ठगी का बड़ा खिलाड़ी – भाग 1

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या एक पर स्थित हरियाणा के जिला करनाल की पहचान विभिन्न औद्योगिक इकाइयों के रूप में तो है ही, इस के अलावा यह धान की खेती के रूप में भी प्रसिद्ध है. यहां पैदा होने वाले उच्च गुणवत्ता वाले धान के चावल को विदेशों तक भेजा जाता है. यहां की दुनार राइस मिल का बड़ा नाम है. जाटान रोड स्थित इस मिल के मालिक सुरेंद्र गुप्ता बहुत ही सधे हुए अंदाज में अपनी यह राइस मिल चला रहे हैं.

उन की राइस मिल का चावल देशविदेश भेजा जाता है. सुरेंद्र एक बड़ी शख्सियत हैं, लिहाजा उन के संबंध भी वैसे ही लोगों से हैं. वह अपने कारोबार को और ऊंचाई तक ले जाना चाहते थे, जिस के लिए उन्हें करोड़ों रुपए की बड़ी रकम की जरूरत थी. वैसे तो यह रकम उन्हें बैंकों से कर्ज के रूप में मिल सकती थी, लेकिन एक तो मोटी रकम, दूसरे बैंकों द्वारा लिया जाने वाला मोटा ब्याज, उन्हें परेशान करता था.

इंसान किसी बात की चाहत रखता है तो कई बार उस के रास्ते खुदबखुद खुल जाते हैं. सुरेंद्र गुप्ता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उन की मुलाकात एक आदमी और उस के साथियों से हुई तो उन्होंने अपनी समस्या उन से कही, उस आदमी के साथियों में से एक ने कहा, “गुप्ताजी, सोच लीजिए, आप का काम हो गया.”

“मतलब?”

“आप को मोटा और सस्ती ब्याज दर पर एक आदमी लोन दिला सकता है, क्योंकि उस के लिए यह बाएं हाथ का खेल है.”

“कौन है वह?”

“आप ने अजय पंडित का नाम तो सुना ही होगा. वह ऐसे आदमी हैं कि उन के पास पहुंचते ही हर समस्या का हल निकल आता है.”

इस के बाद उस आदमी और उस के साथियों ने अजय पंडित के बारे में जो कुछ बताया, उसे सुन कर सुरेंद्र गुप्ता हैरान रह गए. अजय पंडित वह नाम था, जिस के बड़ेबड़े राजनेताओं से सीधे संबंध थे. बड़ेबड़े लोग अपने काम कराने उस के यहां लाइन लगाए खड़े रहते थे. यह बात अलग थी कि अजय सिर्फ करोड़पतियों या अरबपतियों के ही काम कराता था.

अजय मूलरूप से रहने वाला तो हरियाणा के सिरसा जिले का था, लेकिन वह दिल्ली के छतरपुर स्थित एक फार्महाउस में रहता था. सुरेंद्र गुप्ता से मिलने वाला वह आदमी और उस के साथियों ने जो बताया था, उस के अनुसार अजय पंडित सोनिया गांधी एसोसिएशन का राष्ट्रीय अध्यक्ष था. इस के अलावा वह अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा का भी अध्यक्ष था.

राजनीतिज्ञों से चूंकि उस के गहरे रिश्ते थे, इसलिए वह लोगों के काम आसानी से करा देता था. वे लोग अजय को जानते ही नहीं थे, बल्कि उस से उन के अच्छे रिश्ते भी थे. इन लोगों से मिलने के बाद सुरेंद्र को लगा कि उन की इच्छा पूरी हो जाएगी. अजय पंडित के बारे में कुछ थोड़ा उन्होंने भी सुन रखा था. वह काफी ऊंची पहुंच वाला आदमी था.

उन लोगों ने सपने दिखाए तो सुरेंद्र अजय से मिलने के लिए ललायित हो उठे. उन्होंने कहा, “इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है. आप लोग उन से मेरी मुलाकात करा दीजिए.”

“ठीक है, हम कोशिश करते हैं. समय ले कर आप को फोन पर बता देंगे.” रितेश और उस के साथियों ने कहा.

इस के बाद वे चले गए, लेकिन उन का संपर्क सुरेंद्र से बना रहा. एक दिन उन्होंने बताया कि सोमवार की दोपहर वह छतरपुर आ जाएं. इस के बाद तय दिन पर सुरेंद्र गुप्ता बताए गए पते पर पहुंच गए.

दिल्ली के छतरपुर इलाके में बड़ी हैसियत वाले नामीगिरामी लोगों के फार्महाउस हैं. उन्हीं में से राधामोहन लेन स्थित एक फार्महाउस पर वह पहुंचे तो वहां की कड़ी सुरक्षा के तामझाम देख कर एकबारगी वह ठिठक गए. मुख्य दरवाजा बंद था और वहां हथियारों से लैस प्राइवेट सुरक्षाकर्मी और पुलिसकर्मी खड़े थे. उन की गाड़ी रुकी तो एक सुरक्षाकर्मी ने उन के नजदीक आ कर पूछा, “किस से मिलना है?”

“अजयजी से. अपाइंटमेंट है मेरा.”

“एक मिनट ठहरिए.” कह कर सुरक्षाकर्मी पलटा और मुख्यद्वार पर बनी केबिन में जा कर वहां रखे टेलीफोन से बात की.

उस ने फोन रख कर दरवाजा खुलवाने के साथ ही उन्हें अंदर जाने का इशारा कर दिया. फार्महाउस के अंदर का नजारा बड़ा ही आकर्षक था. वहां हर तरफ हरियाली थी. पार्किंग में पहले से ही कई महंगी और लग्जरी कारें खड़ी थीं. उन्होंने भी अपनी कार वहां खड़ी कर दी और उतर कर कोठी की तरफ बढ़े. कोठी के बरामदे में बने औफिसनुमा कमरे में कई लोग बैठे थे. वहां मौजूद लोगों ने उन से आने का कारण पूछा तो उन्होंने बता दिया.

“ठीक है, आप को थोड़ा इंतजार करना होगा, साहब बाहर हैं. कुछ देर में आते ही होंगे.” कह कर एक आदमी उन्हें अंदर ड्राइंगरूम में ले गया. वहां पड़े बेशकीमती सोफों पर पहले से ही तमाम लोग बैठे थे. वह भी एक सोफे पर बैठ गए. वहां की भव्यता देख कर उन की आंखें खुली की खुली रह गईं. चमकदार मार्बल, कालीन, फर्नीचर, दीवारें, उन पर लगी पेंटिंग्स और छत में लटकते झूमर, सभी कुछ भव्यता प्रदॢशत कर रहे थे.

इस के अलावा दीवारों पर नामचीन राजनेताओं के साथ मुसकराते हुए एक ही शख्स के तमाम फोटो टंगे थे. वह समझ गए कि यही अजय पंडित हैं. ड्राइंगरूम की शान भी अलग ही थी. क्लोजसर्किट कैमरे भी वहां लगे थे. इस से भी ज्यादा खास बात यह थी कि वहां बैठे लोग चाय, कौफी, स्नैक्स, फ्रूट्स आदि इस अंदाज में खापी रहे थे, जैसे वहां कोई पार्टी चल रही हो. 3-4

वेटर खातिरदारी में लगे थे. एक वेटर उन्हें भी पानी दे गया. उस के बाद उन से और्डर लिया, “आप के लिए क्या लाएं सर?”

“कौफी ले आओ.” सुरेंद्र ने कहा तो कुछ देर बाद एक वेटर गोल्डन कप में उन्हें कौफी दे गया. वह जिस ड्राइंगरूम में बैठे थे, वहां से बाहर का भी नजारा दिखाई दे रहा था. वहां अनगिनत देशीविदेशी पेड़पौधों ने वातावरण को सुंदर बनाया हुआ था. कुछ ही वक्त बीता था कि वह आदमी और उस के साथी भी आ गए. उन्होंने गर्मजोशी से सुरेंद्र गुप्ता का स्वागत किया. वे भी बातचीत में मशगूल हो गए.

कुछ और वक्त बीता होगा कि सायरन बजाती एक जिप्सी फार्महाउस में दाखिल हुई. उस के ठीक पीछे काले रंग की चमचमाती मॢसडीज कार थी और उस के पीछे एक और जिप्सी. दोनों जिप्सियों पर बीसियों कमांडों और सुरक्षाकर्मी सवार थे. सभी के पास हथियार और वौकीटौकी थे.

एक सुरक्षाकर्मी ने चमचमाती कार का पिछला दरवाजा खोला तो उस में से जो शख्स उतरा, वह निहायत ही आकर्षक था. उस ने नीले रंग का सूट पहना हुआ था. उस ने अपने नजदीक आए स्टाफ से कुछ गुफ्तगू की और ड्राइंगरूम की तरफ बढऩे लगा. उस की चालढाल में भी रुआब झलक रहा था. उस के चारों ओर सुरक्षाकर्मी इस तरह घेरा सा बनाए चल रहे थे कि कोई परिंदा भी नजदीक नहीं आ सकता था. अंदर पहुंच कर उस ने मुसकरा कर सभी से मुलाकात की.

सुरेंद्र के परिचित ने उन का परिचय कराया, “सर, आप ही हैं सुरेंद्र गुप्ताजी, जिन के बारे में आप से बात हुई थी.”

“ओके…ओके… आप के बारे में इन लोगों ने मुझे सब बता दिया है. आप अभी बैठिए, मैं बाकी लोगों से मिल कर आप से बात करता हूं.”

सभी अपनीअपनी जगह पर बैठ गए. सारा तामझाम देख कर सुरेंद्र समझ गए कि अजय पंडित बहुत पहुंची हुई हस्ती है.

पंजाब की डाकू हसीना – भाग 1

पंजाब राज्य के लुधियाना जिले का पारा तब और बढ़ गया था, जब सीएमएस इंफो सिस्टम लिमिटेड में हुई 11 करोड़ रुपए की डकैती की खबर फिजा में फैली थी. उस समय सुबह के 7 बज रहे थे, जब सीएमएस के प्रबंधक प्रवीण कुमार ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी थी.

सूचना सुन कर कंट्रोल रूम में ड्यूटी पर तैनात एसआई सुशील के तो जैसे हाथपांव ही फूल गए थे. सूचना थी ही ऐसी, जिसे सुन कर हर कोई हैरान हो सकता था और सुशील भी ऐसे उछले थे. फौरन उन्होंने वायरलैस सेट के जरिए जिले के सभी थानों को सूचित कर दिया. वह इलाका थाना सराभा नगर के न्यू राजगुरु नगर में पड़ता था.

न्यू राजगुरु नगर स्थित सीएमएम दफ्तर में हुई 11 करोड़ रुपए की डकैती की सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर मनदीप सिंह के भी जैसे होश उड़ गए. उन्होंने सब से पहले जिले की सभी सीमाओं को सील करने का आदेश दिया, ताकि बदमाश जिला छोड़ कर बाहर भाग न सकें. क्योंकि 11 करोड़ रुपए कोई छोटीमोटी रकम नहीं होती है, फिर बड़े पुलिस अफसरों के सवालों के जबाव देने में उन्हें मुश्किल हो सकती थी.

जंगल में आग की तरह यह खबर जिले में फैल चुकी थी सीएमएस इंफो सिस्टम लिमिटेड, जो एटीएम मशीनों में रुपए रखने का काम करती है, के यहां रात 9/10 जून, 2023 की रात को इस डकैती की वारदात को अंजाम दिया. डकैत कैश बाक्स से 11 करोड़ रुपए लूट कर सीएमएस कंपनी की कैश वैन में रख कर फरार हो गए.

हडक़ंप मचा देने वाली यह खबर जिले से होते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान सिंह और डीजीपी गौरव यादव तक पहुंच चुकी थी. मुख्यमंत्री भगवंत मान सिंह ने डीजीपी गौरव यादव को आड़े हाथों लेते हुए अपनी नाराजगी जताई थी कि किसी भी कीमत पर घटना का जल्द से जल्द परदाफाश होना चाहिए और अपराधियों के मनोबल को धूल में देना होगा. मुझे जल्द से जल्द इस का सकारात्मक रिजल्ट चाहिए.

मुख्यमंत्री भगवंत मान के आदेशों का पालन करते हुए डीजीपी गौरव यादव ने लुधियाना के पुलिस कमिश्नर मनदीप सिंह सिद्धू को आदेश दिया कि लुधियाना की पूरी पुलिस फोर्स लगा दो, हर कीमत पर आरोपी पकड़े जाने चाहिए और रकम की भी रिकवरी होनी चाहिए. ये पुलिस की साख का प्रश्न है.

हाई कमान से आदेश मिलने के बाद पुलिस कमिश्नर मनदीप सिंह सिद्धू ने आरोपियों को पकडऩे के लिए अपनी अनोखी कार्यशैली के लिए मशहूर तेजतर्रार जौइंट पुलिस कमिश्नर सौम्या मिश्रा और एडीशनल पुलिस कमिश्नर शुभम अग्रवाल के हाथों में कमान सौंप दी.

इस से पहले जब घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम के जरिए थाना सराभा नगर को मिली थी, इंसपेक्टर अरविंद सिंह ने मय पुलिस फोर्स मौके पर पहुंच कर छानबीन शुरू कर दी थी. उस के आधे घंटे के अंतराल में पुलिस कमिश्नर मनदीप सिंह सिद्धू, जौइंट सीपी सौम्या मिश्रा, एडीसीपी शुभम अग्रवाल, सीआईए (तृतीय) इंसपेक्टर बेअंत जुनेजा, सीआईए (चतुर्थ) इंसपेक्टर कुलवंत सिंह सहित तमाम पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच चुके थे. उस समय सीएमएस औफिस जैसे पुलिस छावनी बन चुका था.

हालात देख कर घबरा गए मैनेजर

इधर घटना की सूचना पा कर सुबह साढ़े 6 बजे के करीब जब सीएमएस के मैनेजर प्रवीण कुमार दफ्तर पहुंचे थे तो उन्होंने मेन वाल्ट के बाहर वाले कमरे में कर्मचारी हिम्मत सिंह और हरमिंदर के दोनों हाथ और पैर बंधे तथा मुंह पर टेप चिपके हालत में मिले थे. जल्दी जल्दी उन्होंने दोनों कर्मचारियों को बंधन मुक्त करते हुए मुंह के ऊपर से टेप हटाया.  घबराहट के मारे उन की सांसें तेज चल रही थीं. उन के मुंह से आवाज नहीं निकल पा रही थी.

मैनेजर प्रवीण कुमार हालत देख कर समझ गए थे कि मामला गंभीर है. उन्होंने हिम्मत सिंह और कुलवंत सिंह को ठंडा पानी पिलाया और उन्हें ढांढस बढ़ाया. थोड़ी देर बाद जब दोनों सामान्य स्थिति में आ गए, तब दोनों ने उन्हें बताया कि रात के करीब 2 बज रहे थे, जब दोनों कैश रूम में रुपए गिन रहे रहे थे. कमरे के बाहर सिक्योरिटी गार्ड बलवंत सिंह, परमदीन खान और अमर सिंह राइफल लिए अपनी ड्यूटी पर तैनात थे.

अचानक से 8-10 नकाबपोश, जिन के हाथों में असलहे थे, दफ्तर के भीतर घुस आए और तीनों गार्डों को अपने असलहे के बल पर बंधक बना उन के असलहे छीन लिए. तीनों के हाथपैर बांध कर उन की आंखों में लाल मिर्च पाउडर झोंक दिया ताकि वह उन का विरोध न कर सकें.

