
पुलिस ने पूछताछ के लिए गनमैन विजय कुमार को हिरासत में ले लिया था. इस वारदात के पीछे पुलिस को 3 ऐंगल नजर आ रहे थे. पहला यह कि कैश वैन का ड्राइवर प्रदीप शुक्ला इतनी बड़ी लूट को अकेला अंजाम नहीं दे सकता था. उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर ही वारदात को अंजाम दिया होगा.
दूसरा ऐंगल यह लग रहा था कि किसी प्रोफेशनल गिरोह ने रास्ते में प्रदीप को काबू कर के उस का अपहरण कर लिया होगा और रकम व प्रदीप को वह अपनी गाड़ी में डाल कर ले गए होंगे. अगर ऐसा हुआ तो अपहत्र्ता प्रदीप की हत्या कर सकते थे.
तीसरा ऐंगल यह लग रहा था कि गनमैन विजय कुमार ने साजिश रच कर यह वारदात कराई है. गनमैन योजना के तहत लघुशंका के बहाने उतर गया होगा और उस के साथियों ने ड्राइवर का पीछा कर के वारदात को अंजाम दिया होगा. पुलिस इन तीनों संभावनाओं पर तहकीकात कर रही थी.
विकासपुरी से कैश ले कर वैन जिस रूट से होते हुए श्रीनिवासपुरी की रेडलाइट तक पहुंची थी, पुलिस ने यह पता लगाया कि इस रास्ते में कहांकहां सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. पुलिस यह जानना चाहती थी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बदमाश विकासपुरी से ही किसी गाड़ी से कैश वैन का पीछा कर रहे थे. इस के अलावा गोङ्क्षवदपुरी मैट्रो स्टेशन के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी गई. क्योंकि कैश वैन लावारिस अवस्था में इसी मैट्रो स्टेशन के पास खड़ी मिली थी.
पुलिस की एक टीम विकासपुरी स्थित करेंसी चेस्ट पहुंची. वहां से पता चला कि एसआईएस की किसी भी वैन में रोजाना 10 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं रखे जाते थे तब पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई कि उस दिन वैन में साढ़े 22 करोड़ रुपए क्यों रखे गए?
इस के अलावा यहां एक खामी और सामने आई, वह यह थी कि हर दिन हरेक कैश वैन पर 2 गनमैन, एक ड्राइवर और एक कस्टोडियन सवार होता था लेकिन उस दिन कैश वैन में एक गनमैन और एक कस्टोडियन को क्यों नहीं भेजा गया? इतने ज्यादा कैश के साथ केवल एक ही गनमैन क्यों भेजा गया? कस्टोडियन सुरेश कुमार उस वैन में क्यों नहीं गया?
इस के अलावा पुलिस को यह भी पता चला कि वैन में रकम रखने की जिम्मेदारी कस्टोडियन की होती है, लेकिन उस वैन में साढ़े 22 करोड़ रुपए कस्टोडियन के बजाय किसी विक्रम नाम के कर्मचारी ने रखे थे. इन खामियों को देख कर पुलिस को शक हुआ कि लूट की योजना बनाने में यहां के कर्मचारियों का भी हाथ हो सकता है. इसीलिए पुलिस ने विक्रम, कस्टोडियन सुरेश कुमार और अन्य कई कर्मचारियों को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.
इस से पहले दिल्ली में कैश लूट के जो मामले हुए थे, उन में जिन बदमाशों के शामिल होने की बात सामने आई थी, पुलिस ने उन बदमाशों के डोजियर के आधार पर उन की तलाश शुरू कर दी. उन में से पुलिस के हाथ जितने भी बदमाश लगे, उन से भी सख्ती से पूछताछ की जाने लगी.
प्रदीप शुक्ला नाम का जो ड्राइवर कैश के साथ लापता था, पुलिस ने एसआईएस कंपनी से उस का फोटो और उस की डिटेल हासिल की तो पता चला कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिला बलिया का रहने वाला था और उस ने 10 सितंबर, 2015 को ही इस कंपनी में नौकरी जौइन की थी.
कंपनी में उस ने दक्षिणी दिल्ली के कोटला मुबारकपुर का पता लिखवाया था. पुलिस की एक टीम उस के कोटला मुबारकपुर वाले पते पर पहुंची तो पता चला कि वह पहले कभी इस पते पर रहता था. मकान मालिक ने पुलिस को बताया कि अब वह ओखला इंडस्ट्रियल एरिया के नजदीक हरकेशनगर में रहता है.
हरकेशनगर का पता ले कर पुलिस टीम जब उस के कमरे पर पहुंची तो वहां उस की पत्नी शशिकला और 3 बच्चे मिले. पुलिस ने जब शशिकला से उस के पति के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह अपनी ड्ïयूटी गए हैं. पुलिस ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रदीप घर में नोटों के बौक्स रख कर कहीं फरार हो गया हो और पत्नी झूठ बोल रही हो. यह शंका दूर करने के लिए पुलिस ने उस के कमरे की तलाशी ली, लेकिन वहां उसे कुछ नहीं मिला. पुलिस वहां से खाली हाथ लौट आई.
अब तक पुलिस की किसी भी टीम को ऐसा कोई क्लू नहीं मिल सका था, जिस से प्रदीप के बारे में कोई जानकारी मिल सकती. अब तक काफी रात हो चुकी थी. लेकिन पुलिस टीमें अपनेअपने काम में लगी थीं. पुलिस ने ड्राइवर प्रदीप शुक्ला के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा रखा था, इस से उस की आखिरी लोकेशन अपराह्न पौने 4 बजे श्रीनिवासपुरी की आ रही थी.
इस से यही लग रहा था कि वहां से कैश वैन सहित फरार होते समय उस ने अपना फोन बंद कर दिया था. पुलिस ने उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि प्रदीप ने उसी दिन 26 नवंबर को आखिरी बार किसी अजीत के फोन पर बात की थी. बाद में पता चला कि अजीत भी हरकेशनगर में रहता है.
पुलिस अजीत के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. उस से प्रदीप के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि प्रदीप से उस की कोई खास बात नहीं हुई थी, लेकिन उस ने प्रदीप को शाम 4-5 बजे के बीच ओखला फेज-3 में देखा था.
थानाप्रभारी नरेश सोलंकी अजीत को ले कर ओखला फेज-3 में उस जगह पहुंच गए, जहां उस ने प्रदीप को देखा था. वहां तमाम इंडस्ट्री हैं, इसलिए प्रदीप को ढूंढना आसान नहीं था. थानाप्रभारी ने इस बात से डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा को अवगत कराया तो उन्होंने उस इलाके में सर्च औपरेशन चलाने के निर्देश दिए.
सर्च औपरेशन में सरिता विहार के थानाप्रभारी मङ्क्षहदर ङ्क्षसह, नेहरू प्लेस पुलिस चौकी इंचार्ज मनमीत मलिक, एसआई राजेंद्र डागर, जितेंद्र ङ्क्षसह, हैडकांस्टेबल यतेंद्र आदि को भी लगा दिया गया. इस टीम का निर्देशन कालकाजी के एसीपी जसवीर ङ्क्षसह कर रहे थे.
