सरकार से ज्यादा शक्तिशाली ड्रग्स तस्कर

मौज मजा बन गया सजा

बुझ गया आसमान का दीया

सीमा हैदर : प्रेम दीवानी या पाकिस्तानी जासूस

मौज मजा बन गया सजा – भाग 3

बलदाऊ यादव डा. सुनील के ही यहां था. थोड़ी देर में डा. अशोक कुमार भी मैडिकल कालेज परिसर स्थित डा. सुनील आर्या के आवास पर पहुंच गए. इस के बाद डा. अशोक कुमार अपनी गाड़ी से तो डा. सुनील आर्या ने अपनी गाड़ी में बलदाऊ को बैठा लिया. अविनाश चौहान शरीफ के साथ उस की गाड़ी में बैठ गया था.  सभी पनियरा डाक बंगले की ओर चल पड़े. सभी रात डेढ़ बजे के करीब वे लोग गेस्टहाऊस पहुंचे.

आराधना मिश्रा बाहर ही खड़ी रह गईं, जबकि डा. अशोक कुमार, डा. सुनील आर्या, शरीफ, अविनाश और बलदाऊ डाकबंगले के अंदर चले गए. अंदर पहुंच कर डा. अशोक कुमार ने अराधना के बारे में पूछा तो डा. आर्या ने कहा, ‘‘आराधना फ्रेश होने गई है. अभी आ जाएगी.’’

डा. अशोक कुमार वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गए. इस के बाद उसी के सामने कुर्सी रख कर डा. आर्या भी बैठ गए. उस ने डा. अशोक कुमार को बातों में उलझा लिया तो शरीफ ने देशी तमंचा निकाल कर उस की कनपटी से सटाया और ट्रिगर दबा दिया. गोली लगते ही डा. अशोक कुमार लुढ़क कर छटपटाने लगा.

थोड़ी देर में वह खत्म हो गया तो डा. आर्या ने बलदाऊ से अपनी कार से तौलिया मंगा कर उस के सिर में लपेट दिया. इस के बाद लाश उठा कर शरीफ अहमद की इंडिका में रख दी गई. गेस्टहाउस से तकिए का कवर निकाल कर बलदाऊ ने फर्श पर फैला खून साफ किया और उस तकिए के कवर को भी रख लिया.

एक बार फिर तीनों कारें चल पड़ीं. उस समय रात के ढाई बज रहे थे. डा. अशोक कुमार की कार अविनाश चला रहा था तो लाश वाली गाड़ी में शरीफ के साथ बलदाऊ बैठा था. आराधना मिश्रा डा. सुनील आर्या की कार में थी. गोरखपुर के भटहट पहुंच कर लाश को शरीफ की गाड़ी से निकाल कर मृतक डा. अशोक कुमार की कार में डाला जाने लगा तो आराधना को पता चला कि डा. अशोक कुमार की हत्या कर दी गई है. वह डर गई, लेकिन बोली कुछ नहीं.

वहीं डा. सुनील आर्या ने अपनी कार अविनाश को दे कर आराधना को उस के साथ गोरखपुर भेज दिया. जबकि खुद शरीफ और बलदाऊ के साथ लाश को ठिकाने लगाने के लिए देवरिया की ओर चल पड़ा. इस के बाद देवरिया-सलेमपुर रोड पर स्थित वन विभाग की पौधशाला के पास डा. अशोक की लाश को फेंक दिया.

उसी के साथ उन्होंने तौलिया और तकिया का कवर भी फेंक दिया था. लाश तो ठिकाने लग गई थी, अब कार को ठिकाने लगाना था. कार ले जा कर उन्होंने जिला मऊ के थाना दक्षिण टोला के जहांगीराबाद में सड़क किनारे खड़ी कर दी. उस के बाद सभी गोरखपुर वापस आ गए.

तीनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने बलदाऊ यादव को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद शरीफ की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का एक देशी पिस्तौल, 2 कारतूस, हत्या के समय पहने कपड़े बरामद कर लिए थे. कार में लगे खून के धब्बे के नमूने परीक्षण के लिए लखनऊ भेज दिए गए थे.

आराधना मिश्रा की डा. अशोक कुमार की हत्या में कोई भूमिका नहीं थी, इसलिए पुलिस ने उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया था. लेकिन गवाहों की सूची में उस का भी नाम था. पुलिस ने इस मामले में 34 लोगों को गवाह बनाया था.

अभियुक्तों के बयान और सभी गवाहों के गवाही होने में काफी अरसा लग गया. लगभग 13 सालों तक चले डा. अशोक कुमार की हत्या के मुकदमे का फैसला सुनाया गया 11 अप्रैल, 2014 को. न्यायमूर्ति श्री सुरेंद्र कुमार यादव ने डा. अशोक कुमार की हत्या का दोषी मानते हुए 52 पृष्ठों का अपना फैसला सुनाया था.

फैसले में अभियुक्त अविनाश चौहान, शरीफ अहमद, डा. सुनील आर्या तथा बलदाऊ यादव को आजीवन कारावास के साथ 10-10 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी. जुर्माना अदा न करने पर एक साल की अतिरिक्त सजा भोगनी होगी. सजा सुनाते ही सभी अभियुक्तों को पुलिस ने अपनी कस्टडी में ले कर जेल भेज दिया. अब चारों अभियुक्त हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं.

—कथा अदालत द्वारा सुनाए फैसले पर आधारित

नरभक्षी हो गया फिल्म आर्टिस्ट

मुंबई से करीब 12 सौ किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के शाहपुर के लिए एक प्राइवेट बस चलती है. अमरकंटक एक्सप्रैस नाम की यह लग्जरी बस मुंबई से चलने के बाद पूरे 24 घंटे में शाहपुर पहुंच जाती है. इतनी लंबी यात्रा में ऊब गए यात्रियों के बीच छोटीमोटी कहासुनी तो होती ही रहती है. पर यह थोड़ी देर में शांत हो जाती है.

25 मई, 2023 को बस मुंबई से चल कर राजस्थान के कोटा शहर के नजदीक पहुंची तो 24 साल के युवक ने बस में हडक़ंप मचा दिया. किसी मामूली सी बात को ले कर उस की बगल की सीट पर बैठे यात्री से कहासुनी हो गई थी. इस मामूली सी बात में उस युवक को इतना गुस्सा आया कि बस को रोकवा कर अन्य यात्रियों को बीच में आना पड़ा.

परिस्थिति ऐसी बन गई कि एक ओर अकेला वह युवक था और दूसरी ओर बस के सभी पैसेंजर थे. 24 साल का वह युवक टीवी एक्टर की तरह सुंदर था. पर भयानक गुस्से में होने की वजह से उस का चेहरा विकृत हो गया था. उस की लाललाल आंखें और मुंह से टपकती लार देख कर सारे के सारे यात्री सहम गए थे. वह दांत भींच कर जोरजोर से कुछ बड़बड़ा रहा था. पर उस की ये बातें किसी की समझ में नहीं आ रही थीं.