इस के बाद उन्होंने उन्हीं असलहे के बल पर हमें बंधक बना हमारे हाथपैर रस्सियों से बांध कर हमें यहां फेंक दिया और बड़े सूटकेस में रुपए भर कर ले भागे. उन लुटेरों के बीच से किसी महिला की आवाज आ रही थी, जो उन्हें खूनखराबा से मना करती हुई जल्दीजल्दी काम निबटाने का हुक्म दे रही थी.

कर्मचारी हिम्मत सिंह और हरमिंदर सिंह से जानकारी जुटाने के बाद मैनेजर ने सीएमएस के सीनियर अधिकारी गोयल शेखावत को जानकारी दे कर उन्हें दफ्तर पहुंचने का आग्रह किया था. इस के बाद मैनेजर प्रवीण कुमार ने थाना सराभानगर पुलिस को फोन कर इस लूट कांड की जानकारी दे दी. मैनेजर की तहरीर पर इंसपेक्टर अरविंद सिंह ने आईपीसी के विविध धाराओं 395, 342, 323, 506, 427, 120बी और आम्र्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर आगे की आवश्यक काररवाई शुरू कर दी थी.

चूंकि मामला 11 करोड़ रुपए की डकैती से जुड़ा हुआ था, इसलिए पुलिस फूंकफूंक कर कदम रख रही थी ताकि उन की नजरों में कोई सबूत अथवा साक्ष्य छूट न जाए, जिस से अपराधियों को लाभ मिल सके.

खैर, पुलिस सीएमएस दफ्तर के चप्पेचप्पे को खंगालने में जुटी हुई थी. पड़ताल के दौरान पता चला था कि बदमाश अपने साथ सीसीटीवी की डीवीआर ले गए थे. दफ्तर में घुसते ही बदमाशों ने सब से पहले साइरन वाले सेंसर तार को काट दिया था, ताकि वह बज न सके. अगर साइरन बजता तो बदमाश अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकते थे, इसलिए उन्होंने घुसते ही साइरन के तार को काट दिए थे.

पुलिस को एक बात बहुत देर से परेशान कर रही थी कि बदमाशों को कैसे पता चला था कि कंपनी में सेंसर तार कहां लगा है. उसे ही पहले क्यों काटे? इस का मतलब शीशे के समान साफ है कि कंपनी का कोई कर्मचारी बदमाशों से मिला हुआ है. उसी की मुखबिरी से इतनी बड़ी घटना घटी. वह गद्दार वह आस्तीन का सांप कौन है? ये जांच का विषय था.

लावारिस हालत में मिली कैश वैन

पुलिस ने पीडि़त कर्मचरियों हिम्मत सिंह और कुलवंत सिंह से पूछताछ की. इस पूछताछ के दौरान एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया, जो 11 करोड़ रुपए लूट की बात कही जा रही थी, लूट वाली रकम इतनी थी ही नहीं.

दरअसल, कंपनी के कैश चेस्ट में कुल 11 करोड़ संग्रह हुए थे, 7 करोड़ एक जगह और दूसरी जगह 4 करोड़ रखे थे, कर्मचारियों के बयानों के मुताबिक कुल रुपए 2 अलगअलग जगहों पर रखे गए थे. बदमाशों ने 11 करोड़ रुपए नहीं लूटे, बल्कि वे अपने साथ बड़े बैग में 7 करोड़ रुपए भर कर भागे थे. पुलिस पड़ताल के दौरान 4 करोड़ रुपए मौके से बरामद कर लिए गए, जो खुले हुए कैश बौक्स में रखे गए थे.

इतनी बड़ी रकम जिस बेपरवाह तरीके से रखी गई थी, घटनास्थल चीखचीख कर गहरी साजिश की ओर इशारा कर रही थी यानी कंपनी के ही किसी नमकहराम ने बदमाशों से मिल कर इस घटना को अंजाम दिया अथवा दिलवाया था. वह गद्दार कौन हो सकता है?

पुलिस जांचपड़ताल कर रही थी. वहीं पुलिस ने शक के आधार पर तीनों सिक्योरिटी गार्डों अमर सिंह, बलवंत सिंह और परमदीन खान को हिरासत में ले लिया कि जब इन के पास हथियार थे तो फायरिंग क्यों नहीं की. यह जांचपड़ताल करते दोपहर के 12 बज गए थे. तभी पुलिस को सूचना मिली कि लुधियाना के मोगा रोड पर मुल्लापुर दाखा गांव पंडोरी में एक कैश वैन लावारिस हालत में खड़ी पड़ी है. उस का पीछे का दरवाजा टूटा हुआ है और उस में 2 असलहे भी पड़े हैं जिन पर सीएमएस लिखा है, जिस का नंबर है- पीबी10जेए-7109.

सूचना मिलने के बाद इंसपेक्टर अरविंद सिंह मय फोर्स के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने लावारिस हालत में मिली वैन की गहन छानबीन की. उस का पिछला दरवाजा टूटा पड़ा था और उस के अंदर 2 असलहे पड़े थे और कैश पूरी तरह से नदारद था.

रेहाना फातिमा की रार

5 जून, 2023 को केरल हाईकोर्ट की जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने सोशल एक्टिविस्ट रेहाना फातिमा को पोक्सो ऐक्ट के मामले में बरी करते हुए कहा कि अंगरेजी में एक कहावत है, ‘ब्यूटी इज इन द आई औफ द बिहोल्डर.’ सौंदर्य तो देखने वाले की आंख में होता है. अश्लीलता और विकृति के मामले में भी कुछ ऐसा ही होता है.

केरल की रेहाना का यह केस क्या था? कौन हैं ह्यूमन राइट्स एक्टविस्ट रेहाना फातिमा? उन्होंने ऐसा क्या कर दिया था, जिस की लड़ाई लडऩे के लिए उन्हें हाईकोर्ट तक जाना पड़ा? तो आइए पहले यह जानते हैं कि यह रेहाना फातिमा हैं कौन?

केरल के कोच्चि जिले में 30 मई, 1986 को एक रूढि़वादी मुसलिम परिवार में रेहाना का जन्म हुआ था. उसे पढऩे के लिए मदरसे में भेजा जाता था. पांचों वक्त की नमाज पढऩे को कहा जाता था. उस के पिता प्यारीजान सुलेमानी बीएसएनएल टेलीकम्युनिकेशन में नौकरी करते थे.

रेहाना 12वीं में पढ़ रही थी, तभी उस के पिता प्यारीजान सुलेमानी की मौत हो गई. पिता की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर रेहाना को बीएसएनएल में टेक्निशियन की नौकरी मिल गई. रेहाना की एक बहन भी है. नौकरी करते हुए रेहाना ने इग्नू से बीकौम किया और फिर एमसीए की डिग्री पूरी की. पूरी तरह व्यवस्थित होने के बाद रेहाना घर वालों की मरजी के खिलाफ मनोज के. श्रीधरन के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगी, जिन से उन्हें 2 बच्चे हैं. इस के बाद उन्होंने अपना एक और नाम सूर्य गायत्री भी रख लिया था.

5 फीट 7 इंच लंबी और गहरे भूरे रंग की आंखों वाली रेहाना पहली बार विवाद में तब आई थीं, जब 2014 में उन्होंने मौरल पुलिस के विरोध में विवादास्पद ‘किस औफ लव’ अभियान में अपने साथी मनोज के. श्रीधरन के साथ हिस्सा लिया था. इस का उन्होंने वीडियो बना कर वायरल किया था, जिसे ले कर काफी विवाद हुआ था.

rehana-frnd

रेहाना फातिमा ऐक्टिंग और मौडलिंग भी करती थीं. रेहाना ने इंटरसैक्सुअलिटी पर बनी फिल्म ‘एका’ में अभिनय भी किया है. इस फिल्म के पोस्टर में टैगलाइन लिखी गई थी, ‘मैं मध्यलिंगी हूं. बचपन से ही मेरे एक लिंग और योनि है. मैं जीना चाहता हूं.’

इस के प्रोड्यूसर ने दावा किया था कि भारत में बनाई गई अपनी तरह की यह पहली फिल्म है. फिल्म में रेहाना ने न्यूड सीन भी किए थे. उन का कहना था कि उस सीन में उन्हें नेचुरल महसूस हुआ था. उन्हें सहज लगे इस के लिए फिल्म के क्रू ने भी कपड़े उतार दिए थे.

रेहाना मुसलिम हैं. पर बचपन से ही विभिन्न धर्मों के रीतिरिवाजों और हठधर्मिता पर सवाल उठाते हुए उन्होंने 2016 में केरल के ‘अय्यनथोल पुली काली’( वार्षिक ओणम बाघ नृत्य, जो त्रिशूर का एक लोकप्रिय कार्यक्रम है) में अपने सहयोगियों के साथ शरीर पर चित्र बना कर भाग ले कर पुरुष प्रभुत्त्व वाले गढ़ों को चुनौती दी थी. क्योंकि इस में इस के पहले केवल पुरुष ही हिस्सा लेते थे. यह केरल के हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार है. उन्होंने अपने नाबालिग बच्चों से अपने अद्र्धनग्न शरीर पर पेंटिंग बनवाई थी.

अपने स्तन तरबूज से ढक कर दिया था जवाब

इस के बाद 2018 में जब कोझीकोड के फारुक ट्रेनिंग कालेज के मुसलिम असिस्टेंट प्रोफेसर जौहर मुन्नवीर टी. ने महिलाओं के स्तन की तुलना तरबूज से की थी. उन्होंने कहा था कि मुसलिम महिलाएं ठीक से कपड़े नहीं पहनतीं और अपने तरबूज से स्तन दिखाती हैं. इस के बाद रेहाना ने अपने ऊपर के सारे कपड़े उतार कर स्तनों को केवल तरबूज से ढक कर फोटो पोस्ट कर के जवाब दिया था. तब उन की इस फोटो को उस प्रोफेसर के उपयुक्त जवाब के रूप में बहुत लोगों ने पसंद किया था.

सितंबर, 2018 में जब सुप्रीम कोर्ट ने मासिक धर्म वाली महिलाओं को सबरीमाला के अयप्पा मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति दी थी. क्योंकि अयप्पा मंदिर में पहले उन्हीं महिलाओं को प्रवेश मिलता है, जिन्हें मासिक धर्म न आता हो (10 साल से पहले और 55 साल के बाद) तब केरल के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मंदिर में प्रवेश करने का प्रयत्न किया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने वाले और धर्म में आस्था रखने वाले हिंदुओं ने उन का रास्ता रोक कर उन के प्रयास को विफल कर दिया था. हिंदू धर्म को ठेस पहुंचाते हुए रेहाना ने भी 2 महिलाओं के साथ अयप्पा मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की थी. पर हिंदुओं ने उन्हें भी मंदिर के अंदर नहीं घुसने दिया था.

इस के बाद रेहाना ने बुरका पहन कर एक फोटो फेसबुक पर पोस्ट की थी, जिस में वह अश्लील मुद्रा में बैठी थीं और खुद को अयप्पा का भक्त बताया था. इस के बाद अयप्पा के भक्तों ने उन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. तब 27 नवंबर, 2018 को ‘धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए’ रेहाना को गिरफ्तार किया गया था. इस के लिए उन्हें 18 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था.

इस के लिए रेहाना फातिमा की काफी आलोचना तो हुई ही थी, उन्हें बीएसएनएल की नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा था. उन्हें जबरदस्ती रिटायर कर दिया गया था. इतना ही नहीं, केरल मुसलिम जमात काउंसिल ने भी उन्हें इस के लिए मुसलिम समुदाय से निष्कासित कर दिया था.

Rehana-fatima-tatoo

इस के बाद 19 जून, 2020 को इंस्टाग्राम पर रेहाना ने एक वीडियो डाला, जिस में वह बिस्तर पर टौपलेस लेटी थीं और उन का बेटा तथा बेटी उन के शरीर पर पेंटिंग कर रहे थे. इस पर उन्होंने हैशटैग लगया था, ‘बौडी आर्ट पौलिटिक्स’. कामुकता देखने वाले की नजरों में होती है

रेहाना ने इस वीडियो के कैप्शन में लिखा था कि औरत का शरीर, उस की नग्नता 55 किलोग्राम मांस से कहीं ज्यादा है. औरत अगर लेगिंग्स भी पहनती है तो पुरुषों को उत्तेजना हो जाती है. जबकि पुरुष अपनी टांगें ही नहीं ऊपर का हिस्सा भी खोल कर घूमते रहते हैं, तब उन के शरीर को ले कर कोई प्रतिक्रिया नहीं आती. साफ है सैक्सुअलिटी की जानकरी लोगों को गलत तरीके से दी जा रही है.

उन का कहना था कि जिस तरह सुंदरता देखने वालों की आंखों में होती है, उसी तरह पोर्न भी देखने वालों की आंखों में होता है. कोई भी बच्चा, जो अपनी मां को नग्न देखेगा, कभी किसी महिला के शरीर को प्रताडि़त नहीं करेगा. इसलिए महिलाओं के शरीर और सैक्सुअलिटी को ले कर लोगों के मन में जो गलत धारणा बनी है, उसे खत्म करने की वैक्सीन की शुरुआत घर से होनी चाहिए.

रेहाना का यह वीडियो सामने आते ही बवाल मच गया था. भाजपा नेता ए.वी. अरुण प्रकाश की शिकायत पर तिरुवल्ला पुलिस ने रेहाना के खिलाफ केरल पुलिस ऐक्ट की धारा 120, जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट की धारा 75 और इन्फौर्मेशन टेक्नोलौजी ऐक्ट की धारा 67बी (डी) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. लेकिन बाद में लोगों के कहने पर उन के खिलाफ पोक्सो ऐक्ट भी लगया गया था.

मुकदमा दर्ज होने के बाद सोशल एक्टिविस्ट रेहाना को गिरफ्तार कर लिया गया. निचली अदालतों से उन की जमानतें खारिज हो गईं तो उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. वहां से भी एक बार उन की जमानत याचिका खारिज कर दी गई. उन्होंने दोबारा डबल बेंच में जमानत की अरजी लगाई. दूसरी अरजी में उन्हें जमानत मिली. इस के बाद यह मुकदमा चलता रहा.

‘गौमाता’शब्द पर हुआ था विरोध

नवंबर, 2020 में एक बार वह फिर विवादों में आ गईं. खाने के एक शो में उन्होंने एक वीडियो डाला, जिस में उन्होंने मांस के लिए बारबार गौमाता शब्द का प्रयोग किया था. वीडियो में रेहाना ने कई बार कहा था कि वह गौमाता का मांस पका रही हैं. तब पुलिस ने धारा 153 के तहत रेहाना के खिलाफ केस दर्ज किया था.

इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सुनील थौमस की पीठ ने कहा था कि हिंदू गौमाता शब्द का इस्तेमाल पवित्र गाय के लिए करते हैं. पकाए जा रहे मांस के बारे में रेहाना ने बारबार गौमाता का मांस कह कर करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को आहत किया है. जानबूझ कर इस तरह गौमाता शब्द का इस्तेमाल करना आपत्तिजनक है.

तब कोर्ट ने उन के सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर रोक लगाते हुए स्पष्ट किया था कि साफ लगता है कि गलत उद्देश्य से इस शब्द का उपयोग किया गया है. किसी को भी किसी की धार्मिक भावना की आहत करने का अधिकार नहीं है. इस के बाद रेहाना पर सोशल मीडिया पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति पर रोक लग गई थी.

