रंगहीन हिना : जेल में पैदा हुई लड़की की कहानी

‘मैं न तो पाकिस्तानी हूं और न ही हिंदुस्तानी, मैं एक इंसान हूं और कहीं भी रहूं जीने का हक रखती हूं.’ जेल की चारदीवारी से पहली बार बाहर की दुनिया देखने निकली वह मासूम अपनी बात कहते हुए भावुक हो गई. यह लड़की थी हिना.

हिना के जीवन में 2 नवंबर का दिन उस के लिए किसी दूसरे जन्म से कम नहीं था. 11 साल पहले 8 नवंबर, 2006 को हिना का जन्म पंजाब के अमृतसर की सेंट्रल जेल में हुआ था. जेल में जन्म लेने की वजह से जेल के सभी कैदी उसे कान्हा और राधा नामों से बुलाते थे.

हिना की अम्मी फातिमा का कहना था कि हिना तो जेल की बेटी है. मुझे तो यह गम है कि मेरे अनचाहे गुनाह की सजा मेरी बेटी को भुगतनी पड़ रही है. लेकिन दूसरी ओर खुशी इस बात की है कि हिना को सभी कैदी बहुत प्यार करते हैं.

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हिना का जन्मदिन मुझे भी याद नहीं, लेकिन हिना का जन्म जेल में हुआ है, इसलिए सभी कैदियों सहित पूरा जेल स्टाफ जन्माष्टमी के दिन उस का जन्मदिन मनाते हैं. भले ही मैं मुसलमान हूं, पाकिस्तान से हूं लेकिन जिस तरह से हिना को कोई कान्हा तो कोई राधा कह कर प्यार करता है, दुलारता है, यह देख मेरी आंखें बरस पड़ती हैं.

पाकिस्तान के गुजरांवाला निवासी सैफुद्दीन की पत्नी फातिमा, उस की बहन मुमताज और नानी रशीदा बेगम 8 मई, 2006 को समझौता एक्सप्रेस से दोपहर 2 बज कर 20 मिनट पर भारत-पाक बौर्डर के अटारी रेलवे स्टेशन पर पहुंची थीं. साढ़े 5 बजे फातिमा, मुमताज व रशीदा बेगम के पासपोर्ट की चैकिंग की गई.

सारे दस्तावेज दुरुस्त पाए गए थे. शाम 6 बजे काउंटर नंबर 14 पर कस्टम विभाग के अधिकारियों ने उन के सामान की चैकिंग की तो करीब 6 हजार रुपए की जाली करेंसी बरामद हुई. अटारी रेलवे स्टेशन पर कस्टम विभाग ने फातिमा की पुन: अच्छी तरह से तलाशी ली. इस बार उस के पर्स और सामान से एक किलो हेरोइन बरामद हुई, जिस के बारे में फातिमा ने अधिकारियों को बताया कि यह हेरोइन उस की नहीं है.

दोनों महिलाओं का कहना था कि उन्हें किसी ने यह सामान भारत पहुंचाने के लिए दिया था. उन्हें पता नहीं था कि सामान में हेरोइन छिपा कर रखी हुई है.

कस्टम विभाग ने फातिमा उस की बहन मुमताज और मां रशीदा बेगम को तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. फातिमा, उस की बहन और मां को गिरफ्तार कर के उन के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. इस के बाद सीमा शुल्क विभाग ने तीनों महिलाओं को शाम साढे़ 7 बजे जीआरपी को सौंप दिया.

जीआरपी ने जाली करेंसी के मामले में तीनों महिलाओं को नामजद करते हुए गिरफ्तार कर लिया. बाद में उन्हें अदालत में पेश कर के अमृतसर सेंट्रल जेल भेज दिया गया. कुछ महीने बाद कस्टम विभाग और जीआरपी ने इस मामले में अपनी काररवाई पूरी कर के अदालत में चालान पेश कर दिया था. तत्कालीन न्यायाधीश ए.पी. बत्रा ने तीनों को 8 दिसंबर, 2009 को 10-10 साल की कैद और 2-2 लाख रुपए जुरमाने की सजा सुनाई थी.

जिस समय फातिमा को गिरफ्तार किया गया था, उस समय वह गर्भवती थी. इतने सालों तक जेल में रही रशीदा बेगम की मौत हो गई और फातिमा ने बच्ची हिना को जन्म दिया था. फरवरी, 2017 में सजा की अवधि पूरी हो गई थी और अदालत ने जुरमाने की रकम जमा करवाने के बाद रिहाई के आदेश जारी किए थे. मई, 2017 में एडवोकेट नवजोत कौर चब्बा व नवतेज सिंह ने 4 लाख रुपए जुरमाने के जमा करवा दिए.

एनडीपी एक्ट में सजा होने के बाद आर्थिक रूप से कमजोर फातिमा और मुमताज का अपने परिवार से कोई ताल्लुक नहीं रहा.

परिवार उन की पैरवी के लिए न तो भारत आया और न जुरमाने की राशि चुकाई गई थी. भारत आते समय पकड़े जाने के बाद फातिमा के पाकिस्तान में रहने वाले उस के परिजनों और रिश्तेदारों ने गरीबी के चलते एक तरह से उस से नाता तोड़ लिया था. ऐसी स्थिति में वकील नवजोत कौर चब्बा ने उन की रिहाई का बीड़ा उठाया था.

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   हिना के साथ वकील नवजोत कौर चब्बा

बटाला के सब दा भला ह्यूमिनिटी क्लब के संचालक नवजोत सिंह के जरिए उन्होंने जुरमाने की राशि बैंक में जमा करवाई. जुरमाने की राशि 2017 के अप्रैल महीने में जमा करवा दी गई थी. लेकिन काफी भागदौड़ के बाद एडवोकेट चब्बा ने गृह मंत्रालय से उन की रिहाई के आदेश जारी करवाए थे. इस बीच पाक एंबेसी की काउंसलर फौजिया मंजूर ने खतो किताबत कर हिना, उस की मां फातिमा और मौसी मुमताज के पाकिस्तान पहुंचाने का रास्ता साफ कर दिया था.

हिंदुस्तान में जन्मी हिना को पाकिस्तानी नागरिकता मिल जाएगी. बिना कोई अपराध किए हिना को कई सालों तक जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा था.

इन लोगों की रिहाई में बड़ी भूमिका निभाने वाले वकील चब्बा को खुशी है कि निरपराध हिना अब खुली हवा में सांस ले सकेगी. एडवोकेट नवजोत कौर ने इस विषय में विदेश मंत्री को चिट्ठी लिखी थी.

जुलाई, 2017 में हिना के बारे में पाक स्थित भारतीय दूतावास अधिकारी ने पाक सरकार से संपर्क साधा और अगस्त 2017 में पाकिस्तान ने हिना को पाकिस्तान आने की इजाजत देने की बात स्वीकार की.

वकील नवजोत चब्बा ने बताया कि कानून के मुताबिक 17 साल के बच्चे को बाल सुधार गृह में रखा जाता है. इसी बीच एक दिन वह जेल में लेक्चर के लिए गई थीं. वहां उन की मुलाकात उक्त परिवार से हुई. जब उन्हें पता चला कि हिना अपनी मां के बिना नहीं रह सकती और उसे कानून के मुताबिक बाल सुधार गृह में भेजा जा रहा है तो उन्होंने इस बारे में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक अरजी दायर कर दी.

हाईकोर्ट के आदेश पर हिना को उस की मां और मौसी के पास ही रहने की इजाजत मिल गई थी. जिस वक्त फातिमा भारत आई थी, गर्भवती थी. उस ने सजा के दौरान जेल में ही अपनी बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम हिना रखा गया. 3 साल की उम्र में सरकार और जेल प्रशासन की तरफ से उसे जेल के बाहर स्कूल में पढ़ाई के लिए दाखिल करवाया गया.

हिना सिर्फ स्कूल जाने के लिए ही जेल से बाहर आती थी. बाकी समय वह जेल में ही अपनी मां के पास रहती थी. जेल की सलाखों में फातिमा की कोख से जन्मी हिना को कई कैदी कान्हा तो कई राधा कह कर बुलाते थे. हिना भी कान्हा के नाम से खुश थी, लेकिन उसे इस शब्द के मायने पता नहीं थे.

जेल की कोठरी में जन्म लेने के बाद कृष्ण को वासुदेव ने उफनती यमुना पार करवाई थी, लेकिन इस कान्हा का वासुदेव तो पाकिस्तान में था और वहां जाने की राह में यमुना नहीं बल्कि बड़ी बाधा बौर्डर था, क्योंकि भारत में जन्म लेने के कारण कानूनन हिना भारतीय नागरिक थी.

कानूनन बिना पासपोर्ट वीजा के भारतीय नागरिक को पाक सरकार स्वीकार नहीं कर रही थी. इसीलिए इन कानूनी अड़चनों को देखते हुए हिना का अटारी बौर्डर को पार करना भी मुमकिन होता नहीं दिख रहा था. ऐसे में एक फरिश्ता या यूं कहें तारणहार बन कर आईं एडवोकेट नवजोत कौर चब्बा ने एक जीतीजागती मिसाल पेश की थी.

एडवोकेट नवजोत कौर चब्बा और समाजसेवी संस्था के माध्यम से हिना की रिहाई को ले कर पिछले 6 महीने से भारतपाक के बीच वार्तालाप चल रहा था. मामला तब अटक गया, जब हिना के परिजनों ने पाक से पैगाम भिजवाया कि हिना व अन्य की रिहाई के लिए उन के पास 4 लाख की रकम नहीं है.

यह पैगाम मिलने के बाद हिना को पाक पहुंचाने का बीड़ा उठाने वालों ने जुरमाने की रकम भर कर हिना की रिहाई का रास्ता साफ किया.

हिना के अब्बू असगर अली छोटामोटा काम करते हैं. गरीबी के कारण वह हिना व बाकी घर वालों को जेल से रिहा करवाने के लिए 4 लाख की रकम नहीं जमा करवा सके तो अमृतसर की गैरसरकारी संस्था सब दा भला ने 4 लाख रुपए जमा कराने के साथ ही रिहाई की प्रक्रिया भी पूरी करवाई.

सारी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी होने पर भी रिहाई नहीं हो पाने पर वकील चब्बा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मामले के हालात को ले कर पत्र लिखा. पीएमओ ने 17 अक्तूबर, 2017 को जारी एक पत्र में वकील चब्बा को जवाब दिया कि तीनों लोगों हिना, फातिमा और मुमताज की रिहाई 2 नवंबर को की जाएगी.

हिना और उस के घर वालों ने जेल में जो काम किया था, उस के मेहनताने के तौर पर उन्हें एक लाख रुपए दिए गए. दोनों देशों में अमनशांति का संदेश देने के लिए संस्था ने हिना को 1 लाख रुपए की लागत से तैयार किए भारत के राष्ट्रीय झंडे तथा पाकिस्तान के झंडे वाला सोने का लौकेट दे कर वापस उस के वतन भेजा.

अपनी रिहाई के समय पत्रकारों से बातचीत करते हुए फातिमा और मुमताज ने कहा कि उन्हें उस जुर्म की सजा काटनी पड़ी थी, जो उन्होंने किया ही नहीं था. उन का कहना था कि वे पूरी तरह से अनभिज्ञ थीं कि किन लोगों ने उन के सामान में कब और कैसे यह हेरोइन छिपा कर रख दी थी. उन्होंने कहा कि दोनों देशों की सरकारों को उन कैदियों को रिहा कर देना चाहिए, जो अपनी सजाएं पूरी कर चुके हैं.

पाकिस्तान रवाना होते समय हिना के हाथों में भारत व पाकिस्तान के फ्लैग थे, जो दर्शा रहे थे कि उस के दिल में भारत व पाक दोनों के लिए एक जैसा सम्मान है. इसीलिए हिना कहती है कि जेल के सभी अंकल मुझे प्यार करते हैं. हिना को पढ़ाने वाली टीचर राजबीर कौर एवं सुखजिंदर सिंह हेर कहती हैं कि हिना बहुत मीठी और प्यारी बातें करती है. जेल में जन्म होने के चलते जेल प्रबंधन भी उसे बहुत प्यार करता था.

अमृतसर जेल से रिहाई के बाद हिना और उस की मां फातिमा अटारी बौर्डर की तरफ बढ़ रही थीं कि बच्ची ने पूछा, ‘‘अम्मी, क्या हमें अब्बू लेने के लिए आएंगे?’’

सवाल सुन कर एक बार फातिमा चुप हो गई फिर बोली, ‘‘बेटा, कौन आएगा हमें लेने के लिए.’’

हिना भी अपनी मां का यह उत्तर सुन कर चुप हो गई और उस के कदम बौर्डर की ओर बढ़ गए. यह सवाल जवाब सुन कर एडवोकेट नवजोत कौर चब्बा और उन के आसपास चल रहे लोगों की भावुकतावश आंखें छलक आईं.

वहीं दूसरी ओर जिस हिना को भारत के लोगों ने पलकों पर बिठाया, उसी हिना ने जब वाघा बौर्डर (अटारी बौर्डर के उस पार पाक एरिया) पर पाक के जिओ टीवी पर भारत को अच्छा कहा तो पाकिस्तान को इतना बुरा लगा कि चैनल के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी.

जिओ न्यूज टीवी चैनल ने हिना का स्पैशल इंटरव्यू वाघा बौर्डर पर लिया तो पाक हुकूमत ने भारत को अच्छा बताने पर यह काररवाई की.

खास बात यह थी कि अमृतसर सेंट्रल जेल में सन 2006 में पैदा हुई हिना जब पाकिस्तान लौटी तो पाक की खुफिया एजेंसी पूरे परिवार को मीडिया से दूर रख कर रात 10 बजे तक पूछताछ करती रही.

हिना पाक मीडिया से कहती रही, भारत के लोग बहुत अच्छे हैं. रात करीब 12 बजे हिना अपने घर पहुंची तो वहां सैकड़ों की गिनती में देशविदेश के मीडियाकर्मी मौजूद थे.

अधिकांश मीडियाकर्मी हिना से सवाल पूछ रहे थे कि भारत ने उसे क्यों कैद में रखा, उस का क्या कसूर था? लेकिन हिना पाक मीडिया से यही कहती रही कि भारत के लोग बहुत अच्छे हैं.

उसे जेल में सभी लोग बहुत प्यार करते थे. जेल स्टाफ उसे बिटिया हिना कहा करता था. जेल से रिहा होने के बाद हिना काफी खुश नजर आई. वहीं उस की मां फातिमा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद किया और कहा कि मोदी साहब ने मामले को खासतौर पर लिया, इस के लिए उन की शुक्रगुजार हूं.

जीजा साली के खेल में मारा गया डाक्टर

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के वारासिवनी थाने के टीआई कमल निगवाल को रात करीब 9 बजे किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि क्षेत्र के गांव कायदी के बनियाटोला, वैष्णो देवी मंदिर के पास एक युवक ट्रेन से कट गया है. खबर मिलते ही टीआई थाने में मौजूद एएसआई विजय पाटिल व महिला आरक्षक लक्ष्मी के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

टीआई निगवाल ने घटनास्थल पर देखा कि एक युवक का शव रेल लाइनों पर बुरी तरह क्षतविक्षत हालत में पड़ा था. वहीं लाइनों के पास सड़क किनारे एक मोटरसाइकिल भी खड़ी थी. इस से टीआई ने अंदाजा लगाया कि युवक आत्महत्या करने के लिए ही अपनी मोटरसाइकिल से यहां आया होगा.

लाइनों पर टूटा हुआ मोबाइल भी पड़ा था. जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. शव को देख कर उस की पहचान संभव नहीं थी, इसलिए पुलिस ने कपड़ों की तलाशी ली. तलाशी में मृतक की जेब में एक सुसाइड नोट मिला. पुलिस ने उस टूटे हुए मोबाइल फोन से मिले सिम कार्ड को दूसरे फोन में डाल कर जांच की. फलस्वरूप जल्द ही मृतक की पहचान हो गई, वह वारासिवनी के निकटवर्ती गांव सोनझरा का रहने वाला डा. संजय डहाके था.

पुलिस ने फोन कर के डा. संजय डहाके के सुसाइड करने की खबर उस के घर वालों को दे दी. खबर सुनते ही डा. संजय के घर में मातम छा गया. डा. संजय की पत्नी और भाई रोते बिलखते वारासिवनी पहुंच गए. उन्होंने कपड़ों के आधार पर उस की शिनाख्त संजय डहाके के रूप में कर दी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद टीआई कमल निगवाल ने केस की जांच एएसआई विजय पाटिल को सौंप दी. दूसरे दिन मृतक का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने डा. संजय का शव उन के परिवार वालों को सौंप दिया. डा. संजय के अंतिम संस्कार के बाद एएसआई विजय पाटिल ने डा. संजय के परिवार वालों से पूछताछ की.

पता चला कि एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय काफी लंबे समय से बालाघाट के अंकुर नर्सिंग होम में काम कर रहे थे. वह रोजाना अपनी बाइक से बालाघाट जाते और रात 8 बजे ड्यूटी पूरी कर बाइक से ही घर आते थे. घटना वाले दिन भी वह अपनी ड्यूटी पूरी कर बाइक से घर लौट रहे थे, लेकिन उस रोज उन के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. इसलिए रास्ते में बाइक खड़ी कर के ट्रेन के आगे कूद गए.

डा. संजय उच्चशिक्षित थे, इस के बावजूद ऐसी क्या वजह रही जो उन्होंने अपनी जीवन लीला खुद ही समाप्त कर ली. जेब में मिले सुसाइड नोट की जांच की गई तो आत्महत्या करने के पीछे की कहानी पता चल गई.

डा. संजय ने अपने सुसाइड नोट में अपने साथ काम करने वाली 22 वर्षीय खूबसूरत नर्स सुधा पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया था. उन्होंने नोट में लिखा था कि सुधा ने उन्हें अपने रूपजाल में फंसा कर संबंध बना लिए थे. इस के बाद अस्पताल के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी करने वाले अपने 25 वर्षीय जीजा मनोज दांदरे के साथ मिल कर उन पर शादी करने का दबाव बना रही थी.

चूंकि डा. संजय पहले से ही शादीशुदा थे, इसलिए उन्होंने सुधा के साथ शादी करने से मना कर दिया तो वह अपने जीजा के साथ मिल कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगी.

इस पत्र के आधार पर जांच अधिकारी एएसआई विजय पाटिल ने बालाघाट जा कर अंकुर नर्सिंग होम के दूसरे कर्मचारियों से पूछताछ की. पूछताछ में यह बात साफ हो गई कि डा. संजय और वहां काम करने वाली नर्स सुधा ठाकरे में काफी नजदीकियां थीं.

सुधा नौकरी के साथसाथ बीएससी की परीक्षा भी दे रही थी. इसलिए पढ़ाई के चलते कुछ समय पहले वह अस्पताल आती रहती थी. इस दौरान दोनों में कुछ विवाद होने की बात भी कर्मचारियों ने बताई. यह भी पता चला कि इस विवाद के बाद डा. संजय पिछले कुछ दिनों से काफी परेशान रहने लगे थे.

घटना वाले दिन वह कुछ ज्यादा ही परेशान थे. उस दिन उन्होंने अस्पताल में किसी से भी ज्यादा बात नहीं की थी और शाम को अपनी ड्यूटी पूरी कर अस्पताल से चुपचाप चले गए थे. इस के बाद अस्पताल वालों को दूसरे दिन सुबह उन के द्वारा अत्महत्या करने की खबर मिली.

एएसआई विजय पाटिल और उन की टीम ने वारासिवनी सिकंदरा निवासी सुधा ठाकरे और मरारी मोहल्ला, बालाघाट निवासी उस के जीजा मनोज से गहराई से पूछताछ की, जिस में उन दोनों के द्वारा डा. संजय को प्रताडि़त करने की बात समाने आई. सुधा ठाकरे और उस के जीजा मनोज दांदरे से की गई पूछताछ और अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय बालाघाट स्थित एक प्रसिद्ध निजी नर्सिंग होम में नौकरी करने लगे थे. गांव सोनझरा से बालाघाट ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए वे अपनी ड्यूटी पर रोजाना मोटरसाइकिल पर आतेजाते थे. अपनी योग्यता के चलते डा. संजय ने जल्द ही अच्छा नाम कमा लिया था.

इसी बीच करीब 2 साल पहले वारासिवनी के सिकंदरा इलाके की रहने वाली सुधा ठाकरे ने उसी अस्पताल में नर्स के रूप में काम शुरू किया, जिस में डा. संजय काम करते थे.

सुधा बेहद खूबसूरत थी. वह अपनी खूबसूरती का फायदा उठा कर नर्सिंग होम में सब से चर्चित डा. संजय के नजदीक आने की कोशिश करने लगी. बालाघाट में ही सुधा की बड़ी बहन की शादी हुई थी. उस का पति मनोज दांदरे इसी नर्सिंग होम के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर काम करता था. सुधा बालाघाट में अपनी बहन के साथ ही रहती थी. लेकिन साप्ताहिक छुट्टी पर वह अपने घर वारासिवनी चली जाती थी.

सुधा डा. संजय के नजदीक आने की पूरी कोशिश कर रही थी. लेकिन डा. संजय उस की तरफ ध्यान नहीं दे रहे थे. इसलिए सुधा ने एक चाल चली. करीब डेढ़ साल पहले एक रोज बारिश का मौसम था. उस ने डा. संजय से कहा कि वह घर जाते समय अपनी मोटरसाइकिल पर उसे भी वारासिवनी तक ले चलें. डा. संजय को भला इस पर क्या ऐतराज हो सकता था सो उन्होंने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर लिफ्ट दे दी.

सुधा की योजना बहुत दूर तक की थी, इसलिए मोटरसाइकिल जैसे ही शहर से बाहर निकली वह डा. संजय से सट कर बैठ गई. डा. संजय को अजीब तो लगा लेकिन वे भी आखिर इंसान थे, खूबसूरत जवान लड़की का सट कर बैठना उन के दिल की धड़कन बढ़ाने लगा.

संयोग से उस रोज मौसम ने सुधा का साथ दिया और कुछ ही दूर जाने के बाद अचानक तेज बारिश होने के कारण दोनों को मोटरसाइकिल खड़ी कर एक पेड़ के नीचे आश्रय लेना पड़ा. तब तक रात का अंधेरा भी फैल चुका था. अंधेरे में अपने साथ जवान लड़की को भीगे कपड़ों में खड़ा देख डा. संजय का दिल भी मचलने लगा था.

कुछ देर बाद ठंड लगने के बहाने सुधा उन के पास आ कर खड़ी हुई तो डा. संजय ने उस की कमर में हाथ डाल दिया. सुधा को तो मानो इस पल का इंतजार था. वह एकदम से उन के सीने से लग कर गहरी सांसें लेने लगी.

बारिश काफी देर तक होती रही और उतनी ही देर तक दोनों एकदूसरे के दिल की धड़कनें सुनते हुए पेड़ के नीचे खड़े रहे. इस के बाद सुधा और डा. संजय एकदूसरे से नजदीक आ गए, नतीजतन कुछ ही समय बाद उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. फिर ऐसा अकसर होने लगा.

सुधा ने अपने जीजा के कहने पर बिछाया जाल

डा. संजय शादीशुदा थे, यह बात सुधा पहले से ही जानती थी. लेकिन उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. क्योंकि उस की योजना कुछ और ही थी. वैसे सुधा के अवैध संबंध अपने जीजा मनोज से भी थे. मनोज काफी चालाक किस्म का इंसान था.

मैडिकल पर काम करते हुए उसे इस बात की जानकारी थी कि डा. संजय को नर्सिंग होम से तो बड़ा वेतन मिलता ही है, इस के अलावा भी उन्हें कई दवा कंपनियों से कमीशन मिलता है. इसलिए उस के कहने पर ही सुधा ने साजिश रच कर संजय को अपने जाल में फंसा लिया था.

