सरकार से ज्यादा शक्तिशाली ड्रग्स तस्कर – भाग 2

सुरंग बना कर जेल से भाग गया था अल चापो

साल 1985 में अल बेदरीनो का नाम एक अधिकारी की हत्या में आने के बाद उसे 1989 में गिरफ्तार कर लिया गया. उस के बाद गुआदलहारा ड्रग कार्टेल बिखर गया, जिसे फिर से बना कर अल चापो ने सिनालोआ कार्टेल का नाम दिया. इस तस्करी में उस ने नया तरीका ईजाद किया, जिस में सुरंगों का इस्तेमाल किया गया.

इस तरीके को अपनाने के लिए उस ने 1992-93 के दौर में पूरे सिनालोआ में अनगिनत इमारतें और सुरंगे बनवाईं, लेकिन 1993 में चर्च के एक कार्डिनल की मौत हो गई. इस मामले में अल चापो को हत्या, ड्रग्स सहित कई आरोपों में ग्वाटेमाला से गिरफ्तार कर 20 साल की सजा सुना कर प्यूएंते ग्रांद जेल में भेज दिया गया.

कई साल जेल में रहने के बाद साल 2001 में अल चापो जेल से फरार हो गया. फिर वह 13 साल पुलिस की पकड़ में नहीं आया और इस दौरान उस ने दुनिया के हर कोने में सिनालोआ कार्टेल के जरिए तसकरी की. साल 2009 में अल चापो का नाम फोब्र्स के सब से अमीर लोगों की लिस्ट में शामिल हुआ, जोकि 2013 तक बना रहा.

फिर 2014 में अल चापो को गिरफ्तार कर आल्टपीनो की जेल में रखा गया. लेकिन डेढ़ साल ही बीता था कि जुलाई 2015 में अल चापो जेल में सुरंग बना कर मोटरसाइकिल के जरिए फिर फरार हो गया. इस प्लान में अल चापो की मदद उस की बीवी एमा कोरोनेल आइसपूरो ने की थी. पहले एमा ने जेल के बगल में जमीन खरीदी फिर बिल्डिंग बनवाई और उसी के रास्ते अल चापो की बैरक तक एक सुरंग बनाई.

एमा ने इस काम के लिए कुछ जेल अधिकारियों को घूस भी दी थी. हालांकि 8 जनवरी, 2016 के दिन अल चापो को एक मुठभेड़ के बाद लास मोचिस, सिनालोआ में पकड़ लिया गया था. फिर 2017 में उसे अमेरिका में प्रत्यर्पित कर दिया गया, जहां न्यूयार्क की अदालत में उस पर मुकदमा शुरू हुआ. साल 2019 में अदालत ने अल चापो को आजीवन कारावास के अलावा 30 साल की सजा सुनाई.

कौन कितना कुख्यात कार्टेल

मैक्सिको के ड्रग कार्टेल दशकों से लगातार बने हुए हैं. कई बार बिखरने की स्थिति में आने के बावजूद नए गठबंधन बनते रहे. अपना वजूद बनाए रखने के लिए एकदूसरे से लड़ते रहे हैं. ड्रग एन्फोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (डीईए) के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए सब से महत्त्वपूर्ण मादक पदार्थों की
तस्करी के खतरे पैदा करने वाले कार्टेल ही हैं.

मैक्सिको के सब से बड़े कार्टेल सिनालाओ के अलावा दूसरे कार्टेल भी सक्रिय हैं. इन में गल्फ कार्टेल, लास जीटास, जुआरेज, जेलिस्को, बर्तेन लेव्लया के नाम मुख्य हैं. जेलिस्को न्यू जनरेशन कार्टेल (सीजेएनजी) 2010 में सिनालोआ से अलग हो कर बना था. देश के दोतिहाई से अधिक हिस्से में इस का वर्चस्व है तथा मैक्सिको के सब से तेजी से बढ़ते कार्टेल में से एक है. डीईए के अनुसार, यह मादक पदार्थों की
तसकरी गतिविधियों का तेजी से विस्तार करने और हिंसक वारदातों में शामिल रहा है.

यह अमेरिकी दवा बाजार के एक तिहाई से अधिक की आपूर्ति करती है. जेलिस्को कार्टेल लास जीटास कार्टेल के 35 लोगों का मर्डर कर शवों को राजधानी में फेंकने के बाद चर्चा में आया था. इन में गल्फ कार्टेल सिनालोआ का सब से धुर प्रतिद्वंदी कार्टेल है. इस का मैक्सिको के खाड़ी वाले क्षेत्रों में कब्जा है. गल्फ
कार्टेल की क्षमता का आधार पूर्वोत्तर मैक्सिको में है. इस का प्रभाव विशेष रूप से तमाउलिपास और जकाटेकास राज्यों में है. माना जाता है कि यह उन क्षेत्रों में जेलिस्को के सदस्यों के साथ काम कर रहा है.

इसी तरह लास जीटास पुलिस और सेना के भगोड़ों द्वारा बनाया गया कार्टेल है. यह कार्टेल मर्डर करने में माहिर है और हत्या के बाद शवों पर जेड-40 का निशान बना देता है. जेटास को 2007 में डीईए द्वारा देश के सब से तकनीकी रूप से उन्नत, परिष्कृत और हिंसक समूह के रूप में चुना गया था. यह 2010 में गल्फ कार्टेल से अलग हो गया और पूर्वी, मध्य और दक्षिणी मैक्सिको के क्षेत्रों पर हावी हो गया था. हालांकि,
हाल के वर्षों में इस ने सत्ता खो दी है.

साढ़े 3 लाख से ज्यादा हत्याएं हुईं मैक्सिको में

जुआरेज कार्टेल का दबदबा अमेरिका से जुड़ी सीमा पर बना हुआ है. एक तरह से इस का उसी सीमा पर कब्जा है, जिसे रोकने के लिए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दीवार बनाने की घोषणा की थी. इसे चुनावी मुद्दा बना कर चुनाव तो जीत गए थे, लेकिन इस वादे को पूरा नहीं कर पाए. खैर, जुआरेज के पास सब से प्रभावकारी शार्पशूटर स्पाइनरों की प्राइवेट आर्मी है.

सिनालोआ के एक लंबे समय से प्रतिद्वंदी जुआरेज का उत्तरमध्य राज्य चिहुआहुआ में न्यू मैक्सिको और टेक्सास से सीमा के पार अपना गढ़ है. हाल के सालों में यह गिरोह कई गुटों में बंट गया है. जबकि बर्तेन लेव्लया कार्टेल 4 भाइयों ने बनाया था. चापो से गैंगवार के कारण 2 भाई मारे गए. 2 इंजीनियर इस के सरगना हैं.

ला फमिलिया मिचोआकाना (एलएफएम) नाम का कार्टेल पश्चिमी मैक्सिको के मिचोआकेन राज्य में सक्रिय है. साल 2009 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस गिरोह के सदस्यों को महत्त्वपूर्ण विदेशी नशीले पदार्थों के तस्कर बताते हुए विदेशी नारकोटिक्स किंगपिन कहा था. उस पर आर्थिक पाबंदियां भी लगाई गई थीं. वैसे हाल के वर्षों में यह कमजोर हुआ है.

फलफूल रहा है सिंथेटिक ड्रग का कारोबार

मैक्सिकन ड्रग कार्टेल यूएसए को कोकीन, हेरोइन, मेथामफेटामाइन और अन्य अवैध नशीले पदार्थों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं. कार्टेल और नशीली दवाओं के व्यापार ने मैक्सिको में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और हिंसा को बढ़ावा दिया. हालांकि मैक्सिको ने 2006 में कार्टेल के खिलाफ काररवाई एक युद्ध शुरू में किया, जिस के लिए अमेरिका ने उसे सुरक्षा और मादक द्रव्यों के खिलाफ सहायता के रूप में अरबों डालर दिए थे.
कहने को तो मैक्सिकन अधिकारी एक दशक से अधिक समय से ड्रग कार्टेल के खिलाफ घातक लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन उन्हें बहुत ही कम सफलता मिल पाई है. राजनेताओं, छात्रों और पत्रकारों सहित हजारों मैक्सिकन हर साल संघर्ष में मारे जाते हैं.

साल 2006 के बाद से, जब सरकार ने कार्टेल पर युद्ध की घोषणा की, मैक्सिको में 3,60,000 से अधिक हत्याएं हुई हैं. अमेरिका ने अपने दक्षिणी पड़ोसी मैक्सिको की मदद के लिए उस की सुरक्षा बलों को आधुनिक बनाने, अपनी न्यायिक प्रणाली में सुधार करने और उस की दक्षिणी सीमा पर प्रवास को रोकने के उद्देश्य से विकास परियोजनाओं पर अरबों डालर खर्च किए हैं.

वाशिंगटन ने मैक्सिको के साथ अपनी सीमा पर सुरक्षा और निगरानी संचालन को मजबूत कर के अमेरिका में अवैध दवाओं के प्रवाह को रोकने की भी मांग की है. मैक्सिकन ड्रग ट्रैफिकिंग संगठन (डीटीओ), जो अंतरराष्ट्रीय आपराधिक संगठन भी कहा जाता है, अमेरिका में कोकेन, फेंटेनाइल, हेरोइन, मारिजुआना और मेथामफेटामाइन के आयात और वितरण का काम करता है.

मैक्सिकन आपूर्तिकर्ता अधिकांश हेरोइन और मेथामफेटामाइन उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि कोकीन का उत्पादन बड़े पैमाने पर कोलंबिया में किया जाता है. उसे मैक्सिकन आपराधिक संगठनों द्वारा अमेरिका में ले जाया जाता है. मैक्सिको चीन के साथ फेंटेनिल का भी एक प्रमुख स्रोत है, जो हेरोइन की तुलना में 50 गुना अधिक शक्तिशाली सिंथेटिक ड्रग है.

ड्रग कार्टेल अब नए जमाने के ड्रग का कारोबार करने लगे हैं, उन में चीन से आयातित कैमिकल से बना सिंथेटिक ड्रग है. चीन से सिंथेटिक कैमिकल इलेक्ट्रौनिक सामान में छिपा कर मैक्सिको के विभिन्न बंदरगाहों पर पहुंचता है. यहां से कैमिकल कारखानों में जाता है. मैक्सिको का ड्रग कार्टेल सिंथेटिक ड्रग फेंटेनिल बनाता रहा है. इस ड्रग को बनाने की कीमत हेरोइन, मारिजुआना या अफीम से बहुत कम होती है. वह चीन से सिंथेटिक कैमिकल का आयात कर लेता है.

