स्पेशल 26 की तर्ज पर लाखों की ठगी – भाग 1

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की सडक़ों पर रोज की तरह उस दिन भी वाहनों की आवाजाही लगी थी. रात के लगभग 9 बजे दिल्ली नंबर की एक चमचमाती सफेद रंग की एलैंट्रा कार नंबर- डीएल 3सी एक्यू 0504 सहारनपुर चौक से राजपुर की ओर चली जा रही थी. कार में 4 आदमी और 2 औरतें सवार थीं. सभी ने सफेद रंग की पैंट और कमीज पहन रखी थी.

कार कारगी चौक पहुंच एक किनारे खड़ी हो गई. कार के रुकते ही वहां पहले से खड़े 2 लोग उस के नजदीक आए तो कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा युवक उन से मुखातिब हुआ, “सब ठीक है न?”

“यस, लाइन क्लियर है. बस आप लोगों का ही इंतजार था.” कह कर वे दोनों भी कार में सवार हो गए. इस के बाद कार फिर चल पड़ी तो कुछ देर में वह पौश इलाके सरकुलर रोड पर कोठी नंबर 92 के सामने जा कर रुकी.

यह कोठी बिल्डर यशपाल टंडन की थी. यशपाल प्रौपर्टी का काम करते थे. इस के अलावा बड़ीबड़ी कमेटियां भी डालते थे, जिस में लाखों रुपए का लेनदेन होता था. यशपाल का अपना औफिस भी था, जिस में वह सुबह से शाम तक बैठते थे. कोई नहीं जानता था कि उस दिन यशपाल का वास्ता एक बड़ी मुसीबत से पडऩे वाला था. कार में बाद में सवार हुए दोनों लोगों को छोड़ कर बाकी सभी कार से नीचे उतरे. उन में से एक के हाथ में ब्रीफकेस था. कार से उतरे लोग कोठी के गेट पर जा कर खड़े हो गए.

उन्होंने डोरबैल बजाई तो कुछ सेकैंड बाद दरवाजे पर यशपाल टंडन खुद आए. उन के दरवाजा खोलते सब से आगे खड़े एक आदमी ने पूछा, “आप यशपाल टंडन?”

“जी हां, लेकिन आप कौन?” उन्होंने पूछा तो उसी आदमी ने रौब जमाते हुए सख्त लहजे में कहा, “हम लोग प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से हैं. आइए अंदर बैठ कर बातें करते हैं.”

टंडन सकपका गए. एकाएक उन की कुछ समझ में नहीं आया. आने वालों के तेवर उन्हें ठीक नहीं लग रहे थे. उन्होंने हकलाते हुए कहा, “ल…ल…लेकिन इस तरह.”

“कहा न, चलो अंदर चल कर बात करते हैं.” कहने के साथ ही टीम का नेतृत्व कर रहे उस आदमी ने साथियों से कहा, “दरवाजा बंद कर के इन्हें अंदर ले आइए और बाहर खड़े लोगों से कहिए कि बिना इजाजत कोई अंदर न आने पाए.”

हालात अचानक बदल गए थे. टंडन चुपचाप उन के साथ अंदर आ गए. ड्राइंगरूम में आते ही उन्होंने टंडन को सोफे पर बैठा कर कहा, “मि. टंडन, हमें तुम्हारे घर की तलाशी लेनी है. हमें शिकायत मिली है कि तुम्हारे पास बहुत ब्लैकमनी है.”

“ऐसा तो कुछ भी नहीं है सर, जरूर आप को किसी ने गलत सूचना दी है.” टंडन ने सफाई देनी चाही तो टीम का नेतृत्व कर रहा आदमी बड़े ही आत्मविश्वास से बोला, “हमारी इन्फौरमेशन गलत नहीं है. हम तुम पर तभी से नजर रख रहे हैं, जब तुम्हारे दोस्त विजय मनचंदा के यहां आयकर का छापा पड़ा था, उस समय तुम खुद भी तो वहां मौजूद थे.”

उस की इस बात पर यशपाल चौंके, क्योंकि उस अधिकारी ने जो कहा था, वह एकदम सही था. दरअसल 4 महीने पहले उन के दोस्त विजय मनचंदा के यहां जब आयकर विभाग ने छापा मारा था, तब वह भी वहां मौजूद थे. इतना ही नहीं, आयकर विभाग ने उन का पहचान पत्र ले कर उन्हें गवाह भी बना लिया था. वह घबरा गए. यह सब उन की पत्नी भी देखसुन रही थीं. वह भी घबरा गईं. टंडन और उन की पत्नी को सोफे पर एक तरह से बंधक बना कर बैठा दिया गया.

“मि. टंडन, हमें कोऔपरेट कीजिए.” सामने बैठे आदमी ने कहा तो टीम में शामिल युवा लड़कियां टंडन दंपति के इर्दगिर्द खड़ी हो गईं, जबकि बाकी लोग कोठी की तलाशी लेने लगे. करीब आधा घंटे तक जब कुछ हाथ नहीं लगा तो उन्होंने सेफ की चाबी ले कर सारा सामान उलटपलट दिया. इस जांचपड़ताल में उन के हाथ संपत्ति के कुछ कागजात, नकदी और गहने लगे. उन्हें जो भी मिला, वह सब एक स्थान पर रखते गए. उन के बारे में तरहतरह के सवाल भी करते रहे.

टीम का नेतृत्व कर रहे अधिकारी ने यशपाल को गहरी नजरों से घूरते हुए कहा, “इन सब का हिसाब देने तुम्हें कल औफिस आना होगा. तुम्हारे खिलाफ एफआईआर तो होगी ही, जरूरत पड़ी तो गिरफ्तारी भी हो सकती है.”

यशपाल के तो होश उड़ गए. उन्हें परेशान देख कर अधिकारी ने कहा, “हमारे पास एक बीच का रास्ता है.”

“क्या?” डरेसहमे यशपाल टंडन ने पूछा तो राजदाराना अंदाज में वह बोला, “अगर हमें 50 लाख रुपए मिल जाएं तो तुम आगे की काररवाई से बच सकते हो.”

इस काररवाई से दहशत में आए यशपाल सोच में पड़ गए. गिड़गिड़ाने वाले अंदाज में उन्होंने कहा, “सर, मेरे पास इतनी बड़ी रकम नहीं है. कुछ कम हो जाए तो मैं कोशिश कर सकता हूं.”

“ठीक है, रकम कम करेंगे तो हम इन्हें अपने साथ ले जाएंगे.” उस ने गहनों की ओर इशारा कर के कहा.

यशपाल इजाजत ले कर सोफे से उठे और घर में रखे 6 लाख रुपए निकाल कर उन्हें दे दिए. लेकिन छापा मारने वाली टीम ने उन्हें लेने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि इतने में बात नहीं बनेगी. इस के बाद टंडन ने फोन कर के अपने किसी परिचित व्यापारी से 10 लाख रुपए मंगा कर लिए. यह रकम लेने टंडन खुद दरवाजे तक गए थे. इतने पर भी बात नहीं बनी तो उन्होंने अपने किसी अन्य परिचित से 5 लाख रुपए और मंगा कर दिए.

टीम का मुखिया इतने पर भी संतुष्ट नजर नहीं आया. उस ने सारी नकदी और आभूषण एक बैग में रख लिए. इस के बाद चलने लगा तो कहा, “थोड़ी देर के लिए अपनी स्कूटी देना.”

टंडन ने मना किया तो उस ने कहा, “आप चिंता न करें, हमारा कर्मचारी आ कर उसे दे जाएगा.”

करीब सवा 2 घंटे की काररवाई के बाद पूरी टीम चली गई.

यशपाल टंडन के यहां ईडी का यह छापा 2 नवंबर, 2015 की रात पड़ा था. इस छापे से वह काफी परेशान थे. उन्होंने अपने परिचितों को फोन कर के इस छापे की जानकारी दी तो बिना पुलिस के रात में छापा मारना और स्कूटी मांग कर ले जाने वाली बात से उन लोगों को यह सब संदिग्ध लगा.

जब यह साफ हो गया कि आयकर विभाग या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) रात में छापा नहीं मारता तो लगा कि उन के साथ कोई बड़ी गड़बड़ हुई है. परिचितों से सलाहमशविरा कर के यशपाल टंडन ने इस की सूचना पुलिस कंट्रौल रूम को दे दी.

फरजी ईडी टीम द्वारा छापे के बहाने लाखों रुपए ले जाने की घटना की सूचना पा कर थाना कोतवाली के प्रभारी एस.एस. बिष्ट और लक्खीबाग चौकीप्रभारी राकेश शाह पुलिस बल के साथ टंडन की कोठी पर पहुंच गए. अधिकारियों को भी सूचित कर दिया गया था.