रेहाना ने पेंटिंग वाला जो वीडियो डाला था, उस में उन्होंने निचली अदालत से बरी करने की अपील की थी, पर निचली अदालत ने उन्हें बरी करने से मना कर दिया था. तब रेहाना हाईकोर्ट पहुंच गई, जहां लंबी सुनवाई के बाद जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने 5 जून, 2023 को अपने फैसले में रेहाना को बरी करते हुए कहा था कि निर्दोष कलात्मक अभिव्यक्ति को अश्लील नहीं माना जा सकता. न्यूडिटी और वल्गारिटी डिफरेंस है.

रेहाना ने अदालत में अपनी सफाई में कहा था कि उन्होंने यह वीडियो जानबूझ कर बना कर इंस्टाग्राम पर अपलोड किया था. वह इस वीडियो के माध्यम से पुरुष मानसिकता और महिला के शरीर को अश्लील मानने के खिलाफ मैसेज देना चाहती थी.

इस पर अदालत ने कहा था कि महिला शरीर के साथ भेदभाव करना वाजिब नहीं है. महिला के शरीर पर बौडी पेंटिंग उस का अधिकार है. महिला चाहे तो अपने शरीर का कैनवास के रूप में उपयोग कर सकती है. पुरुष अपना आधा शरीर खोल कर घूमते हैं, इसे कोई अश्लील नहीं मानता. यह दुख की बात है कि पुरुष और महिला के शरीर को ले कर भेदभाव किया जाता है. हमारे यहां के तमाम मंदिरों और सार्वजनिक स्थानों पर नग्न महिलाओं के शिल्पों या चित्रों को पवित्र या कला माना जाता है.

आदमी और औरत की नग्नता में अंतर

दुनिया में नग्नता और अश्लीलता हमेशा चर्चा का विषय रहा है. कुछ अश्लील हरकतें हम रोजाना देखते हैं. सडक़ पर जा रही लडक़ी को घूरघूर कर देखना अश्लीलता ही है. शौर्ट पहनी लडक़ी के पैरों को देखना या अंग विशेष को लोलुपता से ताकना विकृति है. कुछ शहरों और गांवों की स्थिति तो ऐसी है कि लड़कियों को स्लीवलैस कपड़े पहनने के बारे में सौ बार सोचना पड़ता है. शरीर पर गंदी नजर न पड़े, इस के लिए लड़कियों को दुपट्ïटा ओढऩा पड़ता है.

आज भी यह स्थिति है कि अमुक प्रकार के कपड़े महिलाएं पति के साथ कहीं घूमने जाती हैं, तभी पहनती हैं. सभी पुरुष खराब नहीं होते, पर कुछ के कारण सभी शंका की नजरों से देखे जाते हैं. हर मामले में पुरुषों को ही दोष नहीं दिया जा सकता. कुछ मामलों में लड़कियां भी कम नहीं हैं.

‘ह्वाई बौयज हैव आल द फन’यह कह कर तमाम लड़कियां भी लडक़ों के साथ और लडक़ों के आगे न करने वाली हरकतें  करती हैं. अश्लीलता में सवाल लडक़े या लडक़ी का नहीं, नजर, नीयत और विकृति का होता है. सोशल मीडिया पर अश्लीलता का चलन सा चल पड़ा है. तमाम रील्स ऐसी होती हैं, जिन में लड़कियों को मनोरंजन का साधन दिखाया जाता है. फालोअर्स, लाइक्स, कमेंट्स और हिट बढ़ाने के लिए न जाने कैसेकैसे संवाद बोले जाते हैं और देखने के लिए ललचाएं, इस तरह की हरकतें की जाती हैं.

इस तरह की रील्स बनाने में लड़कियां भी पीछे नहीं हैं. इस सब के पीछे लाखों और हजारों फालोअर्स होते हैं. रील्स बनाने वाली या बनाने वाले बिंदास कहते हैं कि लोगों को जो देखना है, वह हम बनाते हैं और जो सुनना है, वह हम कहते हैं. हम किसी को शपथ तो खिलाते नहीं कि हमें फालो करो. सैक्स गंदी चीज नहीं है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि हर लडक़ी को गंदी नजरों से देखा जाए.

माननीय न्यायाधीश ने रेहाना को बरी करते हुए कहा था कि एक मां को अपने ही बच्चे से पेंटिंग बनवाना यौन अपराध नहीं करार दिया जा सकता. यह भी नहीं कहा जा सकता कि उस ने यह सब अपनी यौन संतुष्टि के लिए किया है. इस वीडियो में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे अश्लील कहा जा सके. यह मात्र एक कलात्मक अभिव्यक्ति है, जिस में महिला ने अपने शरीर को अश्लील न माने जाने की बात करने का प्रयास कर रही है.

बरी होने के बाद रेहाना ने कहा कि मैं अपने बच्चों के साथ सभी को यह बताना चाहती थी कि महिला के शरीर को न्यूडिटी और अश्लीलता के खांचे में रख कर नहीं देखना चाहिए. महिला को भी अपने शरीर पर अधिकार है. इस के लिए न तो किसी महिला को झिझकना चाहिए और न शर्मिंदा होना चाहिए.

रेहाना ने अपना पक्ष रखते हुए आगे कहा कि जब उन्हें जेल भेजा गया था तो उन के बच्चों की समझ में यह बात बिलकुल नहीं आई कि उन्होंने अपनी मां के शरीर पर जो पेंटिंग बनाई, इस के लिए उन्हें जेल क्यों भेजा गया. अब उन के बरी होने पर बच्चे खुश हैं.

बरखास्त सिपाही बना एटीएम बाबा

इस बार होली का त्यौहार खत्म होते ही बिहार में पंचायत चुनाव की गहमागहमी तेज हो चुकी थी. छपरा के रहने वाले सुधीर मिश्रा की 30 वर्षीया पत्नी रेखा मिश्रा पर भी चुनाव लडऩे की सनक सवार थी. वह छपरा में मोहब्बत परसा गांव से मुखिया के लिए चुनाव लडऩे पर अड़ी हुई थी. वह पूरे गांव के लोगों को अपनी तरफ करने के लिए हर तरह की जोरआजमाइश कर रही थी.

उस के समर्थक चाहते थे कि उस की तरफ से गांव के लोगों को ‘भोजभात’ करवाया जाए. रेखा के देवर नीरज और भाई भास्कर ओझा समेत गांव के कुछ लोग भी इस के पक्ष में थे. उन का मानना था कि बहुमत वाली जाति से अधिक जरूरी छोटीछोटी जातियों के समर्थन का था. महादलित के वोट से उन की जीत को कोई नहीं रोक सकता था. इसलिए वह उन के सभी टोले के लोगों के लिए मीटचावल का भोजभात करवाना चाहती थी.

चुनाव जीतने की बनाई प्लानिंग

रेखा ने अपने लोगों के साथ बैठ कर इस के लिए मीटिंग की. सभी ने एकजुट में कहा कि उन्हें एक नहीं 2 भोजभात करवाने होंगे. एक ऊंची जाति के लोगों के लिए और दूसरा सभी अनुसूचित जाति के लोगों के लिए होना चाहिए. महादलित औरतों को साड़ी भी बंटवानी होगी. साड़ी तो सवर्ण जाति की महिलाओं को भी देनी होगी. रेखा चाहती थी कि गांव के पोखर की भी साफसफाई अभी ही करवा दे, ताकि छठ आने तक उस में बारिश का साफ पानी जमा हो सके.

“इन सब पर कितना खर्चा आ जाएगा?” रेखा ने सवाल किया.

“भाभी, खर्चा तो लाखों में आएगा, लेकिन वोट भी तो हजारों में मिलेंगे.” रेखा का देवर नीरज बोला.

“तो फिर भाई को बोलो न,” रेखा ताना मारते हुए बोली.

उसी वक्त सुधीर मिश्रा वहां आ पहुंचा. उस ने भी अपनी नेताइन पत्नी रेखा का व्यंग्य सुना.

उसी के लहजे में वह बोला, “पैसे की बात आती है तब सुधीर मिश्रा. मुझे एटीएम समझ रखा है क्या?”

“अरे हां, तुम हमारे एटीएम नहीं तो और क्या हो? सिर्फ तुम्हारी जेब में हाथ डालनी होती है.” रेखा का यह कहना था कि वहां मौजूद सभी खिलखिला कर हंस पड़े.

“अरे जीजाजी, तभी तो लोग आप को ‘एटीएम बाबा’ कहते हैं,” सुधीर का साला भास्कर बोला.

“एटीएम मेरी जेब में लगा है क्या?” सुधीर व्यंग्य से बोला.

“जेब में नहीं लगा है, लेकिन कहीं और तो लगा है न…” भास्कर बोला.

“क्या मतलब है तुम्हारा?” सुधीर नाराजगी के साथ बोला.

“मैं नहीं जानती, एटीएम कहां लगा है कहां नहीं. मुझे तो भोजभात के खर्च का इंतजाम चाहिए. अब तुम जहां से करवा दो.” रेखा बोली.

“भैया, लखनऊ में तो आप के बहुत जानपहचान वाले हैं, क्यों नहीं उन से बात करते हैं. आप को मदद करने में वे कभी पीछे नहीं हटेंगे.” नीरज बोला.

“कहता तो ठीक है, मेवात वाले से भी बात करता हूं.” अब तक सुधीर गंभीर हो गया था, “अब बीवी ने चुनाव जीतने की सौगंध खा ली है तो मेरा भी तो उस का साथ देने का फर्ज बनता है.”

“फर्ज की बात करते हो, सरकारी ठेका आएगा तो सब से पहले तुम्हीं हाथ पसारे आओगे.” रेखा बोली.

“भाभी, वह तो बाद की बात है. अगर भैया को ठेका मिलेगा तो घी कहां गिरेगा दाल में ही न!” नीरज बोला.

“हां दीदी, हमें मत भूलना.” भास्कर बोला.

“चलो मीटिंग खत्म करो, तुम लोग अभी से ही खयाली पुलाव पकाने लगे. पहले सब मिल कर पैसे का इंतजाम करो, बाकी आगे मैं सब कुछ संभाल लूंगी.” रेखा बोली और मीटिंग से जाने के लिए अपनी कुरसी से उठ कर खड़ी हो गई.

उस के साथ सहयोगी महिला रजिस्टर संभालती हुई बोली, “हमें पंडिताइन के दालान में भी मीटिंग में जाना है. वहां 150 से अधिक महिलाएं पहुंच चुकी हैं. फोन आया था.”

“अरे हां, मैं तो भूल ही गई थी. ठीक है, चलो, चलो जल्दी करो.”

एटीएम काट कर निकाले 40 लाख रुपए

बात 3 अप्रैल, 2023 की है. लखनऊ के सुशांत लोक थाने में सुबह करीब 10 बजे किसी ने फोन कर बताया कि उन के इलाके का एसबीआई एटीएम टूटा पड़ा है. लगता है उसे काट कर पैसे निकाल लिए गए हैं. इस सूचना पर एसएचओ शैलेंद्र गिरि तुरंत अपने कुछ सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे.

एटीटीएम थाने से 2 किलोमीटर दूर खुरदही बाजार में था. शैलेंद्र गिरि के साथ हैडकांस्टेबल अमरनाथ और 3 सिपाहियों में रामायण भारती, चंद्रप्रकाश सिंह और धर्मेंद्र भी थे. घटनास्थल पर टूटे एटीएम को देख कर अनुमान लगाया गया कि इसे रात में गैस कटर से गया है. उस में से निकाले गए पैसों की जानकारी उस में दर्ज रिकौर्ड से हुई, जो 39.58 लाख थे.

एसएचओ ने वारदात का खाका खींचने के बाद वहां लगे सीसीटीवी कैमरे पर नजर दौड़ाई, जिसे खोल लिया गया था. उस की आसपास खोज की गई. एटीएम बूथ और उस के आसपास काफी छानबीन के बाद कैमरे एक दुकान के चबूतरे के नीचे मिले.

इस घटना की जांच को ले कर थाने में पुलिस अधिकारियों की गहन बैठक हुई. कई कोणों से इस तरह की बढ़ती घटना की तह में जाने के लिए जौइंट कमिश्नर निलाब्ज चौधरी के निर्देश पर 5 टीमें बनाई गईं. उन को सर्विलांस से ले कर अपराधियों की गिरफ्तारी और पैसे की बरामदगी तक की जिम्मेदारी सौंपी गई. एक टीम ने सीसीटीवी कैमरो में मिली लोकेशन का अध्ययन किया. जिस से मालूम हुआ कि लुटेरे नीले रंग की कार से आए थे और घटना को अंजाम देने के बाद वे उसी से वापस चले गए थे.

atm-baba-police

सर्विलांस टीम (दक्षिणी) के सदस्यों में एसआई सुमित बालियान, हैडकांस्टेबल मंजीत सिंह, बद्री विशाल तिवारी, सौरभ दीक्षित, सिपाही गिरीश चौधरी और रविंद्र सिंह को एसएचओ ने शहर के चारों दिशाओं में पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, आगरा एक्सप्रैसवे, सीतापुर लखनऊ राजमार्ग, सुलतानपुर अयोध्या राजमार्ग, बुंदेलखंड एक्सप्रैसवे के बौर्डर पर लगा दिया. वे टोल प्लाज केंद्रों पर तैनात कर दिए गए थे.

वहां लगे हुए सीसीटीवी कैमरों को खंगाला गया. पूर्वांचल एक्सप्रैसवे पर एक नीले रंग की कार जाती दिख गई. साथ ही टोल प्लाजा पर फास्टटैग चुकाते समय उस की लोकेशन भी मिल गई. टोल प्लाजा से मिला सुराग जांच की कड़ी को जोडऩे के लिए महत्त्वपूर्ण साबित हुआ. उस से गाड़ी का नंबर मिल गया और लुटेरों तक पहुंचने की कुछ उम्मीद जाग गई.

लेकिन इस जांच मेंं जल्द ही निराशा भी हाथ लगी. पूर्वांचल एक्सप्रैसवे पर ही गोसाईगंज, लखनऊ में टोल प्लाजा पर लगे सीसीटीवी में उसी गाड़ी का नंबर दूसरा था. इस का मतलब साफ था कि वारदात करने वालों ने गोसाईगंज टोल प्लाजा पर पहुंचने से पहले गाड़ी की नंबर प्लेट बदल दी थी. किंतु वहां से वह मारुति बलेनो कार पूर्वांचल एक्सप्रैसवे की सीमा से लगे हैदरगंज बाराबंकी की ओर जाती हुई दिखाई दी.

सीसीटीवी कैमरों के सहारे आगे बढ़ी जांच

उस के बाद हैदरगंज बाराबंकी में लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच की गई तो वहां कार का नंबर बदला हुआ पाया गया. उस नंबर से कार बिहार की थी. उस नंबर की जांच में पाया गया कि कार छपरा (बिहार) निवासी वितेश कुमार के नाम दर्ज है. इस छोटे से सुराग के सहारे दक्षिण जोन के डीसीपी विनीत जायसवाल ने जौइंट पुलिस कमिश्नर क्राइम (उत्तर प्रदेश) के निर्देश पर एडिशनल डीसीपी, एसीपी (गोसाईंगंज) सुश्री स्वाति चौधरी तथा डीसीपी (दक्षिणी जोन) के सर्विलांस की 2 अलगअलग टीमों का गठन किया गया.

