15 शादियां करने वाला लुटेरा दूल्हा – भाग 2

पति के खिलाफ लिखा दी रिपोर्ट

जब निशा से नहीं रहा गया तो तीसरे दिन उस ने महेश को फोन किया. उस का फोन ही नहीं मिला. फोन नौट रिचेबलबताता रहा. इसी तरह एक सप्ताह बीत गया. महेश का फोन नहीं आया और वह उसे फोन करती थी तो फोन लगता नहीं था. निशा परेशान थी.

इसी बीच उस ने अपनी अटैची खोली तो पता चला कि उस की सारी ज्वैलरी और साथ लाए करीब 15 लाख रुपए गायब हैं. वह भौचक्क रह गई. इस का मतलब था घर पर किसी ने चुरा लिए. वह परेशान हो उठी. अब क्या करे? पति था कि फोन भी नहीं उठा रहा था. अपना दर्द वह कहे किस से.

इसी तरह एक सप्ताह और बीत गया. निशा को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. तभी एक दिन एक महिला उस के घर आ धमकी. उस ने कहा कि महेश उस का पति है. इस बात को ले कर दोनों में काफी झगड़ा भी हुआ. इस से निशा को लगा कि उस के साथ धोखा हुआ है. यह अहसास होते ही वह थाना मैसूर सिटी जा पहुंची और पुलिस को अपनी पूरी कहानी बता कर रिपोर्ट दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज कर के थाना मैसूर (सिटी) पुलिस ने इस मामले की जांच सबइंसपेक्टर राधा एम. को सौंप दी. उन्होंने इस मामले की जांच शुरू की. उन के पास डाक्टर साहब के एक नंबर के अलावा और कुछ नहीं था, जिसे निशा ने दिया था. उस पर फोन लग नहीं रहा था. क्योंकि वह नंबर अब बंद हो चुका था. उन्होंने जांच आगे बढ़ाने के लिए जब उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उसे देख कर वह दंग रह गई, क्योंकि इस नंबर से कभी कोई फोन किया ही नहीं गया था. केवल उस पर फोन आए थे.

राधा एम. ने जब यह पता किया कि इस नंबर पर जो फोन आते थे, वे किस के थे तो पता चला कि इस नंबर पर जो भी फोन आए थे, वे सभी के सभी महिलाओं के फोन थे. उन्हें यह बात बड़ी अजीब लगी कि यह कैसा आदमी है, जिस ने कभी किसी को अपने नंबर से फोन नहीं किया और इस नंबर पर जो भी फोन आए थे, वे सब के सब के औरतों के थे.

उन की समझ में यह नहीं आया कि आखिर चक्कर क्या है? उन्हें लगा कि कहीं कुछ तो गड़बड़ जरूर है. एसआई राधा एम ने उन नंबरों को टटोलना शुरू किया, जिन महिलाओं के फोन उस नंबर पर आए थे. लेकिन किसी भी महिला ने उन से ठीक से बात नहीं की यानी उन्हें इस बारे में कुछ भी नहीं बताया कि वह कहां है. साफ था कि उन्होंने पुलिस का सहयोग नहीं किया था.

राधा एम ने बहुत कोशिश की, पर कोई भी महिला उन की मदद करने को तैयार नहीं थी. राधा एम परेशान थीं कि वह करे तो क्या करें. मजे की बात यह थी कि वह जिस भी महिला को फोन करती थी, वह यही कहती कि महेश उस का पति है. इस से राधा एम और परेशान थीं कि आखिर महेश की कितनी पत्नियां हैं? पर कोई भी पत्नी यह बताने को तैयार नहीं थी कि महेश कहां है. इस से वह समझ गईं कि इस मामले में बहुत बड़ी गड़बड़ है.

पुलिस जुट गई जांच में

इस के बाद राधा एम ने उन महिलाओं से मिलना शुरू किया, पर मिलने पर भी ये महिलाएं कुछ बताने को तैयार नहीं थीं. बस, ये महिलाएं यही कहती रहीं कि महेश उन का हसबैंड है. पर वह कहां है, यह उन्हें पता नहीं है. ये महिलाएं महेश के बारे में पुलिस को बताती भले ही कुछ नहीं थीं, पर पुलिस इन से उन की शादी का फोटो जरूर ले लेती थी.

इसी तरह एसआई राधा एम ने उन सभी महिलाओं के महेश के साथ के शादी के फोटो इकट्ठा कर लिए. इस से यह साबित हो गया कि महेश अलगअलग महिलाओं से विवाह करता है और किसी न किसी बहाने से उन्हें छोड़ कर निकल लेता है. वह ऐसा क्यों कर रहा है, यह तो तभी पता चलता, जब कोई महिला पूछताछ में सहयोग करती.

आखिर राधा एम ने एक ऐसी महिला को पकड़ा, जो सब से ज्यादा बोल रही थी, इसलिए राधा एम ने उस से पर्सनली बात करने का विचार किया. वह उस के पास पहुंची और नंबर दिखा कर कहा, “देखिए यह नंबर है. आप कह रही हैं कि यह मेरे पति का नंबर है तो बता दीजिए वह कहां हैं?”

“हां, यह मेरे पति का नंबर है, पर मुझे नहीं पता कि वह कहां हैं और मालूम भी होगा तो भी मैं नहीं बताऊंगी कि वह कहां हैं.” उस महिला ने कहा.

एसआई राधा एम ने देखा कि यह महिला कुछ बताने को तैयार नहीं है तो हार कर उन्होंने वे तसवीरें निकालीं, जो अलगअलग महिलाओं से ले कर आई थीं. उन में दुलहनें तो अलगअलग थीं, पर दूल्हा एक ही था.

इन तसवीरों को दिखा कर राधा एम ने कहा, “यह आदमी सिर्फ आप का ही दूल्हा नहीं है. देखिए, आप जैसी इस की कितनी दुलहनें हैं, जो आप की ही तरह कह रही हैं कि यह मेरा हसबैंड है, पर मुझे नहीं पता कि यह इस समय कहां है. आप की ही तरह कोई सहयोग करने को तैयार नहीं है कि मैं इस आदमी को गिरफ्तार कर के इस की सच्चाई लोगों के सामने ला सकूं.”

जब राधा एम ने उस महिला के सामने महेश की सारी पोल खोल दी तो उस ने कहा, “ठीक है, अब आप जो भी पूछेंगी, मैं वह बताने को तैयार हूं.”

“अच्छी बात है. हम यही तो चाहते थे.” राधा एम ने कहा.

उस महिला ने कहा, “जब वह बाहर जाने लगे थे तो उन्होंने कहा था कि अगर मेरे बारे में कोई कुछ पूछने आए, वह पुलिस ही क्यों न हो, किसी को कुछ बताना मत. क्योंकि हमारा प्रौपर्टी को ले कर आपस में झगड़ा चल रहा है. करोड़ों को प्रौपर्टी का मामला है. कभी भी कुछ भी हो सकता है. बस, इस से ज्यादा मुझे उन के बारे में और कुछ नहीं मालूम.”

कहानी के अगले भाग में पढ़ें, कैसे आया ये शातिर पुलिस की गिरफ्त में …

षडयंत्र : पैसों की चाह में

मौडल नेहा का हनीट्रैप रैकेट – भाग 1

“देख भाई गोपाल कृष्णनन, मैं एक न्यूज चैनल से बोल रहा हूं. मेरे पास तुम्हारे लिए एक बहुत बड़ी न्यूज है, कहो तो सुना दूं.” गोपाल को किसी ने फोन कर के कहा.

“आप को मैं न जानता हूं और न ही पहचानता हूं. मैं तो एक कामकाजी इंसान हूं. मेरा न्यूज से क्या संबंध? शायद आप ने कोई गलत नंबर डायल किया है भाई.” गोपाल कृष्णनन बोला.

“देख भाई गोपाल कृष्णनन, जब मुझे तुम्हारा नाम मालूम है तो तुम्हारे लिए मेरे पास कोई खास समाचार तो होगा ही न. मेरे पास तुम्हारी एक वीडियो फिल्म है, जिस में तुम एक लडक़ी के साथ रंगरलियां मनाते हुए साफसाफ नजर आ रहे हो.  अब तुम समझ गए न कि मैं आखिर कौन सी बला हूं. क्यों गोपाल कृष्णनन? और हां, मेरा नाम प्रकाश बलेगर है.” कह कर वह व्यक्ति ठहाके लगा कर हंसने लगा.

“तुम ये सब क्या बकवास कर रहे हो? आखिर तुम मुझ से क्या चाहते हो?” गोपाल कृष्णनन ने झुंझलाते हुए कहा.

“जनाब गोपाल कृष्णनन जी, जरा अपने दिमाग को ठंडा करो और याद करो कि तुम उस लडक़ी के साथ नंगे हो कर क्या कर रहे थे? तुम सुन रहे हो न कि मैं क्या कह रहा हूं.” प्रकाश ने कहा.

ये सब बातें सुन कर गोपाल कृष्णनन काफी घबरा सा गया था, उस ने नरमी दिखाते हुए कहा, “भाई, अब आप फाइनल बता दो कि मुझ से क्या चाहते हो?”

“देखो, मेरे पास तुम्हारी एक बहुत अच्छी वीडियो क्लिप है, जिस में तुम एक नामीगिरामी मौडल के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे हो. तुम्हारी सारी की सारी काली करतूतें उस में कैद हैं!” प्रकाश ने कहा. ये सारी बातें सुन कर गोपाल की पेशानी पर पसीना छूटने लगा था. उसे चक्कर से आने लगे थे.

“गोपालजी, यदि ये वीडियो मैं तुम्हारे और रिश्तेदारों के पास भेज दूं तो सब तुम्हारी आरती उतारेंगे. वैसे मुझे यह बात भी पता चल गई है कि तुम्हारी शादी तय होने वाली है. अगर यह वीडियो मैं तुम्हारी होने वाली बीवी और उस के मांबाप को भेज दूं तो फिर क्या होगा? सचमुच तूफान मच जाएगा.” कह कर प्रकाश ठहाके लगाने लगा.

अब गोपाल कृष्णनन समझ नहीं पा रहा था कि वह इस चक्रव्यूह से कैसे मुक्त हो? उस ने अपनी भाषा को संयत करते हुए कहा, “देखिए, मुझे आप की सभी शर्तें मंजूर हैं.” मगर आप पहले अपना नाम बताइए कि आखिर आप कौन साहब बोल रहे हैं?”

“देखो, अब तुम सही लाइन पर आ रहे हो तो सुनो. मैं अपने बारे में कुछ छिपाना भी नहीं चाहता. मेरा नाम प्रकाश बलेगर है. मगर भाई तुम मेरा नाम क्यों पूछ रहे हो?” उधर से पुरुष ने अपना परिचय देते हुए कहा.

“प्रकाशजी, मैं आप का नंबर अपने मोबाइल पर सेव करना चाहता था, इसलिए आप का नाम पूछ रहा था. आप बताइए कि मुझे अब क्या करना है?” गोपाल कृष्णनन ने कहा.

“तो अब ध्यान से सुनो. तुम हमें अब पूरे 20 लाख रुपए दोगे, वह भी कैश में. उस के बाद मैं तुम्हें तुम्हारी ओरिजिनल सीडी दे दूंगा जिस में आप की माशूका नेहा उर्फ नेहर की अश्लील वीडियो है. समझ रहे हो न मैं क्या कह रहा हूं.” उधर से प्रकाश ने उसे धमकाते हुए कहा.