काली कमाई का कुबेर : यादव सिंह – भाग 1

देश की राजधानी दिल्ली के बिलकुल पास स्थित उद्योगों व कौरपोरेट जगत में विश्वस्तरीय पहचान बना चुके नोएडा में छोटेबड़े रईसों की कोई कमी नहीं है. यहां के विभिन्न सैक्टरों में यूं तो एक से बढ़ कर एक कोठिया बनी हैं, लेकिन सैक्टर-51 स्थित एक बंगलेनुमा कोठी नंबर ए-10 पिछले कुछ समय से खासी चर्चाओं में थी. यह कोठी खास महज इसलिए नहीं थी कि उस की 3 मंजिला बनावट जुदा थी, बल्कि इसलिए कि वह उत्तर प्रदेश सरकार के एक ऐसे अफसर की कोठी थी, जिसे सारा देश उस के कारनामों के लिए जान गया था.

आसपास रहने वाले लोग तो चर्चा करते ही थे, उधर से गुजरने वाले लोग भी इस कोठी को अलग नजरिए से देखते थे. पहले वहां पर लालनीली बत्ती वाली गाडिय़ों का खूब आवागमन रहता था. इस के बावजूद कम लोग ही कोठी के अंदर जा पाते थे. तगड़ी कदकाठी वाला कोठी का मालिक पूरे रुआब से रहता था. वह आसपास के लोगों से बात तक नहीं करता था.

लेकिन पिछले चंद महीनों में इस कोठी की रौनक जाती रही. लग्जरी गाडिय़ां तो दूर गिनेचुने लोग ही वहां आतेजाते थे. लोगों का ध्यान भी इस कोठी की तरफ से हटना शुरू हो गया था, लेकिन 3 फरवरी, 2016 को न सिर्फ कोठी, बल्कि उस का मालिक भी एक बार फिर चर्चाओं में आ गया. इस की वजह यह थी कि कोठी के मालिक को देश की सब से बड़ी जांच एजेंसी सेंट्रल ब्यूरो औफ इन्वैस्टीगेशन (सीबीआई) ने गिरफ्तार कर लिया था.

गिरफ्तार किए गए शख्स का नाम था यादव सिंह. नोएडा/ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रैसवे अथौरिटी का सस्पैंड चीफ इंजीनियर. वह सरकारी तंत्र का इतना बड़ा भ्रष्ट अफसर था कि उस के कारनामों ने बड़ेबड़े घपलों को भी मात दे दी थी. उस का रसूख और हैसियत ऐसी थी कि आला दर्जे के अधिकारी भी उस से एक मिनट की मुलाकात के लिए तरसते थे.

क्या नेता, क्या अधिकारी सब उस के आगेपीछे घूमते थे. यूं तो वह आरोपों और जांच के दायरे में कई बार घिरा, लेकिन उस की पकड़ इतनी मजबूत थी कि कभी उस का बाल भी बांका नहीं हो सका. वह जिसे चाहता था, अपनी अंगुलियों पर नचा देता था. लेकिन वक्त ने उस के रसूख को भी लील लिया.

सीबीआई की एंटीकरैप्शन व एसटीएफ विंग ने यादव सिंह को पूछताछ के लिए अपने लोधी रोड, दिल्ली स्थित हैड क्वार्टर बुलवाया, जहां पूछताछ के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया. पहले से ही सुर्खियों में रहे यादव सिंह के खिलाफ यह बहुत बड़ी काररवाई थी.

अगले दिन सीबीआई टीम यादव को ले कर गाजियाबाद स्थित सीबीआई कोर्ट पहुंची तो वहां पहले से मीडियाकर्मियों की भारी भीड़ थी. यादव सिंह का सीबीआई की गिरफ्त में होना ही बड़ी खबर थी. यादव सिंह सीबीआई की सफेद रंग की टवेरा कार से नीचे उतरा तो लोग उसे सही ढंग से देख पाए. वह काली पैंट, व्हाइट जैकेट और नीली कैप लगाए हुए था. वक्त की चाल का शिकार हुए यादव सिंह की हालत हारे हुए जुआरी जैसी थी.

गहमागहमी के बीच सीबीआई ने उसे विशेष जज जे. श्रीदेवी की अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 10 दिनों का रिमांड मांगा. प्राथमिक चार्जशीट के अध्ययन और कुछ देर चली सुनवाई के बाद अदालत ने उसे 6 दिनों के रिमांड पर सीबीआई को सौंप दिया. रिमांड स्वीकृत होते ही टीम उसे ले कर दिल्ली के लिए रवाना हो गई.

काली कमाई से हजारों करोड़ का साम्राज्य खड़ा करने वाला यादव सिंह सीबीआई के शिकंजे में कैसे आया? एक मामूली इंजीनियर अरबपति कैसे बन गया? इस के पीछे भी एक कहानी थी.

यादव सिंह मूलत: आगरा का रहने वाला था. मत्त्वकांक्षी यादव सिंह की परवरिश गरीबी में हुई थी. उस का ख्वाब था कि वह बड़ा आदमी बने. इतना बड़ा कि गरीबी उस के आसपास भी न मंडरा सके. उस ने इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया. इस के बाद सन 1980 में उस की नौकरी नोएडा आथौरिटी में लग गई.

इंसान जितना महत्त्वाकांक्षी होता है, अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उस का दिमाग उतना ही तेज चलता है. यादव सिंह के कई साल नौकरी में बीत गए. इस बीच उस ने न सिर्फ अपने काम, बल्कि अथौरिटी के पूरे संचालन को अच्छी तरह से समझ लिया. सरकारी सिस्टम की उन बारीकियों को उस ने बारीकी से समझा, जहां अतिरिक्त आय के स्रोत थे.

बात सिर्फ इतनी नहीं थी. उस ने यह भी जान लिया था कि सरकारी तंत्र राजनीतिज्ञों के इशारों के गुलाम होते हैं. नौकरशाह का रसूख ऊपर तक हो तो वह खुल कर खेल सकता है. यादव सिंह इसी राह पर चला और छुटभैये नेताओं से शुरू हुआ उस का सफर एक दिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सत्ता के गलियारों तक जा पहुंचा.

इस का उसे फायदा तब मिला जब सन 1995 में एक दर्जन से ज्यादा इंजीनियरों को नजरअंदाज कर के उसे प्रोजैक्ट इंजीनियर के पद पर प्रमोशन दे दिया गया. यादव सिंह के पास इस पद के हिसाब से डिग्री नहीं थी, लेकिन राजनीतिज्ञों के संरक्षण की वजह से उसे डिग्री हासिल करने के लिए 3 साल का समय दिया गया. बिलकुल उसी तरह जैसे किसी को लाइसेंस देने से पहले ही बंदूक दे दी जाए. इस के बाद यादव सिंह खुल कर खेला. बाद में उस ने डिग्री भी हासिल कर ली.

तनख्वाह भले ही सीमित थी, पर यादव सिंह के ठाठबाट देखते ही बनते थे. उस की किस्मत तब और भी जोरों से जागी, जब सन 2002 में उसे चीफ मैंटीनेंश इंजीनियर के पद पर तैनात किया गया. अथौरिटी में यह बेहद महत्वपूर्ण और बड़ा पद था. अगले 9 सालों में यादव सिंह ने अपने नेटवर्क को भी मजबूत बनाया और मनमानी दौलत भी एकत्र की.

आलम यह था कि यादव सिंह ने नोएडा के ही सैक्टर-51 और सैक्टर-24 में 2 आलीशान कोठियां खड़ी कर ली थीं. इस के अलावा उस ने अपने परिवार के लिए आगरा में भी देवरी रोड पर बड़ी सी भव्य कोठी बनवा दी थी. इस कोठी में उस के बड़े भाई कपूर सिंह और उन का परिवार रहता था. यह आर्थिक हैसियत सिर्फ प्रत्यक्ष थी, जबकि वास्तव में हकीकत और भी बड़ी थी.

वक्त यादव सिंह का साथ दे रहा था. वह जैसा चाहता था, ठीक वैसा ही होता था. उन दिनों प्रदेश में बसपा की मायावती सरकार थी. यादव सिंह सरकार में मजबूत पकड़ बना चुका था. वह मुख्यमंत्री मायावती तक अपनी पहुंच बताता था. अथौरिटी में चीफ मैंटीनेंस इंजीनियर के और भी पद थे, पर उस ने अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर के सभी पद न केवल खत्म करा दिए, बल्कि अपने लिए इंजीनियर इन चीफ का पद सृजित करा लिया.

यादव सिंह के पास दौलत, ताकत और पहुंच सभी कुछ था. आला अधिकारियों से ले कर राजनैतिक आकाओं की उस पर नजरें इनायत थीं. यादव सिंह को किसी ने कहा कि अगर वह तिलक लगाए और सोना पहने तो समृद्धि और भी बढ़ जाएगी. उस ने ऐसा ही किया. उस के माथे पर तिलक के साथ गले में सोने की चेन और हाथों की अंगुलियों में हीरे जडि़त सोने की कई अंगूठियां दमकने लगीं. सिस्टम पर पकड़ होने की वजह से बसपा सरकार में यादव सिंह की तूती बोलती थी.

विरोधी सहकर्मियों ने उसे हटाने के लिए एक बार प्लानिंग भी की, लेकिन यादव सिंह सब पर भारी पड़ा और अपनी ताकत से विरोधियों को आईना दिखा दिया. वे लोग पद पर होते हुए भी काम के लिए तरस गए. यादव सिंह के परिवार में उस की पत्नी कुसुमलता के अलावा बेटा सन्नी और 2 बेटियां थीं करुणा और गरिमा.

सन 2011 से यादव सिंह के खिलाफ घोटाले की आवाज उठनी शुरू हुई. बाद में नवंबर महीने में बीजेपी सांसद किरीट सोमैया ने यादव सिंह के खिलाफ 950 करोड़ का घोटाला उजागर किया. यह बात अलग थी कि यादव सिंह पर तत्काल इस का कोई असर नहीं हुआ. यादव सिंह का सफर बहुजन समाज पार्टी की मायावती सरकार से शुरू हो कर सन 2012 में समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार तक आ गया था.

दिल्ली की सब से बड़ी लूट

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 4

सितंबर महीने में एजाज की मुलाकात बरेली की रहने वाली एक अन्य युवती आबिदा (परिवॢतत नाम) से हुई तो उस ने उसे अपने प्रेमजाल में फांस लिया. इस के पीछे भी उस का मकसद था. वह आसमा को हमेशा के लिए छोड़ कर उस युवती से निकाह कर के आगरा में अपना ठिकाना बनाना चाहता था. क्योंकि आगरा स्थित एयरबेस की सूचनाएं उसे जुटानी थीं.

आसमा उस के बच्चे की मां बनने वाली थी. इस बोझ से भी वह छुटकारा पाना चाहता था. दिली मोहब्बत तो उसे नई महबूबा से भी नहीं थी. अपना कौंट्रैक्ट पूरा कर के फरवरी, 2016 में उसे पाकिस्तान चले जाना था.

अपने मिशन के तहत उस ने भारतीय वायुसेना द्वारा मिराज विमान की यमुना एक्सप्रेस वे पर की गई इमरजैंसी लैंडिंग  संबंधी वीडियो, बरेली छावनी स्थित विभिन्न इकाइयों की जानकारी, बरेली एयरबेस व सुखोई-30 फाइटर जैट की जानकारी, हरिद्वार, मेरठ छावनी सैन्य इकाइयों के स्कैच व उन के मूवमेंट आदि की जानकारी आईएसआई को उपलब्ध करा दी थी. भारत में होने वाली सांप्रदायिक घटनाओं की पूरी जानकारी भी वह पाकिस्तान भेजता था.

भारत में आतंकी गतिविधियों और जासूसी के मामलों में खुफिया एजेंसियां और स्पैशल टास्क फोर्स जांचपड़ताल में जुटी रहती हैं. इसी कड़ी में पुलिस महानिदेशक जगमोहन यादव को कुछ खुफिया सूचनाएं मिलीं तो उन्होंने एसटीएफ के आईजी सुजीत पांडेय को वह सूचनाएं दे दीं. उन्होंने उन से उन सूचनाओं पर काम करने को कहा. आईजी पांडेय ने वे सूचनाएं अधीनस्थों को निर्देशित कर दीं.

एसटीएफ के एसएसपी अमित पाठक ने प्रदेश भर की यूनिटों को सतर्क कर दिया. ये सूचनाएं पाकिस्तान में सोशल नेटवॄकग साइटों के जरिए संपर्क करने की थीं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसा एजेंट सक्रिय था, जो देश की रक्षा महत्त्व की सूचनाएं पाकिस्तान भेज रहा था. इस से खुफिया एजेंसियां, आर्मी इंटेलीजैंस आदि सतर्क हो गईं.

कई महीने तक बारीकी से पड़ताल की गई. इसी पड़ताल में कलाम पर नजर गई. उस की सोशल आईडी और मेल की जांच की गई. जब विश्वास हो गया कि कलाम पाकिस्तान से जुड़ा है और उस की गतिविधियां संदिग्ध हैं तो उस का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की बातचीत सुनी गई. इस सब से पता चला कि वह 3 भाषाएं जानता है और भारत के खिलाफ गतिविधियों को अंजाम दे रहा है.

उस की जड़ों की गहराई तक पहुंचने के लिए उस के मोबाइल की डिटेल्स हासिल की गई तो उस की लोकेशन अलगअलग जिलों के अलावा दिल्ली की भी पाई गई. उस नंबर का इस्तेमाल वह पाकिस्तान में भी बातचीत के लिए कर रहा था. इसी दौरान पता चला कि उस का असली नाम एजाज है.

जब साफ हो गया कि उस की गतिविधियां बेहद संदिग्ध हैं तो उसे दबोचने की योजना बनाई गई. उस के पीछे मुखबिरों को लगा दिया गया. जब पता चला कि वह महत्त्वपूर्ण दस्तावेज दिल्ली में अपने साथियों को पहुंचाने जाएगा, तो उस की लोकेशन पता की जाने लगी. सॢवलांस के जरिए उस की लोकेशन मेरठ की मिलनी शुरू हुई तो एसटीएफ ने बिना देरी किए टीम बना कर उसे दबोच लिया. एजाज बरामद दस्तावेजों को दिल्ली ले जा रहा था. गिरफ्तारी के बाद उस ने नपेतुले जवाब दे कर एसटीएफ को भी उलझा दिया, लेकिन रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में उस की परतें खुलने लगीं.

उस के परिवार के बड़े हस्तियों से रिश्तों का राज भी खुल गया. आईएसआई उसे अब तक 5 लाख 8 हजार रुपए दे चुकी थी. भारत में उस का खर्चा सीमित था और वह साधारण अंदाज में जीवनयापन कर रहा था, इसलिए दी गई रकम वह अपने परिवार को भिजवा चुका था. यह रकम उस के खाते में दुबई, सउदी अरब और जम्मूकश्मीर से ट्रांसफर की गई थी.

पुलिस ने वेस्ट बंगाल में एजाज के संरक्षणदाता रहे मोहम्मद इरशाद, उस के बेटे अशफाक, उस के भाई इरफान और जहांगीर को भी नामजद कर लिया था. उन की तलाश में एक टीम हवाई जहाज से कोलकाता भेजी गई. तत्काल शिकंजा कस कर इरशाद, अशफाक और जहांगीर को भी गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि इरफान हाथ नहीं आ सका.

रिमांड के दौरान अदालत की अनुमति ले कर एजाज की उस के घर एक पीसीओ से बात कराई गई. उस ने अपनी मां और बहनों से बातचीत की. इस बातचीत को बतौर सबूत रिकौर्ड कर के रख लिया गया. रिमांड अवधि पूरी होने पर पुलिस ने एजाज को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

एजाज से बरामद इलैक्ट्रौनिक यंत्रों को एफएसएल जांच के लिए सीबीआई की फोरैंसिक लैब भेज दिया गया. इस बीच आसमा के पिता बरेली पहुंचे और सामान के साथ बेटी को अपने साथ ले गए. आसमा का कहना था कि उसे पता नहीं था कि वह इस तरह धोखे का शिकार हो जाएगी. वह देश का बुरा चाहने वाले शौहर से अब कभी नहीं मिलेगी. वह कोख में पल रही उस की निशानी को जन्म तो देगी, लेकिन उसे अफसोस रहेगा कि वह ऐसे दुश्मन की निशानी है, जो मुल्क की तबाही के ख्वाब देख रहा था.

एसटीएफ ने आसमा और उस के पिता से भी पूछताछ की. एजाज के परिवार के पाकिस्तानी हस्तियों से रिश्तों से संबंधित रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दी गई है. कथा लिखे जाने तक खुफिया एजेंसियां और एसटीएफ आईएसआई के भारत में फैले नेटवर्क को खत्म करने की कोशिश में लगी थीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 3

आईएसआई ने भारत में जासूसी करने के लिए उस से 3 सालों का कौंट्रैक्ट किया. इस के बदले उसे 50 हजार रुपए महीने देना तय हुआ. भारत में उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड की विभिन्न सैन्य व वायुसेना की इकाइयों से संबंधित गुप्त सूचनाएं, प्रतिबंधित महत्त्व के दस्तावेज और भारतीय सेना की गतिविधियों की सूचना एकत्र कर के आईएसआई को भेजना था.

इरादों को मजबूत कर के अपने मिशन को पूरा करने के लिए एजाज अपने पासपोर्ट के साथ कराची होते हुए 31 जनवरी, 2013 को ढाका पहुंचा. वहां उस की मुलाकात आईएसआई के एजेंट प्रोबीन से हुई. प्रोबीन ने उस से पाकिस्तानी पहचान संबंधी दस्तावेज हासिल कर के कहा, “जब मिशन पूरा कर के तुम वापस जाओगे, तब ये चीजें तुम्हें वापस मिल जाएंगी. वैसे मिशन को बड़ी होशियारी से अंजाम देना मियां, क्योंकि भारत की खुफिया एजेंसियां बहुत सतर्क रहती हैं.”

“फिक्र न कीजिए, मैं हर तरह से फिट हूं.” एजाज ने आत्मविश्वास से जवाब दिया.

प्रोबीन ने कुछ दिन उसे अपने पास रख कर सावधानी बरतने के गुर सिखाए. इस के बाद 9 फरवरी को नदी के रास्ते भारतबांग्लादेश सीमा पार करा दी. यहां उस की मुलाकात वेस्ट बंगाल के माटियाबुर्ज, साउथ चौबीस परगना निवासी इरशाद हुसैन से हुई. यहां उस ने कपड़ों की फेरी लगाने का काम किया और हिंदी सीखी. एजाज यहीं रह कर हिंदी लिखनेपढऩे और बोलने का पूरा अभ्यास किया.

इरशाद, उस का बेटा और 2 भाई आईएसआई के लिए काम करते थे. इरशाद ने उसे गोपनीय दस्तावेज पाकिस्तान भेजने के सारे गुर सिखाए. इस दौरान उसे नई पहचान देने के लिए उस का नाम मोहम्मद कलाम रख दिया गया. इसी नाम से उस के जूनियर हाईस्कूल के शैक्षिक प्रमाणपत्र बनवाए गए. उस का एक मतदाता पहचान पत्र व राशनकार्ड भी बनवाया गया, जिन के आधार पर सैंट्रल बैंक औफ इंडिया में उस का खाता खोलवा दिया गया. इन प्रमाण पत्रों पर उसे बिहार के नाड़ी गांव का निवासी बताया गया था.

नई पहचान के बाद वह बिहार के एक वीडियोग्राफर रईस के साथ काम करने लगा, क्योंकि यह काम वह पहले से जानता था. वीडियोग्राफी के काम से जुड़े रहने से उसे अपने मिशन में बेहद आसानी हो सकती थी. एजाज भारत के दिल्ली समेत कई इलाकों में घूमा. ऐसा कर के वह यहां की भौगोलिक स्थिति को समझना चाहता था. यहां आ कर उसे पता चला कि उस के जैसे तमाम जासूस हैं, लेकिन वे सब भारतीय हैं. उन के जरिए भी उसे काम लेने को कहा गया था.

उन्हीं के जरिए उस ने प्रमुख आर्मी एरिया का पता लगाया. आईएसआई जानना चाहती थी कि किनकिन छावनयिों में कौनकौन अधिकारी तैनात हैं. उन के व उन के परिवारों के कौंटैक्ट नंबर क्या हैं और आर्मीमैन किस तरह के अभ्यास करते हैं. यह सब इतना आसान नहीं था, लेकिन ट्रेङ्क्षनगशुदा होने के चलते एजाज ने अपने काम को अंजाम देना शुरू कर दिया.

कौंट्रैक्ट के लिहाज से उसे भारत में फरवरी, 2016 तक रहना था. लोगों के बीच आसानी से घुलनेमिलने और मकान किराए पर लेने के लिए वह चाहता था कि गृहस्थी बसा ली जाए. इस से शक की गुंजाइश कम हो जाती. इसी बीच उस की मुलाकात आसमा से हुई तो उस ने उस से मोहब्बत का नाटक कर के निकाह कर लिया. आसमा के पिता शमशेर की किराने की दुकान थी. एजाज ने भी उन की दुकान संभाली. इस के साथ ही वह वीडियोग्राफी छोड़ कर फेरी लगा कर कपड़े बेचने का काम करने लगा.

जनवरी, 2015 में वह बरेली आ गया. बरेली में सेना और वायुसेना की बड़ी विंग है. उन पर उसे काम करना था. बरेली में उस ने फोटो स्टूडियो वालों के साथ दिखावे के लिए काम शुरू कर दिया. वह कंप्यूटर का मास्टर था. सही बात यह थी कि वह फोटो व वीडियोग्राफी की आड़ में जासूसी कर रहा था.

बरेली आ कर उस ने चंद महीनों में ही 3 ठिकाने बदल दिए. उस पर किसी भी तरह का शक न हो, इस के लिए उसे करना जरूरी था. बाद में उस ने 6 जून को शाहबाद में वसीम उल्लाह का मकान किराए पर ले लिया. अब उसे अपने काम में आसानी हो गई. उस के साथी उस के संपर्क में रहते थे और सूचनाओं का आदानप्रदान करते रहते थे.

वह फेसबुक, वाइबर, स्काईप, ईमेल के जरिए संपर्क में रहता था. वह औडियोवीडियो कौङ्क्षलग करता था. मोबाइल इंटरनेट के जरिए वह लाइव तसवीरें भी आईएसआई को दिखाता था. उस ने अलगअलग नामों से इंटरनेट पर अपने कई सोशल एकाउंट बना रखे थे. अपने पाकिस्तानी आकाओं से वह रात में 11 से 2 बजे के बीच संपर्क करता था. मेल में वह मैसेज लिख कर फोटो व वीडियो अटैच कर के ड्राफ्ट बौक्स में डाल देता था. उस की मेल आईडी का पासवर्ड आईएसआई के पास भी होता था. वे उस में से मैसेज निकाल लेते थे.

भारतीय एजेंसियां चूंकि संदिग्ध मेल पतों की निगरानी करती हैं. इसलिए इस से बचने के लिए वह ऐसे तरीके अपनाता था. उस के आका पाकिस्तानी सीमा पर बने एक्सचेंज से (वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल) तकनीक के जरिए बात करते थे. इस से नंबर तो भारत का शो होता था, लेकिन बात पाकिस्तान में होती थी. कलाम ने फेसबुक पर भी अपने एकाउंट बना रखे थे. अपने फेसबुक दोस्तों की लिस्ट में उस ने लड़कियों, कालेजों के छात्रों और पुलिसकॢमयों को जोड़ा था.

आसमा कभी उस की हकीकत नहीं जान पाई. उसे ख्वाबों में भी गुमान नहीं था कि उस का शौहर पाकिस्तानी जासूस है. वह 7 माह की गर्भवती थी. एजाज ने घर पर भी कंप्यूटर लगा रखा था, जिस पर वह शादियों की वीडियो मिक्सिंग के साथ इंटरनेट के जरिए सूचनाओं का आदानप्रदान करता था.

आसमा सीधीसादी अनपढ़ युवती थी. इन सब बातों को वह समझ नहीं पाती थी. डूंगल के जरिए वह हाईस्पीड इंटरनेट कनेक्शन इस्तेमाल करता था. उस का सब से ज्यादा संपर्क आईएसआई के एसपी सलीम से था. अपने मिशन के लिए वह आगरा, मथुरा, मेरठ, दिल्ली, लैंसडाउन, रुडक़ी, सहारनपुर, रानीखेत, हरिद्वार, शाहजहांपुर व लखनऊ तक जाता था. जाते समय वह आसमा से यही बताता था कि शादी में वीडियोग्राफी करने बाहर जा रहा है.

कई स्लीङ्क्षपग मौड्यूल्स उस के संपर्क में रहते थे. वे ऐसे लोग थे, जो हाईलाइट हुए बिना रुपयों के लालच में जानकारी जुटा कर उसे देते थे. शाहबाद में रहते हुए उस ने एक दलाल के माध्यम से अपना आधार कार्ड भी बनवा लिया था. एजाज हंसमुख स्वभाव का था. वह लोगों से खूब मिलजुल कर रहता था. उस की असलियत से हर कोई बेखबर था. खुद को भारत का नागरिक साबित करने के लिए उस ने पासपोर्ट बनवाने की कोशिश भी शुरू कर दी थी.

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 2

दोनों कारें जिस तेजी से आई थीं, उसी तेजी से वहां से चलीं तो तकरीबन 15 मिनट बाद वे नजदीक के थाना सदर बाजार आ कर रुकीं. कार में सवार सभी लोग नीचे उतरे और उस युवक को नीचे उतार कर हवालात में डाल दिया. थाने में उस युवक के बैग और पर्स की तलाशी ली गई तो उस में से भारतीय सेना के गोपनीय दस्तावेज, राष्ट्रीय महत्व की कई गुप्त सूचनाएं, पहचान पत्र, बरेली व बिहार के पतों के वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड, दिल्ली मैट्रो का ट्रैवलर कार्ड, भारत समेत 3 देशों की करेंसी, एटीएम कार्ड, 16 जीबी के पैनड्राइव और सिमकार्ड आदि चीजें मिलीं.

पुलिस ने उस के खिलाफ 3/9 औफिशियल सीक्रेट एक्ट, 14 विदेशी एक्ट व आईपीसी की धारा 467, 468, 471, 380, 420, 411 व 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

दरअसल, जिस युवक को पकड़ कर पुलिस लाई थी, वह कोई और नहीं, आसमा का शौहर मोहम्मद कलाम था. उसे पकडऩे वाली थाने की पुलिस नहीं, स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के एसपी शैलेंद्र कुमार श्रीवास्तव और सीओ अमित कुमार के नेतृत्व वाली टीम थी. कलाम कई महीने से एसटीएफ और खुफियां एजेंसियों के टौप सीक्रेट मिशन के टौप टारगेट पर था.

उस का नाम मोहम्मद कलाम नहीं, मोहम्मद एजाज था. वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सॢवसेज इंटेलीजैंस (आईएसआई) का उत्तर प्रदेश में अब तक का सब से बड़ा एजेंट था और बड़ी होशियारी से अपने मिशन को अंजाम दे रहा था. बेहद शातिराना अंदाज वाला एजाज मूलरूप से पाकिस्तान का रहने वाला था. पहचान बदल कर उस ने हिंदुस्तान में ऐसी कामयाब पैठ बनाई थी कि आसमा से निकाह तक कर लिया था. अपने मिशन के लिए वह पूरी तरह प्रशिक्षित था. 3 भाषाओं पर उस की अच्छी पकड़ थी और हाईटैक टैक्नोलौजी के जरिए अपने आकाओं से बराबर संपर्क में रहता था. उस के मंसूबे बेहद खतरनाक थे.

औपचारिक पूछताछ के बाद एजाज के मंसूबों की कडिय़ों को जोडऩे के लिए एसटीएफ की एक टीम उसे ले कर बरेली उस के घर पहुंची और छापा मार कर उस के घर की तलाशी ले कर कंप्यूटर, डाटा कार्ड, कई वीडियो कैसेट, हिंदी उर्दू की कुछ किताबें और कुछ जरूरी कागजात बरामद किए.

आसमा को जब पता चला कि उस का शौहर पाकिस्तानी आईएसआई एजेंट है तो उसे अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ. उस के रिश्ते का आईना चटक कर बिखर गया. आसपड़ोस के लोग भी हैरान थे कि जो शख्स उन के बीच नेकियां दिखा कर सादगी से रह रहा था, वह देश का दुश्मन था.

आईएसआई एजेंट की गिरफ्तारी उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए एक बड़ी कामयाबी थी. सन 2012 के बाद पहली बार कोई पाकिस्तान एजेंट पकड़ा गया था. यह खबर सुॢखयां बनने के बाद खुफिया एजेंसियों तक पहुंच गईं. एजाज से पूछताछ की गई तो उस ने हर सवाल का नपातुला जवाब दिया, जैसे वह ऐसे हालातों के लिए भी तैयार था.

उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी. 24 घंटे के अंदर उसे अदालत में पेश किया जाना जरूरी था, इसलिए अगले दिन पुलिस ने उसे स्पैशल जज संजय सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

एजाज से विस्तृत पूछताछ की जानी जरूरी थी, इसलिए अगले दिन पुलिस ने उस के रिमांड की अरजी दाखिल की तो अदालत ने उसे 7 दिनों के रिमांड पर दे दिया. पुलिस एजाज को थाने ले आई, जहां पूछताछ के लिए एक टीम का गठन पहले ही कर लिया गया था. इस टीम में इंटेलीजैंस ब्यूरो के स्थानीय एडिशनल डायरेक्टर एस.के. सिंह , एसपी स्वप्निल ममगई, सीओ वीर कुमार, आर्मी इंटेलीजैंस के मेजर मोती कुमार, थाना सदर बाजार के थानाप्रभारी गजेंद्रपाल सिंह व सबइंसपेक्टर धर्मेंद्र कुमार को शामिल किया गया था.

इस के अलावा एसटीएफ, स्थानीय पुलिस, राज्य व केंद्रीय इंटेलीजैंस ब्यूरो, आर्मी इंटेलीजैंस, मेरठ जोन के आईजी आलोक शर्मा, सीओ (अभिसूचना) वी.के. शर्मा, दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच व उत्तराखंड इंटेलीजैंस ने भी एजाज से गहन पूछताछ की. इस पूछताछ में एजाज ने तमाम चौंकाने वाले राज उगले. एजाज की जड़ें बहुत गहरी थीं. वह 3 सालों के कौंट्रैक्ट पर भारत आया आईएसआई का बेहद खास मोहरा था.

अपने मिशन के जुनून में उस ने सारी हदें पार कर दी थीं. उस के निशाने पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, एनसीआर के जिले और उत्तराखंड था. मिशन की कामयाबी के लिए वह आसमा जैसी भोलीभाली युवती की जिंदगी से भी खेल गया था. इस बीच उस ने एक और युवती को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था. उस के आईएसआई का एजेंट बनने से ले कर भारत आने और पहचान बदल कर रहने तक का हर पहलू चौंकाने वाला था.

मोहम्मद एजाज पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद शहर के तारामंडी चौक निवासी मोहम्मद इशहाक का बेटा था. आॢथक रूप से समृद्ध इशहाक एग्रीकल्चरल रिसर्च सैंटर में नौकरी करते थे. हालांकि सन 2004 में उन की मौत हो गई थी. उन के परिवार में पत्नी रुखसाना के अलावा 5 बेटे अशफाक, मुश्तियाक, फहद, एजाज, इश्तियाक तथा 3 बेटियां शबनम, शहजाद और शाजिदा थीं.

एजाज के सभी भाई वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी व प्रोसैङ्क्षसग का काम करते थे. हाईस्कूल पास एजाज भी इसी काम में लग गया था. पंजाबी और उर्दू भाषा उसे आती थी. इशहाक के परिवार के संपर्क कई नामी हस्तियों से थे. उस के भाई सरकार के लिए भी फोटोग्राफी करते थे, शायद इसी वजह से उन के संबंध बड़े लोगों से थे. देखने में सीधासादा दिखने वाला एजाज तेजतर्रार युवक था.

पाकिस्तान में एक दर्जन से भी ज्यादा आतंकी व कट्टर संगठन आईएसआई के इशारे पर काम करते हैं. ऐसे संगठनों को उसी के जरिए देशीविदेशी आॢथक मदद मिलती है. इन संगठनों का काम किसी न किसी तरीके से भारत में अराजकता और ज्यादा से ज्यादा तबाही फैलाना होता है. सैन्य छावनियां उस के निशाने पर होती हैं.

आईएसआई का आतंकी संगठनों के क्रियाकलापों और उन के प्रशिक्षण केंद्रों तक में सीधा दखल होता है. उस के अपने प्रशिक्षक भी वहां होते हैं. आतंकियों के अलावा वह अपने जासूस भी तैयार करती है, जिन्हें मोहरा बना कर आईएसआई अपने मकसद पूरा करती है. इस के पीछे उस की सोच बदनामी से बचना होता है. सीधेसादे लोगों की उन्हें कभी धर्म के नाम पर तो कभी पैसे का लालच दे कर बरगलाया जाता है. झूठे वीडियो दिखाए जाते हैं कि भारत में मुसलमानों पर किस तरह अत्याचार हो रहा है. नई उम्र के लडक़ों को तरजीह दे कर उन्हें बहलाफुसला कर प्रशिक्षण केंद्रों तक लाया जाता है. भटके युवाओं के लिए उन के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं.

सन 2012 में एजाज की जानपहचान आईएसआई के कुछ अधिकारियों से हुई. उन्हें वह काम का युवक लगा तो उन्होंने उसे अपने साथ शामिल कर के एक साल तक गहन प्रशिक्षण दिया. यह प्रशिक्षण उस ने एसपी सलीम की देखरेख में लिया. उसे जासूसी के गुर सिखाए गए, भारत के रहनसहन के बारे में बताया गया.

यही नहीं, भारत की सैन्य गतिविधियों की जानकारी बारीकी से दी गई. उसे समझाया गया कि सेना में बिग्रेड, यूनिट व कमांड में क्या फर्क है. औपरेशन ङ्क्षवग कौन सी होती है, आर्मी औफिसर के रैंक और स्टार के बारे में बताया गया. आर्मी यूनिट के अफसरों के पदों के बारे में भी समझाया गया, ताकि वह अफसर का बैच देख कर उस के पद को जान सके.