पुलिस टीम हर फैक्ट्री में जाती और प्रदीप का फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछती. इसी क्रम में पुलिस ओखला फेज-3 स्थित एक ढाबे पर पहुंची. वह ढाबा अजय का था. वह ढाबा देर रात तक खुला रहता था. पुलिस ने ढाबे वाले को प्रदीप का फोटो दिखाया तो उस ने बताया कि इसे उस ने यहीं पर रात साढ़े 9 बजे के करीब देखा था. ढाबे वाले से बात कर के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि प्रदीप ज़िंदा है. क्योंकि पुलिस को आशंका थी कि अपहत्र्ताओं ने उसे कहीं मार न दिया हो.
कैश कहां है, यह बात प्रदीप के मिलने पर ही पता लग सकती थी. इसलिए उसे ढूंढना जरूरी था. पुलिस को लगा कि कुछ घंटे पहले जब प्रदीप यहीं था तो जरूर यहीं कहीं छिपा होगा. इस के बाद पुलिस पूरे उत्साह से एकएक फैक्ट्री में जा कर उसे खोजने लगी.
खोजबीन करते हुए पुलिस ढाबे से करीब 50 गज दूर एक फैक्ट्री के गेट पर पहुंची तो उस में अंदर से ताला बंद था. गेट खटखटाने पर गेट पर एक अधेड़ उम्र का आदमी आया. वह उस फैक्ट्री का चौकीदार था. उस का नाम रामसूरत था. पुलिस ने चौकीदार को ड्राइवर प्रदीप शुक्ला का फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछा और गोदाम की तलाशी लेने के लिए कहा.
पुलिस को देख कर चौकीदार रामसूरत डर गया. वह गेट की चाबी लेने की बात कह कर अंदर गया और कुछ देर बाद लौट कर गेट खोल कर पुलिस को अंदर ले आया. उस ने एक कमरे का दरवाजा खोल कर कहा, ‘‘सर, जिस की आप को तलाश है, वह यह रहा.’’
पुलिस कमरे में घुसी तो सचमुच वहां फरार ड्राइवर प्रदीप शुक्ला मिल गया. उसी कमरे में कैश से भरे 9 संदूक भी रखे थे. यह सब देख कर पुलिस की बांछें खिल उठीं. पुलिस ने प्रदीप को हिरासत में ले कर उन बक्सों की जांच की तो उन में से केवल एक बक्से की क्लिप हटी थी, बाकी 8 बक्से जैसे के तैसे थे.
पुलिस ने इन लोगों के अलावा अन्य कई लोगों को भी संदेह के दायरे में रख कर पूछताछ की थी. लेकिन शाखनोजा के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिल पाई थी. शाखनोजा की मां व दोनों बहनों ने तब तक दिल्ली में ही रुके रहने का फैसला कर लिया, जब तक उस का पता न चल जाए. इस के लिए उन्होंने एक फ्लैट किराए पर ले लिया. इंसाफ की चाहत लिए एक दिन वे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मिलीं. दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से तो वे रोजाना ही मिल रही थीं. इन लोगों द्वारा शाखनोजा के बारे में टुकड़ों में बताई गई बातों से उस का परिचय कुछ इस तरह से सामने आया.
घर में छोटी होने की वजह से शाखनोजा सब की लाडली थी. उस ने ताशकंद में रह कर स्कूली शिक्षा हासिल की थी, जहां अच्छे एकैडमिक ग्रेड हासिल करने के साथ वह डांस प्रतियोगिताओं में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.
दरअसल, शाखनोजा का जन्म ऐसे कलाकारों के परिवार में हुआ था, जहां सभी को गीतसंगीत का शौक था. उस के पिता जानेमाने संगीतकार थे, लेकिन अज्ञात बीमारी के चलते वह तब दुनिया को अलविदा कह गए थे, जब शाखनोजा केवल 2 साल की थी. लेकिन शोखिस्ता ने अपनी इस बेटी को कभी भी पिता की कमी महसूस नहीं होने दी थी.
शाखनोजा छुटपन से ही डांस विधा की ओर अग्रसर होने लगी थी. उस का शौक देखते हुए उस का दाखिला एक अच्छे डांस स्कूल में करवा दिया गया था, जहां उस ने बैले डांस से ले कर भारतीय फिल्मों के गीतों तक पर डांस करना सीखा. देखतेदेखते उस ने इंडियन फिल्मी गीतों पर डांस करने में महारत हासिल कर ली.
माधुरी दीक्षित अभिनीत ‘देवदास’ के गीत ‘मार डाला…’ पर तो वह इतना बढिय़ा डांस किया करती थी कि देखने वाले को एक बार विश्वास ही नहीं होता था कि डांस करने वाली लडक़ी भारतीय न हो कर विदेशी होगी. शायद इन नृत्यों की वजह से ही उसे भारत और यहां के कल्चर से प्यार हो गया था.
शाखनोजा सब से पहले एक एंबेसी इवेंट में भाग लेने के लिए सन 2008 में भारत आई थी. उन दिनों वह उज्बेकिस्तान में कोरियोग्राफी का एक विशेष क्रैश कोर्स कर रही थी. इस कोर्स को बीच में ही छोड़ कर वह इंडिया आ गई थी, जहां की संस्कृति ने उसे इस कदर मोह लिया था कि उस का मन यहीं बसने को बेचैन हो उठा था.
इस के बाद वह टूरिस्ट वीजा पर अकसर इंडिया आने लगी थी. इस से उसे दिल्ली की काफी जानकारी हो गई थी. वह जब भी भारत आती थी तो वह पहाडग़ंज के होटलों में या फिर किशनगढ़ के अपार्टमेंट्स में रुकती थी. किशनगढ़ में उस की मुलाकात नाज से हुई थी. बाद में दोनों रूममेट बन कर रहने लगी थीं.
नाज का पूरा नाम था एटाजहानोवा कुपालबायवेना. वह भी उज्बेकिस्तान की रहने वाली थी. नाज के माध्यम से शाखनोजा की दिल्ली में रहने वाले तमाम उज्बेकियों से जानपहचान हो गई थी. वह उन लोगों के पारिवारिक समारोहों में खूब बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगी थी. इसी सिलसिले में उस की मुलाकात एक अन्य उज्बेक युवती माशा व उस के भारतीय पति गगन से हुई थी.
शाखनोजा करीब रोजाना ही अपनी मां को फोन कर के एकएक बात के बारे में बताया करती थी. शोखिस्ता उस से मिलने एकदो बार दिल्ली भी आई थीं और बेटी के इधर के कई दोस्तों से मिली थीं. उन्होंने महसूस किया था कि यहां उन की बेटी ने अपनी अच्छी जगह बना ली है. उस की प्रशंसा करने वालों की कमी नहीं है.
शाखनोजा ने तब मां को बताया था कि यहां के सांस्कृतिक समारोहों के सहारे वह जल्दी ही भारतीय फिल्मों में भी काम हासिल कर लेगी. शोखिस्ता बेटी की सफलताओं से खुश हो कर उस के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हुई खुशीखुशी उज्बेकिस्तान लौटी थीं.