दोनों टीमें सुशांत गोल्फ सिटी के एसएचओ शैलेंद्र गिरि के नेतृत्व में बनाई गई थीं, जिन्हें बिहार भेज दिया गया. छपरा में यूपी पुलिस की मेहनत रंग लाई. उन्होंने बलेनो कार के मालिक वितेश कुमार को ढूंढ निकाला. उस ने बताया कि 3 अपै्रल, 2023 को सुधीर मिश्रा उस के घर आया था. उसे लोग बुलबुल मिश्रा के नाम से भी जानते हैं, लेकिन एटीएम बाबा के रूप में वह लोकप्रिय है. सुधीर मिश्रा के बारे में तहकीकात से पता चला कि वह बिहार पुलिस का एक बरखास्त सिपाही है.

वितेश ने उत्तर प्रदेश पुलिस को बताया कि 3 अप्रैल को सुधीर उस के पास आ कर बोला कि उस की पत्नी की तबियत काफी बिगड़ गई है, उसे अस्पताल ले जाना है, इसलिए उस की बलेनो कार की जरूरत है. शैलेंद्र गिरि के लिए इस जानकारी में चौंकाने वाली एक बात उस का चर्चित नाम ‘एटीएम बाबा’भी था.

atmbaba-aropi

वह सोच में पड़ गए कि उसे लोग आखिर इस नाम से क्यों पुकारते होंगे? क्या वह एटीएम इस्तेमाल के बारे में जानकारी रखता था? इस के इस्तेमाल के तरीके के बारे में लोगों को गाइड करता था? या फिर उस की सुरक्षा में लगा हुआ था? इन्हीं सवालों में एक और सवाल मन में आया कि कहीं वह किसी एटीएम लुटेरों के गैंग से तो नहीं जुड़ा था?

एसएचओ ने इन सवालों का जवाब पाने के लिए उन्होंने सर्विलांस टीम को सुधीर मिश्रा के बारे में पूरी जानकारी मालूम करने के लिए लगा दिया. इस जांच में पता चला कि सुधीर एटीएम लुटेरों के गैंग में शामिल था, जिस का खास सदस्य विजय पांडेय और देवेश पांडेय हैं. दोनों इंजीनियर हैं और संत कबीरनगर में रहते हैं.

दोनों एटीएम में कैश लोड करने का काम करते थे और एटीएम के एक्सपर्ट थे. दोनों गोमती विहार के सरयू अपार्टमेंट में किराए के फ्लैट में रहते थे. उन्हें पुलिस गिरफ्तार तो नहीं कर पाई, पर इतना जरूर पता चला कि वे सुधीर मिश्रा के छोटे भाई नीरज मिश्रा के संपर्क में थे.

पुलिस को नीरज मिश्रा तक पहुंचने में ज्यादा मुश्किल नहीं हुई. वह छपरा में दबोच लिया गया. उस की गिरफ्तारी होते ही सुधीर मिश्रा समेत पंकज, राज, भीम के अलावा 4 मेवात के लुटेरे भी पकड़ लिए गए. उन से पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि एटीएम लूट को उन्होंने ही सुधीर मिश्रा के इशारे पर अंजाम दिया था. इस की साजिश सुधीर मिश्रा ने ही रची थी. जिस एटीएम को निशाना बनाया गया, उस की रेकी देवेश व विजय ने ही करवाई थी.

बड़ी आसानी से काट लिया एटीएम

पूछताछ में वारदात के सरगना सुधीर मिश्रा ने बताया कि एटीएम के भीतर घुसते ही उन्होंने पहले सीसीटीवी पर काली स्याही डाल दी थी. इस से वे कैमरे में कैद नहीं हो पाए थे. बाहर के फुटेज और गाड़ी नंबर के आधार पर पुलिस ने जांच शुरू की थी. घटनास्थल पर 3 मोबाइल नंबर सक्रिय मिले थे. इन की मदद से गिरोह तक पुलिस पहुंच पाई थी.

जांच में पता चला कि सरगना सुधीर मिश्रा व उस के गिरोह के सदस्यों पर दरजनों केस दर्ज हैं. कुछ लोगों पर हत्या व लूट के केस भी हैं. सुधीर पर एटीएम काटने संबंधी 12 केस हैं. वह पहले भी जेल जा चुका है, इसलिए वह एटीएम बाबा के नाम से मशहूर है. वह खुद बिहार में बैठ कर अलगअलग राज्यों में मेवातियों की मदद से वारदात को अंजाम देता रहा है.

एटीएम में चोरी करने की रिपोर्ट हितांक्षी पेमेंट सर्विसेज (सीएमएस) प्राइवेट लिमिटेड के लीगल एडवाइजर एडवोकेट मोहम्मद सलमान ने 3 अप्रैल, 2023 को भादंवि की धारा 457/380 के अंतर्गत दर्ज करवा दी. उन के बारे में पूरी कहानी 8 मई, 2023 को विजय पांडेय उर्फ सर्वेश की गिरफ्तारी के बाद सामने आई. इस में सुधीर की पत्नी रेखा मिश्रा का नाम सामने आया तो वह फरार हो गई थी. पकड़े गए सभी अभियुक्तों से 14 लाख 63 हजार रुपए रकम बरामद हुई.

गिरफ्तार किए गए सभी 11 आरोपियों की अपनीअपनी क्राइम हिस्ट्री थी, जिन का सरगना बरखास्त सिपाही सुधीर मिश्रा ही था. लखनऊ के नए स्थापित थाना गोल्फ सिटी से करीब 25 किलोमीटर दूर सुलतानपुर रोड पर खरदही बाजार है. यह शहर के बाहरी इलाके में है. यहां अंसल ग्रुप द्वारा सुशांत गोल्फ सिटी कई दूसरी नई कालोनियां विकसित की गई हैं. यहीं पराग दूध डेरी (फैक्ट्री), पुलिस विभाग का डीजीपी कार्यालय और पुलिस विभाग का हेल्पलाइन मुख्यालय भी बनाए गए हैं.

दूसरी तरफ सुधीर मिश्रा की पत्नी रेखा मिश्रा एक समाजसेवी महिला होने के कारण लोकल राजनीति में सक्रिय थी. उसे नेतागिरी का जबरदस्त चस्का लगा हुआ था. उसे पति सुधीर मिश्रा समेत परिवार के दूसरे सदस्यों की शह मिली थी. सभी उस की महत्त्वाकांक्षा को हवा देने में उस से चार कदम आगे रहते थे. वे उस की बदौलत भविष्य में सरकारी ठेका हासिल करने का मंसूबा रखते थे.

रेखा देख रही थी विधायक बनने का सपना

आजादखयालों वाली रेखा का सपना एक दिन विधायक बनने का भी था. वह बीते 2 सालों से 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार करने में जुटी हुई थी. गांव के हर सामाजिक आयोजनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. किसी के घर में शादीब्याह होने पर उपहार के साथ वरवधू को आशीर्वाद देने पहुंच जाती थी. किसी का निधन होने पर बगैर बुलाए वहां जा कर उस के दुख में शामिल हो जाती थी. अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की संतुष्टि के लिए ही उस ने पति सुधीर मिश्रा से चुनाव लडऩे की पेशकश की थी.

कहने को तो सुधीर मिश्रा बिहार पुलिस में सिपाही था, लेकिन उस के संबंध अपराधी तत्त्वों से भी बने हुए थे. उन की संगति में ही वह कई वैसे गिरोहों के संपर्क में था, जो चोरी और एटीएम लूट आदि का काम करते थे. इस की न केवल पुलिस के बड़े अधिकारियों को भनक लगी, बल्कि एक एटीएम लूट में उस का नाम भी आ गया तो उसे बरखास्त कर दिया गया.

वह पंचायत चुनाव लडऩे के लिए पत्नी के दबाव में धन जुटाने की तैयारी में लग गया था. सब से पहले उस ने अपने भाई नीरज मिश्रा को साथ ले कर योजना बनाई. उस ने ही कुछ अन्य साथियों के साथ विजय पांडेय से संपर्क किया. वह हितांक्षी पेमेंट सर्विस (सीएमएस) प्राइवेट लिमिटेड द्वारा एटीएम को सप्लाई करने वाली नकद करेंसी का काम करता था.

हालांकि वह अपनी संदिग्ध गतिविधियों के चलते कंपनी से निष्कासित हो चुका था. नीरज के कहने पर वह उस के गैंग में शामिल हो गया था. उस के साथ राज तिवारी, पंकज कुमार पांडेय, कुमार भास्कर ओझा और सुधीर मिश्रा भी थे. सुधीर मिश्रा पहले भी कुछ आपराधिक गतिविधियों के चलते जेल जा चुका था, जहां राजस्थान के मेवाती गैंग के संपर्क में आ गया था और अपने भाई नीरज के साथ मिल कर नया गैंग बना लिया था.

नीरज मिश्रा ने लखनऊ के खुरदही बाजार में एटीएम की पलसर बाइक से रेकी कर मालूम कर लिया कि 3 अप्रैल की रात ही उस में 39 लाख रुपए की रकम डाली गई है. उस ने तुरंत अपने साथी गैंग के सभी सदस्यों को अलर्ट कर उन्हें एटीएम के पास बुला लिया. राज तिवारी, पंकज कुमार पांडेय, कुमार भास्कर ओझा गैस कटर ले कर आ गए. उन्होंने फटाफट एटीएम काटी और रकम निकाल कर नीले रंग की बलेनो कार से रात के डेढ़ बजे लखनऊ आ गए.

बाद में पुलिस ने बरखास्त सिपाही सुधीर मिश्रा की पत्नी रेखा मिश्रा को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में लुटेरों ने बताया कि पहले वे बगैर सिक्योरिटी गार्ड वाले एटीएम को टारगेट बनाया करते थे. गार्ड नहीं होने की वजह से उस का शटर गिरा कर टेक्निकल सदस्य बन कर काम करते थे. इस दौरान सुधीर खुद बाहर रखवाली किया करता था. वे बाहर से सीसीटीवी कैमरों पर ब्लैक पेंट कर दिया करते थे.

आरोपियों से पूछतछ के बाद उन की निशानदेही पर 14.63 लाख रुपए नकद के अलावा, 2 फरजी नंबर प्लेट, मारुति बलेनो कार, पलसर बाइक, 6 आरी, गैस पाइप, सिलेंडर, रेग्युलेटर, पेचकस, प्लास आदि सामान बरामद हुआ.

सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

खामोश हुआ विद्रोही तेवर – भाग 3

जमीन की लीज कराने के बाद दोनों भूमाफियाओं ने इंडियन बैंक की राजोपट्टी शाखा से कई करोड़ का कर्ज भी ले लिया. अजय विद्रोही को उन की यह पूरी कहानी मालूम हो चुकी थी. यही नहीं, अजय यह भी मांग करने लगे थे. इन दोनों भूमाफियाओं ने गैरकानूनी तरीकों से जो अकूत संपत्ति अॢजत की है, उस की जांच आॢथक अपराध शाखा से कराई जाए.

अशोक सिंह और जयप्रकाश अग्रवाल को पता था कि सिटीजन फोरम के महासचिव और स्वतंत्र पत्रकार अजय विद्रोही की पहुंच बड़ेबड़े अधिकारियों तक है. इसलिए उन्हें इस बात की आशंका थी कि अगर आरटीआई के माध्यम से दस्तावेज अजय के हाथ लग गए तो मठ की अरबों की जिस जमीन पर उन का कब्जा है, वह तो उन के हाथों से निकल ही जाएगी, जालसाजी कर के बैंक से उन्होंने जो लोन लिया है, वह भी लौटाना पड़ सकता है. इस से उन की बदनामी तो होगी ही, जेल भी जाना पड़ेगा.

अजय विद्रोही की वजह से अशोक सिंह और जयप्रकाश अग्रवाल की परेशानी बढ़ गई थी. पहले तो उन्होंने अजय को खरीदने की कोशिश की, लेकिन वह बिकने को तैयार नहीं हुए. अशोक सिंह अजय के जिद्दी स्वभाव को जानते थे. उसे लगा कि अजय की जिद उस के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है, इसलिए उस ने अजय को हमेशाहमेशा के लिए रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

यह काम अशोक सिंह के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि उस के यहां बड़े और नामचीन अपराधियों का आनाजाना था. इस योजना में उस ने जयप्रकाश अग्रवाल और भांजे दीपक सिंह को भी शामिल कर लिया. अशोक सिंह ने सुपारी किलर रामबाबू सिंह से बात की. वह जिले की पुलिस के लिए सिरदर्द बना था. जिले के विभिन्न थानों में उस के खिलाफ कई गंभीर और संगीन मामले दर्ज थे. वह कई बार जेल भी जा चुका था.

घटना से सप्ताह भर पहले शूटर रामबाबू सिंह ने अपने साथियों अजय, लोकेश, हरेंद्र बैठा और महेसी सिंह महेसिया के साथ मिल कर पत्रकार अजय विद्रोही के घर से चौक स्थित मठ तक की रेकी की. उन्होंने इस बात की अच्छी तरह से जांचपरख कर ली कि अजय विद्रोही घर से कितने बजे और किन रास्तों से निकलते हैं.

27 सितंबर, 2015 को शूटर रामबाबू सिंह अपने साथियों अजय, लोकेश, हरेंद्र बैठा और महेसी सिंह महेसिया के साथ सीतामढ़ी पहुंचा. अशोक सिंह ने शहर के एक नामी होटल में उन के ठहरने का इंतजाम कर दिखाया. बदमाशों ने 2 दिनों बाद घटना को अंजाम का फैसला किया दीपक सिंह को अजय विद्रोही की मुखबिरी पर लगा दिया.

दीपक जानता था कि अजय रात में खाना खाने के बाद कुछ देर टहलते हैं. 29 सितंबर, 2015 की रात भी ऐसा ही हुआ. खाना खाने के बाद अजय विद्रोही बाहर टहलने के लिए निकले तो दीपक घर के बाहर टहलता मिल गया. वह पहले से ही बाहर खड़ा उन के निकलने का इंतजार कर रहा था. जेसे ही वह बाहर निकले, मुसकराता हुआ दीपक उन के पास पहुंच गया. थोड़ी देर वह इधरउधर की बातें करता रहा. उस समय उस का हावभाव बड़ा अजीब था.

उसी समय अजय विद्रोही के मोबाइल पर अशोक सिंह का फोन आया. उस समय उन का मोबाइल कमरे में था, जिसे ले जा कर उन्हें बेटे ने दिया. चूंकि अशोक सिंह का फोन काफी दिनों बाद आया था, इसलिए वह चौंके. अशोक ने पिछली बातों को भूल कर फिर से दास्ती का हाथ बढ़ाने की पेशकश की. अजय विद्रोही उस से मिलने चल पड़े.

उधर दीपक ने अपने मामा अशोक को फोन कर के बता दिया कि अजय घर से निकल चुके हैं. अशोक ने यह सूचना शूटर रामबाबू सिंह को दे दी. रामबाबू ने यह सूचना अपने साथी अजय को दे दी. अजय लोकेश के साथ विद्रोही के घर पर पहले से ही नजर रखे हुए था. हरेंद्र बैठा और महेसी सिंह महेसिया साथियों की सुरक्षा के लिए दूसरी मोटरसाइकिल लिए चौक पर खड़े थे.

इशारा मिलते ही अजय मोटरसाइकिल ले कर विद्रोही के पीछे चल पड़े. उस की मोटरसाइकिल पर पीछे लोकेश बैठा था. वह अजय विद्रोही पर घात लगाए था. अजय विद्रोही का पीछा करता हुआ अजय चौक के पास पहुंच गया. उस के पीछेपीछे हरेंद्र और महेसी सिंह भी गाड़ी ले कर चल रहे थे.

