पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 3

दिल्ली पहुंचतेपहुंचते उस के पैसे किराए और खानेपीने में खर्च हो गए थे. पैसों के लिए उस ने दिल्ली में काम की तलाश की, लेकिन बिना जानपहचान के उसे वहां कोई ढंग का काम नहीं मिला. नौबत भूखों मरने की आई तो वह अमृतसर चला गया. क्योंकि उसे पता था कि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में लंगर चलता है, इसलिए उसे वहां खाने की चिंता नहीं रहेगी. अमृतसर में उसे खाने की चिंता नहीं थी. लंगर में खाने की व्यवस्था हो ही जाती थी. खाना खा कर वह दिनभर इधरउधर घूमता रहता था.

इसी घूमनेफिरने में उस की दोस्ती उत्तर प्रदेश से वहां काम करने आए लोगों से हो गई. उन की जानपहचान का फायदा योगेश को यह मिला कि उसे एक होटल में नौकरी मिल गई. इस तरह खानेपीने और रहने की व्यवस्था तो हो ही गई थी, 4 पैसे भी हाथ में आने लगे थे.

लेकिन जल्दी की उस का मन वहां से उचट गया. दरअसल उसे अपने घर वालों की याद सताने लगी थी. सब से ज्यादा उसे पत्नी की याद आ रही थी. जब उस का मन नहीं माना तो कुछ दिनों की छुट्टी ले कर वह अपने घर पहुंचा. घर पहुंच कर पता चला कि पत्नी तो मायके में है. वह घर में रुकने के बजाय ससुराल चला गया. वह वहां 3 दिनों तक रहा, लेकिन किसी को कानोंकान खबर नहीं लगने दी कि इस बीच वह कहां था. 3 दिन ससुराल में रह कर वह फिर अमृतसर चला गया.

कुछ दिनों अमृतसर में रह कर एक बार फिर वह ससुराल गया. इस बार वह पत्नी को ले कर शिरडी के साईं बाबा के दर्शन करने भी गया. पत्नी को ससुराल में छोड़ कर अमृतसर आ गया. इस बार उस ने होटल की नौकरी छोड़ दी और लौंड्री में नौकरी करने लगा. उस ने यहां अपना नाम अशोक कुमार भल्ला रख लिया था. इसी नाम से उस ने अपना राशन कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसैंस भी बनवा लिया था.

इस तरह योगेश ने अपनी पूरी पहचान बदल ली थी. ड्राइविंग लाइसैंस बन जाने के बाद वह किसी कंपनी की गाड़ी चलाने लगा था. खुद को बचाने के लिए योगेश ने काफी प्रयास किया, लेकिन पुणे पुलिस भी उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. किसी तरह पुलिस को उस के पुणे आकर शिरडी जाने का पता चल गया. इस के बाद पुलिस ने घर वालों पर नजर रखनी शुरू कर दी. इस का नतीजा यह निकला कि 2 सालों बाद एक बार फिर योगेश शिरडी से पुणे पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.

योगेश के पकड़े जाने का फायदा यह हुआ कि नैना पुजारी हत्याकांड की सुनवाई विधिवत शुरू हो गई. क्योंकि उस के फरार होने से इस मामले की सुनवाई एक तरह से रुक सी गई थी. शायद इसीलिए इस मुकदमे का फैसला आने में 8 साल का लंबा समय लग गया. योगेश की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर विधिवत सुनवाई शुरू हुई. कोई अभियुक्त फिर से फरार न हो जाए, इस के लिए सुनवाई वीडियो कौन्फ्रेंसिंग द्वारा कराई जाने लगी.

सुनवाई पूरी होने पर बहस में सरकारी वकील हर्षद निंबालकर ने तर्क दिए कि नैना तो इस विश्वास के साथ जा कर कार में बैठी थी कि कंपनी में काम करने वाले साथ हैं तो किसी बात का डर नहीं है. लेकिन उसे जिन पर विश्वास था, उन्हीं लोगों ने उस के साथ विश्वासघात किया. एक औरत की मजबूरी का फायदा उठा कर इन लोगों ने उस के साथ मनमानी तो की ही, बेरहमी से उस की हत्या भी कर दी.

इस घटना से घर से बाहर जा कर काम करने वाली महिलाओं में असुरक्षा की भावना भर गई है. महिलाओं का साथ काम करने वालों पर से विश्वास उठ गया है. महिलाओं में व्याप्त भय दूर करने के लिए जरूरी है कि इन अपराधियों को मौत की सजा दी जाए, जिस से आगे कोई इस तरह का अपराध करने की हिम्मत न कर सके.

सरकारी वकील हर्षद निंबालकर ने अपनी बात कहते हुए इस मामले को दुर्लभतम करार देते हुए नैना के साथ की गई बर्बरता का हवाला देते हुए दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग की. उन का कहना था कि पीडि़ता के साथ जिस तरह सामूहिक दुष्कर्म कर के उस की हत्या की गई, उसे देखते हुए यह एक दुर्लभतम मामला है. इसलिए दोषियों को फांसी की सजा होनी चाहिए.