कुछ समय बाद एक दिन शाखनोजा ने फोन कर के उन्हें बताया कि उस के डांस प्रोग्राम इस कदर पसंद किए जाने लगे हैं कि वह मांग को पूरा करने में खुद को असमर्थ महसूस कर रही है. कभीकभी मोटे पैसों का लालच दिए जाने के बावजूद उसे कार्यक्रम छोडऩे पड़ते हैं. ऐसे ही एक बार शोखिस्ता को बेटी की ओर से इंडिया में बौयफ्रैंड बनाने और उस से गर्भ ठहरने का समाचार मिला. इस से शोखिस्ता को लगा कि शाखनोजा अब वहीं अपना घर बसा कर भारत में रह जाएगी. वैसे उन्हें इस बात का पहले से ही अहसास था कि शाखनोजा की जान इंडिया में अटकी रहती है.
फोन पर ऐसी ही बातों के बीच एक दिन शाखनोजा ने मां को कुछ ऐसा बताया, जिसे सुन कर वह परेशान हो गईं. शाखनोजा ने उन्हें बताया कि 16 अगस्त, 2015 को हुई एक पार्टी में वह इतना नाची कि थक कर चूर हो गई. डांस खत्म होने पर जब वह वहां बिछे एक काउच पर बैठी तो किसी ने उसे पीने को कोक का गिलास दिया, जिसे वह एक ही सांस में पी गई.
उसे पीने के बाद उस पर बेहोशी छाने लगी. उस के बाद जब वह चेतना में लौटी तो उस ने खुद को एक दूसरी जगह पर पाया. उस के शरीर पर कपड़े भी पहले वाले नहीं थे. वहां 2 लड़कियां थीं, जिन्होंने उसे बताया कि तंग कपड़ों की वजह से उस की तबीयत खराब हो गई थी. इसीलिए उसे यहां ला कर उस के उन कपड़ों को उतार कर ये ढीले कपड़े पहनाए गए हैं.
इस घटना के बाद से शाखनोजा थोड़ा परेशान रहने लगी थी. उस की बातें सुन कर शोखिस्ता भी बेचैन हो जाती थीं. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि इस मामले में वह बेटी से क्या कहें? कुछ कहने से वह और ज्यादा चिंता में पड़ सकती थी. इसलिए उन्होंने शाखनोजा से इतना ही कहा कि आगे से कहीं इतना न नाचे कि तबीयत खराब हो जाए.
उन्होंने बेटी को भले ही चेता दिया था, लेकिन उन्हें उस की चिंता सताती रहती थी कि अकेली रहते हुए वह कहीं किसी षडयंत्र का शिकार न हो जाए. इस के बाद शोखिस्ता इंडिया जा कर मामले की तह में पहुंचने का विचार करने लगी थीं.
इस घटना को घटे अभी सवा महीना ही बीता था कि 24 सितंबर की रात उन्हें बेटी के अपहरण की सूचना ने झकझोर कर रख दिया. वह तुरंत अपनी दूसरी बेटियों के साथ दिल्ली पहुंचीं और बेटी की तलाश में जुट गईं. पुलिस पर वह लगातार दबाव डालती रहीं कि इस मामले को वह हलके में न ले कर उन लोगों से सख्ती से पूछताछ करे, जिन पर उसे शक है.
शोखिस्ता का कहना था कि इस मामले को पुलिस हल्के में ले कर संदिग्ध लोगों से गंभीरता से पूछताछ नहीं कर रही है. आखिर पुलिस ने अपना रवैया बदला और संदिग्ध लोगों को फिर से थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ शुरू की. दूसरे लोगों के अलावा जब गगन से भी सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उस ने शाखनोजा को ही नहीं, नाज को भी मौत के घाट उतार कर उस की भी लाश जला दी है. यह सुन कर पुलिस दंग रह गई.
बैंकों ने अपनी एटीएम मशीनों में कैश डालने की जिम्मेदारी विभिन्न निजी एजेंसियों को दे रखी है. उन एजेंसियों ने अलगअलग इलाकों में अपने करेंसी चेस्ट बना रखे हैं. बैंकों से मोटी रकम निकाल कर पहले करेंसी चेस्ट में पहुंचाई जाती है, उस के बाद वह कैश वैनों द्वारा अलगअलग एटीएम बूथों तक पहुंचाया जाता है.
सिक्योरिटी एंड इंटेलिजैंस सर्विसेज (एसआईएस) सिक्योरिटी एजेंसी भी पिछले कई सालों से बैंकों की एटीएम मशीनों में पैसे डालने का काम कर रही है.
26 नवंबर, 2015 को पश्चिमी दिल्ली के विकासपुरी स्थित कंपनी के करेंसी चेस्ट पर एसआईएस की कैश वैन पैसे ले जाने के लिए पहुंची. वहां की ऐक्सिस बैंक से 38 करोड़ रुपए निकाल कर करेंसी चेस्ट में मौजूद संदूकों में भर दिए गए. यह कैश वैन द्वारा अलगअलग एटीएम बूथों तक पहुंचाया जाना था.
रुपयों से भरे उन संदूकों में से 9 संदूक एसआईएस की एक वैन में रख दिए गए, जिन में साढ़े 22 करोड़ रुपए थे. ये साढ़े 22 करोड़ रुपए दिल्ली के ओखला स्थित एटीएम मशीनों में रखे जाने थे. इसलिए दोपहर ढाई बजे के करीब एसआईएस की वह वैन ओखला के लिए चल पड़ी. उस वैन को प्रदीप शुक्ला चला रहा था और सुरक्षा के लिए गनमैन विजय कुमार पटेल उस के साथ था. विकासपुरी से चल कर वह वैन करीब साढ़े 3 बजे श्रीनिवासपुरी की रेड लाइट पर पहुंची. गनमैन विजय कुमार को लघुशंका लगी थी, इसलिए वह ड्राइवर से कह कर वैन से उतर गया.
कुछ देर बाद जब वह लौट कर आया तो उसे वहां कैश वैन दिखाई नहीं दी. विजय कुमार ने इधरउधर नजर दौड़ाई कि ड्राइवर ने रेडलाइट पार कर के वैन खड़ी न कर दी हो. लेकिन उसे कहीं भी वैन नहीं दिखी. यह बात करीब पौने 4 बजे की थी.
विजय कुमार के पास वैन के ड्राइवर प्रदीप शुक्ला का फोन नंबर था. उस ने उसे फोन किया. कई बार घंटी बजने के बाद प्रदीप ने फोन रिसीव कर के बताया कि रेडलाइट पर ट्रैफिक पुलिस ने वैन खड़ी नहीं होने दी, इसलिए वह इसी रोड पर थोड़ी दूर आगे खड़ा है.
जिस तरफ प्रदीप शुक्ला ने वैन खड़ी होने की बात कही थी, विजय उसी ओर था. लेकिन उसे वैन नजर नहीं आ रही थी. विजय ने थोड़ा आगे बढ़ कर भी देखा लेकिन उसे कहीं भी कैश वैन दिखाई नहीं दी. विजय ने प्रदीप को फिर फोन किया. इस बार उस का फोन बंद था. उस ने कई बार ड्राइवर को फोन किया, लेकिन अब उस का फोन बंद हो चुका था. वह चौंका कि अब फोन बंद क्यों है? आखिर वह उसे छोड़ कर वैन ले कर कहां चला गया?