रात काफी हो चुकी थी. बाजार लगभग बंद हो चुका था. वारदात को अंजाम देने का उन के लिए यह अच्छा मौका था. अजय की मोटरसाइकिल जैसे ही अजय विद्रोही के करीब पहुंची, लोकेश ने 2 गोलियां उन के सीने में उतार दीं. गोली लगते ही वह सडक़ पर गिर कर तड़पने लगे. इस के बाद चारों बदमाश फरार हो गए.

गोली चलने की आवाज सुन कर दुकानदारों ने शटर गिराने शुरू कर दिए. कुछ सहानुभूति दिखाने के लिए पत्रकार अजय विद्रोही के पास पहुंच गए. वे अजय को टैंपो द्वारा जिला चिकित्सालय ले गए, जहां डाक्टरों ने उन्हें घोषित कर दिया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस ने हत्याकांड में शामिल अभियुक्तों में दीपक सिंह, अशोक सिंह, लोकेश सिंह और जग्गा को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. पुलिस दबाव के कारण 8 जनवरी, 2016 को अभियुक्त हरेंद्र बैठा ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया था.

इस के ठीक 2 दिनों बाद 10 जनवरी को महेसी सिंह महेशिया को पुसिल ने सीतामढ़ी से ही गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भी अजय विद्रोही हत्याकांड में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली थी. भूमाफिया जयप्रकाश अग्रवाल फरार चल रहा था. कथा लिखे जाने तक वह पुलिस की पकड़ से दूर था. इस मामले में राजस्व विभाग के एक अधिकारी को दोषी पाए जाने पर उसे निलंबित कर दिया गय था. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी.

कलम की बदौलत सच उगलने पर अपनी जान गंवाने वाले अजय विद्रोही पहले पत्रकार नहीं थे. ऐसे न जाने कितने विद्रोहियों को मौत के मुंह में जाना पड़ा है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कातिल ही बन गया हत्या का चश्मदीद गवाह

20 जनवरी, 2022 की सुबह के करीब 7 बज रहे थे. कभी न सोने वाले शहर मुंबई के भिवंडी इलाके में सुबहसुबह लोग अपने घरों से काम के लिए निकले थे. कुछ पैदल तो कुछ आटोरिक्शा में, कुछ अपनी गाडि़यों में, हर कोई अपने काम पर पहुंचने के लिए भाग रहा था.

ऐसे ही पैदल काम पर जा रहा एक शख्स जोकि भिवंडी के रुपाला ब्रिज के नीचे से होते हुए सड़क के दूसरी ओर जा रहा था, उसे ब्रिज के नीचे झाडि़यों के पास एक बड़ी सी सफेद रंग की बोरी दिखाई दी. उस बोरी का मुंह ऊपर से बंधा हुआ था.

यह देख उस शख्स के कदम धीमे हो गए और वह रुक गया. उस ने बोरे पर नजर डाली तो देखा उस बोरी के अंदर से खून निकला था, जिस से वहां आसपास की जमीन भी लाल हो गई थी. यह देख उस शख्स के माथे पर पसीना आ गया. उसे यही लग रहा था कि जरूर इस बोरी में किसी की लाश है. यह देख उस ने आसपास चलते हुए लोगों को बुला कर ब्रिज के नीचे बोरे में लाश पड़ी होने के बारे में बताया. इस के बाद उस युवक ने पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर के इस बारे में सूचना दी.

सूचना मिलते ही भिवंडी के निजामपुरा थानाप्रभारी नरेश पवार के नेतृत्व में पुलिस की टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. जिस शख्स ने फोन कर पुलिस को इस बारे में सूचना दी थी, पुलिस ने उस से पूछताछ की. उस शख्स ने थानाप्रभारी नरेश पवार को जो कुछ उस ने देखा था, वह सब बयान कर दिया.

पुलिस ने जब वह बोरी खोली तो अंदर खून से लथपथ एक व्यक्ति की लाश निकली. उस के सिर, गरदन, सीने, चेहरे लगभग हर जगह पर जख्म के काफी गहरे निशान थे. लाश की पहचान वहां जमा भीड़ नहीं कर पाई. लाश के कपड़ों में से सिर्फ डाक्टर की एक परची और एक हैडफोन मिला, जिसे पुलिस ने सबूत के तौर पर अपने पास रख लिया. लेकिन उस की जेब में कहीं कोई पहचानपत्र, पैसे या और कोई चीज नहीं बरामद हुई.

थानाप्रभारी नरेश पवार की मुश्किलें और भी बढ़ गईं. थानाप्रभारी बारबार डैडबौडी को देख रहे थे कि किसी तरह से लाश की पहचान हो जाए तो मामला सुलझाने में मदद मिले. व्यक्ति के कपड़ों से डाक्टर की जो परची मिली थी, वह पुलिस के लिए एक बड़ी लीड थी.

पुलिस टीम ने सबूत जुटाने के लिए आसपास के इलाकों की अच्छी तरह से छानबीन की, लेकिन उन्हें किसी तरह के कोई और ठोस सबूत नहीं मिले. लेकिन जब थानाप्रभारी नरेश पवार ने व्यक्ति की कमीज को बहुत ध्यान से देखा तो उन का दिमाग अचानक से घूम गया.

दरअसल, व्यक्ति ने लाल रंग की शर्ट पहनी हुई थी, जिस में सुनहरे रंग के छोटेछोटे धब्बे पूरी शर्ट पर मौजूद थे. यह देख उन्हें अचानक से याद आया कि ऐसे सुनहरे रंग के छोटे धब्बे अकसर मोतियों की फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के कपड़ों पर दिखाई पड़ते हैं.

थानाप्रभारी ने इस मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस की 3 टीमों का गठन कर दिया. भिवंडी के एसपी प्रशांत धोले ने एक टीम को डाक्टर के पास पूछताछ करने के लिए भेजा, दूसरी टीम को उन्होंने आसपास के सभी मोतियों की फैक्ट्री में पूछताछ के लिए भेजा और तीसरी टीम को आसपास के सभी पुलिस थानों में किसी के गुमशुदा होने का पता लगाने के लिए भेजा.

हत्या के इस मामले की छानबीन करने के लिए पहली टीम शव की कमीज की जेब से बरामद हुई डाक्टर की मुड़ीतुड़ी, खून से भीगी हुई परची की मदद से एक डाक्टर के पते पर पहुंची. इस डाक्टर की दुकान भिवंडी के खोनी गांव में अब्दुल्लाह मसजिद के पास थी. यह कोई बहुत बड़ा डाक्टर नहीं था, बल्कि वह बीएससी पास डाक्टर था, जोकि मरीजों को छोटेमोटे मर्ज की दवा दे दिया करता था.

पुलिस ने जब डाक्टर को परची दिखाते हुए यह पूछा कि क्या वह इस मरीज को जानता है जोकि 2 दिन पहले ही उस के पास से दवा ले कर गया था तो जवाब में डाक्टर ने कहा कि वह दिन भर करीब 100 मरीजों को देखता है. कौन, कब, किस चीज के लिए आया, वह इस की पहचान नहीं कर सकता.

टीम को डाक्टर से कुछ ठोस काम का सुराग नहीं मिला. लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने एक और तरीका आजमाया. उन्होंने उस डाक्टर की दुकान के पास जितने भी फार्मेसी (दवाई) की दुकानें थीं, उन सभी से पूछताछ की. लेकिन अफसोस कहीं से भी कुछ भी काम नहीं आया.

एक तरफ जहां पहली टीम डाक्टर के पते पर मृत व्यक्ति की पहचान के लिए पहुंची थी तो वहीं दूसरी टीम निजामपुरा इलाके में जितने भी पर्ल वर्कशौप (मोतियों की फैक्ट्री) थीं, उन सभी में पूछताछ के लिए पहुंची. दूसरी टीम ने एकएक कर सभी फैक्ट्री मालिकों से उन के मजदूरों के बारे में पूछा कि क्या उन की फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों में से कोई था, जो 2 दिन से बिना बताए छुट्टी पर रहा हो.

निजामपुरा इलाके में काफी बड़ी संख्या में पर्ल वर्कशौप (फैक्ट्री) थीं, जिन्हें एक दिन में कवर कर पाना संभव नहीं था. ऐसी स्थिति में दूसरी टीम को भी कुछ खास लीड नहीं मिली. पुलिस की पहली और दूसरी टीम को अपनेअपने टास्क दिए हुए थे तो तीसरी टीम भी अपना टास्क पूरा करने के लिए मैदान में उतरी हुई थी. तीसरी टीम का काम आसपास के सभी इलाकों के पुलिस थानों में लापता लोगों की सूची तैयार करना और उन के बारे में पता लगाना था. इस काम को करने के लिए सब से पहले आसपास के इलाकों के थानों में पहले ही फोन कर जरूरी सूचना दे दी गई.

कुछ देर बाद आसपास के पुलिस थानों से तीसरी टीम को जो कुछ जानकारियां हासिल हुईं, वह उन की मांगी हुई जानकारियों से मेल नहीं खा रही थीं. इस में जरूरी यह भी था कि हो सकता है कि हत्या को अंजाम एक दिन में ही दिया गया हो तो यह संभव है कि व्यक्ति के शव का पता लगाने के लिए अभी तक उस के घरपरिवार वाले पुलिस थाने में उस की गुमशुदगी के लिए न पहुंचे हों. ऐसे में पुलिस के पास इंतजार करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता बचा नहीं था.

पुलिस द्वारा बनाई गई तीनों टीमों के हाथ कोई ठोस सबूत या सुराग नहीं मिल पाया, जिस के दम पर आगे की छानबीन की जा सके. 20 जनवरी, 2022 की शाम तक मकतूल (कत्ल किए गए व्यक्ति) की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ चुकी थी, लेकिन उस की पहचान अभी तक पुलिस की टीम नहीं कर पाई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार व्यक्ति के सिर पर गहरी चोट और ज्यादा खून बह जाने की वजह से उस की मौत हुई थी. लेकिन सिर्फ पोस्टमार्टम रिपोर्ट को ले कर केस सुलझाना आसान नहीं था. इस केस का अगला चैप्टर अगले दिन 21 जनवरी, 2022 को उस समय खुला, जब एक व्यक्ति, जिस का नाम मोहम्मद सलमान था, वह शाम को निजामपुरा थाने में पहुंचा. थानाप्रभारी को उस ने खुद को उस व्यक्ति की हत्या का चश्मदीद गवाह बताया. यह सुन कर थानाप्रभारी और केस में जुड़े अन्य पुलिसकर्मी दंग रह गए.

इतनी मशक्कत करने के बाद आखिरकार पुलिस के हाथों ऐसा बिंदु मिल गया था, जिसे आधार बना कर वे हत्यारों को पकड़ सकते थे. और यह अहम गवाह खुद चल कर पुलिस थाने में आया था. एक पल के लिए पुलिस को सलमान पर शक तो हो रहा था, लेकिन इस मामले में सिवाए उस के और कोई भी जरूरी तथ्य मौजूद नहीं था.

उस ने पुलिस को बताया कि हत्या के समय वह मौकाएवारदात से मात्र 50 मीटर की दूरी पर था और उस व्यक्ति की हत्या होते हुए अपनी आंखों से देखी थी. उस ने बताया कि जिस की हत्या हुई थी, उस की शक्ल वह नहीं देख पाया था. लेकिन उस ने हत्यारों को देखा था. उस ने पुलिस को इस मामले के बारे में सब कुछ बताने की बात कही.

लिहाजा निजामपुरा पुलिस की टीम सलमान को अपने साथ मौकाएवारदात पर ले गई और सलमान ने बारीबारी से जो कुछ अपनी आंखों से देखा था, वह सब बताया. उस ने हत्या की उस घटना को बारीकी से बयान किया. पुलिस ने जब उस से पूछा कि क्या वह हत्यारों की पहचान कर सकता है तो उस ने कहा कि अगर कोई उन्हें उस के सामने ले कर आए तो वह उन की पहचान कर सकता है.

ऐसे में पुलिस ने भिवंडी के आर्ट कालेज से एक छात्र को हत्यारे का स्केच बनाने के लिए बुलाया. अगले दिन 22 जनवरी की सुबह 10 बजे तक सलमान के कहे अनुसार स्केच आर्टिस्ट ने हत्यारे का स्केच बना कर तैयार कर दिया. उस स्केच की कौपी निजामपुरा पुलिस थाने के जरिए आसपास के सभी थानों में भेजी गई ताकि उस शक्ल का कोई व्यक्ति यदि पुलिस के रेकौर्ड में पहले से मौजूद हो तो उसे जल्द ही पकड़ लिया जाए. लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ. सलमान ने जिस व्यक्ति का स्केच बनवाया था, वह पुलिस रेकौर्ड में कहीं पर भी पाया नहीं गया.

अभी पुलिस इस मामले की तह तक पहुंचने से काफी दूर थी कि निजामपुरा पुलिस थाने के पास शांतिनगर पुलिस थाने से एक खबर आई. खबर यह थी कि एक महिला, जिस का नाम नजमा बानो (बदला हुआ नाम) था, वह थाने में अपने 45 वर्षीय पति की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कराने पहुंची थी.

थानाप्रभारी ने बिना समय गंवाए तुरंत 2 पुलिसकर्मियों की एक टीम को उस महिला को निजामपुरा थाने ले कर आने को कहा. नजमा बानो से पूछताछ में पता चला कि उस का पति अरमान शेर अली 2 दिन से घर पर नहीं आया है. उस ने बताया कि इस से पहले उस ने कभी भी ऐसा नहीं किया.

उस ने बताया कि वह काम के अलावा जहां कहीं भी जाते थे, तो उसे अपने साथ ले कर जाते थे या फिर बता कर जाते थे. वह कभी भी घर से कहीं रात गुजारने के लिए नहीं गए. अभी थाने में नजमा बानो से पूछताछ चल ही रही थी कि मामले की तह तक जाने के लिए जिन 3 टीमों का गठन किया गया था, उस में से दूसरी टीम को भी अहम लीड हाथ लगी.

दूसरी टीम इलाके में पर्ल वर्कशौप पर छानबीन कर रही थी तो पता चला कि एक फैक्ट्री में 45 वर्षीय एक मजदूर, जोकि पिछले 7-8 सालों से काम कर रहा था, वह पिछले 3 दिनों से काम पर नहीं आया था. टीम ने थानाप्रभारी को सूचना दी कि उस मजदूर का नाम अरमान शेर अली शाह था और वह 3 दिनों से छुट्टी पर था, वह भी बिना बताए.

इस मामले की कडि़यां एकएक कर के जुड़ती जा रही थीं. ऐसे में नजमा को अरमान शेर अली शाह की पहचान के लिए उस मृत व्यक्ति के फोटो दिखाए. नजमा ने तो उसे पहचानने से इनकार कर दिया. लेकिन नजमा के बेटे शारिक शाह ने शव की पहचान अपने पिता शेर अली शाह के रूप में कर ली.

शव का चेहरा देख उस की पहचान कर पाना मुमकिन नहीं था, लेकिन शारिक ने पुलिस को बताया कि उस के पिता की गरदन के पास एक बर्थ मार्क था, जोकि शव की गरदन पर भी था. ऐसे में दोनों मांबेटे को पतिपिता के खोने के दुख में बहुत गहरा सदमा लगा.

22 जनवरी, 2022 की शाम तक पुलिस की टीम को कुछ ऐसा हाथ लगा, जिस से मामला साफ हो गया. मोहम्मद सलमान, जिस ने खुद को इस मामले का एकमात्र चश्मदीद गवाह करार दिया था, असलियत में सारे मामले की जड़ वही था.

