हुस्न और नशे के जाल में फंसा खिलाड़ी – भाग 1

घटना मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के आष्टा थाने की है. 12 नवंबर, 2018 को आष्टा के टीआई कुलदीप खत्री थाने में बैठे थे. तभी क्षेत्र के कोठरी गांव का हेमराज अपने गांव के कन्हैयालाल को साथ ले कर टीआई के पास पहुंचा. उस ने उन्हें अपने 29 वर्षीय बेटे नरेश वर्मा के लापता होने की खबर दी.

हेमराज ने बताया कि नरेश कराटे में ब्लैक बेल्ट होने के अलावा पावर लिफ्टिंग का राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी रह चुका है. वह सीहोर में अपना जिम खोलना चाहता था. जिम का सामान खरीदने के लिए वह सुबह 10 बजे के आसपास घर से 4 लाख रुपए ले कर निकला था.

उस ने रात 8-9 बजे तक घर लौटने को कहा था. लेकिन जब वह रात 12 बजे तक भी नहीं आया तो हम ने उस के मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की, पर उस का मोबाइल फोन बंद मिला. उस के दोस्तों से पता किया तो उन से भी नरेश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

नरेश के पास 4 लाख रुपए होने की बात सुन कर टीआई कुलवंत खत्री को मामला गंभीर लगा, इसलिए उन्होंने नरेश की गुमशुदगी दर्ज कर मामले की जानकारी एसपी राजेश चंदेल और एडीशनल एसपी समीर यादव को दे दी.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर टीआई खत्री ने जब हेमराज सिंह से किसी पर शक के बाबत पूछा तो उस ने बादशाही रोड पर रहने वाले सुहैल खान का नाम लिया. उस ने बताया कि सुहैल व उस के बेटे नरेश का वैसे तो कोई मेल नहीं था, इस के बावजूद काफी लंबे समय से नरेश का सुहैल के घर आनाजाना काफी बढ़ गया था.

सुहैल और नरेश की दोस्ती किस तरह बनी और बढ़ी थी, इस बात की जानकारी हेमराज को भी नहीं थी. परंतु लोगों में इस तरह की चर्चा थी कि सुहैल की खूबसूरत बेटी इस का कारण थी और घटना वाले दिन भी नरेश के मोबाइल पर सुहैल का कई बार फोन आया था.

हेमराज ने आगे बताया कि जब देर रात तक नरेश घर नहीं लौटा था तो हम ने सुहैल से ही संपर्क किया. उस ने बताया कि नरेश के बारे में उसे कुछ पता नहीं है. इतना ही नहीं नरेश का अच्छा दोस्त होने के बावजूद सुहैल ने उसे ढूंढने में भी रुचि नहीं दिखाई.

यह जानकारी मिलने के बाद एडीशनल एसपी समीर यादव ने सीहोर कोतवाली की टीआई संध्या मिश्रा को सुहैल की कुंडली खंगालने के निर्देश दिए. टीआई संध्या मिश्रा ने जब सुहैल के बारे में जांच की तो पता चला कि सुहैल कई बार नशीले पदार्थ बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है.

इस के बाद अगले ही दिन पुलिस ने सुहैल के घर दबिश डाली, लेकिन सुहैल घर पर नहीं मिला. घर में केवल उस की बीवी इशरत और बेटा अमन मिले. सुहैल के बारे में पत्नी ने बताया कि उन की तबीयत खराब हो गई थी और वह भोपाल के एलबीएस अस्पताल में भरती हैं.

‘‘उन की तबीयत को क्या हुआ?’’ पूछने पर परिवार वालों ने बताया, ‘‘कभीकभी अधिक नशा करने पर उन की ऐसी ही हालत हो जाती है. इस बार हालत ज्यादा खराब हो गई, जिस से वह कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे.’’

यह बात एडीशनल एसपी समीर यादव के दिमाग में बैठ गई. क्योंकि सुहैल की तबीयत उसी रोज खराब हुई, जिस रोज नरेश गायब हुआ था. दूसरे अब तक तो वह तबीयत खराब होने पर बातचीत करता था, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ कि वह बोल भी नहीं पा रहा था.

यादव समझ गए कि वह न बोल पाने का नाटक पुलिस पूछताछ से बचने के लिए कर रहा है, इसलिए उन्होंने आष्टा थाने के टीआई को जरूरी निर्देश दे कर सुहैल से पूछताछ के लिए भोपाल के एलबीएस अस्पताल भेज दिया.

सुहैल से पूछताछ के लिए टीआई कुलदीप खत्री एलबीएस अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने वार्ड में भरती सुहैल से पूछताछ की तो उस ने पुलिस की किसी बात का जवाब नहीं दिया.  तब टीआई अस्पताल से लौट आए, लेकिन उन्होंने उस पर नजर रखने के लिए सादे कपड़ों में एक कांस्टेबल को वहां छोड़ दिया.

पुलिस के जाने के कुछ देर बाद सुहैल जेब से मोबाइल निकाल कर किसी से बात करने लगा. यह देख कर कांस्टेबल चौंका और समझ गया कि सुहैल वास्तव में न बोलने का ढोंग कर रहा है. यह बात उस ने टीआई कुलदीप खत्री को बता दी.

अब टीआई समझ गए कि जरूर नरेश के लापता होने का राज सुहैल के पेट में छिपा है. लेकिन सुहैल इलाज के लिए अस्पताल में भरती था. डाक्टर की सहमति के बिना उस से अस्पताल में पूछताछ नहीं हो सकती थी. तब पुलिस ने सुहैल के बेटे और पत्नी को पूछताछ के लिए उठा लिया.

सांप की पूंछ पर पैर रखो तो वह पलट कर काटता है, लेकिन पैर अगर उस के फन पर रखा जाए तो वह बचने के लिए छटपटाता है. यही इस मामले में हुआ.

जैसे ही सुहैल को पता चला कि पुलिस उस के बीवी बच्चों को थाने ले गई है तो वह खुदबखुद स्वस्थ हो गया. इतना ही नहीं, अगले दिन ही वह अस्पताल से छुट्टी करवा कर पहले घर पहुंचा और वहां से सीधे आष्टा थाने जाने के लिए रवाना हुआ. सुहैल भी कम शातिर नहीं था. वह किसी तरह पुलिस पर दबाव बनाना चाहता था. इसलिए आष्टा बसस्टैंड से थाने की तरफ जाने से पहले उस ने सल्फास की कुछ गोलियां मुंह में डाल लीं.

पुलिस को धोखा देने के चक्कर में मौत

सल्फास जितना तेज जहर होता है, उतनी ही तेज उस की दुर्गंध भी होती है. सुहैल का इरादा कुछ देर मुंह में सल्फास की गोली रखने के बाद बाहर थूक देने का था, ताकि जहर अंदर न जाए और उस की दुर्गंध मुंह से आती रहे, जिस से डर कर पुलिस उस से ज्यादा पूछताछ किए बिना ही छोड़ दे. हुआ इस का उलटा. मुंह में रखी एक गोली हलक में अटकने के बाद सीधे पेट में चली गई. इस से वह घबरा गया. उस ने तुरंत थाने पहुंचने की सोची, लेकिन थाने से बाहर कुछ दूरी पर गिर कर तड़पने लगा.

पुलिस को इस बात की खबर लगी तो उसे पहले आष्टा, फिर सीहोर अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन उपचार के दौरान सुहैल की मौत हो गई. सुहैल की मौत हो जाने से पुलिस को सुहैल की बीवी और बेटे को छोड़ना पड़ा. अब तक पुलिस पूरी कहानी समझ चुकी थी. नरेश के साथ जो कुछ भी हुआ है, उस में सुहैल और उस के परिवार का ही हाथ है.

हकीकत यह जानते हुए भी एडीशनल एसपी समीर यादव को कुछ दिनों के लिए जांच का काम रोक देना पड़ा. कुछ दिन बाद फिर जांच आगे बढ़ी तो सुहैल की बीवी और बेटे से पूछताछ की गई. लेकिन वे कुछ भी जानने से इनकार करते रहे.

बहू के भेष में आयी मौत

उत्तर प्रदेश जिला फिरोजाबाद के थाना शिकोहाबाद का एक गांव है औरंगाबाद. यहां के निवासी राजाराम बघेल के बेटे राकेश कुमार की उम्र काफी हो गई थी, लेकिन किसी वजह से उस की शादी नहीं हो पा रही थी. मांबाप को बेटे की शादी की चिंता सता रही थी. वे लोग चाहते थे कि किसी तरह राकेश का घर बस जाए. उन्होंने यह इच्छा अपने रिश्तेदारों को भी बता रखी थी.

राजाराम की रिश्ते की एक बहन रज्जो की बेटी रेनू आगरा के पास एत्मादपुर कस्बे में ब्याही थी. एक दिन रेनू ने बातों ही बातों में अपनी पड़ोसन को बताया कि उस के रिश्ते का एक भाई है राकेश, जिस की अभी तक शादी नहीं हुई है. कोई लड़की हो तो बताना.

पड़ोसन ने कुछ सोचते हुए कहा कि वह इटावा के पास जसवंतपुर में रहने वाली पूजा नाम की एक लड़की को जानती है. लड़की सुंदर और भले परिवार की है. लेकिन उस बेचारी के मांबाप नहीं हैं. तुम कहो तो मैं उस से बात कर सकती हूं. लेकिन एक बात और है, यदि बात बन गई तो शादी का दोनों तरफ का खर्चा राकेश के घर वालों को ही करना पड़ेगा.

रेनू ने यह बात मामा राजाराम को बताई तो वह उम्मीद की इस किरण को खोना नहीं चाहते थे. लिहाजा वह बेटे का घर बसाने के लिए दोनों तरफ का खर्चा करने के लिए तैयार हो गए. राजाराम एत्मादपुर में रेनू के यहां चले गए. उन्होंने शादी की बात चलाने वाली उस महिला से बात की तो उस महिला ने 40 हजार रुपए का खर्च बताया. इस के लिए राजाराम तैयार हो गए.

शादी के लिए रेनू ने अपनी पड़ोसन को 40 हजार रुपए मामा राजाराम से दिलवा दिए. दोनों पक्षों में आपसी रजामंदी से तय हुआ कि शादी मंदिर में करा ली जाए तो ठीक रहेगा. इस से शादी का अनावश्यक खर्चा बच जाएगा. और जो 40 हजार रुपए दिए हैं, उन से पूजा के लिए कपड़े, जेवर आदि खरीद लिए जाएंगे. बातचीत में तय हो गया कि शादी फिरोजाबाद के एक मंदिर में संपन्न करा ली जाएगी.

17 नवंबर, 2018 को दोनों पक्ष फिरोजाबाद के एक मंदिर में पहुंच गए. शादी में राकेश के कुछ रिश्तेदारों के साथ ही लड़की पूजा के चाचा, भाई व कुछ अन्य रिश्तेदार शामिल हुए. रीतिरिवाज से राकेश और पूजा का विवाह संपन्न हो गया.

शादी संपन्न होने के बाद दुलहन को विदा करा कर राकेश अपने घर औरंगाबाद गांव लिवा लाया. दूसरे दिन शादी की अन्य रस्मों के साथ ही कंगन खुलने की रस्म संपन्न हुई. घर में खुशी का माहौल था. शादी के बाद राकेश के मन में खुशी के लड्डू फूट रहे थे.