उस ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रदीप वैन ले कर कंपनी के हैडऔफिस चला गया हो. अगर ऐसा हुआ तो उस से जवाबतलब किया जाएगा. कंपनी के अधिकारी उसी से पूछेंगे कि कैश की सुरक्षा की जिम्मेदारी उस की थी तो कैश छोड़ कर वह क्यों गया? एक बार फिर उस ने ड्राइवर प्रदीप को फोन किया, लेकिन इस बार भी उस का फोन बंद ही मिला.
विजय कुमार परेशान हो उठा था. वह औफिस फोन कर के पूछना चाहता था कि ड्राइवर प्रदीप वहां तो नहीं आया है, लेकिन डांट पडऩे की वजह से उस ने औफिस में फोन नहीं किया बल्कि सीधे ओखला फेज-1 स्थित कंपनी के औफिस पहुंच गया. औफिस पहुंच कर पहले उस ने पार्किंग एरिया में कैश वैन को ढूंढा. जब वैन वहां नहीं दिखी तो विजय ने वहां मौजूद कंपनी के कर्मचारियों से प्रदीप के बारे में पूछा. उन्होंने बताया कि प्रदीप शुक्ला यहां नहीं आया है.
यह जान कर विजय के होश उड़ गए. उसे लगा कि अब उस की नौकरी गई. लेकिन यह ऐसी बात थी, जिसे छिपाया भी नहीं जा सकता था. वह डरताडराता कंपनी के एरिया मैनेजर आनंद कुमार के पास पहुंचा और जब उन्हें ड्राइवर प्रदीप शुक्ला के कैश वैन सहित गायब होने की बात बताई तो वह सन्न रह गए, क्योंकि ड्राइवर प्रदीप पूरे साढ़े 22 करोड़ रुपए के साथ गायब था. उन्होंने तुरंत प्रदीप शुक्ला का फोन मिलाया, लेकिन उस का फोन उस समय भी बंद था.
आनंद कुमार के दिमाग में तुरंत आया कि ड्राइवर वह रकम ले कर कहीं भाग तो नहीं गया? अगर ऐसा हुआ तो यह कंपनी के लिए भी बड़ी बदनामी वाली बात होगी. इसलिए मैनेजर ने गार्ड विजय कुमार से कहा कि अभी वह इस बारे में किसी से कोई बात न करे.
एरिया मैनेजर आनंद कुमार ने इस बारे में कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों से बात की तो सभी में खलबली मच गई. क्योंकि यह कोई छोटीमोटी बात नहीं थी. जिस कैश वैन के साथ प्रदीप शुक्ला लापता था, उस में जीपीएस लगा था. उस के माध्यम से पता लगाया जा सकता था कि वैन उस समय कहां है. इसीलिए उन्होंने उस समय पुलिस को सूचना नहीं दी. कंपनी के अधिकारी खुद ही अपने स्तर से वैन का पता लगाने लगे.
जीपीएस के माध्यम से पता चला कि वह वैन दिल्ली में गोङ्क्षवदपुरी मैट्रो स्टेशन के पास खड़ी है. कंपनी के अधिकारियों की उम्मीद जागी और वे आननफानन गोङ्क्षवदपुरी मैट्रो स्टेशन के नजदीक पहुंचे तो वहां उन्हें सर्विस लेन में वह वैन खड़ी दिखाई दी. जब वे वैन के पास पहुंचे तो उस में कैश से भरे सभी संदूक गायब मिले. अब कंपनी के अधिकारियों को विश्वास हो गया कि ड्राइवर प्रदीप शुक्ला किसी दूसरी गाड़ी में उन संदूकों को ले कर भाग गया है.
अब इस बात को छिपाया नहीं जा सकता था. पुलिस को सूचना देना जरूरी था, इसलिए शाम पौने 6 बजे के करीब उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर के कैश वैन के ड्राइवर द्वारा साढ़े 22 करोड़ रुपए ले कर गायब होने की सूचना दे दी.
जैसे ही यह सूचना पुलिस के बड़े अधिकारियों तक पहुंची तो उन के होश उड़ गए. क्योंकि नवंबर, 2014 में दिल्ली के कमलानगर में कैश वैन से जो डेढ़ करोड़ रुपए की लूट हुई थी, वह केस अभी तक नहीं खुल पाया था, ऊपर से यह नया केस सामने आ गया.
जिस जगह यह घटना हुई थी, वह इलाका दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना ओखला के अंतर्गत आता था. सूचना पाते ही ओखला के थानाप्रभारी नरेश सोलंकी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा और एसीपी (कालकाजी) जसवीर ङ्क्षसह भी आ गए.
चूंकि लूट का यह बड़ा मामला था, इसलिए जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया भी चल पड़े थे. लूट की खबर मिलते ही पुलिस ने दिल्ली से बाहर जाने वाले सभी रास्तों पर बैरिकेड्ïस लगा कर वाहनों की चैङ्क्षकग शुरू कर दी थी. सभी पुलिस अधिकारी उस जगह पहुंच गए, जहां कैश वैन खड़ी मिली थी. इस के बाद उन्होंने उस जगह का भी मुआयना किया, जहां वैन का ड्राइवर गनमैन विजय कुमार पटेल को छोड़ कर चला आया था.
डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा ने जरूरी जांच के लिए फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और डौग स्क्वायड को भी बुला लिया था. जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया ने स्पैशल सेल और क्राइम ब्रांच की स्पैशल टीम को भी बुला लिया था. सभी टीमें अपनेअपने स्तर से जांच कर रही थीं.
पुलिस अधिकारियों के गले यह बात नहीं उतर रही थी कि जब घटना पौने 4 बजे घटी थी तो कंपनी के अधिकारियों ने 2 घंटे बाद पुलिस को सूचना क्यों दी? आखिर इतनी देर तक वे मामले को क्यों दबाए रहे. इस पर कंपनी के अधिकारी अपनी सफाई में यही कह रहे थे कि जीपीएस के माध्यम से वे पहले खुद ही ड्राइवर और वैन को तलाशने की कोशिश कर रहे थे. यही करने में उन्हें इतना समय लग गया.
बहरहाल, मौके की काररवाई निपटाने के बाद थाना ओखला में ड्राइवर प्रदीप शुक्ला के खिलाफ अमानत में खयानत का मामला दर्ज कर लिया गया. जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया ने इस केस के खुलासे के लिए स्पैशल सेल, क्राइम ब्रांच, स्पैशल स्टाफ के अलावा थानों के तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को भी लगा दिया. सभी टीमें अलगअलग तरीके से केस की जांच में जुट गई.
25 सितंबर, 2015 की सुबह की बात है. समालखा, पानीपत की पुलिस को सूचना मिली कि जीटी रोड स्थित गांव करहंस में पूर्व मंत्री करतार सिंह भड़ाना की कोठी के पास वाले खेतों में जला हुआ एक बड़ा सूटकेस पड़ा है. मामला कुछ गंभीर लग रहा था, इसलिए डीएसपी गोरखपाल राणा पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे.
