कलावती और मलावती का दुखद अंत – भाग 3

आखिर जयदेव ततमा और अशोक को जिस बात का डर था, वही सब हुआ. विचारों के टकराव और अहं ने पति और पत्नी के बीच इतनी दूरियां बना दीं कि वे एकदूसरे की शक्ल देखने को तैयार नहीं थे. एक छत के नीचे रहते हुए वे एकदूसरे से पराए जैसा व्यवहार करने लगे. रोज ही घर में पतिपत्नी के बीच झगड़े होने लगे थे.

रोजरोज के झगड़े और कलह से घर की सुखशांति एकदम छिन गई थी. पतियों ने कलावती और मलावती को अपने जीवन से हमेशा के लिए आजाद कर दिया. बाद में दोनों का तलाक हो गया. पते की बात यह थी कि कलावती और मलावती दोनों की जिंदगी की कहानी समान घटनाओं से जुड़ी हुई थी. दुखसुख की जो भी घटनाएं घटती थीं, दोनों के जीवन में समान घटती थीं.

यह बात सच है कि दुनिया अपनों से ही हारी हुई होती है. अशोक भी बहनों की कर्मकथा से हार गया था. पर वह कर भी क्या सकता था. वह उन्हें घर से निकाल भी नहीं सकता था. सामाजिक लिहाज के मारे उस ने बहनों को अपना लिया और सिर छिपाने के लिए जगह दे दी. वे भाई के अहसानों तले दबी हुई थीं, लेकिन दोनों उस पर बोझ बन कर जीना नहीं चाहती थीं.

ऐसा नहीं था कि वे दोनों दुखी नहीं थीं. वे बहुत दुखी थीं. अपना दुख किस के साथ बांटें, समझ नहीं पा रही थीं. वे जी तो जरूर रही थीं, लेकिन एक जिंदा लाश बन कर, जिस का कोई वजूद नहीं होता. पति के त्यागे जाने से ज्यादा दुख उन्हें पिता की मौत का था.

कलावती और मलावती ने भाई से साफतौर पर कह दिया था कि वे उस पर बोझ बन कर नहीं जिएंगी. जीने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगी. दोनों बहनें फिर से समाजसेवा की डगर पर चल निकलीं. अब उन पर न तो कोई अंकुश लगाने वाला था और न ही टीकाटिप्पणी करने वाला.

वे दोनों घर से सुबह निकलतीं तो देर रात ही घर वापस लौटती थीं. सोशल एक्टिविटीज में दिन भर यहांवहां भटकती फिरती थीं. अशोक बहनों के स्वभाव को जान चुका था. वह भी उन पर निगरानी नहीं रखता था. उसे अपनी बहनों और उन के चरित्र पर पूरा भरोसा था कि वे कभी कोई ऐसा काम नहीं करेंगी, जिस से समाज और बिरादरी में उसे शर्मिंदा होना पड़े.

लेकिन गांव के उस के पड़ोसियों खासकर वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा को कलावती और मलावती के चरित्र पर बिलकुल भरोसा नहीं था.

दोनों बहनों के चरित्र पर लांछन लगाते हुए वे उन्हें पूरे गांव में बदनाम करते थे. वे कहते थे कि ततमा की दोनों बेटियां पेट की आग बुझाने के लिए बाजार में जा कर धंधा करती हैं. धंधे की काली कमाई से दोनों के घरों में चूल्हे जलते हैं. धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैल चुकी थी. उड़ते उड़ते कुछ दिनों बाद यह बात कलावती और मलावती तक आ पहुंची.

सुन कर दोनों बहनों के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई. सहसा उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्होंने जो सुना है, वह सच है. जबकि उन का चरित्र एकदम पाकसाफ था. अपने चरित्र को ले कर दोनों बहनों ने जब गांव वालों की बातें सुनीं, तो वे एकदम से परेशान हो गईं.

वैसे भी किसी चरित्रवान के दामन पर ये दाग किसी गहरे जख्म से कम नहीं थे. दोनों ने फैसला किया कि उन्हें नाहक बदनाम करने वालों को इस की सजा दिलवा कर दम लेंगी, चाहे वह कितना ही ताकतवर क्यों न हो. उन्होंने पता लगा लिया कि उन्हें बदनाम करने वाले उन के पड़ोसी वीरेंद्र, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र थे.

जिद की आग में पकी कलावती और मलावती ने वीरेंद्र, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा की कुंडली तैयार की. गांव के चारों बाशिंदे ग्रामप्रधान के भरोसेमंद प्यादे थे. प्रधान के रसूख की बदौलत वे कूदते थे.

चारों ही प्रधान की ताकत के बल पर असामाजिक कार्यों को अंजाम देते थे. ये बातें दोनों बहनों को पता चल गई थीं. दोनों ने आरटीआई के माध्यम से ग्राम प्रधान और उन के चारों प्यादों के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर के वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास के खिलाफ जलालगढ़ थाने में मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भिजवा दिया.

वीरेंद्र और लक्ष्मीदास को जेल भिजवाने के बाद दोनों बहनें शांत नहीं बैठीं. इस के बाद उन्होंने बुद्धू और जितेंद्र शर्मा को जेल भिजवा दिया. कुछ दिनों बाद वीरेंद्र और लक्ष्मीदास जमानत पर जेल से रिहा हुए तो दोनों बहनों ने फिर से उन के खिलाफ एक नया मुकदमा दर्ज करा दिया.

उन लोगों को फिर से जेल जाना पड़ा. इंतकाम की आग में जलती कलावती और मलावती ने चारों के खिलाफ ऐसी जमीन तैयार की कि उन के दिन जेल की सलाखों के पीछे बीत रहे थे.

वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा बारबार जेल जाने से परेशान थे. समझ में नहीं आ रहा था कि कलावती और मलावती नाम की दोनों बहनों से कैसे छुटकारा पाया जाए. वे लोग खतरनाक योजना बनाने लगे. दिलीप शर्मा, विनोद ततमा, प्रकाश ततमा,सोनू शर्मा, रामलाल शर्मा, विष्णुदेव शर्मा, पप्पू शर्मा, उपेन शर्मा, इंदल शर्मा, सुनील शर्मा, सतीश शर्मा और बेचन शर्मा उन का साथ देने को तैयार हो गए.

वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास और उस के सहयोगियों ने फैसला कर लिया कि जब तक दोनों बहनें जिंदा रहेंगी, तब तक उन्हें चैन की सांस नहीं लेने देंगी. उन दोनों को मौत के घाट उतारने में ही सब की भलाई थी. घटना से करीब 5 दिन पहले सब ने योजना बना ली.

वीरेंद्र सिंह और उस के साथियों ने कलावती और मलावती के खिलाफ खतरनाक षडयंत्र रच लिया था. उन्होंने उन की रेकी करनी शुरू कर दी.

रेकी करने के बाद उन लोगों ने दोनों बहनों की हत्या करने की रूपरेखा तैयार कर ली. योजना में तय हुआ कि दोनों बहनों की हत्या के बाद उन के सिर धड़ से अलग कर के अलगअलग जगहों पर फेंक दिया जाएगा ताकि पुलिस आसानी से लाशों की शिनाख्त न कर सके.

सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. बात 23 जून, 2018 के अपराह्न 2 बजे की थी. वीरेंद्र ने अपने सहयोगियों को दोनों बहनों पर नजर रखने के लिए लगा दिया था. दोपहर 2 बजे के करीब कलावती और मलावती घर से जलालगढ़ बाजार जाने के लिए निकलीं.

दोनों ने अपने भतीजे मनोज से बता दिया था कि वे जलालगढ़ बाजार जा रही हैं. वहां से कुछ देर बाद लौट आएंगी. दोनों के घर से निकलते ही इस की सूचना किसी तरह वीरेंद्र सिंह तक पहुंच गई.

वीरेंद्र सिंह ने सहयोगियों को सतर्क कर दिया कि दोनों जलालगढ़ बाजार के लिए घर से निकल चुकी हैं. चक हाट से जलालगढ़ जाने वाले रास्ते में कुछ हिस्सा सुनसान और जंगल से घिरा हुआ था. कलावती और मलावती जब सुनसान रास्ते से जलालगढ़ बाजार की ओर जा रही थीं कि बीच रास्ते में वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास, बुद्धू शर्मा, जितेंद्र शर्मा सहित 12 और सहयोगियों ने उन का रास्ता घेर लिया.

वे सभी दोनों बहनों को जबरन उठा कर बिलरिया घाट ले गए. वीरेंद्र और उस के साथियों ने मिल कर दोनों बहनों को तेज धार वाले चाकू से गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद दोनों के सिर धड़ से काट कर अलग कर दिए गए. फिर दोनों के कटे सिर घाट के किनारे जमीन खोद कर दबा दिए. उस के बाद बाकी शरीर को वहां से करीब 500 मीटर दूर ले जा कर झाडि़यों में फेंक कर अपनेअपने घरों को चले गए.

वीरेंद्र और उस के साथियों ने बड़ी चालाकी के साथ घटना को अंजाम दिया, लेकिन वे भूल गए थे कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से ज्यादा दिनों तक नहीं बच सकता.