ड्रग कार्टेल ने मैक्सिको के जंगलों में फेंटेनिल को बनाने के लिए देसी कारखाने बना रखे हैं. पाउडर में कैमिकल को मिला कर इन्हें फेंटेनिल टैबलेट में बदल दिया जाता है. यह कितना खतरनाक और जानलेवा है, इस का अंदाज अमेरिका में ड्रग से हुई मौतों से लगाया जा सकता है. 2021 में फेंटेनिल ओवरडोज से अमेरिका में 2 लाख लोगों की मौत हो गई थी. फेंटेनिल को दर्द निवारक के रूप में मैडिकल स्टोर्स में बेचा जाता है.

कैसे बढ़ते चले गए ड्रग कार्टेल

ड्रग कार्टेल के बढऩे और बने रहने के कारणों के बारे में विशेषज्ञ घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ताकतों की ओर इशारा करते हैं. मैक्सिको में कार्टेल अपने काफी बड़े मुनाफे के एक हिस्से का उपयोग न्यायाधीशों, अधिकारियों और राजनेताओं के ऊपर करते हैं.

वे अधिकारियों को सहयोग करने के लिए भी बाध्य करते हैं. यही कारण है कि उन के द्वारा पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं की हत्याएं भी खूब होती हैं.  बीते साल 2021 में देश के मध्यावधि चुनाव से पहले दरजनों राजनेता मारे गए, जिन में से कई मौतों के लिए कार्टेल को जिम्मेदार ठहराया गया.

मैक्सिको में लगातार एक ही राजनीतिक पार्टी इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी (पीआरआई) का शासन होने का भी कार्टेल ने खूब फायदा उठाया और 7 दशकों के दौरान कार्टेल फलेफूले. वहां के राजनीतिक ढांचे के भीतर घुस कर कार्टेल के सदस्यों ने भ्रष्ट अधिकारियों का एक व्यापक नेटवर्क तैयार कर लिया, जिस के माध्यम से वे वितरण अधिकार, बाजार तक पहुंच और सुरक्षा हासिल करने में सक्षम होते चले गए.

साल 2000 में पीआरआई का अटूट शासन कंजर्वेटिव नैशनल एक्शन पार्टी (पैन) के अध्यक्ष विसेंट फौक्स के चुनाव के साथ समाप्त हो गया. सत्ता में नए राजनेता आए और कार्टेल पर जब अंकुश लगाने की बारी आई, तब कार्टेल ने उन के साथ संबंध बनाने एवं राज्यों पर अपनी पकड़ को फिर से स्थापित करने की कोशिश में सरकार के खिलाफ हिंसा तेज कर दी.

मैक्सिकन कार्टेल ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1980 के दशक के अंतिम सालों में ड्रग तस्करी के नेटवर्क को मजबूत करने के लिए तब बहुत बड़ी भूमिका निभानी शुरू कर दी थी, जब अमेरिकी सरकारी एजेंसियों ने कोकीन की तस्करी के लिए कोलंबियाई कार्टेल द्वारा उपयोग किए जाने वाले कैरेबियन नेटवर्क को तोड़ दिया था.

सीमा हैदर : प्रेम दीवानी या पाकिस्तानी जासूस – भाग 2

बच्चों को अच्छी तालीम मिले, उस का अपना घर हो, इन्हीं सपनों को पूरा करने के लिए गुलाम हैदर कोविड बीमारी से पहले 3 साल के कौन्ट्रैक्ट पर 2019 में नौकरी का मौका मिलने पर सऊदी अरब चला गया. उस वक्त सब से छोटी बेटी सीमा के पेट में थी.

ये था सीमा की जिंदगी का वो पहलू जब वो पाकिस्तान में थी. शौहर के सऊदी अरब जाने के बाद वह बच्चों के साथ के बावजूद एकदम तन्हा हो गई. हालांकि गुलाम के सऊदी जाने के बाद सीमा और उस के बच्चों की गुजरबसर पहले से कहीं ज्यादा अच्छे ढंग से होने लगी. क्योंकि शुरू में गुलाम सीमा को वहां से 40-50 हजार रुपए भेजता था, जो कुछ महीने बाद उस ने 70-80 हजार कर दिए.

इतना ही नहीं, उस ने बैंक से लोन ले कर व कुछ उधार ले कर सीमा को 17 लाख रुपए भी भिजवाए. क्योंकि सीमा की चाहत थी कि वो अपना मकान खरीदे. इधर पाकिस्तान में सीमा की जिदंगी मजे में जरूर गुजर रही थी, लेकिन अब उस में न कोई प्रेम रस रहा न कोई ऐसा साथी जिस के साथ वक्त बिताया जा सके. ऐसे में 2 चीजें सीमा की जिंदगी का सहारा बनीं. एक सोशल मीडिया पर रील बनाना तो दूसरा मोबाइल पर पब्जी का खेल.

दोनों ही शौक कुछ समय बाद सीमा की दीवानगी बन गए. सीमा डांस करने के साथ बेहद रोमांटिक वीडियो बना कर अपने इंस्टाग्राम व फेसबुक पर डालने लगी. इस सब से उस का वक्त मजे से गुजरने लगा. इस दौरान सीमा का कनेक्शन सचिन मीणा से हो गया.

पबजी के द्वारा परवान चढ़ा प्यार

दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के कस्बा रबूपुरा में रहने वाला सचिन मीणा (25 साल) रबूपुरा के अपने पैतृक गांव में पिता नेत्रपाल, मां व भाईबहन के साथ रहता है. पिता के साथ वह उन की किराने की दुकान में उन का हाथ बंटाता है. सचिन को औनलाइन गेम खेलने का शौक है. इस की लत उसे तब लगी, जब सिंतबर 2020 में पबजी पर प्रतिबंध लगने से पहले युवा उम्र के लोगों में यह खेल एक लत बन गया था.

इसी पबजी के खेल के दौरान अकसर उस की पबजी चैट 2020 में पाकिस्तान से पबजी खेलने वाली सीमा से होने लगी. कुछ बार पबजी चैट के बाद सचिन व सीमा का एकदूसरे से वाट्सऐप मोबाइल नंबर का आदानप्रदान हुआ और जल्द ही दोनों की वाट्सऐप चैट होने लगी.

शुरुआत औपचारिक बातचीत और पारिवारिक जानकारियों के आदानप्रदान से हुई, लेकिन जल्द ही जब दोनों एकदूसरे से वीडियां चैट करने लगे और एकदूसरे को देखा तो जल्द ही एकदूसरे के प्रति आकृष्ट भी हो गए. सोशल मीडिया की ये चैट और वीडियो कालिंग कब दोनों में प्यार का अहसास जगा गई, पता ही नहीं चला.

हालांकि 2020 के सितंबर में पबजी तो भारत में बंद हो गया, लेकिन इस के कारण सचिन व सीमा के बीच जो दोस्ती बनी थी, उसे वाट्सऐप ने प्यार के मुकाम तक पहुंचा दिया. अब कोई ऐसा दिन नहीं जाता, जब दोनों एकदूसरे से वीडियो चैट पर बात न करते थे.

सीमा और सचिन की पबजी खेलने के दौरान बातचीत कोरोना काल में हुई थी. दोस्ती अब प्यार में तब्दील हो चुकी थी. उन का प्रेम प्रसंग बढ़ता जा रहा था. इंतजार था तो सिर्फ एकदूजे से मिलने का. साल 2023 आतेआते दोनों ने तय किया कि अब वह ज्यादा दिन तक अलग नहीं रह सकते हैं.

सीमा हैदर ने इस दौरान बारबार भारत का वीजा अप्लाई किया, क्योंकि वह सचिन से मिलना चाहती थी. हर बार यह वीजा की अपील खारिज होती गई, ऐसे में सीमा ने दूसरा तरीका अपनाया. वह अब सऊदी अरब के जरिए भारत आने की कोशिश करने लगी.

कुछ मुश्किलें हुईं तो उस ने दुबई के रास्ते नेपाल का रास्ता अपना लिया. सीमा और सचिन 10 मार्च, 2023 को नेपाल में मिले. दोनों करीब 7 दिनों तक फरजी नाम व पता लिखा कर न्यू विनायक होटल में साथ रहे. यहीं पर उन दोनों ने काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर में शादी कर ली और हमेशा साथ रहने की कसमें खाईं.

दुबई से नेपाल फिर भारत पहुंची सीमा

लेकिन कहानी सिर्फ यहीं खत्म होने वाली नहीं थी, क्योंकि असली चिंता सीमा और उस के चारों बच्चों को सुरक्षित भारत लाने की थी. तब सचिन वहां से वापस भारत आ गया और सीमा अपने बच्चों के साथ कुछ वक्त वहीं रुकी. जब मालूम पड़ा कि नेपाल से अगर कोई भारतीय बौर्डर के जरिए आता है तो किसी वीजा की जरूरत नहीं होती है.

सचिन और सीमा की इस बारे में पहले ही बात हो गई थी कि वे दोनों नेपाल में शादी करेंगे और उस के बाद सीमा वापस पाकिस्तान जा कर अपने बच्चों के साथ भारत आएगी. इसीलिए सचिन ने पहले से ही अपनी पत्नी के रूप में सीमा का व पिता के तौर पर उस के 3 बच्चों का आधार कार्ड तैयार करा लिया था. सचिन से शादी करने के बाद सीमा पाकिस्तान चली गई और सचिन रबूपुरा अपने घर आ गया.

नेपाल टूर के दौरान ही सचिन और सीमा ने साथ रहने का मन बना लिया था. यही वजह थी कि नेपाल से वापस कराची लौटने के बाद सीमा ने सब से पहले कराची में एक ट्रैवल एजेंट से संपर्क किया. सीमा ने ट्रैवल एजेंसी से पूछा कि वह किस तरह से अपने 4 बच्चों के साथ हिंदुस्तान जा सकती है. तब उसे पता चला कि नेपाल के रास्ते वह हिंदुस्तान बड़ी आसानी से दाखिल हो सकती है.

