सवा करोड़ के गहनों की लूट – भाग 1

सुबह के 8 बजे के करीब पुलिस कंट्रोल रूम से उत्तरी दिल्ली के थाना सदर बाजार पुलिस को सूचना मिली कि कुतुब रोड पर तांगा स्टैंड के पास मोटरसाइकिल सवार बदमाशों ने चाकू मार कर किसी का बैग छीन लिया है. सदर बाजार, खारी बावली और चावड़ी बाजार आसपास हैं. यहां रोजाना बड़ेबड़े व्यापारियों का आनाजाना लगा रहता है. लुटेरे व्यापारियों व अन्य लोगों को यहां अपना निशाना बनाते रहते हैं. यहां ज्यादातर घटनाएं लूट की ही होती हैं.

जिस समय ड्यूटी अफसर को यह सूचना मिली थी, उस समय थानाप्रभारी अनिल कुमार औफिस में ही थे. ड्यूटी अफसर ने लूट की इस घटना के बारे में थानाप्रभारी को बताया तो उन के दिमाग में तुरंत आया कि लुटेरों ने किसी व्यापारी को शिकार बना लिया है. वह तुरंत एसआई संजय कुमार सिंह, प्रकाश और कुछ अन्य स्टाफ को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े.

घटनास्थल थाने से उत्तर दिशा में आधा किलोमीटर दूर था, इसलिए वह 5 मिनट में वहां पहुंच गए. वहां कुछ लोग जमा थे और एक औटो खड़ा था. उस में 30-35 साल का एक आदमी बैठा था, जिस के दाहिने पैर के घुटने के पास से खून बह रहा था. औटो के पास एक आदमी खड़ा था, जिस की उम्र 40-42 साल रही होगी. वह बहुत घबराया हुआ था. पूछने पर उस ने अपना नाम भरत भाई बताया.

उस ने बताया कि बदमाश उसी का गहनों से भरा बैग ले कर फरार हो गए हैं.  गहनों की कीमत कितनी थी, उसे पता नहीं था. उस का कहना था कि लूट का विरोध करने पर एक बदमाश ने उस के साथी प्रवीण को चाकू मार कर घायल कर दिया था.

अनिल कुमार ने घायल प्रवीण को कांस्टेबल सतेंद्र के साथ हिंदूराव अस्पताल भिजवाया और खुद भरतभाई से पूछताछ करने लगे. इस पूछताछ में उस ने बताया कि वह अहमदाबाद में मेसर्स राजेश कुमार अरविंद कुमार आंगडिय़ा के यहां नौकरी करता है. उन की फर्म अहमदाबाद से दिल्ली और दिल्ली से अहमदाबाद गहने भेजने का काम करती है. दिल्ली के कूचा घासीराम, चांदनी चौक में उन का एक औफिस है, जिसे अमित भाई संभालते हैं.

भरत भाई ने आगे जो बताया, उस के अनुसार, वह अहमदाबाद-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रैस से गहनों का एक बैग ले कर दिल्ली के लिए चला था. यह ट्रेन अहमदाबाद से एक दिन पहले शाम 5 बजे चली थी और उस दिन पौने 8 बजे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंची थी.

प्रवीण दिल्ली वाले औफिस में काम करता था. जब भी वह माल ले कर नई दिल्ली स्टेशन पहुंचता था, वही उसे लेने रेलवे स्टेशन पर आता था. उस दिन भी प्रवीण उसे लेने स्टेशन पर आया था. वहां से उन दोनों ने चांदनी चौक जाने के लिए एक औटो किया और बैग ले कर उस में बैठ गए. जैसे ही उन का औटो यहां पहुंचा, तभी पीछे से पल्सर मोटरसाइकिल पर आए 3 लोगों ने उन का औटो रुकवा लिया.

औटो के रुकते ही मोटरसाइकिल से 2 लोग उतरे. उन में से एक ने भरतभाई पर पिस्तौल तान दी, दूसरा चाकू ले कर प्रवीण के पास खड़ा हो गया. तभी एक अपाचे मोटरसाइकिल और आ गई. उस पर भी 3 लोग सवार थे. उस मोटरसाइकिल से भी 2 लोग उतर कर उन के पास आ गए. तभी पिस्तौल वाले ने उस से गहनों से भरा बैग छीनने की कोशिश की.

उस ने बैग नहीं छोड़ा तो चाकू वाले ने प्रवीण के पैर में चाकू मार दिया. इसी के साथ औटोचालक को 2 थप्पड़ मार दिए. थप्पड़ लगते ही औटोचालक भाग कर सडक़ के उस पार जा कर खड़ा हो गया. उसी समय पिस्तौल वाले ने भरत भाई से बैग छीन कर अपाचे मोटरसाइकिल से आए लडक़े को दे दिया. इस के बाद वे सभी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ तेजी से चले गए.

भरत भाई से पुलिस को यह तो पता नहीं चला कि लूटे गए बैग में कितनी कीमत के गहने थे, पर यह जरूर पता चल गया था कि लुटेरे गहनों से भरा जो बैग लूट कर ले गए थे, उस का वजन 5, साढ़े 5 किलोग्राम था और उस बैग में जीपीएस डिवाइस भी लगा था. जीपीएस डिवाइस की बात सुन कर अनिल कुमार को लगा कि उस के सहारे लुटेरों तक पहुंचा जा सकता है.

गहनों के वजन के आधार पर पुलिस ने अंदाजा लगाया कि बैग में लाखों रुपए के गहने होंगे. लूट का यह मामला बड़ा था, इसलिए अनिल कुमार ने घटनास्थल से ही पुलिस ने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दे दी. डीसीपी मधुर वर्मा ने जिले की मुख्य सडक़ों पर बैरिकेड्स लगा कर वाहनों की चैकिंग के आदेश समस्त थानाप्रभारियों को दिए और खुद भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

भरत भाई ने लूट की सूचना दिल्ली और अहमदाबाद के अपने औफिसों को दे दी थी. यह खबर सुन कर दिल्ली औफिस से अमित भाई घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने डीसीपी को बताया कि लूटे गए गहनों की कीमत एक करोड़ से अधिक थी. गहने वाले बैग में जो जीपीएस डिवाइस रखा था, पुलिस ने अमित से उस का नंबर ले लिया. वह डिवाइस वोडाफोन कंपनी का था.

दिनदहाड़े हुई इस लूट को सुलझाने के लिए मधुर वर्मा ने 2 पुलिस टीमें बनाईं. पहली टीम थाना सदर के थानाप्रभारी सतीश मलिक के नेतृत्व में बनाई गई, जिस में इंसपेक्टर मनमोहन, कमलेश, एसआई संजय कुमार सिंह, प्रकाश, निसार अहमद, आशीष शर्मा, एएसआई सुरेंद्र सिंह, हैडकांस्टेबल ए.के. वालिया, अवधेश कुमार, अशोक, जितेंद्र सिंह, कांस्टेबल अमित, सुरेश, बलराम, समंद्र आदि को शामिल किया गया.

दूसरी पुलिस टीम औपरेशन सेल के इंसपेक्टर धीरज कुमार के नेतृत्व में बनी, जिस में एसआई सुखवीर मलिक, देवेंद्र, यशपाल, प्रणव, आनंद, एएसआई सतीश मलिक, हैडकांस्टेबल योगेंद्र, राजेंद्र, कांस्टेबल प्रमोद, चंद्रपाल दिनेश को शामिल किया गया था. दोनों टीमों का निर्देशन के एसीपी राजेंद्र प्रसाद गौतम कर रहे थे. दोनों टीमें एसीपी राजेंद्र प्रसाद गौतम की देखरेख में केस की छानबीन में जुट गईं.

पुलिस टीम ने जांच की शुरुआत जीपीएस डिवाइस से की. पुलिस पता करने लगी कि बैग किस क्षेत्र में है. पुलिस ने फर्म के अहमदाबाद औफिस में अरविंदभाई से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि वह जल्द ही दिल्ली पहुंच कर पुलिस से संपर्क करेंगे.

डिवाइस के कोड नंबर से पुलिस ने जांच की तो पता चला कि वह डिवाइस अहमदाबाद से निकलने के कुछ देर बाद ही बंद हो गया था. इस से पुलिस को निराशा हुई. गहने वाले बैग में जीपीएस डिवाइस रखी होने की जानकारी भरतभाई को भी थी, इसलिए पुलिस को शक हुआ कि कहीं उसी ने लूट के लिए डिवाइस को बंद नहीं कर दिया था. इस का पता लगाने के लिए पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. प्रवीण का हिन्दूराव अस्पताल में इलाज चल रहा था. वहां भी पुलिस का पहरा लगा दिया गया.

भरतभाई को हिरासत में लेने की बात अरविंदभाई को पता चली तो उन्हें हैरानी हुई कि पुलिस लुटेरों को पकडऩे के बजाय उन्हीं के कर्मचारी को परेशान कर रही है. उन्होंने पुलिस से भरतभाई के खिलाफ कोई काररवाई न करने की सिफारिश की. उन्होंने कहा कि भरत पिछले 6 महीने से उन की फर्म में काम कर रहा है. वह बहुत ही ईमानदार और वफादार है. वह उसे अच्छी तरह जानते हैं. इस तरह का काम वह हरगिज नहीं कर सकता. जीपीएस डिवाइस के बारे में उन्होंने बताया कि वह किसी वजह से अपने आप ही कभीकभी बंद हो जाती है.