एक न एक दिन कानून के लंबे हाथ अपराधी के गिरेहबान तक पहुंच ही जाता है. इसी तरह वे सब भी कानून के हत्थे चढ़ गए. 4 आरोपियों को जेल भेजने के बाद पुलिस ने फरार 12 आरोपियों को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक गिरफ्तार 16 आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था. गिरफ्तार आरोपियों में से किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. वीरेंद्र और उस के साथियों ने अगर सूझबूझ के साथ काम लिया होता तो उन्हें ऐसे दिन देखने को नहीं मिलते.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कलावती और मलावती का दुखद अंत – भाग 2

काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने पूछताछ के लिए वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और थाने ले आई. इसी बीच मुखबिर ने एसडीपीओ कृष्णकुमार राय को एक ऐसी चौंकाने वाली बात बताई, जिसे सुन कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

मुखबिर ने बताया कि कलावती और मलावती की हत्या गांव के ही कई लोगों ने मिल कर की थी. उन में वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास के अलावा बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा भी शामिल थे. इस से पुलिस को पुख्ता जानकारी मिलगई कि दोहरे हत्याकांड में कई लोग शामिल थे. हिरासत में लिए गए वीरेंद्र और लक्ष्मीदास से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही दोनों बहनों को मौत के घाट उतारा था.

‘‘लेकिन क्यों? ऐसा क्या किया था दोनों बहनों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था, जो इतनी बेरहमी से कत्ल कर दिया?’’ एसडीपीओ कृष्णकुमार राय ने सवाल किया.

‘‘साहब, मैं अकेला नहीं मेरे साथ लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र भी थे. क्या करते साहब, दोनों बहनों ने हमारा जीना मुश्किल कर दिया था.’’

इस के बाद वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास ने पूरी घटना विस्तार से बताई. दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने गांव चक हाट से बुद्धू और जितेंद्र शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया. चारों आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने श्मशान घाट के तालाब के पास से जमीन में दबाए हुए दोनों महिलाओं के सिर भी बरामद कर लिए.

उसी दिन शाम को आननफानन में पुलिस लाइन के मनोरंजन कक्ष में प्रैस कौन्फ्रैंस किया गया. 7 दिनों से रहस्य बनी सोशल एक्टिविस्ट कलावती और मलावती हत्याकांड की गुत्थी सुलझा चुकी पुलिस जोश से लबरेज थी.

प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी विशाल शर्मा ने बताया कि कलावती और मलावती की हत्या उसी गांव के रहने वाले वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मी दास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा ने मिल कर की थी. इस मामले में गांव के 12 लोग और शामिल थे, जिन्होंने घटना को अंजाम देने में आरोपियों की मदद की थी. जिन में 4 आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए.

इस के बाद पुलिस ने चारों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. आरोपियों के बयान के आधार पर पुलिस ने 16 लोगों वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा, जितेंद्र शर्मा, दिलीप शर्मा, विनोद ततमा, प्रकाश ततमा, सोनू शर्मा, रामलाल शर्मा, विष्णुदेव शर्मा, पप्पू शर्मा, उपेन शर्मा, इंदल शर्मा, सुनील शर्मा, सतीश शर्मा और बेचन शर्मा के नाम पहली जुलाई के रोजनामचे पर दर्ज कर लिए. अभियुक्तों के बयान और पुलिस की जांच के बाद कहानी कुछ यूं सामने आई.

बिहार के पूर्णिया जिले के जलालगढ़ थानाक्षेत्र में एक गांव है— चक हाट. जयदेव ततमा इसी गांव के मूल निवासी थे. उन के 3 बच्चे थे, जिन में एक बेटे अशोक ततमा के अलावा 2 बेटियां कलावती ततमा और मलावती ततमा थीं. अशोक ततमा दोनों बेटियों से बड़ा था.

जयदेव ततमा का नाम चक हाट पंचायत में काफी मशहूर था. वह इलाके में बड़े किसान के रूप में जाने जाते थे. उन्होंने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाई. उन की दिली इच्छा थी कि बच्चे पढ़लिख कर योग्य बन जाएं.

कलावती और मलावती बड़े भाई अशोक से बुद्धि और कलाकौशल में काफी तेज थीं. दोनों बहनें पढ़ाई के अलावा सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थीं. उन का सपना था कि बड़े हो कर समाज की सेवा करें.

पिता की मदद से कलावती और मलावती ने समाजसेवा की जमीन पर अपने पांव पसारने शुरू कर दिए. गरीबों और मजलूमों की सेवा कर के उन्हें बहुत सुकून मिलता था. बेटियों की सेवा भाव से पिता जयदेव ततमा खुश थे. धीरेधीरे वे गांव इलाके में मशहूर हो गईं.

बचपन को पीछे छोड़ कर दोनों बहनें जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थीं. पिता को बेटियों की शादी की चिंता थी. थोड़े प्रयास और भागदौड़ से जयदेव ततमा को दोनों बेटियों के लिए अच्छे वर और घर मिल गए.

समय से दोनों बेटियों के हाथ पीले कर के वे अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए. इस के बाद ब्याहने के लिए एक बेटा अशोक ततमा शेष रह गया था. बाद में उन्होंने उस की भी शादी कर दी. अशोक और उस की पत्नी जयदेव की सेवा पूरी जिम्मेदारी से कर रहे थे.

जयदेव ततमा के जीवन की गाड़ी बड़े मजे से चल रही थी. न जाने उन की खुशहाल जिंदगी में किस की नजर लगी कि एक ही पल में सब कुछ मटियामेट हो गया. कलावती और मलावती के पतियों ने उन्हें हमेशा के लिए त्याग दिया. वे वापस आ कर मायके में रहने लगीं. यह बात जयदेव से सहन नहीं हुई और वे असमय काल के गाल में समा गए.

अचानक हुई पिता की मौत से घर का सारा खेल बिगड़ गया. दोनों बहनों की जिम्मेदारी भाई अशोक के कंधों पर आ गई थी. लेकिन दोनों स्वाभिमानी बहनें भाई पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं. वे खुद ही कुछ कर के अपना जीवनयापन करना चाहती थीं.

एक बात सोचसोच कर अशोक काफी परेशान रहता था कि उस की बहनों ने ससुराल में आखिर ऐसा क्या किया कि उन के पतियों ने उन्हें त्याग दिया. जबकि वह बहनों के स्वभाव से भलीभांति परिचित था. फिर उन के बीच ऐसी क्या बात हुई, यही जानने के लिए अशोक ने दोनों बहनों से बात की.

बहनों ने ईमानदारी से भाई को सब कुछ सचसच बता दिया. दोनों बहनों के सोशल एक्टिविस्ट होने वाली बात भाई अशोक को पहले से पता थी. अपनीअपनी ससुराल में रहते हुए कलावती और मलावती गृहस्थी संभालने के बावजूद दिल से समाजसेवा का भाव नहीं निकाल सकी थीं.

ससुराल में कुछ दिनों तक तो दोनों बहनें घूंघट में रहीं. लेकिन जल्दी ही घूंघट के पीछे उन का दम घुटने लगा. ये बहनें स्वच्छंद और स्वतंत्र विचारों वाली, न्याय के लिए संघर्ष करने वाली जुझारू महिलाएं थीं. वे जिस पेशे से जुड़ी हुई थीं, उस के लिए उन का घर की दहलीज से बाहर निकलना बहुत जरूरी था.

जब कलावती और मलावती घर से बाहर होती थीं तो उन्हें घर वापस लौटने में काफी देर हो जाया करती थी. दोनों के पतियों को उन का देर तक घर से बाहर रहना कतई पसंद नहीं था, उन का कामकाज भी. पति उन्हें समझाते थे कि वे समाजसेवा का अपना काम छोड़ दें और घर में रह कर अपनी गृहस्थी संभालें. समाजसेवा करने के लिए दुनिया में बहुत लोग हैं.

पतियों के साथ ही सासससुर भी उन के काम से खुश नहीं थे. वे उन के काम की तारीफ करने या उन की मदद करने के बजाय उन का विरोध करते थे. धीरेधीरे ससुराल वाले उन के कार्यों का विरोध करने लगे. उन की सोच में टकराव पैदा होता गया. कलावती और मलावती समाजसेवा के काम से पीछे हटने को तैयार नहीं थीं.

पतियों ने इस बात को ले कर ससुर जयदेव ततमा और साले अशोक से भी कई बार शिकायतें कीं. इस पर अशोक और उस के पिता ने कलावती और मलावती को काफी समझाया, पर अपनी जिद के आगे दोनों बहनों ने उन की बात भी नहीं मानी.

कलावती और मलावती का दुखद अंत – भाग 1

27 जून, 2018 की उमस और गरमी भरी सुबह थी. इंसान तो इंसान, जानवरों तक की  जान हलकान थी. बिहार के पूर्णिया जिले के थाना जलालगढ़ क्षेत्र के रामा और विनय नाम के दोस्तों ने तय किया कि वे बिलरिया ताल जा कर डुबकी लगाएंगे. वैसे भी वे दोनों रोजाना अपने मवेशियों को बिलरिया ताल के नजदीक चराने ले जाते थे.

रामा और विनय जलालगढ़ पंचायत के गांव चकहाट के रहने वाले थे. उन के गांव से बिलरिया ताल 2 किलोमीटर दूर था. ताल के आसपास घास का काफी बड़ा मैदान था. चरने के बाद मवेशी गरमी से राहत पाने के लिए ताल में घुस जाते थे. फिर वह 2-3 घंटे बाद ही ताल से बाहर निकलते थे. उस दिन जब उन के मवेशी ताल में घुसे तो दोनों दोस्त यह सोच कर घर की ओर लौटने लगे थे कि 2-3 घंटे बाद आ कर मवेशियों को ले जाएंगे.

रामा और विनय ताल से घर की ओर आगे बढ़े ही थे कि तभी रामा की नजर ताल के किनारे के झुरमुट की ओर चली गई. झुरमुट के पास 2 लाशें पड़ी थीं. उत्सुकतावश वे लाशों के पास पहुंचे तो दोनों के हाथपांव फूल गए. दोनों लाशों के सिर कटे हुए थे और वे लाशें महिलाओं की थीं. यह देख कर दोनों चिल्लाते हुए गांव की तरफ भागे. गांव में पहुंच कर उन्होंने लोगों को बिलरिया ताल के पास 2 लाशें पड़ी की बात बताई.