18 नवंबर को पूजा का भाई भी उस से मिलने आ गया. रात 8 बजे नईनवेली दुलहन पूजा ने घर का खाना खुद बनाया. घर में सास कंठश्री, ससुर राजाराम के अलावा पति राकेश ही था. सभी को खाना खिलाने के बाद बहू ने सोते समय सभी को पीने को दूध भी दिया.

बहू के इस व्यवहार से सभी खुश थे. घर के सब काम निपटाने के बाद पूजा भी पति के कमरे में चली गई. जहां राकेश उस का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था. दुलहन के आते ही राकेश ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. इस के बाद वह कुछ देर पूजा से बात करता रहा. बातचीत करते हुए उसे 10 मिनट ही हुए होंगे कि राकेश को नींद आने लगी.

अगले दिन जब राकेश की आंखें खुलीं तो वह शिकोहाबाद के जिला संयुक्त अस्पताल में था. राकेश को पता चला कि उस के अलावा उस के मातापिता भी वहां भरती हैं. सभी को बेहोशी की हालत में वहां पड़ोसियों ने भरती कराया था. अस्पताल से छुट्टी मिली तो वे लोग घर पहुंचे तो वहां न तो उस की पत्नी थी और न ही पत्नी का भाई.

दोनों भाईबहन के वहां न होने पर राकेश को चिंता हुई. घर में तलाशी लेने पर उसे पता चला कि उस के घर में रखे 80 हजार रुपए, सोनेचांदी की ज्वैलरी, नए कपड़ों के अलावा उस की मोटरसाइकिल भी गायब थी. इस का मतलब साफ था कि दोनों भाईबहन यह सामान ले कर रफूचक्कर हो चुके थे. फिर तो यह बात जंगल की आग की तरह पूरे गांव में फैल गई और गांव में लुटेरी दुलहन की चर्चा होने लगी.

किसी ने इस मामले की सूचना थाना शिकोहाबाद को दी तो थानाप्रभारी लोकेश भाटी भी औरंगाबाद में राजाराम के घर पहुंच गए. उन्होंने राकेश से घटना की जानकारी ली. थानाप्रभारी भी समझ गए कि दुलहन के रूप में उस के घर आई पूजा ही योजनाबद्ध तरीके से घर में लूटपाट कर सामान ले गई. इसलिए उन्होंने राकेश की तहरीर पर भादंवि की धारा 328, 380, 420, 34 व 411 के तहत मुकदमा दर्ज कर के मामले की पड़ताल शुरू कर दी.

उन्होंने इस की सूचना एसपी सचिंद्र पटेल को भी दे दी. एसपी सचिंद्र पटेल ने आरोपियों की तलाश के लिए एसपी (ग्रामीण) महेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में सीओ अजय सिंह चौहान, थानाप्रभारी लोकेश भाटी, क्राइम ब्रांच प्रभारी कुलदीप सिंह आदि को शामिल किया गया.

शादी के दौरान राकेश के रिश्तेदारों ने पूजा और उस के परिजनों के कुछ फोटो अपने मोबाइल से खींच लिए थे. उन्होंने वह फोटो पुलिस को सौंप दिए. उन फोटो के आधार पर पुलिस ने मुखबिरों के माध्यम से लुटेरी दुलहन पूजा और उस के परिजनों को तलाशना शुरू कर दिया.

जिस महिला के माध्यम से यह शादी हुई थी, पुलिस ने उस महिला से भी पूछताछ की. वह महिला पुलिस को इटावा जिले के जसवंतनगर गांव में स्थित पूजा के घर पर भी ले गई, लेकिन वहां पूजा नहीं मिली.

पुलिस अपने स्तर से पूजा की तलाश कर रही थी, पर वह नहीं मिली. लेकिन इस जांच के दरम्यान पुलिस को एक महत्त्वपूर्ण जानकारी जरूर मिल गई. पता चला कि राकेश के साथ शादी रचा कर लूट करने वाली दुलहन पूजा जसवंतनगर की नहीं बल्कि जिला फिरोजाबाद के थाना रामगढ़ के अब्बास नगर निवासी सलीम की पत्नी रुखसाना है.

पुलिस ने बिना देरी किए अब्बास नगर में सलीम के घर दबिश डाल दी. उस समय रुखसाना घर पर ही मिल गई. महिला सिपाही प्रेमवती शर्मा ने उसे हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर रुखसाना से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि उस का नाम पूजा नहीं रुखसाना है और राकेश के यहां हुई लूट की घटना से उस का कोई संबंध नहीं है. जबकि शादी के फोटो से उस का चेहरा मेल खा गया. उस की बातचीत से लग रहा था कि वह झूठ बोल रही है. लिहाजा पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की.

सख्ती से पूछताछ करने पर रुखसाना टूट गई. उस ने न सिर्फ अपना यह अपराध स्वीकार किया बल्कि इस घटना में शामिल अपने गिरोह के साथियों के नाम भी पुलिस को बता दिए.

पूजा उर्फ रुखसाना द्वारा बताए गए साथियों को गिरफ्तार करने के लिए थानाप्रभारी ने एसआई शेर सिंह, हैडकांस्टेबल मनोज कुमार, महिला कांस्टेबल प्रेमवती शर्मा आदि की एक टीम क्राइम ब्रांच प्रभारी कुलदीप सिंह के नेतृत्व में भेजी.

टीम ने शिकोहाबाद के गांव लभौआ निवासी मुकेश कुमार, थाना रामगढ़ के छपरिया निवासी जुबैर, इटावा जिले के गांव टिमरुआ निवासी अनिल कुमार तथा थाना रामगढ़ के प्रतापनगर निवासी मनोहर सिंह को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को इन के कब्जे से 12,350 रुपए नकद, राकेश के यहां से लूटे गए सोने के कुछ आभूषण व राकेश की चुराई गई बाइक भी बरामद कर ली. इन से पूछताछ में जो कहानी आई, वह इस प्रकार निकली—

यह 5 लोगों का गिरोह था, जो ऐसे युवकों को अपना शिकार बनाता था जिन की किसी वजह से शादी नहीं हो पा रही होती थी. पूजा उर्फ रुखसाना दुलहन बनती थी, जबकि अनिल कुमार व मुकेश कुमार मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे. जुबैर दुलहन का भाई व वृद्ध मनोहर सिंह फरजी दुलहन के चाचा की भूमिका निभाता था.

इसी तरह इन्होंने राजाराम के बेटे राकेश को फांसा था. 17 नवंबर को जब राकेश की शादी पूजा उर्फ रुखसाना से हुई, तो ये चारों लोग निश्चित समय पर मंदिर भी गए थे. शादी के बाद पूजा जब राकेश के घर पहुंची तो योजनानुसार जुबैर 18 नवंबर को शाम के समय राकेश के घर पहुंच गया.

जुबैर अपने साथ नशीला पाउडर ले कर गया था. दूध में नशीला पाउडर मिला कर राकेश, उस के पिता राजाराम व मां कंठश्री को रात में दे दिया गया. तीनों के बेहोश होते ही दुलहन बनी पूजा और नकली भाई जुबैर ने संदूक व अलमारी की तलाशी ली. उन्होंने उस में रखे नए कपड़े, 80 हजार रुपए की नकदी और ज्वैलरी निकाल ली. फिर दोनों राकेश की मोटरसाइकिल ले कर वहां से रफूचक्कर हो गए.

अभियुक्तों ने बताया कि उन के दिमाग में यह आइडिया अभिनेत्री सोनम कपूर की सन 2015 में आई फिल्म ‘डौली की डोली’ से आया था. जल्द पैसा कमाने के लिए इन लोगों ने भी गैंग बनाया.

गैंग का सदस्य मुकेश कुमार शादी कराने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाता था. रुखसाना पैसों के लालच में इस काम के लिए तैयार हो गई. रुखसाना 4 बच्चों की मां थी. पर अपनी शारीरिक बनावट से ऐसी नहीं दिखती थी.

लड़के पक्ष को बताया जाता कि यह बिना मांबाप की लड़की है. इसलिए शादी का खर्च भी यह दूल्हा पक्ष से ले लेते थे. इस तरह वह जिले के अनेक लोगों को अपना निशाना बना चुके थे. लूटे हुए माल को सभी आपस में बांट लेते थे.

पांचों आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद एसपी (देहात) महेंद्र सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के केस का खुलासा किया. उन्होंने बताया कि जिस महिला के सहयोग से राकेश की शादी कराई गई थी, उस पर भी शक किया जा रहा है. इस के अलावा गिरोह में और भी लोगों के शामिल होने की आशंका व्यक्त की जा रही है. जांच के बाद जो भी आरोपी होगा, उसे गिरफ्तार कर जेल भेजा जाएगा.

पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. उधर राकेश के पिता राजाराम की अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद फिर से तबीयत खराब रहने लगी. उन्हें शायद दूध में ज्यादा मात्रा में नशीला पदार्थ मिला दिया था, जिस से घटना के 20 दिन बाद 4 दिसंबर, 2018 को उन की मौत हो गई.

राजाराम की मौत हो जाने पर पुलिस ने केस में हत्या की धारा भी जोड़ दी. पुलिस मामले की जांच कर रही है. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में बंद थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सरकारी कारतूसों का नक्सली कनेक्शन

कारतूस कांड घोटाले का संबंध 6 अप्रैल, 2010 की एक हिंसक घटना से है. उस रोज दिनदहाड़े छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा इलाके में एक बड़ा नक्सली हमला हुआ था, जिस में सीआरपीएफ की एक टुकड़ी पर नक्सलियों ने अंधाधुंध गोलियां चला दी थीं.

इस हमले में कुल 76 जवान घटनास्थल पर ही मारे गए थे. इतनी बड़ी घटना से पूरे देश में हाहाकार मच गया था. सामान्य तौर पर नक्सली बारूदी विस्फोट करते रहे हैं या फिर जमीन के नीचे विस्फोटक बिछा देते थे. जबकि यह मामला सीधे गोलियां बरसाने का था.

इस की एसटीएफ द्वारा गहन जांच की जाने लगी तभी इस सिलसिले में एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. घटनास्थल पर बरामद सैकड़ों कारतूस पुलिस द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले यानी प्रतिबंधित थे. इस का सीधा अर्थ था कि नक्सलियों ने पुलिस से सांठगांठ कर गोलियां हासिल कर ली थीं. वे गोलियां 9 एमएम बोर की थीं. फिर क्या था, इस के बाद तो केंद्र समेत कई राज्य सरकारों के कान खड़े हो गए.

मामले की जांच उत्तर प्रदेश की एसटीएफ को सौंपी गई. एसटीएफ की टीम ने बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत प्रदेश के कई जिलों में छापेमारी शुरू कर दी.

एसआई की डायरी ने खोले राज

एसटीएफ की टीम ने घटना के 3 सप्ताह बाद 29 अप्रैल, 2010 को रामपुर सिविल लाइंस थाना क्षेत्र के ज्वालानगर में रेलवे क्रौसिंग के पास छापेमारी की. तब सीआरपीएफ के 2 हवलदार विनोद पासवान और विनेश कुमार को गिरफ्तार किया था. उन के पास से कारतूस, राइफल और नकदी बरामद की गई थी.

