वेश्या बाजार से मुक्त हुई रोमा बनी मिसाल

उत्तर प्रदेश के जिला मऊ के मोहल्ला मुंशीपुरा की रहने वाली रोमा बच्ची थी, तभी उस के पिता की मौत हो गई थी. बाप की मौत के बाद मां अकेली ही उसे पालपोस  रही थी. दूसरों के घर मेहनतमजदूरी कर के मां किसी तरह घरखर्च चला रही थी. रोमा भी कभीकभार मां के साथ मदद के लिए चली जाती थी. ज्यादातर वह मोहल्ले की लड़कियों के साथ घूमती रहती थी. उस की सब से ज्यादा निशा से पटती थी. निशा उम्र में उस से थोड़ी बड़ी जरूर थी, लेकिन रहती थी सहेली की तरह.

निशा अकसर अपने रिश्तेदारों, अजय और प्रकाश के साथ वाराणसी घूमने जाती रहती थी. वहां से लौट कर वह अपनी सहेली रोमा को देखी गई फिल्म की कहानी के साथसाथ शहर का आंखों देखा हाल सुनाती. मऊ जैसे छोटे से शहर में रहने वाली रोमा के लिए वाराणसी मुंबईदिल्ली से कम नहीं लगता था. उस का भी मन वाराणसी जा कर घूमनेफिरने और फिल्म देखने का होता, लेकिन उसे मौका ही नहीं मिलता था.

उन दिनों रोमा उम्र के जिस दौर में थी, उस उम्र की लड़कियों को फुसलाना आसान होता है. निशा के रिश्तेदारों अजय और प्रकाश ने रोमा को देखा तो उस पर उन की नीयत खराब हो गई. उन्होंने निशा से उसे वाराणसी ले चलने को कहा.

रोमा तो पहले से ही वाराणसी जाने को लालायित थी. निशा ने जैसे ही उस से वाराणसी चलने को कहा, वह तैयार हो गई. लेकिन वाराणसी कोई गांव की बाजार तो थी नहीं कि अभी गए और घूम कर लौट आए. वहां तो सुबह का गया, रात को ही लौट सकता था. ऐसे में मां किसी गैर के साथ घूमने के लिए जवान हो रही बेटी को कैसे जाने देती. तब अजय, प्रकाश और निशा ने उसे सलाह दी कि वह मां को बताए बगैर ही वाराणसी चले. शाम तक तो वे लौट ही आएंगे. मां को पता ही नहीं चलेगा कि वह कहां गई थी.

रोमा को सहेली पर पूरा विश्वास था, इसलिए वह उस के कहने पर उन के साथ घूमनेफिरने और फिल्म देखने वाराणसी चली गई. शाम को लौटने का समय हुआ तो सभी उसे एक कमरे पर ले गए. रोमा को लगा कि यहां उस के साथ कुछ गलत हो सकता है, इसलिए वह उन लोगों से चलने को कहने लगी. लेकिन वे वहां उसे चलने के लिए थोड़े ही ले गए थे.

अजय और प्रकाश ने निशा को दूसरे कमरे में भेज दिया और रोमा के साथ जबरदस्ती करने लगे. अजय रोमा के साथ दुष्कर्म कर रहा था तो प्रकाश मोबाइल फोन से उस की वीडियो क्लिप बना रहा था. जब प्रकाश उस के साथ दुष्कर्म करने लगा तो अजय ने वीडियो क्लिप बनाई. यही क्रम पूरी रात चलता रहा.

रोमा के लिए वह रात किसी नरक से कम नहीं थी. वह दोनों से रहम की भीख मांगती रही, लेकिन उन्होंने उस पर रहम नहीं किया. यह सिलसिला लगभग पूरे सप्ताह चलता रहा. रोमा पहले तो रोतीगिड़गिड़ाती रही, लेकिन बाद में विरोध पर उतर आई. उस ने धमकी दी कि छूटते ही वह सारी बात मां को बताएगी.

रोमा की इस धमकी से अजय और प्रकाश डर गए. उन्हें लगा कि रोमा ने घर जा कर सारी बात मां को बता दी तो मामला निश्चित रूप से पुलिस तक पहुंचेगा. क्योंकि अब तक रोमा की मां उमा कोतवाली में रोमा की गुमशुदगी दर्ज करा चुकी थी. ऐसे में रोमा के घर पहुंचते ही पुलिस उस से पूछताछ करने पहुंच जाएगी और रोमा जैसे ही उन का नाम लेगी, उस के बाद उन की पूरी जिंदगी जेल में ही बीतेगी. क्योंकि रोमा अभी नबालिग थी. यही वजह थी कि उन्होंने सोचा कि अब रोमा को छोड़ना ठीक नहीं है.

एक सप्ताह तक रोमा के साथ जबरदस्ती करने के बाद अजय और प्रकाश ने उसे छोड़ना उचित नहीं समझा. लेकिन वे उसे बांध कर भी नहीं रख सकते थे. इसलिए किसी तरह उस से छुटकारा पाना भी जरूरी था. दोनों को इस बात का डर सता रहा था कि आजाद होते हुए रोमा सब को सच्चाई बता देगी. उस के बाद उन का क्या होगा, यह उन्हें पता ही था.

काफी सोचविचार कर आखिर प्रकाश ने रोमा से छुटकारा पाने का रास्ता निकाल ही लिया. उस की जानपहचान वाराणसी की शिवदासपुर वेश्या बाजार की रहने वाली अफजल बेगम से थी. अफजल बेगम देहधंधे के लिए लड़कियों की खरीदफरोख्त करती रहती थी. प्रकाश ने उस के यहां जा कर जब उस से बताया कि वह उस के लिए एक लड़की लाया है तो अफजल बेगम ने बिना किसी लागलपेट के पहला सवाल किया, ‘‘लड़की की उम्र क्या है?’’

‘‘13-14 साल.’’ प्रकाश ने सोचा था कि कमउम्र सुन कर बेगम खुश होगी.

‘‘अरे अभी तो वह नाबालिग है. तुम्हें पता नहीं, नाबालिग लड़कियों को खरीदना बहुत खतरनाक हो गया है. ऐसी लड़कियों के लिए पुलिस बहुत ज्यादा पैसे मांगती है और परेशान भी करती है. पकड़े जाने पर जल्दी जमानत भी नहीं होती.’’ अफजल बेगम ने कहा.

‘‘आप भी क्या बात करती हैं अफजल बेगम. 2-4 दिन आप के यहां रहेगी, अपने आप बालिग दिखने लगेगी. वैसे काफी हद तक हम ने उसे बालिग बना दिया है. बाकी आप के आदमी बना देंगे.’’ प्रकाश ने एक आंख दबा कर बेगम को समझाया.

‘‘साल छह महीने की बात होती, तब तो चल जाता. अभी लड़की को बालिग होने में 3-4 साल लगेंगे.’’ अफजल बेगम ने कहा.

दरअसल बेगम पुरानी खिलाड़ी थी. ऐसे लोगों को कैसे बेवकूफ बनाया जाता है, यह उसे अच्छी तरह पता था .वह यह भी जानती थी कि ये नए लोग हैं. इन्हें क्या पता कि यहां क्या और कैसे होता है. इसलिए उन्हें बेवकूफ बनाते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम तो पैसे ले कर चलते बनोगे. उस के बाद संभालना मुझे पड़ेगा. ऐसी लड़कियों को संभालना आसान नहीं होता. क्योंकि ये भागने की बहुत कोशिश करती है.’’

‘‘बेगम, तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. यह भागने की कोशिश बिलकुल नहीं करेगी, क्योंकि हम ने इस की वीडियो क्लिप बना ली है.’’ प्रकाश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कहो तो दिखाएं?’’

‘‘भई, तुम तो बड़े छिपे रुस्तम निकले. चलो, अब तुम इतना कह रहे हो तो हम इसे रख ही लेते हैं. लेकिन अगर कोई परेशानी हुई तो झेलना तुम्हें ही होगा. हम तुम्हारा नामपता ले लेंगे. इस के लिए मैं तुम्हें 30 हजार रुपए दूंगी.’’ अफजल बेगम ने कहा.

‘‘कहा न, तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. तुम इसे निश्चिंत हो कर रखो. प्रकाश ने कहा. क्योंकि वह भी सोच रहा था कि किसी तरह इस बला से पिंड छूटे. इस से जो पैसे मिल रहे हैं, वे पुलिस से बचने में मदद करेंगे.

प्रकाश और अजय ने अफजल बेगम से पैसे ले कर रोमा को उस के हवाले कर दिया. इस के बाद रोमा के साथ शुरू हुई दरिंदगी. पहले तो उसे लाइन पर लाने के लिए अफजल बेगम के आदमियों ने उस के साथ दुष्कर्म किया. मजबूर हो कर रोमा ने धंधे के लिए हां कर दी. इस के बाद मासूम के नाम पर उस से मोटी कमाई की जाने लगी.

अफजल बेगम लड़कियों से केवल देहधंधा ही नहीं कराती थी, बल्कि अश्लील फिल्में बनवा कर बाजार में सप्लाई करती थी. इस तरह वह दोहरा लाभ कमा रही थी. जिन लड़कियों की अश्लील फिल्में बाजार में पहुंच जाती थीं, वे भागने का साहस नहीं कर पाती थीं.

कमउम्र की लड़कियों को जल्दी जवान करने के लिए हारमोंस के इंजेक्शन दिए जाते थे. अजय और प्रकाश ने मोबाइल फोन से रोमा की वीडियो क्लिप बनाई थी, जबकि अफजल बेगम के यहां वीडियो कैमरे का उपयोग होता था. अफजल बेगम अपने यहां आने वाले ग्राहकों को भी ब्लू फिल्में दिखाती थी, जिस के लिए वह अलग से पैसे लेती थी.

रोमा नरक से भी बदतर जिंदगी जी रही थी. हर रात कईकई लोग उसे रौंदते थे. अगर कभी वह धंधे से मना कर देती तो उस की बुरी तरह पिटाई होती. तरहतरह की शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी जातीं. यह सब सिर्फ रोमा के साथ ही नहीं हो रहा था, बल्कि उस जैसी 3 लड़कियां और भी थीं. शायद उन्हें भी रोमा की ही तरह खरीदा गया था.