वहीं बचाव पक्ष के वकील बी.ए. अलूर ने अपनी दलीलें दीं, लेकिन अपराध संगीन था, इसलिए माननीय जज श्री एल.एल. येनकर ने अभियुक्तों पर जरा भी दया नहीं दिखाई और अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म, लूट और हत्या के अपराध में 3 अभियुक्तों योगेश राऊत, महेश ठाकुर और विश्वास कदम को फांसी की सजा सुनाई. इस के अलावा अलगअलग मामलों में अलगअलग सजाएं और जुरमाना भी लगाया गया है.

चूंकि राजेश चौधरी वादामाफ गवाह बन चुका था, इसलिए उसे दोषमुक्त कर दिया गया. लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या किसी के वादामाफ गवाह बन जाने से उस का अपराध खत्म हो जाता है. आखिर अपराध में तो वह भी शामिल था. यहां यह देखा जाना जरूरी है कि वादामाफ गवाह का अपराध कैसा था, वह अपराध में किस हद तक शामिल था?

अदालत के इस फैसले से मृतका नैना पुजारी के पति अभिजीत पुजारी संतुष्ट हैं. उन का कहना है कि फिर इस तरह के अपराध करने की कोई हिम्मत न कर सके, इस के लिए अपराधियों को इसी तरह की सख्त से सख्त सजा की जरूरत थी. पत्नी की हत्या के बाद अभिजीत ने एक संस्था शुरू की है, जो पीडि़त महिलाओं को न्याय दिलाने का काम करती है.

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 2

थाना यरवदा पुलिस ने उसी समय नैना का हुलिया बता कर पुणे के सभी थानों को उन की गुमशुदगी की सूचना दे दी. 9 अक्तूबर, 2009 को किसी व्यक्ति ने पुणे के थाना खेड़ पुलिस को सूचना दी कि राजगुरुनगर के वनविभाग परिसर में जारेवाड़ी फाटे के पास गंदे नाले में एक महिला की लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थाना खेड़ पुलिस मौके पर पहुंच गई थी.

लाश देख कर पुलिस को यह अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि यरवदा पुलिस ने जिस युवती की गुमशुदगी की सूचना दी है, यह लाश उसी की हो सकती है. थाना खेड़ पुलिस ने इस बात की जानकारी थाना यरवदा पुलिस को दी तो थाना यरवदा पुलिस अभिजीत को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गई. अभिजीत के साथ उस के कुछ रिश्तेदार भी थे.

लाश का चेहरा भले ही बुरी तरह कुचला था, लेकिन लाश देखते ही अभिजीत ही नहीं, उन के साथ आए रिश्तेदार भी फूटफूट कर रोने लगे. इस का मतलब वह लाश नैना की ही थी. लाश की शिनाख्त हो गई तो पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. लेकिन वहां से ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से पुलिस नैना के हत्यारों तक पहुंच पाती. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

नौकरी करने वाली हर लड़की बैग और मोबाइल रखती है. बैग में छोटीमोटी जरूरत की चीजों के अलावा डेबिटक्रेडिट कार्ड भी होते हैं. पूछताछ में पता चला कि इस सब के अलावा नैना सोने की चूडि़यां, बाली और मंगलसूत्र पहने थी. उस का मोबाइल और बैग तो गायब ही था, वह जो गहने पहने थी, वे सब भी गायब थे. इस से पुलिस को यही लगा कि किसी ने लूट के लिए उस की हत्या कर दी है.

लेकिन जब नैना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो मामला ही उलट गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नैना के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था. अब पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि नैना की हत्या लूट के लिए नहीं, बल्कि दुष्कर्म के बाद की गई थी, जिस से दुष्कर्मियों का अपराध उजागर न हो.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद नैना पुजारी के अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म और लूट का मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने अभियुक्तों की तलाश शुरू कर दी. यह ऐसी घटना थी, जिस ने सब को झकझोर कर रख दिया था. दूसरी ओर उन महिलाओं के मन में भी डर समा गया था, जो नौकरी करती हैं. क्योंकि किसी के साथ भी ऐसा हो सकता था.

पुलिस ने नैना के हत्यारों तक पहुंचने के लिए जांच उन की कंपनी से शुरू की. पूछताछ में पता चला कि उस दिन नैना बस से घर नहीं गई थीं. पुलिस को यह भी पता चला कि नैना के एटीएम कार्ड से पैसे निकाले गए थे. पुलिस ने वहां की सीसीटीवी फुटेज निकलवाई तो उस में जो फोटो मिले, उस के आधार पर पुलिस योगेश से पूछताछ करने उस के घर पहुंची तो वह घर से गायब मिला. आखिर पुलिस ने 16 अक्तूबर, 2009 को उसे गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने साथियों के नाम भी बता दिए. इस के बाद पुलिस ने महेश ठाकुर, राजेश चौधरी और विश्वास कदम को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में चारों ने नैना का अपहरण कर उस के साथ दुष्कर्म और लूट के बाद उस की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पुलिस ने नैना का सारा सामान चारों से बरामद कर लिया. इस मामले के खुलासे के बाद कंपनी में ही काम करने वालों द्वारा इस तरह का अपराध करने से लड़कियों और महिलाओं के मन में डर समा गया कि जब साथ काम करने वाले ही इस तरह का काम कर सकते हैं तो वे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं.