जला हुआ सूटकेस आजाद सिंह के खेतों में पड़ा था. पुलिस ने देखा तो उस में से एक विदेशी युवती की अधजली लाश बरामद हुई. इस का मतलब था कि उसे किसी दूसरी जगह कत्ल कर के वहां ला कर जलाया गया था. जले हुए सूटकेस और शव को अपने कब्जे में ले कर समालखा पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201/23 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. यह मुकदमा खेत मालिक आजाद सिंह की तहरीर पर दर्ज हुआ.
इस तरह के केसों में तफ्तीश का सब से पहला चरण होता है शव की पहचान. लेकिन समालखा पुलिस के तमाम प्रयासों के बाद भी मृतका के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. आखिरकार समालखा पुलिस चुप हो कर बैठ गई. दूसरी ओर उज्बेकिस्तान में 24 सितंबर, 2015 को ही इस घटना का सूत्रपात हो चुका था यानी लाश मिलने से काफी पहले.
24 सितंबर की रात करीब 10 बजे 60 वर्षीया शोखिस्ता डिनर से अभी फारिग हुई थीं कि उन के फोन की घंटी बज उठी. काल इंडिया से थी. फोन करने वाले ने उन से कहा, “मैं शाखनोजा का दोस्त बोल रहा हूं. मैं ने आप को यह बताने के लिए फोन किया है कि आप की बेटी गंभीर हादसे का शिकार हो गई है.”
“गंभीर हादसा, वह भी शाखनोजा के साथ? कैसा हादसा?” शोखिस्ता ने घबरा कर पूछा.
“शाखनोजा का सरेशाम अपहरण कर लिया गया है.” फोन करने वाले ने बताया.
यह खबर सुन कर शोखिस्ता के लिए अपने पैरों पर खड़े रह पाना मुश्किल हो गया था. वह धम्म से वहीं जमीन पर बैठ गईं. काल अभी भी डिसकनेक्ट नहीं हुई थी. किसी तरह उन्होंने पूछा, “कब हुई किडनैपिंग?”
“अभी 2 मिनट पहले. मैं वहीं घटनास्थल के पास हूं. किडनैपिंग देखते ही मैं ने तुरंत आप का नंबर मिलाया है.”
“पुलिस को इनफौर्म नहीं किया?”
“अभी कर रहा हूं.” कहने के साथ ही दूसरी ओर से फोन कट गया.
शोखिस्ता के 5 बच्चों में शाखनोजा सब से छोटी थी. वह जब 2 बरस की थी, तभी उस के सिर से पिता का साया उठ चुका था.शोखिस्ता ने ही उसे मांबाप दोनों का प्यार दे कर पाला था. शोखिस्ता खुद एक कलाकार थीं. अपने बच्चों को भी वह कला के क्षेत्र में लाने के लिए प्रयासरत रहीं. उन्हें सब से ज्यादा प्रतिभा शाखनोजा में दिखाई देती थी.
भारतीय गीतों पर वह बहुत अच्छा नृत्य करने लगी थी. शायद यही वजह थी कि वह अपनी कला का प्रदर्शन भारत में करने को लालायित रहती थी. भारत जैसे उस के सपनों का देश था. आखिर वह अपने सपनों के देश में जा ही पहुंची थी, जहां से अब उस के अपहृत हो जाने की खबर आई थी.
शोखिस्ता ने इस बारे में अपने कुछ रिश्तेदारों व परिचितों को बताया तो उन्होंने उन से उज्बेक एंबेसी से संपर्क करने को कहा. अगली सुबह ऐसा ही किया गया. एंबेसी अधिकारियों ने आगामी काररवाई के लिए शोखिस्ता की शिकायत दर्ज कर ली. शायद इसी का असर था कि दिल्ली पुलिस ने इस मामले में दिलचस्पी दिखाते हुए थाना कोटला मुबारकपुर में डीडीआर दर्ज कर के 26 सितंबर को एक टैक्सी ड्राइवर प्रीतम सिंह को पूछताछ के लिए थाने में तलब कर लिया.
प्रीतम सिंह अपनी टैक्सी से शाखनोजा को दिल्ली घुमाया करता था. उस ने पुलिस को बताया कि 24 सितंबर की सुबह शाखनोजा के बुलाने पर वह पहाडग़ंज स्थित उस के होटल गया था. उस रोज शाखनोजा दिन भर उस के साथ रही थी और दिल्ली में कई जगहों पर गई थी.
प्रीतम सिंह ने आगे बताया, “रात 10 बजे शाखनोजा मुझे साउथ एक्सटेंशन ले गई. एक जगह गाड़ी रुकवा कर उस ने मुझे इंतजार करने को कहा और वह सामने वाली दिशा में चली गई. वहां नीले रंग की इंडिका कार खड़ी थी, जिस के पास गुरविंदर उर्फ गगन अपनी पत्नी माशा व एक अन्य औरत नाज के साथ खड़ा था. ये तीनों शाखनोजा को पहले से जानते थे. मैं भी उन्हें जानता था. उन लोगों के अंदाज से लग रहा था कि उन्होंने शाखनोजा को बुला रखा था और वे वहां खड़े उसी का इंतजार कर रहे थे.”
प्रीतम ने आगे अपना स्पष्टीकरण देते हुए कहा, “शाखनोजा के वहां पहुंचते ही वे लोग पहले तो उस से बहस करने लगे. फिर उसे जबरन गाड़ी में धकेलते हुए वहां से गाड़ी भगा ले गए.”
“चूंकि शाखनोजा ने किसी खतरे की बात मुझ से नहीं बताई थी. वैसे भी वे लोग पहले से एकदूसरे के परिचित थे. इस से मुझे लगा कि शायद वे आपस में हंसीठिठोली कर रहे होंगे. इसलिए मैं ने इस बारे में पुलिस को फोन कर के बताना जरूरी नहीं समझा. लेकिन अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो रहा है. उन लोगों ने वाकई शाखनोजा का अपहरण कर लिया था.”
भारत में पुलिस अपने ढंग से काम कर रही थी. उधर उज्बेकिस्तान में शोखिस्ता का दिल उसी दिन से बैठा जा रहा था, जिस दिन उन्हें शाखनोजा के अपहरण की खबर मिली थी. उन की एक बेटी जमिरा पूर्व फ्लाइट अटेंडेंट थी और इन दिनों ताशकंद में रह रही थी. भारत में बहन का अपहरण हो जाने की बात सुन कर वह मां के पास उज्बेकिस्तान चली आई थी. जमिरा के आते ही शोखिस्ता ने उस से दो टूक कहा, “जैसे भी हो, मुझे इंडिया ले चलो. शाखनोजा को ले कर मेरे मन में बहुत बुरे खयाल आ रहे हैं.”
फिर उन्होंने अपने कुछ राज साझा करते हुए जमिरा से कहा, “शाखनोजा ने इंडिया में अपना एक बौयफ्रैंड बना लिया था, जिस से उसे गर्भ ठहर गया था. मेरे हिसाब से उसे अब तक 6 सप्ताह की गर्भवती होना चाहिए.”
जमिरा अपनी मां की फिक्र को समझ रही थी. उस ने प्रयास कर के वीजा वगैरह लगवाया और मां को ले कर 5 अक्टूबर को दिल्ली पहुंच गई. शोखिस्ता की सब से बड़ी बेटी नोदिरा अमेरिका में अपने पति व जवान बेटे के साथ रहती थी. वह अकेली वहीं से उड़ान भर कर मां के पास सीधे दिल्ली आ पहुंची.
