उज्बेक डांसर का दुखद अंत – भाग 1

25 सितंबर, 2015 की सुबह की बात है. समालखा, पानीपत की पुलिस को सूचना मिली कि जीटी रोड स्थित गांव करहंस में पूर्व मंत्री करतार सिंह भड़ाना की कोठी के पास वाले खेतों में जला हुआ एक बड़ा सूटकेस पड़ा है. मामला कुछ गंभीर लग रहा था, इसलिए डीएसपी गोरखपाल राणा पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे.

जला हुआ सूटकेस आजाद सिंह के खेतों में पड़ा था. पुलिस ने देखा तो उस में से एक विदेशी युवती की अधजली लाश बरामद हुई. इस का मतलब था कि उसे किसी दूसरी जगह कत्ल कर के वहां ला कर जलाया गया था. जले हुए सूटकेस और शव को अपने कब्जे में ले कर समालखा पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201/23 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. यह मुकदमा खेत मालिक आजाद सिंह की तहरीर पर दर्ज हुआ.

इस तरह के केसों में तफ्तीश का सब से पहला चरण होता है शव की पहचान. लेकिन समालखा पुलिस के तमाम प्रयासों के बाद भी मृतका के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. आखिरकार समालखा पुलिस चुप हो कर बैठ गई. दूसरी ओर उज्बेकिस्तान में 24 सितंबर, 2015 को ही इस घटना का सूत्रपात हो चुका था यानी लाश मिलने से काफी पहले.

24 सितंबर की रात करीब 10 बजे 60 वर्षीया शोखिस्ता डिनर से अभी फारिग हुई थीं कि उन के फोन की घंटी बज उठी. काल इंडिया से थी. फोन करने वाले ने उन से कहा, “मैं शाखनोजा का दोस्त बोल रहा हूं. मैं ने आप को यह बताने के लिए फोन किया है कि आप की बेटी गंभीर हादसे का शिकार हो गई है.”

“गंभीर हादसा, वह भी शाखनोजा के साथ? कैसा हादसा?” शोखिस्ता ने घबरा कर पूछा.

“शाखनोजा का सरेशाम अपहरण कर लिया गया है.” फोन करने वाले ने बताया.

यह खबर सुन कर शोखिस्ता के लिए अपने पैरों पर खड़े रह पाना मुश्किल हो गया था. वह धम्म से वहीं जमीन पर बैठ गईं. काल अभी भी डिसकनेक्ट नहीं हुई थी. किसी तरह उन्होंने पूछा, “कब हुई किडनैपिंग?”

“अभी 2 मिनट पहले. मैं वहीं घटनास्थल के पास हूं. किडनैपिंग देखते ही मैं ने तुरंत आप का नंबर मिलाया है.”

“पुलिस को इनफौर्म नहीं किया?”

“अभी कर रहा हूं.” कहने के साथ ही दूसरी ओर से फोन कट गया.

शोखिस्ता के 5 बच्चों में शाखनोजा सब से छोटी थी. वह जब 2 बरस की थी, तभी उस के सिर से पिता का साया उठ चुका था.शोखिस्ता ने ही उसे मांबाप दोनों का प्यार दे कर पाला था. शोखिस्ता खुद एक कलाकार थीं. अपने बच्चों को भी वह कला के क्षेत्र में लाने के लिए प्रयासरत रहीं. उन्हें सब से ज्यादा प्रतिभा शाखनोजा में दिखाई देती थी.

भारतीय गीतों पर वह बहुत अच्छा नृत्य करने लगी थी. शायद यही वजह थी कि वह अपनी कला का प्रदर्शन भारत में करने को लालायित रहती थी. भारत जैसे उस के सपनों का देश था. आखिर वह अपने सपनों के देश में जा ही पहुंची थी, जहां से अब उस के अपहृत हो जाने की खबर आई थी.

शोखिस्ता ने इस बारे में अपने कुछ रिश्तेदारों व परिचितों को बताया तो उन्होंने उन से उज्बेक एंबेसी से संपर्क करने को कहा. अगली सुबह ऐसा ही किया गया. एंबेसी अधिकारियों ने आगामी काररवाई के लिए शोखिस्ता की शिकायत दर्ज कर ली. शायद इसी का असर था कि दिल्ली पुलिस ने इस मामले में दिलचस्पी दिखाते हुए थाना कोटला मुबारकपुर में डीडीआर दर्ज कर के 26 सितंबर को एक टैक्सी ड्राइवर प्रीतम सिंह को पूछताछ के लिए थाने में तलब कर लिया.

प्रीतम सिंह अपनी टैक्सी से शाखनोजा को दिल्ली घुमाया करता था. उस ने पुलिस को बताया कि 24 सितंबर की सुबह शाखनोजा के बुलाने पर वह पहाडग़ंज स्थित उस के होटल गया था. उस रोज शाखनोजा दिन भर उस के साथ रही थी और दिल्ली में कई जगहों पर गई थी.

प्रीतम सिंह ने आगे बताया, “रात 10 बजे शाखनोजा मुझे साउथ एक्सटेंशन ले गई. एक जगह गाड़ी रुकवा कर उस ने मुझे इंतजार करने को कहा और वह सामने वाली दिशा में चली गई. वहां नीले रंग की इंडिका कार खड़ी थी, जिस के पास गुरविंदर उर्फ गगन अपनी पत्नी माशा व एक अन्य औरत नाज के साथ खड़ा था. ये तीनों शाखनोजा को पहले से जानते थे. मैं भी उन्हें जानता था. उन लोगों के अंदाज से लग रहा था कि उन्होंने शाखनोजा को बुला रखा था और वे वहां खड़े उसी का इंतजार कर रहे थे.”

प्रीतम ने आगे अपना स्पष्टीकरण देते हुए कहा, “शाखनोजा के वहां पहुंचते ही वे लोग पहले तो उस से बहस करने लगे. फिर उसे जबरन गाड़ी में धकेलते हुए वहां से गाड़ी भगा ले गए.”

“चूंकि शाखनोजा ने किसी खतरे की बात मुझ से नहीं बताई थी. वैसे भी वे लोग पहले से एकदूसरे के परिचित थे. इस से मुझे लगा कि शायद वे आपस में हंसीठिठोली कर रहे होंगे. इसलिए मैं ने इस बारे में पुलिस को फोन कर के बताना जरूरी नहीं समझा. लेकिन अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो रहा है. उन लोगों ने वाकई शाखनोजा का अपहरण कर लिया था.”

भारत में पुलिस अपने ढंग से काम कर रही थी. उधर उज्बेकिस्तान में शोखिस्ता का दिल उसी दिन से बैठा जा रहा था, जिस दिन उन्हें शाखनोजा के अपहरण की खबर मिली थी. उन की एक बेटी जमिरा पूर्व फ्लाइट अटेंडेंट थी और इन दिनों ताशकंद में रह रही थी. भारत में बहन का अपहरण हो जाने की बात सुन कर वह मां के पास उज्बेकिस्तान चली आई थी. जमिरा के आते ही शोखिस्ता ने उस से दो टूक कहा, “जैसे भी हो, मुझे इंडिया ले चलो. शाखनोजा को ले कर मेरे मन में बहुत बुरे खयाल आ रहे हैं.”

फिर उन्होंने अपने कुछ राज साझा करते हुए जमिरा से कहा, “शाखनोजा ने इंडिया में अपना एक बौयफ्रैंड बना लिया था, जिस से उसे गर्भ ठहर गया था. मेरे हिसाब से उसे अब तक 6 सप्ताह की गर्भवती होना चाहिए.”

जमिरा अपनी मां की फिक्र को समझ रही थी. उस ने प्रयास कर के वीजा वगैरह लगवाया और मां को ले कर 5 अक्टूबर को दिल्ली पहुंच गई. शोखिस्ता की सब से बड़ी बेटी नोदिरा अमेरिका में अपने पति व जवान बेटे के साथ रहती थी. वह अकेली वहीं से उड़ान भर कर मां के पास सीधे दिल्ली आ पहुंची.

दिल्ली में इन लोगों ने उज्बेक एंबेसी के अफसरों से ले कर पुलिस कमिश्नर भीमसेन बस्सी तक से मुलाकात कर के शाखनोजा का पता लगाने की गुहार लगाई. शाखनोजा का अपहरण अभी तक रहस्य ही बना हुआ था. पुलिस का कहना था कि टैक्सी ड्राइवर प्रीतम के बयान के आधार पर गगन, माशा व नाज को भी थाने बुलवा कर उन से पूछताछ की गई थी. मगर इस पूछताछ में कुछ निकल नहीं पाया था.

अपने बयानों में इन्होंने यही बताया था कि उस रात शाखनोजा मस्ती के मूड में अपनी खुशी से उन के साथ गई थी. फिर एक जगह गाड़ी से उतर कर एक अन्य नौजवान के साथ उस की बड़ी सी गाड़ी में बैठ कर चली गई थी. इस के बाद वह उन से नहीं मिली थी.

उन का आरोप था कि प्रीतम नाहक बढ़ाचढ़ा कर बयान दे रहा था. अगर उस ने हम लोगों को शाखनोजा को अपने साथ जबरन ले जाते देखा था तो उस ने शोर क्यों नहीं मचाया? इस मामले को उस ने इतनी सहजता से क्यों लिया? 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस को सूचित क्यों नहीं किया? आखिर वह कोई अनपढ़ गंवार न हो कर दिल्ली जैसे महानगर का टैक्सी ड्राइवर था.

इन लोगों का कहना था कि किन्हीं कारणों से प्रीतम से उन की नहीं बनती. इसी वजह से वह उन्हें परेशान करने के लिए ऐसी बातें कर रहा है, वरना शाखनोजा के गायब होने से तो हम खुद परेशान हैं. वह हर महफिल में रौनक जमाने वाली हमारी खास साथी थी.

अय्याश फर्जी जज की ठगी – भाग 5

महावीर सिंह से पहले इसी थाने में जज आशीष बिश्नोई द्वारा ठगी की कई और शिकायतें आई थीं. उन सभी को भी उस ने जज बन कर ठगा था. थानाप्रभारी ने महावीर सिंह की शिकायत पर 22 अगस्त, 2014 को भादंवि की धाराओं 420, 406, 117 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर इस की विवेचना एएसआई त्रिलोक चंद को सौंप दी.

इस से पहले इसी थाने में 11 अगस्त, 2014 को गुड़गांव निवासी राजेंद्रलाल मलिक ने आशीष बिश्नोई के खिलाफ साढ़े 24 लाख रुपए की धोखाधड़ी करने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. राजेंद्रलाल का गुड़गांव के सेक्टर-57 स्थित हांगकांग बाजार में ज्वैलर्स का शोरूम है.

आशीष बिश्नोई अपनी पत्नी मेनका के साथ कई बार उन के शोरूम पर आया था. उस ने पत्नी को वहां से 40-50 हजार रुपए की ज्वैलरी खरीदवाई थी. वह बड़े ही ठाठबाट से वहां आता था. खुद को जज बताता था. राजेंद्रलाल भी उसे मोटी आसामी समझते थे.

आशीष के फोन करने के बाद राजेंद्रलाल ने आशीष बिश्नोई के फ्लैट पर ज्वैलरी पहुंचाई थी. घर पर उस ने जो ज्वैलरी खरीदी, उस के पैसे नकद दे दिए थे. इस तरह उन का आशीष पर विश्वास बढ़ गया. एक दिन आशीष ने राजेंद्रलाल से कहा, ‘‘मेरे पिता भी जज हैं और ताऊ चीफ एडमिनिस्टे्रटिव औफिसर हैं. तुम चाहो तो मैं हुडा स्कीम के तहत तुम्हें प्लौट दिला सकता हूं.’’

राजेंद्रलाल ने हुडा स्कीम में प्लौट पाने की कई बार कोशिश की थी, लेकिन उन्हें प्लौट नहीं मिला था. सिफारिश से प्लौट पाने के लिए राजेंद्रलाल तैयार हो गए. प्लौट पाने के लिए उन्होंने आशीष बिश्नोई को 12 लाख रुपए दे दिए. पैसे लेने के बाद आशीष उसे प्लौट दिलाने का झांसा देता रहा.

उसी दौरान उस ने राजेंद्रलाल के शोरूम से साढ़े 12 लाख रुपए की डायमंड और गोल्ड ज्वैलरी खरीद कर पैसे बाद में देने को कहा. राजेंद्रलाल ने भी आशीष बिश्नोई पर विश्वास कर लिया और 12 लाख रुपए की ज्वैलरी दे दी. ज्वैलरी खरीदने के बाद आशीष बिश्नोई फरार हो गया. वह न तो फ्लैट पर मिला और न ही शहर में कहीं दिखा. उस ने अपने मोबाइल फोन भी बंद कर दिए थे.

यानी फरजी जज बन कर आशीष बिश्नोई राजेंद्रलाल से साढे़ 24 लाख रुपए की ठगी कर चुका था. राजेंद्रलाल ने 11 अगस्त, 2014 को आशीष बिश्नोई के खिलाफ भादंवि की धाराओं 406, 420, 467, 468, 471, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एएसआई हरवीर सिंह को करने के निर्देश दिए.

गुड़गांव के ही शिवाजीनगर के रहने वाले अशोक कुमार अग्रवाल के साथ भी आशीष बिश्नोई ने खुद को जज बता कर करीब 18 लाख रुपए की ठगी की. अशोक कुमार का सेक्टर-57 के वेस्ट टेक मौल में एक मैडिकल स्टोर था. वहीं पास में ही एक क्लीनिक है. आशीष बिश्नोई उस क्लीनिक में अपनी पत्नी मेनका के साथ आता था. डाक्टर को दिखाने के बाद वह अशोक कुमार के मैडिकल स्टोर से दवा लेता था.

उस के साथ 2 हथियारबंद गार्ड रहते थे. इस के अलावा उस की शानोशौकत देख कर अशोक कुमार बहुत प्रभावित थे. मेनका ने अशोक कुमार को बताया कि जज होने के कारण उस के पति के तमाम बड़े लोगों से संबंध हैं. वह आप को हुडा स्कीम के तहत प्लौट दिला सकते हैं.

अशोक कुमार मेनका की बातों में आ गए. उन्होंने मेनका की मार्फत आशीष से बात की तो आशीष ने प्लौट आवंटन कराने के लिए 18 लाख रुपए मांगे. अशोक अग्रवाल ने 2 बार में 18 लाख रुपए आशीष बिश्नोई को दे दिए.

पैसे लेने के कुछ दिनों तक तो आशीष अशोक कुमार को टालता रहा, इस के बाद वह रफूचक्कर हो गया तो अशोक कुमार अग्रवाल ने थाना सेक्टर-56 में आशीष बिश्नोई और उन की बीवी मेनका के खिलाफ 16 अगस्त, 2014 को भादंवि की विभिन्न धाराओं के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस मामले की जांच एएसआई प्रेमचंद कर रहे हैं.

फरजी जज आशीष बिश्नोई के खिलाफ 35 लाख और 18 लाख ठगी करने की 2 अन्य रिपोर्ट सेक्टर-56 थाने में दर्ज हैं. एक ही शख्स ने फरजी जज बन कर गुड़गांव के तमाम लोगों को अपने झांसे में ले कर उन से करोड़ों रुपयों की ठगी करने की बात सुन कर थानाप्रभारी भी हतप्रभ रह गए.