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 1

बिस्तर पर लेटी आसमा अपनी मोहब्बत की निशानी के तौर पर आने वाले बच्चे की कल्पनाओं में डूबी थी. मां बनने का अहसास उस की भावनाओं को ममता के दरिया में बहाए ले जा रहा था. उस ने बचपन से गरीबी देखी थी, लेकिन जब से उस की जिंदगी में मोहम्मद कलाम दाखिल हुआ था, खुशियां जैसे उस की झोली में खुदबखुद चली आई थीं.

सांवली रंगत वाली आसमा भले ही बहुत खूबसूरत नहीं थी, लेकिन उस की दिल की खूबसूरती का कलाम कायल हो गया था. हर इंसान का अपना मिजाज होता है. वह उस की छोटीबड़ी सभी गलतियों को नजरअंदाज कर के खुशियों को तरजीह देता था. आसमा शबनमी सोच के सागर में और डूबती, तभी उसे अपने सिरहाने किसी के खड़े होने का अहसास हुआ. बेखयाली में उस ने देखा और मुसकरा दिया, क्योंकि वह उस का शौहर कलाम था, “अरे आप कब आए?”

“अभीअभी, जब तुम कहीं खयालों में गुम थीं. वैसे क्या सोच रही थीं?” कलाम ने बैठते हुए पूछा.

“आप के ही बारे में सोच रही थी. मैं तुम्हारे साथ बहुत खुश हूं कलाम.”

इस पर कलाम ने मुसकरा कर कहा, “तुम्हारी अहमियत मेरी जिंदगी में सांसों से भी कहीं ज्यादा है आसमा. दुनिया के हर खजाने को मैं तुम्हारी खुशियों के लिए कुरबान कर सकता हूं.”

“मेरी खुशकिस्मती, जो मुझे तुम जैसा नेक शौहर मिला.”

“फर्ज अदायगी में मेरी नेकियां सलामत रहें.”

“एक दिन आप की नेकियां हमारी और आने वाले बच्चे की इज्जत अफजाई का सबब बनेंगी.”

“आसमा, कल मुझे किसी काम से मेरठ जाना होगा.”

“तुम इतनी मेहनत करते हो, अकसर बाहर जाते रहते हो, ऐसा क्या जरूरी काम है?”

“मैं मेहनत के जरिए तुम्हें खुशियां दे कर एक अच्छा शौहर बनने की कोशिश कर रहा हूं.”

“लेकिन हम तो खुश हैं. ऐसे वक्त पर मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है कलाम. मैं चाहती हूं कि नए मेहमान के आने तक तुम कहीं भी आनाजाना बंद कर दो.” आसमा ने कलाम का हाथ थाम कर कहा.

“ठीक है, मैं 2 दिन बाद लौट कर आऊंगा तो फिर कहीं नहीं जाऊंगा.” कलाम ने कहा और वहां से उठ कर कमरे में रखे कंप्यूटर पर कुछ काम करने लगा.

आसमा और कलाम उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में दीवानखाना चौराहे के पास मोहल्ला शाहबाद में वसीम उल्लाह के एक पुराने मकान की दूसरी मंजिल पर किराए पर रहते थे. उन की ङ्क्षजदगी बेहद साधारण थी. आसमा दिल की अच्छी थी और कलाम आसपड़ोस में सभी से घुलमिल कर रहता था. दिखावे की जिंदगी से उसे परहेज था. उस की आदतों और व्यवहार की लोग तारीफें किया करते थे.

कलाम शादियों की वीडियो एडिटिंग और मिक्सिंग का काम करता था. फोटोग्राफी उस का शौक था और पेशा भी. कलाम बिहार का रहने वाला था. एक साल पहले उस की मुलाकात बिहार के ही आरा जनपद के गांव अजीमाबाद की रहने वाली आसमा से हुई तो दोनों आंखों के रास्ते एकदूसरे के दिलों में उतर गए.

आसमा का परिवार बेहद साधारण था. कलाम ने आसमा के साथ दुनिया बसाने की उम्मीदों में निकाह की पेशकस की तो आसमा के पिता शमशेर मना नहीं कर सके. कलाम अच्छा लडक़ा था. कलाम ने बताया था कि उस के परिवार में कोई नहीं है, वह दुनिया में अकेला है. दोनों की रजामंदी के बाद अक्तूबर, 2014 में उन का निकाह कर दिया गया था.

निकाह के बाद कलाम घरजंवाई बन कर 2 महीने शमशेर के घर रहा. इस के बाद वह आसमा को ले कर बरेली आ गया और वहां किराए का मकान ले कर रहने लगा. घर चलाने के लिए उस ने वीडियोग्राफी करने वालों के साथ वीडियो एडिटिंग और मिक्सिंग का काम शुरू कर दिया.

मुलाकात के दौरान कम वक्त में ही किसी को अपना बना लेने का हुनर कलाम को अच्छी तरह आता था. वह लोगों से बहुत जल्दी घुलमिल जाता था. कलाम लोगों की मदद भी कर दिया करता था. यही वजह थी कि हर कोई उस की नेकियों का कायल था. काम का सिलसिला बता कर कलाम अकसर बाहर आताजाता रहता था. 26 नवंबर, 2015 को भी कलाम आसमा से मेरठ जाने की बात कह कर घर से निकला था.

उम्मीदें और विश्वास करना हर इंसान की फितरत है, लेकिन आने वाले कल में यह अंदाजा किसी को नहीं होता कि उस की उम्मीदें पूरी होंगी और विश्वास का वजूद कायम रहेगा. वक्त और हालात कब करवट ले ले, इस बात कोई नहीं जानता. कलाम आसमा का शौहर था. उस के निकाह को भी एक साल बीत चुका था. खुशियां उस की धडक़नों में बिखरी हुई थीं, लेकिन वह अपने शौहर की बहुत सी हकीकतों से वाकिफ नहीं थी.

आसमा नहीं जानती थी कि वक्त के साथ उस की जिंदगी का नाजुक रिश्ता आंखों को आंसुओं से तर कर के तपते रेगिस्तान की गरम रेत पर पड़ कर दिल पर भी छाले देने वाला है. ऐसे छाले जिन का कोई मरहम नहीं होगा, वह दर्द की एक अनचाही सौगात दे जाएंगे.

उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद का कैंट रेलवे स्टेशन आर्मी एरिया से एकदम सटा है. वहां पहुंचने के सभी रास्ते इसी एरिया से गुजरते हैं. चौबीसों घंटे लोगों की आवाजाही का सिलसिला जारी रहता है. 27 नवंबर की दोपहर तकरीबन 3 बजे का वक्त था. सफेद रंग की 2 कारें तेजी से स्टेशन के एकदम सामने आ कर रुकीं. दोनों कारों में बैठे लोग बिजली की सी फुरती से उतरे. उन में से कुछ लोगों के हाथों में अत्याधुनिक हथियार थे.

हथियारबंद लोग तो टिकट काउंटर के आसपास ही रुक गए, जबकि बगैर हथियार वाले 5 लोग गलियारे को पार करते हुए प्लेटफौर्म पर पहुंच गए. वहां तमाम लोग मौजूद थे और काफी चहलपहल थी. उन लोगों ने अपनी नजरों को खास अंदाज में चारों ओर इस तरह दौड़ाया, जैसे उन्हें किसी की तलाश हो. तभी उन में से एक अपने साथियों से मुखातिब हुआ, “हमारा मकसद पूरा होगा क्या?”

“बिलकुल सर, आज हमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है.” उन में से एक ने आत्मविश्वास भरे लहजे में बोला.

“ठीक है.” उसी दौरान उन सभी की नजरें प्लेटफौर्म पर बने एक टी स्टाल की ओट ले कर बेफिक्री भरे अंदाज में खड़े एक युवक पर जा कर ठहर गईं. वह स्मार्ट सा नौजवान था. उस ने ब्लैक कलर का ट्राउजर और उसी से मिलतीजुलती हाईनेक वुलन जैकेट पहन रखी थी. उस के कंधे पर एक लैपटौप वाला बैग झूल रहा था. उसे देख कर आने वाले सभी लोगों ने एकदूसरे से थोड़ा दूरियां बनाईं और फिर आहिस्ताआहिस्ता चल कर उस के इर्दगिर्द फैल गए. युवक की नजरें उन से चार हुईं, लेकिन उस ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया और जेब से मोबाइल निकाल कर उस के कीपैड पर अंगुलियां चलाने लगा.

उन लोगों के हावभाव देख कर शायद उस युवक को अहसास हो गया कि वे उसी की तरफ आ रहे हैं. वे जैसे ही उस के नजदीक पहुंचे, वह युवक आगे बढ़ा. लेकिन तभी उन लोगों में से एक शख्स बोला, “रुकिए मिस्टर.”

“जी फरमाइए.” उस ने पलट कर बेपरवाही से कहा.

“तुम्हें तो दिल्ली जाना है?”

“जी, लेकिन मैं ने आप को पहचाना नहीं. क्या आप मुझे जानते हैं?”

“हम तो तुम्हारे साए से भी वाकिफ हैं मियां. लेकिन दुख इस बात का है कि आप से पहले मिल नहीं सके.” एक दूसरे शख्स ने आगे आ कर उस की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराते हुए कहा तो वह युवक असमंजस में पड़ गया.

वैसे तो वे सभी बेहद चालाकी से उस के नजदीक आए थे, लेकिन वह उन से तेज निकला. पलक झपकते ही हिरन सी तेजी से उस ने छलांग लगा दी. बाजी पलट सकती है, शायद यह बात आने वालों को पहले से पता थी. इसलिए वे सब भी होशियार थे. उन में से एक ने चंद कदम दौड़ कर फुरती से उसे पकड़ लिया. पकड़ मजबूत थी, इसलिए कोशिश के बावजूद वह युवक हिल नहीं सका. युवक अपनी बेबसी पर छटपटा कर रह गया. तुरंत उस की तलाशी ली गई. उस का बैग, पर्स व मोबाइल उन लोगों ने अपने कब्जे में ले लिया.

“कोई वैपन तो नहीं है?” किसी ने पूछा तो तलाशी लेने वाले ने कहा, “नहीं सर.”

आननफानन में वे उसे खींच कर स्टेशन के बाहर लाए और फुरती से कार में धकेल कर खुद भी कार में बैठे और जिस तरह तेजी से आए थे, उसी तरह चले गए. यह सब फिल्मी अंदाज में हुआ था. लोगों की भीड़ भी जमा हो गई थी, लेकिन उन लोगों के हथियार देख कर कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सका था.

ज़रा सी भूल ने खोला क़त्ल का राज

दिल्ली की सब से बड़ी लूट – भाग 3

पुलिस ने प्रदीप शुक्ला और चौकीदार रामसूरत को उसी समय हिरासत में ले लिया. रामसूरत लाख सफाई देता रहा कि उस का इस मामले से कोई संबंध नहीं है, पर पुलिस ने उस की एक न सुनी. हां, पुलिस ने उसे इतना भरोसा जरूर दिया कि अगर वह निर्दोष पाया गया तो उसे छोड़ दिया जाएगा. यह बात 27 नवंबर, 2015 सुबह 3 बजे की है.

एसीपी जसबीर ङ्क्षसह ने ड्राइवर प्रदीप शुक्ला को गिरफ्तार करने व कैश बरामद होने की जानकारी डीसीपी व अन्य अधिकारियों को दी तो डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा, जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया सहित कई अन्य अधिकारी भी ओखला के उस गोदाम पर पहुंच गए. सभी संदूकों को जब्त करने के बाद पुलिस प्रदीप शुक्ला और चौकीदार रामसूरत को थाने ले आई.

पुलिस यही अनुमान लगा रही थी कि इतनी बड़ी रकम को लूटने में जरूर किसी बड़े गैंग का हाथ रहा होगा, लेकिन थाने में प्रदीप शुक्ला से जब पूछताछ की गई तो पता चला कि इस लूट में उस के अलावा कोई दूसरा शामिल नहीं था और यह लूट भी कोई पहले से बनाई प्लाङ्क्षनग के तहत नहीं की गई थी, बल्कि अचानक यह सब किया गया था.

प्रदीप शुक्ला ने करीब 3 महीने पहले ही सिक्योरिटी एजेंसी एसआईएस में ड्राइवर की नौकरी जौइन की थी. उस की ड्यूटी विकासपुरी ब्रांच से कैश ले कर कंपनी के ओखला स्थित हैडऔफिस में पहुंचाने की थी. कभीकभी उसे एटीएम मशीनों में पैसे रखने वाली टीम के साथ भी भेज दिया जाता था.

प्रदीप ने बताया कि उस से जितना काम लिया जाता था, उस के मुताबिक उसे सैलरी नहीं मिलती थी. मजबूरी में उसे कम पैसों में वहां नौकरी करनी पड़ रही थी. इसीलिए कभीकभी उस के दिमाग में विचार आता था कि जो पैसे वह वैन में ले कर जाता है, अगर उसे मिल जाएं तो उस की पूरी ङ्क्षजदगी ठाठ से कटेगी. लेकिन यह उस की केवल सोच थी, उस ने वे पैसे ले कर भागने के बारे में कभी नहीं सोचा. बहरहाल कम वेतन मिलने की वजह से वह मानसिक तनाव में जरूर रहता था.

26 नवंबर को वह साढ़े 22 करोड़ रुपए विकासपुरी के करेंसी चेस्ट से ले कर चला. जब श्रीनिवासपुरी रेडलाइट के पास वैन का गनमैन विजय कुमार पटेल लघुशंका के लिए उतर गया तो अचानक उसे लालच आ गया. उस ने सोचा कि पैसे ले कर भागने का इस से अच्छा मौका उसे फिर कभी नहीं मिलेगा और वह नोटों से भरे उन 9 संदूकों को ले कर सीधे ओखला फेज-3 स्थित रामसूरत के पास पहुंच गया. वह उसे पहले से जानता था.

रामसूरत जिस गोदाम में चौकीदारी करता था, वहां पहले मॢसडीज कारों का वर्कशाप था. लेकिन कुछ सालों से वहां तार का काम होता था. यह गोदाम धु्रवकुमार नाम के एक बिजनेसमैन का था. रामसूरत धु्रवकुमार के यहां पिछले 22 सालों से नौकरी कर रहा था. प्रदीप की पत्नी शशिकला पहले इसी गोदाम में काम करती थी. तभी से प्रदीप की रामसूरत से जानपहचान थी. रामसूरत ने ही किसी से सिफारिश कर के प्रदीप की नौकरी एसआईएस सिक्योरिटी कंपनी में बतौर ड्राइवर लगवाई थी.

शाम को करीब 5 बजे प्रदीप कैश वैन ले कर रामसूरत के पास गोदाम में पहुंचा. प्रदीप ने रामसूरत को बताया कि उन 9 संदूकों में पन्नी के बंडल हैं. उन्हें वह बनारस ले जाएगा, जिस की एवज में उसे 10 हजार रुपए मिलेंगे. इस के बाद उस ने वैन से नोटों से भरे सारे संदूक उतार कर गोदाम के एक कमरे में रख दिए. फिर मौका मिलने पर उस ने खर्चे के लिए एक संदूक से 11 हजार रुपए निकाल लिए.

इस के बाद वह यह कह कर वैन ले कर चला गया कि थोड़ी देर में लेबर ले कर आ रहा है ताकि सभी संदूकों को पैक करा कर बनारस ले जा सके. इस पर रामसूरत मान गया. इस के बाद प्रदीप वैन को गोङ्क्षवदपुरी मेट्रो स्टेशन के पास छोड़ कर चला आया. लौटते समय रास्ते भर वह यही सोचता रहा कि इस रकम को ले कर वह कहां जाए.

प्रदीप ने खर्चे के लिए एक संदूक से 11 हजार रुपए निकाल लिए थे. खानेपीने का कुछ सामान लेने के लिए वह बाजार चला गया. वहां से उस ने महंगी शराब खरीदी, होटल से चिकन पैक कराया. इस के बाद वह गोदाम लौट आया. उसे अकेले देख कर रामसूरत ने पूछा, ‘‘तुम तो पैङ्क्षकग के लिए लेबर लेने गए थे, लेबर कहां है?’’

इस पर प्रदीप ने बताया कि रात की वजह से लेबर नहीं मिली, सुबह को देखूंगा. रामसूरत ने भी उस की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वह वहां से चला गया. उस के जाने के बाद प्रदीप ने उन संदूकों के पास बैठ कर शराब पी और चिकन खाया. फिर वह कपड़ा बिछा कर वहीं सो गया. रामसूरत भी अपनी जगह पर जा कर सो गया.

सुबह 3 बजे के करीब किसी ने गेट खटखटाया तो रामसूरत की नींद खुली. वह गेट पर गया तो बाहर भारी संख्या में पुलिस को देख कर घबरा गया. पुलिस वालों ने जब उसे फोटो दिखाया तो वह समझ गया कि प्रदीप जरूर ही कोई गलत काम कर के भागा है. चाबी लेने के बहाने रामसूरत उस कमरे में आया जहां प्रदीप सो रहा था.

