एक रात में टूटी दोस्ती की इमारत – भाग 3

18 जुलाई को जावेद ने फोन कर के गौहर को जयपुर से फर्रूखाबाद बुलाया. वह 19 जुलाई की सुबह फर्रूखाबाद पहुंच गया. काम के सिलसिले में दोनों पूरे दिन भागदौड़ करते रहे. गौहर ने चौक क्षेत्र स्थित एक एटीएम से कई बार में 50 हजार रुपए निकाले. उसे इन पैसों की किसी काम के लिए जरूरत थी.

रात में गौहर हमेशा की तरह जावेद के घर रुका. रात में सब के सो जाने के बाद रुखसाना गौहर के कमरे में पहुंच गई और रोजाना की तरह दोनों मस्ती के खेल में डूब गए. रात में जावेद बाथरूम जाने के लिए उठा तो उसे गौहर के कमरे से आवाजें आती सुनाई दीं. उस ने अंदर झांक कर देखा तो उस की आंखें हैरत से फटी रह गईं. उस का दोस्त गौहर उस के घर की इज्जत से खेल रहा था.

यह देख कर वह गुस्से से भर उठा. लेकिन किसी तरह उस ने खुद पर काबू पाया और वहां से अपने कमरे में चला आया. उसे दोस्ती में इतना बड़ा धोखा मिलने की कतई उम्मीद नहीं थी. इस धोखे से जावेद इतना तिलमिला उठा कि उस ने गौहर की हत्या करने की ठान ली. इसी उधेड़बुन में वह पूरी रात नहीं सो सका.

अगले दिन यानी 20 जुलाई की सुबह वह उठ कर बाइक से बाजार गया और 70 रुपए में एक छुरी खरीद कर अपनी बाइक की डिक्की में डाल ली. इस के अलावा उस ने नींद की गोलियां भी खरीद कर, पीसने के बाद जेब में रख लीं. दिन में गौहर और जावेद काम के सिलसिले में घूमते रहे. इसी बीच गौहर ने एटीएम से कई बार पैसे निकाले. अब कुल मिला कर उस के पास एक लाख रुपए की रकम हो गई थी.

जावेद के मोहल्ले में ही कासिम नाम का एक युवक रहता था. वह फर्रूखाबाद थाना कोतवाली के पास बूरा वाली गली में स्थित एक होटल में काम करता था. जावेद उस होटल में जाता रहता था. कासिम उसी के मोहल्ले में रहता था. जावेद उसे चेले के रूप में अपने साथ रखने लगा था. वह शराब पीता या होटल में खाता था तो कासिम को भी शामिल कर लेता था.

20 जुलाई को जब जावेद गौहर के साथ था तो कासिम उसे मिल गया. उस ने कासिम को भी अपनी बाइक पर बैठा लिया. रात में गौहर को जयपुर वापस जाना था, इसलिए उस ने अपना बैग साथ में ले रखा था. बैग में उस के कपड़े व एटीएम से निकाले गए एक लाख रुपए थे.

कासिम को साथ लेने के बाद जावेद और गौहर असगर रोड गए. गौहर को जाने से पहले अपने मामा आफाक से मिलना था. वहां जा कर कासिम बाहर रोड पर ही उतर गया. जबकि गौहर जावेद के साथ मामा के घर चला गया. वहां से दोनों देर शाम निकले. कासिम बाहर ही उन का इंतजार कर रहा था. वह फिर बाइक पर उन के साथ हो लिया.

रात 8 बजे जावेद दोनों को ले कर चौक स्थित एक जूस के स्टाल पर गया. वहां उस ने गौहर के गिलास में नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया. जूस पीने के बाद वह कासिम के साथ गौहर को बाइक पर बैठा कर कायमगंज रोड पर ले गया. तब तक गौहर अर्द्धमूर्छित हो गया था. जावेद ने सारी योजना पहले ही बना रखी थी. वह बाइक सड़क से 300 मीटर दूर बजरंग ईंट भट्ठे के पास एक खेत में ले गया. वहां उस ने गौहर को धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया.

जब जावेद ने डिक्की से छुरी निकाली तो उस की मंशा भांप कर कासिम उस का साथ देने से मना कर के जाने लगा. इस पर जावेद ने उसे धमकाया कि अगर वह उस का साथ नहीं देगा तो वह गौहर के साथसाथ उसे भी जान से मार देगा.

जावेद ने कासिम के साथ मिल कर गौहर को दबोच लिया. इस के बाद जावेद गौहर के सीने पर बैठ गया और साथ लाई तेज धारदार छुरी से गौहर का गला काटने लगा. अर्द्धमूर्छित होने की वजह से गौहर अपने बचाव में कुछ नहीं कर सका. जावेद ने गौहर के सिर को काट कर धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद उस ने गौहर की कमीज और पैंट उस के शरीर से निकाल कर वहीं डाल दी.

उधर कासिम ने गौहर के बैग में रखे कपड़े निकाल कर जमीन पर फेंक दिए. बैग में रखे पैसे निकाल कर कुछ रुपए कासिम ने जावेद की आंख बचा कर अपने जेब में ठूंस लिए, बाकी पैसे उस ने जावेद को दे दिए.

जावेद ने गौहर के कपड़ों की तलाशी ली तो उस का मोबाइल मिल गया. जावेद ने खाली बैग में गौहर के कटे सिर को रखने के बाद उसी में हत्या में इस्तेमाल की गई छुरी और गौहर का मोबाइल डाला और बैग बंद कर दिया. इस के बाद जावेद कासिम के साथ घटियाघाट पुल पर गया. वहां उन्होंने बैग से सिर, छुरी और मोबाइल निकाल कर गंगा नदी में फेंक दिए, साथ ही खाली बैग भी उसी नदी में फेंक दिया. तत्पश्चात दोनों अपने घर लौट आए.

लाश की शिनाख्त न हो पाए, इसी वजह से जावेद और कासिम ने गौहर का सिर काट कर गंगा नदी में फेंका था, लेकिन उन की एक गलती उन्हें भारी पड़ गई. तलाशी में वह गौहर का एटीएम कार्ड नहीं देख पाए, उसी एटीएम कार्ड से पुलिस लाश की शिनाख्त कर के उन तक पहुंच गई.

यह सच है कि गुनहगार कितनी सफाई से भी अपराध को अंजाम दे, कोई न कोई सुबूत छोड़ ही देता है, जो उस के गले का फंदा बन जाता है. यही जावेद और कासिम के साथ हुआ.

पुलिस ने जावेद से पूछताछ के बाद गौहर से लूटे गए 65 हजार रुपए और गौहर की होंडा बाइक उस के घर से बरामद कर ली. गौहर के सिर की बरामदगी के लिए कई बार गोताखोरों को गंगा नदी में उतारा गया, लेकिन सिर बरामद नहीं हो सका.

थानाप्रभारी राघवन सिंह ने 26 जुलाई की शाम 4 बजे कासिम को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस के घर से लूटे गए 15 हजार रुपए भी बरामद कर लिए.

बाद में पुलिस ने इस केस में भादंवि की धारा 404/34 और बढ़ा दी. साथ ही केस में जावेद के साथ ही कासिम को भी नामजद कर दिया गया. इस के बाद दोनों आरोपियों को अदालत पर पेश कर के न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बुरी नीयत वाला दोस्त

सुबह के लगभग 9 बजे थाना गोरेगांव पश्चिम में ड्यूटी पर तैनात पुलिस उपनिरीक्षक कादवाने को सूचना मिली कि  गोरेगांव के प्रेमनगर के विश्वकर्मा रोड की अंकुर बिल्डिंग के पास हाइपर सिटी मौल के पीछे से बहने वाले नाले में एक लाश पड़ी है. मामला हत्या का लगता है. यह सूचना उन्हें पुलिस कंट्रोल रूम से मिली थी. उन्होंने तुरंत यह जानकारी थाने में उपस्थित पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर को दी.

भाई माहाडेश्वर सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल थाना से लगभग 1 किलोमीटर दूर था. घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने देखा, प्लास्टिक की एक बड़ी सी थैली में लाश भरी थी, जिस का मुंह मजबूत रस्सी से बंधा हुआ था. पुलिस ने थैली को नाले से बाहर निकाल कर खुलवाया. लाश निकाल कर उस का निरीक्षण शुरू हुआ.

मृतक की उम्र 35 से 40 साल के बीच थी. उस की हत्या जिस बेरहमी से की गई थी, इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे को मृतक से गहरी नफरत थी. उस के गले, पेट, सीने और सिर पर काफी बड़ेबड़े घाव थे. लाश मोटी सी चादर में लपेट कर थैली में भरी गई थी. पूरी चादर खून से भीगी हुई थी.

पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि सूचना पा कर थाना गोरेगांव के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक अरुण जाधव भी आ पहुंचे. वह भी शव का बारीकी से निरीक्षण करने लगे. निरीक्षण के बाद शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की जा रही थी कि पुलिस उपायुक्त महेश पाटिल और सहायक पुलिस आयुक्त उत्तम खैर भोड़े भी आ पहुंचे. पुलिस अधिकारियों ने भी शव और घटनास्थल का निरीक्षण किया.

पुलिस अधिकारी शव एवं घटनास्थल का निरीक्षण कर के चले गए. इस के बाद वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक अरुण जाधव ने घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी कीं और शव को पोस्टमार्टम के लिए बोरीवली के भगवती अस्पताल भिजवा दिया. न तो लाश की शिनाख्त हुई थी, न घटनास्थल से ऐसी कोई चीज मिली थी, जिस से मामले की जांच में उन्हें मदद मिलती. उन्होंने इस मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर को सौंप दी.

पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर ने जांच को आगे बढ़ाने के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में सहायक पुलिस निरीक्षक प्रकाश जाधव, पुलिस उपनिरीक्षक संजय निवालकर, सिपाही प्रमोद तावड़े, मंगेश घोमणे, शिवराज सावंत, किरण लंगड़े और रामचंद्र सारंग को शामिल किया. पुलिस टीम यह पता लगाने में जुट गई कि मृतक कौन था, क्योंकि जब तक शिनाख्त नहीं हो जाती, जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी.

पहले तो इस टीम ने मृतक का हुलिया बता कर शहर के सभी पुलिस थानों से यह जानने की कोशिश की इस तरह के आदमी की कहीं गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. जब इस पुलिस टीम को शहर के किसी थाने में कोई गुमशुदगी न दर्ज होने की सूचना मिली तो पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर ने मुंबई से निकलने वाले सभी दैनिक समाचार पत्रों में शव की तसवीरें छपवा कर शिनाख्त की अपील की. मगर इस से भी कोई लाभ नहीं हुआ.

जब पुलिस टीम को कोई रास्ता नहीं सूझा तो टीम में शामिल पुलिस उपनिरीक्षक संजय निवालकर ने मृतक की फ्रिंगरप्रिंट ब्यूरो भेज कर यह जानने की कोशिश की कि उस के बारे में कोई जानकारी तो नहीं दर्ज है.  आखिर सप्ताह भर बाद फिंगरप्रिंट ब्यूरो से मृतक के बारे में जो जानकारी मिली, वह चौंकाने वाली थी. फ्रिंगरप्रिंट ब्यूरो के रिकौर्ड के अनुसार मृतक का नाम मोहम्मद अब्दुल हसन बाबू चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला था. वह मालाड पूर्व के मातंगगढ़ की स्लम बस्ती की पिपली पाड़ा पानी की टंकी के पास रहता था.

वह अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति था. 2002 में उसे थाना मालाड कुराद विलेज पुलिस ने दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार कर के जेल भेजा था. इस मामले में उसे सन 2003 में 7 साल की सजा हुई थी. लेकिन उस ने यह सजा पूरी नहीं की. 2005 में वह पैरोल पर बाहर आया तो वापस जेल नहीं गया.

मृतक की शिनाख्त हो गई तो पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर उस के बारे में पता लगाने लगे. वह फिंगरप्रिंट ब्यूरो द्वारा मिले पते पर पहुंचे तो वहां उस की पूर्व पत्नी रेहाना चौधरी मिली. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उस का और बाबू लाईटवाले का वैवाहिक संबंध 2001 में उसी दिन खत्म हो गया था, जिस दिन वह दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार कर के जेल भेजा गया था. उस के जेल जाने के बाद उस ने अजीत पटेल से विवाह कर के अपनी अलग गृहस्थी बसा ली थी. उस के बाद बाबू लाईटवाला का उस से कोई संबंध नहीं रह गया था.

रेहाना चौधरी के इस बयान से पुलिस की उम्मीदों पर पानी फिर गया था. लेकिन पुलिस निराश नहीं हुई. रेहाना चौधरी को विश्वास में ले कर बाबू लाईटवाला के दोस्तों के बारे में पूछा गया तो उस ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘उस के दोस्तों के बारे में मुझे अधिक तो नहीं मालूम, लेकिन 3 महीने पहले उस का एक दोस्त मेरे पास पैसों के लिए आया था. उस ने फोन कर के कहा था कि उसे पैसों की बहुत जरूरत है, इसलिए वह अपने एक दोस्त को भेज रहा है. उसे एक हजार रुपए दे देना.’’

रेहाना चौधरी की इस बात से पुलिस टीम को आशा की एक किरण दिखाई दी. आगे की जांच के लिए पुलिस ने रेहाना चौधरी से वह मोबाइल नंबर ले लिया, जिस से बाबू लाईटवाला ने फोन कर के 1 हजार रुपए मंगाए थे. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर चेक की तो उस में एक नंबर ऐसा था, जिस पर उस नंबर से सब से ज्यादा बात हुई थी.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद था. तब पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर नीलेश का था. लेकिन उस की आईडी में जो पता लिखा था, उस पर वह नहीं मिला. तब पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में भी एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर उस ने सब से अधिक बात की थी. पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह चल रहा था. बातचीत में पता चला कि वह नंबर नीलेश की प्रेमिका का था.

पुलिस नीलेश के बारे में पता करने उस की प्रेमिका के पास पहुंची तो पूछताछ में उस ने बताया कि कुछ दिनों पहले नीलेश ने उसे फोन कर के बताया था कि उस पर लाईटवाला की हत्या का आरोप है, इसलिए इन दिनों वह उस से मिलने नहीं आ सकता. उस ने यह भी कहा था कि वह उसे भूल जाए और किसी दूसरे से शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा ले. प्रेमी की इस बात से वह काफी परेशान थी.

इस बात से साफ हो गया था कि बाबू लाईटवाला की हत्या नीलेश ने की थी. अब पुलिस उसे गिरफ्तार करने की फिराक में लग गई थी. प्रेमिका से पुलिस को नीलेश का पता मिल ही गया था. पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो संयोग से वह घर पर ही मिल गया. लेकिन बड़ी आसानी से वह पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया.

दरअसल पुलिस टीम उसे पहचानती तो थी नहीं, इसलिए उस के घर पहुंच कर जब पुलिस वालों ने उसी से नीलेश के बारे में पूछा तो उस ने पुलिस से कह दिया कि वह शूटिंग पर गया है, शाम को मिलेगा. पुलिस टीम वापस चली गई तो वह फरार हो गया.   बाद में जब पुलिस टीम को इस बात की जानकारी हुई तो वह हाथ मल कर रह गई. लेकिन पुलिस टीम निराश नहीं हुई. वह नीलेश की तलाश में तेजी से लग गई. आखिर अपने मुखबिरों की मदद से पुलिस ने नीलेश को ढूंढ़ निकाला.

10 अक्तूबर, 2013 को पुलिस टीम को सूचना मिली कि नीलेश अपने किसी रिश्तेदार से मिलने गोरेगांव राम मंदिर रोड़ पर स्थित एमएमआरडी में आने वाला है. इसी सूचना के आधार पर पुलिस टीम ने घेर कर उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो मोहम्मद अब्दुल हसन चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

तमिलनाडु का रहने वाला 30 वर्षीय नीलेश गोडसे लगभग 10 साल पहले मुंबई आया तो गोरेगांव पूर्व चरण देव पाड़ा आदर्श नगर आरे कालोनी में रह रहे अपने 2 भाइयों संतोष गोडसे, शंकर गोडसे और भाभी सविता के साथ रहने लगा. नीलेश सुंदर, स्वस्थ और महत्त्वाकांक्षी युवक था. गांव से 10वीं पास कर के कामधाम की तलाश में वह मुंबई में रहने वाले अपने भाइयों और भाभी के पास आया था. यहां वह फिल्मों में डुप्लीकेट का काम करने लगा.

मोहम्मद अब्दुल हसन चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला पैरोल पर जेल से बाहर आने के बाद वापस नहीं गया तो अपने रहने और छिपने के लिए स्थाई ठिकाना ढूंढ़ने लगा. क्योंकि पुलिस से बचने के लिए उसे इधरउधर भागना पड़ रहा था. इस बीच वह अपने खर्च के लिए फिल्मों के सेटों पर जा कर छोटामोटा लाईट का काम कर लेता था. उसी दौरान किसी फिल्म की शूटिंग के सेट पर बाबू लाईटवाला की मुलाकात नीलेश से हुई तो दोनों में जल्दी ही गहरी दोस्ती हो गई.