आशीष बिश्नोई उर्फ आशीष सेन के खिलाफ सेक्टर-56 थाने में ही 6 मामले दर्ज हो चुके हैं. थानाप्रभारी अब्दुल सईद सभी मामलों की अलगअलग पुलिस अधिकारियों से जांच करा रहे हैं. जांच अधिकारियों ने आशीष को पुलिस रिमांड पर ले कर विस्तार से पूछताछ की.

पुलिस ने आशीष के बैंक खाते को खंगाला तो उस में मात्र 2 हजार रुपए पाए गए. ताज्जुब की बात यह है कि करोड़ों रुपयों की ठगी करने वाले आशीष ने ठगी की रकम कहां खपाई है? रिपोर्ट करोड़ों रुपए की ठगी की है, लेकिन पुलिस को बरामदगी कुछ भी नहीं हुई है. अब पुलिस के सामने समस्या यह है कि रकम की बरामदगी कहां से करे?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. निशा और मेनका नाम परिवर्तित हैं.

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार

अय्याश फर्जी जज की ठगी – भाग 4

निर्धारित तिथि तक प्लौट और एससीओ का आवंटन नहीं हुआ तो आशीष बिश्नोई द्वारा दिया गया साढ़े 4 करोड़ रुपए का चैक निशांत ने अपने खाते में जमा किया, लेकिन खाते में पैसे न होने की वजह से वह चैक बाउंस हो गया. इस की शिकायत महावीर सिंह ने आशीष से की.

आशीष ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘आप ने हमें जो पैसे दिए थे, वह हम ने हुडा के अफसरों तक पहुंचा दिए हैं. वहां से हमें पता लगा है कि आप लोगों का काम हो चुका है. फाइल पर अब केवल एक अधिकारी के साइन होने को रह गए हैं. जैसे ही साइन हो जाएंगे, आवंटन से संबंधित कागजात तुम्हें मिल जाएंगे.’’

इसी तरह कई महीने बीत गए. उन के पास आवंटन से संबंधित कोई पत्र नहीं पहुंचा. आशीष बिश्नोई की बात महावीर सिंह से हुई थी, इसलिए तेजपाल या दलबीर सिंह में से कोई आशीष को फोन करता तो वह उन से बात नहीं करता था. वह केवल महावीर सिंह से ही बात करता था. तब महावीर सिंह ने जज आशीष बिश्नोई से पैसों के बारे में बात की. आशीष ने उन्हें भरोसा दिया कि एक महीने के अंदर आप को प्लौट और एससीओ आवंटन के पेपर मिल जाएंगे.

उन्होंने कुछ दिन और इंतजार करने की आशीष की बात मान ली. इस के बाद एक दिन आशीष ने तेजपाल और दलबीर सिंह के नाम प्लौट और एससीओ आवंटन के पेपरों की फोटोकापी महावीर सिंह को दे दी. गुड़गांव में हुडा के प्लौट और एससीओ का आवंटन होने पर वे बहुत खुश हुए. इस खुशी में उन्होंने उस दिन एक पार्टी का भी आयोजन किया.

अगले दिन महावीर सिंह अपने संबंधियों के साथ उस जगह पर गए, जहां उन्हें प्लौट और एससीओ आवंटित किए थे. लेकिन वहां पहुंच कर वे सब हक्केबक्के रह गए, क्योंकि उन प्लौटों पर तो पहले से और लोगों का कब्जा था. उन का आवंटन काफी दिनों पहले हो चुका था. वे सब हुडा औफिस पहुंचे. औफिस में उन्होंने आवंटन से संबंधित वे पेपर दिखाए, जो उन्हें आशीष बिश्नोई ने दिए थे. औफिस वालों ने उन पेपरों को फरजी बताया. यह सुन कर उन्हें गहरा धक्का लगा.

हुडा औफिस से मुंह लटका कर वे अपने घर आ गए. उन्हें आशीष बिश्नोई पर बहुत गुस्सा आ रहा था. लेकिन उस के सामने वह अपना गुस्सा जाहिर नहीं कर सकते थे, क्योंकि आशीष खुद को जज बताता था. उन्हें यह भी लग रहा था कि उन्होंने उन के साथ धोखा किया है. महावीर सिंह ने उन्हें फोन किया, ‘‘जज साहब, आप ने प्लौट और एससीओ के आवंटन के जो पेपर दिए थे, वे फरजी निकले. जिन नंबरों के प्लौट आवंटन की बात आप ने कही थी, उन पर पहले से ही किसी और का कब्जा है.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं? यह कैसे हो सकता है?’’ आशीष बिश्नोई ने चौंकते हुए कहा.

‘‘सर, मैं सही कह रहा हूं. आप मौके पर जा कर खुद देख सकते हैं. हम हुडा औफिस भी गए थे. वहां भी इन कागजों को फरजी बताया है.’’ महावीर सिंह बोले.

‘‘मुझे लगता है कि हुडा औफिस में ही यह पेपर तैयार करते समय कोई गलती हो गई होगी. शायद प्लौटों का नंबर गलती से दूसरा लिख गया होगा. ऐसा करो, मैं ने जो पेपर दिए थे, वे वापस दे जाओ, मैं उन्हें औफिस भेज कर ठीक करा लूंगा.’’ आशीष बिश्नोई ने कहा.

उस की बातों पर महावीर सिंह को भी यकीन होने लगा. उन्हें लगने लगा कि औफिस वालों की गलती से कभीकभी ऐसा हो जाता है. आवंटन के जो पेपर आशीष ने उन्हें दिए थे, वापस दे दिए. हुडा औफिस से अगर गलती से आवंटन पत्रों में प्लौट के नंबर गलत लिख गए थे तो वह गलती महीने-2 महीने में सही हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

कई महीने बीत गए, आशीष उन्हें आश्वासन दे कर टरकाता रहा कि कुछ दिनों में काम हो जाएगा. महावीर सिंह जब उन से पैसे वापस करने को कहते तो वह कह देता, ‘‘भई, मैं कोई आम आदमी नहीं हूं, जज हूं. पैसे ले कर मैं कहीं भागा नहीं जा रहा. जिन लोगों को मैं ने तुम्हारे पैसे पहुंचाए हैं, उन्होंने किसी वजह से काम नहीं किया तो मैं पैसे वापस करा दूंगा.’’

कोई और होता तो महावीर सिंह उन पर दबाव डाल कर पैसे वापस ले लेते. लेकिन जज के साथ वह ऐसा नहीं कर सकते थे. लिहाजा उन पर विश्वास करने के अलावा उन के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था.  बहरहाल, वह आशीष बिश्नोई से मिलते रहे और फोन पर भी संपर्क में रहे.

जुलाई, 2014 तक महावीर सिंह को हुडा प्लौट के आवंटन से संबंधित कोई कागज नहीं मिले तो उन के सब्र का बांध टूट गया. अब उन्होंने उन से अपने पैसे वापस मांगे, तब आशीष बिश्नोई ने निशांत के नाम 35 और 20 लाख के पोस्टडेटेड चैक काट दिए और बाकी पैसे बाद में देने को कहा.

अगस्त, 2014 के दूसरे सप्ताह में निशांत ने जब वे चैक अपने खाते में डाले तो वे बाउंस हो गए. महावीर सिंह ने जब आशीष बिश्नोई को चैक बाउंस होने के बारे में बताया तो उस ने कहा कि इस समय वह किसी दूसरे प्रदेश में है, घर लौट कर इस बारे में बात करेगा. कह कर उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

महावीर सिंह ने बाद में फोन मिलाया तो उस का फोन स्विच्ड औफ मिला. आशीष बिश्नोई ने उन्हें अपने 3 मोबाइल नंबर दिए थे, वे सभी स्विच्ड औफ हो चुके थे. महावीर सिंह परेशान हो गए. वह अपने संबंधियों के साथ उन के फ्लैट पर पहुंचे तो आशीष वहां भी नहीं मिला. पड़ोसियों से बात की तो जानकारी मिली कि जज साहब का कहीं और ट्रांसफर हो गया है. इसलिए वह फ्लैट खाली कर के चले गए हैं.

महावीर सिंह और उन के संबंधियों ने आशीष को जो 5 करोड़ 9 लाख रुपए दिए थे. उस के बदले में उन्हें प्लौट नहीं मिले. वे सभी बहुत परेशान थे कि अब जज को कहां ढूंढा जाए. उन्हें विश्वास हो गया कि जज आशीष बिश्नोई ने उन के साथ बहुत बड़ी ठगी की है. वे सभी गुड़गांव के थाना सेक्टर-56 पहुंचे और थानाप्रभारी अब्दुल सईद को सारी बात बताई.

दगाबाज सनम : हनीट्रैप में फंसे नेताजी – भाग 4

इस के बाद शालिनी ने सुमन को जो समझाया, उस से सुमन की आंखों में चमक आ गई. उसे लगा कि शालिनी ठीक कह रही है. सुमन ने सहमति जाहिर कर दी, लेकिन जब उसे लगा कि अगर अवधेश पुलिस के पास चला गया तो शालिनी ने कहा, ‘‘ऐसे ठरकी पुलिस के पास नहीं जाते, क्योंकि उन्हें खुद की बदनामी का डर रहता है. ऐसे लोग परदे के पीछे कुछ भी करते रहें, लेकिन सब के सामने साफसुथरा बने रहना चाहते हैं. अवधेश भी पुलिस के पास जाने की हिम्मत नहीं कर पाएगा.’’

‘‘लेकिन हम दोनों यह सब करेंगे कैसे?’’ सुमन ने पूछा.

‘‘तुझे इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे कुछ परिचित हैं, जो प्रेस में काम करते हैं. मैं उन से आज ही बात कर लूंगी.’’ शालिनी ने कहा.

‘‘अच्छा, मनोज, जिस के साथ तुम रहती हो?’’ सुमन ने कहा.

‘‘हां, वह बहुत तेज आदमी है, सब कुछ आसानी से कर लेगा. अब तू वही कर, जैसा मैं कहूं.’’ शालिनी ने कहा.

सुमन वह सब करने को तैयार हो गई, जैसा शालिनी ने कहा था. अगले दिन शालिनी मनोज को अपने साथ ले कर सुमन के घर आई. मनोज ‘साधना टीवी’ में नौकरी करता था. उस के पिता का नाम बख्तावर सिंह था, जो मंडावली के मकान नंबर 245/3ए गली नंबर-7 में रहते थे. वैसे वह उत्तर प्रदेश के कानपुर का रहने वाला था. शालिनी उसी के साथ रहती थी.

बातचीत में मनोज ने सुमन को यकीन दिलाया कि वह अपने एक दोस्त के साथ मिल कर अवधेश मिश्रा को इस तरह फांसेगा कि मजबूरन वह मोटी रकम उन्हें थमा देगा. इस के बाद मनोज ने नीरज मेहरा नाम के अपने एक दोस्त को अपनी इस योजना में शामिल कर लिया. वह साधना चैनल में कैमरा मैन था और इटावा का रहने वाला था.

उन्होंने जो योजना बनाई थी, उसी के तहत 12 दिसंबर, 2013 को सुमन ने अवधेश को फोन कर के उस के साथ गेस्टहाउस या होटल में रंगरलियां मनाने को कहा. अवधेश तुरंत तैयार हो गया. इस के बाद अवधेश ने नोएडा में मिलने की योजना बनाई. दोनों वहीं मिले. इस के बाद अवधेश सुमन को अपनी कार से निठारी स्थित सूर्या गेस्टहाउस ले गया, जहां दोनों एक कमरे में ठहरे.

अवधेश अपने और सुमन के कपड़े उतार कर उस में डूब गया. दूसरी ओर मनोज कैमरा लिए सब कुछ उस में कैद करता रहा. अवधेश सुमन से मिलने की खुशी में इस कदर खोया था कि उसे पता ही नहीं चला कि उस के साथ कौन सा खेल खेला जा रहा है. वह यह भी नहीं जान पाया था कि 3 लोग कब उस के कमरे में आ कर छिप गए थे. बाद में पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में सुमन ने बताया था कि अवधेश जब बाथरूम गया था, तब उस ने तीनों को कमरे के अंदर कर लिया था.

जब तक अवधेश को शालिनी, मनोज और नीरज के कमरे में आने की भनक लगती, तब तक उस के और सुमन के शारीरिक संबंधों की रिकौर्डिंग हो चुकी थी. इसी के बल पर उन्होंने उस की पर्स से 12 हजार रुपए निकाल कर कार की चाबी तो ले ही ली, 4 लाख रुपए की और मांग की.

अवधेश फंस तो चुका ही था, उस ने उन्हें बहकाना चाहा. लेकिन जब उसे लगा कि वह बच नहीं पाएगा, तब वह पुलिस के पास पहुंच गया. बहरहाल उस ने पुलिस को बताई तो झूठी कहानी, लेकिन उस की इसी झूठी कहानी पर ब्लैकमेलर पकड़े गए. उस के बाद पुलिस को असली कहानी का पता चला. शायद वह बदनामी के डर से पुलिस के पास जाता भी न, लेकिन कार की वजह से पुलिस के पास जाना पड़ा.

सुमन के बयान के आधार पर पुलिस ने मनोज कुमार, शालिनी और नीरज की गिरफ्तारी के लिए छापे मारे. 9 जनवरी, 2014 की सुबह 6 बजे मुखबिर की सूचना पर मनोज कुमार अैर शालिनी को न्यू अशोकनगर से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इन्हीं के साथ नीरज भी था, लेकिन वह भागने में कामयाब हो गया. अवधेश की गाड़ी भी बरामद हो गई थी. पूछताछ में शालिनी और मनोज कुमार ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. पुलिस ने पूछताछ के बाद सुमन, शालिनी और मनोज कुमार को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. पुलिस नीरज की तलाश कर रही है.

अवधेश ने जो किया, उस के लिए वह शर्मिंदा है. उस की समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर वह पत्नी और बच्चों से क्या कह कर माफी मांगे. मीडिया में खबर आने के बाद वह अपने घर से नहीं निकल रहा है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

60 साल का लुटेरा: 18 महिलाओं से शादी करने वाला बहरूपिया

अय्याश फर्जी जज की ठगी – भाग 3

नकली जज आशीष बिश्नोई उर्फ आशीष सेन के गिरफ्तार होने की खबरें जैसे ही मीडिया में आईं, कई लोग थाना सेक्टर-56 पहुंच गए, क्योंकि उन के साथ भी आशीष बिश्नोई नाम के उस फरजी जज ने मोटी रकम की ठगी की थी. महावीर सिंह जून भी उन में से एक थे. वह उस के जाल में ऐसे फंसे कि कई करोड़ रुपए गंवा बैठे. उन के साथ जिस तरह से ठगी की गई थी, वह हैरान कर देने वाला था.