इस दर्दनाक घटना ने पूरे देश में खलबली मचा दी थी. नौकरी करने वाली हर महिला को अपनी सुरक्षा की चिंता सताने लगी थी. इस बात को ले कर धरनाप्रदर्शन भी शुरू हो गए. एक ओर धरनाप्रदर्शन हो रहे थे तो दूसरी ओर पुलिस अपना काम कर रही थी. पूछताछ कर के सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने जांच पूरी कर के 12 जनवरी, 2010 को चारों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी थी. इस के बाद न्यायाधीश श्री एस.एम. पोडिलिकार ने चारों का नारको टेस्ट कराया और इस केस को लड़ने के लिए हर्षद निंबालकर को सरकारी वकील नियुक्त किया. पुलिस को अपना पक्ष मजबूत करने के लिए एक चश्मदीद गवाह की जरूरत थी. पुलिस ने राजेश चौधरी से बात की तो वह वादामाफ गवाह बनने को तैयार हो गया. इस तरह 4 लोगों में राजेश चौधरी वादामाफ गवाह बन गया तो 3 अभियुक्त ही बचे.

इस केस की सुनवाई चल रही थी, तभी एक घटना घट गई. इस मामले का मुख्य अभियुक्त योगेश राऊत 30 अप्रैल, 2011 को फरार हो गया. हुआ यह कि उस ने जेल प्रशासन से शिकायत की कि उस के शरीर में खुजली हो रही है. उसे जेल के अस्पताल में दिखाया गया, लेकिन वहां उसे कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद उसे पुणे के ससून अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे भरती करा दिया. उसी बीच टायलेट जाने के बहाने वह पुलिस को चकमा दे कर अस्पताल से भाग निकला.

पैसे उस के पास थे ही, इसलिए जब वह अस्पताल से बाहर आया तो उसे भाग कर जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई. दरअसल, उस ने यह काम योजना बना कर किया था. इसलिए जब वह अस्पताल में इलाज के लिए भरती हुआ तो उस का भाई उस से मिलने आया.

उसी दौरान उस ने योगेश को खर्च के लिए 4 हजार रुपए दे दिए थे. इसलिए अस्पताल से निकलते ही योगेश ने औटो पकड़ा और दौड़ कर रेलवे स्टेशन पहुंचा, जहां से टे्रन पकड़ कर वह गुजरात के सूरत शहर चला गया. उसे यह शहर छिपने के लिए ठीक नहीं लगा तो वह वहां से दिल्ली चला गया.

 

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 1

9 मई, 2017 को पुणे के सैशन कोर्ट के जज श्री एल.एल. येनकर की अदालत में कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. इस की वजह यह थी कि वह 8 साल पुराने एक बहुत ज्यादा चर्चित नैना पुजारी के अपहरण, गैंगरेप, लूट और मर्डर के मुकदमे का फैसला सुनाने वाले थे. चूंकि यह बहुत ही चर्चित मामला था, इसलिए मीडिया वालों के अलावा अन्य लोगों को इस मामले में काफी रुचि थी.

अभियुक्तों को एक दिन पहले यानी 8 मई को सरकारी वकील और बचाव पक्ष के वकीलों की लंबी बहस के बाद दोषी करार दे दिया गया था, इसलिए निश्चित हो चुका था कि उन्हें इस मामले में सजा होनी ही होनी है. अब लोग यह जानना चाहते थे कि इंसान के रूप में हैवान कहे जाने वाले उन दरिंदों को क्या सजा मिलती है.

ठीक समय पर जज श्री एल.एल. येनकर अदालत में आ कर बैठे तो अदालत में सजा को ले कर चल रही खुसुरफुसुर बंद हो गई थी. जज के बैठते ही पेशकार ने फैसले की फाइल उन के आगे खिसका दी थी. जज साहब ने एक नजर फाइल पर डाली. उस के बाद अदालत में उपस्थित वकीलों, आम लोगों और अभियुक्तों को गौर से देखा. इस के बाद उन्होंने फाइल का पेज पलटा. जज साहब ने इस मामले में क्या फैसला सुनाया, यह जानने से पहले आइए हम पहले इस पूरे मामले को जान लें कि नैना पुजारी के साथ कैसे और क्या हुआ था?

7 अक्तूबर, 2009 की शाम पुणे के खराड़ी स्थित सौफ्टवेयर कंपनी सिनकोन में काम करने वाली नैना पुजारी ड्यूटी खत्म कर के शाम 8 बजे घर जाने के लिए बाहर निकलीं तो अंधेरा हो चुका था. वैसे तो वह शाम 7 बजे तक निकल जाती थीं लेकिन उस दिन काम की वजह से उन्हें थोड़ी देर हो गई थी. शायद इसीलिए कंपनी से निकलते समय उन्होंने पति अभिजीत को फोन कर के बता दिया था कि वह कंपनी से निकल चुकी हैं.

महिला कर्मचारियों को कंपनी से निकलने में देर हो जाती थी तो घर पहुंचाने की व्यवस्था कंपनी करती थी. इस के लिए कंपनी ने कैब और बसें लगा रखी थीं. लेकिन उस दिन कोई कैब नहीं थी, इसलिए नैना घर जाने के लिए बस का इंतजार करने लगीं. बस आती, उस के पहले ही उन के सामने एक कार आ खड़ी हुई.