दोस्ती होने के बाद बाबू लाईटवाला ने अपनी परेशानी नीलेश को बताई तो आंख बंद कर के वह उस की मदद को तैयार हो गया. उस ने अपने पड़ोस में ही बाबू लाईटवाला को एक कमरा किराए पर दिला दिया. यही नहीं, उस ने कामधाम के लिए बाबू लाईटवाला को 80 हजार रुपए उधार भी दिए. इन पैसों से बाबू लाईटवाला अवैध झोपड़े बना कर बेचने लगा.

जैसा कि कहा जाता है, सांप को कितना भी दूध पिलाओ, मौका मिलने पर वह डंसने से नहीं चूकता. कुछ ऐसा ही हाल बाबू लाईटवाला का भी था. उस की नजर नीलेश की खूबसूरत भाभी पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. उसे जब भी मौका मिलता, नीलेश की भाभी सविता से गंदेगंदे मजाक करने लगता.

कुछ दिनों तक सविता ने बाबू लाईटवाला की इस हंसीमजाक पर ध्यान नहीं दिया. इस से उस का साहस बढ़ता गया और वह शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा. सविता को जब बाबू लाईटवाला के बुरे इरादे का अहसास हुआ तो उस ने यह बात अपने पति संतोष तथा देवरों नीलेश और शंकर को बताई.

बाबू लाईटवाला की गंदी नीयत का पता जब तीनों भाइयों को चला तो उन का खून खौल उठा. उन्होंने उसे सबक सिखाने का क्रूर फैसला ले लिया और इस में नीलेश गोडसे ने अपने एक दोस्त सतीश यादव को भी शामिल कर लिया.

अपने उसी फैसले के अनुसार 9 अक्तूबर, 2013 की शाम को बाबू लाईटवाला जब अपने कमरे पर आया तो नीलेश ने पार्टी के बहाने उसे अपने घर बुला लिया. उस बस्ती में नीलेश के 3 कमरे थे, जिन में से एक में नीलेश अकेला ही रहता था. नीलेश गोडसे ने पहले बाबू लाईटवाला को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में धुत हो गया तो तीनों भाइयों ने सतीश यादव की मदद से उसे मौत के घाट उतार दिया. बाबू लाईटवाला की हत्या करते समय सतीश यादव जख्मी भी हो गया.

बाबू लाईटवाला की हत्या करने के बाद उन्होंने लाश को मोटी चादर में लपेटी और एक बड़ी सी प्लास्टिक की थैली में भर कर उस का मुंह मजबूत रस्सी से बांध दिया. लाश ठिकाने लगाने के लिए वे रात होने का इंतजार करने लगे. रात गहरी होने पर वे लाश को ले जा कर आभू कालोनी के घने जंगलों में फेंक देना चाहते थे. लेकिन इस के लिए नीलेश तैयार नहीं हुआ, क्योंकि उसे संदेह था कि अगर लाश आभू कालोनी के घने जंगलों में फेंकी गई तो बरामद होने पर पुलिस और बस्ती वालों को उसी पर शक होगा.

क्योंकि बाबू लाईटवाला और नीलेश की दोस्ती के बारे में वहां सभी को पता था. इसलिए वह लाश को ऐसी जगह फेंकना चाहता था, जहां उसे कोई न पहचान सके. रात होने पर नीलेश अपने एक दोस्त की एसेंट कार यह कह कर मांग लाया कि उस की मां को दिल का दौरा पड़ा है, जिसे उसे अस्पताल ले जाना है.

उसी कार की डिग्गी में बाबू लाईटवाला की लाश रख कर चारों ठिकाने लगाने के लिए निकल पड़े. घूमतेफिरते वे गोरेगांव (पश्चिम) हाइपर सिटी मौल के पीछे पहुंचे तो उन्हें नाला दिखाई दिया. सुनसान जगह देख कर उन्होंने लाश को उसी नाले में फेंक दी और चलते बने.

बाबू लाईटवाला हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त नीलेश पुलिस टीम के हाथ लग गया था. लेकिन अभी 3 लोगों को गिरफ्तार करना था. पुलिस टीम उन की तलाश में लग गई. पुलिस को सभी के मोबाइल नंबर मिल ही गए थे. उन्हीं से पुलिस उन लोगों की लोकेशन पता करने लगी.

संतोष और शंकर के मोबाइल फोन की लोकेशन उन के घर की ही मिल रही थी. पुलिस टीम उन के घर पहुंची तो घर के बाहर ताला लगा था. यह देख कर पुलिस पशोपेश में पड़ गई, क्योंकि मोबाइल फोन की लोकेशन के अनुसार उन्हें घर पर ही होना चाहिए था. पुलिस ने आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ की तो वे भी कुछ नहीं बता सके. अंत में मोहल्ले वालों की उपस्थिति में घर का ताला तोड़ा गया तो दोनों भाई घर के अंदर ही छिपे मिल गए.

अब पुलिस को सतीश यादव को गिरफ्तार करना था. उस के मोबाइल फोन की लोकेशन निकलवाई गई तो वह मुंबई के जे.जे. अस्पताल की मिली. पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई. लेकिन जब पुलिस वहां पहुंची तो पता चला कि जब वे लोग बाबू लाईटवाला की चापड़ से हत्या कर रहे थे तो सतीश को चोट लग गई थी. सतीश वहां भरती हो कर उसी का इलाज करा रहा था.

अस्पताल पहुंच कर भी सतीश को  गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को काफी परेशान होना पड़ा था. क्योंकि वहां वह नाम बदल कर वहां भरती था. इस वजह से पुलिस को अस्पताल का एकएक बेड चैक करना पड़ा था. इस के बावजूद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था.

मोहम्मद अब्दुल हसन बाबू चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला की हत्या करने वाले चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के पुलिस ने महानगर मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक किसी भी अभियुक्त की जमानत नहीं हुई थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर – भाग 3

रईस मंसूरी ने बाद में इनवर्टर का काम शुरू कर दिया. उस ने एकएक कर के 4 शादियां कीं. 3 बीवियों को वह तलाक दे चुका था, अब चौथी बीवी नुसरतजहां के साथ रह रहा था. पति के मरने के बाद तसलीमा को आर्थिक परेशानी हुई तो रईस ने उस की काफी मदद की. इस वजह से वह रईस की एहसानमंद हो गई.

तसलीमा की बेटियां जवान हो चुकी थीं. रईस की नीयत उस की बड़ी बेटी पर खराब हो गई. वह उसे फंसाने की कोशिश करने लगा. उसे इस बात की भी शर्म नहीं आई कि वह उस के लंगोटिया यार की बेटी है. एक तरह से वह उस की बेटी की तरह है. लेकिन उस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

उसे फंसाने के लिए वह उस की पसंद की चीजें खरीद कर देने लगा. आखिर एक दिन वह अपनी योजना में सफल हो गया. नाजायज संबंध बने तो यह सिलसिला काफी दिनों तक चला. उस ने उस के अंतरंग संबंधों की मोबाइल से फिल्म भी बना ली थी.

तसलीमा के घर वालों को रईस मंसूरी पर इतना विश्वास था कि कोई उस के बारे में कुछ गलत सोच भी नहीं सकता था. इसी की आड़ में वह अपने मंसूबे पूरे कर रहा था. कुछ दिनों बाद तसलीमा की बेटी ने महसूस किया कि रईस से संबंध बना कर उस ने ठीक नहीं किया, क्योंकि वह उस की पिता की उम्र का है. उस से वह शादी भी नहीं कर सकती.

यह अहसास होने के बाद वह उस से दूरियां बनाने लगी. लेकिन रईस उस का पीछा छोडऩे को तैयार नहीं था. उस ने जो वीडियो बना रखी थी, उसी के बल पर वह उसे ब्लैकमेल करने लगा. रईस ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उस वीडियो को इंटरनेट पर डाल देगा. इस धमकी से वह डर गई. इस तरह रईस उस का शारीरिक व मानसिक शोषण करने लगा.

तसलीमा का बेटा आलम अब जवान हो चुका था. वह दुनियादारी समझने लगा था. अपने घर आने वाले रईस की गतिविधियां उसे अच्छी नहीं लगती थीं. क्योंकि वह जब भी उस के घर आता था, उस की बहन के आगेपीछे मंडराता रहता था. वह रईस से तो कुछ कह नहीं कहा, क्योंकि वह उस के मरहूम पिता की उम्र का था. उस की अम्मी भी उस की बड़ी इज्जत करती थी. इसलिए उस ने बहन को ही डांटा कि वह रईस ज्यादा बातें न किया करे.