वहां रहने वाली लड़कियों की बातों से रोमा को पता चल गया था कि यहां से निकलना आसान नहीं है. रोमा को पता चला कि यहां बनने वाली अश्लील फिल्मों की सीडियां बाहर भेजी जाती हैं. कई बार तो ग्राहक अश्लील फिल्मों की सीडी साथ ले कर आते थे और उन में जिस तरह लड़कियां काम करती थीं, उसी तरह से उसे भी करने को कहते थे. कमउम्र होने की वजह से रोमा की मांग सब से अधिक थी, क्योंकि ग्राहक उसे डराधमका कर जैसा चाहते थे, वैसा करा सकते थे.

रोमा को अफजल बेगम के यहां आए धीरेधीरे 2 साल हो गए. इस तरह वह समय से पहले ही जवान हो गई. यहां वह सब से कम उम्र की थी. कई बार अफजल बेगम ग्राहकों से कह भी देती थी कि यह पहली बार ऐसा करने जा रही है. तकलीफ से रोमा रोने लगती तो ग्राहक को बेगम की बात सही लगती. ग्राहक नशे में होता था, इसलिए उसे सच्चाई का पता नहीं चलता था.

रोमा के लिए उस समय मुसीबत खड़ी हो गई, जब पता चला कि वह गर्भवती है. इस बात की जानकारी अफजल बेगम को हुई तो उस ने रोमा को गर्भ गिराने की दवा दी. लेकिन रोमा का गर्भ नहीं गिरा. तब अफजल को लगा कि अस्पताल ले जा कर ही इस का बच्चा गिरवाना पड़ेगा, क्योंकि वह इतने दिन इंतजार नहीं कर सकती थी.

लेकिन रोमा को बाहर ले जाना खतरे से खाली नहीं था. इसलिए अफजल बेगम ने रोमा को समझाते हुए कहा, ‘‘रोमा, तुम किसी भी तरह बच्चा गिरवा दो, क्योंकि अगर यह बच्चा पैदा हुआ तो न तुम्हारे लिए ठीक रहेगा, न बच्चे के लिए. लड़का हुआ तो दलाल बनेगा और लड़की हुई तो तुम्हारी तरह लोगों का बिस्तर गरम करेगी.’’

रोमा के गर्भवती होने से अफजल बेगम का नुकसान हो रहा था, क्योंकि ग्राहक अब उस के पास जाना नहीं चाहते थे. इसलिए अब वह अफजल बेगम को बोझ लगने लगी थी. दूसरी ओर कहीं से रोमा की मां को पता चल गया था कि रोमा वाराणसी की वेश्याबाजार में है. यह जानकारी मिलते ही वह वाराणसी आ गई और थाने जा कर बेटी की मुक्ति की गुहार लगाई. लेकिन पुलिस उस की क्यों सुनती, क्योंकि उसे भी वेश्या बाजार से पैसा मिलता था, इसलिए पुलिस ने उसे समझाबुझा कर वापस भेज दिया.

रोमा की मां ने देखा कि पुलिस कुछ नहीं कर रही है तो वह स्वयंसेवी संगठन गुडि़या संस्था जा पहुंची. गुडि़या संस्था वाराणसी में वेश्या उन्मूलन और उन की जिंदगी को बेहतर बनाने की दिशा में काम करता है. वाराणसी के मड़ुवाडीह में वेश्याओं के बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल भी चलाता है.

यह संस्था अजीत सिंह चलाते हैं, जिन्होंने कई बार इलाहाबाद, मेरठ और वाराणसी में छापा मरवा कर तमाम नाबालिग बच्चियों को देहधंधे से मुक्त कराया है. इस नेक काम के लिए उन्हें देशविदेश में कई सम्मान भी मिल चुके हैं. रोमा की मां गुडि़या संस्था के संचालक अजीत सिंह से मिली और अपनी परेशानी बताई.

दूसरी ओर रोमा की मां के वाराणसी आने की खबर अफजल बेगम को मिल चुकी थी. उसे लगा कि अगर रोमा उस के अड्डे से पकड़ी गई तो वह मुश्किल में फंस जाएगी. इसलिए वह चाहती थी कि रोमा भाग जाए. उस ने अपने अड्डे की पुष्पा को सिखापढ़ा कर रोमा को बाजार ले जाने को कहा. उस ने उस से कह दिया था कि वह उसे भाग जाने का मौका दे देगी. आखिर रोमा भाग निकली.

रोमा सीधे वाराणसी रेलवे स्टेशन पहुंची और पैसेंजर टे्रन पकड़ कर मऊ आ गई. स्टेशन से वह घर आई और मां के सामने फूटफूट कर रोने लगी. रोमा ने पूरी बात मां को बताई तो वह बेटी को ले कर मऊ कोतवाली जा पहुंची. रोमा ने पूरी कहानी पुलिस को बताई तो कोतवाली पुलिस ने उसे वाराणसी जाने को कहा, क्योंकि कोतवाली पुलिस मुकदमा दर्ज कर के सिरदर्द नहीं लेना चाहती थी.

रोमा की मां बेटी को ले कर गुडि़या संस्था के संचालक अजीत सिंह से मिली. वह मांबेटी को ले कर थाने गए और रोमा के मामले की रिपोर्ट लिखानी चाही, लेकिन पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया.

जब थाना पुलिस में सुनवाई नहीं हुई तो गुडि़या संस्था ने मामले की जानकारी पुलिस अधिकारियों, मानवाधिकार आयोग तथा अन्य संस्थाओं को दी. जब दबाव बनाया गया, तब पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और धारा 164 के तहत रोमा का बयान दर्ज कराया.

इस के बाद आरोपी रोमा की मां को डराधमका कर मुकदमा वापस लेने के लिए दबाव बनाने लगे. मारनेपीटने की धमकी दी जाने लगी. मांबेटी ने पुलिस से इस की शिकायत की, लेकिन पुलिस ने कोई मदद नहीं की. इस बीच रोमा की मां ने गर्भपात करा कर अपने दूर के रिश्तेदार की मदद से देवरिया में रोमा की शादी तय कर दी.

रोमा की शादी सुरेश प्रसाद से हो गई. ससुराल में पति के अलावा सास मालती देवी थी. पति मुंबई में रहता था. इसलिए ससुराल में सिर्फ सासबहू ही रहती थीं. रोमा ने पति को अपनी पूरी कहानी बता दी थी. सुरेश ने उसे दिल से अपनाया था. यह बात अलग थी कि रोमा की सास उस से खुश नहीं थी. शादी के कुछ दिनों बाद सुरेश मुंबई चला गया तो एक दिन अफजल बेगम अपने कुछ साथियों को ले कर रोमा की ससुराल जा पहुंची. उस समय रोमा और उस की सास घर पर ही थीं.

अफजल बेगम ने रोमा के साथ मारपीट कर के धमकी दी कि अगर उस ने अदालत में उस के खिलाफ बयान दिया तो उस की मां को जान से मार दिया जाएगा. इस के बाद अफजल बेगम मालती देवी को 30 हजार दे कर रोमा को अपने साथ वाराणसी ले आई. इस बात की जानकारी गुडिया संस्था और शिवदासपुर पुलिस को हुई तो 9 जुलाई को गुडिया संस्था ने पुलिस के साथ अफजल बेगम के अड्डे पर छापा मार कर रोमा को एक बार फिर मुक्त कराया.

अफजल बेगम भागने में सफल रही. थाना शिवदासपुर पुलिस ने अफजल बेगम को गिरफ्तार करने के लिए मुखबिरों को सतर्क कर दिया. परिणामस्वरूप 23 नवंबर को अफजल बेगम पुलिस के हाथ लग गई. उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया. जिला अदालत से ही नहीं, गुडि़या संस्था के प्रयास से अफजल बेगम की जमानत हाईकोर्ट से भी 2 बार खारिज हो चुकी है.

अफजल बेगम के आदमी रोमा पर अपना मुकदमा वापस लेने के लिए दबाव डाल रहे थे. उसे और उस की मां को जान से मारने की धमकियां दी जा रही थीं. रोमा ने मुकदमा वापस लेने से मना किया तो एक बार फिर उस का अपहरण कर लिया गया. उसे डराने के लिए उस के साथ एक बार फिर सामूहिक दुष्कर्म किया गया. गुडि़या संस्था की कोशिश से पुलिस ने रोमा को अफजल बेगम के आदमियों के चंगुल से मुक्त कराया.

इतनी कोशिश के बाद भी पुलिस विवेचना आगे नहीं बढ़ी तो रोमा की मां ने अदालत में धारा 156(3) के तहत प्रार्थना पत्र दिया, जिस के बाद मुकदमा कायम हुआ. रोमा का बयान भी अदालत में दर्ज हुआ है. अब रोमा ने इस लड़ाई को लड़ने के लिए कमर कस ली है. वह अफजल बेगम, अजय और प्रकाश तथा अन्य लोगों को सजा दिलाना चाहती है.

अदालत में मुकदमे की स्थिति मजबूत होने की वजह से अब विरोधियों का दबाव कम हो गया है. रोमा अब अपनी ससुराल में रह रही है. गुडि़या संस्थान ने उसे सिलाई मशीन दिलाई है, जिस से कपड़ों की सिलाई कर के वह अपनी आजीविका चला रही है. रोमा अब ज्यादातर अपनी मां के पास मऊ में रहती है.

अपनी बीती जिंदगी के बारे में उस का कहना है, ‘‘उस समय तो लग ही नहीं रहा था कि मैं दोबारा अपनी जिंदगी शुरू कर पाऊंगी, लेकिन ससुराल वाले ऐसे मिले, जिन्होनें सब कुछ जान कर भी मुझे अपना लिया. अब मैं अपनी लड़ाई खुद लड़ रही हूं. मैं अफजल बेगम को सजा दिलवा कर रहूंगी. लड़कियों का मानना है कि वेश्या बाजार से बाहर आने के बाद कोई उन्हें अपनाएगा नहीं, इसलिए वे वहीं रह जाती हैं. मैं उन के लिए प्रेरणा बनना चाहती हूं कि वेश्या बाजार से आ कर देखो मैं ने घर बसा लिया है.’’