जानवर की तरह हो गया हिंसक

उस के नजदीक जाने की किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी. क्योंकि जो भी उस के नजदीक जाने की हिम्मत करता था, वह उसे कुत्ते की तरह काटने को दौड़ता था. एक पैसेंजर ने उसे पकडऩे की हिम्मत दिखाई तो वह युवक एकाएक आक्रामक हो गया और उस ने उस पैसेंजर पह हमला बोल कर उस के हाथ में दांतों से काट लिया. उस पैसेंजर के हाथ से खून बहने लगा.

इस के बाद सभी पैसेंजरों ने ड्राइवर और कंडक्टर से कहा कि इस तरह आक्रामक हो चुके इस युवक को यहीं छोड़ो और बाकी लोगों को ले कर जल्दी निकलो. उस आदमी का विचित्र और आक्रामक व्यवहार ड्राइवर ने भी देखा था, इसलिए उस ने सभी को जल्दी बस में बैठने का इशारा किया.

वह युवक तो जुनून में आ कर गिर पड़ा था और न जाने क्याक्या बक रहा था. उसे उस समय जैसे दुनिया जहान का भान ही नहीं था. इसी का फायदा उठा कर बाकी पैसेंजर बस में चढ़ गए तो ड्राइवर ने बस चला दी. वह युवक चीखते हुए बस के पीछे दौड़ा, पर अंत में थक कर रोड पर ही गिर पड़ा.

25 मई, 2023 दिन शुक्रवार को राजस्थान के जिला पाली के गांव सरधाना की 64 साल की शांतिदेवी पहाड़ियों पर अपनी बकरियां चराने गई थीं. शांतिदेवी के पति नानुलाल खेती का काम कर रहे थे. शाम 4 बजे शांतिदेवी बकरियां ले कर घर आ रही थीं तो गांव के ही प्रताप बहादुर के खेत में सब्जी लेने चली गई. उन्होंने खेत से भिंडी तोड़ कर साड़ी के पल्लू में बांधी और घर की ओर चल पड़ीं.

नोचनोच कर खा गया बुजुर्ग महिला को

रास्ते में वह गुंदियावाड़ी पर पहुंचीं तो सामने से चले आ रहे एक युवक को देख कर उन्हें हैरानी हुई. उस युवक का चेहरा धूप में तप कर लाल हो गया था. वह केवल पैंट पहने था. उस के शरीर के ऊपरी हिस्से पर कोई कपड़ा नहीं था. उस के मुंह से लार टपक रही थी. उसे हैरानी से देखते हुए शांतिदेवी आगे बढ़ गईं. वह मुश्किल से 5 कदम बढ़ी होंगी कि वह युवक उन के पीछे आया और एक बड़ा सा पत्थर उठा कर उन के सिर पर दे मारा. यह प्रहार इतना तेज था कि शांतिदेवी जमीन पर गिर पड़ीं और उन की सांस अटक गई.

10 मिनट बाद उधर से जा रहे अमर सिंह ने एक अजीब नजारा देखा. नजदीक जा कर उन्होंने वह नजारा देखा तो उन का कलेजा कांप उठा. शांतिदेवी की लाश को एक युवक कंधे से पकड़ कर उन के चेहरे का मांस नोचनोच कर खा रहा था. शांतिदेवी के चेहरे की अब मात्र हड्डियां ही दिखाई दे रही थीं.

युवक का चेहरा खून से लाल था. उस के मुंह पर मांस के टुकड़े चिपके थे. कचरकचर मांस खाने में तल्लीन उस युवक को लगा कि कोई आया है तो उस ने सिर ऊंचा कर के अमर सिंह की ओर देखा. खून से लथपथ पूरा चेहरा और आंखों में हिंसक पशु जैसी चमक देख कर अमर सिंह डर गया. वह भाग कर प्रताप बहादुर के खेत पर गया और 10-12 लोगों को इकट्ठा कर के घटनास्थल पर पहुंचा.

अब तक शांतिदेवी की मात्र खोपड़ी बची थी. लाठीडंडा ले कर आए लोगों की भीड़ देख कर वह युवक लाश छोड़ कर भागा. उस युवक के भागने की गति इतनी तेज थी कि करीब डेढ़ किलोमीटर दूर जा कर उन लोगों ने उसे पकड़ा. लेकिन उसे जिस ने भी पकड़ा, उसे उस ने कुत्ते की तरह काटा. लोग उस की पिटाई करने लगे. पर मार खाने के बाद भी उस का जुनून कम नहीं हुआ.

हत्या करने वाले नरभक्षी की बात सुन कर थाना जैतरन के एसएचओ धोलाराम परिहार अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. उस युवक ने पकड़ने आए 3 पुलिस वालों को भी काट लिया. उसे पुलिस वालों ने किसी तरह बांधा. थाने ला कर शांतिदेवी के बेटे वीरम की ओर से उस के खिलाफ हत्या और मानव मांस खाने की रिपोर्ट दर्ज की गई.

पुलिस ने उस की तलाशी ली तो उस की पैंट की जेब से मुंबई से मध्य प्रदेश के शाहपुर की बस की एक टिकट, 22 रुपए, आल इंडिया फिल्म ऐंड टीवी एसोसिएशन, मुंबई का आईडी और उस का आधार कार्ड मिला. मुंबई के पवई में रहने वाले इस 24 वर्षीय युवक का नाम सुरेंद्र ठाकुर था. एसोसिएशन के आईडी कार्ड से पता चला कि सुरेंद्र कुमार फिल्म और टीवी आर्टिस्ट है.

सुरेंद्र को बड़ी मानसिक बीमारी है, यह खयाल आते ही पुलिस उसे तुरंत पाली के बांगर अस्पताल ले गई. पूरी बात जान कर मैडिसिन विभाग के इंचार्ज डा. प्रवीण गर्ग ने बताया कि अगर पेशेंट ने मानव मांस खाया है तो हाइड्रोफोबिया नामक मानसिक बीमारी का शायद अपने देश का यह पहला मामला होगा.

सुरेंद्र ने जिनजिन गांव वालों और पुलिस वालों को काटा था, उन सभी को एंटी रेबीज की वैक्सीन लगवाने के लिए कहा गया. इस के बाद बांगर अस्पताल में सुरेंद्र का इलाज शुरू हुआ. वह अभी भी आक्रामक था, इसलिए डाक्टर कोरोना काल में जो पीपीई किट पहन कर कोरोना रोगियों का इलाज करते थे, वही पीपीई किट पहन कर सुरेंद्र का इलाज कर रहे थे. फिर भी उस ने 2 डाक्टरों को काट लिया.