दिल्ली में इन लोगों ने उज्बेक एंबेसी के अफसरों से ले कर पुलिस कमिश्नर भीमसेन बस्सी तक से मुलाकात कर के शाखनोजा का पता लगाने की गुहार लगाई. शाखनोजा का अपहरण अभी तक रहस्य ही बना हुआ था. पुलिस का कहना था कि टैक्सी ड्राइवर प्रीतम के बयान के आधार पर गगन, माशा व नाज को भी थाने बुलवा कर उन से पूछताछ की गई थी. मगर इस पूछताछ में कुछ निकल नहीं पाया था.
अपने बयानों में इन्होंने यही बताया था कि उस रात शाखनोजा मस्ती के मूड में अपनी खुशी से उन के साथ गई थी. फिर एक जगह गाड़ी से उतर कर एक अन्य नौजवान के साथ उस की बड़ी सी गाड़ी में बैठ कर चली गई थी. इस के बाद वह उन से नहीं मिली थी.
उन का आरोप था कि प्रीतम नाहक बढ़ाचढ़ा कर बयान दे रहा था. अगर उस ने हम लोगों को शाखनोजा को अपने साथ जबरन ले जाते देखा था तो उस ने शोर क्यों नहीं मचाया? इस मामले को उस ने इतनी सहजता से क्यों लिया? 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस को सूचित क्यों नहीं किया? आखिर वह कोई अनपढ़ गंवार न हो कर दिल्ली जैसे महानगर का टैक्सी ड्राइवर था.
इन लोगों का कहना था कि किन्हीं कारणों से प्रीतम से उन की नहीं बनती. इसी वजह से वह उन्हें परेशान करने के लिए ऐसी बातें कर रहा है, वरना शाखनोजा के गायब होने से तो हम खुद परेशान हैं. वह हर महफिल में रौनक जमाने वाली हमारी खास साथी थी.
महावीर सिंह से पहले इसी थाने में जज आशीष बिश्नोई द्वारा ठगी की कई और शिकायतें आई थीं. उन सभी को भी उस ने जज बन कर ठगा था. थानाप्रभारी ने महावीर सिंह की शिकायत पर 22 अगस्त, 2014 को भादंवि की धाराओं 420, 406, 117 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर इस की विवेचना एएसआई त्रिलोक चंद को सौंप दी.
इस से पहले इसी थाने में 11 अगस्त, 2014 को गुड़गांव निवासी राजेंद्रलाल मलिक ने आशीष बिश्नोई के खिलाफ साढ़े 24 लाख रुपए की धोखाधड़ी करने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. राजेंद्रलाल का गुड़गांव के सेक्टर-57 स्थित हांगकांग बाजार में ज्वैलर्स का शोरूम है.
आशीष बिश्नोई अपनी पत्नी मेनका के साथ कई बार उन के शोरूम पर आया था. उस ने पत्नी को वहां से 40-50 हजार रुपए की ज्वैलरी खरीदवाई थी. वह बड़े ही ठाठबाट से वहां आता था. खुद को जज बताता था. राजेंद्रलाल भी उसे मोटी आसामी समझते थे.
आशीष के फोन करने के बाद राजेंद्रलाल ने आशीष बिश्नोई के फ्लैट पर ज्वैलरी पहुंचाई थी. घर पर उस ने जो ज्वैलरी खरीदी, उस के पैसे नकद दे दिए थे. इस तरह उन का आशीष पर विश्वास बढ़ गया. एक दिन आशीष ने राजेंद्रलाल से कहा, ‘‘मेरे पिता भी जज हैं और ताऊ चीफ एडमिनिस्टे्रटिव औफिसर हैं. तुम चाहो तो मैं हुडा स्कीम के तहत तुम्हें प्लौट दिला सकता हूं.’’
राजेंद्रलाल ने हुडा स्कीम में प्लौट पाने की कई बार कोशिश की थी, लेकिन उन्हें प्लौट नहीं मिला था. सिफारिश से प्लौट पाने के लिए राजेंद्रलाल तैयार हो गए. प्लौट पाने के लिए उन्होंने आशीष बिश्नोई को 12 लाख रुपए दे दिए. पैसे लेने के बाद आशीष उसे प्लौट दिलाने का झांसा देता रहा.
उसी दौरान उस ने राजेंद्रलाल के शोरूम से साढ़े 12 लाख रुपए की डायमंड और गोल्ड ज्वैलरी खरीद कर पैसे बाद में देने को कहा. राजेंद्रलाल ने भी आशीष बिश्नोई पर विश्वास कर लिया और 12 लाख रुपए की ज्वैलरी दे दी. ज्वैलरी खरीदने के बाद आशीष बिश्नोई फरार हो गया. वह न तो फ्लैट पर मिला और न ही शहर में कहीं दिखा. उस ने अपने मोबाइल फोन भी बंद कर दिए थे.
यानी फरजी जज बन कर आशीष बिश्नोई राजेंद्रलाल से साढे़ 24 लाख रुपए की ठगी कर चुका था. राजेंद्रलाल ने 11 अगस्त, 2014 को आशीष बिश्नोई के खिलाफ भादंवि की धाराओं 406, 420, 467, 468, 471, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एएसआई हरवीर सिंह को करने के निर्देश दिए.
गुड़गांव के ही शिवाजीनगर के रहने वाले अशोक कुमार अग्रवाल के साथ भी आशीष बिश्नोई ने खुद को जज बता कर करीब 18 लाख रुपए की ठगी की. अशोक कुमार का सेक्टर-57 के वेस्ट टेक मौल में एक मैडिकल स्टोर था. वहीं पास में ही एक क्लीनिक है. आशीष बिश्नोई उस क्लीनिक में अपनी पत्नी मेनका के साथ आता था. डाक्टर को दिखाने के बाद वह अशोक कुमार के मैडिकल स्टोर से दवा लेता था.
उस के साथ 2 हथियारबंद गार्ड रहते थे. इस के अलावा उस की शानोशौकत देख कर अशोक कुमार बहुत प्रभावित थे. मेनका ने अशोक कुमार को बताया कि जज होने के कारण उस के पति के तमाम बड़े लोगों से संबंध हैं. वह आप को हुडा स्कीम के तहत प्लौट दिला सकते हैं.
अशोक कुमार मेनका की बातों में आ गए. उन्होंने मेनका की मार्फत आशीष से बात की तो आशीष ने प्लौट आवंटन कराने के लिए 18 लाख रुपए मांगे. अशोक अग्रवाल ने 2 बार में 18 लाख रुपए आशीष बिश्नोई को दे दिए.
पैसे लेने के कुछ दिनों तक तो आशीष अशोक कुमार को टालता रहा, इस के बाद वह रफूचक्कर हो गया तो अशोक कुमार अग्रवाल ने थाना सेक्टर-56 में आशीष बिश्नोई और उन की बीवी मेनका के खिलाफ 16 अगस्त, 2014 को भादंवि की विभिन्न धाराओं के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस मामले की जांच एएसआई प्रेमचंद कर रहे हैं.