वह कार योगेश राऊत की थी. वह कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करता था. नैना उसे पहचानती थीं, इसलिए जब योगेश ने बैठने के लिए कहा तो नैना उस में बैठ गईं. वह कार में बैठीं तो योगेश के अलावा उस में 2 लोग और बैठे थे. उन के नाम थे महेश ठाकुर और विश्वास कदम. ये दोनों भी कंपनी के ही कर्मचारी थे. महेश ठाकुर जरूरत पड़ने पर यानी बदली पर कंपनी की गाड़ी चलाता था तो विश्वास कदम सुरक्षागार्ड था.

ये दोनों भी कंपनी के ही कर्मचारी थे, इसलिए नैना ने कोई ऐतराज नहीं किया. लेकिन जब कार चली तो योगेश उन्हें उन के घर की ओर ले जाने के बजाय राजगुरुनगर, बाघोली की ओर ले जाने लगा. उन्होंने उसे टोका तो योगेश ने उन की बात पर पहले तो ध्यान ही नहीं दिया. जब तक ध्यान दिया, तब तक कार काफी आगे निकल चुकी थी.

नैना ने जब उस से पूछा कि वह कार इधर क्यों लाया है तो उस ने कहा कि इधर से वह अपने एक साथी को ले कर उसे उस के घर पहुंचा देगा. उस ने वहीं से फोन कर के अपने साथी राजेश चौधरी को बुलाया और उसे बैठा कर कार खेड़ की ओर मोड़ दी तो नैना को शंका हुई.

नैना ने योगेश को डांटते हुए वापस चलने को कहा तो योगेश के साथियों ने उन्हें दबोच कर चाकू की नोक पर चुप बैठी रहने को कहा. नैना ने उन के इरादों को भांप लिया. वह छोड़ देने के लिए रोनेगिड़गिड़ाने लगीं. लेकिन भला वे उसे क्यों छोड़ते. वे तो न जाने कब से दांव लगाए बैठे थे. उस दिन उन्हें मौका मिल गया था. चाकू की नोक पर सभी ने चलती कार में ही बारीबारी से उन के साथ दुष्कर्म किया. इस के बाद एक सुनसान जगह पर कार रोक कर नैना का एटीएम कार्ड छीन कर उस से 61 हजार रुपए निकाले. पिन उन्होंने चाकू की नोक पर उन से पूछ ली थी.

नैना इन पापियों के सामने खूब रोईंगिड़गिड़ाईं, पर उन्हें उस पर जरा भी दया नहीं आई. उन लोगों ने उन के साथ जो किया था, किसी भी हालत में जिंदा नहीं छोड़ सकते थे. क्योंकि उन के जिंदा रहने पर सभी पकड़े जाते. पकड़े जाने के डर से उन्होंने स्कार्फ से गला घोंट कर उन की हत्या तो की ही, लाश की पहचान न हो सके, इस के लिए पत्थर से उन के सिर को बुरी तरह कुचल दिया. इस के बाद जंगल में लाश फेंक कर सभी भाग खड़े हुए.

दूसरी ओर समय पर नैना घर नहीं पहुंचीं तो उन के पति अभिजीत को चिंता हुई. इस की वजह यह थी कि कंपनी से निकलते समय उन्होंने फोन कर के बता दिया था कि वह कंपनी से निकल चुकी हैं. पति ने नैना के मोबाइल पर फोन किया. फोन बंद था, इसलिए उन की बात नैना से नहीं हो सकी. फोन बंद होने से अभिजीत परेशान हो गए. इस के बाद उन्होंने औफिस फोन किया. वहां से तो वह निकल चुकी थीं, इसलिए वहां से कहा गया कि नैना तो यहां से कब की जा चुकी हैं.

इस के बाद अभिजीत ने वहांवहां फोन कर के नैना के बारे में पता किया, जहांजहां उन के जाने की संभावना हो सकती थी. जैसेजैसे रात बढ़ती जा रही थी, उन की चिंता और परेशानी बढ़ती जा रही थी. सब जगह उन्होंने फोन कर लिए थे. कहीं से भी नैना के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

अभिजीत की समझ में नहीं आ रहा था कि नैना ने सीधे घर आने को कहा था तो बिना बताए रास्ते से कहां चली गईं. उन्हें किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. अब तक उन के कई रिश्तेदार भी आ गए थे. रात साढ़े 9 बजे कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना यरवदा जा कर थानाप्रभारी से मिल कर उन्होंने पत्नी नैना के घर न आने की बात बता कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

आवारगी में गंवाई जान – भाग 3

रेखा ने रिंकी को पहली बार तेजप्रताप गिरि के यहां देखा था, तभी से वह भांप गई थी कि यह औरत उस के काम की साबित हो सकती है. उस ने तेजप्रताप से रिंकी का मोबाइल नंबर ले कर उस से बातचीत शुरू कर दी थी. बातचीत के दौरान उसे पता चल गया कि रिंकी पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है, इसलिए वह उसे पैसे कमाने का रास्ता बताने लगी. फिर जल्दी ही रिंकी उस के जाल में फंस भी गई.

रिंकी जब भी गोरखपुर आती, रेखा से मिलने उस के घर जरूर जाती थी. इसी आनेजाने में अपनी उम्र से छोटे बबलू, संदीप और मनोज से उस के संबंध बन गए. इन लड़कों से संबंध बनाने में उसे बहुत मजा आता था.