फर्म मालिक के कहने पर पुलिस ने भरतभाई को छोड़ जरूर दिया, लेकिन उसे यह हिदायत दे दी थी कि जांच में जब भी उस की जरूरत पड़ेगी, वह हाजिर होगा.

सरकार से ज्यादा शक्तिशाली ड्रग्स तस्कर – भाग 1

आप को यह जान कर हैरानी होगी कि दुनिया में एक ऐसा भी देश है, जहां सरकार से अधिक सेना वहां के आतंकी माफियाओं के पास हैं. उन की संख्या 75 हजार से अधिक है. करीब 20 लाख किलोमीटर क्षेत्र वाले इस देश में प्राइवेट सैनिकों की बड़ी फौज है तो 600 से अधिक विमान उन्हीं माफियाओं के पास हैं. जबकि हैरानी भरी बात यह है कि वहां की सरकार के पास केवल 120 विमान ही हैं.

अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में विमानों का रखरखाव, उड़ान भरने के लिए निजी सुविधाएं, प्राइवेट हवाई अड्डे, रनवे और ईंधन की खपत सरकार की तुलना में कितनी अधिक होगी. इसी तरह से प्राइवेट सेनाओं के पास निश्चित तौर पर गोलाबारूद से ले कर अत्याधुनिक हथियारों का जखीरा भी होगा. ऐसे में इन के इस्तेमाल से पैदा हुए हिंसक आतंक की कल्पना से ही किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं.

सच तो यह भी है कि इस देश में रोजाना 120 से अधिक हत्याएं होती हैं. जानते हैं कि वह देश कौन सा है? वह देश है मैक्सिको. मक्का, टमाटर और मटर उगाने वाले अमेरिका से सटे इस देश में दुनिया का सब से बड़ा ड्रग्स का धड़ल्ले से कारोबार होता है. लगभग 13 करोड़ की आबादी वाला मैक्सिको 40 साल से ड्रग कार्टेल के चंगुल में है. कार्टेल यानी संगठित गिरोह. ये गिरोह यहां अफीम, हेरोइन और मारिजुआना की तस्करी में लिप्त रहते हुए समानांतर सरकार चला रहे हैं.

अनुमान है कि करीब 150 से ज्यादा कार्टेल सालाना लगभग ढाई लाख करोड़ रुपए की ड्रग्स तस्करी अमेरिका को करते हैं. इन संगठित गिरोहों के गुर्गों की प्राइवेट आर्मी होने के कारण इन के बीच आए दिन खूनी संघर्ष भी होता रहता है.

घूमनेफिरने के लिए मशहूर दुनिया के खूबसूरत देश मैक्सिको में स्वादिष्ट भोजन, सभी तरह के मनोरम ऐतिहासिक और प्राचीन खंडहरों और ग्लैमर से भरे महानगरों का उत्तम रहनसहन के अलावा जलवायु, वनस्पतियों बेशुमार धनसंपदा हर किसी को अपनी तरफ खींचते हैं. इस के विपरीत यहां फैली ड्रग्स तस्करी, जुआ और अपराध डराता भी है.

ड्रग माफियाओं का आतंक

ड्रग तस्करों के गिरोहों के बीच होने वाले गैंगवार के चलते मैक्सिको में आए दिन हत्याएं होती रहती हैं. जब सरकार उन पर अंकुश लगाती है, तब वे उस पर भी हमला बोलने से नहीं चूकते हैं. पिछले साल 6 अक्तूबर को पश्चिमी मैक्सिको के टाउन हाल में जबरदस्त नरसंहार हुआ. जिस में पश्चिमी मैक्सिको के मेयर कोनार्डो मेंडोजा की हत्या हो गई. बंदूकधारियों के हमले से मेयर और 17 अन्य लोगों की मौत हो गई थी.

सभी गोलियों से छलनी कर दिए गए थे. मरने वालों में एक व्यक्ति मेयर का करीबी रिश्तेदार भी था. हमले की वारदात के मुताबिक बंदूकधारियों ने दिन में ही सैन मिगुएल तोतोलापन टाउन हाल पर धावा बोल दिया था. इस हमले में मेंडोजा के पिता अल्मेडा मेंडोजा, पूर्व महापौर जुआन मेंडोजा अकोस्टा भी मारे गए थे.

मैक्सिको में स्थानीय अधिकारियों की हत्याएं अकसर होती रहती हैं. कुछ साल पहले ही 2018 में कम से कम 3 दरजन महापौर, पूर्व महापौर और महापौर उम्मीदवार मारे गए थे. किंतु इस बार 6 अक्तूबर को आपस में लड़ रहे प्रतिद्वंदी ड्रग गिरोह के गैंगवार में हमले से कुछ समय पहले ही लास टकीलेरोस के कथित सदस्यों ने सोशल नेटवर्क पर एक वीडियो जारी कर इस क्षेत्र में अपनी वापसी की घोषणा की थी.

गिरोहों ने इस आतंक के बारे में 6 महीने पहले ही लोगों को तभी अहसास करवा दिया था, जब मैक्सिको में काली पौलीथिन में कटे हुए सिर और धड़ अलग मिले थे. पुलिस ने 13 मई, 2022 को 2 कटे हुए सिर बरामद किए थे, जबकि अगले रोज उन के धड़ संदिग्ध बैग और कंबल में लिपटे मिले थे. शरीर के अंगों पर काले मार्कर पेन से लिखा हुआ था, ‘असली आतंक अब शुरू होने वाला है.’

पुलिस जांच में पाया गया कि यह करतूत जलिस्को न्यू जेनरेशन कार्टेल की थी, जिस ने जाकाटेकस शहर में 5 दिनों तक आतंक मचाया था. बौर्डरलैंड बीट के अनुसार रात करीब 10 बजे कौलिनस डेल पाड्रे के पास काले प्लास्टिक बैग में 2 कटे हुए शव मिले थे. जिन के साथ एक नारको मैसेज भी था. इस के अलावा पुलिस को एक धड़ कंबल में लिपटा मिला था, जबकि दूसरा पानी में डूबा मिला था.

इस तरह से 3 दिनों में हुई संदिग्ध मौतों ने मैक्सिको में दहशत पैदा कर दी थी. सडक़ों पर सन्नाटा पसर गया था और लोग खौफ के मारे अपने घरों में कैद हो गए थे. कारण शाम को जाकाटेकस में 2 गैंग जलिस्को न्यू जेनरेशन कार्टेल और सिनालोआ कार्टेल के बीच जबरदस्त गोलीबारी हुई थी. इस खूनखराबे के बाद 2 काले पौलीथिन बैग बरामद किए गए थे, जिस में एक पुरुष और एक स्त्री के धड़ और अंग थे.

हत्यारे ने पुलिस के लिए धमकी भरे मैसेज में लिखा था, ‘जाकाटेकस का मालिक सिर्फ एक है. तैयार हो जाओ. आतंक शुरू होने वाला है.’

600 विमान हैं सिनालोआ कार्टेल के पास

इन कार्टेल में ही सब से बड़ा सिनालोआ कार्टेल है, जिस का साम्राज्य मैक्सिको की सरकार से भी बड़ा है. उस ने 600 विमान अमेरिका से खरीदे हैं और वह युवाओं को आसानी से पैसे कमाने का लालच दे कर अपने गिरोह में शामिल कर लेता है. हथियारों के जखीरे में उस के पास एके-47, एम-80 जैसी राइफलों के अलावा राकेट लौंचर भी हैं. मैक्सिको गृह मंत्रालय द्वारा जारी की गई 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार की सुरक्षा एजेंसियां हर साल ड्रग कार्टेल के कब्जे से 20 हजार से अधिक एके-47 और एम-80 जैसी असाल्ट राइफलों की बरामदगी करती हैं.

मैक्सिको सरकार कार्टेल से बरामद किए जाने वाले हथियारों को नष्ट कर देती है, ताकि उन का फिर से इस्तेमाल नहीं किया जा सके. इस नुकसान का असर कार्टेल पर नहीं होता है. वे अमेरिकी माफिया से ड्रग्स की सप्लाई के बदले में फिर से हथियार हासिल कर लेते हैं. बीते 5 साल के दौरान कार्टेल ने राकेट लौंचर्स भी हासिल कर लिए हैं. वे इन का इस्तेमाल सरकारी टोही विमानों पर हमले के लिए करते हैं.

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट यह भी बताती है कि गैंगवार के कारण देश में रोज औसतन 120 हत्याएं होती हैं. कोरोना काल के दौरान यह संख्या 118 थी. यानी कोरोना काल के दौरान दुनिया भर में लौकडाउन के बावजूद मैक्सिको में ड्रग्स का धंधा बेलगाम था.

