उस्तादों के उस्ताद : अजीबोगरीब चोरी का राज

7 मार्च 2019 की बात है. राजस्थान के सीकर जिले के नीमकाथाना शहर के पुलिस थाने में नागौर जिले के शेरानी आबाद के रहने वाले सुलतान खां ने एक रिपोर्ट दर्ज कराई. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि वह अपने भाई इरफान के साथ दिल्ली एयरपोर्ट से सऊदी अरब से आए अपने परिचित इरफान और वली मोहम्मद को ले कर अपनी स्कौर्पियो गाड़ी से नागौर जिले के डीडवाना शहर जा रहा था.

शाम करीब 4 बजे नीमकाथाना बाईपास पर बने रेलवे अंडरपास के नीचे उन की स्कौर्पियो गाड़ी के आगे एक कैंपर गाड़ी और पीछे स्विफ्ट कार आ कर रुकीं. दोनों कारों से उतरे लोगों ने हमारी कार रोक ली और हथियार दिखा कर हमें गाड़ी से उतार दिया.

दोनों गाडि़यों से आए बदमाशों ने हम से 30 हजार रुपए नकद, कपड़े, प्रैस, थर्मस, स्पीकर और काजूबादाम वगैरह लूट लिए. इस के बाद बदमाश अपनी कैंपर कार में मेरे भाई इरफान का अपहरण कर ले गए. साथ ही हमें सड़क पर छोड़ कर हमारी स्कौर्पियो भी ले भागे.

पुलिस ने सुलतान खां की रिपोर्ट दर्ज कर ली. हालांकि रिपोर्ट में ऐसी कोई बड़ी बात नहीं थी. कोई बड़ी लूटपाट भी नहीं हुई थी, लेकिन अपहरण का मामला गंभीर था. पुलिस ने तुरंत काररवाई करते हुए इलाके में चारों तरफ नाकेबंदी करवा दी. पुलिस ने अपहृत इरफान की तलाश शुरू की, तो रात को सीकर जिले में ही हांसनाला मंदिर के पास इरफान और लूटी गई स्कौर्पियो गाड़ी मिल गई.

स्कौर्पियो गाड़ी में इरफान और वली मोहम्मद से लूटी गई रकम, प्रैस, स्पीकर और थर्मस आदि सामान नहीं मिले. फिर भी लूटी गई गाड़ी और अपहृत युवक के मिल जाने से पुलिस ने राहत की सांस ली. बदमाशों ने इरफान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था. न तो उस से कोई मारपीट की गई थी और न कोई धमकी वगैरह दी गई थी.

हालांकि लूटी गई रकम और अन्य सामान बहुत ज्यादा नहीं था, फिर भी यह गंभीर बात थी कि दिनदहाड़े लूट हुई थी. अगर पुलिस साधारण मामला समझ कर कोई काररवाई नहीं करती, तो हो सकता था भविष्य में कोई बड़ी वारदात हो जाती. नीमकाथाना के थाना प्रभारी राजेंद्र यादव ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए लूटपाट की जांच शुरू की.

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पुलिस ने जांच शुरू की, तो पता चला लूटपाट करने वाले बदमाशों की दोनों गाडि़यां सुलतान और उस के साथियों की स्कौर्पियो का पीछा करती हुई नीमकाथाना तक आई थीं. सवाल यह था कि सुलतान की स्कौर्पियो का पीछा कहां से किया गया था.

थानाप्रभारी राजेंद्र यादव के दिमाग में एक सवाल बारबार कौंध रहा था कि 2 गाडि़यों में सवार बदमाश केवल 30 हजार रुपए, कपड़े, प्रैस व स्पीकर जैसे छोटेमोटे सामान के लिए दिनदहाड़े लूट की वारदात को क्यों अंजाम देंगे? या तो बदमाशों को सुलतान और उस के साथियों के पास मोटी रकम होने की सूचना थी, जिस की वजह से उन्होंने लूटपाट की.

दूसरी बात यह थी कि अगर बदमाशों का मकसद इरफान का अपहरण ही था, तो वे उसे छोड़ क्यों गए? बदमाशों ने इरफान को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाया था. ये सवाल थानाप्रभारी को बारबार परेशान कर रहे थे.

समझ से परे थी लूट की वारदात

इन सवालों का सही जवाब या तो बदमाशों के पकड़े जाने पर मिल सकता था या फिर इस बारे में पीडि़त ही कुछ बता सकते थे. इसलिए थानाप्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज कराने वाले सुलतान खां और उस के साथी इरफान खां से पूछताछ की. लेकिन उन से ऐसी कोई बात पता नहीं चली जिस से बदमाशों और उन के असल मकसद का पता चल सकता.

सुलतान और इरफान ने लूटपाट करने वाले बदमाशों के बारे में कोई भी जानकारी होने से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने सीधे तौर पर किसी पर शक भी जाहिर नहीं किया. ऐसी स्थिति में लूटपाट करने वाले बदमाशों को तलाशना पुलिस के लिए चुनौती से कम नहीं था.

नीमकाथाना के थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने सीकर के एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर के सामने हाजिर हो कर अपने दिमाग में उठ रहे सारे सवाल बताए. एसपी साहब भी थानाप्रभारी की बातों से सहमत थे. उन्होंने थानाप्रभारी से इस मामले की फाइल ले कर एफआईआर और इस के बाद की पुलिस की काररवाई पर सरसरी नजर दौड़ाई. उन्हें लगा कि राजेंद्र यादव की बातों में दम है.

एसपी ने थानाप्रभारी से पूछा, ‘‘राजेंद्र, तुम इस केस को कैसे सौल्व करना चाहते हो?’’

‘‘सर, यह केस सौल्व तो तभी होगा जब बदमाश पकड़े जाएंगे.’’ थानाप्रभारी ने एसपी साहब से कहा, ‘‘सर, सब से पहले हमें यह पता लगाना होगा कि सुलतान और उस के साथियों की स्कौर्पियो गाड़ी का पीछा कहां से शुरू किया गया था.’’

अपनी बात जारी रखते हुए थानाप्रभारी ने एसपी साहब से कहा, ‘‘सर, इस के लिए हमें दिल्ली एयरपोर्ट तक जाना पड़ेगा. इस के साथ हमें दिल्ली से नीमकाथाना तक रास्ते में जहांजहां भी सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, वहां पर 7 मार्च की दोपहर की फुटेज देखनी पड़ेगी. इसी से हमे बदमाशों का सुराग मिल सकता है.’’

‘‘राजेंद्र, तुम्हारा आइडिया अच्छा है.’’ एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर ने थानाप्रभारी की हौसलाअफजाई करते हुए कहा, ‘‘तुम जल्दी से जल्दी यह काम पूरा करो. उम्मीद है तुम्हें कामयाबी जरूर मिलेगी.’’

‘‘थैंक यू सर.’’ थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने एसपी साहब को सैल्यूट किया और वहां से निकल गए.

थानाप्रभारी ने नीमकाथाना पहुंचते ही दिल्ली जाने की तैयारी शुरू कर दी. कुछ देर बाद वे अपने 2 मातहतों को ले कर गाड़ी से दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

मिली एक बड़ी सफलता

दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पहुंच कर उन्होंने एयरपोर्ट के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की 7 मार्च की फुटेज निकलवा कर देखी. इस में सुलतान खां और उस के साथियों की स्कौर्पियो के पीछे एक ब्रेजा गाड़ी नजर आई.

इस के बाद पुलिस ने दिल्ली से नीमकाथाना तक के रास्ते में टोल नाके और अन्य जगहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी. इन में भी वह ब्रेजा गाड़ी इरफान व वली मोहम्मद की स्कौर्पियो के पीछे पीछे आती हुई नजर आई.

इस ब्रेजा गाड़ी के नंबर के आधार पर पुलिस ने नागौर जिले के लाडनूं थाना इलाके के तितरी गांव के रहने वाले चैन सिंह राजपूत को पकड़ा. चैन सिंह से पूछताछ की गई, तो सुलतान खान के साथियों से की गई लूट की वारदात की गुत्थी सुलझ गई. लेकिन उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई.

थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने एसपी साहब को सारी बातें बताई. एसपी साहब ने राजेंद्र को शाबासी देते हुए चैन सिंह के बताए बाकी अपराधियों को पकड़ने और माल बरामद करने के निर्देश दिए. साथ ही जिले के कुछ अन्य पुलिस अफसरों को सदर थानाप्रभारी के साथ सहयोग करने के लिए लगा दिया.

पुलिस टीमों ने भागदौड़ कर नागौर जिले के डीडवाना थाना इलाके के कोलिया गांव के रहने वाले इकबाल उर्फ भाणू खां, सीकर जिले के रानोली के रहने वाले विजय कुमार उर्फ बिज्जू भाट, नीम का थाना सदर थाना इलाके के चला गांव निवासी बलराम मील और ढाणी खुड़ालिया तन डहरा जोहड़ी गुहाला के रहने वाले जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप जाट को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने गिरफ्तार पांचों आरोपियों की निशानदेही पर डेढ़ करोड़ रुपए की कीमत का 4 किलो 300 ग्राम सोना, वारदात में इस्तेमाल की गईं 3 गाडि़यां ब्रेजा, कैंपर और स्विफ्ट के अलावा 315 बोर का एक कट्टा बरामद किया.

सिर्फ  30 हजार रुपए की लूट का करोड़ों रुपए की लूट में खुलासा होने पर जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर भी सीकर आ गए. उन्होंने आरोपियों से पूछताछ की और एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर और अन्य मातहत अधिकारियों को बधाई दी.

आरोपियों से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह सोने के तस्करों की आपसी रंजिश की कहानी है. उस्तादों के उस्ताद बनने की यह कहानी सरकारी सिस्टम को भी अंगूठा दिखाती है कि किस तरह विदेशों से तस्करी कर सोना भारत में लाया जा रहा है. इस के अलावा विदेशों में बैठे तस्कर ही अपने सहयोगियों से सोने की लूट भी करवा रहे हैं.

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि विदेशों से रोजाना चोरी छिपे बड़ी मात्रा में सोना भारत लाया जाता है. विदेशों से अधिकांश सोना हवाई मार्ग से ही आता है. तस्करी से जुड़े लोग सोना लाने और कस्टम से बचने के नएनए तरीके अपनाते हैं. कुछ तस्करों की एयरपोर्ट पर सुरक्षा अधिकारियों या एयरलाइंस के कर्मचारियों से मिलीभगत भी होती है. इस से वे सुरक्षित बाहर निकल आते हैं.

राजस्थान में भी सोने की तस्करी करने वाले कई गिरोह सक्रिय हैं. इन गिरोहों के लोग दिल्ली या जयपुर एयरपोर्ट पर सोना ले कर आते हैं. इन में कभीकभी कुछ लोग पकड़े भी जाते हैं, जबकि अधिकांश तस्कर सुरक्षा व्यवस्थाओं को धता बता कर सोना लाने में सफल हो जाते हैं.

सोने की ऐसे होती है तस्करी

सीकर, चूरू व झुंझुनूं जिले के शेखावटी इलाके के करीब 5 लाख लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं. इन में अधिकतर कामगार हैं, जो भवन निर्माण कार्यों से जुड़े हैं. कोई आरसीसी लेंटर डालने का काम करता है, तो कोई टाइल्स लगाने का काम. ये लोग साल छह महीने में एक बार अपने घर आते रहते हैं.

खाड़ी देशों में सक्रिय सोने के तस्कर शेखावटी के इन लोगों को लालच दे कर अपने कैरियर के रूप में इस्तेमाल करते हैं. बदले में इन कैरियर को हवाई टिकट का पैसा और कुछ खर्चा दे दिया जाता है. एयरपोर्ट से बाहर निकलने पर तस्कर गिरोह के लोग इन कैरियरों से सोना ले लेते हैं. एयरपोर्ट पर पकड़े जाने पर कैरियर अगर फंस जाता है, तो बाहर बैठे तस्कर गिरोह के सदस्य अपनी कोशिशें करते हैं. कोशिश कामयाब हो जाती है तो ठीक, वरना ये लोग उस कैरियर से पल्ला झाड़ लेते हैं.

नागौर जिले के खुनखुना थाना इलाके के शेरानी आबाद के रहने वाले शेर मोहम्मद और लाल मोहम्मद सऊदी अरब से कैरियर के माध्यम से तस्करी का सोना मंगवाते हैं. इन में लाल मोहम्मद अब सऊदी अरब में रहता है. जबकि शेर मोहम्मद और लाल मोहम्मद में आजकल रंजिश चल रही है.

रंजिश का कारण यह है कि करीब डेढ़ साल पहले लाल मोहम्मद की ओर से सऊदी अरब से मंगाए गए सोने की लूट हो गई थी. लाल मोहम्मद को इस लूट में शेर मोहम्मद का हाथ होने का शक था. इस के बाद लाल मोहम्मद के साथ एक बार फिर धोखा हो गया. लाल मोहम्मद के लिए सऊदी अरब से तस्करी का सोना ले कर आया एक कैरियर दिल्ली से निर्धारित गाड़ी में न आ कर दूसरी गाड़ी में बैठ कर चला गया था.

बाद में लाल मोहम्मद ने उस का अपहरण कर अपना सोना वसूल किया था. इस मामले में नागौर जिले के खुनखुना थाने में मुकदमा दर्ज हुआ था. इस में पुलिस ने लाल मोहम्मद, चैन सिंह, मोहम्मद अली, अली मोहम्मद, अब्दुल हकीम आदि के खिलाफ चालान पेश किया था.

आजकल सऊदी अरब में रह कर भी लाल मोहम्मद अपने विरोधी शेर मोहम्मद की गतिविधियों की सारी जानकारियां रखता था. चूरू जिले के बीदासर गांव का रहने वाला वली मोहम्मद 3 साल से सऊदी अरब में रह रहा था. वह वहां आरसीसी लेंटर डालने का काम करता था. बीदासर गांव का ही रहने वाला इरफान करीब 9 महीने से सऊदी अरब में रह कर टाइल्स लगाने का काम करता था.

तस्कर देते हैं लालच

वली मोहम्मद और इरफान भारत में अपने घर आना चाहते थे. सोने के तस्कर शेर मोहम्मद को यह बात पता चली, तो उस ने सऊदी अरब में सक्रिय अपने लोगों के माध्यम से इन दोनों को सोना लाने के लिए राजी कर लिया. उस ने दोनों को सऊदी अरब से दिल्ली तक का हवाई जहाज का फ्री टिकट और दिल्ली से गांव तक जाने के लिए टैक्सी कराने का वादा किया था.

दूसरी तरफ सऊदी अरब में रह रहे शेर मोहम्मद के विरोधी लाल मोहम्मद को यह बात पता चल गई कि बीदासर के इरफान और वली मोहम्मद नाम के 2 युवक शेर मोहम्मद के लिए सोना ले जाएंगे. इस पर लाल मोहम्मद ने योजना बना कर इन दोनों से संपर्क कर उन्हें लालच दिया और अपनी योजना में शामिल कर लिया.

सऊदी अरब में तस्करी के लिए सोने को पिघला कर अलगअलग रूपों में ढाल दिया जाता है. फिर उस सोने को पारे की परत चढ़ा कर ऐसा रंग दे दिया जाता है कि वह एल्युमीनियम नजर आता है. इस एल्युमीनियम रूपी सोने को इलैक्ट्रौनिक सामान का पार्ट बना दिया जाता है. इस तरह इलैक्ट्रौनिक उपकरण के रूप में तस्करी का सोना भारत आता है.

निश्चित दिन सऊदी अरब में शेर मोहम्मद के लोगों ने बीदासर के इरफान और वली मोहम्मद को भारत ले जाने के लिए 7 स्पीकर और एक प्रैस में छिपा कर 5 किलो सोना सौंप दिया. इस के बाद शेर मोहम्मद के लोग इन दोनों से मोबाइल के माध्यम से लगातार संपर्क में रहे. वहीं, लाल मोहम्मद भी इरफान और वली मोहम्मद से संपर्क बनाए हुआ था. इन से लाल मोहम्मद को पता चल गया था कि वे किस दिन कौन सी फ्लाइट से दिल्ली पहुंचेंगे.

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स्पीकर में पारे से एल्युमीनियम के रंग में रंगी सोने की प्लेटों को चिपकाया गया था जबकि इलैक्ट्रिक प्रैस में सोने की प्लेट को सिल्वर रंग दे कर नट से कस दिया गया था. इरफान और वली मोहम्मद हवाई जहाज से दिल्ली एयरपोर्ट पर उतर कर बाहर आ गए. कहा जाता है कि सोने के तस्कर शेर मोहम्मद की दिल्ली एयरपोर्ट पर कस्टम व सुरक्षा अधिकारियों से मिलीभगत थी, इसलिए इरफान और वली मोहम्मद को न तो किसी ने रोका और ना ही उन के सामान की जांच की.

सऊदी अरब से सोना ले कर आ रहे इरफान और वली मोहम्मद को दिल्ली से लाने के लिए शेर मोहम्मद ने सुलतान खां और उस के भाई इरफान को स्कौर्पियो गाड़ी ले कर भेजा.

लूटने की बना ली योजना

दूसरी तरफ लाल मोहम्मद ने सऊदी अरब से ईमो कालिंग के जरिए अपने ड्राइवर नागौर जिले के लाडनूं के तितरी निवासी चैन सिंह राजपूत को सोना ले कर आ रहे इरफान और वली मोहम्मद से माल लूटने को कहा.

उस ने चैन सिंह को इरफान और वली मोहम्मद की फोटो सहित फ्लाइट नंबर वगैरह की सारी जानकारी दे दी. इस पर चैन सिंह ने अपने परिचित बदमाशों इकबाल, विजय कुमार उर्फ बिज्जू, जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप, बलराम और 3 अन्य लोगों को साथ ले कर सोना लूटने की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक चैन सिंह और उस का एक साथी नरेंद्र सिंह ब्रेजा गाड़ी ले कर 7 मार्च को फ्लाइट आने के समय से काफी पहले ही दिल्ली एयरपोर्ट पहुंच गए. उन्होंने फ्लाइट आने के बाद एयरपोर्ट से बाहर निकल रहे यात्रियों में फोटो के आधार पर इरफान और वली मोहम्मद को पहचान लिया. चैन सिंह व उस का साथी नरेंद्र उन पर नजर रखते रहे.

इरफान और वली मोहम्मद जब सुलतान खां व उस के भाई इरफान के साथ उन की स्कौर्पियो में बैठ गए, तो चैन सिंह व उस का साथी अपनी ब्रेजा गाड़ी से उन के पीछे पीछे चलते रहे. बीच बीच में ये लोग अपने साथियों को सूचना भी देते रहे.

दिल्ली से जयपुर वाले नैशनल हाइवे नंबर 8 पर गुड़गांव, धारूहेड़ा, शाहजहांपुर, नीमराना, बहरोड़ हो कर ये लोग कोटपुतली पहुंच गए. कोटपुतली से नीमकाथाना जाने के लिए हाइवे से अलग रास्ता है. नीमकाथाना में बाइपास पर चैन सिंह के बाकी साथी एक कैंपर और एक स्विफ्ट कार में सोना ला रहे इरफान और वली मोहम्मद की स्कौर्पियो गाड़ी का इंतजार कर रहे थे.

दोनों कैरियरों के साथ सुलतान और उस के भाई की स्कौर्पियो गाड़ी जब नीमकाथाना में रेलवे अंडरपास पर पहुंची, तो चैन सिंह के साथियों ने अपनी दोनों गाडि़यां उन की स्कौर्पियो के आगे पीछे लगा कर सुलतान, उस  के भाई इरफान और दोनों कैरियर वली मोहम्मद व इरफान को गाड़ी से नीचे उतार लिया.

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                                  वली मोहम्मद व इरफान

बदमाशों ने इन चारों को अपनी कैंपर गाड़ी में बैठा लिया. इन लोगों ने सुलतान की स्कौर्पियो अपने कब्जे में ले ली. रेलवे अंडरपास से ऊपर चढ़ाई पर सुलतान और उस का भाई इरफान बदमाशों से संघर्ष करने लगे, लेकिन दोनों कैरियर चुपचाप बैठे रहे. इस दौरान बदमाशों की गाड़ी की गति धीमी हो गई, तो दोनों कैरियर इरफान व वली मोहम्मद कूद कर भाग निकले. मौका मिलने पर सुलतान भी किसी तरह बच कर भाग निकला.

बदमाशों ने गाड़ी रोक कर उन्हें पकड़ने का प्रयास किया, लेकिन शहर के बीच और दिन का समय होने के कारण उन्हें फंसने का डर हुआ. इस पर वे सुलतान के भाई इरफान और उन की स्कौर्पियो को ले कर भाग गए.

बाद में सुलतान ने पुलिस को 30 हजार रुपए नकद और इलैक्ट्रौनिक सामान लूटने और इरफान का अपहरण होने की सूचना दी, तो पुलिस ने नाकेबंदी करा दी. नाकेबंदी के दौरान बदमाश हांसनाला मंदिर के पास इरफान और स्कौर्पियो को छोड़ कर भाग गए.

लेकिन स्कौर्पियो में से वह सारा इलैक्ट्रौनिक सामान ले गए, जो इरफान और वली मोहम्मद सऊदी अरब से लाए थे. इसी इलैक्ट्रौनिक सामान में 5 किलोग्राम सोना छिपा कर रखा हुआ था. सुलतान ने पुलिस में जो रिपोर्ट दर्ज कराई, उस में केवल इलैक्ट्रौनिक सामान लूटने की बात कही थी, सोने का जिक्र नहीं किया था.

बाद में चैन सिंह सहित 5 बदमाशों की गिरफ्तारी से 5 किलोग्राम सोने की लूट का भंडाफोड़ हुआ. बाद में पुलिस ने सऊदी अरब से सोना लाने वाले चूरू के बीदासर निवासी इरफान और वली मोहम्मद को भी गिरफ्तार कर लिया. नागौर जिले के मकराना निवासी एक आरोपी नरेंद्र सिंह को भी पुलिस ने बाद में गिरफ्तार किया.

वह दिल्ली एयरपोर्ट से चैन सिंह के साथ ब्रेजा गाड़ी से सुलतान और दोनों कैरियरों का पीछा कर रहा था. इस वारदात में चैन सिंह के साथ मिल कर लूट व अपहरण की वारदात करने वाले कुछ बदमाश कथा लिखे जाने तक फरार थे. पुलिस उन की तलाश कर रही थी.

सभी पुलिस वालों को मिली पदोन्नति

इस के साथ ही 700 ग्राम सोने के बारे में भी पता किया जा रहा है. पुलिस ने 6 स्पीकर और एक प्रैस में भरा 4 किलो 300 ग्राम सोना ही बरामद किया है. एक स्पीकर खाली मिला था. पुलिस को अंदेशा है कि आरोपियों ने एक स्पीकर में भरा सोना खुर्दबुर्द कर दिया होगा.

पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार आरोपी विजय कुमार उर्फ बिज्जू भाट राजस्थान के कुख्यात अपराधी आनंद पाल के गिरोह से जुड़ा हुआ था. आनंद पाल के एनकाउंटर के बाद वह राजू ठेहठ गैंग से जुड़ गया. वह अवैध हथियारों की सप्लाई भी करता है. बिज्जू के खिलाफ फायरिंग व लूट के 7 मामले दर्ज हैं. वह 5 हजार रुपए का इनामी बदमाश है.

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                         गिरफ्तार आरोपियों के साथ सीकर पुलिस टीम

इकबाल उर्फ भाणू खां नागौर जिले के कुचामन थाने का हिस्ट्रीशीटर है. कुचामन और डीडवाना में उस के खिलाफ  9 मुकदमे दर्ज हैं. चैन सिंह के खिलाफ  खुनखुना व लाडनूं थाने में अपहरण, मारपीट व शराब तस्करी के 8 मामले दर्ज हैं. जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप चर्चित भढाढर हत्याकांड का मुख्य आरोपी है. वह लूट व डकैती की कई वारदातों में भी शामिल रहा है.

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                आईजी एस. सेंगाथिर और एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर

एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर का दावा है कि शेर मोहम्मद हर साल 5 से 7 बार कैरियरों के माध्यम से सऊदी अरब से सोना मंगवाता है. सोने की तस्करी से जुड़े इस मामले की सीबीआई और फेरा को भी जानकारी दी जाएगी. सोना लूट की यह योजना लाल मोहम्मद ने सऊदी अरब में बैठ कर ही बनाई थी, इसलिए उस के खिलाफ  भी काररवाई की जाएगी.

जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर ने शेखावटी की अब तक की सब से बड़ी सोने की तस्करी का खुलासा करने वाली पुलिस टीम में शामिल नीमकाथाना के डीएसपी रामावतार सोनी, थानाप्रभारी राजेंद्र यादव, साइबर सेल के सबइंसपेक्टर मनीष शर्मा, हैड कांस्टेबल सुभाषचंद, कांस्टेबल कर्मवीर यादव व मुकेश कुमार की पदोन्नति की सिफारिश करने की बात कही है.

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कुत्ते वाली मैडम के काले कारनामे

कानपुर के साकेत नगर के डब्ल्यू ब्लौक के रहने वाले लोग कुत्ते वाली मैडम से  बहुत परेशान थे. सीमा तिवारी नाम की वह महिला संदीप अग्रवाल के मकान में किराए पर रहती थी. उस ने विदेशी नस्ल का कुत्ता पाल रखा था. वह कुत्ता था तो छोटा सा, लेकिन अकसर भौंकता रहता था. जिस से मोहल्ले वाले डिस्टर्ब होते थे.

इस के अलावा सीमा तिवारी के घर शाम ढलते ही लड़के और लड़कियों की आवाजाही शुरू हो जाती थी. कालोनी के लागों को शक था कि सीमा के घर जरूर कोई गैरकानूनी काम होता है. कुछ लोगों को लगता था कि सीमा चकला घर चलाती है. इस मामले में पुलिस ने काररवाई कराने के लिए कुछ लोग एसपी (साउथ) रवीना त्यागी से मिले.

रवीना त्यागी ने आगंतुकों की बात गौर से सुनी और आश्वासन दिया कि यदि जांच में यह सूचना सही पाई गई तो सीमा तिवारी व अन्य दोषियों के खिलाफ जरूरी काररवाई की जाएगी.

उन के जाने के बाद रवीना त्यागी ने तत्काल किदवई नगर के थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा को अपने कार्यालय बुलवा लिया. उन्होंने मिश्रा से कहा कि तुम्हारे थाना क्षेत्र के डब्ल्यू ब्लौक, साकेत नगर में कालगर्ल का धंधा होने की जानकारी मिली है. जांच कर इस मामले में जरूरी काररवाई करो.

कप्तान साहिबा को मिलने के बाद थानाप्रभारी सीधे साकेत नगर पुलिस चौकी पहुंचे. उन्होंने चौकी इंचार्ज डी.के. सिंह से इस बारे में बात की और इस शिकायत की गोपनीय जांच करने को कहा.

चूंकि मामला कप्तान साहिबा ने सौंपा था इसलिए थानाप्रभारी और चौकी प्रभारी ने अपने मुखबिरों को लगा दिया. इस के 2 दिन बाद ही एक खास मुखबिर ने आ कर बताया कि डब्ल्यू ब्लौक साकेत नगर में टेलीफोन एक्सचेंज के पास वाले मकान में जिस्मफरोशी का धंधा होता है. इस रैकेट की संचालिका सीमा तिवारी है, जो कुत्ते वाली मैडम के नाम से जानी जाती है. सीमा का पति भी इस धंधे में दलाली करता है.