रेखा का एक पुराना ग्राहक था सरदार रकम सिंह, जो सहारनपुर का रहने वाला था. उस ने रेखा से एक कमसिन, खूबसूरत और कुंवारी लड़की की व्यवस्था के लिए कहा था, जिस से वह शादी कर सके. रेखा को तुरंत रिंकी की याद आ गई. रिंकी भले ही शादीशुदा और 2 बच्चों की मां थी, लेकिन देखने में वह कमसिन लगती थी. कैसे और क्या करना है, उस ने तुरंत योजना बना डाली.

अब तक रिंकी की बातचीत से रेखा को पता चल गया था कि वह अपने सीधेसादे पति से खुश नहीं है. उसे भौतिक सुखों की चाहत थी, जो उस के पास नहीं था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी.

1 दिसंबर, 2013 को रिंकी छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर गोरखपुर आई. संयोग से उसी दिन किरन किसी बात पर पति से लड़झगड़ कर बड़ी बहन पुष्पा के यहां कुबेरस्थान (कुशीनगर) चली गई. रिंकी ने वह रात तेजप्रताप के साथ आराम से बिताई.

अगले दिन सुबह तेजप्रताप ने रिंकी को उस की ससुराल वापस पटहेरवा भेज दिया. इस के 2 दिनों बाद रेखा ने रिंकी को फोन किया. हालचाल पूछने के बाद उस ने कहा, ‘‘रिंकी मैं ने तुम्हारे लिए एक बहुत ही खानदानी घरवर ढूंढा है. अगर तुम अपने पति को छोड़ कर उस के साथ शादी करना चाहो तो बताओ.’’

रिंकी ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘मैं तैयार हूं.’’

‘‘ठीक है, कब और कहां आना है, मैं तुम्हें फिर फोन कर के बताऊंगी.’’ कह कर रेखा ने फोन काट दिया.

8 दिसंबर, 2013 को फोन कर के रेखा ने रिंकी से 11 दिसंबर को गोरखपुर आने को कहा. तय तारीख पर रिंकी अजय से बड़ी ननद पुष्पा के यहां जाने की बात कह कर घर से निकली. शाम होतेहोते वह रेखा के यहां पहुंच गई. उस ने इस की जानकारी तेजप्रताप को नहीं होने दी. रात रिंकी ने रेखा के यहां बिताई. 12 दिसंबर को रेखा ने भतीजे बबलू और भांजे मनोज के साथ उसे सहारनपुर सरदार रकम सिंह के पास भेज दिया और उस के बेटे को अपने पास रख लिया.

रिंकी को सिर्फ इतना पता था कि उस की दूसरी शादी हो रही है, जबकि रेखा ने उसे सरदार रकम सिंह के हाथों 45 हजार रुपए में बेच दिया था. रिंकी को वहां भेज कर उस ने उस के बेटे को बेलीपार की रहने वाली भाजपा नेता इशरावती के हाथों 30 हजार रुपए में बेच दिया था. बच्चा लेते समय इशरावती ने उसे 21 हजार दिए थे, बाकी 9 हजार रुपए बाद में देने को कहा था.

दूसरी ओर 2 दिनों तक रिंकी का फोन नहीं आया तो अजय को चिंता हुई. उस ने खुद फोन किया तो फोन बंद मिला. इस से वह परेशान हो उठा. उस ने पुष्पा को फोन किया तो उस ने बताया कि रिंकी तो उस के यहां आई ही नहीं थी. अब उस की परेशानी और बढ़ गई. वह अपने अन्य रिश्तेदारों को फोन कर के पत्नी के बारे में पूछने लगा. जब उस के बारे में कहीं से कुछ पता नहीं चला तो वह उस की तलाश में निकल पड़ा.

रिंकी का रकम सिंह के हाथों सौदा कर के रेखा निश्चिंत हो गई थी. लेकिन सप्ताह भर बाद उसे बच्चों की याद आने लगी तो वह रकम सिंह से गोरखपुर जाने की जिद करने लगी. तभी सरदार रकम सिंह को रिंकी के ब्याहता होने की जानकारी हो गई. चूंकि रिंकी खुद भी जाने की जिद कर रही थी, इसलिए उस ने रेखा को फोन कर के पैसे वापस कर के रिंकी को ले जाने को कहा.

अब रेखा और मनोज की परेशानी बढ़ गई, क्योंकि रिंकी आते ही अपने बेटे को मांगती. जबकि वे उस के बेटे को पैसे ले कर किसी और को सौंप चुके थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. रिंकी के वापस आने से उन का भेद भी खुल सकता था. इसलिए पैसा और अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्होंने उसे खत्म करने की योजना बना डाली.

21 दिसंबर, 2013 को बबलू और मनोज सहारनपुर पहुंचे. रकम सिंह के पैसे लौटा कर वे रिंकी को साथ ले कर ट्रेन से गोरखपुर के लिए चल पड़े. रात 7 बजे वे गोरखपुर पहुंचे. स्टेशन से उन्होंने रेखा को फोन कर के एक मोटरसाइकिल मंगाई. संदीप उन्हें मोटरसाइकिल दे कर अपने गांव चौरीचौरा गौनर चला गया.