“मेरे दोस्त, मैं आप का मतलब अब काफी हद तक समझ चुका हूं. मैं आप को नकद 20 लाख रुपए दूंगा और आप उस ओरिजिनल सीडी को मुझे सौंप दोगे. वैसे इस के बाद नेहाजी या आप का कोई और दोस्त मुझे ऐसी डिमांड तो नहीं करेगा. इस बारे में आप क्या कहते हैं?” गोपाल कृष्णनन ने कहा.

“देखो भाई गोपाल, अब आप लुट चुके हो और अभी भी लुट ही रहे हो, लेकिन आप निश्ंिचत रहें इस के बाद आप लुटोगे नहीं, यह फाइनल डील है.” उधर से प्रकाश ने मुसकराते हुए कहा.

“इस का मतलब यह है प्रकाशजी कि मुझे आप को पूरे 20 लाख रुपए अदा करने होंगे. आप कुछ कम कर दीजिए न. यह तो बहुत ज्यादा हैं.” गोपाल ने विनती की.

“देखो भाई गोपाल, हमारे धंधे में ऊपर नीचे, आगे पीछे या कम ज्यादा बिलकुल नहीं होता. आप को जो रकम बताई गई है, वह आप को हमें देनी ही पड़ेगी वरना तुम यह अच्छी तरह जानते हो कि अब आगे हमें क्या करना है!” प्रकाश ने सीधेसीधे बता दिया.

“देखिए प्रकाशजी, मेरा इरादा आप के दिल को चोट पहुंचाने का बिलकुल भी नहीं था. मैं तो अपनी ओर से एक निवेदन भर कर रहा था. अब आप ने मेरी बात को स्वीकार नहीं किया तो कोई बात नहीं, मुझे आप के ऊपर पूरा विश्वास है कि मैं जब आप को 20 लाख रुपए दे दूंगा तो आप मेरी और नेहा वाली ओरिजिनल सीडी मुझे अवश्य सौंप देंगे.” गोपाल कृष्णनन ने कहा.

“ठीक है, जब आप को मुझ पर विश्वास हो गया है तो यह बताओ कि यह रकम तुम मुझे कब और कहां पर दे रहे हो!” प्रकाश ने कहा.

“प्रकाशजी, यह रकम काफी बड़ी है, इसलिए आप मुझे थोड़ा वक्त दे दीजिए, जैसे ही रकम का इंतजाम हो जाएगा आप को तुरंत सूचित कर दूंगा. फिर आप जगह बतला दीजिएगा. मैं वहां पर आप को पूरे पैसे दे कर आप से ओरिजिनल सीडी ले लूंगा.” गोपाल ने कहा.

“वैसे गोपाल भाई, आप काफी समझदार इंसान लगते हो. अब तुम मुझे जल्दी से फोन करना. मैं आप के फोन का इंतजार करूंगा.” कहते हुए प्रकाश ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

पबजी गेम की आड़ में की मां की हत्या – भाग 3

दक्ष को इंसपेक्टर धर्मपाल ने कस्टडी में ले लिया था और उसे कोतवाली पीजीआई ले आए थे. यहां लखनऊ के एडिशनल डीसीपी (नार्थ) एस.एम. कासिम आबिदी मौजूद थे.

उन के सामने दक्ष से एक बार फिर पूछा गया, ‘‘दक्ष अपनी मां की हत्या तुम ने की है, क्या तुम इसे कुबूल करते हो?’’

‘‘हां, मैं ने ही अपनी मौम की हत्या की है.’’

‘‘क्यों?’’ कासिम आबिदी ने गंभीरता से पूछा.

‘‘मैं पबजी गेम में बहुत ज्यादा उलझा रहता था. मौम चाहती थी कि मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान दूं. मैं उन की बात अकसर अनसुनी करता था, इस के लिए मौम मुझे गालियां देती थी, पीटती थी. कई बार वह मुझे कमरे में बंद कर देती थी और खाना भी नहीं देती थी. मेरे मन में धीरे धीरे मौम के प्रति नफरत भरती चली गई.’’ उस ने बताया.

‘‘जिस रात तुम ने मां की हत्या की, उस रात का चुनाव तुम ने पहले से कर रखा था’ किसी बात से रुष्ट हो कर तुम ने डैड की रिवौल्वर अलमारी से निकाल कर मां पर गोली चला दी थी?’’

‘‘वह 3 जून, 2022 का मनहूस दिन था सर. मैं अपने स्टडी रूम में बैठा पढ़ रहा था. मौम अचानक आई और मुझे मारने लगी थी कि मैं ने उन के 10 हजार रुपए चोरी कर के पबजी  गेम में उड़ा दिए हैं. मैं ने पापा की कसमें खाईं, बहुत कहा कि मैं ने 10 हजार नहीं चुराए हैं, लेकिन मौम का गुस्सा शांत नहीं हुआ.

उन्होंने मुझे पीटपीट कर अधमरा कर दिया, फिर स्टोर रूम में बंद कर दिया. मैं रोता गिड़गिड़ाता रहा, लेकिन मौम को मुझ पर दया नहीं आई. तभी मैं ने निर्णय ले लिया कि मौम को जिंदा नहीं छोड़ूंगा. दूसरी रात मैं ने पापा की रिवौल्वर निकाली और सो रही मौम के सिर में गोली मार दी.’’

‘‘अपनी मां की हत्या कर के तुम ने उन की लाश को बैडरूम में ही पड़े रहने दिया, तुम ने ऐसा किस के कहने पर किया?’’ कासिम आब्दी ने दक्ष के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

‘‘मुझे किसी ने कुछ नहीं सिखाया. बस मेरे मन में आया कि मौम की हत्या की बात लोगों से छिपा कर रखूं. मुझे पापा के फोन आते रहे, वह मौम का फोन न लगने से परेशान थे. वह मुझ से पूछते रहे कि तुम्हारी मौम काल रिसीव क्यों नहीं कर रही है?

मैं ने पहले दिन बताया कि मौम फोन घर में रख कर बिजली का बिल जमा कराने चली गई है. दूसरे दिन पापा ने फिर मौम के विषय में पूछा तो मैं ने उन से झूठ बोला कि मौम बाजार गई है.’’

दक्ष कुछ क्षण को चुप रहा फिर उस ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं ने 2 दिन तक मौम की हत्या करने और लाश घर में होने की बात बड़ी सफाई से छिपा कर रखी. मैं सोमवार को अपने एक दोस्त को घर लाया ताकि आसपास वाले समझें कि मेरे घर में सब सामान्य है. मैं ने जोमैटो कस्टमर सर्विस से दोस्त और अपने लिए खाना मंगवाया था. मंगलवार को मैं अपने दूसरे दोस्त को घर ले कर आया. उसे मैं ने घर में ही अंडा करी बना कर खिलाई थी.’’

‘‘ओह!’’ एडिशनल डीसीपी दक्ष के शातिर दिमाग पर हैरान हो गए. इंसपेक्टर धर्मपाल भी हैरान थे कि इस छोटी उम्र में दक्ष कितनी सफाई से मां की हत्या की बात पर परदा डालने की कोशिश करता रहा.

‘‘दक्ष,’’ इंसपेक्टर धर्मपाल ने एक विचार मन में आने पर पूछा, ‘‘2 दिन में तो तुम्हारी मां की लाश सडऩे लगी होगी, क्या तुम्हारे दोस्तों या पड़ोसियों को लाश से उठने वाली बदबू महसूस नहीं हुई?’’

‘‘कैसे होती सर, मैं रूम फ्रैशनर का छिडक़ाव पूरे कमरे में लगातार कर रहा था ताकि बाहर बदबू न जा सके. सर, मेरे दोस्तों ने पूछा था तुम्हारी मौम नजर नहीं आ रही है दक्ष. मैं ने बहाना बना दिया था कि वह दादी के पास गई है. दादा की तबीयत ठीक नहीं चल रही है इसलिए मौम 2-4 दिन वहीं रहेंगी. यही नहीं सर, पड़ोसियों को शक न हो इस कारण मैं क्रिकेट किट ले कर क्रिकेट खेलने भी जाता रहा. घर से बाहर भी मैं टहला ताकि आसपास वाले सब कुछ सामान्य समझें.’’

‘‘हूं, बहुत तेज दिमाग है तुम्हारा.’’ एडिशनल डीसीपी एस.एम. कासिम आबिदी ने होंठों को चबाया, ‘‘यह दिमाग तुम गेम्स में न लगा कर यदि देशहित के काम में लगाते तो तुम्हारे मौमडैड का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता. तुम पबजी एडिक्ट बन गए, घर का पैसा भी उड़ाने लगे, इन फिजूल के गेम्स में. तुम्हारी मौम अगर तुम पर नाराज होती थीं तो वह गलत नहीं थी.

‘‘हर मांबाप चाहते हैं उन का बेटा पढ़लिख कर लायक बने. किंतु अधिकांश बच्चे इन पबजी जैसे गेम्स में अपना जीवन बरबाद करने पर तुले हुए हैं. शायद तुम नहीं जानते, हमारी भारत सरकार ने इन गेम्स में उलझे बच्चों द्वारा अपना और अपने परिवार का अहित करने वाली अनेक वारदातों को देखते हुए 2 सितंबर, 2020 को अनेक चीनी ऐप और अन्य कंपनियों द्वारा चलाए जा रहे ऐसे 177 गेम्स पर पूरी तरह बैन लगा दिया था.

‘‘इस के बावजूद आज भी तुम्हारे जैसे बच्चे इंटरनेट की मदद से ऐसे हानि पहुंचाने वाले गेम खेलते हैं. इस का परिणाम तुम खुद देख लो, तुम ने इसी गेम्स के खेलने पर रोकाटोकी करने वाली अपनी प्यारी माम की हत्या कर दी.’’

‘‘मुझे अपनी मौम की हत्या करने का जरा भी अफसोस नहीं है.’’ दक्ष दृढ़ स्वर में बोला, ‘‘उस का कत्ल हो जाना ही ठीक था.’’

उस के हावभाव और आखिरी शब्दों ने एडिशनल डीसीपी और इंसपेक्टर धर्मपाल को चौंकाया. उन्होंने एकदूसरे की आंखों में देखा. इन आंखों की भाषा से तय हो गया कि दक्ष के मन में कोई ऐसा राज दफन है, जिसे वह होंठों पर नहीं लाना चाहता. वह राज क्या है, इस के लिए इस नाबालिग की काउंसलिंग होनी जरूरी थी.’’

‘‘एक आखिरी सवाल और मन में है दक्ष,’’ एडिशनल डीसीपी ने कहा.

‘‘पूछिए सर.’’

‘‘तुम ने अपनी मां को गोली मारी थी, तब तुम्हारी बहन भी घर में ही होगी?’’

‘‘घर में ही थी सर. मौम के साथ ही सो रही थी मेरी बहन. गोली की आवाज सुन कर वह घबरा कर उठी. मौम के माथे से खून निकलते देख कर वह चीखने को हुई थी, लेकिन मैं ने रिवौल्वर उस पर तान कर उसे डरा दिया. मैं ने उसे उस रात दूसरे कमरे में बंद कर दिया. दूसरे दिन मैं ने उसे बता दिया कि मैं ने मौम को मार डाला है. वह शांत और सामान्य रहे, किसी को उस के व्यवहार से शक हुआ तो वह उसे गोली मार देगा. सर, मेरी बहन प्रियांशी ने डर के मारे जुबान नहीं खोली है.’’