इस के बाद शुरू हुई एक नाटकीय प्रेम कथा की शुरुआत. सीमा ने सब से पहले पाकिस्तान में अपना घर बेच कर पैसा एकत्र किया, जिसे उस ने कुछ साल पहले खरीदा था. उस ने अपने तीनों बच्चों के पासपोर्ट तैयार कराए. उस के बाद वहां से वीजा ले कर सीमा 13 मई, 2023 को अपने 4 बच्चों को ले कर पाकिस्तान से पहले दुबई पहुंची. इस के बाद वहां से टूरिस्ट बन कर नेपाल आ गई.

इस के बाद सीमा वहां से बौर्डर पार कर के भारत आ गई. फिर गुपचुप तरीके से दिल्ली पहुंच कर पहले सचिन ने उसे आईएसबीटी बस अड्डे से रिसीव किया. बाद में एक जंगल में पहले अपने पिता नेत्रपाल से सीमा व उस के बच्चों की मुलाकात कराई. पिता को सचिन की प्रेम कहानी पहले से पता थी. उसी रात सचिन सीमा को अपने घर ले आया.

बुझ गया आसमान का दीया – भाग 2

प्रदीप जिस शिप में काम करता था, वह काफी बड़ा था. वह वहां जो काम कर रहा था, उस में उसे मजा आ रहा था. फोन पर घर वालों से बात होती रहती थी. लेकिन 10 अप्रैल, 2014 को प्रदीप ने हरिदत्त को बताया कि अब उस से लेबर का काम कराया जाने लगा है. काम न करने पर उस की पिटाई की जाती है. उस का पासपोर्ट और अन्य कागजात भी ले लिए गए हैं. इसलिए वह चाह कर भी नहीं आ सकता.

हरिदत्त ने यह बात अंबुज कुमार को बताई तो उस ने कहा कि यह एक तरह की ट्रेनिंग है. यह ट्रेनिंग पूरी होते ही वह ऐश की जिंदगी जिएगा. इस के बाद हरिदत्त ने प्रदीप से बात करने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन की बात नहीं हो सकी. जिस फोन से वह प्रदीप से बात करते थे, वह बंद हो गया था. तब उन्होंने आईपीएसआर मेरिटाइम के औफिस फोन कर के प्रदीप से बात कराने की गुजारिश की.

6 मई, 2014 को हरिदत्त से प्रदीप की बात कराई गई. लेकिन प्रदीप की आवाज ऐसी थी कि वह जो कह रहा था, हरिदत्त की समझ में नहीं आ रहा था. तब दूसरी ओर से किसी ने कहा, ‘‘अंकल, प्रदीप की तबीयत खराब है इसलिए वह ठीक से बात नहीं कर पा रहा है. मुझे उस की देखभाल के लिए लगाया गया है.’’

‘‘क्या हुआ उसे?’’ हरिदत्त शर्मा ने पूछा.

‘‘इस का गला खराब है. आप चिंता न करें, इसे छुट्टी पर भेजा जा रहा है.’’ दूसरी ओर से कह कर फोन काट दिया गया.

बेटे की तबीयत खराब होने की बात सुन कर हरिदत्त शर्मा घबरा गए. उन्होंने उसी समय आईपीएसआर मेरिटाइम के औफिस फोन किया तो उन का फोन नहीं उठाया गया. 7 मई को वह इंस्टीट्यूट गए तो वहां डा. अकरम खान मिला. उस ने पूरी बात उसे बताई तो उस ने विकास को फोन किया तो उस ने कहा, ‘‘मैं इस समय दुबई में हूं. 2-4 दिनों बाद वहां जाऊंगा तो प्रदीप के बारे में बताऊंगा, क्योंकि वह जिस जहाज पर है, उस का नंबर मेरे पास नहीं है.’’

इस के बाद अकरम ने कहा, ‘‘शर्माजी, आप बेटे की चिंता न करें, वहां विकास सर हैं. आप बुराड़ी से यहां आने के बजाय हमारे इंद्रलोक के औफिस जा कर प्रदीप के बारे में पता कर सकते हैं.’’

9 मई, 2014 को किसी ने हरिदत्त को फोन कर के बताया कि प्रदीप ठीक हो गया है. उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई है. वह जल्दी ही शिप जौइन कर लेगा. 11 मई को हरिदत्त शर्मा की प्रदीप के दोस्त से बात हुई तो उस ने बताया कि प्रदीप मैडिकली अनफिट है. इसलिए उसे शिप जौइन नहीं कराया जा रहा है. उसे दोबारा ट्रीटमेंट के लिए अस्पताल ले जाया गया है.

यह सुन कर हरिदत्त शर्मा परेशान हो उठे. बेटे की चिंता में वह कई दिनों से अपनी ड्यूटी पर नहीं गए. उन के पास विकास का फोन नंबर था. उन्होंने विकास को फोन किया, लेकिन विकास ने फोन नहीं उठाया.

हरिदत्त ने आईपीएसआर मेरिटाइम के औफिस फोन किया तो वहां से उन्हें सिर्फ तसल्ली मिली. कुछ देर बाद हरिदत्त शर्मा के मोबाइल पर एक मैसेज आया, जिसे विकास ने भेजा था. उस ने एक नंबर भेज कर उस पर अगले दिन फोन करने को कहा.

12 मई को सुबह 8-9 बजे के बीच उन्होंने उस नंबर पर कई बार फोन किया लेकिन फोन किसी ने नहीं उठाया. तब वह आईपीएसआर मेरिटाइम के इंद्रलोक औफिस पहुंचे. वहां रेखा मिली. रेखा के पास गौतम बैठा था.

रेखा ने गौतम से बात की तो उस ने विकास को फोन कर के प्रदीप शर्मा के बारे में पूछा. तब विकास ने बताया कि प्रदीप की तबीयत ठीक नहीं है, वह अस्पताल में भरती है. उसी समय विकास ने गौतम के मोबाइल पर प्रदीप का एक फोटो भेजा, वह फोटो देख कर हरिदत्त शर्मा को लग रहा था कि वह किसी अस्पताल के बेड पर चादर ओढ़े लेटा है.

विकास से बात करने के बाद गौतम ने कहा, ‘‘विकास सर कह रहे हैं कि प्रदीप इस समय ईरान में है. अगर पासपोर्ट हो तो एक आदमी देखरेख के लिए उस के पास जा सकता है.’’

हरिदत्त के पास पासपोर्ट नहीं था. वह अपने ऐसे किसी रिश्तेदार के बारे में सोचने लगे, जिस के पास पासपोर्ट हो. उन का एक भांजा था भरत, जो भारतीय सेना में था. वह उस समय छुट्टियों पर आया हुआ था. उन्होंने भरत को फोन कर के प्रदीप के बारे में बता कर ईरान जाने को कहा तो उस ने कहा, ‘‘मामाजी, मेरा पर्सनली पासपोर्ट नहीं है. जब कभी हमारा टूर बाहर जाता है तो सेना की ओर से एक निश्चित अवधि के लिए पासपोर्ट बनवा दिया जाता है.’’

जब कोई नहीं मिला तो हरिदत्त शर्मा खुद ही जाने के बारे में सोचने लगे. उन्हें किसी ने बताया था कि ज्यादा फीस दे कर अर्जेंट पासपोर्ट भी बनवाया जा सकता है. उन्होंने गौतम से कहा, ‘‘मैं अर्जेंट सर्विस से अपना पासपोर्ट बनवा कर खुद ही बेटे के पास जाऊंगा.’’

इतना कह कर हरिदत्त शर्मा घर के लिए चल पड़े. वह कुछ ही दूर पहुंचे थे कि दोपहर ढाई बजे के करीब उन के फोन पर इंस्टीट्यूट से फोन आया. उन्होंने फोन रिसीव किया तो गौतम ने उन्हें जो खबर दी, उस से उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने कहा था कि प्रदीप की मौत हो चुकी है, इसलिए वह पासपोर्ट न बनवाएं.

हरिदत्त शर्मा रोते हुए घर पहुंचे तो वहां कोहराम मच गया. प्रदीप की मां राधा तो बेहोश हो गईं. बेटे की मौत से शर्मा परिवार पूरी तरह बरबाद हो गया था. प्रदीप के कजिन प्रभात ने गौतम को फोन कर के पूछा कि ईरान में ट्रक एक्सीडेंट में जिन 10 भारतीयों की मौत हुई है, उन में प्रदीप भी था क्या?

तब गौतम ने कहा, ‘‘प्रदीप की मौत एक्सीडेंट से नहीं, टीबी से हुई है. उस की मौत 10 मई को हुई थी.”

यह जान कर हरिदत्त हैरान रह गए कि जब प्रदीप की 2 दिन पहले मौत हो गई थी तो यह बात छिपाई क्यों गई.  टीबी से मौत होने की बात भी उन के गले नहीं उतर रही थी, क्योंकि इंडिया से जाने से पहले इंस्टीट्यूट ने प्रदीप का मैडिकल चैकअप कराया था. जिस कंपनी में उस की नौकरी लगी थी, उस ने भी उस का मैडिकल परीक्षण कराया था.

प्रभात परिवार के कुछ लोगों के साथ ईरान की एंबेसी गए. और प्रदीप के पासपोर्ट की डिटेल दे कर प्रदीप के बारे में बताने को कहा. एंबेसी से पता चला कि इस पासपोर्ट नंबर का प्रदीप शर्मा ईरान में नहीं है. इस का मतलब इंस्टीट्यूट वाले झूठ बोल रहे थे. सभी लोग दिल्ली पुलिस मुख्यालय पहुंचे. उस समय रात के करीब 8 बज चुके थे. मुख्यालय में कोई पुलिस अधिकारी नहीं मिला तो उन्होंने 100 नंबर पर फोन कर के कहा कि उन का बच्चा मिसिंग है, उस की कोई जानकारी नहीं मिल रही है.

पीसीआर की गाड़ी पुलिस मुख्यालय के बाहर खड़े हरिदत्त के पास पहुंची तो उन्होंने पीसीआर से पूरी कहानी सुनाई. हरिदत्त शर्मा थाना बुराड़ी के अंतर्गत रहते थे, इसलिए पुलिस वालों ने उन्हें थाना बुराड़ी जाने की सलाह दे कर इस बात की सूचना थाना बुराड़ी पुलिस को वायरलैस द्वारा दे दी.