आगे रिंकी के साथ क्या करना है, यह रेखा ने मनोज को पहले ही समझा दिया था. मनोज, बबलू रिंकी को ले कर कुसुम्ही जंगल पहुंचे. मनोज ने उस से कहा था कि वह कुसुम्ही के बुढि़या माई मंदिर में उस से शादी कर लेगा. मंदिर से पहले ही मोड़ पर उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तीनों नीचे उतरे तो मनोज ने बबलू को मोटरसाइकिल के पास रुकने को कहा और खुद रिंकी को ले कर आगे बढ़ा.

शायद रिंकी मनोज के इरादे को समझ गई थी, इसलिए उस ने भागना चाहा. लेकिन वह भाग पाती, उस के पहले ही मनोज ने उसे पकड़ कर कमर में खोंसा 315 बोर का कट्टा निकाल कर बट से उस के सिर के पीछे वाले हिस्से पर इतने जोर से वार किया कि उसी एक वार में वह गिर पड़ी.

घायल हो कर रिंकी खडंजे पर गिर कर छटपटाने लगी. उसे छटपटाते देख मनोज ने अपना पैर उस के सीने पर रख कर दबा दिया. जब वह मर गई तो उस की लाश को ठीक कर के दोनों मोटरसाइकिल से घर आ गए. बाद में इस बात की जानकारी तेजप्रताप को हो गई थी, लेकिन उस ने यह बात अपने साले अजय को नहीं बताई थी.

कथा लिखे जाने तक रिंकी हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त मनोज कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. सरदार रकम सिंह की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी. वह भी फरार था. बाकी सभी अभियुक्तों को पुलिस ने जेल भेज दिया था.

इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार ने 5 हजार रुपए पुरस्कार देने की घोषणा की है.

—कथा पारिवारिक और पुलिस सूत्रों पर आधारित.

आवारगी में गंवाई जान – भाग 2

उसी दिन पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया. इन की गिरफ्तारी के बाद अजय गिरि का 3 वर्षीय बेटा सुंदरम भी सहीसलामत मिल गया. गिरफ्तार पांचों अभियुक्तों से की गई पूछताछ के बाद रिंकी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी…

पुलिस ने लाश बरामद होने पर हत्या का जो मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज किया था, खुलासा होने पर अजय से तहरीर ले कर अज्ञात हत्यारों की जगह मनोज पाल, बबलू, संदीप पाल, तेजप्रताप गिरि, रंभा उर्फ रेखा पाल, इशरावती और सरदार रकम सिंह के नाम डाल कर नामजद कर दिया.

25 वर्षीया रिंकी उर्फ रिंकू, उत्तर प्रदेश के जिला कुशीनगर के थाना तरयासुजान के गांव लक्ष्मीपुर राजा की रहने वाली थी. उस के पिता नगीना गिरि गांव में ही रह कर खेती करते थे. इस खेती से ही उन का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में रिंकी के अलावा 3 बच्चे, जियुत, रंजीत और नंदिनी थे. नगीना के बच्चों में रिंकी सब से बड़ी थी. रिंकी खूबसूरत तो थी ही, स्वभाव से भी थोड़ा चंचल थी, इसलिए हर कोई उसे पसंद करता था.

नगीना की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ाते, इसलिए उन्होंने रिंकी की पढ़ाई छुड़ा दी थी. रिंकी जैसे ही सयानी हुई, गांव के लड़के उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे. चंचल स्वभाव की रिंकी शहजादियों की तरह जीने के सपने देखती थी. लेकिन उस के लिए यह सिर्फ सपना ही था. यही वजह थी कि पैसों के लालच में वह दलदल में फंसती चली गई.

गांव के कई लड़कों से उस के संबंध बन गए थे. वे लड़के उसे सपनों के उड़नखटोले पर सैर करा रहे थे. जब इस बात का पता उस के पिता नगीना को चला तो उन्होंने इज्जत बचाने के लिए बेटी की शादी कर देना ही उचित समझा. उन्होंने प्रयास कर के कुशीनगर के ही थाना परहरवा के गांव पगरा बसंतपुर के रहने वाले पारस गिरि के बेटे अजय गिरि से उस की शादी कर दी.

पारस गिरि भी खेती से ही 7 सदस्यों के अपने परिवार कोे पाल रहे थे. शादी के बाद बड़ा बेटा नौकरी के लिए बाहर चला गया तो उस से छोटा अजय पिता की मदद करने लगा. साथ ही वह एक बिल्डिंग मैटेरियल की दुकान, जहां वेल्डर का भी काम होता था, पर नौकरी करता था. इस नौकरी से उसे इतना मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. पारस ने बेटियों की शादी अजय की मदद से कर दी थी.

पारस ने छोटी बेटी किरण की शादी जिला देवरिया के थाना तरकुलवा के गांव बालपुर के रहने वाले लालबाबू गिरि के सब से छोटे बेटे तेजप्रताप गिरि से की थी. शादी के बाद तेजप्रताप किरण को ले कर गोरखपुर आ गया था, जहां शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था.

रिंकी ने शहजादियों जैसे जीने के जो सपने देखे थे, शादी के बाद भी वे पूरे नहीं हुए. वह खूबसूरत और स्मार्ट पति चाहती थी, जो उसे बाइक पर बिठा कर शहर में घुमाता, होटल और रेस्तरां में खाना खिलाता. जबकि रिंकी का शहजादा अजय बेहद सीधासादा, ईमानदार और समाज के बंधनों को मानने वाला मेहनती युवक था. दुनिया की नजरों में वह भले ही रिंकी का पति था, लेकिन रिंकी ने दिल से कभी उसे पति नहीं माना . वह अभी भी किसी शहजादे की बांहों में झूलने के सपने देखती थी.