अब तक मैक्सिको में ड्रग्स कार्टेल के बीच खूनी संघर्ष में लगभग 2 लाख मौतें हो चुकी हैं. 50 हजार लोग लापता हैं, जबकि इतने मृतकों की पहचान नहीं हो पाई है. ड्रग कार्टेल सरकार पर दबदबा बनाने के लिए मैक्सिको की राजनीतिक पार्टियों को साल में 25 हजार करोड़ का चंदा देते हैं. लोगों के बीच खौफ पैदा करने के लिए वे काफी बर्बर हो जाते हैं. मर्डर का वीडियो बनाते हैं और शवों को चौराहों पर टांग
देते हैं.

कार्टेल के तमाम हथकंडे बेहद खौफनाक होते हैं. यहां तस्करी के साथसाथ किडनैपिंग कर वसूली का खेल भी चलता है. फिरौती नहीं देने वालों को गोलियों से भून देते हैं. मर्डर का वीडियो बना कर वायरल करते हैं. जिस से लोगों में दहशत का माहौल बने. आए दिन कार्टेल द्वारा विरोधियों के शवों को चौराहों पर टांगने के मामले आते रहते हैं. पिछले दिनों ही राजधानी मैक्सिको सिटी के मुख्य चौराहों पर गैंगवार के बाद 11 शव टंगे पाए गए थे.

कार्टेल किडनैप किए लोगों और प्रतिद्वंदी कार्टेल के गुर्गों को टार्चर रूम यानी गेटो में रखते हैं. इन गेटो के खिडक़ी दरवाजों की बुलेटप्रूफ लेयरिंग की जाती है. हर गेट के बाहर 20 से 25 हथियारबंद गुर्गे हमेशा तैनात रहते हैं. कार्टेल का साम्राज्य मैक्सिको के 32 में से 29 प्रांतों में बना हुआ है.

कार्टेल सिनालोआ का सरगना अल चापो

कहने को तो मैक्सिको में कई कार्टेल सक्रिय हैं और ड्रग के धंधे में लिप्त हैं. उन में सब से बड़ा कार्टेल सिनालोआ है. इस का सरगना अल चापो अभी जेल में है, जबकि वह 2 बार फरार हो चुका है. उस का 50 फीसदी ड्रग्स कारोबार पर कब्जा है.

मैक्सिकन ड्रग सरगना अल चापो की कहानी भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है, जिसे सुरंगों का बेताज बादशाह कहा गया है. वह इन दिनों अपनी आजीवन कैद की सजा अमेरिका के कोलोराडो की एडीएक्स जेल में काट रहा है. जबकि उस की पत्नी एमा कोरोनेल को भी 3 साल की सजा मिली हुई है. वह भी जेल में है.

दुनिया के कई ड्रग्स माफिया पाब्लो एस्कोबार, मिगेल अनेल फालिक्स गयार्दो आदि में से अल चापो का नाम आता है, जिसे मैक्सिकन ड्रग लौर्ड के नाम से भी जाना जाता है. अल चापो का जन्म 1957 में मैक्सिको के सिनालोआ के ला टूना गांव में हुआ था. उस का असली नाम अकीन गुजमैन लोएरा था. उस ने 15 साल की उम्र में पहली बार भांग की खेती की और जब पैसे आए तब इसी काम को करने का मन बना लिया.

कुछ सालों बाद अकीन गुजमैन ने घर छोड़ दिया और घर से करीब 750 किलोमीटर दूर गुआदलहारा चला गया. सिनालोआ के ला टूना गांव से निकला अकीन गुजमैन गुआदलहारा तो पहुंच गया, लेकिन वहां वह कौन्ट्रैक्ट किलिंग का काम करने लगा. वहां उसे नया नाम अल चापो मिल गया और इसी नाम से कुख्यात हो गया.

साल 1980 के दौर में वह ड्रग्स के धंधे में आया और फिर कुछ दिनों बाद उस की मुलाकात अपने बौस मिगेल अनेल फीलिक्स गयार्दो उर्फ अल बेदरीनो से हुई. गयार्दो के बारे में कहा जाता है कि मैक्सिको के इतिहास में उस से बड़ा ड्रग्स तस्कर कोई नहीं हुआ.

सीमा हैदर : प्रेम दीवानी या पाकिस्तानी जासूस – भाग 1

ग्रेटर नोएडा में उत्तर प्रदेश की एंटी टेररिस्ट स्क्वाड यानी एटीएस के अधिकारी पिछले 2 दिनों से सीमा से लगातार एक ही जैसे सवाल घुमाफिरा कर पूछ रहे थे. शुरू में 1-2 बार सीमा ने अफसरों के सभी सवालों के जवाब बेबाकी से दिए थे. लेकिन इस के बाद उस के रोनेबिलखने का जो सिलसिला शुरू हुआ तो फिर उस ने एटीएस के अफसरों को भी विचलित कर दिया.

हर सवाल के जवाब में सीमा का अब एक ही जवाब था, ‘सर, मैं कोई जासूस नहीं हूं, खुदा के लिए आप मेरा यकीन क्यों नहीं करते. मैं ने एक इंसान से प्यार किया है, क्या प्यार करना कोई गुनाह है? क्या 2 मुल्कों की सरहद किसी इंसान से प्यार करने का हक छीन सकती है?  सर, आप चाहे तो मुझे यहीं फांसी पर लटका दीजिए, लेकिन अब मैं पाकिस्तान वापस नहीं जाऊंगी. आप लोग भी जानते हैं कि अगर मैं वापस गई तो वे लोग मुझे और मेरे बच्चों का जिंदा नहीं छोड़ेंगे.’

खुद एटीएस के एडीजी नवीन अरोड़ा सीमा हैदर से 2 बार पूछताछ कर चुके थे. सीमा के बयान जरूर विरोधाभासी थे, लेकिन अभी तक उन के पास ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं था जिस के आधार पर वे कह सकें कि सीमा हैदर पाकिस्तानी जासूस है.

‘देखो सीमा ये 2 मुल्कों के बीच कानूनी दांवपेंच का मामला है. तुम बिना वीजा लिए हिंदुस्तान में अपने बच्चों के साथ आई हो, इसलिए तुम को ये मुल्क छोड़ कर जाना ही होगा.’ जब एटीएस के सब से बड़े अफसर ने सीमा से ये कहा तो वह एक बार फिर फूटफूट कर रोने लगी.

दरअसल, एटीएस के अधिकारियों के कान सीमा हैदर की प्रेम कहानी को सुनसुन कर बुरी तरह पक चुके थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि सीमा हैदर मीरा जैसी कोई पागल प्रेम दीवानी है या वो पाकिस्तान से आया एक खूबसूरत छलावा है, जिसे भारत में तबाही मचाने के लिए भेजा गया है. ये शक जरूर था, लेकिन इस के पीछे कोई पुख्ता सबूत अभी तक किसी के पास नहीं था.

सीमा हैदर अपने जिस प्रेमी सचिन मीना के लिए अपना घरबार अपना मुल्क पाकिस्तान और शौहर को छोड़ कर 4 बच्चों के साथ भारत आ गई है वो एक ऐसी प्रेम कहानी है, जिस में एक तरफ जहां सरहदों के बंधन का कानून है तो दूसरी तरफ सीमा पर जासूस होने के इल्जाम भी.

इस अनोखी प्रेम कहानी का अंत क्या होगा, ये तो आने वाले वक्त में पता चलेगा, लेकिन अभी तक पुलिस की जांच मीडिया से सीमा हैदर की बातचीत के आधार पर जो जानकारियां सामने आई हैं, वे इस प्रेम कहानी को रोचक को और रहस्यमई बनाती हैं.

सीमा ने गुलाम हैदर से भी की थी लव मैरिज

सीमा हैदर 25 साल की एक ऐसी खूबसूरत महिला है, जो पिछले कुछ दिनों से पूरे देश में चर्चा में हैं. हालांकि दस्तावेज के हिसाब से उस की उम्र मात्र 21 साल है. दरअसल, सीमा ने ही बताया कि पाकिस्तान में मातापिता अपने बच्चों की उम्र सर्टिफिकेट में 3 साल कम लिखवाते हैं.

सीमा हैदर मूलरूप से पाकिस्तान के सिंध प्रांत के जैस्माबाद कस्बे में ग्राम रिंद , तालुका कोट दीजी, जिला खैरपुर के रहने वाले गुलाम रजा की बेटी है. गरीब गुलाम रजा की कई संतानें थीं. बेटी को जवानी की दहलीज पर कदम रखता देख अम्मीअब्बू को उस के निकाह की चिंता सताने लगी.

वे चाहते थे बिना दानदहेज कहीं भी उस की शादी कर दें, लेकिन सीमा के खयाल कुछ अलग थे. वह अम्मीअब्बू की इच्छा को पूरा करने के लिए यूं ही किसी से निकाह नहीं कर सकती थी. इसलिए 2014 में उस ने अपनी अम्मी व अब्बू का घर छोड़ दिया और जिला जकोबाबाद, तालुका गढ़ी खैरो के अमीर जान जखरानी के घर चली आई.