इस मामले की काररवाई की जिम्मेदारी थाना बुराड़ी के सबइंसपेक्टर विश्वनाथ झा को सौंपी गई. लेकिन जब हरिदत्त ने थाना बुराड़ी पुलिस को पूरी बात बताई तो उन से कहा गया कि जिस इंस्टीट्यूट ने प्रदीप शर्मा को विदेश भेजा है, वह दक्षिणी दिल्ली के थाना महरौली क्षेत्र में है, इसलिए उन्हें अपनी शिकायत के लिए थाना महरौली जाना होगा. अब तक रात काफी हो चुकी थी, इसलिए सभी घर चले गए.

दोस्त की इज्जत से खिलवाड़ – भाग 1

कई दिन बीत जाने पर भी अनुजदेव के पास उस के साले तपन कुमार का फोन नहीं आया तो उसे चिंता हुई. जबकि एक दो दिन के अंतराल में उस की तपन से बात होती रहती थी. अनुजदेव दिल्ली में रोहतक रोड, शास्त्रीनगर में रहता था और एक प्रतिष्ठित निजी कंपनी में नौकरी करता था. जबकि उस का साला तपन कुमार मोदक इलेक्ट्रिक इंजीनियर था और उत्तरपश्चिमी दिल्ली के शकूरपुर गांव में रहता था.

हालचाल जानने के लिए अनुजदेव ने साले तपन कुमार का नंबर मिलाया तो उस का फोन बंद मिला. फोन न मिलने पर अनुजदेव ने सोचा कि या तो तपन के फोन की बैटरी खत्म हो गई होगी या फिर और किसी वजह से उस ने फोन बंद कर दिया होगा. 3-4 घंटे बाद उस ने फिर से तपन को फोन किया तो इस बार भी फोन बंद मिला. उस ने कई बार उसे फोन मिलाया, हर बार फोन बंद मिला. तब वह सोच में पड़ गया.

तपन मूलरूप से मेघालय के शिलांग का रहने वाला था. उस का शिलांग जाने का जब कभी कार्यक्रम होता था, वह अनुजदेव को जरूर बताता था, फिर भी कहीं वह अचानक कार्यक्रम बना कर शिलांग तो नहीं चला गया, यह जानने के लिए उस ने शिलांग फोन किया तो पता चला कि वह वहां भी नहीं गया है. भाई की खबर न मिलने से अनुजदेव की पत्नी परेशान हो रही थी. उन के जितने भी निकट संबंधी थे, उन सभी को उन लोगों ने फोन कर लिए थे, पर कहीं से भी तपन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी.

अनुजदेव ने तपन का शकूरपुर गांव का कमरा देखा था. वह 19 दिसंबर, 2015 को उस के कमरे पर पहुंचा तो कमरा बंद मिला. उस ने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि करीब एक सप्ताह से वह कमरे पर नहीं आया है. पड़ोसियों ने यह भी बताया कि तपन के साथ कमरे में जो उमेश रहता था, वह भी 3-4 दिन पहले अपनी बीवी को ले कर चला गया है.

अनुजदेव को यह तो पता था कि तपन के कमरे में उस के साथ काम करने वाला उमेश रहता है, लेकिन यह पता नहीं था कि साथ में उस की पत्नी भी रहती थी. तपन अपने कमरे पर भी नहीं है तो आखिर चला कहां गया? यह बात अनुजदेव की समझ में नहीं आ रही थी. तपन न जाने कहां चला गया, यही सोचसोच कर वह परेशान हो रहा था.

शकूरपुर गांव थाना सुभाष प्लेस के अंतर्गत आता है. 19 दिसंबर, 2015 को अनुजदेव थाने पहुंच गया. उस ने थानाप्रभारी को अपने साले तपन के गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने 40 वर्षीय तपन की गुमशुदगी दर्ज करा कर इस की जांच एएसआई ओमपाल को सौंप दी.

ओमपाल ने दिल्ली के सभी थानों को वायरलेस से इस की सूचना दे कर जानकारी हासिल करनी चाही कि पिछले हफ्ते किसी थानाक्षेत्र में तपन की उम्र और हुलिया से मिलतीजुलती कोई लाश तो नहीं मिली. इस में ओमपाल को कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने शकूरपुर गांव में उन लोगों से पूछताछ की, जो तपन के कमरे के आसपास रहते थे. उन लोगों ने बताया कि तपन किसी से ज्यादा बात नहीं करता था. वह कहां काम करता था, यह भी पड़ोसियों को पता नहीं था.

अनुजदेव ने बताया कि तपन इलेक्ट्रिकल फिटिंग के ठेके लेता था. निर्माणाधीन दिल्ली पुलिस मुख्यालय का बिजली फिटिंग का काम उसी के पास था. दिल्ली के तीन मूर्ति भवन के पास बनने वाली आलीशान इमारत में बिजली की फिटिंग के काम का ठेका उसी के पास था. इस के अलावा नोएडा व अन्य जगहों पर भी उस ने बिजली फिटिंग के ठेके ले रखे थे. फिलहाल वह किस काम को देख रहा था, यह जानकारी अनुजदेव को नहीं थी.

अनुजदेव ने एएसआई ओमपाल को बताया कि तपन के साथ जो उमेश कुमार रहता था, वह उसी के साथ ही काम करता था. उमेश तपन के बारे में जरूर जानता होगा, लेकिन समस्या यह थी कि उमेश भी कमरे पर नहीं था. उस का फोन नंबर भी किसी के पास नहीं था. गुमशुदगी दर्ज होने के 4-5 दिनों बाद भी पुलिस को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जिस के आधार पर तपन का पता चल सकता.

कभीकभी पुलिस को मुखबिरों से इलाके में घटी घटना की जानकारी मिल जाती है. इसी तरह एक जानकारी दिल्ली पुलिस की क्राइमब्रांच की विंग स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम में तैनात एएसआई लखविंदर सिंह को मिली.

24 दिसंबर, 2015 को लखविंदर सिंह अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन के एक खास मुखबिर ने सूचना दी कि शकूरपुर गांव के रहने वाले उमेश कुमार ने 8-10 दिन पहले एक आदमी की हत्या की है. वह 7 बजे के करीब ब्रिटानिया चौक के पास आने वाला है.

मामला हत्या से जुड़ा था और खुल नहीं पा रहा था, इसलिए लखविंदर सिंह ने इंसपेक्टर अशोक कुमार को यह खबर दी तो उन्होंने इस बारे में एसीपी जितेंद्र सिंह से बात की. जितेंद्र सिंह ने अशोक कुमार के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में एएसआई लखविंदर सिंह, आजाद सिंह, हैडकांस्टेबल महेश त्यागी, कविंद्रपाल, दिनेश, कांस्टेबल सुनील कुमार, रविंद्र सिंह, अनिल हुडा, भूपसिंह आदि को शामिल किया गया.

मुखबिर को साथ ले कर पुलिस टीम निर्धारित समय से पहले ब्रिटानिया चौक पहुंच गई. सभी पुलिसकर्मी आम कपड़ों में थे. वे सभी इधरउधर खड़े हो गए. शाम सवा 7 बजे के करीब पंजाबी बाग की ओर से फुटपाथ पर एक युवक आता दिखाई दिया. मुखबिर ने उसे पहचान लिया. जैसे ही वह 20-22 साल का युवक ब्रिटानिया चौक पर पहुंचा, एएसआई लखविंदर सिंह ने उसे दबोच लिया. इस के बाद पूरी पुलिस टीम वहां आ गई. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम उमेश कुमार बताया.

क्राइम ब्रांच के औफिस में ला जब उमेश कुमार से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह डर गया. उस ने बताया कि दिल्ली के शकूरपुर गांव में वह जिस तपन कुमार के साथ रहता था, 12 दिसंबर को उस की मथुरा ले जा कर हत्या कर दी थी. उस से हत्या की वजह पूछी गई तो उस ने हत्या की जो कहानी बताई, वह उस की नवविवाहिता के साथ उपजे नाजायज संबंधों की बुनियाद पर टिकी थी.

मेघालय के जिला शिलांग का रहने वाला तपन कुमार मोदक जितेंद्रचंद मोदक का बेटा था. तपन के अलावा उन के 3 बेटे और एक बेटी थी. बेटी की शादी उन्होंने दिल्ली के रोहतक रोड पर स्थित शास्त्रीनगर के रहने वाले अनुजदेव के साथ की थी. अनुजदेव दिल्ली की ही एक प्रतिष्ठित निजी कंपनी में नौकरी करता था. तपन कुमार भी इलेक्ट्रिकल से इंजीनियरिंग करने के बाद 8-10 साल पहले दिल्ली आ गया था.

शुरूशुरू में उस ने 2-4 कंपनियों में नौकरी की. नौकरी में बंधीबंधाई तनख्वाह मिलती थी, जबकि तपन तनख्वाह से ज्यादा कमाने के बारे में सोचता था. उस ने नौकरी छोड़ दी और सपनों को साकार करने के लिए निर्माणाधीन इमारतों में बिजली फिटिंग के ठेके लेने लगा. उस का यह काम चल निकला. जानपहचान बढऩे के बाद उसे बड़ीबड़ी इमारतों में बिजली फिटिंग के ठेके मिलने लगे.

सवा करोड़ के गहनों की लूट – भाग 1

सुबह के 8 बजे के करीब पुलिस कंट्रोल रूम से उत्तरी दिल्ली के थाना सदर बाजार पुलिस को सूचना मिली कि कुतुब रोड पर तांगा स्टैंड के पास मोटरसाइकिल सवार बदमाशों ने चाकू मार कर किसी का बैग छीन लिया है. सदर बाजार, खारी बावली और चावड़ी बाजार आसपास हैं. यहां रोजाना बड़ेबड़े व्यापारियों का आनाजाना लगा रहता है. लुटेरे व्यापारियों व अन्य लोगों को यहां अपना निशाना बनाते रहते हैं. यहां ज्यादातर घटनाएं लूट की ही होती हैं.