फरजी जज आशीष बिश्नोई के खिलाफ 35 लाख और 18 लाख ठगी करने की 2 अन्य रिपोर्ट सेक्टर-56 थाने में दर्ज हैं. एक ही शख्स ने फरजी जज बन कर गुड़गांव के तमाम लोगों को अपने झांसे में ले कर उन से करोड़ों रुपयों की ठगी करने की बात सुन कर थानाप्रभारी भी हतप्रभ रह गए.
आशीष बिश्नोई उर्फ आशीष सेन के खिलाफ सेक्टर-56 थाने में ही 6 मामले दर्ज हो चुके हैं. थानाप्रभारी अब्दुल सईद सभी मामलों की अलगअलग पुलिस अधिकारियों से जांच करा रहे हैं. जांच अधिकारियों ने आशीष को पुलिस रिमांड पर ले कर विस्तार से पूछताछ की.
पुलिस ने आशीष के बैंक खाते को खंगाला तो उस में मात्र 2 हजार रुपए पाए गए. ताज्जुब की बात यह है कि करोड़ों रुपयों की ठगी करने वाले आशीष ने ठगी की रकम कहां खपाई है? रिपोर्ट करोड़ों रुपए की ठगी की है, लेकिन पुलिस को बरामदगी कुछ भी नहीं हुई है. अब पुलिस के सामने समस्या यह है कि रकम की बरामदगी कहां से करे?
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. निशा और मेनका नाम परिवर्तित हैं.
निर्धारित तिथि तक प्लौट और एससीओ का आवंटन नहीं हुआ तो आशीष बिश्नोई द्वारा दिया गया साढ़े 4 करोड़ रुपए का चैक निशांत ने अपने खाते में जमा किया, लेकिन खाते में पैसे न होने की वजह से वह चैक बाउंस हो गया. इस की शिकायत महावीर सिंह ने आशीष से की.
आशीष ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘आप ने हमें जो पैसे दिए थे, वह हम ने हुडा के अफसरों तक पहुंचा दिए हैं. वहां से हमें पता लगा है कि आप लोगों का काम हो चुका है. फाइल पर अब केवल एक अधिकारी के साइन होने को रह गए हैं. जैसे ही साइन हो जाएंगे, आवंटन से संबंधित कागजात तुम्हें मिल जाएंगे.’’
इसी तरह कई महीने बीत गए. उन के पास आवंटन से संबंधित कोई पत्र नहीं पहुंचा. आशीष बिश्नोई की बात महावीर सिंह से हुई थी, इसलिए तेजपाल या दलबीर सिंह में से कोई आशीष को फोन करता तो वह उन से बात नहीं करता था. वह केवल महावीर सिंह से ही बात करता था. तब महावीर सिंह ने जज आशीष बिश्नोई से पैसों के बारे में बात की. आशीष ने उन्हें भरोसा दिया कि एक महीने के अंदर आप को प्लौट और एससीओ आवंटन के पेपर मिल जाएंगे.
उन्होंने कुछ दिन और इंतजार करने की आशीष की बात मान ली. इस के बाद एक दिन आशीष ने तेजपाल और दलबीर सिंह के नाम प्लौट और एससीओ आवंटन के पेपरों की फोटोकापी महावीर सिंह को दे दी. गुड़गांव में हुडा के प्लौट और एससीओ का आवंटन होने पर वे बहुत खुश हुए. इस खुशी में उन्होंने उस दिन एक पार्टी का भी आयोजन किया.
अगले दिन महावीर सिंह अपने संबंधियों के साथ उस जगह पर गए, जहां उन्हें प्लौट और एससीओ आवंटित किए थे. लेकिन वहां पहुंच कर वे सब हक्केबक्के रह गए, क्योंकि उन प्लौटों पर तो पहले से और लोगों का कब्जा था. उन का आवंटन काफी दिनों पहले हो चुका था. वे सब हुडा औफिस पहुंचे. औफिस में उन्होंने आवंटन से संबंधित वे पेपर दिखाए, जो उन्हें आशीष बिश्नोई ने दिए थे. औफिस वालों ने उन पेपरों को फरजी बताया. यह सुन कर उन्हें गहरा धक्का लगा.
हुडा औफिस से मुंह लटका कर वे अपने घर आ गए. उन्हें आशीष बिश्नोई पर बहुत गुस्सा आ रहा था. लेकिन उस के सामने वह अपना गुस्सा जाहिर नहीं कर सकते थे, क्योंकि आशीष खुद को जज बताता था. उन्हें यह भी लग रहा था कि उन्होंने उन के साथ धोखा किया है. महावीर सिंह ने उन्हें फोन किया, ‘‘जज साहब, आप ने प्लौट और एससीओ के आवंटन के जो पेपर दिए थे, वे फरजी निकले. जिन नंबरों के प्लौट आवंटन की बात आप ने कही थी, उन पर पहले से ही किसी और का कब्जा है.’’
‘‘यह आप क्या कह रहे हैं? यह कैसे हो सकता है?’’ आशीष बिश्नोई ने चौंकते हुए कहा.
‘‘सर, मैं सही कह रहा हूं. आप मौके पर जा कर खुद देख सकते हैं. हम हुडा औफिस भी गए थे. वहां भी इन कागजों को फरजी बताया है.’’ महावीर सिंह बोले.
‘‘मुझे लगता है कि हुडा औफिस में ही यह पेपर तैयार करते समय कोई गलती हो गई होगी. शायद प्लौटों का नंबर गलती से दूसरा लिख गया होगा. ऐसा करो, मैं ने जो पेपर दिए थे, वे वापस दे जाओ, मैं उन्हें औफिस भेज कर ठीक करा लूंगा.’’ आशीष बिश्नोई ने कहा.
उस की बातों पर महावीर सिंह को भी यकीन होने लगा. उन्हें लगने लगा कि औफिस वालों की गलती से कभीकभी ऐसा हो जाता है. आवंटन के जो पेपर आशीष ने उन्हें दिए थे, वापस दे दिए. हुडा औफिस से अगर गलती से आवंटन पत्रों में प्लौट के नंबर गलत लिख गए थे तो वह गलती महीने-2 महीने में सही हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
कई महीने बीत गए, आशीष उन्हें आश्वासन दे कर टरकाता रहा कि कुछ दिनों में काम हो जाएगा. महावीर सिंह जब उन से पैसे वापस करने को कहते तो वह कह देता, ‘‘भई, मैं कोई आम आदमी नहीं हूं, जज हूं. पैसे ले कर मैं कहीं भागा नहीं जा रहा. जिन लोगों को मैं ने तुम्हारे पैसे पहुंचाए हैं, उन्होंने किसी वजह से काम नहीं किया तो मैं पैसे वापस करा दूंगा.’’
कोई और होता तो महावीर सिंह उन पर दबाव डाल कर पैसे वापस ले लेते. लेकिन जज के साथ वह ऐसा नहीं कर सकते थे. लिहाजा उन पर विश्वास करने के अलावा उन के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था. बहरहाल, वह आशीष बिश्नोई से मिलते रहे और फोन पर भी संपर्क में रहे.
जुलाई, 2014 तक महावीर सिंह को हुडा प्लौट के आवंटन से संबंधित कोई कागज नहीं मिले तो उन के सब्र का बांध टूट गया. अब उन्होंने उन से अपने पैसे वापस मांगे, तब आशीष बिश्नोई ने निशांत के नाम 35 और 20 लाख के पोस्टडेटेड चैक काट दिए और बाकी पैसे बाद में देने को कहा.