कुछ समय बाद जब सुधा को लगने लगा कि डा. संजय अब पूरी तरह से उस के कब्जे में आ चुके हैं तो उस ने उन पर शादी करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. डा. संजय ने शादी करने से मना किया तो सुधा का जीजा मनोज सामने आया और डा. संजय को बदनाम करने की धमकी देने लगा.

इस से डा. संजय परेशान हो गए. वे जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो उन की नौकरी जाने में एक पल भी नहीं लगेगा और पूरे इलाके में बदनामी होगी सो अलग.

इसलिए उन्होंने सुधा और मनोज को समझाने की कोशिश की तो दोनों उन से चुप रहने के बदले पैसों की मांग करने लगे. जिस से डर कर डा. संजय ने अलगअलग किस्तों में सुधा और मनोज को 8 लाख रुपए दे भी दिए. लेकिन सुधा जहां उन पर लगातार शादी के लिए दबाव बना रही थी, वहीं मनोज चुप रहने के बदले कम से कम 5 लाख रुपयों की और मांग कर रहा था.

इसी बीच सुधा ने नौकरी छोड़ दी और डा. संजय को धमकी दी कि एक महीने के अंदर अगर उन्होंने उस के संग शादी नहीं की तो वह अपने संबंधों का ढिंढोरा पूरे बालाघाट में पीट देगी.

इस बात से डा. संजय काफी परेशान रहने लगे थे. जब उन्हें इस परेशानी से बचने का कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने नर्सिंग होम में ही सुसाइड नोट लिख कर अपनी जेब में रख लिया.

वह सुसाइड करने का फैसला ले चुके थे. अपने गांव सोनझरा लौटते समय रात लगभग 8 बजे वह बनियाटोला स्थित वैष्णो देवी मंदिर के पास पहुंचे. उन्होंने अपनी मोटरसाइकिल वहीं खड़ी कर दी और बालाघाट की ओर से कटंगी जाने वाली ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली.

पुलिस ने सुधा और उस के जीजा मनोज को भादंवि की धारा 306/34 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

कैमरे में कैद दर्द-ए-दिल

एक नहीं, बल्कि कई बार डा. रिपुदमन सिंह भदौरिया के दिल में यह खयाल आया था कि बैंक खाते से सारी जमापूंजी निकाल कर और कुछ यहां वहां से जुगाड़ कर 10 लाख रुपए इकट्ठा करे और दे मारे उस कमबख्त ब्लैकमेलर राजाबाबू के मुंह पर, जिस के एक फोन और सीडी ने उन के दिन का चैन और रातों की नींद छीन रखी है.

सोतेजागते, उठतेबैठते और खातेपीते एक ही डर उन के दिलोदिमाग में समाया था कि उन की और उस महाकमबख्त मनीषा की रंगरलियों वाली सीडी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई तो क्या होगा. इतना सोचते ही उन के हाथपैर फूल जाते और दिमाग सुन्न हो जाता था.

उन के दिमाग में यह बात भी आई कि अगर सीडी वायरल हो गई तो उन के सारे यारदोस्त, नातेरिश्तेदार, जानपहचान वाले ही नहीं, अंजान लोग भी ढूंढढूंढ कर उन्हें नफरत और तरस भरी निगाहों से देखेंगे. वे उन की खिल्ली उड़ाते हुए कहेंगे कि यही है वह डाक्टर, जो मरीज ठीक करने के बहाने औरतों से अय्याशी करता है.

लानत है इस सरकारी डाक्टर पर, इस के पास तो महिलाओं को ले जाना ही खतरे वाली बात है. यह तो अच्छा करने के बजाय उन्हें हमेशा के लिए बिगाड़ देता है. मरीजों के ब्लडप्रेशर का इलाज करने वाले डा. रिपुदमन सिंह का ब्लडप्रेशर उस वक्त और बढ़ जाता, जब वह सोचते कि हकीकत सामने आने पर सरकार उन्हें सस्पैंड कर के उन का मैडिकल प्रैक्टिस का लाइसेंस भी रद्द कर सकती है.

अगर ऐसा हो गया तो वह किसी काम के नहीं रहेंगे. उन की पूरी मेहनत और इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. लोग भी उन से कतराने लगेंगे. यारदोस्त भी उन से कन्नी काटने लगेंगे. ब्लैकमेलर राजाबाबू ने उन से जो 10 लाख रुपए मांगे थे, उन के लिए खास बड़ी रकम नहीं थी, पर खौफ और डर इस बात का था कि ये 10 लाख रुपए उसे दे भी दें तो इस बात की क्या गारंटी कि वह उन का पिंड छोड़ देगा.

हो सकता है कि कुछ दिनों बाद वह फिर उसी सीडी का डर दिखा कर उन से और रकम ऐंठने की कोशिश करे, तब क्या होगा.

चंबल इलाके के भिंड जिले के एक सरकारी अस्पताल में डा. रिपुदमन पिछले 4 दिनों से जिस कशमकश से गुजर रहे थे, उस का रास्ता और मंजिल एक ही था कि जिंदगी भर इन ब्लैकमेलर्स के हाथों लुटते रहो और ऐसा नहीं कर सकते तो बेइज्जती का पंचनामा बनवाने को तैयार रहो.

कोई और रास्ता उन्हें समझ नहीं आ रहा था. बात भी कुछ ऐसी थी, जिस की चर्चा या जिक्र वह किसी से नहीं कर सकते थे.

रहरह कर वह 30 अगस्त, 2017 की दोपहर को कोस रहे थे, जब उन की पहली मुलाकात मनीषा पाल नाम की युवती से हुई थी. उस दिन वह मरीजों से फुरसत पा कर अपनी केबिन में आ कर बैठे थे कि एक बेइंतहा खूबसूरत 25-26 साल की युवती उन के केबिन में दाखिल हुई.

युवती की खूबसूरती का उन पर कोई खास असर नहीं हुआ. क्योंकि डाक्टरी पेशे में आए दिन तरहतरह के मरीज डाक्टरों के पास आते रहते हैं, उन का मरीज से रिश्ता 5-6 मिनट का ही होता है. बीमारी देखी, दवा लिखी, हिदायतें दीं और बात खत्म. दोबारा मरीज उसी हालत में आता था, जब उसे फायदा न हुआ हो.

पर यहां बात कुछ और ही थी. मनीषा की तरफ देखते ही रिपुदमन ने निहायत ही पेशेवर अंदाज में कहा, ‘‘कहिए, क्या तकलीफ है?’’

‘‘तकलीफ बहुत है डाक्टर साहब, इसीलिए तो आप के पास आई हूं.’’ मनीषा ने कुछ शोखी और कुछ परेशानी भरे स्वर में जवाब दिया तो रिपुदमन अचकचा उठे.

उन्होंने रूटीनी अंदाज में मनीषा को मरीजों वाले स्टूल पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘हां बताइए, क्या तकलीफ है?’’

इस थोड़ी सी देर में एक बात जो उन्हें न चाहते हुए भी नोटिस में लेनी पड़ी थी कि युवती की टाइट जींस और उस से भी ज्यादा टाइट टौप उभारों को ढंकने के बजाय उन्हें और ज्यादा दिखा रहे थे.

आजकल की मौडर्न युवतियां छोटे शहरों में भी ऐसी ड्रैस पहनने लगी हैं, इसलिए उन्होंने इस बात से अपना ध्यान झटका और मनीषा की तरफ दोबारा सवालिया निगाहों से देखा तो जवाब में मनीषा ने कहा तो कुछ नहीं, पर जो किया, वह उन की उम्मीद से परे था.

एक झटके में मनीषा ने अपनी टीशर्ट उठाई और उसे कंधों तक ले जाते हुए बोली, ‘‘डाक्टर साहब, सीने में बहुत तेज दर्द है.’’

ऐसे लगा मानो विश्वामित्र के सामने कोई मेनका आ कर अपनी पर उतारू हो आई हो. मनीषा के उन्नत वक्षों को देख कर रिपुदमन ने घबरा कर अपनी दोनों आंखें बंद कर लीं. पर चंद सेकेंड पहले जो नजारा उन्होंने देखा था, वह आंखों से चढ़ कर दिमाग तक पहुंच गया था. आंखें बंद कर लेने से कोई फायदा नहीं हुआ. क्योंकि सब कुछ उन के दिमाग में घूमने लगा.

खुद को संभालने में उन्हें चंद सैकेंड ही लगे और वह संभल कर बोले, ‘‘इस के लिए तो आप को किसी लेडी डाक्टर के पास जाना चाहिए.’’

‘‘क्यों?’’ मनीषा बिंदास स्वर में बोली, ‘‘लेडी डाक्टर ही क्यों, आप क्यों नहीं? क्या आप दिल के दर्द का इलाज नहीं जानते?’’

इस जवाब से उन की समझ में आ गया कि लड़की खब्त मिजाज और बेशर्म भी है. तरहतरह के मरीजों से उन का पाला पड़ता रहता था, लेकिन ऐसी मरीज से पहली दफा वास्ता पड़ा था. समझाने और टरकाने के अंदाज में वह बोले, ‘‘देखिए, कोई लेडी डाक्टर ही आप को देख पाएगी.’’

‘‘ठीक है, दिखा लूंगी, पर हाल फिलहाल तो आप देख लीजिए. दर्द वाकई ज्यादा है, जिसे डाक्टर से छिपाना मैं ठीक नहीं समझती.’’ मनीषा अब दार्शनिकों के से अंदाज में बोली तो रिपुदमन की समझ में यह भी आ गया कि यह सनकी युवती आसानी से उन का पीछा नहीं छोड़ने वाली.

उन्होंने अपना स्टेथकोप उठाया और उसे पीठ व छाती पर जगहजगह लगाया, फिर पर्चे पर कुछ दवाइयां उसे लिख कर दे दीं. इस दौरान मनीषा नादान बनती वाचाल लड़की की तरह अपनी बीमारी से ताल्लुक रखती कई बातें उन से पूछती रही, जिन का वह सब्र से जवाब देते रहे.

मनीषा चली गई तो उन्होंने मीलों लंबी सांस ली. केबिन में बिखरी खुशबू नथुनों और दिमाग में समा रही थी. इसी दौरान दूसरा मरीज आ गया तो वह उसे देखने में व्यस्त हो गए और कुछ देर पहले का नजारा भी दिलोदिमाग से निकल सा गया.

रोजाना की तरह घर आ कर वह अपने कामकाज में लग गए और अस्पताल की बातों को भूल गए. लेकिन देर रात मोबाइल फोन की घंटी से उन की नींद खुली तो वह स्क्रीन पर अंजान नंबर देख झल्ला उठे.

‘क्या पता कौन होगा आधी रात में,’ सोचते हुए उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से बगैर किसी भूमिका के हायहैलो की आवाज आई, ‘‘डाक्टर साहब, दवाइयां लेने के बाद भी दिल का दर्द नहीं जा रहा है, ऐसा लग रहा है, मानो कोई मसल रहा हो.’’

रिपुदमन को पहचानने में देर नहीं लगी कि यह आवाज उसी खूबसूरत युवती यानी मनीषा की है, जो दोपहर में उन के पास आई थी और उन के दिल में हलचल मचा गई थी. फिर भी अंजान बनने की एक्टिंग करते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘कौन बोल रही हैं आप?’’

‘‘अरे, मैं हूं मनीषा, जिसे दोपहर में आप ने चैक किया था. डाक्टर साहब तब मैं ने सब कुछ तो दिखा दिया था, पर दर्द है कि ठीक नहीं हो रहा है. क्या करूं समझ नहीं आ रहा. अब प्लीज, आप ही कुछ कीजिए.’’ उस ने कहा.

आवाज में दर्द कम, एक आमंत्रण ज्यादा था, जिसे डा. रिपुदमन तो क्या कोई मामूली मर्द भी आसानी से भांप सकता था कि युवती चाहती क्या है और उस के कहने का मतलब क्या है. रिपुदमन के दिमाग का फ्यूज इस बार मनीषा की आवाज से उड़ गया था. फिर भी खुद की प्रतिष्ठा और डाक्टरी पेशे की गरिमा को बनाए रखते हुए उन्होंने फोन पर ही मनीषा को दूसरी गोली का नाम लिखाते उसे खा लेने की सलाह दी.

मनीषा का फोन काटने का इरादा नहीं लग रहा था, इसलिए वह बेवजह के सवाल किए जा रही थी. सवाल भी एक पुरुष को भड़काने वाले थे. लंबी द्विअर्थी बातें करने के बाद उन्होंने इतिश्री करते हुए मनीषा को फिर किसी लेडी डाक्टर को दिखाने की सलाह दे डाली.

इति तो नहीं, पर अति जरूर हो रही थी. मनीषा पाल की बातों और खूबसूरती ने फिर बाकी रात रिपुदमन को सोने नहीं दिया.

बारबार उन की आंखों के सामने वह दृश्य घूम उठता था, जब मनीषा ने एक झटके में अपनी गुलाबी टीशर्ट कंधे तक उठा दी थी. फिर थोड़ी देर पहले की गई बातों से तो बिलकुल साफ लग रहा था कि वह उन के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार है.

युवा रिपुदमन की हालत किशोरों जैसी हो गई थी. जैसे ही वह नींद में जाने को होते, गदराई मनीषा उन्हें जगा देती. उस से हुई मुलाकात और बातों से मैडिकल के दौरान फिजियोलौजी नाम के विषय की पढ़ाई हवा हो गई थी. बाकी रात संस्कारों और वासना का युद्ध होता रहा, जिस में रिपुदमन की समझ में नहीं आ रहा था कि कौन भारी पड़ रहा है.

जितना वह मनीषा को अपने से दूर करने की कोशिश करते थे, वह न्यूटन के नियम की तरह वापस उन्हीं की तरफ आ जाती थी. अगले 3 दिन सुकून से कटे. मनीषा का कोई फोन नहीं आया तो रिपुदमन को लगा कि वह लड़की उन की जिंदगी में हवा के महकते झोंके की तरह आई थी और चली गई.

31 अगस्त को छुट्टी ले कर वह अपने घर ग्वालियर आ गए. तीसरे दिन अचानक फिर उन के पास उस का फोन आया. वह पहले की ही तरह बगैर किसी औपचारिकता के बोली, ‘‘अब दर्द में आराम तो है, लेकिन वह पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है. इसलिए बेहतर होगा कि आप एक बार और चैक कर लें.’’

‘‘यह तो मुमकिन नहीं है. क्योंकि इस समय मैं ग्वालियर में हूं.’’ डा. रिपुदमन ने कहा.

‘‘वाह क्या हसीन इत्तफाक है,’’ मनीषा चहक कर बोली, ‘‘मैं भी ग्वालियर आई हुई हूं. आप घर का पता दे दें तो मैं वहीं आ कर दिखा दूं.’’

न चाहते हुए भी रिपुदमन ने उसे अपने घर का पता दे दिया. उस वक्त वह घर में अकेले थे. कुछ देर बाद ही मनीषा उन के घर पहुंच गई. उसे घर आया देख कर रिपुदमन घबरा उठे, पर क्या करते. आ बैल मुझे मार वाली बात भी उन्हीं ने पता दे कर की थी. उन्हें घबराया देख कर मनीषा ने साथ लाए बैग से कोल्डड्रिंक की 2 बोतलें निकाल कर कहा, ‘‘आप तो करेंगे नहीं, लीजिए मैं ही आप का स्वागत करती हूं.’’

रिपुदमन के चेहरे पर शंका देख कर वह हंसते हुए बोली, ‘‘अरे बाबा रास्ते में अपने लिए सेनेटरी नैपकिन खरीद रही थी तो दुकान वाले के पास खुल्ले पैसे नहीं थे, इसलिए सोचा कि कोल्डड्रिंक ही ले लूं. कम से कम आप के साथ कोल्डड्रिंक पीने का सौभाग्य तो मिलेगा. यकीन मानें, इस में कोई जहरवहर नहीं है.’’

इस बार मनीषा और भी उत्तेजक कपड़ों में आई थी. वाकई वह कहर ढा रही थी, जिस से रिपुदमन खुद को बचा नहीं पाए और मनीषा के हाथों कोल्डड्रिंक पी लिया. कोल्डड्रिंक पीने के कुछ देर बाद ही धीरेधीरे उन पर बेहोशी छाने लगी और इस के बाद उन्हें कुछ होश नहीं रहा कि कमरे में क्याक्या हुआ.

जब होश आया तो मनीषा वहां नहीं थी. रिपुदमन याद करने की कोशिश भर करते रहे कि क्या हुआ था, पर याद्दाश्त ने उन का एक हद से ज्यादा साथ नहीं दिया. अच्छी बात यह थी कि घर का सारा सामान सलामत था यानी मनीषा कोई चोरनी या लुटेरन नहीं थी. यह बात सुकून देने वाली थी.

छुट्टी बिता कर वह ग्वालियर से भिंड चले आए, लेकिन फिर मनीषा का कोई फोन नहीं आया न ही चैक कराने या दिखाने वह खुद आई तो उन्हें स्वाभाविक तौर पर हैरानी हुई. धीरेधीरे रिपुदमन फिर अपने अस्पताल की जिंदगी में व्यस्त हो गए और मनीषा की यादों का काफिला भी धीमा होता चला गया.

8 सितंबर, 2017 को एक अंजान आदमी का फोन उन के पास आया. उस ने बेहद शातिर और दबी आवाज में इतना कह कर फोन काट दिया कि मैं राजाबाबू बोल रहा हूं. शाम तक एक पार्सल आप को मिलेगी, उस में एक सीडी है उसे देख लेना कि कैसे आप एक महिला मरीज का इलाज कर रहे हैं. और हां, 10 लाख रुपयों का इंतजाम भी कर के रखना, नहीं तो बहुत जल्द यह सीडी हर कोई देख रहा होगा. फैसला आप के हाथ में है.

इतना सुनते ही रिपुदमन के हाथों के तोते उड़ गए. पलभर में ही वह सारा वाकिया और माजरा समझ गए. धौंस सुनते ही उन का गला सूखने लगा और वह शाम होने का इंतजार करने लगे. फोन करने वाले ने गलत कुछ नहीं कहा था, सचमुच शाम तक सीडी उन के पते पर आ गई थी.

जैसे हाईस्कूल के बच्चे अपने रिजल्ट का इंतजार करते हैं, वैसे ही डा. रिपुदमन सीडी कंप्यूटर में लगा कर इंतजार करने लगे कि आखिर इस में है क्या. पांव तले जमीन खिसकना किसे कहते हैं, यह उन्हें सीडी देख कर समझ में आ गया, जिस में वह और मनीषा एकदम निर्वस्त्र हालत में पलंग पर थे और बिलकुल ब्लू फिल्मों जैसी हरकतें कर रहे थे. उन के और मनीषा के कुछ नग्न हालत के फोटो भी सीडी में थे.

अब सोचनेसमझने के लिए कुछ नहीं रह गया था. एक गलती इतनी भारी पड़ेगी, यह उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था. 4 दिन तो उधेड़बुन में उन्होंने किसी तरह गुजार दिए, पर यह तय नहीं कर पाए कि अब क्या करें और कैसे इज्जत बचाएं. यह तो उन्हें साफ समझ में आ गया था कि मनीषा अकेली नहीं है. चूंकि फोन किसी मर्द ने किया था, इसलिए जाहिर था उस के और भी साथी थे. अब रिपुदमन को लगा कि वह एक गिरोह के चक्रव्यूह में फंस कर अभिमन्यु जैसे छटपटा रहे हैं.

जब बदनामी झेलनी ही है तो क्यों न एक दफा पुलिस की मदद ले कर देखी जाए, यह सोचते ही उन्हें उम्मीद की एक किरण नजर आई कि शायद पुलिस वाले उन की मदद कर बेड़ा पार लगा दें. आखिर कोशिश करने में जाता ही क्या है. नहीं तो मनीषा और फोन पर अपना नाम राजाबाबू बताने वाला शख्स तो जोंक की तरह उन का खून चूसते रहेंगे.

13 सितंबर, 2017 की दोपहर डा. रिपुदमन सिंह हिम्मत जुटा कर ग्वालियर के एसपी डा. आशीष कुमार से व्यक्तिगत रूप से मिले और उन्हें सारी बात बताई. तजुर्बेकार एसपी साहब को माजरा समझते देर न लगी कि डा. रिपुदमन सिंह ब्लैकमेलर्स गिरोह के चंगुल में फंस गए हैं. लिहाजा उन्होंने तुरंत क्राइम ब्रांच के टीआई दिलीप सिंह को मामला सौंपते हुए रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई करने के निर्देश दिए.

तेजतर्रार इंसपेक्टर दिलीप सिंह ने डा. रिपुदमन सिंह की सारी कहानी सुनी. चूंकि डा. रिपुदमन ने ब्लैकमेलर्स को अभी कोई पैसे नहीं दिए थे, इसलिए उन्होंने तुरंत योजना बना डाली कि बेहतर होगा कि राजाबाबू नाम के ब्लैकमेलर को उन से रकम लेते दबोचा जाए. दिलीप सिंह ने अपनी टीम में एएसआई गंभीर सिंह, धर्मेंद्र और हरेंद्र के अलावा लेडी कांस्टेबल अर्चना कसाना को शामिल किया.

योजना के मुताबिक, अगले दिन डा. रिपुदमन सिंह ने राजाबाबू को फोन कर दिया कि वह उन से पैसे ले कर मामले को निपटा दे. तयशुदा स्थान पर जैसे ही राजाबाबू रिपुदमन सिंह से ब्लैकमेलिंग के पैसे ले रहा था, आसपास छिपी पुलिस टीम ने उसे रंगेहाथों धर दबोचा.

खुद को पुलिस की गिरफ्त में आया देख कर राजाबाबू की समझ में आ गया कि अब खेल खत्म हो चुका है, इसलिए मार ठुकाई से बचने के लिए यही बेहतर है कि संगी साथियों के बारे में बता दिया जाए. लिहाजा उस ने अपने साथियों के नाम पुलिस को बता दिए. उस की जानकारी के आधार पर जल्द ही पुलिस टीम ने मनीषा पाल के साथसाथ इन के तीसरे साथी अनिल वाल्मीकि को भी गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में पता चला कि राजाबाबू का असली नाम कृष्णकुमार और मनीषा का असली नाम नेहा कुशवाह है. नेहा कुशवाह शादीशुदा है और वह उत्तर प्रदेश के उरई की रहने वाली है. उस ने पुलिस को बताया कि उस ने नर्सिंग का कोर्स किया है. नेहा की गिरफ्तारी की बात जब उस के घर वालों को बताई गई तो उस का पति रामलखन उरई से ग्वालियर पहुंच गया.

उस ने बताया कि अब से करीब 13 साल पहले नेहा ने उस से लवमैरिज की थी. मूलरूप से सूरत, गुजरात की रहने वाली नेहा को सूरत में ही औटोरिक्शा चलाने वाले रामलखन से प्यार हो गया था. दोनों शादी कर के उरई आ कर बस गए थे.

रामलखन ने यह भी बताया कि नेहा ने नर्सिंग का कोर्स नहीं किया है, बल्कि वह उरई के एक नर्सिंगहोम में काम करने लगी थी और धीरेधीरे नर्सिंग का काम सीख कर नर्स कहलाने लगी थी. पुलिस वाले भी यह जान कर दंग रह गए कि एकदम लड़कियों सी दिखने वाली नेहा 2 बच्चों की मां है. उरई के नर्सिंगहोम में ही नेहा की मुलाकात वहां के सफाईकर्मी अनिल वाल्मीकि से हुई थी.

यहां काम करतेकरते दोनों ने महसूस किया था कि डाक्टर लोग खूब रंगीनमिजाजी करते हैं. कुछ दिनों बाद नेहा की पहचान अनिल के जरिए राजाबाबू उर्फ कृष्णकुमार से हुई और फिर कृष्णकुमार के जरिए वह विकास गुप्ता के संपर्क में आई. नेहा कब कैसे ब्लैकमेलिंग के धंधे में आ गई, इस बारे में रामलखन ने अनभिज्ञता जाहिर की.