जिस समय ड्यूटी अफसर को यह सूचना मिली थी, उस समय थानाप्रभारी अनिल कुमार औफिस में ही थे. ड्यूटी अफसर ने लूट की इस घटना के बारे में थानाप्रभारी को बताया तो उन के दिमाग में तुरंत आया कि लुटेरों ने किसी व्यापारी को शिकार बना लिया है. वह तुरंत एसआई संजय कुमार सिंह, प्रकाश और कुछ अन्य स्टाफ को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े.

घटनास्थल थाने से उत्तर दिशा में आधा किलोमीटर दूर था, इसलिए वह 5 मिनट में वहां पहुंच गए. वहां कुछ लोग जमा थे और एक औटो खड़ा था. उस में 30-35 साल का एक आदमी बैठा था, जिस के दाहिने पैर के घुटने के पास से खून बह रहा था. औटो के पास एक आदमी खड़ा था, जिस की उम्र 40-42 साल रही होगी. वह बहुत घबराया हुआ था. पूछने पर उस ने अपना नाम भरत भाई बताया.

उस ने बताया कि बदमाश उसी का गहनों से भरा बैग ले कर फरार हो गए हैं.  गहनों की कीमत कितनी थी, उसे पता नहीं था. उस का कहना था कि लूट का विरोध करने पर एक बदमाश ने उस के साथी प्रवीण को चाकू मार कर घायल कर दिया था.

अनिल कुमार ने घायल प्रवीण को कांस्टेबल सतेंद्र के साथ हिंदूराव अस्पताल भिजवाया और खुद भरतभाई से पूछताछ करने लगे. इस पूछताछ में उस ने बताया कि वह अहमदाबाद में मेसर्स राजेश कुमार अरविंद कुमार आंगडिय़ा के यहां नौकरी करता है. उन की फर्म अहमदाबाद से दिल्ली और दिल्ली से अहमदाबाद गहने भेजने का काम करती है. दिल्ली के कूचा घासीराम, चांदनी चौक में उन का एक औफिस है, जिसे अमित भाई संभालते हैं.

भरत भाई ने आगे जो बताया, उस के अनुसार, वह अहमदाबाद-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रैस से गहनों का एक बैग ले कर दिल्ली के लिए चला था. यह ट्रेन अहमदाबाद से एक दिन पहले शाम 5 बजे चली थी और उस दिन पौने 8 बजे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंची थी.

प्रवीण दिल्ली वाले औफिस में काम करता था. जब भी वह माल ले कर नई दिल्ली स्टेशन पहुंचता था, वही उसे लेने रेलवे स्टेशन पर आता था. उस दिन भी प्रवीण उसे लेने स्टेशन पर आया था. वहां से उन दोनों ने चांदनी चौक जाने के लिए एक औटो किया और बैग ले कर उस में बैठ गए. जैसे ही उन का औटो यहां पहुंचा, तभी पीछे से पल्सर मोटरसाइकिल पर आए 3 लोगों ने उन का औटो रुकवा लिया.

औटो के रुकते ही मोटरसाइकिल से 2 लोग उतरे. उन में से एक ने भरतभाई पर पिस्तौल तान दी, दूसरा चाकू ले कर प्रवीण के पास खड़ा हो गया. तभी एक अपाचे मोटरसाइकिल और आ गई. उस पर भी 3 लोग सवार थे. उस मोटरसाइकिल से भी 2 लोग उतर कर उन के पास आ गए. तभी पिस्तौल वाले ने उस से गहनों से भरा बैग छीनने की कोशिश की.

उस ने बैग नहीं छोड़ा तो चाकू वाले ने प्रवीण के पैर में चाकू मार दिया. इसी के साथ औटोचालक को 2 थप्पड़ मार दिए. थप्पड़ लगते ही औटोचालक भाग कर सडक़ के उस पार जा कर खड़ा हो गया. उसी समय पिस्तौल वाले ने भरत भाई से बैग छीन कर अपाचे मोटरसाइकिल से आए लडक़े को दे दिया. इस के बाद वे सभी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ तेजी से चले गए.

भरत भाई से पुलिस को यह तो पता नहीं चला कि लूटे गए बैग में कितनी कीमत के गहने थे, पर यह जरूर पता चल गया था कि लुटेरे गहनों से भरा जो बैग लूट कर ले गए थे, उस का वजन 5, साढ़े 5 किलोग्राम था और उस बैग में जीपीएस डिवाइस भी लगा था. जीपीएस डिवाइस की बात सुन कर अनिल कुमार को लगा कि उस के सहारे लुटेरों तक पहुंचा जा सकता है.

गहनों के वजन के आधार पर पुलिस ने अंदाजा लगाया कि बैग में लाखों रुपए के गहने होंगे. लूट का यह मामला बड़ा था, इसलिए अनिल कुमार ने घटनास्थल से ही पुलिस ने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दे दी. डीसीपी मधुर वर्मा ने जिले की मुख्य सडक़ों पर बैरिकेड्स लगा कर वाहनों की चैकिंग के आदेश समस्त थानाप्रभारियों को दिए और खुद भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

भरत भाई ने लूट की सूचना दिल्ली और अहमदाबाद के अपने औफिसों को दे दी थी. यह खबर सुन कर दिल्ली औफिस से अमित भाई घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने डीसीपी को बताया कि लूटे गए गहनों की कीमत एक करोड़ से अधिक थी. गहने वाले बैग में जो जीपीएस डिवाइस रखा था, पुलिस ने अमित से उस का नंबर ले लिया. वह डिवाइस वोडाफोन कंपनी का था.

दिनदहाड़े हुई इस लूट को सुलझाने के लिए मधुर वर्मा ने 2 पुलिस टीमें बनाईं. पहली टीम थाना सदर के थानाप्रभारी सतीश मलिक के नेतृत्व में बनाई गई, जिस में इंसपेक्टर मनमोहन, कमलेश, एसआई संजय कुमार सिंह, प्रकाश, निसार अहमद, आशीष शर्मा, एएसआई सुरेंद्र सिंह, हैडकांस्टेबल ए.के. वालिया, अवधेश कुमार, अशोक, जितेंद्र सिंह, कांस्टेबल अमित, सुरेश, बलराम, समंद्र आदि को शामिल किया गया.

दूसरी पुलिस टीम औपरेशन सेल के इंसपेक्टर धीरज कुमार के नेतृत्व में बनी, जिस में एसआई सुखवीर मलिक, देवेंद्र, यशपाल, प्रणव, आनंद, एएसआई सतीश मलिक, हैडकांस्टेबल योगेंद्र, राजेंद्र, कांस्टेबल प्रमोद, चंद्रपाल दिनेश को शामिल किया गया था. दोनों टीमों का निर्देशन के एसीपी राजेंद्र प्रसाद गौतम कर रहे थे. दोनों टीमें एसीपी राजेंद्र प्रसाद गौतम की देखरेख में केस की छानबीन में जुट गईं.

पुलिस टीम ने जांच की शुरुआत जीपीएस डिवाइस से की. पुलिस पता करने लगी कि बैग किस क्षेत्र में है. पुलिस ने फर्म के अहमदाबाद औफिस में अरविंदभाई से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि वह जल्द ही दिल्ली पहुंच कर पुलिस से संपर्क करेंगे.

डिवाइस के कोड नंबर से पुलिस ने जांच की तो पता चला कि वह डिवाइस अहमदाबाद से निकलने के कुछ देर बाद ही बंद हो गया था. इस से पुलिस को निराशा हुई. गहने वाले बैग में जीपीएस डिवाइस रखी होने की जानकारी भरतभाई को भी थी, इसलिए पुलिस को शक हुआ कि कहीं उसी ने लूट के लिए डिवाइस को बंद नहीं कर दिया था. इस का पता लगाने के लिए पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. प्रवीण का हिन्दूराव अस्पताल में इलाज चल रहा था. वहां भी पुलिस का पहरा लगा दिया गया.

भरतभाई को हिरासत में लेने की बात अरविंदभाई को पता चली तो उन्हें हैरानी हुई कि पुलिस लुटेरों को पकडऩे के बजाय उन्हीं के कर्मचारी को परेशान कर रही है. उन्होंने पुलिस से भरतभाई के खिलाफ कोई काररवाई न करने की सिफारिश की. उन्होंने कहा कि भरत पिछले 6 महीने से उन की फर्म में काम कर रहा है. वह बहुत ही ईमानदार और वफादार है. वह उसे अच्छी तरह जानते हैं. इस तरह का काम वह हरगिज नहीं कर सकता. जीपीएस डिवाइस के बारे में उन्होंने बताया कि वह किसी वजह से अपने आप ही कभीकभी बंद हो जाती है.

फर्म मालिक के कहने पर पुलिस ने भरतभाई को छोड़ जरूर दिया, लेकिन उसे यह हिदायत दे दी थी कि जांच में जब भी उस की जरूरत पड़ेगी, वह हाजिर होगा.

सरकार से ज्यादा शक्तिशाली ड्रग्स तस्कर – भाग 1

आप को यह जान कर हैरानी होगी कि दुनिया में एक ऐसा भी देश है, जहां सरकार से अधिक सेना वहां के आतंकी माफियाओं के पास हैं. उन की संख्या 75 हजार से अधिक है. करीब 20 लाख किलोमीटर क्षेत्र वाले इस देश में प्राइवेट सैनिकों की बड़ी फौज है तो 600 से अधिक विमान उन्हीं माफियाओं के पास हैं. जबकि हैरानी भरी बात यह है कि वहां की सरकार के पास केवल 120 विमान ही हैं.

अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में विमानों का रखरखाव, उड़ान भरने के लिए निजी सुविधाएं, प्राइवेट हवाई अड्डे, रनवे और ईंधन की खपत सरकार की तुलना में कितनी अधिक होगी. इसी तरह से प्राइवेट सेनाओं के पास निश्चित तौर पर गोलाबारूद से ले कर अत्याधुनिक हथियारों का जखीरा भी होगा. ऐसे में इन के इस्तेमाल से पैदा हुए हिंसक आतंक की कल्पना से ही किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं.

सच तो यह भी है कि इस देश में रोजाना 120 से अधिक हत्याएं होती हैं. जानते हैं कि वह देश कौन सा है? वह देश है मैक्सिको. मक्का, टमाटर और मटर उगाने वाले अमेरिका से सटे इस देश में दुनिया का सब से बड़ा ड्रग्स का धड़ल्ले से कारोबार होता है. लगभग 13 करोड़ की आबादी वाला मैक्सिको 40 साल से ड्रग कार्टेल के चंगुल में है. कार्टेल यानी संगठित गिरोह. ये गिरोह यहां अफीम, हेरोइन और मारिजुआना की तस्करी में लिप्त रहते हुए समानांतर सरकार चला रहे हैं.