इस के बाद एसटीएफ ने दोनों की निशानदेही पर अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया था. गिरफ्तार लोगों में पीएसी से रिटायर्ड दरोगा यशोदानंद भी शामिल था.

यही नहीं, एसटीएफ ने तीनों के कब्जे से 1.76 लाख रुपए और ढाई क्विंटल कारतूस के खोखे, मैगजीन और हथियारों के पुरजे बरामद किए थे.

इस मामले में एसटीएफ के दरोगा आमोद कुमार सिंह की तहरीर पर सिविल लाइंस रामपुर की कोतवाली में केस दर्ज किया गया था. उस समय रामपुर के एसपी रमित शर्मा थे. उन्होंने मामले को गंभीरता से लिया था और वर्तमान समय में प्रयागराज पुलिस कमिश्नर ने घटना की जांच अपनी निगरानी में शुरू करवाई थी. जांच के इस क्रम में टीम को यशोदानंद के पास से एक डायरी मिली थी.

यशोदानंद की डायरी में कई जिलों के पुलिस और पीएसी के जवानों के नाम लिखे थे. दरअसल, यशोदानंद उन से खोखा और कारतूस खरीदता था. एसपी ने डायरी के आधार पर सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था. कुल 25 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई थी. जांच और पूछताछ में करीब एक साल का वक्त लग गया था.

आखिरकार कोर्ट ने इस मामले में 31 मई, 2013 को आरोप तय कर दिया था. हालांकि इस के बाद केस की जब सुनवाई शुरू हुई, तब कोर्ट से सभी आरोपियों को जमानत मिल गई थी. केस की सुनवाई के दौरान ही इस मामले के सूत्रधार यशोदानंद की मौत हो गई थी.

इस तरह कारतूस घोटाले के जिन आरोपियों पर नक्सलियों से संबंध के भी आरोप लगे थे, वह एक गिरोह की तरह काम करते थे.

उस गिरोह का सरगना पीएसी का रिटायर्ड दरोगा यशोदानंद था, जबकि दूसरे सहयोगियों में पुलिस और पीएसी के जो 20 जवान रहे, वे हैं- (1) विनोद पासवान, निवासी महादेवगढ़, थाना भदोह, जिला पटना, बिहार. (2) विनेश, निवासी ग्राम धीमरी, थाना मझोला, जिला मुरादाबाद, यूपी. (3) दिनेश कुमार, निवासी गांव सुधनीपुर कलां, थाना सराय इनायत, प्रयागराज, यूपी. (4) वंशलाल, निवासी वीरपुर, थाना घाटमपुर, जिला, कानपुर नगर, यूपी. (5) अखिलेश पांडेय, निवासी रेकबार डीह, थाना सराय लखन, जिला मऊ, यूपी. (6) रामकृपाल सिंह, निवासी बिशनुपुरा, थाना बिरियारपुर, जिला देवरिया, यूपी. (7) नाथीराम सैनी, निवासी जलालपुर, थाना भवन, जिला शामली. (8) रामकृष्ण शुक्ल, निवासी सुगौना, थाना हरपुर बुधहट, जिला गोरखपुर. (9) अमर सिंह, निवासी चांद बेहटा, थाना कोतवाली नगर, जिला हरदोई. (10) बनवारी लाल, निवासी विजीदपुर, थाना फतेहपुर चौरासी, जिला उन्नाव. (11) राजेश कुमार सिंह, निवासी सोहगप, पूरनपट्टी थाना गुढऩी, जिला सीवान, बिहार. (12) राजेश शाही, निवासी हरैया, थाना तटकुलवा, जिला देवरिया. (13) अमरेश कुमार, निवासी देवनगर, थाना शिवली, जिला कानपुर देहात. (14) विनोद कुमार सिंह, निवासी उमती, थाना रानीपुर, जिला मऊ. (15) जितेंद्र सिंह, निवासी शेखपुरा, थाना बक्सा, जिला जौनपुर. (16) सुशील कुमार मिश्र, निवासी बजेटा, थाना लालगंज बनकटी, जिला बस्ती. (17) ओमप्रकाश सिंह, निवासी रघुनाथपुर, थाना खुरहजा बबुरी, जिला चंदौली. (18) लोकनाथ निवासी, विहिवा कलां, थाना कोतवाली, जिला चंदौली. (19) मनीष कुमार राय, निवासी पई, थाना भंडवा, जिला चंदौली. (20) रजयपाल सिंह, निवासी किशनपुर, थाना बकेवर, जिला फतेहपुर.

21 पुलिस जवानों को हुई सजा

इन पर भले ही  नक्सलियों को कारतूस की सप्लाई के आरोप लगे, लेकिन पुलिस आरोपियों और नक्सलियों के बीच के संपर्क को कोर्ट में साबित करने में नाकाम रही. बचाव पक्ष ने पुलिस पर ही सभी आरोपियों को झूठे केस में फंसाने का आरोप लगाया था. तब अभियोजन पक्ष की ओर से सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता प्रताप सिंह मौर्य और अमित कुमार ने केस की पैरवी करते हुए 9 गवाह पेश किए थे.

साल 2013 में भले ही आरोपियों पर दोष साबित नहीं हो पाया हो, लेकिन यह मामला बना रहा और आरोपियों से पूछताछ और घटनाक्रम की जांचपड़ताल जारी रही. अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि एसटीएफ ने मौके से आरोपियों की गिरफ्तारी की. कारतूस और दूसरे संदिग्ध सामान भी बरामद किए गए. यशोदानंद अलगअलग जिलों में तैनात आर्मरों से खोखा कारतूस खरीद कर नक्सलियों को सप्लाई करता था.

पूछताछ में नाथीराम सैनी ने गिरोह के कारनामे का खुलासा कर दिया. वह बी.आर. अंबेडकर पुलिस अकादमी, मुरादाबाद में आर्मर हैडकांस्टेबल था. उसे एसटीएफ ने मुरादाबाद रेलवे स्टेशन के बाहर से गिरफ्तार किया था. नाथीराम ने बताया कि कैसे उस की मदद से पुलिस ने कारतूस घोटाले को अंजाम दिया था.

मुरादाबाद की पुलिस अकादमी में सबइंसपेक्टर की ट्रेनिंग होती है. पुलिस रंगरूटों को अभ्यास के लिए फायरिंग रेंज में निशाना लगाना होता है. प्रत्येक रंगरूट को निशाने के लिए 7 कारतूस मिलते थे. जबकि वह रिकौर्ड में 7 की जगह 70 दर्ज कर देता था. इस रिपोर्ट को वह अपने सीनियर अफसर को भेज देता था. इसी तरह के काम पीएसी और सीआरपीएफ के कुछ जवान भी करते थे.

शस्त्रागार से कारतूसों की हेराफेरी का यह अनोखा तरीका तब तक किसी की नजर में नहीं आया था. जबकि इस से जवान मोटी रकम हासिल कर लेते थे. कारतूस घोटाले का मास्टरमाइंड रिटायर्ड दरोगा यशोदानंद पुलिस, पीएसी और सीआरपीएफ में फायरिंग अभ्यास के बाद निकलने वाले खाली कारतूस खोखों को भी खरीद लेता था. इस के लिए वह पुलिस पीएसी और सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर के आर्मर के संपर्क में रहता था.

इस की विस्तृत जांच रिपोर्ट तत्कालीन एसपी रमित शर्मा ने बनाई थी और वह थाना सिविल लाइंस के तत्कालीन एसएचओ रईस पाल सिंह को सौंप दी थी. इस में एसआई देवकी नंदन गुप्ता को भी एसपी रमित शर्मा का सहयोगी बनाया गया था. देवकीनंदन ने ही विभिन्न जिलों से 21 पुलिस जवान और 4 अन्य आम नागरिकों को पकड़वाया था.

दोनों पक्षों की सुनवाई का महत्त्वपूर्ण दिन 12 अक्तूबर, 2023 को रामपुर की कचहरी के अपर जिला एवं स्पैशल जज (ईसी) की अदालत का था. इस मामले को सुनने के बाद स्पैशल जज विजय कुमार ने सभी आरोपियों को सरकारी संपत्ति चोरी करने, चोरी का माल बरामद होने और षडयंत्र रचने की धाराओं में दोष सिद्ध कर दिया.

अगले दिन 13 अक्तूबर को उन्हें सजा सुनाई जानी थी. दिन के 10 बज चुके थे. जिला न्यायाधीश विजय कुमार अपने चैंबर में प्रवेश कर चुके थे. कुछ समय में वह अदालत में दाखिल हो गए. अदालत कक्ष खचाखच भरा हुआ था. परिसर में पुलिसकर्मी, मीडियाकर्मी, आरोपियों के परिजनों का भी जमावड़ा लगा हुआ था.

अदालत की काररवाई शुरू हो चुकी थी. पेशकार ने न्यायाधीश महोदय के सामने केस की फाइलें रख दी थीं. उन्होंने सामने रखी फाइलों को खोल कर कुछ कागजात देखते हुए सामने खड़े सरकारी वकील प्रताप सिंह मौर्य और अमित सक्सेना से मामले के बारे में बताने को कहा था.

इस दौरान बचाव पक्ष के वकील शंकर लाल लोधी, पी.के. नंदा, सुधीर सरन कपूर, विनीत चौधरी भी मौजूद थे. उन की दलीलों को न्यायाधीश ने नहीं माना. बचाव पक्ष से सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर, रामपुर के तत्कालीन असिस्टेंट कमांडर जे.एन. मिश्रा को भी अदालत ने तलब किया था. वर्तमान में जे.एन. मिश्रा कश्मीर के पुलवामा में तैनात हैं.

सीआरपीएफ जवानों के अनुरोध पर उन की कोर्ट में गवाही हुई थी. घटना के समय वह सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर, रामपुर में तैनात थे. अपनी गवाही में असिस्टेंट कमांडर जे.एन. मिश्रा ने सीआरपीएफ जवानों को बचाने का प्रयास किया. उन्होंने कहा था कि घटना के समय जवानों की मौजूदगी सीआरपीएफ कैंपस में ही थी, लेकिन अदालत ने उन के बयान को नकार दिया था.

सरकारी वकील ने पिछली सुनवाई में 9 गवाहों के बयानों के चलते अभियुक्तों के बच जाने का हवाला देते हुए नई रिपोर्ट के आधार पर संक्षिप्त जानकारी दी और उन्हें सख्त से सख्त सजा देने की गुजारिश की. इस आधार पर ही बीते दिन 12 अक्तूबर को आरोपियों को दोषी ठहराया गया था.

दोषी ठहराए गए 20 जवानों के अलावा  4 आम लोगों को भी इस मामले में दोषी ठहराया गया था. इस में बिहार के रोहतास के डेहरीआन सोन के तेंदवा थाना के मुरलीधर शर्मा, मऊ के हलधर थाना के अगडीपुर गांव निवासी दिलीप कुमार एवं आकाश और गाजीपुर जिले के थाना बिरनो के बद्ïदूपुर गांव निवासी शंकर हैं.