आलम को पता नहीं था कि बात तो उस की बहन भी नहीं करना चाहती, पर रईस ने वीडियो फिल्म का ऐसा खौफ उस के दिल में बैठा दिया है कि ना चाहते हुए भी वह रईस की हर बात मानती है. एक दिन आलम के एक दोस्त ने अपने मोबाइल में उसे एक वीडियो दिखाई. वह वीडियो देख कर आलम का खून खौल उठा. उस वीडियो में उस की बहन रईस के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थी. उस के दोस्त को वह फिल्म रईस ने ही दी थी.

इस के बाद रईस आलम का दुश्मन बन गया. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि वह उसे उस के किए की सजा जरूर देगा. अपने दिल में उठ रहे गुस्से के सैलाब को उस ने जाहिर नहीं होने दिया और रईस को ठिकाने लगाने का उपाय खोजने लगा. आखिर उस ने एक खौफनाक योजना बना ही ली.

आलम को अपने घर में इनवर्टर लगवाना था. चूंकि रईस इनवर्टर का काम करता था, इसलिए उस ने रईस को इनवर्टर लगाने के लिए 5 हजार रुपए दे दिए. रईस के पास काम ज्यादा था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे टाइम मिलेगा, वह आलम के यहां जा कर इनवर्टर लगा देगा.

आलम ने रईस को फोन किया तो उस ने आलम से कह दिया कि 15 दिसंबर की शाम को वह उस के यहां इनवर्टर लगा देगा. आलम ने उसी दिन रईस को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. इस काम में उस ने अपने एक दोस्त शोएब को भी शामिल कर लिया.

उस दिन शाम को वह रईस के आने का इंतजार करने लगा. शाम साढ़े 7 बजे तक रईस उस के यहां नहीं पहुंचा तो उस ने उसे फोन किया. फोन पर बात करने के कुछ देर बाद रईस अपनी स्कूटी से आलम के यहां पहुंच गया.

योजना के अनुसार, आलम ने शराब की एक बोतल पहले से ही खरीद कर रख ली थी. रईस ने जब उस के यहां इनवर्टर लगा दिया तो वह रईस को एक कमरे में ले गया. उस कमरे में मेज पर शराब की बोतल और नमकीन पहले से ही रखी थी.

आलम ने कहा, “इनवर्टर लगने की खुशी में मैं ने छोटी सी पार्टी रखी है.”

रईस मना नहीं कर सका और आलम तथा शोएब के साथ शराब पीने बैठ गया. आलम ने तेज आवाज में डेक बजा दिया. जैसे ही उन का पीनेपिलाने का दौर खत्म हुआ, आलम अपनी जगह से उठा और कमरे में पहले से रखे हथौड़े से रईस के सिर पर जोरदार वार कर दिया. एक ही वार में रईस बिना कोई आवाज किए नीचे गिर गया. सिर से खून बहने लगा. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

हत्या के बाद उन के सामने समस्या लाश ठिकाने लगाने की थी. नाराज आलम ने उस की गरदन काट दी. इस के बाद उस ने लाश के टुकड़े कर के 4 बोरों में भर दिए और आधी रात को उन बोरों को एकएक कर के रामगंगा नदी के किनारे फेंक आया. कमरे में जमीन पर जो खून फैला था, उसे भी उस ने मिट्टी सहित कुरच कर एक बोरे में भर दिया और उसे भी जामा मस्जिद के नाले में डाल आया. उस की स्कूटी को उस ने रामगंगा नदी के पार मजार के पास बने कुंड में फेंक दी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने आलम के साथी शोएब को भी गिरफ्तार कर लिया. आलम की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा, चाकू, आरी के ब्लेड, मृतक का मोबाइल फोन और स्कूटी बरामद कर ली. इस के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों व अभियुक्त आलम के बयान पर आधारित. कथा में तसलीमा परिवर्तित नाम है)

एक और युग का अंत – भाग 3

राजेश की ऊपर की कमाई तो पहले ही बंद हो चुकी थी, अब नौकरी भी चली गई. दूसरी नौकरी के लिए उस ने बहुत कोशिश की, लेकिन कहीं जुगाड़ नहीं बन सका. कहीं कोई उम्मीद भी नजर नहीं आ रही थी. मौजमजे की जिंदगी जी रहा राजेश दवरे एक एक पैसे के लिए मोहताज हो गया. उस का अपना और घर का खर्च कैसे चले, इस बात को ले कर वह परेशान रहने लगा.

अपनी इस स्थिति के लिए राजेश डा. मुकेश चांडक और उन के बेटे युग को जिम्मेदार मान रहा था. उसे लगता था कि यह सब युग की वजह से हुआ है. वह इस बात को हजम नहीं कर पा रहा था. उसे डा. मुकेश चांडक और युग से पहले ही नफरत थी. कहीं कामधाम न मिलने की वजह से धीरेधीरे वह बढ़ती ही गई और हालात यह हो गए कि वह डा. मुकेश चांडक से अपमान का बदला लेने और युग को उस के किए की कठोर से कठोर सजा देने के बारे में सोचने लगा.

इसी सोचनेविचारने में उस के दिमाग में युग के अपहरण की बात आ गई. उस ने सोचा कि युग का अपहरण कर के वह उसे खत्म कर देगा. उस के बाद फिरौती के रूप में डाक्टर से मोटी रकम वसूल करेगा. इस से बाप बेटे दोनों को सबक मिल जाएगा.

राजेश दवरे की यह योजना खतरनाक तो थी ही, उस के अकेले के वश की भी नहीं थी. इस के लिए उसे एक साथी की जरूरत थी. उस ने साथी की तलाश शुरू की तो उस की नजर अपने दोस्त अरविंद सिंह पर टिक गई. उस ने उसे अपनी योजना समझा कर मोटी रकम का लालच दिया तो वह उस का साथ देने को तैयार हो गया.

राजेश दवरे ने अरविंद से कहा था कि युग का अपहरण कर के वह डा. मुकेश चांडक से 15 करोड़ रुपए फिरौती में वसूल करेगा. इस से उस का बदला भी पूरा हो जाएगा और मिली हुई रकम से दोनों पार्टनशिप में एक अच्छा सा होटल खरीदेंगे, जिस में बीयर बार खोल कर दोनों मौजमस्ती करेंगे.

25 वर्षीय अरविंद सिंह राजेश दवरे के पड़ोस में ही रहता था. उस का परिवार काफी संपन्न था, लेकिन आवारा दोस्तों के साथ रहने की वजह से वह बिगड़ गया था. राजेश के साथ रहते हुए उसे भी मौजमस्ती का शौक लग गया था. इसीलिए वह राजेश के बहकावे में आ गया था. राजेश को डा. मुकेश चांडक के बारे में सब पता था. वह जानता था कि डा. चांडक अपने लाडले बेटे युग के लिए आसानी से 10-15 करोड़ रुपए दे देगा.

अरविंद तैयार हो गया तो युग को उठाने की जिम्मेदारी राजेश ने उसे ही सौंपी. क्योंकि उसे युग और सोसायटी के गार्ड पहचानते थे. वह यह भी जानता था कि युग उस के साथ कभी नहीं जाएगा. इसलिए उस ने अरविंद को युग के बारे में सब कुछ समझा कर उसे धोखा देने के लिए अपनी वह शर्ट दे दी, जो उसे क्लिनिक में काम करते समय पहनने को दी गई थी.

1 सितंबर को अरविंद सिंह पूरी तैयारी कर के अपनी स्कूटी से उस सोसायटी में जा पहुंचा, जिस में डा. चांडक परिवार के साथ रहते थे. उस समय दिन के पौने 4 बज रहे थे. उस ने सोसायटी के गार्ड से युग के बारे में पूछा. तब तक युग स्कूल से आया नहीं था. अरविंद की यही गलती गिरफ्तारी की वजह बनी. गार्ड ने उसे बताया था कि युग 4 बजे आएगा. 4 बजे युग की स्कूल बस आई तो वह स्कूटी ले कर उस के पास जा पहुंचा.

बस से उतर कर युग घर की ओर बढ़ा तो अरविंद ने उस के सामने आ कर कहा, ‘‘युग जल्दी चलो, तुम्हारे पापा ने तुम्हें बुलाया है.’’