रामसूरत ने प्रदीप को जगा कर कहा, ‘‘ये पन्नी के बौक्स क्या तुम चोरी कर के लाए हो, जो पुलिस यहां आई है.’’ पुलिस का नाम सुनते ही प्रदीप डर गया. वह झट से बोला कि कोई भागने का रास्ता हो तो बताओ. इस से रामसूरत को विश्वास हो गया कि वह जरूर कोई गड़बड़ कर के आया है. इस से पहले कि प्रदीप वहां से भाग पाता, रामसूरत ने कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया.

प्रदीप मिन्नतें करते हुए दरवाजा खोलने को कहता रहा लेकिन रामसूरत ने उस की एक नहीं सुनी और वह गेट पर खड़े पुलिस वालों को उस कमरे में ले गया जहां प्रदीप था. प्रदीप ने एक संदूक से जो 11 हजार रुपए निकाले थे, उन में से वह साढ़े 10 हजार रुपए खर्च कर चुका था.

उस से पूछताछ के बाद पुलिस को जब यकीन हो गया कि इस लूट के मामले में उस के अलावा किसी और का हाथ नहीं है तो हिरासत में लिए गए बाकी लोगों को छोड़ दिया गया. साथ ही पुलिस ने ईमानदारी से अपना फर्ज निभाने वाले चौकीदार रामसूरत को धन्यवाद भी दिया. जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया ने 10 घंटे के अंदर ही दिल्ली की सब से बड़ी कैश लूट का खुलासा कर रकम बरामद करने वाली पुलिस टीम की सराहना की.

प्रदीप से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. मामले की विवेचना थानाप्रभारी नरेश सोलंकी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

उज्बेक डांसर का दुखद अंत – भाग 3

इस के बाद पुलिस ने गगन को 6 दिनों के कस्टडी रिमांड पर ले कर गहराई से पूछताछ की. पूछताछ में उस ने जो कुछ बताया, उस से इन हत्याओं का जो राज सामने आया, वह कुछ इस तरह से था.

गगन एक बड़ा सैक्स रैकेट चलाता था. उस के नेटवर्क में देसी ही नहीं, विदेशी लड़कियों की भी खूब डिमांड थी. सोनू पंजाबन के लिए काम कर चुके गगन के नेटवर्क में काफी रशियन लड़कियां थीं, जिन्हें वह दिल्ली, एनसीआर के अलावा चंडीगढ़, जयपुर और मुंबई की रेव पार्टियों में भेजता था. इस के लिए वह रूस में सैक्स रैकेट से जुड़े लोगों से संपर्क कर के लड़कियों को टूरिस्ट वीजा पर 3 महीने के लिए भारत बुलाता था.

भारत में रशियन लड़कियों की डिमांड पूरी करने के लिए सैक्स रैकेट से जुड़े लोग सीआईएस (कौमनवैल्थ औफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) से जुड़े देशों जैसे उज्बेकिस्तान व कजाकिस्तान की गरीब लड़कियों को अच्छी जिंदगी का लालच दे कर टूरिस्ट वीजा पर भारत ला कर देह धंधे के कारोबार से जोड़ देते थे.

गगन और उस की पत्नी माशा के इस धंधे की पार्टनर नाज उज्बेकिस्तान की रहने वाली थी. माशा लोगों को ब्लैकमेल करने में माहिर थी. नाज पहले खुद अपनी देह बेचती थी, उम्र ढलने पर उस की डिमांड कम हुई तो वह दूसरी लड़कियों से धंधा करवा कर उन की कमाई से कमीशन लेने लगी. वह ज्यादातर उज्बेक लड़कियों को ही पटाने की कोशिश करती थी.

शाखनोजा को देखते ही नाज उस पर लट्टू हो गई थी. उसे उस ने देहधंधे में उतारने की कोशिश भी की. इस कोशिश में जब उसे लगा कि वह ऐसीवैसी लड़कियों में नहीं है, तब उस ने उस की रूममेट बन कर उसे अपने जाल में फंसाने की कोशिश की. अमीर एवं प्रतिष्ठित परिवार से संबंध रखने वाली शाखनोजा एक प्रतिभावान कलाकार थी. उस की कला की कदर भी बढ़ रही थी. अपने नृत्य कार्यक्रमों से उसे अच्छा पैसा मिलने लगा था.

नाज के माध्यम से ही वह माशा और उस के पति गगन के संपर्क में आई. उसे इन की असलियत मालूम नहीं थी. अलबत्ता ये सभी उस से उम्र में बड़े थे, इस वजह से वह इन लोगों की बहुत इज्जत करती थी. शाखनोजा स्वभाव से थोड़ा भोली थी, जिस का फायदा उठाते हुए ये लोग उस से पैसे उधार मांगने लगे, जो बढ़तेबढ़ते 8 लाख रुपए तक पहुंच गए.

एक दिन शाखनोजा ने इन से अपने पैसे वापस मांगे तो नाराज हो कर इन लोगों ने उसे धमकाने के लिए 24 सितंबर, 2015 की रात धोखे से साउथ एक्सटेंशन में एक जगह बुला लिया. वहां थोड़ाबहुत हडक़ा कर इन लोगों ने उसे अपनी गाड़ी में जबरदस्ती बैठा लिया और चले गए.

कार गगन चला रहा था. माशा उस की बगल वाली सीट पर बैठी थी. पिछली सीट पर नाज लगातार शाखनोजा की पिटाई करते हुए उस का गला दबा कर उसे डरा रही थी. उसी बीच उबडख़ाबड़ जगह पर कार थोड़ा उछली तो नाज के हाथों का दबाव बढ़ गया, जिस की वजह से शाखनोजा की मौत हो गई.

ये लोग शाखनोजा को मारना नहीं चाहते थे, लेकिन जब वह मर गई तो उस की लाश को दिल्ली में फेंकना खतरे से खाली नहीं था. उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए इन्होंने एक सूटकेस का इंतजाम किया और उस में लाश को रख कर रात ही में पानीपत के कस्बा समालखा में एक जगह उस सूटकेस और लाश पर पैट्रोल छिडक़ कर आग लगा दी. इस तरह इन लोगों ने शाखनोजा से छुटकारा पा लिया.

इस घटना से गगन और माशा जरा भी नहीं घबराए, लेकिन नाज के दिलोदिमाग पर इस का गहरा असर पड़ा. उसे पकड़े जाने का भय सताने लगा. हालांकि कुछ दिनों बाद एक बार पुलिस उस से पूछताछ भी कर चुकी थी. तब गगन उस के लिए ढाल बन गया था. इस के बाद गगन को लगा कि यह डरपोक औरत खुद तो फंसेगी ही, अपने साथ उन्हें भी फंसाएगी. रहीसही कसर शाखनोजा के उस पत्र ने पूरी कर दी, जिस में उस ने अपनी जिंदगी से जुड़ी तमाम घटनाओं का जिक्र करते हुए एंबेसी को लिखा था. यह पत्र पुलिस को बाद में शाखनोजा के सामान से मिला था.

खैर, नाज को अपने लिए खतरा बनते देख गगन ने 5 अक्टूबर, 2015 को उसे भी गला घोंट कर मार दिया और उस की लाश को उत्तर प्रदेश के हापुड़ ले जा कर एक सुनसान जगह में पैट्रोल डाल कर जला दिया. पूछताछ के बाद गगन को उन दोनों जगहों पर ले जाया गया, जहां उस ने लाशें जलाई थीं. वहां के थानों में अधजली लाशें मिलने के मामले दर्ज थे. बरामदगी के नाम पर स्थानीय पुलिस को इन महिलाओं की अस्थियां ही मिल पाई थीं.

शाखनोजा की पहचान के लिए पुलिस ने उस की हड्डी एवं उस की मां शोखिस्ता का डीएनए टैस्ट करवाया है. मामले का खुलासा होने पर माशा भूमिगत हो गई थी. उस से पूछताछ के लिए पुलिस उस की तलाश कर रही थी. गगन से शाखनोजा की कुछ आपत्तिजनक तसवीरें मिली हैं. ये तसवीरें उस ने उसे ब्लैकमेल करने के लिए 16 अगस्त को तब खींची थीं, जब एक नृत्य आयोजन के बाद उसे बेहोशी की दवा मिला कोला पिलाया गया था. यह षडयंत्र गगन का रचा था.

बहरहाल, जमिरा का कहना है कि उस की बहन को बैले डांसर कह कर उस की प्रतिभा का अपमान न किया जाए. वह एक अच्छी नर्तकी थी, जो अपनी कला को निखारने के लिए इंडिया आई थी. लेकिन यहां आ कर उसे बदनामी और निर्मम मौत मिली.