‘‘ठीक है, तुम्हें अब हमारे साथ घर चलना पड़ेगा. तुम्हारी मौम का मोबाइल, तुम्हारा मोबाइल और घर में रखा लैपटाप हमें कब्जे में लेना है.’’ इंसपेक्टर धर्मपाल ने कहा.

दक्ष उन के साथ जाने के लिए कुरसी से उठ खड़ा हुआ. उस का हाथ पकड़ कर इंसपेक्टर धर्मपाल कक्ष से बाहर आ गए. कुछ ही देर में उन की गाड़ी नवीन कुमार सिंह के घर से कोतवाली की ओर जा रही थी.

बुधवार 8 जून, 2023 को नवीन कुमार सिंह पत्नी की हत्या की खबर सुन कर आसनसोल से लखनऊ आ गए. ट्रेन से उतर कर वह इंद्रापुरी कालोनी में अपनी मां मिरजा देवी और छोटे भाई नीतीश से मिले. उन्हें साधना सिंह की बेटे दक्ष द्वारा हत्या का समाचार दे कर कुछ देर रुके. दक्ष नाबालिग था. नवीन कुमार जानते थे, उसे जुवेनाइल कोर्ट से अधिक से अधिक 5 साल की सजा होगी. फिर भी वह बेटे के लिए अच्छे सा अच्छा वकील खड़ा करना चाहते थे.

पत्नी बेशक बेटे के हाथों मारी गई थी, अब वह इस दुनिया में नहीं रही थी, लेकिन बेटा था इकलौता बेटा. वह उसे खोना नहीं चाहते थे. भाई के साथ वह कोतवाली थाना पीजीआई पहुंचे और इंसपेक्टर धर्मपाल सिंह से मिले. इंसपेक्टर धर्मपाल ने नवीन कुमार सिंह को बताया कि दक्ष को उन्होंने बाल कल्याण समिति के हवाले सौंप दिया है. दक्ष की काउंसलिंग की गई है और अब इस कहानी में नया मोड़ आ गया है.

दक्ष ने खुलासा किया है कि उन के घर में मौम से मिलने प्रौपर्टी डीलर और इलैक्ट्रीशियन आकाश का वक्त बेवक्त आनाजाना लगा रहता था, जो उसे पसंद नहीं था. उस के बर्थडे पर प्रौपर्टी डीलर बहुत बड़ा गिफ्ट ले कर आया था, यह बात उस ने डैडी को बता दी थी. उस रात मौम और डैडी के बीच बहुत झगड़ा हुआ था.

मौम का इन दोनों से मेलजोल बढ़ता जा रहा था. एक दिन जब वह अपनी बहन प्रियांशी के साथ दादी के घर गया था तो मौम ने प्रौपर्टी डीलर को घर में सुलाया था. यह बात उस ने डैडी को बताई और पूछा कि उसे क्या करना चाहिए, तब उन्होंने गुस्से में कहा था, ‘‘दक्ष, मैं वहां होता तो तुम्हारी मौम को गोली मार देता.’’

दक्ष ने कहा था, ‘‘क्या मुझे भी यही करना चाहिए?’’

तो डैडी ने कहा था, ‘‘जो तुम्हें उचित लगे, वह करो.’’

इंसपेक्टर धर्मपाल ने ये सारी बातें नवीन कुमार सिंह के सामने रख कर उन से पूछा, ‘‘क्या दक्ष को आप इस बात के लिए गाइड कर रहे थे कि वह अपनी मौम को गोली मार दे.’’

‘‘नहीं, मैं ऐसा क्यों चाहूंगा. यदि मेरे और मेरी पत्नी के बीच कोई विवाद होता तो उस का फैसला मैं करता. बेटे को नहीं कहता कि वह मां को गोली मार दे.’’ नवीन कुमार सिंह गंभीर स्वर में बोले, ‘‘दक्ष क्या कह रहा है, क्यों कह रहा है, मैं नहीं जानता. मैं इतना जानता हूं कि दक्ष पबजी गेम्स एडिक्ट है. वह इंस्टाग्राम पर ऐक्टिव था. साधना को यह पसंद नहीं था, वह उसे पीटती थी इसी से क्षुब्ध हो कर दक्ष ने उस की हत्या कर दी.’’

‘‘हूं.’’ इंसपेक्टर धर्मपाल ने सिर हिलाया, ‘‘एक बात और है नवीन कुमार जी. हमें आप की पत्नी के मोबाइल और लैपटाप में सभी काल और चैटिंग मैसेज डिलीट मिले हैं, उन्हें दक्ष ने उड़ा दिया है ताकि हम उस शख्स तक न पहुंच सकें, जो उसे इस हत्या के लिए गाइड कर रहा था. खैर, हम ने सभी चीजें फोरैंसिक जांच के लिए लैब में भेज दी है, आज नहीं तो कल सच्चाई सामने आ ही जाएगी.’’

साधना सिंह का शव पोस्टमार्टम के बाद नवीन कुमार सिंह को सौंप दिया गया. उन्होंने बुधवार की शाम को उस का अंतिम संस्कार कर दिया. तीसरे दिन वह उस की अस्थियां ले कर पैतृक गांव चंदौली चले गए. उन की बेटी, मां नीरजा देवी और भाई नीतीश उन के साथ में थे.

दक्ष को जुवेनाइल कोर्ट मे पेश कर दिया गया था, जहां से उसे बाल सुधार गृह में भेज दिया गया.

पुलिस साधना सिंह की हत्या के असली कारण को जानने का प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में दक्ष और प्रियांशी नाम परिवर्तित हैं.

15 शादियां करने वाला लुटेरा दूल्हा – भाग 1

बेंगलुरु की एक कंपनी में नौकरी करने वाली सौफ्टवेयर इंजीनियर निशा की उम्र 45 साल हो गई थी. लेकिन करिअर बनाने के चक्कर में अभी तक उन का विवाह नहीं हो पाया था. पहले पढ़ाई, फिर नौकरी और व्यवस्थित होने के चक्कर में वह विवाह के बारे में सोच ही नहीं पाईं. जब सोचा, तब तक इतनी उम्र हो चुकी थी कि लडक़ा मिलना आसान नहीं था.

घर वाले तो पहले ही हथियार डाल चुके थे. क्योंकि जब वह विवाह के लिए कह रहे थे, तब निशा करिअर का हवाला दे कर मना करती रही. अब इस उम्र में वे उस के लिए कहां लडक़ा ढूंढते. इसलिए उन्होंने तो पहले कह दिया था कि जब तुम्हारी इच्छा हो, तब विवाह कर लेना.

अब निशा को विवाह के बारे में खुद ही फैसला लेना था. वह अपने लिए कहां लडक़ा खोजने जाती. इसलिए उस ने अपना बायोडाटा और फोटो मैट्रीमोनियल साइट शादी डौट कौम पर डाल दिया था, साथ ही वह खुद भी शादी डौट कौम की साइट खोल कर लडक़ों की प्रोफाइल देखा करती थी कि शायद उस के लायक कोई लडक़ा मिल ही जाए.

निशा को महेश लगा कुछ खास

एक दिन उस की नजर एक प्रोफाइल पर पड़ी, जो उसे जम गई. लडक़ा डाक्टर था हड्डी रोग विशेषज्ञ, नाम था महेश केबी नायक. उम्र 35 साल, देखने में भी काफी स्मार्ट था. मैसूर का रहने वाला महेश उसे जम गया. लडक़ा उसे पसंद आया तो साइट के जरिए निशा ने उस से संपर्क किया. यह अगस्त, 2022 की बात है.

इस के बाद दोनों में बातें होने लगीं. बातचीत से निशा को लगा कि लडक़ा ठीकठाक है. जब वह मानसिक रूप से पूरी तरह संतुष्ट हो गई तो उस ने महेश नायक से शादी की बात की. दूसरी ओर महेश नायक भी विवाह के लिए तैयार था. जब दोनों को लगा कि सब ठीक है तो उन्होंने मिलने की बात की.

तब डाक्टर साहब ने कहा, “मेरा घर मैसूर में है, मैं यहीं रहता हूं. मेरी क्लीनिक भी यहीं है. मैं तो क्लीनिक बंद कर के आ नहीं सकता. क्या आप मैसूर आ सकती हैं?”

“क्यों नहीं, विवाह करना है तो मैसूर तो क्या, जहां आप बुलाओगे, वहां आना होगा. मैं बिलकुल मैसूर आ सकती हूं. आप से मुलाकात भी हो जाएगी और इसी बहाने मैसूर भी घूम लूंगी.” निशा ने कहा.

इस के बाद निशा मैसूर पहुंच गई. महेश ने उस की खूब आवभगत की. दोनों खूब घूमे, खूब बातें कीं. महेश ने निशा को मैसूर के पर्यटक स्थलों और प्रसिद्ध स्थानों को दिखाया. उसे अपना घर भी दिखाया, जो किराए का था. पर महेश ने उस घर को अपना बताया था. इस के बाद रिश्ता पक्का हो गया. यह 28 दिसंबर, 2022 की बात है.

निशा बेंगलुरु लौट आई. उस ने यह बात अपने घर वालों को बताई तो घर वाले भी खुश हुए और बेटी की शादी की तैयारी में लग गए. उधर महेश भी विवाह की तैयारी में लग गया. निशा विशाखापट्टनम की रहने वाली थी और बेंगलुरु में नौकरी करती थी. इसलिए विवाह विशाखापट्टनम से ही होने वाला था. दूसरी ओर महेश ने निशा को पहले ही बता दिया था कि उस के मांबाप नहीं है. केवल एक बड़ा भाई और कजिन हैं.

शादी के बाद महेश ने मांगे 70 लाख रुपए

विवाह के कार्ड वगैरह छप गए. विवाह की तारीख थी 28 जनवरी, 2023 तय हो गई. तब डा. महेश केबी नायक अपने बड़े भाई, कजिन और रिश्तेदारों के अलावा कुछ दोस्तों के साथ 28 जनवरी को विशाखापट्टनम पहुंच गया. विशाखापट्टनम के शानदार होटल में डाक्टर साहब और निशा की शादी होनी थी.

निशा के परिवार वाले, रिश्तेदार और दोस्तों की भीड़ थी, जबकि महेश की तरफ से गिनेचुने लोग ही बाराती के रूप में थे. यह बात डा. महेश ने पहले ही बता दी थी, इसलिए किसी ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया. अगर दिया भी तो किसी और को इस से क्या मतलब था? विवाह में आया, खायापिया और जो उपहार देना था, दे कर चला गया.

अगले दिन 29 जनवरी को विदा हो कर निशा पति के घर यानी ससुराल आ गई. महेश निशा को अपार्टमेंट के उसी फ्लैट में ले आया था, जिसे उस ने अपना बताया था. जबकि अपने पुश्तैनी मकान के बारे में उस का कहना था कि उस के पुश्तैनी मकान को ले कर भाइयों में झगड़ा चल रहा है. इसलिए जब तक फैसला नहीं हो जाता, तब तक उन्हें इसी फ्लैट में रहना होगा. निशा को भला क्या ऐतराज होता. पति जहां रखेगा, वह वहीं रहेगी. फिर उस फ्लैट में कोई खराबी भी नहीं थी, जो निशा ऐतराज जताती. बहुत लोग फ्लैटों में रहते हैं.