दरअसल, अमीर जान के बेटे गुलाम हैदर से कुछ समय पहले ही सीमा की सोशल मीडिया के जरिए दोस्ती हुई थी. बाद में उन का प्यार परवान चढऩे लगा और अम्मीअब्बू का घर छोड़ने से 10 दिन पहले सीमा ने गुलाम हैदर से कहा कि वे अपना घर छोड़ कर उस के पास आ कर निकाह करना चाहती है.

सीमा व गुलाम दोनों ही बलूच थे, लेकिन सीमा जहां रिंद कबीले से थी तो गुलाम जखरानी कबीले से. गुलाम हैदर तो पहले ही सीमा की खूबसूरती व मोहब्बत का गुलाम बन चुका था. लिहाजा वह इंकार नहीं कर सका. सीमा जब गुलाम हैदर के घर पहुंची तो पता चला कि वह तो पहले से शादीशुदा है. हालांकि उस की कोई संतान नहीं थी.

शादी को भी महज 3 साल ही हुए थे. वैसे तो पाकिस्तान में बहुविवाह प्रथा है, लेकिन इस के बावजूद गुलाम के मांबाप जो पुराने खयालात के थे, वे प्रेम विवाह के सख्त खिलाफ थे. इसलिए सीमा से निकाह करने की लाख मिन्नतों के बावजूद उन्होंने दोनों को निकाह की इजाजत नहीं दी.

सीमा गुलाम से कहने लगी, ‘पहले कोर्ट मैरिज कर लो, फिर घर वालों को मना लेंगे.’

गुलाम सीमा के प्यार में पागल था, लिहाजा गुलाम ने सीमा के साथ घर छोड़ दिया और किराए का घर ले कर उस ने सीमा से निकाह कर लिया. बाद में उस ने अपनी शादी को कोर्ट में रजिस्टर्ड भी करवा लिया.

उन दिनों गुलाम हैदर टाइल्स लगाने की कारीगरी का काम करता था. धीरेधीरे गुजरबसर होने लगी. 2-3 महीने गुजरने के बाद गुलाम हैदर सीमा के कहने पर सिंध छोड़ कर कराची आ गया. शुरुआत में उसे वहां गुजरबसर के लिए रिक्शा चलाना पड़ा. इसी तरह जिंदगी की मुश्किलों के बीच गुलाम हैदर और सीमा की जिंदगी तेजी से आगे बढऩे लगी.

2014 में गुलाम हैदर से हुई सीमा की शादी के बाद उन के 4 बच्चे हुए, जिन में 3 बेटियां और एक बेटा है, जिन की उम्र क्रमश: 7 साल, 6 साल, 5 साल और 3 साल है.

हैदर पत्नी को तन्हा छोड़ कर चला गया सऊदी अरब

गुलाम हैदर कराची में कोई ऐसा कामधंधा नहीं ढूंढ पाया, जिस से परिवार की गुजरबसर ठीक से हो सके. जैसेजैसे परिवार बढ़ा तो गुलाम के सिर पर जिम्मेदारियों का बोझ व बच्चों की परिवरिश के लिए ज्यादा पैसा कमाने की चिंता भी बढी. अब सीमा भी उस पर ज्यादा पैसा कमाने व बच्चों को भविष्य संवारने का दबाव बनाने लगी थी.

बुझ गया आसमान का दीया – भाग 1

बुराड़ी के मदर टेरेसा पब्लिक स्कूल से हाईस्कूल पास करने के बाद प्रदीप शर्मा ने उसी स्कूल में 11वीं में दाखिला लेने के साथ  ही वह इस तलाश में भी लग गया कि कोई छोटामोटा ऐसा कोर्स कर ले, जिस से उसे कोई ठीकठाक नौकरी मिल जाए. क्योंकि उसे पता था कि उस के पिता की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह उसे उच्चशिक्षा दिला सकेंगे.

प्रदीप साइबर कैफे जा कर इंटरनेट पर भी सर्च करता और अखबारों में आने वाले विज्ञापन भी देखता. इंटरनेट पर ही उस ने इंस्टीट्यूट औफ प्रोफेशनल स्टडीज ऐंड रिसर्च (आईपीएसआर) मेरिटाइम का विज्ञापन देखा. यह संस्थान मर्चेंट नेवी में काम करने के इच्छुक युवाओं को उच्च क्वालिटी की कोचिंग और प्रशिक्षण दिलाता था. यही नहीं, यह इंस्टीट्यूट कोर्स करने वाले युवाओं को प्लेसमेंट में भी मदद करता था.

प्रदीप शर्मा को मर्चेंट नेवी का क्षेत्र अच्छा लगा. इस में वेतन तो अच्छा मिलता ही है, सुविधाएं भी अच्छी होती हैं और विदेश में घूमने का मौका मिलता है. उस ने घर आ कर अपने पिता हरिदत्त शर्मा से बात की. प्रदीप उन का एकलौता बेटा था. इसलिए वह उस के सुनहरे भविष्य के लिए कुछ भी कर सकते थे. उन्होंने इंस्टीट्यूट जा कर खर्च के बारे में पता लगाने के लिए कह दिया.

आईपीएसआर मेरिटाइम का  औफिस दक्षिणी दिल्ली के छतरपुर में था. अगले दिन प्रदीप शर्मा अपने पिता के साथ वहां पहुंचा तो इंस्टीट्यूट के कोआर्डिनेटर डा. अकरम खान ने उन्हें बताया कि उन का इंस्टीट्यूट सरकार से मान्यता प्राप्त है. दिल्ली में इस की 3 शाखाएं हैं.  इस के अलावा पटना, रांची और देहरादून में भी इस की शाखाएं हैं. मन लगा कर कोर्स करने वाले कैंडिडेट्स का वह हंडरेड परसेंट प्लेसमेंट कराते हैं. उन के यहां से कोर्स कर के तमाम लड़के विदेशों में नौकरी कर रहे हैं.

डा. अकरम खान ने शतप्रतिशत नौकरी दिलाने की बात की थी, इसलिए हरिदत्त ने सोचा कि अगर वह यहां बेटे को कोर्स करा देते हैं तो उस की जिंदगी सुधर जाएगी. उन्होंने फीस के बारे में पूछा तो अकरम खान ने कहा, ‘‘हम आल इंडिया लेवल पर एक प्रवेश परीक्षा कराते हैं. उस परीक्षा में जो बच्चा पास हो जाता है, उस से 31 हजार रुपए रजिस्ट्रेशन फीस ली जाती है. इस के बाद राजस्थान एवं कोलकाता से 3 और 6 महीने जनरल परपज रेटिंग (जीपी रेटिंग) का प्रशिक्षण दिलाया जाता है, जो डीजी शिपिंग से एप्रूव है.

‘‘ट्रेनिंग के दौरान 2 लाख 30 हजार रुपए जमा कराए जाते हैं. कोर्स पूरा करने के बाद कैंडिडेट को सीमैन की पोस्ट पर विदेशी जहाज पर भेज दिया जाता है, जिस का शुरुआती वेतन 800 यूएस डौलर प्रतिमाह के करीब है.

‘‘2 साल तक सीमैन के पद पर काम करने वाला व्यक्ति इस के बाद होने वाली परीक्षा पास कर लेता है तो उस का प्रमोशन हो जाता है .उस का वेतन हो  जाता है 3 हजार यूएस डौलर. बाद में उस का प्रमोशन कैप्टन के पद तक हो जाता है. तब उसे 8 से 12 हजार यूएस डौलर वेतन मिलता है.’’

हरिदत्त शर्मा आजादपुर स्थित एक आफसेट मशीन पर काम करते थे. वहां से जो तनख्वाह मिलती थी उस से किसी तरह अपना घर चला रहे थे.  इंस्टीट्यूट की फीस तो उन की हैसियत के बाहर थी, लेकिन बात बेटे के भविष्य की थी, इसलिए जैसेतैसे पैसों का जुगाड़ कर उन्होंने कोर्स कराने की हामी भर दी. अकरम खान ने प्रदीप शर्मा से रजिस्टे्रशन फार्म भरा लिया.

एक हफ्ते के अंदर ही प्रदीप की औनलाइन परीक्षा हुई. प्रदीप ने यह परीक्षा पास कर ली तो 5 नवंबर, 2011 को पिता के साथ छतरपुर स्थित आईपीएसआर मेरिटाइम के औफिस जा कर 31 हजार रुपए जमा करा दिए. इस के बाद उस से कहा गया कि इंस्टीट्यूट 3 महीने के जीपी रेटिंग कोर्स के लिए उसे राजस्थान के अलवर भेजेगा. लेकिन पहले उसे 1 लाख 10 हजार रुपए जमा कराने होंगे.

26 दिसंबर, 2011 को प्रदीप को 3 महीने की ट्रेनिंग के लिए अलवर जाने का लेटर मिल गया. इस के लिए उसे 1 लाख 10 हजार रुपए जमा कराने थे. लेकिन उस समय हरिदत्त शर्मा के पास इतने पैसे नहीं थे. उन्होंने अकरम खान से बात की और 3 महीने में पैसा जमा कराने का वादा किया तो हरिदत्त शर्मा पर विश्वास कर के प्रदीप को 3 महीने की ट्रेनिंग के लिए अलवर भिजवा दिया.