थानाप्रभारी ने इस जानकारी से एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को अवगत करा दिया. चूंकि दबिश के दौरान सीओ स्तर के पुलिस अधिकारी की मौजूदगी जरूरी होती है, इसलिए एसपी ने सीओ मनोज कुमार के नेतृत्व में एक टीम गठित की. इस टीम में थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा, चौकी इंचार्ज डी.के. सिंह के साथसाथ कुछ हैडकांस्टेबल और सिपाहियों को शामिल किया गया.

11 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे पुलिस टीम ने सीमा तिवारी के अड्डे पर छापा मारा. मकान के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर पुलिस चौंकी. कमरे में 2 अर्धनग्न महिलाएं बिस्तर पर चित पड़ी थीं. उन के साथ 2 युवक कामक्रीड़ा में लीन थे.

पुलिस पर निगाह पड़ते ही दोनों युवकों ने दरवाजे से भागने का प्रयास किया पर दरवाजे पर खडे़ पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया. दूसरे कमरे में एक युवती सजी संवरी बैठी थी. शायद उसे ग्राहक के आने का इंतजार था.

महिला सिपाही ने उसे भी हिरासत में ले लिया. कमरे में तलाशी के दौरान सैक्सवर्धक दवाएं तथा कई आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई. पुलिस ने ऐसी सभी चीजें अपने कब्जे में ले लीं. छापे में सरगना के अलावा 3 युवतियां, 2 ग्राहक तथा एक दलाल पकड़ा गया. इन सभी को गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई.

जिस मकान में सैक्स रैकेट चल रहा था, वह संदीप अग्रवाल का था. संदेह के आधार पर पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले लिया. संदीप अग्रवाल के पकड़े जाने से हड़कंप मच गया. कई रसूखदार लोगों ने थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा को फोन किया और संदीप अग्रवाल को निर्दोष बताते हुए उसे छोड़ने के लिए दबाव डाला.

लेकिन मिश्राजी ने जांच में दोषी न पाए जाने के बाद ही रिहा करने की बात कही. पूछताछ में संदीप अग्रवाल ने भी स्वयं को निर्दोष बताया और कहा कि वह व्यापारी है. हर साल हजारों रुपया टैक्स देता है. उस ने तो मकान किराए पर दिया था. उसे सैक्स रैकेट की जानकारी नहीं थी. हर पहलू से जांच के बाद जब संदीप अग्रवाल बेकसूर लगा तो पुलिस ने 2 दिन बाद उसे क्लीन चिट दे दी.

सीओ मनोज कुमार ने जिस्मफरोशी के आरोप में पकड़े गए युवक, युवतियों से पूछताछ की तो युवतियों ने अपने नाम सीमा तिवारी, खुशी, विविता तथा मंतसा बताए. इन में सीमा तिवारी सैक्स रैकेट की संचालिका थी. युवकों ने अपने नाम महेश, शैलेंद्र तथा चंद्रेश तिवारी बताए. इन में चंद्रेश तिवारी सीमा का पति था और वह दलाल भी था.

चूंकि सभी आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए सीओ मनोज कुमार ने वादी बन कर अनैतिक देह व्यापार अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. पूछताछ में देह व्यापार में लिप्त युवतियों ने इस धंधे में आने की अपनीअपनी अलगअलग मजबूरी बताई.

सैक्स रैकेट की संचालिका सीमा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के कुमऊपुर गांव की रहने वाली थी. उस के पिता बाबूराम तिवारी किसान थे. उन के 3 बच्चों में सीमा सब से छोटी थी.

बाबूराम के पास मात्र 2 बीघा खेती की जमीन थी. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. वह एक बेटे तथा एक बेटी की शादी कर चुके थे. सीमा भी शादी योग्य थी, इसलिए वह उस की शादी के लिए प्रयासरत थे.

सीमा तिवारी साधारण परिवार में पलीबढ़ी जरूर थी लेकिन वह थी खूबसूरत. सीमा ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के रूप में निखार आ गया. कालेज में कई लड़कों से उस की दोस्ती हो गई थी. उन के साथ वह घूमती और मौजमस्ती करती थी. घर वाले देर से घर आने को टोकाटाकी करते तो सीमा कोई न कोई बहाना बना देती थी.

जवान बेटी कहीं बहक न जाए इसलिए उन्होंने उस के लिए लड़का देखने के प्रयास तेज कर दिए. थोड़ी दौड़धूप करने के बाद घाटपुरम का चंद्रेश तिवारी उन्हें पसंद आ गया. उन्होंने सीमा का विवाह चंद्रेश तिवारी के साथ कर दिया.

सीमा ससुराल में कुछ समय तक ठीक रही, फिर धीरेधीरे वह खुलने लगी. दरअसल सीमा ने जैसे सजीले युवक से शादी का रंगीन सपना देखा था, चंद्रेश वैसा नहीं था. चंद्रेश एक पैट्रोल पंप पर काम करता था. उस की आमदनी भी सीमित थी. सीमा न तो पति से संतुष्ट थी और न ही उस की आमदनी से. उस की जरूरतें पूरी नहीं होती थीं. इसे ले कर घर में आए दिन कलह होने लगी.

चंद्रेश चाहता था कि सीमा मर्यादा में रहे और देहरी न लांघे. लेकिन सीमा को बंधन मंजूर नहीं था. वह चंचल हिरणी की तरह विचरण करना चाहती थी. उसे घर का चूल्हाचौका, सासससुर और पति का कठोर बंधन पसंद नहीं था. बस इन्हीं सब बातों को ले कर चंद्रेश व सीमा के बीच झगड़ा बढ़ने लगा. आजिज आ कर सीमा पति का साथ छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी.

सीमा को मनाने चंद्रेश कई बार ससुराल आया लेकिन सीमा उसे हर बार दुत्कार कर भगा देती थी. यद्यपि सीमा के मातापिता चाहते थे कि वह  उन की छाती पर मूंग न दले और पति के साथ चली जाए. मांबाप ने सीमा को बहुत समझाया लेकिन जिद्दी सीमा ने उन की बात नहीं मानी. सीमा मायके में पड़ीपड़ी जब बोर होने लगी तो उस ने कानपुर शहर में नौकरी करने की सोची.

कानपुर शहर के जवाहर नगर मोहल्ले में सीमा की मौसी रहती थी. एक रोज वह सीमा से मिलने गई. सीमा पढ़ीलिखी भी थी और खूबसूरत भी. उसे विश्वास था कि जल्द ही कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी और उस का जीवनयापन मजे से होने लगेगा. सीमा ने नौकरी के बाबत मौसी से राय मांगी तो मौसी ने भी उसे नौकरी की इजाजत दे दी.

सीमा नौकरी की तलाश में जुट गई. वह जहां भी नौकरी के लिए जाती वहां उसे नौकरी तो नहीं मिलती, लेकिन उस के शरीर को पाने की चाहत जरूर दिखती. सीमा को लगा कि उस का नौकरी का सपना पूरा नहीं होगा.

लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी. आखिर उस का सपना पूरा हुआ. उसे कपड़े की एक फर्म में नौकरी मिल गई. सीमा का काम था सजसंवर कर काउंटर पर बैठना और बिक्री का लेनदेन करना. सीमा अब नोटों की चकाचौंध में रहने लगी थी.

मौसी को जब पता चला कि सीमा और उस के पति चंद्रेश के बीच विवाद है तो विवाद को सुलझाने के लिए मौसी ने पहले सीमा से बात की. फिर उस के पति चंद्रेश को अपने घर बुलवाया. इस के बाद दोनों को आमनेसामने बैठा कर विवाद को सुलझा दिया. फलस्वरूप दोनों साथसाथ रहने को राजी हो गए.

विवाद सुलझाने के बाद सीमा तिवारी पति चंद्रेश के साथ बर्रा 2 में रहने लगी. दोनों की जिंदगी एक बार फिर ठीक से व्यतीत होने लगी. इधर सीमा को फर्म में नौकरी करते  3 महीने ही बीते थे कि उस पर फर्म के मालिक की नीयत खराब हो गई. वह उसे ललचाई नजरों से देखने लगा और एकांत में बुला कर छेड़छाड़ भी करने लगा.

सीमा ने उस की हरकतों का विरोध करना बंद कर दिया तो फर्म मालिक का हौसला बढ़ गया. आखिर एक रोज उस ने सीमा को अपनी हवस का शिकार बना लिया. सीमा रोती रही, गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उस हवस के दरिंदे को जरा भी दया नहीं आई.

सीमा का मुंह बंद करने के लिए उस ने 2 हजार रुपए उस के हाथ में थमा दिए. इस के बाद तो यह सिलसिला सा बन गया. जब भी उसे मौका मिलता सीमा से भूख मिटा लेता. आखिर सीमा ने सोचा कि जब जिस्म ही बेचना है तो नौकरी करने की क्या जरूरत है.

इन्हीं दिनों सीमा की मुलाकात अंजलि से हुई. अंजलि बर्रा 2 में रहती थी और सैक्स रैकेट चलाती थी. वह खूबसूरत मजबूर लड़कियों को अपने जाल में फंसाती थी और उन्हें जिस्मफरोशी के धंधे में उतार देती थी. सीमा ने अपनी व्यथा अंजलि को बताई तो उस ने सीमा को जिस्मफरोशी का धंधा अपनाने की सलाह दी.

सीमा ने अंजलि की बात मान ली और उस के धंधे से जुड़ गई. सीमा खूबसूरत और जवान थी. ऐसी लड़कियों या औरतों को ग्राहकों की कोई कमी नहीं रहती थी. शुरूशुरू में सीमा को इस धंधे से झिझक हुई. लेकिन कुछ समय बाद वह खुल गई.

सीमा जब जिस्मफरोशी करने लगी और खूब पैसा कमाने लगी तो उसके पति चंद्रश्े को उस पर शक हुआ. क्योंकि वह देर रात घर आती तो कभी पूरी रात नहीं आती थी. चंद्रेश पूछता तो अंजलि सहेली के घर रुकने का बहाना बना देती. लेकिन एक रोज जब चंद्रेश ने सख्ती से पूछा तो उस ने सब सचसच बता दिया. उस ने चंद्रेश से भी अनुरोध किया कि वह भी उस के धंधे में सहयोग करे.

सीमा की बात सुन कर चंद्रेश हक्काबक्का रह गया. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि सीमा इतना गिर सकती है. उसे लगा कि अब सीमा को समझाना व्यर्थ है. क्योंकि उसे नोटों और परपुरुष की लत लग चुकी है. चंद्रेश की पैट्रोल पंप वाली नौकरी छूट गई थी. वह बेरोजगार हो गया था.

पत्नी की कमाई से उसे खाना और पीने को शराब मिल रही थी. सो सीमा के अनैतिक काम का विरोध करने के बजाए वह उस के धंधे का सहयोगी बन गया. अब चंद्रेश भी ग्राहक ढूंढ कर लाने लगा. कह सकते हैं कि वह बीवी का दलाल बन गया.

सीमा तिवारी ने सैक्स रैकेट संचालिका अंजलि के साथ जुड़ कर जिस्मफरोशी के सारे गुर सीख लिए थे. अब वह खुद ही रैकेट चलाने लगी. उस ने अपने जाल में कई और लड़कियां फंसा लीं और जिस्म का सौदा करने लगी.

इस ध्ांधे में उसे अच्छी आमदनी होने लगी तो उस ने अपना कद और दायरा भी बढ़ा लिया. अब वह मकान किराए पर लेती और खूबसूरत व जमान युवतियों को सब्ज बाग दिखा कर अपने जाल में फांसती फिर उन्हें देह व्यापार में उतार देती. वह ज्यादातर साधारण परिवार की उन युवतियों को फंसाती जो अभावों में जिंदगी गुजार रही होती थीं.

सीमा तिवारी खूबसूरत के साथसाथ मृदुभाषी भी थी. अपनी भाषाशैली से वह सामने वाले को जल्दी ही प्रभावित कर लेती थी. यही कारण था कि ग्राहक एक बार उस के अड्डे पर आता तो वह बारबार आने लगता था.

सीमा वाट्सऐप के जरिए युवतियों की फोटो अपने ग्राहकों को भेजती. फिर पसंद आने पर उन के जिस्म की कीमत तय करती. उस के यहां 500 से 5 हजार रुपए तक की कीमत तय होती. वह टूर बुकिंग भी करती थी, लेकिन उस की कीमत ज्यादा होती थी. उस का पुराना ग्राहक ही नए ग्राहक लाता था.

अलग सैक्स रैकेट चलाने के बावजूद सीमा, अंजलि के संपर्क में रहती थी. वह सीमा के अड्डे पर लड़कियां व ग्राहक भेजती रहती थी. इस के बदले में वह उस से कमीशन लेती थी. सीमा का पति चंद्रेश भी दलाल बन गया था, वह भी ग्राहक लाता था.

सीमा अब बेहद चालाक हो चुकी थी. वह एक क्षेत्र में कुछ माह ही अपना धंधा चलाती थी. जैसे ही क्षेत्र के लोगों को उस के धंधे की सुगबुगाहट होने लगती, वह जगह बदल देती थी. अंजलि अकसर ऐसा मकान या फ्लैट किराए पर लेती थी, जिस में कोई दूसरा किराएदार न रहता हो.

पहले वह बर्रा क्षेत्र में धंधा करती थी. फिर उस ने क्षेत्र बदल दिया और पनकी क्षेत्र में देहव्यापार चलाने लगी. वहां उस का टकराव एक स्थानीय गुंडे से हो गया था. दरअसल वह गुंडा सीमा से टैक्स वसूलना चाहता था. इस के अलावा वह अय्याशी भी करना चाहता था. सीमा इस गुंडे से परेशान थी और अड्डा बदलना चाहती थी.

मार्च 2019 में सीमा ने किदवई नगर थाना क्षेत्र के डब्लू ब्लौक साकेत नगर में 15 हजार रुपए महीना किराए पर एक मकान ले लिया. यह मकान व्यापारी संदीप अग्रवाल का था, जो किदवई नगर स्थित अपने दूसरे मकान में रहते थे. इस मकान में रह कर सीमा अपने पति चंद्रेश की मदद से सैक्स रैकेट चलाने लगी. उस के अड्डे पर नए पुराने ग्राहक तथा युवतियों आने जाने लगीं. बर्रा की अंजलि भी उस के अड्डे पर युवतियां और ग्राहक भेजने लगी.

सीमा के पास एक विदेशी नस्ल का कुत्ता था. छोटे कद का वह कुत्ता बहुत तेज था. इस कुत्ते को उस ने प्रशिक्षित कर रखा था. वह पूरे मकान में रेकी करता था.

जैसे ही कोई मकान के गेट पर आता, वह तेज आवाज में भौंकने लगता था. कुत्ते की आवाज सुन कर सीमा सतर्क हो जाती और छिप कर देखती थी कि गेट पर कौन आया है. कुछ ही समय में सीमा तिवारी उस ब्लौक में कुत्ते वाली मैडम के नाम से मशहूर हो गई.

सीमा के घर युवक युवतियों का देर रात आनाजाना शुरू हुआ तो पासपड़ोस के लोगों का माथा ठनका. वह आपस में चर्चा करने लगे कि कुत्ते वाली मैडम के यहां युवक युवतियां क्यों आते हैं. उन्होंने निगरानी रखनी शुरू कर दी तो उन्हें शक हो गया कि मैडम सैक्स रैकेट चलाती है. इन्हीं संभ्रांत लोगों ने एसपी (साउथ) रवीना त्यागी के कार्यालय में शिकायत की थी.

देहव्यापार अड्डे से पकड़ी गई 22-23 साल की खुशी बर्रा 4 की कच्ची बस्ती में रहती थी. गरीब परिवार में पली खुशी बेहद खूबसूरत थी. उस की सहेलियां महंगे कपड़े पहनती थीं और ठाठबाट से रहती थीं. उन के पास एक नहीं 2-2 मोबाइल होते थे. वह मोबाइल पर बात करतीं और खूब हंसतीबतियातीं. खुशी जब उन्हें देखती तो सोचती काश ऐसे ठाटबाट उस के नसीब में भी होते.

एक रोज बर्रा सब्जी मंडी से लौटते समय खुशी की मुलाकात अंजलि से हुई. दोनों की बातचीत हुई तो अंजलि समझ गई कि खुशी महत्त्वाकांक्षी है. यदि उसे रंगीन सपने दिखाए जाएं तो वह उस के जाल में आसानी से फंस सकती है.

इस के बाद अंजलि उसे अपने घर बुलाने लगी और उस की आर्थिक मदद भी करने लगी. धीरेधीरे अंजलि ने खुशी को अपने जाल में फंसा लिया और उसे देह व्यापार के धंधे में उतार दिया. छापे वाली रात अंजलि ने ही सौदा कर खुशी को सीमा के घर भेजा था. जहां वह पकड़ी गई. उस समय वह कमरे में ग्राहक के इंतजार में बैठी थी.

पुलिस छापे के दौरान पकड़ी गई विविता भी बर्रा 4 में रहती थी. उस का शौहर साजिद अली शराबी था. वह विविता को मारतापीटता था. विविता पति से परेशान थी और कहीं नौकरी कर अपना गुजरबसर करना चाहती थी. एक रोज सीटीआई टैंपो स्टैंड पर विविता की बातचीत अंजलि से हुई तो उस ने उसे नौकरी दिलाने का भरोसा दिलाया.

एक सप्ताह बाद अंजलि उसे नौकरी दिलाने के बहाने लखनऊ ले गई. वहां उसने एक जानेमाने सफेदपोश नेता के साथ विविता का सौदा कर दिया. विविता को जिस्म के बदले नोट मिले तो वह इसी धंधे में रम गई. पुलिस छापे वाली रात अंजलि ने ही विविता के जिस्म का सौदा तय कर ग्राहक महेश के साथ सीमा के मकान पर भेजा था, जहां दोनों रंगे हाथों पकड़े गए थे.

देह व्यापार के अड्डे से पकड़ी गई मंतसा जवाहर नगर निवासी अली अहमद की पत्नी थी. उस के शौहर ने उसे तलाक दे कर दूसरा निकाह कर लिया था. मंतसा ने कुछ रुपए जोड़ कर सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया, लेकिन उसे यह काम रास नहीं आया. उस ने एक रिश्तेदार से कर्ज लिया तो वह रिश्तेदार उस के पीछे पड़ गया. कर्ज के बदले उस ने मंतसा को अपनी हवस का शिकार बनाया.

वह रिश्तेदार बड़ा चलाक निकला. उस ने खुद तो हवस पूरी कर ली, अब वह उस का सौदा दोस्तों से भी करने लगा. मंतसा जवान और खूबसूरत थी. उसे ग्राहकों की कमी नहीं थी, पर उस के पास जगह नहीं थी. इसी बीच उसे पता चला कि साकेत नगर में रहने वाली सीमा तिवारी सैक्स रैकेट चलाती है.

मंतसा ने सीमा से मुलाकात की और अपनी मजबूरी बताई. मजबूरी का फायदा उठा कर सीमा तिवारी ने मंतसा को अपने रैकेट में शामिल कर लिया. छापे वाली रात सीमा ने मंतसा के जिस्म का सौदा व्यापारी शैलेंद्र के साथ किया था. पुलिस रेड में वे दोनों रंगेहाथों पकड़े गए थे.

पुलिस छापे में पकड़ा गया महेश व्यापारी है. उस का प्लास्टिक का व्यवसाय है. वह अपनी कमाई का आधे से ज्यादा भाग अय्याशी और शराब में खर्च कर देता था. शादीशुदा होते हुए भी वह दूसरी औरतों की बाहों में सुख खोजता था. उस की अय्याशी से उस की पत्नी बेहद परेशान थी. उस ने पति को बहुत समझाया, लेकिन पति सुधरने के बजाय उलटे उस की पिटाई कर देता था.

एक रोज महेश को पता चला कि बर्रा-2 में रहने वाली अंजलि लड़कियां भी उपलब्ध कराती है और जगह भी. यह पता चलते ही महेश ने अंजलि से मुलाकात की और अच्छी लड़की के बदले मुंहमांगी रकम देने को कहा. अंजलि ने उसे जगह और युवती उपलब्ध करा दी.

इस के बाद वह अंजलि का ग्राहक बन गया. छापे वाली रात अंजलि ने ही महेश से रकम तय करने के लिए विविता को उस के साथ सीमा तिवारी के अड्डे पर भेजा था. जहां महेश, विविता के साथ रंगेहाथ पकड़ा गया था.

देह व्यापार के अड्डे से पकड़ा गया शैलेंद्र भी बर्रा में ही रहता था और महेश का दोस्त था. दोनों का व्यापार भी एक था. दोनों साथसाथ शराब पीते थे और अय्याशी करते थे. छापे वाली रात महेश ही शैलेंद्र को सीमा के अड्डे पर ले गया था. सीमा ने मंतसा को दिखा कर उस का सौदा शैलेंद्र से किया था. चंद्रेश तिवारी को पुलिस ने निगरानी करते पकड़ा था.

सीमा की सहयोगी अंजलि को पकड़ने के लिए पुलिस ने बर्रा स्थित उस के किराए वाले मकान पर छापा मारा लेकिन वह पकड़ी नहीं जा सकी. पुलिस का कहना है कि जब वह पकड़ी जाएगी, तब उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई की जाएगी.

12 अप्रैल, 2019 को थाना किदवई नगर पुलिस ने देह व्यापार में पकड़ी गई सीमा तिवारी, विविता, मंतसा, खुशी तथा ग्राहक महेश, शैलेंद्र व दलाल चंद्रेश तिवारी को गिरफ्तार कर कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रेनू जिंदा है तो वो कौन थी?

23 नवंबर, 2018 को कार्तिक पूर्णिमा थी. उस रोज उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के करमैनी घाट पर मेला लगा हुआ था. यहां पर यह मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगता है. इस दिन दूरदूर से लोग नदी में नहाने आते हैं. मेले में भारी भीड़ जुटती है. इसी जिले के पीपीगंज इलाके के रामूघाट की रहने वाली 18 वर्षीया रेनू साहनी भी अपने दोनों भांजों के साथ मेला देखने आई थी.

रेनू अपनी बड़ी बहन लीलावती के साथ उस की ससुराल मूसाबार (पीपीगंज) में रहती थी. जबकि उस की मां चंद्रावती और पिता ब्रह्मदेव रामूघाट गांव में ही रहते थे. उस का एक भाई था जो कानपुर में रह कर वहीं नौकरी करता था.

बहरहाल, रेनू कई दिन पहले से मेला देखने की तैयारी कर रही थी. चूंकि मूसाबार से करमैनी घाट की दूरी ज्यादा नहीं थी, इसलिए वह अपनी बहन लीलावती के दोनों बेटों को साथ ले घर से खुशी खुशी पैदल ही मेला देखने चली गई थी.

रेनू को घर से निकले करीब 6 घंटे बीत चुके थे, लेकिन वह वापस नहीं लौटी थी. लीलावती को बेटों को ले कर फिक्र हो रही थी. जब दोपहर के 2 बज गए और रेनू घर नहीं लौटी तो लीलावती ने पति इंद्रजीत से पता लगाने को कहा. उस दिन इंद्रजीत घर पर ही था. वैसे इंद्रजीत ने रेनू से कहा भी था कि अकेले जाने के बजाए वह उस के साथ मेला देखने चले. लेकिन रेनू ने बहन और बहनोई से कहा कि वह मेला देख कर थोड़ी देर में घर लौट आएगी. इसलिए वह दोनों भांजों को अपने साथ ले कर चली गई थी.

रेनू की बात मान कर लीलावती और इंद्रजीत ने उसे मना नहीं किया और बच्चों के साथ जाने की अनुमति दे दी. जब काफी देर बाद भी वह घर नहीं आई तो इंद्रजीत बाइक ले कर साली रेनू और बच्चों को ढूंढने करमैनी घाट जा पहुंचा. इंद्रजीत ने अपनी बाइक खड़ी कर के बच्चों और साली को ढूंढने के लिए पूरा मेला छान मारा लेकिन न बच्चे मिले और न रेनू.

रहस्यमय ढंग से गायब हुई रेनू

इंद्रजीत परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. कुछ नहीं सूझा तो वह घाट से थोड़ी दूर स्थित करमैनी पुलिस चौकी जा पहुंचा. वहां पहुंचते ही वह चौंक गया. क्योंकि वहां उस के दोनों बच्चे कुरसी पर बैठे रो रहे थे. पुलिस वाले उन्हें चुप कराने की कोशिश कर रहे थे. बच्चों ने जब अपने पिता को देखा तो भावावेश में और जोर जोर से रोने लगे.

इंद्रजीत ने झट से दोनों बच्चों को सीने से लगा लिया. जब वे चुप हुए तो उन से उन की रेनू मौसी के बारे में पूछा. बच्चों ने बताया कि रेनू मौसी मेले में कहीं गायब हो गईं. नहीं मिलीं तो हम रोने लगे. पुलिस वालों ने इंद्रजीत से पूछा कि बात क्या है? मेले में बच्चे रोते हुए दिखे तो हम यहां ले आए. इस के बाद इंद्रजीत ने पुलिस वालों को पूरी बात बता दी और उन से रेनू को ढूंढने में मदद मांगी.

चूंकि मामला एक अविवाहित लड़की से जुड़ा हुआ था इसलिए पुलिस वालों ने उसे समझाया कि पहले घर जा कर देख लें. हो सकता है कि वह घर पहुंच गई हो. अगर वह घर पर नहीं मिले तो गुमशुदगी की सूचना कैंपियरगंज थाने में लिखवा दे. बच्चों के मिल जाने से इंद्रजीत को थोड़ी तसल्ली तो हुई लेकिन साली के न मिलने पर वह परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि घर जा कर वह पत्नी और फिर सासससुर को क्या जवाब देगा.

इंद्रजीत बच्चों को बाइक पर बैठा कर घर पहुंचा. घर पहुंच कर उस ने सब से पहले पत्नी से रेनू के बारे में पूछा. लीलावती ने मना कर दिया तो वह और परेशान हो गया. उस ने पत्नी से बता दिया कि रेनू मेले से गायब हो गई है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा.

छोटी बहन के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी मिलते ही लीलावती रोने लगी. वह बारबार एक ही बात दोहरा रही थी कि मां जब रेनू के बारे में पूछेगी तो उन्हें क्या जवाब देगी.

इंद्रजीत पत्नी के साथ उसी शाम अपनी ससुराल रामूघाट पहुंचा और उस ने सासससुर को रेनू के गायब होने की पूरी बात बता दी. बेटी के गायब होने की जानकारी मिलते ही वे दोनों परेशान हो गए. उन्होंने अपनी रिश्तेदारियों में कई जगह फोन कर के रेनू के बारे में पूछा पर वह किसी भी रिश्तेदारी में नहीं पहुंची थी.

धीरेधीरे शाम ढल गई और रात पांव पसारने लगी. फिर धीरेधीरे रात पूरी बीत गई. न रेनू घर लौटी और न ही उस की कोई खबर मिली. जवान बेटी के घर से गायब होने की पीड़ा क्या होती है, चंद्रावती महसूस कर रही थी. उस ने बेटी की चिंता में पूरी रात आंखोंआंखों में काट दी थी.

दूसरा दिन भी रेनू की तलाश में बीत गया, लेकिन उस की कोई खबर नहीं मिली. 25 नवंबर को चंद्रावती दामाद इंद्रजीत के साथ कैंपियरगंज थाने पहुंची और बेटी की गुमशुदगी की सूचना दे दी. रेनू की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पुलिस हरकत में आई. 3 दिन बाद 28 नवंबर, 2018 को कैंपियरगंज थाने के माधोपुर बांध के पास झाड़ी से एक युवती की लाश बरामद हुई.

उस के गले में रस्सी कसी हुई थी. स्थानीय समाचारपत्रों ने इस समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया. अखबार में प्रकाशित खबर इंद्रजीत साहनी ने भी पढ़ी. युवती की लाश उसी इलाके से बरामद हुई थी, जहां से रेनू गायब हुई थी. उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे थे.

30 नवंबर को इंद्रजीत सास चंद्रावती को साथ ले कर कैंपियरगंज थाने जा कर विक्रम सिंह से मिला. उस ने मेले से रेनू के गायब होने की बात उन्हें बताई. थानेदार साहब ने मालखाने से युवती के कपड़े और फोटो मंगवाए.

फोटो देखते ही चंद्रावती और इंद्रजीत फफक फफक कर रोने लगे. उन्होंने युवती की लाश की शिनाख्त रेनू के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली और मोर्चरी में रखी लाश पोस्टमार्टम के बाद घर वालों के सुपुर्द कर दी. इस के बाद घर वालों ने रेनू का अंतिम संस्कार कर दिया.

बेटी के दाह संस्कार के 2 दिनों बाद चंद्रावती दामाद इंद्रजीत के साथ कैंपियरगंज थाने पहुंची और बेटी की हत्या की नामजद तहरीर थानेदार को सौंप दी. तहरीर में उस ने बताया कि उस की बेटी रेनू की हत्या उस के पट्टीदार रेलकर्मी रामसजन साहनी और उस के फौजी बेटे ज्ञानेंद्र साहनी ने मिल कर की है. पुलिस ने तहरीर के आधार पर रामसजन और उस के बेटे ज्ञानेंद्र साहनी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए रामूघाट स्थित उन के घर पहुंची तो दोनों ही घर पर नहीं मिले. घर वालों से पता चला कि दोनों अपनी ड्यूटी पर गए हैं. रामसजन रोज सुबह नौकरी पर निकल जाते हैं और बेटा सीमा पर तैनात है. यह बात पुलिस को बड़ी अजीब सी लगी कि फौज में सीमा पर तैनात ज्ञानेंद्र ने यहां आ कर हत्या कैसे कर दी?

थानेदार ने यह जानकारी एसएसपी डा. सुनील गुप्ता, एसपी (नौर्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ (कैंपियरगंज) रोहन प्रमोद बोत्रे को दी. एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय को आरोपियों को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए.

इस के बाद एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पहले घटनास्थल का दौरा किया, जहां से रेनू गायब हुई थी और उस स्थान का भी मुआयना किया, जहां उस की लाश पाई गई थी.

जांच के दौरान अधिकारियों के गले से एक बात नहीं उतर रही थी कि जब मेले में रेनू दोनों भांजों को साथ ले कर गई थी, तो भीड़भाड़ वाली जगह से रेनू का अपहरण करने वालों ने बच्चों का अपहरण क्यों नहीं किया?

उधर थानेदार को एक चौंकाने वाली बात पता चली. घटना वाले दिन रामसजन और उस का बेटा ज्ञानेंद्र सचमुच गांव में नहीं थे. दोनों अपनी अपनी ड्यूटी पर थे. इस से पुलिस को लगा कि उन दोनों को रंजिश के तहत फंसाया जा रहा है. इधर चंद्रावती आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस अधिकारियों पर दबाव बनाए हुई थी.

एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने अपने औफिस में एक जरूरी बैठक बुलाई. बैठक में एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय, सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे और थानेदार विक्रम सिंह शामिल थे. मीटिंग में जांच के उन सभी पहलुओं पर चर्चा हुई जो विवेचना के दौरान प्रकाश में आए थे. इन बिंदुओं में बच्चों का अपहरण न होना प्रमुख था.

पुलिस को लग रहा था जैसे चंद्रावती और उस का दामाद इंद्रजीत कुछ छिपा रहे हों. जिस घर में एक जवान बेटी की मौत हुई हो, उस घर में पुलिस को मातम जैसी कोई बात नहीं दिख रही थी. बेटी की मौत का गम न तो मां चंद्रावती के चेहरे पर था और न ही लीलावती या इंद्रजीत के चेहरे पर.

यह बात पुलिस को बुरी तरह उलझा रही थी, इसीलिए  एसएसपी गुप्ता ने अपने मातहतों से चंद्रावती और उस के परिवार पर नजर रखने के लिए कह दिया था. धीरेधीरे 6 महीने का समय बीत गया.

बात अप्रैल, 2019 की है. मुखबिर ने पुलिस को एक बेहद चौंका देने वाली सूचना दी. उस ने पुलिस को बताया कि चंद्रावती और उस का परिवार एक अनजान व्यक्ति से बराबर बातें करते हैं. रात के अंधेरे में एक औरत और मर्द आते हैं और फिर रात में ही वे लौट जाते हैं.

मुखबिर की यह बात पुलिस को हैरान कर देने वाली लगी. थानेदार ने यह बात सीओ बोत्रे से बताई तो उन्होंने एसपी साहब से बात कर के चंद्रावती का मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. सर्विलांस के जरिए पुलिस को एक ऐसे नंबर का पता चला, जिस की लोकेशन 23 नवंबर को करमैनी घाट की मिली. इस का मतलब यह हुआ कि उस दिन रेनू मेले से जब गायब हुई थी तो वह व्यक्ति भी मेले में मौजूद था.

जांच करने पर वह नंबर जिला अयोध्या के थाना इनायतनगर के गांव पलिया रोहानी निवासी आनंद यादव का निकला. फिलहाल उस की लोकेशन कानपुर के काकादेव इलाके में आ रही थी.

रेनू निकली जीवित

जांचपड़ताल में एक बेहद चौंकाने वाली सूचना मिली. जिस रेनू की हत्या किए जाने की बात कही जा रही थी दरअसल वह जिंदा थी. रेनू के जिंदा होने वाली बात जैसे ही पुलिस अधिकारियों को पता चली तो वे आश्चर्यचकित रह गए. पुलिस ने यह बात अपने तक गुप्त रखी क्योंकि वह रेनू को किसी भी हालत में जिंदा ही पकड़ना चाहती थी.

पुलिस की एक टीम आनंद यादव को पकड़ने के लिए कानपुर रवाना कर दी गई. पता नहीं कैसे आनंद को पुलिस के आने की भनक मिल गई. वह काकादेव इलाका छोड़ कर कहीं और जा कर छिप गया.

पुलिस कई दिनों तक आनंद की तलाश में कानपुर की गलियों की खाक छानती रही. लेकिन वह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा, लिहाजा पुलिस खाली हाथ गोरखपुर लौट आई.

बहरहाल 14 मई, 2019 की रात करीब 9 बजे मुखबिर ने थानेदार विक्रम सिंह को रेनू के बारे में एक महत्त्वपूर्ण सूचना दी. सूचना मिलते ही थानेदार पुलिस टीम के साथ कैंपियरगंज रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-1 पर पहुंच गए.

वहां एक कोने में समीज सलवार पहने रेनू एक युवक के साथ बैठी मिली. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया. पूछताछ करने पर रेनू ने बताया कि जिस युवक के साथ है, वह उस का पति आनंद यादव है. पुलिस दोनों को थाने ले आई.

थाने ला कर दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने जो जानकारी पुलिस को दी, वह वाकई हैरान कर देने वाली थी.

कैंपियरगंज पुलिस के हाथ बड़ी कामयाबी लगी थी. जिस रेनू की परिवार वालों ने हत्या किए जाने का दावा किया था, वह जिंदा मिल गई थी. रेनू हत्याकांड की गुत्थी सुलझा कर पुलिस की बांछें खिल उठीं. बाद में थानेदार ने अधिकारियों को सूचना दे दी.

अगले दिन 15 मई, 2019 को एसपी (नौर्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पत्रकारवार्ता आयोजित की. इस पत्रकारवार्ता में रेनू के घर वालों को भी बुलाया गया था. वे वहां उपस्थित थे.

पत्रकारों के सामने पुलिस ने रेनू और आनंद को पेश किया तो गोरखपुर के 2 पुराने मामलों शिखा दूबे और वैशाली श्रीवास्तव उर्फ ब्यूटी कांड की यादें ताजा हो गई थीं. उस के बाद रेनू ने खुद पूरी घटना पत्रकारों के सामने बयान कर दी, जिसे सुन कर मीडियाकर्मी भी चौंक गए. रेनू के घर वालों ने जब वहां रेनू को देखा तो उन के चेहरे का रंग उड़ गया.

पत्रकारवार्ता के बाद पुलिस ने दोनों प्रेमी युगल रेनू साहनी उर्फ कनक मिश्रा और आनंद यादव उर्फ आनंद मिश्रा को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया.

रेनू के साथसाथ उस की मां चंद्रावती, बड़ी बहन लीलावती और जीजा इंद्रजीत साहनी को भी गिरफ्तार कर लिया गया. तीनों ने मिल कर एक बड़ी साजिश रची थी. अपनी कुटिलता से वे पुलिस को नाहक परेशान करते रहे. आखिर उन्होंने इतनी बड़ी साजिश क्यों रची, पूछने पर एक रोमांचक कहानी सामने आई—

18 वर्षीय रेनू साहनी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के पीपीगंज इलाके के रामूघाट की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम ब्रह्मदेव साहनी था. ब्रह्मदेव के 3 बच्चों में रेनू सब से छोटी थी. रेनू से बड़ा एक भाई और बहन लीलावती थी. ब्रह्मदेव दोनों बच्चों की शादी कर चुके थे. अब केवल रेनू की शादी करनी बाकी थी.

ब्रह्मदेव कानपुर में नौकरी करते थे और परिवार के साथ रहते थे. वह जिस मोहल्ले में किराए पर रहते थे, वहीं पर पड़ोस में आनंद यादव अकेला रहता था. वह अयोध्या जिले के इनायतनगर के पलिया रोहानी का रहने वाला था. आनंद के परिवार वाले अयोध्या में रहते थे. जबकि वह कानपुर में रह कर प्राइवेट नौकरी करता था. दोनों के मकान ठीक आमने सामने थे.

स्मार्ट और कसरती बदन वाले आनंद की नजरें घर से निकलते हुए कभीकभार बालकनी में खड़ी खूबसूरत रेनू से टकरा जाती थीं. नजर पड़ते ही वह हौले से मुसकराते हुए आगे बढ़ जाता था. बदले में रेनू भी उसी अंदाज में मुसकरा कर जवाब दे दिया करती थी. बात आई गई हो गई, न तो आनंद ने इसे दिल से लिया था और न ही रेनू ने.

लेकिन पड़ोसी होने के नाते आनंद कभीकभार रेनू के घर चला जाया करता था. दरअसल रेनू का एक भाई आनंद की उम्र का था. उस से आनंद की अच्छी निभती थी. रेनू के भाई की वजह से ही आनंद का उस के घर में आनाजाना शुरू हुआ था. यह बात सन 2016 की है.

घर आनेजाने से आनंद की नजर रेनू पर पड़ जाती थी. नजदीक से जब उस ने रेनू को देखा तो उस के दिल में चाहत पैदा हो गई. गजब की खूबसूरत रेनू उस के दिल में उतरती चली गई. उसे रेनू से प्यार हो गया था. ऐसा नहीं था कि यह प्यार एकतरफा था. रेनू भी आनंद में आनंद लेने लगी थी. वह भी उस से प्यार करने लगी थी.

मौका देख कर दोनों ने एकदूसरे से प्यार का इजहार कर लिया था. इस के बाद आनंद का रेनू के घर आनेजाने का सिलसिला बढ़ गया था. अचानक आनंद का घर में ज्यादा आनाजाना शुरू हुआ तो ब्रह्मदेव को कुछ अजीब लगा. अनुभवी ब्रह्मदेव ने पत्नी से कह दिया कि आनंद घर में जब भी आए, तो उस पर नजर रखना. मामला कुछ गड़बड़ लगता है. मुझे उस के लक्षण कुछ अच्छे नहीं दिख रहे.

पति की बातों को चंद्रावती ने भी गंभीरता से लिया. जल्द ही सब कुछ सामने आ गया था. पति का शक नाहक नहीं था. रेनू और आनंद के बीच में कुछ खिचड़ी जरूर पक रही थी. बेटी की हरकतें देख कर चंद्रावती का पारा सातवें आसमान को छू गया. फिर उस ने सोचा कि गुस्से से नहीं, ठंडे दिमाग से काम लेना चाहिए. क्योंकि बेटी सयानी है, कहीं कुछ ऊंचनीच हो गया तो समाजबिरादरी को क्या मुंह दिखाएंगे.

मां ने समझाया रेनू को

एक दिन चंद्रावती ने बेटी को समझाने के लिए अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटी, मैं एक बात पूछती हूं. सच बताएगी क्या?’’

‘‘पूछो मां, क्या बात है?’’ रेनू बोली.

‘‘रेनू, मैं देख रही हूं कि आजकल तुम्हारे पांव कुछ ज्यादा ही बहक रहे हैं.’’ चंद्रावती बोली.

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो मां, मैं कुछ समझी नहीं.’’ रेनू ने उत्तर दिया.

‘‘नहीं समझ रही तो मैं समझाए देती हूं. मैं यह कह रही हूं कि तुम्हारे पापा को तुम्हारी करतूतों के बारे में सब पता चल चुका है. आनंद से मेलजोल बढ़ाने की जरूरत नहीं है. अभी भी वक्त है, अपने बहके हुए कदमों को रोक लो वरना कयामत आ जाएगी.’’ मां की बातें सुनते ही रेनू सन्न रह गई और सोचने लगी कि मां को उस के प्यार के बारे में कैसे पता चल गया.

‘‘क…कौन आनंद?’’ हकलाती हुई रेनू मां के पास से उठ खड़ी हुई और आगे बोली, ‘‘मेरा आनंद से कोई लेनादेना नहीं है मां. फिर तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मेरा आनंद के साथ कोई चक्कर है. क्या तुम्हें अपनी बेटी पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा ही तो टूटता हुआ दिखाई दे रहा है बेटी, तभी तो तुम्हें आगाह कर रही हूं कि अभी भी वक्त है. तुम खुद को संभाल लो, नहीं तो आगे तुम खुद ही भुगतोगी.’’ मां ने एक तरह से चेतावनी भी दी.

मां की बात अनसुनी करते हुए रेनू कमरे में चली गई. वह ये सोच कर हैरान थी कि मां को उस के रिश्तों के बारे में आखिर कैसे पता चला. रेनू ने यह बात आनंद से बता कर उसे सावधान कर दिया कि उन के प्यार के बारे में उस के घर वालों को पता चल चुका है, इसलिए सतर्क हो जाए नहीं तो हमारा मिलना बहुत मुश्किल हो जाएगा.

रेनू के समझाने पर आनंद मान गया था. इस के बाद उस ने उस के घर आनाजाना कम कर दिया. वह कभी जाता भी था तो केवल रेनू के भाई से बातचीत कर के थोड़ी देर में अपने कमरे पर वापस लौट आता था. इसी बीच आनंद ने सब से नजरें बचाते हुए एक एंड्रायड मोबाइल फोन खरीद कर रेनू को गिफ्ट कर दिया था ताकि घर वालों के पाबंदी लगाए जाने पर उस से उस की लगातार बातें होती रहें.

रेनू पर लगा दी गई पाबंदी

रेनू के मांबाप ने उस पर सख्त पाबंदी लगा दी थी. इस के बावजूद भी उन्हें महसूस हो गया था कि लाख मना करने के बावजूद रेनू ने आनंद से मिलनाजुलना बंद नहीं किया है. अब तो पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा था. क्योंकि वह खुलेआम आनंद से मिलती और बातें करती थी.

रेनू की ये हरकतें उन से सहन नहीं हो रही थीं. वे अपनी मानमर्यादा को बचाने में लगे हुए थे. उन्हें इस बात का डर था कि बेटी के साथ कहीं ऊंचनीच हो गई तो वे समाज में क्या मुंह दिखाएंगे.

आखिर बेटी की हरकतों से परेशान हो कर ब्रह्मदेव ने कानपुर छोड़ गोरखपुर लौटने का फैसला कर लिया. सन 2018 के अक्तूबर के पहले हफ्ते में नौकरी छोड़ कर ब्रह्मदेव बच्चों के साथ गोरखपुर वापस आ गया.

गोरखपुर आने के बाद चंद्रावती ने रेनू को अपनी बड़ी बेटी लीलावती के पास उस की ससुराल मूसावार, कैंपियरगंज भेज दिया. सोचा कि वह बड़ी बहन के पास रहेगी तो उस का मन भी लगा रहेगा और निगरानी भी करती रहेगी.

जैसेतैसे एक सप्ताह बीता. रेनू अपने प्रेमी आनंद से मिलने के लिए बेताब हो रही थी. वह जानती थी कि ऐसा कदापि संभव नहीं है लेकिन वह उस की यादों में तिलतिल कर तड़प रही थी. वह फोन से बातें कर के अपने मन को समझाबुझा लेती थी. रेनू जानती थी कार्तिक पूर्णिमा के दिन कैंपियरगंज के करमैनी घाट पर बड़ा मेला लगता है. घर से भागने के लिए उसे वही उचित समय लगा. सोचा कि मेला देखने के बहाने वह घर से निकल जाएगी.

महीनों इंतजार के बाद आखिरकार वह दिन भी आ गया. 23 नवंबर, 2018 को करमैनी घाट पर कार्तिक पूर्णिमा का मेला लगा हुआ था. मेला के एक दिन पहले 22 नवंबर, 2018 को रेनू ने प्रेमी आनंद को फोन कर के साथ भागने के लिए गोरखपुर करमैनी घाट में पहुंचने के लिए कह दिया था.

प्रेमिका का फोन आते ही आनंद उसी रात ट्रेन द्वारा कानपुर से गोरखपुर पहुंच गया. फिर वहां से बस द्वारा कैंपियरगंज चला गया. वहां से सवारी कर के करमैनी घाट मेला पहुंचा और निर्धारित जगह पर रेनू का इंतजार करने लगा. बहाने से रेनू दोनों भांजों को साथ ले कर मेला देखने के बहाने करमैनी घाट पहुंच गई.

भांजों को थोड़ी देर मेला घुमाने के बाद उन्हें खाने के सामान दिलवा दिए और थोड़ी देर में लौट आने को कह कर वह बच्चों को मेले में एक जगह छोड़ कर प्रेमी आनंद से मिलने चली गई, जो करमैनी पुलिस चौकी से कुछ दूर खड़ा उसी का इंतजार कर रहा था.

रेनू जैसे ही प्रेमी आनंद के पास पहुंची तो वह खुश हो गया. फिर वे दोनों वहां से टैंपो में सवार हुए और सीधे कैंपियरगंज बस स्टाप पहुंचे. वहां से बस में सवार हो कर गोरखपुर आए. गोरखपुर से ट्रेन से अगले दिन कानपुर पहुंच गए.

इधर रेनू को घर से निकले करीब 5-6 घंटे बीत चुके थे. जब रेनू घर नहीं लौटी तो घर वाले परेशान हो गए थे. बाद में उन्होंने गुमशुदगी की सूचना थाने में लिखवा दी.

रेनू के गायब होने के चौथे दिन 27 नवंबर, 2018 को चंद्रावती के पास एक अनजान नंबर से फोन आया. फोन आनंद यादव ने किया था. उस ने रेनू की मां को बता दिया कि उस की बेटी रेनू उस के पास सुरक्षित है. उस ने यह भी कहा कि हम दोनों ने कानपुर के बारादेई मंदिर में आर्यसमाज विधि से विवाह कर लिया है.

यह सुन कर चंद्रावती के होश उड़ गए. उस ने कोई जवाब नहीं दिया. आनंद खुद को आनंद मिश्रा और रेनू को कनक मिश्रा के रूप में लोगों को परिचय देता था. अगले दिन 28 नवंबर को कैंपियरगंज के करमैनी घाट के माधोपुर बांध की झाड़ी से एक 18 वर्षीया युवती की लाश पाई गई.

इस खबर के बाद चंद्रावती के दिमाग में एक कपोलकल्पित कहानी उपज गई. उस ने सोचा कि रेनू घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर भागी है, तो क्यों न उसे सदा के लिए मरा मान लिया जाए. दामाद इंद्रजीत से पूरी बात बता कर उस से ऐसा ही करने को कहा तो इंद्रजीत सास की बात टाल न सका. उस ने वही किया जो उसे सास ने करने के लिए कहा था.

फिर 30 नवंबर को चंद्रावती दामाद इंद्रजीत को साथ ले कर कैंपियरगंज थाने पहुंची. 2 दिन पहले माधोपुर बांध से पाई गई लाश को अपनी बेटी की लाश बता उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

बेटी का अपहरण और अपहरण के बाद हत्या का आरोप चंद्रावती ने अपने पट्टीदार रामसजन और उस के बेटे ज्ञानेंद्र पर लगाया. दरअसल चंद्रावती और रामसजन के बीच जमीन को ले कर काफी दिनों से विवाद चल रहा था. इसी विवाद का लाभ चंद्रावती उठाना चाहती थी.

रामसजन पर झूठा मुकदमा दर्ज करा कर वह उस से पैसे ऐंठने की फिराक में भी थी. लेकिन उस की दाल नहीं गली. फिर अंत में 7 महीने बाद 14 मई, 2019 को रेनू की हत्या की झूठी कहानी से राजफाश हो गया. पुलिस ने चंद्रावती सहित पांचों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

अब सवाल यह उठ रहा था कि जिस युवती को रेनू की लाश समझा जा रहा था, वह तो जिंदा निकली तो फिर वह कौन थी जिस की लाश का चंद्रावती ने अंतिम संस्कार किया था. पुलिस इस रहस्यमय गुत्थी को सुलझाने में लगी हुई है. देखना यह है कि क्या पुलिस उस युवती की हत्या के मामले को सुलझाने में कामयाब हो सकेगी या यूं ही यह मामला रहस्य की चादर में लिपटा रह जाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जीजा का अजीज साला : पैसों के लिए किया डबल मर्डर

8 मार्च, 2019 को सुबह के यही कोई 9 बजे थे. गोरखपुर के थाना सहजनवा के एसओ वी.के. सिंह को गणेश नाम के एक युवक ने फोन पर सूचना दी कि भकसा गांव के बाहर एक खेत में एक पुरुष और एक महिला की लाशें पड़ी हैं, किसी ने उन की गला रेत कर हत्या की है. उस समय एसओ साहब अपने सरकारी क्वार्टर में थे, जो थाना परिसर में ही था.

एसओ साहब तुरंत थाने पहुंचे और पुलिस टीम के साथ उसी समय भकसा गांव के लिए निकल गए. यह गांव थाने से लगभग 10 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में था. इसलिए वहां पहुंचने में पुलिस को 15 से 20 मिनट लगे.

जहां लाशें पड़ी थीं, वहां भारी संख्या में तमाशबीन जमा थे. पुलिस के पहुंचते ही वे सब इधरउधर हो गए. वहां पर 2 लाशें पड़ी थीं, एक आदमी की दूसरी औरत की. दोनों लाशों के बीच 200 मीटर का अंतर था. दोनों की ही हत्या किसी धारदार हथियार से गला काट कर की गई थी.

घटनास्थल का मुआयना कर के एसओ वी.के. सिंह ने उच्चाधिकारियों को फोन कर के सूचना दे दी. कुछ ही देर में एसपी (साउथ) विपुल कुमार श्रीवास्तव और एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वहां पर एक सर्जिकल ब्लेड और एक जोड़ी ग्लव्स मिले. इस आधार पर पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे शायद मैडिकल पेशे से जुड़े रहे होंगे या फिर उन में से कोई ऐसा होगा जिसे मैडिकल के सामान की बखूबी जानकारी हो. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाशों के बारे में शिनाख्त करानी चाही लेकिन कोई भी उन्हें नहीं पहचान सका.

स्थानीय लोगों से पता चला कि रात में एक एंबुलेंस गांव के बाहर खड़ी देखी गई थी. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि घटना में कम से कम 5-6 लोग शामिल रहे होंगे, क्योंकि मृतकों की कद काठी के हिसाब से वे दोनों 4-5 लोगों के कब्जे में आने वाले नहीं थे. परिस्थितियों को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा था कि मृतक शायद पतिपत्नी  होंगे.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भेजवा दीं. फिर भकसा के चौकीदार रामसमुझ की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. पुलिस के सामने पहली समस्या मृतकों की शिनाख्त की थी. शिनाख्त हो जाने के बाद ही हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था.

उधर घटनास्थल पर जुटे अनेक लोगों ने अपने अपने मोबाइल फोन में घटनास्थल पर पड़ी लाशों के फोटो खींच लिए थे. उन्होंने वह फोटो वाट्सऐप पर वायरल करने शुरू कर दिए. अगले दिन 9 मार्च को वह फोटो वायरल होतेहोते खोरबार थाने के महुलीसुधरपुर के रहने वाले वीरेंद्र निषाद के मोबाइल पर भी पहुंचे.

फोटो देख कर वीरेंद्र बुरी तरह चौंका. क्योंकि वह फोटो उस के भाई रविंद्र निषाद और भाभी संगम देवी के थे. भाई 7 मार्च को रोजाना की तरह घर से अपने काम पर निकला था और भाभी उसी दिन शाम को घर से दवा लेने के लिए डाक्टर के पास गई थी. फोटो देख कर वीरेंद्र की आंखों से आंसू बहने लगे.

9 मार्च के अखबारों में फोटो सहित 2 अज्ञात लाशें मिलने की खबर छपी. वह खबर किसी ने वीरेंद्र को दिखाई. इस से उसे यह जानकारी मिल गई कि भाई और भाभी की लाशें जिस जगह मिली हैं वह इलाका थाना सहजनवा के अंतर्गत आता है. जो उस के गांव से काफी दूर था. इसलिए गांव के कुछ लोगों के साथ वह थाना सहजनवा की तरफ चल दिया. वह सभी मोटरसाइकिलों पर सवार थे.

वीरेंद्र थाने पहुंच कर एसओ वी.के. सिंह से मिला और अखबार में छपी खबर और वाट्सएप के फोटो दिखाते हुए कहा कि मृतक उस के भाई रविंद्र निषाद और भाभी संगम देवी है. यह कहते कहते वीरेंद्र रोने लगा. लाशों की शिनाख्त होने के बाद एसओ ने राहत की सांस ली.

वीरेंद्र ने एसओ वी.के. सिंह को बताया कि रविंद्र ठेकेदार था. वह ठेके पर प्लंबिंग का बड़ा काम करता था. फिलवक्त उस का काम सहजनवा के गांव सरैया में चल रहा था. घर से वह बुलेट मोटरसाइकिल ले कर निकला था. वह अपने पास 2 मोबाइल रखता था लेकिन पुलिस को घटनास्थल से न तो बुलेट मिली थी और न कोई मोबाइल. इस का मतलब यह था कि हत्यारे साक्ष्य मिटाने के लिए उस का मोबाइल और मोटरसाइकिल अपने साथ ले गए थे.

पुलिस ने वीरेंद्र से दोनों की हत्या की वजह पूछी तो उस ने आशंका जताई कि कूड़ाघाट की रहने वाली सरिता से रविंद्र की जमीन के सौदे के ले कर काफी समय से विवाद चल रहा था. कहीं ऐसा तो नहीं कि रुपए हड़पने के लिए सरिता ने भाई और भाभी की हत्या करवा दी हो. पुलिस ने वीरेंद्र के बयान को आधार बना कर जांच की दिशा इसी ओर मोड़ दी.

पुलिस इस दोहरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में जुटी हुई थी, तभी 9 मार्च को दोपहर के वक्त एसओ वी.के. सिंह के मोबाइल पर एक मुखबिर की काल आई. मुखबिर ने बताया कि पीपीगंज थानाक्षेत्र के जरहद गांव के बाहर 2 दिनों से एक लावारिस बुलेट मोटरसाइकिल खड़ी है.

मुखबिर की सूचना पर सहजनवा पुलिस जरहद गांव पहुंच गई और उस बुलेट को थाना सहजनवा ले आई. बुलेट वीरेंद्र को दिखाई तो उस ने बाइक पहचान ली. बुलेट उस के भाई रविंद्र की ही थी.

इस दोहरे हत्याकांड की गुत्थी काफी उलझी हुई थी. पहली बात तो यह कि मृतक गोरखपुर के थाना खोराबार के महुली सुधरपुर के रहने वाले थे. जबकि उन की हत्या सहजहनवा थाने के भकसा गांव में हुई थी. तीसरे मृतक की बुलेट मोटरसाइकिल मिली पीपीगंज थाने के जरहद गांव में. इस तरह यह घटना 3 थानों से जुड़ गई थी.

घटना के फैले हुए तथ्यों से लग रहा था कि हत्यारा बहुत चालाक और शातिर किस्म का है. क्योंकि उस ने पुलिस को इस तरह उलझा दिया था कि हत्या की कोई कड़ी नजर नहीं आ रही थी. एक बात यह भी थी कि हत्यारे या हत्यारों को वहां के भौगोलिक परिवेश की अच्छी जानकारी थी.

दोहरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने 3 टीमें बनाईं. तीनों टीमों के साथ मीटिंग कर के उन्होंने कुछ दिशानिर्देश भी दिए. तीनों टीमें अपनेअपने काम में जुट गईं. इसी क्रम में पुलिस ने  कई संदिग्ध लोगों के ठिकानों पर ताबड़तोड़ दबिश दीं. कुछ लोगों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ की गई. लेकिन हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिला.

वीरेंद्र ने जिस महिला सरिता पर शक जताया था पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले कर कड़ी पूछताछ की. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. सरिता दोहरे मर्डर में कहीं से दोषी नजर नहीं आई तो पुलिस ने उसे भी पूछताछ के बाद कुछ हिदायत दे कर छोड़ दिया.

हफ्ता भर बीत जाने के बाद भी पुलिस जहां से चली थी, वहीं खड़ी नजर आ रही थी. पुलिस ने एक बार फिर से मौके पर जा कर क्राइम सीन को समझने की कोशिश की. साथ ही आसपास के लोगों से पूछताछ की. पूछताछ से पुलिस को कुछ सफलता हाथ लगी.

पता चला कि घटना वाली रात 10-साढ़े 10 बजे गांव के बाहर जो फोरव्हीलर खड़ा हुआ था वह एंबुलेंस नहीं, बल्कि लाल रंग की एक मारुति कार थी. उस कार में 4-5 लोग देखे गए थे. कार आधे घंटे के बाद वापस चली गई थी. उस के बाद क्या हुआ, किसी को कुछ पता नहीं था.

इस बीच पुलिस ने मृतक रविंद्र निषाद और उस की पत्नी संगम देवी के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर अध्ययन किया. पता चला कि घटना वाले दिन सुबह 11 बजे के आसपास रविंद्र के मोबाइल पर एक काल आई थी. उसी नंबर से शाम करीब 4 बजे फिर काल की गई थी. फिर साढ़े 7 बजे रविंद्र और संगम देवी का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ हो गए थे.

संगम देवी के फोन की काल डिटेल्स से पता चला कि शाम करीब साढ़े 4 बजे उस के फोन पर रविंद्र निषाद की काल आई थी. दोनों के बीच करीब 5 मिनट बातचीत भी हुई थी.

फिर 7 बजे दोनों की लोकेशन पीपीगंज इलाके में मिली. काल डिटेल्स के अध्ययन से यह बात साफ हो गई थी कि 7 बजे के करीब रविंद्र और संगम दोनों एक साथ पीपीगंज के किसी एक स्थान पर मौजूद थे. उस के बाद दोनों के मोबाइल फोन एक साथ स्विच्ड औफ हो गए.

मतलब साफ था, दोनों के साथ जो कुछ भी हुआ वह 7 साढ़े 7 बजे के बीच में ही हुआ था. हत्यारों की सुरागरसी के लिए पुलिस ने चारों ओर मुखबिरों का जाल फैला दिया था. जिस मोबाइल नंबर से रविंद्र निषाद के फोन पर आखिरी बार काल आई थी, पुलिस ने उस नंबर का पता लगा लिया था. वह नंबर  अजीज के नाम से लिया गया था. अजीज गोरखपुर के चिलुआताल थाना क्षेत्र के काजीपुर डोहरिया का रहने वाला था. इतने सुराग का मिल जाना पुलिस के लिए काफी था.

15 मार्च, 2019 को सुराग मिलते ही पुलिस काजीपुर डोहरिया में अजीज के घर पहुंच गई. संयोग से अजीज घर पर ही मिल गया. पुलिस को देख कर अजीज का पसीना छूटने लगा. उस से पूछताछ करने पर पता चला कि वह एक तांत्रिक है और घर पर ही झाड़फूंक का काम करता है.

अजीत को हिरासत में ले कर पुलिस लौट आई. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो 2 मिनट में ही उस ने घुटने टेक दिए. अपना जुर्म कबूल करते हुए उस ने बताया कि उस ने उन दोनों की हत्या अपने छोटे भाई नफीस और दोस्त गुलाम सरवर के साथ मिल कर की थी.

घटना के बाद से नफीस फरार है, जबकि गुलाम सरवर सहजनवा के कालेसर गांव में छिपा है. अजीज की निशान देही पर पुलिस ने गुलाम सरवर को गिरफ्तार कर लिया. जैसे ही उस की नजर पुलिस की जीप में बैठे अजीज पर पड़ी तो वह समझ गया कि पुलिस को सब कुछ पता चल गया है.

थाने में पुलिस ने गुलाम सरवर से भी सख्ती से पूछताछ की. सरवर ने अपना जुर्म कबूल करते हुए पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी. पुलिसिया पूछताछ में दोहरे हत्याकांड के पीछे विश्वासघात और रुपए हड़पने की कहानी सामने आई. कभी जीजा कहने वाले तांत्रिक अजीज ने अपनी ही मुंहबोली बहन को विधवा बना दिया.

बहुचर्चित रविंद्र निषाद और संगम देवी हत्याकांड की गुत्थी पुलिस ने सुलझा ली थी. 16 मार्च, 2019 को एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने पत्रकार वार्ता का आयोजन कर के पत्रकारों के सामने दोहरे हत्याकांड का सिलसिलेवार तरीके से खुलासा किया. इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

35 वर्षीय रविंद्र निषाद उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के महुलीसुधरपुर का रहने वाला था. रविंद्र अपने बड़े भाई वीरेंद्र के साथ एक ही मकान में संयुक्त रूप से रहता था. दोनों भाइयों में गजब का आपसी मेलजोल था. दोनों एकदूसरे के सुखदुख में बराबर खड़े रहते थे.

रविंद्र ठेकेदार था. वह दूरदूर तक प्लंबिंग का ठेका लेता था. ठेकेदारी के काम से उस ने खूब पैसा कमाया. उस ने अपना आलीशान मकान बनवाया. बच्चों के सुखसुविधा की सारी भौतिक वस्तुओं का प्रबंध किया. अपने दोनों बेटों आदित्य और अभय को अच्छे स्कूल में दाखिल कराया. उन की शिक्षा पर वह खूब पैसा खर्च कर रहा था.

इस बीच रविंद्र ने कूड़ाघाट की रहने वाली सरिता से इसी इलाके में एक बड़ा प्लौट खरीदा. उस ने जो प्लौट खरीदा था, बाद में पता चला कि वह विवादित है. सरिता ने वही प्लौट एक और व्यक्ति को भी बेच दिया था. रविंद्र को जब इस सच्चाई का पता चला तो उसे अपने साथ हुए धोखे का अहसास हुआ.

रविंद्र समझदार इंसान था. उस ने बड़ी ही सूझबूझ से काम लिया और सरिता से अपना पैसा लौटाने का आग्रह किया. लेकिन सरिता की नीयत बिगड़ चुकी थी. उस ने पैसे देने से इनकार कर दिया. बात लाखों रुपए की थी. रविंद्र यूं ही अपना पैसा आसानी से नहीं जाने देना चाहता था. जब उस ने देखा कि बात आसानी से नहीं बनेगी तो उस ने अदालत का सहारा लिया.

रविंद्र की पत्नी संगम का मायका कुशीनगर में था. जिस गांव में उस का मायका था, उसी गांव में तांत्रिक अजीज का भी पुश्तैनी मकान था. वह संगम को अच्छी तरह जानता पहचानता था. अजीज संगम को बहन कहता था. अजीज का गोरखपुर के चिलुआताल के काजीपुर डोहरिया में भी मकान था. अजीज अपने परिवार के साथ अधिकतर काजीपुर डोहरिया में ही रहता था.

पुलिस के अनुसार, काफी पहले आरोपी अजीज की जिंदगी बड़ी तंगहाली से गुजरी थी. तब वह तंत्रमंत्र नहीं जानता था, बल्कि मेहनतकश इंसान था. बात करीब 8 साल पहले की है. अजीज हैदराबाद में पेंट पौलिश का काम करता था. पेंट पौलिश के काम से इतनी कमाई नहीं होती थी, जितनी उस की ख्वाहिश थी. इसलिए उस ने वह काम छोड़ दिया.

जहां अजीज किराए के कमरे में रहता था, उसी के पड़ोस में एक झाड़फूंक करने वाला आदमी रहता था. अजीज देखता था कि वह बिना मेहनत किए झाड़फूंक से रोज हजारों रुपए कमा लेता है. अजीज के दिमाग में यह बात घर कर गई कि वह भी तंत्र विद्या सीखेगा. फिर क्या था, उस ने चतुराई से उस व्यक्ति को अपना गुरु बना लिया और उस से लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए तथाकथित तंत्र विद्या सीख ली.

तंत्रमंत्र का पाखंड सीखने के बाद वह हैदराबाद से गोरखपुर आ कर यही काम करने लगा. सन 2014 से वह झाड़फूंक कर के लोगों को ठग रहा था. उस की ढंग की दुकान चल निकली. उस के पास दूरदराज से भी बड़ी संख्या में लोग आते थे.

रविंद्र की ससुराल से अजीज का पुराना संपर्क था. रविंद्र के शरीर पर सफेद दाग हो गए थे. ससुराल के लोगों के कहने पर इलाज के लिए वह अजीज से डोहरिया जा कर मिला.

अजीज के झाड़फूंक करने पर रविंद्र के सफेद दागों में थोड़ा फायदा होने लगा. यह देख कर रविंद्र खुश हो गया और अजीज का मुरीद बन गया. इस के बाद से रविंद्र और उस के परिवार के लोगों का उस के पास आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया. अजीज रविंद्र को संगम की वजह से जीजा कहता था.

घर आनेजाने से तांत्रिक अजीज रविंद्र के घर के कोनेकोने से वाकिफ था. वह यह भी जानता था कि रविंद्र मालदार पार्टी है. रविंद्र उस का मुरीद है, यह बात तांत्रिक अजीज भलीभांति जानता था. उस ने सोचा क्यों न इस संबंध का लाभ उठाया जाए. संयोग की बात यह थी कि रविंद्र के पास 5 लाख रुपए घर में रखे थे. यह रकम उस ने जमीन खरीदने के लिए रखी थी.

अजीज को इस की जानकारी हो गई थी. उस ने मकान बनवाने की बात कहते हुए उस से 5 लाख रुपए उधार मांगे. अजीज ने उस से वायदा किया कि जब उसे कहीं जमीन मिल जाएगी तब वह लौटा देगा. रविंद्र इनकार नहीं कर सका और 5 लाख रुपए उसे दे दिए. यह जून 2018 की बात है.

इसी बीच अजीज के छोटे भाई नफीस की शादी पक्की हो गई थी. शादी 17 फरवरी, 2019 को होनी तय हुई. अजीज की मंशा थी कि शादी से पहले घर बनवाया जाए ताकि नई दुलहन आराम से रह सके. रविंद्र से लिए 5 लाख रुपए थे ही. अजीज को 5 लाख रुपए दिए हुए धीरेधीरे 6 महीने बीत गए. रुपए लेने के बाद अजीज ने डकार तक नहीं ली. वह चुप्पी साध कर बैठ गया.

फिर क्या था? रविंद्र ने रुपए वापस करने के लिए अजीज से तगादा करना शुरू कर दिया. रुपए को ले कर दोनों के संबंधों में दरार आ गई. इसी बीच नफीस की शादी भी कैंसिल हो गई. भाई की शादी टूट जाने और रविंद्र के बारबार तगादा करने से अजीज रविंद्र से चिढ़ गया. वैसे भी लौटाने के लिए उस के पास रुपए नहीं थे. वह सब मकान बनवाने में खर्च हो गए थे. अब वह रुपए लौटाता तो कहां से. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

अजीज की नीयत में खोट आ गई थी. वह रविंद्र के रुपए हड़पना चाहता था. उधर, रविंद्र और उस की पत्नी संगम के बारबार के तगादे से अजीज परेशान हो गया था. उस ने उसे कई बार समय दिया लेकिन रुपए नहीं लौटा सका.  परेशानी की इस हालत में अजीज के दिमाग में एक खतरनाक विचार आया. उस ने सोचा कि क्यों न रविंद्र को ही रास्ते से हटा दिया जाए. न वह जिंदा रहेगा और न रुपए के लिए बारबार तगादा करेगा.

गुलाम सरवर तांत्रिक अजीज का परम भक्त था, जो कुशीनगर जिले के पड़रौना के गायत्रीनगर में रहता था. वह बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित एक आयुर्वेदिक मैडिकल कालेज से बीएमएस की पढ़ाई कर रहा था. तीसरे सेमेस्टर में 2 बार फेल होने के कारण वह पढ़ाई छोड़ कर महाराजगंज में जनसेवा नामक हास्पिटल चलाने लगा था. रोजीरोटी के लिए गुलाम सरवर बेल्डिंग का काम करता था.

परेशान अजीज ने गुलाम सरवर के सामने अपना दुखड़ा रोया और रविंद्र को रास्ते से हटाने में उस से मदद मांगी तो वह बिना सोचेसमझे अजीज का साथ देने के लिए तैयार हो गया. सरवर के साथ आ जाने के बाद उस ने छोटे भाई नफीस को भी साथ मिला लिया.

तीनों ने मिल कर योजना बनाई कि रुपए लौटाने के बहाने रविंद्र को घर बुलाएंगे और उस का काम तमाम कर के लाश को कहीं ठिकाने लगा देंगे. इस बीच नफीस और गुलाम सरवर स्थान की भी रेकी कर आए. गुलाम सरवर पडरौना से सर्जिकल ब्लेड और ग्लव्स खरीद लाया.

सब कुछ तय योजना के मुताबिक चल रहा था. योजना के मुताबिक, 6 मार्च, 2019 को अजीज ने रविंद्र को फोन कर कहा कि तुम 7 मार्च, 2019 को घर आ कर रकम ले जाओ. गुलाम सरवर और नफीस 7 मार्च की सुबह ही अजीज के घर आ गए थे. पिछली रात नफीस पडरौना स्थित गुलाम सरवर के घर रुक गया था. दोपहर में सरवर व नफीस कार से 8 किलोमीटर दूर सहजनवा के भकसा गांव गए. उन्हें वारदात को अंजाम देना था.

रेकी करने के बाद दोनों वापस आए. शाम 4 बजे अजीज ने रविंद्र को फोन कर के पूछा कि कब तक आ रहे हो. रविंद्र ने कुछ समय बाद पहुंचने को कहा. फिर रविंद्र ने उसी समय पत्नी संगम को फोन किया कि तुम तैयार हो जाओ, पैसे लेने अजीज के यहां पहुंचना है.

संगम को डाक्टर के पास चेकअप के लिए भी जाना था सो वह तैयार हो गई. संगम तैयार हो कर कैंट इलाके के रुस्तमपुर पहुंची तब तक रविंद्र भी बुलेट मोटरसाइकिल से सहजनवा की सरैया साइट से वहां पहुंच गया.  पत्नी संगम को साथ ले कर रविंद्र शाम 5 बजे अजीज के घर डोहरिया पहुंच गया.

रविंद्र के साथ उस की पत्नी संगम को देख कर तीनों चौंक गए. अजीज ने मन ही मन सोचा कि शिकार तो एक होना था, यहां तो दोनों ही शिकार होने चले आए. फिर क्या था, अजीज दोनों से कुछ देर इधरउधर की बातें करता रहा. तब तक नफीस दोनों की खातिरदारी के लिए प्लेट में नाश्ता और पीने के लिए पानी ले आया. अजीज ने पानी में पहले ही नशीली गोली डाल दी थी. वही पानी नफीस ने दोनों को पिला दिया.

पानी पीने के कुछ देर बाद दोनों अचेत हो गए. दोनों के बेहोश होने के बाद नफीस और गुलाम सरवर लाल रंग की मारुति कार में डाल कर उन्हें सहजनवा के भकसा गांव ले गए. कार से काजीपुर डोहरिया से भकसा पहुंचने में उन्हें करीब डेढ़ घंटा लगा. कार खुद गुलाम सरवर चला रहा था. उस समय रात के 10 बज रहे थे.

कार उन्होंने गांव के बाहर खड़ी कर दी. नफीस और सरवर ने कार से रविंद्र और संगम को बारीबारी से बाहर निकाला और खेत में ले जा कर लेटा दिया. सरवर ने हाथों में ग्लव्स पहने और सर्जिकल ब्लेड से रविंद्र की गला रेत कर हत्या कर दी.

इत्तफाक से उसी समय संगम को होश आ गया और उस ने पति की हत्या होते देख ली. वह लड़खड़ाती हुई वहां से भागी. लेकिन उन के हाथों से नहीं बच सकी. करीब 200 मीटर दूर दौड़ा कर उस की भी उसी ब्लेड से हत्या कर दी गई.

पुलिस को गुमराह करने के लिए सर्जिकल ब्लेड और ग्लव्स उन्होंने घटनास्थल पर ही छोड़ दिए. रविंद्र की मोटरसाइकिल और दोनों मोबाइल फोन ले कर वे वहां से चले गए. रास्ते में राप्ती नदी थी, अजीज ने दोनों मोबाइल फोन नदी में फेंक दिए और घर जा कर आराम से सो गया. अगले दिन नफीस और सरवर पडरौना चले गए. नफीस पडरौना से फरार हो गया. कथा लिखे जाने तक वह गिरफ्तार नहीं हुआ था.

आरोपी अजीज और गुलाम सरवर जेल में बंद हैं. पुलिस ने रविंद्र की बुलेट मोटरसाइकिल बरामद कर ली थी. नदी में फेंके जाने से मोबाइल बरामद नहीं हो सके. तांत्रिक का नाम था तो अजीज लेकिन वह किसी का भी अजीज नहीं हुआ.

—कथा में सरिता परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

घर में रखी तलवार की धार : वृद्ध दंपति की हत्या

4 अप्रैल की सुलगती दुपहरी में राजस्थान के जिला बूंदी के कलेक्ट्रेट में विजय कुमार पहली बार आया था. उस की उम्र तकरीबन 35 साल के आसपास रही होगी. वह सेना में नायब सूबेदार था. फौजी होने के बावजूद कलेक्टर ममता शर्मा के चेंबर में प्रवेश करते ही पता नहीं क्यों उस पर घबराहट हावी होने लगी थी और दिल बैठने लगा था. जिला कलेक्टर के सामने खड़े होते ही उस के पैर कांपने लगे और पूरा बदन पसीने से तरबतर हो गया.

आखिरकार हिम्मत जुटा कर अपना परिचय देने के बाद वह बोला, ‘‘मैडम, 8 जनवरी, 2018 को मेरे मातापिता की निर्दयता से हत्या कर दी गई. पुलिस न तो आज तक उन के शवों को बरामद कर पाई और न ही इस मामले में निष्पक्षता से जांच की गई.

‘‘मैं पुलिस के बड़े अधिकारियों से भी मिल चुका हूं, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है. हत्यारे छुट्टे घूम रहे हैं. इतना ही नहीं, वे इस कदर बेखौफ हैं कि मुझे ओर मेरे परिवार को भी जान से मारने की धमकी देते हैं.’’ कहतेकहते विजय कुमार की आंखों से आंसू टपकने लगे.

हिचकियां लेते हुए उस ने कहा, ‘‘मैडम, मेरे सैनिक होने पर धिक्कार है. कानून की बेरुखी और जलालत झेलने से तो अच्छा है कि मैं अपने परिवार समेत आत्महत्या कर लूं. ऐसी जिंदगी से तो मौत भली. हम तो बस अब इच्छामृत्यु की अनुमति चाहते हैं.’’

यह कहते हुए उस ने जिला कलेक्टर की तरफ एक दरख्वास्त बढ़ा दी जो महामहिम राष्ट्रपति को लिखी गई थी. उस दरख्वास्त में विजय कुमार ने परिवार सहित इच्छामृत्यु की अनुमति देने की मांग की थी.

जिला कलेक्टर ममता शर्मा ने एक बार सरसरी तौर पर सामने खड़े युवक का जायजा लिया. उन की हैरानी का पारावार नहीं था. लेकिन जिस तरह पस्ती की हालत में वह अटपटी मांग कर रहा था, उस के तेवरों ने एक पल को तो उन्हें हिला कर रख दिया था.

वह बोलीं, ‘‘कैसे फौजी हो तुम? जानते हो इच्छामृत्यु की कामना कायर करते हैं, फौजी नहीं. हौसला रखो और पूरा वाकया मुझे एक कागज पर लिख कर दो. याद रखो कानून से ऊपर कोई नहीं है. तफ्तीश में हजार अड़चनें हो सकती हैं. गुत्थी सुलझाने में वक्त लग सकता है. तुम लिख कर दो, मैं इसे देखती हूं.’’

अब तक सामान्य हो चुके विजय कुमार ने सहमति में सिर हिलाया और कलेक्टर के चेंबर से बाहर निकल गया. आखिर ऐसा क्या हुआ था कि एक फौजी का देश की कानून व्यवस्था से भरोसा उठ गया और वह अपने परिवार समेत इच्छामृत्यु की मांग करने लगा. सब कुछ जानने के लिए हमें एक साल पहले लौटना होगा.

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      विजय कुमार

विजय कुमार राजस्थान के बूंदी जिले के लाखेरी कस्बे का रहने वाला है. लाखेरी स्टेशन के नजदीक ही उस का पुश्तैनी मकान है. जहां उस के मातापिता हजारीलाल और कैलाशीबाई स्थाई रूप से रहते थे. हजारीलाल के लाखेरी स्थित मकान में नवलकिशोर नामक किराएदार भी अपने परिवार के साथ रहता था. उस की बाजार में किराने की दुकान थी.

हजारीलाल के 2 मकान कोटा में थे. कोटा के रायपुरा स्थित निधि विहार कालोनी में उन के बेटे विजय कुमार का परिवार रहता था. उस के परिवार में उस की पत्नी ममता और 2 छोटे बच्चों के अलावा उस का छोटा भाई हरिओम था.

विजय सेना में नायब सूबेदार था और उस की तैनाती चाइना बौर्डर पर थी. विजय छुट्टियों में ही घर आ पाता था. हजारीलाल का मझला बेटा विनोद इंदौर की किसी इंडस्ट्री में गार्ड लगा हुआ था. हजारीलाल का एक और मकान रायपुरा से तकरीबन एक किलोमीटर दूर डीसीएम चौराहे पर स्थित था.

इस तिमंजिला मकान में दूसरी मंजिल हजारीलाल ने अपने लिए रख रखी थी. वह अपनी पत्नी के साथ 10-15 दिनों में कोटा आते रहते थे ताकि बेटे के परिवार की खैर खबर ले सकें. अलबत्ता वे रुकते इसी मकान में थे.

उस मकान का नीचे वाला तल उन्होंने बैंक औफ बड़ौदा को किराए पर दिया हुआ था, जहां बैंक का एटीएम भी था. तीसरी मंजिल पर करोली के मानाखोर का घनश्याम मीणा पत्नी राजकुमारी के साथ किराए पर रह रहा था.

हजारीलाल और घनश्याम मीणा का परिवार एकदूसरे से काफी घुलामिला था. घनश्याम पर तो हजारीलाल का अटूट भरोसा था. दंपति जब कोटा में होते थे तो अकसर उन का वक्त बेटे विजय कुमार के परिवार के साथ ही गुजरता था. लेकिन रात को वह अपने डीसीएम चौराहे के पास स्थित घर पर लौट आते थे.

अलबत्ता दोनों के बीच टेलीफोन द्वारा संपर्क बराबर बना रहता था. हजारीलाल वक्त गुजारने के लिए प्रौपर्टी के धंधे से भी जुडे़ हुए थे. इस धंधे में अंगद नामक युवक उन का मददगार बना हुआ था.

अंगद रायपुरा स्थित विजय कुमार के मकान के पीछे ही रहता था. बिहार का रहने वाला अंगद विजय कुमार का अच्छा वाकिफदार था. ट्यूशन से गुजारा करने वाला अंगद विजय के बच्चों को भी ट्यूशन पढ़ाता था. अंगद प्रौपर्टी के कारोबार के मामले में पारखी था इसलिए हजारीलाल भी उस का लोहा मानते थे.

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               हजारीलाल और उनकी पत्नी कैलाशीबाई

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. इसी बीच अजीबोगरीब घटना ने ठहरे हुए पानी में जैसे हलचल मचा दी. दरअसल हजारीलाल की पत्नी कैलाशीबाई की अलमारी से उन का मंगलसूत्र गायब हो गया. हीराजडि़त मंगलसूत्र काफी कीमती था.

लिहाजा घर के सभी लोग परेशान हो गए. कैलाशीबाई का रोना भी वाजिब था. घर में बाहर का कोई शख्स आया नहीं था औैर किराएदार घनश्याम पर उन्हें इतना भरोसा था कि उस से पूछना भी हजारीलाल दंपति को ओछापन लगा. आखिर मंगलसूत्र की चोरी का गम खाए हजारीलाल दंपति माहौल बदलने के लिए लाखेरी लौट गए.

इस बाबत उन्होंने अपने बेटे विजय कुमार की पत्नी ममता को भी जानकारी दे दी. लेकिन असमंजस में डूबी बहू भी सास को तसल्ली देने के अलावा क्या कर सकती थी. हजारीलाल तो इस सदमे को पचा गए लेकिन कैलाशीबाई के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

एक स्त्री के सुहाग की निशानी मंगलसूत्र का इस तरह चोेरी चले जाना उन के लिए सब से बड़ा अपशकुन था. उन्होंने एक ही रट लगा रखी थी कि आखिर कौन था जो उन का मंगलसूत्र चुरा ले गया. पत्नी को लाख समझा रहे हजारीलाल की तसल्ली भी कैलाशीबाई के दुख को कम नहीं कर पा रही थी.

5 जनवरी, 2018 को हजारीलाल को अपने किराएदार घनश्याम मीणा का फोन मिला तो उन की आंखें चमक उठीं. उस ने बताया कि करोली के मानाखोर कस्बे में एक भगतजी हैं जिन पर माता की सवारी आती है.

माता की सवारी आने पर भगतजी में अद्भुत शक्ति पैदा हो जाती है और उस समय वह भूत भविष्य के बारे में सब कुछ बता देते हैं. आप का मंगलसूत्र कहां और कैसे गायब हुआ, यह सब भगतजी बता देंगे. आप कहो तो मैं आप को वहां ले चलूंगा ताकि मंगलसूत्र का पता लग सके.

हजारीलाल और उन की पत्नी पुराने विचारों के थे लिहाजा टोनेटोटकों में ज्यादा ही विश्वास करते थे. लिहाजा उन्होंने आननफानन में करोली जाने का प्रोग्राम बना लिया. तय कार्यक्रम के अनुसार घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी उन्हें ले जाने के लिए लाखेरी पहुंच गए.

हजारीलाल ने तब अपने बड़े बेटे के परिवार को खबर करने और सब से छोटे बेटे हरिओम को भी साथ ले चलने की बात कही तो घनश्याम ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘यह बातें गोपनीय रखनी होती हैं. माता की सवारी पर अविश्वास करोगे तो मातारानी कुपित हो सकती हैं. तब अहित हुआ तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’ यह कहते हुए घनश्याम ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उस ने भी सहमति में सिर हिला दिया.

हजारीलाल के मन में संदेह का कीड़ा तो कुलबुलाया लेकिन मौके की नजाकत को देखते हुए वह चुप लगा गए. लेकिन हजारीलाल ने अपने अचानक करोली जाने की बात मौका मिलते ही अपने किराएदार नवलकिशोर को जरूर बता दी. हजारीलाल ने नवलकिशोर को जो कुछ बताया उस ने सुन लिया. इस में उसे एतराज होता भी तो क्यों. घनश्याम को उस ने देखा भी नहीं था तो पूछताछ करता भी तो किस से.’’

लेकिन नवलकिशोर उस वक्त जरूर कुछ अचकचाया, जब सोमवार 8 जनवरी, 2018 को एक शख्स लाखेरी स्थित मकान पर पहुंचा. उस के हाथ में चाबियों का गुच्छा था और वह दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था.

नवलकिशोर को हजारीलाल की गैरमौजूदगी में किसी अजनबी द्वारा मकान का दरवाजा खोलना अटपटा लगा तो उस ने फौरन टोका, ‘‘अरे भाई आप कौन हो और यह क्या कर रहे हो?’’

इतना सुनते ही वह आदमी कुछ हड़बड़ाया फिर बोला, ‘‘मेरा नाम घनश्याम है और मैं हजारीलालजी के डीसीएम चौराहे के पास वाले मकान में रहता हूं. हजारीलालजी के भेजने पर ही मैं यहां आया हूं. दरअसल करोली में भगतजी का भंडारा हो रहा है. हजारीलालजी ने मुझे यहां अपने कपड़े लेने के लिए भेजा है.’’

नवलकिशोर को यह तो मालूम था कि हजारीलाल पत्नी के साथ करौली गए हुए हैं लेकिन उसे घनश्याम की बातों पर तसल्ली इसलिए नहीं हुई कि हजारीलाल किसी को अपने घर की चाबियां भला कैसे सौंप सकते हैं. अपना शक दूर करने के लिए नवलकिशोर ने कहा, ‘‘ठीक है, आप उन से मोबाइल पर मेरी बात करवा दो.’’

घनश्याम ने यह कह कर नवलकिशोर को निरुत्तर कर दिया कि गांव देहात में नेटवर्क काम नहीं करने से उन से बात नहीं हो सकती. नवलकिशोर की शंका दूर नहीं हुई. उस ने एक पल सोचते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है कोटा में हजारीलाल जी के बेटेबेटियां रहते हैं, उन से बात करवा दो?’’

घनश्याम ने यह कह कर टालने की कोशिश की कि उन का बेटा तो चाइना बौर्डर पर तैनात है और कोटा में रह रही उस की पत्नी का मोबाइल नंबर मुझे मालूम नहीं है. लेकिन नवलकिशोर तो जिद ठाने बैठा था. उसे घनश्याम की नानुकर खटक रही थी. वह अपनी शंका दूर करने पर तुला था. उस ने कहा ठीक है उन की पत्नी का नंबर मुझे मालूम है. मैं कर लेता हूं उन से बात.

घनश्याम कोई टोकाटाकी करता, तब तक नवलकिशोर अपने मोबाइल पर विजय कुमार की पत्नी ममता का नंबर मिला चुका था. लेकिन संयोग ही रहा कि ममता का फोन स्विच्ड औफ निकला. आखिर हार कर नवलकिशोर ने घनश्याम से कहा, ‘‘कोटा में हजारीलाल जी के परिवार का कोई तो होगा, जिस का नंबर आप को मालूम हो.’’

‘‘हां, उन की बेटी माया का नंबर मालूम है.’’ घनश्याम ने अचकचाते हुए कहा.

‘‘ठीक है तो फिर उन्हीं से बात करवा दो?’’ कहते हुए नवलकिशोर ने घनश्याम के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं.

मोबाइल पर माया इस बात की तसदीक तो नहीं कर सकी कि उस के पिता करोली गए हुए हैं और किसी को उन्होंने कपड़े लाने के लिए भेजा है. अलबत्ता इतना जरूर कह दिया कि घनश्याम हमारे कोटा वाले मकान में किराएदार हैं. मैं इन को जानती हूं. अगर ये मांबाऊजी के कपड़े लेने के लिए आए हैं तो ले जाने देना. लेकिन बाद में चाबी अपने पास ही रख लेना.

नवलकिशोर को अब क्या ऐतराज होना था? घनश्याम रात को वहीं रुक गया और बोला कि सुबह को हजारीलालजी के कपड़े आदि ले कर चला जाएगा. लेकिन अगली सुबह नवलकिशोर की जब आंखें खुलीं तो उस ने देखा कि घनश्याम वहां से जा चुका था.

अब नवलकिशोर के शक का कीड़ा कुलबुलाना लाजिमी था कि  इस तरह घनश्याम का चोरीछिपे जाने का क्या मतलब. नवलकिशोर को ज्यादा हैरानी तो इस बात की थी कि उसे चाबी सौंप कर जाना चाहिए था. लेकिन वो चाबी भी साथ ले गया.

मंगलसूत्र की गुमशुदगी को ले कर कैलाशीबाई किस हद तक सदमे में थीं, इस बात को उन की बहू ममता अच्छी तरह जानती थी. क्योंकि उस की अपनी सास से फोन पर बात होती रहती थी. एक दिन ममता ने अपने देवर हरिओम से कहा कि वह लाखेरी जा कर मां को ले आए ताकि बच्चों के बीच रह कर उन का दुख कुछ कम हो सके.

भाभी के कहने पर हरिओम ने 9 जनवरी को पिता हजारीलाल को फोन लगाया. लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ होने के कारण बात नहीं हो सकी. हरिओम सोच कर चुप्पी साध गया कि शायद फोन बंद कर के वह सो रहे होंगे.

ममता भाभी को भी उस ने यह बता दिया. अगले दिन ममता के कहने पर हरिओम ने फिर पिता को फोन लगाया. उस दिन भी उन का फोन बंद मिला. यह सिलसिला लगातार जारी रहा तो न सिर्फ हरिओम के लिए बल्कि ममता के लिए भी यह हैरानी वाली बात थी.

ममता के मुंह से बरबस निकल पड़ा, ऐसा तो आज तक कभी नहीं हुआ. वह अंदेशा जताते हुए बोली, ‘‘भैया, जरूर अम्माबाऊजी के साथ कोई अनहोनी हो गई है.’’ ममता ने देवर को सहेजते हुए कहा, ‘‘तुम ऐसा करो, नवलकिशोर से बात करो. शायद उसे कुछ मालूम हो.’’

हरिओम ने नवलकिशोर से बात की. उस ने जो कुछ बताया उसे जान कर ममता और हरिओम दोनों सन्न रह गए. नवलकिशोर ने तो यहां तक बताया कि उस ने घनश्याम द्वारा कपड़े ले जाने की बाबत तस्दीक करने के लिए भाभी को फोन भी लगाया था, लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. लेकिन माया ने बात कराने पर उस की शंका दूर हुई थी.

ममता वहीं सिर थाम कर बैठ गई. उस के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला, ‘‘अम्मा बाऊजी हमें बिना बताए करोली कैसे चले गए. घर की चाबी तो अम्मा किसी को देती ही नहीं थीं. घनश्याम चाबी ले कर लाखेरी वाले घर कैसे पहुंच गया.

इस के बाद तो मंगलसूत्र की चोरी को ले कर भी ममता का शक पुख्ता हो गया. उस ने हरिओम से कहा, ‘‘भैया घर से अम्मा का मंगलसूत्र भी जरूर घनश्याम ने ही चुराया होगा. तुम जरा घनश्याम को फोन तो लगाओ.’’

हरिओम ने फोन किया तो उस के मुंह से अस्फुट स्वर ही निकल पाए, ‘‘भाभी घनश्याम का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है. मैं उसे डीसीएम चौराहे के घर पर जा कर पकड़ता हूं.’’ कहने के साथ ही हरिओम फुरती से बाहर निकल गया.

करीब एक घंटे बाद हरिओम लौट आया. उस का चेहरा फक पड़ा हुआ था. हरिओम का चेहरा देखते ही ममता माजरा समझ गई. अटकते हुए उस ने कहा, ‘‘नहीं मिला ना?’’

हरिओम भी वहीं सिर पकड़ कर बैठ गया, ‘‘भाभी वो तो अपनी पत्नी के साथ सारा सामान ले कर वहां से रफूचक्कर हो चुका है.’’

बहुत कुछ ऐसा घटित हो चुका था. जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. अब ममता के लिए अपने पति को सब कुछ बताना जरूरी हो गया था. ममता ने फोन से बौर्डर पर तैनात पति को पूरा माजरा बता दिया. विजय उस समय सिर्फ इतना ही कह कर रह गया कि तुम थाने में अम्मा बाऊजी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दो. किराएदार घनश्याम की बाबत भी सब कुछ बता देना. फिर मैं छुट्टी ले कर आता हूं.

इस के साथ ही विजय ने इंदौर में रह रहे अपने मंझले भाई विनोद को भी फोन कर पूरी बात बता दी और कहा कि तुम फौरन पहले लाखेरी पहुंचो और पता करो कि उन के साथ क्या हुआ है.

मातापिता जिस तरह रहस्यमय ढंग से लापता हुए, सुन कर विजय अचंभित हुआ. इस से पहले ममता ने उद्योग नगर थाने में अपने ससुर हजारीलाल और सास कैलाशीबाई की गुमशुदगी की सुचना दर्ज करा दी थी.

अपने परिवार समेत करोली के मानाखोर गांव में पहुंचे विजय ने घनश्याम मीणा और कथित भगतजी की तलाश करने की भरपूर कोशिश की ताकि मां बाऊजी का पता चल सके, लेकिन उस के हाथ निराशा ही लगी. छानबीन करने पर उसे पता चला कि भगतजी नामक कोई तांत्रिक वहां था ही नहीं. घनश्याम के बारे में उसे पुख्ता जानकारी नहीं मिल सकी.

विजय ने पुलिस से संपर्क किया उस ने उद्योग नगर पुलिस के जांच अधिकारी सुरेंद्र सिंह से आग्रह किया कि आप एक बार करोली का चक्कर लगा लीजिए. वह वहां गए लेकिन उन की कोशिश निरर्थक रही. फिर जांच अधिकारी सुरेंद्र सिंह ने काल डिटेल्स का हवाला देते हुए कहा कि मामला लाखेरी का है. इसलिए मामले की रिपोर्ट लाखेरी में ही  करानी होगी.

विनोद भी लाखेरी पहुंच चुका था. उस ने भाई विजय को जो कुछ बताया उस से रहेसहे होश भी फाख्ता हो गए. घर की अलमारियों और संदूक के ताले टूटे पड़े थे. उन में रखे हुए अचल संपत्तियों के दस्तावेज, सोनेचांदी के जेवर और नकदी गायब थी. इस से स्पष्ट था कि कपड़े लेने के बहाने आया घनश्याम सब कुछ बटोर कर ले गया.

27 जनवरी, 2018 को विजय ने लाखेरी थाने में मामले की रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए घनश्याम मीणा पर ही अपना शक जताया. इस मौके पर विजय के साथ आए उस के भाई विनोद ने चोरी गए सामान का पूरा ब्यौरा पुलिस को दिया. पुलिस ने रिपोर्ट में भादंवि की धारा 365 व 380 और दर्ज कर के जांच एसआई नंदकिशोर के सुपुर्द कर दी. दिन रात की भागदौड़ के बावजूद पुलिस के हाथ कोई ठोस सुराग नहीं लगा.

एसपी योगेश यादव सीओ नरपत सिंह तथा थानाप्रभारी कौशल्या से जांच की प्रगति का ब्यौरा बराबर पूछ रहे थे. लेकिन कोई उम्मीद जगाने वाली बात सामने नहीं आ रही थी.

इस बीच पुलिस ने गुमशुदा हजारीलाल दंपति के फोटोशुदा ईनामी इश्तहार भी बंटवाए और सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करवा दिए. इस के बाद पुलिस ने घनश्याम मीणा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस का नतीजा जल्दी ही सामने आ गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि घनश्याम मीणा की ज्यादातर बातचीत करोली जिले के लांगरा कस्बे के मुखराम मीणा से ही हो रही थी. लक्ष्य सामने आ गया तो पुलिस की बांछें खिल गईं. सीओ सुरेंद्र सिंह ने एसपी योगेश यादव को बताया तो उन्होंने करोली के एसपी अनिल कयाल से जांच में सहयोग करने की मांग की.

नतीजतन सीओ सुरेंद्र सिंह और थानाप्रभारी कौशल्या की अगुवाई में गठित पुलिस टीम ने करोली के लांगरा कस्बे से मुखराम मीणा को दबोच लिया. अखबारी सुर्खियों में ढली इस खबर में करोली एसपी अनिल कयाल ने मुखराम मीणा की 4 फरवरी को गिरफ्तारी की तस्दीक कर दी और कहा कि मुखराम के साथियों और गुमशुदा दंपति को तलाशने में पुलिस टीमें पूरी तरह जुटी हुई हैं.

पुलिस पूछताछ में मुखराम बारबार बयान बदल रहा था. उस ने स्वीकार किया कि घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी के साथ हम हजारीलाल और उस की पत्नी कैलाशीबाई को ले कर टैंपो से साथलपुर के जंगल में पहुंचे थे. वहां उन्होंने दोनों की अंघेरे में हत्या कर दी थी. मुखराम ने बताया कि काम को अंजाम देने के बाद वह साथलपुर गांव चले गए थे.

चूकि पुलिस को उस से और भी पूछताछ करनी थी, इसलिए उसे 5 फरवरी को मुंसिफ न्यायालय लाखेरी में पेश कर 5 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

मुखराम के बताए स्थान तक लाखेरी पुलिस दल के साथ भरतपुर जिले की लागरा पुलिस के एएसआई राजोली सिंह तथा डौग स्क्वायड टीम के कांस्टेबल देवेंद्र, ओमवीर और हिम्मत सिंह भी थे. मुखराम द्वारा बताई गई हत्या वाली जगह से पुलिस को साड़ी के टुकड़े, खून सने पत्थर और एक हड्डी का टुकड़ा तो मिला लेकिन लाशों का कहीं कोई अतापता नहीं था.

मुखराम अपने उसी बयान पर अड़ा था कि महिला की हत्या तो हम ने यहीं पत्थरों से की थी और शव को भी यहीं गाड़ दिया था. इस के बाद शव कहां गया यह पता नहीं. बरामद चीजों को जब खोजी कुत्ते को सुंघाया तो वो पहले वाली जगह पर जा कर ठिठक गया.

पुलिस ने घटनास्थल से हत्या में इस्तेमाल हुए पत्थर भी जब्त कर लिए. पुलिस की सख्ती के बावजूद मुखराम सवालों का जवाब देने से कतराता रहा.

हत्या में सहयोगी रहे घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी कहां हैं? और हजारीलाल की हत्या कहां की गई? वृद्ध दंपति की हत्या की आखिर क्या वजह थी आदि पूछने पर मुखराम ने बताया कि कोटा में हजारीलाल का तकरीबन 50 लाख रुपए की कीमत का एक प्लौट है. घनश्याम और उस की पत्नी इस पर नजर गड़ाए हुए थे.

उन्होंने हजारीलाल से औनेपौने दामों में इस प्लौट का सौदा करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी. उस प्लौट को हड़पने के लिए ही उन के मारने की योजना बनाई थी. उन्होंने मुझे अच्छी रकम देने का वादा कर इस योजना में शामिल किया था.

पुलिस ने आखिर तेवर बदलते तो मुखराम ने मुंह खोलने में देर नहीं की. उस ने बताया कि हजारीलाल की हत्या साथलपुर के पास स्थित धमनिया के जंगल में की थी. धमनियां जंगल में मुखराम की बताई गई जगह पर हजारीलाल के कपड़े और खून सने पत्थर तो मिले लेकिन शव नहीं मिला.

घनश्याम मीणा और उस की पत्नी राजकुमारी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि घनश्याम अपनी पत्नी के साथ केरल के कालीघाट में रह रहा है. मुखराम से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

घनश्याम मीणा और राजकुमारी को गिरफ्तार करने के लिए एक पुलिस टीम कालीघाट रवाना हो गई. इत्तफाक से ये दोनों घर पर ही मिल गए. 8 अप्रैल को उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस राजस्थान लौट आई.

पूछताछ में घनश्याम मीणा और उस की पत्नी राजकुमारी ने जो बताया उसे सुन कर तो पुलिस अधिकारियों का मुंह खुला का खुला रह गया. क्योंकि हत्या में ट्यूटर और प्रौपर्टी के बिजनैस में हजारीलाल का विश्वसनीय बना रहने वाला अंगद भी शामिल था. पुलिस इधरउधर खाक छान रही थी और अंगद बिना किसी डर के विजय के पड़ोस में बैठ कर चैन की बंसी बजा रहा था.

पता चला कि पूरी घटना का सूत्रधार और ताना बाना बुनने वाला अंगद ही था. उस पर हजारीलाल का जितना अटूट भरोसा था, कमोबेश विजय का भी उतना ही था. घर पर बेरोकटोक आनेजाने और मीठी बातों से रिझाने वाले अंगद पर शंका होती भी तो कैसे. जबकि सच्चाई यह थी कि डीसीएम इलाके में हजारीलाल के लगभग 50 लाख के प्लौट पर अंगद की शुरू से ही निगाहें थीं.

विश्वसनीयता की आड़ में अंगद इस प्लौट को किसी तरह फरजी दस्तावेजों के जरिए हड़पने की ताक में था. लेकिन हजारीलाल पर उस का दांव नहीं चल पा रहा था. आखिरकार उसे एक ही रास्ता सूझा कि हजारीलाल दंपति को मौत के घाट उतार कर ही यह प्लौट कब्जाया जा सकता था.

अपनी योजना का तानाबाना बुनते हुए उस ने पहले घनश्याम मीणा को उन के डीसीएम चौराहे के पास स्थित घर में किराए पर रखवाया. फिर मीणा को उन का विश्वास जीतने में भी मदद की.

आखिरकार जब हजारीलाल का घनश्याम पर अटूट भरोसा हो गया तो पहले उस ने किसी तरह कैलाशीबाई का कीमती मंगलसूत्र चोरी कर लिया. मंगलसूत्र की चोरी से हताश निराश दंपति को जाल में फंसाने के लिए तांत्रिक तक पहुंच बनाने का पासा फेंका.

अंगद ने घनश्याम से कहा कि वह योजना में किसी विश्वसनीय व्यक्ति को मोटे पैसों का लालच दे कर शामिल कर ले. तब घनश्याम ने करोली के रहने वाले अपने एक वाकिफकार मुखराम को योजना में शामिल किया. सारा काम घनश्याम, राजकुमारी और मुखराम ने ही अंजाम दिया. अंगद तो अपनी जगह से हिला भी नहीं.

पुलिस ने कोटा से अंगद को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने भले ही हत्या की गुत्थी सुलझा ली. लेकिन लाख सिर पटकने के बाद भी शव बरामद नहीं किए जा सके.

कथा लिखने तक चारों अभियुक्तों की जमानत हो चुकी थी. कानून के जानकारों का कहना है कि जब लाश ही बरामद नहीं होगी तो अभियुक्तों को सजा कैसे मिलेगी. सवाल यह है कि हर तरह से समर्थ पुलिस आखिरकार हजारीलाल दंपति के शव बरामद क्यों नहीं कर सकी.

विजय कुमार तो दोहरे आघात से छटपटा रहा है. एक तो वृद्ध माता पिता की निर्मम हत्या, फिर शवों की बरामदगी तक नहीं हुई. विजय का दुख इन शब्दों में फूट पड़ता है कि कैसा बेटा हूं, मांबाप की हत्या हुई और मैं कुछ नहीं कर पाया. उन की अंत्येष्टि तक नहीं हो सकी.

विजय मंत्रियों से ले कर उच्च अधिकारियों तक से इंसाफ की दुहाई दे चुका है. लेकिन उस की कहीं सुनवाई नहीं हो रही थी. एक तरफ तो विश्वास और इंसाफ की हत्या का दर्द तो दूसरी तरफ हत्यारे बेखौफ घूमते हुए उसे मुंह चिढ़ा रहे हैं. ताज्जुब की बात तो यह है कि क्लेक्टर से गुहार लगाने के बावजूद भी इस केस में कोई प्रगति नहीं हुई.

—कथा पुलिस और पारिवारिक सूत्रों पर आधारित

पहले पति से तलाक दूसरे से मर्डर

झाड़ी के पीछे लगभग 30-35 साल की एक महिला हरे रंग का फूलदार सलवार सूट पहने खून में लथपथ पड़ी थी तथा दर्द से कराह रही थी. उस में चलने फिरने की भी हिम्मत नहीं थी. उस के शरीर पर धारदार हथियार के घाव थे और लग रहा था कि शायद वह महिला अपने जीवन की अंतिम घड़ियां ही गिन रही थी.

वह रात के 8 बजे का समय था. जेठ के महीने की भीषण गरमी के बाद उस समय ठंडी ठंडी हवा चल रही थी. आसपास के क्षेत्रों के किसान व मजदूर भी अपनेअपने खेतों में धान की बुवाई के लिए खेतों को तैयार करने के बाद, पैदल ही अपने घरों की ओर वापस लौट रहे थे. खेत में काम कर के कुछ किसान थके हुए थे, इसलिए वे जल्दी में अपने घरों की ओर बढ़ रहे थे.

तभी एक किसान प्रवीण सैनी को पास में बह रहे पानी के रजवाहे के पास से किसी महिला के कराहने की चीख सुनाई दी थी. वैसे तो वह जल्दी में था, मगर महिला के कराहने की आवाज सुन कर प्रवीण सैनी के कदम ठिठक गए थे. उस ने सोचा था कि यह महिला के कराहने व चीखने की आवाज कहां से आ रही है, इस का पता करना चाहिए.

इस के बाद प्रवीण सैनी ने वहां से गुजर रहे कुछ किसानों व मजदूरों को रोका और उन्हें भी रजवाहे के पास से आ रही महिला के चीखने की आवाज से अवगत कराया. इस के बाद सब ने मिल कर जहां से महिला के चीखने व कराहने की आवाज आ रही थी, वहां पर जाने का मन बनाया. फिर सभी लोग उधर ही एक झाड़ी की ओर बढ़ गए, जहां से महिला की आवाज आ रही थी.

शुरू में तो प्रवीण सैनी को कुछ डर भी लग रहा था कि वहां कहीं कोई बदमाश या लुटेरे आदि न मिल जाएं, मगर वे हिम्मत कर के अंधेरे में ही उस झाड़ी की ओर चल पड़े, जहां से महिला की चीख सुनाई दे रही थी. थोड़ी देर में ही वे सभी लोग झाड़ी के पास पहुंच गए थे.

प्रवीण सैनी ने जब अपने मोबाइल की टौर्च जलाई तो झाड़ी के पीछे का दृश्य देख कर उस की व उस के सभी साथियों की रूह कांप गई थी.

प्रवीण सैनी ने उसी वक्त इस घटना की बाबत पुलिस कंट्रोल रूम को 112 नंबर पर सूचना दे दी. जहां पर महिला घायलावस्था में पड़ी थी, वह स्थान हरिद्वार जिले के थाना पिरान कलियर अंतर्गत बावनदरा कहलाता है. जंगल व गंगनहर होने के कारण यह काफी सुनसान क्षेत्र है. गुलदार आदि कुछ जंगली जानवर भी अकसर वहां घूमते रहते हैं.

पुलिस टीमें जुटीं जांच में

लगभग 10 मिनट बाद ही प्रवीण सैनी व उस के साथियों को पुलिस की गाड़ी का सायरन साफ साफ सुनाई देने लगा था. 2 मिनट बाद थाना कलियर के एसएचओ जहांगीर अली वहां पहुंच गए थे.

रुंधे गले से महिला बस केवल इतना ही बता पाई थी कि उस का नाम तसगिरा उर्फ सकीना है तथा वह सहारनपुर के कस्बा गंगोह में अपने दूसरे पति सुहेल के साथ रहती है. आज वह अपने शौहर सुहेल व अपनी 9 महीने की बच्ची के साथ दरगाह पिरान कलियर घूमने आई थी. दरगाह घूमने के बाद शौहर ने इस सुनसान स्थान पर उस के ऊपर चाकुओं से हमला कर दिया.

पुलिस तुरंत ही उसे अस्पताल ले गई, लेकिन रास्ते में ही उस ने दम तोड़ दिया. इस के बाद एसएचओ जहांगीर अली ने इस घटना से सीओ पल्लवी त्यागी व हरिद्वार के एसएसपी अजय सिंह को अवगत करा दिया. अजय सिंह ने तुरंत ही इस संगीन वारदात की गंभीरता को समझते हुए तत्काल ही कलियर क्षेत्र में सघन तलाशी अभियान चलाने के आदेश कलियर थाना पुलिस व सीआईयू टीम को दिए.

सीआईयू टीम व कलियर पुलिस द्वारा सकीना के शौहर सुहेल की गिरफ्तारी के लिए एक सघन तलाशी अभियान चलाया, लेकिन सुहेल का कुछ भी पता नहीं चल सका था. इस के बाद सीओ (रुड़की) पल्लवी त्यागी ने पुलिस की एक टीम को सुहेल के सहारनपुर के कस्बा गंगोह में स्थित घर भेजा, मगर यहां भी पुलिस को सुहेल की कोई जानकारी नहीं मिली.

सुहेल के घर वालों ने पुलिस को बताया था कि वह हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में स्थित एक फैक्ट्री में काम करता है तथा वह अब अपनी बीवी सकीना के साथ सहारनपुर के गांव दाबकी में रह रहा है.

इस के बाद पुलिस टीम सुहेल की तलाश में गांव दाबकी के लिए चल पड़ी थी, मगर यहां भी पुलिस को सुहेल के मकान पर ताला लगा दिखाई दिया था. वहां से निराश हो कर सुहैल को पकडऩे गई पुलिस टीम वापस कलियर आ गई थी.

सुहेल को पकडऩे के लिए जब सीआईयू टीम ने उस के मोबाइल फोन की लोकेशन चैक की तो वह लोकेशन सहारनपुर में मिली थी. इस के बाद कलियर पुलिस व सीआईयू की टीम वापस सहारनपुर पहुंच गई. यहां पर पुलिस टीम ने सुहेल को ढंूढा तो वह नहीं मिला. काफी तलाश करने पर आखिर सुहेल को पुलिस टीम ने सहारनपुर के गंगोह रोड पर स्थित एक ढाबे से पकड़ लिया.

सुहेल को गिरफ्तार करने की सूचना एसएचओ जहांगीर अली ने सीओ पल्लवी त्यागी व एसएसपी अजय सिंह को दे दी.

लगभग एक घंटे में पुलिस सुहेल को ले कर थाना कलियर आ गई थी. वहां पर सीओ पल्लवी त्यागी व एसएचओ जहांगीर अली ने सुहेल से सकीना की हत्या के बारे में सिलिसिलेवार पूछताछ की और उस के बयानों को रिकौर्ड कर लिया. सुहेल ने बीवी की हत्या के बारे में जो जानकारी दी, वह इस प्रकार निकली—

पहले पत्नी ने क्यों दिया तलाक

सुहेल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के कस्बा गंगोह का रहने वाला था. 5 साल पहले वह हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र की एक फैक्ट्री में काम करने के लिए आया था.

इसी फैक्ट्री में एक तलाकशुदा महिला सकीना उर्फ तसगिरा भी उस के साथ काम करती थी. दोनों साथ काम करते हुए अपने दुखदर्द की बातें करते थे. कुछ समय बाद उस की सकीना से दोस्ती हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई.

सकीना का परिवार मूलरूप से पश्चिम बंगाल का रहने वाला था, मगर अब उस का परिवार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में रह रहा है. 12 साल पहले उस का निकाह गोलाघाट प्रयागराज के हकीम से हुआ था. हकीम से वह 2 बेटियों व एक बेटे की मां बनी.

सकीना के पति हकीम को नशा करने और जुआ खेलने की आदत थी. सकीना उस से यह करने को मना करती थी, लेकिन वह नहीं माना, जिस से उन के बीच कलह शुरू हो गई. शौहर की बुरी आदत से वह तंग आ गई थी. इस के बाद वर्ष 2017 में उस का हकीम से तलाक हो गया था.

2018 में सकीना अपने तीनों बच्चों को हकीम के पास छोड़ कर सिडकुल हरिद्वार आ गई थी और एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगी थी. सुहेल और सकीना का प्यार गहरा हो गया था. वह सकीना से निकाह करना चाहता था. जब सुहेल ने सकीना के बारे में अपने घर वालों से कहा तो उन्होंने उसे सकीना के साथ निकाह करने के लिए साफ मना कर दिया.

सुहेल तो उस वक्त सकीना के प्यार में अंधा था और उस से निकाह करना चाहता था, इसलिए उस ने अपने घर वालों के विरोध के बावजूद सकीना के साथ निकाह कर लिया और अपने गंगोह स्थित घर को छोड़ कर सहारनपुर के गांव दाबकी में रहने लगा था. इस के बाद सुहेल से सकीना के 3 बच्चे हुए, जिन में सब से छोटी बेटी 9 महीने की थी. सुहेल सकीना को प्यार से तसगिरा कहता था.

कुछ समय तक उन का दांपत्य जीवन ठीकठाक चला, मगर शादी के 3 साल बाद उन दोनों में मनमुटाव शुरू हो गया था. इस के बाद दोनों में अकसर झगड़े होने लगे थे. इस कारण वह काफी परेशान रहने लगा था, क्योंकि सुहैल ने सकीना के लिए अपने घर वालों तक को छोड़ दिया था. घर आने पर सकीना उस से झगड़ती थी. इस कारण परेशान हो कर उस ने सकीना को तलाक दे दिया.

तलाक से सकीना काफी भड़क गई और अकसर सुहेल से मारपीट करने लगी. तलाक के बाद वह उस से गुजारे के लिए रुपए की मांग करने लगी थी और जैसे ही वह घर जाता तो वह उस पर हमला करने लगी थी.

सकीना की इन हरकतों से वह टूट चुका था. उस ने इस झगड़े से परेशान हो कर सकीना की हत्या की योजना बनाई डाली. अपनी इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए वह 21 अप्रैल, 2023 को गंगोह स्थित अपने घर गया था.

वहां से सुहेल ने सकीना की हत्या के लिए एक छुरा खरीदा था. इस के बाद उस ने सकीना को कलियर दरगाह घूमने के लिए चलने को कहा था. सकीना कलियर घूमने के लिए तैयार हो गई थी.

दोपहर 3 बजे सकीना अपनी 9 माह की बेटी आयत के साथ बाइक पर बैठ गई थी और तीनों कलियर आ कर शाम तक खूब घूमे थे और वहां की दरगाहों पर जियारत भी की.

दूसरे शौहर ने क्यों की हत्या

उस वक्त शाम के 7 बज गए थे. अंधेरा भी हो चला था. तभी सकीना ने सुहेल से वापस सहारनपुर चलने को कहा. सुहेल बेटी के साथ बाइक पर बैठी सकीना को ले कर कलियर धनौरी रोड पर पानी के रजवाहे बावनदरे की ओर चल दिया. वहां पर जब सुहेल ने बाइक रोकी थी तो सकीना कहने लगी कि मुझे यहां पानी के शोर और अंधेरे से काफी डर लग रहा है.

तभी सुहेल ने फुरती से सकीना की गोद से 9 महीने की बच्ची ले ली और उसे पास ही घास पर लिटा दिया. इस के बाद उस ने पैंट की जेब से छुरा निकाल कर सकीना की छाती, गले व पेट पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए. फिर वह बेटी को ले कर वापस सहारनपुर के कस्बा गंगोह लौट गया.

देखभाल के लिए उस ने बेटी अपने घर वालों को दे दी. पुलिस से बचने के लिए वह इधरउधर छिपता घूम रहा था, लेकिन पुलिस की पकड़ में आ ही गया. एसएचओ जहांगीर अली ने सुहेल की निशानदेही पर सकीना की हत्या में प्रयुक्त छुरा व सकीना को मौके तक ले जाने वाली बाइक भी कस्बा गंगोह से बरामद कर ली थी.

अगले दिन 22 मई, 2023 को सीओ रुड़की पल्लवी त्यागी ने कलियर थाने में आयोजित प्रैसवार्ता में हत्यारोपी सुहेल को मीडिया के सामने पेश कर के सकीना हत्याकांड का परदाफाश कर दिया.

उसी दिन पुलिस ने सुहेल को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया था. सकीना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत का कारण धारदार हथियार से घायल होने पर ज्यादा खून निकलना बताया. कथा लिखे जाने तक जहांगीर अली द्वारा सकीना हत्याकांड की विवेचना पूरी होने के बाद सुहेल के खिलाफ चार्जशीट अदालत में भेजने की तैयारी की जा रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नफरत की आग : महिला वकील की बेटी की निर्मम हत्या

बात 18 फरवरी, 2019 की है. शाम करीब 5 बजे रमाशंकर गुप्ता एडवोकेट पदमा गुप्ता  के केशव नगर स्थित घर पहुंचे तो उन के मकान का मेनगेट बंद था. गेट के बाहर 2 युवक खड़े थे. दोनों आपस में बतिया रहे थे. रमाशंकर ने उन युवकों से पूछताछ की तो उन्होंने अपने नाम क्रमश: मोहित और शुभम बताए.

उन्होंने बताया कि वे दोनों औनलाइन शौपिंग कुरियर डिलिवरी बौय हैं. स्नेह गुप्ता ने औनलाइन कोई सामान बुक कराया था, वह उस सामान को देने आए हैं. लेकिन आवाज देने पर वह न तो गेट खोल रही हैं और न ही फोन रिसीव कर रही हैं.

रमाशंकर गुप्ता स्नेह के मौसा थे. वह उसी से मिलने आए थे. कुरियर बौय मोहित की बात सुन कर रमाशंकर का माथा ठनका. उन्होंने भी स्नेह का मोबाइल नंबर मिलाया. लेकिन फोन रिसीव नहीं हुआ. इस के बाद रमाशंकर ने स्नेह की मां एडवोकेट पदमा गुप्ता को फोन किया. वह उस समय कचहरी में थीं. पदमा गुप्ता ने उन्हें बताया कि स्नेह घर पर ही है. शायद वह सो गई होगी, जिस की वजह से काल रिसीव नहीं कर रही होगी.

रमाशंकर गुप्ता ने किसी तरह गेट खोला और अंदर गए. उन्होंने स्नेह को कई आवाजें दीं लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. मेनगेट से लगा बरामदा था. बरामदे में पदमा का पालतू पामेरियन कुत्ता टहल रहा था. 2 कमरों के दरवाजे भी खुले थे.

रमाशंकर स्नेह को खोजते हुए पीछे वाले कमरे में पहुंचे तो उन के मुंह से चीख निकल गई. स्नेह खून से लथपथ फर्श पर पड़ी थी. उस की सांसें चल रही थीं या थम गईं, कहना मुश्किल था. स्नेह की यह हालत देख कर कुरियर बौय मोहित व शुभम भी घर के अंदर पहुंच गए. कमरे में एक लड़की की लाश देख कर वह भी आश्चर्यचकित रह गए.

रमाशंकर ने पुलिस को खबर देने के लिए कई बार 100 नंबर पर काल की, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया तो वह डिलिवरी बौय की मोटर साइकिल पर बैठ कर उस्मान पुलिस चौकी पहुंचे और उन्होंने वारदात की सूचना दी. चौकी से सूचना थाना नौबस्ता को दे दी गई. उस के बाद थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह पुलिस टीम के साथ डब्ल्यू ब्लौक केशव नगर स्थित एडवोकेट पदमा गुप्ता के घर पहुंच गए. उस समय वहां भीड़ जुटी थी.

थानाप्रभारी उस कमरे में पहुंचे, जहां 24 वर्षीय स्नेह खून से लथपथ पड़ी थी. कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. स्नेह के पैर दुपट्टे से बंधे थे और दोनों हाथों की कलाइयां किसी तेजधार वाले हथियार से काटी गई थीं. सिर पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था, जिस से सिर फट गया था. गरदन को रेता गया था और चेहरे पर भी कट का निशान था.

थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने स्नेह के दुपट्टे से बंधे पैर खुलवाए फिर जीवित होने की आस में एंबुलैंस मंगवा कर तत्काल चकेरी स्थित कांशीराम ट्रामा सेंटर भिजवाया. लेकिन वहां डाक्टरों ने स्नेह को देखते ही मृत घोषित कर दिया था. थानाप्रभारी ने पदमा गुप्ता की बेटी की घर में घुस कर हत्या करने की जानकारी पुलिस के बड़े अधिकारियों को दी तो हड़कंप मच गया.

इधर पदमा गुप्ता कचहरी से सीधे अपने साथियों के साथ कांशीराम ट्रामा सेंटर पहुंचीं और बेटी का शव देख कर गश खा कर गिर पड़ीं. महिला पुलिसकर्मी व उन के सहयोगी वकीलों ने उन्हें संभाला. होश आने पर वह दहाड़ें मार कर रोने लगीं.

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                                         रोती बिलखती एडवोकेट पदमा गुप्ता

चूंकि मामला एक वकील की जवान बेटी की हत्या का था. अत: सूचना पाते ही एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) रवीना त्यागी, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी घटनास्थल पर पहुंच गए. एसएसपी अनंत देव ने मौके पर डौग स्क्वायड तथा फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

सूचना पा कर आईजी आलोक सिंह अस्पताल पहुंचे और उन्होंने पदमा गुप्ता को धैर्य बंधाया. उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि हत्यारा कितना भी पहुंच वाला क्यों न हो, बच नहीं पाएगा. इस के बाद आईजी घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में खून ही खून फैला था. कमरे में अंदर रखी अलमारी खुली थी और सामान पलंग पर बिखरा पड़ा था. पालतू कुत्ता बरामदे से ले कर गेट तक चहलकदमी कर रहा था. वह डरासहमा नजर आ रहा था.

पुलिस अधिकारियों ने अलमारी खुली होने व सामान बिखरे पड़े होने से अनुमान लगाया कि हत्या शायद लूट के इरादे से की गई होगी. शव के पास मृतका का मोबाइल फोन पड़ा था, जिसे पुलिस ने अपने पास सुरक्षित रख लिया.

फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल से सबूत इकट्ठे किए. टीम ने अलमारी व पलंग और कई जगह से फिंगरप्रिंट लिए. घटनास्थल के पास ही खून सनी एक ईंट पड़ी थी. इस ईंट से भी टीम ने फिंगरप्रिंट लिए और जांच हेतु ईंट को भी सुरक्षित कर लिया. टीम को वाशिंग मशीन पर रखा पानी से धुला एक चाकू मिला. इस धुले चाकू की जब टीम ने जांच की तो पुष्टि हुई कि उस पर लगा खून धोया जा चुका है. टीम ने चाकू को भी अपने पास सुरक्षित कर लिया.

खोजी कुतिया ‘जूली’ घटनास्थल को सूंघ कर भौंकते हुए पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी के घर जा घुसी. उस के घर के अंदर चक्कर काटने के बाद जूली वापस आ गई. पुलिस ने संदेश चतुर्वेदी से बात की लेकिन उन से हत्या के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली.

एसएसपी अनंतदेव तिवारी तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी मृतका की मां पदमा गुप्ता से पूछताछ करना चाहते थे. अत: वह कांशीराम ट्रामा सेंटर पहुंच गए. वह बेटी के शव के पास बदहवास बैठी थीं. उन के आंसू थम नहीं रहे थे. उस समय उन की स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन से कुछ पूछताछ की जा सके. जरूरी काररवाई के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारियों को इस बात का अंदेशा था कि कहीं वकील उग्र न हो जाएं, अत: उन्होंने पोस्टमार्टम हाउस पर पुलिस फोर्स तैनात कर दी.

भारी पुलिस सुरक्षा के बीच दूसरे दिन 3 डाक्टरों के पैनल ने स्नेह का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डिप्टी सीएमओ राकेशपति तिवारी, कांशीराम ट्रामा सेंटर के डा. अभिषेक शुक्ला और विधनू सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डा. श्रवण कुमार शामिल रहे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर के पीछे भारी वस्तु के प्रहार करने, चाकू से गले पर वार करने के 3 निशान और चेहरे पर एक निशान मिला. इस के अलावा रिपोर्ट में यह भी बताया कि उस के दोनों हाथों की कलाइयां चाकू से काटी गई थीं. बताया कि स्नेह की मौत खून ज्यादा मात्रा में निकलने की वजह से हुई थी. वहीं दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइडें भी बना ली गईं.

महिला एडवोकेट की बेटी की हत्या का समाचार दैनिक समाचार पत्रों की सुर्खियां बना तो कानपुर कचहरी खुलते ही वकीलों में रोष छा गया. एडवोकेट पंकज कुमार सिंह, ताराचंद रुद्राक्ष, रतन अग्रवाल, टीनू शुक्ला, डी.एन. पाल, संजीव कनौजिया, शरद कुमार शुक्ला आदि अधिवक्ता भवन पर एकत्र हुए.

इस के बाद इन वकीलों ने हत्या के विरोध में न्यायिक काम ठप करा दिया. इस के बाद वकीलों ने एसएसपी कार्यालय के बाहर सड़क पर वाहन खड़े कर रास्ता बंद कर दिया, जिस से लंबा जाम लग गया.

एसएसपी अनंत देव ने सीओ (कोतवाली) राजेश पांडेय को प्रतिनिधि के रूप में वकीलों के पास भेजा. श्री पांडेय ने उग्र वकीलों को आश्वासन दिया कि स्नेह के हत्यारे जल्द ही पकड़ लिए जाएंगे. इस आश्वासन पर वकील शांत हुए.

कानपुर बार एसोसिएशन ने इस बात का भी फैसला लिया कि स्नेह के हत्यारोपियों की कोई भी वकील पैरवी नहीं करेगा. अब तक पदमा गुप्ता सामान्य स्थिति में आ चुकी थीं. अत: एसपी (साउथ) रवीना त्यागी उन से पूछताछ करने उन के आवास पर पहुंचीं.

पूछताछ में पदमा गुप्ता ने बताया कि 18 फरवरी की सुबह सब कुछ सामान्य था. बेटी स्नेह ने खाना बनाया और उसे टिफिन लगा कर दिया. इस के बाद वह कोर्ट चली गईं. शाम सवा 5 बजे बहनोई रमाशंकर द्वारा ही उन्हें बेटी की हत्या के बारे में सूचना मिली.

‘‘आप की बेटी की हत्या किस ने की? आप को किसी पर शक है?’’ रवीना त्यागी ने पूछा.

‘‘हां, मुझे 2-3 लोगों पर शक है.’’ पदमा गुप्ता ने बताया.

‘‘किस पर?’’ एसपी ने पूछा.

‘‘पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी और उस के बेटे सूरज तथा मोहल्ले के शोहदे अन्नू अवस्थी पर.’’

‘‘वह कैसे?’’ रवीना त्यागी ने पूछा.

पदमा गुप्ता ने बताया, ‘‘संदेश चतुर्वेदी और उस का बेटा पिछले 3 महीने से उन के साथ विवाद कर रहे हैं. दोनों बापबेटे हर समय झगड़ा व मारपीट के लिए उतारू रहते हैं. इन लोगों ने सन 2012 में उन पर जानलेवा हमला भी करवाया था और मोहल्ले का शोहदा अन्नू अवस्थी उन की बेटी से छेड़छाड़ करता था. लोकलाज के कारण उस की शिकायत नहीं की. इन्हीं कारणों से इन लोगों पर शक है.’’

‘‘घर में क्या लूटपाट भी हुई?’’ एसपी रवीना त्यागी ने पूछा.

‘‘हां, अलमारी से कुछ गहने व मामूली नकदी गायब है.’’ पदमा गुप्ता ने बताया.

पदमा गुप्ता से पूछताछ के बाद एसपी रवीना त्यागी ने स्नेह की हत्या के खुलासे के लिए एक विशेष टीम गठित की. इस टीम में क्राइम ब्रांच, सर्विलांस टीम व सिविल पुलिस के तेजतर्रार दरजन भर पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

पदमा गुप्ता ने पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी, उस के बेटे सूरज तथा एक अन्य युवक अन्नू अवस्थी को उठा लिया. पुलिस टीम को यह भी संदेह था कि किसी बेहद नजदीकी ने ही स्नेह की हत्या की है.

अत: पुलिस ने मृतका स्नेह के मौसा रमाशंकर को भी उठा लिया. क्योंकि रमाशंकर ही सब से करीबी रिश्तेदार थे और उन का स्नेह के घर आनाजाना था. दूसरे वह अचानक घटना वाले दिन स्नेह के घर पहुंचे भी थे.

पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर संदेश चतुर्वेदी ने पदमा गुप्ता से विवाद की बात तो स्वीकार की लेकिन हत्या करने या कराने से साफ इनकार कर दिया. पूछताछ और बौडी लैंग्वेज से पुलिस को भी लगा कि संदेश व उस के बेटे सूरज का स्नेह की हत्या में हाथ नहीं है. अत: इस हिदायत के साथ उन्हें छोड़ दिया कि जरूरत पड़ने पर उन्हें फिर से थाने आना पड़ सकता है.

शोहदे अन्नू अवस्थी से भी टीम ने सख्ती से पूछताछ की. अन्नू ने स्वीकार किया कि वह स्नेह से एकतरफा प्यार करता था. उस ने उस के साथ एकदो बार छेड़खानी भी की थी, पर हत्या जैसा जघन्य अपराध उस ने नहीं किया है.

पुलिस ने उस के मोबाइल को चैक किया तो घटनास्थल वाले दिन उस की लोकेशन स्नेह के घर के आसपास की मिली. इस शक के आधार पर पुलिस टीम ने पुन: उस से सख्त रुख अपना कर पूछताछ की लेकिन उस से कोई खास जानकारी नहीं मिली. पुलिस किसी निर्दोष को जेल नहीं भेजना चाहती, अत: अन्नू अवस्थी को भी हिदायत के साथ छोड़ दिया.

रमाशंकर गुप्ता, मृतका स्नेह का मौसा थे और वह बेहद करीबी रिश्तेदार भी थे. पुलिस ने जब उन से पूछा कि घटना वाले दिन वह अचानक स्नेह के घर क्यों और कैसे पहुंचे.

इस पर रमाशंकर ने बताया कि स्नेह ने उन से मोबाइल पर बतियाते हुए कहा था कि 20 फरवरी को उस के इंस्टीट्यूट में कोई कार्यक्रम है. उसे भी कार्यक्रम में हिस्सा लेना है, अत: कुछ पैसे चाहिए. मैं ने उसे पैसे देने का वादा कर लिया था.

18 फरवरी को वह रतनलाल नगर आए थे. यहीं उन्हें याद आया कि स्नेह ने उन से पैसे मांगे थे. इसलिए वह रतनलाल नगर से सीधा डब्ल्यू ब्लौक केशवनगर स्थित स्नेह के घर पहुंचे. वहां 2 युवक कुरियर लिए खड़े थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि वह काफी देर से गेट खटखटा रहे हैं. न तो दरवाजा खुल रहा है और न ही स्नेह फोन रिसीव कर रही है. इस के बाद जब वह घर में गए तो वहां स्नेह की लाश देखी.

रमाशंकर पुलिस की निगाह में संदिग्ध थे. इसलिए उन की सच्चाई जानने के लिए पुलिस टीम ने पदमा गुप्ता से उन के बारे में जानकारी ली. पदमा गुप्ता ने रमाशंकर को क्लीन चिट देते हुए कहा कि वह उस की बहन का सुहाग है. समयसमय पर वह उन की मदद करते रहते हैं. स्नेह को वह बेटी जैसा प्यार करते थे. स्नेह भी उन से खूब हिलीमिली थी. वह उन से अकसर फोन पर बतियाती रहती थी.

पदमा गुप्ता ने रमाशंकर को क्लीन चिट दी तो पुलिस ने भी रमाशंकर को छोड़ दिया. इस के बाद पुलिस टीम ने कुरियर बौय मोहित और शुभम को उठाया. पुलिस को शक था कि कहीं वारदात को अंजाम दे कर दोनों बाहर तो नहीं आ गए और तभी रमाशंकर के आ जाने पर उन्होंने कहानी बनाई हो.

पुलिस ने मोहित से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह किदवईनगर में रहता है, जबकि उस का साथी शुभम यशोदा नगर में रहता है. स्नेह ने औनलाइन कोई सामान मंगाया था. उसी का पैकेट ले कर वह दोनों उस के घर गए थे. पैकेट पर स्नेह का मोबाइल नंबर लिखा था. उस नंबर को उस ने कई बार मिलाया. लेकिन उस ने काल रिसीव नहीं की.

वे दोनों जाने ही वाले थे कि रमाशंकर आ गए. उन्होंने सारी बात उन्हें बताई. पुलिस को कुरियर बौय की बातों पर विश्वास हो गया तो दोनों कुरियर बौय की डिटेल्स ले कर उन्हें भी थाने से भेज दिया.

स्नेह के मोबाइल से पुलिस टीम को 10 संदिग्ध फोन नंबर मिले. जांच करने पर पता चला कि यह नंबर स्नेह के घर काम कर चुके राजमिस्त्री, मजदूर, टिन शेड डालने वाले लोगों के थे. पुलिस ने इन नंबरों पर बात की और एकएक को थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ की.

इन में से एक नंबर ऐसा था, जो बंद था. इस नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया तो पता चला कि यह नंबर घटना वाली शाम से बंद है. लेकिन उस रोज उस नंबर से दूसरे एक नंबर पर बात हुई थी. इस नंबर को पुलिस ने ट्रैस किया तो पता चला कि यह नंबर दबौली निवासी अमित का है. पुलिस टीम अमित की तलाश में जुट गई.

आखिर टीम ने नाटकीय ढंग से अमित को धर दबोचा. थाना नौबस्ता ला कर जब अमित से सख्ती से पूछताछ की तो अमित टूट गया. उस ने बताया कि बंद मोबाइल नंबर जुबेर आलम का है, जो मेहरबान सिंह पुरवा में रहता है. रतनलाल नगर में उस की वैल्डिंग करने, जेनरेटर व कूलर मरम्मत की दुकान है. जावेद ने उसे बताया कि उस ने स्नेह की हत्या कबाड़ी सुरेश वाल्मिकी की मदद से की थी.

अमित के बयान से पुलिस टीम की टेंशन दूर हो गई. अमित के सहयोग से पुलिस ने महादेव नगर निवासी सुरेश वाल्मिकी को पकड़ लिया. पुलिस ने उस के पास से सोने के 4 कंगन भी बरामद कर लिए, जो उस ने पदमा गुप्ता के यहां से चुराए थे.

इस के बाद पुलिस टीम ने जुबेर आलम के मेहरबान सिंह पुरवा स्थित किराए के मकान पर छापा मारा लेकिन वह वहां नहीं मिला. वहां पता चला कि जुबेर आलम मकान खाली कर मुरादाबाद में अपने किसी रिश्तेदार के घर चला गया है. अब जुबेर आलम को पकड़ने के लिए पुलिस टीम ने गहरा जाल बिछाया. साथ ही मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.

7 मार्च, 2019 को प्रात: 8 बजे एक खास मुखबिर से पुलिस टीम को पता चला कि जुबेर आलम अपनी दुकान का सामान निकालने व उसे बेचने आया है. वह इस समय चिंटिल इंग्लिश मीडियम स्कूल के पास मौजूद है. मुखबिर की सूचना पर पुलिस वहां पहुंच गई और घेराबंदी कर उसे दबोच लिया.

थाने में जब उस का सामना सुरेश वाल्मिकी से हुआ तो वह सब समझ गया. फिर उस ने बिना किसी हीलाहवाली के पदमा गुप्ता की बेटी स्नेह की हत्या का जुर्म कबूल लिया. जुबेर आलम ने चुराए गए जेवरों में से झुमका और एक अंगूठी दबौली के एक ज्वैलर्स के यहां बेची थी. पुलिस ने ज्वैलर्स के यहां से अंगूठी व झुमके बरामद कर लिए. साथ ही जुबेर के पास से 900 रुपए भी बरामद कर लिए.

चूंकि सुरेश और जुबेर आलम ने स्नेह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और उन से जेवर, नकदी भी बरामद हो गई थी, इसलिए पुलिस ने स्नेह की हत्या के जुर्म में जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी को गिरफ्तार कर लिया.

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            पुलिस हिरासत में अभियुक्त जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी

यह जानकारी एसएसपी अनंतदेव तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को हुई तो दोनों अधिकारी थाने पहुंच गए और उन्होंने टीम की सराहना करते हुए 25 हजार रुपए ईनाम देने की घोषणा की. फिर एसएसपी अनंतदेव ने प्रैस वार्ता कर इस चर्चित हत्याकांड का खुलासा पत्रकारों के समक्ष किया. पत्रकार वार्ता के दौरान अभियुक्तों ने स्नेह की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के नौबस्ता थानांतर्गत एक मोहल्ला केशवनगर पड़ता है. इसी मोहल्ले के डब्ल्यू ब्लौक में एडवोकेट पदमा गुप्ता अपनी बेटी स्नेह के साथ रहती थीं. यह उन का निजी मकान था. पदमा गुप्ता के पति राजकुमार गुप्ता अलग रहते हैं. दांपत्य जीवन में मनमुटाव के चलते उन्होंने पदमा को तलाक दे दिया था.

पदमा गुप्ता कानपुर कोर्ट में वकालत करती हैं. स्नेह की उम्र जब एक साल से भी कम थी, तभी उन के पति ने उन का साथ छोड़ दिया था.

पिता के प्यार से वंचित स्नेह की पदमा गुप्ता ने बड़े ही लाड़प्यार से परवरिश की थी. स्नेह बेहद खूबसूरत थी. पढ़ाई में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. इस के बाद उस ने पौलिटेक्निक में प्रवेश पा लिया था. वह महिला पौलिटेक्निक से फार्मेसी की पढ़ाई कर रही थी.

पदमा गुप्ता अपने पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी से दुखी रहती थीं. वह और उस का बेटा सूरज हमेशा झगड़े पर उतारू रहते थे. पदमा गुप्ता मोहल्ले के अन्नू अवस्थी से भी परेशान थीं. पौलिटेक्निक आतेजाते वह स्नेह को परेशान करता था.

हालांकि स्नेह कड़े मिजाज की थी और वह अन्नू को पास नहीं फटकने देती थी. लेकिन अन्नू एकतरफा प्यार में पागल था, जिस से वह उस से छेड़छाड करने से बाज नहीं आता था. पदमा गुप्ता अन्नू को सबक तो सिखाना चाहती थीं, किंतु लोकलाज के कारण चुप बैठ जाती थीं.

पदमा गुप्ता की बहन जरौली निवासी रमाशंकर गुप्ता को ब्याही थी. रमाशंकर पीओपी कारोबारी थे. उन का पदमा गुप्ता के घर आनाजाना था. घर बाहर का कोई काम हो वह रमाशंकर के बिना नहीं कराती थी.

अक्तूबर 2018 में पदमा गुप्ता ने अपने मकान का निर्माण कराया था. इस में राजमिस्त्री, मजदूर, कारपेंटर आदि की व्यवस्था रमाशंकर ने ही कराई थी. प्लास्टिक की शेड डालने का ठेका रमाशंकर ने जुबेर आलम को दिया था. जुबेर आलम मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शहर हापुड़ का रहने वाला था. कानपुर में वह परिवार सहित रहता था.

रतनलाल नगर में उस की वेल्डिंग करने, जेनरेटर व कूलर मरम्मत की दुकान थी. वह शेड डालने का भी काम करता था. पदमा गुप्ता के घर शेड डालने का ठेका उस ने 14 हजार रुपए में लिया था. काम खत्म होने पर जुबेर आलम को पदमा गुप्ता ने 12 हजार रुपए दे कर उस के 2 हजार रुपए रोक लिए थे.

पदमा गुप्ता के घर के सामने शशि शुक्ला का मकान था. काम के दौरान पदमा गुप्ता ने जुबेर आलम को उन के यहां लोहे की जाली लगाने का ठेका दिलवा दिया था. साथ ही तय रकम भी दिलवा दी थी. लेकिन जुबेर आलम ने आधा काम किया. शशि शुक्ला पदमा को उलाहना देती थी. स्नेह के पास सभी कामगारों के फोन नंबर थे. वह जब भी जुबेर आलम को शशि शुक्ला के यहां जाली लगाने का काम पूरा करने को कहती तो वह बहाना बना देता था.

जुबेर आलम का एक दोस्त सुरेश वाल्मिकी था. सुरेश कबाड़ का काम करता था. सुरेश जुबेर की दुकान से भी कबाड़ खरीदता था. सो दोनों में दोस्ती हो गई. दोनों की अकसर शराब की महफिल जमती थी.

दोनों पर लाखों का कर्ज था. सुरेश को कबाड़ के काम में घाटा हो गया था जबकि जुबेर आलम का बेटा बीमारी से जूझ रहा था, जिस से उस पर कर्ज हो गया था. दोनों कर्ज चुकाने की जुगत में परेशान रहते थे.

इधर एकडेढ़ माह से जुबेर आलम अपने 2 हजार रुपए मांगने स्नेह के घर आने लगा था. स्नेह उसे यह कह कर पैसा देने से मना कर देती थी कि पहले शशि आंटी के घर का काम पूरा करो. बारबार पैसा मांगने पर जब स्नेह ने पैसे नहीं दिए तो वह नफरत से भर उठा.

वह सोचने लगा कि वकील की लड़की जानबूझ कर उस की बेइज्जती कर रही है और उसे उस की मेहनत का पैसा नहीं दे रही. उस ने इस बाबत दोस्त सुरेश से सलाहमशविरा किया फिर निश्चय किया कि इस बार अगर उस ने पैसे देने से इनकार किया तो वह अपनी बेइज्जती का बदला ले कर ही रहेगा. इस के बाद उस ने 2 दिन स्नेह के घर की रेकी कर सुनिश्चित कर लिया कि सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे के बीच स्नेह घर में अकेली रहती है.

18 फरवरी, 2019 की दोपहर जुबेर आलम स्कूटर से अपने दोस्त सुरेश के साथ स्नेह के घर पहुंचा. जुबेर आलम ने गेट खटखटाया तो स्नेह ने गेट खोला. स्नेह उस समय घर पर अकेली थी. उस की मां पदमा गुप्ता कोर्ट गई हुई थीं.

जुबेर आलम का साथी सुरेश गेट के बाहर स्कूटर लिए खड़ा रहा और जुबेर आलम बरामदे में पहुंच गया. जुबेर को देख कर स्नेह का कुत्ता भौंका तो स्नेह ने इशारा कर के कुत्ते को शांत करा दिया. फिर स्नेह ने जुबेर से पूछा, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘‘बेबी, मुझे रुपयों की सख्त जरूरत है, इसलिए हिसाब का बाकी 2 हजार रुपए लेने आया हूं.’’

‘‘देखो जुबेर, तुम्हें बाकी पैसा तभी मिलेगा जब तुम शशि शुक्ला आंटी का काम पूरा कर दोगे. वैसे भी मां घर पर नहीं हैं. शाम को जब वह आ जाएं, तब हिसाब लेने आ जाना.’’ स्नेह कड़ी आवाज में बोली.

जुबेर गिड़गिड़ा कर बोला, ‘‘बेबी, मेरा बेटा बीमार है. उसे दिखाने डाक्टर के पास जाना है. पूरा पैसा न सही 500 रुपए ही दे दो.’’

‘‘मुझे तुम्हारे बेटे की बीमारी से क्या लेनादेना. इस समय मैं तुम्हें फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगी. समझे.’’ वह बोली.

स्नेह की बात सुन कर जुबेर तिलमिला उठा. उस की आंखों में क्रोध की ज्वाला धधक उठी. जुबेर अभी यह सोच ही रहा था कि वह इस बदमिजाज लड़की को सबक कैसे सिखाए, तभी स्नेह बोल पड़ी, ‘‘जुबेर, मुझे पलंग के पास एक अलमारी बनवानी है. उस की नाप ले लो.’’

इस के बाद वह जुबेर को अंदर के कमरे में ले गई. जुबेर ने स्नेह को इंचटेप पकड़ाया और वह पलंग पर चढ़ कर नाप लेने लगी. इसी समय नफरत से भरे जुबेर आलम की नजर जीने में रखी ईंट पर पड़ गई. उस ने लपक कर ईंट उठाई और भरपूर वार स्नेह के पीछे सिर में किया. स्नेह का सिर फट गया और वह पलंग के नीचे आ गिरी.

इसी समय खून से लथपथ पड़ी स्नेह के पैर उस ने उसी के दुपट्टे से बांध दिए. फिर रसोई में जा कर चाकू उठा लाया. इस के बाद उस ने चाकू से उस के गले को रेत दिया तथा दोनों हाथों की कलाइयों की नसें काट दीं. उस ने उस के चेहरे पर भी चाकू से वार कर दिया.

स्नेह को मौत के घाट उतारने के बाद जुबेर ने अलमारी का सामान पलंग पर बिखेर दिया और अलमारी से सोने के 4 कंगन, एक जोड़ी झुमके, एक अंगूठी और 900 रुपए निकाल लिए. यह सब ले कर वह घर के बाहर आ गया.

बाहर उस का दोस्त सुरेश स्कूटर स्टार्ट किए खड़ा था. इस के बाद स्कूटर से दोनों भाग गए. लेकिन शास्त्री चौक पर उस का स्कूटर खराब हो गया. तब उस ने मोबाइल फोन पर अपने एसी मैकेनिक दोस्त दबौली निवासी अमित को सारी घटना बताई और मोटरसाइकिल ले कर आने को कहा. लेकिन अमित घबरा गया. उस ने दोबारा फोन न करने की चेतावनी दे कर अपना फोन बंद कर दिया.

इस के बाद सुरेश ने स्कूटर ठीक कराया और जुबेर को उस के घर छोड़ा. जुबेर ने 4 कंगन तो सुरेश को दे दिए तथा झुमके और अंगूठी उस ने उसी शाम दबौली के ज्वैलर के यहां 24 हजार रुपए में बेच दिए और रात में ही मिनी ट्रक पर सामान लाद कर पत्नी बच्चों सहित मुरादाबाद में रिश्तेदार के यहां रवाना हो गया. इधर घटना की जानकारी तब हुई जब कुरियर देने मोहित व शुभम आए.

8 मार्च, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. अमित को पुलिस ने सरकारी गवाह बना लिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सोशल मीडिया की जानलेवा दोस्ती

मीनू जैन अपने पति रिटायर्ड विंग कमांडर वी.के. जैन के साथ दिल्ली में द्वारका के सेक्टर-7 स्थित एयरफोर्स ऐंड नेवल औफिसर्स अपार्टमेंट में रहती थीं. उन के परिवार में पति के अलावा एक बेटा आलोक और बेटी नेहा है. आलोक नोएडा स्थित एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करता है, जबकि शादीशुदा नेहा गोवा में डाक्टर है. विंग कमांडर वी.के. जैन एयरफोर्स से रिटायर होने के बाद इन दिनों इंडिगो एयरलाइंस में कमर्शियल पायलट हैं.

25 अप्रैल, 2019 को वी.के. जैन अपनी ड्यूटी पर थे. फ्लैट में मीनू जैन अकेली थीं. शाम को मीनू जैन को उन के पिता एच.पी. गर्ग ने फोन किया तो बातचीत के दौरान मीनू ने उन्हें बताया कि आज उस की तबीयत कुछ ठीक नहीं है, इसलिए वह आराम कर रही है. दरअसल उन के पिता उन से मिलने आना चाहते थे. लेकिन जब मीनू ने उन से आराम करने की बात कही तो उन्होंने वहां से जाने का इरादा स्थगित कर दिया.

अगले दिन सुबह एच.पी. गर्ग ने बेटी की खैरियत जानने के लिए उस के मोबाइल पर फोन किया. काफी देर तक घंटी बजने के बाद भी जब मीनू ने उन का फोन रिसीव नहीं किया तो वे परेशान हो गए. कुछ देर बाद वह अपने बेटे अजीत के साथ बेटी के फ्लैट की ओर रवाना हो गए.

मीनू का फ्लैट तीसरे फ्लोर पर था. उन्होंने वहां पहुंच कर देखा तो दरवाजा अंदर से बंद था. कई बार डोरबेल बजाने के बाद भी जब फ्लैट के अंदर से मीनू ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह परेशान हो गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि मीनू को ऐसा क्या हो गया,जो दरवाजा नहीं खोल रही.

इस के बाद एच.पी. गर्ग ने पड़ोसी योगेश के फ्लैट की घंटी बजाई. योगेश ने दरवाजा खोला तो एच.पी. गर्ग ने उन्हें पूरी बात बताई. स्थिति गंभीर थी, इसलिए उन्होंने अजीत और उस के पिता को अपने फ्लैट में बुला लिया. इस के बाद योगेश की बालकनी में पहुंच कर अजीत अपनी बहन मीनू के फ्लैट की खिड़की के रास्ते अंदर पहुंच गया.

जब वह बैडरूम में पहुंचा तो वहां बैड के नीचे मीनू अचेतावस्था में पड़ी थी. पास में एक तकिया पड़ा था, जिस पर खून लगा हुआ था. यह मंजर देख कर वह घबरा गया. उस ने अंदर से फ्लैट का दरवाजा खोल कर यह जानकारी अपने पिता को दी.

एच.पी. गर्ग और योगेश ने फ्लैट में जा कर मीनू को देखा तो वह भी चौंक गए कि मीनू को यह क्या हो गया. चूंकि वह क्षेत्र थाना द्वारका (दक्षिण) के अंतर्गत आता है, इसलिए पीसीआर की सूचना पर थानाप्रभारी रामनिवास इंसपेक्टर सी.एल. मीणा के साथ मौके पर पहुंच गए.

मौके पर उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को बुलाने के बाद उच्चाधिकारियों को भी सूचना दे दी. डीसीपी एंटो अलफोंस भी घटनास्थल पर पहुंच गए. चूंकि मामला एयरफोर्स के रिटायर्ड अधिकारी के परिवार का था, इसलिए उन्होंने स्पैशल स्टाफ की टीम को भी बुला लिया.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी रामनिवास और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर नवीन कुमार की टीम ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. मीनू की हालत और तकिए पर लगे खून को देख कर लग रहा था कि मीनू की हत्या तकिए से सांस रोक कर की गई है.

मीनू का मोबाइल फोन और उस की कीमती अंगूठी गायब थी. इस के बाद जब फ्लैट की तलाशी ली गई तो रोशनदान का शीशा टूटा हुआ मिला. फ्लैट के बाकी कमरों का सारा सामान अस्तव्यस्त था. कुछ अलमारियां खुली हुई थीं और उन में रखे सामान बिखरे हुए थे. किचन के वाश बेसिन में चाय के कुछ कप रखे थे. एक कप में थोड़ी चाय बची हुई थी.

यह सब देख कर पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि हत्यारे जो कोई भी हैं, मीनू जैन उन से न केवल अच्छी तरह परिचित थीं, बल्कि हत्यारों के साथ उन के आत्मीय संबंध भी रहे होंगे. क्योंकि किचन में रखे चाय के कप इस ओर इशारा कर रहे थे. थाना पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. फिर एच.पी. गर्ग की शिकायत पर हत्या तथा लूटपाट का मामला दर्ज कर लिया गया.

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द्वारका जिले के डीसीपी एंटो अलफोंस ने इस सनसनीखेज हाईप्रोफाइल मामले की तफ्तीश के लिए एसीपी राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की. इस टीम में इंसपेक्टर नवीन कुमार, इंसपेक्टर रामनिवास तथा इंसपेक्टर सी.एल. मीणा, एसआई अरविंद कुमार आदि को शामिल किया गया.

अगले दिन मृतका मीनू के पति वी.के. जैन ड्यूटी से वापस लौटे तो पत्नी की हत्या की बात सुन कर आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने फ्लैट में रखी सेफ आदि का मुआयना किया तो उस में रखी ज्वैलरी और कैश गायब था. उन्होंने पुलिस को बताया कि उन के फ्लैट से करीब 35 लाख रुपए के कीमती जेवर और कुछ कैश गायब है. इस के अलावा मीनू के दोनों मोबाइल फोन भी गायब थे.

स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर नवीन कुमार ने एसीपी राजेंद्र सिंह के निर्देशन में काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने मीनू के दोनों मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस के अलावा एयरफोर्स ऐंड नेवल औफिसर्स अपार्टमेंट सोसायटी के गेट पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली.

सीसीटीवी फुटेज में 2 कारें संदिग्ध नजर आईं, जिन में एक स्विफ्ट डिजायर थी. दोनों कारों की जांच की गई तो पता चला स्विफ्ट डिजायर कार का नंबर फरजी है. टीम को इसी कार पर शक हो गया.

जब गेट पर मौजूद गार्ड से स्विफ्ट डिजायर कार के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि 25 अप्रैल, 2019 की दोपहर को करीब 2 बजे एक अधेड़ आदमी मीनू जैन से मिलने आया था. जब उस से रजिस्टर में एंट्री करने के लिए कहा गया तो उस ने तुरंत मीनू जैन को फोन मिला दिया. मीनू ने बिना एंट्री किए उसे अंदर भेजने को कहा.

इस पर गार्ड ने उस व्यक्ति को मीनू के फ्लैट का पता बता कर उन के पास भेज दिया. शाम को दोनों घूमने के लिए सोसायटी से बाहर भी गए थे. यह सुन कर उन्होंने अनुमान लगाया कि मीनू जैन की हत्या में इसी आदमी का हाथ रहा होगा.

फोन की लोकेशन जयपुर की आ रही थी

मीनू जैन के दोनों मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से पता चला कि उन का एक फोन घटना वाली रात की सुबह तक चालू था, उस के बाद उसे स्विच्ड औफ कर दिया गया था. जबकि दूसरा फोन चालू था, जिस की लोकेशन जयपुर की आ रही थी.

पुलिस के लिए यह अच्छी बात थी. पुलिस टीम गूगल मैप की मदद से 29 अप्रैल को जयपुर पहुंच गई. फिर दिल्ली पुलिस ने स्थानीय पुलिस की मदद से जयपुर के मुरलीपुरा इलाके में स्थित स्काइवे अपार्टमेंट में छापा मारा. वहां से दिनेश दीक्षित नाम के एक शख्स को हिरासत में ले लिया. उस के पास से सफेद रंग की वह स्विफ्ट डिजायर कार भी बरामद हो गई जो उस अपार्टमेंट के बाहर खड़ी थी.

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने 25 अप्रैल, 2019 की देर रात दिल्ली में मीनू जैन की हत्या और उस के फ्लैट में लूटपाट करने की बात स्वीकार कर ली.

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पुलिस की तहकीकात और आरोपी दिनेश दीक्षित के बयान के अनुसार, मीनू जैन की हत्या के पीछे जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

52 वर्षीय मीनू जैन के पति वी.के. जैन एयरफोर्स में विंग कमांडर पद से रिटायर होने के बाद इंडिगो एयरलाइंस में बतौर पायलट तैनात थे. वह कामकाज के सिलसिले में ज्यादातर बाहर ही रहते थे. उन के दोनों बच्चे बड़े हो चुके थे.

बेटा नोएडा में एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करता था, जो वीकेंड में अपने मम्मीपापा से मिलने द्वारका आ जाता था. बेटी मोना (काल्पनिक नाम) डाक्टर थी, जो गोवा में रहती थी. ऐसे में मीनू जैन घर पर अकेली रहती थीं. वह अपना समय बिताने के लिए सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव रहती थीं.

सोशल मीडिया में बने प्रोफाइल पसंद आने पर बड़ी आसानी से नए दोस्त बन जाते हैं. बाद में दोस्ती बढ़ जाने के बाद आप उन से अपने विचार शेयर कर सकते हैं. अगर बात बन जाती है तो चैटिंग करने वाले आपस में अपने पर्सनल मोबाइल नंबर का आदानप्रदान भी कर लेते हैं. इस प्रकार दोस्ती का सिलसिला आगे बढ़ जाता है. मीनू जैन और दिनेश दीक्षित के मामले में भी ऐसा ही हुआ.

खिलाड़ी था दिनेश दीक्षित

जयपुर निवासी 56 वर्षीय दिनेश दीक्षित बेहद रंगीनमिजाज व्यक्ति था. उस ने 2 शादियां कर रखी थीं. उस की एक बीवी अपने 2 बेटों के साथ गांव में रहती थी, जबकि दूसरी बीवी के साथ वह जयपुर में किराए के एक फ्लैट में रहता था. बताया जाता है कि सन 2015 में ठगी के एक मामले में वह जेल भी जा चुका है. 2 साल जेल में रहने के बाद वह सन 2017 में जेल से बाहर आया था. इस के बाद वह अच्छी नस्ल के कुत्ते बेचने का बिजनैस करने लगा था.

इसी दौरान उस की मुलाकात दिल्ली के एक सट्टेबाज से हुई, जिस की बातों से प्रभावित हो कर वह क्रिकेट के आईपीएल मैचों में सट्टा लगाने लगा. इस धंधे की शुरुआत में उसे कुछ फायदा तो हुआ लेकिन बाद में उसे काफी नुकसान हुआ. वह कई लोगों का कर्जदार हो गया. इस कर्ज से उबरने के लिए उस ने अमीर औरतों को अपने जाल में फंसा कर उन से रुपए ऐंठने की योजना बनाई.

इस के बाद उस ने एक सोशल साइट के माध्यम से खूबसूरत और मालदार शादीशुदा औरतों से दोस्ती करनी शुरू कर दी. जल्द ही उस की दोस्ती कई ऐसी औरतों से हो गई, जो खाली समय में सोशल साइट पर दोस्तों के साथ अपना टाइमपास किया करती थीं.

करीब 5 महीने पहले सोशल साइट पर दिनेश दीक्षित और मीनू जैन दोस्त बन गए. अब जब भी खाली वक्त मिलता, दोनों सोशल साइट पर चैटिंग करते रहते थे. इस से उन का मन बहल जाता था और बोरियत महसूस नहीं होती थी. शीघ्र ही उन की दोस्ती गहरी हो गई.

मीनू जैन के पति चूंकि इंडिगो एयरलाइंस में पायलट थे, इसलिए वह घर से अकसर बाहर ही रहते थे. इस बात का फायदा उठा कर मीनू जैन ने पति की अनुपस्थिति में दिनेश दीक्षित को अपने फ्लैट में बुलाना शुरू कर दिया.

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भोलीभाली मीनू जैन फंस गईं दिनेश दीक्षित के जाल में

दिनेश ने देखा कि मीनू जैन साफ दिल की भोली भाली औरत हैं तो वह मन ही मन उन्हें लूटने की योजना बनाने लगा. करीब 5 महीने की दोस्ती के दौरान मीनू जैन को दिनेश दीक्षित पर इस कदर विश्वास हो गया कि जब भी उन के पति और बच्चे घर पर नहीं रहते, वह उसे मैसेज कर के अपने पास बुला लेतीं और फिर दोनों अपने दिल की तमाम हसरतें पूरी कर लिया करते थे.

25 अप्रैल, 2019 को भी वी.के. जैन अपने फ्लैट पर नहीं थे. पति की अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुए मीनू जैन ने दिनेश दीक्षित को फ्लैट पर आने का मैसेज भेजा तो वह अपनी सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार से दोपहर के वक्त सोसायटी के गेट पर पहुंच गया.

जब सोसायटी के गेट पर मौजूद गार्ड ने उस का पता पूछा तो उस ने मीनू जैन को फोन कर गार्ड से उन की बात करा दी. मीनू जैन के कहने पर गार्ड ने उस की कार का नंबर रजिस्टर में नोट करने के बाद उसे अंदर जाने को कह दिया.

दिनेश दीक्षित मीनू जैन के फ्लैट में पहुंचा तो उसे सामने देख कर वह बहुत खुश हुईं. चाय और नमकीन लेने के बाद दोनों ही बातों में मशगूल हो गए. लगभग पौने 9 बजे मीनू और दिनेश दोनों डिनर के लिए कार से सोसायटी के बाहर निकले.

करीब आधे घंटे के बाद लौटते समय दिनेश ने मूड बनाने के लिए वोदका की एक बोतल और कुछ स्नैक्स खरीद लिए. सोसायटी में पहुंच कर दोनों ने ड्रिंक करनी शुरू कर दी. अपनी योजना को अंजाम देने के लिए दिनेश दीक्षित ने मीनू जैन को अधिक मात्रा में वोदका पिलाई और खुद कम पी.

रात करीब 2 बजे मीनू जैन शराब के नशे में धुत हो कर शिथिल पड़ गईं तो दिनेश दीक्षित ने मौका देख कर तकिए से उन का मुंह दबा दिया. जब मीनू ने छटपटा कर दम तोड़ दिया तो उस ने बड़े इत्मीनान से उन की सेफ में रखे करीब 50 लाख रुपए के आभूषण और नकदी निकाल ली.

मीनू जैन की अंगुली में एक बेशकीमती अंगूठी थी. उस ने वह अंगूठी भी उतार कर अपने पास रख ली. इस के अलावा उन के दोनों मोबाइल फोन भी उठा लिए. रात भर वह मीनू की लाश के पास बैठ कर शराब पीता रहा और तड़के 5 बजे फ्लैट से सारा लूट का सामान ले कर रोशनदान से बाहर निकल गया. फिर अपनी स्विफ्ट कार से जयपुर के लिए रवाना हो गया.

गुड़गांव के टोल टैक्स से आगे निकलने के बाद उस ने मीनू जैन के एक मोबाइल फोन को स्विच्ड औफ कर दिया. जबकि दूसरे फोन को वह स्विच्ड औफ करना भूल गया. जयपुर पहुंचने के बाद वह पूरी तरह निश्चिंत था कि पुलिस उस तक नहीं पहुंच सकेगी. लेकिन 29 अप्रैल, 2019 को इंसपेक्टर नवीन कुमार की टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उस के पास से मीनू जैन के यहां से लूटा गया सारा सामान बरामद कर लिया गया.

दिनेश दीक्षित से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे द्वारका (साउथ) थाने के थानाप्रभारी रामनिवास को सौंप दिया. थाना पुलिस ने दिनेश दीक्षित से पूछताछ के बाद उसे द्वारका कोर्ट में पेश कर 2 दिन के रिमांड पर ले लिया.

रिमांड अवधि पूरी होने के बाद उसे फिर से द्वारका कोर्ट में पेश कर 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखने तक दिनेश दीक्षित जेल में बंद था. केस की विवेचना थानाप्रभारी रामनिवास कर रहे थे.

—घटना में शामिल कुछ पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं.

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हमीरपुर सामूहिक हत्याकांड : क्या ये वाकई इंसाफ है?

उस दिन अप्रैल, 2019 की 19 तारीख थी. वैसे तो रविवार को छोड़ कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हर रोज चहलपहल रहती है लेकिन उस दिन न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की स्पैशल डबल बैंच में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. पूरा कक्ष लोगों से भरा था. पीडि़त व आरोपी पक्ष के दरजनों लोग भी कक्ष में मौजूद थे.

दरअसल, उस दिन एक ऐसे मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था, जिस ने पूरे 22 साल पहले बुंदेलखंड क्षेत्र में सनसनी फैला दी थी. आरोपी पक्ष के लोग कयास लगा रहे थे कि इस मामले में सभी आरोपी बरी हो जाएंगे, जबकि पीडि़त पक्ष के लोगों को अदालत पर पूरा भरोसा था और उन्हें उम्मीद थी कि आरोपियों को सजा जरूर मिलेगी.