वह पति के साथ आराम से रहने लगी और शादी एंजौय करने लगी.  ही बीते थे कि महेश कहने लगा कि उसे अपना खुद का क्लीनिक बनवाना है. इस के लिए वह उसे 70 लाख रुपए उधार दे दे. पर निशा ने पैसे देने से मना करते हुए कहा कि उस के पास इतने पैसे नहीं है. इसलिए वह उसे पैसे नहीं दे सकती. क्लीनिक ही बनवाना है तो बाद में बनवा लेना.

जब महेश को निशा से पैसे नहीं मिले तो वह कहने लगा कि उस के पास पैसे नहीं हैं तो अपने घर वालों से मांग ले. इस के लिए वह उस पर दबाव भी डालने लगा. पर निशा मायके वालों से भी पैसे लाने को तैयार नहीं हुई. इस से महेश को गुस्सा आ गया और उस ने निशा को धमकी दी. निशा का कहना था कि घर वालों ने शादी में पैसे खर्च किए, इतना दहेज दिया, फिर भी वह पैसे मांग रहा है.

यह सब चल ही रहा था कि एक दिन डाक्टर साहब ने कहा, “एक बहुत जरूरी सर्जरी के लिए मुझे मुंबई जाना है.”

“ठीक है, आप जाइए, पर लौटेंगे कब?”

“काम होते ही मैं लौट आऊंगा. पर एक बात का खयाल रखना. अगर कोई ढूढने आए या मेरे बारे पूछने आए तो उसे कुछ बताना मत कि मैं कहां गया हूं. क्योंकि जानती ही हो कि प्रौपर्टी को ले कर भाइयों में झगड़ा चल रहा है. करोड़ों की प्रौपर्टी का मामला है, कुछ भी हो सकता है. क्या पता क्या हो जाए.

“आज के समय में किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता, भले ही वह भाई ही क्यों न हो. और हां, पुलिस भी आ सकती है, क्योंकि मुकदमा तो चल ही रहा है, लोग पुलिस से भी पकड़वा कर जेल भिजवा सकते हैं. इसलिए अगर पुलिस आए तो उस से भी मेरे बारे में कुछ मत बताना.”

निशा पढ़ी लिखी समझदार थी. उस ने कहा, “ठीक है, आप निश्चिंत हो कर जाइए, मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगी.”

“एक बात और, मैं डाक्टर हूं. पता नहीं किस समय कहां रहूं. हो सकता है, सर्जरी में रहूं, इसलिए तुम मुझे फोन मत करना. क्योंकि काम के समय मैं किसी का फोन अटेंड नहीं करता. जब मैं खाली रहूंगा, खुद ही फोन कर लूंगा.”

यह सब पत्नी को समझा कर डा. महेश चला गया. एक दिन बीत गया, महेश का फोन नहीं आया. दूसरा दिन भी बीत गया और तीसरा भी. जब महेश का फोन नहीं आया तो निशा को चिंता हुई. अभी नईनई शादी थी. नईनई शादी में लोग घंटे भर अकेले नहीं रह पाते, यहां तो 3 दिन बीत गए थे और पति का फोन नहीं आया तो चिंता होगी ही.

  कहां गायब हो गया था महेश? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग….                                                                                                                     

बदले की आग में 6 लोगों की हत्या – भाग 3

आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए एसपी राय सिंह नरवरिया ने एक पुलिस टीम बनाई. टीम में कोतवाली प्रभारी योगेंद्र सिंह, एसएचओ (महुआ) ऋषिकेश शर्मा, एसएचओ (दिमनी) मंंगल सिंह, एसएचओ (रामपुर), पवन भदौरिया, एसएचओ (सिहोरिया) रूबी तोमर को शामिल किया गया. आपसी रंजिश के चलते बदला लेने की जंग के 6 आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है.

पुलिस एनकाउंटर के बाद 9 मई को मुख्य आरोपी अजीत और उस के चचेरे भाई भूपेंद्र से पूछताछ में सामने आया कि पिछले एक दशक से वे बदले की आग में जल रहे थे. उस के परिवार ने इस नरसंहार की व्यूह रचना काफी समय पहले से तैयार कर रखी थी, लेकिन उन्होंने अपने इस खतरनाक इरादे को कभी जाहिर नहीं होने दिया. बस उन्हें बेसब्री से मौके का इंतजार था.

रिश्तेदारों के अनुरोध पर 3 मई को गजेंद्र सिंह तोमर का परिवार अहमदाबाद से मुरैना आ गय था, यहां वे थके मांदे होने की वजह से अपने रिश्तेदार के यहां ठहरे और 5 मई, 2023 की सुबह लोडिंग वाहनों में गृहस्थी के सामान सहित लेपा गांव पहुंचे.

अहमदाबाद से गजेंद्र सिंह के साथ उन की पत्नी कुसुमा देवी, बेटा वीरेंद्र उस की पत्नी केश कुमारी, नरेंद्र और उस की पत्नी बबली, संजू साधना, राकेश व सीमा, सुनील व मधु, सत्यप्रकाश सहित रंजना, सचिन, अनामिका, इशू, परी, आकाश, शिवा, खुशबू, सान्या, नातीनातिन तथा रघुराज सिंह और उन की पत्नी सरोज आए थे.

इन सभी को साथ ले कर गजेंद्र सिंह तोमर अपनी 10 साल से सूनी पड़ी खानदानी हवेली का ताला खोलने से पहले हवेली की देहरी पूजने के लिए शगुन का नारियल फोड़ा ही था, तभी विरोधी पक्ष के भूरे और जगराम लाठी, फरसा ले कर आ धमके और कहने लगे तुम लोग लेपा कैसे आ गए.

विरोधी पक्ष का यह व्यवहार देख कर गजेंद्र सिंह और उस का परिवार दंग रह गया. विरोधी पक्ष के अजीत सिंह, भूपेंद्र सिंह श्यामू ने चुन चुन कर गजेंद्र सिंह तोमर (64) और उस के 2 बेटे संजू सिंह (45), सत्यप्रकाश (38) और 3 बहुओं केश कुमारी (46), बबली (36) सहित मधु (30) को गोलियों से छलनी कर दिया गया.

जिस देहरी को छोड़ कर गजेंद्र सिंह का परिवार अहमदाबाद चला गया था, 10 साल बाद उसी हवेली की देहरी पर पहुंचते ही परिवार के आधा दरजन लोगों को मौत मिली.

आईजी जोन ने डाला गांव में डेरा

गजेंद्र सिंह तोमर परिवार के 6 सदस्यों की हत्या की सूचना मिलते ही सिहोनिया थाने की एसएचओ रूबी तोमर ने घटना की गंभीरता से पुलिस के आला अधिकारियों को अवगत करा दिया था. इसी सूचना पर पुलिस आईजी (चंबल जोन) सुशांत सक्सेना, डीएम अंकित अस्थाना, एसपी रायसिंह नरवरिया, एसडीएम एल.के. पांडेय लेपा पहुंच गए थे.

घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण करने के बाद घायलों को अस्पताल पहुंचाने के साथ ही तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए पुलिस फोर्स तैनात कर दी थी. पुलिस अधिकारियों ने अपराधियों को जल्द पकडऩे का वादा कर किसी तरह हंगामा कर रहे गजेंद्र के परिजनों और रिश्तेदारों को शांत किया. घटनास्थल से अधिकारियों के जाते ही एसएचओ ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर सभी लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

हालांकि घटना वाले दिन से ही मृतकों के परिजन अंतिम संस्कार नहीं करने की हठ पर अड़े हुए थे, उन की मांग थी कि उन्हें शस्त्र लाइसेंस स्वीकृति करने के साथ ही परिवार को पुलिस सुरक्षा एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाए. आरोपियों के मकान ध्वस्त किए जाएं.

पीडि़त परिवार ने अंतिम संस्कार करने से किया इंकार

मुरैना में पोस्टमार्टम के बाद एंबुलैंस से जैसे ही आधा दरजन शव गजेंद्र सिंह की पैतृक हवेली के सामने पहुंचे, गजेंद्र के बेटे राकेश सिंह और नरेंद्र सिंह तोमर सहित परिवार की महिलाओं ने पुलिस को शवों को एंबुलेंस से नहीं उतरने दिया.

देर रात तक जिला प्रशासन और एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान के काफी समझाने के बावजूद परिजन शवों को अंतिम संस्कार करने के लिए लेने को तैयार नहीं हुए तो रात गहराने पर पुलिस ने शवों को एंबुलेंस में ही रखा रहने दिया और एंबुलेंस को भारी पुलिस बल की मौजदूगी में लेपा के शासकीय स्कूल में खड़ा करवा दिया.

अगले दिन सुबह एक बार फिर जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारियों ने मृतकों के परिजनों और रिश्तेदारों से मुलाकात की और उन्हें भरोसा दिलाया कि उन की सभी मांगों को मान लिया गया है, तब कहीं जा कर परिजन और रिश्तेदार अंतिम संस्कार के लिए तैयार हुए.

पुलिस 3 एंबुलेंस में सभी शवों को ले कर आसन नदी के किनारे बने श्मशान घाट पहुंची, जहां सभी का एक साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. पुलिस ने इस बहुचर्चित मामले में मुख्य आरोपी अजीत सिंह तोमर व भूपेंद्र सिंह तोमर को गिरफ्तार करने के साथ ही फरार 10 आरोपियों में से अब तक 6 आरोपियों को दबोच लिया है. वहीं भूमिगत आरोपियों पर पुलिस आईजी (चंबल जोन) सुशांत सक्सेना ने 30-30 हजार का इनाम घोषित कर दिया है.

इस कथा के लिखे जाने तक पुलिस धीर सिंह और रज्जो देवी को लेपा गांव से मुख्य आरोपी अजीत को पिता की हत्या का बदला लेने के लिए अपने बेटे के साथ में बंदूक थाम कर धिक्कारने वाली पुष्पा को इटावा से और सोनू तोमर को सीकर से, अजीत और भूपेंद्र तोमर को उसैद घाट से गिरफ्तार कर व्यापक पूछताछ के बाद भूपेंद्र तोमर की निशानदेही पर सिहोनिया पुलिस ने लेपा गांव में गजेंद्र सिंह तोमर परिवार की हत्या में प्रयुक्त की गई अवैध राइफल को गिरवी रखे मकान में भूसे में छिपा कर रखी बंदूक को भी जब्त कर चुकी हैं.

वहीं सोनू तोमर से भी पुलिस ने उस के बताए हुए स्थान से 315 बोर का एक कट्टा बरामद कर लिया है. रिमांड अवधि पूरी होने पर लेपा हत्याकांड के आधा दरजन आरोपियों को अंबाह कोर्ट में पेश कर जेल भेज चुकी है.

पुलिस भूमिगत हो गए 4 अन्य आरोपी धीर सिंह तोमर के तीनों बेटे रामू, श्याम सिंह, मोनू सिंह सहित मुंशी सिंह के भाई सूर्यभान की सरगरमी से तलाश कर रही थी. साथ ही साल 2013 में वीरभान तोमर व सोबरन तोमर की हत्या के मामले फरियादी पक्ष व गवाहों द्वारा गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार से मोटी रकम व मकान ले कर राजीनामा कर न्यायिक काररवाई को प्रभावित करने वाले लोगों को कोर्ट से सजा दिलवाने के केस को रीओपन करने की प्रक्रिया में लग गई है.