अगस्त, 2014 के दूसरे सप्ताह में निशांत ने जब वे चैक अपने खाते में डाले तो वे बाउंस हो गए. महावीर सिंह ने जब आशीष बिश्नोई को चैक बाउंस होने के बारे में बताया तो उस ने कहा कि इस समय वह किसी दूसरे प्रदेश में है, घर लौट कर इस बारे में बात करेगा. कह कर उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.
महावीर सिंह ने बाद में फोन मिलाया तो उस का फोन स्विच्ड औफ मिला. आशीष बिश्नोई ने उन्हें अपने 3 मोबाइल नंबर दिए थे, वे सभी स्विच्ड औफ हो चुके थे. महावीर सिंह परेशान हो गए. वह अपने संबंधियों के साथ उन के फ्लैट पर पहुंचे तो आशीष वहां भी नहीं मिला. पड़ोसियों से बात की तो जानकारी मिली कि जज साहब का कहीं और ट्रांसफर हो गया है. इसलिए वह फ्लैट खाली कर के चले गए हैं.
महावीर सिंह और उन के संबंधियों ने आशीष को जो 5 करोड़ 9 लाख रुपए दिए थे. उस के बदले में उन्हें प्लौट नहीं मिले. वे सभी बहुत परेशान थे कि अब जज को कहां ढूंढा जाए. उन्हें विश्वास हो गया कि जज आशीष बिश्नोई ने उन के साथ बहुत बड़ी ठगी की है. वे सभी गुड़गांव के थाना सेक्टर-56 पहुंचे और थानाप्रभारी अब्दुल सईद को सारी बात बताई.
इस के बाद शालिनी ने सुमन को जो समझाया, उस से सुमन की आंखों में चमक आ गई. उसे लगा कि शालिनी ठीक कह रही है. सुमन ने सहमति जाहिर कर दी, लेकिन जब उसे लगा कि अगर अवधेश पुलिस के पास चला गया तो शालिनी ने कहा, ‘‘ऐसे ठरकी पुलिस के पास नहीं जाते, क्योंकि उन्हें खुद की बदनामी का डर रहता है. ऐसे लोग परदे के पीछे कुछ भी करते रहें, लेकिन सब के सामने साफसुथरा बने रहना चाहते हैं. अवधेश भी पुलिस के पास जाने की हिम्मत नहीं कर पाएगा.’’
‘‘लेकिन हम दोनों यह सब करेंगे कैसे?’’ सुमन ने पूछा.
‘‘तुझे इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे कुछ परिचित हैं, जो प्रेस में काम करते हैं. मैं उन से आज ही बात कर लूंगी.’’ शालिनी ने कहा.
‘‘अच्छा, मनोज, जिस के साथ तुम रहती हो?’’ सुमन ने कहा.
‘‘हां, वह बहुत तेज आदमी है, सब कुछ आसानी से कर लेगा. अब तू वही कर, जैसा मैं कहूं.’’ शालिनी ने कहा.
सुमन वह सब करने को तैयार हो गई, जैसा शालिनी ने कहा था. अगले दिन शालिनी मनोज को अपने साथ ले कर सुमन के घर आई. मनोज ‘साधना टीवी’ में नौकरी करता था. उस के पिता का नाम बख्तावर सिंह था, जो मंडावली के मकान नंबर 245/3ए गली नंबर-7 में रहते थे. वैसे वह उत्तर प्रदेश के कानपुर का रहने वाला था. शालिनी उसी के साथ रहती थी.
बातचीत में मनोज ने सुमन को यकीन दिलाया कि वह अपने एक दोस्त के साथ मिल कर अवधेश मिश्रा को इस तरह फांसेगा कि मजबूरन वह मोटी रकम उन्हें थमा देगा. इस के बाद मनोज ने नीरज मेहरा नाम के अपने एक दोस्त को अपनी इस योजना में शामिल कर लिया. वह साधना चैनल में कैमरा मैन था और इटावा का रहने वाला था.
उन्होंने जो योजना बनाई थी, उसी के तहत 12 दिसंबर, 2013 को सुमन ने अवधेश को फोन कर के उस के साथ गेस्टहाउस या होटल में रंगरलियां मनाने को कहा. अवधेश तुरंत तैयार हो गया. इस के बाद अवधेश ने नोएडा में मिलने की योजना बनाई. दोनों वहीं मिले. इस के बाद अवधेश सुमन को अपनी कार से निठारी स्थित सूर्या गेस्टहाउस ले गया, जहां दोनों एक कमरे में ठहरे.
अवधेश अपने और सुमन के कपड़े उतार कर उस में डूब गया. दूसरी ओर मनोज कैमरा लिए सब कुछ उस में कैद करता रहा. अवधेश सुमन से मिलने की खुशी में इस कदर खोया था कि उसे पता ही नहीं चला कि उस के साथ कौन सा खेल खेला जा रहा है. वह यह भी नहीं जान पाया था कि 3 लोग कब उस के कमरे में आ कर छिप गए थे. बाद में पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में सुमन ने बताया था कि अवधेश जब बाथरूम गया था, तब उस ने तीनों को कमरे के अंदर कर लिया था.
जब तक अवधेश को शालिनी, मनोज और नीरज के कमरे में आने की भनक लगती, तब तक उस के और सुमन के शारीरिक संबंधों की रिकौर्डिंग हो चुकी थी. इसी के बल पर उन्होंने उस की पर्स से 12 हजार रुपए निकाल कर कार की चाबी तो ले ही ली, 4 लाख रुपए की और मांग की.
अवधेश फंस तो चुका ही था, उस ने उन्हें बहकाना चाहा. लेकिन जब उसे लगा कि वह बच नहीं पाएगा, तब वह पुलिस के पास पहुंच गया. बहरहाल उस ने पुलिस को बताई तो झूठी कहानी, लेकिन उस की इसी झूठी कहानी पर ब्लैकमेलर पकड़े गए. उस के बाद पुलिस को असली कहानी का पता चला. शायद वह बदनामी के डर से पुलिस के पास जाता भी न, लेकिन कार की वजह से पुलिस के पास जाना पड़ा.
सुमन के बयान के आधार पर पुलिस ने मनोज कुमार, शालिनी और नीरज की गिरफ्तारी के लिए छापे मारे. 9 जनवरी, 2014 की सुबह 6 बजे मुखबिर की सूचना पर मनोज कुमार अैर शालिनी को न्यू अशोकनगर से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इन्हीं के साथ नीरज भी था, लेकिन वह भागने में कामयाब हो गया. अवधेश की गाड़ी भी बरामद हो गई थी. पूछताछ में शालिनी और मनोज कुमार ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. पुलिस ने पूछताछ के बाद सुमन, शालिनी और मनोज कुमार को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. पुलिस नीरज की तलाश कर रही है.
अवधेश ने जो किया, उस के लिए वह शर्मिंदा है. उस की समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर वह पत्नी और बच्चों से क्या कह कर माफी मांगे. मीडिया में खबर आने के बाद वह अपने घर से नहीं निकल रहा है.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.