राजस्थान से 3 महीने की ट्रेनिंग कर के प्रदीप घर लौट आया. हरिदत्त शर्मा ने इधरउधर से पैसों का इंतजाम कर के 12 अप्रैल, 2012 को 1 लाख 10 हजार रुपए आईपीएसआर मेरिटाइम के छतरपुर स्थित औफिस में जमा करा दिए. अब प्रदीप को 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए कोलकाता जाना था. इस के लिए हरिदत्त शर्मा को 1 लाख 20 हजार रुपए और जमा कराने पड़े.

यह सारे पैसे हरिदत्त शर्मा ने अपने रिश्तेदारों से उधार ले कर जमा कराए थे. उन्होंने सोचा था कि बेटे की नौकरी लग जाएगी तो वह सब के पैसे लौटा देंगे.

प्रदीप की मां राधा शर्मा की बांह पर नासूर था. तमाम इलाज के बाद भी वह ठीक नहीं हो रहा था. प्रदीप ने मां को भरोसा दिलाया था कि नौकरी लगने के बाद वह उन का इलाज कराएगा. कोलकाता से ट्रेनिंग करने के बाद अब प्रदीप को नौकरी का इंतजार था.

आखिर सितंबर महीने में इंस्टीट्यूट की ओर से प्रदीप को बुलाया गया तो वह पिता के साथ वहां पहुंचा. इस बार उन की मुलाकात इंस्टीट्यूट के निदेशक अंबुज कुमार से हुई. उन्होंने कहा, ‘‘विदेश में नौकरी के लिए सतत निर्वहन प्रमाणपत्र (सीडीसी) होना जरूरी है.

‘‘यह प्रमाणपत्र भारत सरकार द्वारा जारी किया जाता है. हम ने इस के लिए एप्लाई कर दिया है. इस के अलावा बाहर जाने के लिए वीजा होना चाहिए. इन सब के लिए करीब 2 लाख रुपए खर्च होंगे. आप जल्द से जल्द ये पैसे जमा करा दीजिए, जिस से हम आगे की काररवाई कर सकें.’’

हरिदत्त शर्मा अब तक 3 लाख रुपए के करीब खर्च कर चुके थे. अब 2 लाख रुपए और जमा कराने के लिए कहा जा रहा था. यह सारा पैसा उन्होंने रिश्तेदारों से लिए थे. अब रिश्तेदारों से पैसे मिल नहीं सकते थे. पैसे भी जमा कराने जरूरी थे क्योंकि अगर पैसे जमा नहीं कराए जाते तो पिछले पैसे बेकार जाते. बेटे की उम्मीदों पर पानी फिर जाता.

जब कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में स्थित अपना 50 वर्गगज का वह मकान बेच डाला, जिस में वह परिवार के साथ रहते थे. मकान बेच कर हरिदत्त ने 2 लाख रुपए जमा करा दिए. इस के बाद खुद किराए पर रहने लगे. कुछ दिनों बाद सीडीसी आ गई, जिस में सन 2013 से 2023 तक विदेश में रहने की अनुमति थी.

7 अक्तूबर, 2013 को हरिदत्त शर्मा को इंस्टीट्यूट से फोन कर के बताया गया कि प्रदीप का वीजा लग गया है. वह अपने मूल प्रमाणपत्र और 2 लाख रुपए ले कर इंस्टीट्यूट आ जाए. हरिदत्त ने कहा कि अब 2 लाख किस बात के, तो इंस्टीट्यूट के निदेशक अंबुज कुमार ने कहा, ‘‘ये रुपए उस के एयर टिकट वगैरह के हैं. आप प्रदीप को ले कर कल 9 बजे तक आ जाइए. कल ही उस की फ्लाइट है.’’

अगले दिन सुबह 9 बजे प्रदीप के साथ हरिदत्त को इंस्टीट्यूट पहुंचना था. किसी तरह पैसों की व्यवस्था कर के इंस्टीट्यूट पहुंचे तो इंस्टीट्यूट के निदेशक अंबुज कुमार ने कहा, ‘‘आप लोग बहुत लेट हो गए हैं. जल्दी से पैसे और पेपर दीजिए, वरना फ्लाइट छूट जाएगी.’’

हरिदत्त शर्मा लेट हो चुके थे, इसलिए पैसे देते समय वह अंबुज कुमार से कुछ पूछ भी नहीं सके. पैसे मिलने के बाद अंबुज ने कुछ डाक्युमेंट्स की फोटोकौपी और एक सीलबंद लिफाफा प्रदीप को दे कर कहा, ‘‘इस लिफाफे को तुम दुबई में मिस्टर विकास को दे देना. वह इंस्टीट्यूट के ही आदमी हैं.

इस के बाद हरिदत्त शर्मा आटो से इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुंचे, जहां प्रदीप का पासपोर्ट और सामान आदि चैक हुआ. उस के बाद उसे दुबई जाने वाली फ्लाइट में बैठा दिया गया.

उसी दिन प्रदीप दुबई पहुंच गया. दुबई एयरपोर्ट पर ही उसे विकास मिला, जिसे उस ने वह सीलबंद लिफाफा सौंप दिया. दुबई पहुंच कर प्रदीप ने घर वालों से फोन पर बात की. उस की सफलता पर मांबाप बहुत खुश थे.

आईपीएसआर इंस्टीट्यूट के निदेशक अंबुज कुमार के अनुसार, प्रदीप को 3 महीने दुबई में काम करना था. हरिदत्त शर्मा की प्रदीप से बात हुई तो उस ने बताया कि वह दुबई के एक शिप में काम कर रहा है.  3 महीने बाद प्रदीप को इराक और फिर ईरान भेजा गया. कुछ दिनों के बाद वह फिर दुबई आ गया. वहां से उसे फिर इराक भेज दिया गया.

काली कमाई का कुबेर : यादव सिंह

खामोश हुआ विद्रोही तेवर

ठगी का बड़ा खिलाड़ी – भाग 4

अजय को जब भी सिरसा आना होता, उस के स्वागत में शहर में बड़ेबड़े होर्डिंग्सऔर बैनर कुछ इस अंदाज में लगाए जाते थे, जैसे किसी बड़ी राजनैतिक हस्ती का स्पैशल दौरा हो. जब सारी तैयारियां पूरी हो जातीं, उस के बाद ही भारी सुरक्षा तामझाम और काफिले के साथ अजय फिल्मी स्टाइल में एंट्री करता था. उस के आगेपीछे पुलिस और कमांडों दस्ते की जिप्सियां चलती थीं. उन के बीच वह महंगी लग्जरी कार में रहता था.

लोग उसे देख सकें, इस के लिए कार का शीशा उतार दिया जाता था. जिप्सियों पर 2-2 पुलिसकर्मी गले में कारबाइन डाल कर खड़े हो कर चलते थे. शायद ऐसा इसलिए किया जाता था कि लोग देख सकें कि पुलिस किस मुस्तैदी से उसे वीआईपी सुरक्षा दे रही है. इस सब के पीछे उस की मंशा लोगों को अपना रसूख दिखाने की होती थी. वह हमेशा वीआईपी सिक्योरिटी रखता था.

उस की सुरक्षा में पंजाब, हरियाणा और दिल्ली पुलिस के जवान होते थे. जितनी सुरक्षा उस के पास होती थी, किसी कैबिनेट मंत्री के पास भी नहीं होती थी. सन 2016 के विधानसभा चुनावों के समय सिरसा में चर्चा हो रही थी कि कांगे्रस अजय को अपना उम्मीदवार बनाएगी तो पूर्व मंत्री गोपाल कांडा से उस का कांटेदार मुकाबला होगा. हालांकि ऐसा हुआ नहीं.

अजय की रईसी का आलम यह था कि वह अपने नातेरिश्तेदारों को महंगी कारें तक गिफ्ट करता था. उस के पास जो लग्जरी गाडिय़ां थीं, वे उस के नाम नहीं थीं. उस की बीएमडब्ल्यू, मर्सडीज, औडी व हुंडई कारें उस के साथियों और पीए के नाम पर थीं.

अजय की शान से प्रभावित हो कर बड़ेबड़े लोग अपने काम कराने के लिए उस के पास आते और उस के जाल में फंस जाते थे. उन्हीं में पुणे के एक बड़े शिक्षण संस्थान के संचालक आर.एस. यादव भी थे. वह अकसर अपने कामों से दिल्ली आते रहते थे. इसी आनेजाने में उन की मुलाकात अजय से हुई तो उस ने उन्हें ऐसा झांसा दिया कि वह भी उस के जाल में फंस गए.

उस ने उन से कहा था कि सरकार एक सिक्योरिटी कमीशन बनाने जा रही है, अगर वह चाहें तो गृह मंत्रालय में सिफारिश कर के उन्हें वह उस में मेंबर बनवा सकता है. उन्हें तमाम सरकारी सुविधाओं के साथ लाल बत्ती लगी गाड़ी और सुरक्षा भी मिलेगी. आर.एस. यादव इस के लिए सहज ही तैयार हो गए. अजय का रसूख चूंकि वह देख चुके थे, इसलिए शक जैसी कोई बात नहीं थी. उन्होंने 50 लाख रुपए अजय को आने वाले दिनों में दे भी दिए. ऐसा कोई कमीशन बनना ही नहीं था, इसलिए रुपए हाथ में आते ही अजय उन्हें टरकाने लगा. उन्हें लगा कि वह फंस गए हैं तो पैसे वापस मांगे.