रिंकी सपने भले ही किसी शहजादे के देख रही थी, लेकिन रहती अजय के साथ ही थी. वह उस के 2 बेटों, सत्यम और सुंदरम की मां भी बन गई थी. इसी के बाद अजय ने छोटी बहन किरन की शादी तेजप्रताप से की तो पहली ही नजर में तेजप्रताप रिंकी को सपने का शहजादा जैसा लगा. फिर आनेजाने में कसरती बदन और मजाकिया स्वभाव के तेजप्रताप पर रिंकी कुछ इस तरह फिदा हुई कि उस से नजदीकी बनाने के लिए बेचैन रहने लगी.

तेजप्रताप को रिंकी के मन की बात जानने में देर नहीं लगी. सलहज के नजदीक पहुंचने के लिए वह जल्दीजल्दी ससुराल आने लगा. इस आनेजाने का उसे लाभ भी मिला. इस तरह दोनों जो चाहते थे, वह पूरा हो गया. रिंकी और तेजप्रताप के शारीरिक संबंध बन गए. दोनों बड़ी ही सावधानी से अपनअपनी चाहत पूरी कर रहे थे, इसलिए उन के इस संबंध की जानकारी किसी को नहीं हो सकी थी.

तेजप्रताप पादरी बाजार पुलिस चौकी के पास छोलेभटूरे का ठेला लगाता था. उस की दुकान पर बबलू और संदीप पाल अकसर छोले भटूरे खाने आते थे. बबलू और संदीप में अच्छी दोस्ती थी. उन की उम्र 15-16 साल के करीब थी. तेजप्रताप के वे नियमित ग्राहक तो थे, इसलिए उन में दोस्ती भी हो गई थी. बाद में पता चला कि वे रहते भी उसी के पड़ोस में थे. इस से घनिष्ठता और बढ़ गई. उन का परिवार सहित तेजप्रताप के घर आनाजाना हो गया.

एक बार रिंकी अजय के साथ ननद के घर गोरखपुर ननदननदोई से मिलने आई तो संयोग से उसी समय संदीप पाल की मां रंभा उर्फ रेखा पाल भी किसी काम से तेजप्रताप से मिलने आ गई. रेखा ने रिंकी को गौर से देखा तो महिलाओं की पारखी रेखा को वह अपने काम की लगी.

रिंकी ने तेजप्रताप के घर का रास्ता देख लिया तो उस का जब मन होता, वह किसी न किसी बहाने तेजप्रताप से मिलने गोरखपुर आने लगी. रिंकी गोरखपुर अकसर आने लगी तो रंभा उर्फ रेखा से भी जानपहचान हो गई. रेखा के 20 वर्षीय भांजे मनोज पाल की नजर मौसी के घर आनेजाने में रिंकी पर पड़ी तो खूबसूरत रिंकी का वह दीवाना हो उठा.

मनोज गोरखपुर में टैंपो चलाता था. वह रहने वाला गोरखपुर के थाना गोला के गांव हरपुर का था. वह मौसी रेखा के यहां इसलिए बहुत ज्यादा आताजाता था, क्योंकि वह उस का खास शागिर्द था. रेखा देखने में जितनी भोलीभाली लगती थी, भीतर से वह उतनी ही खुराफाती थी. उस औरत से पूरा मोहल्ला परेशान था. इस की वजह यह थी कि वह कालगर्ल रैकट चलाती थी. उस के इस काम में उस का भतीजा बबलू, बेटा संदीप और भांजा मनोज उस की मदद करते थे. रेखा के अच्छेबुरे सभी तरह के लोगों से अच्छे संबंध थे, इसलिए मोहल्ले वाले सब कुछ जानते हुए भी उस का कुछ नहीं कर पाते थे.

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आवारगी में गंवाई जान – भाग 1

रात साढ़े 9 बजे के आसपास कुसुम्ही जंगल के वन दरोगा राकेश कुमार गश्त करते हुए बुढि़या माई दुर्गा मंदिर रोड पर मंदिर से थोड़ा आगे बढ़े थे कि वहां लगे खड़ंजे पर उन्हें एक लाश पड़ी दिखाई दी. उन्होंने टार्च की रोशनी में देखा, लाश महिला की थी. वह हरा सूट पहने थी. उस के दोनों पैरों में चांदी की पाजेब थी. लाश के पास ही एक पीले रंग की शौल पड़ी थी. सिर पर पीछे की ओर किसी धारदार हथियार से वार किया गया था. वहां बने घाव से अभी भी खून बह रहा था. इस से उन्हें लगा कि यह हत्या अभी जल्दी ही की गई है.

राकेश कुमार ने फोन द्वारा थाना खोराबार के थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव को लाश पड़ी होने की सूचना दी. वह गायघाट मर्डर केस को ले कर वैसे ही परेशान थे, इस लाश ने उन की परेशानी और बढ़ा दी. बहरहाल उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी और खुद पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव, एसपी (सिटी) परेश पांडेय और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मृतका के सिर से बह रहे खून से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हत्या एकाध घंटे के अंदर हुई है. मृतका की उम्र 24-25 साल थी. घटनास्थल पर संघर्ष के निशान थे. खड़ंजे से कुछ दूरी पर जूते और  दुपहिया वाहन के टायरों के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. इस का मतलब हत्यारे मोटरसाइकिल से आए थे. मृतका की छाती पर भी जूते के निशान मिले थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे मृतका से नफरत करते रहे होंगे.