उन की बातें सुन कर गांव वाले लाशों को देखने के लिए बिलरिया ताल के पास पहुंचे. जरा सी देर में वहां गांव वालों का भारी मजमा जुट गया. यह खबर गांव के रहने वाले अशोक ततमा के बेटे मनोज कुमार ततमा को हुई तो वह भी दौड़ादौड़ा बिलरिया ताल जा पहुंचा.

दरअसल, 4 दिनों से उस की 2 सगी बुआ कलावती और मलावती रहस्यमय तरीके से गायब हो गई थीं. वे 23 जून की दोपहर में घर से जलालगढ़ बाजार जाने के लिए निकली थीं. 4 दिन बीत जाने के बाद भी वे दोनों घर नहीं लौटीं तो घर वालों को उन्हें ले कर चिंता हुई. उन का कहीं पता नहीं चला तो 24 जून को मनोज ने जलालगढ़ थाने में दोनों की गुमशुदगी की सूचना दे दी थी.

बहरहाल, यही सोच कर मनोज मौके पर जा पहुंचा. वह भीड़ को चीरता हुआ झाडि़यों के पास पहुंचा तो कपड़ों से ही पहचान गया कि वे लाशें उस की दोनों बुआ की हैं. लाशों को देख कर मनोज दहाड़ मार कर रोने लगा था.

इसी बीच गांव का चौकीदार देव ततमा भी वहां पहुंच गया था. उस ने जलालगढ़ थाने के एसओ मोहम्मद गुलाम शहबाज आलम को फोन से घटना की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही एसओ आलम मयफोर्स आननफानन में बिलरिया ताल रवाना हो गए. एसएसआई वैद्यनाथ शर्मा, एसआई अनिल शर्मा, कांस्टेबल अवधेश यादव, अशोक कुमार मेहता, जयराम पासवान और उपेंद्र सिंह उन के साथ थे.

एसओ मोहम्मद आलम ने बारीकी से लाशों का मुआयना किया. दोनों लाशें क्षतविक्षत हालत में थीं. लग रहा था जैसे लाशों को जंगली जानवरों ने खाया हो. लाशों के आसपास किसी तरह का कोई सबूत नहीं मिला. पुलिस आसपास की झाडि़यों में लाशों के सिर तलाशने लगी. लेकिन सिर कहीं नहीं मिले.

इस का मतलब था कि हत्यारों ने दोनों की हत्या कहीं और कर के लाशें वहां छिपा दी थीं. कातिल जो भी थे, बड़े चालाक और शातिर किस्म के थे. मौके पर उन्होंने कोई सबूत नहीं छोड़ा था. पुलिस के लिए थोड़ी राहत की बात यह थी कि लाशों की शिनाख्त हो गई थी.

इस के बाद एसओ मोहम्मद आलम ने एसपी विशाल शर्मा और एसडीपीओ कृष्णकुमार राय को घटना की सूचना दे दी थी. उन्होंने घटनास्थल का मुआयना किया तो जिस स्थान से लाशें बरामद की गई थीं, वह इलाका उन के थाना क्षेत्र से बाहर का निकला. वह जगह थाना कसबा की थी. लिहाजा उन्होंने इस की सूचना कसबा थाने के एसओ अरविंद कुमार को दे दी.

एसओ कसबा अरविंद कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे. लेकिन उन्होंने भी उस जगह को अपना इलाका होने से साफ मना कर दिया. इलाके को ले कर दोनों थानेदारों के बीच काफी देर तक बहस होती रही.

तब तक एसपी विशाल शर्मा और एसडीपीओ कृष्णकुमार राय भी मौके पर जा पहुंचे. दोनों अधिकारियों के हस्तक्षेप और मौके पर बुलाए गए लेखपाल की पैमाइश के बाद घटनास्थल कसबा थाने का पाया गया. एसपी शर्मा के आदेश पर थानेदार अरविंद कुमार ने मौके की काररवाई निपटा कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दीं.

चूंकि कलावती और मलावती की गुमशुदगी जलालगढ़ थाने में दर्ज थी, इसलिए जलालगढ़ एसओ मोहम्मद आलम ने यह मामला कसबा थाने को स्थानांतरित कर दिया. एसओ अरविंद कुमार ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर आगे की छानबीन शुरू कर दी.

चूंकि बात 2 सामाजिक कार्यकत्रियों की हत्या से जुड़ी थी, इसलिए यह मामला मीडिया में भी खूब गरमाया. पुलिस पर जनता का भारी दबाव बना हुआ था. पुलिस की काफी छीछालेदर हो रही थी. एसपी विशाल शर्मा ने एसडीपीओ कृष्ण कुमार राय के नेतृत्व में एक टीम गठित की.

इस टीम में जलालगढ़ के एसओ मोहम्मद गुलाम शहबाज आलम, थाना कसबा के थानेदार अरविंद कुमार, मुफस्सिल थाने के एसओ प्रशांत भारद्वाज, तकनीकी शाखा प्रभारी एसएसआई जलालगढ़ वैद्यनाथ शर्मा, एसआई अनिल शर्मा, कांस्टेबल अवधेश यादव, अशोक कुमार मेहता, जयराम पासवान और उपेंद्र सिंह को शामिल किया गया.

एसडीपीओ कृष्णकुमार राय ने घटना की छानबीन की शुरुआत मृतकों के घर से की. मनोज से पूछताछ पर जांच अधिकारियों को पता चला कि कलावती और मलावती दोनों पतियों द्वारा त्यागी जा चुकी थीं. पतियों से अलग हो कर दोनों मायके में ही रह रही थीं.

मायके में रह कर दोनों सोशल एक्टिविस्ट का काम कर रही थीं. कलावती और मलावती की नजरों पर गांव के कई ऐसे असामाजिक तत्व चढ़े थे, जिन के क्रियाकलाप से लोग परेशान थे. उन में 4 नाम वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा शामिल थे. दोनों बहनों ने इन चारों पर कई बार मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भी भिजवाया था.

जांच अधिकारियों को यह समझते देर नहीं लगी कि कलावती और मलावती की हत्या के पीछे इन्हीं चारों का हाथ है. फिलहाल पुलिस के पास उन के खिलाफ कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं था, जिसे आधार बना कर उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता. उन पर नजर रखने के लिए जांच अधिकारी ने मुखबिरों को लगा दिया कि वे कहां जाते हैं, किस से मिलते हैं, क्याक्या करते हैं?

इधर एसओ कसबा अरविंद कुमार ने दोनों बहनों के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई और केस को समझने में जुट गए थे. काल डिटेल्स में कुछ ऐसे नंबर मिले, जो संदिग्ध थे. उन नंबरों से कलावती और मलावती देवी को कई दिनों से लगातार फोन किए जा रहे थे. पुलिस ने उन संदिग्ध नंबरों की पड़ताल की तो वे नंबर मृतका के गांव चकहाट के रहने वाले वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा और लक्ष्मीदास उर्फ रामजी के निकले.

महिला सिपाही बनेंगी मर्द?

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और गोंडा में तैनात 2 महिला कांस्टेबलों द्वारा लिंग परिवर्तन के लिए मुख्यालय से अनुमति मांगना विभाग में चर्चा का विषय बन चुका था.  इतना ही नहीं हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली महिला सिपाहियों ने अपने आवेदन को संवैधानिक अधिकार बताया. इस तरह की मांग करने वाली गोरखपुर और गोंडा के अलावा सीतापुर और अयोध्या की भी 2 सिपाही हैं.

चारों ने पहले डीजी औफिस में अरजी दे कर जेंडर बदलवाने के लिए अनुमति भी मांग चुकी हैं. महिलाओं की अरजी जब उच्चाधिकारियों के पास पहुंची, तब वे भी हैरान हो गए.

अयोध्या की ऐसी महिला सिपाही ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि उस का उत्तर प्रदेश पुलिस में साल 2019 में सेलेक्शन हुआ था. उस की पहली तैनाती गोरखपुर थी. लिंग परिवर्तन के लिए वह फरवरी से दौड़ रही है. उस ने बताया कि गोरखपुर में वह एसएसपी, एडीजी फिर डीजी मुख्यालय तक जा चुकी है. उन्हीं में एक नीलम भी है. उस ने अपने भीतर मर्दानापन के एहसास के चलते हुए कई चौंकाने वाली बातें भी बताईं.

कहानी उत्तर प्रदेश पुलिस की महिला सिपाही नीलम की है. उस की पहली तैनाती उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर में हुई थी. उस ने पुलिस में भरती की सभी परीक्षाएं पास की थीं. लिखित परीक्षा से ले कर फिजिकल तक. शारीरिक जांच परीक्षा में उस ने दूसरे प्रतियोगियों की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया था. चाहे ग्राउंड के 4 चक्कर लगाने की परीक्षा हो या फिर लौंग जंप और हाई जंप, सभी में एक सधे हुए एथलीट की तरह उस ने फिजिकल परीक्षा लेने वाले पुलिस अधिकारी को हैरान कर दिया था.

तब उन के मुंह से अनायास निकल पड़ा था, ”वाह! तुम्हें तो ओलंपिक में जाना चाहिए था.’‘

जवाब में वह सिर्फ यही बोल पाई थी, ”छोटे गांव शहर वाले को पूछता कौन है साहबजी. सिपाही की यही नौकरी मिल जाए, बहुत है मेरे लिए.