दरअसल, सलमान पर पुलिस को पहले दिन से ही शक था, जिसे दूर करने के लिए थानाप्रभारी नरेश पवार ने अंदर ही अंदर एक और टीम को तैनात किया था जिस का काम सलमान के दावों की सच्चाई जानना था. सलमान की गुप्त छानबीन में उस की काल डिटेल्स खंगाली गई तो पता चला कि जिस रात उस ने हत्या होते हुए देखने का दावा किया, उस रात को उस ने शेर अली शाह को कई फोन किए थे.

सिर्फ यही नहीं, पुलिस ने जब सलमान के पिछले ट्रैक रेकौर्ड को देखा तो पता चला कि जिस परोल रोड पर रुपाला ब्रिज के नीचे हत्या होने की बात कही, दरअसल उस रोड पर वह इस से पहले कभी गया ही नहीं था. सलमान के रेकौर्ड पुलिस के सामने कई सवाल उठा रहे थे. ऐसे में पुलिस ने सलमान को हिरासत में लिया और उस से सख्ती से पूछताछ की. वह पुलिस के सवालों के आगे ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया. उस ने पुलिस के सामने जब सच्चाई बयान की तो सभी सुनने वालों के होश उड़ गए.

सलमान ने बताया कि जिस पर्ल वर्कशौप में शेर अली शाह काम करता था, वहीं पर करीब 2 साल पहले 30 वर्षीय तसलीम अली अंसारी काम करने के लिए आया था. जहां पर उन दोनों की दोस्ती हुई. समय बीता तो दोनों की दोस्ती गहरी होती गई. दोनों ने एकदूसरे के घर पर आनाजाना शुरू कर दिया. लेकिन इसी दौरान तसलीम और शेर अली शाह की पत्नी नजमा बानो के बीच जानपहचान बढ़ती गई.

शेर अली जब घर पर नहीं होता था, उस समय तसलीम उस के घर पर आताजाता था. लेकिन दोनों के बीच बन रहे इस नए रिश्ते की डोर ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रही. शेर अली को जल्द ही उस की पत्नी और तसलीम के बीच पनप रहे रिश्ते की खबर लग गई. तभी से उन की दोस्ती में दरार पैदा हो गई और शेर अली ने तसलीम को धमकी देते हुए अपने घर न आने की हिदायत दी. लेकिन शेर अली के रोकने से उन दोनों के बीच रिश्ते खत्म नहीं हुए.

नजमा के लिए तसलीम का प्यार परवान चढ़ता जा रहा था. वह नजमा के लिए कुछ भी करने को तैयार था. लेकिन वहीं दूसरी ओर शेर अली ने नजमा पर पाबंदियां बढ़ा दीं. वह जहां कहीं भी जाता, नजमा को अपने साथ ले कर जाने लगा. यहां तक कि शेर अली काम पर भी नजमा को साथ ले कर जाने लगा. यह बात तसलीम को बहुत खलने लगी. वह नजमा के साथ अपनी पूरी जिंदगी गुजारना चाहता था, लेकिन शेर अली द्वारा नजमा पर पाबंदियों से वह बेहद परेशान रहने लगा.

इसी से छुटकारा पाने के लिए और नजमा को अपने साथ उत्तर प्रदेश अपने गांव भगा ले जाने के लिए उस ने शेर अली को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. उस ने सलमान जोकि शेर अली को जानता था, उस के जरिए 19 जनवरी, 2022 की रात को शेर अली को फोन करवाया. सलमान ने शेर अली से बात कर कहा कि तसलीम उस के जीवन से हमेशा के लिए निकल जाएगा, बस एक बार वो उस से मिलना चाहता है. आखिरी बार मिलने के लिए शेर अली सलमान की बात मान गया और उस रात साढ़े 10 बजे रुपाला ब्रिज के नीचे पहुंच गया.

शेर अली के रुपाला ब्रिज के पास पहुंचते ही तसलीम, सलमान और उन के साथ एक और युवक चंदबाबू अंसारी तीनों ने मिल कर शेर अली पर हमला कर दिया. वे अपने साथ लोहे की रौड ले कर आए थे, जिस से उन्होंने शेर अली के सिर, गरदन और चेहरे पर जोरदार वार किए. सिर पर चोट और ज्यादा खून बह जाने की वजह से शेर अली की मौत हो गई. जिस के बाद वह शेर अली की लाश को प्लास्टिक की सफेद रंग की बोरी में डाल कर वहां से भाग निकले.

सलमान को पुलिस के पास जा कर हत्या का चश्मदीद बनने का प्लान भी तसलीम ने ही दिया था. वह पुलिस की तफ्तीश को भटकाना चाहता था. उसे यकीन था कि कुछ ही दिनों में यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा, जिस के बाद कोई उन के पीछे नहीं पड़ेगा. लेकिन अफसोस उन का यह प्लान असफल रहा. सलमान के सच उगलने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. साथ ही 48 घंटों के भीतर ही सलमान की निशानदेही पर बाकी दोनों आरोपियों को भिवंडी में एक कालोनी से गिरफ्तार कर लिया.

सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सोफे में छिपाई लाश का राज

मुंबई से सटे ठाणे स्थित चर्चित कालोनी डोंबीवली में ओम साईं रेजीडेंसी की एक बिल्डिंग में किशोर शिंदे का परिवार 14 फरवरी की सुबह तक काफी खुशहाल जिंदगी गुजार रहा था. सुबहसुबह शिंदे अपने औफिस जाने की तैयारी कर रहे थे. पत्नी सुप्रिया उन के लिए नाश्ता लगा चुकी थी.

नाश्ता कर निकलते समय जब सुप्रिया ने अपने पति शिंदे को लंच का टिफिन पकड़ाया, तब उन की नजर पत्नी के उतरे हुए चेहरे पर ठहर गई. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या बात है सुप्रिया, तुम सुस्त दिख रही हो?’’

‘‘हां, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है.’’ सुप्रिया धीमी आवाज में बोली.

‘‘घर का काम ज्यादा करने की आज जरूरत नहीं है. तुम आराम कर लो, कपड़े मशीन में डाल कर छोड़ देना, ड्यूटी से आ कर चला दूंगा… रात को कपडे़ धुल जाएंगे,’’ शिंदे ने कहा.

‘‘लेकिन श्लोक स्कूल जा चुका है, दोपहर को उसे लाना होगा.’’ सुप्रिया बोली.

‘‘कोई बात नहीं, स्वाति को बोल देना वह उसे अपने बच्चों के साथ ही लेती आएगी.’’

‘‘ठीक है, वैसे एकडेढ़ घंटे की नींद ले लूंगी, तब ठीक हो जाएगा. सिर दर्द ही तो है,’’ सुप्रिया बोली.

‘‘ठीक है. कुछ खाना खा कर सिरदर्द की दवा ले लेना. मैं निकलता हूं,’’ कहते हुए शिंदे अपना बैग और टिफिन ले कर मुंबई के लिए निकल पड़े. पहले वह लोकल ट्रेन पकड़ कर चर्चगेट जाते, फिर उन्हें बस ले कर औफिस तक जाना होता था. परिवार में सदस्य के नाम पर सुप्रिया और उन का 10 साल का बेटा श्लोक था. बेटे का स्कूल हाल में ही खुला था. उसे लाने के लिए दोपहर में सुप्रिया उस के स्कूल तक जाती थी.

शाम के करीब साढ़े 4 बजे स्वाति ने शिंदे को फोन कर पूछा कि सुप्रिया श्लोक को लेने स्कूल क्यों नहीं आई? इस पर शिंदे अनमने भाव से बोले, ‘‘हां, सुबह उस ने बताया था कि उस की तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है, इसलिए नहीं गई होगी. श्लोक घर आ गया न?’’

‘‘हां श्लोक तो मेरे साथ आ गया है, लेकिन घर पर मां को नहीं पा कर मुझ से ही उस के बारे में पूछने आया था. मेरे घर पर ही नाश्ता किया और अभी श्लोक दोस्तों के साथ ग्राउंड में खेलने गया हुआ है,’’ स्वाति बोली.

‘‘सुप्रिया घर पर नहीं है? वह कहां गई होगी?’’ शिंदे चिंतित हो कर बोले.

‘‘यही पूछने के लिए तो मैं ने आप को फोन किया है. उस का फोन भी नहीं मिल रहा है, मैं घर जा कर भी देख चुकी हूं. घर का दरवाजा भी बंद है. श्लोक का स्कूल बैग भी बाहर बरामदे में पड़ा है. भाईसाहब, मुझे तो डर लग रहा है, आप जल्द आ जाइए.’’ स्वाति घबराहट भरी आवाज में बोली.

‘‘घर पर भी नहीं है. फिर कहां गई होगी? दवा वगैरह लाने या डाक्टर के पास तो नहीं गई? कहीं तबीयत ज्यादा तो नहीं बिगड़ गई उस की? अभी मैं उसे फोन करता हूं.’’ शिंदे बोले और तुरंत सुप्रिया को मोबाइल पर फोन करने के लिए स्वाति का काल डिसकनेक्ट कर दिया.

शिंदे ने सुप्रिया को फोन मिलाया. लेकिन उस का फोन बंद आ रहा था. शिंदे चिंतित हो गए. तब उन्होंने पड़ोसी दोस्त को घर जा कर सुप्रिया का पता करने को कहा. दोस्त ने भी 5 मिनट में आ कर वही सब बताया जो स्वाति ने कहा था. शिंदे ने फटाफट औफिस का बचा काम निपटाया और शाम के 7 बजे तक घर आ गए.

घर का दरवाजा भीतर से बंद था. बेटा श्लोक ग्राउंड से खेल कर घर आ चुका था. बरामदे में कुछ पड़ोसी भी जमा थे. सुप्रिया बाहर जाने पर अकसर घर की चाबी अपने पड़ोसी के पास छोड़ जाती थी. लेकिन उस रोज सुप्रिया ने ऐसा नहीं किया था.

इसे ले कर एक सवाल सभी के मन में कुलबुला रहा था कि आखिर सुप्रिया कहां है? खैर, शिंदे ने अपने बैग से घर के इंटरलौक की एक्सट्रा चाबी से मेन दरवाजा खोला. अंदर कमरे में उन के साथ कई लोग दाखिल हुए. भीतर का माहौल सामान्य था. कमरे में लाइटें जल रही थीं.

कुछ पल वे कमरे में रुके. उन की आंखें सुप्रिया को तलाश रही थीं. उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से उस के बारे में पूछा. किसी ने भी सुप्रिया के बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. यहां तक कि सभी ने कहा कि उन की उस रोज सुप्रिया से मुलाकात ही नहीं हुई थी. शिंदे को मामला कुछ संदिग्ध लगा. वह अधिक समय गंवाए बगैर अपने खास दोस्तों के साथ डोंबीवली मानपाड़ा पुलिस थाने गए. थानाप्रभारी के पास जा कर उन्होंने सुप्रिया की गुमशुदगी की सूचना लिखवा दी.

इधर शिंदे के घर पर कुछ पड़ोसियों की नजर एक सोफे पर टिक गई, जो खिसका कर दोबारा उसी जगह पर सेट किए जाने जैसा दिख रहा था. ऐसा जमीन पर बने ताजा निशान से पता चल रहा था. लोगों को वह निशान कुछ संदिग्ध लगा.

वे यह नहीं समझ पाए कि सोफे को दीवार से सटा कर क्यों लगाया गया है, जबकि सुप्रिया इस के खिलाफ रहती थी. वह हमेशा दीवार पर निशान पड़ने से बचाने के लिए दीवार से थोड़ी दूरी बना कर रखती थी. जमीन पर भी कुछ निशान ऐसे बने हुए थे, जो अधूरी सफाई लगते थे.

पड़ोसियों में से एक ने सोफे को खींचने का प्रयास किया. वह भारी महसूस हुआ, खिसक नहीं पाया. जबकि वह बैड कम सोफा आसानी से खिसकाया जाने वाला था. सोफा ऊपर से गीला भी दिख रहा था. उसे 2 लोगों ने ताकत से जैसे ही खिसकाया, उस के नीचे का हिस्सा एक झटके में अपने आप बाहर की ओर निकल आया. उसे देख कर सभी की आंखें फटी रह गईं. उस में सुप्रिया बेजान पड़ी थी. उसे सोफे में ठूंस कर डाला गया था. पैर मुड़े हुए थे. सिर आगे की ओर झुका और गरदन टेढ़ी थी. चेहरा आधा ही दिख रहा था.

इस की सूचना तुरंत पुलिस को दी गई. संयोग से शिंदे भी वहीं थे. पुलिस जिसे गुमशुदा के रूप में तलाश कर रही थी, उस के घर में ही मिलने की सूचना मिल गई थी. पुलिस टीम 10 मिनट में ही शिंदे को साथ ले कर आ गई. पुलिस टीम में सीनियर इंसपेक्टर शेखर बागड़े, इंसपेक्टर अनिल पडवल, एपीआई मनीषा जोशी और अविनाश वनवे शामिल थे.

पुलिस के आला अधिकारियों की टीम के सामने सुप्रिया की लाश को सोफे से बाहर निकाला गया. उस के सिर पर चोट के निशान थे. मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. मौके की प्रारंभिक काररवाई पूरी करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. इस मामले की जानकारी एडिशनल पुलिस कमिश्नर (पूर्वी क्षेत्रीय संभाग) कल्याण के दत्तात्रेय कराले, डीसीपी सचिन गंजाल, और डोंबीवली डिवीजन के एसीपी जे.डी. मोरे को भी दे दी गई.

शिंदे और सभी पड़ोसियों समेत पुलिस के सामने कई सवाल खड़े हो चुके थे. उन में मुख्य थे कि सुप्रिया की हत्या किस ने की? उन की हत्या के पीछे कारण क्या हो सकता है? हत्यारा घर में घुस कर वारदत में सफल कैसे हो गया? क्या वह पहले से सुप्रिया को जानता था?

सुप्रिया की लाश को पोस्स्मार्टम के लिए भेजने से पहले की गई शुरुआती जांच में पुलिस ने हत्या के कुछ बिंदुओं को भी नोट किया.

प्राथमिक जांच रिपोर्ट के अनुसार पुलिस के सामने अनगिनत सवाल थे. सुप्रिया के सिर पर चोट के निशान थे. वहां खून फैला नजर आया था. गरदन नायलोन की रस्सी और केबल से टाइट बंधी हुई थी. गरदन पर छिलने जैसे जख्म के निशान थे.

इसी तरह पुलिस ने कमरे की जांच में पाया कि सोफे को अपनी जगह से हटाया गया था. सिर पर लगे चोट से निकले खून के निशान को फर्श से साफ कर दिया गया था. अपराधी ने वैसा एक भी निशान नहीं छोड़ा था, जिस से उस की पहचान हो सके. घर का दरवाजा बंद होने का मतलब था कि अपराधी वारदात के बाद आराम से घर को बंद कर चला गया होगा. यानी अपराधी घर की बहुत सी जानकारियों से वाकिफ रहा होगा.

पुलिस ने जांच के सिलसिले में 37 वर्षीय किशोर शिंदे से भी पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वे महाराष्ट्र में सतारा जिले के रहने वाले हैं. उन का पैतृक गांव सतारा जिले के कराड तहसील में है. उन की उसी जिले की सुप्रिया से 12 साल पहले शादी हुई थी. वे पिछले साल ही इस रेजीडेंसी के फ्लैट में रहने आए थे. उन्होंने हाल में ही इसे खरीदा था. इस से पहले भी किशोर इसी इलाके में एक कमरे के मकान में किराए पर रहते थे.

इसी के साथ किशोर ने यह भी बताया कि उन का इलाके में किसी के साथ कभी कोई मतभेद नहीं हुआ था. उन की पत्नी शिक्षित महिला थी. उन का स्वभाव काफी मिलनसार था. पासपड़ोस के लोगों के साथ अच्छे मधुर संबंध थे. किशोर को ड्यूटी से घर लौटते हुए अकसर देर हो जाती थी. घर का अधिकतर काम सुप्रिया ही संभालती थी.

पुलिस का ध्यान अपराधी के घर में घुसने की दिशा में जांच की ओर भी गया. कालोनी के परिसर में बिल्डिंग के पास लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज निकलवाई गई. इसी दरम्यान बिल्डिंग के ही एक व्यक्ति ने पुलिस को सुप्रिया के घर के बाहर एक जोड़ी चप्पलें देखने की बात भी बताई. उस का कहना था कि शिंदे परिवार के लोग अपनी चप्पलें हमेशा स्टैंड पर रखते रहे हैं. स्टैंड भी बरामदे में एक कोने में था. बरामदे के बाहर चप्पल होने का मतलब किसी बाहरी व्यक्ति का घर में आना था.

पुलिस के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी कि शिंदे के घर के बाहर एक से डेढ़ बजे के बीच जो चप्पलें देखी गई थीं, उस की पहचान की जाए. इस की जानकारी देने वाले व्यक्ति को तरहतरह के चप्पलों की तसवीरें दिखाई गईं. उस ने कुछ तसवीरें देख कर शिंदे के घर के बाहर पाए गई चप्पलों की पहचान कर ली. यह भी बताया कि ऐसी चप्पलें इस इलाके में एक व्यक्ति पहनता है.

इसी के साथ जांच कर रही पुलिस को ध्यान आया कि थाने में किशोर शिंदे के साथ सुप्रिया की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने आया युवक भी इसी तरह की चप्पलें पहने हुए था. शिंदे से उस युवक के बारे में जानकारी ली गई. वह शिंदे की बिल्डिंग से कुछ दूरी पर रहने वाला विशाल था. उस का शिंदे के घर पहले भी 2-3 बार आना हुआ था. उसे उसी वक्त पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

युवक ने अपना नाम बताने से पहले बताया कि उसी ने तो शिंदे को पत्नी के लापता होने की शिकायत लिखवाने के लिए कहा था. पुलिस ने जब पूछा कि उसे कैसे पता था कि सुप्रिया लापता ही है? इस सवाल पर वह सकपका गया. उस के चेहरे के उड़ते रंग को देख कर पुलिस ने जबरदस्त डांट लगाई. उस का पूरा नामपता पूछा. तब युवक ने अपना नाम विशाल भाऊ भाट बताया. उस के बाद सुप्रिया हत्याकांड के बारे में उस ने जो चौंकाने वाली कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

दरअसल, 27 वर्षीय विशाल ठाणे जिले में मुरवाड़ी तहसील के घावसड़ी गांव का रहने वाला था. उस के मातापिता और भाईबहन गांव में ही रहते थे. ओम रेजीडेंसी के इलाके में ही वह किराए का कमरा ले कर रहता था. उस की नवी मुंबई में प्राइवेट नौकरी थी. उस की कई बुरी आदतों में मोहल्ले की लड़कियों और औरतों पर नजर गड़ाए रखना भी था. वह उन्हें कामुक निगाहों से निहारता रहता था. उन से संपर्क बनाने के मौके भी ढूंढने की कोशिश करता था.

उस ने पुलिस को बताया कि उस की नवी मुंबई में ही एक प्रेमिका भी थी, जो किसी दूसरे शहर की रहने वाली थी. बीते 3 माह से वह अपने घर चली गई थी, उस के बाद से वह नहीं लौटी थी. उसे याद कर विशाल की रातें तन्हाई में गुजरती थीं. उस की कल्पनाओं में खोया रहता था.

इन्हीं दिनों उस की निगाह सुप्रिया पर पड़ी थी. वह कई दिनों से उस की दैनिक गतिविधियों पर नजर गड़ाए हुए था. विशाल सुप्रिया से अकेले में मिलने को व्याकुल हो गया था. एक दिन विशाल को तब मौका मिल गया, जब वह एक मैगजीन की दुकान पर पुरानी सरिता और गृहशोभा पत्रिकाओं की मांग कर रही थी.

दुकानदार के पास उस समय वे पत्रिकाएं नहीं थीं. संयोग से विशाल भी वहीं था. विशाल ने झट कहा कि पुरानी मैगजीन की दुकान के बारे में वह जानता है. नवी मुंबई में जहां वह काम करता है, उस के पास ही है. सुप्रिया ने उस की बात पर विश्वास कर के सरिता और गृहशोभा के उन अंकों की लिस्ट उसे दे दी, जिन की उसे जरूरत थी और कहा कि इन में से जो भी मिल जाएं, वह ले आए. यह बात घटना के ठीक 2 दिन पहले की है.

विशाल 14 फरवरी, 2022 की दोपहर को किताबों का एक पैकेट ले कर सुप्रिया के घर आ गया. कालबेल की 3-4 आवाज सुन कर सुप्रिया ने दरवाजा खोला. वह अलसाई हुई थी. अपना दुपट्टा संभालती हुई उस ने पूछा, ‘‘आप?’’

बरामदे से बाहर विशाल खड़ा था. सुप्रिया चार कदम चलती हुई उस के पास आ गई.

‘‘यह लीजिए मैडम, आप की मैगजीन. सारी की सारी मिल गईं, जिन की आप को जरूरत थी,’’ विशाल ने हाथ में पकड़ा पैकेट सुप्रिया की ओर बढ़ा दिया.

‘‘थैंक्यू, आप मेरी वजह से कितने परेशान हुए.’’ विशाल के हाथ से पैकेट लेते हुए सुप्रिया बोली.

पैकेट ले कर अंदर जाने के लिए मुड़ते हुए विशाल से उस ने कहा, ‘‘आइए न, इस का पैसा भी तो देना होगा न.’’

विशाल बरामदे की सीढि़यां चढ़ कर अपनी चप्पलें उतार कर सुप्रिया के पीछे हो लिया. कुछ सेकेंड में सुप्रिया और विशाल हाल में थे. उन के हाल के गेट में आटोमेटिक लौक लगा हुआ था.

सुप्रिया ने विशाल को सोफे पर बैठने को कहा और उस के लिए पानी लाने चली गई. तुरंत ही पानी का गिलास भी ले आई. विशाल धीरेधीरे पानी पीने लगा और सुप्रिया मैगजीन का पैकेट खोलने लगी. पैकेट के खुलते ही सुप्रिया चौंक पड़ी. उस के हाथ से कुछ पत्रिकाएं नीचे जमीन पर गिर गईं. विशाल कुटिलता से बोला, ‘‘क्यों पसंद नहीं आईं? इस से भी अच्छी किताबें वहां मिलती हैं.’’

‘‘बदतमीज, निकल जा यहां से. तूने क्या समझ लिया, मैं यह लाने को बोली थी?’’ सुप्रिया चीखती हुई बोली.

विशाल सरिता और गृहशोभा के बजाय अश्लील मैगजींस लाया था. उसे देखते ही सुप्रिया नाराज हो गई थी.

‘‘ज्यादा सती सावित्री मत बनो. मैं सब जानता हूं, तुम जैसी सैक्स की भूखी औरतों के बारे में. नाटक करती हैं हरामजादी.’’ यह कहते हुए विशाल ने सुप्रिया का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया. इस तरह विशाल के बदले हुए तेवर और अचानक हुए हमले से सुप्रिया अनजान थी. वह उस के ऊपर गिर पड़ी. पास रखा कांच का गिलास जमीन पर गिर कर टूट गया. कुछ पानी भी फैल गया.

सुप्रिया विशाल को धकेलती हुई उठ खड़ी हुई. जमीन पर बिखरा कांच उस के पैर में चुभ गया. जिस से खून निकल आया. वह वहां से भाग कर दूसरे कमरे में जाने लगी. तब तक विशाल और भी सैक्स का उन्मादी बन  चुका था. वह सुप्रिया को फिर से दबोचने की कोशिश करने लगा, लेकिन वह उस की पकड़ से बचती रही. अंतत: उस की गरदन विशाल की पकड़ में आ गई.

विशाल ने सुप्रिया को काबू में लाने के लिए नायलोन की रस्सी उस के गले में फंसा दी. वह रस्सी अपनी जेब में रख कर लाया था. गले में फंसी रस्सी दोनों हाथों से कस दी, जिस से जल्द ही सुप्रिया बेजान हो गई और गिर पड़ी. उसी अवस्था में उस ने उस के शरीर के साथ छेड़छाड़ की. तब तक सुप्रिया की सांसें थम चुकी थीं. यह देख कर विशाल घबरा गया और आननफानन में अपने बचाव का रास्ता निकालने लगा.

उस ने पाया कि उस की सुप्रिया के साथ हाथापाई बैड कम सोफे पर हो रही थी. उस के दिमाग में आइडिया कौंध गया. उस ने तुरंत सोफे को खोला और सुप्रिया की लाश उस के अंदर ठूंस दी. सोफे को करीने से पहले की तरह लगा दिया, लेकिन वह भूल गया कि सोफा पहले दीवार से थोड़ा अलग था. जमीन पर गिरे पानी और सुप्रिया के कुछ खून को साफ करने के बाद गेट की चाबी ढूंढी. चाबी उसे किचन में फ्रिज के ऊपर रखी मिल गई.

इस तरह वारदात को अंजाम देने के बाद विशाल बड़े आराम से अपने कमरे पर चला आया. खुद को बचाने के लिए डोंबीवली थाने भी गया और किशोर शिंदे का हितैषी होने का ढोंग किया. लेकिन उस की ही चप्पलों ने उस के अपराध की चुगली कर दी.

आरोपी विशाल भाऊ भाट से विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से जेल भेज दिया गया.

 

खामोश हुआ विद्रोही तेवर – भाग 2

चूंकि अशोक सिंह एक रसूखदार आदमी थे, इसलिए सिर्फ काल डिटेल्स के आधार पर उन पर हाथ नहीं डाला जा सकता था. लेकिन वह शक के घेरे में आ गए थे. थानाप्रभारी ने यह बात वरिष्ठ अधिकारियों को भी बता दी थी. वह अधिकारियों के निर्देश पर काररवाई करना चाहते थे. अधिकारियों ने कहा कि हत्यारा चाहे कितनी भी ऊंची रसूख वाला क्यों न हो, अगर उस के खिलाफ सबूत मिलते हैं तो उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाए. इस के बाद आशीष कांति अशोक सिंह के खिलाफ सबूत जुटाने लगे.

आशीष कांति को मुखबिर से सूचना मिली कि घटना से कुछ देर पहले अशोक सिंह का भांजा दीपक सिंह अजय विद्रोही से बातें करते हुए देखा गया था. उस समय उस के हावभाव ठीक नहीं लग रहे थे, वह घबराया हुआ भी था. इस बात की तसदीक मृतक के बेटे शुभम ने भी की थी. पुलिस के शक के दायरे में दीपक भी आ गया. फिर क्या था, पुलिस ने 4 अक्तूबर, 2015 को दीपक को पूछताछ के लिए उस के घर से दबोच लिया.

एएसपी (अभियान) संजीव कुमार सिंह के सामने दीपक से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ शुरू हुई. पहले तो वह उन्हें इधरउधर घुमाता रहा, लेकिन जब उन्होंने कुछ खास सबूत उस के सामने रखे तो उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. दीपक को अपना जुर्म कबूल करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखाई दिया तो उस ने अजय विद्रोही की हत्या की साजिश में खुद के शामिल होने की बात स्वीकार कर ली.

दीपक से पूछताछ के बाद इस इस्टू हाउस के मालिक अशोक सिंह, भूमाफिया जयप्रकाश अग्रवाल, जग्गा, शूटर रामबाबू सिंह, अजय सिंह, लोकेश सिंह, महेसी सिंह महेसिया और हरेंद्र बैठा के नाम सामने आए. केस का पूरी तरह से खुलासा हो चुका था. हत्या के इस मामले में शहर के रसूखदार लोगों के शामिल होने से पुलिस हैरान थी कि इन लोगों ने एक पत्रकार की हत्या क्यों की? यह अन्य अभियुक्तों के गिरफ्तार होने के बाद ही पता चल सकता था.

पूछताछ के बाद उसी दिन पुलिस ने आरोपी दीपक को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया, इस के 2 दिनों बाद 6 अक्तूबर को पुलिस ने योजनाबद्ध तरीके से इस्टू हाऊस के मालिक अशोक सिंह, जग्गा, रामबाबू सिंह, अजय सिंह और लोकेश को गिरफ्तार कर लिया.

बाकी के 3 अरोपी जयप्रकाश अग्रवाल, महेसी सिंह महेसिया और हरेंद्र बैठा फरार हो गए थे. गिरफ्तार आरोपियों से पत्रकार अजय विद्रोही की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने सिलसिलेवार हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह इस प्रकार थी—

55 वर्षीय अजय शर्मा ‘विद्रोही’ के पूर्वज मूलरूप से राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गांव के रहने वाले थे. करीब डेढ़ सौ साल पहले उन के परदादा रामदेव शर्मा किसी काम से सीतामढ़ी आए तो यहां की सभ्यता और संस्कृति उन्हें इतनी भा गई कि वह यहीं के हो कर रह गए. उन की 2 पीढिय़ां यहीं जन्मीं और पलीबढ़ीं. पढ़लिख अजय कुमार ने सरकारी सेवा के बजाय पत्रकारिता को अपने जीवन का लक्ष्य चुना.

अजय ने सीतामढ़ी में ही स्थानीय समाचार पत्रों में नौकरी की. नौकरी के बाद उन्होंने अपने नाम के आगे तखल्लुख ‘विद्रोही’ जोड़ लिया. इस के बाद वह स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम करने लगे. वह अपनी लेखनी से भ्रष्टाचारियों की करतूतों को समाज के समाने उजागर करने लगे. जिस की वजह से शहर और समाज में उन की पहचान बनती गई. बाद में वह हिंदी अखबार दैनिक जागरण से जुड़ गए.

आखिरी दिनों में ‘विद्रोही’सीतामढ़ी के दैनिक जागरण यूनिट के प्रभारी थे. यूनिट में अजय के मन के मुताबिक काम नहीं हुआ तो उन्होंने त्यागपत्र दे दिया. इस के बाद उन्होंने हिंदी साप्ताहिक अखबार ‘सिटी संदेश’ निकाला. इस अखबार के माध्यम से उन्होंने बड़ेबड़े धन्नासेठों, मठाधीशों, माफियाओं, नौकरशाहों और सफेदपोशों की कलई खोलनी शुरू कर दी, जिस की वजह से यह इन लोगों की आंखों की किरकिरी बन गए. लेकिन शहर में उन की लोकप्रियता बढ़ गई.

2 साल बाद वित्तीय संकट की वजह से उन का अखबार बंद हो गया. शहर में हर वर्ग के लोगों से उन का जुड़ाव हो गया था. चाहे नौकरशाह हो या राजनेता, चिकित्सक हो या व्यवसाई, अमीर हो या गरीब. सभी के बीच उन की एक अलग पहचान बन गई थी. शहर में होने वाले अधिकांश कार्यक्रमों में उन की सहभागिता देखी जाती थी. उन्हें सिटीजन फोरम का महासचिव भी बना दिया गया था.