इस के बाद वह आए दिन रुपए वापसी के लिए चक्कर लगाने लगे तो एक दिन फार्महाउस पर अजय से उन की कहासुनी हो गई.  आर.एस. यादव अड़ गए. उन्होंने कहा, “अजयजी बहुत हो गया, आप मेरा हिसाब कर दीजिए. उस के बाद हमारा आप का रिश्ता खत्म.”

उन की बात पर अजय ने मुसकरा कर कहा, “ठीक है, तुम यही चाहते हो तो आज मैं मामला साफ किए देता हूं. आज के बाद तुम मुझ से कभी नहीं मिल सकोगे.”

इस के बाद अजय ने सुरक्षाकॢमयों को इशारा किया तो उन्होंने उसे धकिया कर फार्महाउस के बाहर कर दिया. उस ने ताकीद भी कर दी थी कि यह आदमी आइंदा कभी कोठी में नहीं दिखना चाहिए. बाहर से ही इसे भगा देना.

इस तरह आर.एस. यादव को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया तो वह चाह कर भी कभी उस से नहीं मिल सके. अजय की पहुंच को देखते हुए उन्होंने उस के खिलाफ जान के डर से पुलिस में शिकायत करने की भी हिम्मत नहीं की. कोशिश कर के हरियाणा में शिकायत भी की तो वह दब कर रह गई.

सन 2013 में अजय ने पानीपत के एक आदमी से सरकारी नौकरी लगवाने के नाम पर 20 लाख रुपए ठग लिए थे. ठगी का शिकार हुए आदमी ने चुप बैठने के बजाय उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया था. पानीपत में उस के खिलाफ 20 लाख रुपए की ठगी का मुकदमा तो दर्ज हुआ, लेकिन अपनी पहुंच के बल पर वह कानून के शिकंजे में फंसने से बचता रहा. मामला अदालत में पहुंचा. अजय को उम्मीद थी कि एक दिन यह सब रफादफा करा देगा.

अजय की ठगी का सिलसिला यहीं नहीं थमा. उस ने करनाल के सेक्टर-1 निवासी वीरेंद्र सिंह से भी पैट्रोल पंप और गैस एजेंसी दिलाने के नाम पर डेढ़ करोड़ रुपए ठग लिए थे. वीरेंद्र को न एजेंसी मिली, न रुपए. अजय की पहुंच के आगे वह भी थक कर बैठ गए थे.

इस के बाद उस ने सुरेंद्र गुप्ता को ठगी का शिकार बनाया. उसे कहीं से पता चला था कि सुरेंद्र को लोन की जरूरत है. यह पता चलते ही उस ने अपने साथियों को उन के पीछे लगा दिया. गुप्ता उन के जाल में एक बार फंसे तो फिर फंसते ही चले गए.

अजय के कारनामों का खुलासा हुआ तो हर कोई हैरान था. पुलिस हिरासत में भी वह अपने परिचित नेताओं के नाम ले कर पुलिस को डराता रहा. उस की गिरफ्तारी की सूचना मिलने के बाद गैस एजेंसी के नाम पर डेढ़ करोड़ गंवाने वाले वीरेंद्र सिंह और पुणे के आर.एस. यादव ने भी मुकदमा लिखाया था.

दरअसल, आर.एस. यादव कुछ ऐसे लोगों के बराबर संपर्क में थे, जो अजय को जानते थे. उन्हें गिरफ्तारी की खबर पा कर वह करनाल से आ पहुंचे थे. पुलिस ने कई राज्यों में उस की गिरफ्तारी की सूचना भेज दी है, ताकि अन्य मामले भी पकड़ में आ सकें.

27 जनवरी, 2015 को पुलिस ने अजय के एक साथी रिषी विश्नोई को भी गिरफ्तार किया है. उसी ने डेढ़ करोड़ की ठगी का शिकार हुए वीरेंद्र की मुलाकात अजय से कराई थी और ठगी के इस मामले में अहम भूमिका निभाई थी.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने अजय को फिर से अदालत में पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस उस के शेष कारनामों की जांच के साथ ही उस के बाकी साथियों की तलाश कर रही थी. पुलिस के पास अजय की ठगी का शिकार हुए लोग पहुंच रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

पंजाब की डाकू हसीना – भाग 4

गैंग के साथ बनाया लूट का खाका

जब लूट के लिए सभी विश्वासपात्र एकत्र हो गए तो इस की आगे की प्लानिंग बनाई गई. वह महीना था फरवरी और तारीख थी 23. मोना इतनी शातिर थी कि जुम्माजुम्मा शादी हुए हफ्ते भर नहीं हुआ था कि पति जसविंदर को भी अपने हुस्न की जाल से गुनाह के दलदल में उतार लिया था.

खैर, 5 महीने तक लूट की योजना बनती रही. घटना को अंतिम रूप देने के लिए 9 जून, 2023 दिन शुक्रवार तय किया. इस के पीछे खास वजह यह थी कि इस दिन रुपयों का कलेक्शन ज्यादा होता था, क्योंकि शनिवार और रविवार छुट्टी होती थी. एटीएम में पैसे डालने का काम नहीं होता था इसीलिए शुक्रवार का दिन चुना गया.

9 जून को सभी लुटेरे जगरांव में इकट्ठे हुए. समय शाम के 6 बजे के आसपास हो रहा था. करीब 3 घंटे तक आपस में मीटिंग हुई. अंत में गिरोह 2 टुकड़ों बांट दिया गया. जिस में तय हुआ कि एक पार्ट को मोना उर्फ डाकू हसीना अपना नेतृत्व देगी. वो अपनी क्रूज कार में जसविंदर सिंह (पति), हरप्रीत सिंह (भाई) अरुण कुमार कोच, आदित्य उर्फ नन्नी और गुलशन को बैठा कर पीछे वाले रास्ते से कार ले जाएगी.

जबकि दूसरी पार्टी का नेतृत्व मनजिंदर सिंह उर्फ मनी को सौंपा गया. उस के साथ में हरविंदर सिंह, मनदीप सिंह, परमजीत सिंह उर्फ पम्मा और नरिंदर सिंह लगाए गए. उन्हें 2 बाइकों पर सवार हो कर आगे के रास्ते से सीएमएस पहुंचना था. पते की बाद तो ये थी कि ये इतने शातिर थे कि पकड़े जाने के डर से कोई भी अपना मोबाइल अपने पास नहीं रखे था.

मीटिंग खत्म करने के बाद खुद मोना ने कार की ड्राइविंग संभाली और उस के बगल में जसविंदर सिंह बैठा बाकी तीनों पीछे की सीट पर बैठे. सब ने अपना चेहरा नकाब से पूरी तरह ढक रखा था तो मनजिंदर सिंह और बाकी साथी बाइक से निकले. इन सभी ने सुनसान रास्ते का इस्तेमाल किया था, जहां स्ट्रीट लाइटें कम थीं.

मनजिंदर और उस के चारों साथी आगे के रास्ते से सीएमएस के दफ्तर में घुसे तो मोना दफ्तर में पीछे के रास्ते साथियों संग घुसी थी. मनजिंदर को पता था कि सेंसर सिस्टम कहां है, इसलिए सब से पहले उस ने सेंसर सिस्टम की वायर काटी ताकि कोई अलार्म न बजा सके. उस के बाद ये सभी पीछे के रास्ते से ही अंदर दाखिल हुए.

गार्डों को बंधक बना कर काटे सायरन के तार

उन्होंने पहुंचते ही सब से पहले सो रहे तीनों सुरक्षा कर्मचारियों अमर सिंह, बलवंत सिंह और परमदीन खान को बंधक बनाया. उन के हथियार छीन लिए, जिस के बाद डीवीआर और साइरन के सभी तार और सामान समेट लिया. उस के बाद मनजिंदर और जसविंदर कैश गिनने वाले कमरे में दाखिल हुए, जहां 2 कर्मचारी हिम्मत सिंह और हरमिंदर सिंह कैश गिन रहे थे.

असलहे की नोंक पर दोनों ने उन पर काबू किया तो मोना, हरप्रीत, विक्की, लंबू, नन्नी और अरुण कोच 2 नीले रंग के बड़े बैग में नोट भरने का काम करते रहे. ये खेल रात 2 बजे से 5 बजे तक चला. जब दोनों बैग रुपयों से भर गए तो उन्हें सीएमएस कंपनी की कैश वैन संख्या पीबी10जेए -7109 में रुपए भरे और खुद मनजिंदर सिंह वैन को ड्राइव कर गांव के रास्ते होते हुए फरार हो गया तो कार में मोना अपने साथियों को साथ ले कर और बाकी अपनी बाइक पर फरार हो गए.

सभी लुटेरे वहीं पहुंच कर इकट्ठा हुए, जहां मीटिंग (जगरांव) की थी. एक बैग के रुपए आपस में काम के अनुरूप बांट दिए थे, जबकि दूसरे बैग के नोट मोना ने अपनी क्रूज गाड़ी में रख कर अरुण कोच के घर के पास खड़ी कर पति के साथ फरार हो गई.