यह 2019 बात की है. अयोध्या की रहने वाली नीलम का उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर सेलेक्शन हो गया था. उस की पहली तैनाती गोरखपुर में हुई थी. ड्यूटी पर नीलम के मिजाज और हावभाव दूसरी महिला सिपाहियों से कुछ अलग थे. बोलचाल, चालढाल, उठनेबैठने का स्टाइल उसे सामान्य लड़की से अलग करता था.

वह एकदम अलग दिखती थी. चाहे ड्यूटी पर पुलिस की पुरुष वाली वरदी में हो या फिर घरपरिवार में. सामान्य जीवन में उसे मर्दों वाले कपड़े ही पसंद आते थे. जींसपैंट, शर्ट टीशर्ट उस की खास पोशाक थी. मेकअप सुंदर दिखने के लिए नहीं, बल्कि चेहरे की साफसफाई के लिए करती थी.

उस की आवाज भले ही महीन हो, लेकिन बोलने का लहजा औरत की आवाज से एकदम अलग था. खास तरह की खनक. एकदम स्पष्ट और तने हुए शब्दों में सटीक बातें करने की शैली. अपने अधिकारियों को अदब के साथ सरनेम से बुलाना. पुरुष सिपाहियों और अधिकारियों को मिस्टर सिंहजी और मिस्टर पांडे साहब या मिस्टर यादवजी  कहना आदि बातें उसे औरों से अलग करने के लिए काफी थीं. कानूनी धाराएं तो उस की जुबान पर रहती थीं.

बहुत जल्द ही वह अपने थाने के स्टाफ के बीच लोकप्रिय हो गई थी. साथ काम करने वाले सिपाही से ले कर अधिकारी तक उस की तारीफ करते थे और वह उन के लिए एक मिसाल थी. अधिकारियों द्वारा उस की अनुपस्थिति में गाहेबगाहे उन की खूबियों की चर्चा होती थी.

इस के बावजूद नीलम खुद को असहज महसूस करती थी. खासकर जब से उस ने पुलिस की वरदी पहनी और ड्यूटी जौइन की, तब से उस में अलग तरह के बदलाव आ गए थे. घरपरिवार और दूसरे लोग भी कहने लगे थे. खासकर उस की सहेलियां और रिश्तेदारी में लड़कियां बोलती थीं, ”तू तो बहुत बदल गई पुलिस बन कर!’‘

बुलेट पर बैठी नीलम यह सुन कर हेलमेट पहनती हुई सिर्फ मुसकरा दी थी. उन्हें एक तीखी नजर से देखती हुई, तुरंत बाइक का गियर बदल कर एक्सेलेटर घुमा दिया था. बाइक की तेजी से घुरघुराती हुई घर्रघर्र और फटफट की भारी आवाज सुन दूर खड़े लड़के भी देखने लगे थे. चंद सेकेंड बाद वे बुलट पर जाती नीलम को देख रहे थे…आहें भर रहे थे.

सैक्स चेंज कराने की जिद पर अड़ गई नीलम

साल 2023 की जनवरी का महीना था. नीलम यूपी पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) रैंक के एक अधिकारी के सामने दोनों हाथ जोड़े खड़ी थी. विनम्रता के साथ बोली, ”साहबजी, मैं ने एक एप्लीकेशन दी थी, उस का क्या हुआ?’‘

”क्या नाम है तुम्हारा?’‘ अधिकारी ने फाइलें पलटते हुए पूछा.

”जी, साहबजी क…क..नीलम!’‘ अटकती हुई बोली.

”पूरा नाम बोलो, पूरा.’‘

”जी, नीलम सिंह साहबजी!’‘

”अच्छा तो तू वही लड़की है, जेंडर डिस्फोरिया वाली कांस्टेबल!’‘ पुलिस अधिकारी बोले.

”जी साहबजी, सही पहचाना आप ने. क्या हुआ मेरी एप्लीकेशन का, कोई जवाब आया क्या?’‘

”जवाब? कैसा जवाब चाहिए तुम्हें? मनमरजी है क्या? नौकरी पाओ फीमेल बन कर और जब मिल जाए तब मर्द बनने की गुहार लगाओ, फिर प्रमोशन…!’‘ पुलिस अधिकारी ने कहा.

”लेकिन साहबजी, आप मेरी समस्या को समझिए. मैं कितनी उलझन में हूं. कितनी तकलीफ में हूं इसे भी तो समझिए,’‘ नीलम बोली.

”क्या समझूं मैं? जब तुम्हें पता था कि तुम्हारे शरीर में मर्दानापन है, मेल के लक्षण हैं, तब सैक्स चेंज पहले करवा लेती. फिर नौकरी का आवेदन करती.’‘

”तब तक इतना नहीं पता था सर, नौकरी लगे 3 साल हो गए. कोरोना आ गया. 2 साल तो उसी में निकल गए. तब कहां मालूम था कि आगे चल कर जीना मुश्किल जो जाएगा.’‘

”तुम्हारा जीना मुश्किल? अरे तुम ने तो एप्लीकेशन दे कर यूपी पुलिस को मुश्किल में डाल दिया है,’‘ एडीजी बोले.

”मैं ने क्या किया है सर, हम ने तो अपनी समस्या बताई और कहा कि इस हाल में ड्यूटी निभाने में परेशानी है. अगर मेरे आपरेशन करवा देने से बात बन जाती है तो हर्ज क्या है?’‘ नीलम बोली.

तब तक एडीजी साहब अपने सामने कुछ और डाक्यूमेंट निकाल चुके थे. उन में एक तो नीलम की एप्लीकेशन थी, जिस पर विभाग के कई पुलिस अधिकारियों के दस्तखत थे. उस के साथ कुछ अनुशंसा पत्र थे. नीलम के अलावा कई और सिपाही भी थीं, जो अपना जेंडर चेंज कराना चाहती थीं.

2 पन्ने के दूसरे डाक्यूमेंट को उठा कर पढ़ने के बाद बोले, ”यह रही तुम्हारी एप्लीकेशन की काररवाई की रिपोर्ट. तुम्हारी एप्लीकेशन के आधार को किंग जार्ज मैडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ को विभाग ने लिखा था. उस का जवाब आया है.’‘

”क्या कहा है मैडिकल वालों ने? मेरी जांच के लिए कब बुलाया है?’‘ नीलम उत्सुकता से बोली.

”जांच के लिए बुलावा! सपना देख रही हो!… इस में लिखा है कि अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले, चिकित्सा से पहले कानूनी राय लेनी होगी. महिलाओं और लैंगिक मुद्दे का मामला है.’‘ पुलिस अधिकारी ने कहा.

”इस का मतलब अभी कुछ नहीं हुआ है मेरी रिक्वेस्ट का?’‘ नीलम बोली.

”कैसे कुछ नहीं हुआ है? विभाग के अपने नियम हैं. अस्पताल के अपने. दोनों के बीच तालमेल बिठाने पर ही तो कुछ होगा.’‘

”वह कब तक होगा?’‘ नीलम ने उत्सुकता दिखाई.

”देखो, तुम जितना आसान समझती हो, उतना है नहीं. तुम्हारी नौकरी महिला कांस्टेबल के पद पर लग चुकी है. ऐसे में कई नियमों को लांघना पड़ेगा.’‘ एडीजी ने समझाने की कोशिश की.

”विभाग से कोई मदद नहीं मिलेगी?’‘

”विभाग इस में जो कर सकता है कर रहा है. पत्राचार किया जा रहा है. इस समस्या की तुम अकेली कांस्टेबल नहीं हो. एक और गोंडा थाने की कांस्टेबल का मामला भी है. तुम दोनों कांस्टेबलों ने लिंग परिवर्तन की अनुमति के लिए आवेदन किया है. तुम लोगों ने विभिन्न कारणों का उल्लेख किया है. किंतु…’‘

एडीजी के बोलने के क्रम में नीलम बीच में ही बोल पड़ी, ”किंतु परंतु क्यों करते हैं साहबजी, आप के हाथों में ही तो सब कुछ है.’‘

”पहले तुम विभागीय बात को समझने की कोशिश करो. लिंग परिवर्तन की अनुमति देने में मुख्य समस्या यह है कि यदि सर्जरी के बाद उन्हें पुरुष कांस्टेबल माना जाता है तो उस के लिए पुरुष कांस्टेबलों के लिए आवश्यक अन्य शारीरिक मानदंड कैसे मेल खाएंगे? पुरुष और महिला वर्ग के लिए ऊंचाई, दौड़ने की क्षमता और कंधे की ताकत जैसे अलगअलग शारीरिक मानदंड हैं,’‘ एडीजी बोले.

”क्या आप को नहीं मालूम कि महाराष्ट्र में एक कांस्टेबल ललिता का सैक्स चेंज ड्यूटी पर रहते हुए किया जा चुका है. तो फिर मेरा क्यों नहीं?’‘ नीलम ने उदाहरण और तर्क दिया.

”हर राज्य के कुछ अपने नियम भी होते हैं. यूपी पुलिस में पुरुषों और महिलाओं के लिए भरती मानदंडों का सख्ती से पालन किया जाता है और महिला मानदंड के तहत नौकरी पाने के बाद लिंग बदलना मानदंडों की अवहेलना होगी.’‘ एडीजी बोले.

इस पर नीलम उदास हो गई. निराश मन से वापस गोरखपुर लौट आई, किंतु शांत नहीं बैठी.

नीलम ने एक वकील से संपर्क किया और इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी समस्या को ले कर याचिका दायर कर दी. वकील ने याचिका में महिला सैक्स चेंज को ले कर कुछ उदाहरणों के डाक्यूमेंट भी लगा दिए. नीलम ने याचिका मे सैक्स चेंज करवाने की अनुमति मांगी.