दरअसल, निचली अदालत से सभी आरोपी बरी कर दिए गए थे. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सुनवाई हो रही थी. सब से दिलचस्प बात यह थी कि इस मामले में एक पूर्व सांसद व वर्तमान में बाहुबली विधायक अशोक सिंह चंदेल आरोपी था.

उस ने साम दाम दंड भेद से इस मुकदमे को प्रभावित करने का प्रयास भी किया था. काफी हद तक वह सफल भी हो गया था, लेकिन अब यह मामला उच्च न्यायालय में था और फैसले की घड़ी आ गई थी, जिस ने उस की धड़कनें तेज कर दी थीं. लोग फैसला सुनने के लिए उतावले थे.

स्पैशल डबल बैंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने ठीक साढ़े 10 बजे न्यायालय कक्ष में प्रवेश किया और अपनीअपनी कुरसियों पर विराजमान हो गए. उन्होंने अभियोजन व बचाव पक्ष के वकीलों पर नजर डाली.

फिर अंतिम बार उन्होंने मुकदमे की फाइल का निरीक्षण किया. वकीलों की बहस पहले ही पूरी हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने ठीक 11 बजे फैसला सुना दिया. फैसले की यह घड़ी आने में 22 साल 2 महीने का समय लग गया था.

आखिर ऐसा क्या मामला था, जिस का फैसला जानने के लिए लोगों में इतनी उत्सुकता थी. इस के लिए हमें 2 दशक पुरानी घटना को जानना होगा जो बेहद लोमहर्षक थी.

अशोक सिंह चंदेल मूलरूप से हमीरपुर जिले के थाना भरूआ सुमेरपुर के टिकरौली गांव का रहने वाला था. लेकिन उस की शिक्षादीक्षा कानपुर में हुई थी. छात्र जीवन में ही उस ने राजनीति का ककहरा सीख लिया था.

कानपुर शहर के किदवईनगर के एम ब्लौक में पिता का पुराना मकान था. इसी मकान में रह कर उस ने पढ़ाई पूरी की थी. अशोक सिंह चंदेल तेजतर्रार था. अपनी बातों से सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित कर लेना उस की विशेषता थी. पढ़ाई के दौरान उस ने डीवीएस कालेज से छात्र संघ के कई चुनाव लड़े, किंतु सफलता नहीं मिली. वह जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव का था, वह विरोधियों को मात देने में भी माहिर था.

सन 1985 में अशोक सिंह का रुझान व्यापार की तरफ हुआ. काफी सोचविचार के बाद उस ने एम ब्लौक, किदवई नगर में पंजाब नैशनल बैंक वाली बिल्डिंग में शालीमार फुटवियर के नाम से जूतेचप्पल की दुकान खोली. 14 नवंबर, 1985 को धनतेरस का त्यौहार था. इसी दिन दुकान का उद्घाटन था. उद्घाटन के बाद उस की दुकान पर ग्राहकों का आनाजाना शुरू हो गया था और बिक्री होने लगी थी.

शाम 5 बजे बाबूपुरवा कालोनी निवासी कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता उर्फ मामाजी अशोक चंदेल की दुकान पर चप्पल लेने पहुंचे. चूंकि दोनों एकदूसरे से परिचित थे, अत: बातचीत के दौरान रणधीर गुप्ता ने जूतेचप्पल की दुकान खोलने को ले कर अशोक पर कटाक्ष कर दिया. अशोक ने उस समय रणधीर से कुछ नहीं कहा. चप्पल खरीद कर वह अपने घर चले गए.

रात 10 बजे रणधीर गुप्ता किसी काम से थाना बाबूपुरवा गए थे. जब वह वहां से लौट रहे थे तो अशोक की दुकान के सामने उन के स्कूटर का पैट्रोल खत्म हो गया. अशोक नशे में धुत बंदूक लिए दुकान से बाहर खड़ा था. दिन में किए गए रणधीर के कटाक्ष को ले कर दोनों में कहासुनी होने लगी.

इस कहासुनी में अशोक सिंह चंदेल ने कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता को गोली मार दी. गोली पेट में लगी और वह गिर पड़े. गोली मारने के बाद अशोक सिंह चंदेल वहां से फरार हो गया.

यह जानकारी रणधीर गुप्ता के घर वालों को हुई तो उन की पत्नी कमलेश गुप्ता रोतेपीटते परिजनों के साथ मौके पर पहुंची और पति को उर्सला अस्पताल ले गई. लेकिन डाक्टरों के प्रयास के बावजूद रणधीर गुप्ता की जान नहीं बच सकी.

थाना बाबूपुरवा में अशोक सिंह चंदेल के खिलाफ हत्या का मुकदमा कायम हुआ. पुलिस ने अशोक को पकड़ने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाया लेकिन वह पकड़ा नहीं गया. आखिर में तत्कालीन एसएसपी ए.के. मित्रा की अगुवाई में एसपी (सिटी) राजगोपाल ने कोर्ट के आदेश पर अशोक सिंह चंदेल के एम ब्लौक किदवईनगर स्थित पुराने घर की कुर्की कर ली.

बाद में एक साल बाद अशोक ने अदालत में सरेंडर कर दिया. कुछ ही दिनों में उस की जमानत हो गई. बाद में अशोक सिंह चंदेल ने कानपुर शहर छोड़ दिया और अपने गृह जिला हमीरपुर में रहने लगा. बहुत कम समय में अशोक सिंह चंदेल ने ठाकुरों में अपनी पैठ बना ली.

वह गरीब तबके के लोगों की मदद में जुट गया और राजनीतिक मंच पर बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा. अशोक सिंह चंदेल ने अपनी राजनीतिक गतिविधियां हमीरपुर तक ही सीमित नहीं रखीं, बल्कि पूरे चित्रकूट मंडल में बढ़ा दीं. उस ने अपने समर्थकों की पूरी फौज खड़ी कर ली.

सन 1989 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए. यह चुनाव अशोक सिंह चंदेल ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर हमीरपुर सदर से लड़ा और दूसरी राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशियों को धूल चटाते हुए उस ने जीत हासिल की.

इस अप्रत्याशित जीत से अशोक सिंह चंदेल का राजनीतिक कद बढ़ गया. उस ने हमीरपुर में मकान खरीद लिया और इस मकान में दरबार लगाने लगा. वह गरीबों का मसीहा बन गया था. धीरेधीरे अशोक सिंह चंदेल की क्षेत्र में प्रतिष्ठा बढ़ने लगी.

अशोक सिंह का राजनीतिक कद बढ़ा तो उस के राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी सक्रिय हो गए. इन प्रतिद्वंदियों में सब से अधिक सक्रिय थे राजीव शुक्ला. वह मूलरूप से हमीरपुर शहर के रमेडी मोहल्ला के रहने वाले थे. उन के पिता भीष्म प्रसाद शुक्ला प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. गरीबों और असहाय लोगों की मदद करना वह अपना फर्ज समझते थे. रमेडी तथा आसपास के लोग उन्हें लंबरदार कहते थे.

भीष्म प्रसाद शुक्ला के 3 बेटे थे राकेश शुक्ला, राजेश शुक्ला और राजीव शुक्ला. भीष्म प्रसाद भाजपा के समर्थक थे. उन की मृत्यु के बाद तीनों बेटे भी भाजपा के समर्थक बन गए. तीनों भाइयों में राजीव शुक्ला सब से ज्यादा पढ़ेलिखे थे. वह व्यापार के साथसाथ वकालत के पेशे से भी जुड़े थे. पिता की तरह राजीव शुक्ला और उन के भाई भी विधायक अशोक सिंह चंदेल के धुर विरोधी थे.

सन 1993 के विधानसभा चुनाव में अशोक सिंह चंदेल जनता दल में शामिल हो गया. पार्टी ने उसे टिकट दिया और वह चुनाव जीत गया. यह चुनाव जीतने के बाद उस के विरोधियों के हौसले पस्त पड़ गए थे. विरोधियों को धूल चटाने के लिए अशोक सिंह चंदेल अब और ज्यादा सक्रिय रहने लगा.

चंदेल और शुक्ला परिवार में राजीतिक दुश्मनी सन 1996 के विधानसभा चुनाव में खुल कर सामने आ गई. इस चुनाव में राजीव शुक्ला गुट ने अशोक सिंह चंदेल का खुल कर विरोध किया. नतीजतन अशोक सिंह चंदेल चुनाव हार गया.

हार का ठीकरा चंदेल ने राजीव शुक्ला पर फोड़ा. अब दोनों के बीच प्रतिद्वंदिता बढ़ गई और दोनों एकदूसरे के दुश्मन बन गए. दोनों गुट जब भी आमनेसामने होते तो उन में तनातनी बढ़ जाती थी.

शुरू हुई राजनीति की खूनी दुश्मनी

अशोक सिंह चंदेल के पास दरजनों सिपहसालार थे, जो उस की सुरक्षा में लगे रहते थे. राजीव शुक्ला ने भी 2 सुरक्षागार्डों वेदप्रकाश नायक व श्रीकांत पांडेय को रख लिया था.

शुक्ला बंधु जहां भी जाते थे, ये दोनों सुरक्षा गार्ड उन के साथ रहते थे. अशोक सिंह चंदेल के मन में हार की ऐसी फांस चुभी थी जो उसे रातदिन सोने नहीं देती थी. आखिर उस ने इस फांस को निकालने का निश्चय किया.

26 जनवरी, 1997 की शाम करीब 7 बजे अपने एक दरजन सिपहसालारों के साथ अशोक सिंह चंदेल अपने दोस्त नसीम बंदूक वाले के घर पहुंचा. नसीम बंदूक वाला हमीरपुर शहर के सुभाष बाजार सब्जीमंडी के पास रहता था. बहाना था रमजान पर मिलने का. सड़क पर अशोक चंदेल व उस के समर्थकों की कारें खड़ी थीं तभी दूसरी ओर से राजीव शुक्ला की कारें आईं.

कार में राजीव शुक्ला के अलावा उन के बड़े भाई राकेश शुक्ला, राजेश शुक्ला, भतीजा अंबुज तथा दोनों निजी गार्ड थे. दरअसल राकेश शुक्ला अपने भतीजे को ले कर उस के जन्मदिन के लिए कुछ सामान खरीदने जा रहे थे.

चूंकि अशोक चंदेल और उस के समर्थकों की कारें सड़क पर आड़ीतिरछी खड़ी थीं, ऐसे में राजीव शुक्ला ने कारें ठीक से लगाने को कहा ताकि उन की कारें निकल सकें. अशोक चंदेल के गुर्गे जानते थे कि राजीव शुक्ला उन के आका का दुश्मन है, इसलिए गुर्गों ने कारें हटाने से मना कर दिया.

इसी बात पर विवाद शुरू हो गया. विवाद बढ़ता देख नसीम और अशोक चंदेल घर से बाहर आ गए. राजीव शुक्ला व उन के भाइयों से विवाद होता देख अशोक चंदेल का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. फिर क्या था, तड़ातड़ गोलियां चलने लगीं.

चौतरफा गोलियों की तड़तड़ाहट से सुभाष बाजार गूंज उठा. कुछ देर बाद फायरिंग का शोर थमा तो चीत्कारों से लोगों के दिल दहलने लगे. सड़क खून से लाल थी और थोड़ीथोड़ी दूर पर मासूम बच्चे सहित 5 लोगों की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं.

मरने वालों में राजेश शुक्ला, राकेश शुक्ला, राजेश का बेटा अंबुज शुक्ला तथा उन के सुरक्षा गार्ड वेदप्रकाश नायक व श्रीकांत पांडेय थे. हमलावर दोनों सुरक्षा गार्डों की बंदूकें भी लूट कर ले गए थे.

इस सामूहिक नरसंहार से हमीरपुर शहर में सनसनी फैल गई. घटना की सूचना मिलते ही एसपी एस.के. माथुर भारी पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने घायल राजीव शुक्ला व अन्य को जिला अस्पताल भेजा और उन की सुरक्षा में फोर्स लगा दी. इस के बाद माथुर ने नसीम बंदूक वाले के मकान पर छापा मारा. छापा पड़ते ही वहां छिपे हत्यारों ने पुलिस पर भी फायरिंग शुरू कर दी.

पुलिस ने भी मोर्चा संभाला, लेकिन हत्यारे चकमा दे कर भाग गए थे. इस के बाद एसपी माथुर ने मृतकों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

इधर राजीव शुक्ला अस्पताल में भरती थे. वह रात में ही घायलावस्था में पुलिस सुरक्षा के बीच थाना हमीरपुर कोतवाली पहुंचे और पूर्व विधायक अशोक सिंह चंदेल, सुमेरपुर निवासी श्याम सिंह, पचखुरा खुर्द के साहब सिंह, झंडू सिंह, हाथी दरवाजा के डब्बू सिंह, सुभाष बाजार निवासी नसीम, सब्जीमंडी निवासी प्रदीप सिंह, उत्तम सिंह, भान सिंह एडवोकेट तथा एक सरकारी गनर के खिलाफ इस मामले की रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह रिपोर्ट भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 395, 34 के तहत दर्ज की गई.

आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस जगहजगह छापेमारी करने लगी. पुलिस की पकड़ से बचने के लिए ज्यादातर नामजद आरोपियों ने हमीरपुर की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

लेकिन पूर्व विधायक अशोक सिंह चंदेल राजनीतिक आकाओं की छत्रछाया में एक साल तक छिपता रहा. उस के बाद जज से सांठगांठ कर के एक दिन वह कोर्ट में हाजिर हो गया. गंभीर केस में भी जज आर.वी. लाल ने उसे उसी दिन जमानत दे दी.

न्यायालय पर हावी रहा अशोक चंदेल

न्यायिक अधिकारी के इस फैसले से राजीव शुक्ला को अचरज हुआ. उन्होंने पैरवी करते हुए हाईकोर्ट से अशोक सिंह चंदेल की जमानत निरस्त करवा दी, जिस से उसे जेल जाना पड़ा.

यही नहीं, राजीव शुक्ला ने जमानत देने वाले जज आर.वी. लाल की भी हाईकोर्ट में शिकायत की. शिकायत सही पाए जाने पर हाईकोर्ट ने जज आर.वी. लाल को निलंबित कर दिया और उन के खिलाफ जांच बैठा दी. जांच रिपोर्ट आने के बाद जज आर.वी. लाल को बर्खास्त कर दिया गया.

इधर हाईकोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद सामूहिक नरसंहार के मुख्य आरोपी अशोक चंदेल ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के जमानत निरस्त वाले फैसले पर रोक लगा दी, जिस से अशोक चंदेल जेल से बाहर तो नहीं आ सका लेकिन उसे राहत जरूर मिल गई.

इस के बाद उस ने अपने खास लोगों के मार्फत बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख सुश्री मायावती से संपर्क साधा और सन 1999 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए टिकट मांगा. मायावती ने अशोक सिंह चंदेल की हिस्ट्री खंगाली और फिर बाहुबली मान कर उसे टिकट दे दिया.

सन 1999 के लोकसभा चुनाव में चंदेल को टिकट मिला तो उस ने चुनाव का संचालन जेल से ही किया और पूरी ताकत झोंक दी. परिणामस्वरूप वह जेल से ही चुनाव जीत गया.

अब तक कोतवाली हमीरपुर पुलिस अशोक सिंह चंदेल समेत 11 आरोपियों की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर चुकी थी. सामूहिक नरसंहार का यह मामला अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अश्वनी कुमार की अदालत में विचाराधीन था. इसी दौरान एक आरोपी झंडू सिंह की बीमारी की वजह से मौत हो चुकी थी.

न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार ने 17 जुलाई, 2002 को इस बहुचर्चित हत्याकांड का फैसला सुनाया. उन्होंने मुख्य आरोपी अशोक सिंह चंदेल सहित सभी 10 आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया.

अदालत के इस फैसले से राजीव शुक्ला को तगड़ा झटका लगा. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह समझ गए कि अशोक सिंह चंदेल ने करोड़ों का खेल खेल कर जज को अपने पक्ष में कर लिया है. अत: राजीव शुक्ला ने इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की. साथ ही न्यायिक अधिकारी पर मनमाना फैसला सुनाने का आरोप लगाया.

पीडि़त राजीव शुक्ला की शिकायत पर हाईकोर्ट ने विजिलेंस और जुडीशियल जांच कराई, जिस में न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार को मुकदमे में जानबूझ कर कपट व कदाचार से ऐसा निर्णय देने का आरोप सिद्ध हुआ. जांच अधिकारी की आख्या और हाईकोर्ट की संस्तुति पर तत्कालीन गवर्नर ने न्यायिक अधिकारी अश्वनी कुमार को बर्खास्त करने की मंजूरी दे दी.

वादी राजीव शुक्ला की आंखों के सामने उन के 2 भाइयों व भतीजे को गोलियों से छलनी किया गया था. जब भी वह दृश्य उन की आंखों के सामने आता तो उन का कलेजा कांप उठता था. यही कारण था कि राजीव ने न्याय पाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया था.

जब घटना घटी थी तब उन का खुद का व्यवसाय था, लेकिन घटना के बाद वह दिनरात आरोपियों को सजा दिलाने में जुट गए थे. हालांकि उन्हें सुरक्षा मिली थी, फिर भी पूरा परिवार दहशत में रहता था.

राजनीति की गोटियां बिछाता रहा अशोक चंदेल

राजीव शुक्ला जहां न्याय के लिए भटक रहे थे, वहीं अशोक सिंह चंदेल अपनी राजनीतिक गोटियां बिछा रहा था. चूंकि चंदेल सहित सभी आरोपी दोषमुक्त करार दिए गए थे, अत: अशोक चंदेल खुला घूम कर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में जुटा था.

अशोक सिंह चंदेल दलबदलू था. वह जिस पार्टी का पलड़ा भारी देखता, उसी पार्टी का दामन थाम लेता था. 2007 के विधानसभा चुनाव में उस ने बसपा से भी नाता तोड़ कर सपा का दामन थाम लिया. सपा ने उसे टिकट दिया और वह जीत हासिल कर तीसरी बार हमीरपुर सदर से विधायक बन गया.

अगले 5 साल तक उस ने पार्टी के लिए कोई खास काम नहीं किया. इस से नाराज हो कर सन 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उसे टिकट नहीं दिया. तब उस ने सपा छोड़ कर बसपा व भाजपा से टिकट पाने की कोशिश की लेकिन दोनों पार्टियों ने उसे टिकट देने से साफ इनकार कर दिया. इस के बाद उस ने मजबूर हो कर पीस पार्टी से चुनाव लड़ा और हार गया.

अशोक सिंह चंदेल राजनीति का शातिर खिलाड़ी बन चुका था. वह हार मानने वालों में से नहीं था. अत: सन 2017 के विधानसभा चुनाव में उस ने फिर से जुगत लगाई और संघ के एक उच्च पदाधिकारी की मदद से भाजपा से नजदीकियां बढ़ाईं.

परिणामस्वरूप अशोक चंदेल भाजपा से हमीरपुर सदर से टिकट पाने में सफल हो गया. राजीव शुक्ला भी भाजपा समर्थक थे. भाजपा पदाधिकारियों में उन की भी पैठ थी. पार्टी द्वारा अशोक चंदेल को टिकट देने का उन्होंने विरोध भी किया.

इतना ही नहीं, समर्थकों के साथ लखनऊ जा कर धरनाप्रदर्शन भी किया. केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भी चंदेल को टिकट देने का विरोध किया. फिर भी उस का टिकट नहीं कटा. मोदी लहर में चंदेल ने इस सीट पर विजय हासिल की और चौथी बार हमीरपुर सदर से विधायक बना.

इधर कई सालों से सामूहिक हत्या का मामला हाईकोर्ट में चल रहा था. तारीखों पर तारीखें मिल रही थीं. लेकिन निर्णय नहीं हो पा रहा था. देरी होने पर राजीव शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई की गुहार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक हत्याकांड की परिस्थितियों को देखते हुए निर्देश दिया कि वह मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद को प्रार्थनापत्र दें.

इस के बाद राजीव शुक्ला ने सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को प्रार्थनापत्र दिया और जल्द सुनवाई की गुहार लगाई. मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर एक स्पैशल डबल बैंच का गठन हुआ, जिस में न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने सुनवाई शुरू की. सुनवाई शुरू हुई तो राजीव शुक्ला को जल्द न्याय पाने की आस जगी.

सामूहिक हत्याकांड मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष अधिवक्ता ओंकारनाथ दुबे ने बहस की और बचावपक्ष की ओर से अधिवक्ता फूल सिंह ने. राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता कृष्ण पहल भी इस बहस में शामिल थे. वकीलों की बहस और गवाहों की जिरह पूरी होने के बाद उच्च न्यायालय की स्पैशल डबल बैंच ने सभी आरोपियों को दोषी माना और अपना फैसला सुरक्षित कर लिया.

आखिर मिल ही गया न्याय

19 अप्रैल, 2019 को हाईकोर्ट की स्पैशल डबल बैंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार ने इस मामले में फैसला सुनाया. खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को निरस्त करते हुए सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

सजा पाने वालों में विधायक अशोक सिंह चंदेल तथा उस के सहयोगी रघुवीर सिंह, डब्बू सिंह, उत्तम सिंह, प्रदीप सिंह, साहब सिंह, श्याम सिंह, भान सिंह, रूक्कू तथा नसीम थे. कोर्ट ने सभी दोषियों को सीजेएम हमीरपुर की अदालत में सरेंडर करने के आदेश दिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से जहां विधायक खेमे में मायूसी छा गई, वहीं पीडि़त परिवारों में खुशी के आंसू छलक आए. साथ ही 22 साल पहले हुआ वीभत्स हत्याकांड फिर से जेहन में ताजा हो गया.

पीडि़त परिवार को मिली तसल्ली

राजीव शुक्ला के आवास पर मोमबत्तियां जला कर खुशी मनाई गई तथा दिवंगत सभी 5 लोगों को श्रद्धांजलि दी गई. देर शाम उन के घर की महिलाओं ने घर की रेलिंग व चबूतरे पर मोमबत्तियां जलाईं.

उधर कांग्रेस नेता रणधीर गुप्ता की पत्नी कमलेश गुप्ता ने कहा कि उसे इस बात की तसल्ली हुई कि भले ही उस के पति की हत्या के मामले में न सही, पर दूसरे केस में बाहुबली विधायक अशोक चंदेल और उस के गुर्गों को सजा तो मिली.

बेवा कमलेश गुप्ता ने बताया कि पति रणधीर गुप्ता की हत्या के बाद उन का परिवार आर्थिक रूप से टूट गया था. हालात यह हैं कि आज दोजून की रोटी के भी लाले हैं. उन्होंने बताया कि पति किदवईनगर के ई-ब्लौक में एक हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. साथ ही प्लंबिंग के काम की ठेकेदारी भी करते थे.

घर पर विश्व शिक्षा निकेतन के नाम से स्कूल भी चलता था. उन की हत्या के बाद बुजुर्ग ससुर ने दुकान संभाली पर वह नहीं चली और बंद हो गई. आर्थिक रूप से कमर टूटी तो बिजली का बिल भी बकाया होता चला गया. आखिर में बिजली कट गई. तब से आज तक परिवार अंधेरे में ही रहता है.

विधवा कमलेश कुछ देर शून्य में ताकती रही फिर बोली कि 40 साल की बड़ी बेटी नमन अविवाहित है. बीए तक पढ़ाई करने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. एक बेटा अखिल नौबस्ता में रह कर कार ड्राइवर की नौकरी करता है. सब से छोटा बेटा नवीन नौबस्ता की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करता है. उसे 5 हजार रुपया वेतन मिलता है.

नवीन की नौकरी से ही घर चलता है. जेठ बी.एल. गुप्ता जो वडोदरा में रहते हैं, तथा पीलीभीत में रहने वाली ननद मीरा गुप्ता उन की आर्थिक मदद करती हैं, जिस से परिवार का भरणपोषण होता रहता है.

उन्होंने बताया कि आर्थिक परेशानी के कारण ही वह पति की हत्या के मुकदमे में पैरवी नहीं कर सकीं, जिस से मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है. अशोक सिंह चंदेल बाहुबली विधायक है. उस के आगे मुझ जैसी विधवा भला कैसे टिक सकती है. फिर भी सुकून है कि उसे दूसरे मामले में उम्रकैद की सजा तो मिली.

4 बार विधायक और एक बार सांसद रहे अशोक सिंह चंदेल ने अकूत संपत्ति अर्जित की थी. राजनीति में आने के बाद उस ने विवादित प्रौपर्टी खरीदने का खेल शुरू किया. कानपुर किदवईनगर के एम ब्लौक में उस का तिमंजिला मकान पहले से था. उस के बाद उस ने जूही थाने के सामने एक वृद्ध महिला का मकान औनेपौने दाम में खरीदा और फिर तीन मंजिला कोठी बनाई.

इसी तरह उस ने ई-ब्लौक किदवई नगर में गुप्ता बंधुओं का विवादित मकान खरीदा. इस समय इस मकान में पहली मंजिल पर देना बैंक है. अशोक सिंह चंदेल ने जिस पीएनबी बैंक वाली बिल्डिंग में जूतेचप्पल की दुकान खोली थी, उस पर भी उस का कब्जा है.

अशोक सिंह चंदेल ने विधायक कोटे से भी 2 मकान आवंटित करा लिए थे. एक मकान गाजियाबाद में आवंटित कराया तथा दूसरा जूही कला कानपुर में. बाद में एक कोटे से 2 मकानों का आवंटन सामने आने पर मामला फंस गया. जब यह मामला कोर्ट गया तो कोर्ट ने उस का एक मकान निरस्त कर दिया. इन सब के अलावा भी हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट आदि शहरों में उस की करोड़ों की प्रौपर्टी है.

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने इस बारे में बताया कि उच्च न्यायालय से आजीवन सजा मिलने के बाद अशोक सिंह चंदेल की विधानसभा की सदस्यता रद्द हो जाएगी. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार 2 वर्ष से अधिक सजा मिलने पर संबंधित व्यक्ति जनप्रतिनिधित्व के अयोग्य हो जाता है.

इस नियम के तहत हमीरपुर सदर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव निश्चित है. इस के लिए हाईकोर्ट से सूचना सचिवालय को जाएगी. इस के बाद सचिवालय इस सीट को रिक्त कर इस की सूचना चुनाव आयोग को देगा और चुनाव आयोग इस सीट पर उपचुनाव का कार्यक्रम तय करेगा.

जिस समय उच्च न्यायालय द्वारा यह फैसला सुनाया गया, विधायक अशोक सिंह चंदेल हमीरपुर स्थित अपनी कोठी में था. पत्रकारों ने जब उसे उम्रकैद की सजा सुनाए जाने की जानकारी दी तो वह बोला कि उस ने हमेशा गरीबों के आंसू पोंछने का काम किया है. कोई भी ऐसा काम नहीं किया कि उसे सजा मिले. फिर भी अदालत का फैसला स्वीकार्य है. वह न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगा.

बहरहाल कथा संकलन तक विधायक अशोक सिंह चंदेल के अलावा सभी दोषियों ने हमीरपुर की सीजेएम कोर्ट में सरेंडर कर दिया था, जहां से सजा भुगतने को उन्हें जिला जेल भेज दिया गया था.

—कथा कोर्ट के फैसले तथा लेखक द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर आधारित

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