स्वयंसेवी संस्था ‘गुडि़या’ के संचालक अजीत सिंह का कहना है, ‘‘पिछले 20 सालों से अभियान चला कर हम ने तमाम नाबालिग लड़कियों को उस गंदी जगह से मुक्त कराया है. लेकिन बहुत कम परिवार हैं, जिन्होंने अपनी लड़कियों को अपनाया है. ऐसी लड़कियों को हम अपनी ओर से सहारा दे कर अपने पैरों पर खड़ी होने के लिए प्रेरित करते हैं.

हम उन लड़कियों के मुकदमे भी लड़ रहे हैं, जो अपनी लड़ाई ठीक से नहीं लड़ पातीं. क्योंकि ऐसे में ही आरोपी छूट जाते हैं और उन्हें कानून का भय नहीं रहता है. पुलिस भी ऐसे मामलों में मदद नहीं करती, क्योंकि उसे ऐसे लोगों से पैसा मिलता है. नाबालिग लड़कियों को फुसला कर वेश्याबाजार में बेचने का एक संगठित उद्योग बन चुका है. ये गरीब और दलित लड़कियों को अपना निशाना बनाते हैं. इन की कोई सुनने वाला भी नहीं होता, जिस से इन की लड़कियां सदासदा के लिए वेश्याबाजार की हो कर रह जाती हैं.’’

हुस्न की मछली का कांटा – भाग 2

शादी के एक साल बाद आरती ने एक बेटे को जन्म दिया. गौरव सुबह ही टैंपो ले कर निकल जाता था. आरती जब कोई सामान आदि खरीदने बाजार जाती तो आतेजाते कुछ लड़के उसे छेड़ा करते थे. उस ने यह बात पति को कई बार बताई, लेकिन उस ने यह कह कर आरती को चुप करा दिया कि वे लड़के आवारा किस्म के हैं. उन से झगड़ा कर के दुश्मनी मोल लेना ठीक नहीं है. तुम उन की बातों पर ध्यान ही मत दो. एक न एक दिन वे अपने आप शांत हो जाएंगे.

पति की बातें सुन कर आरती चुप तो रह गई, लेकिन उसे गौरव पर गुस्सा भी आया. वह सोचती कि पता नहीं कैसे डरपोक के पल्ले बंध गई, जो उन लोगों से कुछ कहने के बजाय उलटा उसे ही चुप रहने को कहता है. ऐसा एक बार नहीं, बल्कि कई बार हुआ. आरती के पड़ोस में राजू नाम का युवक रहता था. पास में रहने की वजह से दोनों एकदूसरे से बातें करते रहते थे. राजू के घर उस के दोस्त नीरज और मुकीम भी आते रहते थे. 25 साल का मुकीम अपने शरीर का बहुत ध्यान रखता था. वह जिम भी जाता था. इलाके में उसे लोग ‘बौडीगार्ड’ के नाम से जानते थे.

आरती ने राजू के मुंह से कई बार मुकीम का नाम सुना था. यह भी कि वह बहादुर है. एक दिन उस ने राजू से कह कर मुकीम को अपने घर बुलवाया और उसे आवारा लड़कों द्वारा छेड़ने वाली बात बताई.

आरती सुंदर तो थी ही, उसे देखते ही मुकीम का मन भी डोल गया. उस ने आरती की तरफ चाहत भरी नजरों से देखा तो आरती ने भी उस की नजरों में अपनी नजरें उतार दीं. उस ने नजरों के जरिए उसे अपने दिल में बसा लिया. वह मन ही मन सोचने लगी, ‘काश ऐसा ही कोई बांका जवान मेरा जीवनसाथी होता तो कितना अच्छा होता.’

‘‘भाभीजी, क्या सोच रही हैं. आप मुझे उन लड़कों को बस एक बार दिखा दीजिए जो आप को छेड़ते हैं. फिर मैं उन से खुद निपट लूंगा.’’ मुकीम ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम अभी मेरे साथ चलो. वे वहीं बैठे होंगे.’’

आरती ने मुकीम और राजू को उन लड़को दिखा दिया. अगले दिन मुकीम, आरती और अपने कई दोस्तों के साथ उन लड़कों के पास पहुंच गया. उस ने उन्हें चेतावनी दी कि आइंदा उन में से किसी ने भी आरती से कुछ कहा तो अंजाम बहुत बुरा होगा.

मुकीम की इस धमकी का इतना असर हुआ कि उन लड़कों ने आरती के साथ छेड़छाड़ बंद कर दी. मुकीम की इस बहादुरी से आरती बहुत प्रभावित हुई. वह उसे अपना दिल दे बैठी. दूसरी तरफ मुकीम भी उस का दीवाना बन गया. मुकीम का उस के यहां आनाजाना भी बढ़ गया. वह उस के यहां उस वक्त आता, जब उस का पति घर पर नहीं होता. दोनों का प्यार बढ़ने लगा तो फिर जल्दी ही शारीरिक संबंधों के मुकाम तक जा पहुंचा.

आरती का मुकीम की तरफ इतना ज्यादा झुकाव हो गया कि वह पति से दूरियां बनाने लगी. वह चाहती थी कि मुकीम ही उस का जीवनसाथी बन जाए. एक दिन उस ने मुकीम से कह दिया, ‘‘तुम मुझे यहां से कहीं दूर ऐसी जगह ले चलो, जहां सिर्फ मैं और तुम हों.’’ अविवाहित मुकीम इस के लिए तैयार हो गया. तब मौका पा कर एक दिन आरती पति और बच्चे को छोड़ कर मुकीम के साथ चली गई.

मुकीम ने नंदनगरी के पास मंडोली में किराए पर कमरा ले लिया. जहां दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. जब आरती की मां पुष्पा को पता चला कि उस की बेटी पति को छोड़ कर दूसरे धर्म के लड़के के साथ रह रही है तो समझाने के बजाय उस ने आरती को संरक्षण देने के लिए उसे और मुकीम को अपने पास रहने के लिए गाजीपुर बुला लिया.

अनुभवी पुष्पा को अंदेशा था कि कुछ दिनों बाद मुकीम आरती को छोड़ कर जा सकता है. इसलिए उस ने उन दोनों को समझाया, ‘‘तुम दोनों जल्द से जल्द शादी कर लो, ताकि दुनिया वाले तुम्हारे रिश्ते को शक की नजरों से न देखें.’’

‘‘मैं खुद चाहता हूं कि आरती मेरे साथ ब्याह कर ले, लेकिन यह मानने को तैयार नहीं है,’’ मुकीम बोला.

‘‘नहीं मां, मैं मुकीम के साथ शादी नहीं करना चाहती. हम ऐसे ही ठीक हैं.’’ आरती ने कहा.

इस पर मुकीम और आरती का झगड़ा बढ़ गया तो मुकीम ने आरती को 2-4 थप्पड़ जड़ दिए. आरती जिद्दी और गुस्सेबाज थी. उस ने उसी समय पुलिस को फोन कर दिया. उस की शिकायत पर गाजीपुर थाना पुलिस मुकीम को थाने ले गई, लेकिन बाद में पुष्पा थाने में बात कर के मुकीम को घर ले आई. उस के बाद पुष्पा ने मुकीम और आरती की शादी का कभी जिक्र नहीं किया.

एक दिन मुकीम और आरती लेटेलेटे आपस में बातें कर रहे थे तो मुकीम ने कहा, ‘‘मैं सोचता हूं कि आखिर हम कब तक इसी तरह गरीबी का जीवन जीते रहेंगे?’’

‘‘तो तुम ही बताओ, हम दौलत कहां से लाएं?’’ आरती ने पूछा तो मुकीम बोला, ‘‘ऊपर वाले ने तुम्हें रूप के साथ कोयल जैसी मीठी आवाज दी है, क्यों न हम इन्हें ही कमाई का जरिया बनाएं.’’ यह सुन कर आरती उस की तरफ आश्चर्य से देखने लगी.

उसे इस तरह देखते देख मुकीम बोला, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? मैं सच कह रहा हूं.’’

‘‘वह कैसे?’’

इस पर मुकीम ने आरती को अपनी सारी योजना समझा दी. आरती सहमत तो हो गई, लेकिन उस ने कहा, ‘‘यह काम कोई बच्चों का खेल नहीं है. बहुत ही जोखिम भरा काम है. अगर जरा सा भी चूके तो समझो जेल ही आखिरी पड़ाव होगा,’’

‘‘तुम चिंता मत करो, मैं ने सब सोच लिया है. मेरा जिगरी दोस्त नीरज कब काम आएगा.’’ कह कर मुकीम ने मोबाइल निकाला और नीरज को फोन कर के मिलने के लिए कहा.

नीरज मिला तो मुकीम ने उसे अपनी सारी योजना समझा दी. नीरज बेरोजगार था, इसलिए वह मुकीम और आरती का साथ देने के लिए राजी हो गया. नीरज के बाद राजू और दीपक को भी उन्होंने योजना में शामिल कर लिया. इस के लिए मुकीम ने लोनी में एक कमरा भी किराए पर ले लिया था.

पूरी योजना तैयार करने के बाद जब इन लोगों ने पहली बार अपने काम को अंजाम दिया तो उस में उन्हें सफलता हाथ लगी. उस में जो भी सामान हाथ लगा, उसे सभी ने आपस में मिल कर बांट लिया. पहली सफलता के बाद उन के हौसले बढ़ गए और एक के बाद एक वारदात को अंजाम देने लगे.

दरअसल आरती मोबाइल फोन से कोई भी 10 डिजिट का नंबर मिलाती. नंबर मिलने पर अगर दूसरी तरफ की आवाज किसी महिला की होती तो वह सौरी कह कर फोन काट देती. अगर कोई पुरुष काल रिसीव करता तो उसे वह अपनी मीठीमीठी बातों में फंसा कर उस के सामने कुछ इस तरह प्रेमप्रस्ताव रखती कि वह इनकार नहीं कर पाता था. 2-4 बार की बातों के बाद वह व्यक्ति खुद ही आरती से मिलने के लिए कहता तो वह उसे कभी किसी पार्क में तो कभी किसी रेस्टोरेंट में बुला लेती थी.