यूपी की राज्य पुलिस के सामने इस तरह का पहला मामला आया था. सुनवाई के क्रम मे कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए यूपी पुलिस से सवालजवाब किए. यूपी पुलिस अपना तर्क रखते हुए बोली कि महिला पुलिस के रूप में भरती होने के बाद कांस्टेबलों को अपना लिंग बदलने की अनुमति कैसे दे सकते हैं.

इस के जवाब में अदालत ने मुख्यालय से महिला कांस्टेबल के अनुरोध पर योग्यता के आधार पर पुनर्विचार करने और भविष्य में दोबारा सामने आने वाले ऐसे ही मामलों के लिए कुछ मानदंड तैयार करने को कहा.

आखिर कब पूरी होगी इन की इच्छा

इस कहानी के लिखे जाने तक उत्तर प्रदेश पुलिस के शीर्ष अधिकारी दुविधा में फंसे हुए थे. गोरखपुर और गोंडा में तैनात 2 महिला सिपाहियों द्वारा लिंग परिवर्तन के लिए मुख्यालय से अनुमति मांगना विभाग में चर्चा का विषय बन चुका था.

इतना ही नहीं हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली महिला सिपाही ने अपने आवेदन को संवैधानिक अधिकार बताया. इस तरह की मांग करने वाली गोरखपुर और गोंडा के अलावा सीतापुर और अयोध्या की भी 2 सिपाही हैं.

चारों पहले डीजी औफिस में अरजी दे कर जेंडर बदलवाने के लिए अनुमति भी मांग चुकी हैं. महिलाओं की अरजी जब उच्चाधिकारियों के पास पहुंची, तब वे भी हैरान हो गए. महिला सिपाहियों की अरजी को देखते हुए चारों जिलों में पुलिस अधीक्षकों को डीजी औफिस की ओर से पत्र लिख कर उन की काउंसलिंग कराने के लिए कहा गया.

अयोध्या की ऐसी महिला सिपाही ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि उस का उत्तर प्रदेश पुलिस में साल 2019 में सेलेक्शन हुआ था. उस की पहली तैनाती गोरखपुर थी. लिंग परिवर्तन के लिए वह फरवरी से दौड़ रही हैं. उस ने बताया कि गोरखपुर में वह एसएसपी, एडीजी फिर डीजी मुख्यालय तक जा चुकी है.

उन्हीं में एक नीलम भी है. उस ने अपने भीतर मर्दानापन के एहसास के चलते हुए कई चौंकाने वाली बातें भी बताईं. पुलिस विभाग में पुरुष बनने के सवाल पर अधिकारियों को उस ने बताया कि पढ़ाई के दौरान ही उस के हारमोंस चेंज होने लगे थे. इस के बाद से ही उन का जेंडर बदलवाने की इच्छा होने लगी.

सब से पहले उस ने दिल्ली में एक बड़े डाक्टर से कई चरणों में काउंसलिंग करवाई थी. डाक्टर ने जांचपड़ताल के बाद उस का जेंडर डिस्फोरिया बताया. डाक्टर की रिपोर्ट के आधार पर ही उस ने लिंग बदलवाने की अनुमति मांगी है.

नीलम ने यह भी बताया कि उस का स्टाइल पुरुष जैसा है. वह पुरुष जैसा दिखना ही नहीं, उसी तरह की जिंदगी जीना चाहती है. फिलहाल वह बाल और पहनावे पुरुषों की तरह रखती है. बाइक से चलना पसंद है. पैंटशर्ट पहनना सहज लगता है.

उस ने बताया कि जब वह स्कूल जाती थी, तभी से उसे लड़कियों की तरह काम करना अटपटा लगता था. स्कूल में उस की चालढाल की वजह से कई लोग उसे लड़का कहते थे, जो उसे बहुत अच्छा लगता था. बहरहाल, अब देखना यह है कि इन पुलिसकर्मियों की सैक्स चेंज कराने की इच्छा कब पूरी होगी?

महिला सिपाही ललिता से बनी ललित 

महाराष्ट्र पुलिस की कांस्टेबल ललिता साल्वे राज्य की पहली महिला सिपाही थी, जिसे सैक्स चेंज करवाने की लंबी कानूनी प्रक्रिया और जटिल इलाज के दौर से गुजरना पड़ा था. उस ने अपने औपरेशन के लगभग 4 साल पहले शरीर में परिवर्तन देखे थे और डाक्टरी परीक्षण कराया था.

उस के बाद बाद महाराष्ट्र पुलिस ने लिंग परिवर्तन सर्जरी की सलाह दी थी. उस का आपरेशन 2017 में किया गया था और उसी साल 25 मई को ललिता से ललित बनने का सफर खत्म हो गया था.

महाराष्ट्र पुलिस का यह अनोखा मामला 29 साल की महिला कांस्टेबल ललिता साल्वे का था. उस की 2009 में महाराष्ट्र पुलिस में नियुक्ति हुई थी. उस की पोस्टिंग बीड थाने में हुई थी. उस ने नौकरी करते कुछ समय बाद ही महसूस किया कि वह लड़के के रूप में ज्यादा बेहतर काम कर सकती है.

इस बारे में उस ने डाक्टरी जांच करवाई, तब मालूम हुआ कि जेंडर आइडेंटिटी डिसऔर्डर से प्रभावित है. उसे सही और अच्छी जिंदगी गुजारनी है तो उस के लिए सेक्स चेंज कराना अच्छा रहेगा.

इस सलाह को ललिता ने अपने घर वालों को बताया और उन से सहयोग मांगा. इस में परिवार ने पूरा सपोर्ट किया. उस के बाद ही ललिता ने अपने विभाग के अधिकारियों और डीजीपी स्टेट डेप्यूटी जनरल सतीश माथुर से सैक्स चेंज सर्जरी की अनुमति मांगी थी. साल्वे ने यह भी कहा था कि वह सर्विस में बनी रहना चाहती है.

तब अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजेंद्र सिंह ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस के इतिहास में यह अपनी तरह का पहला मामला है. फिर भी उसे अनुमति नहीं मिली थी.

इसी सिलसिले में साल्वे को ड्यूटी में शामिल होने के बाद एक पुरुष कांस्टेबल को दिए जाने वाले लाभ का भी मसला सामने आया था. साल्वे ने पहले लिंग परिवर्तन सर्जरी कराने के लिए छुट्टी देने के लिए राज्य पुलिस विभाग से संपर्क किया था.

विभाग ने मांग खारिज कर दी थी, क्योंकि पुरुष और महिला कांस्टेबलों के लिए पात्रता मानदंड अलगअलग थे, जिस में ऊंचाई और वजन की आवश्यकताएं भी शामिल थीं. विभागीय अनुमति नहीं मिलने पर ही ललिता ने नवंबर 2017 में मुंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मांग की थी कि राज्य पुलिस को उन्हें छुट्टी देने के लिए निर्देश जारी किए जाएं.

1988 में जन्मी साल्वे ने एक याचिका में बौंबे हाईकोर्ट को बताया था कि उस ने लगभग 4 साल पहले अपने शरीर में परिवर्तन देखा था और डाक्टरी जांच कराई थी, जिस में उस के शरीर में वाई क्रोमोसोम की उपस्थिति की पुष्टि हुई थी.

जहां पुरुषों में एक्स और वाई सैक्स क्रोमोसोम होते हैं, वहीं महिलाओं में 2 एक्स क्रोमोसोम होते हैं. डाक्टरों ने कहा था कि उसे लिंग डिस्फोरिया है और उसे लिंग परिवर्तन सर्जरी कराने की सलाह दी थी.

इस पर कोर्ट ने पुलिस को पत्र लिखा था. सभी कानूनी आधार को देखते हुए बीड के एसपी जी. श्रीधर ने भी इस की पुष्टि करते हुए लिखा कि उन्हें महिला कांस्टेबल की याचिका के संबंध में जवाब दिए और सैक्स चेंज की अनुमति मिली. सर्जरी के लिए अपनी चिकित्सीय फिटनेस स्थापित करने के लिए साल्वे को एक्सरे स्कैन, इलैक्ट्रोकार्डियोग्राफी (ईसीजी) जांच और रक्त परीक्षण जैसी कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा था.

हुस्न की मछली का कांटा

एक आधा अधूरा खतरनाक खेल – भाग 3

शालू ने आगे बताया कि उस ने अपनी पहली एफआईआर में रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का नाम नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर लिखवाया है, जिन्हें वह जानती तक नहीं थी. शालू शर्मा के इस इकबालिया बयान को अगले दिन धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराया गया.

शालू के इस बयान के बाद इस मामले की सभी बिखरी कडि़यां जुड़ गई थीं. पुलिस ने मुखबिरों की निशानदेही और फोन लोकेशन के आधार पर जाल बिछा कर 20 फरवरी, 2014 की सुबह साढ़े 9 बजे बसअड्डे के सामने संतोष अस्पताल के गेट के पास से नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद निवासी बंगाली पीर, कस्बा लोनी और बृजेश कौशिक निवासी शिवपुरम, मेरठ को गिरफ्तार कर लिया. उस समय ये तीनों काली वैगनआर कार से कहीं भागने की फिराक में थे.

तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो नगेश चंद्र शर्मा ने बताया कि वह रविंद्र सैनी व कामेश सक्सेना को पहले से ही जानता था. दोनों ही करोड़पति हैं. उन्हें वह दुष्कर्म के झूठे केस में फंसा कर मोटी रकम वसूलना चाहता था. नगेशचंद्र शर्मा खुद को एटूजेड न्यूज चैनल का पत्रकार बताता था. इसी नाम से उस ने नवयुग मार्केट में औफिस भी खोल रखा था. जबकि शहजाद फोटोग्राफर था और नगेशचंद्र शर्मा के साथ ही रहता था. वैसे एटूजेड चैनल का कहना है कि उस ने नगेशचंद्र शर्मा को काफी पहले निकाल दिया था.