चूंकि अरविंद डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक में पहनी जाने वाली शर्ट पहने था, इसलिए युग को उस पर सहज ही विश्वास हो गया. उस ने अपना स्कूल बैग सिक्योरिटी गार्ड की खाली पड़ी कुर्सी पर फेंका और अरविंद सिंह की स्कूटी पर कूद कर बैठ गया. अरविंद उसे ले कर सोसायटी के बाहर रास्ते में खड़े राजेश के पास जा पहुंचा. युग कुछ समझ पाता, उस के पहले ही राजेश दवरे ने क्लोरोफार्म में भीगी रूमाल उस की नाक पर रख दी, जिस से वह बेहोश हो गया. इस के बाद वह पीछे बैठ गया.

राजेश दवरे और अरविंद सिंह ने युग का अपहरण तो आसानी से कर लिया, लेकिन अब उसे वे छिपा कर रखे कहां, इस की उन के पास कोई व्यवस्था नहीं थी. इसलिए उन्होंने उसे तुरंत ठिकाने लगाने यानी खत्म करने की योजना बना डाली. वे उस की हत्या करने के इरादे से उसे शहर से बाहर खापरघेड़ा की ओर ले कर चल पड़े.

शहर से 20 किलोमीटर दूर लोणखेरी पहुंचतेपहुंचते अंधेरा हो चुका था. उन्हें इस बात का भी डर सता रहा था कि अगर युग को होश आ गया तो संभालना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए वे जल्द से जल्द युग को ठिकाने लगा देना चाहते थे.

लोणखेरी के पास सड़क पर उन्हें एक पुल दिखाई दिया तो उन्होंने स्कूटी रोक दी. वह स्थान सुनसान था. युग को उठा कर दोनों पुल के नीचे ले गए. अब तक युग को होश आ गया था. वह समझ गया कि वे उसे वहां क्यों ले आए हैं. वह रोते हुए प्राणों की भीख मांगने लगा. लेकिन नफरत की आग में जल रहे राजेश दवरे को उस मासूम पर बिलकुल दया नहीं आई और गला दबा कर उस ने उसे मार डाला.

युग को मौत के घाट उतार कर उन्होंने स्कूटी में रखे पेचकस से एक गड्ढा खोदा और शव को उसी में रख कर ढंक दिया. युग की हत्या करने के बाद उन्होंने डा. चांडक को फोन कर के 15 करोड़ की फिरौती मांगी, लेकिन वे रकम लेने की जगह तय कर पाते, उस के पहले ही पकड़ लिए गए.

पूछताछ में उन्होंने पुलिस को बताया कि फिल्म इनकार में जिस तरह फिरौती की रकम ली गई थी, उसी तरह वे फिरौती की रकम लेना चाहते थे. फिल्म में फिरौती की रकम बैग में भर कर चलती ट्रेन से फेंकने की बात दिखाई गई थी. पुलिस ने दोनों को साथ ले जा कर पुल के नीचे से युग का शव बरामद कर लिया था, जिसे पोस्टमार्टम के बाद घर वालों की सौंप दिया गया था.

पूछताछ के बाद इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार ने राजेश दवरे और अरविंद सिंह को थाना लकड़गंज पुलिस के हवाले कर दिया. थाना लकड़गंज के थानाप्रभारी एस.के. जैसवाल ने वह स्कूटी भी बरामद कर ली थी, जिस से उन्होंने युग का अपहरण किया था.

इस के बाद दोनों के खिलाफ अपहरण और हत्या का मुकदमा दर्ज कर के अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. नागपुर के पुलिस कमिश्नर ने थाना गणेशपेढ की पुलिस टीम को 5 हजार रुपए का नकद इनाम दे कर सम्मानित किया था, क्योंकि इस टीम ने मात्र 12 घंटे में इस मामले को सुलझा लिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 3

चंद्रप्रकाश और उन के साथियों ने अनुज और सोनम के मामले में हुई काररवाई पर रोष व्यक्त करते हुए पुलिस से उन का पोस्टमार्टम दोबारा कराने की अपील की. इस सिलसिले में वे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से भी मिले. संदिग्ध हालात में हुई नवदंपति की हत्या की स्थितियों को देखते हुए पुलिस अधिकारी दोबारा पोस्टमार्टम कराने के लिए तैयार हो गए.

3 डाक्टरों के पैनल से जब अनुज और सोनम की लाशों का पोस्टमार्टम कराया गया तो पता चला कि उन की मौत शरीर में कोई तीक्ष्ण जहर जाने के बाद पानी में डूबने से हुई थी. यह तथ्य प्रकाश में आते ही गोवा पुलिस ने अनुज और सोनम की मौत के मामले को अपहरण, लूट, हत्या और धोखाधड़ी के तहत दर्ज कर के तेजी से जांच शुरू कर दी.

प्राथमिक जांच में पता चला कि अनुज और सोनम को 3 दिन पहले दोपहर बाद और रात को एक ऐसे खूबसूरत जोड़े के साथ देखा गया था जिन के पास सफेद रंग की आल्टो कार थी. इस मामले की जांच कर रहे सहायक पुलिस आयुक्त विनायक ने होटल के कर्मचारियों, अंजुना बीच के एक रेस्तरां के मालिक और कुछ पर्यटकों से पूछताछ की.

उन्हें पता चला कि अनुज और सोनम ने 3 दिन पहले दोपहर को एक युवा जोड़े के साथ अंजुना बीच के एक रेस्तरां में खाना खाया था. रेस्तरां के कर्मचारियों के अनुसार खाना खाते समय अनुज और सोनम के साथ जो जोड़ा था, वह देखने में पतिपत्नी लगते थे और धाराप्रवाह अंगरेजी में बात कर रहे थे. आचारव्यवहार से वे किसी संपन्न घराने के लगते थे. अनुज और सोनम को दोपहर को भी उसी जोड़े के साथ देखा गया था और रात को भी. इस से पुलिस को शक हुआ कि उन के साथ जो भी हुआ, उस का जिम्मेदार वही जोड़ा रहा होगा.

सहायक पुलिस आयुक्त विनायक ने होटल के कर्मचारियों, अंजुना बीच के रेस्तरां मालिक और कुछ पर्यटकों से पूछताछ के बाद अनुज और सोनम के साथ देखे गए युवा जोड़े का पूरा हुलिया एकत्र कर के कंप्यूटर स्केच तैयार करवाया. जिन लोगों ने उस जोड़े को अनुज और सोनम के साथ देखा था, उन के अनुसार कंप्यूटर स्केच और उस जोड़े की शक्ल काफी मिलतीजुलती थी.

इस पर जांच अधिकारी विनायक ने उस जोड़े के चित्रों वाला स्केच गोवा पर्यटन से जुड़े तमाम लोगों को दिखाया. इस छानबीन में विनायक को जानकारी मिली कि उस हुलिए के एक जोड़े को अकसर महंगे होटलों, नाइट क्लबों, डिस्कोथेक, शराबखानों और समुद्र तटों पर कितनी ही बार देखा गया था. कभी वह जोड़ा देशी पर्यटकों के साथ होता था तो कभी विदेशी पर्यटकों के साथ.

केस भी दर्ज हो गया था और जांच भी शुरू हो चुकी थी. रोतेबिलखते चंद्रप्रकाश बेटे और पुत्रवधू के शवों को ले कर अपने साथियों के साथ दिल्ली लौट आए. यह मामला चंद्रप्रकाश के परिवार और सोनम के मायके वालों के लिए दिल दहला देने वाला था. उन लोगों ने एक माह पूर्व जिस युवा जोड़े को बड़े अरमानों के साथ शादी के बंधन में बांधा था, उसी की लाशें उन के सामने पड़ी थीं.

बहरहाल, सोनम और अनुज का एक साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. अनुज और सोनम की क्रिया आदि से निपटने के बाद चंद्रप्रकाश पुन: गोवा पहुंचे. इस बीच गोवा पुलिस ने अपनी छानबीन से यह पता लगा लिया था कि अंतिम दिन अनुज और सोनम के साथ जिस जोड़े को देखा गया था, उन के नाम महेंद्र सागर और कामिनी सागर थे.

प्राप्त जानकारी के अनुसार पतिपत्नी का ये स्मार्ट और खूबसूरत जोड़ा संपन्न परिवार के सदस्यों की तरह रहता था और धाराप्रवाह अंगरेजी में बात करता था. अपनी वाकपटुता से महेंद्र और कामिनी किसी भी पर्यटक को अपने जाल में फंसाने में सक्षम थे. गोवा के विभिन्न थानों में उन दोनों के खिलाफ धोखाधड़ी के दर्जनों मामले दर्ज थे. पुलिस रिकौर्ड में सागर दंपति का चित्र उपलब्ध था.