इस शातिर चौकड़ी ने योजना बनाई कि क्यों न डाक्टरों की रंगीनमिजाजी की वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल किया जाए. इस योजना में तय हुआ कि नेहा मरीज बन कर डाक्टरों के पास जा कर उन्हें फंसाएगी और उन के साथ की गई रंगीनमिजाजी और शारीरिक संबंधों की फिल्म बनाएगी. ब्लैकमेलिंग और पैसा वसूली का काम बाकी के 3 लोग करेंगे.

आइडिया चल निकला. कैमरा चलाना सीख कर नेहा उसे ऐसी जगह फिट कर देती थी, जहां से उस की और डाक्टर के शारीरिक संबंधों की फिल्म आसानी से शूट हो सके. पूछताछ में पता चला कि इस गिरोह ने पहली फिल्म विकास गुप्ता की साली की बनाई थी. पर तब उन का मकसद केवल उस की शादी तोड़ना था.

दरअसल, विकास के संबंध अपनी साली से थे, जिस की शादी लहार के एक डाक्टर से तय हो गई थी. उस डाक्टर को नेहा के जरिए इन्होंने फंसाया था. इस के बाद तो इन के हौसले बुलंद हो गए और ये चारों इसे फुलटाइम जौब बना बैठे.

नेहा ने अपना नाम और पहचान बदल कर मनीषा पाल रख लिया. विकास जो इस गिरोह का मास्टरमाइंड था, उस ने उस का फरजी आधार कार्ड मनीषा पाल के नाम से बनवा दिया था.

नेहा दिल की मरीज बन कर डाक्टर के पास जाती थी और अपनी खूबसूरती के जाल में डाक्टरों को फंसा कर उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए उकसाती थी. डाक्टर भी तो आखिरकार मर्द ही है, इसलिए जल्द ही नेहा के देहजाल में उलझ जाता था. यह गिरोह ग्वालियर, चंबल में ही अब तक 2 डाक्टरों से लगभग 15 लाख रुपए ऐंठ चुका है.

भोपाल के एक नामी डाक्टर से 25 लाख रुपए ऐंठने की बात भी इन्होंने कबूली. इस के अलावा 20 और ऐसे डाक्टरों के नाम बताए, जो इन का अगला शिकार बनने वाले थे. इन डाक्टरों से संबंधित सारी जानकारी विकास ने कंप्यूटर में डाल रखी थी. इन में ग्वालियर, झांसी और विदिशा के डाक्टरों के नाम हैं. यानी इस ब्लैकमेलर गिरोह के रोडमैप में सैंट्रल रेलवे के स्टेशन खास मुकाम थे.

ये लोग फंसाए जाने वाले डाक्टर की पूरी जानकारी पहले से ही हासिल कर लेते थे, जिस से शिकार करने में आसानी हो. प्राथमिकता उन डाक्टरों को ही दी जाती थी, जो कुंवारे हों या अकेले रहते हों और वे जल्द ही खूबसूरत महिलाओं के मुरीद हो जाते हों.

पूछताछ में नेहा ने भी सारा सच उगल दिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने उस का स्पाई कैमरा यानी खुफिया कैमरा भी जब्त कर लिया. नेहा ने यह भी बताया कि उसे अब तक महज 5 हजार रुपए ही दिए गए हैं. बाकी रकम विकास गुप्ता के पास है. पुलिस ने विकास की गिरफ्तारी के लिए कई जगहों पर दबिशें दीं, पर वह नहीं मिला.

नेहा, अनिल और कृष्णकुमार उर्फ राजाबाबू से रिमांड पर पूछताछ करने के बाद जेल भेज दिया गया. रिपुदमन ने हिम्मत दिखाते हुए पुलिस की मदद ली तो न केवल खुद को बल्कि अपनी बिरादरी के और भी डाक्टरों को बचा लिया, जिन्हें लाखों का चूना यह गिरोह लगाने वाला था.

यह सबक दूसरे डाक्टरों को मिल गया कि वे दिलफेंक और नेहा जैसी बड़े दिल की मरीजों के सामने अपने दिल को काबू में रखें, नहीं तो जो हश्र ऐसे मामलों में होता है, उस से बच पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है. रिपुदमन का झूठ ग्वालियर में चर्चा का विषय है कि कैसे एक बेहोश आदमी पूरे जोश से सैक्स क्रियाएं कर रहा है, लेकिन ऐसी रिपोर्ट लिखाना शायद उन की मजबूरी हो गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और रिपुदमन सिंह परिवर्तित नाम है.

हाईवे के लुटेरे का अंत

उस दिन तारीख थी 27 अक्तूबर, 2017. दोपहर के करीब 2 बज रहे थे. राजस्थान के रानीवाड़ा – सांचौर सड़क मार्ग पर वाहन आ जा रहे थे. उन्हीं वाहनों में से एक स्कौर्पियो तेज गति से चली जा रही थी. उसे चला रहा थाभरत राजपुरोहित. भरत के पास अगली सीट पर भीम सिंह भाटी बैठा था. दोनों घबराए से लग रहे थे. शायद उन्हें अंदेशा हो गया था कि आंध्र प्रदेश पुलिस उन का पीछा कर रही है.

भरत और भीम सिंह ने पुरजोर कोशिश की कि वह गाड़ी भगा ले जाएं, लेकिन आंध्रा पुलिस की गाड़ी बराबर उन का पीछा कर रही थी. चूहेबिल्ली का खेल खेलती गाडि़यां सड़क पर दौड़ते हुए जब लाछड़ी-हाड़ेतर के बीच पहुंची तो अचानक गोलियां चलने की आवाज से आसपास का इलाका थर्रा उठा. लोगों की समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है?

जब लोग उस जगह पर पहुंचे तो पता चला कि आंध्रा पुलिस ने साढ़े 5 करोड़ रुपए के लुटेरे भीम सिंह भाटी भीनमाल को एनकाउंटर में मार गिराया है. थोड़ी दूर सड़क पर एक महिला शांति देवी जोगी की भी लाश पड़ी थी, जो गाड़ी के आगे आने से मर गई थी.

भीम सिंह ने धोन ग्रामीण थाना एरिया जिला करनूल, आंध्र प्रदेश में एक मारवाड़ी का अपहरण कर के साढ़े 5 करोड़ रुपए लूटे थे. करनूल पुलिस काफी दिनों से आरोपी भीम सिंह के पीछे लगी थी. 27 अक्तूबर को जब वह सांचौर-गुजरात बौर्डर पर नजर आया तो आंध्रा पुलिस उस के पीछे लग गई.

भीम सिंह व भरत ने पुलिस पर फायरिंग करनी शुरू की तो जवाब में करनूल पुलिस ने भी गोलियां चलाईं. इसी बीच लाछड़ी-हाड़ेतर के बीच पुलिस की गाड़ी ने ओवरटेक कर के साइड से ही आरोपियों की स्कौर्पियो पर 8-9 राउंड फायर किए. उन में से 2 गोलियां भीम सिंह को लगीं. एक गोली भीम की बांह पर लगी और दूसरी सीने को पार कर गई, जिस से उस की मौत हो गई.

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 भीम सिंह

एक गोली आरोपी भीम की स्कौर्पियो चला रहे बिछीवाड़ी निवासी हिस्ट्रीशीटर भरत को लगी, वह घायल हो गया. उसे इलाज के लिए डीसा (गुजरात) भेजा गया. उसी बीच आरोपियों की गाड़ी से राह चलती महिला शांति देवी पत्नी बाबूनाथ जोगी भी चपेट में आ गई, जिस की मौत हो गई.

घटना की सूचना मिलने पर सांचौर पुलिस मौके पर पहुंची और शव अस्पताल में रखवा दिया. सूचना पा कर मृतक के परिजन तथा काफी संख्या में लोगों की भीड़ जमा हो गई. लोगों ने इसे फरजी एनकाउंटर बताते हुए धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया. जालौर के एसपी विकास कुमार छुट्टी पर थे, इसलिए आईजी हवा सिंह घुमरिया ने बाड़मेर के एसपी गगनदीप सिंगला को मौके पर भेजा और खुद भी रात में सांचौर पहुंच गए.

करनूल पुलिस ने एनकाउंटर के बाद भीम सिंह, भरत व शांति को सांचौर अस्पताल पहुंचाया. तब तक भीम सिंह व शांति की मौत हो चुकी थी. सांचौर के एएसपी जस्साराम बोस, डीएसपी फाऊलाल मीणा, तहसीलदार पीतांबरदास राठी भी वहां पहुंच गए थे. काफी संख्या में लोग भी वहां आ गए और फरजी एनकाउंटर का आरोप लगा कर धरनाप्रदर्शन करने लगे. मृतक के भाई खुशाल सिंह भी वहां आ गए थे.

वहां इकट्ठा लोग आरोप लगा रहे थे कि पुलिस के इशारा करने पर भीम सिंह ने गाड़ी रोक दी थी. इस के बाद एनकाउंटर के नाम पर पुलिस ने भीम की हत्या कर दी. रात तक आईजी हवा सिंह घुमरिया और बाड़मेर के एसपी गगनदीप सिंगला लोगों को समझाने में लगे रहे.

सांचौर चौराहे से दिनदहाड़े फायरिंग और तेज गति से दौड़ रही गाडि़यों की आवाज सुन कर वहां से गुजर रहे लोगों में अफरातफरी मच गई थी. ये गाडि़यां रानीवाड़ा की ओर भागी जा रही थी. थोड़ी देर में सांचौर पुलिस की गाडि़यां भी उधर से दौड़ती हुई निकलीं. उस के करीब 15 मिनट बाद रास्ते में ही आरोपी की गाड़ी रोड से उतरी हुई मिली.

लोगों ने देखा कि चालक जख्मी था और पास बैठा भीम सिंह खून से लथपथ था. उन की गाड़ी भी 8-9 गोलियां लगने से छलनी हो गई थी और कांच टूट गए थे. जबकि पुलिस की गाड़ी पर गोली का एक भी निशान नहीं था. करनूल पुलिस के इंसपेक्टर जी. राजशेखर, जिन्होंने आरोपी भीम सिंह का एनकाउंटर किया था, उन्होंने स्थानीय पुलिस को बताया कि भीम सिंह ने इसी साल करनूल के अक्षय जैन व निलेश जैन मारवाड़ी का अपहरण कर साढ़े 5 करोड़ रुपए लूटे थे.

इन के खिलाफ अपहरण, लूट व हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज है. 2-3 दिनों से पुलिस भीम को तलाश कर रही थी. 27 अक्तूबर को उस के आबू रोड की ओर आने की सूचना मिली तो वे मौके पर मुस्तैद हो गए. माखुपुरा-धानेरा चैकपोस्ट की ओर से आरोपी की गाड़ी आई. उसे रुकने का इशारा किया गया तो आरोपी फायरिंग करने लगे. पुलिस की जवाबी फायरिंग में भीम सिंह की मौत हो गई.

सांचौर के एएसपी जस्साराम बोस ने बताया कि उन्होंने हथियारबंद लोगों के गाडि़यां दौड़ाने की सूचना पर स्थानीय पुलिस को भेजा था. पुलिस के पहुंचने से पहले ही घटना घटित हो चुकी थी. इसी घटनाक्रम में एक राह चलती महिला शांति भी मर गई थी.

पुलिस ने आरोपी व आंध्र प्रदेश पुलिस की गाडि़यों की जांच की तो पता चला कि महिला की मौत भीम सिंह की गाड़ी की चपेट में आने से हुई थी. हालांकि लोगों का कहना था कि शांति की मौत पुलिस की गाड़ी से कुचल कर हुई थी.

करनूल में मारवाड़ी के अपहरण व साढ़े 5 करोड़ की लूट की वारदात में आरोपियों को पकड़ने आई पुलिस ने जालौर पुलिस को सूचना नहीं दी थी. करनूल पुलिस 2 दिन से आरोपियों की तलाश में घूम रही थी. हालांकि लूट की घटना की पूरी जानकारी एडीजी एन.आर.के. रेड्डी को थी, क्योंकि करनूल पुलिस ने उन्हें वारदात की जानकारी दे दी थी.

इस मामले में करनूल पुलिस का सहयोग करने के लिए आईजी एम.एन. दिनेश दोनों राज्यों की पुलिस को कोऔर्डिनेट कर रहे थे.  भीनमाल के थानाधिकारी कैलाशचंद्र मीणा ने बताया कि भीम सिंह उर्फ राजू पुत्र शंभू सिंह भाटी उर्फ छोटू सिंह पर विभिन्न तरह के 15 मामले दर्ज थे. इस के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक में भी उस पर कई मुकदमे थे.

भीम के पिता शंभू सिंह भी लूट, नकबजनी सहित विभिन्न वारदातों के 23 मामलों में आरोपी है. भीम सिंह का साथी भरत, जो गाड़ी चला रहा था, उस के खिलाफ भी लूट और अपहरण जैसे 18 मुकदमे दर्ज थे. भरत थाने का हिस्ट्रीशीटर था. आईजी हवा सिंह घुमरिया ने बताया कि साढ़े 5 करोड़ की लूट के आरोपी भीम सिंह व पीछा करते समय पुलिस में क्रौस फायरिंग हुई थी, जिस में भीम सिंह की मौत हो गई और भरत घायल हुआ.

भीम सिंह की गाड़ी से शांति नाम की एक महिला कुचल गई. पुलिस अधिकारियों के समझाने पर मृतका शांति के परिजन किसी तरह मान गए, तब पुलिस ने भीम सिंह का शव सांचौर से जालौर के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

जैसे ही उस की लाश सरकारी अस्पताल पहुंची, मारवाड़ी राजपूत महासभा के अध्यक्ष हनुमान सिंह खांगटा, कांग्रेसी नेता ऊभ सिंह चांदराई, श्री राजपूत करणी सेना के जिलाध्यक्ष चंदन सिंह कोराणा, श्री राजपूत करणी सेना जोधपुर के जिलाध्यक्ष विजय सिंह मेड़तिया, रतन सिंह दूदवा, सज्जन सिंह सहित राजपूत समाज के तमाम लोग अस्पताल पहुंच गए. उन का आरोप था कि यह मुठभेड़ नहीं थी, बल्कि पुलिस ने भीम सिंह की हत्या की है.

इस मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग को ले कर सभी मोर्चरी के बाहर 27 अक्तूबर की रात भर धरने पर बैठे रहे. 28 अक्तूबर को दोपहर बाद मैडिकल बोर्ड बना कर भीम के शव का पोस्टमार्टम किया गया.

जालौर जिला अस्पताल के पीएमओ डा. एस.पी. शर्मा ने पोस्टमार्टम के बाद बताया कि भीम सिंह की मौत हेमरेजिक शौक से हुई थी. उसे गोली सामने से मारी गई थी, जो बाएं फेफड़े में घुस कर पीछे की पसली को तोड़ कर रुक गई थी. इस दौरान फेफड़ा डैमेज होने व खून जमा होने से उस की मौत हो गई.

डा. शर्मा ने बताया कि एक गोली भीम के बाएं हाथ को छू कर निकल गई. इस से पूर्व किए गए एक्सरे में दूसरी कोई चोट या फ्रैक्चर नहीं मिला. भीम सिंह हाईवे का लुटेरा था. उस ने 13 सितंबर, 2017 की रात आंध्र प्रदेश के करनूल जिले के धोन थाना एरिया में मनी ट्रांसपोर्ट कंपनी के कार चालक का अपहरण कर साढ़े 5 करोड़ रुपए लूटे थे.

लूट की इस वारदात में उस के अलावा उस के 5 और साथी शामिल थे. उस ने लूट की पूरी रकम में से सिर्फ 75 लाख रुपए एक साथी को दिए थे, बाकी के रुपए उस ने खुद रख लिए थे. इस के बाद वह राजस्थान आ गया था. करनूल के डीएसपी हुसैन जैदी भीम सिंह को गिरफ्तार करने के मकसद से राजस्थान में कैंप किए हुए थे. उन्हें एक सप्ताह पहले भीम सिंह के जोधपुर में छिपे होने की सूचना मिली थी.

वह अपनी टीम के साथ जोधपुर पहुंचे. यह जानकारी उन्होंने आईजी रेंज व पुलिस कमिश्नर को दी. सर्विलांस टीम से उन्हें पता चला कि भीम सिंह की लोकेशन चौपासनी हाउसिंग बोर्ड, जोधपुर है. वह 2 दिनों तक चौपासनी हाउसिंग बोर्ड एरिया में उसे तलाशते रहे, लेकिन वह पुलिस को चकमा दे कर निकल गया.

करनूल की दूसरी पुलिस टीम गुजरात में थी. घटना से 2 दिन पहले इस टीम को भीम सिंह की लोकेशन जालौर में मिली. दरअसल, 27 अक्तूबर को जब भीम सिंह ने फोन चालू कर भरत को गुजरात चलने को कहा और वह होटल पर उसे लेने गया, तब करनूल पुलिस ने उसे ट्रेस कर लिया और पीछे लग गई.

करनूल के एसपी गोपीनाथ जट्टी ने बताया कि उन की टीम ने भीम सिंह को आत्मसमर्पण करने को कहा, लेकिन वह फायर करते हुए गाड़ी भगा ले गया. उन्होंने बताया कि उस की मौत क्रौस फायरिंग से हुई थी.

भीम सिंह के गैंग ने जो रुपया लूटा था, वह अहमदनगर के ज्वैलर अक्षय राजेंद्र लूणावत का था. उस ने यह पैसा बंगलुरु पहुंचाने के लिए हैदराबाद की ट्रांसपोर्ट कंपनी के नीलेश नंदलाल को सौंपा था. नीलेश ने अपने ड्राइवर करण चौबे व सुपरवाइजर अरविंद कुमार को पैसों का बौक्स दे कर भेजा था.

वे थाना धोन एरिया में चाय पीने के लिए रुके, वहीं से भीम सिंह की गैंग पीछे लग गई और उन्होंने हथियारों के बल पर उन का अपहरण कर लिया. दोनों को करीब 150 किलोमीटर दूर नागपुर में छोड़ा और पैसे ले कर भाग गए. करनूल के एसपी गोपीनाथ ने केस को सुलझाने के लिए 5 पुलिस टीमें बनाईं.

जांच में पुलिस को पता चला कि इस लूटकांड में कुख्यात बदमाश भीम सिंह का हाथ है तो पुलिस टीमें उस की तलाश में जुट गईं. लेकिन उस का पता नहीं चल सका.

इसी बीच पुलिस ने हैदराबाद व नागपुर में कार सहित 3 लोगों को गिरफ्तार किया तो उन्होंने भी बताया कि गैंग का लीडर भीम सिंह था और लूट की सारी रकम वही ले गया है. इस के बाद करनूल के डीएसपी हुसैन पीरा के नेतृत्व में 2 पुलिस टीमें उस की तलाश करते हुए राजस्थान व गुजरात पहुंचीं.

पोस्टमार्टम के बाद भीम सिंह का शव उस के भाई खुशाल सिंह को सौंप दिया गया. अगले दिन उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया. अंतिम संस्कार में सर्वसमाज के सैकड़ों लोग मौजूद थे. राजस्थान पुलिस हर घटना पर निगाह रखे हुए थी. जैसा माहौल आनंदपाल एनकाउंटर में हुआ था, पुलिस ने वैसा माहौल नहीं बनने दिया.

उधर सांचौर थाने में हाईवे के लुटेरे भीम सिंह के एनकाउंटर मामले में 3 केस दर्ज हो गए. पहला मुकदमा आंध्र प्रदेश के करनूल जिले की पुलिस की ओर से भीम सिंह व उस के साथी भरत के खिलाफ दर्ज हुआ.

दूसरा भरत के बयान पर एनकाउंटर करने वाले इंसपेक्टर व उन की टीम के खिलाफ और तीसरा मुकदमा राह चलती महिला शांति के परिजनों की रिपोर्ट पर दर्ज हुआ, जिस की भीम सिंह की गाड़ी की चपेट में आने से मौत हुई थी.

एनकाउंटर सही है या फरजी, यह तो जांच के बाद ही पता चल सकेगा. सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर, 2014 में एनकाउंटर मामलों में 16 बिंदुओं की गाइडलाइन जारी की थी. गाइडलाइन के मुताबिक ऐसे मामलों की जांच मजिस्ट्रैट अथवा सीआईडी या फिर अन्य स्वतंत्र एजेंसी करती है. जांच पूरी होने तक एनकाउंटर में शामिल पुलिस टीम के किसी भी सदस्य को गैलेंट्री प्रमोशन नहीं मिलता.

जोधपुर रेंज के आईजी हवा सिंह घुमरिया ने बताया कि सभी मुकदमों की बारीकी से जांच कराई जाएगी और पीडि़त पक्ष को पूरी तरह संतुष्ट कराया जाएगा. इंसपेक्टर राजशेखर की ओर से दर्ज मुकदमे में घायल भरत पुरोहित भी आरोपी है. उस ने भीम सिंह को भगाने का भी प्रयास किया था. भरत का डीसा में पुलिस निगरानी में इलाज चल रहा था. ठीक होने पर उसे हत्या के प्रयास व सरकारी काम में बाधा डालने के मुकदमे में गिरफ्तार किया जाएगा.

27 साल का भीम सिंह उर्फ राजू महज 5वीं कक्षा तक ही पढ़ा था. पिता शंभू सिंह की आपराधिक छवि का असर उस पर बचपन से ही पड़ गया था, जिस का नाम धीरेधीरे अपने पिता के अपराध के साथ भी जुड़ता गया. इस से उस के हौसले बुलंद हुए और वह खुल कर अपराध की दुनिया में कूद गया. मोहल्ले में रहने वाली दूसरी जाति की एक युवती से भीम को प्यार हुआ तो घर वालों की मरजी के खिलाफ उस से शादी कर ली.

दूसरी जाति की लड़की से शादी करने से उस की अपने पिता से दूरियां बढ़ गईं. पिता शंभू सिंह अपने परिवार के साथ भागलभीम, जिला जालौर में स्थित अपने खेत पर रहने लगा. वहीं भीम सिंह अपनी पत्नी के साथ भीनमाल में किराए के मकान में रहने लगा, जहां उस की 2 बेटियों का जन्म हुआ.

नाराजगी के चलते उस ने अपनी बीवीबच्चों को परिवार से भी नहीं मिलाया. परिवार से उस की दूरी बनी रही और वह कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश तक आपराधिक वारदातें करने लगा. जालौर जिले के ही 7-8 लोग उस की गैंग में थे.

उन्होंने जब साढ़े 5 करोड़ रुपए की लूट की तो पुलिस ने इस केस को चुनौती मान कर भीम सिंह का पीछा जारी रखा और आखिर वह मारा गया. फिलहाल यह एनकाउंटर है या हत्या? यह जांच के बाद ही पता चलेगा. मगर हाईवे के लुटेरे का अंत जरूर हो गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मिलावटी मसालों वाला गिरोह

गाजियाबाद के कस्बा लोनी में स्थित विकास नगर में कुछ उत्साही युवकों ने भंडारे का आयोजन किया था. गली नंबर 8 के पास हलवाई के लिए टेंट लगाया जा चुका था. सब्जी, आटा, घी, तेल वगैरह एकत्र हो चुका था. हलवाई के साथ आए कारीगरों ने भट्ठी तैयार कर ली थी.

सब्जी आलू की बनाई जानी थी, आलू काट लिए गए थे. सब सामान तैयार था, कमी मिर्चमसालों की थी. यह सब लाने का जिम्मा अतुल ने उठाया था. वह अभी तक मसाले देने नहीं आया था, जबकि अतुल के दोस्तों का कहना था, ‘मसाले तो अतुल ने एक हफ्ता पहले ही खरीद लिए थे. मसालों को उसे सुबह ही पहुंचा देना चाहिए था.’ वह नहीं आया, इस के पीछे क्या वजह है कोई नहीं जानता था.

”रामू, तुम अतुल के घर जा कर देखो. कहीं अतुल आज के भंडारे की डेट भूल तो नहीं गया है.’’ गणेश नाम के एक व्यक्ति ने वहां मौजूद एक युवक को संबोधित कर के कहा.