हालांकि जो औरतें विधवा हो गईं, बच्चे अनाथ हो गए, वे जब तक जिंदा रहेंगे उन का खून खौलता रहेगा. लेपा में एक ही परिवार के आधा दरजन लोगों की हत्या का जो लाइव वीडियो बना है, वह पीडि़त परिवार को कभी ये भूलने नहीं देगा. यह सोच कर दिल घबराता है कि ये सब देख कर गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के बच्चे बड़े होंगे तो क्या करेंगे?

पबजी गेम की आड़ में की मां की हत्या – भाग 2

बैठक में सब सामान्य था. वहां सामने 2 कमरों के दरवाजे नजर आ रहे थे. इंसपेक्टर धर्मपाल ने बाईं ओर के दरवाजे की तरफ कदम बढ़ा दिए. वह बैडरूम था. इंसपेक्टर धर्मपाल ने जैसे ही कमरे में कदम रखा. तेज बदबू का झोंका उन की नाक से टकराया. रुमाल नाक पर होने के बावजूद इंसपेक्टर धर्मपाल का दिमाग झनझना उठा. उन्होंने रुमाल को नाक पर लगभग दबा ही लिया. उन की नजर बैड पर पड़ी तो वह पूरी तरह हिल गए.

बैड पर एक महिला का शव पड़ा हुआ था, जो काफी हद तक सड़ चुकी थी. नजदीक आ कर इंसपेक्टर धर्मपाल ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. महिला के माथे पर गहरा सुराख नजर आ रहा था, जिस के आसपास खून जम कर काला पड़ गया था. लाश सड़ जाने के कारण चेहरा काफी बिगड़ गया था और उस की पहचान कर पाना मुश्किल था.

लाश के पास ही एक रिवौल्वर रखा हुआ था. स्पष्ट था इसी रिवौल्वर से महिला के सिर में गोली मारी गई थी, जिस से इस की मौत हो गई है. उन के इशारे पर एक पुलिसकर्मी ने रिवौल्वर पर रुमाल डाला और उसे अपने कब्जे में ले लिया.

लाश 2-3 दिन पुरानी लग रही थी. उस में से असहनीय बदबू उठ रही थी. घटनास्थल की बारीकी से जांच कर लेने के बाद इंसपेक्टर धर्मपाल कमरे से बाहर आ गए.

‘‘यह लाश किस की है?’’ उन्होंने बैठक में खड़े दक्ष से सवाल किया.

‘‘यह मेरी मौम की लाश है.’’ दक्ष ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘इन्हें मैं ने गोली मारी है.’’

इंसपेक्टर धर्मपाल ने हैरानी से दक्ष की तरफ देखा. उन्हें विश्वास नहीं हुआ, 16 साल का यह लडक़ा बड़ी सरलता से अपनी मां को गोली मार देने की बात स्वीकार कर रहा है, क्या यह सच बोल रहा है?

‘‘तुम ने अपनी मां को गोली मारी है?’’ इंसपेक्टर हैरानी से बोले, ‘‘क्या तुम ठीक कह रहे हो?’’

‘‘मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं सर. मैं ने ही अपनी मौम को गोली मारी है.’’ दक्ष बेहिचक बोला.

‘‘तुम ने अपनी मां को गोली क्यों मारी और यह रिवौल्वर तुम कहां से लाए हो?’’ इंसपेक्टर धर्मपाल ने रुमाल में बंधा रिवौल्वर दिखा कर पूछा.

‘‘रिवाल्वर मेरे डैड का है सर. इस का लाइसेंस है डैड के पास. यह रिवौल्वर उन्होंने सुरक्षा के लिए घर में ही रखा हुआ था. मौम मुझे पबजी गेम खेलने से मना करती थी. बातबात पर मुझे पीटती रहती थी. मैं कब तक सहन करता सर… इसलिए शनिवार और रविवार की रात को मौम को गोली मार दी थी.’’

‘‘यानी 3 जून और 4 जून, 2023 की रात को तुम ने अपनी मां की गोली मार कर हत्या कर दी. हत्या किए हुए कई दिन हो गए, क्या तुम इतने समय तक इसी घर में मां की लाश के साथ रहे?’’

‘‘और कहां जाते सर. मैं और मेरी बहन प्रियांशी हत्या के बाद से घर में ही हैं.’’

इंसपेक्टर धर्मपाल को दक्ष की बेबाकी और हिम्मत दिखाने पर हैरानी हो रही थी. मां की हत्या कर के यह लडक़ा अपनी बहन के साथ सड़ती जा रही लाश के साथ बड़ी बेफिक्री से अपने घर में ही जमा रहा है, यह हैरानी की ही बात है. यदि पड़ोसी इस असहनीय बदबू की सूचना पुलिस को नहीं देते तो न जाने कब तक दोनों भाई बहन लाश के साथ घर में ही रहते.

इंसपेक्टर धर्मपाल घर से बाहर आ गए. बाहर आसपास के लोग एकत्र हो कर नवीन कुमार सिंह के घर में आई पुलिस के बाहर आने का बेचैनी से इंतजार कर रहे थे. वे लोग यह जानने को उत्सुक थे कि नवीन कुमार सिंह के घर में ऐसी कौन सी चीज सड़ रही है, जिस की बदबू ने सभी को परेशान करके रख छोड़ा है.

‘‘क्या इस बदबू का राज मालूम हुआ सर?’’ शर्माजी ने आगे बढ़ कर इंसपेक्टर धर्मपाल से पूछा.

‘‘हां, दक्ष ने अपनी मां की गोली मार कर 3 दिन पहले हत्या कर दी है. लाश सड़ गई है, यही यहां फैल रही बदबू का कारण है.’’ इंसपेक्टर धर्मपाल ने बताया.

उन की बात सुन कर सभी हैरान रह गए.

‘‘दक्ष की मां का नाम बताएंगे आप?’’ इंसपेक्टर धर्मपाल ने शर्माजी से पूछा.

‘‘साधना सिंह था दक्ष की मां का नाम.’’ शर्माजी बोले.

‘‘आप इन के पति का फोन नंबर जानते हैं तो मेरी बात करवाइए शर्माजी.’’

‘‘ठीक है सर.’’ कहने के बाद शर्माजी ने नवीन कुमार सिंह का मोबाइल नंबर अपने मोबाइल से निकाल कर मिलाया. घंटी बजते ही दूसरी तरफ से नवीन कुमार सिंह ने काल रिसीव कर ली, ‘‘हैलो शर्माजी… मेरी पत्नी साधना आप को नजर आ गई हो तो.. मेरी बात करवाइए प्लीज.’’ नवीन कुमार सिंह के स्वर में बहुत उतावलापन था.

‘‘वह अब इस दुनिया में नहीं रही नवीनजी. मैं ने पुलिस को इनफौर्म कर दिया है. लीजिए इंसपेक्टर साहब से बात कीजिए.’’ शर्माजी ने मोबाइल इंसपेक्टर धर्मपाल की तरफ बढ़ा दिया.

‘‘मिस्टर नवीन कुमार सिंह, मैं इंसपेक्टर धर्मपाल बोल रहा हूं. आप के लिए बड़ी बुरी खबर है, आप के बेटे दक्ष ने आप की पत्नी साधना सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी है.’’

‘‘मेरे बेटे दक्ष ने…ओह!’’ दूसरी तरफ से नवीन कुमार सिंह का घबराया हुआ स्वर उभरा, ‘‘मुझे ऐसा ही लग रहा था सर..यह दक्ष किसी दिन ऐसा कदम उठा सकता है… मेरा तो सब कुछ उजड़ गया.’’

‘‘आप यहां आ जाइए नवीनजी…’’ इंसपेक्टर धर्मपाल गंभीर हो गए, ‘‘मुझे आप के बेटे को पुलिस कस्टडी में लेना पड़ेगा. वह अपना गुनाह कुबूल कर रहा है.’’

‘‘जैसा आप उचित समझें इंसपेक्टर, मैं लखनऊ आ रहा हूं.’’ नवीन सिंह ने आहत स्वर में कहा और संपर्क काट दिया.

इंसपेक्टर धर्मपाल अपने उच्चाधिकारी को इस घटना की जानकारी देने के लिए अपने मोबाइल से नंबर मिलाने लगे थे. साधना सिंह की लाश को फोरैंसिक जांच करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया था.

बदले की आग में 6 लोगों की हत्या – भाग 2

शादी के घर में बिछ गईं 6 लाशें

रंजना ने पुलिस को भी बताया कि उस के बाबा गजेंद्र सिंह तोमर काफी समझदार थे. 2013 में हुई वीरभान तोमर और सोबरन सिंह तोमर की हत्या के बाद आंसुओं में डूबे मृतक वीरभान और सोबरन के परिजन बदले की आग में परिवार के साथ किसी तरह की हैवानियत न कर दें, इसलिए बाबा ने अपने परिवार सहित पैतृक गांव को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था और वे अपने बेटेबहुओं और नातीनातिन को साथ ले कर अहमदाबाद के नारोलकोट में रहने लगे थे.

अहमदाबाद में बड़ा बेटा वीरेंद्र सिंह तोमर प्राइवेट नौकरी कर के किसी तरह अपने परिवार का भरणपोषण करने लगा था, लेकिन असल मुश्किल वक्त तब आया, जब 20 अक्टूबर 2013 को लेपा में हुई सोबरन और वीरभान की हत्या के मामले में 23 जनवरी, 2020 को वीरेंद्र सिंह तोमर को जेल जाना पड़ा, तब वीरेंद्र के परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा.

उस वक्त वीरेंद्र सिंह की दूसरे नंबर की बेटी रंजना सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी. वीरेंद्र के जेल जाते ही उस की पत्नी केश कुमारी और रंजना के कंधों पर परिवार को चलाने की जिम्मेदारी आ गई. पैसे की तंगी के चलते वीरेंद्र सिंह की बड़ी बेटी वंदना को भी अपनी पढ़ाई बीच में ही छोडऩी पड़ी. वैसे भी वंदना का रिश्ता वीरेंद्र ने जेल जाने से पहले तय कर दिया था. इस वजह से वह अपनी मां, छोटी बहन और मौसी बबली के साथ काम पर भी नहीं जा सकती थी.

ऐसी विषम परिस्थितियों में वीरेंद्र की पत्नी केश कुमारी और छोटी बेटी रंजना धागे की एक फैक्ट्री में काम करने जाने लगे थे, लेकिन दुर्भाग्यवश कोरोना के दौरान धागा फैक्ट्री बंद हो गई. 2021 में वीरेंद्र ने महज 8 दिन के पैरोल पर आ कर जैसे तैसे बड़ी बेटी के हाथ पीले करने की रस्म अदा की और वापस जेल लौट गया.

वीरेंद्र जिन दिनों जेल में बंद था, उस दौरान रंजना से छोटी बहन शैलेंद्री को भी स्कूल जाना बंद करना पड़ा था. वक्त अपनी गति से बढ़ता रहा. दरअसल, अहमदाबाद में ही रह रहे नरेंद्र और उस की पत्नी बबली ने अपनी दोनों बेटियों संध्या और शिवानी का रिश्ता तय करने के साथ ही विवाह की तारीख भी तय कर दी थी, लेकिन ऐसा कोई नहीं जानता था कि इस तरह बेटियों की शादी करने से पहले ही बबली इस तरह दुनिया छोड़ कर चली जाएगी.

वैसे भी नरेंद्र एक पैर से अपाहिज होने के कारण कोई काम नहीं कर पाते थे, इसलिए बबली ही अहमदाबाद में अपनी बहन के साथ काम पर जा कर किसी तरह अपने परिवार का भरणपोषण करती थी. मां के मारे जाने का गम बबली की दोनों बेटियों के चेहरे पर साफ झलकता है.