गुड़गांव के सेक्टर-47 में प्रगति हिल्स अपार्टमेंट में रहने वाले महावीर सिंह जून अपने बेटे के साथ एक परिचित के यहां आयोजित शादी समारोह में गए थे. समारोह का आयोजन गुड़गांव के ही एक अच्छे होटल में था. समारोह में हाईप्रोफाइल लोग आए हुए थे. उसी समारोह में उन के जानकार शिवदत्त वशिष्ठ और राव उदयभान ने उन की मुलाकात आशीश बिश्नोई से कराई. आशीष ने उन से खुद को जज बताया था. उन दोनों ने भी उस शख्स को देखा तो वे उस से इस तरह से मिले, जैसे वह उस से पहले से ही परिचित हों.

आशीष बिश्नोई को परिचय के दौरान जब पता लगा कि महावीर सिंह जून कोई मामूली आदमी नहीं, बल्कि करोड़ों रुपए की संपत्ति के मालिक हैं तो आशीष बिश्नोई बहुत खुश हुआ. उसी समय आशीष बिश्नोई ने महावीर सिंह से उन का फोन नंबर पूछा तो उन्होंने आशीष को अपना और बेटे का फोन नंबर खुशीखुशी बता दिया जिन्हें आशीष के एक सिक्योरिटी गार्ड ने नोट कर लिया.

एक दिन आशीष बिश्नोई के सुरक्षा गार्ड ने महावीर सिंह जून को फोन किया. उस ने बताया कि आप से सर बात करना चाहते हैं. इतना सुनते ही महावीर सिंह खुश हुए. इस के कुछ पल बाद आशीष बिश्नोई की आवाज आई. आशीष ने उन से उन के घरपरिवार आदि के बारे में बातचीत की. कुछ देर तक दोनों के बीच अनौपचारिक बातें हुईं.

इस के बाद उन के बीच अकसर बातें होने लगीं. आशीष बिश्नोई के बुलावे पर महावीर सिंह कई बार उस के फ्लैट पर भी गए. उस का रहनसहन देख कर वह बहुत प्रभावित हुए. फ्लैट पर कई नौकरों थे साथ ही हथियारबंद सुरक्षा गार्डों के अलावा एक सिक्योरिटी एजेंसी के कई अन्य गार्ड भी वहां तैनात थे. उस से मिलने के लिए तमाम लोग महंगी लग्जरी कारों से वहां आए थे. लेकिन आशीष ने सब से ज्यादा महत्त्व महावीर सिंह को ही दिया.  इस तरह से महावीर सिंह और आशीष बिश्नोई के बीच गहरे संबंध हो गए. साथ बैठ कर उन्होंने कई बार लंच और डिनर भी किया.

एक बार आशीष बिश्नोई ने महावीर सिंह को फोन किया, ‘‘महावीरजी, कुछ दिनों पहले मेरी पोस्टिंग गुड़गांव में रही थी. इस वजह से हुडा (हरियाणा अरबन डेवलपमेंट अथौरिटी) के कई बड़े अफसरों से मेरे अच्छे संबंध हैं. अगर आप को हुडा के प्लौट या एससीओ चाहिए तो बता देना. मैं उन से आप का काम करा दूंगा.’’

एससीओ एक तरह का बिजनैस कौंप्लेक्स होता है, जहां ग्राउंड फ्लोर पर दुकानें होती हैं और ऊपरी मंजिल पर बिजनैस औफिस बने होते हैं.

महावीर सिंह का गुड़गांव के विपुल वर्ल्ड में एक प्लौट था, जो उन्होंने 2012 में बेच दिया था. उन के पास वह पैसे जमा थे. उन पैसों को वह सही जगह इनवैस्ट करने की सोच रहे थे. आशीष बिश्नोई से बात कर के उन्होंने तय कर लिया कि वह उन पैसों से हुडा का कोई प्लौट खरीद लेंगे.

महावीर सिंह की आशीष से जो बात हुई थी, वह उन्होंने अपने नजदीकी संबंधी दलबीर सिंह, तेजपाल और राज सिंह को बताई तो उन के मन में भी हुडा के प्लौट पाने की लालसा जाग उठी. उन्होंने महावीर सिंह से कहा कि वह आशीष बिश्नोई से उन के लिए भी प्लौट दिलाने की सिफारिश कर दें. महावीर सिंह ने आशीष से इस बारे में बात की तो उस ने कह दिया कि वह उन्हें अच्छे इलाके में 3 प्लौट और एक एससीओ अलाट करा देगा.

इस के बाद महावीर सिंह, दलबीर सिंह, तेजपाल और राज सिंह के साथ आशीष बिश्नोई के फ्लैट पर पहुंचे. उन्होंने सब के सामने ही आशीष बिश्नोई से पैसों की बात की तो वह उन पर नाराज होते हुए बोला, ‘‘आप मेरा लेवल समझते हैं? मैं ने आप की सहायता करने की बात की है तो इस का मतलब यह नहीं कि बात सब के सामने की जाए. बात आप से हुई है तो पैसे के बारे में आप ही बात करें. मैं हर किसी से बात नहीं कर सकता.’’

आशीष बिश्नोई महावीर सिंह को फ्लैट के दूसरे कमरे में ले गए. उन दोनों के बीच बात हुई. बात 5 करोड़ 9 लाख रुपए एडवांस और बाकी पैसे प्रौपर्टी अलाट होने के बाद देने की तय हो गई. आशीष बिश्नोई ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह उन्हें अपनी पहुंच से 3 प्लौट और एक एससीओ का आवंटन करा देगा. बात पक्की हो जाने के बाद महावीर सिंह ने कमरे से बाहर आ कर इस डील की जानकारी अपने संबंधियों को दी. संबंधियों ने इस डील पर सहमति जता दी.

चारों लोगों ने जनवरी, 2013 से मार्च 2013 के बीच आशीष बिश्नोई को 5 करोड़ 9 लाख रुपए एडवांस के तौर पर दे दिए. पैसे देने के बाद वे सभी खुश होने लगे कि उन्हें जल्द ही प्लौट आवंटित हो जाएंगे. आवंटित होने वाले प्लौटों और एससीओ को क्या करना है, इस बात की योजना भी उन्होंने बनानी शुरू कर दी.

पैसे देने के करीब 3 महीने बाद महावीर सिंह ने आशीष बिश्नोई से प्लौट के बारे में बात की तो उस ने आश्वासन दिया कि हुडा औफिस में आवंटन की प्रक्रिया चल रही है. उम्मीद है जल्दी काम हो जाएगा. महावीर सिंह ने उन्हें 5 करोड़ रुपए से अधिक की जो रकम दी थी, वह कोई मामूली रकम नहीं थी. उन्हें तो आशीष बिश्नोई पर विश्वास था, लेकिन उन के संबंधियों को सब्र नहीं हो रहा था.

उन का कहना था कि जब जज साहब की इतनी अप्रोच है तो प्रौपर्टी का आवंटन अब तक हो जाना चाहिए था. लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हुआ. इस पर आशीष ने कहा, ‘‘वैसे तो आप लोगों का काम हो रहा है, लेकिन इस के बाद भी आप को यकीन नहीं हो रहा तो मैं आप को पोस्ट डेटेड चैक दे सकता हूं.’’

आशीष बिश्नोई ने महावीर सिंह के बेटे निशांत जून के नाम 10 जुलाई, 2013 को ओरियंटल बैंक कौमर्स, हिसार शाखा का साढ़े 4 करोड़ रुपए का चैक काट दिया. चैक लेने के बाद महावीर सिंह और संबंधियों को तसल्ली हो गई कि अगर किसी वजह से प्लौट न भी मिले, तब कम से कम पैसे तो वापस मिल ही जाएंगे.

दगाबाज सनम : हनीट्रैप में फंसे नेताजी – भाग 3

सुमन भी बच्ची नहीं थी, जो वह अवधेश की नजरों को न पहचानती. धीरेधीरे उसे अवधेश का इस तरह ताकना अच्छा लगने लगा था. अब तक सुमन 23 साल की हो चुकी थी. आकर्षक कदकाठी की सुमन बहुत अच्छी लगती थी. अवधेश तो पहली ही मुलाकात में उसे दिल दे चुका था. लेकिन सुमन को इस बात की जानकारी देर से हुई थी.

एक दिन सुमन अवधेश के पास किसी काम से गई तो वह उसे टकटकी लगाए देखता रहा. तब सुमन ने उसे टोका, ‘‘सर, आप मुझे इस तरह क्यों ताक रहे हैं?’’

अवधेश चाह कर भी दिल की बात नहीं छिपा सका. सुमन ने जब दोबारा अपना सवाल दोहराया तो उस ने सुमन का हाथ थाम कर दिल की बात कह दी, ‘‘सुमन, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. अगर तुम जैसी सुंदर लड़की मेरे जीवन में आई होती तो शायद मैं दुनिया का सब से खुशकिस्मत इंसान होता. लेकिन अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. अगर तुम चाहो तो मेरी यह जिंदगी अभी संवर सकती है.’’

‘‘सर, आप यह कैसी बातें कर रहे हैं. कहां आप और कहां मैं. फिर आप शादीशुदा ही नहीं, बालबच्चेदार हैं. अगर आप की पत्नी और बच्चों को इस बारे में पता चल गया तो वे मेरे और आप के बारे में क्या सोचेंगे.’’ सुमन ने कहा.

‘‘तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. उन्हें कभी पता ही नहीं चल पाएगा. तुम सिर्फ यह बताओ कि तुम मुझ से प्यार करती हो या नहीं?’’ अवधेश ने कहा.

सुमन ने हामी में सिर हिला दिया तो अवधेश ने उस का हाथ अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले कर सहलाते हुए कहा, ‘‘सुमन, तुम कितनी अच्छी हो. अब देखना मैं तुम्हारे लिए क्याक्या करता हूं. तुम्हें मैं वह हर खुशी दूंगा, जो अब तब तुम्हें नहीं मिली.’’

सुमन के कपोल लाल हो गए. उस ने आंखें झुका लीं तो अवधेश ने एक हाथ की अंगुलियों से उस की ठुड्डी ऊपर उठा कर कहा, ‘‘इस तरह शरमाने से तो तुम्हारी सुंदरता और बढ़ गई.’’

इस के बाद सुमन अकसर एकांत में अवधेश से मिलने लगी तो अवधेश ने इस का लाभ भी उठा लिया. अवधेश तो इस मामले का खिलाड़ी था. कुंवारी सुमन को भी जब एक बार शारीरिक सुख मिला तो वह इसे बारबार पाने के लिए बेचैन रहने लगी. यही वजह थी कि जब भी उसे मौका मिलता, वह अवधेश के पास पहुंच जाती.

सुमन अवधेश को खुश करने लगी तो अवधेश भी उस का हर तरह से खयाल रखने लगा. वह उसे अपनी कार में बैठा कर घुमाताफिराता, महंगे रेस्टौरेंटों में खाना खिलाता, उपहार खरीद कर देता. इस सब से सुमन को लगने लगा कि उस के जीवन में बहार आ गई है. अवधेश उसे इसी तरह जीवन का हर सुख देता रहेगा.

धीरेधीरे पूरा एक साल बीत गया. सुमन का अवधेश से तो प्रेमसंबंध चल ही रहा था, उसी बीच उस की दिल्ली के ही मंडावली के रहने वाले सुहैल खान से जानपहचान हुई तो वह उस से भी प्यार करने लगी. फिर उस ने घर वालों की मर्जी के खिलाफ जा कर उस से शादी कर ली.

सुहैल अकेला ही रहता था और गुजरबसर के लिए छोटामोटा काम करता था. सुमन ने भले ही सुहैल से शादी कर ली थी, लेकिन वह अवधेश को भूल नहीं पाई थी. उसे जब भी मौका मिलता था, वह अवधेश से मिलने पहुंच जाती थी. बड़े सपने देखने वाली सुमन की हर जरूरत अवधेश पूरी कर रहा था. घर पर पति नहीं होता था, सुमन उसे घर भी बुला लेती थी.

सुमन के पड़ोस में ही शालिनी रहती थी. 36 वर्षीया शालिनी के पति विजय सिंह की काफी पहले मौत हो चुकी थी. पति की मौत के बाद अपने गुजरबसर के लिए वह एक पत्रिका के औफिस में नौकरी करने लगी थी. पड़ोस में रहने की वजह से शालिनी और सुमन में जल्दी ही गहरी दोस्ती हो गई थी. दोस्त होने की वजह से दोनों एकदूसरे से अपने दिल की बात बता दिया करती थीं.

किसी दिन जब शालिनी ने अवधेश को सुमन के घर से निकलते देखा तो उत्सुकतावश उस के बारे में पूछ लिया. तब सुमन ने शालिनी से अपने और अवधेश के संबंधों के बारे में बता कर कहा कि यह आदमी बहुत पैसे वाला है. यह सुन कर शालिनी के दिमाग में तुरंत एक ऐसी योजना आई, जिस से अवधेश से मोटा माल मिल सकता था. उस ने तुरंत कहा, ‘‘यार सुमन, यह आदमी पैसे वाला है तो इस से तुझे क्या मिलता है. आता है, मुफ्त में मजा ले कर चला जाता है. यह तेरे पास तभी तक आएगा, जब तक इस का मन नहीं भरता. जिस दिन इस का मन भर जाएगा, दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देगा. यही नहीं, तुझे पहचानने से भी इंकार कर देगा.’’

‘‘क्या कह रही हो शालिनी? अवधेश ऐसा नहीं है.’’ सुमन ने कहा.

‘‘अभी तेरे पास आ रहा है न, इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है.’’

‘‘तो फिर क्या किया जा सकता है? मैं उसे मना भी नहीं कर सकती, क्योंकि वह मेरी बहुत सी जरूरतें पूरी करता है.’’

‘‘ऐसा कर, तू ने उसे जो सुख दिया है, उस की कीमत वसूल कर ले.’’ शालिनी ने कहा, ‘‘अच्छा एक बात बता, तू उस से एक लाख रुपए मांगेगी तो क्या दे देगा?’’

‘‘नहीं देगा.’’ सुमन ने पूरे विश्वास के साथ कहा.

‘‘अब तू खुद ही सोच, किसी होटल में 4 रोटियां खिला दीं, 2-4 उपहार दे दिए और बदले में तेरे साथ मजे लेता रहा. उस मजे की यही कीमत है?’’ शालिनी ने समझाया.

शालिनी की इन बातों ने सुमन को सोचने पर मजबूर कर दिया. उसे सोच में डूबी देख कर शालिनी ने कहा, ‘‘सुमन तू मेरी बात मान तो मेरे पास ऐसे ठरकी लोगों को सबक सिखाने का एक रास्ता है.’’

‘‘वह क्या?’’ सुमन ने पूछा.

‘‘उस से मोटी रकम ऐंठ कर मस्ती से जी.’’ शालिनी ने कहा.

अय्याश फर्जी जज की ठगी – भाग 2

अंडर ट्रेनिंग जज बता कर आशीष ने रसूखदार लोगों से अच्छे संबंध तो बना लिए, लेकिन उन्हें कैसे भुनाया जाए, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी. उस के पिता हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथौरिटी (हुडा) में नौकरी कर चुके थे.   वह जानता था कि हुडा का प्लौट पाने के लिए तमाम लोग लालायित रहते हैं. लेकिन सभी चाहने वालों को प्लौट नहीं मिल पाते. गुड़गांव में वैसे भी जमीन के रेट आसमान छू रहे हैं. प्लौट दिलाने के नाम पर लोगों से पैसे ऐंठने की योजना उसे सही लगी.

उस ने कई लोगों को इस झांसे में ले लिया. हुडा के प्लौट दिलाने के नाम पर उस ने उन से लाखों रुपए ऐंठ लिए. चूंकि अब उस के पास पैसे आ चुके थे, इसलिए अपना रुतबा दिखाने के लिए उस ने हथियारबंद 2 बौडीगार्ड रख लिए. उन में से एक को वह 20 हजार रुपए और दूसरे को 25 हजार रुपए महीने वेतन देता था.

उस ने अपने बारे में यह कहना शुरू कर दिया कि उस का ट्रेनिंग पीरियड खत्म हो चुका है. अब उस की पोस्टिंग जज के पद पर हो गई है. दूसरी पत्नी निशा के लिए उस ने सेक्टर-53 स्थित ग्रांड रेजीडेंसी सोसाइटी में एक आलीशान फ्लैट किराए पर ले लिया तो वहीं प्रेमिका मेनका के लिए इसी सेक्टर की गुडलक सोसाइटी में एक फ्लैट किराए पर ले लिया. इस फ्लैट पर उस ने कई नौकर भी रख लिए.

रुतबा दिखाने के लिए वह महंगी लग्जरी कार महीने भर के लिए किराए पर लेता और उस पर नीली बत्ती लगा कर बाडीगार्डों के साथ शहर में घूमता था. पूछने पर वह अपनी तैनाती पड़ोसी जिले में होने की बात कह देता था. इस तरह गुड़गांव में लोग उसे जज के रूप में जानने लगे थे.

जब रसूखदार लोगों से उस के संबंध बन गए तो उस ने हुडा के प्लौट आदि दिलाने के नाम पर ठगी करनी शुरू कर दी. बताया जाता है कि इस ठगी से उस ने करोड़ों रुपए कमाए.

जिस तरह वह पैसे कमाता था, उसी तरह अपना रुतबा दिखाने के लिए खर्च भी करता था. उस की शानोशौकत देख कर लोग उस पर जल्द यकीन कर लेते थे. हिसार में रहने वाली ब्याहता के बजाय वह गुड़गांव में रहने वाली निशा और मेनका पर ज्यादा पैसे खर्च करता था. एक बात और जिस तरह उस की ब्याहता को निशा और मेनका के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, उसी तरह निशा को भी पता नहीं था कि उस का पति किसी मेनका के साथ लिवइन रिलेशन में रह रहा है.

आशीष सेफ गेम खेल रहा था. वह निशा और मेनका को देश के अलगअलग स्थानों की सैर कराता. उन्हें फाइवस्टार होटलों में ले जाता. इस तरह वह अपनी मौजमस्ती पर दोनों हाथों से पैसे खर्च कर रहा था. कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति गलत काम करने में चाहे कितनी भी चालाकी क्यों न बरते, एक न एक दिन उस की सच्चाई लोगों के सामने आ ही जाती है.

मेनका आशीष पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी, लेकिन वह उसे लगातार टालता आ रहा था. वह उसे शादी टालने की कोई खास वजह भी नहीं बता पा रहा था. इस से मेनका को उस पर शक हो गया. मेनका एक तेजतर्रार महिला थी. वह आशीष के बारे में जानकारी जुटाने लगी कि आखिर ऐसी क्या वजह है, जो आशीश उसे लगातार टालता आ रहा है. इसी खोजबीन में उसे पता चला कि वह पहले से शादीशुदा है और उस की एक नहीं 2-2 बीवियां हैं. यह भी जानकारी मिली कि वह आशीष बिश्नोई नहीं, बल्कि आशीष सेन है.

यह जानकारी पाते ही वह आशीष पर भड़क गई कि उस ने उस से इतना बड़ा झूठ क्यों बोला? आशीष ने उसे लाख समझाने की कोशिश की कि जिन शादीशुदा बीवियों की वह बात कर रही है, उन के पास वह जाता ही कहां है. वे तो केवल नाम की हैं.

लेकिन मेनका अपनी जिद पर अड़ी रही. उस ने कहा कि अब वह उस से शादी तभी करेगी, जब वह दोनों पत्नियों को तलाक  दे देगा. यह बात फ्लैट से बाहर निकलती तो इलाके में आशीष की जमीजमाई साख को बट्टा लग सकता था. इसलिए वह किसी भी तरह मेनका को मनाने में जुट गया. उस ने मेनका को भरोसा दिलाया कि वह दोनों पत्नियों को तलाक दे कर जल्दी ही उस से शादी कर लेगा.

आशीष ने मेनका को उस समय शांत तो करा दिया, लेकिन वास्तव में वह उस से शादी नहीं करना चाहता था. इस की जगह वह उस से छुटकारा पाने के उपाय खोजने लगा. एक दिन उस ने अपनी कार की चाबी के छल्ले में मिनी वीडियो कैमरा लगा कर डैशबोर्ड पर रख दिया. इस के बाद उस ने कार में मेनका के साथ शारीरिक संबंध बनाए.

उस अश्लील फिल्म के जरिए वह मेनका पर दबाव बनाने लगा. जब भी मेनका पत्नियों को तलाक देने की बात कहती, वह उस अश्लील फिल्म को इंटरनेट पर डालने की धमकी देता. मेनका ने शादी करने के मकसद से ही उस की तरफ प्यार का कदम बढ़ाया था, लेकिन इस की जगह उस का शारीरिक और मानसिक शोषण हुआ. वह खुद को ठगा महसूस कर रही थी. चूंकि उसे डर था कि अगर वह इंटरनेट पर फिल्म डाल देगा तो बदनामी की वजह से वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी, इसलिए उस ने अपनी जुबान बंद रखी.

मेनका का मुंह बंद कराने के बाद आशीष ने उस की जगह निशा को महत्त्व देना शुरू कर दिया. यह बात मेनका को चुभ गई. उस ने तय कर लिया कि अब वह चुप नहीं बैठेगी. यही तय कर के वह 7 अगस्त, 2014 को गुड़गांव सेक्टर 17-18 के थाने पहुंच गई और थानाप्रभारी को लिखित तहरीर दे कर आशीष बिश्नोई उर्फ आशीष सेन के खिलाफ कानूनी काररवाई करने की मांग की. मेनका की तरफ से रिपोर्ट लिख कर सेक्टर-46 की क्राइम ब्रांच (सीआईए) ने आशीष को हिसार स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया था.

पुलिस ने आशीष सेन उर्फ आशीष बिश्नोई से मेनका के साथ बनाई गई अश्लील फिल्म की 3 सीडी, एक पेनड्राइव, कुछ नकली कोर्ट पेपर, 2 नकली ड्राइविंग लाइसेंस, एक शस्त्र लाइसेंस के साथ नीली बत्ती लगी एक फार्च्युनर कार भी बरामद की, जो उस ने 60 हजार रुपए प्रति महीने के किराए पर ले रखी थी. चूंकि उस के खिलाफ सेक्टर 17-18 थाने में रिपोर्ट दर्ज हुई थी, इसलिए पूछताछ के बाद उसे थाना पुलिस के हवाले कर दिया गया.

दगाबाज सनम : हनीट्रैप में फंसे नेताजी – भाग 2

अपनी करनी पर अवधेश पछता रहा था. उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था. काफी देर तक वह उसी तरह बैठा सोचता रहा कि अब क्या करे. काफी सोचविचार के बाद दिमाग कुछ दुरुस्त हुआ तो उस ने उठ कर कपडे़ पहने और खुद को दुरुस्त कर के क्षेत्रीय थाना सेक्टर-39 जा पहुंचा.

