पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 3

आईएसआई ने भारत में जासूसी करने के लिए उस से 3 सालों का कौंट्रैक्ट किया. इस के बदले उसे 50 हजार रुपए महीने देना तय हुआ. भारत में उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड की विभिन्न सैन्य व वायुसेना की इकाइयों से संबंधित गुप्त सूचनाएं, प्रतिबंधित महत्त्व के दस्तावेज और भारतीय सेना की गतिविधियों की सूचना एकत्र कर के आईएसआई को भेजना था.

इरादों को मजबूत कर के अपने मिशन को पूरा करने के लिए एजाज अपने पासपोर्ट के साथ कराची होते हुए 31 जनवरी, 2013 को ढाका पहुंचा. वहां उस की मुलाकात आईएसआई के एजेंट प्रोबीन से हुई. प्रोबीन ने उस से पाकिस्तानी पहचान संबंधी दस्तावेज हासिल कर के कहा, “जब मिशन पूरा कर के तुम वापस जाओगे, तब ये चीजें तुम्हें वापस मिल जाएंगी. वैसे मिशन को बड़ी होशियारी से अंजाम देना मियां, क्योंकि भारत की खुफिया एजेंसियां बहुत सतर्क रहती हैं.”

“फिक्र न कीजिए, मैं हर तरह से फिट हूं.” एजाज ने आत्मविश्वास से जवाब दिया.

प्रोबीन ने कुछ दिन उसे अपने पास रख कर सावधानी बरतने के गुर सिखाए. इस के बाद 9 फरवरी को नदी के रास्ते भारतबांग्लादेश सीमा पार करा दी. यहां उस की मुलाकात वेस्ट बंगाल के माटियाबुर्ज, साउथ चौबीस परगना निवासी इरशाद हुसैन से हुई. यहां उस ने कपड़ों की फेरी लगाने का काम किया और हिंदी सीखी. एजाज यहीं रह कर हिंदी लिखनेपढऩे और बोलने का पूरा अभ्यास किया.

इरशाद, उस का बेटा और 2 भाई आईएसआई के लिए काम करते थे. इरशाद ने उसे गोपनीय दस्तावेज पाकिस्तान भेजने के सारे गुर सिखाए. इस दौरान उसे नई पहचान देने के लिए उस का नाम मोहम्मद कलाम रख दिया गया. इसी नाम से उस के जूनियर हाईस्कूल के शैक्षिक प्रमाणपत्र बनवाए गए. उस का एक मतदाता पहचान पत्र व राशनकार्ड भी बनवाया गया, जिन के आधार पर सैंट्रल बैंक औफ इंडिया में उस का खाता खोलवा दिया गया. इन प्रमाण पत्रों पर उसे बिहार के नाड़ी गांव का निवासी बताया गया था.

नई पहचान के बाद वह बिहार के एक वीडियोग्राफर रईस के साथ काम करने लगा, क्योंकि यह काम वह पहले से जानता था. वीडियोग्राफी के काम से जुड़े रहने से उसे अपने मिशन में बेहद आसानी हो सकती थी. एजाज भारत के दिल्ली समेत कई इलाकों में घूमा. ऐसा कर के वह यहां की भौगोलिक स्थिति को समझना चाहता था. यहां आ कर उसे पता चला कि उस के जैसे तमाम जासूस हैं, लेकिन वे सब भारतीय हैं. उन के जरिए भी उसे काम लेने को कहा गया था.

उन्हीं के जरिए उस ने प्रमुख आर्मी एरिया का पता लगाया. आईएसआई जानना चाहती थी कि किनकिन छावनयिों में कौनकौन अधिकारी तैनात हैं. उन के व उन के परिवारों के कौंटैक्ट नंबर क्या हैं और आर्मीमैन किस तरह के अभ्यास करते हैं. यह सब इतना आसान नहीं था, लेकिन ट्रेङ्क्षनगशुदा होने के चलते एजाज ने अपने काम को अंजाम देना शुरू कर दिया.

कौंट्रैक्ट के लिहाज से उसे भारत में फरवरी, 2016 तक रहना था. लोगों के बीच आसानी से घुलनेमिलने और मकान किराए पर लेने के लिए वह चाहता था कि गृहस्थी बसा ली जाए. इस से शक की गुंजाइश कम हो जाती. इसी बीच उस की मुलाकात आसमा से हुई तो उस ने उस से मोहब्बत का नाटक कर के निकाह कर लिया. आसमा के पिता शमशेर की किराने की दुकान थी. एजाज ने भी उन की दुकान संभाली. इस के साथ ही वह वीडियोग्राफी छोड़ कर फेरी लगा कर कपड़े बेचने का काम करने लगा.

जनवरी, 2015 में वह बरेली आ गया. बरेली में सेना और वायुसेना की बड़ी विंग है. उन पर उसे काम करना था. बरेली में उस ने फोटो स्टूडियो वालों के साथ दिखावे के लिए काम शुरू कर दिया. वह कंप्यूटर का मास्टर था. सही बात यह थी कि वह फोटो व वीडियोग्राफी की आड़ में जासूसी कर रहा था.

बरेली आ कर उस ने चंद महीनों में ही 3 ठिकाने बदल दिए. उस पर किसी भी तरह का शक न हो, इस के लिए उसे करना जरूरी था. बाद में उस ने 6 जून को शाहबाद में वसीम उल्लाह का मकान किराए पर ले लिया. अब उसे अपने काम में आसानी हो गई. उस के साथी उस के संपर्क में रहते थे और सूचनाओं का आदानप्रदान करते रहते थे.

वह फेसबुक, वाइबर, स्काईप, ईमेल के जरिए संपर्क में रहता था. वह औडियोवीडियो कौङ्क्षलग करता था. मोबाइल इंटरनेट के जरिए वह लाइव तसवीरें भी आईएसआई को दिखाता था. उस ने अलगअलग नामों से इंटरनेट पर अपने कई सोशल एकाउंट बना रखे थे. अपने पाकिस्तानी आकाओं से वह रात में 11 से 2 बजे के बीच संपर्क करता था. मेल में वह मैसेज लिख कर फोटो व वीडियो अटैच कर के ड्राफ्ट बौक्स में डाल देता था. उस की मेल आईडी का पासवर्ड आईएसआई के पास भी होता था. वे उस में से मैसेज निकाल लेते थे.

भारतीय एजेंसियां चूंकि संदिग्ध मेल पतों की निगरानी करती हैं. इसलिए इस से बचने के लिए वह ऐसे तरीके अपनाता था. उस के आका पाकिस्तानी सीमा पर बने एक्सचेंज से (वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल) तकनीक के जरिए बात करते थे. इस से नंबर तो भारत का शो होता था, लेकिन बात पाकिस्तान में होती थी. कलाम ने फेसबुक पर भी अपने एकाउंट बना रखे थे. अपने फेसबुक दोस्तों की लिस्ट में उस ने लड़कियों, कालेजों के छात्रों और पुलिसकॢमयों को जोड़ा था.

आसमा कभी उस की हकीकत नहीं जान पाई. उसे ख्वाबों में भी गुमान नहीं था कि उस का शौहर पाकिस्तानी जासूस है. वह 7 माह की गर्भवती थी. एजाज ने घर पर भी कंप्यूटर लगा रखा था, जिस पर वह शादियों की वीडियो मिक्सिंग के साथ इंटरनेट के जरिए सूचनाओं का आदानप्रदान करता था.

आसमा सीधीसादी अनपढ़ युवती थी. इन सब बातों को वह समझ नहीं पाती थी. डूंगल के जरिए वह हाईस्पीड इंटरनेट कनेक्शन इस्तेमाल करता था. उस का सब से ज्यादा संपर्क आईएसआई के एसपी सलीम से था. अपने मिशन के लिए वह आगरा, मथुरा, मेरठ, दिल्ली, लैंसडाउन, रुडक़ी, सहारनपुर, रानीखेत, हरिद्वार, शाहजहांपुर व लखनऊ तक जाता था. जाते समय वह आसमा से यही बताता था कि शादी में वीडियोग्राफी करने बाहर जा रहा है.

कई स्लीङ्क्षपग मौड्यूल्स उस के संपर्क में रहते थे. वे ऐसे लोग थे, जो हाईलाइट हुए बिना रुपयों के लालच में जानकारी जुटा कर उसे देते थे. शाहबाद में रहते हुए उस ने एक दलाल के माध्यम से अपना आधार कार्ड भी बनवा लिया था. एजाज हंसमुख स्वभाव का था. वह लोगों से खूब मिलजुल कर रहता था. उस की असलियत से हर कोई बेखबर था. खुद को भारत का नागरिक साबित करने के लिए उस ने पासपोर्ट बनवाने की कोशिश भी शुरू कर दी थी.

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 2

दोनों कारें जिस तेजी से आई थीं, उसी तेजी से वहां से चलीं तो तकरीबन 15 मिनट बाद वे नजदीक के थाना सदर बाजार आ कर रुकीं. कार में सवार सभी लोग नीचे उतरे और उस युवक को नीचे उतार कर हवालात में डाल दिया. थाने में उस युवक के बैग और पर्स की तलाशी ली गई तो उस में से भारतीय सेना के गोपनीय दस्तावेज, राष्ट्रीय महत्व की कई गुप्त सूचनाएं, पहचान पत्र, बरेली व बिहार के पतों के वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड, दिल्ली मैट्रो का ट्रैवलर कार्ड, भारत समेत 3 देशों की करेंसी, एटीएम कार्ड, 16 जीबी के पैनड्राइव और सिमकार्ड आदि चीजें मिलीं.

पुलिस ने उस के खिलाफ 3/9 औफिशियल सीक्रेट एक्ट, 14 विदेशी एक्ट व आईपीसी की धारा 467, 468, 471, 380, 420, 411 व 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

दरअसल, जिस युवक को पकड़ कर पुलिस लाई थी, वह कोई और नहीं, आसमा का शौहर मोहम्मद कलाम था. उसे पकडऩे वाली थाने की पुलिस नहीं, स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के एसपी शैलेंद्र कुमार श्रीवास्तव और सीओ अमित कुमार के नेतृत्व वाली टीम थी. कलाम कई महीने से एसटीएफ और खुफियां एजेंसियों के टौप सीक्रेट मिशन के टौप टारगेट पर था.

उस का नाम मोहम्मद कलाम नहीं, मोहम्मद एजाज था. वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सॢवसेज इंटेलीजैंस (आईएसआई) का उत्तर प्रदेश में अब तक का सब से बड़ा एजेंट था और बड़ी होशियारी से अपने मिशन को अंजाम दे रहा था. बेहद शातिराना अंदाज वाला एजाज मूलरूप से पाकिस्तान का रहने वाला था. पहचान बदल कर उस ने हिंदुस्तान में ऐसी कामयाब पैठ बनाई थी कि आसमा से निकाह तक कर लिया था. अपने मिशन के लिए वह पूरी तरह प्रशिक्षित था. 3 भाषाओं पर उस की अच्छी पकड़ थी और हाईटैक टैक्नोलौजी के जरिए अपने आकाओं से बराबर संपर्क में रहता था. उस के मंसूबे बेहद खतरनाक थे.

औपचारिक पूछताछ के बाद एजाज के मंसूबों की कडिय़ों को जोडऩे के लिए एसटीएफ की एक टीम उसे ले कर बरेली उस के घर पहुंची और छापा मार कर उस के घर की तलाशी ले कर कंप्यूटर, डाटा कार्ड, कई वीडियो कैसेट, हिंदी उर्दू की कुछ किताबें और कुछ जरूरी कागजात बरामद किए.

आसमा को जब पता चला कि उस का शौहर पाकिस्तानी आईएसआई एजेंट है तो उसे अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ. उस के रिश्ते का आईना चटक कर बिखर गया. आसपड़ोस के लोग भी हैरान थे कि जो शख्स उन के बीच नेकियां दिखा कर सादगी से रह रहा था, वह देश का दुश्मन था.

आईएसआई एजेंट की गिरफ्तारी उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए एक बड़ी कामयाबी थी. सन 2012 के बाद पहली बार कोई पाकिस्तान एजेंट पकड़ा गया था. यह खबर सुॢखयां बनने के बाद खुफिया एजेंसियों तक पहुंच गईं. एजाज से पूछताछ की गई तो उस ने हर सवाल का नपातुला जवाब दिया, जैसे वह ऐसे हालातों के लिए भी तैयार था.

उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी. 24 घंटे के अंदर उसे अदालत में पेश किया जाना जरूरी था, इसलिए अगले दिन पुलिस ने उसे स्पैशल जज संजय सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

एजाज से विस्तृत पूछताछ की जानी जरूरी थी, इसलिए अगले दिन पुलिस ने उस के रिमांड की अरजी दाखिल की तो अदालत ने उसे 7 दिनों के रिमांड पर दे दिया. पुलिस एजाज को थाने ले आई, जहां पूछताछ के लिए एक टीम का गठन पहले ही कर लिया गया था. इस टीम में इंटेलीजैंस ब्यूरो के स्थानीय एडिशनल डायरेक्टर एस.के. सिंह , एसपी स्वप्निल ममगई, सीओ वीर कुमार, आर्मी इंटेलीजैंस के मेजर मोती कुमार, थाना सदर बाजार के थानाप्रभारी गजेंद्रपाल सिंह व सबइंसपेक्टर धर्मेंद्र कुमार को शामिल किया गया था.

इस के अलावा एसटीएफ, स्थानीय पुलिस, राज्य व केंद्रीय इंटेलीजैंस ब्यूरो, आर्मी इंटेलीजैंस, मेरठ जोन के आईजी आलोक शर्मा, सीओ (अभिसूचना) वी.के. शर्मा, दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच व उत्तराखंड इंटेलीजैंस ने भी एजाज से गहन पूछताछ की. इस पूछताछ में एजाज ने तमाम चौंकाने वाले राज उगले. एजाज की जड़ें बहुत गहरी थीं. वह 3 सालों के कौंट्रैक्ट पर भारत आया आईएसआई का बेहद खास मोहरा था.

अपने मिशन के जुनून में उस ने सारी हदें पार कर दी थीं. उस के निशाने पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, एनसीआर के जिले और उत्तराखंड था. मिशन की कामयाबी के लिए वह आसमा जैसी भोलीभाली युवती की जिंदगी से भी खेल गया था. इस बीच उस ने एक और युवती को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था. उस के आईएसआई का एजेंट बनने से ले कर भारत आने और पहचान बदल कर रहने तक का हर पहलू चौंकाने वाला था.

मोहम्मद एजाज पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद शहर के तारामंडी चौक निवासी मोहम्मद इशहाक का बेटा था. आॢथक रूप से समृद्ध इशहाक एग्रीकल्चरल रिसर्च सैंटर में नौकरी करते थे. हालांकि सन 2004 में उन की मौत हो गई थी. उन के परिवार में पत्नी रुखसाना के अलावा 5 बेटे अशफाक, मुश्तियाक, फहद, एजाज, इश्तियाक तथा 3 बेटियां शबनम, शहजाद और शाजिदा थीं.

एजाज के सभी भाई वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी व प्रोसैङ्क्षसग का काम करते थे. हाईस्कूल पास एजाज भी इसी काम में लग गया था. पंजाबी और उर्दू भाषा उसे आती थी. इशहाक के परिवार के संपर्क कई नामी हस्तियों से थे. उस के भाई सरकार के लिए भी फोटोग्राफी करते थे, शायद इसी वजह से उन के संबंध बड़े लोगों से थे. देखने में सीधासादा दिखने वाला एजाज तेजतर्रार युवक था.

पाकिस्तान में एक दर्जन से भी ज्यादा आतंकी व कट्टर संगठन आईएसआई के इशारे पर काम करते हैं. ऐसे संगठनों को उसी के जरिए देशीविदेशी आॢथक मदद मिलती है. इन संगठनों का काम किसी न किसी तरीके से भारत में अराजकता और ज्यादा से ज्यादा तबाही फैलाना होता है. सैन्य छावनियां उस के निशाने पर होती हैं.

आईएसआई का आतंकी संगठनों के क्रियाकलापों और उन के प्रशिक्षण केंद्रों तक में सीधा दखल होता है. उस के अपने प्रशिक्षक भी वहां होते हैं. आतंकियों के अलावा वह अपने जासूस भी तैयार करती है, जिन्हें मोहरा बना कर आईएसआई अपने मकसद पूरा करती है. इस के पीछे उस की सोच बदनामी से बचना होता है. सीधेसादे लोगों की उन्हें कभी धर्म के नाम पर तो कभी पैसे का लालच दे कर बरगलाया जाता है. झूठे वीडियो दिखाए जाते हैं कि भारत में मुसलमानों पर किस तरह अत्याचार हो रहा है. नई उम्र के लडक़ों को तरजीह दे कर उन्हें बहलाफुसला कर प्रशिक्षण केंद्रों तक लाया जाता है. भटके युवाओं के लिए उन के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं.

सन 2012 में एजाज की जानपहचान आईएसआई के कुछ अधिकारियों से हुई. उन्हें वह काम का युवक लगा तो उन्होंने उसे अपने साथ शामिल कर के एक साल तक गहन प्रशिक्षण दिया. यह प्रशिक्षण उस ने एसपी सलीम की देखरेख में लिया. उसे जासूसी के गुर सिखाए गए, भारत के रहनसहन के बारे में बताया गया.

यही नहीं, भारत की सैन्य गतिविधियों की जानकारी बारीकी से दी गई. उसे समझाया गया कि सेना में बिग्रेड, यूनिट व कमांड में क्या फर्क है. औपरेशन ङ्क्षवग कौन सी होती है, आर्मी औफिसर के रैंक और स्टार के बारे में बताया गया. आर्मी यूनिट के अफसरों के पदों के बारे में भी समझाया गया, ताकि वह अफसर का बैच देख कर उस के पद को जान सके.

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 1

बिस्तर पर लेटी आसमा अपनी मोहब्बत की निशानी के तौर पर आने वाले बच्चे की कल्पनाओं में डूबी थी. मां बनने का अहसास उस की भावनाओं को ममता के दरिया में बहाए ले जा रहा था. उस ने बचपन से गरीबी देखी थी, लेकिन जब से उस की जिंदगी में मोहम्मद कलाम दाखिल हुआ था, खुशियां जैसे उस की झोली में खुदबखुद चली आई थीं.

सांवली रंगत वाली आसमा भले ही बहुत खूबसूरत नहीं थी, लेकिन उस की दिल की खूबसूरती का कलाम कायल हो गया था. हर इंसान का अपना मिजाज होता है. वह उस की छोटीबड़ी सभी गलतियों को नजरअंदाज कर के खुशियों को तरजीह देता था. आसमा शबनमी सोच के सागर में और डूबती, तभी उसे अपने सिरहाने किसी के खड़े होने का अहसास हुआ. बेखयाली में उस ने देखा और मुसकरा दिया, क्योंकि वह उस का शौहर कलाम था, “अरे आप कब आए?”

“अभीअभी, जब तुम कहीं खयालों में गुम थीं. वैसे क्या सोच रही थीं?” कलाम ने बैठते हुए पूछा.

“आप के ही बारे में सोच रही थी. मैं तुम्हारे साथ बहुत खुश हूं कलाम.”

इस पर कलाम ने मुसकरा कर कहा, “तुम्हारी अहमियत मेरी जिंदगी में सांसों से भी कहीं ज्यादा है आसमा. दुनिया के हर खजाने को मैं तुम्हारी खुशियों के लिए कुरबान कर सकता हूं.”

“मेरी खुशकिस्मती, जो मुझे तुम जैसा नेक शौहर मिला.”

“फर्ज अदायगी में मेरी नेकियां सलामत रहें.”

“एक दिन आप की नेकियां हमारी और आने वाले बच्चे की इज्जत अफजाई का सबब बनेंगी.”

“आसमा, कल मुझे किसी काम से मेरठ जाना होगा.”

“तुम इतनी मेहनत करते हो, अकसर बाहर जाते रहते हो, ऐसा क्या जरूरी काम है?”

“मैं मेहनत के जरिए तुम्हें खुशियां दे कर एक अच्छा शौहर बनने की कोशिश कर रहा हूं.”

“लेकिन हम तो खुश हैं. ऐसे वक्त पर मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है कलाम. मैं चाहती हूं कि नए मेहमान के आने तक तुम कहीं भी आनाजाना बंद कर दो.” आसमा ने कलाम का हाथ थाम कर कहा.

“ठीक है, मैं 2 दिन बाद लौट कर आऊंगा तो फिर कहीं नहीं जाऊंगा.” कलाम ने कहा और वहां से उठ कर कमरे में रखे कंप्यूटर पर कुछ काम करने लगा.

आसमा और कलाम उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में दीवानखाना चौराहे के पास मोहल्ला शाहबाद में वसीम उल्लाह के एक पुराने मकान की दूसरी मंजिल पर किराए पर रहते थे. उन की ङ्क्षजदगी बेहद साधारण थी. आसमा दिल की अच्छी थी और कलाम आसपड़ोस में सभी से घुलमिल कर रहता था. दिखावे की जिंदगी से उसे परहेज था. उस की आदतों और व्यवहार की लोग तारीफें किया करते थे.

कलाम शादियों की वीडियो एडिटिंग और मिक्सिंग का काम करता था. फोटोग्राफी उस का शौक था और पेशा भी. कलाम बिहार का रहने वाला था. एक साल पहले उस की मुलाकात बिहार के ही आरा जनपद के गांव अजीमाबाद की रहने वाली आसमा से हुई तो दोनों आंखों के रास्ते एकदूसरे के दिलों में उतर गए.

आसमा का परिवार बेहद साधारण था. कलाम ने आसमा के साथ दुनिया बसाने की उम्मीदों में निकाह की पेशकस की तो आसमा के पिता शमशेर मना नहीं कर सके. कलाम अच्छा लडक़ा था. कलाम ने बताया था कि उस के परिवार में कोई नहीं है, वह दुनिया में अकेला है. दोनों की रजामंदी के बाद अक्तूबर, 2014 में उन का निकाह कर दिया गया था.

निकाह के बाद कलाम घरजंवाई बन कर 2 महीने शमशेर के घर रहा. इस के बाद वह आसमा को ले कर बरेली आ गया और वहां किराए का मकान ले कर रहने लगा. घर चलाने के लिए उस ने वीडियोग्राफी करने वालों के साथ वीडियो एडिटिंग और मिक्सिंग का काम शुरू कर दिया.

मुलाकात के दौरान कम वक्त में ही किसी को अपना बना लेने का हुनर कलाम को अच्छी तरह आता था. वह लोगों से बहुत जल्दी घुलमिल जाता था. कलाम लोगों की मदद भी कर दिया करता था. यही वजह थी कि हर कोई उस की नेकियों का कायल था. काम का सिलसिला बता कर कलाम अकसर बाहर आताजाता रहता था. 26 नवंबर, 2015 को भी कलाम आसमा से मेरठ जाने की बात कह कर घर से निकला था.

उम्मीदें और विश्वास करना हर इंसान की फितरत है, लेकिन आने वाले कल में यह अंदाजा किसी को नहीं होता कि उस की उम्मीदें पूरी होंगी और विश्वास का वजूद कायम रहेगा. वक्त और हालात कब करवट ले ले, इस बात कोई नहीं जानता. कलाम आसमा का शौहर था. उस के निकाह को भी एक साल बीत चुका था. खुशियां उस की धडक़नों में बिखरी हुई थीं, लेकिन वह अपने शौहर की बहुत सी हकीकतों से वाकिफ नहीं थी.

आसमा नहीं जानती थी कि वक्त के साथ उस की जिंदगी का नाजुक रिश्ता आंखों को आंसुओं से तर कर के तपते रेगिस्तान की गरम रेत पर पड़ कर दिल पर भी छाले देने वाला है. ऐसे छाले जिन का कोई मरहम नहीं होगा, वह दर्द की एक अनचाही सौगात दे जाएंगे.

उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद का कैंट रेलवे स्टेशन आर्मी एरिया से एकदम सटा है. वहां पहुंचने के सभी रास्ते इसी एरिया से गुजरते हैं. चौबीसों घंटे लोगों की आवाजाही का सिलसिला जारी रहता है. 27 नवंबर की दोपहर तकरीबन 3 बजे का वक्त था. सफेद रंग की 2 कारें तेजी से स्टेशन के एकदम सामने आ कर रुकीं. दोनों कारों में बैठे लोग बिजली की सी फुरती से उतरे. उन में से कुछ लोगों के हाथों में अत्याधुनिक हथियार थे.

हथियारबंद लोग तो टिकट काउंटर के आसपास ही रुक गए, जबकि बगैर हथियार वाले 5 लोग गलियारे को पार करते हुए प्लेटफौर्म पर पहुंच गए. वहां तमाम लोग मौजूद थे और काफी चहलपहल थी. उन लोगों ने अपनी नजरों को खास अंदाज में चारों ओर इस तरह दौड़ाया, जैसे उन्हें किसी की तलाश हो. तभी उन में से एक अपने साथियों से मुखातिब हुआ, “हमारा मकसद पूरा होगा क्या?”

“बिलकुल सर, आज हमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है.” उन में से एक ने आत्मविश्वास भरे लहजे में बोला.

“ठीक है.” उसी दौरान उन सभी की नजरें प्लेटफौर्म पर बने एक टी स्टाल की ओट ले कर बेफिक्री भरे अंदाज में खड़े एक युवक पर जा कर ठहर गईं. वह स्मार्ट सा नौजवान था. उस ने ब्लैक कलर का ट्राउजर और उसी से मिलतीजुलती हाईनेक वुलन जैकेट पहन रखी थी. उस के कंधे पर एक लैपटौप वाला बैग झूल रहा था. उसे देख कर आने वाले सभी लोगों ने एकदूसरे से थोड़ा दूरियां बनाईं और फिर आहिस्ताआहिस्ता चल कर उस के इर्दगिर्द फैल गए. युवक की नजरें उन से चार हुईं, लेकिन उस ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया और जेब से मोबाइल निकाल कर उस के कीपैड पर अंगुलियां चलाने लगा.

उन लोगों के हावभाव देख कर शायद उस युवक को अहसास हो गया कि वे उसी की तरफ आ रहे हैं. वे जैसे ही उस के नजदीक पहुंचे, वह युवक आगे बढ़ा. लेकिन तभी उन लोगों में से एक शख्स बोला, “रुकिए मिस्टर.”

“जी फरमाइए.” उस ने पलट कर बेपरवाही से कहा.

“तुम्हें तो दिल्ली जाना है?”

“जी, लेकिन मैं ने आप को पहचाना नहीं. क्या आप मुझे जानते हैं?”

“हम तो तुम्हारे साए से भी वाकिफ हैं मियां. लेकिन दुख इस बात का है कि आप से पहले मिल नहीं सके.” एक दूसरे शख्स ने आगे आ कर उस की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराते हुए कहा तो वह युवक असमंजस में पड़ गया.

वैसे तो वे सभी बेहद चालाकी से उस के नजदीक आए थे, लेकिन वह उन से तेज निकला. पलक झपकते ही हिरन सी तेजी से उस ने छलांग लगा दी. बाजी पलट सकती है, शायद यह बात आने वालों को पहले से पता थी. इसलिए वे सब भी होशियार थे. उन में से एक ने चंद कदम दौड़ कर फुरती से उसे पकड़ लिया. पकड़ मजबूत थी, इसलिए कोशिश के बावजूद वह युवक हिल नहीं सका. युवक अपनी बेबसी पर छटपटा कर रह गया. तुरंत उस की तलाशी ली गई. उस का बैग, पर्स व मोबाइल उन लोगों ने अपने कब्जे में ले लिया.

“कोई वैपन तो नहीं है?” किसी ने पूछा तो तलाशी लेने वाले ने कहा, “नहीं सर.”

आननफानन में वे उसे खींच कर स्टेशन के बाहर लाए और फुरती से कार में धकेल कर खुद भी कार में बैठे और जिस तरह तेजी से आए थे, उसी तरह चले गए. यह सब फिल्मी अंदाज में हुआ था. लोगों की भीड़ भी जमा हो गई थी, लेकिन उन लोगों के हथियार देख कर कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सका था.

ज़रा सी भूल ने खोला क़त्ल का राज

दिल्ली की सब से बड़ी लूट – भाग 3

पुलिस ने प्रदीप शुक्ला और चौकीदार रामसूरत को उसी समय हिरासत में ले लिया. रामसूरत लाख सफाई देता रहा कि उस का इस मामले से कोई संबंध नहीं है, पर पुलिस ने उस की एक न सुनी. हां, पुलिस ने उसे इतना भरोसा जरूर दिया कि अगर वह निर्दोष पाया गया तो उसे छोड़ दिया जाएगा. यह बात 27 नवंबर, 2015 सुबह 3 बजे की है.

एसीपी जसबीर ङ्क्षसह ने ड्राइवर प्रदीप शुक्ला को गिरफ्तार करने व कैश बरामद होने की जानकारी डीसीपी व अन्य अधिकारियों को दी तो डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा, जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया सहित कई अन्य अधिकारी भी ओखला के उस गोदाम पर पहुंच गए. सभी संदूकों को जब्त करने के बाद पुलिस प्रदीप शुक्ला और चौकीदार रामसूरत को थाने ले आई.

पुलिस यही अनुमान लगा रही थी कि इतनी बड़ी रकम को लूटने में जरूर किसी बड़े गैंग का हाथ रहा होगा, लेकिन थाने में प्रदीप शुक्ला से जब पूछताछ की गई तो पता चला कि इस लूट में उस के अलावा कोई दूसरा शामिल नहीं था और यह लूट भी कोई पहले से बनाई प्लाङ्क्षनग के तहत नहीं की गई थी, बल्कि अचानक यह सब किया गया था.

प्रदीप शुक्ला ने करीब 3 महीने पहले ही सिक्योरिटी एजेंसी एसआईएस में ड्राइवर की नौकरी जौइन की थी. उस की ड्यूटी विकासपुरी ब्रांच से कैश ले कर कंपनी के ओखला स्थित हैडऔफिस में पहुंचाने की थी. कभीकभी उसे एटीएम मशीनों में पैसे रखने वाली टीम के साथ भी भेज दिया जाता था.

प्रदीप ने बताया कि उस से जितना काम लिया जाता था, उस के मुताबिक उसे सैलरी नहीं मिलती थी. मजबूरी में उसे कम पैसों में वहां नौकरी करनी पड़ रही थी. इसीलिए कभीकभी उस के दिमाग में विचार आता था कि जो पैसे वह वैन में ले कर जाता है, अगर उसे मिल जाएं तो उस की पूरी ङ्क्षजदगी ठाठ से कटेगी. लेकिन यह उस की केवल सोच थी, उस ने वे पैसे ले कर भागने के बारे में कभी नहीं सोचा. बहरहाल कम वेतन मिलने की वजह से वह मानसिक तनाव में जरूर रहता था.

26 नवंबर को वह साढ़े 22 करोड़ रुपए विकासपुरी के करेंसी चेस्ट से ले कर चला. जब श्रीनिवासपुरी रेडलाइट के पास वैन का गनमैन विजय कुमार पटेल लघुशंका के लिए उतर गया तो अचानक उसे लालच आ गया. उस ने सोचा कि पैसे ले कर भागने का इस से अच्छा मौका उसे फिर कभी नहीं मिलेगा और वह नोटों से भरे उन 9 संदूकों को ले कर सीधे ओखला फेज-3 स्थित रामसूरत के पास पहुंच गया. वह उसे पहले से जानता था.

रामसूरत जिस गोदाम में चौकीदारी करता था, वहां पहले मॢसडीज कारों का वर्कशाप था. लेकिन कुछ सालों से वहां तार का काम होता था. यह गोदाम धु्रवकुमार नाम के एक बिजनेसमैन का था. रामसूरत धु्रवकुमार के यहां पिछले 22 सालों से नौकरी कर रहा था. प्रदीप की पत्नी शशिकला पहले इसी गोदाम में काम करती थी. तभी से प्रदीप की रामसूरत से जानपहचान थी. रामसूरत ने ही किसी से सिफारिश कर के प्रदीप की नौकरी एसआईएस सिक्योरिटी कंपनी में बतौर ड्राइवर लगवाई थी.

शाम को करीब 5 बजे प्रदीप कैश वैन ले कर रामसूरत के पास गोदाम में पहुंचा. प्रदीप ने रामसूरत को बताया कि उन 9 संदूकों में पन्नी के बंडल हैं. उन्हें वह बनारस ले जाएगा, जिस की एवज में उसे 10 हजार रुपए मिलेंगे. इस के बाद उस ने वैन से नोटों से भरे सारे संदूक उतार कर गोदाम के एक कमरे में रख दिए. फिर मौका मिलने पर उस ने खर्चे के लिए एक संदूक से 11 हजार रुपए निकाल लिए.

इस के बाद वह यह कह कर वैन ले कर चला गया कि थोड़ी देर में लेबर ले कर आ रहा है ताकि सभी संदूकों को पैक करा कर बनारस ले जा सके. इस पर रामसूरत मान गया. इस के बाद प्रदीप वैन को गोङ्क्षवदपुरी मेट्रो स्टेशन के पास छोड़ कर चला आया. लौटते समय रास्ते भर वह यही सोचता रहा कि इस रकम को ले कर वह कहां जाए.

प्रदीप ने खर्चे के लिए एक संदूक से 11 हजार रुपए निकाल लिए थे. खानेपीने का कुछ सामान लेने के लिए वह बाजार चला गया. वहां से उस ने महंगी शराब खरीदी, होटल से चिकन पैक कराया. इस के बाद वह गोदाम लौट आया. उसे अकेले देख कर रामसूरत ने पूछा, ‘‘तुम तो पैङ्क्षकग के लिए लेबर लेने गए थे, लेबर कहां है?’’

इस पर प्रदीप ने बताया कि रात की वजह से लेबर नहीं मिली, सुबह को देखूंगा. रामसूरत ने भी उस की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वह वहां से चला गया. उस के जाने के बाद प्रदीप ने उन संदूकों के पास बैठ कर शराब पी और चिकन खाया. फिर वह कपड़ा बिछा कर वहीं सो गया. रामसूरत भी अपनी जगह पर जा कर सो गया.

सुबह 3 बजे के करीब किसी ने गेट खटखटाया तो रामसूरत की नींद खुली. वह गेट पर गया तो बाहर भारी संख्या में पुलिस को देख कर घबरा गया. पुलिस वालों ने जब उसे फोटो दिखाया तो वह समझ गया कि प्रदीप जरूर ही कोई गलत काम कर के भागा है. चाबी लेने के बहाने रामसूरत उस कमरे में आया जहां प्रदीप सो रहा था.

रामसूरत ने प्रदीप को जगा कर कहा, ‘‘ये पन्नी के बौक्स क्या तुम चोरी कर के लाए हो, जो पुलिस यहां आई है.’’ पुलिस का नाम सुनते ही प्रदीप डर गया. वह झट से बोला कि कोई भागने का रास्ता हो तो बताओ. इस से रामसूरत को विश्वास हो गया कि वह जरूर कोई गड़बड़ कर के आया है. इस से पहले कि प्रदीप वहां से भाग पाता, रामसूरत ने कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया.

प्रदीप मिन्नतें करते हुए दरवाजा खोलने को कहता रहा लेकिन रामसूरत ने उस की एक नहीं सुनी और वह गेट पर खड़े पुलिस वालों को उस कमरे में ले गया जहां प्रदीप था. प्रदीप ने एक संदूक से जो 11 हजार रुपए निकाले थे, उन में से वह साढ़े 10 हजार रुपए खर्च कर चुका था.

उस से पूछताछ के बाद पुलिस को जब यकीन हो गया कि इस लूट के मामले में उस के अलावा किसी और का हाथ नहीं है तो हिरासत में लिए गए बाकी लोगों को छोड़ दिया गया. साथ ही पुलिस ने ईमानदारी से अपना फर्ज निभाने वाले चौकीदार रामसूरत को धन्यवाद भी दिया. जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया ने 10 घंटे के अंदर ही दिल्ली की सब से बड़ी कैश लूट का खुलासा कर रकम बरामद करने वाली पुलिस टीम की सराहना की.

प्रदीप से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. मामले की विवेचना थानाप्रभारी नरेश सोलंकी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

उज्बेक डांसर का दुखद अंत – भाग 3

इस के बाद पुलिस ने गगन को 6 दिनों के कस्टडी रिमांड पर ले कर गहराई से पूछताछ की. पूछताछ में उस ने जो कुछ बताया, उस से इन हत्याओं का जो राज सामने आया, वह कुछ इस तरह से था.

गगन एक बड़ा सैक्स रैकेट चलाता था. उस के नेटवर्क में देसी ही नहीं, विदेशी लड़कियों की भी खूब डिमांड थी. सोनू पंजाबन के लिए काम कर चुके गगन के नेटवर्क में काफी रशियन लड़कियां थीं, जिन्हें वह दिल्ली, एनसीआर के अलावा चंडीगढ़, जयपुर और मुंबई की रेव पार्टियों में भेजता था. इस के लिए वह रूस में सैक्स रैकेट से जुड़े लोगों से संपर्क कर के लड़कियों को टूरिस्ट वीजा पर 3 महीने के लिए भारत बुलाता था.

भारत में रशियन लड़कियों की डिमांड पूरी करने के लिए सैक्स रैकेट से जुड़े लोग सीआईएस (कौमनवैल्थ औफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) से जुड़े देशों जैसे उज्बेकिस्तान व कजाकिस्तान की गरीब लड़कियों को अच्छी जिंदगी का लालच दे कर टूरिस्ट वीजा पर भारत ला कर देह धंधे के कारोबार से जोड़ देते थे.

गगन और उस की पत्नी माशा के इस धंधे की पार्टनर नाज उज्बेकिस्तान की रहने वाली थी. माशा लोगों को ब्लैकमेल करने में माहिर थी. नाज पहले खुद अपनी देह बेचती थी, उम्र ढलने पर उस की डिमांड कम हुई तो वह दूसरी लड़कियों से धंधा करवा कर उन की कमाई से कमीशन लेने लगी. वह ज्यादातर उज्बेक लड़कियों को ही पटाने की कोशिश करती थी.

शाखनोजा को देखते ही नाज उस पर लट्टू हो गई थी. उसे उस ने देहधंधे में उतारने की कोशिश भी की. इस कोशिश में जब उसे लगा कि वह ऐसीवैसी लड़कियों में नहीं है, तब उस ने उस की रूममेट बन कर उसे अपने जाल में फंसाने की कोशिश की. अमीर एवं प्रतिष्ठित परिवार से संबंध रखने वाली शाखनोजा एक प्रतिभावान कलाकार थी. उस की कला की कदर भी बढ़ रही थी. अपने नृत्य कार्यक्रमों से उसे अच्छा पैसा मिलने लगा था.

नाज के माध्यम से ही वह माशा और उस के पति गगन के संपर्क में आई. उसे इन की असलियत मालूम नहीं थी. अलबत्ता ये सभी उस से उम्र में बड़े थे, इस वजह से वह इन लोगों की बहुत इज्जत करती थी. शाखनोजा स्वभाव से थोड़ा भोली थी, जिस का फायदा उठाते हुए ये लोग उस से पैसे उधार मांगने लगे, जो बढ़तेबढ़ते 8 लाख रुपए तक पहुंच गए.

एक दिन शाखनोजा ने इन से अपने पैसे वापस मांगे तो नाराज हो कर इन लोगों ने उसे धमकाने के लिए 24 सितंबर, 2015 की रात धोखे से साउथ एक्सटेंशन में एक जगह बुला लिया. वहां थोड़ाबहुत हडक़ा कर इन लोगों ने उसे अपनी गाड़ी में जबरदस्ती बैठा लिया और चले गए.

कार गगन चला रहा था. माशा उस की बगल वाली सीट पर बैठी थी. पिछली सीट पर नाज लगातार शाखनोजा की पिटाई करते हुए उस का गला दबा कर उसे डरा रही थी. उसी बीच उबडख़ाबड़ जगह पर कार थोड़ा उछली तो नाज के हाथों का दबाव बढ़ गया, जिस की वजह से शाखनोजा की मौत हो गई.

ये लोग शाखनोजा को मारना नहीं चाहते थे, लेकिन जब वह मर गई तो उस की लाश को दिल्ली में फेंकना खतरे से खाली नहीं था. उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए इन्होंने एक सूटकेस का इंतजाम किया और उस में लाश को रख कर रात ही में पानीपत के कस्बा समालखा में एक जगह उस सूटकेस और लाश पर पैट्रोल छिडक़ कर आग लगा दी. इस तरह इन लोगों ने शाखनोजा से छुटकारा पा लिया.

इस घटना से गगन और माशा जरा भी नहीं घबराए, लेकिन नाज के दिलोदिमाग पर इस का गहरा असर पड़ा. उसे पकड़े जाने का भय सताने लगा. हालांकि कुछ दिनों बाद एक बार पुलिस उस से पूछताछ भी कर चुकी थी. तब गगन उस के लिए ढाल बन गया था. इस के बाद गगन को लगा कि यह डरपोक औरत खुद तो फंसेगी ही, अपने साथ उन्हें भी फंसाएगी. रहीसही कसर शाखनोजा के उस पत्र ने पूरी कर दी, जिस में उस ने अपनी जिंदगी से जुड़ी तमाम घटनाओं का जिक्र करते हुए एंबेसी को लिखा था. यह पत्र पुलिस को बाद में शाखनोजा के सामान से मिला था.

खैर, नाज को अपने लिए खतरा बनते देख गगन ने 5 अक्टूबर, 2015 को उसे भी गला घोंट कर मार दिया और उस की लाश को उत्तर प्रदेश के हापुड़ ले जा कर एक सुनसान जगह में पैट्रोल डाल कर जला दिया. पूछताछ के बाद गगन को उन दोनों जगहों पर ले जाया गया, जहां उस ने लाशें जलाई थीं. वहां के थानों में अधजली लाशें मिलने के मामले दर्ज थे. बरामदगी के नाम पर स्थानीय पुलिस को इन महिलाओं की अस्थियां ही मिल पाई थीं.

शाखनोजा की पहचान के लिए पुलिस ने उस की हड्डी एवं उस की मां शोखिस्ता का डीएनए टैस्ट करवाया है. मामले का खुलासा होने पर माशा भूमिगत हो गई थी. उस से पूछताछ के लिए पुलिस उस की तलाश कर रही थी. गगन से शाखनोजा की कुछ आपत्तिजनक तसवीरें मिली हैं. ये तसवीरें उस ने उसे ब्लैकमेल करने के लिए 16 अगस्त को तब खींची थीं, जब एक नृत्य आयोजन के बाद उसे बेहोशी की दवा मिला कोला पिलाया गया था. यह षडयंत्र गगन का रचा था.

बहरहाल, जमिरा का कहना है कि उस की बहन को बैले डांसर कह कर उस की प्रतिभा का अपमान न किया जाए. वह एक अच्छी नर्तकी थी, जो अपनी कला को निखारने के लिए इंडिया आई थी. लेकिन यहां आ कर उसे बदनामी और निर्मम मौत मिली.

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दिल्ली की सब से बड़ी लूट – भाग 2

पुलिस ने पूछताछ के लिए गनमैन विजय कुमार को हिरासत में ले लिया था. इस वारदात के पीछे पुलिस को 3 ऐंगल नजर आ रहे थे. पहला यह कि कैश वैन का ड्राइवर प्रदीप शुक्ला इतनी बड़ी लूट को अकेला अंजाम नहीं दे सकता था. उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर ही वारदात को अंजाम दिया होगा.

दूसरा ऐंगल यह लग रहा था कि किसी प्रोफेशनल गिरोह ने रास्ते में प्रदीप को काबू कर के उस का अपहरण कर लिया होगा और रकम व प्रदीप को वह अपनी गाड़ी में डाल कर ले गए होंगे. अगर ऐसा हुआ तो अपहत्र्ता प्रदीप की हत्या कर सकते थे.

तीसरा ऐंगल यह लग रहा था कि गनमैन विजय कुमार ने साजिश रच कर यह वारदात कराई है. गनमैन योजना के तहत लघुशंका के बहाने उतर गया होगा और उस के साथियों ने ड्राइवर का पीछा कर के वारदात को अंजाम दिया होगा. पुलिस इन तीनों संभावनाओं पर तहकीकात कर रही थी.

विकासपुरी से कैश ले कर वैन जिस रूट से होते हुए श्रीनिवासपुरी की रेडलाइट तक पहुंची थी, पुलिस ने यह पता लगाया कि इस रास्ते में कहांकहां सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. पुलिस यह जानना चाहती थी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बदमाश विकासपुरी से ही किसी गाड़ी से कैश वैन का पीछा कर रहे थे. इस के अलावा गोङ्क्षवदपुरी मैट्रो स्टेशन के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी गई. क्योंकि कैश वैन लावारिस अवस्था में इसी मैट्रो स्टेशन के पास खड़ी मिली थी.

पुलिस की एक टीम विकासपुरी स्थित करेंसी चेस्ट पहुंची. वहां से पता चला कि एसआईएस की किसी भी वैन में रोजाना 10 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं रखे जाते थे तब पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई कि उस दिन वैन में साढ़े 22 करोड़ रुपए क्यों रखे गए?

इस के अलावा यहां एक खामी और सामने आई, वह यह थी कि हर दिन हरेक कैश वैन पर 2 गनमैन, एक ड्राइवर और एक कस्टोडियन सवार होता था लेकिन उस दिन कैश वैन में एक गनमैन और एक कस्टोडियन को क्यों नहीं भेजा गया? इतने ज्यादा कैश के साथ केवल एक ही गनमैन क्यों भेजा गया? कस्टोडियन सुरेश कुमार उस वैन में क्यों नहीं गया?

इस के अलावा पुलिस को यह भी पता चला कि वैन में रकम रखने की जिम्मेदारी कस्टोडियन की होती है, लेकिन उस वैन में साढ़े 22 करोड़ रुपए कस्टोडियन के बजाय किसी विक्रम नाम के कर्मचारी ने रखे थे. इन खामियों को देख कर पुलिस को शक हुआ कि लूट की योजना बनाने में यहां के कर्मचारियों का भी हाथ हो सकता है. इसीलिए पुलिस ने विक्रम, कस्टोडियन सुरेश कुमार और अन्य कई कर्मचारियों को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

इस से पहले दिल्ली में कैश लूट के जो मामले हुए थे, उन में जिन बदमाशों के शामिल होने की बात सामने आई थी, पुलिस ने उन बदमाशों के डोजियर के आधार पर उन की तलाश शुरू कर दी. उन में से पुलिस के हाथ जितने भी बदमाश लगे, उन से भी सख्ती से पूछताछ की जाने लगी.

प्रदीप शुक्ला नाम का जो ड्राइवर कैश के साथ लापता था, पुलिस ने एसआईएस कंपनी से उस का फोटो और उस की डिटेल हासिल की तो पता चला कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिला बलिया का रहने वाला था और उस ने 10 सितंबर, 2015 को ही इस कंपनी में नौकरी जौइन की थी.

कंपनी में उस ने दक्षिणी दिल्ली के कोटला मुबारकपुर का पता लिखवाया था. पुलिस की एक टीम उस के कोटला मुबारकपुर वाले पते पर पहुंची तो पता चला कि वह पहले कभी इस पते पर रहता था. मकान मालिक ने पुलिस को बताया कि अब वह ओखला इंडस्ट्रियल एरिया के नजदीक हरकेशनगर में रहता है.

हरकेशनगर का पता ले कर पुलिस टीम जब उस के कमरे पर पहुंची तो वहां उस की पत्नी शशिकला और 3 बच्चे मिले. पुलिस ने जब शशिकला से उस के पति के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह अपनी ड्ïयूटी गए हैं. पुलिस ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रदीप घर में नोटों के बौक्स रख कर कहीं फरार हो गया हो और पत्नी झूठ बोल रही हो. यह शंका दूर करने के लिए पुलिस ने उस के कमरे की तलाशी ली, लेकिन वहां उसे कुछ नहीं मिला. पुलिस वहां से खाली हाथ लौट आई.

अब तक पुलिस की किसी भी टीम को ऐसा कोई क्लू नहीं मिल सका था, जिस से प्रदीप के बारे में कोई जानकारी मिल सकती. अब तक काफी रात हो चुकी थी. लेकिन पुलिस टीमें अपनेअपने काम में लगी थीं. पुलिस ने ड्राइवर प्रदीप शुक्ला के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा रखा था, इस से उस की आखिरी लोकेशन अपराह्न पौने 4 बजे श्रीनिवासपुरी की आ रही थी.

इस से यही लग रहा था कि वहां से कैश वैन सहित फरार होते समय उस ने अपना फोन बंद कर दिया था. पुलिस ने उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि प्रदीप ने उसी दिन 26 नवंबर को आखिरी बार किसी अजीत के फोन पर बात की थी. बाद में पता चला कि अजीत भी हरकेशनगर में रहता है.

पुलिस अजीत के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. उस से प्रदीप के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि प्रदीप से उस की कोई खास बात नहीं हुई थी, लेकिन उस ने प्रदीप को शाम 4-5 बजे के बीच ओखला फेज-3 में देखा था.

थानाप्रभारी नरेश सोलंकी अजीत को ले कर ओखला फेज-3 में उस जगह पहुंच गए, जहां उस ने प्रदीप को देखा था. वहां तमाम इंडस्ट्री हैं, इसलिए प्रदीप को ढूंढना आसान नहीं था. थानाप्रभारी ने इस बात से डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा को अवगत कराया तो उन्होंने उस इलाके में सर्च औपरेशन चलाने के निर्देश दिए.

सर्च औपरेशन में सरिता विहार के थानाप्रभारी मङ्क्षहदर ङ्क्षसह, नेहरू प्लेस पुलिस चौकी इंचार्ज मनमीत मलिक, एसआई राजेंद्र डागर, जितेंद्र ङ्क्षसह, हैडकांस्टेबल यतेंद्र आदि को भी लगा दिया गया. इस टीम का निर्देशन कालकाजी के एसीपी जसवीर ङ्क्षसह कर रहे थे.

पुलिस टीम हर फैक्ट्री में जाती और प्रदीप का फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछती. इसी क्रम में पुलिस ओखला फेज-3 स्थित एक ढाबे पर पहुंची. वह ढाबा अजय का था. वह ढाबा देर रात तक खुला रहता था. पुलिस ने ढाबे वाले को प्रदीप का फोटो दिखाया तो उस ने बताया कि इसे उस ने यहीं पर रात साढ़े 9 बजे के करीब देखा था. ढाबे वाले से बात कर के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि प्रदीप ज़िंदा है. क्योंकि पुलिस को आशंका थी कि अपहत्र्ताओं ने उसे कहीं मार न दिया हो.

कैश कहां है, यह बात प्रदीप के मिलने पर ही पता लग सकती थी. इसलिए उसे ढूंढना जरूरी था. पुलिस को लगा कि कुछ घंटे पहले जब प्रदीप यहीं था तो जरूर यहीं कहीं छिपा होगा. इस के बाद पुलिस पूरे उत्साह से एकएक फैक्ट्री में जा कर उसे खोजने लगी.

खोजबीन करते हुए पुलिस ढाबे से करीब 50 गज दूर एक फैक्ट्री के गेट पर पहुंची तो उस में अंदर से ताला बंद था. गेट खटखटाने पर गेट पर एक अधेड़ उम्र का आदमी आया. वह उस फैक्ट्री का चौकीदार था. उस का नाम रामसूरत था. पुलिस ने चौकीदार को ड्राइवर प्रदीप शुक्ला का फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछा और गोदाम की तलाशी लेने के लिए कहा.

पुलिस को देख कर चौकीदार रामसूरत डर गया. वह गेट की चाबी लेने की बात कह कर अंदर गया और कुछ देर बाद लौट कर गेट खोल कर पुलिस को अंदर ले आया. उस ने एक कमरे का दरवाजा खोल कर कहा, ‘‘सर, जिस की आप को तलाश है, वह यह रहा.’’

पुलिस कमरे में घुसी तो सचमुच वहां फरार ड्राइवर प्रदीप शुक्ला मिल गया. उसी कमरे में कैश से भरे 9 संदूक भी रखे थे. यह सब देख कर पुलिस की बांछें खिल उठीं. पुलिस ने प्रदीप को हिरासत में ले कर उन बक्सों की जांच की तो उन में से केवल एक बक्से की क्लिप हटी थी, बाकी 8 बक्से जैसे के तैसे थे.

उज्बेक डांसर का दुखद अंत – भाग 2

पुलिस ने इन लोगों के अलावा अन्य कई लोगों को भी संदेह के दायरे में रख कर पूछताछ की थी. लेकिन शाखनोजा के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिल पाई थी. शाखनोजा की मां व दोनों बहनों ने तब तक दिल्ली में ही रुके रहने का फैसला कर लिया, जब तक उस का पता न चल जाए. इस के लिए उन्होंने एक फ्लैट किराए पर ले लिया. इंसाफ की चाहत लिए एक दिन वे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मिलीं. दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से तो वे रोजाना ही मिल रही थीं. इन लोगों द्वारा शाखनोजा के बारे में टुकड़ों में बताई गई बातों से उस का परिचय कुछ इस तरह से सामने आया.

घर में छोटी होने की वजह से शाखनोजा सब की लाडली थी. उस ने ताशकंद में रह कर स्कूली शिक्षा हासिल की थी, जहां अच्छे एकैडमिक ग्रेड हासिल करने के साथ वह डांस प्रतियोगिताओं में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

दरअसल, शाखनोजा का जन्म ऐसे कलाकारों के परिवार में हुआ था, जहां सभी को गीतसंगीत का शौक था. उस के पिता जानेमाने संगीतकार थे, लेकिन अज्ञात बीमारी के चलते वह तब दुनिया को अलविदा कह गए थे, जब शाखनोजा केवल 2 साल की थी. लेकिन शोखिस्ता ने अपनी इस बेटी को कभी भी पिता की कमी महसूस नहीं होने दी थी.

शाखनोजा छुटपन से ही डांस विधा की ओर अग्रसर होने लगी थी. उस का शौक देखते हुए उस का दाखिला एक अच्छे डांस स्कूल में करवा दिया गया था, जहां उस ने बैले डांस से ले कर भारतीय फिल्मों के गीतों तक पर डांस करना सीखा. देखतेदेखते उस ने इंडियन फिल्मी गीतों पर डांस करने में महारत हासिल कर ली.

माधुरी दीक्षित अभिनीत ‘देवदास’ के गीत ‘मार डाला…’ पर तो वह इतना बढिय़ा डांस किया करती थी कि देखने वाले को एक बार विश्वास ही नहीं होता था कि डांस करने वाली लडक़ी भारतीय न हो कर विदेशी होगी. शायद इन नृत्यों की वजह से ही उसे भारत और यहां के कल्चर से प्यार हो गया था.

शाखनोजा सब से पहले एक एंबेसी इवेंट में भाग लेने के लिए सन 2008 में भारत आई थी. उन दिनों वह उज्बेकिस्तान में कोरियोग्राफी का एक विशेष क्रैश कोर्स कर रही थी. इस कोर्स को बीच में ही छोड़ कर वह इंडिया आ गई थी, जहां की संस्कृति ने उसे इस कदर मोह लिया था कि उस का मन यहीं बसने को बेचैन हो उठा था.

इस के बाद वह टूरिस्ट वीजा पर अकसर इंडिया आने लगी थी. इस से उसे दिल्ली की काफी जानकारी हो गई थी. वह जब भी भारत आती थी तो वह पहाडग़ंज के होटलों में या फिर किशनगढ़ के अपार्टमेंट्स में रुकती थी. किशनगढ़ में उस की मुलाकात नाज से हुई थी. बाद में दोनों रूममेट बन कर रहने लगी थीं.

नाज का पूरा नाम था एटाजहानोवा कुपालबायवेना. वह भी उज्बेकिस्तान की रहने वाली थी. नाज के माध्यम से शाखनोजा की दिल्ली में रहने वाले तमाम उज्बेकियों से जानपहचान हो गई थी. वह उन लोगों के पारिवारिक समारोहों में खूब बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगी थी. इसी सिलसिले में उस की मुलाकात एक अन्य उज्बेक युवती माशा व उस के भारतीय पति गगन से हुई थी.

शाखनोजा करीब रोजाना ही अपनी मां को फोन कर के एकएक बात के बारे में बताया करती थी. शोखिस्ता उस से मिलने एकदो बार दिल्ली भी आई थीं और बेटी के इधर के कई दोस्तों से मिली थीं. उन्होंने महसूस किया था कि यहां उन की बेटी ने अपनी अच्छी जगह बना ली है. उस की प्रशंसा करने वालों की कमी नहीं है.

शाखनोजा ने तब मां को बताया था कि यहां के सांस्कृतिक समारोहों के सहारे वह जल्दी ही भारतीय फिल्मों में भी काम हासिल कर लेगी. शोखिस्ता बेटी की सफलताओं से खुश हो कर उस के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हुई खुशीखुशी उज्बेकिस्तान लौटी थीं.

कुछ समय बाद एक दिन शाखनोजा ने फोन कर के उन्हें बताया कि उस के डांस प्रोग्राम इस कदर पसंद किए जाने लगे हैं कि वह मांग को पूरा करने में खुद को असमर्थ महसूस कर रही है. कभीकभी मोटे पैसों का लालच दिए जाने के बावजूद उसे कार्यक्रम छोडऩे पड़ते हैं. ऐसे ही एक बार शोखिस्ता को बेटी की ओर से इंडिया में बौयफ्रैंड बनाने और उस से गर्भ ठहरने का समाचार मिला. इस से शोखिस्ता को लगा कि शाखनोजा अब वहीं अपना घर बसा कर भारत में रह जाएगी. वैसे उन्हें इस बात का पहले से ही अहसास था कि शाखनोजा की जान इंडिया में अटकी रहती है.

फोन पर ऐसी ही बातों के बीच एक दिन शाखनोजा ने मां को कुछ ऐसा बताया, जिसे सुन कर वह परेशान हो गईं. शाखनोजा ने उन्हें बताया कि 16 अगस्त, 2015 को हुई एक पार्टी में वह इतना नाची कि थक कर चूर हो गई. डांस खत्म होने पर जब वह वहां बिछे एक काउच पर बैठी तो किसी ने उसे पीने को कोक का गिलास दिया, जिसे वह एक ही सांस में पी गई.

उसे पीने के बाद उस पर बेहोशी छाने लगी. उस के बाद जब वह चेतना में लौटी तो उस ने खुद को एक दूसरी जगह पर पाया. उस के शरीर पर कपड़े भी पहले वाले नहीं थे. वहां 2 लड़कियां थीं, जिन्होंने उसे बताया कि तंग कपड़ों की वजह से उस की तबीयत खराब हो गई थी. इसीलिए उसे यहां ला कर उस के उन कपड़ों को उतार कर ये ढीले कपड़े पहनाए गए हैं.

इस घटना के बाद से शाखनोजा थोड़ा परेशान रहने लगी थी. उस की बातें सुन कर शोखिस्ता भी बेचैन हो जाती थीं. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि इस मामले में वह बेटी से क्या कहें? कुछ कहने से वह और ज्यादा चिंता में पड़ सकती थी. इसलिए उन्होंने शाखनोजा से इतना ही कहा कि आगे से कहीं इतना न नाचे कि तबीयत खराब हो जाए.

उन्होंने बेटी को भले ही चेता दिया था, लेकिन उन्हें उस की चिंता सताती रहती थी कि अकेली रहते हुए वह कहीं किसी षडयंत्र का शिकार न हो जाए. इस के बाद शोखिस्ता इंडिया जा कर मामले की तह में पहुंचने का विचार करने लगी थीं.

इस घटना को घटे अभी सवा महीना ही बीता था कि 24 सितंबर की रात उन्हें बेटी के अपहरण की सूचना ने झकझोर कर रख दिया. वह तुरंत अपनी दूसरी बेटियों के साथ दिल्ली पहुंचीं और बेटी की तलाश में जुट गईं. पुलिस पर वह लगातार दबाव डालती रहीं कि इस मामले को वह हलके में न ले कर उन लोगों से सख्ती से पूछताछ करे, जिन पर उसे शक है.

शोखिस्ता का कहना था कि इस मामले को पुलिस हल्के में ले कर संदिग्ध लोगों से गंभीरता से पूछताछ नहीं कर रही है. आखिर पुलिस ने अपना रवैया बदला और संदिग्ध लोगों को फिर से थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ शुरू की. दूसरे लोगों के अलावा जब गगन से भी सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उस ने शाखनोजा को ही नहीं, नाज को भी मौत के घाट उतार कर उस की भी लाश जला दी है. यह सुन कर पुलिस दंग रह गई.

दिल्ली की सब से बड़ी लूट – भाग 1

बैंकों ने अपनी एटीएम मशीनों में कैश डालने की जिम्मेदारी विभिन्न निजी एजेंसियों को दे रखी है. उन एजेंसियों ने अलगअलग इलाकों में अपने करेंसी चेस्ट बना रखे हैं. बैंकों से मोटी रकम निकाल कर पहले करेंसी चेस्ट में पहुंचाई जाती है, उस के बाद वह कैश वैनों द्वारा अलगअलग एटीएम बूथों तक पहुंचाया जाता है.

सिक्योरिटी एंड इंटेलिजैंस सर्विसेज (एसआईएस) सिक्योरिटी एजेंसी भी पिछले कई सालों से बैंकों की एटीएम मशीनों में पैसे डालने का काम कर रही है.

26 नवंबर, 2015 को पश्चिमी दिल्ली के विकासपुरी स्थित कंपनी के करेंसी चेस्ट पर एसआईएस की कैश वैन पैसे ले जाने के लिए पहुंची. वहां की ऐक्सिस बैंक से 38 करोड़ रुपए निकाल कर करेंसी चेस्ट में मौजूद संदूकों में भर दिए गए. यह कैश वैन द्वारा अलगअलग एटीएम बूथों तक पहुंचाया जाना था.

रुपयों से भरे उन संदूकों में से 9 संदूक एसआईएस की एक वैन में रख दिए गए, जिन में साढ़े 22 करोड़ रुपए थे. ये साढ़े 22 करोड़ रुपए दिल्ली के ओखला स्थित एटीएम मशीनों में रखे जाने थे. इसलिए दोपहर ढाई बजे के करीब एसआईएस की वह वैन ओखला के लिए चल पड़ी. उस वैन को प्रदीप शुक्ला चला रहा था और सुरक्षा के लिए गनमैन विजय कुमार पटेल उस के साथ था. विकासपुरी से चल कर वह वैन करीब साढ़े 3 बजे श्रीनिवासपुरी की रेड लाइट पर पहुंची. गनमैन विजय कुमार को लघुशंका लगी थी, इसलिए वह ड्राइवर से कह कर वैन से उतर गया.

कुछ देर बाद जब वह लौट कर आया तो उसे वहां कैश वैन दिखाई नहीं दी. विजय कुमार ने इधरउधर नजर दौड़ाई कि ड्राइवर ने रेडलाइट पार कर के वैन खड़ी न कर दी हो. लेकिन उसे कहीं भी वैन नहीं दिखी. यह बात करीब पौने 4 बजे की थी.

विजय कुमार के पास वैन के ड्राइवर प्रदीप शुक्ला का फोन नंबर था. उस ने उसे फोन किया. कई बार घंटी बजने के बाद प्रदीप ने फोन रिसीव कर के बताया कि रेडलाइट पर ट्रैफिक पुलिस ने वैन खड़ी नहीं होने दी, इसलिए वह इसी रोड पर थोड़ी दूर आगे खड़ा है.

जिस तरफ प्रदीप शुक्ला ने वैन खड़ी होने की बात कही थी, विजय उसी ओर था. लेकिन उसे वैन नजर नहीं आ रही थी. विजय ने थोड़ा आगे बढ़ कर भी देखा लेकिन उसे कहीं भी कैश वैन दिखाई नहीं दी. विजय ने प्रदीप को फिर फोन किया. इस बार उस का फोन बंद था. उस ने कई बार ड्राइवर को फोन किया, लेकिन अब उस का फोन बंद हो चुका था. वह चौंका कि अब फोन बंद क्यों है? आखिर वह उसे छोड़ कर वैन ले कर कहां चला गया?

उस ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रदीप वैन ले कर कंपनी के हैडऔफिस चला गया हो. अगर ऐसा हुआ तो उस से जवाबतलब किया जाएगा. कंपनी के अधिकारी उसी से पूछेंगे कि कैश की सुरक्षा की जिम्मेदारी उस की थी तो कैश छोड़ कर वह क्यों गया? एक बार फिर उस ने ड्राइवर प्रदीप को फोन किया, लेकिन इस बार भी उस का फोन बंद ही मिला.

विजय कुमार परेशान हो उठा था. वह औफिस फोन कर के पूछना चाहता था कि ड्राइवर प्रदीप वहां तो नहीं आया है, लेकिन डांट पडऩे की वजह से उस ने औफिस में फोन नहीं किया बल्कि सीधे ओखला फेज-1 स्थित कंपनी के औफिस पहुंच गया. औफिस पहुंच कर पहले उस ने पार्किंग एरिया में कैश वैन को ढूंढा. जब वैन वहां नहीं दिखी तो विजय ने वहां मौजूद कंपनी के कर्मचारियों से प्रदीप के बारे में पूछा. उन्होंने बताया कि प्रदीप शुक्ला यहां नहीं आया है.

यह जान कर विजय के होश उड़ गए. उसे लगा कि अब उस की नौकरी गई. लेकिन यह ऐसी बात थी, जिसे छिपाया भी नहीं जा सकता था. वह डरताडराता कंपनी के एरिया मैनेजर आनंद कुमार के पास पहुंचा और जब उन्हें ड्राइवर प्रदीप शुक्ला के कैश वैन सहित गायब होने की बात बताई तो वह सन्न रह गए, क्योंकि ड्राइवर प्रदीप पूरे साढ़े 22 करोड़ रुपए के साथ गायब था. उन्होंने तुरंत प्रदीप शुक्ला का फोन मिलाया, लेकिन उस का फोन उस समय भी बंद था.

आनंद कुमार के दिमाग में तुरंत आया कि ड्राइवर वह रकम ले कर कहीं भाग तो नहीं गया? अगर ऐसा हुआ तो यह कंपनी के लिए भी बड़ी बदनामी वाली बात होगी. इसलिए मैनेजर ने गार्ड विजय कुमार से कहा कि अभी वह इस बारे में किसी से कोई बात न करे.

एरिया मैनेजर आनंद कुमार ने इस बारे में कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों से बात की तो सभी में खलबली मच गई. क्योंकि यह कोई छोटीमोटी बात नहीं थी. जिस कैश वैन के साथ प्रदीप शुक्ला लापता था, उस में जीपीएस लगा था. उस के माध्यम से पता लगाया जा सकता था कि वैन उस समय कहां है. इसीलिए उन्होंने उस समय पुलिस को सूचना नहीं दी. कंपनी के अधिकारी खुद ही अपने स्तर से वैन का पता लगाने लगे.

जीपीएस के माध्यम से पता चला कि वह वैन दिल्ली में गोङ्क्षवदपुरी मैट्रो स्टेशन के पास खड़ी है. कंपनी के अधिकारियों की उम्मीद जागी और वे आननफानन गोङ्क्षवदपुरी मैट्रो स्टेशन के नजदीक पहुंचे तो वहां उन्हें सर्विस लेन में वह वैन खड़ी दिखाई दी. जब वे वैन के पास पहुंचे तो उस में कैश से भरे सभी संदूक गायब मिले. अब कंपनी के अधिकारियों को विश्वास हो गया कि ड्राइवर प्रदीप शुक्ला किसी दूसरी गाड़ी में उन संदूकों को ले कर भाग गया है.

अब इस बात को छिपाया नहीं जा सकता था. पुलिस को सूचना देना जरूरी था, इसलिए शाम पौने 6 बजे के करीब उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर के कैश वैन के ड्राइवर द्वारा साढ़े 22 करोड़ रुपए ले कर गायब होने की सूचना दे दी.

जैसे ही यह सूचना पुलिस के बड़े अधिकारियों तक पहुंची तो उन के होश उड़ गए. क्योंकि नवंबर, 2014 में दिल्ली के कमलानगर में कैश वैन से जो डेढ़ करोड़ रुपए की लूट हुई थी, वह केस अभी तक नहीं खुल पाया था, ऊपर से यह नया केस सामने आ गया.

जिस जगह यह घटना हुई थी, वह इलाका दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना ओखला के अंतर्गत आता था. सूचना पाते ही ओखला के थानाप्रभारी नरेश सोलंकी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा और एसीपी (कालकाजी) जसवीर ङ्क्षसह भी आ गए.

चूंकि लूट का यह बड़ा मामला था, इसलिए जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया भी चल पड़े थे. लूट की खबर मिलते ही पुलिस ने दिल्ली से बाहर जाने वाले सभी रास्तों पर बैरिकेड्ïस लगा कर वाहनों की चैङ्क्षकग शुरू कर दी थी. सभी पुलिस अधिकारी उस जगह पहुंच गए, जहां कैश वैन खड़ी मिली थी. इस के बाद उन्होंने उस जगह का भी मुआयना किया, जहां वैन का ड्राइवर गनमैन विजय कुमार पटेल को छोड़ कर चला आया था.

डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा ने जरूरी जांच के लिए फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और डौग स्क्वायड को भी बुला लिया था. जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया ने स्पैशल सेल और क्राइम ब्रांच की स्पैशल टीम को भी बुला लिया था. सभी टीमें अपनेअपने स्तर से जांच कर रही थीं.

पुलिस अधिकारियों के गले यह बात नहीं उतर रही थी कि जब घटना पौने 4 बजे घटी थी तो कंपनी के अधिकारियों ने 2 घंटे बाद पुलिस को सूचना क्यों दी? आखिर इतनी देर तक वे मामले को क्यों दबाए रहे. इस पर कंपनी के अधिकारी अपनी सफाई में यही कह रहे थे कि जीपीएस के माध्यम से वे पहले खुद ही ड्राइवर और वैन को तलाशने की कोशिश कर रहे थे. यही करने में उन्हें इतना समय लग गया.

बहरहाल, मौके की काररवाई निपटाने के बाद थाना ओखला में ड्राइवर प्रदीप शुक्ला के खिलाफ अमानत में खयानत का मामला दर्ज कर लिया गया. जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया ने इस केस के खुलासे के लिए स्पैशल सेल, क्राइम ब्रांच, स्पैशल स्टाफ के अलावा थानों के तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को भी लगा दिया. सभी टीमें अलगअलग तरीके से केस की जांच में जुट गई.