जून में होने वाली अपनी शादी को ले कर दोनों बहनों में किसी तरह का उत्साह नहीं रह गया है. वे दोनों यह सोच कर परेशान हैं कि अगले महीने शादी के बाद हम दोनों अपनीअपनी ससुराल चली जाएंगी तो दिव्यांग पिता और छोटे भाई की देखभाल कौन करेगा?

पूरी प्लानिंग से हुआ हमला

5 मई, 2023 की सुबह ताबड़तोड़ फायरिंग हुई, जिस में एक के बाद एक 6 लाशें बिछ गईं. दरअसल, एक पखवाड़े पहले ही दोनों पक्षों में कोथर में रहने वाले नरेंद्र सिंह के घर पर धीर सिंह और वीरेंद्र में सुलह हो गई थी. वीरेंद्र से 7 लाख रुपए और मकान ले कर धीर सिंह तोमर ने सुलह के कागजात में स्पष्ट तौर पर लिखा था कि 2013 में हुई हत्या में आप लोग शामिल नहीं थे. हमारे दोनों गवाह कोर्ट में आप के पक्ष में बयान देंगे.

10 साल पहले पैतृक गांव छोड़ चुका गजेंद्र सिंह तोमर का परिवार पुराने झगड़े में विरोधी पक्ष से सुलह हो जाने के बाद धीर सिंह तोमर की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर अपने दिव्यांग बेटे नरेंद्र की दोनों बेटियों संध्या और शिवानी की शादी अपनी पैतृक हवेली से करने के लिए परिवार सहित लेपा लौटा था. गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार को कतई अंदेशा नहीं था कि विरोधी पक्ष के धीर सिंह तोमर ने सोचीसमझी योजना के तहत ही मोटी रकम और मकान ले कर समझौता किया है.

हैरानी वाली बात यह है कि 2013 में रंजीत सिंह तोमर के हाथों मारे गए मृतकों के बेटों ने अपने पिता की मौत का बदला गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के 3 पुरुष और 3 महिलाओं को फिल्मी अंदाज में मौत के घाट उतार कर ले लिया. अजीत और भूपेंद्र की योजना इसी परिवार के रंजीत सिंह तोमर को भी मारने की थी, लेकिन घटना वाले दिन गजेंद्र सिंह के मना करने की वजह से रंजीत लेपा नहीं आया था.

हैवान बने अजीत सिंह ने नरेंद्र सिंह तोमर पुत्र गजेंद्र सिंह, वीरेंद्र सिंह पुत्र गजेंद्र सिंह तोमर, विनोद सिंह पुत्र सुरेश सिंह तोमर को गोली मार कर गंभीर रूप से घायल कर दिया.

गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार में कुल 29 सदस्य थे. उन के 6 बेटे थे वीरेंद्र सिंह, नरेंद्र सिंह, संजू सिंह, राकेश सिंह, सुनील सिंह और सत्यप्रकाश सिंह. अब इन में से 6 लोगों की हत्या कर दी गई है. परिवार में अब 23 सदस्य शेष बचे हैं.

10 लोगों के खिलाफ लिखाई नामजद रिपोर्ट

इस हत्याकांड का एक और दुखदाई पहलू यह है कि शुक्रवार की मनहूस सुबह गोलियों से भून डाली गई सुनील सिंह की पत्नी मधु तोमर 7 महीने की गर्भवती थी. हत्या का आरोप जिस पर लगा है, वह मुंशी सिंह तोमर का परिवार है. अब मुंशी सिंह तोमर के परिवार के सदस्यों के बारे में भी जान लेते हैं, इस के बाद समझेंगे कि इस नरसंहार में किस की, क्या भूमिका है.

मुंशी सिंह के 5 बेटे थे, रामवीर सिंह तोमर, सोबरन सिंह तोमर, धीर सिंह तोमर, शिवचरन सिंह तोमर और वीरभान सिंह तोमर. सब से बड़े बेटे रामवीर सिंह के 3 बेटे हैं, लेकिन इन का परिवार लेपा गांव से 3 किलोमीटर दूर मकान बना कर रहता है. इन का एक बेटा फौज में है, 2 प्राइवेट नौकरी करते हैं.

शुक्रवार को घटी घटना से इन का कोई लेनादेना नहीं है. दूसरे नंबर का बेटा सोबरन सिंह तोमर है, जिस की हत्या 2013 में गोबर डालने को ले कर हुए विवाद के चलते हो गई थी. सोबरन के 4 बेटे जगराम सिंह, राधेश्याम सिंह तोमर, बलराम सिंह तोमर, भूपेंद्र सिंह तोमर उर्फ भूरा हैं.

मुंशी सिंह के तीसरे बेटे धीर सिंह तोमर के 3 बेटे हैं. चौथे नंबर का बेटा शिवचरन दिव्यांग है. इस की अभी शादी नहीं हुई है, सब से छोटे वीरभान सिंह के 2 बेटे हैं. गजेंद्र सिंह परिवार के हत्याकांड में मुंशी सिंह के भाई सूरजभान का बेटा गौरव सिंह तोमर भी आरोपी बना है.

गजेंद्र सिंह के परिवार के साथ घटी घटना के बाद मृतक गजेंद्र सिंह तोमर के बेटे सुनील सिंह तोमर की तहरीर के आधार पर सिहोनिया थाने में भादंवि की धारा 302, 307, 323, 294, 506, 147, 148, 149 के तहत 10 आरोपयों भूपेंद्र सिंह, अजीत सिंह, सोनू तोमर, श्यामू, मोनू, रामू, गौरव, रज्जो, धीर सिंह और पुष्पा के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है.

खतरनाक साजिश का सूत्रधार

सुरेंद्र सिंह अच्छा ट्रैक्टर मैकेनिक था और अमृतसर के बसअड्डे के पास उस का अपना वर्कशौप था. उस का कामधाम भी ठीक था और कमाई भी बढि़या थी. वर्कशाप से  इतनी आमदनी हो जाती थी कि वह अपने परिवार का गुजरबसर आराम से कर रहा था. लेकिन वह अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं था.

दरअसल, सुरेंद्र सिंह शातिर और खुराफाती दिमाग वाला था. यही वजह थी कि वह ढेर सारी दौलत हासिल कर के बहुत जल्दी अमीर बनने के सपने देखता था. अपनी इस लालसा को पूरी करने के लिए शातिर दिमाग वाला सुरेंद्र सिंह कुछ भी करने को तैयार था. वह जानता था कि वर्कशौप की कमाई से वह कभी भी अमीर नहीं बन सकता. क्योंकि वह जो कमाता था, वह सारा का सारा खर्च हो जाता था. इसीलिए वह अमीर बनने के लिए कोई शार्टकट रास्ता ढूंढ़ने लगा था.

सुरेंद्र सिंह के 3 बेटे थे. बड़े बेटे सुखचैन सिंह की शादी हो चुकी थी. वह उस के साथ ही रहता था. बाकी के 2 बेटे मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह विदेश में रहते थे. समयसमय पर वे परिवार से मिलने भारत आते रहते थे.  मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह जब भी घर आते, वहां के बहुत से किस्से सुनाते. अमीर बनने का सपना देखने वाला सुरेंद्र सिंह उन्हीं किस्सों को सुन कर अमीर बनने के लिए तरहतरह की योजनाएं बनाने लगा.

मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह ने एक बार बातचीत में बताया था कि अमेरिका और इंग्लैंड में शातिर और चालाक किस्म के लोग खुद को मरा साबित कर के बीमा कंपनियों से मोटी रकम ऐंठ लेते हैं और पूरी उम्र ऐश करते हैं.

बेटों ने तो मजा लेने के लिए यह किस्सा सुनाया था. लेकिन उन की कही बात सुरेंद्र सिंह के शैतानी दिमाग में गहरे तक बैठ गई थी. वह सोचने लगा कि जब अमेरिका और इंग्लैंड में बीमा कंपनियों से पैसा ऐंठा जा सकता है तो भारत में क्यों नहीं? उसे लगा कि बीमा कंपनियां उस के अमीर बनने का जरिया बन सकती हैं.

इस के बाद सुरेंद्र सिंह का शैतानी दिमाग बीमा कंपनियों से पैसा ऐंठने की योजना बनाने लगा. जल्दी ही योजना का पूरा खाका तैयार कर के वह उस पर काम करने लगा. उस ने जो योजना बनाई थी, उस में परिवार के बाकी सदस्यों का सहयोग जरूरी था.

सुरेंद्र सिंह ने पूरी योजना घर वालों को तो बताई ही, विदेश में रहने वाले दोनों बेटों को भी समझा दी. वह बीमा कंपनियों को धोखा दे कर लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों रुपए ऐंठना चाहता था. उस के इरादे पर बीमा कंपनियों को शक न हो, इस के लिए उस ने अपने एक बहुत ही करीबी साहब सिंह को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

साहब सिंह उस की इस योजना में शामिल तो नहीं होना चाहता था, लेकिन मजबूरीवश शामिल हो गया था. क्योंकि उस की 2 बेटियां थीं और उस की माली हालत ठीक नहीं थी. पैसों की सख्त जरूरत होने की वजह से वह सुरेंद्र सिंह की योजना में शामिल हो गया था. सुरेंद्र सिंह ने साहब सिंह को भरोसा दिलाया था कि योजना के सफल होने पर बीमा कंपनियों से जो पैसे मिलेंगे, उस में से एक बड़ा हिस्सा वह उसे भी देगा.

अपने परिवार और साहब सिंह को योजना में शामिल करने के बाद सुरेंद्र सिंह ने अलगअलग बीमा कंपनियों में अपने और साहब सिंह के नाम से लगभग डेढ़ करोड़ रुपए का बीमा करवा डाला. उस ने साहब सिंह का जो बीमा करवाया था, उस की किश्तें भी उसी ने अपने पास से जमा कराई थीं.

सुरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को तो अपनी योजना के बारे में बता दिया था, लेकिन साहब सिंह ने ऐसा कुछ नहीं किया था. उसे आशंका थी कि उस की पत्नी सुनंदा इस गलत काम में उस का साथ नहीं देगी. इसलिए इस योजना को उस ने अपने तक ही सीमित रखा था.

सुरेंद्र सिंह बीमा पालिसियों की किश्तें सही समय पर चुकाने के साथ अपनी योजना को अंजाम देने की तैयारी भी करता रहा.

जब सुरेंद्र सिंह ने देखा कि अब योजना को अंजाम देने का समय आ गया है तो उस ने एक नई कार खरीद ली. 21 जनवरी, 2014 को वह उसी कार से साहब सिंह के साथ निकला. वह क्या करने जा रहा है, यह उस ने साहब सिंह को भी नहीं बताया था. लेकिन जब साहब सिंह बारबार पूछने लगा तो उस ने खतरनाक मुसकराहट के साथ कहा, ‘‘हमें अपनी योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए 2 शिकार ढूंढने हैं.’’

‘‘शिकार का मतलब?’’ साहब सिंह ने पूछा.

‘‘शिकार का मतलब है, ऐसे 2 आदमी जो हमें बीमा कंपनियों से करोड़ों रुपए दिलाएंगे.’’

बात साहब सिंह की समझ में आ गई. उस ने हैरानी से कहा, ‘‘इस का मतलब रुपयों के लिए हमें 2 बेगुनाहों की हत्या करनी पड़ेगी?’’

‘‘इस के अलावा हमारे पास कोई दूसरा उपाय भी नहीं है. अगर करोड़ों रुपए पाने हैं तो पहले हम दोनों को मरना पडे़गा. लेकिन हम सचमुच में मरने नहीं जा रहे हैं. हम दोनों जिंदा ही रहेंगे, हमारी जगह किसी दूसरे को मरना होगा. हम उन्हीं की तलाश में चल रहे हैं.’’

सुरेंद्र सिंह ने कुछ आगे जा कर अमृतसर की सब्जीमंडी के पास एक जगह अपनी कार रोक दी. सुबह का समय था, इसलिए दिहाड़ी पर काम करने वाले कुछ आप्रवासी मजदूर काम की तलाश में सड़क के किनारे खड़े थे. कार में से उतर कर सुरेंद्र सिंह मजदूरों के पास पहुंचा तो कुछ मजदूरों ने उसे घेर लिया.

कुछ ही देर में 2 मजदूरों को साथ ले कर सुरेंद्र सिंह वापस आ गया. काम मिलने की वजह से दोनों मजदूर काफी खुश नजर आ रहे थे. उन्हें कार में बैठा कर सुरेंद्र सिंह अपने वर्कशौप पर पहुंचा. काम का तो बहाना था. दोनों मजदूरों को शाम तक रोकना था, इसलिए वह उन से छोटेमोटे काम कराता रहा.

शाम को मजदूरों के जाने का समय हुआ तो सुरेंद्र सिंह ने शराब की बोतल खोल दी. साहब सिंह साथ ही था. शराब देख कर मजदूरों के मन में लालच आ गया. सुरेंद्र सिंह ने इस बात को भांप लिया. उस ने उन से भी शराब पीने को कहा. सुरेंद्र सिंह के इरादों से बेखबर दोनों मजदूर पीने बैठ गए.

दोनों मजदूरों ने शराब पीनी शुरू की तो पीते ही चले गए. सुरेंद्र सिंह उन्हें ज्यादा से ज्यादा शराब पिलाना चाहता था. इसलिए बोतल खत्म हुई तो उस ने दूसरी मंगा ली. क्योंकि यही शराब उस के काम को आसान बना सकती थी.

मजदूर शराब पीते गए और सुरेंद्र सिंह उन्हें पिलाता गया. शराब पीतेपीते मजदूर इस हालत में पहुंच गए कि उन का खुद पर नियंत्रण नहीं रह गया. एक तरह से वे बेहोशी वाली हालत में पहुंच गए. जब सुरेंद्र सिंह ने देखा कि अब मजदूर विरोध करने की स्थिति में नहीं रह गए हैं तो उस ने साहब सिंह के साथ मिल कर उन की गला दबा कर हत्या कर दी.

उन की हत्या करने के बाद सुरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को इस बात की सूचना दे कर समझाया कि अब आगे वह क्या करेगा और उस के बाद उन लोगों को क्या करना है.

आधी रात के बाद सुरेंद्र सिंह ने साहब सिंह के साथ मिल कर दोनों मजदूरों की लाशों को कार में डाला और जालंधर जाने वाले राजमार्ग पर चल पड़ा. दोनों लाशों को ज्यादा दूर ले जाना ठीक नहीं था. क्योंकि अगर कहीं पुलिस चैकिंग मिल जाती तो वे पकड़े जा सकते थे.

लगभग 8-10 किलामीटर दूर जा कर सुरेंद्र ने कस्बा मानावालां के पास एक सुनसान जगह पर कार रोक दी. उस समय हलकीहलकी बरसात हो रही थी. सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह ने अपने शरीर से कुछ चीजें उतार कर मजदूरों को पहना दीं, जिस से शिनाख्त में पता चले कि वे लाशें सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह की थीं. इस के बाद कार की डिकी से मिट्टी के तेल से भरा डिब्बा निकाल कर दोनों ने कार के अंदर और बाहर डाल कर आग लगा दी.

कार के साथसाथ 2 बेगुनाहों की लाशें धूधू कर के जलने लगीं. उस समय हो रही बरसात को देख कर यही लग रहा था कि सुरेंद्र और साहिब सिंह के इस गुनाह पर आसमान रो रहा है.

22 जनवरी की सुबह कुछ लोगों ने मानावालां कस्बे के पास सड़क किनारे एक कार को जली हुई हालत में देखा तो इस की जानकारी पुलिस को दी. सूचना मिलने पर पुलिस वहां पहुंची तो देखा, कार लगभग पूरी तरह से जल चुकी थी. गौर से देखने पर पता चला, कार के साथ 2 आदमी भी जल गए थे.

बड़ा ही खौफनाक मंजर था. कार भले ही पूरी तरह जल गई थी, लेकिन उस की नंबर प्लेट काफी हद तक सुरक्षित थी. कार के नंबर से पुलिस ने जली कार के मालिक का पता लगा लिया. पुलिस को पता चल गया कि कार बसअड्डे के पास ट्रैक्टर का वर्कशौप चलाने वाले सुरेंद्र सिंह की थी.

पुलिस ने तत्काल इस की सूचना सुरेंद्र सिंह के घर वालों को दी. इस के बाद पहले से लिखी गई स्क्रिप्ट के अनुसार नाटक शुरू हुआ. जली हुई कार और उस के साथ जले लोगों की शिनाख्त के लिए सुरेंद्र सिंह का भाई अवतार सिंह, अपने भांजे रंजीत सिंह के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया. जली हुई कार और लाशें देख कर दोनों फूटफूट कर रोने लगे. उन्होंने लाशों की शिनाख्त सुरेंद्र सिंह और उस के साथी साहब सिंह के रूप में कर दी.

इस के बाद मृतक सुरेंद्र सिंह के भाई अवतार सिंह ने पुलिस को बताया कि सुरेंद्र सिंह पिछले कुछ दिनों से बीमार रहता था. उस ने स्थानीय डाक्टरों से काफी इलाज कराया, लेकिन यहां के डाक्टर उस की बीमारी को समझ नहीं सके. इसलिए चंडीगढ़ स्थित पीजीआई में दिखाने के लिए वह 22 जनवरी की सुबह 4 बजे के करीब अपने दोस्त साहब सिंह के साथ घर से निकला था.

अवतार सिंह ने पुलिस को यह भी बताया था कि सुरेंद्र सिंह ने जो नई कार खरीदी थी, उस में ईंधन रिस रहा था. कई बार डीलर से इस की शिकायत भी की गई थी. यह बताने का उन का मकसद था कि पुलिस इस हादसे को कार की तकनीकी खराबी की वजह से हुआ हादसा समझे.

कार से बरामद लाशों की हालत इतनी बुरी थी कि किसी भी हालत में पहचाना नहीं जा सकता था, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र सिंह के भाई और भांजे की बात मान ली. पुलिस ने तकनीकी खराबी की वजह से कार में आग लगने और उस में सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के जल कर मरने की बात को हादसा मानते हुए रिपोर्ट तैयार कर के फाइल बंद कर दी.

दूसरी ओर सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के घर वालों ने सब के सामने ऐसा नाटक किया, जैसे दोनों सचमुच मर गए हैं. उन के मरने के बाद की सारी रस्में पूरी की गईं. उन की आत्मा की शांति के लिए अखंड पाठ करवा कर भोग भी डाला गया. यह सब होने के बाद सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह की मौत को ले कर किसी भी तरह के शक की गुंजाइश नहीं रह गई.

दूसरी ओर सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह अपना हुलिया बदल कर अलगअलग ठिकानों पर छिप कर रहे रहे थे. सुरेंद्र सिंह लगातार घर वालों के संपर्क में था. वह चाहता था कि जल्दी से जल्दी बीमा की रकम घर वालों को मिल जाए तो वह हमेशा के लिए अमृतसर छोड़ कर किसी दूसरे शहर में बस जाए. बीमा की रकम 2 करोड़ के आसपास थी.

2 हत्याएं करने के बाद भी सुरेंद्र सिंह पूरी तरह निश्चिंत था. अब उसे केवल बीमा कंपनियों से मिलने वाले पैसे की चिंता थी. उस का दुस्साहस ही था कि जिस शहर (अमृतसर) के लोगों की नजरों में वह और उस का साथी साहब सिंह मर चुका था, उसी शहर के शराबखानों में बैठ कर दोनों शराब पीते थे. बदले हुलिए की वजह से उन्हें भ्रम था कि कोई भी उन्हें पहचान नहीं पाएगा.

लेकिन ऐसा नहीं था. कुछ लोगों ने बदले हुए हुलिए के बावजूद सुरेंद्र सिंह को पहचान लिया था. सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के कार में जल कर मरने की कहानी उन लोगों को पता थी. जब उन लोगों ने दोनों को जिंदा देखा तो उन्हें हैरानी हुई. धीरेधीरे उन के जिंदा होने की अफवाह फैलने लगी. जबकि दूसरी ओर सुरेंद्र सिंह छिप कर अपने घर वालों के माध्यम से बीमा कंपनियों से रुपए ऐंठने की कागजी काररवाई करवाने में लगा था.

साहब सिंह के प्रति भी सुरेंद्र सिंह की नीयत ठीक नहीं थी. उस ने उस का जो बीमा करवाया था, उस रकम को वह पूरा का पूरा हड़प जाना चाहता था. साहब सिंह के नाम से 40 लाख की पालिसी थी. कायदे से साहब सिंह के मरने के बाद वह रकम उस की पत्नी सुनंदा को मिलनी चाहिए थी. जबकि सुनंदा को इस बात की कोई जानकारी ही नहीं थी.

यही वजह थी कि साहब सिंह के नाम जो 40 लाख की पालिसी थी, उस रकम को लेने के लिए सुरेंद्र सिंह के घर वालों ने किसी दूसरी औरत को सुनंदा बना कर बीमा कंपनी के अधिकारियों के सामने पेश कर दिया. बाद में उस की यह धोखेबाजी उसी के लिए घातक साबित हुई.

40 लाख की रकम कोई मामूली रकम तो थी नहीं, इसलिए बीमा कंपनी रकम अदा करने से पहले हर तरह का संदेह दूर कर लेना चाहती थी. इस की जांच के लिए बीमा कंपनी की एक टीम मुंबई से अमृतसर आई. जब यह टीम साहब सिंह के घर पहुंची और सुनंदा से बात की तो पता चला कि उसे तो इस बीमा पालिसी के बारे में कुछ पता ही नहीं था.

साहब सिंह की पत्नी सुनंदा ने जब इस मामले में अनभिज्ञता जाहिर की तो जांच करने आए बीमा कंपनी के अधिकारियों को लगा कि किसी साजिश के तहत बीमा कंपनी से ठगी की कोशिश की जा रही थी. इस के बाद उन्होंने इस मामले की जानकारी पुलिस को देने का फैसला किया.

दूसरी ओर अब तक सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के जिंदा होने की खबरें काफी जोर पकड़ चुकी थीं. किसी ने यह जानकारी पंजाब ह्यूमन राइट्स आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष अजीत सिंह बैंस, जो पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस भी रह चुके थे, को दी तो उन्हें यह सारा मामला रहस्यमय लगा. उन्होंने आर्गेनाइजेशन के मुख्य जांच अधिकारी सरबजीत सिंह को सच्चाई का पता लगाने को कहा.

