सोफे में छिपाई लाश का राज

मुंबई से सटे ठाणे स्थित चर्चित कालोनी डोंबीवली में ओम साईं रेजीडेंसी की एक बिल्डिंग में किशोर शिंदे का परिवार 14 फरवरी की सुबह तक काफी खुशहाल जिंदगी गुजार रहा था. सुबहसुबह शिंदे अपने औफिस जाने की तैयारी कर रहे थे. पत्नी सुप्रिया उन के लिए नाश्ता लगा चुकी थी.

नाश्ता कर निकलते समय जब सुप्रिया ने अपने पति शिंदे को लंच का टिफिन पकड़ाया, तब उन की नजर पत्नी के उतरे हुए चेहरे पर ठहर गई. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या बात है सुप्रिया, तुम सुस्त दिख रही हो?’’

‘‘हां, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है.’’ सुप्रिया धीमी आवाज में बोली.

‘‘घर का काम ज्यादा करने की आज जरूरत नहीं है. तुम आराम कर लो, कपड़े मशीन में डाल कर छोड़ देना, ड्यूटी से आ कर चला दूंगा… रात को कपडे़ धुल जाएंगे,’’ शिंदे ने कहा.

‘‘लेकिन श्लोक स्कूल जा चुका है, दोपहर को उसे लाना होगा.’’ सुप्रिया बोली.

‘‘कोई बात नहीं, स्वाति को बोल देना वह उसे अपने बच्चों के साथ ही लेती आएगी.’’

‘‘ठीक है, वैसे एकडेढ़ घंटे की नींद ले लूंगी, तब ठीक हो जाएगा. सिर दर्द ही तो है,’’ सुप्रिया बोली.

‘‘ठीक है. कुछ खाना खा कर सिरदर्द की दवा ले लेना. मैं निकलता हूं,’’ कहते हुए शिंदे अपना बैग और टिफिन ले कर मुंबई के लिए निकल पड़े. पहले वह लोकल ट्रेन पकड़ कर चर्चगेट जाते, फिर उन्हें बस ले कर औफिस तक जाना होता था. परिवार में सदस्य के नाम पर सुप्रिया और उन का 10 साल का बेटा श्लोक था. बेटे का स्कूल हाल में ही खुला था. उसे लाने के लिए दोपहर में सुप्रिया उस के स्कूल तक जाती थी.

शाम के करीब साढ़े 4 बजे स्वाति ने शिंदे को फोन कर पूछा कि सुप्रिया श्लोक को लेने स्कूल क्यों नहीं आई? इस पर शिंदे अनमने भाव से बोले, ‘‘हां, सुबह उस ने बताया था कि उस की तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है, इसलिए नहीं गई होगी. श्लोक घर आ गया न?’’

‘‘हां श्लोक तो मेरे साथ आ गया है, लेकिन घर पर मां को नहीं पा कर मुझ से ही उस के बारे में पूछने आया था. मेरे घर पर ही नाश्ता किया और अभी श्लोक दोस्तों के साथ ग्राउंड में खेलने गया हुआ है,’’ स्वाति बोली.

‘‘सुप्रिया घर पर नहीं है? वह कहां गई होगी?’’ शिंदे चिंतित हो कर बोले.

‘‘यही पूछने के लिए तो मैं ने आप को फोन किया है. उस का फोन भी नहीं मिल रहा है, मैं घर जा कर भी देख चुकी हूं. घर का दरवाजा भी बंद है. श्लोक का स्कूल बैग भी बाहर बरामदे में पड़ा है. भाईसाहब, मुझे तो डर लग रहा है, आप जल्द आ जाइए.’’ स्वाति घबराहट भरी आवाज में बोली.

‘‘घर पर भी नहीं है. फिर कहां गई होगी? दवा वगैरह लाने या डाक्टर के पास तो नहीं गई? कहीं तबीयत ज्यादा तो नहीं बिगड़ गई उस की? अभी मैं उसे फोन करता हूं.’’ शिंदे बोले और तुरंत सुप्रिया को मोबाइल पर फोन करने के लिए स्वाति का काल डिसकनेक्ट कर दिया.

शिंदे ने सुप्रिया को फोन मिलाया. लेकिन उस का फोन बंद आ रहा था. शिंदे चिंतित हो गए. तब उन्होंने पड़ोसी दोस्त को घर जा कर सुप्रिया का पता करने को कहा. दोस्त ने भी 5 मिनट में आ कर वही सब बताया जो स्वाति ने कहा था. शिंदे ने फटाफट औफिस का बचा काम निपटाया और शाम के 7 बजे तक घर आ गए.

घर का दरवाजा भीतर से बंद था. बेटा श्लोक ग्राउंड से खेल कर घर आ चुका था. बरामदे में कुछ पड़ोसी भी जमा थे. सुप्रिया बाहर जाने पर अकसर घर की चाबी अपने पड़ोसी के पास छोड़ जाती थी. लेकिन उस रोज सुप्रिया ने ऐसा नहीं किया था.

इसे ले कर एक सवाल सभी के मन में कुलबुला रहा था कि आखिर सुप्रिया कहां है? खैर, शिंदे ने अपने बैग से घर के इंटरलौक की एक्सट्रा चाबी से मेन दरवाजा खोला. अंदर कमरे में उन के साथ कई लोग दाखिल हुए. भीतर का माहौल सामान्य था. कमरे में लाइटें जल रही थीं.

कुछ पल वे कमरे में रुके. उन की आंखें सुप्रिया को तलाश रही थीं. उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से उस के बारे में पूछा. किसी ने भी सुप्रिया के बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. यहां तक कि सभी ने कहा कि उन की उस रोज सुप्रिया से मुलाकात ही नहीं हुई थी. शिंदे को मामला कुछ संदिग्ध लगा. वह अधिक समय गंवाए बगैर अपने खास दोस्तों के साथ डोंबीवली मानपाड़ा पुलिस थाने गए. थानाप्रभारी के पास जा कर उन्होंने सुप्रिया की गुमशुदगी की सूचना लिखवा दी.

इधर शिंदे के घर पर कुछ पड़ोसियों की नजर एक सोफे पर टिक गई, जो खिसका कर दोबारा उसी जगह पर सेट किए जाने जैसा दिख रहा था. ऐसा जमीन पर बने ताजा निशान से पता चल रहा था. लोगों को वह निशान कुछ संदिग्ध लगा.

वे यह नहीं समझ पाए कि सोफे को दीवार से सटा कर क्यों लगाया गया है, जबकि सुप्रिया इस के खिलाफ रहती थी. वह हमेशा दीवार पर निशान पड़ने से बचाने के लिए दीवार से थोड़ी दूरी बना कर रखती थी. जमीन पर भी कुछ निशान ऐसे बने हुए थे, जो अधूरी सफाई लगते थे.

पड़ोसियों में से एक ने सोफे को खींचने का प्रयास किया. वह भारी महसूस हुआ, खिसक नहीं पाया. जबकि वह बैड कम सोफा आसानी से खिसकाया जाने वाला था. सोफा ऊपर से गीला भी दिख रहा था. उसे 2 लोगों ने ताकत से जैसे ही खिसकाया, उस के नीचे का हिस्सा एक झटके में अपने आप बाहर की ओर निकल आया. उसे देख कर सभी की आंखें फटी रह गईं. उस में सुप्रिया बेजान पड़ी थी. उसे सोफे में ठूंस कर डाला गया था. पैर मुड़े हुए थे. सिर आगे की ओर झुका और गरदन टेढ़ी थी. चेहरा आधा ही दिख रहा था.

इस की सूचना तुरंत पुलिस को दी गई. संयोग से शिंदे भी वहीं थे. पुलिस जिसे गुमशुदा के रूप में तलाश कर रही थी, उस के घर में ही मिलने की सूचना मिल गई थी. पुलिस टीम 10 मिनट में ही शिंदे को साथ ले कर आ गई. पुलिस टीम में सीनियर इंसपेक्टर शेखर बागड़े, इंसपेक्टर अनिल पडवल, एपीआई मनीषा जोशी और अविनाश वनवे शामिल थे.

पुलिस के आला अधिकारियों की टीम के सामने सुप्रिया की लाश को सोफे से बाहर निकाला गया. उस के सिर पर चोट के निशान थे. मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. मौके की प्रारंभिक काररवाई पूरी करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. इस मामले की जानकारी एडिशनल पुलिस कमिश्नर (पूर्वी क्षेत्रीय संभाग) कल्याण के दत्तात्रेय कराले, डीसीपी सचिन गंजाल, और डोंबीवली डिवीजन के एसीपी जे.डी. मोरे को भी दे दी गई.

शिंदे और सभी पड़ोसियों समेत पुलिस के सामने कई सवाल खड़े हो चुके थे. उन में मुख्य थे कि सुप्रिया की हत्या किस ने की? उन की हत्या के पीछे कारण क्या हो सकता है? हत्यारा घर में घुस कर वारदत में सफल कैसे हो गया? क्या वह पहले से सुप्रिया को जानता था?

सुप्रिया की लाश को पोस्स्मार्टम के लिए भेजने से पहले की गई शुरुआती जांच में पुलिस ने हत्या के कुछ बिंदुओं को भी नोट किया.

प्राथमिक जांच रिपोर्ट के अनुसार पुलिस के सामने अनगिनत सवाल थे. सुप्रिया के सिर पर चोट के निशान थे. वहां खून फैला नजर आया था. गरदन नायलोन की रस्सी और केबल से टाइट बंधी हुई थी. गरदन पर छिलने जैसे जख्म के निशान थे.

इसी तरह पुलिस ने कमरे की जांच में पाया कि सोफे को अपनी जगह से हटाया गया था. सिर पर लगे चोट से निकले खून के निशान को फर्श से साफ कर दिया गया था. अपराधी ने वैसा एक भी निशान नहीं छोड़ा था, जिस से उस की पहचान हो सके. घर का दरवाजा बंद होने का मतलब था कि अपराधी वारदात के बाद आराम से घर को बंद कर चला गया होगा. यानी अपराधी घर की बहुत सी जानकारियों से वाकिफ रहा होगा.

पुलिस ने जांच के सिलसिले में 37 वर्षीय किशोर शिंदे से भी पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वे महाराष्ट्र में सतारा जिले के रहने वाले हैं. उन का पैतृक गांव सतारा जिले के कराड तहसील में है. उन की उसी जिले की सुप्रिया से 12 साल पहले शादी हुई थी. वे पिछले साल ही इस रेजीडेंसी के फ्लैट में रहने आए थे. उन्होंने हाल में ही इसे खरीदा था. इस से पहले भी किशोर इसी इलाके में एक कमरे के मकान में किराए पर रहते थे.

इसी के साथ किशोर ने यह भी बताया कि उन का इलाके में किसी के साथ कभी कोई मतभेद नहीं हुआ था. उन की पत्नी शिक्षित महिला थी. उन का स्वभाव काफी मिलनसार था. पासपड़ोस के लोगों के साथ अच्छे मधुर संबंध थे. किशोर को ड्यूटी से घर लौटते हुए अकसर देर हो जाती थी. घर का अधिकतर काम सुप्रिया ही संभालती थी.

पुलिस का ध्यान अपराधी के घर में घुसने की दिशा में जांच की ओर भी गया. कालोनी के परिसर में बिल्डिंग के पास लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज निकलवाई गई. इसी दरम्यान बिल्डिंग के ही एक व्यक्ति ने पुलिस को सुप्रिया के घर के बाहर एक जोड़ी चप्पलें देखने की बात भी बताई. उस का कहना था कि शिंदे परिवार के लोग अपनी चप्पलें हमेशा स्टैंड पर रखते रहे हैं. स्टैंड भी बरामदे में एक कोने में था. बरामदे के बाहर चप्पल होने का मतलब किसी बाहरी व्यक्ति का घर में आना था.

पुलिस के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी कि शिंदे के घर के बाहर एक से डेढ़ बजे के बीच जो चप्पलें देखी गई थीं, उस की पहचान की जाए. इस की जानकारी देने वाले व्यक्ति को तरहतरह के चप्पलों की तसवीरें दिखाई गईं. उस ने कुछ तसवीरें देख कर शिंदे के घर के बाहर पाए गई चप्पलों की पहचान कर ली. यह भी बताया कि ऐसी चप्पलें इस इलाके में एक व्यक्ति पहनता है.

इसी के साथ जांच कर रही पुलिस को ध्यान आया कि थाने में किशोर शिंदे के साथ सुप्रिया की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने आया युवक भी इसी तरह की चप्पलें पहने हुए था. शिंदे से उस युवक के बारे में जानकारी ली गई. वह शिंदे की बिल्डिंग से कुछ दूरी पर रहने वाला विशाल था. उस का शिंदे के घर पहले भी 2-3 बार आना हुआ था. उसे उसी वक्त पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

युवक ने अपना नाम बताने से पहले बताया कि उसी ने तो शिंदे को पत्नी के लापता होने की शिकायत लिखवाने के लिए कहा था. पुलिस ने जब पूछा कि उसे कैसे पता था कि सुप्रिया लापता ही है? इस सवाल पर वह सकपका गया. उस के चेहरे के उड़ते रंग को देख कर पुलिस ने जबरदस्त डांट लगाई. उस का पूरा नामपता पूछा. तब युवक ने अपना नाम विशाल भाऊ भाट बताया. उस के बाद सुप्रिया हत्याकांड के बारे में उस ने जो चौंकाने वाली कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

दरअसल, 27 वर्षीय विशाल ठाणे जिले में मुरवाड़ी तहसील के घावसड़ी गांव का रहने वाला था. उस के मातापिता और भाईबहन गांव में ही रहते थे. ओम रेजीडेंसी के इलाके में ही वह किराए का कमरा ले कर रहता था. उस की नवी मुंबई में प्राइवेट नौकरी थी. उस की कई बुरी आदतों में मोहल्ले की लड़कियों और औरतों पर नजर गड़ाए रखना भी था. वह उन्हें कामुक निगाहों से निहारता रहता था. उन से संपर्क बनाने के मौके भी ढूंढने की कोशिश करता था.

उस ने पुलिस को बताया कि उस की नवी मुंबई में ही एक प्रेमिका भी थी, जो किसी दूसरे शहर की रहने वाली थी. बीते 3 माह से वह अपने घर चली गई थी, उस के बाद से वह नहीं लौटी थी. उसे याद कर विशाल की रातें तन्हाई में गुजरती थीं. उस की कल्पनाओं में खोया रहता था.

इन्हीं दिनों उस की निगाह सुप्रिया पर पड़ी थी. वह कई दिनों से उस की दैनिक गतिविधियों पर नजर गड़ाए हुए था. विशाल सुप्रिया से अकेले में मिलने को व्याकुल हो गया था. एक दिन विशाल को तब मौका मिल गया, जब वह एक मैगजीन की दुकान पर पुरानी सरिता और गृहशोभा पत्रिकाओं की मांग कर रही थी.

दुकानदार के पास उस समय वे पत्रिकाएं नहीं थीं. संयोग से विशाल भी वहीं था. विशाल ने झट कहा कि पुरानी मैगजीन की दुकान के बारे में वह जानता है. नवी मुंबई में जहां वह काम करता है, उस के पास ही है. सुप्रिया ने उस की बात पर विश्वास कर के सरिता और गृहशोभा के उन अंकों की लिस्ट उसे दे दी, जिन की उसे जरूरत थी और कहा कि इन में से जो भी मिल जाएं, वह ले आए. यह बात घटना के ठीक 2 दिन पहले की है.

विशाल 14 फरवरी, 2022 की दोपहर को किताबों का एक पैकेट ले कर सुप्रिया के घर आ गया. कालबेल की 3-4 आवाज सुन कर सुप्रिया ने दरवाजा खोला. वह अलसाई हुई थी. अपना दुपट्टा संभालती हुई उस ने पूछा, ‘‘आप?’’

बरामदे से बाहर विशाल खड़ा था. सुप्रिया चार कदम चलती हुई उस के पास आ गई.

‘‘यह लीजिए मैडम, आप की मैगजीन. सारी की सारी मिल गईं, जिन की आप को जरूरत थी,’’ विशाल ने हाथ में पकड़ा पैकेट सुप्रिया की ओर बढ़ा दिया.

‘‘थैंक्यू, आप मेरी वजह से कितने परेशान हुए.’’ विशाल के हाथ से पैकेट लेते हुए सुप्रिया बोली.

पैकेट ले कर अंदर जाने के लिए मुड़ते हुए विशाल से उस ने कहा, ‘‘आइए न, इस का पैसा भी तो देना होगा न.’’

विशाल बरामदे की सीढि़यां चढ़ कर अपनी चप्पलें उतार कर सुप्रिया के पीछे हो लिया. कुछ सेकेंड में सुप्रिया और विशाल हाल में थे. उन के हाल के गेट में आटोमेटिक लौक लगा हुआ था.

सुप्रिया ने विशाल को सोफे पर बैठने को कहा और उस के लिए पानी लाने चली गई. तुरंत ही पानी का गिलास भी ले आई. विशाल धीरेधीरे पानी पीने लगा और सुप्रिया मैगजीन का पैकेट खोलने लगी. पैकेट के खुलते ही सुप्रिया चौंक पड़ी. उस के हाथ से कुछ पत्रिकाएं नीचे जमीन पर गिर गईं. विशाल कुटिलता से बोला, ‘‘क्यों पसंद नहीं आईं? इस से भी अच्छी किताबें वहां मिलती हैं.’’

‘‘बदतमीज, निकल जा यहां से. तूने क्या समझ लिया, मैं यह लाने को बोली थी?’’ सुप्रिया चीखती हुई बोली.

विशाल सरिता और गृहशोभा के बजाय अश्लील मैगजींस लाया था. उसे देखते ही सुप्रिया नाराज हो गई थी.

‘‘ज्यादा सती सावित्री मत बनो. मैं सब जानता हूं, तुम जैसी सैक्स की भूखी औरतों के बारे में. नाटक करती हैं हरामजादी.’’ यह कहते हुए विशाल ने सुप्रिया का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया. इस तरह विशाल के बदले हुए तेवर और अचानक हुए हमले से सुप्रिया अनजान थी. वह उस के ऊपर गिर पड़ी. पास रखा कांच का गिलास जमीन पर गिर कर टूट गया. कुछ पानी भी फैल गया.

सुप्रिया विशाल को धकेलती हुई उठ खड़ी हुई. जमीन पर बिखरा कांच उस के पैर में चुभ गया. जिस से खून निकल आया. वह वहां से भाग कर दूसरे कमरे में जाने लगी. तब तक विशाल और भी सैक्स का उन्मादी बन  चुका था. वह सुप्रिया को फिर से दबोचने की कोशिश करने लगा, लेकिन वह उस की पकड़ से बचती रही. अंतत: उस की गरदन विशाल की पकड़ में आ गई.

विशाल ने सुप्रिया को काबू में लाने के लिए नायलोन की रस्सी उस के गले में फंसा दी. वह रस्सी अपनी जेब में रख कर लाया था. गले में फंसी रस्सी दोनों हाथों से कस दी, जिस से जल्द ही सुप्रिया बेजान हो गई और गिर पड़ी. उसी अवस्था में उस ने उस के शरीर के साथ छेड़छाड़ की. तब तक सुप्रिया की सांसें थम चुकी थीं. यह देख कर विशाल घबरा गया और आननफानन में अपने बचाव का रास्ता निकालने लगा.

उस ने पाया कि उस की सुप्रिया के साथ हाथापाई बैड कम सोफे पर हो रही थी. उस के दिमाग में आइडिया कौंध गया. उस ने तुरंत सोफे को खोला और सुप्रिया की लाश उस के अंदर ठूंस दी. सोफे को करीने से पहले की तरह लगा दिया, लेकिन वह भूल गया कि सोफा पहले दीवार से थोड़ा अलग था. जमीन पर गिरे पानी और सुप्रिया के कुछ खून को साफ करने के बाद गेट की चाबी ढूंढी. चाबी उसे किचन में फ्रिज के ऊपर रखी मिल गई.

इस तरह वारदात को अंजाम देने के बाद विशाल बड़े आराम से अपने कमरे पर चला आया. खुद को बचाने के लिए डोंबीवली थाने भी गया और किशोर शिंदे का हितैषी होने का ढोंग किया. लेकिन उस की ही चप्पलों ने उस के अपराध की चुगली कर दी.

आरोपी विशाल भाऊ भाट से विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से जेल भेज दिया गया.

 

खामोश हुआ विद्रोही तेवर – भाग 2

चूंकि अशोक सिंह एक रसूखदार आदमी थे, इसलिए सिर्फ काल डिटेल्स के आधार पर उन पर हाथ नहीं डाला जा सकता था. लेकिन वह शक के घेरे में आ गए थे. थानाप्रभारी ने यह बात वरिष्ठ अधिकारियों को भी बता दी थी. वह अधिकारियों के निर्देश पर काररवाई करना चाहते थे. अधिकारियों ने कहा कि हत्यारा चाहे कितनी भी ऊंची रसूख वाला क्यों न हो, अगर उस के खिलाफ सबूत मिलते हैं तो उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाए. इस के बाद आशीष कांति अशोक सिंह के खिलाफ सबूत जुटाने लगे.

आशीष कांति को मुखबिर से सूचना मिली कि घटना से कुछ देर पहले अशोक सिंह का भांजा दीपक सिंह अजय विद्रोही से बातें करते हुए देखा गया था. उस समय उस के हावभाव ठीक नहीं लग रहे थे, वह घबराया हुआ भी था. इस बात की तसदीक मृतक के बेटे शुभम ने भी की थी. पुलिस के शक के दायरे में दीपक भी आ गया. फिर क्या था, पुलिस ने 4 अक्तूबर, 2015 को दीपक को पूछताछ के लिए उस के घर से दबोच लिया.

एएसपी (अभियान) संजीव कुमार सिंह के सामने दीपक से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ शुरू हुई. पहले तो वह उन्हें इधरउधर घुमाता रहा, लेकिन जब उन्होंने कुछ खास सबूत उस के सामने रखे तो उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. दीपक को अपना जुर्म कबूल करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखाई दिया तो उस ने अजय विद्रोही की हत्या की साजिश में खुद के शामिल होने की बात स्वीकार कर ली.

दीपक से पूछताछ के बाद इस इस्टू हाउस के मालिक अशोक सिंह, भूमाफिया जयप्रकाश अग्रवाल, जग्गा, शूटर रामबाबू सिंह, अजय सिंह, लोकेश सिंह, महेसी सिंह महेसिया और हरेंद्र बैठा के नाम सामने आए. केस का पूरी तरह से खुलासा हो चुका था. हत्या के इस मामले में शहर के रसूखदार लोगों के शामिल होने से पुलिस हैरान थी कि इन लोगों ने एक पत्रकार की हत्या क्यों की? यह अन्य अभियुक्तों के गिरफ्तार होने के बाद ही पता चल सकता था.

पूछताछ के बाद उसी दिन पुलिस ने आरोपी दीपक को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया, इस के 2 दिनों बाद 6 अक्तूबर को पुलिस ने योजनाबद्ध तरीके से इस्टू हाऊस के मालिक अशोक सिंह, जग्गा, रामबाबू सिंह, अजय सिंह और लोकेश को गिरफ्तार कर लिया.

बाकी के 3 अरोपी जयप्रकाश अग्रवाल, महेसी सिंह महेसिया और हरेंद्र बैठा फरार हो गए थे. गिरफ्तार आरोपियों से पत्रकार अजय विद्रोही की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने सिलसिलेवार हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह इस प्रकार थी—

55 वर्षीय अजय शर्मा ‘विद्रोही’ के पूर्वज मूलरूप से राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गांव के रहने वाले थे. करीब डेढ़ सौ साल पहले उन के परदादा रामदेव शर्मा किसी काम से सीतामढ़ी आए तो यहां की सभ्यता और संस्कृति उन्हें इतनी भा गई कि वह यहीं के हो कर रह गए. उन की 2 पीढिय़ां यहीं जन्मीं और पलीबढ़ीं. पढ़लिख अजय कुमार ने सरकारी सेवा के बजाय पत्रकारिता को अपने जीवन का लक्ष्य चुना.

अजय ने सीतामढ़ी में ही स्थानीय समाचार पत्रों में नौकरी की. नौकरी के बाद उन्होंने अपने नाम के आगे तखल्लुख ‘विद्रोही’ जोड़ लिया. इस के बाद वह स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम करने लगे. वह अपनी लेखनी से भ्रष्टाचारियों की करतूतों को समाज के समाने उजागर करने लगे. जिस की वजह से शहर और समाज में उन की पहचान बनती गई. बाद में वह हिंदी अखबार दैनिक जागरण से जुड़ गए.

आखिरी दिनों में ‘विद्रोही’सीतामढ़ी के दैनिक जागरण यूनिट के प्रभारी थे. यूनिट में अजय के मन के मुताबिक काम नहीं हुआ तो उन्होंने त्यागपत्र दे दिया. इस के बाद उन्होंने हिंदी साप्ताहिक अखबार ‘सिटी संदेश’ निकाला. इस अखबार के माध्यम से उन्होंने बड़ेबड़े धन्नासेठों, मठाधीशों, माफियाओं, नौकरशाहों और सफेदपोशों की कलई खोलनी शुरू कर दी, जिस की वजह से यह इन लोगों की आंखों की किरकिरी बन गए. लेकिन शहर में उन की लोकप्रियता बढ़ गई.

2 साल बाद वित्तीय संकट की वजह से उन का अखबार बंद हो गया. शहर में हर वर्ग के लोगों से उन का जुड़ाव हो गया था. चाहे नौकरशाह हो या राजनेता, चिकित्सक हो या व्यवसाई, अमीर हो या गरीब. सभी के बीच उन की एक अलग पहचान बन गई थी. शहर में होने वाले अधिकांश कार्यक्रमों में उन की सहभागिता देखी जाती थी. उन्हें सिटीजन फोरम का महासचिव भी बना दिया गया था.

यह जिम्मेदारी मिलने के बाद अजय ‘विद्रोही’ के कंधों पर सामाजिक दायित्वों का बोझ आ गया था. फोरम के माध्यम से उन्होंने जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत विभिन्न विभागों में 150 आरटीआई लगाईं. सीतामढ़ी शहर में थाना नगर के चौक बाजार स्थित मठ की 101 डिस्मिल जमीन पर भूमाफियाओं की नजरें टिकी थीं.

अजय को सूचना मिली कि भूमाफिया अशोक सिंह और जयप्रकाश अग्रवाल द्वारा फरजी तरीके से मठ की वह जमीन लीज करा ली गई है. जमीन से संबंधित जानकारी जुटाने के लिए उन्होंने थाना बथनाहा के मझौलिया गांव के रवि कुमार सिंह द्वारा संबंधित विभाग में आरटीआई लगवा कर सूचना मांगी.

जानेमाने व्यवसाई अशोक सिंह की शहर में नूतन सिनेमा रोड स्थित चौक बाजार में इस्टू हाऊस नाम की मशहूर दुकान थी. इस्टू हाऊस में शराब और कबाब खुलेआम बिकता था. इस के अलावा यहां कई तरह के अनैतिक और गैरकानूनी धंधे चलते थे. शहर के बड़ेबड़े धन्नासेठों, माफियाओं, पत्रकारों, सफेदपोशों, अपराधियों और खाकी वर्दीधारियों का वहां बराबर उठनाबैठना था.

इसी वजह से अशोक सिंह पर किसी की भी हाथ डालने की हिम्मत नहीं होती थी. अजय विद्रोही भी कभीकभार वहां जाते थे. मालिक अशोक सिंह से उन का परिचय था. वह उस के कई काले धंधों के बारे में जानते थे. इन्हीं बातों को ले कर अशोक सिंह और अजय के बीच मतभेद पैदा हुए, तो अजय ने इस्टू हाऊस जाना बंद कर दिया. यही नहीं उन्होंने अशोक सिंह से बात करनी भी बंद कर दी.

अजय विद्रोही ने पता कर लिया था कि मठ की 101 डिस्मिल जमीन मठ के महंथ दुखियादास के नाम थी. महंथ दुखियादास ने जीवित अवस्था में ही अपना उत्तराधिकारी बलवंतदास को बना दिया था, लेकिन अरबों रुपए की यह जमीन बलवंतदास के नाम स्थानांतरित नहीं की थी. महंथ बलवंतदास की मौत हो चुकी थी.

उन की मौत के बाद वह जमीन ऐसे ही पड़ी थी. उस जमीन पर अशोक सिंह की नजर गड़ी हुई थी. अरबों की जमीन हथियाने के लिए उस ने बाजपट्टी के भूमाफिया जयप्रकाश अग्रवाल को अपनी योजना में शामिल किया. दोनों ने साजिश रच कर उस जमीन को हड़पने की योजना बना डाली.

इस्टू हाऊस में जग्गा राउत कई सालों से नौकरी करता था. वह अशोक सिंह का बहुत वफादार आदमी था. इन लोगों ने बरियापुर के बीएलओ से साठगांठ कर के जग्गा राउत का फोटो लगवा कर मृत महंत दुखियादास के नाम से मतदाता पहचान पत्र बनवा लिया. मतदाता पहचान पत्र बनने के बाद दोनों ने उसी के आधार पर जग्गा राउत का फोटो लगा कर मृत महंथ दुखियादास के नाम से पैनकार्ड भी बनवा लिया.

एक तरह से इन लोगों ने फरजी तरीके से महंथ दुखियादास को जीवित कर दिया था. जाली दस्तावेजों के आधार पर महंत दुखियादास के नाम से अन्य कागजात भी तैयार करा लिए थे. इन्हीं कागजों के आधार पर 23 जून, 2014 को दोनों भूमाफियाओं ने जग्गा राउत को कथित महंत दुखियादास बना कर मठ की जमीन अपने नाम पर 61 सालों के लिए लीज पर करा ली.

भारी छूट पर नकली दवाएं बेचने वाला गैंग

राम सिंह दिल्ली के एम्स में किडनी के डाक्टर को अपनी रिपोर्ट दिखा कर अपने शहर लखनऊ लौट आया था. नेफ्रो विभाग में अपनी बारी का इंतजार करने के दरम्यान उसे एक व्यक्ति ने बताया कि किडनी का सही इलाज आयुर्वेद में है. एलोपैथ में किडनी फेल को ठीक करने की कोई दवाई ही नहीं है. आयुर्वेदिक दवाइयों का 6 माह का कोर्स होता है. ट्रेन से लौटते वक्त 52 वर्षीय राम सिंह के दिमाग में यह बात बारबार घूम रही थी. उस ने साथ आ रहे अपने बेटे से पूछा,

“डाक्टर ने क्या कहा है? दवाई लिखी है?”

बेटा बोला, “4 दवाइयां लिख दी हैं. बोला है 3 महीने बाद जांच के लिए आना है. उस की 3 परची बना दी है. 24 घंटे के पेशाब की भी जांच करेगा. उस रिपोर्ट के बाद ही कुछ बताएगा.”

“लखनऊ वाले डाक्टर की रिपोर्ट देख कर क्या बोला?”

“कुछ नहीं. सिर्फ कहा कि हर 3 महीने पर उसे जांच करवा कर दिखाते रहना है, वरना बीमारी बढ़ जाएगी.”

“और दवाई?” राम सिंह ने पूछा.

“दवाई तो 3 महीने बाद पता चलेगा, लेकिन खाने में जो परहेज बताया है उस पर आप को ध्यान देना होगा.” बेटा बोला.

“क्या ध्यान देना होगा. दाल खाने से मना किया है, आलू खाने की मनाही है, मीटमछली नहीं खाना है, दूध नहीं पीना है. जब सब कुछ की मनाही है, तब ताकत कहां से मिलेगी?” राम सिंह चिढ़ते हुए बोले.

“लेकिन बाबूजी, कोई उपाय भी तो नहीं है?” बेटा बोला.

“कैसे नहीं है कोई उपाय! लखनऊ में किडनी का इलाज करने वाले आयुर्वेदिक डाक्टर के यहां दिखा दो उस की दवाई से ठीक हो जाऊंगा.” राम सिंह बोले.

लखनऊ पहुंच कर राम सिंह ने अपना इलाज आयुर्वेदमें शुरू करवा लिया. डाक्टर ने महंगी दवाइयों का कोर्स दिया. साथ ही हिदायत दी कि 6 महीने तक दवाइयां खानी हैं. इस पर 60 हजार से अधिक का खर्च आया.

मरीज पर फेंका लालच का जाल

एक दिन राम सिंह को फोन आया. उन्हें यह जान कर आश्चर्य हुआ कि फोन करने वाले को उस की बीमारी के बारे में मालूम था. उस ने राम सिंह का हाल समाचार पूछते हुए बताया कि वह दिल्ली से बोल रहा है. उस की बीमारी के बारे में वह अच्छी तरह जानता है. उस की पूरी रिपोर्ट उस ने देखी है.

राम सिंह काल करने वाले की बातों से काफी प्रभावित हो गया. बातोंबातों में उस ने बता दिया कि वह बीते 3 माह से आयुर्वेदिक दवाइयां ले रहा है. इसी के साथ राम सिंह ने चिंता जताई कि दवाइयां बहुत महंगी हैं. आगे की दवाइयां भी खरीदनी हैं. डाक्टर की फीस नहीं है, लेकिन दवाइयां वही देते हैं.

राम सिंह की चिंता को कालर ने अगले ही पल दूर कर दिया. कहा कि उस का काल इसी समस्या के समाधान के लिए है. वह एक दवा कंपनी का प्रतिनिधि है, जो 60 प्रतिशत तक सस्ती दवाइयां औनलाइन बेचती है. राम सिंह को कालर की बात बहुत अच्छी लगी. उस ने औनलाइन दवाइयां मंगवाने के सभी तरीके के बारे में जानकारी वाट्सऐप पर ले ली. शाम को बेटा जब घर आया तो उन्होंने बेटे को वाट्सएप मैसेज दिखाया, जिस पर औनलाइन दवाई खरीद की ऐप की लिंक भी थी.

एक हफ्ते के भीतर राम सिंह के घर अगले 3 माह की किडनी की दवाइयों के कोर्स का पार्सल आ गया था. उस पर उसे भारी छूट मिली थी. पूरी दवा मात्र 28 हजार में आ गई थी. राम सिंह खुश था. राम सिंह औनलाइन दवाइयां लेने लगा. करीब डेढ़ माह बाद एक दिन उस की तबीयत बिगड़ गई. पूरे बदन में दर्द होने लगा. कमजोरी महसूस होने लगी. वह उसी आयुर्वेदिक डाक्टर के पास गया, जिन से इलाज चल रहा था.

डाक्टर उस की हालत देख कर समझ गया कि उस के शरीर पर दवाइयों का साइड इफेक्ट हुआ है. डाक्टर ने पूछा कि उस ने कौन सी दवा खाई हैं. राम सिंह उन दवाइयों का पैकेट साथ ले गया था, जो उस ने औनलाइन मंगवाई थीं. वह दिल्ली की एक कंपनी की थीं. डाक्टर ने पूछा कि यह दवा उस ने कहां से ली, वह तो उसे दूसरी दवाई दे रहा था.

डाक्टर ने की कंपनी से शिकायत

राम सिंह के साथ गए उन के बेटे ने डाक्टर को सारी बात बता दी कि उन्होंने कैसे सारी दवाइयां औनलाइन मंगवाई थीं. उसी के खाने पर उन की हालत खराब हुई लगती है. डाक्टर ने औनालइन दवाई बेचने वाली कंपनी का फोन नंबर मांगा. उस नंबर पर उन्होंने तुरंत काल किया.

यह जान कर उन्हें आश्चर्य हुआ कि उन की कंपनी औनलाइन दवाई नहीं बेचती है. इस का मतलब था कि कोई और फरजी कंपनी बना कर उस कंपनी की दवाइयां बेच रहा है. डाक्टर ने कंपनी के अधिकारी को धमकी दी कि वह कंपनी के खिलाफ पुलिस में शिकायत करने वाला है. डाक्टर ने उस पर नकली दवाइयां बनाने का आरोप लगाया. कहा कि उस की इस हरकत से डाक्टर बदनाम होते हैं. मरीज की जान खतरे में आ गई है. वह उन की दवाइयों को जांच के लिए लैब में भी भेजेंगे.

इस शिकायत पर दवा कंपनी का अधिकारी डर गया. उस ने तुरंत उस कंपनी के मैनेजर से बात की, जिस के द्वारा उस की दवाइयां औनलाइन बेची गई थीं और फिर शिकायत दवा कंपनी से होते हुए दिल्ली स्थित उनायुर मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड (यूएमपीएल) के मैनेजर तक जा पहुंची. लिमिटेड कंपनी का मैनेजर भी घबरा गया. क्योंकि दवाइयां उस के द्वारा नहीं भेजी गई थीं.

इस का मतलब था कि कोई और उन की लिमिटेड कंपनी के नाम पर नकली दवाइयां सप्लाई कर रहा है. फिर क्या था, उस के मैनेजर ने इस की शिकायत दिल्ली पुलिस की साइबर सेल में दर्ज कर दी. शिकायत की गई कि कुछ लोग यूएमपीएल के वर्कर बन कर ग्राहकों को नकली और गलत दवाएं बेच रहे हैं. उन्होंने यह भी बताया कि उन के ग्राहकों से पहले भी शिकायतें मिलती रही हैं, जिन्हें अलगअलग नंबरों से फोन किया जाता रहा है और उन्हें अपनी दवाइयां बेचीं.

दिल्ली पुलिस की साइबर सेल में इस मामले की प्राथमिकी 23 मार्च, 2023 को सूचना प्रौद्योगिकी (आईपीसी) अधिनियम की धारा 66सी/66डी और आईपीसी की धारा 419/420/120बी के तहत दर्ज कर ली गई. इस के बाद पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. जांच के सिलसिले में पुलिस के जांच अधिकारी ने कई बैंक अकाउंट और काल डिटेल्स को खंगाला, दवाओं की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के बारे में सारी जानकारी निकाली.

इस दौरान पुलिस को पता चला कि आरोपी दिल्ली और लखनऊ से इस रैकेट को चला रहे हैं. इन आरोपियों की लोकेशन को ट्रेस किया गया और पुलिस की टीमों को वहां छापा मारने के लिए भेजा गया.

काल सेंटरों से फंसाते थे ग्राहकों को

जिस के बाद 3 फरजी काल सेंटरों से कई आरोपियों को दबोचा गया. ये तीनों फरजी काल सेंटर 3 अलगअलग जगहों से चलाए जा रहे थे. एक बाहरी दिल्ली के स्वरूप नगर में, जबकि 2 लखनऊ के जानकीपुरम और इंदिरा नगर में थे. साथ ही पुलिस का यह दावा किया कि इस छापेमारी के दौरान 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है. साथ ही नकली दवाओं के डब्बे भी बरामद किए गए हैं.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों में से एक राहुल सिंह नाम के व्यक्ति को गिरोह का सरगना बताया गया. वह इंदिरा नगर में बैठेबैठे ही अन्य आरोपियों समर सिंह, उग्रसेन और जितेंद्र सिंह के साथ काम करता था. इस संबंध में डीसीपी ने बताया कि राहुल ने ही टेलीकौम कंपनी में काम करने वाले राजेश नाम के एक शख्स से ग्राहकों का डेटा हासिल किया था.

सरकारी अस्पतालों से लेते थे मरीजों का डेटा

उस के बाद उस ने ये डेटा दिल्ली निवासी विकास पाल और अन्य किसी व्यक्ति को 60 प्रतिशत कमीशन के साथ बेच दिया. इस मामले में राजेश की भी गिरफ्तारी हो चुकी है. इस पूरे मामले में पुलिस ने आरोपियों के पास से 7 लैपटाप, 42 मोबाइल फोन, नकली आयुर्वेदिक दवाएं, यूपीएमएल और दवा कंपनी कुडोस आयुर्वेद का डेटा बरामद कर लिया.

इस पूरे मामले की जांच दिल्ली पुलिस की साइबर सेल के डीसीपी प्रशांत गौतम की निगारनी में संपन्न हुई. जांच में यह भी पता चला कि नकली आयुर्वेदिक दवाइयां बेचने वाले गिरोह ने कुल 6,373 लोगों को करीब 2 करोड़ (1.94 करोड़) का चूना लगाया है.

रोगियों के फोन नंबर और दूसरी पर्सनल जानकारी आरोपियों के हाथ लगने की कहानी भी काफी हैरानी की है. इस बारे में डीसीपी ने बताया कि आरोपियों के पास पहले से ही रोगियों की एक लिस्ट और उन का डेटा था. जिसे वे दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पतालों से हासिल कर चुके थे.

वे उन लोगों को दवाइयां खरीदने पर रियायत देते थे. दवाएं नकली थीं, इसलिए रोगियों को समस्याएं होने लगीं और वे लोग कंपनी को दोषी मानने लगे. इस के बाद मार्केटिंग कंपनी ने इस मामले में पुलिस से संपर्क किया और उन्हें बताया कि उन का डेटा किसी ने चोरी कर लिया है और कोई उन के साथ धोखा कर रहा है. कुछ लोगों ने मिल कर कंपनी के ग्राहकों से अब तक 1.94 करोड़ रुपए की ठगी की है.

अय्याश फर्जी जज की ठगी

खामोश हुआ विद्रोही तेवर – भाग 1

29 सितंबर, 2015 की रात साढ़े 9 बजे के बाद पत्रकार अजय विद्रोही खाना खाने के बाद टहलने के लिए जैसे ही घर से बाहर सडक़ पर आए, पड़ोस में रहने वाला दीपक सिंह मिल गया. सडक़ पर खड़े हो कर वह उस से बातें करने लगे. तभी उन का बेटा शुभम फोन ले कर उन के पास आ कर बोला, ‘‘कोई अशोक अंकल हैं, वह आप से बात करना चाहते हैं.’’

बेटे से फोन ले कर जैसे ही अजय विद्रोही ने हैलो कहा, दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘भाई अजय, मैं अशोक सिंह…’’

‘‘हां भाई अशोक, बताएं… इतने दिनों बाद कैसे मेरी याद आई, जरूर कोई खास काम होगा तभी याद किया है?’’ अजय विद्रोही ने व्यंग्यात्मक अंदाज में कहा.

‘‘हां, जरूरी काम है.’’ अशोक सिंह ने कहा.

‘‘बताओ, कहो तो अभी आ जाऊं?’’ अजय विद्रोही ने कहा.

‘‘नेकी और पूछपूछ. आ जाते तो काम हो जाता. हम सोच रहे हैं कि जिस मामले को ले कर हमारे बीच मतभेद चल रहे हैं, उस पर बैठ कर बातचीत कर लेें, शायद बीच का कोई रास्ता निकल ही आए.’’ अशोक सिंह ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं आ रहा हूं. मैं भी चाहता हूं कि मामला सुलझ जाए.’’ कह कर अजय ने फोन काट दिया. इस के बाद बेटे शुभम को आवाज दे कर कहा कि वह एक आदमी से मिलने जा रहे हैं. अभी थोड़ी देर में लौट आएंगे. बेटे से कह कर वह पैदल ही चल पड़े. उन्हें मठ के पास अशोक सिंह से मिलने जाना था, जो उन के घर से थोड़ी ही दूरी पर था.

वह तेज कदमों से बेफिक्री से चले जा रहे थे. अपने घर से वह कुछ दूर ही गए होंगे कि एक मोटरसाइकिल पीछे से आ कर धीरेधीरे उन के बराबर पर चलने लगी. उस पर 2 युवक सवार थे. बराबरी पर चल रही मोटरसाइकिल देख कर अजय कुमार ठिठके और जैसे ही उन्होंने उन की ओर देखा तो पीछे बैठा युवक उन्हें देख कर मुसकराया.

उन्होंने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और पहले से भी ज्यादा तेज गति से चल पड़े. मोटरसाइकिल सवार वहीं रुक गए. अजय भीड़भाड़ वाली चौक बाजार स्थित शराब की दुकान के पास पहुंचे थे कि मोटरसाइकिल सवार पीछे से आए और पीछे बैठे युवक ने अजय विद्रोही पर 2 गोलियां चला दीं. लोग कुछ समझ पाते, वे तेजी से चले गए. अजय विद्रोही गिर कर छटपटाने लगे थे.

गोलियों की आवाज सुन कर दुकानदारों ने दुकानों के शटर गिरा कर भाग लिए. पल भर में वहां गहरा सन्नाटा पसर गया. भागते हुए कुछ दुकानदारों ने देखा कि गोली किसी आदमी को मारी गई है और वह आदमी सडक़ पर पड़ा तड़प रहा है तो वे उस के पास पहुंचे.

पत्रकार अजय विद्रोही को बाजार के सभी दुकानदार जानते थे, इसलिए उन्होंने उन्हें पहचान लिया. इस के बाद अपना फर्ज समझते हुए लहूलुहान अजय कुमार को एक टैंपो में लादा और जिला चिकित्सालय ले गए. इस बीच उन के शरीर से काफी खून बह चुका था, जिस से रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया.

चूंकि अजय विद्रोही को शहर के ज्यादातर लोग जानते थे, इसलिए कुछ ही देर में पूरे शहर में उन्हें गोली मारे जाने की खबर फैल गई. अजय के घर वाले भी खबर पा कर अस्पताल पहुंच गए. वहां जब उन्हें उन की मौत की जानकारी मिली तो वे रोनेबिलखने लगे. इस के बाद जैसेजैसे शहर के लोगों को पत्रकार अजय विद्रोही की हत्या की जानकारी होती गई, लोग अस्पताल पहुंचने लगे. कुछ ही देर में अस्पताल में भीड़ लग गई.

किसी ने पुलिस को फोन द्वारा सूचना तो दे दी थी, लेकिन थाना सीतामढ़ी के थानाप्रभारी भुनेश्वर प्रसाद सिंह घंटों बाद अस्पताल पहुंचे. तब नाराज स्थानीय नेताओं और नागरिकों ने थानाप्रभारी को अस्पताल के अंदर नहीं जाने दिया. रात काफी होने के बावजूद माहौल पूरी तरह से गरम और विस्फोटक था. भुवनेश्वर प्रसाद सिंह ने इस की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर में डीआईजी प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, एसपी हरिप्रसाद यश, एएसपी (अभियान) संजीव कुमार, डीएसपी राजीव रंजन भी जिला अस्पताल पहुंच गए थे.

काफी देर तक नेताओं और पुलिस अधिकारियों के बीच नोकझोंक होती रही. जनता अजय विद्रोही की लाश पुलिस को सौंपने को तैयार नहीं थी. वह हत्यारों को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार करने की मांग कर रही थी. पुलिस अधिकारियों ने जब उन्हें आश्वासन दिया कि अजय के हत्यारे जल्द से जल्द गिरफ्तार किए जाएंगे, तब कहीं लाश पुलिस को सौंपी गई.

लाश कब्जे में ले कर पुलिस ने उसी रात आवश्यक काररवाई कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. यह घटना 29 सितंबर, 2015 की थी. पुलिस ने रात में ही घटनास्थल का निरीक्षण कर के वहां से 9 एमएम पिस्टल के 2 खोखे बरामद किए.

55 वर्षीय पत्रकार अजय कुमार विद्रोही बिहार के जिला सीतामढ़ी के मोहल्ला कोर्ट बाजार में अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी शोभा शर्मा के अलावा 3 बच्चे थे. वह एक खोजी पत्रकार थे और जनहित के मुद्दों पर अननी कलम चलाते थे. यही वजह थी कि अगले दिन उन की हत्या के विरोध में नेताओं ने स्थानीय लोगों के साथ विरोध प्रदर्शन करते हुए मेन रोड जाम कर दिया. दुकानदारों ने भी अपनी दुकानें बंद कर लीं. भीड़ ने कई दुपहिया वाहनों में आग भी लगा दी थी.

शहर का माहौल पूरी तरह विस्फोटक बन गया था. पुलिस ने तुरंत मृतक के बड़े बेटे शुभम शर्मा की ओर से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/120बी/364/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर के आगे की काररवाई शुरू कर दी थी. शहर की स्थिति को देखते हुए एसपी हरिप्रसाद यश ने शहर में आसपास के थानों की पुलिस और पीएसी बुला ली. शहर पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका था.

एएसपी (अभियान) संजीव कुमार और डीएसपी (सदर) राजीव रंजन स्थिति पर नजर रखे हुए थे. प्रदर्शनकारी सीतामढ़ी नगर थाने के प्रभारी भुवनेश्वर प्रसाद सिंह को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हें तत्काल निलंबित करने की जिद पर अड़े थे. आखिरकार एसपी को उन की मांग स्वीकार करनी पड़ी. उन्होंने तत्काल प्रभाव से भुवनेश्वर प्रसाद सिंह को लाइन हाजिर कर दिया.

उन के स्थान पर आशीष कांति को थाने का चार्ज दिया गया. चार्ज मिलते ही आशीष कांति ने सब से पहले घटनास्थल की जांच की. उन्होंने आसपास के लोगों से भी पूछताछ की. इसके बाद वह मृतक अजय विद्रोही के घर वालों से मिले. अजय की पत्नी शोभा शर्मा ने किसी से दुश्मनी होने की बात से इंकार किया. उस समय उन के घर का माहौल काफी गमगीन था,

इसलिए वह ज्यादा कुछ नहीं पूछ सके. अब तक की जांच में हत्यारों के बारे में पता नहीं चला तो आशीष कांति ने अजय विद्रोही के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. एकएक नंबर की उन्होंने गहनता से जांच की तो पता चला कि उन के मोबाइल पर आखिरी फोन जिस नंबर से आया था, वह शहर में ऊंची पहुंच रखने वाले इस्टू हाऊस के मालिक अशोक सिंह का था. अशोक के फोन आने के बाद ही अजय विद्रोही उन से मिलने चौक बाजार स्थित मठ की ओर जा रहे थे. इस बात की पुष्टि उन के बेटे शुभम ने भी की थी.

अंधविश्वास में गई जान

उत्तराखंड की धार्मिक नगरी हरिद्वार में ज्वालापुर स्थित झाडान के बाजार की दुकानें बंद होने का समय हो चुका था. रात के 8 बज चुके थे. सभी दुकानदार अपनीअपनी दुकानें बंद करने लगे थे. उन्हीं में दुकानदार रवि अपने पास की दुकान से शोरशराबा सुन कर चौंक गए. उन्होंने उस ओर एक नजर देखा, फिर फटाफट अपनी दुकान बंद की और वहां तुरंत जा पहुंचे. वहां पहले से ही कुछ लोग जमा थे.

उन से ही रवि को मालूम हुआ कि स्थानीय व्यापारियों के नेता रहे स्वर्गीय अरविंद मंगल की 60 वर्षीया पत्नी सुनीता मंगल अपने घर से अचानक लापता हो गई हैं. सभी को अचरज हो रहा था कि वह कहां गई होगी? सुबह तो अपने ही घर पर ही दिखाई दी थी. कुछ लोगों ने बताया कि करीब 10 बजे के बाद वह नहीं देखी गई. लोगों से बातचीत में ही रवि को यह भी पता चला कि कुछ दिन पहले उन के घर पर मरम्मत और रंगाईपुताई का काम हुआ था.

सुनीता मंगल हुईं लापता

सुनीता मंगल एक संयुक्त परिवार की बुजुर्ग महिला थीं. उन का छोटा बेटा निखिल मंगल नोएडा में नौकरी करता था. सुनीता बड़े दिवंगत बेटे आशुतोष मंगल के 12 साल के बेटे वंश के साथ रहती थी. वंश एक स्थानीय स्कूल में पढ़ाई करता था. थोड़े समय में ही वहां और भी कई दुकानदार जमा हो गए.

सभी ने सुनीता के घर जाने का एकमत से फैसला लिया. वहां से सुनीता का घर थोड़ी दूरी पर था. कुछ समय में सभी उस के घर पर थे. वहां 12 वर्षीय वंश अकेला था. उस ने बताया कि वह सुबह स्कूल चला गया था. दोपहर को वापस घर लौटने पर पाया कि दादी नहीं हैं. फिर उस ने दादी को मोहल्ले में आसपास तलाश किया. मगर उसे दादी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस बारे में उस ने चाचा निखिल को फोन से बता दिया था, जो वह नोएडा में थे.

इसी बीच रवि ने सुनीता मंगल के लापता होने की जानकारी सीओ (ज्वालापुर) निहारिका सेमवाल को दे दी. निहारिका सेमवाल ने तुरंत इस बाबत कोतवाल ज्वालापुर कुंदन सिंह राणा और एसएसआई संतोष सेमवाल को मौके पर पहुंच कर मामले की जांच के आदेश दिए. राणा तुरंत पुलिस फोर्स के साथ सुनीता मंगल के घर जा पहुंचे.

कोतवाल राणा और एसएसआई संतोष सेमवाल ने वंश से सुनीता के बारे में पूछताछ की. वंश ने जो कुछ बताया उसे बयान के तौर पर नोट कर लिया गया. उस के बाद राणा और सेमवाल ने पड़ोसियों से सुनीता के बारे में पूछताछ की. उसी दरम्यान वहां सीओ निहारिका सेमवाल और एसपी (क्राइम) रेखा यादव भी पहुंच गईं. उन्होंने भी वंश से पूछताछ की.

इसी बीच वंश के चाचा का फोन आ गया कि वह नोएडा से निकल चुके हैं. ढाईतीन घंटे में ज्वालापुर पहुंच जाएंगे. रेखा यादव ने ज्वालापुर से सुनीता मंगल के लापता होने की जानकारी जिले के एसएसपी अजय सिंह को भी दी. अगले दिन 9 मई, 2023 को एसएसआई संतोष सेमवाल और सीआईयू के प्रभारी रणजीत तोमर ने सब से पहले लापता सुनीता मंगल के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाने की काररवाई की.

पेंटर नसीम ने स्वीकारा जुर्म

इस के बाद सुनीता के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की जांच करवाई गई. सीसीटीवी फुटेज में पुलिस को एक सुराग मिला, जो सुनीता के एक व्यक्ति के साथ बैट्री रिक्शा से पथरी रोह गंगनहर की ओर जाने का पता चला. पुलिस ने उस समय उस रिक्शा में सुनीता के साथ बैठे व्यक्ति की पहचान जानने की शुरुआत की.

10 मई, 2023 को सुनीता के मोबाइल की काल डिटेल्स भी आ गई, जिस में एक नया नंबर भी था. उस नंबर की जांचपड़ताल से मालूम हुआ कि वह नंबर ज्वालापुर में ही मोहल्ला पावधोई निवासी पेंटर नसीम का है. पेंटर नसीम की तलाश शुरू की गई. निखिल से मालूम हुआ कि नसीम ने कुछ कुछ दिन पहले उस के घर की रंगाईपुताई की थी. वह अपने पिता के साथ मिल कर इस काम को करता है.

नसीम का उस के घर अकसर आनाजाना होता था. कई बार वह पैसे उधार लेने के लिए आता था. सुनीता के बेटे ने नसीम को अपने घर के सदस्य जैसा बताया. उसी दिन शाम को निहारिका सेमवाल ने नसीम को कोतवाली ज्वालापुर पूछताछ के लिए बुलवा लिया. नसीम से सुनीता के बारे में पूछताछ की जाने लगी.

निहारिका ने सीधा सवाल किया, “तुम्हारी 8 मई को मोबाइल पर सुनीता से क्या बात हुई थी? उसी रोज तुम सुनीता के साथ बैट्री रिक्शा में बैठ कर कहां गए थे?”

इस सवाल का नसीम ने कोई जवाब नहीं दिया. नसीम को शांत खड़ा देख पास खड़े कुंदन सिंह राणा ने डांटते हुए पूछा, “क्या सुनीता मंगल के लापता होने में तुम्हारा हाथ है? सचसच बताओ वह कहां है? वरना हमें मुंह खुलवाना भी आता है.”

इस डांट का नसीम पर असर हुआ. वह डर से कांपने लगा. हकलाता हुआ बोला, “जी साहबजी, सब कुछ बताऊंगा, एक गिलास पानी चाहिए.”

“सामने रखा है, पी लो…और पूरी बात बताओ वरना पानी पिलापिला कर डंडे लगाऊंगा.” राणा ने सामने टेबल पर रखे पानी भरे गिलास की ओर इशारा कर डपटते हुए बोले.

नसीम ने गटागट पानी पीने के बाद लंबी सांस ली. कुछ सेकेंड के लिए रुका, फिर बोला, “साहबजी, वह इस दुनिया में नहीं है.”

“इस दुनिया में नहीं है! क्या मतलब है तुम्हारा?” निहारिका ने चौंकते हुए पूछा.

“जी मैडम, वह गंगनहर में डूब गई है.” नसीम बोला.

“डूब गई है? तुम ने डुबाया है?” गुस्से में राणा बोले.

“जी,” नसीम का ‘जी’कहना था कि राणा और निहारिका चौंक गए. उन्होंने एक साथ पूछा, “कैसे डुबाया? क्यों किया ऐसा, पूरी बात बताओ.”

राणा उस का बयान नोट करने के लिए तख्ती पर लगा सादा कागज संभालने लगे. पेन का ढक्कन खोलते हुए बोले, “चलो, बताओ.”

नसीम ने चुरा ली थी ज्वैलरी

नसीम ने पहले अपना पूरा परिचय लिखवाया. परिचय में पिता के नाम के साथ उस ने पूरा पता दिया. उस के बाद उस ने जो बताया, वह चौंकाने वाली थी.

अरविंद मंगल के परिवार से नसीम के परिवार के अच्छे संबंध चले आ रहे थे. मंगल परिवार के तथा उन के कई परिचितों के घरों पर नसीम ही रंगरोगन और पेंट करता था. कुछ दिन पहले ही सुनीता मंगल ने अपने मकान में मरम्मत करवाया था. इस के बाद उन्होंने 15 दिन पहले मकान में पेंट करने के लिए फिर फिर नसीम को बुलवाया. उन्होंने नसीम को पेंट का सामान खरीदवा लिया.

इस के बाद नसीम ने सुनीता मंगल के घर पर पेंट करना शुरू कर दिया. एक कमरे में पेंट करते वक्त नसीम को वहां एक अलमारी की चाबी पड़ी मिली. जब उस ने चुपचाप अलमारी के लौकर में वह चाबी लगाई तो लौकर खुल गया. लौकर में उस वक्त सोने के कुंडल, अंगूठी, लौंग, पैंडल, पायल आदि आभूषण थे, जिन्हें उस ने चुरा लिया था.

इस घटना के 2 दिन बाद सुनीता ने नसीम को बुला कर कहा, “मेरे घर से लाखों रुपए के आभूषण चोरी हो गए हैं. क्या तुम्हें इस की कोई जानकारी है?”

इस के बाद नसीम ने सुनीता को इस बाबत में कोई जानकारी नहीं होने की कह कर टाल दिया, मगर अंदर ही अंदर उसे पकड़े जाने का डर भी सता रहा था.

7 मई, 2023 को उस ने सुनीता से कहा कि पथरी रोड के पास एक तांत्रिक रहता है, वह यह बात बता देगा कि तुम्हारे जेवर किस ने चुराए हैं. तांत्रिक के पास जाने के बहाने नसीम की योजना सुनीता मंगल को गंगनहर के तेज बहाव में धक्का देने की थी.

8 मई, 2023 को सुबह 8 बजे नसीम और सुनीता मंगल बैट्री रिक्शा द्वारा गंगनहर के किनारेकिनारे पथरी रोड पुल के पास पहुंचे थे. यहां पर नसीम ने तांत्रिक से मिलने से पहले सुनीता के कुंडल व अंगूठियां उतरवा ली. इस के बाद उस ने सुनीता मंगल को मां गंगा में जल चढ़ाने के बहाने गंगनहर के तेज बहाव में धक्का दे दिया. जिस से वह पानी में डूब गई.

सुनीता मंगल की हुई लाश बरामद

कोतवाल कुंदन सिंह राणा ने नसीम के ये बयान दर्ज कर लिए थे और नसीम की निशानदेही पर सुनीता मंगल के घर से चुराए हुए सभी जेवर भी बरामद कर लिए. उसी दिन शाम को ही पथरी रोड पुल के पास से ही सुनीता मंगल का शव पुलिस ने बरामद कर लिया. ज्वालापुर पुलिस ने शव का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम हेतु हरिमिलापी अस्पताल, हरिद्वार भेज दिया.

अगले दिन पुलिस ने सुनीता की गुमशुदगी के मामले में आईपीसी की धारा 379, 411 व 302 की बढ़ोतरी कर दी थी. इस के बाद एसएसपी अजय सिंह ने अपने रोशनाबाद स्थित कार्यालय में प्रैसवार्ता के दौरान नसीम को मीडिया के सामने पेश किया और सुनीता मंगल हत्याकांड का परदाफाश कर दिया.

नसीम के लालच व विश्वासघात के कारण जहां एक ओर सुनीता मंगल को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था तो दूसरी ओर नसीम भी हरिद्वार जेल में अपने किए की सजा भुगत रहा है. अपर सत्र न्यायालय द्वारा नसीम की जमानत की याचिका खारिज कर दी थी.

सुनीता मंगल को अपने घर में हुई ज्वैलरी की चोरी का शक पहले से ही नसीम पर था, मगर सुनीता चाहती थी कि बिना शोर मचाए नसीम उन के जेवरों को वापस कर दे, मगर नसीम भी शातिरदिमाग का निकला. उस ने सुनीता मंगल के जेवर उसे वापस करने के बजाए उसे गुमराह कर के मौत के घाट उतार दिया था. 2 बच्चों का बाप नसीम अब हरिद्वार जेल में बंद है.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

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स्पेशल 26 की तर्ज पर लाखों की ठगी – भाग 3

पुलिस टीम प्रदीप की तलाश में जुटी थी, लेकिन अगले कई दिनों तक वह हाथ नहीं आया. पुलिस प्रदीप और उस के भाई के मोबाइल नंबरों की जांच कर रही थी. लेकिन वे बंद हो चुके थे. पुलिस हर सूरत में पूरे मामले का परदाफाश करना चाहती थी. एसपी (सिटी) अजय सिंह समयसमय पर टीम के काम की

समीक्षा करते रहते थे. देखते ही देखते घटना को घटे डेढ़ महीने से ज्यादा का समय बीत गया, लेकिन आरोपियों का कोई सुराग नहीं मिला. कोई महत्त्वपूर्ण सुराग हाथ लग जाए, इस के लिए पुलिस ने जेल में बंद राखी और बेबी से दोबारा पूछताछ की.

पुलिस आरोपियों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स पर भी काम कर रही थी. इस से कडिय़ां जुड़ती चली गईं. इस कड़ी में एक नाम धर्मपाल भाटिया का सामने आया. धर्मपाल हरियाणा के जिला करनाल के हांसी रोड पर रहता था. पुलिस उसे गिरफ्तार कर के देहरादून ले आई और उस से पूछताछ के आधार पर देहरादून के थाना क्लेमन टाउन के गोकुल एन्कलैव में रहने वाले दीपक मनचंदा को भी 4 जनवरी, 2016 को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने दोनों से पूछताछ की. इन से पूछताछ में पुलिस को पता चला कि यह पूरी योजना एक महिला द्वारा तैयार की गई थी तो हैरानी बढ़ गई. सभी लोगों ने योजना बना कर जिस तरह फिल्मी अंदाज में छापा मारा था, पुलिस उलझ कर रह गई थी. ठगी का शिकार हुए यशपाल टंडन का उन का अपना कलैक्शन एजेंट ही उन्हें दगा दे गया था.

दरअसल, दीपक मनचंदा यशपाल के दोस्त विजय मनचंदा का भतीजा था. इसी नाते उन्होंने भरोसा कर के उसे अपने यहां कमेटी का पैसा जुटाने और अन्य कामों के लिए रख लिया था. दीपक ने खूब मेहनत कर के काम किया, जिस से यशपाल टंडन को उस पर पूरा भरोसा हो गया. वह उस के साथ परिवार के सदस्य की तरह व्यवहार करने लगे.

जरूरी नहीं कि इंसान जैसा दिखता है, ठीक वैसा हो ही. दीपक के साथ भी ऐसा ही था. वह बुरी आदतों का शिकार था. उन में एक आदत अनापशनाप खर्च करना भी थी. यशपाल के लिए वह मोटी रकम इकट्ठा करता था. धीरेधीरे उस ने उन से 5 लाख रुपए उधार ले लिए. जब रुपए लौटाने की बात आई तो वह परेशान रहने लगा.

दीपक मूलरूप से करनाल का ही रहने वाला था और कुछ सालों पहले ही देहरादून आया था. उस की जानपहचान धर्मपाल भाटिया और उस की पत्नी निशा उर्फ रेखा से थी. निशा तेजतर्रार महिला थी. एक दिन बातोंबातों में उस ने अपनी परेशानी दोनों को बताने के साथ यह भी बताया कि उस का मालिक काफी दौलतमंद आदमी है.

“तुम उसी से पैसा क्यों नहीं कमाते?” निशा ने रहस्यमय अंदाज में कहा.

“वह कैसे?” दीपक ने हैरानी से पूछा.

“इस की तरकीब मैं तुम्हें बताऊंगी.” निशा ने कहा.

आश्वासन मिलने पर दीपक को थोड़ी राहत मिल गई. जहांगीरपुरी में रहने वाले प्रदीप और बबलू निशा के भाई थे. दोनों काफी शातिर थे. वे एनजीओ की आड़ में ब्लैकमेलिंग का धंधा करते थे. निशा और धर्मपाल ने इस मुद्दे पर उन से बात की तो काफी सोचविचार कर उन्होंने फिल्म ‘स्पैशल 26’ की स्टाइल में यशपाल टंडन को लूटने की सोची.

इस के बाद उन्होंने दीपक से बात की तो उस ने यशपाल के बारे में सब कुछ बता दिया. उस ने यह भी बताया कि यशपाल चूंकि कमेटी के साथ ब्याज पर भी रुपए देने का काम करते हैं, इसलिए उन के पास बिना हिसाबकिताब की मोटी रकम होती है. प्रदीप और निशा को वह सौफ्ट टारगेट लगे. प्रदीप स्मार्ट युवक था और अधिकारियों वाले अंदाज में रहता था.

सभी ने मिल कर यशपाल को प्रवर्तन निदेशालय के फरजी छापे के जरिए अपना शिकार बनाने का फैसला किया. प्रदीप ने इस योजना में अपने एक दोस्त पंकज तिवारी, भांजे रमन और एनजीओ में काम करने वाली बेबी और राखी को भी लालच दे कर शामिल कर लिया.

प्रदीप, उस का भाई, दोस्त, भांजा और दोनों लड़कियों ने कई बार ‘स्पैशल 26’ फिल्म देखी. प्रदीप को अधिकारी की भूमिका में रहना था, जबकि बाकी को टीम के सदस्य के रूप में. योजना बन गई तो तय दिन 2 नवंबर के एक दिन पहले ही धर्मपाल दीपक के पास देहरादून पहुंच गया.

अगले दिन प्रदीप ने बहाने से पुष्पा की कार मांगी और बबलू, पंकज, रमन, बेबी और राखी के साथ शाम को दिल्ली से चल कर करीब 8 बजे देहरादून पहुंच गया. यशपाल और दीपक तय योजना के तहत उन्हें रास्ते में मिल गए. सभी लोग यशपाल की कोठी पर पहुंचे.

चूंकि यशपाल दीपक को पहचानते थे, इसलिए वह धर्मपाल के साथ बाहर कार ही में रुक गया. यशपाल को उन के फरजी ईडी होने का शक न हो, इस के लिए प्रदीप ने उन्हें उन के दोस्त के यहां पूर्व में पड़े आयकर विभाग के छापे का जिक्र किया. यह बात दीपक उसे पहले ही बता चुका था. उन्होंने बेहद शातिराना अंदाज में 21 लाख कैश और गहने ठग लिए. जातेजाते वे स्कूटी भी ले गए, जिसे उन्होंने कारगी चौक पर छोड़ दिया.

इस के बाद दीपक अपने घर चला गया. धर्मपाल करनाल और बाकी लोग दिल्ली. प्रदीप ने कहा कि वह माल का बंटवारा बाद में करेगा. लेकिन वह सभी से शातिर निकला और अपने भाई के साथ पूरी रकम ले कर फरार हो गया. उस ने सिर्फ बेबी और राखी को 6 हजार रुपए खर्च के लिए दिए थे.

पूछताछ के बाद पुलिस ने आरोपियों का सामना यशपाल टंडन से कराया. वह अपने दोस्त के भतीजे द्वारा दी गई दगा से आहत थे. एसएसपी डा. सदानंद दाते ने 5 जनवरी, 2016 को आरोपियों को मीडिया के सामने पेश कर के केस का खुलासा किया और पुलिस टीम को ढाई हजार रुपए इनाम देने की घोषणा की.

पुलिस ने बाद में गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक जेल गए आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी. बाकी अन्य आरोपी निशा उर्फ रेखा, प्रदीप, बबलू, पंकज और रमन की तलाश जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित