश चांडक को हुई तो उन्होंने उसे पूरे स्टाफ के सामने काफी डांटा फटकारा. लेकिन नौकरी से नहीं निकाला, सिर्फ चेतावनी दे कर छोड़ दिया. डा. मुकेश चांडक तो इस बात को भूल गए. लेकिन राजेश नहीं भूला, क्योंकि एक तो उस की कमाई बंद हो गई थी, दूसरे पूरे स्टाफ के सामने उस की काफी बेइज्जती हुई थी. इसलिए वह इस बात को भुला नहीं पा रहा था. इस सब की वजह युग था, इसलिए उसे युग से नफरत हो गई थी.

धीरेधीरे नफरत की यह आग इतनी तेज होती गई कि वह युग को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगा. शायद इसी वजह से एक दिन उस ने किसी बात पर नाराज हो कर युग को एक तमाचा भी मार दिया. जब इस बात की जानकारी डा. मुकेश चांडक को हुई तो उन्होंने पहले तो राजेश को खूब खरीखोटी सुना कर अपमानित किया, उस के बाद नौकरी से निकाल दिया. यह इसी साल अगस्त महीने की बात थी.

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 2

लगभग 3 बजे अनुज ने आ कर ड्राइवर ने कहा, ‘‘हमें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं. उन के पास गाड़ी भी है. हम लोग उन के साथ घूमेंगे, तुम जाओ.’’

‘‘कल कितने बजे आना है साहब?’’ ड्राइवर ने पूछा तो अनुज बोला, ‘‘अब आने की जरूरत नहीं है. कल सुबह हम मुंबई लौट जाएंगे.’’

ड्राइवर कार ले कर चला गया और उस ने यह बात विनोद अत्री को बता दी. अनुज ने कार ड्राइवर समेत वापस भेजी थी. अत: वे निश्चिंत हो गए.

अनुज और सोनम की होटल में 3 दिन की बुकिंग थी. तीसरे दिन उन्हें लौट कर मुंबई पहुंच जाना था. जब वे उस दिन देर रात तक वापस नहीं लौटे तो विजयकरण को चिंता हुई. उन्होंने अगले दिन अपने दोस्त विनोद अत्री को फोन किया. उन्होंने बताया कि अनुज ने अंजुना बीच से यह कह कर ड्राइवर को कार सहित वापस भेज दिया था कि उन्हें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं और वे उन्हीं के साथ घूमेंगे. उन के पास कार भी है.

अनुज और सोनम न तो वापस लौटे थे और न उन्होंने फोन किया था. विजयकरण को चिंता हुई. चिंता इसलिए स्वाभाविक थी क्योंकि अनुज फोन करने में कतई लापरवाह नहीं था. विजयकरण ने अपने दोस्त विनोद अत्री से कहा कि वे होटल में पता लगा कर बताएं.

विनोद अत्री ने होटल से पता किया तो वहां के कर्मचारियों ने बताया कि अनुज और सोनम सुबह साढ़े 10 बजे के आसपास होटल से साथसाथ निकले थे. शाम को देर रात तक वे वापस नहीं लौटे. रात को लगभग पौने 12 बजे मैडम एक मारुति कार में होटल आईं. तब साहब उन के साथ नहीं थे.

अलबत्ता स्मार्ट सा एक व्यक्ति और खूबसूरत सी एक महिला उन के साथ आए थे. मैडम ने बताया कि उन्हें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं. वे लोग होटल छोड़ कर जा रहे हैं और दोस्तों के साथ ही रहेंगे. मैडम ने होटल का बिल चुकाया और अपना सामान ले कर उन्हीं के साथ चली गईं.

विनोद अत्री ने यह बात विजयकरण को बताई तो उन की चिंता और भी बढ़ गई. उन की समझ में नहीं आया कि जब सोनम होटल से सामान लेने आई तो अनुज उस के साथ क्यों नहीं था. दिल्ली के दोस्तों या परिचितों के मिलने की बात मान भी ली जाती तो होटल छोड़ने के लिए अनुज को उस के साथ आना चाहिए था.

2 दिन से अनुज का फोन न करना भी चिंता पैदा कर रहा था. दोनों के मोबाइल भी स्विच्ड औफ थे. अनुज और सोनम को 2 दिन बाद दिल्ली लौटना था. वापसी के लिए राजधानी एक्सप्रेस में उन का रिजर्वेशन था. क्या पता वे दोनों शाम तक लौट आएं, यह सोच कर विजयकरण ने उन का इंतजार किया. लेकिन जब उस दिन शाम तक न वे आए और न उन का फोन आया तो परेशान हो कर उन्होंने अनुज के पिता चंद्रप्रकाश को फोन कर के सारी बात बताई.

बेटे और पुत्रवधू के यूं गायब होने की बात सुन कर चंद्रप्रकाश आश्चर्यचकित रह गए. वह इस बात से पहले ही परेशान थे कि अनुज और सोनम ने 3 दिनों से फोन क्यों नहीं किया. उन के फोन भी बंद थे. नवविवाहित जवान बेटे और बहू का मामला था. उन के पास पैसे और लाखों के जेवर थे. चंद्रप्रकाश अपने कुछ रिश्तेदारों को साथ ले कर अगले दिन सुबह की फ्लाइट से मुंबई जा पहुंचे. वहां से वे विजयकरण के साथ गोवा गए.

गोवा में उन्होंने विनोद अत्री को भी साथ ले लिया. ये सब लोग सब से पहले उस होटल में पहुंचे, जहां अनुज और सोनम ठहरे थे. वहां पर उन्होंने होटल कर्मचारियों से उन दोनों के बारे में पूछताछ की तो कर्मचारियों ने वही बातें बताईं जो वे विनोद अत्री को पहले ही बता चुके थे.

उन के अनुसार, उस दिन सुबह को अनुज और सोनम गए तो साथसाथ थे लेकिन रात को जब पौने 12 बजे सोनम आई तो उस के साथ अनुज की जगह एक महिला और पुरुष थे, जो सफेद रंग की आल्टो कार से आए थे. होटल कर्मचारियों ने सोनम के साथ आने वालों का हुलिया भी बताया. उस हुलिए के किसी आदमी या औरत को चंद्रप्रकाश नहीं जानते थे.

मामला गंभीर लग रहा था. चंद्रप्रकाश और उन के दोस्त उत्तरी गोवा स्थित अंजुना थाने पहुंचे और थानाप्रभारी को पूरी बात बता कर अनुज व सोनम की हत्या करने की नीयत से अपहरण की आशंका व्यक्त करते हुए रिपोर्ट लिखा दी.

अंजुना थाने की पुलिस ने 1 दिन पहले अंजुना बीच की ओर जाने वाले रोड के किनारे एक अज्ञात युवती का शव बरामद किया था. युवती स्विमिंग सूट पहने थी. पुलिस को लगा था कि उस युवती की मृत्यु संभवत: नहाते वक्त डूबने से हुई होगी. इत्तफाक से युवती की लाश का पोस्टमार्टम उसी दिन हुआ था. लाश का अभी संस्कार नहीं किया गया था. पुलिस ने चंद्रप्रकाश और उन के साथियों को अस्पताल ले जा कर लाश दिखाई तो वे पहचान गए. वह लाश सोनम की ही थी.

अंजुना थाने की पुलिस ने अनुज का हुलिया बयान कर के उस की गुमशुदगी का संदेश गोवा के सभी थानों को भेज दिया था. उसी दिन दोपहर बाद सूचना मिली कि वाडा तोड़ और कोलबा बीच की सड़क के किनारे एक युवक का शव मिला था, जिस का हुलिया भेजे गए हुलिए से मिलता था.

अंजुना बीच और कोलबा बीच जहां युवक की लाश मिली, में 65 किलोमीटर की दूरी थी. इस युवक के शरीर पर भी स्विमिंग सूट था. युवक की लाश का पोस्टमार्टम भी उसी दिन हुआ था और लाश सुरक्षित थी. पुलिस के अनुमान के हिसाब से युवक की मृत्यु नहाते समय डूबने से हुई थी. चंद्रप्रकाश और उन के साथ गए लोगों को युवक की लाश दिखाई गई तो वे देखते ही बिलख पड़े. वह उन का बेटा अनुज ही था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी अनुज की मृत्यु का कारण डूबना बताया गया था और पुलिस भी यही मान कर चल रही थी. लेकिन चंद्रप्रकाश इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे. उन का कहना था कि अनुज तैरना जानता था. उस के डूबने का प्रश्न ही नहीं था. यह बात सभी की समझ के बाहर थी कि अनुज और सोनम की लाशें एकदूसरे से 65 किलोमीटर दूर कैसे मिलीं. वे लोग सोनम की मौत को भी डूबने का मामला मानने को तैयार नहीं थे.

दोस्त की इज्जत से खिलवाड़

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 1

बाहरी दिल्ली के कराला गांव के नजदीक जैन नगर में काफी बड़ी झुग्गी बस्ती है. यह इलाका बेगमपुर थाने के अंतर्गत आता है. इसी बस्ती के रहने वाले संतोष कुमार की 6 वर्षीया बेटी निशा रोजाना की तरह 14 जुलाई को भी नित्य क्रिया के लिए सूखी नहर की तरफ गई थी. सुबह 6 बजे घर से निकली निशा जब आधापौने घंटे बाद भी घर नहीं लौटी तो मां पुष्पा देवी चिंतित हुई.

चिंता की बात इसलिए थी क्योंकि निशा को तैयार हो कर 7 बजे स्कूल के लिए निकलना था. वह नजदीक के ही सरकारी स्कूल में पढ़ती थी. कुछ देर और इंतजार करने के बाद भी वह नहीं आई तो पुष्पा बेटी को देखने के लिए सूखी नहर की तरफ चली गई.

पुष्पा ने सूखी नहर की तरफ जा कर बेटी को ढूंढा, लेकिन वह नहीं मिली. उधर आनेजाने वाली महिलाओं और बच्चों से भी उस ने बेटी के बारे में पता किया, पर कोई भी उस की बच्ची के बारे में नहीं बता सका. तब परेशान हो कर वह घर लौट आई.

उस ने यह बात पति संतोष को बताई तो वह भी परेशान हो गया. अब तक बेटी के स्कूल जाने का समय हो गया था. मियांबीवी एक बार फिर बेटी को ढूंढने निकल गए. उन के साथ पड़ोसी भी उन की मदद के लिए गए थे. एक, डेढ़ घंटे तक वह बेटी को इधरउधर ढूंढते रहे, लेकिन उस का पता नहीं चल सका.

बस्ती के लोग इस बात से हैरान थे कि आखिर घर और सूखी नहर के बीच से बच्ची कहां गायब हो गई? संतोष की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह बच्ची को कहां ढूंढे? आखिर वह पड़ोसियों को ले कर थाना बेगमपुर पहुंचा. थानाप्रभारी रमेश सिंह उस दिन छुट्टी पर थे. थाने का चार्ज अतिरिक्त थानाप्रभारी जगमंदर दहिया संभाले हुए थे. संतोष कुमार ने उन्हें बेटी के गुम होने की बात बताई.

बच्ची की उम्र 6 साल थी, इसलिए पुलिस यह भी नहीं कह सकती थी कि वह अपने किसी प्रेमी के साथ चली गई होगी. दूसरे बच्ची के पिता की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि किसी ने फिरौती के लिए उस का अपहरण कर लिया है. संतोष ने बताया था कि उस की किसी से कोई दुश्मनी वगैरह नहीं थी. इन सब बातों को देखते हुए पुलिस को यही लग रहा था कि या तो बच्ची खेलतेखेलते कहीं चली गई है या फिर उसे बच्चा चुराने वाला कोई गैंग उठा ले गया है.

पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में तमाम बच्चे रहस्यमय तरीके से गायब हो रहे थे. इसी बात को ध्यान में रख कर उन्होंने उसी समय निशा के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी और इस की जांच हैडकांस्टेबल शमशेर सिंह को सौंप दी. बच्ची के अपहरण का मुकदमा दर्ज हो जाने के बाद दिल्ली के समस्त थानों में उस का हुलिया बता कर वायरलैस से सूचना दे दी गई.

इंसपेक्टर जगमंदर दहिया कुछ पुलिसकर्मियों के साथ उस जगह पर पहुंच गए, जहां से बच्ची लापता हुई थी. उन्होंने संतोष के घर से ले कर सूखी नहर तक का निरीक्षण किया. उसी दौरान उन्होंने कुछ लोगों से बात भी की, लेकिन उन्हें ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस के सहारे लापता बच्ची का पता लगाया जा सकता.

निर्वस्त्र हालत में मिली बच्ची की लाश

वह उधर की झाडिय़ों में भी यह सोच कर खोजबीन करने लगे कि कहीं किसी बहशी दरिंदे ने उसे अपना शिकार न बना लिया हो. क्योंकि आए दिन बच्चों के साथ कुकर्म करने जैसे मामले सामने आते रहते थे. झाडिय़ों में भी उन्हें कुछ नहीं मिला.

संतोष के घर से करीब 50 मीटर की दूरी पर एक निर्माणाधीन इमारत दिखाई दे रही थी. इंसपेक्टर जगमंदर दहिया ने अपने आसपास खड़े बस्ती वालों से उस इमारत के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि यह बिल्डिंग किसी जैन की है, लेकिन पिछले काफी दिनों से इस के निर्माण का काम रुका हुआ है.

जिज्ञासावश वह उस बिल्डिंग की तरफ चल दिए. जैन नगर की गली नंबर 6 में निर्माणाधीन उस 3 मंजिला बिल्डिंग में जब वह घुसे तो एक कमरे में उन्हें एक बच्ची निर्वस्त्र हालत में पड़ी मिली. वह मृत अवस्था में थी. उन के साथ मौजूद संतोष उस बच्ची को देख कर चीख पड़ा. वह उसी की बेटी निशा थी. बच्ची का निचला हिस्सा खून से सना हुआ था. उस के कपड़े पास पड़े हुए थे.

निशा की हालत देख कर इंसपेक्टर दहिया समझ गए कि यह किसी दरिंदे की शिकार बनी है. निशा की हत्या की खबर सुन कर बस्ती के सैकड़ों लोग थोड़ी देर में वहां जमा हो गए. इंसपेक्टर दहिया ने इस की सूचना अपने आला अधिकारियों के अलावा क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम व फोरैंसिक टीम को भी दे दी.

कुछ देर बाद बाहरी दिल्ली के डीसीपी विक्रमजीत, डीसीपी-2 श्वेता चौहान, एसीपी ऋषिदेव (कराला) भी जैन नगर पहुंच गए. डीसीपी ने मौके पर क्राइम ब्रांच को भी बुलवा लिया. क्राइम इन्वैस्टीगेशन और फोरैंसिक टीम भी मौके से सबूत जुटाने लगीं.

इन टीमों का काम निपटने के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उसी बिल्डिंग में दूसरी मंजिल पर एक ड्राइविंग लाइसेंस और ट्रांसपोर्ट से संबंधित कुछ कागज मिले. पुलिस ने वह सब अपने कब्जे में ले लिए.

लाश का मुआयना करने पर यही लग रहा था कि किसी ने उस बच्ची के साथ गलत काम कर के उस का गला घोंट दिया है. निशा की हत्या पर बस्ती के लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा था. इस से पहले कि वे कोई आक्रामक कदम उठाते, पुलिस ने उन्हें समझाबुझा कर शांत कर दिया. मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सुल्तानपुरी के संजय गांधी मैमोरियल अस्पताल भेज दिया.

एक रात में टूटी दोस्ती की इमारत – भाग 1

जिला फर्रूखाबाद के थाना  मउ दरवाजा क्षेत्र में एक गांव है हथियापुर. इस के पास  कायमगंज रोड पर एक भट्ठा है, जिस का नाम है बजरंग भट्ठा. सुनसान जगह पर खेतों के बीच होने की वजह से भट्ठे के पास जरूरतमंद लोग ही आतेजाते हैं. भट्टे का मुनीम अरविंद कुमार सुबह को भट्ठे पर जाता है और कामकाज के बाद शाम को घर लौट आता है.

21 जुलाई 2014 को सुबह साढ़े 7 बजे जब अरविंद कुमार भट्ठे पर जा रहा था तो उस ने भट्ठे के पास के एक खेत में सिर कटी एक लाश पड़ी देखी. मृतक के शरीर पर केवल कच्छा बनियान था. अलबत्ता पास ही कुछ कपड़े जरूर पड़े थे. लाश देख कर अरविंद डर गया. उस ने उसी समय अपने मोबाइल से फोन कर के उस लाश से संबंधित सूचना थाना मउ दरवाजा को दे दी.

उस दिन सोमवार था, गंगा स्नान का दिन. थाना मउ दरवाजा के थानाप्रभारी राघवन सिंह पुलिस टीम के साथ घटियाघाट पर ड्यूटी के लिए गए हुए थे. थाने से उन के सीयूजी नंबर पर बजरंग भट्ठे के पास सिर कटी लाश पड़ी होने की सूचना दी गई.

खबर मिलते ही थानाप्रभारी राघवन सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. सिर कटी लाश लगभग 30 वर्षीय व्यक्ति की थी. उस के शरीर पर केवल कच्छा बनियान था. जबकि लाश के पास ही कुछ कपड़े पड़े हुए थे. पुलिस ने उन कपड़ों को देखा, तो लगा उन में एक जोड़ी कपड़े मृतक के रहे होंगे. बाकी कपड़ों को देख कर लग रहा था जैसे उन्हें किसी बैग वगैरह से निकाल कर वहां डाले गए हों.

राघवन सिंह ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने वे कपड़े मृतक के बैग से निकाल कर वहां डाल दिए होंगे और मय बैग के उस में रखा कीमती सामान अपने साथ ले गए होंगे. पुलिस ने उन कपड़ों की तलाशी ली तो एक एटीएम कार्ड के अलावा कुछ नहीं मिला. एटीएम कार्ड आईसीआईसीआई बैंक का था और उस पर धारक का नाम गौहर अली लिखा था. पुलिस ने आसपास के खेतों में मृतक का कटा सिर खोजने की काफी कोशिश की, लेकिन वह कहीं नहीं मिला.

प्राथमिक जांच के बाद पुलिस ने एटीएम कार्ड और कपड़े कब्जे में ले लिए और लाश का पंचनामा कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए फर्रूखाबाद मोर्चरी भिजवा दिया.

एटीएम कार्ड से मृतक का पता चल सकता था, इसलिए थाने लौट कर राघवन सिंह ने सब से पहले एटीएम कार्ड की जांच कराई. पता चला कि वह कार्ड जयपुर के मोहल्ला बदनापुरा निवासी गौहर अली के नाम पर था. बदनापुरा जयपुर के थाना गलता गेट क्षेत्र में आता था. राघवन सिंह ने थाना गलता गेट की पुलिस  से रिक्वेस्ट कर के गौहर अली के परिवार से संपर्क करने को कहा.

स्थानीय पुलिस ने मोहल्ला बदनापुरा जा कर संपर्क किया तो गौहर अली के पिता शौकत अली घर पर ही मिल गए. उन्हें फर्रूखाबाद की घटना के बारे में बता दिया गया. उन का बेटा गौहर अली फर्रूखाबाद गया हुआ था. हत्या की बात सुन कर पूरा परिवार सन्न रह गया. शौकत अली दूसरे बेटे अनवर अली और कुछ लोगों के साथ अगले दिन यानी 22 जुलाई को फर्रूखाबाद पहुंच गए.

शौकत अली ने लाश के कपड़े और मृतक के शरीर पर तिल व अन्य निशानों को देख कर उस की शिनाख्त अपने बेटे गौहर अली के रूप में कर दी. पूरा माजरा समझने के बाद उन्होंने थाने में एक लिखित तहरीर दी, जिस में उन्होंने पैसों के लेनदेन के विवाद की वजह से बेटे की हत्या का आरोप उस के दोस्त जावेद पर लगाया. जावेद फर्रूखाबाद के ही मोहल्ला खटकपुरा इज्जत खां में रहता था.

तहरीर के मुताबिक जावेद ने ही गौहर को फोन कर के फर्रूखाबाद बुलाया था. वह 19 जुलाई की सुबह पहुंचा था. उस दिन रात को वह जावेद के घर रुका.

अगले दिन 20 जुलाई को वह जावेद के साथ थाना फर्रूखाबाद की असगर रोड पर रहने वाले अपने मामा आफाक उर्फ हद्दू के यहां भी गया. उस के बाद ही रात में किसी वक्त जावेद ने किन्हीं लोगों के साथ मिल कर गौहर की हत्या की होगी.

थाना प्रभारी राघवन सिंह ने शौकत अली की लिखित तहरीर के आधार पर जावेद के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302 व 201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.पोस्टमार्टम हो चुका था. लिखापढ़ी कर के पुलिस ने गौहर की लाश उस के पिता शौकत को सुपुर्द कर दी. शौकत अली बेटे की लाश ले कर अपने पैतृक गांव राजापुर जनपद कन्नौज चले गए.

जावेद को अपने खिलाफ मुकदमा दर्ज होने की बात पता चली तो वह अपनी सफाई देने खुद मऊ दरवाजा थाने जा पहुंचा. थानाप्रभारी राघवन सिंह ने जावेद को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि 20 जुलाई रविवार की रात 8 बजे वह गौहर को बाइक पर बस अड्डे ले गया था. उस के साथ उस के मोहल्ले का ही कासिम भी था. उन्होंने गौहर को आगरा जाने वाली बस में बैठा दिया था.

बस रवाना होने से पहले ही गौहर ने उन दोनों को वापस भेज दिया था. गौहर भट्ठे के पास कैसे पहुंचा और उस की हत्या कैसे हुई, उसे नहीं पता. उस ने यह भी बताया कि जो बाइक उस के पास है वह उस ने जयपुर में गौहर के नाम से ली थी, लेकिन उस की किस्तें वह खुद भर रहा है. पैसे के लेनदेन के बारे में उस ने बताया कि गौहर के उस पर 5 हजार रुपए बाकी हैं. जावेद के अनुसार गौहर का असगर रोड निवासी कल्लू से किसी बात को ले कर विवाद चल रहा था.

थानाप्रभारी ने कल्लू से पूछताछ की, लेकिन उस की घटना में संलिप्तता का कोई सुराग नहीं मिला. उस क्षेत्र के लोगों से पूछताछ की गई तो पता चला कि घटना वाले दिन गौहर को जावेद व कासिम के साथ देखा गया था. इस का मतलब यह था कि जावेद पुलिस को बरगलाने की कोशिश कर रहा था. यह पता चलने के बाद जावेद से कई चरणों में सख्ती के साथ पूछताछ की गई. अंतत: उस ने सारा सच उगल दिया.

जावेद से हुई पूछताछ के बाद जो कहानी पता चली वह कुछ इस तरह थी.

शौकत अली उत्तर प्रदेश की इत्र नगरी कन्नौज के थाना सौरिख क्षेत्र के गांव राजापुर के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी रफीका बेगम के अलावा 2 बेटे और 3 बेटियां थीं.उन के सब से बड़े बेटे अनवार का निकाह शहाना परवीन से हो चुका था. दोनों की कोई संतान नहीं थी. गौहर उर्फ रिंकू अभी अविवाहित था. बेटियों में शफीका, जरीना और निशात थीं. इन में केवल शफीका ही विवाहित थी. शफीका की शादी लखनऊ निवासी रिजवान से हुई थी. वह जयपुर में रह कर जरदोजी का काम करता था.

शौकत के पास खेती की जमीन तो थी, लेकिन उस में खेती करने से कोई फायदा नहीं होता था. यह देख कर शौकत ने कुछ और करने की ठानी. उन के दोनों बेटे भी जवान और अपने पैरों पर खड़े होने लायक थे.उन का दामाद रिजवान पहले से ही जयपुर में था और जरदोजी के काम में अच्छाभला कमा लेता था.

शौकत ने जयपुर जा कर जरदोजी के काम में अपनी किस्मत आजमाने की सोची. 10 साल पहले वह जयपुर चले गए और वहीं दामाद के साथ रह कर जरदोजी का काम करने लगे. उन्होंने दोनों बेटों को भी इस काम में लगा दिया. इस तरह पूरा परिवार जयपुर में रहने लगा. पहले यह परिवार किराए के मकान में रहता था, बाद में शौकत ने गाल्टा गेट थाना क्षेत्र के बदनापुरा मोहल्ले में अपना मकान बनवा लिया.

सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर – भाग 1

मुरादाबाद के मोहल्ला वारसीनगर के रहने वाले रईस मंसूरी का इनवर्टर बनाने और उस की मरम्मत करने का काम था. उस का यह काम काफी अच्छा चल रहा था. 15 दिसंबर, 2015 को इनवर्टर लगवाने के लिए उस के दोस्त जमा खां के बेटे आलम ने फोन किया.

आलम शहर के ही मोहल्ला बखलान की चामुंडा वाली गली में रहता था. इनवर्टर लगाने के लिए वह रईस को 5 हजार रुपए पहले ही दे चुका था. लेकिन काम ज्यादा होने की वजह से रईस को आलम के यहां इनवर्टर लगाने का समय नहीं मिला था.

आलम ने 15 दिसंबर को रईस को फोन कर के अपने यहां जल्द इनवर्टर लगाने को कहा तो रईस ने उसे भरोसा दिया कि उसी दिन शाम को वह उस के यहां इनवर्टर जरूर लगा देगा. अपने वादे के अनुसार उसी दिन शाम को लगभग साढ़े 7 बजे रईस अपनी स्कूटी से आलम के घर के लिए निकला. आलम के घर जाने वाली बात उस ने अपनी पत्नी नुसरत को बता दी थी.

रईस को आलम के घर गए कई घंटे बीत गए. न तो वह लौटा और न ही उस ने फोन किया. इस से पहले जब कभी उसे देर होने लगती थी तो वह पत्नी को फोन कर देता था. घर आने में कितनी देर और लगेगी, यह जानने के लिए नुसरत ने फोन किया तो रईस का फोन बंद मिला.

नुसरत ने 2-3 बार पति को फोन किया, हर बार कंप्यूटर द्वारा फोन बंद होने की बात बताई गई. नुसरत परेशान हो गई कि उन्होंने फोन बंद क्यों कर दिया है? आधे घंटे बाद उस ने फिर फोन किया. इस बार भी फोन बंद मिला. पति से संपर्क न होने की बात उस ने अपने देवर अमीर को बताई. अमीर आलम को तो जानता ही था, उस ने उस का घर भी देखा था. अमीर भाई के बारे में पता लगाने आलम के घर पहुंचा.

पूछने पर आलम ने बताया कि वह तो इनवर्टर लगा कर 8 बजे ही चले गए थे. अमीर घर लौट आया. अमीर और नुसरत रईस के बारे में पता लगाने लगे, लेकिन कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली. रात भर दोनों परेशान होते रहे. सुबह होते ही रईस के घर वालों ने एक बार फिर उस की खोज शुरू कर दी. सभी रिश्तेदारों से फोन कर के उस के बारे में पूछा, लेकिन सभी ने कहा कि वह उन के यहां नहीं आया था.

जब कहीं से रईस के बारे में कुछ पता नहीं चला तो घर वाले चिंतित हो गए. 16 दिसंबर को अमीर हुसैन ने थाना मुरादाबाद पहुंच कर भाई रईस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. रईस के मामले में पुलिस कोई काररवाई करती, उस के पहले ही क्रिकेट खेलने वाले कुछ बच्चों ने रईस के बारे में पता कर लिया.