रेस्टोरेंट में वह मजे से उस के साथ खातीपीती, फिर अकेले में बातें करने की गुजारिश कर के उसे किसी पार्क या अपने लोनी वाले कमरे में ले जाती. पार्क या कमरे में पहुंचने से पहले आरती मुकीम को फोन कर के बता देती थी. उस के साथ हमबिस्तर होने का नाटक करते हुए पहले वह उस शख्स के कपड़े उतार देती थी.

इस से पहले कि उस के अपने कपड़े उतारने की नौबत आती, इस से पहले ही मुकीम और नीरज आ जाते थे. आरती के साथ मौजूद आदमी के साथ वे लोग मारपिटाई कर के उस से उस का सारा सामान, पैसे आदि छीन कर उसे भगा देते थे. लोगों को डरानेधमकाने के लिए मुकीम ने एक देशी तमंचा भी खरीद लिया था.

आरती के चक्कर में फंस कर लुटने वाला शख्स लोकलाज के डर से पुलिस में शिकायत करने भी नहीं जाता था. इस तरह इन लोगों ने कई लोगों को अपना शिकार बनाया था.

इस योजना में शामिल राजू आरती को मन ही मन चाहने लगा था, लेकिन उसे अपने दिल की बात आरती से कहने का मौका नहीं मिल पा रहा था. एक दिन जब कमरे में आरती अकेली थी तब राजू उस के पास पहुंच गया. हिम्मत कर के उस ने आरती के सामने अपना प्रेमप्रस्ताव रख दिया. आरती ने उस के प्रेम आमंत्रण को स्वीकार करते हुए उस के गले में अपनी दोनों बांहें डाल दीं. यह देख कर राजू गदगद हो उठा. वह मारे खुशी से फूले नहीं समा रहा था.

इस से पहले कि वे दोनों और आगे बढ़ते कि अचानक मुकीम और नीरज वहां आ गए. उन्हें देख कर आरती और राजू घबरा गए. अकसर ऐसे मौके पर महिला तुरंत गिरगिट की तरह रंग बदल लेती है. खुद को पाकसाफ दिखाने के लिए मुकीम के सामने आरती नाटक करने लगी. उस ने राजू पर गंभीर आरोप मढ़ दिए. यह सुन कर मुकीम और नीरज को राजू पर गुस्सा आ गया और दोनों ने राजू की बुरी तरह से पिटाई कर दी.

राजू के पास जितने पैसे और सामान था, वह सब उन्होंने छीन लिया. राजू जान बचा कर वहां से भाग गया. राजू के जाने के बाद मुकीम के गैंग में सिर्फ 4 लोग ही रह गए थे, मुकीम, नीरज, आरती और दीपक.

हुस्न की मछली का कांटा – भाग 1

2 दिन बीत चुके थे, लेकिन कृष्ण कुमार अभी तक घर नहीं आए थे. उन का फोन भी नहीं लग रहा था, इसलिए घर के सभी लोग परेशान  थे. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि आखिर वह गए तो कहां गए. कृष्ण कुमार दिल्ली के धौलाकुआं स्थित डिफेंस सर्विस औफिसर इंस्टीट्यूट की कैंटीन में नौकरी करते थे. उन की पत्नी मीनू उन का पता लगाने के लिए 31 दिसंबर की सुबह बेटे के साथ धौलाकुआं  स्थित मिलिट्री कैंटीन पहुंची. वहां उन्होंने अपने पति के बारे में मालूमात की तो पता चला कि वह 29 दिसंबर, 2013 को ड्यूटी पर आए थे.

इस के बाद वह वहां नहीं आए. यह पता चलने पर वे और ज्यादा परेशान हो गए. उन्हें ले कर उन के मन में तरहतरह के खयाल आने लगे. बिना इसलिए समय गंवाए वे धौलाकुआं पुलिस चौकी पहुंच गए और कृष्ण कुमार के गायब होने की सूचना दर्ज करवा दी. सूचना दर्ज करने के बाद पुलिस ने कृष्ण कुमार को तलाशने की जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

घर पहुंचने के बाद कपिल ने अपने सभी रिश्तेनातेदारों के घर फोन कर के पिता के बारे में पता किया. लेकिन उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कपिल घर में था. उसे किसी परिचित से पता चला कि लोनी थाना क्षेत्र में किसी अज्ञात आदमी की लाश मिली है.

यह खबर मिलते ही कपिल और उस के परिवार वाले शाम 7 बजे थाना लोनी पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद एसएसआई संजीव कुमार शुक्ला से बात की तो उन्होंने अपने मोबाइल फोन से ली गई एक फोटो दिखाई. वह फोटो उस अज्ञात आदमी की लाश की थी, जो उन्होंने आज सुबह किशन विहार फेज-2 से बरामद हुई थी. उन के मोबाइल फोन में फोटो देखते ही परिवार वालों के पैरों तले से जमीन खिसक गई. सभी रोने लगे.

कपिल अपने आंसू पोंछते हुए बोला, ‘‘सर, यह तो हमारे पिताजी हैं. इन्हें हम 2 दिनों से तलाश कर रहे हैं. लेकिन हमारी समझ में ये नहीं आ रहा कि इन की यह हालत कैसे हुई?’’

एसएसआई संजीव कुमार ने उन्हें बताया, ‘‘दरअसल, आज करीब 10 बजे एक व्यक्ति ने हमें फोन कर के बताया था कि लोनी के किशन विहार, फेस-2, सहबाजपुर गांव में एक अज्ञात आदमी की लाश पड़ी है.

हम वहां पहुंचे तो वाकई वहां करीब 50-51 साल के एक आदमी की लाश पड़ी थी. जिस के सीने में गोली का निशान था, लेकिन वहां ज्यादा खून नहीं था. इस का मतलब हत्या की वारदात को कहीं और अंजाम दिया गया था और लाश यहां ला कर फेंक दी गई थी. फिलहाल लाश गाजियाबाद के एमएमजी अस्पताल की मोर्चरी में रखी हुई है.’’

कपिल ने वैसे तो मोबाइल में खिंचे फोटो को देख कर पिता की लाश पहचान ली थी, लेकिन जब एसएसआई ने उस से गाजियाबाद की मोर्चरी में लाश रखी होने के बारे में बताया तो वह उन के साथ गाजियाबाद मोर्चरी पहुंच गया. पुलिस ने वहां रखी लाश उसे दिखाई तो उस ने उस की पहचान अपने पिता कृष्ण कुमार के रूप में की.

लोनी पुलिस पहले ही अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या कर के लाश ठिकाने लगाने का मामला दर्ज कर चुकी थी. चूंकि अब लाश की शिनाख्त हो गई थी, इसलिए अब पुलिस का काम हत्यारों का पता लगा कर उन्हें गिरफतार करना था. थाने लौटने के बाद एसएसआई संजीव कुमार शुक्ला ने सब से पहले कपिल से ही पूछा कि तुम्हारे पिता किस तरह लापता हुए थे और तुम्हारा किसी पर कोई शक है?

‘‘सर, मेरे पिता धौलाकुआं (दिल्ली) की मिलिट्री कैंटीन में नौकरी करते थे. वह सुबह ही घर से निकलते थे और रात 8 बजे घर लौटते थे. 29 दिसंबर, 2013 को वह घर नहीं लौटे तो हम ने सोचा कि वहीं रुक गए होंगे, क्योंकि कभीकभी वह 1-2 दिन वहीं रुक जाते थे. उन का फोन मिलाया तो वह बंद निकला.

2 दिनों बाद भी जब वह नहीं लौटे और न ही उन का फोन मिला तो हमें चिंता हुई. हम ने उन के औफिस में जा कर संपर्क किया तो पता चला कि वह 29 दिसंबर के बाद ड्यूटी पर नहीं आए थे. रही बात दुश्मनी की तो सर मैं बताना चाहता हूं कि हमारे परिवार में सब सीधेसादे लोग हैं. दुश्मनी तो बड़ी बात, हमारा किसी से कोई झगड़ा तक नहीं हुआ. न ही हमारा किसी से कोई लेनदेन था.’’

जरूरी जानकारी हासिल करने के बाद पुलिस ने कपिल और उस के घर वालों को घर भेज दिया.

कृष्ण कुमार के मोबाइल पर आखिरी बार 29 दिसंबर को मोबाइल नंबर 9990733333 से बात हुई थी. हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में एसएसआई संजीव कुमार शुक्ला, कांस्टेबल अजय शंकर, मंगल त्यागी, जितेंद्र, सतवीर, अमरदीप के अलावा एसओजी प्रभारी रतेंद्र सिंह गहलौत को शामिल किया गया.

टीम ने सब से पहले मृतक कृष्ण कुमार के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकालवाई. उस डिटेल में पता चला कि इस नंबर से उन की 5-7 मर्तबा बात हुई थी. इस नंबर का पता किया गया तो वह नंबर मुकीम नाम के आदमी का निकला.

मुकीम नंदनगरी के पास स्थित मंडोली की गली नंबर-6 में रहता था. बिना समय गंवाए पुलिस उस के घर पहुंच गई. मुकीम घर पर नहीं मिला. घर पर उस की मां थी. उस ने पुलिस को बताया, ‘‘मुकीम को हम अपने घर मकान, रूपएपैसों से पूरी तरह से बेदखल कर चुके हैं. अब हमारा उस से कोई लेनादेना नहीं है. वह कहां जाता है, क्या करता है हमें उस के बारे में कुछ भी नहीं मालूम.’’

लेकिन उस ने पुलिस को एक बात बताई है कि हो सकता है वह पुष्पा के साथ गाजीपुर में रह रहा हो.’

‘‘यह पुष्पा कौन है?’’ पुलिस ने पूछा.

‘‘आरती की मां. आरती की वजह से ही वह आवारा हो गया.’’

पुलिस ने दिल्ली स्थित गाजीपुर में भी मुकीम की तलाश की, लेकिन वह वहां भी नहीं मिला. पुलिस ने उसे हर संभावित जगह पर तलाशा, लेकिन हर जगह नाकामी ही हाथ लगी. कोई रास्ता न देख पुलिस ने मुखबिरों का सहारा लिया. साथ ही आसपास के सभी थानों में इस की सूचना भी दे दी.