”देखता हूं दादा.’’ रामू सिर हिला कर बोला और गली नंबर 8 में ही स्थित अतुल जैन के घर की तरफ चल पड़ा.

अभी रामू दोचार कदम ही चला था कि सामने से अतुल अपनी स्कूटी से आता हुआ नजर आ गया. रामू के पांव रुक गए. अतुल पास आया, तब रामू को उस की स्कूटी पर मसालों का कट्टा नजर आ गया.

”सब तुम्हारा ही इंतजार कर रहे हैं अतुल. मैं तुम्हें बुलाने जा रहा था कि तुम आ गए.’’

”मैं देर से सोया था, थोड़ी देर पहले ही जागा हूं. अभी नहाया भी नहीं, पहले मसाले पहुंचाने आ गया.’’ अतुल ने कहा और स्कूटी आगे बढ़ा कर टेंट के नजदीक रोक दी.

रामू भी लौट आया. मसाले का कट्टा उतार कर उसी ने हलवाई के पास पहुंचाया, ”लो उस्ताद, मसाले भी आ गए.’’

हलवाई ने कट्टे की रस्सी खोली और टेबल पर कट्टे से मसाले के पैकेट निकाल कर रखने लगा.

अतुल वहां से हट कर गणेश के पास आ गया और बात करने लगा. अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि हलवाई उन के पास आ कर खिन्न होते हुए बोला, ”मसाले कहां से उठा कर लाए हो भाई. सारे मसाले नकली हैं. इन से सब्जी में कोई टेस्ट नहीं आएगा.’’

”यह क्या कह रहे हो उस्ताद? मसाले नकली कैसे हो गए, मैं ने तो बाजार भाव में ही खरीदे हैं, किसी रेहड़ी या पटरी से नहीं खरीदे हैं.’’ अतुल हैरान परेशान स्वर में बोला.

”बेशक बाजार भाव से खरीदे हैं लेकिन मैं रातदिन पार्टी भंडारे का काम करता हूं, मुझे मसालों की अच्छे से पहचान है. तुम जो मसाले लाए हो, सब मिलावटी और नकली हैं.’’

”अतुल, उस्तादजी अगर कह रहे हैं कि मसाले नकली हैं तो नकली ही होंगे. तुम जहां से इन्हें लाए हो वापस दे कर अच्छी दुकान से मसाले खरीद लाओ.’’ गणेश ने गंभीर होते हुए कहा.

”मैं ने करावल नगर से ये मसाले खरीदे थे. मैं इन्हें बाद में वापस कर दूंगा. आप ये 2 हजार रुपए रखो और मसाले खरीद लाओ.’’ अतुल ने जेब से 2 हजार रुपए निकाल कर हलवाई को दे दिए.

”मुझे अपनी स्कूटी दे दो, मैं जवाहर नगर से मसाले खरीद कर लाता हूं.’’

”ले जाइए.’’ अतुल ने स्कूटी की चाबी हलवाई की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ”रामू, तुम उस्तादजी के साथ चले जाओ.’’

रामू ने सिर हिलाया. हलवाई उसे ले कर मसाले खरीदने चला गया.

नकली मसालों की इस तरह पुलिस को लगी भनक

जब ये बातें हो रही थीं, वहीं पास से गुजर रहा पतला सा व्यक्ति रुक कर उन की बातें सुनने लगा था. हलवाई गया तो वह व्यक्ति लपक कर उन के पास आ गया.

”हलवाई मसालों को नकली बता रहा है, कहीं तुम ये मसाले करावल नगर की उस मसाला फैक्ट्री से तो नहीं लाए हो, जो न्यू नाइस चिकन कार्नर के पास में है?’’ उस व्यक्ति ने गंभीर हो कर पूछा.

”हां, मसाले मैं ने वहीं से खरीदे हैं.’’ अतुल जल्दी से बोला, ”किंतु आप कौन हैं और उस फैक्ट्री के बारे में आप को कैसे जानकारी है?’’

युवक मुसकराया फिर आगे मुंह कर फुसफुसाया, ”मुझे उस के बारे में सब पता है. उस नकली मसाला बनाने वाली फैक्ट्री के ऊपर मेरी कई दिनों से नजर जमी हुई है. मैं तय नहीं कर पा रहा था कि उस फैक्ट्री में असली मसाले तैयार होते हैं या नकली. आज पारखी (हलवाई) ने मेरी परेशानी दूर कर दी. उस फैक्ट्री में नकली मसाले बनाए जाते हैं. अब उस फैक्ट्री पर पुलिस रेड होगी. हां, तुम अभी यह बात कहीं लीक मत करना और कल सुबह अपना माल बदल लेना.’’

”ठीक है.’’ अतुल ने कहा.

वह युवक आराम से टहलता हुआ पैदल ही एक ओर बढ़ गया. अतुल और गणेश उसे हैरानी से देखते रह गए. दरअसल, वह युवक दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच का मुखबिर था.

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       एएसआई कंवर पाल

पहली मई, 2024 को करीब साढ़े 10 बजे मुखबिर साइबर सेल क्राइम ब्रांच के औफिस में पहुंचा. उस वक्त अपने कक्ष में एएसआई कंवर पाल एक जरूरी फाइल देख रहे थे. मुखबिर ने उन्हें सैल्यूट किया तो कंवरपाल मुसकरा पड़े, ”पुलिस की संगत में रह कर तुम भी खुद को पुलिस वाला ही समझने लग गए हो.’’

मुखबिर ने खींसे निपोरी, ”ऐसी बात नहीं है साहब, कहां आप पढ़ेलिखे अफसर और कहां मैं तीसरी पास सड़कछाप आदमी. बस तहजीब कहती है, अपने से बड़े को सम्मान करो, सो कर लेता हूं. आप को तो खुश होना चाहिए साहब.’’

”तुम्हें देख कर खुशी ही होती है, क्योंकि तुम कभी बिना वजह नहीं आते हो.’’ कंवरपाल मुसकरा कर बोले, ”बोलो, क्या खबर है?’’

”साहब, मुझे आप ने करावल नगर में नकली मसाले तैयार होने का पता ठिकाना मालूम करने के काम पर लगाया था.’’

”याद है. हमारी एक टीम नकली मसालों के धंधे का पता लगाने में जुटी हुई है. इस में एसआई प्रवेश, मैं और हैडकांस्टेबल विपिन और अनुज शामिल हैं. तुम ने क्या मालूम किया है?’’

”बहुत कुछ मालूम कर लिया है साहब.’’ मुखबिर एएसआई कंवरपाल के सामने आ कर कुरसी पर बैठते हुए बोला, ”करावल नगर में नकली मसालों को बना कर सप्लाई किया जा रहा है. एक ऐसा गवाह भी मुझे मिल गया है, जिस ने उसी फैक्ट्री से भंडारा करने के लिए मसाले खरीदे थे. भंडारा लोनी के विकास नगर में होना था, मैं कल सुबह वहीं से गुजर रहा था. मुझे पता लगा, जो मसाले करावल नगर से भंडारा करने के लिए खरीदे गए थे, हलवाई ने उन्हें देख कर बता दिया कि वे नकली हैं.’’

”यह पक्की जानकारी है या…’’

”एकदम पक्की है साहब. एक हफ्ते से मैं उस मसाला फैक्ट्री की टोह ले रहा था. वह फैक्ट्री न्यू नाइस चिकन कार्नर के पास स्थित है. मैं ने कल फैक्ट्री में घुस कर पूरी जानकारी जुटाई है. फैक्ट्री में मसाला पीसने की चक्की भी है. वहां बड़े पैमाने पर मसालों में हानिकारक पदार्थ मिलाए जाते हैं.

”लाल मिर्च, हल्दी, धनिया पाउडर, गरम मसाले आदि में सड़ा हुआ सामान डाला जा रहा है जो आम लोगों के लिए बहुत खतरनाक है. इस के प्रयोग से उन की सेहत खराब हो सकती है. साहब, कुछ नामी ब्रांड के नाम से इन मिलावटी मसालों को पैकेटों में भरा जाता है. इन्हें पकड़ा नहीं गया तो ये अपने मुनाफे के लिए दिल्ली ही नहीं, एनसीआर तक में लोगों की तबियत खराब कर डालेंगे. आप इन पर तुरंत ऐक्शन लीजिए.’’

”अगर तुम्हारी सूचना सही हुई तो तुम्हें मोटा ईनाम दिया जाएगा. तुम कुछ देर बाहर रुको, मैं अफसरों को इस की जानकारी दे कर रेड डालने की इजाजत लेता हूं.’’

मुखबिर उठ कर कंवरपाल के कक्ष से बाहर निकल गया. एएसआई कंवरपाल ने इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह को फोन से मुखबिर द्वारा दी गई नकली मसाला फैक्ट्री के बारे में जानकारी दे दी. उन्होंने मुखबिर के साथ तुरंत एएसआई कंवरपाल को अपने कक्ष में आने को कहा.

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                  इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह

एएसआई कंवरपाल अपने कक्ष से निकल कर बाहर आए. मुखबिर बाहर खड़ा था. एएसआई कंवरपाल को देखते ही मुखबिर सावधान हो कर खड़ा हो गया.

”आओ मेरे साथ.’’ एएसआई कंवरपाल ने मुखबिर को इशारा किया और उसे ले कर इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह के औफिस में आ गए.

इंसपेक्टर को सैल्यूट कर के उन्होंने मुखबिर की तरफ देख कर कहा, ”साहब, मैं ने नकली मसाला बनाने वाली फैक्ट्री की टोह में एक सप्ताह पहले इसे लगाया था. यह पक्की जानकारी ले कर आया है.’’

”क्या उस फैक्ट्री में नकली मसाले तैयार किए जाते हैं?’’ इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह ने मुखबिर से पूछा.

”जी हां, साहब. मसालों में हानिकारक चीजें मिला कर वे लोग नामी कंपनियों के पैकेट तैयार करते हैं.’’ मुखबिर ने गंभीर स्वर में कहा, ”वहां तुरंत रेड डालने की जरूरत है.’’

नकली मसाला फैक्ट्री पर रेड के लिए बन गई पुलिस टीम

इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह ने उच्चाधिकारियों से बात कर के उन के निर्देश पर तुरंत एक रेड पार्टी का गठन कर दिया. इस रेड पार्टी में एसआई हरविंदर, प्रवेश राठी, एएसआई विनोद, हैडकांस्टेबल विपिन, अनुज को शामिल किया गया. इन के साथ मुखबिर को जाना था, क्योंकि वह उस फैक्ट्री के बारे में जानता था, जहां नकली मसाले तैयार किए जा रहे थे.

HC Anuj kumar                            HC vipin

                       हैडकांस्टेबल अनुज                                                 हैडकांस्टेबल विपिन

सादे कपड़ों में रेड पार्टी मुखबिर के साथ करावल नगर में स्थित मसाला फैक्ट्री के पास पहुंच गई. दरवाजे खुलवा कर पुलिस टीम फैक्ट्री में घुसी तो वहां काम करने वाले घबरा गए.

HC vinod                                     HC-anand

            एएसआई विनोद                                                             हैडकांस्टेबल आनंद 

एक साथ इतने लोगों को अंदर आया देख कर टेबल के पास बैठा एक व्यक्ति चौंक कर खड़ा हो गया. वह उन्हें देख कर हैरान होते हुए बोला, ”कौन हैं आप लोग? क्या आप यहां पर मसाले खरीदने आए हैं?’’

”हम क्राइम ब्रांच से हैं. काफी समय से हमारी एक टीम तुम लोगों की टोह में थी. आज तुम तक पहुंचने में हमें सफलता मिली है.’’

वह व्यक्ति बुरी तरह घबरा गया. वह हड़बड़ा कर बोला, ”सर, ऐसा कुछ नहीं है. यहां कोई नकली मसाला नहीं बनाया जाता.’’

एसआई हरविंदर ने एक करारा झापड़ उस की कनपटी पर रसीद कर दिया, ”मैं ने यह कहां कहा कि यहां नकली मसाला बनता है! तुम क्यों सफाई देने लगे?’’

”जी, मैं सच कह रहा हूं.’’ वह थप्पड़ खा कर अपना गाल सहलाते हुए बोला.

”हम देख लेंगे, सच क्या है.’’ एसआई हरविंदर ने टीम को इशारा किया, ”आप अंदर देखिए.’’

टीम के सभी सदस्य अंदर लपके.

SI Harvinder singh                    SI parvesh

            एसआई हरविंदर                                                           एसआई प्रवेश राठी

अंदर एक अधेड़ व्यक्ति मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के अंदर हल्दी पीसता मिला. उसे अपने काबू में कर के टीम यूनिट का मुआयना करने लगी. अंदर काफी कट्टे रखे थे. इन में देखा गया तो पूरी टीम के होश उड़ गए.

अंदर कट्टों में खराब चावल की किनकी, सड़े हुए गोले (नारियल), पशुओं को खिलाने वाला चोकर, सड़े हुए बेर, जामुन की गुठलियां, हल्दी की गांठ, अमचूर पाउडर, मसाले की पत्तियां, साबुत धनिया, लाल मिर्च साबुत, लाल मिर्च के डंठल, आर्टिफिशियल कलर, तेल आदि मिले. कुछ बोरों में यूकेलिप्टस के पत्ते, लकड़ी का बारीक बुरादा भी भरा मिला.

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चक्की के पास पिसी हुई हल्दी पड़ी थी. क्राइम ब्रांच की टीम हैरान थी कि रुपया कमाने के लिए ये लोग सब की जिंदगी और सेहत के साथ खतरनाक खिलवाड़ कर रहे थे. सड़े हुए चावल, सड़े हुए गोले, यूकेलिप्टस के पत्ते, लकड़ी का बुरादा मसाला तैयार करने में इस्तेमाल किया जा रहा था.

पुलिस ने बुलाया फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट के अफसरों को

इस में जहरीला कलर, सड़ा हुआ सरसों तेल, पशुओं का चोकर, सड़े बेर, जामुन की गुठलियां, सड़ा नारियल तक पीसा जा रहा था. साइट्रिक एसिड भी मिलाया जाता था.

यहां 2 व्यक्ति थे. इन के नाम पूछे गए. एक ने अपना नाम खुर्शीद मलिक (42 वर्ष). पता गिरी मार्केट, लोनी, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश, बताया. दूसरे का नाम दिलीप सिंह उर्फ बंटी (46 वर्ष) निवासी दयालपुर, मेन रोड करावल नगर, दिल्ली.

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       आरोपी खुर्शीद मलिक

यह फैक्ट्री दिलीप सिंह की थी. यह पिछले 6-7 महीने से बी-24ए दयालपुर, करावल नगर, दिल्ली, नजदीक न्यू नाइस चिकन कार्नर में किराए पर यह मैन्युफैक्चरिंग यूनिट चला रहा था.

दिलीप सिंह ने पूछताछ में बताया कि वह मिलावटी मसाला तैयार कर नामी ब्रांड के मसालों के नकली रैपर्स में भर कर दिल्ली की खारी बावली, मिठाई पुल, मुस्तफाबाद, लोनी, गाजियाबाद, सदर बाजार में थोक व फुटकर में बेच कर मोटी कमाई कर रहा था.

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      आरोपी दिलीप उर्फ बंटी

सभी नकली मसालों के सैंपल लेना जरूरी था. एसआई प्रवेश ने फूड सेफ्टी औफिसर (जीएनसीटी) को सूचित कर के सारी बात बताई और टीम को करावल नगर आने के लिए कहा.

यह काररवाई चल ही रही थी कि अपनी स्कूटी पर अतुल जैन वह मसालों का कट्टा ले कर वहां आ गया, जो उस ने 23 अप्रैल को ही भंडारे के लिए वहां से खरीदे थे.

आते ही वह दिलीप उर्फ बंटी से झगड़ा करने लगा, ”तुम से मैं ने जो मसाले खरीदे थे, वे नकली हैं. तुम यहां नकली मसाले बनाने का धंधा करते हो?’’ अतुल जैन गुस्से में बोला, ”मैं तुम्हारी पुलिस में शिकायत करूंगा.’’

”हम क्राइम ब्रांच से हैं.’’ एसआई हरविंदर ने अतुल के पास आ कर कहा, ”यह मिलावटी मसाले बनाने और बेचने के जुर्म में हमारी गिरफ्त में है. क्या तुम इस के खिलाफ गवाही दोगे मिस्टर अतुल?’’

”अवश्य दूंगा सर, ऐसे लोगों को कानून की तरफ से सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए.’’ वह बोला.

”गुड बौय.’’ एसआई हरविंदर ने अतुल की पीठ थपथपाई, ”तुम अपनी कंप्लेंट हमें लिखवा दो. मिस्टर विनोद, आप अतुल की लिखित शिकायत ले लो.’’

”ओके सर.’’ एएसआई विनोद अपने साथ अतुल को ले कर एक तरफ चले गए.

थोड़ी ही देर में मंसूर अली, एफएसओ तथा फूड ऐंड सेफ्टी डिपार्टमेंट, दिल्ली सरकार अपनी टीम के साथ वहां आ गए. उन्होंने आते ही हल्दी पाउडर, मिर्च, मिर्च पाउडर, अमचूर, धनिया पाउडर, गरम मसाले की शुद्धता जांचने के लिए इन के सैंपल लिए. इसी प्रकार उपरोक्त सभी मसालों के सैंपल पौलीथिन में ले कर उन के नंबर लिखे गए. इस के बाद दिलीप सिंह उर्फ बंटी की निशानदेही पर निम्नलिखित सामान पुलिस कब्जे में लिया गया.

खुली पड़ी हल्दी को अलगअलग 3 प्लास्टिक कट्टों में भर कर उन कट्टों को वहां रखी इलैक्ट्रोनिक मशीन पर तौला गया. पहला कट्टा एस-1 का वजन 46 किलोग्राम, दूसरे कट्टे एस- 2 का वजन 41 किलोग्राम, तीसरे कट्टे एस-3 का वजन 42 किलोग्राम निकला था.

ऐसे ही सीरियल नंबर डाल कर सभी सड़े हुए गोले, सड़ी हुई चावल किनकी, लकड़ी का बुरादा, यूकेलिप्टस के पत्ते, एसिड, तेल, सड़े हुए बेर, जामुन की गुठलियां आदि का वजन कर के उन के सैंपल ले लिए गए.

छापे के दौरान एक और नकली मसाला बनाने वाली फैक्ट्री का पता चला

अभी यह सब काम निपटने ही वाला था कि एएसआई विनोद अपने साथ अतुल जैन को ले कर वापस आ गए. उन्होंने अतुल जैन द्वारा इस फैक्ट्री से खरीदे गए नकली मसालों का हवाला दे कर एक लिखित कंप्लेट लिख ली थी.

अतुल जैन ने आते ही एक धमाका किया. वह एसआई हरविंदर से बोला, ”सर, यहीं पास में ही काली घटा रोड पर एक दूसरी मैनुफैक्चरिंग यूनिट है, वहां भी इसी प्रकार नकली मसाला बनाया जाता है. यही सब जहरीली और नुकसान पहुंचाने वाली सड़ीगली चीजें मिला कर वहां भी नामी कंपनियों के पैकेट तैयार किए जाते हैं.’’

एसआई हरविंदर चौंके, ”ऐसा है तो वहां भी छापा डालते हैं, तुम हमें वहां ले चलो.’’

”आइए सर,’’ अतुल जैन ने कहा.

एसआई हरविंदर ने हैडकांस्टेबल विपिन कुमार और अनुज को वहां छोड़ा और अपनी टीम तथा फूड ऐंड सेफ्टी तथा एफएसओ मंसूर अली को साथ ले कर अतुल जैन के इशारे पर काली घटा रोड पर उस मैनुफैक्चरिंग यूनिट में पहुंच गए, जहां नकली मसालों को तैयार किया जा रहा था.

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           आरोपी सरफराज

यहां पर उन्हें सरफराज (32 वर्ष) निवासी 1385/15, मुस्तफाबाद, दिल्ली मिला. वहां फर्श पर हल्दी की तरह दिखने वाला पीला चाट मसाला पाउडर का मिक्सर पड़ा था. सरफराज से इस पाउडर के बारे में पूछा गया तो वह कोई जवाब नहीं दे पाया, न लाइसैंस संबंधित कागजात दिखा पाया. उसे क्राइम ब्रांच टीम ने गिरफ्त में ले लिया.

इस मसाला फैक्ट्री में भी सड़ा हुआ सामान जैसा करावल नगर की फैक्ट्री से बरामद किया गया, यहां भी भारी मात्रा में भरा हुआ था. उन के सैंपल लिए गए. जरूरी सैंपल निकाल कर दोनों फैक्ट्रियों को लौक लगा कर उन्हें सील लगा दी गई.

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क्राइम ब्रांच की टीम दिलीप सिंह उर्फ बंटी, सरफराज तथा खुर्शीद को साथ ले कर वापस औफिस में आ गई. लेडी एसआई निशा रानी (क्राइम ब्रांच) द्वारा मसाला फैक्ट्रियों में नकली और जहरीले मसाला बनाए जाने का मामला भादंवि की धारा 272/273/420/34 के तहत करवाया गया.

दिलीप उर्फ बंटी और सरफराज फैक्ट्री के मालिक थे, जबकि खुर्शीद इन से माल खरीद कर अपने टैंपो द्वारा दिल्ली तथा एनसीआर के बाजारों में सप्लाई करता था और मोटा मुनाफा कमाता था.  इन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की जांच एएसआई कंवरपाल को सौंप दी गई.

कानून को तमाशा बनाने के चक्कर में

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के सुभाष रोड स्थित प्रदेश पुलिस मुख्यालय में उस दिन भी रोज की ही तरह पुलिस महानिदेशक बी.एस.  सिद्धू समेत अन्य अधिकारी अपनेअपने औफिसों में बैठे कार्य में लगे थे. पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा भी अपने औफिस में जरूरी फाइलें निपटा रही थीं, तभी ड्यूटी पर तैनात उन के पीए ने इंटरकौम से सूचना दी, ‘‘मैडम, एक लड़की आप से मिलना चाहती है.’’

‘‘ठीक है, उसे अंदर भेज दो.’’ ममता वोहरा ने कहा.

उन के कहने के पल भर बाद एक लड़की दरवाजे पर टंगा परदा हटा कर अंदर आ गई. लड़की को देखते ही वह पहचान गईं. उस का नाम गुडि़या था और वह एक बहुचर्चित दुराचार मामले की वादी थी. उन्हें लगा, लड़की अपने केस की प्रगति के बारे में जानने आई है, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘कहिए सब ठीक तो है? हमारी पुलिस उसे गिरफ्तार करने की कोशिश में लगी है. वह जल्दी ही पकड़ा जाएगा.’’

‘‘वह तो ठीक है मैडम, लेकिन…’’ लड़की ने इतना ही कहा था कि ममता वोहरा ने पूछा, ‘‘लेकिन क्या…’’

‘‘मैडम, मैं अपना बयान दोबारा देना चाहती हूं.’’ गुडि़या ने कहा.

सवालिया नजरों से उसे घूरते हुए पूछा, ‘‘मतलब?’’

‘‘मैडम, रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद मैं ने जो बयान दिया था, अब उस में मैं कुछ बदलाव करना चाहती हूं.’’

‘‘क्यों?’’ एसपी वोहरा ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैडम, उस समय मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. उलझन में पता नहीं मैं ने क्या कुछ कह दिया था. गफलत में जो कह गई, अब उस में सुधार करना चाहती हूं.’’

इतना कह कर गुडि़या ने एक कागज उन की ओर बढ़ा दिया. ममता वोहरा ने उसे ले कर गौर से पढ़ा. उस में उस ने अपना बयान बदलने के बारे में लिखा था. उसे पढ़ कर उन्हें हैरानी हुई कि आखिर यह ऐसा क्यों करना चाहती है. उस का मामला काफी गंभीर ही नहीं था, बल्कि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय भी बना हुआ था.