सुरेंद्र की बिगड़ती हालत देख कर उसे 27 मई, 2023 को पुलिस बंदोबस्त और डाक्टरों की देखभाल में जोधपुर के एम.जी. अस्पताल ले जाया गया, जहां मनोचिकित्सकों और न्यूरोलौजी की टीम ने सुरेंद्र का इलाज शुरू किया. डा. राजश्री बोहरा ने पत्रकारों को बताया कि सुरेंद्र का इलाज अंधेरे कमरे में करना पड़ता है.

पता चला कि सुरेंद्र को हाइड्रोफोबिया हुआ था. इस के रोगी को पानी और रोशनी से डर लगता है. यह बीमारी किसी रेबीज वाले जानवर यानी कि कुत्ता, भेडिय़ा, सियार, लोमड़ी, चमगादड़ आदि के काटने के बाद एंटी रेबीज की वैक्सीन न लेने से होती है. अगर इस का समय से इलाज हो गया यानी वैक्सीन लग गई तब तो ठीक है वरना बाद में बचना मुश्किल हो जाता है.

इस बीमारी वाला आदमी अगर किसी को काट लेता है तो उसे भी वैक्सीन लेनी पड़ती है. इस बीमारी वाला आदमी से डर से कांपता रहता है. इसे इंसेफेलाइटिस या जापानी बुखार भी कहा जाता है. इस में आदमी गुस्से पर काबू नहीं रख पाता.

23 मई, 2023 की सुबह इलाज के दौरान नरभक्षी सुरेंद्र की मौत हो गई थी. पुलिस उस के घर वालों के बारे में पता कर रही है. आधार कार्ड में जो पता लिखा था, वहां उस का कोई नहीं मिला है.

सूरज ने बुझाया जिंदगी का दीया

रामाश्रय यादव आ कर ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठे ही थे कि उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन उठा कर देखा, नंबर किसी खास का था, इसलिए फोन रिसीव करते हुए उन के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी थी.

दूसरी ओर से महिला की शहदघुली आवाज आई. ‘‘तुम कब तक मेरे यहां पहुंच रहे हो? मैं ने दोपहर को ही बता दिया था कि पैसों की व्यवस्था हो गई है. जानते ही हो, समय कितना खराब चल रहा है. कहीं से चोरउचक्कों को हवा लग गई तो अनर्थ हो जाएगा, इसीलिए एक बार फिर कह रही हूं कि आ कर अपने पैसे उठा ले जाओ.’’

‘‘ठीक है, मैं थोड़ी देर में तुम्हारे यहां पहुंच रहा हूं.’’ कह कर रामाश्रय ने फोन काट दिया.

फोन काट कर रामाश्रय उठा और अपने कमरे में जा कर अलमारी से एक डायरी निकाल कर पत्नी आशा से बोला, ‘‘गामा की पत्नी का फोन आया था, पैसे देने के लिए बुला रही है. मुझे लौटने में देर हो तो तुम लोग खाना खा लेना. मेरी राह मत देखना.’’

‘‘कभी आप को खिलाए बिना मैं ने अपना मुंह जूठा किया है कि आज ही खा लूंगी. लौट कर आओगे तो साथ बैठ कर खाना खाऊंगी.’’ आशा ने कहा.

‘‘ठीक है भई, साथ ही खाएंगे. लेकिन बच्चों और बहुओं को भूखा मत रखना, उन्हें खिला देना.’’ रामाश्रय ने कहा और डायरी ले कर बाहर आ गया. अब तक उस के छोटे बेटे राकेश ने उस की मोटरसाइकिल निकाल कर बाहर खड़ी कर दी थी. डायरी उस ने डिक्की में रखी और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के चल पड़ा. उस समय शाम के यही कोई 6 बज रहे थे और तारीख थी 12 नवंबर, 2013.

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर की थानाकोतवाली शाहपुर के मोहल्ला नंदानगर दरगहिया के रहने वाले रामाश्रय यादव ब्याज पर रुपए देने का काम करते थे. इसी की कमाई से उस ने अपना आलीशान मकान बनवा रखा था, जिस में वह पत्नी आशा, 2 बेटों दिनेश यादव उर्फ पहलवान और राकेश यादव के साथ रहते थे. उस ने करीब 40 लाख रुपए जरूरतमंदों को 10 से 15 प्रतिशत ब्याज पर दे रखा था.

इसी ब्याज की ही कमाई से रामाश्रय ने करोड़ों रुपए का प्लौट खरीद कर अपना यह आलीशान मकान तो बनाया ही था, एक फार्महाउस भी बनवा रखा था. उस का मकान और फार्महाउस आमनेसामने थे. फार्महाउस में उस ने भैंसें पाल रखी थीं, जिन का दूध बेच कर भी वह मोटी कमाई कर रहा था. यही नहीं, कुसुम्ही में 20 बीघे जमीन भी खरीद रखी थी, जिस पर खेती करवाता था. इन सब के अलावा वह प्रौपर्टी में भी पैसा लगाता था. एक तरह से वह बहुधंधी आदमी  था. उस के इन कारोबारों में उस का छोटा बेटा राकेश उस की मदद करता था.

रामाश्रय यादव को घर से गए 3 घंटे से ज्यादा हो गया और न ही उस का फोन आया और न ही वह आया तो आशा को चिंता हुई. उस ने राकेश से कहा, ‘‘अपने पापा को फोन कर के पूछो कि उन्हें आने में अभी कितनी देर और लगेगी. इस समय वह कहां हैं?’’

राकेश ने रामाश्रय को फोन किया तो पता चला कि उस का फोन बंद है. यह बात उसे अजीब लगी, क्योंकि ऐसा कभी नहीं होता था. राकेश की समझ में यह बात नहीं आई तो मां से कह कर वह अपनी मोटरसाइकिल से गामा यादव के घर के लिए निकल पड़ा. गामा के घर की दूरी 6 किलोमीटर के आसपास थी. वह अभिषेकनगर, शिवपुर, नहर कालोनी में रहता था. यह इलाका थाना कैंट के अंतर्गत आता था. गामा यादव तो नौकरी की वजह से बाहर रहता था, यहां उस की पत्नी मंजू बच्चों के साथ रहती थी. मंजू से रामाश्रय के अच्छे संबंध थे, जिस की वजह से वह अकसर उस के यहां आताजाता रहता था.

करीब 20 मिनट में राकेश मंजू के यहां पहुंच गया. उस ने घंटी बजाई तो मंजू ने ही दरवाजा खोला. उतनी रात को अपने यहां राकेश को देख कर वह चौंकी. उस ने कहा, ‘‘आओ, अंदर आओ. कहो, क्या बात है?’’