बहरहाल, आरोपी शहजाद ने बताया कि उस ने जो भी किया, नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था, वह भी रविंद्र और कामेश को नहीं जानता था. बृजेश कौशिक का भी यही कहना था कि उस ने भी जो किया वह नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था. वह भी रविंद्र सैनी या कामेश सक्सेना को नहीं जानती थी.

66 वर्षीय रविंद्र सैनी अपने परिवार के साथ सैक्टर 9, राजनगर गाजियाबाद में रहते थे. उन के दोनों बेटे उच्च शिक्षा प्राप्त थे और अपने अपने परिवार के साथ अमेरिका और बंगलूरु में रहते थे. रविंद्र सैनी स्टेट बैंक औफ इंडिया की महाराजपुर, गाजियाबाद शाखा से 1998 में रिटायर हुए थे. डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने रिटायर होने से पहले एक आवासीय समिति बनाई थी. यह उस समय की बात है, जब दिल्ली और एनसीआर में जमीनों के दाम बहुत कम थे. तब जमीनें आसानी से उपलब्ध थीं.

उसी जमाने में रविंद्र सैनी ने किसानों से 14 एकड़ जमीन खरीद कर एक सोसायटी बनाई, जिस का नाम रखा गया राष्ट्रीय बैंककर्मी एवं मित्रगण आवास समिति. यह आवासीय समिति सदरपुर गाजियाबाद के पास है. इस आवास समिति के पहले चुनाव में प्रमोद कुमार त्यागी को अध्यक्ष व रविंद्र सैनी को सचिव पद के लिए चुना गया था. इस समिति के 203 सदस्य हैं. इस समिति ने जो आवासीय कालोनी बनाई उस का नाम संयोगनगर रखा गया.

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि समिति के पहले चुनाव में ही रविंद्र सैनी को सर्वसम्मति से आजीवन सचिव बनाया गया था.

इस पद पर कार्य करते हुए अध्यक्ष प्रमोद त्यागी को जब कई तरह की वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त पाया गया तो 2005 के चुनाव में उन्हें पद से हटा दिया गया. उन की जगह वीरेंद्र त्यागी को अध्यक्ष चुना गया. प्रमोद त्यागी ने पद से हटाए जाने का कारण रविंद्र सैनी को माना और उन से रंजिश रखने लगे.

करीब 2 साल तक चुप रहने के बाद प्रमोद त्यागी ने अधिगृहीत जमीन के किसानों के साथ मिल कर कई तरह की अनियमितताओं की शिकायतें जीडीए व अन्य सरकारी विभागों में कीं. लेकिन जब कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अपने एक दोस्त विजय पाल त्यागी द्वारा सितंबर, 2010 में रविंद्र सैनी के खिलाफ गाजियाबाद की सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दर्ज कराया.

इस में कहा गया था कि रविंद्र सैनी ने गाजियाबाद के डूंडाहेड़ा इलाके में उन्हें एक भूखंड दिलाने की एवज में 3 किश्तों में 16 लाख 10 हजार रुपए लिए थे, जिन्हें हड़प लिया है और जमीन की रजिस्ट्री भी नहीं कराई है.

यह मुकदमा आज भी अदालत में विचाराधीन है. 18 अक्टूबर 2013 को दोपहर करीब 1 बजे रविंद्र सैनी को जैन नाम के किसी व्यक्ति ने फोन कर के कहा कि वह उन का मकान किराए पर लेना चाहता है.

लेकिन रविंद्र सैनी जब वहां पहुंचे तो बंदूक और रिवाल्वर की नोक पर उन्हें बंधक बना कर उन के बैंक कालोनी स्थित मकान की तीनों मंजिलों की रजिस्ट्री उन के नाम करने, 15 लाख रुपए नकद देने तथा समिति के सचिव पद से हट जाने को कहा गया. ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई.

इस घटना की तहरीर उसी दिन देर शाम रविंद्र सैनी ने थाना कविनगर में दर्ज कराने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया. इस पर रविंद्र सैनी ने अदालत की शरण ली.

अदालत के आदेश पर नामजद अभियुक्तों प्रमोद कुमार त्यागी और विजय पाल त्यागी के खिलाफ 18 अक्तूबर, 2013 को भादंवि की धारा 384, 323, 386, 452, 504 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन कोई भी काररवाई नहीं की गई.

कोई काररवाई न होती देख रवींद्र सैनी ने अपनी व्यथा एसएसपी गाजियाबाद, डीआईजी मेरठ जोन, मंडलायुक्त मेरठ, डीजीपी लखनऊ, मानव अधिकार आयोग व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक भी पहुंचाई. लेकिन सिवाय आश्वासनों के उन्हें कुछ नहीं मिला.

अभी तक यह लड़ाई और रंजिश व्यक्तिगत थी, लेकिन अब उन्हें एक और झूठे दुष्कर्म केस में फंसाने की कोशिश की गई. इस मामले में नाम आने पर रवींद्र सैनी और उन के परिवार की काफी बदनामी होती, लेकिन पुलिस की तत्परता से वह बालबाल बच गए. इस कथित दुष्कर्म कांड में नामजद दूसरे आरोपी कामेश सक्सेना, गाजियाबाद के बिजली विभाग में कार्यरत हैं और परिवार सहित विजयनगर में रहते हैं.

20 फरवरी, 2014 को रवींद्र सैनी द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर भादंवि धारा 384/511 व 120बी के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद व बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया.

इसी मामले में एक अन्य एफआईआर कथित पीडि़ता सुनीता शर्मा उर्फ शालू द्वारा भी दर्ज कराई गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद और बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इन के खिलाफ धारा 376, 342, 506 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर काररवाई की गई. गिरफ्तार किए गए तीनों आरोपियों को उसी दिन गाजियाबाद कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है

एक आधा अधूरा खतरनाक खेल – भाग 2

चूंकि दुष्कर्म का मामला दर्ज हो चुका था, इसलिए पुलिस ने रात में ही रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना को थाने बुला लिया. दोनों का ही कहना था कि उन पर यह झूठा आरोप लगाया जा रहा है, पुलिस चाहे तो उन की काल डिटेल्स रिकलवा कर उन की लोकेशन पता कर सकती है. चूंकि पुलिस को शालू की बातों पर शक था, इसलिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का उस से आमना सामना नहीं कराया.

इस की जगह उन्होंने एक बार फिर पीडि़ता शालू से गहन पूछताछ का मन बनाया, ताकि सच्चाई सामने आ सके. लेकिन इस से पहले पुलिस टीम में पीडि़ता और दोनों नामजद आरोपियों के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक कर लिया. तीनों की काल डिटेल्स की पड़ताल से पता चला कि पूरे दिन शालू और कामेश सक्सेना के फोन लोकेशन कलेक्ट्रेट या लोनी के आसपास नहीं थी.

जबकि शालू अपने बयान में दावा कर रही थी कि वह कामेश से कलक्ट्रेट पर मिली थी. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि रविंद्र सैनी का कामेश सक्सेना या पीडि़ता से एक बार भी मोबाइल फोन से संपर्क नहीं हुआ था. इस से पुलिस को लगा कि शालू संभवत: कामेश सक्सेना और रविंद्र सैनी को जानती ही नहीं है.

ऐसी स्थिति में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था कि हो न हो शालू किसी लालच के तहत या किसी के कहने पर रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर आरोप लगा रही हो. इस सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना सहित 8 लोगों को शालू के सामने खड़ा कर के पूछा कि वह दुष्कर्मियों को पहचाने. लेकिन वह रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना में से किसी को नहीं पहचान सकी. इस का मतलब वह झूठ बोल रही थी.

पुलिस की इस काररवाई ने जांच की दिशा ही बदल दी. अब शालू खुद ही जांच के दायरे में आ गई. दोनों आरोपियों की काल डिटेल्स से यह साबित हो गया था कि वे दोनों भी एकदूसरे के संपर्क में नहीं थे. जबकि पीडि़ता ने अपने बयान में कहा था कि कामेश ने ही उसे रविंद्र से सोसाइटी के औफिस में मिलवाया था. अगर ऐसा होता तो दोनों के बीच बातचीत जरूर हुई होती.

इसी बात को ध्यान में रख कर जब शालू की काल डिटेल्स को फिर से जांचा गया तो उस में एक खास नंबर पर पुलिस की निगाह पड़ी. शालू ने मेरठ से गाजियाबाद आने के बाद उस नंबर पर दिन में कई बार बात की थी.

काल डिटेल्स से यह बात भी सामने आ गई थी कि शालू और उस नंबर से फोन करने वाले की ज्यादातर लोकेशन नवयुग मार्केट, गाजियाबाद के आसपास थी. शालू की तथाकथित चाची बृजेश के मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई थी. जांच में पता चला कि दिनभर वह भी उस नंबर के संपर्क में रही थी. उस नंबर से उस के मोबाइल पर कई बार फोन आए थे. जब उस संदिग्ध फोन नंबर की आईडी निकलवाई गई तो पता चला कि वह नंबर नगेशचंद्र शर्मा, निवासी गांव रामपुर, जिला हापुड़ का है.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद मिला. इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि इस मामले में कोई न कोई झोल जरूर है. अगले दौर की पूछताछ के लिए शालू उर्फ सुनीता शर्मा को एक बार फिर से तलब किया गया. इस बार शालू से जब उस के फोन की काल डिटेल्स को आधार बना कर पूछताछ की गई तो वह अधिक देर तक पुलिस के सवालों का सामना नहीं कर सकी. उस ने इस फरजी दुष्कर्म कांड का सारा राज खोल दिया.