लाश के निरीक्षण के दौरान मृतका की दाहिनी हथेली पर पुलिस को एक मोबाइल नंबर लिखा दिखाई दिया. पुलिस ने वह मोबाइल नंबर नोट कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मृतका के पास से मिला सामान कब्जे में ले लिया था, ताकि उस की शिनाख्त कराने में मदद मिल सके. यह 21 दिसंबर की रात की बात थी. 22 दिसंबर की सुबह उन्होंने मृतका की हथेली से मिले मोबाइल नंबर पर फोन किया तो दूसरी ओर से फोन उठाने वाले ने ‘हैलो’ कहने के साथ ही उन के बारे में भी पूछ लिया.

‘‘मैं गोरखपुर के थाना खोराबार का थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव बोल रहा हूं.’’ उन्होंने अपना परिचय देते हुए पूछा, ‘‘यह नंबर आप का ही है. आप कहां से और कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘साहब मैं अजय गिरि बोल रहा हूं. यह नंबर आप को कहां से मिला?’’

‘‘यह नंबर एक महिला की हथेली पर लिखा था, जिस की हत्या हो चुकी है.’’

‘‘उस का हुलिया कैसा था?’’ अजय गिरि ने पूछा.

थानाप्रभारी ने हुलिया बताया तो अजय ने छूटते ही कहा, ‘‘साहब, यह हुलिया तो मेरी पत्नी रिंकी का है. क्या उस की हत्या हो चुकी है? दिसंबर, 2013 को छोटे बेटे सुंदरम को ले कर घर से निकली थी. तब से उस का कुछ पता नहीं चला. उसी की तलाश में मैं बड़े भाई की ससुराल मधुबनी आया था.’’

‘‘ऐसा करो, तुम थाना खोराबार आ जाओ. मरने वाली तुम्हारी पत्नी है या कोई और यह तो यहीं आ कर पता चलेगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘लेकिन मृतका के पास से हमें कोई बच्चा नहीं मिला है. भगवान तुम्हारे साथ अच्छा ही करे.’’

अजय ने पत्नी के साथ बच्चे के होने की बात की थी, जबकि महिला की लाश के पास से कोई बच्चा नहीं मिला था. इस से थानाप्रभारी थोड़ा पसोपेश में पड़ गए कि उस का बच्चा कहां गया? बच्चे की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं थी. उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हत्यारों ने बच्चे को कहीं दूसरी जगह ले जा कर ठिकाने लगा दिया हो. गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझ गई थी. अब यह अजय के आने पर ही सुलझ सकती थी.

उसी दिन शाम होतेहोते अजय थाना खोराबार आ पहुंचा. थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मेज की दराज से कुछ फोटो और लाश से बरामद सामान निकाल कर उस के सामने रखा तो सामान और फोटो देख कर वह रो पड़ा. थानाप्रभारी समझ गए कि मृतका इस की पत्नी रिंकी थी. इस के बाद मैडिकल कालेज ले जा कर उसे शव भी दिखाया गया. अजय ने उस शव की भी शिनाख्त अपनी पत्नी रिंकी के रूप में कर दी. अब सवाल यह था कि उस के साथ जो बच्चा था, वह कहां गया?

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव द्वारा की गई पूछताछ में अजय ने बताया, ‘‘रिंकी अपने 3 वर्षीय छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर ननद पुष्पा की ससुराल कुबेरस्थान जाने की बात कह कर घर से निकली थी. वहां जाने के लिए मैं ने ही उसे जीप में बैठाया था. उस ने 2 दिन बाद लौट कर आने को कहा था.

2 दिनों बाद जब वह घर नहीं लौटी तो मैं ने उस के मोबाइल पर फोन किया. उस के मोबाइल का स्विच औफ था. बाद में पता चला कि वह कुबेरस्थान न जा कर सीधे गोरखपुर में रहने वाले मेरे बहनोई तेजप्रताप गिरि के यहां चली गई थी. इस के बाद मैं ने उन से रिंकी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के यहां आई तो थी, लेकिन दूसरे ही दिन चली गई थी. उस के बाद उस का कुछ पता नहीं चला.’’

अजय के अनुसार उस का बहनोई तेजप्रताप गिरि शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए पर परिवार के साथ रहता था. पुलिस ने उसी रात उस के घर से उसे पकड़ लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई. तेजप्रताप गिरि कुछ भी बताने को तैयार नहीं था. वह काफी देर तक पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा. जब पुलिस को लगा कि यह झूठ बोल रहा है, तब पुलिस ने अपने ढंग से उस से सच्चाई उगलवाई.

तेजप्रताप ने पुलिस को जो बताया था, उसी के आधार पर पुलिस ने बबलू और संदीप पाल को गिरफ्तार कर लिया. जबकि मनोज फरार होने में कामयाब हो गया. बबलू और संदीप से पूछताछ की गई तो पता चला कि रिंकी की हत्या के मामले में 2 महिलाएं रंभा उर्फ रेखा पाल और इशरावती भी शामिल थीं.

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