लोनी पुलिस तो मुकीम को ढूंढती रही, लेकिन गाजियाबाद के कविनगर थाने की पुलिस ने मुकीम और उस के साथियों को धर दबोचा.

हुआ यह कि 16 जनवरी, 2014 को कवि नगर थानाप्रभारी पंकज पंत को एक मुखबिर ने सूचना दी कि पिछले दिनों लोनी थानाक्षेत्र में जिस फौजी को मार कर फेंक दिया गया था, उस के हत्यारे इस वक्त राजनगर में एएलटी के पास मौजूद हैं. इस सूचना को सही मान कर थानाप्रभारी ने एसओजी प्रभारी रतेंद्र सिंह गहलौत, हेडकांस्टेबल देवपाल सिंह, हरीश राघव, कांस्टेबल लोकेंद्र सिंह, सतवीर सिंह, संदीप आदि की टीम बनाई और मुखबिर के साथ एएलटी भेज दिया. वहां पर पुलिस को एक महिला सहित 3 लोग खड़े मिले.

पुलिस उन सभी को हिरासत में थाने ले आई. थाने में उन तीनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम नीरज, मुकीम और आरती बताए उन्होंने कुबूल किया कि कृष्ण कुमार फौजी की हत्या उन्होंने ही की थी. हत्या के बाद उन लोगों ने उस की लाश लोनी क्षेत्र में डाल दी थी. पुलिस ने मुकीम के पास से एक देशी तमंचा भी बरामद किया.

चूंकि यह मामला लोनी थाने में दर्ज था, इसलिए थानाप्रभारी पंकज पंत ने अभियुक्तों की गिरफ्तारी की जानकारी लोनी थाने के प्रभारी गोरखनाथ यादव को दे दी. इस के बाद तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया. लोनी के थानाप्रभारी संजीव कुमार शुक्ला सूचना मिलते ही गाजियाबाद न्यायालय पहुंच गए. उन के आवेदन पर कोर्ट ने तीनों अभियुक्तों को लोनी पुलिस के सुपुर्द कर दिया. थाने ले जा कर जब तीनों अभियुक्तों से पूछताछ की गई तो उन्होंने कृष्ण कुमार फौजी की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.

52 वर्षीय कृष्ण कुमार अपने परिवार के साथ उत्तरांचल कालोनी, लोनी बार्डर में रहते थे. परिवार में पत्नी मीना के अलावा 4 बच्चे थे. कपिल उन का सब से बड़ा बेटा था. कृष्ण कुमार दिल्ली में धौलाकुआं स्थित ‘डिफेंस सर्विस औफिसर इंस्टीट्यूट’ की कैंटीन में कैंटीन संचालक के पद पर कार्यरत थे. उन का बेटा कपिल एक कुरियर कंपनी में नौकरी करता था. कुल मिला कर उन का परिवार हर तरह से संपन्न था.

करीब 12-13 साल पहले की बात है. कृष्ण कुमार के मकान में सोनपाल नाम का एक आदमी अपनी पत्नी पुष्पा और बेटी आरती के साथ किराए पर रहता था. उन दिनों आरती की उम्र 12-13 साल थी.

सोहनपाल कोई खास काम तो नहीं करता था, लेकिन इतना जरूर कमा लेता था कि परिवार का गुजरबसर आराम से हो जाता था. वह अकसर मकान मालिक कृष्ण कुमार से पैसे उधार ले लिया करता था. बाद में वह उधार के पैसे चुका भी देता था. चूंकि कृष्ण कुमार के परिवार से उसे काफी सहारा मिलता था, इसलिए दोनों परिवारों के बीच अच्छे और गहरे संबंध बन गए थे. कृष्ण कुमार उसे अपनी कैंटीन से सस्ते दामों में सामान भी ला कर दे दिया करता था. सोहनपाल कृष्ण कुमार के मकान में करीब 8 सालों तक रहा.

अब तक आरती बड़ी हो गई थी. विवाह लायक होने पर सोहनपाल उस के लिए लड़का ढूंढने लगा. जल्दी ही गाजियाबाद के भौपुरा में रहने वाला गौरव उसे पसंद आ गया. वह किराए पर टैंपो चलाता था और बहुत सीधासादा था. बातचीत हो जाने के बाद आरती की शादी गौरव से कर दी गई. बेटी के ससुराल जाने के बाद सोनपाल ने कृष्ण कुमार का मकान खाली कर दिया और पत्नी के साथ दिल्ली के गाजीपुर इलाके में किराए पर रहने लगा.

रिश्तों का कत्ल : पैसों के लिए की दोस्त की हत्या

सुंदरियों के हसीन सपने – भाग 3

2 दिनों बाद बेअंत सिंह अपने ममेरे भाई एडवोकेट हरजिंदर सिंह से मिलने उस के घर गया. दोनों धूप में बैठे चाय पी रहे थे, तभी बेअंत सिंह के मोबाइल फोन की घंटी बजी.  उस ने फोन रिसीव किया तो फोन करने वाले ने उस का नामपता पूछ कर कहा, ‘‘मैं पीलीबंगा थाने का सिपाही जसवंत बोल रहा हूं. तुम्हारे खिलाफ रेप का मुकदमा दर्ज कराया जा रहा है.’’

यह सुनते ही बेअंत सिंह घबरा गया. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. हरजिंदर समझ गया कि कुछ गड़बड़ है. उस ने खुद फोन ले कर बात शुरू की तो फोन करने वाले कांस्टेबल जसवंत ने कहा, ‘‘3 लोग एक महिला को ले कर आए थे. महिला कह रही थी कि बेअंत सिंह ने उस के साथ दुष्कर्म किया है. लेकिन घटनास्थल हमारे क्षेत्र के बाहर का था, इसलिए थानाप्रभारी ने उन्हें वापस भेज दिया.’’

बेअंत सिंह ने इस आरोप को खारिज करते हुए हरजिंदर सिंह को पूरी घटना के बारे में बता दिया. वकील होने के नाते हरजिंदर सिंह को पता था कि मामला कितना गंभीर है. कथित पीडि़ता के आरोप को एकबारगी नकारा नहीं जा सकता था. लवप्रीत कौर का फोन नंबर बेअंत सिंह के पास था ही. मामला पुलिस तक जाए, इस के पहले ही हरजिंदर ने सुलटाने की कोशिश शुरू कर दी.

सूचना मिलने पर बेअंत सिंह का बहनोई बौड़ा सिंह भी आ गया. बौड़ सिंह लवप्रीत कौर और उस के उन दोनों साथियों को जानता था, जो उस की मदद कर रहे थे. बातचीत शुरू हुई तो लवप्रीत ने मामला सुलटाने के लिए 40 लाख रुपए या 2 बीघा जमीन मांगी. जबकि बेअंत सिंह 2 लाख रुपए देने को तैयार था.

लवप्रीत का एक साथी था जबन सिंह उर्फ रोड़ा चाचा, जो स्वयं को पूर्व सरपंच बता रहा था, उस ने कथित पीडि़ता लवप्रीत का एक औडियो कैसेट तैयार कर रखा था. उस कैसेट में लवप्रीत कह रही थी कि मांग पूरी होने पर वह बेअंत के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं कराएगी. जबन सिंह लवप्रीत को अपनी नौकरानी बता रहा था.

लवप्रीत की इस मांग से बेअंत सिंह, बौड़ा सिंह और हरजिंदर सिंह परेशान थे. वहीं हरजिंदर का कहना था कि यह सरासर ब्लैकमेलिंग है. अन्य लोगों के न चाहते हुए भी हरजिंदर सिंह ने ब्लैकमेल करने वालों लवप्रीत और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का निर्णय ले लिया. इस के बाद 27 दिसंबर को बेअंत ने थाना हनुमानगढ़ में प्रकट सिंह पुत्र मुख्तयार सिंह निवासी 2 जीजीआर, जबन सिंह उर्फ रोड़ा चाचा पुत्र मखन सिंह निवासी 3 जीजीआर तथा लवप्रीत कौर उर्फ हरप्रीत उर्फ रानी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

थानाप्रभारी भंवरलाल ने इस मामले की जांच सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश को सौंप दी. अगले दिन उन्होंने बेअंत सिंह से जबन सिंह व प्रकट सिंह को रुपए ले जाने के लिए फोन करवा दिया. वे रुपए लेने आए तो पुलिस ने जाल बिछा कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उसी दिन शाम को पुलिस ने लवप्रीत को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. पूछताछ के बाद तीनों को जेल भेज दिया गया.

दूसरी ओर विजयनगर से एएसआई बलवंतराम ने सपना को भी महिला पुलिस की मदद से गिरफ्तार कर लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

पुलिस पूछताछ में सपना ने जो बताया था, वह इस प्रकार था. सपना उर्फ सोना पंजाब के मुक्तसर जिले के गांव लूलबाई के रहने वाले सतनाम सिंह की बेटी थी. सपना की शादी हनुमानगढ़ के रहने वाले अशोक के साथ हुई थी. सपना उस के एक बच्चे की मां भी बनी, लेकिन उस की सास माया समाज की मर्यादाओं को तोड़ कर असलम के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगी थी. अशोक को मां की तरह पत्नी का भी चरित्र ठीक नहीं लगता था. इस से आहत हो कर उस ने घर छोड़ दिया. इसी सपना को चारा बना कर असलम ने भूपेंद्र को फांस कर लूटने की योजना बनाई थी.

लवप्रीत कौर की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. उस की शादी गंगूवाला सिरवान में हुई थी. पति से अनबन होने के बाद वह हनुमानगढ़ आ कर अकेली ही रहने लगी थी. यहीं उस का संपर्क प्रकट सिंह और जबन सिंह उर्फ रोड़ा चाचा से हुआ. लवप्रीत कथित रूप से जबन सिंह की रखैल थी. लवप्रीत को चारा बना कर बेअंत सिंह को ब्लैकमेल करने की योजना जबन सिंह की थी.