मेरठ रोड, नई बस्ती निवासी तेजपाल शर्मा की बेटी सुनीता शर्मा उर्फ शालू भले ही अभावों में पलीबढ़ी थी, लेकिन थी महत्त्वाकांक्षी, जब वह 16 साल की थी, तभी उस की शादी मेरठ के ही प्रवीण शर्मा से हो गई. मायके में तो गरीबी थी ही, शालू की ससुराल की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. शादी के 2 साल बाद ही शालू प्रवीण के बेटे की मां बन गई.

शालू और प्रवीण में वैचारिक मतभेद रहते थे, जो धीरेधीरे बढ़ते गए. जब दोनों में झगड़ा रहने लगा तो शालू ससुराल छोड़ कर अपने बेटे के साथ मायके में रहने आ गई. अपने और बेटे के पालनपोषण के लिए चूंकि नौकरी करना जरूरी था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में लग गई. नौकरी तो उसे नहीं मिली, पर राजकुमार गुर्जर उर्फ राजू भैया जरूर मिल गया, जो बसपा के टिकिट पर जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहा था.

राजनीति की नैया पर सवार हो कर आगे बढ़ने की चाह में शालू ने राजकुमार गुर्जर से नजदीकियां बना लीं और उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी. लेकिन कुछ दिनों बाद शालू को लगने लगा कि उसे अपने और अपने बेटे के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी. नौकरी की जरूरत महसूस हुई तो शालू ने पड़ोस में रहने वाली अपनी रिश्ते की चाची बृजेश कौशिक से मदद मांगी. उस के कहने पर ही वह गाजियाबाद आई थी.

पुलिस को दिए अपने इकबालिया बयान में शालू शर्मा ने बताया था कि वह अपनी चाची बृजेश कौशिक के माध्यम से नगेशचंद्र शर्मा को जानती थी और उसी के बुलाने पर 19 फरवरी को मेरठ से गाजियाबाद आई थी. नगेशचंद्र का औफिस नवयुग मार्केट में था. उस के नवयुग मार्केट स्थित औफिस पहुंचने के कुछ देर बाद उस की चाची बृजेश कौशिक भी वहां आ गई थी.

नगेशचंद्र शर्मा ने शालू को एक परचा लिख कर दिया, जिस पर 2 आदमियों के नाम व फोन नंबर लिखे थे. इन में एक नाम रविंद्र सैनी का और दूसरा कामेश सक्सेना का था. नगेश ने उन दोनों के फोटो शालू को दिखा कर कहा कि उसे उन के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराना है. जब वह एफआईआर दर्ज करा देगी तो उसे 20 हजार रुपए दिए जाएंगे. उस कागज को पढ़ कर शालू ने चाची की ओर देखा तो उस ने कहा कि अगर पैसों की ज्यादा जरूरत है तो यह काम कर दे. इस काम में वह भी उस की मदद करेगी.

इस के बाद नगेश ने फोन कर के लोनी के एक लड़के शहजाद को बुलाया. उस के आने के बाद नगेश ने उसे कप में डाल कर चाय पिलाई, जिसे पी कर शालू अर्द्धबेहोशी की हालत में आ गई. इस बीच नगेश शहजाद को वहीं छोड़ कर चाची के साथ बाहर चला गया. अर्द्धबेहोशी की हालत में शहजाद ने उस के साथ दुष्कर्म किया.

एक आधा अधूरा खतरनाक खेल – भाग 1

19 फरवरी 2014 की बात है. करीब 8 बजे गाजियाबाद, हापुड़ रोड पर सड़क किनारे  बने एक स्थानीय बस स्टैंड के पास 25-26 साल की एक लड़की के रोने की आवाज सुन कर लोगों का ध्यान उस की ओर चला गया. लग रहा था कि लड़की किसी हादसे का शिकार हुई है. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वह नशे की वजह से ठीक से नहीं बोल पा रही थी. उस की हालत देख कर किसी व्यक्ति ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

कुछ ही देर में इलाकाई गश्ती पुलिस की जीप वहां पहुंच गई. पुलिस को आया देख वहां मौजूद तमाशबीन इधरउधर हट गए. पुलिस ने लड़की से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम शालू शर्मा बताया. वह मेरठ की रहने वाली थी.

शालू ने बताया कि वह आज सुबह ही काम की तलाश में गाजियाबाद आई थी. यहां कुछ लोगों ने उस का अपहरण कर के उस के साथ बलात्कार किया और उसे एक काली गाड़ी से यहां फेंक कर भाग गए.

सामूहिक दुष्कर्म की बात सुन कर पुलिस टीम ने इस घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और पीडि़ता को जीप में बिठा कर महिला थाना ले आई. अभी पुलिस शालू से पूछताछ कर ही रही थी कि एक अन्य महिला पीडि़ता को ढूंढते हुए थाने पहुंच गई. उस औरत ने अपना नाम बृजेश कौशिक बताते हुए कहा कि वह मेरठ की रहने वाली है और शालू की चाची है.

बृजेश के अनुसार वह शालू को ढूंढ रही थी. तभी उसे बस स्टैंड के पास अस्तव्यस्त हालत में मिली एक लड़की के बारे में पता चला तो वह थाने आ गई. इस मामले की सूचना पा कर थाना कविनगर के थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह, सीओ (द्वितीय) अतुल कुमार यादव, एसपी (सिटी) शिवहरि मीणा व एसएसपी धर्मेंद्र कुमार यादव भी महिला थाना आ गए.

पीडि़ता ने पूछताछ में बताया कि उस का नाम सुनीता शर्मा उर्फ शालू शर्मा है और वह पति से अनबन की वजह से अलग किराए के मकान में रहती है. आज सुबह ही वह काम की तलाश में मेरठ से गाजियाबाद आई थी.

गाजियाबाद में कलेक्ट्रेट के पास उस की मुलाकात कामेश सक्सेना नाम के व्यक्ति से हुई, जिस ने उसे काम दिलाने का भरोसा दिया. बातचीत के बाद वह उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर लोनी स्थित विधि विभाग के औफिस ले गया. इस के बाद वह उसे कुछ उच्च अधिकारियों से मिलवाने के बहाने बैंक कालोनी गाजियाबाद स्थित मित्रगण सहकारी आवास समिति के औफिस ले गया.

वहां शाम 6 बजे कामेश ने उसे रविंद्र कुमार सैनी व कुछ अन्य लोगों से यह कह कर मिलवाया कि ये सब गाजियाबाद के बड़े लोग हैं. ये काम भी दिलवाएंगे और पैसा भी देंगे. वहीं पर उसे एक कप चाय पिलाई गई, जिसे पी कर वह बेहोश हो गई. बेहोशी की ही हालत में उन सभी ने उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया. बाद में वे उसे एक काली कार मे डाल कर हापुड़ रोड पर गोविंदपुरम के पास फेंक कर भाग गए.

शालू जिस तरह बात कर रही थी, उस से पुलिस को कतई नहीं लग रहा था कि उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है. दूसरे बिना किसी सूचना के उस की चाची का थाने आना भी पुलिस को अजीब लग रहा था. इसलिए पुलिस ने आगे बढ़ने से पहले दोनों से ठीक से पूछताछ कर लेना उचित समझा.

पूछताछ में शालू ने बताया था कि पति से अलग रहने की वजह से उस का और उस के बेटे का खर्चा नहीं चल पा रहा था. उसे नौकरी की तलाश थी. उस ने नौकरी के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली अपनी चाची बृजेश कौशिक से कह रखा था. वह चूंकि समाजसेविका थी और उस के संपर्क भी अच्छे लोगों से थे इसलिए वह उसे नौकरी दिला सकती थी.

19 फरवरी की सुबह उस की चाची का फोन आया कि वह गाजियाबाद आ जाए. वह उसे नौकरी दिला देगी. उस ने यह भी कहा कि वह उसे गाजियाबाद कलेक्ट्रेट के पास मिलेगी. चाची के कहने पर ही वह गाजियाबाद कलेक्ट्रेट पहुंची थी. वहां चाची तो नहीं मिली, कामेश सक्सेना मिल गया. वह काम दिलाने के नाम पर उसे अपने साथ ले गया था.

उधर बृजेश ने बताया था कि जब वह कलेक्ट्रेट पहुंची तो शालू उसे वहां नहीं मिली. उस के बाद वह दिन भर उसे ढूंढती रही. उसे शालू की बहुत चिंता हो रही थी. फिर रात गए जब उसे पता चला कि हापुड़ रोड के एक बसस्टैंड के पास एक लड़की पड़ी मिली है और उसे महिला थाने ले जाया गया है तो वह यहां आ गई. यहां पता चला कि वह लड़की शालू ही थी और उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था.

शालू और बृजेश के बयानों में काफी विरोधाभास था. पुलिस को शक हुआ तो उस ने शालू और बृजेश से पूछा कि जब दोनों के पास मोबाइल फोन थे तो उन्होंने एकदूसरे से फोन पर बात क्यों नहीं की. इस पर दोनों नेटवर्क का रोना रोने लगीं. यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी, जिस से उसे शालू और बृजेश की बातों पर कुछ शक हुआ.

बहरहाल, पुलिस ने शालू शर्मा के बयान के आधार पर नामजद अभियुक्तों के खिलाफ रात साढ़े 8 बजे धारा 342, 506 व 376 के तहत केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही उसे मैडिकल जांच के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. मैडिकल जांच में इस बात की पुष्टि हो गई कि शालू के साथ दुष्कर्म हुआ था.

