बदले की आग में 6 लोगों की हत्या

असली पुलिस पर भारी नकली पुलिस – भाग 2

एक दिन परवीन अपने 2 साथियों के साथ सड़क पर वाहनों की चैकिंग कर रही थी, तभी एक मोटरसाइकिल पर 3 युवक आते दिखाई दिए. परवीन ने उन्हें रुकने का इशारा  किया. लेकिन उन युवकों ने मोटरसाइकिल जरा भी धीमी नहीं की.

परवीन को समझते देर नहीं लगी कि इन का रुकने का इरादा नहीं है. वह तुरंत होशियार हो गई और मोटरसाइकिल जैसे ही उस के नजदीक आई, उस ने ऐसी लात मारी कि तीनों सवारियों सहित मोटरसाइकिल गिर गई.

तीनों युवक उठ कर खड़े हुए तो मोटरसाइकिल चला रहे युवक का कौलर पकड़ कर परवीन ने कहा, ‘‘मैं हाथ दे रही थी तो तुझे दिखाई नहीं दे रहा था?’’

‘‘मैडम, मैं थाना महू का सिपाही हूं. विश्वास न हो तो आप फोन कर के पूछ लें. मेरा नाम गुरुदेव सिंह चहल है. आज मैं छुट्टी पर था, इसलिए दोस्तों के साथ घूमने निकला था. यहां मैं डीआरपी लाइन में रहता हूं.’’ गुरुदेव सिंह ने सफाई देते हुए कहा.

युवक ने बताया कि वह सिपाही है तो परवीन ने उसे छोड़ने के बजाए तड़ातड़ 2 तमाचे लगा कर कहा, ‘‘पुलिस वाला हो कर भी कानून तोड़ता है. याद रखना, आज के बाद फिर कभी कानून से खिलवाड़ करते दिखाई दिए तो सीधे हवालात में डाल दूंगी.’’

अपने गालों को सहलाते हुए गुरुदेव सिंह बोला, ‘‘मैडम, आप को पता चल गया कि मैं पुलिस वाला हूं, फिर भी आप ने मुझे मारा. यह आप ने अच्छा नहीं किया.’’

‘‘एक तो कानून तोड़ता है, ऊपर से आंख दिखाता है. अब चुपचाप चला जा, वरना थाने ले चलूंगी. तब पता चलेगा, कानून तोड़ने का नतीजा क्या होता है?’’ परवीन गुस्से में बोली.

गुरुदेव सिंह ने मोटरसाइकिल उठाई और साथियों के साथ चला गया. लेकिन इस के बाद जब भी परवीन से उस का सामना होता, वह गुस्से से उसे इस तरह घूरता, मानो मौका मिलने पर बदला जरूर लेगा. परवीन भी उसे खा जाने वाली निगाहों से घूरती. ऐसे में ही 27 मार्च, 2014 को एक बार फिर गुरुदेव सिंह और परवीन का आमनासामना हो गया.

परवीन बेसबौल का बल्ला ले कर गुरुदेव सिंह को मारने के लिए आगे बढ़ी तो खुद के बचाव के लिए गुरुदेव सिंह भागा. लेकिन वह कुछ कदम ही भागा था कि ठोकर लगने से गिर पड़ा, जिस से उस की कलाई में मोच आ गई. परवीन पीछे लगी थी, इसलिए चोटमोच की परवाह किए बगैर वह जल्दी से उठ कर फिर भागा. परवीन उस के पीछे लगी रही.

गुरुदेव भाग कर डीआरपी लाइन स्थित अपने क्वार्टर में घुस गया. परवीन ने उस के क्वार्टर के सामने खूब हंगामा किया. लेकिन वहां वह उस का कुछ कर नहीं सकी, क्योंकि शोर सुन कर वहां तमाम पुलिस वाले आ गए थे, जो बीचबचाव के लिए आ गए थे.

29 मार्च की रात करीब 12 बजे इंदौर रेलवे स्टेशन पर एक बार फिर गुरुदेव का आमना सामना परवीन से हो गया. उस समय गुरुदेव के घर वाले भी उस के साथ थे. उन्होंने परवीन को समझाना चाहा कि एक ही विभाग में नौकरी करते हुए उन्हें आपस में लड़ना नहीं चाहिए.

पहले तो परवीन चुपचाप उन की बातें सुनती रही. लेकिन जैसे ही गुरुदेव की मां ने कहा कि वह उन के बेटे को बेकार में परेशान कर रही है तो परवीन भड़क उठी. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे बेटे को परेशान कर रही हूं? अभी तक तो कुछ नहीं किया. अब देखो इसे किस तरह परेशान करती हूं.’’

इतना कह कर परवीन ने अपने साथियों से कहा, ‘‘इसे थाने ले चलो. आज इसे इस की औकात बता ही देती हूं.’’

परवीन के साथियों ने गुरुदेव को पकड़ कर कार में बैठाया और थाना ग्वालटोली की ओर चल पड़े. कार के पीछेपीछे परवीन भी अपनी एक्टिवा स्कूटर से चल पड़ी थी. थाने पहुंच कर परवीन गुरुदेव सिंह को धकियाते हुए अंदर ले गई और ड्यूटी पर तैनात मुंशी से बोली, ‘‘इस के खिलाफ रिपोर्ट लिखो. यह मेरे साथ छेड़छाड़ करता है. जब भी मुझे देखता है, सीटी मारता है.’’

परवीन सब इंसपेक्टर की वरदी में थी, इसलिए उसे परिचय देने की जरूरत नहीं थी. गुरुदेव सिंह ने अपने बारे में बताया भी कि वह सिपाही है, फिर भी उस के खिलाफ छेड़छाड़ की रिपोर्ट लिख कर मुंशी ने इस बात की जानकारी ड्यूटी पर तैनात एएसआई श्री मेढा को दी. चूंकि नए कानून के हिसाब से मामला गंभीर था, इसलिए उन्होंने गुरुदेव सिंह को महिला सबइंसपेक्टर से छेड़छाड़ के आरोप में लौकअप में डाल दिया.

जबकि गुरुदेव सिंह का कहना था कि पहले इस महिला सबइंसपेक्टर के बारे मे पता लगाएं. क्योंकि इस का कहना है कि यह डीआरपी लाइन में रहती है. वहीं वह भी रहता है. लेकिन उस ने इसे वहां कभी देखा नहीं है. गुरुदेव परवीन के बारे में पता लगाने को लाख कहता रहा, लेकिन एएसआई मेढा ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि यह एक महिला सबइंसपेक्टर से छेड़छाड़ का मामला था.

फिर उस ने एक अन्य सबइंसपेक्टर कुशवाह से मेढा की बात भी कराई थी, जबकि मेढा को पता नहीं था कि सबइंसपेक्टर कुशवाह कौन हैं और किस थाने में तैनात हैं.

गुरुदेव सिंह को लौकअप में डलवा कर परवीन अपने साथियों के साथ कार से चली गई. उस ने अपना स्कूटर थाने में ही यह कह कर छोड़ दिया था कि इसे वह सुबह किसी से मंगवा लेगी.

अगले दिन यानी 30 मार्च को सुबह उस ने थाना ग्वालटोली पुलिस को फोन किया कि वह अपने साथी इमरान कुरैशी को भेज रही है. उसे उस का स्कूटर दे दिया जाए.

इमरान कुरैशी के थाने पहुंचने तक थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा थाने आ गए थे. पुलिस वालों ने रात की घटना के बारे में उन से कहा कि सबइंसपेक्टर शबाना परवीन का साथी इमरान कुरैशी उन का एक्टिवा स्कूटर लेने आया है तो उन्होंने उसे औफिस में भेजने को कहा. इमरान उन के सामने पहुंचा तो उस का हुलिया देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘तुम पुलिस वाले हो?’’

‘‘नहीं साहब, मैं पुलिस वाला नहीं हूं. मैं तो चाट का ठेला लगाता हूं. चूंकि मैं परवीनजी का परिचित हूं इसलिए अपना स्कूटर लेने के लिए भेज दिया है.’’

इस के बाद वहां खड़े सिपाही से थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘परवीन को बुला लो कि वह आ कर अपना स्कूटर खुद ले जाए. उस का स्कूटर किसी दूसरे को नहीं दिया जाएगा.’’

मजबूरी में बनी कोठे की जीनत

मैनब नेपाल के जिला लुंबिनी की रहने वाली थी. उस की शादी पटना के मोहल्ला धोबीघाट  निवासी आरिफ से हुई थी. आरिफ और उस के 2 बच्चे थे. लगभग 4 साल पहले की बात है, मैनब अपने मायके जाने के लिए ससुराल से निकली. उस के साथ उस के दोनों बच्चे भी थे. जनसेवा जननायक एक्सप्रेस से वह बस्ती रेलवे स्टेशन पर उतर गई, क्योंकि वहां से उसे बस पकड़ कर लुंबिनी जाना था.

जब तक मैनब की ट्रेन बस्ती पहुंची, तब तक रात हो चुकी थी. मैनब ने बच्चों के साथ नाश्ता वगैरह किया और अपना सामान प्लेटफार्म के एक कोने में रख कर बच्चों को वहीं सुला दिया. वह खुद इधरउधर टहल कर रात गुजारने की कोशिश करने लगी.

24 साल की मैनब को देख कर यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि वह 2 बच्चों की मां होगी. उस का छरहरा बदन, गोरा रंग किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकता था. रेलवे स्टेशन पर मौजूद जावेद की नजर मैनब पर पड़ी तो उस की आंखों में चमक आ गई. वह मैनब से बात करने का कोई बहाना तलाशने लगा. जावेद चालू किस्म का आदमी था.

वह किसी ऐसे ही शिकार की तलाश में था. इसलिए अकेली महिलाओं से बात करने का हुनर अच्छी तरह जानता था. उस ने बिना किसी परिचय, बिना किसी भूमिका के मैनब के पास जा कर पूछा, ‘‘इतनी रात में स्टेशन पर परेशान सी घूम रही हो, कहीं जाना है क्या?’’

जावेद का हमदर्दी भरा लहजा देख कर मैनब ने कह दिया, ‘‘मुझे नेपाल जाना है, लेकिन समझ में नहीं आ रहा है, कैसे जाऊं?’’

जावेद पहले ही समझ चुका था कि वह अकेली और इस जगह से अनजान है. इसलिए उस ने इस मौके का फायदा उठाने की सोच ली थी. जावेद बस्ती रेलवे स्टेशन के पास ही पुरानी बस्ती थाने के मोहल्ला रसूलपुर का रहने वाला था. बस्ती रेलवे स्टेशन के पास स्थित देह की मंडी में उस का आनाजाना लगा रहता था. मैनब की नासमझी का लाभ उठाने के लिए उस ने उसे देहव्यापार की मंडी में पहुंचाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने मन ही मन योजना भी बना ली.

अपनी उसी योजना के मद्देनजर उस ने मैनब से कहा,  ‘‘देखो, नेपाल जाने के लिए तुम्हें बस पकड़नी पड़ेगी. बसअड्डा यहां से थोड़ी दूर है. तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें वहां छोड़ दूंगा. रात भर स्टेशन पर पड़े रहने का कोई फायदा नहीं है. तुम्हें अकेली देख कर पुलिस वाले अलग तंग करेंगे. बेहतर होगा, अभी निकल जाओ. नेपाल के लिए बसें जाती रहती हैं. सुबह तक अपने मायके पहुंच जाओगी.’’

अकेलेपन की वजह से मैनब पहले ही घबराई हुई थी. जावेद की हमदर्दी से वह पिघल गई. बिना सहीगलत का अंदाजा लगाए वह परेशान से स्वर में बोली, ‘‘ठीक है, मैं बच्चों को ले लेती हूं. आप हमें बसअड्डे पहुंचा दीजिए, बड़ी मेहरबानी होगी.’’

बच्चों का नाम सुन कर जावेद ने आश्चर्य से उस की ओर देखा. वह उसे अकेला समझ रहा था. उस ने मैनब से पूछा, ‘‘तुम्हारे बच्चे भी हैं? तुम्हें देख कर तो ऐसा लगता जैसे तुम्हारी शादी हालफिलहाल ही हुई होगी?’’

अपनी तारीफ हर इंसान को अच्छी लगती है. जावेद का कमेंट सुन कर मैनब को भी अच्छा लगा. बातचीत हुई तो परिचय के नाम पर दोनों ने अपनेअपने नाम एकदूसरे को बता दिए. मैनब को यह जान कर अच्छा लगा कि उस की मदद करने वाला भी मुसलमान है. वह न तो भेड़ की खाल में छिपे भेडि़ए को समझ पाई और न यह कि गलत और गंदे लोगों का कोई ईमान धर्म नहीं होता.

मैनब अपने बच्चों को साथ ले कर उस के साथ जाने को तैयार हो गई. जावेद उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर बसअड्डे ले गया. वहां जा कर पता चला कि सिद्धार्थनगर होते हुए ककहरा बौर्डर के लिए बस सुबह 7 बजे जाएगी.

जावेद इस बात को अच्छी तरह जानता था कि बस सुबह जाती है. वह मैनब को जानबूझ कर बसअड्डे ले गया था. बस नहीं मिली तो उस ने मैनब से कहा, ‘‘तुम मेरे साथ चलो, रात को आराम कर के सुबह चली जाना. मैं तुम्हें बस में बैठा दूंगा.’’

मैनब उस पर भरोसा कर के उस के घर आ गई. घर पर जावेद ने उसे चाय पिलाई, जिस में नशीली दवा मिली हुई थी. चाय पी कर उसे नींद आ गई. तब तक उस के बच्चे भी सो चुके थे. नींद के आगोश में डूबी मैनब और भी सुंदर दिख रही थी. जावेद उस के यौवन का स्वाद लेने के लिए बेचैन हो उठा. नशे की हालत में मैनब कुछ समझ नहीं पाई. वह जावेद का साथ देती गई. वह 2 बच्चों की मां जरूर थी, पर उस के बदन की गरमी किसी को भी पिघला सकती थी.

सुबह को जब मैनब का नशा टूटा और वह नींद से जागी तो उसे सब कुछ समझ में आ गया. लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकती थी. वह जावेद से बस अड्डे पहुंचाने की जिद करने लगी. इस पर जावेद ने समझाया, ‘‘तुम कुछ दिन हमारे साथ रह कर पैसा कमा लो, फिर मायके चली जाना. तुम खूबसूरत हो, जवान भी. तुम पर पैसे लुटाने वाले मैं ढूंढ लाऊंगा. यहां रहोगी तो पटना और नेपाल की गरीबी से भी पीछा छूट जाएगा. हम तुम्हारे बच्चों का यहीं के स्कूल में दाखिला करा देंगे.’’

मैनब इस के लिए तैयार नहीं थी. उस ने घरेलू मारपीट से तंग आ कर पति का साथ और घर छोड़ कर मायके में रहने का फैसला किया था. वहीं वह जा भी रही थी. लेकिन बीच रास्ते में यह मुसीबत आ गई थी. मैनब चूंकि घरेलू युवती थी, इसलिए वह जावेद की बात मानने के लिए तैयार नहीं हुई. जबकि वह उसे सोने की अंडा देने वाली मुर्गी मान चुका था. उस ने मैनब को बस्ती की देहव्यापार मंडी में उतारने की योजना बना ली थी.

इसी योजना के तहत उस ने उसे अपने जाल में फंसाया. इस के लिए उस ने मोहरा बनाया उस के बच्चों को. जब मैनब समझाने से नहीं मानी तो जावेद ने उस पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए. वह उस के साथ मनमानी करता, नशे की गोलियां खिला कर ज्यादा से ज्यादा नशे में रखने की कोशिश करता. इस से भी बात नहीं बनती तो उस के बच्चों को मार डालने की धमकी देता.

एक हफ्ते तक किए गए अत्याचारों से मैनब टूट गई. अपने बच्चों की खातिर अंतत: वह अपनी देह बेचने को राजी हो गई. इस के बाद जावेद ने उसे पूरी तरह तैयार कर के देहव्यापार की मंडी में उतार दिया. बाजारू लड़कियों के बीच रह कर वह भी जल्दी ही उन की तरह ग्राहक फंसाने के लटकेझटके सीख गई.

वह शाम ढलते ही मेकअप कर के सड़क किनारे खड़ी हो जाती. जावेद उस के लिए ग्राहक ले आता. मैनब कमाने लगी तो जावेद ने उसे एक कमरा अलग से किराए पर दिलवा दिया. वह उसी कमरे में रहने लगी. जावेद ने उस के दोनों बच्चों को स्कूल में दाखिल करवा दिया. उन्हें वह अपने साथ अपने घर में रखता था, ताकि उस की डोर उस के हाथ में रहे.

उधर जब नेपाल के रहने वाले मैनब के पिता हबीब को यह चला कि उस की बेटी अपनी ससुराल से नाराज हो कर मायके के लिए निकली थी तो उसे आश्चर्य हुआ. क्योंकि वह मायके नहीं पहुंची थी. मैनब के पिता हबीब ने आरिफ से बात की तो उस ने किसी भी तरह की जानकारी नहीं दी. उस ने दो टूक कह दिया कि मैनब उस के लिए मर चुकी है.

पति भले ही कितना भी निष्ठुर क्यों न हो जाए, पिता अपनी बेटी को कभी नहीं भूल सकता. हबीब का मैनब के साथ बहुत लगाव था. हबीब ने उसे तलाश करने की बहुत कोशिश की, पर वह कहीं नहीं मिली. उधर जावेद के जाल में फंसी मैनब दिनरात वहां से भागने के मंसूबे बनाती रहती थी. लेकिन जावेद ने उस के बच्चों को उस से अलग अपने कब्जे में रख कर उस के पर काट दिए थे.

वेश्या बाजार में काम करने वाली औरतें 3-4 माह में एक बार सरकारी अस्पताल में यौन रोगों की जांच कराने के लिए जाती थीं. एक बार मैनब भी उन के साथ अस्पताल जाने लगी तो उस ने बच्चों की बीमारी का वास्ता दे कर उन्हें भी साथ ले लिया था. उस का इरादा चुपचाप भाग जाने का था. लेकिन पता नहीं कैसे जावेद को उस के मंसूबे का पता चल गया. उस ने मैनब को अस्पताल से बाहर निकलते ही पकड़ लिया. इस के बाद उस ने मैनब को बुरी तरह मारापीटा.

कुछ दिनों के बाद मैनब ने फिर से भागने की योजना बनाई, लेकिन  इस बार भी वह पकड़ी गई. इस के बाद भी वह वहां से भागने की कोशिश करती रही, पर कामयाब नहीं हो सकी. देखतेदेखते करीब साढ़े 4 साल गुजर गए. मैनब जब नरक भोग रही थी, तभी एक दिन उस के साथ रात गुजारने के लिए लुंबिनी का रहने वाले श्यामप्रसाद आया. श्यामप्रसाद की बहन बस्ती में ब्याही थी.

श्याम जब भी बस्ती आता था, वहां की धंधा करने वाली औरतों के पास जरूर जाता था. उस दिन इत्तेफाक से वह मैनब के पास पहुंच गया था. श्याम के बातचीत करने के तौर तरीके से मैनब समझ गई कि वह उस के ही इलाके का रहने वाला है. उस ने उसे अपनी पूरी कहानी बताई.

मैनब की कहानी सुन कर श्याम को बहुत दुख हुआ. उस ने मैनब से वादा किया कि वह उस के पिता को तलाश कर रहेगा. श्याम मैनब से उस के पिता का नामपता ले कर लुंबिनी आया और उस के पिता हबीब से मिला. उस ने उन्हें मैनब के बारे में कुछ न बता कर उन का फोन नंबर ले लिया. उस ने सोचा था कि इस बार जब वह बस्ती जाएगा तो उन की मैनब से सीधी बात करा देगा.

मौका निकाल कर श्याम बस्ती आया. इस बार उस ने फोन कर के सीधे मैनब से ही मिलने का वक्त तय किया. मिलने पर उस ने उसे सारी बात बताई. साथ ही कहा भी कि वह उसे उस के पिता से मिला कर रहेगा. उस ने मैनब से शारीरिक संबंध बनाने से भी मना कर दिया. बातोंबातों में श्याम ने मैनब के पिता को फोन लगा दिया.

पिता की आवाज सुन कर मैनब खुद पर काबू नहीं रख सकी. वह फोन पर ही फफक कर रोने लगी. कुछ देर तो हबीब को समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे? फिर उस ने खुद को संभाल कर बेटी को दिलासा दी. हबीब बूढ़ा जरूर हो चुका था, पर बेटी से मिलने की इच्छा ने उसे अलग तरह की ताकत दे दी थी. वह बोला, ‘‘बेटी, तू परेशान मत हो, मैं जल्दी ही बस्ती आऊंगा तुम्हें लेने. अब तुम्हें वहां कोई नहीं रोक पाएगा.’’

पिता की बातों से मैनब को भरोसा होने लगा कि अब वह उस नरक से निकल जाएगी. हां उसे शातिर दिमाग जावेद से जरूर डर लग रहा था. साथ ही वह यह सोच कर भी डर रही थी कि कहीं उस की वजह से उस का बूढ़ा बाप किसी मुश्किल में न पड़ जाए. एक बार तो उस ने सोचा भी कि पिता को मना कर दे और अपनी बाकी की जिंदगी उसी दलदल में निकाल दे. लेकिन अपने बच्चों के बारे में सोच कर वह हर तरह का खतरा उठाने को तैयार हो गई.

जनवरी, 2014 के पहले सप्ताह में हबीब मैनब को तलाश करने के लिए बस्ती की देहव्यापार मंडी में आ पहुंचा. बस्ती रेलवे स्टेशन के पास ही बसा वेश्या बाजार पुरानी पतली गलियों में बने छेटेछोटे बदबूदार कमरों से भरा हुआ था. दोपहर के समय हबीब इस बस्ती में गया. वह मैनब को तलाशने के लिए जानबूझ कर श्याम का सहारा नहीं लेना चाहता था. उसे डर था कि कहीं उस की मौजूदगी से जावेद को शक न हो जाए.

हबीब जब वेश्या बाजार की तरफ जाने लगा तो उस का जमीर साथ नहीं दे रहा था. बुढापे में उसे वेश्या बाजार में जाना ठीक नहीं लग रहा था. लेकिन इस के अलावा उस के पास कोई रास्ता भी नहीं था. कई लोगों ने उसे व्यंग्य भरी नजरों से देखा भी, लेकिन उस ने उन की परवाह नहीं की.

वेश्या बाजार में आदमी की उम्र नहीं, पैसा देखा जाता है. हबीब ने भी पैसे दिखाने शुरू किए तो देहजीवा उस के करीब आने लगीं. हबीब उन से बात करता और आगे बढ़ जाता. इस तरह उस ने कई दिन मंडी में इधरउधर घूमते निकाल दिए. वेश्या बाजार में बेटी की तलाश में भटकते एक पिता को ग्राहक बन कर घूमना पड़ रहा था.

बस्ती के वेश्या बाजार में हर उम्र की औरतें देह व्यापार करती हैं. ये सभी औरतें खुद को एकदूसरी से ज्यादा जवान और कमउम्र की समझती हैं. कई बार वह उम्रदराज पुरुषों का मजाक उड़ाने से भी नहीं चूकतीं. कई जगह हबीब का भी मजाक उड़ाया गया. लेकिन उस ने परवाह नहीं की.

2 दिन इसी तरह निकाल गए. तीसरे दिन हबीब को मैनब दिख गई. बाजार की बात थी, इसलिए हबीब ने उसे इशारा कर के अपने पास बुलाया और ग्राहक की तरह बात की. मैनब ने भी पिता से उसी अंदाज में बात की और उन्हें ले कर अपने कमरे में आ गई. अकेले में वह पिता से लिपट कर फूटफूट कर रोई. बेटी का हालत देख हबीब ने सोचा कि क्यों न वह अपने बल पर ही मैनब को बाहर ले जाए.

उस ने अपनी यह इच्छा मैनब को भी बताई तो उस ने समझाया, ‘‘आप नहीं जानते, यहां गुंडों का राज है. किसी को जरा सा भी शक हो गया तो मुझे कहीं ऐसी जगह छिपा देंगे कि पता भी नहीं चल पाएगा.’’

‘‘बेटी, तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें कल यहां से बाहर निकाल ले जाऊंगा.’’ कह कर हबीब वहां से बाहर आ गया. बाहर आ कर वह सीधे पुरानी बस्ती थाने गया. बस्ती का वेश्या बाजार इसी थानाक्षेत्र में आता है. लोगों ने हबीब को बताया था कि पुरानी बस्ती थाने के थानाप्रभारी प्रदीप सिंह तुम्हारी बेटी को वेश्या बाजार से बाहर निकालने का काम कर सकते हैं.

हबीब थानाप्रभारी प्रदीप सिंह के पास गया और उन के पैर पकड़ कर पूरी दास्तान बताई. प्रदीप सिंह ने हबीब की बात सुन कर बस्ती के एसपी वी.पी. श्रीवास्तव से संपर्क किया. उन्होंने आदेश दिया कि तुरंत काररवाई करें. इस के बाद प्रदीप सिंह ने पुलिस फोर्स के साथ 11 जनवरी, 2014 को बस्ती के वेश्या बाजार पर छापा मारा.

नतीजतन मैनब और उस के बच्चों को देहव्यापार कराने वालों के चंगुल से बाहर निकाल लिया गया. पुलिस ने मैनब से पूछ कर देहव्यापार कराने वाले रसूलनगर मोहल्ले के जावेद को भी पकड़ लिया. उस के खिलाफ अनैतिक देहव्यापार अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर के उसे जेल भेज दिया गया.

वेश्या बाजार से आजाद होने के बाद मैनब ने बताया कि उस ने वहां 4 साल से ज्यादा समय तक नरक जैसी जिंदगी गुजारी थी. हर रोज उस के शरीर को 5-10 ग्राहकों द्वारा रौंदा और नोचाखसोटा जाता था. वह तो जिल्लतभरी जिंदगी से बाहर निकल आई, पर अभी भी वहां उस की जैसी कई और लड़कियां हैं. मैनब ने बताया कि वहां जो लड़की आती है, वह पूरी तरह से दलालों के चंगुल में फंस कर रह जाती है.

शुरू में उसे नशे की गोलियां खिला कर मारपीट कर इस धंधे में उतरने के लिए तैयार किया जाता है. बाद में मजबूर हो कर उसे उन की बात माननी पड़ती है. यहां नेपाल और बिहार की गरीब और लाचार लड़कियों को लाया जाता है. उस की किस्मत अच्छी थी कि देर से ही सही, पर बच गई. उस के पिता बहुत अच्छे हैं, जिन्होंने यहां रहने के बाद भी मुझे अपना लिया.

मैनब के पिता हबीब ने बताया कि उस ने तो अपनी बेटी को मरा समझ कर भुला दिया था. उस की बेटी इस स्थिति में मिलेगी, उस ने कभी सोचा भी नहीं था.

मैनब के बरामद होने के बाद बस्ती के एसपी वी.पी. श्रीवास्तव ने इस वेश्या बाजार को जबरन देहव्यापार का अड्डा नहीं बनने देने का संकल्प लिया और एक मुहिम चला कर दलालों को वहां से खदेड़ने की शुरुआत कर दी. देखने वाली बात यह है कि वह कब तक अपना संकल्प पूरा कर पाते हैं. मैनब अपने पिता के साथ अपने घर नेपाल चली गई है, जहां वह मेहनतमजदूरी कर के अपनी जिंदगी का बोझ खुद उठाएगी और अपने बच्चों को पालेगी.

—कथा पुलिस सूत्रों और मैनब की बातचीत पर आधारित. कहानी में कुछ नाम बदल दिए गए हैं.

कलेक्टर को हनीट्रैप में फंसाने की साजिश

गुजरात के जिला अहमदाबाद के वीरमगांव के देसाई पोल के रहने वाले वासुदेवभाई भट्ट (व्यास) की अखबारों की एजेंसी तो थी ही, साथ ही वह कर्मकांड यानी पूजापाठ भी कराते थे. उनके परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे और 3 बेटियां थीं. उन का एक बेटा अमेरिका में रहता है तो दूसरा आणंद के पास विद्यानगर में. बेटियों में एक डाकोर में रहती है तो दूसरी अहमदाबाद में.

उन की तीसरी बेटी केतकी व्यास ने वीरमगांव के ही देसाई चंदूलाल मगनलाल आटïï्स एंड कामर्स कालेज से बीकौम किया था. वह पढऩे में ठीकठाक थी, इसलिए वह गुजरात पब्लिक सर्विस कमीशन (जीपीएससी) की परीक्षा देना चाहती थी. परिवार की स्थिति सामान्य थी, इसलिए कोचिंग वगैरह करना उस के लिए संभव नहीं था. तब वह वीरमगांव में ही एक अधिकारी के पास मार्गदर्शन के लिए जाने लगी थी. उस अधिकारी के मार्गदर्शन और अपनी मेहनत की बदौलत केतकी व्यास जीपीएससी की परीक्षा पास करने में सफल रही.

जीपीएससी की परीक्षा पास करने के बाद केतकी व्यास की पहली नियुक्ति नीलामी विभाग में चीफ अफसर के रूप में हुई. संयोग से उस समय नीलामी विभाग में पीएसआई के रूप में नौकरी करने वाले भास्कर व्यास से परिचय हुआ तो उस ने उन से विवाह कर लिया. केतकी व्यास को अपनी इस नौकरी से संतोष नहीं था, इसलिए वह लगातार मेहनत करती रही. परिणामस्वरूप उसने वर्ग-1 की परीक्षा पास कर ली, जिस से उस का कद और बढ़ गया.

अब केतकी व्यास बावणा में तहसीलदार हो गई. इस के बाद वह महेमदाबाद में स्टांप ड्यूटी में डिप्टी कलेक्टर बनी. पर उन की असली पहचान तो तब हुई, जब वह कडी में प्रांत अधिकारी बनी.

इतने दिनों से नौकरी करने वाली केतकी व्यास की जानपहचान अनेक राजनीतिक पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से हो गई थी. सरकारी काम से उन का गांधीनगर आनाजाना होता ही रहता था. उसी बीच उन की जानपहचान मुख्यमंत्री कार्यालय में काम करने वाले भारतीय जनता पार्टी के एक नेता से हो गई।

उस नेता के परिचय में आने के बाद तो केतकी व्यास का कद आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गया.  अखबारों में अकसर समाचार आता रहता कि सरकार ने इतने अधिकारियों का तबादला कर दिया, जिसकी लंबी लिस्ट होती थी. यह एक सामान्य प्रक्रिया थी, पर अपवादस्वरूप कभी ऐसा भी होता है कि मात्र एक अधिकारी का ट्रांसफर होता थी. पर इस सिंगल ट्रांसफर के पीछे कोई बड़ी वजह होती है. यह ट्रांसफर या तो सजा के रूप में होता है या फिर किसी विशेष काम के लिए.

पर दिसंबर, 2021 में जब केतकी व्यास कडी में प्रांत अधिकारी थी तो उन का प्रमोशन के साथ सिंगल ट्रांसफर और्डर हुआ था. इस आर्डर के आते ही केतकी व्यास आणंद जिले की एडिशनल कलेक्टर बन गई थी. आणंद में पद संभालने के साथ ही केतकी का नाता विवादों से जुड़ गया.

सामान्य रूप से किसी अधिकारी का तात्कालिक रूप से ट्रांसफर होता है तो उसे सरकारी आवास मिलने में समय लगता है. ऐसे में ट्रांसफर पर आया अधिकारी जब तक सरकारी आवास नहीं मिलता, सर्किट हाउस में रहता है. उसी तरह आणंद आई केतकी व्यास भी सर्किट हाउस में ठहरीं.

एडिशनल कलेक्टर बनते ही घमंडी हो गई केतकी व्यास

नौकरी पूरी होने की वजह से एडिशनल कलेक्टर पी.सी. ठाकोर रिटायर हुए थे. उन्हीं की जगह केतकी व्यास ट्रांसफर हो कर आई थी. रिटायर होते ही पी.सी. ठाकोर ने सरकारी आवास खाली कर दिया था.  वही आवास केतकी व्यास को अलाट कर दिया गया था. सरकारी आवास मिल जाने के बावजूद केतकी व्यास सर्किट हाउस में ही रहती रहीं. जब इस बात के समाचार अखबारों छपे तब अधिकारियों ने उन से सॢकट हाउस खाली कराया था.

एडिशनल कलेक्टर बनते ही केतकी व्यास में कलेक्टर वाला रुतबा आ गया था। यह स्वाभाविक भी था. पर वह स्टाफ के साथ भी बदतमीजी से बात करने लगी थीं, जिस की वजह से स्टाफ ने हड़ताल कर दी थी. इस बात की भनक जब मुख्यमंत्री कार्यालय को लगी तो अधिकारियों ने बीच में आ कर मामला रफादफा कराया था.

आणंद आते ही केतकी व्यास मलाई काटने के लिए छटपटाने लगी थी. अपने स्वभाव के अनुसार उन की नजरें कलेक्टर औफिस पर जम गई थीं. उन की नजरें हमेशा इस बात पर रहने लगीं कि कलेक्टर औफिस में क्या चल रहा है, कलेक्टर साहब से कौन मिलनेजुलने आ रहा है? कोई हिसाबकिताब तो नहीं हो रहा है, यह जानने के  लिए वह हर वक्त बेचैन रहती थीं.

किसी ने आ कर हिसाबकिताब कर लिया तो मलाई कलेक्टर साहब अकेले ही काट लेंगे और वह वंचित रह जाएंगी. इस के लिए उसे लगा कि अगर उस का कोई आदमी कलेक्टर औफिस में सेट हो जाए तो उन्हें अंदर की सारी जानकारी तो मिलती ही रहेगी, अपने कुछ काम करा कर वह भी कुछ कमाई कर सकेंगी.

फिर क्या था, केतकी व्यास ने जोड़तोड़ लगा कर अपने एक आदमी नायब तहसीलदार जे.डी. पटेल को कलेक्टर डी.एस. गढवी के औफिस में उन के पीए के रूप में रखवा दिया. इस के बाद कलेक्टर औफिस में चलने वाली तमाम गतिविधियों की जानकारी उन्हें होने लगी.

केतकी व्यास के अनुसार जब से वह ट्रांसफर हो कर आणंद आई थी, तभी से कलेक्टर डी.एस. गढवी उन से नजदीकी बनाने की कोशिश कर रहे थे. आतेजाते उन से मिलने, बाहर साथ घूमने चलने तथा साथ में कहीं बाहर खाने चलने के साथसाथ उन के व्यक्तिगत जीवन में रुचि लेने का प्रयास कर रहे थे. यही नहीं, उन के घर आने की भी बात करते थे. इस से केतकी व्यास को उन की रंगीनमिजाजी के बारे में पता चल गया. उन्हें लगा कि कलेक्टर साहब महिलाओं के शौकीन हैं.

पुलिस के अनुसार, कलेक्टर डी.एस. गढवी के स्वभाव से एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास परिचित हो गईं तो एक दिन उन्होंने नायब तहसीलदार जयेश पटेल को अपनी केबिन में बुला कर कहा, ”कलेक्टर मेरे पीछे पड़ा है. इस का मतलब कलेक्टर रंगीनमिजाज है. इसलिए औफिस में स्पाई कैमरा लगा कर किसी लड़की को बुला कर उसे उस के प्रेमजाल में फंसाओ.

इस के बाद उसे वीडियो दिखा कर वायरल करने तथा दुष्कर्म में फंसाने की धमकी दे कर विवादास्पद जमीनों की फाइलें क्लियर करा लो. जिन की जमीनें क्लियर होंगीं, उन से जो पैसा मिलेगा, उसे बराबर बराबर बांट लिया जाएगा. अगर कलेक्टर फाइल क्लियर करने से मना करेगा तो वीडियो वायरल कर दी जाएगी, जिस के बाद उस का ट्रांसफर हो जाएगा.’‘

एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास की यह योजना नायब तहसीलदार जयेश पटेल को भी पसंद आ गई. क्योंकि गुजरात में जमीनें अनमोल हैं. अगर योजना सफल हो जाती तो करोड़ो की कमाई हो सकती थी. इसलिए जयेश पटेल ने इस बातचीत के 10 दिन बाद अपने फोन के मारफत अपने दोस्त हरीश चावड़ा के नाम औनलाइन 3 जासूसी कैमरे मंगा लिए. इस की डिलीवरी के लिए गणेश दुग्धालय का पता दिया गया था.

3 जासूसी कैमरों का पार्सल हरीश चावड़ा ने रिसीव किया और उन्हें कलेक्टर औफिस में काम करने वाले जयेश पटेल तक पहुंचा दिया. इस के बाद जयेश पटेल ने कैमरों को एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास को दिखाया तो उनके पीए गौतम चौधरी ने कैमरों की जांच की.

कलेक्टर औफिस और चैंबर में लगवा दिए जासूसी कैमरे

इस तरह इस मंडली ने मिल कर तत्कालीन कलेक्टर डी.एस. गढवी को हनीट्रेप में फंसाने की पूरी तैयारी कर ली. जयेश पटेल के दोस्त हरीश चावड़ा की एक युवती से अच्छी दोस्ती थी. हरीश उसे अपनी स्कूटी पर बैठा कर कलेक्टर औफिस तक ले आया.

उस युवती को एक बार कलेक्टर औफिस जाने के लिए 5 हजार रुपए देने का लालच दिया गया. इस के अलावा उस से यह भी कहा गया था कि अगर उस के द्वारा कोई फाइल क्लियर होगी तो प्रत्येक फाइल पर उसे 25 हजार रुपए अलग से दिए जाएंगे.

उसी बीच जयेश पटेल ने कलेक्टर औफिस में कलेक्टर के चैंबर तथा एंटी चैंबर के स्विच बोर्ड में जासूसी कैमरे लगा दिए. हरीश चावडा द्वारा लाई गई युवती का परिचय जयेश पटेल ने कलेक्टर डीएस गढवी से एक वकील के रूप में कराया था. पहली ही मुलाकात में उस युवती को कलेक्टर के पास जमीनों की दोतीन फाइलें दे कर भेजा गया था.

एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास, जयेश पटेल और हरीश चावड़ा का इरादा उस युवती को भेज कर कलेक्टर डी.एस. गढवी से कुछ जमीनों की फाइलें क्लियर कराने का था. इन फाइलों में खडोल उमेटा गांव और करमसद गांव की फाइलें प्रमुख थीं. पुलिस के अनुसार, अगर ये फाइलें क्लियर हो जातीं तो सरकार को प्रीमियम का बहुत बड़ा नुकसान होता, शायद इसीलिए कलेक्टर गढवी ने उन फाइलों को क्लियर करने से मना कर दिया था.

जयेश पटेल द्वारा भेजी गई युवती कलेक्टर गढवी से 4-5 बार मिलने उन के चैंबर में गई थी. उसी बीच कलेक्टर गढवी और उस युवती के बीच काफी नजदीकी बढ़ गई थी. लेकिन केतकी व्यास, जयेश पटेल और हरीश चावड़ा को युवती और कलेक्टर गढवी की एक ही मुलाकात की फुटेज मिली थी, जिस में कलेक्टर डी.एस. गढवी उस युवती का हाथ पकड़ कर अपने एंटी चैंबर में ले जाते हुए दिखाई दे रहे थे. इन तीनों ने एंटी चैंबर में भी कैमरा लगाया था. परंतु एंटी चैंबर के इलेक्ट्रिक बोर्ड में किसी खराबी की वजह से वीडियो रिकौर्ड नहीं हो सकी थी.

पुलिस के अनुसार, फुटेज के आधार पर केतकी व्यास, जयेश पटेल और हरीश चावड़ा तत्कालीन कलेक्टर डी.एस. गढवी को ब्लैकमेल करने लगे थे. बदनामी से बचने के लिए डी.एस. गढवी तीनों से दबने ही लगे थे. इसी वजह से धीरेधीरे तत्कालीन कलेक्टर डी.एस. गढवी की पकड़ कलेक्टर औफिस पर कम होने लगी थी और कलेक्टर पर केतकी व्यास की पकड़ बढ़ती जा रही थी.

पुलिस के अनुसार, इन तीनों से तत्कालीन कलेक्टर डीएस गढवी इस हद तक दबने लगे थे कि कलेक्टर औफिस का कोई भी काम या फाइल होती, गढवी उसे केतकी व्यास के पास भेज देते थे. इस तरह आणंद कलेक्टर औफिस पर केतकी व्यास ने अपना लगभग आधिपत्य जमा लिया था.

किसी भी मामले में कलेक्टर के रूप में हस्ताक्षर भले ही डीएस गढवी के होते थे, पर उस पर नोट केतकी व्यास का होता था. चेहरा भले ही गढवी का होता था, पर परदे के पीछे खेल और आयोजन केतकी व्यास का होता था.

जैसा कि कहा जाता है कि लालच बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है, वैसा ही कुछ केतकी व्यास के साथ भी हुआ. डी.एस. गढवी को पूरी तरह कब्जे में लेने के लिए दोबारा ट्रेप करने की कोशिश की गई. इस के लिए फिर से चैंबर के इलेक्ट्रिक बोर्ड में जासूसी कैमरा लगाया गया. इस बीच तत्कालीन कलेक्टर डी.एस. गढवी सूरत की अपनी एक महिला मित्र के साथ यौन गतिविधि करते जासूसी कैमरे में कैद हो गए.

केतकी व्यास, जयेश पटेल और हरीश चावडा ने ये सारी फुटेज कलेक्टर औफिस के कंप्यूटर औपरेटर के द्वारा निकलवा ली. इस के बाद इन फुटेज के आधार पर जयेश पटेल ने गढवी को बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर ब्लैकमेल करने की कोशिश की. जबकि यह फुटेज उन लोगों के द्वारा भेजी गई युवती की नहीं थी.

यह फुटेज गढवी की महिला मित्र के साथ की थी। इसलिए गढवी ने पलट कर परिणाम भुगतने की धमकी दे दी, ”तुम लोगों की जो इच्छा हो कर लो.’‘ क्योंकि उन्हें अपनी उस महिला मित्र पर भरोसा था कि वह उन के खिलाफ कभी कोई बयान नहीं देगी.

कलेक्टर के आचरण की न्यूज चैनलों पर प्रसारित हुई खबर

तत्कालीन कलेक्टर डीएस गढवी की इस धमकी के बाद केतकी व्यास, जयेश पटेल और हरीश चावडा ने डीएस गढवी को बदनाम करने की पूरी तैयारी कर ली. अब तक यह घटना काफी संवेदनशील बन चुकी थी.

इस के लिए उन्होंने 8 जीबी की 5 पेनड्राइव मंगाई. इन्हीं पांचों पेनड्राइव में केतकी व्यास ने सूरत वाली महिला की फुटेज कापी कराई और अपने पीए गौतम चौधरी से तत्कालीन कलेक्टर डी.एस. गढवी के खिलाफ बदनाम करने वाला पत्र लिखवा कर पेन ड्राइव के साथ अलगअलग आसमानी रंग के लिफाफे में भर कर हरीश चावड़ा को सौंप दिया. हरीश चावड़ा ने उन लिफाफों को अलगअलग 6 चैनलों को पोस्ट कर दिया. इस के बाद यह फुटेज कुछ चैनलों पर प्रसारित हो गई.

इस फुटेज के प्रसारित होते ही आईएएस लौबी में ही नहीं, सरकार में भी हड़कंप मच गया. ज्यादा कुछ बवाल होता, उस के पहले ही राज्य सरकार ने तत्काल प्रभाव से आईएएस डीएस गढवी को अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 के तहत कदाचार और नैतिक अधमता के गंभीर आरोप में निलंबन का आदेश दिया. इस के अलावा इस मुद्दे को देखने के लिए 5 महिलाओं की एक उच्च स्तरीय समिति भी बनाई गई.

राज्य सरकार ने इस मामले की जांच गुजरात पुलिस से कराने के बजाय सीधे गुजरात पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते एटीएस से कराने का निर्णय लिया. इस मामले की सच्चाई का पता लगाने की जिम्मेदारी एटीएस को सौंपी गई. जांच के बाद एटीएस ने कलेक्टर औफिस में काम करने वाली एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास, नायब तहसीलदार जयेश पटेल और आणंद जिला कलेक्टर औफिस में राजस्व संबंधी मामले देखने वाले हरीश चावड़ा के आरोपी होने की पुष्टि कर दी.

तब आणंद पुलिस ने औपचारिक रूप से एटीएस के इंसपेक्टर जे.पी. रोजिया की ओर से (आरएसी) रेजीडेंस एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास, नायब तहसीलदार जयेश पटेल और उस के दोस्त हरीश चावडा के खिलाफ आईपीसी की धारा 389, 354सी, आईटी अधिनियम 66ई और 120बी के तहत शिकायत दर्ज कर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तार आरोपियों में केतकी व्यास के बारे में आप पहले जान ही चुके हैं. रही बात जयेश पटेल की तो वह आणंद के बाकरोल के पास रामभाई काका रोड पर स्थित एक सोसायटी के भव्य बंगले में रहता है. वर्ग 3 का अधिकारी होने के बावजूद उस के पास लगभग 5 करोड़ का बंगला है.

हरीश चावडा का 2 मंजिला मकान था, जिस में नीचे की मंजिल में पर मातापिता रहते थे तो ऊपर वाली मंजिल में वह अपने परिवर के साथ रहता था. कलेक्टर हनीट्रेप में गिरफ्तारी के बाद अब इन तीनों की नौकरी खतरे में पड़ गई है.

एडिशनल कलेक्टर और गैंग के सदस्य हुए गिरफ्तार

केतकी व्यास के पीए के रूप में काम करने वाले गौतम चौधरी ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अदालत में अर्जी दी है कि वह इस मामले में गवाह बनने को तैयार है. अगर गौतम चौधरी इस मामले में गवाह बन जाता है तो केतकी व्यास की तमाम व्यक्तिगत बातों का रहस्य उजागर हो सकता है.

आरोपियों को जब लगा कि अब वे इस मामले में खुद ही फंसने वाले हैं तो उन्होंने साक्ष्यों को नष्ट करने की कोशिश की थी, फिर भी तमाम साक्ष्य जांच अधिकारियों के हाथ लग चुके हैं.

एटीएस ने केतकी व्यास सहित 3 लोगों के खिलाफ आणंद के थाना टाउन में केस दर्ज कराया था. पता चला था कि आणंद के लांभवेल रोड पर स्थित निशाआटोमोबाइल गैरेज में हनीट्रेप में उपयोग में लाए गए जासूसी कैमरे जलाए गए थे. पुलिस ने एफएसएल की टीम के साथ छापा मार कर वहां से राख बरामद कर वैज्ञानिक परीक्षण के लिए भेज दी.

20 अगस्त, 2023 की रात केतकी व्यास से पूछताछ में खुलासा हुआ था कि 2 हार्डडिस्क एक प्लास्टिक की थैली में डाल कर उन्हें संदेशर नहर में फेंक दी थीं. अगले दिन पुलिस ने गोताखोरों की मदद से दोनों हार्डडिस्क बरामद कर ली थीं.

एडिशनल कलेक्टर केतकी व्यास, जयेश पटेल और हरीश चावड़ा द्वारा किए गए इस कार्य से अधिकारी जगत शर्मशार हुआ. खास कर आईएएस लौबी में भारी नाराजगी है. जिस की वजह से पुलिस को आरोपियों के खिलाफ सख्ती से काररवाई करने का आदेश दिया गया है.

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि तीनों अधिकारियों ने एक युवती को हथियार बना कर हनीट्रेप किया था, आगे चल कर इस घटना को इम्मोरल ट्रैफिकिंग के अंतर्गत दर्ज किया जा सकता है. इस के लिए जो युवती कलेक्टर से मिलने गई थी, उसे गवाह बनाया जाएगा.

इस के अलावा इस मामले में कलेक्टर डीएस गढवी को ब्लैकमेल कर के पैसे वसूलने का भी मामला बनता है. डी.एस. गढवी ने तो ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं कराया, पर एटीएस ने अपनी ओर से ब्लैकमेल कर के पैसों की मांग करने का मामला दर्ज कराया है.

अब केतकी व्यास का कहना है कि कलेक्टर डी.एस. गढवी उन के व्यक्तिगत जीवन में दखल दे कर उन से नजदीकी बनाने की कोशिश कर रहे थे. उन से बचने के लिए उन्होंने यह सब किया था.

कलेक्टर को ब्लैकमेल करने के मामले में अभी भी ऐसे तमाम सवाल हैं, जिन के जवाब मिलना बाकी है. तत्कालीन कलेक्टर को कब से ब्लैकमेल किया जा रहा है, इस की कोई जानकारी नहीं है. जासूसी कैमरा कब लगाया गया, इस के बारे में भी कुछ पता नहीं चला है.

ब्लैकमेल कर के कितनी फाइलें क्लियर कराई गईं, पुलिस के पास इस की भी कोई जानकारी नहीं है. हाईप्रोफाइल मामला होने के बावजूद पुलिस ने तीनों आरोपियों को रिमांड पर नहीं लिया था. बहरहाल, तीनों आरोपी कथा लिखने तक जेल में थे.

मौडल नेहा का हनीट्रैप रैकेट – भाग 4

चैट करने के दौरान धीरेधीरे नेहा उर्फ मेहर सोशल मीडिया के दोस्तों से नजदीकियां बढ़ाने लगती थी. वह उन से अब खुल कर बातें करती, उन को यह जताने की कोशिश करती कि वह उन से दिल से प्यार करने लगी है. इस के बाद वह उन से खुल कर सैक्स चैट करने लग जाती थी. जब युवक उस के जाल में फंस जाते थे, तब वह उन्हें अपने घर बुलाने के लिए आमंत्रित करती थी.

जो युवक पूरी तरह से उस के जाल में फंस जाते थे तो नेहा के घर उस से मिलने आ जाते थे. इस के लिए नेहा उर्फ मेहर ने बंगलुरु में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था. यहां पर उस ने हनीट्रैप में युवाओं को फंसाने के सारे इंतजाम कर रखे थे. जब युवक मेहर के घर पर आते थे तो वह बिकिनी पहन कर उन का जोरदार  स्वागत करती थी.

जैसे ही युवक आते, सब से पहले वह उन्हें अपने गले से लगा लेती थी. उस के बाद उन को किस करती थी. इसी दौरान कमरे में छिपे उस के अन्य साथी चुपके से उन दोनों की वीडियो बना लेते थे. वीडियो बना कर नेहा के साथी अचानक सामने आ जाते थे और युवकों को धमकाने लग जाते थे.

मौडल मेहर अब तक 12 पीडि़तों से कर चुकी है उगाही

पुलिस पूछताछ मैं नेहा उर्फ मेहर ने स्वीकार किया है कि उस का गिरोह अब तक 12 लोगों से जबरन वसूली कर चुका है. कर्नाटक पुलिस इस गिरोह के और भी अन्य मामलों में शामिल होने की आशंका जता रही है. पुलिस ने बताया कि इस गिरोह का एक अन्य आरोपी नदीम अभी तक फरार है, जिस को पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही है.

कथा लिखी जाने तक कर्नाटक पुलिस गिरफ्तार चारों आरोपियों से पूछताछ कर के उन्हें जेल भेज चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित कहानी में गोपाल कृष्णनन परिवर्तित नाम है.

हनीट्रैप क्या है? कैसे फंसते हैं इस में लोग?

असल में हनीट्रैप का इस्तेमाल हमारे देश में प्राचीन काल से ही होता रहा है. प्राचीन समय में राजा महाराजाओं के पास विषकन्याएं हुआ करती थीं, जो उन के सब से खतरनाक दुश्मन को मारने या कोई भेद निकालने के काम आती थीं. असल में ये सब वे बच्चियां होती थीं, जो अकसर राजाओं की अवैध संतानें होती थीं.

जैसे दासियों के साथ उन के संपर्क में आई संतानें अथवा गरीब बच्चियां कुछ दिनों बाद इन्हें जहरीली बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाती थी. इन्हें कम उम्र में ही कम मात्रा में अलगअलग तरह का जहर देना शुरू कर दिया जाता था. फिर धीरेधीरे जहर की मात्रा बढ़ाई जाती थी. इस प्रक्रिया में, अधिकतर बच्चियां मर जाया करती थीं, कुछ विकलांग हो जाती थीं, मगर जो बच्चियां सहीसलामत रहतीं, उन्हें और भी अधिक घातक बनाया जाता था.

उस के बाद उन को नृत्य गीत, सजनेसंवरने और दूसरों को आकर्षित करने की कला में पारंगत बनाया जाता था ताकि वे किसी से भी बातचीत कर उन्हें अपने वश में कर सकें . युवा होतेहोते वे युवतियां इतनी घातक और जहरीली हो जाती थीं कि उन के शरीर का स्पर्श भी जानलेवा हो जाता था.

उस विषकन्या का पूरा शरीर यानी कि उन का थूक, पसीना और खून सब कुछ जहरीला हो चुका होता था, इसलिए इन से किसी भी प्रकार का शारीरिक संबंध जानलेवा साबित होता था. इन विषकन्याओं का इस्तेमाल दूसरे राजाओं, सेनापतियों को मारने या फिर जरूरी जानकारियों को हासिल करने के लिए किया जाता था.

आजकल यह भी प्रचलन में है कि दुश्मन देश की खूबसूरत महिला एजेंट्स सेना के अधिकारियों और सेना के जवानों को अपने हुस्न के जाल में फंसाती हैं. दुनिया का हर देश हर वक्त अपने दुश्मन को मात देने की कोशिशों में लगा रहता है. वर्तमान युग की जंग सीधी जंग नहीं होती और हर बार केवल जंग के मैदान में ही मात नहीं दी जाती, बल्कि खुफिया तरीकों से भी अब अपने दुश्मनों को मात देने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है.

‘हनीट्रैप’ जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि हनी यानी शहद और ट्रैप मतलब जाल, एक ऐसा मीठा जाल जिस में फंसने वाले को कभी अंदाजा भी नहीं हो पाता कि वह किस तरह इस में फंस गया है. दुश्मन देश की खूबसूरत एजेंट्स सेना के अधिकारियों व अन्य कर्मचारियों को अपने हुस्न के जाल में फंसा कर उन से महत्त्वपूर्ण जानकारियां हासिल कर लेती हैं. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी अकसर भारतीय थल सेना, वायुसेना और नौसेना से जुड़े लोगों को हनीट्रैप में फंसाने की कोशिश करती रहती है.

आजकल कुछ युवतियां मोटी रकम वसूलने के लिए लोगों को हनीट्रैप में फांस रही हैं.

असली पुलिस पर भारी नकली पुलिस – भाग 1

शबाना परवीन सबइंसपेक्टर बनना चाहती थी, इसलिए बीए करने के बाद वह मन लगा कर सबइंसपेक्टर की परीक्षा की तैयारी करने लगी  थी. पिता असलम खान भी उस की हर तरह से मदद कर रहे थे.

मध्य प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर की जगह निकली तो शबाना परवीन ने आवेदन कर दिया. मेहनत कर के परवीन ने परीक्षा भी दी, लेकिन रिजल्ट आया तो शबाना परवीन का नाम नहीं था, जिस से उस का चेहरा उतर गया.

बेटी का उतरा चेहरा देख कर असलम ने उस की हौसलाअफजाई करते हुए फिर से परीक्षा की तैयारी करने को कहा. परवीन फिर से परीक्षा की तैयारी में लग गई. लेकिन अफसोस कि अगली बार भी वह सफल नहीं हुई.  लगातार 2 बार असफल होने से परवीन के सब्र का बांध टूट गया. पिता ने उसे बहुत समझाया और फिर से परीक्षा की तैयारी करने को कहा. लेकिन परवीन की हिम्मत नहीं पड़ी.

परवीन 20 साल से ऊपर की हो चुकी थी. आज नहीं तो कल उस की शादी करनी ही थी. नौकरी के भरोसे बैठे रहने पर उस की शादी की उम्र निकल सकती थी. रही बात नौकरी की तो शौहर के यहां रह कर भी वह तैयारी कर सकती थी.

इसलिए असलम खान परवीन के लिए लड़का देखने लगे. थोड़ी भागादौड़ी के बाद उन्हें राजस्थान के कोटा शहर में एक लड़का मिल गया. अफसर खान एक शरीफ खानदान से था और अपना बिजनैस करता था. असलम को लगा कि परवीन इस के साथ सुखचैन से रहेगी. इसलिए अफसर खान के घर वालों से बातचीत कर के असलम ने शबाना परवीन की शादी उस से कर दी.

शादी के बाद परवीन अपनी घरगृहस्थी में रम गई. एक साल बाद वह एक बेटे की मां भी बन गई. मां बनने के बाद उस की जिम्मेदारियां और बढ़ गईं. वह घरपरिवार में व्यस्त जरूर हो गई थी, लेकिन अभी भी पुलिस की वरदी पहनने की उस की तमन्ना खत्म नहीं हुई थी.

यही वजह थी कि अकसर वह इंदौर आतीजाती रहती थी. अफसर खान कभी पूछता तो वह कहती, ‘‘तुम्हें तो पता ही है कि मैं पुलिस सबइंसपेक्टर की तैयारी कर रही हूं. उसी के चक्कर में इंदौर आतीजाती हूं.’’

परवीन का इंदौर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया तो एक दिन अफसर खान ने उसे समझाया, ‘‘तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत है. अल्लाह का दिया हमारे पास क्या कुछ नहीं है. रुपए पैसे तो हैं ही, एक खूबसूरत बेटा भी है. इसी को संभालो और खुश रहो.’’

लेकिन परवीन इस में खुश नहीं थी. वह पुलिस की नौकरी के लिए अपनी जिद पर अड़ी थी. इसलिए घर में रोज किचकिच होने लगी. दोनों के बीच तनाव बढ़ने लगा. पति के लाख समझाने पर भी परवीन नहीं मानी. अफसर खान ज्यादा रोकटोक करने लगा तो एक दिन परवीन ने साफसाफ कह दिया, ‘‘अब हमारी और तुम्हारी कतई निभने वाली नहीं है. इसलिए तुम मुझे तलाक दे कर मुक्त कर दो.’’

अफसर खान अपनी बसीबसाई गृहस्थी बरबाद होते देख परेशान हो उठा. उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने अपने ससुर को फोन किया. असलम खान ने भी कोटा जा कर बेटी को समझाया. लेकिन परवीन टस से मस नहीं हुई. मजबूर हो कर अफसर खान को तलाक देना ही पड़ा. तलाक के बाद परवीन अपने 5 साल के बेटे को ले कर अपने पिता के घर उज्जैन आ गई.

पिता के घर आने के बाद भी परवीन का वही हाल रहा. वह पिता के घर से भी सुबह इंदौर के लिए निकल जाती तो देर रात तक लौटती. ऐसा कई दिनों तक हुआ तो एक दिन असलम खान ने पूछा, ‘‘बेटी, तुम रोज सुबह निकल जाती हो तो देर रात तक लौट कर आती हो, इस बीच तुम कहां रहती हो?’’

‘‘आप को पता नहीं,’’ परवीन ने कहा, ‘‘अब्बू, मैं ने मध्य प्रदेश पुलिस की सबइंसपेक्टर की परीक्षा दे रखी है. जल्दी ही मुझे नौकरी मिलने वाली है.’’

‘‘सच…?’’ असलम खान ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां अब्बू… अब जल्दी ही आप को मेरे सबइंसपेक्टर होने की खुशखबरी मिलने वाली है.’’ परवीन ने कहा.

और फिर कुछ दिनों बाद सचमुच परवीन ने घर वालों को खुशखबरी दी कि वह प्रदेश पुलिस की परीक्षा पास कर के सबइंसपेक्टर हो गई है. असलम खान को बेटी की बात पर भरोसा तो नहीं हुआ, फिर भी उन्होंने उस की बात मान ली. लेकिन जब एक दिन परवीन सब इंसपेक्टर की वरदी में घर पहुंची तो असलम खान परवीन को देखते ही रह गए. वह चहकते हुए अब्बू से बोली, ‘‘देखो अब्बू ,मैं दरोगा हो गई हूं. मेरे कंधे पर 2 सितारे चमक रहे हैं.’’

मारे खुशी के असलम खान की आंखों में आंसू आ गए. उन के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. वह कुछ कहते, उस के पहले ही साथ लाए मिठाई के डिब्बे से एक टुकड़ा मिठाई उस के मुंह में ठूंसते हुए परवीन ने कहा, ‘‘अब्बू, पुलिस वरदी में मै कैसी लग रही हूं?’’

असलम ने अल्लाह को सजदा करते हुए कहा, ‘‘अल्लाह ने हमारी तमन्ना पूरी कर दी. मेरी बेटी बहुत सुंदर लग रही है. तू बेटी नहीं बेटा है. लेकिन बेटा, इस समय तुम्हारी पोस्टिंग कहां है?’’

‘‘अभी तो मैं इंदौर के डीआरपी लाइन में हूं. जल्दी ही किसी थाने में पोस्टिंग हो जाएगी. एक साल तक मेरी ड्यूटी इंदौर में रहेगी. उस के बाद मेरा तबादला उज्जैन हो जाएगा. जब तक तबादला नहीं हो जाता, मुझे उज्जैन से इंदौर आनाजाना पड़ेगा. जरूरत पड़ने पर वहां रुकना भी पड़ सकता है.’’ परवीन ने कहा.

इस के बाद तो असलम खान ने पूरे मोहल्ले में मिठाई बंटवाई तो सभी को पता चल गया कि परवीन सबइंसपेक्टर हो गई है. लोग उस की मिसालें देने लगे. बात थी ही मिसाल देने वाली. एक साधारण घर की बेटी का दरोगा बन जाना छोटी बात नहीं थी, वह भी शादी और एक बेटे की मां बन जाने के बाद.

परवीन रोजाना बस से इंदौर जाती और देर रात तक वापस घर आ जाती थी. कभीकभार न आती तो फोन कर देती कि आज वह घर नहीं आ पाएगी. उस के सबइंसपेक्टर होते ही घर के सभी वाहनों पर पुलिस का लोगो चिपकवा दिया गया था, जिस से चैकिंग में कोई पुलिस वाला उन्हें परेशान न करे.

15 शादियां करने वाला लुटेरा दूल्हा – भाग 4

उस ने बताया कि बचपन से ही उस की अपने मांबाप से नहीं बनती थी. इसलिए उस ने घर छोड़ दिया था. शक्लसूरत अच्छी थी, इसलिए उस ने सोचा कि चलो कन्नड़ फिल्मों में भाग्य आजमाते हैं. उस ने कन्नड़ फिल्मी दुनिया का रुख किया, पर वहां उसे कोई काम नहीं मिला. इस से महेश को बहुत बड़ा झटका लगा. क्योंकि वह ज्यादा पढ़ालिखा भी नहीं था कि उसे कोई ढंग की नौकरी मिल पाती. उस की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे.

तभी उस ने किसी अखबार में समाचार पढ़ा कि कोई व्यक्ति मैट्रीमोनियल साइट से विवाह कर के पत्नी के लाखों रुपए ले कर फरार हो गया है. उस ठग की कहानी पढ़ कर उस के दिमाग में आइडिया आया कि इस तरह विवाह कर के भी पैसा कमाया जा सकता है. बस, उस ने सोच लिया अब वह भी इसी तरह विवाह कर के पैसे कमाएगा.

मन में यह विचार आते ही महेश ने मैट्रीमोनियल साइट पर अपनी फेक आईडी बनानी शुरू की. किसी में डाक्टर तो किसी में इंजीनियर तो किसी में सौफ्टवेयर इंजीनियर तो किसी में बिजनैसमैन तो किसी में सरकारी अफसर बन कर उस ने प्रोफाइल बना डालीं.

करीब 35 साल की महिलाओं को फांसता था महेश

मजे की बात यह थी कि वह साइट पर जा कर यह उन्हीं महिलाओं को चुनता था, जिन की उम्र 35 साल या उस से अधिक होती थी. अगर डिवोर्सी होती तो उसे और अधिक बेहतर लगती. लेकिन अमीर होनी चाहिए और देखने में ठीकठाक लगनी चाहिए.

जब शुरुआत हुई तो जैसा शुरू में बताया गया है, ठीक उसी तरह बात होती और फिर शादी की तारीख तय हो जाती. शुरू में ही महेश लडक़ी वालों से बता देता था कि उस के मांबाप नहीं हैं. परिवार में प्रौपर्टी के बंटवारे को ले कर झगड़ा चल रहा है, इसलिए परिवार का भी कोई सदस्य शादी में नहीं आएगा. बस, दोचार रिश्तेदार और दोस्त ही विवाह में आ सकते हैं.

इसलिए महेश के विवाह में उस की ओर से दसपांच लोग ही शामिल होते थे. लेकिन ये लोग भी न उस के रिश्तेदार होते थे और न दोस्त. ये लोग किराए के होते थे. इस तरह के लोगों को उसे ढूंढने भी नहीं जाना पड़ता था. क्योंकि उस ने कन्नड़ फिल्मों में काम करने के लिए खूब धक्के खाए थे, इसलिए तमाम जूनियर कलाकारों से उस की जानपहचान हो गई थी.

अपने विवाह पर वह इन्हीं लोगों को किसी को 3 हजार पर तो किसी को 5 हजार पर तो किसी को 10 हजार रुपए पर यानी हुलिए के हिसाब से फीस दे कर बाराती के रूप में ले आता था. उन्हें पैसे तो मिलते ही थे, अच्छे से अच्छे होटल में ठहरने के साथ में अच्छे से अच्छा खाना मिलता था और विदाई के समय कुछ न कुछ उपहार भी मिल जाते थे.

विवाह होते ही किराए के बाराती अपने घर चले जाते और महेश पत्नी को ले कर मैसूर आ जाता, जहां यह शादी होते ही किराए का एक घर ले लेता था. अपने घर के बारे में तो वह पहले ही बता देता था कि पुश्तैनी प्रौपर्टी को ले कर उस का झगड़ा चल रहा है.

इस के बाद वह किसी पत्नी से कहता कि उसे क्लीनिक खोलनी है तो किसी से कुछ और कह कर पैसे ले लेता था. जो न देतीं उन के पैसे और गहने चुरा कर किसी न किसी बहाने यह कह कर निकल जाता था. जाते समय वह यह भी कह जाता था कि वह उस के बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगीं, पुलिस को भी नहीं, क्योंकि प्रौपर्टी के झगड़े में कुछ भी हो सकता है, उस की जान भी ली जा सकती है और पुलिस से भी पकड़वा कर जेल भिजवाया जा सकता है. क्योंकि करोड़ों की प्रौपर्टी का मामला है.

3 पत्नियों से उस के हैं 5 बच्चे

इसी तरह महेश ने एक डाक्टर से भी डाक्टर बन कर विवाह कर लिया था. शादी के बाद महेश डाक्टर पत्नी के साथ क्लीनिक भी गया और वहां एक डाक्टर के रूप में अपने तमाम फोटो खींच लिए थे. उन्हीं फोटो को उस ने एक डाक्टर के रूप में मैट्रीमोनियल साइट पर पोस्ट कर दिए थे.

इसी तरह कोई इंजीनियर या कोई और मिल जाती तो उस के औफिस में जा कर फोटो खींच पर मैट्रीमोनियल साइट पर पोस्ट कर देता. इसी तरह उस ने कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में कुल 15 शादियां कर डालीं. इन 15 शादियों में से 3 पत्नियों से उसे 5 बच्चे भी हुए. पर किसी भी पत्नी के साथ महेश एक महीने से अधिक नहीं रहा. इस के बाद वह किसी काम की बात कह कर निकल जाता.

जब महेश को गए ज्यादा समय हो जाता और दूसरी ओर उस के गहने और पैसे भी लुट गए होते, तब उन की समझ में आता कि उन के साथ धोखा हुआ है. पर वे अपना यह दर्द कहें किस से. क्योंकि वे अपना यह दर्द किसी से कहतीं तो जगहंसाई ही होती. इसलिए कोई भी महिला किसी से भी अपनी यह तकलीफ नहीं बताती थी. क्योंकि इस के लिए वह खुद को दोषी मानती थीं.

2013 में बेंगलुरु की एक महिला, जो इंजीनियर थी, उस ने भी महेश से विवाह किया था. 3 दिन बाद जब यह उसे छोड़ कर चला गया था और लौट कर नहीं आया था, तब उस ने उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई थी. तब पुलिस ने उस की रिपोर्ट पर खास ध्यान नहीं दिया था.

अगर उसी समय पुलिस ने ऐक्शन लिया होता तो तमाम महिलाएं इस ठग लुटेरे दूल्हे का शिकार होने से बच जातीं. पुलिस की लापरवाही का ही नतीजा था कि महेश शादियों पर शादियां करता गया और उस ने 15 शादियां कर डालीं. इस के बाद जो जानकारी मिली थी, उस के अनुसार 9 महिलाएं उस से शादी करने की कतार में थीं. उसे 9 पत्नियां मिल चुकी थीं, जो अलगअलग पेशे वाली थीं. वह जल्दी ही 9 शादियां और करने वाला था, लेकिन इस से पहले ये 9 शादियां होतीं, पुलिस उस तक पहुंच गई और ये 9 महिलाएं बरबाद होने से बच गईं.

मजे की बात यह थी कि महेश ने जितनी भी शादियां कीं, इन में कोई भी महिला गांव देहात की अनपढ़ महिला नहीं थी. सब की सब उच्चशिक्षित थीं, कोई डाक्टर तो कोई इंजीनियर, यहां तक कि असिस्टेंट प्रोफेसर भी थीं. सभी उस के झांसे में आ गईं और शादी के बाद किसी ने उस के खिलाफ रिपोर्ट भी नहीं दर्ज कराई.

पूछताछ में महेश ने यह भी बताया कि कुछ लड़कियां तो विवाह करतेकरते रह गईं. इस की वजह यह थी कि महेश ज्यादा पढ़ालिखा तो था नहीं, इसलिए वह जो अंगरेजी बोलता था, उस में गलतियां बहुत होती थीं. वह अच्छी अंगरेजी बोल नहीं पाता था, इसलिए सामने वाली लड़कियों को शक हो गया कि एक डाक्टर हो कर यह इतनी गलत अंगरेजी बोल रहा है. इसलिए उन्होंने उस से शादी नहीं की थी.

महेश का कहना था कि अगर वह अच्छी अंगरेजी बोल लेता तो 15 ही नहीं, अब तक वह कम से कम सौ शादियां कर चुका होता. लोगों को दिखाने के लिए बेंगलुरु के तुमकुरु में उस ने अपना एक नकली क्लीनिक भी बना रखा था, जहां वह कभीकभी डाक्टर के रूप में बैठता भी था. लोगों को शक न हो, इस के लिए उस ने एक नर्स भी नौकरी पर रखी थी.

एसआई राधा एम के अनुसार महेश नायक ने 15 शादियां कर के अब तक करीब 3 करोड़ के गहनों और रुपयों की चोरी की है. संपत्ति के नाम पर उस के पास 2 कारें थीं, लेकिन कोई मकान आदि नहीं है. पत्नियों के पैसे और गहने चुरा कर वह विलासितापूर्ण जीवन जीता था. पत्नियों को छोड़ कर जाने के बाद वह होटलों में ठहरता था.

उस ने जब पहली शादी की थी, तब वह 24 साल का था. इन 19 सालों में उस ने 15 शादियां कर ली थीं. पुलिस ने आरोपी महेश केबी से पूछताछ के बाद उसे भादंवि की धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी), 406 (आपराधिक विश्वासघात), 506 (आपराधिक धमकी), 380 (चोरी) के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में निशा बदला हुआ नाम है

मौडल नेहा का हनीट्रैप रैकेट – भाग 3

रोमांस हो गया छूमंतर

उन के कमरे में पहुंचते ही गोपाल के चेहरे से हवाइयां सी उडऩे लगी थीं. वे दोनों पुरुष पूर्णरूप से नग्न गोपाल के वीडियो बना रहे थे. उन्हें देख कर गोपाल ने नेहा से कहा, “नेहाजी, ये लोग कौन हैं और यहां पर कैसे आ गए?”

“देख भाई, हम नेहा के दोस्त हैं. अब तू हमें यह बता कि क्या तू भी नेहा से प्यार करता है?” उन में से एक आदमी बोला.

“हां, मैं नेहाजी से प्यार करता हूं. वह भी मुझे प्यार करती हैं. इसीलिए नेहाजी ने ही मुझे अपने रूम पर बुलाया था,” गोपाल ने कहा.

“देख गोपाल ,नेहा का नाम मेहर है. मेहर एक मुसलिम युवती है. उस के साथ तुझे निकाह करना होगा अपना धर्म बदल कर इसलाम धर्म स्वीकार करना पड़ेगा. बोल, अब यह सब तू कर पाएगा?” अब दूसरे आदमी ने गोपाल को धमकाते हुए कहा.

“देखो भाई, प्यार में धर्म या मजहब कोई मायने नहीं रखता. मैं हिंदू हूं और अगर नेहाजी मुसलिम भी हैं तो मैं उन्हें स्वीकार कर सकता हूं.” गोपाल ने कहा.

“अबे चूतिए, लगता है कि तुझे हमारी बात समझ में नहीं आ पा रही है. अब मैं तुझे समझाता हूं. थोड़ा ध्यान से सुन. तुझे नेहा उर्फ मेहर से निकाह करने के लिए अपना धर्म छोड़ कर इसलाम धर्म स्वीकार करना होगा. इस के लिए सब से पहले हम तेरा खतना करेंगे, उस के बाद तुझे मसजिद में ले जा कर मुसलिम धर्म स्वीकार करना होगा और तुझे मुसलिम बनना पड़ेगा. बोल, तुझे ये सब मंजूर है?” उन में से पहले आदमी ने गोपाल को धमकाते हुए कहा.

“देख भाई गोपाल, अगर तुझे इस मुसीबत से छुटकारा पाना है तो कुछ जेब ढीली करनी पड़ेगी.” नेहा उर्फ मेहर ने कहा.

“नेहाजी, मुझे आप से तो यह बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी.” गोपाल ने कहा.

“कभीकभी जिंदगी में ऐसे मोड़ भी आ जाते हैं, जिन से बच कर निकलना ही सेहत के लिए फायदेमंद होता है. मेरे आदमी तुम्हारा कोई और जुलूस वायरल कर दें, उस से पहले तुम्हें कुछ देना पड़ेगा.” नेहा ने कहा.

“नेहाजी, मेरे पास जो कुछ भी है, मैं दे दूंगा, बस आप अपने आदमियों से कहें कि मुझे कपड़े पहनने दें.” गोपाल ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

नेहा ने इशारा किया तो उन में से एक आदमी ने गोपाल के कपड़े उसे दे दिए. और गोपाल ने जब अपने कपड़े पहन लिए तो उन में से एक आदमी ने गोपाल के पर्स से सारे रुपए निकाल लिए. इस के अलावा उन्होंने गोपाल से 7 लाख रुपए औनलाइन भी ट्रांसफर करवा लिए थे.

गोपाल आटो में बैठ कर जब अपने घर आया तो उस ने हिसाब लगाया कि उस के पर्स और जेब में पूरे 50 हजार रुपए कैश था. उस के बाद उस के मोबाइल में उस का एक अकाउंट नंबर फीड था, जिस में से नेहा और उस के गिरोह ने उस के खाते से पूरे 7 लाख रुपए भी निकाल लिए थे.

वह यह सोच कर शुक्र मना रहा था कि साढ़े 7 लाख रुपए दे कर उस का पिंड छूट गया, मगर आज उसे एक फोन प्रकाश की ओर से आया और अब उस से 20 लाख रुपए की डिमांड की गई. वह अब अच्छी तरह से समझ चुका था कि वह एक मकडज़ाल में फंस गया है और उस से बाहर निकलने का एक ही रास्ता बचा है कि उसे पुलिस के पास जा कर सब कुछ सचसच बता देना चाहिए तभी उस का कुछ उद्धार हो सकता है.

गोपाल की रिपोर्ट पर हुई काररवाई

गोपाल कृष्णनन ने 2 दिन की छुट्टी ली और दूसरे दिन सुबहसुबह बेंगलुरु के डीसीपी (अपराध) बद्रीनाथ एस के कार्यालय पहुंच गया और अपनी पूरी आपबीती डीसीपी को सुना दी. चूंकि यह मामला बेंगलुरु के पुत्तेनहल्ली पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आता था. गोपाल कृष्णनन को पुत्तेनहल्ली थाने भेज दिया, जहां डीसीपी के आदेश पर उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

बी. दयानंद, आईपीएस, पुलिस आयुक्त बेंगलुरु ने तुरंत आवश्यक दिशानिर्देश जारी कर त्वरित काररवाई के लिए डी. देवराज, पुलिस उपायुक्त (उत्तर), डा. एस.डी. शरणप्पा, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), आर. श्रीनिवास गौड़ा, पुलिस उपायुक्त (केंद्रीय), बद्रीनाथ एस., पुलिस उपायुक्त (अपराध टू), डा. भीमशंकर एस. गुलेड, पुलिस उपायुक्त (पूर्व) और रमन गुप्ता, अपर पुलिस आयुक्त (प्रशासन प्रभारी) के नेतृत्व में विशेष टीमों का गठन कर दिया गया.

गठित टीमों द्वारा पहली अगस्त, 2023 को हनीट्रैप में लोगों को फंसाने और उन से उगाही करने वाले 3 लोगों को पुलिस ने बेंगलुरु से जाल बिछा कर गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार होने वाले अब्दुल खादर, शरण प्रकाश और यासीर थे. ये तीनों मैसूर के रहने वाले थे. ये तीनों आरोपी विभिन्न आपराधिक मामलों में केंद्रीय कारागार में बंद थे तो इन की जेल में ही आपस में दोस्ती हो गई थी.

इन के साथ इन का एक और साथी नदीम था, जो फिलहाल पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया था. इन चारों ने बेंगलुरु की मशहूर मौडल नेहा उर्फ मेहर के साथ दोस्ती की और लोगों को हनीट्रैप में फंसा कर मोटी रकम वसूलने का लालच दिया, जिस के बाद नेहा उर्फ मेहर भी इन के गिरोह में शामिल हो गई थी.

तीनों अभियुक्तों से पुलिस ने कड़ी पूछताछ कर नेहा उर्फ मेहर के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि नेहा मुंबई में भी मौडलिंग का काम करती थी जबकि हनीट्रैप का काम बेंगलुरु में किया जाता था. नेहा उर्फ मेहर को गिरफ्तार करने के लिए कर्नाटक पुलिस की एक विशेष टीम को मुंबई रवाना किया गया जहां से नेहा उर्फ मेहर को 16 अगस्त, 2023 को गिरफ्तार कर लिया गया.

खुद को मौडल बता कर करती थी अपना प्रचार

नेहा का असली नाम मेहर है. इस के सोशल मीडिया में नेहा नाम से अकाउंट्स बना रखे थे. अपने इन अकाउंट्स में उस ने अपनी मौडलिंग की तसवीरें लगा रखी थीं. सोशल मीडिया में वह हर समय ऐक्टिव रहा करती थी. वह कमउम्र के युवक, धनी लोगों, और अच्छी नौकरी करने वाले युवकों और पुरुषों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजती थी. उस की फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लेते थे तो वह फिर उन से दिल खोल कर चैट करने लगती थी.

15 शादियां करने वाला लुटेरा दूल्हा – भाग 3

महेश कर चुका था 15 शादियां

इस के बाद पुलिस ने उस महिला से यह जानना चाहा कि वह उस शातिर के जाल में फंसी कैसे? इस के बाद उस ने महेश के जाल में फंसने की जो कहानी सुनाई, वह निशा की कहानी से बिलकुल मिलती थी यानी उस ने भी महेश से शादी डौट कौम के जरिए ही शादी की थी.

शादी के एक सप्ताह बाद ही महेश उस से मुंबई किसी सर्जरी के लिए जाने की बात कह कर गया तो आज तक लौट कर नहीं आया. वह खुद को ही दोषी मान रही थी. शर्म और संकोच की वजह से वह अपनी व्यथा किसी से कह नहीं पा रही थी. अगर किसी से कहती तो लोग उस का ही मजाक उड़ाते और बदनामी ऊपर से होती. इसी बदनामी के डर से वह चुप थी. उस के भी गहने और रुपए महेश चुरा ले गया था.

उस महिला की कहानी सुन कर एसआई राधा एम को समझते देर नहीं लगी कि यह एक तरह का विवाह स्कैंडल है. इस के बाद वह उन अन्य महिलाओं से भी मिलीं, जिन्होंने अभी तक उन का सहयोग नहीं किया था. जब उन महिलाओं को भी शादी के वे फोटो दिखाए गए, तो सभी ने वही कहानी सुनाई कि महेश उन से भी यही कह कर गया था कि उस का प्रौपर्टी का झगड़ा है, इसलिए अगर पुलिस या कोई पूछने आए तो वह उस के बारे में कुछ बताएंगी नहीं, क्योंकि लोगों से उस की जान का खतरा तो है ही, पुलिस आ गई तो उसे पकड़ कर जेल में डाल सकती है. इसलिए किसी से उस के बारे में कुछ न बताएं.

एसआई राधा एम को लगा कि महेश ने जब एक ही बात सब से कही है तो अब इस आदमी का पकड़ा जाना बहुत जरूरी हो गया है. लेकिन वह उसे पकड़ें कैसे? क्योंकि उस के बारे में न तो उन महिलाओं को कुछ पता है, जो उस की पत्नियां थीं और न उन्हें ही उस के बारे में कुछ पता था. उन के पास सिर्फ एक नंबर था, जिस की काल डिटेल्स में केवल इनकमिंग काल थीं.

उन्होंने उस काल डिटेल्स रिपोर्ट को दोबारा खंगाला तो उस में 9 नंबर और मिले. उन्होंने जब उन 9 नंबरों पर फोन कर के पता किया कि वे इस आदमी को क्यों फोन कर रही हैं तो पता चला कि अभी उन की शादी नहीं हुई है. वह महेश से शादी करने के लिए लाइन में है यानी वेटिंग लिस्ट में हैं.

मजे की बात यह थी कि इन लोगों ने भी उस से शादी डौट कौम के माध्यम से ही संपर्क किया था. जबकि महेश किसी से डाक्टर तो किसी से इंजीनियर तो किसी से सीए या मैनेजिंग डायरेक्टर बन कर मिला था और शादी के तीसरे दिन सभी से कोई न कोई बहाना बना कर वही एक बात समझा कर घर से गया तो लौट कर नहीं आया था. आता भी कैसे, सारे गहने और रुपए वह साथ ले कर जो गया था.

यानी उस ने जिस से भी विवाह किया था, उस की इज्जत तो लूटी ही, उस के गहने और रुपए भी लूट लिए थे. अब पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह कोई छोटा मोटा नहीं, बहुत बड़ा मामला है यानी महेश बहुत बड़ा ठग और लुटेरा है, जो महिलाओं को शादी के बहाने लूट और ठग रहा है.

एसआई राधा एम को विश्वास हो गया कि ये जो अन्य 9 महिलाएं हैं, महेश इन से विवाह कर के इन्हें भी लूटने वाला है. तब उन्होंने उन महिलाओं से बात की और उन्हें बताया कि आप लोग जिस आदमी से विवाह के लिए तैयार बैठी हैं, वह आदमी पहले ही 15 विवाह कर चुका है और उन सभी महिलाओं के गहने और रुपए चुरा कर गायब है. इसलिए आप लोग होशियार हो जाएं अन्यथा आप लोग भी उन 15 महिलाओं की तरह मुसीबत में फंस सकती हैं और अपना सब कुछ लुटा सकती हैं.

9 युवतियां और करने वाली थीं उस से शादी

राधा एम ने इन से यह बात इसलिए कही थी, क्योंकि इन 9 महिलाओं से भी उस का रिश्ता पक्का हो चुका था और कुछ ही महीनों में इन सब से वह बारीबारी से एक एक से विवाह करने वाला था. पुलिस के लिए इस आदमी को पकडऩा बहुत जरूरी हो गया था. पर उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस आदमी तक पहुंचे कैसे. क्योंकि वह न तो एक फोन यूज करता था और न एक सिम. उन्हें लगा कि वह मोबाइल नंबर से इस आदमी तक नहीं पहुंच सकती तो उन्होंने उस के घर वालों के बारे में पता किया.

महेश के घर वाले बेंगलुरु के बनशंकरी में रहते थे. पुलिस उस के घर पहुंची तो पता चला कि उस के मांबाप, भाईबहन सभी हैं. लेकिन उन्हें पता नहीं है कि महेश कहां है? क्योंकि वह सालों से घर नहीं आया था और न ही कभी किसी से संपर्क किया था.

जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो राधा एम ने एक बार फिर उस के फोन की काल डिटेल्स पर नजर फेरनी शुरू की. इस बार उन्हें एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर उस ने काल की थी. पुलिस ने इस नंबर के बारे में पता किया तो वह आदमी उन्हें मिल गया. वह फिल्मों काम करने वाला एक जूनियर कलाकार था, जो महेश की कई शादियों में दिखाई दिया था.

इसी आदमी के सहारे एसआई राधा एम महेश केबी नायक तक पहुंच गईं और बेंगलुरु के तुमकुरु स्थित उस के नकल क्लीनिक से उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद महेश से पूछताछ शुरू हुई. इस पूछताछ में पुलिस को पता चला कि उस का नाम महेश केबी नायक था, उम्र 35 साल और पढ़ाई के नाम पर वह केवल पांचवीं पास था. लेकिन वह अंगरेजी बड़े ही कौन्फिडेंस के साथ बोलता था. देखने में वह काफी हैंडसम था.

पूछताछ में पहले महेश नायक ने भी हर अपराधी की तरह पुलिस को गोलगोल घुमाने की कोशिश की थी. लेकिन राधा एम ने अब तक उस के खिलाफ इतने सबूत इकट्ठा कर लिए थे कि वह उस के चक्कर में आने वाली नहीं थीं. उन्होंने जब सारे सबूत उस के सामने रखे तो वह टूट गया और सच्चाई बताने को मजबूर हो गया.

क्या थी महेश की सच्चाई? जानेंगे कहानी के अगले भाग में…

मौडल नेहा का हनीट्रैप रैकेट – भाग 2

गोपाल था मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर

गोपाल कृष्णनन अब समझ नहीं पा रहा था कि आगे क्या करना है. गोपाल मैसूर का रहने वाला था, बीटेक और उस के बाद एमबीए करने के बाद उस का चयन बेंगलुरु की एक मल्टीनैशनल कंपनी में सेल्स मैनेजर के पद पर हो गया था. गोपाल अभी जवान था. उस का अभी विवाह भी नहीं हुआ था. गोपाल शाम को औफिस से आने के बाद खाली रहता था. उस ने बेंगलुरु की एक सोसाइटी में किराए पर फ्लैट ले रखा था.

खाना बनाने वाली बाई सुबह और रात का खाना शाम को निपटा कर अपने घर चली जाया करती थी. जबकि साफसफाई करने वाली बाई सुबह घर की साफसफाई, बाथरूम सफाई और पोंछा और डस्टिंग कर के चली जाती थी. देर शाम को गोपाल कृष्णनन जब औफिस से लौटता था तो व्हिस्की के 2-4 पैग लगा कर खाना खा लिया करता था. उस के बाद वह फेसबुक, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम आदि सोशल मीडिया पर मशगूल हो जाया करता था.

ऐसे ही एक दिन टेलीग्राम के माध्यम से उस की मुलाकात नेहा उर्फ मेहर से हुई. गोपाल ने नेहा उर्फ मेहर का नाम गूगल पर सर्च करना शुरू किया तो उसे पता चला कि नेहा कर्नाटक की रहने वाली है और मुंबई में मौडलिंग करती है. नेहा का नाम बड़ा चर्चित था. वह एक आइकौन थी और उस के बावजूद गोपाल कृष्णनन से दोस्ती करना चाहती थी.

गोपाल इस मौके को बिलकुल भी गंवाना नहीं चाहता था. इसलिए गोपाल नेहा उर्फ मेहर को फालो करने के साथसाथ उस का फेसबुक फ्रेंड भी बन चुका था. आए दिन उन की चैटिंग होती रहती थी.

नेहा से मिलने को उतावला था गोपाल

ऐसे ही एक दिन नशे में गोपाल ने नेहा को मैसेज कर दिया, “नेहाजी, आप तो इतने हौट हौट मैसेज करती रहती हो, कभी हम से मिलने का दिल नहीं करता आप का?”

“अरे क्यों नहीं गोपालजी, आप तो मेरे बेहद करीबी हो गए हैं. आप से मिलने का मन तो मेरा भी बहुत करता है. मगर आप यह बात भी जानते होंगे कि मैं काफी बिजी रहती हूं. कभी मुंबई में तो कभी बेंगलुरु में.” नेहा ने कहा.

“इस का मतलब यह हुआ कि आप से अब तो मुलाकात हो पाना नामुमकिन ही है. आप ने तो हमारा दिल ही तोड़ दिया!” गोपाल ने मायूसी से कहा.

“अरे यार, हम तो दिल तोडऩे का नहीं बल्कि दिल जोडऩे का काम करते हैं. जब मैं बेंगलुरु आऊंगी तो आप से मिलने की कोशिश जरूर करूंगी. क्या आप मुझ से मिलना चाहेंगे?” नेहा ने नशीले स्वर में कहा.

“नेहाजी, आप से मिलने को तो मेरा दिल न जाने कब से मचल रहा है. आप ने मेरे दिल की हसरत पूरी ही कर दी. आप का दिल से धन्यवाद. अब आप बताएं, आप का दीदार हमें कब हो सकेगा?” गोपाल ने खुशामद की.

“देखिए गोपालजी, कल संडे है. मैं मुंबई से 2 दिन के लिए बेंगलुरु एक इवेंट के लिए आ रही हूं. आप सुबह 9 बजे मुझे मिल सकते हैं.” नेहा ने कहा.

“नेहाजी, रविवार को तो मेरी भी छुट्टी रहती है. मैं आप से मिलने, आप का दीदार करने और आप से हग करने जरूर पहुंच जाऊंगा. मगर आप से कहां मुलाकात हो पाएगी. आप कहीं ये सब मेरा दिल रखने के लिए तो नहीं कह रही हैं. मुझे तो बिलकुल भी विश्वास नहीं हो पा रहा है. कभीकभी तो मुझे ऐसा लग रहा है कि कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं. पर नेहाजी, यह शायद सपना तो बिलकुल भी नहीं है.” गोपाल ने जल्दीजल्दी से अपने दिल की बात कह ही डाली थी.

“जब कल आप की मुझ से मुलाकात होगी तो हकीकत भी सामने होगी. जैसे आप मुझ से प्यार करते हो, वैसे ही मैं भी आप से प्यार करती हूं. अब तक तो आप को फोटो या वीडियो चैटिंग में ही देखा था, जब हमतुम सामने होंगे तो तब क्या नजारा होगा.” नेहा ने नशीली आवाज में कहा.

“नेहाजी, अब तो आप ने मेरी रातों की नींद उड़ा डाली है. सारी रात आप के ही ख्वाबों में कट जाएगी मेरी.” गोपाल ने आहें भरते हुए कहा.

“गोपालजी, अब आज की रात सब्र कर लीजिए. कल तो हमारी मुलाकात हो ही रही है.” कहते हुए नेहा ने फोन काट दिया. उस पूरी रात गोपाल सो नहीं पाया. रात उस ने करवटें बदलते ही गुजार दी थी. दूसरे दिन सुबहसुबह साढ़े 8 बजे गोपाल नेहा के बताए हुए एड्रेस पर पहुंच गया. नेहा का फ्लैट ग्राउंड फ्लोर पर था. 3 बैडरूम का फ्लैट था.

नेहा ने खुद उतारे गोपाल के कपड़े

घंटी बजाने पर नेहा ने मुसकराते हुए दरवाजा खोल दिया. कमरे में दाखिल होते ही गोपाल को एक विचित्र सा अहसास हुआ. पूरे वातावरण में शांति और खुशबू बिखरी हुई थी. जिस कमरे में नेहा गोपाल को ले गई थी, उस की खिडक़ी खुली थी. परंतु परदा पूरी तरह से खिंचा हुआ था. हालांकि कमरे में ऊपर रोशनदान भी लगा हुआ था, मगर उस में से बहुत ही धीमा प्रकाश आ रहा था. कमरे में रोशनी चांद की तरह बिखरी हुई सी दिखाई दे रही थी.

जैसा कि आज तक गोपाल ने फोटो में नेहा को देखा था, मगर जब उस ने उसे अपने रूबरू देखा तो वह आसमान से उतरी एक अप्सरा की तरह लग रही थी. गोपाल ने आव देखा न ताव वह झट से नेहा के पास गया और उसे अपनी बाहों में जोरों से जकड़ लिया.

करीब 2-3 मिनट तक दोनों आलिंगनबद्ध रहे, उस के बाद नेहा ने अपने आप को गोपाल की बाहों से छुड़ा लिया और अगले ही पल गोपाल की शर्ट के बटन खोलने लगी. गोपाल के सीने पर बालों में अब नेहा की नर्म नर्म अंगुलियां सर्प की तरह रेंगने लगी थीं, यह सब देख कर और अपने शरीर में महसूस करते हुए गोपाल का दिल अब बेकाबू सा हो गया था. उस ने अगले ही पल नेहा को अपनी मजबूत बाहों में भर लिया था. नेहा ने भी अपने अधर गोपाल के गरम गरम होंठों पर रख दिए थे.

इस केबाद नेहा ने गोपाल के शरीर से सारे कपड़े एकएक कर के उतारने शुरू कर दिए थे. गोपाल यह सब देख कर अपने आप पर काबू नहीं कर पा रहा था. वह अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचने ही वाला था कि तभी 2 व्यक्ति वहां पर आ धमके.