‘‘आप के यहां पापा आए थे, अभी तक लौटे नहीं. उन का फोन भी बंद है.’’

वह तो मेरे यहां दोपहर में आए थे. पैसों का हिसाबकिताब करना था, ले कर तुरंत चले गए थे.’’ मंजू ने कहा.

मंजू के इस जवाब से राकेश हैरान रह गया, क्योंकि घर से निकलते समय उस के पापा ने इन्हीं के यहां आने की बात कही थी. जबकि यह कह रही थी कि पापा इस के यहां दोपहर में आए थे और हिसाबकिताब कर के पैसे ले कर चले गए थे. वह क्या कहता, बिना कुछ कहेसुने ही बाहर से लौट आया. घर लौट कर उस ने सारी बात मां को बताई तो आशा का दिल घबराने लगा.

मां की हालत देख कर राकेश ने कहा, ‘‘आप परेशान मत होइए, फोन कर के अन्य परिचितों से पूछता हूं. हो सकता है किसी के घर जा कर बैठ गए हों. बातचीत में उन्हें समय का खयाल ही न हो.’’

राकेश ने लगभग सभी जानपहचान वालों को फोन कर के पिता के बारे में पूछ लिया. लेकिन कहीं से उसे कोई जानकारी नहीं मिली. अब तक काफी रात हो गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी रात गए वह कहां जा कर पिता को ढूंढे. किसी तरह रात बिता कर सुबह होते ही राकेश पिता को ढूंढ़ने के लिए निकल पड़ा.

सुबह भी वह सब से पहले मंजू के ही घर गया. इस बार भी मंजू ने वही जवाब दिया, जो रात में दिया था. इस के बाद वह पिता को जगहजगह ढूंढ़ने लगा. शाम होतेहोते उस के किसी परिचित ने बताया कि थाना झंगहा पुलिस ने नया बाजार स्थित मंदिर के पास से एक मोटरसाइकिल लावारिस स्थिति में खड़ी बरामद की है. जा कर देख लो, कहीं वह उस के पिता की तो नहीं है.

अब तक राकेश के कुछ दोस्त भी उस की मदद के लिए आ गए थे. वह अपने दोस्तों के साथ थाना झंगहा जा पहुंचा. राकेश ने मोटरसाइकिल देखी तो वह वही थी, जो पिछली शाम उस के पिता ले कर निकले थे. उस ने डिक्की देखी तो उस में वह डायरी नहीं थी, जो उस के पिता उस में रख कर ले गए थे. डायरी न पा कर उसे लगा कि उस के पापा के साथ अवश्य कोई अनहोनी हो चुकी है.

अगले दिन 14 नवंबर, 2013 की सुबह राकेश अपने दोस्तों के साथ थाना कोतवाली शाहपुर पहुंचा. कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव को पूरी बात बताई तो कोतवाली प्रभारी ने उस से एक तहरीर ले कर रामाश्रय यादव के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

मुकदमा दर्ज कराने के बाद कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव ने रामाश्रय यादव का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवाने के साथ उस की काल डिटेल्स निकलवा ली. काल डिटेल्स में अंतिम फोन अभिषेकनगर, शिवपुर, नहर कालोनी की रहने वाली मंजू यादव के मोबाइल से किया गया था.

मंजू यादव के यहां ही जाने की बात कह कर घर से निकले थे. उसी के बाद से उस का पता नहीं चल रहा था. मोबाइल भी बंद हो गया था. पुलिस को मंजू पर शक हुआ तो उस के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया. क्योंकि पुलिस को लग रहा था कि रामाश्रय के अपहरण में कहीं न कहीं से उस का हाथ जरूर है.

2 दिनों तक उस नंबर पर न तो किसी का फोन आया और न ही उसी ने किसी को फोन किया. 17 नवंबर, 2013 की सुबह मंजू ने अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के रामाश्रय यादव के बारे में कुछ इस तरह की बातें कीं कि जैसे उस के गायब होने के बारे में उसे जानकारी है.

मामला एक संभ्रांत औरत से जुड़ा था, इसलिए पुलिस ने सारे साक्ष्य जुटा कर ही उस पर हाथ डालने का विचार किया. पुलिस की एक टीम बनाई गई, जिस में सिपाही राम विनय सिंह, संजय पांडेय, रामकृपाल यादव, अजीत सिंह, महिला सिपाही पिंकी सिंह और इंदु बाला को शामिल किया गया. इस टीम का नेतृत्व कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव कर रहे थे.

गुप्त रूप से सारी जानकारियां जुटा कर उपेंद्र कुमार ने रात को अपनी टीम के साथ मंजू के घर छापा मारा. घर पर उस समय मंजू और उस का बेटा सौरभ था. उतनी पुलिस देख कर मंजू सकपका गई. दरवाजा खुलते ही पुलिस घर में घुस कर तलाशी लेने लगी. पीछे के कमरे की तलाशी लेते समय पुलिस ने देखा कि कमरे का आधा फर्श इस तरह है, जैसे गड्ढा खोद कर पाटा गया हो, जबकि बाकी का आधा हिस्सा लीपा हुआ था.

दरअसल मकान का फर्श अभी बना नहीं था. एक सिपाही ने उस पर पैर मारा तो वह जमीन में धंस गया. संदेह हुआ तो पुलिस ने लोहे की सरिया का टुकड़ा उठा कर उस में घुसेड़ा तो वह आसानी से घुसता चला गया. इस के बाद मंजू से पूछताछ की गई तो पहले वह इधरउधर की बातें करती रही. लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए पुलिस को बताया कि रामाश्रय यादव की हत्या कर के उसी की लाश यहां गाड़ी गई है.

कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव ने मंजू को हिरासत में ले कर इस बात की सूचना क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव को दे दी. इस के बाद नम्रता श्रीवास्तव, पुलिस अधीक्षक (नगर) परेश पांडेय, सिटी मजिस्ट्रेट रामकेवल तिवारी, इंसपेक्टर भंवरनाथ चौधरी और इंजीनियरिंग कालेज चौकी के चौकीप्रभारी भी वहां पहुंच गए.

सिटी मजिस्ट्रेट रामकेवल तिवारी की उपस्थिति में फर्श की खुदाई कर के लाश बरामद की गई. पुलिस ने मृतक रामाश्रय के बेटे राकेश को फोन कर के बुलवा लिया था. लाश देखते ही वह बिलखबिलख कर रोने लगा था. लाश की शिनाख्त हो ही गई थी. पुलिस ने अपनी औपचारिक काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

मंजू यादव को हिरासत में ले कर पुलिस थाने ले आई. थाने में एसपी (सिटी) परेश पांडेय और क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव की उपस्थिति में उस से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में मंजू ने रामाश्रय यादव की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस तरह थी.

