उसी दिन पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया. इन की गिरफ्तारी के बाद अजय गिरि का 3 वर्षीय बेटा सुंदरम भी सहीसलामत मिल गया. गिरफ्तार पांचों अभियुक्तों से की गई पूछताछ के बाद रिंकी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी…
पुलिस ने लाश बरामद होने पर हत्या का जो मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज किया था, खुलासा होने पर अजय से तहरीर ले कर अज्ञात हत्यारों की जगह मनोज पाल, बबलू, संदीप पाल, तेजप्रताप गिरि, रंभा उर्फ रेखा पाल, इशरावती और सरदार रकम सिंह के नाम डाल कर नामजद कर दिया.
25 वर्षीया रिंकी उर्फ रिंकू, उत्तर प्रदेश के जिला कुशीनगर के थाना तरयासुजान के गांव लक्ष्मीपुर राजा की रहने वाली थी. उस के पिता नगीना गिरि गांव में ही रह कर खेती करते थे. इस खेती से ही उन का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में रिंकी के अलावा 3 बच्चे, जियुत, रंजीत और नंदिनी थे. नगीना के बच्चों में रिंकी सब से बड़ी थी. रिंकी खूबसूरत तो थी ही, स्वभाव से भी थोड़ा चंचल थी, इसलिए हर कोई उसे पसंद करता था.
नगीना की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ाते, इसलिए उन्होंने रिंकी की पढ़ाई छुड़ा दी थी. रिंकी जैसे ही सयानी हुई, गांव के लड़के उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे. चंचल स्वभाव की रिंकी शहजादियों की तरह जीने के सपने देखती थी. लेकिन उस के लिए यह सिर्फ सपना ही था. यही वजह थी कि पैसों के लालच में वह दलदल में फंसती चली गई.
गांव के कई लड़कों से उस के संबंध बन गए थे. वे लड़के उसे सपनों के उड़नखटोले पर सैर करा रहे थे. जब इस बात का पता उस के पिता नगीना को चला तो उन्होंने इज्जत बचाने के लिए बेटी की शादी कर देना ही उचित समझा. उन्होंने प्रयास कर के कुशीनगर के ही थाना परहरवा के गांव पगरा बसंतपुर के रहने वाले पारस गिरि के बेटे अजय गिरि से उस की शादी कर दी.
पारस गिरि भी खेती से ही 7 सदस्यों के अपने परिवार कोे पाल रहे थे. शादी के बाद बड़ा बेटा नौकरी के लिए बाहर चला गया तो उस से छोटा अजय पिता की मदद करने लगा. साथ ही वह एक बिल्डिंग मैटेरियल की दुकान, जहां वेल्डर का भी काम होता था, पर नौकरी करता था. इस नौकरी से उसे इतना मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. पारस ने बेटियों की शादी अजय की मदद से कर दी थी.
पारस ने छोटी बेटी किरण की शादी जिला देवरिया के थाना तरकुलवा के गांव बालपुर के रहने वाले लालबाबू गिरि के सब से छोटे बेटे तेजप्रताप गिरि से की थी. शादी के बाद तेजप्रताप किरण को ले कर गोरखपुर आ गया था, जहां शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था.
रिंकी ने शहजादियों जैसे जीने के जो सपने देखे थे, शादी के बाद भी वे पूरे नहीं हुए. वह खूबसूरत और स्मार्ट पति चाहती थी, जो उसे बाइक पर बिठा कर शहर में घुमाता, होटल और रेस्तरां में खाना खिलाता. जबकि रिंकी का शहजादा अजय बेहद सीधासादा, ईमानदार और समाज के बंधनों को मानने वाला मेहनती युवक था. दुनिया की नजरों में वह भले ही रिंकी का पति था, लेकिन रिंकी ने दिल से कभी उसे पति नहीं माना . वह अभी भी किसी शहजादे की बांहों में झूलने के सपने देखती थी.
रिंकी सपने भले ही किसी शहजादे के देख रही थी, लेकिन रहती अजय के साथ ही थी. वह उस के 2 बेटों, सत्यम और सुंदरम की मां भी बन गई थी. इसी के बाद अजय ने छोटी बहन किरन की शादी तेजप्रताप से की तो पहली ही नजर में तेजप्रताप रिंकी को सपने का शहजादा जैसा लगा. फिर आनेजाने में कसरती बदन और मजाकिया स्वभाव के तेजप्रताप पर रिंकी कुछ इस तरह फिदा हुई कि उस से नजदीकी बनाने के लिए बेचैन रहने लगी.
तेजप्रताप को रिंकी के मन की बात जानने में देर नहीं लगी. सलहज के नजदीक पहुंचने के लिए वह जल्दीजल्दी ससुराल आने लगा. इस आनेजाने का उसे लाभ भी मिला. इस तरह दोनों जो चाहते थे, वह पूरा हो गया. रिंकी और तेजप्रताप के शारीरिक संबंध बन गए. दोनों बड़ी ही सावधानी से अपनअपनी चाहत पूरी कर रहे थे, इसलिए उन के इस संबंध की जानकारी किसी को नहीं हो सकी थी.
तेजप्रताप पादरी बाजार पुलिस चौकी के पास छोलेभटूरे का ठेला लगाता था. उस की दुकान पर बबलू और संदीप पाल अकसर छोले भटूरे खाने आते थे. बबलू और संदीप में अच्छी दोस्ती थी. उन की उम्र 15-16 साल के करीब थी. तेजप्रताप के वे नियमित ग्राहक तो थे, इसलिए उन में दोस्ती भी हो गई थी. बाद में पता चला कि वे रहते भी उसी के पड़ोस में थे. इस से घनिष्ठता और बढ़ गई. उन का परिवार सहित तेजप्रताप के घर आनाजाना हो गया.
एक बार रिंकी अजय के साथ ननद के घर गोरखपुर ननदननदोई से मिलने आई तो संयोग से उसी समय संदीप पाल की मां रंभा उर्फ रेखा पाल भी किसी काम से तेजप्रताप से मिलने आ गई. रेखा ने रिंकी को गौर से देखा तो महिलाओं की पारखी रेखा को वह अपने काम की लगी.
रिंकी ने तेजप्रताप के घर का रास्ता देख लिया तो उस का जब मन होता, वह किसी न किसी बहाने तेजप्रताप से मिलने गोरखपुर आने लगी. रिंकी गोरखपुर अकसर आने लगी तो रंभा उर्फ रेखा से भी जानपहचान हो गई. रेखा के 20 वर्षीय भांजे मनोज पाल की नजर मौसी के घर आनेजाने में रिंकी पर पड़ी तो खूबसूरत रिंकी का वह दीवाना हो उठा.
मनोज गोरखपुर में टैंपो चलाता था. वह रहने वाला गोरखपुर के थाना गोला के गांव हरपुर का था. वह मौसी रेखा के यहां इसलिए बहुत ज्यादा आताजाता था, क्योंकि वह उस का खास शागिर्द था. रेखा देखने में जितनी भोलीभाली लगती थी, भीतर से वह उतनी ही खुराफाती थी. उस औरत से पूरा मोहल्ला परेशान था. इस की वजह यह थी कि वह कालगर्ल रैकट चलाती थी. उस के इस काम में उस का भतीजा बबलू, बेटा संदीप और भांजा मनोज उस की मदद करते थे. रेखा के अच्छेबुरे सभी तरह के लोगों से अच्छे संबंध थे, इसलिए मोहल्ले वाले सब कुछ जानते हुए भी उस का कुछ नहीं कर पाते थे.