थानाप्रभारी धर्मेंद्र चौधरी से मिल कर उस ने अपना परिचय दे दिया. लेकिन सच्चाई बताने के बजाय उस ने एक दूसरी ही कहानी बता कर थाना सेक्टर-39 रिपोर्ट दर्ज करा दी. उस ने थानाप्रभारी को बताया, ‘‘पिछले कई दिनों से कोई फोन कर के मुझ से मिलने की गुजारिश कर रहा था. मैं ने उसे औफिस में आ कर मिलने को कहा. लेकिन औफिस आने में उस ने असमर्थता व्यक्त की.

जब वह बारबार मिलने के लिए कहने लगा तो मैं ने उस से मिलने का मन बना लिया. उसी से मिलने के लिए मैं 11 बजे के करीब नोएडा स्थित जीआईपी मौल अपनी गाड़ी से पहुंच गया. तय प्रोग्राम के अनुसार वहां गेट के बाहर खड़े हो कर उस का इंतजार करने लगा. उसे फोन किया तो इस बार दूसरी ओर से किसी महिला की आवाज आई. महिला की आवाज सुन कर मैं चौंका.’’

महिला ने कहा, ‘‘आप इंतजार कीजिए. मैं थोड़ी देर में पहुंच रही हूं.’’

थोड़ी देर बाद एक लड़की आ कर अवधेश की कार के पास खड़ी हो गई. वह उसे पहचानता नहीं था. उस ने उसे पहचानने की कोशिश की, लेकिन पहचान नहीं सका. लड़की कार का दरवाजा खोल कर उस की बगल वाली सीट पर बैठ कर बोली, ‘‘सर, मैं आप से पहली बार मिल रही हूं, लेकिन मैं अपनी इस पहली मुलाकात को यादगार बनाना चाहती हूं.’’

लड़की ने उसे काफी प्रभावित किया था. वह उस की बात पर विचार कर ही रहा था कि तभी लड़की के मोबाइल पर किसी का फोन आया. लड़की ने फोन रिसीव कर के कहा, ‘‘मैं अभी एक जरूरी मीटिंग में हूं, बाद में फोन करना.’’

इतना कह कर लड़की ने फोन काट दिया. इस के बाद उस ने कहा, ‘‘सर, मैं आप की जनभावना पार्टी में शामिल हो कर पार्टी की कार्यकर्ता बनना चाहती हूं, क्योंकि राजनीति में मुझे बहुत रुचि है.’’

वह लड़की अभी उस से बातें कर रही थी कि 2 लड़के आ कर वहां खड़े हो गए. उन के साथ एक महिला भी थी. उन तीनों को देख कर अवधेश की कार में बैठी लड़की ने हाथ हिलाते हुए कहा, ‘‘आइए, मैं आप लोगों का ही इंतजार कर रही थी.’’

अवधेश कुछ समझ पाता, उस के पहले ही बगल में बैठी लड़की अपनी ओर का दरवाजा खोल कर जैसे ही उतरी, तुरंत उस का परिचित युवक उस की जगह पर बैठ गया. दोनों महिलाएं पीछे की सीट पर बैठ गईं तो दूसरा युवक अवधेश को धकेल कर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया.

अब वह दोनों युवकों के बीच फंस गया था. उन लोगों ने उसे चुप रहने की धमकी दे कर उस की कार तेज रफ्तार से भगा दी. चलती गाड़ी में ही उन्होंने उस के पर्स से 12 हजार रुपए निकाल लिए. थोड़ी दूर जाने के बाद उसे जान से मारने की धमकी दे कर उसे भी कार से उतार दिया और खुद कार ले कर फरार हो गए. उस के बाद किसी तरह पूछतेपाछते हुए वह थाने तक पहुंचा है. इतना सब बता कर अवधेश ने अपनी कार दिलाने की गुजारिश की.

बात पूरी होतेहोते अवधेश की आंखें छलक पड़ी थीं. उसे इस तरह परेशान देख कर थानाप्रभारी ने उसे आश्वासन दे कर अपराध संख्या 19/2014 पर भादंवि की धारा 392, 386, 120बी, 34 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर इस मामले की जांच जीआईपी के चौकीप्रभारी सबइंसपेक्टर विवेक शर्मा के नेतृत्व में एक टीम बना कर सौंप दी. उन की इस टीम में कांस्टेबल सिंकू चौधरी, ओमप्रकाश राय, सुदेश कुमार और महिला कांस्टेबल चित्रा चौधरी को शामिल किया गया था.

सबइंसपेक्टर विवेक शर्मा ने उस मोबाइल नंबर पर फोन मिलाया तो वह बंद मिला. उन्होंने उस नंबर को सर्विलांस पर लगवाने के साथ उस की आईडी निकलवाई तो पता चला कि वह नंबर सुहैल खान के नाम था, जो मकान नंबर बी-17डी, मेनरोड, मंडावली, दिल्ली में रहता था. पुलिस अवधेश को साथ ले कर उस पते पर पहुंची तो वहां उसे सुमन मिली.

अवधेश ने सुमन को पहचान कर पुलिस को बताया कि दोनों महिलाओं में एक यही थी. पुलिस सुमन को नोएडा ले आई. पूछताछ में सुमन ने अपने अन्य साथियों के बारे में बता दिया. इस के बाद पुलिस ने उस के साथियों मनोज कुमार, नीरज और शालिनी की तलाश में कई जगहों पर छापे मारे, लेकिन वे पुलिस के हाथ नहीं लगे. शायद उन्हें सुमन के पकड़े जाने की भनक लग गई थी, इसलिए वे अपनेअपने ठिकानों से फरार हो चुके थे.

सुमन से की गई पूछताछ में अवधेश मिश्रा को लूटने और ब्लैकमेल करने की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी.

दरअसल अवधेश मिश्रा ने अपने लूटे जाने के बारे में पुलिस को जो बताया था, वह पूरी तरह से सच नहीं था. उस की कार और रुपए जरूर अभियुक्त ले गए थे, लेकिन उस ने अपने अपहरण की कोशिश की जो बात पुलिस को बताई थी, वह झूठ थी. इस मामले में सच्चाई यह थी.

इस कहानी की शुरुआत 5-6 साल पहले से हुई थी. तब सुमन की शादी नहीं हुई थी. 33 वर्षीया सुमन अपने परिवार के साथ दिल्ली के पांडवनगर के गणेशनगर में रहती थी. उस के पड़ोस में ही मूलरूप से झारखंड का रहने वाला अवधेश मिश्रा भी अपने परिवार के साथ रहता था. 45 वर्षीय अवधेश मिश्रा इलाके का जानामाना आदमी था. इस की वजह यह थी कि वह ‘जनभावना पार्टी’ का राष्ट्रीय अध्यक्ष था.

सुमन भाईबहनों में सब से बड़ी थी, इसलिए घर या बाहर के कामों के लिए ज्यादातर उसे ही बाहर जाना पड़ता था. जब कभी किसी सरकारी दफ्तर का काम होता था, वह काम आसानी से हो जाए, इस के लिए वह अवधेश मिश्रा की मदद लेती थी. चूंकि अवधेश नेता था, इसलिए कैसा भी काम होता था, वह एक बार में ही करवा देता था.

लगातार अवधेश से मिलने की वजह से सुमन की उस से अच्छी जानपहचान हो गई थी. सुमन देखने में भी ठीकठाक थी और पढ़ीलिखी होने की वजह से बातें भी ढंग से करती थी. इसलिए अवधेश जब उसे देखता, उस का दिल उस के लिए मचल उठता था. यही वजह थी कि वह उसे चाहत से एकटक ताकता रहता था.