40 वर्षीया मंजू यादव मूलरूप से गोरखपुर के थाना कैंट के मोहल्ला अभिषेकनगर, शिवपुर की नहर कालोनी की रहने वाली थी. उस के परिवार में पति गामा यादव और 2 बेटे, सूरज कुमार तथा सौरभ कुमार थे. करीब 5 साल पहले गामा यादव सेवानिवृत्ति हुए तो उन्हें झारखंड के बोकारो में नौकरी मिल गई. वह वहां अकेले ही रहते थे. उन की पत्नी मंजू गोरखपुर में रह कर दोनों बच्चों को पढ़ा रही थी.

अभिषेकनगर में रहने से पहले गामा यादव का परिवार नंदानगर दरगहिया में किराए के मकान में रहता था. वहीं रहते हुए उन की मुलाकात रामाश्रय यादव से हुई तो जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यह दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि दोनों परिवारों का एकदूसरे के यहां खूब आनाजाना हो गया. रामाश्रय यादव की शादी तो हो ही गई थी, वह 2 बेटों का बाप भी बन गया था. जबकि गामा यादव की नईनई शादी हुई थी. यह लगभग 20-25 साल पहले की बात है.

गामा यादव के ड्यूटी पर जाने के बाद घर में मंजू यादव ही रह जाती थी. ऐसे में कभीकभार घूमतेफिरते रामाश्रय उस के घर पहुंच जाता तो घंटों उस से बातें करता रहता था. बातें करतेकरते ही उस के मन में दोस्त की बीवी के प्रति आकर्षण पैदा होने लगा.

मंजू 2 बेटों सूरज और सौरभ की मां बन गई थी. 2 बेटों के जन्म के बाद उस के शरीर में जो निखार आया, वह रामाश्रय को और बेचैन करने लगा. मंजू के आकर्षण में बंधा वह जबतब उस के घर पहुंचने लगा. लेकिन अब वह उस के घर खाली हाथ नहीं जाता था. बच्चों के बहाने वह कुछ न कुछ ले कर जाता था. मंजू और उस के बीच हंसीठिठोली होती ही थी, इसी बहाने वह उस से अश्लील मजाक करते हुए शारीरिक छेड़छाड़ भी करने लगा. मंजू ने कभी विरोध नहीं किया, इसलिए उस की हिम्मत बढ़ती गई और फिर एक दिन उस ने उसे बांहों में भर लिया.

ऐसे में न तो रामाश्रय ने घरपरिवार की चिंता की न मंजू ने. उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि जब इस बारे में घर वालों को पता चलेगा तो इस का परिणाम क्या होगा. दोनों ही किसी तरह की परवाह किए बगैर एक हो गए. इस के बाद उन का यह लुकाछिपी का खेल लगातार चलने लगा. दोनों ही यह खेल इतनी सफाई से खेल रहे थे कि इस की भनक न तो गामा को लगी थी और न ही आशा को.

गामा नंदानगर में किराए के मकान में रहता था. बच्चे बड़े हुए तो जगह छोटी पड़ने लगी. रामाश्रय सूदखोरी के साथ प्रौपर्टी का भी काम करता था. इसी वजह से मंजू ने उस से प्लौट दिलाने की बात कही तो रामाश्रय ने उसे अभिषेकनगर का यह प्लौट दिला दिया. प्लौट खरीदने का पैसा भी रामाश्रय ने ही दिया. लेकिन गामा ने उस का यह पैसा धीरेधीरे अदा कर दिया था.

रामाश्रय ने मंजू को प्लौट ही नहीं दिलवाया, बल्कि उस का मकान भी बनवा दिया था. मकान बनने के बाद मंजू बच्चों को ले कर अपने मकान में आ गई. यह 18 साल पहले की बात है. उसी बीच गामा नौकरी से रिटायर हो गया तो उसे झारखंड के बोकारो में बढि़या नौकरी मिल गई, जहां वह अकेला ही रह कर नौकरी करने लगा.

गामा के आने से जहां मंजू और रामाश्रय को मिलने में दिक्कत होने लगी थी, वहीं उस के बोकारो चले जाने के बाद उन का रास्ता फिर साफ हो गया. सूरज और सौरभ बड़े हो गए थे. लेकिन वे स्कूल चले जाते थे तो मंजू घर में अकेली रह जाती थी. उसी बीच रामाश्रय उस से मिलने आता था. मंजू को पता ही था कि रामाश्रय ब्याज पर पैसे देता है. उस के मन में आया कि क्यों न वह भी अपने शारीरिक संबंधों को कैश कराए. वह रामाश्रय से रुपए ऐंठने लगी. उन पैसों को वह 12 प्रतिशत की दर से ब्याज पर उठाने लगी. इसी तरह उस ने रामाश्रय से करीब 15 लाख रुपए ऐंठ लिए.

15 लाख रुपए कोई छोटी रकम नहीं होती. रामाश्रय मंजू से अपने पैसे वापस मांगने लगा. जबकि मंजू देने में आनाकानी करती रही. रामाश्रय को लगा कि उस के पैसे डूबने वाले हैं तो उस ने थोड़ी सख्ती की. किसी तरह मंजू ने 10 लाख रुपए तो वापस कर दिए, लेकिन 5 लाख रुपए उस ने दबा लिए. उस ने कह भी दिया कि अब वह ये रुपए नहीं देगी. इस के बाद रामाश्रय ने उस से पैसे मांगने छोड़ दिए.

12 नवंबर, 2013 की शाम 6 बजे मंजू ने फोन कर के रामाश्रय को अपने घर बुलाया, क्योंकि उस समय वह घर में अकेली थी. उस के दोनों बेटे कहीं घूमने गए थे. घर से निकलते समय रामाश्रय ने पत्नी को बता दिया था कि वह मंजू के यहां हिसाबकिताब करने जा रहा है. उसे लौटने में देर हो सकती है, इसलिए वह उस का इंतजार नहीं करेगी.

जिस समय रामाश्रय मंजू के यहां पहुंचा, सौरभ आ चुका था. उसे देख कर दोनों अचकचा गए. तब रामाश्रय ने उसे बाहर भेजने के लिए कुछ रुपए दे कर कोई सामान लाने को कहा. उस के जाते ही दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. वह वासना की आग ठंडी कर ही रहे थे कि सूरज आ गया. दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजे की झिर्री से झांका तो उसे अंदर से खुसुरफुसुर की आवाज आती सुनाई दी.

सूरज दीवाल के सहारे छत पर चढ़ गया. सीढि़यों से उतर कर वह कमरे में पहुंचा तो मां को रामाश्रय के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर उसे गुस्सा आ गया. सूरज को देख कर मंजू हड़बड़ा कर उठी. वह कुछ करती, उस के पहले ही सूरज ने गुस्से में फावड़ा उठा कर रामाश्रय के सिर पर वार कर दिया.