चूंकि शालू गैंगरेप की बात कर रही थी, इसलिए मामले की गंभीरता को समझते हुए पुलिस उच्चाधिकारियों ने मीटिंग की और इस की जांच का जिम्मा सीओ (द्वितीय) अतुल यादव को सौंप दिया. उन्हें निर्देश दिया गया कि आरोपियों को गिरफ्तार कर के जल्द से जल्द मामले का खुलासा करें.

सीओ अतुल कुमार यादव, थानाप्रभारी कविनगर अरुण कुमार सिंह, महिला थानाप्रभारी अंजू सिंह तेवतिया व सबइंस्पेक्टर अमन सिंह ने इस मामले पर आपस में विचारविमर्श किया तो उन्हें शालू और बृजेश के बयानों में विरोधाभास नजर आया.

रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना के फोन नंबर शालू से ही मिल गए. पुलिस ने उन से संपर्क किया तो बात भी हो गई. दोनों ही सम्मानित व्यक्ति थे. रविंद्र सैनी प्रौपर्टी का काम करते थे, जबकि कामेश सक्सेना बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर थे.

सुंदरियों के हसीन सपने

हुस्न की मछली का कांटा – भाग 3

एक दिन आरती को कृष्ण कुमार की याद आई. वह कभीकभी उस से फोन पर बातें किया करती थी. उस ने मुकीम को भी उस के बारे में बता कर कहा, ‘‘कृष्ण कुमार बड़े आदमी हैं. अगर इन अंकल से एक बार मोटी रकम मिल जाए तो फिर हमें छोटीछोटी वारदातें करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

‘‘लेकिन इन्हें फांसा कैसे जाएगा?’’ मुकीम ने पूछा.

‘‘देखो, उन्हें मैं बुला तो सकती हूं. लेकिन आगे का सारा काम तुम लोग ही करना.’’ आरती ने कहा.

इस तरह बातोंबातों में इस गिरोह का निशाना कृष्ण कुमार पर सध गया. 29 दिसंबर, 2013 को आरती ने मुकीम के मोबाइल से कृष्ण कुमार के मोबाइल पर फोन किया, ‘‘अंकल मुझे अच्छा सा परफ्यूम और एक बढि़या सी घड़ी चाहिए. क्या आप ये चीजें कैंटीन से ला सकते हैं?’’

‘‘हां बेटा, ला दूंगा. मगर तू मुझे मिलेगी कहां?’’ कृष्ण कुमार ने पूछा.

‘‘मैं आज ही ले आऊंगा और तेरे कमरे पर सामान देता हुआ घर निकल जाऊंगा.’’

उस के बाद आरती ने उन्हें पूरे दिन में करीब 6-7 बार फोन किया.

‘‘अंकल मैं ने उस दिन आप को जो लोनी वाला पता दिया था, वहीं पर रह रही हूं.’’

कैंटीन से सामान लेने के बाद कृष्ण कुमार उस दिन ड्यूटी पूरी होने से एक घंटे पहले ही निकल गए. वह सीधे आरती के बताए पते पर पहुंचे, जहां आरती उन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी.

उस को देख कर आरती चहकते हुए बोली, ‘‘मैं आप का कब से इंतजार कर रही थी. आप ने आने में इतनी देर क्यों लगा दी?’’

‘‘क्या करूं बेटा, काम ही इतना ज्यादा था कि निकलतेनिकलते देर हो गई. फिर भी तुम्हारी खातिर एक घंटे पहले निकल आया था. यह लो तुम्हारा परफ्यूम और तुम्हारे लिए बढि़या सी घड़ी.’’

कृष्ण कुमार ने दोनों चीजें आरती की तरफ बढ़ाईं तो वह बोली, ‘‘आप ही मुझ पर सेंट छिड़क दो न अंकल.’’

जब वह आरती पर सेंट छिड़क रहे थे, तभी मुकीम, नीरज और दीपक वहां पर आ गए. मुकीम भड़कते हुए बोला, ‘‘ऐ बुड्ढे तू कौन है और मेरी पत्नी के साथ मेरे घर में क्या कर रहा है?’’

‘‘तमीज से बात करो, आरती ने खुद मुझ से सेंट और घड़ी ले कर आने के लिए कहा था. चाहो तो इस से पूछ लो. क्यों आरती मैं ठीक कह रहा हूं न बेटा?’’ कृष्ण कुमार बोले.

‘‘बेटा, कौन बेटा. आप से मैं कुछ क्यों मंगाऊंगी. मैं तो जानती तक नहीं कि यह कौन हैं?’’ आरती ने कहा तो कृष्ण कुमार उस का मुंह देखते रह गए.

‘‘अब बहुत हो गया तेरा ड्रामा. चुपचाप वो कर, जो हम कहते हैं,’’ मुकीम ने अंटी से तमंचा निकाल कर कृष्ण कुमार की ओर तानते हुए कहा. यह देख कर कृष्ण कुमार डर गए. उन्हें जरा भी आभास नहीं था कि आरती ऐसा कर सकती है. तभी मुकीम और नीरज ने 52 वर्षीय कृष्ण कुमार की पिटाई करनी शुरू कर दी. आरती चुपचाप देखती रही. उन लोगों ने उन की जेब से उन का पर्स निकाल लिया. सोने की अंगूठी और गले की चेन भी उतार कर रख ली.

पर्स में केवल 500 सौ रुपए पड़े थे. पर्स में उन का एटीएम कार्ड भी था. कार्ड अपने कब्जे में ले कर मुकीम ने उन से पासवर्ड पूछा. काफी पूछने पर उन्होंने पासवर्ड बता दिया.

नंबर जान लेने के बाद वे तीनों पंजाब नेशनल बैंक के एटीएम बूथ पर पैसे निकालने के लिए पहुंचे. लेकिन कृष्ण कुमार ने जो पासवर्ड दिया था, वह डालने के बाद भी पैसे नहीं निकले. ऐसा उन्होंने कई बार किया. जब पैसे नहीं निकले तो वह समझ गए कि पासवर्ड गलत बताया होगा.

वे लोग गुस्से में कमरे पर पहुंचे और कृष्ण कुमार की बुरी तरह से पिटाई कर दी. इस के बाद मुकीम ने उन से 2 लाख रुपए की मांग की. तब कृष्ण कुमार ने कहा, ‘‘मेरे पास तो इतने पैसे हैं नहीं. तुम मेरे घर पर बात करवाओ. घर से कोई न कोई पैसे ले कर आ जाएगा.’’

‘‘हमें बेवकूफ समझता है क्या? तेरे घर फोन कर के तो हम फंस जाएंगे. तू हमें पासवर्ड नंबर बता दे नहीं तो हम तुझे गोली मार देंगे,’’ मुकीम ने कृष्ण कुमार की पिटाई करते हुए कहा. लेकिन उन्होंने एटीएम कार्ड का पिन नंबर नहीं बताया. मुकीम और नीरज ने उन्हें कमरे में बंद कर दिया और उन्हें पानी तक नहीं दिया.

उन लोगों ने कृष्ण कुमार को फांसा तो इसलिए था कि उन से मोटी रकम हासिल की जा सकती है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अब वे यह सोच कर परेशान थे कि अगर वह उन्हें छोड़ देते हैं तो बात पुलिस तक पहुंचेगी, क्योंकि वह आरती को पहचानते थे. मुकीम ने एक बार फिर उन से एटीएम का पिन नंबर पूछा, लेकिन उन्होंने उसे एटीएम का पिन नंबर नहीं बताया. इस पर मुकीम ने नीरज से उन्हें पकड़ने को कहा. नीरज और दीपक ने कृष्ण कुमार को कस कर पकड़ लिया और मुकीम ने उन के सीने पर तमंचे से गोली मार दी.

गोली लगते ही कृष्ण कुमार की छाती से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह वहीं गिर पड़े. कुछ ही देर में उन की मौत हो गई. यह देख कर आरती बोली, ‘‘यह तुम लोगों ने क्या कर दिया? इन को मारने के लिए किस ने कहा था?’’

‘‘तो क्या करते? जाने देते इसे? इस ने हमें पहचान लिया था. यह यहां से सीधा पुलिस के पास जाता और हम सब जेल की कोठरी में.’’ मुकीम और नीरज ने कहा.

29 दिसंबर, 2013 की पूरी रात कृष्ण कुमार की लाश उसी कमरे में पड़ी रही. लाश को उन्होंने चादर में बांध दिया था. लाश अगले दिन 30 दिसंबर को रात गहराने पर ठिकाने लगाई जानी थी.

30 दिसंबर की रात को ठंडक होने की वजह से करीब 9 बजे ही मोहल्ले में सन्नाटा छा गया. इस का फायदा उठा कर नीरज, दीपक और मुकीम ने कृष्ण कुमार की लाश को लोनी के किशन बिहार, फेस-2, सहबाजपुर गांव में एक सुनसान जगह पर झाडि़यों के पास फेंक दिया, जिसे अगले दिन थाना लोनी पुलिस ने बरामद कर लिया था.

सभी आरोपी पुलिस से बचने के लिए इधरउधर छिपते रहे. लेकिन कविनगर थाना पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरती, मुकीम और नीरज को दबोच लिया. लोनी पुलिस ने मुकीम से कृष्ण कुमार का एटीएम कार्ड भी बरामद कर लिया. दीपक की तलाश में पुलिस ने कई जगह छापेमारी की, लेकिन वह कहीं नहीं मिल सका. गिरफ्तार अभियुक्तों को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है