अनुज व सोनम की हत्या और लूटपाट के बाद सागर दंपति ने गोवा छोड़ दिया होगा, यह सोचते हुए गोवा पुलिस ने विवरण सहित उन के चित्र देश भर के पुलिस मुख्यालयों में भिजवा दिए.

गोवा पुलिस को पक्का विश्वास हो गया था कि नकद रकम और लाखों रुपए के जेवरात लूटने के लिए अनुज और सोनम की हत्या महेंद्र और कामिनी ने ही की थी. ये पतिपत्नी चूंकि बड़ेबड़े होटलों, नाइटक्लबों और डिस्कोथेक में अकसर जाते रहते थे इसलिए गोवा पुलिस ने ऐसे स्थानों पर भी इन दोनों के बारे में जानकारियां एकत्र कीं.

इस छानबीन में पता चला कि यह दंपति गोवा में जिस मकान में रहता था, उसी में छोटी सी एक लौज भी चलाता था. सागर दंपति के घर और लौज में पुलिस को कोई विशेष सामान नहीं मिला. पुलिस ने उन के मकान और लौज सील कर दिए. महेंद्र और कामिनी के जहांजहां मिलने की संभावनाएं थीं, गोवा पुलिस ने वहांवहां छापे मारे. लेकिन वे पुलिस के हाथ नहीं लगे.

जब महेंद्र और कामिनी को पकड़ने में किसी तरह की सफलता नहीं मिली तो गोवा पुलिस थकहार कर बैठ गई. इस बीच कई महीने गुजर चुके थे. पुलिस ने भले ही हार मान ली थी, लेकिन अनुज के पिता चंद्रप्रकाश ने हार नहीं मानी. उन्हें महेंद्र और कामिनी के बारे में जहां भी जरा सी जानकारी मिलती, वे वहीं पहुंच जाते.

उन की कोशिशें रंग लाईं और किसी से उन्हें महेंद्र सागर के पिता का नामपता मिल गया. वह हरियाणा के रहने वाले थे. लेकिन महेंद्र चूंकि अपने हिस्से की सारी जमीनजायदाद बेच चुका था इसलिए गांव से उस का कोई संबंध नहीं था. उस की पत्नी कामिनी के बारे में चंद्रप्रकाश को पता चला कि उच्च शिक्षा प्राप्त कामिनी दिल्ली की ही रहने वाली है.

घटना के 11 महीने बाद चंद्रप्रकाश को जानकारी मिली कि महेंद्र सागर का एक काफी करीबी रह चुका विनीत नाम का एक युवक जोधपुर में कहीं रहता है. चंद्रप्रकाश के पास हालांकि विनीत के बारे में आधीअधूरी जानकारी थी फिर भी वह जोधपुर गए और हफ्तों की भागदौड़ के बाद उसे ढूंढ निकाला.

चंद्रप्रकाश के साथ उन के 2-3 घर वाले भी थे. खुद को कई लोगों से घिरा देख विनीत घबरा गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि वह महेंद्र सागर का सहयोगी रह चुका है और उस ने ठगी के कई मामलों में उस की मदद की थी. लेकिन विनीत को अनुज और सोनम की हत्या के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

सवा करोड़ के गहनों की लूट

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 2

जांच ने लिया नया मोड़

इस मामले को सुलझाने के लिए डीसीपी विक्रमजीत ने एसीपी ऋषिदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर जगमंदर दहिया, एएसआई सुरेंद्रपाल, हैडकांस्टेबल नरेंद्र कुमार, कांस्टेबल टी.आर. मीणा आदि को शामिल किया गया.

जिस बिल्डिंग में निशा की लाश मिली थी, उसी बिल्डिंग में पुलिस को जो ड्राइविंग लाइसेंस और कागजात मिले थे, उन की जांच शुरू की गई. ड्राइविंग लाइसेंस पर सन्नी पुत्र सुरेंद्र कुमार नाम लिखा था. उस पर जो पता लिखा था, वह कराला के जैन नगर का ही था. यानी यह पता वही था, जहां मरने वाली बच्ची रहती थी.

खैर, पुलिस सन्नी के घर पहुंच गई. लेकिन वह घर पर नहीं मिला. पता चला कि वह डा. अंबेडकर अस्पताल में भरती है. जब पुलिस अस्पताल पहुंची तो जानकारी मिली कि सन्नी को कुछ देर पहले ही डिस्चार्ज कर दिया गया था. लिहाजा उलटे पांव पुलिस जैन नगर लौट आई. सन्नी घर पर ही मिल गया. उस के हाथपैर और शरीर के अन्य भागों पर चोट लगी हुई थी.

पुलिस ने 14 जुलाई को ही सन्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कल रात पड़ोस के ही रविंद्र कुमार, उस के भाई सुनील और उस के दोस्त हिमांशु ने उस की खूब पिटाई की थी. पिटाई करने के बाद रविंद्र उस की जेब से मोबाइल, ड्राइविंग लाइसेंस, पैसे आदि निकाल कर ले गया था. मुझे उम्मीद है कि उसी ने यह सब किया होगा.

आरोपी रविंद्र तक ऐसे पहुंची पुलिस

रविंद्र का घर सन्नी के घर के पास ही था. पुलिस उस के घर गई तो वह और उस के भाई में से कोई नहीं मिला. घर पर मौजूद उस के पिता ने पुलिस को बताया कि दोनों भाई अपने किसी दोस्त के यहां गए हुए हैं. पुलिस उस के पिता को हिदायत दे कर चली आई.

पुलिस ने रविंद्र के बारे में छानबीन की तो जानकारी मिली कि पिछले साल उस ने बेगमपुर थानाक्षेत्र में ही एक बच्चे के साथ कुकर्म कर के उस की गला काट कर हत्या कर दी थी. इस की रिपोर्ट थाना बेगमपुर में ही भादंवि की धारा 363/307/377 के तहत लिखी गई थी. इस मामले में वह गिरफ्तार हुआ था. गिरफ्तारी के 6 महीने बाद सन्नी के पिता सुरेंद्र सिंह ने उस की जमानत कराई थी. तब वह जेल से बाहर आया था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को रविंद्र पर शक हुआ. उस का जो मोबाइल नंबर पुलिस को मिला था, वह स्विच्ड औफ था. पुलिस टीम रविंद्र को सरगर्मी से तलाशने लगी. 2 दिन बाद एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने 16 जुलाई  को उसे थाना क्षेत्र के ही सुखवीर नगर बस स्टौप से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब रविंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने निशा की हत्या का जुर्म तो स्वीकार कर ही लिया, इस के अलावा उस ने ऐसा खुलासा किया कि पुलिस हैरान रह गई. उस ने बताया कि वह निशा की तरह तकरीबन 40 बच्चों की हत्या कर चुका है. पुलिस तो केवल मर्डर के एक केस को खोलने के लिए रविंद्र को तलाश रही थी, लेकिन वह इतना बड़ा सीरियल किलर निकलेगा, पता नहीं था.

इंसपेक्टर जगमंदर दहिया के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी. उन्होंने उसी समय डीसीपी विक्रमजीत को यह जानकारी दी तो आधे घंटे के अंदर वह भी बेगमपुर थाने पहुंच गए. एक लाश और ड्राइविंग लाइसेंस ने ऐसे गुनाह से परदा उठा दिया था, जिसे सुन कर इंसानियत भी शर्मशार हो जाए. उस ने डीसीपी के सामने रोंगटे खड़ी कर देने वाली बच्चों की हत्या की जो कहानी बताई, वह नोएडा के निठारी कांड से कम नहीं थी.

रविंद्र ने बताया कि वह बच्चों की हत्या करने के बाद ही उन से कुकर्म करता था. उस के खुलासे पर डीसीपी भी चौंके. 24 साल के रविंद्र कुमार ने एक के बाद एक कर के करीब 40 बच्चों की हत्या करने और सैक्स एडिक्ट बनने की जो कहानी बताई, वह दिल को झकझोरने वाली थी.

गांव छोड़ कर दिल्ली आया था परिवार

रविंद्र मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज के कस्बा गंज डुंडवारा के रहने वाले ब्रह्मानंद का बेटा था. रविंद्र के अलावा उस के 3 और बेटे थे. ब्रह्मानंद प्लंबर का काम करता था, इसलिए उस की हैसियत ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ा सकता था.

लिहाजा जब उस के 2 बेटे बड़े हुए तो वह उन से भी मजदूरी कराने लगा. बेटे कमाने लगे तो उस के घर की माली हालत सुधरने लगी. उसी दौरान सन 1990 में गंज डुंडवारा में दंगा भडक़ गया तो ब्रह्मानंद अपनी पत्नी मंजू और बच्चों को ले कर दिल्ली आ गया.