यह जिम्मेदारी मिलने के बाद अजय ‘विद्रोही’ के कंधों पर सामाजिक दायित्वों का बोझ आ गया था. फोरम के माध्यम से उन्होंने जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत विभिन्न विभागों में 150 आरटीआई लगाईं. सीतामढ़ी शहर में थाना नगर के चौक बाजार स्थित मठ की 101 डिस्मिल जमीन पर भूमाफियाओं की नजरें टिकी थीं.

अजय को सूचना मिली कि भूमाफिया अशोक सिंह और जयप्रकाश अग्रवाल द्वारा फरजी तरीके से मठ की वह जमीन लीज करा ली गई है. जमीन से संबंधित जानकारी जुटाने के लिए उन्होंने थाना बथनाहा के मझौलिया गांव के रवि कुमार सिंह द्वारा संबंधित विभाग में आरटीआई लगवा कर सूचना मांगी.

जानेमाने व्यवसाई अशोक सिंह की शहर में नूतन सिनेमा रोड स्थित चौक बाजार में इस्टू हाऊस नाम की मशहूर दुकान थी. इस्टू हाऊस में शराब और कबाब खुलेआम बिकता था. इस के अलावा यहां कई तरह के अनैतिक और गैरकानूनी धंधे चलते थे. शहर के बड़ेबड़े धन्नासेठों, माफियाओं, पत्रकारों, सफेदपोशों, अपराधियों और खाकी वर्दीधारियों का वहां बराबर उठनाबैठना था.

इसी वजह से अशोक सिंह पर किसी की भी हाथ डालने की हिम्मत नहीं होती थी. अजय विद्रोही भी कभीकभार वहां जाते थे. मालिक अशोक सिंह से उन का परिचय था. वह उस के कई काले धंधों के बारे में जानते थे. इन्हीं बातों को ले कर अशोक सिंह और अजय के बीच मतभेद पैदा हुए, तो अजय ने इस्टू हाऊस जाना बंद कर दिया. यही नहीं उन्होंने अशोक सिंह से बात करनी भी बंद कर दी.

अजय विद्रोही ने पता कर लिया था कि मठ की 101 डिस्मिल जमीन मठ के महंथ दुखियादास के नाम थी. महंथ दुखियादास ने जीवित अवस्था में ही अपना उत्तराधिकारी बलवंतदास को बना दिया था, लेकिन अरबों रुपए की यह जमीन बलवंतदास के नाम स्थानांतरित नहीं की थी. महंथ बलवंतदास की मौत हो चुकी थी.

उन की मौत के बाद वह जमीन ऐसे ही पड़ी थी. उस जमीन पर अशोक सिंह की नजर गड़ी हुई थी. अरबों की जमीन हथियाने के लिए उस ने बाजपट्टी के भूमाफिया जयप्रकाश अग्रवाल को अपनी योजना में शामिल किया. दोनों ने साजिश रच कर उस जमीन को हड़पने की योजना बना डाली.

इस्टू हाऊस में जग्गा राउत कई सालों से नौकरी करता था. वह अशोक सिंह का बहुत वफादार आदमी था. इन लोगों ने बरियापुर के बीएलओ से साठगांठ कर के जग्गा राउत का फोटो लगवा कर मृत महंत दुखियादास के नाम से मतदाता पहचान पत्र बनवा लिया. मतदाता पहचान पत्र बनने के बाद दोनों ने उसी के आधार पर जग्गा राउत का फोटो लगा कर मृत महंथ दुखियादास के नाम से पैनकार्ड भी बनवा लिया.

एक तरह से इन लोगों ने फरजी तरीके से महंथ दुखियादास को जीवित कर दिया था. जाली दस्तावेजों के आधार पर महंत दुखियादास के नाम से अन्य कागजात भी तैयार करा लिए थे. इन्हीं कागजों के आधार पर 23 जून, 2014 को दोनों भूमाफियाओं ने जग्गा राउत को कथित महंत दुखियादास बना कर मठ की जमीन अपने नाम पर 61 सालों के लिए लीज पर करा ली.

भारी छूट पर नकली दवाएं बेचने वाला गैंग

राम सिंह दिल्ली के एम्स में किडनी के डाक्टर को अपनी रिपोर्ट दिखा कर अपने शहर लखनऊ लौट आया था. नेफ्रो विभाग में अपनी बारी का इंतजार करने के दरम्यान उसे एक व्यक्ति ने बताया कि किडनी का सही इलाज आयुर्वेद में है. एलोपैथ में किडनी फेल को ठीक करने की कोई दवाई ही नहीं है. आयुर्वेदिक दवाइयों का 6 माह का कोर्स होता है. ट्रेन से लौटते वक्त 52 वर्षीय राम सिंह के दिमाग में यह बात बारबार घूम रही थी. उस ने साथ आ रहे अपने बेटे से पूछा,

“डाक्टर ने क्या कहा है? दवाई लिखी है?”

बेटा बोला, “4 दवाइयां लिख दी हैं. बोला है 3 महीने बाद जांच के लिए आना है. उस की 3 परची बना दी है. 24 घंटे के पेशाब की भी जांच करेगा. उस रिपोर्ट के बाद ही कुछ बताएगा.”

“लखनऊ वाले डाक्टर की रिपोर्ट देख कर क्या बोला?”

“कुछ नहीं. सिर्फ कहा कि हर 3 महीने पर उसे जांच करवा कर दिखाते रहना है, वरना बीमारी बढ़ जाएगी.”

“और दवाई?” राम सिंह ने पूछा.

“दवाई तो 3 महीने बाद पता चलेगा, लेकिन खाने में जो परहेज बताया है उस पर आप को ध्यान देना होगा.” बेटा बोला.

“क्या ध्यान देना होगा. दाल खाने से मना किया है, आलू खाने की मनाही है, मीटमछली नहीं खाना है, दूध नहीं पीना है. जब सब कुछ की मनाही है, तब ताकत कहां से मिलेगी?” राम सिंह चिढ़ते हुए बोले.

“लेकिन बाबूजी, कोई उपाय भी तो नहीं है?” बेटा बोला.

“कैसे नहीं है कोई उपाय! लखनऊ में किडनी का इलाज करने वाले आयुर्वेदिक डाक्टर के यहां दिखा दो उस की दवाई से ठीक हो जाऊंगा.” राम सिंह बोले.

लखनऊ पहुंच कर राम सिंह ने अपना इलाज आयुर्वेदमें शुरू करवा लिया. डाक्टर ने महंगी दवाइयों का कोर्स दिया. साथ ही हिदायत दी कि 6 महीने तक दवाइयां खानी हैं. इस पर 60 हजार से अधिक का खर्च आया.

मरीज पर फेंका लालच का जाल

एक दिन राम सिंह को फोन आया. उन्हें यह जान कर आश्चर्य हुआ कि फोन करने वाले को उस की बीमारी के बारे में मालूम था. उस ने राम सिंह का हाल समाचार पूछते हुए बताया कि वह दिल्ली से बोल रहा है. उस की बीमारी के बारे में वह अच्छी तरह जानता है. उस की पूरी रिपोर्ट उस ने देखी है.

राम सिंह काल करने वाले की बातों से काफी प्रभावित हो गया. बातोंबातों में उस ने बता दिया कि वह बीते 3 माह से आयुर्वेदिक दवाइयां ले रहा है. इसी के साथ राम सिंह ने चिंता जताई कि दवाइयां बहुत महंगी हैं. आगे की दवाइयां भी खरीदनी हैं. डाक्टर की फीस नहीं है, लेकिन दवाइयां वही देते हैं.

राम सिंह की चिंता को कालर ने अगले ही पल दूर कर दिया. कहा कि उस का काल इसी समस्या के समाधान के लिए है. वह एक दवा कंपनी का प्रतिनिधि है, जो 60 प्रतिशत तक सस्ती दवाइयां औनलाइन बेचती है. राम सिंह को कालर की बात बहुत अच्छी लगी. उस ने औनलाइन दवाइयां मंगवाने के सभी तरीके के बारे में जानकारी वाट्सऐप पर ले ली. शाम को बेटा जब घर आया तो उन्होंने बेटे को वाट्सएप मैसेज दिखाया, जिस पर औनलाइन दवाई खरीद की ऐप की लिंक भी थी.

एक हफ्ते के भीतर राम सिंह के घर अगले 3 माह की किडनी की दवाइयों के कोर्स का पार्सल आ गया था. उस पर उसे भारी छूट मिली थी. पूरी दवा मात्र 28 हजार में आ गई थी. राम सिंह खुश था. राम सिंह औनलाइन दवाइयां लेने लगा. करीब डेढ़ माह बाद एक दिन उस की तबीयत बिगड़ गई. पूरे बदन में दर्द होने लगा. कमजोरी महसूस होने लगी. वह उसी आयुर्वेदिक डाक्टर के पास गया, जिन से इलाज चल रहा था.

डाक्टर उस की हालत देख कर समझ गया कि उस के शरीर पर दवाइयों का साइड इफेक्ट हुआ है. डाक्टर ने पूछा कि उस ने कौन सी दवा खाई हैं. राम सिंह उन दवाइयों का पैकेट साथ ले गया था, जो उस ने औनलाइन मंगवाई थीं. वह दिल्ली की एक कंपनी की थीं. डाक्टर ने पूछा कि यह दवा उस ने कहां से ली, वह तो उसे दूसरी दवाई दे रहा था.

डाक्टर ने की कंपनी से शिकायत

राम सिंह के साथ गए उन के बेटे ने डाक्टर को सारी बात बता दी कि उन्होंने कैसे सारी दवाइयां औनलाइन मंगवाई थीं. उसी के खाने पर उन की हालत खराब हुई लगती है. डाक्टर ने औनालइन दवाई बेचने वाली कंपनी का फोन नंबर मांगा. उस नंबर पर उन्होंने तुरंत काल किया.

यह जान कर उन्हें आश्चर्य हुआ कि उन की कंपनी औनलाइन दवाई नहीं बेचती है. इस का मतलब था कि कोई और फरजी कंपनी बना कर उस कंपनी की दवाइयां बेच रहा है. डाक्टर ने कंपनी के अधिकारी को धमकी दी कि वह कंपनी के खिलाफ पुलिस में शिकायत करने वाला है. डाक्टर ने उस पर नकली दवाइयां बनाने का आरोप लगाया. कहा कि उस की इस हरकत से डाक्टर बदनाम होते हैं. मरीज की जान खतरे में आ गई है. वह उन की दवाइयों को जांच के लिए लैब में भी भेजेंगे.

इस शिकायत पर दवा कंपनी का अधिकारी डर गया. उस ने तुरंत उस कंपनी के मैनेजर से बात की, जिस के द्वारा उस की दवाइयां औनलाइन बेची गई थीं और फिर शिकायत दवा कंपनी से होते हुए दिल्ली स्थित उनायुर मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड (यूएमपीएल) के मैनेजर तक जा पहुंची. लिमिटेड कंपनी का मैनेजर भी घबरा गया. क्योंकि दवाइयां उस के द्वारा नहीं भेजी गई थीं.

इस का मतलब था कि कोई और उन की लिमिटेड कंपनी के नाम पर नकली दवाइयां सप्लाई कर रहा है. फिर क्या था, उस के मैनेजर ने इस की शिकायत दिल्ली पुलिस की साइबर सेल में दर्ज कर दी. शिकायत की गई कि कुछ लोग यूएमपीएल के वर्कर बन कर ग्राहकों को नकली और गलत दवाएं बेच रहे हैं. उन्होंने यह भी बताया कि उन के ग्राहकों से पहले भी शिकायतें मिलती रही हैं, जिन्हें अलगअलग नंबरों से फोन किया जाता रहा है और उन्हें अपनी दवाइयां बेचीं.

दिल्ली पुलिस की साइबर सेल में इस मामले की प्राथमिकी 23 मार्च, 2023 को सूचना प्रौद्योगिकी (आईपीसी) अधिनियम की धारा 66सी/66डी और आईपीसी की धारा 419/420/120बी के तहत दर्ज कर ली गई. इस के बाद पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. जांच के सिलसिले में पुलिस के जांच अधिकारी ने कई बैंक अकाउंट और काल डिटेल्स को खंगाला, दवाओं की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के बारे में सारी जानकारी निकाली.

इस दौरान पुलिस को पता चला कि आरोपी दिल्ली और लखनऊ से इस रैकेट को चला रहे हैं. इन आरोपियों की लोकेशन को ट्रेस किया गया और पुलिस की टीमों को वहां छापा मारने के लिए भेजा गया.

काल सेंटरों से फंसाते थे ग्राहकों को

जिस के बाद 3 फरजी काल सेंटरों से कई आरोपियों को दबोचा गया. ये तीनों फरजी काल सेंटर 3 अलगअलग जगहों से चलाए जा रहे थे. एक बाहरी दिल्ली के स्वरूप नगर में, जबकि 2 लखनऊ के जानकीपुरम और इंदिरा नगर में थे. साथ ही पुलिस का यह दावा किया कि इस छापेमारी के दौरान 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है. साथ ही नकली दवाओं के डब्बे भी बरामद किए गए हैं.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों में से एक राहुल सिंह नाम के व्यक्ति को गिरोह का सरगना बताया गया. वह इंदिरा नगर में बैठेबैठे ही अन्य आरोपियों समर सिंह, उग्रसेन और जितेंद्र सिंह के साथ काम करता था. इस संबंध में डीसीपी ने बताया कि राहुल ने ही टेलीकौम कंपनी में काम करने वाले राजेश नाम के एक शख्स से ग्राहकों का डेटा हासिल किया था.

सरकारी अस्पतालों से लेते थे मरीजों का डेटा

उस के बाद उस ने ये डेटा दिल्ली निवासी विकास पाल और अन्य किसी व्यक्ति को 60 प्रतिशत कमीशन के साथ बेच दिया. इस मामले में राजेश की भी गिरफ्तारी हो चुकी है. इस पूरे मामले में पुलिस ने आरोपियों के पास से 7 लैपटाप, 42 मोबाइल फोन, नकली आयुर्वेदिक दवाएं, यूपीएमएल और दवा कंपनी कुडोस आयुर्वेद का डेटा बरामद कर लिया.

इस पूरे मामले की जांच दिल्ली पुलिस की साइबर सेल के डीसीपी प्रशांत गौतम की निगारनी में संपन्न हुई. जांच में यह भी पता चला कि नकली आयुर्वेदिक दवाइयां बेचने वाले गिरोह ने कुल 6,373 लोगों को करीब 2 करोड़ (1.94 करोड़) का चूना लगाया है.

रोगियों के फोन नंबर और दूसरी पर्सनल जानकारी आरोपियों के हाथ लगने की कहानी भी काफी हैरानी की है. इस बारे में डीसीपी ने बताया कि आरोपियों के पास पहले से ही रोगियों की एक लिस्ट और उन का डेटा था. जिसे वे दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पतालों से हासिल कर चुके थे.

वे उन लोगों को दवाइयां खरीदने पर रियायत देते थे. दवाएं नकली थीं, इसलिए रोगियों को समस्याएं होने लगीं और वे लोग कंपनी को दोषी मानने लगे. इस के बाद मार्केटिंग कंपनी ने इस मामले में पुलिस से संपर्क किया और उन्हें बताया कि उन का डेटा किसी ने चोरी कर लिया है और कोई उन के साथ धोखा कर रहा है. कुछ लोगों ने मिल कर कंपनी के ग्राहकों से अब तक 1.94 करोड़ रुपए की ठगी की है.

अय्याश फर्जी जज की ठगी