उत्तर प्रदेश के रामपुर कारतूस कांड में सभी आरोपियों को 10-10 साल की कैद की सजा के साथसाथ 10-10 हजार रुपए का जुरमाना भी लगाया गया. इस के अलावा सीआरपीएफ के दोनों हवलदारों विनाद कुमार पासवान और विनेश कुमार को आम्र्स ऐक्ट में 7-7 साल की सजा और 10-10 हजार का जुरमाना भी लगाया. सभी को अदालत से ही दोपहर बाद सीधा जेल भेज दिया गया.

दुलहनें जो ब्लैकमेल करें, लूटें, मार भी डालें

शादी वाले घर में कुछ रीतिरिवाजों से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था. इस कार्यक्रम में नवविवाहिता शिवानी का तथाकथित भाई और दूसरे साथी भी शामिल हुए.

अगली रात शिवानी ने अपने पति और उस के घर वालों को खाने में नशीला पदार्थ खिला कर बेहोश कर दिया. फिर अपने साथियों के साथ मिल कर शादी का सामान और लाखों रुपए के जेवर ले कर फरार हो गई. यह बात 21 दिसंबर, 2023 की है.

उत्तर प्रदेश के गोंडा में 27 दिसंबर, 2023 को एक अजबगजब चोरी का मामला सामने आया. यहां एक नवविवाहिता अपने ससुराल वालों को नशीला पदार्थ खिला कर घर में रखी नकदी और कीमती जेवर ले कर फरार हो गई. जब ससुराल वालों को होश आया तो उन के पैरों तले जैसे जमीन खिसक गई. उन्होंने फौरन पुलिस में इस की शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने आरोपी नवविवाहिता को अपने गिरफ्त में ले लिया. उस के साथ 4 अन्य लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

बाद में पुलिस ने लुटेरी दुलहन समेत उस के साथियों को गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों के पास लूटे गए लाखों रुपए के जेवरात, घर के सामान, 350 नशीली गोलियां और एक मोबाइल फोन बरामद हुआ.

इन ठगों ने पूछताछ में स्वीकार किया कि उन का एक संगठित गिरोह है, जो रुपयों के लिए कई तरीके अपना कर ऐसी घटनाओं को अंजाम देता है.

मामला कुछ ऐसा हुआ कि गोंडा जिले के खरगूपुर थाना क्षेत्र के निवासी बृजभूषण पांडेय की किसी वजह से शादी नहीं हो रही थी. तब जोखू नाम के एक बिचौलिए ने लखीमपुर खीरी की शिवानी उर्फ गोमती देवी नाम की युवती से बीते 17 दिसंबर को धूमधाम से उस की शादी करा दी.

यह कैसे फंसाती हैं शिकार को

नवंबर 2023 में भी कानपुर पुलिस ने ऐसी ही एक लुटेरी दुलहन को गिरफ्तार किया था. उस ने पहले पति को तलाक दिए बिना 2 युवकों से शादी की और उन्हें लाखों की चपत लगा दी थी. शातिर महिला का शिकार हुए तीसरे पति ने महिला की असलियत जानने के बाद पुलिस से शिकायत की.

यह महिला सरकारी नौकरी वालों को शिकार बनाती थी और फेसबुक पर दोस्ती का झांसा दे कर शिकार को फंसाती थी. वह सरकारी नौकरी वाले युवकों को प्रेम जाल में फंसाने के बाद उन से शादी करती थी और शादी के बाद लूट का खेल शुरू होता था.

शादी के कुछ समय बाद वह अपने पति से पहले लाखों रुपयों की डिमांड करती थी. ऐसा ही उस ने तीसरे पति शिवम के साथ किया. मगर शिवम ने आर्थिक स्थिति का हवाला दे कर उस की मांग पूरी करने से इंकार दिया. तब उस महिला, जिस का नाम संगीता था, ने स्पाई कैमरे से शिवम के अश्लील वीडियो बनाए और रेप में फंसाने की धमकी देने लगी.

इस से शिवम डर गया. शिवम को पता चला कि संगीता पहले भी कुछ लोगों को शिकार बना चुकी है. उस ने मामले की शिकायत पुलिस से की. जांच में सामने आया कि संगीता की पहली शादी 2017 में आनंद बाबू नामक शख्स से हुई थी. संगीता ने नपुंसक बता कर बिना तलाक दिए पति को छोड़ दिया था. उस के बाद से पैसों के लालच में वह सरकारी नौकरी पेशा लोगों को शिकार बनाने लगी.

फरवरी 2023 में अजमेर के रहने वाले अंकित की शादी भी गोरखपुर की रहने वाली गुडिय़ा से हुई थी. शादी से पहले दुलहन के कथित परिवार वालों ने 80 हजार रुपए नकद और कुछ पैसे औनलाइन ट्रांसफर कराए थे. इस शादी के बाद दोनों परिवार के लोग बनारस से सटे चंदौली जिले के एक गेस्टहाउस में रुके.

शादी की सारी रस्में पूरी हो गईं. विदाई का वक्त हुआ. अंकित ने विदाई कराई. उसे दुलहन को ले कर अजमेर जाना था. सब ट्रेन में सवार हुए. ट्रेन में दुलहन का एक परिचित भी बैठ गया. बनारस से कानपुर तक का सफर सही रहा.

ट्रेन जब कानपुर पहुंची तो दुलहन के इस ‘परिचित’ छोटू ने अपनी पोटली खोली. छोटू की पोटली में नशीला पाउडर था. उस ने अंकित और अंकित के घर वालों को चाय और नमकीन में नशीला पदार्थ मिला कर बेहोश कर दिया. फिर सामान वगैरह लूट कर वह दुलहन अपने साथी छोटू के साथ फरार हो गई. परिवार की बेहोशी टूटी तो उन्हें पूरा मामला समझ में आया और थाने में रिपोर्ट लिखाई गई.

बाद में लुटेरी दुलहन पुलिस की गिरफ्त में आई. इस युवती को दुलहन बनने का इतना शौक था कि वह हर महीने एक दूल्हे को फंसा कर उस से शादी करती थी और उस के बाद माल ले कर अपने साथियों के साथ फरार हो जाती थी.

मामले एक जैसे, लोग सतर्क क्यों नहीं

दिसंबर 2022 में जयपुर पुलिस ने दिल्ली से एक ‘लुटेरी दुलहन’ को गिरफ्तार किया था, जिस ने जुलाई 2022 में शादी की थी. शादी के बदले में दूल्हे के परिवार से 3 लाख रुपए लिए गए थे.

शादी के एक हफ्ते बाद ही दुलहन घर से गहने और 2 लाख रुपए ले कर फरार हो गई थी. पुलिस ने इस मामले में 2 लोगों को भी गिरफ्तार किया था, जिन का काम ही शादी के नाम पर लोगों को ठगना था.

इन सभी मामलों में ठगी का ट्रेंड लगभग एक जैसा रहा है. ठगों का पूरा गैंग होता है. इन में पुरुष सदस्य बिचौलिए का काम करते हैं. वे ऐसे लड़कों का पता लगाते हैं, जो शादी के लिए लड़की की तलाश कर रहे होते हैं. फिर गैंग के ही लोग दुलहन परिवार के सदस्य बन कर दूल्हे के परिवार वालों से मिलते हैं.

शादी से कुछ दिन पहले के बाद खर्च के नाम पर दूल्हे के परिवार से पैसों की मांग की जाती है. कुछ दिन बाद ही दुलहन नकदी और जेवर अपने साथ ले कर फरार हो जाती है. कुछ मामलों में तो एक ही लड़की ने कई बार लुटेरी दुलहन बन कर वारदात को अंजाम दिया है. कई बार शादी वाले जेवर ले कर दुलहन भाग जाती है.

ऐसी ही कहानी अभिनेत्री सोनम कपूर अभिनीत फिल्म ‘डौली की डोली’ की थी, जो 23 जनवरी, 2015 को रिलीज हुई थी. इस फिल्म में सोनम लुटेरी दुलहन बनी थी. फिल्म में सोनम एक ऐसी लुटेरी दुलहन के किरदार में नजर आई, जो पैसों के लिए शादी करती थी और फिर लड़के को धोखा दे देती है.

सोनम ने फिल्म में एक छोटे शहर की ऐसी लड़की का किरदार निभाया था, जिस के सपने बड़े थे. कुछ समय बाद वह दिल्ली आ जाती है और यहीं से पैसों के लिए लड़कों को ठगते हुए लुटेरी दुलहन बन जाती है.

छानबीन है बहुत जरूरी

शादीब्याह ऐसा मामला है, जिस में 2 परिवार मिलते हैं. उन के बीच हमेशा के लिए एक रिश्ता बन जाता है. इस रिश्ते की डोर सोचसमझ कर ही किसी के हाथों में देनी चाहिए. अचानक इतने बड़े फैसले नहीं लेने चाहिए. खासकर उस समय जब सामने वाला परिवार परिचित नहीं है.

पहले उस परिवार के बारे में दूसरों से खोज खबर लीजिए. उस परिवार और लड़की को भलीभांति समझिए. जब तक सही जानकारी न मिले, शादी करने की जल्दी मत कीजिए.

धोखे से बचना है तो सतर्कता बहुत जरूरी है. कोशिश यह करनी चाहिए कि किसी परिचित परिवार से ही रिश्ता जोड़ें या ऐसे परिवार से जिसे आप का कोई जानने वाला पहले से जानता हो. व्यक्ति को परखिए. उस के बाद ही शादी के लिए ‘हां’ बोलिए.

कलावती और मलावती का दुखद अंत

एक आधा अधूरा खतरनाक खेल

कलावती और मलावती का दुखद अंत – भाग 3

आखिर जयदेव ततमा और अशोक को जिस बात का डर था, वही सब हुआ. विचारों के टकराव और अहं ने पति और पत्नी के बीच इतनी दूरियां बना दीं कि वे एकदूसरे की शक्ल देखने को तैयार नहीं थे. एक छत के नीचे रहते हुए वे एकदूसरे से पराए जैसा व्यवहार करने लगे. रोज ही घर में पतिपत्नी के बीच झगड़े होने लगे थे.

रोजरोज के झगड़े और कलह से घर की सुखशांति एकदम छिन गई थी. पतियों ने कलावती और मलावती को अपने जीवन से हमेशा के लिए आजाद कर दिया. बाद में दोनों का तलाक हो गया. पते की बात यह थी कि कलावती और मलावती दोनों की जिंदगी की कहानी समान घटनाओं से जुड़ी हुई थी. दुखसुख की जो भी घटनाएं घटती थीं, दोनों के जीवन में समान घटती थीं.

यह बात सच है कि दुनिया अपनों से ही हारी हुई होती है. अशोक भी बहनों की कर्मकथा से हार गया था. पर वह कर भी क्या सकता था. वह उन्हें घर से निकाल भी नहीं सकता था. सामाजिक लिहाज के मारे उस ने बहनों को अपना लिया और सिर छिपाने के लिए जगह दे दी. वे भाई के अहसानों तले दबी हुई थीं, लेकिन दोनों उस पर बोझ बन कर जीना नहीं चाहती थीं.

ऐसा नहीं था कि वे दोनों दुखी नहीं थीं. वे बहुत दुखी थीं. अपना दुख किस के साथ बांटें, समझ नहीं पा रही थीं. वे जी तो जरूर रही थीं, लेकिन एक जिंदा लाश बन कर, जिस का कोई वजूद नहीं होता. पति के त्यागे जाने से ज्यादा दुख उन्हें पिता की मौत का था.

कलावती और मलावती ने भाई से साफतौर पर कह दिया था कि वे उस पर बोझ बन कर नहीं जिएंगी. जीने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगी. दोनों बहनें फिर से समाजसेवा की डगर पर चल निकलीं. अब उन पर न तो कोई अंकुश लगाने वाला था और न ही टीकाटिप्पणी करने वाला.

वे दोनों घर से सुबह निकलतीं तो देर रात ही घर वापस लौटती थीं. सोशल एक्टिविटीज में दिन भर यहांवहां भटकती फिरती थीं. अशोक बहनों के स्वभाव को जान चुका था. वह भी उन पर निगरानी नहीं रखता था. उसे अपनी बहनों और उन के चरित्र पर पूरा भरोसा था कि वे कभी कोई ऐसा काम नहीं करेंगी, जिस से समाज और बिरादरी में उसे शर्मिंदा होना पड़े.

लेकिन गांव के उस के पड़ोसियों खासकर वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा को कलावती और मलावती के चरित्र पर बिलकुल भरोसा नहीं था.

दोनों बहनों के चरित्र पर लांछन लगाते हुए वे उन्हें पूरे गांव में बदनाम करते थे. वे कहते थे कि ततमा की दोनों बेटियां पेट की आग बुझाने के लिए बाजार में जा कर धंधा करती हैं. धंधे की काली कमाई से दोनों के घरों में चूल्हे जलते हैं. धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैल चुकी थी. उड़ते उड़ते कुछ दिनों बाद यह बात कलावती और मलावती तक आ पहुंची.

सुन कर दोनों बहनों के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई. सहसा उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्होंने जो सुना है, वह सच है. जबकि उन का चरित्र एकदम पाकसाफ था. अपने चरित्र को ले कर दोनों बहनों ने जब गांव वालों की बातें सुनीं, तो वे एकदम से परेशान हो गईं.

वैसे भी किसी चरित्रवान के दामन पर ये दाग किसी गहरे जख्म से कम नहीं थे. दोनों ने फैसला किया कि उन्हें नाहक बदनाम करने वालों को इस की सजा दिलवा कर दम लेंगी, चाहे वह कितना ही ताकतवर क्यों न हो. उन्होंने पता लगा लिया कि उन्हें बदनाम करने वाले उन के पड़ोसी वीरेंद्र, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र थे.

जिद की आग में पकी कलावती और मलावती ने वीरेंद्र, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा की कुंडली तैयार की. गांव के चारों बाशिंदे ग्रामप्रधान के भरोसेमंद प्यादे थे. प्रधान के रसूख की बदौलत वे कूदते थे.

चारों ही प्रधान की ताकत के बल पर असामाजिक कार्यों को अंजाम देते थे. ये बातें दोनों बहनों को पता चल गई थीं. दोनों ने आरटीआई के माध्यम से ग्राम प्रधान और उन के चारों प्यादों के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर के वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास के खिलाफ जलालगढ़ थाने में मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भिजवा दिया.

वीरेंद्र और लक्ष्मीदास को जेल भिजवाने के बाद दोनों बहनें शांत नहीं बैठीं. इस के बाद उन्होंने बुद्धू और जितेंद्र शर्मा को जेल भिजवा दिया. कुछ दिनों बाद वीरेंद्र और लक्ष्मीदास जमानत पर जेल से रिहा हुए तो दोनों बहनों ने फिर से उन के खिलाफ एक नया मुकदमा दर्ज करा दिया.

उन लोगों को फिर से जेल जाना पड़ा. इंतकाम की आग में जलती कलावती और मलावती ने चारों के खिलाफ ऐसी जमीन तैयार की कि उन के दिन जेल की सलाखों के पीछे बीत रहे थे.

वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा बारबार जेल जाने से परेशान थे. समझ में नहीं आ रहा था कि कलावती और मलावती नाम की दोनों बहनों से कैसे छुटकारा पाया जाए. वे लोग खतरनाक योजना बनाने लगे. दिलीप शर्मा, विनोद ततमा, प्रकाश ततमा,सोनू शर्मा, रामलाल शर्मा, विष्णुदेव शर्मा, पप्पू शर्मा, उपेन शर्मा, इंदल शर्मा, सुनील शर्मा, सतीश शर्मा और बेचन शर्मा उन का साथ देने को तैयार हो गए.

वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास और उस के सहयोगियों ने फैसला कर लिया कि जब तक दोनों बहनें जिंदा रहेंगी, तब तक उन्हें चैन की सांस नहीं लेने देंगी. उन दोनों को मौत के घाट उतारने में ही सब की भलाई थी. घटना से करीब 5 दिन पहले सब ने योजना बना ली.

वीरेंद्र सिंह और उस के साथियों ने कलावती और मलावती के खिलाफ खतरनाक षडयंत्र रच लिया था. उन्होंने उन की रेकी करनी शुरू कर दी.

रेकी करने के बाद उन लोगों ने दोनों बहनों की हत्या करने की रूपरेखा तैयार कर ली. योजना में तय हुआ कि दोनों बहनों की हत्या के बाद उन के सिर धड़ से अलग कर के अलगअलग जगहों पर फेंक दिया जाएगा ताकि पुलिस आसानी से लाशों की शिनाख्त न कर सके.

सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. बात 23 जून, 2018 के अपराह्न 2 बजे की थी. वीरेंद्र ने अपने सहयोगियों को दोनों बहनों पर नजर रखने के लिए लगा दिया था. दोपहर 2 बजे के करीब कलावती और मलावती घर से जलालगढ़ बाजार जाने के लिए निकलीं.

दोनों ने अपने भतीजे मनोज से बता दिया था कि वे जलालगढ़ बाजार जा रही हैं. वहां से कुछ देर बाद लौट आएंगी. दोनों के घर से निकलते ही इस की सूचना किसी तरह वीरेंद्र सिंह तक पहुंच गई.

वीरेंद्र सिंह ने सहयोगियों को सतर्क कर दिया कि दोनों जलालगढ़ बाजार के लिए घर से निकल चुकी हैं. चक हाट से जलालगढ़ जाने वाले रास्ते में कुछ हिस्सा सुनसान और जंगल से घिरा हुआ था. कलावती और मलावती जब सुनसान रास्ते से जलालगढ़ बाजार की ओर जा रही थीं कि बीच रास्ते में वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास, बुद्धू शर्मा, जितेंद्र शर्मा सहित 12 और सहयोगियों ने उन का रास्ता घेर लिया.

वे सभी दोनों बहनों को जबरन उठा कर बिलरिया घाट ले गए. वीरेंद्र और उस के साथियों ने मिल कर दोनों बहनों को तेज धार वाले चाकू से गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद दोनों के सिर धड़ से काट कर अलग कर दिए गए. फिर दोनों के कटे सिर घाट के किनारे जमीन खोद कर दबा दिए. उस के बाद बाकी शरीर को वहां से करीब 500 मीटर दूर ले जा कर झाडि़यों में फेंक कर अपनेअपने घरों को चले गए.

वीरेंद्र और उस के साथियों ने बड़ी चालाकी के साथ घटना को अंजाम दिया, लेकिन वे भूल गए थे कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से ज्यादा दिनों तक नहीं बच सकता.

एक न एक दिन कानून के लंबे हाथ अपराधी के गिरेहबान तक पहुंच ही जाता है. इसी तरह वे सब भी कानून के हत्थे चढ़ गए. 4 आरोपियों को जेल भेजने के बाद पुलिस ने फरार 12 आरोपियों को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक गिरफ्तार 16 आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था. गिरफ्तार आरोपियों में से किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. वीरेंद्र और उस के साथियों ने अगर सूझबूझ के साथ काम लिया होता तो उन्हें ऐसे दिन देखने को नहीं मिलते.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कलावती और मलावती का दुखद अंत – भाग 2

काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने पूछताछ के लिए वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और थाने ले आई. इसी बीच मुखबिर ने एसडीपीओ कृष्णकुमार राय को एक ऐसी चौंकाने वाली बात बताई, जिसे सुन कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

मुखबिर ने बताया कि कलावती और मलावती की हत्या गांव के ही कई लोगों ने मिल कर की थी. उन में वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास के अलावा बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा भी शामिल थे. इस से पुलिस को पुख्ता जानकारी मिलगई कि दोहरे हत्याकांड में कई लोग शामिल थे. हिरासत में लिए गए वीरेंद्र और लक्ष्मीदास से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही दोनों बहनों को मौत के घाट उतारा था.

‘‘लेकिन क्यों? ऐसा क्या किया था दोनों बहनों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था, जो इतनी बेरहमी से कत्ल कर दिया?’’ एसडीपीओ कृष्णकुमार राय ने सवाल किया.

‘‘साहब, मैं अकेला नहीं मेरे साथ लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र भी थे. क्या करते साहब, दोनों बहनों ने हमारा जीना मुश्किल कर दिया था.’’

इस के बाद वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास ने पूरी घटना विस्तार से बताई. दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने गांव चक हाट से बुद्धू और जितेंद्र शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया. चारों आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने श्मशान घाट के तालाब के पास से जमीन में दबाए हुए दोनों महिलाओं के सिर भी बरामद कर लिए.

उसी दिन शाम को आननफानन में पुलिस लाइन के मनोरंजन कक्ष में प्रैस कौन्फ्रैंस किया गया. 7 दिनों से रहस्य बनी सोशल एक्टिविस्ट कलावती और मलावती हत्याकांड की गुत्थी सुलझा चुकी पुलिस जोश से लबरेज थी.

प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी विशाल शर्मा ने बताया कि कलावती और मलावती की हत्या उसी गांव के रहने वाले वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मी दास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा ने मिल कर की थी. इस मामले में गांव के 12 लोग और शामिल थे, जिन्होंने घटना को अंजाम देने में आरोपियों की मदद की थी. जिन में 4 आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए.

इस के बाद पुलिस ने चारों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. आरोपियों के बयान के आधार पर पुलिस ने 16 लोगों वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा, जितेंद्र शर्मा, दिलीप शर्मा, विनोद ततमा, प्रकाश ततमा, सोनू शर्मा, रामलाल शर्मा, विष्णुदेव शर्मा, पप्पू शर्मा, उपेन शर्मा, इंदल शर्मा, सुनील शर्मा, सतीश शर्मा और बेचन शर्मा के नाम पहली जुलाई के रोजनामचे पर दर्ज कर लिए. अभियुक्तों के बयान और पुलिस की जांच के बाद कहानी कुछ यूं सामने आई.

बिहार के पूर्णिया जिले के जलालगढ़ थानाक्षेत्र में एक गांव है— चक हाट. जयदेव ततमा इसी गांव के मूल निवासी थे. उन के 3 बच्चे थे, जिन में एक बेटे अशोक ततमा के अलावा 2 बेटियां कलावती ततमा और मलावती ततमा थीं. अशोक ततमा दोनों बेटियों से बड़ा था.