लवप्रीत से जबन सिंह ने कहा था कि पैसे मिलने पर वह उस के लिए घर बनवा देगा. लेकिन उस का यह सपना पूरा नहीं हुआ. दिल्ली में हुए दामिनी कांड के बाद जो नया कानून बना है, इस तरह के अराजक तत्व उस का गलत फायदा उठाना चाहते हैं. इन तत्वों के खेल में 2 निर्दोष महिलाएं फंस गई हैं. कथा लिखे जाने तक इन में से कुछ अभियुक्तों की जमानतें हो चुकी थीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुंदरियों के हसीन सपने – भाग 2

लुटापिटा भूपेंद्र बुझे मन से अपनी कार ले कर घर आ गया. गाड़ी की आरसी, एटीएम कार्ड, नगदी और आभूषण लुटेरों ने छीन लिए थे. भूपेंद्र को गुमसुम देख कर घर वालों ने उस से पूछा भी. लेकिन तबीयत खराब होने का बहाना बना कर वह बात टाल गया. जब अगली सुबह उस के बड़े भाई ने पास बैठा कर उस से परेशानी की वजह पूछी तो उस ने उन से पूरी बात बता दी.

सलाहमशविरा कर के दोनों भाई उसी समय हनुमानगढ़ के लिए रवाना हो गए. 10 दिसंबर की दोपहर थाना हनुमानगढ़ के थानाप्रभारी भंवरलाल को भूपेंद्र ने अपनी व्यथा बताई. मामला गंभीर था, लेकिन थानाप्रभारी को लग रहा था कि इस मामले में अभियुक्त शीघ्र ही पकड़ लिए जाएंगे. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एएसआई बलवंतराम को सौंप दी. बलवंतराम ने उसी समय भूपेंद्र से सपना को रुपयों की व्यवस्था हो जाने का फोन करवा दिया. सपना ने आधे घंटे में अबोहर रोड पर जहां भूपेंद्र के साथ घटना घटी थी, पहुंचने को कहा.

भूपेंद्र अपनी कार से वहां पहुंच गया. एएसआई बलवंतराम भी पुलिस टीम के साथ प्राइवेट वाहन से बिना वर्दी के वहां पहुंच कर थोड़ी दूर खड़े हो गए थे. कुछ देर बाद भूपेंद्र के पास एक कार आ कर रुकी. उस में से 3 लोग उतरे और पैसे लेने के लिए भूपेंद्र के पास पहुंच गए. भूपेंद्र का इशारा पाते ही पुलिसकर्मियों ने तीनों को घेर कर पकड़ लिया. तीनों के नाम थे असलम, तुफैल मोहम्मद और गुरप्रीत सिंह उर्फ गोगी.

इस के बाद भूपेंद्र की तहरीर पर पुलिस ने सपना, असलम, तुफैल मोहम्मद और गुरप्रीत सिंह उर्फ गोगी के खिलाफ भादंवि की धारा 342, 385, 382, 323 व 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. लेकिन सपना पुलिस के हाथ नहीं लगी थी. शायद उसे अपने साथियों के पकड़े जाने की खबर लग गई थी, इसलिए वह फरार हो गई थी. गिरफ्तार तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया गया, जहां से विस्तृत पूछताछ और माल बरामद करने के लिए उन की 2 दिनों की रिमांड की मांग की गई.

रिमांड के दौरान की गई पूछताछ में तीनों अभियुक्तों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इसी पूछताछ में उन्होंने बताया कि कुछ महीने पहले इसी तरह सपना से फोन करवा कर उन्होंने पंजाब के अबोहर  के एक आदमी को लूटा था. उस ने पुलिस को सूचना दे दी थी तो पंजाब पुलिस ने उन्हें पकड़ कर जेल भिजवा दिया था. अदालत से जमानत मिलने पर जब ये लोग बाहर आए तो इन्होंने भूपेंद्र को शिकार बनाया. रिमांड खत्म होने के बाद पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को जेल भिजवा दिया. सपना अभी भी फरार थी.

27 दिसंबर को थानाप्रभारी भंवरलाल एएसआई बलवंतराम से सपना की गिरफ्तारी के बारे में चरचा कर रहे थे, तभी 3 लोग उन से मिलने आए. उन में से एक व्यक्ति ने अपना परिचय हरजिंदर सिंह एडवोकेट (पूर्व बार संघ उपाध्यक्ष हनुमानगढ़) के रूप में दिया. थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘कहिए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

हरजिंदर सिंह ने अपनी बगल में खड़े व्यक्ति की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह बेअंत सिंह है. मेरी बुआ का बेटा. भूपेंद्र सोनी की तरह इसे भी एक गिरोह ने फांस रखा है, वह गिरोह इस से 40 लाख रुपए नकद या फिर 2 बीघा जमीन देने पर इसे छोड़ने की बात कर रहा है. न देने पर इसे रेप के केस में झूठा फंसाने की धमकी दे रहा है.’’

सूचना गंभीर और चौंकाने वाली थी. एक बार थानाप्रभारी को लगा कि यह काम भी सपना के गिरोह का हो सकता है. लेकिन उस गैंग के सदस्य तो जेल में थे. इसी बात पर चरचा हो रही थी कि तभी बलवंतराम के फोन की घंटी बजी. फोन उन के मुखबिर का था. उस ने सपना के विजयनगर (श्रीगंगानगर) में होने की सूचना दी थी. थानाप्रभारी से अनुमति ले कर बलवंतराम विजयनगर के लिए निकल पड़े.

बलवंतराम चले गए तो बेअंत सिंह ने थानाप्रभारी भंवरलाल को अपनी जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी:

12 दिसंबर, 2013 की दोपहर की बात है. चक सुंदरसिंह वाला (पीलीबंगा) का रहने वाला 50 वर्षीय बेअंत सिंह अपने खेतों में पानी लगा रहा था. उस की 2 संतानें हैं, जिन की शादियां हो चुकी हैं. हाड़तोड़ मेहनत और मितव्ययी स्वभाव का होने की वजह से इलाके में उस की पहचान एक समृद्ध किसान की है. बेअंत सिंह खेतों में जाने वाले पानी की निगरानी कर रहा था, तभी उस के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से किसी औरत की आवाज आई, ‘‘सरदारजी, मैं आप से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘आप कौन बोल रही हैं और मुझ से क्यों मिलना चाहती हैं?’’ बेअंत सिंह ने पूछा.

‘‘जी मैं लवप्रीत कौर बोल रही हूं. पिछले दिनों आप को पीलीबंगा के गुरुद्वारे में देखा था. तभी से मैं आप पर लट्टू हूं. किसी तरह आप का फोन नंबर हासिल कर के आप को फोन किया है. रही बात मिलने की तो आप खुद ही समझ लीजिए कि कोई जवान लड़की किसी मर्द से क्यों मिलना चाहेगी.’’

बेअंत सिंह के प्रौढ़ शरीर में एकबारगी सिहरन सी दौड़ गई. औरत हो या मर्द, एकदूसरे के प्रति आकर्षण स्वाभाविक ही है. उसी आकर्षण में बंधे बेअंत सिंह ने कहा, ‘‘लवप्रीतजी अभी तो मैं खेतों में पानी लगा रहा हूं. मैं कल आप को फोन करता हूं.’’

कह कर बेअंत सिंह ने फोन काट दिया. लवप्रीत के मीठे बोल और खुले आमंत्रण से प्रौढ़ बेअंत सिंह का रोमरोम पुलकित था. वह जवान लवप्रीत से मिलने को लालायित हो उठा.

अगले दिन सुबह बेअंत सिंह ने खेतों पर जा कर लवप्रीत को फोन किया. दूसरी ओर से फोन रिसीव हुआ तो उस ने कहा, ‘‘लवप्रीत, मैं बेअंत बोल रहा हूं.’’

‘‘सरदारजी, मुझे लवप्रीत नहीं सिर्फ लव कहिए. अब आप के लिए मैं सिर्फ लव हूं. मैं 2 घंटे बाद पीलीबंगा बसस्टैंड पर पहुंच रही हूं. मेहरबानी कर के आप वहीं आ जाइए. आगे का प्रोग्राम मिलने पर बनाएंगे.’’ इतना कह कर लवप्रीत ने फोन काट दिया.

खेतों से लौट कर बेअंत सिंह ने मोटरसाइकिल उठाई और पीलीबंगा के बसस्टैंड पर पहुंच गया. बेअंत सिंह ने बसस्टैंड से लवप्रीत को फोन किया तो सामने खड़ी लड़की को फोन रिसीव करते देख वह सकपका गया. लड़की उस की बेटी की उम्र की थी. उस ने पूछा, ‘‘सरदार जी, आप कहां हो?’’

बेअंत सिंह ने पहचान बताई तो वही लड़की उस के पास आ कर खड़ी हो गई. उसे देख कर लवप्रीत के चेहरे पर कई रंग आए और गए. वह भी बेअंत सिंह की ही तरह सकपका गई थी. पास आ कर उस ने कहा, ‘‘अभीअभी उन का फोन आया था. मेरे ससुर को दिल का दौरा पड़ गया है. मुझे तुरंत वहां पहुंचना होगा. कृपया मुझे पुराने बसस्टैंड तक अपनी मोटरसाइकिल से छोड़ दीजिए. समय मिलते ही मैं आप को फोन करूंगी.’’

बेअंत सिंह ने मोटरसाइकिल से लवप्रीत को पुराने बसस्टैंड पर छोड़ दिया और अपने घर आ गया. लाख कोशिशों के बाद भी बेअंत सिंह लवप्रीत को इस तरह कन्नी काट कर चली जाने का कारण समझ नहीं पाया. हां, इतना जरूर हुआ कि उस ने लवप्रीत को सपना समझ कर भुला दिया.

जमीन हड़पने वाले भूमाफिया

सुंदरियों के हसीन सपने – भाग 1

शाम होते ही ठंड बढ़ने लगी तो राजस्थान के जिला श्रीगंगानगर के कस्बा नरसिंहपुरा में गहनों की  दुकान चलाने वाले भूपेंद्र सोनी ने घर जाने का मन बना लिया. क्योंकि ठंड की वजह से अब ग्राहक आने की कोई उम्मीद नहीं थी. भूपेंद्र दुकान बंद कर के खडे़ हुए थे कि उन का मोबाइल बज उठा. स्क्रीन पर जो नंबर दिख रहा था, वह अंजान था, फिर भी उन्होंने फोन रिसीव कर लिया.