अनुमान है कि करीब 150 से ज्यादा कार्टेल सालाना लगभग ढाई लाख करोड़ रुपए की ड्रग्स तस्करी अमेरिका को करते हैं. इन संगठित गिरोहों के गुर्गों की प्राइवेट आर्मी होने के कारण इन के बीच आए दिन खूनी संघर्ष भी होता रहता है.

घूमनेफिरने के लिए मशहूर दुनिया के खूबसूरत देश मैक्सिको में स्वादिष्ट भोजन, सभी तरह के मनोरम ऐतिहासिक और प्राचीन खंडहरों और ग्लैमर से भरे महानगरों का उत्तम रहनसहन के अलावा जलवायु, वनस्पतियों बेशुमार धनसंपदा हर किसी को अपनी तरफ खींचते हैं. इस के विपरीत यहां फैली ड्रग्स तस्करी, जुआ और अपराध डराता भी है.

ड्रग माफियाओं का आतंक

ड्रग तस्करों के गिरोहों के बीच होने वाले गैंगवार के चलते मैक्सिको में आए दिन हत्याएं होती रहती हैं. जब सरकार उन पर अंकुश लगाती है, तब वे उस पर भी हमला बोलने से नहीं चूकते हैं. पिछले साल 6 अक्तूबर को पश्चिमी मैक्सिको के टाउन हाल में जबरदस्त नरसंहार हुआ. जिस में पश्चिमी मैक्सिको के मेयर कोनार्डो मेंडोजा की हत्या हो गई. बंदूकधारियों के हमले से मेयर और 17 अन्य लोगों की मौत हो गई थी.

सभी गोलियों से छलनी कर दिए गए थे. मरने वालों में एक व्यक्ति मेयर का करीबी रिश्तेदार भी था. हमले की वारदात के मुताबिक बंदूकधारियों ने दिन में ही सैन मिगुएल तोतोलापन टाउन हाल पर धावा बोल दिया था. इस हमले में मेंडोजा के पिता अल्मेडा मेंडोजा, पूर्व महापौर जुआन मेंडोजा अकोस्टा भी मारे गए थे.

मैक्सिको में स्थानीय अधिकारियों की हत्याएं अकसर होती रहती हैं. कुछ साल पहले ही 2018 में कम से कम 3 दरजन महापौर, पूर्व महापौर और महापौर उम्मीदवार मारे गए थे. किंतु इस बार 6 अक्तूबर को आपस में लड़ रहे प्रतिद्वंदी ड्रग गिरोह के गैंगवार में हमले से कुछ समय पहले ही लास टकीलेरोस के कथित सदस्यों ने सोशल नेटवर्क पर एक वीडियो जारी कर इस क्षेत्र में अपनी वापसी की घोषणा की थी.

गिरोहों ने इस आतंक के बारे में 6 महीने पहले ही लोगों को तभी अहसास करवा दिया था, जब मैक्सिको में काली पौलीथिन में कटे हुए सिर और धड़ अलग मिले थे. पुलिस ने 13 मई, 2022 को 2 कटे हुए सिर बरामद किए थे, जबकि अगले रोज उन के धड़ संदिग्ध बैग और कंबल में लिपटे मिले थे. शरीर के अंगों पर काले मार्कर पेन से लिखा हुआ था, ‘असली आतंक अब शुरू होने वाला है.’

पुलिस जांच में पाया गया कि यह करतूत जलिस्को न्यू जेनरेशन कार्टेल की थी, जिस ने जाकाटेकस शहर में 5 दिनों तक आतंक मचाया था. बौर्डरलैंड बीट के अनुसार रात करीब 10 बजे कौलिनस डेल पाड्रे के पास काले प्लास्टिक बैग में 2 कटे हुए शव मिले थे. जिन के साथ एक नारको मैसेज भी था. इस के अलावा पुलिस को एक धड़ कंबल में लिपटा मिला था, जबकि दूसरा पानी में डूबा मिला था.

इस तरह से 3 दिनों में हुई संदिग्ध मौतों ने मैक्सिको में दहशत पैदा कर दी थी. सडक़ों पर सन्नाटा पसर गया था और लोग खौफ के मारे अपने घरों में कैद हो गए थे. कारण शाम को जाकाटेकस में 2 गैंग जलिस्को न्यू जेनरेशन कार्टेल और सिनालोआ कार्टेल के बीच जबरदस्त गोलीबारी हुई थी. इस खूनखराबे के बाद 2 काले पौलीथिन बैग बरामद किए गए थे, जिस में एक पुरुष और एक स्त्री के धड़ और अंग थे.

हत्यारे ने पुलिस के लिए धमकी भरे मैसेज में लिखा था, ‘जाकाटेकस का मालिक सिर्फ एक है. तैयार हो जाओ. आतंक शुरू होने वाला है.’

600 विमान हैं सिनालोआ कार्टेल के पास

इन कार्टेल में ही सब से बड़ा सिनालोआ कार्टेल है, जिस का साम्राज्य मैक्सिको की सरकार से भी बड़ा है. उस ने 600 विमान अमेरिका से खरीदे हैं और वह युवाओं को आसानी से पैसे कमाने का लालच दे कर अपने गिरोह में शामिल कर लेता है. हथियारों के जखीरे में उस के पास एके-47, एम-80 जैसी राइफलों के अलावा राकेट लौंचर भी हैं. मैक्सिको गृह मंत्रालय द्वारा जारी की गई 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार की सुरक्षा एजेंसियां हर साल ड्रग कार्टेल के कब्जे से 20 हजार से अधिक एके-47 और एम-80 जैसी असाल्ट राइफलों की बरामदगी करती हैं.

मैक्सिको सरकार कार्टेल से बरामद किए जाने वाले हथियारों को नष्ट कर देती है, ताकि उन का फिर से इस्तेमाल नहीं किया जा सके. इस नुकसान का असर कार्टेल पर नहीं होता है. वे अमेरिकी माफिया से ड्रग्स की सप्लाई के बदले में फिर से हथियार हासिल कर लेते हैं. बीते 5 साल के दौरान कार्टेल ने राकेट लौंचर्स भी हासिल कर लिए हैं. वे इन का इस्तेमाल सरकारी टोही विमानों पर हमले के लिए करते हैं.

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट यह भी बताती है कि गैंगवार के कारण देश में रोज औसतन 120 हत्याएं होती हैं. कोरोना काल के दौरान यह संख्या 118 थी. यानी कोरोना काल के दौरान दुनिया भर में लौकडाउन के बावजूद मैक्सिको में ड्रग्स का धंधा बेलगाम था.

अब तक मैक्सिको में ड्रग्स कार्टेल के बीच खूनी संघर्ष में लगभग 2 लाख मौतें हो चुकी हैं. 50 हजार लोग लापता हैं, जबकि इतने मृतकों की पहचान नहीं हो पाई है. ड्रग कार्टेल सरकार पर दबदबा बनाने के लिए मैक्सिको की राजनीतिक पार्टियों को साल में 25 हजार करोड़ का चंदा देते हैं. लोगों के बीच खौफ पैदा करने के लिए वे काफी बर्बर हो जाते हैं. मर्डर का वीडियो बनाते हैं और शवों को चौराहों पर टांग
देते हैं.

कार्टेल के तमाम हथकंडे बेहद खौफनाक होते हैं. यहां तस्करी के साथसाथ किडनैपिंग कर वसूली का खेल भी चलता है. फिरौती नहीं देने वालों को गोलियों से भून देते हैं. मर्डर का वीडियो बना कर वायरल करते हैं. जिस से लोगों में दहशत का माहौल बने. आए दिन कार्टेल द्वारा विरोधियों के शवों को चौराहों पर टांगने के मामले आते रहते हैं. पिछले दिनों ही राजधानी मैक्सिको सिटी के मुख्य चौराहों पर गैंगवार के बाद 11 शव टंगे पाए गए थे.

कार्टेल किडनैप किए लोगों और प्रतिद्वंदी कार्टेल के गुर्गों को टार्चर रूम यानी गेटो में रखते हैं. इन गेटो के खिडक़ी दरवाजों की बुलेटप्रूफ लेयरिंग की जाती है. हर गेट के बाहर 20 से 25 हथियारबंद गुर्गे हमेशा तैनात रहते हैं. कार्टेल का साम्राज्य मैक्सिको के 32 में से 29 प्रांतों में बना हुआ है.

कार्टेल सिनालोआ का सरगना अल चापो

कहने को तो मैक्सिको में कई कार्टेल सक्रिय हैं और ड्रग के धंधे में लिप्त हैं. उन में सब से बड़ा कार्टेल सिनालोआ है. इस का सरगना अल चापो अभी जेल में है, जबकि वह 2 बार फरार हो चुका है. उस का 50 फीसदी ड्रग्स कारोबार पर कब्जा है.

मैक्सिकन ड्रग सरगना अल चापो की कहानी भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है, जिसे सुरंगों का बेताज बादशाह कहा गया है. वह इन दिनों अपनी आजीवन कैद की सजा अमेरिका के कोलोराडो की एडीएक्स जेल में काट रहा है. जबकि उस की पत्नी एमा कोरोनेल को भी 3 साल की सजा मिली हुई है. वह भी जेल में है.

दुनिया के कई ड्रग्स माफिया पाब्लो एस्कोबार, मिगेल अनेल फालिक्स गयार्दो आदि में से अल चापो का नाम आता है, जिसे मैक्सिकन ड्रग लौर्ड के नाम से भी जाना जाता है. अल चापो का जन्म 1957 में मैक्सिको के सिनालोआ के ला टूना गांव में हुआ था. उस का असली नाम अकीन गुजमैन लोएरा था. उस ने 15 साल की उम्र में पहली बार भांग की खेती की और जब पैसे आए तब इसी काम को करने का मन बना लिया.