इसलिए विचारों से निकल कर उन्होंने गुडि़या से कहा, ‘‘देखो, मुझे इस मामले में अपने अधिकारियों से बात करनी पड़ेगी. तुम अपना यह प्रार्थना पत्र मेरे पास छोड़ जाओ.’’

गुडि़या ने अपना वह प्रार्थना पत्र उन्हीं के पास छोड़ दिया और बाहर आ गई. यह 5 मई, 2014 की बात थी.

पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा के लिए यह हैरानी की बात थी कि लगातार न्याय की मांग करती आ रही लड़की अचानक अपनी बात से पलटना क्यों चाहती है. पीडि़त होने के नाते उस के साथ उन की शुरू से ही सहानुभूति रही थी.

पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा ने गुडि़या द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र से अधिकारियों को अवगत करा दिया. इस मुद्दे पर डीजीपी बी.एस. सिद्धू ने अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) आर.एस. मीना और एसएसपी अजय रौतेला के साथ रायमशविरा किया.

अधिकारी गुडि़या के इस कदम से न केवल हैरान थे, बल्कि असमंजस की स्थिति में भी थे. मामला हाईप्रोफाइल था. इसलिए अधिकारियों को जब पता चला कि गुडि़या ने 2 दिन पहले अदालत में भी अपना बयान दोबारा कराने के लिए शपथ पत्र दिया है तो उन्हें चिंता हुई. यह बात अलग थी कि उस के उस शपथ पत्र पर अभी सुनवाई नहीं हुई थी.

गुडि़या के इस कदम से पुलिस को अनेक आशंकाएं हुईं. इस की वजह यह थी कि अभी अभियुक्त की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. जबकि पुलिस की कई टीमें उस का गैरजमानती वारंट लिए अंतरराज्यीय स्तर पर उस की तलाश कर रही थीं.

अभियुक्त रसूख, राजनीतिक पहुंच और दौलत वाला था. लड़की को बयान बदलने के लिए डराया धमकाया भी जा सकता था. कहीं इसी वजह से तो गुडि़या बयान बदलने के लिए मजबूर नहीं है? अगर सचमुच में ऐसा था तो यह कानून के लिए एक बड़ी चुनौती थी. अभियुक्त के गिरफ्तार न होने से पुलिस वैसे ही सवालों के घेरे में थी.

दरअसल 18 अप्रैल, 2014 को गुडि़या ने देहरादून के थाना राजपुर में एक मुकदमा दर्ज कराया था. जिस से पूरे उत्तराखंड राज्य में सनसनी फैल गई थी. यह मुकदमा प्रदीप सांगवान के खिलाफ दर्ज कराया गया था.

सनसनी की वजह यह थी कि मूलरूप से सोनीपत का रहने वाला प्रदीप सांगवान कोई मामूली आदमी नहीं था. उस के पिता किशनचंद सांगवान भारतीय जनता पार्टी से सांसद रह चुके थे. वह खुद भी एक राष्ट्रीय पार्टी से जुड़ा हुआ था.

उस ने देहरादून और पहाड़ों की रानी मसूरी में अपना घर बना रखा था. इस के अलावा देहरादून के सहस्रधारा स्थित पिकनिक स्थल के रूप में विकसित किए गए जौयलैंड वाटर पार्क का मालिक भी था. देहरादून में उस के रहने की यही वजहें थीं.

गुडि़या ने आरोप लगाया था कि प्रदीप सांगवान ने उस के साथ न सिर्फ दुष्कर्म किया था, बल्कि उस दौरान उस की एक वीडियो क्लिप भी बना ली थी. जिस के बल पर वह उस का यौन शोषण कर रहा था. उस वीडियो क्लिप को सार्वजनिक करने और सोशल नेटवर्किंग साइट ‘फेसबुक’ पर डालने की धमकियां दे कर वह उस का मनचाहा इस्तेमाल कर रहा था. उसे जो धमकियां दी जा रही थीं, उस के सुबूत में उस ने अपने मोबाइल फोन में पुलिस को कुछ मैसेज भी दिखाए थे.

मामला बेहद गंभीर था. ऐसे मामलों में कानून हर तरह से पीडि़ता के साथ होता है. उस की बात को गंभीरता से सुना ही नहीं जाता, बल्कि तुरंत काररवाई भी की जाती है. राजपुर के थानाप्रभारी  प्रदीप राणा ने तुरंत इस बात की उच्चाधिकारियों को जानकारी दी थी, जहां से उन्हें उचित काररवाई के निर्देश मिले थे.

गुडि़या की शिकायत व बयानों के आधार पर थानाप्रभारी ने मुकदमा अपराध संख्या 33/14 पर नामजद मुकदमा दर्ज करा दिया था और मामले की जांच इंसपेक्टर अंशू चौधरी को सौंपी गई थी. चूंकि मामला रसूखदार आदमी से जुड़ा था, इसलिए यह मीडिया वालों के लिए सुर्खियां बन गया था.

मुकदमा दर्ज होते ही एसएसपी अजय रौतेला ने पुलिस अधीक्षक (नगर) नवनीत भुल्लर, होमीसाइड सेल के प्रभारी प्रदीप टमटा और स्पेशल टास्क फोर्स की टीम को भी प्रदीप सांगवान की गिरफ्तारी के लिए लगा दिया था. पुलिस उस की तलाश में निकली तो वह गायब मिला.

प्रदीप सांगवान से मिलने से ले कर दुराचार तक की जो कहानी गुडि़या ने पुलिस को बताई थी, वह कम चौंकाने वाली नहीं थी. वह पूरी कहानी कुछ इस प्रकार थी, जिस में वह एक खूबसूरत जाल में उलझ कर रह गई थी.

गुडि़या उत्तरप्रदेश के जिला बिजनौर की रहने वाली थी. नौकरी व सुनहरे भविष्य की तलाश में वह साल 2012 में देहरादून आ गई थी. देहरादून में वह अपनी एक सहेली के पास रुकी थी. यहां कोई नौकरी कर के वह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. उस ने नौकरी की तलाश भी शुरू कर दी. कुछ जगह उसे अवसर मिले भी, परंतु काम पसंद नहीं आया.

तब उस की उस सहेली ने कहा, ‘‘तू किसी प्लेसमेंट एजेंसी का सहारा क्यों नहीं लेती?’’

‘‘मैं खुद ही कोई बढि़या नौकरी तलाश लूंगी. अखबार रोज देख ही रही हूं, कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी.’’

‘‘अरे हां, कल मैं ने देखा था, जौयलैंड वाटर पार्क में कैशियर की जगह खाली है. वहां ज्यादा काम भी नहीं है. कोशिश करो, शायद तुम्हें वहां नौकरी मिल ही जाए.’’

अगले ही दिन गुडि़या अपना बायोडाटा ले कर जौयलैंड पार्क जा पहुंची. थोड़े इंतजार के बाद वाटर पार्क के मालिक प्रदीप सांगवान से उस की मुलाकात भी हो गई. पहली नजर में प्रदीप सांगवान गुडि़या को अच्छा आदमी लगा. गुडि़या को इस से भी ज्यादा खुशी तब हुई, जब औपचारिक बातचीत के बाद उस ने उसे नौकरी पर रख लिया.

अगले दिन यानी 24 जून, 2012 से गुडि़या अपनी नौकरी पर जाने लगी. उसे कैशियर के पद पर रखा गया था, इसलिए वाटर पार्क में आनेजाने वाले पैसों का हिसाब उसे ही रखना था. बैंक के लेनदेन का हिसाब भी उसे ही देखना था, इस के अलावा पार्क से होने वाली प्रतिदिन कमाई की एंट्री भी उसे ही करनी थी.

गुडि़या मेहनत कर के जमाने की रफ्तार के साथ आगे बढ़ना चाहती थी. सोच की इसी इमारत पर नौकरी के रूप में उस ने पहली सीढ़ी पर कदम रखा. वह सुंदर भी थी और मेहनती भी. उत्तराखंड की आबोहवा उसे शुरू से ही पसंद थी. कुछ ही दिनों में अपने काम से उस ने सभी का दिल जीत लिया.

जल्दी ही वह वाटर पार्क में काम करने वाले अन्य लोगों से भी घुलमिल गई थी. उस का सोचना था कि वहां नौकरी करते हुए उस के सपने पूरे होंगे. अपवाद को छोड़ दिया जाए तो जिंदगी के सफर के रास्ते हर इंसान अपनी ओर से अच्छा ही चुनता है.

रास्ते सीधे भी होते हैं तो कई मोड़ से भी हो कर गुजरते हैं. मोड़ वाले रास्ते में कब, कौन, किस तरह की कड़वी हकीकत से रूबरू हो जाए, इस बात को कोई नहीं जानता. कभीकभी अचानक ऐसे भी मोड़ आ जाते हैं, जब इंसान को अपना अक्स भी धुंधला नजर आने लगता है. गुडि़या के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

नौकरी के उस के 2 सप्ताह बड़ी अच्छी तरह बीते. वह बहुत खुश थी. वक्त पंख लगा कर उड़ रहा था. तीसरा सप्ताह चल रहा था. एक दिन प्रदीप ने कहा, ‘‘गुडि़या आज तुम्हें मेरे साथ मसूरी चलना है.’’

‘‘क्यों सर?’’

‘‘वहां एक प्रिंसिपल हैं. मैं तुम्हें उन से मिलवाना चाहता हूं, क्योंकि उन्हें मार्केटिंग का बहुत अच्छा नौलेज है. मैं चाहता हूं कि तुम उन से कुछ सीख लो, जिस का तुम्हें भी लाभ होगा और हमें भी.’’

‘‘ओके सर.’’ गुडि़या ने हामी भर दी. वह प्रदीप के यहां नौकरी करती थी. मन में कोई आशंका थी नहीं, जिस की वजह से वह उस के साथ जाने से मना कर देती. वह जाने के लिए तैयार हो गई. उसे क्या पता था कि उसे बहाने से एक ऐसे खूबसूरत जाल में उलझाया जा रहा है, जिस में फंस कर वह छटपटा कर रह जाएगी.

शाम तक वह प्रदीप के साथ पहाड़ों की रानी मसूरी पहुंच गई. देहरादून से वहां पहुंचने में एक घंटे से भी कम समय लगा. वहां पहुंच कर प्रदीप ने कहा, ‘‘हम तो आ गए, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या सर?’’ गुडि़या ने पूछा.

‘‘प्रिंसिपिल यहां हैं ही नहीं.’’

‘‘कब आएंगी?’’

‘‘कह नहीं सकता. क्योंकि उन का मोबाइल बंद है.’’

मसूरी में भी प्रदीप का घर था. उस ने कह उस रात गुडि़या को वहीं रुकने के लिए तैयार कर लिया. फिर वह रात गुडि़या के लिए कयामत की रात साबित हुई. गुडि़या के अनुसार प्रदीप ने शराफत का नकाब उतार कर उस रात कई बार उस के साथ जबरदस्ती की. उस ने उस दौरान की वीडियो क्लिप भी बना ली.

सुबह उस ने गुडि़या से साफसाफ कह दिया कि अगर उस ने इस बारे में किसी से कुछ कहा या आगे उस की बात नहीं मानी तो उस की इस क्लिप को फेसबुक पर अपलोड कर दिया जाएगा, जिसे सारी दुनिया देखेगी.

सब कुछ गंवा कर गुडि़या अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहा कर रह गई. इस के बाद से उस के यौन शोषण का सिलसिला चल निकला. यह सब होते धीरेधीरे एक साल से ज्यादा हो गया. वह आंसू बहा कर रह जाती थी.  वहां जब भी विरोध करती, उसे धमका दिया जाता. गुडि़या को अपनी जिंदगी दोजख सी लगने लगी. जब वह कुछ ज्यादा ही परेशान हो गई तो इंसाफ के लिए पुलिस की दहलीज पर जा पहुंची और प्रदीप के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

मामला प्रकाश में आते ही चर्चा का विषय बन गया. इस की राजनीति के गलियारों में भी चर्चा हो रही थी. पुलिस ने गुडि़या का मैडिकल कराया. 22 अप्रैल को सिविल जज (तृतीय) के यहां धारा 164 के तहत उस का बयान दर्ज कराया. अगले दिन पुलिस ने गुडि़या का कलमबंद बयान दर्ज किया, जिस में उस ने अपने साथ हुई पूरी घटना को दोहरा दिया.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर अंशू चौधरी ने सुबूत जुटाने के लिए घटनास्थल मसूरी के रिहाइशी इलाके और वाटर पार्क का निरीक्षण कर के नक्शा तैयार किया. पुलिस सुबूत जुटाने में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए वाटर पार्क के कर्मचारियों समेत करीब 16 लोगों के बयान दर्ज किए.

मामला पहुंच वाले आदमी से जुड़ा था, पुलिस तथ्यों के आधार पर ही आगे की काररवाई करना चाहती थी. प्रदीप की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की टीमें गठित कर दी गई थीं, जो लगातार उसे तलाश रही थीं. कई दिन बीत गए, वह हाथ नहीं आया.

3 मई को पुलिस ने उस के देहरादून स्थित आवास पर छापा मारा. वह तो फरार था, इसलिए कहां से मिलता. पुलिस ने वहां की जांचपड़ताल के दौरान मोबाइल, लैपटौप और अन्य समान बरामद किया. इस के बाद पुलिस ने अदालत से उस का गैरजमानती वारंट हासिल कर लिया. अदालत ने प्रदीप को भगोड़ा भी घोषित कर दिया.

प्रदीप के जहांजहां मिलने की संभावना थी, वहांवहां पुलिस टीमें छापा मार रही थीं. चंडीगढ़, दिल्ली, मेरठ में संभावित ठिकानों पर उस की तलाश की गई. मामले ने काफी तूल पकड़ा तो इस की जांच पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा को सौंप दी गई. वह बिना किसी दबाव के पीडि़ता को इंसाफ दिलाना चाहती थीं. इस के लिए तमाम सामाजिक संगठन आवाज भी उठा रहे थे.

पुलिस प्रदीप सांगवान को पकड़ने के लिए जीजान से जुटी थी, तभी गुडि़या ने अचानक बयान बदलने का शपथ पत्र दिया तो पुलिस अधिकारी अजीब उलझन में पड़ गए. इस से पुलिस को आशंका हुई कि कहीं उस की जान खतरे में तो नहीं है. किसी दबाव में तो वह ऐसा नहीं कर रही है.

पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू ने अधीनस्थों को निर्देश दिए कि पहले यह सुनिश्चित किया जाए कि पीडि़ता की जान खतरे में तो नहीं है. इस के बाद यह पता लगाया जाए कि वह ऐसा कर क्यों रही है?

उसे प्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा देने से उस की पहचान उजागर हो सकती थी, इसलिए उसे प्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा न दे कर उस पर खुफिया नजर रखने के लिए एक टीम लगा दी गई. इसी के साथ उस का नंबर सर्विलांस पर लगा दिया गया कि अगर कोई उसे डराधमका रहा होगा तो यह बात भी सामने आ जाएगी.

इतना सब कर के प्रदीप की गिरफ्तारी के प्रयासों की समीक्षा कर के कोशिश और तेज कर दी गई. अधिकारियों के निर्देशानुसार पुलिस टीमें तेजी से काम में जुट गईं. इस में स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव टीम के सदस्यों को भी शामिल किया गया था. पुलिस ने अदालत से प्रदीप का कुर्की वारंट भी हासिल कर लिया था.

12 मई को गुडि़या द्वारा अदालत में बयान बदलने संबंधी शपथ पत्र पर सुनवाई हुई. अदालत ने उस की अपील को नामंजूर करते हुए कहा, ‘‘न ऐसा कोई कानूनी प्रावधान है और न ही यह विधि सम्मत है.’’

गुडि़या की बात अदालत ने नहीं मानी थी. यह उस के लिए एक बड़ा झटका था.

अगले दिन यानी 13 मई को इस मामले में अचानक चौंकाने वाला मोड़ आ गया. पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू ने आननफानन इस मामले को ले कर प्रेसवार्ता बुलाई तो सभी ने सोचा कि अभियुक्त गिरफ्तार हो गया होगा. लेकिन जो हुआ, उस की किसी ने कल्पना नहीं की थी.

दरअसल पुलिस ने गुडि़या को ही गिरफ्तार कर लिया था. उस पर पुलिस को गुमराह करने और अभियुक्त को ब्लैकमेल कर के समझौता करने का आरोप था. यह आरोप फोरैंसिक सुबूतों के साथ था, जिस में यह आरोप किसी और ने नहीं, पुलिस ने ही लगाया था.

गोपनीय रूप से गुडि़या की निगरानी कर रही पुलिस को जांच में पता चला था कि उस ने दुराचार के मामले में समझौते के लिए एक बड़ा सौदा कर लिया था.

उसी सौदे के बाद अभियुक्त प्रदीप को बचाने के लिए वह अपना बयान बदलना चाहती थी. इज्जत का यह सौदा मामूली रकम में नहीं, आधा करोड़ रुपयों से भी ज्यादा में हुआ था. रकम से गुडि़या ने मकान और सुखसुविधा के आधुनिक साधन जुटा भी लिए थे. पुलिस ने उस के पास से लाख रुपए नकद बरामद भी किए थे.

पुलिस ने गुडि़या के साथ उस के एक दोस्त सईद को भी गिरफ्तार किया था. इस सौदेबाजी में दिल्ली निवासी अजय मान ने अपने जीजा प्रदीप सांगवान को बचाने में सईद की मार्फत गुडि़या से बात की थी.

समझौता चूंकि दोनों पक्षों की रजामंदी से हुआ था, इसलिए कोई भी एकदूसरे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं करा सकता था. इसलिए गुडि़या, उस के साथी और अजय के खिलाफ थाना कोतवाली में सबइंस्पेक्टर नीलम रावत की ओर से ब्लैकमेलिंग का मुकदमा दर्ज किया गया था.

प्रदीप सांगवान पर दर्ज मुकदमों की धाराओं में सुबूतों को प्रभावित करने की धारा 201 बढ़ा दी गई थी. गुडि़या की गिरफ्तारी के पीछे चौंकाने वाली जो कहानी थी, वह इस प्रकार थी.

पुलिस ने गुडि़या पर नजर रखनी शुरू की तो उस की काल डिटेल्स में 2 संदिग्ध नंबर नजर आए. दोनों नंबरों की जांच की गई तो पता चला कि उन में से एक नंबर दिल्ली के रहने वाले अजय का था तो दूसरा सईद चौधरी का.

पुलिस को लगा कि वही दोनों गुडि़या को धमका रहे हैं. इसी शक के आधार पर गुडि़या के मोबाइल की रिकौर्डिंग शुरू की गई तो मामला कुछ दूसरा ही सामने आया. अजय प्रदीप सांगवान का साला था तो सईद गुडि़या का दोस्त. सईद उत्तराखंड के ही जिला ऊधमसिंहनगर के काशीपुर के रहने वाले इफ्तिखार हुसैन का बेटा था.

गुडि़या की उस से रोज ही बातें होती थीं. मोबाइल की काल रिकौर्डिंग से पता चला कि वे उसे धमकी नहीं देते थे, बल्कि समझौते की बात करते थे. गुडि़या की समझौते की बात हो चुकी थी.

एक दिन सईद ने फोन कर के पूछा, ‘‘क्या हाल है गुडि़या?’’

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘उस ने पैसे दिए कि नहीं?’’

‘‘अभी उस ने पैसे कहां दिए हैं?’’ गुडि़या ने कहा तो सईद बोला, ‘‘फिर भी तुम ने कोर्ट में अर्जी लगा दी.’’

‘‘हां, अर्जी तो लगा दी है, लेकिन मैं ने यह नहीं कहा है कि मैं बयान वापस ले रही हूं. मैं ने अर्जी में लिखा है कि पहले दिए गए बयान में कुछ तथ्य छूट गए हैं, जिस की वजह से मैं दोबारा बयान देना चाहती हूं. उस हिसाब से मैं कुछ भी कह सकती हूं.’’

‘‘ऐसा तो नहीं कि बयान बदल देने के बाद वह बाकी पैसे देने में दिक्कत करे?’’

‘‘कुछ कहा नहीं जा सकता. कर भी सकते हैं. इसीलिए मैं ने ऐसा लिखा है.’’

‘‘खैर, तुम दोनों तरफ से सेफ हो. मैं ने तुम्हारी हर तरह से मदद की है. पैसे के लिए क्या कह रहा था?’’

‘‘कह रहा था 5 लाख अभी ले लो, बाकी इलेक्शन के बाद दे दूंगा. मेरे नाम मकान की रजिस्ट्री तो करा दी है, कुछ पैसे भी दिए हैं, जिस से मैं ने घर का सामान खरीद लिया है.’’

‘‘वह डबल गेम तो नहीं खेल रहा?’’

‘‘मैं अजय से बात कर लूंगी. अगर वह पैसे दे देगा, तभी मैं अपना केस वापस लूंगी.’’

‘‘अभी तुम अजय से कोई बात मत करो. जब मैं कहूंगा, तभी करना. देख लेना और जैसा भी हो बता देना.’’

‘‘टेंशन मत लो, अभी गेंद मेरे ही पाले में है. ओके बाय.’’ अपनी बात पूरे आत्मविश्वास के साथ कह कर गुडि़या ने फोन काट दिया.

ये बातें सुन कर पुलिस सन्न रह गई थी. समझते देर नहीं लगी कि दुराचार के इस मामले में पुलिस और कानून को तमाशा बनाया जा रहा है.

पुलिस ने गुडि़या के खिलाफ सुबूत जुटाने शुरू कर दिए. उस ने अपने नाम मकान की रजिस्ट्री की बात की थी. इस के लिए दस्तावेजों की जांच जरूरी थी. पुलिस ने रजिस्ट्री औफिस से एक महीने के अंदर मकानों की खरीदफरोख्त करने वाले लोगों की सूची हासिल कर ली.

लेकिन इस सूची की जांच की गई तो उस में गुडि़या का नाम नहीं था. यह हैरान करने वाली बात थी. जबकि फोन टेपिंग में उस ने स्पष्ट कहा था कि उस के नाम एक मकान की रजिस्ट्री हुई थी.

पुलिस ने रजिस्ट्री औफिस जा कर जब हो चुकी रजिस्ट्री की एंट्री करने वाला रजिस्टर चेक किया तो सच्चाई का पता चल गया. क्योंकि उस रजिस्टर पर खरीदारों के फोटो चस्पा होते हैं. यह एक चौंकाने वाली जानकारी हाथ लगी. खरीदारों की सूची में फोटो तो गुडि़या का लगा था, लेकिन उस में नाम दूसरा था. शायद ऐसा उस ने चालाकी से किया था. उस ने नाम तो बदल दिया था, परंतु चेहरा कैसे बदलती.

वह मकान मोहल्ला बंजारावाला में मीनाक्षी बिष्ट से 2 मई, 2014 को 17 लाख रुपए में खरीदा गया था. पुलिस के अनुसार उस मकान की वास्तविक कीमत 35 लाख रुपए थी. शायद स्टांप ड्यूटी बचाने के लिए उस का बैनामा 17 लाख रुपए में कराया गया था.

अब तक प्राप्त सुबूतों में अभियुक्त को ब्लैकमेल करने की पुष्टि हो गई थी. सुबूत पक्के थे, इसलिए पुलिस ने गुडि़या की गिरफ्तारी की योजना बना कर अदालत से वारंट हासिल किया और छापा मार कर उसे गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में पता चला कि ब्लैकमेलिंग से मिली रकम से उस ने अपने लिए आधुनिक सुखसुविधाओं के तमाम साधन जुटा रखे थे.