एक ही वार में रामाश्रय का सिर फट गया और वह बिस्तर पर लुढ़क गया. मंजू डर गई. वह हड़बड़ा कर बिस्तर से नीचे कूद गई. तब तक सौरभ भी आ गया. वह भी छत के रास्ते नीचे आया था. रामाश्रय को खून में लथपथ देख कर वह बुरी तरह से डर कर रोने लगा. मंजू ने उसे डांट कर चुप कराया.

जो होना था, सो हो चुका था. तीनों डर गए कि अब उन्हें जेल जाना होगा. पुलिस से बचने के लिए मंजू ने बेटों के साथ मिल कर कमरे के अंदर गड्ढा खोदा और रामाश्रय की लाश को उसी में दबा दिया. इस के बाद अपने एक रिश्तेदार की मदद से सूरज उस की मोटरसाइकिल को थाना झंगहा के अंतर्गत आने वाले नया बाजार के मंदिर के पास खड़ी कर आया. वहां से लौट कर वह उसी दिन पिता के पास बोकारो चला गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने मंजू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. 21 नवंबर, 2013 को पुलिस ने सूरज को हिरासत में ले कर बच्चों की अदालत में पेश किया, जहां से उसे बालसुधार गृह भेज दिया गया.

इस मामले मे मृतक के बेटे राकेश का कहना है कि उस के पिता के मंजू से अवैध संबंध बिलकुल नहीं थे. पैसे लौटाने न पड़ें, इस के लिए उस ने उस के पिता की हत्या की है. यही नहीं, घटना वाले दिन उस के पिता के पास 2 लाख रुपए के चैक और 2 लाख रुपए नकद थे, वे भी गायब हैं. उन का मोबाइल भी नहीं मिला.

कथा लिखे जाने तक न तो मंजू की जमानत हुई थी, न सूरज की. गामा यादव ने उन की जमानत की कोशिश भी नहीं की थी. शायद उन्होंने बेटे और पत्नी को उन के किए की सजा भुगतने के लिए छोड़ दिया है.

मौज मजा बन गया सजा – भाग 2

अगले दिन जब डा. अशोक कुमार के लापता होने की खबर अखबारों में छपी तो मऊ पुलिस को लगा कि बरामद कार डा. अशोक कुमार की है, क्योंकि कार का जो नंबर था, उसी नंबर की जेन कार ले कर वह निकले थे. मऊ पुलिस ने कार बरामद होने की सूचना गोरखपुर पुलिस को दी तो गोरखपुर पुलिस डा. अशोक कुमार के घर वालों को साथ ले कर मऊ के थाना दक्षिण टोला जा पहुंची.

घर वालों ने कार की शिनाख्त कर दी. कार डा. अशोक कुमार की ही थी. कार की स्थिति देख कर सभी को यही लगा कि डा. अशोक कुमार के साथ कोई अनहोनी घट चुकी है. अखबारों में छपी खबर पढ़ कर देवरिया पुलिस ने गोरखपुर पुलिस को अपने यहां से एक लाश बरामद होने की सूचना दी.

उसी सूचना के आधार पर महावीर प्रसाद के बड़े दामाद जयराम प्रसाद गोरखपुर पुलिस के साथ देवरिया के थाना खुखुंदू जा पहुंचे. लाश के फोटो और कपड़े आदि देख कर उन्होंने बता दिया कि फोटो और सामान डा. अशोक कुमार के हैं. संदेह तो पहले ही था, अब साफ हो गया कि डा. अशोक कुमार की हत्या हो चुकी है. इस के बाद परिवार में कोहराम मच गया.

मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए इस मामले के खुलासे के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक विजय कुमार ने इस मामले की जांच में चौराचौरी के क्षेत्राधिकारी, एसओजी प्रभारी और क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत के नेतृत्व में 3 टीमें बना कर लगा दीं. चूंकि मामला एससी/एसटी का था, इसलिए इस मामले की जांच क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत को सौंपी गई थी.

क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत ने जब अपने हिसाब से इस मामले की जांच की तो पता चला कि डा. अशोक कुमार काफी आशिकमिजाज आदमी थे. वह अपने कुछ खास मित्रों के साथ पनियारा स्थित वन विभाग के बांकी डाक बंगले में अकसर मौजमस्ती के लिए जाया करते थे. उन्होंने जब उन के खास दोस्तों के बारे में पता किया तो वे थे बीआरडी मैडिकल कालेज के प्रोफेसर डा. सुनील आर्या, कपड़ा व्यवसायी शरीफ अहमद, साइबर कैफे चलाने वाला अविनाश चौहान और बलदाऊ यादव. इन में एक महिला भी थी, जिस का नाम था अराधना मिश्रा, जो नर्स थी.

इस जानकारी के बाद एस.के. भगत ने डा. सुनील आर्या, शरीफ अहमद, अविनाश चौहान और बलदाऊ यादव की ही नहीं, डा. अशोक कुमार की भी घटना के दिन एवं उस से 3 दिन पहले की मोबाइल फोन एवं लैंडलाइन फोनों की काल डिटेल्स निकलवा ली. इस से पता चला कि डा. अशोक कुमार के मोबाइल फोन पर अंतिम फोन डा. सुनील आर्या का आया था. उसी के बाद डा. अशोक कुमार गायब हुए थे.

इस से मामले की जांच कर रहे क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत को डा. सुनील आर्या पर ही नहीं, उन के अन्य साथियों पर शक हुआ.  इस के बाद शक के आधार पर ही उन्होंने डा. सुनील आर्या, अविनाश चौहान, बलदाऊ यादव और शरीफ अहमद को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. कई चक्रों में की गई पूछताछ में जब घटना का खुलासा हुआ तो जो बातें सामने आईं, वह हैरान करने वाली थीं. पता चला कि डा. अशोक कुमार की हत्या उन के इन्हीं दोस्तों ने की थी.

डा. अशोक कुमार, डा. सुनील आर्या, शरीफ अहमद, अविनाश चौहान और बलदाऊ यादव शराब और शबाब के यार थे. ये सभी एक साथ शराब पीते और एक साथ अय्याशी करते. डा. अशोक कुमार अपने यार डा. सुनील आर्या के घर बैठ कर शराब पीते तो उन की पत्नी रंजना को जरा भी ऐतराज न होता. इसी तरह डा. सुनील डा. अशोक के यहां बैठ कर शराब पीते तो निर्मला भी ऐतराज नहीं करती थी. इस तरह दोनों लगभग रोज ही पार्टी करते थे.