सरबजीत सिंह कई लोगों से तो मिले ही, साथ ही सुरेंद्र सिंह के घर वालों की गतिविधियों पर भी नजर रखनी शुरू कर दी. इस से जल्दी ही उन्हें पता चल गया कि सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह मरे नहीं, जिंदा हैं. जब उन्होंने यह बात अजीत सिंह बैंस को बताई तो उन्हें यह मामला काफी गंभीर लगा, क्योंकि अगर सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह जिंदा थे तो कार में जल कर मरने वाले 2 लोग कौन थे?

अब इस मामले की जानकारी पुलिस को देनी जरूरी था. कार मानावालां कस्बे के पास जली थी. यह इलाका अमृतसर देहात के अंतर्गत आता था. अजीत सिंह बैंस ने इस पूरे मामले की जानकारी अमृतसर (देहात) के एसएसपी गुरप्रीत सिंह गिल को दी तो उन्हें यह मामला सनसनीखेज और बेहद संगीन लगा. उन्होंने तत्काल इस की जांच कराने की जिम्मेदारी एसपी (डिटेक्टिव) राजेश्वर सिंह को सौंप दी.

एसपी राजेश्वर सिंह ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर रछपाल सिंह को सौंपी. उन्होंने जांच शुरू की तो साजिश की परतें एकएक कर के खुलने लगीं. जांच शुरू करते ही उन्हें पता चल गया कि इस खौफनाक साजिश में कई लोग शामिल थे, लेकिन पुलिस पहले इस साजिश के सूत्रधार सुरेंद्र सिंह और उस के साथी साहब सिंह को दबोचना चाहती थी, जो मर कर भी जिंदा घूम रहे थे.

इंसपेक्टर रछपाल सिंह ने सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मारने शुरू कर दिए. इस से सुरेंद्र सिंह को पुलिस काररवाई की भनक लग गई. पुलिस उस तक पहुंचती, उस के पहले ही वह गायब हो गया. लेकिन साहब सिंह पुलिस के हाथ लग गया. पुलिस ने उसे गग्गोबुआ गांव से उस के भांजे रंजीत सिंह के घर से पकड़ा था.

साहब सिंह को थाने ला कर सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने रोंगटे खड़े कर देने वाली खौफनाक साजिश का खुलासा कर दिया. इस के बाद पुलिस ने भादंवि की धाराओं 302, 364, 420, 436, 115, 120बी और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर के सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह के अलावा अन्य लोगों को नामजद किया. ये लोग थे सुरेंद्र सिंह की पत्नी जसबीर कौर, तीनों बेटे मुख्तयार सिंह, सुखचैन सिंह और सुखवंत सिंह, बहू सरबजीत कौर, भाई अवतार सिंह, भांजा रंजीत सिंह और सुरेंद्र सिंह का साला सुरेंद्र सिंह.

सुरेंद्र सिंह की पत्नी जसबीर कौर, बेटे सुखचैन सिंह और सरबजीत कौर को पुलिस ने 16 मार्च को ही गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद पुलिस ने सुरेंद्र सिंह और साहब सिंह को पनाह देने वाले निशान सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया.

कथा लिखे जाने तक नामजद लोगों में से 7 लोग गिरफ्तार हो चुके थे. मुख्य अभियुक्त सुरेंद्र सिंह अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर था. साजिश में शामिल सुरेंद्र सिंह के 2 बेटे मुख्तयार सिंह और सुखवंत सिंह आस्ट्रेलिया में थे. पुलिस ने उन्हें भारत लाने की कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

पुलिस को उम्मीद है कि एक न एक दिन सभी अभियुक्त पकड़े जाएंगे. लेकिन उन के पकड़े जाने पर भी उन दोनों बेगुनाहों के बारे में पता नहीं चल पाएगा कि वे कौन थे और कहां से आए थे, जो बेमौत मारे गए. जबकि उन के घर वाले उन के आने की राह देख रहे होंगे.

पबजी गेम की आड़ में की मां की हत्या – भाग 1

साधना सिंह बहुत बदहवास नजर आ रही थी. 3 बार उस ने अपने बैडरूम में रखी अलमारी का लौकर और ड्राअर का सामान उलटपलट कर के अच्छे से चैक कर डाला था. रात को ही उस ने 10 हजार रुपए अलमारी में रखे थे, वे गायब थे.

‘कहां गए 10 हजार रुपए?’ वह बड़बड़ाई, ‘सारा दिन तो वह घर में ही थी, कोई आयागया भी नहीं. फिर रुपए कहां चले गए? कहीं दक्ष ने वे रुपए चुरा कर पबजी गेम में तो नहीं उड़ा दिए?’

‘यकीनन रुपए दक्ष ने ही चुराए हैं.’ साधना सिंह के मन में दृढ़ विचार कौंधा.

गुस्से में तनी साधना सिंह बेटे दक्ष को ढूंढती हुई उस के स्टडी रूम आई तो वहां दक्ष कुरसी पर बैठा दिखाई दे गया. उस के सामने की टेबल पर एक किताब उलटी पड़ी थी. दक्ष के हाथ में मोबाइल फोन था, उस का पूरा ध्यान मोबाइल की स्क्रीन पर था.

साधना सिंह के तनबदन में आग लग गई. गुस्से में तो वह पहले ही थी. उस ने दक्ष के हाथ से मोबाइल छीन कर टेबल पर पटक दिया और दक्ष को बालों से पकड़ कर चीखी, ‘‘ठहर, मैं खिलवाती हूं तुझे पबजी गेम.’’

साधना सिंह बेरहमी से उसे पीटने लगी. दक्ष रोने लगा, रोते हुए ही बोला, ‘‘मैं गेम नहीं खेल रहा था मौम, मैं औनलाइन पढ़ाई कर रहा था.’’

‘‘झूठ बोलता है नालायक,’’ साधना सिंह उस के गाल पर जोर से थप्पड़ मारते हुए चीखी, ‘‘मेरी अलमारी से 10 हजार रुपए गायब हैं. बता वे रुपए तूने क्या किए हैं?’’

‘‘मैं ने आप के रुपए नहीं लिए हैं मौम, डैड की कसम ले लो…’’

‘‘डैड के बच्चे… तू मोबाइल में गेम्स खेल खेल कर चोर और निकम्मा बन गया है. रुपए चोरी कर के गेम्स में उड़ाने लगा है.’’ साधना सिंह गुस्से से उस के बाल पकड़ कर हिलाने लगी.

‘‘नहीं मौम, मैं चोरी नहीं करता… मैं अब गेम भी नहीं खेलता हूं,’’ दर्द से तड़पते हुए दक्ष बोला, ‘‘आप प्लीज, मेरे बाल छोड़ दो. मुझे मत मारो.’’

‘‘मेरे 10 हजार रुपए चोरी गए हैं, जब तक तू उन रुपयों के बारे में नहीं बताएगा, मैं तुझे पीटना बंद नहीं करूंगी.’’

दक्ष को साधना सिंह पीटती रही. दक्ष रोता गिड़गिड़ाता मार खाता रहा, लेकिन साधना सिंह के हाथ नहीं रुके. दक्ष मार से जब बेहाल हो गया तो वह उसे घसीटती हुई स्टोर रूम में ले आई और उस में बंद करती हुई गुस्से से चीखी, ‘‘तू अब इसी में बंद रहेगा, तुझे खाना भी नहीं मिलेगा. यदि तूने 10 हजार रुपए के बारे में नहीं बताया तो मैं कल तुझ पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दूंगी.’’

मार से दक्ष बेहोश सा हो गया था. होश खोने के बाद भी उस के होंठों से मद्धिम स्वर निकल रहे थे, ‘‘मैं ने रुपए नहीं चुराए हैं मौम. मैं.. निर्दोष हूं.’’

उत्तर प्रदेश के महानगर लखनऊ की यमुनापुरम कालोनी में 7 जून, 2023 की सुबह असहनीय बदबू से लोग परेशान हो उठे. यह बदबू नवीन कुमार सिंह के घर से आ रही थी. लग रहा था इस घर में कोई चीज सड़ रही है.

नवीन कुमार सिंह सेना में जूनियर कमीशंड अधिकारी के पद पर तैनात थे, उन की पोस्टिंग बंगाल के आसनसोल में थी. घर में उन की पत्नी साधना सिंह 50 वर्ष, बेटी प्रियांशी 10 वर्ष और बेटा दक्ष 16 वर्ष रहते थे. उन के सामने वाले घर में शर्मा दंपति रहते थे. उन्हें कल ही आसनसोल से नवीन कुमार सिंह का फोन आया. उन्होंने शर्माजी से कहा था कि वह उन के घर जा कर देखें. उन की पत्नी साधना उन का फोन नहीं उठा रही है, वह साधना से उन की बात करवा दें.

शर्माजी ने अपनी पत्नी को नवीन कुमार सिंह के घर भेजा था. वह घर के दरवाजे तक पहुंची थी तो उन्हें वहां तेज स्मैल महसूस हुई. दरवाजे पर ही उन्हें नवीन कुमार का बेटा दक्ष मिल गया था. साधना के विषय में पूछने पर उस ने बताया था कि मौम बिजली का बिल जमा करवाने गई हैं. शर्माजी की पत्नी वापस लौट आई थी. यह बात नवीन सिंह को शर्माजी ने बता दी थी.

आज नवीन कुमार सिंह के घर से आ रही बदबू बढ़ती जा रही थी. इस से शर्माजी का माथा ठनका. वह अपनी पत्नी से बोले,

‘‘मुझे लग रहा है, नवीनजी के घर में कुछ गड़बड़ हुई है. इस असहनीय बदबू से सांस लेना दूभर हो रहा है. मैं पुलिस कंट्रोल रूम में सूचना दे देता हूं. पुलिस आ कर देख लेगी कि माजरा क्या है.’’

‘‘असहनीय बदबू है जी. आप पुलिस कंट्रोल रूम में फोन लगाइए.’’ पत्नी ने भी कह दिया.

शर्माजी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के नवीन कुमार सिंह के घर से आ रही असहनीय बदबू के विषय में बता दिया.

यमुनापुरम क्षेत्र का थाना कोतवाली पीजीआई पड़ता था. आधा घंटा में ही कंट्रोल रूम से सूचना पा कर कोतवाली पीजीआई थाना पुलिस यमुनापुरम आ गई. एसएचओ धर्मपाल नवीन कुमार सिंह के घर के सामने पहुंचे तो घर से आ रही बदबू के कारण उन्हें रुमाल निकाल कर नाक पर रखना पड़ा. साथ में आए पुलिस वालों ने भी ऐसा ही किया.

इंसपेक्टर धर्मपाल ने घर के दरवाजे की कालबेल बजाई. दरवाजा दक्ष ने खोला. पुलिस को देख कर वह एक क्षण को विचलित हुआ, फिर तुरंत संभल गया.

‘‘आप को किस से मिलना है?’’ उस ने सामान्य तौर पर पूछा.

‘‘तुम्हारे पापा हैं घर में?’’

‘‘नहीं सर. वह आसनसोल में ड्यूटी पर हैं. मेरे पापा सेना में हैं.’’

‘‘ओह.’’ इंसपेक्टर ने होंठ सिकोड़े, ‘‘इस घर से बहुत तेज बदबू आ रही है. मुझे अंदर तलाशी लेनी है.’’

दक्ष एक तरफ हट गया. इंसपेक्टर धर्मपाल ने अंदर बैठक में कदम रखा. वहां सोफे पर 10 साल की प्रियांशी बैठी अपने स्कूल का काम कर रही थी. पुलिस को देख कर वह सहम गई और उठ कर अपने भाई दक्ष के पीछे आ कर खड़ी हो गई.