ब्लैकमेलिंग में गुडि़या के दोस्त सईद ने मदद की थी, इसलिए उसे भी शिकंजे में लेना जरूरी था. गुडि़या और उस की बातचीत से पुलिस को पता चल चुका था कि अजय मान ने उसे नौकरी का औफर दिया था और साक्षात्कार के लिए देहरादून आने को कहा था. पुलिस ने इस का फायदा उठाते हुए एक कंपनी का नाम ले कर उसे नौकरी का औफर दिया और साक्षात्कार के लिए देहरादून बुलाया. नौकरी की खुशी में वह देहरादून आ गया. पुलिस पहले से उस की फिराक में ही थी. देहरादून आने पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

पुलिस ने गुडि़या और सईद को आमनेसामने बैठा कर विस्तारपूर्वक पूछताछ की. विश्वास करना मुश्किल था कि एक लड़की ने दुराचार को हथियार बना कर किस तरह अपनी किस्मत को बदलने की कोशिश की तो दुराचार के अभियुक्त ने खुद को बचाने की. उस ने पैसे ऐंठने की योजना मुकदमा दर्ज होने के बाद तब बनाई थी, जब उस के पास समझौते के लिए प्रस्ताव आए. लाखों की रकम और मकान का प्रस्ताव उसे पसंद आ गया था.

इस के बाद गुडि़या ने अपने दोस्त सईद से बात की तो उस ने उसे समझौता कर लेने की सलाह दी. उस समय वह यह भूल गई कि दुराचार का सख्त कानून महिलाओं और लड़कियों के हक में उन्हें न्याय दिलाने के लिए बनाया गया है ना कि नाजायज इस्तेमाल कर के कमाई करने के लिए.

गुडि़या को एक ही झटके में लाखों रुपए मिलते नजर आ रहे थे. समझौते की शर्तों में उस के लिए बहुत जल्दी मोहल्ला बंजारावाला में मीनाक्षी बिष्ट का मकान तलाश लिया गया.

किसी को शक न हो, इस के लिए गुडि़या ने बैनामे के समय अपना वह नाम लिखवाया, जो शैक्षिक प्रमाण पत्रों में था. जबकि रिपोर्ट उस ने घरेलू नाम से लिखवाई थी. इसीलिए रजिस्ट्री औफिस की सूची में उस का नाम न देख कर पुलिस उलझ गई थी.

मकान मिल गया और कुछ नकद भी तो गुडि़या केस वापस लेने को तैयार हो गई. इसी प्रक्रिया के तहत उस ने जांच अधिकारी पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा और अदालत में फिर से बयान कराने का प्रार्थना पत्र भी दे दिया. पुलिस ने उस के पत्र पर जांच शुरू कर दी और अदालत ने भी उस की बात नहीं मानी. इस तरह कानून को तमाशा बनाने के चक्कर में वह अपने ही बुने जाल में फंस गई.

पुलिस ने गुडि़या और सईद से काफी लंबी पूछताछ की थी. इस पूछताछ में पुलिस ने पुख्ता सुबूत जुटा लिए. अगले दिन दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. जेल भेजे जाने से पूर्व प्रयोगशाला के विशेषज्ञों ने जांच के लिए दोनों की आवाजों के सैंपल ले लिए थे, ताकि पुष्टि हो सके कि मोबाइल पर हुई बातचीत उन्हीं दोनों की थी.

इस के बाद पुलिस ने प्रदीप सांगवान के साथ उस के साले अजय की तलाश शुरू कर दी. पुलिस ने प्रदीप का पासपोर्ट जब्त कर के लुक औफ सर्कुलर जारी करा दिया है, ताकि वह विदेश न भाग सके. अजय का गैरजमानती वारंट हासिल कर लिया गया है. प्रदीप सांगवान पर पुलिस ने ढाई हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया.

कथा लिखे जाने तक जेल गई गुडि़या और उस के साथी सईद की जमानत नहीं हो सकी थी. प्रदीप और अजय को गिरफ्तार नहीं किया जा सका था. गुडि़या ने प्रदीप पर जो आरोप लगाए थे, अब वे कितना सच साबित होंगे यह तो वक्त ही बताएगा.

लेकिन उस ने खुद की गलती से दुराचार को हथियार बना कर जिस तरह खुद को कानून के फंदे में उलझा लिया है, अब उस से निकलना मुश्किल है. ऐसे में लोग कभी खुद पर तो कभी हालात पर खीझते हैं. यह भी सच है कि कानून सुरक्षा और न्याय के लिए बने हैं, न कि मनचाहे इस्तेमाल के लिए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. गुडि़या परिवर्तित नाम है.

19 साल बाद खुला हत्या का राज

छठी क्लास में पढ़ने वाले महादेवन का स्कूल घर से कई किलोमीटर दूर था. वह पैदल ही स्कूल आताजाता था, जबकि उस के साथ पढ़ने वले कई छात्र साइकिल से आतेजाते थे. उस का मन करता था कि उस के पास भी साइकिल हो. उस ने अपने पिता विश्वनाथन आचारी से कई बार साइकिल दिलाने का अनुरोध किया, लेकिन वह अभी उसे साइकिल दिलाना नहीं चाहते थे.

इस की वजह यह थी कि महादेवन की उम्र अभी केवल 13 साल थी. 3 बेटियों के बीच वह उन का अकेला बेटा था, इसलिए वह कोई रिस्क नहीं उठाना चाहते थे. वह चाहते थे कि 2-3 साल में बेटा जब थोड़ा बड़ा और समझदार हो जाएगा तो उसे साइकिल खरीदवा देंगे.

मगर महादेवन को पिता की बात अच्छी नहीं लगी. उस ने साइकिल खरीदवाने की जिद पकड़ ली. वैसे विश्वनाथन आचारी के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. उन की केरल के चंगनाशेरी के निकट मडुमूला में उदया स्टोर्स के नाम से एक दुकान थी. दुकान से उन्हें अच्छीखासी आमदनी हो रही थी और परिवार भी उन का कोई ज्यादा बड़ा नहीं था. परिवार में पत्नी विजयलक्ष्मी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा महादेवन था.

चूंकि वह एकलौता बेटा था, इसलिए घर के सभी लोग उसे बहुत प्यार करते थे. सभी का लाडला होने की वजह से उस की हर मांग पूरी की जाती थी. विश्वनाथन ने उस के जन्मदिन पर एक तोला सोने की चेन गिफ्ट की थी, जिसे वह हर समय पहने रहता था. वह उसे साइकिल खरीदवाने के पक्ष में तो थे, लेकिन अभी उस की उम्र कम होने की वजह से फिलहाल मना कर रहे थे.

लेकिन बेटे की जिद और मायूसी के आगे विश्वनाथन को झुकना पड़ा. आखिर उन्होंने बेटे को एक साइकिल खरीदवा दी. साइकिल पा कर महादेवन की खुशी का ठिकाना न रहा. यह बात सन 1995 की है. इस के बाद महादेवन दोस्तों के साथ साइकिल चलाने लगा. जब वह अच्छी तरह से साइकिल चलाना सीख गया तो उसी से स्कूल आनेजाने लगा.

महादेवन 2 सितंबर, 1995 को भी घर से साइकिल ले कर निकला था, लेकिन तब से आज तक वह वापस नहीं लौटा. दरअसल स्कूल से लौटने के कुछ समय बाद महादेवन साइकिल ले कर निकल गया. ऐसा वह रोजाना करता था और 1-2 घंटे में घर लौट आता था.

उस दिन वह कई घंटे बाद भी घर नहीं लौटा तो मां विजयलक्ष्मी को चिंता हुई. उन्होंने उसे उन जगहों पर जा कर देखा, जहां वह साइकिल चलाता था. महादेवन नहीं मिला तो विजयलक्ष्मी ने दुकान पर बैठे पति के पास बेटे के गायब होने की खबर भिजवा दी.

बेटे के घर न लौटने की बात सुन कर विश्वनाथन आचारी दुकान से सीधे घर चले आए. उन्होंने बेटे को इधरउधर ढूंढना शुरू किया और उस के यारदोस्तों से पूछा, परंतु उन्हें बेटे के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली.

एकलौते बेटे का कोई पता न चलने से मां का रोरो कर बुरा हाल था. चारों तरफ से हताश होने के बाद विश्वनाथन पत्नी के साथ थाना चंगनाशेरी पहुंचे और थानाप्रभारी को बेटे के गुम होने की बात बताई. लेकिन थानाप्रभारी ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया. उन्होंने बस उस की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

थाने में बच्चे के गुम होने की सूचना दर्ज कराने के बाद भी आचारी अपने स्तर से बेटे को ढूंढते रहे. काफी खोजने के बाद भी उन के हाथ निराशा ही लगी. बच्चे के गायब होने के 4-5 दिनों बाद आचारी के घर पर एक चिट्ठी आई. चिट्ठी पढ़ कर वह सन्न रह गए. उस चिट्ठी में लिखा था, ‘‘तुम्हारा बेटा महादेवन हमारे कब्जे में है. अगर तुम्हें वह जिंदा चाहिए तो मोटी रकम का इंतजाम कर लो.’’

पैसे पहुंचाने के लिए चिट्ठी में एक पता लिखा था. आचारी बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. उन्होंने तय कर लिया कि अपहर्त्ता उन से चाहे जितने पैसे ले लें, लेकिन उन्हें बेटा सही सलामत मिले. मामला कहीं उलटा न हो जाए, इसलिए उन्होंने चिट्ठी वाली बात पुलिस को नहीं बताई.

पैसे इकट्ठे करने के बाद वह अकेले ही चिट्ठी में दिए पते पर नियत समय पर पहुंच गए. जिस कलर के कपड़े पहने हुए व्यक्ति को पैसे सौंपने की बात पत्र में लिखी थी, उस कलर के कपड़े पहने वहां कोई भी नहीं दिखा. आचारी ने चारों तरफ नजरें घुमा कर देखा. फिर भी उन्हें उस रंग के कपड़े पहने कोई शख्स नहीं दिखा. उन्होंने वहां कुछ देर इंतजार किया. इस के बाद भी उस कलर के कपड़े पहने कोई शख्स नहीं आया तो वह निराश हो कर घर लौट आए.

फिर आचारी ने अगले दिन अपहर्त्ताओं द्वारा भेजी गई चिट्ठी के बारे में पुलिस को बता दिया. पत्र से पुलिस को भी यकीन हो गया कि महादेवन का किसी ने पैसों के लिए अपहरण किया है. पत्र द्वारा पुलिस ने अपहर्त्ताओं तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली.

इधरउधर हाथ मारने के बाद पुलिस को कामयाबी नहीं मिली तो उस ने इस संवेदनशील मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. आचारी थाने के चक्कर लगाते रहे, लेकिन पुलिस ने उन की बातें पर तवज्जो नहीं दी.

13 वर्षीय महादेवन को घर से गए हुए महीने, साल बीत गए. बेटे की याद में रोतेरोते विजयलक्ष्मी की आंखों के आंसू सूख चुके थे तो पुलिस अधिकारियों के पास चक्कर लगाते लगाते आचारी के जूते घिस चुके थे. इस के बाद भी आचारी ने हिम्मत नहीं हारी. वह बेटे को खोजने का दबाव पुलिस पर बनाए रहे.

आचारी को जब लगा कि पुलिस बेटे को ढूंढने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही तो उन्होंने उच्च न्यायालय की शरण ली. हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और इस केस की जांच क्राइम ब्रांच से कराने के आदेश दिए. हाईकोर्ट के आदेश पर क्राइम ब्रांच के एडीजीपी विल्सन एम. पौल ने पुलिस अधीक्षक के.जी. साइमन के नेतृत्व में एक जांच टीम बनाई. इस टीम में एसआई के. एफ. जोब, ए.बी. पोन्नयम, नंगराज आदि को शामिल किया गया.

इस के बाद क्राइम ब्रांच ने महादेवन के रहस्यमय तरीके से गायब होने की तफ्तीश शुरू की. चूंकि उस को गायब हुए कई साल बीत चुके थे, इसलिए काफी मशक्कत के बाद भी क्राइम ब्रांच को ऐसा कोई सूत्र नहीं मिल सका, जिस से पता चल सकता कि महादेवन कहां गया था?

अपने एकलौते बेटे के गम में विश्वनाथन आचारी की हालत ऐसी हो गई थी कि सन 2006 में उन्होंने दम तोड़ दिया. 54 साल की उम्र में पति के गुजर जाने के बाद विजयलक्ष्मी के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. बेटे के गम में वह पहले से ही काफी कमजोर हो गई थी. बाद में उस की भी तबीयत खराब रहने लगी और सन 2009 में उस ने भी दम तोड़ दिया.

महादेवन को गायब हुए 14 साल हो चुके थे. उस की चिंता में मांबाप चल बसे थे और जो 3 बहनें थीं, वे भी भाई के गम में अकसर रोती रहती थीं. उधर क्राइम ब्रांच के लिए यह केस एक चुनौती के रूप में था. क्राइम ब्रांच ने एक बार फिर केस की जांच महादेवन के घर से ही शुरू की.

इस बार क्राइम ब्रांच की टीम ने यह जानने की कोशिश की कि आचारी की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. फिर यह पता लगाया कि महादेवन जब साइकिल ले कर घर से निकला था तो उस के साथ कौन था.

इस बारे में टीम ने उस के दोस्तों और मोहल्ले के लोगों से भी बात की. इस पर मोहल्ले के कुछ लोगों ने बताया कि उस दिन महादेवन को हरि कुमार की साइकिल की दुकान पर देखा गया था. इस बात की पुष्टि महादेवन की दुकान पर काम करने वाले एक युवक ने भी की.

इस से क्राइम ब्रांच के शक की सुई हरि कुमार की तरफ घूम गई. हरि कुमार की मडुमूला जंक्शन के पास साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. क्राइम ब्रांच टीम ने पूछताछ के लिए हरि कुमार को बुलवा लिया. लेकिन उस ने टीम को यही बताया कि महादेवन अपनी साइकिल ठीक कराने अकसर उस की दुकान पर आता रहता था. उस दिन भी उस की साइकिल खराब हो गई थी. साइकिल ठीक करा कर वह उस के यहां से चला गया था.

पुलिस टीम को लग रहा था कि हरि कुमार सही बात नहीं बता रहा था. लिहाजा उस दिन उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. इसी बीच टीम ने हरि कुमार की लिखावट का नमूना ले लिया था. आचारी के पास फिरौती का जो लैटर आया था, वह पुलिस फाइल में लगा हुआ था. क्राइम ब्रांच ने उस पत्र की राइटिंग और हरि कुमार की राइटिंग को जांच के लिए फोरैंसिक लैबोरेटरी भेजा.

फोरैंसिक जांच में दोनों राइटिंग एक ही व्यक्ति की पाई गईं. इस से स्पष्ट हो गया कि आचारी के पास फिरौती का जो पत्र आया था, वह हरि कुमार ने ही भेजा था. इस का मतलब हरि कुमार ने ही महादेवन का अपहरण किया था. हरि कुमार के खिलाफ पक्का सुबूत मिलने पर क्राइम ब्रांच ने उसे पूछताछ के लिए फिर उठा लिया.

चूंकि टीम को अब पुख्ता सुबूत मिल चुका था, इसलिए टीम ने इस बार उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार किया कि उस ने महादेवन की हत्या कर दी थी. 19 साल पहले उस ने एक नहीं, बल्कि 2-2 हत्याएं की थीं. 2-2 हत्याएं करने का राज उस ने उगल दिया था. दूसरा कत्ल उस ने अपने एक नजदीकी दोस्त का किया था. उस दोस्त की गुमशुदगी भी आज तक रहस्यमय बनी हुई थी.

महादेवन की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह हैरान कर देने वाली थी.

विश्वनाथन ने बेटे की जिद के आगे झुक कर उसे साइकिल दिला तो दी थी, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि यही साइकिल हमेशा के लिए बेटे को उन से दूर कर देगी.

महादेवन की मुराद पूरी हो चुकी थी, इसलिए वह फूला नहीं समा रहा था. स्कूल भी वह साइकिल से ही आनेजाने लगा. इस के अलावा स्कूल से लौटने के बाद वह यार दोस्तों के साथ साइकिल चलाता था. मडुमूला जंक्शन के पास हरि कुमार की साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. जब कभी महादेवन की साइकिल खराब होती, वह हरि कुमार की दुकान पर जा कर ठीक कराता था.

महादेवन एक खातेपीते परिवार से था. वह हर समय गले में सोने की चेन पहने रहता था. जबकि हरि कुमार आर्थिक परेशानी झेल रहा था. साइकिल रिपेयरिंग की दुकान से उसे कोई खास आमदनी नहीं होती थी. 13 साल के महादेवन के गले में सोने की चेन देख कर हरि कुमार के मन में लालच आ गया. उस पर अपना विश्वास जमाने के लिए हरि कुमार उस से बड़े प्यार से बात करनी शुरू कर दी.

2 सितंबर, 1995 को स्कूल से घर लौटने के बाद महादेवन ने खाना खाया और साइकिल ले कर घर से निकल गया. ऐसा वह रोजाना करता था और 1-2 घंटे बाद लौट आता था. उस दिन घर से निकलने के बाद महादेवन की साइकिल खराब हो गई. वह साइकिल ठीक कराने हरि कुमार की दुकान पर गया. चूंकि उस समय दुकान पर कई ग्राहक पहले से बैठे थे, इसलिए हरि कुमार ने साइकिल अपने यहां खड़ी कर ली और उस से थोड़ी देर बाद आने को कहा.

कुछ देर बाद महादेवन साइकिल लेने पहुंचा तो उस समय हरि कुमार दुकान पर अकेला था. महादेवन से सोने की चेन छीनने का अच्छा मौका देख कर हरि कुमार ने उसे दुकान में बुला लिया. जैसे ही महादेवन दुकान में घुसा, हरि कुमार ने उस के गले से चेन निकालने की कोशिश की. महादेवन ने इस का विरोध किया और चीखने लगा. तभी हरि कुमार ने दुकान बंद कर दी और उस का गला दबाने लगा.

गले पर दबाव बढ़ा तो महादेवन का दम घुटने लगा. कुछ ही पलों में दम घुटने से उस बच्चे की मौत हो गई. उस की हत्या करने के बाद हरि ने उस के गले से एक तोला वजन की सोने की चेन निकाल ली.

उस का मकसद पूरा हो चुका था. अब उस के सामने समस्या लाश को ठिकाने लगाने की थी. इस के लिए उस ने अपने दोस्त कोनारी सली और साले प्रमोद को दुकान पर ही बुला लिया.

महादेवन की हत्या की बात उस ने उन्हें बता दी. तीनों ने लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. योजना के बाद उन्होंने लाश को एक बोरे में भरा और आटो में रख कर उसे कोट्टायम के निकट एक तालाब में डाल आए. लाश ठिकाने लगा कर हरि कुमार निश्चिंत हो गया. लेकिन यह उस की भूल थी.

उस के दोस्त कोनारी सली ने ही उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया. पुलिस को हत्या की बात बताने की धमकी दे कर वह उस से पैसे ऐंठने लगा. हरि कुमार उस का मुंह बंद करने के लिए उस की डिमांड पूरी करता रहा.

उसी दौरान हरि कुमार ने सवा लाख रुपए में अपनी जमीन बेची. कोनारी सली को जब यह बात पता लगी तो उस ने हरि कुमार से 50 हजार रुपए की मांग की. अब हरि कुमार उसे कोई पैसा नहीं देना चाहता था. वह जानता था कि अगर उसे पैसे देने को साफ मना कर देगा तो कोलारी पुलिस के सामने हत्या का राज खोल सकता है. इस बारे में हरि ने अपने साले प्रमोद से बात की और दोनों ने कोनारी सली से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का प्लान बना लिया.

योजना के अनुसार, हरि ने वाशपल्लि में त्यौहार के दिन शाम 7 बजे कोनारी सली को शराब पीने के लिए अपनी दुकान में बुला लिया. लालच में कोनारी सली वहां पहुंच गया. दुकान में ही तीनों ने शराब पीनी शुरू की. उसी दौरान उन्होंने कोनारी सली के पैग में साइनाइड मिला दिया. जहर मिली शराब पीने से कुछ ही देर मे कोनारी सली की मौत हो गई.

दोनों उस की लाश को बोरे में भर कर एक आटो से कोट्टायम मरयपल्लि के पास ले गए. यहां पास में ही कोनारी सली का घर था. वहीं पास में स्थित एक पानी भरे गहरे तालाब में वह बोरी डाल दी. इसी तालाब में इन्होंने महादेवन की भी लाश डाली थी. इस तालाब को लोग प्रयोग नहीं करते थे.

उस की लाश ठिकाने लगाने के बाद दोनों अपनेअपने काम में जुट गए. कोनारी सली की हत्या महादेवन की हत्या के करीब डेढ़ साल बाद की गई थी.

उधर जब कोनारी सली कई दिनों बाद भी घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों ने थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई. काफी छानबीन के बाद भी जब वह घर नहीं आया तो घर वालों ने यही सोचा कि वह बिना बताए घर छोड़ कर कहीं भाग गया है. इस के कुछ दिनों बाद हरि कुमार के साले प्रमोद की भी बाथरूम में फिसल जाने के बाद मौत हो गई. उस की मौत भी एक रहस्य बन कर रह गई.

जुर्म के दोनों राजदारों की मौत के बाद हरि कुमार बेखौफ हो गया. अब उसे किसी का कोई डर नहीं रहा.

इस पूछताछ के बाद जब लोगों को पता चला कि हरि कुमार ने न केवल महादेवन की, बल्कि अपने दोस्त कोनारी सली की भी हत्या की थी, सैकड़ों की संख्या में लोग थाने पर जमा हो गए. वे हरि कुमार को सौंप देने की मांग कर रहे थे, ताकि वे अपने हाथों से उसे सजा दे सकें. लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया.

महादेवन को खोजते खोजते उस के मांबाप गुजर चुके थे. अब उस की 3 बहनें सिंघु, स्वप्ना और स्मिता ही बची थीं. भाई की हत्या का राज खुलने के बाद वे भी थाने गईं. उन्होंने पुलिस से अनुरोध किया कि उन के घर को तबाह करने वाले हत्यारे हरि कुमार के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई की जाए.

पुलिस हत्यारे हरि कुमार को उस जगह भी ले गई थी, जहां उस ने दोनों लाशें ठिकाने लगाई थीं. चूंकि हत्याएं किए हुए 18-19 साल बीत चुके थे, जिस से वहां से लाशों से संबंधित कोई चीज नहीं मिली.

अपराधी चाहे कितना भी शातिर क्यों न हो, अगर पुलिस कोशिश करे तो अपराधी तक पहुंच ही जाती है. सुबूत खत्म करने के बाद हरि कुमार भले ही पुलिस से 19 साल तक बचता रहा, लेकिन पुलिस के हाथ उस तक पहुंच ही गए. लाख कोशिश करने के बाद भी हत्यारा पुलिस से बच नहीं सका.

क्राइम ब्रांच ने उसे गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

-आर. जयदेवान/  डा. अनुराधा पी. के.

फांसी के फंदे पर लटके नोट

सलोनी से करीब 6 किलोमीटर दूर आलबरस गांव है जो दुर्ग जिले में आता है. इस गांव में हर साल 23 दिसंबर को मड़ई मेला लगता है. यह मेला आसपास के जिलों में बहुत प्रसिद्ध है.

मेले में हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं. रुद्र नारायण को उस के दूर के जीजा पंचराम देशमुख ने मेला देखने को बुलाया तो वह अपने पिता की साइकिल उठा कर आलबरस चौक पर पहुंच गया, जहां पंचराम उस का इंतजार कर रहा था.

रुद्र को देखते ही पंचराम चहका, ‘‘तुम तो बड़े होशियार निकले, बिल्कुल समय पर आ गए.’’

साइकिल खड़ी कर रुद्र नारायण पंचराम की ओर उन्मुख हुआ, ‘‘जीजा, बचपन में मैं एक बार मेला देखने आया था. कितने साल गुजर गए, फिर दोबारा नहीं आ पाया. आज आप के कहने पर आया हूं.’’

पंचराम ने उस से पूछा, ‘‘किसी को बताया है कि सीधे चले आए हो.’’

‘‘नहीं जीजा,’’ किसी को नहीं बताया. बताता तो, पिताजी अकेले आने देते क्या? देखो न कितनी दूर से साइकिल चला कर आया हूं.’’ रुद्र के स्वर में गर्व था.

यह सुन कर पंचराम ने मन ही मन खुश होते कहा, ‘‘शाबाश, तुम ने बहुत अच्छा किया, जो घर पर किसी को नहीं बताया. तुम कोई चिंता मत करना मैं हूं ना, मैं तुम्हें मड़ाई मेला घुमाऊंगा, खिलाऊंगा…और पिलाऊंगा भी?

‘‘क्या मतलब जीजा.’’ रुद्र ने पूछा.

‘‘रुद्र, अब तुम कोई बच्चे नहीं रहे…अच्छा बताओ, तुम ने कभी शराब पी है कि नहीं.’’

‘‘एक बार पी थी दोस्तों के साथ. उस के बाद फिर कभी नहीं पी.’’ रुद्र नारायाण ने आंखें नीची कर के झिझकते हुए कहा.

‘‘तो इस में शरमाने की क्या बात है, शराब पीना तो मर्दों की निशानी है.’’ पंचराम ने उसे उत्साहित किया, तो रुद्र खिल उठा.

‘‘चलो आज मैं तुम्हें दुनिया का आनंद दिलाता हूं. पहले थोड़ा मजा लेंगे फिर मड़ई घूमेंगे. आज मेरे साथ रहने पर देखना कितना आनंद आता है.’’ पंचराम ने कहा, फिर उसे ले कर वह शराब की दुकान पर गया.

शराब और पास की एक दुकान से खाने के लिए कुछ सामान ले कर दोनों एक खेत के पास बैठ गए. वहां पर दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. पंचराम देशमुख ने रुद्र नारायण को योजनानुसार ज्यादा शराब पिला दी.

न न करते भी, सोचीसमझी साजिश के तहत, रुद्र नारायण को पंचराम शराब पिलाता रहा. अबोध रुद्र नारायण मुंह बोले जीजा की इधरउधर की बातों में डूबा शराब पी कर मदमस्त हो गया. उस पर इतना नशा चढ़ा कि वह आंखें बंद कर वहीं लेट गया.

पंचराम यही चाहता था. शराब के नशे में चूर हो चुके रुद्र को अर्ध चेतना अवस्था में लेटा छोड़ कर वह अपनी साइकिल में बंधी रस्सी खोल लाया और मौके का फायदा उठा कर उस ने रुद्र के गले में रस्सी का फंदा बना कर उस का गला घोंट दिया.

गले में फंदा कसते ही रुद्र ने आंखें खोल कर पंचराम को देखा और मौत के आगोश में समा गया.

रुद्र की हत्या करने के बाद पंचराम ऐसे खुश हुआ जैसे उस की वर्षों की साध पूरी हो गई हो. रुद्र ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उस का मुंह बोला जीजा, पंचराम देशमुख उस की उस तरह बेदर्दी से हत्या कर देगा.

पंचराम ने रुद्र नारायण के गले में पड़ी रस्सी निकाल कर जोरों से अट्टहास लगाया. उसे लग रहा था कि अब उस की मुराद पूरी हो जाएगी. अब उसे लखपति बनने से कोई नहीं रोक सकता. दरअसल उस के गुरु समान मित्र और तथाकथित तांत्रिक धनराज नेताम ने बताया था कि अगर वह फांसी की रस्सी उस के पास ले कर आएगा तो वह देखते ही देखते उसे रुपयोंपैसों से मालामाल कर देगा.

पंचराम देशमुख जिला दुर्ग के आलबरस गांव का रहने वाला था. उस ने होश संभाला तो उस के पास एक ही हुनर था वाल पेंटिंग बनाने का. यही काम कर के वह जीवनयापन करने लगा.

मगर अब पेंटर का काम कम मिलने लगा था, क्योंकि प्रिंटिंग की दुनिया में फ्लेक्स प्रिंटिंग का युग आ चुका था और लोग कम दर पर फ्लेक्स प्रिंट करवा लेते थे. आमदनी कम हाने पर उस के तंगहाली में दिन कटने लगे. परिवार पालना भी मुश्किल हो गया.

पंचराम की ससुराल बलोद जिले के गांव सलोनी में थी. एक बार जब वह अपनी ससुराल गया तो वहीं पर उस की मुलाकात धनराज नेताम से हुई, जो गांव सलोनी में बंदर भगाने के लिए तांत्रिक क्रिया करने आया था. पंचराम को किसी ने धनराज के बारे में बताया कि यह बहुत बड़ा तांत्रिक है.

उस ने बताया कि गांव में बंदरों का आतंक है, जाने कहां से इतने सारे बंदर आ गए जिन से गांव वाले परेशान हैं. कई प्रयास किए गए, मगर बंदरों से छुटकारा नहीं मिला. तब तांत्रिक धनराज को विशेष रूप से बुलाया गया है. धनराज से मिलने के बाद पंचराम बहुत खुश हुआ. चूंकि पंचराम को गांव के लोग दामाद जैसा ही सम्मान देते थे. इसलिए तांत्रिक के साथ पंचराम की भी अच्छी खातिरदारी हुई.

जब एक साथ जाम छलके तो पंचराम और तांत्रिक की दोस्ती हो गई. बातोंबातों में धनराज ने उस से कहा, ‘‘मैं ने जो तंत्र क्रिया की है, उस का कमाल देखना. इस के बाद गांव में एक भी बंदर नहीं दिखेगा.’’

यह सुन कर पंचराम आश्चर्य चकित रह गया. उस ने तंत्रमंत्र के बारे में सुना था मगर किसी तांत्रिक से मुलाकात पहली बार हुई थी. धनराज ने आगे कहा, ‘‘मैं किसी को भी लखपति बना सकता हूं.’’

‘‘कैसे?’’ यह सुन कर बरबस पंचराम ने पूछा.

‘‘मुझे बस एक फांसी की रस्सी ला दो… फिर देखो, रुपए बरसेंगे.’’ धनराज नेताम ने शराब का गिलास होंठों पर लगा कर कहा.

‘‘यह कौन सी बड़ी बात है.’’ पंचराम ने बोला, ‘‘फांसी की रस्सी तो मैं ला सकता हूं.’’

‘‘तो लाओ, फिर देखना, कैसे पत्तों की तरह आकाश से नोट बरसाऊंगा.’’

धनराज नेताम की आश्चर्य मिश्रित बातें सुन कर पंचराम देशमुख उस का मुरीद बन गया. दूसरे दिन आश्चर्यजनक घटना हुई कि गांव में धनराज द्वारा की गई तांत्रिक किया के बाद किसी को एक भी बंदर देखने को नहीं मिला. यह चमत्कार नहीं, संयोग था. मगर इस से धनराज के प्रति पंचराम देखमुख की आस्था बढ़ गई.

पंचराम उस का भक्त बन गया और लखपति बनने के लिए फांसी की रस्सी ढूंढने की कोशिश तेज कर दी. एक दिन दुर्ग जिले के अंडा थाने में तैनात एक कांस्टेबल से दूर का संबंध निकाल कर पंचराम उस के पास पहुंच गया और उस से कहा, ‘‘भैया, क्या फांसी की रस्सी मिल सकती है?’’

उस की बात सुनते ही कांस्टेबल ने चौंकते हुए कहा, ‘‘क्या करोगे तुम उस का वह भला तुम्हें कैसे मिल सकती है, वह तो जल्लाद के पास मिलेगी. और जल्लाद तुम्हें वो क्यों देगा.’’

यह सारी जानकारी मिलने पर वह निराश हो गया. पंचराम का चेहरा लटक गया तो कांस्टेबल ने पूछा ‘‘अच्छा यह तो बाताओ, फांसी की रस्सी का क्या करोगे?’’

‘‘अब तुम से क्या छिपाना. सुना है कि फांसी की रस्सी मिल जाए तो रुपए बरसते हैं.’’ पंचराम ने बताया.

यह सुन कर कांस्टेबल हंसने लगा और उसे समझाया, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. यदि ऐसा होता तो सारे जल्लाद करोड़पति होते. ये सब फालतू की बातें हैं.’’

मगर पंचराम के दिमाग से यह बात इतनी आसानी से कैसे निकल सकती थी. वह तो करोड़पति बनने के सपने देख रहा था. इसलिए वह फांसी की रस्सी की ताक में लगा रहा.

जब चारों तरफ निराशा मिली तो एक दिन उस की निगाह रुद्र नारायण पर पड़ी. 15 वर्षीय रुद्र नारायण उस की ससुराल वाले गांव सलोनी में रहता था. वह उसे  जीजा कहता था. पंचराम सोचने लगा कि क्यों न उसे मार कर फांसी की रस्सी तैयार कर ले.

उस ने तांत्रिक धनराज नेताम को इस बारे में बताया तो उस ने स्वीकृति देते हुए कहा, ‘‘चलेगा, बस रस्सी फांसी की हो.’’ इस के बाद पंचराम ने पिलेश्वर देखमुख के घर आनाजाना बढ़ा दिया.

पंचराम गांव वालों की निगाह में दामाद बाबू था, पिलेश्वर देशमुख उस का सम्मान करता और अपने दुखसुख की बातें साझा करता था. इसी का फायदा उठा कर पंचराम ने 23 दिसंबर, 2019 को योजनानुसार रुद्र को मड़ई मेला घुमाने के लिए बुलाया और मौका देख कर उस के गले में रस्सी का फंदा डाल उस की हत्या कर दी.

फिर उसी दिन शाम को वह घटनास्थल पर दोबारा पहुंचा और उस की लाश के ऊपर केरोसिन डाल कर, आग लगा दी.

29 दिसंबर, 2019 शनिवार को दोपहर दुर्ग जिले के थाना अंडा के टीआई राजेश झा को किसी ने फोन कर के सूचना दी कि गांव आलबरस के पास एक खेत में लाश पड़ी है.

लाश मिलने की सूचना पा कर राजेश झा चौंके, क्योंकि साल के अंतिम दिन चल रहे थे और क्षेत्र में यह वारदात हो गई थी. खबर मिलते ही वह एक एसआई और 2 कांस्टेबलों को साथ ले कर मौके की तरफ रवाना हो गए.

साल के अंतिम महीने और अंतिम दिनों में पुलिस विभाग सारे पेंडिंग पड़े प्रकरणों का निवारण करता है, जिस की वजह से काफी व्यस्तता रहती है. व्यस्तता अंडा थाने में भी थी, मगर टीआई काम छोड़ कर तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. उन्होंने घटना स्थल का सूक्ष्मता से अवलोकन किया.

अधजली लाश के पास शराब की खाली 3 बोतलें, गिलास मिले, नीले रंग की टीशर्ट का एक जला हुआ टुकड़ा, बेल्ट और जूते भी पड़े मिले. लाश किसी बालक की थी. घटनास्थल पर मौजूद कोई भी ग्रामीण उस लाश की शिनाख्त नहीं कर सका था.

मामला संगीन दिखाई पड़ रहा था. उन्हें लग रहा था कि जरूर किसी ने बालक के साथ अनाचार किया होगा और उसे जला कर साक्ष्य छिपाने की कोशिश की है. टीआई ने उच्च अधिकारियों एएसपी (ग्रामीण) लखन पटले व एसएसपी अजय कुमार यादव को घटना की जानकारी दे दी. उच्च अधिकारियों के निर्देश पर टीआई ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

हत्या का केस दर्ज होते ही टीआई राजेश झा ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने अपने जिले के सभी थानों के अलावा सीमावर्ती जिला बालोद के थानों में भी अज्ञात बालक की लाश मिलने की सूचना भेज कर और जानना चाहा कि उन के क्षेत्र से इस आयु वर्ग का कोई बालक लापता तो नहीं है.

टीआई झा को बालोद जिले के अर्जुंदा थाने से खबर मिली कि 26 दिसंबर, 2019 को एक 15 साल के किशोर रुद्र नारायण देशमुख के लापता होने की सूचना वहां थाने में दर्ज है. पता चला कि रुद्र 23 दिसंबर को अपने गांव सलानी से कहीं गया था. गुमशुदगी की सूचना रुद्र के पिता ने दर्ज कराई थी.

टीआई राजेश झा ने रुद्र के पिता पिलेश्वर व परिजनों को अंडा थाने बुलवाया और घटनास्थल पर मिली बेल्ट, टीशर्ट का टुकड़ा आदि दिखाया. उन चीजों को देखते ही पिलेश्वर देशमुख फफक कर रो पड़ा. वह बोला, ‘‘साहब, यह मेरे बेटे रुद्र की टीशर्ट का ही टुकड़ा है, बेल्ट भी उसी की है. मुझे बच्चे की लाश दिखाई जाए.’’

टीआई ने एक एसआई के साथ पिलेश्वर व परिजनों को हास्पिटल भेजा जहां की मोर्चरी में रुद्र की लाश रखी थी. पिलेश्वर और उस के साथ आए लोगों ने लाश की शिनाख्त रुद्र नारायण देशमुख के रूप में की. इस के बाद लाश का पोस्टमार्टम कराया गया.

डाक्टरों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि रुद्र की हत्या रस्सी के फंदे से गला घोट कर की गई थी. गले पर रस्सी के रेशे भी पाए गए. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से साफ हो चुका था कि किसी ने रुद्र की हत्या गला घोट कर की और बाद में जला दी. मगर यह हत्या क्यों की गई? पुलिस के सामने यह एक बड़ा सवाल था.

टीआई राजेश झा ने मृतक के पिता पिलेश्वर जो कि एक किसान है से पूछा कि क्या आप की किसी से कोई दुश्मनी वगैरह तो नहीं है. या किसी पर कोई शक है, जो रुद्र की हत्या कर सकता है?

इस पर पिलेश्वर ने बताया कि उस की किसी से रंजिश नहीं है. साथ ही उस ने यह भी बताया कि रुद्र का दूर के जीजा पंचराम देशमुख से बहुत लगाव था. वह उस से काफीकाफी देर तक फोन पर भी बातें करता था. कल पंचराम का हमारे पास फोन आया था, वह पूछ रहा था कि क्या कोई आरोपी पकड़ा गया है? पुलिस इस केस में अब क्या कर रही है?

पिलेश्वर के मुंह से यह सुनते ही टीआई राजेश झा का ध्यान पंचराम की तरफ केंद्रित हो गया. उन्होंने पंचराम के बारे में पिलेश्वर से सारी जानकारी ली और पंचराम को फोन किया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था.

तब पुलिस टीम के साथ वह आलबरस गांव स्थित उस के घर पहुंच गए. लेकिन वह घर से गायब था. उस की पत्नी ने बताया कि वह तो 24 दिसंबर से घर नहीं आए हैं.

अब टीआई राजेश झा को इस मामले में अपराध की बू आती दिखने लगी. उन्होंने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. उस की लोकेशन धमतरी जिले के किसी गांव की मिली.

उन्होंने आरक्षक वीरनारायण, राजकुमार चंद्रा, डी. राव, अलाउद्दीन और राजकुमार दिवाकर की टीम को पंचराम की गिरफ्तारी के लिए भेजा. यह टीम 6 घंटों का सफर कर के धमतरी जिले के गांव गुटकेल पहुंची. यह टीम फोन के टावर की मदद से तांत्रिक धनराज के घर पहुंच गई. वहां पुलिस टीम को पता चला कि धनराज और पंचराम जंगल में चूहा मारने गए हुए हैं.

पुलिस टीम जाल बिछा कर पंचराम का इंतजार करने लगी. 31 दिसंबर, 2019 को जब पंचराम व धनराज जंगल से 2 बड़े चूहे पकड़ कर घर लौटे तभी पुलिस ने उन्हें दबोच लिया और हिरासत में ले कर अंडा थाने ले आई. दोनों से पूछताछ की गई तो पंचराम ने स्वीकार कर लिया कि रस्सी से गला घोट कर उस ने ही रुद्र की हत्या की थी.

उस ने बताया कि वह लखपति बनना चाहता था, तांत्रिक धनराज ने उसे बताया था कि फांसी की रस्सी, नारियल, सिंदूर ला दे तो एक सप्ताह में वह हवा में पत्तों की तरह नोटों की वर्षा कर सकता है, इसीलिए उस ने रस्सी से गला घोंट कर रुद्र की हत्या की थी.

पुलिस ने आरोपी पंचराम देशमुख और तथाकथित तांत्रिक धनराज नेताम के इकबालिया बयान दर्ज कर के उन्हें भादंवि की धारा 302, 120 बी, 34 के तहत गिरफ्तार कर प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रैट श्रीमती प्रतीक्षा शर्मा के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ड्रग माफिया की कठपुतली बनी शिवानी की कहानी

मध्य प्रदेश का शिवपुरी जिला कभी डकैतों की पनाहगाह हुआ करता था, जो ग्वालियर, भिंड और मुरैना जिलों से घिरा हुआ है. लेकिन अब वही शिवपुरी बदनाम है देह व्यापार और ड्रग्स के कारोबार के लिए. उड़ता पंजाब की तर्ज पर शिवपुरी को लोग उड़ता शिवपुरी कहने लगे हैं, क्योंकि यहां के गांव देहातों तक में जिस्म के बाद जो चीज आसानी से जरूरतमंदों के लिए मिल जाती है, वह है ड्रग.

17 वर्षीय शिवानी शर्मा बेइंतहा खूबसूरत लड़की थी, जिस पर नजर डालने के बाद लोग पलक झपकाना भूल जाते थे. भरेपूरे और गदराए जिस्म की मालकिन इस युवती की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. जब वह बहुत छोटी थी, तब उस के पिता का निधन हो गया था. विधवा हो जाने के बाद उस की युवा मां को समझ आ गया था कि एक नन्ही बच्ची के साथ स्वाभिमान और और सम्मानपूर्वक तरीके से रह पाना किसी भी लिहाज से मुमकिन नहीं है.

फिर एक दिन वह अपने जिगर के टुकड़े को सास की गोदी में डाल कर चली गई. कहां गई, इस का ठीकठाक पता किसी को नहीं, लेकिन कुछ दिन बाद उड़ती उड़ती खबर यह आई कि उस ने दूसरी शादी कर ली है.

इस तरह शिवानी अपनी दादी लक्ष्मीबाई की गोद में पलीबढ़ी, जिन के पास नाम के मुताबिक लक्ष्मी कहने भर को भी नहीं थी. क्योंकि अपनी और नन्ही पोती की गुजर के लिए उन्हें दूसरों के घरों में काम करना पड़ता था, तब कहीं जा कर दो वक्त की रोटी नसीब होती थी.

अभावों में पलती शिवानी बड़ी होती गई, लेकिन इन 17 सालों में जो कई बातें उसे समझ आई थीं, उन में अहम यह थी कि गरीबी दुनिया का सब से बड़ा अभिशाप है. लक्ष्मीबाई ने अपनी तरफ से उस की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी थी. उस ने शिवानी को शिवपुरी के सरस्वती स्कूल में दाखिला दिला दिया था. पढ़ाई में औसत रही शिवानी को यह भी समझ आ गया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, उस की दरिद्रता दूर नहीं होने वाली है.

अपने मांबाप की कहानी उस ने दादी और कुछ रिश्तेदारों के मुंह से सुनी थी, जो कभीकभार दिखावे के लिए आ जाते थे. नहीं तो किसी को न तो उन से मतलब था और न ही फुरसत थी. बड़ी होती शिवानी को कभी किसी ने अपनी बाहों में झुला कर अपनी प्रिंसेस बिटिया या नन्ही परी नहीं कहा था. वह तो बस हैरानी से अपने आसपास की दुनिया देखते हुए बड़ी होती गई थी.

बूढ़ी दादी की आंखों से शिवानी की मनोदशा छिपी नहीं थी, लेकिन इस के बाद भी उन्हें उम्मीद थी कि पोती सुंदर है, एक न एक दिन उस के भी दिन फिरेंगे और कोई अच्छे खाते पीते घर का लड़का उसे ब्याह कर ले जाएगा.

ड्रग्स से कर ली सगाई

ऐसा कुछ हुआ नहीं, उलटे लक्ष्मीबाई कुछ महीनों पहले उस वक्त सन्न रह गई, जब उन्हें यह अहसास हुआ कि शिवानी ड्रग्स का नशा करने लगी है. उन्हें अपने सपने टूटते नजर आए. लेकिन इस के आगे क्याक्या होना है, इस का अंदाजा वे नहीं लगा पाईं और अगर लगा भी लिया होगा तो बेबसी के चलते कसमसा कर रह जातीं.

दरअसल, ड्रग्स तो शिवानी कई दिनों से ले रही थी लेकिन लत उसे अभीअभी लगी थी और इस तरह लगी थी कि स्मैक की एक पुडि़या के लिए वह अपना जिस्म तक परोसने के लिए तैयार रहने लगी थी.

हकीकत यह थी कि जवानी की सीढि़यों पर पहला कदम रखते ही शिवानी एक ऐसे गिरोह के चक्कर में फंस गई थी, जो षडयंत्रपूर्वक उन लड़कियों को फंसाता था, जिन पर कोई पारिवारिक नियंत्रण नहीं होता था. शिवानी इस काम के लिए ड्रग माफिया को बहुत सौफ्ट टारगेट लगी थी.

कुछ दिन पहले ही शिवानी के यहां एक युवक का आनाजाना शुरू हुआ था, जिस का नाम चिक्की पाठक था. ब्राह्मण होने के नाते दादी ने चिक्की के आनेजाने को असहज ढंग से नहीं लिया. दादी के पास बैठ कर उन से घंटों बतियाने वाला चिक्की असल में मोहरा था, जिसे शिवानी को फंसाने के लिए भेजा गया था.

उम्मीद के मुताबिक शिवानी जल्द ही चिक्की के प्रेमजाल में फंस गई. फिर वह उस के साथ बाहर घूमने फिरने जाने लगी. आने वाली जिंदगी को ले कर वह सुनहरे सपने देखने लगी. चिक्की भी उस के सपनों को हवा देता रहा.

धीरेधीरे चिक्की उसे अपनी 2 परिचितों जूली भार्गव और रूबी जाटव के यहां ले जाने लगा. इन दोनों के घर और आजाद जिंदगी देख कर शिवानी भी ऐसी ही जिंदगी के ख्वाब देखने लगी, जिस में उस का अपना घर है, चिक्की है और रोमांस ही रोमांस है.

भोलीभाली शिवानी तब इन सब की हकीकत नहीं जानती थी. जब भी वह चिक्की के साथ इन के यहां जाती थी तो जूली और रूबी उन दोनों को एकांत में छोड़ देती थीं. आग और बारूद आमने सामने होंगे तो वर्जनाएं टूटने में देर नहीं लगती. यही शिवानी के साथ हुआ. धीरेधीरे ही सही, चिक्की ने कब उसे पूरी तरह अपना बना लिया, इस का उसे अहसास ही नहीं हुआ.

कच्चे उम्र की शिवानी ज्यादा दिनों तक खुद को रोके नहीं रख पाई और एक दिन पूरी तरह चिक्की की हो गई. फिर यह सुख रोजरोज नएनए तरीके से उसे मिलने लगा तो वह इसकी आदी हो गई. शिवानी नाम की अनछुई कली देखते ही देखते खिला हुआ फूल बन गई.

सेक्स की लत के बाद चरणबद्ध तरीके से चिक्की, रूबी और जूली ने उसे शराब और सिगरेट पिलानी शुरू कर दी. शिवानी ने महसूस किया कि ये दोनों चीजें न केवल रोमांस और सैक्स का बल्कि जिंदगी का भी असली लुत्फ देती हैं. लिहाजा वह बेहिचक शराब पीने लगी.

घर में कोई उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था और जो बूढ़ी दादी थीं, शिवानी के लिए उन के वहां होने न होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता था. वह तो एक ऐसी दुनिया में जा पहुंची थी, जहां प्यार, रोमांस और सैक्स के अलावा कुछ नहीं होता था.

इसी दौरान चिक्की ने उस का परिचय अपने और दोस्तों यानी गिरोह के सदस्यों रजक, विकास, गोलू और परमार से भी करवा दिया था. ये चारों भी उसे रूबी और जूली की तरह भले लगे. फिर एक दिन उसे दुनिया के सब से हसीन नशे स्मैक की खुराक दी गई.

शिवानी को लगा कि यह नशा बड़ा अद्भुत है, जिसे ले कर आदमी अपने सारे रंजोगम और परेशानियां भूल जाता है. एक ऐसा नशा जिस की तलब उतरने के बाद से ही लगने लगती है.

धीरेधीरे ग्रुप बना कर ये सभी लोग यह नशा करने लगे, जिस में कोई बंदिश नहीं थी. थी तो सिर्फ एक ऐसी आजादी जो हर युवा का सपना होती है. एक बार इन ड्रग्स की लत शिवानी को लगी तो फिर उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उस ने बूढ़ी दादी के बारे में भी कुछ नहीं सोचा, जिस ने अपना बुढ़ापा जला कर उसे बड़ा किया था.

आ गई देह व्यापार में ऐसा नहीं कि अनुभवी लक्ष्मीबाई को कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन शिवानी की हालत अब उस उफनती बरसाती नदी की तरह हो गई थी, जिसे बांधे रखने में कम से कम कोई जर्जर बांध तो कतई कामयाब नहीं होता.

जवान बेटे को खो चुकी लक्ष्मीबाई अब जवान होती पोती का हाल देख रही थीं. लेकिन कुछ कर पाने में असमर्थ थीं, क्योंकि बेटे की तरह वह उस की अमानत को नहीं खोना चाहती थीं.

जिस मकसद से शिवानी को चिक्की ने फंसाया था वह पूरा हो चुका था. बिना ड्रग्स के अब वह एक दिन भी नहीं रह पाती थी और तलब लगने पर खुद उस के या दूसरे साथियों की तरफ खिंची चली आती थी.

यह सब इतने जल्दीजल्दी और सुनियोजित तरीके से हुआ था कि शिवानी को कुछ सोचनेसमझने का मौका ही नहीं मिला था और कभी मिला भी होगा तो उसे यह भी समझ आ गया होगा कि अब कुछ नहीं हो सकता.

जो एक बार ड्रग्स के नशे की राह पर चल पड़ता है, वह चाह कर भी वापस नहीं लौट सकता. यही हाल शिवानी का था. फिर एक दिन उसे बताया गया कि जिस मौजमस्ती की लत उसे पड़ चुकी है, वह मुफ्त नहीं मिलती है, इस के लिए दाम भी चुकाना पड़ता है.

दाम चुकाने के लिए शिवानी के पास फूटा धेला भी नहीं था, लेकिन इन्हीं लोगों ने उसे बताया कि उस के पास जो है, वह करोड़ोंअरबों का है. अगर वह चाहे तो दौलत पैरों में लोटने लगेगी.

चूंकि चिक्की को इस पर कोई ऐतराज नहीं था, इसलिए मजबूरी की मारी शिवानी देहव्यापार के लिए भी तैयार हो गई. और सचमुच शिवानी की देह पैसा उगलने लगी. वह अब पूरी तरह कालगर्ल बन चुकी थी, जो पैसों की जरूरत पूरी करने के लिए हर उस शख्स यानी ग्राहक का बिस्तर गर्म करने को तैयार रहती थी, जिस के पास उस के गिरोह के सदस्य ले जाते थे.

देखते ही देखते शिवानी के रंगढंग बदल गए. वह महंगी ड्रेस पहनने लगी. हाथ में 30 हजार रुपए का मोबाइल आ गया और सब से बड़ी बात ड्रग्स के लिए पैसों का जुगाड़ सहूलियत से होने लगा. इस धंधे में पूरी तरह उतरने के बाद उसे पता चला कि कई पुलिस वाले भी इस गिरोह के साथ हैं, जिन में से वह कुछ का बिस्तर गर्म भी कर चुकी थी.

अब शिवानी की जिंदगी में कुछ नहीं रह गया था. वह अपनी जवानी कैश करा रही थी तो सिर्फ नशे की खुराक के लिए, जिस के बगैर उस का दिमाग सनसनाने लगता था, शरीर सुन्न पड़ने लगता था. घबराहट और उलटियां भी होने लगती थीं. अब तो वह कई कई दिन बाहर रहने लगी थी.

फिर एक दिन… देवानंद अभिनीत और निर्देशित 70 के दशक की चर्चित और हिट फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ की जीनत अमान बन चुकी शिवानी ने अपने रोल से समझौता कर लिया था कि वह सिर्फ नशे और मौजमस्ती के लिए पैदा हुई है, इस से आगे दुनिया में कोई सच नहीं है.

यह और बात है कि फिल्म की तरह उस का कोई भाई उसे गिरोह और नशे की दलदल से वापस निकालने नहीं आया क्योंकि यह हकीकत थी, फिल्म नहीं.

पूरी तरह गिरोह का हिस्सा बन जाने के बाद औरों की तरह शिवानी को भी पता नहीं चल पाया कि आखिरकार इस का कर्ताधर्ता कौन है. वह तो एक ऐसी कठपुतली बन गई थी, जो चिक्की के इशारों पर नाचती थी. उस के लिए सुकून देने वाली इकलौती बात यही थी कि चिक्की अब भी उसे चाहता था और शादी करने को भी तैयार था.

खुद फंसने के बाद उसे यह जरूर समझ आ गया था कि ये लोग कितनी चालाकी से शिकार चुनते हैं, फिर उसे फांसते हैं और उस से पैसा कमाते हैं. नशे की दुनिया के कारोबार के इस गोरखधंधे का उद्गम स्थल कहां है, यह भी उसे नहीं मालूम था और यह सब जानने की जरूरत या इजाजत उसे भी नहीं थी. उस की दुनिया तो एक खुराक में सिमट कर रह गई थी.

चिक्की खुद भी नशेड़ी था और एक बार इलाज के लिए उसे ग्वालियर के नशा मुक्ति केंद्र भी भेजा गया था, लेकिन वहां से वह भाग आया था और फिर नशे की दुनिया का हिस्सा बन गया था.

उस के पिता धर्मेंद्र पाठक शिवपुरी की जानीमानी शख्सियत हैं. जूली के बारे में उसे पता चला था कि जूली अपने पति को छोड़ चुकी है और रूबी हालांकि अपने परिवार के साथ रहती है, लेकिन यह रहना ठीक वैसा ही है, जैसा उस का दादी के साथ रहना.

इसी दौरान शिवानी को यह भी पता चला था कि ड्रग्स शिवपुरी की गलीगली में मिलती है और कई जगह तो बाकायदा इन की किट बिकती है, जिन में नशे के इंजेक्शन के साथ सीरींज वगैरह भी होती है. यह और ऐसे कई गिरोह खासतौर से युवाओं को कैसे फांसते हैं, इस की बेहतर मिसाल तो वह खुद ही थी.

पुलिस से की शिकायत लक्ष्मीबाई की बूढ़ी आंखों से अब कुछ छिपा नहीं रह गया था. वह रूबी, जूली, चिक्की और गिरोह के बारे में काफी कुछ जान चुकी थीं कि इन्होंने ही उन की पोती को फंसा कर उस की जिंदगी नर्क बना दी है.

लिहाजा वह अपनी एक नजदीकी रिश्तेदार को ले कर एक दिन थाने जा पहुंचीं और फरियाद लगाई, जिस की कोई सुनवाई नहीं हुई तो उन्हें समझ आ गया कि इस गिरोह में पुलिस वाले भी शामिल हैं.

इधर ‘दम मारो दम मिट जाए गम…’ गाने की धुन पर झूमती शिवानी बीती 5 जुलाई को घर आई तो दादी को लगा कि वह रुकेगी, लेकिन शिवानी अपना आधार कार्ड और कुछ कपड़े ले कर वापस चली गई. तब उस के साथ जूली और रूबी के अलावा एक पुलिस वाला भी था. वह बेबसी से पोती को जाते देखती रहीं.

5 जुलाई, 2019 को कोई खास बात थी, जो शिवानी खूब सजीसंवरी थी. शाम होने तक वह नशे की 2 खुराक ले चुकी थी. दरअसल इस गिरोह के हाथ एक डील के तहत बड़ी रकम हाथ लगने वाली थी, जिस के लिए शिवानी को कई सफेदपोश लोगों को खुश करना था. शिवानी कहीं बीच में कुछ ऐसावैसा न बोल दे, इसलिए उसे तीसरी खुराक भी दे दी गई थी.

रंगीन रात परवान चढ़ पाती, इस के पहले ही ड्रग्स के ओवरडोज के चलते शिवानी की हालत बिगड़ने लगी तो बाकी लोग घबरा उठे. उन्होंने पहले तो उस के चेहरे पर पानी के छींटे मार कर उसे होश में लाने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुए तो उन्हें लगा कि शिवानी का बचना अब मुश्किल है.

6 जुलाई, 2019 की सुबह जब शिवपुरी की कृष्णापुरम कालोनी में लोग बाहर आए तो यह देख सन्न रह गए कि नामी कारोबारी जगदीश मंगल के चबूतरे पर एक जवान लड़की पड़ी है. लड़की ने जींस और गुलाबी रंग का टौप पहन रखा था. उस का एक हाथ चबूतरे के नीचे हवा में झूल रहा था और मुंह से झाग निकल रहा था.

साफ समझ आ रहा था कि वह युवती जिंदा नहीं, बल्कि लाश है. जमा भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर पुलिस को खबर कर दी तो सिटी कोतवाली के टीआई बादाम सिंह यादव टीम सहित घटनास्थल पर जा पहुंचे. आग की तरह युवती की संदिग्ध मौत की खबर शहर भर में फैली तो कुछ ही देर में एएसपी गजेंद्र सिंह कंवर भी पहुंच गए.

सामने आई सच्चाई इसी बीच भीड़ में से ही किसी ने युवती की शिनाख्त भी कर दी कि वह नवाब साहब रोड  पर रहने वाली शिवानी शर्मा है. इस के बाद पुलिस को कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि जिस चबूतरे पर लाश पड़ी थी, उस घर में सीसीटीवी कैमरे लगे थे.

इन कैमरों की रिकौर्डिंग देख पता चला कि पिछली रात कोई डेढ़ बजे एक आटोरिक्शा जगदीश मंगल के घर के सामने रुका था. थोड़ी देर खड़ा रहने के बाद उस में से एकएक कर 4 युवक उतरे और इधरउधर देखने के बाद उन्होंने आटोरिक्शा की पिछली सीट के पायदान से एक युवती को बाहर निकाल कर चबूतरे पर लिटा दिया और वापस चले गए.

इधर जैसे ही लक्ष्मीबाई को पोती की मौत की खबर लगी तो उन का रोरो कर बुरा हाल हो गया. हुआ वही, जिस का उन्हें अंदेशा था. रोरो कर उन्होंने पुलिस को बताया कि पिछले कुछ दिनों से शिवानी नशेडि़यों की संगत में पड़ गई थी. वह कुछ ऐसी लड़कियों के चंगुल में फंसी थी, जो ड्रग्स का कारोबार करती थीं. उन्होंने जूली उर्फ अपर्णा भार्गव और रूबी जाटव के नाम भी बताए.

लक्ष्मीबाई ने यह भी बताया कि शिवानी का प्रेम प्रसंग चिक्की पाठक से चल रहा था और दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन चिक्की के घर वाले इस के लिए राजी नहीं थे. इस के बाद भी दोनों ने छिप कर शादी कर ली थी. शिवानी पहली जुलाई को ही घर छोड़ कर चली गई थी और 5 जुलाई को थोड़ी देर के लिए घर आई थी. उन्होंने आरोप लगाया कि शिवानी की हत्या इन्हीं लोगों ने की है.

चूंकि सीसीटीवी से सच बाहर आ चुका था, इसलिए पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 302, 201, 120बी और 34 का मामला दर्ज कर आरोपियों की धरपकड़ शुरू कर दी. इसी बीच पुलिस को एक मुखबिर ने खबर दी कि आरोपी शिवपुरी से भागने की फिराक में हैं और फतेहपुर रोड पर पुलिया के पास खड़े हैं.

मुखबिर की सूचना पर तुरंत दबिश दे कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. विकास सोनी, परमार सिंह, रूबी जाटव, गोलू रजक और जूली ने बताया कि शिवानी की मौत नशे के ओवरडोज के चलते हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी इस की पुष्टि हुई.

इस कांड से शिवपुरी में फैलते नशे और देह व्यापार के कारोबार की जम कर चर्चा हुई. कुछ पुलिस वालों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई, जिन्हें सस्पेंड कर दिया गया. चिक्की फरार हो चुका था, लेकिन 11 जुलाई, 2019 को एक पैट्रोल पंप के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

इस तरह शिवानी की जिंदगी और कहानी दोनों खत्म हुए, लेकिन एक सबक छोड़ गई कि लोग अपने बच्चों को नशे के इन सौदागारों से बचा कर रखें, नहीं तो उन का अंजाम भी शिवानी जैसा हो सकता है.  तमाम हंगामों के बाद भी पुलिस इस गिरोह के सरगनाओं के गिरेहबानों तक नहीं पहुंच पाई तो साफ दिख रहा है कि प्यादे फंसे हैं वजीर और बादशाह तो बेखौफ और बदस्तूर अपने धंधे में लगे हैं और नए शिकार ढूंढ रहे हैं.

कमाल बिल्लू बार्बर का : 32 साल के युवक को बनाया 81 साल का बूढ़ा

कुछ लोग विदेश जाने के लिए इतने लालायित रहते हैं कि इस के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. विदेश जाने के लिए उन्हें कबूतरबाजी का सहारा लेना पड़े या एजेंट के सुझाए गलत रास्तों का, तो भी उन्हें कोई चिंता या डर नहीं रहता.

उन का मकसद सिर्फ एक ही होता है कि किसी भी तरह विदेश पहुंच जाएं और वहां जा कर खूब पैसा कमाएं. अभी हाल में ही 32 साल के एक युवक ने अमेरिका जाने के लिए जो तरीका निकाला, उसे जान कर आप भी चौंके बिना नहीं रहेंगे.

बात 15 सितंबर, 2019 की है. रात करीब 8 बजे दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनैशनल एयरपोर्ट के टर्मिनल नंबर 3 पर एक बुजुर्ग व्यक्ति व्हीलचेयर पर पहुंचा. उसे रात पौने 11 बजे न्यूयार्क जाने वाली फ्लाइट में सवार हो कर अमेरिका जाना था. चैकिंग के दौरान सीआईएसएफ (केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल) के इंसपेक्टर ने उसे मेटल डिटेक्टर डोर क्रास करने को कहा तो उस ने कहा कि चलना तो दूर वह सीधा खड़ा तक नहीं हो सकता.

जांच करने वाला इंसपेक्टर अनुभवी था. उस ने जब उस बुजुर्ग से बात की तो वह भारी आवाज में बात करने की कोशिश करता नजर आया. ऐसा लग रहा था जैसे उस की आवाज बनावटी हो. इस के अलावा वह नजरें मिलाने के बजाए उन से नजरें चुरा रहा था.

इंसपेक्टर इस बात पर हैरान हुआ कि आखिर यह ऐसा क्यों कर रहा है. उस ने बुजुर्ग का पासपोर्ट चैक किया तो उस में उस का नाम अमरीक सिंह और जन्मतिथि 1 फरवरी, 1938 दर्ज थी. यानी जन्मतिथि के हिसाब से वह 81 साल का था.

81 साल के उस बुजुर्ग के चेहरे पर सफेद दाढ़ीमूंछ थी. साथ ही वह नजर का मोटा चश्मा लगाए हुए था और सिर पर पगड़ी थी. लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि उस के चेहरे पर एक भी झुर्री नहीं थी. चेहरे और आवाज से वह 81 साल का नहीं लग रहा था.

कोई भी इंसान खुद को चाहे कितना भी फिट रखे, लेकिन 80 साल की उम्र पार कर जाने के बाद बढ़ती उम्र के कुछ न कुछ लक्षण उस के चेहरे पर जरूर दिख जाते हैं. लेकिन 81 साल के अमरीक सिंह को देख कर नहीं लग रहा था कि वह इतनी उम्र का है.

जांच अधिकारियों ने जब उस से पूछताछ की तो वह हकीकत को ज्यादा देर तक नहीं छिपा सका. पता चला कि वह 81 साल का वृद्ध नहीं बल्कि 32 साल का युवक है. उस ने अपना गेटअप वृद्ध की तरह बना रखा था. उस ने अपना नाम जयेश पटेल निवासी अहमदाबाद बताया.

जांच अधिकारियों के लिए यह बात चौंकाने वाली थी. 32 साल का जयेश पटेल अपना हुलिया बदलवा कर विदेश क्यों जा रहा था और वो कौन शख्स था, जिस ने उसे 32 साल से 81 साल का बुजुर्ग बना दिया. इस बारे में जयेश ने जो कुछ बताया, वह आश्चर्यचकित कर देने वाला था.

जयेश पटेल अहमदाबाद का रहने वाला था. वह किसी भी तरह से अमेरिका जाना चाहता था ताकि वहां रह कर मोटा पैसा कमा सके. किसी के द्वारा उसे एक दलाल के बारे में जानकारी मिली, जिस का नाम सिद्धू था. सिद्धू का और भी बडे़ दलालों से संपर्क था. जयेश पटेल ने सिद्धू से संपर्क किया. सिद्धू अपने साथी गणेश के साथ मिल कर लोगों को गलत तरीके से विदेश भेजने का धंधा करता था.

जयेश ने दलाल सिद्धू से संपर्क किया. दलाल ने उसे बताया कि वह उसे अमेरिका भेज तो देगा लेकिन इस के लिए उसे 30 लाख रुपए खर्च करने होंगे. जयेश यह रकम देने को तैयार हो गया.

दलाल ने उसे 81 साल के एक बुजुर्ग का पासपोर्ट दिया, जिस पर वीजा लगा हुआ था. साथ ही यह भी कहा कि इस पासपोर्ट में जो फोटो लगा है, वह उसी तरह अपना हुलिया बदल ले.

इस के बाद दलाल ने जयेश को दिल्ली बुला लिया. उसे दिल्ली के करोलबाग स्थित एक होटल में ठहराया गया. सिद्धू ने रोहिणी के रहने वाले मेकअप आर्टिस्ट शमशेर उर्फ बिल्लू बार्बर से संपर्क किया.

शमशेर अनुभवी मेकअप आर्टिस्ट था. अपनी दुकान चलाने के साथ ही वह धारावाहिकों, पब्लिक कार्यक्रमों आदि में मेकअप आर्टिस्ट का काम करता था. वह लोगों का हुलिया बदलने में एक्सपर्ट था.

सिद्धू शमशेर को उस होटल में ले गया, जहां जयेश ठहरा हुआ था. उस ने उसे पासपोर्ट में लगा 81 साल के बुजुर्ग का फोटो दिखाया. सिद्धू ने उसे जयेश के बारे में बताया कि वह मौडल है, जो आने वाली एक फिल्म व सीरियल में इसी तरह के 80 साल के बूढ़े का रोल करेगा.

इस के लिए उसे इसी तरह का गेटअप तैयार करना है. मेकअप आर्टिस्ट ने इस काम के 20 हजार रुपए मांगे. सिद्धू यह पैसे देने को तैयार हो गया.

शमशेर ने जयेश की दाढ़ीमूंढ बड़ी कराने के बाद डाई से सफेद कर दीं. इतना ही नहीं, उस ने उस की भौंहें भी सफेद कर दीं और पगड़ी बांध कर 32 साल के जयेश को 81 साल के अमरीक सिंह का लुक दे दिया. इस के बाद दलाल ने फरजी नाम से उस का दिल्ली के कालकाजी स्थित एक मकान के पते पर पासपोर्ट बनवा दिया.

दलाल की पहुंच का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस ने 20 अगस्त, 2019 को पासपोर्ट के लिए आवेदन कराया था और 21 अगस्त को जयेश के पास पासपोर्ट पहुंच गया था, जबकि पासपोर्ट बनवाने के लिए तत्काल में भी अप्लाई नहीं किया गया था.

एक ही दिन में पुलिस की भी सभी जांच पूरी हो गई थी. पासपोर्ट बनवाने के लिए विटनेस के तौर पर 2 पड़ोसियों या वहीं आसपास रहने वाले जानकारों के हस्ताक्षर की जरूरत पड़ती है, जांच करने वाले पुलिसकर्मी ने इस प्रक्रिया को भी पूरा नहीं किया.

32 साल का जयेश पटेल अब 81 साल का अमरीक सिंह बन चुका था. उस का गेटअप देख कर कोई भी आसानी से नहीं पहचान सकता था. अमेरिका जाने के लिए 15 सितंबर, 2019 की रात पौने 11 बजे की फ्लाइट की टिकट भी बुक करा दी. इस से पहले उस ने 9 सितंबर की रात को न्यूयार्क टेकऔफ करने के लिए इमिग्रेशन समेत तमाम क्लीयरेंस ले लिए थे.

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दलाल की सलाह पर ही जयेश पटेल व्हीलचेयर पर बैठ कर आईजीआई एयरपोर्ट के टर्मिनल-3 पहुंचा था. लेकिन वहां पर वह पुलिस जांच में पकड़ा गया. आर्टिस्ट शमशेर ने जयेश को हूबहू अमरीक सिंह बना दिया था, लेकिन वह उस के चेहरे पर झुर्रियां नहीं बना सका. जिस की वजह से जयेश पुलिस के शक के दायरे में आ गया और पकड़ा गया.

एयरपोर्ट पुलिस ने जयेश पटेल के मामले को गंभीरता से लिया. इस के साथ ही अलगअलग 3 एजेंसियां जयेश से पूछताछ में जुट गईं. उसे कोर्ट में पेश करने के बाद 6 दिन के रिमांड पर लिया गया. उस से पूछताछ करने के बाद डीसीपी (एयरपोर्ट) संजय भाटिया ने अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए एसीपी (एयरपोर्ट) की निगरानी में एक स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम बनाई.

इस टीम ने रोहिणी से शमशेर उर्फ बिल्लू बार्बर को भी गिरफ्तार कर लिया. शमशेर ने बताया कि वह दलाल सिद्धू के कहने पर अब तक 12 लोगों का हुलिया बदल चुका है. उन में 2 लड़कियां भी थीं. ये सब विदेश जा चुके हैं.

टीम अब यह जांच कर रही है कि इस में इमिगे्रशन और पासपोर्ट का वैरीफिकेशन करने वाले कौनकौन लोग शामिल हैं. स्पैशल जांच टीम ने स्पैशल ब्रांच के उस अफसर से भी पूछताछ की, जिस ने कालकाजी के पते पर पासपोर्ट जारी होने पर जयेश का वैरीफिकेशन किया था.

इस अफसर की भूमिका जांच में संदिग्ध पाई गई, जिस से उसे सस्पेंड कर दिया गया. उस के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश भी दे दिए हैं.

स्पैशल जांच टीम ने दलाल सिद्धू और गणेश के खिलाफ भी एक्शन शुरू कर दिया है लेकिन वे पुलिस के हत्थे नहीं लग सके. इस मामले की जांच में कई गंभीर बातें सामने आईं, जिस से यह लग रहा है कि इस गैंग के संपर्क बड़े अधिकारियों तक थे.

अनुमान लगाया जा रहा है कि इस फरजीवाड़े में पासपोर्ट औफिस, स्पैशल ब्रांच और इमिग्रेशन विभाग के कुछ अफसर भी शामिल हो सकते हैं. जांच पूरी होने तक नए खुलासे के साथ कुछ और लोग भी सस्पेंड हो सकते हैं.

पुलिस ने रिमांड अवधि पूरी होने पर जयेश पटेल को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. शमशेर उर्फ बिल्लू बार्बर को भी जेल भेज दिया गया. दलाल सिद्धू और गणेश का पुलिस को सुराग नहीं लग सका. विशेष जांच टीम गंभीरता से केस की जांच में जुटी हुई थी.