जयदेव ततमा का नाम चक हाट पंचायत में काफी मशहूर था. वह इलाके में बड़े किसान के रूप में जाने जाते थे. उन्होंने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाई. उन की दिली इच्छा थी कि बच्चे पढ़लिख कर योग्य बन जाएं.

कलावती और मलावती बड़े भाई अशोक से बुद्धि और कलाकौशल में काफी तेज थीं. दोनों बहनें पढ़ाई के अलावा सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थीं. उन का सपना था कि बड़े हो कर समाज की सेवा करें.

पिता की मदद से कलावती और मलावती ने समाजसेवा की जमीन पर अपने पांव पसारने शुरू कर दिए. गरीबों और मजलूमों की सेवा कर के उन्हें बहुत सुकून मिलता था. बेटियों की सेवा भाव से पिता जयदेव ततमा खुश थे. धीरेधीरे वे गांव इलाके में मशहूर हो गईं.

बचपन को पीछे छोड़ कर दोनों बहनें जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थीं. पिता को बेटियों की शादी की चिंता थी. थोड़े प्रयास और भागदौड़ से जयदेव ततमा को दोनों बेटियों के लिए अच्छे वर और घर मिल गए.

समय से दोनों बेटियों के हाथ पीले कर के वे अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए. इस के बाद ब्याहने के लिए एक बेटा अशोक ततमा शेष रह गया था. बाद में उन्होंने उस की भी शादी कर दी. अशोक और उस की पत्नी जयदेव की सेवा पूरी जिम्मेदारी से कर रहे थे.

जयदेव ततमा के जीवन की गाड़ी बड़े मजे से चल रही थी. न जाने उन की खुशहाल जिंदगी में किस की नजर लगी कि एक ही पल में सब कुछ मटियामेट हो गया. कलावती और मलावती के पतियों ने उन्हें हमेशा के लिए त्याग दिया. वे वापस आ कर मायके में रहने लगीं. यह बात जयदेव से सहन नहीं हुई और वे असमय काल के गाल में समा गए.

अचानक हुई पिता की मौत से घर का सारा खेल बिगड़ गया. दोनों बहनों की जिम्मेदारी भाई अशोक के कंधों पर आ गई थी. लेकिन दोनों स्वाभिमानी बहनें भाई पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं. वे खुद ही कुछ कर के अपना जीवनयापन करना चाहती थीं.

एक बात सोचसोच कर अशोक काफी परेशान रहता था कि उस की बहनों ने ससुराल में आखिर ऐसा क्या किया कि उन के पतियों ने उन्हें त्याग दिया. जबकि वह बहनों के स्वभाव से भलीभांति परिचित था. फिर उन के बीच ऐसी क्या बात हुई, यही जानने के लिए अशोक ने दोनों बहनों से बात की.

बहनों ने ईमानदारी से भाई को सब कुछ सचसच बता दिया. दोनों बहनों के सोशल एक्टिविस्ट होने वाली बात भाई अशोक को पहले से पता थी. अपनीअपनी ससुराल में रहते हुए कलावती और मलावती गृहस्थी संभालने के बावजूद दिल से समाजसेवा का भाव नहीं निकाल सकी थीं.

ससुराल में कुछ दिनों तक तो दोनों बहनें घूंघट में रहीं. लेकिन जल्दी ही घूंघट के पीछे उन का दम घुटने लगा. ये बहनें स्वच्छंद और स्वतंत्र विचारों वाली, न्याय के लिए संघर्ष करने वाली जुझारू महिलाएं थीं. वे जिस पेशे से जुड़ी हुई थीं, उस के लिए उन का घर की दहलीज से बाहर निकलना बहुत जरूरी था.

जब कलावती और मलावती घर से बाहर होती थीं तो उन्हें घर वापस लौटने में काफी देर हो जाया करती थी. दोनों के पतियों को उन का देर तक घर से बाहर रहना कतई पसंद नहीं था, उन का कामकाज भी. पति उन्हें समझाते थे कि वे समाजसेवा का अपना काम छोड़ दें और घर में रह कर अपनी गृहस्थी संभालें. समाजसेवा करने के लिए दुनिया में बहुत लोग हैं.

पतियों के साथ ही सासससुर भी उन के काम से खुश नहीं थे. वे उन के काम की तारीफ करने या उन की मदद करने के बजाय उन का विरोध करते थे. धीरेधीरे ससुराल वाले उन के कार्यों का विरोध करने लगे. उन की सोच में टकराव पैदा होता गया. कलावती और मलावती समाजसेवा के काम से पीछे हटने को तैयार नहीं थीं.

पतियों ने इस बात को ले कर ससुर जयदेव ततमा और साले अशोक से भी कई बार शिकायतें कीं. इस पर अशोक और उस के पिता ने कलावती और मलावती को काफी समझाया, पर अपनी जिद के आगे दोनों बहनों ने उन की बात भी नहीं मानी.

कलावती और मलावती का दुखद अंत – भाग 1

27 जून, 2018 की उमस और गरमी भरी सुबह थी. इंसान तो इंसान, जानवरों तक की  जान हलकान थी. बिहार के पूर्णिया जिले के थाना जलालगढ़ क्षेत्र के रामा और विनय नाम के दोस्तों ने तय किया कि वे बिलरिया ताल जा कर डुबकी लगाएंगे. वैसे भी वे दोनों रोजाना अपने मवेशियों को बिलरिया ताल के नजदीक चराने ले जाते थे.

रामा और विनय जलालगढ़ पंचायत के गांव चकहाट के रहने वाले थे. उन के गांव से बिलरिया ताल 2 किलोमीटर दूर था. ताल के आसपास घास का काफी बड़ा मैदान था. चरने के बाद मवेशी गरमी से राहत पाने के लिए ताल में घुस जाते थे. फिर वह 2-3 घंटे बाद ही ताल से बाहर निकलते थे. उस दिन जब उन के मवेशी ताल में घुसे तो दोनों दोस्त यह सोच कर घर की ओर लौटने लगे थे कि 2-3 घंटे बाद आ कर मवेशियों को ले जाएंगे.

रामा और विनय ताल से घर की ओर आगे बढ़े ही थे कि तभी रामा की नजर ताल के किनारे के झुरमुट की ओर चली गई. झुरमुट के पास 2 लाशें पड़ी थीं. उत्सुकतावश वे लाशों के पास पहुंचे तो दोनों के हाथपांव फूल गए. दोनों लाशों के सिर कटे हुए थे और वे लाशें महिलाओं की थीं. यह देख कर दोनों चिल्लाते हुए गांव की तरफ भागे. गांव में पहुंच कर उन्होंने लोगों को बिलरिया ताल के पास 2 लाशें पड़ी की बात बताई.

उन की बातें सुन कर गांव वाले लाशों को देखने के लिए बिलरिया ताल के पास पहुंचे. जरा सी देर में वहां गांव वालों का भारी मजमा जुट गया. यह खबर गांव के रहने वाले अशोक ततमा के बेटे मनोज कुमार ततमा को हुई तो वह भी दौड़ादौड़ा बिलरिया ताल जा पहुंचा.

दरअसल, 4 दिनों से उस की 2 सगी बुआ कलावती और मलावती रहस्यमय तरीके से गायब हो गई थीं. वे 23 जून की दोपहर में घर से जलालगढ़ बाजार जाने के लिए निकली थीं. 4 दिन बीत जाने के बाद भी वे दोनों घर नहीं लौटीं तो घर वालों को उन्हें ले कर चिंता हुई. उन का कहीं पता नहीं चला तो 24 जून को मनोज ने जलालगढ़ थाने में दोनों की गुमशुदगी की सूचना दे दी थी.

बहरहाल, यही सोच कर मनोज मौके पर जा पहुंचा. वह भीड़ को चीरता हुआ झाडि़यों के पास पहुंचा तो कपड़ों से ही पहचान गया कि वे लाशें उस की दोनों बुआ की हैं. लाशों को देख कर मनोज दहाड़ मार कर रोने लगा था.

इसी बीच गांव का चौकीदार देव ततमा भी वहां पहुंच गया था. उस ने जलालगढ़ थाने के एसओ मोहम्मद गुलाम शहबाज आलम को फोन से घटना की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही एसओ आलम मयफोर्स आननफानन में बिलरिया ताल रवाना हो गए. एसएसआई वैद्यनाथ शर्मा, एसआई अनिल शर्मा, कांस्टेबल अवधेश यादव, अशोक कुमार मेहता, जयराम पासवान और उपेंद्र सिंह उन के साथ थे.

एसओ मोहम्मद आलम ने बारीकी से लाशों का मुआयना किया. दोनों लाशें क्षतविक्षत हालत में थीं. लग रहा था जैसे लाशों को जंगली जानवरों ने खाया हो. लाशों के आसपास किसी तरह का कोई सबूत नहीं मिला. पुलिस आसपास की झाडि़यों में लाशों के सिर तलाशने लगी. लेकिन सिर कहीं नहीं मिले.

इस का मतलब था कि हत्यारों ने दोनों की हत्या कहीं और कर के लाशें वहां छिपा दी थीं. कातिल जो भी थे, बड़े चालाक और शातिर किस्म के थे. मौके पर उन्होंने कोई सबूत नहीं छोड़ा था. पुलिस के लिए थोड़ी राहत की बात यह थी कि लाशों की शिनाख्त हो गई थी.

इस के बाद एसओ मोहम्मद आलम ने एसपी विशाल शर्मा और एसडीपीओ कृष्णकुमार राय को घटना की सूचना दे दी थी. उन्होंने घटनास्थल का मुआयना किया तो जिस स्थान से लाशें बरामद की गई थीं, वह इलाका उन के थाना क्षेत्र से बाहर का निकला. वह जगह थाना कसबा की थी. लिहाजा उन्होंने इस की सूचना कसबा थाने के एसओ अरविंद कुमार को दे दी.

एसओ कसबा अरविंद कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे. लेकिन उन्होंने भी उस जगह को अपना इलाका होने से साफ मना कर दिया. इलाके को ले कर दोनों थानेदारों के बीच काफी देर तक बहस होती रही.

तब तक एसपी विशाल शर्मा और एसडीपीओ कृष्णकुमार राय भी मौके पर जा पहुंचे. दोनों अधिकारियों के हस्तक्षेप और मौके पर बुलाए गए लेखपाल की पैमाइश के बाद घटनास्थल कसबा थाने का पाया गया. एसपी शर्मा के आदेश पर थानेदार अरविंद कुमार ने मौके की काररवाई निपटा कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दीं.

चूंकि कलावती और मलावती की गुमशुदगी जलालगढ़ थाने में दर्ज थी, इसलिए जलालगढ़ एसओ मोहम्मद आलम ने यह मामला कसबा थाने को स्थानांतरित कर दिया. एसओ अरविंद कुमार ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर आगे की छानबीन शुरू कर दी.

चूंकि बात 2 सामाजिक कार्यकत्रियों की हत्या से जुड़ी थी, इसलिए यह मामला मीडिया में भी खूब गरमाया. पुलिस पर जनता का भारी दबाव बना हुआ था. पुलिस की काफी छीछालेदर हो रही थी. एसपी विशाल शर्मा ने एसडीपीओ कृष्ण कुमार राय के नेतृत्व में एक टीम गठित की.

इस टीम में जलालगढ़ के एसओ मोहम्मद गुलाम शहबाज आलम, थाना कसबा के थानेदार अरविंद कुमार, मुफस्सिल थाने के एसओ प्रशांत भारद्वाज, तकनीकी शाखा प्रभारी एसएसआई जलालगढ़ वैद्यनाथ शर्मा, एसआई अनिल शर्मा, कांस्टेबल अवधेश यादव, अशोक कुमार मेहता, जयराम पासवान और उपेंद्र सिंह को शामिल किया गया.

एसडीपीओ कृष्णकुमार राय ने घटना की छानबीन की शुरुआत मृतकों के घर से की. मनोज से पूछताछ पर जांच अधिकारियों को पता चला कि कलावती और मलावती दोनों पतियों द्वारा त्यागी जा चुकी थीं. पतियों से अलग हो कर दोनों मायके में ही रह रही थीं.

मायके में रह कर दोनों सोशल एक्टिविस्ट का काम कर रही थीं. कलावती और मलावती की नजरों पर गांव के कई ऐसे असामाजिक तत्व चढ़े थे, जिन के क्रियाकलाप से लोग परेशान थे. उन में 4 नाम वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा शामिल थे. दोनों बहनों ने इन चारों पर कई बार मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भी भिजवाया था.

जांच अधिकारियों को यह समझते देर नहीं लगी कि कलावती और मलावती की हत्या के पीछे इन्हीं चारों का हाथ है. फिलहाल पुलिस के पास उन के खिलाफ कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं था, जिसे आधार बना कर उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता. उन पर नजर रखने के लिए जांच अधिकारी ने मुखबिरों को लगा दिया कि वे कहां जाते हैं, किस से मिलते हैं, क्याक्या करते हैं?

इधर एसओ कसबा अरविंद कुमार ने दोनों बहनों के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई और केस को समझने में जुट गए थे. काल डिटेल्स में कुछ ऐसे नंबर मिले, जो संदिग्ध थे. उन नंबरों से कलावती और मलावती देवी को कई दिनों से लगातार फोन किए जा रहे थे. पुलिस ने उन संदिग्ध नंबरों की पड़ताल की तो वे नंबर मृतका के गांव चकहाट के रहने वाले वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा और लक्ष्मीदास उर्फ रामजी के निकले.

महिला सिपाही बनेंगी मर्द?

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और गोंडा में तैनात 2 महिला कांस्टेबलों द्वारा लिंग परिवर्तन के लिए मुख्यालय से अनुमति मांगना विभाग में चर्चा का विषय बन चुका था.  इतना ही नहीं हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली महिला सिपाहियों ने अपने आवेदन को संवैधानिक अधिकार बताया. इस तरह की मांग करने वाली गोरखपुर और गोंडा के अलावा सीतापुर और अयोध्या की भी 2 सिपाही हैं.

चारों ने पहले डीजी औफिस में अरजी दे कर जेंडर बदलवाने के लिए अनुमति भी मांग चुकी हैं. महिलाओं की अरजी जब उच्चाधिकारियों के पास पहुंची, तब वे भी हैरान हो गए.

अयोध्या की ऐसी महिला सिपाही ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि उस का उत्तर प्रदेश पुलिस में साल 2019 में सेलेक्शन हुआ था. उस की पहली तैनाती गोरखपुर थी. लिंग परिवर्तन के लिए वह फरवरी से दौड़ रही है. उस ने बताया कि गोरखपुर में वह एसएसपी, एडीजी फिर डीजी मुख्यालय तक जा चुकी है. उन्हीं में एक नीलम भी है. उस ने अपने भीतर मर्दानापन के एहसास के चलते हुए कई चौंकाने वाली बातें भी बताईं.

कहानी उत्तर प्रदेश पुलिस की महिला सिपाही नीलम की है. उस की पहली तैनाती उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर में हुई थी. उस ने पुलिस में भरती की सभी परीक्षाएं पास की थीं. लिखित परीक्षा से ले कर फिजिकल तक. शारीरिक जांच परीक्षा में उस ने दूसरे प्रतियोगियों की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया था. चाहे ग्राउंड के 4 चक्कर लगाने की परीक्षा हो या फिर लौंग जंप और हाई जंप, सभी में एक सधे हुए एथलीट की तरह उस ने फिजिकल परीक्षा लेने वाले पुलिस अधिकारी को हैरान कर दिया था.

तब उन के मुंह से अनायास निकल पड़ा था, ”वाह! तुम्हें तो ओलंपिक में जाना चाहिए था.’‘

जवाब में वह सिर्फ यही बोल पाई थी, ”छोटे गांव शहर वाले को पूछता कौन है साहबजी. सिपाही की यही नौकरी मिल जाए, बहुत है मेरे लिए.

यह 2019 बात की है. अयोध्या की रहने वाली नीलम का उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर सेलेक्शन हो गया था. उस की पहली तैनाती गोरखपुर में हुई थी. ड्यूटी पर नीलम के मिजाज और हावभाव दूसरी महिला सिपाहियों से कुछ अलग थे. बोलचाल, चालढाल, उठनेबैठने का स्टाइल उसे सामान्य लड़की से अलग करता था.

वह एकदम अलग दिखती थी. चाहे ड्यूटी पर पुलिस की पुरुष वाली वरदी में हो या फिर घरपरिवार में. सामान्य जीवन में उसे मर्दों वाले कपड़े ही पसंद आते थे. जींसपैंट, शर्ट टीशर्ट उस की खास पोशाक थी. मेकअप सुंदर दिखने के लिए नहीं, बल्कि चेहरे की साफसफाई के लिए करती थी.

उस की आवाज भले ही महीन हो, लेकिन बोलने का लहजा औरत की आवाज से एकदम अलग था. खास तरह की खनक. एकदम स्पष्ट और तने हुए शब्दों में सटीक बातें करने की शैली. अपने अधिकारियों को अदब के साथ सरनेम से बुलाना. पुरुष सिपाहियों और अधिकारियों को मिस्टर सिंहजी और मिस्टर पांडे साहब या मिस्टर यादवजी  कहना आदि बातें उसे औरों से अलग करने के लिए काफी थीं. कानूनी धाराएं तो उस की जुबान पर रहती थीं.

बहुत जल्द ही वह अपने थाने के स्टाफ के बीच लोकप्रिय हो गई थी. साथ काम करने वाले सिपाही से ले कर अधिकारी तक उस की तारीफ करते थे और वह उन के लिए एक मिसाल थी. अधिकारियों द्वारा उस की अनुपस्थिति में गाहेबगाहे उन की खूबियों की चर्चा होती थी.

इस के बावजूद नीलम खुद को असहज महसूस करती थी. खासकर जब से उस ने पुलिस की वरदी पहनी और ड्यूटी जौइन की, तब से उस में अलग तरह के बदलाव आ गए थे. घरपरिवार और दूसरे लोग भी कहने लगे थे. खासकर उस की सहेलियां और रिश्तेदारी में लड़कियां बोलती थीं, ”तू तो बहुत बदल गई पुलिस बन कर!’‘

बुलेट पर बैठी नीलम यह सुन कर हेलमेट पहनती हुई सिर्फ मुसकरा दी थी. उन्हें एक तीखी नजर से देखती हुई, तुरंत बाइक का गियर बदल कर एक्सेलेटर घुमा दिया था. बाइक की तेजी से घुरघुराती हुई घर्रघर्र और फटफट की भारी आवाज सुन दूर खड़े लड़के भी देखने लगे थे. चंद सेकेंड बाद वे बुलट पर जाती नीलम को देख रहे थे…आहें भर रहे थे.

सैक्स चेंज कराने की जिद पर अड़ गई नीलम

साल 2023 की जनवरी का महीना था. नीलम यूपी पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) रैंक के एक अधिकारी के सामने दोनों हाथ जोड़े खड़ी थी. विनम्रता के साथ बोली, ”साहबजी, मैं ने एक एप्लीकेशन दी थी, उस का क्या हुआ?’‘

”क्या नाम है तुम्हारा?’‘ अधिकारी ने फाइलें पलटते हुए पूछा.

”जी, साहबजी क…क..नीलम!’‘ अटकती हुई बोली.

”पूरा नाम बोलो, पूरा.’‘

”जी, नीलम सिंह साहबजी!’‘

”अच्छा तो तू वही लड़की है, जेंडर डिस्फोरिया वाली कांस्टेबल!’‘ पुलिस अधिकारी बोले.

”जी साहबजी, सही पहचाना आप ने. क्या हुआ मेरी एप्लीकेशन का, कोई जवाब आया क्या?’‘

”जवाब? कैसा जवाब चाहिए तुम्हें? मनमरजी है क्या? नौकरी पाओ फीमेल बन कर और जब मिल जाए तब मर्द बनने की गुहार लगाओ, फिर प्रमोशन…!’‘ पुलिस अधिकारी ने कहा.

”लेकिन साहबजी, आप मेरी समस्या को समझिए. मैं कितनी उलझन में हूं. कितनी तकलीफ में हूं इसे भी तो समझिए,’‘ नीलम बोली.

”क्या समझूं मैं? जब तुम्हें पता था कि तुम्हारे शरीर में मर्दानापन है, मेल के लक्षण हैं, तब सैक्स चेंज पहले करवा लेती. फिर नौकरी का आवेदन करती.’‘

”तब तक इतना नहीं पता था सर, नौकरी लगे 3 साल हो गए. कोरोना आ गया. 2 साल तो उसी में निकल गए. तब कहां मालूम था कि आगे चल कर जीना मुश्किल जो जाएगा.’‘

”तुम्हारा जीना मुश्किल? अरे तुम ने तो एप्लीकेशन दे कर यूपी पुलिस को मुश्किल में डाल दिया है,’‘ एडीजी बोले.

”मैं ने क्या किया है सर, हम ने तो अपनी समस्या बताई और कहा कि इस हाल में ड्यूटी निभाने में परेशानी है. अगर मेरे आपरेशन करवा देने से बात बन जाती है तो हर्ज क्या है?’‘ नीलम बोली.

तब तक एडीजी साहब अपने सामने कुछ और डाक्यूमेंट निकाल चुके थे. उन में एक तो नीलम की एप्लीकेशन थी, जिस पर विभाग के कई पुलिस अधिकारियों के दस्तखत थे. उस के साथ कुछ अनुशंसा पत्र थे. नीलम के अलावा कई और सिपाही भी थीं, जो अपना जेंडर चेंज कराना चाहती थीं.

2 पन्ने के दूसरे डाक्यूमेंट को उठा कर पढ़ने के बाद बोले, ”यह रही तुम्हारी एप्लीकेशन की काररवाई की रिपोर्ट. तुम्हारी एप्लीकेशन के आधार को किंग जार्ज मैडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ को विभाग ने लिखा था. उस का जवाब आया है.’‘

”क्या कहा है मैडिकल वालों ने? मेरी जांच के लिए कब बुलाया है?’‘ नीलम उत्सुकता से बोली.

”जांच के लिए बुलावा! सपना देख रही हो!… इस में लिखा है कि अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले, चिकित्सा से पहले कानूनी राय लेनी होगी. महिलाओं और लैंगिक मुद्दे का मामला है.’‘ पुलिस अधिकारी ने कहा.

”इस का मतलब अभी कुछ नहीं हुआ है मेरी रिक्वेस्ट का?’‘ नीलम बोली.