बाहरी दिल्ली के कराला गांव में उस की जानपहचान के तमाम लोग रहते थे. लिहाजा वह भी उन के साथ कराला में रहने लगा. उस समय मंजू गर्भवती थी. कुछ दिनों बाद उस ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रविंद्र कुमार रखा. घर में सब से छोटा होने की वजह से वह सब का प्यारा था.

ब्रह्मानंद्र अपने बाकी बच्चों को तो पढ़ा नहीं सका था, लेकिन वह रविंद्र को पढ़ाना चाहता था. जब वह स्कूल जाने लायक हुआ तो उस ने उस का दाखिला सरकारी स्कूल में करा दिया, लेकिन मोहल्ले के बच्चों की संगत में पड़ कर वह पांचवीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ सका.

वह नशा करने वाले बच्चों की संगत में पड़ गया, जिस से वह भी चरस, गांजा आदि पीने लगा. घर वालों को जब पता चला तो उन्होंने उसे डांटा भी, लेकिन वह नहीं माना. रविंद्र नहीं पढ़ा तो ब्रह्मानंद उसे अपने साथ काम पर ले जाने लगा, लेकिन उस की आदत तो दोस्तों के साथ घूमने की थी.

पिता के साथ मेहनत का काम भला वह क्यों करता. इसलिए वह पिता के साथ भी ज्यादा दिन नहीं टिक सका. उसे जब खर्च के लिए पैसों की जरूरत होती, वह अपनी जानपहचान वाले ड्राइवर सन्नी के साथ हेल्परी करने चला जाता. सन्नी उसी के पड़ोस में रहता था और वह ट्रेलर चलाता था. उस का ट्रेलर मुंडका मैट्रो स्टेशन के निर्माण के कार्य में लगा हुआ था. रविंद्र वहां से जो भी कमाता, अपने नशा के शौक पर उड़ा देता था.

एक रात में टूटी दोस्ती की इमारत – भाग 2

जब अच्छी आमदनी होने लगी तो गौहर ने अपना खुद का जरदोजी का कारखाना खोल लिया. लगभग 5 महीने से जावेद उसी के कारखाने में काम करता था. जावेद फर्रूखाबाद के मोहल्ला खटकपुरा इज्जत खां में रहता था. उस के परिवार में पिता नियामतुल्ला के अलावा मां शाहीन बेगम, 3 भाई अजहर, आवेद व उबैद और 4 बहनें थीं. 3 बहनों का निकाह हो चुका था. जबकि सब से छोटी बहन रुखसाना (परिवर्तित नाम) अविवाहित थी.

जावेद ने अपने काम और व्यवहार से जल्द ही गौहर का विश्वास हासिल कर लिया. दोनों के बीच जल्द ही अच्छीभली दोस्ती हो गई. जावेद ने फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम कराने की बात गौहर के दिमाग में डाली तो उसे उस की बात जम गई. वैसे भी फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम बड़े पैमाने पर होता था. यह काम करने वालों की वहां कोई कमी नहीं थी.

समय पर अच्छा काम होने की लालसा में गौहर ने जावेद को फर्रूखाबाद में जरदोजी का काम कराने का जिम्मा सौंप दिया. इस के लिए उस ने अपनी होंडा बाइक भी जावेद को दे दी. इस के बाद जावेद जयपुर से गौहर से जरदोजी का काम ले कर फर्रूखाबाद में करने वालों को बांटने लगा. काम पूरा होने पर जावेद पूरा माल जयपुर पहुंचवा देता था. काम पूरा हो जाता तो गौहर कारीगरों को देने वाली रकम उसे दे देता. काम अच्छा चलने लगा, तो गौहर और जावेद की उम्मीदों को नए पंख लग गए.

काम के चक्कर में गौहर भी फर्रूखाबाद आनेजाने लगा. वह जावेद के घर पर ही रुकता था. हालांकि उस के मामा आफाक उर्फ हद्दू फर्रूखाबाद में असगर रोड पर रहते थे. वह उन के घर जा कर मामा व ननिहाल वालों से मिल तो आता था लेकिन वहां रुकता नहीं था.

गौहर करीबकरीब हर हफ्ते ही फर्रूखाबाद आता था. जावेद के घरवालों से उस की खूब पटती थी. वैसे भी उसी की वजह से जावेद का काम अच्छा चल रहा था. घर पर जावेद की छोटी बहन रुखसाना ही ऐसी थी जो मेहमानों की खातिरतवज्जो करती थी.

गौहर के बारबार आने से उस से रुखसाना का ही ज्यादा वास्ता पड़ता था. इसी वजह से रुखसाना उस से काफी खुल गई थी. वह उस से बात करते मुसकराती रहती थी. उस की मुसकराहट और अल्हड़ता गौहर को मन भाने लगी थी. कामधंधे के चक्कर में गौहर की शादी की उम्र भले ही निकल गई थी, लेकिन वह था तो कुंवारा ही.

रुखसाना को देख कर उस के अरमान मचल उठे थे. अचानक ही उसे सारी दुनिया उसे अच्छी लगने लगी थी. धीरेधीरे रुखसाना उस की चाहत बन गई. रुखसाना जब भी उस के सामने आती तो वह उसे एकटक निहारता रह जाता. वह क्या बोलती क्या कहती, उसे सुध ही नहीं रहती थी. जब रुखसाना ने उसे इस स्थिति में देखा तो वह झेंपने लगी. लेकिन जल्द ही उसे गौहर की इस हालत की असलियत पता चल गई.

धीरेधीरे वह भी गौहर की चाहत के बारे में जान गई. गौहर कोई बात कहता या उस के साथ शरारत करता, तो वह शर्म से दोहरी हो जाती थी. मुंह से शब्द नहीं निकलते थे और वह वहां से मंदमंद मुसकराते हुए चली जाती थी. रुखसाना भी दिल से गौहर को अपना मान चुकी थी. इस बात को गौहर भी महसूस करने लगा था कि रुखसाना भी उसे दिल से चाहने लगी है.

दोनों एकदूसरे से दूर होते तो उन के दिल तड़प उठते और पास होते तो दिल को सुकून मिलता, आंखों को ठंडक पहुंचती. दोनों एकदूसरे से अपने दिल की बात कहने को आतुर थे, लेकिन पहल नहीं कर पा रहे थे.

इस बार जब गौहर आया तो उसे मौका भी मिल गया. उस दिन घर में कम लोग थे, वे भी दोपहर का खाना खाने के बाद सो गए थे. जबकि गौहर ऊपरी मंजिल पर टीवी देख रहा था. उसे अकेला बैठा देख रुखसाना भी वहां पहुंच गई. वह भी गौहर के साथ बेड पर बैठ कर टीवी देखने लगी. उस समय गौहर एक रोमांटिक फिल्म देख रहा था. फिल्म में कोई रोमांटिक सीन आता तो दोनों कनखियों से एकदूसरे को देखने लगते, उन के होंठ मुसकरा उठते. यह क्रम काफी देर यूं ही चलता रहा.

कुछ देर बाद गौहर ने बेड पर लेट कर अपना सिर रुखसाना की गोद में रख दिया. उस की इस अप्रत्याशित हरकत से वह पल भर के लिए चौंकी, लेकिन जब उस ने गौहर की आंखों में प्यार का सागर उमड़ते देखा तो वह विरोध न कर सकी. इस शरारत पर उस ने गौहर से पूछा, ‘‘तुम ने किस अधिकार से मेरी गोद में अपना सिर रख दिया?’’

गौहर उस की आंखों की गहराइयों में उतरते हुए बोला, ‘‘यह सवाल तुम अपने दिल से क्यों नहीं पूछतीं, जवाब खुद ब खुद मिल जाएगा.’’

‘‘अधिकार तुम जता रहे हो, और पूछूं मैं अपने दिल से?’’ रुखसाना थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘कोई जबरदस्ती है, मैं क्यों पूछूं अपने दिल से? तुम्हें बताना हो तो बताओ, नहीं तो मेरे ठेंगे से.’’ रुखसाना गौहर को ठेंगा दिखा कर दूसरी ओर देखने लगी.

गौहर जानता था कि रुखसाना नाराजगी का नाटक कर रही है, जबकि हकीकत में वह अपने दिल का हाल बयां कर देना चाहती है. गौहर यह भी जानता था कि इस के लिए पहल उसे ही करनी होगी. इसलिए वह उस का हाथ अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘रुखसाना, मैं तुम से प्यार करता हूं, अपनी जान से भी ज्यादा प्यार. मुझे यह भी मालूम है कि तुम भी मुझे दिल से चाहती हो, लेकिन कह नहीं पा रही हो. इसी प्यार के नाते मैं तुम पर अधिकार जता रहा था.’’