‘‘हैलो, जी… मुझे भूपेंद्रजी से बात करनी थी.’’ दूसरी ओर से किसी महिला ने कानों में शहद सा घोल दिया.

‘‘जी बोलिए, मैं भूपेंद्र ही बोल रहा हूं.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘अरे यार! मैं सपना बोल रही हूं. बड़ी मुश्किल से आप का नंबर ढूंढ पाई हूं. नंबर मिलते ही आप को फोन किया है. आप तो मुझे भूल ही गए. कभी पूछा भी नहीं कि मैं जिंदा हूं या मर गई?’’ सपना ने एक ही सांस में शिकायत भरे लहजे में उलाहना दे डाला.

‘‘लेकिन मैं ने आप को पहचाना ही नहीं. शायद आप को गलतफहमी हुई है. आप ने गलत नंबर मिला दिया है.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘आप चुन्नीराम अंकल के बेटे भूपेंद्र बोल रहे हैं न?’’ सपना ने पूछा.

‘‘हां, मैं उन्हीं का बेटा भूपेंद्र ही हूं.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘यह हुई न बात, भला ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं जिस भूपेंद्र की फैन हूं. वह मुझे न जाने.’’ सपना ने कहा, ‘‘तुम मर्दों की यही तो फितरत होती है. मतलब निकलने के बाद एकदम से भूल जाते हो.’’

भूपेंद्र जवाब में कुछ कहता, उस के पहले ही सपना ने धीरे से कहा, ‘‘शायद वह आ गए हैं. अभी फोन रखती हूं. कल इसी समय फिर फोन करूंगी. और हां, आप भूल कर भी फोन मत करना.’’

इतना कह कर सपना ने फोन काट दिया.

भूपेंद्र ने एक बार फोन को देखा, फिर गाड़ी में सवार हो कर घर की ओर चल पड़ा. पूरे रास्ते वह सपना के बारे में ही सोचता रहा. घर आने पर भी उस के दिमाग में सपना ही घूमती रही. उस की नसनस में सनसनी सी फैल गई थी.

भूपेंद्र की गहनों की दुकान थी, उस के ग्राहकों में ज्यादातर महिलाएं ही थीं. उसे लगा कि सपना भी उस की कोई ग्राहक होगी. कभी लगता, कोई कालगर्ल तो नहीं है. यही सब सोचते हुए भूपेंद्र सपना की सुंदरता और शारीरिक बनावट को विभिन्न आकार देता रहा. उसी के बारे में सोचते हुए उसे न जाने कब नींद आ गई.

अगले दिन भूपेंद्र का मन न जाने क्यों दुकान पर जाने का नहीं हुआ. उस ने बड़े भाई को दुकान पर जाने के लिए कहा और स्वयं खेतों की ओर चला गया. उस का कई बार मन हुआ कि वह स्वयं सपना को फोन करे, लेकिन उस ने मना किया था, इसलिए वह मन मार कर रह गया. वैसे भी उस ने कहा था कि वह शाम को स्वयं फोन करेगी. शाम तक इंतजार करना उस के लिए मुश्किल था.

दोपहर बाद जब भूपेंद्र घर लौट रहा था तो उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. नंबर सपना का ही था. उस के फोन रिसीव करते ही सपना ने कहा, ‘‘हैलो, भूपेंद्रजी.’’

‘‘जी बोलिए, मैं बोल रहा हूं.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘भूपेंद्रजी, मैं आप से मिलना चाहती हूं. इस समय कहां हैं आप?’’

‘‘मैं इस समय खेतों पर हूं. यहीं आ जाओ.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘पागल हो गए हैं क्या आप. मैं अपनी ससुराल हनुमानगढ़ में हूं. मैं वहां कैसे आ सकती हूं? आप को ही यहां आना होगा. वह आज किसी काम से दिल्ली गए हैं. कल तक लौटेंगे.’’ सपना ने कहा.

‘‘सपना, आज तो नहीं, मैं कल सुबह ही आ पाऊंगा.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘सुबह 10 बजे तक पहुंच कर फोन करना. मैं स्वयं आप को लेने आ जाऊंगी. घर खाली है. पूरा दिन आप के लिए… ओके बाय…’’ कह कर सपना ने फोन काट दिया.

सुंदरी से मिले आमंत्रण से भूपेंद्र का रोमरोम रोमांचित हो रहा था. अगले दिन भूपेंद्र को किसी काम से हनुमानगढ़ जाना भी था. उस ने सोचा लगे हाथ यह काम भी हो जाएगा. अगले दिन यानी 9 दिसंबर, 2013 की सुबह भूपेंद्र अपनी कार से हनुमानगढ़ पहुंच गया. उस ने फोन किया तो सपना ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें रिसीव करने चूना फाटक पहुंच रही हूं, आप वहीं इंतजार करें.’’

भूपेंद्र चूना फाटक पहुंच गया. कार को सड़क के किनारे खड़ी कर के वह सपना का इंतजार करने लगा. थाड़ी देर बाद सपना वहां पहुंच गई तो चाहत की उम्मीदों के सहारे दोनों ने एकदूसरे को पहचान लिया. आते ही सपना भूपेंद्र की बगल वाली सीट पर बैठ गई. उस के बैठते ही भूपेंद्र ने पूछा, ‘‘बताओ, कहां चलें?’’

‘‘मेरे पड़ोस में एक बुढि़या मर गई है, उस की वजह से मोहल्ले में काफी भीड़ है. ऐसे में घर चलना ठीक नहीं होगा. घंटे, 2 घंटे मटरगस्ती कर के समय गुजारते हैं.’’ सपना ने कहा.

भूपेंद्र ने कार लिंक रोड से अबोहर जाने वाली मुख्य सड़क की ओर मोड़ दी. कुछ दूर आगे सड़क पर एक कार खड़ी दिखाई दी तो सपना ने भूपेंद्र से गाड़ी रोकने को कहा. कार के पास 3 लोग खड़े थे. उन्हें अपना परिचित बता कर सपना उन के पास चली गई.

भूपेंद्र कुछ समझ पाता, इस से पहले ही उन में से 2 लोग उस के पास आ गए. उन्होंने भूपेंद्र को कार की पिछली सीट पर धकेला और उन में से एक ड्राइविंग सीट पर बैठ गया तो दूसरा उस की बगल में. इस के बाद कार फिर रिंग रोड पर चल पड़ी. उस के पीछेपीछे वह कार भी चल पड़ी, जो वहां पहले से खड़ी थी. उस में सपना अपने तीसरे साथी के साथ सवार थी.

अब भूपेंद्र को समझते देर नहीं लगी कि वह किसी शातिर गिरोह के चक्कर में फंस गया है. वहां शोर मचाना भी बेकार था, क्योंकि सड़क लगभग सुनसान थी.  दोनों कारें एक खेत में बनी सुनसान ढांपी (घर) में जा कर रुकीं.

उन तीनों ने भूपेंद्र को खींच कर कार से बाहर निकाला. पहले तो उन्होंने उस की जम कर पिटाई की. उस के बाद उस की चेन, अंगूठी और जेब में पड़ी नकदी छीन ली. साथ ही गाड़ी की आरसी और 2 बैंकों के एटीएम भी ले लिए. उन लोगों ने एटीएम के कोड नंबर पूछे तो भूपेंद्र ने शून्य बैलेंस वाले कार्ड का नंबर बता दिया. जिस में बैलेंस था, उस के कोड नंबर के बारे में उस ने कह दिया कि याद नहीं है.

सारा माल छीन लेने के बाद उन में से एक ने कहा, ‘‘शोहदे, तूने इस लड़की के साथ दुष्कर्म किया है. हम तेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएंगे.’’

मुकदमे की बात सुनते ही भूपेंद्र की घिग्घी बंध गई. वह गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘मैं बाल बच्चेदार आदमी हूं. मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. प्लीज ऐसा मत करो.’’

‘‘अब तू एक ही सूरत में इस मुकदमे से बच सकता है. अगर तू 10 लाख रुपयों की व्यवस्था कर के हमें दे दे तो हम मुकदमा नहीं करेंगे.’’

भूपेंद्र के काफी गिड़गिड़ाने पर मामला 50 हजार रुपए में तय हो गया. जान से मारने की धमकी दे कर चारों ने भूपेंद्र को 2 दिनों में रुपए की व्यवस्था कर के फोन करने को कहा.

रिश्तों का कत्ल : पैसों के लिए की दोस्त की हत्या – भाग 3

भोलू का जूतों के डिब्बे बनाने का काम बढि़या चल निकला. उसी की कमाई से जल्दी ही उस ने मारुति स्विफ्ट कार खरीद ली. भोलू अपनी बहन सीमा के यहां आताजाता ही रहता था. इसी आनेजाने में उस ने महसूस किया कि स्लाटर हाउस में जो लोग जानवर सप्लाई करते हैं, उन की अच्छीखासी कमाई होती है. उस के पास पैसे तो थे ही, उस ने अपने बहनोई इरफान से इस संबंध में बात की तो उस ने भुट्टो से बात कर के भोलू को जानवर खरीद कर लाने के लिए कह दिया.

इस के बाद भोलू आगरा के जानवरों के बाजारों, किरावली, शमसाबाद, बटेश्वर आदि से सस्ते दामों में जानवर खरीद कर बहनोई की मार्फत स्लाटर हाउस में बेचने लगा. इस काम में उसे अच्छीखासी कमाई होने लगी. जूतों के डिब्बों का उस का काम चल ही रहा था. इस तरह महीने में वह एक लाख रुपए से अधिक की कमाई करने लगा.

किरावली बाजार में जानवरों की खरीदारी के दौरान भोलू की मुलाकात सलमान से हुई तो उसे यह आदमी भा गया. सलमान भी जानवरों की खरीदफरोख्त करता था. इस की वजह यह थी कि एक तो भोलू को कई काम देखने पड़ते थे, दूसरे सलमान इस काम में काफी तेज था. इसीलिए पहली मुलाकात में ही भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर बना लिया था. इस के बाद दोनों मिल कर जानवर खरीदने और बेचने लगे.

भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर तो बना लिया, लेकिन उस के बारे में उसे ज्यादा कुछ पता नहीं था. उस के बारे में उसे सिर्फ इतना पता था कि वह किरावली का रहने वाला है और उस का मोबाइल नंबर यह है. भोलू के साथ रहने में सलमान को फायदा दिखाई दिया, इसलिए वह उस के साथ रहने लगा.

बड़े भाई का साला होने की वजह से इमरान की भोलू से खूब पटती थी. जिस दिन भोलू पशु मेले या बाजार नहीं गया होता था, सारा दिन इमरान उसे अपने साथ रखता था. उसी के सामने वह बैंक से पैसे भी निकालता था और जमा भी कराता था. 50 लाख से ले कर करोड़ रुपए निकालना उस के लिए आम बात थी.

भोलू ने कभी कोई ऐसी वैसी हरकत नहीं की थी, इसलिए इमरान उस पर पूरा विश्वास करने लगा था. भोलू का काम दोनों ओर से ठीकठाक चल रहा था. उस की कमाई महीने में लाख रुपए से ऊपर थी. लेकिन कमाई बढ़ी तो उस की पैसों की भूख भी बढ़ गई थी. अब वह करोड़पति बनने के सपने देखने लगा.

एक दिन शाम को वह सलमान के साथ बैठा था तो उस के मुंह से निकला, ‘‘यार सलमान, मेरे पास एक ऐसी योजना है, जिस के तहत हमें एक करोड़ रुपए आसानी से मिल सकते हैं.’’

‘‘कैसे?’’ सलमान ने पूछा.

इस के बाद भोलू ने उसे जो योजना बताई, सुन कर सलमान की रूह कांप उठी. लेकिन जब भोलू ने उसे पूरी योजना समझा कर मिलने वाली रकम का लालच दिया तो वह उस की योजना में शामिल हो गया.  3 दिसंबर को उन्होंने अपनी इस योजना को अंजाम देने की तैयारी भी कर ली.

2 दिसंबर यानी सोमवार को भोलू इमरान के साथ ही रहा. उस दिन बैंक का कोई काम नहीं था, इसलिए बैंक जाना नहीं हुआ. लेकिन उस दिन भोलू को पता चल गया कि अगले दिन इमरान को बैंक जाना है और लगभग एक करोड़े रुपए निकाल कर लाना है. शाम को घर जाते समय इमरान ने भोलू को वाटर वर्क्स चौराहे पर छोड़ दिया तो वहां से वह वजीरपुरा स्थित अपने घर चला गया.

इमरान की गाड़ी से उतरते ही भोलू ने सलमान को फोन कर के अगले दिन चाकू और पिस्तौल ले कर तैयार रहने के लिए कह दिया था. अगले दिन यानी 3 दिसंबर, 2013 दिन मंगलवार को योजनानुसार 10 बजे के आसपास भोलू ने अपने बहनोई इरफान को फोन कर के बताया कि आज वह सलमान के साथ जानवरों की खरीदारी करने शमसाबाद जा रहा है. इसलिए वह देर शाम तक ही स्लाटर हाउस आ पाएगा.

तब इरफान ने उस से कहा था, ‘‘आज इमरान को बैंक से बड़ी रकम निकाल कर लाना है, हो सके तो तुम यह काम करा कर जाओ.’’

इस पर भोलू ने कहा, ‘‘दरअसल वहां कुछ व्यापारी सस्ते जानवर ले कर आने वाले हैं, अगर उन से सौदा पट गया तो काफी मोटा मुनाफा हो सकता है. इसलिए वहां जाना जरूरी है.’’

इस के बाद भोलू ने इमरान को भी फोन कर के कहा था, ‘‘इमरानभाई, मैं सलमान के साथ शमसाबाद जानवर खरीदने जा रहा हूं. इसलिए तुम अकेले ही बैंक चले जाना. क्योंकि मैं देर शाम तक ही वापस आ पाऊंगा.’’

योजनानुसार न तो भोलू शमसाबाद गया न सलमान. दोनों साए की तरह इमरान के पीछे इस तह लगे रहे कि वह उन्हें देख न पाए. इस बीच इमरान को फोन कर के वह पूछता रहा कि वह क्या कर रहा है? लेकिन उस ने यह नहीं पूछा था कि आज वह कितने रुपए निकाल रहा है?

इमरान जैसे ही रुपए ले कर बैंक से निकला, भोलू और सलमान टूसीटर से उस से पहले वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गए और वहीं खड़े हो कर इमरान पर नजर रखने लगे. जब उन्हें लगा कि इमरान वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गया होगा तो भोलू ने उसे फोन किया, ‘‘इमरानभाई, मैं शमसाबाद से लौट आया हूं और वाटर वर्क्स चौराहे पर खड़ा हूं. इस समय तुम कहां हो?’’

‘‘मैं यहीं वाटर वर्क्स चौराहे पर जाम में फंसा हूं. जहां से जवाहर पुल शुरू होता है, तुम वहीं पहुंचो. मैं वहीं से तुम्हें ले लूंगा.’’

भोलू सलमान के साथ जवाहर पुल के पास जा कर खड़ा हो गया. 5-7 मिनट बाद इमरान वहां पहुंचा तो भोलू इमरान की बगल वाली सीट पर बैठ गया तो सलमान पीछे वाली सीट पर. गाड़ी आगे बढ़ गई. इमरान को बातों में उलझा कर भोलू ने डैशबोर्ड पर रखे उस के दोनों मोबाइल फोन के स्विच औफ कर दिए. कार जैसे ही कुबेरपुर के पास पहुंची, भोलू ने कहा, ‘‘इमरानभाई, मेरे 2 दोस्त चौगान गांव के पास एक्सप्रेसवे के नीचे मेरा इंतजार कर रहे हैं. अगर तुम मुझे वहां तक छोड़ देते तो अच्छा रहता.’’

इमरान ने नानुकुर की, लेकिन चौगान गांव वहां से कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था. फिर भोलू पर उसे पूरा विश्वास था, इसलिए साथ में इतने रुपए होने के बावजूद इमरान ने कार चौगान गांव की ओर मोड़ दी. चौगान से कोई आधा किलोमीटर पहले ही सुनसान जंगली रास्ते पर लघुशंका के बहाने भोलू ने इमरान से कार रुकवा ली.

भोलू नीचे उतरा और इधरउधर देख कर अंदर बैठे सलमान को इशारा किया. जैसे ही सलमान नीचे उतरा, भोलू ने तमंचा निकाल कर ड्राइविंग सीट पर बैठे इमरान के सीने पर गोली मार दी. उस ने दूसरी गोली मारनी चाही, लेकिन तमंचा धोखा दे गया. गोली लगते ही इमरान के मुंह से हलकी सी चीख निकली और वह छटपटाने लगा. भोलू ने सलमान से छुरा ले कर इमरान पर कई वार करने के साथ गला भी काट दिया कि कहीं यह बच न जाए. चाकू चलाने के दौरान भोलू के दोनों हाथ जख्मी हो गए, जिस में उस ने रूमाल बांध ली.

इस के बाद इमरान की लाश घसीट कर दोनों ने हाईवे से सटे एक गड्ढे में फेंक दी. वहीं पास ही उन्होंने चाकू और तमंचा भी फेंक दिया. इस के बाद कार ले कर भाग निकले. रास्ते में एक हैंडपंप पर कार रोक कर थोड़ीबहुत धुलाई की. वहां से थोड़ा आगे आ कर एक्सप्रेसवे पर उन्होंने रकम गिनी तो पता चला कि ये तो सिर्फ 20 लाख रुपए ही हैं. जबकि उन्हें एक करोड़ रुपए होने की उम्मीद थी.

दोनों ने ही अपना अपना सिर पीट लिया. बहरहाल अब तो जो होना था, वह हो गया था. दोनों ने आधीआधी रकम ले ली. भोलू ने  सलमान को कार ठिकाने लगाने के लिए दे कर एक जगह रकम छिपाई और खुद स्लाटर हाउस पहुंच गया.

स्लाटर हाउस में इमरान के न आने की वजह से इरफान परेशान था. बहनोई से हालचाल पूछ कर वह इमरान की तलाश करने के बहाने बाहर आ गया. इरफान ने उस के हाथों पर रूमाल बंधी देखी तो उस के बारे में पूछा था. तब उस ने बहाना बना दिया था. स्लाटर हाउस से निकल कर भोलू ने छिपा कर रखे रुपए अपने एक परिचित के पास रखे और वापस जा कर इरफान के साथ इमरान की तलाश करने लगा.

दूसरी ओर इमरान की कार ले कर गया सलमान वहां से 5 किलोमीटर दूर एक ढाबे पर पहुंचा और एक दुर्घटनाग्रस्त ट्रेलर के पीछे कार खड़ी कर के ढाबे के एक कर्मचारी को 5 सौ रुपए का नोट दे कर कहा कि वह दिल्ली जा रहा है, इसलिए एक दिन के लिए अपनी इस कार को यहीं खड़ी कर रहा है. ढाबे के उस कर्मचारी को क्या ऐतराज होता, उस ने कह दिया कि खड़ी कर दो. सलमान ने वहीं अपने फोन का स्विच औफ किया और रुपए ले कर फरार हो गया.

s s p officce me bholu muh par kapra bandha

पुलिस ने मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर इमरान की हत्या में भोलू को गिरफ्तार किया था. इस की वजह यह थी कि उस ने सब से कहा था कि वह शमसाबाद जा रहा है, जबकि उस के मोबाइल फोन की लोकेशन आईसीआईसीआई बैंक से ले कर जहां से इमरान की लाश बरामद हुई थी, वहां तक मिली थी.

मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने इमरान की कार तो उस ढाबे से बरामद कर ली थी, लेकिन सलमान का मोबाइल बंद होने की वजह से उसे नहीं पकड़ पाई. पूछताछ के बाद पुलिस ने भोलू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

सलमान की तलाश में आगरा के कई थानों की पुलिस तो लगी ही है, मृतक इमरान के घर वाले भी उस की खोज में लगे हैं. उन्हें 10 लाख रुपयों से ज्यादा इमरान के हत्यारे को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की चिंता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित