40 महीने कैद में रहा कंकाल – भाग 1

बाजरे के खेत में शव मिलने की खबर पूरे गांव में फैल गई. शव को कैमिकल डाल कर इस कदर जला दिया गया था कि लाश कंकाल में बदल गई थी. मृतक की पहचान होनी नामुमकिन थी. लाश के नाम पर शरीर के कुछ भाग की हड्डियां मात्र थीं. कंकाल के पास चप्पलें, कपड़े व अन्य सामान पड़े थे. सामान से लग रहा था कि यह कंकाल किसी महिला का है.

भगवान देवी ने कंकाल के पास मिली चप्पलें, पीले रंग का हेयर क्लिप, हाथ में बंधा कलावा, चांदी की 2 अंगूठियां, लाल रंग का कंगन, सलवार कुरता व अन्य सामान को देख कर कंकाल की पहचान अपनी बेटी रीता उर्फ मोनी के रूप में की.

भगवान देवी और उन के पति कुंवर सिंह थाने से ले कर पुलिस के उच्चाधिकारियों, यहां तक कि अदालत तक की दौड़ लगा रहे थे. लेकिन उन्हें बेटी रीता कुमारी उर्फ मोनी की हत्या के बाद उस का कंकाल (लाश) अंतिम संस्कार के लिए पिछले 40 महीनों से पुलिस नहीं दे रही थी.

वे चाहते थे कि बेटी की लाश जो कंकाल के रूप में बरामद हुई थी, मिल जाए तो वे उस का विधिविधान से अंतिम संस्कार कर दें. वह कंकाल उन की बेटी की है, इस के उन्होंने पुलिस को सबूत भी जुटा दिए थे. फिर भी पुलिस कंकाल उन की बेटी का नहीं मान रही थी.

उत्तर प्रदेश का एक जिला है (Eetawah) इटावा.  यहीं स्थित डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त चिकित्सालय की मोर्चरी में रखे एक डीप फ्रीजर में बेटी की लाश कंकाल (Imprisoned Skeleton) के रूप में पिछले 40 महीने से कैद थी. ऐसा पुलिस के लापरवाह रवैए की वजह से हो रहा था.

पोस्टमार्टम और 2 बार डीएनए टेस्ट के बाद भी पुलिस जांच अधूरी रह गई थी. क्योंकि डीएनए के लिए जो नमूने 2 बार भेजे गए थे, वह सही तरीके से नहीं लिए गए थे. इस के बाद भगवान देवी ने एसएचओ के साथ ही एसएसपी (इटावा) को  22 अक्तूबर, 2020 तथा 22 फरवरी, 2021 व 26 अगस्त, 2021 को प्रार्थनापत्र दिए. इन में आरोपियों के नाम का खुलासा भी किया गया था.

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डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त चिकित्सालय 

लेकिन बारबार प्रार्थनापत्र देने के बावजूद न तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और न डीएनए रिपोर्ट ही दी गई. भगवान देवी लगातार बेटी का कंकाल देने की गुहार लगाती रही, लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ रखे बैठी रही. उस के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.

मोर्चरी के डीप फ्रीजर में 40 माह से कैद रीता उर्फ मोनी के कंकाल के साथ एक ऐसी घटना हुई, जिस से सभी चौंक गए. उस का कंकाल एक ही झटके में डीप फ्रीजर की कैद से मुक्त हो गया और घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया.

2 बार डीएनए टेस्ट से पहचान न होने के बाद अचानक ऐसा क्या चमत्कार हुआ कि मरने वालीे लड़की के कंकाल की पहचान होने के बाद उसे उस के वास्तविक मम्मीपापा को सौंप दिया गया.

आइए, पूरी घटना आप को सिलसिलेेवार बताते हैं. यह खौफनाक घटना आज से लगभग 40 महीने पहले शुरू हुई थी.

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के जसवंतनगर थाना क्षेत्र का एक गांव है चक सलेमपुर. इसी गांव का निवासी है कुंवर सिंह. उस के परिवार में पत्नी भगवान देवी के अलावा 5 बच्चे थे. इन में 3 बेटियां व 2 बेटों में सब से बड़ी बेटी अंजलि, राजीव, ज्योति की शादी हो चुकी है. चौथे नंबर की रीता कुमारी उर्फ मोनी थी. सब से छोटा सौरभ उर्फ बंटी है, जो बीएससी कर चुका है. पिता के पास जमीन थी, जिस पर वह अपने बेटों राजीव व सौरभ की मदद से खेती करते थे.

कुंवर सिंह की 22 वर्षीय बेटी रीता कुमारी उर्फ मोनी की एक सप्ताह बाद सगाई होनी थी. घर में खुशी का माहौल था. घर वाले शादी की तैयारी में व्यस्त थे. 19 सितंबर, 2020 को मोनी की तबियत ढीली थी. वह दोपहर 12 बजे अपनी दवा लेने घर से जसवंतनगर की कह कर गई थी. उसे गए हुए 3 घंटे बीत चुके थे, मगर वह वापस घर नहीं आई थी. इस पर घर वालों को चिंता होने लगी. उन्होंने उसे तलाशना शुरू कर दिया.

गांव में उस के साथ पढऩे वाली सहेलियों के घर के अलावा गांव में जिस स्थान पर वह सिलाई सीखती थी, वहां भी पता लगाया. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला और रात हो गई, वह लौट कर घर नहीं आई. रीता अपना मोबाइल, जिस में 2 सिम कार्ड थे, ले कर घर से गई थी. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था.

रीता जसवंतनगर के एक कालेज में 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी. उस के लापता होने पर उसे तलाशने में उस के घर वालों से ले कर गांव के लोगों ने अपनी पूरी कोशिश की. शुरुआती कोशिश में उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली. इस तरह कई दिन गुजर गए.

रीता उर्फ मोनी के गायब होने के बाद गांव में तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गईं. जितने मुंह उतनी बातें. कोई कह रहा था कि रीता अपने प्रेमी के साथ भाग गई है. कोई कह रहा था कि वह इस रिश्ते से खुश नहीं थी, इसलिए कहीं और चली गई है.

थकहार कर रीता उर्फ मोनी की मम्मी भगवान देवी ने थाना जसवंतनगर में बेटी की गुमशुदगी की सूचना 22 सितंबर, 2020 को लिखा दी. गुमशुदगी दर्ज होने के साथ ही इस की जांच तत्कालीन एसआई संजय कुमार सिंह को सौंपी गई.

खेत में मिला बेटी का कंकाल

रीता के लापता होने के सातवें दिन 26 सितंबर को अचानक रीता का सुराग मिला. रीता के घर से लगभग 300 मीटर की दूरी पर बाजरे के एक खेत में मानव कंकाल मिला. घास लेने गए कुछ लोगों ने खेत में पड़े कंकाल को देख कर शोर मचाया, इस पर गांव वाले एकत्र हो गए.

गांव वालों से खेत में कंकाल मिलने की जानकारी होते ही रीता के घर वाले दौड़ेदौड़े खेत में पहुंचे. उन्होंने वहां मिले कपड़ों और अन्य सामान से उस की शिनाख्त रीता के रूप में कर ली.

रीता की मम्मी भगवान देवी ने बताया कि घर से जाते समय रीता यही सब पहने हुए थी. बेटी की लाश को इस अवस्था में देखते ही भगवान देवी बेहाल हो गई. उस के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उस ने रोते हुए पुलिस को बताया कि उस की बेटी की हत्या कैमिकल डाल कर हत्यारों ने की है.

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     मृतका रीता के ग़मगीन परिजन

उस ने बताया कि उस की गांव में किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है फिर बेटी का यह हाल किस ने और क्यों किया? बेटी की हत्या से परिवार में कोहराम मच गया. रीता के सामान तो मिले थे, लेकिन उस का मोबाइल फोन नहीं मिला.

खेत में कंकाल मिलने की सूचना पर घटनास्थल पर पुलिस, फोरैंसिक टीम के साथ पहले ही पहुंच गई थी. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. कंकाल की हालत देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि कंकाल के कुछ हिस्से को कुत्ते या जंगली जानवर खींच कर ले गए होंगे. लाश को किसी कैमिकल से जलाया गया था. इस से उस की पहचान होनी भी मुश्किल हो गई थी.

कंकाल के पास मिले सामान इस बात की गवाही दे रहे थे कि एक सप्ताह पहले लापता हुई गांव की युवती रीता का ही कंकाल है. गांव के जितेंद्र कुमार, बेबी, राजीव आदि ने भी इन चीजों को देख कर रीता के रूप में कंकाल की शिनाख्त की.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सबूत इकट्ठे किए. पुलिस ने पंचनामा भरने के बाद कंकाल को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय की मोर्चरी भिजवा दिया.

कंकाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हत्या का कारण न आने तथा पहचान न होने पर पुलिस ने कंकाल का डीएनए टेस्ट कराने का निर्णय लिया. पुलिस कंकाल व मातापिता के सैंपल ले कर रीता के बड़े भाई राजीव के साथ 29 सितंबर, 2020 को विधि विज्ञान प्रयोगशाला, लखनऊ गई थी.

लखनऊ लैब के अधिकारियों ने उन्हें यह कह कर लौटा दिया कि पूरे कंकाल की जरूरत नहीं है. केवल कंकाल से सैंपल ले कर व कंकाल के रंगीन फोटो विधिवत भिजवाएं. 2 दिन बाद वापस ला कर कंकाल को वहीं रख दिया गया. राजीव ने बताया कि गाड़ी किराए पर ले जाने में उस के 8 हजार रुपए खर्च हो गए थे.

इस के 4-5 दिनों बाद पुलिस ने डीएनए टेस्ट के लिए कंकाल व मम्मीपापा के सैंपल ले कर लखनऊ लैब भिजवाए, जिस की रिपोर्ट 26 मार्च, 2022 को कई रिमाइंडर भेजने के बाद मिली, जो सैंपल सही तरीके से न भेजने के कारण स्पष्ट (क्लीयर) नहीं थी.

मां भगवान देवी इस बात की जिद पर अड़ी थी कि कंकाल उस की बेटी का ही है. सैंपल सही से नहीं लिए जाने से लखनऊ लैब की रिपोर्ट स्पष्ट नहीं आई है.

इस पर पुलिस से आगरा की लैब में टेस्ट कराने की बात हुई. छोटा भाई सौरभ आगरा की लैब कंकाल व मातापिता के सैंपल ले कर 4 अगस्त, 2022 को पुलिस के साथ गया. आगरा फोरैंसिक लैब वालों ने यह कह कर सैंपल लौटा दिया कि यह हमारे क्षेत्र का मामला नहीं है. जिस क्षेत्र से संबंधित हो, वहां की लैब में जांच कराओ.

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण – भाग 3

बिरजू का इश्क कहां तक था कि इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अपने प्यार के लिए रायल एयरलाइंस कंपनी खोलने को तैयार हो गए. उन्होंने यह भी सोच लिया था कि उन की इस एयरलाइंस का सारा कामकाज उन की गर्लफ्रेंड ही देखेगी, लेकिन उस का हेडक्वार्टर मुंबई होगा. क्योंकि सल्ला यही चाहते थे कि वह मुंबई आए.

बिरजू ने इशारे इशारे में यह बात अपनी गर्लफ्रेंड को बता भी दी, लेकिन वह इस के लिए भी तैयार नहीं हुई. उस का कहना था कि यह एक तरह का मजाक है, इसलिए वह जहां नौकरी कर रही है, उसे करने दें.

जब बिरजू को लगा कि अब गर्लफ्रेंड किसी भी तरह मुंबई नहीं जाने वाली तो उन्होंने एक साजिश रची. उन्होंने सोचा कि वह ऐसा क्या करें कि जेट एयरवेज ही बंद हो जाए या फिर उस का दिल्ली का औफिस बंद हो जाए. इस के लिए उन्होंने उसे बदनाम करने की योजना बनाई.

इसी के बाद उन्होंने प्लेन हाइजैकिंग की यह साजिश रची और उन्होंने जो लेटर लिखा, उस में लिखा कि अगर यह प्लेन दिल्ली लैंड करेगा तो ब्लास्ट हो जाएगा. उन का सोचना था कि दिल्ली आने के बाद पैसेंजर शोर मचाएंगे तो यह मीडिया में आएगा, जिस से जेट एयरवेज की बदनामी होगी.

हो सकता है इस के बाद जेट एयरवेज अपना दिल्ली का औफिस बंद कर दे. इस के बाद तो उन की गर्लफ्रेंड मजबूरन मुंबई आ जाएगी, क्योंकि जब दिल्ली में नौकरी ही नहीं रहेगी तो वह मुंबई आ ही जाएगी. यही सोच कर उन्होंने यह साजिश रची थी.

यहां तक तो ठीक था, लेकिन बिरजू सल्ला की बदनसीबी यह थी कि इस घटना के 9-10 महीने पहले 2016 में संसद ने एक कानून बनाया था ‘एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट 2016’. इस ऐक्ट में यह था कि अगर कोई व्यक्ति किसी प्लेन को हाइजैक करता है और उस हाइजैकिंग के दौरान किसी मुसाफिर या क्रू मेंबर की मौत हो जाती है तो एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट के तहत उस पर मुकदमा चलेगा और इस की सजा मौत होगी.

ऐक्ट में यह भी लिखा था कि अगर कोई व्यक्ति प्लेन को हाइजैक करने की कोशिश करता है या किसी तरह की अफवाह फैलाता है यानी बम या हाइजैक करने की खबर देता है तो उस व्यक्ति पर भी एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट के तहत मुकदमा चलेगा और उस व्यक्ति को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

2016 में यह कानून बन गया था. बिरजू को इस कानून के बारे में जानकारी नहीं थी. उन का सोचना था कि अगर वह पकड़े भी गए तो छोटा मोटा मामला है, 2-4 महीने में बाहर आ जाएंगे. लेकिन उन की बदनसीबी ही थी कि 2016 में यह कानून बना और 2017 में 30 अक्तूबर को उन्होंने यह कांड कर दिया.

पूरी जांच के बाद यह मामला एनआईए को सौंप दिया गया. क्योंकि यह आतंकवाद से जुड़ी घटना थी. इसलिए यह पता करना था कि कहीं इस में किसी आतंकवादी संगठन का हाथ तो नहीं है. एनआईए ने पूरे मामले की जांच की और फिर एनआईए की स्पैशल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी.

चार्जशीट दाखिल होने के बाद बिरजू सल्ला पर एनआईए की स्पैशल कोर्ट में मुकदमा चला. 11 जून, 2019 लोअर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. यह फैसला बिरजू सल्ला की सोच से बिलकुल अलग था. एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट बनने के बाद यह पहला मुकदमा था, जो बिरजू के खिलाफ चला था.

चूंकि कानून बन चुका था कि हाइजैकिंग के दौरान किसी की मौत हो जाती है तो मौत की सजा और हाइजैकिंग की कोशिश की जाती है, वह भले ही ड्रामा ही क्यों न हो, हाइजैकर को उम्रकैद की सजा होगी.

यह दूसरी चीज बिरजू के खिलाफ थी, क्योंकि उन्होंने झूठ में कहा था कि प्लेन में हाइजैकर हैं और कार्गो में बम रखा है. अगर प्लेन पीओके नहीं ले जाया गया तो सभी मारे जाएंगे. इस तरह 30-35 मिनट सभी पैसेंजरों ने जो कष्ट भोगा यानी ऐसी स्थिति में मौत सामने नजर आती है, इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया गया और 2016 के उस एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट की धारा 3(1), 3(2)(ए), 4बी के तहत दोषी ठहराते हुए एनआईए की स्पैशल कोर्ट ने बिरजू सल्ला को बाकी जीवन के लिए आजीवन कारावास की सजा सुना दी थी.

हाईकोर्ट के फैसले से मिली राहत

इश्क में पागल बिरजू सल्ला कहां अपनी गर्लफ्रेंड को मुंबई लाना चाहते थे और कहां अब उन की पूरी उम्र जेल में गुजरने वाली थी. 11 जून, 2019 को यह सजा सुनाई गई थी. पर इतना ही नहीं, उन की तमाम प्रौपर्टी भी जब्त करने का आदेश दिया गया था. उन पर 5 करोड़ रुपए का जुरमाना भी लगाया गया था.

5 करोड़ की इस राशि के बारे में कहा गया था बिरजू से मिलने वाली इस राशि को चालक दल और यात्रियों में बांट दिया जाए. इस में से एकएक लाख रुपए पायलटों को, 75-75 हजार रुपए एयरहोस्टेस को तो 25-25 हजार रुपए सवारियों को बांटने का आदेश दिया गया था.

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सजा सुनाए जाने के बाद बिरजू सल्ला को अहमदाबाद की साबरमती जेल भेज दिया गया. घर वालों ने एनआईए के इस फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में अपील की. जिस की सुनवाई साल 2023 में शुरू हुई और 8 अगस्त, 2023 को हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और एम.आर. मेंगडे की पीठ ने अपने फैसले में बिरजू सल्ला को बरी करते हुए कहा कि एनआईए यह साबित नहीं कर पाई कि विमान के वाशरूम में पाया गया नोट बिरजू सल्ला ने ही रखा था.

न्यायमूर्ति श्री सुपेहिया ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह भी साबित नहीं कर सका कि आरोपी ने अकेले अपने औफिस में बैठ कर वह धमकी भरा नोट तैयार किया था.

उच्च न्यायालय ने कहा कि जैसा कि शुरुआती जांच में कहा गया है कि सल्ला ने बताया है कि जेट एयरवेज की कर्मचारी अपनी प्रेमिका के लिए एयरलाइन को बदनाम करने के लिए उन्होंने यह अपराध किया था, लेकिन आगे चल कर जांच के दौरान उस के इस मकसद ने अपना महत्त्व खो दिया. इसलिए जो भी सबूत पेश किए गए हैं, उन के अध्ययन से पता चलता है कि वे संदेहात्मक हैं, जो आरोपी को अपराधी नहीं घोषित करते.

जो भी सबूत हैं, वे स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता को अपहरण जैसे गंभीर आरोप में दोषी सिद्ध नहीं करते. इसलिए संदेह से भरे सबूतों के आधार पर अपहरण के अपराध में अपीलकर्ता दोषी ठहराने और सजा देने के ट्रायल कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं हैं और अपीलकर्ता को बरी करने का आदेश दिया जाता है.

बिरजू सल्ला को अपहरण के आरोप से बरी करते हुए उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि बिरजू सल्ला पर लगाए गए 5 करोड़ रुपए के जुरमाने को भी रद्द किया जाता है.

एयरलाइन के पायलट और चालक दल को ट्रायल कोर्ट ने जिन्हें रुपए देने का आदेश दिया था, अगर उन्होंने रुपए लिए हैं तो वे पैसे वापस करें. जुरमाने की राशि उच्च न्यायालय ने बिरजू को वापस करने का आदेश दिया. इसी के साथ यह भी आदेश दिया कि अगर राज्य सरकार यह रुपया वापस नहीं ले पाती तो खुद यह पैसा अपने पास से सल्ला को वापस करे.

इस तरह बिरजू को हाईकोर्ट से राहत तो मिल गई, लेकिन वह गर्लफ्रेंड के चक्कर में 6 साल की जेल काट कर बाहर आए.

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण – भाग 2

जैसे ही फ्लाइट ने एयरपोर्ट पर लैंड किया, पुलिस ने डौग स्क्वायड, बम स्क्वायड के साथ प्लेन को घेर लिया. इस के बाद सारे यात्रियों को उतार कर एक जगह इकट्ठा कर लिया गया और जहाज की तलाशी ली गई. जहाज में कहीं कोई बम नहीं मिला.

इस के बाद सारे यात्रियों की सूची निकाली गई. इन 116 यात्रियों में 12 हाइजैकर कौन हो सकते हैं, उन की शिनाख्त की जाने लगी. पता चला कि इन 116 यात्रियों में से कोई भी व्यक्ति संदिग्ध नहीं था. सभी के टिकट या आईडी पर जो डाटा था, वह सही और जैनुइन था.

इस से यह साफ हो गया कि यह फेक काल थी यानी मजाक था. फिर सवाल उठा कि इस तरह का खतरनाक मजाक किया किस ने, अब इस की जांच शुरू हुई.

प्लेन का जो क्रू स्टाफ था, उस से पूछताछ शुरू हुई. इस पूछताछ में शिवानी मल्होत्रा जिस ने सब से पहले देखा था कि बिजनैस क्लास के टायलेट में टिश्यू पेपर खत्म हो गए हैं, उस ने बताया कि जब प्लेन ने टेकआफ किया यानी लाइट बंद हो गई और अब टायलेट यूज किया जा सकता था तो बिजनैस क्लास में बैठे एक आदमी ने उस से ब्लैंकेट मांगा था. वह उस का कंबल लेने गई फिर लौट कर देखा, वह सीट पर नहीं था.

करीब 5 मिनट बाद वह लौटा. इस पर उस ने ध्यान दिया कि उतने समय में उस आदमी के अलावा बिजनैस क्लास के किसी दूसरे आदमी ने टायलेट का यूज नहीं किया था.

शिवानी के बताए अनुसार, टेकआफ के बाद उस टायलेट का उपयोग सिर्फ उसी एक यात्री ने किया था. इस के बाद उस यात्री को बुलाया गया. वह यात्री सामने आया. पूछताछ में पता चला कि उस यात्री का नाम था बिरजू सल्ला उर्फ अमर सोनी पुत्र किशोर सोनी है. उस की उम्र 37 साल थी.

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जब उस से टायलेट जाने के बारे में पूछा गया तो उस ने स्वीकार किया कि हां वह टायलेट गया था. लेकिन इस के आगे उस ने कुछ नहीं बताया.

अरबपति व्यापारी निकला बिरजू सल्ला

इस के बाद मुंबई पुलिस को सूचना दे कर सल्ला के बारे में जानकारी जुटाई गई. मुंबई पुलिस से जो जानकारी मिली, उस से पता चला कि बिरजू सल्ला कोई छोटी मोटी हस्ती नहीं है. सल्ला सोनेचांदी, हीरे जवाहरातों के जाने माने बिजनेसमैन हैं. वह बहुत ही सम्मानित परिवार से हैं.

वह मूलरूप से गुजरात के रहने वाले हैं. मुंबई के दादर बाजार में ज्वैलरी की उन की बहुत बड़ी दुकान है. इस के अलावा भी उन के कई बिजनैस हैं. कुल मिला कर वह अरबपति आदमी हैं और मुंबई के पौश इलाके में उन की विशाल कोठी है.

बिरजू सल्ला के बारे में जान कर पुलिस को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ हो रहा है. इतना बड़ा बिजनैसमैन और सम्मानित आदमी इस तरह का काम क्यों करेगा? फिर भी पुलिस की एक टीम इस मामले की जांच में लग गई. पुलिस के पास सबूत के तौर पर 2 लेटर थे, एक अंगरेजी में और दूसरा उर्दू में.

इस के अलावा जांच में यह भी साबित हो गया कि सल्ला के अलावा और दूसरा कोई अदमी टायलेट गया नहीं था. अगर वे लेटर बिरजू ने नहीं रखे तो फिर किस ने रखे? उस के बाद एयरहोस्टेस गई थीं टायलेट. वे ऐसा कर नहीं सकती थीं. इसलिए जो सबूत थे, वे बिरजू सल्ला की ओर ही इशारा कर रहे थे कि उसी ने यह काम किया है.

बाकी यात्री जो रुके थे, उन्हें दूसरी फ्लाइट से दिल्ली भेज दिया गया. बिरजू सल्ला को संदिग्ध मान कर अहमदाबाद में ही रोक लिया गया. उन से पूछताछ की जाने लगी. पर वह लगातार मना करते रहे कि उन्होंने यह काम नहीं किया.

उसी बीच पुलिस की एक टीम उन के घर गई. इसी के साथ यह भी पता किया जाने लगा कि जो दोनों लेटर टायलेट से मिले थे, वह कहां टाइप किए गए थे और इन का प्रिंट कहां निकाला गया था?

बिरजू सल्ला के घर में जो प्रिंटर था, उस का सैंपल लिया गया. इस के बाद लेटर से उस सैंपल को मैच कराया गया तो वह मैच कर गया. जिस प्रिंटर से वह बाकी के काम करते थे, उसी प्रिंटर से वह लेटर प्रिंट किए गए थे.

अब 2 चीजें बिरजू सल्ला के खिलाफ थीं. एक वह चश्मदीद एयरहोस्टेस, जिस ने बताया था कि एकलौते वही थे, जिन्होंने टायलेट का उपयोग किया था और दूसरा वह प्रिंटर, जिस से वह धमकी भरे लेटर प्रिंट किए गए थे.  इस के बाद लैपटाप और कंप्यूटर को खंगाला गया, इस से पता चला कि लेटर उसी में टाइप किए गए थे. जो लेटर उर्दू में था, उस के बारे में पता चला कि अंगरेजी वाले लेटर को गूगल से ट्रांसलेट किया गया था.

पुलिस के लिए इतने सबूत काफी थे बिरजू को घेरने के लिए. इस के बाद अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच पुलिस ने जब तसल्ली से बिरजू को सवालों के जाल में उलझाया तो मजबूरन बिरजू को अपना अपराध स्वीकार करना पड़ा. उन्होंने कहा कि ये दोनों लेटर टायलेट में उन्होंने ही रखे थे, लेकिन बम की खबर फेक थी. न तो प्लेन में कोई हाइजैकर थे और न ही बम था.

हर हालत में गर्लफ्रेंड को मुंबई बुलाना चाहते थे बिरजू सल्ला

अब इस के बाद यह सवाल उठा कि आखिर उन्होंने ऐसा किया क्यों? पुलिस ने कहा कि अगर कोई फेक काल करता या इस तरह का लेटर रखता तो वह बाहर रह कर ऐसा करता. जबकि वह तो इसी प्लेन में बैठे थे, तब उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्या उन्हें अहमदाबाद आना था या कोई और काम था?

इस के बाद बिरजू सल्ला ने ऐसा करने के पीछे जो कहानी सुनाई, उस पर अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच को विश्वास ही नहीं हो रहा था, लेकिन जब पुलिस ने आगे जांच की तो पता चला कि बिरजू ने जो भी बताया था, वह पूरी तरह सच था. बिरजू ने यह सब करने के पीछे जो कहानी सुनाई थी, वह इस प्रकार थी.

बिरजू सल्ला एक अरबपति कारोबारी थे. वह मुंबई के एक पौश इलाके में शानदार कोठी में परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी, 2 बच्चे और 70 साल के पिता किशोरभाई थे. बिजनैस के लिए अकसर वह देश के अन्य शहरों में आयाजाया करते थे. वह दिल्ली भी आतेजाते रहते थे.

दिल्ली आनेजाने के दौरान ही जेट एयरवेज की एक ग्राउंड स्टाफ से उन की दोस्ती हो गई. दोस्ती होने के बाद अकसर दोनों का मिलनाजुलना होने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि 35-36 साल के बिरजू को उस युवती से प्यार हो गया.

बिरजू को ही उस युवती से प्यार नहीं हुआ, वह युवती भी बिरजू से प्यार करने लगी थी. क्योंकि उस युवती को यह पता नहीं था कि वह जिस से प्यार कर रही है, वह शादीशुदा है. जब प्यार गहराया तो बात विवाह करने की होने लगी. बिरजू चाहते थे कि वह युवती नौकरी छोड़ कर मुंबई चले और उन का घर संभाले. जबकि युवती न नौकरी छोडऩा चाहती थी और न मुंबई ही जाना चाहती थी. वह इन दोनों चीजों से मना कर रही थी.

जबकि बिरजू उस युवती से बहुत ज्यादा प्यार करते थे. बिरजू ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, बारबार मनाया, कई बार ऐसा भी हुआ कि वह केवल उस से मिलने दिल्ली आए. कई बार वह कहती कि इस समय तो उस की ड्यूटी है. फ्लाइट की ड्यूटी होती थी, जिसे अटेंड करना ही होता था. इस तरह वह बिरजू को समय नहीं दे पाती थी.

इस सब को ले कर बिरजू के मन में आता कि यह सब क्या है, आखिर यह कैसी नौकरी है? उस ने प्रेमिका से कहा कि वह यहां के बजाय मुंबई में नौकरी जौइन कर ले या किसी दूसरी एयरलाइंस में नौकरी कर ले, पर वह न तो नौकरी छोडऩे को तैयार थी और न ही कहीं दूसरी जगह जाने को. उस का कहना था कि वह नौकरी करेगी तो यहीं दिल्ली में ही करेगी.

गर्लफ्रेंड की बातों ने कुछ ऐसा कर दिया कि बिरजू को एयरलाइंस की नौकरी से ही नफरत हो गई. साथ ही वह यह भी सोचने लगे कि वह ऐसा क्या करें कि उन की गर्लफ्रेंड उन के पास मुंबई आ जाए.

उसी दौरान 2017 में बिरजू के एक दोस्त की बेटी की शादी थी. उस ने बिरजू से कहा कि उस के कुछ गेस्ट आ रहे हैं. उन्हें ले आने और ले जाने के लिए 2 चार्टर्ड प्लेन किराए पर चाहिए. इस के लिए बिरजू दिल्ली आए और गल्फ की एक कंपनी से करीब सवा करोड़ में 2 चार्टर्ड की डील कर ली.

इसी बात से बिरजू को खयाल आया कि गर्लफ्रेंड मुंबई नहीं चल रही और नौकरी नहीं छोड़ रही तो क्यों न वह अपनी इस गर्लफ्रेंड के लिए एक एयरलाइंस कंपनी खोल दें. प्लेन डील करने में उन्हें एयरलाइंस के बारे में काफी जानकारी हो गई थी.

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण – भाग 1

8 अगस्त, 2023 को गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और एम.आर. मेंगडे की डिवीजन बेंच में बिरजू सल्ला उर्फ अमर सोनी बनाम गुजरात सरकार की सुनवाई चल रही थी. 2019 में बिरजू सल्ला को एनआईए की स्पैशल कोर्ट से आजीवन कारावास एवं 5 करोड़ रुपए के जुरमाने की सजा सुनाई गई थी. इस के अलावा उन की तमाम प्रौपर्टी भी जब्त करने का आदेश दिया गया था. इस के बाद बिरजू सल्ला ने इस सजा के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में अपील की थी.

बिरजू सल्ला ने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए हाईकोर्ट के सीनियर वकीलों की पूरी फौज खड़ी कर दी थी. उन की ओर से सीनियर एडवोकेट हार्दिक मोध अपने सहयोगियों के साथ बहस के लिए खड़े थे. उन के सहायक भी उन के साथ खड़े थे.

एडवोकेट हार्दिक मोध ने कहा, ”माई लार्ड, मेरा मुवक्किल एक बहुत बड़ा बिजनैसमैन है, जिसकी समाज में ही नहीं, व्यापार जगत में बड़ी इज्जत है. जैसा कि उस के बारे में कहा गया है कि उस ने एक लड़की के लिए जेट एयरवेज को बदनाम करने के लिए जेट एयरवेज के हवाई जहाज के टायलेट में एक धमकी भरा पत्र रखा था कि अगर हवाई जहाज को पीओके यानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर नहीं ले जाया गया तो उसे उड़ा दिया जाएगा.

सबूत के तौर पर वह पत्र अदालत में पेश किया गया था. अब सवाल यह उठता है कि पुलिस ने यह कैसे साबित कर दिया कि टायलेट में वह पत्र हमारे मुवक्किल ने ही रखा था?’’

फाइल पलट रहे दोनों न्यायाधीशों ने एक बार सीनियर एडवोकेट हार्दिक मोध की ओर देखा, उस के बाद सरकारी वकील की ओर देखा तो सरकार की ओर से मुकदमे की पैरवी करने के लिए खड़ी सीनियर एडवोकेट सुश्री वृंदा सी शाह ने कहा, ”माई लार्ड, उस पत्र को भले ही किसी ने बिरजू सल्ला को रखते नहीं देखा, पर क्रू मेंबर की एक एयरहोस्टेस शिवानी मल्होत्रा ने उन्हें टायलेट की ओर जाते देखा था. उस का कहना था कि बिरजू सल्ला के अलावा उस समय तक और कोई दूसरा बिजनैस क्लास के उस टायलेट में नहीं गया था.’’

न्यायाधीश श्री सुपेहिया ने कहा, ”आप यह दावे के साथ कैसे कह सकती हैं कि बिरजू सल्ला के पहले बिजनैस क्लास से कोई और टायलेट नहीं गया था.’’

”माई लार्ड एयरहोस्टेस का यही कहना है,’’ एडवोकेट वृंदा शाह ने कहा.

”किसी एक आदमी के कह देने से आप ने उसे दोषी मान लिया और आजीवन कारावास की सजा दे दी यानी उस की पूरी जिंदगी बरबाद कर दी.’’ न्यायाधीश श्री मेंगड़े ने कहा.

”नहीं सर, टायलेट में जो पत्र मिला था, वह बिरजू सल्ला के ही कंप्यूटर से टाइप किया गया था और उन्हीं के प्रिंटर से प्रिंट हुआ था,’’ एडवोकेट वृंदा शाह ने कहा.

जवाब में बिरजू सल्ला के एडवोकेट हार्दिक मोध ने कहा, ”माई लार्ड, इस का क्या सबूत है कि वह पत्र बिरजू सल्ला के कंप्यूटर में ही टाइप किया गया था और उन के प्रिंटर से ही प्रिंट किया गया था.’’

”माई लार्ड पत्र की जो स्याही थी, वह बिरजू सल्ला के प्रिंटर से मेल खा रही थी,’’ वृंदा शाह बोलीं.

”तो क्या वह स्याही केवल बिरजू सल्ला के प्रिंटर के लिए ही बनाई गई थी?’’ न्यायाधीश श्री सुपेहिया ने पूछा.

”जी नहीं माई लार्ड, कंपनी ने केवल बिरजू सल्ला के लिए स्याही नहीं बनाई थी.’’ वृंदा शाह ने कहा.

”तब यह क्यों मान लिया गया कि वह पत्र बिरजू सल्ला के ही प्रिंटर से प्रिंट हुआ था? यह तो कोई इस तरह का साक्ष्य नहीं है कि उस के आधार पर किसी को दोषी मान लिया जाए.’’

”माई लार्ड, बिरजू सल्ला ने खुद स्वीकार किया है कि उस ने कंपनी को बदनाम करने के लिए यह सब किया था, जिस से जेट एयरवेज का दिल्ली का औफिस बंद हो जाए और उस की गर्लफ्रेंड की नौकरी छूट जाए, जिस से वह मुंबई चली जाए.’’ एडवोकेट वृंदा शाह बोलीं.

इस पर बिरजू सल्ला के एडवोकेट हार्दिक मोध ने कहा, ”माई लार्ड, यह भी कोई बात हुई. किसी के द्वारा अपहरण का धमकी भरा एक पत्र रख देने से भला इतनी बड़ी कंपनी का औफिस बंद हो जाएगा. माई लार्ड इस मामले में मेरा मुवक्किल निर्दोष है. पुलिस ने इस मामले में कायदे से जांच नहीं की और एक इज्जतदार बिजनैसमैन को फंसा दिया.

”पुलिस की लापरवाही की वजह से मेरे मुवक्किल को 8 साल जेल में बिताने पड़े. उसे 5 करोड़ रुपए जुरमाना भी भरना पड़ा, साथ ही उस की तमाम संपत्ति भी जब्त कर ली गई. माई लार्ड, मेरी आप से यही विनती है कि बिरजू सल्ला को बाइज्जत बरी किया जाए.’’

इस बहस के बाद डिवीजन बेंच के न्यायाधीश श्री सुपेहिया और श्री मेंगड़े ने अपना जो फैसला सुनाया, वह जानने से पहले आइए यह पूरी कहानी जान लेते हैं.

हाइजैक की सूचना पर प्लेन की हुई इमरजेंसी लैंडिंग

बात 30 अक्तूबर, 2017 की है. जेट एयरवेज की उड़ान मुंबई से दिल्ली जा रही थी. इस के उडऩे का समय दोपहर 2 बज कर 55 मिनट था. इस हवाई जहाज में कुल 116 यात्री सवार थे. मुंबई से दिल्ली की लगभग 2 घंटे की दूरी थी. इस का मतलब 5 बजे इस हवाई जहाज को दिल्ली में लैंड करना था. इस प्लेन में बिजनैस क्लास भी था और इकोनामी क्लास भी. प्लेन ने अपने निश्चित समय 2 बज कर 55 मिनट पर उड़ान भरी.

करीब 25 मिनट बाद 3 बज कर 20 मिनट पर यानी प्लेन को हवा में 25 मिनट बीत चुके थे, तभी एक केबिन रूम एयरहोस्टेस शिवानी मल्होत्रा बिजनैस क्लास के टायलेट में गई. टायलेट में जा कर उस ने देखा कि वहां रखे सारे टिश्यू पेपर लगभग खत्म हो गए हैं.

यह देख कर वह दंग रह गई. क्योंकि प्लेन को उड़े अभी 25 मिनट ही हुए थे. ज्यादा पैसेंजर टायलेट गए भी नहीं थे, तब भी टिश्यू पेपर खत्म गया था.

टायलेट से निकल कर उस ने यह बात अपनी सहयोगी निकिता जुनेजा से बता कर कहा कि बिजनैस क्लास के टायलेट में टिश्यू पेपर खत्म हो गए हैं, इसलिए जा कर फिर से टिश्यू पेपर रिफिल कर दे.

निकिता ने टिश्यू पेपर का दूसरा बंडल निकाला और टायलेट में जा कर उसे रखने लगी तो उसे लगा कि अंदर कुछ फंसा हुआ है. जब तक वह निकलेगा नहीं, तब तक दूसरा पेपर अंदर जा नहीं सकता. उस ने पेपर अंदर डालने की काफी कोशिश की, पर जब किसी भी तरह पेपर अंदर नहीं गया तो उस ने उस के अंदर हाथ डाला तो उसे लगा कि अंदर पेपर जैसा कुछ फंसा हुआ है.

निकिता ने उसे बाहर निकाला तो उस ने देखा कि उन पेपरों में कुछ लपेट कर अंदर डाला गया था. उस ने उसे खोल कर देखा तो उस में 2 पत्र थे. दोनों पत्रों में एक अंगरेजी में था तो दूसरा उर्दू में. वे दोनों पत्र कंप्यूटर द्वारा टाइप किए हुए थे.

निकिता को उर्दू तो आती नहीं थी, इसलिए उस ने अंगरेजी वाला लेटर पढ़ा. लेटर पढ़ कर उस के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगीं. उस लेटर में अंगरेजी में जो लिखा था, उस का हिंदी में अर्थ यह था, ‘फ्लाइट नंबर 9डब्ल्यू 339 में हाइजैकर हैं और प्लेन को हाइजैक कर लिया गया है.’

‘इस प्लेन में इस समय यात्रियों के बीच कुल 12 हाइजैकर हैं. इस प्लेन को यहां से सीधे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके ले चलें और अगर ऐसा नहीं किया गया तो थोड़ी देर में इसे उड़ा दिया जाएगा. आप इसे मजाक मत समझिए, क्योंकि कार्गो एरिया में एक बम रखा गया है और अगर आप ने इसे पीओके के बजाय दिल्ली में लैंड करने की कोशिश की तो धमाका हो जाएगा और प्लेन उड़ जाएगा.’

लेटर पढऩे के बाद निकिता ने उस लेटर को सीधे ला कर कैप्टन जय जरीवाला को थमा दिया. इस लेटर को देखने के बाद कैप्टन को लगा कि मामला तो बहुत ही संवेदनशील है. उस समय प्लेन गुजरात के अहमदाबाद के नजदीक था. उन्होंने तुरंत अहमदाबाद के (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) एटीसी से संपर्क किया और कहा कि इमरजेंसी के तहत वह अपना हवाई जहाज अहमदाबाद में लैंड करना चाहते हैं.

जब अहमदाबाद एयरपोर्ट के अधिकारियों ने पूछा कि ऐसी क्या इमरजेंसी है कि उन्हें अपना प्लेन अहमदाबाद में लैंड करने की जरूरत पड़ गई तो उन्होंने बताया कि दरअसल प्लेन में धमकी भरे लेटर मिले है. प्लेन में हाइजैकर हैं और उन्होंने कार्गो में बम रखा है.

इतना सुन कर अहमदाबाद एयरपोर्ट के अधिकारी तुरंत हरकत में आ गए. मैनेजर ने बड़े अधिकारियों से बात की. इस के बाद कैप्टन को इजाजत दी गई कि वह अहमदाबाद एयरपोर्ट के रनवे पर अपना हवाई जहाज लैंड कर सकते हैं.

अहमदाबाद एयरपोर्ट पर हुई सख्त जांच

इसी के बाद अहमदाबाद एयरपोर्ट पर तैयारी शुरू हो गई, क्योंकि कैप्टन के बताए अनुसार प्लेन में बम भी था और हाइजैकर भी. इसलिए लोकल पुलिस को भी सूचना दे गई थी और फायरब्रिगेड को भी बुला लिया गया था.

सूचना पा कर थाना एयरपोर्ट की पुलिस तो मौके पर पहुंच ही गई थी, क्राइम ब्रांच की भी पूरी टीम एयरपोर्ट पर पहुंच गई थी. थोड़ी देर में फ्लाइट नंबर 9डब्ल्यू 339 ने सहीसलामत एयरपोर्ट पर लैंड किया.

अय्याशी में डबल मर्डर : होटल मालिक और गर्लफ्रेंड की हत्या

नाइट्रोजन गैस से सजा ए मौत

केनिथ स्मिथ को नाइट्रोजन हाईपौक्सिया के जरिए मृत्युदंड दिया जाना तय था. इस के तहत व्यक्ति को  नाइट्रोजन के एक सिलिंडर से जोड़ कर एक मास्क पहनाया जाता है, जो धीरेधीरे उसे औक्सीजन से वंचित कर देता है.

इसे एक तरह की यातना भी कह सकते हैं. यह नाइट्रोजन हाइपौक्सिया से मृत्युदंड देने की पहली कोशिश होगी. इस से भारी पीड़ा हो सकती है और मुमकिन है कि इस से यातना और सजा के दूसरे क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक तरीकों पर प्रतिबंध का उल्लंघन भी हो सकता है यानी नाइट्रोजन हाइपौक्सिया की वजह से एक दर्दनाक और अपमानजनक मौत मिलनी तय थी.

अमेरिका के रहने वाले 58 वर्षीय केनिथ स्मिथ को साल 1996 में एक धर्म उपदेशक की पत्नी की हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा हुई थी. कुछ समय बाद उस के जुर्म की क्रूरता का आकलन करने के बाद उम्रकैद की सजा ‘मृत्युदंड’ में बदल दी गई थी. वह तभी से अमेरिका में अलबामा के हौलमैन जेल के सुधार गृह में कैद था.

उसे इस सजा के लिए 23 जनवरी, 2024 की सुबह ठीक सवा 7 बजे सुधार गृह के भीतर बने ‘डेथ सेल’ में ले जाया गया था. इसे जेल प्रशासन होल्डिंग यूनिट कहता है. यहां मृत्युदंड के सजायाफ्ता कैदी की सजा को अंजाम देने से 2 दिन पहले रखा जाता है.

यानी कि स्मिथ को अच्छी तरह से मालूम हो गया था कि वह मृत्युकक्ष से लगभग 20 फीट की दूरी पर है, जहां 48 घंटे के बाद आखिरी मिनट पर 25 जनवरी, 2024 को हथकड़ी और पैरों में बेडिय़ों से बांध कर ले जाया जाएगा. और फिर वैसी नई तकनीक का उपयोग कर न्यायिक रूप से मौत की नींद सुला दिया जाएगा, जिस का प्रयोग पहली बार होगा.

वह तकनीक नाइट्रोजन गैस सुंघाने की थी. हालांकि पहले भी एक अन्य तकनीक के तौर पर उसे जहर की सुइयां चुभो कर इस सजा को अंजाम देने का प्रयास किया गया था.

केनिथ की मानसिक स्थिति सामान्य थी. वह जानता था कि उस की मौत निकट चंद घंटों में सुनिश्चित है. वह पहले भी नवंबर 2022 में डेथ सेल या कहें मृत्युकक्ष में रह चुका था. तब उसे जहरीले इंजेक्शन द्वारा मौत देने की तैयारी की गई थी. उसे मौत की नींद सुलाने के लिए नस नहीं खोजी जा सकी थी. वह 4 घंटे तक रस्सी से बंधा रहा. उस दौरान उस के हाथ और पैर में छेद कर दिए थे.

केनिथ उस दौर की प्रक्रिया को याद कर सिहर गया था. कारण, जब वह होल्डिंग यूनिट में था, तब उस ने अपनी मां और अपने पोते को अलविदा कहा था. अपना अंतिम भोजन किया था. फिर उसे मृत्युकक्ष में ले जाया गया था. वहां उस ने 4 घंटे तक कूड़ेदान में बिताए थे, क्योंकि जेल अधिकारियों ने नस ढूंढने की असफल कोशिश की थी. उसे ‘हौलमैन करेक्शनल फैसिलिटी’ नाम की जेल के एक ‘डेथ चैंबर’ में ले जा कर जहरीले रसायन के इंजेक्शन लगाए जाने थे.

नस न मिल पाने की वजह से इंजेक्शन नहीं दिए जा सके और उसी रोज यानी नवंबर 2022 को रात के 12 बजे डेथ वारंट निरस्त हो गया. यहां तक कि उसे कुछ मिनट तक उलटा लटकाया गया था. वह तब तक उलटा झूलता रहा, जब तक कि मौत देने वाले अधिकारियों ने हार नहीं मानी और फांसी बंद नहीं की. तब तक उस के शरीर में कई छेद किए जा चुके थे. वह मौत के काफी करीब जा कर लौट आया था.

इस के 14 महीने बाद उसे फिर से मृत्युकक्ष में डालने की तैयारी शुरू हो चुकी थी. वह फिर से इन सब से गुजरने वाला था. अब नई तकनीक से उस की मौत कितनी सहज, सुखद और दर्दरहित होगी, इस बारे में कहना मुश्किल था. सिर्फ तरहतरह के वैज्ञानिक दावे किए जा रहे थे.

हालांकि इस बार प्रोटोकाल अलग था. फिर भी उसे एक ऐसी विधि से फांसी का सामना करना था, जिस का उपयोग अमेरिका के मृत्युदंड में पहले कभी नहीं किया गया था. यह एक ऐसी तकनीक है, जिसे सुअरों के अलावा अधिकांश जानवरों की इच्छामृत्यु के लिए पशु चिकित्सकों द्वारा नैतिक आधार पर खारिज कर दिया गया था.

पहली मौत के तरीके से कैसे बचा केनिथ

होल्डिंग यूनिट में केनिथ को बाहरी फोन काल करने के लिए 15 मिनट का समय मिल गया था. इस समय में उस की बात घर वालों के अलावा मीडियाकर्मियों से भी हुई थी. हालांकि स्मिथ ने हौलमैन जेल से अमेरिका के बड़े अखबार ‘गार्जियन’ से भी संपर्क किया था. उस ने उन्हें अपनी असली स्थिति का वर्णन करते हुए कहा था कि वह एक फांसी से बच गया था, किंतु उसे दूसरी बार जिस प्रक्रिया से गुजरना है वह बिलकुल ही प्रयोग में नहीं है.

”क्या वह इस के लिए तैयार है?’’ इस सवाल के जवाब में उस ने साफतौर पर कहा, ”मैं इस के लिए किसी भी तरह से तैयार नहीं हूं. मैं अभी तैयार नहीं हूं, भाई..!’’

दरअसल, वह पहले का मृत्युदंड असफल होने पर काफी मानसिक तनाव से भर गया था. इस दौरान जेल मनोचिकित्सक ने पाया था कि वह अनिद्रा, चिंता और अवसाद से पीडि़त है. इसे ध्यान में रखते हुए इसे दूर करने के लिए उस का उपचार किया गया, दवाइयां दी गईं. उस की शरीरिक क्षमता संतुलित बनाए रखने और माइग्रेन को नियंत्रित करने के लिए कई दवाओं का एक काकटेल दिया गया था.

इस बारे में उस ने बताया कि उसे बारबार बुरे सपने आते थे, इस कारण सो नहीं पाता था. फांसी के पहले प्रयास के बाद उसे मृत्युकक्ष से वापस ले जाने का बुरा सपना बारबार आता था. उस ने कहा, ‘मुझे बस सपने में कमरे में चलना फिरना था, मैं बिलकुल डरा हुआ था,  नहीं चाहते हुए भी बुरे सपने आते ही रहे.’

इसी के साथ उस ने यह भी कहा, ”जब 25 जनवरी को दूसरी बार फांसी की तारीख दी गई, तब से बुरे सपनों का एक नया दौर शुरू हो गया था. मुझे सपना आने लगा कि वे मुझे लेने आ रहे हैं.’’

अब फांसी के कक्ष से उस की दूसरी मुलाकात होनी थी. जैसेजैसे वह उस के करीब आ रही थी, वैसेवैसे उस की बेचैनी बढऩे लगी थी. उस ने महसूस किया कि उस की शारीरिक और मानसिक स्थिति बिगड़ रही है.

उस ने पेट खराब होने की शिकायत की, साथ ही बताया कि उसे उल्टी भी होती रहती थी. यानी वह कई तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियों के दौर से गुजर रहा था. हालांकि अस्पताल की नर्स ने भी उसे तनाव में डाल दिया था. वह आघात पर आघात झेलते हुए एक असामान्य दौर में था.

उस ने कहा, ”अस्पताल के पुरुष नर्स ने मुझे संभलने का मौका ही नहीं दिया. मैं अभी भी पहली फांसी से पीडि़त हूं और अब हम इसे दोबारा कर रहे हैं. वह मुझे बीते हुए बुरे सपने, पुरानी यादों की अनुभूतियों और सदमे से वापस आने नहीं दे रहे हैं, जिस से मेरी व्याकुलता बढ़ जाती है. मूड खराब हो जाता है. आप सभी जानते हैं कि यह निरंतर चलने वाला तनाव है.’’

केनिथ ने इसे ले कर कल्पना करने को कहा, ”क्या होगा यदि दुव्र्यवहार के शिकार व्यक्ति के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया जाए? या फिर उस तरह के माहौल में वापस जाने के लिए मजबूर किया जाए, जिस से उसे आघात पहुंचा हो. जिस व्यक्ति ने ऐसा किया, उसे एक राक्षस के रूप में देखा जाएगा.’’

इस हाल में क्यों पहुंचा केनिथ

बात 18 मार्च, 1988 ही है. अलबामा के कोलबर्ट काउंटी में एक पादरी की पत्नी एलिजाबेथ डोरलीन थार्न सेनेट की उन के घर में चाकू मार कर हत्या कर दी गई थी. एक हफ्ते बाद उस के पति चाल्र्स सेनेट, जोकि चर्च औफ क्राइस्ट में मंत्री थे, ने खुदकुशी कर ली थी.

इस की जांच शुरू हुई और मामला अदालत में गया. वहां मालूम हुआ कि चाल्र्स सेनेट कर्ज में डूबा हुआ था. उस की पत्नी के नाम पर बीमा था. हालांकि जांच में यह भी पाया गया कि चाल्र्स के किसी के साथ अवैध संबंध थे.

एलिजाबेथ डोरलीन सेनेट अमेरिका के क्लीवलैंड, कुयाहोगा काउंटी, ओहियो की रहने वाली थी. उस के जन्म की तरीख 10 दिसंबर, 1942 थी और 45 वर्ष की उम्र में उस की अलबामा के शेफील्ड, कोलबर्ट काउंटी में हत्या कर दी गई थी. उसे डेंपसी कब्रिस्तान, रेड बे, फ्रैंकलिन काउंटी, अलबामा में दफनाया गया था.

उस की मौत की जांच में पाया गया कि वह पति के द्वारा ही मार डाली गई थी. इस के लिए पति ने भाड़े के हत्यारे की मदद ली थी. उस के सीने में 8 और गरदन के दोनों तरफ एकएक बार चाकू से वार किया गया था. शरीर पर कई खरोंचें और कट के निशान थे. दोनों भाड़े के हत्यारों ने पहले उसे चाकू मारा और फिर पीटपीट कर मार डाला था.

जांच में इस हत्या का दोषी केनिथ स्मिथ ठहराया गया. उसे भाड़े का हत्यारा साबित कर दिया गया था. बदले में चाल्र्स सेनेट ने उसे और एक अन्य व्यक्ति फोरेस्ट पार्कर को 1,000 डालर दिए थे. हालांकि जब संदेह की सुई उस की ओर घूमी, तब उस ने अपनी ही जान ले ली.

पार्कर को दोषी पाए जाने के बाद 2010 में जहरीला इंजेक्शन दे कर मौत की सजा दे दी गई थी. स्मिथ ने दावा किया था कि वह उस जगह मौजूद जरूर था, जहां हत्या हुई, लेकिन उस का हत्या में कोई हाथ नहीं था. इस के बाद जांच की लंबी प्रक्रिया में साल 1996 में उसे मौत की सजा सुना दी गई थी.

शुरुआती जांच के सिलसिले में सेनेट ने दावा किया कि उस की पत्नी एलिजाबेथ सेनेट कोलबर्ट काउंटी में कून डौग कब्रिस्तान रोड पर अपने घर में मृत पड़ी थी. उसे चाकू मार दिया गया था और उस की पिटाई की गई थी. जांचकर्ताओं ने घटनास्थल की गहनता से जांच की. अपनी जांच में उन्होंने पाया कि पादरी ने घटनास्थल पर आक्रमण और चोरी की तरह दिखाने वाले दृश्य बना रखे थे.

तमाम नाटकीय घटनाक्रमों के तहत की गई पूछताछ और जांच प्रक्रिया में आखिरकार  केनिथ स्मिथ ने अंत में जौन फारेस्ट पार्कर और इस की व्यवस्था करने वाले एक तीसरे व्यक्ति के साथ अपनी भूमिका कुबूल कर ली. केनिथ को शुरू में 1989 में दोषी ठहराया गया था और एक जूरी ने मौत की सजा की सिफारिश करने के लिए 10-2 से वोट दिया था, जिसे एक न्यायाधीश ने लगाया था. 1992 में अपील पर उन की सजा को पलट दिया गया था.

उस पर दोबारा मुकदमा चलाया गया और 1996 में उसे फिर से दोषी ठहरा दिया गया. इस बार जूरी ने 11-1 के वोट से आजीवन कारावास की सिफारिश की, लेकिन एक न्यायाधीश ने जूरी की सिफारिश को खारिज कर दिया और उसे मौत की सजा सुना दी.

मामला अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. केनिथ ने फांसी रोकने का अनुरोध किया, जो खारिज कर दिया गया.

क्या हुआ मौत को करीब से देख कर

मौत को एक बार फिर करीब आता देख कर केनिथ की आखिरी प्रतिक्रिया थी, ”काश! मैं ने चीजें अलग तरीके से की होतीं.’’

उस ने 35 साल जेल में बिताए थे. जेल में उस के व्यवहार में कोई आक्रामकता नहीं देखी गई. न अधिकारियों के साथ और न ही किसी अन्य के साथ… एक भी लड़ाई नहीं, एक भी विवाद नहीं. फिर भी अलबामा और पूरे अमेरिका में कई लोगों का मानना था कि उस ने जो किया, वह कतई माफी के लायक नहीं.

केनिथ के वकीलों ने भी कहा है कि इस तरीके का अभी तक परीक्षण नहीं हुआ है और यह अमेरिकी संविधान के ‘क्रूर और असामान्य सजाओं’ के प्रतिबंध का उल्लंघन कर सकता है. उन्होंने यह भी कहा है कि किसी भी तरीके से दूसरी बार मृत्युदंड देने की कोशिश भी असंवैधानिक है.

हालांकि अमेरिका में मृत्युदंड के अधिकांश मामलों में बारबिटुरेत नाम की दवा की घातक डोज दी जाती है, लेकिन कुछ राज्यों को यूरोपीय संघ के एक प्रतिबंध की वजह से यह दवा हासिल करने में दिक्कत आने के कारण संघ ने दवा कंपनियों को जेलों में मृत्युदंड देने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं बेचने से प्रतिबंधित कर दिया है.

केनिथ स्मिथ को डेथ सेल में तय कार्यक्रम के मुताबिक 25 जनवरी की शाम को ले जाया गया, जबकि नाइट्रोजन गैस से मौत की सजा को ले कर पूरे अमेरिका में विरोध हो रहा था. इस दौरान केनिथ के आध्यात्मिक सलाहकार रेवरेंड जेफ हुड वहां मौजूद थे.

उन्होंने केनिथ को मौत के आगोश में समाते हुए देखा और जो महसूस किया. फिर उस बारे में मीडिया से जिक्र किया. पहली प्रतिक्रिया के रूप में वह बोले, ”यह डरावनी फिल्म जैसा था. मरने में 22 मिनट लगे, तब तक तड़पता रहा शख्स.’’

जैफ हुड ने बताया, ”इस दौरान केनिथ स्मिथ ने अपनी मुट्ठियां भींच रखी थीं और उस के पैर कांप रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे वह सांस लेने के लिए तड़प रहा हो.

”उसे देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे वह एक मछली है, जिसे पानी से निकाल दिया गया है. वहां मौजूद सभी लोगों के चेहरे पर डर था. नाइट्रोजन गैस देते ही वह करीब 4 मिनट तक छटपटाता रहा. हम ने जो देखा वह कुछ मिनटों में किसी को अपने जीवन के लिए संघर्ष करते हुए देखना था.’’

अलबामा के जेल अधिकारियों के मुताबिक सब से पहले केनिथ को एक चैंबर में ले जा कर स्ट्रेचर पर बांध दिया था. उस के मुंह पर एक इंडस्ट्रियल मास्क पहनाया गया था. इस में नाइट्रोजन गैस छोड़ी गई. इसे सूंघते ही यह गैस पूरे शरीर में फैल गई और उस के बाद पूरे शरीर ने काम करना बंद कर दिया. इस से स्मिथ की मौत हो गई.

हालांकि मास्क पहना कर नाइट्रोजन गैस सुंघाने से उल्टी भी हो सकती थी, इस से मौत की सजा देने की प्रक्रिया बाधित हो सकती थी. ऐसा स्मिथ के वकील ने दलील दी थी. इस से बचने के लिए जेल अधिकारियों ने केनिथ को सुबह 10 बजे के बाद से खाली पेट रखा था. उसे कुछ भी खाने को नहीं दिया गया था.

स्थानीय समयानुसार शाम 7.57 बजे से रात 8.01 बजे के बीच, केनिथ को दर्द और ऐंठन होने लगी. उस ने गहरी सांसें लीं, उस का शरीर जोरजोर से कांपने लगा और उस की आंखें घूम रही थीं.

केनिथ की मौत हो जाने के बाद अलबामा के सुधार आयुक्त जौन हैम ने बाद में एक संवाददाता सम्मेलन बुलाया. उस में उन्होंने बताया कि ऐसा प्रतीत हुआ कि केनिथ स्मिथ जब तक संभव हो सका, अपनी सांसें रोके हुए था.

इस अनोखी सजा पर क्या थीं प्रतिकियाएं

सीएनएन के जरिए सामान्य लोगों तक अलबामा के अटौर्नी जनरल स्टीव मार्शल का यह संदेश पहुंचाया गया कि नाइट्रोजन गैस से मौत की सजा दिए जाने के तरीके की टेस्टिंग हो चुकी है. यह सही साबित हुआ है. राज्य में 43 और लोगों को इसी तरह मौत की सजा दी जाएगी. कई और राज्य भी इस पर विचार कर रहे हैं. हम इस में मदद करने के लिए भी तैयार हैं.

दूसरी तरफ यूनाइटेड नैशन, यूरोपीय यूनियन और वाइट हाउस ने भी इसे ले कर चिंता जताई. वाइट हाउस प्रवक्ता कैरीन जीन पियरे का कहना था कि मौत की सजा देने के लिए नाइट्रोजन गैस का इस्तेमाल परेशान करने वाला है. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इसे ले कर चिंता जताई.

ईयू के  प्रवक्ता के अनुसार यह खासतौर पर क्रूर और असामान्य सजा है. इस में ह्यूमन राइट्स चीफ वोल्कर टर्क ने प्रतिक्रिया दी कि नाइट्रोजन गैस से मौत की सजा को ले कर कोई टेस्टिंग नहीं हुई है. यह मुमकिन है कि ऐसा किया जाना टौर्चर और अमानवीय ट्रीटमेंट भी.

नाइट्रोजन से ही क्यों दी मौत?

जिस नई विधि से केनिथ को मृत्युदंड देने की योजना बनाई गई, नाइट्रोजन हाइपौक्सिया के रूप में जाना जाता है. इस में कैदी को शुद्ध नाइट्रोजन गैस सांस लेने के लिए मजबूर करना शामिल है, एक गैस जो प्राकृतिक रूप से हवा में इतनी उच्च सांद्रता में मौजूद होती है कि इस से औक्सीजन की कमी हो जाती है और अंत में मृत्यु हो जाती है. नाइट्रोजन एक प्राकृतिक रूप से  पाई जाने वाली गंधहीन और रंगहीन गैस है.

यह प्रचुर मात्रा में है. पृथ्वी के वायुमंडल और मिट्टी में पाई जाती है और इस का उपयोग भोजन को तरल रूप में तेजी से जमा करने के लिए किया जा सकता है. इसे भी रसायनशास्त्र के सूत्र के रूप में औक्सीजन (ह्र२) की तरह (हृ२) लिखा जाता है.

इसी गैस को एक उचित मात्रा में औक्सीजन के साथ मिलाए बगैर सांस के साथ अंदर लेने पर शरीर के भीतर प्रतिकूल प्रभाव देती है, जिस से असामान्य थकान, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है.

इस के इसी गुण को देखते हुए नाइट्रोजन गैस को मृत्युदंड के एक तरीके के तौर पर चुना गया. डाक्टर की सलाह के अनुसार अलबामा जेल के अधिकारियों ने औक्सीजन के साथ मिश्रण किए बिना शुद्ध नाइट्रोजन गैस देने की योजना बनाई.

नाइट्रोजन को किसी भी मात्रा में औक्सीजन या कहें किसी भी मात्रा में हवा के साथ मिलाए जाने की स्थिति में इस से मौत होने में समय लगता है.

यह कहें कि यह कभी भी मृत्यु का कारण नहीं बन सकती है.  इसे देखते हुए ही केनिथ की कानूनी टीम ने एक संघीय न्यायाधीश के सामने तर्क दिया था कि नाइट्रोजन हाइपौक्सिया का उपयोग क्रूर होने के साथ साथ असामान्य सजा पर संवैधानिक प्रतिबंध का उल्लंघन होगा.

स्मिथ की ओर से गवाही देने वाले एक एनेस्थीसियोलौजिस्ट ने तब कहा था कि उसे उल्टी हो सकती है, जिस से उस का दम घुट सकता है, दम घुटने की अनुभूति हो सकती है या उस के बेहोश होने की आशंका बन भी सकती है. बहरहाल, केनिथ स्मिथ को नाइट्रोजन गैस से मौत की सजा देने की दुनिया भर में चर्चा हो रही है.

अंधविश्वास में दी मासूम बच्ची की बलि – भाग 3

कंचन के हत्यारों को पकड़ने तथा आला कत्ल बरामद करने की जानकारी थानाप्रभारी ने पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी थाने में पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास से घटना के संबंध में विस्तार से पूछताछ की. इस के बाद डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित कर कंचन की हत्या का खुलासा किया.

चूंकि अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश ने कंचन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, अत: थानाप्रभारी ने दोनों को अपहरण और हत्या के आरोप में विधिसम्मत बंदी बना लिया. पुलिस जांच और अभियुक्तों के बयानों के आधार पर अंधविश्वास और लालच में मासूम बच्ची कंचन की हत्या की सनसनीखेज कहानी इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के थाना बिंदकी के अंतर्गत एक गांव है नंदापुर. इसी गांव में मुकेश कुशवाहा अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी संध्या के अलावा एक बेटी रमन थी. मुकेश के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. इसी की उपज से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

संध्या चाहती थी बेटा

बेटी के जन्म के बाद संध्या एक बेटा भी चाहती थी. लेकिन बेटी रमन 8 साल की हो गई थी, उसे दूसरा बच्चा नहीं हो रहा था. जिस की वजह से संध्या चिंतित रहने लगी थी. अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए वह वह विभिन्न मंदिरों में जाने लगी थी. वह हर सोमवार घाटमपुर स्थित कुष्मांडा देवी मंदिर जाती. एक तरह से वह धार्मिक विचारों वाली हो गई थी.

इसी बीच वह सितंबर 2016 में गर्भवती हो गई और मई 2017 में संध्या ने एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया. इस बच्ची का नाम उस ने कंचन रखा. संध्या को हालांकि बेटे की चाह थी लेकिन दूसरी बच्ची के जन्म से उसे इस बात की खुशी हुई कि उस की कोख तो खुल गई. मुकेश भी कंचन के जन्म से बेहद खुश था. खुशी में उस ने अपने समाज के लोगों को भोज भी कराया.

नंदापुर गांव के पास ही एक किलोमीटर की दूरी पर सैमसी गांव बसा हुआ है. दोनों गांवों के बीच एक नाला बहता है, जो सैमसी नाले के नाम से जाना जाता है. सैमसी गांव में हेमराज रहता था. 3 भाइयों में वह सब से छोटा था. उस की अपने भाइयों से पटती नहीं थी. अत: वह उन से अलग रहता था.

जमीन का बंटवारा भी तीनों भाइयों के बीच हो गया था. हेमराज झगड़ालू प्रवृत्ति का था अत: गांव के लोग उस से दूरी बनाए रखते थे. उस के अन्य भाइयों की शादी हो गई थी, जबकि हेमराज की नहीं हुई थी.

हेमराज का मन न तो खेती किसानी में लगता था और न ही किसी कामधंधे में. उस ने अपनी जमीन भी बंटाई पर दे रखी थी. वह तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ा रहता था. कानपुर, उन्नाव और फतेहपुर शहर के कई तांत्रिकों के पास उस का आनाजाना रहता था.

इन तांत्रिकों से वह तंत्रमंत्र करना सीखता था. तंत्रमंत्र की किताबें भी पढ़ने का उसे शौक था. किताबों में लिखे मंत्रों को सिद्ध करने के लिए वह अकसर देर रात को पूजापाठ भी करता रहता था.

तांत्रिकों की संगत में रह कर हेमराज ने अंधविश्वासी लोगों को ठगने के सारे हथकंडे सीख लिए थे. उस के बाद वह अपने गांव सैमसी में तंत्रमंत्र की दुकान चलाने लगा. प्रचार प्रसार के लिए उस ने कुछ युवक युवतियों को लगा दिया, जो गांवगांव जा कर उस का प्रचार करते थे. इस के एवज में वह उन्हें खानेपीने की चीजों के अलवा कुछ रुपए भी दे देता था.

अंधविश्वासी आने लगे हेमराज के पास

शुरूशुरू में तो उस की तंत्रमंत्र की दुकान ज्यादा नहीं चली लेकिन ज्योंज्यों उस का प्रचार होता गया, उस का धंधा भी चल निकला. फरियादी उस के दरबार में आने लगे और चढ़ावा भी चढ़ने लगा. हेमराज के तंत्रमंत्र के दरबार में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का आनाजाना अधिक होता था. क्योंकि महिलाएं अंधविश्वास पर जल्दी भरोसा कर लेती हैं.

उस के दरबार में ऐसी महिलाएं आतीं, जिन के संतान नहीं होती. तांत्रिक हेमराज उन्हें संतान देने के नाम पर बुलाता और उन से पैसे ऐंठता. कोई कमजोर कड़ी वाली औरत मिल जाती तो उस का शारीरिक शोषण करने से भी नहीं चूकता था. लोकलाज के डर से वह महिला अपनी जुबान नहीं खोलती थी. सौतिया डाह, बीमारी, भूतप्रेत जैसी समस्याओं से ग्रस्त महिलाएं भी उस के पास आती रहती थीं. अंधविश्वासी पुरुषों का भी उस के पास आनाजाना लगा रहता था.

वह आसपास के शहरों में प्रसिद्ध हो गया तो उस के कई चेले भी बन गए. लेकिन सेलावन गांव का शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास उस का सब से विश्वासपात्र चेला था. शिवप्रकाश हृष्टपुष्ट व स्मार्ट था. वह दूध का धंधा करता था. आसपास के गांवों से दूध इकट्ठा कर उसे शहर जा कर बेचता था.

शिवप्रकाश एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था. बताया जाता है कि तब तांत्रिक हेमराज ने उसे तंत्रमंत्र की शक्ति से ठीक किया था. तब से वह तांत्रिक हेमराज का खास चेला बन गया था. फुरसत के क्षणों में शिवप्रकाश हेमराज के दरबार में पहुंच जाता था.

20 मार्च को होली थी. होली के 8 दिन पहले एक रात हेमराज को सपना आया कि उस के खेत में काफी सारा धन गड़ा है. इस धन को पाने के लिए उसे तंत्रसाधना करनी होगी और मां काली के सामने बच्चे की बलि देनी होगी. सपने की बात को सच मान कर हेमराज के मन में लालच आ गया और उस ने खेत में गड़ा धन पाने के लिए किसी बच्चे की बलि देने का निश्चय कर लिया.

हर होली दिवाली पर चढ़ाता था बलि

तांत्रिक हेमराज वैसे तो हर होली दिवाली की रात मुर्गे या बकरे की बलि देता था, लेकिन इस बार उस ने धन पाने के लालच में किसी मासूम की बलि देने की ठान ली. इस बाबत हेमराज ने अपने खास चेले शिवप्रकाश से बात की तो वह भी उस का साथ देने को तैयार हो गया. फिर गुरुचेला किसी मासूम की तलाश में जुट गए.

शिवप्रकाश उर्फ ननकू का नंदापुर गांव में आनाजाना था. वहां वह दूध व खोया की खरीद के लिए जाता था. होली के 2 दिन पहले ननकू, नंदापुर गांव गया तो उस की निगाह मुकेश कुशवाहा की 2 वर्षीय बेटी कंचन पर पड़ी. वह दरवाजे के पास खड़ी थी और मंदमंद मुसकरा रही थी. शिवप्रकाश ने इस मासूम के बारे में अपने गुरु हेमराज को खबर दी तो उस की बांछें खिल उठीं. फिर दोनों कंचन की रैकी करने लगे.

21 मार्च को होली का रंग खेला जा रहा था तथा फाग गाया जा रहा था. शाम 5 बजे के लगभग शिवप्रकाश अपने गुरु हेमराज को साथ ले कर अपनी मोटरसाइकिल से नंदापुर गांव पहुंचा फिर फाग की टोली में शामिल हो गया.

शाम 7 बजे के लगभग दोनों मुकेश कुशवाहा के दरवाजे पर पहुंचे. उस समय कंचन घर के बाहर खेल रही थी. तांत्रिक हेमराज ने दाएं बाएं देखा फिर लपक कर उस बच्ची को गोद में उठा लिया. इस के बाद बाइक पर बैठ कर दोनों निकल गए.

रात के अंधेरे में हेमराज कंचन को अपने घर लाया और नशीला दूध पिला कर उसे बेहोश कर दिया. इस के बाद उस ने बेहोशी की हालत में कंचन का शृंगार किया. शरीर पर भभूत और सिंदूर लगाया. पांव में महावर लगाई, माथे पर टीका तथा गले में फूलों की माला पहनाई. फिर तंत्रमंत्र वाले कमरे में ला कर उसे मां काली की मूर्ति के सामने लिटा दिया. कमरे में हेमराज के अलावा उस का चेला शिवप्रकाश भी था.

हेमराज ने कंचन की पूजाअर्चना की तथा कुछ मंत्र बुदबुदाता रहा. इस के बाद वह गंडासा लाया और मां काली के सामने हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मां, मैं बच्चे की बलि आप को भेंट कर रहा हूं. इस बलि को स्वीकार कर के आप मेरी इच्छा पूरी करना.’’

कहते हुए हेमराज ने गंडासे से कंचन का एक हाथ व एक पैर काट दिया. इस के बाद उस ने उस बच्ची का पेट भी चीर दिया. ऐसा होते ही खून कमरे में फैलने लगा. वह कुछ क्षण छटपटाई, फिर दम तोड़ दिया.

दूसरी रात उस ने कंचन के शव को सफेद कपड़े में लपेटा और शिवप्रकाश के साथ गांव के बाहर नाले में फेंक आया. इधर मुकेश फाग गा कर घर आया तो उसे कंचन नहीं दिखी, तो उस ने उस की खोज शुरू कर दी. दूसरे दिन उस के चाचा ने थाना बिंदकी में गुमशुदगी दर्ज कराई.

पुलिस ने तथाकथित तांत्रिक हेमराज और उस के चेले शिवप्रकाश से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें 28 मार्च, 2019 को रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक दोनों की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सोने की चेन ने बनाया कातिल

अंधविश्वास में दी मासूम बच्ची की बलि – भाग 2

सूचना पा कर थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल पुलिस टीम के साथ नाले की ओर रवाना हो गए. थाना बिंदकी से सैसमी गांव करीब 5 किलोमीटर दूर है. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने नाले में तैरते हुए उस सफेद कपड़े को बाहर निकलवाया, जिस में कुछ बंधा था. पुलिस ने जैसे ही वह कपड़ा हटाया तो उस में वास्तव में एक बच्ची की लाश निकली. उस लाश को देखते ही वहां खड़ा मुकेश कुशवाहा दहाड़ मार कर रो पड़ा. वह लाश उस की मासूम बच्ची कंचन की ही थी.

2 वर्षीय मासूम कंचन की लाश जिस ने भी देखी, उसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली. क्योंकि कंचन की हत्या किसी रंजिश के चलते नहीं की गई थी. बल्कि उस की बलि दी गई थी. उस बच्ची का शृंगार किया गया था. पैरों में महावर (लाल रंग) तथा माथे पर टीका लगा था. उस का एक हाथ व एक पैर काटा गया था. उस का पेट भी फटा हुआ था.

बच्ची की बलि चढ़ाई जाने की खबर जंगल की आग की तरह पासपड़ोस के गांवों में फैली तो घटनास्थल पर भीड़ और बढ़ गई. बलि चढ़ाए जाने के विरोध में भीड़ उत्तेजित हो गई और शव रख कर हंगामा करने लगी. भीड़ तब और उग्र हो गई जब थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह ने भीड़ को यह कह कर समझाने का प्रयास किया कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है.

लोगों को उत्तेजित देख कर थानाप्रभारी के हाथ पांव फूल गए. उन्होंने उपद्रव की आशंका को देखते हुए कंचन का शव ग्रामीणों से छीन लिया और थाने में ले आए. पुलिस की इस काररवाई से लोग और भड़क गए. तब लोग ट्रैक्टर ट्रौलियों में भर कर बिंदकी थाने पहुंचने लगे.

कुछ ही समय बाद सैकड़ों लोग थाने में जमा हो गए. ग्रामीणों ने थाने का घेराव कर दिया. उन्होंने ट्रैक्टर ट्रौलियों को सड़क पर आड़ेतिरछे खड़ा कर मुगल रोड जाम कर दिया. इस से कई किलोमीटर तक जाम लग गया. घटना के विरोध में लोग हंगामा कर पुलिस विरोधी नारे लगाने लगे.

थानाप्रभारी की वजह से भड़क गए लोग

थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को यकीन था कि वह हलका बल प्रयोग कर ग्रामीणों को शांत करा देंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. बल प्रयोग के बावजूद उत्तेजित भीड़ ने पुलिस के कब्जे से कंचन का शव छीन लिया और उसे सड़क पर रख कर हंगामा करने लगे. मजबूरन थानाप्रभारी को हंगामा व सड़क जाम की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देनी पड़ी. उन्होंने अधिकारियों से अतिरिक्त पुलिस फोर्स भेजने का भी आग्रह किया.

कुछ ही समय बाद एसपी कैलाश सिंह, डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी भारी पुलिस बल के साथ बिंदकी थाने पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि जिस ने भी मासूम की बलि दी है, उसे बख्शा नहीं जाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस ने यदि कोताही बरती है तो संबंधित पुलिसकर्मी के खिलाफ भी काररवाई की जाएगी. डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने कहा कि आप लोग सिर्फ 2 दिन का समय दें. इस बच्ची का कातिल आप लोगों के सामने होगा.

पुलिस अधिकारियों के आश्वासन पर उत्तेजित ग्रामीणों ने कंचन का शव पुलिस को सौंप दिया और जाम हटा दिया. फिर पुलिस अधिकारियों ने आननफानन में कंचन के शव को पोस्टमार्टम हाउस फतेहपुर भिजवा दिया. साथ ही बवाल की आशंका को देखते हुए नंदापुर गांव में पुलिस तैनात कर दी.

थाना बिंदकी पुलिस को आशंका थी कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस की आशंका को खारिज कर दिया. रिपोर्ट के अनुसार कंचन की हत्या की गई थी. उस के एक हाथ व एक पैर को किसी धारदार हथियार से काटा गया था. पेट को किसी नुकीली चीज से फाड़ा गया था. अधिक खून बहने से ही उस की मौत होने की बात कही गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल ने मुकेश के चाचा रामखेलावन की तरफ से भादंवि की धारा 364, 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और मासूम कंचन के हत्यारों की तलाश शुरू कर दी.

तांत्रिक ने स्वीकारी बलि देने की बात

चूंकि कंचन की बलि देने की बात कही जा रही थी और बलि किसी न किसी तांत्रिक ने ही दी होगी. अत: थानाप्रभारी ने तंत्रमंत्र करने वालों की खोज शुरू कर दी. इस के लिए उन्होंने अपने खास मुखबिर भी लगा दिए. मुखबिरों ने नंदापुर व उस के आसपास के गांवों में अपना जाल फैला दिया. जल्द ही उस का परिणाम भी सामने आ गया.

27 मार्च, 2019 की शाम 7 बजे मुखबिर ने थानाप्रभारी को बताया कि सैमसी गांव का हेमराज तंत्रमंत्र करता है. उस के यहां लोगों का आनाजाना लगा रहता है. लेकिन कंचन के गुम होने के बाद उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान बंद कर दी है. गांव के लोगों को शक है कि हेमराज ने ही मासूम की बलि चढ़ाई होगी.

मुखबिर की सूचना मिलने के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ रात 10 बजे सैमसी गांव में हेमराज के घर पहुंच गए. वह घर पर ही मिल गया तो वह उसे हिरासत में ले कर थाने आ गए.

हेमराज से कंचन की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि वह तंत्रमंत्र करता है और होली, दिवाली जैसे बडे़ त्यौहारों पर बलि देता है. लेकिन इंसान की बलि नहीं देता. वह तो साधना के बाद मुर्गा या बकरा की बलि देता है. फिर मांस को प्रसाद के तौर पर अपने खास मित्रों में बांट देता है. कंचन की बलि देने का उस पर झूठा आरोप लगाया जा रहा है.

तांत्रिक हेमराज ने जिस तरह से अपने बचाव में दलील दी थी, उस से श्री चंदेल को एक बार ऐसा लगा कि हेमराज सच बोल रहा है. लेकिन दूसरे ही क्षण वह सोचने लगे कि अपराधी अपने बचाव में ऐसी दलीलें अकसर ही पेश करता है. अत: उन्होंने उस की बात को नकारते हुए उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ शुरू की. लगभग एक घंटे की मशक्कत के बाद रात करीब 12 बजे तांत्रिक हेमराज टूट गया और उस ने कंचन की बलि देने की बात कबूल कर ली.

तांत्रिक हेमराज ने बताया कि उस ने तंत्रमंत्र सिद्ध करने तथा जमीन में गड़ा धन प्राप्त करने के लिए ही कंचन की बलि दी थी. तंत्रसाधना के इस अनुष्ठान में सेलावन गांव का रहने वाला उस का चेला शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास भी शामिल था.

लालच में चढ़ाई थी बलि

उसी की मोटरसाइकिल पर कंचन के शव को रख कर गांव के बाहर नाले में फेंक दिया था. तांत्रिक हेमराज के चेले शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास को पकड़ने के लिए रात के अंतिम पहर में पुलिस ने उस के घर दबिश दी. वह भी घर पर मिल गया और उसे बंदी बना लिया गया. उसे भी थाने ले आए.

थाने में जब उस की मुलाकात हेमराज से हुई तो वह सब समझ गया. अत: उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. हेमराज की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त गंडासा बरामद कर लिया, जिसे उस ने अपने घर में छिपा दिया था.

पुलिस ने हेमराज के कमरे से पूजन सामग्री, फूल माला, भभूत, सिंदूर, तंत्रमंत्र की किताबें आदि बरामद कीं. पुलिस ने शिवप्रकाश की वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जो उस ने शव ठिकाने लगाने में प्रयोग की थी.