हुआ यह कि 16 दिसंबर की दोपहर को कुछ बच्चे शहर के किनारे से गुजरने वाली रामगंगा नदी के किनारे क्रिकेट खेल रहे थे. उन्हीं बच्चों में से किसी ने ऐसा शौट मारा कि गेंद पानी के किनारे जा कर गिरी. जैसे ही एक बच्चा गेंद लेने गया, उसे वहां एक आदमी का हाथ पड़ा दिखाई दिया. हाथ देख कर वह बच्चा डर गया और उस ने शोर मचा दिया.

शोर सुन कर सभी बच्चे वहां आ गए. हाथ देख कर बच्चे क्रिकेट खेलना भूल कर शोर मचाने लगे. इस के बाद आसपास के खेतों में काम करने वाले भी आ गए. सभी इस बात को ले कर परेशान थे कि यह कटा हाथ किस का हो सकता है? किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को इस की सूचना दे दी. वह इलाका थाना मुगलपुरा के तहत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना मुगलपुरा को दे दी गई.

खबर मिलते ही मुगलपुरा के थानाप्रभारी अनिल कुमार वर्मा एसएसआई मनोज कुमार सिंह और अन्य पुलिसकर्मियों को साथ ले कर रामगंगा नदी के किनारे पहुंच गए. हाथ के बालों को देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह हाथ किसी आदमी का है. पुलिस को लगा कि इस हाथ को कुत्ता वगैरह यहां खींच कर ले आया है. लाश भी यहीं आसपास ही होगी.

पुलिस वाले लाश को इधरउधर तलाशने लगे. वहां से कुछ दूरी पर रामगंगा पर बने पुल के नीचे 4 बोरे मिले. पुलिस ने उन बोरों को खोला तो उन में से आदमी के कटे अंग निकले. लेकिन उस में सिर और एक हाथ नहीं मिला.

थानाप्रभारी ने यह सूचना एसएसपी नितिन तिवारी, एसपी (सिटी) डा. रामसुरेश यादव को दी तो दोनों पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने सिर और एक हाथ को आसपास बहुत ढूंढा, लेकिन वे नहीं मिले. शायद उन्हें कोई जंगली जानवर उठा ले गया था.

5 टुकड़ों में लाश मिलने की खबर थोड़ी देर में ही शहर में फैल गई. मीडिया वाले भी वहां पहुंच गए. एक दिन पहले ही थाना मुगलपुरा में रईस मंसूरी की गुमशुदगी दर्ज हुई थी. थानाप्रभारी ने गुमशुदगी वाला रजिस्टर चेक किया तो पता चला कि गुम हुए व्यक्ति की कदकाठी और हुलिया मरने वाले से मिल रहा था.

यह गुमशुदगी अमीर ने दर्ज कराई थी. अमीर का फोन नंबर लिखा ही था, थानाप्रभारी ने उस नंबर पर फोन कर के उसे बुला लिया. अनिल कुमार वर्मा से बात होने के बाद अमीर अपनी भाभी नुसरत को ले कर रामगंगा के किनारे पहुंच गया. हालांकि लाश का सिर नहीं था, इस के बावजूद कपड़ों से अमीर और नुसरत ने उस की शिनाख्त रईस मंसूरी की लाश के रूप में कर दी.

पति के शरीर के 5 टुकड़े देख कर नुसरत रोरो कर बेहोश हो गई. अमीर समझ नहीं पा रहा था कि उस के भाई की किसी से ऐसी क्या दुश्मनी थी कि उस की हत्या कर उसे इस तरह टुकड़ों में काट कर यहां फेंक गया. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि हत्यारों ने उस के गुप्तांग को काट डाला था. हत्या करने से पहले रईस ने शराब भी पी थी.

हत्या के इस सनसनीखेज मामले को सुलझाने के लिए एसएसपी ने एसपी (सिटी) डा. रामसुरेश यादव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम ने मृतक की पत्नी नुसरत और भाई अमीर से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रईस का किसी से कोई झगड़ा वगैरह नहीं था. उस दिन शाम को वह आलम के घर इनवर्टर लगाने गया था. उस के बाद नहीं आया.