दिल्ली पहुंचतेपहुंचते उस के पैसे किराए और खानेपीने में खर्च हो गए थे. पैसों के लिए उस ने दिल्ली में काम की तलाश की, लेकिन बिना जानपहचान के उसे वहां कोई ढंग का काम नहीं मिला. नौबत भूखों मरने की आई तो वह अमृतसर चला गया. क्योंकि उसे पता था कि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में लंगर चलता है, इसलिए उसे वहां खाने की चिंता नहीं रहेगी. अमृतसर में उसे खाने की चिंता नहीं थी. लंगर में खाने की व्यवस्था हो ही जाती थी. खाना खा कर वह दिनभर इधरउधर घूमता रहता था.
इसी घूमनेफिरने में उस की दोस्ती उत्तर प्रदेश से वहां काम करने आए लोगों से हो गई. उन की जानपहचान का फायदा योगेश को यह मिला कि उसे एक होटल में नौकरी मिल गई. इस तरह खानेपीने और रहने की व्यवस्था तो हो ही गई थी, 4 पैसे भी हाथ में आने लगे थे.
लेकिन जल्दी की उस का मन वहां से उचट गया. दरअसल उसे अपने घर वालों की याद सताने लगी थी. सब से ज्यादा उसे पत्नी की याद आ रही थी. जब उस का मन नहीं माना तो कुछ दिनों की छुट्टी ले कर वह अपने घर पहुंचा. घर पहुंच कर पता चला कि पत्नी तो मायके में है. वह घर में रुकने के बजाय ससुराल चला गया. वह वहां 3 दिनों तक रहा, लेकिन किसी को कानोंकान खबर नहीं लगने दी कि इस बीच वह कहां था. 3 दिन ससुराल में रह कर वह फिर अमृतसर चला गया.
कुछ दिनों अमृतसर में रह कर एक बार फिर वह ससुराल गया. इस बार वह पत्नी को ले कर शिरडी के साईं बाबा के दर्शन करने भी गया. पत्नी को ससुराल में छोड़ कर अमृतसर आ गया. इस बार उस ने होटल की नौकरी छोड़ दी और लौंड्री में नौकरी करने लगा. उस ने यहां अपना नाम अशोक कुमार भल्ला रख लिया था. इसी नाम से उस ने अपना राशन कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसैंस भी बनवा लिया था.
इस तरह योगेश ने अपनी पूरी पहचान बदल ली थी. ड्राइविंग लाइसैंस बन जाने के बाद वह किसी कंपनी की गाड़ी चलाने लगा था. खुद को बचाने के लिए योगेश ने काफी प्रयास किया, लेकिन पुणे पुलिस भी उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. किसी तरह पुलिस को उस के पुणे आकर शिरडी जाने का पता चल गया. इस के बाद पुलिस ने घर वालों पर नजर रखनी शुरू कर दी. इस का नतीजा यह निकला कि 2 सालों बाद एक बार फिर योगेश शिरडी से पुणे पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.
योगेश के पकड़े जाने का फायदा यह हुआ कि नैना पुजारी हत्याकांड की सुनवाई विधिवत शुरू हो गई. क्योंकि उस के फरार होने से इस मामले की सुनवाई एक तरह से रुक सी गई थी. शायद इसीलिए इस मुकदमे का फैसला आने में 8 साल का लंबा समय लग गया. योगेश की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर विधिवत सुनवाई शुरू हुई. कोई अभियुक्त फिर से फरार न हो जाए, इस के लिए सुनवाई वीडियो कौन्फ्रेंसिंग द्वारा कराई जाने लगी.
सुनवाई पूरी होने पर बहस में सरकारी वकील हर्षद निंबालकर ने तर्क दिए कि नैना तो इस विश्वास के साथ जा कर कार में बैठी थी कि कंपनी में काम करने वाले साथ हैं तो किसी बात का डर नहीं है. लेकिन उसे जिन पर विश्वास था, उन्हीं लोगों ने उस के साथ विश्वासघात किया. एक औरत की मजबूरी का फायदा उठा कर इन लोगों ने उस के साथ मनमानी तो की ही, बेरहमी से उस की हत्या भी कर दी.
इस घटना से घर से बाहर जा कर काम करने वाली महिलाओं में असुरक्षा की भावना भर गई है. महिलाओं का साथ काम करने वालों पर से विश्वास उठ गया है. महिलाओं में व्याप्त भय दूर करने के लिए जरूरी है कि इन अपराधियों को मौत की सजा दी जाए, जिस से आगे कोई इस तरह का अपराध करने की हिम्मत न कर सके.
सरकारी वकील हर्षद निंबालकर ने अपनी बात कहते हुए इस मामले को दुर्लभतम करार देते हुए नैना के साथ की गई बर्बरता का हवाला देते हुए दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग की. उन का कहना था कि पीडि़ता के साथ जिस तरह सामूहिक दुष्कर्म कर के उस की हत्या की गई, उसे देखते हुए यह एक दुर्लभतम मामला है. इसलिए दोषियों को फांसी की सजा होनी चाहिए.
वहीं बचाव पक्ष के वकील बी.ए. अलूर ने अपनी दलीलें दीं, लेकिन अपराध संगीन था, इसलिए माननीय जज श्री एल.एल. येनकर ने अभियुक्तों पर जरा भी दया नहीं दिखाई और अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म, लूट और हत्या के अपराध में 3 अभियुक्तों योगेश राऊत, महेश ठाकुर और विश्वास कदम को फांसी की सजा सुनाई. इस के अलावा अलगअलग मामलों में अलगअलग सजाएं और जुरमाना भी लगाया गया है.
चूंकि राजेश चौधरी वादामाफ गवाह बन चुका था, इसलिए उसे दोषमुक्त कर दिया गया. लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या किसी के वादामाफ गवाह बन जाने से उस का अपराध खत्म हो जाता है. आखिर अपराध में तो वह भी शामिल था. यहां यह देखा जाना जरूरी है कि वादामाफ गवाह का अपराध कैसा था, वह अपराध में किस हद तक शामिल था?
अदालत के इस फैसले से मृतका नैना पुजारी के पति अभिजीत पुजारी संतुष्ट हैं. उन का कहना है कि फिर इस तरह के अपराध करने की कोई हिम्मत न कर सके, इस के लिए अपराधियों को इसी तरह की सख्त से सख्त सजा की जरूरत थी. पत्नी की हत्या के बाद अभिजीत ने एक संस्था शुरू की है, जो पीडि़त महिलाओं को न्याय दिलाने का काम करती है.