6 जुलाई, 2001 को अविनाश चौहान के भांजे के जन्मदिन की पार्टी थी. उस पार्टी में डा. अशोक कुमार और डा. सुनील आर्या भी आमंत्रित थे. डा. अशोक कुमार तो निर्मला के साथ पार्टी में पहुंच गए, लेकिन डा. सुनील आर्या उस दिन लखनऊ में थे, इसलिए पार्टी में नहीं आ पाए. केवल उन की पत्नी रंजना आर्या ही आई थीं.

पार्टी में पीने की भी व्यवस्था थी. डा. अशोक कुमार पीने के शौकीन थे ही. वह शराब पी रहे थे, तभी किसी ने उन से पूछा, ‘‘डा. साहब, आज अकेलेअकेले ही पार्टी का मजा ले रहे हैं. आप के मित्र नहीं आए हैं क्या?’’

‘‘यार नहीं आया तो क्या हुआ, उस की मैडम तो आई हैं. उस की कमी मैं पूरी कर दूंगा. हम दोनों के बीच सब चलता है.’’ डा. अशोक कुमार ने नशे में कहा.

डा. अशोक कुमार के पास ही अविनाश खड़ा था, इसलिए उस ने ये बातें सुन ली थीं. डा. अशोक कुमार की बात से उसे हैरानी हुई कि यह नया खेल कब से शुरू हो गया? जबकि उन की दोस्ती काफी पुरानी थी. उस ने तो ऐसा कभी नहीं सुना था.

डा. अशोक कुमार की यह बात अविनाश को बहुत बुरी लगी. बुरी लगने की एक वजह यह थी कि वह डा. सुनील आर्या का सगा साढू था. देर रात पार्टी खत्म हुई तो अविनाश को अशोक कुमार की बात उस के दिमाग में घूमने लगी. क्योंकि अशोक ने एक तरह से उस की साली को गाली दी थी. गाली भी ऐसी, जो सहन करने लायक नहीं थी. उस से नहीं रहा गया तो उस ने डा. सुनील को फोन कर के डा. अशोक द्वारा रंजना के बारे में कही गई बात बता दी.

अविनाश की बातें सुन कर डा. सुनील आर्या के तनबदन में आग लग गई. उस ने कहा, ‘‘मैं अभी गोरखपुर के लिए निकल रहा हूं. उस कमीने ने जो उलटासीधा कहा है, उस की सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए.’’

सवेरा होते ही डा. सुनील आर्या गोरखपुर के लिए रवाना हो गए. उस समय उन के साथ उन की महिला मित्र आराधना मिश्रा के अलावा बलदाऊ यादव भी था. वहीं से उन्होंने शरीफ अहमद को फोन कर के गोरखपुर में मिलने के लिए कहा.

गोरखपुर पहुंच कर डा. सुनील आर्या ने अपने सभी साथियों यानी अविनाश चौहान, शरीफ अहमद, बलदाऊ यादव और आराधना मिश्रा को विश्वास में ले कर डा. अशोक कुमार की हत्या की योजना बना डाली.

10 जुलाई की रात डा. सुनील आर्या पत्नी रंजना के साथ एक पार्टी में गए. पार्टी में खाना खा कर उन्होंने पत्नी को घर पहुंचाया और खुद कार से निकल पड़े. इस के बाद वह मैडिकल कालेज के उत्तरी गेट पर पहुंचे, जहां नर्स आराधना मिश्रा उन का इंतजार कर रही थी. आराधना को कार में बैठा कर उन्होंने डा. अशोक कुमार को फोन किया, ‘‘भई, आज रात का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘आज तो कोई प्रोग्राम नहीं है.’’

डा. अशोक कुमार ने कहा तो डा. सुनील आर्या ने कहा, ‘‘सोच रहा हूं, आज बढि़या सा प्रोग्राम रखा जाए, जिस में सब कुछ हो. तुम कहो तो आराधना मिश्रा को बुला लूं?’’

डा. अशोक कुमार भला क्यों मना करते. उन्होंने हामी भर दी. इस तरह डा. सुनील आर्या जो चाहते थे, वह हो गया.  डा. अशोक कुमार से बात करने के बाद डा. सुनील आर्या ने शरीफ और अविनाश को फोन कर के बुला लिया. शरीफ अपनी इंडिका कार से उस के यहां पहुंच गया.

मौज मजा बन गया सजा – भाग 1

गोरखपुर के अपर सत्र न्यायाधीश (विशेष) अनुसूचित जाति/जनजाति श्री सुरेंद्र कुमार यादव  की अदालत में एक बहुत ही चर्चित मामले का फैसला सुनाया जाने वाला था, इसलिए उस दिन अदालत में मीडिया वालों के साथसाथ आम लोगों की कुछ ज्यादा ही भीड़ थी.

दरअसल हत्या के जिस मामले का फैसला सुनाया जाना था, उस मामले में मृतक डा. अशोक कुमार कोई मामूली आदमी नहीं थे. वह कांगे्रस के जानेमाने नेता और हरियाणा के राज्यपाल रहे स्व. महावीर प्रसाद के दामाद थे. उस भीड़ में मृतक डा. अशोक कुमार के ही नहीं, उन की हत्या के आरोपी अविनाश चौहान, शरीफ अहमद, डा. सुनील आर्या और बलदाऊ यादव के घर वाले भी मौजूद थे.

सरकारी वकील इरफान मकबूल खान ने जहां चारों अभियुक्तों को हत्या का दोषी ठहरा कर कठोर से कठोर सजा देने की मांग की थी, वहीं बचाव पक्ष के वकील का कहना था कि उन के मुवक्किलों को गलत तरीके से फंसाया गया है. पुलिस ने जो सुबूत पेश किए हैं, वे घटना एवं घटनास्थल से मेल नहीं खाते, उन के मुवक्किल निर्दोष हैं, जिस से उन्हें बरी किया जाए.

इस हत्याकांड का फैसला जानने से पहले आइए इस हत्याकांड के बारे में जान लें, जिस से फैसला जानने में थोड़ी आसानी रहेगी.

जिन डा. अशोक कुमार की हत्या के मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था, वह उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर की कोतवाली शाहपुर की पौश कालोनी आवासविकास के मकान नंबर बी-88 में रहने वाले सबइंस्पेक्टर के पद से रिटायर हुए दूधनाथ के 3 बेटों में सब से बड़े बेटे थे.

दूधनाथ सरकारी नौकरी में थे, इसलिए उन्होंने अपने सभी बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर खास ध्यान दिया था. इसी का नतीजा था कि उन के बड़े बेटे अशोक कुमार का चयन सीपीएमटी में हो गया था. कानपुर के गणेशशंकर विद्यार्थी मैडिकल कालेज से एमबीबीएस करने के बाद नेत्र चिकित्सा में विशेष योग्यता हासिल करने के लिए वह दिल्ली स्थित आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मैडिकल साइंसेज चले गए थे.