कुछ सालों बाद अकीन गुजमैन ने घर छोड़ दिया और घर से करीब 750 किलोमीटर दूर गुआदलहारा चला गया. सिनालोआ के ला टूना गांव से निकला अकीन गुजमैन गुआदलहारा तो पहुंच गया, लेकिन वहां वह कौन्ट्रैक्ट किलिंग का काम करने लगा. वहां उसे नया नाम अल चापो मिल गया और इसी नाम से कुख्यात हो गया.

साल 1980 के दौर में वह ड्रग्स के धंधे में आया और फिर कुछ दिनों बाद उस की मुलाकात अपने बौस मिगेल अनेल फीलिक्स गयार्दो उर्फ अल बेदरीनो से हुई. गयार्दो के बारे में कहा जाता है कि मैक्सिको के इतिहास में उस से बड़ा ड्रग्स तस्कर कोई नहीं हुआ.

सीमा हैदर : प्रेम दीवानी या पाकिस्तानी जासूस – भाग 1

ग्रेटर नोएडा में उत्तर प्रदेश की एंटी टेररिस्ट स्क्वाड यानी एटीएस के अधिकारी पिछले 2 दिनों से सीमा से लगातार एक ही जैसे सवाल घुमाफिरा कर पूछ रहे थे. शुरू में 1-2 बार सीमा ने अफसरों के सभी सवालों के जवाब बेबाकी से दिए थे. लेकिन इस के बाद उस के रोनेबिलखने का जो सिलसिला शुरू हुआ तो फिर उस ने एटीएस के अफसरों को भी विचलित कर दिया.

हर सवाल के जवाब में सीमा का अब एक ही जवाब था, ‘सर, मैं कोई जासूस नहीं हूं, खुदा के लिए आप मेरा यकीन क्यों नहीं करते. मैं ने एक इंसान से प्यार किया है, क्या प्यार करना कोई गुनाह है? क्या 2 मुल्कों की सरहद किसी इंसान से प्यार करने का हक छीन सकती है?  सर, आप चाहे तो मुझे यहीं फांसी पर लटका दीजिए, लेकिन अब मैं पाकिस्तान वापस नहीं जाऊंगी. आप लोग भी जानते हैं कि अगर मैं वापस गई तो वे लोग मुझे और मेरे बच्चों का जिंदा नहीं छोड़ेंगे.’

खुद एटीएस के एडीजी नवीन अरोड़ा सीमा हैदर से 2 बार पूछताछ कर चुके थे. सीमा के बयान जरूर विरोधाभासी थे, लेकिन अभी तक उन के पास ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं था जिस के आधार पर वे कह सकें कि सीमा हैदर पाकिस्तानी जासूस है.

‘देखो सीमा ये 2 मुल्कों के बीच कानूनी दांवपेंच का मामला है. तुम बिना वीजा लिए हिंदुस्तान में अपने बच्चों के साथ आई हो, इसलिए तुम को ये मुल्क छोड़ कर जाना ही होगा.’ जब एटीएस के सब से बड़े अफसर ने सीमा से ये कहा तो वह एक बार फिर फूटफूट कर रोने लगी.

दरअसल, एटीएस के अधिकारियों के कान सीमा हैदर की प्रेम कहानी को सुनसुन कर बुरी तरह पक चुके थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि सीमा हैदर मीरा जैसी कोई पागल प्रेम दीवानी है या वो पाकिस्तान से आया एक खूबसूरत छलावा है, जिसे भारत में तबाही मचाने के लिए भेजा गया है. ये शक जरूर था, लेकिन इस के पीछे कोई पुख्ता सबूत अभी तक किसी के पास नहीं था.

सीमा हैदर अपने जिस प्रेमी सचिन मीना के लिए अपना घरबार अपना मुल्क पाकिस्तान और शौहर को छोड़ कर 4 बच्चों के साथ भारत आ गई है वो एक ऐसी प्रेम कहानी है, जिस में एक तरफ जहां सरहदों के बंधन का कानून है तो दूसरी तरफ सीमा पर जासूस होने के इल्जाम भी.

इस अनोखी प्रेम कहानी का अंत क्या होगा, ये तो आने वाले वक्त में पता चलेगा, लेकिन अभी तक पुलिस की जांच मीडिया से सीमा हैदर की बातचीत के आधार पर जो जानकारियां सामने आई हैं, वे इस प्रेम कहानी को रोचक को और रहस्यमई बनाती हैं.

सीमा ने गुलाम हैदर से भी की थी लव मैरिज

सीमा हैदर 25 साल की एक ऐसी खूबसूरत महिला है, जो पिछले कुछ दिनों से पूरे देश में चर्चा में हैं. हालांकि दस्तावेज के हिसाब से उस की उम्र मात्र 21 साल है. दरअसल, सीमा ने ही बताया कि पाकिस्तान में मातापिता अपने बच्चों की उम्र सर्टिफिकेट में 3 साल कम लिखवाते हैं.

सीमा हैदर मूलरूप से पाकिस्तान के सिंध प्रांत के जैस्माबाद कस्बे में ग्राम रिंद , तालुका कोट दीजी, जिला खैरपुर के रहने वाले गुलाम रजा की बेटी है. गरीब गुलाम रजा की कई संतानें थीं. बेटी को जवानी की दहलीज पर कदम रखता देख अम्मीअब्बू को उस के निकाह की चिंता सताने लगी.

वे चाहते थे बिना दानदहेज कहीं भी उस की शादी कर दें, लेकिन सीमा के खयाल कुछ अलग थे. वह अम्मीअब्बू की इच्छा को पूरा करने के लिए यूं ही किसी से निकाह नहीं कर सकती थी. इसलिए 2014 में उस ने अपनी अम्मी व अब्बू का घर छोड़ दिया और जिला जकोबाबाद, तालुका गढ़ी खैरो के अमीर जान जखरानी के घर चली आई.

दरअसल, अमीर जान के बेटे गुलाम हैदर से कुछ समय पहले ही सीमा की सोशल मीडिया के जरिए दोस्ती हुई थी. बाद में उन का प्यार परवान चढऩे लगा और अम्मीअब्बू का घर छोड़ने से 10 दिन पहले सीमा ने गुलाम हैदर से कहा कि वे अपना घर छोड़ कर उस के पास आ कर निकाह करना चाहती है.

सीमा व गुलाम दोनों ही बलूच थे, लेकिन सीमा जहां रिंद कबीले से थी तो गुलाम जखरानी कबीले से. गुलाम हैदर तो पहले ही सीमा की खूबसूरती व मोहब्बत का गुलाम बन चुका था. लिहाजा वह इंकार नहीं कर सका. सीमा जब गुलाम हैदर के घर पहुंची तो पता चला कि वह तो पहले से शादीशुदा है. हालांकि उस की कोई संतान नहीं थी.

शादी को भी महज 3 साल ही हुए थे. वैसे तो पाकिस्तान में बहुविवाह प्रथा है, लेकिन इस के बावजूद गुलाम के मांबाप जो पुराने खयालात के थे, वे प्रेम विवाह के सख्त खिलाफ थे. इसलिए सीमा से निकाह करने की लाख मिन्नतों के बावजूद उन्होंने दोनों को निकाह की इजाजत नहीं दी.

सीमा गुलाम से कहने लगी, ‘पहले कोर्ट मैरिज कर लो, फिर घर वालों को मना लेंगे.’

गुलाम सीमा के प्यार में पागल था, लिहाजा गुलाम ने सीमा के साथ घर छोड़ दिया और किराए का घर ले कर उस ने सीमा से निकाह कर लिया. बाद में उस ने अपनी शादी को कोर्ट में रजिस्टर्ड भी करवा लिया.

उन दिनों गुलाम हैदर टाइल्स लगाने की कारीगरी का काम करता था. धीरेधीरे गुजरबसर होने लगी. 2-3 महीने गुजरने के बाद गुलाम हैदर सीमा के कहने पर सिंध छोड़ कर कराची आ गया. शुरुआत में उसे वहां गुजरबसर के लिए रिक्शा चलाना पड़ा. इसी तरह जिंदगी की मुश्किलों के बीच गुलाम हैदर और सीमा की जिंदगी तेजी से आगे बढऩे लगी.

2014 में गुलाम हैदर से हुई सीमा की शादी के बाद उन के 4 बच्चे हुए, जिन में 3 बेटियां और एक बेटा है, जिन की उम्र क्रमश: 7 साल, 6 साल, 5 साल और 3 साल है.

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गुलाम हैदर कराची में कोई ऐसा कामधंधा नहीं ढूंढ पाया, जिस से परिवार की गुजरबसर ठीक से हो सके. जैसेजैसे परिवार बढ़ा तो गुलाम के सिर पर जिम्मेदारियों का बोझ व बच्चों की परिवरिश के लिए ज्यादा पैसा कमाने की चिंता भी बढी. अब सीमा भी उस पर ज्यादा पैसा कमाने व बच्चों को भविष्य संवारने का दबाव बनाने लगी थी.

बुझ गया आसमान का दीया – भाग 1

बुराड़ी के मदर टेरेसा पब्लिक स्कूल से हाईस्कूल पास करने के बाद प्रदीप शर्मा ने उसी स्कूल में 11वीं में दाखिला लेने के साथ  ही वह इस तलाश में भी लग गया कि कोई छोटामोटा ऐसा कोर्स कर ले, जिस से उसे कोई ठीकठाक नौकरी मिल जाए. क्योंकि उसे पता था कि उस के पिता की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह उसे उच्चशिक्षा दिला सकेंगे.

प्रदीप साइबर कैफे जा कर इंटरनेट पर भी सर्च करता और अखबारों में आने वाले विज्ञापन भी देखता. इंटरनेट पर ही उस ने इंस्टीट्यूट औफ प्रोफेशनल स्टडीज ऐंड रिसर्च (आईपीएसआर) मेरिटाइम का विज्ञापन देखा. यह संस्थान मर्चेंट नेवी में काम करने के इच्छुक युवाओं को उच्च क्वालिटी की कोचिंग और प्रशिक्षण दिलाता था. यही नहीं, यह इंस्टीट्यूट कोर्स करने वाले युवाओं को प्लेसमेंट में भी मदद करता था.