गौहर ने रुखसाना के जिस हाथ को अपने हाथों में ले रखा था, वह उस हाथ को उस के हाथों सहित अपने सीने पर रखती हुई बोली, ‘‘मैं जानती हूं, तुम ने प्यार के अधिकार से ही ऐसा किया है, लेकिन तुम प्यार की बात जुबां पर नहीं ला रहे थे. तुम से प्यार का इजहार करवाने के लिए ही मैं ने तुम्हें उकसाया था ताकि तुम अपने दिल की बात बेहिचक कह सको. गौहर… आई लव यू टू.’’

रुखसाना ने उस के प्यार को स्वीकार कर के जवाब में प्यार के मीठे बोल बोले तो गौहर ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. दोनों एकदूसरे के इतना करीब आ कर खुशी से झूम उठे. प्यार की खुशी में दोनों के तनमन मिले तो तन की गरमी का वेग बढ़ गया. नतीजतन वे उस राह पर उतर गए जो सामाजिक नजरिए से सही नहीं होती. लेकिन उन दोनों को इस की फिक्र नहीं थी. दुनिया से बेपरवाह हो कर दोनों प्यार की उस नदी में बह गए जिस का कोई छोर नहीं होता.

मन के साथ तन का मिलन हुआ तो उन के चेहरों पर अजीब सी खुशी झलकने लगी. उस दिन के बाद तो यह खुशी अकसर उन के चेहरों पर नजर आने लगी. रात में सब के सो जाने के बाद रुखसाना गौहर के पास उस के कमरे में आ जाती और दोनों मनचाही करते. मस्ती का खजाना लुटाने के बाद वह अपने कमरे में चली जाती. इस की किसी को कानोेंकान खबर तक नहीं होती.

सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर – भाग 2

इसी पूछताछ में पुलिस को पता चला कि नुसरत रईस की चौथी बीवी थी. रईस ने पहला निकाह अमरोहा की शबाना से किया था. उसे तलाक दे कर रईस ने गुइयाबाग निवासी नरगिस से दूसरा निकाह किया था. कुछ दिनों साथ रख कर रईस ने उसे भी छोड़ दिया था. इस के बाद रईस ने लालबाग निवासी रानी से निकाह किया. उसे भी छोड़ कर उस ने 8 साल पहले नुसरतजहां से निकाह किया, जिस से उसे 3 बच्चे थे.

पुलिस ने मृतक रईस मंसूरी के फोन नंबर को सॢवलांस पर लगाया तो वह बंद आ रहा था. लेकिन जांच में पता चला कि उस के फोन की अंतिम लोकेशन 15 दिसंबर की शाम को उसी इलाके में थी, जहां आलम रहता था. इस से यह तो पता चल रहा था कि रईस आलम के यहां गया था, लेकिन वहां जाने के बाद उस का फोन बंद क्यों हो गया? पुलिस को यही पता लगाना था.

पुलिस टीम बखलान के रहने वाले आलम के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई. अनिल कुमार वर्मा ने आलम से रईस की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू की तो वह यही कहता रहा कि उस के यहां इनवर्टर लगाने के बाद रईस चला गया था. इस के बाद वह कहां गया, उसे पता नहीं. वह खुद को बेकुसूर बता रहा था.

पूछताछ के दौरान ही एसएसआई मनोज कुमार सिंह को मुखबिर से पता चला कि मृतक रईस के आलम की बहन से नाजायज संबंध थे. यह बात उन्होंने अनिल कुमार वर्मा को बता दी. जिस तरह क्रूरता से रईस की लाश के टुकड़े कर के उस के गुप्तांग को काट कर फेंक दिया गया था, उस से अनिल कुमार वर्मा को लग रहा था कि हत्या के पीछे प्रेमप्रसंग का मामला है.

मनोज कुमार सिंह की बात ने उन के शक को पुख्ता कर दिया. उन्हें लगा कि आलम झूठ बोल रहा है. इसलिए उन्होंने उस से थोड़ी सख्ती की तो वह सारी सच्चाई बताने को तैयार हो गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि रईस मंसूरी की हत्या उसी ने की थी. उस ने उस के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे कि उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. आलम से पूछताछ में रईस मंसूरी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

रईस मंसूरी और आलम के पिता जमा खां आपस में अच्छे दोस्त थे. कहा जाता है कि दोनों बिजली की लाइनों का तार चोरी किया करते थे. चोरी किए तार से जो पैसा मिलता था, उसे वे आपस में बांट लेते थे. इसी काम से वे अपनेअपने परिवारों को पाल रहे थे. लेकिन जमा खां की पत्नी को जानकारी नहीं थी कि उस का पति बिजली के तार चोरी करता है. उसे तो जमा खां ने यही बताया था कि वह इलैक्ट्रिशियन है.

करीब 15 साल पहले की बात है. रईस और जमा खां काशीपुर की तरफ बिजली के तार काटने गए थे. जमा खां ने पत्नी को बताया था कि उसे काशीपुर में बिजली फिटिंग का एक बड़ा काम मिला है, रईस के साथ वह उस काम को करने जा रहा है. उस की पत्नी रईस को जानती थी, क्योंकि वह उस के यहां आताजाता रहता था. उस ने कहा था कि वह वहां से कई दिनों बाद लौटेगा. लेकिन वह वहां से जिंदा नहीं लौट सका.

दरअसल, हुआ यह कि जब दोनों रात को काशीपुर के जंगल में 11 हजार वोल्ट की लाइन के तार काट रहे थे, तभी जमा खां को बिजली ने करंट मार दिया. वह खंभे से नीचे गिरा और उस की मौत हो गई. दोस्त को मरा देख कर रईस डर गया. कहीं वह पुलिस के चक्कर में न फंस जाए, वह उसे वहीं छोड़ कर घर चला आया.

अगले दिन लोगों ने खेत में लाश देखी तो इस की सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस मौके पर पहुंची तो लाश के पास बिजली के तार काटने के औजार देख कर पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह बिजली के तार काटने वाला चोर है और बिजली के करंट की चपेट में आ कर मर गया है. पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर के लाश का पोस्टमार्टम कराया और शिनाख्त न होने के बाद अज्ञात मान कर उस का अंतिम संस्कार करा दिया.

इस के बाद एक दिन जमा खां की पत्नी को बाजार में रईस मिला तो वह उसे देख कर चौंकी, क्योंकि उस का पति तो रईस के साथ काम करने काशीपुर गया था. तसलीमा ने उस से पति के बारे में पूछा तो रईस ने बताया कि उस की एक हादसे में मौत हो गई है.

पति की मौत की बात सुन कर तसलीमा चौंकी, “यह तुम क्या कह रहे हो, यह नहीं हो सकता?”

“मैं सच कह रहा हूं भाभी, करंट लगने से जमा खां की मौत हो गई है.” रईस ने कहा.

“यह कैसे और कहां हो गया? तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?” तसलीमा ने पूछा.

“हम दोनों बिजली का तार काटने काशीपुर गए थे. वहीं तार काटते समय उन्हें 11 हजार वोल्ट का करंट लग गया, जिस से वह खंबे से नीचे गिर गया और उस की मौत हो गई.” रईस ने बताया.

“मेरे पति चोर नहीं थे, वह तो इलैक्ट्रिशियन थे. तुम झूठ बोल रहे हो.” तसलीमा रोते हुए बोली.

“नहीं भाभी, मैं बिलकुल सच कह रहा हूं. उन्होंने तुम्हें बताया होगा कि वह इलैक्ट्रिशियन हैं. हकीकत में हम दोनों तार काट कर बेचा करते थे.” रईस ने कहा.

“मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं हो रहा. मैं काशीपुर जा कर वहां की पुलिस से मिलूंगी.” तसलीमा ने कहा.

“तुम वहां जाना चाहती हो तो जरूर जाओ. लेकिन वहां जा कर तुम खुद भी फंस सकती हो. वहां की पुलिस ने जब जमा खां की लाश बरामद की थी, तब उस के साथ तार काटने के औजार भी मिले थे. जब तुम वहां जाओगी, पुलिस तुम से कहेगी कि एक चोर की बीवी हो कर तुम ने पुलिस को इस की खबर क्यों नहीं दी?” रईस ने उसे डराने के लिए कहा.

तसलीमा सीधीसादी औरत थी. वह रईस की बातों से डर कर काशीपुर नहीं गई और पति की मौत का गम सीने में दबा कर रहने लगी. उस समय उस का बेटा आलम 13 साल का था.