एम्स से एमएस करने के बाद डा. अशोक कुमार ने दिल्ली के आई केयर सेंटर में नौकरी कर ली. वहां से ठीकठाक अनुभव प्राप्त कर के वह गोरखपुर आ गए और गोरखपुर के शाहपुर में नेहा आई केयर सेंटर के नाम से अपना खुद का अस्पताल खोल लिया.

जल्दी ही डा. अशोक कुमार की गिनती गोरखपुर के मशहूर नेत्र विशेषज्ञों में होने लगी, जिस से शोहरत भी मिली और पैसा भी आया. फिर दोस्तों की भी संख्या बढ़ने लगी. लेकिन उन की सब से ज्यादा घनिष्ठता थी डा. सुनील आर्या से. इस की एक वजह यह थी कि डा. सुनील आर्या उन के किशोरावस्था के दोस्त थे. इस के अलावा दोनों एक ही पेशे से जुड़े थे, फिर दोनों के स्वभाव भी एक जैसे थे. डा. सुनील आर्या मैडिकल कालेज में प्रोफेसर थे.

डा. अशोक कुमार डाक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे, तभी गोरखपुर की तहसील बांसगांव के गांव उज्जरपार के रहने वाले कांगे्रस के कद्दावर नेता महावीर प्रसाद ने अपनी छोटी बेटी निर्मला की शादी उन से कर दी थी. उन की सिर्फ 2 ही बेटियां थीं. बड़ी बेटी का ब्याह उन्होंने गोरखपुर के दाउदपुर के रहने वाले जयराम कुमार के साथ किया था. वह सिंचाई विभाग में अधिशाषी अभियंता थे.

शादी के बाद महावीर प्रसाद ने दोनों ही बेटियों को उपहार में एकएक गैस एजेंसी दी थी. विमला की गैस एजेंसी महाराजगंज में थी, जबकि निर्मला की गैस एजेंसी उन के बेटे हिमांशु के नाम से गोरखपुर के राप्तीनगर के मोहल्ला चकसा हुसैननगर में थी.

10 जुलाई, 2001 की रात साढ़े नौ बजे के करीब डा. अशोक कुमार गैस एजेंसी के काम से अकेले ही अपनी मारुति जेन कार यूपी 53 एल 2345 से इलाहाबाद के लिए निकले. उस समय उन के पास गैस एजेंसी के कागजतों के अलावा 1 लाख 10 हजार रुपए नकद थे.

11 जुलाई की सुबह 7 बजे के आसपास पति का हालचाल लेने के लिए निर्मला ने उन के मोबाइल पर फोन किया. फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई. उन्हें लगा, लंबे सफर की वजह से वह थक गए होंगे. कोई परेशान न करे, इसलिए फोन बंद कर दिया होगा.

11 बजे तक डा. अशोक कुमार का फोन नहीं आया तो निर्मला ने एक बार फिर फोन किया. इस बार भी फोन बंद था. इस के बाद निर्मला रहरह कर पति का फोन मिलाती रही, लेकिन हर बार उन का फोन स्विच औफ बताता रहा. जब पति से किसी भी तरह संपर्क नहीं हुआ तो उन का दिल घबराने लगा.

निर्मला ने बहनोई जयराम प्रसाद को फोन किया तो पता चला कि वह भी गैस एजेंसी के ही काम से इलाहाबाद गए हुए हैं. इस के बाद निर्मला ने इलाहाबाद में रहने वाले अपने परिचितों को फोन कर के पति के बारे में पूछा. उन में से कोई भी डा. अशोक कुमार के बारे में कुछ नहीं बता सका. इसी तरह 2 दिन बीत गए. जब डा. अशोक के बारे में कुछ पता नहीं चला तो परिवार में बेचैनी हुई. निर्मला ने दिल्ली में रह रहे अपने पिता महावीर प्रसाद को फोन कर के सारी बात बताई.

दामाद के इस तरह अचानक गायब हो जाने से महावीर प्रसाद परेशान हो उठे. उन्होंने निर्मला से थाने में गुमशुदगी दर्ज कराने को कह कर गोरखपुर के पुलिस अधिकारियों से बात की. पिता के कहने पर निर्मला ने तीसरे दिन थाना शाहपुर में तहरीर दे कर पति डा. अशोक कुमार की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

डा. अशोक कुमार कोई मामूली आदमी नहीं थे. वह दरोगा के बेटे होने के साथसाथ कांग्रेस के बड़े नेता के दामाद भी थे. महावीर प्रसाद ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को फोन कर ही दिया था, इसलिए गुमशुदगी दर्ज होते ही जिले के सभी थानों की पुलिस सक्रिय हो गई.

11 जुलाई, 2001 को गोरखपुर से जुड़े जिला देवरिया के थाना खुखुंदु पुलिस ने चौकीदार लालजी यादव की सूचना पर सलेमपुरदेवरिया रोड पर बनी वन विभाग की पौधशाला के पास से एक लाश बरामद की. लाश के पास एक तौलिया और एक तकिया का कवर मिला था. दोनों ही चीजें खून से सनी थीं. मृतक की उम्र 35-36 साल के करीब थी. देखने से ही लग रहा था कि यह हत्या का मामला है, इसलिए थानाप्रभारी श्यामलाल चौधरी ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करा दिया.

मृतक की तलाशी में ऐसी कोई भी चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती. इस से पुलिस को यही लगा कि मृतक की हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेकी गई थी. पुलिस ने लाश के फोटो करवा कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लाश की शिनाख्त न होने से थाना खुखुंदू पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद उसे लावारिस मान कर उसी दिन उस का अंतिम संस्कार करा दिया था.

अगले दिन यानी 12 जुलाई की देर रात आजमगढ़ के करीबी जिला मऊ के थाना दक्षिण टोला पुलिस ने जहांगीराबाद से सड़क के किनारे से एक मारुति जेन कार बरामद की. पुलिस ने कार की खिड़कियों के शीशे तुड़वा कर टार्च की रोशनी में चैक किया तो कार की पिछली सीट पर खून के कुछ निशान दिखाई दिए.

अगली सीट पर कनियार पुल के टोल टैक्स की रसीद के साथ 12 बोर की गोली का एक खोखा बरामद हुआ. कार के अंदर ही गाड़ी के कागजात मिल गए थे, जो गोरखपुर के शाहपुर की आवासविकास कालोनी, गीतावाटिका के रहने वाले डा. अशोक कुमार के नाम थे. इस के अलावा कार से एक जोड़ी चप्पलें और भोजपुरी गीतों के 6 औडियो कैसेट बरामद हुए थे. पुलिस ने कार को कब्जे में ले कर इस की सूचना जिला नियंत्रण कक्ष को दे दी थी.

पंजाब की डाकू हसीना