प्रदीप शर्मा को मर्चेंट नेवी का क्षेत्र अच्छा लगा. इस में वेतन तो अच्छा मिलता ही है, सुविधाएं भी अच्छी होती हैं और विदेश में घूमने का मौका मिलता है. उस ने घर आ कर अपने पिता हरिदत्त शर्मा से बात की. प्रदीप उन का एकलौता बेटा था. इसलिए वह उस के सुनहरे भविष्य के लिए कुछ भी कर सकते थे. उन्होंने इंस्टीट्यूट जा कर खर्च के बारे में पता लगाने के लिए कह दिया.

आईपीएसआर मेरिटाइम का  औफिस दक्षिणी दिल्ली के छतरपुर में था. अगले दिन प्रदीप शर्मा अपने पिता के साथ वहां पहुंचा तो इंस्टीट्यूट के कोआर्डिनेटर डा. अकरम खान ने उन्हें बताया कि उन का इंस्टीट्यूट सरकार से मान्यता प्राप्त है. दिल्ली में इस की 3 शाखाएं हैं.  इस के अलावा पटना, रांची और देहरादून में भी इस की शाखाएं हैं. मन लगा कर कोर्स करने वाले कैंडिडेट्स का वह हंडरेड परसेंट प्लेसमेंट कराते हैं. उन के यहां से कोर्स कर के तमाम लड़के विदेशों में नौकरी कर रहे हैं.

डा. अकरम खान ने शतप्रतिशत नौकरी दिलाने की बात की थी, इसलिए हरिदत्त ने सोचा कि अगर वह यहां बेटे को कोर्स करा देते हैं तो उस की जिंदगी सुधर जाएगी. उन्होंने फीस के बारे में पूछा तो अकरम खान ने कहा, ‘‘हम आल इंडिया लेवल पर एक प्रवेश परीक्षा कराते हैं. उस परीक्षा में जो बच्चा पास हो जाता है, उस से 31 हजार रुपए रजिस्ट्रेशन फीस ली जाती है. इस के बाद राजस्थान एवं कोलकाता से 3 और 6 महीने जनरल परपज रेटिंग (जीपी रेटिंग) का प्रशिक्षण दिलाया जाता है, जो डीजी शिपिंग से एप्रूव है.

‘‘ट्रेनिंग के दौरान 2 लाख 30 हजार रुपए जमा कराए जाते हैं. कोर्स पूरा करने के बाद कैंडिडेट को सीमैन की पोस्ट पर विदेशी जहाज पर भेज दिया जाता है, जिस का शुरुआती वेतन 800 यूएस डौलर प्रतिमाह के करीब है.

‘‘2 साल तक सीमैन के पद पर काम करने वाला व्यक्ति इस के बाद होने वाली परीक्षा पास कर लेता है तो उस का प्रमोशन हो जाता है .उस का वेतन हो  जाता है 3 हजार यूएस डौलर. बाद में उस का प्रमोशन कैप्टन के पद तक हो जाता है. तब उसे 8 से 12 हजार यूएस डौलर वेतन मिलता है.’’

हरिदत्त शर्मा आजादपुर स्थित एक आफसेट मशीन पर काम करते थे. वहां से जो तनख्वाह मिलती थी उस से किसी तरह अपना घर चला रहे थे.  इंस्टीट्यूट की फीस तो उन की हैसियत के बाहर थी, लेकिन बात बेटे के भविष्य की थी, इसलिए जैसेतैसे पैसों का जुगाड़ कर उन्होंने कोर्स कराने की हामी भर दी. अकरम खान ने प्रदीप शर्मा से रजिस्टे्रशन फार्म भरा लिया.

एक हफ्ते के अंदर ही प्रदीप की औनलाइन परीक्षा हुई. प्रदीप ने यह परीक्षा पास कर ली तो 5 नवंबर, 2011 को पिता के साथ छतरपुर स्थित आईपीएसआर मेरिटाइम के औफिस जा कर 31 हजार रुपए जमा करा दिए. इस के बाद उस से कहा गया कि इंस्टीट्यूट 3 महीने के जीपी रेटिंग कोर्स के लिए उसे राजस्थान के अलवर भेजेगा. लेकिन पहले उसे 1 लाख 10 हजार रुपए जमा कराने होंगे.

26 दिसंबर, 2011 को प्रदीप को 3 महीने की ट्रेनिंग के लिए अलवर जाने का लेटर मिल गया. इस के लिए उसे 1 लाख 10 हजार रुपए जमा कराने थे. लेकिन उस समय हरिदत्त शर्मा के पास इतने पैसे नहीं थे. उन्होंने अकरम खान से बात की और 3 महीने में पैसा जमा कराने का वादा किया तो हरिदत्त शर्मा पर विश्वास कर के प्रदीप को 3 महीने की ट्रेनिंग के लिए अलवर भिजवा दिया.

राजस्थान से 3 महीने की ट्रेनिंग कर के प्रदीप घर लौट आया. हरिदत्त शर्मा ने इधरउधर से पैसों का इंतजाम कर के 12 अप्रैल, 2012 को 1 लाख 10 हजार रुपए आईपीएसआर मेरिटाइम के छतरपुर स्थित औफिस में जमा करा दिए. अब प्रदीप को 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए कोलकाता जाना था. इस के लिए हरिदत्त शर्मा को 1 लाख 20 हजार रुपए और जमा कराने पड़े.

यह सारे पैसे हरिदत्त शर्मा ने अपने रिश्तेदारों से उधार ले कर जमा कराए थे. उन्होंने सोचा था कि बेटे की नौकरी लग जाएगी तो वह सब के पैसे लौटा देंगे.

प्रदीप की मां राधा शर्मा की बांह पर नासूर था. तमाम इलाज के बाद भी वह ठीक नहीं हो रहा था. प्रदीप ने मां को भरोसा दिलाया था कि नौकरी लगने के बाद वह उन का इलाज कराएगा. कोलकाता से ट्रेनिंग करने के बाद अब प्रदीप को नौकरी का इंतजार था.

आखिर सितंबर महीने में इंस्टीट्यूट की ओर से प्रदीप को बुलाया गया तो वह पिता के साथ वहां पहुंचा. इस बार उन की मुलाकात इंस्टीट्यूट के निदेशक अंबुज कुमार से हुई. उन्होंने कहा, ‘‘विदेश में नौकरी के लिए सतत निर्वहन प्रमाणपत्र (सीडीसी) होना जरूरी है.

‘‘यह प्रमाणपत्र भारत सरकार द्वारा जारी किया जाता है. हम ने इस के लिए एप्लाई कर दिया है. इस के अलावा बाहर जाने के लिए वीजा होना चाहिए. इन सब के लिए करीब 2 लाख रुपए खर्च होंगे. आप जल्द से जल्द ये पैसे जमा करा दीजिए, जिस से हम आगे की काररवाई कर सकें.’’

हरिदत्त शर्मा अब तक 3 लाख रुपए के करीब खर्च कर चुके थे. अब 2 लाख रुपए और जमा कराने के लिए कहा जा रहा था. यह सारा पैसा उन्होंने रिश्तेदारों से लिए थे. अब रिश्तेदारों से पैसे मिल नहीं सकते थे. पैसे भी जमा कराने जरूरी थे क्योंकि अगर पैसे जमा नहीं कराए जाते तो पिछले पैसे बेकार जाते. बेटे की उम्मीदों पर पानी फिर जाता.

जब कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में स्थित अपना 50 वर्गगज का वह मकान बेच डाला, जिस में वह परिवार के साथ रहते थे. मकान बेच कर हरिदत्त ने 2 लाख रुपए जमा करा दिए. इस के बाद खुद किराए पर रहने लगे. कुछ दिनों बाद सीडीसी आ गई, जिस में सन 2013 से 2023 तक विदेश में रहने की अनुमति थी.

7 अक्तूबर, 2013 को हरिदत्त शर्मा को इंस्टीट्यूट से फोन कर के बताया गया कि प्रदीप का वीजा लग गया है. वह अपने मूल प्रमाणपत्र और 2 लाख रुपए ले कर इंस्टीट्यूट आ जाए. हरिदत्त ने कहा कि अब 2 लाख किस बात के, तो इंस्टीट्यूट के निदेशक अंबुज कुमार ने कहा, ‘‘ये रुपए उस के एयर टिकट वगैरह के हैं. आप प्रदीप को ले कर कल 9 बजे तक आ जाइए. कल ही उस की फ्लाइट है.’’

अगले दिन सुबह 9 बजे प्रदीप के साथ हरिदत्त को इंस्टीट्यूट पहुंचना था. किसी तरह पैसों की व्यवस्था कर के इंस्टीट्यूट पहुंचे तो इंस्टीट्यूट के निदेशक अंबुज कुमार ने कहा, ‘‘आप लोग बहुत लेट हो गए हैं. जल्दी से पैसे और पेपर दीजिए, वरना फ्लाइट छूट जाएगी.’’

हरिदत्त शर्मा लेट हो चुके थे, इसलिए पैसे देते समय वह अंबुज कुमार से कुछ पूछ भी नहीं सके. पैसे मिलने के बाद अंबुज ने कुछ डाक्युमेंट्स की फोटोकौपी और एक सीलबंद लिफाफा प्रदीप को दे कर कहा, ‘‘इस लिफाफे को तुम दुबई में मिस्टर विकास को दे देना. वह इंस्टीट्यूट के ही आदमी हैं.

इस के बाद हरिदत्त शर्मा आटो से इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुंचे, जहां प्रदीप का पासपोर्ट और सामान आदि चैक हुआ. उस के बाद उसे दुबई जाने वाली फ्लाइट में बैठा दिया गया.

उसी दिन प्रदीप दुबई पहुंच गया. दुबई एयरपोर्ट पर ही उसे विकास मिला, जिसे उस ने वह सीलबंद लिफाफा सौंप दिया. दुबई पहुंच कर प्रदीप ने घर वालों से फोन पर बात की. उस की सफलता पर मांबाप बहुत खुश थे.

आईपीएसआर इंस्टीट्यूट के निदेशक अंबुज कुमार के अनुसार, प्रदीप को 3 महीने दुबई में काम करना था. हरिदत्त शर्मा की प्रदीप से बात हुई तो उस ने बताया कि वह दुबई के एक शिप में काम कर रहा है.  3 महीने बाद प्रदीप को इराक और फिर ईरान भेजा गया. कुछ दिनों के बाद वह फिर दुबई आ गया. वहां से उसे फिर इराक भेज दिया गया.

काली कमाई का कुबेर : यादव सिंह

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