सभी आरोपी जानते थे सुबह तक यह घटना जंगल में आग की तरह फैल जाएगी, इसलिए रुपए ले कर वे सभी भूमिगत हो गए थे लेकिन कैश वैन की बरामदगी, उस में लगे जीपीएस और गुप्त कैमरे से मनजिंदर का ट्रेस होना और मुखबिर की सक्रिय भूमिका से लूट का पूरा खुलासा हो गया और लूट की शतप्रतिशत रकम भी बरामद कर ली गई.

अंत में सीएमएस के प्रबंधक के बयान ने लूट की रकम को उलझा दिया. तीसरी बार अपने बयान में प्रबंधक प्रवीण ने कहा कि लूट की रकम 7 करोड़ नहीं, बल्कि 8 करोड़ 49 लाख थी, जिस में से 7 करोड़ 14 लाख की रकम बरामद कर ली गई है. जबकि अभी भी 1 करोड़ 37 लाख रुपए बरामद करना शेष है.

इस कहानी में एक लोचा तब आ गया था, जब क्रूज कार अरुण के घर के बाहर खड़ी थी. अरुण के साथी नीरज को इस घटना के बारे में पता चल चुका था और उस ने मुंह बंद रखने के लिए अपना हिस्सा मांगा तो अरुण ने कुछ भी देने से मना कर दिया. इस पर नीरज अपने साथियों प्रिंस, मनदीप उर्फ बब्बू और अभिसिंगला कार का शीशा तोड़ कर 70 लाख रुपए उस में से चुरा लिए. वे चारों भी चोरी के रकम के साथ पकड़े जा चुके हैं.

इस तरह से इस घटना में कुल 16 आरोपी पकड़े जा चुके हैं. जांच के दौरान पुलिस ने मोना के घर से उस की बिना नंबर वाली स्कूटी बरामद की थी. उस की डिक्की में बड़ी मात्रा में सीरिंज बरामद हुईं. पुलिस इस से अनुमान लगा रही है कि मोना ड्रग भी लेती होगी या किसी को देती होगी. इसे भी पुलिस ने अपनी जांच में शामिल कर लिया है.

खैर, घटना का खुलासा करने के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तुझे राम कहें या राक्षस – भाग 3

मुंबई में शायद वह कामयाब हो भी जाता, लेकिन जिन दिनों वह रवींद्र भवन में काम करता था, उन्हीं दिनों उस की मुलाकात इसी इलाके के 2 बदमाशों उजेब और अजीज उल्ला से हुई थी. ये दोनों नशा करने और कराने के लिए रवींद्र भवन के पास ही मंडराते रहते थे. इन दोनों की संगत में पड़ कर राम नशा करने लगा था. लेकिन इस के एवज में उसे अपना शोषण कराना पड़ता था.

अजीज और उजेब ने उस का पीछा मुंबई तक किया तो वह परेशान हो उठा. उस में इन बदमाशों से टकराने की हिम्मत नहीं थी. मुंबई से पहले वह भोपाल आया और फिर भोपाल से विदिशा आ गया. लेकिन इन दोनों बदमाशों से उसे छुटकारा नहीं मिला. ये दोनों विदिशा जा कर उस का शोषण करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. राम नायडू जब बहुत परेशान हो गया तो उस ने अपने भोपाल वाले मामा के साथ मिल कर विदिशा में अजीज उल्ला की हत्या कर दी.

यह सन 2003 की बात है. उस का यह जुर्म छुपा नहीं रह सका. पुलिस ने राम नायडू और उस के मामा को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. सन 2006 में हत्या का आरोप साबित होने पर अदालत ने उसे और उस के मामा को आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई.

सन 2011 तक राम नायडू जेल में रहा. इसी बीच ग्वालियर हाईकोर्ट में दायर राम नायडू और उस के मामा की जमानत याचिका मंजूर हो गई. मामाभांजा दोनों जमानत पर जेल से बाहर आ गए. राम नायडू बाहर तो आ गया, पर उस के सामने हजार तरह की दुश्वारियां मुंह बाए खड़ी थीं. उस के ऊपर कातिल का ठप्पा लगा था. ऐसे में उसे नौकरी मिलना मुश्किल था. जबकि कोई कामधंधा वह जानता नहीं था, जिस से अपना गुजरबसर कर लेता.

जब आदमी को कोई राह नहीं मिलती तो वह अपने लिए टेढ़ी राह चुन लेता है. यही राम नायडू के साथ हुआ. कामधंधा न होने के बावजूद वह हैरतअंगेज तरीके से अमीर होता गया. उस का रहनसहन ठाठबाट देख कर उसे जानने वाले चकित थे कि जेल से छूटे मुजरिम के पास इतना पैसा कहां से आ रहा है.

पूछने पर वह लोगों को बताता था कि वह प्रौपर्टी डीङ्क्षलग का धंधा कर रहा है, जिस से दलाली में अच्छाखासा पैसा मिल जाता है. इसी दौरान भोपाल के कोलार इलाके में उस ने नगद पैसे दे कर एक महंगा फ्लैट खरीद लिया. उन दिनों राम नायडू की रईसी और अय्याशी शबाब पर थी.

हकीकत यह थी कि जेल से जमानत पर छूटने के बाद उस ने नया धंधा चुन लिया था. यह धंधा था उम्रदराज लड़कियों से शादी कर के उन से पैसे झटकने का. मध्य प्रदेश की जिन जगहों में उस ने ठगी की, उन में सागर, ग्वालियर, बीना, ङ्क्षछदवाड़ा, खंडवा, खरगोन और सीहोर सहित दर्जन भर शहरों की लड़कियां शामिल थीं. राम के निशाने पर वे लड़कियां रहती थीं, जो 40 की उम्र के लगभग थीं और उन के घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं होता था.

धंधा चल निकला तो वह बीवियों के पैसे से अय्याशी करने लगा. जिस को वह ठगता था, वे रिपोर्ट दर्ज नहीं कराती थीं, क्योंकि इस से सिवाय बदनामी के कुछ हासिल नहीं हो सकता था. इस प्लेबौय की कितनी पत्नियां हैं, इस की गिनती कथा लिखे जाने तक जारी थी. लेकिन हैरानी की बात यह है कि तमाम शहरों की लड़कियां यह तो स्वीकार रही हैं कि इस रंगीनमिजाज नटवरलाल ने उन्हें ठगा, पर रिपोर्ट अभी भी दर्ज नहीं करा रहीं.

सिर्फ एक पीडि़ता विजया उस के खिलाफ खुल कर सामने आई, जो जबलपुर मैडिकल कालेज में नर्स है. हैरानी की बात यह है कि उस ने विजया से शादी मृणालिनी को चूना लगाने के बाद बीते 12 नवंबर को भोपाल के आर्यसमाज मंदिर में की थी. शादी के 2-4 दिनों बाद उस ने विजया को समझाबुझा कर या कहें बेवकूफ बना कर इस बात पर राजी कर लिया था कि वह जबलपुर जा कर नौकरी करे. फिर कहीं सेटल होने के बारे में सोचेंगे.

मृणालिनी से ठगे पैसों से उस ने भोपाल के ही नेहरूनगर इलाके में एक और फ्लैट खरीदा था और साथ ही एक पुरानी कार भी खरीद ली थी. इस के बाद भी उस के पास पैसे बच गए थे, जिन से रंगीनमिजाज ठग राम नायडू सीधा बैंकाक जा पहुंचा, जहां वह एक होटल में ठहरा. इस के लिए उस ने जेल से छूटते ही मामा के घर के पते पर पासपोर्ट बनवा लिया था. बैंकाक में उस ने एक कालगर्ल बुक कर रखी थी. यानी शादी की मृणालिनी और विजया सरीखी दर्जनों लड़कियों से और हनीमून मनाने गया विदेश कालगर्ल के साथ.

पूरी तरह फंसने और पुराने पाप उजागर होने के बाद भी राम नायडू ने पूरी बेशर्मी से स्वीकारा कि वह अखबार में वैवाहिक विज्ञापन देख कर शादी का प्रस्ताव भेजता था, शिकार फांसता था, शादी करता था और पत्नियों से शारीरिक संबंध भी बनाता था. भले ही वे इस से मुकरती रहें.

उस ने एक अजीब बात और भी मानी कि उस ने भले ही कई शादियां कीं, पर विजया आज भी उस का सच्चा प्यार है. उस से उस की मुलाकात जबलपुर में उस वक्त हुई थी, जब उस का एक दोस्त वहां इलाज के लिए भर्ती था.

कई पत्नियों वाले इस राम का लंबा नपना तय है, क्योंकि उस के खिलाफ पुलिस तमाम पुख्ता सबूत हासिल कर चुकी है. दाद देनी होगी मृणालिनी की हिम्मत की, जिस ने लोकलाज की परवाह न कर के पहल की. नहीं तो यह अय्याश ठग न जाने और कितनी लड़कियों की जिंदगी से खिलवाड़ कर के उन के पैसे लूटता रहता.