”कैसे कुछ नहीं हुआ है? विभाग के अपने नियम हैं. अस्पताल के अपने. दोनों के बीच तालमेल बिठाने पर ही तो कुछ होगा.’‘

”वह कब तक होगा?’‘ नीलम ने उत्सुकता दिखाई.

”देखो, तुम जितना आसान समझती हो, उतना है नहीं. तुम्हारी नौकरी महिला कांस्टेबल के पद पर लग चुकी है. ऐसे में कई नियमों को लांघना पड़ेगा.’‘ एडीजी ने समझाने की कोशिश की.

”विभाग से कोई मदद नहीं मिलेगी?’‘

”विभाग इस में जो कर सकता है कर रहा है. पत्राचार किया जा रहा है. इस समस्या की तुम अकेली कांस्टेबल नहीं हो. एक और गोंडा थाने की कांस्टेबल का मामला भी है. तुम दोनों कांस्टेबलों ने लिंग परिवर्तन की अनुमति के लिए आवेदन किया है. तुम लोगों ने विभिन्न कारणों का उल्लेख किया है. किंतु…’‘

एडीजी के बोलने के क्रम में नीलम बीच में ही बोल पड़ी, ”किंतु परंतु क्यों करते हैं साहबजी, आप के हाथों में ही तो सब कुछ है.’‘

”पहले तुम विभागीय बात को समझने की कोशिश करो. लिंग परिवर्तन की अनुमति देने में मुख्य समस्या यह है कि यदि सर्जरी के बाद उन्हें पुरुष कांस्टेबल माना जाता है तो उस के लिए पुरुष कांस्टेबलों के लिए आवश्यक अन्य शारीरिक मानदंड कैसे मेल खाएंगे? पुरुष और महिला वर्ग के लिए ऊंचाई, दौड़ने की क्षमता और कंधे की ताकत जैसे अलगअलग शारीरिक मानदंड हैं,’‘ एडीजी बोले.

”क्या आप को नहीं मालूम कि महाराष्ट्र में एक कांस्टेबल ललिता का सैक्स चेंज ड्यूटी पर रहते हुए किया जा चुका है. तो फिर मेरा क्यों नहीं?’‘ नीलम ने उदाहरण और तर्क दिया.

”हर राज्य के कुछ अपने नियम भी होते हैं. यूपी पुलिस में पुरुषों और महिलाओं के लिए भरती मानदंडों का सख्ती से पालन किया जाता है और महिला मानदंड के तहत नौकरी पाने के बाद लिंग बदलना मानदंडों की अवहेलना होगी.’‘ एडीजी बोले.

इस पर नीलम उदास हो गई. निराश मन से वापस गोरखपुर लौट आई, किंतु शांत नहीं बैठी.

नीलम ने एक वकील से संपर्क किया और इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी समस्या को ले कर याचिका दायर कर दी. वकील ने याचिका में महिला सैक्स चेंज को ले कर कुछ उदाहरणों के डाक्यूमेंट भी लगा दिए. नीलम ने याचिका मे सैक्स चेंज करवाने की अनुमति मांगी.

यूपी की राज्य पुलिस के सामने इस तरह का पहला मामला आया था. सुनवाई के क्रम मे कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए यूपी पुलिस से सवालजवाब किए. यूपी पुलिस अपना तर्क रखते हुए बोली कि महिला पुलिस के रूप में भरती होने के बाद कांस्टेबलों को अपना लिंग बदलने की अनुमति कैसे दे सकते हैं.

इस के जवाब में अदालत ने मुख्यालय से महिला कांस्टेबल के अनुरोध पर योग्यता के आधार पर पुनर्विचार करने और भविष्य में दोबारा सामने आने वाले ऐसे ही मामलों के लिए कुछ मानदंड तैयार करने को कहा.

आखिर कब पूरी होगी इन की इच्छा

इस कहानी के लिखे जाने तक उत्तर प्रदेश पुलिस के शीर्ष अधिकारी दुविधा में फंसे हुए थे. गोरखपुर और गोंडा में तैनात 2 महिला सिपाहियों द्वारा लिंग परिवर्तन के लिए मुख्यालय से अनुमति मांगना विभाग में चर्चा का विषय बन चुका था.

इतना ही नहीं हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली महिला सिपाही ने अपने आवेदन को संवैधानिक अधिकार बताया. इस तरह की मांग करने वाली गोरखपुर और गोंडा के अलावा सीतापुर और अयोध्या की भी 2 सिपाही हैं.

चारों पहले डीजी औफिस में अरजी दे कर जेंडर बदलवाने के लिए अनुमति भी मांग चुकी हैं. महिलाओं की अरजी जब उच्चाधिकारियों के पास पहुंची, तब वे भी हैरान हो गए. महिला सिपाहियों की अरजी को देखते हुए चारों जिलों में पुलिस अधीक्षकों को डीजी औफिस की ओर से पत्र लिख कर उन की काउंसलिंग कराने के लिए कहा गया.

अयोध्या की ऐसी महिला सिपाही ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि उस का उत्तर प्रदेश पुलिस में साल 2019 में सेलेक्शन हुआ था. उस की पहली तैनाती गोरखपुर थी. लिंग परिवर्तन के लिए वह फरवरी से दौड़ रही हैं. उस ने बताया कि गोरखपुर में वह एसएसपी, एडीजी फिर डीजी मुख्यालय तक जा चुकी है.

उन्हीं में एक नीलम भी है. उस ने अपने भीतर मर्दानापन के एहसास के चलते हुए कई चौंकाने वाली बातें भी बताईं. पुलिस विभाग में पुरुष बनने के सवाल पर अधिकारियों को उस ने बताया कि पढ़ाई के दौरान ही उस के हारमोंस चेंज होने लगे थे. इस के बाद से ही उन का जेंडर बदलवाने की इच्छा होने लगी.

सब से पहले उस ने दिल्ली में एक बड़े डाक्टर से कई चरणों में काउंसलिंग करवाई थी. डाक्टर ने जांचपड़ताल के बाद उस का जेंडर डिस्फोरिया बताया. डाक्टर की रिपोर्ट के आधार पर ही उस ने लिंग बदलवाने की अनुमति मांगी है.

नीलम ने यह भी बताया कि उस का स्टाइल पुरुष जैसा है. वह पुरुष जैसा दिखना ही नहीं, उसी तरह की जिंदगी जीना चाहती है. फिलहाल वह बाल और पहनावे पुरुषों की तरह रखती है. बाइक से चलना पसंद है. पैंटशर्ट पहनना सहज लगता है.

उस ने बताया कि जब वह स्कूल जाती थी, तभी से उसे लड़कियों की तरह काम करना अटपटा लगता था. स्कूल में उस की चालढाल की वजह से कई लोग उसे लड़का कहते थे, जो उसे बहुत अच्छा लगता था. बहरहाल, अब देखना यह है कि इन पुलिसकर्मियों की सैक्स चेंज कराने की इच्छा कब पूरी होगी?

महिला सिपाही ललिता से बनी ललित 

महाराष्ट्र पुलिस की कांस्टेबल ललिता साल्वे राज्य की पहली महिला सिपाही थी, जिसे सैक्स चेंज करवाने की लंबी कानूनी प्रक्रिया और जटिल इलाज के दौर से गुजरना पड़ा था. उस ने अपने औपरेशन के लगभग 4 साल पहले शरीर में परिवर्तन देखे थे और डाक्टरी परीक्षण कराया था.

उस के बाद बाद महाराष्ट्र पुलिस ने लिंग परिवर्तन सर्जरी की सलाह दी थी. उस का आपरेशन 2017 में किया गया था और उसी साल 25 मई को ललिता से ललित बनने का सफर खत्म हो गया था.

महाराष्ट्र पुलिस का यह अनोखा मामला 29 साल की महिला कांस्टेबल ललिता साल्वे का था. उस की 2009 में महाराष्ट्र पुलिस में नियुक्ति हुई थी. उस की पोस्टिंग बीड थाने में हुई थी. उस ने नौकरी करते कुछ समय बाद ही महसूस किया कि वह लड़के के रूप में ज्यादा बेहतर काम कर सकती है.

इस बारे में उस ने डाक्टरी जांच करवाई, तब मालूम हुआ कि जेंडर आइडेंटिटी डिसऔर्डर से प्रभावित है. उसे सही और अच्छी जिंदगी गुजारनी है तो उस के लिए सेक्स चेंज कराना अच्छा रहेगा.

इस सलाह को ललिता ने अपने घर वालों को बताया और उन से सहयोग मांगा. इस में परिवार ने पूरा सपोर्ट किया. उस के बाद ही ललिता ने अपने विभाग के अधिकारियों और डीजीपी स्टेट डेप्यूटी जनरल सतीश माथुर से सैक्स चेंज सर्जरी की अनुमति मांगी थी. साल्वे ने यह भी कहा था कि वह सर्विस में बनी रहना चाहती है.

तब अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजेंद्र सिंह ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस के इतिहास में यह अपनी तरह का पहला मामला है. फिर भी उसे अनुमति नहीं मिली थी.

इसी सिलसिले में साल्वे को ड्यूटी में शामिल होने के बाद एक पुरुष कांस्टेबल को दिए जाने वाले लाभ का भी मसला सामने आया था. साल्वे ने पहले लिंग परिवर्तन सर्जरी कराने के लिए छुट्टी देने के लिए राज्य पुलिस विभाग से संपर्क किया था.

विभाग ने मांग खारिज कर दी थी, क्योंकि पुरुष और महिला कांस्टेबलों के लिए पात्रता मानदंड अलगअलग थे, जिस में ऊंचाई और वजन की आवश्यकताएं भी शामिल थीं. विभागीय अनुमति नहीं मिलने पर ही ललिता ने नवंबर 2017 में मुंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मांग की थी कि राज्य पुलिस को उन्हें छुट्टी देने के लिए निर्देश जारी किए जाएं.

1988 में जन्मी साल्वे ने एक याचिका में बौंबे हाईकोर्ट को बताया था कि उस ने लगभग 4 साल पहले अपने शरीर में परिवर्तन देखा था और डाक्टरी जांच कराई थी, जिस में उस के शरीर में वाई क्रोमोसोम की उपस्थिति की पुष्टि हुई थी.

जहां पुरुषों में एक्स और वाई सैक्स क्रोमोसोम होते हैं, वहीं महिलाओं में 2 एक्स क्रोमोसोम होते हैं. डाक्टरों ने कहा था कि उसे लिंग डिस्फोरिया है और उसे लिंग परिवर्तन सर्जरी कराने की सलाह दी थी.

इस पर कोर्ट ने पुलिस को पत्र लिखा था. सभी कानूनी आधार को देखते हुए बीड के एसपी जी. श्रीधर ने भी इस की पुष्टि करते हुए लिखा कि उन्हें महिला कांस्टेबल की याचिका के संबंध में जवाब दिए और सैक्स चेंज की अनुमति मिली. सर्जरी के लिए अपनी चिकित्सीय फिटनेस स्थापित करने के लिए साल्वे को एक्सरे स्कैन, इलैक्ट्रोकार्डियोग्राफी (ईसीजी) जांच और रक्त परीक्षण जैसी कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा था.