देश भर में उम्रदराज लड़कियां तख्तियां हाथ में लटका कर नारे लगा रही हैं कि अकेले हैं पर कमजोर नहीं. उन्हें एक दफा राम नायडू की अय्याशी से सबक लेना चाहिए, वजह उस ने जाने कितनी अधेड़ अविवाहित महिलाओं की इज्जत और जज्बातों से खिलवाड़ कर के उन का पैसा लूटा है. इस मामले से यह भी साबित होता है कि अकेली रह रही उम्रदराज लडक़ी भावनात्मक रूप से कमजोर होती ही है, जिस का फायदा राम नायडू जैसे ठग आसानी से उठा लेते हैं.

—कथा में लड़कियों के नाम बदले हुए हैं.

ठगी का बड़ा खिलाड़ी – भाग 3

जानीमानी पार्टियों के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से ले कर वरिष्ठ अधिकारियों से उस के सीधे और मजबूत संबंध थे. उस का रसूख और राजशाही ठाठ देख कर बड़ेबड़े लोग प्रभाव में आ जाते थे.

अजय शर्मा उर्फ सरजू को जानने वाले बताते हैं कि वह नौवीं फेल था. उस के पिता का कभी छोटा सा क्लिनिक हुआ करता था. वह सिरसा में गोदाम रोड पर रहते थे. उस की प्रारंभिक शिक्षा यहीं हुई थी. वह बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी था. पढ़ाई में मन नहीं लगा, इस के बावजूद वह ऊंचे सपने देखने लगा.

कुछ लोग अपने सपनों को पढ़ाई और काबलियत के बलबूते पूरा करते हैं, परंतु कुछ लोग शौर्टकट के जरिए. फर्क इतना होताहै कि जो सपने काबलियत से पूरे होते हैं, वे स्थाई होते हैं, जबकि जिन्हें शौर्टकट के जरिए पूरा किया जाता है, उन की कोई बुनियाद नहीं होती, वे वक्ती होते हैं. यह फर्क कलांतर में आईने की तरह एकदम साफ दिखता है. इस बड़ी हकीकत से अंजान अजय का थकी सी जिंदगी में मन नहीं लगता था.

पढ़ा हुआ वह भले ही कम था, लेकिन दिमाग का तेज था. उस का व्यक्तित्व भी आकर्षक था. उस के आर्थिक हालात कतई अच्छे नहीं थे. उसे लगता था कि हवाई चप्पलों में टहलते हुए उस की उम्र यूं ही कट जाएगी. सन 1997 में ही यह बात उस की समझ में आ गई थी कि आज के जमाने में राजनीतिक ताकत से बड़ी कोई ताकत नहीं है. उस ने राजनीति से जुड़े लोगों से रिश्ते बनाने शुरू कर दिए, साथ ही गुजारे के लिए प्रौपर्टी का छोटामोटा काम करने लगा.

बातों से किसी को भी प्रभावित करने की कला उस में थी ही, उस की पैठ बढ़ी तो उस ने दिल्ली का रुख किया. इस के बाद उस ने कई सालों तक सिरसा की ओर पलट कर नहीं देखा. राजनीतिज्ञों की शागिर्दी के साथ उस ने लोगों के छोटेमोटे काम कराने शुरू किए तो उस के बदले वह पैसे लेने लगा. इसी के साथ प्रौपर्टी के काम में भी वह हाथ आजमाता रहा. कई शराब कारोबारियों से भी उस के रिश्ते बन गए थे.

विवादित प्रौपर्टी पर उस की खास नजर होती थी, क्योंकि वहां नेताओं और नौकरशाहों की पौवर का इस्तेमाल कर के वह अपने रिश्तों को भुना लेता था. हैसियत बढ़ी तो पंजाबी बाग जैसे पौश इलाके में किराए पर रहना शुरू कर दिया. इन्हीं कामों से उस ने इतनी दौलत कमाई कि 10 सालों में वह काफी दौलतमंद हो गया. इस बीच फिल्मों से प्रभावित हो कर उस ने अपना नाम अजय पंडित रख लिया.

अजय का काम करने का तरीका एकदम अलग था. उस ने तमाम चेलेचपाटे बना लिए थे, जो पहले शिकार को टारगेट करते थे. इस के बाद उसे शान दिखा कर संपर्क बढ़ा कर उसे राजनीतिक घरानों से ले कर बड़े नौकरशाहों से मिलवा कर अपना विश्वास जमाते. और जब विश्वास जम जाता था तो उसे कोई ख्वाब दिखा कर चाल चलना शुरू कर देते थे.

इस मामले में अजय करिश्माई व्यक्तित्व का स्वामी था. लोग न सिर्फ उस पर भरोसा कर लेते थे, बल्कि उसे काम के बदले मोटी रकम भी दे देते थे. जिन के काम नहीं होते थे, उन के रुपए फंस जाते थे. अजय रसूख की बदौलत तरहतरह के हथकंडे अपना कर ऐसे लोगों को किनारे कर देता था. किसी को राजनीतिक पार्टी का टिकट दिलाने, किसी को नौकरी, किसी को पैट्रोल पंप व गैस एजेंसी का लाइसैंस दिलाने तो किसी को बड़े काम के ठेके दिलाने का झांसा दे कर वह ठगी करता था. ऐसा भी नहीं था कि वह लोगों के काम बिलकुल नहीं कराता था. लेकिन जिन का काम नहीं होता था, उन के पैसे फंस जाना तय था.

दौलत और ताकत में इजाफा हुआ तो अजय ने छतरपुर में एक फार्महाउस किराए पर ले लिया. उस ने सिरसा के सैक्टर-20 में एक आलीशान कोठी बनवाई. कई लग्जरी गाडिय़ां खरीद लीं. राजनीतिक लोगों और नौकरशाहों पर भी उस का दबदबा रहता था. सरकारी सुरक्षा के अलावा प्राइवेट सिक्योरिटी में पहलवान जैसे लडक़ों को वह साथ रखता था.

अजय खुद को राजशाही घराने का बताता था. उस ने तमाम नामीगिरामी लोगों से संपर्क बना लिए थे. उस के रहनसहन, राजसी ठाटबाट, सुरक्षा तामझाम, लग्जरी गाडिय़ों और बड़े संपर्कों को देख कर कोई भी प्रभाव में आ जाता था. वह लोगों से बड़ेबड़े कामों को कराने के बदले मोटी रकम लेता था. राजनीतिक संबंधों को भुनाने का हुनर उसे खूब आता था.

उस ने सोनिया गांधी एसोसिएशन बना ली, जिस का वह खुद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गया. इसी के साथ उस ने ब्राह्मणसभा भी बनाई और उस का भी खुद ही अध्यक्ष बन गया. वह सफेदपोश बन कर ऐशोआराम की जिंदगी जीता था. अजय के जिंदगी जीने का अंदाज एकदम अलग था. वह रौबरुतबे से रहता था. उस का हुक्म बजाने के लिए नौकरों और सुरक्षाकॢमयों की फौज तैयार रहती थी.

राष्ट्रीय पहुंच के नेताओं से संबंध बनाए रखने की कला का वह बाजीगर था. लखपति लोगों के काम कराना वह अपनी तौहीन समझता था, इसलिए करोड़पति और अरबपति लोगों को ही अपना निशाना बनाता था. किसी का काम कराने के बदले वह करोड़ो रुपए एडवांस में ले लेता था. शातिर दिमाग अजय ने दिखावटी शान से ही बड़ोंबड़ों को झांसे में लिया था.

दौलत और रसूख हासिल करने के बाद अजय ने सन 2012 से सिरसा आना शुरू किया तो वह जब भी वहां आता, उसे देख कर लोगों की आंखें फटी रह जातीं. कारों और वीआईपी सिक्योरिटी ही नहीं, अजय हैलीकौप्टर से भी आता था. लोगों में जिज्ञासा बढ़ाने के लिए वह शहर के ऊपर हैलीकौप्टर का चक्कर लगवा कर एयरफोर्स स्टेशन पर उतरता था. तब लोगों को पता चल जाता था कि उन का अजय उर्फ सरजू आया है.

वह दान भी दोनों हाथों से करता था. यह दान वह धार्मिक आयोजनों, पूजास्थलों से ले कर गरीबों तक में करता था. उस ने दान भी इतना किया था कि उस की पहचान बड़े दानवीरों में होने लगी थी. उस के रसूख और दान देने की दिलदारी को देख कर लोग उसे कार्यक्रमों मे बुलाने लगे थे.

विशेष अवसरों पर जब उस के आने पर गरीबों की लाइन लगती थी तो उस के कारिंदे हजार व 5 सौ के नोटों की गड्डयां खोल कर उसे देते और वह बिना गिने बांटता चला जाता था. गरीबों के प्रति उस की यह दरियादिली जितनी सुर्खयों में आती, वह उतना ही खुश होता और गर्व महसूस करता. उस ने किसी गरीब को कभी हजार या 5 सौ से कम का नोट नहीं दिया, क्योंकि उस से कम देना वह अपनी तौहीन समझता था. उसे ऐसा करते देख बड़ेबड़े रईस भी हैरान रह जाते थे.